ये रिश्ता: क्या शिवांगी जोशी और राजन शाही के बीच अनबन है नायरा की मौत की वजह, जानें क्या है मामला

स्टार प्लस के पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) इन दिनों लगातार सुर्खियों में बना हुआ है. जहां नायरा-कार्तिक की जोड़ी फैंस के दिलों में राज करत है. लेकिन हाल ही में खबरे हैं कि शो के मेकर्स और नायरा के रोल में नजर आने वाली शिवांगी जोशी के बीच कुछ ठीक नही है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

शिवांगी के रोल पर है सवाल

सीरियल के करेंट ट्रैक की बात करें तो हाल ही में नायरा के किरदार की मौत हुई थी, जिसके बाद शिवांगी के फैंस काफी नाराज है. दरअसल, शिवांगी जोशी और मोहसिन खान के रोमांस को हर कोई पसंद करता है. इसीलिए शो में दोनों की जोड़ी के बिना फैंस काफी दुखी हैं.  इसी कारण दर्शक सोशल मीडिया पर लगातार राजन शाही से शिवांगी जोशी के किरदार (नायरा) को इस तरह से खत्म ना करने की गुजारिश कर रहे हैं.

 

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राजन शाही और शिवांगी के बीच नही हो रही बात

 

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ताजा रिपोर्ट्स की मानें तो शिवांगी जोशी और राजन शाही के बीच कुछ भी सही नहीं चल रहा है. दरअसल, खबरों में दावा किया जा रहा है कि शिवांगी जोशी और राजन शाही के बीच इस समय बातचीत भी नहीं हो रही है. हालांकि शिवांगी जोशी के किरदार को शो में ना मारने की बात की जा रही है. और कहा जा रहा है कि शिवांगी जोशी का किरदार वापस नए रोल में नजर आएगा. पर अभी कोई औफिशयल अनाउंसमेंट नही की गई है.

नए ट्रैक के बारे में राजन शाही ने कही ये बात

हाल ही में एक इंटरव्यू में राजन शाही ने कहा है है कि साल 2020 उनके लिए काफी अलग रहा है. जहां उनका सीरियल ‘अनुपमा’ टीआरपी लिस्ट में धमाल मचा रहा है, वहीं ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में भी काफी अलग-अलग ट्विस्ट देखने को मिले हैं. लेकिन हिना खान के एग्जिट के बाद इस सीरियल में पहली बार कोई ऐसा बड़ा ट्विस्ट आने वाला है.

बता दें, ये रिश्ता क्या कहलाता है कि टीआरपी इन दिनों कम हो रही है, जिस कारण शो के मेकर्स कहानी में नए ट्विस्ट लाए जा रहे हैं. हालांकि नायरा और कार्तिक के फैंस शो के नए ट्विस्ट को लेकर काफी एक्साइटेड हैं.

अनुपमा: वनराज को घर में देख भड़की किंजल, किया घर छोड़ने का ऐलान

TRP चार्ट्स में कई हफ्तों से पहले नंबर पर चल रहा स्टार प्लस का ‘अनुपमा’ (Anupama) फैंस को काफी एंटरटेन कर रहा है. इसीलिए मेकर्स भी शो में नए-नए ट्विस्ट लाकर फैंस को खुश कर रहे हैं. वहीं मेकर्स ने सीरियल में वनराज को उसकी गलतियों का एहसास कराने का फैसला लिया है. इसीलिए एक्सीडेंट के बाद अब वनराज शाह निवास में वापस आ गया है.

घर पहुंचा वनराज

मौत के मुंह से वापस लौटे वनराज ने अब काव्या को छोड़कर शाह निवास यानी अपने परिवार के पास जाने का फैसला किया है. हालांकि डॉक्‍टर साफतौर पर कहा है कि वनराज को सख्‍त देखभाल की जरूरत है क्योंकि उनका दायां हाथ काम नहीं कर रहा है, जिसके चलते अगर उनका पूरा ख्याल नही किया गया तो वह पैरालाइज्ड भी हो सकता है.

 

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काव्या करती वनराज को फोन

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि काव्या, वनराज से उसकी तबीयत के बारे में पूछने के लिए कॉल करती है. लेकिन वनराज उसकी बातों से बहुत गुस्से में है. इसीलिए वह वनराज को खरी खोटी सुनाकर कॉल काट देता है. हालांकि वनराज को उसकी गलती का एहसास हो रहा है, जिसके कारण वह अनुपमा की तरफ काफी दुखी नजर आ रहा है.

किंजल लेगी ये फैसला

जहां बेटे के घर लौटन से बा बेहद खुश है और वहीं वह अनुपमा से वनराज के पूरी तरह ठीक होने तक डांस क्‍लास छोड़ने की बात कहती है. हालांकि वह वनराज की देखभाल करने के लिए हां तो कहती है. लेकिन डांस क्‍लास नहीं छोड़ने का फैसला करती है क्योंकि अभी पैसों की जरूरत है. दूसरी तरफ अपकमिंग एपिसोड में किंजल, अनुपमा की परेशानी को देखते हुए वनराज के घर में आने को लेकर भड़क जाएगी और कहेगी या तो वनराज शाह निवास में रहेगा या फिर वह. हालांकि अनुपमा उसे समझाने की कोशिश करेगी. लेकिन अब जानना होगा कि क्या फैसला लेगी किंजल.

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मुझे बताइए कि मैं अपने नेल्स को खूबसूरत बनाने और बढ़ाने के लिए क्या करूं?

सवाल-

मैं अपनी सगाई में अपने नेल्स सुंदर और बड़े रखना चाहती हूं जबकि मेरे नेल्स बेहद छोटे हैं. मुझे बताइए कि मैं अपने नेल्स को खूबसूरत बनाने के लिए क्या करूं?

जवाब-

यदि नाखून छोटे हैं तो पहले नेल ऐक्सटैंशन करवा लें. ये कुछ ही घंटों में नाखूनों को बढ़ाने की प्रक्रिया है. ये उन सभी लोगों के लिए वरदान है जिन के नाखून बढ़ते नहीं या फिर जल्दीजल्दी टूट जाते हैं. इस तकनीक के तहत टूटे हुए नाखूनों को फिर नैचुरल शेप में लाया जा सकता है.

यदि आप के नाखून छोटे हैं तो नेल ऐक्सटैंशन करवा कर आप जितनी मरजी चाहे उतनी लंबाई पा सकती हैं. नेल ऐक्सटैंशन किए गए नाखून दिखने में और काम करने में बिलकुल नैचुरल नाखून की ही तरह नजर आते हैं. इन नाखूनों को एक्रिलिक पाउडर और कुछ तरल पदार्थों से बनाया जाता है. इस से आप के नेल्स को मनचाहा आकार व लंबाई मिल जाती है.

नेल ऐक्सटैंशन किए गए नाखून लगभग 1 महीने यानी आप के हनीमून तक अपनी शेप में बरकरार रहते हैं. इस के साथ आप सेमीपरमानैंट नेलआर्ट तकनीक से नाखूनों को विभिन्न रंगों और सामग्रियों से बेहद कलात्मक रूप से सजा सकती हैं. आप इसे भी आजमा कर देखिए, आप के नाखून लगभग 3 महीनों तक आकर्षक और मनभावन बने रहेंगे.

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सुंदर नाखून आपकी सुंदरता में चार चांद लगाने का काम करते हैं. सुंदर नाखूनों के लिए आप अपने नाखून पर आर्ट बना सकती हैं. आप चाहें तो अपने नाखूनों को रंग, मौसम, थीम, मूड किसी के भी अनुसार, सजा सकती हैं. नाखूनों को आप हल्‍के या गहरे रंगों में रंग सकती हैं. अगर आप थोड़ी सी क्रिएटिव हैं तो नाखूनों पर ग्राफिक प्रिंट डिजायन भी बना सकती हैं. इसके लिए आपको कुछ सामानों जैसे – सेलो टेप, ट्रांसपेरेंट नेल एनमेल और नेल कलर की आवश्‍यकता होती है. इस आर्टिकल में हम आपको नेल आर्ट और उसकी केयर करने से संबंधित जानकारी दे रहे हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- जब सजाना हो नाखूनों को नेल आर्ट से

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

तलाक के दर्द से उबरें कुछ इस तरह

तलाक का दर्द किसी को भी तोड़ सकता है भले ही वह साधारण मध्यमवर्गीय इंसान हो या सुपरस्टार. हाल ही में सैफ अली खान ने भी अपने तलाक का दर्द बयां किया था. 2004 में तलाक के बाद वे डिप्रेशन का शिकार हो गए थे. पत्नी अमृता ने सालों तक उन्हें बच्चों से दूर रखा था. बकौल सैफ तलाक दुनिया की सब से बुरी चीज़ है. तलाक हर लिहाज से बुरा होता है. खास कर तब जब आप की फैमिली में बच्चे हों. सैफ के मुताबिक कुछ चीजें कभी ठीक नहीं हो सकतीं हैं. तलाक और उस के बाद का समय उन के जीवन का काफी बुरा दौर था. उस दौरान वे मानसिक रूप से बहुत परेशान रहे थे .

इसी तरह कुछ समय पहले बिग बॉस 13 की कंटेस्‍टेंट रही रश्मि देसाई जो टीवी इंडस्‍ट्री का बड़ा नाम हैं ने भी तलाक के दर्द को बयां किया था. उन्होंने स्वीकारा कि पति नंदीश संधू के साथ तलाक के दौरान वह डिप्रेशन का शिकार हो गईं थीं. बकौल रश्मि वह समय उन के लिए बहुत तनावपूर्ण था. वह तलाक के लिए तैयार नहीं थी और अपने रिश्ते को बचाने की लाख कोशिशें भी की लेकिन नाकामयाब रहीं. परिस्थितियां और खराब होने लगीं और आखिरकार दोनों को रिश्ता खत्म करना पड़ा. ऐसी भी खबरें थीं कि नंदीश ने रश्मि देसाई संग मारपीट की थी. रश्मि और नंदीश को अलग हुए चार साल से ज्यादा समय हो चुका है.

भदौड़ (बरनाला) में रहने वाली नवदीप कौर की ससुराल में किसी बात को ले कर पति से लड़ाई हो गई थी. इस के बाद वह मायके आ गई और पुलिस को शिकायत की. बाद में पंचायत में समझौता हो गया. समझौते के अनुसार दो दिन बाद नवदीप को लेने उस के पति को आना था. लेकिन दो महीने बीत जाने के बाद भी वह नहीं आया बल्कि उस ने तलाक का नोटिस भेज दिया. इस से नवदीप गहरे डिप्रेशन में आ गई और कई दिनों तक बेहोश रही. उस का इलाज चलता रहा और इलाज के दौरान ही उस ने दम तोड़ दिया. पुलिस ने ससुराल पक्ष के 5 लोगों पर आत्महत्या के लिए मजबूर करने का केस दर्ज किया.

हरियाणा के अंबाला जिले में कर्ज में डूबने और पत्नी से तलाक होने पर 35 वर्षीय मनीष डिप्रेशन में आ गया. वह काफी परेशान रहने लगा और अंत में एक दिन घर की छत पर बने कमरे में पंखे से लटक कर उस ने अपनी जान दे दी.

