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वैडिंग सीजन में ग्लैमरस लुक

वैडिंग में सजीधजी लडकियां हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं. लेकिन ऐसा तभी होता है जब वे बला की खूबसूरत और ग्लैमरस लुक देती हैं. इसलिए गर्ल्स ध्यान रखें कि आप का मेकअप और ड्रैसिंग सैंस ऐसा हो कि देखने वाले आप की क्यूटनैस व ड्रैसिंग स्टाइल को सराहे बिना न रह सकें.
सो, ये 5 टिप्स फौलो करना न भूलें-

यूनीक हो ड्रैस :

आप को देखते साफ लगना चाहिए कि आप यंग कालेजगोइंग गर्ल हैं, न कि आंटीजी. कई बार ड्रैसिंग के कारण लड़कियां बड़ी उम्र की दिखने लगती हैं. गर्ल्स को भारीभरकम कुछ पहनने के बजाय सिंपल, ब्राइट, यूनीक ड्रैस का चुनाव करना चाहिए. इस उम्र में क्यूटनैस वैसे ही होती है, इसलिए सिंपल में आप वैसे ही प्रीटी लगेंगी. वैस्टर्न पहनने का मन है, तो मिडी, फ्रौक या गाउन पहनें. क्लासिक दिखना चाहती हैं, तो शरारा, लहंगा, अनारकली सूट ट्राई कर सकती हैं.
साड़ी पहनने का मन है, तो यूनीक स्टाइल से पहनें.

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एक्सेसरीज का चुनाव :

एक्सेसरीज और ज्वैलरी का चुनाव सोचसम झ कर करें. एक हाथ में ब्रैसलेट तो दूसरे हाथ में घड़ी पहनें. कानों में बड़ेबड़े झुमके हों, तो गले में कुछ न भी पहना हो, चलता है.
ज्वैलरी आप की ड्रैस से मिक्स एंड मैच करे.

बालों का स्टाइल :

हेयर स्टाइल पूरी लुक बदल देता है. फंकी एंड सिंपल हेयर स्टाइल आप को परफैक्ट बना सकता है. खुले बाल हर ड्रैस के साथ जंचते हैं. स्टाइलिश सा हाफ बाल या हाफ चोटी क्लासी लगती है.

ओवर मेकअप हरगिज नहीं :

मेकअप को ज्यादा आर्टिफिशियल न बनाएं. फाउंडेशन का उपयोग ओवर मेकअप का लुक देता है. चेहरे पर दागधब्बे और पिंपल्स हैं, तो बीबी या सीसी क्रीम का इस्तेमाल ठीक रहेगा. मेकअप ट्रिक्स बड़े होने पर ही अच्छे लगते हैं, जैसे स्मोकी साइज और बोल्ड लिप्स गर्ल्स पर अच्छे नहीं लगते और इंप्रैशन भी अच्छा नहीं जाता.

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आकर्षक बनाएं अपने बैस्ट फीचर्स :

आप के बैस्ट फीचर्स कौन से हैं, यह बात आप अच्छी तरह जानती हैं. जैसे अगर आप को पता है कि आप की आंखें ज्यादा खूबसूरत हैं तो मेकअप करते समय आंखों को ज्यादा शार्प रखें. लिप्स ज्यादा क्यूट हैं, तो लिपस्टिक शेड्स का चुनाव सोचसम झ कर करें. डार्क लिपस्टिक बिलकुल न लगाएं. गड़बडि़यों से बचे रहना चाहती हैं, तो इन टिप्स को जरूर फौलो करें, जिस से कि आप पार्टी में सब से ग्लैमरस और खूबसूरत दिखें.

तोहफा: भाग 3- पति के जाने के बाद शैली ने क्यों बढ़ाई सुमित से नजदीकियां

एक अधूरे और घिनौने प्यार का एहसास उसे अंदर तक व्याकुल कर रहा था. जिन लमहों में उस ने सुमित के लिए कुछ महसूस किया था, वे लमहे अब शूल की तरह उसे चुभने लगे थे. कई दिनों तक उदास सी रही वह. जब भी जिंदगी में उस ने प्यार की चाहत की, तो उसे उपेक्षा और धोखा ही मिला. शायद उस की जिंदगी में प्यार लिखा ही नहीं है. उसे उम्र भर अकेले ही रहना है. इस विचार के साथ रहरह कर तड़प उठती थी वह. एक दिन उस की बेटी ने माथा सहलाते हुए उस से कहा था, ‘‘ममा, आजकल आप उदास क्यों रहती हो?’’

शैली ने कुछ नहीं कहा. बस म़ुसकरा कर रह गई.

‘‘ममा, आप वापस पापा के पास क्यों नहीं चलतीं. पापा अच्छे हैं ममा.’’ शैली का चेहरा पीला पड़ गया. संकल्प से अलग होने के बाद पहली दफा नेहा ने वापस चलने की बात कही थी. कोई तो बात होगी जो इस मासूम को परेशान किए हुए है. कहां तो वह बीती जिंदगी याद भी नहीं करना चाहती थी और कहां उस की बेटी उसे वापस उसी दुनिया में चलने को कह रही थी.

शैली ने प्यार से बेटी का माथा सहलाया, ‘‘बेटा , आप वापस पापा के पास जाना क्यों चाहती हो? आप को याद नहीं, पापा आप की ममा के साथ कितना झगड़ा किया करते थे.’’

‘‘पर ममा, पापा आप से प्यार भी तो करते थे,’’ उस ने कहा और चुपचाप शैली की तरफ देखने लगी. शैली ने उस की आंखें बंद करते हुए कहा, ‘‘अब सो जा नेहा. कल स्कूल भी जाना है न तुझे.’’ सच तो यह था कि शैली उस की नजरों का सामना ही नहीं कर पा रही थी. उस की बातों के भंवर में डूबने लगी थी. कई सवाल उस के जेहन में कौंधने लगे थे. वह सोच रही थी कि संकल्प मुझ से प्यार करते थे तो मुझे अलग होने से रोका क्यों नहीं? कभी मुझे कहा क्यों नहीं कि वे मुझ से प्यार करते हैं. मेरे बगैर रह नहीं सकते. मैं तो जैसे अनपेक्षित थी उन की जिंदगी में, तभी तो कभी मनाने की कोशिश नहीं की, सौरी भी नहीं कहा. एक दिन पड़ोस की एक महिला से नेहा की झड़प हो गई. वैसे आंटीआंटी कह कर नेहा उस के साथ काफी बातें करती थी और क्लोज भी थी मगर जब उस ने उस की मां को उलटीसीधी बातें कहीं तो वह बिलकुल आपा खो बैठी और उस महिला को बढ़चढ़ कर बातें सुनाने लगी.

उस वक्त  तो शैली ने उसे चुप करा दिया, मगर बाद में जब शैली ने इस बारे में नेहा से बात करनी चाही कि जो भी हुआ, सही नहीं था, तो बड़े ही रोंआसे स्वर में वह बोली, ‘‘ममा, वह आप को बात सुना रही थीं और यह बात मुझे सहन नहीं हुई. मुझे खुद समझ नहीं आ रहा कि मैं उन के प्रति इतनी रूखी कैसे हो गई.’’ शैली खामोश हो गई थी. नेहा की बात उस के दिल को छू गई.

‘‘एक बात कहूं ममा,’’ अचानक नेहा ने मां के गले में प्यार से अपना हाथ डालते हुए कहा, ‘‘ममा, पापा की आप से लड़ाई सब से ज्यादा किस बात पर होती थी? जहां तक मुझे याद है, इस वजह से ही न कि वे दादी का पक्ष ले कर आप से झगड़ा करते थे.’’

‘‘हां बेटे, यही बात मुझे ज्यादा बुरी लगती थी कि बात सही हो या गलत हमेशा मां का ही पक्ष लेते थे.’’

