Serial Story: फलक तक (भाग-1)

स्वर्णिमा खिड़की के पास खड़ी हो बाहर लौन में काम करते माली को देखने लगी. उस का छोटा सा खूबसूरत लौन माली की बेइंतहा मेहनत, देखभाल व ईमानदारी की कहानी कह रहा था. वह कहीं भी अपने काम में कोताही नहीं बरतता है…बड़े प्यार, बड़ी कोशिश, कड़ी मेहनत से एकएक पौधे को सहेजता है, खादपानी डालता है, देखभाल करता है.

गमलों में उगे पौधे जब बड़े हो कर अपनी सीमाओं से बाहर जाने के लिए अपनी टहनियां फैलाने लगते हैं, तो उन की काटछांट कर उन्हें फिर गमले की सीमाओं में रहने के लिए मजबूर कर देता है. उस ने ध्यान से उस पौधे को देखा जो आकारप्रकार का बड़ा होने के बावजूद छोटे गमले में लगा था. छोटे गमले में पूरी देखभाल व साजसंभाल के बाद भी कभीकभी वह मुरझाने लग जाता था.

माली उस की विशेष देखभाल करता है. थोड़ा और ज्यादा काटछांट करता है, अधिक खादपानी डालता है और वह फिर हराभरा हो जाता है. कुछ समय बाद वह फिर मुरझाने लगता. माली फिर उस की विशेष देखभाल करने में जुट जाता. पर उस को पूरा विकसित कर देने के बारे में माली नहीं सोचता. नहीं सोच पाता वह यह कि यदि उसे उस पौधे को गमले की सीमाओं में बांध कर ही रखना है तो बड़े गमले में लगा दे या फिर जमीन पर लगा कर पूरा पेड़ बनने का मौका दे. यदि उस पौधे को उस की विस्तृत सीमाएं मिल जाएं तो वह अपनी टहनियां चारों तरफ फैला कर हराभरा व पुष्पपल्लवित हो जाएगा.

लेकिन शायद माली नहीं चाहता कि उस का लगाया पौधा आकारप्रकार में इतना बड़ा हो जाए कि उस पर सब की नजर पडे़ और उसे उस की छाया में बैठना पड़े. एक लंबी सांस खींच कर स्वर्णिमा खिड़की से हट कर वापस अपनी जगह पर बैठ गई और उस लिफाफे को देखने लगी जो कुछ दिनों पहले डाक से आया था.

वह कविता लिखती थी स्कूलकालेज के जमाने से, अपने मनोभावों को जाहिर करने का यह माध्यम था उस के पास, अपनी कविताओं के शब्दों में खोती तो उसे किसी बात का ध्यान न रहता. उस की कविताएं राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में छपती थीं और कुछ कविताएं उस की प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिकाओं में भी छप चुकी थीं. साहित्यिक पत्रिकाओं में छपी उस की कविताएं साहित्य के क्षेत्र में प्रतिष्ठा पा चुके लोगों की नजरों में भी आ जाती थीं.

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उस का कवि हृदय, कोमल भावनाएं और हर बात का मासूम पक्ष देखने की कला अकसर उस के पति वीरेन के विपरीत स्वभाव से टकरा कर चूरचूर हो जाते. वीरेन को कविता लिखना खाली दिमाग की उपज लगती. किताबों का संगसाथ उसे नहीं सुहाता था. शहर में हो रहे कवि सम्मेलनों में वह जाना चाहती तो वीरेन यह कह कर ना कर देता, ‘क्या करोगी वहां जा कर, बहुत देर हो जाती है ऐसे आयोजनों में…ये फालतू लोगों के काम हैं…तुम्हें कविता लिखने का इतना ही शौक है तो घर में बैठ कर लिखो.’

उस के लिए ये सब खाली दिमाग व फालतू लोगों की बातें थीं. जब कभी बाहर के लोग स्वर्णिमा की तारीफ करते तो वीरेन को कोई फर्क नहीं पड़ता. उस के लिए तो घर की मुरगी दाल बराबर थी. कहने को सबकुछ था उस के पास. बेटी इसी साल मैडिकल के इम्तिहान में पास हो कर कानपुर मैडिकल कालेज में पढ़ाई करने चली गई थी. वीरेन की अच्छी नौकरी थी. एक पति के रूप में उस ने कभी उस के लिए कोई कमी नहीं की. पर पता नहीं उस के हृदय की छटपटाहट खत्म क्यों नहीं होती थी, क्या कुछ था जिसे पाना अभी बाकी था. कौन सा फलक था जहां उसे पहुंचना था.

उसे हमेशा लगता कि वीरेन ने भी एक कुशल माली की तरह उसे अपनी बनाई सीमाओं में कैद किया हुआ है. उस से आगे उस के लिए कोई दुनिया नहीं है. उस से आगे वह अपनी सोच का दायरा नहीं बढ़ा सकती. जबजब वह अपनी टहनियों को फैलाने की कोशिश करती, वीरेन एक कुशल माली की तरह काटछांट कर उसे उस की सीमा में रहने के लिए बाध्य कर देता.

उसे ताज्जुब होता कि बेटी की तरक्की व शिक्षा के लिए इतना खुला दिमाग रखने वाला वीरेन, पत्नी को ले कर एक रूढि़वादी पुरुष क्यों बन जाता है. वह लिफाफा खोल कर पढ़ने लगी. देहरादून में एक कवि सम्मेलन का आयोजन होने जा रहा था, जिस में कई जानेमाने कविकवयित्रियां शिरकत कर रहे थे और उसे भी उस आयोजन में शिरकत करने का मौका मिला था.

पर उसे मालूम था कि जो वीरेन उसे शहर में होने वाले आयोजनों में नहीं जाने देता, क्या वह उसे देहरादून जाने देगा. जबकि देहरादून चंडीगढ़ से कुछ ज्यादा दूर नहीं था. पर वह अकेली कभी गई ही नहीं, वीरेन ने कभी जाने ही नहीं दिया. वीरेन न आसानी से खुद कहीं जाता था न उसे जाने देता था.

वीरेन की तरफ से हमेशा न सुनने की आदी हो गई थी वह, इसलिए खुद ही सोच कर सबकुछ दरकिनार कर देती. वीरेन से ऐसी बात करने की कोशिश भी न करती. पर पता नहीं आज उस का मन इतना आंदोलित क्यों हो रहा था, क्यों हृदय तट?बंध तोड़ने को बेचैन सा हो रहा था.

हमेशा ही तो वीरेन की मानी है उस ने, हर कर्तव्य पूरे किए. कहीं पर भी कभी कमी नहीं आने दी. अपना शौक भी बचे हुए समय में पूरा किया. क्या ऐसा ही निकल जाएगा सारा जीवन. कभी अपने मन का नहीं कर पाएगी. और फिर ऐसा भी क्या कर लेगी, क्या कुछ गलत कर लेगी. इसी उधेड़बुन में वह बहुत देर तक बैठी रही.

कुछ दिनों से शहर में पुस्तक मेला लगा हुआ था. वह भी जाने की सोच रही थी. उस दिन वीरेन के औफिस जाने के बाद वह तैयार हो कर पुस्तक मेले में चली गई. किताबें देखना, किताबों से घिरे रहना उसे हमेशा सुकून देता था.

मेले में वह एक स्टौल से दूसरे स्टौल पर अपनी पसंद की कुछ किताबें ढूंढ़ रही थी. एक स्टौल पर प्रसिद्ध कवि व कवयित्रियों के कविता संकलन देख कर वह ठिठक कर किताबें पलटने लगी.

‘‘स्वर्णिमा,’’ एकाएक अपना नाम सुन कर उस ने सामने देखा तो कुछ खुशी, कुछ ताज्जुब से सामने खड़े राघव को देख कर चौंक गई.

‘‘राघव, तुम यहां? हां, लेकिन तुम यहां नहीं होंगे तो कौन होगा,’’ स्वर्णिमा हंस कर बोली, ‘‘अभी भी कागजकलमदवात का साथ नहीं छूटा, रोटीकपड़ामकान के चक्कर में…’’

‘‘क्यों, तुम्हारा छूट गया क्या,’’ राघव भी हंस पड़ा, ‘‘लगता तो नहीं वरना पुस्तक मेले में कविता संकलन के पृष्ठ पलटते न दिखती.’’

