आया सब्जियों को प्रिजर्व करने का मौसम

सर्दियां आते ही बाजार में सब्जियों की मानो बाढ़ सी आ जाती है. मैथी, मटर, पालक, धनिया जैसी हरी सब्जियों के अतिरिक्त नीबू, टमाटर, आंवला और अदरक भी बहुत कम दामों पर मिलते हैं. आजकल यूँ तो पूरे साल तक प्रत्येक सब्जी मिलती है परन्तु बेमौसम होने के कारण वे बेस्वाद और काफी महंगी भी होती हैं.

हमारी दादी नानी सस्ती दरों पर मिलने वाली मौसमी सब्जियों को धूप में सुखाकर साल भर के लिए स्टोर कर लिया करतीं थीं परन्तु आज विज्ञान का युग है और अपने घरों में उपलब्ध फ्रिज और माइक्रोबेव की सहायता से हम बड़ी आसानी से इन सब्जियों को साल भर के लिए संरक्षित कर सकते हैं तो आइए जानते हैं कि इन्हें कैसे संरक्षित किया जा सकता है-

-मैथी, पालक, धनिया, चने की भाजी जैसी हरी सब्जियों को साफ करके धो लें और साफ तौलिया या चादर पर फैलाकर दूसरी तौलिया से रातभर के लिए ढककर रख दें. अब इन्हें 2 मिनट पर माइक्रो करें. उल्टपलटकर पुन: 2 मिनट माइक्रो करें. जब सब्जियां सूखती सी नजर आने लगें तो 20-10 सेकंड माइक्रोबेव करें. पूरी तरह सूखी हरी सब्जियों को एयरटाइट जार में भरकर रखें. माइक्रोबेव में सुखाई गई इन सब्जियों का हरा रंग बरकरार रहता है.

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-नीबू के रस को निकालकर छान लें और कोल्डड्रिंक की छोटी छोटी बोतलों में भरकर फ्रीजर में रखें. जब भी प्रयोग करना हो तो फ्रीजर से निकलकर फ्रिज में रखें और तरल रूप में आ जाने पर बोतल के ढक्कन पर एक छेद करके प्रयोग करें.
नीबू के रस को आप फ्रीजर में क्यूब जमाकर भी स्टोर कर सकतीं हैं.

-500 ग्राम अदरक को छीलकर मिक्सी में बारीक पीसकर सूती कपड़े से दबा दबाकर छान लें. इस छने रस को फ्रिज में क्यूब्स में जमाकर पॉली बैग में निकालकर स्टोर करें. अथवा छोटे छोटे पॉली बैग्स में ही फ्रिज में जमाएं और आवश्यकतानुसार प्रयोग करें. अदरक के गूदे को एयरटाइट जार में रखकर सब्जी और चाय में प्रयोग किया जा सकता है. इसी प्रकार आप कच्ची हल्दी भी स्टोर कर सकतीं हैं.

-आंवले को धोकर साफ सूती कपड़े से पोंछ लें और ऊपर ऊपर से काटकर आवश्यकतानुसार पानी डालकर पीस लें. इसे सूती कपड़े में हाथ से दबाकर छान लें. रस को नीबू के रस की ही भांति फ्रीजर में स्टोर करें. गुठली के ऊपर के आंवले का अचार डालें तथा शेष बचे गूदे से मुरब्बा या रोल बनाएं.

-1 किलो मटर को छील लें. अब 2 लीटर पानी में एक टीस्पून नमक डालें. जब पानी उबलने लगे तो मटर डाल दें. जब मटर पानी की सतह पर आ जाये और हल्की सी नम हो जाये तो छलनी में निकालकर 1 घण्टे तक रखें ताकि सारा पानी निकल जाए. अब इसे दो तीन घण्टे तक मोटे सूती कपड़े पर फैलायें. जिप लॉक बैग में रखकर फ्रीजर में स्टोर करें.

-टमाटर को प्यूरी बनाकर क्यूब्स में जमाकर जिप लॉक में भरकर फ्रीजर में रखें.

-सहजन की फली को धोकर बीच से लंबाई में दो भागों में काट लें. अब चाकू या चम्मच के उल्टे भाग की सहायता से इसके गूदे को स्क्रब करके निकाल लें. चाकू से ही इसे छोटे टुकड़ों में काट लें और छोटे छोटे जिप लॉक बैग्स में डालकर फ्रीजर में डाल दें. अव्सबयक्तानुसार प्रयोग करें.

रखें कुछ बातों का ध्यान भी

-स्टोर करने के लिए सब्जियां सदैव ताजी ही लें.

-यूं तो हरी सब्जियों को डंठल सहित प्रयोग करना स्वास्थ्यप्रद माना जाता है परन्तु स्टोर करने के लिए केवल पत्तियां ही लें क्योंकि सूखकर डंठल सब्जियों का स्वाद ही बिगाड़ देते हैं.

-नीबू, आंवला के रस को स्टोर करने के लिए छोटी छोटी शीशियों का प्रयोग करें ताकि फ्रीजर में से निकालने के बाद इन्हें 15 से 20 दिन में समाप्त किया जा सके.

-आंवले को गुठली तक पूरा न काटकर हल्का सा ही काटें ताकि गुठली का कसैलापन न आ पाए.

-हरी सब्जियों को माइक्रो करते समय तापमान का विशेष ध्यान रखें. प्रारम्भ में अधिक और जैसे ही सब्जियां सूखी सी लगने लगें एकदम कम तापमान रखें अन्यथा वे आग पकड़ लेंगी.

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-बहुत बड़े जिप लॉक बैग्स के स्थान पर छोटे छोटे बैग्स का प्रयोग करें इससे वे फ्रिज में कम जगह में ही आ जाएंगे.

-प्रयोग करने के बाद फ्रीजर में से निकाली सब्जियों को तुरंत फ्रीजर में रख दें अन्यथा वे खराब हो जाएंगी.

-माइक्रोबेव में एक साथ अधिक मात्रा में सब्जियों को सुखाएं इससे आप बार बार बिजली खर्च करने से बच सकेंगी.

बेहतर त्वचा और बालों का झड़ना रोकने के लिए मुझे डाइट में क्या बदलाव लाने चाहिए?

सवाल-

मैं 44 साल की महिला हूं. मुझे बाल झड़ने, महीन रेखाएं और झुर्रियों की काफी समस्या है. बेहतर त्वचा और बालों का झड़ना रोकने के लिए मुझे अपने आहार में क्या बदलाव लाने चाहिए?

जवाब- 

जैसेजैसे उम्र बढ़ती है, वैसेवैसे हमारा मैटाबौलिज्म रेट कम होता जाता है. हमारी मांसपेशियां कम होने लगती हैं और हारमोन का स्तर थोड़ा कम हो जाता है, जिस से वजन बढ़ने, मूड में बदलाव आने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

ऐंटीऔक्सिडैंट युक्त खाना खाने से आप को अपने समग्र स्वास्थ्य में सुधार करते हुए भूख और क्रेविंग पर अंकुश लगाने में मदद मिल सकती है. अलसी, चिया सीड्स, सालमन, ऐवोकाडो, नट्स, हरी पत्तेदार सब्जियां, गोभी, डार्क चौकलेट, बेरीज, ग्रीक योगर्ट, ऐक्स्ट्रा वर्जिन औलिव औयल, अंडे, चिकन, बींस, खट्टे फल शरीर को पोषण देने में मदद कर सकते हैं.

