Freshwrapp Aluminium Foil: जो रखे आपको बीमारियों से दूर

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आज के समय में किसी भी कीमत पर हाइजीन के साथ समझौता नहीं किया जा सकता, क्योंकि एक तो महामारी का दौर और दूसरा मौसमी बीमारियां भी सेहत खराब कर सकती हैं. खासकर ये डर महिलाओं में सबसे ज्यादा देखने को मिलता है. वे नहीं चाहतीं कि हाइजीन से समझौता करने के कारण उनका परिवार और उनके बच्चे किसी भी बीमारी की गिरफ्त में आएं . परिवार की खुशहाली का आधा राज परिवार के स्वस्थ रहने में छिपा रहता है. ऐसे में फूड हाइजीन , फूड सेफ्टी और फूड पैकिंग जैसी बातों का ध्यान रखकर आप खुद को व अपने परिवार को बीमारियों से दूर रख सकते हैं. तो आइए जानते हैं उन बातों के बारे में-

फूड हाइजीन

वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार , दुनिया में हर साल 10 में से एक व्यक्ति दूषित भोजन खाने की वजह से बीमार पड़ जाता है. और दूषित भोजन की वजह से हर साल 4 लाख के करीब लोगों की मौत होती है. यही नहीं बल्कि हर साल लाखों छोटे बच्चे खाद्य संबंधित बीमारियों की वजह से मरते हैं. जोकि एक बड़ा खतरा है.

फूड पैकिंग हो सही

आज न सिर्फ महिलाएं खाना बनाने के समय हाइजीन का ध्यान रखती हैं, बल्कि उसकी पैकिंग पर भी विशेष ध्यान देती हैं ताकि खाना फ्रेश, सुरक्षित व गरम भी रहे. तभी तो पिछले कई सालों से एल्युमीनियम फॉयल की मांग बढ़ती जा रही है, क्योंकि प्लास्टिक को पर्यावरण के लिए सुरक्षित जो नहीं माना जाता. जबकि खाने को सुरक्षित व फ्रेश रखने के लिए एल्युमीनियम फॉयल बेस्ट है, तभी तो लोगों की पसंद बनता जा रहा है.

बेस्ट है फ्रैशरैप

जब बात हो एल्युमीनियम फॉयल की और फ्रैशरैप का जिक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता, क्योंकि अपनी खूबियों के कारण ये खास जो है. ये बहुत ही आसानी से रीसाइकिल होने के साथ अगर इसे वैल्यू फॉर मनी कहा जाए तो गलत नहीं होगा. बता दें कि ये अब लोगों की पसंद बनता जा रहा है. तभी तो आज मिलियंस के लगभग किचन में फ्रैशरैप पहुंच चुका है. 2020 में आदित्य बिरला ग्रुप की सहायक कंपनी हिंडालको के एल्युमीनियम फॉयल ब्रांड फ्रैशरैप को भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के अनुसार, भारतीय मानक 15392:2003 एल्युमीनियम खाद्य पैकेजिंग सामग्री के अनुसार प्रमाण प्राप्त हुआ. ये पहला ऐसा प्लेयर है, जिसे बीआईएस अनुपालन सर्टिफिकेशन हासिल हुआ है. जिसके कारण इस ब्रांड ने इंडियन फूड ग्रेड एल्युमीनियम फॉयल मार्केट में क्रांति लाने का काम किया है.

क्या हैं खूबियां

– पैकिंग में आसान- एल्युमीनियम फॉयल में खाने को पैक करना बहुत आसान है. बस उसमें खाने को फोल्ड किया और खाना आसानी से पैक हो जाता है.

– बैक्टीरिया से बचाए – एल्युमीनियम फॉयल खाने को बैक्टीरिया के संपर्क में आने से बचाता है.

– खाने को रखे फ्रेश – एल्युमीनियम फॉयल गर्मी व प्रकाश के खिलाफ अवरोध प्रदान करने का काम करता है. इसलिए इसको फूड पैकेजिंग में इस्तेमाल किया जाता है. और ये लंबे समय तक खाने को फ्रेश रखने का काम करता है.

– खराब होने से बचाए – इसमें खाना लंबे समय तक फ्रेश रहता है, क्योंकि ये नमी को फॉयल के बाहर नहीं निकलने देता. तो फिर खाने की फ्रेशनेस, हाइजीन व उसे सुरक्षित रखने के लिए चुनें फ्रैशरैप एल्युमीनियम फॉयल . जो रखे आपका व आप के अपनों का खयाल.

वर्जिनिटी शरीर की नहीं ग्रसित मानसिकता की उपज

इस साल जनवरी में मेरा रिश्तेदार की शादी में गुजरात जाना हुआ. वहां जाने के लिए मैंने हमेशा की तरह ट्रेन का सफ़र चुना. ट्रेन का सफ़र मुझे हमेशा रोमांचित करता है खासकर तब जब नयी जगह जाना हो. सरसराती हवाएं, दूर दूर तक खेतों में पड़ती नजर, उगता-डूबता सूरज यह सब चीजें अच्छा अनुभव कराती हैं. ट्रेन ने जैसे ही दिल्ली पार की तो मैंने सफ़र में समय काटने के लिए जेन ऑस्टिन की चर्चित नॉवेल प्राइड एंड प्रेज्यूडिस पढने के लिए निकाली. जैसे ही कुछ देर तक पढ़ा, कि सामने वाली सीट पर दो लड़के, यूँही कोई 20-22 के करीब, आपस में बात कर रहे थे और उनकी आवाज मेरे कानों तक आने लगी. उनकी बातों में प्रमुखता से सेक्स, ठरक, वर्जिनिटी वे कुछ शब्द थे जो किताब से मेरा ध्यान हटा रहे थे.

एक लड़का दुसरे को कहता “शादी ऐसी लड़की से होनी चाहिए जो वर्जिन हो. इससे लड़की की लोयालिटी का पता चलता है कि वह आपके प्रति कितनी ईमानदार रहेगी. फिर ‘माल’ भी तो नया रहता है.” फिर इसी बात को और भी लम्पटई शब्दों में दूसरा लड़का विस्तार देने लगा. उन दोनों की बातों में वह सब चीजें थी जो उस उम्र के युवा किसी लड़की के योवन को लेकर अनंत कल्पनाओं में बह जाते हैं. खैर, उनकी सेक्स को लेकर चल रही अधकचरी समझ मुझे इतनी समस्या में नहीं डाल रही थी, जितनी इस जेनरेशन के लड़कों में आज भी खुद के लिए तमाम आजाद यौनिक इच्छाओं और महिलाओं की योनिकता पर नियंत्रण रखने वाली पुरानी सोच से समस्या लग रही थी. यह सब उसी प्रकार से था, कि लड़का आजादी से अपनी सेक्सुअल प्लेजर का शुरू से मजा ले लेना चाहता है जिसके बारे में बताते हुए वह प्राउड महसूस भी करता है और उसके साथ उठने बैठने वाले उसके साथी उसे स्टड, प्ले बॉय का टेग लगा कर प्रोत्साहन करते हैं, वहीँ लड़की अगर किसी लड़के के साथ उठती बैठती है तो उसे रंडी, या स्लट कह देते हैं.

“पढ़ालिखा” समाज

हमारे देश में आज भी लड़का या उसका परिवार शादी करने से पहले इस बात को लेकर संतुष्ट होना चाहता है कि लड़की वर्जिन अथवा कथित तौर पर ‘पवित्र’ हो. ऐसा नहीं है कि यह कोई गाये बगाहे आया मामला है, इस प्रकार के अनेकों उदाहरण मिल जाते हैं, जहां पढ़े-लिखे होने के बावजूद भी ज्यादातर लड़के वर्जिन दुल्हन ही तलाशते हैं. तमाम मेट्रोमोनिअल साइटों पर सीधे सीधे वर्जिन या कुंवारी कन्या का ख़ासा विवरण वाला कालम होता है जिसे खासकर अखबार या सोशल मीडिया पर पढने वाला तबका बड़े चाव से देखता भी है.

पिछले साल की बात है कलकत्ता में कनक सरकार नाम के 20 साल से कार्यरत एक सीनियर प्रोफेसर ने फेसबुक में एक पोस्ट डाली जिसमें उन्होंने शादी के लिए वर्जिन दुल्हन को शादी के लिए जस्टिफाई किया था जिसकी तुलना उन्होंने कोल्ड्रिंक की बोतल और बिस्किट की पैकेट से किया था. उन्होंने लिखा “वर्जिन ब्राइड- क्यों नहीं? वर्जिन लड़की सील लगी बोतल या पैकेट की तरह होती है. क्या तुम सील टूटी बोतल या पैकेट खरीदना चाहोगे? नहीं न.” पोस्ट में आगे उन्होंने लिखा “वर्जिन लड़की अपने भीतर वैल्यू, कल्चर, सेक्सुअल हाय्जीन समेटे रखती है. वर्जिन लड़की का मतलब घर में परि होने का एहसास है.” यानी उन्होंने किसी लड़की की तुलना बड़े शर्मनाक तरीके से बेजान बोतल और बिस्किट के पैकेट से कर दी.

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इसी तरह नासिक से भी ऐसी घटना सामने आई थी जब एक दुल्हे को संदेह हुआ कि उसकी पत्नी वर्जिन नहीं है उसने टेस्ट कराया और इस कारण उसने अपनी पत्नी को ही छोड़ दिया. आज भी अगर आम सर्वे करवा दिया जाए तो यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि अधिकतर लड़के अपनी पत्नी के रूप में ऐसी दुल्हन चाहेंगे जिसका हाय्मन यानी झिल्ली टूटी नहीं हो. आज भी ग्रामीण इलाकों के बड़े हिस्से में वर्जिनिटी टेस्ट कराने पर विश्वास किया जाता है. जिसके तमाम उदाहरण हमारे आसपास दिखाई दे जाते हैं, या खुद में भी.

