समझना होगा धर्म को

फरवरी माह से कोरोना, लौकडाउन विषय पर न जाने कितनी चर्चाएं, लेख, कहानियां, कविताएं लिखी और कही गई हैं. आम जीवन में भी न जाने कितने नए किस्सेकहानियां बन पड़े हैं. जीवन और रिश्ते कोरोना से बहुत प्रभावित भी हुए हैं. कोरोना भगाने के मंत्र एंव पूजा भी बताए गए. इन्हीं तीनचार माह में कुछ घटनाएं देखने व सुनने को मिली.

जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ाना

मुंबई के एक परिवार में दो बेटे हैं. एक बेटा अन्य महानगर में नौकरी के चलते करीब दस वर्ष पूर्व ही शिफ्ट हो गया था. दूसरा बेटा अकसर विदेश यात्रा पर रहता है. हां उस के पत्नी और बच्चे मुंबई में ही रह रहे हैं. मातापिता मुंबई में अकेले रह रहे थे. वैसे यह उन की मां का स्वयं का फैसला था कि वे परिवार के साथ नहीं रहना चाहती. शुरू से मुंबई में एकल परिवार में ही रही थीं वे. बेटेबहू के साथ व्यवहार में कुछ सामंजस्य नहीं बैठा पाईं, किंतु बड़े बेटेबहू ने समयसमय पर उन की जरूरतों और हारीबीमारी का पूरा खयाल रखा. अब बड़ा बेटा दूसरे शहर में और पिताजी बिस्तर पर. यहां तक कि शौच भी बिस्तर पर. मां ने अपने छोटे बेटे को कह दिया पिताजी को वृद्धाश्रम में भेज दो. छोटा बेटा भी स्वयं पर जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता था. सो उस ने तुरंत एक केयर सेंटर का पता किया और पिताजी के लिए वहां व्यवस्था कर दी.

कुछ समय बीता और मुंबई में कोरोना ने जोर पकड़ लिया. कोई भी किसी भी कारण से अस्पताल आए तो कोरोना संक्रमण का डर सताने लगा था.

ऐसे में बड़ी बहू ने अपने देवर को फोन कर सख्त हिदायत दी कि पिताजी को अपने घर में रखो. देवर ने भी टालने के लिए कह दिया ‘‘हां सोचता हूं क्या कर सकता हूं.’’ कुछ दिन बीते और मालूम हुआ जिस केयर सेंटर में पिताजी को रखा गया था वहां भी लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं और उन के पिताजी भी.

अब जैसे ही बड़े बेटे के पास यह खबर पहुंची उस का रोरो कर बुरा हाल था.

सोचने की बात है कि क्या यह छोटे बेटे की गलती थी या उस की नीयत में खोट?

ऐसा नहीं कि उसे जानकारी नहीं थी, उसे हिदायत भी मिली थी फिर भी उस ने अपने पिताजी के लिए स्वयं के घर में व्यवस्था क्यों नहीं की? मैं जो सम झती हूं कि कहीं न कहीं परिवार में आपसी संबंधों में दरार थी या बच्चों की परवरिश में कुछ खोट था.

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जब थोड़ी छानबीन की गई तो मालूम हुआ उन की मां खूब मंदिर और सत्संग जाती थी. घर में ञ्जा व्रत उपवास करती और अपनी बहुओं को भी ऐसा करने के लिए जोर दिया करती थीं. लेकिन जहां कहीं जिम्मेदारी निभाने का समय आता सास पीछे हट जाती और मौजमस्ती के समय सब से आगे. मंदिर सत्संग भी उन के लिए घूमनेफिरने का एक स्थान था. व्यवहार में बहुत खराब महिला हैं.

यहां तक कि बहुओं की गर्भावस्था के समय उन से दूरी बना लेती और बच्चे के जन्म के समय वह अस्पताल भी न जातीं न ही ऐसे समय में मां द्वारा अपने बेटेबहू को अन्य कुछ सहयोग मिलता. जबकि वे अपने जातसमाज के अन्य लोगों में बहुत मिलनसार रहीं और अकसर जब कोई अस्पताल में एडमिट होता तो फल ले कर उन से मिलने जाया करती थीं.

उन की नजर में अपने घर वालों के लिए अस्पताल जाना मतलब जिम्मेदारी मिलने की आशंका. शायद इसी लिए वे अकेले रहना पसंद करती थीं.

किंतु अब जब बुढ़ापा आया तो अपने पति की जिम्मेदारी भी नहीं लेना चाहतीं सो बेटों ने भी परवाह नहीं की.

अब पिताजी को कोरोना संक्रमण हो गया तो पहले से ही घर में चर्चा होने लगी कि यदि यह बात कहीं फैली तो समाज में इज्जत पर बट्टा लगेगा. सो यह खबर न फैले तो अच्छा. यहां तक भी खुसरफुसर हो गई कि अब पिताजी का बचना मुश्किल है लेकिन मौत कोरोना से हुई यह नहीं बताना चाहिए.

कुल मिला कर बात यह है कि समाज में  झूठी इज्जत कमाने के लिए इतने जोड़तोड़ पहले मां ने किए वे सब से मिलतीजुलती, मौजमस्ती करतीं लेकिन जब किसी का काम पड़ता वे नदारद हो जातीं और कहती अपने लोगों से दूरी रखना ही अच्छा. सो उन्हें कभी इज्जत भी नहीं मिली. अब वही काम बेटेबहू करने लगे.

तो क्या पहले से ही मिलजुल कर मुसीबत के समय एकदूसरे को सहयोग कर परिवार की शांति और इज्जत बरकरार नहीं रखी जा सकती थी?

मंदिरों और सत्संग में जा कर कौन सा धर्म कमाया था और जानेअनजाने अपने बेटों को क्या सीख दी थी कि मौजमस्ती के समय सभी के साथ और काम के समय पीछे हट जाओ.

शायद छोटे बेटे ने बड़े के साथ हुए व्यवहार से जल्दी ही सीख ले ली थी और वह बहुत प्रैक्टिकल हो गया था. वह सम झता था कि यदि मांपिताजी को अपने घर ले कर गया तो उस के स्वयं के परिवार में अशांति होने की संभावना है. घर में काम बढ़ेगा सो अलग. इस के बजाय केयर सेंटर में भेज देना अच्छा. किंतु कोरोना के समय में हिदायत मिलने पर भी उन्हें घर न लाना?

यह वाकई आश्चर्य की बात है.

सिर्फ नौकरों के भरोसे क्यों

ऐसा एक और उदाहरण देखने को मिला बीकानेर के एक परिवार का. जिस में एक बेटा विदेश में रहता है और दूसरा भारत के किसी अन्य शहर में. अपने जीवन को बड़ी जिंदादिली से जीने वाले एक वृद्ध दम्पति अकेले रहते थे.

कोरोना ने पैर पसारे हुए थे और देश के कई शहरों में लौकडाउन था. तभी एक दिन अखबार में तस्वीरों के साथ खबर आती है कि बीकानेर में आकाशवाणी से रिटायर हुए वृद्ध की घर में ही मौत हो गई, उन की दिव्यांग पत्नी रात भर शव के पास बैठी रही और वह चल नहीं सकती थी इसलिए दरवाजा भी नहीं खोल पाई. सुबह कामवाली आई और जब अंदर से दरवाजा नहीं खोला गया तब उस ने पड़ौसियों को खबर की और जब उन्होंने जैसेतैसे दरवाजा खोला तो पाया कि वृद्ध पुरुष घर की लौबी में गिर पड़ा और मर गया. उस की पत्नी जो कि पैरालिटिक है, जैसेतैसे सरकसरक कर उन के पास आई, शारीरिक रूप से कमजोर होने के कारण पड़ोसियों को आवाज भी न लगा पाई और रोरो कर वहीं बेहोश हो गई. यह एक बहुत ही मार्मिक और बड़ी खबर बनी.

यहां भी यह सोचने की बात है कि इतने साधन संपन्न होते हुए भी वे परिवार के साथ क्यों नहीं थे? जबकि वृद्ध दम्पति सरकारी नौकरियों से सेवानिवृत्ति थे यानी कि पढ़ेलिखे थे.

दूसरी बात कोरोना संक्रमण का ज्यादा खतरा कमजोर और वृद्धों को है तो बाहर से आ कर खाना बनाने वाली और सफाई वाली के भरोसे क्यों मातापिता को छोड़ दिया गया था.

ऐसा महसूस होता है, शायद कहीं न कहीं परिवार में भावनात्मक लगाव की ही कमी रही होगी. वरना भारत में जैसे ही कोरोना पैर पसारने लगा उन के बेटे को उन की व्यवस्था अपने पास ही करनी चाहिए थी.

मातापिता की बजाय यदि उन के बच्चे किसी दूसरे शहर में या होस्टल में होते तो भी वे ये व्यवस्था करते.

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कोरोना संक्रमित मरीजों की मृत्यु के बाद

इसी तरह के और भी कई उदाहरण खबरों के माध्यम से मालूम हुए कि यदि परिवार का कोई सदस्य कोरोना संक्रमित हो कर अस्पताल में गया और वहां उस की मृत्यु हो गई तो उस के परिजन उस का शव लेने भी अस्पताल में न पहुंचे और बाद में फोन कर उन का फोन या हाथ की अंगूठी के बारे में पूछा. कई परिजनों ने तो अपने परिवार के सदस्यों को अस्पताल भेज फोन स्विच औफ ही कर दिए थे.

इस तरह के मामले जब सामने आते हैं तो स्थिति सोचनीय हो जाती है कि आखिर परिवारों में ऐसा क्या हो जाता है कि मुसीबत के समय सदस्य एकदूसरे के साथ नहीं होते हैं. खास कर अपने बूढ़े मातापिता को क्यों उन के बच्चे अकेले छोड़ देते हैं या मातापिता स्वयं अकेले रहने का निर्णय ले लेते हैं.

आखिर कमी कहां है

जरूरी कहीं न कहीं कुछ तो कमी है. वे अपने करीबी रिश्तों से उम्मीद छोड़ या तो बाहरी लोगों में मिलनाजुलना पसंद करते हैं या बाबाओं, धार्मिक स्थलों के चक्कर लगाते नजर आते हैं. कोई ञ्जा धर्म यह तो नहीं सिखाता कि मुसीबत के समय अपनों का साथ छोड़ दो या उन की जिम्मेदारी न उठाओ.

कहीं न कहीं धार्मिक ज्ञान की कमी है या सिर्फ धर्म के नाम पर ढोंग, पाखंड किया जाता है. जो लोग सुबहशाम पूजाअर्चना करते हैं, धार्मिक स्थलों, सत्संग एवं अन्य धार्मिक आयोजनों में नियमित रूप से जाते हैं वे आखिर ऐसा करने से कतराते क्यों नहीं?

आज ऐसा महसूस होता है कि धर्म कीसही परिभाषा सीखने एवं सिखाने की अत्यंत आवश्यकता है.

