नई कार कैसे सहें ईर्ष्या का वार

कार स्टाइल और स्टेटस सिंबल बन गई है. ऐसे में कौन नहीं चाहता कि उस के पास भी ऐसी कार हो, जिसे देखने वाले बस देखते रह जाएं और उस गाड़ी को खरीद कर, जिसे वे सपने में देखते थे, उन का ड्रीम पूरा हो जाए. ऐसा ही सपना नीरज और उस के पार्टनर ने भी काफी समय पहले देखा था, जिसे पूरा करने के लिए उन्होंने दिनरात मेहनत कर के काफी पैसे कमाए और फिर अपनी सेविंग से एक महंगी कार खरीदी. इस महंगी कार को देख कर उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि उन का सपना पूरा हो गया है.

लेकिन उन्हें क्या पता था कि उन की यह कार देख कर लोग उन से ईर्ष्या करने लगेंगे, परिवार के सदस्य ही पराए हो जाएंगे, फ्रैंड्स उन्हें बातबात पर ताने मारने लगेंगे. उन की कार लेने की खुशी धीरेधीरे दर्द में बदलने लगेगी. फिर भी दोनों ने हिम्मत नहीं हारी और सभी के बीच तालमेल बनाने की कोशिश कर के इस वाकेआ से कुछ चीजें भी सीखीं.

क्यों करते हैं लोग ईर्ष्या

अकसर लोग तब ईर्ष्या करते हैं जब वे खुद से, अपने पार्टनर से, अपनी चीजों से, अपनी तरक्की से, अपने धनवैभव से खुश नहीं होते हैं. उन का ऐसा विचार होता है कि उन के पास कितना भी हो, लेकिन वे अपनी चीजों से संतुष्ट न हो कर दूसरों की चीजों को देखदेख कर मन ही मन जलते रहते हैं. यहां तक कि कई बार तो ताने मारने में भी पीछे नहीं रहते हैं.

लेकिन शायद यह नहीं जानते कि दूर के ढोल सुहावने लगते हैं. जो जितना संपन्न दिखता है, जरूरी नहीं कि उतना हो ही, पर देखने वाले को तो ऐसा ही लगता है जैसे सामने वाल के पास सबकुछ है और मेरे पास कुछ भी नहीं. ऐसे लोग बस दूसरों की हर चीज पर नजर रखते हैं और उन्हें देखदेख कर जलते रहते हैं. यहां तक कि ताने मारने में भी पीछे नहीं रहते हैं.

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ईर्ष्या कौन करता है

परिवार के लोग

चाहे आप जौइंट फैमिली में रहते हों या फिर न्यूक्लीयर फैमिली में, आप के परिवार में कोई न कोई ऐसा सदस्य जरूर होगा, जो आप की चीजों, आप की तरक्की से खुश नहीं होगा. उस का हावभाव, उस के बात करने का तरीका आप को बता देगा कि वह आप से जलता है. फिर चाहे वह बड़े भाई की पत्नी हो, भाभी हो या खुद भाई ही क्यों न हो.

भले ही उन के पास गाड़ी हो, लेकिन वे नहीं चाहेंगे कि आप भी गाड़ी या फिर कोई नई चीज खरीदें, क्योंकि सामाजिक दूरी जो मिट जाएगी. लोग उन्हें भी उतना ही संपन्न समझेंगे जितना आप को. जो उन्हें हरगिज बरदाश्त नहीं होगा और अगर उन के पास गाड़ी बगैरा नहीं है तो फिर तो वे बिलकुल भी नहीं चाहेंगे कि आप खरीदें और अगर खरीद भी ली है तो आप को ताने मारने में बिलकुल पीछे नहीं रहेंगे. इस तरह के लोग आप को परिवार में मिल जाएंगे.

औफिस के लोग

आप के औफिस में भी ऐसे लोग होंगे, जो पीठ पीछे आप की बुराई करते होंगे और आप की बौस द्वारा की गई तारीफ से जरा भी खुश नहीं होते होंगे. ये वही लोग हैं जो न तो आप के साथ रह कर आप के साथ होते हैं और न ही आप के पीछे से.

अगर आप ने इन से पहले या इन से अच्छी गाड़ी खरीद ली है, फिर तो ये बातबात में आप पर ताना मारने में पीछे नहीं रहेंगे. ये कहने में भी देर नहीं लगाएंगे कि वैसे तो इतनी कम सैलरी है या फिर हमेशा पैसों के लिए रोता रहता है और गाड़ी पता नहीं कहां से खरीद ली. यहां तक कि आप की तरक्की को देख कर आप से बात

करना भी छोड़ सकते हैं. फिर भी आप घबराएं नहीं और ऐसे लोगों का समझदारी के साथ सामना करें.

पुराने क्लासमेट

अकसर आप को तरक्की करते देख आप के पुराने स्कूल फ्रैंड्स भी आप के गाड़ी या फिर कोई अन्य महंगी चीज खरीदने पर आप को यह ताना मारने में भी पीछे नहीं रहेंगे कि पढ़ाई तो करता नहीं था, पता नहीं गाड़ी कहां से खरीद ली. आजकल पता नहीं कहां काम कर रहा है जो गाड़ी खरीद ली. यही नहीं हो सकता है कि ईर्ष्या के कारण आप से बात करना भी छोड़ दे. फिर भी आप उस के साथ गलत व्यवहार न करें, बल्कि अपनी अच्छाई से उस का दिल जीतने की कोशिश करें.

अपने पड़ोसी

आप के पड़ोसी चाहे कितने भी अच्छे क्यों न हों, लेकिन वे आप के घर में नई आती चीजों को देख कर बरदाश्त नहीं कर पाएंगे. ऐसे में हर समय उन की नजरें आप के घर में ही लगी रहती हैं कि आप के घर कौन आया, कौन गया, क्या नया आया. आप की हर छोटीछोटी चीज पर उन की नजर टिकी रहती है.

ऐसे पड़ोसियों से बचना जरूरी है. हो सके तो उन से जो चीजें छिपाई जा सकें उन्हें दिखाने से बचें. अगर वे आप की नई गाड़ी को देख कर ताने मारें तो आप चुप रहें और ज्यादा शोऔफ करने से बचने की कोशिश करें.

कैसे निबटें

घमंड न करें

अकसर हमारी यह सोच होती है कि जब भी हम कोई बड़ी चीज जैसे गाड़ी, मकान बगैरा खरीद लेते हैं तो हमारे अंदर घमंड आ जाता है. हम फिर खुद के सामने किसी को कुछ नहीं समझते हैं. ऐसे में आप को जरूरत है कि आप खुद पर घमंड कर के दूसरों को नीचा न दिखाएं, बल्कि अपनी गाड़ी को सिर्फ अपनी जरूरत का टूल समझों.

दूसरों के सामने अपनी गाड़ी की बढ़ाचढ़ा कर तारीफ न करें, बल्कि जब कोई पूछे तो यही कहें कि यार जरूरत थी, इसलिए खरीदी और बड़ी और अच्छी गाड़ी खरीदने के पीछे यही मकसद है कि ये चीजें बारबार नहीं खरीदी जाती इसलिए एक बार में ही सोचसमझ कर खरीदी है.

फ्रैंड्स को लिफ्ट दें

अगर आप के फ्रैंड्स आप के गाड़ी खरीदने के कारण आप से ईर्ष्या करने लगे हैं तो आप भी उन से यह सोच कर बात करना बंद न कर दें कि ये मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं, बल्कि आप उन्हें लिफ्ट दें, आउटिंग पर ले जाएं. आप का ऐसा व्यवहार देख कर वे आप को अपनी गुड लिस्ट में शामिल कर लेंगे. इस से हो सकता है कि धीरेधीरे उन के मन से आप के लिए ईर्ष्या खत्म होने लगे.

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फैमिली के काम आएं

भले ही आप की नई कार को देख कर आप के फैमिली वाले आप को कितने भी ताने मारें, फिर भी आप उन्हें अपने दिल से न निकालें, बल्कि उन के काम आएं. जैसे उन्हें ट्रिप पर ले जाएं. अगर उन्हें कहीं बाहर जाना है तो आप उन्हें स्टेशन, एअरपोर्ट तक ड्रौप कर दें या फिर उन्हें कहीं आसपास जाना है तो आप उन्हें खुद बोलें कि आप हमारी गाड़ी से चले जाओ.

आप के ऐसे व्यवहार से उन्हें लगेगा कि आप कितने अच्छे हैं और हम उन के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं. हो सकता है कि आप का यह व्यवहार आप के अपनों के मन से आप के प्रति ईर्ष्या को खत्म कर दे.

मन पर न लें

चाहे आप के परिवार वाले हों, फ्रैंड्स हों या औफिस वाले, अगर आप के गाड़ी खरीदने के बाद आप को बातबात पर ताने मारें, तो उन की बातों को मन पर न लें और न ही उन्हें कोई पलट कर जवाब दें, क्योंकि इस से न सिर्फ संबंध बिगड़ेंगे, बल्कि आप खुद को भी परेशान करेंगे. इसलिए खुद पर भरोसा कर के आगे बढ़ें.

क्या आप महामारी में फर्टिलिटी ट्रीटमेंट का विकल्प चुनेंगे? जानिए 

फर्टिलिटी एक्सपर्ट का कहना है कोरोनावायरस ने हमारी जिंदगी में कई तरह से बाधा डाली है. न्यू नार्मल के लिए अनुकूल बनने की दिशा में हम किसी भी नए बदलाव और जिम्मेदारी में ढलने को लेकर बहुत डरे हुए हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि यह हम सभी के लिए मुश्किल भरा समय है. लेकिन जिन लोगों को तुरंत मेडिकल निगरानी की जरुरत है खासकर उनके लिए यह समय बहुत चुनौतीपूर्ण है. इमरजेंसी केसेस के अलावा कोविड ने कई एक्टिव हेल्थकेयर फैसिलिटी में रुकावट डाली है इसमें आईवीएफ प्रक्रिया भी प्रभावित हुई है. ऐसा अनुमान लगाया है कि हर साल भारत में करीब 30 लाख लोग इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट कराना चाहते है. इनमे से करीब 5 लाख आईवीएफध्यूआई ट्रीटमेंट कराते है. लेकिन कोविड-19 के समय में ऐसे लोगों को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कई जगहों पर रोक लगने, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में कमी आने और कोविड दिशानिर्देश कड़े हैं. आईवीएफ सायकल एक सुनियोजित प्रक्रिया है जिसमें फाइनल ट्रीटमेंट से पहले कई कंसल्टेशन की जरुरत होती है.

अब जब काफी छूट मिल चुकी है तो आईवीएफ सेंटर भी फिर से खुल गए हैं. हेल्थ एक्सपर्ट का कहना है कि जब आईवीएफ प्रोसीजर कराने की बात आती है तो लोग दोहरे विचार में होते है.

नीचे कुछ कारण बताये जा रहे हैं कि जिसकी वजह से लोग चिंता में रहते हैं कि आईवीएफ ट्रीटमेंट को कराये या न कराएँ.

