Download Grihshobha App

शादी के बाद Ex बौयफ्रेंड से यहां टकराईं गौहर खान, Video हुआ वायरल

बीते दिनों शादी को लेकर सुर्खियों में रहने वाली बिग बौस 7 विनर और एक्ट्रेस गौहर खान एक बार फिर सोशलमीडिया में छा गई हैं. दरअसल, शादी के तुरंत बाद ही गौहर शूटिंग के लिए लखनऊ के लिए निकल पड़ीं. लेकिन अचानक इसी बीच उनके एक्स बौयफ्रेंड रह चुके एक्टर कुशाल टंडन से उनकी मुलाकात हो गई, जिसके वीडियो सोशलमीडिया पर काफी वायरल हो रहा है. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो की झलक…

गौहर से मुलाकात का वीडियो किया शेयर

एक्टर कुशाल टंडन ने सोशलमीडिया पर अचानक एक्स गर्लफ्रेंड रह चुकीं गौहर खान से मिलने का एक्सपीरियंस को शेयर करते हुए वीडियो पोस्ट कर कहा कि, ‘मैं अपने होमटाउन लखनऊ जा रहा हूं और मुझे मेरी प्यारी और पुरानी दोस्त गौहर खान अचानक मिल गई हैं, लेकिन मैं हैरान नहीं हूं. इनकी हाल ही में शादी हुई है. वह बहुत सुंदर दिख रही हैं.’ और इसी के साथ कुशाल टंडन ने कहा, ‘शायद मुझे आपको सच में शादी की मुबारकबाद दे देनी चाहिए.’ वहीं वीडियो में गौहर खान के रिएक्शन की बात करें तो वह हंसते हुए मस्ती करती नजर आ रही हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by TV Fanclub (@tv_fanclub)

पति ने छोड़ा था एयरपोर्ट

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Being Watch (@beingwatch247)

कुशाल टंडन से फ्लाइट में होने वाली मुलाकात से पहले गौहर खान ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर शेयर करते हुए फैंस को बताया था कि वह शूटिंग के लिए निकल रही हैं. वहीं एयरपोर्ट पर जैद दरबार अपनी वाइफ गौहर को छोड़ते हुए भी नजर आए थे.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Viral Bhayani (@viralbhayani)

गौरतलब हो कि बिग बौस के 7वें सीजन के बाद कुशाल टंडन और गौहर खान ने एक-दूसरे के डेट करते नजर आए थे. हालांकि दोनों ने अपनी मर्जी से ब्रेकअप करते हुए दोस्ती को कायम रखने का फैसला लिया था, जिसे फैंस ने काफी सराहा था.

 

Winter Special: घर पर बनाएं ब्रेड पिज्जा

अगर आप कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं तो आज हम आपको ब्रेड पिज्जा की खास रेसिपी बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली को ब्रेकफास्ट या स्नैक्स के रूप में दे सकते हैं ये टेस्टी के साथ-साथ हेल्दी भी होगा. आइए आपको बताते हैं कैसे बनाएं हेल्दी और टेस्टी पिज्जा घर पर…

हमें चाहिए

ब्रेड स्लाइस- 06 (ब्राउन या वाइट),

स्वीट कौर्न– 1/2 कप (उबले हुए),

शिमला मिर्च– 01 (बारीक कटा हुआ),

प्याज– 01 (महीन काट लें),

टमाटर– 01 (पतली स्लाइस),

 ये भी पढ़ें- फेस्टिवल स्पेशल 2019: घर पर बनाएं कलाकंद

बटर– 05 छोटे चम्मच,

मोज्रेला चीज़– 01 कप (कद्दूकस किया हुआ),

काली मिर्च पाउडर– 1/4 छोटा चम्मच,

टोमेटो/पिज़्ज़ा सौस– 06 बड़े चम्मच,

नमक– स्वादानुसार

बनाने का तरीका

सबसे पहले आप ब्रेड की स्लाइस पर मक्ख‍न की एक लेयर लगाएं और फिर उसके ऊपर टोमैटो/पिज्जा सौस लगा लें. उसके बाद शिमला मिर्च, टमाटर, प्याज की एक पर्त स्लाइस के ऊपर लगाएं.

अब उबला हुआ स्वीट कौर्न या बेबी कौर्न की एक पर्त बिछा दें. इसके ऊपर काली मिर्च पाउडर और नमक छिड़क दें. इसके बाद कद्दूकस किये हुए चीज की एक लेयर ब्रेड पर लगाएं.

इतनी तैयारी करने के बाद एक नौन स्टिक तवे को हल्का गर्म करके एक से डेढ़ चम्मच मक्खन तवे पर डालें. जब मक्खन गर्म हो जाए तो आंच को कम कर दें और एक तवे पर जितने ब्रेड पीस आ जाएं, उतने रख दें.

इसके बाद तवा को ढ़क दें और लगभग 5 मिनट तक पकाएं. बीच-बीच में ढ़क्कन को खोल कर देखते रहें. जब शि‍मला मिर्च नर्म हो जाए, अथवा ब्रेड कुरकुरी हो जाए, तो उसे बाहर निकाल लें और अपनी फैमिली और बच्चों को खिलाएं.

ये भी पढ़ें- फेस्टिवल स्पेशल 2019: घर पर बनाएं मैदे की बरफी

क्या आप के बच्चे भी कर रहे हैं आप की बातों को अनसुना

आज के समय में पेंरेट्स अपने बच्चों की बिगडती आदतों और उनकी बातों को अनसुना कर देने की वजह से परेशान रहते हैं. अक्सर देखा गया है कि बच्चे किसी काम को ना करने की जिद करते हैं तो उनके पेरेंट्स उनपर दबाव डालते हैं और जबरदस्ती वह काम करवाते हैं, जिसके चलते धीरे-धीरे बच्चे पेरेंट्स की बातों को अनसुना करने लगते हैं.

ऐसे में पेरेंट्स को भी आराम से स्थिति को हैंडल करने की जरूरत होती हैं. इसलिए आज हम आप पेरेंट्स के लिए कुछ टिप्स लेकर आए हैं जिनकी मदद से आपके बच्चे आपकी बातों को मानने लगेंगे.

1. ‘ना’ की जगह कहें ये

बच्चों को सीधा न सुनना बिल्कुल भी नहीं पसंद होता. उन्हें लगता है आप उनकी बात नहीं मानते. इसलिए अगर वह आपसे किसी चीज को लेने या फिर गेम खेलने को बोल रहे है तो उन्हे सीधा न करने की बजाय उनसे बोले पहले होमवर्क कर लें फिर जो मन आया करना. इससे वह खुश हो कर जल्दी अपना काम खत्म करेंगे.

ये भी पढ़ें- कहीं भार न बन जाए प्यार

2. बच्चे का ध्यान अपनी ओर खींचे

जब कभी बच्चा टीवी, वीडियो गेम्स देख रहा हो उसे इससे हटाने के लिए दूर से चिलाकर न रोके बल्कि उसके पास जाकर टीवी और वीडियो गेम्स की आावाज धीमी करके उसे प्यार से इसे बंद करने के बोलें. उनसे बात करने के लिए उनके सामने बैठ कर आंखों में आंखे डाल कर बात करें. इससे उनका ध्यान आपकी तरफ खींचा जाएंगा और वह आपकी बात भी सुनेगा.

