Serial Story: कौन हारा (भाग-1)

वैशाली अपने जीवन से बहुत सुखी व संतुष्ट थी. घर में पति, 2 प्यारे से बच्चे, धनदौलत, ऐशोआराम और सामाजिक जीवन में मानसम्मान. और क्या चाहिए था. उस दिन भी वह सुखसागर में डूबी आंखें बंद किए बैठी थी कि उस की प्रिय सहेली वसुधा ने आ कर ऐसा बम सा फोड़ा कि वैशाली हक्काबक्का रह गई. वह क्या कह रही थी उसे समझ में नहीं आ रहा था या समझने के बाद भी उस पर भरोसा करने का मन नहीं हो रहा था.

‘‘हो सकता है वसुधा, तुम्हें कोई गलतफहमी हुई हो. सुधीर ऐसा कैसे कर सकते हैं? मैं उन के बच्चों की मां हूं और उन्हें कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचाने में मदद करने वाली हमसफर हूं.’’ वैशाली ने विश्वास न करने वाले अंदाज में वसुधा की ओर देख कर कहा.

‘‘इतनी बड़ी बात बिना विश्वास के मैं कैसे कह सकती हूं. यदि मुझे यह बात किसी और ने बताई होती तो विश्वास नहीं होता पर यह सब मैं ने खुद अपनी आंखों से देखा है और एक नहीं, कई बार. तुम हो कि न जाने कौन सी दुनिया में खोई रहती हो,’’ वसुधा की आंखों में गहरा दुख और चिंता थी.

वैशाली तड़प उठी थी, ‘‘लेकिन सुधीर तो मेरे हैं, सिर्फ मेरे. मुझ से पूछे बिना तो वह एक कदम नहीं उठाते फिर इतना बड़ा कदम कैसे? नहीं, लोग जलते हैं मुझ से, सुधीर से और हमारी कामयाबी से. यह शायद उन्हीं की कोई चाल होगी.’’

‘‘नहीं, चालवाल कुछ नहीं. बस इतना समझ लो, मर्द का प्यार आखिरी नहीं होता,’’ वसुधा ने कहा.

वैशाली बेजान सी सोफे पर गिर पड़ी और माथा पकड़ कर बैठ गई. फिर बुझे से स्वर में बोली, ‘‘क्या वह बहुत खूबसूरत है?’’

‘‘नहीं, तुम से क्या मुकाबला? लेकिन वही बात है न कि गधी पे दिल आ जाए तो परी क्या चीज है. सुना है कि सुधीर उस से जल्दी ही शादी करने वाले हैं.’’

‘‘शादी, नहींनहीं, ऐसा कैसे हो सकता है. क्या कमी है मुझ में. मैं ने क्या नहीं किया उन के लिए. बिजनेस को आसमान की बुलंदियों पर पहुंचाने में मदद की. न दिन देखा न रात और फिर उन के घर को सजाया, संवारा. बच्चे, पैसा, शोहरत सबकुछ तो है, फिर?’’ वैशाली सुधीर की बेरुखी का कारण नहीं समझ पा रही थी.

‘‘शायद मर्द जात होती ही ऐसी है. मर्द कभी संतुष्ट नहीं होता. खैर, यह समय कमजोरी दिखाने का नहीं है. हमें खुद ही कुछ करना होगा और उस लड़की को डराधमका कर, बहलाफुसला कर किसी भी तरह सुधीर से दूर रखना होगा. और हां, सुधीर से इस विषय में अभी कुछ मत कहना वरना बात खुल कर सामने आ जाएगी. परदा पड़ा ही रहे तो अच्छा है.’’

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वसुधा तो वैशाली को समझाबुझा कर चली गई पर वैशाली का दम घुट सा रहा था. वह तो समझती थी कि सुधीर अपनी जिंदगी से संतुष्ट है फिर उस दूसरी औरत की जरूरत कहां से निकल आई थी यही सब सोचतेसोचते उस के आगे अतीत का दृश्य घूमने लगा.

वैशाली का सुधीर से परिचय उन दिनों हुआ था जब वह अपनी विज्ञापन एजेंसी का काम जमाने के लिए जीतोड़ कोशिश कर रहा था. वैशाली को उन दिनों काम की आवश्यकता थी और उसी सिलसिले में वह अपने किसी रिश्तेदार के माध्यम से सुधीर से मिली थी. सुधीर ने उसे साफसाफ कह दिया था कि वह अभी खुद ही संघर्ष कर रहा है. अत: ज्यादा वेतन नहीं दे सकेगा. अगर उसे कहीं और अच्छी नौकरी मिले तो वह जरूर कर ले. वैशाली इस बात पर हैरान थी पर उस ने बड़े विश्वास से कहा, ‘शायद इस की जरूरत ही न पड़े.’

और फिर कुछ ऐसा संयोग बना कि वैशाली के आते ही सुधीर को कामयाबी मिलती गई. वैशाली सुंदर होने के साथ मेहनती और समझदार भी थी. सुधीर ने उसे अपना दायां हाथ बना लिया था. जल्दी ही उन की एजेंसी का नाम देश भर में जाना जाने लगा था. सुधीर वैशाली से, और उस की कार्यपद्धति से बहुत प्रभावित था फिर एक दिन ऐसा भी आया जब सुधीर ने वैशाली के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया.

वैशाली को क्या आपत्ति हो सकती थी. सुधीर में कोई ऐब नहीं था. वह कम बोलने वाला, खुशमिजाज व चरित्रवान था. बस, कमी थी तो इतनी कि वैशाली के मुकाबले वह एक बहुत साधारण शक्लसूरत का इनसान था, लेकिन पुरुष कामयाब और मालदार हो तो उस की यह कमी कोई कमी नहीं होती और फिर सुधीर तो उस से प्यार भी करता था. एक खूबसूरत भविष्य तो उस के सामने खड़ा था. फिर भी वैशाली ने उस से पूछा था, ‘क्या आप को लगता है कि आप मुझ से विवाह कर के खुश रहेंगे?’

‘मैं ने तो सोच लिया है. तुम्हें सोचसमझ कर फैसला करना है. मुझे जल्दी नहीं है,’ सुधीर धीरे से मुसकराए थे.

‘पर मुझे है क्योंकि मेरी मां घर आए रिश्तों में से किसी को जल्दी ही ‘हां’ कहने वाली हैं,’ वैशाली शोख निगाहों से देखती मुसकराई थी.

‘ओह, तब तो फिर मुझे ही जल्दी कुछ करना होगा,’ उस के अंदाज पर वैशाली को हंसी आ गई थी.

दोनों जल्दी ही परिणयसूत्र में बंध गए थे. सारे शहर में इस विवाह की चर्चा रही और शायद उन के बीच बनने वाली दूरियों की नींव यहीं से पड़ गई थी. सुर्ख लहंगे, गहनों की चमक और मन की खुशी ने वैशाली की खूबसूरती में चार चांद लगा दिए थे लेकिन उस के सामने सुधीर का व्यक्तित्व फीका पड़ रहा था. कुछ दोस्त ईर्ष्या छिपा नहीं पा रहे थे. ‘यार, किस्मत खुल गई तेरी तो, ऐसी खूबसूरत पत्नी? काश, हमारा नसीब भी ऐसा होता.’

तो कुछ दबी जबान से उस का मजाक भी उड़ा रहे थे, ‘हूर के पहलू में लंगूर’, और ‘कौए की चोंच में मोती’ जैसे शब्द भी उस के कान में पिघले शीशे की तरह उतर कर शादी के उत्साह को फीका कर गए थे.

