घर सजाते समय कभी न करें ये 12 गलतियां

घर को सजाने की चाह में कई बार रचनात्मकता अपना कमाल दिखाती है मगर कभी-कभी गलतियां भी हो जाती हैं. फ्लैट छोटा हो और फर्नीचर बड़ा, पेंडेंट लाइट्स ज्यादा ऊपर हों, रग्स का सही चुनाव न किया जाए तो घर बेमेल सा नजर आने लगता है. थोड़ी समझदारी बरतें तो इन गलतियों से बचा जा सकता है या इन्हें सुधारा जा सकता है.

1. पर्दे

डेकोरेशन का नियम कहता है कि पर्दे फ्लोर लेंथ से लगभग एक इंच कम हों. कई बार पर्दे या तो फर्श को छूने लगते हैं या फिर कुछ ज्यादा ही छोटे हो जाते हैं. डेकोर की यह आम समस्या है.

2. टिप

बेहतर होगा कि पहले दरवाजे या खिड़कियों की नाप सही ढंग से लें. अगर फैब्रिक सिल्क का नहीं है तो हाइट थोड़ी ज्‍यादा रखें क्योंकि कई बार कॉटन फैब्रिक धोने के बाद सिकुड़ जाता है. वैसे इस समस्या से बचने के लिए इन्हें ड्राईक्लीन कराएं या फिर घर में धोने के बाद अच्छी तरह इस्तरी करें.

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3. फोटो फ्रेम्स

कई बार फैमिली फोटो फ्रेम्स या पेंटिंग्स की हाइट इतनी ऊंची हो जाती है कि उनकी डिटेलिंग समझ नहीं आती. ग्रुप में लगे फ्रेम्स अच्छे जरूर लगते हैं लेकिन इतने भी नहीं कि पूरी दीवार पर यही नजर आने लगें.

4. टिप

अगर घर में आर्ट गैलरी खोलना नहीं चाहती हों तो फ्रेम्स को ज्‍यादा हाइट पर न लगाएं. इन्हें फर्नीचर से 10-12 इंच या फ्लोर से लगभग 5 फिट ऊपर लगाएं ताकि ये आसानी से नजर आ सकें. व्यावहारिक सुझाव यह है कि फ्रेम्स इतने ऊपर हों कि सामान्य हाइट वाला व्यक्ति भी इन्हें देख सके और लोगों को अपनी गर्दन को स्ट्रेच करके इन्हें न देखना पड़े.

5. कार्बन कॉपी

सभी लोग किसी न किसी इंटीरियर थीम से प्रेरित होते हैं. दोस्तों, कलीग्स के घरों के अलावा फिल्मों-टीवी सीरियल्स और पत्रिकाओं में प्रकाशित घर भी उन्हें प्रेरित करते हैं. कई बार वे वैसी ही सजावट अपने घर में चाहते हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि अपने घर को दूसरे के घरों की कार्बन कॉपी बना दें. घर में अपनी निजी पसंद, शौक, व्यक्तित्व, प्रोफेशन और स्टाइल की झलक भी मिलनी चाहिए.

6. टिप

किसी से प्रेरित होने से पहले सोचें कि क्या वह खास पैटर्न, फर्नीचर, फैब्रिक या वॉल कलर आपके घर के साइज, जरूरतों और उसमें रहने वालों की पसंद के अनुरूप है? घर में अपने व्यक्तित्व और रचनात्मकता की छाप होनी चाहिए. यह बात जरूर ध्यान में रखें कि घर रहने के लिए होता है. उसे इतना न सजाएं कि वह फाइव स्टार होटल में तब्दील हो जाए.

7. लाइटिंग

अमूमन घरों में सीलिंग या ओवरहेड लाइटिंग की व्यवस्था होती है. यूं भी फ्लैट सिस्टम में बिल्डर जितना देता है, उतने में ही संतुष्ट होना पड़ता है मगर कई बार लाइटिंग की अपर्याप्त व्यवस्था घर को नीरस या उदासीन बना देती है. इसलिए सीलिंग लाइट्स के अलावा भी घर में लाइटिंग की उचित व्यवस्था करें.

8. टिप

थोड़ा सा मेकओवर घर को जीवंत और ऊर्जा से भरा हुआ बना सकता है. घर की लाइटिंग में फेरबदल करें. फॉल्स सीलिंग के अलावा फ्लोर लैंप्स, पेंडेंट लाइट्स, टास्क लाइटिंग और ओवरहेड लाइटिंग लगवाएं. जिन आर्ट पीसेज या पेंटिंग्स को हाइलाइट करना चाहते हैं, उनमें हाइलाइटर लगवाएं.

9. दीवार से सटे फर्नीचर

स्पेस मैनेजमेंट कहें या सजावट का पारंपरिक तरीका, अमूमन घरों में फर्नीचर को दीवार से सटाने का नियम चला आ रहा है. कई घरों में तो सेंटर टेबल भी सेंटर के बजाय दीवार से सटा कर रखी जाती है. इस फ्लोर प्लैन में थोड़ा सा बदलाव जरूरी है.

10. टिप

भले ही घर छोटा हो, अपने सारे फर्नीचर्स दीवार से सटा कर न रखें. दीवार से 2-3 इंच दूरी पर सामान रखेंगे तो न सिर्फ जगह ज्‍यादा खुली दिखेगी बल्कि फर्नीचर और दीवार की खूबसूरती भी निखर कर आएगी.

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11. ड्रॉइंग रूम

अमूमन घरों में लिविंग स्पेस या ड्रॉइंग रूम के डेकोर पर ज्‍यादा ध्यान दिया जाता है. कारण यह है कि मेहमानों का स्वागत यहीं होता है. इस कारण कई बार ड्रॉइंग रूम में सारी सुंदर कलाकृतियां, देश-विदेश से खरीदी गई पेंटिंग्स या आर्ट पीसेज, कार्पेट्स, रग्स, लैंप्स, अवॉर्ड्स गिफ्ट्स सजा दिए जाते हैं. छोटे से स्पेस में इतने फोकल पॉइंट्स न तैयार करें कि नजर कहीं भी ठहर न पाए.

12. टिप

जरूरी नहीं कि सारे फोटो फ्रेम्स ड्रॉइंग रूम में लगा दें, सीढियों के नीचे या पैसेज में भी इन्हें लगा सकते हैं. अवॉर्ड्स को शोकेस करना चाहते हैं तो बार को डाइनिंग एरिया या कमरे के किसी दूसरे कॉर्नर पर शिफ्ट करें.

मास्क के साथ मेकअप में किन बातों का रखें ध्यान

कोविड-19 के इस समय में मास्क हमारी जिंदगी का अनिवार्य हिस्सा बन चुका है. जिंदगी भले ही ढर्रे पर लौटने लगी है लेकिन मास्क ने हमारे आधे चेहरे को ढक रखा है. ऐसे में ऑफिस जाना हो, दोस्तों के साथ बाहर निकलना हो या किसी शादी की पार्टी वगैरह में जाना हो, मेकअप करते समय मास्क आड़े आने लगता है. इसलिए यह जानना जरूरी है कि मास्क के साथ हमारा मेकअप कैसा होना चाहिए ताकि हम ऑलटाइम खूबसूरत भी दिखें और सावधानी के लिए मास्क का साथ भी न छूटे. आइए जानते हैं मास्क के साथ मेकअप करते समय किन बातों का ख्याल रखना चाहिए;

जरूरी है लॉन्ग लास्टिंग मेकअप

मास्क के साथ मेकअप करते समय हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए मेकअप को लंबे समय तक टिकाए रखना ताकि मास्क के कारण आए पसीने से मेकअप जल्दी खराब न हो या फिर मेकअप का कुछ हिस्सा मास्क में लगा न रह जाए.

