जानें क्या होता है पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज

पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज यानी पीआईडी गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब और अंडाशय में होने वाला इन्फैक्शन है. कई बार यह इन्फैक्शन पैल्विक पेरिटोनियम तक पहुंच जाता है. पीआईडी का यही इलाज कराना जरूरी है, क्योंकि इस के कारण महिलाओं में ऐक्टोपिक प्रैगनैंसी या गर्भाशय के बाहर प्रैगनैंसी, संतानहीनता और पैल्विक में लगातार दर्द की शिकायत हो सकती है. आमतौर पर यह बैक्टीरियल इन्फैक्शन होता है, जिस के लक्षणों में पेट के निचले हिस्से में दर्द, बुखार, वैजाइनल डिस्चार्ज, असामान्य ब्लीडिंग, यौन संबंध बनाने या पेशाब करते समय तेज दर्द महसूस होना शामिल है.

पीआईडी के प्रारंभिक कारण

जब बैक्टीरिया योनी या गर्भाशय ग्रीवा द्वारा महिलाओं के प्रजनन अंगों तक पहुंचते हैं तो पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज का कारण बनते हैं. पीआईडी इन्फैक्शन के लिए कई प्रकार के बैक्टीरिया जिम्मेदार होते हैं.

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ज्यादातर यह इंफैक्शन यौन संबंधों के दौरान होने वाले बैक्टीरियल इन्फैक्शन के कारण होता है. इस की शुरुआत क्लैमाइडिया और गनेरिया या प्रमेह के रूप में होती है. 1 से अधिक सैक्सुअल पार्टनर होने की स्थिति में भी पीआईडी होने का खतरा बढ़ जाता है. कई मामलों में क्षय रोग यानी टीबी भी इस के होने का कारण बनता है. 20 से 40 वर्ष की महिलाओं में इस के होने की आशंका अधिक रहती है, लेकिन कई बार मेनोपौज की अवस्था पार कर चुकी महिलाओं में भी यह समस्या देखी जाती है.

यह होती है परेशानी

पीआईडी के कारण कई बार प्रजनन अंग स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और फैलोपियन ट्यूब में भी जख्म हो सकता है. इस के कारण गर्भाशय तक अंडे पहुंचने में बाधा आती है. ऐसी स्थिति में स्पर्म अंडों तक नहीं पहुंच पाता या एग फर्टिलाइज नहीं हो पाते हैं, जिस की वजह से भ्रूण का विकास गर्भाशय के बाहर ही होने लगता है. क्षतिग्रस्त होने और बारबार समस्या होने पर इनफर्टिलिटी का खतरा बढ़ जाता है. वहीं जब पीआईडी की समस्या टीबी के कारण होती है तो मरीज को ऐंडोमैट्रियल ट्यूबरकुलोसिस होने की आशंका रहती है और यह भी इनफर्टिलिटी का कारण बनता है. कई बार तो पीआईडी के कारण मासिकस्राव के बंद होने की भी शिकायत हो जाती है.

पहचान और उपचार

भले ही पीआईडी की समस्या के कुछ लक्षण नजर आते हों, इस के बावजूद इस का पता लगाने के लिए किसी प्रकार की जांच प्रक्रिया उपलब्ध नहीं है. मरीज से बातचीत के जरीए और लक्षणों के आधार पर ही डाक्टर इस की पुष्टि करते हैं. डाक्टर को इस बात का पता लगाने की जरूरत हो सकती है कि किस प्रकार के बैक्टीरिया के कारण पीआईडी की समस्या हो रही है. इस के लिए क्लैमाइडिया या गनोरिया की जांच की जाती है.

फैलौपियन ट्यूब में इंफैक्शन का पता

लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड किया जा सकता है. पीआईडी का इलाज ऐंटीबायोटिक द्वारा किया जाता है. मरीज को दवा का कोर्स पूरा करना जरूरी होता है.

टीबी के कारण पीआईडी की समस्या होने पर ऐंटीटीबी ट्रीटमैंट किया जाता है. वैसे टीबी के इलाज के बाद पीआईडी का उपचार किया जा सकता है. यदि इलाज के बाद भी मरीज की स्थिति में सुधार नहीं होता है तो सर्जरी की सलाह दी जाती है.

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पीआईडी के बाद प्रैगनैंसी

जिन महिलाओं के पीआईडी के बाद प्रजनन अंग क्षतिग्रस्त हो गए हों, उन्हें फर्टिलिटी विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए ताकि सेहतमंद गर्भावस्था को बनाए रखा जा सके. पैल्विक इन्फैक्शन के कारण गर्भाशय के बाहर प्रैगनैंसी होने का खतरा 6-7 गुना तक बढ़ जाता है. इस खतरे को दूर करने और फैलोपियन ट्यूब में समस्या होने पर आईवीएफ थेरैपी कराने की सलाह दी जाती है, क्योंकि आईवीएफ के जरीए ट्यूब को पूरी तरह से पार किया जा सकता है. फैलोपियन ट्यूब में किसी प्रकार का अवरोध होने की स्थिति में रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी ट्रीटमैंट की सलाह दी जाती है. गर्भावस्था के दौरान यदि पीआईडी की समस्या फिर से हो जाती है तो मां और बच्चे दोनों की जान को खतरा रहता है. ऐसे में डाक्टरी सलाह की जरूरत होती है, ताकि आईवीएफ द्वारा ऐंटीबायोटिक दिया जा सके.

-डा. सागारिका अग्रवाल

आईवीएफ ऐक्सपर्ट, इंदिरा हौस्पिटल्स, नई दिल्ली

जेंडर सेंसिटाइजेशन जरूरी है

भारतीय समाज में शुरू से ही युवतियों पर तरहतरह की पाबंदियां लगाई जाती रही हैं. उन्हें युवकों के मुकाबले कमतर आंका जाता रहा है. परिवार में, चाहे वे उच्चवर्ग के हों या मध्यवर्ग के, शिक्षित हों या कम पढ़ेलिखे, बेटी के जन्म पर उतनी खुशियां नहीं मनाते जितनी बेटा होने पर. बेटा होने पर पूरे महल्ले व बिरादरी में मिठाइयां बांटी जाती हैं, हफ्तों जश्न का माहौल रहता है. लड़का हुआ है शुभ लक्षण है इसलिए ब्राह्मण भोज कराया जाता है, लड़के के हाथ से छुआ कर मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाया जाता है. नामकरण से ले कर मुंडन तक सभी अवसरों को पूरे तामझाम के साथ मनाया जाता है.

बेटे के जन्म की खुशी के पीछे भावना यह होती है कि वह वंशबेल को आगे बढ़ाएगा. इतना ही नहीं बड़ा हो कर, पढ़लिख कर परिवार का आर्थिक सहारा बनेगा. जबकि बेटी को शुरू से ही पराई अमानत समझा जाता रहा है. वह तो एक दिन ससुराल चली जाएगी, तो फिर उस पर इतना खर्च क्यों किया जाए.

लड़की को शुरू से ही यह कह कर दबाया जाता रहा है कि तू तो लड़की है, तू घर में बैठ, चूल्हाचौका कर यही ससुराल में काम आएगा. ज्यादा उड़ने की जरूरत नहीं है.

इतनी कठोर पाबंदियों में लड़कियों की इच्छाओं का दमन हो जाता था, वे इसी को नियति समझ कर घरेलू काम में जुट जाती थीं और बड़ी होने पर किसी के साथ भी ब्याह दी जाती थीं. न ही उन की इच्छा पूछी जाती थी और न ही शादी से पहले लड़के का मुंह तक दिखाया जाता था. ऊपर से यह नसीहत और दे दी जाती थी कि वापस लौट कर मत आना. ससुराल से तुम्हारी लाश ही निकले इसी में सब की भलाई है.

ऐसे कड़े अनुशासन में लड़कियों की परवरिश होती थी. जबकि लड़कों को खुली छूट होती थी कि वे कहीं भी जाएं, कभी भी घर आएं.

समय बदला साथ ही समाज की बहुत सी मान्यताएं भी बदलीं. आज लड़कियां कालेज जा रही हैं, नौकरियां कर रही हैं, फैशनेबल कपड़े पहन रही हैं. लेकिन अफसोस की बात यह है कि इतना सब कुछ होते हुए भी कहीं न कहीं लड़कियों को लड़कों के मुकाबले उतनी छूट नहीं है. उन्हें आज भी कमजोर समझा जाता है. लड़की देर से घर लौटे तो घर वालों की चिंता बढ़ जाती है. मातापिता उस की सहेलियों को तुरंत फोन घुमा देते हैं और जब तक वह घर वापस नहीं आ जाती चैन से नहीं बैठते हैं.