3. कहानी के जरिए समझाएं

बच्चों को कहानी सुनना बहुत पसंद होता है. वे अक्सर अपने दादा-दादी से कहानी सुनाने को बोलते है. अगर आपका बच्चा भी पढ़ाई की अहमियत नहीं समझता तो उसे डांट कर नहीं कहानियों के जरिए इसका महत्व समझाएं. इससे वे बहुत जल्दी समझ जाएंगे.

ये भी पढ़ें- क्रश है या प्यार कैसे पहचानें

4. हल्की सजा दें

हल्की का मतलब ये नहीं कि आप उन्हें डांटे बल्कि उन्हें बोले अगर तुमने कहा न माना तो तुम्हें यह चीज बिल्कुल भी नहीं मिलेंगी या फिर मैं तुम्हें फेवरट् डिश नहीं बना कर दूंगी. इससे उन्हें याद रहेगा आपने उन्हें कहना न मानने पर उनकी पसंद की चीज नहीं लेकर दी.

बागबानी के ये भी हैं फायदे

एक समय था जब बहुमंजिला इमारतों में आशियाना नहीं तलाशा जाता था, खुले आंगन और छोटे से बगीचे वाले आशियाने को प्राथमिकता दी जाती थी. बगीचे पर तो खासतौर पर ध्यान दिया जाता था, क्योंकि यही उन के घर की साजसज्जा का जरीया होता था और अपनी पसंद की सब्जियां वगैरह उगाने का भी. वक्त ने करवट बदली, तो आधुनिकता ने आंगन भी निगल लिया और बगीचा भी. लेकिन एक बार फिर लोगों में अपने घर पर एक छोटा सा बगीचा तैयार करने की उत्सुकता को देखा जा रहा है. भले ही लोग गार्डन को जरूरत या शौक के नजरिए से न देख लाइफस्टाइल स्टेटस में इजाफा समझ कर अपने आशियाने में जगह दे रहे हों, लेकिन होम गार्डन के ट्रैंड पर उन्होंने अपनी सहमति की मुहर जरूर लगा दी है.

इस बाबत बागबानी विशेषज्ञा डाक्टर दीप्ति कहती हैं, ‘‘बगीचा होना अब घर की शान समझा जाता है. लोग इस में फैंसी पौधे और फूल उगाते हैं, जो घर की खूबसूरती को बढ़ाते हैं. असल में गार्डन होना और गार्डनिंग करने में बहुत अंतर है. भले गार्डन आशियाने की रौनक को बढ़ा दे, मगर उस में रहने वालों को इस का असली सुख तभी  मिलेगा जब वे इस की उपयोगिता को भी समझेंगे.’’

उपयोगिता बागबानी की

बागबानी समय का सब से अच्छा सदुपयोग है. बागबानी विशेषज्ञ डाक्टर आनंद सिंह कहते हैं, ‘‘आज की भागतीदौड़ती दिनचर्या में किसी के पास वक्त नहीं है. लोग औफिस के काम से फुरसत पाते हैं तो घरेलू कार्यों में मसरूफ हो जाते हैं. फिर अगर समय मिलता है तो वीकैंड में शौपिंग करने निकल जाते हैं. कई बार तो  फुजूलखर्ची करते हैं. ऐसे में मानसिक संतुष्टि मिलने के बजाय उलटा अवसाद घेर लेता है. अत: इस से अच्छा तो यह हो कि घर पर रह कर कुछ रचनात्मक काम किया जाए. इस में बागबानी से बेहतर और कोई विकल्प नहीं हो सकता है, क्योंकि यह आप को मानसिक सुख देने के साथसाथ अच्छी सेहत और भरपूर ज्ञान भी देगा.’’

ये भी पढ़ें- नैटिकेट्स का रखें ध्यान

यहां डच (जरमनी) लोगों का उदाहरण देना  सही रहेगा, क्योंकि वहां करीबकरीब सभी लोगों के पास अपना बगीचा है, जिस में खाली समय में वे बागबानी करते हैं. उन्हें मौल्स में घूमने से ज्यादा बेहतर बागबानी करना लगता है. यहां आम लोग ही नहीं वरन सैलिब्रिटीज भी गार्डनिंग का शौक रखते हैं. एक डच पत्रिका में जरमनी के मशहूर शैफ, जौन लफर के अनुसार, यदि वे देश के मशहूर शैफ न बन पाते तो खुशी से गार्डनिंग के पेशे में आते. वैसे शैफ जौन अभी भी अपने पेशे के अलावा गार्डनिंग में खास दिलचस्पी रखते हैं. यही वजह है कि वे अपने पौटेड प्लांट्स कलैक्शन के पैशन को छिपा नहीं पाते.

वैसे जरमनी ही नहीं हमारे देश में भी बहुत से लोग बागबानी का शौक रखते हैं, लेकिन विस्तृत जानकारी के अभाव और इस की उपयोगिता से अनजान होने की वजह से अपने शौक को बढ़ावा नहीं दे पाते. फिर भी कुछ सैलिब्रिटीज की बात करें तो बौलीवुड के अभिनेता और अभिनेत्रियां, जिन का ज्यादा वक्त शूटिंग करते ही बीतता है, खाली वक्त में या तो पार्टी करना पसंद करते हैं या फिर छुट्टियां बिताने विदेश पहुंच जाते हैं. लेकिन कुछ अरसा पहले एक इंटरटेनमैंट वैबसाइट को दिए इंटरव्यू में अभिनेत्री सेलिना ने कहा कि वे अपने प्रोफैशन से वक्त मिलते ही छत पर बनाई अपनी बगिया में पहुंच जाती हैं. वहां उन्हें नए पौधे लगाना, उन में खाद डालना, पानी देना बहुत अच्छा लगता है. उन्हें गार्डनिंग का शौक इस कदर है कि इस के लिए उन्होंने विशेषतौर पर ट्रेनिंग भी ली है और वक्त मिलने पर वे बागबानी से जुड़ी किताबें भी पढ़ती रहती हैं.

लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी है बागबानी

मगर सेलिना जैसे लोग बहुत कम हैं, जो अपने गार्डनिंग के पैशन को उभारने की जगह उसे दबा देते हैं. वजह, जानकारी का अभाव ही है. डाक्टर दीप्ति कहती हैं, ‘‘बहुत से लोग बागबानी का शौक रखते हैं. पर उस में खर्र्च करना नहीं चाहते, उन्हें बागबानी में निवेश की कोई संभावना नहीं दिखती, जबकि बागबानी एक लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी की तरह है. आप उस में जितना समय देंगे आप की सेहत उतनी ही अच्छी रहेगी.’’

नैशनल ज्योग्राफिक औथर एवं रिसर्चर डैन बटनर के अध्ययन के अनुसार, बागबानी करने वालों का जीवन आम लोगों से 14 वर्ष अधिक होता है. कैसे, आइए जानें.

– बागबानी दिन में ही की जाती है, इसलिए जाहिर है कि बागबानी के दौरान सूर्य के संपर्क में आना पड़ता है, जिस से शरीर को विटामिन डी मिल जाता है. विटामिन डी शरीर को कैंसर और हृदय से जुड़ी बीमारियों से बचाता है.

– यह भ्रम है कि मिट्टी में हाथ सनने से बैक्टीरिया चिपक जाते हैं, जिस से संक्रमण का  खतरा रहता है. दरअसल, मिट्टी प्राकृतिक बैक्टीरिया, मिनरल्स, माइक्रोऔर्गैनिज्म का प्रमुख स्रोत होती है. रोजाना मिट्टी के स्पर्श से शरीर का इम्यून सिस्टम अच्छाहोता है.