मेकअप करने से पहले हमेशा अपनी स्किन टाइप का ख्याल रखें. नियमित रूप से स्किन की क्लीनिंग, टोनिंग और मॉइस्चराइज़िंग करें. हर रोज चेहरे की क्लीनिंग जरूरी है ताकि चेहरा साफ रहे और गंदगी से पैदा होने वाली स्किन प्रॉब्लम्स या स्पॉट्स न हो. इसी तरह स्किन को मॉइस्चराइज करना भी बहुत जरूरी है. प्रदूषण की वजह से चेहरे पर काफी डेड स्किन आ जाते हैं. ऐसे में अगर हम अच्छा मॉइश्चराइजर यूज करते हैं तो स्किन हैल्दी बनी रहती है और आप का मेकअप सही ढंग से टिक पाता है.

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इस के बाद प्राइमर लगाना न भूलें. प्राइमर आप की स्किन पर लगाए गए मेकअप को लंबे समय तक लॉक रखने में मदद करता है. यदि आप की स्किन ऑयली है और आप मास्क लगाती हैं तो मेकअप मास्क में आ जाता है. ऐसे में प्राइमर लगा कर आप इस समस्या से बच सकती हैं क्योंकि प्राइमर आप के ओपन पोर्स को बंद कर देता है और मेकअप को लोंगलास्टिंग बनाता है यानी फिर मेकअप ज्यादा देर तक टिकता है.

मेकअप टिप्स

अब हम बात करेंगे मेकअप की. सब से पहले मेकअप प्रोडक्ट्स लेने से पहले इस बात का ख्याल रखें कि आप की स्किन टाइप क्या है. उस के अनुरूप ही हमें प्रोडक्ट्स यूज करने चाहिए. यदि आप की स्किन ड्राई है तो क्रीमबेस्ड प्रोडक्ट यूज करें और यदि स्किन ऑयली है तो वाटरबेस्ड प्रोडक्ट परफेक्ट रहेंगे.

प्रदूषण के कारण स्किन डार्क हो जाती है या फेस पर पिंपल्स होते रहते हैं. ऐसे में कलर करेक्टिंग का प्रयोग करें. यदि स्किन कहीं से डार्क है तो ऑरेंज कलर करैक्टर लगाएं और यदि स्किन कहीं से रेड है यानी पिंपल के रेड स्पॉट हैं तो ग्रीन कलर करैक्टर का प्रयोग करें. इस से स्किन के स्पॉट हट जाते हैं. अब इस के ऊपर फाउंडेशन के लेयर लगाएंगे तो दाग बिल्कुल ही नजर नहीं आएंगे.

अंत में कंसीलर का उपयोग करें. कंसीलर हमेशा अपनी स्किन टोन से मैच करता हुआ लगाएं. लाइट कलर के कंसीलर से स्किन ग्रे या वाइट नजर आने लगती है. फ़ाउंडेशन भी सेम कलर का यूज करना चाहिए. इस से स्किन आकर्षक और नेचुरल नजर आती है.

इस के बाद आप लूज़ पाउडर से अपना मेकअप लॉक करें. जो लड़कियां ऑफिस, कॉलेज या दोस्तों के साथ आउटिंग पर जा रही हैं वे कंपैक्ट पाउडर यूज कर सकती हैं. कंपैक्ट पाउडर चेहरे से आयल हटाता है मगर टचअप बारबार देना पड़ता है. इसलिए जब आप लंबे समय के लिए किसी पार्टी वगैरह में जा रही हों और आप को लोंगलास्टिंग मेकअप चाहिए तो लूज पाउडर का प्रयोग करें. इस से मास्क के बावजूद आप का मेकअप खराब नहीं होगा.

जिन की ऑयली या कॉन्बिनेशन स्किन है वे पाउडर प्रोडक्ट यूज करें लेकिन जिन की स्किन ड्राई है वे लिक्विड प्रोडक्ट यूज करें क्योंकि ड्राई स्किन पर मॉइश्चराइजर लगाने की जरूरत पड़ती है.

मास्क के साथ मेकअप करते समय इसे जितना ब्लॉक कर के रखा जा सके उतना अच्छा है.

फेस पर मेकअप के बहुत सारे लेयर न लगाएं. आप जो भी मेकअप लगा रही हैं उसे फिंगर, ब्रश या स्पंज से अच्छे से ब्लेंड कर लें. इस से वह आप के चेहरे पर पूरी तरह अब्ज़ॉर्ब हो जाएगा और लेयरिंग नहीं दिखेगी. यदि ऐसा नहीं किया तो मेकअप का कुछ हिस्सा मास्क में लग जाएगा जो भद्दा दिखेगा. उदाहरण के लिए यदि ऑयली स्किन पर मेकअप के बहुत से लेयर लगाएं गए हैं तो मास्क लगा कर हटाने से चेहरे पर मेकअप फटा हुआ सा नजर आएगा और कुछ मेकअप हट कर मास्क पर आ भी जाएगा. इसलिए मेकअप हमेशा ब्लेंड करना जरूरी है.

पूरा मेकअप करने के बाद मेकअप फिक्सर स्प्रे का इस्तेमाल करें. यह मेकअप को लॉक कर देता है जिस से मेकअप लंबे समय तक टिका रहता है जैसे आप किसी शादी की पार्टी में जा रहे हैं तो लंबे समय तक मास्क पहनने की वजह चेहरे पर पसीना आएगा. ऐसे में मेकअप फिक्सर के प्रयोग से मास्क के बावजूद मेकअप खराब नहीं होगा और यह मास्क पर आएगा भी नहीं.

कोरोना में फेस मास्क के साथ स्किन का ख्याल रखें. मास्क लगाने से पसीना आ जाता है ऐसे में यदि मेकअप नहीं लगाया है तो हमेशा अपने साथ रोज वाटर या फेशियल वाइप्स रखें और फेस को वाइप करती रहें.

आंखों के साथ क्रिएटिविटी

कोविड के समय में लड़कियां मैचिंग या सेम कलर के फेस मास्क लगाती हैं. ऐसे में फेस मेकअप और लिप शेड्स लाइट रखें. आईज को हाइलाइट करें. मास्क के साथ अपनी आंखों का मेकअप मैच करें. आइब्रोज अच्छे से ग्रूम करें. ड्रेस से मैचिंग सेम कलर का आईशैडो लगा सकती हैं. कोहल काजल का इस्तेमाल कर सकती हैं इस से आंखें कजरारी नजर आती हैं.

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विंग आईलाइनर लगाएं इस से आंखों पर फोकस जाता है. आँखें बड़ीबड़ी नजर आती हैं. आँखों के ऊपर, आइब्रो के नीचे हाइलाइटर लगा सकती हैं इस से आंखों की खूबसूरती बढ़ जाती है.

फौल्स आईलैशेस का इस्तेमाल करें. इस से आंखें आकर्षक नजर आएंगी. यदि आप की आंखें छोटी है और मास्क भी लगाया हुआ है तो आप फौल्स आईलैशेस का प्रयोग करें. यह आप की आंखों को उभारता है और आकर्षक बनाता है.

अपने साथ हमेशा एक मस्कारा रखें ताकि जब जरुरत हो आई मेकअप को टच अप दे सकें.

