फैमिली के लिए बनाएं वेज नगेट्स

चाहे बच्चे हो या फिर बड़े , एक ही जैसा खाना खाते खाते सब ऊब जाते हैं. ऐसे में कभी मम्मी से मैग्गी की डिमांड होती हैं तो कभी पास्ता की तो कभी कुछ ऐसा खाने की इच्छा जाहिर की जाती है , जो काफी टेस्टी हो. ऐसे में वेजी नगेट्स काफी अच्छा ओप्शन हैं ,क्योंकि ये न सिर्फ खाने में टेस्टी होते हैं बल्कि इस बहाने बच्चों से लेकर बड़ों को सब्ज़ियां भी मिल जाती हैं , जिन्हें खाने में अकसर वे आनाकानी करते रहते हैं. ऐसे में अगर आप इन्हीं वेजी नगेट्स को मार्केट से खरीदने जाएं तो ये न सिर्फ महंगे होते हैं बल्कि इन्हें लंबे समय तक स्टोर रखने के काऱण इनमें प्रेसेर्वटिवेस का भी इस्तेमाल किया जाता है, जो सेहत के लिए बिलकुल अच्छे नहीं होते हैं. ऐसे में आप आसानी से घर में नगेट्स बनाकर न सिर्फ उन्हें स्टोर करके रख सकते हैं बल्कि घर के इंग्रेडिएंट्स के साथ आपके पास इनमें ज्यादा से ज्यादा व अपनी पसंद की सब्ज़ियां डालने का भी ओप्शन होता है, जिससे सबको अपनी पसंद की चीज भी मिल जाएगी साथ ही आप सबकी हैल्थ का भी ध्यान रख पाएंगी.

कैसे बनाएं वेज नगेट्स

सामग्री

– 5 – 6 उबले व कद्दूकस किये हुए आलू
– 2 बारीक़ कटी हरी मिर्च
– 2 गाजर बारीक कटे हूए
– थोड़ी सी पत्ता गोबी व बीन्स
– थोड़ा सा कद्दूकस किया अदरक
– 3 ब्रेड के क्रुम्ब
– थोड़ा सा मैदा का पतला घोल
– स्वादानुसार नमक
– थोड़ी सी लाल मिर्च व काली मिर्च

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बनाने की विधि

– सबसे पहले एक बाउल में उबले हुए आलू को कद्दूकस करके रख लें. फिर इसमें धीरे धीरे सभी सब्ज़ियों को बारीक काटकर डालते हुए अच्छे से मिलाएं. फिर इसमें मसाला डालें. अब एक प्लेट में आयल से ग्रीसिंग करें. फिर तैयार किए मसाले से नगेट्स बनाते हुए उन्हें मैदा के घोल में अच्छे से डिप करते हुए उसे ब्रेड क्रुप्स में लपेटें. और फिर फ्रिज में सेट होने के लिए 1 घंटे के लिए रख दें. जब ये नगेट्स अच्छे से सेट हो जाएं तब एक कढ़ाई में आयल को धीमी आंच पर गरम करें. जब आयल गरम हो जाए तब धीरे धीरे नगेट्स को फ्राई करें. ध्यान रखें कि एक बार में सारे नगेट्स नहीं डालें , क्योंकि इससे वे सही से पक नहीं पाएंगे और ज्यादा आयल भी लगेगा. बनने के बाद उन्हें प्लेट पर टिश्यू पेपर रखकर उस पर निकालें. ताकि एक्स्ट्रा आयल अलग हो जाए. तैयार हैं आपके वेज नगेट्स. आप इन्हें अपनी पसंद की चटनी के साथ सर्व कर सकते हैं.