‘‘ममा, मुझे लगता है, पापा उतने भी गलत नहीं, जितना आप समझने लगी हैं. बिलीव मी ममा, वे आज भी आप से बहुत प्यार करते हैं. बस जाहिर नहीं कर पाते,’’ नेहा ने बड़ी मासूमियत से कहा था. उस की बातों में छिपा इशारा शैली समझ गई थी. उसे खुशी हुई थी कि उस की बेटी अब वाकई समझदार हो गई है. शैली ने उस का मन टटोलते हुए पूछा था, ‘‘एक बात बता नेहा, क्या तू आज भी वापस पापा के पास जाना चाहती है? क्या उन के हाथ मुझे पिटता हुआ देख पाएगी या फिर मुझे छोड़ कर तू पापा के पास चली जाएगी?’’

‘‘नहीं ममा, ऐसा बिलकुल भी नहीं है. मैं ममा को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी,’’ कहते हुए नेहा शैली से लिपट गई. बेटी के दिल में छिपी ख्वाहिश से अनभिज्ञ नहीं थी वह. पर अपने जख्मों को याद कर कमी भी हिम्मत नहीं होती थी उस की वापस लौटने की. कैसे भूल सकती थी वह संकल्प का बातबात में चीखनाचिल्लाना. एक बार फिर कड़वे अतीत की आंच ने उसे अपना फैसला बदलने से रोक लिया था. आज नेहा का जन्मदिन था. शैली ने उस के लिए खासतौर पर केक मंगवाया था और खूबसूरत गुलाबी रंग की ड्रैस खरीदी थी. उसे पहन कर नेहा बहुत सुंदर लग रही थी. पार्टी के लिए उस ने पासपड़ोस के कुछ लोगों और नेहा की खास सहेलियों को बुलाया था. नेहा ने अपने पापा को भी बुलाया होगा, इस बात का यकीन था उसे. 8 बजे पार्टी शुरू होनी थी. आज शौर्टलीव ले कर निकल जाएगी सोच कर वह जल्दीजल्दी काम निबटाने लगी थी. ठीक 4 बजे वह औफिस से निकल गई. अभी रास्ते में ही थी कि संकल्प का फोन आया. बहुत बेचैन आवाज में उन्होंने कहा,  ‘‘शैली, हमारी नेहा…’’

‘‘क्या हुआ नेहा को?’’ परेशान हो कर शैली ने पूछा.

‘‘दरअसल, घर में अचानक ही आग लग गई. मुझे लगता है कि यह सब शौर्ट सर्किट की वजह से हुआ होगा. मैं नेहा को ले कर हौस्पिटल जा रहा हूं, सिटी हौस्पिटल. तुम भी जल्दी पहुंचो.’’

शैली दौड़तीभागती अस्पताल पहुंची तो देखा बेसुध से संकल्प कोने में बैठे हैं. उसे देखते ही वे दौड़ कर आए और रोते हुए उसे अपने बाहुपाश में बांध लिया. ऐसा लगा ही नहीं जैसे वर्षों से दोनों एकदूसरे से दूर रहे हों. एक अजीब सा सुखद एहसास हुआ था उसे. लगा जैसे बस वक्त यहीं थम गया हो. फिर उन से अलग होती हुई वह बोली,  ‘‘नेहा कहां है? कैसी है ?’’ ‘‘चलो मेरे साथ,’’ संकल्प बोले. फिर दोनों नेहा के कमरे में पहुंचे तो नेहा उन्हें साथ देख कर ऐसी हालत में भी मुसकरा पड़ी.

शैली ने उस का माथा सहलाते हुए पूछा, ‘‘बेटे, कैसी है तू?’’

नेहा मुसकराती हुई बोली, ‘‘जब मेरे मम्मीपापा मेरे साथ हैं तो भला मुझे क्या हो सकता है? पापा ही थे जिन्होंने उस धुएं, जलन और आग की लपटों से निकाल कर मुझे हौस्पिटल तक पहुंचाया. पापा, रिअली आई लव यू.’’

शैली चुप खड़ी बापबेटी का प्यार देखती रही. उसे दिल में अंदर ही अंदर कुछ जुड़ता हुआ सा महसूस हुआ. अपने अंदर का दर्द सिमटता हुआ सा लगा. उसे जिंदगी ने शायद वह वापस दे दिया था जिसे वह खो चुकी थी. शायद यह उसी पूर्णता का एहसास था जो पहले संकल्प के साथ महसूस होता था. अचानक नेहा ने शैली का हाथ थामा और उसे संकल्प के हाथों में देती हुई बोली,  ‘‘मुझे आप दोनों से बस एक ही तोहफा चाहिए और वह यह कि आप एक हो जाएं. क्या मेरे जन्म दिन पर आप मुझे इतना भी नहीं दे सकते?’’ शैली और संकल्प पहले तो सकपका गए मगर फिर मुसकरा कर दोनों ने नेहा को चूम लिया. नेहा ने शायद शैली और संकल्प दोनों को नए सिरे से जिंदगी के बारे में  सोचने को विवश कर दिया था.

तोहफा: भाग 2- पति के जाने के बाद शैली ने क्यों बढ़ाई सुमित से नजदीकियां

इस तरह अपने गुस्से की आग को पानी बनाने के प्रयास में कब उस का प्यार भी पानी बनता चला गया इस बात का उसे एहसास  भी नहीं हुआ. अब संकल्प के करीब आने पर उसे मिलन की उत्कंठा नहीं  होती थी. कोई एहसास नहीं जागता था. उन दोनों के बीच वक्त के साथ दूरियां बढ़ती ही गईं और एक दिन उस ने अलग रहने का फैसला कर लिया, जब छोटी सी बात पर संकल्प ने उस पर हाथ उठा दिया. दरअसल, उस की सास सदा ही शैली के खिलाफ संकल्प को भड़काती रहतीं और उलटीसीधी बातें कहतीं. लगातार किसी के खिलाफ बातें कही जाएं तो स्वाभाविक है, कोई भी शख्स उसे सच मान लेगा. संकल्प के साथ भी ऐसा ही हुआ. आवेश के किन्हीं क्षणों में शैली के मुंह से सास के लिए कुछ ऐसा निकल गया जिस की शिकायत सास ने बढ़ाचढ़ा कर बेटे से कर दी. बिना कुछ पूछे संकल्प ने मां के आगे ही शैली को तमाचा रसीद कर दिया और मां व्यंग्य से मुसकरा पड़ीं.

संकल्प का यह व्यवहार शैली के दिल में कांटे की तरह चुभ गया. उस ने उसी समय घर छोड़ने का फैसला कर  लिया और अपना सामान पैक करने लगी. उसे किसी ने नहीं रोका. वह बेटी  को ले कर निकलने ही वाली थी कि सास ने उस की बेटी नेहा का हाथ थाम लिया. उन का हाथ झटक कर नेहा को लिए वह बाहर निकल आई.पीछे से सास की आवाज कानों में गूंजी,  ‘‘इस तरह घर छोड़ कर जा रही हो तो याद रखना, लौट कर आने की जरूरत नहीं है.’’

शैली ने मुड़ कर जवाब दिया था,  ‘‘अब जिंदगी में कभी आप की सूरत नहीं देखूंगी.’’ और फिर सचमुच परिस्थितियां ऐसी बनीं कि उन की सूरत दोबारा देखने का मौका शैली को नहीं मिला. 2 साल पहले ही टायफाइड बुखार में उन की जान चली गई. छोटी ननद बिट्टन ने अब तक सब संभाला था मगर पिछले साल संकल्प ने उस की शादी कर दी. शैली को आमंत्रित किया था वह गई नहीं. बस फोन पर ही बातें कर के शुभकामनाएं दे दी थीं. अब संकल्प बिलकुल अकेले रह गए थे. शैली को लगता था कि वे उस से तलाक ले कर दूसरी शादी करेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ. यह बात अलग है कि संकल्प ने कभी उसे वापस चलने को भी नहीं कहा. हां वे नेहा से मिलने अकसर आ जाया करते थे.

