बीवी जब जीजा, साढ़ू की दीवानी हो

लेखक- धीरज कुमार

अंजली की नईनई शादी हुई थी. उस की दिलचस्पी नए घरपरिवार में सामंजस्य बैठाने में कम थी, अपने बड़े जीजा से मोबाइल पर बात करने में ज्यादा थी. जब तक उस का जीजा मोबाइल पर ‘किस‘ नहीं देता था, वह खाती भी नहीं थी.

शादी के कुछ दिन बाद ही उस का जीजा उस से मिलने आ गया था. घर के लोगों ने यह समझा कि ससुराल में अंजली नईनई आई है, इसलिए उस का मन नहीं लग रहा है. इसलिए उस का जीजा मिलने आ गया है.

उस दिन उस का पति काम पर गया था. कुछ जरूरी काम होने के कारण फैक्टरी से पहले लौट आया था, तो उस ने देखा कि उस की पत्नी अंजली अपने जीजा के साथ आपत्तिजनक स्थिति में है.

फिर क्या था…? पतिपत्नी में काफी लड़ाईझगड़ा हुआ. हलांकि उस का साढ़ू मौके की नजाकत को समझ कर वहां से खिसक चुका था. परंतु पतिपत्नी में काफी तनाव भर गया था. दोनों के रिश्ते बिगड़ने लगे थे.

शादी के बाद जीजा से हंसीमजाक करना तो ठीक है, परंतु एकदूसरे से प्यार करना और जिस्मानी संबंध बनाना काफी नुकसानदायक है. शादी के बाद कोई भी पति अपनी पत्नी को किसी के प्रति ऐसा लगाव पसंद नहीं करता है. वह चाहता है कि उस की पत्नी सिर्फ उसी से प्यार करे. यह पुरुष का स्वाभाविक गुण है. पुरुष ही क्यों, कोई भी पत्नी अपने पति को दूसरे के साथ रिश्ता रखना पसंद नहीं करती है. यही बातें पुरुषों पर भी लागू होती हैं.

सरला सरकारी स्कूल में पढ़ाती है. जब वह घर से निकलती है, तो उस के कान मोबाइल पर ही लगे रहते हैं. बस पकड़ने से ले कर स्कूल पहुंचने तक वह मोबाइल पर ही लगी रहती है. एक दिन सड़क पार करते हुए दुर्घटना होने से वह बालबाल बची थी.

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जब इस की जानकारी उस के पति को हुई, तो उस ने सड़क पर चलते हुए मोबाइल पर बात करने से मना किया. फिर भी इस में कोई सुधार नहीं हुआ. तब उस ने उस के मोबाइल काल डिटेल को खंगालना शुरू किया.

सरला के काल डिटेल से पता चला कि दिनभर में लगभग 2 से ढाई घंटे तक वह अपने जीजा से बात करती रहती है. आखिर इतनी बातचीत जीजा से क्यों? तभी उसे समझ में आया कि जब भी वह मोबाइल पर काल करता है, तो उस का मोबाइल बिजी बताता है.

उस के पति का शक और गहराने लगा, जब सैलरी मिलते ही कोई न कोई गिफ्ट अपने दीदी और जीजा के लिए जरूर खरीदती है और अपने बहन के यहां जाने की बातें करती है. बातबात में अपने जीजा का उदाहरण देती है. इसीलिए अब पतिपत्नी के बीच खटास पैदा होने लगा था. उस का पति समझदार था, इसीलिए उस ने समझाने की कोशिश की.

जीजासाली का रिश्ता ही कुछ ऐसा होता है, जिस में दोनों को मीठीमीठी बातें करने की छूट रहती है. इसीलिए घर के लोग भी अनदेखा करते हैं, परंतु कुछ चालाक किस्म के जीजा अपनी सालियों के साथ जिस्मानी संबंध तक बना लेते हैं, जबकि ऐसी स्थिति रिश्ते की मर्यादा को तारतार कर देती है.

जब लड़की कुंवारी रहती है, तो कुछ बातें तो छुपाई जा सकती हैं, किंतु विवाह के बाद लड़की पराए घर की हो जाती है. वहां उस का अपना घरपरिवार होता है, वहां उस का पति होता है. उस नवविवाहिता का पूरा ध्यान अपने घरपरिवार में ही रहना चाहिए. हां, अपने जीजा से संबंध मर्यादित ही होना चाहिए. संबंध ऐसा होना चाहिए, जिस से रिश्ते में खटास नहीं आए. उस के परिवारिक जीवन को तहसनहस न करें.

कई बार देखा गया है कि लड़कियां अपनी बड़ी बहन की शादी के बाद जीजा से लगाव तो रखती हैं, परंतु यह लगाव इतना बढ़ जाता है कि अपनी शादीशुदा जिंदगी में भी आग लगा लेती हैं. ससुराल वाले भी इतना लगाव जीजा के साथ उचित नहीं समझते हैं. कभीकभी यह लगाव उन्हें कहीं का नहीं छोड़ता है. नतीजतन, दोनों परिवारों के बीच झगड़े का रूप ले लेता है.

जूही को अपने जीजा से काफी लगाव हो चुका था. जब उस की शादी हो गई तो भी अपने जीजा से लगाव कम नहीं हुआ था. उन दिनों वह अपने ससुराल से बड़ी बहन के बच्चा जन्मने के समय जीजा के घर आई थी. उस के जीजा ने उसे इधरउधर खूब घुमायाफिराया. होटल, रेस्त्रां में खिलायापिलाया. उस की बड़ी बहन जब अस्पताल में भरती थी, तो जीजा से उस के जिस्मानी संबंध भी बन गए थे. एक दिन जीजा ने बहलाफुसला कर उस से मंदिर में शादी कर ली.

जब इस बात की जानकारी जूही के पति को हुई, तो काफी झगड़ा हुआ. यह मामला कोर्ट तक चला गया. इस के बाद जूही का पति अपने घर ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ.

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इस प्रकार जूही ने अपनी बड़ी बहन के साथसाथ खुद की भी खुशहाल जिंदगी बरबाद कर ली. इस का आभास उसे कुछ ही दिन बाद होने लगा था, क्योंकि जो अपनापन, प्यार, दुलार अपनी बड़ी बहन से प्राप्त कर रही थी, वह कुछ ही दिन में झगड़े में बदल गए थे. हालांकि इस बात से साफ हो गया था कि उस का जीजा काफी चालाक इनसान था.

इसलिए हर लड़की को इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि अपने जीजा के साथ लगाव इतना ही रखना चाहिए, जिस से मनोरंजन हो सके. हंसीमजाक, ठिठोली तक तो ठीक है, इस के बाद मर्यादा का उल्लंघन करना रिश्ते को जोखिम में तो डालना है ही, साथ ही, लड़की का भविष्य भी खराब हो सकता है. लड़की कहीं की नहीं रह जाती है.

कई बार तो ऐसा होता है कि लड़की की शादी के बाद किसी प्रकार से उस के पति को पता चल जाता है, तो भी शादीशुदा जिंदगी में खटास पैदा होने लगती है. इसलिए हर हाल में लड़की को मर्यादित व्यवहार करना चाहिए.

जीजा के साथ रिश्ता अमर्यादित नहीं होना चाहिए, क्योंकि अमर्यादित रिश्ते की भनक जब परिवार के लोगों को हो जाती है, तो दोनों परिवारों में तल्खी आ जाती है. रिश्ते बदनाम हो जाते हैं सो अलग. जब कभी एकदूसरे की मदद की जरूरत पड़ती है, तो चाहते हुए भी पीछे हट जाना पड़ता है. रिश्ते में आई खटास के कारण ऐसा होता है.

दोनों परिवारों के बीच संबंध मधुर बना रहे, इस की जिम्मेदारी सिर्फ लड़की की ही नहीं है, बल्कि लड़के यानी जीजा की भी होनी चाहिए. जीजा को भी सोचना चाहिए कि उस की पत्नी की बहन आधी घरवाली नहीं है, बल्कि सिर्फ उस की पत्नी की बहन है. उस की इज्जत का खयाल रखना उस की भी जिम्मेदारी है.

शुरू में तो मातापिता लड़कियों को काफी बंदिशों में रखते हैं. लेकिन उस घर में बेटी का पति आता है, तो उस का चरित्र जाने बिना ही अपनी बेटी को उस के साथ घूमनेफिरने की काफी छूट दे देते हैं, जबकि ऐसी स्थिति में भी मां का दायित्व बनता है कि बेटी को यह सीख देनी चाहिए कि अपने जीजा के साथ भी संतुलित व्यवहार रखना उचित है. जीजा भी आम इनसान है. जिस प्रकार से दूसरे लोगों से बचने का प्रयास करती है, वैसे ही जीजा से भी खुद को बचाए रखना जरूरी है. यही बातें शादी के बाद भी याद रखना जरूरी है.

देखा गया है कि ऐसे हालात में कई बार झगड़े की नौबत आ जाती है. पति अपना आपा खो देता है और पत्नी से लड़ाईझगड़ा करने लगता है. कभीकभी पतिपत्नी के बीच के ये झगड़े कानूनी विवाद का रूप भी ले लेते हैं. ऐसे में बच्चों पर भी बुरा असर पड़ता है. लेकिन ऐसी स्थिति में पति को भी शांत रहना चाहिए और अपने परिवारिक जीवन को बचाने का प्रयास करना चाहिए.