मानवता एवं सत्कर्म ही धर्म होना चाहिए. मुसीबत के समय अपने आसपास, अपने रिश्तेनातों, अपने पास काम करने वालों सभी के साथ सद्व्यवहार, दया भाव एवं करुणा ही धर्म का पर्याय हो.वरना मोटेमोटे ग्रंथों को पढ़पढ़ कर कंठस्थ करना, दियाबत्ती करना, धार्मिक स्थलों में दानदक्षिणा देना, प्रसाद, चढ़ावा सब व्यर्थ है.

Short Story: सबको साथ चाहिए

सुधीर के औफिस के एक सहकर्मी   रवि के विवाह की 25वीं वर्षगांठ थी. उस ने एक होटल में भव्य पार्टी का आयोजन किया था तथा बड़े आग्रह से सभी को सपरिवार आमंत्रित किया था. सुधीर भी अपनी पत्नी माधुरी और बच्चों के साथ ठीक समय पर पार्टी में पहुंच गए. सुधीर और माधुरी ने मेजबान दंपती को बधाई और उपहार दिया. रविजी ने अपनी पत्नी विमला से माधुरी का और उन के चारों बच्चों का परिचय करवाया, ‘‘विमला, इन से मिलो. ये हैं सुधीरजी, इन की पत्नी माधुरी और चारों बच्चे सुकेश, मधुर, प्रिया और स्नेहा.’’  ‘‘नमस्ते,’’ कह कर विमला आश्चर्य से चारों को देखने लगी. आजकल तो हम दो हमारे दो का जमाना है. भला, आज के दौर में 4-4 बच्चे कौन करता है? माधुरी विमला के चेहरे से उन के मन के भावों को समझ गई पर क्या कहती.

तभी प्रिया ने सुकेश की बांह पकड़ी और मचल कर बोली, ‘‘भैया, मुझे पानीपूरी खानी है. भूख लगी है. चलो न.’’

‘‘नहीं भैया, कुछ और खाते हैं, यह चटोरी तो हमेशा पहले पानीपूरी खिलाने ही ले जाती है. वहां दहीबड़े का स्टौल है. पहले उधर चलो,’’ स्नेहा और मधुर ने जिद की.

‘‘भई, पहले तो वहीं चला जाएगा जहां हमारी गुडि़या रानी कह रही है. उस के बाद ही किसी दूसरे स्टौल पर चलेंगे,’’ कह कर सुकेश प्रिया का हाथ थाम कर पानीपूरी के स्टौल की तरफ बढ़ गया. मधुर और स्नेहा भी पीछेपीछे बढ़ गए.

‘‘यह अच्छा है, छोटी होने के कारण हमेशा इसी के हिसाब से चलते हैं भैया,’’ मधुर ने कहा तो स्नेहा मुसकरा दी. चाहे ऊपर से कुछ भी कह लें पर अंदर से सभी प्रिया को बेहद प्यार करते थे और सुकेश की बहुत इज्जत करते थे. क्यों न हो वह चारों में सब से बड़ा जो था. चारों जहां भी जाते एकसाथ जाते. मजाल है कि स्नेहा या मधुर अपनी मरजी से अलग कहीं चले जाएं. थोड़ी ही देर में चारों अलगअलग स्टौल पर जा कर खानेपीने की चीजों का आनंद लेने लगे और मस्ती करने लगे.

सुधीर और माधुरी भी अपनेअपने परिचितों से बात करने लगे. किसी काम से माधुरी महिलाओं के एक समूह के पास से गुजरी तो उस के कानों में विमला की आवाज सुनाई दी. वह किसी से कह रही थी, ‘‘पता है, सुधीरजी और माधुरीजी के 4 बच्चे हैं. मुझे तो जान कर बड़ा आश्चर्य हुआ. आजकल के जमाने में तो लोग 2 बच्चे बड़ी मुश्किल से पाल सकते हैं तो इन्होंने 4 कैसे कर लिए.’’

‘‘और नहीं तो क्या, मैं भी आज ही उन लोगों से मिली तो मुझे भी आश्चर्य हुआ. भई, मैं तो 2 बच्चे पालने में ही पस्त हो गई. उन की जरूरतें, पढ़ाई- लिखाई सबकुछ. पता नहीं माधुरीजी 4 बच्चों की परवरिश किस तरह से मैनेज कर पाती होंगी?’’ दूसरी महिला ने जवाब दिया.

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माधुरी चुपचाप वहां से आगे बढ़ गई. यह तो उन्हें हर जगह सुनने को मिलता कि उन के 4 बच्चे हैं. यह जान कर हर कोई आश्चर्य प्रकट करता है. अब वह उन्हें क्या बताए? घर आ कर चारों बच्चे सोने चले गए. सुधीर भी जल्दी ही नींद के आगोश में समा गए. मगर माधुरी की आंखों में नींद नहीं थी. वह तो 6 साल पहले के उस दिन को याद कर रही थी जब माधुरी के लिए सुधीर का रिश्ता आया था. हां, 6 साल ही तो हुए हैं माधुरी और सुधीर की शादी को. 6 साल पहले वह दौर कितना कठिन था. माधुरी को बड़ी घबराहट हो रही थी. पिछले कई दिनों से वह अपने निर्णय को ले कर असमंजस की स्थिति में जी रही थी.

माधुरी का निर्णय अर्थात विवाह का निर्णय. अपने विवाह को ले कर ही वह ऊहापोह में पड़ी हुई थी. घबरा रही थी. क्या होगा? नए घर में सब उसे स्वीकारेंगे या नहीं.

विवाह को ले कर हर लड़की के मन में न जाने कितनी तरह की चिंताएं और घबराहट होती है. स्वाभाविक भी है, जन्म के चिरपरिचित परिवेश और लोगों के बीच से अचानक ही वह सर्वथा अपरिचित परिवेश और लोगों के बीच एक नई ही जमीन पर रोप दी जाती है. अब इस नई जमीन की मिट्टी से परिचय बढ़ा कर इस से अपने रिश्ते को प्रगाढ़ कर यहां अपनी जड़ें जमा कर फलनाफूलना मानो नाजुक सी बेल को अचानक ही रेतीली कठोर भूमि पर उगा दिया जाए.

लेकिन माधुरी की घबराहट अन्य लड़कियों से अलग थी. नई जमीन पर रोपे जाने का अनुभव वह पहले भी देख चुकी थी. उस जमीन पर अपनी जड़ें जमा कर खूब पल्लवित हो कर नाजुक बेल से एक परिपक्व लताकुंज में परिवर्तित भी हो चुकी थी, लेकिन अचानक ही एक आंधी ने उसे वहां से उखाड़ दिया और उस की जड़ों को क्षतविक्षत कर के उस की जमीन ही उस से छीन ली.

2 वर्ष पहले मात्र 43 वर्ष की आयु में ही माधुरी के पति की हृदयगति रुक जाने से आकस्मिक मृत्यु हो गई. कौन सोच सकता था कि रात में पत्नी और बच्चों के साथ खुल कर हंसीमजाक कर के सोने वाला व्यक्ति फिर कभी उठ ही नहीं पाएगा. इतना खुशमिजाज, जिंदादिल इंसान था प्रशांत कि सब के दिलों को मोह लेता था, लेकिन क्या पता था कि उस का खुद का ही दिल इतनी कम उम्र में उस का साथ छोड़ देगा.

माधुरी तो बुरी तरह टूट गई थी. 18 सालों का साथ था उन का. 2 प्यारे बच्चे हैं, प्रशांत की निशानी, प्रिया और मधुर. मधुर तो तब मात्र 16 साल का हुआ ही था और प्रिया अपने पिता की अत्यंत लाडली बस 12 साल की ही थी. सब से बुरा हाल तो प्रिया का ही हुआ था.

एक खुशहाल परिवार एक ही झटके में तहसनहस हो गया. महीनों लगे थे माधुरी को इस सदमे से बाहर आ कर संभलने में. उम्र ही क्या थी उस की. मात्र 37 साल. वह तो उस के मातापिता ने अपना कलेजा मजबूत कर के उसे सांत्वना दे कर इतने बड़े दुख से उबरने में उस की मदद की. प्रिया और मधुर के कुम्हलाए चेहरे देख कर माधुरी ने सोचा था कि अब ये दोनों ही उस का जीवन हैं. अब इन के लिए उसे मजबूत छत बनानी है.

साल भर में ही वह काफी कुछ स्थिर हो गई थी. जीवन आगे बढ़ रहा था. मधुर मैडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था. प्रिया भी पढ़ने में तेज थी. स्कूल में अव्वल आती, लेकिन माधुरी की सूनी मांग और माथा देख कर उस की मां के कलेजे में मरोड़ उठती, इतना लंबा जीवन अकेले वह कैसे काट पाएगी?

‘अकेली कहां हूं मां, आप दोनों हो, बच्चे हैं,’ माधुरी जवाब देती.

‘हम कहां सारी उम्र तुम्हारा साथ दे पाएंगे बेटा. बेटी शादी कर के अपने घर चली जाएगी और मधुर पढ़ाई और फिर नौकरी के सिलसिले में न जाने कौन से शहर में रहेगा. फिर उस की भी अपनी दुनिया बस जाएगी. तब तुम्हें किसी के साथ की सब से ज्यादा जरूरत पड़ेगी. यह बात तो मैं अपने अनुभव से कह रही हूं. अपने निजी सुखदुख बांटनेसमझने वाला एक हमउम्र साथी तो सब को चाहिए होता है, बेटी,’ मां उदास आवाज में कहतीं.  माधुरी उस से भी गहरी उदास आवाज में कहती, ‘मेरी जिंदगी में वह साथ लिखा ही नहीं है, मां.’

माधुरी का जवाब सुन कर मां सोच में पड़ जातीं. माधुरी को तो पता ही नहीं था कि उस के मातापिता इस उम्र में उस की शादी फिर से करवाने की सोच रहे हैं. 3 महीने पहले ही उन्हें सुधीर के बारे में पता चला था. सुधीर की उम्र 45 वर्ष थी. 2 वर्ष पूर्व ही ब्रेन ट्यूमर की वजह से उन की पत्नी की मृत्यु हो गई थी. 2 बच्चे 19 वर्ष का बेटा और 15 वर्ष की बेटी है. घर में सुधीर की वृद्ध मां भी है. नौकरचाकरों की मदद से पिछले 2 वर्षों से वह 68 साल की उम्र में जैसेतैसे बेटे की गृहस्थी चला रही थीं.

माधुरी की मां ने सुधीर की मां को माधुरी के बारे में बता कर विवाह का प्रस्ताव रखा. सुधीर की मां ने सहर्ष उसे स्वीकार कर लिया. वयस्क होती बेटी को मां की जरूरत का हवाला दे कर और अपने बुढ़ापे का खयाल करने को उन्होंने सुधीर को विवाह के लिए मना लिया.

‘मैं बूढ़ी आखिर कब तक तेरी गृहस्थी की गाड़ी खींच पाऊंगी. और फिर कुछ सालों बाद तेरे बच्चों का ब्याह होगा. कौन करेगा वह सब भागदौड़ और उन के जाने के बाद तेरा ध्यान रखने को और सुखदुख बांटने को भी तो कोई चाहिए न. अपनी मां की इस बात पर सुधीर निरुत्तर हो गए और वही सब बातें दोहरा कर माधुरी की मां ने जैसेतैसे उसे विवाह के लिए तैयार करवा लिया.