अगर आप ज्यादा हैल्थ कोनसीकउस हैं तो आप नगेट्स को शैलो फ्राई भी कर सकते हैं. इससे टेस्ट भी मिल जाएगा और हैल्थ भी मैंटेन रहेगी. लेकिन बता दें कि कभीकभार व सही क्वांटिटी में कोई भी चीज खाने से सेहत को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है. ये वेज नगेट्स सब्जियों के व घर में बने होने के कारण आपको न्यूट्रिएंट्स भी प्रदान करने का काम करेंगे. क्योंकि जहां आलू में विटामिन बी – 6 , मैग्नीशियम , फोस्फोरस होता है वहीं गाजर में प्रोटीन, फाइबर, कार्ब्स होते हैं. बीन्स में सभी जरूरी विटामिन्स और मिनरल्स होते हैं वहीं पत्ता गोभी विटामिन के , सी , फाइबर, प्रोटीन , फोलेट से भरपूर होती हैं. जिसकी इन नगेट्स के माध्यम से थोड़ी बहुत ही सही लेकिन पूर्ति तो होती है. और जब आप इन्हें घर में बनाते हैं तो इनकी न्यूट्रिशन वैल्यू बढ़ जाती है. आप इन्हें हफ्ते भर के लिए फ्रिज में स्टोर करके भी रख सकते हैं.

किन बातों का रखें ध्यान

– कभी भी नगेट्स को बहुत गरम आयल में न तले , क्योंकि इससे नगेट्स के जलने के साथ साथ वे कुरकुरे नहीं बन पाते हैं.
– ढेरों नगेट्स को एक साथ न तले. क्योंकि इससे खराब होने का डर रहता है.
– हमेशा फ्रेश सब्जियों का ही इस्तेमाल करें , वरना स्टोर करने पर खराब होने का डर रहेगा.
– दोनों तरफ से उलट पुलट तक तले वरना एक तरफ से कच्चे रह सकते हैं.
– ठंडे आयल में कभी भी नगेट्स को न न तले.
– बनने के बाद इन्हें टिश्यू पेपर पर जरूर निकालें. जिससे एक्स्ट्रा आयल अलग हो सके.
– आप इन्हें स्टोर करने के लिए फ्रीज़र में ही रखें. इससे ये नगेट्स सेट भी रहते हैं और लंबे समय तक ख़राब भी नहीं होते हैं.

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आईना: क्यों नही होता छात्रों की नजर में टीचर का सम्मान?

आईने के सामने खड़े हो कर गाना गुनगुनाते हुए डा. रत्नाकर ने अपने बालों को संवारा, फिर अपनेआप को पूर्ण संतुष्टि के साथ निहारते हुए बड़े मोहक अंदाज में अपनी पत्नी को आवाज लगाई, ‘‘सोनू, अरे सोना, मैं तो रेडी हो गया, अब तुम जरा गाड़ी में दोनों पैकेट रखवा दो…प्रिंसिपल साहब का स्पैशल वाला और स्टाफरूम के लिए बड़ा वाला मिठाई का डब्बा. मेरे सारे दोस्त मिठाई के इंतजार में होंगे, सभी के बधाई के फोन आ रहे हैं. आखिर मेरी ड्रीम कार आ ही गई.’’

‘‘पैकेट कार में पहले ही रखवा दिए, प्रिंसिपल साहब की मैडम के लिए कांजीवरम सिल्क की साड़ी भी रख दी है. चाहे कुछ कहो, प्रिंसिपल साहब साथ न दें तो हमारे सपने कैसे पूरे हों. अगर मैडम को भी खुश कर दो तो सबकुछ आसान हो जाता है. ठीक है न,’’ सोनू ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘यू आर ग्रेट,’’ परफ्यूम स्प्रे करतेकरते डा. रत्नाकर ने अपनी पत्नी की दूरदर्शिता की दाद देते हुए कहा, ‘‘जानती हो, स्टाफ में एक शख्स ऐसा भी है जिस ने न तो अभी तक मुझे बधाई नहीं दी. उस का नाम शैलेंद्र है. जलता है वह मेरी तरक्की से और कुछ कहो तो आदर्श शिक्षक की विशेषताएं बता कर सारा मजा किरकिरा कर देता है…सोच रहा हूं, आज उसे इग्नोर ही कर दूं वरना मूड खराब हो जाएगा.’’