चीक्स पर हाइलाइटर या ब्लशर लगाएं.

( मेकअप आर्टिस्ट खुशबू ज़ेहरा से की गई बातचीत पर आधारित )

स्त्री को गुलाम बनाती धार्मिक कहानियां

लेखक- सरस्वती रमेश

बचपन में अकसर एक कथा मां सुनाया करती थीं. एक सती स्त्री के पति को कोढ़ हो गया था. सती अपने पति को टोकरी में बैठा कर नदी के किनारे नहलाने जाया करती थी. एक दिन वहीं नदी किनारे एक वेश्या नहा रही थी. कोढ़ी को वेश्या से प्रेम हो गया. उस के बाद से कोढ़ी उदास रहने लगा. जब पत्नी ने उस की उदासी का कारण पूछा तो कोढ़ी ने उसे सबकुछ बता दिया. पत्नी ने पति को धैर्य बंधाया और उस की मदद करने का आश्वासन दिया.

उस के बाद प्रतिदिन भोर में उठ कर सती स्त्री वेश्या के घर में चुपके से प्रवेश कर उस के सारे कामकाज कर लौट आती थी. वेश्या हैरान कि कौन उस के घर के सारे काम करता है. एक दिन वेश्या ने सती स्त्री को पकड़ लिया और कारण पूछा.

जब स्त्री ने उसे अपने पति के प्रेम के बारे में बताया तो वेश्या ने उसे लाने को कहा. स्त्री खुशीखुशी घर गई. अपने पति को समाचार सुनाया. पति के लिए नए वस्त्र निकाले और उसे नहलाधुला कर वेश्या के घर ले जाने के लिए नदी की ओर चल पड़ी. रास्ते में कुछ क्षण के लिए टोकरी वहीं पेड़ के नीचे उतार वह सुस्ताने लगी. उस के पति की कोढ़ी देह से दुर्गंध उठ रही थी. वहीं से कुछ साधुसंत गुजर रहे थे. साधुओं से दुर्गंध बरदाश्त नहीं हुई तो उन्होंने शाप दिया कि जिस भी जीव से यह दुर्गंध उठ रही है वह सूर्यास्त के साथ ही मृत्यु को प्राप्त हो. सती ने उन की वाणी सुन ली और फिर सूर्य की ओर आंखें कर कहा, ‘‘देखती हूं मेरी इच्छा के विरुद्ध सूर्य कैसे अस्त होता है.’’

कथा के अनुसार उस स्त्री का सतीत्व परम बलशाली था, जिस के आगे सूर्य देव को भी  झुकना पड़ा और सूर्य वहीं का वहीं ठहर गया.

यह कथा बहुत महिलाओं ने अपनी उम्र के किसी न किसी पड़ाव पर जरूर सुनी होगी. दरअसल, यह महज एक कहानी नहीं, बल्कि हमारी धार्मिक कथाकहानियों के माध्यम से पिलाई जाने वाली घुट्टी का एक नमूना है. अधिकांश धार्मिक कथाकहानियों में नैतिक शिक्षाओं और प्राचीनकाल से चली आ रही व्यवस्थाओं की घुट्टी स्त्री को ही पिलाई जाती रही है.

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स्त्रियों के लिए वर्ष के अधिकांश दिन निर्जला व्रत, उपवास का विधिविधान है, लेकिन पुरुष हमेशा आराध्य के आसन पर आसीन रहे. कहानी के माध्यम से स्त्री को उस का सतीत्व सिखाया गया है, पति को कोढ़ हो जाए तो उस की सेवा कर के और पति को प्रेम हो जाए, तो उसे उस की प्रेयसी से मिला कर स्त्री को सती और पतिव्रता जैसे नामों से अलंकृत कर उस से कोई भी कठिन परीक्षा ली जा सकती है.

धार्मिक कथाओं का पाठ

ये कथाकहानियां स्त्री की स्वतंत्र सत्ता, अस्तित्व को स्वीकार ही नहीं करतीं.

मनु ने तो यहां तक कहा है:

पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने।

पुत्रो रक्षति वार्धक्ये न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति॥

मतलब स्त्री को स्वतंत्र नहीं छोड़ा जाना चाहिए. बाल्यावस्था में पिता, युवास्था में पति और उस के बाद पुत्र के अधीन रखना चाहिए.

सिर्फ हिंदू धर्म की कहानियों में ही नहीं यहूदी, इसलाम की धार्मिक कहानियों में भी

स्त्री होने के कारण प्रताड़ना की वह अधिकारिणी बनी है.

इसलाम से जुड़ी कहानियों में औरतों को अपने शौहर की खिदमत और परदे में रहने की सलाह अकसर मिलती है. इसी तरह 2 महिलाओं की गवाही एक पुरुष के बराबर मानी गई है.

अधिकांश धार्मिक कथाकहानियों में स्त्रियों को यही पाठ पढ़ाया जाता है कि पति की सेवा से ले कर उस की कामवासना की पूर्ति करना हर स्त्री का परम कर्तव्य है. स्त्रियों को पतिव्रता, पति अनुगामिनी और हर स्थिति में मर्यादा का पालन करने की सीख दी जाती है. पगपग पर स्त्री की सहनशीलता की परीक्षा का उल्लेख मिलता है.

जैंडर असमानता से भरी इन कथाकहानियों या प्रवचनों को सुनसुन कर महिलाएं खुद को कमतर सम झने लगती हैं. ताउम्र उन के मन पर इन कथाकहानियों का गहरा प्रभाव बना रहता है.

रामायण एक ऐसा धार्मिक ग्रंथ है, जिस की पैठ घरघर में है. रामायण की कथा के प्रभाव के बारे में सोचने पर रामायण सीरियल के समय घरों में पसरे सन्नाटे की याद अनायास आ जाती है. इसी रामायण की कहानी में मर्यादा के नाम पर सीता को उस वक्त जंगल में छोड़ दिया गया जिस वक्त वे गर्भवती थीं. फिर भी राम को निर्दोष बताया गया है. सीता के दर्द के प्रति मौन है रामायण. अनपढ़ स्त्रियों तक यही कहानी रामलीला के जरीए पहुंचती है.

इसी तरह महाभारत में कौरवों की सभा में जुए में अपनी पत्नी को दांव पर लगाने की कहानी है. जुए में द्रौपदी को हारने और निर्वस्त्र होने का फरमान सुनने के बाद भी पतियों के मौन रहने का उल्लेख है. यह कैसी सभ्यता थी जहां राजा की सभाओं में बैठा हुआ हर शीर्ष व्यक्ति एक स्त्री के शोषण पर मौन साधे रहता है? द्रौपदी के चीखचीख कर सहायता याचना के बाद भी किसी भी शक्तिशाली सदस्य का मौन नहीं टूटता सिवा दुर्योधन के अनुज विकर्ण के.

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बात रामायण या महाभारत की कहानी तक ही सीमित नहीं है. महिलाएं सालभर जितने भी तीजत्योहार करती हैं उन की कहानियों में जैंडर भेद साफ  झलकता है. करवाचौथ, हरतालिका तीज व्रत, वट सावित्री पूजा जैसी तमाम व्रतों की कहानियों में महिलाओं के स्तर को कमतर कर प्रस्तुत किया गया है. ऋषि पंचमी व्रत की कथा के अनुसार विदर्भ नामक ब्राह्मण की कन्या के शरीर में इसलिए कीड़े पड़ गए, क्योंकि उस ने रजस्वला होने के बावजूद घर के बरतन छू लिए थे.