‘बेटी अकेलापन बांटने कोई नहीं आता. यह मत सोच कि लोग क्या कहेंगे? लोग तो अच्छेबुरे समय में बस बोलने आते हैं. साथ देने के लिए आगे कोई नहीं आता. अपना बोझ आदमी को खुद ही ढोना पड़ता है. सुधीर अच्छा इंसान है. वह भी अपने जीवन में एक त्रासदी सह चुका है. मुझे पूरा विश्वास है कि वह तेरा दुख समझ कर तुझे संभाल लेगा. तुम दोनों एकदूसरे का सहारा बन सकोगे.’

माधुरी ने भी मां के तर्कों के आगे निरुत्तर हो कर पुनर्विवाह के लिए मौन स्वीकृति दे दी. वैसे भी वह अब अपनी वजह से मांपिताजी को और अधिक दुख नहीं देना चाहती थी.

लेकिन तब से वह मन ही मन ऊहापोह में जी रही थी. सवाल उस के या सुधीर के आपस में सामंजस्य निभाने का नहीं था. सवाल उन 4 वयस्क होते बच्चों के आपस में तालमेल बिठाने का है. वे आपस में एकदूसरे को अपने परिवार का अंश मान कर एक घर में मिलजुल कर रह पाएंगे? सुधीर और माधुरी को अपना मान पाएंगे?

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यही सारे सवाल कई दिनों से माधुरी के मन में चौबीसों घंटे उमड़तेघुमड़ते रहते. जैसेजैसे विवाह के लिए नियत दिन पास आता जा रहा था ये सवाल उस के मन में विकराल रूप धारण करते जा रहे थे.

माधुरी अभी इन सवालों में उलझी बैठी थी कि मां ने उस के कमरे में आ कर सुधीर की मां के आने की खबर दी. माधुरी पलंग से उठ कर बाहर जाने के लिए खड़ी ही हुई थी कि सुधीर की मां स्वयं ही उस के कमरे में चली आईं. उन के साथ 14-15 साल की एक प्यारी सी लड़की भी थी. माधुरी को समझते देर नहीं लगी कि यह सुधीर की बेटी स्नेहा है. माधुरी ने उठ कर सुधीर की मां को प्रणाम किया. उन्होंने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा और कहा, ‘मैं समझती हूं माधुरी बेटा, इस समय तुम्हारी मनोस्थिति कैसी होगी? मन में अनेक सवाल घुमड़ रहे होंगे. स्वाभाविक भी है.

‘मैं बस इतना ही कहना चाहूंगी कि अपने मन से सारे संशय दूर कर के नए विश्वास और पूर्ण सहजता से नए जीवन में प्रवेश करो. हम सब अपनीअपनी जगह परिस्थिति और नियति के हाथों मजबूर हो कर अधूरे रह गए हैं. अब हमें एकदसूरे को पूरा कर के एक संपूर्ण परिवार का गठन करना है. इस के लिए हम सब को ही प्रयत्न करना है. मेरा विश्वास है कि इस में हम सफल जरूर होंगे. आज मैं अपनी ओर से पहली कड़ी जोड़ने आई हूं. एक बेटी को उस की मां से मिलाने लाई हूं. आओ स्नेहा, मिलो अपनी मां से,’ कह कर उन्होंने स्नेहा का हाथ माधुरी के हाथ में दे दिया.

स्नेहा सकुचा कर सहमी हुई सी माधुरी की बगल में बैठ गई तो माधुरी ने खींच कर उसे गले से लगा लिया. मां के स्नेह को तरस रही स्नेहा ने माधुरी के सीने में मुंह छिपा लिया. दोनों के प्रेम की ऊष्मा ने संशय और सवालों को बहुत कुछ धोपोंछ दिया.

‘बस, अब आगे की कडि़यां हम मां- बेटी मिल कर जोड़ लेंगी,’ सुधीर की मां ने कहा तो पहली बार माधुरी को लगा कि उस के मन पर पड़े हुए बोझ को मांजी ने कितनी आसानी से उतार दिया.

जल्द ही एक सादे समारोह में माधुरी और सुधीर का विवाह हो गया. माधुरी के मन का बचाखुचा भय और संशय तब पूरी तरह से दूर हो गया, जब सुधीर से मिलने वाले पितृवत स्नेह की छत्रछाया में उस ने प्रिया को प्रशांत के जाने के बाद पहली बार खुल कर हंसते देखा. अपने बच्चों को ले कर माधुरी थोड़ी असहज रहती, मगर सुधीर ने पहले दिन से ही मधुर और प्रिया के साथ एकदम सहज पितृवत व स्नेहपूर्ण व्यवहार किया. सुधीर बहुत परिपक्व और सुलझे हुए इंसान थे और मांजी भी. घर में उन दोनों ने इतना सहज और अनौपचारिक अपनेपन का वातावरण बनाए रखा कि माधुरी को लगा ही नहीं कि वह बाहर से आई है. सुधीर का बेटा सुकेश और मधुर भी जल्दी ही आपस में घुलमिल गए. कुछ ही महीनों में माधुरी को लगने लगा कि जैसे यह उस का जन्मजन्मांतर का परिवार है.

माधुरी के मातापिता भी उसे अपने नए परिवार में खुशी से रचाबसा देख कर संतुष्ट थे. दिन पंख लगा कर उड़ते गए. सुधीर का साथ पा कर माधुरी के मन की मुरझाई लताफिर हरी हो गई. ऐसा नहीं कि माधुरी को प्रशांत की और सुधीर को अपनी पत्नी की याद नहीं आती थी, लेकिन उन दोनों की याद को वे लोग सुखद रूप में लेते थे. उस दुख को उन्होंने वर्तमान पर कभी हावी नहीं होने दिया. उन की याद में रोने के बजाय वे उन के साथ बिताए सुखद पलों को एकदूसरे के साथ बांटते थे.  सोचतेसोचते माधुरी गहरी नींद में खो गई. इस घटना के 10-12 दिन बाद ही सुधीर ने माधुरी को बताया कि रविजी और उन की पत्नी उन के घर आने के इच्छुक हैं. माधुरी उन के आने के पीछे की मंशा समझ गई. उस ने सुधीर से कह दिया कि वे उन्हें रात के खाने पर सपरिवार निमंत्रित कर लें. 2 दिन बाद ही रविजी अपनी पत्नी और दोनों बच्चों को ले कर डिनर के लिए आ गए. विमला माधुरी की हैल्प करवाने के बहाने किचन में आ गई और माधुरी से बातें करने लगी. माधुरी ने स्नेहा से कहा कि प्रिया को बोल दे, डायनिंग टेबल पर प्लेट्स लगा कर रख देगी.

‘‘उसे आज बहुत सारा होमवर्क मिला है मां. उसे पढ़ने दीजिए. मैं आप की हैल्प करवा देती हूं,’’ स्नेहा ने जवाब दिया.

‘‘पर बेटा, तुम्हारे तो टैस्ट चल रहे हैं. तुम जा कर पढ़ाई करो. मैं मैनेज कर लूंगी,’’ माधुरी ने स्नेहा से कहा.

‘‘कोई बात नहीं मां. कल अंगरेजी का टैस्ट है और मुझे सब आता है,’’ स्नेहा प्लेट पोंछ कर टेबल पर सजाने लगी. तभी सुकेश और मधुर बाजार से आइसक्रीम और सलाद के लिए गाजर और खीरे वगैरह ले आए. सुकेश ने तुरंत आइसक्रीम फ्रीजर में रखी और मां से बोला, ‘‘मां, और कुछ काम है क्या?’’

‘‘नहीं, बेटा. अब तुम आनंद और अमृता को अपने रूम में ले जाओ. वे लोग बाहर अकेले बोर हो रहे हैं,’’ माधुरी ने कहा तो सुकेश बाहर चला गया.

‘‘ठीक है मां, कुछ काम पड़े तो बुला लेना,’’ स्नेहा भी अपना काम खत्म कर के चली गई. अब किचन में सिर्फ मधुरी और विमला ही रह गईं. अब विमला ज्यादा देर तक अपनी उत्सुकता को रोक नहीं पाई और उस ने माधुरी से सवाल किया, ‘‘हम तो 2 ही बच्चों को बड़ी मुश्किल से संभाल पा रहे हैं. आप ने 4-4 बच्चों को कैसे संभाला होगा? चारों में अंतर भी ज्यादा नहीं लगता. स्नेहा और मधुर तो बिलकुल एक ही उम्र के लगते हैं.’’  माधुरी इस सवाल के लिए तैयार ही थी. वह अत्यंत सहज स्वर में बोली, ‘‘हां, स्नेहा और मधुर की उम्र में बस 8 महीनों का ही फर्क है.’’

‘‘क्या?’’ विमला बुरी तरह से चौंक गई, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

तब माधुरी ने बड़ी सहजता से मुसकराते हुए संक्षेप में अपनी और सुधीर की कहानी सुना दी.  अब तो विमला के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा.

‘‘तब भी आप के चारों बच्चों में इतना प्यार है जबकि वे आपस में सगे भी नहीं हैं. मेरे तो दोनों बच्चे सगे भाईबहन होने के बाद भी आपस में इतना झगड़ते हैं कि बस पूछो मत. एक मिनट भी नहीं पटती है उन में. मैं तो इतनी तंग आ गई हूं कि लगता है इन्हें पैदा ही क्यों किया? लेकिन आप के चारों बच्चों में तो बहुत प्यार और सौहार्द दिखता है. चारों आपस में एकदूसरे पर और आप पर तो मानो जान छिड़कते हैं,’’ विमला बोली.

तभी सुधीर की मां किचन में आईं और विमला से बोलीं, ‘‘बात सगेसौतेले की नहीं, प्यार होता है आपसी सामंजस्य से. दरअसल, हम सब अपने जीवन में कुछ अपनों को खोने का दर्द झेल चुके हैं इसलिए हम सभी अपनों की कीमत समझते हैं. इस दर्द और समझ ने ही मेरे परिवार को प्यार से एकसाथ बांध कर रखा है. चारों बच्चे अपनी मां या पिता को खोने के बाद अकेलेपन का दंश झेल चुके थे, इसलिए जब चारों मिले तो उन्होंने जाना कि घर में जितने ज्यादा भाईबहन हों उतना ही मजा आता है. यही राज है हमारे परिवार की खुशियों का. हम दिल से मानते हैं कि सब को साथ चाहिए.’’

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विमला उन की बातें सुन कर मुग्ध हो गई, ‘‘सचमुच मांजी, आप के परिवार के विचार और सौहार्द तो अनुकरणीय हैं.’