– लोगों में भ्रांति है कि नंगे पैर जमीन पर रखने से वे मैले हो जाते हैं. लेकिन यह सोचना गलत है. त्वचा का धरती से सीधा संपर्क शरीर में इलैक्ट्रिकल ऐनर्जी द्वारा पौजिटिव इलैक्ट्रोंस जेनरेट करता है.

– आधुनिक जीवनशैली में बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने लोगों को अवसाद के आगोश में धकेल दिया है, जिस से तमाम तरह की बीमारियां जन्म ले रही हैं. बागबानी इन बीमारियों से बचने का एक सरल उपाय है, क्योंकि इस से मिलने वाला सुख शरीर पर प्रत्यक्ष रूप से असर डालता है और दिमाग को तनावमुक्त रखता है.

– बागबानी का अर्थ केवल फूल उगाना नहीं. घरों में किचन गार्डन भी तैयार किया जा सकता है. इस से मिलने वाली सब्जियां आप के शरीर को पोषण देने के साथसाथ ऐंटीऔक्सिडैंट भी देंगी और जहरीले तत्त्वों से भी शरीर की सुरक्षा करेंगी.

– बागबानी करने वालों को जिम जाने की जरूरत भी नहीं पड़ती, क्योंकि बागवानी में काम करते हुए ही पूरी ऐक्सरसाइज हो जाती है.

कम जगह और पैसों में भी संभव

यह सच है कि बागबानी महंगा शौक है. लेकिन आप चाहें तो कम पैसों में भी यह संभव हो सकती है. जरा सोचिए, फल और सब्जियों के आसमान छूते भाव के चलते अपनी जेब ढीली करने से बेहतर यही है कि घर पर ही इन्हें उगा लिया जाए, जो आप को अच्छा स्वाद, सेहत और संतुष्टि देने के साथसाथ आप के बजट को भी बिगड़ने नहीं देंगी. डाक्टर दीप्ति कहती हैं, ‘‘आजकल बड़े शहरों में ताजा हवा के लिए औक्सीजन जोन बनाए जा रहे हैं. वहां लोग भारी कीमत चुका कर चंद घंटे गुजारने जाते हैं. लेकिन चंद घंटों में मिली ताजा हवा से क्या होता है? ऐसा आप महीने में 1 बार कर सकते हैं. रोज तो पैसे खर्च नहीं कर सकते न? इसलिए यदि आप घर पर ही बागबानी करें तो घर पर ही ताजा हवा का आनंद लिया जा सकता और वह भी फ्री में. जो कीमत आप औक्सीजन जोन की ऐंट्री की चुकाएंगे उसी में बीज, खाद और गमले आ जाएंगे. सब से बड़ी बात तो यह है कि अपने हाथों से उगाई सब्जी खाने में जिस स्वाद और संतुष्टि की अनुभूति होगी उस से बेहतर और क्या सुख हो सकता है.’’

ये भी पढ़ें- बिना किसी खर्चे के इन 4 एप्स के साथ रखें फिटनेस का ख्याल

डाक्टर आनंद सिंह कहते हैं, ‘‘बाजार में सुंदर टमाटर, बैगन, लौकी देख कर लोग उन पर टूट पड़ते हैं. लेकिन यह ध्यान रहे कि सब्जी दिखने में जितनी सुंदर होगी उतनी ही नकली होगी. घर पर उगाई सब्जियां भले ही दिखने में उतनी खूबसूरत न हों, लेकिन स्वाद और सेहत के मामले में उन का कोई मुकाबला नहीं.’’ कभीकभी खर्चे के अलावा कुछ और परेशानियां बागबानी के शौकीनों को घर पर बगीचा तैयार करने से रोक देती हैं. छोटा घर और कम जगह इन परेशानियों में से ही हैं. लेकिन घर कितना भी छोटा क्यों न हो पौधे लगाने के लिए थोड़ी जगह मिल ही जाती है. यदि वह भी न मिले तो आजकल हैंगिंग गार्डन का फैशन चलन में है. इस विधि के अनुसार गमलों को फर्र्श पर रखने की जगह दीवारों या खूंटे के सहारे हवा में टांग दिया जाता है. इस से फर्श भी खाली रहता है और बागबानी का शौक भी पूरा हो जाता है.

कुछ दिनों से लगभग हर सप्ताह मुझे बुरे सपने आ रहे हैं, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं 18 वर्षीय बीए प्रथम वर्ष का छात्र हूं. कुछ दिनों से लगभग हर सप्ताह मुझे 1-2 बार रात में स्वप्नदोष हो जाता है. मेरे मित्र का कहना है कि मुझे जल्द से जल्द किसी डाक्टर से संपर्क करना चाहिए, नहीं तो मेरी सेहत पर बुरा असर पड़ेगा. क्या यह समस्या सचमुच इतनी गंभीर है? इस के लिए मुझे किस डाक्टर के पास जाना चाहिए? मैं ने कुछ वैद्यहकीमों के विज्ञापन भी देखे हैं जिन में स्वप्नदोष के इलाज का दावा किया जाता है. मेरा मन काफी विचलित है. राय दें कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

आप परेशान न हों. किशोर अवस्था से युवा उम्र में पांव रखते हुए जब हमारा शरीर सयाना हो जाता है, शरीर में सैक्स हारमोन का संचार होने लगता है, अंड ग्रंथियां शुक्राणु बनाने लगती हैं, प्रजनन प्रणाली में वीर्य बनने लगता है और पुरुषत्व के दूसरे शारीरिक गुण प्रकट हो जाते हैं. उस अवस्था में कुछ किशोरों और युवाओं में सोते समय यौन उत्तेजना जागृत होने पर स्वत: विसर्जित हो जाना बिलकुल सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है. आम बोलचाल की भाषा में लोग इसे स्वप्नदोष के नाम से जानते हैं.

सच तो यह है कि यह कोई विकार नहीं है और इसे सामान्य शारीरिक क्रिया के रूप में ही देखा जाना चाहिए. तरूणाई से ले कर वृद्धावस्था तक यह शारीरिक घटना हर उम्र के पुरुष में देखी जाती है. असल में तो इसे स्वप्नमैथुन कहना अधिक उचित होगा. चूंकि इस का जुड़ाव कामुक सपनों से होता है, जो नींद से उठने पर प्राय: याद नहीं रहते. मनोविज्ञानी इसे कामेच्छाओं की निकासी का कुदरती रास्ता भी मानते हैं.

ध्यान रहे कि भूल कर भी वैद्यहकीमों के चक्कर में न पड़ें. कई वैद्यहकीम अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में अनावश्यक ही भ्रामक बातों में फंसा अनेक युवाओं का यौन जीवन खराब कर देते हैं.

ये भी पढ़ें- मैं 2 सालों से गर्भवती होने की कोशिश कर रही हूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

जानें क्या होता है पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज

पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज यानी पीआईडी गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब और अंडाशय में होने वाला इन्फैक्शन है. कई बार यह इन्फैक्शन पैल्विक पेरिटोनियम तक पहुंच जाता है. पीआईडी का यही इलाज कराना जरूरी है, क्योंकि इस के कारण महिलाओं में ऐक्टोपिक प्रैगनैंसी या गर्भाशय के बाहर प्रैगनैंसी, संतानहीनता और पैल्विक में लगातार दर्द की शिकायत हो सकती है. आमतौर पर यह बैक्टीरियल इन्फैक्शन होता है, जिस के लक्षणों में पेट के निचले हिस्से में दर्द, बुखार, वैजाइनल डिस्चार्ज, असामान्य ब्लीडिंग, यौन संबंध बनाने या पेशाब करते समय तेज दर्द महसूस होना शामिल है.

