Serial Story: अब अपने लिए – भाग 5

मेरी बुरी हालत देख मेरे ननद व ननदोई को बहुत दुख होता था. एक वे ही तो थे, जो मेरा दुख समझते थे. लेकिन उन्हें भी अर्णब ऐसे कड़वे बोल बोलते थे कि उन्होंने फिर यहां आना ही छोड़ दिया. हर इनसान को अपनी इज्जत प्यारी होती है.

पढ़ाई की डिगरी तो थी ही मेरे पास, अपनी पैरवी से मेरे ननदोई ने एक स्कूल में मेरी नौकरी लगवा दी. दोनों बच्चों का भी उन्होंने उसी स्कूल में एडमिशन करवा दिया, ताकि मुझे ज्यादा परेशानी न हो.

मैं जल्दीजल्दी घर के काम खत्म कर दोनों बच्चों को ले कर स्कूल चली जाती और 5 बजतेबजते घर आ जाती थी, फिर घर के बाकी काम संभालती, बच्चों को होमवर्क करवाती. रोज की मेरी यही दिनचर्या बन गई थी. कोई मतलब नहीं रखती मैं अर्णब से कि वह जो करे. लेकिन उसे कहां बरदाश्त हो पा रहा था मेरा खुश रहना, इसलिए वह कोई न कोई खुन्नस निकाल कर मुझ से लड़ता और जब मैं भी सामने से लड़ने लगती, क्योंकि मैं भी कितना बरदाश्त करती अब… तो जो भी हाथ में मिलता, उसे ही उठा कर मारने लगता मुझे. और मेरी सास तो थीं ही आग में घी का काम करने के लिए.

कृति तो अभी बच्ची थी, लेकिन बेटा जिगर हम दोनों को लड़तेझगड़ते देख टेंशन में रहने लगा था. पढ़ाई से भी उस का मन उचटने लगा था. वह गुमसुम सा चुपचाप अपने कमरे में बैठा रहता. ज्यादा कुछ पूछती तो रोने लगता या झुंझला पड़ता. वह अपने दोस्तों से भी दूर होने लगा था. हमारी लड़ाई का असर उस के दिमाग पर पड़ने लगा था अब. उस की मानसिक स्थिति बिगड़ते देख मैं तो कांप उठी अंदर से… और तभी मैं ने फैसला कर लिया कि अर्णब मुझे मार ही क्यों न डाले, पर मैं चुप रहूंगी सिर्फ अपने बेटे के लिए.

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लेकिन, रोज मुझे अर्णब के हाथों जलील होते देख एक रोज बेटा जिगर कहने लगा कि हम यह घर छोड़ कर कहीं और रहने चले जाएंगे.

“कहां जाएगा बेटा, कोई और ठिकाना है क्या इस घर के सिवा?” मैं ने उसे पुचकारते हुए कहा, “तुम जल्दी से पढ़लिख कर बड़ा डाक्टर बन जाओ, फिर अपने साथ मुझे भी वहां ले चलना.”

‘मेरा डाक्टर बनने का सपना भले ही सपना रह गया, लेकिन, मैं चाहती थी कि मेरा बेटा एक दिन जरूर डाक्टर बने. मेरी तरफ से कोई जबरदस्ती नहीं थी, बल्कि बेटा जिगर खुद इस फील्ड में जाना चाहता था. मैडिकल की पढ़ाई पूरी होते ही वहीं बैंगलुरु के एक बड़े अस्पताल में उस की जौब भी लग गई.

‘अपने वादे के मुताबिक वह मुझे लेने आया था, लेकिन मैं ने ही यह कह कर जाने से मना कर दिया कि रिटायर्ड होने के बाद तो उस के पास ही आ कर रहना है मुझे.

‘दिव्या की फोटो भेजी थी उस ने मुझे, जो उस के साथ ही उसी अस्पताल में डाक्टर थी. उस ने मुझ से वीडियो कालिंग पर बात भी करवाई थी 1-2 बार. दिव्या बड़ी ही प्यारी बच्ची लगी मुझे. दोनों की जोड़ी इतनी खूबसूरत लग रही थी कि लग रहा था कि कहीं मेरी ही नजर न लग जाए इन्हें.

‘मैं ने तुरंत ही दोनों की शादी के लिए हां बोल दिया. शादी के बाद वे दोनों हमारा आशीर्वाद लेने आए, पर अर्णब ने उन से सीधे मुंह बात तक नहीं की.उलटे, उन के जाने के बाद मुझे ही प्रताड़ित करने लगे यह बोल कर कि मैं ने बेटे जिगर के मन में उस के खिलाफ जहर भर दिया है, इसलिए वह उस से नफरत करता है. लेकिन, जिगर अब कोई दूध पीता बच्चा नहीं रह गया था, जो उसे कोई भी भड़का दे. बचपन से ही सब देखता आ रहा है वह. वह तो अब आना ही नहीं चाहता है इस नर्क में. तो मैं भी ज्यादा जोर नहीं डालती. जब मिलने का मन होता है खुद चली जाती हूं उस के पास.

‘कुछ साल बाद कृति ने भी अपने पसंद के लड़के से शादी कर ली. दोनों बच्चे अपनीअपनी लाइफ में सैटल हो गए. लेकिन, मेरे साथ होने वाला जुल्म खत्म नहीं हुआ. अभी भी अर्णब मेरे साथ वैसे ही व्यवहार कर रहा था. लेकिन अब मैं उस के हाथों जुल्म सहतेसहते थक चुकी थी. मेरा शरीर अब जवाब देने लगा था. मन करता था कि कहीं भाग जाऊं, जहां मुझे कोई ढूंढ़ न सके. बच्चों तक ठहरी थी मैं इस इनसान के साथ, पर अब नहीं. अब मैं इस के साथ नहीं रह सकती,’ तभी पीछे से हौर्न की आवाज से शीतल अतीत से बाहर आई. देखा तो आगेपीछे गाड़ियों की लाइन लगी है और सब हौर्न पर हौर्न बजाए जा रहे हैं.

पूछने पर पता चला कि ट्रक के नीचे आ कर एक गाय मर गई है, इसलिए गाड़ियों का जाम लगा हुआ है.

“ओह, वैसे, कब तक जाम हट सकेगा भाई साहब?” उस आदमी से शीतल ने पूछा, तो उस ने बोला, ‘नहीं पता.‘

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‘शहर हो या गांव, हर जगह यही दुर्दशा है. इन जानवरों की वजह से सड़क पर कितनी दुर्घटनाएं होने लगी हैं आजकल… और बेचारे जानवर भी तो बेमौत तड़पतड़प कर मर जाते हैं. आखिर सरकार कुछ करती क्यों नहीं?’ शीतल मन ही मन बुदबुदाई.