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मातापिता का लड़कियों के प्रति चिंतित होना तो तब भी समझ में आता है लेकिन हमारा समाज चाहे जितनी तरक्की कर गया हो, लड़की को लड़के के मुकाबले छोटा और कमजोर ही समझता है. करीबकरीब रोज ही अखबार में लड़कियों के साथ बलात्कार की घटनाएं प्रकाशित होती रहती हैं. समाज उन की बेबसी पर दया न दिखा कर चटखारे लेता है और लड़के अपना काम कर के निकल जाते हैं. सारा दोष लड़की पर ही मढ़ दिया जाता है कि जब फैशनेबल कपड़े पहन कर निकलेंगी तो यही होगा, इस में लड़कों का क्या दोष यानी लड़कों को सब कुछ करने का जैसे लाइसैंस मिला हुआ है.

लड़कियों के प्रति समाज का नजरिया आखिर ऐसा क्यों है? यह शोध का विषय है. लेकिन अफसोस तब होता है जब कोई फिल्मी सैलिब्रिटी अपने अभिनय की तुलना बलात्कार पीडि़त किसी युवती से कर डाले.

सलमान खान ने जब फिल्म ‘सुल्तान’ में किए गए अपने अभिनय की तुलना बलात्कार पीडि़त एक लड़की से की, तो उन्हें काफी धिक्कारा गया. पिता सलीम खान को उन की तरफ से माफी भी मांगनी पड़ी. लेकिन ध्यान से उन की बात का विश्लेषण करें तो स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय समाज में लिंगभेद आज भी वि-मान है और लड़कियों के साथ संवेदना का अभाव है. सलमान खान जैसे विख्यात व्यक्ति द्वारा इस तरह का उदाहरण देना यही दर्शाता है कि मनुष्य में संवेदनशीलता खत्म होती जा रही है.

ऐसी घटनाएं अकसर सुनने में आती हैं. एक दिन रात में रत्ना के घर से अचानक परेशान कर देने वाली आवाजें आने लगीं. अगले दिन उस की पड़ोसिन मान्यता ने रत्ना के घर जा कर उस की सास से पूछा कि रात में आप के घर से आवाजें क्यों आ रही थीं, तो उन्होंने मुंह बिचकाते हुए कहा, ‘‘अरे, कुछ नहीं, पतिपत्नी के बीच तो लड़ाईझगड़ा, मारपिटाई होती रहती है. बस मोहित ने 3-4 थप्पड़ ही लगाए थे, तो सारी रात बवाल मचाए रखा. ठीक से नहीं रहेगी तो पिटेगी ही.’’

‘‘यह क्या कह रही हैं आप आंटी? लड़ाईझगड़ा तक तो ठीक है, पर मारपिटाई? आखिर पतिपत्नी बराबरी के रिश्ते में बंधे होते हैं.’’

‘‘बराबरी? यह क्या कह रही है तू? हमेशा से पत्नी दोयम दर्जे की होती है. इस से भला कौन इनकार कर सकता है.’’

एक स्त्री होते हुए भी वह दूसरी स्त्री के बारे में ऐसे तुच्छ विचार रखती थी, जो सरासर गलत ही नहीं, बल्कि समाज के प्रति स्त्री के नजरिए को दर्शाता है.

एक प्रतिष्ठित इलैक्ट्रौनिक कंपनी की सीनियर ऐडवाइजर पल्लवी आनंद ने बताया कि जब वह सिनेमा हौल में फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ देख रही थी, जिस के एक दृश्य में अभिनेत्री आलिया भट्ट रोते हुए बारबार अपने साथ हुए बलात्कार की बात कहती है, तो वहां मौजूद कई लड़के हंस कर ताली और सीटियां बजा रहे थे. एक लड़की की दिल भेद देने वाली तकलीफ पर उन लड़कों को हंसी आ रही थी.

इस से यही स्पष्ट होता है कि समाज स्त्री को मर्द के हाथ का खिलौना समझता है. स्त्री की तकलीफों और उस पर हो रहे अत्याचारों का उस पर कोई असर नहीं पड़ता. स्त्री के साथ बलात्कार जैसी घटना होने पर स्त्री को ही दोषी ठहराया जाता है. आखिर यह लिंग भेद क्यों है? क्यों समाज स्त्रियों के लिए संवेदनशील नहीं है?

मीना की पड़ोस में राकेश नाम का एक युवक रहता था. उस पर बलात्कार का मामला चल रहा था. इस के बावजूद उस की शादी तय हो गई थी. यह बात मीना ने जब अपने पति को बताई तो वह बोला, ‘‘अच्छी बात है. आखिर क्या कमी है राकेश में? वह मर्द है और मर्द पर कभी कोई लांछन नहीं लगता.’’

यह सुन कर मीना को अपने पति पर गुस्सा तो बहुत आया पर वह खून का घूंट पी

कर रह गई. रोजमर्रा की ऐसी छोटीछोटी असंवेदनाएं दर्शाती हैं कि नारी को देवी का स्थान देने वाले हमारे समाज में लिंग संवेदीकरण की कितनी भारी कमी है.

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जब रोहन सुमित के घर मिलने आया तो सुमित तथा उस का परिवार साथ बैठ कर गप्पें लड़ा रहा था. तभी रोहन की बेटी ने छोटी सी स्कर्ट पहने घर में प्रवेश किया. सुमित ने अपने मित्र रोहन से कहा, ‘‘आजकल आए दिन कैसी खबरें आ रही हैं समझ रहा है न? लड़कियां ऐसे छोटे कपड़े पहनेंगी तो किसी को क्या दोष दें?’’

‘‘जी हां, भाईसाहब,’’ सुमित की पत्नी ने साथ दिया, ‘‘ऐसे में लड़कों को क्या कहें जब लड़कियों को ही अपना होश नहीं? हमें तो कोई चिंता है नहीं, हमारे घर में लड़का है. लेकिन जिन घरों में लड़कियां हैं उन्हें तो ध्यान रखना चाहिए कि वे अपनी लड़कियों को रोक कर रखें.’’

उन की ऐसी मानसिकता पर रोहन और उस की पत्नी को आश्चर्य के साथ रोष भी हुआ. जब नैतिक मूल्यों का सारा बीड़ा केवल लड़कियों के सिर होगा तब न तो समाज में लड़कियों की सुरक्षा होगी और न ही समानता. यदि लड़कियों की भांति लड़कों को भी नैतिक मूल्य सिखाए जाएं, उन्हें भी घर लौटने की समय पाबंदी हो, उन के समक्ष भी नैतिकता की चुनौती बचपन से डाली जाए, तब शायद हमारे समाज में लड़की घर से बाहर निकलने में सुरक्षित अनुभव करेगी.

लिंग संवेदीकरण पर विदेशियों के विचार लिंग संवेदीकरण की घटनाएं न केवल भारत में हो रही हैं, बल्कि विदेशों में भी ऐसी घटनाएं आम हैं.

अमेरिकी पत्रकार व सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता ग्लोरिया स्टीनेम ने कहा है कि हम ने अपनी लड़कियों को तो लड़कों की तरह पालना शुरू कर दिया है, लेकिन अपने लड़कों को लड़कियों की तरह पालने की हिम्मत बहुत कम में है.

निकलस क्रिस्टोफ, जो अमेरिकी पत्रकार व लेखक हैं और 2 बार पुलित्जर प्राइज के विजेता भी रहे हैं, का कहना है कि कई शताब्दियां गुलामी से लड़ने में निकलीं. 19वीं शताब्दी में अधिनायकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी गई और वर्तमान सदी में पूरे विश्व में लैंगिक समानता की नैतिक चुनौती सर्वोच्च रहेगी.

इन विदेशी विचारकों के विचारों से यह स्पष्ट है कि लिंग असमानता न केवल किसी एक देश की समस्या है, बल्कि पूरा विश्व इस से ग्रसित है.

नवंबर में अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव में हिलेरी क्लिंटन का डोनाल्ड ट्रंप से हारना भी यह दर्शाता है कि अमेरिका जैसा देश भी लिंग भेद की दलदल में अभी भी फंसा हुआ है. अगर हिलेरी चुनाव जीततीं, तो वे 245 वर्ष पुराने लोकतंत्र की पहली महिला राष्ट्रपति बनतीं.