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शादी के बाद भी वैशाली आफिस जाती थी. सुधीर को भी उस की सहायता की जरूरत रहती थी. शहर के बड़े लोगों की पार्टियों में भी उन की उपस्थिति जरूरी समझी जाती थी. हालांकि वैशाली का संबंध मध्यम वर्ग से था लेकिन उस ने बहुत जल्दी ही ऊंचे वर्ग के लोगों में उठनाबैठना सीख लिया था. एक तो वह पहले से ही खूबसूरत थी उस पर दौलत व शोहरत ने उस पर दोगुना निखार ला दिया था. अच्छे कपड़ों, गहनों की चमक के साथ सुख और संतोष ने उस के चेहरे पर अजीब सी कशिश पैदा कर दी थी. मेकअप का सलीका, बातचीत का ढंग, चलनेबैठने में नजाकत, सबकुछ तो था उस में. लोग उस की तारीफ करते, उस के आसपास मंडराते और लोगों की निगाहों में अपने लिए तारीफ देख वह चहकती, खिलखिलाती घूमती. उसे इन सब बातों का नशा सा होने लगा था. कई दिनों तक कोई पार्टी नहीं होती तो वह अजीब सी बेचैनी महसूस करती.

‘कई दिनों से कोई पार्टी ही नहीं हुई. क्यों न हम ही अपने यहां पार्टी रख लें,’ वह सुधीर से कहती तो सुधीर संयत स्वर में उसे मना कर देता था.

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ननद भाभी : तकरार नहीं बढ़े प्यार

मायके में परिवार की चहेती और अपने तरीके से जीवन जीने वाली लड़की विवाहोपरांत जब ससुराल आती है तो नए घरपरिवार की जिम्मेदारी तो उस के कंधों पर आती ही है, साथ ही उस के नएनवेले गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते हैं सासससुर, ननददेवर जैसे अनेक नए रिश्ते. इन सभी रिश्तों को निभाना और इन की गरिमा बनाए रखना नवविवाहिता के लिए बहुत बड़ी चुनौती होती है.

ननद चाहे वह उम्र में बड़ी हो या छोटी सब की चहेती तो होती ही है, साथ ही परिवार में अपना अलग और महत्त्वपूर्ण स्थान भी रखती है. जिस भाई पर अभी तक केवल बहन का ही अधिकार था, भाभी के आ जाने से वह अधिकार उसे अपने हाथों से फिसलता नजर आने लगता है, क्योंकि अब भाई की जिंदगी में भाभी का स्थान अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है.

परिवार में एक नवीन सदस्य के रूप में प्रवेश करने वाली भाभी ननद की आंखों में खटकने लगती है. कई बार ननद भाभी को अपना प्रतिद्वंद्वी समझने लगती है और फिर अपने कटु व्यवहार से भाईभाभी की जिंदगी को नर्क  बना देती है.

अनावश्यक हस्तक्षेप

एक स्कूल में प्रिंसिपल रह चुकीं लीला गुप्ता कहती हैं, ‘‘मेरी इकलौती ननद परिवार की बड़ी लाडली थीं. विवाह हो जाने के बाद भी अपनी ससुराल से ही मायके को संचालित करती थीं. जब भी मायके आती थीं तो मेरे सासससुर उन्हीं की भाषा बोलने लगते थे. मैं भले कितने ही मन से कोई वस्तु या कपड़ा अपने या घर के लिए लाई हूं अगर वह ननद ने पसंद कर लिया तो वह उन्हीं का हो जाता था. यहां तक कि मेरे जन्मदिन पर मेरे लिए पति द्वारा लाया गया उपहार भी यदि उन्हें पसंद है तो उन का हो जाता था.

‘‘जब मेरे बच्चे बड़े हो गए तो वे इस प्रकार के व्यवहार का विरोध करने लगे. उस से पहले तक सदैव सरेआम मेरी इच्छाओं का गला घोट दिया जाता था और मैं उफ भी नहीं कर पाती थी. यदि कभी कुछ बोलने या विरोध करने की कोशिश की भी तो सासससुर के साथसाथ पति भी मुंह फुला लेते थे.’’

रूखा व्यवहार

अपने विवाह के बीते 10 वर्षों को याद कर के अरुणा का मन दुखी हो जाता है. वे कहती हैं, ‘‘मेरी 2 ननदें हैं. एक पति से बड़ी और एक छोटी. बड़ी ननद पैसे वाली हैं और मेरे सासससुर की बेहद प्रिय. इसलिए जब वे आने वाली होतीं, तो जैसे घर में तूफान आ जाता है. वे जब तक रहती हैं घर की प्रत्येक गतिविधि उन्हीं के द्वारा संचालित होती है.

‘‘छोटी ननद की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं है. अत: जब वे आती हैं तो घर के बजट की परवाह किए बिना उन्हें भरपूर सामान दिया जाता है. फिर चाहे मेरी और मेरे बच्चों की जरूरतें पूरी हों या न हों. उन के आने के बाद मेरा काम सिर्फ नौकरानी की तरह चुपचाप काम करना होता है. पति भी उस समय बेगाने से हो जाते हैं.’’

जिंदगी भर की कसक

आस्था का दूसरा विवाह हुआ है. ससुराल में पति व सास के अलावा एक अविवाहित ननद भी है, जो एक कंपनी में मैनेजर है. आस्था कहती हैं, ‘‘मेरी गृहस्थी में आग लगाने वाली मेरी ननद हैं. उन के आगे मेरी सास को कुछ नहीं सूझता. पूरा घर उन के अनुसार चलता है. अपनी शादी न होने के कारण उन से हमारा सुख भी नहीं देखा जाता. भाई के लिए तो सब कुछ है पर मेरे लिए उस परिवार में जरा सा भी प्यार नहीं है. सदैव मेरे खिलाफ सास को भड़काती रहती हैं. उन के कारण आज विवाह के 8 साल बीत जाने पर भी मेरी लाख कोशिशों के बावजूद मेरे अपनी सास और पति से संबंध सामान्य नहीं हो पाए हैं. केवल उन के कारण ही हम शादी के बाद हनीमून पर नहीं जा पाए थे, जिस की कसक आज तक है.’’

खूबसूरत रिश्ता

ननद और भाभी का रिश्ता बेहद प्यारा रिश्ता है. यदि इसे पूरी ईमानदारी और निष्ठा से निभाया जाए तो इस से खूबसूरत रिश्ता और हो ही नहीं सकता, क्योंकि हर लड़की किसी की ननद और भाभी होती है. परंतु अकसर देखा जाता है कि ननदें भाई के प्रति तो प्यार और अपनापन रखती हैं पर भाभी के प्रति द्वेष और घृणा की भावना रखती हैं. विवाहित ननद अकसर ससुराल में रह कर भी मायके में दखल करती है और अपने मातापिता को भाभी के विरुद्ध भड़काती रहती है, जिस से भाईभाभी का गृहस्थ जीवन प्रभावित होता है.

यह सही है कि अकसर भाभी और ननद के रिश्ते प्रगाढ़ नहीं होते, परंतु कई बार इस के उलट भी उदाहरण देखने को मिलते हैं जहां बहन ने न केवल अपने भाई की टूटती गृहस्थी को बचाया, बल्कि अपने मातापिता से भी भाभी को उचित मानसम्मान दिलाया.

रीमा श्रीनिवास अपने 2 भाइयों की इकलौती बहन हैं. एक भाई उन से छोटा और एक बड़ा है. वे बताती हैं, ‘‘चूंकि छोटे भाई ने अपनी मरजी से शादी की थी. अत: मातापिता भी भाभी के प्रति कटुतापूर्ण व्यवहार करते थे. मातापिता के द्वारा किए जाने वाले दुर्व्यवहार का आक्रोश भाभी भाई पर निकालती थी. इस से दोनों में अकसर झगड़ा होने लगा और फिर नौबत अलगाव तक की आ गई. अपने मायके की कलह मुझ से देखी नहीं जाती थी. उस समय मेरे पति ने मेरा बड़ा साथ दिया. हम ने चारों को एकसाथ बैठा कर समझाया. एक काउंसलर की मदद से उन के रिश्ते को पटरी पर ले आए.’’