आज वैसे भी स्कूल से निकलतेनिकलते उसे देर हो गई और अब यह सब सोच कर दर्द से शीतल का सिर फटा जा रहा था. लग रहा था, जल्दी से घर जा कर दवाई खा कर सो जाए. तकरीबन घंटाभर लग गया सड़क से गाय उठाने में. घर पहुंचतेपहुंचते शीतल को 8 बज गए.

घर पहुंच कर शीतल ने अपने लिए चाय बनाई और दवाई खा कर लेटी ही थी कि मीनाक्षी का फोन आ गया. वह कहने लगी कि कल उस के पति की पुण्यतिथि है, तो वह अनाथ आश्रम जाएगी. इसलिए कल वह स्कूल नहीं जा पाएगी, तो वह संभाल ले.

“हां… हां, तुम इतमीनान से जाओ, मैं संभाल लूंगी,” कह कर शीतल ने फोन रख दिया.

मीनाक्षी हर साल अपने पति की पुण्यतिथि पर अनाथ आश्रम में जा कर बच्चों को कपड़े और खाना वगैरह बांटती है. ‘सही तो करती है, पंडितों को दानदक्षिणा देने से अच्छा है इन अनाथ बच्चों को उन की जरूरतों का सामान, खाना आदि देना चाहिए,’ शीतल ने अपने मन में ही बोला.

आज उसे ज्यादा भूख नहीं थी, इसलिए हलका सा कुछ बना कर खा लिया और सो गई. सुबह फोन पर ‘गुड मौर्निंग’ के साथ कृति के कई मैसेज थे. लिखा था, पापा अब ठीक हैं, लेकिन कमजोरी बहुत है. उसे आने के लिए कह रही थी.

शीतल ने भी एक मैसेज भेज दिया कि उसे आज जल्दी स्कूल जाना होगा, इसलिए वह नहीं आ सकती.

कृति ने मैसेज में लिखा था कि अर्णब अब बहुत बदल चुके हैं. शराब पीना भी छोड़ दिया है. सुबहशाम राम भजन में लगे रहते हैं.

“हुम्म…,“ अपने होंठों को सिकोड़ते हुए शीतल बोली, “सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली. क्या इस इनसान को मैं नहीं जानती? जो मेरी आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहा है? सब दिखावा है और कुछ नहीं.

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“अरे, जिस आदमी ने घर की नौकरानी तक को नहीं छोड़ा, उस के मुंह से राम भजन, शब्द सुन कर अजीब लगता है. और वही राम ने अपनी पत्नी के साथ क्या किया? एक धोबी के कहने पर वनवास भेज दिया, वह भी उस समय जब वह उन के बच्चे की मां बनने वाली थी. ज्यादातर पुरुषों ने औरतों को छला ही है. हम इधर अपने पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं और उधर पति अपनी मनोकामना किसी गैर औरत की बांहों में पूरी करते रहें.

‘आज सब ठीक हो जाएगा, कल सब ठीक हो जाएगा,’ सोचसोच कर मैं ने इस घटिया इनसान के साथ अपनी जिंदगी के 30 साल बरबाद कर दिए. पर, अब नहीं. बाकी बची जिंदगी अब मैं अपने हिसाब से अपनी मरजी और सिर्फ अपने लिए जीना चाहती हूं. 2 दिन बाद कोर्ट में तलाक का अंतिम फैसला है. फिर मैं अपने रास्ते और वह अपने रास्ते… कोई मतलब नहीं मुझे उस से.”

अब अपने लिए: आखिर किस मुकाम पर पहुंचा शीतल के मन में चल रहा अंतर्द्वंद्व

सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन हम सबके लिए ज़रूरी है

आप ये आर्टिकल पढ़ रहे हों और आपको लगे की आप पहले से ड्राइव करना जानते हैं और ड्राइव करते भी हैं इसलिए आपको इसकी ज़रूरत नही लेकिन समय के साथ सड़क सुरक्षा के नियमों में बदलाव होते रहते हैं इसलिए ये ज़रूरी है कि सड़क सुरक्षा के नियमों को लेकर आप भी अपनी जानकारी दुरुस्त रखें और नए नियमों के साथ अपटूडेट रहें.

वक्त के साथ बदलते नियमों की जानकारी आपको सुरक्षित ड्राइविंग में मदद करेगी. और ये तो अच्छा ही होगा कि सड़क का इस्तेमाल करने वाली सभी लोग सड़क सुरक्षा के नए नियमों से रूबरू हों,इससे न सिर्फ़ सड़क पर ड्राइविंग के वक्त होने वाली गलतफहमियाँ दूर होंगी बल्कि सड़क सभी के लिए सुरक्षित भी बनेगी.

‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ में रिचा चड्डा का शानदार अभिनय, पढ़ें रिव्यू

रेटिंगः ढाई  स्टार

निर्माताः डिंपल खरबंदा, भूषण कुमार, किशन कुमार व नरेन कुमार लेखक व निर्देशकः सुभाष कपूर

कलाकारः रिचा चड्डा, सौरभ शुक्ला,  मानव कौल, बोलाराम, अक्षय ओबेरॉय,  शुभ्राज्योति व अन्य.

अवधिः दो घंटे 4 मिनट

‘दबंगो के लिए सत्त घमंड है’’इस मूल कथनक के साथ जातिगत भेदभाव के साथ भ्रष्ट राजनीति पर आधारित फिल्म‘‘मैडम चीफ मिनिस्टर’’ लेकर आए हैं फिल्मकार सुभाष कपूर. जो कि राजनीति,  विश्वास,  धोखा,  प्रतिशोध,  लॉयल्टी,  सत्ता की ताकत,  सत्ता की भूख,  सत्ता को हथियाने की साजिशों से परिपूर्ण है.