शैली ने स्वयं को एक संस्था से जोड़ लिया तो उसे जीने की वजह मिल गई और वहीं पर मिला सुमित, जिस से मिल कर शैली को ऐसा लगा था जैसे जिंदगी ने उसे दोबारा मौका दिया है. अब तक वह 40वां वसंत पार कर चुकी थी और बेटी भी 14वें साल में प्रवेश कर चुकी थी. धीरेधीरे वह सुमित के करीब होती जा रही थी. शुरुआत में उस ने चाहा था कि वह स्वयं को रोक ले पर ऐसा कर न सकी और सुमित के मोहपाश में बंधती चली गई. अब सुमित कभीकभी शैली के घर भी आने लगा था. वह उस की बेटी नेहा के लिए हमेशा कुछ न कुछ गिफ्ट ले कर आता. कभी नई ड्रैस, तो कभी कुछ और. शैली को खुशी होती कि वह बेटी को भी अपनाने को तैयार है. मगर एक दिन बेटी से बात करने के बाद वह अपने ही फैसले पर पुन: सोचने को मजबूर हो गई.

उस दिन वह जल्दी आ गई थी. बेटी के साथ इधरउधर की बातें कर रही थी. तभी वह बोली, ‘‘ममा, एक बात कहूं?’’

‘‘हां बेटा, बोलो न.’’

‘‘ममा, आप को सुमित अंकल बहुत अच्छे लगते हैं न?’’ थोड़ा सकुचा गई थी वह. फिर बोली, ‘‘हां बेटा, पर वे तो तुम्हें भी अच्छे लगते हैं न?’’

‘‘ममा, मैं मानती हूं कि वे अच्छे हैं और हमारा खयाल भी रखते हैं, पर…’’

‘‘पर क्या नेहा?’’

‘‘पर ममा पता नहीं क्यों उन का स्पर्श वैसा नहीं लगता जैसा पापा का है. पापा करीब आते हैं तो लगता है जैसे मैं सुरक्षा के घेरे में हूं. मगर अंकल बहुत अजीब तरह से देखते हैं. बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता मुझे.’’ दिल की बात कह दी थी नेहा ने. शैली हतप्रभ सी रह गई.

‘‘और ममा, एक बात बताऊं.’’

‘‘हांहां नेहा बोलो.’’

‘‘याद है ममा, पिछले संडे स्कूल में देर ज्यादा हो गई थी, तो आप ने सुमित अंकल को भेजा था, मुझे लाने को.’’

‘‘हां बेटा, तो क्या हुआ?’’

‘‘ममा…,’’ अचानक नेहा की आंखें भर आईं, ‘‘ममा, वे मुझे कुछ अजीब तरह से छूने लगे थे. तभी मुझे रास्ते में  काजल दिख गई और मैं ने फौरन गाड़ी रुकवा कर काजल को बैठा लिया वरना जाने क्या…’’ शब्द उस के गले में ही अटक गए थे. एक अजीब सी हदस शैली के अंतर तक उतरती चली गई.

‘‘तूने पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘मैं क्या कहती ममा, मुझे लगा आप नाराज होंगी.’’

‘‘नहींनहीं बेटा, तुझ से महत्त्वपूर्ण मेरे लिए कुछ भी नहीं,’’ और फिर अपने आगोश में भर लिया था उस ने नेहा को. फिर उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब सुमित को घर कभी नहीं बुलाएगी. बाहर भी ज्यादा मिलने नहीं जाएगी. भले ही अपनी जिंदगी का फैसला करने का उसे पूरा हक है मगर अपनी बेटी की भावनाओं को भी नजरअंदाज नहीं कर सकती, क्योंकि बेटी की जिंदगी भी तो  उस से जुड़ी हुई है और फिर बेटी की सुरक्षा यों भी बहुत माने रखती है उस के लिए. अगले दिन से ही शैली ने सुमित के साथ एक दूरी बना ली. औफिस में सब का ध्यान इस बात पर गया. उस के बगल में बैठने वाली मीरा ने उस से सीधा सवाल ही पूछ लिया, ‘‘क्या हुआ शैली? आजकल सुमित को भाव नहीं दे रहीं?’’

‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं. बस मुझे अपनी मर्यादा का खयाल रखना होगा न, एक बेटी की मां हूं मैं.’’

‘‘बहुत सही फैसला किया है, तुम ने शैली,’’ मीरा ने कहा, ‘‘मुझे खुशी है कि तुम उस का अगला शिकार होने से बच गईं.’’

‘‘अगला शिकार…?’’ वह चौंक गई.

‘‘भोलीभाली, अकेली महिलाओं से दोस्ती कर उन की बहूबेटियों पर हाथ साफ करना खूब आता है उसे.’’

‘‘क्या…?’’

एकबारगी हिल गई थी वह यानी नेहा का शक सही था. वाकई सुमित की नीयत साफ नहीं. अच्छा हुआ जो उस की आंखें खुल गईं. दिल ही दिल में राहत की सांस ली थी उस ने. जीवन के इस मोड़ पर मन में उठे झंझावातों से राहत पाने के लिए उस ने 3 दिनों की छुट्टी ले ली और पूरा समय अपनी बेटी के साथ बिताने का फैसला किया. दिन भर शौपिंग, मस्ती और नईनई जगह घूमने जाना, यही उन की दिनचर्या बन गई थी. और फिर एक दिन शाम को कनाट प्लेस में शौपिंग के बाद शैली बेटी को ले कर एक रैस्टारैंट की तरफ मुड़ गई. यह वही रैस्टोरैंट था जहां वह अकसर सुमित के साथ आती थी. अंदर आते ही एक टेबल पर उस की नजर पड़ी, तो वह भौचक्की रह गई. सुमित एक 15-16 साल की लड़की के साथ वहां बैठा था. किसी तरह का रिएक्शन न देते हुए वह दूर एक कोने की टेबल पर बैठ गई. यहां से वह सुमित पर नजर रख सकती थी. थोड़ी देर में ही शैली ने सुमित के हावभाव से महसूस कर लिया कि वह लड़की सुमित का नया शिकार है. शैली चुपचाप बेटी के साथ रैस्टोरैंट से निकल आई और तय कर लिया कि सुमित से दूरी बनाने के अपने फैसले पर पुरी दृढ़ता से कायम रहेगी.

आगे पढ़ें- एक अधूरे और घिनौने प्यार…

अनुपमा: वनराज करेगा ये बड़ी गलती, जाना पड़ेगा जेल!

स्टार प्लस का सीरियल अनुपमा इन दिनों टीआरपी चार्ट में पहले नंबर पर बना हुआ है, जिसके कारण शो की फैम फौलोइंग बढ रही है. वहीं मेकर्स भी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि कैसे दर्शकों को शो से जोड़े रख सकें. इसी बीच एक प्रोमो, जिसमें अनुपमा ने काव्या को थप्पड़ मारा था, वह सोशमीडिया पर वायरल हो रहा है. लेकिन अब खबर है कि वनराज की मुसीबतें और बढ़ने वाली हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

बेटे परितोष की दोबारा शादी करती है अनुपमा

अभी तक आपने देखा कि परितोष और किंजल ने भागकर शादी की थी. हालांकि पूरा परिवार चाहता था कि दोनों की शादी पूरे रस्मों रिवाजों के साथ हो. इसीलिए अनुपमा दोनों की शादी कराने का फैसला करती है, जिसकी तैयारियों में वह इन दिनों बिजी है.

 

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शादी में हंगामा करेगी काव्या

हाल ही में मेकर्स द्वारा जारी किए गए प्रोमो में दिखाया गया था कि अनुपमा अपने बेटे और बहू के शादी के दिन काव्या को जोरदार थप्पड़ मारती नजर आएंगी. दरअसल, किंजल और परितोष की शादी की रस्मों में खलल डालने के लिए काव्या वनराज औऱ अनुपमा के द्वारा निभाई जाने वाली रस्में निभाने की कोशिश करेगी और कहेगी कि यह उसका हक है. हालांकि अनुपमा उसे समझाएगी कि वह ड्रामा ना करे. लेकिन काव्या नही मानेगी, जिसके कारण अनुपमा काव्या को थप्पड़ मारकर घर से बाहर निकालती नजर आएगी.