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हम खाना अपने शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए ही नहीं खाते, बल्कि अपने स्वाद के लिए ज्यादा खाते हैं. इस चक्कर में हम पौष्टिक भोजन कम खाते हैं और जिन चीजों में न्यूट्रिऐंट्स कम और सिर्फ  टेस्ट ही होता है उन्हें खाने में हमारी ज्यादा दिलचस्पी होती है. आइए जानते हैं इस बारे में न्यूट्रिशनिस्ट प्रीति त्यागी से:

क्या है हैल्दी डाइट

हैल्दी डाइट से मतलब ऐसी डाइट से है, जिस में प्रोटीन, विटामिन, मिनरल, आयरन, कैल्सियम, कार्बोहाइड्रेट्स, फैट्स सभी पौष्टिक तत्व शामिल हो. क्योंकि अगर खाने में प्रोटीन का अभाव होगा तो हमें ऊर्जा नहीं मिल पाएगी, साथ ही जल्दीजल्दी संक्रमित होने के चांसेस भी रहते हैं. वहीं कैल्सियम मसल्स के फंक्शन के लिए तो जरूरी होता ही है साथ ही यह मेटाबोलिज्म के लिए भी सहायक होता है. वहीं कार्बोहाइड्रेट्स व फैट्स ऊर्जा प्रदान करने के साथसाथ हैल्दी सैल्स के निर्माण का कार्य करते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- डाइट में 7 बदलाव है जरूरी

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

स्लीवलेस स्वेटर: न्यू फैशन ट्रेंड्स

फैशन का ट्रेंड हर वक्त बदलता रहता है. इस बदलते ट्रेंड को फॉलो करना हर किसी के बस की बात नहीं है. हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि महिलाएं फैशन ट्रेंड को ना सिर्फ फॉलो करती हैं बल्कि फैशनेबल दिखने के लिए बढ़िया जुगाड़ भी बिठा लेती हैं. आज का हमारा ये खास लेख कुछ हटकर है, हम आपको विंटर फैशन के उस ट्रेंड के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में शायद ही आपको पता हो. हम बात कर रहे हैं स्लीवलेस स्वेटर की.

1. स्लीवलेस स्वेटर-

सर्दियों के मौसम में पुरुष हमेशा हाफ यानि की स्लीवलेस स्वेटर पहनना प्रीफर करते हैं. अब आप जान लीजिये कि इस समय स्लीवलेस स्वेटर महिलाओं में ट्रेंड है. जो ना आपको स्टाइलिश दिखाएगा बल्कि फैशनेबल भी दिखाएगा. तो हमारी आपको यही राय है कि यही सही मौका है आप अपने घर के किसी मेल सदस्य का स्वेटर पहनकर ट्रेंड को फॉलो कर सकती हैं.

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2. कैसे करें कैरी-

हालांकि सर्दियों के दिनों में फैशन ट्रेंड क्या है, और इसे फॉलो करना आसान नहीं है. ऐसे में आपके पास इस समय स्लीवलेस स्वेटर पहनने का परफेक्ट आप्शन है. अब ये भी जानिए की इसे कैरी कैसे करना है. आप एक परफेक्ट फिटिंग की शर्ट के साथ कैरी कर सकती हैं. इस समय ऐसा ट्रेंड सोशल मीडिया में काफी पसंद भी किया जा रहा है.

3. बात पुराने समय की-

देखा जाए तो स्लीवलेस स्वेटर का प्रचलन पुराने समय से ही रहा है. हालांकि पुरुष इस तरह के स्वेटर पहनना काफी पसंद करते हैं. 18वीं शताब्दी में सबसे ज्यादा पसंद किये जाने वाला ये सतलये भारत के साथ-साथ दुनियाभर के लोगों में छाया रहा है. जहां आपको लगभग हर अलमारी में एक बिना आस्तीन का यानि के स्लीवलेस स्वेटर आराम से मिल जाएगा.लेकिन समय बदलने के साथ अब ये फैशन पुरुषों की आलमारी से निकलकर महिलाओं की आलमारी में अपनी जगह बना रहा है. अगर हम ये कहें कि पुराना फ्काइश फिर से लौटकर आ रहा है तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा.

4. नॉन ब्रांड की डिमांड-

फैशन के इस दौर में सभी महिलाएं खुद को अपडेट रखने में पीछे नहीं हटती. वो समय अब जा चुका है जब महिलाएं सिर्फ महंगे ब्रांड के पीछे ही भागती थी. आजकल की महिलाएं कम दाम में मिलने वाले नॉन ब्रांडेड कपड़ों पर खर्च करना पसंद करती हैं. क्योंकि इसमें आप्शन भी उपलब्ध होते हैं. स्मार्ट शॉपिंग के साथ ट्रेंडी फैशन करने का ये विकल्प बजट में है.

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5. कैसा हो सलेक्शन-

 

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स्लीवलेस स्वेटर का ट्रेंड इस विंटर जोरों पर हैं. अगर आपके पास स्लीवलेस स्वेटर नहीं है तो आप अपने घर के किसी पुरुष सदस्य का स्लीवलेस स्वेटर पहन सकती हैं. इसके अलावा आपको ये भी जानने की जरूरत है कि, आप अपने लिए ट्रेंडी स्वेटर का सलेक्शन कैसे करें. इसके आप ब्राईट कलर और प्रिंट में स्वेटर खरीदें. सर्दियों में ब्राईट कलर काफी चलन में होते हैं.

तो आप भी स्लीवलेस स्वेटर के साथ इन सर्दियों में खुद को परफेक्ट ट्रेंडी लुक दे सकती हैं. इससे आप काफी फैशनेबल दिखेंगी. और इस ट्रेंड को कैसे फॉलो करना है, उसके लिए आप हमारे द्वारा बताये गये खास टिप्स को आजमा सकती हैं.

फिजूल है शादी में दिखावा

लेखक  -शाहनवाज

आप ने कभी सोचा है कि 2 लोगों को रिश्ते में बंधने का मार्केट में कितना खर्चा आता है? जाहिर सी बात है जब बात खर्च की होती है तो कौन इस से मना कर सकता है.

मुझे 2 साल पहले मेरे दोस्त ने अपने चाचा की बेटी की शादी में इनवाइट किया. यह शादी उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में होनी थी. मैं शादी से 1 दिन पहले वहां पहुंच गया. घर को देख कर महसूस हो गया था कि उन की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर उस के चाचा खेती करते थे और औफ सीजन में शहर में जा कर मजदूरी करते थे.

मेरे दोस्त ने मु झे बताया कि लड़के वालों की तरफ से किसी तरह की कोई दहेज की डिमांड नहीं है. सिर्फ उन्होंने कहा है कि  बरातियों के स्वागत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए.

जब वर और वधू को 7 फेरों के लिए खड़ा किया जा रहा था तब मेरी नजर पंडाल के बाहर एक ट्रक पर पड़ी जिस में घर का सामान, जैसे कि टीवी, फ्रिज, पलंग, अलमारी इत्यादि लोड किए जा रहे थे. अचानक मु झे मेरे दोस्त की बात याद आई पर उस समय मैं ने उस से इस विषय पर कुछ भी पूछना जरूरी नहीं सम झा.

जब शादीब्याह निबट गया और हम वापस दिल्ली के लिए रवाना हो लिए तो बस में सफर करते समय मैं ने उस से पूछ ही लिया कि वह सामान क्यों लोड किया जा रहा था जब कि तुम ने बताया कि लड़के वालों की तरफ से दहेज की कोई डिमांड ही नहीं थी?

