6 टिप्स: सर्दियों में शहद का करें इस्तेमाल और पाएं ब्यूटीफुल स्किन

सर्दियों में स्किन ड्राई के साथ-साथ बेजान हो जाती है, जिसके लिए हमें मार्केट से खरीदे हुए लोशन का इस्तेमाल करना पड़ता है. वहीं अगर लोशन और क्रीम फायदा न करे तो यह स्किन के लिए भी परेशानी का सबब बन सकता है. सर्दियों में हम जितना होममेड प्रौडक्ट्स का इस्तेमाल करेंगे ये हमारी स्किन के लिए भी फायदेमंद होगा. आज हम आपको शहद के बने कुछ पैक के बारे में बताएंगे, जिसे आप सर्दियों या किसी भी मौसम में ट्राय करके अपनी स्किन को सौफ्ट और ब्यूटीफुल बना सकती हैं.

1. सुंदर स्किन के लिये फेस पैक

अगर आप अपनी स्किन को सुंदर व चिकना बनाना चाहते हैं तो हनी फेस पैक बनायें. शहद, बेसन, मलाई, चंदन तथा गुलाब का तेल मिलायें और इसे अपने चेहरे तथा गर्दन पर लगा लें. अब कुछ समय के इसे सूखने दें, फिर छुटा दें. इससे न केवल चेहरे की गंदगी दूर हो जायेगी, बल्कि आपकी स्किन नरम और कोमल भी बन जायेगी. बेहतर परिणाम के लिए सप्ताह में एक बार इसका प्रयोग करें.

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2. अनचाहे बाल हटाने के लिए फेस पैक

एक बर्तन में एक चम्मच शहद, एक चम्मच चीनी और कुछ बूंदें नींबू की डालें. इनका पतला पेस्ट बनायें. अब तीन मिनट तक इसे माइक्रोवेव पर गर्म कर लें. छू कर देखें कि यह ज्यादा गर्म न हो, फिर इसे चेहरे के उस स्थान पर उसी तरफ लगायें, जहां बाल बढ़ते हैं. अब कपड़े का एक पट्टी लेकर इस ऊपर की ओर रखें तथा विपरीत दिशा में खीचें. इससे बाल जड़ से हट जायेंगे और आपका चेहरा काफी समय के लिये बालों से मुक्त हो जायेगा.

3. स्किन की सफाई के लिये फेस पैक

शहद, दूध पाउडर, नींबू का रस और बादाम के तेल को बराबर मात्रा में मिला लें और इसे अपने चेहरे व हाथ आदि पर लगाकर 20 मिनट के लिए छोड़ दें तथा फिर इसे धो लें.

4. मुंहासे हटाने के लिये फेस पैक

मुंहासों से छुटकारा पाना बहुत मुश्किल होता है. शहद और दालचीनी पाउडर को मिलाकर एक पेस्ट बनाकर मुंहासों पर लगा लें. इसे रातभर लगा रहने दें और सुबह गुनगुने पानी से धो दें.

5. चमकदार बाल पाने के लिए हेयर पैक

शहद से बनने वाले एक और पैक जिसमें जैतूल के तेल और शहद को मिलाकर इसे बालों पर लगायें, कुछ समय के लिए उसे लगा रहने दें, और फिर धो लें. इससे आपके बालों पर चमक आ जायेगी.

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6. रेशमी बालों के लिए हेयर पैक

अगर आप संवरे और रेशमी बाल चाहते हैं तो अपने बालों में इस पैक को लगायें. एक कटोरी में दो चम्मच दही, दो अंडे, नींबू का रस और शहद की पांच बूंदें मिला लें तथा अपने सिर और बालों पर लगायें. इसे आधे घंटे तक लगायें रहे, फिर पानी से धोएं.

अपना पराया: दीपेश और अनुपमा को किसने अपने पराए का अंतर समझाया

‘‘भैया, आप तो जानते हैं कि बीना को दिल की बीमारी है, वह दूसरे का तो क्या, अपना भी खयाल नहीं रख पाती है और मेरा टूरिंग जौब है. हमारा मां को रखना संभव नहीं हो पाएगा.’’

‘‘भैया, मैं मां को रख तो लेती लेकिन महीनेभर बाद ही पिंकी, पम्मी की परीक्षाएं प्रारंभ होने वाली हैं. घर भी छोटा है. इसलिए चाह कर भी मैं मां को अपने साथ रख पाने में असमर्थ हूं.’’

दिनेश और दीपा से लगभग एक सा उत्तर सुन कर दीपेश एकाएक सोच नहीं पा रहे थे कि वे क्या करें? पुत्री अंकिता की मई में डिलीवरी है. उस के सासससुर के न होने के कारण बड़े आग्रह से विदेशवासी दामाद आशुतोष और अंकिता ने उन्हें कुछ महीनों के लिए बुलाया था, टिकट भी भेज दिए थे. अनुपमा का कहना था कि 6 महीनों की ही तो बात है, कुछ दिन अम्माजी भैया या दीदी के पास रह लेंगी.

इसी आशय से उन्होंने दोनों जगह फोन किए थे किंतु दोनों जगह से ही सदा की तरह नकारात्मक रुख पा कर वे परेशान हो उठे थे. अनु अलग मुंह फुलाए बैठी थी.

‘‘अम्माजी पिछले 30 वर्षों से हमारे पास रह रही हैं और अब जब 6 महीने उन्हें अपने पास रखने की बात आई तो एक की बीवी की तबीयत ठीक नहीं है और दूसरे का घर छोटा है. हमारे साथ भी इस तरह की अनेक परेशानियां कई बार आईं पर उन परेशानियों का रोना रो कर हम ने तो उन्हें रखने के लिए कभी मना नहीं किया,’’ क्रोध से बिफरते हुए अनु ने कहा.

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दिनेश सदा मां के प्रति अपनी जिम्मेदारी से कोई न कोई बहाना बना कर बचता और जब भी दीपेश कहीं जाने का प्रोग्राम बनाते तो वह बनने से पूर्व ही ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता था. यदि वे मां को साथ ले भी जाना चाहते तो वे कह देतीं, ‘‘बेटा, इस उम्र में अब मुझ से घूमनाफिरना नहीं हो पाएगा. वैसे भी तुम्हारे पिता की मृत्यु के पश्चात मैं ने बाहर का खाना छोड़ दिया है. इसलिए मैं कहीं नहीं जाऊंगी.’’

वे मां को कभी भी अकेला छोड़ कर कहीं जा नहीं पाए और न ही मां ने ही कभी अपने मन से उन्हें कहीं घूमने जाने को कहा. उन्हें याद नहीं आता कि वे कभी अनु को कहीं घुमाने ले गए हों. आज अंकिता ने उन्हें बुलाया है तब भी यही समस्या उठ खड़ी हुई है. पोती को ऐसी हालत में अकेली जान कर इस बार मां ने भी उन्हें जाने की इजाजत दे दी थी लेकिन दिनेश और दीपा के पत्रों ने उन की समस्या को बढ़ा दिया था.

अनु जहां इन पत्रों को पढ़ कर क्रोधित हो उठी थी वहीं मां अपराधबोध से ग्रस्त हो उठी थीं. उन की समस्या को देख कर मां ने आग्रहयुक्त स्वर में कहा था, ‘‘तुम लोग चले जाओ, बेटा, मैं अकेली रह लूंगी, 6 महीने की ही तो बात है, श्यामा नौकरानी मेरे पास सो जाया करेगी.’’