जब अमेरिका जैसे मौडर्न देश में लिंग संवेदीकरण है और स्त्रियों को कमतर समझा जाता है, तो भारत जैसा देश जो पंडेपुजारियों के प्रवचनों व पूजाअर्चना जैसी कूपमंडूक बातों को प्राथमिकता देता हो, वहां लिंग असमानता न हो यह हो ही नहीं सकता. आज भी दक्षिण व देश के कई हिस्सों में स्थित मंदिरों में स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है. आखिर क्यों? वैसे तो पुरुषों को भी इन मंदिरों में जाने से कुछ हासिल नहीं होता पर स्त्रियों पर ऐसी पाबंदियां थोपना क्या सही है?

जिनेवा स्थित विश्व आर्थिक मंच के वार्षिक जेंडर गैप इंडैक्स के अनुसार भारत 114वें स्थान पर है. जबकि पिछले वर्ष भारत का स्थान भाग लेने वाले 136 देशों में 101वां था.

कैसे हो लिंग संवेदीकरण

आज जब विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है और जीवनयापन की परिभाषा ही बदल गई है तो हमें लिंग संवेदीकरण पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है और एक समाज को गढ़ना है जहां लिंग संवेदीकरण की भावना हो और स्त्री और पुरुषों के बीच असमानताओं की दीवारें न हों. दोनों को एक ही पलड़े में तौला जाए. स्त्रियों के साथ होने वाली बदसलूकी को खत्म किया जाए.

यदि हम चाहते हैं कि हमारे समाज में लिंग संवेदीकरण हो तो हमें अपने बच्चों में शुरू से ही इस का बिगुल फूंकना होगा और यह कार्य जितना घर के अंदर हो सकता है उतना ही विद्यालय के अंदर भी. पोर्ट ब्लेयर के निर्मला उच्च माध्यमिक विद्यालय की प्रधानाचार्या डा. कैरोलीन मैथ्यु का मत है कि विद्यार्थियों में जागरूकता लाने में अध्यापकों की भूमिका श्रेष्ठ है. सब से पहले अध्यापक को लिंग संवेदीकरण में विश्वास होना चाहिए. एकदूसरे के प्रति समानता और आदर की भावना लड़के व लड़कियों में एक समान होनी चाहिए. दोनों को एकदूसरे की अच्छाइयों व कमियों को जानना और सहना आना चाहिए.

लड़केलड़कियों को बराबर के अवसर प्रदान करने चाहिए, लड़कियों को प्रसिद्ध महिलाओं की जीवनियां पढ़ानी चाहिए व उन्हें उन के अधिकारों की जानकारी के साथ ही आत्मरक्षा का प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए.

कालेज से निकल कर जब युवक व युवतियां बराबरी से नौकरी के क्षेत्र में कदम रखते हैं तब भी लिंग संवेदीकरण का पाठ चलता है. आज कारपोरेट दुनिया में भी इस विषय में काफी काम हो रहा है, जो प्रगतिशील है.

कारपोरेट जगत में आए बदलाव

प्रीति कटारिया जो विप्रो में एचआर हैड हैं बताती हैं कि उन की कंपनी में ऐसे प्रश्न जैसे ‘क्या आप शादीशुदा हैं?’ भी नहीं पूछ सकते हैं. कहती हैं कि भारतीयों को महिलाओं से ऐसे सवाल मसलन, विवाह संबंधी या बच्चे संबंधी पूछना स्वाभाविक लगता है. लेकिन ऐसे प्रश्न एक पुरुष आवेदक से नहीं पूछे जाते हैं. ऐसे प्रश्नों को नहीं पूछना चाहिए, क्योंकि ऐसे प्रश्नों से महिलाओं के कैरियर पर असर पड़ता है. महिलाएं भी पुरुषों की भांति अपने काम में अग्रसर होना चाहती हैं.

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कुछ ठोस कदम

लाइफ स्किल्स कोच, मंजुला ठाकुर कहती हैं कि अब लोगों को लिंग संवेदीकरण जैसे संवेदनशील विषय पर खुल कर बातचीत करने की जरूरत महसूस होने लगी है, विविधता से परिपूर्ण देश में लैंगिक समानता लाने हेतु कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना होगा:

– रूढिवादी मान्यताओं तथा पक्षपातपूर्ण मूल्यों से हट कर दोनों लिंगों के प्रगतिशील अस्तित्व को बढ़ावा देना होगा.

– दोनों के कार्यक्षेत्रों के लिए सुलहपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना होगा.

– महिलाओं की रक्षा हेतु सफल कदम उठाने होंगे. साथ ही यह भी निश्चित करना होगा कि यह कदम पुरुषों के प्रति किसी प्रकार का भेदभाव न रखे.

मंजुला मानती हैं कि प्रशिक्षण देने और जागरूकता बढ़ाने से हमारे समाज, शैक्षिक संस्थाओं, दफ्तरों आदि से लिंग आधारित भेदभाव अवश्य घटेगा और साथ ही औरतों को आगे बढ़ने के अधिकाधिक अवसर मिलेंगे. इसी आशा के साथ मंजुला चंडीगढ़ के पंचकूला व मोहाली में लाइफ स्किल्स ट्रेनिंग संस्था द्वारा परामर्श व प्रशिक्षण शिविर लगाती रहती हैं.

अक्षुना बक्शी जो केवल 25 वर्ष की हैं, कुछ ऐसा कर रही हैं कि हम सभी को उन से सीखना चाहिए. वैसे तो अक्षुना ट्रैवलिस्ता नामक औनलाइन साइट चलाती हैं. लेकिन समाज में स्त्री का उत्पीडन, स्त्री जाति से द्वेष की भावना से तंग आ कर अक्षुना ने एक संस्था भी आरंभ की है. उन की टीम में केवल महिलाएं हैं, जो महिलाओं को जीवन के कई पहलुओं से अवगत कराती हैं.

संवेदीकरण पर काम करते हुए अक्षुना ने खास पाठ्यक्रम तैयार किया है, जिस में लैंगिक समानता, पुरुषों की जिम्मेदारी, पुरुषों द्वारा बचपन से ही महिलाओं को सम्मान दिलवाना आदि को उन के सभी सत्रों में शामिल किया जाता है.

लिंग संवेदीकरण हेतु हमें छोटीछोटी संवेदनशीलताओं का ध्यान रखना होगा. मुंबई उच्च न्यायालय में वकील, ऐलीन मारकीस का कहना है कि हमें अपने बच्चों के सामने सतर्क रह कर प्रतिक्रिया देनी चाहिए. वे लगातार अपने अभिभावक, अध्यापक आदि के कार्यकलापों को देख रहे होते हैं, इसलिए यह और भी आवश्यक हो जाता है कि हम उन के समक्ष सही मूल्य रखें.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश को विकास के पथ पर ले जाने में आधी आबादी का भी खासा योगदान है. इस की रफ्तार को बरकरार रखने के लिए हमें लिंग संवेदीकरण के प्रति संवेदनशील होना ही पड़ेगा.

संविधान में लैंगिक समानता का प्रावधान

– अनुच्छेद 14 में कानून में मर्द व औरत दोनों को समानता प्रदान की गई है.

– अनुच्छेद 15 में लिंग, जाति या नस्ल इत्यादि के आधार पर भेदभाव निषेध किया गया है.

– अनुच्छेद 16 में सार्वजनिक रोजगार में अवसर प्रदान करने की समानता की बात कही गई है. फिर भी इस विषय में हमारा देश अभी काफी पीछे है.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य सत्यव्रत पाल के अनुसार इन आंकड़ों से केवल नजरें झुकाने से काम नहीं बनेगा. इतना व्यवस्थित नरसंहार का न होना तभी मुमकिन है जब समाज के साथ सरकार भी इस के लिए ठोस कदम उठाए. देखा गया है कि कुछ परिवारों में बहनों को उन के भाइयों से कम भोजन मिलता है, कम शिक्षा मिलती है. लड़कियों के प्रति हिंसा और लड़कों को दी गई प्राथमिकता शुरू से ही दोनों में इस भावना का बीज बो देती है कि पुरुषों को स्त्रियों की तुलना में सामाजिक वरीयता अधिक मिले.

