Romantic Story : ‘‘अंकल, मैं युवान से शादी नहीं कर पाऊंगी. मैं यह शादी तोड़ रही हूं. प्लीज, युवान को बता दीजिएगा. आप का दिया हार और कंगन मैं अभी आप के औफिस में दे जाऊंगी. नमस्ते.’’
अपने मंगेतर युवान के पिता को फोन पर शादी से इनकार कर भाविषा को यों लग रहा था मानो उस के हाथपैरों से जान निकल गई हो. अतीव घबराहट से उस के हाथ पैर कांप रहे थे. दिल डूबा जा रहा था. वहीं दूसरी ओर उसे राहत का एहसास भी हो रहा था.
इन मिश्रित एहसासों में डूबतीउतराती भाविषा फोन काट कर बैड पर धम्म से बैठ गई. अनायास आंखों के सामने युवान का चेहरा कौंध आया. उस के हृदय में जैसे शूल चुभा.
युवान, उस का सब से प्यारा, अंतरंग दोस्त… प्रेमी… उफ, उस ने उसे क्या समझ और उस की असली फितरत क्या निकली? अनायास उसे खुशनुमा अतीत की रोशन यादों ने अपने आगोश में समेट लिया…
युवान से भविषा की पहली मुलाकात उस की दिल्ली यूनिवर्सिटी के वार्षिक फ्लौवर शो में हुई थी. उसे आज भी अच्छी तरह याद है, वह उन दिनों एमए प्रीवियस में थी और युवान एमए फाइनल में.
उस दिन भाविषा ने एक सफेद रंग की लौंग स्कर्ट और टौप पहना हुआ था. सफेद रंग उस का पसंदीदा रंग था. वह एक जूही के पौधे के पास जा कर पोज दे रही थी और उस की सहेली उस का फोटो खींच रही थी.
भाविषा एक तीखे नैननक्श की गोरीचिट्टी बेहद खूबसूरत युवती थी. सहेली ने उस के कुछ फोटो खींचे ही थे कि उस ने देखा, एक बांका सजीला नौजवान उस के पास आ कर पौधे पर खिलते जूही के फूलों की सुंदर पृष्ठभूमि में सैल्फी लेने लगा.
उसे अपने पास यों फोटो लेते देख भाविषा चिंहुक कर मुंह बनाते हुए वहां से हट गई. उसे यों दूर जाते देख वह मुसकराते हुए उस से बोला, ‘‘ओ… मिस बेला… जूही… कहां चलीं? अपना इंट्रोडक्शन तो देती जाइए. बाय द वे मैं युवान, एमए फाइनल में.’’
उस दिन के बाद से वह गाहेबगाहे उस से टकरा जाता. कभी लाइब्रेरी में तो कभी कैंटीन में, कभी कंप्यूटर लैब में तो कभी यूनिवर्सिटी के गलियारों में. जब भी वह उस से टकराता, उसे एक दिलकश मुसकान देता और उसे ‘मिस बेला जूही’ कह कर पुकारता.
एक दिन यूनिवर्सिटी औडीटोरियम में कोई कल्चरल फंक्शन था. आगेआगे अपनी एक सहेली के साथ प्रोग्राम देख रही थी कि तभी उसे लगा, कोई उस की बगल वाली खाली सीट पर आ कर बैठ गया. उस के कानों में वही चिरपरिचित आवाज पड़ी, ‘‘मिस बेला जूही, आप मुझ से यों इतना दूरदूर क्यों भागती हैं? भई मैं कोई सड़कछाप शोहदा तो नहीं जो आप मुझे देखते ही अपना रास्ता बदल लेती हैं. हम दोनों एक ही डिपार्टमैंट में हैं. मैं बस आप से दोस्ती करना चाहता हूं… जस्ट प्योर फ्रैंडशिप. दैट्स इट.’’
उस दिन उस की बातचीत के शिष्ट और नर्म लहजे ने आखिरकार भाविषा के मन में जगह बना ही ली और दोनों दोस्त बन गए.
