सनकीन चीक्स को कैसे ट्रीट करें

खूबसूरत दिखने के लिए खूबसूरत चेहरा होना बहुत जरूरी है. और खूबसूरत चेहरा तभी दिखेगा जब आपके नाक , लिप्स, आंखों के साथ साथ आपके गाल भी खूबसूरत हो. लेकिन जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है और कई बार तो उम्र से पहले ही हमारे गाल पिचकने लगते हैं. जो न सिर्फ हमारी खूबसूरती को बिगाड़ने का काम करते हैं बल्कि हमारे आत्मविश्वास को भी कम करते हैं. इसके पीछे मुख्य रूप से 2 कारण होते हैं एक तो हमारी डाइट में पौष्टिक तत्वों का अभाव और दूसरा कारण जैसे ही उम्र बढ़ने लगती है, हमारी स्किन में कोलेजन का उत्पादन कम होने लगता है , जिससे स्किन अपनी इलास्टिसिटी और मोटाई खोने लगती है. जिससे धीरे धीरे स्किन में ढीलापन , झुर्रियां पड़ने के साथ साथ स्किन डल दिखनी शुरू हो जाती है.

बता दें कि जब स्किन का लचीलापन कम हो जाता है तो स्किन खासकर के चेहरे से अपनी बनावट खोनी शुरू कर देती है, जिसमें गालों का अंदर डंसना शामिल है. खासकर उम्र बढ़ने की स्तिथि में शरीर से सबक्यूटेनियस फैट यानि त्वचा के नीचे वाला फैट कम होने लगता है. जिससे स्किन ढीली पड़ने के साथ साथ अपनी ब्यूटी खो देती है. इस बारे में जानते हैं derma puritys की ललिता आर्या से कि सनकीन चीक्स किन कारणों से होता है और इसे कैसे कम किया जा सकता है.

कौन कौन से कारण है जिम्मेदार

1. एजिंग-

इसके लिए उम्र बढ़ने को जिम्मेदार माना जाता है. क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ साथ शरीर से फैट कम होने लगता है. खासकर के चेहरे से , जिसके कारण से सनकीन चीक्स की समस्या पैदा होती है.

2. बीमारी के कारण –

आपने देखा होगा कि जब भी हम बीमार होते हैं तो हमारा मुंह पिचका पिचका सा लगने लगता है, जो हमारे स्वस्थ होने के साथ ठीक होना शुरू कर देता है. लेकिन जब बीमारी गंभीर होती है, जिसके कारण हमें हर समय कमजोरी रहने लगती है और वजन भी कम होने लगता है, तो उसका सीधा असर हमारी फेसिअल स्किन पर पड़ता है. जिससे ये समस्या उत्पन होती है.

3. अनहैल्दी डाइट-

कहते हैं न कि हमारे खानपान का हमारी स्किन पर सीधा असर पड़ता है. अगर हमारी डाइट अच्छी होती है तो हमारी स्किन भी जवां दिखती है वरना अच्छी डाइट के अभाव में स्किन डल व मुरझाई मुरझाई सी लगती है. अगर हमारे खाने पीने में विटामिन्स व मिनरल्स की कमी होती है तो स्किन के कुछ खास हिस्सों से फैट खत्म होने के कारण स्किन की नेचुरल ब्यूटी खत्म होने लगती है. इसलिए जरूरी है कि आप हैल्दी ईटिंग हैबिट्स को अपनाएं.

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4. स्मोकिंग –

स्मोकिंग हमारी ओवरआल हैल्थ के लिए हानिकारक होता है और जब भी हम स्मोकिंग करते हैं तो इसमें मौजूद निकोटीन आपकी स्किन में ब्लड सर्कुलेशन को प्रभावित करता है, साथ ही कोलेजन के उत्पादन को भी कम करता है, जिससे स्किन की इलास्टिसिटी कम होने से स्किन लटकी, पिचकी व समय से पहले उस पर बुढ़ापा झलकने लगता है. कह सकते हैं कि स्मोकिंग हमारे फेसिअल लुक को बहुत अधिक प्रभावित करने का काम करती है.

5. डीहाइड्रेशन –

अगर आप पर्याप्त मात्रा में पानी पीती हैं तो इससे आपकी स्किन को नवीनीकृत करने व त्वचा की नमी बनाएं रखने में मदद मिलती है. साथ ही इसके माध्यम से स्किन सेल्स तक सभी जरूरी न्यूट्रिएंट्स मिल जाते हैं , जो स्किन की इलास्टिसिटी को बढ़ाने का काम करते हैं . लेकिन अगर हम पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पीते हैं तो स्किन का ग्लो जाने के साथ साथ सनकीन चीक्स जैसी प्रोब्लम्स होने लगती है. इसलिए खुद को हाइड्रेट रखना बहुत जरूरी है.

6. स्ट्रेस-

कहते हैं न कि स्ट्रेस न सिर्फ हमें अंदर से बल्कि हमारी ब्यूटी पर भी अटैक करने का काम करता है. स्ट्रेस के कारण धीरे धीरे स्किन अपनी रंगत खोने लगती है. जिससे स्किन एजिंग, गालों का मुरझाकर सिकुड़ना आदि समस्या हो जाती है. इसलिए जितना हो सके स्ट्रेस से दूर रहें. हर बात को पॉजिटिव तरीके से सोचने की कोशिश करें.

7. नींद में कमी-

अच्छी नींद न सिर्फ हमें स्ट्रेस से दूर रखने का काम करती है बल्कि ऐसे हॉर्मोन्स को उत्पन करने में भी मदद करती है , जो स्किन को उसकी वास्तविक स्तिथि में रखने में मदद करते हैं. . लेकिन जब हमारी नींद पूरी नहीं होती है तो स्किन की इलास्टिसिटी कम होने के साथ साथ ढेरों तरह की स्किन प्रोब्लम्स हो जाती हैं.

क्या है इसका ट्रीटमेंट

वैसे तो इसके लिए ढेरों तरह के ट्रीटमेंट्स उपलब्ध हैं. लेकिन आजकल अधिकांश लोग इसके लिए फिलर्स और सर्ज़री की मदद लेकर अपने गालों में उभार लाकर अपनी खोई सुंदरता को वापिस लौटा रहे हैं. आपको बता दें कि ह्यलुरोनिक एसिड फिलर्स व सोफ्ट टिश्यू फिलर्स द्वारा आमतौर पर सनकीन चीक्स का इलाज किया जाता है. यहां तक कि इसके इलाज के लिए कई बार सर्जन लिपोसक्शन का इस्तेमाल करके फैट को अफेक्टेड एरियाज में ट्रांसफर करते हैं. सनकीन चीक्स को ठीक करने के लिए कोलेजन स्टिम्युलेटर्स का भी इस्तेमाल किया जाता है. यह शरीर द्वारा कोलेजन के उत्पादन को उत्तेजित करने और दोबारा से गालों में उभार लाने का तरीका है.

कुछ घरेलू नुस्खे भी इसमें कारगर साबित होते हैं –

– फेसिअल एक्सरसाइज- बता दें कि एक्सरसाइज से फेसिअल मसल्स हैल्दी रहती हैं. इसके लिए आप अपने मुंह में हवा भरकर थोड़ी देर इसी स्तिथि में रहें. इससे गालों के पिचकने की प्रोब्लम सोल्व होगी.

– डाइट- अगर आप हैल्दी डाइट लेंगे तो इससे शरीर में हैल्दी फैट की मात्रा सही रहेगी. और जब हैल्दी फैट होगा तो सनकीन चीक्स से भी आप दूर रहेंगे या फिर अगर प्रोब्लम हो गई है तो आप अपनी डाइट से इसे इम्प्रूव कर सकते हैं.