पीआईडी के प्रारंभिक कारण

जब बैक्टीरिया योनी या गर्भाशय ग्रीवा द्वारा महिलाओं के प्रजनन अंगों तक पहुंचते हैं तो पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज का कारण बनते हैं. पीआईडी इन्फैक्शन के लिए कई प्रकार के बैक्टीरिया जिम्मेदार होते हैं.

ये भी पढ़ें- हर्निया की बीमारी को हल्के में न लें

ज्यादातर यह इंफैक्शन यौन संबंधों के दौरान होने वाले बैक्टीरियल इन्फैक्शन के कारण होता है. इस की शुरुआत क्लैमाइडिया और गनेरिया या प्रमेह के रूप में होती है. 1 से अधिक सैक्सुअल पार्टनर होने की स्थिति में भी पीआईडी होने का खतरा बढ़ जाता है. कई मामलों में क्षय रोग यानी टीबी भी इस के होने का कारण बनता है. 20 से 40 वर्ष की महिलाओं में इस के होने की आशंका अधिक रहती है, लेकिन कई बार मेनोपौज की अवस्था पार कर चुकी महिलाओं में भी यह समस्या देखी जाती है.

यह होती है परेशानी

पीआईडी के कारण कई बार प्रजनन अंग स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और फैलोपियन ट्यूब में भी जख्म हो सकता है. इस के कारण गर्भाशय तक अंडे पहुंचने में बाधा आती है. ऐसी स्थिति में स्पर्म अंडों तक नहीं पहुंच पाता या एग फर्टिलाइज नहीं हो पाते हैं, जिस की वजह से भ्रूण का विकास गर्भाशय के बाहर ही होने लगता है. क्षतिग्रस्त होने और बारबार समस्या होने पर इनफर्टिलिटी का खतरा बढ़ जाता है. वहीं जब पीआईडी की समस्या टीबी के कारण होती है तो मरीज को ऐंडोमैट्रियल ट्यूबरकुलोसिस होने की आशंका रहती है और यह भी इनफर्टिलिटी का कारण बनता है. कई बार तो पीआईडी के कारण मासिकस्राव के बंद होने की भी शिकायत हो जाती है.

पहचान और उपचार

भले ही पीआईडी की समस्या के कुछ लक्षण नजर आते हों, इस के बावजूद इस का पता लगाने के लिए किसी प्रकार की जांच प्रक्रिया उपलब्ध नहीं है. मरीज से बातचीत के जरीए और लक्षणों के आधार पर ही डाक्टर इस की पुष्टि करते हैं. डाक्टर को इस बात का पता लगाने की जरूरत हो सकती है कि किस प्रकार के बैक्टीरिया के कारण पीआईडी की समस्या हो रही है. इस के लिए क्लैमाइडिया या गनोरिया की जांच की जाती है.

फैलौपियन ट्यूब में इंफैक्शन का पता

लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड किया जा सकता है. पीआईडी का इलाज ऐंटीबायोटिक द्वारा किया जाता है. मरीज को दवा का कोर्स पूरा करना जरूरी होता है.

टीबी के कारण पीआईडी की समस्या होने पर ऐंटीटीबी ट्रीटमैंट किया जाता है. वैसे टीबी के इलाज के बाद पीआईडी का उपचार किया जा सकता है. यदि इलाज के बाद भी मरीज की स्थिति में सुधार नहीं होता है तो सर्जरी की सलाह दी जाती है.

ये भी पढ़ें- इन 5 फ्रूट जूस को पिएं जरूर, बनी रहेगी हेल्थ

पीआईडी के बाद प्रैगनैंसी

जिन महिलाओं के पीआईडी के बाद प्रजनन अंग क्षतिग्रस्त हो गए हों, उन्हें फर्टिलिटी विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए ताकि सेहतमंद गर्भावस्था को बनाए रखा जा सके. पैल्विक इन्फैक्शन के कारण गर्भाशय के बाहर प्रैगनैंसी होने का खतरा 6-7 गुना तक बढ़ जाता है. इस खतरे को दूर करने और फैलोपियन ट्यूब में समस्या होने पर आईवीएफ थेरैपी कराने की सलाह दी जाती है, क्योंकि आईवीएफ के जरीए ट्यूब को पूरी तरह से पार किया जा सकता है. फैलोपियन ट्यूब में किसी प्रकार का अवरोध होने की स्थिति में रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी ट्रीटमैंट की सलाह दी जाती है. गर्भावस्था के दौरान यदि पीआईडी की समस्या फिर से हो जाती है तो मां और बच्चे दोनों की जान को खतरा रहता है. ऐसे में डाक्टरी सलाह की जरूरत होती है, ताकि आईवीएफ द्वारा ऐंटीबायोटिक दिया जा सके.

-डा. सागारिका अग्रवाल

आईवीएफ ऐक्सपर्ट, इंदिरा हौस्पिटल्स, नई दिल्ली

जेंडर सेंसिटाइजेशन जरूरी है

भारतीय समाज में शुरू से ही युवतियों पर तरहतरह की पाबंदियां लगाई जाती रही हैं. उन्हें युवकों के मुकाबले कमतर आंका जाता रहा है. परिवार में, चाहे वे उच्चवर्ग के हों या मध्यवर्ग के, शिक्षित हों या कम पढ़ेलिखे, बेटी के जन्म पर उतनी खुशियां नहीं मनाते जितनी बेटा होने पर. बेटा होने पर पूरे महल्ले व बिरादरी में मिठाइयां बांटी जाती हैं, हफ्तों जश्न का माहौल रहता है. लड़का हुआ है शुभ लक्षण है इसलिए ब्राह्मण भोज कराया जाता है, लड़के के हाथ से छुआ कर मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाया जाता है. नामकरण से ले कर मुंडन तक सभी अवसरों को पूरे तामझाम के साथ मनाया जाता है.

बेटे के जन्म की खुशी के पीछे भावना यह होती है कि वह वंशबेल को आगे बढ़ाएगा. इतना ही नहीं बड़ा हो कर, पढ़लिख कर परिवार का आर्थिक सहारा बनेगा. जबकि बेटी को शुरू से ही पराई अमानत समझा जाता रहा है. वह तो एक दिन ससुराल चली जाएगी, तो फिर उस पर इतना खर्च क्यों किया जाए.

लड़की को शुरू से ही यह कह कर दबाया जाता रहा है कि तू तो लड़की है, तू घर में बैठ, चूल्हाचौका कर यही ससुराल में काम आएगा. ज्यादा उड़ने की जरूरत नहीं है.

इतनी कठोर पाबंदियों में लड़कियों की इच्छाओं का दमन हो जाता था, वे इसी को नियति समझ कर घरेलू काम में जुट जाती थीं और बड़ी होने पर किसी के साथ भी ब्याह दी जाती थीं. न ही उन की इच्छा पूछी जाती थी और न ही शादी से पहले लड़के का मुंह तक दिखाया जाता था. ऊपर से यह नसीहत और दे दी जाती थी कि वापस लौट कर मत आना. ससुराल से तुम्हारी लाश ही निकले इसी में सब की भलाई है.