कहानीः

फिल्म की कहानी शुरू होती है 1982 में उत्तर प्रदेश से. दलित जाति के रूपराम एक बारात के साथ बैंड बाजें के साथ ठाकुर की हवेली के सामने से निकलते हैं, दलित युवक दूल्हा बना हुआ घोड़ी पर बैठा हुआ है. यह बात ठाकुर को पसंद नही आती, विवाद बढ़ता है और ठाकुर गुस्से में रूपराम को गोली मार देते हैं. इधर रूपराम की मौत होती है, उधर घर में रूप राम चैथी बेटी को जन्म देती है. रूपराम की मॉं इस लड़की को मनहूस बताती है. बाद में कहानी शुरू होती है, जब तारा(रिचा चड्डा ) बाइक पर कालेज के पुस्तकालय पहुंचती है, जहां वह सहायक पुस्तकालय के रूप में कार्यरत हैं. तारा का कालेज के लड़के इंद्रमणि त्रिपाठी( अक्षय ओबेराय )  संग अफेयर है. एक बार वह गर्भपात करवा चुकी है और अब जब इंद्रमणि त्रिपाठी कालेज में चुनाव लड़ रहा है और उसकी तमन्ना एक दिन विधायक और फिर मुख्यमंत्री बनने की है. पर तारा दूसरी बार गर्भवती हो जाती है. इंद्रमणि साफ साफ कह देते हैं कि वह उससे शादी कभी नहीं करेगा, पर प्यार करता रहेगा. तब तारा धमकी देती है कि वह सच बताकर कालेज का चुनाव जीतने नही देगी. अब इंद्रमणि अपने साथियों को आदेश देता है कि तारा का गर्र्भपात करा दिया जाए या उसे मौत दे दी जाए. ऐन वक्त पर ‘परिवर्तन पार्टी’के अध्यक्ष मास्टर सूरज (सौरभ शुक्ला ) अपने साथियों संग वहां से गुजरते हुए घायल तारा को बचाकर अपने घर ले आते हैं, जहां तारा की मरहम पट्टी करवाते हैं. उसके बाद तारा,  मास्टर जी के साथ ही रहने लगती है. यहां पर पता चलता है कि तारा, रूपराम की चैथी बेटी है, जो कि अपनी दादी के तानों से उबरकर घर से भागकर शहर आकर पढ़ी और नौकरी की तथा इंद्रमणि त्रिपाठी के संपर्क में आ गयी थी. पर जिस तरह से इंद्रमणि ने उसका शोषण किया और उसे मरवाने का प्रयत्न किया, उसके चलते अब तारा का मकसद हर हाल में इंद्रमणि त्रिपाठी से बदला लेना है.

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मास्टर सूरज से तारा को राजनीति की भी शिक्षा मिलती रहती है. राज्य के राजनीतिक हालात बदलते हैं और चुनाव से पहले विकास पार्टी के अध्यक्ष अरविंद सिंह (शुभ्राज्योत) , मास्टर जी को उनकी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन करने का प्रस्ताव देते हैं. मासटर जी सोचनेका वक्त मांगते हैं. मास्टरजी के सभी साथ इस प्रस्ताव को ठुकराने के लिए कहते हैं. पर तारा कहती है कि समाज में बदलाव लाने के लिए सत्ता में होना आवश्यक है. फिर मास्टर जी की तरफ से तारा, अरविंद सिंह से बात करने जाती है और अपनी शर्तों पर अरविंद को गंठबंधन के लिए मजबूर कर देती है. इस शर्त के अनुसार पहले ढाई वर्ष उनकी पार्टी का विधायक मुख्यमंत्री होगा. इतना ही नही वर्तमान मुख्यमंत्री के सामने गौरीगंज से स्वयं तारा मैदान में उतरती है और अपने मौसेरे भाई   बबलू (निखिल विजय )से खुद पर गोली चलवाकर विजेता बन जाती है. मास्टरजी, तारा को ही मुख्यमंत्री के रूप में पेश करते हैं. इससे मास्टर जी के वरिष्ठ सहयोगी कुशवाहा भी नाराज होते हैं. अरविंद सिंह अपनी पार्टी की तरफ से इंद्रमोहन त्रिपाठी को मंत्री बनाने के लिए कहते हैं, पर तारा मना कर देती है. अब कुशवाहा,  अरविंद सिंह और इंद्रमणि त्रिपाठी हर हाल में तारा को हटाने के प्रयास में लग जाते हैं. पर तारा चतुर चालाक राजनीतिज्ञ की तरह सभी को जवाब देती रहती है. उसका ओसीडी दानिश खान(मानव कौल   ) भी उसकी मदद करते हैं. अचानक इंद्रमोहन त्रिपाठी, मास्टरजी के सहायक संुदर(बोलाराम ) की मदद से मास्टरजी की हत्या करवा देता है. तब गुस्से में एक दिन तारा मिर्जापुर के गेस्टहाउस में अरविंद सिंह के विधायकों को ले जाकर बंदी बना लेती है और उन्हें अपनी ‘परिवर्तन पार्टी’में शामिल कर लेती है, इसकी खबर लगते ही अरविंद सिंह व इंद्रमोहन त्रिपाठी अपने दलबल व शस्त्रों के साथ पुलिस अफसर एसपी की मदद से गेस्ट हाउस में घुस जाते हैं. उनकी योजना तारा की हत्या करना है. मगर दानिश खान उन्हे बचाता है. पर दानिश खान का गोली लग जाती है. उसके बाद अरविंद सिंह की गिरफ्तारी हो जाती हैं.  इधर सार्वजनिक मंच से तारा, दानिश खान के संग शादी का ऐलान करेदेती है. पर हालात सुधरते नही हैं. चार माह बाद अरविंद सिह को अदालत से जमानत मिल जाती है. अरविंद सिंह की पार्टी केंद्र से मांगकर मुख्यमंत्री तारा के खिलाफ सीबीआई की जांच शुरू करवा देते हैं. अब दानिश खान मुख्यमंत्री बनने वाले हैं, पर तारा के सामने दानिश खान की साजिश सामने आ जाती है. उसके बाद घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.

लेखन व निर्देशनः

राजनीतिक पत्रकारिता छोड़कर फिल्म निर्माता व निर्देशक बने सुभाष कपूर अब तक ‘फंस गए रे ओबामा‘,  ‘जौली एलएलबी‘,  ‘गुड्ड न रंगीला‘, ‘ ‘जौली एलएलबी 2‘ जैसी सफल फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं, मगर इस बार वह मात खा गए हैं. उनकी पिछली फिल्मों में जिस तरह से सामाजिक व राजनीतिक कटाथा व व्यंग रहता था, वह इसमें गायब है. फिल्म की कहानी बहुत साधारण है. इंटरवल से पहले ठीक ठाक है, मगर इंटरवल के बाद पूरी फिल्म विखर सी गयी है. वैसे सत्ता का नशा किस कदर एक नेक व इमानदारी इंसान को भी भ्रष्ट राजनेता बना देता है, इसका बहुत सूक्ष्म चित्रण करने में वह जरुर सफल रहे हैं. गरीब राज्य के लोगों के नेता के रूप में उसकी भव्य जीवन शैली के अनुरूप उसकी गरीबी में हेरफेर करने का उसका शानदार तरीका पर्याप्त रूप से रेखांकित है. उत्तर प्रदेश की राजनीति से भलीभंति परिचित लोग फिल्म को देखते हुए समझ जाएंगे कि फिल्मकार ने किन्ही मजबूरी के तहत कहानी के साथ जो छेड़छाड़ की है, उससे फिल्म कमजोर हो गयी है. माना कि इसमें राजनीति के छोटे छोटे तत्वों को पकड़ने का प्रयास किया गया है, मगर कई किरदार ठीक से विकसित ही नहीं हो पाए. उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के कुछ बयानो को बदलकर इस फिल्म में रख गया है. किसी भी नए इंसान के लिए राजनीति इतनी आसान नही हो सकती, जितनी इस फिल्म में चित्रित हैं. कई दृश्य तो काफी अविश्वसनीय लगते हैं. फिल्म को ठीक से प्रचारित भी नही किया गया.