जेल जाएगा वनराज

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज को अपनी नौकरी बचाने के लिए अल्टीमेटम दिया गया था, जिसके चलते वह एक गलत कदम उठाता नजर आएगा. दरअसल, खबरों की मानें तो वनराज अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनी के साथ एक सौदा करते हुए कंपनी के सिक्रेट्स लीक करने की कोशिश करेगा. वहीं इस घोटाले के बारे में जब कंपनी के नए बौस को जानकारी मिलेगी तो वह रंगे हाथों पकड़ जाएगा और  उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

गौहर बनी जैद की दुल्हन, रिसेप्शन में पहुंचे ये सितारे

बीते दिनों बिग बौस के 14वें सीजन में एंट्री करके फैंस के बीच सुर्खियां बटोरने वाली एक्ट्रेस गौहर खान ने शादी कर ली है, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं. लेकिन इसी बीच गौहर खान और उनके शौहर जैद दरबार के वेडिंग रिसेप्शन की फोटोज भी आ गई हैं, जिसमें गौहर बेहद खूबसूरत लग रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं उनकी वेडिंग और रिसेप्शन की खास फोटोज…

निकाह में कुछ यूं था गौहर का अंदाज

 

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निकाह की फोटोज शेयर करते हुए गौहर खान ने अपने फैंस को शादी की खबर दी है. फोटोज की बात करें तो जैद दरबार संग शादी के दौरान दोनों का अंदाज काफी शाही नजर आया. वहीं कुछ फोटोज में गौहर पति संग रोमेंटिक पोज देते भी नजर आए, जिनको देखकर लग रहा है कि वह कितनी खुश हैं.

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दोस्तों के लिए दी रिसेप्शन पार्टी

 

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निकाह होने के बाद गौहर खान (Gauahar Khan) और जैद दरबार ने मुंबई में अपनी शादी की खुशी में एक रिसेप्शन रखा था, जिसमें टीवी जगत के सितारे गौतम रोड़े और उनकी वाइफ के साथ-साथ गौहर  खान और जैद दरबार की फैमिली भी नजर आई.

 

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गौहर खान  ने इस अंदाज में मारी एंट्री

 

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अपनी शादी के रिसेप्शन में गौहर खान ने डार्क रेड और गोल्डन कलर के लहंगे में धासूं एंट्री मारी. वहीं पति जैद भी ब्लैक कलर की शेरवानी में गौहर के लुक को कंपनी देते नजर आए. वहीं शादी के लुक की बात करें तो व्हाइट गोल्डन कलर के कॉम्बिनेशन में गौहर खान और जैद दरबार की जोड़ी कमाल लग रही थी.

 

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बता दें, शादी की खुशी में गौहर खान ने अपनी रिसेप्शन पार्टी में आते ही सबसे पहले मीडिया के साथ अपनी खुशी जाहिर की. साथ ही गौहर खान ने सभी मीडियाकर्मियों को मिठाई खिलाकर धन्यावाद किया. वहीं इसमें उनका साथ जैद दरबार ने भी दिया.

हर्निया की बीमारी को हल्के में न लें

हर्निया एक ऐसी बिमारी है, जिसका इलाज ऑपरेशन से ही मुमकिन है. हालांकि कुछ सावधानियां बरतकर इस समस्या को गंभीर होने से रोका जा सकता है. इस बारें में दिल्ली के अपोलो स्पेक्ट्रा अस्पताल के जनरल सर्जन डॉ. कपिल अग्रवाल कहते है कि जब किसी भी व्यक्ति की शरीर में एक मासपेशी या ऊतक अपनी खोल या झिल्ली से उभरकर बाहर आने लगता है, उसे हर्निया कहते है. इसमें मरीज को तेज दर्द होता है, चलने-फिरने में मुश्किलें आती है. उलटी भी हो सकती है . दरअसल शरीर के किसी हिस्से की मसल्स का कमजोर होने पर और वहां लगातार प्रेशर पडने की वजह से होता है. पेट के ऑपरेशन के बाद हर्निया होना काफी सामान्य होता है.

हार्निया आमतौर पर पेट में होता है, लेकिन यह जांघ के उपरी हिस्से, नाभि और कमर के आसपास भी हो सकता है. हार्निया घातक नहीं होते, लेकिन यह अपने आप ठीक भी नहीं हो सकता. कुछ परिस्थितियों में हर्निया की जटिलताओं से बचने के लिए सर्जरी करनी पडती है. बहुत बार हर्निया का कोई भी लक्षणं दिखाई नही देता , लेकिन कई बार लोगो को पेट में अधिक दर्द होने से इस बीमारी का पता चल पाता है. हर्निया कई प्रकार के होते है, जो निम्न है,

हर्निया के प्रकार

पुरूषों में पाये जानेवाला हर्निया इन्गुइनल (Inguinal) पेट के नीचे की तरफ होता है, जबकि यह बीमारी महिलाओ के मुकाबले पुरूषों में अधिक होता है.

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बच्चों का हर्निया अम्ब्लाईकल (Umbilical) पेट का हर्निया होता है, छह माह से कम उम्र वाले बच्चों को हो सकता है, ये तब होता है जब आंत का उभार पेट की अंदरूनी परत के माध्यम से नाभि के पास पहुंच जाता है. यह काफी सामान्य बिमारी है, खासकर पेट के ऑपरेशन के बाद होती है.

पेट के उपरी हिस्से होनेवाला हर्निया एपिगेस्ट्रिक(Epigastric) नाभि और रिब्स के सेंटर में होता है.
महिलाओं का हर्निया फिमोरल (Femoral) जांघ में होता है और ये महिलाओं में अधिकतर देखा गया है. इसके अलावा लंबर(Lumbar), इनसीजनल (Incisional), पैरास्टोमल (Parastomal) और हिएटल(Hiatal) हर्निया आदि भी महिलाओं को हो सकता है.

इसके आगे डॉ. कपिल कहते है कि हर्निया धीरे-धीरे बढने वाली बिमारी है. हार्निया की समस्या तब होती है, जब शरीर का कोई हिस्सा अपनी कांटेनिंग कैपासिटी से बाहर निकलकर आता है. यह बिमारी अंग के किसी भी हिस्से में हो सकती है. हर्निया के कारण हमारा पेट बाहर निकलने लगता है. यह स्थिति मांसपेशियों को कमजोर करती है. कई बार हर्निया की समस्या जन्म से ही होती है. उसे जन्मजात हर्निया कहते है. इसके अलावा हर्निया की समस्या उम्र बढने के बाद अधिक होने की संभावना रहती है.
इलाज के बारें में डॉ. कपिल का कहना है कि यदि हर्निया का इलाज समय पर नहीं किया गया , तो उसकी सूजन बढ सकती है. इसके अलावा हर्निया के वजहसे शरीर के बाकी अंगों पर भी असर पड़ सकता है और मरीज की सेहत बिगड़ सकती है. ऐसी स्थिति में सर्जरी करना मुश्किल होता है. कभी-कभी आपातकालीन स्थिति में मरीज को कुछ घंटों के भीतर सर्जरी से गुजरना पड़ता है.