उस ने जवाब दिया कि वह सारा सामान उस के चाचा ने अपनी तरफ से तोहफे के तौर पर दिया, ताकि कल को अगर कुछ भी होता है तो कोई उन की बेटी को ताना न मार सके. सिर्फ लड़के वालों के घर का डर ही नहीं, बल्कि उन के खुद के ही परिवार के लोग उन को ताना न मारें.

अंत में उस ने बताया कि परिवार में बाकी शादियों में भी इसी तरह से घर का सामान देना पड़ा था और उस के चाचा यह नहीं चाहते थे कि उन के खुद के परिवार के लोग उन की बेटी की शादी के लिए कानाफूसी करें, बातें बनाएं और उन्हें ताने मारें. आखिर वे खुद भी तो अपने परिवार में अपना रुतबा बनाए रखने के लिए ये सब खुल कर खर्चा कर रहे थे.

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कुछ ऐसा ही हम ने हिंदी सिनेमा की कई फिल्मों में भी होते हुए देखा है जिस में लड़की के पिता पूरी जिंदगी पाईपाई जोड़ कर बेटी की शादी के समय उन पैसों को खर्च करता है. यह हो सकता है कि कई लोगों का ऐसी ही शादी करने का उन का सपना हो, परंतु जो व्यक्ति इस समारोह के लिए खर्च करता है, उसे ही पता होता है कि किस प्रकार से उस ने अपने बच्चों की शादी करवाई है.

कुछ ऐसा होता है सामाजिक दबाव

ऐसा आप ने भी अपने जीवन में कभी न कभी किसी शादी में देखा होगा. यह तो मात्र एक तरह का दबाव था, जो कि पिता पर पड़ता है. इस लिस्ट में और भी कई प्रकार के सामाजिक दबाव आते हैं, हम हमेशा देखते तो हैं, लेकिन देख कर भी इग्नोर करते हैं.

मैं जहां रहता हूं वहीं पड़ोस में ही हाल में हमारे पड़ोसी रामदासजी ने अपने बेटे रवि की शादी करवाई. कोरोना के कारण एक तो वैसे ही सभी की जेबें खाली पड़ी थीं और ऐसे समय में शादी पर होने वाला खर्चा भी मामूली नहीं बल्कि मोटा होता है.

यों तो रामदासजी का दिल्ली में अपना मकान है, जिस कारण उन्हें लौकडाउन के इन कठिन दिनों में किसी किराएदार की तरह कमरे का भाड़ा नहीं देना पड़ा. लेकिन जब से कोरोना शुरू हुआ और लौकडाउन लगाया गया तो ज्यादातर लोगों की तरह उन का काम भी छूट गया.

कहीं इज्जत न खराब हो

इन्हीं दिनों रवि को पड़ोस में कुछ महल्ले छोड़ कर एक युवती से प्रेम हो गया और रवि अपने पिता से उस युवती से शादी करने की जिद्द करने लगा. रामदासजी ने अपने बेटे को बहुत सम झाया कि घर की माली हालत अभी सही नहीं हैं जब सबकुछ नौर्मल हो जाएगा तो उस की शादी करवा देंगे. लेकिन रवि नहीं माना और अंत में रामदासजी को अपने बेटे की शादी के लिए मानना पड़ा. उन्होंने भी सोचा कि कोरोना के समय ज्यादा लोगों को इन्विटेशन नहीं देंगे और लड़की वालों से भी किसी तरह की कोई डिमांड नहीं करेंगे.

मगर युवा तो युवा होते हैं, थोड़ाबहुत करतेकरते रवि के दोस्त, रिश्तेदार और कुछ जानपहचान वालों को मिला कर 50 लोगों के आसपास बरातियों का कैलकुलेशन किया गया. शादी हो जाने के बाद पता चला कि रवि की उस के ससुराल वालों की तरफ से एक बाइक और घर का थोड़ाबहुत सामान मिला है.

शादी के 3 दिन बाद रवि अपने पिता से लड़की वालों को और अपने दोस्तों को अपने घर छोटामोटा रिसैप्शन देने की मांग करने लगा. कहा कि अगर हम ऐसा नहीं करते तो लड़की वालों के परिवार के बीच क्या इज्जत रह जाएगी. अत: रामदासजी को उस की बात माननी पड़ी.

रामदासजी और रवि के इस किस्से से साफ है कि किस प्रकार सिर्फ सामाजिक दबाव ही नहीं बल्कि एक पिता पर अपने बेटे का या फिर कई जगह अपनी बेटी का दबाव भी रहता है. अब इस छोटी सी शादी में होने वाले खर्चे के बारे में आप खुद सोच सकते हैं. एक तो जेब में पैसे नहीं उस के बावजूद लोगों को ऐसे समारोह में सिर्फ सामाजिक दबाव के कारण खर्चा करना पड़ता है ताकि उन के सम्मान का मजाक न बनाया जा सके.

लोग क्या कहेंगे

अब कोई यह कह सकता है कि क्या लोग शादी करना छोड़ दें या फिर अपने रिश्तेदारों को न बुलाए? यहां पर लोगों के सामूहिक मेलमिलाप पर रोक लगाने की बात नहीं हो रही और न ही किसी को शादी न करने की सलाह दी जा रही है, बल्कि इस विषय का सारसंग्रह बेहद सिंपल है. वह बस इतना है कि लोग शादियों में खर्चा करने से पहले समाज के बाकी लोगों के बारे में सोचते हैं.

लोगों के दिमाग में उन की आर्थिक स्थिति, अपने बच्चों की खुशी से ज्यादा बढ़ कर यह सोच हावी होती है कि अगर ऐसा नहीं किया तो लोग क्या कहेंगे.

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आजकल शादियों में होने वाला खर्चा समाज की चलती इकौनोमी के लिए बेहद जरूरी है. इस से कई तरह के व्यापार जुडे़ हैं, उदाहरण के लिए कैटरर (हलवाई) से खाना बनवाना, बैंक्वेट हौल बुक करवाना या फिर सामुदायी भवन बुक करना, वेटर का काम, शादी पढ़ाने के लिए पंडित, मौलवी या पादरी की जरूरत इत्यादि. इसीलिए शादीब्याह होते रहें यह इन लोगों के लिए बेहद आवश्यक है.

प्रवीण के पिता ने उस की शादी किसी बड़े बैंक्वेट हौल में या किसी बड़े पार्क को बुक कर के नहीं की, बल्कि इलाके के एसडीएम औफिस में जा कर मैरिज रजिस्ट्रेशन पर कानूनी तरीके से करवाई. रजिस्ट्रेशन हो जाने के 2 या 3 दिनों बाद रिसैप्शन के लिए उन्होंने सरकारी समुदाय भवन बुक किया जिस में सब को मिला कर 150 लोगों को इनवाइट किया. अगर वे परंपरागत तरीके से अपने बेटे की शादी करवाते तो शायद मौजूदा खर्चे का 3 गुना अधिक खर्च होता. उन्होंने बाकी बचे हुए पैसों की प्रवीण के नाम एफडी करवा दी, जोकि उस के बुरे वक्त पर काम आ सकेगी. सिर्फ यही नहीं लड़की वालों ने भी वधू के नाम पर बैंक में एफडी करवा दी जिस से जरूरत के वक्त उसे तुड़वाया जा सके.