माहमारी का शाप

इस तरह की कथाएं औरत होने को किसी शाप की तरह प्रस्तुत करती हैं और उन के मासिकच्रक को किसी पाप कर्म सा मंडित करती हैं. ऐसी कथाओं के कारण ही मासिकचक्र को औरतें अपने शरीर में किसी विकार सा स्वीकार करती हैं और एक दोष की भांति अपने जीवन में ले कर जीती हैं. धार्मिक कहानियों में रजस्वला से जुड़े हजारों नियमकानून हैं, जिन में से कुछ का पालन आज भी स्त्रियां करती हैं. इन नियमों का कोई तार्किक आधार या ठोस कारण दिखाई नहीं देता, लेकिन इन नियमों का पालन करते हुए स्त्री स्वयं को एक कमतर रचना के रूप में अवश्य स्वीकार करने लगती है.

स्त्री देह की पवित्रता

धार्मिक कथा संसार स्त्री देह की पवित्रता पर इतना अधिक केंद्रित है कि यदि उस का शील चाहे या अनचाहे भंग हुआ तो उसे मृत्यु के समकक्ष माना गया है. ऐसे कुछ ही अपवाद होंगे, जिन में स्त्री के शील भंग होने के बावजूद उसे संपूर्ण अधिकार से नवाजा गया. उस के मन को सैकेंडरी मान लिया जाता है. इस का नतीजा यह हुआ कि जिन लड़कियों का इच्छा या अनिच्छा से शील भंग हुआ वे आत्मग्लानि से भर उठीं. कभी उन्होंने शापित हो पत्थर बनना स्वीकार किया तो कभी अग्नि में प्रवेश करना.

कुंआरी कन्या और कुंआरी देह की अवधारणा इन कथाओं से निकल कर हमारे समाज में इस तरह व्याप्त हो गई कि कन्या के लिए कुंआरापन और पवित्रता ही उस की समस्त योग्यताओं का आधार बन जाती है. कुंआरेपन की यही अवधारणा कई समुदाय एवं धर्मों में बालविवाह के कुप्रचलन का कारण बनी. शिक्षा के प्रचारप्रसार के बावजूद आज भी कई जगहों पर यह कुप्रथा जारी है, जिस का अधिकतर खमियाजा बाली उम्र में गर्भवती हो लड़कियों के हिस्से आता है.

संबंधों के अलग-अलग माने

हमारी धार्मिक कथाओं में किसी राजा के 2 या 4 रानियां और किसी अन्य सुंदरी से संबंध आम बातें हैं. इस के लिए न तो वह किसी ग्लानि से भरता है और न ही समाज के लिए उत्तरदायी है. लेकिन यदि किसी स्त्री ने विवाह उपरांत परपुरुष से संबंध स्थापित किया तो वह न सिर्फ प्रताड़ना, बल्कि सामाजिक बहिष्कार की भी शिकार हो जाती है. पुरुष कामभावना के अधीन हो संसर्ग करता है, लेकिन यही काम यदि स्त्री कर ले तो उसे समाज में कुलटा, चरित्रहीन आदि नाम दे दिए जाते हैं.

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पत्नी का सहज त्याग

धार्मिक कहानियों में पत्नी का परित्याग आम बात है. पत्नी कदमकदम पर ठुकराई, त्यागी जा सकती है, लेकिन पुरुष का त्याग करने वाली नारी हमारी धार्मिक कथाओं में आमतौर पर उत्पन्न नहीं होती और न पुरुष को अपनी पत्नी के लिए ऐसा त्याग करने की कोई परंपरा मिलती है. स्त्री को दोयम सम झने का सब से जाग्रत स्वरूप सती प्रथा थी, जिस में सती की बाकायदा पूजा तक होती थी. आज भी कुछ जगह सती चौरा हैं, जहां बाकायदा मेला भी लगता है.

धार्मिक कहानियों में निहित ये तमाम बातें महिलाओं की धर्मपरायणता और अतिशय सहनशीलता का गुणगान कर के उन्हें बराबरी के हक से वंचित करती हैं, स्त्री पर आधिपत्य जमाने के माध्यम के तौर पर काम करती हैं. जिन कहानियों में नरनारी समानता जैसे बुनियादी मानवीय मूल्यों का समावेश न हो उन्हें सही अर्थों में धार्मिक नहीं माना जा सकता.

जैंडर समानता का हक पाने के लिए महिलाओं को इन धार्मिक कहानियों द्वारा रचित आदर्श महिला के मानकों को नकार कर इन के घेरे से बाहर आना ही होगा.

जब नीना गुप्ता को लगा की उनकी बेटी मर तो नहीं गईं, मसाबा ने शेयर किया अनसुना किस्सा

शुभ मंगल ज्यादा सावधान जैसी फिल्मों से फैंस का दिल जीत चुकीं एक्ट्रेस नीना गुप्ता अक्सर अपने फैशन के लिए सुर्खियां बटोरती हैं. लेकिन इस बार वह अपनी बेटी मसाबा गुप्ता के एक पोस्ट को लेकर फैंस के बीच छाई हुई हैं. दरअसल, हाल ही में फैशन डिजाइनर और नीना गुप्ता की बेटी ने एक पोस्ट शेयर करते हुए अपनी मौत का जिक्र करते हुए मां के बारे में एक बात कही है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

क्रिसमस के दिन शेयर की ये बात

मसाबा गुप्ता ने अपनी खुशियों और दुख को जाहिर करते हुए अपने इंस्टाग्राम स्टोरी पर एक किस्से का जिक्र करते हुए बताया है, कि कैसे उनकी मां नीना को लगा था कि उनकी बेटी कहीं मर तो नहीं गई. दरअसल, मसाबा ने इंस्टाग्राम स्टोरी में लिखा, ‘नीना जी की ओर से गुड मॉर्निंग, जिन्होंने मुझसे कहा कि वह मुझे देखने आ रही थीं क्योंकि उन्हें लगा कि मैं मर गई हूं. दरअसल मैं सुबह 9:30 बजे उठी, जैसा कि इससे पहले कभी नहीं हुआ था और इसी वजह से उन्हें लगा कि मैं मर गई हूं. यह क्रिसमस है?’

 

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अकेले परवरिश का फैसला ले चुकी हैं नीना गुप्ता

 

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नीना गुप्ता की प्रौफेशनल लाइफ के बारे में हर कोई जानता है लेकिन क्या आप यह बात जानते हैं कि मसाबा, वेस्ट इंडीज के पूर्व क्रिकेटर विवियन रिचर्ड और नीना गुप्ता की बेटी हैं. दरअसल, 80 के दशक में दोनों रिलेशनशिप में रहे थे. हालांकि दोनों ने शादी तो नहीं की, लेकिन नीना गुप्ता ने मसाबा को अकेले पालने का फैसला किया.

 

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बता दें, नीना गुप्ता, सलमान खान से लेकर नए स्टार्स आयुष्मान खुराना जैसे स्टार्स के साथ काम करके सुर्खियां बटोर चुकी हैं. वहीं उनके फैशन की बात करें तो बेटी मसाबा के फैशन को देखते हुए नीना अपने लुक को भी काफी मेंटेन करके रखती हैं.