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दरअसल तलाक इंसान को अंदर से तोड़ देता है. वह परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता खो बैठता है. खुद को बहुत अकेला और असहाय महसूस करने लगता है. ऐसे में कुछ लोग डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं तो कुछ खुद को दूसरों से काटने लगते हैं. वे घंटो अकेले बैठ कर यह सोचते रहते हैं कि उन के साथ ऐसा क्यों हो रहा है. जब जवाब नहीं मिलता तो वे इन सब का जिम्मेदार खुद को मानने लगते हैं. ऐसे में जिन लोगों को परिवार और दोस्तों का सपोर्ट मिलता है वे इस तकलीफ़ से उबर जाते हैं पर कुछ लोग अकेले पड़ जाते हैं और इस दर्द को सह नहीं पाते.

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है तलाक

तलाक से गुजरना बेहद चुनौतीपूर्ण है और अब एक नए अध्ययन से भी पता चलता है कि यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. फ्रंटियर्स इन साइकोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में पाया गया कि जिन लोगों का हाल ही में तलाक हुआ है वे अन्य लोगों की तुलना में कहीं अधिक मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रहे हैं.

अध्ययन के लिए तलाक लेने वाले 1,856 लोगों से उन की पृष्ठभूमि, स्वास्थ्य और तलाक से संबंधित तरहतरह के सवाल पूछे गए. इस अध्ययन से पता चला कि हाल में हुआ तलाक व्यक्ति के भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है और यह प्रभाव नकारात्मक होता है.

दरअसल तलाक एक लंबी प्रक्रिया है. कई देशों में यह प्रावधान भी है कि तलाक के लिए आवेदन करने से पहले पतिपत्नी को कुछ समय दिया जाता है ताकि हमेशा के लिए अलग होने से पहले वे अपने फैसले पर पुनर्विचार कर लें. इस की अवधि विभिन्न देशों में अलगअलग है. तलाक न केवल दो रिश्तों को तोड़ता है बल्कि तलाक लेने की प्रक्रिया के दौरान एकदूसरे पर जिस तरह आरोपों का दौर चलता है वह दो दिलों को भी तोड़ देता है. आप जिस जीवनसाथी को कभी दिल से चाहते थे वही जब रिश्ता खराब होने पर तलाक के समय आप पर कीचड़ उछाले या प्यार को शर्मिंदा करे तो इंसान अंदर से बुरी तरह टूट जाता है. तलाक के बाद इंसान के दिल और दिमाग की हालत कुछ ऐसी हो जाती है—-

अविश्वास – किसी के साथ रिश्ता टूटने का असर दिल के साथ दिमाग पर भी पड़ता है. व्यक्ति का जब अपने जीवनसाथी पर से विश्वास टूटता है तो फिर दोबारा किसी पर आसानी से विश्वास जम नहीं पाता. इंसान सब को संदेह की नजरों से देखने लगता है. उस का सामाजिक दायरा भी घटने लगता है. वह अपने चारों तरफ एक अनजान लकीर खींच लेता है.

आत्मसम्मान पर चोट – जब आप को प्यार और समर्पण के बदले अपमान और परायापन मिले, जिन की ख़ुशी के लिए अपनी परवाह नहीं की उन्ही के द्वारा जब आप के ऊपर तरहतरह के इल्जाम लगाए जाएं, कोर्ट कचहरी में आप के रिश्ते और प्यार का मजाक बनाया जाए, लांछन लगाए जाएं तो आप के आत्मसम्मान के परखच्चे उड़ जाते हैं. आप दिमागी तौर पर काफी टूट जाते हैं. वापस नार्मल होने में काफी समय लगता है. आप के अंदर नकारात्मकता आ जाती है.

धोखा खाने का अहसास – कई बार तलाक की वजह जीवनसाथी का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर भी होता है. जीवनसाथी द्वारा धोखा दिया जाना इंसान के दिल में गहरा दर्द पैदा करता है. किसी और से शादी की इच्छा में इंसान अपने वर्तमान जीवनसाथी के फीलिंग्स की कद्र भी नहीं करता. ऐसे में तलाक के बाद भी धोखा दिए जाने का दर्द दिल से नहीं जाता और यह दर्द डिप्रेशन की वजह भी बन जाता है.

अपने प्यार का अपमान – जब आप अपने रिश्ते को 100 प्रतिशत देते हैं मगर बदले में आप को धोखा और अपमान मिलता है तो इंसान अंदर से टूट जाता है और यह टूटन हजारों बीमारियों की वजह बनता है. स्वस्थ रहने के लिए मन में एक उत्साह और प्यार का होना जरुरी है. मगर जब प्यार ही न बचे तो शरीर पर सीधा असर पड़ता ही है.

मानसिक संताप – दिल का गम इंसान को गहरा मानसिक संताप देता है. शादी सफल रहे तो इंसान हर तकलीफ हंसतेहंसते झेल लेता है मगर जब घर ही टूट जाए तो कोई खुद को खुश कैसे रख सकता है. इंसान को रहरह कर पुराने दिन याद आते हैं. वह तलाक की वजह समझने के लिए बारबार जिंदगी के तकलीफ भरे पन्नो को पलटता है जिस से मन का संताप गहरा होता जाता है. तलाक वैसे भी एक लंबी प्रक्रिया है और इस से संताप भी लंबे समय तक इंसान को घेरे रहता है और व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार होने लगता है.

अकेलापन – जीवनसाथी यानी जीवन भर का साथी. मगर जब यही साथ बीच में छूट जाए तो दिल में अकेलेपन का घाव पैदा होता है. जीवन में लोग तो बहुत होते हैं मगर सब की अपनी दुनिया होती है, अपनी प्राथमिकताएं होती हैं. शादी के बाद असली साथ जीवनसाथी का ही होता है और यह साथ छूट जाए तो अकेलेपन का दर्द इंसान की सेहत पर सीधा असर डालता है.

नकारात्मक सोच – तलाक के दौरान और उस के बाद न चाहते हुए भी इंसान के मन में नकारात्मकता भर जाती है. वह खुद को अजीब स्थिति में पाता है और इस की वजह उस का जीवनसाथी होता है. वह जीवनसाथी और तलाक की वजह बने लोगों के प्रति घृणा की भावना से भर उठता है. एक क्रोध और एक नफरत की आग इंसान को अंदर से जलाने लगती है और दिनोंदिन उस का स्वास्थ्य गिरने लगता है.

बच्चों पर असर

माता पिता के बीच हुए अलगाव का असर सब से ज्यादा उन के बच्चों पर ही होता है और कई बार यह प्रभाव बड़ा विध्वंसक होता है. छोटे बच्चों में मातापिता के प्रति खीज, गुस्सा और शक आने लगता है. छोटे बच्चों में भी एक डर समा जाता है. वे अपनी मां से चिपके रहना चाहते हैं. पीछेपीछे लगे रहना, चिपक कर सोना जैसी हरकतें करने लगते हैं जो पहले नहीं करते थे.

एक शोध में पाया गया है कि अपेक्षाकृत छोटे बच्चों की शिक्षा और उन की मानसिक स्थिति पर इस का अधिक असर पड़ता है. कनाडा के अल्बर्टा और मानितोबा विश्वविद्यालय की ओर से किए गए शोध में चेतावनी दी गई है कि दंपतियों को तलाक का निर्णय लेते समय अपने बच्चों की शिक्षा और उन के जीवन पर प्रभाव के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए.

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स्वास्थ्य पर भी बुरा असर

तलाक का असर आप के बच्चे के शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ सकता है. द प्रोसीडिंग ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस नाम की एक स्टडी के अनुसार शारीरिक स्वास्थ्य का बुरा असर बच्चों की युवावस्था पर भी पड़ सकता है. रिपोर्ट के अनुसार परिवार में अगर शुरुआत में झगड़े हो तो बच्चों के इम्यून सिस्टम पर भी इस का बुरा असर पड़ता है.

कई बार रिश्ते में कड़वाहट और तलाक की नौबत आने के बावजूद महिलाएं तलाक लेने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं और तलाक के बाद सहज नहीं रह पातीं क्योंकि हमारे देश में लड़की अगर तलाक ले ले तो इसे जीवन की बड़ी असफलता समझा जाता है. समाज तलाकशुदा होने के बाद महिला को शादीशुदा होने जितना सम्मान नहीं दे पाता. तलाक के बाद महिला मातापिता पर बोझ समझी जाती है. डिवोर्सी का टैग उस के नाम से जुड़ जाता है और तलाक के बाद दुख-परेशानियां खत्म हो जाएं ऐसा भी नहीं है. यही वजह है कि समाज के तानों से बचने के लिए महिलाएं अक्सर शादी में खुश न हो तो भी उसे निभाती जाती हैं और यदि मजबूरी में तलाक लेना ही पड़ा तो यह सोच कर मानसिक रूप से परेशान रहती हैं कि अब ज़माना क्या कहेगा.

रिश्तों में घुटन हो तो बेहतर है अलग हो जाना

समाज की सोच कर खुद को तकलीफ में रखना उचित नहीं. यदि किसी महिला को शादीशुदा जिंदगी में रोज अपमानित किया जा रहा हो, दहेज़ के लिए प्रताड़ित किया जा रहा हो, घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ रहा हो या पति बेवफाई कर रहा हो तो सब सहने के बजाय अच्छा है अलग हो जाना.
जरूरी है कि ऐसे में महिलाएं घुटघुट कर जीने के बजाए अपने जीवन के लिए कठोर फैसला लें. तलाक के बाद भी इस का जिम्मेदार खुद को नहीं समझें. तलाक का फैसला एक बहुत बड़ा फैसला होता है लेकिन उसे यह सोच कर स्वीकार करना चाहिए कि खराब रिश्ते में घुटने से अच्छा रिश्ता तोड़ कर खुली हवा में सांस लेना है.

तलाक लेने के बाद कुछ लोग डिप्रेशन में आ जाते हैं तो कुछ खुद को संभाल नहीं पाते. ऐसे में कोई और आप की मदद नहीं कर सकता. आप को खुद को मजबूत बनाना होगा और जीवन में आगे बढ़ने के नए रास्ते तलाशने होंगे कुछ इस तरह,

तलाक से लें ये सबक

1. अपने तलाक से आप सब से बड़ी सीख यह ले सकते हैं कि किसी एक इंसान के आप के जीवन में नहीं होने से दुनिया खत्म नहीं हो जाती.

2. जिंदगी में हमेशा अपना एक सर्कल बना कर रखना चाहिए जिस में सिर्फ ऐसे लोग हों जिन से बात कर के और जिन के साथ रह कर खुशी मिले. जिन का साथ सुख में भी हो और दुख में भी.

3. तलाक के बाद यह सबक लीजिए कि जिस रिश्ते से तकलीफ मिले उस से जुड़ी सारी यादों को मिटा देना चाहिए. अपने पार्टनर से जुड़ी हर याद जैसे शादी की फोटोग्राफ्स, वीडियो मेमोरी, डिजीटल मेमोरी, गिफ्ट्स आदि सबकुछ नष्ट कर दें.

