तानों के डर से पेरेंट्स अपने बच्चों को घर से निकाल देते है –नाज़ जोशी

कुछ लोग अपने अधूरेपन को लेकर जीवनभर खुद को कोसते रहते है, जबकि कुछ उससे निकलकर एक नयी दुनिया, नयी सोच बना लेने के साथ-साथ, उनके प्रति लोगों के नजरिये को भी बदलने में सक्षम होते है. ऐसा करने के लिए उन्हें चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, पर वे इससे घबराते नहीं, बल्कि समाज, परिवार और धर्म के आगे एक मिसाल खड़ी कर देते है, ऐसे ही चैलेंजेस से गुजरकर, तीन बार मिस वर्ल्ड डाइवर्सिटी विजेता सुंदरी ट्रांससेक्सुअल नाज़ जोशी, भारत की पहली ट्रांस सेक्सुअल इंटरनेशनल ब्यूटी क्वीन, ट्रांस राईट एक्टिविस्ट, मोटीवेशनल स्पीकर और एक ड्रेस डिज़ाइनर है. दिल्ली की रहने वाली नाज़ आगे ‘क्वीन यूनिवर्स 2021 सीजन 3 के लिए बैंकाक जाने वाली है, जो उनकी एक पहल है, जिसमें विश्व के सभी उम्र और बॉडी शेप की महिलाएं भाग लेंगी, जिसमे सुन्दरता को अधिक महत्व न देने के साथ-साथ, उनका परिवार और समाज के प्रति योगदान को भी महत्व दिया जाएगा. हंसमुख और स्पष्टभाषी नाज़ से उनकी जर्नी के बारें में बात हुई, पेश है कुछ अंश.

सवाल- आपको ब्यूटी क्वीन बनने की प्रेरणा कहाँ से मिली?

जब मैंने सुस्मिता सेन और ऐश्वर्या राय को ताज पहनते देखा, तो मुझे भी ताज पहनने का  शौक हुआ. मजे की बात यह है कि मैंने कभी ट्रांसजेंडर के साथ कॉम्पिटिशन नहीं किया. मैंने नॉर्मल लड़कियों के साथ प्रतियोगिता की है और आज तक 7 इंटरनेशनल क्राउन जीत चुकी हूं. इससे मुझे बहुत प्रेरणा मिली. कॉन्फिडेंस मिला और सामाजिक काम करने की इच्छा पैदा हुई. मैं अधिकतर ट्रांसजेंडर की हेल्थ, उनकी समस्याओं का निराकरण, शिक्षित करना आदि करती हूं.

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अभी मेरा उद्देश्य नई लड़कियों को एक्टिंग के क्षेत्र में सही राह दिखाना भी है, क्योंकि अभिनय की दुनिया में कास्टिंग काउच बहुत अधिक है और लड़कियां उनकी शिकार बनती है. ऐसी कई घटनाएं है, जहाँ लोग खुद को कास्टिंग डायरेक्टर कहते है, लडकियों के वहां जाने पर वे उनके खाने या ड्रिंक में कुछ मिला देते है और उनका शोषण करते है. मैं किसी लड़की के ब्यूटी कांटेस्ट जीतने के बाद उन्हें इंडस्ट्री में जाने की पूरी गाइडेंस देती हूं.

सवाल- आप ट्रांससेक्सुअल कैसे बनी? इस मुकाम तक पहुँचने के लिए कितनी चुनौतियाँ थी?

मैं एक मुस्लिम माँ और पंजाबी पिता के घर में जन्मी हूं. जब 7 साल की थी तो मेरे परिवार ने मुझे मुंबई किसी दूर के रिश्तेदार के यहाँ भेज दिया था, ताकि उन्हें किसी प्रकार के ताने न सुनने पड़े. मैंने मुंबई में बहुत मोलेस्टेशन सहा है. जहाँ काम करती थी, वहां भी लोगों ने बहुत प्रताड़ित किया है, इसलिए मैं लड़कियों को आज प्रोटेक्शन देती हूं. अपना सेक्स बदलने के लिए मुझे सर्जरी से गुजरना पड़ा. मेरे हिसाब से अगर हमारे देश की लड़कियां सशक्त नहीं होंगी, तो ट्रांसजेंडर का सशक्त होना मुमकिन नहीं. असल में ट्रांसजेंडर पहले एक इंसान है और बाद में उनका जेंडर आता है. मैं ट्रांसजेंडर के अधिकार के लिए समय-समय पर बात करती हूं, जिसमें उनके स्वास्थ्य से जुडी जानकारियाँ, सेफ सेक्स आदि होता है, जिससे उनका जीवन खतरें में न पड़े. इसके अलावा मैं दुनिया की पहली ऐसी महिला हूं, जो लड़कियों के लिए इंटरनेशनल शो करने बैंकाकजा रही हूं, जिसमें सभी वर्ग और उम्र की महिलाएं भाग ले सकेंगी. इसमें सुन्दरता से अधिक उनका योगदान समाज के प्रति कितना है, उसे प्राथमिकता दी जाएगी.

सवाल- ट्रांसजेंडर के साथ लोगों का दुर्व्यवहार करने की वजह क्या मानती है, किसे आप इसकी जिम्मेदार ठहराती है?

इसकी जिम्मेदारी पेरेंट्स की है, क्योंकि वे ऐसे बच्चे को ताने के डर से स्वीकार नहीं करते और घर में छुपाकर या कही बाहर भेज देते है. उन्हें शिक्षित करने पर वे भी मुख्य धारा से जुड़ सकते है. अगर स्कूल में उन्हें ताने सुनने पड़ते है तो उसका समाधान पेरेंट्स स्कूल में जाकर बातचीत के द्वारा सुलझा सकते है. नार्थ ईस्ट की एक ट्रांसजेंडर लड़की अब डॉक्टर बन चुकी है. उसे अधिक समस्या इसलिए नहीं आई, क्योंकि नार्थ ईस्ट और थाईलैंड जैसी जगहों पर लड़के भी लड़कियों जैसे ही दिखते है. इसलिए सबसे घुलना-मिलना आसान होता है, जो हमारे देश में नार्थ में नहीं होता.

इसके अलावा 100 से भी अधिक ट्रांसजेंडर लड़कियां अपने पाँव पर आज खड़ी है, जिनमे एक्ट्रेस, सामाजिक काम, दूसरों को मोटीवेट करना आदि है. ये सब मुझसे बहुत प्रेरित है. दरअसल माता-पिता अगर ट्रांसजेंडर बच्चे के साथ ‘पिलर’ बनकर खड़े होते है, तो वे भी बहुत कुछ कर सकते है. किन्नर दो तरह के होते है, कुछ जन्म से तो कुछ बाद में अपना सेक्स चेंज करवाते है. ये कोई बीमारी नहीं होती. पैरेंट्स के स्वीकारने से सड़कों पर किन्नरों का भीख मांगना, अनजाने लोगों से सड़क पर सेक्स करना कम होगा. माता-पिता केवल बच्चे को अपना लें, बस यही काफी होगा.

सवाल- आपकी जर्नी में पेरेंट्स की भूमिका कैसी रही?

मेरे परिवार में माता से अधिक पिता और बहनका सहयोग रहा है. भाई और माँ भी केयरिंग है, जब मुझे कोरोना संक्रमण हुआ था, तो उन्होंने मेरा बहुत ध्यान रखा था.

सवाल- सेक्स चेंज की भावना कैसे आई और सेक्स चेंज के बाद क्या-क्या एहतियात बरतने की जरुरत होती है?

बचपन में 3 साल की उम्र से ही ऐसी भावना रही है, क्योंकि स्कूल में मुझे डॉल बनाया गया था और आसपास की लड़कियों के साथ उठना-बैठना अच्छा लगता था. इसके अलावा बचपन में मुझे किसी ने गाना गाने को कहा और मैंने लैला ओ लैला….. गाई . असल मेंमुझे ग्लैमर और एक्टिंग छोटी उम्र से पसंद था, जिसमें जीनत अमान, परवीन बॉबी, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित आदि सभी एक्ट्रेसेस को फिल्मों में देखना अच्छा लगता था. जब बड़ीहुई तो लगा कि मैं भी इनकी तरह पर्दे पर चुडियां पहन कर डांस करूँ. घर पर भी मैं गानालगाकर डांस किया करती थी.बड़ी होने पर साधना कट बाल रखी, जिसे पेरेंट्स ने ऑब्जेक्शन किया और लड़कों की तरह चलने-फिरने की हिदायत दी. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ, क्योंकि मैं अंदर से लड़की थी. फिर पिता ने मुंबई भेजा, वहां मैंने काम के साथ पढाई की और दिल्ली आ गयी. इसके बाद सेक्स चेंज करवाई और सब ठीक हो गया. शिक्षित होना मुझे पसंद है, क्योंकि इससे आत्मबल बढ़ता है, इसलिए मैंने उसका दामन कभी नहीं छोड़ा.

सेक्स चेंज के दौरान दो साल तक हार्मोन लेना पड़ा है,क्योंकि हार्मोन पूरे शरीर को बदल देता है. इसका असर किडनी, लिवर आदि पर पड़ता है. हर महीने शरीर और हार्मोन का टेस्ट करवाना पड़ता है. कई बार सेक्स चेंज के दौरान मृत्यु भी हो जाती है. इसलिए डॉक्टर की सलाह के अनुसार सेक्स चेंज के लिए जाएँ और उनके हिसाब से दवाएं लें.

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सवाल- आप कितनी फैशनेबल है? आगे की योजनायें क्या है?

मैं एक ड्रेस डिज़ाइनर हूं और अपना ड्रेस खुद डिजाइन करती हूं, जो सिंपल और आरामदायक होता है. सलवार कमीज पहनती हूं और शो के हिसाब से गाउन या शोर्ट ड्रेस पहनती हूं. मुझे बहुत दुःख होता है, जब मैं किसी लड़की को उसके ड्रेस की वजह से रेप हुआ, सुनती हूं. ड्रेस एक पहनावा है और उसे कोई भी लड़की अपने हिसाब से पहन सकती है. ऐसे गलत दिमाग वाले पुरुषों और लड़कों को, लड़कियों की इज्जत बचपन से करने की सीख पेरेंट्स को देने की जरुरत है. मैंने अपनी प्रतियोगिता में मार्शल आर्ट्स की भी एक कोर्स रखने के बारें में सोचा है, ताकि वे अपना बचाव खुद कर सकें.आगे मैं एक एनजीओ खोलकर उसमे भी मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग और लड़कियों को ग्रूमिंग कर आत्मनिर्भर बनाने की इच्छा रखती हूं.

सवाल- क्या मेसेज देना चाहती है?

मेरा सभी परिवारों, समाज और महिलाओं से कहना चाहती हूं कि ट्रांसजेंडर को अपनाएं, उन्हें शिक्षित करें. वे भी सबके साथ मिलकर अच्छा काम कर सकती है. अभी मेक इन इंडिया का स्लोगन से भी अधिक एमपॉवर इंडिया का स्लोगन होना चाहिए, क्योंकि महिलाएं शिक्षित और आत्मनिर्भर होने से पूरा देश आगे बढेगा.

पिकनिक: सुप्रिया को क्यों अमित की रईसी में अहंकार की बू आती थी

लेखक- राजेंद्र कुमार पाण्डेय

सुप्रिया ने कंप्यूटर औन कर के इंटरनैट से कनैक्ट किया. अभी सुबह के 4 बजने में 1 मिनट शेष था. शीघ्र ही कंप्यूटर स्क्रीन पर बीकौम का परिणाम उस की आंखों के समक्ष उभर आया. मैरिट लिस्ट देखते ही वह सब से पहले उसे गौर से पढ़ने लगी, लेकिन आशा के विपरीत मैरिट लिस्ट में चौथे स्थान पर अपना रोल नंबर देखते ही वह प्रसन्नता से झूम उठी.

एक ही सांस में वह पूरी लिस्ट पढ़ती चली गई, लेकिन यह क्या? दुनिया का 8वां आश्चर्य, अमित, जिसे वह अकसर ‘बुद्धू’ व ‘नालायक’ कह कर पुकारती रही, का नाम भी मैरिट लिस्ट में 11वें स्थान पर नजर आया तो सहसा उसे विश्वास ही नहीं हुआ. उसे यह उम्मीद तो थी कि शायद उस का प्रेमी जो उस की प्रेरणा के कारण दिनरात पढ़ाई में जुटा रहता है, जीवन में पहली बार प्रथम श्रेणी अवश्य प्राप्त कर लेगा, परंतु वह एकदम सोच से परे छलांग लगा कर मैरिट लिस्ट में अपना नाम लिखवा लेगा, यह उसे एकदम स्वप्न सा प्रतीत हो रहा था.

सुप्रिया ने उसी समय अमित को फोन लगाया. उधर से ‘हैलो डार्लिंग’ का मधुर स्वर सुनते ही वह खुशी से बोल उठी, ‘‘क्यों बुद्धूराम, तुम मैरिट लिस्ट में आ गए हो, लेकिन कैसे?’’

‘‘मुझे मालूम है, मैं भी परीक्षा परिणाम ही देख रहा हूं.’’

‘‘सचसच बताओ, यह चमत्कार कैसे हुआ?’’

‘‘जानेमन, तुम्हारी जिद थी कि अगर इस परीक्षा में मैं ने प्रथम श्रेणी प्राप्त नहीं की तो तुम न तो मेरी गुस्ताखी को कभी माफ करोगी और न ही भविष्य में मेरे संग प्रेमपथ पर अपने कदम आगे बढ़ाओगी. बस, तभी से मैं ने भी तुम्हारी तरह जिद पकड़ ली कि प्रथम श्रेणी तो ले कर ही रहूंगा. यही समझ लो कि तुम्हारी इच्छा और मेरी जिद ने यह करिश्मा कर दिखाया. अच्छा, अब सो जाओ और मुझे भी सोने दो. बहुत गहरी नींद आ रही है,’’ कहते हुए अमित ने फोन काट दिया.

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सुप्रिया की सारी सोच इस समय अमित के इर्दगिर्द ही चक्कर काट रही थी. उस की आंखों से नींद मानो कोसों दूर थी. उस के कमरे, मनमस्तिष्क और स्मृतियों में अमित का हंसमुख, खूबसूरत चेहरा बारबार नजर आ रहा था. बीते वर्ष की यादें उस के भीतर उथलपुथल मचाए हुए थीं.

कालेज के प्रथम वर्ष में तो सबकुछ सामान्य ही रहा. हालांकि धनी परिवार के अमित की इश्कमिजाजी और स्वच्छंद प्रवृत्ति के कई किस्से सुप्रिया के सुनने में आए थे, परंतु उस ने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया था, लेकिन दूसरे वर्ष में उस ने महसूस किया कि कक्षा की अन्य 12-13 छात्राओं में से अमित सिर्फ उसी में विशेष दिलचस्पी ले रहा है.

कई बार उस ने साधारण बातचीत से हट कर इशारोंइशारों में सुप्रिया के समक्ष बाजारू शैली में उस की खूबसूरती की प्रशंसा की और अपनी चाहत का इजहार भी किया, परंतु उन दिनों न जाने क्यों अमित की खूबसूरती, उस की गाड़ी और रईसी अंदाज में सुप्रिया को हमेशा अहंकार की बू आती थी. उस की हलकीफुलकी चुहलबाजी कभीकभार सुप्रिया को आत्मविभोर तो कर देती, परंतु फिर भी वह उसे घटिया स्तर का युवक ही समझती थी.