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पत्नी को भरपूर प्यार मिले, इस का ध्यान रखना चाहिए. अकसर विवाहित औरतें अपने पति से शारीरिक जरूरतें पूरी न होने के कारण अपने जीजा से संबंध रखना उचित समझती हैं. लेकिन ऐसा सब के साथ नहीं होता है. कभीकभी जीजा की मीठीमीठी बातों के कारण भी पत्नी बहक जाती है. थोड़ा संयम से काम लिया जाए, तो ऐसी परिस्थिति को टाला जा सकता है और पुनः सुखमय जीवन जिया जा सकता है.

मेरे चेहरे और गर्दन पर छोटे-छोटे मस्से होने लगे हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी गर्दन पर छोटे छोटे मस्से हो गए थे, जिसे मैंने इग्नोर कर दिया. लेकिन अब मेरे चेहरे पर भी छोटे छोटे मस्से होने लगे हैं. जिसके काऱण मैं काफी परेशान हूं ? आप कोई उपाय बताएं , जिससे मुझे इस समस्या से निजात मिल सके?

जवाब-

इनाटूर की कोस्मेटोलोजिस्ट पूजा नागदेव बताती हैं कि मस्से जिन्हें वार्ट्स भी कहते हैं , शरीर के किसी भी भाग में हो सकते हैं , लेकिन ये आपको कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. बस ये अगर चेहरे व गर्दन पर हो जाते हैं तो आपके लुक को बिगाड़ने का काम करते हैं. बता दें कि वार्ट्स 2 तरह के होते हैं , फ्लैट वार्ट्स व फिलीफोर्म वार्ट्स. फ्लैट वार्ट्स छोटे और मुलायम होने के साथ इनके सिरे फ्लैट होते हैं. ये आमतौर पर चेहरे और पैरों पर होते हैं , जब अकसर वैक्सिंग के कारण पोर्स ओपन रह जाते हैं, तब ये होते हैं . ये स्किन के कलर की तरह ही होते हैं और इनका साइज आमतौर पर 5 एमएम के करीब होता है. कई बार ये वार्ट्स एक साथ काफी सारे भी हो जाते हैं. जबकि फिलिफोर्म वार्ट्स नुकीले धागे की तरह दिखते हैं. ये मुंह , नाक व आंखों के आसपास बहुत तेजी से बढ़ते हैं.

अनेक बार वार्ट्स का इलाज लोग घर पर भी खुद से कर सकते हैं. लेकिन अगर फेस के वार्ट्स की बात आए तो बेहतर यही है कि शुरुवात में ही डाक्टर से संपर्क करें. ताकि सही ट्रीटमेंट मिलने से ये बड़े नहीं और आपको ज्यादा फायदा मिले. कई बार वार्ट्स के अंदर इंफेक्शन होने से आपको काफी प्रोब्लम हो सकती है. इसलिए समय पर इलाज जरूरी है.

घर पर कैसे करें उपचार
इसके लिए नींबू , साईप्रस व लैवेंडर एसेंशियल आयल काफी लाभदायक साबित होता है. इसके लिए आप आप एक बाउल में 10 बूंदें नींबू के रस की , 5 बूंदें साईप्रस आयल की , 5 बूंदें लैवेंडर आयल की व साथ में 10 मिलीलीटर साइडर विनेगर की मिलाकर इसे एक बोतल में स्टोर करके रखें. फिर हर रोज इसे दिन में दो बार तब तक अप्लाई करें जब तक वार्ट्स पूरी तरह से सूख न जाएं. इससे आपको कुछ दिनों में ही फर्क दिखाई देने लगेगा.

रिसर्च में यह साबित हुआ है कि विटामिन ए युक्त लेप फ्लैट वार्ट्स के लिए काफी असरदार होता है. कोड लीवर फिश आयल विटामिन ए से भरपूर होता है, जिसे वार्ट्स पर अप्लाई करके बेहतर परिणाम पा सकते हैं. लेकिन वार्ट्स को देखकर घबराएं नहीं, क्योंकि हर समस्या का समाधान जो होता है.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

औनलाइन कोचिंग: हुनर से कमाएं पैसा

कोरोनाकाल में कोचिंग का धंधा खूब फलफूल रहा है. वैसे तो यह धंधा पहले भी खूब फलफूल रहा था, मगर जब से स्कूलकौलेज बंद हुए हैं तब से इस ने कारोबार का शक्ल ले लिया है और लोग जम कर चांदी काट रहे हैं.

अगर आप भी घर में खाली बैठे हैं अथवा आप नौकरी नहीं करते या फिर आप का बिजनैस मंदा चल रहा है तो आप औनलाइन कोचिंग को बिजनैस के तौर पर शुरू कर सकते हैं.

आइए, जानते हैं कि किस तरह का बिजनैस आप को अधिक मुनाफा दे सकता है :

घर बैठे सीखें केक बनाना : घर में किसी का बर्थडे हो, शादी की सालगिरह या फिर न्यू बोर्न बेबी के वैलकम की बात, हर अवसर पर केक कटिंग का चलन आम हो गया है. ऐसे में कोरोना की दस्तक ने इस बिजनैस को तेजी से बढ़ाने का काम किया है.

अब लोग बाजार से केक लाने से परहेज करने लगे हैं. इस की जगह उन्हें अपने करीबी से या फिर खुद घर पर केक बनाना ज्यादा अच्छा लगता है.

ऐसे में अगर आप में केक बनाने की कला है तो आप अपने इस हुनर को खुद तक ही सीमित न रखें बल्कि दूसरों को भी सिखा कर आप अच्छाखासा पैसा बना सकते हैं.

मेराकी होम बेकरी की दीप्ति जांगड़ा बताती हैं कि उन में केक बनाने का जनून है और उन के इस हुनर को लौकडाउन के समय काफी बढ़ावा मिला है. वे सिंपल से ले कर कस्टोमाइज्ड डिजाइनर केक तक बनाती हैं यानि जिसे जैसा केक चाहिए होता है उसी तसवीर को हूबहू केक पर उतारने की कला है उन में.

उन्होंने बताया कि लोग उन के इस हुनर को बहुत अधिक प्रोत्साहित कर रहे हैं, जिस से उन में उत्साह और अधिक बढ़ गया है. यह उन की आमदानी का अच्छा साधन भी बन गया है.

वे बताती हैं कि बेसिक केक सीखने के लिए ₹1,500 से ₹2,000 तो वहीं कस्टोमाइज्ड डिजाइनर केक बनाने की कला को सीखने के लिए ₹3,000 से ₹5,000 तक खर्च करने पड़ते हैं.

कहने का तात्पर्य यह है कि अगर आप में हुनर है तो आप घर बैठे औनलाइन ट्रैनिंग दे कर पैसा बना सकते हैं.

फिटनैस ट्रैनिंग : आज अधिकतर लोग अपनी हैल्थ को ले कर ज्यादा सचेत हो गए हैं. तभी तो उन के रूटीन में जुंबा, ऐरोबिक्स, जिम जाना आदि शामिल हो गया है.

यही नहीं बल्कि वे इन के लिए हर महीने हजारों रुपए खर्च करने में भी गुरेज नहीं करते और यह सही भी है कि अगर आप स्वस्थ हैं तभी आप जीवन को अच्छे से ऐंजौय कर पाएंगे. लेकिन कोरोना ने फिटनैस पर थोड़ा ब्रेक लगा दिया है. अब लोग जिम व अन्य ऐक्सरसाइज के लिए किसी ट्रैनर के पास जा कर सीखना उचित नहीं समझ रहे हैं. ऐसे में उन की जरूरत और आप का हुनर आप की आमदनी का साधन बन सकता है.

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आप जूम, मीट जैसे ऐप्स की मदद ले कर उन्हें घर बैठे फिटनैस की ट्रैनिंग दे सकते हैं.

यकीन मानिए आज के समय में आप का यह हुनर बहुत फायदेमंद साबित होगा क्योंकि लोग अपनी हैल्थ से समझौता नहीं करना चाहते.

ऐशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंसैज के हैल्थ ऐंड फिटनैस कंसल्टैंट, हरीश कुमार शर्मा बताते हैं,”अगर आप में फिटनैस की ट्रैनिंग देने का हुनर है तो आप इस से हर घंटा एक व्यक्ति से स्टैंडर्ड कोर्स के ₹500 से ₹800 कमा सकते हैं.

कोर्स के टाइप के हिसाब से आप फीस चार्ज कर के अपनी इनकम को बढ़ा सकते हैं.

पर्सनैलिटी डैवलपमैंट कोर्स : अगर आप दूसरों को पर्सननैलिटी डेवलपमैंट की ट्रैनिंग दे सकते हैं तो यह समय आप के लिए गोल्डन चांस साबित होगा क्योंकि हर पेरैंट्स इस समय का फायदा उठा कर अपने बच्चों को वह सब सिखाना चाहते हैं, जिस से पढ़ाई के साथसाथ उन की पर्सनैलिटी में भी निखार आए।

ऐसे में आप इस समय अपने हुनर का फायदा उठा कर औनलाइन पर्सनालिटी डेवलपमैंट कोर्स शुरू करें. आप इस दौरान औफर्स भी दे सकते हैं कि बच्चे के साथ पेरैंट्स भी अगर सीखते हैं तो उन को डिस्काउंट दिया जाएगा.

बता दें कि पर्सनैलिटी डेवलपमैंट के कोर्सेज की काफी डिमांड रहती है. आप को अगर 4-5 लोग भी मिल गए तो भी आप महीने का ₹12,000 से ₹15,000 तक कमा सकते हैं।

कोडिंग क्लासेज : आज के बच्चे यह अच्छी तरह समझ चुके हैं कि अगर टैक्नोलौजी वर्ल्ड में पहचान बनानी है तो कोडिंग से नाता जोड़ना ही पड़ेगा क्योंकि आज के समय में टैक्नोलौजी के बिना जीवन असंभव सा लगने लगा है.