– घी को शामिल करें खाने में- अकसर हम हैल्थ क्योंसकिउस होने की वजह से अपनी डाइट में से घी को आउट कर देते है, जो सही नहीं है. क्योंकि स्किन में फैट की कमी होने के कारण गालों के अंदर डसने की प्रोब्लम होती है. जबकि आपको बता दें कि घी में एसेंशियल फैटी एसिड्स होते हैं, जो स्किन को हाइड्रेट व मोइस्चर प्रदान करने का काम करते हैं. साथ ही घी को एजिंग को रोकने में भी कारगर माना जाता है. इसलिए अपनी डाइट में घी को जरूर शामिल करें.

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– मेथीदाने- अगर आप अपने गालों को सुंदर व गोल माटोल बनाना चाहते हैं तो रोजाना मेथीदाने का सेवन करें. क्योंकि मेथीदाने में एन्टिओक्सीडैंट्स और विटामिन्स होते हैं , जो चेहरे में कसाव लाने का काम करते हैं. इसके लिए आप इसका पानी भी पी सकते हैं या फिर इसके पेस्ट को गालों पर लगा सकते हैं.

– जैतून का तेल- जैतून का तेल स्किन के लिए काफी लाभकारी होता है. इसके लिए आप आप रोज़ाना जैतून के तेल से मालिश करें. इससे गालों को सही आकार मिलेगा.

– एलोवीरा है फायदेमंद- रोजाना एलोवीरा से स्किन की मसाज करने से एजिंग की समस्या नहीं होती है, क्योंकि इसमें विटामिन सी और इ होता है, जो इसे एजिंग को रोकने का काम करता है.

आज कॉम्पिटिशन बहुत है – रेनू ददलानी

क्लासिक और ट्रेडिशनल डिजाईन को सालों से अपने पोशाको में शामिल करने वाली डिज़ाइनर रेनू ददलानी दिल्ली की है. उन्होंने हमेशा कुछ अलग और चुनौतीपूर्ण डिजाईन को बनाने की कोशिश की है, जिसमें साथ दिया उनके परिवार वालों ने. उनके हिसाब से पारंपरिक एथनिक ड्रेस कभी पुराने नहीं होते, इसे एक जेनरेशन से दूसरा जेनरेशन आराम से पहन सकता है. डिज़ाइनर रेनू ददलानी के नाम से प्रसिद्ध उनकी ब्रांड हर जगह पौपुलर है. कोरोना संक्रमण में डिज़ाइनर्स समस्या ग्रस्त है, लेकिन रेनू के पोशाक किसी भी खास अवसर पर पहनने लायक और विश्वसनीय होने की वजह से उनके व्यवसाय पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ा है. उनकी खासियत चिकनकारी, पारसी गारा और कश्मीरी कढ़ाई जैसे जमवार, तिला अदि है, जिसमें साड़ी, लहंगा, कुर्ती आदि हर तरह के पोशाक मिलते है. पिछले 20 सालों से वह इस क्षेत्र में है. रेनू से उनकी लम्बी जर्नी के बारें में बात हुई, पेश है कुछ अंश.

सवाल-आपको इस फील्ड में आने की प्रेरणा कहां से मिली?

मुझे हमेशा से डिज़ाइनर आबू जानी के कपडे पसंद थे. पहले मैं गारमेंट की फील्ड में नहीं थी, लेकिन जब मैंने निर्णय लिया, तो हैण्डक्राफ्ट लक्जरी में ही काम करने को सोची. गाँव के कारीगरों को लेकर काम करना शुरू किया और उनके काम को फैशन में शालीनता का रूप दिया. इसके लिए मैंने कोई कौम्प्रमाइज नहीं किया. मैंने क्राफ्ट के बारें में पूरी अध्ययन कर फिर काम करना शुरू किया था. जैसे चिकनकारी के स्टिचेस कई तरीके के होते है, जिसे आम इंसान नहीं समझ पाता. इसे मैंने स्टडी से जाना और पहचाना. मेरी कामयाबी के पीछे मेरे कारीगर है, जिन्हें मेरी सोच को कपडे पर बखूबी उतारना आता है. 

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सवाल- कारीगरों का सहयोग आपके साथ कैसा रहता है? 

उनका सहयोग सालों से रहा है. कारीगर केवल काम ही नहीं करते थे, बल्कि वे इस कला को जीते है. लखनऊ, श्रीनगर, कोलकाता आदि जगहों पर सूदूर गांव में रहकर भी वे अपने काम को लेकर बहुत ही जोशीले होते है, क्योंकि उससे ही उनकी रोजी रोटी भी चलती है. मेरी ब्रांड ने इन्हें उनकी कारीगरी की पहचान करवाकर, उन्हें एक अलग अच्छी जिंदगी दी है. साथ ही इस हैण्डक्राफ्ट को विश्व में भी फ़ैलाने के बारें में सोचा है, क्योंकि विश्वसनीय चिकनकारी, जामवार, पारसी गारा के कपडे मिलना आज बहुत मुश्किल है. 

सवाल- आपने दो दशकों से काम किया है, फैशन वर्ल्ड में कितने बदलाव आये है? 

अभी लोग हैण्ड क्राफ्ट के बारें में अधिक जागरूक हो चुके है. लोग कम खरीदते है. पर ऐसी चीजे खरीदते है, जिसका फैशन कभी न जाएँ. मेरे सभी पोशाक लेगेसी के रूप में है, जो एक जेनरेशन से दूसरे जेनरेशन को दिया जा सकता है. इसका मूल्य दिन प्रतिदिन बढ़ता जाता है. 

सवाल- इस बार फैशन में कौन से रंग है?

उत्सव में मिंट ग्रीन, वेडिंग में पेस्टल और अर्दी कलर्स. ब्राइडल पोशाक में गरारा, शरारा और लहंगा. 

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सवाल- आपने एक लम्बी जर्नी तय की है, कितना मुश्किल था, क्या-क्या समस्याएं आई?

शुरू-शुरू में बहुत मुश्किल था, क्योंकि मैं कढ़ाई के बारें में पूरी जानकारी रखना चाहती थी. इसके लिए मैंने बहुत ट्रेवल किया, कारीगरों से मिली. सभी कारीगर रिमोट गाँव में रहते है. मैंने इसके बारें में पढ़ी. कपडे बनाने की ये प्रक्रिया आसान नहीं. डाईंग, प्रींटिंग, सैंपलिंग, कढ़ाई करना आदि बहुत सारे काम होते है. अंतिम एक प्रौडक्ट बनने में 6 महीने से दो साल तक लगते है. इसके लिए सही देख-रेख बहुत जरुरी होता है, ताकि जो डिजाईन मैने सोचा है, वह 6 महीने बाद वैसा ही बनकर आयेगा, इसकी गारंटी नहीं होती. मैं खुशनसीब हूँ कि मेरे कारीगर हमेशा अपना सबसे अच्छा काम कर देते है, जो हमें चाहिए. 20 साल से वे सभी कारीगर आजतक जुड़े है और वे जानते है कि मुझे क्या चाहिए, इसलिए अधिक समस्या नहीं होती. हर बार अलग डिजाईन देना बहुत कठिन होता है, पर मैं देती हूँ. यही वजह है कि मेरे ग्राहक मुझसे हमेशा जुड़े रहते है. हर बार हम नया और बेहतर चीज उन्हें दिया जाता है. क्वालिटी और काम में किसी भी प्रकार की कमी मैं नहीं करती. आज कॉम्पिटिशन बहुत है, इसलिए अच्छा काम देना जरुरी है. 

सवाल- आपने अपने काम की शुरुआत कितने बजट से किया?

मैंने सूती चिकनकारी सूट से, जिसके लिए 50 हज़ार रूपये लगे थे, काम शुरू किया था. अभी 100 कारीगर मेरे साथ है और ये सभी एक परिवार की तरह मेरे साथ जुड़े हुए है. इसके अलावा मेरे साथ टीम में कई लोग बहुत एक्टिव है, जिसकी वजह से मुझे अधिक ट्रेवल नहीं करना पड़ता और काम हो जाता है. 