कितनी सम झदारी से प्रवीण के पिताजी ने उस की शादी करवाई आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं. आज समाज की जरूरत भी यही है कि इस बढ़ती महंगाई को ध्यान में रखें. समाज की इस बो झ वाली मानसिकता को तोड़ने के लिए जरूरी है कि हम सब एक कदम बढ़ा कर परंपरागत तरीके से नहीं बल्कि कानूनी तरीके से मैरिज रजिस्टे्रशन करवाएं. रिश्तेदारों से मेलमिलाप खत्म करने के लिए नहीं, बल्कि उसे एक नया स्वरूप देने की जरूरत है. परंपरागत तरीकों से शादियों से सिर्फ दिखावा और अवैज्ञानिक सोच को ही बढ़ावा मिलता है. उस पर बाद में रिश्तेदारों द्वारा और कई कमियां निकाली जाती हैं.

कोविड 19 के इन्फेक्शन में ब्लड टाइप भी है जिम्मेदार, जाने कैसे 

सारा विश्व कोविड 19 की चपेट में है और ऐसे में वर्ल्ड के सारे वैज्ञानिक तरह-तरह के रिसर्च कर रहे है और ये पता लगाने की कोशिश कर रहे है कि ये बीमारी है क्या? हालांकि इस बीमारी की न तो कोई दवा है और न ही कोई इलाज, ऐसे में इस रोग से पीड़ित अधिकतर व्यक्ति अपनी जान गवा रहे है या इससे ठीक होने के बाद दूसरी कई बिमारियों के शिकार हो रहे है. इसकी वैक्सीन पर भी लगातार शोध हो रहा है और कई देश अपने नागरिकों को वैक्सीन लगा भी रहे है, लेकिन इससे कितना फायदा उन्हें होगा, इसे अभी बताना संभव नहीं. 

कोविड 19 पेंडेमिक के बारें में लन्दन में हुए एक नई रिसर्च से ये पता चला है कि कुछ ब्लड ग्रुप इस बीमारी की गंभीरता को बढाती है. O ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति को SARS-Co-V-2 वायरस जो कोविड 19 के इन्फेक्शन में पाया जाता है. इससे संक्रमित होने पर बीमारी की गंभीरता कम होती है. जर्नल में प्रकाशित शोध ने यह भी बताया है कि ब्लड टाइप का कोविड 19 के इन्फेक्शन पर गहरा असर देखा गया है. 

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पहली स्टडी में रिसर्चर्स ने 473,000 कोविड 19 पॉजिटिव टेस्टेड व्यक्तियों और 2.2 मिलियन आम जनसँख्या से व्यक्तियों के डेटा लेकर उन सभी के ब्लड टाइप की तुलना की और पाया कि उसमें O ब्लड टाइप के लोग A,B और AB की तुलना में कोविड 19 से काफी कम पीड़ित थे. इस स्टडी से पता चलता है कि A,B और AB ब्लड टाइप के व्यक्ति का कोविड 19 से इन्फेक्शन होने का खतरा O ब्लड टाइप से अधिक होता है, पर रिसर्चर्स इस बारें में कोई महत्वपूर्ण जानकारी नहीं जुटा पाए कि आखिर A,B और AB ब्लड में इन्फेक्शन अधिक होने की वजह क्या है. ये भी सही है कि ये रिसर्च मनुष्यों के ग्रुप और अलग-अलग देशों में अलग हो सकता है, जिसे और अधिक डेटा के साथ अध्ययन करने की जरुरत है. 

इस बारें में पुणे के बी जे मेडिकल कॉलेज, क्लिनिकल ट्रायल यूनिट वाईरोलोजिस्ट प्रसाद देशपांडे का कहना है कि साल 2020 में पहली शोध कोविड 19 के बारें में चीन ने किया है और बताया है कि O ब्लड टाइप से A,B और AB ब्लड टाइप वाले व्यक्ति को कोविड 19 का रिस्क अधिक रहता है. इसके बाद ये शोध हार्वर्ड और न्यूयार्क में भी हुआ और उन सभी ने पाया कि ये बहुत हद तक सही है. 

असल में ये स्टडी कोविड 19 के उग्रता को बताती है, लेकिन O ब्लड टाइप को कोरोना संक्रमण नहीं होगा, ऐसी बात नहीं है. उन्हें भी संक्रमण हो सकता है. A, B और AB ब्लड टाइप को सीरियस होने का खतरा अधिक रहता है, वे वेंटिलेटर पर अधिकतर जाते है. इसके अलावा जो लोग किसी अन्य बीमारी जैसे मधुमेह, हार्ट की बीमारी, कैंसर आदि से पीड़ित है, उन्हें भी कोविड 19 का खतरा अधिक होता है. उन लोगों को अधिकतर आई सी यू में रखना पड़ता है. ये बीमारी नई है, इसका किस ब्लड टाइप से क्या सम्बन्ध है, उसे पता लगाया जा रहा है. ऐसा देखा गया है कि बच्चे के जन्म के बाद भी अगर माँ हेपेटाइटिस A या B से निगेटिव होती है. बच्चा A,B या AB ब्लड ग्रुप का है और उसको हेपेटाइटिस A या B हुआ है, तो उसकी सिवियरिटी, O ब्लड टाइप के बच्चे से अधिक देखी गई. इतना ही नहीं इन ब्लड ग्रुप को O की तुलना में स्ट्रोक की भी अधिक संभावना होती है. कोविड 19 में भी ऐसा देखा गया कि O ब्लड टाइप के मरीज बाकी ब्लड ग्रुप से कम सिवियर देखे गए है. 

ब्लड ग्रुप के बारें में अगर हम बात करे, तो हमारे रेड ब्लड सेल्स RBC कहा जाता है. उनके ऊपर जो एंटीजेन रहता है उसे A और B कहते है, जिसके ब्लड में A सेल्स है, उसका ब्लड ग्रुप A और B सेल्स वालों के B और AB सेल्स दोनों जिसके ब्लड में हो, तो AB ब्लड टाइप होता है. जिनके पास A या B दोनों नहीं है, उसे O कहा जाता है. अगर किसी का ब्लड टाइप A होता है, तो वह B को टोलरेट नहीं कर सकता. इसलिए ब्लड ट्रांसफ्यूजन करते वक़्त ब्लड की जांच करनी पड़ती है, B ब्लड ग्रुप वाले A को टोलरेट नहीं कर सकते. AB वाले दोनों से ब्लड ले सकते है, जबकि O के उपर कोई एंटीजेन A,B नहीं है, इसलिए इन्हें युनिवर्सल डोनर कहा जाता है. इसके अलावा Rh सिस्टम जिसमें पॉजिटिव और निगेटिव ब्लड ग्रुप आता है, इसमें जिनके पास Rh एंटीजेन होता है, उसे Rh पॉजिटिव और जिनके पास Rh नहीं होता है, उन्हें निगेटिव ब्लड ग्रुप कहा जाता है. 

इंडिया के जनसँख्या वितरण को देखने से पता चलता है कि पॉजिटिव ब्लड ग्रुप सबसे अधिक लोगों में होता है, जिसमें O ब्लड टाइप सबसे कॉमन होता है, इसके बाद A, बाद में B ब्लड ग्रुप और सबसे कम AB आता है. हर देश के ब्लड टाइप अलग-अलग होता है, लेकिन पॉजिटिव ब्लड ग्रुप सभी देशों में निगेटिव से अधिक है. ब्लड के ग्रुप का निर्धारित होना अनुवांशिकी होता है. ऐसा देखा गया है कि नोवार्क वायरस जिससे डायरिया होता है, उसके इन्फेक्शन होने पर रिएक्शन करने का तरीका अधिक सिवियर A, B और AB में, O की तुलना में अधिक होता है. इसके अलावा, कई प्रकार के कैंसर, स्ट्रोक आदि की संभावना भी इन ब्लड ग्रुप में अधिक होती है. 