सोनू ने भी इस बात पर पूर्ण सहमति जताते हुए सिर हिलाया. डा. रत्नाकर और सोनू गेट की ओर बढ़े. ड्राइवर ने दौड़ कर गाड़ी का दरवाजा खोला.

‘‘बाय,’’ हाथ हिलाते हुए डा. रत्नाकर ने सोनू से विदा ली और कार कालेज की ओर चली. आज उन्हें अपनेआप पर बहुत गर्व हो रहा था. हो भी क्यों न? मात्र 3-4 साल में पहले निजी फ्लैट और अब गाड़ी खरीद ली थी. कहां खटारा स्कूटर…किराए का मकान…मकानमालिक की किचकिच… सब से मुक्ति. जब से अपना कोचिंग सैंटर खोला है तब से रुपयों की बरसात ही तो हो रही है. सोनू भी पढ़ीलिखी है. वह कोचिंग का पूरा मैनेजमैंट देख लेती है और डा. रत्नाकर शिफ्ट में व्यावसायिक कोर्स की कोचिंग करते हैं. प्रिंसिपल साहब को भी किसी न किसी बहाने कीमती गिफ्ट पहुंच जाते हैं तो कालेज का समय भी कोचिंग में लगाने की सुविधा हो जाती है. एक बेटा है जो दिल्ली के एक महंगे स्कूल से 12वीं कर रहा है.

‘ट्रिन…ट्रिन,’ मोबाइल की घंटी से डा. रत्नाकर अपने सुखद विचारों से बाहर निकले. शौर्य का फोन था.

‘‘क्या बात है?’’ रत्नाकर ने पूछा.

‘‘पापा, आप अपनी किताबें व रजिस्टर घर पर ही भूल गए,’’ शौर्य ने कहा, ‘‘सोचा, आप को बता दूं. आप परेशान हो रहे होंगे.’’

‘‘अरे,’’ रत्नाकर सोच ही नहीं पाए कि क्या जवाब दें. फिर कुछ सोच कर बोले, ‘‘बेटा, असल में आज एक मीटिंग है, इसलिए कालेज में पढ़ाई नहीं होगी,’’ इतना कहते ही उन्होंने फोन रख दिया.

गाड़ी से उतर कर रत्नाकर तेज चाल से सीधे प्रिंसिपल के कमरे की ओर बढ़े. प्रिंसिपल साहब गाड़ी की आवाज सुन कर पहले ही खिड़की से डा. रत्नाकर की ड्रीम कार की झलक देख चुके थे, जिसे देख कर उन का मूड औफ हो गया था. अत: डा. रत्नाकर के कमरे में घुसने पर वे चाह कर भी मुसकरा न सके.

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‘‘सर, आप के आशीर्वाद से नई गाड़ी ले ली है…और इस खुशी में यह छोटी सी भेंट आप के लिए लाया था. सोनू ने भाभीजी के लिए कांजीवरम की साड़ी भी भेजी है,’’ कह कर डा. रत्नाकर ने बोझिल वातावरण को महसूस करते हुए उसे हलका करने के उद्देश्य से प्रिंसिपल साहब के पैर छूने का उपक्रम किया.

‘‘रहने दो. इस सब की जरूरत नहीं. वैसे भी मैं तुम को फोन करने वाला था क्योंकि आजकल कई अभिभावक तुम्हारे विरुद्ध शिकायतें ले कर आ रहे हैं कि लंबे समय से क्लास नहीं हुई. मेरे लिए भी संभालना मुश्किल हो रहा है,’’ प्रिंसिपल साहब ने थोड़ी बेरुखी दिखाते हुए कहा.

‘‘सर, मुझे पूरा विश्वास है कि आप तो संभाल ही लेंगे. वैसे भी भाभीजी की कुछ और खास पसंद हो तो बताइएगा,’’

डा. रत्नाकर ने ढिठाई से मुसकराते हुए कहा.