ऐसे कड़े अनुशासन में लड़कियों की परवरिश होती थी. जबकि लड़कों को खुली छूट होती थी कि वे कहीं भी जाएं, कभी भी घर आएं.

समय बदला साथ ही समाज की बहुत सी मान्यताएं भी बदलीं. आज लड़कियां कालेज जा रही हैं, नौकरियां कर रही हैं, फैशनेबल कपड़े पहन रही हैं. लेकिन अफसोस की बात यह है कि इतना सब कुछ होते हुए भी कहीं न कहीं लड़कियों को लड़कों के मुकाबले उतनी छूट नहीं है. उन्हें आज भी कमजोर समझा जाता है. लड़की देर से घर लौटे तो घर वालों की चिंता बढ़ जाती है. मातापिता उस की सहेलियों को तुरंत फोन घुमा देते हैं और जब तक वह घर वापस नहीं आ जाती चैन से नहीं बैठते हैं.

ये भी पढ़ें- साइज नहीं इन का हौसला है प्लस

मातापिता का लड़कियों के प्रति चिंतित होना तो तब भी समझ में आता है लेकिन हमारा समाज चाहे जितनी तरक्की कर गया हो, लड़की को लड़के के मुकाबले छोटा और कमजोर ही समझता है. करीबकरीब रोज ही अखबार में लड़कियों के साथ बलात्कार की घटनाएं प्रकाशित होती रहती हैं. समाज उन की बेबसी पर दया न दिखा कर चटखारे लेता है और लड़के अपना काम कर के निकल जाते हैं. सारा दोष लड़की पर ही मढ़ दिया जाता है कि जब फैशनेबल कपड़े पहन कर निकलेंगी तो यही होगा, इस में लड़कों का क्या दोष यानी लड़कों को सब कुछ करने का जैसे लाइसैंस मिला हुआ है.

लड़कियों के प्रति समाज का नजरिया आखिर ऐसा क्यों है? यह शोध का विषय है. लेकिन अफसोस तब होता है जब कोई फिल्मी सैलिब्रिटी अपने अभिनय की तुलना बलात्कार पीडि़त किसी युवती से कर डाले.

सलमान खान ने जब फिल्म ‘सुल्तान’ में किए गए अपने अभिनय की तुलना बलात्कार पीडि़त एक लड़की से की, तो उन्हें काफी धिक्कारा गया. पिता सलीम खान को उन की तरफ से माफी भी मांगनी पड़ी. लेकिन ध्यान से उन की बात का विश्लेषण करें तो स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय समाज में लिंगभेद आज भी वि-मान है और लड़कियों के साथ संवेदना का अभाव है. सलमान खान जैसे विख्यात व्यक्ति द्वारा इस तरह का उदाहरण देना यही दर्शाता है कि मनुष्य में संवेदनशीलता खत्म होती जा रही है.

ऐसी घटनाएं अकसर सुनने में आती हैं. एक दिन रात में रत्ना के घर से अचानक परेशान कर देने वाली आवाजें आने लगीं. अगले दिन उस की पड़ोसिन मान्यता ने रत्ना के घर जा कर उस की सास से पूछा कि रात में आप के घर से आवाजें क्यों आ रही थीं, तो उन्होंने मुंह बिचकाते हुए कहा, ‘‘अरे, कुछ नहीं, पतिपत्नी के बीच तो लड़ाईझगड़ा, मारपिटाई होती रहती है. बस मोहित ने 3-4 थप्पड़ ही लगाए थे, तो सारी रात बवाल मचाए रखा. ठीक से नहीं रहेगी तो पिटेगी ही.’’

‘‘यह क्या कह रही हैं आप आंटी? लड़ाईझगड़ा तक तो ठीक है, पर मारपिटाई? आखिर पतिपत्नी बराबरी के रिश्ते में बंधे होते हैं.’’

‘‘बराबरी? यह क्या कह रही है तू? हमेशा से पत्नी दोयम दर्जे की होती है. इस से भला कौन इनकार कर सकता है.’’

एक स्त्री होते हुए भी वह दूसरी स्त्री के बारे में ऐसे तुच्छ विचार रखती थी, जो सरासर गलत ही नहीं, बल्कि समाज के प्रति स्त्री के नजरिए को दर्शाता है.

एक प्रतिष्ठित इलैक्ट्रौनिक कंपनी की सीनियर ऐडवाइजर पल्लवी आनंद ने बताया कि जब वह सिनेमा हौल में फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ देख रही थी, जिस के एक दृश्य में अभिनेत्री आलिया भट्ट रोते हुए बारबार अपने साथ हुए बलात्कार की बात कहती है, तो वहां मौजूद कई लड़के हंस कर ताली और सीटियां बजा रहे थे. एक लड़की की दिल भेद देने वाली तकलीफ पर उन लड़कों को हंसी आ रही थी.

इस से यही स्पष्ट होता है कि समाज स्त्री को मर्द के हाथ का खिलौना समझता है. स्त्री की तकलीफों और उस पर हो रहे अत्याचारों का उस पर कोई असर नहीं पड़ता. स्त्री के साथ बलात्कार जैसी घटना होने पर स्त्री को ही दोषी ठहराया जाता है. आखिर यह लिंग भेद क्यों है? क्यों समाज स्त्रियों के लिए संवेदनशील नहीं है?

मीना की पड़ोस में राकेश नाम का एक युवक रहता था. उस पर बलात्कार का मामला चल रहा था. इस के बावजूद उस की शादी तय हो गई थी. यह बात मीना ने जब अपने पति को बताई तो वह बोला, ‘‘अच्छी बात है. आखिर क्या कमी है राकेश में? वह मर्द है और मर्द पर कभी कोई लांछन नहीं लगता.’’

यह सुन कर मीना को अपने पति पर गुस्सा तो बहुत आया पर वह खून का घूंट पी

कर रह गई. रोजमर्रा की ऐसी छोटीछोटी असंवेदनाएं दर्शाती हैं कि नारी को देवी का स्थान देने वाले हमारे समाज में लिंग संवेदीकरण की कितनी भारी कमी है.

ये भी पढ़ें- चौंका देंगे भीख मांगने के नए पैंतरे

जब रोहन सुमित के घर मिलने आया तो सुमित तथा उस का परिवार साथ बैठ कर गप्पें लड़ा रहा था. तभी रोहन की बेटी ने छोटी सी स्कर्ट पहने घर में प्रवेश किया. सुमित ने अपने मित्र रोहन से कहा, ‘‘आजकल आए दिन कैसी खबरें आ रही हैं समझ रहा है न? लड़कियां ऐसे छोटे कपड़े पहनेंगी तो किसी को क्या दोष दें?’’

‘‘जी हां, भाईसाहब,’’ सुमित की पत्नी ने साथ दिया, ‘‘ऐसे में लड़कों को क्या कहें जब लड़कियों को ही अपना होश नहीं? हमें तो कोई चिंता है नहीं, हमारे घर में लड़का है. लेकिन जिन घरों में लड़कियां हैं उन्हें तो ध्यान रखना चाहिए कि वे अपनी लड़कियों को रोक कर रखें.’’