वे दोनों यूनिवर्सिटी में कक्षा के बाहर हमेशा साथसाथ देखे जाते. वक्त के साथ आहिस्ताआहिस्ता दोनों के मन में प्रेम की अगन जलने लगी.
महज दोस्ती से शुरू हुआ उन का सफर कई पड़ावों को पार कर प्रेम के मुकाम तक पहुंच गया. दोनों जिंदगी का सफर साथसाथ बिताने के ख्वाब देखने लगे.
उन दोनों की माइक्रोबायलौजी में एमएससी पूरी हो गई थी. दोनों की जौब्स प्राइवेट सैक्टर में लग गई. अब उन के सपने पूरे करने का वक्त आ गया था.
भाविषा ने अपने मातापिता को युवान के मातापिता से शादी की बात करने के लिए भेजा. जहां युवान के पिता एक धनाढ्य उद्योगपति थे, वहीं भाविषा के पिता एक निजी प्रतिष्ठान में छोटे पद पर कार्यरत थे. वे महज एक सुपरवाइजर थे. अपनी सीमित बंधीबंधाई तनख्वाह में उन्होंने बड़ी मुश्किल से अपने 2 बच्चों को पालापोसा था, उन्हें उच्च शिक्षा दिलाई थी.
भाविषा के मातापिता युवान के घर की शानशौकत देख चकरा गए. मन में असंख्य आशंकाएं फन उठाने लगीं. यदि लड़के वालों की कोई मांग हुई तो क्या होगा? वे इतने रईस लोगों से रिश्ता कैसे निभा पाएंगे?
युवान के घर का ड्राइंगरूम एक रंगारंग प्रदर्शनी से कम न था. विशालकाय हौल में 3 शानदार गद्देदार मखमली सोफे रखे थे. फर्श पर गुदगुदा कालीन बिछा था. दीवारों पर कई आदमकद पेंटिंग्स उन की शोभा बढ़ा रही थीं. हर कोने में मद्धिम रंगीन रोशनी बिखेरते लैंप थे. सीलिंग से बड़ेबड़े कलात्मक गड़ाई वाले फानूस लटक रहे थे.
ऐसे जबरदस्त ड्राइंगरूम में सस्ती सी सिंथैटिक साड़ी और पैंट शर्ट पहने भाविषा के मातापिता बेहद असहज महसूस कर रहे थे. सोच रहे थे, बेटी की जिद पर यहां आ तो गए लेकिन इतने धनाढ्य घर के कुलदीपक से अपनी बेटी के रिश्ते की बात किस दम पर चलाएं. उन की तुलना में तो वे कुछ भी नहीं. उन के पास मात्र उन की नाजों से पली लाखों में एक खूबसूरत लाडली थी लेकिन इस वैभव और आडंबर के बीच क्या उन की कनक छड़ी सी हीरे की कनि बिटिया अपनी पहचान बनाए रख पाएगी? उन्होंने कितने जतन से उसे पढ़ायालिखाया था. क्या उस की पढ़ाईलिखाई, उस की अस्मिता की कद्र उस सोने के संसार में हो पाएगी?
वे दोनों इन विचारों के सैलाब में डूबतेउतराते हुए खयाल मग्न थे कि तभी युवान के मातापिता बेटे के साथ वहां आ गए.
कडककलफ लगे पेस्टल आसमानी कुरतेपाजामे में सुदर्शन, भव्य शख्सियत के स्वामी युवान के पिता को देख भाविषा के पिता ने हकलाते हुए उन्हें नमस्ते की. उन की जीभ तालू से चिपक गई थी.
ठीक यही हाल भाविषा की मां का था. महंगी साड़ी और हीरों के गहनों में युवान की ठसकेदार मां को देख कुछ लमहों तक उन के मुंह से कोई बोल न फूटा. फिर अचकचाते हुए उन्होंने युवान की मां और पिता को नमस्ते की.
युवान के पिता पहले ही बेटे की भाविषा से विवाह की मंशा जान कर उस के माता, पिता और उन के परिवार की पृष्ठभूमि के बारे में विस्तृत पड़ताल करा चुके थे.