ऐसे में आईटी टीचर्स के लिए जहां सुनहरे अवसर खुल गए हैं, वहीं बच्चों को भी इस के माध्यम से कुछ नया सीखने को मिल रहा है, जो उन के भविष्य को और उज्जवल बनाने का काम करेगा.

कोडिंग प्रोग्रामिंग लैंग्वेज को कहते हैं, जिस की मदद से ऐप्स, वैबसाइट व सौफ्टवेयर बना सकते हैं.

कोरोना के बाद से तो कोडिंग की डिमांड काफी बढ़ी है. ऐसे में अगर आईटी से जुड़े हुए हैं और आप को कोडिंग का अच्छाखासा ज्ञान है तो आप इसषमें औनलाइन कोचिंग दे कर मोटा पैसा कमा सकते हैं. इस से आप के ज्ञान में वृद्धि भी होगी और आप मोटा पैसा भी कमा पाएंगे.

डांस क्लासेज

डांस हमेशा से ही डिमांड में रहा है. चाहे संगीत हो या शादी या फिर पार्टी हो या फिर गेटटुगैदर, हर जगह डांस का अपना अलग ही महत्त्व होता है.

आज तो डांस के इतने विकल्प आने लगे हैं कि इस की जानकारी लेने के लिए किसी कुशल प्रशिक्षक से प्रशिक्षण लेने की होङ रहती है ताकि बेहतर सीख कर किसी प्रतियोगिता में भी अव्वल आ सकें. इस के लिए लोग मुंहमांगा पैसा देने के लिए भी तैयार रहते हैं.

अगर आप किसी खास तरह के डांस जैसे हिपहौप, बैलेट, फोक डांस, क्लासिकल डांस इत्यादि को अच्छे से जानते हैं तो आप इस की औनलाइन ट्रैनिंग दे कर अपने स्किल्स को बढ़ाने के साथसाथ इस प्रोफैशन से अच्छाखासा कमा सकते हैं.

कैरियर काउंसलिंग : बहुत सारे बच्चे असमंजस की स्थिति में रहते हैं कि 10वीं के बाद कौन सी स्ट्रीम चुनें या फिर 12वीं के बाद किस सैक्टर में अपना कैरियर बनाएं.

असल में उन पर पेरैंट्स का भी दबाव होता है और साथ ही देखादेखी भी. ऐसे में वे अपने अंदर की प्रतिभा को जान नहीं पाते और गलत निर्णय लेने के कारण कई बार उन्हें पछताना भी पड़ता है. ऐसे में कैरियर काउंसलिंग बच्चों के लिए बहुत काम की चीज है ताकि उन से बात कर के उन की रुचि को जान कर और उन्हें किनकिन जगहों पर दिक्कतें आती हैं उसे गहराई से समझ कर उन्हें किस क्षेत्र में कैरियर बनाना चाहिए, कैरियर काउंसलिंग के माध्यम से मदद की जाती है.

इस से उन्हें जहां कैरियर चुनने में मदद मिलती है, वहीं उन्हें सही कैरियर चुनने से आगे सक्सैस मिलने के चांसेस भी काफी बढ़ जाते हैं.

कैरियर काउंसलिंग का महत्त्व कोरोना के समय तो और अधिक बढ़ गया है।

इस क्षेत्र में पैसा भी अच्छाखासा मिलता है. जैसे आप ने अगर 2 घंटे बच्चे की काउंसलिंग की तो आप एक बच्चे से कम से कम ₹2,000 से ₹3,000 या अधिक भी कमा सकते हैं।

ऐंट्रेंस कोचिंग : कोचिंग का बाजार तो हमेशा से ही गरम रहा है, लेकिन अब कोरोना के कारण औनलाइन कोचिंग की डिमांड काफी बढ़ गई है क्योंकि न तो पेरैंट्स अपने बच्चों की पढ़ाई में ब्रेक लगने देना चाहते हैं और न ही बच्चे खुद भी.

बात हो जौइंट ऐंट्रेंस ऐग्जामिनैशन की, ग्रैजुएट ऐटीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग या फिर बैंकिंग सैक्टर्स इत्यादि की, वे औनलाइन कोचिंग के जरीए खुद को तैयार कर रहे हैं ताकि किसी भी कीमत पर वे कामयाब हो सकें.

अगर आप किसी भी फील्ड में कोचिंग दे सकते हैं और आप को अच्छाखासा ज्ञान व अनुभव है तो आप औनलाइन ऐंट्रेंस कोचिंग दे कर घर बैठे घंटे के हिसाब से काफी अच्छा कमा सकते हैं.

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बिजनैस कोचिंग : अगर कोरोना के कारण आप की नौकरी चली गई है या फिर आप नौकरी छोड़ कर खुद का बिजनैस करना चाहते हैं लेकिन समझ नहीं आ रहा कि कैसे चुनें सही बिजनैस जिस से खुद को भी मुनाफा हो और कस्टमर्स में भी अच्छी पहचान बन सके, तो इस के लिए आप को बिजनैस ट्रेनर की मदद लेनी पड़ेगी ताकि आप को बिजनैस को ऊचाइयों तक पहुंचाने के लिए ट्रेनर से छोटी से छोटी जानकारी मिल सकें.

अगर आप को बिजननैस और मार्केट की अच्छीखासी जानकारी है और आप व्यक्ति से बात कर के जान सकते हैं कि इन्हें किस बिजनैस में सफलता मिल सकती है किस में नहीं, मार्केट में क्या ज्यादा डिमांड में है वगैरह तो आप औनलाइन बिजनैस कोचिंग दे कर अपनी आमदनी बढ़ाने के साथसाथ लोगों को बिजनैस शुरू करने में मदद कर सकते हैं.

सब्जैक्ट कोचिंग

कोरोना के कारण वर्क फ्रोम होम का चलन बढ़ा है. आप किसी भी सब्जैक्ट के ऐक्सपर्ट हैं तो आप औनलाइन सब्जैक्ट कोचिंग दे सकते हैं. इस में कम समय में आप ज्यादा पैसा कमा सकते हैं. आप औनलाइन ग्रुप कोचिंग भी कर सकते हैं या फिर इंडिविजुअल भी। इस से आप के ज्ञान में भी वृद्धि होगी और आप की आमदनी भी बढ़ेगी.

कैसे करें तैयारी

● इसे शुरू करने के लिए आप सोशल मीडिया जैसे व्हाट्सऐप, फेसबुक की मदद ले कर अपने परिचितों तक इस की जानकारी को पहुचाएं. उन्हें कहें कि वे इस संदेश को आगे फौरवर्ड करें ताकि आप को अच्छा रिजल्ट मिले.

इस से आप दोस्तों, सगेसंबंधियों के जरीए अजनबियों तक पहुंच बना पाएंगे.

● 3-4 फ्री क्लासेज दें ताकि सीखने वाले जान सकें कि आप में कितना हुनर है.

● फीस सही व सटीक रखें. लेकिन अपनी मेहनत का सही मूल्य आंकना न भूलें.

● जिस भी विषय में आप कोचिंग दे रहे हैं, उस की गहराई से जानकारी आपषको होनी चाहिए. हर क्लास में आप को क्या पढ़ाना है इस की पहले से तैयारी करें। आधीअधूरी जानकारी के साथ आप लोगों के सामने खुद को प्रेजैंट न करें.

● घर के इंटीरियर को थोड़ा बदलें ताकि बैकग्राउंड अच्छा दिखे.

● रिसर्च अच्छे से करें ताकि आप को बिजनैस में सफलता मिले.

● आप औनलाइन प्लैटफार्म के जरीए बिजनैस को बढ़ाने के लिए मार्केटिंग करें.

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यह कैसी विडंबना: शर्माजी और श्रीमती शर्मा का क्या था राज?

Serial Story: यह कैसी विडंबना (भाग-2)

पूर्व कथा

15 साल बाद परिवार समेत ममता एक बार फिर दिल्ली में बसीं. वे उसी महल्ले व उसी घर में रहने लगीं जहां पहले रह कर गई थीं. घर के सामने अभी भी शर्मा दंपती रहते हैं. दादीनानी बनने के बाद भी श्रीमती शर्मा का साजशृंगार उन की तीनों बहुओं से बढ़ कर होता है. पुरानी पड़ोसिन सरला ने ममता को बताया कि श्रीमती शर्मा के नाजनखरे तो आज भी वही हैं मगर पतिपत्नी के रोजरोज के झगड़े बहुत बुरे हैं, दिनरात कुत्तेबिल्ली की तरह लड़ते हैं. तुम्हें भी इन के झगड़ने की आवाजें विचलित करेंगी. 75 वर्षीय श्रीमती शर्मा कहती हैं कि उन के 80 वर्षीय पति शर्माजी का एक औरत से चक्कर है. एक लड़की भी है उस से…ममता यह सुन कर अवाक् रह जाती है. हालांकि उसे यहां दोबारा आए 2 दिन ही हुए और वह शर्मा आंटी से बहुत प्रभावित हुई थी, उन की साफसफाई, उन के जीने के तरीके से. 5-6 दिन बीतने के बाद भी किसी तरह के लड़नेझगड़ने की आवाज नहीं आई तो ममता सोचती है कि उसे जो बताया गया है, वह गलत होगा. इस बीच, शर्मा दंपती ममता के घर पधारे. दोनों ने हंसीखुशी ममता के साथ खूब गपशप की, दोपहर को वहीं खाना खाया. शाम को पति आए तो ममता उन के साथ शर्मा दंपती से मिलने उन के घर गई. इस तरह वे अच्छे पड़ोसी बन गए. सरला यह जान कर हैरान हो जाती है. वह ममता को समझाने लगती है कि अपना ध्यान रखना, शर्मा आंटी कहानियां गढ़ लेती हैं. इन्होंने अपनी तो उतार रखी है. कहीं ऐसा न हो, तुम्हारी भी उतार कर रख दें. इधर, दीवाली आने को होती है और ममता घर का बल्ब जला कर परिवार समेत जम्मू चली जाती है.