उन की ऐसी मानसिकता पर रोहन और उस की पत्नी को आश्चर्य के साथ रोष भी हुआ. जब नैतिक मूल्यों का सारा बीड़ा केवल लड़कियों के सिर होगा तब न तो समाज में लड़कियों की सुरक्षा होगी और न ही समानता. यदि लड़कियों की भांति लड़कों को भी नैतिक मूल्य सिखाए जाएं, उन्हें भी घर लौटने की समय पाबंदी हो, उन के समक्ष भी नैतिकता की चुनौती बचपन से डाली जाए, तब शायद हमारे समाज में लड़की घर से बाहर निकलने में सुरक्षित अनुभव करेगी.

लिंग संवेदीकरण पर विदेशियों के विचार लिंग संवेदीकरण की घटनाएं न केवल भारत में हो रही हैं, बल्कि विदेशों में भी ऐसी घटनाएं आम हैं.

अमेरिकी पत्रकार व सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता ग्लोरिया स्टीनेम ने कहा है कि हम ने अपनी लड़कियों को तो लड़कों की तरह पालना शुरू कर दिया है, लेकिन अपने लड़कों को लड़कियों की तरह पालने की हिम्मत बहुत कम में है.

निकलस क्रिस्टोफ, जो अमेरिकी पत्रकार व लेखक हैं और 2 बार पुलित्जर प्राइज के विजेता भी रहे हैं, का कहना है कि कई शताब्दियां गुलामी से लड़ने में निकलीं. 19वीं शताब्दी में अधिनायकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी गई और वर्तमान सदी में पूरे विश्व में लैंगिक समानता की नैतिक चुनौती सर्वोच्च रहेगी.

इन विदेशी विचारकों के विचारों से यह स्पष्ट है कि लिंग असमानता न केवल किसी एक देश की समस्या है, बल्कि पूरा विश्व इस से ग्रसित है.

नवंबर में अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव में हिलेरी क्लिंटन का डोनाल्ड ट्रंप से हारना भी यह दर्शाता है कि अमेरिका जैसा देश भी लिंग भेद की दलदल में अभी भी फंसा हुआ है. अगर हिलेरी चुनाव जीततीं, तो वे 245 वर्ष पुराने लोकतंत्र की पहली महिला राष्ट्रपति बनतीं.

जब अमेरिका जैसे मौडर्न देश में लिंग संवेदीकरण है और स्त्रियों को कमतर समझा जाता है, तो भारत जैसा देश जो पंडेपुजारियों के प्रवचनों व पूजाअर्चना जैसी कूपमंडूक बातों को प्राथमिकता देता हो, वहां लिंग असमानता न हो यह हो ही नहीं सकता. आज भी दक्षिण व देश के कई हिस्सों में स्थित मंदिरों में स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है. आखिर क्यों? वैसे तो पुरुषों को भी इन मंदिरों में जाने से कुछ हासिल नहीं होता पर स्त्रियों पर ऐसी पाबंदियां थोपना क्या सही है?

जिनेवा स्थित विश्व आर्थिक मंच के वार्षिक जेंडर गैप इंडैक्स के अनुसार भारत 114वें स्थान पर है. जबकि पिछले वर्ष भारत का स्थान भाग लेने वाले 136 देशों में 101वां था.

कैसे हो लिंग संवेदीकरण

आज जब विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है और जीवनयापन की परिभाषा ही बदल गई है तो हमें लिंग संवेदीकरण पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है और एक समाज को गढ़ना है जहां लिंग संवेदीकरण की भावना हो और स्त्री और पुरुषों के बीच असमानताओं की दीवारें न हों. दोनों को एक ही पलड़े में तौला जाए. स्त्रियों के साथ होने वाली बदसलूकी को खत्म किया जाए.

यदि हम चाहते हैं कि हमारे समाज में लिंग संवेदीकरण हो तो हमें अपने बच्चों में शुरू से ही इस का बिगुल फूंकना होगा और यह कार्य जितना घर के अंदर हो सकता है उतना ही विद्यालय के अंदर भी. पोर्ट ब्लेयर के निर्मला उच्च माध्यमिक विद्यालय की प्रधानाचार्या डा. कैरोलीन मैथ्यु का मत है कि विद्यार्थियों में जागरूकता लाने में अध्यापकों की भूमिका श्रेष्ठ है. सब से पहले अध्यापक को लिंग संवेदीकरण में विश्वास होना चाहिए. एकदूसरे के प्रति समानता और आदर की भावना लड़के व लड़कियों में एक समान होनी चाहिए. दोनों को एकदूसरे की अच्छाइयों व कमियों को जानना और सहना आना चाहिए.

लड़केलड़कियों को बराबर के अवसर प्रदान करने चाहिए, लड़कियों को प्रसिद्ध महिलाओं की जीवनियां पढ़ानी चाहिए व उन्हें उन के अधिकारों की जानकारी के साथ ही आत्मरक्षा का प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए.

कालेज से निकल कर जब युवक व युवतियां बराबरी से नौकरी के क्षेत्र में कदम रखते हैं तब भी लिंग संवेदीकरण का पाठ चलता है. आज कारपोरेट दुनिया में भी इस विषय में काफी काम हो रहा है, जो प्रगतिशील है.

कारपोरेट जगत में आए बदलाव

प्रीति कटारिया जो विप्रो में एचआर हैड हैं बताती हैं कि उन की कंपनी में ऐसे प्रश्न जैसे ‘क्या आप शादीशुदा हैं?’ भी नहीं पूछ सकते हैं. कहती हैं कि भारतीयों को महिलाओं से ऐसे सवाल मसलन, विवाह संबंधी या बच्चे संबंधी पूछना स्वाभाविक लगता है. लेकिन ऐसे प्रश्न एक पुरुष आवेदक से नहीं पूछे जाते हैं. ऐसे प्रश्नों को नहीं पूछना चाहिए, क्योंकि ऐसे प्रश्नों से महिलाओं के कैरियर पर असर पड़ता है. महिलाएं भी पुरुषों की भांति अपने काम में अग्रसर होना चाहती हैं.

ये भी पढ़ें- कालेज के मायने बदल देगी औनलाइन शिक्षा

कुछ ठोस कदम

लाइफ स्किल्स कोच, मंजुला ठाकुर कहती हैं कि अब लोगों को लिंग संवेदीकरण जैसे संवेदनशील विषय पर खुल कर बातचीत करने की जरूरत महसूस होने लगी है, विविधता से परिपूर्ण देश में लैंगिक समानता लाने हेतु कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना होगा:

– रूढिवादी मान्यताओं तथा पक्षपातपूर्ण मूल्यों से हट कर दोनों लिंगों के प्रगतिशील अस्तित्व को बढ़ावा देना होगा.

– दोनों के कार्यक्षेत्रों के लिए सुलहपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना होगा.

– महिलाओं की रक्षा हेतु सफल कदम उठाने होंगे. साथ ही यह भी निश्चित करना होगा कि यह कदम पुरुषों के प्रति किसी प्रकार का भेदभाव न रखे.

मंजुला मानती हैं कि प्रशिक्षण देने और जागरूकता बढ़ाने से हमारे समाज, शैक्षिक संस्थाओं, दफ्तरों आदि से लिंग आधारित भेदभाव अवश्य घटेगा और साथ ही औरतों को आगे बढ़ने के अधिकाधिक अवसर मिलेंगे. इसी आशा के साथ मंजुला चंडीगढ़ के पंचकूला व मोहाली में लाइफ स्किल्स ट्रेनिंग संस्था द्वारा परामर्श व प्रशिक्षण शिविर लगाती रहती हैं.