रस्में रिवाज की जड़ें

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वर्जिनिटी को महिला योग्यता में सबसे सम्पूर्ण देखा जाता है. इसका सीधा जुड़ाव शुद्धता से समझा जाता है. ऐसी विकृति घर से ही शुरू हो जाती है जब घर में बड़े लोग घर की बेटी को सलीके से रहने की ट्रेनिंग दे रहे होते हैं. जहां माँबाप बातबात पर बेटी को ‘नाक न कटाने’ के लिए अपील करते रहते है जिसका मतलब घर की इज्जत से होता है और घर की इज्जत तो लड़की की वेजाइना में ही समाई होती है. इसके लिए कई तरह की रोकाटाकी कि कपडे ठीक से पहनो, छाती पर चुन्नी ओढो, ज्यादा हंसो मत, बाहर मत घूमों इत्यादि सिर्फ इसलिए ही होता है कि उसकी तथाकथित वर्जिनिटी को बचाया जा सके. महिलाओं से एस्पेक्ट किया जाता है कि अगर वह अच्छी लड़की बनना चाहती है तो उन्हें शादी तक वर्जिन रहना ही पड़ेगा. जाहिर सी बात है हम पुरुष प्रधान समाज में रहते हैं. जहां महिला को संपत्ति के तौर पर देखा जाता है. जहां दूल्हा शादी के दिन दुल्हन के गले में सिन्दूर या मंगलशूत्र ही इसलिए बांधता है ताकि आधिकारिक तौर पर क्लेम कर सके कि उसके शरीर पर सिर्फ उसी का हक है.

शादी वाली रात लड़कियों से उम्मीद लगाईं जाती है कि उसी रात उसकी झिल्ली टूटेगी और वेजाइना से खून गिरेगा. इसे लड़की की इमानदारी, आचरण, चालचलन, और घर की परवरिश के तौर पर समझा जाता है. जिसका पता लगाने के लिए आज भी कई तरह की अवैज्ञानिक और अतार्किक रस्में प्रैक्टिस में लायी जाती हैं. जैंसे- ‘पानी की धीज’, जिसमें लड़की को सांस रोक कर पानी में तब तक डुबाए रखा जाता है जब तक पति द्वारा 100 कदम न पुरे हो जाएं. उसी प्रकार, कुछ इलाकों में ‘अग्निपरीक्षा’ की रस्म होती है जिसमें गरम जलते रोड को हाथ में रखना पड़ता है. अगर कोई इसे करने में असफल हो जाए तो उससे जबरन उसके कथित पार्टनर के नाम की उगलवाते हैं और उस लड़के या लड़की के परिवार वालों से पैसों की भरपाई की जाती है.

ऐसे ही एक रस्म होती है ‘कुकरी की रस्म’, जिसमें सुहागरात वाले दिन बेड पर सफ़ेद चादर बिछाई जाती है. अगले दिन घर के बड़े सदस्य आकर चादर में लगे खून के दाग देख कर लड़की के वर्जिन होने का विश्वास हांसिल कर पाते हैं. ऐसे ही एक और आम रस्म जिसे टूफिंगर के नाम से भी जाना जाता है. जिसमें गांव की दाई या घर की कोई बड़ी महिला लड़की की वेजाइना में ऊँगली फेर कर अंग के कसावट अथवा झिल्ली की जांच करती है. आमतौर पर टूफिंगर का तरीका रेप विक्टिम की जांच के लिए यूज़ किया जाता था जिसकी आलोचना ह्यूमन राईट एक्टिविस्ट ने की थी और सुप्रीम कोर्ट ने भी 2013 में इस पर आपत्ति जताते हुए अवैज्ञानिक कहा था. इसी प्रकार गुजरात हाई कोर्ट ने भी इसे लेकर विशेष टिप्पणी की थी जिसमें इस टेस्ट को रेप विक्टिम की अधिकारों का हनन मन गया.

धर्मपाखंड का बुना जाल

किन्तु ऐसा नहीं कि महिला के खिलाफ इस प्रकार की रस्में यूँही बनती चली गई, बल्कि इसके पीछे धर्मकर्म के पाखण्ड ने जितना योगदान दिया उतना शायद ही किसी और चीज ने दिया होगा. साल 2014 में दिल्ली सेशन कोर्ट के न्यायधीश ने अपने जजमेंट में कहा था कि “विवाह्पूर्ण यौन संबंध अनैतिक है और हर ‘धर्म के सिद्धांत’ के खिलाफ है.” इससे दो बात जाहिर हुई, एक यह कि कोर्ट के जज इतने जिम्मेदार पद पर बैठ कर पाखंड और पिछड़ेपन की गवाही दे रहे थे. दूसरा यह कि विवाह से पहले स्वेच्छा से किये जाने वाले यौन संबंधो पर धर्म ने हमेशा कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है.

वहीँ, महिला पवित्रता या इमानदारी को अगर नंगी आंखो से समझना हो तो देश में कथित तौर पर पुरुषों में उत्तम की संज्ञा दिए जाने वाले भगवान राम के कृत्य से समझा जा सकता है जब रावण के कब्जे से छूटने के बाद भगवान् राम के कहने पर माता सीता तक को अपनी पतिव्रता की पवित्रता साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी. जिसका गुणगान मौजूदा समय में भी बड़े उत्साह से किया जाता है. वहीँ अनुसूया को इसी पतिव्रता को साबित करने के लिए तीनों लोकों के महादेवों के सामने सशर्त नग्न अवस्था में आना पड़ा. भारत में तमाम ग्रन्थ महिला को पुरुष के अधीन कब्जे में रखे जाने की बात खुल्लम खुल्ला करते हैं. जिसे यदा कदा पढ़ समझ या पंडितों से सुन कर आम लोग अपने जीवन में में उतारते हैं.

भारत में सत्यार्थ प्रकाश लिखने वाले दयानंद सरस्वती जिन्हें आर्य समाज का जन्मदाता कहा जाता है उन्होंने अपनी किताबी के चतुर्थ समुल्यास में विधवा विवाह पर रोक लगाए रखने के लिए महिला शुद्धता के तमाम कुतर्क प्रस्तुत करने की कोशिश की. जिसमें मनु, वेदों के रेफरेन्सेस को ख़ास तौर पर शामिल किया गया. यही सब कारण भी थे कि पुराने समय में ऐसी प्रथाए प्रैक्टिस में लाइ गई जिसमें विधवा महिला को सती कर दिया, बालिका विवाह कर दिया, पढने से रोका गया, बाहर काम करने वाली को कुलटा कहा गया इत्यादि.

इसी प्रकार तमाम धर्म चाहे वह इसाई हो या इस्लाम सबमें महिला की पवित्रता से जुडी बातें देखने को मिल जाएंगी. बाइबल कहता है “दुल्हे को यदि संदेह होता है कि उसकी दुल्हन वर्जिन नहीं है तो वह उसे उसके पिता की चौखट पर जबरन खींच कर लेकर जा सकता है. और उसे पत्थरों की चोट से मार भी सकता है. जिसका तांडव देखने के लिए ख़ास तौर पर दर्शकों की भीड़ जुटाई जा सकती है.” (ओल्ड टेस्टामेंट- खंड 5, 22:13-21), वहीँ इस्लाम में भी महिला को एक वस्तु के तौर पर कब्जे में लेने व व्यापार करने की वस्तु माना जाता रहा.

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यह बात तय है कि योनिकता पर खासकर महिला की योनिकता पर हमेशा से धर्म नियंत्रण करता रहा है. जिसमें बिना शादी किये या शादी से बाहर जाकर सेक्स करना प्रतिबंधित व शर्मनाक माना जाता रहा. संभव है कि धर्म ग्रंथो में पुरुषवादी सोच का इस तरह के प्रतिबन्ध बुनने का कारण उस समय गर्भनिरोधक की अपर्याप्तता भी कहा जा सकता है, ताकि वंश में पैदा होने वाला बच्चा शुद्ध तौर से पिता के ख़ून का ही हो.

सेक्सुअलिटी को लेकर संकुचित सोच

पश्चिमी देशों में कुछ अमूल परिवर्तनों के कारण आज वर्जिनिटी को लेकर कुतर्की और महिला विरोधी सोच में एक हद तक बदलाव देखने को मिले है, जिसका बड़ा कारण वहां महिलाओं में बढती आत्मनिर्भरता है. लेकिन भारत जैंसे बड़े जनसँख्या वाले देश में आज भी इस तरह की सोच का होना दुखद है. यहां के रुढ़िवादी कल्चर में सेक्स या इंटरकोर्स को देखने का एक नजरिया सेट है. जिसमें महिला पवित्रता का पता लगाने का तरीका हाय्मन के टूटने से ही लगाया जाता है. सेक्स को पीआईवी के मेथड से ही समझा जाता है. किन्तु ऐसे में पुरुष और महिला के बीच ओरल सेक्स या एनल सेक्स भी सेक्स के तरीके है फिर उनका क्या?

क्या यह एक बड़ी वजह नहीं कि इस कारण आज भी देश दुनिया में एलजीबीटीक्यू की योनिकता को लोग एक्सेप्ट नहीं कर पा रहे हैं. क्योंकि जिस कथित वर्जिनिटी को समाज का बड़ा हिस्सा महिला की पवित्रता मान कर चलता है और उसके भीतर पेनिस के घुसने को ही सेक्स समझता है तो उसमें तो एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी स्टैंड ही नहीं करती. इनमें पीआईवी सेक्स होता ही नहीं. तो क्या फिर इस कारण ही समाज द्वारा इनके सेक्स/रिश्तों को अवैध करार दे दिया जाता है और उनके सेक्स के अनुभवों को एक्सेप्ट ही नहीं किया जाता? जबकि इनमें से कई लोग जब पहली बार अपने पार्टनर के साथ संपर्क में आते है या आए होंगे तो खुद के ‘वर्जिनिटी’ लूस होने का उसी प्रकार एहसास पाते होंगे जैंसे हेट्रोसेक्सुअल लोग महसूस करते हों. इसलिए पहले तो यह समझें कि सेक्सुअलिटी काफी काम्प्लेक्स चीज है जिसे पीआईवी तक समेटना लेंगिक भेदभाव करने को दर्शाता है. और फिर यह कि वर्जिनिटी का पवित्रता से कोई लेना देना नहीं है.