हर्निया की समस्या के कारण

∙ ज्यादा मोटापा बढ़ने पर मसल्स के बीच में फैट जमा हो जाता है, इससे मसल्स पर प्रेशर पड़ता है और वे दो हिस्सों में बंट जाती है,
∙ सिजेरियन ऑपरेशन में पेट के बीच में टांके लगाए जाते है, तो भी हर्निया हो सकता है,
∙ लंबे समय तक खांसी रहने पर हर्निया हो सकता है, क्योंकि खांसी से पेट पर दबाव पड़ता है,
∙ पेशाब करने में दिक्कत या रुकावट होने पर भी हर्निया की आशंका बढ़ जाती है,
∙ अगर प्रेग्नेंसी में प्रोटीन कम लें या पूरा पोषण नहीं हो, तो मसल्स कमजोर हो जाती है, उससे भी हर्निया हो सकता है,
∙ 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में इसकी आशंका ज्यादा होती है,
∙ किडनी या लिवर की फेल होने वाले मरीजों में भी हर्निया होने की आशंका अधिक होती है,
∙ बहुत ज्यादा वजन उठानेवाले को भी यह समस्या हो सकती है,
∙ जो लोग बहुत ज्यादा सीढ़ियां चढ़ते-उतरते हैं, उनमें हर्निया के चांस बढ़ जाते है.

लक्षण

∙ पेट के निचली हिस्से में सूजन,
∙ खांसने पर, या कब्ज होने की वजह से जोर लगाने पर सूजन का बढना,
∙ भारी चीजें उठाने पर या झुकने पर दर्द होना,
∙ लेटने पर सूजन का कम होना,

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बचाव

हर्निया से बचाव के लिए निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखें,
∙ वजन नियंत्रित रखे,
∙ स्वस्थ आहार का सेवन कसे और नियमित व्यायाम करे,
∙ पेशाब करते वक्त ज्यादा जोर न दे,
∙ ज्यादा भारी वस्तु न उठाऐ,
∙ बार-बार आनेवाली खांसी से बचने के लिए धुम्रपान का सेवन करना बंद करे,
∙ अगर आपको लगातार खांसी आती हो, तो डॉक्टर से मिलें और खांसी का इलाज करवाएं,
∙ हर्निया के शुरूआती लक्षण दिखाई दे, तो डॉक्टर से जांच करवाकर, अधिक बढने से पहले इसका इलाज करवाएं.

इलाज

हर्निया का इलाज केवल सर्जरी के जरिए ही संभव है, इसमें लेप्रोस्कोपिक सर्जरी मरीज को जल्दी रिकवरी, कम दर्द और सामान्य जीवन में जल्दी वापसी के लिए अधिक फायदेमंद होता है. इस सर्जरी को एक छोटे से छेद के माध्यम से की जाती है. सर्जरी करने के लिए केवल 3 से 4 छोटे चीरों की आवश्यकता होती है. सर्जरी के बाद 24 घंटे के भीतर मरीज को घर जाने की अनुमति दी जाती है. मरीज सर्जरी के बाद जल्दी काम पर लौट सकता है.

ऑपरेशन के बाद सावधानिया,

ऑपरेशन के बाद 3 माह तक भारी वजन न उठाएं, पेट पर वजन पड़ने वाली कोई काम न करें, 6 से 7 दिन तक हल्का खाना खाएं, 7 दिन बाद 4 पहिये वाली गाड़ी और 2 सप्ताह बाद 2 पहिये वाली गाड़ी चला सकते है.

इस प्रकार अगर शरीर में कहीं भी सूजन दिखाई पड़े, तो डॉक्टर की परामर्श अवश्य लें, दर्द होने पर कई बार मरीज की स्थिति ख़राब होने लगती है और तुरंत सर्जरी करवानी पड़ती है. समय रहते हर्निया की इलाज करवाने पर व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है.

कहीं बोझ न बन जाए प्यार

प्यार एक खूबसूरत एहसास है. जिंदगी तब बेहद हसीन लगने लगती है जब हम किसी के ख्यालों में खोए होते हैं. इस के विपरीत वही प्यार जब जी का जंजाल बन जाता है तो एकएक पल गुजारना कठिन लगने लगता है. कई दफा प्यार को भार बनाने में हमारी कुछ छोटीछोटी भूल जिम्मेदार होती हैं.

ओवर पजेसिव नेचर

कुछ लोग अपने प्यार को किसी के साथ भी बंटता हुआ नहीं देख सकते. यहां तक कि वे अपने गर्लफ्रेंड / बौयफ्रेंड को अपने दोस्तों से भी बातें करता देख इनसिक्योर फील करने लगते हैं, शक करते हैं और इस बात पर उन के बीच झगड़े होने लगते हैं. जाहिर सी बात है कि किसी से प्यार करने का अर्थ यह तो नहीं कि इंसान अपने दोस्तों से नाता तोड़ ले. यदि गर्लफ्रेंड किसी और लड़की से बात करने पर अपने बौयफ्रेंड से नाराज हो जाती है ऐसे में बौयफ्रेंड के पास एक ही औप्शन बचता है, और वह है झूठ बोलना. वह छुप कर दोस्तों से बातें करेगा और फोन से बातचीत का सारा रिकौर्ड डिलीट कर देगा. यही नहीं बाकी जो भी बातें उस की गर्लफ्रेंड को बुरी लगती है उन सब को छुपाने लगेगा. एक समय आएगा जब झूठ बोलते बोलते वह आजिज आ जाएगा. हर वक्त उसे अपनी आज़ादी छिनती हुई नजर आएगी. वह बंधा हुआ महसूस करने लगेगा और एक दिन उस के सब्र का बांध टूट जाएगा और तब प्यार के रिश्ते में जज्बातों का दम घुट जाएगा. प्यार भार बन जाएगा और व्यक्ति अपने प्यार से पीछा छुड़ाने के बहाने ढूंढने लगेगा.

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तीसरे का वजूद

पति पत्नी हो या गर्लफ्रेंड बौयफ्रेंड, जब भी दो के बीच किसी तीसरे के आने की सुगबुगाहट होती है तो रिश्तो में खटास आने लगती है. शक का कीड़ा अच्छेखासे रिश्तों की भी नींव खोदने में वक्त नहीं लगाता.

जहां विश्वास नहीं वहां शक तुरंत अपनी जड़ जमा लेता है. तीसरे की उपस्थिति अक्सर रिश्तों के टूटने की वजह बनती है. किसी तीसरे के आने से सिर्फ रिश्ता ही नहीं टूटता कई दफा नतीजे बेहद खतरनाक भी निकलते हैं. तीसरे को रास्ते से हटाने के लिए व्यक्ति किसी भी सीमा तक जा सकता है.

अपने अनुसार ढालने का प्रयास

प्यार का अर्थ है जो जैसा है उसे उसी रूप में पसंद करना. यदि बदलने का प्रयास किया जाए तो वह प्यार नहीं समझौता होता है. जब प्यार का दंभ भरते हुए व्यक्ति सामने वाले की कमियां निकालने लगता है और उसे बदलने को प्रेरित करता है तो यहां जज्बात फीके पड़ने लगते हैं. प्यार भार लगने लगता है.

बातबात पर चिढ़ना

प्यार में रूठने मनाने की परंपरा बहुत पुरानी है. मगर जब कोई बातबात पर मुंह बनाने लगे या भला बुरा सुनाने लगे तो लाजमी है कि सामने वाले के सब्र का बांध टूट जाएगा. इंसान किसी की नाराजगियां एक हद तक सहन कर सकता है. मगर जब यह रोज की आदत बन जाए तो प्यार जी का जंजाल लगने लगता है.

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तालमेल की कमी

प्यार में इंसान को काफी तालमेल बिठाने होते हैं. दो बिल्कुल अलगअलग व्यक्ति जब एक दूसरे के बनना चाहते हैं तो बहुत सी बातों में समझौते करने होते हैं. खानपान, बातचीत, पहनावा, रहनसहन हर
तरह से एकदूसरे की परवाह करनी होती है. तालमेल की कमी रिश्ते में खटास ला सकती है.

8 TIPS: बाल धोने के बाद न करें ऐसी गलतियां

बालों को धोने के बाद उसकी देखभाल करना बहुत जरूरी है यदि ऐसा न किया जाए तो, बालों का गिरना, उलझना, टूटना, दोमुंहा होना आदि आम समस्याओ से आपको दो चार होना पड़ सकता है. अपने बालों को समस्याग्रस्त, चिपचिपा और खराब होने से बचाने के लिये आपको कुछ टिप्‍स आजमाने की आवश्यकता है.