प्रिंसिपल साहब भी मुसकरा दिए.

अब दोनों खुश थे क्योंकि दोनों का दांव सही जगह लगा था.

 

प्रिंसिपल साहब से आज्ञा ले कर रत्नाकर खुशी से उतावले हो कर स्टाफरूम की ओर बढ़े. ‘अब असली मजा आएगा…गाड़ी खरीदने का. सब के चेहरे देखने में एक अजब ही सुख मिलेगा, जिस की प्रतीक्षा मुझे न जाने कब से थी,’ रत्नाकर मन में सोच कर प्रसन्न हो रहे थे.

‘‘बधाई हो,’’ कई स्वर एकसाथ उभरे. रत्नाकर भी खुशी से फूल गए. चारों ओर दृष्टि दौड़ा कर देखा तो कोने की टेबल पर डा. शैलेंद्र एक किताब पढ़ने में लीन थे. चाह कर भी रत्नाकर अपनेआप को रोक न सके. अत: शैलेंद्र की प्रतिक्रिया जानने के लिए मिठाई खिलाने के बहाने उन के पास पहुंचे.

‘‘शैलेंद्र, लो, मिठाई खाओ भई. कभीकभी दूसरों की खुशी में भी अपनी खुशी महसूस कर के देखो, अच्छा लगेगा,’’ थोड़े तीखे व ऊंचे स्वर में रत्नाकर ने कहा.

‘‘जरूरी नहीं कि मिठाई बांट कर या शोर मचा कर ही खुशी प्रकट की जाए. मुझे किताब पढ़ने में खुशी मिलती है तो मैं वही कर रहा हूं और खुश हो रहा हूं,’’ शांत भाव से शैलेंद्र ने जवाब दिया.

‘‘वही तो, कई लोगों को हमेशा पुराने ढोल की आवाज ही अच्छी लगती है तो वे बेचारे क्या तरक्की करेंगे. मैं ने अपनी सोच बदली, नए जमाने की दौड़ के साथ दौड़ा तो आज तुम जैसे लोगों को पीछे छोड़ दिया. असल में मुझे बहुत जल्दी ही इस सच का एहसास हो गया कि पहले जैसे विद्यार्थी रहे ही नहीं तो उन के साथ माथापच्ची क्यों करूं? इसलिए जो वास्तव में पढ़ना चाहते हैं उन्हें अलग से पढ़ाऊं…अलग पढ़ाने की फीस लूं…वे भी खुश हम भी खुश,’’ रत्नाकर ने तीखे स्वर में तर्क देते हुए कहा. क्योंकि वे अपनी उपलब्धि सभी पर प्रकट कर अपनेआप को सब से ऊंचा साबित करना चाह रहे थे.

‘‘गलत, एकदम गलत. अगर इसी बात को सही शब्दों में कहें तो हम शिक्षक अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए शिक्षा को व्यवसाय बना रहे हैं तथा ऐसा करने में जो अपराधबोध है उसे विद्यार्थियों के सिर मढ़ रहे हैं,’’ दोटूक उत्तर दे कर शैलेंद्र खड़े हुए और बिना मिठाई खाए स्टाफरूम से बाहर जाते हुए बोले, ‘‘आज भी अच्छे अध्यापक के सभी विद्यार्थी बहुत अच्छे होते हैं और वे ऐसे अध्यापक को वैसे ही सम्मान देते हैं जैसे अपने मातापिता को.’’

स्टाफरूम में सन्नाटा छा गया.

डा. रत्नाकर भी निरुत्तर हो कर बैठ गए.

‘‘दिन कैसा रहा?’’ दरवाजा खोलते हुए खुश हो कर सोनू ने उत्सुकता प्रकट करते हुए रत्नाकर से पूछा.