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नये साल में मेरा रेजोल्यूशन एक लीड कलाकार बनने की है – साहिल वैद

फिल्म ‘बिट्टू बॉस’,‘हम्प्टी शर्मा की दुल्हनियां, बैंक चोर, बद्रीनाथ की दुल्हनियां आदि कई फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता साहिल वैद को बचपन से अभिनय का शौक था, जिसमें साथ दिया उनके माता-पिता ने. साहिल तमिलनाडु में पले-बड़े हुए है. साहिल ने फिल्म कुली नं 1 में एक दोस्त की भूमिका निभाई है, जो अमेजन प्राइम विडियो पर रिलीज हो चुकी है,जिसे सभी पसंद कर रहे है. उनकी जर्नी के बारें में बात हुई, पेश है कुछ अंश.

सवाल-ये फिल्म पुरानी फिल्म से कितनी अलग है और इस फिल्म को करने की खास वजह क्या है?

ये नए जमाने की कुली नं 1 है, जिसमें आज के परिवेश को ध्यान में रखते हुए काम किया गया है. पुरानी फिल्म काफी सफल रही थी, जिसमें गोविंदा और करिश्मा कपूर ने काम किया था. उसे सभी आज भी पसंद करते है. निर्देशक डेविड धवन का ही है, कहानी वही है,केवल कलाकारों में थोडा परिवर्तन मनोरंजन को ध्यान में रखते हुए किया गया है,लेकिन कुछ नयी ट्विस्ट इसमें है, जो इसे पुरानी फिल्म से अलग और नयी बनाती है.

इस फिल्म को ना कहने का तो सवाल ही नहीं था. जब मुझे निर्देशक डेविड धवन का फ़ोन आया और उन्होंने मुझे इस फिल्म में काम करने के लिए कहा तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई, क्योंकि इस फिल्म को मैंने पहले कई बार देखा था. तब पता नहीं था कि एक दिन इस फिल्म में काम करने का मौका भी मिलेगा.

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सवाल-इस फिल्म को करते वक़्त कितनी तैयारिया करनी पड़ी? कितना कठिन था?

इस फिल्म में सभी बड़े-बड़े कलाकार काम कर रहे है, ऐसे में मुझे भी अच्छा काम करना था. मेरी वजह से कोई सीन ख़राब हो जाए, ये मैं नहीं चाहता था, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, बल्कि अभिनय करना आसान हुआ. डर जो था, वह पहले ही दिन निकल गया था. कठिन कुछ भी नहीं था, नार्मल तैयारी की थी. इसकी शूटिंग बैंकाक, गोवा और मुंबई में हुई है.

सवाल-फिल्म थिएटर में रिलीज न होकर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो रही है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

थिएटर में फिल्म को देखना अच्छी बात होती है, लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण की वजह से फिल्में ओटीटी पर रिलीज हो रही है और निर्माता निर्देशकों को एक नया प्लेटफॉर्म मिल गया है. ओटीटी पर रिलीज होने पर अधिक लोग फिल्म को देख पाते है. थिएटर में जाने से पहले लोग कई बातों पर विचार करने लगते है. ऐसे में निर्माता, निर्देशकों और कलाकारों को ओटीटी  का फायदा अधिक हुआ है.

सवाल-अभिनय में आने की प्रेरणा कहाँ से मिली?

मैं जीवन में अलग-अलग लोगों से इंस्पायर्ड रहा. मैं जब 3 साल का था, तो एक फैंसी ड्रेस कॉम्पिटिशन जीता था, उसमें बहुत सारी तालियाँ बजी थी. मुझे बहुत अच्छा लगा था. इसके बाद तमिलनाडू में मेरे क्लास मेट मुझे गोरा कहकर बुलाते थे और जब दिल्ली आया, तो मुझे लोग मद्रासी  कहने लगे, क्योंकि मेरी बोली में तमिल एक्सेंट बहुत था. इसके अलावा स्कूल में एक नाटककार अजय मनचंदा आते थे, वर्कशॉप लेते थे और वहां कोई मुझे कुछ भी नहीं कहता था, इससे मुझे वह स्थान अच्छा लगने लगा. नाटकों में काम करना मुझे पसंद था. थिएटर को मैं अपनी कामयाबी में प्रमुख स्थान देता हूं, क्योंकि उसकी वजह से ही मैं काम सीख पाया. पिता ने जब मेरी इच्छा को देखा तो उन्होंने व्हीस्लिंग वुड्स इंटरनेशनल में मेरा एडमिशन करवा दिया. वह मेरी मुलाकात अभिनेता नसीरुद्दीन शाह से हुई. वे वहां पर मुझे एक अच्छा कलाकार बनने के लिए सारी बारीकियां सिखाते थे, क्योंकि वे एक्टिंग डिपार्टमेंट के हेड थे. दो साल पढाई करने के बाद मैं नसीरुद्दीन शाह के थिएटर ग्रुप से जुड़ गया.

सवाल-पहली बार जब पेरेंट्स से अभिनय की बात कही तो उनके रिएक्शन क्या रही?

मेरे पेरेंट्स हमेशा खुले विचारों के रहे है. मेरे पिता अब नहीं रहे, लेकिन उनका कहना था कि मैं जो  भी बनूँ, उसमें सफलता प्राप्त करूँ. इसलिए मुझे अधिक कुछ कहना नहीं पड़ा. मैंने पहले एक बार पत्रकार बनने की भी कोशिश की थी, पर थिएटर नहीं छूटा और मैं अभिनय में आ गया. फिर उन्होंने मुझे मुंबई आने की सलाह दी. मैं एक्टर बन गया, पर मेरे परिवार वाले सभी दूसरे क्षेत्र से जुड़े है. इसलिए अभी भी मेरे काम को कोई समझ नहीं सका है. कई लोगों ने पेरेंट्स को मुझे अभिनय के क्षेत्र में न भेजने की सलाह दी थी, पर मेरे पेरेंट्स अडिग थे और उन्होंने मेरी इच्छा का ध्यान डटकर दिया.

सवाल-पहला ब्रेक मिलने में कितना समय लगा?

जब मैं व्हीस्लिंग वुड्स इंटरनेशनल में पढ़ रहा था, तब एक साल के अंदर मुझे पहली फिल्म ‘हैपी’मिल गयी थी. मैंने उसमें पढाई के साथ-साथ काम किया. इतनी जल्दी इस फिल्म के मिलने से मुझे लगा कि ये क्षेत्र बहुत आसान है. उसके बाद मैंने एक धारावाहिक फौजी में काम किया जो टीवी पर नहीं आई. तब मुझे लगा कि अभिनय का क्षेत्र आसान नहीं है. इसके दो साल बाद बिट्टू बॉस मिली, फिर धीरे-धीरे काम मिलता गया.

सवाल-रिजेक्शन से आपके मानसिक स्तर पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है ?

असल में एक एक्टर का रिजेक्ट होने में उसके रंगरूप, शक्ल, हाइट आदि के लिए होता है, जो बड़ा पर्सनल होता है. इसका असर मानसिक स्तर पर बहुत पड़ता है, क्योंकि वह इंसान आपको कुरूप कह रहा है. मैं काफी दिनों तक रिजेक्शन को सहा है, इसलिए दिल पर नहीं लेता, क्योंकि मेरी बॉडी टाइप शायद उस भूमिका के लिए ठीक नहीं है. निर्देशक कबीर खान ने मुझे फिल्म 1983 में सैयद किरमानी की भूमिका के लिए वजन कम करने को कहा था. 3 से 4 महीने का समय भी दिया. मैंने बहुत मेहनत की वजन कम किया और जब उनसे मिलने गया, तो उनके पास एक सैयद किरमानी के शक्ल का कलाकार खड़ा था. तब मुझे समझ में आया कि निर्देशक के दिमाग में चरित्र का खाका पहले से तैयार रहता है. कबीर खान मुझे देखकर थोड़े मायूस भी हुए, क्योंकि उन्हें लगा नहीं था कि मैं वाकई वजन कम कर लूंगा.