इस दौरान अमित ने इसी कालेज में पढ़ रही अपनी मौसेरी बहन प्रतिभा के माध्यम से अपना प्रेम संदेश भी सुप्रिया तक पहुंचाया, परंतु उस ने नकारात्मक उत्तर ही दिया.

सुप्रिया के उत्तर से अमित के दिल को शायद चोट पहुंची. अपने मस्तमौला स्वभाव के चलते वह ईर्ष्यावश बदला लेने के लिए उसे चिढ़ाने और तंग करने लगा. कभीकभी समीप से गुजरते हुए वह सुप्रिया को ‘छमिया’ व ‘नखरे वाली’ कह कर संबोधित करता, परंतु वह उस की इन घटिया हरकतों को अनसुना व अनदेखा करती रही.

कालेज के तृतीय वर्ष के आरंभ में ही पूरी कक्षा ने शहर से 20-25 किलोमीटर दूर पुराने किले के समीप नदी किनारे पिकनिक मनाने का कार्यक्रम बनाया. प्रोफैसर आशीष भी परिवार सहित इस पिकनिक पार्टी में शामिल होने के लिए तैयार हो गए.

रविवार प्रात: 10 बजे सभी छात्रछात्राएं बस में सवार हो कर लगभग पौने घंटे में किले के समीप पहुंचे. सभी अपनेअपने टिफिन साथ लाए थे क्योंकि इस वीरान स्थान पर नजदीक कोई होटल या ढाबा नहीं था.

प्रोफैसर आशीष के आदेशानुसार किले के भीतर एक चबूतरे पर 2 दरियां बिछा दी गई थीं और सभी उन पर बैठ गए थे. थोड़ी देर की गपशप के बाद गीत प्रतियोगिता आरंभ हुई. पहले प्रोफैसर आशीष ने गायक मुकेश का एक पुराना गीत सुनाया. गीत समाप्त होने पर उन्होंने अपनी पत्नी को संकेत किया तो उन्होंने एक भोजपुरी लोकगीत गा कर खूब प्रशंसा बटोरी. इस के बाद 5-6 अन्य छात्रछात्राओं ने भी नएपुराने फिल्मी गीत गाए. फिर भाषण प्रतियोगिता आरंभ हुई, जिस में सिर्फ 3 छात्रों ने ही भाग लिया. थोड़ी देर बाद ही प्रोफैसर ने सब को किला देखने व नदी किनारे घूमने की आज्ञा दे दी.

किले के दाईं ओर नदी के किनारेकिनारे घने वृक्षों का सिलसिला आरंभ हो गया था. सुप्रिया अपनी 3 सहेलियों के साथ नदी किनारे टहलने चल पड़ी जबकि परिवार सहित प्रोफैसर आशीष और अन्य सभी छात्रछात्राएं किले के भीतर ही घूमने का आनंद लेने लगे.

‘‘ऐ छमिया, हमें भी साथ ले लो. नदी किनारे घूमने का मजा दोगुना हो जाएगा,’’ पुरुष स्वर सुन कर सुप्रिया और उस की सखियों ने मुड़ कर पीछे देखा तो उन्हें अमित के संग 2 अन्य सहपाठी भी नजर आए. वे चारों सखियां कुछ सोचतींसमझतीं, इस से पहले ही अमित ने आगे बढ़ कर सुप्रिया की दाईं कलाई कस कर पकड़ ली, ‘‘क्यों छमिया, बहुत नखरे दिखाती हो. हमारे रहते कालेज के किसी दूसरे छोकरे से इश्क लड़ा रही हो?’’

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‘‘बकवास बंद करो,’’ कहते हुए सुप्रिया ने अपनी कलाई छुड़ाने का प्रयास किया, परंतु अमित की पकड़ काफी मजबूत थी, अत: वह क्षणभर बेबस सी उसे घूरती ही रही. उसी समय उस ने देखा कि भयभीत सी उस की तीनों सखियां तेजी से किले की ओर जा रही हैं. उन में से एक ऊंची आवाज में चिल्लाई, ‘‘सुप्रिया, इस बदमाश ने शायद शराब पी रखी है. हम अभी जा कर प्रोफैसर सर को बताते हैं. डरो मत, अभी इस लफंगे की अच्छीखासी पिटाई हो जाएगी.’’

उसी क्षण सुप्रिया ने देखा कि अमित के संग आए अन्य दोनों छात्र भी पीछे मुड़ कर तेजी से किले की ओर चले जा रहे हैं, तभी उस ने आव देखा न ताव, अमित के हाथ पर जोर से दांतों से काटा तो इस आकस्मिक आक्रमण से उस ने चीखते हुए फौरन सुप्रिया की कलाई छोड़ दी.

सुप्रिया को बस इन्हीं क्षणों की प्रतीक्षा थी. अमित उस के सामने किले की तरफ पीठ किए खड़ा था, अत: वह तेजी से नदी के किनारेकिनारे भागने लगी.

अमित पहले तो किंकर्तव्यविमूढ़ सा सुप्रिया को भागते हुए देखता रहा, फिर न जाने क्या सोच कर वह भी उस के पीछे भागने लगा. अब सुप्रिया ने महसूस किया कि उस ने इस तरफ भाग कर भयंकर भूल की है, क्योंकि आगे ऊंचे, घने पेड़ों की शृंखला आरंभ हो गई थी. जंगल के खौफनाक खतरे ने उसे और भी भयभीत कर दिया था.

कुछ दूर भागने पर सुप्रिया जब पेड़ों के झुरमुट के पीछे जा खड़ी हुई तो उसे सामने थोड़ी दूरी पर एक जगह धुआं उठता दिखाई दिया और साथ ही 2-3 झोंपडि़यां भी दिखाई दीं. पेड़ों के झुरमुट के पीछे छिपी होने के कारण सुप्रिया जब अमित को नजर न आई तो उस ने ठिठक कर स्थिति को समझने का प्रयास किया, लेकिन शीघ्र ही उसे जब सुप्रिया का हवा में लहराता दुपट्टा नजर आया तो वह दोगुने जोश से उसी ओर दौड़ पड़ा. उस के भागते कदमों की आवाज सुनते ही सुप्रिया भी तेजी से सामने नजर आ रही झोंपडि़यों की दिशा में भागने लगी.

भागते कदमों की आहट सुनते ही एक झोंपड़ी से एक वृद्ध और एक युवक बाहर निकले. जब उन्होंने एक युवती और उस का पीछा कर रहे युवक को तेजी से दौड़ते देखा तो हैरानी से दोनों उन की ओर देखने लगे. उन्हें देखते ही सुप्रिया चिल्लाई, ‘‘बचाओ, बचाओ, यह गुंडा मेरा पीछा कर रहा है,’’ और शीघ्र ही वह उन दोनों के समक्ष जा पहुंची.

तभी वृद्ध सारी स्थिति को भांपते हुए जोर से चिल्लाया, ‘‘शेरू… शेरू… पकड़ उस बदमाश को.’’

वृद्ध का संकेत मिलते ही झाडि़यों के पीछे से काले रंग का एक कुत्ता भौंभौं करता हुआ तेजी से जीभ लपलपाता हुआ अमित की ओर भागा. इस से पहले कि वह संभल पाता, कुत्ते ने उछल कर उस पर झपट्टा मारा और उस की दाईं टांग पर अपने पैने दांत गड़ा दिए. दर्द से कराहता अमित जोर से चिल्लाया, ‘‘हाय…मार डाला… इस कुत्ते को दूर भगाओ. सुप्रिया, इन से कहो, कुत्ते को वापस बुला लें,’’ कहते हुए वह स्वयं को कुत्ते से बचाने का प्रयास भी कर रहा था.

अमित की दर्दभरी आवाज सुनते ही सुप्रिया का नाजुक दिल पिघल गया. वह वृद्ध से बोली, ‘‘बाबा, कुत्ते को अपने पास बुला लो. उस का नशा शायद अब उतर गया है. ऐसा लगता है, कुत्ते ने उसे जोर से काटा है.’’

‘‘शेरू…शेरू… इधर आओ,’’ वृद्ध के पुकारते ही भौंभौं करता, उछलताकूदता कुत्ता उस के पास आ खड़ा हुआ.

वृद्ध के समीप खड़ा युवक तेजी से आगे बढ़ कर अमित के पास पहुंचा और उस की दाईं टांग देखते ही बोला, ‘‘जींस पहनी होने के कारण मामूली जख्म ही हुआ है. क्यों हीरो, लड़की के पीछे भागते हुए बड़ी जवांमर्दी दिखा रहे थे. जरा हमारे शेरू से भिड़ते तो तुम्हें ऐसा मजा चखाता कि उम्रभर याद रखते.’’

‘‘बाबा, बहुतबहुत धन्यवाद,’’ सुप्रिया वृद्ध के पांव छूने को झुकी तो उस ने मुसकराते हुए संकेत से ऐसा करने से रोका.

उधर शोरशराबा सुन कर अन्य झोंपडि़यों में से भी अन्य पुरुष, महिलाएं और बच्चे बाहर निकल कर हैरानी से उन की ओर देखने लगे.

‘‘हाय, बहुत पीड़ा हो रही है,’’ तभी अमित की दर्दनाक आवाज सुन कर सब का ध्यान उस की ओर गया.

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वृद्ध शीघ्र ही एक झोंपड़ी में गया और एक मैला सा थैला निकाल कर ले आया. उस में रखी एक बोतल में से कोई दवा निकाल कर पहले तो उस ने अमित के जख्म पर एक लेप लगाया और फिर पुराने कपड़े को झाड़ कर पट्टी बांध दी. तभी झोंपडि़यों की ओर कुछ लोगों के तेजतेज कदमों की आवाजें सुनाई दीं. उसी समय कोई जोर से चिल्लाया, ‘‘सुप्रिया…सुप्रिया… तुम कहां हो?’’

‘‘अमित के बच्चे, सुप्रिया का पीछा करना छोड़ दे. जल्दी से उसे ले कर हमारे पास लौट आ,’’ तभी किसी दूसरे व्यक्ति की आवाज सुनाई दी.

शीघ्र ही प्रोफैसर आशीष के साथ 8-10 छात्र झोंपडि़यों के समीप आ पहुंचे. वे सभी भयभीत सुप्रिया, घायल अमित और तेजी से पूंछ हिलाते शेरू को देखते ही सारा माजरा समझ गए. प्रोफैसर ने क्रोधभरी नजरों से अमित की ओर देखा, ‘‘उठो, अब आंखें फाड़फाड़ कर हमारी ओर क्या देख रहे हो? सुमित, राजेश, तुम दोनों इसे सहारा दे कर किले की तरफ ले चलो. आओ सुप्रिया, तुम्हारे साथ जो हुआ, उस का हमें बहुत खेद है… और बाबा,’’ उन्होंने वृद्ध की ओर देखते हुए कहा, ‘‘आप ने इस बच्ची की इज्जत बचाई, इस के लिए बहुतबहुत धन्यवाद. वैसे आप लोग कौन हैं और इस जंगल में क्या करने आए हैं?’’

‘‘हम गायभैंसों को पालते हैं और उन का दूध पास के कसबे में बेचने के लिए ले जाते हैं. यही व्यवसाय हमारे जीने का सहारा है.’’

‘‘अच्छा बाबा. बहुतबहुत शुक्रिया,’’ सुप्रिया ने जातेजाते कृतज्ञ नजरों से वृद्ध की ओर देखा.

अमित का सिर लज्जा और ग्लानि से झुका हुआ था. वह सुमित और राजेश के सहारे ‘हाय…हाय…’ करता, लंगड़ाता हुआ धीरेधीरे किले की ओर बढ़ रहा था. आधे घंटे में सभी किले के बाहर खड़ी बस के समीप जा पहुंचे. वहां मौजूद छात्रछात्राओं में खलबली मची हुई थी.

सभी अमित और सुप्रिया के बारे में पूरी कहानी सुनने को उत्सुक थे, परंतु बस में सवार होते ही प्रोफैसर ने सब को यह कह कर शांत कर दिया कि सारी बात पहले प्रिंसिपल साहब के समक्ष रखी जाएगी.

शहर पहुंचते ही अमित और सुप्रिया के अभिभावकों को इस घटना के बारे में सूचित कर दिया जाएगा. इन दोनों से उन के समक्ष ही पूरी पूछताछ की जाएगी. तब तक आप सभी शांत रहें, बात का बतंगड़ न बनाएं, इस से हमारे कालेज की बदनामी होगी.

कालेज के समीप ही हिमालय नर्सिंग होम के समक्ष बस रोक दी गई. कुछ छात्र अमित के साथ वहीं उतर गए. प्रोफैसर आशीष ने अमित से मोबाइल नंबर पूछ कर उस के पापा को पूरी घटना से अवगत कराया.

दूसरे दिन अमित की तबीयत काफी संभल गई थी. इलाज के बाद वह स्वयं को काफी स्वस्थ महसूस कर रहा था. सुबह 8 बजे प्रोफैसर आशीष, कालेज के प्रिंसिपल दामोदरनाथ, अमित के पापा निकलराज और सुप्रिया के पापा देवेंद्र सिंह नर्सिंग होम के प्राइवेट कक्ष में अमित के समक्ष खामोश बैठे थे. सभी को दुर्घटना की पूरी जानकारी मिल चुकी थी. सुप्रिया एक कोने में चुपचाप बैठी थी. प्रिंसिपल ने उस की ओर देखते हुए हौले से पूछा, ‘‘बेटी, तुम इस दुर्घटना के बारे में कुछ कहना चाहती हो?’’

सभी की नजरें सुप्रिया के चेहरे पर जा टिकी थीं. उस ने एक नजर पीड़ा और अपमान से लज्जित अमित पर डाली, ‘‘क्यों श्रीमान, आप अपने बचाव में कुछ कहना चाहेंगे?’’

अमित को सुप्रिया की तरफ से ऐसी नम्रता और हमदर्दी की आशा नहीं थी, अत: वह धीमे स्वर में बोला, ‘‘लोग समझ रहे हैं कि मैं ने शराब पी रखी थी, लेकिन मैं ने बस बीयर पी थी.’’

‘‘उल्लू की दुम, बीयर भी तो हलकी शराब ही होती है,’’ अमित के पापा ने गुस्से से उस की ओर देखा.

‘‘मैं अपनी भूल स्वीकार करता हूं. इस बारे में कोई सफाई भी नहीं देना चाहता. मैं हाथ जोड़ कर आप सब से यही विनती करता हूं कि मेरी इस भूल को आप सब और विशेष कर सुप्रियाजी क्षमा कर दें.’’

‘‘अगर भविष्य में फिर कभी ऐसी ओछी हरकत दोहराई तो?’’ सुप्रिया ने कृत्रिम रोषभरी नजरों से अमित की ओर देखा.

‘‘मेरी तोबा. मैं अपनी उस घटिया हरकत पर बहुत शर्मिंदा हूं.’’

‘‘ठीक है, इस बार इसे माफ कर दिया जाए. क्यों, आप भी शायद ऐसा ही सोच रहे हैं?’’ सुप्रिया ने अपने पापा की ओर देखा.