‘‘बहुत अच्छा, बस शैलेंद्र ने ही थोड़ा बोर कर दिया पर सोनू, सच कहूं तो उस की बात का बिलकुल बुरा नहीं लगा क्योंकि मुझे अपनी उपलब्धि पर भरपूर सुख का एहसास हो रहा था,’’ डा. रत्नाकर बोले.

‘‘अरे पापा, आप कब आए?’’ कहते हुए शौर्य उन के पास आ कर बैठ गया.

‘‘अभीअभी, बड़ी जरूरी मीटिंग थी, इसीलिए थोड़ा थक गया पर कल तुम को वापस जाना है इसलिए आज हम सब लोग डिनर करने बाहर चलेंगे. शौर्य, तुम अपने टीचर्स के लिए मिठाई और गिफ्ट्स ले जाना, वे खुश हो जाएंगे,’’ रत्नाकर ने शौर्य से कहा.

‘‘पापा, कोई टीचर इस लायक है ही नहीं कि उन को कुछ देने का मन करे, सब पैसे के पीछे भागते हैं, ‘डाउट्स क्लीयर’ करने के बहाने घर बुला कर अच्छीखासी फीस लेते हैं…कुछ तो न जाने कब से कालेज ही नहीं आए… केवल एक राजन सर ऐसे हैं जिन के मैं हमेशा पैर छूता हूं और उन के लिए सच्चे मन से कुछ ले जाना चाहता हूं पर वे लेंगे ही नहीं. उन का कहना है कि हमारा अच्छा रिजल्ट ही उन की उपलब्धि है,’’ कहतेकहते शौर्य भावुक हो उठा.

डा. रत्नाकर की निगाहें झुक गईं. उन का बेटा उन्हीं को ऐसा आईना दिखा रहा था जिस में वे अपना अक्स देखने की स्थिति में ही नहीं थे.

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महिलाएं बन रहीं थायराइड का शिकार

अचानक वजन का बढ़ जाना, बालों का जरूरत से ज्यादा झड़ना इत्यादि लक्षण बतातें हैं कि थायराइड की समस्या बढ़ रही है. वैसे तो बदलती जीवनशैली के चलते दुनिया में लाखों लोग इस समस्या से ग्रसित हैं, मगर यंग लड़कियों से ले कर महिलाएं तक इस का तेजी से शिकार हो रही हैं. एक शोध के अनुसार हर 8 में से 1 महिला इस समस्या से ग्रसित है.

थायराइड ग्लैंड गरदन पर सामने तितली के आकार की ग्रंथि है जो हारमोन बनाती है और ये हारमोन शरीर के भिन्न अंगों के सही काम करने के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं. ये शरीर के मैटाबोलिक रेट के साथसाथ कार्डिएक और पाचन संबंधी काम को सुचारु रखते हैं. मस्तिष्क का विकास, मांसपेशियों पर नियंत्रण और हड्डियों का रखरखाव भी इन्हीं से संभव होता है. थायराइड की गड़बड़ी थायराइड ग्लैंड के काम को प्रभावित करती है. इस से मैटाबोलिज्म के लिए आवश्यक हारमोन बनाने की क्षमता प्रभावित होती है.

महिलाएं ज्यादा प्रभावित क्यों

थायराइड की ज्यादातर गड़बड़ी अपनेआप बेहतर हो जाने वाली प्रक्रिया है यानी एक अच्छी स्थिति है, जिस में मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली हमला करती है और थायराइड ग्रंथि को नष्ट कर देती है. विभिन्न अध्ययनों के मुताबिक औटो इम्यून डिजीज जैसे सीलिएक डिजीज, डायबिटीज मैलिटस टाइप, इनफ्लैमेटरी बोवेल डिजीज, मल्टीपल स्क्लेरोसिस और रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस महिलाओं में आम हैं.

इन बीमारियों का पता लगाने और इलाज में इसलिए देरी होती है, क्योंकि विभिन्न लक्षणों का पता लगाना मुश्किल होता है. औटोइम्यून बीमारियां आयोडीन की कमी से हो सकती हैं. गर्भावस्था में आयोडीन की कमी ज्यादा होती है. इस की कमी से थायराइड हारमोन के स्तर में कमी हो जाती है, जिस से कई परेशानियां हो जाती हैं.