सुभाष कपूर ने फिल्म के शुरूआती दृश्य को ज्यों का त्यों सफल वेब सीरीज‘‘आश्रम’’सीरीज एक के पहले एपीसोड से उठाया है. अब यह महज संयोग है या . यह तो फिल्मकार ही जानते होंगे. यह वह दृश्य है जब दलित दूल्हा घेड़ी पर बैठे हुए ठाकुर के घर के सामने से निकलता है.

फिल्म के कुछ संवाद अवश्य अच्छे व वजनदार बन पड़े हैं. मसलन-मास्टर सूरज का एक संवाद है-‘‘जिस दिन हमारे समाज के लोग मंदिर जाकर प्रसाद पाएंगे, उसी दिन हम प्रसाद ग्रहण करेंगें. ’’ अथवा ‘‘सत्ता में रहकर सत्ता की बीमारी से बचना मुश्किल है. ’’अथवा तारा का मास्टर जी (सौरभ शुक्ला) से कहना -‘‘अछूत को  मंदिर में प्रवेश कराना गलत है ?लड़कियों को साइकिल पर बताना गलत है?. . .  मगर मेरे इस काम से पार्टी मजबूत हो रही है.  रिचा चड्ढा का एक और संवाद है-‘‘ मगर मैं बचपन से  जिद्दी हूं.  बचपन से अक्खड़ हूं . कोई कितने भी सितम कर ले.  मुझे कितने ही बलिदान देने पड़े. तुम्हारी आवाज उठाने से , तुम्हारी सेवा करने से , दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती. . . ‘‘ यह संवाद अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है.

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अभिनयः

दलित व शोषित लड़की से मुख्यमंत्री तक की तारा की यात्रा को चित्रित करने में रिचा चड्डा ने उत्कृष्ट अभिनय का परिचय दिया है. शीर्ष किरदार में रिचा ने पूरी जान डाल दी है. वह अकेले ही इस फिल्म को अपने कंधे पर लेकर चलती हैं. मगर कुछ दृश्यों में वह कमजोर पड़ गयी हैं. मसलन-मास्टर सूरज, जब चोटिल तारा को घर लाकर उसकी मरहम पट्टी करते हैं, तब तारा के चेहरे पर दर्द के भाव नहीं आते. ऐसा पटकथा व निर्देशक की कमजोरी के चलते भी संभव है. मुख्यमंत्री तारा के राजनीतिक सलाहकार, फिर पति व मुख्यमंत्री बनने की चाह रखने वाले दानिश खान के किरदार के चित्रण में मानव कौल अपनी छाप छोड़ जाते हैं. मास्टर सूरज के किरदार में सौरभ शुक्ला ने शानदार अभिनय किया है. सुंदर के छोटे किरदार में बोलाराम ठीकठाक जमे हैं. मगर इंद्रमणि त्रिपाठी के किरदार में अक्षय ओबेराय का अभिनय काफी औसत रहा. अरविंद सिंह के किरदार मे तेज तर्रार व चालाक राजनेता के किरदार के साथ शुभ्राज्योत पूरी तरह से न्याय नही कर पाएं. निखिल विजय का अभिनय ठीक ठाक है.

अनुपमा देगी तलाक तो काव्या लेगी वनराज से जुड़ा ये फैसला, आएगा नया ट्विस्ट

स्टार प्लस के सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) इन दिनों काफी सुर्खियां बटोर रहा है. जहां वनराज को खुद की गलतियों का एहसास हो रहा है तो वहीं काव्या का हर कदम पर दिल टूट रहा है. लेकिन इन सब के बीच अनुपमा अपनी जिंदगी को नए सिरे से शुरु करने की कोशिश में जुटी हुई है, जिसके लिए वह वनराज को अपनी जिंदगी से दूर करने के लिए भी तैयार हो गई है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे….

काव्या होती है परेशान

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज, अनुपमा की मांग में सिंदूर भरने जाएगा, लेकिन वो उसे मना कर देगी. वहीं दूसरी तरफ, काव्या, वनराज से मिलकर कहेगी कि उसे बहुत जरूरी बात करनी है. काव्या कहती है अनुपमा बहुत अच्छी है वो तुम्हें माफ कर देगी. लेकिन अब मैंने भी अपनी जिंदगी के लिए नया फैसला लिया है. दरअसल, काव्या, वनराज को छोड़ अनिरुद्ध के पास दोबारा जाना चाहती है.

 

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काव्या को मनाएगा वनराज   

 

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अनुपमा को अपनी जिंदगी में लाने की बात कहने वाला वनराज अपनी हरकतों से बाज ना आकर काव्या को अपनी लाइफ में रखने की बात कहता हुआ अपकमिंग एपिसोड में नजर आने वाला है, जिसके लिए वह काव्या से झूठ कहेगा कि अनुपमा उसे तलाक दे देगी. लेकिन अनिरुद्ध, काव्या को तलाक देने के लिए पैसों की रकम मांगता नजर आएगी. पर वनराज को सबसे बड़ा झटका जब लगेगा जब वनराज को तलाक के कागज देती नजर आएगी.

अनुपमा भेजेगी तलाक के कागज

दरअसल, अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा अपनी जिंदगी में आगे बढने के लिए किंजल की सलाह मानेगी और तलाक के कागज बनवाएगी और वनराज को उसके औफिस भेजेगी, जिसे देखकर वनराज हैरान हो जाएगा. अब देखना ये होगा कि क्या सच में वनराज को अपनी गलतियों का एहसास होगा और वह काव्या को छोड़कर अनुपमा के वापस जाएगा और क्या अनुपमा अपना तलाक का फैसला वापस लेगी.