‘‘बेटी, युवावस्था में अकसर ऐसी नादानियां हो ही जाती हैं. मैं प्रिंसिपल साहब से भी यही प्रार्थना करता हूं कि इस प्रकरण को यहीं समाप्त कर दिया जाए. वैसे अमित से पहले इस के पापा भी मुझ से क्षमा मांग चुके हैं. बेटी, अब तुम भी इस नालायक को माफ कर दो. इस नादान से थोड़ी सहानुभूति जताओ. तुम्हारा बदला तो उस कुत्ते ने जख्म दे कर इस से पहले ही ले लिया है.’’

सुप्रिया के पापा की बात सुनते ही कमरे में हंसी की लहर दौड़ गई.

तभी सुप्रिया ने अमित की ओर देखा, ‘‘तुम दोस्तों के संग जितना समय आवारागर्दी में बरबाद करते हो, उसे अपनी पढ़ाई में क्यों नहीं लगाते? आज तक तुम ने कभी प्रथम श्रेणी प्राप्त की है?’’

‘‘नहीं,’’ अमित ने शर्म से सिर झुका लिया.

‘‘तुम अगर यह ठान लो कि इस वर्ष बीकौम की फाइनल परीक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त करोगे तो मैं तुम्हें इसी समय क्षमा कर दूंगी.’’

‘‘मैं पूरापूरा प्रयास करूंगा. तुम्हारी इच्छा और अपने भविष्य के साथ कभी खिलवाड़ नहीं करूंगा,’’ अमित का स्वर सुनते ही सुप्रिया मुसकराई, ‘‘जाओ, अब घर जा कर आराम करो और फिर पढ़ाई में जुट जाओ. मैं तुम्हें क्षमा करती हूं.’’

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कुछ दिन तक इस प्रकरण की कालेज में काफी चर्चा होती रही, परंतु वक्त के साथसाथ सभी इसे भूलते चले गए. अमित की सोच व व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया था. सुप्रिया से क्षमा मांगते समय किए गए वादे के अनुसार उसे हर हालत में प्रथम श्रेणी प्राप्त करनी ही थी, अत: अब वह हमेशा पढ़ाई में व्यस्त रहता. अमित में आए परिवर्तन से सुप्रिया के मन में भी उस के प्रति भरी कड़वाहट धीरेधीरे समाप्त होती चली गई. जानेअनजाने पिकनिक और उस दिन जंगल में घटी घटना को याद कर के जहां वह पहले भयभीत हो जाती थी, अब रोमांचित होने लगी थी. उधर अमित भी उसे दिल से चाहने लगा था.

लगभग 2 माह बाद अमित की मौसेरी बहन प्रतिभा के माध्यम से उस के घर पर होने वाली मुलाकात में अमित और सुप्रिया के बीच साधारण बातचीत ही हुई. लेकिन अगली 2-3 मुलाकातों में दोनों ने अपनीअपनी चाहत को खुले मन से एकदूसरे के समक्ष प्रकट कर दिया, लेकिन अमित के बारबार अनुरोध करने पर भी सुप्रिया ने उसे अपने बदन को स्पर्श नहीं करने दिया.

मैरिट लिस्ट में अमित का नाम देख कर सुप्रिया का मन नाच उठा था. अगले दिन जब प्रतिभा के घर पर दोनों की फिर से मुलाकात हुई तो अमित ने खुशी से झूमते हुए सुप्रिया को बांहों में लेना चाहा लेकिन उस ने कृत्रिम क्रोध से आंखें तरेरीं, ‘‘इतना उतावलापन ठीक नहीं, इश्क करने को पूरी उम्र पड़ी है.’’

‘‘जानेमन, कुछ तो इस गरीब पर तरस खाओ. इस खुशी की वेला में जरा तो मेरे करीब आओ,’’ अमित बोला.

‘‘बुद्धूराम, इस शानदार सफलता की बहुतबहुत बधाई, लेकिन याद रखो, न तो यह पिकनिक स्थल है और न ही नदी किनारे का जंगल. यह तुम्हारी मौसी का सुरक्षित घर है. ज्यादा शरारत की तो दोनों कान खींच लूंगी,’’ कहतेकहते सुप्रिया ने आगे बढ़ कर अमित का माथा चूम लिया और फिर स्वयं ही उस की बांहों में समाती चली गई.

शादी किसी से भी करें, आपका हक है

दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके में रहने वाले प्रतीक (29) ने जब अपने घर में सिया (25,बदला नाम) के बारे में बताया तो मानो घर में पहाड़ टूट पड़ा हो. सिया के बारे में सुनते ही प्रतीक के घरवाले खुद को दोतरफा चोट खाया हुआ महसूस करने लगे. एक, सिया उन के अपने राज्य उत्तराखंड से नहीं थी, वह यूपी से ताल्लुक रखती थी. दूसरी व बड़ी बात यह कि वह जाति से भी अलग थी. दरअसल प्रतीक और सिया काफी समय से एकदुसरे से प्रेम कर रहे थे. साथ में समय बिताते हुए दोनों के बीच आपसी अंडरस्टेंडिंग काफी अच्छी हो गई थी. दोनों ने शादी करने का फैसला किया. लेकिन उन दोनों के प्रेम सम्बन्ध और शादी के बंधन के बीच उन की जाति आड़े आ रही थी. जहां प्रतीक ऊंची जाति से था वहीँ सिया कथित नीची जाती से थी.

प्रतीक के घर में काफी हंगामा बरपा. शहरी रहनसहन होने के बावजूद जाति की खनक परिवार के कान में शोर मचा रही थी, यह वही खनक थी जिस में खुद की जातीय श्रेष्टता का झूठा गौरव ऊंचनीच के भेदभाव की नीव को सदियों से मजबूत कर रहीहै. प्रतीक के घर में शादी के लिए नानुकुर हुई. ऐसे में सगेसम्बन्धी कहां पीछे रहने वाले थे, उन्हें तो खासकर तुड़का मारना ही था. बात परिवार की इज्जत पर आ गई, ले देकर परिवार की सहमती बनी कि यह शादी हरगिज नहीं होनी चाहिए. कई बार प्रतीक के समझाने के बाद भी घर वाले नहीं मान रहे थे तो अंत में दोनों ने सहमती बनाई और कोर्ट मैरिज कर ली.फिलहाल वे परिवार से अलग अच्छी जिंदगी काट रहे हैं लेकिन उम्मीद इसी बात की करते हैं कि एक दिन प्रतीक के मातापिता सिया को बहु के तौर पर स्वीकार कर लेंगे.

जाति ने न जाने कितने रिश्तोंकी भेंट चढ़ा दी

यह तो शहरी मामला रहा जहां प्रतीक और सिया ने कानून का सहारा ले कर शादी रचाई और खुद की इच्छा का जीवनसाथी चुना. लेकिन क्या भारत में ऐसा हर जगह हो पाना आज भी संभव है? अगर बात गांव देहात की हो तो वहां ऐसा करना तो दूर, सोचना भी पाप माना जाता है. यदि ऐसा कोई मामला सामने आ जाए तो अगले दिन ‘औनर किलिंग’ की खबर देश की शोभा बढ़ाने में चार चांद लगाने को तैयार रहती है. भारत में जाति व्यवस्था सदियों से अस्तित्व में रही है जो न सिर्फ समाज में घृणा फैलाती रही है बल्कि कई लोगों के मौत का भी कारण बनी है. ऐसे में जातीय शुद्धता के चलते अंतरजातीय प्रेमी युगलों/विवाहितों को समाज द्वारा खास टारगेट किया जाता रहा है.

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हाल ही, अक्टूबर 2020 में कर्नाटका के रामनगरा जिला (मगदी तुलक) में औनर किल्लिंग की घटना घटी. बकौल पुलिस, एक पिता ने अपनी बेटी को इसी के चलते मार दिया कि उस की बेटी का किसी गैरजातीय लड़के के साथ प्रेम सम्बन्ध चल रहा था और दोनों शादी करने वाले थे. हैरानी की बात यह कि गांव वाले घटना की हकीकत जानने के बावजूद पुलिस के आगे मूक बने रहे. जाहिर है इस में उन की भी सामाजिक स्वीकृति रही. यही कारण है कि बहुत सी ऐसी घटनाएं सामने आ भी नहीं आ पाती. बहुत बार यदि प्रेमी युगल के परिवार बच्चों की ख़ुशी के लिए वाले शादी करने को तैयार भी हो जाएं तो गांव का खाप उन्हें ऐसा करने से रोक देता है, और दंडित करता है. एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014-17 के बीच भारत में कुल 300 औनर किलिंग की घटनाएं सामने आईं.देश में अधिकाधिक औनर किलिंग की शर्मशार कर देने वाली घटनाएं उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र से अधिक देखने को मिलती हैं.

गौत्र एक होना भी समस्या

भारत में दो प्रेमी जोड़ों की स्वैच्छा से शादी में रुकावट डालने का समाज के पास सिर्फ यही तंत्र नहीं है. ऐसा ही एक मामलाअमित और प्रिया के साथ हुआ. यहां समस्या उन की जाति नहीं, बल्कि,उन का एक गौत्र का होनाथा. हिन्दू धर्म में तीन गौत्र (खुद का, मां का और दादी व नानी का) में शादी करने को गलत माना जाता है. आमतौर पर माना जाता है कि एक गौत्र होने पर गुणसूत्र एक से हो जाते हैं, फिर आगे समस्याएं पैदा हो जाती हैं. लेकिन अमित के लिए प्रिया से प्यार ना करने की यह दलील नाकाफी थी. प्रिया, अमित के ननिहाल गांव से थी, जहां अमित का अकसर आनाजाना रहता था. जाहिर है जहां,उठनाबैठना व बातचीत का सिलसिला चलता है वहां आपसी समझदारी भी बनने लगती है.

यही कारण है किअमित और प्रिया को आपस में प्रेम हुआ. वे एकदुसरे के करीब आए और शादी का फैसला भी किया. बात घर में पता चली तो इस रिश्ते का पुरजोर विरोध हुआ. उन के घर वालों ने एक गौत्र होने की अड़चन खड़ी कर दी और एकदुसरे से न मिलने का फरमान जारी कर दिया. यहां बात गांव की थी,स्थानीय समाज भी उन दोनों के खिलाफ खड़ा हो गया. जिस का अंत यह हुआ कि जौरजबरन आननफानन में प्रिया की शादी ऐसे व्यक्ति से कर दी गई जो उस के लिए बिलकुल अजनबी था, जिस के प्रति उस की चाहत शून्य थी.

भाषा और संस्कृति का झमेला

भारत में ऐसे कई मामले सामने आते हैं जहां प्रेमी युगलों को समाजिक दबाव के चलते अपनी इच्छाओं की आहुति देनी पड़ती है. यह न सिर्फ जाति या गौत्र के चलते होता है बल्कि ऐसे हीकुछ मामले तब भी देखने को मिलते हैं जब दो परिवारों के रहनसहन, भाषा और संस्कृति में अंतर होता है. यह दुर्भाग्य है कि भारत में शादी दो व्यक्तियों का आपसी मसला नहीं बल्कि दो परिवारों और उन के सगेसंबंधियों का आपसी मसला बन जाता है.

यहां राज्यों के भीतर ही भाषा और संस्कृति में कई तरह की विविधताएं देखने को मिल जातीहैं तो फिरदूसरे राज्य की विविधता की तो बात ही अलग है. यही कारण है कि जब हिमाचल प्रदेश के विक्रम ने अपनी प्रेमिका आभा के बारे में घर वालों को बताया तो परिवार में सरसरी सी दोड़ पड़ी है. कारण यह कि आभा बंगाल से है, जबकि विक्रम का परिवार उस की शादी हिमाचल से कराना चाहते हैं. दरअसल 8 साल पहले आभा और विक्रम की मुलाकात दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपसराम लाल कालेज में साथ पढ़ते हुए हुई थी. दोनों को आपस में खास लगाव हो गया, तो उसी समय दोनों ने अंत तक साथ रहने का विचार भी मजबूत कर लिया. इस बीच दोनों ने खुद के करियर को मजबूत किया. जिस के चलते उन्होंने परिवार से बात करने की हिम्मत जुटाई थी.

विक्रम के घरवालों का फिलहाल यही मानना है कि दोनों परिवारों की भाषा, संस्कृति और रहनसहन में काफी अंतर है वे आपस में मेल नहीं खा पाएंगे. ऊपर से डर है कि बंगाल के लोग चंटचालाक होते हैं. वह (आभा) विक्रम को अपने वश में कर लेगी.

जाहिर सी बात है जब दो व्यस्क लोग आपस में शादी के लिए पूरी तरह तैयार हैं तो उस स्थिति मेंबाकी लोगों को शादी कराने की पोसिब्लिटी की तरफ बढ़ना चाहिए ना कि रोकने की.ऐसे में उचित यही होता कि विक्रम के मातापिता देखें कि विक्रम को आभा के साथ जीवन बिताना है ऐसे में उस की पसंद प्राथमिक होनी चाहिए. दूसरा, अगर संस्कृति आपस में मेल नहीं खा रही तो यह समस्या आभा के लिए ज्यादा होनी चाहिए जिसे अपना घर छोड़ कर ससुराल आना है, ऐसे में अगर वह तैयार है तो उन्हें भी एक कदम आगे की तरफ बढ़ाना चाहिए. बाकी किसी के गलत और सही को ऐसे जज तो बिलकुल भी नहीं किया जा सकता.

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अंतरधार्मिक विवाह बड़ा बवाल

मौजूदा समय में जिस तरह सेसामाजिक और राजनीतिक हवा बह रही है वह प्रेम विवाहों पर तरहतरह से रोड़े अटकाए जाने को ले कर है, किन्तु इस हवा के सीधे रडार पर वे जौड़े आ रहे हैंजो धर्म के इतर जाकर अपनी प्यार की बुनियाद मजबूत कर रहे थे. भारत में अंतरधार्मिक विवाहों को समाज द्वारा सब से ज्यादा हिराकत भरी नजरों से देखा जाता रहा है. परिवार, रिश्तेदार औरसमाज द्वारा अंतरधार्मिक विवाहों का खुल कर विरोध किया जाता रहा है, बल्कि यहां तक कि इस पर तमाम भ्रमबना कर खौफ बनाया जाता है.ऐसे में इन प्रेम विवाहों को जहां सरकार को प्रोत्साहन देने की जरुरत थी व हर संभव मदद करने की जरूरत थी,वहां खुद भाजपा शासित सरकारें तथाकथित धर्मान्तरण विरोधी कानून के नाम पर इनप्रेम विवाहों पर अडचनें डालने में जुट गई हैं.जिस के बाद कई शादीशुदा जोड़ों को इस कानून के नाम पर उत्पीड़ित किया जा रहा है.

स्थिति यह है कि ऐसे प्रेमी व विवाहित जौड़ों को असामाजिक तत्वों द्वारा ढूंढ कर पीटा जा रहा है.इस में संविधान की कसम खाने वाले पुलिस भी पीछे नहीं है, वह लाठी के बल परइन जौड़ों को अलग व गिरफ्तार किया जा रहा है. उन के ऊपरझूटे मुकदमें दर्ज किए जा रहे हैं, वहीँ जबरन विवाहित महिला को उस के पिता की कस्टडी में भेजा जा रहा है. ऐसे में व्यस्क प्रेमी युगलों के पास न सिर्फ घरपरिवार, सगेसम्बन्धी और समाज को मनाने का चैलेंज है बल्कि इस के बाद सरकार के सामने यह साबित करना भी चैलेंज हो गया है कि प्यार और शादी उन की खुद की मर्जी से हुई है.