अब आगे…

सरला ने जम्मू से चावल मंगवाए थे. वापस आने पर सामान आदि खोला. सोचा, सरला को फोन करती हूं, आ कर अपना सामान ले जाए. तभी 2 लोगों की चीखपुकार शुरू हो गई. गंदीगंदी गालियां और जोरजोर से रोना- पीटना.

मैं घबरा कर बाहर आई. शर्मा आंटी रोतीपीटती मेरे गेट के पास खड़ी थीं. लपक कर बाहर चली आई मैं.

‘‘क्या हो गया आंटी, आप ठीक तो हैं न?’’

‘‘अभीअभी यह आदमी 205 नंबर से हो कर आया है. अरे, अपनी उम्र का तो खयाल करता.’’

अंकल चुपचाप अपने दरवाजे पर खड़े थे. क्याक्या शब्द आंटी कह गईं, मैं यहां लिख नहीं सकती. अपने पति को तो वे नंगा कर रही थीं और नजरें मेरी झुकी जा रही थीं. पता नहीं कहां से इतनी हिम्मत चली आई मुझ में जो दोनों को उन के घर के अंदर धकेल कर मैं ने उन का गेट बंद कर दिया. मन इतना भारी हो गया कि रोना आ गया. क्या कर रहे हैं ये दोनों. शरम भी नहीं आती इन्हें. जब जवानी में पति को मर्यादा का पाठ नहीं पढ़ा पाईं तो इस उम्र में उसी शौक पर चीखपुकार क्यों?

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सच तो यही है कि अनैतिकता सदा ही अनैतिक है. मर्यादा भंग होने को कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता. पतिपत्नी के रिश्ते में पवित्रता, शालीनता और ईमानदारी का होना अति आवश्यक है. शर्मा आंटी की खूबसूरती यदि जवानी में सब को लुभाती थी तब क्या शर्मा अंकल को अच्छा लगता होगा. हो सकता है पत्नी को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल भी किया हो.

जवानी में जोजो रंग पतिपत्नी घोलते रहे उन की चर्चा तो आंटी मुझ से कर ही चुकी थीं और बुढ़ापे में उसी टूटी पवित्रता की किरचें पलपल मनप्राण लहूलुहान न करती रहें ऐसा तो मुमकिन है ही नहीं. अनैतिकता का बीज जब बोया जाता तब कोई नहीं देखता, लेकिन जब उस का फल खाना पड़ता है तब बेहद पीड़ा होती है, क्योंकि बुढ़ापे में शरीर इतना बलवान नहीं होता जो पूरा का पूरा फल एकसाथ डकार सके.

सरला से बात हुई तो वह बोली, ‘‘मैं ने कहा था न कि इन से दूर रह. अब अपना मन भी दुखी कर लिया न.’’

उस घटना के बाद हफ्ता बीत गया. सुबह 5 बजे ही दोनों शुरू हो जाते. शालीनता और तमीज ताक पर रख कर हर रोज एक ही जहर उगलते. परेशान हो जाती मैं. आखिर कब यह घड़ा खाली होगा.

संयोग से वहीं पास ही में हमें एक अच्छा घर मिल गया. चूंकि पति का रिटायरमैंट पास था, इसलिए उसे खरीद लिया हम ने और उसी को सजानेसंवारने में व्यस्त हो गए. नया साल शुरू होने वाला था. मन में तीव्र इच्छा थी कि नए साल की पहली सुबह हम अपने ही घर में हों. महीना भर था हमारे पास, थोड़ीबहुत मरम्मत, रंगाईपुताई, कुछ लकड़ी का काम बस, इसी में व्यस्त हो गए हम दोनों. कुछ दिन को बच्चे भी आ कर मदद कर गए.

एक शाम जरा सी थकावट थी इसलिए मैं जा नहीं पाई थी. घर पर ही थी. सरला चली आई थी मेरा हालचाल पूछने. हम दोनों चाय पी रही थीं तभी द्वार पर दस्तक हुई. शर्मा अंकल थे सामने. कमीज की एक बांह लटकी हुई थी. चेहरे पर जगहजगह सूजन थी.

‘‘यह क्या हुआ आप को, अंकल?’’

‘‘एक्सीडेंट हो गया था बेटा.’’

‘‘कब और कैसे हो गया?’’

पता चला 2 दिन पहले स्कूटर बस से टकरा गया था. हर पल का क्लेश कुछ तो करता है न. तरस आ गया था हमें.

‘‘बाजू टूट गई है क्या?’’

‘‘टूटी नहीं है…कंधा उतर गया है. 3 हफ्ते तक छाती से बांध कर रखना पड़ेगा. बेटा, मुझे तुम से कुछ काम है. जरा मदद करोगी?’’

‘‘हांहां, अंकल, बताइए न.’’

‘‘बेटा, मैं बड़ा परेशान हूं. तनिक अपनी आंटी को समझाओ न. मैं कहां जाऊं…मेरा तो जीना हराम कर रखा है इस ने. तुम जरा मेरी उम्र देखो और इस का शक देखो. तुम दोनों मेरी बेटी जैसी हो. जरा सोचो, जो सब यह कहती है क्या मैं कर सकता हूं. कहती है मैं मकान नंबर 205 में जाता हूं. जरा इसे साथ ले जाओ और ढूंढ़ो वह घर जहां मैं जाता हूं.’’

80 साल के शर्मा अंकल रोने लगे थे.

‘‘वहम की बीमारी है इसे. किसी से भी बात करूं मैं तो मेरा नाम उसी के साथ जोड़ देती है. हर रिश्ता ताक पर रख छोड़ा है इस ने.’’

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‘‘आप ने आंटी का इलाज नहीं कराया?’’

‘‘अरे, हजार बार कराया. डाक्टर को ही पागल बता कर भेज दिया इस ने. मेरी जान भी इतनी सख्त है कि निकलती ही नहीं. एक्सीडैंट में मेरे स्कूटर के परखच्चे उड़ गए और मुझे देखो, मैं बच गया…मैं मरता भी तो नहीं. हर सुबह उठ कर मौत की दुआएं मांगता हूं…कब वह दिन आएगा जब मैं मरूंगा.’’

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Serial Story: यह कैसी विडंबना (भाग-3)

सरला और मैं चुपचाप उन्हें रोते देखती रहीं. सच क्या होगा या क्या हो सकता है हम कैसे अंदाजा लगातीं. जीवन का कटु सत्य हमारे सामने था. अगर शर्माजी जवानी में चरित्रहीन थे तो उस का प्रतिकार क्या इस तरह नहीं होना चाहिए? और सब से बड़ी बात हम भी कौन हैं निर्णय लेने वाले. हजार कमी हैं हमारे अंदर. हम तो केवल मानव बन कर ही किसी दूसरे मानव की पीड़ा सुन सकती थीं. अपनी लगाई आग में सिर्फ खुदी को जलना पड़ता है, यही एक शाश्वत सचाई है.

रोधो कर चले गए अंकल. यह सच है, दुखी इनसान सदा दुख ही फैलाता है. शर्माजी की तकलीफ हमारी तकलीफ नहीं थी फिर भी हम तकलीफ में आ गई थीं. मूड खराब हो गया था सरला का.

‘‘इसीलिए मैं चाहती हूं इन दोनों से दूर रहूं,’’ सरला बोली, ‘‘अपनी मनहूसियत ये आसपास हर जगह फैलाते हैं. बच्चे हैं क्या ये दोनों? इन के बच्चे भी इसीलिए दूर रहते हैं. पिछले साल अंकल अमेरिका गए थे तो आंटी कहती थीं कि 205 नंबर वाली भी साथ चली गई है. ये खुद जैसे दूध की धुली हैं न. इन की तकलीफ भी यही है अब.

‘‘खो गई जवानी और फीकी पड़ गई खूबसूरती का दर्द इन से अब सहा नहीं जा रहा, जवानी की खूबसूरती ही इन्हें जीने नहीं देती. वह नशा आज भी आंटी को तड़पाता रहता है. बूढ़ी हो गई हैं पर अभी भी ये दिनरात अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनना चाहती हैं. अंकल वह सब नहीं करते इसलिए नाराज हो उन की बदनामी करती हैं.

‘‘यह भी तो एक बीमारी है न कि कोई औरत दिनरात अपने ही गुणों का बखान सुनना चाहे और गुण भी वह जिस में अपना कोई भी योगदान न हो. रूप क्या खुद पैदा किया जा सकता है…जिस गुण को घटानेबढ़ाने में अपनी कोई जोर- जबरदस्ती ही न चलती हो उस पर कैसा अभिमान और कैसी अकड़…’’

बड़बड़ाती रही सरला देर तक. 2 दिन ही बीते होंगे कि सुबहसुबह आंटी चली आईं. शिष्टाचार कैसे भूल जाती मैं. सम्मान सहित बैठाया. पति आफिस जा चुके थे. उस दिन मजदूर भी छुट्टी पर थे.