सवाल- फैशन को लक्जरी में माना जाता है और अभी कोरोना संक्रमण की वजह से डिज़ाइनर्स के आगे एक बड़ी चुनौती है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

कोविड 19 सबके लिए चुनौती है, लेकिन मेरे पोशाक के लिए ये समय सकारात्मक है, क्योंकि पहले लोग बाज़ार जाकर सामान खरीदते है, अब वे ऑनलाइन शौपिंग कर रहे है. ऑनलाइन स्टडी कर उन्हें पता चलता है कि हैण्ड क्राफ्ट का फैशन कभी नहीं जायेगा. आजकल लोग कम, थॉटफुल शौपिंग और वैल्यू फॉर मनी को अधिक देखते है. सस्टेनेबिलिटी जो आज कही जाती है, उसे मैंने आज से 20 साल पहले से ही ध्यान दिया था और ग्राहकों में जागरूकता फैलाई थी. 

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सवाल- फैशन को अपडेट कैसे करती है?

मैं साल में 2 से 3 बार अपडेट करती हूँ. इसमें डिजाईन, फैब्रिक्स, कलर्स, मोटिफ्स आदि के साथ बदलाव करते है. कढ़ाई तो बदला नहीं जा सकता, इन सब चीजो का बदलाव कर उनमें नया लुक लाते है. इसमें कारीगरों का ख़ास हाथ होता है, क्योंकि वे मेरी डिजाईन को उसी रूप में कपड़ो पर उकेरते है. 

सवाल- आपकी ब्रांड महिला सशक्तिकरण पर कितना काम करती है?

सारा काम वुमन इम्पावरमेंट पर ही होता है. 90 प्रतिशत सशक्त कारीगर महिलाएं ही है. चिकनकारी में सारी महिलाएं है. कोविड 19 के समय में मेरा काम चलता रहा. उनको घर से काम करने की सहूलियत दी है. उनको पूरे पैसे दिए जाते है.  ये कारीगर लखनऊ, श्रीनगर और कोलकाता के रिमोट गाँवों में रहते है. 

सवाल- आगे की योजनायें क्या है?

मेरी योजना है कि मैं अपनी ब्रांड को और अधिक लोगों तक पहुँचाऊ और लोगों को हैण्डक्राफ्ट के बारें में जागरूकता फैलाऊ, ताकि ये कला अदृश्य न हो जाय. 

सवाल- आपके काम में परिवार का सहयोग कितना रहा?

इस बारें में मैं बहुत लकी हूँ. परिवार के सहयोग के बिना कोई महिला काम नहीं कर सकती. मेरे पति ने, जब बच्चे छोटे थे, तब से लेकर आजतक सहयोग कर रहे है. उनके खुद का व्यवसाय होने के बावजूद वे सुबह से शाम तक मेरे सवाल-र्शनी में रहते थे. वित्तीय से लेकर, मानसिक, हर समय उन्होंने मेरा साथ दिया है. बच्चों ने भी मुझे बहुत सहयोग दिया है. वे अलग क्षेत्र में है, पर मेरी दो बहुएं है, वे मेरे व्यवसाय को आगे सम्हाल लेगी. 

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सवाल- क्या महिलाओं के लिए कोई सन्देश देना चाहती है?

सभी कामकाजी महिलाएं, जो इस समय घर और ऑफिस दोनों को सम्हाल रही है. उनके लिए ये समय कठिन अवश्य है, लेकिन महिलाओं को आत्मनिर्भर होना बहुत जरुरी है, जिससे उनका आत्मसम्मान बनी रहे. 

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जब आए जोड़ों से कटकट की आवाज

– डा. अखिलेश यादव, वरिष्ठ प्रत्यारोपण सर्जन, जॉइंट रिप्लेसमेंट, सेंटर फौर नी एंड हिप केयर, गाजियाबाद

क्या आप के जोड़ों में भी उठतेबैठते अचानक कटकट की आवाज आती है? क्या चलतेचलते अचानक जोड़ों के चटकने की आवाज आती है? वगैरह. यदि आप के साथ ऐसा हो रहा है तो सतर्क हो जाएं, क्योंकि सामान्य दिखने वाली यह कटकट की आवाज हड्डियों की एक बड़ी बीमारी का संकेत हो सकता है.

कटकट या हड्डी चटकने की इस आवाज को मैडिकल भाषा में क्रेपिटस कहा जाता है. इस स्थिति को ‘नी पौपिंग’ भी कहा जाता है. इस समस्या का कारण जोड़ों के भीतर मौजूद द्रव के साथ जुड़ा हुआ है. इस द्रव में हवा के कारण बने बुलबुले फूटने लगते हैं, जिस के कारण जोड़ों में कटकट की आवाज आती है.

यदि कटकट की आवाज के अलावा कोई अन्य समस्या नहीं है तो आप को घबराने की आवश्यकता नहीं है. लेकिन यदि इस के साथ अन्य लक्षण भी जुड़े हुए हैं, तो आप को जल्द से जल्द समस्या की जांच की जरूरत है. जब जोड़ों के मूवमेंट के दौरान वहां मौजूद कार्टिलेज घिसने लगते हैं, तो ऐसे में क्रेपिटस की समस्या होती है. जब इस समस्या में आवाज के साथ दर्द की शिकायत भी होने लगे तो समझिए कि समस्या गंभीर हो गई है.

यह समस्या गठिया या जोड़ों में लुब्रिकेंट की कमी का संकेत हो सकती है. इसलिए लापरवाही दिखाना आप के स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकता है.

कटकट की आवाज कब आती है?

जोड़ों में क्रेपिटस यानी आवाज की समस्या जोड़ों के मुड़ने, स्क्वाट्स करने, सीढ़ियां चढ़नेउतरने, कुरसी या जमीन से उठनेबैठने आदि के दौरान हो सकती है. आमतौर पर इस समस्या में चिंता वाली कोई बात नहीं है. लेकिन यदि कार्टिलेज रफ हो जाए, तो यह धीरेधीरे आस्टियोपोरोसिस की बीमारी में बदल जाती है.

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आस्टियोपोरोसिस एक प्रकार की गठिया की बीमारी है. इस बीमारी में हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, जिस से फ्रेक्चर का खतरा बहुत ज्यादा रहता है.

आस्टियोपोरोसिस के अन्य कारणों में खानपान, बदलती लाइफस्टाइल, व्यायाम की कमी, शराब का अत्यधिक सेवन, शरीर में कैल्शियम, विटामिन डी और प्रोटीन की कमी आदि शामिल हैं.

समस्या की रोकथाम

हड्डियों की इस समस्या में मरीज को कैल्शियम का सेवन करने के लिए कहा जाता है. क्रेपिटस या आस्टियोपोरोसिस के मरीज को एक दिन में 1,000-1,500 मिलीग्राम कैल्शियम का सेवन करना चाहिए. दूध और दूध से बनी चीजें, हरी पत्तेदार सब्जियां, फल, ओट्स, ब्राउन राइस, सोयाबीन आदि के सेवन से कैल्शियम की कमी को पूरा किया जा सकता है.

रात को आधा चम्मच मेथी के दाने भिगो लें, सुबह उन्हें चबाचबा कर खाएं और फिर उस का पानी पी लें. नियमित रूप से ऐसा करने से जोड़ों से कटकट की आवाज आनी बंद हो जाएगी.

इस के अलावा भुने चने के साथ गुड़ खाने से भी कटकट की आवाज दूर होती है. इस में मौजूद कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन और विटामिन हड्डियों को मजबूती प्रदान करते हैं.

विटामिन डी का सब से अच्छा स्रोत सूरज की रोशनी है. हर दिन 15 मिनट के लिए धूप में बैठने से हड्डियों की कमजोरी दूर होती है. इसलिए सर्दी हो या गरमी, सुबह की कुनकुनी धूप का अनंद लेना कभी न भूलें.