समय बीतता गया. सुकेश पढ़लिख कर इंजीनियर बना तो मधुर डाक्टर बन गया. मधुर ने एमडी किया और सुकेश ने बैंगलुरु से एमटेक. प्रिया और स्नेहा ने भी अपनेअपने पसंदीदा क्षेत्र में कैरियर बना लिया और फिर उन चारों के विवाह, फिर नातीपातों का जन्म, नामकरण मुंडन आदि की भागदौड़ में बरसों बीत गए. फिर एकएक कर सब पखेरू अपनेअपने नीड़ों में बस गए. सुकेश और प्रिया दोनों इंगलैंड चले गए. जहां दोनों भाईबहन पासपास ही रहते थे. मधुर बेंगलुरु में सैटल हो गया और स्नेहा मुंबई में. मांजी और माधुरी के मातापिता का निधन हो गया.

अब इतने बड़े घर में सुधीर और माधुरी अकेले रह गए. जब बच्चे और नातीपोते आते तो घर भर जाता. कभी ये लोग बारीबारी से सारे बच्चों के पास रह आते, लेकिन अधिकांश समय दोनों अपने घर में ही रहते. अपनी दिनचर्या को उन्होंने इस तरह से ढाला कि सुबह की चाय बगीचे की ताजी हवा में साथ बैठ कर पीते, साथ बागबानी करते. साथसाथ घर के सारे काम करने में दिन कब गुजर जाता, पता ही नहीं चलता. दोनों पल भर कभी एकदूसरे से अलग नहीं रह पाते. अब जा कर माधुरी और सुधीर को एहसास होता कि अगर उन्होंने उस समय अपने मातापिता की बात न मान कर विवाह नहीं किया होता तो आज जीवन की इस संध्याबेला में दोनों इतने माधुर्यपूर्ण साथ से वंचित हो कर बिलकुल अकेले रह जाते. जीवन की सुबह मातापिता की छत्रछाया में गुजर जाती है, दोपहर भागदौड़ में बीत जाती है मगर संध्याबेला की इस घड़ी में जब जीवन में अचानक ठहराव आ जाता है तब किसी के साथ की सब से अधिक आवश्यकता होती है. सुधीर के कंधे पर सिर टिकाए हुए माधुरी यही सोच रही थी. सचमुच, बिना साथी के जीवन अत्यंत कठिन और दुखदायक है. साथ सब को चाहिए.

जानें क्या है हर्ड इम्युनिटी और वैक्सीन

हर्ड इम्युनिटी के बारें में हर दिन कुछ न कुछ सुर्ख़ियों में रहता है इसकी वजह से ये जानना मुश्किल हो रहा है कि आखिर देश हर्ड इम्युनिटी से कितना दूर है? लोगों को अभी भी अनलॉक हो जाने पर खुद कितनी सावधानियां बरतने की जरुरत है, क्योंकि अनलॉक होने पर इतने महीने से घर में कैद लोग बिना जरूरतों के भी बाहर घूमने लगे है,जिससे कोरोन संक्रमण की संख्या लगातार बढती जा रही है.

असल में जब कोई बीमारी महामारी का रूप ले लेता है तो उसमें कमी आने के लिए हर्ड इम्युनिटी का होना जरुरी होता है और ये तभी हो सकता है जब अधिक संख्या में लोग इस बीमारी से पीड़ित हो. इससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है, जिससे किसी संक्रमण को रोका जा सकता है. कोरोना संक्रमण भी कुछ ऐसी ही महामारी है, जिसे हर्ड इम्युनिटी से रोका जा सकता है. इस बारें में रिजनेरेटिव मेडिसिन रिसर्चर Stem Rx बायोसाइंस सोल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड के डॉ. प्रदीप महाजन कहते है किहर्ड इम्युनिटी में अधिकतर लोगों को इन्फेक्शन हुआ हो और वे ठीक हुए है. उन्हें अंदर एंटी बॉडी तैयार हो चुकी है. ये हर्ड इम्युनिटी की स्टेज में आते है, जिसके बारें में अभी हमें बात करने की जरुरत है, जब एक पूरी बड़ी कम्युनिटी में संक्रमण फैलने की वजह से आसपास के सभी लोग इम्यून हो जाते है और आसपास के लोगों में भी एंटी बॉडी फ़ैल जाता है. इससे कमजोर इम्युनिटी वाले लोग और जिनमें संक्रमण का खतरा अधिक होता है, वे बच जाते है. लोगों को बीमारी अधिक संक्रमित नहीं कर पाती, ये वायरस और बेक्टेरिया कुछ भी हो सकता है.

हर्ड इम्युनिटी के तरीके

इसे दो तरीके से पाया जा सकता है,वैक्सीनेशन या फिर कम्युनिटी स्प्रेड इन्फेक्शन के द्वारा मुमकिन है. इसमें 80 प्रतिशत लोगों के इन्फेक्शन होने पर ही इसे कम्युनिटी स्प्रेड इन्फेक्शन कहा जा सकता है. पूरे समूह को एंटीबॉडी के प्रोटेक्शन की आवश्यकता होती है. इसमें बहुत कम लोगों को इन्फेक्शन होने का खतरा होता है और संक्रमण का फैलाव रुक जाता है. इससे हाई रिस्क वाले सभी लोगों को प्रोटेक्शन मिलता है, जिसमें बच्चे और बुजुर्ग भी सुरक्षित हो जाते है.

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वैक्सीनेशन से बढती है हर्ड इम्युनिटी

दूसरा वैक्सीनेशन के द्वारा एंटी बॉडी को डेवलप किया जाता है. इससे भी इन्फेक्शन कम होने लगता है. एंटी बॉडी से उनमें किसी भी प्रकार का इन्फेक्शन कम हो जाता है. हमारे देश में हम सब हर्ड इम्युनिटी के काफी नजदीक पहुँच गए है, क्योंकि सब कुछ खुल चुका है और लोग काम पर जा भी रहे है, ऐसे में अधिक से अधिक लोग इस संक्रमण के शिकार हो रहे है. ऐसे में अधिकतर लोगों में अगर मॉस एंटीजन टेस्टिंग किया जाय तो 70 से 80 प्रतिशत लोग कोरोना पोजिटिव है, पर उनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं है. इसमें प्रश्न ये भी उठता है कि एसिमटेमेटिक पेशेंट क्या इस संक्रमण को फैला सकता है या नहीं. इस पर काफी रिसर्च चल रहा है. लक्षण न होने पर भी क्या वह इस बीमारी को फलने में समर्थ हो सकता है या फिर वह मात्र एक कैरियर ही है. इस बारें में अभी तक किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं आयी है. उस पर कोई राय नहीं दी जा सकती है.

वैक्सीन के प्रकार

वैक्सीन भी दो तरह की है, पहला स्पेसिफिक और दूसरा नॉन स्पेसिफिक वैक्सीन. स्पेसिफिक वाक्सिनेशन में एंटी बॉडी जो कोरोना 2, कोविड 19, कोरोना सार्स कोविड 2 वायरस के लिए होगा. जिसमें 4 प्रकार के प्रोटीन्स होंगे, जिसमें S प्रोटीन इस बीमारी को फ़ैलाने में अधिक कारगर है. इसे स्पाइक प्रोटीन ऑफ़ सरफेस भी कहते है. अगर इस प्रोटीन को एंटीबॉडी को तैयार करने के लिए बनाया जायेगा, तो उसका फायदा सबको होगा, पर ये अभी तक संभव नहीं हो पाया है, क्योंकि ये वायरस म्यूटेट कर रहा है. इसके लिए बड़ी संख्या में लोगों पर इसकी ट्रायल करने की जरुरत है, ताकि लोगों को वैक्सीन लगाने के बाद वे सुरक्षित रहे. बीमारी को आये हुए केवल 6 महीने हुए है और सुरक्षा अभी भी सही मात्रा में नहीं हो पा रहा है, क्योंकि जनसँख्या बड़ी है और लोग नियमों का पालन सख्ती से नहीं कर रहे है. 2 से 3 साल तक इस बीमारी के रहने का अंदेशा है और पता नहीं है कि कब हमसब सुरक्षित हो पायेंगे. वैक्सीन की सुरक्षा साल दो साल बाद ही पता चल पायेगा. सही वैक्सीन के निकलने में एक से 2 साल कम से कम लगता है, जो सुरक्षित और इफेक्टिव होगा.

नॉन स्पेसिफिक वैक्सीन प्रूवेन वैक्सीन होता है, सार्स 2 की स्पाइक प्रोटीन जो कुछ हद तक एम एमआर और बी सी जी में होता है. ये नॉन स्पेसिफिक है और निश्चित रूप से कुछ हद तक कोविड वायरस से भी सीरियस होने से बचाती है. इस वैक्सीन को लगाये हुए व्यक्ति को कोरोना इन्फेक्शन होने पर भी वह माइल्ड ही होगा. एमएम आर और बी सी जी 50 सालों के रिसर्च के बाद आया हुआ सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन है. इसकी वजह से इन्फेक्शन का प्रभाव कम अवश्य हो सकता है ,पर बीमारी का इलाज नहीं हो सकता.

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अभी भी सबको मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और सेनिटाईजेशन को पूरी तरह से अपनाने की जरुरत है. जो लोग बाहर अधिक काम पर या पब्लिक प्लेस में जा रहे है, एच सी क्यू प्रिवेंटिव मेजर के तौर पर सप्ताह में एक या दो गोली लेते रहेंगे, तो उन्हें प्रोटेक्शन मिलता रहेगा. एम एम आर जिन लोगों ने नहीं लगाया है, वे आज भी इसे ले सकते है. इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता. इतिहास भी बताती है कि एम एम आर वैक्सीन से इन्फेक्शन कम होता है. देखा जाय तो कोरोना वैक्सीन से भी ये बीमारी ख़त्म नहीं होगी, पर ये इन्फ्लुएंजा के रूप में रहेगी. म्युटेशन होकर अभी ये रोग काफी हद तक माइल्ड हो रहा है, जो अच्छी बात है.

जींस के साथ इस तरीके से ट्राय करें कुर्ती, दिखें स्टाइलिश

कितने भी फैशन के ट्रैंड आएं और जाएं लेकिन कुर्ती एक ऐसी ड्रेस है जो हर किसी के वार्डरोब में जरूर होती है. चाहे फंक्शन में जाना हो या या इंटरव्यू के लिए, इसे किसी भी ओकेजन के लिए पहना जा सकता है. हां लेकिन पहनने का तरीका आपको पता होना चाहिए जिससे कुर्ती सिंपल न लगकर स्टाइल दिखे.

अब तक आपने कुर्ती को पटियाला, लैंगिंग्स या सलवार के साथ तो पहना ही होगा तो अब इसे जींस के साथ भी ट्राय कीजिए. क्योंकि जींस के साथ कुर्ती काफी स्टाइलिश और कूल लुक देती है. वैसे भी डेली यूज के लिए कुर्ती काफी कंफर्टेबल होती है खासकर मार्केट, कौलेज और औफिस जाने वाली विमेंस के लिए. वहीं हाउस वाइफ डेली रूटीन में इजी-ब्रिजी कपड़े पहनना पसंद करती हैं तो उनके लिए जींस और कुर्ती बेस्ट औप्शन है. तो अगर आप भी शर्ट या टॉप के जगह कुर्ती पहनने का मन बना रही हैं तो हम आपको यहां पांच अलग-अलग तरह के स्टाइल कुर्तों के बारे में बताएंगे जो जींस के साथ काफी सूट करते हैं. जिन्हें आप रोज चेंज करके पहन सकती हैं.