6 TIPS: खूबसूरत स्किन के लिए ग्रीन टी फेस पैक

ग्रीन टी में बहुत सारा एंटीऔक्‍सीडेंट, विटामिन और मिनरल पाया जाता है जो शरीर को स्‍वस्‍थ्‍य बनाने के साथ ही साथ चेहरे को सुंदर भी बनाता है. ग्रीन टी पीने से चेहरे की झुर्रियों, दाग-धब्‍बे, मुंहासों, सर्न टैन और यहां तक कि स्‍किन कैंसर से भी छुटकारा मिलता है. ग्रीन टी बैग को आप डायरेक्‍ट ही त्‍वचा पर लगा सकती हैं, इससे सन टैन से मुक्‍ती मिलेगी और त्‍वचा गोरी हो जाएगी.

अगर आप भी ग्रीन टी का फायदा उठाना चाहती हैं तो ग्रीन टी का सेवन करें या फिर ग्रीन टी का फेस पैक बना कर को चेहरे पर लगाएं.

कैसे बनाएं ग्रीन टी फेस पैक

1. 3 चम्‍मच ग्रीन टी और कोकोआ पाउडर लेकर उसे 1 चम्‍मच बादाम के तेल में मिला लें. इसे 20 मिनट तक चेहरे पर लगाएं और चहरे को धो लें, इससे आपका चेहरा ग्‍लो करने लगेगा.

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2. पके पपीते का गूदा निकालिये और उसमें ग्रीन टी का पानी मिलाइये. इस पैक को चेहरे पर 15 मिनट तक रखने के बाद साफ कर लें. इससे टैन पड़ी स्‍किन बिल्‍कुल साफ हो जाएगी.

3. ग्रीन टी के 2 बैग को 1 चम्‍मच चावल के आटे के साथ मिलाइये और उसमें नींबू का रस डाल कर पेस्‍ट तैयार कीजिये. इस पेस्‍ट को चेहरे पर 15 मिनट तक लगा रहने के बाद इसे स्‍क्रब कर के निकाल लीजिये. इससे स्‍किन ब्राइट दिखने लगेगी.

4. तीन स्‍ट्राबेरी को मैश कर के उसमें आधा चम्‍मच शहद और 1 चम्‍मच ग्रीन टी मिलाइये और इस पेस्‍ट से चेहरे पर ऊपर की ओर मसाज करें. आधे घंटे के बाद चेहरा धो लें, कुछ ही दिनों में आपकी सारी झुर्रियां गायब हो जाएंगी.

5. पानी उबाले और उसमें 3 टी बैग ग्रीन टी के और कुटी हुई अदरक डाल दें. जब पानी आधा हो जाए तो उसे छान लें और पानी को उस जगह पर लगाएं जहां पर पिंपल या दाग धब्‍बे हैं. इससे पिंपल साफ हो जाएगा.

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6. 1 चम्‍मच शहद, औलिव औयल और 1 चम्‍मच ग्रीन टी पाउडर एक साथ मिलाइये. इस पेस्‍ट को हल्‍का सा गरम करें और इससे अपने चेहरे की मसाज करें, फिर 30 मिनट तक छोड़ने के बाद चेहरा धो लें.

कोरोनावायरस लक्षण- जो बच्चों में भी देखने को मिल रहे हैं

इस महामारी के दौरान सबसे ज्यादा खतरा या तो बच्चों में पाया गया है या उन लोगों में जिन्हे पहले से ही कोई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या है. हालांकि बच्चों को यह इंफेक्शन काफी कम हो रहा है फिर भी उनके माता पिता ज्यादा चौकन्ने हो गए हैं. हाल ही में एक रिपोर्ट ने यह दावा किया है कि कम उम्र वाले लोगों में आजकल एक मल्टी सिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिस्टम देखने को मिल रहा है. इस रिपोर्ट ने कुछ नए लक्षणों की सूची तैयार की है बच्चों में जोकि वायरस से संक्रमित हैं, में देखने को मिल सकते हैं.

बच्चों में पाए जाने वाले कोरोना के सबसे अधिक कॉमन लक्षण

बड़ों व बूढों की तरह ही बच्चों में भी कुछ लक्षण देखने को मिलते हैं और कुछ एक लक्षण तो ऐसे हैं जो हर उम्र वर्ग में देखे जा रहे हैं. तो आइए जानते हैं कुछ कॉमन लक्षणों के बारे में जो बच्चों में देखने को मिल रहे हैं.

  • बुखार व नाक बहना.
  • थकान होना.
  • किसी चीज की गंध महसूस न होना.
  • गले का सुखना.
  • छाती में दर्द व सांसे फूलना.
  • पूरे शरीर मे दर्द होना.

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वायरस से संक्रमित बच्चों में पाया जाने वाला नया सिंड्रोम

बच्चों को वायरस के जानलेवा पथोजेंस से अधिक खतरा होता है परन्तु बच्चों की ओर कोरोना का संक्रमण अधिक भी नहीं फैल रहा है. परन्तु एक रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों मे एक नए प्रकार का लक्षण दिखने लगा है जो उन्हे बहुत बुरी तरह प्रभावित कर सकता है. यह गंभीर स्थिति है जिसे मल्टी सिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम कहा जाता है.

जिन बच्चों को कोविड 19 हो जाता है उन्हे बहुत ही कम लक्षण देखने को मिलते हैं. परन्तु जिन्हे मल्टी सिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम हो जाता है उनके कुछ मुख्य आर्गंस जैसे किडनी, हृदय, पाचन तंत्र, दिमाग व स्किन आदि में इन्फ्लेमेशन देखने को मिलती है.

इस से जुड़े कुछ लक्षण

वायरस के कुछ मुख्य लक्षणों के अलावा भी जिन बच्चों में यह सिंड्रोम हो जाता है उन्हे कुछ अलग लक्षण देखने को मिलते हैं जैसे

  • गर्दन में सूजन होना.
  • फटे हुए होंठ.
  • स्किन पर रैश होना.
  • उंगलियां व पैरों की उंगलियों का लाल हो जाना.
  • सुजी हुई आंख.
  • स्ट्रॉबेरी टंग क्या है?

कुछ ऐसे 35 बच्चों को एग्जामिन किया गया जिन्हे कोविड के साथ साथ मल्टी सिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम भी है, ऐसे बच्चों में पाया गया कि उनकी स्किन के साथ साथ उनकी म्यूकस मेंब्रेन भी प्रभावित होती है जैसे आप के नोस्ट्रिल्स. इसके अलावा इन प्रभावित बच्चों में पाया गया कि इनकी आंखें सुजी हुई हैं, उनके गाल भी प्रभावित हैं और इन्हे स्ट्रॉबेरी टंग है.

यह उस स्थिति को कहा जाता है जिसमें बच्चे की जीभ सूज जाती है, ब्राइट हो जाती है व उसपे छोटे छोटे बंप हो जाते हैं. 35 बच्चों में से लगभग 8 को यह समस्या पाई गई.

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रिसर्च

जब यह बीमारी बहुत चरम पर थी तो 2 अलग अलग अस्पतालों मे से 35 बच्चों को जांचा गया. 35 में से लगभग 25 बच्चों को यह सिंड्रोम भी पाया गया. और इस सिंड्रोम से प्रभावित बच्चों के लगभग 2 मुख्य ऑर्गन तो प्रभावित होते ही हैं और इन्हे ठीक करने के लिए अभी कोई इलाज भी उपलब्ध नहीं है.

इनके अलावा 29 बच्चों में म्यूकोटेनस लक्षण पाए गए, 18 बच्चों के हाथ लाल रहते थे, 17 बच्चों का ब्लड फ्लो तेज गति से होने लगा था जिस कारण उन्हें इन्फ्लेमेशन होने लगी.

वैडिंग सीजन में ग्लैमरस लुक

वैडिंग में सजीधजी लडकियां हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं. लेकिन ऐसा तभी होता है जब वे बला की खूबसूरत और ग्लैमरस लुक देती हैं. इसलिए गर्ल्स ध्यान रखें कि आप का मेकअप और ड्रैसिंग सैंस ऐसा हो कि देखने वाले आप की क्यूटनैस व ड्रैसिंग स्टाइल को सराहे बिना न रह सकें.
सो, ये 5 टिप्स फौलो करना न भूलें-

यूनीक हो ड्रैस :

आप को देखते साफ लगना चाहिए कि आप यंग कालेजगोइंग गर्ल हैं, न कि आंटीजी. कई बार ड्रैसिंग के कारण लड़कियां बड़ी उम्र की दिखने लगती हैं. गर्ल्स को भारीभरकम कुछ पहनने के बजाय सिंपल, ब्राइट, यूनीक ड्रैस का चुनाव करना चाहिए. इस उम्र में क्यूटनैस वैसे ही होती है, इसलिए सिंपल में आप वैसे ही प्रीटी लगेंगी. वैस्टर्न पहनने का मन है, तो मिडी, फ्रौक या गाउन पहनें. क्लासिक दिखना चाहती हैं, तो शरारा, लहंगा, अनारकली सूट ट्राई कर सकती हैं.
साड़ी पहनने का मन है, तो यूनीक स्टाइल से पहनें.