अनु और मां का रिश्ता भले ही कड़वाहट से भरपूर था पर समय के साथ उन में आपस में लगाव भी हो गया था. शायद इसीलिए मां के शब्द सुन कर पहली बार अनु के मन में उन के लिए प्रेम उमड़ आया था किंतु वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे? इस उम्र में उन्हें अकेले छोड़ने का उस का भी मन नहीं था. यही हालत दीपेश की भी थी. एक ओर पुत्री का मोह उन्हें विवश कर रहा था तो दूसरी ओर कर्तव्यबोध उन के पैरों में बेडि़यां पहना रहा था.

अभी वे सोच ही रहे थे कि पड़ोसी रमाकांत ने घर में प्रवेश किया और उन की उदासी का कारण जान कर बोले, ‘‘बस, इतनी सी समस्या के कारण आप लोग परेशान हैं. हम से पहले क्यों नहीं कहा? वे जैसी आप की मां हैं वैसी ही हमारी भी तो मां हैं. आप दोनों निश्ंिचत हो कर बेटी की डिलीवरी के लिए जाइए, मांजी की जिम्मेदारी हमारे ऊपर छोड़ दीजिए. उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी.

6 महीने तो क्या, आप चाहें तो और भी रह सकते हैं, बारबार तो विदेश जाना हो नहीं पाता, अत: अच्छी तरह घूमफिर कर ही आइएगा.’’

रमाकांतजी की बातें सुन कर मांजी का चेहरा खिल उठा, मानो उन के दिल पर रखा बोझ उतर गया हो और उन्होंने स्वयं रमाकांत की बात का समर्थन कर उन्हें जाने के लिए प्रोत्साहित किया.

पुत्री का मोह उन से वह करवा गया था जो वे पिछले 30 वर्षों में नहीं कर पाए थे. 2 दिन बाद ही वे न्यूयार्क के लिए रवाना हो गए. वे पहली बार घर से बाहर निकले पर फिर भी मन में वह खुशी और उमंग नहीं थी. उन्हें लगता था कि वे अपना मन वहीं छोड़ कर कर्तव्यों की बेडि़यों में बंधे जबरदस्ती चले आए हैं. यद्यपि वे हर हफ्ते ही फोन द्वारा मां का हालचाल लेते रहते थे लेकिन उन्हें यही बात बारबार चुभचुभ कर लहूलुहान करती रहती थी कि आवश्यकता के समय उन के अपनों ने उन का साथ नहीं दिया.

यहां तक कि उन की भावनाओं को समझने से भी इनकार कर दिया. वहीं, उन के पड़ोसी मित्र रमाकांत उन की अनुपस्थिति में सहर्ष मां की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हो गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कौन अपना है कौन पराया, खून के रिश्ते या आपसी आवश्यकताओं को निभाते दिल के रिश्ते…

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कैसे हैं ये खून के रिश्ते जिन में एकदूसरे के लिए प्यार, विश्वास यहां तक कि सुखदुख में साथ निभाने की कर्तव्यभावना भी आज नहीं रही है. वे मानवीय संवेदनाए, भावनाएं कहां चली गईं जब एकदूसरे के सुखदुख में पूरा परिवार एकजुट हो कर खड़ा हो जाता था. दिनेश और दीपा उन की मजबूरी को क्यों नहीं समझ पाए. वे अंकिता के पास महज घूमने तो जा नहीं रहे थे कि अपना प्रोग्राम बदल देते या कैंसिल कर  देते. मां सिर्फ उन की ही नहीं, उन दोनों की भी तो हैं. जब वे पिछले 30 वर्षों से उन की देखभाल कर रहे हैं तो मात्र कुछ महीने उन्हें अपने पास रखने में उन दोनों को भला कौन सी परेशानी हो जाती? सुखदुख, हारीबीमारी, छोटीमोटी परेशानियां तो सदा इंसान के साथ लगी रहती हैं, इन से डर कर लोग अपने कर्तव्यों से मुख तो नहीं मोड़ लेते?

न्यूयार्क पहुंचने के 15 दिन बाद ही दीपेश और अनुपमा नानानानी बन सुख से अभिभूत हो उठे. अंकिता की पुत्री आकांक्षा को गोद में उठा कर एकाएक उन्हें लगा कि उन की सारी मनोकामनाएं पूरी हो गई हैं.

अंकिता उन की इकलौती पुत्री थी, उन की सारी आशाओं का केंद्रबिंदु थी. उस का विवाह आशुतोष से इतनी दूर करते हुए बहुत सी आशंकाएं उन के मन में जगी थीं पर अपने मित्र रमाकांत के समझाने व अंकिता की आशुतोष में रुचि देख कर बेमन से विवाह तो कर दिया था पर जानेअनजाने दूरी के कारण उस से न मिल पाने की बेबसी उन्हें कष्ट पहुंचा ही देती थी. लेकिन अब बेटी का सुखी घरसंसार देख कर उन की आंखें भर आईं.

आकांक्षा भी थोड़ी बड़ी हो चली थी अत: आशुतोष और अंकिता सप्ताहांत में उन्हें कहीं न कहीं घुमाने का कार्यक्रम बना लेते. स्टैच्यू औफ लिबर्टी के सौंदर्य ने उन का मन मोह लिया था, एंपायर स्टेट बिल्ंिडग को देख कर वे चकित थे, उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि 102 मंजिली इमारत, वह भी आज से 67-68 वर्ष पूर्व कोई बना सकता है और इतनी ऊंची इमारत भी कहीं कोई हो सकती है.

टाइम स्क्वायर की चहलपहल देख कर लगा सचमुच ही किसी ने कहा है कि न्यूयार्क कभी सोता नहीं है, वहीं मैडम तुसाद म्यूजियम में मोम की प्रतिमाएं इतनी सजीव लग रही थीं कि विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वे मोम की बनी हैं. वहां की साफसफाई, गगनचुंबी इमारतों, चौड़ी सड़कों व ऐलीवेटरों पर तेजी से उतरतेचढ़ते लोगों को देख कर वे अभिभूत थे, वहां जीवन चल नहीं रहा था बल्कि दौड़ रहा था.

आशुतोष और अंकिता ने मम्मीपापा के लिए वाश्ंिगटन और नियाग्रा फौल देखने के लिए टिकट बुक करने के साथ होटल की बुकिंग भी करवा दी थी. उन के साथ वे दोनों भी जाना चाहते थे पर आकांक्षा के छोटी होने के कारण नहीं जा पाए. वाश्ंिगटन में जहां केनेडी स्पेस म्यूजियम देखा वहीं वाइटहाउस तथा सीनेट की भव्य इमारत ने आकर्षित किया. वार मैमोरियल, लिंकन और रूजवैल्ट मैमोरियल ने यह सोचने को मजबूर किया कि यहां के लोग इतने आत्मकेंद्रित नहीं हैं जितना कि उन्हें प्रचारित किया जाता रहा है. अगर ऐसा होता तो ये मेमोरियल नहीं होते.