स्लिट कुर्ता

यह कुर्ते का एक ऐसा स्टाइल है जिसे पहनकर आप भीड़ से अगल दिख सकती हैं. ये दिखने में जितना स्टाइलिश है उतना ही कंफर्टेबल भी है. कई बौलीवुड दीवाज को भी जींस के साथ स्लिट कुर्ता में देखा गया है. जिनके स्टनिंग लुक की काफी तारीफ भी हुई है. आप अपने हिसाब से साइड स्लिट, मिडिल स्लिट या मल्टीपल स्लिट सेलेक्ट कर सकती हैं. यह पार्टी वियर के लिए भी परफेक्ट लुक हो सकता है.

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केड़िया कुर्ती

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अगर आपको लगता है कि कुर्ती में कोई औप्शन या स्टाइल नहीं है तो शायद आपने अभी तक केड़िया कुर्ती ट्राई नहीं की. यह काफी मौडर्न और एथेनिंक लुक देती है. साथ ही अगर इसे आप डेनिम एंकल लेंथ जींस के साथ पहनती हैं तो आपके लुक की तरीफ तो जरूर हो सकती है. क्योंकि गुजरात का यह ट्रेडिशनल कुर्ता फ्यूजन और ट्रेडिशन का मेल है. जो आपको क्लीसी लुक देने के लिए काफी है.

ऐसिमेट्रिकल कुर्ती

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अगर आपको लौंग और शौर्ट दोनों तरह की कुर्ती पहनना पसंद है तो ऐसिमेट्रिकल कुर्ती आपके लिए परफेक्ट चौइस हो सकती है. क्योंकि इसका शौर्ट और लौंग दोनों स्टाइल जींस के साथ खूब जचता है. हां लेकिन जींस का लेंथ एंकल से ज्यादा न हो. इसे कैरी करना भी आसान होता है और यह दिखने में भी मौडर्न और स्टाइलिश होती है.

डेनिम कुर्ती

डेनिम को पहनने से भला कौन मना करता है…खैर ये तो हम पहनने वाले की चौइस पर छोड़ते हैं. लेकिन अगर आप भी डेनिम की शौकीन हैं तो डेनिम कुर्ते को अपने वौर्डरोब में जरूर शामिल करें. इसे आप जींस के साथ कैरी करें, यकीन मानिए यह कुर्ता काफी एलीगेंट लुक देता है.

शर्ट स्टाइल लौंग कुर्ती

सोनम कपूर और दीपिका को ज्यादातर इस तरह की कुर्ती में देखा जा सकता है. आप भी शीयर या प्रिंटेड शर्ट स्टाइल लौंग कुर्ती कैरी कर डिफरेंट लुक पा सकती हैं. यह काफी एलीगेंट लुक देता है.

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साख टिप्स-

कुर्ती जींस के साथ मोजरी, जूती या हाई हील आपके लुक में चार चांद लगाने का काम करती हैं. वहीं जींस कुर्ती के साथ इयररिंग, स्टोल, पर्स को कैरी कर आप अपने पर्सनैलिटी को और निखार सकती हैं. हेयर स्टाइल में आप साइड ब्रैड, बन बना सकती हैं या चाहें तो ओपन हेयर भी रख सकती हैं. हां काजल लगाना न भूलें.

ननद-भाभी : एक रिश्ता हंसीठिठोली का

अकसर देखा जाता है कि ननद के हावी होने के कारण भाभी पर बहुत अत्याचार होते हैं. ननद चाहे मायके में रहती हो या ससुराल में, वह भाभी के विरुद्ध अपनी मां के कान भरती है. भाई को भी भड़काती रहती है. इस का कारण यह है कि बहन, भाई पर अपना पूर्ण अधिकार समझती है और अपने गर्व, अहं को ऊपर रखना चाहती है. यदि भाई अदूरदर्शी हो तो बहन की बातों में आ जाता है और फिर उस की पत्नी अत्याचार का शिकार होती रहती है.

क्या कभी ननद भाभी के इन विवादों के पीछे का कारण सोचा है? यदि आप कारण टटोलेंगे तो आप को जवाब मिलेगा ‘मैं का भाव.’ यह भाव जब तक आप में रहेगा तब तक आप किसी के भी साथ अपने रिश्तों की गाड़ी को लंबी दूरी तक नहीं चला पाएंगे.

हाल ही की एक घटना है, जिस में लखनऊ निवासी एक परिवार में भाभी और ननद की छोटीमोटी बात पर अकसर बहस हो जाती थी. ननद से जब यह बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने अपनी भाभी के साथ हुई बहस को ले कर साजिश रच डाली.

अचानक उस के भाई को एक अनजान नंबर से फोन आने लगे. पूछने पर उस ने बताया कि वह उस की पत्नी का प्रेमी बोल रहा है. बात यहां तक बढ़ गई कि शादी के 4 महीने बाद ही तलाक की नौबत आ गई. 2 महीने से विवाहिता अपने मायके में है. विवाहिता ने महिला हैल्प लाइन से मदद मांगी. जांच शुरू होते ही ननद की रची साजिश का परदाफाश हो गया.

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वजहें छोटी विवाद बड़े: ननद और भाभी के झगड़े की कई सामान्य वजहें होती हैं जैसे शादी से पहले तो घर की हर चीज पर ननद का अधिकार होता है, परंतु शादी के बाद हालात बदल जाते हैं. अब ननद घर की मेहमान बन जाती है और भाभी घर की मालकिन. ऐसे में हर छोटीबड़ी बात पर ननद का हस्तक्षेप घर की बहू से बरदाश्त नहीं होता. बस, यहीं से शुरुआत होती है इस रिश्ते में कड़वाहट की.

यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि हमें कभी न कभी अधिकारों का हस्तांतरण करना ही पड़ता है. हम हमेशा मालिक बन कर बैठे रहेंगे तो हम कभी किसी का प्यार व विश्वास हासिल नहीं कर पाएंगे. हमारी थोड़ी सी विनम्रता व अधिकारों का विभाजन हमारे रिश्तों को मधुर बना सकता है.

प्राथमिकताएं बदलती हैं: बहन होने के नाते आप को यह बात समझनी होगी कि विवाह के बाद भाई की जिम्मेदारियां और प्राथमिकताएं भी बदल जाती हैं. खुद को भावनात्मक रूप से दूसरों पर आश्रित न करें, बल्कि उन दोनों का रिश्ता मजबूत करने में मदद करें. ननद और भाभी को यह समझना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति के लिए पत्नी और बहन दोनों जरूरी हैं. इसलिए उस पर दोनों में से किसी एक का चुनाव करने के लिए दबाव न डालें.

प्रभुत्व: यह सच है कि नए घर में हर भाभी चाहती है कि उस की स्वतंत्रता हो और उसे अपनी मरजी से काम करने दिया जाए, जबकि ननद को लगता है कि जब पहले भी उस की बातें मानी जाती थीं तो भाई की शादी के बाद भी वैसा ही हो. जब इस घर में हमेशा उसी की सुनी जाती थी तो अब भी उसी की सुनी जाए. लेकिन दोनों को समझना होगा कि वक्त के साथ परिस्थितियों में भी बदलाव आता है.

हमउम्र होना: भाभी और ननद दोनों की उम्र अकसर समान होती है. दोनों को समझना चाहिए कि उन की वजह से उन के भाई या पति को परेशानी न हो. एक उम्र होने के कारण दोनों के बीच अकसर लड़ाई होती रहती है. ननदभाभी के रिश्ते को दोस्ती में बदलने की कोशिश करें. मतभेद के दौरान दोनों शांत रहें. कोशिश करें कि विवाद बढ़ने से पहले ही सुलझ जाए.

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रिश्तों को जोड़ने से पूर्व हमें उन के दूरगामी परिणामों के बारे में भी सोचना चाहिए, क्योंकि हमें इन की राह पर लंबी दूरी तक चलना होता है. रिश्ते बना कर तोड़ने की चीज नहीं होते हैं. ये तो ताउम्र निभाने के लिए होते हैं. जब जीवन भर इन्हें निभाना है तो क्यों न प्यार के अमृत से बैर का जहर दूर किया जाए और ननदभाभी के रिश्ते को 2 बहनों का रिश्ता बनाया जाए?

एक अकेली: परिवार के होते हुए भी क्यों अकेली पड़ गई थी सरिता?

सरिता घर से निकलीं तो बाहर बादल घिर आए थे. लग रहा था कि बहुत जोर से बारिश होगी. काश, एक छाता साथ में ले लिया होता पर अपने साथ क्याक्या लातीं. अब लगता है बादलों से घिर गई हैं. कभी सुख के बादल तो कभी दुख के. पता नहीं वे इतना क्यों सोचती हैं? देखा जाए तो उन के पास सबकुछ तो है फिर भी इतनी अकेली. बेटा, बेटी, दामाद, बहन, भाई, बहू, पोतेपोतियां, नाते-रिश्तेदार…क्या नहीं है उन के पास… फिर भी इतनी अकेली. किसी दूसरे के पास इतना कुछ होता तो वह निहाल हो जाता, लेकिन उन को इतनी बेचैनी क्यों? पता नहीं क्या चाहती हैं अपनेआप से या शायद दूसरों से. एक भरापूरा परिवार होना तो किसी के लिए भी गर्व की बात है, ऊपर से पढ़ालिखा होना और फिर इतना आज्ञाकारी.

बहू बात करती है तो लगता है जैसे उस के मुंह से फूल झड़ रहे हों. हमेशा मांमां कह कर इज्जत करना. बेटा भी सिर्फ मांमां करता है.  इधर सरिता खयालों में खो जाती हैं: बेटी कहती थी, ‘मां, तुम अपना ध्यान अब गृहस्थी से हटा लो. अब भाभी आ गई हैं, उन्हें देखने दो अपनी गृहस्थी. तुम्हें तो सिर्फ मस्त रहना चाहिए.’  ‘लेकिन रमा, घर में रह कर मैं अपने कामों से मुंह तो नहीं मोड़ सकती,’ वे कहतीं.  ‘नहींनहीं, मां. तुम गलत समझ रही हो. मेरा मतलब सब काम भाभी को करने दो न…’

ब्याह कर जब वे इस घर में आई थीं तो एक भरापूरा परिवार था. सासससुर के साथ घर में ननद, देवर और प्यार करने वाले पति थे जो उन की सारी बातें मानते थे. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी पर बहुत पैसा भी नहीं था. घर का काम और बच्चों की देखभाल करते हुए समय कैसे बीत गया, वे जान ही न सकीं.

कमल शुरू से ही बहुत पैसा कमाना चाहते थे. वे चाहते थे कि उन के घर में सब सुखसुविधाएं हों. वे बहुत महत्त्वा- कांक्षी थे और पैसा कमाने के लिए उन्होंने हर हथकंडे का इस्तेमाल किया.   पैसा सरिता को भी बुरा नहीं लगता था लेकिन पैसा कमाने के कमल के तरीके पर उन्हें एतराज था, वे एक सुकून भरी जिंदगी चाहती थीं. वे चाहती थीं कि कमल उन्हें पूरा समय दें लेकिन उन को सिर्फ पैसा कमाना था, कमल का मानना था कि पैसे से हर वस्तु खरीदी जा सकती है. उन्हें एक पल भी व्यर्थ गंवाना अच्छा नहीं लगता था. जैसेतैसे कमल के पास पैसा बढ़ता गया, उन (सरिता) से उन की दूरी भी बढ़ती गई.