‘‘कहो, कैसी हो. घर का कितना काम शेष रह गया है?’’

‘‘आंटी, बस थोड़ा ही बचा है.’’

‘‘आज भी कोई पार्टी दे रहे हो क्या? दीवाली की रात तो तुम्हारे घर पूरी रात ताशबाजी चलती रही थी. अच्छी मौजमस्ती कर लेते हो तुम लोग भी. मैं ने पूछा तो तुम ने कह दिया था, तुम्हें तो ताश ही खेलना नहीं आता जबकि पूरी रात गाडि़यां खड़ी रही थीं. सुनो, कल तुम्हारे घर 2 आदमी कौन आए थे?’’

‘‘कल, कल तो पूरा दिन मैं नए घर में व्यस्त थी.’’

‘‘नहींनहीं, मैं ने खुद तुम्हें उन से बातें करते देखा था.’’

‘‘कैसी बातें कर रही हैं आप, मिसेज शर्मा?…और दीवाली पर भी हम यहां नहीं थे.’’

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‘‘तुम्हारे घर में रोशनी तो थी.’’

‘‘हम घर में जीरो वाट का बल्ब जला कर गए थे कि त्योहार पर घर में अंधेरा न हो और ऐसा भी लगे कि घर पर कोई है.’’

‘‘नहीं, झूठ क्यों बोल रही हो?’’

‘‘मैं झूठ बोल रही हूं. क्यों बोल रही हूं मैं झूठ? मुझे क्या जरूरत है जो मैं झूठ बोल रही हूं,’’ स्तब्ध रह गई मैं.

‘‘तुम्हारे घर के मजे हैं. एक गेट मेरे घर के सामने दूसरा पिछवाड़े. इधर ताला लगा कर सब से कहो कि हम घर पर नहीं थे. उधर पिछले गेट से चाहे जिसे अंदर बुला लो. क्या पता चलता है किसी को.’’

हैरान रह गई मैं. सच में आंटी पागल हैं क्या? समझ में आ गया मुझे और पागल से मैं क्या सर फोड़ती. शर्माजी कुछ नहीं कर पाए तो मैं क्या कर लेती, सच कहा था सरला ने, कहानियां बना लेती हैं आंटी और कहानियां भी वे जिन में उन की अपनी नीयत झलकती है, अपना सारा शक झलकता है. अपना ही अवचेतन मन और अपने ही चरित्र की छाया उन्हें सभी में नजर आती है, शायद वे स्वयं ही चरित्रहीन होंगी जिस की झलक अपने पति में भी देखती होंगी. कौन जाने सच क्या है.

उसी पल निर्णय ले लिया मैं ने कि अब इन से कोई शिष्टाचार नहीं निभाऊंगी. अत: बोली, ‘‘मिसेज शर्मा, आज मुझे घर के लिए कुछ सामान लेने बाजार जाना है. किसी और दिन साथसाथ बैठेंगे हम?’’

मेरा टालना शायद वे समझ गईं इसलिए हंसने लगीं, ‘‘आजकल शर्माजी से दोस्ती कर ली है न तुम ने और सरला ने. बता रहे थे मुझे…कह रहे थे, तुम दोनों भी मुझे ही पागल कहती हो. बुलाऊं उन्हें अंदर ही बैठे हैं. आमनासामना करा दूं.’’

कहीं यह पागल औरत अब हम दोनों का नाम ही अंकल के साथ न जोड़ दे. यह सोच कर चुप रही मैं और फिर हाथ पकड़ कर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था. अच्छा नहीं लगा था मुझे अपना यह व्यवहार पर मैं क्या करती. मुझे भी तो सांस लेनी थी. एक पागल का मान मैं कब तक करती.

वह दिन और आज का दिन, जब तक हम उस घर में रहे और उस के बाद जब अपने घर में चले आए, हम ने उस परिवार से नाता ही तोड़ दिया. अकसर आंटी गेट खटखटाती रही थीं जब तक हम उन के पड़ोस में रहे.

आज पता चला कि अंकल चल बसे. पता नहीं क्यों बड़ी खुशी हुई मुझे. गलत कौन था कौन सही उस का मैं क्या कहूं. एक वयोवृद्ध दंपती अपनी जवानी में क्याक्या गुल खिलाता रहा उस की चिंता भी मैं क्यों करूं. बस, शर्मा अंकल इस कष्ट भरे जीवन से छुटकारा पा गए यही आज का सब से बड़ा सच है. आंखें भर आई हैं मेरी. मौत जीवन की सब से बड़ी और कड़वी सचाई है. समझ नहीं पा रही हूं कि शर्मा अंकल की मौत पर अफसोस मनाऊं या चैन की सांस लूं.

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Serial Story: यह कैसी विडंबना (भाग-1)

आज सुबहसुबह पता चला कि पड़ोस के शर्माजी चल बसे. रात अच्छेभले सोए थे, सुबह उठे ही नहीं. सुन कर अफसोस हुआ मुझे. अच्छे इनसान थे शर्माजी. उन की जीवन यात्रा समाप्त हो गई उस पर सहज उदासी सी लगी मुझे क्योंकि मौत का सुन कर अकसर खुशी नहीं होती. यह अलग बात है कि मौत मरने वाले के लिए वास्तव में मौत ही थी या वरदान. कोई मरमर कर भी जीता है और निरंतर मौत का इंतजार करता है. भला उस इनसान के लिए कैसा महसूस किया जाना चाहिए जिस के लिए जीना ही सब से बड़ी सजा हो.

6 महीने पहले ही तबादला हो कर हम यहां दिल्ली आए. यही महल्ला हमें पसंद आया क्योंकि 15 साल पहले भी हम इसी महल्ले में रह कर गए थे. पुरानी जानपहचान को 15 साल बाद फिर से जीवित करना ज्यादा आसान लगा हमें बजाय इस के कि हम किसी नई जगह में घर ढूंढ़ते.

इतने सालों में बहुत कुछ बदल जाता है. यहां भी बहुत कुछ बदल गया था, जानपहचान में जो बच्चे थे वे जवान हो चुके हैं और जो जवान थे अब अजीब सी थकावट ओढ़े नजर आने लगे और जो तब बूढ़े थे वे अब या तो बहुत कमजोर हो चुके हैं, लाचार हैं, बीमार हैं या हैं ही नहीं. शर्माजी भी उन्हीं बूढ़ों में थे जिन्हें मैं ने 15 साल पहले भी देखा था और अब भी देखा.

हमारे घर के ठीक सामने था तब शर्माजी का घर. तब वे बड़े सुंदर और स्मार्ट थे. शर्माजी तो जैसे भी थे सो थे पर उन की श्रीमती बेहद चुस्त थीं. दादीनानी तो वे कब की बन चुकी थीं फिर भी उन का साजशृंगार उन की तीनों बहुओं से बढ़ कर होता था. सुंदर दिखना अच्छी बात है फिर भी अकसर हम इस सत्य से आंखें चुरा लिया करते थे कि श्रीमती शर्मा ने घर और अपने को कैसे सजा रखा है, तो जाहिर है वे मेहनती ही होंगी.

मुझे याद है तब उन की छत पर मरम्मत का काम चल रहा था. ईंट, पत्थर, सीमेंट, रेत में भी उन की गुलाबी साड़ी की झलक मैं इतने साल के बाद भी नहीं भूली. बिना बांह के गुलाबी ब्लाउज में उन का सुंदर रूप मुझे सदा याद रहा. आमतौर पर हम ईंटसीमेंट के काम में अपने पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करते हैं जिस पर मैं तब भी हैरान हुई थी और 15 साल बाद जब उन्हें देखा तब भी हैरान रह गई.

15 साल बाद भी, जब उन की उम्र 75 साल के आसपास थी, उन का बनावशृंगार वैसा ही था. फर्क इतना सा था कि चेहरे का मांस लटक चुका था. खुली बांहों की नाइटी में उन की लटकी बांहें थुलथुल करती आंखों को चुभ रही थीं, बूढ़े होंठों पर लाल लिपस्टिक भी अच्छी नहीं लगी थी और बौयकट बाल भी उम्र के साथ सज नहीं रहे थे.

‘‘शर्मा आंटी आज भी वैसी की वैसी हैं. उम्र हो गई है लेकिन बनावशृंगार आज भी वैसा ही है.’’

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संयोग से 15 साल पुरानी मेरी पड़ोसिन अब फिर से मेरी पड़ोसिन थीं. वही घर हमें फिर से मिल गया था जिस में हम पहले रहते थे.

‘‘नाजनखरे तो आज भी वही हैं मगर दोनों का झगड़ा बहुत बुरा है. दिनरात कुत्तेबिल्ली की तरह लड़ते हैं दोनों. आ जाएंगी आवाजें तुम्हें भी. अड़ोसपड़ोस सब परेशान हैं.’’

हैरान रह गई थी मैं सरला की बात सुन कर.

‘‘क्या बात कर रही हैं…इतनी पढ़ीलिखी जोड़ी और गालीगलौज.’’

‘‘आंटी कहती हैं अंकल का किसी औरत से चक्कर है…एक लड़की भी है उस से,’’ सरला बोलीं, ‘‘पुराना चक्कर हो तो हम भी समझ लें कि जवानी का कोई शौक होगा. अब तुम्हीं सोचो, एक 80 साल के बूढ़े का किसी जवान औरत के साथ कुछ…चलो, माना रुपएपैसे के लिए किसी औरत ने फंसा भी लिया…पर क्या बच्चा भी हो सकता है, वह भी अभीअभी पैदा हुई है लड़की. जरा सोचो, शर्मा अंकल इस उम्र में बच्चा पैदा कर सकते हैं.’’