 वर्तमान स्थिति को लेकर चिंता

भारत में कई राज्यों में कोविड-19 के कारण स्थिति काफी अस्थिर है और वायरस अपने चरम पर है. कई लोगों को इसकी वजह से जान से हाथ धोना पड़ रहा हैं. कई जोड़े (कपल्स) फर्टिलिटी ट्रीटमेंट को शुरू करने को लेकर संशय में है. हालांकि गायनेकोलिस्ट ने सुझाव दिया है कि महामारी में प्रेग्नेंट होना सबसे अनुकूल समय है. जब आईवीएफ ट्रीटमेंट को कराने की बात आती है, तो जोड़े इस बात को काफी अनिश्चित होते हैं कि क्या उन्हें इस प्रक्रिया को शुरू करना चाहिए या नहीं. क्योंकि इसके लिए उन्हें क्लीनिक में जाना पड़ सकता है. उन्हें यह शंका रहती है कि आईवीएफ प्रक्रिया को परफार्म करने वाला क्लीनिक सभी दिशानिर्देशों का पालन कर रहा है या नहीं.\

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 महंगा प्रोसीजर

कोरोनावायरस महामारी के कारण हमारी इकोनोमी की कमर टूट चुकी है. कई लोग तो अपनी नौकरी से हाथ धो चुके है और कई लोगों की सैलरी कम हो गयी है. इसलिए इस मुश्किल समय में लोग ऐसे किसी भी ट्रीटमेंट को शुरू करने से डर रहे हैं क्योंकि इसमें पैसा लगता है और यह प्रोसीजर विशेष रूप से  एक इलेक्टिव प्रोसीजर (वैकल्पिक प्रक्रिया) के रूप में माना जाता है.

 हॉस्पिटल में भर्ती होने को लेकर चिंता

आईवीएफ के बाद की स्थिति को लेकर जोड़े चिंता में है क्योकि अगर प्रेगनेंसी के दौरान कोई कॉम्प्लिकेशन आती है तो वह हॉस्पिटल में बेहतर देखभाल नहीं पायेंगे क्योंकि हॉस्पिटल पहले से कोविड-19 मरीजों के बढ़ने से भर चुके है और इस दौरान जब कोई व्यक्ति इमरजेंसी स्थिति में इलाज कराना चाहता है तो उसे कई प्रोसीजर से होकर गुजरना पड़ता है, इसलिए जोड़े इस तरह का कोई खतरा नही मोल लेना चाहते हैं. इन सब स्थिति को सोच करके कपल्स को और ज्यादा चिंता हो रही है. हालांकि कई जगहों पर लॉकडाउन में ढील दी जा चुकी है, जबकि कई ऐसी जगहें भी हैं जहाँ पर अब भी ट्रेवल करने पर प्रतिबन्ध है.

 डॉ पारुल कटियार, फर्टिलिटी कंसल्टेंट, नोवा आईवीऍफ़

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क्यों न सैक्स संबंधों को सामान्य माना जाए

दिल्ली में सैंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स की एक 30 वर्षीय महिला कौंस्टेबल ने अपने एक सहभागी के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट लिखाई.

अपनी ड्यूटी के साथ रैसलिंग करने वाली इस युवती ने कहा है कि सीआरपीएफ में एक सैक्स रैकट चल रहा है और महिला कौंस्टेबलों के नहाते या कपड़े बदलते हुए वीडियो बना लिए जाते हैं और फिर उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है. उस शिकायतकर्ता ने कुश्ती टूरनामैंटों में बहुत से मैडल भी जीते हैं फिर भी हैरेसमैंट की शिकार हुई है.

यह साफ करता है कि हमारी पुलिस फोर्स कोई गारंटी नहीं देती कि  देश की औरतें उस के होते हुए सुरक्षित हैं, क्योंकि वे उस में काम कर रही औरतें खुद असुरक्षित हैं.

एक अदालत में सैनिक अधिकारियों ने खुल्लमखुल्ला सेना में युद्ध के मोरचे पर लड़कियों की भरती का विरोध किया था, क्योंकि उन्हें डर था कि जवान इन लड़कियों को छोड़ेंगे नहीं. औरतों के प्रति कानून और व्यवस्था लागू करने वालों की लचर सोच और कुकृत्य पर बेहद शर्म आती है.

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असल में हर तरह से कोशिश की जा रही है कि औरतों को किसी तरह घरों में बंद रखा जाए. धर्म ने शुरू से औरतों को बंद करा देने का लालच दे कर मर्दों को धर्म के नाम पर धनसंपत्ति, जान देने व जान लेने के लिए तैयार किया. मर्दों को घरों में सैक्स सुख के लिए औरतें और कम पैसे वाली गुलाम मिल रही थीं तो वे क्यों न धर्म के गुणगान करते.

राजाओं और शासकों को प्राचीन समय में भी औरतों को बराबर के से मौके देने पर आपत्ति नहीं थी, क्योंकि वे तो चाहते थे कि किसी तरह उत्पादन बढ़े ताकि उन्हें ज्यादा टैक्स मिले. ये तो पंडे थे, जिन्होंने राजाओं को मजबूर किया कि वे बलात्कार का दोषी औरतों को बना दें ताकि उन की इच्छा पूरी होती रहे.

हर धर्म का इतिहास भरा हुआ है जहां औरतों पर आरोप लगाने वालों का गुणगान किया गया है. राम ने सीता को रावण की लंका से लाने पर जो कहा वह निंदनीय था पर राम को जम कर आज भी पूजा ही नहीं जा रहा, उसे केंद्र की शक्ति का केंद्रबिंदु बना रखा है.

जो औरतें कहती हैं कि अगर पुलिस व्यवस्था सही हो तो बलात्कार रोके जा सकते हैं, गलतफहमी में हैं. पुलिस फोर्स में अंदर ही अंदर जम कर महिला कौंस्टेबलों से बदसलूकी होती है और वे मोटे वेतन और कमाई के लालच में चुप रहती हैं. महिला कौंस्टेबलों को फोर्स में चाहे डर लगता हो पर बाहर आम समाज में उन का खौफ रहता है, जो एक तरह का बोनस है, जिस के कारण वे इस अनाचार को सह रही हैं.

बलात्कार से बचने का एक उपाय है कि सैक्स संबंधों को बेहद सामान्य माना जाए और उन्हें चरित्र से न जोड़ा जाए.

औरतें किसी की संपत्ति नहीं हैं और औरतों के सैक्स का उन की शादी व अधिकारों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, यह मन में बैठ जाए ताकि बलात्कार अपने में ब्लैकमेल का टूल न बन जाए. आजकल बलात्कारी उस समय का वीडियो भी बनाने लगे हैं ताकि पीडि़ता को बाद में और बारबार सैक्स करने पर मजबूर किया जा सके.

सैक्स के प्रति उन्मुक्ता से समाज का पतन नहीं होगा. अगर ऐसा होना होता तो कहीं भी कभी भी वेश्या बाजार नहीं बनते. उन में जाने वाले मर्दों से जब नैतिक पतन नहीं हुआ तो स्वैच्छिक यौन संबंधों से कैसे होगा?

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यह खुली सोच बलात्कार को स्टिगमा से बचा लेगी और औरतों पर अत्याचार करने वालों को डर ज्यादा रहेगा कि उन की करतूत छिपी नहीं रहेगी.

नादानियां: प्रथमा और राकेश के बीच ऐसा क्या हुआ

प्रथमा की शादी को 3 साल हो गए हैं. कितने अरमानों से उस ने रितेश की जीवनसंगिनी बन कर इस घर में पहला कदम रखा था. रितेश से जब उस की शादी की बात चल रही थी तो वह उस की फोटो पर ही रीझ गई थी. मांपिताजी भी संतुष्ट थे क्योंकि रितेश 2 बहनों का इकलौता भाई था और दोनों बहनें शादी के बाद अपनेअपने घरपरिवार में रचीबसी थीं. सासससुर भी पढ़ेलिखे व सुलझे विचारों के थे.

शादी से पहले जब रितेश उसे फोन करता था तो उन की बातों में उस की मां यानी प्रथमा की होने वाली सास एक अहम हिस्सा होती थी. प्रथमा प्रेमभरी बातें और होने वाले पति के मुंह से खुद की तारीफ सुनने के लिए तरसती रह जाती थी और रितेश था कि बस, मां के ही गुणगान करता रहता. उसी बातचीत के आधार पर प्रथमा ने अनुमान लगा लिया था कि रितेश के जीवन में उस की मां का पहला स्थान है और उसे पति के दिल में जगह बनाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी. शादी के बाद हनीमून की योजना बनाते समय रितेश बारबार हरिद्वार, ऋ षिकेश, मसूरी जाने का प्लान ही बनाता रहा. आखिरी समय तक वह अपनी मम्मीपापा से साथ चलने की जिद करता रहा. प्रथमा इस नई और अनोखी जिद पर हैरान थी क्योंकि उस ने तो यही पढ़ा व सुना था कि हनीमून पर पतिपत्नी इसलिए जाते हैं ताकि वे ज्यादा से ज्यादा वक्त एकदूसरे के साथ बिता सकें और उन की आपसी समझ मजबूत हो. मगर यहां तो उलटी गंगा बह रही है. मां के साथ तीर्थ पर ही जाना था तो इसे हनीमून का नाम देने की क्या जरूरत है. खैर, ससुरजी ने समझदारी दिखाई और उन्हें हनीमून पर अकेले ही भेजा.

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स्मार्ट और हैंडसम रितेश का फ्रैंडसर्किल बहुत बड़ा है. शाम को औफिस से घर आते ही जहां प्रथमा की इच्छा होती कि वह पति के साथ बैठ कर आने वाले कल के सपने बुने, उस के साथ घूमनेफिरने जाए, वहीं रितेश अपनी मां के साथ बैठ कर गप मारता और फिर वहां से दोस्तों के पास चला जाता. प्रथमा से जैसे उसे कोई मतलब ही नहीं था. रात लगभग 9 बजे लौटने के बाद खाना खा कर वह सो जाता. हां, हर रात वह सोने से पहले प्रथमा को प्यार जरूर करता था. प्रथमा का कोमल हृदय इस बात से आहत हो उठता, उसे लगता जैसे पति ने उसे सिर्फ अपने बिस्तर में ही जगह दी है, दिल में नहीं. वह केवल उस की आवश्यकतापूर्ति का साधन मात्र है. ऐसा नहीं है कि उस की सास पुरानी फिल्मों वाली ललिता पंवार की भूमिका में है या फिर वह रितेश को उस के पास आने से रोकती है, बल्कि वह तो स्वयं कई बार रितेश से उसे फिल्म, मेले या फिर होटल जाने के लिए कहती. रितेश उसे ले कर भी जाता है मगर उन के साथ उस की मां यानी प्रथमा की सास जरूर होती है. प्रथमा मन मसोस कर रह जाती, मगर सास को मना भी कैसे करे. जब पति खुद चाहता है कि मां उन के साथ रहे तो फिर वह कौन होती है उन्हें टोकने वाली.

कई बार तो उसे लगता कि पति के दिल में उस का एकछत्र राज कभी नहीं हो सकता. वह उस के दिल की रानी सास के रहते तो नहीं बन सकती. उस की टीस तब और भी बढ़ जाती है जब उस की बहन अपने पति के प्यार व दीवानगी के किस्से बढ़ाचढ़ा कर उसे बताती कि कैसे उस के पति अपनी मां को चकमा दे कर और बहाने बना कर उसे फिल्म दिखाने ले जाते हैं, कैसे वे दोनों चांदनी रातों में सड़कों पर आवारगी करते घूमते हैं और चाटपकौड़ी, आइसक्रीम का मजा लेते हैं. प्रथमा सिर्फ आह भर कर रह जाती. हां, उस के ससुर उस के दर्द को समझने लगे थे और कभी बेकार में चाय बनवा कर, पास बैठा कर इधरउधर की बातें करते तो कभी टीवी पर आ रही फिल्म को देखने के लिए उस से अनुरोध करते.