नए स्तर से सोचने की जरुरत

आज तमाम वैज्ञानिक समझ से यह बात जगजाहिर है कि वर्जिनिटी नाम की चीज कुछ नहीं होती है. वैश्विक समाज जिस कथित वर्जिनिटी(झिल्ली) को लड़की का ख़ास गहना मान कर चलता है वह बिना किसी पुरुष के संपर्क में आए, समय के साथ खुद ब खुद टूट सकती है. जिसके लिए लड़की का उछल कूद, दौड़ना भागना, बाइक या साइकिल चलाना या मास्टरबेट करना ही काफी वजह है. एक रिपोर्ट में कहा गया कि जिसे हम आमतौर पर वर्जिनिटी मानते हैं वह दुनिया की 90 फीसदी आबादी बिना शारीरिक हुए पहले खो चुकी होती है. जबकि उन्हें इस बारे में पता भी नहीं होता है. जाहिर है इस सब चीजों के बावजूद आज भी हमारे दिमाग से महिलाओं को किसी विशेष खांचे में डालने की आदत पूरी तरह से नहीं गई है.

हाल ही हैदराबाद में फॅमिली इंस्टिट्यूट नाम के एक इंस्टिट्यूट में महिलाओं के लिए ख़ास तरह के प्रोग्राम शुरू करने का विज्ञापन ख़बरों में चढ़ा. जिसमें प्री-मैरिज ट्रेनिंग, आफ्टर मैरिज ट्रेनिंग, कुकिंग, ब्यूटी टिप्स, सिलाई से रिलेटेड कोर्सेज थे. जिसमें एक आदर्श गृहणी बनने के लिए किस तरह से गुणों को निखारना है यह सब था. जाहिर है किसी महिला को विशेष खांचे में ढालने की तरह ही था.

यह चीजें दिखाती हैं कि आज भी वर्जिनिटी को लेकर समाज में कितना संकुचित सोच लोगों के भीतर व्याप्त है. जिसकी सबसे गहरी चोट समाज में आम महिला के साथ साथ विधवा महिलाओं को झेलना पड़ता है, जहां समाज में उन्हें घोषित तौर पर सेकंड हैंड माल या डिसट्रोएड माल समझा जाता है. जिन्हें दया या सांत्वना तो मिल जाती है लेकिन पहले जैसी डिग्निटी के साथ उन्हें समाज में जगह नहीं मिल पाती. वहीँ एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी को सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ता है. जिस कारण उन्हें हिराकत की नजरों से देखा जाता है.

हमें यह बात समझने की जरुरत है कि वर्जिनिटी किसी स्त्री या पुरुष के भीतर नहीं होती, यह इंसानों के अंतर मन में समाहित होती है. लेकिन इन कृत्यों के कारण किसी लड़की को एक ख़ास उम्र तक हर समय डर डर कर जीना सिखाया जाता है. लड़की किशोरावस्था में पहुंची नहीं कि घर में शादी को लेकर चिंता पसरने लगती है. जिसके चलते वह हमेशा तनाव में रहती है. इसी सोच के चलते आज स्थिति यह भी है कि शादी के लिए देश दुनियां में लड़कियां वेजाइना में झिल्ली पाने के लिए हाय्मनोप्लास्टी सर्जरी करवा रही हैं. यह सामजिक दबाव ही है कि इस तरह सर्जरी या तो स्वेच्छा से या मजबूरन महिला को करवाना पड़ रहा है.

वर्जिन रहने के फितूर के कारण कामकाजी औरतें बहुत से जोखिम नहीं लेती और कहीं आने जाने से डरतीं हैं. विधवा या तलाकशुदा से शादी करने से पहले पुरुष दस बार यही सोचते रहते हैं कि होने वाली पत्नी वर्जिन नहीं होगी.

यह दिखाता है कि महिलाओं का वस्तुकरण आज भी समाज में व्याप्त हैं किन्तु इसके साथ यह भी कि कुछ बदलाव आएं जरूर हैं. जिसमें महिलाओं ने अपने अधिकारों को लेकर खुद संघर्ष किया है. एक आदर्श गृहणी के तौर पर हो सकता है घर परिवार दुल्हन से तथाकथित शुद्धता की मांग कर रहे हों, लेकिन आत्मनिर्भर महिला जो कहीं बाहर काम कर अपना खर्चा खुद उठा रही है और अपनी शर्तों पर जी रही हो, वह इन दकियानूसी बेड़ियों को तोडती हुई भी देखि जा सकती है जिसकी स्वीकार्यता बदले समय के साथ स्थापित भी हो रही है. इसलिए जरुरी यह है कि किसी रिश्ते में बंधते समय इस तरह की मांग/इच्छा रखने से बेहतर भविष्य के लिए बेहतर रिश्ते के लिए विश्वास की नीव रखी जाए.

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लाइफस्टाइल में बदलाव कर वजन बढ़ाएं और दुबलेपन को कहें बाय-बाय

सामान्य से कम वजन वाले यानी दुबले लोग अपने स्वास्थ्य को बेहतर करने की कोशिश तो करते हैं लेकिन तंदुरुस्त नहीं हो पाते क्योंकि वे कुछ गलत आदतों के आदी होते हैं.

मौजूदा भागदौड़भरी लाइफस्टाइल में खुद को फिट बनाए रखना हर लिहाज से जरूरी है.

दुबलेपन को दूर करने और कमजोर शरीर को तंदुरुस्त बनाने के लिए लोग दवाओं से ले कर तरहतरह के हैल्थ सप्लीमैंट्स लेते हैं. लेकिन फिर भी अधिकतर लोगों का शरीर कमजोर और दुबलापतला ही रहता है.

दुबलेपतले शरीर के कारण किशोरों, युवाओं और अधेड़ पुरुषों को क्रमश: स्कूल, कालेज और औफिस या बिजनैस प्रतिष्ठानों तक में शर्मिंदगी  झेलनी पड़ती है. वजन बढ़ाने के लिए लड़की न जाने क्याक्या करती है, खाती है, लेकिन वजन नहीं बढ़ता और शरीर जस का तस ही बना रहता है.

क्यों नहीं बनती सेहत

वजन न बढ़ने और तंदुरुस्त न होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं. इन कारणों में कुछ ऐसी गलत आदतें भी शामिल होती हैं, लोग जिन के शिकार हो जाते हैं. ऐसी आदतें न केवल शरीर को बाहरी तौर पर नुकसान पहुंचाती हैं बल्कि शरीर को भीतर से भी नुकसान पहुंचाती हैं.

आप उन में से हैं जो खाते तो बहुत हैं लेकिन उन के शरीर में लगता नहीं है,

तो वे गलतियां न करें जिन का जिक्र यहां किया जा रहा है. आप अगर चाहते हैं

कि आप तंदुरुस्त रहें और आप की पर्सनैलिटी दूसरों की तरह

चमके तो इन गलत आदतों को बायबाय कह दें.

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भूख लगने पर खाना न खाने की आदत

व्यस्त जीवनशैली में अधिकतर लोग अपने शैड्यूल के चक्कर में सही समय पर खाना नहीं खाते हैं. कोई ऐसा अगर नियमित रूप से करता है तो उस की सेहत पर बुरा असर पड़ना शुरू हो जाता है. दरअसल, ऐसा करने से भूख मर सी जाती है,

भूख लगना बंद हो जाती है. सही समय पर खाना नहीं खाने से शरीर पर विपरीत असर पड़ता है.

किसी भी इंसान की यह गलत आदत उस के शरीर को तंदुरुस्त नहीं होने देती.

रोज एक सी ऐक्सरसाइज करने की आदत

फिट रहने और शरीर के वजन को बढ़ाने के लिए रोजाना ऐक्सरसाइज करना अनिवार्य है. सुबह की सैर पर जाना, किसी मैदान या पार्क में थोड़ीबहुत कसरत या उछलकूद करने से सेहत बेहतर होती है. इस के लिए अधिकतर पुरुषों ने जिम को एक आसान विकल्प सम झा हुआ है.

लोग बौडी बनाने के चक्कर में दवाएं और हैल्थ सप्लीमैंट्स ले लेते हैं, जो उन्हें भले ही मसल्स बनाने में मदद करते हैं लेकिन इस के साइड इफैक्ट बाद में सामने आते हैं. दूसरों को बौडी बनाता देख नए लड़के भी वही करने लग जाते हैं और रोजाना एक ही ऐक्सरसाइज करने लगते हैं. तंदुरुस्त न होने के पीछे एक वजह यह भी है. बहुत से लोग जिम जा कर रोजाना एक ही तरह की ऐक्सरसाइज करते हैं. रोजाना एक ही तरह की ऐक्सरसाइज करने से शरीर के अंग कमजोर होने लग जाते हैं और फिर बौडी नहीं बन पाती.

दरअसल, अगर ऐक्सरसाइज कर रहे हैं तो उसे ट्रेनर के निरीक्षण में करें क्योंकि उस का एक साइंस होता है. जिम ट्रेनर इंसान के शरीर के मुताबिक ऐक्सरसाइज करने का चार्ट बना देते हैं, जिस में हफ्ते के 6 दिनों का ब्योरा होता है कि किस दिन कौनकौन सी ऐक्सरसाइज करनी हैं. जिम ट्रेनर के निरीक्षण में ऐक्सरसाइज करने से शरीर फिट रहने के साथ वजन बढ़ कर आदर्श लैवल पर बना रहता है.

पानी कम पीने की आदत

24 घंटे के रातदिन के दौरान इंसान को भरपूर पानी पीना चाहिए. पर्याप्त मात्रा में पानी

पीने से शरीर को भीतर व बाहर दोनों तरफ से फायदा मिलता है.

यह शरीर के वजन को बढ़ाने व शरीर की स्किन और बालों को पोषण प्रदान करने में अहम भूमिका निभाता है.

देशविदेश के वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसान को अपनेआप को हाइड्रेट रखने और शरीर से टौक्सिन्स को बाहर निकालने के लिए दिनभर में 8 से 10 गिलास पानी या कोई तरल पदार्थ पीना चाहिए. इंसान चाहे तो नारियल पानी और ताजे फलों का जूस भी पी सकता है. सो, अगर कोई कम पानी पीता है

तो उसे यह आदत छोड़नी होगी.

सोने में कंजूसी की आदत

ऊर्जावान और स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि इंसान नियमित रूप से पूरी नींद ले. नींद न पूरी होने से सिर भारी रहने के साथ शरीर का ब्लडप्रैशर यानी बीपी बढ़ सकता है. नींद न पूरी होने की वजह से थकान के साथसाथ चिड़चिड़ाहट भी महसूस होती है और बातबात पर गुस्सा आता है. मैडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कम से कम 7 घंटे की नींद लेनी जरूरी है.

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पूरी नींद लेने से इंसान स्वस्थ महसूस करने के साथ ऊर्जावान बना रहता है. यह इंसान की फिटनैस और आदर्श वजन के लिए भी बेहद जरूरी है. ऐसे में जो लोग रात में सोने में कंजूसी करते हैं वे अपनी इस आदत को छोड़ दें.

यानी, सेहतमंद जीवन के लिए जरूरी होती हैं अच्छी आदतें. ये इंसान को खुश रखने के साथ ऊर्जा से भरपूर भी रखती हैं.

यही नहीं, ये इंसान को बीमारियों से काफी हद तक दूर भी रखती हैं. तो, गलत आदतों को त्याग कर कोई भी

तंदुरुस्त होने के साथ आइडियल वजन हासिल कर सकता है.

स्लिमिंग पिल्स से रहें दूर

आजकल लोगों का स्लिम दिखने का शौक दिनप्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. पतला दिखना ही जैसे खूबसूरती और स्मार्टनैस की पहचान है. कम समय में बिना मेहनत के पतला दिखने की चाह जोर पकड़ती जा रही है, दुष्परिणामों से अवगत होते हुए भी लोग वैसी ही गलती कर रहे हैं जैसीकि ठाणे की 22 साल की मेघना ने की. मेघना ने हाल ही में एक जिम में ट्रेनर का काम शुरू किया था. जिम में वर्कआउट से पहले उस ने डिनिट्रोफेनोल ली और अचानक उस की तबीयत खराब होने लगी. उसे तुरंत हौस्पिटल ले जाया गया, जहां मृत घोषित कर दिया गया.

डाक्टरों के अनुसार उस के शरीर का तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा था. उसे सांस लेने में समस्या थी, दिल की धड़कन बहुत तेज थी और ब्लड प्रैशर बहुत हाई था. फिर हार्ट फेल से उस की मृत्यु हो गई.

यह दवा औनलाइन मिलती है और इस में मौजूद आइनोफोरिक मैटाबोलिक रेट बढ़ा कर वजन कम करता है. यह उन कैमिकल कंपाउंड्स में से एक है, जो इंसान की जान ले सकता है. इस की ओवरडोज से सांस लेने में दिक्कत, बहुत गरमी लगना, दिल की धड़कन असामान्य होना आदि कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं.

अब पता लगाया जा रहा है कि मेघना यह बैन्ड ड्रग कैसे ले पाई. पुलिस ने जिम जा कर उस के साथ के लोगों से पूछताछ की.

मेघना के बड़े भाई का कहना है कि मेघना ने 2 महीने पहले ही ट्रेनर के रूप में जिम जौइन किया था. मैं जानना चाहता हूं कि यह दवा उसे कहां से मिली. मार्केट में यह बैन्ड दवा कैसे उपलब्ध है?

‘‘एफडीए कमिशनर पल्लवी मानती हैं कि औनलाइन ऐसे बैन्ड ड्रग की सहज उपलब्धता बड़ी चिंता का विषय है. अकसर ऐसी ड्रग औनलाइन किसी और नाम से मिल जाती हैं. हम ने ऐसी बैन्ड ड्रग्स को बेचने और प्रमोट करने वाली 62 जगहों के खिलाफ ऐक्शन लिया है. हम पुलिस से संपर्क में हैं और यह जानने की पूरी कोशिश कर रहे हैं कि मेघना को यह दवा कैसे मिली.’’

जानलेवा बनती स्लिमिंग पिल्स

आज लोग अपनी हैल्थ और लुक के प्रति बहुत सजग होते जा रहे हैं. होना भी चाहिए, वजन कम करने के लिए स्लिमिंग पिल्स बहुत लोकप्रिय होती जा रही हैं. लोग इन के दुष्परिणाम की चिंता किए बिना इन्हें खाना शुरू कर देते हैं, संतुलित आहार, ऐक्सरसाइज, हैल्दी लाइफस्टाइल पर ध्यान देने से आसान लगने लगा है, स्लिमिंग पिल्स लेना.

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रीमा का वजन बचपन से ही ज्यादा था. एक ब्रेक अप और एक औपरेशन के बाद बहुत सारे कारणों से वजन और बढ़ गया, वे बताती हैं, ‘‘मेरी एक फ्रैंड ने डेक्साप्रिन पिल्स लेने की सलाह दी. मु झे ये इंटरनैट पर मिल गईं, मैं ने इन्हें ट्राई करने के लिए मन बना लिया. मु झे इन के साइड इफैक्ट्स तुरंत शुरू हुए, मैं बैठेबैठे पसीनापसीना हो जाती, फिर अचानक बहुत ठंड लगने लगती, दिल तेजी से धड़कता. काम पर जाती तो हाथ कांपते रहते, साइड इफैक्ट्स के साथ वजन भी कम होता दिखा, मु झे लगा इसी चमत्कार की तो मु झे इच्छा थी, फिर छठे दिन ही मेरे सीने में दर्द होने लगा, मु झे लगा मु झे हार्टअटैक होने वाला है. मैं ने उसी समय गले में हाथ डाल कर टैबलेट बाहर निकाली. डेक्साप्रिन यूके और नीदरलैंड्स में बैन हो चुकी है.’’

इस में वे तत्त्व हैं, जिन में मानसिक असंतुलन, हार्टअटैक, स्ट्रोक्स हो सकता है. 2012 में 30 वर्षीय लंदन मैराथन रनर क्लेयर्स स्क्वायर्स की मृत्यु उस समय हुई जब वे फिनिशिंग लाइंस से सिर्फ 1 मील दूर थे. 2014 में डच वैज्ञानिकों ने घोषणा की कि उन के सप्लिमैंट्स में सिंथेटिक तत्त्व मिले थे.

भ्रामक विज्ञापनों का जाल

हम सभी जानते हैं कि वजन उचित आहार, ऐक्सरसाइज, मेहनत और धैर्य से कम किया जा सकता है, पर हर साल हजारों लोग तेजी से वजन कम करने के चमत्कार की उम्मीद में इंटरनैट पर गैरकानूनी स्लिमिंग पिल्स खरीद रहे हैं. लेट नाइट टैली मार्केटिंग पर अकसर एक स्लिम लड़की अपनी कमर और एक लड़का अपने टोंड ऐब्स दिखा रहा होता है और ये सब पाने के लिए उन स्लिमिंग पिल्स का लालच दे रहे होते हैं, जिन्हें वे खा रहे होते हैं पर स्लिमिंग पिल्स का एक कड़वा सच यह है कि वे हाइड्रोक्सिल पिल्स हैं, ये वेट लौस के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं, इन से भूख कम हो जाती है और फैट बर्न होने लगता है, जिस से वजन अपनेआप ही कम होने लगता है, पर इन के साइड इफैक्ट्स बहुत खतरनाक हैं.

डाइट ऐक्सपर्ट डाक्टर मानसी के अनुसार इस से लिवर और पैंक्रियाज डैमेज हो सकते हैं. इन से चिंता, नींद में कमी, मासिकधर्म से संबंधित समस्याएं, दिल की धड़कनें तेज होने लगती हैं. भले ही ये आयुर्वेदिक या हर्बल होने का दावा करें, इन के दुष्परिणाम की अवहेलना नहीं करनी चाहिए.

52 वर्षीय सुनीता काफी ओवरवेट हो गई थीं. वे बताती हैं, ‘‘मैं टीवी पर हर जगह यही देख रही थी कि मोटापे से कैंसर भी हो सकता है. मैं डर गई, लगा कि कुछ करना ही पड़ेगा. मैं डाक्टर के पास गई तो उन्होंने सम झाया कि मु झे ज्यादा ऐक्सरसाइज करनी है, खाना कम है. पर मु झे इस से तसल्ली नहीं हुई. मैं तुरंत पतली होना चाहती थी. अत: मैं ने गूगल पर स्लिमिंग पिल्स सर्च कीं कई साइट्स दिखने लगीं. एक जगह एक डाक्टर अपने गले में स्टेथिस्कोप लगाए हुए सम झा रहा था.

‘‘मु झे लगा ये ठीक होंगी. मु झे नहीं पता था कि लोग ये सब फेक वैबसाइट में सैट कर सकते हैं. तुरंत और्डर कर ये पिल्स मंगवा ली. 3 हफ्ते ही ली थीं कि अचानक एक दिन मेरी तबीयत बहुत खराब होने लगी. मैं अकेली थी, बच्चे स्कूल थे. मेरी टांगें कांपने लगीं, जबरदस्त चक्कर आया. मु झे लगा कि मैं मरने वाली हूं. सब स्लिमिंग पिल्स का साइड इफैक्ट था.’’

फिगर बनाने का खतरनाक तरीका

महिलाओं पर परफैक्ट फिगर पाने का प्रैशर रहता है, पर अब पुरुष भी इस शौक से अछूते नहीं. कपड़ों के एक बड़े ब्रैंड के स्टोर पर अंजलि और रवि दोनों काम करते थे, रवि को भी अंजलि की तरह स्लिम और फिट दिखने का शौक था. वहां आने वाले किसी मौडल के कहने पर दोनों ने इंटरनैट से डाइट पिल्स खरीद लीं.

कुछ ही दिनों में मैटाबोलिज्म के खतरनाक स्तर तक बढ़ने पर रवि की तबीयत एक दिन इतनी खराब हुई कि उसे बचाया न जा सका.

फरवरी 2020 में एफडीए ने यूएस की मार्केट से निर्माताओं और स्टौकिट्स से बेल्विक हटाने के लिए रिक्वैस्ट की कि बेल्विक लेने से कैंसर के केसेज बढ़ रहे हैं.

स्लिमिंग पिल्स कोई मैजिक बुलेट नहीं है. किसी भी तरह की स्लिमिंग पिल्स लेने से पहले डाक्टर से जरूर बात करें.