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इसके आगे वाईरोलोजिस्ट प्रसाद कहते है कि ब्लड ग्रुप पर शोध काफी पहले से की जा चुकी है. अभी इसमें कोविड 19 के डेटा को जोड़कर रिसर्च किया जा रहा है. इसके अलावा नॉन O ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति को विनोस थ्रोम्बोएम्बोलिज्म, टाइप 2 डायबिटीज, मायोकार्डियल इन्फेक्शन, संक्रमण वाले रोग जैसे मलेरिया, हेपेटाइटिस B, नोर्वाक वायरस आदि से अधिक रिस्क होता है. कोविड 19 के लिए भी O ब्लड ग्रुप को ये नहीं समझना चाहिए कि उन्हें कोरोना संक्रमण नहीं हो सकता. सिर्फ सीरियस होने की संभावना बाकी मरीजों से कम हो सकती है. स्टडी की वेलिडेशन के लिए और अधिक रिसर्च होने की आवश्यकता है. अभी फ़िलहाल निर्देश के अनुसार सभी को कोविड 19 से सावधानी बरतने की जरुरत है. 

पति से घर का काम कैसे कराएं

हाल ही में ब्रिटेन में हुए एक सर्वे से पता चला है कि पुरुष घर के छोटेमोटे काम करने में भी आनाकानी करते हैं, इसलिए पत्नियां अपने पति से घर के काम कराने के लिए घूस का सहारा लेती हैं. यह घूस पति को स्पोर्ट्स चैनल देखने का मौका देने जैसी होती है. वे उन्हें तब अपनी पसंद का चैनल देखने देती हैं, जब वे दीवार पर तसवीर टांगने, घर के फर्नीचर को सही तरह से जमाने, बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने का जिम्मा लेते हैं. इस के अलावा अपनी पसंद का महंगा गैजेट खरीदने की इजाजत, अपने दोस्तों के साथ बौयज नाइट आउट यानी रात में घूमने की आजादी, इन तरीकोें से पत्नियां पतियों को घरेलू काम में मददगार बनाती हैं.

सुपर बनने की डिमांड

भारतीय महिलाओं की स्थिति भी इस मामले में कुछ अलग नहीं है. उन के पास भी घरपरिवार, पति, बच्चे, औफिस, कैरियर, रिश्तेदारों के साथ निभाने आदि जिम्मेदारियों की लंबी लिस्ट होती है. उस से हर समय सुपर मां, सुपर पत्नी, सुपर कैरियर वूमन बनने की मांग की जाती है. ऐसे में औफिस और घर के बीच तालमेल बैठाती महिला अनेक अनचाहे पहलुओं से जूझती है. उस पर पति द्वारा, ‘साक्षी, मेरे जूते कहां हैं?’, ‘मेरा टिफिन पैक हुआ या नहीं?’, ‘मेरी फलां शर्ट प्रैस क्यों नहीं है?’, ‘शर्ट का बटन टूटा हुआ है’, ‘बाथरूम में तौलिया नहीं है’, ‘मेरी फाइल नहीं मिल रही’, ‘मेरी गाड़ी की चाबियां पकड़ाना जरा’, ‘तुम कोई भी काम ढंग से नहीं करती हो, तुम्हें पता है, मैं ये सब नहीं कर सकता’ जैसी शिकायतों का पुलिंदा किसी भी पत्नी को अंदर तक परेशान कर देता है कि जिन कामों के न होने की शिकायत पति कर रहा है, उन कामों को वह स्वयं भी कर सकता है. लेकिन वह इन कामों को पत्नी का काम समझता है.

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एकदूसरे के पूरक

हमारे समाज में लड़कियों में बचपन से ही जिम्मेदार, कार्यकुशल बनने और घरपरिवार के काम करने के संस्कार डाले जाते हैं. चाहे वह पत्नी हो, बच्चों की मां हो या बहू हो. भोजन, कपड़े धोना, बच्चों की देखभाल, फलसब्जी की खरीदारी, औफिस व घर के बीच तालमेल बैठाना सभी कामों की उम्मीद उसी से की जाती है. अगर पत्नी 2 दिन के लिए घर से बाहर चली जाए तो पति बीसियों बार कौन सी चीज कहां रखी है, जानने के लिए फोन करते हैं. घर लौटने पर घर में जगहजगह फैले अखबार, गंदे कपड़े, खाने की जूठी प्लेटें, डाइनिंग टेबल पर जमी धूल, सूखे गमले नजर आते हैं. जब स्त्रीपुरुष एकदूसरे के पूरक हैं, तो वे घरेलू कामों में एकदूसरे के मददगार क्यों नहीं हो सकते हैं?

जिम्मेदारी बराबर की

एक बौलीवुड अभिनेत्री से जब पूछा गया कि वे अपने होने वाले पति में क्या खूबी चाहती हैं, तो उन का जवाब था, ‘‘मैं चाहती हूं, मेरा होने वाला पति सही माने में मेरा सहयोगी, मेरा लाइफपार्टनर हो. वह हर पल हर सुखदुख में मेरा सहयोगी हो. उस में यह अहं न हो कि यह काम मेरा नहीं है, मैं इसे नहीं कर सकता.’’ दरअसल, आज की हर पढ़ीलिखी कैरियर माइंडेड युवती ऐसा जीवनसाथी चाहती है, जो जीवन के हर क्षेत्र में उसे पूरा सहयोग दे. उस की भावनाओं को पूरा महत्त्व दे, उसे बराबरी का अधिकार दे, उस के घरेलू कामों में उस की पूरी मदद करे. आज की जागरूक पत्नी का मानना है कि जब वह घर से बाहर जा कर पति को आर्थिक सहयोग दे रही है, तो पति से घरेलू कामों की उम्मीद करना कहीं से भी गलत नहीं है.

पति का सहयोग जरूरी

स्वतंत्र पत्रकार दीक्षा गोयल का कहना है कि पति का सहयोग कितना जरूरी और हिम्मत देने वाला होता है, यह मैं ने तब जाना जब मेरे बेटे अंश का जन्म हुआ. अंश के दूध की बौटल बनाने से ले कर उस के डायपर बदलने तक में मेहुल ने मुझे पूरा सहयोग दिया. आज अंश 5 साल का है, उसे बड़ा करने में मेहुल का बराबर का योगदान है. इस के विपरीत कई आलसी और अहंकारी पति इन कामों के लिए खुद को जिम्मेदार नहीं समझते. औफिस से आते ही सब से पहले उन्हें चाय चाहिए. फिर वे पसर कर या तो टीवी के आगे बैठ जाते हैं या फिर नैट पर सर्फिंग कर के पत्नी को चिढ़ाते रहते हैं और खाना टेबल पर लगने का इंतजार करते रहते हैं. ऐसे पति आलसी और गैरजिम्मेदार पतियों की श्रेणी में आते हैं, जो बैठेबैठे और्डर करते रहते हैं. जब तक उन से कहा नहीं जाए, वे उठ कर पानी का गिलास भी नहीं लेते. ऐसे में पत्नी बेचारी झुंझला उठती है. अगर पति केवल पत्नी से ही घरेलू कामों की उम्मीद करे और पत्नी सहयोग के समय अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़े तो इस रिश्ते में कड़वाहट पैदा होती है और माहौल तनावपूर्ण हो जाता है.