उन के अनुसार भाविषा जैसी गरीब परिवार की लड़की से उन के इकलौते बेटे का विवाह उन के लिए हर तरह से घाटे का सौदा साबित होगा. यह विवाह संबंध मखमल पर टाट के पैबंद सरीखा होगा. उन के उच्च वर्गीय आभिजात परिचय क्षेत्र में इस रिश्ते को ले कर उन की बहुत जगहंसाई होगी. सो वे और उन की पत्नी दृढ़ प्रतिज्ञ थे कि वे हर लिहाज से इस बेमेल शादी को कतई नहीं होने देंगे. पर युवान की भाविषा से विवाह की जिद्द के मद्देनजर वे यह भी जानते थे कि उन्हें इस मुद्दे को बहुत डिप्लोमैटिकली हैंडल करना होगा जिस से युवान को इस रिश्ते से होने वाले नफेनुकसान का जायजा हो जाए और वह स्वत: इस संबंध के लिए न कर दे.
बेटे के सामने युवान के मातापिता भाविषा के पेरैंट्स से बहुत शिष्टता और नरमाई से पेश आए. उन का यथोचित आदरसत्कार किया.
भाविषा के पिता ने डरतेडरते हाथ जोड़ कर भावी समधी से कहा, ‘‘समधीजी, मैं एक नौकरीपेशा ईमानदार इंसान हूं. एक निजी संस्थान में छोटी सी नौकरी करता हूं. किसी तरह पेट काट कर मैं ने दोनों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई है. मेरी बेटी यूनिवर्सिटी की गोल्ड मैडलिस्ट है. उस के शील स्वभाव और शिक्षा संस्कार के अलावा आप को और कुछ न दे पाऊंगा. यदि आप को इस से ज्यादा की अपेक्षा हो तो मुझे माफ कीजिएगा.’’
‘‘नहींनहीं समधीजी, देख ही रहे हैं, कुदरत का दिया मेरे पास सबकुछ है. मुझे आप से कुछ भी नहीं चाहिए आप की गुणी बेटी के अलावा. हम अगले संडे आप के घर आते हैं बिटिया से मिलने.’’
‘‘जी मोस्ट वैलकम. आप तीनों अवश्य हमारे घर पधारें. हम आप का वेट करेंगे.’’
अगले रविवार युवान अपने मातापिता के साथ भाविषा के घर पहुंचा. भाविषा का छोटा सा दीनहीन 2 कमरों का दड़बेनुमा फ्लैट देख युवान का चेहरा भी उतर गया. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था, भाविषा का घर इतना फटेहाल होगा. उस के ड्राइंगरूम में महज बेंत की 3 कुरसियां रखी थीं और एक लकड़ी की सस्ती सी चादर से ढका दीवान रखा था. उस के घर की बदहाली देख युवान सोच रहा था, ‘यह वह कहां फंस गया? उसे ताउम्र इस कंगाली के ग्रहण लगे घर में आना होगा?’
अलबत्ता अपनी प्रेयसी भाविषा को देख उस के मन को तनिक सुकून अवश्य मिला. उस की मां श्यामवर्णी स्थूलकाय महिला थीं. नैननक्श भी साधारण थे. उस की बहन भी हूबहू मां जैसी थी. उन दोनों के सामने उस का भोर का उजास फैलाता नाजुक कली सा नमकीन रूपसौंदर्य देख उस ने अपने मन को समझाया, ‘बड़ी, भाविषा का घर जैसा भी हो, वह तो लाखों में एक है न. जो भी उसे देखेगा, उस से रश्क किए बिना न रहेगा. उसे जिंदगी तो उस के साथ बितानी है. उस के घर से उसे क्या लेनादेना.’
भविषा के मातापिता ने अपनी हैसियत से बढ़ कर उन का स्वागतसत्कार किया. घर के बने व्यंजन परोसे लेकिन उन के घर के सस्ते कप और प्लेटें देख तीनों आगंतुकों का मूड बदमजा हो गया.
युवान की मां ने म्लान मुख भाविषा को जगमग हीरे जड़े कंगन और हीरों का हार पहना कर उस का रोका कर दिया.