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स्लिमिंग पिल्स ले कर अपने जीवन को खतरे में न डालें, पतला रहना या होना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है. जरूरत है संतुलित आहार लेने की, ऐक्सरसाइज करने की.

याद रखें, यह जरूरी नहीं कि स्लिम रह कर ही आप दुनिया में सफल और सुखी माने जाएंगे या फिर सुंदर दिखें. अगर वजन ज्यादा भी है तो धैर्य से उसे रोज ऐक्सरसाइज करते हुए कम करने की कोशिश करें. मेहनत कभी बेकार नहीं जाती. स्लिम रहने का सब से अच्छा तरीका है कम मात्रा में खाना, प्रोटीन लेना, सब्जियां खाना और नियमित व्यायाम करना है. स्लिमिंग पिल्स से दूर ही रहें.

37 साल की उम्र में भी इतनी स्टाइलिश हैं दिव्या खोसला कुमार, देखें फोटोज

37 साल की बौलीवुड एक्ट्रेस दिव्या खोसला कुमार ने साल 2004 में अमिताभ बच्चन स्टारर फिल्म अब तुम्हारे हवाले साथियों से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी. हालांकि वह फिल्मों से अब थोड़ी दूर नजर आती हैं. वहीं वह डायेक्शन में भी अपना हाथ आजमाते हुए यारिया और सनम रे जैसी फिल्मों को डायरेक्ट कर चुकी हैं. पर आज हम बात उनके फैशन की करेंगे. फिल्मों में इंडियन लुक में नजर आने वाली दिव्या के आज हम आपको कुछ लुक बताएंगे, जिसे आप किसी भी पार्टी या फंक्शन में ट्राय कर सकती हैं. आइए आपको बताते हैं दिव्या कुमार खोसला के फेस्टिव इंडियन लुक…

1. यैलो शरारा है पार्टी परफेक्ट

अगर आप किसी वेडिंग या फेस्टिवल में कुछ नया ट्राय करना चाहती हैं तो दिव्या कुमार खोसला का येलो कलर का शरारा लुक आपके लिए परफेक्ट रहेगा. सिंपल कड़ाई वाला सूट और उसके साथ शरारा और हैवी यैलो कलर की चुन्नी आपके लिए परफेक्ट लुक है. साथ ही इस लुक के साथ मैचिंग ज्वैलरी आपके लिए परफेक्ट है.

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2. पिंक और ब्लैक का कौम्बिनेशन है परफेक्ट

 

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Kiklee on the road ??#ganpatibappamorya #visargan diaries #ruhaankumar #divyakhoslakumar ? #ourstreetdance ??

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अगर आप कुछ सिंपल, लेकिन ट्रेंडी लुक ट्राय करना चाहते हैं तो डार्क पिंक कलर के साथ ब्लैक टच वाला कुर्ता और उसके साथ मैचिंग शरारा आपके लिए परफेक्ट लुक रहेगा. इसके साथ ज्वैलरी की बात करेंगे तो आप इसके साथ ब्लैक कलर के इयरिंग्स ट्राय कर सकती हैं.

3. कौंट्रास्ट लुक है परफेक्ट

 

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Festive ? Lehenga @bageechabanaras #divyakhoslakumar #traditional #pinklehnga??

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अगर आप फेस्टिवल में कौंट्रास्ट लुक ट्राय करना चाहते हैं तो दिव्या कुमार खोसला का ये लुक आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. पिंक कलर के लहंगे के साथ ग्रीन ब्लाउज और यैलो कलर की चुन्नी आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. वहीं ज्वैलरी की बात करें तो आप इस ड्रेस के साथ गोल्डन झुमके ट्राय कर सकती हैं. साथ ही हेयर स्टाइल के लिए आप भी दिव्या की तरह जूड़ा ट्राय कर सकती हैं.

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4. प्रिंटेड लहंगा करें ट्राय

अगर आप प्रिंटेड लहंगे के साथ सिंपल ब्लाउज ट्राय करें तो ये आपके लुक के लिए परफेक्ट रहेगा. प्रिंटेड यैलो कलर का लहंगा और सिंपल ग्रीन कलर का ब्लाउज आपके लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा. इसके साथ गोल्डन पैटर्न की ज्वैलरी आपके लुक के लिए परफेक्ट रहेगा.

अकेली पड़ी इकलौती औलाद

किरत अपने मातापिता की इकलौती औलाद है. उस की उम्र करीब 6 साल है. 6 साल पहले सब ठीक था. वह खुश थी अपने मातापिता के साथ. जब जो चाहती वह मिल जाता. भई, सबकुछ उसी का तो है. पिता पेशे से इंजीनियर हैं. मां मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती हैं. लिहाजा, कमी का तो कहीं सवाल नहीं था, लेकिन इन दिनों किरत कुछ बुझीबुझी से रहने लगी. चिड़चिड़ापन बढ़ने लगा. इतवार के दिन मातापिता ने अपने पास बिठाया और पूछा तो किरत फफक पड़ी.

किरत ने बताया कि उस के दोस्त हैं, लेकिन घर पर कोई नहीं है. न भाई न बहन. सब के पास अपने भाईबहन हैं लेकिन वह किस को परेशान करेगी. किस के साथ खाना खाएगी. किस के साथ सोएगी. किरत ने जो बात कही वह छोटी सी थी लेकिन गहरी थी.

ये परेशानी आज सिर्फ किरत की नहीं है, शहरों में रहने वाले अमूमन हर घर में यही परेशानी है. जैसेजैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं वैसेवैसे वे अकेलापन फील करने लगते हैं. मातापिता कामकाजी हैं. बच्चे मेड या फिर दूसरे लोगों के भरोसे बच्चे छोड़ देते हैं. लेकिन बच्चे धीरेधीरे अकेलापन महसूस करने लगते हैं. सवाल कई हैं. क्या हम भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चों को अकेला छोड़ रहे हैं? क्या हम बच्चों से अपने रिश्ते छीन रहे हैं? क्या हम बच्चों से उन का बचपन छीन रहे हैं?

पहले से अलग है स्थिति

पिछली पीढ़ी के आसपास काफी बच्चे हुआ करते थे. खुद उन के घर में भाईबहन होते थे. पूरा दिन लड़नेझगड़ने में बीत जाता था. खेलकूद में वक्त का पता नहीं चलता था. कब पूरा दिन निकल गया और कब रात हो जाती थी, होश ही नहीं रहता था. चाचाचाची, ताऊताई, दादादादी कितने रिश्ते थे. हर रिश्ते को बच्चे पहचानते थे लेकिन अब स्थिति एकदम अलग है. अब बच्चे अकेलापन फील करने लगे हैं. न तो उन्हें रिश्ते की समझ है न ही खेलकूद के लिए घर में कोई साथ. स्कूल के बाद ट्यूशन और फिर टीवी बस इन्हीं में बच्चों की दुनिया सिमट कर रह गई है.

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क्या है वजह

इस की सब से बड़ी वजह यह है कि मातापिता एक बच्चे से ही खुश हो जाते हैं. अब पहले की तरह भेदभाव नहीं होता. लड़का हो या लड़की, मातापिता दोनों को समान तरीकों से पालतेपोसते हैं. पहले एक सामाजिक व पारिवारिक दबाव था लड़का पैदा करने का, इसलिए काफी बच्चे हो जाते थे. ये तो अच्छी बात है कि समाज धीरेधीरे उस दबाव से निकल रहा है लेकिन इसी ने अब बच्चों को अकेला कर दिया है. दूसरी सब से बड़ी वजह यह है कि मातापिता के पास वक्तकी कमी है.

दरअसल, अब पतिपत्नी दोनों ही कामकाजी हैं. इसलिए बच्चा पैदा करना मातापिता झंझट समझते हैं. सोचते हैं कौन पालेगा, टाइम नहीं है, एक बच्चा ही काफी है, महंगाई बहुत है, एजुकेशन काफी ज्यादा महंगी होती जा रही है. और भी कई ऐसी बातें हैं जिस के चलते मातापिता दूसरा बच्चा करने से बचते हैं. महिलाओं को लगता है कि अगर दूसरा बच्चा हो गया तो वे अपने कैरियर को वक्त नहीं दे पाएंगी. लिहाजा, बच्चे अकेले रह जाते हैं. कई बार बच्चे मातापिता से शिकायत तो करते हैं लेकिन तब तक काफी देर हो जाती है. उम्र बढ़ने लगती है. कई बार बढ़ती उम्र के कारण महिलाएं मां नहीं बन पातीं. कई तरह के जटिलताएं आ जाती हैं.

जरूरी है बच्चों को मिले रिश्ते

बच्चों से उन के रिश्ते मत छीनिए. पहले बच्चे के कुछ साल बाद दूसरा बच्चा करने की कोशिश कीजिए, ताकि बच्चे आपस में खेल सकें. एकदूसरे के साथ बड़े हो कर बातें और चीजें शेयर कर सकें. कई बार इकलौता बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है. चीजें शेयर नहीं करता. अपनी चीजों पर एकाधिकार जमाने लगता है जिस के चलते मातापिता परेशान हो जाते हैं. ये स्थिति उन घरों में ज्यादा होती है, जहां बच्चे अकेले होते हैं. अगर एक भाई या बहन हो तो बच्चे शेयर करना आसानी से सीख जाते हैं. बच्चों को रिश्तों की समझ होने लगती है. एकदूसरे की परेशानी समझने लगते हैं.

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अगर आप भी इस तरह की परेशानी से गुजर रही हैं और रहरह कर आप का बच्चा आप से शिकायत करता है तो वक्त रहते संभल जाइए. बच्चों को उन का रिश्ता दीजिए, ताकि वह भी अपना बचपन जी सकें. थोड़ा लड़ सकें, थोड़ा प्यार कर सकें, थोड़ा प्यार पा सकें. अपनी चाहतों के चक्कर में या फिर कैरियर के लिए बच्चों से उन का बचपन न छीनिए वरना कोमल कली खिलने से पहले ही मुरझा जाएगी.