नियाग्रा फौल की खूबसूरती तो देखते ही बनती थी. हमारे होटल का कमरा भी फैल व्यू पर था. यहां आ कर अनु तो इतनी अभिभूत हो गई कि उस के मुंह से बस एक ही बात निकलती थी, ‘मेरी सारी शिकायतें दूर हो गईं. जिंदगी का मजा जो हम पहले नहीं ले पाए, अब ले रहे हैं. मन करता है इस दृश्य को आंखों में भर लूं और खोलूं ही नहीं.’ उस का उतावलापन देख कर ऐसा लगता था मानो वह 20-25 वर्ष की युवती बन गई है, वैसी ही जिद, प्यार और मनुहार, लगता था समय ठहर जाए. पर ऐसा कब हो पाया है? समय की अबाध धारा को भला कोई रोक पाया है?

देखतेदेखते उन के लौटने के दिन नजदीक आते जा रहे थे. उन्होंने अपने रिश्तेदारों के लिए उपहार खरीदने प्रारंभ कर दिए. एक डिपार्टमैंटल स्टोर से दूसरे डिपार्टमैंटल स्टोर, एक मौल से दूसरे मौल के चक्कर काटने में ही सुबह से शाम हो जाती थी. सब के लिए उपहार खरीदना वास्तव में कष्टप्रद था लेकिन इतनी दूर आ कर सब के लिए कुछ न कुछ ले जाना भी आवश्यक था. वैसे भी विदेशी वस्तुओं के आकर्षण से भारतीय अभी मुक्त नहीं हो पाए हैं. यह बात अनु के बेतहाशा शौपिंग करने से स्पष्ट परिलक्षित भी हो रही थी.

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एकदो बार तो दीपेश ने उसे टोका तो वह बोली, ‘‘जीवन में पहली बार तो घर से निकली हूं, कम से कम अब तो अपने अरमान पूरे कर लेने दो, वैसे भी इतनी अच्छी चीजें भारत में कहां मिलेंगी?’’

अब उसे कौन समझाता कि विकेंद्रीकरण के इस युग में भारत भी किसी से पीछे नहीं है. यहां का बाजार भी इस तरह की विभिन्न वस्तुओं से भरा पड़ा है. लेकिन इन्हीं वस्तुओं को हम भारत में महंगी या अनुपयोगी समझ कर नहीं खरीदते हैं.

अंकिता और आशुतोष के सहयोग से खरीदारी का काम भी पूरा हो गया. अंत में रमाकांत और उन की पत्नी विभा के लिए उपहार खरीदने की उन की पेशकश पर अंकिता को आश्चर्यचकित देख कर वे बोले, ‘‘बेटी, वे पराए अवश्य हैं लेकिन तुम यह क्यों भूल रही हो कि इस समय तुम्हारी दादी की देखभाल की जिम्मेदारी निभा कर उन्होंने अपनों से अधिक हमारा साथ दिया है वरना हमारा तुम्हारे पास आना भी संभव न हो पाता. परिवार के सदस्यों के लिए उपहार ले जाना मेरी नजर में रस्मअदायगी है लेकिन उन के लिए उपहार ले जाना मेरा कर्तव्य है.’’

लौटने पर अभी व्यवस्थित भी नहीं हो पाए थे कि भाई दिनेश और बहन दीपा सपरिवार आ गए, क्रोध भी आया कि यह भी नहीं सोचा कि 6 महीने के पश्चात घर लौटने पर फिर से व्यवस्थित होने में समय लगता है. दीपेश के चेहरे पर गुस्सा देख अनु ने उन्हें किनारे ले जा कर धीरे से कहा, ‘‘गुस्सा थूक दीजिए. यह सोच कर खुश होने का प्रयत्न कीजिए कि कम से कम इस समय तो सब ने आ कर हमारा मान बढ़ाया है. आप बड़े हैं भूलचूक माफ कर बड़प्पन दिखाइए.’’

अनु की बात सुन कर दीपेश ने मन के क्रोध को दबाया सकारात्मक सोच से उन का स्वागत किया. खुशी तो उन्हें इस बात पर हो रही थी कि सदा झुंझलाने वाली अनु सब को देख कर अत्यंत खुश थी. शायद, उसे अपने विदेश प्रवास का आंखों देखा हाल सुनाने के लिए कोई तो चाहिए था या इतने दिनों तक घरपरिवार के झंझटों से मुक्त रहने तथा मनमाफिक भ्रमण करने के कारण उस का तनमन खुशियों से ओतप्रोत था और अपनी इसी खुशी में सभी को सम्मिलित कर वह अपनी खुशी दोगुनी करना चाहती थी.

‘‘मैं ने और अनु ने काफी सोचविचार के पश्चात तुम सभी के लिए उपहार खरीदे हैं, आशा है पसंद आएंगे,’’ शाम को फुरसत के क्षणों में दीपेश ने सूटकेस खोल कर प्रत्येक को उपहार पकड़ाते हुए कहा.

अटैची खाली हो चुकी थी. उस में एक पैकेट पड़ा देख कर सब की निगाहें उसी पर टिकी थीं. उसे उठा कर अनु को देखते हुए दीपेश ने कहा, ‘‘यह उपहार रमाकांत और विभा भाभी के लिए है, जा कर उन्हें दे आओ.’’

‘‘लेकिन उन के लिए उपहार लाने की क्या आवश्यकता थी?’’ अम्मा ने प्रश्नवाचक नजरों से पूछा.

‘‘अम्मा, शायद तुम भूल गईं कि तुम्हारे अपने जो तुम्हें कुछ माह भी अपने पास रखने को तैयार नहीं हुए थे, उस समय रमाकांत और उन की पत्नी विभा ने न केवल हमारी समस्या को समझा बल्कि तुम्हारी देखभाल की जिम्मेदारी उठाने को भी सहर्ष तैयार हो गए. अम्मा, तुम्हारी निगाहों में उन की भलमनसाहत की भले ही कोई कीमत न हो या तुम्हारे लिए वे आज भी पराए हों पर मेरे लिए आज रमाकांत पराए हो कर भी मेरे अपनों से बढ़ कर हैं,’’ कहते हुए दीपेश के स्वर में न चाहते हुए भी कड़वाहट आ गई.

अनु उपहार ले कर रमाकांत और विभा भाभी को देने चली गई थी. सच बात सुन कर सब के चेहरे उतर गए थे. दीपेश जानते थे कि उन के अपने उन से उपहार प्राप्त कर के भी खुश नहीं हैं क्योंकि वे उन के प्रेम से लाए उपहारों को पैसे के तराजू पर तौल रहे हैं जबकि रमाकांत और विभा उन से प्राप्त उपहारों को देख कर फूले नहीं समा रहे होंगे क्योंकि उन्हें उन से कोई अपेक्षा नहीं थी. उन्होंने एक मां की सेवा कर मानवीय धर्म निभाया है.

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तेरी मेरी इक जिंदड़ी’: दो विपरीत पृष्ठभूमि और जिंदगी के प्रति अलग नजरिया रखती एक अनूठी प्रेम कहानी

ज़ी टीवी सदैव लीक से हटकर कुछ सीरियल परोसते आया है. ज़ी टीवी पर प्रसारित सीरियलों में भारतीय समाज में बदलते रिश्ते के आधुनिक चेहरे की आवाज भी नजर आई है. अब ज़ी टीवी अमृतसर,पंजाब की पृष्ठभूमि पर आधारित एक नया सीरियल ‘तेरी मेरी इक जिंदड़ी’ लेकर आ रहा है, जिसमें उन दो लोगों की कहानी है, जिनकी परवरिश अलग-अलग परिवेश वह परिस्थितियों में हुई है.दोनों का जीवन के प्रति नजरिया भी एकदम विपरीत है. इसके बावजूद यह दोनों प्यार की राह चुनते हैं. यह दो इंसान है माही और जोगी. माही के किरदार में अमनदीप सिद्धू और जोगी के किरदार में अधविक महाजन है.