तीनों ही भाविषा के घर से अंतर्मन में चल रहे द्वंद्व में डूबे लौटे. जहां युवान के मन की मायूसी के बादल प्रिया के मासूम, भोलेभाले खूबसूरत चेहरे को देख कुछ हद तक छंट गए थे, वहीं उस की मां और पिता का इस शादी को किसी भी हालत में नहीं होने देने का संकल्प दृढ़ हो गया था. भाविषा बेशक नायाब हीरा थी लेकिन उस की कंगाल पृष्ठभूमि उन की उन के समाज में खासी जगहंसाई की वजह बनेगी जो वह हरगिजहरगिज नहीं होने देंगे.
रोके के अगले दिन युवान के औफिस जाने के बाद उस के पिता ने भाविषा के पिता को फोन लगाया, ‘‘समधीजी, मुझे आप से एक जरूरी बात करनी थी.’’
‘‘जी… जी… कहिए.’’
‘‘जी ऐसा है, हम 250 लोगों की बरात ले कर आएंगे. जैसाकि मैं ने आप को पहले ही कहा था, दहेज के नाम पर हमें आप से फूटी कौड़ी भी नहीं चाहिए. बस हमें शादी फाइवस्टार होटल में चाहिए. शादी की मिलनी में हर बराती को 10-10 ग्राम का एक सोने का सिक्का चाहिए होगा. हमारे खानदान में आज तक जितनी शादियां हुई हैं, सब में यह रीत निभाई गई है. तो विवश हमें आप के सामने यह मांग रखनी पड़ रही है. उम्मीद है, आप हमारी विवशता समझेंगे. ओके बाय…’’
उफ… यह क्या? हर बराती को 1-1 तोले का सिक्का… मन ही मन उन्होंने हिसाब लगाया. करीब 20 लाख का खर्च. फिर फाइवस्टार होटल में शादी. उस में लाखों का खर्च.
कल तो सबकुछ एक हसीं सपने जैसा बीता था. कल से वे 7वें आसमान में उड़ रहे थे यह सोचसोच कर कि उन की बेटी की शादी एक करोड़पति घर में बिना दानदहेज के एक सर्वगुणसंपन्न सुपात्र से हो रही है और आज अचानक उन की यह मांग.
समधीजी के ये अल्फाज उन के कानों में जैसे पिघले शीशे की मानिंद पड़े. घबराहट से उन के हृदय की धड़कन बढ़ आई. पेशानी पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आईं. हाथपैरों की जान निकल गई. वे धम्म से सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गए.
पिता को भावी ससुर से बात करने के बाद इस हाल में देख भाविषा दौड़ीदौड़ी उन के पास आई और उन्हें झं?ाड़ते हुए बोली, ‘‘क्या हुआ पापा? अंकल ने क्या कहा?’’
पिता ने कांपते स्वरों में उसे समधीजी की मांग के बारे में बताया. सारी बातें सुन कर भाविषा सन्न रह गई. उस ने पिता को सांत्वना दी, ‘‘पापा, आप चिंता मत करिए. मैं अभी युवान से बात करती हूं. आप सबकुछ नहीं करेंगे. निश्चिंत रहिए. मुझे युवान पर पूरा भरोसा है. वह जरूर इस का कुछ न कुछ तोड़ निकालेगा. आप फिकर मत करिए. मैं अभी उस से बात करती हूं.’’
भाविषा ने युवान को तुरंत एक रैस्टोरैंट में बुलाया और उसे उस के पिता की मांग बताई. फिर बोली, ‘‘युवान, मेरे पापा तुम लोगों की मांग किसी हालत में पूरी नहीं कर पाएंगे. हम न तो फाइवस्टार होटल में शादी अफोर्ड कर पाएंगे, न ही 250 बरातियों को मिलनी में सोने के सिक्के दे पाएंगे. प्लीज, अपने पापा को सम?ाओ.’’
‘‘अरे यार, यह तुम कहां होटल और सोने के सिक्कों की बात ले कर बैठ गई. ये बातें बड़ों के करने की हैं हनी, इन से हम दोनों दूर ही रहें तो अच्छा है. बड़ों की बातें बड़े ही जानें,’’ युवान ने कंधे उचकाते हुए बेहद लापरवाही से जवाब दिया और फिर अपने बिंदास बेपरवाह लहजे में बोला, ‘‘देखो तो मौसम कितना सुहाना हो रहा है, चलो अब औफिस से हाफ डे लिया है तो उस का सदुपयोग ही हो जाए. चलो, लौंग ड्राइव पर चलते हैं.’’
‘‘यहां मेरे पापा सोचसोच कर हलकान हो रहे हैं कि इतना सबकुछ मैनेज कैसे होगा और तुम्हें लौंग ड्राइव की पड़ी है. बात की गंभीरता को समझ युवान, यह कोई मामूली बात नहीं. अगर तुम ने इस लेनदेन के मुद्दे पर सीरियस स्टैंड नहीं लिया तो सब खत्म हो जाएगा.’’
‘‘भई मैं क्या सीरियस स्टैंड लूं? तुम क्या चाहती हो मैं अपने पेरैंट्स से लड़ूं? अरे, अपने बच्चों की शादीब्याह में हर पेरैंट की कुछ चाहत होती है. भई मैं तो उन से कुछ नहीं बोल सकता. अब बोलो, तुम ड्राइव पर मेरे साथ आ रही हो या नहीं? नहीं तो मैं दोस्तों की तरफ निकल जाता हूं. तुम लड़कियां भी न. अजीब ही होती हैं. हर बात में तुम लोगों को टांग अड़ाने की आदत होती है. अरे बड़े लोग इस समस्या का कुछ न कुछ तोड़ निकाल ही लेंगे. इतनी टैंशन की क्या बात है? चिल यार.’’
‘‘तो तुम इस मसले पर उन से कुछ नहीं बोलोगे? यह तुम्हारा फाइनल डिसीजन है?’’ इस बार भाविषा ने युवान को आग्नेय नेत्रों से घूरते हुए कहा.
इस पर युवान ने तनिक रोष से कहा, ‘‘नहीं, मैं उन से कुछ नहीं बोलूंगा. वे दोनों उन की मरजी के विरुद्ध तुम से शादी करने की बात पर मुझ से वैसे ही खफा हैं. अब मैं उन्हें और नाराज करने की हिम्मत नहीं कर सकता.’’
भाविषा ने तनिक देर सोचा और फिर आंखों से चिनगारियां बरसाते हुए गुस्से से दांत भींचते हुए युवान से कहा, ‘‘तो हमारी शादी कैंसिल. मैं तुम जैसे स्पाइनलैस इंसान से कतई शादी नहीं कर सकती. गुड बाय युवान, मु?ा से कौंटैक्ट करने की कोशिश मत करना. मैं तुम्हें फोन पर ब्लौक कर रही हूं. अपनी लाइफ से भी,’’ कहते हुए भाविषा क्रोध से लंबीलंबी सांसें लेते हुए वहां से पैर पटकते तेज चाल से चली गई.
युवान हैरान उसे जाते देख चिल्लाया, ‘‘भाविषा… सुनो तो, भाविषा…’’ कहते हुए वह उस के पीछेपीछे आया लेकिन वह अपने स्कूटर पर वहां से जा चुकी थी.
वहां से वह सीधी औफिस पहुंची और एक रिपोर्ट बनाने लगी लेकिन आज उस का मन उस के आपे में न था. वह रिपोर्ट के विभिन्न तथ्यों को क्रमबद्ध रूप में व्यवस्थित नहीं कर पा रही थी. बारबार गलतियां कर रही थी. मन पखेरू बारबार युवान के साथ बीते खुशनुमा दिनों के सायों में भटकने लगता.
किसी तरह सप्रयास रिपोर्ट बना कर वह उसे अपने युवा बौस अभिजीत के कैबिन में ले गई और उन्हें थमा दी.
‘‘भाविषा, कोई परेशानी हो तो बताइए. आप की रिपोर्ट्स तो हमेशा परफैक्ट होती हैं. मैं पूरे स्टाफ को आप की रिपोर्ट्स का उदाहरण देता हूं. आज आप मुझे बहुत परेशान दिख रही हैं. कोई परेशानी हो तो प्लीज बताइए. शायद मैं आप की कोई मदद कर सकूं?’’
‘‘नहीं… नहीं… सर, ऐसी कोई बात नहीं. दीजिए, मैं इसे ठीक कर के ले आती हूं,’’ यह कहते ही जैसे ही वह सीट से उठी, घोर तनाव से उसे चक्कर आने लगा और वह लड़खड़ाते हुए आंखें बंद कर बैठ गई.
‘‘भाविषा, क्या हुआ? आप ठीक तो हैं?’’
‘‘जी… जी… सर, ठीक हूं.’’
‘‘नहीं… नहीं… आप बिलकुल ठीक नहीं हैं. आप का चेहरा एकदम उतर गया है. आप यहीं बैठिए और मु?ो बताइए क्या परेशानी है. शायद आप के मन का बो?ा हल्का हो जाए,’’ अभिजीत ने उसे जबरदस्ती वहीं बैठा लिया और उस के लिए कौफी मंगवाई.
फिर उस से पूछा, ‘‘हां तो अब बताइए.’’
भाविषा और अभिजीत पिछले 5 वर्षों से साथसाथ काम कर रहे थे. उस नाते दोनों में आप सी अच्छी ट्यूनिंग थी. अभिजीत को भाविषा और युवान के प्रेमप्रसंग के बारे में अच्छी तरह पता था.
भाविषा ने अभिजीत के बहुत आग्रह करने पर उसे पूरा घटनाक्रम विस्तार से बताया जिस के जवाब में उस ने उस से कहा, ‘‘आप ने बिलकुल सही निर्णय लिया. आप को ऐसी डिमांड वाले लालची लोगों में अपना रिश्ता कतई नहीं करना चाहिए.’’
‘‘आप ठीक कह रहे हैं अभिजीत, मेरा भी यही मानना है. मैं खुद भी ऐसे इंसान से शादी नहीं करना चाहती जो मेरी परेशानी को न समझे.’’
‘‘बिलकुल, अभी आप घर जा कर रैस्ट करिए. आप नौर्मल नहीं लग रहीं.’’
अपने घर पहुंच भाविषा ने पहला काम जो किया वह था युवान के पिता को फोन कर उन्हें शादी के लिए इनकार करना.
यह काम कर के भाविषा बैठी ही थी कि उस के पिता ने उस से कहा, ‘‘यह तूने क्या किया बिटिया? शादी तोड़ दी? अरे बेटा, इतनी जल्दी क्या थी? मैं तो सोच रहा था अपना मकान बैंक के पास गिरवी रख उन से लोन ले लेता. कुछ न कुछ इंतजाम हो ही जाता.’’
पिता के आर्द्र स्वर को सुन भाविषा अतीत से वर्तमान में वापस आई.
‘‘मुझे एक स्पाइनलैस इंसान से शादी नहीं करनी. युवान ने मेरी कोई मदद नहीं की. मुझे टका सा जवाब दे दिया. मैं ने फैसला कर लिया है पापा, यह शादी नहीं होगी,’’ कहते हुए वह घोर मानसिक संताप से आंखों में उमड़ आए आंसुओं के समंदर को सप्रयास भीतर ही भीतर जज्ब करते हुए भीतर चली गई और फूटफूट कर रो पड़ी. शहनाई की खुशियां मातम में बदल गई थीं.
दिन बीत रहे थे. युवान को भूलना इतना आसान न था. वह भाविषा का पहला प्यार था. उस ने उसे प्यार के खूबसूरत जज्बे से रूबरू कराया था, मुहब्बत की दुरूह राहों पर उंगली थाम कर चलना सिखाया था लेकिन जिंदगी कब किस के लिए रुकी है?
युवान से रिश्ता तोड़े पूरा बरस हो आया था. युवान से दूर हो कर भाविषा का मन मर सा गया था. जिंदगी जीने का उछाह खत्म हो गया था. वह एक मशीनी जिंदगी जी रही थी लेकिन उस मुश्किल समय में अभिजीत ने उस का बहुत साथ दिया. अपनी सहृदयता और मृदु स्वभाव से वह धीमेधीमे उस के दिल में जगह बनाने लगा था. दोनों के मध्य औपचारिकता की दीवार धीरेधीरे टूट गई थी और दोनों बहुत अच्छे और करीबी दोस्त बन गए थे. उस की और मातापिता की गरमाहट भरी सपोर्ट के दम पर भाविषा भी अपने ब्रेकअप के गम से लगभग उबर आई थी.
उस दिन किसी नेता की आकस्मिक मृत्यु के चलते औफिस खुलते ही बंद हो गया. औफिस से निकलतेनिकलते अभिजीत ने भाविषा से कहा, ‘‘भाविषा, मुझे तुम से कुछ बहुत जरूरी बात करनी है.’’
‘‘कहो अभिजीत.’’
‘‘चलो, कहीं बैठ कर कौफी पीते हैं.’’
दोनों एक रैस्टोरैंट में जा कर बैठ गए.
‘‘भाविषा, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. मुझ से शादी करोगी?’’
‘‘क्या… क्या… क्या… शादी?’’ भाविषा अचकचाते हुए बोली.
‘‘हां भाविषा शादी. मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं भाविषा, दिलोजान से चाहने लगा हूं. तुम्हारे साथ जिंदगी का 1-1 लमहा बिताना चाहता हूं. बोलो, मेरी हमसफर बनोगी?’’ अभिजीत ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा.
‘‘मुझे… मुझे थोड़ा समय चाहिए.’’
‘‘ओके… ओके… जितना समय चाहिए ले सकती हो. मुझे कोई जल्दी नहीं.’’
‘‘हां, एक बात, तुम हां कहो उस से पहले मैं तुम्हें अपना घर दिखाना चाहता हूं. आज चलें घर?’’
‘‘हां चलो, आज अपने पास टाइम भी है.’’
दोनों अभिजीत के घर पहुंचे. उस का घर देख भाविषा के चेहरे पर तनिक मायूसी के भाव आ गए.
‘‘मेरा घर बहुत छोटा है भाविषा, शादी के बाद हमें इसी घर में रहना होगा. रह लोगी इतने छोटे घर में?’’
‘‘यह कोई समस्या नहीं. मेरा घर भी बहुत छोटा है, तुम्हारे घर से भी छोटा.’’
भाविषा की बात सुन कर अभिजीत के चेहरे पर राहत के भाव आ गए.
यह देख कर भाविषा मुसकरा दी, ‘‘अगर हम दोनों शादी करें तो हमारे बीच कुछ भी परदे में नहीं होना चाहिए. मैं रिश्तों में ट्रांसपेरैंसी में विश्वास करती हूं.’’
‘‘तुम ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली. बिलकुल सही कहा तुम ने.’’
तभी अभिजीत के पेरैंट्स उन के ड्राइंगरूम में आ गए. अभिजीत ने भाविषा से उन का परिचय कराया.
अभिजीत की मां ने उसे बड़ी गरमाहट से अपने से लगा कर आशीर्वाद दिया. उस के पिता ने भी उसे आशीर्वाद दिया.
तभी उस की मां ने अभिजीत से कहा, ‘‘बेटा, जा अपनी दादी और चाचाचाची को बुला ला.’’
दादी और चाचाचाची को उस के आने की खबर लग गई थी. चाची उन के लिए गरमगरम हलवा ले कर आई. सब से पहले दादी ने भाविषा की बलैयां लेते हुए उस का मुंह मीठा कराया और फिर उसे अपने गले से लगा कर आशीर्वाद दिया.
अभिजीत की मां ने भी उसे अपने हाथ से बड़े प्यार से खिलाते हुए कहा, ‘‘तुम पहली बार हमारे घर आई हो, मुंह मीठा कराना तो बनता है.’’
चाची ने भी यही कहते हुए बड़े स्नेह से उसे हलवा खिलाया.
तभी अभिजीत की 2 बहनें और चाचा के
3 बच्चे वहां आ गए और उस से बड़ी ही गरमजोशी से मिले.
अभिजीत ने अपनी बहनों और कजिंस से कहा, ‘‘चलो, भाविषा को अपना पूरा घर दिखाते हैं.’’
अभिजीत ने उसे 5 छोटेछोटे कमरों का घर दिखाया. फिर अभिजीत उस के कानों में फुसफुसाया, ‘‘मेरी दोनों बहनों की शादी अगले माह ही है. तो बहनों के जाने के बाद उन का यह रूम हमें मिल जाएगा.’’
भाविषा सब के साथ करीब 2 घंटे रही. उसे यह महसूस ही नहीं हुआ कि वह अभिजीत के घर वालों से पहली बार मिली है. उसे अभिजीत के घर वाले खासकर दादी और उस के पेरैंट्स बेहद अच्छे लगे. अपनी जिंदगी की बेहतरीन दोपहरी उन के साथ बिता वह अपने घर लौटी.
अभिजीत भाविषा को उस के घर ड्रौप करने आया और उस के मातापिता से मिला. वहीं उस ने उन सब को बताया कि उस के ऊपर खुद उस के अपने परिवार और दादी, चाचा, चाची और उन के 3 बच्चों की जिम्मेदारी है. उस के चाचा एक दुर्घटना के बाद से डिप्रैशन में चले गए थे और वे कुछ काम नहीं करते.
अभिजीत के जाने के बाद भाविषा ने अपने पेरैंट्स को उस के विवाह प्रस्ताव के बारे में बताया. अभिजीत के छोटे से घर और उस के घर वालों के सहृदय और मृदु स्वभाव के बारे में बताया.
देर रात तक बहुत सोचविचारने के बाद भाविषा ने फैसला ले लिया कि वह अभिजीत से शादी करेगी. 5 बरसों के साथ में बहुत सोचने पर भी उसे उस की शख्सियत में ढूंढ़े से भी कोई कमी न दिखी.
भाविषा के मातापिता ने उसे समझने की कोशिश की कि अगर वह अभिजीत से शादी करती है तो उसे भी अभिजीत के साथ उस के पूरे घर की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी, इसलिए वह भावनाओं में न बहे और बहुत सोचविचार कर अभिजीत से शादी का निर्णय ले.
अभिजीत के घर वालों को इतने अपनेपन और प्यार से एक छत के नीचे रहते देख वह उन सब के सोने से खरे मीठे स्वभाव के प्रति आश्वस्त हो गई थी कि जिम्मेदारियों के बावजूद अभिजीत के साथ उस की जिंदगी खासी सुखद होगी.
सुबह औफिस में अभिजीत के कैबिन में जाने पर उस ने भाविषा से कहा, ‘‘मैडम, इस नाचीज को आप ने अधर में लटका रखा है. प्लीज, अपना फैसला सुनाने की जहमत करें.’’
‘‘अरे इतनी जल्दी क्या है जनाबे आली, थोड़ी प्रतीक्षा करें. फैसला भी आ जाएगा,’’
प्यार के मीठे जज्बे से लबालब अपनी आंखों
को शैतानी से गोलगोल घुमाते हुए भाविषा ने जवाब दिया.
‘‘अच्छाजी, तो यह बात है. मुझे मेरा जवाब मिल गया.’’
‘‘मेरे बिना कुछ बोले? हुजूर हम ने अच्छेअच्छों को ओवर कौन्फिडैंस से मात खाते हुए देखा है.’’
‘‘मैडम, इस नाचीज को लिफाफे से उस के मजमून की खबर लग जाती है.’’
‘‘अच्छाजी, इतना भरोसा?’’ भाविषा ने इस बार खिलखिलाते हुए पूछा.
‘‘जी… जी… आप की इन झील सी गहरी आंखों ने आप का राज उगल दिया,’’ कहते हुए अभिजीत ने भाविषा के हाथ पर अपना हाथ रख दिया. दोनों प्रेमियों के चेहरे शिद्दत की मुहब्बत की रोशनी से दमक उठे.