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एक्सेसरीज का चुनाव :

एक्सेसरीज और ज्वैलरी का चुनाव सोचसम झ कर करें. एक हाथ में ब्रैसलेट तो दूसरे हाथ में घड़ी पहनें. कानों में बड़ेबड़े झुमके हों, तो गले में कुछ न भी पहना हो, चलता है.
ज्वैलरी आप की ड्रैस से मिक्स एंड मैच करे.

बालों का स्टाइल :

हेयर स्टाइल पूरी लुक बदल देता है. फंकी एंड सिंपल हेयर स्टाइल आप को परफैक्ट बना सकता है. खुले बाल हर ड्रैस के साथ जंचते हैं. स्टाइलिश सा हाफ बाल या हाफ चोटी क्लासी लगती है.

ओवर मेकअप हरगिज नहीं :

मेकअप को ज्यादा आर्टिफिशियल न बनाएं. फाउंडेशन का उपयोग ओवर मेकअप का लुक देता है. चेहरे पर दागधब्बे और पिंपल्स हैं, तो बीबी या सीसी क्रीम का इस्तेमाल ठीक रहेगा. मेकअप ट्रिक्स बड़े होने पर ही अच्छे लगते हैं, जैसे स्मोकी साइज और बोल्ड लिप्स गर्ल्स पर अच्छे नहीं लगते और इंप्रैशन भी अच्छा नहीं जाता.

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आकर्षक बनाएं अपने बैस्ट फीचर्स :

आप के बैस्ट फीचर्स कौन से हैं, यह बात आप अच्छी तरह जानती हैं. जैसे अगर आप को पता है कि आप की आंखें ज्यादा खूबसूरत हैं तो मेकअप करते समय आंखों को ज्यादा शार्प रखें. लिप्स ज्यादा क्यूट हैं, तो लिपस्टिक शेड्स का चुनाव सोचसम झ कर करें. डार्क लिपस्टिक बिलकुल न लगाएं. गड़बडि़यों से बचे रहना चाहती हैं, तो इन टिप्स को जरूर फौलो करें, जिस से कि आप पार्टी में सब से ग्लैमरस और खूबसूरत दिखें.

तोहफा: भाग 3- पति के जाने के बाद शैली ने क्यों बढ़ाई सुमित से नजदीकियां

एक अधूरे और घिनौने प्यार का एहसास उसे अंदर तक व्याकुल कर रहा था. जिन लमहों में उस ने सुमित के लिए कुछ महसूस किया था, वे लमहे अब शूल की तरह उसे चुभने लगे थे. कई दिनों तक उदास सी रही वह. जब भी जिंदगी में उस ने प्यार की चाहत की, तो उसे उपेक्षा और धोखा ही मिला. शायद उस की जिंदगी में प्यार लिखा ही नहीं है. उसे उम्र भर अकेले ही रहना है. इस विचार के साथ रहरह कर तड़प उठती थी वह. एक दिन उस की बेटी ने माथा सहलाते हुए उस से कहा था, ‘‘ममा, आजकल आप उदास क्यों रहती हो?’’

शैली ने कुछ नहीं कहा. बस म़ुसकरा कर रह गई.

‘‘ममा, आप वापस पापा के पास क्यों नहीं चलतीं. पापा अच्छे हैं ममा.’’ शैली का चेहरा पीला पड़ गया. संकल्प से अलग होने के बाद पहली दफा नेहा ने वापस चलने की बात कही थी. कोई तो बात होगी जो इस मासूम को परेशान किए हुए है. कहां तो वह बीती जिंदगी याद भी नहीं करना चाहती थी और कहां उस की बेटी उसे वापस उसी दुनिया में चलने को कह रही थी.

शैली ने प्यार से बेटी का माथा सहलाया, ‘‘बेटा , आप वापस पापा के पास जाना क्यों चाहती हो? आप को याद नहीं, पापा आप की ममा के साथ कितना झगड़ा किया करते थे.’’

‘‘पर ममा, पापा आप से प्यार भी तो करते थे,’’ उस ने कहा और चुपचाप शैली की तरफ देखने लगी. शैली ने उस की आंखें बंद करते हुए कहा, ‘‘अब सो जा नेहा. कल स्कूल भी जाना है न तुझे.’’ सच तो यह था कि शैली उस की नजरों का सामना ही नहीं कर पा रही थी. उस की बातों के भंवर में डूबने लगी थी. कई सवाल उस के जेहन में कौंधने लगे थे. वह सोच रही थी कि संकल्प मुझ से प्यार करते थे तो मुझे अलग होने से रोका क्यों नहीं? कभी मुझे कहा क्यों नहीं कि वे मुझ से प्यार करते हैं. मेरे बगैर रह नहीं सकते. मैं तो जैसे अनपेक्षित थी उन की जिंदगी में, तभी तो कभी मनाने की कोशिश नहीं की, सौरी भी नहीं कहा. एक दिन पड़ोस की एक महिला से नेहा की झड़प हो गई. वैसे आंटीआंटी कह कर नेहा उस के साथ काफी बातें करती थी और क्लोज भी थी मगर जब उस ने उस की मां को उलटीसीधी बातें कहीं तो वह बिलकुल आपा खो बैठी और उस महिला को बढ़चढ़ कर बातें सुनाने लगी.

उस वक्त  तो शैली ने उसे चुप करा दिया, मगर बाद में जब शैली ने इस बारे में नेहा से बात करनी चाही कि जो भी हुआ, सही नहीं था, तो बड़े ही रोंआसे स्वर में वह बोली, ‘‘ममा, वह आप को बात सुना रही थीं और यह बात मुझे सहन नहीं हुई. मुझे खुद समझ नहीं आ रहा कि मैं उन के प्रति इतनी रूखी कैसे हो गई.’’ शैली खामोश हो गई थी. नेहा की बात उस के दिल को छू गई.

‘‘एक बात कहूं ममा,’’ अचानक नेहा ने मां के गले में प्यार से अपना हाथ डालते हुए कहा, ‘‘ममा, पापा की आप से लड़ाई सब से ज्यादा किस बात पर होती थी? जहां तक मुझे याद है, इस वजह से ही न कि वे दादी का पक्ष ले कर आप से झगड़ा करते थे.’’

‘‘हां बेटे, यही बात मुझे ज्यादा बुरी लगती थी कि बात सही हो या गलत हमेशा मां का ही पक्ष लेते थे.’’

‘‘ममा, मुझे लगता है, पापा उतने भी गलत नहीं, जितना आप समझने लगी हैं. बिलीव मी ममा, वे आज भी आप से बहुत प्यार करते हैं. बस जाहिर नहीं कर पाते,’’ नेहा ने बड़ी मासूमियत से कहा था. उस की बातों में छिपा इशारा शैली समझ गई थी. उसे खुशी हुई थी कि उस की बेटी अब वाकई समझदार हो गई है. शैली ने उस का मन टटोलते हुए पूछा था, ‘‘एक बात बता नेहा, क्या तू आज भी वापस पापा के पास जाना चाहती है? क्या उन के हाथ मुझे पिटता हुआ देख पाएगी या फिर मुझे छोड़ कर तू पापा के पास चली जाएगी?’’

‘‘नहीं ममा, ऐसा बिलकुल भी नहीं है. मैं ममा को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी,’’ कहते हुए नेहा शैली से लिपट गई. बेटी के दिल में छिपी ख्वाहिश से अनभिज्ञ नहीं थी वह. पर अपने जख्मों को याद कर कमी भी हिम्मत नहीं होती थी उस की वापस लौटने की. कैसे भूल सकती थी वह संकल्प का बातबात में चीखनाचिल्लाना. एक बार फिर कड़वे अतीत की आंच ने उसे अपना फैसला बदलने से रोक लिया था. आज नेहा का जन्मदिन था. शैली ने उस के लिए खासतौर पर केक मंगवाया था और खूबसूरत गुलाबी रंग की ड्रैस खरीदी थी. उसे पहन कर नेहा बहुत सुंदर लग रही थी. पार्टी के लिए उस ने पासपड़ोस के कुछ लोगों और नेहा की खास सहेलियों को बुलाया था. नेहा ने अपने पापा को भी बुलाया होगा, इस बात का यकीन था उसे. 8 बजे पार्टी शुरू होनी थी. आज शौर्टलीव ले कर निकल जाएगी सोच कर वह जल्दीजल्दी काम निबटाने लगी थी. ठीक 4 बजे वह औफिस से निकल गई. अभी रास्ते में ही थी कि संकल्प का फोन आया. बहुत बेचैन आवाज में उन्होंने कहा,  ‘‘शैली, हमारी नेहा…’’

‘‘क्या हुआ नेहा को?’’ परेशान हो कर शैली ने पूछा.