रीमा के भाई रमन कहते हैं, ‘‘मेरी जैसी बहन सब को मिले. उस ने मेरे वैवाहिक जीवन को जीवनदान दिया.’’

भाभी अंजलि भी अपनी ननद की तारीफ करते हुए नहीं थकतीं, ‘‘दीदी ने हमारे जीवन को खुशियों से भर दिया वरना घर टूट जाता.’’

जीवन में प्रत्येक रिश्ते का अपना अलग महत्त्व होता है. हर रिश्ते की अपनी मर्यादाएं

होती हैं. यदि उसे उसी मर्यादा में रह कर निभाया जाता है, तो वह और अधिक खूबसूरत हो जाता है. उस में किसी भी प्रकार की समस्या उत्पन्न नहीं होती.

क्या करें ननदें

– हमेशा ध्यान रखें कि भाभी वह इंसान है जिसे आप का भाई ब्याह कर अपने घर लाया है और जो उस के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है, इसलिए भाई अपनी पत्नी के लिए भी अपने समान ही मानसम्मान की अपेक्षा रखता है. आप का भी दायित्व है कि अपने भाईभाभी की जिंदगी में खलनायिका बन कर जहर घोलने के बजाय प्यारी सी बहन बन कर प्यार और खुशियों के खूबसूरत रंग बिखेरें.

– निमिषा का जब विवाह हुआ तो छोटी ननद की उम्र 30 साल की थी और वे अविवाहित थीं. निमिषा कहती हैं, ‘‘मैं यह देख कर हैरान रह गई विवाह के 2 माह बाद एक दिन मेरी ननद ने यह कहते हुए हमारे बैडरूम में अपना बैड लगा लिया कि अलग कमरे में उसे डर लगता है.’’

आप अपने मातापिता और भाई की कितनी भी प्यारी क्यों न हों पर भाई के विवाह के बाद भाईभाभी को पर्याप्त स्पेस देना आप

की नैतिक जिम्मेदारी है. यदि आप छोटी हैं, तो भी हर जगह उन के साथ जाने का प्रयास न करें.

– भाभी को वही मानसम्मान दें जिस की आप अपनी ससुराल में अपेक्षा रखती हैं. उसे अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि सहेली मानें और नए परिवार में ऐडजस्ट होने में भाभी को सहयोग करें.

– विवाहोपरांत जिस प्रकार आप अपने परिवार को चलाना चाहती हैं उसी प्रकार आप की भाभी भी अपने घरपरिवार को चलाना चाहेगी. अत: अनावश्यक हस्तक्षेप न करें. जहां आप का हस्तक्षेप अपेक्षित हो वहीं करें.

– अकसर देखा जाता है कि बेटियां स्वयं चाहे अपने मातापिता की लेशमात्र भी इज्जत न करें परंतु भाभी से उन की इज्जत करवाना चाहती हैं. इस की अपेक्षा आप अपने मातापिता को सम्मान दें. भाभी को अनावश्यक सीख देने की कोशिश न करें.

– भाई के विवाह से पूर्व आप चाहे जैसे भी भाई का ध्यान रखती हों परंतु विवाह के बाद भाई से संबंधित समस्त अधिकार भाभी को दे दें. वह चाहे जैसे अपने पति का ध्यान रखे. आप को बीच में टोकाटाकी करने की जरूरत नहीं है.

– यदि आप अविवाहित और भाई से बड़ी हैं तो भी आप को उन की जिंदगी में बेवजह हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है. आप को समझना होगा कि अब आप के भाई की अपनी जिंदगी है.

व्यस्तता के बीच रखें स्वास्थ्य का ख्याल

भागदौड़ भरी लाइफस्टाइल में सेहत का ख्याल रख पाना एक बड़ी चुनौती बन गई है. घरेलू कामकाज और ऑफिस के काम, दिनभर की थकान और दोनों जगहों की जिम्मेदारियों के बीच तनाव का सबसे अधिक प्रभाव आपकी सेहत पर पड़ता है. इसलिए जरूरी है कि मौजूदा लाइफस्टाइल में हेल्थ को लेकर ज्यादा सजग रहा जाए. दिनभर की व्यस्तता के बीच स्वास्थ्य का ख्याल रखने के लिए बहुत ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत नहीं है. बस आपको दिनभर की दिनचर्या के बीच थोड़ा जागरूक रहने की जरूरत है. अपनी दिनचर्या के बीच अगर आप कुछ जरूरी बातों का ख्याल रखें तो आप भी सेहतमंद बने रह सकते हैं.

1. सेहत के लिए ब्रेकफास्ट है जरुरी

ब्रेकफास्ट जरूर करें सुबह घर छोड़ने से पहले यह जरूरी है कि आपने ब्रेकफास्ट जरूर करें. दिन की शुरुआत बेहतर ब्रेक फास्ट करने से दिनभर एनर्जी बनी रहती है. अगर आप ब्रेक फास्ट में भरपूर पोषक तत्व लेती हैं, तो आपको दिनभर कोई थकान नहीं महसूस होगी. दिनभर की दिनचर्या में चुस्ती-फु र्ती बनी रहेगी. दिन की शुरूआत में ब्रेकफास्ट इसलिए जरूरी होता है क्योंकि व्यस्तता में या तो आप लंच करने में देर कर देतीं हैं या टाल देतीं हैं. जिससे शरीर को उचित एनर्जी नहीं मिलती, जितनी चाहिए होती है. आमतौर पर हम व्यस्त दिनचर्या में ब्रेकफास्ट के लिए समय नहीं निकाल पाते, लेकिन हम भूल जाते हैं कि अच्छी सेहत के लिए सुबह का नाश्ता सबसे जरूरी है. कभी भी सुबह के नाश्ते से कभी भी ब्रेक न लें.

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2. कुछ भी खाने से बचे

दिन में हम जल्दबाजी में कुछ भी खाकर अपनी भूख मिटा लेते हैं और काम में व्यस्त हो जाते हैं. ऐसे में हमारी भूख तो मिट जाती है, लेकिन शरीर को जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते. अगर आप कुछ भी खाकर दिन में एक बार अपना पीछा छुड़ा लेती हैं, तो आपको पूरी एनर्जी नहीं मिल सकती. असंतुलित खानपान से बीमारियों को पनपने का पूरा मौका मिलता है, जिससे हम अक्सर बीमार पड़ जाते हैं. ज्यादातर बीमार होने की एक बड़ी वजह भी यही है कि हम संतुलित खानपान नहीं रख पाते.

3. दो छोटे – छोटे आहार अपने जीवन का हिस्सा बनाये

ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर के अलावा दो छोटे मील को दैनिक आहार में शामिल करें. दो आहार के बीच में लंबा अंतर होने से कब्ज, एसिडिटी की समस्या हो सकती है. छोटे मील में फल, हेल्दी स्नैक्स, जूस आदि को शामिल कर सकतीं हैं.

4. हेल्दी फूड पर ध्यान दें

हेल्दी फूड व्यस्तताओं के दौरान भरपूर एनर्जी देती है और इनमे सभी पोषक तत्व भी मिलते है. भूख लगने पर जो भी खाएं वो हेल्दी फूड होना चाहिए जिससे आपके शरीर को एनर्जी मिल सके. तली-भूनी चीजें या ऑयली और मसाले वाले खाने की जगह अपनी डाइट में हेल्दी फूड आइटम्स को जगह दें.

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Festive Special: घर पर बनाएं टेस्टी बेसन कचौरी

किसी भी भारतीय घर में पकौडे या कचौरी न बने ऐसे कैसे हो सकता है. इसलिए आज हम आपको बेसन से बनी कटौरी के बारे में बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को खिला सकते हैं और चाहे तो आप अपनी किटी पार्टी या मेहमानों को भी सर्व कर सकते हैं.