विवादित धर्मांतरण निषेध कानून के यूपी में पास होने के बाद से ही अलाहाबाद हाई कोर्ट के समक्ष कई अंतरधार्मिक विवाह के मामले आने लगे हैं, जिस में ऐसा हीहालिया मामला अलाहाबाद हाई कोर्ट में सामने आया. झूठे आरोपों में फंसाए बालिगसिखा (21) और सलमान को पहले परिवार, नाते और समाज से लड़ना पड़ा. जब वे शादी करने में कामयाब हुए तो अब उन्हें सरकार से भी संघर्ष करना पड़ रहा है. 18 दिसंबर को जस्टिस पंकज नकवी और विवेक अग्रवाल की बेंच ने कहा कि, “शिखा अपने पति के साथ रहना चाहती है और वह आजाद है कि अपनी इच्छा अनुसार अपना जीवन जिए.” वहीँ इस सेपहले 7 दिसंबर को कोर्ट ने सिखा की जबरन पिता की कस्टडी में भेजे जाने की सिफारिश पर सीडब्ल्यूसी को कहा था कि बिना उस की इच्छा के सीडब्ल्यूसी द्वारा इसा किया गया.”

यह चीजें दिखाती हैं कि किस प्रकार से विवादित कानून की आड़ में अंतरधार्मिक वैवाहिक जौड़ों को परेशान किया जा रहा है.इस से पहले कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी दोहराया कि, “अगर कोई वयस्क अपनी पसंद के अनुसार शादी करता है और धर्मपरिवर्तन कर अपने पिता के घर नहीं जाना चाहता है,तो मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं हो सकता है.” अब स्थिति यह है कि इन सब फसादों के चलते कई प्रेमी जौड़े डर रहे हैं कि कि वे शादी के लिए आगे बढ़े या नहीं.

कानून क्या कहता है?

भारत में वयस्कों की शादी करने की न्यूनतम उम्र निर्धारित की गई है. जिस में पुरुष की 21 और महिला के लिए 18 साल है. ऐसे में दोनों स्वतंत्र हैं कि अपनी मर्जी से जिस से चाहे शादी कर सकते हैं. भारत में अधिकतर शादियां अलगअलग धार्मिक कानूनों और ‘पर्सनल लॉ’ बोर्ड के तहत होती हैं. इस के लिए शर्त यह कि दोनों का उसी धर्म का होना जरुरी है.नेशनल कौंसिल ओफ एप्लाइड इकनोमिक रिसर्च (एनसीएईआर) द्वारा 2014 में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में 5 प्रतिशत ही अंतरजातीय व अंतरधार्मिक विवाह होते हैं, और 95 फीसदी अपनी जाति/समुदाय के भीतर होते हैं.

हिन्दू विवाह अधिनियम-1955, यह प्रावधान है कि हिन्दू, सिख, जैन, बोद्ध आपस मेंशादी कर सकते हैं. कुछ इसी प्रकार मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड-1937, भारतीय इसाई विवाह अधिनियम-1872, पारसी विवाह और निषेध अधिनियम-1936 है. जहां एक ही धर्म के लोग आपस में शादी कर सकते हैं,ऐसे में अगर किसी गैरधार्मिक व्यक्ति को इन नियम कानूनों के तहत शादी करनी हो तो उसे अपना धर्म बदलना ही पड़ता है.

ऐसे में भारत सरकार साल 1954 में विशेष विवाह अधिनियम-1954 ले कर आई. ताकि किसी भी पार्टी को धर्म बदलने की जरुरत ना पड़े.इस अधिनियम के तहत दोनों में से कोई भी पार्टी बिना धर्म परिवर्तन के एक वैध शादी कर सकती है. साफ़ है कि यह अधिनियम अनुच्छेद 21 के जीवन जीने का अधिकार के तहत अपना जीवनसाथी स्वयं चुनने की स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है.

किन्तु उस के बावजूद इस क़ानून की कुछ खामियां रहीं हैं, जिस के चलते इस प्रक्रिया से प्रेमी जौड़े को शादी करना पेचीदा महसूस होने लगता है. जाहिर है, इस में घरपरिवार की सहमती हो तब तो ठीक है (अलबत्ता बजरंग दल या युवा वाहिनी होहल्ला ना करे तो), लेकिन अगर वे असहमत हैं और नोटिस लगने के 30 दिन के भीतरऔब्जेक्ट करते हैं तो शादी में रुकावट पैदा किया जा सकता है.

यही कारण है कि इन पैचीदियों से बचने के लिए प्रेमी जोड़ा धार्मिक कानूनों में सरल प्रक्रिया के चलते धर्म परिवर्तन के लिए भी तैयार हो जाता है. ऐसे में धर्म प्रेमी युगलों के लिए बहुत बड़ा मसला है भी नहीं, जितना होवा कट्टरपंथी लगातार खड़ा कर रहे हैं. अब मुख्य मामला यह कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 संविधान के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है,जिस में यह स्पष्ट कहा गया है कि,“भारत में कानून द्वारा स्थापित किसी भी प्रक्रिया के आलावा कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उसके जीवित रहने के अधिकार और निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं कर सकता है.”इस का अर्थ वह चाहे जिस से प्रेम करे, चाहे जिसे माने यह उस की निजी स्वतंत्रता और हक है. ऐसे में इन दिनों इन्ही वाक्यों को बारबार अलाहाबाद हाई कोर्ट सामने आ रहे फर्जी मुकदमों के खिलाफ कहते भी आ रहा है. फिर सवाल यह कि जब संविधान हामी भरता है तो ऐसी शादियों से समस्या किसे और क्यों है?

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मिक्स्ड कल्चर का खौफ

दुनिया के किसी भी कौने में समाज को अगर किसी चीज का डर सताता है तो वह कल्चर के मिक्सहोने का है.हजारों सालों से लोगों नेखुद को मानसिक दासता की बेड़ियों में बांध करडब्बों (बौक्सेक्स) में देखने की आदत डाल ली है. यह कब्बे धर्म के हैं, जाति के हैं, अमीरीगरीबी के हैं, नस्ल के हैं. यही कारण है कि थोड़े से सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाओं से भी यह समाज विचलित हो उठता है.ऐसे ही इस मानसिक दासता को चोट पहुंचाने का तीखा काम इसी प्रकार के प्रेम विवाह करते हैं, जहां लोगों के हजारों सालों से जमे अंधविश्वासों पर गहरी चोट पड़ती है. जाति और धर्म के बाहर जा कर शादी करना रूढ़ीवाद पर तीखा प्रहार करने के समान है. सिर्फ एक मामला और सब कुछ कोहरे की तरह साफ़ होने जैसा है.अंतरजातीय और अंतरधार्मिक शादियों के बाद होने वाले बच्चे मुसलमान, हिन्दू, ब्राह्मण, चमार नहीं बनते बल्कि वे इन्सान बनते हैं.

यही चीज समाज के अव्वल दुश्मन, रुढ़िवादी और धार्मिक कट्टरपंथी नहीं होने देना चाहते.उन्हें डर होता है अपनी विरासत चले जाने का. यह डर होता है की कहींउन के खिलाफ बगावत न उठ खड़ी हो जाए. वे ताकत को अपने हाथों में ही केन्द्रित रखना चाहते हैं. लोगों को बंटा हुआ देखना ही उन के राजपाट को मजबूत करता है. उन की तमाम राजनीति शुरुआत और अंत ही एकदुसरे के विभिन्नता को कुरेदने से होती है. यह लोग जानते हैं किइस प्रकार की शादियों से लोग धार्मिक अंधविश्वासों के बनाए भ्रम को मानने से इनकार करेंगे.मिक्स्ड कल्चर से पैदा हुए बच्चे कभी इन के धार्मिक और जातीय उकसावे में नहीं आएंगे. यही कारण है कि सत्ता में बैठे लोगों की अंत कोशिश यही रहती है कि जितना हो सके इन की भिन्नता को और भी गाढ़ा किया जाए.

आमतौर पर मिक्स्ड कल्चर के लोग समानता और मानव अधिकारों के पक्ष में अधिक उदार होते हैं. ऐसे में वे धर्म के पाखंडों के फरेब में आसानी से नहीं फंसते हैं. उन का ध्येय धर्म की सरखपाई से अधिक कर्म की कमाई पर होती है. जिस कारण इन कट्टरपंथियों को इस प्रकार के लोग खासा रास नहीं आते हैं, इसलिए इन की मूल कोशिश ही यही रहती है कि ऐसी स्थिति बनने से पहले इन पर रोक लगा दी जाए. किन्तु प्रेम को कोई रोक पाया है भला.इस तरह के लोग अपने घरपरिवारों में इस ही इसे रोक न सके तो समाज को क्या रोकेंगे.

एक्सटीरियर पेंटिंग से बदलें घर का लुक

आज घर सिर्फ रहने की जगह नहीं, बल्कि स्टेटस सिंबल और ड्रीम बन चुका है. हरकोई चाहता है कि उस का घर उस के ड्रीम होम की तरह आकर्षक और अनूठा हो. इसी सोच ने घर के रंगरोगन करने के तरीके को पूरी तरह बदल दिया है. अब पहले जैसा नहीं रहा है कि पूरे घर को एक ही रंग में रंग दिया. अंदर और बाहर एक ही रंग का पेंट हो, आजकल ऐसा ट्रैंड चल रहा है कि कमरे की हर दीवार अलग रंग में रंगी होती है. यही नहीं उन पर दूसरे रंगों से कुछ पैटर्न और टैक्स्चर भी डाले जाते हैं. इसी तरह एक्सटीरियर पेंटिंग में जो नया ट्रैंड चल रहा है उस में एकसाथ कई रंगों का इस्तेमाल होता है. इंटीरियर और एक्सटीरियर के पेंट बिलकुल अलग-अलग होते हैं. उन का रंग ही नहीं टैक्स्चर भी अलग-अलग होता है.

इंटीरियर पेंटिंग

अपने घर की दीवारों के अनुसार कलर, टैक्स्चर और पैटर्न चुनें. आप अलगअलग कमरों के लिए अलगअलग थीम चुन सकती हैं. एक कमरे के लिए आप सिंगल कलर थीम चुन सकती हैं. इस में आप एक सिंगल कलर के विभिन्न शेड्स का इस्तेमाल कमरे को एक अनूठा लुक देने के लिए करें. दूसरे कमरे के लिए मिक्स्ड कलर थीम चुनें. अलगअलग दीवारों और छत के लिए अलगअलग रंग चुनें. लिविंगरूम में कुछ लेटैस्ट टैक्स्चर वाला ट्रैंड चुनें.

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इंटीरियर के नए ट्रैंड्स

आजकल इंटीरियर में थीम के ऊपर रंगों का चुनाव किया जाता है. अगर आप कंटैंपरेरी मौडर्न थीम चुनती हैं तो इन रंगों का ट्रैंड चल रहा है- सफेद, पिश्ता ग्रीन, लाइट ग्रे, सौफ्ट क्ले, लाइट ब्लू, मस्टर्ड, मिस्ट (पेस्टल ब्लू और ग्रीन का मिक्स), मशरूम कलर, लाइट ग्रे, ग्रीन इत्यादि. वैसे बोल्ड रंग भी काफी चलन में हैं. अगर आप अपने घर या औफिस को थोड़ा जीवंत लुक देना चाहती हैं, तो बोल्ड रंगों का चयन करने से हिचकिचाएं नहीं. बोल्ड रंग कमरों को डैप्थ और टैक्स्चर देते हैं. वैसे आजकल इंटीरियर पेंटिंग में ब्लैक, ब्राउन और बेज रंग भी ट्रैंड में हैं.

अगर आप बोहो थीम चुनती हैं, तो इस में काफी वाइब्रैंट रंगों को चुन सकती हैं. आजकल रस्टिक, मैटेलिक, सैंडी टैक्स्चर वाले पेंट भी उपलब्ध हैं. आप जो भी पेंट कराएं, उस की फिनिशिंग अच्छी होनी चाहिए. आजकल ग्लौस, साटिन, मैट टैक्स्चर चल रहे हैं. अगर आप ऐसी जगह रहती हैं जहां ट्रैफिक अधिक हो तो ग्लौस और साटन टैक्स्चर चुनें. ये न केवल छूने में अच्छे लगते हैं, बल्कि साफ भी जल्दी हो जाते हैं.

इन बातों का भी रखें ध्यान

– पेंट कराने से पहले जरूरी है दीवारों को पेंट के लिए तैयार करना.

– सब से पहले चैक करें कि दीवारों में कहीं नमी, फफूंद और दरारें तो नहीं हैं, अगर हैं तो पहले उन्हें ठीक कराएं.

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– अगर दीवारों पर नयानया प्लास्टर कराया है तो उसे कम से कम 6 महीनों तक सूखने दें.

– जो दीवारें सूखी होती हैं, जिन पर धूल, गंदगी और ग्रीस नहीं होती उन पर पेंट अच्छा होता है.

– पुराने पेंट को अच्छी तरह हटाने के बाद ही नया पेंट कराएं.

– इंटीरियर पेंट ऐसा होना चाहिए जिस में दाग न लगे और जो आसानी से साफ हो जाए.

– कोई भी पेंट करने से पहले दीवारों पर प्राइमर जरूर कराएं.

एक्सटीरियर पेंटिंग

आप का घर आप का सब से बड़ा निवेश है. कुछ वर्षों में नया रंगरोगन जरूर कराना चाहिए. इस से न केवल वह दिखने में अच्छा लगेगा, बल्कि सुरक्षित भी रहेगा. अपने घर को फ्रैश स्टाइल और रिलुक देने के लिए ऐक्सटीरियर पेंट का चुनाव सोचसमझ कर करें. इंटीरियर पेंट की तुलना में ऐक्सटीरियर पेंट को मौसम की मार अधिक झेलनी पड़ती है. धूप, बारिश, हवा आदि से मुकाबला करने के लिए ऐक्सटीरियर पेंट को थोड़ी रफ फिनिश देनी चाहिए. पेंट ऐसा होना चाहिए जिस का रंग आसानी से फेड न हो और जिस पर फफूंद न आए.

एक्सटीरियर के नए ट्रैंड्स

एक्सटीरियर पेंटिंग में भी केवल एक रंग का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. कंट्रास्ट और मैचिंग रंगों का प्रयोग किया जा रहा है. मैचिंग रंगों में डार्क और लाइट शेड्स इस्तेमाल किए जाते हैं. इस के अलावा कई पैटर्न और टैक्स्चर भी डाले जाते हैं ताकि घर बाहर से देखने में आकर्षक लगे. पहले ऐक्सटीरियर पेंटिंग में अकसर क्रीम, व्हाइट और दूसरे लाइट रंगों का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन आजकल ब्राइट रंगों का चलन बढ़ गया है. क्रीम, औफ व्हाइट, सीग्रीन, मिस्टीरियस ग्रे, ब्रिक रैड, सैंडी, नेवी ब्लू, पर्पल आदि शेड चलन में हैं. एक्सटीरियर पेंटिंग में एक ग्रिट का चलन भी बढ़ा है. इस में पेंट में थोड़ा सा महीन रेत मिला दिया जाता है. इस से ऐक्सट्रा टैक्स्चर आ जाता है. कई कंपनियां ऐसे प्रोडक्ट भी बना रही हैं, जिन में ग्रिट पहले से मिला होता है.