4 . खुद को कोसना छोड़ दें. अपनी गलती मान लेना अच्छी बात है लेकिन दूसरे की गलती को नजरअंदाज कर के खुद को दोषी मानना गलत है. जो हुआ उसे स्वीकार करें और आगे बढ़ जाएं.

5 . खुद को हमेशा प्राथमिकता दें. अपने लिए हमेशा समय होना चाहिए. शादी के बाद लड़कियां खुद को बिल्कुल ही भूल जाते हैं पर यह गलत है. क्योंकि इस से आप का ही नुकसान होता है.

6 . तलाक के बाद भी खुश रहना नहीं छोड़ें. खुश रहना आप का हक है जिसे आप से कोई नहीं छीन सकता.

7 . चीजों और परिस्थितियों से भागना छोड़ दें. परिस्थितियों से भाग कर हम सिर्फ और सिर्फ अपना ही नुकसान करते हैं.

8 . सब से खास बात यह है कि तलाक को प्रतिष्ठा से जोड़ कर न देखें. खुद को छोड़ा हुआ मान कर हीनभावना कतई न पालें.

लाइफ को फिर से पटरी पर लाएं

करियर पर फोकस करें

अगर आप तलाक से पहले पूरी तरह अपने पार्टनर पर निर्भर थे तो अब समझ लें की आप के आत्मनिर्भर बनने का समय आ गया है. सब से पहले अपने करियर पर फोकस करें ताकि अपने खर्चे और अपनी जिम्मेदारियां खुद उठा सकें. आप के पास यह बेहतरीन मौका है खुद से कुछ करने का जो आप को पसंद हो.

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अपनों को पहचानें

जब बुरा वक्त आता ही तभी असली दोस्तों और अपनों की पहचान होती है. ऐसे समय में जब आप अकेले हैं और आप को इमोशनल सपॉर्ट की जरूरत है तो उन लोगों के साथ समय बिताएं जो सच में आप का भला चाहते हैं. इन के साथ बात कर आप को नए रास्ते दिखेंगे, आप का मनोबल बढ़ेगा और कठिन समय को पार कर आगे निकल जाने का हौसला मिलेगा.

बच्चों का रखें ध्यान

अगर आप के बच्चे हैं और तलाक के बाद वे आपके साथ रह रहे हैं तो जाहिर सी बात है अब आप को अकेले ही उन का ध्यान रखना है. इस का मतलब है कि आप की जिम्मेदारी अब और बढ़ जाएगी लेकिन इस वजह से परेशान और स्ट्रेस्ड होने की जरूरत नहीं. इस चैलेंज को स्वीकार करें और अच्छी तरह से निभाएं तभी आप के बच्चे आप को रोल मॉडल के तौर पर देखेंगे.

गुजरे कल को भूल जाएं और आज के लिए प्लान बनाएं.

अक्सर तलाक के बाद लोग मुड़ मुड़ कर अपना अतीत देखते हैं. पुरानी बातें याद करते हैं और दुखी होते हैं. उन लम्हों की यादों में गुम रहते हैं जब पार्टनर आप के बहुत करीब था या फिर वे लम्हे जब उस ने आप का दिल तोड़ा , बेइज्जती की. इन सब बातों से कुछ हासिल नहीं होता सिवा इस के कि आप कमजोर पड़ते हैं. कुछ लोग तो अपने एक्स पार्टनर का सोशल मीडिया पर या कहीं बाहर पीछा भी करते हैं. ऐसा कदापि न करें. बीते कल को भूल कर आज और आने वाले कल की प्लानिंग करें और खुद को मशगूल रखें. खाली न बैठें.

जीवन को फिर से मौका दें

कभीकभी जिंदगी आप को दूसरा मौका देती है. उस मौके को चूकें नहीं बल्कि हाथ बढ़ा कर अपना बना लें. तलाकशुदा होने का मतलब यह नहीं कि आप को अब हमेशा अकेला ही रहना होगा. यदि कोई शख्स आप की जिंदगी में आता है जिस के साथ आप फिर से हंसनेखिलखिलाने लगती हैं तो उसे हमेशा के लिए अपना बनाने की बात पर विचार जरूर करें.

अच्छी हेल्थ के लिए घर में हो सही लाइटिंग

क्या आप अपने घर में सुस्ती और थकान के बजाय ख़ुशी और सकारात्मता महसूस करना चाहते हैं? क्या हमारी रोज़मर्रा  की लाइफ में लाइट महत्वपूर्ण है ? क्या हमें अपने घर में उचित लाइट अरैंजमेंट करना चाहिए, अगर है तो क्यों?  आइए जानते हैं इस सम्बंध में  सीईओ एंड फॉउन्डिंग पार्टनर, लाइट डौक्टर प्राची लौड से.

अक्सर शाम को अपने घरों में लाइट जलाते समय या अन्य घरों में चकाचौंध रोशनी को देखकर ये प्रश्न हम में से किसी न किसी के मन में आते ही हैं. उसी तरह घर के किसी कोने में जब आप भरपूर्ण सकारात्मता ऊर्जा अनुभव करते हैं  तो आपका मूड अच्छा और आप खुद को रीफ्रेश भी महसूस करते हैं. तब मन में ये प्रश्न आना स्वाभाविक है कि ऐसा क्यों होता है. जब आप समझ नहीं पाते तब आप इस अनुभव को ‘सकारात्मक  ऊर्जा’ से जोड़ देते हैं. लेकिन अब जब अगली बार आप ऐसा अनुभव करें तो कमरों की रोशनी के प्रकार का निरीक्षण जरूर करें.

हमारे स्वास्थ्य पर अच्छे और बुरे प्रकाश का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव 

हम सभी जानते हैं कि अपर्याप्त लाइट में देखने की कोशिश करने का मतलब है, आँखों पर तनाव डालना और वहीं लाइट की अधिकता आँखों को नुकसान पहुंचाकर दृश्टिहीन कर सकती है. दोनों ही स्तिथियां हमारी दृश्टि को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती हैं और यदि इस तरह का दोषपूर्ण लाइट अरैंजमेंट डिजाइन , घरों में लम्बे समय तक बना रहता है, तो यह हमारी हैल्थ के लिए कभी न भरपाई करने वाला कारण बन सकता है. और यही कारण है कि हमारे घर व वर्क एरिया में सही लाइट की आवश्यकता होती है.

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एक घर में लाइट की कितनी आवश्यकता

लाइट की मात्रा को lux (लैक्स ) में मापा जाता है और एक घर में प्रत्येक कमरे में विशिट लैक्स स्तरों की आवश्यकता होती है. दिन या रात में विभिन समय सीमा में हम अपने घर पर जो कार्य करते हैं , उसके आधार पर विशिट कोने या क्षेत्र  में सही मात्रा में लाइट अरैंजमेंट करने की आवश्यकता होती है.

क्या है लाइट अरैंजमेंट

जब हम लाइट अरैंजमेंट के बारे में बात करते हैं तो लाइट अरैंजमेंट के विभिन पहलू हमारे सामने होते हैं. जैसे लोग ज्यादा चकाचौंध करने को ही लाइट अरैंजमेंट मान बैठते हैं. जबकि हर समय इससे सही रिजल्ट मिले ऐसा जरूरी  नहीं. बल्कि हम अक्सर महसूस ही नहीं करते हैं या अपने आसपास की गई लाइट अरैंजमेंट को पर्याप्त महत्व भी नहीं देते हैं लेकिन यकीन मानिये कि यह हमारी मनोदशा , स्वास्थय , दृश्टि  और हमारे सामान्य जीवन पर जबरदस्त प्रभाव डालता है.

सही प्रकार का लाइट अरैंजमेंट डिजाइन यह सुनिश्चित करता है कि आप जिस कार्य को करना चाहते हैं , उसे करने के लिए आप हर समय प्राप्त लाइट अरैंजमेंट पा सकें.

लाइट अरैंजमेंट डिजाइन करना

घर के लिए लाइट अरैंजमेंट डिजाइन करना एक कला है. लाइट अरैंजमेंट डिजाइन सिर्फ घर के हर कोने में लाइट जोड़ने से संबंधित नहीं है, बल्कि यह शैडो और लाइट का एक खेल है. घर की लाइटिंग करने के लिए लाइटिंग की लेयरिंग सबसे कारगर होता है.

पहली परत एम्बिएंट लाइट कहलाती है, जिसे सामान्य या आसपास बिखेरने वाली लाइट भी कहा जाता है, इसे डाउनलाइट्स, लीनियर लाइट्स  और कोव लाइट्स लगाकर हासिल किया जा सकता है. खाना पकाने , सफाई जैसे हमारे प्रतिदिन के कार्यों में सामान्य विसरित प्रकाश व्यवस्था की आवश्यकता होती है. यह हमें टेबल टॉप, दीवारों , छत और फर्श जैसी सतहों पर भी बिखेर कर रोशनी देने में मदद करता है.

दूसरी परत xcent लाइट की होती है. इसका उपयोग कलाकृति, दीवार की विशेष बनावट जैसी विशित विशेषता को उजागर करने के लिए किया जाता है.

टास्क लाइटिंग अधिक फोकस्ड अरैंजमेंट है, जो पढ़ना , लिखना और अन्य तरीकों को आसान बनती है.  हममें से बहुत से लोगो को पसंदीदा जगहों पर पढ़ने या लिखने की आदत होती है. व्यसकों के लिए ये एक स्टडी कार्नर या बिस्तर हो सकते है, क्योंकि कुछ लोग सोने से पहले पढ़ना पसंद करते हैं. बच्चों के लिए यह उनका स्टडी डेस्क हो सकता है. हमारी स्वस्थ दृश्टि के लिए सही प्रकार की और सही मात्रा में लाइट अरैंजमेंट की आवश्यकता होती है. पढ़ने या लिखने के दौरान अपनी आँखों को तनाव से बचाने के लिए व्यक्ति को glare फ्री लाइटिंग अरैंजमेंट का उपयोग करना चाहिए.

वार्मर कलर्स  और कूलर कलर्स का संयोजन

हमारे घर में वार्मर कलर्स और कूलर कलर्स की लाइटिंग का संयोजन होना चाहिए. हममें से ज्यादातर लोग पारम्परिक फ्लोरोसेंट tube लाइट की वजह से अपने घरों में कूलर कलर लाइटिंग fickchers देखने के आदि हैं. उन्हें लगता है कि यह उनके घरों के लिए पसंदीदा लाइटिंग कलर है. हर किसी की अपनी पसंद होती है. लेकिन सबसे अच्छा तरीका यह है कि वार्मर  और कूलर कलर्स लाइटिंग fickchers दोनों का सही मिश्रण हो.

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हम अपने लिविंग रूम  और बैडरूम में वार्मर कलर टोन डेकोरेटिव लाइटिंग फीचर्स लगाकर एक शांत वातावरण बना सकते है. रसोई जैसे उन्मुख जगहों के  लिए कूलर रंगीन प्रकाश व्यवस्था पसंद की जाती है. बाथरूम में हमें  मिक्स कलर टोन रखना चाहिए, बिस्तर पर लेटने से पहले कूलर कलर की लाइटिंग स्विच ओन करने से बचना चाहिए.