एक मध्यमवर्गीय पंजाबी परिवार की लड़की माही अपनी मां की तरह घर के कामकाज में होशियार है, लेकिन वह अपने परिवार की जरूरतें पूरी करने की ख्वाहिश भी रखती है. उसकी सीधी-सी सोच है कि शौक को व्यवसाय बना लो! इसी कारण वह गाड़ी चलाने के अपने शौक के चलते अमृतसर में सिर्फ महिलाओं के लिए एक महिला कैब सर्विस शुरू करने वाली पहली औरत बनती है.जहां माही की कैब में सफर करते हुए महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं, वहीं माही अपनी कमाई से अपने परिवार की जरूरतें भी पूरी करती हैं. माही शिद्दत से यह मानती है कि एक बेटी सिर्फ परिवार की जिम्मेदारी नहीं होती बल्कि वह अपने परिवार की जिम्मेदारियों में भी अपना योगदान दे सकती है.

 

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वहीं माही के स्वभाव से बिल्कुल अलग जोगी एक 24 साल का लड़का है, जिसकी सोच है कि इंसान पैसों से नहीं, खुशियों से अमीर होता है.जोगी एक सीधी-सादी और सुकून भारी जिंदगी जीता है और अपने आसपास की छोटी-छोटी चीजों में खुशी ढूंढ़ लेता है. जब उसे खुशियों का असली मतलब पता चलता है, तो वह सफलता पाने की दौड़ का हिस्सा बनने से इंकार कर देता है. अपनी इसी खूबी के चलते वह भीड़ से अलग है. जोगी कृषि और पशुपालन में डिप्लोमा करने के बाद खुद का भैंसों का एक तबेला चलाता है.जोगी जमीन से जुड़ा एक बेपरवाह इंसान है, जो जिंदगी के प्रति बड़ा साधारण रवैया अपनाता है, वहीं वह जोश से भरा एक हाजिरजवाब व्यक्ति भी है, जो बहस में किसी को भी खुद से जीतने नहीं देता.

 

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अमनदीप सिद्धू कहती है- “सच कहूं तो कलाकार के तौर पर पहले लीड किरदार के रूप में माही से बेहतर किरदार नहीं हो सकता था. जब मैंने पहली बार माही के किरदार के बारे में पढ़ा, तो मेरे दिमाग में सबसे पहला ख्याल यह आया कि वह एक पंजाबी है! और मैं भी.. मुझे पता था कि मैं इस रोल के लिए बिल्कुल परफेक्ट हूं और इस नए सफर के लिए वाकई बेहद उत्साहित थी जिस तरह से वह अपने परिवार की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए योगदान देना चाहती है और सफलता पाना चाहती है, यह मेरी सोच से मेल खाता है. मैं एक ऐसे माहौल में बड़ी हुई हूं, जहां मुझे यह सिखाया गया है कि महिलाएं एक साथ कई काम कर सकती हैं. जहां औरतें घर संभालने में सक्षम हैं, वहीं वह अपने परिवार का बड़ा सहारा भी बन सकती हैं. माही की इन खूबियों ने मुझे उसके व्यक्तित्व से जुड़ने में मदद की.”

 

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अधविक महाजन ने कहा- “एक किरदार के रूप में जोगी मेरे बाकी सभी किरदारों से बिल्कुल अलग है. जहां उसके व्यक्तित्व में एक रंग-बिरंगा और मनमौजी पंजाबी अंदाज़ है, जिससे मैं अच्छी तरह जुड़ जाता हूं, वहीं उसमें कुछ ऐसी खासियतें हैं, जो उसे बाकी लोगों से अलग बनाती है. वह बड़े सपने नहीं देखता, लेकिन साधारण बातों में खुशियां ढूंढता है, और मुझे उसकी यही खूबी सबसे खास लगती है.जोगी का किरदार निभाना बहुत चुनौतीपूर्ण रहने वाला है, लेकिन एक कलाकार के रूप में यह काफी संतुष्टि भी देगा, क्योंकि इस किरदार में अलग-अलग शेड्स, जबर्दस्त जोश और बहुत गहराई भी है. ”

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Serious सीन के बीच मस्ती करते नजर आए अनुपमा और वनराज, Video Viral

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) में इन दिनों काफी ड्रामा देखने को मिल रहा है.  जहां एक तरफ वनराज का एक्सीडेंट होने के बाद शाह निवास वापस लौट आया है तो काव्या इन दिनों अकेली पड़ती नजर आ रही हैं. वहीं अनुपमा पर परिवार और वनराज की जिम्मेदारी आ गई है, जिसके कारण वह परेशान नजर आ रही है. इसी बीच सीरियल के सेट से एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं अनुपमा का वायरल वीडियो…

‘वनराज’ ने खीचीं ‘अनुपमा’ की टांग

अनुपमा के सीरियल के सेट से वायरल हुए वीडियो में सुधांशु पांडे अपने को-स्टार्स और क्रू मेंबर्स के साथ मिलकर रूपाली गांगुली की टांग खींचते हुए नजर आ रहे हैं. दरअसल, वीडियो को सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey) ने सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए लिखा है, ‘ये पोस्ट मेरे सभी बंगाली दोस्तों और रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) के लिए भी है. रूपाली काफी पैशन के साथ खाने को लेकर बातें करती हैं. आप इस वीडियो को पूरा देखिए आपको सब समझ आ जाएगा. हम कैमरे के पीछे ऐसे ही मस्ती करते है और ऐसे सीरियस सीन को फिल्माने के बीच भी हम खुश रहते हैं. भगवान काफी दयालु है…जय महाकाल’

 

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रुपाली भी मस्ती करती आती हैं नजर

औफस्क्रीन शो के सभी सितारे मस्ती करते नजर आते हैं, जिसके कारण शो की कास्ट परदे की पीछे काफी वीडियो शेयर करते नजर आते रहते हैं.

 

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शो के करंट ट्रैक की बात करें तो वनराज की तबीयत बिगड़ जाती है, जिसके बाद डौक्टर अनुपमा से कहते हैं कि वनराज के हाथ पैर काम नही कर रहे हैं. वहीं यह सब सुनकर सभी परेशान हो जाते हैं. हालांकि अनुपमा, वनराज की देखभाल करती नजर आती है. लेकिन अनुपमा का वनराज की केयर करना काव्या को पसंद नही आता और वह वनराज को अपने साथ घर ले जाने की बात कहती. हालांकि बा उसे मना कर देती है. इसी बीच वनराज फैसला लेता है कि वह अपने परिवार के साथ ही रहेगा.

 

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प्रैग्नेंसी फोटोशूट को लेकर ट्रोल हुई अनुष्का शर्मा, ट्रोलर्स ने पूछे ये सवाल

बौलीवुड की पौपुलर एक्ट्रेसेस में से एक अनुष्का शर्मा (Anushka Sharma) जल्द ही मां बनने वाली हैं, जिसके चलते वह इन दिनों फैंस के बीच छाई हुई हैं. वहीं अनुष्का की प्रैग्नेंसी फोटोज और वीडियो फैंस को काफी पसंद आ रही है. इसी बीच अनुष्का शर्मा अपने एक प्रैग्नेंसी फोटोशूट करते हुए सोशलमीडिया पर ट्रोलिंग की शिकार हो रही हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

बेबी बंप फोटोशूट हुआ वायरल

हाल ही में अनुष्का ने एक फोटोशूट करवाया है, जिसमें वह बेबी बंप फ्लॉन्ट करते हुए नजर आई हैं. दरअसल, अनुष्का ने एक मैगजीन के लिए फोटोशूट करवाया और अपने बेबी बंप को बेहद ग्रेस के साथ फ्लॉन्ट किया. वहीं अनुष्का के इस खूबसूरत प्रेग्नेंसी फोटोशूट को उनके फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. वहीं कुछ लोग उन्हें ट्रोल करने में लग गए हैं.

 

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यूजर्स ने कही ये बात

 

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दरअसल, इस महीने अनुष्का की डिलीवरी होने वाली हैं, जिसके बीच उन्होंने फोटोशूट करवाया था. लेकिन ट्रोलर्स ने एक्ट्रेस के फोटोशूट की आलोचना करते हुए कहा, ‘हो सकता है कि मैं गलत हूं लेकिन क्या प्रेग्नेंसी शूट्स जरूरी है. … सॉरी, फिलहाल ये चलन में हैं और किसी एक इंसान को इसके लिए बोलना गलत है? बस मैं यह जानना चाहता हूं कि ये सच में जरूरी है.’ एक और यूजर ने लिखा, ‘यह बिल्कुल अनुचित है यदि भारतीय परंपराओं और मूल्यों के प्रति सम्मान नहीं है.’

 

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बता दें, 2020 में अनुष्का शर्मा ने अपनी प्रैग्नेंसी का ऐलान किया था, जिसके बाद सोशलमीडिया पर वह छा गई थी. वहीं हाल ही में उनकी एक योगा वीडियो भी सोशलमीडिया पर छा गई थी. वहीं अब भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली और अनुष्का शर्मा माता पिता बनने की खुशी फैंस के साथ शेयर करने का इंतजार कर रहे हैं.

 

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Winter Special: पनीर मसाला के साथ डिनर बनाए खास

अगर आपके घर में ज्यादातर लोग शाकाहारी हैं तो हो न हो पनीर का एक पैकेट हमेशा आपके फ्रिज में रहता ही होगा. अगर आज रात आपके घर कुछ ऐसे मेहमान आ रहे हैं जिन्हें वेज ही सर्व करना है तो स्पाइसी पनीर मसाला आपके लिए बेस्ट ऑप्शन हो सकता है. इसे आप रूमाली रोटी या तवा रोटी के साथ सर्व कर सकती हैं. यकीन मानिए जो भी इसे खाएगा, आपकी तारीफ किए बिन नहीं रह पाएगा.

सामग्री

200 ग्राम पनीर

2 मध्यम आकार के कटे हुए टमाटर

2 इंच अदरक का टुकड़ा, कटा हुआ

2 हरी मिर्च लंबाई में कटी हुई

आधा चम्मच हल्दी

एक-तिहाई चम्मच धनिया पाउडर

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एक-तिहाई चम्मच गरम मसाला

नमक स्वादानुसार

एक बड़ा प्याज कटा हुआ

आधा चम्मच जीरा

दो चम्मच बारीक कटी हुई हरी मिर्च

चम्मच लाल मिर्च पाउडर

एक-तिहाई चम्मच जीरा पाउडर

एक चौथाई चम्मच काली मिर्च पाउडर

3 चम्मच रिफाइंड ऑयल

विधि

एक पैन गर्म करें और उसमें तेल डालकर उसे गर्म होने दें. इसमें जीरा डालकर अच्छी तरह भूनें.

इसमें अदरक, लहसुन और बारीक कटी हुई हरी मिर्च डालें और मध्यम आंच पर कुछ देर के लिए भूनें.

इसमें बारीक कटे हुए प्याज डालकर दो से तीन मिनट तक भूनें. इसे लगातार चलाते रहें.

अब इसमें कटे हुए टमाटर डाल दें. तीन से चार मिनट तक इसे पकने दें.

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अब हल्दी पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, जीरा पाउडर, धनिया पाउडर और काली मिर्च पाउडर डालकर मिलाएं. सभी मसालों को अच्छी तरह मिलाएं और कुछ देर के लिए धीमी आंच पर पकाएं.

अब इस पके मसाले में पनीर, नमक डालकर अच्छी तरह मिलाएं. इसे ढककर कुछ देर पकाएं.

फिर गरम मसाला मिलाएं. ऊपर से लंबाई में कटी हरी मिर्च डालकर धीमी आंच पर पकने के लिए छोड़ दें.

आपका पनीर मसाला तैयार है. इसे गर्मागर्म सर्व करें.

मुझे बताएं कि कैसे पीले नेल्स की समस्या से निजात पाया जा सकता है?

सवाल-

मेरे नेल्स काफी पीले हो गए हैं , जिस कारण मुझे इन पर हमेशा नेलपेंट लगाकर रखना पड़ता है. मुझे बताएं कि कैसे इस समस्या से निजात पाया जा सकता है?

जवाब-

कई बार नाखूनों का पीला पड़ना हमारी पूरी हैल्थ को भी दर्शाता है. कई गंभीर बीमारियों जैसे थाईरोएड , डाईबिटिज , लंग प्रोब्लम आदि के कारण धीरेधीरे हमारे नाखून पीले पड़ने लगते हैं, जिससे हम अनजान होते हैं. लेकिन अगर लक्षण गंभीर दिखें तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं, ताकि बीमारी और न बड़े.  लेकिन कई बार  नेल पौलिश व नेल रिमूवर की एलर्जी व फंगल इंफेक्शन के कारण भी नाखूनों  का रंग बदलने के कारण वे पीले दिखाई देने लगते हैं. जो न सिर्फ दिखने में अच्छे लगते हैं बल्कि न चाहते हुए भी आपको हर समय नाखूनों को रंगने की जरूरत होती है. ऐसे में जरूरत  है समय रहते इसके समाधान की. ताकि नाखूनों को पीला होने से रोका जा सके.

अगर आपके नाखूनों पर कॉस्मेटिक्स जैसे नेल पौलिश व रिमूवर के इस्तेमाल के कारण एलर्जी हुई है तो आप इन उपायों को करके पीले नाखूनों की समस्या से निजात पा सकती  हैं.

– अनेक शोधों में यह साबित हुआ है कि अगर बैक्टीरिया इंफेक्शन या फंगस के कारण आपके नेल्स  पीले पड़ने लगते हैं , तो टी ट्री आयल इसमें बड़े काम का साबित होता है. क्योंकि ये फंगस को आगे बढ़ने से रोकने में सक्षम जो होता  है, जिससे धीरेधीरे नेल्स से पीलापन कम होने लगता है. इसके लिए आप कुछ बूंदे टी ट्री आयल में कुछ बूंदे ही कोकोनट आयल की डालें, फिर इस मिश्रण को नाखूनों पर लगाकर थोड़ी देर के लिए लगा छोड़ दें. ऐसा आप हफ्ते में 3 बार करें, सुधार आपको खुद दिखाई देने लगेगा.

– ओरेगेनो आयल में एंटीइन्फ्लैमटॉरी, एंटीबायोटिक और एंटीऑक्सीडेंट प्रोपर्टीज होने के कारण ये बैक्टीरिया और फंगल इंफेक्शन से लड़ने का काम करता है.  इनसे नेल्स का पीलापन दूर होता है. इसके लिए आप ओरेगेनो आयल में कुछ बूंदे ओलिव आयल या फिर कोकोनट आयल की डालकर उसे नेल्स पर लगाकर उसे थोड़ी देर के लिए लगा छोड़ दें , फिर स्क्रब करते हुए उसे हटाएं. कुछ ही एप्लीकेशन के बाद नेल्स से पीलापन कम होने लगेगा.

– हाइड्रोजन पेरोक्साइड त्वचा के लिए न सिर्फ एंटीसेप्टिक का काम करता है बल्कि ये नाखूनों से भी दाग यानि पीलेपन को दूर करने का काम  करता है. यह बैक्टीरिया रोधी वाला एक ऑक्सीकारी घटक है, जो पीलेपन को दूर  करता है. सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के अनुसार,  हाइड्रोजन पेरोक्साइड फंगी, बैक्टीरिया व मोल्ड को खत्म करने में सक्षम होता है.  इसके लिए आप गरम पानी में  हाइड्रोजन पेरोक्साइड की 2- 3  बूंदे डालकर उसमें अपने नाखूनों को 10 मिनट के लिए डुबो कर रखें.  इसके बाद साबुन से अपने हाथों को साफ करके मॉइस्चराइजर जरूर अप्लाई करें. ताकि हाथों पर ड्राईनेस न आए. कुछ ही हफ्तों में आपको नाखूनों पर सुधार नजर आने लगेगा.

– जिस तरह डेनटुरे क्लीनर दांतों को क्लीन करने का काम करता है, उसी तरह ये नाखूनों के पीलेपन को भी दूर करता है. इसके लिए आप थोड़े से पानी में 2 – 3 टैबलेट  डेनटुरे क्लीनर की डालकर उसमें 10 मिनट तक अपने नाखूनों को डिबो कर रखें, फिर सुखाकर मॉइस्चराइजर जरूर अप्लाई करें. ऐसा आप हफ्ते में 3 बार 1 महीने तक करें. नाखूनों से पीलापन खत्म हो जाएगा. लेकिन अगर नाखूनों का पीलापन फिर भी कम न हो, तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं.

इस बात का भी ध्यान रखें 

कभी भी लोकल नेल पौलिश अप्लाई न करें, हमेशा ब्रैंडेड नेल पौलिश व रिमूवर ही खरीदें. इस बात का भी ध्यान रखें कि भले ही आजकल डार्क शेड्स के नेल पेंट्स काफी ट्रेंड में हैं , लेकिन उनका ज्यादा इस्तेमाल करने के कारण उनमें इस्तेमाल होने वाली डाई के कारण  नाख़ून पीले पड़ने लगते हैं. इसलिए कम से कम ही उनका इस्तेमाल करें. साथ ही जब भी नेल पौलिश लगाएं तो उससे पहले बेस कोट जरूर अप्लाई करें, ताकि वो नाखूनों  व नेल पौलिश के बीच प्रोटेक्टिव लेयर का काम करें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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नई कार कैसे सहें ईर्ष्या का वार

कार स्टाइल और स्टेटस सिंबल बन गई है. ऐसे में कौन नहीं चाहता कि उस के पास भी ऐसी कार हो, जिसे देखने वाले बस देखते रह जाएं और उस गाड़ी को खरीद कर, जिसे वे सपने में देखते थे, उन का ड्रीम पूरा हो जाए. ऐसा ही सपना नीरज और उस के पार्टनर ने भी काफी समय पहले देखा था, जिसे पूरा करने के लिए उन्होंने दिनरात मेहनत कर के काफी पैसे कमाए और फिर अपनी सेविंग से एक महंगी कार खरीदी. इस महंगी कार को देख कर उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि उन का सपना पूरा हो गया है.

लेकिन उन्हें क्या पता था कि उन की यह कार देख कर लोग उन से ईर्ष्या करने लगेंगे, परिवार के सदस्य ही पराए हो जाएंगे, फ्रैंड्स उन्हें बातबात पर ताने मारने लगेंगे. उन की कार लेने की खुशी धीरेधीरे दर्द में बदलने लगेगी. फिर भी दोनों ने हिम्मत नहीं हारी और सभी के बीच तालमेल बनाने की कोशिश कर के इस वाकेआ से कुछ चीजें भी सीखीं.

क्यों करते हैं लोग ईर्ष्या

अकसर लोग तब ईर्ष्या करते हैं जब वे खुद से, अपने पार्टनर से, अपनी चीजों से, अपनी तरक्की से, अपने धनवैभव से खुश नहीं होते हैं. उन का ऐसा विचार होता है कि उन के पास कितना भी हो, लेकिन वे अपनी चीजों से संतुष्ट न हो कर दूसरों की चीजों को देखदेख कर मन ही मन जलते रहते हैं. यहां तक कि कई बार तो ताने मारने में भी पीछे नहीं रहते हैं.

लेकिन शायद यह नहीं जानते कि दूर के ढोल सुहावने लगते हैं. जो जितना संपन्न दिखता है, जरूरी नहीं कि उतना हो ही, पर देखने वाले को तो ऐसा ही लगता है जैसे सामने वाल के पास सबकुछ है और मेरे पास कुछ भी नहीं. ऐसे लोग बस दूसरों की हर चीज पर नजर रखते हैं और उन्हें देखदेख कर जलते रहते हैं. यहां तक कि ताने मारने में भी पीछे नहीं रहते हैं.

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ईर्ष्या कौन करता है

परिवार के लोग

चाहे आप जौइंट फैमिली में रहते हों या फिर न्यूक्लीयर फैमिली में, आप के परिवार में कोई न कोई ऐसा सदस्य जरूर होगा, जो आप की चीजों, आप की तरक्की से खुश नहीं होगा. उस का हावभाव, उस के बात करने का तरीका आप को बता देगा कि वह आप से जलता है. फिर चाहे वह बड़े भाई की पत्नी हो, भाभी हो या खुद भाई ही क्यों न हो.

भले ही उन के पास गाड़ी हो, लेकिन वे नहीं चाहेंगे कि आप भी गाड़ी या फिर कोई नई चीज खरीदें, क्योंकि सामाजिक दूरी जो मिट जाएगी. लोग उन्हें भी उतना ही संपन्न समझेंगे जितना आप को. जो उन्हें हरगिज बरदाश्त नहीं होगा और अगर उन के पास गाड़ी बगैरा नहीं है तो फिर तो वे बिलकुल भी नहीं चाहेंगे कि आप खरीदें और अगर खरीद भी ली है तो आप को ताने मारने में बिलकुल पीछे नहीं रहेंगे. इस तरह के लोग आप को परिवार में मिल जाएंगे.

औफिस के लोग

आप के औफिस में भी ऐसे लोग होंगे, जो पीठ पीछे आप की बुराई करते होंगे और आप की बौस द्वारा की गई तारीफ से जरा भी खुश नहीं होते होंगे. ये वही लोग हैं जो न तो आप के साथ रह कर आप के साथ होते हैं और न ही आप के पीछे से.

अगर आप ने इन से पहले या इन से अच्छी गाड़ी खरीद ली है, फिर तो ये बातबात में आप पर ताना मारने में पीछे नहीं रहेंगे. ये कहने में भी देर नहीं लगाएंगे कि वैसे तो इतनी कम सैलरी है या फिर हमेशा पैसों के लिए रोता रहता है और गाड़ी पता नहीं कहां से खरीद ली. यहां तक कि आप की तरक्की को देख कर आप से बात

करना भी छोड़ सकते हैं. फिर भी आप घबराएं नहीं और ऐसे लोगों का समझदारी के साथ सामना करें.

पुराने क्लासमेट

अकसर आप को तरक्की करते देख आप के पुराने स्कूल फ्रैंड्स भी आप के गाड़ी या फिर कोई अन्य महंगी चीज खरीदने पर आप को यह ताना मारने में भी पीछे नहीं रहेंगे कि पढ़ाई तो करता नहीं था, पता नहीं गाड़ी कहां से खरीद ली. आजकल पता नहीं कहां काम कर रहा है जो गाड़ी खरीद ली. यही नहीं हो सकता है कि ईर्ष्या के कारण आप से बात करना भी छोड़ दे. फिर भी आप उस के साथ गलत व्यवहार न करें, बल्कि अपनी अच्छाई से उस का दिल जीतने की कोशिश करें.

अपने पड़ोसी

आप के पड़ोसी चाहे कितने भी अच्छे क्यों न हों, लेकिन वे आप के घर में नई आती चीजों को देख कर बरदाश्त नहीं कर पाएंगे. ऐसे में हर समय उन की नजरें आप के घर में ही लगी रहती हैं कि आप के घर कौन आया, कौन गया, क्या नया आया. आप की हर छोटीछोटी चीज पर उन की नजर टिकी रहती है.

ऐसे पड़ोसियों से बचना जरूरी है. हो सके तो उन से जो चीजें छिपाई जा सकें उन्हें दिखाने से बचें. अगर वे आप की नई गाड़ी को देख कर ताने मारें तो आप चुप रहें और ज्यादा शोऔफ करने से बचने की कोशिश करें.

कैसे निबटें

घमंड न करें

अकसर हमारी यह सोच होती है कि जब भी हम कोई बड़ी चीज जैसे गाड़ी, मकान बगैरा खरीद लेते हैं तो हमारे अंदर घमंड आ जाता है. हम फिर खुद के सामने किसी को कुछ नहीं समझते हैं. ऐसे में आप को जरूरत है कि आप खुद पर घमंड कर के दूसरों को नीचा न दिखाएं, बल्कि अपनी गाड़ी को सिर्फ अपनी जरूरत का टूल समझों.

दूसरों के सामने अपनी गाड़ी की बढ़ाचढ़ा कर तारीफ न करें, बल्कि जब कोई पूछे तो यही कहें कि यार जरूरत थी, इसलिए खरीदी और बड़ी और अच्छी गाड़ी खरीदने के पीछे यही मकसद है कि ये चीजें बारबार नहीं खरीदी जाती इसलिए एक बार में ही सोचसमझ कर खरीदी है.

फ्रैंड्स को लिफ्ट दें

अगर आप के फ्रैंड्स आप के गाड़ी खरीदने के कारण आप से ईर्ष्या करने लगे हैं तो आप भी उन से यह सोच कर बात करना बंद न कर दें कि ये मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं, बल्कि आप उन्हें लिफ्ट दें, आउटिंग पर ले जाएं. आप का ऐसा व्यवहार देख कर वे आप को अपनी गुड लिस्ट में शामिल कर लेंगे. इस से हो सकता है कि धीरेधीरे उन के मन से आप के लिए ईर्ष्या खत्म होने लगे.

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फैमिली के काम आएं

भले ही आप की नई कार को देख कर आप के फैमिली वाले आप को कितने भी ताने मारें, फिर भी आप उन्हें अपने दिल से न निकालें, बल्कि उन के काम आएं. जैसे उन्हें ट्रिप पर ले जाएं. अगर उन्हें कहीं बाहर जाना है तो आप उन्हें स्टेशन, एअरपोर्ट तक ड्रौप कर दें या फिर उन्हें कहीं आसपास जाना है तो आप उन्हें खुद बोलें कि आप हमारी गाड़ी से चले जाओ.

आप के ऐसे व्यवहार से उन्हें लगेगा कि आप कितने अच्छे हैं और हम उन के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं. हो सकता है कि आप का यह व्यवहार आप के अपनों के मन से आप के प्रति ईर्ष्या को खत्म कर दे.

मन पर न लें

चाहे आप के परिवार वाले हों, फ्रैंड्स हों या औफिस वाले, अगर आप के गाड़ी खरीदने के बाद आप को बातबात पर ताने मारें, तो उन की बातों को मन पर न लें और न ही उन्हें कोई पलट कर जवाब दें, क्योंकि इस से न सिर्फ संबंध बिगड़ेंगे, बल्कि आप खुद को भी परेशान करेंगे. इसलिए खुद पर भरोसा कर के आगे बढ़ें.

क्या आप महामारी में फर्टिलिटी ट्रीटमेंट का विकल्प चुनेंगे? जानिए 

फर्टिलिटी एक्सपर्ट का कहना है कोरोनावायरस ने हमारी जिंदगी में कई तरह से बाधा डाली है. न्यू नार्मल के लिए अनुकूल बनने की दिशा में हम किसी भी नए बदलाव और जिम्मेदारी में ढलने को लेकर बहुत डरे हुए हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि यह हम सभी के लिए मुश्किल भरा समय है. लेकिन जिन लोगों को तुरंत मेडिकल निगरानी की जरुरत है खासकर उनके लिए यह समय बहुत चुनौतीपूर्ण है. इमरजेंसी केसेस के अलावा कोविड ने कई एक्टिव हेल्थकेयर फैसिलिटी में रुकावट डाली है इसमें आईवीएफ प्रक्रिया भी प्रभावित हुई है. ऐसा अनुमान लगाया है कि हर साल भारत में करीब 30 लाख लोग इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट कराना चाहते है. इनमे से करीब 5 लाख आईवीएफध्यूआई ट्रीटमेंट कराते है. लेकिन कोविड-19 के समय में ऐसे लोगों को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कई जगहों पर रोक लगने, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में कमी आने और कोविड दिशानिर्देश कड़े हैं. आईवीएफ सायकल एक सुनियोजित प्रक्रिया है जिसमें फाइनल ट्रीटमेंट से पहले कई कंसल्टेशन की जरुरत होती है.

अब जब काफी छूट मिल चुकी है तो आईवीएफ सेंटर भी फिर से खुल गए हैं. हेल्थ एक्सपर्ट का कहना है कि जब आईवीएफ प्रोसीजर कराने की बात आती है तो लोग दोहरे विचार में होते है.

नीचे कुछ कारण बताये जा रहे हैं कि जिसकी वजह से लोग चिंता में रहते हैं कि आईवीएफ ट्रीटमेंट को कराये या न कराएँ.