‘‘मैं तो चंडीगढ़ में ही रहती हूं, पर तुम दिल्ली से चंडीगढ़ में कैसे?’’

‘‘हां, बस औफिस के काम से आया था एक दिन के लिए. मेरी भी किताबें लगी हैं ‘किशोर पब्लिकेशन हाउस’ के स्टौल पर. फोन पर बताया था उन्होंने, इसलिए समय निकाल कर यहां आ गया.’’

‘‘किताबें?’’ स्वर्णिमा खुशी से बोली, ‘‘मुझे तो पता ही नहीं था कि तुम्हारे उपन्यास भी छप चुके हैं और वह भी इतने बडे़ पब्लिकेशन हाउस से. पर किस नाम से लिख रहे हो?’’

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‘‘किस नाम से, क्या मतलब… विवेक दत्त के नाम से ही लिख रहा हूं.’’

‘‘ओह, मैं ने कभी ध्यान क्यों नहीं दिया. पता होता तो किताबें पढ़ती तुम्हारी.’’

‘‘तुम ने ध्यान ही कब दिया,’’ अपनी ही बोली गई बात को अपनी हंसी में छिपाता हुआ राघव बोला.

आगे पढ़ें- स्वर्णिमा ने राघव की बात को…

‘बाटा’ के ‘Ready Again’ कलेक्शन के साथ करिए खुशियों की नई शुरुआत

पिछले 7 महीने से कोरोनावायरस ने न सिर्फ हमारी जिंदगी की रफ्तार धीमी कर दी बल्कि हमारे कदम भी रोक दिए. हम सभी 2020 की मुश्किलों को पीछे छोड़कर एक नई शुरुआत करना चाहते हैं. इसी के तहत बाटा ने ‘Kick out 2020’ कैंपेन के साथ अपनी ‘Ready Again’ कलेक्शन माक्रेट में पेश की है. तो इस फेस्टिवल सीजन में पिछली सारी निगेटिविटी को भुलाकर करिए एक नई शुरुआत, बाटा के ‘Ready Again कलेक्शन’ के साथ. क्योंकि ‘KICKOUT 2020’ के साथ बाटा कर रहा है आपकी खुशियों और कंफर्ट के लिए एक नई पहल…

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फेस्टिवल स्पेशल…

इस बार हर फेस्टिवल में अपने लुक की खूबसूरती को बढ़ाएं बाटा के ‘Ready Again कलेक्शन’ के साथ क्योंकि महीनों की बोरियत को करना है दूर तो सेलिब्रेशन तो बनता ही है और सेलिब्रेशन होगा तो आपके पैरों को भी दुगुना दम दिखाना होगा. ऐसे में इनका ख्याल रखेंगे बाटा के कंफर्टेबल स्टाइलिश फुट वियर…

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पार्टी स्पेशल…

फेस्टिवल के साथ ही शुरुआत होगी पार्टीज की, जहां आपको फिर से झूमने और डांस करने का मौका मिलेगा. लेकिन पैरो की चिंता आपके लिए टेंशन न बने इसलिए आप पहनिए बाटा के ‘Ready Again कलेक्शन’ के ये नए आरामदायक Kitten, हील्स और सैंड्लस…

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फिटनेस स्पेशल…

और जब इतना कुछ होगा तो आपको अपनी फिटनेस का भी ख्याल रखना होगा. फिर चाहे वॉकिंग हो या जिमिंग, हर वर्क आउट के लिए आपको ‘बाटा’ के ‘रेडी अगेन कलेक्शन’ में मिलेंगे ढेर सारे ऑप्शन…

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ऑफिस स्पेशल…

इस नई शुरुआत के ही साथ ही वो कदम जो पिछले 7 महीने से रूके हुए थे वो फिर से चल पड़े हैं एक और सफर पर. ऐसे में बाटा का ‘Ready Again कलेक्शन’ बनाएगा आपकी ऑफिस मीटिंग्स को और आसान क्योंकि जब पैरो में होगे आरामदायक जूते तो फिर कौन भला कदमों को रोके.

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तो फिर सोचना छोड़िए और आज ही शुरु करिए खुशियों और उम्मीद से भरा अपना नया सफर. इस फेस्टिवल सीजन में बाटा के साथ हर ओकेजन को बनाइए खास और ‘Ready Again कलेक्शन’के साथ हो जाइए नई खुशियों के लिए तैयार…

https://www.youtube.com/watch?v=cubms3cRM9g

29 साल के हुए मोहसिन खान, शिवांगी जोशी संग सेट पर ऐसे किया सेलिब्रेशन

स्टार प्लस के पौपुलर टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) के कार्तिक यानी एक्टर मोहसिन खान (Mohsin Khan) ने बीते दिन अपना बर्थडे सेलिब्रेट किया. जहां फैंस ने उन्हें गिफ्ट्स के साथ बर्थडे विश किया तो वहीं उनकी को स्टार और एक्ट्रेस शिवांगी जोशी उर्फ ‘नायरा’ ने भी मोहसिन को खास अंदाज में बर्थडे विश किया है. इसी का साथ शो के सेट पर मोहसिन ने अपना बर्थडे सेलिब्रेट किया, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो रही है. आइए आपको दिखाते हैं मोहसिन खान के बर्थडे की वायरल फोटोज और वीडियोज की झलक…

शिवांगी ने कुछ यूं किया मोहसिन को विश

नोक-झोंक से लेकर रोमांटिक केमिस्ट्री में ऑनस्क्रीन शानदार नजर आने वाली नायरा कार्तिक की जोड़ी फैंस को काफी पसंद आती है. वहीं मोहसिन के बर्थडे के मौके पर सोशल मीडिया पर मोहसिन खान संग शिवांगी जोशी ने एक फोटो शेयर की है, जिसमें ‘बारिश’ के पोस्टर को केक था , जिसमें दोनों स्माइल करते नजर आ रहे हैं. साथ ही फोटो पोस्ट करते हुए मोहसिन खान को शिवांगी जोशी ने बर्थडे विश किया है.

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औनस्क्रीन और औफस्क्रीन परिवार के साथ मनाया बर्थडे

मोहसिन खान ने जहां घरवालों के साथ अपना 29वां बर्थडे सेलिब्रेट किया तो वहीं अपने औनस्क्रीन परिवार यानी ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के सेट पर भी उन्होंने अपना बर्थडे मनाया, जिस दौरान मोहसिन को खूब स्पेशल ट्रीटमेंट मिला.

सेट पर पार्टी के इंतजार में दिखे बच्चे

शिवांगी जोशी और मोहसिन खान स्टारर सीरियल के सेट पर सभी बच्चे पार्टी का बेसब्री से इंतजार करते हुए नजर आए तो वहीं बर्थडे सेलिब्रेशन के दौरान कोरोनावायरस का ख्याल रखते भी नजर आए. इस दौरान सेट पर फैस्टिवल का माहौल भी साफ देखने को मिला.

 

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Today’s precap🙁 #kaira #yrkkh #shivin

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बता दें, इन दिनों कार्तिक और नायरा की जिंदगी में एक नई मेहमान आ चुकी है, जिसके बाद कायरव के अंदर जलन साफ देखने को मिल रही है, जिसके चलते नायरा और कार्तिक, कायरव को मनाने की कोशिश करते हुए नजर आ रहे हैं.