विभिन अध्ययनों के अनुसार कूलर कलर लाइटिंग हमारे मस्तिक में मेलाटोनिन हार्मोन के स्तर को दबाने में मदद करता है, जो हमें  अधिक सक्रिय बनाता है , जो कि हमारे काम के दौरान पसंद किया जा सकता है लेकिन बिस्तर पर जाते समय अच्छा नहीं हो सकता.

इस तरह बड़े परिपेक्ष्य में देखा जाए तो अच्छी लाइटिंग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अच्छे स्वास्थय को बनाए रखने में हमारी मदद करती है.

फैशन के मामले में पुरानी ‘अनीता भाभी’ को टक्कर देती हैं नई गोरी मेम, देखें फोटोज

बिग बौस 12 फेम एक्ट्रेस नेहा पेंडसे ने साल 2020 की शुरुआत में बौयफ्रेंड शार्दुल बायस से शादी की थी, जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई थीं. वहीं टीवी की दुनिया से वह अब तक दूर भी रही थीं, लेकिन अब वह गोरी मेम यानी अनिता भाभी के रोल में सीरियल भाभी जी घर पर हैं! में नजर आने वाली हैं. लेकिन आज हम उनके किसी कौंट्रवर्सी या सीरियल की नही बल्कि उनके इंडियन लुक्स के बारे में बात करेंगे. सोशलमीडिया पर एक्टिव रहने वाली नेहा अक्सर अपनी फोटोज शेयर करती रहती हैं, जिनमें वह अपनी नए नए लुक्स को फैंस के साथ शेयर करती हैं. आइए आपको दिखाते हैं नई गोरी मेम के स्टाइलिश और ट्रैंडी इंडियन लुक्स…

1. साड़ी में लगती हैं खूबसूरत

साड़ी हर कोई पहनना पसंद करता है. वहीं नेहा भी साड़ियों की काफी शौकीन हैं. इसीलिए वह अक्सर नई और ट्रैंडी साड़ियां पहनकर फैंस के साथ फोटोज शेयर करती नजर आती हैं.

 

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2. लाइट कलर शरारा करें ट्राय

 

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अगर आप लाइट कलर को कहीं घूमने जाने के लिए चुनना चाहती हैं तो नेहा पेंडसे का ये लाइट ग्रीन कलर वाला शरारा आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. ये आपके लुक को कंफर्ट और स्टाइल देने में मदद करेगा.

3. प्लाजो के साथ कंफर्ट है खास

 

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अगर आप कंफर्टेबल लुक ट्राय करना चाहती हैं तो नेहा पेंडसे का ये डार्क आसमानी कलर का सूट ट्राय करना ना भूलें. वहीं इसके साथ आप प्लाजो ट्राय कर सकती हैं, जो इन दिनों ट्रैंड में है.

4. पार्टी के लिए परफेक्ट है ये लुक

 

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अगर आप किसी पार्टी के लिए सिंपल लेकिन ट्रैंडी लुक की तलाश कर रही हैं तो नेहा पेंडसे का ये शरारा लुक आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. कढ़ाई वाले इस पिंक शरारा के साथ हैवी झुमके आपके लुक को कम्पलीट करेगा.

 

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5. प्रिंटेड शरारा करें ट्राय 

 

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शरारा के कई नए पैटर्न बाजार में मौजूद हैं और अगर आप नया शरारा पैटर्न तलाश कर रहे हैं तो नेहा पेंडसे का ये प्रिंटेड पैटर्न शरारा आपके लिए परफेक्ट औप्शन है.

पिघलती बर्फ: क्यों स्त्रियां स्वयं को हीन बना लेती हैं?

“आज ब्रहस्पतिवार को तूने फिर सिर धो लिया. कितनी बार कहा है कि ब्रहस्पतिवार को सिर मत धोया कर, लक्ष्मीजी नाराज हो जाती हैं,” मां ने प्राची को टोकते हुए कहा.

“मां सिर चिपचिपा रहा था,” मां की बात सुन कर धीमे स्वर में अपनी बात कह प्राची मन ही मन बुदबुदाई, ‘सोमवार, बुधवार और गुरुवार को सिर न धोओ. शनिवार, मंगलवार, गुरुवार को बाल न कटवाओ क्योंकि गुरुवार को बाल कटवाने से धन की कमी तथा मंगल व शनिवार को कटवाने से आयु कम होती है. वहीं, शनि, मंगल और गुरुवार को नाखून काटने की भी मां की सख्त मनाही थी. कोई वार बेटे पर तो कोई पति पर और नहीं, तो लक्ष्मीजी का कोप… उफ, इतने बंधनों में बंधी जिंदगी भी कोई जिंदगी है.

“कल धो लेती, किस ने मना किया था पर तुझे तो कुछ सुनना ही नहीं है. और हां, आज शाम से तुझे ही खाना बनाना है.” प्राची मां की यह बात सुन कर मन के चक्रव्यूह से बाहर आई.

ओह, यह अलग मुसीबत…सोमवार से तो मेरे एक्जाम हैं. सब मैं ही करूं, भाई तो हाथ लगाएगा नहीं, यह सोच कर प्राची ने सिर पकड़ लिया.

‘अब क्या हो गया?’ मां ने उसे ऐसा करते देख कर कहा.

‘मां सोमवार से तो मेरे एक्जाम हैं,’ प्राची ने कहा.

‘तो क्या हुआ, कौन सा तुझे डिप्टी कलैक्टर बनना है?’

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‘मां, क्या जब डिप्टी कलैक्टर बनना हो, तभी पढ़ाई करनी चाहिए, वैसे नहीं. वैसे भी, मुझे डिप्टी कलैक्टर नहीं बनना, मुझे डाक्टर बनना है और मैं बन कर दिखाऊंगी,” कहते हुए प्राची ने बैग उठाया और कालेज के लिए चल दी.

‘नखरे तो देखो इस लड़की के, सास के घर जा कर नाक कटाएगी. अरे, अभी नहीं सीखेगी तो कब सीखेगी. लड़की कितनी भी पढ़लिख जाए पर रीतिरिवाजों को तो मानना ही पड़ता है.” प्राची के उत्तर को सुन कर सरिता बड़बड़ाईं.

प्राची 10वीं कक्षा की छात्रा है. वह विज्ञान की विद्यार्थी है. सो, उसे इन सब बातों पर विश्वास नहीं है. मां को जो करना है करें पर हमें विवश न करें. पापा भी उन की इन सब बातों से परेशान रहते हैं लेकिन घर की सुखशांति के लिए उन्होंने यह सब सहना सीख लिया है. ऐसा नहीं था कि मां पढ़ीलिखी नहीं हैं, वे सोशल साइंस में एमए तथा बीएड थीं लेकिन शायद उन की मां तथा दादी द्वारा बोए बीज जबतब अंकुरित हो कर उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर करते थे. प्राची ने मन ही मन निर्णय कर लिया था कि चाहे जो हो जाए वह अपने मन में इन बीजों को पनपने नहीं देगी.

प्राची के एक्जाम खत्म हुए ही थे कि एक दिन पापा नई कार मारूति स्विफ्ट ले कर घर आए. अभी वह और भाई विजय गाड़ी देख ही रहे थे कि मां नीबू और हरीमिर्च हाथ में ले कर आईं. उन्होंने नीबू और हरीमिर्च हाथ में ले कर गाड़ी के चारों ओर चक्कर लगाया तथा गाड़ी पर रोली से स्वास्तिक का निशान बना कर उस पर फूल मालाएं तथा कलावा चढ़ा कर मिठाई का एक पीस रखा. उस के बाद मां ने नारियल हाथ में उठाया…

“अरे, नारियल गाड़ी पर मत फोड़ना,” अचानक पापा चिल्लाए.

“तुम मुझे बेवकूफ समझते हो. गाड़ी पर नारियल फोडूंगी तो उस जगह गाड़ी दब नहीं जाएगी,” कहते हुए मां ने गाड़ी के सामने पहले से धो कर रखी ईंट पर नारियल फोड़ कर ‘ जय दुर्गे मां’ का उद्घोष करते हुए ‘यह गाड़ी हम सब के लिए शुभ हो’ कह कर गाड़ी के सात चक्कर न केवल खुद लगाए बल्कि हम सब को भी लगाने के लिए भी कहा.

“तुम लगा ही रही हो, फिर हमारे लगाने की क्या आवश्यकता है,” पापा ने थोड़ा विरोध करते हुए कहा.

“आप तो पूरे नास्तिक हो गए हो. आप ने देखा नहीं, टीवी पर लड़ाकू विमान राफेल लाने गए हमारे रक्षामंत्री ने फ्रांस में भी तो यही टोटके किए थे.”

मां की बात सुन कर पापा चुप हो गए. सच, जब नामी व्यक्ति ऐसा करेंगे तो इन बातों पर विश्वास रखने वालों को कैसे समझाया जा सकता है.

समय बीतता गया. मां की सारी बंदिशों के बावजूद प्राची को मैडिकल में दाखिला मिल ही गया. लड़की होने के कारण मां उसे दूर नहीं भेजना चाहती थीं, किंतु इस बार पापा चुप न रह सके. उन्होंने मां से कहा, “मैं ने तुम्हारी किसी बात में दखल नहीं दिया. किंतु आज प्राची के कैरियर का प्रश्न है, इस बार मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूंगा. मेरी बेटी मैडिकल की प्रतियोगी परीक्षा में सफल हुई है, उस ने सिर्फ हमारा ही नहीं, हमारे पूरे खानदान का नाम रोशन किया है. उसे उस की मंजिल तक पहुंचाने में सहायता करना हमारा दायित्व है.”

मां की अनिच्छा के बावजूद पापा प्राची को इलाहाबाद मैडिकल कालेज में पढ़ने के लिए ले कर गए. पापा जब उसे होस्टल में छोड़ कर वापस आने लगे तब वह खुद को रोक न पाई, फूटफूट कर रोने लगी थी.

“बेटा, रो मत. तुझे अपना सपना पूरा करना है न, बस, अपना ख़याल रखना. तुझे तो पता है तेरी मां तुझे ले कर कितनी आशंकित हैं,” पापा ने उसे समझाते हुए उस के सिर पर हाथ फेरा तथा बिना उस की ओर देखे चले गए. शायद, वे अपनी आंखों में आए आंसुओं को उस से छिपाना चाहते थे.

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पापा के जाने के बाद प्राची निशब्द बैठी थी. बारबार उस के मन में आ रहा था कि वह दुखी क्यों है? आखिर उस की ही इच्छा तो उस के पापा ने उस की मां के विरुद्ध जा कर पूरी की है. अब उसे पापा के विश्वास पर खरा उतरना होगा. प्राची ने स्वयं से ही प्रश्न किया तथा स्वयं ही उत्तर भी दिया.

“मैं, अंजली. और तुम?’ अंजली ने कमरे में प्रवेश करते ही कहा.

“मैं, प्राची.”

“बहुत प्यारा नाम है. उदास क्यों हो? क्या घर की याद आ रही है?”

प्राची ने निशब्द उस की ओर देखा.