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ये भी रखें ध्यान

– पेंट गीली और खुरदुरी सतह पर अच्छी तरह नहीं चिपकता है. घर को बाहर से धोने के लिए प्रैशर वाश का इस्तेमाल करें, क्योंकि तेज प्रैशर से धोने से धूल और गंदगी निकल जाती है.

– पेंट कराने से पहले घर की दीवारों को अच्छी तरह साफ करना इसलिए जरूरी है कि पानी और फफूंद का असर जब तक दीवारों पर रहेगा तब तक नया पेंट अच्छी तरह नहीं हो पाएगा.

– पुराने पेंट को अच्छी तरह घिस कर निकलवाएं.

– दीवारों पर जो भी डेमैज हुआ है उसे ठीक करा लें.

-रेशम सेठी, ग्रे इंक स्टूडियो

वॉचपार्टी: शोभा और विनय की जिंदगी में कैसा तूफान मचा गई एक पार्टी

अपने पति विनय के जाने के बाद शोभा बार बार कभी समय देखती,कभी हिसाब लगाती कि कौनसा काम करेगी तो समय अच्छी तरह बीत  जायेगा,आज लाइफ में पहली बार वह रात को अकेली घर में रहने वाली थी,कभी ससुराल के लोग,फिर बच्चे,रिनी और मयंक!कभी अकेले रहने की नौबत ही नहीं आयी थी,विनय के टूरिंग जॉब का पूरा टाइम ऐसे ही निकल गया था,पता ही नहीं चला कि कब कितने टूर हो जाते,अकेलापन कभी लगा ही नहीं था,पर अब बच्चों के विदेश में  बसने के बाद यह पहला टूर था,इतने दिन से लॉक डाउन में वर्क फ्रॉम होम कर रहे थे तो पूरा दिन ही व्यस्त बीतता रहा.

पर अब दिल्ली में अचानक एक मीटिंग में विनय को जाना ही पड़ा,उसे काफी समझा बुझा कर विनय तीन दिनों के लिए दिल्ली चले गए तो शोभा ने दिन में कई काम निपटा लिए,कभी अलमारी साफ़ करती,कभी कोई बुक उठा लेती,फिर डिनर भी जल्दी करके सोसाइटी में टहल भी आयी,आजकल किसी से मिलने जुलने का टाइम तो रहा ही नहीं था,मास्क लगाए ज्यादा देर तक यूँ ही टहलते रहने में उसे उलझन होने  लगती तो जल्दी ही घर भी लौट आती. विनय और बच्चे व्हाट्सएप्प पर टच में थे,रोजाना की तरह उसने ग्यारह बजे सोने से पहले गुड नाईट का मैसेज फॅमिली ग्रुप पर लिखा,सबका रिप्लाई भी आ गया,अकेले फिर डर सा लगा तो उसने ड्राइंग रूम की लाइट जलती छोड़ दी और बैडरूम में जाकर सोने के लिए लेट गयी.पचास वर्षीया शोभा कोमल स्वभाव की पति और बच्चों के साथ खुश रहने वाली शांत,अंतर्मुखी महिला थी,दोनों बच्चों को विदेश में जॉब मिल गया था,विनय एक प्राइवेट कंपनी में उच्च पद पर काम करते थे,वैसे तो विनय और शोभा लखनऊ के थे पर अब बीस  साल से मुंबई में रह रहे थे. बीस साल पहले उनका ट्रांसफर लखनऊ से  मुंबई हुआ था.

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शोभा कुछ देर अपनी सोचों में खोयी रही फिर उसकी आँख लगी ही थी कि डोरबेल की आवाज से वह बुरी तरह डर कर उठी,जाकर की होल से झांका,नींद भरी आँखें हैरत के जोरदार   झटके से खुल गयीं,समीर खड़ा था ,उसने पल भर में ही दरवाजा खोल दिया,अपने पुराने अंदाज में समीर ने पूछा‘’मैंने किसी को डिस्टर्ब तो नहीं किया ?”

”अब भी ड्रामा करना नहीं छोड़ा तुमने?”शोभा खिलखिला उठी,कहा,”आओ. ”

”हाँ,आ ही गया हूँ,”कहते हुए समीर ने अपना बैग एक तरफ रखा और कहा,”शोभा,पहले मेरे हाथ सेनिटाइज़ करवा दो,यार,फ्लाइट कैंसिल हो गयी,होटल्स बंद हैं,तुम्हारा घर तो याद था,पर फोन नंबर भूल चूका हूँ,इसलिए बिना बताये इस टाइम पहुँच गया,इतना भरोसा था कि तुम लोग मुझे पहचान तो लोगे.‘’

शोभा ने उसके हाथ सेनिटाइज़ करवाते हुए कहा,”बकवास मत करो,अच्छा हुआ तुम्हारी फ्लाइट  कैंसिल हुई,मतलब यहाँ से चोरी चोरी निकल जाते हो न,अच्छा हुआ तुम्हारे साथ,मुझे जल्दी दरवाजा  खोलना ही नहीं चाहिए था,जो दोस्त भूल जाएँ,उन्हें पहचानना ही नहीं चाहिए था मुझे. ”

”अरे,वाह,आज भी तुम गुस्सा तो बड़े प्यार से ही दिखाती हो. ”

दोनों खुल कर हंस दिए,दोनों ने एक दूसरे को इतने सालों बाद भी मेंटेंड रहने पर कॉम्प्लिमेंट्स दिए,समीर ने कहा,यार कहाँ है मेरा,इतने घोड़े बेच कर सो रहा है क्या कि उसकी पत्नी रात में घर में किसी से बातें कर रही है और उसे पता ही नहीं चल रहा ?”

”आज ही दिल्ली गए हैं.तीन दिनों के लिए,एक जरुरी मीटिंग थी. ”

”ओह्ह,नो,मतलब उससे नहीं मिल पाउँगा?”

”रुक जाना,मिलकर चले जाना. ”

”नहीं,नहीं,रुक नहीं सकता,कल ही निकलना है.

”तुम फ्रेश  हो लो,क्या पीओगे?खाना खाओगे?”

”हाँ,कुछ है?”

”सब्जी रखी  है,रोटी बना दूँ?”

”हाँ,दो रोटी,और एक कप चाय,मैं फ्रेश होकर आया. ”

समीर वाशरूम में चला गया,शोभा किचन में आ गयी,सुबह की ही दाल सब्जी रखी थी,गर्म करके रोटी बनायीं और चाय चढ़ा दी,मन अतीत में लखनऊ पहुँच गया,बीस साल पहले चारों  का,समीर और उसकी पत्नी,मधु और दो बच्चे और शोभा का परिवार ! बहुत बढ़िया ग्रुप था,एक ही कॉलोनी में दस साल साथ रहे,बहुत मस्ती करते,साथ साथ घूमते,लाइफ को मिलकर एन्जॉय करते. बच्चों को भी आपस में अच्छा साथ मिलता. फिर विनय का ट्रांसफर मुंबई हो गया,एक बार समीर सपरिवार आया,फिर धीरे धीरे मिलना जुलना कम  होता गया,समीर भी फिर ऑस्ट्रेलिया चला गया तो संपर्क कम होता गया. समीर फ्रेश होकर आया,थोड़ी दाल और आलू गोभी के साथ रोटी खाना शुरू किया तो बोल उठा,तुम्हारे हाथ में तो आज भी स्वाद है. ”

”तुम आज भी खूब झूठ बोल लेते हो,”शोभा ने छेड़ा और फिर कहा,”ये तुम लोग गायब क्यों हो गए ?”

”हम कहाँ गायब हुए,आजकल तो सोशल मीडिया है एक दूसरे से जुड़े रहने के लिए पर पता चला तुम सोशल मीडिया पर कहीं भी नहीं हो,ऐसी भी क्या सबसे दूरी !”

”हाँ,समीर,मुझे तो बस किताबों का ही साथ भाता है,और कहीं हाथ मारने की जरूरत ही नहीं होती,मेरी किताबों की दुनिया ही मुझे ख़ुशी देती है,बस जब खाली होती हूँ,किताबे उठा लेती हूँ,टाइम का फिर पता ही नहीं लगता और सुनाओ,हेल्थ कैसी रहती है,मधु कैसी है,बच्चे कहाँ हैं ?”

”बैंगलोर शिफ्ट होने की तैयारी है,यहाँ एक प्रोजेक्ट पर काम करने आ रहा हूँ,बच्चे वहीँ सेट होना चाहते हैं,पर मधु अब इंडिया आना चाहती है,उसके पेरेंट्स अकेले  बैंगलोर में हैं,वह उनके आसपास रहना चाहती है,जब तक प्रोजेक्ट है,बंगलौर रहना ही है,फिर देखते हैं,हेल्थ तो टाइम के साथ कभी ऊपर नीचे रहती ही है पर हाँ,तुम आज भी उतनी ही फिट लग रही हो जैसे पहले लगती थी,”कहते हुए समीर ने शोभा को शरारती नजरों से देखा तो वह मुस्कुरा दी ,समीर ने कहा,पर शोभा,तुम थोड़ा बहुत तो दोस्तों से जुड़ने के लिए फेसबुक पर रह सकती हो न,हम कितने पुराने दोस्तों से फेसबुक से ही जुड़ते चले गए,फिर व्हाट्सएप्प ग्रुप बन गया,अब तो ज़ूम पर भी दोस्तों की महफिलें जमने लगी हैं,तुम कौनसी दुनिया में रहती हो,भाई. ”

शोभा ने कुछ कहा नहीं,समीर का खाना ख़तम हो चुका था,शोभा प्लेट्स उठा कर ले गयी और चाय भी ले आयी,समीर ने पूछा,”तुम नहीं पियोगी?”

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”नहीं,इस टाइम पी लूंगी तो नींद नहीं आएगी. ”

”अच्छा,तुम आज भी सो जाओगी ?”

”हाँ,रात को ज्यादा अब जागा  ही नहीं जाता,तुम भी आराम कर लो. ”

”कर लूँगा,पर मुझे सुबह जल्दी निकलना है,ये विनय की मीटिंग दिल्ली में ही है ?”

”हाँ. ”

”विनय के हालचाल तो मुझे मिलते रहते हैं,हम सोशल मीडिया पर भी कभी कभी टकरा जाते हैं,हाय हेलो हो जाती है,बस,वह भी काफी बिजी रहता है पर तुमने तो सबसे बिना बात के संन्यास ले रखा है,बस मैं और मेरा पति टाइप कैसी हो गयी तुम ?”

शोभा हंस दी ,”पर तुम लोगों की कमी मुझे हमेशा खली,यहाँ मुंबई में तुम्हारे जैसे दोस्त कभी नहीं मिले,तुम लोगों को हमेशा याद किया मैंने. विनय काफी बिजी होते गए,टूर पर जाते रहते हैं  इस बार बहुत दिन बाद गए,तुम्हे याद है हमने कितनी मस्तियाँ की हैं,हम कितना घूमे फिरे,सच,बहुत अच्छे दिन बीते तुम लोगों के साथ. और बाकी दोस्त कैसे हैं,किसके टच में हो ?”

”आओ,तुम्हे दिखाता हूँ,”कहते कहते ही समीर ने अपने बैग से अपना लैपटॉप निकाल लिया,फेसबुक खोला,और अपने कॉमन फ्रेंड्स की फोटो दिखा दिखा कर सबके बारे में बताता रहा,शोभा को सबके बारे में जान कर अच्छा लगने लगा,अब रात के दो बज रहे थे,अचानक समीर बुरी तरह चौंका,एक जगह क्लिक करता हुआ बोला,”अरे,ये गीता की  आज वॉच पार्टी चल रही है,देखो,शोभा,इसकी पार्टी लाइव देख सकते हैं,गीता याद है न तुम्हे ?”

शोभा ने धीरे से बस हूँ ही कहा,समीर ने कहा,”हाँ,भाई,तुम  कैसे भूल सकती हो अपने पति की इस दोस्त को जिसे देख कर ही तुम्हारा पारा हाई हो जाता था,सुना है,इसने अपने पति से तलाक ले लिया था,दोनों की बनी नहीं. ”

”मुझे ये कभी पसंद आयी ही नहीं,समीर !”

”हाँ,जानता हूँ,विनय पर खूब डोरे डालती थी यह,किसी भी पार्टी में इसे देख कर तुम्हारा मूड ही खराब हो जाता थाऔर मैं और मधु तुम्हे फिर कितना चिढ़ाते थे !’

”हाँ,यह तो अच्छा है कि पति शरीफ था मेरा वरना हमारे झगडे तुम दोनों को ही सुलझाने पड़ते,”शोभा ने हँसते हुए कहा ,फिर आगे बोली ,”हम भी किसकी बात लेकर बैठ गए,अब तो हमारे बच्चों की पार्टियों के दिन हैं. ”

”अजी हाँ,ये देखो,आओ,देखते हैं मैडम की पार्टी में कौन कौन है. ”

शोभा भी थोड़ा और झुक कर लैपटॉप में देखने लगी,अचानक दोनों को एक करंट सा लगा,समीर के मुँह से निकला,ये विनय ही है क्या?”

शोभा कुछ बोली नहीं,उसने  अपनी नजरें लैपटॉप पर जमा दीं,”ये कैसे हो सकता है ?”वॉचपार्टी में साफ़ साफ़ दिख रहा था कि विनय और गीता एक दूसरे के काफी करीब हैं,म्यूजिक के साथ दोनों के पैर थिरक रहे थे,हाथों में हाथ थे ,शोभा जैसे पत्थर की हो गयी थी,उसके मुँह से इतना ही निकला,पार्टी में जाने को भी मैं बुरा नहीं कहूँगी पर दोनों की बॉडी लैंग्वेज कैसे इग्नोर करूँ?समीर,कहते कहते शोभा का गला रुंध गया,फिर बोली,मुझे तो पता भी नहीं कि विनय उसके टच में हैं !”

”शोभा,आई एम वैरी सॉरी,मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी,बेकार में लैपटॉप खोल कर बैठ गया !बहुत शर्मिंदा हूँ,शोभा ,बड़ी भूल हुई मुझसे !”