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वर्चस्व का मोह: किसने की आलोक के दादाजी की हत्या?

Serial Story: वर्चस्व का मोह (भाग-4)

किरण के तर्क में दम तो था, लेकिन देव फिलहाल उस से सहमत होने को तैयार नहीं था. उस ने तसवीरों को फिर गौर से देखा. फिर आलोक को फोन कर के बुलाया.

‘‘इन तसवीरों में दूल्हा और तुम्हारे दूसरे सभी दोस्त तो अपने कालेज के साथी ही हैं सिवा एक के जो हर तसवीर में तुम से सट कर खड़ा है,’’ देव ने टिप्पणी की.

‘‘वह मेरा बिजनैस पाटर्नर नकुल है सर. अमेरिका से कंप्यूटर में डिप्लोमा कर के आया है. आप को तो मालूम ही होगा सर, आईबीएम की एजेंसी लेने के लिए कंप्यूटर स्पैशलिस्ट होना अनिवार्य है, इस के अलावा इलैक्ट्रौनिक प्रोडक्ट्स बेचने का अनुभव और एक बड़े एअरकंडीशंड शोरूम का मालिक होना भी. मैं ने और नकुल ने साथ मिल कर ये सब शर्तें पूरी कर के जोनल डिस्ट्रिब्यूटरशिप ली है.’’

‘‘कब से जानते हो नकुल को?’’

‘‘बचपन से सर. हमारे घर में एक बहुत बड़ा जामुन का पेड़ है. हम दोनों अकसर उस पर बैठ कर कुछ बड़ा, कुछ हट कर करने की सोचा करते थे. उस पेड़ की तरह ही विशाल. नकुल तो इसी फिराक में अमेरिका निकल गया. मैं दादाजी के मोह और किरण की मुहब्बत में कहीं नहीं जा सका, मगर नकुल बचपन की दोस्ती और सपने नहीं भूला था. उस ने वापस आ कर मुझ से भी कुछ अलग और बड़ा करवा ही दिया.’’

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‘‘आलोक, इस केस को सुलझाने के लिए हो सकता है कि मुझे इन तसवीरों में मौजूद तुम्हारे सभी दोस्तों से पूछताछ करनी पड़े.’’

‘‘आप जब कहेंगे सब को ले आऊंगा सर, लेकिन उस से पहले अगर आप किरण से पूछताछ करें तो हो सकता है कोई अहम बात पता चल जाए.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘मालूम नहीं सर, मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि किरण को कुछ पता है, क्योंकि दादाजी की हत्या के बाद वह पहले वाली किरण नहीं रही है. हमेशा बुझीबुझी सी रहती है.’’

‘‘दादाजी से खास लगाव था उसे?’’

‘‘वह तो सभी को था सर. उन की शख्सीयत ही ऐसी थी.’’

‘‘दादाजी की हत्या की खबर सुनते ही तुम्हारे साथ कितने दोस्त आए थे?’’

‘‘कोई नहीं सर क्योंकि बंटी से यह सुनते ही कि दादाजी बेहोश हो गए हैं, मैं किसी से कुछ कहे बिना फौरन उस के स्कूटर के पीछे बैठ कर आ गया था.’’

‘‘कोई तुम्हारी तलाश में तुम्हारे पीछेपीछे नहीं आया?’’

‘‘नहीं सर,’’ आलोक ने इनकार में सिर हिलाया, ‘‘मुझे अच्छी तरह याद है कि उस रात तो डाक्टर और पुलिस के अलावा हमारे परिवार के साथ सिर्फ किरण के घर वाले ही थे. सुबह होने पर उन लोगों ने औरों को सूचित किया था.’’

अगली दोपहर को किरण के साथ इंस्पैक्टर देव को अपने शोरूम में देख कर आलोक हैरान रह गया, ‘‘खैरियत तो है सर?’’

‘‘फिलहाल तो है,’’ देव ने लापरवाही से कहा, ‘‘तुम ने कहा था कि किरण से पूछताछ करूं सो बातचीत करने को इसे यहां ले आया हूं. तुम्हारे बिजनैस पार्टनर नहीं है?’’

‘‘हैं सर, अपने कैबिन में.’’

‘‘तो चलो उन्हीं के कैबिन में बैठते हैं,’’ देव ने कहा.

आलोक दोनों को बराबर वाले कैबिन में ले गया. नकुल से देव का परिचय करवाया.

‘‘कहिए क्या मंगवांऊ. ठंडा या गरम?’’ नकुल ने औपचारिकता के बाद पूछा.

‘‘वे सब बाद में, अभी तो बस आलोक के दादाजी की हत्या के बारे में कुछ सवालों के जवाब दे दीजिए,’’ देव ने कहा.

नकुल एकदम बौखला गया, ‘‘उस बारे में भला मैं क्या बता सकता हूं? मुझे तो हत्या की सूचना भी किरण से अगली सुबह मिली थी.’’

‘‘यही तो मैं पूछना चाह रहा हूं नकुल कि जब पूरी शाम आप आलोक के साथ थे तो आप ने इसे बंटी के साथ जाते हुए कैसे नहीं देखा?’’

नकुल सकपका गया, लेकिन आलोक बोला, ‘‘असल में सर उस समय कंगना खेला जा रहा था और सब दोस्त एक घेरे में बैठ कर रवि को उत्साहित करने में लगे हुए थे.’’

‘‘बिलकुल. असल में मैं ने सब को रोका ही रवि को कंगने के खेल में जितवाने के लिए था,’’ नकुल तपाक से बोला.

‘‘मगर आप स्वयं तो उस समय वहां नहीं थे…’’

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‘‘क्या बात कर रहे हैं इंस्पैक्टर साहब?’’ नकुल ने उत्तेजित स्वर में देव की बात काटी, ‘‘मैं रवि की बगल में बैठ कर उस की पीठ थपथपा रहा था.’’

‘‘तो फिर आप इस तसवीर में नजर क्यों नहीं आ रहे?’’ देव ने अलबम दिखाया, ‘‘न आप इस तसवीर में हैं और न इस के बाद की तसवीरों में. आप तकलीफ न करिए, मैं ही बता देता हूं कि आप कहां थे?’’

‘‘बाथरूम में था, ज्यादा खानेपीने के बाद जाना ही पड़ता है,’’ नकुल ने चिढ़े स्वर में कहा.

‘‘जी नहीं, उस समय आप दादाजी के कमरे में थे,’’ देव ने शांत स्वर में कहा, ‘‘आप की योजना हो सकती है हत्या कर के फिर मंडप में आने की हो, लेकिन जल्दीजल्दी पेड़ से उतरते हुए आप के कपड़े खराब हो गए थे सो आप ने वापस आना मुनासिब नहीं समझा.’’

‘‘आप जो भी कह रहे हैं उस का कोई सुबूत है आप के पास?’’ नकुल ने चुनौती के स्वर में पूछा.

‘‘अभी लीजिए. जरा पीठ कर के खड़े होने की जहमत उठाएंगे आप और आलोक तुम भी इन के साथ पीठ कर के खड़े हो जाओ,’’

कह देव किरण की ओर मुड़ा, ‘‘इन दोनों को गौर से देखो किरण, प्राय: एक सा ही ढांचा है और अंधेरे में ढीलेढाले कुरते में यह पहचानना मुश्किल था कि पेड़ से कूद कर भागने वाला आलोक था या नकुल.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं सर,’’ किरण चिल्लाई, ‘‘मुझे यह खयाल पहले क्यों नहीं आया कि नकुल ने भी आलोक के जैसे ही कपड़े पहने हुए थे और उस के पास तो हत्या करने की आलोक से भी बड़ी वजह थी. उस ने तो आईबीएम की एजेंसी लेने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था सर. वह नौकरी छोड़ कर और अपना ग्रीन कार्ड वापस कर के अमेरिका से वापस आया था…’’

आलोक ने किरण के कंधे पकड़ कर उसे झंझोड़ा, ‘‘यह क्या कह रही हो किरण, तुम ने पहले कभी तो बताया नहीं कि तुम ने किसी को भागते हुए देखा था?’’