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#nehudavyah: ससुराल पहुंची नेहा कक्कड़, कुछ ऐसे हुआ स्वागत

पौपुलर बौलीवुड सिंगर नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) और रोहनप्रीत सिंह (Rohanpreet Singh) की शादी की फोटोज इन दिनों सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. जहां अभी तक फैंस के दिल से नेहा और रोहनप्रीत की शादी का वीडियो निकला भी नही था कि अब ससुराल पहुंचने के बाद नेहा का एक और वीडियो वायरल हो रहा है. दरअसल, वीडियो में ससुराल पहुंची नेहा का स्वागत बड़े ही धूमधाम से हो रहा है. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो…

हुई थी नेहा की विदाई

एक वीडियो में नेहा कक्कड़ शादी के बाद कार में बैठती नजर आईं और पति रोहनप्रीत उन्हें सहारा देकर कार में बिठाते नजर आए थे. वहीं बिदाई में रोहनप्रीत का यूं नेहा की मदद करने और सहारा देना फैंस को काफी पसंद आया था, जिसके बाद से वह उनकी तारीफें करते नही थक रहे थे.

 ससुराल में ऐसे हुआ नेहा का स्वागत

बॉलीवुड सिंगर नेहा कक्कड़ की धूमधाम से शादी के बाद, उनका ससुराल में भी धूमधाम से स्वागत हुआ, जिसके चलते नेहा का ढोल नगाड़ों और खूब हल्ले-गुल्ले के साथ स्वागत किया गया. इसकी कुछ वीडियोज इस वक्त जमकर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं.

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व्हाइट कलर के लहंगे में नजर आईं नेहा

ससुराल में नेहा के स्वागत की पार्टी के लिए उन्होंने सफेद रंग के डिजायनर लहंगा चुना, जिसके साथ नेहा कक्कड़ ने हैवी ज्वेलरी कैरी की थी. इस लुक में नेहा कक्कड़ बेहद खूबसूरत लग रही थीं. तो वहीं, उनके साथ पति रोहनप्रीत सिंह भी साथ में डार्क ब्लू कलर के कोट में बेहद हैंडसम लग रहे हैं.

 

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We the #Sabyasachi Couple Loving our own song #NehuDaVyah 😍♥️😇 #NehuPreet #ReelItFeelIt

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शादी की फोटोज की शेयर

 

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Rohu and I Wore @falgunishanepeacockindia for our Night Wedding. Must Say They’re the Best!! ♥️♥️🙌🏼 Love Love Loved Wearing their Creation 😍😇 Clothing – @falgunishanepeacockindia @falgunipeacock @shanepeacock Jewellery by @archanaaggarwalofficial Nath by @merialmariofficial Styled by @falgunipeacock Makeup by @vibhagusain Hair by @deepalid10 Photography: @deepikasdeepclicks Mehendi: @rajumehandiwala6 Chooda & Kaleera @omsons_bridal_store Event by @theroyaleventsindia Decor by @showkraftdesignerweddings Venue @jwmarriottdelhi Event managed by @theshadiwale Hospitality: @akshhaydekhoduniya @sudhanshujaindekhduniya #NehuPreet #NehuDaVyah #falgunishanepeacockindia #falgunipeacock #shanepeacock

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बता दें बीते दिन नेहा कक्कड़ ने अपनी शादी की कुछ फोटोज शेयर की थीं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. वहीं पति रोहनप्रीत के संग उनकी जोड़ी परफेक्ट कपल की तरह लग रही है.

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कामुक नजरों का शिकार बनती तलाकशुदा महिला

अंजू बहुत डरी-सहमी सी घर लौटी थी. आंखों में बार-बार आंसू भर आते थे. नन्हीं छवि को सीने से लगा कर वह बड़ी देर तक सन्नाटे में बैठी रही. अपने और अपनी बच्ची के लिए उसका नौकरी करना जरूरी था, मगर जबसे ये नया बौस रजत शर्मा औफिस में आया है, तब से अंजू का एक-एक दिन वहां मुश्किल से कट रहा है. वजह है उसकी खूबसूरती और ऊपर से उसका तलाकशुदा होना. खूबसूरत औरत अगर तलाकशुदा हो तो आदमी की ललचायी नजरें उसे नोंच खाना चाहती हैं. हर आदमी सहानुभूति और प्रेम जता कर उसे अपने बिस्तर तक ले जाना चाहता है.

आज तो कौन्फ्रेंस रूम में रजत शर्मा ने अंजू को लगभग अपनी बाहों में भींच ही लिया था. वह बड़ी मुश्किल से उसे धक्का देकर बाहर निकली थी. एक हफ्ता हो गया, रजत कई बार ऐसी हरकतें कर चुका है. एक दिन उसने लंच टाइम पर अंजू को अपने केबिन में बुला कर कौफी पिलायी और दफ्तर की कई बातों के साथ-साथ उनकी निजी जिन्दगी के बारे में भी कई बातें पूछ डालीं. बातों-बातों में उसे पता चल गया था कि अंजू का तीन साल पहले तलाक हो चुका है और इस शहर में वह अपनी छह साल की बच्ची के साथ अकेली रहती है. तलाकशुदा होने और अकेले रहने की बात पता चलते ही रजत के हौसले बुलंद हो गये. वह हर वक्त उसे घूरता रहता था.

किसी न किसी बहाने से उसकी सीट पर आ कर काफी देर तक उसके पीछे खड़ा रहता. अक्सर बात करते वक्त कभी उसके कंधे पर, कभी कमर पर हाथ रखने लगा था. एकाध बार तो अंजू ने उसकी इस हरकत को नजरअंदाज किया, मगर फिर वह उसकी आंखों से टपकती लोलुपता को समझ गयी थी. आज तो हद ही हो गई जब उसने कौंफ्रेंस रूम में उसे अकेली पाकर दबोच लिया. वह किसी तरह अपनी टेबिल पर आयी, इधर-उधर देखा कि किसी ने देखा तो नहीं.

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उसे समझ में नहीं आ रहा था कि रजत की शिकायत वह किससे करे. उसे अच्छी तरह पता था कि हंगामा करने से उसकी अपनी बेइज्जती होगी और हो सकता है उसे इस नौकरी से भी हाथ धोना पड़े क्योंकि कम्पनी के लिए रजत शर्मा काफी महत्वपूर्ण आदमी था. उसके आने के बाद कम्पनी का काम काफी बढ़ गया था. ऐसे में अंजू को ही समझाबुझा कर खामोश कर दिया जाता या कहा जाता कि वह नौकरी छोड़ना चाहती है तो छोड़ दे.

आज अंजू को बार-बार अपने पति शरद की याद आ रही थी. उसको महसूस हो रहा था कि अपनी मां और मामी की सलाह मानकर उसने लाइफ में कितनी बड़ी गलती कर दी. छोटी सी बात पर शरद को तलाक देना उसकी कितनी बड़ी बेवकूफी साबित हो रही थी. मां और मामी अगर उसके शादीशुदा जीवन में इतनी दखलंदाजी न करतीं और वह उनकी बातों में आकर पति से आये-दिन नाजायज मांगे न करती तो शायद उसका वैवाहिक जीवन बच भी जाता और वह सुखी भी रहती. मगर उस वक्त तो उसे अपनी मां और मामी की बातें ही ज्यादा ठीक लगती थीं.

मां उकसाती कि शरद की तनख्वाह अपने हाथ में रखो, उसे अपनी मां बहन पर खर्चा मत करने दो… मामी कहती कि पति पर नकेल डाल कर रखो, वरना सारी कमाई बहन पर लुटा देगा और तुम मुंह ताकती रह जाओगी….. और वह लग गयी शरद की कमाई की पाई-पाई का हिसाब मांगने, बिना यह समझे कि घर से बाहर निकल कर एक आदमी कितनी मुश्किल से पैसा कमाता है, कैसे वह अपनी मेहनत को परिवार के हर सदस्य के बीच बांटता है ताकि सबकी जरूरतें पूरी होती रहें. मगर मां और मामी के इशारों पर नाच रही अंजू को उस वक्त इन बातों की कोई अक्ल ही नहीं थी और जब समझाने वाले ही उकसाने में लगे हों तो अंजाम बुरा ही होता है.

अंजू और शरद के बीच छोटी-छोटी नाराजगी धीरे-धीरे बड़ी बनती गयी और एक दिन दोनों तलाक लेने के लिए अदालत में जा पहुंचे. शरद की मां ने अंजू के बहुत हाथ-पैर जोड़े थे कि वह ऐसा फैसला न करे, मगर अंजू को तो तब शरद की मां-बहन दुश्मन ही दिखती थीं, वह भला उनकी बात क्यों सुनती.