थायराइड की गड़बड़ी की किस्में

हाइपोथायरोडिज्म, हाइपरथायरोडिज्म, थाइरोइडिटिस, थायराइड कैंसर जैसी आम गड़बडि़यां हैं जो पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित करती हैं. इन में से हाइपोथायरोडिज्म, हाइपरथायरोडिज्म महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा होती हैं.

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हाइपोथायरोडिज्म एक तरह की थायराइड गड़बड़ी है जो तब होती है जब थायराइड ग्रंथि की सक्रियता कम होती है और सामान्य के मुकाबले कम हारमोन बनते हैं. इस से शरीर में हारमोन और मैटाबोलिज्म का संतुलन गड़बड़ा जाता है. महिलाओं में हाइपोथायरोडिज्म के सब से आम कारणों में एक है औटोइम्यून डिजीज जिसे हैशिमोटोज डिजीज कहा जाता है. इस में ऐंटीबौडीज धीरेधीरे थायराइड को लक्ष्य करते हैं और थायराइड हारमोन बनाने की इस की क्षमता को नष्ट कर देते हैं. अनुमान है कि 11 महिलाओं में से 1 अपने जीवन में हाइपोथायराइड से ग्रस्त होती है.

हाइपरथायरोडिज्म एक तरह की थायराइड गड़बड़ी है जो तब होती है जब थायराइड ग्रंथि की सक्रियता बढ़ जाती है और सामान्य के मुकाबले ज्यादा हारमोन बनते हैं. ये हारमोन शरीर के मैटाबोलिज्म को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. हाइपरथायरोडिज्म में थायराइड ग्रंथि बड़ी हो जाती है. इस से शरीर का मैटाबोलिज्म बढ़ जाता है और अचानक वजन कम हो जाता है, हृदय की धड़कनें तेज या अनियमित हो जाती हैं और चिंता होती है.

शुरुआती लक्षण

थायराइड की गड़बड़ी अकसर शुरू में नहीं पकड़ी जाती है, क्योंकि इस के लक्षण अस्पष्ट होते हैं. इसे बांझपन, लिपिड डिसऔर्डर, ऐनीमिया या डिप्रैशन समझ कर भ्रमित होने की आशंका रहती है. लक्षण देर से सामने आते हैं. तब तक हुए नुकसान की भरपाई न हो पाने की स्थिति बन जाती है.

हाइपोथायरोडिज्म के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: थकान, शुष्क त्वचा, मांसपेशियों में ऐंठन, कब्ज, ठंड बरदाश्त न कर पाना, सूजी हुई पलकें, वजन अत्यधिक बढ़ना, मासिक अनियमित होना.

हाइपरथायरोडिज्म के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: घबराहट, सोने में परेशानी, वजन कम होना, हथेलियों का गीला रहना, तेज और अनियमित हृदय की धड़कन, भारी आंखें, पलकें झपके बगैर घूरना, नजर में बदलाव, अत्यधिक भूख, पेट की गड़बड़ी, गरमी नहीं झेल पाना.

थायराइड की गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार घटक: थायराइड की बीमारी का पारिवारिक इतिहास, औटोइम्यून स्थिति का साथसाथ मौजूद रहना, गरदन में रैडिएशन का इतिहास, थायराइड की सर्जरी, थायराइड बढ़ जाना.

रोकथाम

थायराइड की गड़बड़ी लाइफस्टाइल से जुड़ी गड़बड़ी नहीं है और पर्याप्त मात्रा में आयोडीन लेने के अलावा किसी और प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है. भारत सरकार द्वारा यूनिवर्सल साल्ट आयोडिनेशन को अपनाए जाने से अब आयोडाइज्ड नमक में पर्याप्त आयोडीन उपलब्ध है.