अक्षुना बक्शी जो केवल 25 वर्ष की हैं, कुछ ऐसा कर रही हैं कि हम सभी को उन से सीखना चाहिए. वैसे तो अक्षुना ट्रैवलिस्ता नामक औनलाइन साइट चलाती हैं. लेकिन समाज में स्त्री का उत्पीडन, स्त्री जाति से द्वेष की भावना से तंग आ कर अक्षुना ने एक संस्था भी आरंभ की है. उन की टीम में केवल महिलाएं हैं, जो महिलाओं को जीवन के कई पहलुओं से अवगत कराती हैं.

संवेदीकरण पर काम करते हुए अक्षुना ने खास पाठ्यक्रम तैयार किया है, जिस में लैंगिक समानता, पुरुषों की जिम्मेदारी, पुरुषों द्वारा बचपन से ही महिलाओं को सम्मान दिलवाना आदि को उन के सभी सत्रों में शामिल किया जाता है.

लिंग संवेदीकरण हेतु हमें छोटीछोटी संवेदनशीलताओं का ध्यान रखना होगा. मुंबई उच्च न्यायालय में वकील, ऐलीन मारकीस का कहना है कि हमें अपने बच्चों के सामने सतर्क रह कर प्रतिक्रिया देनी चाहिए. वे लगातार अपने अभिभावक, अध्यापक आदि के कार्यकलापों को देख रहे होते हैं, इसलिए यह और भी आवश्यक हो जाता है कि हम उन के समक्ष सही मूल्य रखें.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश को विकास के पथ पर ले जाने में आधी आबादी का भी खासा योगदान है. इस की रफ्तार को बरकरार रखने के लिए हमें लिंग संवेदीकरण के प्रति संवेदनशील होना ही पड़ेगा.

संविधान में लैंगिक समानता का प्रावधान

– अनुच्छेद 14 में कानून में मर्द व औरत दोनों को समानता प्रदान की गई है.

– अनुच्छेद 15 में लिंग, जाति या नस्ल इत्यादि के आधार पर भेदभाव निषेध किया गया है.

– अनुच्छेद 16 में सार्वजनिक रोजगार में अवसर प्रदान करने की समानता की बात कही गई है. फिर भी इस विषय में हमारा देश अभी काफी पीछे है.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य सत्यव्रत पाल के अनुसार इन आंकड़ों से केवल नजरें झुकाने से काम नहीं बनेगा. इतना व्यवस्थित नरसंहार का न होना तभी मुमकिन है जब समाज के साथ सरकार भी इस के लिए ठोस कदम उठाए. देखा गया है कि कुछ परिवारों में बहनों को उन के भाइयों से कम भोजन मिलता है, कम शिक्षा मिलती है. लड़कियों के प्रति हिंसा और लड़कों को दी गई प्राथमिकता शुरू से ही दोनों में इस भावना का बीज बो देती है कि पुरुषों को स्त्रियों की तुलना में सामाजिक वरीयता अधिक मिले.

6 TIPS: खूबसूरत स्किन के लिए ग्रीन टी फेस पैक

ग्रीन टी में बहुत सारा एंटीऔक्‍सीडेंट, विटामिन और मिनरल पाया जाता है जो शरीर को स्‍वस्‍थ्‍य बनाने के साथ ही साथ चेहरे को सुंदर भी बनाता है. ग्रीन टी पीने से चेहरे की झुर्रियों, दाग-धब्‍बे, मुंहासों, सर्न टैन और यहां तक कि स्‍किन कैंसर से भी छुटकारा मिलता है. ग्रीन टी बैग को आप डायरेक्‍ट ही त्‍वचा पर लगा सकती हैं, इससे सन टैन से मुक्‍ती मिलेगी और त्‍वचा गोरी हो जाएगी.

अगर आप भी ग्रीन टी का फायदा उठाना चाहती हैं तो ग्रीन टी का सेवन करें या फिर ग्रीन टी का फेस पैक बना कर को चेहरे पर लगाएं.

कैसे बनाएं ग्रीन टी फेस पैक

1. 3 चम्‍मच ग्रीन टी और कोकोआ पाउडर लेकर उसे 1 चम्‍मच बादाम के तेल में मिला लें. इसे 20 मिनट तक चेहरे पर लगाएं और चहरे को धो लें, इससे आपका चेहरा ग्‍लो करने लगेगा.

ये भी पढ़ें- 8 TIPS: बाल धोने के बाद न करें ऐसी गलतियां

2. पके पपीते का गूदा निकालिये और उसमें ग्रीन टी का पानी मिलाइये. इस पैक को चेहरे पर 15 मिनट तक रखने के बाद साफ कर लें. इससे टैन पड़ी स्‍किन बिल्‍कुल साफ हो जाएगी.

3. ग्रीन टी के 2 बैग को 1 चम्‍मच चावल के आटे के साथ मिलाइये और उसमें नींबू का रस डाल कर पेस्‍ट तैयार कीजिये. इस पेस्‍ट को चेहरे पर 15 मिनट तक लगा रहने के बाद इसे स्‍क्रब कर के निकाल लीजिये. इससे स्‍किन ब्राइट दिखने लगेगी.

4. तीन स्‍ट्राबेरी को मैश कर के उसमें आधा चम्‍मच शहद और 1 चम्‍मच ग्रीन टी मिलाइये और इस पेस्‍ट से चेहरे पर ऊपर की ओर मसाज करें. आधे घंटे के बाद चेहरा धो लें, कुछ ही दिनों में आपकी सारी झुर्रियां गायब हो जाएंगी.

5. पानी उबाले और उसमें 3 टी बैग ग्रीन टी के और कुटी हुई अदरक डाल दें. जब पानी आधा हो जाए तो उसे छान लें और पानी को उस जगह पर लगाएं जहां पर पिंपल या दाग धब्‍बे हैं. इससे पिंपल साफ हो जाएगा.

ये भी पढ़ें- जानें क्या है क्रीमी कॉम्प्लेक्शन पाने का राज 

6. 1 चम्‍मच शहद, औलिव औयल और 1 चम्‍मच ग्रीन टी पाउडर एक साथ मिलाइये. इस पेस्‍ट को हल्‍का सा गरम करें और इससे अपने चेहरे की मसाज करें, फिर 30 मिनट तक छोड़ने के बाद चेहरा धो लें.

कोरोनावायरस लक्षण- जो बच्चों में भी देखने को मिल रहे हैं

इस महामारी के दौरान सबसे ज्यादा खतरा या तो बच्चों में पाया गया है या उन लोगों में जिन्हे पहले से ही कोई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या है. हालांकि बच्चों को यह इंफेक्शन काफी कम हो रहा है फिर भी उनके माता पिता ज्यादा चौकन्ने हो गए हैं. हाल ही में एक रिपोर्ट ने यह दावा किया है कि कम उम्र वाले लोगों में आजकल एक मल्टी सिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिस्टम देखने को मिल रहा है. इस रिपोर्ट ने कुछ नए लक्षणों की सूची तैयार की है बच्चों में जोकि वायरस से संक्रमित हैं, में देखने को मिल सकते हैं.

बच्चों में पाए जाने वाले कोरोना के सबसे अधिक कॉमन लक्षण

बड़ों व बूढों की तरह ही बच्चों में भी कुछ लक्षण देखने को मिलते हैं और कुछ एक लक्षण तो ऐसे हैं जो हर उम्र वर्ग में देखे जा रहे हैं. तो आइए जानते हैं कुछ कॉमन लक्षणों के बारे में जो बच्चों में देखने को मिल रहे हैं.