अवाक् थी मैं. इतनी सुंदर जोड़ी का अंत ऐसा.

‘‘बहुत दुख होता है हमें कि तीनों लड़के भी बाहर हैं, कोई अमेरिका, कोई जयपुर और कोई कोलकाता. समझ में नहीं आता क्या वजह है. कभी इन के घर के अंदर जा कर देखो…ऐसा लगता है जैसे किसी पांचसितारा होटल में आ गए हों… इतनी सुंदरसुंदर चीजें हैं घर में. बेटे क्याक्या नहीं भेजते. कोई कमी नहीं. बस, एक ही कमी है इस घर में कि शांति नहीं है.’’

बहुत अचंभा हुआ था मुझे जब सरला ने बताया था. तब हमेें इस घर में आए अभी 2 ही दिन हुए थे. मैं तो बड़ी प्रभावित थी शर्मा आंटी से, उन की साफसफाई से, उन के जीने के तरीके से.

‘‘कोई भी बाई इन के घर में काम नहीं करती. आंटी उसी पर शक करने लगती हैं. कुछ तो हद होनी चाहिए. शर्मा अंकल बेचारे भरी दोपहरी में बाहर पार्क में बैठे रहते हैं. घर में 4-4 ए.सी. लगे हैं मगर ठंडी हवा का सुख उन्हें घर के बाहर ही मिलता है. महल्ले में कोई भी इन से बात नहीं करता. क्या पता किस का नाम कब किस के साथ जोड़ दें.’’

‘‘आंटी पागल हो गई हैं क्या? हर शौक की एक उम्र होती है. इस उम्र में पति पर शक करना यह तो बहुत खराब बात है न.’’

‘‘इसीलिए तो हर सुनने वाला पहले सुनता है फिर दुखी होता है क्योंकि इतनी समृद्ध जोड़ी की जीवनयात्रा का अंतिम पड़ाव इतना दुखदाई नहीं होना चाहिए था.’’

5-6 दिन बीत गए. सामने वाले घर से कोई आवाज नहीं आई तो मुझे लगा शायद मैं ने जो सुना वह गलत होगा. बहुत नखरा होता था शर्मा आंटी का, आम इनसान से तो वे बात भी करना पसंद नहीं करती थीं. जो इनसान आम जीवन न जीता हो उसी का स्तर जब आम से नीचे उतर जाए तो सहज ही विश्वास नहीं न होता.

एक सुबह दरवाजे की घंटी बजी तो सामने शर्मा आंटी को खड़े पाया. सफेद सूट में बड़ी गरिमामयी लग रही थीं. शरीर पर ढेर सारे सफेद मोती और कानों में दमकते हीरे. उंगलियां महंगी अंगूठियों से सजी थीं.

‘‘अरे, आंटी आप, आइएआइए.’’

‘‘मुझे पता चला कि तुम वापस आ गई हो इस घर में. सोचा, मिल आऊं.’’

मेरी मां की उम्र की हैं आंटी. उन्हें आंटी न कहती तो क्या कहती.

‘‘अरे, मिसेज शर्मा कहो. आंटी क्यों कह रही हो. हमउम्र ही तो हैं हम.’’

पहला धक्का लगा था मुझे. जवाब कुछ होता तो देती न.

‘‘हां हां, क्यों नहीं…आइए, भीतर आइए.’’

‘‘नहीं ममता, मैं यह पूछने आई थी कि तुम्हारी बाई आएगी तो पूछना मेरे घर में काम करेगी?’’

‘‘अरे, आइए भी न. थोड़ी देर तो बैठिए. बहुत सुंदर लग रही हैं आप. आज भी वैसी ही हैं जैसी 15 साल पहले थीं.’’

‘‘अच्छा, क्या तुम्हें आज भी वैसी ही लग रही हूं. शर्माजी तो मुझ से बात ही नहीं करते. तुम्हें पता है इन्होंने एक लड़की रखी हुई है. अभी कुछ महीने पहले ही लड़की पैदा की है इन्होंने. कहते हैं आदमी हूं नामर्द थोड़े हूं. 4 बहनें रहती हैं पीछे कालोनी में, वहीं जाते हैं. चारों के साथ इन का चक्कर है. इस उम्र में मेरी मिट्टी खराब कर दी इस आदमी ने. महल्ले में कोई मुझ से बात नहीं करता.’’

रोने लगीं शर्मा आंटी. तब तरस आने लगा मुझे. सच क्या है या क्या हो सकता है, जरा सा कुरेदूं तो सही. हाथ पकड़ कर बिठा लिया मैं ने. पानी पिलाया, चाय के लिए पूछा तो वे आंखें पोंछने लगीं.

‘‘छोडि़ए शर्माजी की बातें. आप अपने बच्चों का बताइए. अब तो पोतेपोतियां भी जवान हो गए होंगे न. क्या करते हैं?’’

‘‘पोती की शादी मैं ने अभी 2 महीने पहले ही की है. पूरे 5 लाख का हीरे का सेट दिया है विदाई में. मुझे तो सोसाइटी मेें इज्जत रखनी है न. इन्हें तो पता नहीं क्या हो गया है. जवानी में रंगीले थे तब की बात और थी. मैं अपनी सहेलियों के साथ मसूरी निकल जाया करती थी और ये अपने दोस्तों के साथ नेपाल या श्रीनगर. वहां की लड़कियां बहुत सुंदर होती हैं. 15-20 दिन खूब मौज कर के लौटते थे. चलो, हो गया स्वाद, चस्का पूरा. तब जवानी थी, पैसा भी था और शौक भी था. मैं मना नहीं करती थी. मुझे ताश का शौक था, अच्छाखासा कमा लेती थी मैं भी. एकदूसरे का शौक कभी नहीं काटा हम ने.’’

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मैं तो आसमान से नीचे गिरने लगी आंटी की बातें सुन कर. मेरी मां की उम्र की औरत अपनी जवानी के कच्चे चिट्ठे आम बातें समझ कर मेरे सामने खोल रही थी. सरला ने भी बताया था कि शहर के अमीर लोगों के साथ ही हमेशा इन का उठनाबैठना रहा है.

‘‘पक्की जुआरिन थीं शर्मा आंटी. आज भी ताश की बाजी लगवा लो. बड़ेबड़ों के कान कतरती हैं. पैसा दांतों से पकड़ती हैं…बातें लाखों की करेंगी और काम वाली बाई और माली से पैसेपैसे का हिसाब करेंगी.’’

सरला की बातें याद आने लगीं तो आंटी की बातों से मुझे घिन आने लगी. कितनी सहजता से अपने पति की जवानी की करतूतों का बखान कर रही हैं. पति हर साल नईनई लड़कियों का स्वाद चखने चला जाता था और मैं मसूरी निकल जाती थी.

‘‘बच्चे कहां रहते थे?’’ मैं ने धीरे से पूछा था.

‘‘मेरी बड़ी बहनें मेरे तीनों लड़कों को रख लेती थीं. आज भी सब मेरी खूबसूरती के चर्चे करते हैं. मैं इतनी सुंदर थी फिर भी इस आदमी ने मेरी जरा भी कद्र नहीं की. मैं क्या से क्या हो गई हूं. देखो, मेरे हाथपैर…इस आदमी के ताने सुनसुन कर मेरा जीना हराम हो गया है.’’

‘‘आप अपनी पुरानी मित्रमंडली में अपना दिल क्यों नहीं लगातीं? आखिर आप की दोस्ती, रिश्तेदारी इसी शहर में ही तो है. कहीं न कहीं चली जाया करें. आप के भाईबहन, आप की भाभी और भतीजीभतीजे…’’

‘‘शर्म आती है मुझे उन के घर जाने पर क्योंकि इन की वजह से मैं हर जगह बदनाम होती रहती हूं.’’

मैं सोचने लगी, बदनाम तो आंटी खुद कर रही हैं अपने पति को. पहली ही मुलाकात में उन्हें नंगा करने का क्या एक भी पल हाथ से जाने दिया है इन्होंने. मुझे भला आंटी कितना जानती हैं, जो लगी हैं रोना रोने.’’

उस दिन के बाद शर्मा आंटी अकसर आने लगीं. उन की छत पर ही धूप आती थी पर उन से चढ़ा नहीं जाता था. इसलिए वे मेरे आंगन में धूप सेंकने आ जाती थीं. अपनी जवानी के हजार किस्से सुनातीं. कभी शर्मा अंकल भी आ जाते तो नमस्ते, रामराम हो जाती. एक दिन दोनों बनठन कर कहीं गए. साथसाथ थे, खुश थे. मुझे अच्छा लगा.

दूसरे दिन दोनों साथसाथ ही धूप सेंकने आ गए. मैं ने चायपानी के लिए पूछा. वृद्ध हैं दोनों. मैं जवान न सही फिर भी उन से 25-30 साल पीछे तो चल ही रही हूं. उस दिन मक्की की रोटी और सरसों का साग बनाया था. सोचा पूछ लूं.

‘‘सच्ची में, मुझे तो सदियां हो गईं खाए.’’

‘‘आप खाएंगी तो ले आऊं?’’

‘‘हां, हां,’’ खुशी से भर उठीं आंटी.