थायराइड की गड़बड़ी का समय पर पता चल जाए और सही उपचार किया जाए तो इस स्थिति की गंभीरता को बढ़ने से रोका जा सकता है. महिलाओं को साल में 1 बार थायराइड ग्रंथि की जांच जरूर करानी चाहिए ताकि बीमारी का जल्दी पता लग सके और समय से इलाज हो सके.

कैसा हो खानपान

थायराइड की समस्या का पता चल जाने पर अपनी डाइट में ये बदलाव जरूर करें:

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जब कम हो थायराइड: कम थायराइड वालों को अपने डाक्टर की सलाह से कम कैलोरी वाला आहार लेना चाहिए. दिन में 3 बार खाती हैं तो अपने खाने को 5-6 मील में बांट दें. खाना स्किप करने की आदत तो बिलकुल छोड़ दें. खाने में साबूत अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, दलिया, ओट्स, ब्राउन राइस इत्यादि शामिल करें.

प्रोटीन के लिए दालें, दही, बींस, अंडा इत्यादि खाएं. अलगअलग रंगों के फलों और सब्जियों को प्राथमिकता दें और फलों के जूस का सेवन कम करें. ड्राईफू्रट्स का शौक है तो अखरोट आप के लिए अच्छा रहेगा. इस में ओमेगा 3 ऐसिड पाया जाता है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. ऐसी चीजों से दूरी बनाएं जिन में फैट ज्यादा होता है जैसे केक, पेस्ट्री, बटर, मेयोनीज, ब्रैड और पास्ता, प्रौसैस्ड फूड भी फैट बढ़ाता है.

जब थायराइड बढ़ा हो: इस स्थिति में शरीर की ऐनर्जी जल्दी खत्म हो जाती है, इसलिए ऐसी चीजों का सेवन करें जिन से ऐनर्जी भी बनी रहे और वजन भी नियंत्रण में रहे. इस के लिए कौर्न सलाद, लो फैट टोफू या पनीर, सागूदाना, आम, लीची और केला इत्यादि अपनी डाइट में शामिल करें. अंडे के सफेद भाग का भी सेवन कर सकती हैं. मांसाहारी हैं तो फिश खाना सही रहेगा. जंक फूड और आयोडिन रिच फूड से दूरी बनाएं. सी फिश इत्यादि न खाएं.

रेत का समंदर: जब जूलिया मार्टिन की हरीश से हुई मुलाकात

Serial Story: रेत का समंदर (भाग-3)

आधापौना घंटा उन्होंने आराम किया होगा कि अम्माजी ने उन को बाजरे की रोटी और गुड़ की डली थमा दी. साथ में रेगिस्तानी इलाके में मिलने वाली झाड़ी की चटनी भी थी. ऐसा खाना उन के लिए निहायत रूखासूखा था, लेकिन भूख सख्त लगी होने से उन को वह बहुत स्वादिष्ठ लगा. खाना खाने के बाद दोनों पुआल के उसी ढेर पर सो गए.

वह झोंपड़ा रहमत अली खान का था. वह इलाके का जमींदार था. रेगिस्तानी इलाके में खेती कहींकहीं होती थी. शाम ढलते ही रहमत अली खान और उस के चार बेटे ढाणी में आए. एक अनजान ऊंट को, जिस की पीठ पर 2 आदमियों के बैठने वाली कीमती काठी बंधी थी, झोंपड़े के एहाते में चारा खाते देख चौंके.

कौन आया था ढाणी में, कोई पाक रेंजर या सेना का अफसर, लेकिन यहां क्यों आया?

रहमत अली ने झोंपड़े के दरवाजे की सांकल बजाई. अपने बेटे को देखते ही अम्माजी ने उस को अंदर आने का इशारा किया. पुआल पर सो रहे जोड़े को देख कर रहमत अली चौंका, ‘‘कौन हैं ये दोनों?’’

‘‘परली तरफ से भटक कर आया जोड़ा है. रात को चली आंधी में ऊंट भटक गया. सरहद पर लगी बाड़ की तार उखड़ गई होगी.’’