शरद से तलाक लेने के तीन साल के भीतर ही अंजू को आटे-दाल का भाव समझ में आ गया. मां और मामी की बातें मान कर उसने जीवन की कितनी बड़ी गलती की यह अब पता चल रहा था. तीन साल की बच्ची को सीने से लगाये वह मायके तो लौट आयी, मगर पिता की पेंशन पर दो और प्राणियों का बोझ पड़ा तो वही मां उसे उलाहना देने से भी नहीं चूकी जो कल तक उसे उसके पति शरद के खिलाफ भड़काती थी. अंजू का भाई अपनी मां की इन्हीं हरकतों के कारण पहले ही अपनी पत्नी और बच्चों के साथ दूसरे शहर में शिफ्ट हो चुका था.

वह अपनी तनख्वाह का एक पैसा मां-बाप को नहीं भेजता था. तलाक के बाद अंजू को मुआवजे के रूप में शरद से बहुत कम पैसा मिलता था, क्योंकि शरद की तनख्वाह ज्यादा नहीं थी. ऐसे में अपना और अपनी बच्ची का खर्च चलाने के लिए अंजू को काम के लिए घर से बाहर निकलना पड़ा. वह खूबसूरत थी, लिहाजा काम तो उसे जल्दी ही मिल जाता था, मगर उसकी खूबसूरती और तलाकशुदा होना उसके लिए बड़ी मुसीबत बनती जा रही थी.

उसके बौस या मेल कुलीग्स को जैसे ही पता चलता कि वह तलाकशुदा है, वह उससे सेक्सुअल फेवर की मांग करने लगते. उससे सहानुभूति का नाटक करके उसकी नजदीकियां पाना चाहते. बीते तीन साल में अंजू पांच जगह नौकरी छोड़ चुकी थी.

अपनी बच्ची के साथ बरेली से लखनऊ शहर में आकर रहने और काम करने के पीछे भी कई वजहें थीं. बरेली में उसके मोहल्ले के कई आवारा लड़के, जो उसकी शादी से पहले उसकी खूबसूरती पर मरा करते थे, उससे छेड़छाड़ करते थे, उससे दोस्ती करने को ललायित रहते थे, तलाक के बाद उनके हौसले और बढ़ गये थे. आये-दिन वह गली से गुजरते समय उसे तंग करते, अश्लील इशारे करते, साथ चलने के औफर देते.

अगलबगल की लड़कियां और महिलाएं अब अंजू को देखते ही मुंह फेर लेती थीं, जैसे वह उस मोहल्ले के लिए कोई अपशगुनी हो. मोहल्ले के लोग उसको लेकर बातें बनाते थे. उस पर आक्षेप लगाते कि वह गलत होगी, तभी तो पति ने छोड़ दिया.

अंजू के पिता उसकी दूसरी शादी को लेकर चिन्तित थे. वह जल्दी से जल्दी इस बोझ से छुटकारा पाना चाहते थे. मंदिर के पंडित जी उनको तमाम रिश्ते सुझाते रहते थे, जिनमें अंजू की कोई दिलचस्पी नहीं थी. रिश्ते ढंग के होते तो वह एक बार सोचती भी, मगर तलाकशुदा लड़की और फिर एक बच्ची की मां के लिए तो ढंग का रिश्ता मिलना मुश्किल ही था. ज्यादातर अधिक उम्र के लोगों के रिश्ते आ रहे थे, या फिर ऐसे जो किसी न किसी तरह की अपंगता के शिकार थे. एक तो चार बच्चों के पिता थे, जो दूसरी शादी करने के इच्छुक थे, उम्र में अंजू के दोगुने थे. अंजू को ऐसे लोगों को देखकर घिन्न आती मगर अंजू के पिता के पास इतना पैसा तो था नहीं, कि भारी भरकम दहेज का लालच देकर किसी कुंवारे हैंडसम लड़के को अंजू का हाथ थामने के लिए तैयार कर लेते.ॉ

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इन सब बातों से परेशान होकर ही अंजू अपना शहर बरेली छोड़ कर लखनऊ आ गयी थी. यहां उसकी एक सहेली थी, जिसने उसे नौकरी दिलवाने का वादा किया था. उसने वादा पूरा भी किया. अंजू को एक नामी कोरियर कम्पनी में नौकरी मिल गयी, साथ ही कम किराये पर रहने के लिए ठीक-ठाक मकान भी उसने ढूंढ लिया. मगर अब यहां उसका बौस रजत शर्मा उस पर गलत निगाह रखने लगा था.

अंजू को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. वह बौस की हरकतों के खिलाफ अगर पुलिस में जाती है तो औफिस का कोई व्यक्ति उसका साथ देने को तैयार नहीं होगा. सबको अपनी नौकरी प्यारी थी. फिर कोई चश्मदीद भी नहीं था, जो इस बात की गवाही देता कि बौस ने उसके साथ कोई गलत हरकत की है.

आज अंजू को बार-बार अपने पति की याद आ रही थी. कितना प्यार करता था वह. कितनी सुरक्षित थी वह उसके साथ. उसकी तनख्वाह कम थी, मगर उसमें भी वह इस बात का पूरा ध्यान रखता था कि अंजू को किसी बात की कमी न हो. मगर अंजू ही उसे समझ न सकी.

मां और मामी के बहकावे में आकर वह अपनी सास-ननद को अपना दुश्मन मान बैठी, जबकि उसकी ननद घर के कामों में उसकी कितनी मदद करती थी. उसकी बेटी पैदा हुई तो छह महीने तक तो उसे किचेन का काम ही नहीं करने दिया था. सास भी कैसे अपनी पोती के लिए नये-नये डिजाइन के कपड़े और स्वेटर बुनने में लगी रहती थी, मगर अंजू उन लोगों का प्यार नहीं समझ पायी. उसकी आंखों पर तो मां और मामी की बातों की काली पट्टी चढ़ गयी थी. अब वह पछता रही थी. ये नौकरी भी छोड़ दी तो बच्ची के स्कूल की फीस कहां से देगी, मकान का किराया कहां से भरेगी? जब तक नयी नौकरी नहीं मिलती, घर का खर्चा कैसे चलेगा? नयी नौकरी मिलना भी तो आसान नहीं है. इस चिन्ता में वह रात भर जागती रही. सुबह आॅफिस जाने का उसका मन ही नहीं किया. बार-बार बॉस का घृणित चेहरा आंखों के आगे आ जाता और उसकी रीढ़ की हड्डी में सिहरन सी दौड़ जाती. कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था कि क्या करे?

अंजू की तरह की नासमझी आज आधुनिकता की ताल पर झूमती महिलाओं में खूब देखी जा रही है. इसको हवा देने में टीवी चैनलों पर चलने वाले सास-बहू नाटक भी खूब भागीदारी निभा रहे हैं. वहीं रिश्तेदार भी पति-पत्नी के रिश्ते खराब करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. बहुत जरूरी है कि तलाक लेने का फैसला बहुत सोच समझ कर लिया जाये.

खासतौर पर निम्न और मध्यमवर्गीय परिवार की लड़कियों को, जो आधुनिकता और अपने परिजनों के प्रभाव में आकर नये रिश्ते की बारीकियों को नहीं समझ पातीं. यह बात शत-प्रतिशत सत्य है कि अगर लड़की के मायके वाले उसकी ससुराल में दखलअंदाजी करने वालें हों तो ऐसी लड़कियों का वैवाहिक जीवन को नरक बनते देर नहीं लगती है. लड़कियों को समझना चाहिए कि जिस घर में वे ब्याह कर जा रही हैं, अब वही उनका घर है. वहां के लोगों को समझना, उनका सम्मान करना, उनकी सेवा करना उसका फर्ज है. वह अपना फर्ज पूरा करेगी, तो उस घर में उसे प्यार-दुलार, सम्मान और सुरक्षा सब कुछ मिलेगी. पति के साथ औरत को सुरक्षा मिलती है, मगर उसके बिना वह ऐसा खिलौना बन जाती है, जिससे हर ऐरा-गैरा खेलना चाहता है.