दोनों ने उस दिन मेरे साथ ही दोपहर का खाना खाया. काफी देर गपशप भी करते रहे. शाम को मेरे पति आए तो हम दोनों उन के घर उन से मिलने भी चले गए. अच्छे पड़ोसी बन गए वे हमारे.

सरला हैरान थी.

‘‘बड़ी शांति है, जब से तुम आई हो वरना अब तक दस बार तमाशा हो चुका होता.’’

‘‘मेरी तो शर्मा आंटी से अच्छी दोस्ती हो गई है. अकसर कोई तीसरा आ जाए बीच में तो लड़ाई खत्म भी हो जाती है.’’

‘‘और कई बार तीसरा बुरी तरह पिस भी जाता है. अपना ध्यान रखना. इन्होंने तो अपनी उतार ही रखी है. कहीं ऐसा न हो, तुम्हारी भी उतार कर रख दें,’’ सरला ने समझाया था मुझे, ‘‘बड़ी लेखिका बनी फिरती हो न. शर्मा आंटी जो कहानियां गढ़ लेती हैं उस से अच्छी तो तुम भी नहीं लिख सकतीं.’’

दीवाली के आसपास 3-4 दिन के लिए हम अपनी बेटी के पास जम्मू चले गए.

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REVIEW: जानें कैसी है वेबसीरीज ‘मिर्जापुर सीजन 2’

 रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः एक्सेल मीडिया एंड एंटरटेनमेंट  और पुनीत कृष्णा

निर्देशकः गुरमीत सिंह और मिहिर देसाइ

कलाकारः पंकज त्रिपाठीअली फजलदिव्यांन्दुश्वेता त्रिपाठी शर्मारसिका दुगलहर्षिता शेखर गौड़.

अवधिःदस एपीसोड, लगभग नौ घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः अमैजान प्राइम

रितेश सि़वानी और फरहान अख्तर अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘एक्सेल मीडिया एंड इंटरटेनमंेट’के तहत सबसे ‘अमैजान प्राइम’के लिए जुलाई 2017 में वेब सीरीज ‘इनसाइड एज’का निर्माण किया, जिसे सफलता मिली. मगर ‘इनसाइड एज’का दूसरा सीजन दिसंबर 2019 में आया, जो दर्शकों को पसंद नही आया. क्योंकि इसमें बेवजह के किरदार जोड़कर कहानी को बेवजह अलग ढर्रे पर ले जाने का प्रयास किया गया था. यही गलती अब एक बार फिर दोहरायी गयी है. जी हॉ!उत्तर भारत के पूर्वांचल की पृष्ठभूमि  पर अपरध,  खून खराबा , गोलीबारी वाली वेब सीरीज ‘‘मिर्जापुर’’ का पहला सीजन नवंबर 2018 में आया, तो इसे अच्छी सफलता मिली. मगर  अब 23 अक्टूबर को ‘मिर्जापुर’का सीजन दो आया है, जो बुरी तरह से निराश करता है. मजेदार बात यह है कि ‘मिर्जापुर सीजन दो ’को लाने से पहले प्रचार किया गया था कि बहुत बड़ा हंगामा करने वाले हैं. मगर यह तो फुसफुसा पटाखा ही साबित ुहुआ. इस बार फिर वही गलती दोहराते हुए कहानी को मिर्जापुर के साथ साथ लखनउ, बलिया, सीवान, बिहार तक फैलाने के चक्कर में बंदूक, कट्टा आदि के साथ साथ अफीम की खेती व अफीम के व्यापार तक को कहानी का हिस्सा बनाया गया. इतना ही नहीं लखनउ में रॉबिन(  प्रियांशु पेन्युअली)और सीवान, बिहार में दद्दा त्यागी(लिलिपुट), उनकी पत्नी, साले और जुड़वा बेटों(विजय वर्मा )  को जोड़ा गया है. यह सभी किरदार मलमल में ताट का पैबंद नजर आते हैं. इनका कहानी में कोई योगदान नही है. यदि यह न हो तो भी कहानी पर असर नहीं पड़ना है. इसी तरह से कहानी में बेवजह शरद शुक्ला का किरदार जोड़ा गया है. इतना ही नही ‘मिर्जापुर’ पर कब्जे को लेकर जिस तरह का अंतर्विरोध और लड़ाई, शतरंजी चालें त्रिपाठी परिवार के अंदर चल रही हैं, उनमें से कुछ तो अविश्वसनीय लगती हैं.

वैसे यदि बतौर निर्माता रितेश सिद्धवानी और फरहान अख्तर पर नजर दौड़ाई जाए, तो यह असफल ही नजर आते हैं. इन्होने अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘एक्सेल इंटरटेनमेंट’के तहत 2001 से फिल्मों का निर्माण करते आ रहे है. लेकिन अब तक इन्होने असफल फिल्मों का ही निर्माण ज्यादा किया है. पहली फिल्म ‘दिल चाहता है’सिर्फ मुंबई में ही चली थी. इसके बाद ‘लक्ष्य’, ‘रॉक आॅन’, ‘कार्तिक कालिंग कार्तिक’,  ‘तलाश’,  ‘गोल्ड’, रॉक औन 2’, ‘फुकरे 2’, ‘बार बार दिल दे के देखो’, ‘दिल धड़कता है’ व ‘हनीमून ट्रेवल्स प्रा. लिमिटेड’जैसी असफल फिल्में बनायी है. मगर ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’,  ‘डॉन’, ‘डॉन 2’के बाद‘गली ब्वॉय’ जरुर सफल रही. इस तरह देखे तो इनकी पचहत्तर प्रतिशत फिल्में असफल रही है.

कहानीः

पहले एपीसोड की शुरूआत में दर्शकों को याद दिलाने के लिए सात मिनट के अंदर पहले सीजन की कहानी का सारांश बताया गया है. अपराध जगत के बादशाह अखंडानंद त्रिपाठी उर्फ कालीन भैया (त्रिपाठी)मिर्जापुर के लोगों के लिए नियमों को परिभाषित करते हुए कहते है-‘‘जो आया है, वह जाएगा भी, बस मर्जी होगी. . . गद्दी पर हम चाहें मुन्ना, नियम वही रहेंगें. ’’मगर कालीन भईया के बेटे मुन्ना त्रिपाठी(दिव्येंदु) इसमें और अधिक जोड़ते हुए कहते हैं-‘‘मिर्जापुर पर बैठने वाला कभी भी नियम बदल सकता है. ’’वास्तव में मुन्ना त्रिपाठी की नजरें मिर्जापुर की गद्दी पर है.

खैर, गुड्डू पंडित(अली फजल ) अपने भाई (विक्रांत मैसी) और उसकी पत्नी स्वीटी (श्रिया पिलगांवकर) की मौत का बदला लेने के लिए वापस आ गया है. शरीरिक रूप से अक्षम हो चुके गुड्डू अपनी बहन डिम्पी (हर्षिता गौर)को लखनउ के विश्वविद्यालय में पढ़ाई के लिए भेजकर खुद पुलिस इंस्पेक्टर गुप्ता की बेटी गजगामिनी उर्फ गोलू(श्वेता त्रिपाठी शर्मा)के साथ अफीम उत्पादक व हथियार विक्रेता लाला की कोठी में शरण लेकर अपने व्यवसाय को बढाने और त्रिपाठी परिवार का खात्मा कर ‘मिर्जापुर’की गद्दी हथियाने की जुगाड़ में लगता है. पहले सीजन में गोलू सभी तरह की हिंसा के खिलाफ थी, पर अब दूसरे सीजन में स्वीटी और बबलू की मौत का बदला लेने के लिए हथियार उठाकर गुड्डू की मदद करती है. दोनों का मकसद बदला लेने के अलावा मिर्जापुर पर भी शासन करने के लिए दृढ़ हैं. तो वहीं कालीन भैया के घर में उनकी अतुल्य कामुक पत्नी बीना त्रिपाठी (रसिका दुगल), अपने ससुर(कुलभूषण खरबंदा) के अलावा नौकर राजा के साथ यौन संबंध संबंध बनाकर दोनों को बहला- फुसलाकर उनके खेल को उकसाती है. अपनी चाल चलते हुए वह मां बन जाती है और अब वह मुन्ना की बजाय अपने बेटे को ‘मिर्जापुर’की गद्दी सौंपने के मुन्ना त्रिपाठी व कालीन भईया के सफाए के लिए गुड्डू के संग साजिश रचती रहती है.

गुड्डू और गोलू ने सीवान के दद्दा त्यागी के छोटे बेटे शत्रुघ्न के साथ अफीम का धंधा शुरू कर दिया है.

उधर कालीन भइया प्रदेश के मुख्यमंत्री सूर्यप्रताप(पारितोष सैंड) के संग हाथ मिलाकर राजनीति का हिस्सा बनते है. इसी के साथ मुख्यमंत्री की विधवा बेटी माधुरी यादव(ईशा तलवार)के संग अपने बेटे मुन्ना त्रिपाठी का विवाह करवा देते हैं. वह मंत्री बनने वाले हैं. मगर शपथ ग्रहण से पहले ही सूर्यप्रताप के भाई जे पी यादव(प्रमोद पाठक), शरद शुक्ला की मदद लेकर सुर्यप्रताप की हत्या करवाकर खुद ही मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं. मगर कालीन भईया व माधुरी मिलकर साजिश रचते हैं. परिणामतः जे पी यादव को पार्टी छोड़नी पड़ती है और माधुरी यादव त्रिपाठी मुख्यमंत्री बन जाती हैं.