हमें चाहिए

बेसन – 1/2 कप,

हरी मिर्च – 02 (बारीक कटी हुई),

अदरक पेस्ट – 1/2 छोटा चम्मच,

सौंफ – 01 छोटा चम्मच (दरदरी कुटी),

जीरा – 1/2 छोटा चम्मच,

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हींग – 01 चुटकी,

गरम मसाला – 1/2 छोटाचम्मच,

आमचूर पाउडर – 1/2 छोटा चम्मच,

धनिया पाउडर – 1/2छोटा चम्मच,

लाल मिर्च – 1/4 छोटा चम्मच,

तेल – कचौरी तलने के लिये,

नमक – स्वादानुसार

कचौरी के लिए हमें चाहिए:

मैदा – 02 कप,

घी/तेल – 1/4 कप,

नमक – स्वादानुसार

बनाने का तरीका

सबसे पहले मैदा को एक बर्तन में निकाल लें. फिर उसमें पिघला हुआ घी और नमक डालें और उसे पानी की सहायता से मुलायम गूंथ लें. इसके बाद उसे एक गीले कपड़े से ढ़क कर 20 मिनट के लिए रख दें.

अब एक कढ़ाई में 2 बड़े चम्मच तेल डाल कर गर्म करें. तेल गरम होने पर उसमें जीरा और हींग डाल दें तथा उसे भून लें. जीरा भुनने के बाद अदरक पेस्ट, हरी मिर्च, लाल मिर्च डालें तथा अन्य मसाले डालें और चला कर भून लें.

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मसाले भुन जाने के बाद उसमें बेसन डालें और और उसे भी चलाते हुए भून लें. अब इस मिश्रण में अमचूर पाउडर और नमक भी मिला दें और बेसन की महक आने तक मिश्रण को अच्छी तरह से भून लें. भुनने के बाद आपकी भरावन तैयार है. इसे गैस से उतार लें और ठंडा होने दें.

अब गुंथे हुए आटे को लेकर उसकी छोटी-छोटी लोई बनाएं. लोई बनाने के बाद उसे पूरी के आकार में बेल लें. पूरी के बीच में एक छोटा चम्मच भरावन रखें और और फिर उसे चारों ओर से उठाकर बंद कर दें और पुन: उसे बेल कर पूरी के आकार का बना लें.

इसी तरह से सारी कचौरियां तैयार होने के बाद एक कढ़ाई में तेल गर्म करें और आंच कम करके उसमें कचौरियां डालें. इन्हें सुनहरा भूरा होने (लगभग 10 मिनट) तक पलट-पलट कर तलें और फिर एक अलग बर्तन में निकाल लें. अब इसे गरमागरम अपनी किटी पार्टी या फैमिली को धनिये की या इमली की चटनी के साथ परोसें.

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Festive Special: बहुओं के लिए परफेक्ट है रुबीना दिलैक की ये साड़ियां

सीरियल शक्ति-अस्तित्व के एहसास की में ‘किन्नर बहू’ के रोल से फेमस हुईं एक्ट्रेस रुबीना दिलैक के इन दिनों बिग बौस 14 में कंटेस्टेंट के रुप में नजर आ रही हैं. जहां रुबीना और उनके पति अभिनव शुक्ला फैंस के बीच काफी सुर्खियां बटोर रही हैं. लेकिन आज हम उनके शो की नही बल्कि उनके साड़ी फैशन के बारे में आपको बताएगे, जिसे आप इस फेस्टिव और वेडिंग सीजन ट्राय कर सकती हैं. साथ ही आप अपने लुक को स्टाइलिश और खूबसूरत बनाकर अपने पति और फैमिली का दिल जीत सकती हैं.

1. रेड कलर है परफेक्ट

अगर आप फेस्टिव सीजन में अपने लुक को खूबसूरत लेकिन सिंपल रखना चाहती हैं तो रुबीना की ये रेड कलर की प्लेन साड़ी के साथ हैवी एम्बौयडरी वाला ब्लाउज ट्राय करें. ये आपके लुक को रौयल बना देगा.

 

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One of my favourite places ………. #my #workplace . . . . #love #what #ido #ido #what #ilove

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2. चेक पैटर्न है परफेक्ट

 

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Work within, reflect without

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अगर आपकी हाइट छोटी है और लंबा दिखना चाहती हैं तो रुबीना की स्ट्रेट लाइन वाली चैक पैटर्न साड़ी आपके लिए अच्छा औप्शन है. ये आपके लुक को कम्पलीट कर लेगा.

3. पिंक कलर है परफेक्ट

 

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I believe in challenging the status quo…. . . . #challenge #yourself #everyday #to #do #your #best

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अगर आप नई नवेली दुल्हन हैं और फैस्टिव सीजन में कुछ सिंपल लेकिन आपकी खूबसूरती पर चार चांद लगाने वाला कलर ट्राय करना चाहती हैं तो रुबीना ये पिंक कलर की बनारसी साड़ी और उसके साथ स्काई ब्लू कलर का ब्लाउज परफेक्ट औप्शन है.

4. चैक पैटर्न है खास

इन दिनों चैक पैटर्न की साड़ियां काफी पौपुलर हैं. आप भी रुबीना की तरह इस पैटर्न की साड़ियां खरीद कर अपने लुक पर चार चांद लगा सकती हैं.

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5. यैलो कलर है परफेक्ट

अगर आप फेस्टिव सीजन में अपने लुक को भी फैस्टिव बनाना चाहती हैं तो रुबीना की ये यैलो साड़ी आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. ये आपके लुक को फैस्टिवल के लिए कम्पलीट करेगी.

मुझे हर समय मरने के खयाल आते हैं, क्या करूं?

सवाल-

मैं 34 साल और 2 बच्चों की मां हूं. मैं स्कूल टीचर हूं. मुझे हर समय मरने के खयाल आते हैं अगर मेरी तबीयत हलकी सी भी खराब हो जाए तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं मरने वाली हूं. बस से सफर करते समय ऐसा लगता है जैसे बस का ऐक्सिडैंट हो जाएगा और मैं मर जाऊंगी. ये खयाल मेरे दिमाग में हमेशा रहते हैं. जो मुझे मैंटल स्ट्रैस में डाल रहे हैं. इस डर से मैं ने बाहर आनाजाना भी छोड़ दिया है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

सबसे पहले तो इस बात पर गौर करें कि आप को ये थौट्स कब और किस सिचुएशन में आते हैं. जब भी आप को ये थौट्स परेशान करें आप उन्हें डायरी में रिकौर्ड करें. जब आप को वे थौट्स समझ आ जाएं और कि किस सिचुएशन में आते हैं यह समझ आ जाए तो फिर उन्हें पौजिटिव थौट्स से बलदने की कोशिश करें. अपना ध्यान उन चीजों पर लगाएं जो आप के नियंत्रण में हों. मैडिटेटिंग ऐक्टिविटीज का सहारा लें. अगर फिर भी सिचुएशन कंट्रोल में न आए तो थेरैपिस्ट की मदद लें.

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एकल परिवारों में जहां मातापिता दोनों नौकरीपेशा होते हैं वहां बच्चे अपनी समस्या का हल खुद ही निकालने की कोशिश करते हैं और जब वे इस में कामयाब नहीं हो पाते हैं तब कई बार आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं.