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‘पापा, आज आप मेरे स्कूल में आना ‘पेरैंटटीचर’ मीटिंग है. मां तो एक कोने में खड़ी रहती हैं, किसी से बात भी नहीं करतीं. मेरी मैडम तो कई बार कह चुकी हैं कि अपने पापा को ले कर आया करो, तुम्हारी मम्मी तो कुछ समझती ही नहीं,’ रमा अपनी मां से शर्मिंदा थी क्योंकि उन को अंगरेजी बोलनी नहीं आती थी.

कमल बेटी को डांटने के बजाय हंसने लगे, ‘कितनी बार तो तुम्हारी मां से कहा है कि अंगरेजी सीख ले पर उसे फुरसत ही कहां है अपने बेकार के कामों से.’  ‘कौन से बेकार के काम. घर के काम क्या बेकार के होते हैं,’ वे सोचतीं, ‘जब घर में कोई भी नौकर नहीं था और पूरा परिवार साथ रहता था तब तो एक बार भी कमल ने नहीं कहा कि घर के काम बेकार के होते हैं और अब जब वे रसोईघर में जा कर कुछ भी करती हैं तो वह बेकार का काम है,’ लेकिन प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कहा.

उस दिन के बाद कमल ही बेटी रमा के स्कूल जाने लगे. पैसा आने के बाद कमल के रहनसहन में भी काफी बदलाव आ गया था. अब वे बड़ेबड़े लोेगों में उठनेबैठने लगे थे और चाहते थे कि पत्नी भी वैसा ही करे. पर उन को ऐसी महफिलों में जा कर अपनी और अपने कीमती वस्त्रों व गहनों की प्रदर्शनी करना अच्छा नहीं लगता था.  एक दिन दोनों कार से कहीं जा रहे थे. एक गरीब आदमी, जिस की दोनों टांगें बेकार थीं फिर भी वह मेहनत कर के कुछ बेच रहा था, उन की गाड़ी के पास आ कर रुक गया और उन से अपनी वस्तु खरीदने का आग्रह करने लगा. सरिता अपना पर्स खोल कर पैसे निकालने लगीं लेकिन कमल ने उन्हें डांट दिया, ‘क्या करती हो, यह सब इन का रोज का काम है. तुम को तो बस पर्स खोलने का बहाना चाहिए. चलो, गाड़ी के शीशे चढ़ाओ.’

उन का दिल भर आया और उन्हें अपना एक जन्मदिन याद आ गया. शादी के बाद जब उन का पहला जन्मदिन आया था. उन दिनों उन के पास गाड़ी नहीं थी. वे दोनों एक पुराने स्कूटर पर चला करते थे. वे लोग एक बेकरी से केक लेने गए थे. कमल के पास ज्यादा पैसे नहीं थे पर फिर भी उन्होंने एक केक लिया और एक फूलों का गुलदस्ता लेना चाहते थे. बेकरी के बाहर एक छोटी बच्ची खड़ी थी. ठंड के दिन थे. बच्ची ने पैरों में कुछ भी नहीं पहना था. ठंड से वह कांप रही थी. उस की हालत देख कर वे रो पड़ी थीं. कमल ने उन को रोते देखा तो फूलों का गुलदस्ता लेने के बजाय उस बच्ची को चप्पलें खरीद कर दे दीं. उस दिन उन को कमल सचमुच सच्चे हमसफर लगे थे. आज के और उस दिन के कमल में कितना फर्क आ गया है, इसे सिर्फ वे ही महसूस कर सकती थीं.

तब उन की आंखें भर गई थीं. उन्होंने कमल से छिपा कर अपनी आंखें पोंछ ली थीं.  सरिता की एक आदत थी कि वे ज्यादा बोलती नहीं थीं लेकिन मिलनसार थीं. उन के घर में जो भी आता था वे उस की खातिरदारी करने में भरोसा रखती थीं पर कमल को सिर्फ अपने स्तर वालों की खातिरदारी में ही विश्वास था. उन्हें लगता था कि एक पल या एक पैसा भी किसी के लिए व्यर्थ गंवाना नहीं चाहिए.

सरिता की वजह से दूरदूर के रिश्तेदार कमल के घर आते थे और उन की तारीफ भी करते थे. ‘सरिता भाभी तो खाना खिलाए बगैर कभी भी आने नहीं देती हैं’ या फिर ‘सरिता भाभी के घर जाओ तो लगता है जैसे वे हमारा ही इंतजार कर रही थीं’, ‘वे इतने अच्छे तरीके से सब से मिलती हैं’ आदि.  लेकिन उन की बेटी ही उन्हें कुछ नहीं समझती है. रमा ने कभी भी मां को अपना हमराज नहीं बनाया. वह तो सिर्फ अपने पापा की बेटी थी. इस में उस का कोई दोष नहीं है. उस के पैदा होने से पहले कमल के पास बहुत पैसा नहीं था लेकिन जिस दिन वह पैदा हुई उसी दिन कमल को एक बहुत बड़ा और्डर मिला था और उस के बाद तो उन के घर में पैसों की रेलमपेल शुरू हो गई.

कमल समझते थे कि यह सब उस की बेटी की वजह से ही हुआ है. इसलिए वे रमा को बहुत मानते थे. उस के मुंह से निकली हर बात पूरा करना अपना धर्म समझते थे. जिस से रमा जिद्दी हो गई थी. सरिता उस की हर जिद पूरी नहीं करती थी, जिस के चलते वह अपने पापा के ज्यादा नजदीक हो गई थी.  धीरेधीरे रमा अपनी ही मां से दूर होती गई. कमल हरदम रमा को सही और सरिता को गलत ठहराते थे. एक बार सरिता ने रमा को किसी गलत बात के लिए डांटा और समझाने की कोशिश की कि ससुराल में यह सब नहीं चलेगा तो कमल बोल पड़े, ‘हम रमा का ससुराल ही यहां ले आएंगे.’

उस के बाद तो सरिता ने रमा को कुछ भी कहना बंद कर दिया. कमल रमा की ससुराल अपने घर नहीं ला सके. हर लड़की की तरह उसे भी अपने घर जाना ही पड़ा. जब रमा ससुराल जा रही थी तो सब रो रहे थे. सरिता को भी दुख हो रहा था. बेटी ससुराल जा रही थी, रोना तो स्वाभाविक ही था.  सरिता को मन के किसी कोने में थोड़ी सी खुशी भी थी क्योंकि अब उन का घर उन का अपना बनने वाला था. अब शायद सरिता अपनी तरह अपने घर को चला सकती थीं. जब से वे इस घर में आई थीं कोई न कोई उन पर अपना हुक्म चलाता था. पहले सास का, ननद का, फिर बेटी का घर पर राज हो गया था, लेकिन अब वे अपना घर अपनी इच्छा से चलाना चाहती थीं.

रमा अपने घर में खुश थी. उस ने अपनी ससुराल में सब के साथ सामंजस्य बना लिया था. जिस बात की सरिता को सब से ज्यादा फिक्र थी वैसी समस्या नहीं खड़ी हुई. सरिता भी खुश थीं, अपना घर अपनी इच्छा से चला कर, लेकिन उन की खुशी में फिर से बाधा पड़ गई. रमा घर आई और कहने लगी, ‘पापा, मां तो बिलकुल अकेली पड़ गई हैं. अब भैया की शादी कर दो.’  सरिता चीख कर कहना चाहती थीं कि अभी नहीं, कुछ दिन तो मुझे जी लेने दो. पर प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कह पाईं और कुछ समय बाद रमा माला को ढूंढ़ लाई. माला उस के ससुराल के किसी रिश्तेदार की बेटी थी.

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माला बहुत अच्छी थी. बिलकुल आदर्श बहू, लेकिन ज्यादा मीठा भी सेहत को नुकसान देता है. इसलिए सरिता उस से भी कभीकभी कड़वी हो जाती थी. माला बहुत पढ़ीलिखी थी. वह सरिता की तरह घरघुस्सू नहीं थी. वह मोहित के साथ हर जगह जाती थी और बहुत अच्छी अंगरेजी भी बोल लेती थी, इसलिए मोहित को उसे अपने साथ हर जगह ले जाने में गर्व महसूस होता था. उस ने रमा को भी अपना बना लिया था. रमा उस की बहुत तारीफ करती थी, ‘मां, भाभी बहुत अच्छी हैं. मेरी पसंद की हैं इसलिए न.’

सरिता को हल्के रंग के कपड़े पसंद थे. आज तक वे सिर्फ कपड़ों के मामले में ही अपनी मालकिन थीं लेकिन यहां भी सेंध लग गई. माला सरिता को सलाह देने लगी, ‘मां, आप इतने फीके रंग मत पहना करें, शोख रंग पहनें. आप पर अच्छे लगेंगे.’  कमल कहते, ‘अपनी सास को कुछ मत कहो, वे सिर्फ हल्के रंग के कपड़े ही पहनती हैं. मैं ने कितनी बार कोशिश की थी इसे गहरे रंग के कपड़े पहनाने की पर इसे तो वे पसंद ही नहीं हैं.’

‘कब की थी कोशिश कमल,’ सरिता कहना चाहती थीं, ‘एक बार कह कर तो देखते. मैं कैसे आप के रंग में रंग जाती,’ पर बहू के सामने कुछ नहीं बोलीं.

आज सुबह रमा को घर आना था. उन्होंने रसोई में जा कर कुछ बनाना चाहा. पर माला आ गई, ‘मां, लाइए मैं बना देती हूं.’

‘नहीं, मैं बना लूंगी.’

‘ठीक है. मैं आप की मदद कर देती हूं.’

उन्होंने प्यार से बहू से कहा, ‘नहीं माला, आज मेरा मन कर रहा है तुम सब के लिए कुछ बनाने का. तुम जाओ, मैं बना लूंगी.’

माला चली गई. पता नहीं क्यों खाना बनाते समय उन्हें जोर से खांसी आ गई. मोहित वहां से गुजर रहा था. वह मां को अंदर ले कर आया और माला को डांटने के लिए अपने कमरे में चला गया. सरिता उस के पीछे जाने लगीं ताकि उसे समझा सकें कि इस में माला का कोई दोष नहीं है. वे कमरे के पास गईं तो देखा दोनों भाईबहन बैठे हुए हैं. रमा आ चुकी थी और उन से मिलने के बजाय पहले अपनी भाभी से मिलने चली गई थी.

उन्होंने जैसे ही अपने कदम आगे बढ़ाए, रमा की आवाज उन के कान में पड़ी, ‘मां को भी पता नहीं क्या जरूरत थी किचन में जाने की.’