“मैं तुम्हारा दर्द समझ सकती हूं. जब भी कोई पहली बार घर छोड़ता है तब उस की मनोदशा तुम्हारी तरह ही होती है. पर धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. सारी बातों को दिल से निकाल कर बस यह सोचो, हम अपना कैरियर बनाने के लिए यहां आए हैं.”

“तुम सच कह रही हो,” प्राची ने चेहरे पर मुसकान लाते हुए कहा.

“अच्छा, अब मैं चलती हूं. थोड़ा फ्रेश हो लूं. अपने कमरे में जा रही थी कि तुम्हारा कमरा खुला देख कर तुम्हारी ओर नजर गई, सोचा मिल तो लूं अपनी नई आई सखी से. मेरा कमरा बगल वाला है. रात्रि 8 बजे खाने का समय है, तैयार रहना. अपना यह बिखरा सामान आज ही समेट लेना, कल से कालेज जाना है,” अंजली ने कहा.

अंजली के जाते ही प्राची अपना सामान अलमारी में लगाने लगी. तभी मोबाइल की घंटी बज उठी. फोन मां का था. “बेटा, तू ठीक है न? सच, अकेले अच्छा नहीं लग रहा है. बहुत याद आ रही है तेरी.”

“मां, मुझे भी…’ कह कर वह रोने लगी.

“तू लौट आ,” मां ने रोते हुए कहा.

“प्राची, क्या हुआ? अगर तू ऐसे कमजोर पड़ेगी तो पढ़ेगी कैसे? नहीं बेटा, रोते नहीं हैं. तेरी मां तो ऐसे ही कह रही है.” पापा ने मां के हाथ से फोन ले कर उसे ढाढस बंधाते हुए कहा.

“अरे, तुम अभी बात ही कर रही हो, खाना खाने नहीं चलना.”

“बस, अभी…पापा, मैं खाना खाने जा रही हूं, आ कर बात करती हूं.”

मेस में उन की तरह कई लड़कियां थीं. अंजली ने सब को नमस्ते की. उस ने भी अंजली का अनुसरण किया. सभी ने उन का बेहद अपनेपन से स्वागत करते हुए एकदूसरे का परिचय प्राप्त किया. सब से परिचय करने के बाद अंजली ने एक टेबल की कुरसी खिसकाते हुए उसे बैठने का इशारा किया और स्वयं भी बैठ गई. अभी वे बैठी ही थीं कि उन के सामने वाली कुरसी पर 2 लड़कियां आ कर बैठ गईं. अंजली और प्राची ने उन का खड़े हो कर अभिवादन किया. उन दोनों ने उन्हें बैठने का आदेश देते हुए उन का परिचय प्राप्त करते हुए तथा अपना परिचय देते हुए साथसाथ खाना खाया. रेखा और बबीता सीनियर थीं. वे बहुत आत्मीयता से बातें कर रही थीं. खाना भी ठीक लगा. खाना खा कर जब वह अपने कमरे में जाने लगी तो रेखा ने उस के पास आ कर कहा, “प्राची और अंजली, तुम दोनों नईनई आई हो, इसलिए कह रही हूं, हम सब यहां एक परिवार की तरह ही रह रहे हैं, तुम कभी स्वयं को अकेला मत समझना. हंसीमजाक में अगर कोई तुम्हें कुछ कहे तो सहजता से लेना. दरअसल, कुछ सीनियर्स, जूनियर की खिंचाई कर ही लेते हैं.”

“रेखा दी और प्राची, ये खाओ बेसन के लड्डू. मां ने साथ में रख दिए थे,” अंजलि ने एक प्लेट उन के आगे बढ़ाते हुए कहा.

“बहुत अच्छे बने हैं,” एकएक लड्डू उठा कर खाते हुए प्राची और रेखा ने कहा.

रेखा दीदी और अंजली का व्यवहार देख कर एकाएक प्राची को लगा कि जब ये लोग रह सकती हैं तो वह क्यों नहीं. मन में चलता द्वंद्व ठहर गया था. अंजली ने बताया, सुबह 8 बजे नाश्ते का समय है.

अपने कमरे में आ कर प्राची अब काफी व्यवस्थित हो गई थी. तभी मां का फोन आ गया…”मैन, चिंता मत करो, मैं ठीक हूं. यहां सब अच्छे हैं,” प्राची ने सारी घटनाएं उन्हें बताते हुए कहा.

“ठीक है बेटा, पर ध्यान से रहना. आज के जमाने में किसी पर भरोसा करना उचित नहीं है. कल तेरा कालेज का पहला दिन है. हनुमान जी की फोटो किसी उचित स्थान पर रख कर उन के सामने दिया जला कर, उन से आशीर्वाद ले कर जाना.”

“जी मां.”

ढेरों ताकीदें दे कर मां ने फोन रख दिया था. समय बीतता गया. वह कदमदरकदम आगे बढ़ती गई. पढ़ते समय ही उस की दोस्ती अपने साथ पढ़ने वाले जयदीप से हो गई. एमबीबीएस खत्म होने तक वह दोस्ती प्यार में बदल गई. लेकिन अभी उन की मंजिल विवाह नहीं थी. प्राची को गाइनोलौजिस्ट बनना था जबकि जयदीप को जरनल सर्जरी में एमएस करना था.

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उस के एमबीबीएस करते ही मां उस पर विवाह के लिए दबाव बनाने लगी किंतु उस ने अपनी इच्छा बताते हुए विवाह के लिए मना कर दिया. रैजीडैंसी करते हुए उन्होंने पीजी की तैयारी प्रारंभ कर दी. कहते हैं, जब लक्ष्य सामने हो, परिश्रम भरपूर हो तो मंजिल न मिले, ऐसा हो नहीं सकता. पीजी की डिग्री मिलते ही उन्हें दिल्ली के प्रसिद्ध अपोलो अस्पताल में जौब मिल गया.

उस के जौब मिलते ही मां ने विवाह की बात छेड़ी तो प्राची ने जयदीप से विवाह की इच्छा जाहिर की.

पहले तो मां बिगड़ीं, बाद में मान गईं लेकिन फिर भी उन के मन में संदेह था कि वह बंगाली परिवार में एडजस्ट कर पाएगी कि नहीं. उन्होंने उन दोनों को मिलने के लिए बुलाया. जयदीप आखिर उस के मांपापा को पसंद आ ही गया.

प्राची मंगली थी, सो, मां ने पंडितजी को बुलवा कर उन की कुंडली मिलवाई तो पता चला कि जयदीप मंगली नहीं है. पंडितजी की बात सुन कर मां चिंताग्रस्त हो गई थीं.

“पंडितजी, प्राची के मंगल को शांत करने का कोई उपाय है?”

“प्राची का उच्च मंगल लड़के का अनिष्ट कर सकता है. विवाह से पूर्व प्राची का पीपल के पेड़ से विवाह करा दें, तो मंगलीदोष दूर हो जाएगा या फिर वह 29 वर्ष की उम्र के बाद विवाह करे,” पंडितजी ने मां की चिंता का निवारण करते हुए कहा.

मां ने प्राची को पंडितजी की बात बताई तो वह भड़क गई तथा उस ने पीपल के वृक्ष से विवाह के लिए मना कर दिया.

“बेटी, शायद तुझे पता न हो, विश्वसुंदरी तथा मशहूर हीरोइन ऐश्वर्या राय बच्चन ने भी अपने मांगलिक दोष को दूर करने के लिए पीपल के वृक्ष से विवाह किया था,” मां ने प्राची को समझाने की कोशिश करते हुए कहा.

“मां, क्या ऐश्वर्या ने ठीक किया था? माना उस ने ठीक किया था, तो यह कोई आवश्यक नहीं कि मैं भी वही करूं जो ऐश्वर्या ने किया. मेरी अपनी सोच है, समझ है, स्वयं पर दृढ़विश्वास है. दुर्घटनाएं या जीवन में उतारचढ़ाव तो हर इंसान के जीवन में आते हैं. ऐसी परिस्थितियों से स्वयं को उबारना, जूझना तथा जीवन में संतुलन बना कर चलना ही इंसान का मुख्य ध्येय होना चाहिए, न कि टोनेटोटकों में इंसान अपनी आधी जिंदगी या ऊर्जा बरबाद कर स्वयं भी असंतुष्ट रहें तथा दूसरों को भी असंतुष्ट रखें,” प्राची ने शांत स्वर में कहा.

“बेटा, हमारे समाज में कुछ मान्यताएं ऐसी हैं जिन्हें मानने से किसी का कुछ नुकसान नहीं होता, लेकिन किसी के मन को शांति मिल जाए, तो उसे मानने में क्या बुराई है. मैं ने तेरी जिद के कारण, अपने मन को मार कर तेरी खुशी के लिए तेरे विजातीय विवाह को स्वीकार कर लिया जबकि हमारे खानदान में आज तक ऐसा नहीं हुआ. ऐसे में तू क्या अपनी मां की छोटी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकती. मैं तेरे भले के लिए कह रही हूं. तेरा भारी मंगल तेरे जयदीप की जान भी ले सकता है,” मां ने अपना आखिरी हथियार आजमाने की कोशिश करते हुए कहा.

“मां, मैं आप से बहुत प्यार करती हूं. आप को दिल से धन्यवाद देती हूं कि आप ने मेरी खुशी के लिए हमारे विवाह की स्वीकृति दी, लेकिन जिन मान्यताओं पर मुझे विश्वास नहीं है, उन्हें मैं कैसे मान लूं. पीपल के वृक्ष से विवाह कर के क्या ताउम्र मैं अपने व्यक्तित्व के अपमान की अग्नि में नहीं जलती रहूंगी? क्या जबजब मुझे अपना यह कृत्य याद आएगा तबतब मुझे ग्लानि या हीनभावना के विषैले डंक नहीं डसेंगे? अगर जयदीप मांगलिक होता और मैं मांगलिक नहीं होती तब क्या जयदीप को भी हमारा समाज पीपल के वृक्ष से विवाह करने के लिए कहता? क्या यह स्त्री के स्त्रीत्व या उस की गरिमा का अपमान नहीं है? स्त्री के साथ कोई अनहोनी हो जाए तो कोई बात नहीं लेकिन पुरुष के साथ कोई हादसा न हो, इस के लिए ऐसे ढकोसले… हमारा समाज जीवन में आई हर विपत्ति के लिए सदा स्त्री को ही क्यों कठघरे में खड़ा करता है? स्त्री हो कर भी क्या आप ने कभी सोचा है?

“नहीं मां, नहीं. शायद, हम स्त्रियों का तो कोई आत्मसम्मान है ही नहीं. होगा भी कैसे, जब हम स्त्रियों को ही स्वयं पर विश्वास नहीं है. तभी तो हम स्त्रियां अनुमानित विपदा को टालने के लिए व्यर्थ के ढकोसलों- व्रत, उपवास, यह न करो, वह न करो आदि में न केवल स्वयं लिप्त रहतीं हैं बल्कि अपने बच्चों को भी मानने के लिए विवश कर उन के विश्वास को कमजोर करने से नहीं चूकतीं.