रंजना एक सिंगल पेरैंट हैं. अपनी बेटी श्रेया को ले कर वे बहुत महत्त्वाकांक्षी रही हैं. वे उसे डाक्टर बनाना चाहती थीं, परंतु श्रेया की साइंस में बिलकुल दिलचस्पी नहीं थी. यह बात वह कभी रंजना को खुल कर नहीं बता पाई. धीरेधीरे वह कुंठित होती गई. घंटों कमरे में बंद रहती. धीरेधीरे डिप्रैशन में चली गई.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- जब हों डिप्रैशन की शिकार

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अभी मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता– हिमांश कोहली

फिल्म यारियां से चर्चित होने वाले अभिनेता हिमांश कोहली दिल्ली के है. बचपन से ही उन्हें कुछ अलग और चुनौतिपूर्ण काम करने की इच्छा थी, जिसमें साथ दिया उनके माता-पिता ने. वे अभिनेता राजेश खन्ना के फैन बचपन से है और उनकी फिल्में देखना पसंद करते है. हिमांश को हर नया और अलग किरदार निभाना पसंद है और वे वैसी ही कहानियां ढूंढते है. हंसमुख और विनम्र हिमांश, अभी अपने घर पर है और पिता का व्यवसाय संभाल रहे है, क्योंकि उनकी फिल्म बूंदी रैता की शूटिंग शुरू नहीं हुई है. इस दौरान उन्हें कोरोना संक्रमण भी हुआ और वे उससे बाहर निकले और आज फिट है. उन्होंने कोरोना संक्रमण के अनुभव और अपनी जर्नी के बारें में बात की. पेश है कुछ अंश. 

सवाल-  इन दिनों आप क्या कर रहे है? 

इन दिनों घर पर दिल्ली में हूं और मैं अपनी पिता का व्यवसाय सम्हाल रहा हूं, क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री अभी रुकी हुई है. करीब 10 साल बाद मैं अपने परिवार के साथ समय बिता रहा हूं. फिल्म मेरी ड्रीम है और सेट को बहुत मिस करता हूं. यहाँ पर भी मैं खुश हूं और पूरे दिन काम पर लगा रहता हूं. 

सवाल-  कोरोना संक्रमण की वजह से इंडस्ट्री ख़राब दौर से गुजर रही है, अभी क्या करने की जरुरत है, ताकि इंडस्ट्री पटरी पर आ जाय?

कोरोना की वजह से पूरा विश्व परेशान है, केवल स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि वित्तीय और आर्थिक रूप से सभी समस्या ग्रस्त है, क्योंकि किसी ने इस बीमारी के बारें में कभी सोचा नहीं था. मेरी एक फिल्म भी पूरी तरह से शूटिंग के लिए हरिद्वार और ऋषिकेश में तैयार थी, पर वह नहीं बन पायी. इसके अलावा मेरी दूसरी फिल्म आधी बनकर पड़ी है, उसे पूरा नहीं कर पा रहे है. अभी सबको अपनी जान प्यारी है और ये सही भी है. इसलिए काम पर काफी प्रभाव पड़ा है,पर अभी सिनेमा हॉल खुल गए है, एक आशा की किरण दिख रही है. इसके अलावा बनी हुई फिल्मों को ओ टी टी प्लेटफॉर्म मिल गया जिससे उन्हें बहुत अधिक पैसा तो नहीं मिला,पर नुकसान भी नहीं हुआ. अभी वेब सीरीज की मांग बढ़ चुकी है. मुझे भी इसके ऑफ़र मिलते है, लेकिन मैं कोविड 19 से निकल चुका हूं, मेरा परिवार भी इसे भुगत चुका है. अभी डर लगा रहता है कि एक बार तो इससे मैं निकल गया अगर फिर से हो गया, तो मुश्किल होगी. इस बीमारी के बारें में जानकारी भी किसी को नहीं है, ऐसे में मैं अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देने की कोशिश कर रहा हूं और किसी भी वेब सीरीज के साथ नहीं जुड़ रहा हूं. अभी मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता, क्योंकि कोरोना का सोल्यूशन अभी तक नहीं निकला है. 

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सवाल-  कोरोना पॉजिटिव के बाद आपने खुद को कैसे संभाला?

इस वायरस का डर लोगों में बहुत है, लेकिन मेरे अंदर ये विश्वास था कि मैं और मेरा परिवार इससे निकल जाएगा. सब लोग ऐसे खुशकिस्मत नहीं. बहुतों के साथ बहुत ख़राब भी हुआ है, जिन्हें मैं जनता हूं. मुझे डर इस बात का लगता था कि अगर हमारे परिवार से किसी को भी कुछ हो जाएगा, तो पूरा परिवार बिखर जाएगा. संक्रमण के समय मेरा 15 दिन अकेले घर में बिताना बहुत मुश्किल था. मैंने उनदिनों न्यूज़ चैनल देखना बंद कर दिया था. सोशल मीडिया पर भी एक्टिव नहीं था. बहुत नकारात्मक खबरें आजकल टीवी पर दिखाए जाते है. केवल घर के 3 लोगों के साथ मेरा कनेक्शन था. स्टीम लेना, मैडिटेशन, योगा, सही खाना लेना, आदि सब किया. इससे सभी ठीक हो गए. सरकार की तरफ से डॉक्टर्स ने काफी ख्याल रखा. ये बीमारी एक सोशल स्टिग्मा है, पर हम सब, लोगों से खुद ही अलग हो गए. उम्मीद करता हूं कि इस वायरस का कुछ अच्छा समाधान हो ,ताकि सब लोग फिर से बिना डरे अपना-अपना कर सकें. अच्छा ये हुआ है कि कोरोना की वजह से लोग अपनी सुरक्षा और हायजिन पर ध्यान देने लगे है.

सवाल- अभिनय में आने की प्रेरणा कहाँ से मिली?

जब मैं मुंबई अकेला आया था, यहाँ कोई रिश्तेदार नहीं था. बचपन में मैं एस्ट्रोनॉट बनना चाहता था, जब होश सम्हाला तो पता चला कि उसमें बहुत पढाई करनी पड़ती है और मैं पढाई से दूर भागता था. इसके बाद स्कूल थिएटर करना अच्छा लगा. इसके लिए मुझे क्लास मिस करना  भी पसंद था. धीरे-धीरे अभिनय से लगाव हो गया. 

सवाल-  परिवार का सहयोग कितना रहा?

परिवार ने पढाई ख़त्म कर फिर काम करने की सलाह दी, मैंने वैसा ही किया. उनका सहयोग हमेशा रहा है. पढाई को पूरा करना बहुत जरुरी है, ताकि आपमें एक आत्मविश्वास हो, जो आगे बढ़ने के लिए जरुरी है. 

सवाल-  किस कलाकार से आप बहुत प्रभावित है? 

मेरे माता-पिता हमेशा देवानंद, राजेश खन्ना और जीतेन्द्र की फिल्में बहुत देखते थे. मुझे भी उनसे प्रेरणा मिली और मैं उनके काम को पसंद करता हूं.

सवाल-  दिल्ली से मुंबई कैसे आना हुआ?

मैं पढाई के साथ-साथ ऑडिशन देने मुंबई आता था, पर कभी कोई काम नहीं मिला. फिर मैने रेडियो ज़ोकी का काम किया और वहां कई कलाकारों से मिलने का मौका मिला, जिससे मुझे मुंबई में काम  मिला और सपना पूरा होता गया. धारावाहिक ‘हमसे है लाइफ’ के हिट होने के बाद ‘यारियां’ फिल्म मिली. उसके बाद तीन फिल्में नहीं चली. अभी मेरा संघर्ष है, अच्छी फिल्मों का मिलना. 

सवाल-  किसी फिल्म की सफलता के लिए क्या जरुरी होता है?

अच्छी कंटेंट, कहानी को सही तरह से कहा जाना, सही समय पर रिलीज करना. आज के दर्शक कुछ भी स्वीकार नहीं करते, वे शिक्षित और चूजी है. 

सवाल-  तनाव से कैसे निकलते है?