1. ब्लो ड्राई न करें

दरअसल ब्लो ड्राई गर्म हवा तंत्र से चलाया जाता है जो सीधे आपके बालों की बाहरी परत को प्रभावित करता है. यह तकनीक आपके बालों को नुकसान पहुंचाती है और सूखेपन व रूसी का कारण बनती है.

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2. कठोर ब्रश से बचें

कठोर ब्रश से आपके बाल टूट व बिखर सकते हैं. अपने बालों को नुकसान न पहुंचाएं और कठोर ब्रश को विशेषकर गीले बालों में करने से बचें.

3. सही ब्रश का उपयोग करें

अपने बालों के लिए सही ब्रश का चयन करना बहुत महत्वपूर्ण है. नायलान या प्लास्टिक के ब्रश का इस्तेमाल करें.

4. सुलझाने के लिए उंगलियों का प्रयोग करें

गीले बाल उलझे हुए होते हैं और सूखे बालों की तुलना में तीन गुणा कमज़ोर होते हैं- उन्हें सुलझाने के लिए अपनी उंगलियों का प्रयोग करें. ऐसा करने से स्वाभाविक रूप से आपके सिर की मालिश होती है और इससे बालों के गिरने की संभावना भी कम होती है.

5. तेल का उपयोग न करें

तेल लगाना बहुत हानिकारक हो सकता है- इसका दोष प्रदूषण या लाइफस्टाइल को दें. तैलीय बाल धूल को आकर्षित करते हैं जो बालों में समस्या का कारण बनती है. अगर आप चाहे तो रातभर तेल लगाएं और सुबह शैंपू कर लें. इससे आपके बाल स्वस्थ और चमकदार रहेंगे.

6. तंग रबर बैंड न लगाएं

गीले बाल कमज़ोर होते हैं; इसलिए अपने बालों को कसकर न बांधें. इससें जड़ें कमज़ोर हो सकती हैं और बालों का गिरना बढ़ सकता है.

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7. चोटी न बनाएं

बांधने की ही तरह, गीले बालों की चोटी बनाना भी मना है. इससे बाल जल्दी और स्वाभाविक रूप से नहीं सूखेंगे.

8. मालिश से बचें

शैपू करने के बाद बालों की मालिश करना बहुत हानिकारक होता है क्योंकि गीले बाल कमज़ोर होते हैं. साफ और स्वस्थ बालों के लिए बालों के सूखने का इंतजार करें.

Short Story: कोरोना काल का अबोला प्यार

संगीता लंच बना कर रसोई से निकली ही थी कि अवधेश हाथ में पानी का गिलास ले कर उसके पास सोफे पर आ गया. संगीता ने मुस्कुरा कर गिलास थामा और गटागट सारा पानी पी गयी. थोड़ी देर सोफे पर आराम करने के बाद जब वो वापस रसोई में इस इरादे से पहुंची कि चलो सबको खाना परस दूँ, तो देखा अवधेश सबकी थाली सजा कर खड़े हैं. संगीता तो जैसे पति पर निहाल हो गई. इस कोरोना ने भले दुनिया भर में हड़कंप मचा रखा है और लोगों को उनके घरों में कैद कर दिया है लेकिन एक अच्छा काम ये किया कि रिश्तों को करीब से देखने-समझने और निभाने का बड़ा मौक़ा दे दिया है.

कोरोना से पहले तक संगीता को याद नहीं कि अवधेश ने कभी उसको पानी का गिलास दिया हो. रसोई में तो वो भूल कर भी नहीं घुसते थे, लेकिन बीते आठ माह में संगीता को बिलकुल नए अवधेश के दर्शन हो रहे थे, जो उसके हर काम में हाथ बंटाता दिख रहा है. कभी सिंक में गंदे बर्तन पड़े हों तो चुपके से धो देता है, बाथरूम में गंदे कपड़े पड़े हों तो वाशिंग मशीन में डाल कर ऑन कर देता है. संगीता और घर के अन्य सदस्यों के लिए मसाले वाली बढ़िया चाय बना देता है. इससे पहले तो संगीता को ये भी पता नहीं था कि अवधेश इतनी अच्छी चाय बनाना जानते हैं. एक दिन सुबह उसकी आँख खुली तो देखा अवधेश ने चाय के साथ गरमागरम प्याज के पकोड़े बनाये हैं. ये देख कर तो वह ख़ुशी से उछल पड़ी. उस दिन का नाश्ता तो गरमागरम पकोड़ों और हरी धनिया की चटनी के साथ हुआ. संगीता कहती हैं कि कोरोना काल में उन्हें पता चला कि प्यार सिर्फ बोलकर ही नहीं, कई तरीकों से अभिव्यक्त होता है. कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन में घर के भीतर इस अनबोले प्यार को आज बहुत सी महिलायें महसूस कर रही हैं.

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कहना गलत ना होगा कि लॉकडाउन और कोरोना वायरस के जोखिम ने परिवारों को मजबूत किया है. इस दौरान पति-पत्नी या परिवार के सदस्यों के बीच प्यार और गहरा हो गया है. लोग एक दूसरे की ज़्यादा फ़िक्र करने लगे हैं. पहली बार में शायद आपको इस बात पर यकीन न आए. लेकिन यह सच है. इस प्यार और लगाव को अलग तरह से समझना होगा. खासतौर पर दाम्पत्य जीवन के मद्देनज़र.

यह सही है कि लंबे समय तक साथ रहने के कारण छोटी-मोटी झड़प और बहसबाजी थोड़ी बढ़ गई है. बाहर घूमने-फिरने, होटल-रेस्त्रां जाने और फिल्म वगैरह देखने के दौरान जो अपनापन होता है, उसकी गुंजाइश भी अभी नहीं बन रही है. इसके बावजूद परिवार के भीतर प्यार कई तरीकों से जताया जा रहा है.

पत्नी ने घर के ढेर सारे काम निबटाए. वह थककर बैठी ही थी कि पति कॉफ़ी का कप ले आया. पत्नी ने पूरे घर में झाड़ू पोंछा किया तो पति ने पीछे से डस्टिंग कर दी. या गंदे पड़े बर्तन धो दिए. या बच्चों को पढ़ाई में मदद कर दी. यह प्यार ही तो है, जो ‘केयर’ के रूप में जताया जा रहा है.

इन दिनों रसोई में चीजों की संख्या और मात्रा दोनों सीमित है. इसके बाद भी स्वाद में कोई कमी नहीं है. महिलाएं सीमित संसाधनों में ही कई प्रयोग करके स्वाद और सेहत, दोनों का खयाल रख रही हैं. घरेलू कर्मचारियों की अनुपस्थिति में वे बिना शिकायत किए कई अन्य काम भी कर रही हैं. यह प्यार ही तो है, जो आगे बढ़कर जिम्मेदारी लेने के रूप में सामने आ रहा है. इत्मीनान भी है कि जीवनसाथी, बच्चे और परिवार के अन्य सदस्य घर के भीतर सुरक्षित है.

पुरुषों ने कई घरेलू काम संभाल लिए हैं. वे रसोई में सहयोग कर रहे हैं और घर की साफ-सफाई में भी. वर्क फ्रॉम होम के साथ वे बच्चों को भी समय दे रहे हैं. कई महिलाओं से बात करने पर पता चलता है कि अब पतियों ने खाने-पीने को लेकर नखरे दिखाना भी बंद या कम कर दिया है. बुजुर्ग भी घर के कामों में सहयोग कर रहे हैं.

पूनम की बुज़ुर्ग सास सुबह की गुनगुनी धूप में बैठ कर सब्ज़ियां काट देती हैं. ससुरजी किचन गार्डन में पौधों को पानी दे देते हैं तो कभी कभी खुरपी ले कर गुड़ाई भी कर देते हैं. कोरोना काल से पहले दोनों सुबह उठ कर मंदिर जाते थे और दो घंटे वहां बिता कर लौटते थे. अब जबकि बाहर नहीं जाना है तो घर में रह कर वो घर के कामों में हाथ बंटा रहे हैं. दोपहर में दोनों बच्चो को अपने कमरे में बिठा कर कहानियां सुनाई जाती हैं या उनके साथ कार्टून नेटवर्क पर टाइम स्पेंड किया जाता है. इससे दोपहर के वक़्त पूनम और उनके पति को साथ समय बिताने का अच्छा मौक़ा मिल जाता है. इससे उनके बीच काफी नज़दीकियां हो गई हैं. आज परिजन एक-दूसरे के योगदान को भी पहचान रहे हैं, उसकी कद्र कर रहे हैं. ये कृतज्ञता और सराहना भी प्यार को जताने का एक तरीका है.

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फल-सब्जी और किराने का सामान खरीद कर लाना अमूमन महिलाओं के जिम्मे हुआ करता है, लेकिन इन दिनों घर के पुरुष यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं. सोशल मीडिया पर जोक्स चल रहे हैं कि सब्जी खरीदने के लिए बाहर निकलना युद्ध पर जाने जैसा हो गया है. पति, भाई या बेटे ने बाहरी कामों का जिम्मा उठाया है, तो इसे परिवार के प्रति प्यार ही कहा जाएगा. कोरोना काल में बाहर निकल कर सामान लाना यानी खुद जोखिम लेना, ताकि किसी पर कोई आंच न आए- यह प्यार की निशानी है.

प्यार जताने में बच्चे भी पीछे नहीं हैं. वैसे तो वे अपनी उम्र के अनुसार स्वाभाविक रूप से जिद कर रहे हैं, लेकिन पहले से कम. मम्मी-पापा को व्यस्त देखकर बच्चे भी समझदार हो गए हैं. मम्मी-पापा की मदद करने की उनकी कोशिश भी प्यार का एक रूप है, जिस पर भला किसका दिल न खिल उठेगा!

लॉकडाउन की इस नेमत को पहचानना और इन हसीं लम्हों को यादों में संजो कर रखने की ज़रूरत है. हम खुशकिस्मत हैं कि हमें इतना प्यार करने वाले और हमारी इतनी परवाह करने वाले लोग हमारे साथ हैं.

कोरोना काल में बहुतेरे लोगों की नौकरियाँ चली गयी हैं. बहुतेरे लोग अभी भी बहुत कम वेतन पर काम करने को मजबूर हैं. कोरोना काल में कंपनियों ने वेतन में जो कटौती की वह अभी तक बहाल नहीं हुई है. ऐसे में कई घरों में महिलाओं ने भी घर के कामों के साथ साथ आगे बढ़ कर पैसा कमाने में पति का हाथ बंटाया है.

अंकिता साही के पति की दुकान कन्टेनमेंट जोन में आने की वजह से बंद हो गयी. आय का कोई साधन ना देख कर अंकिता ने घर के पीछे वाले दरवाज़े पर खाने की रेहड़ी खड़ी कर ली. उनके घर के पीछे सारा इंडस्ट्रियल एरिया है. वहां बहुत वर्कर काम करते हैं. अंकिता सुबह सात बजे से दस बजे तक ब्रेड-अंडा-चाय बेचती हैं और दोपहर में राजमा चावल या कढ़ी चावल. उनके पति और बेटी भी इस काम में हाथ बंटाते हैं. शाम तक अच्छी खासी कमाई हो जाती है. ये भी घर के प्रति दायित्व और प्रेम का ही रूप है.

बेटियां भी जिम्‍मेदारी उठाने के जज़्बे में किसी से पीछे नहीं हैं. संकट आया तो वो भी परिवार के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी हैं. फरीदाबाद के बदरपुर रोड स्थित डबुआ कॉलोनी के गली नंबर 58 के निवासी ओमप्रकाश की तीनो बेटियों ने मिल कर उनका धंधा संभाल लिया है. पिता के प्रति उनके इस अबोले प्यार ने सबको अभिभूत कर रखा है. दरअसल कोरोना के कारण ओमप्रकाश के रेस्टोरेंट में काम करने वाले सारे वर्कर अपने गृहजनपदों को लौट गए और चलता हुआ रेस्टोरेंट बंद होने की कगार पर पहुंच गया. तब उनकी सोलह वर्षीय बेटी रौशनी और उसकी दोनों छोटी बहनो ने रेस्टोरेंट का काम संभाल लिया. ओमप्रकाश और उनकी पत्नी जहाँ ग्राहकों के लिए भोजन तैयार करते हैं वहीँ ग्राहकों को खाने की थालियां देना, मेज़ें साफ़ करना, ग्राहकों से आर्डर लेना, जूठे बर्तन धोना, सब्ज़ियां काटना, रोटियां सेंकना जैसे तमाम काम तीनों बहने मिल कर निपटा देती हैं.

रोशनी का कहना है कि वह अपने पिता के साथ काम करते हुए बेहद खुश है. दिन में रेस्टोरेंट में काम करने के बाद शाम को जब तीनों बहने घर लौटती हैं तो ऑनलाइन ट्यूशन क्लास पढ़ती हैं ताकि उसकी पढ़ाई में किसी तरह की रूकावट पैदा न हो.

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कोरोना ने लोगों के जीवन में बड़े बदलाव किये हैं. दिन भर ऑफिस या व्यवसाय अथवा अन्य कार्यों से बाहर रहने वाले मर्दों ने घर में रहकर गृहणियों की मेहनत को अपनी आँखों से देखा और समझा है कि गृहणी का काम उनके काम से कुछ कम नहीं है. उनकी तरफ मदद का हाथ बढ़ा कर उन्होंने उनके प्रति प्यार भी जताया है और जिम्मेदारी भी बांटी है. वहीँ महिलाओं ने भी पतियों का हाथ तंग होने पर बिना टीका-टिपण्णी कम आय में ही ज़रूरतों को पूरा किया है और कहीं कहीं आगे बढ़ कर पति के काम में सहयोग कर के अपना प्यार जताया है. इस अबोले प्यार को आज लगभग हर दंपत्ति महसूस कर रहा है. ये प्यार कोरोना की देन है.

साइज नहीं इन का हौसला है प्लस

प्लस साइज वूमन सुनते ही सभी के जहन में उस लड़की की इमेज बनती है, जो सामान्य से ज्यादा मोटी होती है, जिस की तोंद निकली होती है और शरीर थुलथुला होता है. मांबाप को चिंता होती है कि इस से शादी कौन करेगा, भाईबहन को चिंता होती है कि हमारे हिस्से का भी खा जाएगी और दोस्तों को चिंता होती है कि यह जिस भी फोटो में आएगी उसे बिगाड़ देगी.

बौडी शेमिंग को चिंता का नाम देना कोई नई बात नहीं है. ‘हम तो तेरे भले के लिए ही कहते हैं’ जैसी बातों से बौडी शेमिंग को ढकने की कोशिश पूरी होती है. लेकिन यह बौडी शेमिंग एक व्यक्ति से उस की खुशी, सुखचैन सब छीन लेती है.

गत 30 जून को दिल्ली में मिस प्लस साइज पैजेंट था जिस में भारत के अलग-अलग कोनों से लड़कियों और महिलाओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. इस पैजेंट में भारतीय मूल की बिशंबर दास भी आईं, जो ब्रिटिश एशिया की पहली प्लस साइज मौडल और मिस प्लस साइज नौर्थ इंडिया 2017 की ब्रैंड ऐंबैसडर थीं. बिशंबर डर्बी की पहली लड़की हैं, जो 22 वर्ष की उम्र में मजिस्ट्रेट बनीं. लेकिन हर प्लस साइज लड़की की तरह उन का बचपन भी लोगों के तानों और बौडी शेमिंग के बीच गुजरा. बौडी शेमिंग के चलते वे डिप्रैशन में भी रहीं. और बहुत सारी लड़कियों की ही तरह उन्हें भी अपना वजूद बेमानी लगने लगा था. लेकिन हिम्मत हारने के बजाय इस मुकाम पर पहुंच कर उन्होंने एक मिसाल पेश की.

तानों से उभर कर

बिशंबर बताती हैं, ‘‘मैं बचपन से ही बहुत खाती थी. मेरी फैमिली के लोग भी मेरा मजाक उड़ाते थे. जो लोग मुझे नहीं जानते थे वे भी मेरी मम्मी से आ कर कहते कि आप की लड़की की शक्ल तो बहुत अच्छी है पर यह बहुत मोटी है. इस से कौन शादी करेगा. मुझे बारबार याद दिलाया जाता था कि मैं प्लस साइज हूं.

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‘‘लोगों की जबान तलवार जैसी होती है. वे ऐसीऐसी बातें कह देते हैं जो सामने वाले को किस हद तक प्रभावित कर सकती है, इस का उन्हें अंदाजा नहीं होता. मैं बौडी शेमिंग से डिप्रैशन में आ गई थी. सब ने नोटिस किया कि मेरा वजन बढ़ रहा है, लेकिन किसी ने यह नहीं पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है. मैं मजिस्ट्रेट बन गई थी, फिर भी जिन की जौब मुझ से कम थी उन्होंने भी मुझे शादी के लिए रिजैक्ट कर दिया. मेरी शिक्षा अच्छी थी, नौकरी अच्छी थी, लेकिन सबकुछ मेरी आउटर अपीयरैंस के आगे छोटा पड़ गया. हम सामने वाले को खुश करने के लिए खुद को क्यों बदलें? आज उसे हमारा मोटा होना पसंद नहीं आ रहा, कल वह कहेगा कि तुम्हारी नाक टेढ़ी है तो क्या नाक की सर्जरी कराएं? फिर कल को बोलेगा बाल सही नहीं हैं, फिर क्या बाल शेव कर देंगे? ये सब बातें और व्यवहार ही आगे चल कर मेरी प्रेरणा बना.’’

जब बिशंबर से यह पूछा गया कि वे इस बड़े मुकाम तक कैसे पहुंचीं तो इस पर वे बताती हैं, ‘‘जब मैं बचपन से अपने जैसे किसी मोटी लड़की को टीवी पर देखती थी तो मुझे लगता था कि मैं जैसी हूं अच्छी हूं. लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ. मैं ने अपने जैसी लड़की नहीं देखी, न कमर्शियल फील्ड में, न फिल्मों में और न मैगजीन में किसी मौडल की तरह. जिन चीजों से मैं गुजरी उस का सब से बड़ा कारण था कि मेरा कोई रोल मौडल नहीं था. मुझे और मुझ जैसी हर लड़की को एक रोल मौडल की जरूरत थी, इसलिए मैं ने फैसला किया कि मैं ब्यूटी पैजेंट में भाग लूंगी.’’

जब परिवार साथ हो

प्लस साइज होना और बौडी शेमिंग का शिकार होना कोई नई बात नहीं रही है. असल में तो ये दोनों ही शब्द एकदूसरे के पूरक हैं, लेकिन बिशंबर और उस जैसी प्लस साइज लड़कियां बौडी शेमिंग को अपनी सफलता में आड़े नहीं आने देतीं. इसी पंक्ति में एक नाम है मोना वेरोनिका कैंपबेल का. मोना पहली ट्रांसजैंडर प्लस साइज भारतीय मौडल हैं. वे लैक्मे फैशन वीक जैसे बड़ेबड़े प्लेटफौर्मों पर वाक कर चुकी हैं. मोना का कहना है कि उन की सफलता का श्रेय उन के परिवार को जाता है. जब उन्होंने अपने परिवार को अपने ट्रांसजैंडर होने के बारे में बताया तो उन्होंने उन का तिरस्कार करने के बजाय उन का साथ दिया.

अपने प्लस साइज मौडल होने के विषय में वे कहती हैं, ‘‘ज्यादातर महिलाएं अपने बौडी वेट को ले कर असुरक्षित महसूस करती हैं. यहां तक कि उन के मातापिता भी उन पर वजन कम करने के लिए प्रैशर डालते हैं. यह कोई बीमारी नहीं है, यह नैचुरल है. लोगों को यह समझना चाहिए. खूबसूरती हमारे अंदर होती है. जब मैं सुबह उठती हूं तो खुद से कहती हूं कि तुम स्ट्रौंग हो और सुंदर हो.’’

मोना का प्लस साइज और ट्रांसजैंडर होना दोनों ही मौडल बनने की राह में किसी चुनौती से कम नहीं थे. इन सब के बावजूद पारिवारिक सहयोग और आत्मविश्वास के साथ मोना आगे बढ़ीं. उन्होंने साबित कर दिया कि लोगों के ताने उन के कुछ कर गुजरने की जिद से ज्यादा बड़े नहीं थे.

खुद की नजर में उठना

इस प्लस साइज इवेंट में भारत के अलगअलग कोनों से लड़कियों और महिलाओं ने हिस्सा लिया. ये सभी प्लस साइज थीं और साथ ही इन के हौसले भी प्लस साइज थे. ये सभी पढ़ीलिखी थीं, अच्छी नौकरी कर रही थीं और खुद को किसी से कम नहीं समझती थीं.

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रैंप वाक करते समय इन्हीं में से दिल्ली की एक प्रतिभागी नीतिका चोपड़ा कहती हैं, ‘‘आखिर हर महिला खुद पर प्राउड क्यों न हो?’’ एक अन्य प्रतिभागी ने कहा, ‘‘माई वेट इज नौट माई वर्थ.’’

इन प्रतिभागियों का कौन्फिडैंस देख कर एक बात साफ थी कि बौडी शेमिंग से दब कर उसे अपनी सचाई बना लेना ठीक नहीं है. उस का डट कर सामना करने की जरूरत होती है.

बदलाव जरूरी है

जब बचपन से ही लड़कियों के लिए खूबसूरती के पैमाने तय कर दिए जाते हैं तो उन में अपने शरीर, अपनी छवि को बदलने की ललक जाग उठती है. जब टीवी पर एक दूसरी अभिनेत्री उन्हें बला की खूबसूरत, जीरो साइज फिगर में नजर आती है तो उस फिगर को वे भी पाना चहती हैं. यहीं से शुरू होता है खुद के साथ उन का स्ट्रगल. इस स्ट्रगल को डिप्रैशन और ऐंग्जाइटी में बदलने का काम उन का परिवार और आसपास के दोस्त करते हैं. मोटी, थुलथुल ऐसेऐसे नाम दे कर उन के मन में असुरक्षा की भावना पैदा कर दी जाती है, जो हमेशा बनी रहती है.

बौडी शेमिंग से बचना लगभग मुश्किल है, पर इसे अनसुना कर आगे बढ़ना बेहद जरूरी है. बदलाव खुद हम से शुरू होता है. खुद को खूबसूरत मानें, अपने आसपास की लड़कियों और महिलाओं को उन के खूबसूरत होने का एहसास दिलाएं. जरूरी नहीं कि खूबसूरती हमेशा वही हो जो अन्य लोगों की नजरों को भाए. लोग बौडी शेमिंग करते हैं, क्योंकि वे आप के बाहरी रूप को ज्यादा महत्त्व देते हैं और जो लोग आप के बाहरी रूप को ज्यादा महत्त्व देते हैं, उन की आप को अपने जीवन में कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए.

अपने शरीर को अपनी पहचान पर हावी न होने दें. समाज को नए उदाहरणों की जरूरत है, खूबसूरती के नए पैमानों की जरूरत है. प्लस साइज लड़कियों को खुद को एक रोल मौडल बनाने की जरूरत है न कि यहांवहां रोल मौडल ढूंढ़ने की.

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