 वर्तमान स्थिति को लेकर चिंता

भारत में कई राज्यों में कोविड-19 के कारण स्थिति काफी अस्थिर है और वायरस अपने चरम पर है. कई लोगों को इसकी वजह से जान से हाथ धोना पड़ रहा हैं. कई जोड़े (कपल्स) फर्टिलिटी ट्रीटमेंट को शुरू करने को लेकर संशय में है. हालांकि गायनेकोलिस्ट ने सुझाव दिया है कि महामारी में प्रेग्नेंट होना सबसे अनुकूल समय है. जब आईवीएफ ट्रीटमेंट को कराने की बात आती है, तो जोड़े इस बात को काफी अनिश्चित होते हैं कि क्या उन्हें इस प्रक्रिया को शुरू करना चाहिए या नहीं. क्योंकि इसके लिए उन्हें क्लीनिक में जाना पड़ सकता है. उन्हें यह शंका रहती है कि आईवीएफ प्रक्रिया को परफार्म करने वाला क्लीनिक सभी दिशानिर्देशों का पालन कर रहा है या नहीं.\

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 महंगा प्रोसीजर

कोरोनावायरस महामारी के कारण हमारी इकोनोमी की कमर टूट चुकी है. कई लोग तो अपनी नौकरी से हाथ धो चुके है और कई लोगों की सैलरी कम हो गयी है. इसलिए इस मुश्किल समय में लोग ऐसे किसी भी ट्रीटमेंट को शुरू करने से डर रहे हैं क्योंकि इसमें पैसा लगता है और यह प्रोसीजर विशेष रूप से  एक इलेक्टिव प्रोसीजर (वैकल्पिक प्रक्रिया) के रूप में माना जाता है.

 हॉस्पिटल में भर्ती होने को लेकर चिंता

आईवीएफ के बाद की स्थिति को लेकर जोड़े चिंता में है क्योकि अगर प्रेगनेंसी के दौरान कोई कॉम्प्लिकेशन आती है तो वह हॉस्पिटल में बेहतर देखभाल नहीं पायेंगे क्योंकि हॉस्पिटल पहले से कोविड-19 मरीजों के बढ़ने से भर चुके है और इस दौरान जब कोई व्यक्ति इमरजेंसी स्थिति में इलाज कराना चाहता है तो उसे कई प्रोसीजर से होकर गुजरना पड़ता है, इसलिए जोड़े इस तरह का कोई खतरा नही मोल लेना चाहते हैं. इन सब स्थिति को सोच करके कपल्स को और ज्यादा चिंता हो रही है. हालांकि कई जगहों पर लॉकडाउन में ढील दी जा चुकी है, जबकि कई ऐसी जगहें भी हैं जहाँ पर अब भी ट्रेवल करने पर प्रतिबन्ध है.

 डॉ पारुल कटियार, फर्टिलिटी कंसल्टेंट, नोवा आईवीऍफ़

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क्यों न सैक्स संबंधों को सामान्य माना जाए

दिल्ली में सैंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स की एक 30 वर्षीय महिला कौंस्टेबल ने अपने एक सहभागी के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट लिखाई.

अपनी ड्यूटी के साथ रैसलिंग करने वाली इस युवती ने कहा है कि सीआरपीएफ में एक सैक्स रैकट चल रहा है और महिला कौंस्टेबलों के नहाते या कपड़े बदलते हुए वीडियो बना लिए जाते हैं और फिर उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है. उस शिकायतकर्ता ने कुश्ती टूरनामैंटों में बहुत से मैडल भी जीते हैं फिर भी हैरेसमैंट की शिकार हुई है.

यह साफ करता है कि हमारी पुलिस फोर्स कोई गारंटी नहीं देती कि  देश की औरतें उस के होते हुए सुरक्षित हैं, क्योंकि वे उस में काम कर रही औरतें खुद असुरक्षित हैं.

एक अदालत में सैनिक अधिकारियों ने खुल्लमखुल्ला सेना में युद्ध के मोरचे पर लड़कियों की भरती का विरोध किया था, क्योंकि उन्हें डर था कि जवान इन लड़कियों को छोड़ेंगे नहीं. औरतों के प्रति कानून और व्यवस्था लागू करने वालों की लचर सोच और कुकृत्य पर बेहद शर्म आती है.

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असल में हर तरह से कोशिश की जा रही है कि औरतों को किसी तरह घरों में बंद रखा जाए. धर्म ने शुरू से औरतों को बंद करा देने का लालच दे कर मर्दों को धर्म के नाम पर धनसंपत्ति, जान देने व जान लेने के लिए तैयार किया. मर्दों को घरों में सैक्स सुख के लिए औरतें और कम पैसे वाली गुलाम मिल रही थीं तो वे क्यों न धर्म के गुणगान करते.

राजाओं और शासकों को प्राचीन समय में भी औरतों को बराबर के से मौके देने पर आपत्ति नहीं थी, क्योंकि वे तो चाहते थे कि किसी तरह उत्पादन बढ़े ताकि उन्हें ज्यादा टैक्स मिले. ये तो पंडे थे, जिन्होंने राजाओं को मजबूर किया कि वे बलात्कार का दोषी औरतों को बना दें ताकि उन की इच्छा पूरी होती रहे.

हर धर्म का इतिहास भरा हुआ है जहां औरतों पर आरोप लगाने वालों का गुणगान किया गया है. राम ने सीता को रावण की लंका से लाने पर जो कहा वह निंदनीय था पर राम को जम कर आज भी पूजा ही नहीं जा रहा, उसे केंद्र की शक्ति का केंद्रबिंदु बना रखा है.

जो औरतें कहती हैं कि अगर पुलिस व्यवस्था सही हो तो बलात्कार रोके जा सकते हैं, गलतफहमी में हैं. पुलिस फोर्स में अंदर ही अंदर जम कर महिला कौंस्टेबलों से बदसलूकी होती है और वे मोटे वेतन और कमाई के लालच में चुप रहती हैं. महिला कौंस्टेबलों को फोर्स में चाहे डर लगता हो पर बाहर आम समाज में उन का खौफ रहता है, जो एक तरह का बोनस है, जिस के कारण वे इस अनाचार को सह रही हैं.

बलात्कार से बचने का एक उपाय है कि सैक्स संबंधों को बेहद सामान्य माना जाए और उन्हें चरित्र से न जोड़ा जाए.

औरतें किसी की संपत्ति नहीं हैं और औरतों के सैक्स का उन की शादी व अधिकारों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, यह मन में बैठ जाए ताकि बलात्कार अपने में ब्लैकमेल का टूल न बन जाए. आजकल बलात्कारी उस समय का वीडियो भी बनाने लगे हैं ताकि पीडि़ता को बाद में और बारबार सैक्स करने पर मजबूर किया जा सके.

सैक्स के प्रति उन्मुक्ता से समाज का पतन नहीं होगा. अगर ऐसा होना होता तो कहीं भी कभी भी वेश्या बाजार नहीं बनते. उन में जाने वाले मर्दों से जब नैतिक पतन नहीं हुआ तो स्वैच्छिक यौन संबंधों से कैसे होगा?

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यह खुली सोच बलात्कार को स्टिगमा से बचा लेगी और औरतों पर अत्याचार करने वालों को डर ज्यादा रहेगा कि उन की करतूत छिपी नहीं रहेगी.

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