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Bhabiji Ghar Par Hain के सेट पर पहुंची नई अनीता भाभी, PHOTOS VIRAL

&tv के कौमेडी सीरियल ‘भाभी जी घर पर है’ (Bhabiji Ghar Par Hain) फैंस को काफी एंटरटेन कर रहा है. लेकिन इन दिनों गोरी मेम यानी अनीता भाभी शो में नजर नही आ रही हैं, जिसके चलते दर्शक नाखुश नजर आ रहे हैं. लेकिन अब दर्शकों को जल्द नई गोरी मेम शो में नजर आने वाली हैं. दरअसल, पिछले दिनों हमने आपको बताया था कि एक्ट्रेस नेहा पेंडसे अब अनीता भाभी के किरदार में नजर आएंगी. हालांकि इस बात पर नेहा पेंडसे कंफर्म नही लगाई थी. पर अब शो के सेट पर नेहा पेंडसे (Nehha Pendse) के धमाकेदार वेलकम की फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं वायरल फोटोज…

नेहा पेंडसे सेट पर आईं नजर

कोरोना के बीच गोरी मेम यानी सौम्या टंडन ने शो को बीच में ही छोड़ दिया था, जिसके बाद अब नेहा पेंडसे ने ‘भाभी जी घर पर है’ शो में एंट्री मार ली है. वहीं हाल ही में नेहा पेंडसे ने सीरियल ‘भाभी जी घर पर है’ की शूटिंग शुरू कर दी है, जिसकी खबर नेहा पेंडसे ने खुद सोशलमीडिया पर अपने फैंस को दी है.

 

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Credit- Tellyyapa9

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नेहा पेंडसे का हुआ वेलकम

‘भाभी जी घर पर है’ की शूटिंग करने पहुंची नेहा पेंडसे का सेट पर ग्रैंड वेलकम किया गया, जिसकी खुशी तिवारी जी और उनके औनस्क्रीन हस्बैंड विभूती पांडे को हुई. वहीं दोनों की खुशी तो सातवें आसमान पर जा पहुंची, जिसका अंदाजा इन फोटोज से लगाया जा सकता है.

 

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अंगूरी भाभी संग पोज देती दिखीं नई अनीता भाभी

सेट पर नेहा पेंडसे अनीता भाभी के अंदाज में नजर आईं. केक कटिंग सेरेमनी में नेहा पेंडसे ने रेड कलर की साड़ी कैरी की थी. इस दौरान नेहा पेंडसे ने सीरियल ‘भाभी जी घर पर है’ की अंगूरी भाभी यानी शुभांगी अत्रे के संग भी जमकर फोटोज क्लिक करवाई, जिसे देखकर फैंस दोनों की तारीफें कर रहे हैं.  भी मुलाकात की. यहां पर नेहा पेंडसे और शुभांगी आत्रे जमकर पोज देती नजर आईं.

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बता दें, इससे पहले शो की एक और कलाकर यानी अंगूरी भाभी के रोल में नजर आ चुकीं शिल्पा शिंदे ने भी शो को बीच में ही छोड़ दिया था, जिसके बाद शुभांगी अत्रे ने शो में एंट्री की थी. हालांकि उन्हें फैंस ने जल्द ही कबूल कर लिया था. अब देखना ये था कि क्या नई अनीता भाभी को दर्शक पसंद करेंगे.

बदल गया जीवन जीने का तरीका

कोरोना आया और एक बार तो बहुत हद तक जिंदगी की रफ्तार थम गई. भय, चिंता, भविष्य से ज्यादा वर्तमान की फिक्र इंसान पर हावी हो गई. नौकरी, पढ़ाई, काम, घूमना, मौजमस्ती, जब भी मन करे घर से निकल जाना, किसी मौल में शौपिंग करना या होटल में खाना खाना अथवा कहीं यों ही बिना योजना बनाए कार उठा कर निकल जाने.

पार्टी, धमाल, दोस्तों के साथ गप्पबाजी या नाइट आउट, रिश्तेदारों व परिचितों के घर जमावड़े और सड़कों पर बेवजह की चहलकदमी आदि पर अचानक विराम लग गया.

भले अब लौकडाउन खुल गया पर अभी भी घर से बाहर निकलने से पहले कई बार सोचना पड़ता है. जरूरी हो तभी कदम दरवाजा पार करते हैं. घबराहट, डर और घर में बैठे रह कर केवल आभासी दुनिया से जुडे़ रहने से सब से ज्यादा असर मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा है. ऐसे में सावधानीपूर्वक सामाजिक मेलजोल बढ़ाने के प्रयास करें, कुछ यों:

मिलें लोगों से

कोरोना वायरस के इस दौर में लोग मानसिक रूप से ज्यादा परेशान हुए हैं. जितना जरूरी शारीरिक स्वास्थ्य का खयाल रखना है, उतना ही जरूरी है मानसिक सेहत को दुरुस्त रखना. इस से इंसान के सोचने, महसूस करने और काम करने की ताकत प्रभावित होती है. जब तनाव और अवसाद घेर ले तो उस का सीधा असर रिश्ते और फैसले लेने की क्षमता पर पड़ता है. जो पहले से ही मानसिक रूप से बीमार थे, कोरोना वायरस के बढ़ते संकट के इस दौर में उन लोगों को अधिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन जो मानसिक रूप से स्वस्थ थे, वे भी अपनी सेहत खोने लगे हैं. इस की सब से बड़ी वजह है घर की चारदीवारी में कैद हो जाना और बाहर के सारे संपर्क टूट जाना.

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बेशक वीडियो कौल पर आप जिस से चाहे बात कर सकते हैं, पर जो मजा साथ बैठ कर बात कर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में आता है, वह मोबाइल या लैपटौप पर उंगली चला कर कैसे मिल सकता है. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि परेशान होने की बजाय खुद को शांत रखने की कोशिश करें.

सावधान रहें सुरक्षित रहें

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. मानसिक तौर पर स्वस्थ रहने के लिए लोगों से मिलनाजुलना जरूरी होता है. लेकिन कोरोना ने जैसे इस पर प्रतिबंध लगा दिया है. सारी मस्ती और रौनक छीन ली है.

आयोजनों व समारोहों में, जहां जा कर कितने सारे लोगों से मिलने का मौका मिल जाता था और एक पारिवारिक या दोस्ताना माहौल निर्मित हो जाने के कारण ढेर सारी खुशियों के पल समेटे जब लोग घर लौटा करते थे तो कितने दिनों तक उन बातों की पोटलियां खोल कर बैठ जाया करते थे जो वहां उन्होंने साझ की थीं. अब तो गिनती कर लोगों को बुलाने की बाध्यता है, फिर मास्क और सैनिटाइज करते रहने के बीच सारा बिंदासपन एक कोने में दुबक कर बैठ जाता है.

दूरदूर बैठ कर और हाथ हिला कर ही कुछ कहा, कुछ सुना जाता है. अपनी सुरक्षा के कारण दूसरे लोगों से खुल कर न मिल पाने की पीड़ा हर किसी को त्रस्त कर रही है. दूर से ही सही मगर यदि किसी अपने से मिलने का मौका मिले तो सभी सावधानियों का पालन करते हुए मिल सकती हैं.