इसलिए तलाक कोई समाधान नहीं है. तलाक थोड़ी देर के लिए आजादी का अहसास जरूर कराता है, मगर बाद में वही औरत के लिए एक दाग बन जाता है.

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भाई की धौंस सहें कब तक

मुरादाबाद के एक युवक ने अपनी बहन को इतना मारा कि उस की मौत हो गई. फरीना नाम की यह लड़की अपने दादाजी और पापा के साथ रहती थी. फरीना का भाई असलम नौकरी के सिलसिले में दिल्ली में रहता था. ईद के मौके पर असलम गांव आ गया था. एक दिन असलम ने अपनी बहन को किसी से फोन पर देर तक बात करते सुना. जब असलम ने जानने की कोशिश की तो फरीना ने बताने से इनकार कर दिया. यह बात असलम के दिमाग में घूमने लगी.

एक दिन असलम ने फिर फरीना को फोन पर बात करते देखा. उस दिन असलम ने उस के हाथ से फोन छीन लिया और लड़के की आवाज सुन ली. इस पर असलम और फरीना की तीखी बहस हुई. लेकिन कुछ दिनों बाद फरीना का फोन पर बात करने का सिलसिला रुकता न देख असलम ने फरीना की डंडे से पिटाई कर दी और उस का फोन छीन कर उसे एक कमरे में बंद कर दिया. अगले दिन जब असलम के पिता ने कमरे का दरवाजा खोला तब फरीना को अचेत हालत में पाया. अस्पताल ले जाने पर डाक्टर ने फरीना को मृत घोषित कर दिया.

ऐसी ही एक कहानी है नूर की, जो अपने शौक, अपने सपनों को जीना चाहती थी, लेकिन उस के भाई के आगे उस के सारे सपने मानो दफन हो गए.

शाम को 6 बज गए थे और नूर अभी तक घर नहीं आई थी. अम्मी गुस्से में बारबार बड़बड़ा रही थीं, ‘‘अंधेरा होने वाला है… कमबख्त यह लड़की अभी तक नहीं लौटी.’’

‘‘अरे, तुम क्यों चिंता कर रही हो. आ जाएगी नूर. अभी तो 6 बज कर 10 मिनट ही हुए हैं,’’ नूर के अब्बू अम्मी को सम झाने की कोशिश कर ही रहे थे कि नूर आ गई.

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उसे देखते ही अम्मी शुरू हो गईं, ‘‘बहुत दिनों से देख रही हूं, तुम्हारा घर लौटने का समय बदलता जा रहा है. तुम्हारे भाईजान को पता चला न, तो तुम्हारी खैर नहीं.’’

नूर ने अम्मी को सम झाते हुए कहा, ‘‘अम्मी, आज कालेज की आखिरी क्लास

4:30 बजे खत्म हुई थी और बस में भी बहुत भीड़ थी. मैं चढ़ ही नहीं पाई. इसलिए थोड़ी देर हो गई. आप भाईजान से कुछ मत कहना. अब ऐसा नहीं होगा.’’

नूर की अम्मी थोड़ी सख्तमिजाज थीं और नूर के अब्बू उतने ही शांत, जबकि नूर का भाई साहिल हमेशा नूर पर अपनी धौंस दिखाता रहता था. अगर नूर ज्यादा देर किसी लड़की से ही फोन पर बात कर ले तो वह उसे सुनाने में कमी नहीं रखता था. हर समय रोकटोक. कभीकभी नूर को लगता था कि वह इंसान नहीं कठपुतली है जिसे अपने हिसाब से जिंदगी जीने का कोई हक नहीं.

साहिल अम्मी का लाड़ला था और घर में अब्बू से ज्यादा साहिल की चलती थी. साहिल ने अगर कुछ बोल दिया तो वह उसे करवा कर ही मानता था. अगर अब्बू न होते तो नूर 12वीं के बाद ही घर में बैठ जाती. अब्बू बारबार नूर को सम झाते, ‘‘देखो नूर, तुम्हारी अम्मी और भाई दोनों चाहते हैं कि तुम्हारा निकाह जल्द से जल्द हो जाए. लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम पढ़ो, ग्रेजुएशन पूरा होते ही किसी अच्छे लड़के से तुम्हारा निकाह करवा दूंगा.’’

यों तो सब अपनी बात नूर के सामने रख कर चले जाते लेकिन नूर की ख्वाहिश, उस के सपनों के बारे में कोई नहीं पूछता.

2 दिनों से नूर समय पर घर आ रही थी, इसलिए अम्मी का मिजाज थोड़ा ठंडा था. लेकिन, आज पता नहीं साहिल को क्या हुआ था. गुस्से में चिल्लाता हुआ घर में दाखिल हुआ और सीधा नूर के कमरे में जा कर चिल्लाने लगा.

‘‘अरे क्या हो गया? क्यों चिल्ला रहे हो इस पर?’’ अम्मी ने परेशान होते हुए साहिल से पूछा.

‘‘इसी से पूछो न. मैं बता रहा हूं यह हाथ से निकलती जा रही है.’’

‘‘लेकिन इस ने किया क्या है?’’

‘‘अम्मी, यह लड़कों के साथ दोस्ती रखती है. मेरा दोस्त शराफत है न, उस के छोटे भाई ने इस के साथ फेसबुक पर फोटो लगा रखी है. यह कालेज पढ़ने जाती है या फोटो खिंचवाने जाती है?’’

यह सुनते ही अम्मी ने नूर को बहुत बुराभला सुनाया. ऊपर से साहिल ने उस का फोन भी ले लिया और बंद कर के अम्मी को दे दिया.

नूर मन ही मन सोच रही थी कि एक फोटो ही तो खिंचवाई थी, वह भी अकेले नहीं सब के साथ. भाईजान तो खुद ही रोज लड़कियों के साथ फोटो लगाते हैं, घूमते हैं. फिर खुद को क्यों नहीं देखते?

अगले दिन नूर कालेज गई लेकिन उस ने किसी भी लड़के से बात नहीं की. कालेज से घर के लिए भी समय पर निकल गई थी, लेकिन घर फिर देर से पहुंची.

जब वह शाम 6:45 पर घर पहुंची तो सब घर पर ही थे. जैसे ही नूर आई, साहिल उस से सवाल पर सवाल करने लगा. ‘‘क्लास कब खत्म हुई थी तेरी?’’, ‘‘कालेज से कब निकली थी तू?’’, ‘‘इतनी देर कैसे हुई?’’ ‘‘कहां गई थी?’’

नूर सहम गई थी. डरतेडरते उस ने कहा, ‘‘भाईजान, वो… वो… मैं कालेज से निकली तो समय पर थी लेकिन आधे रास्ते आ कर याद आया मैं अपनी प्रोजैक्ट फाइल क्लास में ही भूल गई हूं. उसे लेने मु झे वापस जाना पड़ा. इसलिए देरी हुई.’’

आज नूर ने फिर से  झूठ बोला. दरअसल, नूर को गाने का बहुत शौक था. नूर की आवाज सच में बहुत अच्छी थी और गाती भी बहुत अच्छा थी. यह बात उस के घर में सब को पता थी. लेकिन, उस का भाई उस की डोर हमेशा खींच लेता था.

कालेज के बाद नूर एक म्यूजिक अकादमी में जाया करती थी. वहां वह छोटे बच्चों को संगीत सिखाती थी. घर में यह बात किसी को पता नहीं थी. हर बार  झूठ का सहारा ले कर नूर खुद को बचा लेती थी, लेकिन एक दिन नूर का  झूठ  झूठ ही रह गया. रोजरोज देरी से घर आने की बात साहिल के दिमाग में घूम रही थी. एक दिन साहिल उस के कालेज ही चला गया. जैसे ही नूर कालेज से निकली वह उस का पीछा करने लगा. जब उस ने देखा वह म्यूजिक अकादमी में जा रही है तो उसे बहुत गुस्सा आया.