”नहीं,समीर,तुम इससे अच्छा कुछ मेरे लिए कर ही नहीं सकते थे कि मेरी आँखें खोल जाओ,विनय ने आज तक मुझे यह नहीं बताया कि ये दिल्ली जाने पर कभी किसी से मिलते हैं,मैं इतना ही जानती हूँकि काम  फिर होटलऔर बस फिर यहाँ घर,पर नहीं,इसके अलावा भी विनय की लाइफ में बहुत कुछ  है,मुझे जानना ही चाहिए था. ”

शोभा ने उठते हुए कहा ,समीर,तुम भी अब आराम कर लो,आओ,बच्चों का रूम दिखा देती हूँ,”कहकर शोभा  उठी तो समीर भी गंभीर सा उसके पीछे पीछे उठ गया. शोभा अपने रूम में आ कर तकिये पर गिरते ही फफक पड़ी,उसे उसके कजिन रवि ने एक बार दिल्ली से फोन कर कहा था कि  उसने विनय को एक होटल में किसी लेडी के साथ देखा है,हुलिया गीता से ही मिलता जुलता बताया था,पर शोभा ने उसे यही कहा था कि ऑफिस की कोई कलीग होगी,उसने कभी किसी को अपने मन का यह दुःख नहीं बताया कि  वह कई बार विनय की आशिकमिजाजी से तंग हो जाती है,सब मन में ही रखती रही,उसने इसीलिए किसीदोस्त से कभी सम्बन्ध रखे ही नहीं,सबसे कटी जीती रही ,आज उसने अपनी आँखों से दोनों को जिस तरह पास देखा था,वह कोई बच्ची नहीं थी कि न समझे,ये सिला मिला है उसे एक अच्छी पत्नी बनकर रहने का,सारे कर्तव्य पूरे करने का,विनय के साथ हर सुख दुःख में कदम से कदम मिला कर चलने का कि विनय आज भी उससे बहुत कुछ छुपा जाते हैं,उसने न कभी विनय से कोई झगड़ा किया है ,न कोई शिकवा,फिर आज उसने यह सब क्या देखा,उसकी आँखों से आंसू बह निकले,इतने आंसूकि उसकी हिचकियाँ बंध गयीं,वह पेट के बल उल्टा लेटी थी,अचानक उसे अपनी गर्दन पर किसी का गर्म  स्पर्श महसूस हुआ ,आँख खोली,लेटे लेटे ही गर्दन घुमाई,समीर उसके पास बैठा था,वह उठने लगी तो समीर ने उसकी पीठ थप थपा दी,कहा,”लेटी रहो,शोभा ,दुखी मत हो,ऐसा भी हो सकता है कि ऐसा कुछ न हो जो हमें लगा है. ”

करवट लेकर शोभा ने कहा,”समीर,मुझे मेरे भाई ने,और भी कई लोगों ने इस तरह की बातें बताई हैं पर मैंने उन पर कभी विश्वास नहीं किया पर अब बहुत हो गया ,”शोभा सिसकने लगी.पर्दे के पीछे से  खिड़की से आती मंद मंद रौशनी में आंसुओं से भरा शोभा का चेहरा देख समीर अपनी सुध बुध अचानक खोने लगा,उसने खुद को संभालने की कोशिश की पर शोभा से इस समय की नजदीकी उसे कहीं और ले जाने लगी,अपनी और शोभा की दोस्ती,विश्वास,उम्र सब की चिंता रखी रह गयी और उसने शोभा के होंठ चूम लिए,शोभा जैसे किसी और ही मानसिक यंत्रणा में जी रही थी,समीर का स्पर्श उसे अपना सा भला सा ही लगा,फिर भी उसने उठने की कोशिश की तो समीर उसके ऊपर धीरे धीरे जैसे जैसे झुकता गया,सब कुछ पल भर ही लगा बदलने में,और फिर अचानक सचमुच बहुत कुछ बदल गया,शोभा का विद्रोही ,घायल मन अचानक समीर का साथ देने लगा,उसके कानों में समीर नेसॉरी तो बार बार  कहा पर इस समय पति की बेवफाई से क्षुब्ध मन इन अनुचित  ही सही पर  कुछ पलों के अपनेपन की धारा में बहने लगा,शोभा ने अपने आप को रोकने की तमाम कोशिशें भी की पर कुछ हठ होता है ऐसे अनचाहे पलों का जिनसे इंसान चाह कर भी जीत नहीं सकता.

जो कभी दोनों ने सोचा भी नहीं था,वह हो गया था,थोड़ी देर बाद समीर फिर उसे एक बार चूम कर रूम से निकल गया,शोभा की कब आँख लगी,उसे पता ही नहीं चला,सुबह वह देर से उठी,आँख खुली तो रात की पूरी बात याद कर एक झटके से उठ बैठी,वह बहुत देर सोई रही थी,उसने टाइम देखा,नौ बज रहे थे,इतना लेट तो वह कभी नहीं उठती,वह फौरन समीर के रूम में गयी,समीर जा चुका था,उसने अपना फोन चेक किया,फॅमिली के ग्रुप पर कई मैसेज थे,फिर समीर के मैसेज थे,लिखा था,जो भी हो गया,शोभा,सॉरी,पर अब तुम हमेशा मेरे टच में रहना,हम आगे भी अच्छे दोस्त बन कर रह सकते हैं,मेरी कोई भी जरुरत हो,मुझे कहना,तुम्हे उठाया नहीं,तुम्हे आराम की जरुरत थी,मेरी फ्लाइट टाइम पर है,बात जरूर करते रहना,विनय से क्या बात करनी है,अच्छी तरह सोच लेना.‘’

फ्रेश होकर शोभा ने चाय बनायीं,ग्रुप पर बस गुड मॉर्निंग का मैसेज डाल कर इतना ही लिख दिया कि  ठीक हूँ,आज लेट सोकर उठी,”

विनय का फौरन मैसेज आया,”अरे,वाह,मेरे बिना इतनी बढ़िया नींद आयी तुम्हे. ”

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शोभा ने और कोई जवाब नहीं दिया,वह समीर के बारे में सोचने लगी,क्या हो गया था उसे रात,क्यों नहीं रोका समीर को,यह क्या कर बैठी,समीर क्या सोचता होगा !अब आगे क्या करना चाहिए,क्या विनय से बात करे?नहीं,वह बेशर्मी पर उतर आया तो ?अभी तो बच्चे अपना एक आदर्श परिवार मानते हैं,उनका यह भ्रम तोड़ देन !क्या चुप रहे ?वैसे ही जैसे  हजारों महिलाएं चुप रह जाती हैं ! क्या करे ? और जो समीर के साथ हुआ,उसका गिल्ट रखे मन में ?नहीं,दिल नहीं कर रहा इसे  अपराधबोधमानने केलिए! हाँ,जी ली वह भी कुछ पल किसी के साथ !ठीक नहीं भी है तो भी जी ली !किसी से कुछ नहीं कहेगी,न विनय से ,न बच्चों से !पर क्या यह बात ऐसे ही जाने दे कि विनय उससे झूठ बोलते रहे हैं ! हाँ, फिलहाल कुछ नहीं कहेगी,अभी उसने भी समीर के साथ एक रात बितायी है,शायद अभी वह कुछ नहीं कह पाएगी,उसे भी अभिनय करना होगा विनय की तरह कि वह उनसे कुछ नहीं छुपाती. उसने चाय की घूँट ली ,चाय ठंडी हो चुकी थी,वह चाय गर्म करने किचन की तरफ बढ़ी तो अब मन काफी हल्का हो चुका था. अचानक उसे ख्याल आया कि एक वॉच पार्टी सबकी लाइफ में ऐसा  तूफ़ान मचा कर गयी है कि कोई भी किसी से कुछ कह नहीं पायेगा.पहली बार ही वॉचपार्टी देखी थी और वह भी ऐसी जो भुलाये न भूलेगी.

कल आज और कल: आखिर उस रात आशी की मां ने ऐसा क्या देखा

Serial Story: कल आज और कल (भाग-2)

मैं ने मम्मी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘क्या बुराई है इस में यदि कोई दंपती बच्चा पैदा करने में असक्षम हो और इस में दूसरे की मदद ले?’’ मम्मी ने भी मुझे करारा जवाब देते हुए कहा, ‘‘पर उस बच्चे की रगों में खून तो उस मां का ही दौड़ रहा है न जो कोख किराए पर देती है?’’

मैं समझ गई थी कि मम्मी से इस वक्त बहस करना ठीक नहीं. सो मैं ने कहा, ‘‘हां मम्मी, आप बात तो ठीक ही कह रही हैं.’’

वे धीरेधीरे बुदबुदाने लगीं, ‘‘हर इनसान अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सकता है… न कोई समाज न ही कोई संस्कार… आने वाली पीढ़ी तो और भी न जाने क्या करेगी? अगर मातापिता ही ऐसे हैं तो…’’

मैं जानती थी कि मम्मी से इस विषय पर और बात करना उचित नहीं. लेकिन मेरे बच्चों को उन की बात बड़ी ही दकियानूसी लगतीं.

मेरी बेटी अकसर कहती, ‘‘मौम, दादी ऐसी बात क्यों करती हैं. यदि सब लोग अपने हिसाब से रहते हैं तो इस में क्या बुराई है?’’

मैं कहती, ‘‘बुराई तो कुछ नहीं पर मम्मी अभी यहां नईनई आई हैं न इसलिए उन्हें यह सब अजीब लगता है.’’

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ऐसा चलते कब 3 साल बीत गए पता ही न चला. मम्मी भी आशी दीदी से मिलने मुंबई जाना चाहती थीं. बच्चों की भी छुट्टियां थीं तो मैं ने बच्चों के भी टिकट ले लिए. हां, पापा नहीं जाना चाहते थे. उन के दोस्तों का यहां कुछ प्रोग्राम था.

आशी दीदी बहुत खुश थीं कि मम्मी आ रही हैं. इन 3 सालों में वे भी तो कितनी अकेली रह गई थीं. जब मम्मी और बच्चे वहां पहुंच गए तो आशी दीदी उन्हें रोज कहीं न कहीं घुमा लातीं. उन के लिए तरहतरह का खाना बनातीं. रात को दीदी की बेटियां और मेरे बच्चे एक ही कमरे में सो जाते. आशी दीदी के पति यानी मेरे ननदोई निशांत तो शिप पर ही थे. वे तो 6 महीने में मुंबई आते थे. आशी दीदी ने अपनी 2 बेटियों को पालने में जिंदगी अकेले ही बिता दी. निशांत भी आशी दीदी की इस बात की तारीफ करते नहीं थकते.

एक रात मम्मी को कुछ बेचैनी सी हुई तो लिविंगरूम में सोफे पर आ कर लेट गईं.

थोड़ी ही देर में देखती हैं कि कोई नौजवान दीदी के कमरे से बाहर निकल रहा है और दीदी अपना नाइट गाउन पहने उसे दरवाजे तक छोड़ने आईं.

जातेजाते उस नौजवान ने दीदी के होंठों को चूमते हुए कहा, ‘‘मैं कल फिर आऊंगा.’’

दीदी ने भी उसे स्वीकृति दे दी और कहा, ‘‘ओके बाय.’’

दीदी को तो मालूम भी न था कि मम्मी सोफे पर लेटीं यह सब देख रही हैं. उन्होंने उस शख्स के जाते ही लिविंगरूम की बत्ती जला कर पूछा, ‘‘कौन है यह? जंवाई बाबू की गैरहाजिरी में ये सब करते अच्छा लगता है तुम्हें? तुम्हारी 2 जवान बेटियां हैं. उन का तो लिहाज किया होता…’’

दीदी जवाब में सिर्फ इतना ही बोलीं, ‘‘जाने दीजिए मम्मी… आप नहीं समझेंगी.’’

मम्मी का तो पारा हाई था. अत: कहने लगीं, ‘‘मैं नहीं समझूंगी? ये बाल मैं ने धूप में सफेद नहीं किए हैं… मुझे लगता है तुम्हारी अक्ल पर पत्थर पड़ गया है,’’ और मम्मी ने झट से मेरे पति आकाश को फोन कर सब बता दिया.

एक पल को तो मेरे पति सकते में आ गए, फिर अगले ही पल बोले, ‘‘मम्मी, तुम आशी को कुछ न कहो. पहले मुझे मामले की तह तक जाने दो.’’

‘‘तुम सब जल्दी मुंबई आओ और देखो यहां आशी क्या कर रही है.’’

अगले ही दिन आकाश ने भारत की फ्लाइट के टिकट बुक कराए और हम भारत पहुंच गए. आकाश और मुझे देख कर आशी दीदी बहुत डर गई थीं. एक दिन तो आकाश ने आशी दीदी से कुछ न पूछा. लेकिन जब आकाश ने आशी दीदी से सब साफसाफ बताने को कहा तो जो आशी दीदी ने बताया वह वाकई चौंकाने वाला था. वे कह रही थीं और मैं और आकाश सुन रहे थे. वे बोलीं, ‘‘भैया, आप को तो मालूम ही है कि निशांत और मेरी शादी दोनों की मरजी से हुई थी… वे मर्चेंट नेवी में होने की वजह से साल में 6 महीने बाहर ही रहते हैं. लेकिन 6 महीने बाहर रहने से निशांत के वहां लड़कियों से संबंध हैं. जब वे यहां भी आते हैं तो भी उन की रुचि मेरे में नहीं होती है… वे घर के मुखिया का दायित्व तो निभा रहे हैं, लेकिन सिर्फ हमारी 2 बेटियों के कारण.

‘‘यदि मैं निशांत को कुछ कहती हूं तो वे कहते हैं कि तुम आजाद हो… चाहे तो तलाक ले लो या तुम भी किसी गैरमर्द से संबंध रख सकती हो. बस बात घर के बाहर न जाए, क्योंकि समाज के सामने तो यह रिश्ता निभाना ही है. हमारी यह शादी तो समाज के समाने सिर्फ एक दिखावा है. अब इन 2 जवान बेटियों को छोड़ कर मैं कहां जाऊं. तलाक भी तो नहीं ले सकती… मुझे भी तो प्यार चाहिए… तन की प्यास क्या सिर्फ मर्द को ही जलाती है, औरत को नहीं?’’

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इतना सुनते ही मम्मी ने दीदी के मुंह पर एक तमाचा जड़ दिया. वे चीख पड़ीं, ‘‘तुझे शर्म नहीं आई ये सब कहते?’’

आकाश ने मम्मी का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मम्मी, आप शांत हो जाएइ. मैं आशी से अकेले में बात करता हूं.’’

अब आशी दीदी, आकाश और मैं ही कमरे में थे. लेकिन उस के बाद जो आशी दीदी ने बताया वह तो और भी चौंकाने वाला था.

वे बोलीं, ‘‘यहां भी उन के पड़ोस की महिला से संबंध हैं और इस बारे में उस के पति को भी सब मालूम है. उस महिला ने अपने पति को भी कह दिया है कि वह आजाद है, चाहे जिस स्त्री से संबंध रखे. उस रात पड़ोस की उस महिला का पति ही यहां आया था और यह बात निशांत को भी मालूम है कि मेरे उस से संबंध हैं. उन्हें इस संबंध से कोई हरज नहीं. हां, उन्होंने इतना जरूर कहा है कि यह बात घर से बाहर न जाए, क्योंकि हमारा समाज इन रिश्तों को स्वीकार नहीं करेगा,’’ और फिर आशी दीदी रोने लगीं.

मैं ने उन्हें चुप कराते हुए कहा, ‘‘दीदी, आप फिक्र न कीजिए सब ठीक हो जाएगा. आप हमें थोड़ा सोचने के लिए समय दें बस,’’ और फिर मैं और आकाश आशी दीदी के कमरे से बाहर आ कर लौन में सैर करने लगे.

मैं ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘यदि आशी दीदी जो बता रही हैं वह सत्य है, तो इस में दीदी का क्या दोष है? अपनी पत्नी के सिवा गैरस्त्री से संबंध रखने का हक मर्द को किस ने दिया और फिर यदि यह हक निशांत को है तो फिर आशी दीदी को भी है.’’