टहलने और दौड़ने से न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक क्षमता भी बढ़ती है. वजन उठाने वाली कसरत, चलना, दौड़ना, सीढ़ियां चढ़ना, ये व्यायाम हर उम्र में हड्डियों को स्वस्थ बनाए रखने में लाभदायक हैं. इस के अलावा डांस भी एक बेहतरीन एक्सरसाइज है. इसे करने में हर किसी को मजा भी आता है और हड्डियां भी सेहतमंद बनी रहती हैं.

वर्कआउट से पहले वार्मअप जरूर करें, क्योंकि वार्मअप हड्डियों और मांसपेशियों को लचीला बना देता है, जिस से जोड़ों में आवाज की समस्या की शिकायत नहीं होती है.

यदि आप का वजन बहुत ज्यादा है, तो वजन को कम करें, क्योंकि मोटापा गठिया की समस्या का कारण बनता है.

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हड्डियों को मजबूत बनाना है तो धूम्रपान बंद कर दें और शराब का कम से कम सेवन करें. वहीं दूसरी ओर पानी का ज्यादा से ज्यादा सेवन करें, क्योंकि पानी कई बीमारियों का रामबाण इलाज होने के साथसाथ यह हड्डियों को भी मजबूत व लचीला बनाता है.

क्यों बढ़ रही बच्चों की नाराजगी

एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक युवा बच्चे आजकल बड़ी संख्या में साइकोलौजिस्ट के पास जाने लगे हैं. इसे तनाव व दुश्चिंता की महामारी के रूप में देखा जा सकता है. आलम यह है कि युवा खुद को हानि पहुंचाने से भी नहीं डरते. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आज जबकि बच्चों के पास मोबाइल, लैपटौप से ले कर अच्छे से अच्छे कैरियर औप्शंस और अन्य सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं तो फिर उन के मन में पेरैंट्स के प्रति नाराजगी और जिंदगी से असंतुष्टि क्यों है?बच्चों के साथ कुछ तो गलत है. कहीं न कहीं बच्चों के जीवन में कुछ बहुत जरूरी चीजें मिसिंग हैं और उन में सब से महत्त्वपूर्ण है घर वालों से घटता जुड़ाव और सोशल मीडिया से बढ़ता लगाव. पहले जब संयुक्त परिवार हुआ करते थे तो लोग मन लगाने, जानकारी पाने और प्यार जताने के लिए किसी गैजेट पर निर्भर नहीं रहते थे. आमनेसामने बातें होती थीं. तरहतरह के रिश्ते होते थे और उन में प्यार छलकता था. मगर आज अकेले कमरे में मोबाइल या लैपटौप ले कर बैठा बच्चा लौटलौट कर मोबाइल में हर घंटे यह देखता रहता है कि क्या किसी ने उस के पोस्ट्स लाइक किए? उस की तसवीरों को सराहा? उसे याद किया?

आज बच्चों को अपना अलग कमरा मिलता है जहां वे अपनी मरजी से बिना किसी दखल जीना चाहते हैं. वे मन में उठ रहे सवालों या भावों को पेरैंट्स के बजाय दोस्तों या सोशल मीडिया से शेयर करते हैं. अगर पेरैंट्स इस बात की चिंता करते हैं कि बच्चे मोबाइल या लैपटौप का ओवरयूज तो नहीं कर रहे तो वे उन से नाराज हो जाते हैं. केवल अकेलापन या सोशल मीडिया का दखल ही बच्चों की पेरैंट्स से नाराजगी या दूरी की वजह नहीं. ऐसे बहुत से कारण हैं जिन की वजह से ऐसा हो रहा है:

1. बढ़ती रफ्तार

फैशन, लाइफस्टाइल, कैरियर, ऐजुकेशन सभी क्षेत्रों में आज के युवाओं की रफ्तार बहुत तेज है. सच यह भी है कि उन्हें इस रफ्तार पर नियंत्रण रखना नहीं आता. सड़कों पर युवाओं की फर्राटा भरती बाइकें और हादसों की भयावह तसवीरें यही सच बयां करती हैं. ‘करना है तो बस करना है, भले ही कोई भी कीमत चुकानी पड़े’ की तर्ज पर जिंदगी जीने वाले युवाओं में विचारों के झंझावात इतने तेज होते हैं कि वे कभी किसी एक चीज पर फोकस नहीं कर पाते. उन के अंदर एक संघर्ष चल रहा होता है, दूसरों से आगे निकलने की होड़ रहती है. ऐसे में पेरैंट्स का किसी बात के लिए मना करना या समझाना उन्हें रास नहीं आता. पेरैंट्स की बातें उन्हें उपदेश लगती हैं.

मातापिता की उम्मीदों का बोझ: अकसर मातापिता अपने सपनों का बोझ अपने बच्चों पर डाल देते हैं. वे जिंदगी में खुद जो बनना चाहते थे न बन पाने पर अपने बच्चों को वह बनाने का प्रयास करने लगते हैं, जबकि हर इंसान की अपनी क्षमता और रुचि होती है. ऐसे में जब पेरैंट्स बच्चों पर किसी खास पढ़ाई या कैरियर के लिए दबाव डालते हैं तो बच्चे कन्फ्यूज हो जाते हैं. वे भावनात्मक और मानसिक रूप से टूट जाते हैं और यही बिखराव उन्हें भ्रमित कर देता है. पेरैंट्स यह नहीं समझते कि उन के बच्चे की क्षमता कितनी है. यदि बच्चे में गायक बनने की क्षमता और इच्छा है तो वे उसे डाक्टर बनाने की कोशिश करते हैं. बच्चों को पेरैंट्स का यह रवैया बिलकुल नहीं भाता और फिर वे उन से कटने लगते हैं.

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समय न देना

आजकल ज्यादातर घरों में मांबाप दोनों कामकाजी होते हैं. बच्चे भी 1 या 2 से ज्यादा नहीं होते. पूरा दिन अकेला बच्चा लैपटौप के सहारे गुजारता है. ऐसे में उस की ख्वाहिश होती है कि उस के पेरैंट्स उस के साथ समय बिताएं. मगर पेरैंट्स के पास उस के लिए समय नहीं होता.

दोस्तों का साथ

इस अवस्था में बच्चे सब से ज्यादा अपने दोस्तों के क्लोज होते हैं. उन के फैसले भी अपने दोस्तों से प्रभावित रहते हैं. दोस्तों के साथ ही उन का सब से ज्यादा समय बीतता है, उन से ही सारे सीक्रैट्स शेयर होते हैं और भावनात्मक जुड़ाव भी उन्हीं से रहता है. ऐसे में यदि पेरैंट्स अपने बच्चों को दोस्तों से दूरी बढ़ाने को कहते हैं तो बच्चे इस बात पर पेरैंट्स से नाराज रहते हैं. पेरैंट्स कितना भी रोकें वे दोस्तों का साथ नहीं छोड़ते उलटा पेरैंट्स का साथ छोड़ने को तैयार रहते हैं.

गर्ल/बौयफ्रैंड का मामला

इस उम्र में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण चरम पर होता है. वैसे भी आजकल के किशोर और युवा बच्चों के लिए गर्ल या बौयफ्रैंड का होना स्टेटस इशू बन चुका है. जाहिर है कि युवा बच्चे अपने रिश्तों के प्रति काफी संजीदा होते हैं और जब मातापिता उन्हें अपनी गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड से मिलने या बात करने से रोकते हैं तो उस वक्त उन्हें पेरैंट्स दुश्मन नजर आने लगते हैं.