सवाल-आपके हिसाब से इंडस्ट्री में एक अच्छे काम का मिलना और उसका सफल होना कितना मुश्किल होता है?

काम अच्छा होने से कोई रोक नहीं सकता. अचानक सोचकर अगर आप अभिनय के लिए निकल पड़ते है, तो कभी सफल नहीं हो पायेंगे. सही ट्रेनिंग के साथ अच्छा अभिनय ही किसी निर्माता, निर्देशक को आकर्षित कर सकता है. चेहरा अच्छा होने से अभिनय इंडस्ट्री में काम नहीं मिलता. हार मानने वालों को भी इंडस्ट्री में नहीं आना चाहिए.

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सवाल-नए साल में आपकी रेजोल्यूशन क्या है?

एक लीड एक्टर बनने की कोशिश करूंगा, जो प्यार आयुष्मान खुराना, पंकज त्रिपाठी आदि को मिल रहा है. मुझे भी वही मुकाम मिले. इसके अलावा मेरी इच्छा है कि हर निर्माता, निर्देशक के लिए सेलेबल एक्टर बन सकूं.

शादी के बाद Ex बौयफ्रेंड से यहां टकराईं गौहर खान, Video हुआ वायरल

बीते दिनों शादी को लेकर सुर्खियों में रहने वाली बिग बौस 7 विनर और एक्ट्रेस गौहर खान एक बार फिर सोशलमीडिया में छा गई हैं. दरअसल, शादी के तुरंत बाद ही गौहर शूटिंग के लिए लखनऊ के लिए निकल पड़ीं. लेकिन अचानक इसी बीच उनके एक्स बौयफ्रेंड रह चुके एक्टर कुशाल टंडन से उनकी मुलाकात हो गई, जिसके वीडियो सोशलमीडिया पर काफी वायरल हो रहा है. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो की झलक…

गौहर से मुलाकात का वीडियो किया शेयर

एक्टर कुशाल टंडन ने सोशलमीडिया पर अचानक एक्स गर्लफ्रेंड रह चुकीं गौहर खान से मिलने का एक्सपीरियंस को शेयर करते हुए वीडियो पोस्ट कर कहा कि, ‘मैं अपने होमटाउन लखनऊ जा रहा हूं और मुझे मेरी प्यारी और पुरानी दोस्त गौहर खान अचानक मिल गई हैं, लेकिन मैं हैरान नहीं हूं. इनकी हाल ही में शादी हुई है. वह बहुत सुंदर दिख रही हैं.’ और इसी के साथ कुशाल टंडन ने कहा, ‘शायद मुझे आपको सच में शादी की मुबारकबाद दे देनी चाहिए.’ वहीं वीडियो में गौहर खान के रिएक्शन की बात करें तो वह हंसते हुए मस्ती करती नजर आ रही हैं.

 

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पति ने छोड़ा था एयरपोर्ट

 

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कुशाल टंडन से फ्लाइट में होने वाली मुलाकात से पहले गौहर खान ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर शेयर करते हुए फैंस को बताया था कि वह शूटिंग के लिए निकल रही हैं. वहीं एयरपोर्ट पर जैद दरबार अपनी वाइफ गौहर को छोड़ते हुए भी नजर आए थे.

 

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गौरतलब हो कि बिग बौस के 7वें सीजन के बाद कुशाल टंडन और गौहर खान ने एक-दूसरे के डेट करते नजर आए थे. हालांकि दोनों ने अपनी मर्जी से ब्रेकअप करते हुए दोस्ती को कायम रखने का फैसला लिया था, जिसे फैंस ने काफी सराहा था.

 

Winter Special: घर पर बनाएं ब्रेड पिज्जा

अगर आप कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं तो आज हम आपको ब्रेड पिज्जा की खास रेसिपी बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली को ब्रेकफास्ट या स्नैक्स के रूप में दे सकते हैं ये टेस्टी के साथ-साथ हेल्दी भी होगा. आइए आपको बताते हैं कैसे बनाएं हेल्दी और टेस्टी पिज्जा घर पर…

हमें चाहिए

ब्रेड स्लाइस- 06 (ब्राउन या वाइट),

स्वीट कौर्न– 1/2 कप (उबले हुए),

शिमला मिर्च– 01 (बारीक कटा हुआ),

प्याज– 01 (महीन काट लें),

टमाटर– 01 (पतली स्लाइस),

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बटर– 05 छोटे चम्मच,

मोज्रेला चीज़– 01 कप (कद्दूकस किया हुआ),

काली मिर्च पाउडर– 1/4 छोटा चम्मच,

टोमेटो/पिज़्ज़ा सौस– 06 बड़े चम्मच,

नमक– स्वादानुसार

बनाने का तरीका

सबसे पहले आप ब्रेड की स्लाइस पर मक्ख‍न की एक लेयर लगाएं और फिर उसके ऊपर टोमैटो/पिज्जा सौस लगा लें. उसके बाद शिमला मिर्च, टमाटर, प्याज की एक पर्त स्लाइस के ऊपर लगाएं.

अब उबला हुआ स्वीट कौर्न या बेबी कौर्न की एक पर्त बिछा दें. इसके ऊपर काली मिर्च पाउडर और नमक छिड़क दें. इसके बाद कद्दूकस किये हुए चीज की एक लेयर ब्रेड पर लगाएं.

इतनी तैयारी करने के बाद एक नौन स्टिक तवे को हल्का गर्म करके एक से डेढ़ चम्मच मक्खन तवे पर डालें. जब मक्खन गर्म हो जाए तो आंच को कम कर दें और एक तवे पर जितने ब्रेड पीस आ जाएं, उतने रख दें.

इसके बाद तवा को ढ़क दें और लगभग 5 मिनट तक पकाएं. बीच-बीच में ढ़क्कन को खोल कर देखते रहें. जब शि‍मला मिर्च नर्म हो जाए, अथवा ब्रेड कुरकुरी हो जाए, तो उसे बाहर निकाल लें और अपनी फैमिली और बच्चों को खिलाएं.

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क्या आप के बच्चे भी कर रहे हैं आप की बातों को अनसुना

आज के समय में पेंरेट्स अपने बच्चों की बिगडती आदतों और उनकी बातों को अनसुना कर देने की वजह से परेशान रहते हैं. अक्सर देखा गया है कि बच्चे किसी काम को ना करने की जिद करते हैं तो उनके पेरेंट्स उनपर दबाव डालते हैं और जबरदस्ती वह काम करवाते हैं, जिसके चलते धीरे-धीरे बच्चे पेरेंट्स की बातों को अनसुना करने लगते हैं.

ऐसे में पेरेंट्स को भी आराम से स्थिति को हैंडल करने की जरूरत होती हैं. इसलिए आज हम आप पेरेंट्स के लिए कुछ टिप्स लेकर आए हैं जिनकी मदद से आपके बच्चे आपकी बातों को मानने लगेंगे.