आकाश ने भी धीरे से कहा, ‘‘हां, तुम ठीक ही कहती हो, लेकिन मम्मी को कौन समझाए? वे तो आशी को कभी माफ नहीं करेंगी.’’

मैं मन ही मन सोच रही थी कि दीदी ने ठीक ही कहा कि तन की आग क्या सिर्फ मर्द को ही जलाती है? कुदरत ने औरत को भी तो शारीरिक उत्तेजना दी है और यदि उस का पति उस में रुचि न ले तो वह अपनी शारीरिक उत्तेजना कैसे शांत करे? सच तो यह है कि इस में दीदी की कोई गलती नहीं है. पर चूंकि हमारे समाज के नियम इन संबंधों को नहीं स्वीकारते, इसलिए सब कुछ चोरीछिपे चल रहा है यहां. सिर्फ दीदी व निशांत ही क्यों उन के पड़ोसी दंपती को भी तो वही समस्या है. तब ही तो वह उस रात दीदी के पास आया था. उस की पत्नी को भी तो इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं. न जाने ऐसे कितने लोग होंगे जिन के ऐसे ही संबंध होंगे.

बात मेरे पति आकाश के दिमाग में ठीक बैठ रही थी. वे कहने लगे, ‘‘तुम ठीक ही कहती हो. लेकिन अब मम्मी को समझाना होगा, जोकि बहुत मुश्किल काम है.’’

आगे पढें- खैर एक बार तो हम मम्मी को ले कर…

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Serial Story: कल आज और कल (भाग-3)

खैर एक बार तो हम मम्मी को ले कर वापस अमेरिका आ गए, लेकिन मेरे ननदोई निशांत के शिप से वापस आने पर हम फिर भारत आए और मम्मी को भी साथ ले आए. वहां आकाश ने निशांत से उन के दूसरी स्त्रियों से संबंध के बारे में पूछा तो निशांत ने उन संबंध को खुले शब्दों में स्वीकारते हुए कहा, ‘‘आकाश आप तो इतने सालों से अमेरिका में रह रहे हैं. आप भी इन्हें बुरा समझते हैं? मेरे संबंधों के बारे में आशी को सब कुछ मालूम है और मैं ने भी आशी को पूरी छूट दी है कि वह भी अगर चाहे तो किसी से संबंध रख सकती है. बस हमारे परिवार पर उन संबंधों का बुरा असर नहीं पड़ना चाहिए. आकाश आप तो पढ़ेलिखे हैं. आप को तो इन संबंधों से नाराज नहीं होना चाहिए.’’

आकाश ने कहा, ‘‘निशांत आप ठीक कहते हैं, किंतु मम्मी को कौन समझाए?’’

मैं ही समझाऊंगा मम्मी को भी. चलिए अभी बहुत रात हो गई है. कल सुबह बात करते हैं.

अगले दिन सुबह नाश्ता कर निशांत मम्मी के पास बैठ गए और बोले, ‘‘मम्मी, मुझे पता है आप बहुत नाराज हैं मुझ से और आशी से. आप का नाराज होना वाजिब भी है. आप को तो पता है आशी और मेरी शादी हमारे समाज के नियमों के अनुरूप हो गई, लेकिन हम दोनों ही कहीं एकदूसरे के लिए बने ही नहीं थे. हम दोनों ने कोशिश भी की कि हमारा रिश्ता अच्छा बना रहे, लेकिन कहीं कुछ तो कमी थी जिसे हम दोनों दूर करने में असमर्थ थे. शादी का मुख्य उद्देश्य तो शारीरिक संबंध और संतानोत्पत्ति ही होता है. अब बच्चे तो हम पैदा कर चुके हैं. लेकिन कहीं हमारे शारीरिक संबंधों में वह मधुरता नहीं है, जो एक पतिपत्नी के बीच होनी चाहिए. मैं तो वैसे भी 6 महीने शिप पर रहता हूं. ऐसे में आशी तो मेरे पास होती नहीं तो यदि वह सुख मुझे कहीं और से प्राप्त होता है तो उस में क्या बुराई है? मैं ने तो आशी को भी पूरी छूट दी है कि वह भी चाहे जिस से संबंध रख सकती है. उस की भी इच्छाएं हैं. मैं उन मर्दों में से नहीं जो स्वयं तो मौजमस्ती करें और पत्नी को समाज के नियमों की आड़ में तिलतिल मरने के लिए छोड़ दें. अगर आशी के पास वह पड़ोसी आता है तो क्या बुराई है उस में?’’

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लेकिन मम्मी कहां यह सब समझने वाली थीं. मम्मी तो वैसे ही मुंह फुला कर बैठी थीं. निशांत भी समझ गए कि मम्मी को उन की बातें अच्छी नहीं लग रही हैं. अत: उन्होंने मम्मी का हाथ अपने हाथ में पकड़ कर कहा, ‘‘मम्मी, मैं समझता हूं कि आप को इन सब बातों से बहुत दुख पहुंचा है, किंतु यदि कोई नियम किसी की खुशी के आड़े आए तो उस नियम को तोड़ देना अच्छा…फिर आज ही क्यों पहले जमाने में भी तो यह सब होता था, लेकिन पहले घरपरिवार के लोग उस में साथ देते थे और अब समाज के नियमों के डर से परिवार भी अपनों की खुशियों से मुंह मोड़ लेता है… यदि मैं और आशी एकदूसरे के आचरण से खुश हैं तो दूसरों को तकलीफ क्यों?

‘‘यदि आप को लगता है ये सब इस युग में ही हो रहा है तो लाइए आप को महाभारत जिस का पाठ आप रोज नियम से करती हैं उसी में दिखा देता हूं आप को पुराने युग की सचाई,’’ कह कर निशांत ने इंटरनैट से महाभारत डाउनलोड किया और उसी समय मम्मी को पढ़वाना शुरू कर दिया, जिस में पांडु और कुंती के बारे में साफसाफ लिखा है.

‘‘पांडु को एक ऋषि से श्राप मिला था जिस के कारण वे स्त्री सहवास नहीं कर सकते थे, लेकिन वे चाहते थे कि उन की पत्नी के गर्भ से संतानोत्पत्ति हो, क्योंकि वे अपने पिता के ऋण से मुक्त होना चाहते थे. अत: एक दिन पांडु ने अपनी पत्नी कुंती से कहा, ‘‘प्रिये, तुम पुत्रोत्पत्ति के लिए प्रयत्न करो.’’

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तब कुंती ने कहा, ‘‘हे आर्यपुत्र जब मैं छोटी थी तब मेरे पिता ने मुझे अतिथियों के

स्वागतसत्कार का कार्य सौंप रखा था. मैं ने उस समय दुरवासा ऋषि को अपनी सेवा से प्रसन्न कर दिया था और बदले में उन्होंने मुझे वरदानस्वरूप एक मंत्र देते हुए कहा कि हे पुत्री, इस मंत्र का उच्चारण कर तुम जिस भी देवता का आह्वान करोगी वह चाहे अथवा न चाहे तुम्हारे अधीन हो जाएगा. अत: आप की आज्ञा होने पर मैं जिस देवता का आह्वान करूंगी, उसी से मुझे संतानोत्पत्ति होगी. इस प्रकार धर्मराज से युधिष्ठिर, वायुदेव से भीमसेन, इंद्र से अर्जुन, अश्विन कुमार से जुड़वा पुत्र नकुल व सहदेव प्राप्त हुए.

‘‘मम्मी, यह तो बात हुई 5 पांडु पुत्रों की उत्पत्ति की. उस के बाद यह तो सर्वविदित है कि द्रौपदी के 5 पति थे, क्योंकि उन की माता कुंती अपने 5 बेटों को सदा कहती थीं कि कोई भी वस्तु पांचों बराबर बांट कर इस्तेमाल करो. अत: जब वे द्रौपदी को जीत कर लाए तो वही बात कुंती ने बिना द्रौपदी को देखे कह दी और तब से द्रौपदी के 5 पति थे. इस के अलावा भीम व हिडिंबा से घटोत्कच का जन्म हुआ और धृतराष्ट्र के पुत्र युयुत्सू का जन्म एक वेश्या के गर्भ से हुआ था. तो मम्मी अब देखिए आप हमारे जिस धार्मिक ग्रंथ को रोज बड़ी श्रद्धा के साथ पढ़ती हैं, उस में हमारी पुरानी संस्कृति की झलक साफ दिखाई देती है, जिस में यह बताया गया है कि जीवन को स्वेच्छा से हंसीखुशी और मौजमस्ती के साथ जीओ. लेकिन यह भी ध्यान रखो कि आप की इस मौजमस्ती का नुकसान दूसरों को न उठाना पड़े और हम किसी के साथ कोई जबरदस्ती न करें.

‘‘तो मम्मी कहां बुराई है मेरे और आशी के गैरसंबंधों में? आप को बुराई दिखाई देती है, क्योंकि हमारे समाज के नियम इन संबंधों को अस्वीकृत करते हैं. लेकिन ये समाज के नियम बनाए किस ने? समाज के चंद पहरेदारों ने. तो फिर क्यों रोक नहीं इन कोठों पर, वेश्यालयों पर, क्यों खुले हैं ये? सिर्फ उन पहरेदार मर्दों के लिए जो इन नियमों को बनाते तो हैं, किंतु स्वयं उन्हें नहीं मानते और उन मर्दों की औरतें उदासीन जिंदगी जीने के लिए मजबूर होती हैं. वे मर्द अपनी कामेच्छा की संतुष्टि तो कर लेते हैं, किंतु उन की औरतों का क्या जो उन मर्दों से विवाह कर सारी जिंदगी उन के बच्चे ही पालती रहती हैं या फिर उन पर आश्रित होती हैं कि कब उन के पति को उन पर प्यार आए जिस की बारिश में वह उन के तनमन को भिगो दे. उन्हें भी तो हक होना चाहिए अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने का या फिर यदि समाज के निमय हैं तो मर्द व औरत के लिए समान रूप से होने चाहिए. मम्मी ये सब तो कल भी होता था आज भी हो रहा है और कल भी होगा. यदि समाज इन पर प्रतिबंध लगाएगा तो चोरीछिपे होगा पर होगा जरूर.’’

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मम्मी अपने जंवाई की बातें सुन कर नि:शब्द थीं. दीदी वहीं बैठ कर सुबकसुबक कर रो रही थीं. निशांत ने उन्हें गले से लगा कर चुप कराते हुए कहा, ‘‘मत रोओ आशी, इस में तुम्हारा कोई दोष नहीं. आगे भी तुम स्वेच्छा से अपनी जिंदगी जी सकती हो.’’

हालांकि मम्मी अभी भी इस तरह के संबंधों को मन से स्वीकार नहीं कर पा रही थीं, लेकिन निशांत व आशी दीदी के चेहरे पर मुसकान देख कर हम सब भी मुसकरा रहे थे.

तभी मम्मी दीदी से कहने लगी, ‘‘बेटी, मैं ने तुम्हें बहुत भलाबुरा कहा. तुम मुझे माफ कर देना.’’

मम्मी को यह सब समझाने में निशांत ने जिस धैर्य से काम लिया वह काबिलेतारीफ था.

तभी आकाश बोल उठे, ‘‘भई, भूख लग रही है. आज खाना बाहर से ही और्डर कर देते हैं.’’

सभी मम्मी से पूछने लगे कि कहिए क्या और्डर किया जाए?

माहौल हलका हो गया था. आशी दीदी व निशांत अपने कमरे में चले गए. हम अमेरिका वापसी की तैयारी में लग गए. अब वापस लौट कर मम्मी को अमेरिका में उन की सहेलियों की बातों से कोई आश्चर्य न होता और अब उन्होंने इस देश को कोसना छोड़ दिया था. मेरे दोनों बच्चे भी कहने लगे थे, ‘‘मौम, अब दादी कुछ बदली बदली लगती हैं.’’

Serial Story: कल आज और कल (भाग-1)

15 वर्षों से अमेरिका में नौकरी करते करते ऐसा लगने लगा जैसे अब हम यहीं के हो कर रह गए हैं. 3 साल में 1 बार अपनी मां के पास अपने देश भारत जाना होता है. बच्चे भी यहीं की बोली बोलने लगे हैं और यहीं का रहनसहन अपना चुके हैं. कई बार मैं अपने पति से कहती कि क्या हम यहीं के हो कर रह जाएंगे? पति कहते कि कर भी क्या सकते हैं? आजकल की नौकरियां हैं ही ऐसी. जहां नौकरी वहीं हम. पहले जमाने की तरह तो है नहीं कि सुबह 9 से शाम 5 बजे तक की सरकारी नौकरी करो और आराम से जिंदगी जीयो और न ही वह जमाना रहा कि पति की नौकरी से ही घर खर्च चल जाए और बचत भी हो जाए. अत: मुझे तो नौकरी करनी ही थी.

मेरे पति आकाश के मांबाबूजी यानी अपने सासससुर को मैं मम्मीपापा ही पुकारती हूं. वे भारत में ही हैं और उन की बहन आशी यानी मेरी ननद भी मुंबई में ही रह रही हैं. उन के पति मर्चेंट नेवी में हैं और 2 सुंदर बेटियां हैं. मम्मीपापा कहने को तो अकेले रहते हैं अपने फ्लैट में, लेकिन उन की देखभाल तो आशी दीदी ही करती हैं. मगर मम्मीपापा को कहां अच्छा लगता है कि वे अपनी बेटी पर बोझ बनें. वे तो भारत में विवाह के बाद पराया धन मानी जाती हैं. लेकिन अब तो मम्मीपापा के अकेले रहने की उम्र भी नहीं रही. अत: हम लोग बारबार उन से आग्रह करते कि हमारे पास अमेरिका में ही रहें. पर वे तो अपने देश, अपने घर के मोह में ऐसे बंधे हैं कि उन्हें छोड़ना ही नहीं चाहते.

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हर बार यही कहते हैं कि अमेरिका में मन नहीं लगेगा. भारतीय लोग भी तो नहीं हैं वहां. किस से बोलेंगे? भाषा की समस्या अलग से. लेकिन जब आशी दीदी ने उन्हें समझाया कि अब तो अमेरिका में बहुत भारतीय हैं, तो उन्होंने अमेरिका आने का मन बना लिया. फिर क्या था. आकाश भारत गए और वहां का फ्लैट बेचने की कारवाई शुरू कर दी. मम्मीपापा का तो रोमरोम घर में बसा था. बहुत प्यार था मम्मी को उस घर की हर चीज से. क्यों न हो. पापा की खूनपसीने की कमाई से बना था उन का यह घर.

मम्मी एक तरफ तो उदास थीं कि इतने वर्ष जिस घर में रहीं वह आज बिक रहा है, सब छूट रहा है, लेकिन दूसरी तरफ खुश भी थीं कि अपने बेटेपोते के साथ बुढ़ापे के बचेखुचे दिन गुजारेंगी. 2 महीने पूरे हुए. मम्मी आशी दीदी से विदाई ले कर अमेरिका के लिए रवाना हो गईं. आशी दीदी का मन भी बहुत दुखी था कि अब उन का भारत में कोई नहीं. एक मम्मी ही तो थीं जिन से वे दुखसुख की सारी बातें कह लेती थीं.