फिल्म सफल होने पर सभी आपसे मिलते है और फिल्म के सफल न होने पर लोग आपसे दूरियां बना लेते है. असफलता का वह कठिन दौर था. घर पर बैठता था. स्ट्रेस्ड रहता था. मुझे मौका मिलना मुश्किल हो रहा था, क्योंकि मैं आउटसाइडर हूं. इसके लिए मैंने अपने आपको शांत रखा. परिवार और दोस्तों से बातचीत की. इससे मुझे उससे निकलने में आसानी हुई. 

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सवाल- आपका गायिका नेहा कक्कड़ के साथ रिलेशन था, टूटने की वजह क्या रही?

4 साल से रिलेशनशिप में थे, लेकिन साल 2018 में टूट गयी. रिश्ता जुड़ नहीं पाया, जो हमारी आपसी रजामंदी से हुई, अभी हम दोनों पूरी तरह से अलग है. 

सवाल- क्या सन्देश देना चाहते है?

जीवन में आये उतार-चढ़ाव से कभी मायूस न हो और आसपास के लोगों को देखकर खुश रहे, क्योंकि हर इंसान की जिंदगी में कुछ न कुछ समस्या होती है. उससे निकलकर आगे बढ़ना ही हमारा काम होना चाहिए. 

मुझे हमेशा खुश रहना पसंद है- शिल्पा शेट्टी कुंद्रा

फिटनैस और फैशन सैंस के लिए जानी जाने वाली अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी कुंद्रा किसी परिचय की मोहताज नहीं. वे अभिनेत्री के अलावा, व्यवसायी, निर्माता, मौडल, ब्रिटिश रिऐलिटी टीवी शो ‘बिग ब्रदर 5’ की विजेता और एक सफल मां भी हैं. हिंदी फिल्मों के अलावा उन्होंने तमिल, तेलुगु और कन्नड़ भाषा में भी फिल्में की हैं. शिल्पा अपनी जिंदगी को बहुत ही संजीदगी से जीने की कोशिश करती है, इसलिए जब भी मिलती हैं खुश दिखती हैं. उन्हें फिट और स्वस्थ रहना पसंद है और इस के लिए वे हमेशा कुछ न कुछ कर सब को प्रेरित करती रहती हैं.

लौकडाउन के दौरान वे फिटनैस वीडियोज को ले कर काफी चर्चा में रहीं. वे कहती हैं कि संक्रमण के इस दौर में दुनियाभर के लोग कई तरह की मुश्किलों से गुजर रहे हैं. ऐसे में खुद को मजबूत बनाए रखना काफी जरूरी है. मैं लोगों को फिटनैस के प्रति जागरूक करना चाहती थी और इसीलिए मैं ने कई फिटनैस वीडियोज लोगों के साथ शेयर किए हैं.

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परिवार का साथ जरूरी

शिल्पा कहती हैं कि यह समय कठिन है पर कीमती है. हर व्यक्ति के मन में केवल एक ही सवाल है कि आखिर कोरोना कब खत्म होगा और यह सवाल मेरे मन में भी है. लेकिन मुझे लगता है कि मुश्किल दौर में परिवार का साथ में रहना बहुत आवश्यक है, क्योंकि इस से आप किसी भी मुश्किल घड़ी को पार कर जाते हैं. मैं भी वैसा ही करने की कोशिश कर रही हूं ताकि थोड़े दिनों बाद मु झे एक अच्छी धरती और आसपास के स्वस्थ लोग देखने को मिलें. इस समय मैं अपने बेटे वियान और बेटी समिशा के साथ समय बिता रही हूं. कोरोना ने हमें यह सीख दी है कि हम जितना सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करेंगे उतना ही खुश रह सकेंगे.

शिल्पा की फिटनैस ऐप

शिल्पा वैसे तो औनलाइन फिटनैस क्लासेज चलाती हैं, मगर हाल ही में उन्होंने एक फिटनैस ऐप भी लौंच की है. वे कहती हैं कि फिटनैस का मतलब हर व्यक्ति के लिए अलग होता है. कुछ लोग फिटनैस को स्लिम होने के साथ जोड़ते हैं. फिटनैस मेरे लिए वैलनैस से जुड़ी है और फिटनैस केवल शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक भी होती है. इन बातों को ध्यान में रखते हुए ही मैं ने फिटनैस ऐप लौंच की.

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शिल्पा के हमेशा मुसकराने के राज के बारे में उन का कहना है कि हैप्पीनैस आप के दिमाग के स्तर को बताती है. मैं हमेशा से ही खुश रहना पसंद करती हूं. अभी मैं फिल्में नहीं कर रही हूं, लेकिन मु झे लोगों का प्यार बहुत मिल रहा है. जो भी काम मैं करती हूं दर्शक मु झे बढ़ावा देते हैं. खुशी उसी का प्रतिबिंब है.

पैरिस में टीचर का गला काटना धार्मिक कट्टरवादियों की सब से घिनौनी मिसाल है 

लेखक- शाहनवाज

हम आम लोग अपने जीवन में जब किसी से नाराज हो जाते हैं, जब किसी से गुस्सा हो जाते हैं तो उस व्यक्ति के प्रति हम अपनी नाराजगी जाहिर करते हैं, अपना गुस्सा जाहिर करते है. ये नाराजगी हम कई तरह से जाहिर करते हैं. कुछ लोग किसी से नाराज हो जाने पर उस से बात करना छोड़ देते हैं. कुछ बात तो करते हैं लेकिन रूठे हुए स्वर में बात करते हैं. कुछ लोग अपनी नाराजगी उसी व्यक्ति के सामने उसे दो चार सुना कर अपने मन का बोझ हल्का कर लिया करते हैं. आधुनिक समाज में लोगों की एक दुसरे के साथ सहमती या असहमति तो होती ही है. लेकिन जो लोग धार्मिक कट्टरवाद से बीमार होते हैं, वें नाराज होने पर हमें हमेशा अपने आप को बचाने के लिए सोचना चाहिए.

जी हां. धार्मिक कट्टरवाद की बिमारी से जुझ रहे लोग यदि आप से नाराज हो जाए, गुस्सा हो जाएं या फिर आप की बात से असहमत हो जाए तो उस के नतीजे बड़े ही भयानक हो सकते है. पैरिस में कुछ दिनों पहले हुई एक घटना इस का सब से ताजा उदाहरण है की किसी भी धर्म के कट्टरपंथी पागलखाने में मानसिक रूप से बीमार लोगों से भी ज्यादा बीमार और इस समाज के लिए बड़ा खतरा है. धार्मिक कट्टरपंथी पृथ्वी में पाए जाने वाले जहरीले जीवों से भी ज्यादा जहरीले है. जहरीले जीव तो फिर भी पृथ्वी के इकोसिस्टम के लिए महत्वपूर्ण हैं, परन्तु कट्टरपंथी शरीर में पाए जाने वाले पैरासाइट की तरह होते है.

पैरिस में टीचर के साथ हुए हमले का पूरा मामला

दुनिया के नक्शे पर यूरोप कई देशों का समूह है. यूरोप में एक देश फ्रांस जिस की राजधानी पैरिस में बीते दिनों 16 अक्टूबर की दोपहर कुछ ऐसा हुआ जिस की चर्चा पुरे विश्व में हो रही है. 18 वर्षीय एक छात्र ने स्कूल के इतिहास के टीचर पर हमला किया और उन का गला रेत दिया.

और यह सब उस 18 वर्षीय छात्र ने केवल इसीलिए किया क्योंकि इतिहास के टीचर, सेमुअल पैटी अपनी क्लास में अभिव्यक्ति की आजादी (फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन) का उदाहरण देने के लिए पैगम्बर मुहम्मद से जुड़े एक कार्टून को दिखाया था. इस्लाम को मान ने वाला यह शख्स कथित तौर पर कार्टून के दिखाए जाने पर नाराज था.