1. ‘ना’ की जगह कहें ये

बच्चों को सीधा न सुनना बिल्कुल भी नहीं पसंद होता. उन्हें लगता है आप उनकी बात नहीं मानते. इसलिए अगर वह आपसे किसी चीज को लेने या फिर गेम खेलने को बोल रहे है तो उन्हे सीधा न करने की बजाय उनसे बोले पहले होमवर्क कर लें फिर जो मन आया करना. इससे वह खुश हो कर जल्दी अपना काम खत्म करेंगे.

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2. बच्चे का ध्यान अपनी ओर खींचे

जब कभी बच्चा टीवी, वीडियो गेम्स देख रहा हो उसे इससे हटाने के लिए दूर से चिलाकर न रोके बल्कि उसके पास जाकर टीवी और वीडियो गेम्स की आावाज धीमी करके उसे प्यार से इसे बंद करने के बोलें. उनसे बात करने के लिए उनके सामने बैठ कर आंखों में आंखे डाल कर बात करें. इससे उनका ध्यान आपकी तरफ खींचा जाएंगा और वह आपकी बात भी सुनेगा.

3. कहानी के जरिए समझाएं

बच्चों को कहानी सुनना बहुत पसंद होता है. वे अक्सर अपने दादा-दादी से कहानी सुनाने को बोलते है. अगर आपका बच्चा भी पढ़ाई की अहमियत नहीं समझता तो उसे डांट कर नहीं कहानियों के जरिए इसका महत्व समझाएं. इससे वे बहुत जल्दी समझ जाएंगे.

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4. हल्की सजा दें

हल्की का मतलब ये नहीं कि आप उन्हें डांटे बल्कि उन्हें बोले अगर तुमने कहा न माना तो तुम्हें यह चीज बिल्कुल भी नहीं मिलेंगी या फिर मैं तुम्हें फेवरट् डिश नहीं बना कर दूंगी. इससे उन्हें याद रहेगा आपने उन्हें कहना न मानने पर उनकी पसंद की चीज नहीं लेकर दी.

बागबानी के ये भी हैं फायदे

एक समय था जब बहुमंजिला इमारतों में आशियाना नहीं तलाशा जाता था, खुले आंगन और छोटे से बगीचे वाले आशियाने को प्राथमिकता दी जाती थी. बगीचे पर तो खासतौर पर ध्यान दिया जाता था, क्योंकि यही उन के घर की साजसज्जा का जरीया होता था और अपनी पसंद की सब्जियां वगैरह उगाने का भी. वक्त ने करवट बदली, तो आधुनिकता ने आंगन भी निगल लिया और बगीचा भी. लेकिन एक बार फिर लोगों में अपने घर पर एक छोटा सा बगीचा तैयार करने की उत्सुकता को देखा जा रहा है. भले ही लोग गार्डन को जरूरत या शौक के नजरिए से न देख लाइफस्टाइल स्टेटस में इजाफा समझ कर अपने आशियाने में जगह दे रहे हों, लेकिन होम गार्डन के ट्रैंड पर उन्होंने अपनी सहमति की मुहर जरूर लगा दी है.

इस बाबत बागबानी विशेषज्ञा डाक्टर दीप्ति कहती हैं, ‘‘बगीचा होना अब घर की शान समझा जाता है. लोग इस में फैंसी पौधे और फूल उगाते हैं, जो घर की खूबसूरती को बढ़ाते हैं. असल में गार्डन होना और गार्डनिंग करने में बहुत अंतर है. भले गार्डन आशियाने की रौनक को बढ़ा दे, मगर उस में रहने वालों को इस का असली सुख तभी  मिलेगा जब वे इस की उपयोगिता को भी समझेंगे.’’

उपयोगिता बागबानी की

बागबानी समय का सब से अच्छा सदुपयोग है. बागबानी विशेषज्ञ डाक्टर आनंद सिंह कहते हैं, ‘‘आज की भागतीदौड़ती दिनचर्या में किसी के पास वक्त नहीं है. लोग औफिस के काम से फुरसत पाते हैं तो घरेलू कार्यों में मसरूफ हो जाते हैं. फिर अगर समय मिलता है तो वीकैंड में शौपिंग करने निकल जाते हैं. कई बार तो  फुजूलखर्ची करते हैं. ऐसे में मानसिक संतुष्टि मिलने के बजाय उलटा अवसाद घेर लेता है. अत: इस से अच्छा तो यह हो कि घर पर रह कर कुछ रचनात्मक काम किया जाए. इस में बागबानी से बेहतर और कोई विकल्प नहीं हो सकता है, क्योंकि यह आप को मानसिक सुख देने के साथसाथ अच्छी सेहत और भरपूर ज्ञान भी देगा.’’

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यहां डच (जरमनी) लोगों का उदाहरण देना  सही रहेगा, क्योंकि वहां करीबकरीब सभी लोगों के पास अपना बगीचा है, जिस में खाली समय में वे बागबानी करते हैं. उन्हें मौल्स में घूमने से ज्यादा बेहतर बागबानी करना लगता है. यहां आम लोग ही नहीं वरन सैलिब्रिटीज भी गार्डनिंग का शौक रखते हैं. एक डच पत्रिका में जरमनी के मशहूर शैफ, जौन लफर के अनुसार, यदि वे देश के मशहूर शैफ न बन पाते तो खुशी से गार्डनिंग के पेशे में आते. वैसे शैफ जौन अभी भी अपने पेशे के अलावा गार्डनिंग में खास दिलचस्पी रखते हैं. यही वजह है कि वे अपने पौटेड प्लांट्स कलैक्शन के पैशन को छिपा नहीं पाते.

वैसे जरमनी ही नहीं हमारे देश में भी बहुत से लोग बागबानी का शौक रखते हैं, लेकिन विस्तृत जानकारी के अभाव और इस की उपयोगिता से अनजान होने की वजह से अपने शौक को बढ़ावा नहीं दे पाते. फिर भी कुछ सैलिब्रिटीज की बात करें तो बौलीवुड के अभिनेता और अभिनेत्रियां, जिन का ज्यादा वक्त शूटिंग करते ही बीतता है, खाली वक्त में या तो पार्टी करना पसंद करते हैं या फिर छुट्टियां बिताने विदेश पहुंच जाते हैं. लेकिन कुछ अरसा पहले एक इंटरटेनमैंट वैबसाइट को दिए इंटरव्यू में अभिनेत्री सेलिना ने कहा कि वे अपने प्रोफैशन से वक्त मिलते ही छत पर बनाई अपनी बगिया में पहुंच जाती हैं. वहां उन्हें नए पौधे लगाना, उन में खाद डालना, पानी देना बहुत अच्छा लगता है. उन्हें गार्डनिंग का शौक इस कदर है कि इस के लिए उन्होंने विशेषतौर पर ट्रेनिंग भी ली है और वक्त मिलने पर वे बागबानी से जुड़ी किताबें भी पढ़ती रहती हैं.

लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी है बागबानी

मगर सेलिना जैसे लोग बहुत कम हैं, जो अपने गार्डनिंग के पैशन को उभारने की जगह उसे दबा देते हैं. वजह, जानकारी का अभाव ही है. डाक्टर दीप्ति कहती हैं, ‘‘बहुत से लोग बागबानी का शौक रखते हैं. पर उस में खर्र्च करना नहीं चाहते, उन्हें बागबानी में निवेश की कोई संभावना नहीं दिखती, जबकि बागबानी एक लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी की तरह है. आप उस में जितना समय देंगे आप की सेहत उतनी ही अच्छी रहेगी.’’

नैशनल ज्योग्राफिक औथर एवं रिसर्चर डैन बटनर के अध्ययन के अनुसार, बागबानी करने वालों का जीवन आम लोगों से 14 वर्ष अधिक होता है. कैसे, आइए जानें.