हर अंधेरे के बाद उजाला है

ब्रिटिश जर्नल लैंसेट साकेट्री में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, कोरोना वायरस न सिर्फ मनुष्य को शारीरिक रूप से कमजोर कर रहा है बल्कि मानसिक तौर पर भी इस महामारी के कई सारे नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहे हैं. एक अन्य शोध में यह पाया गया है कि कुछ लोगों की तंत्रिकाओं पर प्रभाव पड़ा है.

मानसिक सेहत में जब लंबे समय तक सुधार नहीं हो पाता है तो वह मस्तिष्क को प्रभावित करती है. न केवल बुजुर्ग, बल्कि अकेले रहने वाले लोग, वयस्क, युगल, पुरुष, महिलाएं, बच्चे यानी हर उम्र के लोगों को मानसिक सेहत से जूझना पड़ रहा है.

दैनिक रूटीन से कट जाने और घर में बंद रहने की वजह से दिमाग को मिलने वाले संकेत बंद हो जाते हैं. ये संकेत घर के बाहर के वातावरण और बाहरी कारकों से मिलते हैं. लेकिन लगातार घर में रहने से ये बंद हो जाते हैं. इन सब कारणों से अवसाद और चिंता के बढ़े मामले देखने को मिल रहे हैं. इसे सामूहिक तनाव भी कह सकते हैं.

लोग अपने बच्चे के भविष्य को ले कर असमंजस में हैं, किसी को नौकरी छूट जाने का तनाव है तो किसी को वित्तीय स्थिति ठीक करने का तनाव, घर पर बहुत समय रहने पर उकताहट होने वालों को बाहर निकल कर आजादी से न घूम पाने का तनाव है.

मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि इसे ‘जीनोफोबिया’ यानी फीयर औफ ह्यूमन का शिकार होना कहा जा सकता है. इस में लोग किसी व्यक्ति के सामने आने पर घबराने लगते हैं, बात करने से डरते हैं, आंख में आंख डाल कर बात नहीं कर पाते. ऐसा कैमरे में देखने की आदत के कारण हो रहा है.

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दिमाग चीजों को स्वीकार नहीं कर पा रहा और उसे लगने लगा है कि वीडियो पर बात कर के वह सहज महसूस कर पाएगा, पर हो इस के विपरीत रहा है. परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढाल लेने में कोई बुराई नहीं. बेशक जीवन पहले जैसा नहीं रहा, मगर इस का यह मतलब भी नहीं कि जीवन में खुशियां ही नहीं रहीं. ऐसे में हर परिस्थिति में खुद को शांत व खुश रखने की कोशिश करें.

मानसिक सेहत का रखें ख्याल

सुरक्षा के सारे नियमों का ध्यान रखते हुए अपने मानसिक स्वास्थ्य को सही खुराक देने के लिए बेशक कम मिलें, पर लोगों से मिलें अवश्य. बेशक दूरी बना कर मिलना पड़े, बेशक मास्क पहनना पड़े, पर मिलें अवश्य. घर बैठेबैठे होने वाली ऊब कहीं मुसीबत न बन जाए.

सोशल मीडिया या इंटरनैट आप को बोर नहीं करता, बल्कि यह अकसर बोरियत या वास्तविक जिंदगी से पलायन का भाव होता है

जो इंटरनैट की ओर धकेल देता है. इस समय बोरियत की शिकायत आम हो गई है. यदि आप भी खुशी की तलाश या जीवन के बेअर्थ हो जाने के एहसास के कारण डिजिटल साधनों पर अंधाधुंध समय बिता रहे हैं, तो यह मुसीबत बन सकता है.

जब महज मनोरंजन या बोरियत भगाने के लिए इंटरनैट का इस्तेमाल करते हैं तो एक और परेशानी है. इस समय जरूरत है उन लोगों से मिलें जिन्हें आप की परवाह है, जो आप से प्यार करते हैं या जिन के साथ समय बिताने से आप को खुशी और राहत महसूस होती है.

जरूरत है कि फिर से लोगों से जुड़ें, सामाजिक दायरा छोटा ही रखें, पर आभासी दुनिया से अलग स्वयं उन से जा कर मिलें जरूर. आप खुद में बदलाव महसूस करेंगे मानो बरसों का कोई बोझ उतर गया हो. खिलखिलाहटें और हंसी आप में एक नई ऊर्जा भर जाएगी और तनाव जाता महसूस होगा.

नशे से दूर रहें

मानसिक तनाव से निकलने के लिए शराब और नशीली दवाओं का उपयोग या नींद की दवा लेने से कहीं बेहतर है कि उन से मिलें जिन के साथ वक्त गुजारना आप में जीने की ललक पैदा करता है.

मानसिक स्वास्थ्य पूरी तरह से भावनात्मक आयाम पर टिका होता है. यदि हमारा सामाजिक जीवन दुरुस्त है तो हम मानसिक रूप से स्वस्थ होंगे ही और अपने संबंधों को आनंद से जी पाएंगे. तब जटिल स्थितियों का मुकाबला करने की शक्ति भी स्वत: आ जाती है.

कोरोना है, रहेगा भी अभी लंबे समय तक, उसे ले कर अवसाद में जीने के बजाय खुद को फिर से तैयार करें ताकि सामाजिक जीवन जी सकें. अपने प्रियजनों, दोस्तों, रिश्तेदारों व परिचितों से मिलें और अपने मानसिक स्वास्थ्य को दवाइयों का मुहताज बनाने के बजाय मन की बातें शेयर कर, खुल कर हंस कर, अपने दुखसुख बांटते हुए कोरोना को चुनौती देने के लिए तत्पर हो जाएं.

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घूमने के लिए परफेक्ट हैं बौलीवुड एक्ट्रेसेस के ये ड्रेस विद स्नीकर

फैशन के बदलते ही लुक भी बदल जाता है. हर कोई कूल और क्लासी दिखना चाहता है, इसलिए गर्ल्स ड्रैस ट्राई करती हैं, लेकिन ड्रैस के साथ हील्स कैरी करना उनके लिए मुश्किल हो जाता है. पर अब गरमियों का कूल और कंफरटेबल फैशन आ गया है. गर्ल्स अब ड्रैस के नीचे हील्स पहनने की बजाय जूते पहनना पसंद करती हैं. जूते उनकी ड्रैस को एक नया लुक और कंफर्ट देते है, जबकि हील्स में ज्यादा देर खड़ा रहना उनके लिए कंफरटेबल नही होता. बौलीवुड एक्ट्रेसस ने भी इस फैशन को एक नया आयाम दिया है. आइए आपको बताते हैं बौलीवुड एक्ट्रेसस के अलग-अलग मौकों पर ड्रैस के साथ स्नीकर फैशन. जिसे आप भी डेली फैशन के रूप में अपना सकती हैं.

1. शादी के रिसेप्शन में हील्स छोड़ दीपिका का स्नीकर फैशन

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बौलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण ने अपनी शादी के मुंबई रिसेप्शन में कम्फर्ट ड्रेसिंग का मतलब बताते हुए अपनी ड्रैस के साथ मैचिंग स्टिलेटोस (हील्स) को छोड़ कर कम्फरटेबल स्नीकर्स में नजर आईं थीं.

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2. फंक्शन में अदिति राव हैदरी का ड्रैस के साथ स्नीकर फैशन

 

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Just got sunshine in my pocket…. ? PS – And my hands, and my phone… ?

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अक्सर बौलीवुड सेलेब किसी पार्टी या फंक्शन में हील्स पहनना पसंद करते हैं, लेकिन बौलीवुड ने इसे चेंज कर दिया है. हाल ही में एक इवेंट में अदिति राव हैदरी ड्रैस के साथ कम्फरटेबल वाइट स्नीकर्स में नजर आईं.

3. मूवी प्रीमियर में दीपिका का ड्रैस के साथ स्नीकर्स फैशन

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हाल ही में दीपिका ड्रैस के साथ स्नीकर पहने एक फिल्म के प्रिमियर में नजर आईं. जिसमें वह ड्रैस के साथ स्नीकर्स को मैच करते हुए कंफर्टेबल नजर आईं.

4. स्कर्ट के साथ जैक्लीन का स्नीकर्स फैशन

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जैक्लीन भी हाल ही में ब्लैक टीशर्ट और जैकेट के साथ डैनिम स्कर्ट में नजर आईं. जिसके साथ उन्होंने मैच करते हुए स्नीकर्स फैशन पहनें. जिसने जैक्लीन के लुक को और कूल बना दिया.

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फ्रोजन शोल्डर से निबटें ऐसे

लेखक- पूजा

लंबे समय तक कंप्यूटर पर काम करना, गलत पोस्चर में बैठना, कंधों को अधिक चलाना या फिर बिलकुल भी न चलाना जैसी आदतें आप को फ्रोजन शोल्डर का शिकार बना सकती हैं. लेकिन जीवनशैली में बदलाव ला कर और कुछ एहतियात बरत कर इस समस्या से बचा जा सकता है.अगर घर या औफिस में काम करतेकरते आप को अचानक कंधे में असहनीय दर्द होता है और यह भी महसूस होता है कि आप का कंधा मूव नहीं कर रहा है तो फौरन सम झ जाएं कि आप को फ्रोजन शोल्डर की समस्या ने अपनी चपेट में ले लिया है.दरअसल, हमारे शरीर में मौजूद हर जौइंट के बाहर एक कैप्सूल होता है. फ्रोजन शोल्डर की समस्या में यही कैप्सूल स्टिफ या सख्त हो जाता है, जिस वजह से कंधे की हड्डी को हिलाना बहुत ही ज्यादा मुश्किल हो जाता है. इस में दर्द धीरेधीरे या फिर अचानक शुरू हो जाता है और पूरा कंधा जाम हो जाता है. यह समस्या 40 से अधिक आयु वाले लोगों में देखने को मिलती है और पुरुषों की तुलना में महिलाओं में इस के होने की संभावना अधिक होती है.

1. कारण हैं अनेक

एक सर्वे के मुताबिक फ्रोजन शोल्डर की समस्या लंबे समय तक कंप्यूटर पर काम करने, कंधे को एक ही स्थिति में रखने, कंधे पर अधिक भार उठाने, कंधे से ज्यादा काम लेने, हड्डियों के कमजोर होने, बढ़ती उम्र के कारण हो सकती है. कई बार यह समस्या कंधे पर चोट लगने पर भी होने लगती है. रोजाना ऐक्सरसाइज न करने की वजह से भी आजकल लोगों को यह समस्या हो रही है, क्योंकि ऐक्सरसाइज न करने से जौइंट्स जाम होने लगते हैं.

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2. जब दिखें ये आसार

फ्रोजन शोल्डर की समस्या कई महीनों या फिर सालों तक भी रह सकती है. यह बीमारी 3 अवस्थाओं से गुजरती है, जिन में फ्रीजिंग, फ्रोजन और थाइंग स्टेज मौजूद हैं. अगर आप को भी ये लक्षण दिखें तो फौरन डाक्टर के पास जाएं:- कंधे में सूजन होना.- कंधे को किसी भी दिशा में मोड़ने में बहुत दिक्कत होना.- दर्द का गरदन और उस के ऊपर के भाग में फैलना.- रात के समय अधिक दर्द होना, छोटेछोटे काम जैसे कंघी करने, बटन बंद करने आदि में भी मुश्किल होना.- हाथ को पीछे की ओर करते वक्त कंधे में तेज दर्द होना.

3. बढ़ जाती हैं ये परेशानियां

फ्रोजन शोल्डर के कारण अवसाद, गरदन और पीठ दर्द, थकान, काम करने में असमर्थता इत्यादि समस्याएं भी हो सकती हैं. फ्रोजन शोल्डर से रोगी को मधुमेह, दौरा पड़ना, फेफड़ों का रोग, हृदय रोग आदि होने का भी डर रहता है. यह बीमारी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अधिक पाई जाती है.आजमाएं ये उपाय

4. करें ये ऐक्सरसाइज

फ्रोजन शोल्डर के दर्द और अकड़न से राहत पाने के लिए रोजाना व्यायाम करें. पैंडुलम स्ट्रैच, टौवेल स्ट्रैच, फिंगर वाक, आर्मपिट स्ट्रैच, क्रौस बौडी रीच, कंधे को बाहर व अंदर की तरफ घुमाना जैसी कुछ ऐक्सरसाइज दर्द को कम करती हैं, लेकिन इन्हें करने से पहले डाक्टर की सलाह जरूर ले लें.

स्वस्थ आहार लें: मसालेदार और तीखे भोजन का सेवन करने से बचें, क्योंकि इस से भी फ्रोजन शोल्डर की समस्या बढ़ सकती है, इसलिए ताजा और कम मसाले वाला खाना खाएं.

5. हीट और कोल्ड थेरैपी

दर्द से राहत पाने के लिए हीट या कोल्ड थेरैपी लें. फ्रोजन शोल्डर के दर्द को कम करने के लिए कंधे को 15 मिनट के लिए आइस पैक और 15 मिनट के लिए हीटिंग पैक से सेंकें. ऐसा दिन में 2-3 बार करें.