“मैं आप की खुशी और आप के मन की शांति के विवाह के लिए 2 वर्ष और इंतजार कर सकती हूं पर पीपल के वृक्ष से विवाह कर स्वयं को स्वयं की नजरों नहीं गिरने दूंगी. मुझे अपने प्यार पर विश्वास है, वह मेरी बात कभी नहीं टालेगा.”

“किंतु तेरे मंगली होने की बात मुझे तेरी सासससुर को बतानी होगी. कहीं ऐसा न हो कि बाद में वे हम पर इस बात को छिपाने का दोष लगा दें.”

“जैसा आप उचित समझें,” कह कर प्राची उठ कर चली गई.

“तुम्हारी जिद्दी बेटी को समझाना बहुत मुश्किल है. पंडितजी सही कह रहे हैं. इस का मंगल उच्च है, तभी इस में इतनी निडरता और आत्मविश्वास है. अगर लड़के वालों को कोई आपत्ति नहीं है, तो कर देते हैं विवाह,” पापा ने उस के उठ कर जाते ही मां से कहा.

“कहीं लड़के का अनिष्ट…” मां के चेहरे पर चिंता की लकीरें झलक आई थीं.

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“कैसी बातें कर रही हो तुम? तुम ही कहतीं थीं कि तुम्हारे पिताजी सदा कहते थे कि अच्छाअच्छा सोचो, तो अच्छा होगा. हमारे नकारात्मक विचार हमें सदा चिंतित तो रखते ही हैं, किसी कार्य की सफलता के प्रति हमारी दुविधा के प्रतीक भी हैं. वहीं, सकारात्मक विचार हमें सकारात्मक ऊर्जा से भर कर हमारे कार्य को सफल बनाने में सहायक होते हैं. तुम चिंता मत करो, हमारी प्राची में हौसला है, विश्वास है, उस का कभी अनिष्ट नहीं होगा. अब हमें विवाह की तैयारी करनी चाहिए,” पापा ने मां को समझाते हुए कहा.

“जैसा आप उचित समझें, लेकिन अगर हम जयदीप के मातापिता से इस संदर्भ में बात कर लें तो मेरी सारी दुविधा समाप्त हो जाएगी.”

ठीक है, मैं समय ले लेता हूं,” कहते हुए दिनेश फोन करने लगे.

जयदीप के मातापिता से मिलते ही सरिता ने अपने मन की बात कही.

“बहनजी, हम इन बातों को नहीं मानते. मेरा और विजय का विवाह आज से 30 वर्ष पूर्व बिना कुंडली मिलाए हुआ था. हम ने सफल वैवाहिक जीवन बिताया. मेरा तो यही मानना है अगर हमारे विचार मिलते हैं, हमें एकदूसरे पर विश्वास है तो हम जीवन में आई हर कठिनाई का सामना कर सकते हैं. जो होना होगा वह होगा ही, व्यर्थ के ढकोसलों में पड़ कर हम अपने मन को कमजोर ही करते हैं,” शीला ने कहा.

शीला की बात सुन कर सरिता के मनमस्तिष्क में प्राची के शब्द भी गूंजने लगे- ‘ममा, हम स्त्रियां स्वयं को इतना हीन क्यों बना लेती हैं? जीवन में आई हर विपदा को अपने क्रूर ग्रहों का कारण मान कर सदा कलपते रहना उचित तो नहीं है. एकाएक उस के मन में व्याप्त नकारात्मकता की जगह सकारात्मकता ने ले ली. उस की सकारात्मक सोच ने उस में उर्जा का ऐसा संचार कर दिया था कि अब उसे भी लगने लगा कि व्यक्ति अपनी निष्ठा, लगन, परिश्रम और आत्मविश्वास से कठिन से कठिन कार्य में भी सफलता प्राप्त करने के साथ जीवन में आई हर चुनौती का सामना करने में सक्षम रह सकता है. इस के साथ ही उन के मन पर वर्षो से चढ़ी ढोंग और ढकोसलों की जमी बर्फ पिघलने लगी थी. उन्होंने प्राची और जयदीप के संबंध को तहेदिल से स्वीकार कर विवाह की तैयारियां शुरू कर दीं.

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हाउसवाइफ से मेयर बनने तक का सफर: अनामिका मिथिलेश

देश की राजधानी दिल्ली में स्थित, सब से ऊंची सरकारी इमारत, ठीक रामलीला मैदान के सामने, सिविक सेंटर. नीले शीशों की इस इमारत के ए ब्लोक में तीसरे फ्लोर पर बैठतीं हैं साउथ दिल्ली म्युनिसिपल कोरपोरेशन की मेयर, अनामिका मिथिलेश सिंह (40). गोरा रंग और औसत कद काठी की अनामिका, किसी भी आम व्यक्ति को साधारण महिला सी दिखाई देंगी, लेकिन अपने मजबूत इरादों और नेतृत्व क्षमता के बदौलत वह असाधारण मुकाम तक पहुंची हैं.

नोर्मली जब कभी राजनीति की बात होती है तो मुख्य रूप से हमारे दिमाग में मर्दों का ही चेहरा नजर आता है. सिर्फ राजनीति ही क्यों, घर के बाहर कोई भी काम क्यों न हो, पुरुषों को ही उस का कर्ताधर्ता बताया जाता है. वहीँ, महिलाओं को घरों के भीतर ही समेट दिया जाता हैं.
इसी मेंटेलिटी को भाजपा पार्टी से निर्वाचित दक्षिणी दिल्ली म्युनिसिपेलिटी की मेयर अनामिका चैलेंज करती हैं, जो बिहार के छोटे से गांव मुरलीगंज कसबा, जिला मधेपुरा से आती हैं. अपने स्कूल के दिनों से ही ब्राइट छात्रा रहीं अनामिका ने राजधानी दिल्ली की मेयर बन कर महिलाओं को राजनीती में आने की प्रेरणा दी है.

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2017 में दिल्ली एमसीडी के चुनाव हुए थे जिस में अनामिका हरी नगर-बी वार्ड से निगम पार्षद बनीं. यह एक दुर्भाग्य है कि अधिकतर दिल्लीवासियों को अभी तक यह नहीं पता कि नगर निगम क्या है और यह कैसे काम करती हैं. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को 3 नगर निगमों द्वारा संचालित किया जाता है. एनडीएमसी, एमसीडी और दिल्ली कन्टेनमेंट बोर्ड. साल 2012 में दिल्ली एमसीडी को 3 हिस्सों में बांटा गया, नोर्थ दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (104 सीटें), साउथ दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (104 सीटें) और ईस्ट दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (64 सीटें). कुल मिला कर 272 सीटें हैं, जिन में से 3 मेयर और 3 डिप्टी मेयर चुने जाते हैं.
24 जून 2020 को अनामिका मिथिलेश के कार्यों को सराहते हुए उन्हें दक्षिणी दिल्ली नगर निगम से मेयर बनाया गया. मेयर का काम केवल विभिन्न सेरेमनी में रिबन काटना ही नही होता बल्कि इस से कहीं ज्यादा होता है. सदन में अध्यक्षता के अलावा वे नई परियोजनाओं का सुझाव दे सकते हैं, अधिकारियों को बुला सकते हैं और यहां तक ​​कि सिविल कार्य में तेजी लाने के लिए एडवांस अप्रूवल दे सकते हैं.
इसी के चलते हम मेयर अनामिका मिथिलेश से मिलने, उन के ओफिस चल दिए. सिविक सेंटर पहुंचें तो, सिक्यूरिटी गार्ड ने गेट नंबर 5 से प्रवेश करने के लिए कहा. गेट पास बना कर हम ए ब्लोक में तीसरे फ्लोर पर मेयर के ओफिस पहुंचें तो, हमें कुछ देर रुकने को कहा गया. थोड़े इंतज़ार के बाद जब फाइनली ओफिस में एंटर हुए तो देखा की मेयर अपनी कुर्सी पर बैठे, अपने रूटीन वर्क में बीजी थीं.
अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए अनामिका कहती हैं, “स्कूल के दिनों से ही मैं सभी कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भूमिका निभाती रहती थी. अपने स्कूल में मैं सभी शिक्षकों की चहेती थी. कुछ समय बाद स्कूल की तरफ से मुझे एक्टिविटीज के लिए अध्यक्ष भी चुना गया. स्कूल के दिनों से ही मुझे सोशल एक्टिविटीज में भाग लेना बहुत अच्छा लगता था.”

कुछ इस तरह से अनामिका अपनी प्रतिभा के बल पर अपने जीवन में आगे बढ़तीं रहीं हैं. लेकिन अनामिका का राजनीतिक सफर आननफानन में ही शुरू नहीं हुआ, बल्कि उन के नाना 15 सालों तक बिहार में एमएलसी (म्युनिसिपल लेजिस्लेटिव कौंसिलर) रह चुके थे. यह बताते हुए उन्होंने कहा, “राजनीति की तरफ मेरा झुकाव बचपन से ही रहा है. पहले मेरे नाना और फिर शादी के बाद मेरे पति दोनों से ही मुझे सीखने के लिए बहुत कुछ मिला है और फाइनली मेरा जो मेरा बनने का पैशन था वह मैं ने हांसिल किया.”
अकसर देखा जाता है कि किसी भी सफल महिला के लिए उन की पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ को बैलेंस करना बेहद मुश्किल हो जाता है. खासकर तब जब बात किसी महिला राजनेता की हो, जिन की प्रोफेशनल लाइफ ही पब्लिक सेवा में हो. ऐसे में अनामिका भी अपने जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए समय के अनुसार सारे काम करना पसंद करती हैं.

वह बताती हैं, “मैं शिक्षक की बेटी हूं और शुरुआत से ही डिसिप्लिन माहौल में मेरी परवरिश हुई है. इसीलिए मुझे कोई भी काम करना ज्यादा टफ नहीं लगता, क्योंकि बचपन से मेरे घर, परिवार और स्कूल में मेरी ट्रेनिंग ही ऐसे हुई है कि मैं सारे काम अपनी पूरी जिम्मेदारी से कर सकूं.”
वह आगे कहती हैं, “जब मैं घर पर होती हूं तो मेरे पति की क्या आवश्यकता है, उन के साथ मेरी अच्छी अंडरस्टैंडिंग बने, उस की जिम्मेदारी मैं अच्छे से निभाती हूं. मैं एक अच्छी मदर कैसे बनूं, इस के लिए वीकेंड पर कोशिश करती हूं कि पूरा दिन मैं अपने दो बेटों के साथ गुजार सकूं.

“इस के अलावा हर रात काम से घर पहुंच कर अपने बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करती हूं. उन से बात करती हूं. अपने पिता की अच्छी बेटी कैसे बनूं, इस के लिए मैं समयसमय पर उन से बात करती रहती हूं. उन से अलगअलग चीजों के ऊपर सलाह मशविरा लेती हूं.”