तभी मोहित बोल पड़ा, ‘पता नहीं क्यों, मां समझती नहीं हैं, हर वक्त घर में कुछ न कुछ करती रहती हैं जिस से घर में कलह बढ़ती है, मेरे और माला के बीच जो खटपट होती है उस का कारण मां ही होती हैं.’

‘क्या मैं माला और मोहित के बीच कलह का कारण हूं,’ सरिता सोचती ही रह गईं.

तभी माला की अवाज सुनाई पड़ी, ‘मैं तो हर वक्त मां का खयाल रखती हूं पर पता नहीं क्यों, मां को तो जैसे मैं अच्छी ही नहीं लगती हूं. अभी भी तो मैं ने कितना कहा मां से कि मैं करती हूं पर वे मुझे करने दें तब न.’

‘मैं समझती हूं, भाभी. मां शुरू से ही ऐसी हैं,’ रमा की आवाज आई.

‘मां को तो बेटी समझ नहीं पाई, भाभी क्या समझेगी,’ सरिता चीखना चाहती थीं पर आवाज जैसे गले में ही दब गई.

‘अच्छा, तुम चिंता मत करो, मैं समझाऊंगा मां को,’ यह मोहित की आवाज थी.

‘कभी मां की भी इतनी चिंता करनी थी बेटे,’ कहना चाहा  सरिता ने पर आदत के अनुसार फिर से चुप ही रहीं.

‘मैं देखती हूं मां को, कहीं ज्यादा तबीयत तो खराब नहीं है,’ माला बोली.

‘जब अपने ही मुझे नहीं समझ रहे तो तू क्या समझेगी जिसे इस घर में आए कुछ ही समय हुआ है,’ सरिता के मन ने कहा.

इधर, आसमान में बिजली के कड़कने की तेज आवाज आई तो वे खयालों की दुनिया से बाहर आ गईं. दरअसल, दोपहर का खाना खाने के बाद जब वे बाजार जाने के लिए घर से निकली थीं तो सिर्फ बादल थे पर जब जोर से बरसात होने लगी तो वे एक बारजे के नीचे खड़ी हो गई थीं. और अब फिर सोचने लगीं कि अगर वे भीग कर घर जाएंगी तो सब क्या कहेंगे? रमा अपनी आदत के अनुसार कहेगी, ‘मां को बस, भीगने का बहाना चाहिए.’

कमल कहेंगे, ‘कितनी बार कहा है कि गाड़ी से जाया करो पर नहीं’.  मोहित कहेगा, ‘मां, मुझे कह दिया होता, मैं आप को लेने पहुंच जाता.’

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बहू कहेगी, ‘मां, कम से कम छाता तो ले ही जातीं.’

सरिता ने सारे खयाल मन से अंतत: निकाल ही दिए और भीगते हुए अकेली ही घर की तरफ चल पड़ीं.

कामकाजी मांओं के लिए औनलाइन पढ़ाई का चैलेंज

आजकल कोविड-19 की वजह से बच्चों के स्कूल बंद हैं और उन के ऑनलाइन क्लासेज चल रहे हैं. इधर कामकाजी महिलाओं को अपने ऑफिस के काम भी घर पर करने होते हैं. पहले मांएं बच्चों को स्कूल या खेलने भेज कर चैन से अपना काम करती थीं मगर अब हर समय बच्चे घर पर होते हैं. कामकाजी माँओं के लिए अपने काम के साथसाथ बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज पर नजर रखना आसान नहीं होता. वे न तो अपना काम छोड़ सकती हैं और न बच्चों की पढ़ाई के प्रति ही लापरवाह हो सकती हैं. नतीजा यह होता है कि दोनों के बीच फंस सी जाती हैं.

आइए जानते हैं कामकाजी महिलाओं के लिए ऑनलाइन पढ़ाई की क्या चुनौतियां हैं और उन से कैसे निपटा जा सकता है,

1.सब से पहली चुनौती तो यह आती है कि मां अपने ऑफिस का काम करे या बच्चे की ऑनलाइन पढ़ाई ठीक चल रही है या नहीं इस पर नजर रखे.

2.कई बार बच्चे पढ़ाई कम और दूसरे साइट्स खोल कर ज्यादा बैठ जाते हैं. वे लैपटॉप या फोन पर गलत चीजें देख सकते हैं. उन का मन एकाग्र नहीं होता और कई बार तो वे ऑनलाइन क्लास बंक कर के या क्लास खत्म कर के गेम्स खेलने लग जाते हैं.

3.ऑनलाइन क्लासेज के दौरान बच्चों की आंखों पर भी असर पड़ता है. लाइटिंग आदि की सही व्यवस्था न हो या क्लासेज लंबी चलें तो उन्हें तकलीफ हो सकती है.

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4.ऑनलाइन क्लास के लिए घर में नेटवर्क प्रॉब्लम न होना भी जरूरी है. साथ ही कई दफा यह समस्या भी आ जाती है कि घर में लैपटॉप और स्मार्ट फ़ोन की संख्या कम होती है जब कि वर्क फ्रॉम होम और ऑनलाइन क्लासेस करने वाले सदस्यों की संख्या ज्यादा हो जाती है. ऐसे में महिला को सब का ख़याल रखना पड़ता है.

5.बच्चों की क्लासेज़ और अपने ऑफिस के काम के साथ घर के काम निपटाना मां के लिए एक चुनौती भरा काम होता है.

इस संदर्भ में किंडरपास की फाउंडर शिरीन सुल्ताना से विस्तार में बातचीत हुई. उन के सुझाये कुछ उपाय निम्न हैं,

1.बच्चों का ध्यान भटकने से बचाएं

बच्चों का ध्यान न भटके इस के लिए मां को पेरेंटिंग कंट्रोल फीचर्स अपनाने होंगे. आप लैपटॉप या मोबाइल की सेटिंग्स में कुछ परिवर्तन कर बच्चों को गलत साइट या गेम ओवरडोज से बचा सकती हैं.

सब से पहले तो आप जिन साइट्स या गेम्स से बच्चों को दूर रखना चाहती हैं उन्हें ब्लॉक कर दें. सर्च इंजन जैसे गूगल, बिंग आदि के प्रिडिक्टिव टेस्ट का ऑप्शन बंद कर दें यानि इन में सर्च करते समय ऑटो सजेशन का फीचर ऑन न हो और बच्चे सर्च करते समय कुछ और न देखने लग जाएं. बच्चे छोटे हैं तो आप गूगल के बजाय बच्चों को kiddle.co सर्च इंजन का प्रयोग करना सिखाएं. यह पूरी तरह सुरक्षित है. डिफॉल्ट में kiddle.co लगा दें.
इसी तरह कोई लिंक वगैरह यूट्यूब के बजाय बच्चों को safetube.net पर खोलने की आदत डलवाएं. इस में कोई गलत कंटेंट नहीं होता.

बीचबीच में अपने काम से ब्रेक ले कर बच्चों पर नजर रखती रहें. वे क्या पढ़ रहे हैं और कितना समझ रहे हैं इस पर गौर करें. लैपटॉप, फोन आदि की हिस्ट्री चेक करती रहें कि बच्चे ने कहीं कोई गलत साइट तो नहीं खोली थी. बच्चे को पहले से ही यह बात समझा कर रखें कि गलत चीजों से दूर रहें. गलत लिंक ओपन न करें और उन्हें फॉरवार्ड भी न करें. इस से वायरस आ सकते हैं दिमाग में भी और लैपटॉप/फोन में भी. उन्हें समझाएं कि अपनी प्रिवेसी कैसे कायम रखी जा सकती है.

2.घर में बनाएं अलग वर्कस्पेस

अपने काम के लिए और बच्चों की पढ़ाई के लिए सोच-समझ कर जगह तय करें. इस स्थान पर अच्छी रोशनी हो ताकि बच्चे एकाग्रता के साथ पढ़ सकें. घर में उन्हें क्लासरूम जैसा अहसास हो. यह जगह बच्चे के सोने, खेलने के स्थान से दूर हो. इस के आसपास खिलौने आदि न रहें. सही माहौल में बच्चे जल्द ही ढल जाएंगे और इस स्थान पर क्लासरूम जैसा अनुभव पा सकेंगे.

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3.डिवाइस करें तैयार

औनलाईन लर्निंग ठीक से जारी रहे इस के लिए वायरलैस कनेक्शन होना ज़रूरी है. ऐसा कनेक्शन चुनें जिस का बैण्डविड्थ आप के काम और बच्चों की पढ़ाई दोनों के लिए उपयुक्त हो . उचित स्क्रीन चुनें ताकि टेक्स्ट देखते समय आंखों पर ज़ोर न पड़े. अगर आप का काम और बच्चे की औनलाईन कक्षा का समय एक ही है तो सुनिश्चित करें कि आडियो सिस्टम में किसी तरह की रूकावट न आए. इस के लिए आप हैडफोन्स का इस्तेमाल कर सकती हैं.

4.दिनचर्या और अनुशासन

लाॅकडाउन केे कारण लोगों की दिनचर्या बदल गई है. चीजें धीमी गति से बढ़ रही हैं. मगर घर में भी स्कूल जैसी दिनचर्या बना कर आप बच्चे के जीवन को व्यवस्थित बना सकती हैं. बच्चों को समय पर जगाएं, क्लास का समय होने से पहले नाश्ता दें, दिन के टाईमटेबल के अनुसार उन की किताबें तैयार करें. सुनिश्चित करें कि क्लास के दौरान बच्चे बारबार ब्रेक न लें. शाम में कुछ समय होमवर्क के लिए तय करें. इस तरह का अनुशासन बनाए रखना आसान नहीं है लेकिन अगर इसे आदत बना लिया जाए तो जीवन आसान हो जाएगा.

5.ब्रेक के लिए समय निर्धारित करें

बच्चे खासकर छोटे बच्चों की एकाग्रता 25 मिनट से ज़्यादा नहीं रहती. बच्चों से कहें कि ब्रेक के दौरान किसी पालतू जानवर के साथ खेलें, थोड़ा चलेंफिरें या परिवार के सदस्यों के बीच समय बिताएं. इसतरह का छोटा सा ब्रेक आप को और आप के बच्चे के दिमाग को तरोताज़ा कर देता है और चीज़ें व्यवस्थित रूप से चलती रहती हैं.

6.अपने बच्चे की ज़रूरत को समझें

हर बच्चे के सीखने का तरीका अलग होता है. कुछ बच्चों के लिए औनलाईन क्लासेज़ आसान हैं तो वहीं कुछ को इस के लिए ज़्यादा मार्गदर्शन की आवश्यकता है. प्ले स्कूल या छोटी कक्षाओं के बच्चों के लिए सुबह क्लास शुरू होते ही पूरे दिन के विषयों की जानकारी दे दी जाती है. कोशिश करें कि आप इस समय बच्चे के साथ रहें. इस से आप बच्चे की ज़रूरत के अनुसार पूरे दिन के लिए तैयार रहेंगी. आप अपने बच्चे के लर्निंग के तरीके को सब से अच्छी तरह जानती हैं. बच्चे के पाठ को छोटेछोटे हिस्सों में बांटें और उस के पढ़ने के लिए ऐसा समय तय करें जब बच्चा सब से ज़्यादा ध्यान दे सके.