‘‘दरअसल, घर में अचानक ही आग लग गई. मुझे लगता है कि यह सब शौर्ट सर्किट की वजह से हुआ होगा. मैं नेहा को ले कर हौस्पिटल जा रहा हूं, सिटी हौस्पिटल. तुम भी जल्दी पहुंचो.’’

शैली दौड़तीभागती अस्पताल पहुंची तो देखा बेसुध से संकल्प कोने में बैठे हैं. उसे देखते ही वे दौड़ कर आए और रोते हुए उसे अपने बाहुपाश में बांध लिया. ऐसा लगा ही नहीं जैसे वर्षों से दोनों एकदूसरे से दूर रहे हों. एक अजीब सा सुखद एहसास हुआ था उसे. लगा जैसे बस वक्त यहीं थम गया हो. फिर उन से अलग होती हुई वह बोली,  ‘‘नेहा कहां है? कैसी है ?’’ ‘‘चलो मेरे साथ,’’ संकल्प बोले. फिर दोनों नेहा के कमरे में पहुंचे तो नेहा उन्हें साथ देख कर ऐसी हालत में भी मुसकरा पड़ी.

शैली ने उस का माथा सहलाते हुए पूछा, ‘‘बेटे, कैसी है तू?’’

नेहा मुसकराती हुई बोली, ‘‘जब मेरे मम्मीपापा मेरे साथ हैं तो भला मुझे क्या हो सकता है? पापा ही थे जिन्होंने उस धुएं, जलन और आग की लपटों से निकाल कर मुझे हौस्पिटल तक पहुंचाया. पापा, रिअली आई लव यू.’’

शैली चुप खड़ी बापबेटी का प्यार देखती रही. उसे दिल में अंदर ही अंदर कुछ जुड़ता हुआ सा महसूस हुआ. अपने अंदर का दर्द सिमटता हुआ सा लगा. उसे जिंदगी ने शायद वह वापस दे दिया था जिसे वह खो चुकी थी. शायद यह उसी पूर्णता का एहसास था जो पहले संकल्प के साथ महसूस होता था. अचानक नेहा ने शैली का हाथ थामा और उसे संकल्प के हाथों में देती हुई बोली,  ‘‘मुझे आप दोनों से बस एक ही तोहफा चाहिए और वह यह कि आप एक हो जाएं. क्या मेरे जन्म दिन पर आप मुझे इतना भी नहीं दे सकते?’’ शैली और संकल्प पहले तो सकपका गए मगर फिर मुसकरा कर दोनों ने नेहा को चूम लिया. नेहा ने शायद शैली और संकल्प दोनों को नए सिरे से जिंदगी के बारे में  सोचने को विवश कर दिया था.

तोहफा: भाग 2- पति के जाने के बाद शैली ने क्यों बढ़ाई सुमित से नजदीकियां

इस तरह अपने गुस्से की आग को पानी बनाने के प्रयास में कब उस का प्यार भी पानी बनता चला गया इस बात का उसे एहसास  भी नहीं हुआ. अब संकल्प के करीब आने पर उसे मिलन की उत्कंठा नहीं  होती थी. कोई एहसास नहीं जागता था. उन दोनों के बीच वक्त के साथ दूरियां बढ़ती ही गईं और एक दिन उस ने अलग रहने का फैसला कर लिया, जब छोटी सी बात पर संकल्प ने उस पर हाथ उठा दिया. दरअसल, उस की सास सदा ही शैली के खिलाफ संकल्प को भड़काती रहतीं और उलटीसीधी बातें कहतीं. लगातार किसी के खिलाफ बातें कही जाएं तो स्वाभाविक है, कोई भी शख्स उसे सच मान लेगा. संकल्प के साथ भी ऐसा ही हुआ. आवेश के किन्हीं क्षणों में शैली के मुंह से सास के लिए कुछ ऐसा निकल गया जिस की शिकायत सास ने बढ़ाचढ़ा कर बेटे से कर दी. बिना कुछ पूछे संकल्प ने मां के आगे ही शैली को तमाचा रसीद कर दिया और मां व्यंग्य से मुसकरा पड़ीं.

संकल्प का यह व्यवहार शैली के दिल में कांटे की तरह चुभ गया. उस ने उसी समय घर छोड़ने का फैसला कर  लिया और अपना सामान पैक करने लगी. उसे किसी ने नहीं रोका. वह बेटी  को ले कर निकलने ही वाली थी कि सास ने उस की बेटी नेहा का हाथ थाम लिया. उन का हाथ झटक कर नेहा को लिए वह बाहर निकल आई.पीछे से सास की आवाज कानों में गूंजी,  ‘‘इस तरह घर छोड़ कर जा रही हो तो याद रखना, लौट कर आने की जरूरत नहीं है.’’

शैली ने मुड़ कर जवाब दिया था,  ‘‘अब जिंदगी में कभी आप की सूरत नहीं देखूंगी.’’ और फिर सचमुच परिस्थितियां ऐसी बनीं कि उन की सूरत दोबारा देखने का मौका शैली को नहीं मिला. 2 साल पहले ही टायफाइड बुखार में उन की जान चली गई. छोटी ननद बिट्टन ने अब तक सब संभाला था मगर पिछले साल संकल्प ने उस की शादी कर दी. शैली को आमंत्रित किया था वह गई नहीं. बस फोन पर ही बातें कर के शुभकामनाएं दे दी थीं. अब संकल्प बिलकुल अकेले रह गए थे. शैली को लगता था कि वे उस से तलाक ले कर दूसरी शादी करेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ. यह बात अलग है कि संकल्प ने कभी उसे वापस चलने को भी नहीं कहा. हां वे नेहा से मिलने अकसर आ जाया करते थे.

शैली ने स्वयं को एक संस्था से जोड़ लिया तो उसे जीने की वजह मिल गई और वहीं पर मिला सुमित, जिस से मिल कर शैली को ऐसा लगा था जैसे जिंदगी ने उसे दोबारा मौका दिया है. अब तक वह 40वां वसंत पार कर चुकी थी और बेटी भी 14वें साल में प्रवेश कर चुकी थी. धीरेधीरे वह सुमित के करीब होती जा रही थी. शुरुआत में उस ने चाहा था कि वह स्वयं को रोक ले पर ऐसा कर न सकी और सुमित के मोहपाश में बंधती चली गई. अब सुमित कभीकभी शैली के घर भी आने लगा था. वह उस की बेटी नेहा के लिए हमेशा कुछ न कुछ गिफ्ट ले कर आता. कभी नई ड्रैस, तो कभी कुछ और. शैली को खुशी होती कि वह बेटी को भी अपनाने को तैयार है. मगर एक दिन बेटी से बात करने के बाद वह अपने ही फैसले पर पुन: सोचने को मजबूर हो गई.

उस दिन वह जल्दी आ गई थी. बेटी के साथ इधरउधर की बातें कर रही थी. तभी वह बोली, ‘‘ममा, एक बात कहूं?’’

‘‘हां बेटा, बोलो न.’’

‘‘ममा, आप को सुमित अंकल बहुत अच्छे लगते हैं न?’’ थोड़ा सकुचा गई थी वह. फिर बोली, ‘‘हां बेटा, पर वे तो तुम्हें भी अच्छे लगते हैं न?’’

‘‘ममा, मैं मानती हूं कि वे अच्छे हैं और हमारा खयाल भी रखते हैं, पर…’’

‘‘पर क्या नेहा?’’

‘‘पर ममा पता नहीं क्यों उन का स्पर्श वैसा नहीं लगता जैसा पापा का है. पापा करीब आते हैं तो लगता है जैसे मैं सुरक्षा के घेरे में हूं. मगर अंकल बहुत अजीब तरह से देखते हैं. बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता मुझे.’’ दिल की बात कह दी थी नेहा ने. शैली हतप्रभ सी रह गई.