दिल टूटने पर पेरैंट्स का रवैया

इस उम्र में दिल भी अकसर टूटते हैं और उस दौरान वे मानसिक रूप से काफी परेशान रहते हैं. ऐसे में पेरैंट्स की टोकाटाकी उन्हें बिलकुल सहन नहीं होती और वे डिप्रैशन में चले जाते हैं. पेरैंट्स से नाराज रहने लगते हैं. उधर पेरैंट्स को लगता है कि जब वे उन के भले के लिए कह रहे हैं तो बच्चे ऐसा क्यों कर रहे हैं? इस तरह पेरैंट्स और बच्चों के बीच दूरी बढ़ती जाती है.

बच्चे तलाशते थ्रिल

युवा बच्चे जीवन में थ्रिल तलाशते हैं. दोस्तों का साथ उन्हें ऐसा करने के लिए और ज्यादा उकसाता है. ऐसे बच्चे सब से आगे रहना चाहते हैं. इस वजह से वे अकसर अलकोहल, रैश ड्राइविंग, कानून तोड़ने वाले काम, पेरैंट्स की अवमानना, अच्छे से अच्छे गैजेट्स पाने की कोशिश आदि में लग जाते हैं. युवा मन अपना अलग वजूद तलाश रहा होता है. उसे सब पर अपना कंट्रोल चाहिए होता है, पर पेरैंट्स ऐसा करने नहीं देते. तब युवा बच्चों को पेरैंट्स से ही हजारों शिकायतें रहने लगती हैं.

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जो करूं मेरी मरजी

युवाओं में एक बात जो सब से आम देखने में आती है वह है खुद की चलाने की आदत. आज लाइफस्टाइल काफी बदल गया है. जो पेरैंट्स करते हैं वह उन के लिहाज से सही होता है और जो बच्चे करते हैं वह उन की जैनरेशन पर सही बैठता है. ऐसे में दोनों के बीच विरोध स्वाभाविक है.

ग्लैमर और फैशन

मौजूदा दौर में फैशन को ले कर मातापिता और युवाओं में तनाव होता है. वैसे भी पेरैंट्स लड़कियों को फैशन के मामले में छूट देने के पक्ष में नहीं होते. धीरेधीरे उन के बीच संवाद की कमी भी होने लगती है. बच्चों को लगता है कि पेरैंट्स उन्हें पिछले युग में ले जाना चाहते हैं.

हर क्षेत्र में प्रतियोगिता

आज के समय में जीवन के हर क्षेत्र में प्रतियोगिता है. बचपन से बच्चों को प्रतियोगिता की आग में झोंक दिया जाता है. पेरैंट्स द्वारा अपेक्षा की जाती है कि बच्चे हमेशा हर चीज में अव्वल आएं. उन का यही दबाव बच्चों के जीवन की सब से बड़ी ट्रैजिडी बन जाता है.

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नवरात्रि फेस्टिवल स्पेशल: बनाएं Healthy और टेस्टी आलू का हलवा

नवरात्रि के मौके पर घर में कई पकवान बनते हैं. लेकिन क्या आपने कभी अनिक घी से बना हुआ आलू का हलवा ट्राय किया है. ये खाने में टेस्टी और व्रत में आसानी से बनने वाली डिश है, जिसे आप और आपकी फैमिली बनाकर खा सकते हैं. नवरात्रि में अनिक घी से बना आलू का हलवा एक बहुत ही healthy और स्वादिष्ट डिजर्ट है. इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है की इसे आप उपवास में भी खा सकते है और इसको बनाना भी बहुत ही आसान है.

तो चलिए जानते है की आलू का हलवा कैसे बनाये-

कितने लोगों के लिए-4
बनाने का समय-15-20 मिनट
मील टाइप -वेज

हमें चाहिए-

आलू – 4 या 5 मध्यम साइज के उबले हुए
चीनी – 100 ग्राम
अनिक घी – 4 टेबल स्पून
किशमिश – 1 टेबल स्पून(ऑप्शनल)
काजू – 1 टेबल स्पून कटे हुए(ऑप्शनल)
इलाइची – 5-6 बारीक कुटी हुई
बादाम – 6-7 बारीक कटी हुई (ऑप्शनल)

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बनाने का तरीका-

1-सबसे पहले उबले हुए आलू को अच्छे से मैश कर लीजिये.

2-अब एक कढाई में अनिक घी गर्म करिए. घी गर्म हो जाने के बाद उसमे मैश हुए आलू डाल दीजिये और कलछी से चलाते हुए धीमी आंच पर 7-8 मिनिट भूनिए.

3-अब भुने हुए आलू में चीनी डाल दीजिये. चीनी डालने के बाद इसे लगातार चलाते रहिये.

4-अब इसमें इलाइची पाउडर डाल कर अच्छे से मिला दीजिये.अब इसके बाद इसमें dryfruit ऐड कर दीजिये. (आप चाहे तो आप dryfruit नही भी डाल सकते है )

5-अब गैस को बंद कर दीजिये.तैयार है स्वादिष्ट आलू का हलवा.

पीरियड्स से जुड़ी सोच में बदलाव जरुरी: सृजना बगारिया

सृजना बगारिया (पी सेफ की सह-संस्थापिका )

मैन्सट्रुएशन एक हेल्दी बायोलॉजीकल प्रोसेस होता हैं . यह लड़कियों और महिलाओं के रिपरोडक्टिव सिस्टम से जुड़ा हुआ है . समाज में लोग इसे एक गंदगी के तौर पर देखते हैं इसलिए लड़कियां या महिलाएं इस पर बात करने से कतराती हैं.

देश में 88 प्रतिशत महिलाएं नहीं कर पाती पैड का इस्तेमाल

एक सर्वे के मुताबिक हमारे देश की लगभग 88 प्रतिशत महिलाएं अपने पीरियड्स के दौरान सैनेरटरी पैड का इस्तेमाल ही नहीं कर पाती हैं. पैड की जगह वे फटेपुराने कपड़े, अखबार, सूखी पत्तियां और प्लास्टिक तक इस्तेमाल में लाने को मजबूर हैं जो पूरी तरह गलत है और बहुत जोखिम भरा भी है .

पैड इस्तेमाल न करने से कैंसर का खतरा

भारत में मैन्सट्रुएशन लगभग 10 से लेकर14 साल की उम्र में शुरू हो जाता है जब कि मीनोपॉज की औसत उम्र लगभग 47 साल है . जब महिलाएं मेन्सट्रुअल में निकले खून को पैड के अलावा किसी दूसरी चीज से रोकती हैं तो वह खून उल्टी दिशा में बहने लगता है और वह एंडोमीट्रिओसिस जैसे गंभीर रोग की शिकार हो जाती हैं. पेल्विक इन्फेक्शन और रिप्रोडक्टिव ट्रेक्ट इन्फेक्शन जैसी गंभीर मामले आगे चल कर कैंसर होने की आशंका को बढ़ा देते हैं .

क्या है ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों का हाल

ग्रामीण भारत में मैन्सट्रुएशन और इसकी हाइजीन को ले कर अभी जागरुकता की काफी कमी है . लोगों का कहना है कि नेशनल फैमिली हेल्थ 2015-16 के सर्वे के अनुसार 15 से 24 साल तक की 58 प्रतिशत महिलाएं नैपकीन, सैनिटरी नैपकीन का इस्तेमाल करती हैं . शहरी क्षेत्रों में 78 प्रतिशत महिलाएं पीरियड्स के दौरान पैड समेत दूसरी सुरक्षित तकनीकें अपनाती हैं जबकि ग्रामीण इलाकों में केवल 48 प्रतिशत महिलाएं ही पीरियड्स के दौरान हाइजीन और दूसरी साफसुथरी तकनीकों का इस्तेमाल कर पाती हैं .