दिन गुजरते रहे, वह सब्र करती रही. लेकिन जब बात सिर से गुजरने लगी तो उस ने एक नया फैसला कर लिया अपनी जीवनशैली को बदलने का. प्रथमा को मालूम था कि राकेश मेहरा यानी उस के ससुरजी को चाय के साथ प्याज के पकौड़े बहुत पसंद हैं, हर रोज वह शाम की चाय के साथ रितेश की पसंद के दूसरे स्नैक्स बनाती रही है और कभीकभी रितेश के कहने पर सासूमां की पसंद के भी. मगर आज उस ने प्याज के पकौड़े बनाए. पकौड़े देखते ही राकेश के चेहरे पर लुभावनी सी मुसकान तैर गई.

प्रथमा ने आज पहली बार गौर से अपने ससुरजी को देखा. राकेश की उम्र लगभग 55 वर्ष थी, मगर दिखने में बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व है उन का. रितेश अपने पापा पर ही गया है, यह सोच कर प्रथमा के दिल में गुदगुदी सी हो गई.

राकेश ने जीभर कर पकौड़ों की तारीफ की और प्रथमा से बड़े ही नाटकीय अंदाज में कहा, ‘‘मोगाम्बो खुश हुआ. अपनी एक इच्छा बताओ, बच्ची. कहो, क्या चाहती हो?’’ प्रथमा खिल उठी. फिलहाल तो उस ने कुछ नहीं मांगा मगर आगे की रणनीति मन ही मन तय कर ली. 2 दिनों बाद उस ने राकेश से कहा, ‘‘आज यह बच्ची आप से आप का दिया हुआ वादा पूरा करने की गुजारिश करती है. क्या आप मुझे कार चलाना सिखाएंगे?’’

‘‘क्यों नहीं, अवश्य सिखाएंगे बालिके,’’ राकेश ने कहा. जब वे बहुत खुश होते हैं तो इसी तरह नाटकीय अंदाज में बात करते हैं. अब हर शाम औफिस से आ कर चायनाश्ता करने के बाद राकेश प्रथमा को कार चलाना सिखाने लगा. जब राकेश उसे क्लच, गियर, रेस और ब्रेक के बारे में जानकारी देता तो प्रथमा बड़े मनोयोग से सुनती. कभीकभी घुमावदार रास्तों पर कार को टर्न लेते समय स्टीयरिंग पर दोनों के हाथ आपस में टकरा जाते. राकेश ने इसे सामान्य प्रक्रिया समझते हुए कभी इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया मगर प्रथमा के गाल लाल हो उठते थे.

लगभग महीनेभर की प्रैक्टिस के बाद प्रथमा ठीकठाक कार चलाने लगी थी. एक दिन उस ने भी राकेश के ही अंदाज में कहा, ‘‘जहांपनाह, कनीज आप को गुरुदक्षिणा देने की चाह रखती है.’’ ‘‘हमारी दक्षिणा बहुत महंगी है बालिके,’’ राकेश ने भी उसी अंदाज

में कहा. ‘‘हमें सब मंजूर है, गुरुजी,’’ प्रथमा ने अदब से झुक कर कहा तो राकेश को हंसी आ गई और यह तय हुआ कि आने वाले रविवार को सब लोग चाट खाने बाहर जाएंगे.

चूंकि ट्रीट प्रथमा के कार चलाना सीखने के उपलक्ष्य में थी, इसलिए आज कार वही चला रही थी. रितेश अपनी मां के साथ पीछे वाली सीट पर और राकेश उस की बगल में बैठा था. आज प्रथमा को गुडफील हो रहा था. चाट खाते समय जब रितेश अपनी मां को मनुहार करकर के गोलगप्पे खिला रहा था तो प्रथमा को बिलकुल भी बुरा नहीं लग रहा था बल्कि वह तो राकेश के साथ ही ठेले पर आलूटिकिया के मजे ले रही थी. दोनों एक ही प्लेट में खा रहे थे. अचानक मुंह में तेज मिर्च आ जाने से प्रथमा सीसी करने लगी तो राकेश तुरंत भाग कर उस के लिए बर्फ का गोला ले आया. थोड़ा सा चूसने के बाद जब उस ने गोला राकेश की तरफ बढ़ाया तो राकेश ने बिना हिचक उस के हाथ से ले कर गोला चूसना शुरू कर दिया. न जाने क्या सोच कर प्रथमा के गाल दहक उठे. आज उसे लग रहा था मानो उस ने अपने मिशन में कामयाबी की पहली सीढ़ी पार कर ली.

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इस रविवार राकेश को अपने रूटीन हैल्थ चैकअप के लिए जाना था. रितेश औफिस के काम से शहर से बाहर टूर पर गया है. राकेश ने डाक्टर से अगले हफ्ते का अपौइंटमैंट लेने की बात कही तो प्रथमा ने कहा, ‘‘रितेश नहीं है तो क्या हुआ? मैं हूं न. मैं चलूंगी आप के साथ. हैल्थ के मामले में कोई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए.’’ दोनों ससुरबहू फिक्स टाइम पर क्लिनिक पहुंच गए. वहां आज ज्यादा पेशेंट नहीं थे, इसलिए वे जल्दी फ्री हो गए. वापसी में घर लौटते हुए प्रथमा ने कार मल्टीप्लैक्स की तरफ घुमा दी. तो राकेश ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, कुछ काम है क्या यहां?’’

‘‘जी हां, काम ही समझ लीजिए. बहुत दिनों से कोई फिल्म नहीं देखी थी. रितेश को तो मेरे लिए टाइम नहीं है. एक बहुत ही अच्छी फिल्म लगी है, सोचा आज आप के साथ ही देख ली जाए,’’ प्रथमा ने गाड़ी पार्किंग में लगाते हुए कहा. राकेश को उस के साथ यों फिल्म देखना कुछ अजीब सा तो लग रहा था मगर उसे प्रथमा का दिल तोड़ना भी ठीक नहीं लगा, इसलिए फिल्म देखने को राजी हो गया. सोचा, ‘सोचा बच्ची है, इस का भी मन करता होगा…’

प्रथमा की बगल में बैठा राकेश बहुत ही असहज सा महसूस कर रहा था, क्योंकि बारबार सीट के हत्थे पर दोनों के हाथ टकरा रहे थे. उस से भी ज्यादा अजीब उसे तब लगा जब उस के हाथ पर रखा अपना हाथ हटाने में प्रथमा ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई बल्कि बहुत ही सामान्य भाव से फिल्म का मजा लेती रही. उन्होंने ही धीरे से अपना हाथ हटा लिया. ऐसा ही एक वाकेआ उस दिन भी हुआ जब प्रथमा उसे पिज्जा हट ले कर गई थी. दरअसल, उन की बड़ी बेटी पारुल की ससुराल घर से कुछ ही दूरी पर है. पिछले दिनों पारुल के ससुरजी ने अपनी आंख का औपरेशन करवाया था. आज शाम राकेश को उन से मिलने जाना था. प्रथमा ने पूछा, ‘‘मैं भी आप के साथ चलूं? इस बहाने शहर में मेरी कार चलाने की प्रैक्टिस भी हो जाएगी.’’ सास से अनुमति मिलते ही प्रथमा कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ कर राकेश के साथ चल दी. वापसी में उस ने कहा, ‘‘चलिए, आज आप को पिज्जा हट ले कर चलती हूं.’’

‘‘अरे नहीं, तुम तो जानती हो कि मुझे पिज्जा पसंद नहीं,’’ राकेश ने टालने के अंदाज में कहा. ‘‘आप से पिज्जा खाने को कौन कह रहा है. वह तो मुझे खाना है. आप तो बस पेमैंट कर देना,’’ प्रथमा ने अदा से मुसकराते हुए कहा. न चाहते हुए भी राकेश को गाड़ी से उतरना ही पड़ा. पास आते ही प्रथमा ने अधिकार से उस की बांहों में बांहें डाल कर जब कहा, ‘‘दैट्स लाइक अ परफैक्ट कपल,’’ तो राकेश से मुसकराते भी नहीं बना.

पिज्जा खातेखाते प्रथमा बीचबीच में उसे भी आग्रह कर के खिला रही थी. मना करने पर भी जबरदस्ती मुंह में ठूंस देती. राकेश समझ नहीं पा रहा था कि उस के साथ क्या हो रहा है. वह प्रथमा की इस हरकत को उस का बचपना समझ कर नजरअंदाज करता रहा. प्रथमा कुछ और जिद करे, इस से पहले ही वह रितेश का फोन आने का बहाना बना कर उसे घर ले आया.

‘‘यह देखिए. मैं आप के लिए क्या ले कर आई हूं,’’ प्रथमा ने एक दिन राकेश को एक पैकेट पकड़ाते हुए कहा. ‘‘क्या है यह?’’ राकेश ने उसे उलटपलट कर देखा.

‘‘यह है ज्ञान का खजाना यानी बुक्स. आज से हम दोनों साथसाथ पढ़ेंगे,’’ प्रथमा ने नाटकीय अंदाज में कहा. वह जानती थी कि नौवेल्स पढ़ना राकेश की कमजोरी है. राकेश ने एक छोटी सी लाइब्रेरी भी घर में बना रखी थी और सब को सख्त हिदायत थी कि जब वह लाइब्रेरी में हो तो कोई भी उसे डिस्टर्ब न करे. मगर अब प्रथमा का भी दखल उस में होने लगा था. शाम का वह समय जो वे दोनों कार चलाना सीखने को जाया करते थे, अब बंद लाइब्रेरी में किताबों को देने लगे. राकेश ने जब प्रथमा के लाए नौवेल्स को पढ़ना शुरू किया तो उसे महसूस हुआ कि इन में लगभग सभी नौवेल्स में एक बात कौमन थी. वह यह कि सभी में घुमाफिरा कर विवाहेतर संबंधों की वकालत की गई थी. विभिन्न परिस्थितियों में नजदीकी रिश्तों में बनने वाले इन ऐक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशन को अपराध या आत्मग्लानि की श्रेणी से बाहर रखा गया था. एक दिन तो राकेश से कुछ भी कहते नहीं बना जब प्रथमा ने ऐसे ही एक किराएदार का उदाहरण दे कर उस से पूछा जिस के अजीबोगरीब हालात में अपनी बहू से अंतरंग संबंध बन गए थे, ‘‘मुझे लगता है इस का फैसला गलत नहीं था. आप इस की जगह होते तो क्या करते?’’

राकेश का माथा ठनका. अब उस ने प्रथमा की बचकानी हरकतों पर गौर करना शुरू किया. उसे दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आने लगी. उसे याद आया कि बातबात पर ‘पापा’ कहने वाली प्रथमा आजकल उस से बिना किसी संबोधन के ही बात करती है. उस की उम्र का अनुभव उसे चेता रहा था कि प्रथमा उस से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश कर रही है मगर उस के घर का संस्कारी माहौल इस की बगावत कर रहा था, वह ऐसी किसी भी संभावना के खिलाफ था. इस कशमकश से बाहर निकलने के लिए राकेश ने एक रिस्क लेने की ठानी. वह अपने तजरबे को परखना चाहता था. प्रथमा की मानसिकता को परखना चाहता था. जल्द ही उसे ऐसा एक मौका भी मिल गया. साल अपनी समाप्ति पर था. हर जगह न्यू ईयर सैलिब्रेशन की तैयारियां चल रही थीं. रितेश को उस के एक इवैंट मैनेजर दोस्त ने न्यू ईयर कार्निवाल का एक कपल पास दिया. ऐन मौके पर रितेश का जाना कैंसिल हो गया तो प्रथमा ने राकेश से जिद की, ‘‘चलिए न. हम दोनों चलते हैं.’’ राकेश को अटपटा तो लगा मगर वह इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहता था, इसलिए उस के साथ जाने के लिए तैयार हो गया.

पार्टी में प्रथमा के जिद करने पर वह डांसफ्लोर पर भी चला गया. जैसा कि उस का अनुभव कह रहा था, प्रथमा उस से एकदम चिपक कर डीजे की तेज धुन पर थिरक रही थी. कभी अचानक उस की बांहों में झूल जाती तो कभी अपना चेहरा बिलकुल उस के पास ले आती. अब राकेश का शक यकीन में बदल गया. वह समझ गया कि यह उस का वहम नहीं है बल्कि प्रथमा अपने पूरे होशोहवास में यह सब कर रही है. मगर क्यों? क्या यह अपने पति यानी रितेश के साथ खुश नहीं है? क्या इन के बीच सबकुछ ठीक नहीं है? प्रथमा जनून में अपनी हदें पार कर के कोई सीन क्रिएट करे, इस से पहले ही वह उसे अपनी तबीयत खराब होने का बहाना बना कर वहां से वापस ले आया. राकेश को रातभर नींद नहीं आई. पिछले दिनों की घटनाएं उस की आंखों में चलचित्र की तरह गुजरने लगीं.

रितेश का अपनी मां से अत्यधिक लगाव ही प्रथमा के इस व्यवहार की मूल जड़ था. नवविवाहिता पत्नी को छोड़ कर उस का अपनी मां के पल्लू से चिपके रहना एक तरह से प्रथमा के वजूद को चुनौती थी. उसे लग रहा था कि उस का रूप और यौवन पति को बांधने में नाकामयाब हो रहा है. ऐसे में इस नादान बच्ची ने यह रास्ता चुना. शायद उस का अवचेतन मन रितेश को जताना चाहता था कि उस के लावण्य में कोई कमी नहीं है. वह किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम है.

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बेचारी बच्ची, इतने दिनों तक कितनी मानसिक असुरक्षा से जूझती रही. रितेश को तो शायद इस बात का अंदाजा भी नहीं होगा कि उस का मम्मीप्रेम क्या गुल खिला रहा है. और वह भी तो इस द्वंद्व को कहां समझ सका…या फिर शायद प्रथमा मुझ पर डोरे डाल कर अपनी सास को कमतरी का एहसास कराना चाहती है. ‘कारण जो भी हो, मुझे प्रथमा को इस रास्ते से वापस मोड़ना ही होगा,’ राकेश का मन उस के लिए द्रवित हो उठा. उस ने मन ही मन आगे की कार्ययोजना तय कर ली और ऐसा होते ही उस की आंखें अपनेआप मुंदने लगीं और वह नींद की आगोश में चला गया.

अगले दिन राकेश ने औफिस से आते ही पत्नी के पास बैठना शुरू कर दिया और चाय उस के साथ ही पीने लगा. वह रितेश को किसी न किसी बहाने से उस की चाय ले कर प्रथमा के पास भेज देता ताकि वे दोनों कुछ देर आपस में बात कर सकें. चाय पी कर राकेश पत्नी को ले कर पास के पार्क में चला जाता. जाने से पहले रितेश को हिदायत दे कर जाता कि वह दोस्तों के पास जाने से पहले प्रथमा के साथ कम से कम 1 घंटे बैठे.

शुरूशुरू में तो प्रथमा और रितेश को इस फरमान से घुटन सी हुई क्योंकि दोनों को ही एकदूसरे की आदत अभी नहीं पड़ी थी मगर कुछ ही दिनों में उन्हें एकदूसरे का साथ भाने लगा. कई बार राकेश दोनों को अकेले सिनेमा या फिर होटल भी भेज देता था. हां, पत्नी को अपने साथ घर पर ही रोके रखता. एकदो बार रितेश ने साथ चलने की जिद भी की मगर राकेश ने हर बार यह कह कर टाल दिया कि अब इस उम्र में बाहर का खाना उन्हें सूट नहीं करता. राकेश ने महसूस किया कि अब रितेश भी प्रथमा के साथ अकेले बाहर जाने के मौके तलाशने लगा है यानी उस की योजना सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

हनीमून के बाद रितेश कभी प्रथमा को मायके के अलावा शहर से बाहर घुमाने नहीं ले गया. इस बार उन की शादी की सालगिरह पर राकेश ने जब उन्हें 15 दिनों के साउथ इंडिया ट्रिप का सरप्राइज दिया तो रितेश ने जाने से मना का दिया, कहा, ‘‘हम दोनों के बिना आप इतने दिन अकेले कैसे रहेंगे? आप के खाने की व्यवस्था कैसे होगी? नहीं, हम कहीं नहीं जाएंगे और अगर जाना ही है तो सब साथ जाएंगे.’’ ‘‘अरे भई, मैं तो तुम दोनों को इसलिए भेज रहा हूं ताकि कुछ दिन हमें एकांत मिल सके. मगर तुम हो कि मेरे इशारे को समझ ही नहीं रहे.’’ राकेश ने अपने पुराने नाटकीय अंदाज में कहा तो रितेश की हंसी छूट गई. उस ने हंसते हुए प्रथमा से चलने के लिए पैकिंग करने को कहा और खुद भी उस की मदद करने लगा.

15 दिनों बाद जब बेटाबहू लौट कर आए तो दोनों के ही चेहरों पर असीम संतुष्टि के भाव देख कर राकेश ने राहत की सांस ली. दोनों उस के चरणस्पर्श करने को झुके तो उन्होंने बच्चों को बांहों में समेट लिया. प्रथमा ने आज न जाने कितने दिनों बाद उसे फिर से ‘पापा’ कह कर संबोधित किया था. राकेश खुश था कि उस ने राह भटकती एक नादान को सही रास्ता दिखा दिया और खुद भी आत्मग्लानि से बच गया.

भीनी-भीनी खुशबू से महके आशियाना

अगर आप का घर साफ नहीं, तो दुर्गंध आना स्वाभाविक है. इस की वजहें पुराने कारपेट, फफूंद लगी दीवारें, पालतू जानवर, डस्टबिन का अच्छी तरह साफ न होना, कपड़ों का धूप में सही तरह न सूखना आदि हैं. नमी वाले मौसम में तो दुर्गंध दोगुनी हो जाती है. ऐसे में घर की सफाई के साथसाथ उस की दुर्गंध निकालने के बारे में भी सोचना आवश्यक है.

कई बार ऐसा होता है कि घर तो साफ है, लेकिन दुर्गंध आप को परेशान करती है. ऐसे में अरोमायुक्त कैंडल, धूप और अगरबत्तियां आप को दुर्गंध से बचा सकती हैं. आजकल बाजार में तरहतरह के स्प्रे भी मिलते हैं, जो दुर्गंध को आसानी से हटा देते हैं, लेकिन इन का नियमित उपयोग सही नहीं होता. ऐसे में प्राकृतिक अरोमा युक्त कैंडल या धूप दुर्गंध दूर करने का अच्छा विकल्प होती हैं. इस बारे में मुंबई के डिजाइन एमएफ के इंटीरियर डिजाइनर स्वप्निल मोरे बताते हैं कि पहले इंटीरियर के लिए लकड़ी का फर्नीचर ट्रैंड में था, जिसे बीचबीच में पौलिश करवाना पड़ता था, लेकिन आजकल लैमिनेट फर्नीचर अधिक चलता है, जिसे साफ करना आसान होता है और उस में नमी भी अधिक जमा नहीं होती, जिस से किसी प्रकार की स्मैल नहीं आती.

दुर्गंध दूर करने के टिप्स-

पेश हैं  घर की दुर्गंध दूर करने के कुछ टिप्स:

– सब से जरूरी है घर में वैंटिलेशन का सही होना ताकि गंध बाहर निकल सके. घर के खिड़कीदरवाजों को ऐसे खोलें ताकि क्रौस वैंटिलेशन हो और स्मैल घर से निकल जाए.

– सुगंधयुक्त अगरबत्तियां, पौटपूरी, स्प्रे आदि का प्रयोग कमरों में ही करें. इन का   किचन में प्रयोग न करें.

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– कारपेट को फ्रैश बनाने के लिए उस पर रोजाना प्रयोग में लाने वाले पाउडर का छिड़काव कर वैक्यूम क्लीनर से साफ करें. इस से कारपेट साफ होने के साथसाथ महकेगा भी.

– कपड़ों की दुर्गंध को हटाने के लिए उन्हें धोने के बाद फैब्रिक रिफ्रैशर का प्रयोग  करें. ऐसा करने से कपड़े मुलायम होने के साथसाथ सुगंध भी बिखेरेंगे.

– दुर्गंध को दूर करने के लिए फर्नीचर को समयसमय पर पौलिश करवाती रहें.

– बिस्तर, कपड़ों, बाथरूम आदि जगहों पर फिनाइल की गोलियों का प्रयोग करने से दुर्गंध कम हो जाती है.

– घर के लिए फ्रैगरैंस लैवेंडर, लैमन, क्लोव आदि लेनी सही होती है. इस से दुर्गंध आसानी से चली जाती है.

घरेलू उपाय-

-घर की दुर्गंध को भगाने के लिए कुछ घरेलू नुसखे भी अपनाए जा सकते हैं, जो इस प्रकार हैं.

– अलमारी में नीम की पत्तियां रखें. ऐसा करने से कपड़ों से फफूंद की दुर्गंध दूर हो जाएगी.

– नीबू को 2 टुकड़ों में काट कर एक कटोरी में रख कर घर के किसी कोने में रखें.

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– थोड़ी मात्रा में कपूर को प्लेट में रख कर जला लें और घर के खिड़कीदरवाजे बंद रखें. कपूर के पूरी तरह जल जाने के बाद खिड़कीदरवाजे खोल दें.

.- घर पर खुद पौटपूरी बनाने के लिए किसी भी मनपसंद फूल की पंखुडि़यों को  थोड़े पानी में उबाल लें. ऐसा करने पर उन की महक पूरे घर में फैल जाएगी. फूलों के अलावा संतरे के छिलके, दालचीनी के टुकड़ों, लौंग आदि का भी  प्रयोग किया जा सकता है.

Serial Story: मार्जिन औफ एरर

Serial Story: मार्जिन औफ एरर (भाग-4)

महिका का दिल धड़क उठा. उस की नजर अफरोजा की तरफ गई. मुश्किल से 5 फुट 3 इंच की ऊंचाई होगी उस की. गोरी, दुबलीपतली, हलकी लंबाई में तीखा सा चेहरा, ऊंची नाक, सिल्क के महीन धागों सी भूरे बालों और काले कजरारे सुरमे वाली आंखें. जरीदार जरदोजी के पीले सूट में अफरोज़ा आम्रपाली सी संगीतमय लग रही थी. सच, उस ने अपनी आंखों से देखा, अच्युत ने अफरोजा को बड़ी गहरी नजर से देख आंखें हटाईं और अफ़रोजा की आंखों में विद्युतधारा चमक उठी. होंठों पर उस के गुलमोहर की खिलखिलाहट सी तैर गई.

फिर यह दर्शित से धीमेधीमे क्या बात कर रही होगी… जो भी हो, अच्युत महिका का है. उस ने उसे पाने का संकल्प ले रखा है. उसे इस करोड़ों की संपत्ति का उत्तराधिकार पाना है. अच्युत इस लड़की के प्रति कहीं कमजोर तो नहीं हो रहा… नहीं. ऐसा हो तो कैसे. दवा का असर ऐसा होने तो न देगा.

दर्शित ने व्यंग्यभरी अजीब सी अफसोसनाक मुसकान लिए महिका को देखा और इतने में अच्युत ने डाक्टर केशव से कहा, “कितने रुपए दिए गए डाक्टर साहब?”

50 हजार रुपए देने की बात थी. अभी तक 25 हजार रुपए दिए गए.”

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“किस एवज में अंकल?” चौंकी महिका. एक तरह से कहा जाए तो डर और सतर्कता ने उस के चेहरे पर जर्द मातम फैला दिया था, जैसे प्रेमपत्र लिखे जाने के लिए निकाले गए सफेद चमचमाते कागज पर अचानक स्याही गिर गई हो.

“अच्युत, आप को कोई ऐसी दवा या ड्रग देने की पेशकश की गई थी जिस से आप कम सोचसमझ सकें और किसी के निर्देश अनुसार काम करने में ही अपनी भलाई समझें,” डाक्टर ने कहा.

“किस ने किया यह डाक्टर केशव?” अच्युत धीमे मगर गहरे स्वर में पूछ रहे थे.

महिका जमीन की ओर देखती बैठी थी. उस ने डाक्टर केशव को एकबारगी इस तरह देखा जैसे कुछ अनुरोध करना चाहती हो.

डाक्टर केशव अनदेखा करते बोले, “महिका जी मेरे घर आई थीं, उन्हीं की ऐसी इच्छा थी.”

अब सारी आंखें महिका की तरफ थीं.

अचानक महिका ने अच्युत पर निशाना साधा- “अगर मेरे साथ जिंदगी में आगे बढ़ने की गुंजाइश ही नहीं थी तो मुझे अपने साथ दुबई क्यों ले गए थे?”

“अंकल, आप ने वे रुपए मुझे लौटा दिए और सारी बातें बताईं. लेकिन क्या आप ने महिका को यह बताया कि आप मेरे पापा के दोस्त हैं और हमारे पारिवारिक शुभचिंतक? आप ने मुझे कोई दिमाग की दवा नहीं दी, बल्कि विटामिन की गोलियां दीं.”

“बेटा, उन्हें ये सब बताना मैं ने जरूरी नहीं समझा. लालच के मारे से क्या ही बात करता.”

“अच्युत जी, आप मुझे दुबई ले जा कर खुद ही मेरे लालच में फंसे. मेरे पास हम दोनों के उन अंतरंग पलों के वीडियो और तसवीरें हैं जो आधीरात में आप के बहकने की कहानी कहते हैं. ये लीजिए मन भर कर देखिए और दिखाइए. मैं जानती थी, मेरी चाहतों को लालच का नाम दे कर मेरी तौहीन की जाएगी.

“सारे प्रमाण मैं ने इन्हीं दिनों के लिए रखे थे. आप मेरे इतने करीब आ कर मुझे धोखा नहीं दे सकते. और दर्शित को न्योता दे कर क्यों बुलाया यहां? आप के पैसे इन्होंने लिए हैं, मैं ने नहीं. और डाक्टर साहब, आप के पास क्या प्रमाण है कि आप को दवा के लिए रुपए दिए मैं ने?”

अच्युत कुछ कहता, अफ़रोजा बोल पड़ी- “बहुत हुआ महिका जी, डाक्टर केशव के घर जब आप गई थीं और डील कर रही थीं, तब पास ही लगे कमरे में मैं मौजूद हो कर आप की सारी बातें रिकौर्ड कर रही थी. आप भी सुन लीजिए. सर ने मुझे इसी काम के लिए बुलाया था जब आप ने सर से फोन पर बात की थी. और जहां तक अच्युत का आप को ले कर लालच की बात है, जो वीडियो आप दिखा रही हैं उसे आप ने अच्युत को ड्रग दे कर बेहोशी में लिया है. यह भी जानिए कि आप जब दुबई जाने की जिद कर रही थीं, तो अच्युत ने सोचा कि आप को शायद विदेश घूमने का यह मौका गंवाना बहुत मायूस कर देगा. आप के मुंबई आ कर संघर्ष करने की घटनाओं से अच्युत वाकिफ थे, इसलिए आप को साथ ले गए. अच्युत ने मुझ से बाद में मेरी राय भी मांगी थी और मेरे कहने पर ही आप का टिकट बनवाया था. मुझे अच्युत पर पूरा भरोसा है. यों ही दूरियों के बावजूद सालों से हमारा रिश्ता पुख्ता नहीं है.”

“आप कैसे कह सकती हैं कि मैं ने उन्हें कुछ खिलापिला कर तसवीरें लीं?”

“क्योंकि मैं ने इन्हें बताया है, महिका. मेरे पास उस समय की सारी टैस्ट रिपोर्ट हैं. और तुम ने कहां से कौन सी दिमाग को कमजोर करने वाली ड्रग ली, इस के भी तथ्य हैं. देखोगी? या पुलिस से मांग कर देखोगी? कहो, क्या चाहती हो? “अच्युत ने सख्त लहजे में कहा तो महिका कमजोर पड़ गई.”

“कुछ नहीं, मैं यहां से जाना चाहती हूं.”

“दर्शित, तुम चाहो तो महिका से शादी कर सकते हो क्योंकि महिका को ले कर मेरा ऐसा कोई भी इरादा नहीं है. हालांकि महिका के चयन की स्वतंत्रता पर मुझे कुछ भी नहीं कहना चाहिए क्योंकि रिश्ते में आना अकेले की बात नहीं होती, लेकिन इन्होंने मेरे चयन की स्वतंत्रता का भी हनन किया है. अपने स्वार्थ के लिए मुझे मोहरा बनाया. यह जानना महिका के लिए दिलचस्प होगा कि अफरोजा के साथ मेरा प्यार लगभग 10 सालों का है, जब हम साथ कालेज में पढ़ते थे. अफरोजा के घर में तंगी थी, इसलिए अब तक वह नौकरी कर के घर संभाल रही थी. कभी मुझ से मदद लेने की गुंजाइश नहीं रखी. जरूरी नहीं होता कि आप के विकास की प्रक्रिया हमेशा आप के मन के अनुसार ही रही हो. आप का अच्छा होना आप का परिचय है और आप का परिचय दूसरों को प्रभावित करता है, आप का व्यक्तिगत इतिहास नहीं.

“अब उस के छोटे भाई की नौकरी लग गई है तो… क्यों रोज़, अब तो मेरे पास आ जाओगी न हमेशा के लिए?” अच्युत बड़ी गहरी बातें बोल गया था.

महिका ने देखा, अफ़रोजा के गोरे गाल रक्तिम गुलाब से खिल गए थे. आंखों में शरारती मुसकान के साथ बड़ी सी हामी.

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दर्शित ने तुरंत कहा, “दोस्त, स्वीकार कर लेना भले ही आसान नहीं, लेकिन स्थिति को स्वीकार कर लेने के बाद मुश्किलें जरूर आसान हो जाती हैं. मैं महिका के साथ जिंदगी बिताने की बात तो अब सोच भी नहीं सकता. इस धक्के को अब मैं ने स्वीकार लिया है. हां, जिस घर में हम दोनों हैं वहां से महिका के कहीं और जाने तक उसे मोहलत दे दूंगा, तब तक मैं ड्राइंगरूम में रह लूंगा और खाने का इंतजाम हम दोनों अलग कर लेंगे. अब उम्मीद है, महिका जल्द उस फ्लैट को छोड़ देगी. अच्युत के रुपए मैं ने उस अकाउंट से निकाल कर महिका को दे दिए थे, इस के प्रमाण, शुक्र है, मैं ने रख लिए थे. मैं अब उस अकाउंट से निकल जाऊंगा, अच्युत संभाल लेना.”

“महिका तुम रुपए कब लौटाओगी? मेरी फर्म में अब तुम्हारी जगह तो होगी नहीं. हां, इतना जरूर कर सकता हूं कि तुम्हें कानूनी फेर में न डालूं, बस, स्टैंपपेपर पर तुम जबानबंदी कर दो कि तुम मेरे रुपए किसी एक तय तारीख तक लौटा दोगी. बोलो, मंजूर है?” अच्युत सीधी बात पर आ गए थे.

“मुझे 2 साल चाहिए, मुझे एक नौकरी की तलाश होगी,” महिका ने अपनी झेंप को छिपा लिया था.

“हम एक कानूनी डील करेंगे, तुम 2 साल भले ही लो, लेकिन तय यह भी होगा कि मेरे रुपए तुम्हें तय तारीख तक लौटाने होंगे, वरना मैं कानूनी कार्रवाई करूंगा, समय तुम 2 साल कहो या 3 साल, मैं दूंगा.”

“शुक्रिया, पुरुषों के लिए मेरे अनुभव बड़े दुखद थे. आज दर्शित और अच्युत के साथ कुछ सालों के अनुभव ने मुझे अपनी धारणाओं को फिर से नई फुहार में धोने की इच्छा जगाई है. अफ़रोजा खूब खुश रहना और दर्शित, मैं तुम्हारे योग्य नहीं हूं, मगर जिंदगी आगे चल कर आप को खूब खुशी दे, दुआ कर के जा रही हूं. मैं अपना सामान ले कर अभी निकल जाऊंगी दर्शित, एक गर्ल्स होस्टल पहले देखा था, वहीं शिफ्ट हो रही हूं. अच्युत जी, गलतियों के लिए मैं ने तो कोई हाशिया छोड़ा नहीं था, आप ने सुधारने के लिए दिया.

“जो भी कहूं, कम है, लेकिन आप को पाने की चाह सिर्फ पैसे के लिए ही नहीं थी, इतना विश्वास कर लेना.” यह कह कर महिका उठ कर खड़ी हो गई.

इस लड़की के लिए किसी के मन में कोई चाह न थी, फिर भी उस के जाते ही जैसे सब निस्तब्ध हो गए.

दर्शित की आंखों के कोर में आंसुओं की 2 बूंदें आ कर ठहर गईं एक हाशिए पर हमेशा रह जाने के लिए.

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Serial Story: मार्जिन औफ एरर (भाग-2)

पहली बार अच्युत और दर्शित एकदूसरे से मिल रहे थे. महिका एक बड़े बिज़नैस फर्म का हिस्सा है, इतना तो जानता था दर्शित, लेकिन उस के सामने इतना अनिंद्य सुंदर युवक खड़ा होगा, जतन से बारबार दिल को घिस कर छुड़ाया गया. उस का डर उस के इतना सामने होगा, उसे अंदेशा न था.

साल में 10 लाख रुपए से ऊपर कमाने वाली महिका को कभी पैसे की नजर से आंका नहीं उस ने, मगर आज अच्युत के आगे महिका उस की पहुंच के बाहर के छीके में लगी मक्खन महसूस हो रही है.

आज से 4 वर्षों पहले जब दोनों रहने को एक अदद किराए का फ्लैट ढूंढ़ रहे थे तब महिका दर्शित से टकराई थी और उसी की पहल पर दोनों किराए के इस फ्लैट में साझा हिसाब से रहने लगे थे. तब महिका किसी छोटे से वर्कशौप में रिसैप्शनिस्ट थी और छिटपुट मौडलिंग करती थी. अव्वल तो वह महीने के 15 हजार रुपए किराए दे ही नहीं सकती थी, दूसरे, जितना वह पैसे दे सकती थी, दर्शित ने उस की भी कभी आशा नहीं की. उस ने सिर्फ मांगा था भरोसा और प्यार. और हां, दर्शित को महिका से प्यार होता जा रहा था.

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मिलनसार स्वभाव के हैंडसम अच्युत को देख दर्शित झिझक रहा था. सरसरी निगाह उस ने अच्युत की उंगलियों पर चलाई. सोने की अंगूठी जिसे वह ढूंढ़ रहा था, वास्तव में वह तो उस की उन उंगलियों में उस अंगूठी की अनुपस्थिति को ढूंढ़ रहा था, जिसे महिका ने 5 दिनों पहले खरीदा था. उसे अच्युत की उंगलियां सोनेहीरे की अंगूठियों से लदीफंदी मिलीं, जिन में महिका की अंगूठी भी रही हो. लेकिन अब दर्शित को खुशफहमी में रहने की कला आ गई थी शायद डार्विन के सर्वाइवल सिद्धांत के अनुरूप. उस ने अंगूठी वाली बात दिल से निकाल देने में ही अपनी भलाई समझी.

अच्युत से बातचीत में यह तय हुआ कि उन की अनुपस्थिति में अकाउंट का फाइनल और रुपयों को बैंक में जमा करवा देने का काम दर्शित का होगा.

रात को बैडरूम में आसपास सोते हुए दर्शित ने महिका से कहा, “मही, हम 4 साल से लिवइन में हैं, अब मुझे डर सताने लगा है. क्या दुबई जाने से पहले तुम मुझ से शादी कर लोगी?”

“क्यों, डर कैसा?” महिका ने लापरवाही से कहा.

“तुम मेरे पास वापस तो आओगी न इसी तरह, जैसे अभी हो?”

“अरे यार, तुम बड़े झक्की और सेंटी हो. इतना क्यों सोचते हो. सब ठीक है. मुझे सोने दो, सुबह काफी सारी तैयारी करनी है. तुम भी अपना काम समझ लेना.”

दर्शित को उस का जवाब नहीं मिला, वह शांति और निश्चितता नहीं मिली जो एक समर्पित प्रेमी अपनी प्रेमिका से चाह सकता है.

महिका पीछे मुड़ कर सो गई है.

जिंदगी के छूटे क़दमों को भी तो वह पीछे छोड़ आगे बढ़ आई है आज.

एक किशोरी जिसे पिता और भाई के कड़े अनुचित अनुशासन में लंबा समय गुजारना पड़ा, जिस की मां का आंचल 10वीं पास करते हुए छूट गया और मां की किडनी की बीमारी से मृत्यु के बाद पिता से हमेशा यह सुनना पड़ता रहा कि ‘बेटी को फूलकुमारी बना कर छोड़ गई इस की मां, यह नहीं कि औरत जन्म लेने का सही कायदा सिखा जाती. बहुत लाड़ दिया बेटी को. अब बातबात पर टेसुएं बहाएगी नकारा.’

सरल नहीं था आज की इस महिका को अपने अंदर तैयार करना. अब इस बदलाव के साथ वह खुद से बिलकुल भी उम्मीद नहीं करती कि उसे पुरुष समाज के प्रति स्नेहिल समर्पित होना चाहिए. पिता और बड़े भाई के प्रकोप से बचने के लिए फिर भी कुछ तो मां का स्नेहिल स्पर्श था, लेकिन मां के जाने के बाद जैसे महिका अनाथ ही हो गई थी. पिता के वाक्यवाण हों या भाई के थप्पड़, या फिर घुटनभरी पराधीनता, सारी लड़ाई तो उस के अकेले की ही थी.

जैसेतैसे स्नातक कर उस के लिए मां द्वारा रखी गई गहने की पोटली को लिए वह चुपके से मुंबई की ट्रेन में चढ़ चुकी थी. खुद का परिचय छिपा कर कैसेकैसे पापड़ बेले उस ने कि आज वह बड़ी बिज़नैस फर्म में पर्सनल असिस्टैंट है और आगे सुनहरा अवसर उस के द्वार पर खड़ा है.

कोई अर्थ नहीं दर्शित के इन प्रलापों का. उसे जो पाना है, पा कर रहेगी. पुरुषों की भावना भी भला कभी सच्ची हुई है, उस ने तो नहीं जाना है. यह सब सोचती है महिका.

दुबई के एक शानदार होटल के सुइट में अच्युत शूटिंग के बाद स्पा के लिए तैयार थे कि महिका अंदर आई, . “गुड इवनिंग सर.”

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अच्युत चाय तैयार करने की तयारी में थे, बोले, “चाय लोगी?”

“लाइए सर, मैं बनाती हूं.”

अच्युत के पास सोफे पर बैठते हुए महिका के हाथ के स्पर्श ने अच्युत को अवाक नहीं किया. वे महीनों से महिका का मन पढ़ रहे थे. हां, खुद कुछ झिझक में पड़ गए. बाथिंगगाउन में उन के अधखुले बदन के बहुत करीब थी फ्लर्ट करने को उत्सुक महिका.

चाय खत्म करते ही अच्युत उठ खड़े हुए और बड़ी सी खिड़की के सामने खड़े हो कर दुबई का नजारा देखते हुए कहा, “दर्शित की ओर से कोई ख़बर?”

महिका ने बहाने से फिर अच्युत के सीने से लग कर खड़ी होते हुए जवाब दिया, “वहां की डिटेल मैं ने मेल कर दी है आप को. सर, फिर से आप को शुक्रिया कहना था, आप ने मुझे दुबई आने का, नई दुनिया देखने का मौका दिया.’

अच्युत शांति से पीछे हटते हुए बोले, “कोई बात नहीं. एंजौय द मूड एंड अपौरचुनिटी. मैं आता हूं स्पा से. तुम अभी अपने कमरे में जा सकती हो.”

तीनचार दिन सिनेमा शूटिंग की व्यस्तता रही. इस दौरान महिका को अच्युत के आसपास जाने की गुंजाइश नहीं रही.

4 दिनों बाद रात को 9 बजे अच्युत जब अपने सुइट में डिनर कर रहे थे, महिका हाथ में 2 गिलास बादाम की लस्सी के साथ पहुंची, काफी जोर दे कर कहा, “सर, कितने दिनों बाद आप से मिल रही हूं. मुझे पता है आप को बादाम की लस्सी पसंद है, मेरे लिए ले लीजिए.”

अच्युत की खास इच्छा तो नहीं थी, फिर भी महिका को निराश न करते हुए उन्होंने पी लिया.

खाना ख़त्म करते तक अच्युत कुछ थकान महसूस कर रहे थे.

महिका से कहा, “शायद तीनचार दिन के लगातार शूटिंग के बाद ज्यादा थकान महसूस कर रहा हूं, सोना चाहता हूं, महिका अब तुम जाओ.”

महिका लौटने के बजाय उन के बिस्तर पर आ कर उनींदे अच्युत को सोने में मदद करने लगी.

इस के बाद अच्युत को होश नहीं रहा कि महिका कब तक उन के साथ रुकी.

सुबह अच्युत को सिर भारी सा लगा. आंखें खुल नहीं रही थीं, कमज़ोरी के साथ उबासी सा छाया रहा मूड पर.

अच्युत ने शूटिंग यूनिट को फोन कर डाक्टर बुलवाया और सारे जरूरी टैस्ट करवाए.

महिका ने अच्युत की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी. बिजनैस की जानकारी से ले कर शूटिंग में साथ, निजी देखभाल से ले कर खुश रखने की कोशिश. बस, उस की एक जिद फिर अच्युत ने पूरी नहीं होने दी कि चाय या कौफी बना कर वह अच्युत को पिलाए.

वापस मुंबई आ कर फिर से नाविक ने अपनी पुरानी किस्ती संभाली, यानी, अच्युत अपने कामों पर गौर फरमाने लगे.

अकाउंट का मसला देख अच्युत के पैरों के नीचे से जमीन लगभग खिसक ही गई. लाखों रुपए महिका और अच्युत के बिजनैस फर्म के जौइंट अकाउंट में इन दिनों डाले गए थे.

महिका ने यह नया अकाउंट खुलवाया था और दर्शित को अथौरिटी दे रखी थी. यह सब कब और क्यों?

अच्युत को अब तक लगता था कि महिका सिर्फ उसे पाने की होड़ में है. अब रुपयों का यह खेल…

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महिका से अच्युत ने सीधे पूछा. महिका आश्चर्य में पड़ गई. बाध्य हो कर अच्युत ने दर्शित को बुलवा भेजा. हफ्ता बीत गया और जब दर्शित नहीं आया तो अच्युत परेशान होने लगे. इस बीच अचानक बैंक से महिका का नाम कट कर सिर्फ दर्शित का नाम रह गया. इस अकाउंट में 12 लाख जमा किए गए थे अच्युत के बिज़नैस की कमाई से. दोचार दिन में वे रुपए गायब होने लगे, यानी निकाल लिए गए.

अच्युत की मानसिक परेशानी की वजह ये 12 लाख रुपए नहीं थे. फिर भी वे परेशान थे. अब महिका के लिए उलझने की बारी थी. जब 12 लाख रुपए के जाने का गम नहीं, तो परेशान क्यों हैं अच्युत. महिका देख रही थी कि अच्युत दिन में कई बार अपने काम की टेबल पर सिर रख कर सो जाया करते हैं. और पूछने पर, रातभर नींद न आने की बात कहते हैं.

एक दिन अच्युत महिका के साथ मनोरोग विशेषज्ञ डाक्टर केशव के पास पहुंचे. महिका ने अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाते हुए अच्युत की परिस्थिति के प्रति अपनी संवेदनशीलता दिखाई. अच्युत ने कहा, “डाक्टर साहब, महिका ही अब से मेरे बारे में बात कर लेगी, मेरी दवा आदि आप इन्हें ही दे देना.”

महिका अब अच्युत को बिना नागा के दवा खिला जाती.

अच्युत को थोड़ा सुस्त, मायूस और उनींदी देखती महिका तो उस के सिर पर हाथ फिराती, उसे अपने करीब लाने की कोशिश करती. थोड़ा अवाक होती कि अच्युत हमेशा उस से अलग हो कर किसी काम के लिए कैसे उठ कर चले जाते हैं जब उसे लगता कि अब वह अच्युत को कमजोर कर सकेगी.

आगे पढ़ें- एक दिन अचानक किसी से कुछ…

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Serial Story: मार्जिन औफ एरर (भाग-1)

जिंदगी के गणित में हम कितनी ही सफल तकनीकें अपना लें, अनिश्चित का एक हाशिया छोड़ना ही पड़ता है. भूलों की पराबैंगनी किरणों के लिए एक स्थान, जो हमारी जिंदगी का अमिट हिस्सा हो, रहता है, मार्जिन एरर का.

चाहे महिका हो या अच्युत या फिर दर्शित ही, इस मार्जिन औफ एरर की गुंजाइश तो सब की जिंदगी में थी. हां, बेहतर किस ने यह बात समझी, यह बड़ी बात थी. महिका ने समझी यह बात? या फिर दर्शित मान पाया इस सच को? या कि अच्युत ने ही इस हाशिए को हाशिए पर छोड़, नया रास्ता तलाश लिया?

छोटे से फ्लैट के हवादार सुसज्जित कमरे में 12 बजे की काली रात के समय आरामदायक बिस्तर पर दर्शित और महिका आसपास सो रहे थे. 25 साल की महिका रातरानी सी महकती अपने पारदर्शी गुलाबी नाइटगाउन में निश्चिंत नींद में है.

32 साल का दर्शित नींद में भी उस की उपस्थिति को महसूस करता हुआ अनजाने ही अपने हाथों से महिका को जकड़ लेता है. तृप्ति और खुशी के स्पंदन से दर्शित की नींद कुछ खुल सी जाती है. महिका को अपने पास गहरी नींद सोता देख वह आश्वस्त हो फिर से नींद में डूब जाता है.

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नींद कितनी मुश्किल और अनमोल है, यह दर्शित कम बेहतर नहीं समझता. एक सुकूनभरी नींद के उचट जाने से ही तो उम्मीद की तलाश में वह इस रतजगे शहर मुंबई भागा आया था.

वरना, सिलीगुड़ी का वह छोटा सा मगर अच्छा खासा चलता होटल क्योंकर रातोंरात उस के सबकुछ छिन जाने का सबब बन जाता.

आह, उस नेपाली लड़की को याद कर उस का दिल मरोड़ सा जाता है. विश्वास और प्यार, संवेदना और भरोसा कितनी बेदाम चीजें हैं कि लोगों को पल में उन्हें ठोकर मारने में तकलीफ नहीं होती.

जाने क्यों दर्शित की नींद अपना सुकून खो चुकी है. जाने क्यों खोई हुई आश्वस्ति जैसे लौटी ही न हो, लेकिन लौटने के लिए व्याकुल हो.

शायद कुछ घंटे वह सो गया था. इस बार फिर उस के हाथ महिका की ओर बढ़े और वह चौंक कर उठ बैठा. बगल में नहीं थी महिका. फिर से उठ कर चली गई थी उस की प्रेयसी, उस की लिवइन पार्टनर महिका. आजकल अकसर ही आधी रात के बाद दर्शित को बिना बताए वह बिस्तर से उठ कर चली जाती है.

दर्शित बहुत घबराता है. वह उठ कर महिका को देखने जाता है.

ऐसे ही किसी सुबह दर्शित को निशिता भी तो नहीं मिली थी घर में. हमेशा के लिए चली गई थी वह.

दर्शित घबरा कर महिका को पूरे घर में ढूंढता है. वह उसे ड्राइंग या बालकनी में बैठ फोन में कुछ करती दिखती है. दर्शित को देखते ही वह चिढ़ जाती है.

दर्शित को डर लगता है- फिर से वही सब दोहराया न जाए जिसे वह अतीत में विसर्जित कर आया है.

“क्या कर रही हो महिका? रोज आधी रात को बिस्तर से उठ क्यों आती हो?”

“औफिस का काम करती हूं, तुम क्यों पीछे आए?”

“आधी रात को ऐसा क्या काम पड़ जाता…” दर्शित ने झिझक तोड़ते हुए पूछना चाहा तो महिका ने कहा, “देखो दर्शित, मुझे इतनी पाबंदी पसंद नहीं. आती हूं तो आती हूं, तुम्हें जगाती तो नहीं हूं नींद से?”

दर्शित चुप हो गया लेकिन उस के मन के बियाबां में कैसा बवाल मचा था, यह वही जानता था.

बात बढ़ाना नहीं चाहता था दर्शित. दरअसल वह शांतिप्रिय है, सीधा और प्रेमी स्वभाव का है. लेकिन साथ ही, उस की श्रवणशक्ति तेज थी. वह संभावित खतरा सूंघ सकता था. इसी वजह से वह बेचैन था. पुराने अनुभवों के दर्द उसे डराते हैं.

महिका और दर्शित का रात का खाना दर्शित के खुद के होटल से आ जाता है. दोपहर जो जहां काम पर, वह वही लंच करता है. बची सुबह, तो दोनों मिल कर कुछ बना लेते हैं. आज महिका दर्शित पर कोई काम लादे बिना, खुद ही रसोई में घुस गई थी.

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जिस के दिल में कुछ छिपाने वाली बात हो वह कभी भी सवाल वाली आंखों के आगे नहीं रहना चाहता. दर्शित यह समझता था, इसलिए वह महिका के व्यवहार पर और भी चिंतित हुआ.

दर्शित का यहां मुंबई के एक्सप्रैस हाईवे के पास रैस्टोरैंट है. कुछ कर्मचारी काम करते है. लेकिन दर्शित स्वयं भी मेहनत करने में विश्वास करता है.

हां, वह महत्त्वाकांक्षी इतना भी नहीं कि अपनी सुखशांति दांव पर लगा दे. महिका अकसर उस से बहस छेड़ देती है और किसी तरह वह बहसबाजी से बच निकलता है.

महिका के औफिस निकल जाने के बाद ही वह अपने होटल के लिए निकलता है. आज भी इसी तरह निकलते वक़्त ड्राइंगरूम के दराज वाले साइड टेबल से चाबी उठाते हुए उस की नजर एक बिल पर गई.

एक सोने की अंगूठी का बिल? क्यों?

क्या महिका उसे गिफ्ट देना चाहती है? अभी महीनाभर पहले ही तो उस के जन्मदिन पर उसे शर्ट दिया था.

वह बहुत खुश था, कीमत कोई माने नहीं रखती अगर भावनाएं सच्ची हों. दर्शित ऐसा ही तो है.

मगर अब यह अंगूठी? 5 दिन हो गए उसे अंगूठी खरीदे हुए, उस ने कुछ बताया नहीं.

दर्शित ने थकहार कर दिमाग का कपाट बंद किया और होटल के लिए निकल गया.

दक्षिण मुंबई के मालाबार हिल्स के विशाल कौंप्लैक्स की लिफ्ट में चढ़ते हुए महिका ने अपने फोन का सैल्फी कैमरा औन किया. खुद का चेहरा चैक किया. ग्लैमरस थी वह. और लग भी रही थी. पैंसिलस्कर्ट को थोड़ा सही कर वह लिफ्ट से निकल आई. फोन मैचिंग वैनिटी में रखा. पांचछह फुट हाइट थी उस की. स्टाइल और एटिट्यूड के लिए वह 2 इंच की पैंसिलहिल जरूर पहनती है, खासकर, अच्युत सर के औफिस आते समय.

अच्युत – उस के सपनों के महल की नींव जैसा… विरासत में मिली कंपनी को अच्युत ने अपने बलबूते पर आयातनिर्यात कंपनी में तबदील किया, जिस की आज सारे विश्व में चेन कंपनियां थीं. बड़ी बात यह भी थी कि वह इस कंपनी और अपनी पुश्तैनी संपत्ति का इकलौता वारिस है. हजारों में एक खूबसूरत, स्मार्ट और व्यवहारकुशल.

कल्याण वेस्ट में 15 हजार रुपए महीने के किराए के घर से मालाबार हिल्स के अच्युत सर के कंपनी तक के रास्ते भले ही महिका के लिए कठिन रहे हों, जिंदगी ने उसे खूब संघर्ष दिखाया हो, पर अब जरूर उस के सपने पूरे होंगे.

अगर ऐसा होना न होता तो अच्युत सर सभी विश्वस्त लोगों में से उसे ही अपनी कंपनी के रिसैप्शनिस्ट से पर्सनल असिस्टैंट क्यों बनाते. महिका का खूबसूरत, सुडौल और स्मार्ट शरीर के साथ चालाक दिमाग शायद उस के लिए उस के तमाम सपने पूरे करने के औजार हैं.

और तो और, अब यह नया मौका भी. महिका को पूरा विश्वास हो चला है कि उस के सपने समय के रश्मिरथ पर सवार उस की ओर ही बढ़े चले आ रहे हैं.

विशाल केबिन में शीशे की टेबल के सामने कुरसी की बगल में खड़े हो कर 30 वर्ष के स्मार्ट, खूबसूरत, लंबे अच्युत कोई फाइल पढ़ रहे थे. महिका दरवाजे पर खड़ी हो कर अच्युत से कहती है- “सर, जन्मदिन मुबारक हो.”

“आओ, आओ महिका, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था. मैं कुछ दिन नहीं रहूंगा, ‘नौसिखिए’ फिल्म की शूटिंग के लिए दुबई जा रहा हूं. वहां से यूरोप ट्रिप है बिज़नैस के सिलसिले में. मेरे पीछे तुम्हें मैं कुछ विशेष ड्यूटी दे जाऊंगा.”

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महिका के सुर संगम का सारा ताल झन से टूट गया. उस ने चेहरे के भाव को अभिनय कौशल से छिपा कर कहा, “सर, “मैं तो आप की निजी असिस्टैंट हूं. मेरा तो आप के साथ होना बहुत जरूरी होगा. आप की शूटिंग हो या बिजनैस, आप को डिस्टर्ब हुए बिना अपना काम पूरा करना है. कोई तो आप के साथ होना चाहिए जो आप की व्यस्तता के पलों में आप को अन्य उलझनों से दूर रखे. फिर शूटिंग का यह आप का पहला अनुभव है, शायद. कोई मेरे जैसा अपना साथ रहे…”

महिका साहस और स्मार्टनैस के जरिए अच्युत के कुछ करीब आ गई थी.

अच्युत महसूस करता है उस की सुवासित देह की गंध. वासना में लिपटी महिका की नजर. स्वर में तृष्णा की खनक. 25 साल के यौवन का मादक ज्वार.

तुरंत ही महिका बात बदलते हुए मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश करती कहती है, “सर, यह सोने की अंगूठी मैं ने आप की दी हुई तनख्वाह से खरीदी है. सब तो आप का ही है. आप इसे ना न कहना. यह मेरी भावना है. अगर आप ने नहीं लिया तो मैं बहुत दुखी हो जाऊंगी, सर.”

महिका अंगूठी उस के दाहिने हाथ की अनामिका उंगली में पहना देती है.

अच्युत उसे धन्यवाद देते हुए अंगूठी की प्रशंसा करते हैं और उसे अपनी ओर से एक कीमती पेन गिफ्ट करते हैं.

महिका फिर उसी सवाल पर आ गई. महिका को सामने की कुरसी पर बैठने का इशारा कर अच्युत अपनी कुरसी पर बैठ गए.

“लेकिन इधर काम कई सैक्टर में बढ़ गया है. अकाउंट्स में अभी नए लोग आए हैं. भरोसे के लिए कोई तो चाहिए. इस बार फिल्म वालों की मुझ पर नजर पड़ गई, तो मना नहीं कर पाया उन्हें.”

“सर, आप को सुझाव दूं? सर, मेरा एक बहुत अच्छा दोस्त है, बहुत ईमानदार, सीधा और विश्वासी. अकाउंट्स में ऊंची डिग्री है. अभी वह होटल व्यवसाय में है. हम जब तक यहां न रहें, वह रोज दोतीन घंटे के लिए आ कर अकाउंट के मामले देख सकता है. उस से यहां की सारी खबर भी हमें मिल जाएगी और बात हम तीनों के बीच ही रहेगी.”

“ठीक है, तुम्हारी इतनी ही इच्छा है, तो चलो.”

“सर, सो स्वीट औफ यूं. लड़के को कल ले आती हूं.”

आगे पढ़ें- पहली बार अच्युत और दर्शित…

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Serial Story: मार्जिन औफ एरर (भाग-3)

इधर दर्शित का मसला वाकई बहुत पेचीदा लग रहा था अच्युत को. देखनेभालने में इतना सीधा. ऐसा कैसे कर सकता है कि महिका को छोड़ कर रुपए ले कर भाग जाए. क्या महिका ने उसे समझने में भूल की? महिका की मानें तो ऐसा ही है.

एक दिन अचानक किसी से कुछ कहे बिना अच्युत दर्शित के होटल पहुंच गए. अच्युत को उम्मीद ही नहीं थी कि दर्शित होटल में मिलेगा भी.

दर्शित उन्हें यों अचानक देख कर कुछ अचंभित, अप्रत्याशित सा महसूस करता उन की ओर बढ़ आया और अच्युत को मजबूरन अपने संग अपने छोटे से केबिन में ले गया.

अच्युत मन ही मन तैयार हो कर ही आए थे, भले ही उसे दर्शित के यहां होने की उम्मीद न थी.

“दर्शित, मै जानता हूं, तुम निर्दोष हो. मुझे मेरे 12 लाख रुपयों की फिक्र जितनी है उस से ज्यादा मुझे तुम्हारी फिक्र है. मैं असली अपराधी को पहचानता हूं, तुम मुझे, बस, इतना बता दो कि तुम इतना भी क्यों डर रहे हो कि सामने वाले की सारी बातें तुम्हें माननी पड़ीं? तुम बताओगे दर्शित, वरना मैं पुलिस को बुलाऊंगा.”

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दर्शित अब तक सफेद पड़ चुका था, कहा, “महिका की शर्तों की वजह से. मैं उसे हमेशा के लिए खोना नहीं चाहता था, एक दर्द है जो दोबारा महसूस करने की मुझ में हिम्मत नहीं थी.”

“दर्शित, मैं जब तुम से मिला था, इतना जरूर समझा था कि आदमी तुम खरे हो. मैं बिजनैसमैन हूं, इंसान को समझे बिना काम नहीं चलता. कुछ तो दिक्कत है तुम्हारे साथ. क्या तुम महिका के साथ सीरियस रिलेशन में हो? महिका को देख कर वैसे कभी लगा नहीं. एक दोस्त समझो मुझे और खुद को मेरे सामने खोल दो. मैं जो कुछ समझ रहा हूं उस से दुविधा बढ़ रही है. अपने बारे में बताओ, तो यह दुविधा मिटे,” अच्युत करुणा से भरा दर्शित की आंखों में सीधा देखते हुए कह रहा था. विश्वास की एक नाजुक मगर स्पष्ट रोशनी दर्शित की आंखों तक पहुंच रही थी.

“अच्युत जी,”

“सिर्फ अच्युत कहो, दर्शित.”

“अच्युत, दरअसल, मेरी जिंदगी के पिछले पन्ने काफी कटेफटे हैं, इसलिए अभी के इन अधलिखे पन्नों की हिफाजत की बड़ी फिक्र लगी रहती है.”

“पिछली जिंदगी के ऐसे क्या गम हैं?” अच्युत ने सादगी से पूछा.

“आप सुनेंगे?”

“जरूर दोस्त, मैं जब तक आप को पूरी तरह नहीं समझूंगा, अभी की इन घटनाओं का हिसाब कहां मिला पाऊंगा?”

दर्शित की आंखों में सिलीगुड़ी का उस का छोटा होटल था. पिता के इस सामान्य से ढाबेनुमा होटल को सुंदर सा लौज सहित रैस्टोरैंट बनवा लिया था. अच्छा चलता था. दार्जिलिंग, सिक्किम जाने वाले देशीविदेशी पर्यटक एकदो दिन रुक कर आगे जाते, तो सस्ता, साफ व अच्छे होटल के लिए दर्शित के ‘वातायन’ होटल को चुनते. ग्राहकों के प्रति दर्शित का व्यवहार तो घर में आए किसी सम्मानित अतिथि सा होता.

दोमंजिला लौज़ और दो वक़्त खाने की व्यवस्था. 5 कर्मचारी थे. और ज्यादा से ज्यादा दर्शित ही दौड़भाग कर लेता.

ऐसे ही किसी एक व्यस्ततम दिन में जब वह ग्राहकों में उलझा था, एक 19-20 साल की नेपाली लड़की उस के पास आ खड़ी हुई. उस की पीठ पर स्कूलबैग जैसा एक बैग था, गोरा गोल चेहरा धूल और थकान से मटमैला हो रहा था. भूख जैसे आंखों में थकान की कालिमा सी पसरी थी.

दर्शित की ओर बिन कुछ कहे एकटक देखती रही थी कि जैसे दर्शित उस का कब का परिचित हो. और 28 साल का दर्शित भी तो. ग्राहकों की बात पर राजी हो कर उन्हें जल्द एक कर्मचारी लड़के के साथ कमरे की ओर भेज उस नेपाली लड़की के पास आ गया था.

टूटीफूटी हिंदी, बांग्ला और नेपाली उच्चारण में उस ने जो भी कहा, उस का मर्म यह था कि उस का नाम निशिता है. वह गरीब घर की पहली संतान है. पिता नहीं रहे, मां किसी तरह घरों में कई तरह के काम कर 3 बच्चों को पाल रही थी.

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ऐसे ही समय उस के गांव में मजदूर ढूंढने वाली गाड़ी से कुछ लोग आए. निशिता उन के साथ काम की तलाश में सिलीगुड़ी शहर आ गई. 2 दिनों में ही पता चला कि वह कमउम्र की लड़कियों के अश्लील वीडियो बना कर बेचने वाला गिरोह था .

निशिता वहां से भाग तो आई थी, लेकिन उस के काम की तलाश यों ही रह गई थी. अब एक काम के बिना गांव किस मुंह से लौटे. दूसरे, उसे दोपांच दिन यहां रुकने और खाने को मिल जाए, तो काम ढूंढ़ कर बिल चुका देगी.

सारी स्थितियां जान कर नर्मदिल दर्शित ने न केवल उस के रहनेखाने का प्रबंध किया बल्कि अपने सहयोगी के तौर पर उसे काम पर रख एक संतोषजनक तनख्वाह का भी इंतजाम कर दिया.

सालभर काम करते हुए दर्शित और निशिता इतने ही निकट आ गए कि अनाम से रिश्ते ने नाम तलाश लिए, उन्होंने विवाह कर लिया. किश्तों में अपने घर रुपए भी भेजती रही थी निशिता इन दिनों.

अभी छोटेछोटे नाजुक सपनों ने जागने से पहले अंगड़ाई ली ही थी कि एक सुबह दर्शित सो कर उठते ही सदमे में आ गया. सारा घर और होटल छान मारा, निशिता कहीं नहीं दिखी. बैडरूम की अलमारी देखने को वह दौड़ा गया. हां, वहां सारा खुलासा हो पड़ा था.

कुछ दर्शित की मां के गहने और होटल के 5 लाख रुपए जो आज बैंक में जमा करना था, नदारद थे. निशिता का फोन बंद था और हमेशा के लिए बंद ही रह गया.

टूटे दिल से लोगों के जोर देने पर जब पुलिस की तहकीकात शुरू करवाई गई तो तीनचार महीने बाद पता चला, वह अरब देश चली गई है. नेपाल के जिस किसी भी बौर्डर से वह आई थी, दर्शित के पूछने पर उस ने जो पता दिया था, वह सरासर झूठ था.

आह, वह लगाव, नेह और एकाकी जीवन में अचानक झूम कर आए मीठे बयार का इस तरह कुछ तहसनहस कर देने वाला तूफ़ान बन जाना दर्शित को अवसाद में ले गया.

सालभर की टूटफूट के बाद आखिर उस ने जीने की राह तलाशी और अपने पिता के होटल व घर को बेच मुंबई आ गया और यहां एक मध्यमस्तरीय होटल खरीदा.

अब जब सबकुछ ठीक था. वह महिका के लिए फिर उसी प्रेम और आकर्षण में गहरे डूब चुका था. इतना कि अब फिर से उसे वह खोने की हालत में नहीं था.

“महिका के प्रेम में इतने अंधे हो गए हो कि महिका तुम्हें उलझा कर स्वार्थ साध रही है और तुम न नहीं कह पा रहे हो, क्यों दर्शित? मुझ से कुछ भी छिपा नहीं है. कहो तो आगे मैं तुम्हारा दोस्त बन कर तुम्हें इस मुसीबत से निकाल सकता हूं.”

“डरता हूं, महिका रिश्ता समाप्त कर देगी.”

रिश्ता 2 लोगों के बीच होता है. महिका ने कभी तुम से रिश्ता समझा ही नहीं दर्शित. सच सुन सकोगे?”

“हां, अब यही ठीक है, सुनूंगा.”

“वह मेरे साथ क्यों गई थी विदेश? क्या तुम कुछ नहीं जानते?”

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दर्शित का चेहरा सफेद पड़ गया था, बोला, “डरता था सच से”

“डर तो तुम्हें और डराएगा. उस ने कोई कसर नहीं छोड़ी तुम्हें धोखा देने की. सच स्वीकार लोगे तो ज्यादा धक्के से बच जाओगे. यह तुम्हारे लिए जानना जरूरी होगा दर्शित कि उस ने मुझ से संबंध बनाने के लिए काफी होड़ लगाई, यहां तक कि… खैर, दर्शित, मुझे रुपए का हिसाब दो. यह सब क्या है?”

दर्शित कमजोर पड़ गया था, बोला, “उस ने ही सब किया. पहले आप की फर्म के साथ खुद के नाम से अकाउंट खोल मुझ से रुपए डलवाए. मेरा नाम उस में शामिल करवाया, बाद में आप पर जाहिर हो जाने पर मुझ से रुपए निकलवाए और अपना नाम बैंक अकाउंट से हटाया. मुझ से कहा कि रुपए निकाल कर उसे दे दूं और ऐसा प्रतीत करवाऊं कि रुपए मैं ने निकाले. यह उसी ने कहा था कि आप के बुलाने पर न जा कर आप का मेरे प्रति संदेह पुख्ता करूं.”

“तुम ने साथ दिया दर्शित. क्या गलत को गलत कहने की हिम्मत नहीं तुम में?”

“हिम्मत नहीं रही अच्युत. महिका के बिना बहुत अधूरा हो जाऊंगा. उस ने खुद को देने की यही शर्त रखी.”

“संभालो दर्शित खुद को. आईना नहीं अपनी आंखें साफ करो. चलता हूं. डरने की जरूरत नहीं. महिका को कुछ भी नहीं बता रहा हूं अभी.”

अच्युत और महिका साइकोथेरैपिस्ट डाक्टर केशव के क्लिनिक में थे. अच्युत ने महिका को साथ चलने को कहा था. उस ने उस से कहा कि वह अभी दवा के ज्यादा डोज की जरूरत महसूस कर रहा है. महिका ही यह मामला संभालती थी. वह तब अवाक हो गई जब डाक्टर केशव के क्लिनिक में दर्शित को देखा, सोचा, यह तो साथ ही रहता है उस के, बताया नहीं कि यहां आ रहा है. वैसे चारपांच दिनों से कटाकटा सा था उस से.

महिका को माहौल अजीब लग रहा था. डाक्टर केशव की असिस्टैंट अफरोजा दर्शित के साथ धीरेधीरे बात कर रही थी. डाक्टर केशव कुछ अजीब सी निगाहें लिए अच्युत के स्वागत में मुसकरा रहे थे.

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