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दक्षिणी दिल्ली मेयर के पद पर आसीन एक महिला का होना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है. जब हम बात करते हैं पुरुषों की तो राजनीति में मर्दों के जीवन में एक सेट विजन होता है, और वह अपने उस विजन के पदचिन्हों पर चलते हुए अपने राजनीतिक लक्ष्यों की पूर्ति करते हैं. जिन पर सिर्फ अपने करियर को बनाने की जिम्मेदारी होती है. लेकिन महिलाओं के सन्दर्भ में ऐसा नहीं होता. यदि कोई महिला राजनीति में है तो वह एक साथ कई रोल अदा करती है. उदाहरण के लिए अनामिका को ही देखा जा सकता है. वह केवल दक्षिणी दिल्ली की मेयर ही नहीं है, बल्कि जब वह घर में होती हैं तो वह पत्नी, मां, बेटी, बहु इत्यादि होती है. ऐसे में हमारे समाज में किसी महिला का राजनीति में होना मात्र ही अपनेआप में बहुत बड़ी बात है.
राजधानी दिल्ली की मेयर होने के साथ ही वह राजनीति के दांव पेंचों को बेहद बखूबी समझती हैं. उन से बात करते हुए उन की राजनीति में सक्रियता झलक रही थी. वह इस समय दिल्ली सरकार और एमसीडी के बीच चलने वाली घमासान को ले कर काफी सक्रीय हैं. फिर चाहे सीएम का घेराव करना हो, मांगों को ले कर भूख हड़ताल करना हो या फिर आन्दोलन करना हो.

इसी खींचतान को ले कर जब उन से सवाल पूछा गया तो उस के जवाब में उन्होंने बताया कि, “एमसीडी में आने वाली तीनों निगम, दक्षिणी, उत्तरी और पूर्वी दिल्ली नगर निगम के अपनीअपनी मान्यताएं और अपनेअपने काम हैं. संविधान की गाइडलाइन्स के अनुसार, किसी भी निकाय का खर्च वहां की राज्य सरकारें देंगी. प्रत्येक वर्ष दिल्ली फाइनेंस कमीशन की तरफ से, दिल्ली सरकार को बजट मुहैय्या करवाया जाता है. और केजरीवाल सरकार निगम के पैसे को, दिल्ली की खून पसीने से कमाए पैसे को, देश के अलग अलग राज्यों में अपने चेहरे चमकाने के लिए खर्च करती है जिस का बकाया 13 हजार करोड़ रूपए है.”

“कोरोना काल में अपनी जान से हाथ धो बैठे कर्मचारियों को दिल्ली सरकार ने एक पैसा नहीं दिया. पिछले 6 सालों जब से केजरीवाल साहब दिल्ली संभाल रहे हैं, तब से तीनों निगमों का 13 हजार करोड़ रूपए दिल्ली सरकार पर कर्जा है. इतना अनुरोध करने के बावजूद, दिल्ली सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी है. विवश हो कर निगम कर्मचारियों के फंड के लिए हमें, इस सर्द और ठिठुरती हुई रात में, उन के घर के बाहर बैठना पड़ा, और पाषाण ह्रदय वाले केजरीवाल एक बार भी हम से बात करने बाहर नहीं निकले.”
राजनीति में महिलाओं की संख्या ज्यादा से ज्यादा बढ़ सके इस के लिए अनामिका देश की युवतियों को संदेश देते हुए कहती हैं, “महिलाओं का नेचर ही ऐसा होता है कि वह कोई भी चुनौती को स्वीकार कर उसे सकारात्मक रूप भी देती है. आज का दौर तो महिलाओं के लिए ही बना है, चाहे वह कोई भी फील्ड हो हर फील्ड में महिलाएं नजर आती है और काफी महत्वपूर्ण पद हासिल करती हैं. भारत की राजनीति में महिलाओं का बहुत उज्जवल भविष्य है, जरुरत है अपने डर को खत्म करने की और कदम आगे बढ़ाने की.”

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वहां आकाश और है

अचानक शुरू हुई रिमझिम ने मौसम खुशगवार कर दिया था. मानसी ने एक नजर खिड़की के बाहर डाली. पेड़पौधों पर झरझर गिरता पानी उन का रूप संवार रहा था. इस मदमाते मौसम में मानसी का मन हुआ कि इस रिमझिम में वह भी अपना तनमन भिगो ले.

मगर उस की दिनचर्या ने उसे रोकना चाहा. मानो कह रही हो हमें छोड़ कर कहां चली. पहले हम से तो रूबरू हो लो.

रोज वही ढाक के तीन पात. मैं ऊब गई हूं इन सब से. सुबहशाम बंधन ही बंधन. कभी तन के, कभी मन के. जाओ मैं अभी नहीं मिलूंगी तुम से. मन ही मन निश्चय कर मानसी ने कामकाज छोड़ कर बारिश में भीगने का मन बना लिया.

क्षितिज औफिस जा चुका था और मानसी घर में अकेली थी. जब तक क्षितिज घर पर रहता था वह कुछ न कुछ हलचल मचाए रखता था और अपने साथसाथ मानसी को भी उसी में उलझाए रखता था. हालांकि मानसी को इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी और वह सहर्ष क्षितिज का साथ निभाती थी. फिर भी वह क्षितिज के औफिस जाते ही स्वयं को बंधनमुक्त महसूस करती थी और मनमानी करने को मचल उठती थी.

इस समय भी मानसी एक स्वच्छंद पंछी की तरह उड़ने को तैयार थी. उस ने बालों से कल्चर निकाल उन्हें खुला लहराने के लिए छोड़ दिया जो क्षितिज को बिलकुल पसंद नहीं था. अपने मोबाइल को स्पीकर से अटैच कर मनपसंद फिल्मी संगीत लगा दिया जो क्षितिज की नजरों में बिलकुल बेकार और फूहड़ था.

अत: जब तक वह घर में रहता था, नहीं बजाया जा सकता था. यानी अब मानसी अपनी आजादी के सुख को पूरी तरह भोग रही थी.

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अब बारी थी मौसम का आनंद उठाने की. उस के लिए वह बारिश में भीगने के लिए आंगन में जाने ही वाली थी कि दरवाजा खटखटाने की आवाज आई.

इस भरी बरसात में कौन हो सकता है. पोस्टमैन के आने में तो अभी देरी है. धोबी नहीं हो सकता. दूध वाला भी नहीं. तो फिर कौन है? सोचतीसोचती मानसी दरवाजे तक जा पहुंची.

दरवाजे पर वह व्यक्ति था जिस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

‘‘आइए,’’ उस ने दरवाजा खोलते हुए कुछ संकोच से कहा और फिर जैसे ही वह आगंतुक अंदर आने को हुआ बोली, ‘‘पर वे तो औफिस चले गए हैं.’’

‘‘हां, मुझे पता है. मैं ने उन की गाड़ी निकलते देख ली थी,’’ आगंतुक जोकि उन के महल्ले का ही था ने अंदर आ कर सोफे पर बैठते हुए कहा.

यह सुन कर मानसी मन ही मन बड़बड़ाई कि जब देख ही लिया था तो फिर क्यों चले आए हो… वह मन ही मन आकाश के बेवक्त यहां आने पर कु्रद्ध थी, क्योंकि उन के आने से उस का बारिश में भीगने का बनाबनाया प्रोग्राम चौपट हो रहा था. मगर मन मार कर वह भी वहीं सोफे पर बैठ गई.

शिष्टाचारवश मानसी ने बातचीत का सिलसिला शुरू किया, ‘‘कैसे हैं आप? काफी दिनों बाद नजर आए.’’

‘‘जैसा कि आप देख ही रहीं… बिलकुल ठीक हूं. काम पर जाने के लिए निकला ही था कि बरसात शुरू हो गई. सोचा यहीं रुक जाऊं. इस बहाने आप से मुलाकात भी हो जाएगी.’’

‘‘ठीक किया जो चले आए. अपना ही घर है. चायकौफी क्या लेंगे आप?’’

‘‘जो भी आप पिला दें. आप का साथ और आप के हाथ हर चीज मंजूर है,’’ आकाश ने मुसकरा कर कहा तो मानसी का बिगड़ा मूड कुछ हद तक सामान्य हो गया, क्योंकि उस मुस्कराहट में अपनापन था.

मानसी जल्दी 2 कप चाय बना लाई. चाय के दौरान भी कुछ औपचारिक बातें होती रहीं. इसी बीच बूंदाबांदी कम हो गई.

‘‘आप की इजाजत हो तो अब मैं चलूं?’’ फिर आकाश के चेहरे पर वही मुसकराहट थी.

‘‘जी,’’ मानसी ने कहा, ‘‘फिर कभी फुरसत से आइएगा भाभीजी के साथ.’’

‘‘अवश्य यदि वह आना चाहेगी तो उसे भी ले आऊंगा. आप तो जानती ही हैं कि उसे कहीं आनाजाना पसंद नहीं,’’ कहतेकहते आकाश के चेहरे पर उदासी छा गई.

मानसी को लगा कि उस ने आकाश की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो, क्योंकि वह जानती थी कि आकाश की पत्नी मानसिक रूप से अस्वस्थ है और इसी कारण लोगों से बात करने में हिचकिचाती है.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’ अगले दिन भी जब उसी मुसकराहट के साथ आकाश ने पूछा तो जवाब में मानसी भी मुसकरा दी और दरवाजा खोल दिया.

‘‘चाय या कौफी?’’

‘‘कुछ नहीं… औपचारिकता करने की आवश्यकता नहीं. आज भी तुम से दो घड़ी बात करने की इच्छा हुई तो फिर चला आया.’’

‘‘अच्छा किया. मैं भी बोर ही हो रही थी,’’ मानसी जानती थी कि उन्हें यह बताने की आवश्यकता नहीं थी कि क्षितिज कहां है, क्योंकि निश्चय ही वे जानते थे कि वे घर पर नहीं हैं.

इस तरह आकाश के आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया वरना इस महल्ले में किसी के घर आनेजाने का रिवाज कम ही था. यहां अधिकांश स्त्रियां नौकरीपेशा थीं या फिर छोटे बालबच्चों वाली. एक वही अपवाद थी जो न तो कोई जौब करती थी और न ही छोटे बच्चों वाली थी.

मानसी का एकमात्र बेटा 10वीं कक्षा में बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था. अपने अकेलेपन से जूझती मानसी को अकसर अपने लिए एक मित्र की आवश्यकता महसूस होती थी और अब वह आवश्यकता आकाश के आने से पूरी होने लगी थी, क्योंकि वे घरगृहस्थी की बातों से ले कर फिल्मों, राजनीति, साहित्य सभी तरह की चर्चा कर लेते थे.

आकाश लगभग रोज ही आफिस जाने से पूर्व मानसी से मिलते हुए जाते थे और अब स्थिति यह थी कि मानसी क्षितिज के जाते ही आकाश के आने का इंतजार करने लग जाती थी.

एक दिन जब आकाश नहीं आए तो अगले दिन उन के आते ही मानसी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, कल क्यों नहीं आए? मैं ने कितना इंतजार किया.’’

आकाश ने हैरानी से मानसी की ओर देखा और फिर बोले, ‘‘क्या मतलब? मैं ने रोज आने का वादा ही कब किया है?’’

‘‘सभी वादे किए नहीं जाते… कुछ स्वयं ही हो जाते हैं. अब मुझे आप के रोज आने की आदत जो हो गई है.’’

‘‘आदत या मुहब्बत?’’ आकाश ने मुसकरा कर पूछा तो मानसी चौंकी, उस ने देखा कि आज उन की मुसकराहट अन्य दिनों से कुछ अलग है.