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क्या होते हैं रीयूजेबल सैनिटरी पैड

जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि यह वह पैड्स हैं जिन्हें बारबार इस्तेमाल किया जा सकता है. इन पैड्स की एक बात यह है कि इन को लगातार 1.5 साल से ले कर 2 साल तक प्रयोग किया जा सकता है . पीरियड्स में इस्तेमाल किए गए सैनिटरी पैड्स से पैदा हुआ कचरा पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है लेकिन रीयूजेबल पैड्स से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता है . एक समस्या यह भी है कि बहुत सी महिलाओं को अभी तक यह नहीं पता कि सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करने के बाद क्या करना है या उन्हें कहां फेंकना है. बहुत सी महिलाएं, यहां तक कि शहरों में भी सामान्य कचरे के साथ ही कूड़ेदान में फेंक देती हैं जो बिल्कुल गलत है . पैड्स को हमेशा मिट्टी में दफना देना चाहिए या पूरी तरह किसी काले पॉलीथीन में बंद करके अलग रखना चाहिए ताकि उस की पहचान अलग से हो सके .

युवा आ रहे हैं आगे

भारत में युवाओं का प्रतिशत सब से अधिक है और इसलिए इस समय हर क्षेत्र की कमान युवाओं ने अपने कंधे पर संभाली हुई है. मैन्सट्रुएशन के विषय पर जागरुकता बढ़ाने में भी युवा पीछे नहीं है . देश के कोनेकोने से युवा कार्यक्रम, आविष्कारों और आयोजनों के माध्यम से जागरुकता फैलाने का काम कर रहे हैं . कोई रियूज़ेबल सैनिटरी पैड्स बना रहा है तो कोई पीरियड्स को सरल बनाने के लिए समाज को शिक्षित कर रहा है तो कोई स्वयंसेवी संस्था के साथ जुड़ कर काम कर रहा है . युवाओं के इसी जोश के भरोसे आज देश के कोनेकोने में मैन्सट्रुएशन को ले कर कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. लोग समझ रहे हैं कि यह कोई गंदगी नहीं बल्कि एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो लड़की या महिला के लिए बहुत आवश्यक है .

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घर की सफाई के लिए बेस्ट है सिरका

अक्सर हम अपने घर की सफाई और फ्रेश रखने के लिए मार्केट से कईं प्रौडक्ट खरीदते हैं. पर हमारे घर में ही ऐसे कईं प्रौडक्ट मौजूद हैं जो घर की सफाई के लिए बेस्ट है. उन्हीं प्रौडक्ट्स में से एक है सिरका. इसे विनेगर के नाम से भी जाना जाता है. हर घर में सिरका अलग-अलग इस्तेमाल के लिए मौजूद होता है. सिरके का इस्तेमाल अचार, चटनी और खाने की कई चीजों में तो आप करते ही होंगे. लेकिन किचन से हटकर भी इसके तमाम फायदे हैं. यहां हम आपको सिरके के कुछ ऐसी टिप्स के बारे में बताएंगे, जो घर संवारने और खूबसूरती निखारने में आपकी खूब मदद करेंगे.

1. जिद्दी दाग हटाने के लिए बेस्ट है सिरका

अक्सर हमारे कपड़े पसीने के दाग की वजह से खराब हो जाते हैं. हल्के रंग के कपड़ों के साथ ऐसा खासतौर पर होता है. कपड़े धोने से पहले इन दागों पर स्प्रे करने वाली बोतल से सिरका छिड़कें. दाग आसानी से गायब हो जाएंगे.

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2. फूलों को तरोताजा रखने में मदद करता है सिरका

गुलदस्ते में फूलों को ज्यादा देर तक तरोताजा रखना मुश्किल होता है. इनको देर तक फ्रेश बनाए रखने में सिरका काम आएगा. फूलदान के पानी में एक चम्मच सफेद सिरका डाल देंगे तो फूल देर तक ताजे रहेंगे.

3. उबालते समय अंडा न फटने में मदद करेगा सिरका

कई घरों में अंडा नियमित तौर पर प्रयोग होता है. इनको उबालते समय गरम पानी में थोड़ा सिरका मिला दिया जाए तो अंडे में क्रैक नहीं आता है और इस तरह अंडे का सफेद हिस्सा फैलता भी नहीं है.

4. चीटियों को भगाने के लिए सिरका करें इस्तेमाल

क्या आपको पता है कि चीटियों को सिरका अच्छा नहीं लगता. अगर घर में चीटियां हैं तो कोनों में सिरके और पानी को बराबर मात्रा में मिलाकर छिड़क दें. कुछ ही देर में चीटियां आपका घर खाली करके भाग जाएंगी.

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5. फर्श और फ्रिज की सफाई के लिए इस्तेमाल करें सिरका

पानी और सफेद सिरके का घोल फर्श, फ्रिज और रसोई की अलमारियों को साफ करने में बहुत मददगार होता है. हालांकि इसे संगमरमर या ग्रेनाइट के फर्श पर इस्तेमाल न करें. इसके अलावा फ्रिज से खराब खाने की बदबू हटाने में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

अपना सा कोई: क्या बीमारी थी अंकित को?

Serial Story: अपना सा कोई (भाग-3)

नीचे के फ्लोर पर ही उन्हें कमरा दिलवाया और दरवाजा खोलती हुई बोली,”आ जाओ साहब. आज की रात यही आशियाना है तुम्हारा.”

थैंक्स कह कर अंकित ने दरवाजा बंद करना चाहा तो वह दरवाजे के बीच में आ गई.

“इतनी जल्दी पीछा छुड़ाना चाहते हो हम से मेरी जान?” लड़की की आंखों में कुटिलता और वासना की लपटें जल उठीं.

वह जबरन अंकित से सटती हुई बोली,”दिल चीज क्या है आप हमारी जान लीजिए…. हुजूर जो चाहे ले लो यह कनीज अब तुम्हारी है.”

“यह क्या कह रही हो?” घबड़ाता हुआ अंकित बोला.

मयंक भी अचरज से उस लड़की की तरफ देख रहा था. लड़की अब बेशर्मी पर उतर आई थी.

बिस्तर पर बैठती हुई बोली,” तुम्हारी जिंदगी की यह रात रंगीन कर दूंगी. तुम बस इशारा करो.”

अब तक अंकित और मयंक अच्छी तरह समझ गए थे कि यह किस तरह की लड़की है और वे इस होटल में आ कर बुरी तरह फंस गए हैं. मयंक बाथरूम की तरफ चला गया और इधर लड़की अंकित पर डोरे डालती रही. अंकित घबरा कर पीछे हट रहा था और लड़की उस के करीब आने का प्रयास करती रही.

अंकित तैयार नहीं हुआ तो वह अपनी अदाएं बिखेरती हुई बोली,”किस बात से डर रहे हो हुजूर? इस उम्र में जवां, खूबसूरत शरीर की जरूरत नहीं या जेब ढीली करना नहीं चाहते हो? चलो ज्यादा नहीं केवल ₹1 लाख दे देना. उतनी रकम तो होगी ही न. भारत दर्शन पर निकले हो.”

अंकित ने उसे परे करते हुए कहा,”नहीं बहनजी हमारे पास रुपए नहीं हैं.”

“ओए लड़के, बहन किस को बोला? मैं बहन नहीं तेरी. चल ₹1 लाख नहीं है तो अपनी यह घड़ी, अपनी यह सोने की चेन और अंगूठी दे देना. चल नखरे मत कर. शुरू हो जा. जी ले अपनी जिंदगी मेरे साथ आज की रात.”

अंकित सिकुड़ कर बैठता हुआ बोला,” सुनो, आप गगलतफहमी में हो. मेरा दोस्त बीमार है. इलाज के लिए आया हूं मैं.”

“देख चिकने, बहाने मत बना. तू ऐसे तैयार नहीं होगा तो यह शालू तुझे लूट लेगी,” कहते हुए उस लड़की यानी शालू ने बंदूक निकाल ली.

तभी मयंक सामने आ गया और बोला,”हम तो कब के लुट गए हैं शालू, बस तुम्हारी नजरों में अपना चेहरा ही ढूंढ़ रहे हैं. ”

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मयंक ने शालू के करीब आ कर कहा तो अंकित आंखें फाड़ कर उस की तरफ देखने लगा.