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6. औयल मसाज करें

फ्रोजन शोल्डर में कंधे के दर्द को कम करने और कंधे में मूवमैंट के लिए औयल मसाज बेहतर उपाय है.

7. ऐक्यूपंक्चर और फिजियोथेरैपी

इस दर्द से जल्दी आराम पाने के लिए ऐक्यूपंक्चर चिकित्सा का सहारा ले सकते हैं या फिर इस का सब से अच्छा उपाय फिजियोथेरैपी है. इस से फ्रोजन शोल्डर के दर्द से जल्दी छुटकारा मिलता है.

Ex से भी हो सकती दोस्ती

जिस किसी का भी कभी ब्रेकअप हुआ है, वह यह बात जानता है कि ब्रेकअप करना आसान नहीं होता. मगर कभीकभी जब दोनों समझदार होते हैं, तो ऐक्स होने के बाद भी आपस में दोस्ती रखी जा सकती है. यदि रिश्ते में सब ठीक से न चल रहा हो तो कपल्स को अकसर ब्रेकअप करने का फैसला लेना पड़ता है. यह दुख की बात होती है जो व्यक्ति आप को अभी तक सब से प्रिय था, अब आप उस से अपने सुखदुख शेयर नहीं कर पाएंगे. पर यह बहुत अच्छी बात है कि आज की पीढ़ी काफी व्यावहारिक है और इस बात पर अलग तरह से सोचती है. कोई भी रिश्ता किसी भी कारण खत्म हो सकता है.

बदल रही सोच

कोई आप की लाइफ में एक रोल में फिट नहीं हुआ तो इस का मतलब यह भी नहीं कि वह दूसरे रोल में भी फिट नहीं होगा.

26 वर्षीय रूही अपने ऐक्स से इतनी कंफर्टेबल है कि अपनी कई बातें आज भी उस से शेयर करती है. उसे अपनी किसी भी प्रौब्लम में वही याद आता है. यहां तक कि उस के ऐक्स की नई गर्लफ्रैंड इसे खुशी से ऐक्सैप्ट करती है.

रूही कहती है, ‘‘हमारा ब्रेकअप हो गया. कुछ चीजें नहीं चलीं, पर मुझे पता है कि वह मुझे हमेशा सही सलाह देगा, मुझे उस के सामने किसी भी बात में असहजता नहीं होती. वह मेरा अच्छा व सच्चा दोस्त है. मेरी फैमिली को उस पर आज भी भरोसा है.’’

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यों बनाएं ऐक्स को दोस्त

फिल्म इंडस्ट्री में तो ऐक्स के साथ दोस्ती के कितने ही उदाहरण दिखाई दे जाते हैं. भले ही आप का ब्रेकअप हो गया हो, आप फिर भी उस के दोस्त बन कर रह सकते हैं, जिसे आप ने लंबे समय तक प्यार किया हो, उस की केयर की हो. यह मुश्किल हो सकता है पर कुछ तरीके हैं, जिन पर चल कर आप अपने ऐक्स के दोस्त बन कर रह सकते हैं और यह आप को अजीब भी नहीं लगेगा. जैसे:

– ब्रेकअप का कारण हमेशा यह नहीं होता कि आप ने गलतियां कीं. कभीकभी कुछ ऐसा होता है कि रिश्ता नहीं चल पाता. जो रिश्ता चल न पा रहा हो उसे जाने देना सीखें. एकदूसरे की गलतियां न बताएं. जो हो गया उसे भूल जाएं, एकदूसरे को माफ करें. यदि आप ब्रेकअप की डिस्कशन के समय बहस करेंगे तो स्थिति और खराब होगी. आप दोनों के बीच कड़वाहट और बढ़ेगी.

– रिश्तों को बनाए रखने में मेहनत लगती ही है. ब्रेकअप के बाद यही न सोचते रहें कि आप ने इस रिश्ते को बचाने के लिए कितना टाइम वेस्ट किया, कितनी ऐनर्जी वेस्ट की. इस से आप को बुरा ही लगेगा. एकदूसरे को अब दोस्त तो जरूर समझें. आप एकदूसरे को जानते तो हैं ही. एकदूसरे की मुश्किलों में एकदूसरे को सपोर्ट करना न छोड़ें.

– ब्रेकअप होते ही तुरंत दोस्ती की गाड़ी में सवार न हो जाएं. खुद को कुछ समय दें. अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख कर महत्त्वपूर्ण चीजों पर फोकस करना शुरू करें और उसी कंधे पर सिर रख कर फिर न रोएं, क्योंकि शेक्सपियर ने भी कहा है कि आशा सारे दुखों की जड़ है.

– रिश्ता खत्म हुआ है, आप दुखी हैं, दुखी हो लें, जितना शोक मनाना है मना लें. जब तक रोना आए, रो लें. उस के बाद अपने दोस्तों के साथ बाहर जाएं और ब्रेकअप पर कोई भी बात न करें. अपने ऐक्स को न कोई टैक्स्ट करें, न फोन करें.

– फौरन जल्दबाजी में कोई बौयफ्रैंड या गर्लफ्रैंड न ढूंढ़ लें. सैंसिबल और मैच्योर सोच रखें.

– अपनेआप को उन ऐक्टिविटीज में व्यस्त करें, जिन्हें आप करना चाहते थे पर इस रिश्ते के कारण नहीं कर पाते थे.

– क्या आप ऐक्स के साथ दोस्ती करने की दुविधा में हैं? यह बड़ा कदम उठाने से पहले आप अच्छी तरह सोच लें कि आप अपने ऐक्स के साथ दोस्ती क्यों करना चाहते हैं. एक ही फ्रैंड सर्किल के लिए या कालेज में एक ही क्लास के लिए?

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– यदि आप की कैमिस्ट्री अपने ऐक्स के साथ वैसी नहीं है जैसी यह रिश्ता शुरू करने के पहले थी तो इस दोस्ती जैसी भावना को पनपने देने के लिए ज्यादा न सोचें. रहने ही दें. यह कोशिश आप को कुछ और चीजों में हर्ट कर सकती है वह भी तब जब आप टूटे हुए रिश्ते से बाहर आ ही रहे हैं.

– यदि वह और लोगों के साथ बाहर जा रही है तो इस बात की रिस्पैक्ट करते हुए जीवन में खुद भी आगे बढ़ने की कोशिश करें. सिर्फ उस के डेटिंग पैटर्न पर नजर रखने के लिए उस का दोस्त बनना आप को दुख देगा. इसलिए पौजिटिव रहें और खुद भी लाइफ ऐंजौय करने की कोशिश करें.

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