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शुक्रवार 16 अक्टूबर की दोपहर 18 वर्षीय इस युवक ने कॉन्फ्लैंस सौं होनोरी नाम के एक स्कूल के पास सेमुअल पैटी (शिक्षक) पर हमला किया और इस वारदात को अंजाम दिया. स्थानीय लोगों ने पुलिस को सुचना दी. मौके पर पहुंची पुलिस ने युवक को चारो ओर से घेर लिया. युवक ने अपनी जेब से छिपाई हुई बंदूक निकाल कर धमकी देने लगा. अंत में पुलिस ने उसे गोली मारी जिस से उस की मौत हो गई.

कार्टून पर पहले भी हो चूका है कई बार विवाद

शार्ली हेब्दो द्वारा सन 2005 में डेनमार्क के एक अखबार में धार्मिक अंधविश्वासों और कट्टरपंथी विचार धारा पर चोट करते हुए, पैगम्बर मुहम्मद पर व्यंगात्मक एक कार्टून प्रकाशित किया गया था. इस के प्रकाशित होने के बाद ही इस कार्टून को ले कर दुनिया भर में भारी बवाल हुआ था. फिर इस के अगले ही साल 2006 में शार्ली एब्दो मैगजीन में इस कार्टून को छापा गया. बवाल फिर से मचा.

लेकिन सन 2015 में कुछ इस्लामी बंदूकधारियों ने फ्रांस की व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो की संपादकीय टीम को एक हत्याकांड में मार गिराया. इस हमले में कुल 12 लोगों की जान गई. जिन में 5 कार्टूनिस्ट, 1 अर्थशास्त्री, 2 एडिटर, 1 रखरखाव करने वाला श्रमिक, 1 मेहमान और 2 पुलिसकर्मी थे. इन के अलावा 11 लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए. इस पुरे हमले के दौरान हमलावर धार्मिक नारे लगा रहे थे और साथ में कह रहे थे की “हमने पैगंबर का बदला ले लिया”.

ये सब घटित होने के बाद अभिव्यक्ति की आजादी में विश्वास रखने वाले लोग, छात्रों और अन्य स्वतंत्र लोगों ने मिल कर ‘मैं भी शार्ली’ का नारा बुलंद किया.

लोगों की सहनशीलता हो रही है खत्म

ये वाकया तो शार्ली हेब्दो के द्वारा बनाए गए कार्टून का था. परंतु हम अपने जीवन में ही ऐसे कई लोगों से मिलते हैं जो की आलोचना नहीं सहन कर पाते. अक्सर लोग उन चीजो को ले कर आलोचना नहीं सहन कर पाते जिन्हें वें अपने सब से करीब महसूस करते हैं. धार्मिक लोग अक्सर लोगों के सवालों से बचते हैं. क्योंकि उन्हें अपने धर्म के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान नहीं होता. सम्पूर्ण ज्ञान तो मस्जिद में बैठे किसी मौलवी को या फिर मंदिर में बैठे किसी पंडित को भी नहीं होता. वें बस आंखे मूंद कर उन चीजो पर भरोसा कर लेते हैं जो की उन्हें किसी अन्य के द्वारा धर्म के नाम पर सिखाई जाती हैं और समझाई जाती है.

मेरे स्कूल के दिनों में विज्ञान के हमारे अध्यापक, जिन के हाथ की सभी उँगलियों पर अंगूठी रहती थी और गले में रुद्राक्ष की एक मोटी सी माला, स्कूल में सामाजिक विज्ञानं के नए टीचर के साथ उन की बहस हो गई. बात सिर्फ इतनी सी थी की नए टीचर ने उन के हाथ में सभी उँगलियों पर अंगुठियां देख उन पर तंज कसते हुए पूछा की “ये अंगुठियां शौक से पहनते हैं या फिर किसी बाबा ने हिदायत दी है पहनने के लिए?”. इतनी सी बात पर हमारे विज्ञान के टीचर उन की इस बात से चिढ़ गए. दो चार करते करते बात इतनी आगे बढ़ गई की विज्ञान वाले सर ने नए टीचर पर हाथ उठा दिया.

यदि हम अपने समाज को आधुनिक कहते है तो आधुनिकता वैज्ञानिकता को बढ़ावा देता है न की अंध विश्वास, पोंगापन और कट्टरवाद को. इतिहास में एक समय पृथ्वी पर ऐसा भी था जब धर्म ही सब से श्रेष्ठ कानून था. चाहे वह विश्व का कोई भी देश क्यों न हो, समाज का पहिया धर्म के नाम पर ही चलता था. धीरे धीरे विज्ञान ने धर्म को रिप्लेस कर दिया और इसी लिए ही हम आज कल के समाज को आधुनिक कहते हैं, जहां हर एक चीज के पीछे विज्ञान काम करता है.

परंतु लोगों के दिमाग में रूढ़ीवादी समाज का हैंगओवर अभी तक नहीं उतरा है. चाहे वह कोई भी देश का कोई भी धर्म का धार्मिक कट्टरवादी क्यों न हो, उन के लिए वही पुराना समाज जो की धार्मिक कानूनों से चलता था वही बेहतर होता है. इसीलिए वें अपने धर्म के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाने के लिए कोई भी कदम उठाने के लिए तैयार हो जाते है. यही वजह है की वें किसी तरह की कोई बहस में नहीं पड़ना चाहते. न तो आलोचना स्वीकार करते हैं और न ही उन बातों में किसी तरह का कोई तर्क मिलता है. पैरिस में इतिहास के टीचर के साथ हुई यह घटना यही जाहिर करती है की लोग कितना असहनशील हो चुके हैं. वें तर्क का जवाब तर्क से न दे कर लोगों पर हमला करने पर उतारू है.

क्या धर्म इतना ही कमज़ोर है?

पैरिस में सेमुअल पैटी के साथ हुई घटना में देखने को मिला की किस तरह से आधुनिक और एडवांस देशों में भी धार्मिक अंध विश्वास और कट्टरवाद मौजूद रहता है. एक बार फिर से यदि हम पैरिस में हुई हत्या के बारे में पुनः परिक्षण करे तो हमें समझ आएगा की सेमुअल पैटी क्लास में छात्रों को अभिव्यक्ति की आजादी (फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन) का उदाहरण देने के लिए पैगम्बर मुहम्मद पर बनाया गया कार्टून ही तो दिखा रहे थे.

यदि इस में किसी भी व्यक्ति को कुछ भी आपत्ति थी तो उसे भी तो अपनी बात कहने का पूरा हक था. लेकिन हमलावर ने तर्क का सहारा न लेते हुए सेमुअल पैटी को जान से मार दिया. आखिर ऐसा क्या था की हमलावर को हिंसा करने पर उतरना पड़ा? क्या धर्म की आलोचना करने से धर्म का अस्तित्व मिट्टी में मिल जाता है? क्या लोगों का भगवान इतना कमजोर है की अपने खिलाफ होने वाली आलोचनाएं नहीं सहन कर सकता? अगर सच में लोगों का भगवान कमजोर है तो फिर लोग कमजोर भगवान को पूजते ही क्यों हैं भला?

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फ्रांस दुनिया का एक ऐसा देश हैं जहां की जनसंख्या में हर पांचवां व्यक्ति पूर्ण रूप से नास्तिक है. इस का अर्थ है की फ्रांस एक ऐसा देश हैं जहां लोग वैज्ञानिक तरीकों से चीजो को देखते और समझते हैं. वें गाहे बगाहे ऐसे ही किसी की कही सुनी बात पर भरोसा नहीं करते. इसीलिए वहां चीजो को समझने के लिए बहस का सहारा लिया जाता है. तर्क किये जाते हैं.

