सिंगल मदर ऐसे बढ़ाएं दायरा

सफर में अगर कुछ दोस्त, संगीसाथी मिल जाएं तो रास्ता गुजरते समय नहीं लगता. वहीं अगर कुछ देर भी अकेला चलना पड़ जाए तो मन बोझिल हो जाता है. इसलिए आज के दौर में अपना सामाजिक दायरा बढ़ाना बहुत जरूरी है. लोगों से मिलेंजुलें और हर वक्त अकेले रहने के बजाय थोड़ा सोशल बनें. इस से आप खुद भी खुश रहेंगी और परिवार को भी खुश रख पाएंगी.

कितना हो सामाजिक दायरा

1. सोशल नैटवर्किंग में एक्टिव हों

सामाजिक दायरा बढ़ाने के लिए सोशल नैटवर्किंग एक अच्छा तरीका है. यह आप के लिए आसान भी होगा और इस से आप एकसाथ बहुत लोगों से ग्रुप में जुड़ कर बातचीत कर सकती हैं. यह एकदूसरे के बर्थडे आदि पर विश करने या फिर अन्य उत्सवों पर बधाई संदेश देने का अच्छा तरीका है, साथ ही अगर कहीं घूमने जाएं तो फोटो आदि अपलोड करने पर भी पता चलता है कि किस की लाइफ में क्या हो रहा है और बिना मिले ही सब एकदूसरे से टच में रहते हैं.

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2. लोगों के साथ बातचीत है जरूरी

वैज्ञानिक अध्ययनों के मुताबिक, अगर आप रोज 10 मिनट किसी के साथ बात करते हैं, तो इस से आप संवाद की कला में माहिर हो जाते हैं साथ ही याद्दाश्त तेज होती है और बुद्धिमत्ता भी बढ़ने लगती है. इसलिए याद्दाश्त और बुद्धिमत्ता को सक्रिय बनाए रखने के लिए लोगों के साथ बातचीत जरूरी है.

3. बनाएं दोस्त

अगर पुराने फ्रैंड्स से आप टच में नहीं हैं, तो एक बार उन से संपर्क अवश्य करें और उन से मिलने और उन के साथ घूमने का प्रोग्राम बनाएं. उन्हें अपने घर बुलाएं. इस से दोबारा आनाजाना शुरू होगा. इस के अलावा आप चाहें तो कुछ नए दोस्त भी बनाएं अपनी ही सोसाइटी में. अपने बच्चे के दोस्तों की मम्मियों से भी दोस्ती की जा सकती है. इस से कोई प्रौब्लम होने पर मिल कर समाधान निकाला जा सकता है.

4. नए लोगों से मिलें

अगर आप के फ्रैंड्स या रिश्तेदार कम हैं तो उन्हें अपने रिश्तेदारों को लाने के लिए कहें जैसेकि अपनी ननद की ननद को बुलाएं. इस से एक तो आप की ननद खुश होगी दूसरे आप को एक और नई सहेली भी मिल जाएगी. इसी तरह अपने फ्रैंड्स के फ्रैंड्स से मिलना भी नए लोगों से मिलने का अच्छा तरीका है. आप जिस भी नए इंसान से मिलें उसे अपने इस सामाजिक दायरे की एक शुरुआती कड़ी समझने की कोशिश करें.

अगर फ्रैंड के यहां मेहमान आएं हैं तो अपनी पार्टी में उन्हें भी लाने के लिए कहें या फिर अपने फ्रैंड्स के फ्रैंड्स को भी आने के लिए कहें. इन में से कुछ को तो आप जानती ही होंगी. इस तरह आप भी अपने फ्रैंड्स के साथ उन के फ्रैंड्स से मिल सकती हैं. ऐसा करने पर आप को कितने ही अच्छे लोगों से मिलने का अवसर मिल सकता है और कौन जानें इन्हीं में कुछ आप की बैस्टीज बन जाएं.

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5. एंटीसोशल नहीं बनें सोशल

अपने औफिस के कामकाज को अपनी सोशल लाइफ से अलग न रखें और सिर्फ वीकैंड पर परिवार के साथ ऐंजौय करने को सोशल होना नहीं कहते, बल्कि अपने औफिस में भी सब से अच्छी तरह मुसकरा कर मिलें. अगर आप एक दिन औफिस न आएं तो लोग आप को मिस करें, आप का हालचाल पूछें, आप का व्यवहार ऐसा होना चाहिए.

एक मिलनसार महिला के रूप में अपनी पहचान बनाएं. काम के समय काम और लंच ब्रेक या फिर जब भी मौका मिले बातचीत करने से न हिचकिचाएं. किसी भी सामाजिक कार्यक्रम में जाने से बचें नहीं वरना लोग आप पर ऐंटीसोशल होने का तमगा लगा देंगे. अपने औफिस के कार्यक्रमों आदि में बढ़चढ़ कर हिस्सा लें और उन्हें पूरी तरह ऐंजौय करें.

6. रिश्तों को दें समय

माना कि आज के दौर में सभी के पास समय की कमी होती है, लेकिन जो लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए समय नहीं निकालते, एक वक्त के बाद वे खुद बहुत अकेले हो जाते हैं. इसलिए रिश्तेदारों से मिलने का समय निकालिए. उन का वक्तवक्त पर हालचाल पूछते रहें. इस से उन्हें भी लगेगा कि वे आप के लिए कितने खास हैं.

7. तनाव पर विजय पाने के लिए

अगर आप सामाजिक रूप से सक्रिय रहते हैं, तो मानसिक रूप से भी स्वस्थ और सक्रिय रहते हैं. हालिया शोधों में साबित हो चुका है कि सामाजिक संबंध आप को अच्छा स्वास्थ्य और लंबी आयु देता है. लोगों के साथ मिलतेजुलते रहने, उन के साथ अपने सुखदुख बांटने से मानसिक स्वास्थ्य बढि़या रहता है. दरअसल, संवाद की कला आप को लोगों से जोड़ने का काम करती है. आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी के चलते लोगों का सामाजिक दायरा सिकुड़ता जा रहा है. अपनों से बात करने का वक्त नहीं होता. अपनी परेशानियां किसी के साथ बांटना नहीं चाहते, जिस के चलते अवसाद, ब्लड प्रैशर, तनाव और सिरदर्द जैसी समस्याओं से गुजरना पड़ता है.

कैसा हो सामाजिक दायरा

1. शिकायतों के लिए जगह न हो: अगर आप चाहती हैं कि आप का सामाजिक दायरा बड़ा और अच्छा हो तो आप शिकायतें ही न करती रहें. दोस्त गम बांटने में मदद करते हैं पर इस का मतलब यह नहीं होता कि आप पूरा समय रोती ही रहें. अगर आप शिकायतें ही करती रहेंगी तो लोग आप से बचना शुरू कर देंगे.

2. निमंत्रण को स्वीकार करें: यदि लोग आप को मिलने के लिए बुलाते हैं तो आप को उन के बुलावे को यों ही छोड़ने के बजाय उसे स्वीकार करना चाहिए. ऐसा बिलकुल भी न सोचें कि आप उन के साथ सिर्फ इसलिए वक्त नहीं बिताना चाह रही हैं, क्योंकि आप की उन में कोई रुचि नहीं है. एक बार आप उन्हें जौइन कर के तो देखिए. आप का मन भी उन में लगने लगेगा.

वैसे भी अगर आप ऐसे निमंत्रण स्वीकार कर कार्यक्रमों में जाएंगी तो आप को कितने ही अच्छे और नए लोग भी वहां मिल जाएंगे. किसी के निमंत्रण को यों अस्वीकार करना अच्छी बात नहीं है. इस से लोगों के मन में आप के लिए नैगेटिव थौट बन जाएगा. इसलिए हमेशा मना न करें. कभी जाएं कभी मना कर सकती हैं.

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अपने जैसे विचार रखने वालों के क्लब में शामिल हों. यदि आप की कोई हौबी या फिर कोई विशेष दिलचस्पी है तो अपने आसपास मौजूद एक ऐसे क्लब में शामिल हो जाएं जो इन्हीं तरह की रुचियों के लिए बना है. अपने आसपास मौजूद किसी स्पोर्ट्स लीग, बुक क्लब, लाइब्रेरी, हाइकिंग गु्रप या फिर साइक्लिंग टीम से जुड़ने के बारे में सोचें. यदि आप की ऐसी कोई हौबी नहीं है, तो फिर एक नई हौबी तलाशें, लेकिन ऐसी हौबी ही चुनें, जिसे आप लोगों के साथ ग्रुप में रह कर पूरी कर पाएं.

3. सोशल वर्क को भी प्रमुखता दें

आप किसी एनजीओ से जुड़ सकती हैं जहां आप चाहें तो हफ्ते में 1 दिन भी जा सकती हैं. अगर एनजीओ से जुड़ने का समय नहीं है तो गरीब बच्चों को घर बुला कर पढ़ा सकती हैं या फिर अगर आप घर से कोई काम करती हैं जैसे सिलाई, ट्यूशन पढ़ाना आदि तो कुछ बच्चों को फ्री में सिखा और पढ़ा सकती हैं. इस से आप के मन को जो संतोष मिलेगा वह पैसे ले कर नहीं मिलेगा. जब भी जरूरत हो किसी के काम आएं. इस से लोग आप को जानेंगे और वे भी आप की मदद के लिए हमेशा तैयार मिलेंगे.

4. सामाजिक दायरे की लिमिट

सम्माननीय महिलाएं गु्रप से जुड़ी हों: जिस भी ग्रुप को जौइन करें पहले देख लें कि उस में जो महिलाएं जुड़ी हैं वे सब ठीक होनी चाहिए यानी सम्माननीय महिलाएं उस में शामिल हों, क्योंकि अब उस गु्रप से आप भी जुड़ रही हैं तो आप का नाम भी उन के साथ अपनेआप जुड़ जाएगा.

बच्चों की अनदेखी न करें: अपना सोशल सर्कल बनाएं अवश्य, लेकिन इस की भी एक लिमिट होनी चाहिए. यह नहीं कि बच्चे घर में भूखे बैठे हैं और आप अपने सर्कल के साथ बिजी हैं, उन्हें पढ़ानेलिखाने का टाइम भी आप किसी और को दे दें. इसलिए पहले अपने घर की देखभाल करें और फिर अन्य किसी चीज में समय लगाएं.

5. परेशानी में साथ दें

किसी भी एक्टिविटी से जुड़ना मात्र टाइम पास करने का तरीका नहीं होना चाहिए, बल्कि इस में सभी के सुखदुख भी जुड़ जाते हैं. इसलिए किसी की परेशानी में साथ देने की जब बात आए तो पीछे न रहें.

6. जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाएं

वहां जुड़ी महिलाओं से अपनी तुलना कर कुछ न करें. यह न सोचें कि आप उन के जैसे ब्रैंडेड कपड़े क्यों नहीं पहनतीं या फिर आप का स्टेटस उन के जैसा क्यों नहीं है. सब का रहनसहन अलगअलग होता है, इसलिए जितनी चादर हो आप की उतने ही पैर फैलाएं.

7. गलत आदतें न पालें

अगर आप का मिलनाजुलना हाई सोसाइटी के उन लोगों से हो रहा हो जो हाई स्टेटस के नाम पर सिगरेट, शराब आदि को प्रमुखता देते हों तो आप जान लें कि आप गलत ट्रैक पर हैं. आप कितना भी इस सब से बचने का प्रयास करें, लेकिन आप को पता भी नहीं चलेगा कि कब आप इस में फंस गईं. इसलिए ऐसे लोगों का साथ छोड़ देने में ही समझदारी है. ऐसा सामाजिक दायरा किसी काम का नहीं है, जिस में आप गलत रास्ते पर चल पड़ें.

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सभी को एक सूत्र में पिरोएं. अपने सोशल वर्क और सोशल सर्कल में इतना भी न उलझ जाएं कि घरपरिवार और सगे नातेरिश्तेदारों के लिए समय ही न बचे. अगर आप उन की उपेक्षा करेंगी तो दूसरे लोगों से संबंध बनाने का कोई फायदा नहीं है. इसलिए सभी को एक सूत्र में पिरो कर समानता से चलें ताकि परिवार भी खुश रहे और आप भी.

अगर आप आज सिंगल हैं, तो यह आप का अपना फैसला और अपनी मजबूरी थी. इस से बाकी लोगों को कोई मतलब नहीं है. इसलिए लोगों को बारबार यह कह कर कि मैं तो अकेली हूं, ब्लैकमेल न करें, क्योंकि ऐसा करना ज्यादा दिन नहीं चल पाएगा. लोग आप को समझ जाएंगे और आप से दूरी बना लेंगे. कभीकभार दुख शेयर करना ठीक रहता है, लेकिन हर वक्त यह अच्छा नहीं लगता. इस से न आप खुद ऐंजौय कर पाएंगी और न ही दूसरों को करने देंगी.

डिज़ाइनर मनीष मल्होत्रा ने रैम्प पर ‘रूहानियत’ का बिखेरा जलवा

जब भी फैशन की बात होती है तो मन में सबसे पहले मनीष मल्होत्रा का नाम आता है. बचपन से कुछ अलग फैशन के क्षेत्र में करने की इच्छा रखने वाले मनीष ने पारंपरिक रंगों, क्राफ्टमेनशिप, टेक्सचर, कढ़ाई और ग्लैमरस पहनावे के साथ अपनी एक अलग छवि बनाई है. वे केवल परिधान के लिए ही नहीं, बल्कि हर व्यक्ति को एक अलग पहचान देने के लिए जाने जाते है. बॉलीवुड की सारी हीरोइनें उसकी पोशाक पहनने के लिए लालायित रहती है. अभिनेत्री जूही चावला से लेकर श्रीदेवी, करीना कपूर, करिश्मा कपूर आदि सभी ने मनीष की पोशाक की कारीगरी को सराहा है. कॉलेज में पढाई करते हुए मनीष ने कई छोटे-छोटे मॉडल एसाइनमेंट किये. पढाई पूरी करने के बाद वे इस क्षेत्र में उतरे और एक के बाद एक फैशन शो करते गए. पहला ब्रेक उन्हें डेविड धवन ने फिल्म ‘स्वर्ग’ में जूही चावला के परिधान के लिए दिया था. इसके बाद उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. उनके इस काम में उनकी माँ ने हमेशा उन्हें प्रेरित किया. साल 2005 में उन्होंने अपनी ब्रांड लेवल मनीष मल्होत्रा को लॉन्च किया, जिसकी अभी 15 साल पूरे हुए है. 

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लक्मे फैशन वीक 2020 के अवसर पर उन्होंने शबाना आज़मी के पिता द्वारा स्थापित एनजीओ मिजवां फाउंडेशन के साथ मिलकर ‘रूहानियत’ के अंतर्गत क्लासिक और परम्परिक फैशन रैम्प पर उतारें. इसमें शो स्टॉपर कार्तिक आर्यन रहे. मनीष को इसकी प्रेरणा मुग़ल काल की कारीगरी से मिला. जिसके लिए उन्होंने जयपुर, उदयपुर, लखनऊ, अवध आदि स्थानों पर गए और वहां के कारीगरों से सारे वस्त्र तैयार करवाएं है. 

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पहली बार वर्चुअल शोकेस के बारें मनीष का कहना है कि ये मेरे लिए पहली बार अवश्य है, पर इसमें और बाकी रैंप शो की तैयारी में कोई अंतर नहीं है. ये अनुभव नया है और ख़ुशी इस बात से है कि इसके द्वारा भी हम अपने क्लाइंट तक और सुदूर प्रान्त में पहुंचने में समर्थ है. मैंने इसका काम पेंडेमिक से पहले शुरू किया था, लेकिन सभी काम समय पर हुआ है, ये मेरे लिए अच्छी बात है. अभी ग्राहक चूजी हो चुके है और वैल्यू फॉर मनी को खोजते है, इसलिए सस्टेनेबल फैशन का बाज़ार अभी जोरों पर है और सभी डिज़ाइनर्स उसपर अधिक काम कर रहे है. रूहानियत शो के द्वारा मैंने सारे कारीगरों और क्राफ्ट्समेन को एक ट्रिब्यूट दिया है, क्योंकि इन लोगों ने इस लुप्तप्राय कला को जीवित रखा है, जिसे मैंने लोगों तक पहुँचाया है. मेरा ये शो वाईब्रेंट ऑफ़ पंजाब और नजाकत ऑफ़ अवध का सम्मिलित रूप है. मेरी जिंदगी में हमेशा दो ही चीजें काफी महत्व रखती है, फैशन और फिल्म, जो मुझे एक ख़ुशी का एहसास करवाती है.  

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इसके आगे उनका कहना है कि मैं गांव मिजवां से पिछले 10 सालों से जुड़ा हूँ और मुझे ख़ुशी होती है कि इस गांव के लोगों ने धीरे-धीरे तरक्की की है और ये लोग मेरे लेबल के साथ अच्छी तरह से जुड़ चुके है और वे मेरे पसंद को समझने लगे है. डिज़ाइनर तभी सफल होता है, जब उसके बनाये डिजाईन को कारीगर अच्छी तरह से कपड़ों पर उतार सकें. 

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ऊन का इस्तेमाल करने से पहले जान लें ये बातें

अक्सर स्वैटर बुनने के बाद ऊन के कई छोटे छोटे गोले बच जाते हैं. इन का बढ़िया इस्तेमाल किया जा सकता है. आप अपनी कल्पना से घर में उपयोग होने वाली कई चीजें बना सकती हैं, जैसे- कुशनकवर, टेबल मैट्स, आसन, पायदान या कोई और सुंदर सा शोपीस. अगर आप क्रोशिया या कढ़ाई भी जानती हैं तो बचे ऊन के 1-1 धागे का प्रयोग कर सकती हैं. बचे हुए ऊन के सही उपयोग के लिए आप को कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना होगा.

1. ऊन का रखरखाव है जरूरी

सबसे पहले ऊन का ठीक तरह से रखरखाव बेहद जरूरी है. ऊन के गोलों को अलगअलग पोलिथीन के छोटे-छोटे थैलों में रखें, वरना ऊन के धागे आपस में उलझ कर एकदूसरे में मिल जाएंगे और आप को सुलझाने में काफी कठिनाई हो सकती है. एक जैसी ऊन या एक जैसी वैराइटी के ऊन एक ही जगह संभाल कर रखें.

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2. एब्रायडरी का रखें ध्यान

एम्ब्रायड्री के लिए अगर आप कुछ बनाना चाहती हैं तो 2 प्लाई निटिंग यार्न सब से बेहतर रहता है. इस से आप ऊन को मोटी सूई में पिरो कर आसानी से इस्तेमाल कर सकती हैं. मैटी या सम बुनावट वाला कपड़ा लेकर चौकोर या अपनी मनपसंद शेप में काट लें. कपड़ा हलके कलर का हो तो ज्यादा अच्छा रहता है, क्योंकि उस पर सभी रंग सुंदर दिखेंगे. सुंदर फूलपत्ती या कोई आसान डिजाइन कपड़े पर ट्रेस करें. कांथा वर्क से नमूना काढ़ें. ऊन की एम्ब्रायड्री में कांथा, लेजीडेजी या किसी भी सरल टांके का ही इस्तेमाल करें, क्योंकि ऊन में थोड़े रोएं जरूर होते हैं, जो कपड़े में फंस सकते हैं.

3. ऊन का सही करें चुनाव 

फोर प्लाई ऊन का चुनाव क्रोशिया या सलाइयों के प्रयोग के लिए करें. क्रोशिए का काम काफी आकर्षक होता है और जल्दी भी हो जाता है. इसलिए घरों में अकसर गोलाकार मैट्स देखने को मिलते हैं. इन में सब से ज्यादा आसानी यह है कि इन्हें किसी भी कलर को बिना गांठ लगाए बुना जा सकता है. और बनाई गई वस्तु का प्रयोग दोनों तरफ से किया जा सकता है. लंबी पट्टियां बना कर बाद में उन्हें जोड़ कर नन्हेमुन्ने का बिछावन, कंबल या गरम चादर बनाई जा सकती है.

4. बुनावट का रखें ध्यान

ज्यादा मोटे या फर वाले ऊन का प्रयोग मोटी सलाइयों पर ही करें. ऐसी वैरायटी के ऊन को हल्के हाथ से बुनें यानी बुनावट में ज्यादा टाइटनैस नहीं होनी चाहिए वरना धुलने के बाद ऊन जुड़ सकता है, जिस से बनाई गई वस्तु एकदम भद्दी दिखेगी और आप की मेहनत बेकार जाएगी.

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5. ऊन के साथ दिखाएं क्रिएटिविटी

अपनी कल्पनाशक्ति के आधार पर बचे ऊन से और भी सुंदर-सुंदर चीजें बना सकती हैं. छोटे बच्चे की कैप, दस्ताने, रंगबिरंगा इनरवियर, पिलोकवर आदि. इस के अलावा ऊन के बहुत छोटे धागों का प्रयोग फ्लावरपाट कवर, मोबाइल कवर, गिफ्ट बौक्स, पैंसिल स्टैंड आदि बहुत सी चीजों में बुन कर या किसी भी ग्लू, फेविकोल आदि की मदद से चिपका कर भी किया जा सकता है. इस तरह आप का क्रिएटिव माइंड बहुत से सुंदर और अनोखे आविष्कार खुद कर सकता है और आप पा सकती हैं सब की ढेर सारी तारीफ.

कोविड-19 ने बढ़ाया आयुष का महत्त्व- विमल शुक्ला

विमल शुक्ला

एमडी, मेघदूत, ग्रामोद्योग सेवा संस्थान, लखनऊ.

किसी भी कंपनी की प्रगति उस के संस्थापकों की सोच, मेहनत और ईमानदारी पर निर्भर करती है. हमारे देश की बहुत पुरानी कहावत है कि जैसा अन्न आप खाते हो वैसी आप की सोच हो जाती है. ‘मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान’ के संस्थापक विजय शंकर शुक्ला मूल रूप से हरदोई जिले के रहने वाले थे. उन के पिता जटाशंकर सांस्कृत्यायन कवि और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने पर उन को जेल जाना पड़ा. अपने परिवार को अंग्रेजों के अत्याचारों से बचाने के लिए उन्होंने लखनऊ रहने भेज दिया. उन के बेटे विजय शुक्ला की परवरिश लखनऊ में हुई. यहीं पलेबढ़े और जीवनयापन शुरू किया. विजय शंकर शुक्ला पर महात्मा गांधी की स्वदेशी नीति का गहरा प्रभाव पड़ा.

विजय शंकर शुक्ला ने त्रिफला प्रयोगशाला शुरू की, जिस में त्रिफला से जुड़े उत्पाद तैयार होने लगे. इस के 2 लाभ थे- गांव से जुड़े लोगों को रोजगार मिलने लगा और स्वदेशी को बढ़ावा मिल रहा था. 1985 में खादी ग्रामोद्योग विभाग ने उन के इस काम को देखा और इस से काफी प्रभावित हुआ. खादी ग्रामोद्योग की पहल पर विजय शंकर शुक्ला और उन के बेटे विमल शुक्ला तथा अन्य ने मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान की स्थापना की. 7 लाख के लोन से इस कंपनी का काम शुरू हुआ. आज मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान के 240 से अधिक उत्पाद हैं. 1 लाख 10 हजार के टर्नओवर से जो काम आगे बढ़ा तो करोड़ों के कारोबार तक पहुंच गया.

मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान देश की जानीपहचानी कंपनी है, जो पूरी तरह से स्वदेशी है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पास ही बक्शी का तालाब इलाके और मध्य प्रदेश में कंपनी की 2 फैक्टरियां हैं, जिन में निर्मित उत्पाद पूरे देश में उपलब्ध है. कोविड-19 के दौर में जब आयुषकुल यानी जड़ीबूटी और आयुर्वेदिक उत्पादों का महत्त्व बढ़ा तो मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान के उत्पादों ने लोगों को अपनी इम्युनिटी बढ़ाने में मदद की. आयुष क्वाथ (काढ़ा), इम्यून अप सिरप व टैबलेट, गिलोय बटी और सैनिटाइजर की डिमांड अस्पतालों में बढ़ गई. मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान ने सेवाभाव के साथ किफायती दाम पर यह सामग्री देश को उपलब्ध कराई, ताकि लोग कोविड-19 के संक्रमण से लड़ने के लिए खुद को तैयार कर सकें.

मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान की नीतियों, आयुष के बढ़ते महत्त्व और कारोबार की हालत पर संस्थान के एमडी विमल शुक्ला से लंबी बातचीत हुई. पेश हैं, उस के कुछ खास अंश:

मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान ने जनता के बीच अपनी जो जगह बनाई उस के पीछे क्या मुख्य बातें हैं?

सब से बड़ी बात हमारी कंपनी पूरी तरह से स्वदेशी है. हमारा उद्देश्य केवल कारोबार करना नहीं है. हम कारोबार के साथसाथ गरीब और जरूरतमंद लोगों को काम भी दे रहे हैं. हमारे सभी उत्पाद पूरी तरह से स्वदेशी और हमारी कंपनी में बने हैं. हमारी पैकेजिंग तक अपनी है. किसी दूसरी कंपनी से बने सामान का प्रयोग हम नहीं करते. हमारे उत्पादों में सामान्य घरेलू प्रयोग, हर्बल प्रसाधन और डाक्टरों की राय से लिए जाने वाले हर तरह के उत्पाद हैं. ये सभी आयुष की देखरेख में दिए गए लाइसैंस के निर्देशों से निर्मित हैं. मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान का अपना फार्महाउस है,

जहां पर सैंपल जड़ीबूटियां तैयार होती  हैं. कुशल देखरेख में इन को तैयार किया जाता है.

बैंक लोन को ले कर कंपनी परेशान रहती है, इस की क्या वजह होती है?

कुछ कंपनियों की सोच यह होती है कि वे रातोंरात प्रगति कर लें. इस के लिए वे बैंक लोन लेती हैं. कंपनियां बैंक लोन अधिक ले लेती हैं. उन के अनुमान के अनुरूप लाभ नहीं होता है. तब नुकसान होने लगता है. एक बार अगर बैंक का ब्याज रुक जाता है तो हालात को संभालना मुश्किल हो जाता है. मेरा अपना अनुभव है कि बैंक लोन कम से कम लिया जाए. हम लोगों ने केवल एक बार लोन लिया. उस के बाद जो बचत होती थी उसी से आगे बढ़ते थे. आज हम परेशान नहीं हैं, क्योंकि हमारे ऊपर कोई बैंक लोन नहीं है. अगर बैंक लोन होता तो हमें भी परेशान होना पड़ता. हमारा मूलमंत्र है कि धीरेधीरे और अपनी ताकत से आगे बढ़ा जाए. कहावत भी है कि उधार का खाना पुआल का तापना बराबर होता है.

कोविड-19 के दौरान आप सब से तेजी से सैनिटाइजर लोगों तक पहुंचाने में कैसे सफल हुए?

सैनिटाइजर बनाने का काम हमारे यहां 2015 से हो रहा है. ऐसे में हमारे पास पूरा सिस्टम था. यही नहीं हम पैकिंग के लिए बोतलें भी बनाते हैं. जब लौकडाउन की बात होने लगी और सैनिटाइजर का प्रयोग बढ़ने लगा तो हम ने अपनी फैक्टरी में उसे अधिक मात्रा में बनाने का काम शुरू किया. उत्तर प्रदेश सरकार ने भी हमें पूरा सहयोग किया. हमें बड़ी मात्रा में सैनिटाइजर बनाने के लिए अल्कोहल का लाइसैंस 3 दिन में उपलब्ध कराया. हमारे पास पूरे देश में वितरक थे. वहां से यह सैनेटाइजर पूरे देश तक पहुंच सका. इस के साथ ही हमारे खास उत्पाद सैनिटाइजर, आयुष काढ़ा, गिलौय और कई अन्य उत्पाद पोस्टऔफिस की 17 हजार शाखाओं के जरीए जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने लगे. इस से हमारे यहां काम करने वाले लोगों को काम मिलता रहा और जो लोग इस से जुड़े रहे उन का भी रोजगार चलता रहा.

कोविड-19 के दौर में उद्योगधंधों को सब से अधिक नुकसान हुआ. इस से बचने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए?

सरकार को चाहिए कि उद्योगधंधों को बचाने के लिए उन की मदद करे. मदद केवल उद्योगधंधे चलाने वालों की ही नहीं वहां काम करने वालों को दी जाए. उद्योगधंधों में काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन का एक हिस्सा सरकार सीधे कर्मचारी के खाते में दे. इस से जनता की सीधे मदद हो सकेगी. इस के अलावा उद्योगधंधों को टैक्स में छूट दी जाए ताकि वे इस कठिन दौर में खुद को बचाने के साथसाथ अपने कर्मचारियों को भी बचा सकें. कोविड के दौर में केवल आयुष से जुड़े उत्पाद ही बिक रहे हैं. ऐसे में दूसरे उद्योगधंधों को बचाने के लिए सरकार को अधिक प्रयास करना चाहिए.

 

साथी: रजत को छवि से झुंझलाहट क्यों होने लगी थी?

Serial Story: साथी (भाग-3)

पतिपत्नी के बीच के उस महीन से अदृश्य अधिकारसूत्र को उस ने कभी पकड़ा ही नहीं था. अब अकसर ही यही होने लगा. रजत किसी न किसी कारण से देर से घर आता. छुट्टी वाले दिन भी निकल जाता. कभीकभी शाम को भी निकल जाता और खाना खा कर घर पहुंचता. छवि के पूछने पर कह देता कि रीतिका के साथ था.

छवि कसमसा जाती. कुछ कह नहीं पाती. खुद की तुलना रीतिका से करने लगती. कब, कहां, किस मोड़ पर छोड़ दिया उस ने पति का साथ… वह आगे निकल गया और वह वहीं पर खड़ी रह गई.

वापस आ कर रजत मुंह फेर कर सो जाता और वह तकिए में मुंह गड़ाए आंसू बहाती रहती. ऐसा तो कभी नहीं हुआ उस के साथ. उस ने इस नजर से कभी सोचा ही नहीं रजत के लिए.

रजत को खो देने का डर कभी पैदा ही नहीं हुआ, मन में तो आंसू आने का सवाल ही पैदा नहीं होता. घर, बच्चे, सासससुर की सेवा, घर का काम और पति की देखभाल, जीवन यहीं तक सीमित कर लिया था उस ने. पति इस के अलावा भी कुछ चाहता है इस तरफ तो उस का कभी ध्यान ही नहीं गया.

छवि छटपटा जाती. दिल करता झंझोड़ कर पूछे रजत से ‘क्यों कर रहे हो ऐसा… रीतिका क्या लगती है तुम्हारी…’ पर पता नहीं क्यों कारण जैसे उस की समझ में आ रहा था. रीतिका के व्यक्तित्व के सामने वह अपनेआप को बौना महसूस कर रही थी.

एक दिन रविवार को छवि तैयार हो कर घर से निकल गई. रीतिका खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. तभी घंटी बज उठी. रीतिका ने दरवाजा खोला तो छवि को खड़ा देख कर चौंक गई. पूछा, ‘‘छवि, तुम यहां? इस समय? रजत कहां है?’’

‘‘वे घर पर नहीं थे… मैं तुम से मिलने आई हूं रीतिका,’’ छवि सहमी हुई सी बोली.

छवि के बोलने के अंदाज पर रीतिका को उस पर दया सी आ गई, ‘‘हांहां, छवि अंदर आओ न.’’ वह उस का हाथ पकड़ कर खींचती हुई अंदर ले आई, ‘‘बैठो.’’

छवि थोड़ी देर चुप रही. कभी उस का चेहरा देखती, तो कभी नीचे देखने लगती जैसे तोल रही हो कि क्या बोले और कैसे बोले.

‘‘छवि घबराओ मत खुल कर बोलो क्या काम है मुझ से?’’

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‘‘वह… आजकल रजत कुछ बदल से गए हैं…’’ बोलतेबोलते वह हकला सी गई, ‘‘जब से तुम आई हो…’’

सुन कर रीतिका जोर से हंस पड़ी.

‘‘अकसर घर से गायब रहने लगे हैं… तुम्हारे पास आ जाते हैं…’’ कहतेकहते उस की आंखों में आंसू आ गए. ‘‘तुम तो शादीशुदा हो रीतिका… मुझ से मेरा पति मत छीनो…’’

रीतिका हंसतेहंसते चुप हो गई. थोड़ी देर चुप रह कर फिर बोली, ‘‘तुम्हारा पति मैं ने नहीं छीना छवि… तुम ने खुद उसे अपने से दूर कर दिया है.’’

‘‘मैं ने कैसे कर दिया है? वे आजकल तुम्हारे साथ रहते हैं… तुम्हारे साथ पिक्चर जाना, तुम्हें शौपिंग कराना, तुम्हारे साथ घूमना… न बच्चों पर ध्यान देते हैं न घर पर…’’

‘‘छवि, सब से पहले तो इस बात का विश्वास करो कि जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं है हमारे बीच… ऐसा कुछ होता, तो बहुत पहले हो जाता… तब तुम रजत की जिंदगी में न होती… हम दोनों के बीच दोस्ती से अधिक कुछ नहीं… वह कभीकभी मेरी मदद के लिए जरूर आता है पर हमेशा मेरे साथ नहीं होता.’’

‘‘फिर कहां जाते हैं?’’

‘‘अब यह तो रजत ही जाने कि वह कहां जाता है, लेकिन क्यों जाता है, यह मैं समझ सकती हूं…’’

‘‘क्यों जाते हैं?’’ छवि अचंभित सी रीतिका को देखते हुए बोली.

‘‘छवि, शिक्षा का मतलब डिग्री लेना ही नहीं होता, नौकरी करना ही नहीं होता, एक गृहिणी होते हुए भी तुम ने ऐसा कुछ किया जो सिर्फ खुद के लिए किया हो… अब वह जमाना नहीं रहा छवि, जब कहते थे कि पति के दिल पर राज करना है तो पेट से रास्ता बनाओ… मतलब कि अच्छा खाना बनाओ… अब सिर्फ खाना बनाना ही काफी नहीं है…

‘‘अच्छा खाना बनाना आए या न आए पर पति के दिल को समझना जरूर आना चाहिए… अब एक गृहिणी की प्राथमिकताएं भी बहुत बदल गई हैं… क्यों नहीं तुम ने खुद को बदला समय के साथ… कभी रजत की बगल में खड़े हो कर देखा है खुद को…

रजत एक खूबसूरत, उच्चशिक्षित व सफल पुरुष है… और तुम खुद कहां हो… न तुम ने अपनी शिक्षा बढ़ाई, न तुम ने अपने रखरखाव पर ध्यान दिया. न पहनावे पर, न अपना सामान्य ज्ञान बढ़ाने पर… तुम्हारा उच्चशिक्षित पति तुम्हारे साथ आखिर बात भी करे तो किस टौपिक पर…वह समय अब नहीं रहा छवि जब उच्चशिक्षित पतियों की पत्नियां अनपढ़ भी हुआ करती थीं.’’

रीतिका थोड़ी देर चुप रह कर फिर बोली, ‘‘नौकरी करना ही जरूरी नहीं है… एक शिक्षित, स्मार्ट, सामान्य ज्ञान से भरपूर, अंदरबाहर के काम संभालने वाली गृहिणी भी पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी होने की ताकत रखती है… पर तुम ने किचन से बाहर निकल कर खुद के बारे में कभी कुछ सोचा हो तब तो…

‘‘क्या रजत का दिल नहीं करता होगा कि उस के दोस्तों की बीवियों की तरह उस की पत्नी भी स्मार्ट व शिक्षित दिखे, इतना वजन बढ़ा लिया है तुम ने… इस बेडौल शरीर को ढोना तुम्हें क्या उच्छा लगता है? तुम अच्छी पत्नी तो बनी छवि पर अच्छी साथी न बन सकी अपने पति की… सोचो छवि, कई लड़कियों को ठुकरा कर रजत ने तुम्हें पसंद किया था. कहां खो गईर् वह छवि, जिसे वह दीवानों की तरह प्यार करता था?’’

रीतिका की बातें सुन कर छवि को याद आने लगा कि ऐसा कुछ

रजत भी कहता था. कई तरह से कई बातें समझाना चाहता था पर उस ने कभी ध्यान ही नहीं दिया. रजत की बातें कभी समझ में नहीं आईं पर रीतिका की बातें उस के कहने के अंदाज से समझ में आ रही थीं.

रीतिका उसे चुप देख कर फिर बोली, ‘‘छवि आज यह बात स्त्रियों पर ही नहीं पुरुषों पर भी समान रूप से लागू होती है… स्मार्ट और शिक्षित स्त्री भी अपने पति में यही सब गुण देखना पसंद करती है… बड़ी उम्र की महिलाएं भी आज अपने प्रति उदासीन नहीं हैं… वे अपने रखरखाव के प्रति सजग हैं… बेडौल पति तो उन्हें भी अच्छा नहीं लगता. फिर पुरुष की तो यह फितरत है.’’

‘‘तो मैं अब क्या करूं रीतिका?’’ छवि हताश सी बोली.

‘‘करना चाहोगी तो सबकुछ आसान लगेगा… पहले तो घर के पास वाला जिम जौइन कर लो… तरहतरह के पकवान बनाना थोड़ा कम करो… रोज का अखबार पढ़ो… टीवी पर समाचार सुनो… बाहर के हर कार्य के लिए बेटे और रजत पर निर्भर मत रहो, खुद करो… इन सब बातों से विश्वास बढ़ता है और विश्वास बढ़ने से व्यक्तित्व निखरता है और व्यक्तित्व निखरने से पति पर अधिकारभावना खुद आ जाएगी.’’

रीतिका की बात सुन कर छवि खुद में गुम हो गई. फिर खुद से एक वादा सा करते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ करना रीतिका… मैं ने तुम्हें गलत समझा… मैं आज ही से तुम्हारी बात पर अमल करूंगी. बस एक बात की उम्मीद कर सकती हूं तुम से?’’

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‘‘हां, क्यों नहीं.’’

‘‘तुम्हारीमेरी यह मुलाकात रजत को कभी पता न चले.’’

‘‘कभी पता नहीं चलेगी मुझ पर विश्वास करो. मैं कभी नहीं चाहूंगी कि किसी भी कारण से तुम दोनों के बीच दूरी आए… हमारी यह मुलाकात मेरे सीने में दफन हो गई. तुम बेफिक्र हो कर घर जाओ.’’

छवि घर आ गई. घर लौटते हुए जिम में बात करती आई. 4 महीने का पैकेज था. जिम चलाने वाले ने शर्तिया 15 किलोग्राम वजन घटाने का वादा किया था… उसे एक डाइट चार्ट भी दिया कि उसे सख्ती से इस का पालन करना होगा.

रजत से बिना कुछ बोले छवि अपने अभियान में जुट गई. सच है कोई कितना भी बदलना चाहे किसी को तब तक नहीं बदल सकता, जब तक कोई खुद न बदलना चाहे. अब छवि का नियम बन गया था रोज अखबार पढ़ना और टीवी पर समाचार सुनना. उस ने अखबार वाले से कई पत्रपत्रिकाएं भी लगा ली थीं.

घर की साफसफाई और पकवान बनने कुछ कम हो गए थे पर किसी के जीवन पर इस का कोई खास असर नहीं पड़ा. अलबत्ता छवि की जिंदगी बदलने लगी थी. अब वह अकसर किसी न किसी काम से घर से निकल जाती. इस से खुद को तरोताजा महसूस करती.

बाहर के काम खुद करने से उसे संतुष्टि महसूस होती, जिस से उस में आत्मविश्वास आना शुरू हो गया था. रजत उस में धीरेधीरे आने वाले परिवर्तन को देख रहा था, पर सोच रहा था कि थोड़े दिन की बात है, जो उस की बेरुखी की वजह से शायद छवि में आ गया हो. थोड़े दिनों में अपने फिर पुराने ढर्रे पर आ जाएगी.

लेकिन छवि अपनी उसी दिनचर्या पर कायम रही. 4-5 महीने होतेहोते छवि का वजन 15 किलोग्राम कम हो गया. बदन के उतारचढ़ाव की प्रखरता फिर अपनी मौजूदगी का एहसास कराने लगी. चेहरे की चरबी घट कर कसाव आने से चेहरा कांतिमय हो गया. बड़ीबड़ी झील सी आंखें, जो चरबी बढ़ने से छोटी हो गई थीं, फिर से अपनी गहराई नापने लगीं.

रजत देखता कि अकसर वह खाली समय में पत्रपत्रिकाएं पढ़ते हुए मिलती या फिर बच्चों से कंप्यूटर सीखने का प्रयास करती. वह छवि को फोन पर किसी से बात करते हुए सुनता तो उसे छवि के लहजे व बातचीत पर हैरानी होती. उस की बातचीत का अंदाज तक बदल चुका था.

एक दिन उस ने पार्लर जा कर अपने पूंछ जैसे बाल भी कटवा लिए. कंधों तक लहराते बालों में जब उस ने शीशे में अपना चेहरा देखा तो खुद को ही नहीं पहचान पाई. उस ने कटे बालों को रबड़बैंड से बांधा और घर आ गई.

दूसरे दिन उन्हें सपरिवार मामाजी के घर जाना था. बच्चे तैयार हो कर बाहर निकल गए थे. रजत भी तैयार हो कर बाहर निकला. कार बैक कर के खड़ी की और छवि के बाहर आने का इंतजार करने लगा. थोड़ी देर इंतजार करने के बाद छवि को देर करते देख वह उसे बुलाने अंदर चला गया.

‘‘कहां हो छवि… कितनी देर लगा रही हो… जल्दी करो, देर हो रही है,’’ कहता हुआ वह बैडरूम में चला गया. उस ने देखा चूड़ीदार सूट पहने एक सुंदर व स्मार्ट सी युवती अपने कंधों तक लहराते बालों पर कंघी फेर रही है.

‘‘छवि,’’ आवाज सुन कर छवि ने पलट कर देखा.

‘‘छवि यह तुम हो,’’ रजत उसे खुशी मिश्रित आश्चर्य से देख रहा था. उसे सामने देख कर छवि ऐसे शरमा रही थी जैसे कल ही शादी हुई हो.

रजत उस के करीब आ गया, ‘‘विश्वास नहीं हो रहा कि यह तुम हो… तुम्हें देख कर तो आज 17-18 साल पहले के दौर में पहुंच गया हूं… ‘‘कितनी सुंदर लग रही हो,’’ वह उस की झील सी गहरी आंखों में डुबकी लगाते हुए बोला.

‘‘चलो हटो… ऐसे ही बोल रहे हो… बहुत सताया आप ने मुझे.’’

‘‘सच कह रहा हूं छवि… प्यार तो मैं तुम्हें हमेशा ही करता था पर पतिपत्नी को एकदूसरे को प्यार करने के लिए, प्यार के माध्यम कभी कम नहीं होने देने चाहिए,’’ वह उसे बांहों में कसते हुए बोला, ‘‘आज तो दिल बहकने को कर रहा है.’’

‘‘मुझे माफ कर दो रजत… मैं ने आप की बातें समझने में बहुत देर कर दी.’’ॉ

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‘‘कोई बात नहीं… आखिर समझ तो गई, पर अब मेरा मामाजी के घर जाने का मूड नहीं है… बच्चों को भेज देते हैं…’’ रजत शरारत से उस के कान के पास मुंह ला कर बोला.

‘‘ठीक है,’’ रजत की बात समझ खिलखिलाती हुई छवि ने अपनी बांहें रजत के गले में डाल दीं.

Serial Story: साथी (भाग-2)

मगर छवि ने रजत का प्रस्ताव सिरे से नकार दिया. जब छवि अनारकली सूट जैसी शालीन ड्रैस पहनने को तैयार नहीं हुई तो जींसटौप क्या पहनेगी. पापा सही कहते थे, घर का रहनसहन, स्कूलिंग, शिक्षादीक्षा इन सब का असर इंसान की पर्सनैलिटी और विचारों पर पड़ता है. पत्नी को तरहतरह से सजानेसवारने का रजत का शौक धीरेधीरे दम तोड़ गया.

रजत नौकरी में ऊंचे पदों पर पहुंचता गया. बच्चे बड़े होते गए. मातापिता वृद्ध होते

गए और फिर एक दिन इस दुनिया से चले गए. छवि की जैसेजैसे उम्र बढ़नी शुरू हुई तो खुद से बेपरवाह उस का शरीर भी फैलना शुरू हो गया. चेहरे की रौनक जो उम्र की देन थी बिना देखभाल के बेजान होने लगी. लंबे लहराते बाल उम्र के साथ पतली पूंछ जैसे रह गए. वह उन्हें लपेट कर कस कर जूड़ा बना लेती, जो उस के मोटे चेहरे को और भी अनाकर्षक बना देता.

रजत कहता, ‘‘छवि मैं तुम में 20-22 साल की लड़की नहीं ढूंढ़ता, पर चाहता हूं कि तुम अपनी उम्र के अनुसार तो खुद को संवार कर रखा करो… 42 की उम्र ज्यादा नहीं होती है.’’

मगर छवि पर कोई असर नहीं पड़ता. धीरेधीरे रजत ने बोलना ही छोड़ दिया. वह खुद 46 की उम्र में अभी भी 36 से अधिक नहीं लगता था. अपने मोटापे, पहनावे और रहनसहन की वजह से छवि उम्र में उस से बड़ी लगने लगी थी. अब रजत का उसे साथ ले जाने का भी मन नहीं करता. ऐसा नहीं था कि वह दूसरी औरतों की तरफ आकर्षित होता था पर तुलना स्वाभाविक रूप से हो जाती थी.

‘‘आप अभी तक यहां बैठे हैं… लाइट भी नहीं जलाई,’’ छवि लाइट जलाते हुए बोली, ‘‘चलो खाना खा लो.’’

खाना खा कर रजत सो गया. आज पुरानी बातें याद कर के उस के मन की खिन्नता और बढ़ गई थी. छवि के प्रति जो अजीब सा नफरत का भाव उस के मन में भर गया था वह और भी बढ़ गया.

दूसरे दिन रजत औफिस पहुंचा. उस के एक कुलीग का तबादला हुआ था. उस की जगह कोई महिला आज जौइन करने वाली थी. रजत अपने कैबिन में पहुंचा तो चपरासी ने आ कर उसे सलाम किया. फिर बोला, ‘‘साहब आप को बुला रहे हैं.’’

रजत बौस के कमरे की तरफ चल दिया. इजाजत मांग कर अंदर गया तो उस के बौस बोले, रजत ये रीतिका जोशी हैं. सहदेव की जगह इन्होंने जौइन किया है. इन्हें इन का काम समझा दो.’’

रजत ने पलट कर देखा तो खुशी से बोला, ‘‘अरे, रीतिका तुम?’’

‘‘रजत तुम यहां…’’ रीतिका सीट से उठ खड़ी हुई.

‘‘आप दोनों एकदूसरे को जानते हैं?’’

‘‘जी, हम दोनों ने साथ ही इंजीनियरिंग

की थी.’’

‘‘फिर तो और भी अच्छा है… रीतिका रजत आप की मदद कर देंगे…’’

‘‘जी, सर,’’ कह कर दोनों बौस के कमरे से बाहर आ गए.

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रीतिका को उस का काम समझा कर लंचब्रेक में मिलने की बात कह कर रजत अपने लैपटौप में उलझ गया. लंचब्रेक में रीतिका उस के कैबिन में आ गई, ‘‘लंचब्रेक हो गया… अभी भी लैपटौप पर नजरें गड़ाए बैठे हो.’’

‘‘ओह रीतिका,’’ वह गरदन उठा कर बोला. फिर घड़ी देखी, ‘‘पता ही नहीं चला… चलो कैंटीन चलते हैं.’’

‘‘क्यों, तुम्हारी पत्नी ने जो लंच दिया है उसे नहीं खिलाओगे?’’

‘‘वही खाना है तो उसे खा लो,’’ कह रजत टिफिन खोलने लगा. खाने की खुशबू चारों तरफ बिखर गई.

दोनों खातेखाते पुरानी बातों, पुरानी यादों में खो गए. रजत देख रहा था रीतिका में उम्र के साथसाथ और भी आत्मविश्वास आ गया था. साधारण सुंदर होते हुए भी उस ने अपने व्यक्तित्व को ऐसा निखारा था कि अपनी उम्र से 10 साल कम की दिखाई दे रही थी.

रजत छेड़ते हुए बोला, ‘‘क्या बात है,

तुम्हारे पति तुम्हारा बहुत खयाल रखते हैं… उम्र को 7 तालों में बंद कर रखा है.’’

‘‘हां,’’ वह हंसते हुए बोली, ‘‘जब उम्र थी तब तुम ने देखा नहीं… अब ध्यान दे रहे हो.’’

‘‘ओह रीतिका तुम भी कहां की बात ले बैठी… ये सब संयोग की बातें हैं,’’ उस का कटाक्ष समझ कर रजत बोला.

‘‘अच्छा छोड़ो इन बातों को. मुझे घर कब बुला रहे हो? तुम्हारी पत्नी से मिलने का बहुत मन है. मैं भी तो देखूं वह कैसी है, जिस के लिए तुम ने कालेज में कई लड़कियों के दिल तोड़े थे.’’

रजत चुप हो गया. थोड़ी देर अपनेअपने कारणों से दोनों चुप रहे. फिर रीतिका ही

चुप्पी तोड़ती हुई बोली, ‘‘लगता है घर नहीं बुलाना चाहते.’’

‘‘नहींनहीं ऐसी बात नहीं. जिस दिन भी फुरसत हो फोन कर देना. उस दिन का डिनर घर पर साथ करेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’

फिर अगले काफी दिनों तक रीतिका बहुत बिजी रही. नयानया काम संभाला था. जब फुरसत मिली तो एक रविवार को फोन कर दिया, ‘‘आज शाम को आ रही हूं तुम्हारे घर, कहीं जा तो नहीं रहे हो न?’’

‘‘नहींनहीं, तुम आ जाओ… डिनर साथ करेंगे.’’

शाम को रीतिका पहुंच गई. उस दिन तो वह और दिनों से भी ज्यादा स्मार्ट व सुंदर लग रही थी. रजत को उसे छवि से मिलाते हुए भी शर्म आ रही थी. फिर खुद को ही धिक्कारने लगा कि क्या सोच रहा है वह.

तभी छवि ड्राइंगरूम में आ गई.

‘‘छवि, यह है रीतिका… मेरे साथ इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ती थी.’’

छवि का परिचय कराते हुए रजत ने रीतिका के चेहरे के भाव साफ पढ़ लिए. वह जैसे कह रही हो कि यही है वह, जिस के लिए तुम ने मुझे ठुकरा दिया था, वह थोड़ी देर तक हैरानी से छवि को देखती रही.

‘‘बैठिए न खड़ी क्यों हैं,’’ छवि की आवाज सुन कर वह चौकन्नी हुई. छवि और रीतिका की पर्सनैलिटी में जमीनआसमान का फर्क था. दोनों की बातचीत में कुछ भी कौमन नहीं था, इसलिए ज्यादा बातें रजत व रीतिका के बीच ही होती रहीं पर साफ दिल छवि ने इसे अन्यथा नहीं लिया.

खाना खा कर रीतिका जाने लगी तो रजत कार की चाबी उठाते हुए बोला, ‘‘छवि, मैं रीतिका को घर छोड़ आता हूं.’’

अपनेअपने झंझावातों में उलझे रजत व रीतिका कार में चुप थे. तभी रजत अचानक बोल पड़ा, रीतिका छवि पहले बहुत खूबसूरत थी.

‘‘हूं.’’

‘‘पर उसे न सजनेसंवरने, न पहननेओढ़ने और न ही पढ़नेलिखने का शौक है… किसी भी बात का शौक नहीं रहा उसे कभी.’’

‘हूं,’ रीतिका ने जवाब दिया.

‘‘बहुत कोशिश की उसे बदलने की… बहुत समझाया पर वह समझती ही नहीं… थकहार कर मैं भी चुप हो गया.’’

‘‘क्या खूबसूरती ही सबकुछ होती है रजत?’’ रीतिका का स्वर इतना थका था जैसे मीलों की दूरी तय कर के आया हो.

रजत उस के थके स्वर के मतलब को समझ रहा था. वह चुप हो गया. थोड़ी देर दोनों चुप रहे.

फिर एकाएक रीतिका बोली, ‘‘बातों से समझा कर नहीं मानती, तो कुछ कर के समझाओ… जब तक दिल पर चोट नहीं लगेगी, तब तक नहीं समझेगी… जब तक कुछ खो देने का डर नहीं होगा… तब तक कुछ पाने की कोशिश नहीं करेगी.’’

रजत चुप रहा. रीतिका की बात कुछ समझा, कुछ नहीं. तभी उस ने कार एक जगह रोक दी.

‘‘यहां कहां रोक दी कार?’’

‘‘आइसक्रीम खाने के लिए. तुम्हें आइसक्रीम बहुत पसंद है न और वह भी आइसक्रीम पार्लर में खाना.’’

‘‘तुम्हें याद है अभी तक?’’ रीतिका संजीदगी से बोली.

‘‘हां, क्यों नहीं. दोस्तों की आदतें भी कोई भूलता है क्या? चलो उतरो,’’ रजत कार का दरवाजा खोलते हुए बोला.

दोनों उतर कर आइसक्रीम पार्लर में चले गए. उन्हें पता ही नहीं चला कि काफी समय हो गया है. फिर रीतिका को छोड़ कर जब रजत घर पहुंचा तो छवि उस के इंतजार में चिंतित सी बैठी थी. उसे देखते ही बोली, ‘‘बहुत देर कर दी. मोबाइल भी आप घर भूल गए थे.’’

‘‘हां, देर हो गई. दरअसल आइसक्रीम खाने रुक गए थे. रीतिका को आइसक्रीम बहुत पसंद है.’’

‘‘आइसक्रीम तो हमेशा घर पर रहती है. घर पर ही खिला देते?’’ छवि का स्वर हमेशा से अलग कुछ झुंझलाया हुआ था.

रजत ने चौंक कर छवि के चेहरे पर नजर डाली. उस के स्वभाव के विपरीत हलकी सी ईर्ष्या की छाया नजर आई. बोला, ‘‘उसे आइसक्रीम पार्लर में ही खाना पसंद है… फिर बातचीत में भी देर हो गई…’’ और फिर कपड़े बदलने लगा.

छवि थोड़ी देर खड़ी रही, फिर बिस्तर पर लेट गई. कपड़े बदल कर रजत भी बिस्तर पर लेट गया. नींद उसे भी नहीं आ रही थी. पर उसे आश्चर्य हुआ कि हमेशा लेटते ही घोड़े बेच कर सो जाने वाली छवि आधी रात तक करवटें बदलती रही. रजत को रीतिका की बात याद आ गई कि जब तक दिल पर चोट नहीं लगेगी, कुछ खोने का डर नहीं होगा. तब तक कुछ पाने की भी कोशिश नहींकरेगी.

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अब रजत अकसर औफिस से घर आने में कुछ देर करने लगा. कभी उस से कुछ भी न पूछने वाली छवि अब कभीकभी उस से देर से आने का कारण पूछने लगी. वह भी लापरवाही से जवाब दे देता, ‘‘रीतिका को कुछ शौपिंग करनी थी. उस के साथ चला गया था… उस के पति तो यहां पर हैं नहीं अभी,’’ और फिर छवि के चेहरे के भाव देखना नहीं भूलता. वह देखता कि रीतिका का नाम सुन कर छवि का चेहरा स्याह पड़ जाता.

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Serial Story: साथी (भाग-1)

रजत औफिस से घर पहुंचा, घंटी बजाई तो छवि ने दरवाजा खोल दिया. छवि पर नजर पड़ते ही रजत का मन खिन्नता से भर गया. उस ने एक उड़ती सी नजर छवि पर डाली और सीधे बैडरूम में चला गया. कपड़े बदल कर वह बाथरूम में फ्रैश हो कर निकला तो छवि कमरे में आ गई.

‘‘चलो, चायनाश्ता रख दिया है…’’ छवि कोमल स्वर में बोली. रजत और भी चिढ़ गया. चप्पलें घसीटता हुआ डाइनिंगटेबल की तरफ बढ़ गया. तब तक बच्चे भी आ गए. सब खातेपीते बातें करने लगे. बच्चों के साथ बात करतेकरते उस का मूड कुछ ठीक हो गया.

अभी वे बातें कर ही रहे थे छवि फिर उठ गई और जूठे बरतन समेटने लगी. उस ने छवि पर नजर दौड़ाई. फैला बेडौल शरीर, बढ़ा पेट, कमर में खोंसा साड़ी का पल्ला, बेतरतीब बालों को ठूंस कर बनाया जूड़ा, बेजान होता चेहरा. बच्चों के साथ बातें करतेकरते रजत का ठीक होता मूड फिर उखड़ गया.

छवि बरतन उठा कर किचन में चली गई. उस के प्रैशर कुकर, चकलाबेलन और बरतनों की खनखन ने अपना बेसुरा संगीत शुरू कर दिया था. रजत ने झुंझला कर अखबार उठाया और बाहर बरामदे में चला गया. थोड़ी देर सुबह के पढ़े बासी अखबार को दोबारा पढ़ता रहा. फिर शाम का धुंधलका छाने लगा तो दिखाई देना कम हो गया. उस ने लाइट नहीं जलाई. अंदर जाने का मन नहीं किया. कुरसी पर पीछे सिर टिका कर यादों में खो गया…

इसी छवि को कभी रजत ने लड़कियों की भीड़ में पसंद किया था. घर वालों की मरजी के खिलाफ जा कर अपनाया था. उस के जेहन में वह दुबलीपतली, बड़ीबड़ी आंखों वाली सलोनी सी छवि तैर गई.

चाचा की बेटी की शादी में लखनऊ गया रजत जब लौटा तो अकेला नहीं आया. छवि का वजूद भी उस के जेहन से लिपटा साथ आ गया. बरातियों से हंसीठिठोली करती दुलहन की सहेलियों के बीच उस की नजर गोरी, लंबी, छरहरी छवि पर अटक गई.

छवि की लंबी वेणी दिल से लिपट गई. छवि के गुलाबी गाल, बड़ीबड़ी आंखों की झील सी गहराई, रसीले होंठों की चमक भुलाए न भूली. जब भी आंखें बंद करता हंसतीमुसकराती छवि उस की आंखों में उतर जाती.

रजत इंजीनियर था. बहुत अच्छी नौकरी में था. उस के पिता रिटायर्ड आर्मी औफिसर थे. बहुत अच्छेअच्छे घरों से शादी के प्रस्ताव उस के पिता के पास उस के लिए आए हुए थे. उन सब पर घर में सलाहमशवरा चल रहा था. वह खुद भी बहुत खूबसूरत था. इंजीनियरिंग कालेज में कई लड़कियां उस पर जान छिड़कती थीं, पर वह किसी की गिरफ्त में नहीं आया. रीतिका से तो उस की बहुत अच्छी दोस्ती थी. वह उसे केवल दोस्त मानता था. रीतिका ने उसे कई तरह से जताया कि वह उस से शादी करना चाहती है, पर साधारण शक्लसूरत की रीतिका उसे शादी के लिए पसंद नहीं आई.

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मगर छवि अपना जादू चला चुकी थी. घर में आए सारे विवाह प्रस्तावों को नकार कर जब उस ने मां के सामने अपनी बात रखी तो मां ने चाचा को फोन कर के सारी बात बताई. फिर उन्होंने छवि के बारे में सबकुछ पता लगाया. छवि बीए पास एक सामान्य घर की लड़की थी. दूसरी जाति की भी थी. मातापिता ने रजत को बहुत समझाया कि सुंदरता ही सब कुछ नहीं होती. लड़की किसी भी तरह उस के योग्य नहीं हैं. आजकल के हिसाब से उसे ज्यादा पढ़ीलिखी भी नहीं कहा जा सकता.

‘‘बीए पास तो है… कौन सा मुझे उस से नौकरी करवानी है,’’ रजत बोला.

‘‘बात नौकरी की नहीं है बेटा… घर का रहनसहन, स्कूलिंग ये सब भी माने रखते हैं. इन सब बातों का असर इंसान के विचारों पर पड़ता है… आज समय बहुत बदल गया है. कुछ समय बाद तुझे खुद यह बात महसूस होने लगेगी. बीए तो हमारी कामवाली की बेटी भी कर रही है तो क्या तू उस से शादी कर सकता है?’’

पिता का ऐसा कहना रजत को खल गया. काम करने वाली की बेटी की तुलना छवि से करने से उस का दिल टूट गया. फिर चिढ़ कर बोला, ‘‘बाकी बातें तो सीखने की हैं… सिखाई जा सकती हैं, पर जो चीज कुदरत देती है वह पैदा नहीं की जा सकती… मेरे साथ रहेगी तो सब सीख जाएगी.’’

अपनी दलीलों से रजत ने मातापिता को चुप कर दिया था. आखिर मातापिता मान गए. छवि उस के जीवन में क्या आई, वह उस के रूपसौंदर्य व भोलीभाली बातों में पूरी तरह डूब गया. छवि जितनी सुंदर थी उस का स्वभाव भी उतना ही अच्छा था. सासससुर ने उसे खुले मन से स्वीकार कर लिया. वे उसे बहुत प्यार करते थे.

प्यार तो रजत भी उसे दीवानों की तरह करता था. औफिस से छूटते ही सीधे घर की दौड़ लगाता. लेकिन घर आ कर देखता छवि किचन में उलझी हुई कभी ससुरजी के लिए सूप बना रही होती है, कभी सास के लिए घुटनों का तेल गरम कर रही होती है, कभी गरम पानी की थैली भर रही होती है, कभी सब्जी काट रही होती है, तो कभी उस के लिए बढि़या नाश्ता बनाने में मसरूफ होती है.

‘‘छोड़ो न छवि ये सब… मुझे ये सब नहीं चाहिए,’’  कह रजत गैस बंद कर देता, ‘‘मांपापा का काम तुम पहले निबटा लिया करो… जब मैं आऊं तो सिर्फ मेरे पास रहा करो,’’ वह उसे अपनी बांहों में कसने की कोशिश करता.

छवि कसमसा जाती, ‘‘क्याकरते हो… मां आ जाएंगी,’’ कह वह जबरन खुद को छुड़ा लेती.

‘‘तो फिर कमरे में चलो,’’ रजत शरारत करते हुए कहता.

‘‘अरे कैसे चल दूं… खाना बनाने में देर हो जाएगी,’’ वह उसे चाय का कप थमा देती, ‘‘देखो, मैं ने आप के लिए ब्रैडरोल बनाए हैं. खा कर बताओ कैसे बने हैं.’’

वह कुढ़ कर कहता, ‘‘हमारी नईनई शादी हुई है छवि… तुम समझती क्यों नहीं,’’ और वह उसे फिर पास खींच कर चूमने का प्रयास करता.

छवि परे छिटक जाती. अपने मचलते अरमानों को काबू कर रजत पैर पटकता किचन से बाहर निकल जाता. उस का बहुत मन करता कि छवि सबकुछ उस के आने से पहले निबटा कर अच्छी तरह सजधज कर उस का इंतजार करे और उस के आने के बाद उस के पास बैठे, उस के साथ घूमने चले, फिल्म देखने चले, बाहर खाना खाने चले, आइसक्रीम खाने चले.

मगर शायद छवि की जिंदगी में इन सब बातों की प्राथमिकता नहीं थी, उस ने अपनी मां को भी ऐसे ही काम में उलझा देखा था और यही सोचती थी कि काम करने से ही सब खुश होते हैं. यहां तक कि पति भी… पतिपत्नी के बीच इस के अलावा दूसरी बातें भी हैं, जो इस से भी जरूरी हैं, पतिपत्नी के रिश्ते के लिए यह वह नहीं समझती थी.

यहां तक कि अखबार पढ़ना, टीवी पर खबरें सुनना, इन सब बातों से भी उस का कोई मतलब नहीं रहता था. उस के लिए घर और घर का काम, सासससुर की सेवा, पति की देखभाल बस यही सबकुछ था.

रजत का मन करता उस की नईनवेली बीवी उस से कभी रूठे और वह उसे मनाए या उस के नाराज होने पर वह उसे मनाए, मीठी छेड़छाड़ करे. पर धीरेधीरे उसे लगने लगा कि इस माटी की खूबसूरत गुडि़या से ऐसी बातों की उम्मीद करना बेकार है.

समय बीतता रहा. उन के 2 बच्चे भी हो गए. अब तो छवि और भी ज्यादा व्यस्त हो गई. उस के पास पलभर की भी फुरसत नहीं रहती.

वह कई बार कहता, ‘‘छवि, खाना बनाने के लिए कोई रख लो. तुम बस अपनी देखरेख में बनवा लिया करो… काम में इतनी उलझी रहती हो… मेरे लिए तो तुम्हारे पास कभी समय नहीं रहता.’’

‘‘कब समय नहीं रहता आप के लिए,’’ छवि हैरानी से कहती, ‘‘कौन सा काम नहीं करती हूं आप का?’’

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‘‘छवि, काम ही तो सबकुछ नहीं होता… तुम समझती क्यों नहीं… हमारी यह उम्र लौट कर नही आएगी… बहुत सी जरूरतें होती हैं तनमन की… इन्हें तुम समझना नहीं चाहती… बिस्तर पर एक मशीन की तरह जरूरत पूरी कर के सो जाना, तो सबकुछ नहीं… इस के अलावा भी बहुत कुछ है जीवन में…’’

छवि रजत की सारी जरूरतों को समझती पर उस के मन को न समझती. वह अच्छी बहू थी, अच्छी मां थी, अच्छी पत्नी थी पर अच्छी साथी नहीं थी. और एक साथी की कमी रजत को हमेशा अकेलेपन, एक अजीब तरह की तृष्णा व भटकन से भर देती.

रजत का मन करता उस के दोस्तों की बीवियों की तरह छवि भी तरहतरह की ड्रैसेज पहने, जो शालीन पर फैशनेबल हों. कम से कम चूड़ीदार सूट, अनारकली सूट ये तो वह पहन ही सकती है. यही सोच कर वह एक दिन उसे किसी तरह पटा कर बाजार ले गया. लेकिन छवि कोई भी ड्रैस, यहां तक कि सूट खरीदने को भी तैयार नहीं हुई.

‘‘अरे ये सब… मांपापा क्या कहेंगे… मैं नहीं पहन सकती ये सब.’’

‘‘मेरे सभी दोस्तों की पत्नियां पहनती हैं छवि… यह अनारकली सूट ले लो… तुम पर खूब फबेगा… अभी तुम्हारी उम्र  ही क्या है… आजकल तो 60 साल की औरतें भी ये सब पहनती हैं.’’

‘‘जो पहनती हैं उन्हें पहनने दो. मैं नहीं पहन सकती. उन के सासससुर उन के साथ नहीं रहते होंगे… मांपापा क्या कहेंगे.’’

‘‘छवि मैं जानता हूं अपने मम्मीपापा को… वे पुराने विचारों के नहीं हैं… मैं ने हर तरह का माहौल देखा है… वे आर्मी अफसर की पत्नी हैं… वे तुम्हें ये सब पहने देख कर खुश ही होंगे.’’

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चोरी से बचने के लिए अपनाएं ये उपाय, कीमती सामान पर नहीं पड़ेगी चोरों की नजर

कोहेफिजा पुराने भोपाल का घना रिहायशी इलाका है. यहां के आरके टौवर में रहने वाले मुजीब अली पिछले 14 सितंबर को दोपहर के कोई 1 बजे कुछ देर के लिए अपने एक दोस्त से मिलने गए थे. लेकिन जब वापस लौटे तब तक चोर दिनदहाड़े उन के क्व1 लाख के जेवर और कैश ले कर चंपत हो चुके थे.

चोरी करने के लिए चोरों को ज्यादा मशक्कत भी नहीं करनी पड़ी थी. मिनटों में उन्होंने घर के कमरों की तलाशी ली और अलमारियों में रखे जेवर व कैश जेब में ठूंस कर आराम से चलते बने. लेकिन पीछे छोड़ गए एक सबक कि घर से बाहर कुछ घंटों के लिए जाएं या कुछ दिनों के लिए, कीमती सामान ऐसी आसान जगहों पर न रखें या छिपाएं जहां चोरों के हाथ आसानी से पहुंच जाते हैं और वे अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं.

इसी तरह भोपाल के ही गेहूंखेड़ा इलाके के रौयल भगवान ऐस्टेट के परवेज खान जोकि एक कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हैं, पिछले 18 सितंबर को अपने बड़े बेटे की सगाई में शामिल होने के लिए मुंबई गए थे. जब सगाई कर वे वापस लौटे तो यह देख सकते में आ गए कि घर के दरवाजे का सैंट्रल लौक कटा पड़ा है. घर के अंदर जाने पर पता चला कि चोरों ने और 4 ताले तोड़ कर अलमारी में रखे जेवर, कीमती घडि़यां और ढाई लाख रुपए पर हाथ साफ कर दिया है. नजारा देख परवेज के पास अपने हाथ मलते रहने के सिवा कोई चारा नहीं बचा था. चोर क्व6 लाख का माल एक झटके में ले उड़े थे.

उन्हें पता रहता है

भोपाल के इन 2 ही नहीं, बल्कि देशभर में चोरी की अधिकतर वारदातों में एकसमान बात यह है कि चोरों को मालूम रहता है कि घर का कीमती सामान कहां रखा होता है. लिहाजा, उन्हें आप के खूनपसीने की गाढ़ी कमाई पर हाथ साफ करने में कोई खास दिक्कत पेश नहीं आती.

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लोग घरों के भारीभरकम दरवाजों पर मोटेमोटे ताले लटका कर निश्चिंत हो कर चले तो जाते हैं पर जब वापस लौटते हैं तो यह देख अपना सिर पीट लेते हैं कि कमबख्त शातिर चोरों ने जाने कैसे महंगी अलमारी के सेफ को भी तोड़ डाला है और उस में रखा कीमती सामान अब उन का अपना नहीं रह गया है.

आधुनिक और सुरक्षित समझी जाने वाली महंगी अलमारियां अब कतई महफूज नहीं रह गई हैं, क्योंकि अधिकतर मामलों में चोर सीधे इन्हीं में सेंधमारी करते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम रहता है कि माल यहीं रखा जाता है या रखा गया है. उन का यह अंदाजा अकसर गलत भी नहीं निकलता.

जब अलमारी की तिजोरी आसानी से तोड़ सकते हैं तो घर की दूसरी जगहें तो और भी असुरक्षित होती हैं. मसलन, बौक्स वाला पलंग या दीवान जिस के अंदर लोग गहने व पैसे छिपा कर रखते हैं वे भी चोरों के निशाने पर हमेशा रहते हैं. यह सोचना बेमानी है कि तिजोरी या अलमारियों में माल नहीं मिलेगा तो चोर दीवान को छोड़ देंगे, जिन में ठूंसठूंस कर कपड़ों और बिस्तरों के बीच नजाकत और हिफाजत से लोग कीमती सामान रखते हैं.

यानी चोरों को पता रहता है कि कीमती सामान रखने के लिए लोग किनकिन ठिकानों और तरीकों का इस्तेमाल करते हैं. लिहाजा, उन्हें चोरी करने में कोई खास परेशानी पेश नहीं आती.

फिर कहां रखें

बात सच है कि जब चोरों को अंदाजा रहता है कि कीमती सामान घर में कहांकहां हो सकता है तो उन्हें चोरी करने से कोई रोक नहीं सकता.

हालांकि चोरी से बचने के लिए कई लोग जेवरात और दूसरे कीमती आइटम बैंक लौकर्स में रखते हैं. लेकिन यह भी कम दिक्कत वाला काम नहीं. वजह एक तो बैंक लौकर सस्ते नहीं होते दूसरे साल में 2-4 मौके ऐसे आ ही जाते हैं जब गहने निकालने पड़ते हैं.

यह झंझट वाला काम है कि जब भी किसी फंक्शन या शादी में जाना हो तो बैंक जा कर गहने निकालो फिर उन्हें वापस रखने जाओ.

फिर क्या करें और चोरों से बचने के लिए सामान कहां रखें? इस सवाल का जवाब देना भी आसान काम नहीं है. मगर इसे आसान बनाया जा सकता है वह भी इस तरह कि चोर जब घर में दाखिल हों, अलमारियां और तिजोरी तोड़ें तो उन के हाथ सिवाय खीझ के कुछ और न लगे. कीमती सामान घर में ही ऐसी जगह रखें जहां, उन के हाथ पहुंचे ही नहीं.

तिजोरी में माल न मिले तो चोर दीवान देखेंगे, फर्नीचर खंगालेंगे, फ्रिज, दूसरी अलमारियां व दराज खोलेंगे लेकिन यहां भी उन्हें सिवाय कागजों व कपड़ों के कुछ नहीं मिलेगा तो वे आप की कंगाली या चालाकी को कोसते वापस चले जाएंगे.

आजमाएं पुराने तरीके

 चोरीचकारी से बचने के लिए पुराने तरीके आजमाएं. ये तरीके कतई कठिन नहीं हैं लेकिन अलमारी और तिजोरी की अपेक्षा ज्यादा सुरक्षित हैं.

सब से प्रचलित पुराना तरीका गहनों को जमीन में गाड़ने का है. यह ठीक है कि आजकल अधिकतर मकान पक्के सीमेंट के बने होते हैं जिन्हें खोदा नहीं जा सकता लेकिन पुराने लोगों की समझदारी को नए तरीके से आजमाया जाए तो बात बन सकती है. घर बनवाते समय या बाद में बैडरूम में पलंग के नीचे के 2 टाइल्स उखाड़ कर गड्ढा बनाया जा सकता है और दीवारों में भी इसी तरह एक गुप्त स्थान बनवाया जा सकता है.

भोपाल के ही पिपलानी इलाके की 64 साल की दक्षिण भारतीय महिला एस. लक्ष्मी को साल में एक बार आंध्र प्रदेश जाना पड़ता है. लक्ष्मी के पास कोई 20 तोला सोना है जो आज तक चोरी नहीं हुआ जबकि 2 बार ऐसा हुआ कि जब वे आंध्रप्रदेश से वापस लौटीं तो चोर घर से सेंधमारी कर चुके थे लेकिन उन के हाथ सिवाय नाकामी के कुछ नहीं लगा था.

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दरअसल, लक्ष्मी जाने से पहले अपने गहने तेल की 20 लिटर लबालब भरी केन में रख जाती हैं. चोर किचन तक आए और डब्बेकनस्तर खोल कर भी देखे लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला. तेल की केन पर उन का ध्यान ही नहीं गया कि गहने इस में भी रखे हो सकते हैं.

लक्ष्मी की तरह आप भी जरा सी समझदारी दिखा कर कीमती सामान को चोरों की नजरों से बचा कर रख सकती हैं.

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