नूर आज फिर देरी से पहुंची. आज साहिल ने बहुत आराम से नूर से बात की. ‘‘क्या हुआ नूर, तुम आज फिर देर से आईं? आज भी कुछ भूल गई थीं क्या?’’

‘‘नहीं… नहीं भाईजान,’’ नूर आगे कुछ बोलती कि साहिल ने उस के करीब आ कर कहा, ‘‘गाना गा कर तुम्हारा गला बहुत थक गया होगा न?’’

नूर यह सुनते ही कांप गई. अम्मी शाम की चाय बना रही थीं और अब्बू बाहर बाजार गए हुए थे. साहिल नूर को हमेशा घर में ही देखना चाहता था. उस ने चूल्हे से गरम कोयला निकाल कर नूर की जबान पर रख दिया.

नूर के सारे शौक, सारे सपने उस कोयले के साथ ही जल गए. वह बुरी तरह घायल हो चुकी थी. सपने धराशायी हो चुके थे और पंख उड़ने से पहले ही कट चुके थे. नूर अंदर तक बुरी तरह टूट चुकी थी.

कह सकते हैं कि अभी भी ऐसे कई घरपरिवार हैं जहां बहनें अपने भाइयों की धौंस सहती रहती हैं.

आखिर क्यों भाई अपनी बहनों पर इतनी धौंस दिखाते हैं. इस की वजह क्या है? इतना मातापिता नहीं करते जितना कि एक भाई अपनी बहन पर रोकटोक करता है. हरियाणा, उत्तर प्रदेश में अधिकतर ऐसे केस देखने को मिलते हैं. जहां भाई अपनी बहन को मौत के घाट तक उतार देता है. लेकिन, यह बात सिर्फ उत्तर प्रदेश, हरियाणा की ही नहीं बल्कि पूरे देश की है. अगर परदा हटाया जाए तो हर राज्य और हर घर में यह धौंसपंती देखने को मिलेगी.

क्यों करता है भाई ऐसा

समय बदल रहा है लेकिन समाज नहीं. आज लड़कियां आगे बढ़ रही हैं, पढ़लिख रही हैं, लेकिन इन सब के साथ उन पर तीखी नजर रखी जाती है. यह नजर क्यों है? अकसर हम देखते हैं बहनें अगर घर थोड़ी देरी से आएं तो भाइयों के सवाल पर सवाल शुरू हो जाते हैं.

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पड़ोस में किसी ने भाई के सामने कुछ कह दिया तो घर जा कर भाई बहनों को ही सुनाता है. इस में गलती किस की है? हमारे समाज ने महिलाओं पर हुकूमत चलाने की डोर पुरुषों के हाथ में दे दी है लेकिन पुरुषों पर महिलाओं का कोई जोर नहीं चलता.

आखिर भाई ऐसा करता क्यों है? इस मुद्दे पर जब बात एक 16 साल की लड़की शिवानी से की तो उस का जवाब था, ’’मेरे भैया मु झ से 4 साल बड़े हैं. वैसे तो वे बहुत अच्छे हैं लेकिन मैं ने पिछले कुछ सालों में उन के व्यवहार में बदलाव देखा है. पहले मैं शाम को बाहर दोस्तों के साथ खेला करती थी, लेकिन एक दिन भैया ने आ कर कहा कि शाम को बाहर खेलने की जरूरत नहीं है. मैं ने उस वक्त कुछ नहीं कहा. लेकिन धीरेधीरे भैया ज्यादा ही रोकटोक करने लगे. ट्यूशन जाते वक्त बोलते हैं सिंपल बन कर जाया कर. फोन इस्तेमाल करती हूं तो अचानक आ कर हाथ से छीन लेते हैं. मु झे बिलकुल अच्छा नहीं लगता यह सब. लेकिन हद तो तब हुई जब भैया ने मु झे किसी और की वजह से घर से 3-4 दिन निकलने नहीं दिया और मेरी ट्यूशन भी बंद करवा दी.

‘‘दरअसल, मेरी ट्यूशन में एक लड़का मु झे पसंद करने लगा था. मेरी कभीकभी उस से बात हो जाती थी. एक दिन ट्यूशन के बाद वह मेरे साथ आधे रास्ते तक आया. यह बात पता नहीं कैसे भैया को मालूम हो गई. उस दिन उन्होंने मु झे बहुत बुराभला सुनाया. अब मैं जल्दी किसी से बात भी नहीं करती. एक अजीब सा डर रहता है.’’

क्या यहां भाई को अपनी बहन की ट्यूशन बंद करवानी चाहिए थी? अपनी बहन पर धौंस दिखाने से पहले, उसे सुनाने से पहले यदि वह उस को सहीगलत सम झाता, समाज के बारे में बताता, तो शायद उस के अंदर का वह डर खत्म हो जाता जो आज उसे किसी भी लड़के से बात करने में लगता है. ऐसी धौंस दिखाना ही क्यों जिस से रिश्तों में दरार आ जाए.

कई बार मातापिता को लगता है कि बेटा जो कर रहा है वह सही है. यदि वह बहन को डांट रहा है तो उस की भलाई के लिए. हां, कह सकते हैं भाई अगर डांट रहा है तो उस में भलाई भी शामिल हो सकती है लेकिन वह अगर बहन की आजादी पर रोक लगा रहा है तो क्या इसे भलाई कहेंगे?

सामाजिक मानसिकता का असर

मनोवैज्ञानिक डाक्टर अनामिका कहती हैं, ‘‘बचपन से ही सिखाया जाता है कि बेटियों को दहलीज के भीतर रहना है पर बेटों को इस पर कोई रोक नहीं होती. ऐसे में यह एक मानसिक धारणा बन जाती है लड़कों के मन में कि उन्हें तो पूर्णरूप से सभी चीजों के लिए आजादी मिल रखी है. वे कुछ भी करें, सब सही है. लेकिन घर की बेटियां वही सब करने की इच्छा रखती हैं या कर रही हैं तो बात इज्जत, प्रतिष्ठा पर आ जाती है.

‘‘हमारे समाज में बताया जाता है घर की इज्जत बेटियों के हाथ में होती है. अगर वे कुछ अपने मन का करना चाहती हैं तो उस विषय पर काफी सोचविचार किया जाता है. हालांकि, लड़कों के मामले में ऐसा बहुत कम होता है. ऐसे में बहनों का घर से देर तक बाहर रहना, किसी से ज्यादा बात करना भाइयों को सुहाता नहीं है.’’

क्या करें जब भाई की धौंस बढ़ती जाए

-अपने मातापिता के टच में रहें और अपनी परेशानी उन से सा झा करें.

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-भाई से दोस्ताना व्यवहार रखें और उस से कुछ छिपाएं नहीं.

-भाई अगर ज्यादा रोकटोक कर रहा है तो परिवार के सामने अपनी बात रखें. मातापिता को सम झाएं कि जो आप कर रहे हैं उस में कोई बुराई नहीं है.

-अगर भाई आप के साथ बाहर जाने की जिद कर रहा है तो उसे जल्दी मना नहीं करें. एकदो बार जाने के बाद वह खुद नहीं जाएगा.

-यदि आप किसी लड़के को अपना दोस्त बनाती हैं तो घरवालों को इस की जानकारी जरूर दें. इस से घरवाले ज्यादा सवाल नहीं करेंगे.

Festive Special: लौकी पनीर कोफ्ता करी

अगर आप भी फेस्टिवल में कुछ मीठा बनाने की बजाय टेस्टी और स्पाइसी कुछ बनाना चाहती हैं तो आज हम आपको लौकी पनीर कोफ्ता करी की टेस्टी रेसिपी बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली को फेस्टिवल और डिनर में परोस सकती हैं. ये हेल्दी के साथ-साथ टेस्टी भी है.