मम्मीपापा मेरे बच्चों अक्षय और अंशिका से मिल कर बहुत खुश हुए. पापा तो उन से अंगरेजी में बात करने की पूरी कोशिश करते, लेकिन मम्मी उन का अमेरिकी लहजा न समझ पातीं. आधी बातें इशारों में ही करतीं. मैं अच्छी तरह समझती थी कि शुरूशुरू में उन का यहां मन लगना बहुत मुश्किल है. अत: मैं ने उन के लिए औनलाइन हिंदी पत्रिकाएं और्डर कर दीं.

फिर एक दिन मैं ने कहा, ‘‘मम्मी, शाम को कुछ भारतीय महिलाएं अपनी किट्टी पार्टी करती हैं, जिन में से कुछ आप की उम्र की भी हैं. आप रोज शाम को उन के पास चली जाया करें. आप की दोस्ती भी हो जाएगी और मन भी लग जाएगा.’’

एक दिन मैं ने उन महिलाओं से मम्मी का परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘मम्मी, ये हैं विनीता आंटी, ये कमला आंटी, ये रूपा आंटी और ये हमारी मम्मी.’’

सभी महिलाएं बड़ी खुश हुईं. रूपा आंटी कहने लगीं, ‘‘स्वागत है बहनजी हमारे समूह में आप का. बड़ी खुशी हुई आप से मिल कर. चलो, हमारे परिवार में एक सदस्य और बढ़ गया. अब हम इन्हें रोज नीचे बुला लिया करेंगी.’’

अब मम्मी शाम को 5 बजे अपनी सहेलियों के पास रोज पार्क में चली जातीं. वहां गपशप व थोड़ी इधरउधर की बातें करना उन्हें बहुत अच्छा लगता. धीरेधीरे 1 ही महीने में मम्मी का मन यहां लग गया. पापा तो रोज अपने नए मित्रों के साथ सुबहशाम सैर कर आते और बाकी खाली समय में हिंदी पत्रिकाएं पढ़ते. मम्मी सुबहशाम मेरा रसोई में हाथ बंटातीं. लेकिन अब मम्मी जब शाम को पार्क से लौटतीं, तो उन के पास हर दिन एक नया किस्सा होता, मुझे सुनाने के लिए.

फिर एक दिन मम्मी जब पार्क से लौटीं तो सेम की फलियां काटतेकाटते बोलीं, ‘‘आज मालूम है रूपा क्या बता रही थी? कह रही थी कि इधर एक हिंदुस्तानी पतिपत्नी रहते हैं. दोनों नौकरी करते हैं. उन के बच्चे नहीं हैं. सुना है पति नपुंसक है. उस की पत्नी का दफ्तर में एक अन्य आदमी से संबंध है.’’

‘‘मम्मी यहां सब चलता है और मैं भी पहचानती हूं उन्हें. अच्छे लोग हैं दोनों ही.’’

‘‘क्या खाक अच्छे लोग हैं… पति के रहते पत्नी गैरपुरुष से संबंध रखे तो क्या अच्छा लगता है?’’

मैं मम्मी के चेहरे को गौर से देख रही थी. उन की त्योरियां चढ़ी हुई थीं. सही बात तो यह है कि उन के चेहरे पर ये भाव होने वाजिब ही थे, क्योंकि हमारे हिंदुस्तान में ऐसे संबंधों को कहां मान्यता दी है? हां यह बात अलग है कि वहां चोरीछिपे सब चलता है. यदि बात खुल जाए तो स्त्री और पुरुष दोनों ही बदनाम हो जाते हैं. लेकिन हिंदुस्तान में भी तो शुरू से ही रखैल और देवदासी प्रथा प्रचलित थी. उच्च वर्ग के लोग महिलाओं को बखूबी इस्तेमाल करते थे. लेकिन उच्च वर्ग यह करे तो शानशौकत और निम्न वर्ग तो बेचारा इस्तेमाल ही होता रहा. समाज में समानता कहां है. लेकिन यहां तो समाज इन रिश्तों को खुल कर स्वीकारता है. पर मम्मी को कौन समझाए? मैं उन से इस बारे में बहस नहीं करना चाहती थी. मैं जानती थी इन सब बातों से मम्मी का दिल दुखेगा. सो मैं ने सेम की फलियां हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘लाओ मम्मी, मैं सब्जी छौंक देती हूं, आप थक गई होंगी. जाइए, आप थोड़ा आराम कर लीजिए.’’

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मम्मी भी मुसकरा कर बच्चों के पास चली गईं. मेरी बेटी अंशिका उन से बहुत खुश रहती. धीरेधीरे मम्मी अंगरेजी भी सीखने लगी थीं. अब मम्मीपापा बच्चों से अंगरेजी में ही बात करते. उन के यहां आने से मुझे बहुत सहारा मिल गया था वरना यहां तो सारा काम खुद ही करना पड़ता है, नौकरचाकर तो यहां मिलते नहीं और जिस तरह से मम्मी अपना घर समझ कर काम करती थीं, वे थोड़े ही न करेंगे?

अब मम्मी यहां पूरी तरह ऐडजस्ट हो गई थीं. महीने में 1 बार अपनी सहेलियों के साथ रेस्तरां में किट्टी पार्टी कर लेतीं. सभी महिलाओं में होड़ लगी रहती कि सब से अच्छी डिश कौन बना कर लाती है. सो मम्मी भी उस होड़ में शामिल हो नई सलवारकमीज, पर्स, मैचिंग चप्पलें आदि पहन कर बड़ी खुश होतीं. यही एक सब से अच्छा जरिया था यहां उन का मन लगाने का. सजधज कर चली जातीं. 1-2 गेम खेलतीं और एकदूसरे से अपने मन की बातें कर लेतीं.

इस बार जब वे किट्टी पार्टी से लौटीं तो सब सहेलियों से और भी नईनई बातें सुन कर आईं और बड़ी बेसब्री से मेरा इंतजार कर रही थीं कि कब मैं दफ्तर से आऊं और कब वे अपने मन की बात मुझे बताएं.

मेरे घर आते ही वे 2 कप चाय बना कर ले आईं और फिर मेरे पास आ कर बैठ गईं.

मैं ने पूछा, ‘‘कैसी रही आप की किट्टी पार्टी?’’

वे तो जैसे तैयार ही बैठी थीं सब बताने को. कहने लगीं, ‘‘किट्टी तो बहुत अच्छी थी, किंतु यहां की कुछ बातें मुझे अच्छी नहीं लगतीं. आज तो सभी औरतें स्पर्म डोनेशन की बातें कर रही थीं. वे बता रही थीं कि यदि कोई मर्द बच्चा पैदा करने में असमर्थ हो तो किसी और मर्द के स्पर्म (शुक्राणु) उस की पत्नी की कोख में स्थापित कर दिए जाते हैं और उस पत्नी को यह मालूम ही नहीं होता कि स्पर्म किस मर्द के हैं. ऐसे ही यदि महिला बच्चा पैदा करने में असमर्थ हो तो दूसरी महिला की कोख में दंपती के शुक्राणु व अंडाणु निषेचित कर के स्थापित कर दिए जाते हैं और इस तरह दूसरी महिला 9 महीने के लिए अपनी कोख किराए पर दे देती है. जब बच्चा पैदा हो जाता है तो वह उस दंपती को सौंप देती है. छि…छि… कितना बुरा है ये सब?’’

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REVIEW: पंकज त्रिपाठी का सशक्त अभिनय दिखाती फिल्म ‘कागज’

रेटिंग : 3 स्टार

निर्माता: सलमान खान निशांत कौशिक विकास मलु

लेखक व निर्देशक: सतीश कौशिक
कलाकार: पंकज त्रिपाठी, मोनल गुर्जर ,अमर उपाध्याय , सतीश कौशिक,मीता वशिष्ठ, संदीपा धर व अन्य.

अवधि: एक घंटा 50 मिनट

ओटीटी प्लेटफॉर्म: जी फाइB

इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक लकड़ी के साथ-साथ कागज की अनिवार्यता तय है. कम से कम हर सरकारी कामकाज में इंसान की मौजूदगी से कहीं ज्यादा अहमियत कागज की है. और यदि इंसान सरकारी कागजों में मृत पाए हो जाए, तो जीवित होते हुए भी उसे कोई जीवित नहीं मानता.ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ जिले के लाल बिहारी के साथ हुआ था, जिन्हें अपने आप को जीवित साबित करने के लिए 18 वर्ष का लंबा संघर्ष करना पड़ा था .उनके उसी संघर्ष और सत्य घटना करने को लेकर फिल्मकार सतीश कौशिक फिल्म ‘कागज ‘ लेकर आए हैं, जिसे ओटीटी प्लेटफॉर्म “जी5” पर देखा जा सकता है.

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कहानी:

उत्तर प्रदेश के खलीलाबाद के एक छोटे से गांव का रहने वाले भरत लाल (पंकज त्रिपाठी) एक बैंड मास्टर हैं. जो अपनी पत्नी रुक्मणि ( मोनल गुज्जर) और बच्चों के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं.कुछ लोग भरत लाल को सलाह देते हैं कि वह बैंक से कर्जा लेकर अपने भरत बैंड के व्यापार को विस्तार दे दे. पर भरत लाल इसे अनसुना कर देते हैं .लेकिन जब भरत लाल की पत्नी रुक्मणि उनसे अपने काम को विस्तार देने के मकसद से बैंक से कर्ज़ लेने की सलाह देती है,तो भरत लाल सहकारी बैंक कर्ज लेने पहुंच जाते हैं. बैंक मैनेजर कहता है कि कर्ज के बदले गिरवी रखने के लिए अपनी जमीन के कागज लेकर आओ .जब भरत लाल अपनी पुश्तैनी जमीन के कागज लेने लेखपाल के पास पहुंचता है, तो पता चलता है कि उसके चाचा और चचेरे भाइयों ने लेखपाल भूरे को घूस खिलाकर सरकारी कागजों में भरत लाल को मृत घोषित करा दिया है और उसकी सारी जमीन अब चचेरे भाइयों के नाम पर है. यही से भरत लाल की जिंदगी बदल जाती है.खूब घटना अपने आप को जीवित साबित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाता है. वह लेखपाल से लेकर सरपंच, मुख्यमंत्री ,प्रधानमंत्री और अदालत के चक्कर काटता रहता है. भरत लाल को बकरा बनाने के मकसद से मदद से वकील साधुराम केवट (सतीश कौशिक) आगे आते हैं, मगध भरत लाल जिस तरह से गतिविधियां करते हैं, उसके आगे वकील साधु राम केवट भी नतमस्तक हो जाते हैं और फिर अंत तक भरत लाल की मदद करते रहते हैं.भरत लाल हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं अपने आप को जीवित साबित करने के लिए. यहां तक की भरत लाल अपने नाम के आगे मृतक लगाने के साथ ही अखिल भारतीय मृतक संघ बनाते हैं और पूरे प्रदेश के ऐसे सभी लोग उनके साथ जुड़ जाते हैं, जिन्हें कागजों में मृत घोषित कर दिया गया है.इस लंबे संघर्ष में भरत लाल का काम-धंधा बंद हो जाता है, परिवार साथ छोड़ देता है, पत्नी अपने बच्चों को लेकर अपने मामा के घर रहने चली जाती है. पर उन्हें विधायक अशर्फी देवी (मीता वशिष्ट) का भरत लाल को साथ मिलता है, जबकि एक अन्य विधायक (अमर उपाध्याय) भरत लाल के खिलाफ है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.लेकिन भरत लाल हार नहीं मानते हैं.18 वर्ष के लंबे संघर्ष के बाद अंततः भरत लाल को मुख्यमंत्री एक अध्यादेश जारी कर जीवित घोषित करते है.

लेखन व निर्देशन:

फिल्मकार सतीश कौशिक ने देश की शासन व्यवस्था और जड़ो तक व्याप्त भ्रष्टाचार की हकीकत को हास्य व्यंग के साथ इस फिल्म में पेश करने में सफल रहे हैं. बतौर लेखक सतीश कौशिक ने कई जगह बेहतरीन काम किया है . यह उनकी लिखावत का ही परिणाम है कि व्यंग वह विडंबना की धार उस वक्त तेज हो जाती है जब भरत लाल की पत्नी रुकमणी अपनी मांग में सिंदूर भरे मंगलसूत्र पहने विधवा पेंशन लेने सरकार के पास पहुंच जाती है. सतीश कौशिक, भरत लाल के नजरिए से पूरे सिस्टम का चित्रण करने में सफल रहे हैं. इतना ही नहीं कागज के साथ सतीश कौशिक एक बार फिर लोगों के दिलों को छूने में कामयाब रहे हैं . फिर भी फिल्म कई जगह बहुत धीमी गति से आगे बढ़ती है .यदि पटकथा पर थोड़ी सी मेहनत की जाती, तो फिल्म ज्यादा बेहतर बन सकती थी. पूरी फिल्म अभिनेता पंकज त्रिपाठी अपने कंधे पर लेकर चलते हैं. यदि भरत लाल के किरदार में उनकी जगह कोई दूसरा कलाकार होता, तो शायद फिर मजेदार न बन पाती. मिता वशिष्ट व अमर उपाध्याय ठेकेदारों को सही ढंग से विस्तार नहीं दिया गया. इसके अलावा एडिटिंग में कसावत की जरूरत थी.

फिल्म में गांव के सरपंच का एक संवाद है- ”इस देश में राज्यपाल से भी बड़ा लेखपाल होता है और उसके लिखे को कोई नहीं मिटा सकता.”यह संवाद हमारे देश की शासन व्यवस्था पर करारी चोट करता है. इसके अलावा फ़िल्म में कुछ संवाद, मसलन-” हमारा सिस्टम आम आदमी के उत्पीड़न का हथियार बन गया है अथवा “कोर्ट कचहरी न्याय के वह देवता है जो समय और सपनों की बलि मांगते हैं”. हमारी शासन प्रणाली और न्याय प्रणाली दोनों पर चोट करते हैं.

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अभिनय:

भरत लाल के किरदार में अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने लाल बिहारी को भी जीवंतता प्रदान की है. पंकज त्रिपाठी ने जिस अंदाज में इस किरदार को अपने अभिनय से संवारा है, वह बिरले कलाकार ही कर सकते हैं. इस फिल्म के माध्यम से पंकज त्रिपाठी ने साबित कर दिखाया कि वह किसी भी फिल्म को अपने बलबूते पर सफलता के पायदान पर ले जा सकते हैं. इस फिल्म की सबसे बड़ी सशक्त कड़ी हैं पंकज त्रिपाठी. पंकज त्रिपाठी 2020 में ओटीटी प्लेटफॉर्म के सर्वाधिक सफल व चमकते सितारे थे, 2021 में कागज से उन्होंने शानदार शुरुआत की है. भरत लाल की पत्नी रुक्मणी के किरदार में मोनल गुज्जर सुंदर दिखने के अलावा अपनी मुस्कान से लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं.मीता वशिष्ठ के हिस्से करने के लिए खास कुछ आया ही नहीं. अमर उपाध्याय कहीं से भी प्रभावित नहीं करते हैं, वैसे उनकी भूमिका भी काफी छोटी है.

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