‘‘कैसे बताती, उसे शक जो था कि भागने वाले तुम हो. इसीलिए बेचारी शादी टाल रही थी और गुमसुम रहती थी. संयोग से मुझ से मुलाकात हो गई और असलियत सामने आ गई… भागने की बेवकूफी मत करना नकुल, मेरे आदमियों ने तुम्हारा शोरूम घेरा हुआ है. मैं नहीं चाहूंगा कि तुम्हारे स्टाफ के सामने तुम्हें हथकड़ी लगा कर ले जाऊं, इसलिए चुपचाप मेरे साथ चलो, क्योंकि उस रात कमरे के दरवाजों, छत की मुंडेर वगैरह पर से पुलिस ने जो उंगलियों के निशान उठाए थे, वे तुम्हारी उंगलियों के निशानों से मिल ही जाएंगे. वैसे किरण ने वजह तो बता ही दी है, फिर भी मैं चाहूंगा कि तुम चलने से पहले आलोक को बता ही दो कि ऐसा तुम ने क्यों किया?’’ देव ने कहा.

‘‘हां नकुल, तूने तो मुझे भरोसा दिया था कि तू लाभ का पूरा ब्योरा दे कर दादाजी को मना लेगा या एक और शोरूम लेने की व्यवस्था कर लेगा, फिर तूने ऐसा क्यों किया?’’ आलोक ने दुखी स्वर में पूछा.

‘‘और करने को था ही क्या? दादाजी कुछ सुनने या अपने शोरूम का सामान छोटे शोरूम में शिफ्ट करने को तैयार ही नहीं थे और बड़ा शोरूम लेने की मेरी हैसियत नहीं थी. तेरे यह बताने पर कि तूने शोरूम अपने नाम करवा लिया है, मैं अपनी बढि़या नौकरी छोड़ और ग्रीन कार्ड वापस कर के यानी अपने भविष्य को दांव पर लगा यहां आया था. दादाजी यह जाननेसमझने के बाद भी कि कंप्यूटर बेचने में बहुत फायदा होगा, अपने वर्चस्व का मोह त्यागने को तैयार ही नहीं थे. उन की इस जिद के कारण मैं हाथ पर हाथ धर कर तो नहीं बैठ सकता था न?’’ नकुल ने कड़वे स्वर में पूछा.

‘‘अच्छा किया नकुल बता दिया, तुम्हारे लिए इतना तो करवा ही दूंगा कि जेल में तुम्हें एक दिन भी हाथ पर हाथ धर कर बैठना न पड़े,’’ देव की बात पर उस बोझिल वातावरण में भी आलोक और किरण मुसकराए बगैर न रह सके.

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Serial Story: वर्चस्व का मोह (भाग-3)

‘‘वैसा ही रेशमी कुरतापाजामा जैसा आलोक पहने हुए था. पापा ने मेरे छोटे भाई बंटी को फंक्शन हौल से आलोक को लाने भेजा. मेरा खयाल था कि आलोक वहां नहीं होगा, लेकिन बंटी आलोक को ले कर आ गया. गौर से देखने पर भी आलोक के कपड़ों पर पेड़ पर चढ़नेउतरने के निशान नहीं थे. और आलोक भी परिवार के अन्य सदस्यों की तरह ही हैरान था…’’

‘‘फिर तुम्हें यह शक क्यों है कि हत्यारा आलोक ही है?’’ देव ने बीच में पूछा.

‘‘क्योंकि अगले दिन जब पुलिस ने पेड़ के नीचे जूतों के निशान देखे तो वे जोधपुरी जूतियों के थे जिन्हें आलोक उस समय भी पहने हुए था. सही साइज का पता नहीं चल रहा था क्योंकि भागने की वजह से निशान अधूरे थे. आलोक शक के घेरे में आ गया, मगर उस ने अपने बचाव में रवि की शादी की वे तसवीरें दिखाई, जिन में वह उस समय तक रवि के साथ था जब तक बंटी उसे बुलाने नहीं गया था. पुलिस ने भले ही उसे छोड़ दिया हो, लेकिन मुझे लगता है कि वह आलोक ही था. एक तो पेड़ पर से चढ़नेउतरने का रास्ता उसे ही मालूम है, दूसरे दादाजी की मौत से फायदा भी उसे ही हुआ.

‘‘13वीं के तुरंत बाद उस ने एजेंसी लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. रहा सवाल तसवीर का, तो खाने और फेरों के दरम्यान तो लगातार तसवीरें कहां खिंचती हैं सर? फोटोग्राफर भी उसी दौरान खाना खाते हैं. फंक्शन हौल घर के पीछे ही तो था. दीवार फांद कर आनेजाने और तकिए से मुंह दबा कर किसी बुजुर्ग को मारने में समय ही कितना लगता है?’’

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‘‘तुम ने इस बारे में आलोक से बात की?’’

‘‘नहीं सर, आज पहली बार आप को बता रही हूं.’’

‘‘तुम ने अपनी सगाई या शादी कैसे टाली?’’

‘‘दादाजी की मृत्यु के तुरंत बाद तो सवाल ही नहीं उठता था. उस के बाद आलोक भी बहुत व्यस्त हो गया था. घर पर आता तो था, मगर पापा से सलाहमशवरा करने और मैं अपनी तरफ से उस से अकेले मिलने की कोशिश ही नहीं करती थी. साल भर बाद जब मां ने सगाई की जल्दी मचाई तो मैं ने उन से साफ कहा कि मुझे शादी से पहले कुछ समय चाहिए. आलोक के घर वाले भी उस की व्यस्तता के चलते अभी शादी करने की जल्दी में नहीं थे सो मेरे घर वाले भी मान गए.’’

‘‘और आलोक से मिलनाजुलना कैसे कम किया?’’

किरण मुसकराई, ‘‘उसे समझा दिया सर कि हमें ज्यादा मिलतेजुलते देख कर मां शादी जल्दी करवा देंगी. चूंकि आलोक भी धंधा जमने के बाद ही शादी करना चाहता था सो मान गया. वैसे भी उसे फुरसत तो थी नहीं, लेकिन अब जब भी फुरसत मिलती है आ जाता है और मां का शादी वाला राग शुरू हो जाता है. अब आप ही बताइए सर, ज

Serial Story: वर्चस्व का मोह (भाग-2)

किरण ने गहरी सांस ली, ‘‘हैं तो यहीं पड़ोस में, लेकिन मुलाकात कम ही होती है…’’

‘‘क्यों? बहुत व्यस्त हो गए हो तुम दोनों या कुछ खटपट हो गई है?’’ देव ने बात काटी.

‘‘इतने व्यस्त भी नहीं हैं और न ही हमारी जानकारी के अनुसार कोई खटपट हुई है. मुझे ही कोई गलतफहमी हो गई है शायद.’’ किरण हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘उसी बारे में आप से बात करना चाह रही थी. आप के बारे में अकसर पढ़ती रहती हूं. कई बार आप से मिलना भी चाहा, मगर समझ नहीं आया कैसे मिलूं. सर, मुझे लगता है आलोक ने अपने दादाजी की हत्या की है.’’