“देख शालू, मेरी जिंदगी के बस आखिरी 2-4 महीने ही बचे हैं. मैं अपनी जिंदगी के बचे हुए इन थोड़े से दिनों में जीवन की सारी खुशियां पा लेना चाहता हूं. मैं 35 साल का हूं पर तू यकीन नहीं करेगी, आज तक मेरी न कोई गर्लफ्रैंड है न बीवी. अतृप्त ही रह जाता अगर तू न मिलती. जल जाना चाहता हूं आज. आ जला दे मुझे…”

शालू शराबी निगाहों से उस की तरफ देखती हुई बोली,”क्या सचमुच तू मुझे अब पाना चाहता है?”

“हां पर एक धंधेवाली की तरह नहीं, एक प्रेमिका की तरह मेरी बांहों में समा जा. मरने से पहले एक बार अपने प्यार से तृप्त कर दे मुझे,” मयंक ने शालू को अपनी तरफ खींचा और आगोश में भर कर बाथरूम की तरफ ले गया.

बाथरूम में शौवर के नीचे खड़ा करता हुए बोला,”आज मैं भीग जाना चाहता हूं तुम्हारे साथ,” कहते हुए उस ने शौवर चला दिया और शालू पूरी तरह भीग गई. मयंक ने अचानक अपने होंठ उस के भीगे होंठों पर रख दिए. शालू की सांसें तेज हो गई थीं. वह पूरी तरह मयंक की गिरफ्त में थी.

मयंक ने उसी के दुपट्टे से उस की आंखें बांधते हुए कहा,” बस अब देखो मत. महसूस करो मुझे. मैं तुम्हारी रूह में उतर जाना चाहता हूं. ”

कहते हुए मयंक ने उस की बांहें थामी और उसे पीछे की तरफ करता हुआ खुद बाथरूम से बाहर आ गया और जल्दी से दरवाजा बंद कर दिया. शालू को बात समझ में आई तो वह दरवाजा पीटने लगी. तब तक मयंक और अंकित तेजी से होटल से बाहर निकल आए. जल्दी से कार स्टार्ट की और रफूचक्कर हो गए. वहां से काफी दूर आने के बाद उन की जान में जान आई.

अंकित हंसता हुआ बोला,”यार तू इतना रोमांटिक है, यह तो मुझे पता ही नहीं था.”

“और तू इतना शरमीला है यह भी कहां पता था मुझे,” मयंक ने कहा तो दोनों दोस्त ठहाके लगा कर हंसने लगे. काफी आगे जा कर उन्हें एक सलीके का होटल मिला तो दोनों वहीं ठहर गए.

आगे भी पूरे सफर में तबीयत खराब होने के बावजूद मयंक अपने मन की करता रहा. वह जिंदगी की हर खुशी अपने दामन में भर लेना चाहता था. कभी पहाड़ों पर चढ़ने की जिद करता तो कभी सागर में गोते लगाना चाहता. कभी हैलीकोप्टर में बैठ कर दुनिया देखने की डिमांड करता तो कभी स्ट्रीट फूड्स खाने को मचल उठता. अंकित उसे ऐसे कामों के लिए मना करता रह जाता और अमन अपने मन की कर गुजरता.

इसी दौरान एक दिन अचानक उस की तबीयत काफी खराब हो गई. उस समय वे शिमला में थे. अंकित जल्दी से उसे पास के एक अस्पताल में ले कर भागा मगर उस अस्पताल में मयंक को दाखिल नहीं किया गया. उन लोगों ने उसे दूसरे अस्पताल रेफर कर दिया. अंकित मयंक को ले कर वहां पहुंचा लेकिन वहां भी मयंक को ट्रीटमैंट की फैसिलिटी नहीं मिल सकी. उस की तबीयत बिगड़ रही थी. अंकित घबराया हुआ था. अंत में थक कर अंकित शिमला के सब से बड़े अस्पताल में पहुंचा. वहां मयंक को ऐडमिट कर लिया गया. 4-5 दिन में उस की स्थिति बेहतर हो गई तो छठे दिन उसे डिस्चार्ज कर दिया गया.

अब अंकित ने उस ट्रिप को थोड़ी जल्दी में पूरा किया और मयंक को ले कर वापस घर आ गया. 2 महीने के इस सफर के बाद मयंक बहुत खुश था. वह अंदर से बेहतर महसूस कर रहा था.

मयंक की बहन प्रज्ञा इस बात से बहुत खुश रहती थी कि अंकित मयंक का इतना खयाल रखता है.

वह जब भी फोन करतीं तो अंकित दोस्त के इलाज और हालत के बारे में विस्तार से बताता. मयंक की गतिविधियों का लेखाजोखा देता. बातचीत करते समय दोनों दोस्तों में मीठी झड़पें होतीं तो प्रज्ञा के बच्चे तालियां बजाबजा कर हंसते. वे अंकित को यंगर अंकल कह कर पुकारते और उस के साथ खूब मस्ती भरी बातें करते.

कई बार मयंक कहता,”मेरा भाई भी होता न तो तुझ सा नहीं हो पाता. तू तो भाई से भी बढ़ कर है.”

एक दिन मयंक की बहन वीडियो काल पर थी. अंकित चाय बनाने गया हुआ था और मयंक बहन से अंकित की तारीफ कर रहा था.

प्रज्ञा ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा,”मयंक मैं एक बात कहूं, तू मानेगा?

“हां दीदी बोलो न.”

“मैं चाहती हूं तू अपना घर अंकित के नाम कर दे. तेरे बाद मैं नहीं बल्कि तेरा भाई अंकित ही इस घर का मालिक होगा.”

इस बीच अंकित चाय ले कर कमरे में आ रहा था. उस ने प्रज्ञा की बात सुन ली थी.

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चाय रखते हुए उस ने इनकार में सिर हिलाते हुए कहा,” नहीं दीदी यह सही नहीं. आप ऐसी बातें नहीं कर सकतीं. जो घर मयंक का है वह कल को आप का या बच्चों का होगा मेरा नहीं. मैं किसी चीज की ख्वाहिश में मयंक का साथ नहीं दे रहा बल्कि मयंक के साथ मुझे यों ही दुनिया की खुशियां मिल रही हैं. ”

“देख मेरे भाई, मेरे अंकित, मैं ने मयंक से घर तेरे नाम करने की बात इसलिए नहीं की है ताकि तेरे एहसानों का कर्जा उतारा जा सके बल्कि इसलिए की है ताकि आने वाले समय में कभी मुझे भारत जाने की इच्छा हुई तो मुझे यह सोच कर मन न मसोसना पड़े कि वहां अब मेरा और कोई नहीं. मैं मयंक के बाद भी भारत घूमने आऊं तो पूरे अधिकार के साथ तेरे घर आ कर रुक सकूं. तू मेरी बात समझ रहा है न अंकित ? ”

“हां दीदी समझ गया. जैसी आप की इच्छा,” कहते हुए मयंक की आंखें भर आईं. आज उसे महसूस हो रहा था कि वाकई उस की कोई बड़ी बहन भी है जो उस पर अपना पूरा हक रखना चाहती है. भले ही वह दुनिया में अकेला है मगर अब उस का भी एक परिवार था जो उसे बहुत प्यार करता था.

Serial Story: अपना सा कोई (भाग-1)

आज मयंक बहुत खुश था. उस ने पूरे 2 दिन की छुट्टी ली थी. एक दिन तो हमेशा की तरह आराम और काम में निकल गया. मगर आज की छुट्टी का इस्तेमाल उस ने आसपड़ोस वालों से जानपहचान करने में लगाने की योजना बनाई थी. दरअसल, इस मोहल्ले में आए उसे पूरे डेढ़ महीने हो चुके थे. इस दौरान उस की नाइट शिफ्ट चल रही थी. सुबह 5 बजे निकल कर रात में 11 बजे घर में घुसता था. ऐसे में उसे दूसरों से परिचय करने का वक्त ही नहीं मिलता था.

उस ने 200 गज पर 1980-90 के समय के बने मकान का तीसरा फ्लोर खरीदा था. 3 कमरे, घर के बाहर खूबसूरत सी बालकनी और आसपास हरियाली देख कर उस ने यह घर पसंद किया था.

सुबहसुबह उठ कर वह बालकनी में आया और सामने के ग्राउंड में कुछ फिटनैस फ्रीक लोगों को मौर्निंग वाक और जौगिंग करता देख मुसकरा उठा. उस ने मन ही मन सोचा कि आज पूरे मोहल्ले का 1-2 चक्कर लगाने और ग्राउंड में जा कर ऐक्सरसाइज करने के बाद ही वह घर लौटेगा.

उस ने ट्रैकसूट पहना और नीचे आ गया. वाक और ऐक्सरसाइज के बाद दूध, अखबार और ब्रैड खरीद कर वापस लौटने लगा कि दूसरे फ्लोर की सीढ़ियों पर आ कर ठिठक गया. दरवाजा अंदर से बंद था और बाहर जमीन पर अखबार के साथ 2 पत्रिकाएं भी पड़ी हुई थीं. मयंक को शुरू से किताबें और पत्रिकाएं पढ़ने का बहुत शौक रहा है. उस ने पलट कर देखा तो सरिता और गृहशोभा एकसाथ देख कर उस का मन खुश हो गया. उस ने मन ही मन सोचा कि काश आज फ्री टाइम में मुझे यह पत्रिकाएं पढ़ने को मिल जातीं.

वह अभी पत्रिकाएं पलट ही रहा था कि तभी कमरे के अंदर से मुकेश के गाने ‘मैं पल दो पल का राही हूं…’ की आवाज आने लगी. गाना और मुकेश की आवाज दोनों ही मयंक को पसंद था. अपने इस पड़ोसी से मिलने का उसे मन कर रहा था. तभी दरवाज़ा खुला और अंदर से उसी की उम्र का एक युवक बाहर निकला. सवालिया नजरों से उस ने पहले मयंक को और फिर उस के हाथ में पकड़ी पत्रिकाओं को देखा.

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मयंक मुसकराता हुआ बोला,” हाय, मैं मयंक. आप का पड़ोसी. इधर से गुजर रहा था. पत्रिकाओं पर नजर गई तो देखने लगा. ये पत्रिकाएं शायद आप बराबर लेते हैं…”

“जी हां. मैं इन्हें शुरू से ही पढ़ता आ रहा हूं. आइए अंदर आ जाइए. मेरा नाम अंकित है.”

मयंक अंकित के साथ अंदर आता हुआ बोला,” आप का म्यूजिक टेस्ट भी बिलकुल मेरे जैसा है. मुकेश की आवाज का मैं भी दीवाना हूं.”

“गुड. फिर तो अच्छी जमेगी हमारी.”

इस के बाद 2-4 मिनट की औपचारिक बातचीत के बाद अंकित उठता हुआ बोला,”आई एम सौरी मयंक बट आई एम गेटिंग लेट.”

मयंक भी उठ गया और बोला,”आई कैन अंडरस्टैंड. जौब प्रेशर तो सब को रहता है. आप जाइए मैं चलता हूं.”

पत्रिकाएं अभी भी मयंक के हाथों में थीं. वह उन्हें टेबल पर रखने लगा तो अंकित मुसकराता हुआ बोला,”आप चाहें तो ये पत्रिकाएं ले जा सकते हैं. पढ़ कर लौटा दीजिएगा.”

“थैंक यू सो मच,” मयंक के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई.

यह मयंक और अंकित की पहली मुलाकात थी. इस के बाद भी उन दोनों के बीच हैलोहाय से ज्यादा बात नहीं हो पाई क्योंकि मयंक की शिफ्ट वाली जौब थी तो अंकित का टूरिंग वाला काम. दोनों व्यस्त थे.

उस दिन रविवार था. मयंक दूध और फल लेने के लिए नीचे उतर उतर रहा था कि उस ने बरामदे में अंकित को बेहोश पड़ा देखा. इंसानियत के नाते मयंक उसे तुरंत अस्पताल ले कर गया. वहां उसे ऐडमिट कर लिया गया. उसे माइनर हार्ट अटैक आया था. उस के घर में कोई और सदस्य था नहीं इसलिए पूरे दिन मयंक ही अस्पताल में उस के साथ रहा. अगले दिन भी उसे अस्पताल में ही रुकना पड़ा. तीसरे दिन सुबह अंकित को छुट्टी मिल गई. अब तक अंकित की तबियत संभल चुकी थी. उस ने दिल से मयंक का शुक्रिया अदा किया. दोनों में दोस्ती हो गई. घर आ कर भी मयंक ने अंकित को अकेला नहीं छोड़ा. उसे खाना बना कर खिलाने के बाद ही अपने औफिस गया.

रविवार को सुबहसुबह अंकित मयंक के घर आया. वह मयंक के लिए बिरयानी बना कर लाया था. दोनों ने साथ बैठ कर खाना खाया. बिरयानी बहुत स्वादिष्ठ बनी थी. उंगलियां चाटता हुआ मयंक बोला,”यार तुम खाना तो बहुत टेस्टी बनाता हो. भाभीजी तो खुश हो जाती होंगी. ”

“नहीं यार मेरी शादी कहां हुई है अभी? ”

“क्या बात है, यानी इस मामले में भी हम दोनों एकजैसे हैं. मैं ने भी अब तक शादी नहीं की. वैसे तुम ने शादी क्यों नहीं की?”

“यार मैं एक अनाथालय में पलाबढ़ा हूं. उन्होंने ने ही मुझे पढ़ाया है. बाद में एक सज्जन ने मुझे गोद ले लिया. वे भी दुनिया में अकेले थे. नौकरी मिलने के बाद मैं यहां चला आया. इस बीच उन का देहांत हो गया. अब मेरे जैसे अकेले लड़के को अपनी बेटी कौन देगा? उस पर टूरिंग वाली जौब है. मैं खुद भी अब शादी करने से हिचकने लगा हूं.”

“यार, काफी हद तक मेरी कहानी भी कुछ ऐसी ही है. मेरे पिताजी उसी समय चल बसे थे जब मैं मुश्किल से 8-10 साल का था. मां ने मुझे पढ़ायालिखाया. मुझे नौकरी लग गई उस के कुछ दिनों के बाद ही मां बीमार पड़ गईं. इस बीच मेरी बड़ी बहन की शादी अमेरिका में हो गई इसलिए वह भी दूर चली गई. मैं कई सालों तक मां की देखभाल और सेवा में लगा रहा. उस दौरान शादी का खयाल ही नहीं आया. 2 साल पहले उन का निधन हो गया. अब मैं भी दुनिया में अकेला हूं. शादी करने का सोचता हूं मगर परिवार में कोई न होने की वजह से मेरी शादी में भी दिक्कतें आ रही हैं.”

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“कोई नहीं यार. अब हम दोनों एकदूसरे का साथ देंगे.”

“बिलकुल…” अंकित ने कहा तो दोनों ठठा कर हंस पड़े.

इस के बाद तो अकसर ही दोनों एकसाथ खाना बना कर खाने लगे. कई दफा अंकित मयंक के लिए खाना बना कर रखता. कई बार मयंक बाजार से कुछ खाने की चीजें लाता तो दोनों मिल कर खाते. दोनों ने डुप्लीकेट चाबी भी ऐक्सचैंज कर ली थी ताकि वे एकदूसरे के पीछे में उन के फ्रिज में खाने की चीजें रख सकें या जरूरी होने पर एकदूसरे के काम भी आ सकें. अकसर रविवार को समय निकाल कर दोनों साथ घूमने भी जाने लगे.

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