मानसी सकपका गई. पर फिर उसे लगा कि शायद वे मजाक कर रहे हैं. अपनी सकपकाहट से अनभिज्ञता का उपक्रम करते हुए वह सदा की भांति बोली, ‘‘बैठिए, आज क्षितिज का जन्मदिन है. मैं ने केक बनाया है. अभी ले कर आती हूं.’’

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‘‘तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया.’’ आकाश फिर बोले तो उसे बात की गंभीरता का एहसास हुआ.

‘‘क्या जवाब देती.’’

‘‘कह दो कि तुम मेरा इंतजार इसलिए करती हो कि तुम मुझे पसंद करती हो.’’

‘‘हां दोनों ही बातें सही हैं.’’

‘‘यानी मुहब्बत है.’’

‘‘नहीं, मित्रता.’’

‘‘एक ही बात है. स्त्री और पुरुष की मित्रता को यही नाम दिया जाता है,’’ आकाश ने मानसी की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘हां दिया जाता है,’’ मानसी ने हाथ को हटाते हुए कहा, ‘‘क्योंकि साधारण स्त्रीपुरुष मित्रता का अर्थ इसी रूप में जानते हैं और मित्रता के नाम पर वही करते हैं जो मुहब्बत में होता है.’’

‘‘हम भी तो साधारण स्त्रीपुरुष ही हैं.’’

‘‘हां हैं, परंतु मेरी सोच कुछ अलग है.’’

‘‘सोच या डर?’’

‘‘डर किस बात का?’’

‘‘क्षितिज का. तुम डरती हो कि कहीं उसे पता चल गया तो?’’

‘‘नहीं, प्यार, वफा और समर्पण को डर नहीं कहते. सच तो यह है कि क्षितिज तो अपने काम में इतना व्यस्त है कि मैं उस के पीछे क्या करती हूं, वह नहीं जानता और यदि मैं न चाहूं तो वह कभी जान भी नहीं पाएगा.’’

‘‘फिर अड़चन क्या है?’’

‘‘अड़चन मानसिकता की है, विचारधारा की है.’’

‘‘मानसिकता बदली जा सकती है.’’

‘‘हां, यदि आवश्यकता हो तो… परंतु मैं इस की आवश्यकता नहीं समझती.’’

‘‘इस में बुराई ही क्या है?’’

‘‘बुराई है… आकाश, आप नहीं जानते हमारे समाज में स्त्रीपुरुष की दोस्ती को उपेक्षा की दृष्टि से देखने का यही मुख्य कारण है. जानते हो एक स्त्री और पुरुष बहुत अच्छे मित्र हो सकते हैं, क्योंकि उन के सोचने का दृष्टिकोण अलग होता है. इस से विचारों में विभिन्नता आती है. ऐसे में बातचीत का आनंद आता है, परंतु ऐसा नहीं होता.’’

‘‘अकसर एक स्त्री और पुरुष अच्छे मित्र बनने के बजाय प्रेमी बन कर रह जाते हैं और फिर कई बार हालात के वशीभूत हो कर एक ऐसी अंतहीन दिशा में बहने लगते हैं जिस की कोई मंजिल नहीं होती.’’

‘‘परंतु यह स्वाभाविक है, प्राकृतिक है, इसे क्यों और कैसे रोका जाए?’’

‘‘अपने हित के लिए ठीक उसी प्रकार जैसे हम ने अन्य प्राकृतिक चीजों, जिन से हमें नुकसान हो सकता है, पर नियंत्रण पा लिया है.’’

‘‘यानी तुम्हारा इनकार है,’’ ऐसा लगता था आकाश कुछ बुझ से गए थे.

‘‘इस में इनकार या इकरार का प्रश्न ही कहां है? मुझे आप की मित्रता पर अभी भी कोई आपति नहीं है बशर्ते आप मुझ से अन्य कोई अपेक्षा न रखें.’’

‘‘दोनों बातों का समानांतर चलना बहुत मुश्किल है.’’

‘‘जानती हूं फिर भी कोशिश कीजिएगा.’’

‘‘चलता हूं.’’

‘‘कल आओगे?’’

‘‘कुछ कह नहीं सकता.’’

सुबह के 10 बजे हैं. क्षितिज औफिस चला गया है पर आकाश अभी तक नहीं आए. मानसी को फिर से अकेलापन महसूस होने लगा है.

‘लगता है आकाश आज नहीं आएंगे. शायद मेरा व्यवहार उन के लिए अप्रत्याशित था, उन्हें मेरी बातें अवश्य बुरी लगी होंगी. काश वे मुझे समझ पाते,’ सोच मानसी ने म्यूजिक औन कर दिया और फिर सोफे पर बैठ कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगीं.

सहसा किसी ने दरवाजा खटखटाया. मानसी दरवाजे की ओर लपकी. देखा दरवाजे पर सदा की तरह मुसकराते हुए आकाश ही थे. मानसी ने भी मुसकरा कर दरवाजा खोल दिया. उस ने आकाश की ओर देखा. आज उन की वही पुरानी चिरपरिचित मुसकान फिर लौट आई थी.

इसी के साथ आज मानसी को विश्वास हो गया कि अब समाज में स्त्रीपुरुष के रिश्ते की उड़ान को नई दिशाएं अवश्य मिल जाएंगी, क्योंकि उन्हें वहां एक आकाश और मिल गया है.

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पोस्ट कोविड कैसे रखें खयाल

कोरोना संक्रमित लोग हमारे आसपास घूम रहे हैं और हमें पता ही नहीं है. वायरस हर इंसान की इम्यूनिटी पावर को देख कर हमला कर रहा है, किसी को कम तो किसी को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है. इसलिए लौकडाउन भले खत्म हो गया हो, औफिस जाना शुरू हो गया हो, मैट्रो, ट्रेन, बसों ने रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी हो, मगर ठंड के मौसम में कोरोना को ले कर हमें और ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है.

दिल्ली में कोविड महामारी की तीसरी लहर चल रही है. डाक्टर सुगंधा गुप्ता, संस्थापक व वरिष्ठ मनोचिकित्सक दिल्ली माइंड क्लीनिक, करोल बाग, हमें पोस्ट कोविड के बारे में पूरी जानकारी दे रही हैं:

क्या है कोविड की तीसरी लहर का कारण

– मौसम में बदलाव और प्रदूषण में बढ़ोतरी.

– लौकडाउन के बाद धीरेधीरे खुलते व्यवसाय और बाजार.

– त्योहारों और शादियों का समय.

– लंबे समय से नियमों में बंधे लोगों को छूट मिलने पर लापरवाही.

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इन बढ़ते आंकड़ों के साथ एक चीज सम?ानी बहुत जरूरी है और वह यह कि हम में से 60-70% लोग या तो कोविड से ग्रस्त हो चुके हैं या फिर किसी कोविड पेसैंट के संपर्क में आ चुके हैं. जहां कई लोग हलकेफुलके लक्षण आने पर भी बारबार टैस्ट करा रहे हैं, वहीं कुछ मरीज ज्यादा बीमार होने के बावजूद सामाजिक बायकाट के डर से टैस्ट कराने से कतरा रहे हैं, तो कई लोग बिना डाक्टर की सलाह के ही कोविड पौजिटिव पेसैंट की परची से दवा खरीद कर खा रहे हैं, जिस का शरीर पर साइड इफैक्ट देखने को मिल रहा है. आप की रिपोर्ट पौजिटिव आई हो या नैगेटिव, चाहे आप हौस्पीटल रह कर आए हों या होम क्वारंटीन में रहे हों, इन बातों का विशेष ध्यान रखना जरूरी है:

पोस्ट कोविड केयर

– पौष्टिक, घर का बना आहार. तेल, चिकन, मीठा कम, प्रोटीन, फल, सलाद, जूस ज्यादा.

ओमेगा फैटी ऐसिड आप की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.

– पूरी तरह से रिकवरी के लिए 6-7 घंटे की नींद जरूरी है.

– व्यायाम करना बेहद जरूरी है. चाहे 15 मिनट की सूर्य की रोशनी में सैर हो या कमरे में ऐरोबिक्स. कसरत आप की मांसपेशियों में रक्तसंचार बढ़ाने के साथ ही हड्डियों में कैल्सियम, विटामिन डी के प्रवाह को भी बढ़ाती है, जिस से बौडी का स्टैमिना बढ़ने में मदद मिलती है.

पिछले 3-4 महीने में कई ऐसे मरीज हमारे पास आए जिन की कोविड रिपोर्ट नैगेटिव हुए

1 महीने से ज्यादा का समय हो गया है या फिर उन के परिवार में कोई पौजिटिव था, लेकिन वे नैगेटिव थे इस के बावजूद ये लोग भय के कारण मानसिक रोग के साथ सामने आ रहे हैं.

इन में से प्रमुख हैं:

पैनिक डिसऔर्डर: अचानक बहुत तेज घबराहट होना, जिस में छाती में दर्द, सांस फूलना, धड़कन बढ़ना, चक्कर, उलटी, बेहोशी जैसा महसूस करना, लेकिन सभी जांचें नौर्मल आती हैं.

इंसोम्निया: नींद न आना, सोने से डर लगना कि कहीं नींद में कुछ हो न जाए, सोतेसोते डर कर नींद का खुल जाना, धड़कनें बढ़ाना, पसीना आना जैसे लक्षण होते हैं.

सोमेटाइजेशन डिसऔर्डर: मन में बारबार बीमारी का वहम आना, छोटेछोटे मामूली लक्षण पर भी डर जाना, ज्यादा चिंता करना, गूगल पर बीमारी के लक्षण ढूंढ़ना, बारबार डाक्टर से परामर्श लेना और टैस्ट कराना, रिपोर्ट नौर्मल आने पर भी तसल्ली न मिल पाना.

डिप्रैशन: तनाव की वजह से उदासी, मायूसी, नकारात्मक विचार आना, काम की इच्छा न करना, जल्दी थक जाना, चिड़चिड़ा रहना आदि.

इन के अलावा कोविड ने कई और तरह की भी भावनात्मक और मानसिक तकलीफों को जन्म दिया है.

मानसिक स्वास्थ्य के लिए पोस्ट कोविड केयर

– शारीरिक दूरी को सामाजिक दूरी न सम?ों.

– 6 फुट दूर से पड़ोसी, सब्जी वाले से बात करें.

– सोशल मीडिया का सही उपयोग करते हुए अपने परिवार और रिश्तेदारों से जुड़े रहें.

– आइसोलेटेड, अकेले न रहें.

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हर 15 मिनट में औक्सीमीटर पर औक्सीजन नापना, हर आधे घंटे में बुखार चैक करना, गूगल पर कोविड के बारे में लगातार पढ़ते रहना, इस से संबंधित न्यूज देखना, ये सब करने से बचें. अपनी दिनचर्या व्यस्त रखें.

इस बीच एक अच्छी खबर यह भी है कि फाइजर कंपनी की वैक्सीन शोध में 90% कारगर पाई गई है, जो जल्द ही मार्केट में उपलब्ध होगी. इसलिए सकारात्मक रहें और अपना खयाल रखें.

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