अब आते हैं महत्वपूर्ण सवालों पर. धर्म की आलोचना करने पर क्या धर्म का अस्तित्व खतरे में आ जाता है? जाहिर सी बात है की जब हम किसी के अन्दर कोई कमी देखते है तभी हम उन की आलोचना करते हैं. यदि धार्मिक कट्टरवादियों को अपने धर्म में पर इतना ही भरोसा है तो वें अपने तर्कों के साथ अपनी बात को सत्यापित क्यों नहीं करते? किसी भी सभ्य समाज की पहचान यही होती है की वें बात कर के अपनी परेशानियों को दूर करते है, वैज्ञानिक तथ्यों पर यकीन करते हैं और वैज्ञानिक मूल्यों को अपने जीवन में उतारते हैं. लेकिन धार्मिक कट्टरवादी दुनिया में प्रगति कर रहे आधुनिकता को खत्म करना चाहते हैं. वें समाज को बर्बर युग में वापिस ले जाना चाहते है.

इसका एक सब से बड़ा उदाहरण है की जब आप कभी किसी कट्टरवादी से बात करे तो वें हमेशा पुराने समय की वकालत करता दिखाई देगा. चाहे वह किसी भी धर्म से क्यों न हो, चाहे वो मौलवी हो, पंडित हो, पादरी हो या कोई भी हो. धार्मिक पोंगेपन पर, अंध विश्वास पर यदि आलोचना की जाए तो वें आलोचना करने वाले पर पहले गाली गलौच फिर शारीरिक रूप से हिंसा करने पर आमादा हो उठते हैं. ऐसा लगता है मानो यही लोग धर्म के सिक्यूरिटी गार्ड हैं जो हमेशा अपने धर्म की रखवाली करते रहते हैं. आखिर इन सिक्यूरिटी गार्ड की तैनाती कौन करता है भला?

दुनिया में मौजूद बहुसंख्यक धर्म समाज में ये क्लेम करता है की इस श्रृष्टि का निर्माण उन्होंने ही किया है. अगर हम एक पल के लिए इस बात को मान भी ले, तो एक सवाल तो फिर भी हमारे मन में बरकरार रहता है. की जब किसी ने इस सम्पूर्ण श्रृष्टि का निर्माण किया है, वह अपने बनाए हुए चीज की आलोचना से डर गया? क्या इन सभी धर्मों के भगवान इतने कमजोर हैं की वें अपने ऊपर किसी आलोचना को सहन नहीं कर सकते?

इन धार्मिक कट्टरपंथियों का एक ही इलाज है

धर्म को मानने वाला हर व्यक्ति कट्टरपंथी हो ऐसा जरुरी नहीं है. परंतु समस्या तब पैदा होती है जब व्यक्ति खुद को ही सब से समझदार मान ले और बाकी किसी की भी सुनने को राजी ही न हो. धार्मिक कट्टरवाद को समाज से तब तक नहीं उखाड़ा जा सकता जब तक समाज के हर व्यक्ति तक शिक्षा अनिवार्य न कर दी जाए.

लेकिन केवल शिक्षा अनिवार्य करने से ये समस्या खत्म हो जाएगी इसकी कोई गारंटी नहीं है. जरुरी ये है की हमारी शिक्षा व्यवस्था को वैज्ञानिक आधार पर सब के लिए मुहैय्या की जाए. ऐसे शिक्षकों की नियुक्ति हो इस शिक्षण व्यवस्था में जो वैज्ञानिकी सोच रखते हो. जो प्रगतिशील हो. मेरे स्कूल में हमारे विज्ञान के टीचर की तरह नहीं जो बेशक से पेशे के लिए विज्ञान पढ़ाया करते थे लेकिन जिन्हें अपने खुद के जीवन में विज्ञान से कोई मतलब नहीं था.

हमारी सरकारों को ऐसे रोल मोडलों को समाज में स्थापित करने चाहिए जो तार्किक है, वैज्ञानिक हैं, अंध विश्वासों को तोड़ते है इत्यादि. लेकिन जब हम भारतीय परिपेक्ष में इन सब की बात करते हैं तब ये सब बहुत ही व्यर्थ लगने लगता है. क्योंकि यहां की तो सरकार ही अंध विश्वास फैलाने में माहिर है.

इसीलिए शुरुआत हमें खुद से करनी चाहिए. हम पढ़ी लिखी समझदार जमात (लोगों का समूह) के लोग एक कदम आगे बढ़ कर कम से कम अपने जीवन में फैले अंधविश्वासों को रोक लगा सकते है. पैरिस में कट्टरपंथियों द्वारा सेमुअल पैटी की मृत्यु की व्याख्या मानवता के इतिहास में सब से घिनौने कृत्य में रूप में की जानी चाहिए. और समाज में ऐसा कभी न हो इसीलिए हमें आज से कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए.

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बालाघाट के जंगलों में पहुंची विद्या बालन

कोरोना महामारी और लाॅक डाउन के चलते पिछले सात माह से पूरा विश्व ठहर सा गया था. 17 मार्च से बौलीवुड में भी सन्नाटा छाया हुआ था. पूरे सात माह बाद अब बौलीवुड में हलचलें तेज हुई हैं. कोरोना की वजह से जिन फिल्मो की शूटिंग बीच में ही ठप्प हो गयी थी,उनका फिल्मांकन शुरू हो चुका है. अक्टूबर माह के तीसरे सप्ताह में अपनी फिल्म‘‘शेरनी’’की शूटिंग करने के लिए विद्या बालन भी मध्यप्रदेश में बालाघाट के जंगलों में निर्देशक अमित मसुरकर,निर्माता विक्रम मल्होत्रा व अन्य कलाकारों के संग 21 अक्टूबर को पहुंच गयी हैं. जहां पर पूरी युनिट पीपीई किट पहने हुए थी. फिल्म की शूटिंग शुरू करने से पहले विद्या बालन,निर्माता विक्रम मल्होत्रा व पूरी युनिट ने एक पूजा की.

फिल्म‘‘शेरनी’’ में विद्या बालन एक फारेस्ट आफिसर का किरदार निभा रही हैं. फिल्म की कहानी इंसानो और जानवरों के बीच टकराव को रेखांकित करती है.

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‘‘कोविड 19’’के प्रोटोकाल का पालन करते हुए 35 दिनों के लिए पचास क्रू मेंबरो के साथ ‘शेरनी’ की युनिट बालाघाट पहुंची है. मगर शूटिंग के दौरान सेट पर सिर्फ 35 लोग ही मौजूद रहेंगे. बाकी सदस्य व कलाकार सुरक्षित जगह पर विश्राम करेंगें. खुद विद्या बालन अपने संग सिर्फ तीन सदस्यों को लेकर गयी हैं. सूत्र दावा कर रहे हैं कि युनिट के हर सदस्य का हर दिन दो बार तापमान,आक्सीजन स्तर और उनके ब्लड प्रेशर की जांच होगी तथा हर सप्ताह सभी का कोविड टेस्ट भी होता रहेगा.

सूत्रों की माने तो शूटिंग के लिए बालाघाट रवाना होने से पहले दो सप्ताह तक पूरी युनिट के साथ वच्र्युअल मीटिंग कर तय किया गया कि किस तरह सामाजिक दूरी बरकरार रखते हुए, हर तरह के सुरक्षा उपायों के साथ शूटिंग करनी होगी. इतना ही नही जंगल में शूटिंग होने के चलते हर दिन सुबह दस बजे से शाम पांच बजे तक ही शूटिंग की जा सकेगी. यदि किसी दिन सूर्य जल्द अंधेरा फैला देंगे,तो उस दिन पांच बजे से पहले भी शूटिंग खत्म करनी पड़ सकती है. उसके बाद होटल में दूसरे दिन फिल्माए जाने वाले दृश्यों को लेकर पटकथा की रीडिंग की जाएगी.

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