देव चौंक पड़ा कि तो यह वजह है शादी न करने की. लेकिन किरण से पूछा, ‘‘शक की वजह?’’

‘‘जिस रात दादाजी की हत्या हुई मुझे लगता है मैं ने आलोक को छत से कूद कर भागते हुए देखा था. लेकिन आलोक का कहना है कि वह उस समय पिछली सड़क पर हो रही अपने दोस्त की शादी के मंडप में था. दादाजी की हत्या की सूचना भी उसे वहीं मिली थी.’’

‘‘लेकिन तुम्हें लगता है कि भागने वाला आलोक ही था?’’

‘‘जी, सर हत्या का कोई मकसद भी सामने नहीं आया. न तो कुछ चोरी हुआ था और न ही दादाजी की किसी से कोई दुश्मनी थी.’’

‘‘हत्या से किसी को व्यक्तिगत लाभ?’’

‘‘सिर्फ आलोक को जो केवल मुझे मालूम है क्योंकि दूसरों की नजरों में तो दादाजी वैसे ही सबकुछ उस के नाम कर चुके थे.’’

‘‘जो तुम्हें मालूम है या जो भी तुम्हारा अंदाजा है, मुझे विस्तार से बताओ किरण. मैं वादा करता हूं मैं जहां तक हो सकेगा तुम्हारी मदद करूंगा?’’

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‘‘मां का कहना था कि मुझे प्रवक्ता की नौकरी न करने दी जाए, क्योंकि  फिर मैं अपने दादाजी के फ्रिज और टीवी के शोरूम में बैठने वाले आलोक से शादी करने को मना कर दूंगी. पापा ने उन्हें समझाया कि आलोक खुद ही फ्रिज और टीवी बेचने के बजाय विदेशी कंप्यूटर की एजेंसी लेना चाह रहा है. इसी सिलसिले में कानूनी सलाह लेने उन के पास आया था. उस में कोई कानूनी अड़चन नहीं है. आलोक को बड़ी आसानी से एजेंसी मिल जाएगी और कंप्यूटर विके्रता से शादी करने में उन की लैक्चरार बेटी को कोई एतराज नहीं होगा.

‘‘मां ने फिर शंका जताई कि दादाजी अपनी बरसों पुरानी चीजों को छोड़ कर कंप्यूटर बेचने से रहे तो पापा ने बताया कि शोरूम तो दादाजी आलोक के नाम कर ही चुके हैं सो वह उस में कुछ भी बेचे, उन्हें क्या फर्क पड़ेगा. मां तो आश्वस्त हो गईं, लेकिन पापा का सोचना गलत था. दादाजी कंप्यूटर की एजेंसी लेने के एकदम खिलाफ थे. वे कंप्यूटर को फ्रिज या टीवी की तरह रोजमर्रा के काम आने वाली और धड़ल्ले से बिकने वाली चीज मानने को तैयार ही नहीं थे.

‘‘दादाजी ने शोरूम जरूर आलोक के नाम कर दिया था, लेकिन उसे चलाते अभी भी वे खुद ही थे, अपनी मनमरजी से. जिस ग्राहक को जितना चाहा उतनी छूट या किश्तों की सुविधा दे दी, कौन सा मौडल या ब्रैंड लेना बेहतर रहेगा, इस पर वे हरेक ग्राहक के साथ घंटों सलाहमशवरा और बहस किया करते थे. कंप्यूटर की एजेंसी लेने से तो उन की अहमियत ही खत्म हो जाती, जिस के लिए वे बिलकुल तैयार नहीं थे. उन्होंने आलोक से साफ कह दिया कि उन के जीतेजी तो उन के शोरूम में जो आज तक बिकता रहा है वही बिकेगा. कुछ दूसरा बेचने के लिए आलोक को उन की मौत का इंतजार करना होगा.

‘‘आलोक ने मुझे यह बात बताते हुए कहा था कि दादाजी के इस अडि़यल रवैए से मेरा कंप्यूटर विक्रेता बनने का सपना कभी पूरा नहीं होगा. मैं दादाजी का शोरूम संभालने को तैयार ही इस लालच में हुआ था कि आईबीएम की एजेंसी लूंगा वरना पापा और अशोक भैया की तरह मैं भी चार्टर्ड अकाउंटैंट बन कर उन के औफिस में बैठा रहूंगा. वैसे अभी भी मैं फ्रिजटीवी बेच कर तो रोटी कमाने से रहा. जब तक मैं अपने कैरियर का चुनाव न कर लूं किरण, मैं सगाईशादी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता.

‘‘मुझे उस की बात सही लगी और मैं ने उसे भरोसा दिलाया कि मैं किसी तरह सगाई टलवा दूंगी. इस से पहले कि मैं कोई बहाना खोज पाती, आलोक फिर आया. वह बहुत सहज लग रहा था. उस ने कहा कि मुझे परेशान होने की जरूरत नहीं है, सब ठीक हो जाएगा. कुछ रोज बाद हमारे सहपाठी रवि की शादी थी. आलोक उस की बारात में मेरे साथ खूब नाचा. खाने के बाद आलोक ने कहा कि रवि के सभी दोस्त उसे मौरल सपोर्ट देने को बिदाई तक रुक रहे हैं सो वह भी रुकेगा. उस ने मुझे भी ठहरने को कहा, मगर मुझे कुछ कापियां जांचनी थीं सो मैं घर वालों के साथ वापस आ गई.

‘‘आलोक के घर में एक जामुन का पेड़ है, जिस की शाखाओं ने हमारी आधी छत को घेरा हुआ है. मैं तब ऊपर छत वाले कमरे में रहती थी. आलोक और दादाजी का कमरा भी उन की छत पर था. दादाजी के सोने के बाद पेड़ की डाल के सहारे आलोक अकसर मेरे कमरे में आया करता था.’’

‘‘आया करता था यानी अब नहीं आता?’’ देव ने बात काटी.

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‘‘क्योंकि दादाजी की हत्या के बाद पापा ने मुझे अकेले ऊपर नहीं रहने दिया. हां, तो मैं बता रही थी कि उस रात पत्तों की आवाज सुन कर मुझे लगा कि आलोक आ गया है. मैं बाहर आई. पत्ते तो हिल रहे थे, लेकिन छत पर कोई नहीं था. मैं ने नीचे से झांक कर देखा तो पेड़ से उतर कोई भागता नजर आया और दादाजी के कमरे से उन के नौकर राजू के चिल्लाने की आवाजें आईं कि देखो दादाजी को क्या हो गया. मैं भाग कर नीचे आई और सब को राजू के चिल्लाने के बारे में बताया. हम लोग आलोक के घर गए. दादाजी के मुंह पर तकिया रख कर किसी ने दम घोंट कर उन की हत्या कर दी थी.

‘‘राजू दादाजी के लिए दूध ले कर ऊपर जा रहा था कि गिलास पर ढक्कन की जगह रखी कटोरी गिर सीढि़यों से झनझनाती हुई नीचे चली गई. शायद उसी की आवाज सुन कर हत्यारा कहीं छिप गया था. सब उस की तलाश करने लगे. मगर मैं ने किसी को नहीं बताया कि मैं ने हत्यारे को पेड़ से उतरते और दीवार फांदते देखा था. क्योंकि मैं ने उस की शक्ल तो नहीं सिर्फ लिबास देखा था.

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