स्वाद और सेहत से भरपूर है टमाटर की ये चटनियां

टमाटर लगभग हर घरों में प्रयोग किया जाता .भारतीय पाक पकवानों,सब्जी,सलाद ,सूप ,जूस और चटनी में इसका विशेष महत्व है. या यूँ कहे की ये लगभग हर सब्जी की जान है. पर क्या आप जानते है की साधारण सा दिखने वाला टमाटर गुणों की खान है. टमाटर में विटामिन सी, लाइकोपीन, और पोटैशियम पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. जो आपको कई तरीके की बीमारियों से बचाने में कारगर होते है.

आइये जानते है टमाटर से होने वाले फायदों के बारे में-

1-कैंसर को रोकने में फायदेमंद-

लंदन की यूनिवर्सिटी ऑफ पोट्समाउथ के अध्‍ययन के अनुसार, टमाटर में लाइकोपीन नामक ऐसा पौष्टिक तत्व पाया जाता है जो प्रोस्टेट कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि को न केवल रोकता है बल्कि उनको समाप्त भी कर देता है.

2- Immunity को बढाने में कारगर-

टमाटर में भरपूर मात्रा में विटामिन सी और पोटेशियम होता है जो हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है.टमाटर खाने से पेट भी साफ रहता है और भूख बढ़ती है और पेट संबंधित अनेक समस्याएँ भी दूर होती है. गर्भावस्था में टमाटर का सेवन करना बहुत फायदेमंद होता है; इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन सी होता है, जो गभर्वती के लिए काफी अच्छा होता है.

3- डायबिटीज में फायदेमंद-

डायबिटीज रोगियों के लिए टमाटर खाना बहुत फायदेमंद होता है.टमाटर, क्रोमियम का एक बहुत अच्छा स्रोत हैं, जो ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करता है.

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4- वजन कम करने में सहायक –

वजन कम करने के लिए भी टमाटर का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसे वजन नियंत्रण करने वाला ‘फिलिंग फूड’ भी कहते हैं.यह वो आहार है जो जल्‍दी पेट भरता है वो भी बिना कैलोरी या फैट बढ़ाये.

5-गठिया के रोग में फायदेमंद –

गठिया के रोग में भी टमाटर बहुत फायदेमंद है. टमाटर में उच्च बायोफ्लेवोनाइड और कैरोटीन होता है, जो प्रज्वलनरोधी कारक के रूप में जाना जाता है.अगर आपको गठिया है तो टमाटर का सेवन कीजिए.प्रतिदिन टमाटर के जूस में अजवायन मिलाकर खाने से गठिया के दर्द में आराम मिलता है.

6-आंखों के लिए फायदेमंद

-टमाटर में मौजूद विटामिन ‘ए’ आंखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है.यह आँखों की रोशनी बढाता है और रतौंधी को रोकने में मदद करता है.

ये तो थे टमाटर के फायदे ,अब बात करते हैं टमाटर की चटनी की .ये तो हम सभी जानते है की चटनी हमारे खाने का स्वाद कई गुना बढ़ा देती है और भारतीय पकवानों में भी इसका एक अलग महत्व है पर क्या आप जानते है चटनी ना केवल खाने के स्वाद को बढ़ाती है बल्कि यह आपको कई तरह से स्वास्थ्य लाभ भी देती है.चटनी का सेवन करने से हमारे शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है जिससे हमे कई तरह के इन्फेक्शन से लड़ने में मदद मिलती है और ये पाचन के लिए भी बहुत लाभदायक है .

तो चलिए बनाते है टमाटर की चटनी –

टमाटर और हरा धनिया की चटनी

कितने लोगों के लिए : 3 से 4
समय : 5 से 10 मिनट
मील टाइप : वेज

हमें चाहिए-

टमाटर- 2 मीडियम साइज़ के
हरा धनिया – 1 छोटा कप
लहसुन- 6 से 7 कलियाँ
हरी मिर्च-स्वादानुसार
नमक-स्वादानुसार

बनाने का तरीका –

1 सबसे पहले टमाटर ,हरा धनिया और मिर्च को अच्छे से धो कर काट ले.
2-अब सारी सामग्री को मिक्सर में डाल कर पीस ले.याद रखें चटनी को ज्यादा बारीक नहीं पीसना है.
3-तैयार है टमाटर की चटनी ,आप इसे आलू के पराठे या दाल चावल के साथ खा सकते हैं.
note:अगर आप चाहे तो टमाटर को गैस पर हल्का सा भून ले ,इससे चटनी में सोंधापन आ जायेगा.

टमाटर और लहसुन की चटनी

कितने लोगों के लिए : 3 से 4
समय : 10 से 15 मिनट
मील टाइप : वेज

हमें चाहिए –
टमाटर-2 से 3 मीडियम आकार के
लहसुन-10 से 12 कलियाँ
सूखी लाल मिर्च – 2
राई या सरसों के दाने -1/2 छोटी चम्मच
जीरा-1/2 छोटी चम्मच
हींग-चुटकी भर
अमचूर पाउडर-1 छोटी चम्मच
तेल-1 छोटा चम्मच
नमक –स्वादानुसार

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बनाने का तरीका-

1-सबसे पहले टमाटर ,लहसुन और सूखी लाल मिर्च को मिक्सचर में पीसकर बारीक पेस्ट बना लेंगे.
2-अब एक पैन में तेल गर्म करे.अब उसमे राई डाल दे .राई चटक जाने के बाद उसमे जीरा और हींग डाल दे. टमाटर का पेस्ट डाल दे और उसको मध्यम आंच पर 3 से 4 मिनट पकाएं .अगर आपको चटनी थोड़ी पतली चाहिए तो आप उसमे थोडा पानी ऐड कर सकते हैं.
3-अब उसमे नमक और अमचूर पाउडर डाल दे और उसको थोडा और 2 मिनट और पकाएं.
4-अब गैस को बंद करके चटनी को एक बाउल में निकाल ले.तैयार है टमाटर की स्वादिष्ट. चटनी आप इसे लिट्टी-चोखा या खिचड़ी के साथ खा सकते है.

अपनी स्किन को बिना चिपचिपा किए मैं इसे कैसे हाइड्रैट कर सकती हूं?

सवाल-

मेरी स्किन बहुत ड्राई है लेकिन जब भी मैं क्रीम का इस्तेमाल करती हूं, चेहरा बहुत औयली लगने लगता है. अपनी स्किन को बिना चिपचिपा किए मैं इसे कैसे हाइड्रैट कर सकती हूं?

जवाब-

आप की स्किन डीहाइड्रैटेड है, इसलिए अपने फेस पर मौइस्चराइजर का इस्तेमाल करें. यह आप की स्किन में तुरंत एब्सौर्ब हो जाएगी और फेस को बिना औयली किए मौइस्चराइज करने के लिए एलोवेरा जैल का इस्तेमाल भी कर सकती हैं. घरेलू उपाय के तौर पर पके हुए केले को शहद के साथ मैश कर के अपने फेस पर लगाएं और फिर कुछ देर बाद पानी से धो दें. ऐसा हर हफ्ते करने से स्किन सौफ्ट व मौइस्चराइज होगी.

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औयली स्किन की केयर करना बहुत मुश्किल होता है. इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि औयल पोर्स को बंद कर देता है. इन बंद पोर्स के कारण चेहरे पर एक्‍ने होने लगते हैं. औयली स्किन के लोग एक दिन भी अपना चेहरा धोए बिना नहीं रह सकते. यह भी माना जाता है कि औयली स्किन वाले लोगों का चेहरा काफी ग्‍लो करता है. ऐसे में घर में बने फेस मास्‍क आपके चेहरे की औयलीनेस को कम कर सकते हैं. तो चलिए जानते हैं इन होममेड फेसमास्क के बारे में.

  1. मुल्तानी मिट्टी और खीरे का फेस मास्‍क

मुल्तानी मिट्टी स्किन की डस्‍ट और एक्‍स्‍ट्रा औयल हटाने के लिए उपयोग किया जाने वाला एक पुराना नुस्‍खा है. मुल्तानी मिट्टी का उपयोग पिंप्‍लस और एक्‍ने की समस्‍या से राहत पाने के लिए किया जाता है. इस फेस मास्‍क में मुख्‍य रूप से मुल्‍तानी मिट्टी का इस्‍तेमाल किया जाता है, जो चेहरे से एक्‍स्‍ट्रा औयल को सोख लेती है. खीरे में विटामिन सी होता है. ढीले रोम छिद्रों को कसने में खीरा मदद कर सकता है.

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विषपायी: पत्नी के गैर से शारीरिक संबंधों की बात पर भी क्यों चुप रहा आशीष?

Serial Story: विषपायी (भाग-1)

10 साल का वक्त कम नहीं होता कि किसी को भुलाया न जा सके, परंतु जब यादों में कड़वाहट का जहर घुला हो तो किसी को भुलाना भी आसान नहीं होता. आशीष ने पूरे 10 साल तक यह कड़वा जहर धीरेधीरे पिया था और अब जब उस की कड़वाहट थोड़ी कम होने लगी थी, तो अचानक उस जहर की मात्रा दोगुनी हो गई. वे स्वयं डाक्टर थे, परंतु इस जहर का इलाज उन के पास भी न था.

दोपहर डेढ़ बजे का समय डा. आशीष के क्लीनिक के बंद होने का होता है. उस समय पूरे डेढ़ बज रहे थे, परंतु उन का एक मरीज बाकी था. उन्होंने अपने सहायक को मरीज को अंदर भेजने के लिए कहा और खुद मेज पर पड़े अखबार को देखने लगे.

जब मरीज दरवाजा खोल कर अंदर आया तब भी वे मेज पर पड़े अखबार को ही देख रहे थे. उन के इशारे पर जब मरीज दाहिनी तरफ रखे स्टील के स्टूल पर बैठ गया तो उन्होंने निगाहें उठा कर उस की तरफ देखा तो देखते ही जैसे उन के दिमाग में एक भयानक धमाका हुआ.

चारों तरफ आंखों को चकाचौंध कर देने वाली रोशनी उठी और वे संज्ञाशून्य बैठे के बैठे रह गए. उन के चेहरे पर हैरत के भाव थे. वे अवाक अपने सामने बैठी महिला को अपलक देख रहे थे. फिर जब उन की चेतना लौटी तो उन के मुंह से निकला, ‘‘तुम? मेरा मतलब आप?’’

‘‘हां मैं,’’  महिला ने स्थिर स्वर में कहा. फिर वह चुप हो गई और एकटक डाक्टर आशीष का मुंह ताकने लगी. दोनों चुप एकदूसरे को ताक रहे थे. डाक्टर आशीष की समझ में नहीं आ रहा था कि वे आगे क्या पूछें?

 

कुछ देर तक यों ही ताकते रहने के बाद अपने दिमाग से अनचाहे विचारों को झटक कर उन्होंने स्वयं को संभाला और एक प्रोफैशनल डाक्टर की तरह पूछा, ‘‘बताइए, क्या तकलीफ है आप को?’’

आशीष की इस बात से वह महिला सहम गई. उस के स्वर में एक अजीब सा कंपन आ गया. बोली, ‘‘मुझे कोईर् बीमारी नहीं है. मैं केवल आप से मिलने आई हूं. बता कर आती तो आप मिलते नहीं, इसलिए मरीज बन कर आई हूं. क्या मेरी बात सुनने के लिए आप कुछ वक्त दे सकेंगे?’’ उस के स्वर में याचना का भाव था.

डाक्टर नर्मदिल आदमी थे. गुस्सा बहुत कम करते थे. गलत बात पर उत्तेजित अवश्य होते थे, परंतु अपने गुस्से को पी जाते थे. कभी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते थे. आज भी वे उस महिला को देख कर विचलित हो गए थे. पुरानी यादें उन के मन में जहर की तरह पिघलने लगी थीं, परंतु उस महिला पर उन्हें गुस्सा नहीं आ रहा था, जबकि उस महिला ने ही उन के जीवन में

10 साल पूर्व जहर का समुद्र भर दिया था और वे धीरेधीरे उस जहर को पी रहे थे और न जाने कब तक पीते रहते.

मगर आज अचानक वह स्वयं उन के सामने उपस्थित हो गई थी, फिर से उन के जहर भरे जीवन में हलचल मचाने के लिए. क्या मकसद था उस का? वह क्यों आई थी लौट कर उन के पास, जबकि अब उन का उस महिला से कोई वास्ता नहीं रह गया था. मन में एक बार आया कि मना कर दें, परंतु फिर सोचा, बिना बात किए उस के मकसद का पता नहीं चलेगा.

उन्होंने किसी तरह अपने मन को शांत किया और बोले, ‘‘यह मेरे घर जाने का समय है. क्या आप शाम को मिल सकती हैं?’’

‘‘कितने बजे?’’ उस महिला के स्वर में अचानक उत्साह आ गया.

‘‘मैं आज शाम को क्लीनिक में ही रहूंगा. आप 6-7 बजे आ जाइएगा.’’

‘‘ठीक है,’’ उस महिला के मुंह पर पहली बार हलकी सी मुसकराहट आई, ‘‘मैं ठीक 6 बजे आ जाऊंगी,’’ कह वह उठ खड़ी हुई.

उस महिला के जाने के बाद डाक्टर फिर से विचारों के जंगल में खो गए. पल भर के लिए उन्हें याद ही नहीं रहा कि उन्हें घर भी जाना है. अटैंडर ने याद दिलाया तो वे अपनी यादों की खोह से बाहर आए और फिर घर के लिए रवाना हो गए.

घर पर पत्नी उन का इंतजार कर रही थी. बोली, ‘‘आज कुछ देर हो गई?’’

‘‘हां, डाक्टर के पेशे में ऐसा हो जाता है. कभी अचानक कोई मरीज आ जाता है, तो देखना ही पड़ता है,’’ उन्होंने सामान्य ढंग से जवाब

दिया और फिर हाथमुंह धो कर खाने की मेज पर जा बैठे.

पत्नी के सामने वे भले ही सामान्य ढंग से व्यवहार कर रहे थे, परंतु उन का मन सामान्य नहीं था, उस में हलचल मची थी. कई सालों बाद शांत झील की सतह पर किसी ने पत्थर फेंक दिया था. यह पत्थर का कोई छोटा टुकड़ा नहीं था, उन्हें लग रहा था जैसे पानी के नीचे किसी ने पहाड़ का एक बड़ा हिस्सा ही लुढ़का दिया हो.

खाना खा कर डाक्टर आशीष ने पत्नी से कहा, ‘‘आज मैं कुछ थका हुआ हूं, आराम करूंगा. तुम डिस्टर्ब मत करना.’’

पत्नी ने संशय से उन के चेहरे की तरफ देखा, ‘‘तबीयत ठीक नहीं है क्या? सिरदर्द हो तो बाम लगा दूं?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, बस आराम करना चाहता हूं?’’ कह कर वे बैडरूम में घुस गए.

पत्नी को उन के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से अचंभा हुआ, पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. वह अपने काम में लग गई. बहुत सारे काम बाकी थे. लड़का स्कूल से आने वाला था. कामवाली भी शाम तक आती. दिन में उसे आराम करने का समय ही नहीं मिल पाता है. बेटे को खिलापिला कर उस का होम वर्क कराने बैठ जाती. शाम को जब डाक्टर अपने क्लीनिक चले जाते और बच्चा खेलनेकूदने लगता तब उसे कुछ आराम करने का मौका मिलता. वह थोड़ी देर के लिए लेट जाती है. बस…

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बैडरूम में जा कर डाक्टर ने बिस्तर पर लेट आंखें बंद कर लीं, परंतु नींद कहां आनी थी. उन के दिलोदिमाग में बहुत सारी यादें अचानक नींद से जाग उठी थीं और करवटें बदलबदल कर उन्हें परेशान कर रही थीं… उन की यादों का कारवां चलता हुआ धीरेधीरे 10 साल पूर्व के जंगल में पहुंच गया. वह जंगल ऐसा था, जहां वे दोबारा कभी नहीं जाना चाहते थे, परंतु समय इतना बलवान होता है कि आदमी को न चाहते हुए भी अपने विगत को याद करना पड़ता है.

आशीष एक जहीन और गंभीर किस्म के विद्यार्थी थे. उन्होंने लखनऊ के केजीएमयू से एमबीबीएस किया था और वहीं से इंटर्नशिप कर के एमडी की डिग्री प्राप्त की थी. वे अब नौकरी की तलाश कर रहे थे. शीघ्र ही उन्हें गुड़गांव के एक प्राइवेट अस्पताल में जौब मिल गई. हालांकि वे इस से संतुष्ट नहीं थे. सरकारी नौकरी के लिए परीक्षाएं दे रहे थे.

तभी उन के लिए रिश्ते आने आरंभ हो गए. उन के पिता प्रदेश सेवा में एक उच्च अधिकारी थे और मां लखनऊ आकाशवाणी में वरिष्ठ उद्घोषिका थीं. बहुत छोटा परिवार था. उन की शादी के पहले मांबाप ने उन की इच्छा पूछ ली थी. आजकल के चलन के अनुसार यह आवश्यक भी था.

आशीष गंभीर आचरण के व्यक्ति थे, परंतु हर व्यक्ति के जीवन में प्यार और रोमांस के क्षण आते हैं. ये ऐसे क्षण होते हैं, जब उसे चाहेअनचाहे प्यार की डगर पर चलना ही पड़ता है और इस के खूबसूरत रंगों से रूबरू होना ही पड़ता है. उन्हें भी रोमांस हुआ था. कई लड़कियां उन की तरफ आकर्षित हुई थीं, परंतु अपने जीवन को एक गति प्रदान करने चक्कर में उन का प्रेम प्रसंग किसी गंभीर परिणाम तक नहीं पहुंचा.

उन के जीवन में प्रेम वर्षा की हलकी फुहार की तरह आया और उन के मन को भिगो कर चला गया. एक मोड़ पर आ कर सभी एकदूसरे से जुदा हो गए. उन्होंने न तो लड़कियों से कोई शिकायत की और न लड़कियों ने ही उन से कोई गिला किया. सभी बारीबारी से बिछुड़ते हुए अपने रास्ते चलते गए. यही जीवन है और जो प्राप्यअप्राप्य का लेखाजोखा नहीं करता, वही सुखी रहता है.

आशीष की अपनी कोई पसंद नहीं थी. उन्होंने सब कुछ मातापिता पर छोड़ दिया था. चूंकि वे गुड़गांव में नौकरी कर रहे थे, इसलिए घर वालों ने सोचा कि दिल्ली राजधानी क्षेत्र की कोई लड़की उन के लिए ज्यादा उपयुक्त रहेगी. उन के लिए मैडिको लड़की मिल सकती थी, परंतु आशीष ने इस बारे में भी साफ कह दिया था कि मातापिता की जो पसंद होगी, वही उन की पसंद होगी.

अंत में एक लड़की सभी को पसंद आई. उस ने एमबीए किया था और गुड़गांव की ही एक बड़ी कंपनी में एचआर डिपार्टमैंट में सीनियर मैनेजर के पद पर कार्य कर रही थी.

देखने दिखाने की औपचारिकता के बाद आशीष और नंदिता की शादी हो गई. शादी के कुछ दिनों बाद ही उन्हें लगा कि नंदिता के प्यार में कोई ऊष्मा नहीं है, दांपत्य जीवन के प्रति कोई उत्साह नहीं है. बिस्तर पर वह बर्फ की चट्टान की तरह पड़ी रहती, जिस में कोई धड़कन, गरमी और जोश नहीं होता था.

आशीष एक डाक्टर थे और वे शारीरिक संरचना के बारे में बहुत अच्छी तरह जानते थे. परंतु वे आधुनिक जीवन में आई अनावश्यक स्वतंत्रता और स्वच्छंदता के बारे में भी अच्छी तरह जानते थे, इसलिए पत्नी से उस संबंध में कोई प्रश्न नहीं किया था.

परंतु वे कोई मनोवैज्ञानिक भी नहीं थे कि नंदिता के मन की उदासी और जीवन के प्रति उस की निराशा को समझ सकते. जब तक अपने मन की परतें वह न खोलती, तब तक आशीष को उस की उदासी का कारण समझ में नहीं आ सकता था. परंतु नंदिता उन के साथ रहते हुए भी जैसे अकेली होती थी, उन से बहुत कम बात करती थी और घर के कामों में भी कोई रुचि नहीं लेती.

घर में केवल वही 2 प्राणी थे. वैसे तो नौकरानी थी और घर के ज्यादातर काम वही करती थी. पतिपत्नी के पास पर्याप्त समय होता था कि एकदूसरे से दिल की बात करते, एकदूसरे को समझते, परंतु नंदिता उन से बातें करने में भी कोई रुचि नहीं लेती थी.

औफिस से आने के बाद हताशनिराश बिस्तर पर लेट जाती जैसे सैकड़ों मील की यात्रा कर के आई हो. चेहरा बुझा होता, आंखों की रोशनी पर जैसे काला परदा पड़ा होता, हाथपैर ढीले होते और रात में उस के साथ संसर्ग करते समय आशीष को ऐसे ठंडेपन का एहसास होता जैसे वे मुरदे के साथ संभोग कर रहे हों.

डाक्टर आशीष मनुष्य के प्रत्येक अंग की जानकारी रखते थे. वे इस बात को अच्छी तरह समझ गए थे कि नंदिता केवल उन की नहीं, शादी के बाद भी नहीं. पहले भी वह किसी और की थी और आज भी उस के किसी और से शारीरिक संबंध हैं. वह दिन में उसी के साथ रह कर आती थी. यह बात आशीष से छिपी नहीं रह सकती थी. ऐसी बातें किसी साधारण व्यक्ति से भी छिपी नहीं रह सकती थीं.

 

इतना तो आशीष की समझ में आ गया था कि नंदिता की उदासी का वास्तविक कारण क्या है, परंतु वह उन से दूर क्यों रहना चाहती, क्यों उन के साथ अपने संबंधों को मधुर बना कर नहीं रह सकती, यह समझ से परे था.

दोनों पतिपत्नी थे. अगर उसे इस संबंध से इतनी घृणा थी तो उस ने शादी के लिए हां क्यों की थी? क्या उस के ऊपर उस के घर वालों का कोई दबाव था? और अगर वह पहले से ही किसी व्यक्ति के साथ प्यार के खेल में लिप्त थी, तो उसी के साथ शादी क्यों नहीं की? क्या वह शादीशुदा था? अगर हां, तो अब तक उस के साथ अपने संबंधों को क्यों नहीं तोड़ा? वह भी तो अब शादीशुदा थी. दांपत्य जीवन के प्रति उसे अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए.

आशीष जानते थे, नंदिता स्वयं कुछ नहीं बताएगी. उन्हें ही पहल करनी होगी. इस में देर करना ठीक नहीं होगा. वे क्यों उस आग में जलते रहें, जिसे लगाने में उन का कोई हाथ नहीं.

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एक शाम उन्होंने शांत और गंभीर स्वर में कहा, ‘‘नंदिता, न तो मैं तुम से तुम्हारे विगत के बारे में पूछूंगा, न आज के बारे में, परंतु मैं इतना अवश्य चाहता हूं कि तुम जिस आग में जल रही हो, उस में मुझे जलाने का उपक्रम मत करो. मैं ने कोई अपराध नहीं किया है. मेरा अपराध केवल इतना है कि मैं ने तुम से शादी की है, परंतु इस छोटे से अपराध के लिए मैं कालापानी की सजा नहीं भोग सकता. तुम मुझे साफसाफ बता दो, तुम क्या चाहती हो?’’

नंदिता खोईखोई आंखों से देखती रही. वह विचारमग्न थी. उस की आंखों में हलका गीलापन आ गया. फिर ऐसा लगा जैसे वह रो पड़ेगी. उस ने अपनी आंखें झुका लीं और लरजते स्वर में बोली, ‘‘मैं जानती थी, एक दिन यही होगा. मैं आप का जीवन बरबाद नहीं करना चाहती थी, परंतु समाज और परिवार के रीतिरिवाज कई बार हमें वह नहीं करने देते जो हम चाहते हैं. हमें उन की इच्छा और दबाव के आगे झुकना पड़ता है, तब हम एक ऐसा जीवन जीते हैं, जो न हमारा होता है, न समाज और परिवार का…’’

‘‘तुम्हारी क्या मजबूरी है, मुझे नहीं पता. बता सकती हो तो हम कोई समाधान ढूंढ़ सकते हैं.’’

‘‘नहीं, मेरी समस्या का कोई समाधान

नहीं है. यह मत समझना कि मैं जानबूझ कर

आप को उपेक्षित करती रही हूं. वास्तव में मैं अपने अपराधबोध से इतना अधिक ग्रस्त रहती

हूं कि आप के साथ सामान्य व्यवहार नहीं कर पाती. मेरा अपराध मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रहा है.’’

‘‘अगर तुम ने कोई अपराध किया है, तो उस का प्रायश्चित्त कर सकती हो.’’

‘‘यही तो मुश्किल है. मेरा अपराध मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा है.’’

आशीष की समझ में कुछ नहीं आया. उन्होंने नंदिता की तरफ इस तरह देखा कि वह चाहे तो बता सकती है.

नंदिता ने कहा, ‘‘आप से कुछ छिपाने का कोई कारण नहीं है. मैं आप को बता सकती हूं. कम से कम मेरा अपराधबोध कुछ हद तक कम हो जाएगा. परंतु मैं जानती हूं, जो गलती मैं कर रही हूं, वह किसी भी प्रकार क्षम्य नहीं है. मैं चाह कर भी इस से पीछा नहीं छुड़ा सकती. वह भी मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा है.’’

‘‘तो तुम मेरा पीछा छोड़ कर उस से विवाह कर लो. मैं तुम्हें आजाद करता हूं.’’

यह सुन कर नंदिता सन्न रह गई. उस का बदन कांप गया, आंखों में भय की एक गहरी छाया व्याप्त हो गई. वह लगभग चीखते हुए बोली, ‘‘नहीं, वह पहले से ही विवाहित है. मेरे साथ शादी नहीं कर सकता.’’

आशीष के दिमाग की नसें फटने लगीं. नंदिता कौन सा खेल खेल रही है. वह अपने पति से सामान्य संबंध बना कर नहीं रख रही है और जिस के साथ उस की शादी नहीं हुई है, वह उस का सर्वस्व है.

उस के साथ अपने अनैतिक संबंध नहीं तोड़ सकती. वह नंदिता के जीवन के साथ ही नहीं, उस के बदन के साथ भी खिलवाड़ कर रहा है, अपने देहसुख के लिए वह व्यक्ति अपने परिवार को नहीं छोड़ सकता, परंतु उस की खातिर नंदिता अपने वैवाहिक जीवन में जहर घोल रही है. वह अपने विवेक से काम नहीं ले रही है. वह भावुकता और मोह में फंसी है, जो गलती पर गलती करती जा रही थी और उस की समझ में नहीं आ रहा कि किस रास्ते पर चल कर वह अपने जीवन को सुखी बना सकती थी.

डाक्टर आशीष की समझ में नहीं आया कि आखिर वह चाहती क्या है. मन में तमाम तरह के प्रश्न थे, परंतु उन्होंने नंदिता से कुछ नहीं पूछा.

नंदिता ही बता रही थी, ‘‘वह मेरा पहला प्यार था. मैं भावुक थी, वह चालाक था. उस ने मेरी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया. मैं बहक गई. अपना शरीर उसे सौंप बैठी. बाद में पता चला कि वह विवाहित है. फिर भी मैं उस से अपना संबंध नहीं तोड़ पाई. जब भी उसे देखती हूं पागल हो जाती हूं. पता नहीं उस में ऐसी क्या बात है, उस की बातों में कौन सा ऐसा जादू है जो मैं उस की तरफ खिंची चली जाती हूं.

‘‘शादी के बाद मैं ने न जाने कितनी बार कोशिश की कि उस से न मिलूं, उस के सामने

न पडं़ू परंतु जब वह मेरे सामने नहीं होता तो मैं उसी के बारे में सोचती रहती हूं, उस से मिलने

के लिए तड़पती हूं. उस के अलावा मैं किसी

और के बारे में सोच ही नहीं पाती. आप के बारे में भी नहीं.

मैं आप को अपना शरीर सौंपती हूं, परंतु तब मेरा मन उस के पास होता है. मैं जानती हूं कि मैं आप के प्रति निष्ठावान नहीं हूं, विवाहित जीवन की ईमानदारी से परे मैं आप के साथ

छल कर रही हूं, परंतु मेरा अपने मन पर कोई नियंत्रण नहीं है. मैं एक कमजोर नारी हूं, यह

मेरा अपराध है.’’

‘‘कोई भी पुरुष या नारी कमजोर नहीं होता. हम केवल भावुकता और प्रेम का बहाना बनाते रहते हैं. दुनिया में हम बहुत सारी चीजें छोड़ देते हैं. हम मांबाप को त्याग देते हैं, अपने सगेसंबंधियों को छोड़ देते हैं और भी बहुत सी प्रिय चीजों को जीवन में त्याग देते हैं. तब फिर किसी बुराई को हम क्यों नहीं छोड़ सकते? क्या बुराई में ज्यादा आकर्षण होता है इसलिए? मैं नहीं जानता, तुम्हारे साथ क्या कारण था? शादी के बाद तुम ने उस से दूर रहने की कोशिश क्यों नहीं की?’’

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‘‘बहुत की, परंतु मन उसी की तरफ भागता है. वह मेरे साथ मेरे औफिस में काम भी नहीं करता है, कहीं और काम करता है. वह मुझे ज्यादा फोन भी नहीं करता है, परंतु जब उस का फोन नहीं आता तो मैं बेचैन हो जाती हूं. स्वयं उसे फोन कर के बुलाती हूं. मैं क्या करूं?’’

आशीष के पास उस के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था. परंतु वे अच्छी तरह समझ गए कि नंदिता दृढ़ चरित्र की लड़की नहीं है. वह भावुक है, नासमझ है और समयानुसार अपने विवेक का प्रयोग नहीं कर पाती है. वह परिस्थितियों की दास है. भलाबुरा वह समझती है, परंतु बुराई से दूर रहना नहीं चाहती. उस में उसे आनंद मिल रहा है. वह आनंद चाहती है, भले ही वह अनैतिक तरीके से मिल रहा हो.

– क्रमश:   

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