7.सुनिश्चित करें कि आंखों पर तनाव न बढ़े

आजकल ज़्यादातर मातापिता बच्चों के स्क्रीन टाईम को लेकर परेशान हैं. बच्चों में सिरदर्द, आंखों पर दबाव की शिकायत बढ रही है. इस के लिए 20 :20: 20 आसान नियम है. हर 20 मिनट के बाद 20 सैकण्ड के लिए 20 फीट दूरी पर स्थित किसी चीज़ को घूरें.

ऑनलाइन पढ़ाई का असर बच्चों की आंखों पर न पड़े इस के लिए आप बच्चे की स्क्रीनटाइम लिमिट कर दें. पढ़ाई के बाद तुरंत टीवी या वीडियो में न उलझने दें. उन्हें बीचबीच में स्क्रीन से दूर करते रहे इस के लिए आप खुद बच्चों के साथ कैरम ,चेस, बैडमिंटन जैसे खेल खेल सकती हैं या उन्हें बाहर दूसरे बच्चों के साथ खेलने के लिए भेज सकती हैं. आप रोज बच्चे को एक घंटे कोई किताब पढ़ कर सुना सकती हैं या उसे खुद पढ़ने के लिए बोलें. वीडियो कॉल पर उन की रिश्तेदारों से बात कराएं या ग्रीटिंग कार्ड्स, पेंटिंग आदि बनाने को कहें. आप बच्चे की दोस्त बन कर रहे हैं न कि स्ट्रिक्ट पैरेंट बन कर.

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बच्चे को आई एक्सरसाइज करने या थोड़ी थोड़ी देर पार्क में घूमने के लिए भी बोलें. आप बीचबीच में ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान बच्चे की परफॉर्मेंस पर नजर रखती रहें. क्लास खत्म होने के बाद उन को बैठा कर पूछे कि आप आज क्याक्या पढ़ाया गया और किस विषय में उसे कुछ समझने में कठिनाई महसूस हुई. आप बच्चों की डेली बेसिस पर रिविज़न कराएं न कि वीकली बेसिस पर. बच्चों को टीचर या दोस्तों के आगे कभी न डांटे मगर क्लास के बाद उसे समझाने से न चूकें कि क्या गलत है और क्या सही.

अध्यापकों, अभिभावकों और बच्चों के लिए घर से पढ़ाई, लर्निंग का एक नया तरीका बन चुका है. इसे प्रभावी बनाने के लिए सकारात्मक रहें और धैर्य रखें. एक साथ मिल कर आप स्थिति को अधिक अनुकूल बना सकते हैं.

मानसून और कोविड-19 महामारी में त्वचा का रखें खास ख्याल

डॉ. विदुषी जैन, डर्मालिंक्स, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

मानसून की रिमझिम फुहारों से गर्मी में झुलसी स्किन को आराम जरूर मिलता है लेकिन नम और उमस भरा यह मौसम स्किन के छिद्रों को बंद कर स्किन संबंधी कई समस्याओं को ट्रिगर कर सकता है. बारिश में भीगने से स्किन संबंधित कई समस्याओं का खतरा भी बढ़ जाता है. इस साल तो हमें मानसून में दुगनी सावधानी रखनी चाहिए क्योंकि कोविड-19 के कई लक्षण स्किन की विभिन्न समस्याओं के रूप में भी सामने आ रहे हैं. तो जानिए मानसून में स्किन से संबंधित प्रमुख समस्याएं कौन-कौन सी हैं, इन से कैसे बचें और स्किन में दिखाई देने वाले कौन से लक्षण कोरोना संक्रमण का संकेत हैं.

मानसून में स्किन से संबंधित प्रमुख समस्याएं

मानसून में वातावरण में उमस और नमी बढ़ने से वाइरस, बैक्टीरिया और फंगस की गतिविधियां तेज हो जाती हैं जिस से विभिन्न प्रकार की एलर्जी और संक्रमणों की आशंका बढ़ जाती है.

फंगल इंफेक्शन

मानसून में यह स्किन की सब से सामान्य समस्या है जो अक्सर गीले कपड़ों और पसीने के कारण होती है. बगलों, स्तनों के नीचे की स्किन और पैरों की उंगलियों के बीच यह संक्रमण सब से अधिक होता है.

एथलीट फुट

इसमें पैरों की उंगलियों के बीच में दाद हो जाता है. यह मानसून में होने वाला सबसे सामान्य फंगस का संक्रमण है. वातावरण में आद्रता अधिक होने के कारण पसीना जल्दी नहीं सूख पाता जिस से फंगस विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है. इस से स्किन में तेज खुजली चलती है और वो लाल पड़ जाती है.

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मुंहासे

मानसून में वातावरण में उमस बढ़ने से स्किन की तेल ग्रंथियां अधिक सक्रिय हो जाती हैं. इस से स्किन पर तेल और गंदगी अधिक मात्रा में जमा होने के कारण रोमछिद्र बंद होने का खतरा बढ़ जाता है. गंदी स्किन बैक्टीरिया को भी अधिक मात्रा में आकर्षित करती है जिससे स्किन पर मुंहासे और फोड़े-फुंसी निकल सकते हैं.

एक्जिमा

एक्जिमा में स्किन लाल हो जाती है, सूजन आ जाती है और उस में खुजली होने लगती है. जिन लोगों की स्किन संवेदनशील होती है उन्हें अक्सर मानसून में इस समस्या का सामना करना पड़ता है.

स्किन की ये समस्याएं हो सकती हैं कोविड-19 के लक्षण

कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण कई लोगों में स्किन से संबंधित कुछ ऐसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं कि कोई सोच नहीं सकता कि उसमें यह लक्षण कोरोना के संक्रमण के कारण हैं. निम्न लक्षण दिखें तो इन्हें स्किन संबंधी सामान्य समस्याएं समझकर नज़रअंदाज़ न करें. ये आप के कोरोना संक्रमित होने का संकेत हो सकते हैं.

कोरोना फुट

कोरोना के संक्रमण के कारण कोरोना फुट की समस्या भी हो रही है. इस में पैरों में रैशेज़ और चकते पड़ जाना, उनमें दर्द होना, एलर्जी हो जाना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. कोरोना फुट के लक्षण बच्चों में अधिक दिखाई दे रहे हैं.

कोविड टोज़

अमेरिकन एकेडमी ऑफ डर्मेटोलॉजी के अनुसार अभी पिछले कुछ दिनों से कोविड टोज़ के मामले सामने आ रहे हैं. यह कोरोना वायरस के संक्रमण का सब से नवीनतम संकेत है. इस में पैरों की उंगलियां सूज कर लाल और जामुनी रंग की हो जाती हैं.

स्किन रैशेज़

इटली में हुए एक अध्ययन के अनुसार, कोरोना से संक्रमित 20 प्रतिशत लोगों में स्किन से संबंधित लक्षण दिखाई दे रहे हैं. इन में स्किन रैशेज़ प्रमुख हैं. हमारा शरीर वायरस के संक्रमण के प्रति जो प्रतिक्रिया देता है उस के कारण स्किन रैशेज़ की समस्या ट्रिगर हो सकती है.

मानसून में स्किन के लिए जरूरी टिप्स

  • चेहरे को दिन में 3-4 बार साफ पानी से जरूर धोएं. इस से अतरिक्त तेल और गंदगी निकल जाएगी जो रोमछिद्रों को बंद कर मुंहासों की समस्या को ट्रिगर कर सकती है.
  • इस मौसम में ज्यादा प्यास नहीं लगती,लेकिन शरीर में जल का स्तर बनाए रखने के लिए रोज़ाना 8-10 गिलास पानी जरूर पिएं.
  • पचने में आसान और पोषक भोजन का सेवन करें. अपने डाइट चार्ट में साबुत अनाजों, फलों और सब्जियों को अधिक मात्रा में शामिल करें.
  • कैफीन युक्त पेय पदार्थों जैसे चाय-कॉफी और तले-भुने खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें. अधिक मात्रा में इन के सेवन से शरीर में हीट और टॉक्सिन की मात्रा बढ़ती है, जिस से स्किन बेजान और अनाकर्षक हो जाती है.
  • मानसून में अपने कपड़े और दूसरी निजी चीजें किसी से साझा न करें क्योंकि स्किन की कुछ समस्याएं संक्रामक होती हैं.
  • इस मौसम में खुले फुटवेयर जैसे चप्पल या सैंडल पहने. जूतों में पानी भरने के कारण फंगल इंफेक्शन और दूसरी समस्याएं होने का खतरा बढ़ सकता है.
  • हैंड हाइजीन का विशेष ध्यान रखें. जब भी जरूरी हो साबुन पानी से हाथ धो लें या सेनेटाइज़र से हाथ साफ करें.
  • ऑइल के बजाय वॉटर बेस्ड मेकअप प्रोडक्ट को चुनें ताकि आप की स्किन सांस ले सके.

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यह जानना भी है जरूरी

इस मौसम में स्किन एलर्जी होने का एक प्रमुख कारण यह है कि एक बार जब खुजली शुरू हो जाती है तो लोग लगातार खुजालते रहते हैं जिस से स्किन की उपरी परत क्षतिग्रस्त हो जाती है. यह बैक्टीरिया और फंगस का ब्रीडिंग ग्राउंड बन जाती है. अगर खुजली अधिक हो रही हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं.

फैमिली के लिए बनाएं टेस्टी दही वाले सोया कोफ्ते

बरसात के मौसम में दही वाले सोया कोफ्ते जरूर ट्राय करें. बेहद ही स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होते हैं ये कोफ्ते.

सामग्री

1 बड़ा चम्मच बेसन

1/2 कप सोया ग्रैन्यूल्स

1 उबला आलू

1 छोटा चम्मच अदरक कसा हुआ

1 हरीमिर्च कटी हुई

तलने के लिए तेल

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2 टमाटर कटे हुए

1/4 कप दही

1 चुटकी हींग

1/4 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

1/4 छोटा चम्मच गरममसाला

थोड़ी सी धनियापत्ती कटी हुई

1 बड़ा चम्मच घी

1 छोटा चम्मच जीरा

नमक स्वादानुसार

विधि

कड़ाही में घी गरम कर जीरा व हींग डालें. फिर हलदी, धनिया व मिर्च पाउडर डालें. टमाटरों को मिक्सी में पीस कर डालें और धीमी आंच पर भूनें.

सोया ग्रैन्यूल्स को गरम पानी में 1-2 मिनट भिगोएं और फिर पानी निचोड़ लें. इस में नमक, आलू मैश कर, अदरक, हरीमिर्च व बेसन मिला कर छोटीछोटी बौल्स बनाएं और गरम तेल में तल लें.

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टमाटर भुनने पर दही डाल कर थोड़ी देर भूनें औरा इन बौल्स को टमाटर में मिलाएं. 1 कप पानी डाल कर 2-3 मिनट तक उबलने दें. धनियापत्ती से सजा कर परोसें.

व्यंजन सहयोग : अनुपमा गुप्ता

टीस: रहिला से शादी न करने के पीछे क्या थी रसूल की वजह?

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