  • बुखार व नाक बहना.
  • थकान होना.
  • किसी चीज की गंध महसूस न होना.
  • गले का सुखना.
  • छाती में दर्द व सांसे फूलना.
  • पूरे शरीर मे दर्द होना.

ये भी पढ़ें- किडनी स्टोन से बचाए लो ऑक्सीलेट डाइट

वायरस से संक्रमित बच्चों में पाया जाने वाला नया सिंड्रोम

बच्चों को वायरस के जानलेवा पथोजेंस से अधिक खतरा होता है परन्तु बच्चों की ओर कोरोना का संक्रमण अधिक भी नहीं फैल रहा है. परन्तु एक रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों मे एक नए प्रकार का लक्षण दिखने लगा है जो उन्हे बहुत बुरी तरह प्रभावित कर सकता है. यह गंभीर स्थिति है जिसे मल्टी सिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम कहा जाता है.

जिन बच्चों को कोविड 19 हो जाता है उन्हे बहुत ही कम लक्षण देखने को मिलते हैं. परन्तु जिन्हे मल्टी सिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम हो जाता है उनके कुछ मुख्य आर्गंस जैसे किडनी, हृदय, पाचन तंत्र, दिमाग व स्किन आदि में इन्फ्लेमेशन देखने को मिलती है.

इस से जुड़े कुछ लक्षण

वायरस के कुछ मुख्य लक्षणों के अलावा भी जिन बच्चों में यह सिंड्रोम हो जाता है उन्हे कुछ अलग लक्षण देखने को मिलते हैं जैसे

  • गर्दन में सूजन होना.
  • फटे हुए होंठ.
  • स्किन पर रैश होना.
  • उंगलियां व पैरों की उंगलियों का लाल हो जाना.
  • सुजी हुई आंख.
  • स्ट्रॉबेरी टंग क्या है?

कुछ ऐसे 35 बच्चों को एग्जामिन किया गया जिन्हे कोविड के साथ साथ मल्टी सिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम भी है, ऐसे बच्चों में पाया गया कि उनकी स्किन के साथ साथ उनकी म्यूकस मेंब्रेन भी प्रभावित होती है जैसे आप के नोस्ट्रिल्स. इसके अलावा इन प्रभावित बच्चों में पाया गया कि इनकी आंखें सुजी हुई हैं, उनके गाल भी प्रभावित हैं और इन्हे स्ट्रॉबेरी टंग है.

यह उस स्थिति को कहा जाता है जिसमें बच्चे की जीभ सूज जाती है, ब्राइट हो जाती है व उसपे छोटे छोटे बंप हो जाते हैं. 35 बच्चों में से लगभग 8 को यह समस्या पाई गई.

ये भी पढ़ें- वर्किंग वुमन और हाउसवाइफ कैसे रहें फिट?

रिसर्च

जब यह बीमारी बहुत चरम पर थी तो 2 अलग अलग अस्पतालों मे से 35 बच्चों को जांचा गया. 35 में से लगभग 25 बच्चों को यह सिंड्रोम भी पाया गया. और इस सिंड्रोम से प्रभावित बच्चों के लगभग 2 मुख्य ऑर्गन तो प्रभावित होते ही हैं और इन्हे ठीक करने के लिए अभी कोई इलाज भी उपलब्ध नहीं है.

इनके अलावा 29 बच्चों में म्यूकोटेनस लक्षण पाए गए, 18 बच्चों के हाथ लाल रहते थे, 17 बच्चों का ब्लड फ्लो तेज गति से होने लगा था जिस कारण उन्हें इन्फ्लेमेशन होने लगी.

वैडिंग सीजन में ग्लैमरस लुक

वैडिंग में सजीधजी लडकियां हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं. लेकिन ऐसा तभी होता है जब वे बला की खूबसूरत और ग्लैमरस लुक देती हैं. इसलिए गर्ल्स ध्यान रखें कि आप का मेकअप और ड्रैसिंग सैंस ऐसा हो कि देखने वाले आप की क्यूटनैस व ड्रैसिंग स्टाइल को सराहे बिना न रह सकें.
सो, ये 5 टिप्स फौलो करना न भूलें-

यूनीक हो ड्रैस :

आप को देखते साफ लगना चाहिए कि आप यंग कालेजगोइंग गर्ल हैं, न कि आंटीजी. कई बार ड्रैसिंग के कारण लड़कियां बड़ी उम्र की दिखने लगती हैं. गर्ल्स को भारीभरकम कुछ पहनने के बजाय सिंपल, ब्राइट, यूनीक ड्रैस का चुनाव करना चाहिए. इस उम्र में क्यूटनैस वैसे ही होती है, इसलिए सिंपल में आप वैसे ही प्रीटी लगेंगी. वैस्टर्न पहनने का मन है, तो मिडी, फ्रौक या गाउन पहनें. क्लासिक दिखना चाहती हैं, तो शरारा, लहंगा, अनारकली सूट ट्राई कर सकती हैं.
साड़ी पहनने का मन है, तो यूनीक स्टाइल से पहनें.

ये भी पढ़ें- TV की बहुओं को पीछे छोड़ हैली शाह बनी मोस्ट स्टाइलिस्ट एक्ट्रेस, देखें फोटोज

एक्सेसरीज का चुनाव :

एक्सेसरीज और ज्वैलरी का चुनाव सोचसम झ कर करें. एक हाथ में ब्रैसलेट तो दूसरे हाथ में घड़ी पहनें. कानों में बड़ेबड़े झुमके हों, तो गले में कुछ न भी पहना हो, चलता है.
ज्वैलरी आप की ड्रैस से मिक्स एंड मैच करे.

बालों का स्टाइल :

हेयर स्टाइल पूरी लुक बदल देता है. फंकी एंड सिंपल हेयर स्टाइल आप को परफैक्ट बना सकता है. खुले बाल हर ड्रैस के साथ जंचते हैं. स्टाइलिश सा हाफ बाल या हाफ चोटी क्लासी लगती है.

ओवर मेकअप हरगिज नहीं :

मेकअप को ज्यादा आर्टिफिशियल न बनाएं. फाउंडेशन का उपयोग ओवर मेकअप का लुक देता है. चेहरे पर दागधब्बे और पिंपल्स हैं, तो बीबी या सीसी क्रीम का इस्तेमाल ठीक रहेगा. मेकअप ट्रिक्स बड़े होने पर ही अच्छे लगते हैं, जैसे स्मोकी साइज और बोल्ड लिप्स गर्ल्स पर अच्छे नहीं लगते और इंप्रैशन भी अच्छा नहीं जाता.

ये भी पढ़ें- वैडिंग फैशन के नए ट्रैंड्स

आकर्षक बनाएं अपने बैस्ट फीचर्स :

आप के बैस्ट फीचर्स कौन से हैं, यह बात आप अच्छी तरह जानती हैं. जैसे अगर आप को पता है कि आप की आंखें ज्यादा खूबसूरत हैं तो मेकअप करते समय आंखों को ज्यादा शार्प रखें. लिप्स ज्यादा क्यूट हैं, तो लिपस्टिक शेड्स का चुनाव सोचसम झ कर करें. डार्क लिपस्टिक बिलकुल न लगाएं. गड़बडि़यों से बचे रहना चाहती हैं, तो इन टिप्स को जरूर फौलो करें, जिस से कि आप पार्टी में सब से ग्लैमरस और खूबसूरत दिखें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें