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साइज नहीं इन का हौसला है प्लस

प्लस साइज वूमन सुनते ही सभी के जहन में उस लड़की की इमेज बनती है, जो सामान्य से ज्यादा मोटी होती है, जिस की तोंद निकली होती है और शरीर थुलथुला होता है. मांबाप को चिंता होती है कि इस से शादी कौन करेगा, भाईबहन को चिंता होती है कि हमारे हिस्से का भी खा जाएगी और दोस्तों को चिंता होती है कि यह जिस भी फोटो में आएगी उसे बिगाड़ देगी.

बौडी शेमिंग को चिंता का नाम देना कोई नई बात नहीं है. ‘हम तो तेरे भले के लिए ही कहते हैं’ जैसी बातों से बौडी शेमिंग को ढकने की कोशिश पूरी होती है. लेकिन यह बौडी शेमिंग एक व्यक्ति से उस की खुशी, सुखचैन सब छीन लेती है.

गत 30 जून को दिल्ली में मिस प्लस साइज पैजेंट था जिस में भारत के अलग-अलग कोनों से लड़कियों और महिलाओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. इस पैजेंट में भारतीय मूल की बिशंबर दास भी आईं, जो ब्रिटिश एशिया की पहली प्लस साइज मौडल और मिस प्लस साइज नौर्थ इंडिया 2017 की ब्रैंड ऐंबैसडर थीं. बिशंबर डर्बी की पहली लड़की हैं, जो 22 वर्ष की उम्र में मजिस्ट्रेट बनीं. लेकिन हर प्लस साइज लड़की की तरह उन का बचपन भी लोगों के तानों और बौडी शेमिंग के बीच गुजरा. बौडी शेमिंग के चलते वे डिप्रैशन में भी रहीं. और बहुत सारी लड़कियों की ही तरह उन्हें भी अपना वजूद बेमानी लगने लगा था. लेकिन हिम्मत हारने के बजाय इस मुकाम पर पहुंच कर उन्होंने एक मिसाल पेश की.

तानों से उभर कर

बिशंबर बताती हैं, ‘‘मैं बचपन से ही बहुत खाती थी. मेरी फैमिली के लोग भी मेरा मजाक उड़ाते थे. जो लोग मुझे नहीं जानते थे वे भी मेरी मम्मी से आ कर कहते कि आप की लड़की की शक्ल तो बहुत अच्छी है पर यह बहुत मोटी है. इस से कौन शादी करेगा. मुझे बारबार याद दिलाया जाता था कि मैं प्लस साइज हूं.

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‘‘लोगों की जबान तलवार जैसी होती है. वे ऐसीऐसी बातें कह देते हैं जो सामने वाले को किस हद तक प्रभावित कर सकती है, इस का उन्हें अंदाजा नहीं होता. मैं बौडी शेमिंग से डिप्रैशन में आ गई थी. सब ने नोटिस किया कि मेरा वजन बढ़ रहा है, लेकिन किसी ने यह नहीं पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है. मैं मजिस्ट्रेट बन गई थी, फिर भी जिन की जौब मुझ से कम थी उन्होंने भी मुझे शादी के लिए रिजैक्ट कर दिया. मेरी शिक्षा अच्छी थी, नौकरी अच्छी थी, लेकिन सबकुछ मेरी आउटर अपीयरैंस के आगे छोटा पड़ गया. हम सामने वाले को खुश करने के लिए खुद को क्यों बदलें? आज उसे हमारा मोटा होना पसंद नहीं आ रहा, कल वह कहेगा कि तुम्हारी नाक टेढ़ी है तो क्या नाक की सर्जरी कराएं? फिर कल को बोलेगा बाल सही नहीं हैं, फिर क्या बाल शेव कर देंगे? ये सब बातें और व्यवहार ही आगे चल कर मेरी प्रेरणा बना.’’

जब बिशंबर से यह पूछा गया कि वे इस बड़े मुकाम तक कैसे पहुंचीं तो इस पर वे बताती हैं, ‘‘जब मैं बचपन से अपने जैसे किसी मोटी लड़की को टीवी पर देखती थी तो मुझे लगता था कि मैं जैसी हूं अच्छी हूं. लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ. मैं ने अपने जैसी लड़की नहीं देखी, न कमर्शियल फील्ड में, न फिल्मों में और न मैगजीन में किसी मौडल की तरह. जिन चीजों से मैं गुजरी उस का सब से बड़ा कारण था कि मेरा कोई रोल मौडल नहीं था. मुझे और मुझ जैसी हर लड़की को एक रोल मौडल की जरूरत थी, इसलिए मैं ने फैसला किया कि मैं ब्यूटी पैजेंट में भाग लूंगी.’’

जब परिवार साथ हो

प्लस साइज होना और बौडी शेमिंग का शिकार होना कोई नई बात नहीं रही है. असल में तो ये दोनों ही शब्द एकदूसरे के पूरक हैं, लेकिन बिशंबर और उस जैसी प्लस साइज लड़कियां बौडी शेमिंग को अपनी सफलता में आड़े नहीं आने देतीं. इसी पंक्ति में एक नाम है मोना वेरोनिका कैंपबेल का. मोना पहली ट्रांसजैंडर प्लस साइज भारतीय मौडल हैं. वे लैक्मे फैशन वीक जैसे बड़ेबड़े प्लेटफौर्मों पर वाक कर चुकी हैं. मोना का कहना है कि उन की सफलता का श्रेय उन के परिवार को जाता है. जब उन्होंने अपने परिवार को अपने ट्रांसजैंडर होने के बारे में बताया तो उन्होंने उन का तिरस्कार करने के बजाय उन का साथ दिया.

अपने प्लस साइज मौडल होने के विषय में वे कहती हैं, ‘‘ज्यादातर महिलाएं अपने बौडी वेट को ले कर असुरक्षित महसूस करती हैं. यहां तक कि उन के मातापिता भी उन पर वजन कम करने के लिए प्रैशर डालते हैं. यह कोई बीमारी नहीं है, यह नैचुरल है. लोगों को यह समझना चाहिए. खूबसूरती हमारे अंदर होती है. जब मैं सुबह उठती हूं तो खुद से कहती हूं कि तुम स्ट्रौंग हो और सुंदर हो.’’

मोना का प्लस साइज और ट्रांसजैंडर होना दोनों ही मौडल बनने की राह में किसी चुनौती से कम नहीं थे. इन सब के बावजूद पारिवारिक सहयोग और आत्मविश्वास के साथ मोना आगे बढ़ीं. उन्होंने साबित कर दिया कि लोगों के ताने उन के कुछ कर गुजरने की जिद से ज्यादा बड़े नहीं थे.

खुद की नजर में उठना

इस प्लस साइज इवेंट में भारत के अलगअलग कोनों से लड़कियों और महिलाओं ने हिस्सा लिया. ये सभी प्लस साइज थीं और साथ ही इन के हौसले भी प्लस साइज थे. ये सभी पढ़ीलिखी थीं, अच्छी नौकरी कर रही थीं और खुद को किसी से कम नहीं समझती थीं.

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रैंप वाक करते समय इन्हीं में से दिल्ली की एक प्रतिभागी नीतिका चोपड़ा कहती हैं, ‘‘आखिर हर महिला खुद पर प्राउड क्यों न हो?’’ एक अन्य प्रतिभागी ने कहा, ‘‘माई वेट इज नौट माई वर्थ.’’

इन प्रतिभागियों का कौन्फिडैंस देख कर एक बात साफ थी कि बौडी शेमिंग से दब कर उसे अपनी सचाई बना लेना ठीक नहीं है. उस का डट कर सामना करने की जरूरत होती है.

बदलाव जरूरी है

जब बचपन से ही लड़कियों के लिए खूबसूरती के पैमाने तय कर दिए जाते हैं तो उन में अपने शरीर, अपनी छवि को बदलने की ललक जाग उठती है. जब टीवी पर एक दूसरी अभिनेत्री उन्हें बला की खूबसूरत, जीरो साइज फिगर में नजर आती है तो उस फिगर को वे भी पाना चहती हैं. यहीं से शुरू होता है खुद के साथ उन का स्ट्रगल. इस स्ट्रगल को डिप्रैशन और ऐंग्जाइटी में बदलने का काम उन का परिवार और आसपास के दोस्त करते हैं. मोटी, थुलथुल ऐसेऐसे नाम दे कर उन के मन में असुरक्षा की भावना पैदा कर दी जाती है, जो हमेशा बनी रहती है.

बौडी शेमिंग से बचना लगभग मुश्किल है, पर इसे अनसुना कर आगे बढ़ना बेहद जरूरी है. बदलाव खुद हम से शुरू होता है. खुद को खूबसूरत मानें, अपने आसपास की लड़कियों और महिलाओं को उन के खूबसूरत होने का एहसास दिलाएं. जरूरी नहीं कि खूबसूरती हमेशा वही हो जो अन्य लोगों की नजरों को भाए. लोग बौडी शेमिंग करते हैं, क्योंकि वे आप के बाहरी रूप को ज्यादा महत्त्व देते हैं और जो लोग आप के बाहरी रूप को ज्यादा महत्त्व देते हैं, उन की आप को अपने जीवन में कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए.

अपने शरीर को अपनी पहचान पर हावी न होने दें. समाज को नए उदाहरणों की जरूरत है, खूबसूरती के नए पैमानों की जरूरत है. प्लस साइज लड़कियों को खुद को एक रोल मौडल बनाने की जरूरत है न कि यहांवहां रोल मौडल ढूंढ़ने की.

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कौलेज गर्ल से लेकर मैरिड वुमन तक हर किसी पर सूट करेंगे जाह्नवी के ये लुक

‘धड़क’ फिल्म से इंडस्ट्री में डेब्यू करने वाली बौलीवुड एक्ट्रेस जाह्नवी कपूर इन दिनों बिजी एक्ट्रेसेस में गिनी जाने लगी हैं, जहां एक तरफ जाह्नवी की फैन फौलोइंग बढ़ रही है तो वहीं कई बड़े फिल्मी प्रोजेक्ट्स मिलने से वह काफी बिजी हो गई हैं और अब खबरें हैं कि जाह्नवी भी अपनी मां श्रीदेवी की तरह साउथ फिल्म इंडस्ट्री में भी कदम रखने वाली हैं. पर आज हम उनके फिल्मी करियर की बजाए उनके फैशन की बात करेंगे. जाह्नवी वेस्टर्न के साथ-साथ इंडियन फैशन में भी बेहद खूबसूरत दिखती हैं. आज हम आपको जाह्नवी के इंडियन फैशन के कुछ औप्शन्स दिखाएंगे, जिसे आप पार्टी से लेकर डेली लाइफ के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.

1. औफिस के लिए परफेक्ट है जाह्नवी की ये साड़ी

आजकल फ्लावर प्रिंट ड्रेस हो या साड़ी दोनों ही ट्रेंड में हैं. जाह्नवी भी ट्रेंड को काफी फौलो करती हैं और अगर आप भी ट्रेंड में रहना चाहती हैं तो जाह्नवी की तरह ट्रेंडी और सिंपल दिखना चाहती हैं तो पिंक कलर के साथ येलो के कौम्बिनेशन वाली सिंपल फ्लावरप्रिंट साड़ी ट्राय करें. वहीं ज्वैलरी की बात करें तो आप सिंपल सिल्वर झुमको को इसके साथ मैच करके पहन सकती हैं.

 

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Peaches and cream ?

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2. शादी के लिए परफेक्ट है जाह्नवी का ये कौम्बिनेशन

 

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✨❤️

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अगर आप शादीशुदा हैं और रेड के अलावा कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं तो ग्रीन और गोल्डन का कौम्बिनेशन आपके लिए परफेक्ट रहेगा. जाह्नवी की तरह आप भी मिरर वर्क वाले गोल्डन लहंगे को ग्रीन दुपट्टे के साथ मैच कर सकती हैं. वहीं ज्वैलरी की बात की जाए तो आप इसके साथ कुंदन की ज्वैलरी भी मैच कर सकती हैं.

3. पार्टी के लिए परफेक्ट है ये प्रिंटेड साड़ी

 

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अगर आप किसी पार्टी में सिंपल लेकिन खूबसूरत दिखना चाहती हैं तो सिंपल डार्क ग्रीन ब्लाउज के साथ प्रिंटेड साड़ी ट्राय कर सकती हैं, जिसके साथ एक सिंपल नेकलेस को मैच करके अपने लुक को एलिगेंट दिखा सकती हैं.

4. फ्लावर प्रिंट लहंगा है पार्टी परफेक्ट

अगर आप किसी शादी का हिस्सा बनने वाली हैं और आप एक कौलेज स्टूडेट हैं या आपकी शादी नही हुई है तो ये लहंगा आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. फ्लावर प्रिंटेड एम्ब्रायडरी वाले लहंगे के साथ सिंपल ज्वैलरी आपके लुक को सिंपल और एलिगेंट दिखाने में मदद करेगा.

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बता दें, जाह्नवी कपूर साउथ की फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ स्टारर विजय देवरकोंडा के साथ सिल्वर स्क्रीन शेयर करती नजर आएंगी.

नैटिकेट्स का रखें ध्यान

नैटिकेट्स शब्द नैट और ऐटिकेट्स से मिल कर बना है और इस का मतलब है औनलाइन बिहेवियर के नियमों का पालन करना. जैसे रियल लाइफ में ऐटिकेट्स का पालन करना जरूरी होता है वैसे ही नैटिकेट्स, औनलाइन शिष्टाचार का पालन न करने से भी आप परेशानी में पड़ सकते हैं. इन नियमों का पालन करने से आप अपना औनलाइन टाइम ज्यादा अच्छी तरह ऐंजौय कर सकते हैं.

हाल ही की एक डिजिटल रिपोर्ट के अनुसार हम रोज लगभग 6 घंटे 42 मिनट औनलाइन बिताते हैं. हम अपने स्मार्टफोन, लैपटौप में चैटिंग, गेम्स, फोटो लेने, उन्हें शेयर करने और भी बहुत कुछ करने में व्यस्त रहते हैं. इतना औनलाइन रहने पर हमारा औनलाइन बातों में व्यस्त रहना स्वाभाविक है. हो सकता है ऐसे बहुत से लोग हों जो नैटिकेट्स न जानते हों और कई गलतियां कर रहे हों. उन्हीं के लिए हैं ये टिप्स:

– जब आप औनलाइन बात कर रहे हों तो अपनी भाषा का ध्यान रखें. यह न सोेचें कि आप को कोई देख नहीं रहा है तो आप कैसी भी भाषा का प्रयोग कर सकते हैं.

– बात को लंबा न खींचें. मतलब कि जरूरी बात करें. बेकार की लंबी, बोरिंग बातचीत से बचें.

– ईमेल, चैट, टैक्स्ट या सोशल मीडिया पोस्ट के कमैंट्स हों, सैंड बटन दबाने से पहले एक  बार हर चीज अच्छी तरह पढ़ें.\

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– टाइप करते हुए कैपिटल्स यूज न करें. इस से चिल्लाने की फीलिंग आती है. जैसे आप को अगर नेवर लिखना हो तो आप उसे कैपिटल में न लिखें. इस से जोर से बोलने वाली फीलिंग आती है और वह इन्सल्टिंग लगता है. आप किसी पर नैट पर चिल्लाएं या रियल लाइफ में सामने बैठ कर उसे अच्छा नहीं लगेगा.

– ईमल भेजते हुए सब्जैक्ट लाइन चैक कर लें. यह काम से संबंधित मेल्स के लिए जरूरी है, क्योंकि अगर आप सब्जैक्ट लाइन में हाय लिखती हैं तो हो सकता है उसे अर्जेंट न सम झा जाए और बाद में देखने के लिए छोड़ दिया जाए.

– न तो किसी के प्राइवेट फोटो या बातचीत शेयर करें और न ही पोस्ट. इस से किसी के साथ आप के रिश्ते खराब हो सकते हैं.

– औनलाइन दुनिया में स्पीड का ध्यान रखें. ईमेल्स और मैसेज का जवाब टाइम से दें, भले ही टौपिक अर्जेंट न हो, पर हफ्ते के अंदर जवाब जरूर दे दें. इग्नोर न करें.

– किसी को लगातार मेल्स न भेजें. किसी से अपने मेल्स पढ़वाने के लिए जबरदस्ती न करें. यह अशिष्टता है.

– शेयरिंग करें पर अपनी पर्सनल लाइफ की हर छोटी डिटेल शेयर करने से बचें.

– गौसिप न करें, जिन बातों पर आप को पूरी तरह विश्वास न हो कि वे सच हैं, उन की कहानियां न सुनाएं और कई बार अगर कोई सच बात आप को पता भी हो तो जरूरी नहीं होता कि आप शेयर करें ही.

– आप को कितनी भी जरूरत हो आप वैब से फोटो न चुराएं. हो सकता है उन का कौपीराइट हो और किसी ने इस पर बहुत मेहनत और टाइम लगाया हो. परमिशन लें और क्रैडिट भी दें.

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– कमैंट्स छोटे रखें, औनलाइन डिस्कशन के समय अपनी बात साफसाफ रखते हुए पोस्ट करें.

– किसी की फ्रैंड रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट करने से पहले अच्छी तरह सोच लें. फ्रैंड लिस्ट में ऐड करने के बाद अनफ्रैंड करना इन्सल्टिंग होता है.

जब तक रिश्ता बहुत खराब न हो जाए, अनफ्रैंड न करें.

क्या आईवीएफ में जुड़वा या एकसाथ कई बच्चे होने की संभावना रहती है?

सवाल

मैं 31 साल की कामकाजी महिला हूं. मैं जानना चाहती हूं कि क्या आईवीएफ में जुड़वां या एकसाथ कई बच्चे होने की संभावना रहती है?

जवाब-

पहले विशेषज्ञ अच्छे गर्भधारण के लिए एकसाथ कई भू्रण ट्रांसफर करने की सलाह देते थे, क्योंकि तब यह पता लगा पाना मुश्किल होता था कि ट्रांसफर किया गया भू्रण कमजोर है या नहीं. इस की वजह से कभीकभी जुड़वां या एकसाथ कई बच्चों का जन्म हो जाता था, लेकिन अब वक्त बदल चुका है और टैक्नोलौजी भी. आज की ऐडवांस टैक्नोलौजी के चलते यह पता लग जाता है कि भू्रण कमजोर तो नहीं. आप अपनी इच्छा से 1 या जुड़वां बच्चों की मां बन सकती हैं.

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आज की भागम भाग वाली जिंदगी और खराब किस्‍म के खान पान के चलते हमें ऐसी कई समस्याओं के शिकार हो जाते हैं जिसका असर हमारी सेक्सुअल लाइफ पर पड़ता है. इनफर्टिलिटी, संतान होने में देरी, सेक्स की कमी या फिर यौन दुर्बलता ऐसी ही कई समस्याओं से लोगों को सामना होता है जिसका इलाज करवाने के लिए वो अलग-अलग जगह जाते हैं लेकिन अगर आपको एक ही जगह इन सभी समस्याओं का समाधान एक ही डॉक्टर के पास मिल जाए तो.

ऐसे ही एक डॉक्टर है लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन, जो पिछले 40 सालों से इन सभी समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. तो आप भी पाइए अपनी सभी  सेक्स समस्या का बेहतर इलाज
अंतर्राष्ट्रीय ख्याति एवं मान्यता प्राप्त डॉ. ए. के. जैन द्वारां.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- इनफर्टिलिटी, आईवीएफ से लेकर सेक्सुअल लाइफ तक, यहां मिलेगा हर प्रौब्लम का सोल्यूशन

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

लक्ष्य: जीवन में क्या पाना चाहती थी सुधा?

Serial Story: लक्ष्य (भाग-3)

सुधा का बैग उस ने अपने हाथों में ले कर कमरे में प्रवेश किया. जहां उस की मां एक पलंग पर बैठी थीं. पलंग से सटी एक मेज थी जिस पर दवाइयां रखी थीं. कमरा बहुत बड़ा था. सामने की दीवार पर एक तसवीर टंगी थी, जिस पर फूलों की माला लटक रही थी. सुधा ने उस की मां के चरणों को स्पर्श किया तो वे पलंग पर बैठे उसे आश्चर्यचकित नजरों से देखने लगीं. तभी निलेश ने उस का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘मां, यह सुधा है, दिल्ली से आई है. कालेज में मेरे साथ पढ़ती थी.’’ उस की मां सुधा से औपचारिक बातें करने लगीं, पर सुधा की नजरें दीवार पर लगी उस तसवीर पर टिकी थीं.

निलेश ने कहा, ‘‘सुधा, यह मेरे पिताजी की तसवीर है. वह पलंग से उठ कर उस तसवीर को स्पर्श कर भावविह्वल हो गई. उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. निलेश की मां देख कर समझ गई कि यह बहुत भावुक लड़की है.’’

उन्होंने उस का ध्यान हटाने के उद्देश्य से कहा, ‘‘बेटी, मेरे पति जिंदा होते तो तुम्हें देख कर बहुत खुश होते, पर नियति को कौन टाल सकता है. आओ, मेरे पास बैठो. लगता है तुम मेरे बेटे से बहुत प्यार करती हो. तभी तो इतनी दूर से मिलने आई हो वरना इस कुटिया में कौन आता है. मेरी बूढ़ी आंखें कभी धोखा नहीं खा सकतीं. क्या तुम मेरे बेटे को पसंद करती हो?’’ यह सुन सुधा ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘हम और निलेश कालेज में बहुत अच्छे दोस्त थे.’’

जब निलेश की मां ने कहा, ‘‘तो क्या अब नहीं हो?’’ मुसकराते हुए उस ने बड़ी सहजता से कहा, ‘‘हां, अभी भी मैं उस की दोस्त हूं, तभी तो मिलने आई हूं.’’

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निलेश की मां मुसकराने लगीं, और उस के सिर पर हाथ रख कहा, ‘‘सदा खुश रहो बेटी, मेरा बेटा बहुत अच्छा है, पर मेरी बीमारी के कारण वह कोई डिगरी न पा सका. मैं ने बहुत समझाया कि दिल्ली जा कर अपनी पढ़ाई पूरी कर ले, मेरा क्या है, आज हूं कल नहीं रहूंगी. पर उस की तो पूरी जिंदगी पड़ी है.’’ सुधा ने तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘मांजी, आप बहुत जल्दी ठीक हो जाएंगी. आप को इस हालत में छोड़ कर कोई भी बेटा कैसे जा सकता था?’’

तभी निलेश चाय का प्याला ले कर कमरे में उपस्थित हुआ और सुधा की बातें सुन कर सोचने लगा कि क्या यह वही सुधा है? जो परिवार की जिम्मेदारी के नाम से कोसों दूर भागती थी. मां को खुश करने के लिए कितना अच्छा नाटक कर रही है. न जाने क्यों झूठी तसल्ली दे रही है. वह उस के करीब जा कर कहने लगा, ‘‘सुधा, तुम सफर में थक गई होगी, फ्रैश हो कर चाय पी लो.’’ चाय मेज पर रखते हुए उसे आदेश दिया. निलेश की मां पलंग से उठीं और अपने कमरे से बाहर चली गईं ताकि वे दोनों आपस में बातें कर सकें. उन के जाते ही सुधा निलेश से सवाल कर बैठी, ‘‘निलेश, क्या चाय तुम ने बनाई है?’’

‘‘हां, सुधा, मुझे सबकुछ काम करना आता है और कोई है भी तो नहीं हमारी मदद करने के लिए घर में.’’ सुधा आश्चर्यचकित होती हुई बोली, ‘‘तुम लड़का हो कर भी अकेले कैसे सब मैनेज कर लेते हो. अब तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए, ताकि तुम्हें जीवन में कुछ आराम तो मिलता.’’

निलेश ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘यह तुम कह रही हो सुधा. आजकल की लड़कियां घर की चारदीवारी तक ही सीमित नहीं रहना चाहतीं. हर लड़की के सपने होते हैं. किसी लड़की के उन सपनों को मैं बिखेरना नहीं चाहता. मैं जैसा भी हूं, अकेले ही ठीक हूं.’’

सुधा अचानक एक प्रश्न कर बैठी, ‘‘क्या तुम मुझ से शादी करना चाहोगे?’’

वह उस की तरफ देख कर फीकी हंसी हंसते हुए बोला, ‘‘सुधा, क्यों मजाक कर रही हो?’’

‘‘यह मजाक नहीं निलेश, हकीकत है. क्या तुम मुझ से शादी करोगे? तुम से बिछड़ने के बाद एहसास हुआ कि जीवन में एक हमसफर तो होना ही चाहिए. अब जीवन में मुझे किसी चीज की कोई कमी नहीं है. मैं ने जो चाहा, सब किया पर खुशी की तलाश में अब तक भटक रही हूं. मुझे लगता है कि वो खुशी तुम हो, कोई और नहीं. न जाने क्यों दिल तुम्हें ही पुकारता रहा. तुम ने ठीक कहा था. प्यार कब किस से हो जाए पता नहीं चलता, जब पता चला तो दिल पर तुम्हारा ही नाम देखा. तुम्हारी प्यारभरी बातें, मुझे सोने नहीं देतीं.’’

‘‘यही तो प्यार है, सुधा, दो दिल मिलते हैं पर कभीकभी एकदूजे को समझ नहीं पाते, और जब समझते हैं तो बहुत देर हो जाती है. सुधा, सच तो यह है कि मैं तुम्हें खुश नहीं रख पाऊंगा. क्या तुम इस गांव के वातावरण में मेरे साथ रह पाओगी? मेरी परिस्थिति अब तुम्हारे सामने हैं. जैसी जिंदगी तुम्हें चाहिए, मैं नहीं दे सकता. तुम्हें बंधन पसंद नहीं और मैं उन्मुक्त नहीं. तुम्हारे सपने अधूरे रह जाए, यह मुझे मंजूर नहीं.’’ चाय की चुस्की लेते हुए सुधा ने कहा, ‘‘निलेश, मेरे सपने तो अब पूरे होंगे. अब तक मैं शहर के बच्चों को पढ़ाती रही, चित्रकला भी सिखाती रही पर अब तुम्हारे गांव के बच्चों के साथ बिताना चाहती हूं. शहर में तो सभी रहना चाहते हैं, पर अब मैं तुम्हारे गांव के बच्चों को पढ़ाऊंगी. एक अलग अनुभव होगा मेरे जीवन में. इस तरह तुम्हारी मां की देखभाल भी कर पाऊंगी, अब मेरा नजरिया बदल गया है. जिम्मेदारी और प्यार का एहसास तो तुम्हीं ने कराया है. तुम ठीक कहा करते थे कि बंधन में सुख भी होता है और दुख भी.’’

वह सुधा की बातें सुन, अवाक उसे देखने लगा. उस का जी चाहा कि सुधा को गले लगा ले. वह सोचने लगा, वक्त ने सुधा को कितना परिपक्व बना दिया या मेरी जुदाई ने प्यार का एहसास करा दिया है कि जब किसी से प्यार होता तो सभी परिस्थितियां अनुकूल दिखाई देने लगती हैं.

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‘‘क्या सोच रहे हो, निलेश, दरअसल, तुम से जुदा हो जाने के बाद मुझे एहसास हो गया कि दोस्ती और प्यार के बिना इंसान जीवनपथ पर चल नहीं सकता. कभी न कभी औरत हो या पुरुष दोनों को जीवन में एकदूसरे की आवश्यकता होती ही है. फिर तुम क्यों नहीं मेरी जिंदगी में. आज उस प्यार को स्वीकार करने आई हूं जो कभी ठुकरा दिया था. बोलो, क्या मुझे स्वीकार करोगे?’’ ‘‘सुधा, बात स्वीकार की नहीं, लक्ष्य की है. तुम तो अपनी सफलता की सारी मंजिले पार कर गई. पर मैं आज भी लक्ष्यविहीन हूं. तुम्हारे शब्दों में कहूं तो समय पर भरोसा जो करता था.’’

उसे दिलासा देते हुए सुधा ने कहा, ‘‘निलेश, परिस्थितियां इंसान को बनाती हैं, और बिगाड़ती भी हैं. इस में तुम्हारा कोई दोष नहीं. तुम ने तो अपनी मां के लिए अपना कैरियर दांव पर लगा दिया. ऐसा बेटा होना भी तो आजकल इस संसार में दुर्लभ है. क्या तुम्हारा यह लक्ष्य नहीं? आज मुझे तुम पर गर्व है. तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है. तुम्हारे पास अभी भी समय है, अपनी अधूरी शिक्षा पूरी कर सकते हो. बीए कर सेना में भरती हो सकते हो तुम्हारे पिता की भी यही इच्छा थी न?’’ यह सुन निलेश की खुशी का ठिकाना न रहा,‘‘तुम सचमुच ग्रेट हो. यहां आते ही मेरी हर समस्या को तुम ने ऐसे सुलझा दिया जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो.’’

तभी दरवाजे की ओर से निलेश की मां ने जब यह सुना तो खुशी से फूले न समाईं. अपने बेटे के भविष्य को ले जो उन के हृदय पर संकट के बादल घिर आए थे, वे सब छंट गए. आगे बढ़ कर सुधा को उन्होंने गले लगा लिया.

सुधा ने कहा, ‘‘आंटी, यदि आप इजाजत दें तो मैं अपनी नौकरी और शहर छोड़ कर यहीं आ जाऊं?’’ ‘‘आंटी नहीं, सुधा, आज से तुम मुझे मां कहोगी,’’ निलेश की मां ने जब यह कहा तो दोनों मुसकरा पड़े. सुधा ने अपने मातापिता की इजाजत ले कर निलेश से शादी कर ली और गांव में ही जीवन व्यतीत करने लगी.

निलेश ने स्नातक की परीक्षा पास कर सेना में भरती होने के लिए अर्जी दे दी थी. आज वह अपने देश की सीमा पर तैनात है. शादी के 6 महीने बाद ही निलेश की मां की मृत्यु हो गई थी.

आज वे जीवित होतीं तो कितनी खुश होतीं. सीमा पर तैनात निलेश यही सोच रहा है. शायद यही जीवन की रीत है. कभी मिलती खुशी तो कभी गम की लकीर. पर जिंदगी रुकती तो नहीं है. सुधा ठीक तो कहा करती थी कि इंसान चाहे तो कभी भी, कुछ भी कर सकता है. पर आज अगर अपने लक्ष्य तक पहुंचा हूं तो सुधा के सहयोग से. जीवन का हमसफर साथ दे तो कोई भी जंग इंसान जीत सकता है.

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Serial Story: लक्ष्य (भाग-2)

सुधा के मुख से यह सुन उस की मां उस के करीब जा कर समझाने लगी, ‘‘बेटी, कुछ लोगों का काम ही उत्पाद मचाना होता है. अगर उन के दिल में संवेदना होती तो ऐसा काम करते ही क्यों? पर तुम निलेश के पिता के लिए इतनी दुखी न हो. सैनिक का जीवन तो ऐसा ही होता है बेटी, उन के सिर पर हमेशा कफन बंधा होता है. वे देश के लिए लड़ते हैं, पर उन का परिवार एक दिन अचानक ऐसे ही बिखर जाता है. मरता तो एक इंसान है लेकिन बिखर जाते हैं मानो घर के सभी सदस्य. हम उस शहीद को नमन करते हैं. ऐसे लोग कभी मरते नहीं बल्कि अमर हो जाते हैं.’’ पर सुधा अपने कमरे में आ कर सोचने लगी कि काश, निलेश के लिए वह कुछ कर पाती. आज वह कितना दुखी होगा. एक तरफ मैं ने उस का प्यार ठुकरा दिया, दूसरी तरफ उस के सिर से पिता का साया उठ गया. इस समय मुझे उस के साथ होना चाहिए था. आखिर दोस्त ही दोस्त के काम आता है. कई बार जब मैं निराश होती तो वह मेरा साहस बढ़ाता. आज क्या मैं उस के लिए कुछ नहीं कर सकती? वह बारबार फोन करती पर कोई जवाब नहीं आता तो निराश हो जाती.

2 महीने बाद परीक्षा हौल में उस की आंखें निलेश को ढूंढ़ रही थीं. पर उस का कोई अतापता नहीं था. वह सोचने लगी, क्यों उस के विषय में वह चिंतित रहने लगी है? वह मात्र दोस्त ही तो था, एकदिन जुदा तो होना ही था. फिर उसे ध्यान आया कि कहीं उस की परीक्षा खराब न हो जाए, और वह अपना पेपर पूरा करने लगी. एक महीने बाद जिस दिन रिजल्ट निकलने वाला था, वह कालेज गई तो सभी दोस्तों से उस का हाल जानने का प्रयत्न किया पर किसी ने उसे संतुष्ट नहीं किया. सभी अपने कैरियर की बातों में मशगूल दिख रहे थे. वह घर लौट गई. एकदिन अपनी डिगरी हाथ में ले कर सोचने लगी कि काश, निलेश को भी स्नातक की उपाधि मिली होती तो उस की खुशियां भी दोगुनी होती. न जाने वह जिंदगी कहां और कैसे काट रहा है? जिन आंखों को देख कर वह उन में समा जाना चाहता था क्या वे आंखें अब उसे याद नहीं आतीं? कालेज के अंतिम दिन जो बातें मुझ से की थीं, क्या वह सब नाटक था या यों ही भावनाओं में बह कर बयां कर दिया था, पर मैं ने भी तो उसे तवज्जुह नहीं दी थी. कहीं वह मुझ से नाराज तो नहीं. उस के मन में अनेक खयालों के बुलबुले उठते रहते.

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इस तरह 2 साल गुजर गए. उस ने स्नातक के बाद बीएड भी कर लिया, ताकि स्कूल में पढ़ा सके. जब उसे निलेश की याद सताती तो वह चित्र बनाने बैठ जाती. उसे चित्र बनाने का बहुत शौक था. स्कूल में भी बच्चों को चित्रकला का पाठ सिखाने लगी. इस तरह वह अपने चित्रों के साथ दिल बहलाती रही. अब वह किसी से नहीं मिलती, अपने सभी दोस्तों से कन्नी काटती रहती. अपना काम करती और घर आ कर गुमसुम रहती.

उस की हालत देख उस के मातापिता भी परेशान रहने लगे. उस की शादी के लिए उसे किसी लड़के की तसवीर दिखाते तो उस में निलेश की तसवीर ढूंढ़ने लगती. उस के प्यारभरे शब्द याद आने लगते. तब वह मन ही मन कहने लगती, क्या उसे निलेश से प्यार होने लगा है, पर वह तो मेरी जिंदगी से, शहर से जा चुका है. क्या वह लौट कर कभी आएगा मेरी जिंदगी में. इस तरह उस की यादों में सदा खोई रहती.

एक दिन उस के स्कूल के बच्चों ने चित्रकला प्रतियोगिता में जब अनेक स्कूलों के साथ हिस्सा लिया और प्रथम स्थान प्राप्त किया तो उन की तसवीर अखबार में प्रकाशित हुई, उन के साथ सुधा की भी तसवीर उन बच्चों के साथ साफ दिखाई दे रही थी. उधर जब एक समाचारपत्र पढ़ते हुए निलेश ने सुधा की तसवीर देखी तो दंग रह गया और सोचने लगा, आखिर सुधा अपनी मंजिल पर पहुंच ही गई. उस ने जो कहा था, कर दिखाया. सचमुच जब मन में दृढ़विश्वास हो तो सफलता मिल ही जाती है. मैं भी कितना मशगूल हो गया कि अपने दोस्तों को भूल गया. कल क्या थी मेरी जिंदगी और आज क्या बन गई. कहां उसे पाने का ख्वाब देखा करता था, और आज उस की कोई तसवीर भी मेरे पास नहीं. मैं तो आज भी सुधा से प्यार करता हूं, पर न जाने क्यों वह प्यार से अनजान है. क्यों न एकबार उसे फोन किया जाए. बधाई तो दे ही सकता हूं.

उस ने फोन किया तो सुधा उस की आवाज सुन चकित रह गई. जब उस ने ‘हैलो सुधा,’ कहा तो आवाज पहचान गई, और शब्दों पर जोर दे कर वह बोल पड़ी, ‘‘क्या तुम निलेश बोल रहे हो?’’

‘‘हां, सुधा.’’ ‘‘तुम तो सचमुच दुनिया की भीड़ में खो गए, निलेश, और मैं तुम्हें ढूंढ़ती रही.’’ उस ने अनजान बनते हुए पूछा, ‘‘क्यों ढूंढ़ती रही, सुधा? तुम तो मुझ से प्यार भी नहीं करती थी?’’ तब वह रोष प्रकट करती हुई बोली, ‘‘पर दोस्ती तो थी तुम से? क्यों कभी पलट कर मुझे देखने की आवश्यकता नहीं समझी?’’

वह उधर से उदास स्वर में बोला, ‘‘जीवन की कठिनाइयों ने भूलने पर मजबूर कर दिया सुधा वरना मैं तुम्हें कभी नहीं भूला. मैं तो अपनेआप को ही भूल चुका हूं. पापा क्या गुजर गए, मेरी तो दुनिया ही बदल गई. मैं दिल्ली लौट जाना चाहता था अपनी स्नातक की परीक्षा देने के लिए. पर जिस दिन दिल्ली के लिए रवाना हो रहा था, मां की तबीयत खराब हो गई. अस्पताल ले गया तो जांच में पता चला कि मां को ब्रेन ट्यूमर है. इसलिए मैं उन की देखभाल करने लगा. मां को ऐसी हालत में छोड़ कर जाना उचित नहीं समझा. मेरी मां अकेले न जाने कब से अपने दर्द को छिपाए जी रही थीं. कहतीं भी तो किस से. पापा तो थे नहीं. ‘‘मेरी पढ़ाई खराब न हो, मां ने कुछ नहीं बताया. ऐसे में उन्हें अकेले छोड़ दिल्ली आता भी तो कैसे.’’

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‘‘ओह, तुम इतना सबकुछ अकेले सहते रहे. अब तुम्हारी मां कैसी हैं?’’ निलेश ने धीरे से कहा, ‘‘अभी 2 महीने पहले ही तो औपरेशन हुआ है बे्रन ट्यूमर का. अभी भी इलाज चल रहा है. कीमोथेरैपी करानी पड़ती है. ब्रेन ट्यूमर कोई छोटी बीमारी तो होती नहीं, कई तरह के साइड इफैक्ट हो जाते हैं. बहुत देखभाल की जरूरत होती है. इसलिए मैं कहीं उन्हें छोड़ कर जा भी नहीं सकता. तुम अपनी सुनाओ. आज तुम्हें अपनी मंजिल पर पहुंचते देख मैं अपनेआप को रोक नहीं पाया. स्कूल के बच्चों के साथ चित्रकारिता में इनाम लेते हुए अखबार में तसवीर देखी, तो फोन उठा लिया. आखिर तुम चित्रकारी में सफल हो ही गई. बहुत बधाई. तुम सफलताओं के ऊंचे शिखर पर विराजमान रहो, मैं तुम्हें दूर से देखता रहूं, यह मेरी कामना है.’’

‘‘धन्यवाद निलेश, पर मैं तुम से एक बार मिलना चाहती हूं. तुम नहीं आ सकते तो अपने घर का पता ही बता दो, मैं आ जाऊंगी.’’

यह सुन नीलेश को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. उस ने पूछा, ‘‘सुधा, सचमुच मुझ से मिलने आओगी?’’ ‘‘यकीन नहीं हो रहा न, एक दिन यकीन भी हो जाएगा. अपने घर का पता मैसेज कर देना.’’

एक सप्ताह बाद सुधा, अपने मातापिता की अनुमति ले कर घर से निकल कोलकाता एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गई. वहां पहुंच कर निलेश के बताए पते पर एक टैक्सी में सवार हो कर उस के गांव पहुंच गई. ज्योंज्यों वह उस के घर के करीब जा रही थी उस के दिल में उथलपुथल मचने लगी कि उस के घर के सदस्य क्या कहेंगे. वह ज्यादा निलेश के परिवार के बारे में जानती भी तो नहीं. वह गांव के वातावरण से अनभिज्ञ थी. उस ने टैक्सी ड्राइवर से रुकने को कहा और टैक्सी से उतर स्वयं ढूंढ़ते हुए वह निलेश के घर पहुंच गई. वह दरवाजा खटखटाने लगी. दरवाजा खुलते ही उस की नजर निलेश पर पड़ी तो खुशी का ठिकाना न रहा. निलेश ने हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘सुधा, मैं कहीं सपना तो नहीं देख रहा हूं.’’

उस का कान मरोड़ते हुए वह बोली,‘‘तो जाग जाओ अब सपने से.’’

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Serial Story: लक्ष्य (भाग-1)

निलेश और सुधा दोनों दिल्ली के एक कालेज में स्नातक के छात्र थे. दोनों में गहरी दोस्ती थी. आज उन की क्लास का अंतिम दिन था. इसलिए निलेश कालेज के पार्क में गुमसुम अपने में खोया हुआ फूलों की क्यारी के पास बैठा था. सुधा उसे ढूंढ़ते हुए उस के करीब आ कर पूछने लगी, ‘‘निलेश यहां क्यों बैठे हो?’’ उस का जवाब जाने बिना ही वह एक सफेद गुलाब के फूल को छूते हुए कहने लगी, ‘‘इन फूलों में कांटे क्यों होते हैं. देखो न, कितना सुंदर होता है यह फूल, पर छूने से मैं डरती हूं. कहीं कांटे न चुभ जाएं.’’ निलेश से कोई जवाब न पा कर उस ने फिर कहा, ‘‘आज किस सोच में डूबे हो, निलेश?’’

निलेश ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘सोच रहा हूं कि जब हम किसी से मिलते हैं तो कितना अच्छा लगता है पर बिछड़ते समय बहुत बुरा लगता है. आज कालेज का अंतिम दिन है. कल हम सब अपनेअपने विषय की तैयारी में लग जाएंगे. परीक्षा के बाद कुछ लोग अपने घर लौट जाएंगे तोकुछ और लोग की तलाश में भटकने लगेंगे. तब रह जाएगी जीवन में सिर्फ हमारी यादें इन फूलों की खूशबू की तरह. यह कालेज लाइफ कितनी सुहानी होती है न, सुधा. ‘‘हर रोज एक नई स्फूर्ति के साथ मिलना, क्लास में अनेक विषयों पर बहस करना, घूमनाफिरना और सैर करना. अब सब खत्म हो जाएगा.’’ सुधा की तरफ देखता हुआ निलेश एक सवाल कर बैठा, ‘‘क्या तुम याद करोगी, मुझे?’’

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‘‘ओह, तो तुम इसलिए उदास बैठे हो. आज तुम शायराना अंदाज में बोल रहे हो. रही बात याद करने की, तो जरूर करूंगी, पर अभी हम कहां भागे जा रहे हैं?’’ वह हाथ घुमा कर कहने लगी, ‘‘सुना है दुनिया गोल है. यदि कहीं चले भी जाएं तो हम कहीं न कहीं, किसी मोड़ पर मिल जाएंगे. एकदूसरे की याद आई तो मोबाइल से बातें कर लेंगे. इसलिए तुम्हें उदास होने की जरूरत नहीं.’’

सुधा का अंदाज देख कर निलेश गंभीर होते हुए बोला, ‘‘दुनिया बहुत बड़ी है, सुधा. क्या पता दुनिया की भीड़ में हम खो जाएं और फिर कभी न मिलें? इसलिए आज तुम से अपने दिल की बातें करना चाहता हूं. क्या पता कल हम मिलें, न मिलें. नाराज मत होना.’’ वह घास पर बैठा उस की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘सुधा, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. क्या तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’ यह सुनते ही सुधा के चेहरे का रंग बदल गया. वह उत्तेजित हो कर बोली, ‘‘यह क्या कह रहे हो, निलेश? हमारे बीच प्यार कब और कहां से आ गया? हम एक अच्छे दोस्त हैं और दोस्त बन कर ही रहना चाहते हैं. अभी हमें अपने कैरियर के बारे में सोचना चाहिए, न कि प्यार के चक्कर में पड़ कर अपना समय बरबाद करना चाहिए. प्यार के लिए मेरे दिल में कोई जगह नहीं.

‘‘सौरी, तुम बुरा मत मानना. सच तो यह है कि मैं शादी ही नहीं करना चाहती. शादी के बाद लड़कियों की जिंदगी बदल जाती है. उन के सपने मोती की तरह बिखर जाते हैं. उन की जिंदगी उन की नहीं रह जाती, दूसरे के अधीन हो जाती है. वे जो करना चाहती हैं, जीवन में नहीं कर पातीं. पारिवारिक उलझनों में उलझ कर रह जाती हैं. मेरे जीवन का लक्ष्य है कुशल शिक्षिका बनना. अभी मुझे बहुत पढ़ना है.’’ ‘‘सुधा, पढ़ने के साथसाथ क्या हम प्यार नहीं कर सकते? मैं तो प्यार में सिर्फ तुम से वादा चाहता हूं. भविष्य में तुम्हारे साथ कदम मिला कर चलना चाहता हूं. जब अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे तभी हम घर बसाएंगे. अभी तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं, और रही बात शादी के बाद की, तो तुम जो चाहे करना. मैं कभी तुम्हें किसी भी चीज के लिए टोकूंगा नहीं.’’

‘‘पर मैं कोई वादा करना नहीं चाहती. अभी कोई भी बंधन मुझे स्वीकार नहीं.’’ तब सुधा की यह बात सुन कर उस ने कहा, ‘‘प्यार इंसान की जरूरत होती है. आज भले ही तुम इस बात को न मानो, पर एक दिन तुम्हें यह एहसास जरूर होगा. इन सब खुशियों के अलावा अपने जीवन में एक इंसान की जरूरत होती है. जिसे जीवनसाथी कहते हैं. खैर, मैं तुम्हारी सफलता में बाधक बनना नहीं चाहता. दिल ने जो महसूस किया, वह तुम से कह बैठा. बाकी तुम्हारी मरजी.’’ वह अनमना सा उठा और घर की तरफ चल पड़ा. उस के पीछेपीछे सुधा भी चल पड़ी. कुछ देर चुपचाप उस के साथसाथ चलती रही. अब दोनों बस स्टौप पर खड़े थे, अपनीअपनी बस का इंतजार करने लगे. तभी सुधा ने खामोशी तोड़ने के उद्देश्य से उस से पूछा, ‘‘तुम्हारे जीवन में भी तो कोई लक्ष्य होगा. स्नातक के बाद क्या करना चाहोगे क्या यों ही लड़की पटा कर शादी करने का इरादा?’’

यह सुन कर निलेश झुंझलाते हुए बोला, ‘‘ऐसी बात नहीं है, सुधा. मैं तुम्हें पटा नहीं रहा था. अपने प्यार का इजहार कर रहा था. पर जरूरी तो नहीं कि जैसा मैं सोचता हूं वैसा ही तुम सोचो, और प्यार किसी से जबरदस्ती नहीं किया जाता. यह तो एक एहसास है जो कब दिल में पलने लगता है, हमें पता ही नहीं चलता. आज के बाद कभी तुम से प्यार का जिक्र नहीं करूंगा. दूसरी बात, जीवन के लक्ष्य के बारे में अभी मैं ने कुछ सोचा नहीं. वक्त जहां ले जाएगा, चला जाऊंगा.’’ ‘‘निलेश, यह तुम्हारी जिंदगी है, कोई और तो नहीं सोच सकता. समय को पक्ष में करना तो अपने हाथ में होता है. अपने लक्ष्य को निर्धारित करना तुम्हारा कर्तव्य है.’’

इस पर निलेश बोला, ‘‘हां, मेरा कर्तव्य जरूर है लेकिन अभी तो स्नातक की परीक्षा सिर पर सवार है. उस के बाद हमारे मातापिता जो कहेंगे वही करूंगा.’’ तभी सुधा की बस आ गई और वह बाय करते हुए बस में चढ़ गई. निलेश भी अपने गंतव्य पर चला गया.

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सुधा अब अपने घर आ चुकी थी. जब खाना खा कर वह अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी तो सोचने लगी, क्या सचमुच निलेश मुझ से प्यार करता है? या यों ही मुझे आजमा रहा था. पर उस ने तो अपने जीवन का निर्णय मातापिता पर छोड़ रखा है. उन्हीं लागों को हमेशा प्रधानता देता है. क्या जीवन में वह मेरा साथ देगा? अच्छा ही हुआ जो उस का प्यार स्वीकार नहीं किया. प्यार तो कभी भी किया जा सकता है, पर जीवन का सुनहला वक्त अपने हाथों से नहीं जाने दूंगी. समय के भरोसे कोई कैसे जी सकता है? जो स्वयं अपना निर्णय नहीं ले सकता वह मेरे साथ कदम से कदम मिला कर कैसे चल सकता है? क्या कुछ पल किसी के साथ गुजार लेने से किसी से प्यार हो जाता है? निलेश न जाने क्यों ऐसी बातें कर रहा था? यह सोचतेसोचते वह सो गई. अगले दिन वह परीक्षा की तैयारी में लग गई. निलेश से कम ही मुलाकात होती. एकदिन सुबह वह उठी तो रमन, जो निलेश का दोस्त था ने बुरी खबर से उसे अवगत कराया कि निलेश के पापा एक आतंकी मुठभेड़ में मारे गए हैं. आज सुबह 6 बजे की फ्लाइट से वह अपने गांव के लिए रवाना हो गया. उस के पापा की लाश वहीं गांव में आने वाली है. वह बहुत रो रहा था. उस ने कहा कि तुम्हें बता दें.

यह सुन वह बहुत व्याकुल हो उठी. उस को फोन लगाने लगी पर उस का फोन स्विच औफ आ रहा था. वह दुखी हो गई, उसे दुखी देख उस की मां ने सवाल किया कि सुधा क्या बात है, किस का फोन था? तब उस ने रोंआसे हो कर कहा, ‘‘मां, निलेश के पापा की आतंकी मुठभेड़ में मृत्यु हो गई,’’ यह कहते हुए उस की आंखों में आंसू आ गए और कहने लगी, क्यों आएदिन ये आतंकी देश में उत्पात मचाते रहते हैं? कभी मंदिर में धमाका तो कभी मसजिद में करते हैं तो कहीं सरहद पर गोलीबारी कर बेकुसूरों का सीना छलनी कर देते हैं. क्या उन की मानवता मर चुकी है या उन के पास दिल नहीं होता जो औरतों के सुहाग उजाड़ लेते हैं. आतंक की डगर पर चल कर आखिर उन्हें क्या सुख मिलता है?’’

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Coolie no 1: फिल्म देखने से पहले यहां पढ़ें वरूण और सारा की फिल्म का रिव्यू

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः दीपशिखा देशमुख, वासु भगनानी और जैकी भगनानी

निर्देशकः डेविड धवन

कलाकारः वरूण धवन, सारा अली खान,  परेश रावल, जावेद जाफरी,  राजपाल यादव, जानी लीवर.

अवधिःदो घंटा 14 मिनट तीस सेकंड

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजॉन प्राइम वीडियो

1993 की सफलतम तमिल फिल्म‘‘चिन्ना मपिलाई’’का 1995 में डेंविड धवन ने गोविंदा व करिश्मा कपूर के साथ हिंदी रीमेक ‘कुली नंबर वन’ बनायी थी. अब पच्चीस वर्ष बाद अपनी 1995 की ही फिल्म का उसी नाम से डेविड धवन ने ही रीमेक किया है, जिसमें वरूण धवन व सारा अली खान की जोड़ी है. 1995 की फिल्म के पटकथा लेखक कादर खान थे, जबकि इस बार रोमी जाफरी है.  बाप बेटे यानी कि डेविड धवन व वरूण धवन की जोड़ी की यह अति कमजोर फिल्म है.

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कहानीः

यह कहानी पैसे के घमंड में चूर जोफरी रोजोरियो(परेश रावल)अपनी मॉं(भारती आचरेकर)और दो बेटियो साराह रोजोरियो (सारा अली खान)और अंजू रोजोरियो(शिखा तलसानिया) के संग रहते हैं. वह अपनी बेटियों की शादी करोड़पति परिवार में करना चाहते है. पंडित जयकिशन( जावेद जाफरी)एक दिन बड़ी बेटी साराह रोजोरियो के लिए एक रिश्ता लेकर आते हैं. साथ में लड़का व लड़के के माता पिता भी होते हैं. मगर जोफरी रोजोरियो उस लड़के व उसे माता पिता का अपमान कर घर से निकाल देते हैं. पंडित जयकिश को बुरा लगता है और वह सोच लेते हैं कि अब वह उनकी बेटी की शादी ऐसे लड़के से कराएंगे, जिससे उनका घमंड चूर हो जाएगा. पं. जयकिशन के हाथ में साराह रोजोरियो की तस्वीर है. अचानक स्टेशन पर पहॅुचते ही जयकिशन के हाथ से वह तस्वीर छूटती है और हवा के झोकों से स्टेशन पर कुली नंबर वन के रूप में मशहूर कुली राजू (वरूण धवन)के उपर गिरती है. राजू उस तस्वीर को देखते ही उस पर लट्टू हो जाता है और तय करता है कि वह इसी लड़की से शादी करेगा. इससे पहले कई लड़कियों के माता पिता ने कुली होने के कारण अपनी बेटी की शादी राजू के साथ करने से मना कर चुके हैं. राजू का दोस्त व कार मैकेनिक दीपक(साहिल वैद्य)भी राजू की शादी कराने के कई असफल प्रयास कर चुका है. तस्वीर के पीछे भागते हुए पं. जयकिशन, राजू के पास पहुंचकर फोटो वापस मांगते हैं. राजू कहता है कि यह तो उसकी है और इसी से शादी करेगा. तब जयकिशन के दिमाग में योजना जन्म लेती है. फिर पं. जयकिशन, राजू व दीपक के साथ योजना बनाते हैं. तीनों अमीर होने का ढोंग रच अपना हुलिया बदलते हैं. दीपक अपने गैरेज से राजा महेंद्रप्रताप सिंह की आलीशान निकालता है. राजू अपना नाम व हुलिया बदलकर कुंवर राज प्रताप सिंह बन जाता है. जयकिशन,  कुंवर के सेके्रटरी जैक्सन व दीपक उनका ड्रायवर बन जाता है. तीनों  जोफरी के होटल पहुंचते हैं. पहली ही नजर में साराह,  कुंवर को अपना दिल दे बैठती है. जोफरी यह जानकर खुश होते हैं कि कुंवर के पिता राजा हैं और वह वहां गोवा में अपना नया पोर्ट बना रहे हैं. इतना ही नही मुंबई में शूटिंग के लिए किराए पर मिलने वाला बंगला लेकर कुंवर, जोफरी के परिवार को अपना बंगला दिखाते हैं. अब जोफरी अपनी बेटी साराह की शादी कंुवर राज प्रताप से करना चाहते हैं, इसके लिए वह सेक्रेटरी जैक्सन को घूस के तौर पर लंबी रकम दे देते हैं. साराह और कुंवर राज प्रताप की शादी हो जाती है. इस बीच अंजू व दीपक के बीच प्रेम पनप चुका होता है.

शादी के बाद साराह चाहती है कि वह कुंवर राज प्रताप के बंगले में जाकर रहे. पहले तो कुंवर बहाना करते हैं. फिर लेकर जाते हैं और बंगले के सामने पहुंचकर खुद जैक्सन के साथ अंदर जाते हैं, जहां महेंद्रप्रताप सिंह और उनके बेटे महेश (विकास वर्मा)के बीच झगड़ा हो रहा होता है, उसे देखकर दोनो वापस आ जाते हैं कि पिता बहुत नाराज हैं और घर से निकाल दिया. अब कुंवर किराए के मकान में साराह के साथ रहने लगता है और रोज रेलवे स्टेशन पर कुली बनकर पैसा कमाता है. एक दिन बेटी का हाल चाल जानने जब जोफरी रोजोरियो स्टेशन पहुंते हैं, तो वह कुली राजू से मिलते हैं. उस वक्त राजू कहता है कि वह कुंवर राज नही है, कुंवर राज तो उसका जुड़वा भाई हैं. फिर कहानी कई मोड़ों से होकर गुजरती है. इधर लालच में जोफरी अपनी दूसरी बेटी अंजू की शादी कुली राजू से कराना चाहते हैं. वह सोचते हैं कि एक दिन महेंद्र प्रताप की मौत के बाद दोनो भाईयों को आधी आधी संपत्ति मिलेगी. हास्य के कई घटनाक्रम तेजी से घटित होते हैं. अंततः सारा सच सामने आता है. अंजू की शादी दीपक से हो जाती. मरने से पहले महेंद्र प्रताप अपनी जायदाद अपने बेटे की बजाय राजू को दे देते हैं.

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लेखन व निर्देशनः

उटपटांग पटकथा पर बनी बनी उटपटंाग फिल्म है. पटकथा लेखक रोमी जाफरी ने कुछ दृश्य ज्यों का त्यों उतार दिए हैं. संवाद लेखक फरहाद समजी के संवाद भी घटिया हैं. अफसोस की बात यह है कि डेविड धवन की 1995 की ‘कुली नंबर वन’ के मुकाबले उन्ही के निर्देशन में बनी यह ‘कुली नंबर वन’ किसी भी पैमाने पर खरी नही उतरती है. गोविंदा संग दुश्मनी शुरू होने के बाद से डेविड धवन लगातार अपने बेटे वरूण धवन को गोविंदा का पर्याय बनाने का असफल प्रयास कर रहे हैं. जबकि अभिनय के मामले में वरूण धवन,  गोविंदा से कोसों दूर हैं. कहानी में कहीं कोई सहजता नही है. पूरी फिल्म में कुछ भी लॉजिक नही है. अति लाउड कॉमेडी है. फूहड़ता चरम सीमा पर है. बतौर निर्देशक डेविड धवन कोई कमाल नही दिखा पाएं.

अभिनयः

जब आप किसी दूसरे के जूते में पैर डालकर सुख का आनंद लेना चाहते हैं, तो अक्सर फजीहत ही झेलनी पड़ती है. क्योंकि जूता आपके पैर की साइज से बड़ा होता है. ऐसा ही कुछ इस फिल्म में वरूण धवन ने किया है. गोविंदा के जूतों में पैर रखने का आनंद प्राप्त करने में वरूण धवन बुरी तरह से मात खा गए हैं. उन्होने सिर्फ गोविंदा ही नही, बल्कि अमिताभ बच्चन, सलमान खान, मिथुन चक्रवर्ती ही नहीं बल्कि दिलीप कुमार की भी मिमिक्री कर डाली. वरूण भूल गए कि मिमिक्री व अभिनय में बड़ा अंतरहोता है. नकल कभी साथ नहीं देती. कॉमेडी के नाम पर वरूण धवन महज उछलकूद करते नजर आते हैं. उन्हे संवाद लेखक फरहाद शामजी के संवादों का भी सहयोग नहीं मिला. सारा अली खान को अभी भी अभिनय के गुण सीखने होंगे. परेश रावल की लापरवाह अदाएं और राजपाल यादव का तुतलाना रोना फिल्म के स्तर को लगातार नीचे गिराता जाता है. अफसोस की बात है कि फिल्म दर फिल्म राजपाल यादव के अभिनय का स्तर गिरता ही जा रहा है. कुछ हद त कजावेद जाफरी और जानी लीवर अपने अभिनय से इस फिल्म को संभालते हैं.

Christmas Special: ट्रेंड में हैं काढ़ा और इम्युनिटी बूस्टर केक

इम्युनिटी बूस्टर मिठाइयों, चाय, नाश्ते और काढ़े के बाद अब क्रिसमस और in की. भोपाल में एक बेकरी के संचालक कहते हैं, “कोरोना के आगमन के साथ ही लोंगों में स्वास्थ्य और सेहत के प्रति जागरूकता बहुत अधिक बढ़ी है और इसीलिए अब वे साधारण केक की जगह काढ़ा केक, जिंजर केक, और मसालों से बने केक को प्राथमिकता दे रहे हैं. वे बताते हैं कि अब 35 प्रतिशत लोग इम्युनिटी बूस्टर केक की मांग कर रहे हैं.” उनके अनुसार इन केक को बनाने में सोंठ, दालचीनी, जिंजर, लौंग और काली मिर्च का प्रयोग किया जाता है इसलिए साधारण केक की अपेक्षा इनकी पौष्टिकता काफी बढ़ जाती है.”बच्चों को इस प्रकार के मसालों को खिलाना काफी मुश्किल होता है ऐसे में ये केक उन्हें खिलाने के लिए बहुत अच्छा विकल्प है ताकि उन्हें स्वाद भी मिले और सेहत भी. तो आइए हम आपको ऐसे ही कुछ केक की विधियां बताते हैं जिन्हें आप बड़ी आसानी से घर में बना सकते हैं.

-इम्युनिटी केक

कितने लोंगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

मैदा डेढ़ कप
पिसी शकर 1 कप
कोको पाउडर 1/2 कप
ताजी मलाई पौन कप
बेकिंग पाउडर 1 टीस्पून
बेकिंग सोडा 1/4 टीस्पून
दालचीनी पाउडर 1/8 टीस्पून
काली मिर्च पाउडर 1/8 टीस्पून
तुलसी के दरदरे पिसे पत्ते 10
गुनगुना दूध पौन कप
नीबू का रस 1/4 टीस्पून

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विधि

मैदा, बेकिंग पाउडर, कोको पाउडर, शकर और बेकिंग सोडा को एक छलनी से छान लें. अब इसमें मलाई और दूध को धीरे धीरे चलाते हुए मिलाएं ताकि गुठली न पड़ें. अब तुलसी के पत्ते, दालचीनी, काली मिर्च पाउडर और नीबू का रस मिलाएं. बेकिंग डिश में डालकर प्रीहीटेड अवन में 180 डिग्री पर 25 से 30 मिनट तक बेक करें. सलाई या टूथ पिक डालकर टैस्ट करें यदि न चिपके तो समझें कि केक बन गया है. ठंडा होने पर डीमोल्ड करें.

-काढ़ा केक

कितने लोंगो के लिए 8
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री
मैदा डेढ़ कप
गुड़ पाउडर 1/2 कप
मिल्कमेड 1/2 टिन
रिफाइंड तेल 1/2 कप
अदरक 1 इंच टुकड़ा
काली मिर्च 4
लौंग 4
दालचीनी 1/2 इंच
तुलसी के पत्ते 10
हल्दी पाउडर 1/4 टीस्पून
पानी 2 कप
बेकिंग पाउडर 1 टीस्पून
बेकिंग सोडा 1/4 टीस्पून
नमक 1 चुटकी
वनीला एसेंस 1/2 टीस्पून

विधि

अदरक, काली मिर्च, हल्दी पाउडर, लौंग, गुड़, दालचीनी, और तुलसी के पत्तो को 2 कप पानी में डालकर मंदी आंच पर उबलने रख दें और जब यह उबलकर 1 कप रह जाये तो गैस बंद कर दें. अब एक बाउल में मैदा, बेकिंग पाउडर और बेकिंग सोडा को छान लें. इसमें तेल, मिल्क पाउडर और तैयार काढ़े के पानी को गुनगुना करके डालें और अच्छी तरह चलाएं. नमक और वनीला एसेंस डालें. बेकिंग डिश को ग्रीस करके डस्ट करें और तैयार मिश्रण को डालकर प्रीहीटेड ओवन में 180 डिग्री पर 30 मिनट तक बेक करें. ठंडा होने पर डीमोल्ड करके सर्व करें.

-ऑरेंज पील केक

कितने लोंगों के लिए 8
बनने में लगने वाला समय 35 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

गेहूं का आटा डेढ़ कप
पिसी शकर 1 कप
बटर 4 टेबलस्पून
ऑरेंज के छिलके 1 कप
किशमिश 1/4 कप
बेकिंग पाउडर 1 टीस्पून
बेकिंग सोडा 1/4 टीस्पून
ऑरेंज एसेंस 1/8 टीस्पून
पानी 1 कप
अखरोट गिरी कटी आधा कप

विधि

ऑरेंज के छिलकों को 1/2 कप पानी और किशमिश के साथ मिक्सी में अच्छी तरह पीस लें. अब आटा, बेकिंग पाउडर, बेकिंग सोडा, और मिल्क पाउडर को भली भांति छान लें. इसमें बटर, मिल्क पाउडर, ऑरेन्ज एसेंस और ऑरेन्ज के पिसे मिश्रण को अच्छी तरह मिलाएं. अब पानी को गुनगुना करके आवश्यक्तानुसार मिलाएं. तैयार केक के मिश्रण की कंसिस्टेंसी लगभग पकौड़े के घोल जैसी होनी चाहिए. बेकिंग डिश को ग्रीस करके डस्ट कर लें और तैयार केक के मिश्रण को डिश में डालकर 30 से 35 मिनट तक बेक करें. डीमोल्ड करके मनचाहे आकार में काटकर सर्व करें.

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नोट-यदि आपके पास ओवन नहीं तो आप सामान्य कढ़ाई को गैस पर रखें, इसमें लगभग 1 इंच की मोटाई में नमक की परत लगाकर एक स्टील का डाइनिंग टेबल स्टैंड या प्लेट रखें और मंदी आंच पर लगभग 5 मिनट तक गरम होने दें फिर केक को बेक होने रखें. एकदम धीमी आंच पर 30 से 35 मिनट तक पकाएं. ठंडा होने पर डीमोल्ड करके सर्व करें.

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