‘‘और ममा, एक बात बताऊं.’’

‘‘हांहां नेहा बोलो.’’

‘‘याद है ममा, पिछले संडे स्कूल में देर ज्यादा हो गई थी, तो आप ने सुमित अंकल को भेजा था, मुझे लाने को.’’

‘‘हां बेटा, तो क्या हुआ?’’

‘‘ममा…,’’ अचानक नेहा की आंखें भर आईं, ‘‘ममा, वे मुझे कुछ अजीब तरह से छूने लगे थे. तभी मुझे रास्ते में  काजल दिख गई और मैं ने फौरन गाड़ी रुकवा कर काजल को बैठा लिया वरना जाने क्या…’’ शब्द उस के गले में ही अटक गए थे. एक अजीब सी हदस शैली के अंतर तक उतरती चली गई.

‘‘तूने पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘मैं क्या कहती ममा, मुझे लगा आप नाराज होंगी.’’

‘‘नहींनहीं बेटा, तुझ से महत्त्वपूर्ण मेरे लिए कुछ भी नहीं,’’ और फिर अपने आगोश में भर लिया था उस ने नेहा को. फिर उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब सुमित को घर कभी नहीं बुलाएगी. बाहर भी ज्यादा मिलने नहीं जाएगी. भले ही अपनी जिंदगी का फैसला करने का उसे पूरा हक है मगर अपनी बेटी की भावनाओं को भी नजरअंदाज नहीं कर सकती, क्योंकि बेटी की जिंदगी भी तो  उस से जुड़ी हुई है और फिर बेटी की सुरक्षा यों भी बहुत माने रखती है उस के लिए. अगले दिन से ही शैली ने सुमित के साथ एक दूरी बना ली. औफिस में सब का ध्यान इस बात पर गया. उस के बगल में बैठने वाली मीरा ने उस से सीधा सवाल ही पूछ लिया, ‘‘क्या हुआ शैली? आजकल सुमित को भाव नहीं दे रहीं?’’

‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं. बस मुझे अपनी मर्यादा का खयाल रखना होगा न, एक बेटी की मां हूं मैं.’’

‘‘बहुत सही फैसला किया है, तुम ने शैली,’’ मीरा ने कहा, ‘‘मुझे खुशी है कि तुम उस का अगला शिकार होने से बच गईं.’’

‘‘अगला शिकार…?’’ वह चौंक गई.

‘‘भोलीभाली, अकेली महिलाओं से दोस्ती कर उन की बहूबेटियों पर हाथ साफ करना खूब आता है उसे.’’

‘‘क्या…?’’

एकबारगी हिल गई थी वह यानी नेहा का शक सही था. वाकई सुमित की नीयत साफ नहीं. अच्छा हुआ जो उस की आंखें खुल गईं. दिल ही दिल में राहत की सांस ली थी उस ने. जीवन के इस मोड़ पर मन में उठे झंझावातों से राहत पाने के लिए उस ने 3 दिनों की छुट्टी ले ली और पूरा समय अपनी बेटी के साथ बिताने का फैसला किया. दिन भर शौपिंग, मस्ती और नईनई जगह घूमने जाना, यही उन की दिनचर्या बन गई थी. और फिर एक दिन शाम को कनाट प्लेस में शौपिंग के बाद शैली बेटी को ले कर एक रैस्टारैंट की तरफ मुड़ गई. यह वही रैस्टोरैंट था जहां वह अकसर सुमित के साथ आती थी. अंदर आते ही एक टेबल पर उस की नजर पड़ी, तो वह भौचक्की रह गई. सुमित एक 15-16 साल की लड़की के साथ वहां बैठा था. किसी तरह का रिएक्शन न देते हुए वह दूर एक कोने की टेबल पर बैठ गई. यहां से वह सुमित पर नजर रख सकती थी. थोड़ी देर में ही शैली ने सुमित के हावभाव से महसूस कर लिया कि वह लड़की सुमित का नया शिकार है. शैली चुपचाप बेटी के साथ रैस्टोरैंट से निकल आई और तय कर लिया कि सुमित से दूरी बनाने के अपने फैसले पर पुरी दृढ़ता से कायम रहेगी.

आगे पढ़ें- एक अधूरे और घिनौने प्यार…

अनुपमा: वनराज करेगा ये बड़ी गलती, जाना पड़ेगा जेल!

स्टार प्लस का सीरियल अनुपमा इन दिनों टीआरपी चार्ट में पहले नंबर पर बना हुआ है, जिसके कारण शो की फैम फौलोइंग बढ रही है. वहीं मेकर्स भी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि कैसे दर्शकों को शो से जोड़े रख सकें. इसी बीच एक प्रोमो, जिसमें अनुपमा ने काव्या को थप्पड़ मारा था, वह सोशमीडिया पर वायरल हो रहा है. लेकिन अब खबर है कि वनराज की मुसीबतें और बढ़ने वाली हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

बेटे परितोष की दोबारा शादी करती है अनुपमा

अभी तक आपने देखा कि परितोष और किंजल ने भागकर शादी की थी. हालांकि पूरा परिवार चाहता था कि दोनों की शादी पूरे रस्मों रिवाजों के साथ हो. इसीलिए अनुपमा दोनों की शादी कराने का फैसला करती है, जिसकी तैयारियों में वह इन दिनों बिजी है.

 

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शादी में हंगामा करेगी काव्या

हाल ही में मेकर्स द्वारा जारी किए गए प्रोमो में दिखाया गया था कि अनुपमा अपने बेटे और बहू के शादी के दिन काव्या को जोरदार थप्पड़ मारती नजर आएंगी. दरअसल, किंजल और परितोष की शादी की रस्मों में खलल डालने के लिए काव्या वनराज औऱ अनुपमा के द्वारा निभाई जाने वाली रस्में निभाने की कोशिश करेगी और कहेगी कि यह उसका हक है. हालांकि अनुपमा उसे समझाएगी कि वह ड्रामा ना करे. लेकिन काव्या नही मानेगी, जिसके कारण अनुपमा काव्या को थप्पड़ मारकर घर से बाहर निकालती नजर आएगी.

जेल जाएगा वनराज

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज को अपनी नौकरी बचाने के लिए अल्टीमेटम दिया गया था, जिसके चलते वह एक गलत कदम उठाता नजर आएगा. दरअसल, खबरों की मानें तो वनराज अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनी के साथ एक सौदा करते हुए कंपनी के सिक्रेट्स लीक करने की कोशिश करेगा. वहीं इस घोटाले के बारे में जब कंपनी के नए बौस को जानकारी मिलेगी तो वह रंगे हाथों पकड़ जाएगा और  उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

गौहर बनी जैद की दुल्हन, रिसेप्शन में पहुंचे ये सितारे

बीते दिनों बिग बौस के 14वें सीजन में एंट्री करके फैंस के बीच सुर्खियां बटोरने वाली एक्ट्रेस गौहर खान ने शादी कर ली है, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं. लेकिन इसी बीच गौहर खान और उनके शौहर जैद दरबार के वेडिंग रिसेप्शन की फोटोज भी आ गई हैं, जिसमें गौहर बेहद खूबसूरत लग रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं उनकी वेडिंग और रिसेप्शन की खास फोटोज…

निकाह में कुछ यूं था गौहर का अंदाज

 

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निकाह की फोटोज शेयर करते हुए गौहर खान ने अपने फैंस को शादी की खबर दी है. फोटोज की बात करें तो जैद दरबार संग शादी के दौरान दोनों का अंदाज काफी शाही नजर आया. वहीं कुछ फोटोज में गौहर पति संग रोमेंटिक पोज देते भी नजर आए, जिनको देखकर लग रहा है कि वह कितनी खुश हैं.

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दोस्तों के लिए दी रिसेप्शन पार्टी

 

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निकाह होने के बाद गौहर खान (Gauahar Khan) और जैद दरबार ने मुंबई में अपनी शादी की खुशी में एक रिसेप्शन रखा था, जिसमें टीवी जगत के सितारे गौतम रोड़े और उनकी वाइफ के साथ-साथ गौहर  खान और जैद दरबार की फैमिली भी नजर आई.

 

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गौहर खान  ने इस अंदाज में मारी एंट्री

 

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अपनी शादी के रिसेप्शन में गौहर खान ने डार्क रेड और गोल्डन कलर के लहंगे में धासूं एंट्री मारी. वहीं पति जैद भी ब्लैक कलर की शेरवानी में गौहर के लुक को कंपनी देते नजर आए. वहीं शादी के लुक की बात करें तो व्हाइट गोल्डन कलर के कॉम्बिनेशन में गौहर खान और जैद दरबार की जोड़ी कमाल लग रही थी.