हमें चाहिए

–  1 कप कद्दूकस की लौकी

–  1/4 कप आलू उबले व मैश  किए

–  1/4 कप पनीर मैश किया

–  1 छोटा चम्मच अदरक कटा

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–  1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

–  1/4 कप बेसन

–  1/4 छोटा चम्मच गरममसाला

–  2 छोटे चम्मच धनियापत्ती कटी

–  नमक स्वादानुसार.

सामग्री ग्रेवी की

–  1/2 कप प्याज का पेस्ट

–  1 बड़ा चम्मच अदरक व लहसुन पेस्ट

–  1/4 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

–  1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

–  2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर

–  1 छोटा चम्मच देगी लालमिर्च पाउडर

–   1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

–  1/4 कप टमाटर कद्दूकस किया

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–  1 तेजपत्ता

–  2 छोटे चम्मच रिफाइंड औयल

–  1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

–  नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

कद्दूकस की लौकी को अच्छी तरह निचोड़ें, उस पानी को मसाला भूनने के काम में लाएं. लौकी में पनीर, आलू व बाकी सारी सामग्री मिलाएं और छोटेछोटे गोले बना लें.

लगभग 12 गोले बनेंगे. एक बरतन में 2 चम्मच तेल गरम कर कोफ्तों को उलटपलट कर सेंक लें. एक प्रैशरपैन में 1 चम्मच तेल में तेजपत्ते का तड़का लगा कर प्याज, अदरक व लहसुन भूनें.

सूखे मसाले, ग्रेवी व लौकी का पानी डाल कर मसाला भूनें. जब मसाला भुन जाए तब 1 1/2 कप पानी डाल कर 1 सीटी लगवाएं. सर्विंग डिश में ग्रेवी पलटें और उस में कोफ्ते डाल कर 5 मिनट तक ढक कर रखें. फिर धनियापत्ती डाल कर सर्व करें.

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7 टिप्स: अपने पुराने टूथब्रश को करें रियूज

क्या आप जानती हैं, घर  के कुछ कामों में आप पुराने टूथब्रश का इस्तेमाल कर सकती है. आज हम आपको टूथब्रश को दोबारा इस्तेमाल करने के बारे में बताने जा रहे हैं. तो चलिए जानते हैं कि आप पुराने टूथब्रश का इस्तेमाल कैसे कर सकती हैं.

1. कंघे साफ करने के लिए

हम जिस कंघी का इस्तेमाल करते हैं, उसमें अक्सर गंदगी जमा हो जाती है. आप उन कंघी को साफ करने के लिए पुराने ब्रश का इस्तेमाल कर सकती हैं. आप कंघी को साफ करने के लिए डिटर्जेंट का इस्तेमाल भी कर सकती हैं.

2. जूतों को साफ करना

आप हमेशा अपने शू स्टैंड में एक पुराना टूथब्रश जरूर रखें. इस पुराने टूथब्रश से आप अपने जूतों को साफ कर सकती हैं. जूतों को साफ करने के लिए आपको डिटर्जेंट का इस्तेमाल भी कर सकती हैं. ऐसा करने से आपके जूते अच्छी तरह से साफ होकर एकदम नए जैसे हो जाएंगे.

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3. किचन की टाइल चमकाने के लिए

चाहे टाइल किचन की हो या बाथरूम की, मैल हर कहीं जम जाता है. आप चाहें तो इन टाइल्स को साफ करने के लिए किसी पुराने ब्रश और क्लीनिंग लिक्विड का इस्तेमाल कर सकती हैं.

4. कीबोर्ड साफ करने के लिए

आप अपने कीबोर्ड को साफ करने के लिए भी टूथब्रश का इस्तेमाल कर सकती हैं. आपको सिर्फ कोमलता से टूथब्रश की मदद से कीबोर्ड को साफ करना है, इसके लिए आपको कीबोर्ड को गीला करने की जरूरत नहीं है.

5.  ज्वैलरी साफ करने के लिए

आप अपनी ज्वैलरी को साफ करने के लिए भी टूथब्रश और बेकिंग सोडा का इस्तेमाल कर सकती हैं. इससे आपकी ज्वैलरी में लगा सारा मैल साफ हो जाएगा.

6. कपड़ों में लगे दाग धब्बे

अगर आप अपने कपड़ों पर लगे दाग और निशानों को दूर करना चाहती हैं तो ऐसे में आप पुराने टूथब्रश और डिटर्जेंट की मदद से दाग को हटा सकती हैं. आप दाग पर टूथब्रश को रगड़कर उनसे छुटकारा पा सकती हैं.

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7. नलों को साफ करने के लिए

आप अपने पुराने नलों में जरा सा विनेगर डालकर टूथब्रश की मदद से उन्हें साफ कर सकती हैं. इससे सभी पुराने नल साफ हो जाएंगे.

#nehudavyah: सगाई से लेकर रिसेप्शन तक कुछ यूं छाया नेहा कक्कड़ का जादू, VIDEO हुई वायरल

बौलीवुड की पौपुलर सिंगर व एक्टर नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) और रोहनप्रीत सिंह (Rohanpreet Singh) की शादी के बंधन में बंध चुके हैं, जिसकी फोटोज और वीडियोज सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. जहां एक तरफ कक्कड़ फैमिली धमाल मचा रही हैं तो वहीं नेहा की विदाई का वीडियो देखकर फैंस इमोशनल हो रहे हैं. साथ ही रिसेप्शन में सेलेब्स का धमाल भी खास रहा है. इसीलिए आज हम आपको नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) और रोहनप्रीत सिंह (Rohanpreet Singh) की सगाई से लेकर शादी की वीडियो से लेकर फोटोज की झलक दिखाएंगे…

बहन की शादी में कुछ यूं झूमे टोनी कक्कड़

सोशलमीडिया पर वायरल एक वीडियो में उर्वशी रौतेला (Urvashi Rautela), नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) की शादी में उनके भाई टोनी कक्कड़ (Tony Kakkar) के साथ जमकर ठुमके लगाती नजर आ रही हैं.


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पति के लिए नेहा ने गाया गाना

नेहा कक्कड़ ने अपनी रिसेप्शन पार्टी को और भी खास बनाने के लिए भाई टोनी कक्कड़ संग गाना गाया, जिसमें नेहा और रोहन प्रीत की जोड़ी बेहद खूबसूरत लग रही थी. वहीं लुक की बात करें तो नेहा का लुक काफी स्टाइलिश और मौर्डन नजर आ रहा था.

कुछ यूं हुई नेहा की विदाई

एक वीडियो में नेहा कक्कड़ शादी के बाद कार में बैठती नजर आ रही हैं और पति रोहनप्रीत उन्हें सहारा देकर कार में बिठाते नजर आ रहे हैं. वहीं बिदाई में रोहनप्रीत का यूं नेहा की मदद करने और सहाना देना फैंस को काफी पसंद आ रहा है और वह उनकी तारीफें कर रहे हैं.

जमकर नांची नेहा कक्कड़

अपनी शादी में नेहा जमकर ठुमके लगाती नजर आ रही हैं, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. वहीं उनके पति रोहनप्रीत भी कदम से कदम मिलाते नजर आ रहे हैं. इसी बीच सेलेब्स भी नेहा संग खूबसूरती से रिसेप्शन की शाम को रंगीन बनाते नजर आ रहे हैं.

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इस काल में छोटे कलाकारों को फायदा हुआ है – विक्रम कोचर

फिल्म केसरी में गुलाब सिंह की भूमिका निभाकर चर्चित हुए अभिनेता विक्रम कोचर हरियाणा के गुरुग्राम के है. बचपन से ही उन्हें अभिनय की इच्छा थी और इसमें परिवार वालों ने भी सहयोग दिया. स्नातक के बाद वे दिल्ली में नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में दाखिला लिया और वही से अभिनय शुरू कर दी. स्वभाव से विनम्र और धैर्यवान विक्रम कोचर ने नाटक ‘पगला घोडा’ में प्रमुख भूमिका निभाई है, जिसे टाटा स्काई के थिएटर शोकेस में प्रस्तुत किया गया. विक्रम अपनी इस उपलब्धि से बहुत उत्साहित है. उनसे बात हुई पेश है कुछ खास अंश.

सवाल- इस नाटक में खास क्या है?