– बागबानी दिन में ही की जाती है, इसलिए जाहिर है कि बागबानी के दौरान सूर्य के संपर्क में आना पड़ता है, जिस से शरीर को विटामिन डी मिल जाता है. विटामिन डी शरीर को कैंसर और हृदय से जुड़ी बीमारियों से बचाता है.

– यह भ्रम है कि मिट्टी में हाथ सनने से बैक्टीरिया चिपक जाते हैं, जिस से संक्रमण का  खतरा रहता है. दरअसल, मिट्टी प्राकृतिक बैक्टीरिया, मिनरल्स, माइक्रोऔर्गैनिज्म का प्रमुख स्रोत होती है. रोजाना मिट्टी के स्पर्श से शरीर का इम्यून सिस्टम अच्छाहोता है.

– लोगों में भ्रांति है कि नंगे पैर जमीन पर रखने से वे मैले हो जाते हैं. लेकिन यह सोचना गलत है. त्वचा का धरती से सीधा संपर्क शरीर में इलैक्ट्रिकल ऐनर्जी द्वारा पौजिटिव इलैक्ट्रोंस जेनरेट करता है.

– आधुनिक जीवनशैली में बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने लोगों को अवसाद के आगोश में धकेल दिया है, जिस से तमाम तरह की बीमारियां जन्म ले रही हैं. बागबानी इन बीमारियों से बचने का एक सरल उपाय है, क्योंकि इस से मिलने वाला सुख शरीर पर प्रत्यक्ष रूप से असर डालता है और दिमाग को तनावमुक्त रखता है.

– बागबानी का अर्थ केवल फूल उगाना नहीं. घरों में किचन गार्डन भी तैयार किया जा सकता है. इस से मिलने वाली सब्जियां आप के शरीर को पोषण देने के साथसाथ ऐंटीऔक्सिडैंट भी देंगी और जहरीले तत्त्वों से भी शरीर की सुरक्षा करेंगी.

– बागबानी करने वालों को जिम जाने की जरूरत भी नहीं पड़ती, क्योंकि बागवानी में काम करते हुए ही पूरी ऐक्सरसाइज हो जाती है.

कम जगह और पैसों में भी संभव

यह सच है कि बागबानी महंगा शौक है. लेकिन आप चाहें तो कम पैसों में भी यह संभव हो सकती है. जरा सोचिए, फल और सब्जियों के आसमान छूते भाव के चलते अपनी जेब ढीली करने से बेहतर यही है कि घर पर ही इन्हें उगा लिया जाए, जो आप को अच्छा स्वाद, सेहत और संतुष्टि देने के साथसाथ आप के बजट को भी बिगड़ने नहीं देंगी. डाक्टर दीप्ति कहती हैं, ‘‘आजकल बड़े शहरों में ताजा हवा के लिए औक्सीजन जोन बनाए जा रहे हैं. वहां लोग भारी कीमत चुका कर चंद घंटे गुजारने जाते हैं. लेकिन चंद घंटों में मिली ताजा हवा से क्या होता है? ऐसा आप महीने में 1 बार कर सकते हैं. रोज तो पैसे खर्च नहीं कर सकते न? इसलिए यदि आप घर पर ही बागबानी करें तो घर पर ही ताजा हवा का आनंद लिया जा सकता और वह भी फ्री में. जो कीमत आप औक्सीजन जोन की ऐंट्री की चुकाएंगे उसी में बीज, खाद और गमले आ जाएंगे. सब से बड़ी बात तो यह है कि अपने हाथों से उगाई सब्जी खाने में जिस स्वाद और संतुष्टि की अनुभूति होगी उस से बेहतर और क्या सुख हो सकता है.’’

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डाक्टर आनंद सिंह कहते हैं, ‘‘बाजार में सुंदर टमाटर, बैगन, लौकी देख कर लोग उन पर टूट पड़ते हैं. लेकिन यह ध्यान रहे कि सब्जी दिखने में जितनी सुंदर होगी उतनी ही नकली होगी. घर पर उगाई सब्जियां भले ही दिखने में उतनी खूबसूरत न हों, लेकिन स्वाद और सेहत के मामले में उन का कोई मुकाबला नहीं.’’ कभीकभी खर्चे के अलावा कुछ और परेशानियां बागबानी के शौकीनों को घर पर बगीचा तैयार करने से रोक देती हैं. छोटा घर और कम जगह इन परेशानियों में से ही हैं. लेकिन घर कितना भी छोटा क्यों न हो पौधे लगाने के लिए थोड़ी जगह मिल ही जाती है. यदि वह भी न मिले तो आजकल हैंगिंग गार्डन का फैशन चलन में है. इस विधि के अनुसार गमलों को फर्र्श पर रखने की जगह दीवारों या खूंटे के सहारे हवा में टांग दिया जाता है. इस से फर्श भी खाली रहता है और बागबानी का शौक भी पूरा हो जाता है.

कुछ दिनों से लगभग हर सप्ताह मुझे बुरे सपने आ रहे हैं, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं 18 वर्षीय बीए प्रथम वर्ष का छात्र हूं. कुछ दिनों से लगभग हर सप्ताह मुझे 1-2 बार रात में स्वप्नदोष हो जाता है. मेरे मित्र का कहना है कि मुझे जल्द से जल्द किसी डाक्टर से संपर्क करना चाहिए, नहीं तो मेरी सेहत पर बुरा असर पड़ेगा. क्या यह समस्या सचमुच इतनी गंभीर है? इस के लिए मुझे किस डाक्टर के पास जाना चाहिए? मैं ने कुछ वैद्यहकीमों के विज्ञापन भी देखे हैं जिन में स्वप्नदोष के इलाज का दावा किया जाता है. मेरा मन काफी विचलित है. राय दें कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

आप परेशान न हों. किशोर अवस्था से युवा उम्र में पांव रखते हुए जब हमारा शरीर सयाना हो जाता है, शरीर में सैक्स हारमोन का संचार होने लगता है, अंड ग्रंथियां शुक्राणु बनाने लगती हैं, प्रजनन प्रणाली में वीर्य बनने लगता है और पुरुषत्व के दूसरे शारीरिक गुण प्रकट हो जाते हैं. उस अवस्था में कुछ किशोरों और युवाओं में सोते समय यौन उत्तेजना जागृत होने पर स्वत: विसर्जित हो जाना बिलकुल सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है. आम बोलचाल की भाषा में लोग इसे स्वप्नदोष के नाम से जानते हैं.

सच तो यह है कि यह कोई विकार नहीं है और इसे सामान्य शारीरिक क्रिया के रूप में ही देखा जाना चाहिए. तरूणाई से ले कर वृद्धावस्था तक यह शारीरिक घटना हर उम्र के पुरुष में देखी जाती है. असल में तो इसे स्वप्नमैथुन कहना अधिक उचित होगा. चूंकि इस का जुड़ाव कामुक सपनों से होता है, जो नींद से उठने पर प्राय: याद नहीं रहते. मनोविज्ञानी इसे कामेच्छाओं की निकासी का कुदरती रास्ता भी मानते हैं.

ध्यान रहे कि भूल कर भी वैद्यहकीमों के चक्कर में न पड़ें. कई वैद्यहकीम अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में अनावश्यक ही भ्रामक बातों में फंसा अनेक युवाओं का यौन जीवन खराब कर देते हैं.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem
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