 

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बता दें, शादी की खुशी में गौहर खान ने अपनी रिसेप्शन पार्टी में आते ही सबसे पहले मीडिया के साथ अपनी खुशी जाहिर की. साथ ही गौहर खान ने सभी मीडियाकर्मियों को मिठाई खिलाकर धन्यावाद किया. वहीं इसमें उनका साथ जैद दरबार ने भी दिया.

हर्निया की बीमारी को हल्के में न लें

हर्निया एक ऐसी बिमारी है, जिसका इलाज ऑपरेशन से ही मुमकिन है. हालांकि कुछ सावधानियां बरतकर इस समस्या को गंभीर होने से रोका जा सकता है. इस बारें में दिल्ली के अपोलो स्पेक्ट्रा अस्पताल के जनरल सर्जन डॉ. कपिल अग्रवाल कहते है कि जब किसी भी व्यक्ति की शरीर में एक मासपेशी या ऊतक अपनी खोल या झिल्ली से उभरकर बाहर आने लगता है, उसे हर्निया कहते है. इसमें मरीज को तेज दर्द होता है, चलने-फिरने में मुश्किलें आती है. उलटी भी हो सकती है . दरअसल शरीर के किसी हिस्से की मसल्स का कमजोर होने पर और वहां लगातार प्रेशर पडने की वजह से होता है. पेट के ऑपरेशन के बाद हर्निया होना काफी सामान्य होता है.

हार्निया आमतौर पर पेट में होता है, लेकिन यह जांघ के उपरी हिस्से, नाभि और कमर के आसपास भी हो सकता है. हार्निया घातक नहीं होते, लेकिन यह अपने आप ठीक भी नहीं हो सकता. कुछ परिस्थितियों में हर्निया की जटिलताओं से बचने के लिए सर्जरी करनी पडती है. बहुत बार हर्निया का कोई भी लक्षणं दिखाई नही देता , लेकिन कई बार लोगो को पेट में अधिक दर्द होने से इस बीमारी का पता चल पाता है. हर्निया कई प्रकार के होते है, जो निम्न है,

हर्निया के प्रकार

पुरूषों में पाये जानेवाला हर्निया इन्गुइनल (Inguinal) पेट के नीचे की तरफ होता है, जबकि यह बीमारी महिलाओ के मुकाबले पुरूषों में अधिक होता है.

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बच्चों का हर्निया अम्ब्लाईकल (Umbilical) पेट का हर्निया होता है, छह माह से कम उम्र वाले बच्चों को हो सकता है, ये तब होता है जब आंत का उभार पेट की अंदरूनी परत के माध्यम से नाभि के पास पहुंच जाता है. यह काफी सामान्य बिमारी है, खासकर पेट के ऑपरेशन के बाद होती है.

पेट के उपरी हिस्से होनेवाला हर्निया एपिगेस्ट्रिक(Epigastric) नाभि और रिब्स के सेंटर में होता है.
महिलाओं का हर्निया फिमोरल (Femoral) जांघ में होता है और ये महिलाओं में अधिकतर देखा गया है. इसके अलावा लंबर(Lumbar), इनसीजनल (Incisional), पैरास्टोमल (Parastomal) और हिएटल(Hiatal) हर्निया आदि भी महिलाओं को हो सकता है.

इसके आगे डॉ. कपिल कहते है कि हर्निया धीरे-धीरे बढने वाली बिमारी है. हार्निया की समस्या तब होती है, जब शरीर का कोई हिस्सा अपनी कांटेनिंग कैपासिटी से बाहर निकलकर आता है. यह बिमारी अंग के किसी भी हिस्से में हो सकती है. हर्निया के कारण हमारा पेट बाहर निकलने लगता है. यह स्थिति मांसपेशियों को कमजोर करती है. कई बार हर्निया की समस्या जन्म से ही होती है. उसे जन्मजात हर्निया कहते है. इसके अलावा हर्निया की समस्या उम्र बढने के बाद अधिक होने की संभावना रहती है.
इलाज के बारें में डॉ. कपिल का कहना है कि यदि हर्निया का इलाज समय पर नहीं किया गया , तो उसकी सूजन बढ सकती है. इसके अलावा हर्निया के वजहसे शरीर के बाकी अंगों पर भी असर पड़ सकता है और मरीज की सेहत बिगड़ सकती है. ऐसी स्थिति में सर्जरी करना मुश्किल होता है. कभी-कभी आपातकालीन स्थिति में मरीज को कुछ घंटों के भीतर सर्जरी से गुजरना पड़ता है.

हर्निया की समस्या के कारण

∙ ज्यादा मोटापा बढ़ने पर मसल्स के बीच में फैट जमा हो जाता है, इससे मसल्स पर प्रेशर पड़ता है और वे दो हिस्सों में बंट जाती है,
∙ सिजेरियन ऑपरेशन में पेट के बीच में टांके लगाए जाते है, तो भी हर्निया हो सकता है,
∙ लंबे समय तक खांसी रहने पर हर्निया हो सकता है, क्योंकि खांसी से पेट पर दबाव पड़ता है,
∙ पेशाब करने में दिक्कत या रुकावट होने पर भी हर्निया की आशंका बढ़ जाती है,
∙ अगर प्रेग्नेंसी में प्रोटीन कम लें या पूरा पोषण नहीं हो, तो मसल्स कमजोर हो जाती है, उससे भी हर्निया हो सकता है,
∙ 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में इसकी आशंका ज्यादा होती है,
∙ किडनी या लिवर की फेल होने वाले मरीजों में भी हर्निया होने की आशंका अधिक होती है,
∙ बहुत ज्यादा वजन उठानेवाले को भी यह समस्या हो सकती है,
∙ जो लोग बहुत ज्यादा सीढ़ियां चढ़ते-उतरते हैं, उनमें हर्निया के चांस बढ़ जाते है.

लक्षण

∙ पेट के निचली हिस्से में सूजन,
∙ खांसने पर, या कब्ज होने की वजह से जोर लगाने पर सूजन का बढना,
∙ भारी चीजें उठाने पर या झुकने पर दर्द होना,
∙ लेटने पर सूजन का कम होना,

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बचाव

हर्निया से बचाव के लिए निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखें,
∙ वजन नियंत्रित रखे,
∙ स्वस्थ आहार का सेवन कसे और नियमित व्यायाम करे,
∙ पेशाब करते वक्त ज्यादा जोर न दे,
∙ ज्यादा भारी वस्तु न उठाऐ,
∙ बार-बार आनेवाली खांसी से बचने के लिए धुम्रपान का सेवन करना बंद करे,
∙ अगर आपको लगातार खांसी आती हो, तो डॉक्टर से मिलें और खांसी का इलाज करवाएं,
∙ हर्निया के शुरूआती लक्षण दिखाई दे, तो डॉक्टर से जांच करवाकर, अधिक बढने से पहले इसका इलाज करवाएं.

इलाज

हर्निया का इलाज केवल सर्जरी के जरिए ही संभव है, इसमें लेप्रोस्कोपिक सर्जरी मरीज को जल्दी रिकवरी, कम दर्द और सामान्य जीवन में जल्दी वापसी के लिए अधिक फायदेमंद होता है. इस सर्जरी को एक छोटे से छेद के माध्यम से की जाती है. सर्जरी करने के लिए केवल 3 से 4 छोटे चीरों की आवश्यकता होती है. सर्जरी के बाद 24 घंटे के भीतर मरीज को घर जाने की अनुमति दी जाती है. मरीज सर्जरी के बाद जल्दी काम पर लौट सकता है.

ऑपरेशन के बाद सावधानिया,

ऑपरेशन के बाद 3 माह तक भारी वजन न उठाएं, पेट पर वजन पड़ने वाली कोई काम न करें, 6 से 7 दिन तक हल्का खाना खाएं, 7 दिन बाद 4 पहिये वाली गाड़ी और 2 सप्ताह बाद 2 पहिये वाली गाड़ी चला सकते है.

इस प्रकार अगर शरीर में कहीं भी सूजन दिखाई पड़े, तो डॉक्टर की परामर्श अवश्य लें, दर्द होने पर कई बार मरीज की स्थिति ख़राब होने लगती है और तुरंत सर्जरी करवानी पड़ती है. समय रहते हर्निया की इलाज करवाने पर व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है.

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