इस बीच कई लोगों की हत्याएं होती रहती हैं. बीना खुद ही अपने ससुर की हत्या कर देती हैं और आरोप मकबूल पर लगता है. उधर गुड्डू व गोलू मिलकर मुन्ना त्रिपाठी की हत्या कर देते हैं. दोनो कालीन भईया को भी बुरी तरह से घायल कर देते हैं. मगर शरद शुक्ला घायल कालीन भईया को अपनी गाड़ी में उठाकर ले जाता है. अर्थात अब ‘मिर्जापुर सीजन तीन भी आ सकता है.

निर्देशनः

यह ‘‘मिर्जापुर सीजन दो’’ है, जिसके दस एपीसोड हैं. मगर चैथे एपीसोड के अंत में मिर्जापुर खत्म होकर राजनीति, राजनीति का अपराधीकरण, अफीम के व्यापार सहित कई दूसरे ट्रैक शुरू हो जाते हैं, जो कि कहानी को भटकाने के साथ ही पूरी सीरीज का सत्यानाश कर देते हैं. चैथे एपीसोड तक गंदी गंदी गालियां, गोलियों का चलना आदि ‘मिर्जापुर’ का अहसास कराते हैं, पर उसके बाद नही. चैथे एपीसोड के बाद मिर्जापुर के नाम पर राजनीति व अपराध का जिस तरहेका गंठजोड़ चित्रित किया गया है, वह पहले भी कई फिल्मों में आ चुका है. पॉंचवे एपीसोड के बाद हर एपीसोड का एक्शन बहुत कमजोर है. कई दृश्य तो एकदम फिल्मी हैं. बदला लेने की तीव्रता के साथ जिस तरह से औरतों के चरित्र गढ़े गए हैं, वह बहुत सही नही लगता. गोलू का किरदार काफी कमजोर है. गोलू न तो अपनी बहन तथा प्रेमी की हत्या के बदले की आग में जलती दिखती हैं, वह पूरे समय गुड्डू पंडित के आगे दबी-सहमी रहती हैं.  हाथों में गन से उनके व्यक्तित्व का वजन नहीं बढ़ता.  इस बार इस सीरीज में अपराध व सही का जो संतुलन होना चाहिए,  उसका घोर अभाव है. कुल मिलाकर थका देने वाली बदला गाथा है. दूसरे सीजन में पहले सीजन वाली पुरानी रफ्तार,  रोमांच और संवाद सब कुछ सिरे से गायब है.

परिवार की आंतरिक कलह और अंतद्र्वंद को भी सही ढंग से उकेरा नहीं गया. इतना ही नही इसका क्लायमेक्स तो फिल्म‘‘बाहुबली 2’’के क्लायमेक्स की नकल हैं.

अभिनयः

कालीन भईया के किरदार में पंकज त्रिपाठी ने एक बार फिर से उत्कृष्ट अभिनय किया है. अली फजल  खुद को दोहराते हुए नजर आते हैं. दिव्येंदु शर्मा को बहुत अच्छा मौका मिला था, मगर उसका सही ढंग से उपयोग कर वह अपनी प्रतिभा को उजागर करने में सफल नही रहे.  दिब्येंदु भट्टाचार्य,  अंजुम शर्मा,  राजेश तैलंग और अनुभवी कुलभूषण खरबंदा ने अच्छा काम किया है. प्रियांशु पेन्युअली निराश करते हैं. विजय वर्मा और लिलिपुट जरुर अपने अभिनय से आश्चर्यचकित करते हैं. रसिका दुगल शीबा चड्ढा,  हर्षिता गौड़ और श्वेता त्रिपाठी शर्मा ने ठीक ठाक काम किया है. मगर श्वेता त्रिपाठी शर्मा को एक्शन दृश्यों में मेहनत करने की जरुरत थी. एक्शन दृश्यों में वह सबसे बड़ी कमजोर कड़ी हैं.  माधुरी यादव के किरदार में ईशा तलवार अपनी छाप व अभिनय प्रतिभा का असर छोड़ जाती हैं.

#NehuDaVyah: नेहा कक्कड़ की हल्दी-मेहंदी की फोटोज हुईं वायरल, ऐसे दिए रोमांटिक पोज

बौलीवुड एक्ट्रेस और सिंगर नेहा कक्कड़ जल्द ही शादी के बंधन में बंधने वाली है, जिसके फोटोज इन दिनों सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. जहां एक तरफ सेलेब्स उनकी शादी को लेकर मजेदार रिएक्शन दे रहे हैं. तो वहीं नेहा कक्कड़ और रोहनप्रीत सिह के फैंस उन्हें बधाइयां देने में लगे हुए हैं. इसीलिए आज हम आपको #NehuDaVyah की कुछ फोटोज दिखाने जा रहे हैं.

हल्दी सेरेमनी में कुछ यूं दिखे नेहा और रोहनप्रीत

 

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#NehaKakkar #rohanpreetsingh last night at their Ring ceremony with their Mom. #NehuDaVyah #nehupreet ❤

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नेहा कक्कड़ ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपनी हल्दी सेरेमनी की तस्वीरें शेयर की हैं, जो इस समय इंटरनेट पर वायरल हो रही हैं. वहीं फोटोज की बात करें तो नेहा अपने होने वाले पति रोहनप्रीत के साथ रोमांटिक पोज देती नजर आ रही हैं.

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पीली साड़ी में दिखीं नेहा कक्कड़

 

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❤ #nehakakkar and #rohanpreetsingh haldi ceremony 💖. God bless them #NehuDaVyah

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अदाकारा नेहा कक्कड़ ताजा तस्वीरों में पीली साड़ी पहने दिखाई दे रही हैं। ये रंग उन पर काफी खिल रहा है. वहीं सोशलमीडिया पर वायरल हुई फोटोज में नेहा कक्कड़ अपने होने वाले पति रोहनप्रीत की आंखों में डूबी नजर आ रही हैं. दरअसल, एक फोटो में रोहनप्रीत ने नेहा कक्कड़ को जितने प्यार से गले लगाया है, उसके बाद तो यही कहना बनता है कि ये जोड़ी परफेक्ट है.

नेहा कक्कड़ पर फिदा हुए फैंस

 

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Sweet #nehakakkar mehndi ceremony today ❤

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जहां हल्दी से लेकर मेहंदी सेरेमनी में नेहा कक्कड़ की खुशी फैंस को पसंद आ रही हैं. तो वहीं सोशलमीडिया पर फैंस और सेलेब्स नेहा पर जमकर प्यार लुटाते नजर आ रहे हैं. साथ ही नेहा कक्कड़ के द्वारा शेयर की गई फोटोज पर फैंस जमकर कमेंट कर रहे हैं.

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बता दें, जहां नेहा कक्कड़ और रोहन प्रीत सिंह जल्द शादी के बंधन में बंधने वाले हैं तो वहीं उनके दोस्तों को उनकी अचानक शादी पर यकीन नही हो पा रहा है. बीते दिनों नेहा के खास दोस्त आदित्य नारायण ने एक इंटरव्यू में नेहा की अचानक शादी पर शक जाहिर किया था.

रातोंरात ‘मेरे डैड की दुल्हन’ के बंद होने से फैंस को झटका, श्वेता तिवारी ने किया खुलासा

लौकडाउन के बाद से कई सीरियल्स के बंद होने की खबर से फैंस काफी दुखी हुए थे. लेकिन अब खबर है कि एक और पौपुलर सीरियल अलविदा कहने वाला है. सोनी टीवी के सीरियल ‘मेरे डैड की दुल्हन’ को फैंस ने काफी पसंद किया है, जिसका अंदाजा सोशलमीडिया के जरिए लगाया जा सकता है. लेकिन इसी बीच खबर है कि मेकर्स ने सीरियल को रातों रात बंद करने का फैसला ले लिया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

श्वेता तिवारी ने तोड़ी चुप्पी

‘मेरे डैड की दुल्हन’ (Mere Dad Ki Dulhan) के बंद होने की खबर से जहां फैंस सदमे में हैं तो वहीं शो के कलाकारों के साथ-साथ सभी क्रू मेंबर्स को भी तगड़ा झटका लगा है. लेकिन अब सीरियल बंद होने की खबरों पर लीड एक्ट्रेस श्वेता तिवारी ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा है कि गुनीत का किरदार हमेशा उनके दिल के करीब रहने वाला है. दरअसल, एक इंटरव्यू में श्वेता ने कहा, ‘किरदार के तौर पर गुनीत हमेशा मेरे दिल के करीब रहेगी.  मैं बहुत खुश हूं कि लोगों ने इस सीरियल को इतना प्यार दिया है.  इस सीरियल के साथ काम करना इसलिए सबसे अच्छा रहा है कि हर किरदार काफी खूबसूरती से लिखे गए थे. ‘

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गुनीत और अम्बर की हो चुकी है शादी

पिता की शादी के ईर्द गिर्द घूमती सीरियल ‘मेरे डैड की दुल्हन’ की कहानी में पिछले दिनों गुनीत और अम्बर की शादी देखने को मिली थी, जिसे फैंस ने काफी पसंद किया था. वहीं जल्द ही दोनों की बेटी की लव स्टोरी भी शुरू होने वाली थी. लेकिन रातों रात सीरियल बंद होने की खबर से सीरियल की कहानी ने नया मोड़ लिया है.

बता दें, ‘स्टोरी 6 मंथ्स की’ जल्द ही सोनी टीवी पर शुरू होने वाला है. वहीं खबर है कि श्वेता तिवारी स्टारर सीरियल ‘मेरे डैड की दुल्हन’ को इस सीरियल से रिप्लेस किया जाएगा.

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