ये नाटक बादल सरकार की है और वे एक जाने-माने बंगाल के नाटक के लेखक है. उन्होंने हमेशा समाज की कुछ कुरीतियों को लेकर उसे समाज के सामने लाया है. पगला घोड़ा भी पुरुष सत्तात्मक समाज की सोच को उजागर करती है, जो महिलाओं को कुछ कहने का अधिकार नहीं देती.  मैंने इसमें एक पोस्ट मास्टर की भूमिका निभाई है. जो अपनी प्रेम कहानी को एक संवेदनशील स्थान पर बैठकर कुछ लोगों के आगे व्यक्त करता है.

सवाल- हमारे समाज में आज भी किसी अपराधी पुरुष को दोष न देकर महिला को दोषी बनाया जाता है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

ये सही बात है कि महिला को हर बात के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है. मसलन शादी के बाद लोग कहते है कि पत्नी की वजह से पुरुष बदल गया. बच्चे अच्छे निकल गए, तो उसका श्रेय भी पिता को जाता है और ख़राब निकला तो माँ को इसका दोषी ठहराया जाता है. इसे रोकने के लिए हमारी सोच को बदलनी पड़ेगी, जिससे नयी पीढ़ी को बदलने का मौका मिले. ये रातो-रात बदलने वाली चीज नहीं है. गलत चीजों को हमेशा रोके, बढ़ावा न दें.

सवाल- मुंबई कैसे आना हुआ? कब आये और पहला ब्रेक कैसे मिला?

मैं मुंबई साल 2011 में आया था. इससे पहले भी मैं दिल्ली में नाटकों में काम किया करता था. शुरुआत में तो नाटकों में काम मिलता था, लेकिन उसमें पैसे कम थे और जीवन निर्वाह करना मुश्किल था. मुंबई में पहला काम मिलने में 6 से 7 महीने लगे थे. काम का संघर्ष 2 से 3 साल तक चलता रहा. रोज थैले में 3 शर्ट ,एक जींस, एक पेंट और एक कुर्ता लेकर हर प्रोडक्शन हाउस में जाता था और ऑडिशन देने की कोशिश करता था. शुरुआत में ‘नॉट फिट’ कहकर भगा दिए जाते थे. धीरे-धीरे किसी ने ऑडिशन का मौका दिया, पर चुना नहीं गया. ये बाहर से आने वाले हर कलाकार के साथ होता है. मेरे हिसाब से से एक कलाकार जितना रिजेक्शन एक महीने में फेस करता है, उतना शायद एक आम व्यक्ति पूरे जीवन काल में भी फेस नहीं करता. ये अब मेरी आदत हो गयी है. अब अधिक फ़र्क नहीं पड़ता, पर अभी कम रिजेक्शन का सामना करना पड़ता है.

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एक्टिंग में पहला ब्रेक फिल्म ‘मटरू के बिजली का मंडोला’ में मिला था. उसे ब्रेक नहीं कह सकते ,क्योंकि मैं उसमें कहीं दिखा ही नहीं. मुझे रियल ब्रेक फेस्टिवल के लिए बनी फिल्म ‘पाईड पाईपर’ में मिला, जो पोलिटिकल कॉमेडी ड्रामा थी. इसके बाद मुझे धारावाहिक ‘सुमित सम्हाल लेगा’ में रजनीश वालिया की भूमिका मिली. इससे लोगों के बीच मेरी पहचान बनी.

सवाल- फिल्मकेसरीकी भूमिका से आपको कितना फायदा हुआ?

इसका फायदा मुझे मिला, निर्माता,निर्देशक प्रकाश झा ने मुझे ‘आश्रम’ वेब सीरीज के लिए मुझे एक प्राइम रोल दिया. उन्होंने फिल्म केसरी में मेरी भूमिका की तारीफ की और ऑडिशन भी नहीं लिया.

सवाल- कोरोना की वजह से अभी थिएटर हॉल काफी प्रतिबंधित तरीके से खुले है, इसका प्रभाव इंडस्ट्री पर पड़ा है, आपकी सोच इस बारें में क्या है?

ये सही है कि हम सभी इससे निकलने का रास्ता खोज रहे है, लेकिन अच्छी बात है कि लोग सुरक्षा का ध्यान रखते हुए काम कर रहे है. अभी बड़ी बजट वाली फिल्में नहीं बन पाएगी, क्योंकि रिटर्न उतना नहीं मिलेगा, लेकिन इस काल में छोटे कलाकारों को फायदा हुआ है. छोटी बजट की छोटी फिल्में अब बन रही है, ऐसे में बड़े एक्टर उनमें काम नही करना चाहेंगे. इसके अलावा साल 2020 में जिन्दा है, तो काफी है.

सवाल- परिवार का सहयोग कितना रहा?

वित्तीय रूप से मैंने घर वालों से कभी कुछ अधिक नहीं लिया. नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में स्कॉलरशिप होता है और उससे सब खर्चा पूरा हो जाता है. मुंबई आने पर मेरे पेरेंट ने मुझे कुछ राशि देने की बात कही, पर मुंबई जैसे महंगे शहर में उन पैसों से कुछ नहीं हो सकता था. इसलिए मैंने एक नाटक ‘ज़न्गूरा एट किंगडम ऑफ़ ड्रीम्स’ में काम गुरुग्राम में किया, उससे मेरे पास कुछ अधिक पैसे जमा हो गए थे, जिसे लेकर मैं मुंबई आया था. माता-पिता शुरुआत में तो अधिक राजी नहीं थे, लेकिन मेरी एक नाटक ने मेरे पिता का मन जीत लिया था और उन्होंने कभी मना नहीं किया.

सवाल- किस फिल्म ने आपकी जिंदगी बदली?

‘केसरी’ फिल्म ने मेरी जिंदगी बदली. इसके अलावा ‘पगला घोडा’ नाटक मेरे दिल के बहुत करीब है.

आगे एक फिल्म और वेब शो भी है.

सवाल- आपने टीवी नाटक फिल्म वेब सबमें काम किये है, किस माध्यम में आपको सबसे अच्छा लगा?

एक कलाकार के रूप में नाटकों में काम करने पर सबसे अधिक संतुष्टि मिलती है. नाटक में सब कुछ लाइव होता है और उसमें आप उस चरित्र को जीते है. इसके अलावा नाटक में एक बहाव होता है. जबकि फिल्मों में तकनीक का बहाव होता है. टीवी में काम का प्रेशर बहुत होता है. इससे काम को आप अधिक एन्जॉय नहीं कर सकते.

सवाल- वेब सीरीज में गाली-गलौज, मार-धाड़, सेक्स इन सबको अधिक दिखाया जाता है, जिसे पूरा परिवार साथ बैठकर नहीं देख पाता, क्या निर्माता, निर्देशक को इस बात का धयान देना उचित नहीं?

इन सब चीजो की शुरुआत इस बात से हुई थी कि आप सच्चाई को करीब से दिखा रहे है. बाद में उन्हें लगा कि इसमें खूब मसाला डाली जाय ,ताकि लोगों को मज़ा आयें. इसकी जिम्मेदारी निर्माता,निर्देशक, लेखक और चैनल की है. उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कब ये मज़े के लिए दिखा रहे है और कब ये जरुरत के हिसाब से प्रसारित कर रहे है. तभी वेब सीरीज की गुणवत्ता बनी रहेगी. रियल लाइफ में कोई इतनी गलियां नहीं देता, जितना वे दिखाते है. इससे उस वेब का इम्पैक्ट दर्शकों पर कम पड़ता है. जरुरत के आधार पर अगर अन्तरंग दृश्य, गाली- गलौज और मार-धाड़ दिखाये जाते है, तो उसका प्रभाव अच्छा रहता है और सही मैसेज भी दर्शकों तक पहुंचता है.

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सवाल- खुश रहने का मन्त्र क्या है

प्रतियोगिता पर विश्वास न करें. सफलता के लिए रैट रेस में भागे नहीं, क्योंकि सफलता का मूल मन्त्र खुश रहना है.

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