बातचीत की आवाज से जोड़े की नींद खुल गई. दोनों उठ कर बैठ गए.

‘‘सलाम साहब. सलाम मेमसाहब.’’

‘‘सलाम.’’

‘‘यह पाकिस्तानी इलाका है. यह ढाणी मेरी है.’’

‘‘हम भटक कर इधर आ गए.

अब आप ही हमें कोई रास्ता बता दीजिए,’’ हरीश ने विनम्रतापूर्वक उस से कहा.

‘‘अब तो रात होने वाली है. कल सुबह आप को अपने साथ ले चलूंगा,’’ रहमत अली ने उसे आश्वासन देते हुए कहा.

‘‘ठीक है, मेहरबानी,’’ हरीश ने उम्मीद भरी आंखों से देख कर कहा.

रात को उन की अच्छी आवभगत हुई. सुबह अभी पौ भी नहीं फटी थी कि पाकिस्तानी रेंजरों का एक दस्ता ऊंटों पर सवारी करता ढाणी के समीप आ कर रुका. रहमत अली से कइयों का परिचय था. कई बार वे उस के आतिथ्य का आनंद ले चुके थे.

ऊंटों की हुंकार सुन कर रहमत अली के साथ परिवार के कई और लोगों की भी नींद खुल गई. आंखें मलता रहमत अली बाहर आया.

‘‘सलाम, हुजूर.’’

‘‘सलाम, रहमत अली. कैसे हो?’’

ऊंट से उतरते सुपरिंटेंडैंट रेंजर ने पूछा.

‘‘आप की दुआ से सब खैरियत है. बहुत दिनों बाद दीदार हुए आप के. क्या हालचाल हैं?’’

‘‘सब खैरियत है.’’

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सारे रेंजर ढाणी में चले आए. उन की आवभगत हुई, जलपान का इंतजाम हुआ, तभी अहाते में बंधे ऊंटों में हड़कंप सा मच गया. रहमत अली के ऊंटों में एक नया ऊंट आया था. उस अजनबी ऊंट को अपने रेवड़ में शामिल होना ऊंटों को शायद सहन नहीं हुआ था.

‘‘क्या हुआ?’’ सुपरिंटेंडैंट ने पूछा.

‘‘ऊंट शायद लड़ पड़े हैं.’’

‘‘कोई ऊंट किसी ऊंटनी पर आशिक हुआ होगा. उस का दूसरा आशिक उस से लड़ पड़ा होगा.’’

सब खिलखिला कर हंस पड़े. सब उठ कर ऊंटों के रेवड़ तक पहुंचे. एक ऊंट की पीठ पर कीमती काठी बंधी थी.

‘‘इतनी बढि़या काठी तो अमीरलोग या सैरसपाटा करने वाले सैलानियों के ऊंटों पर होती है. यह ऊंट किस का है?’’

रहमत अली हकबकाया, फिर संभल गया.

‘‘हुजूर, कल रात मेरा भतीजा आया था. उस को ऊंट की सवारी का शौक है. ऊंट मेरा है. काठी वह खुद लाया था. कराची में काम करता है.’’

‘‘ओह. अच्छा रहमत अली, खुदा हाफिज.’’

रेंजर ऊंटों पर सवार हुए और चले गए. रहमत अली और सब की जान में जान आई. अगर हरीश और मेमसाहब के बारे में पता चल जाता तो वे पकड़े जाते, साथ में पनाह देने के इलजाम में रहमत अली भी फंसता.

तब तक सब जाग चुके थे. रेंजर के बारे में पता चलने पर हरीश और जूलिया भी चिंता में पड़ गए.

‘‘मेरे पास पाकिस्तान का वीजा तो है लेकिन सब कागजात तो रिसोर्ट के कमरे में हैं,’’ जूलिया ने कहा.

‘‘मेमसाहब, रेंजर अब इलाके में गश्त पर हैं. दिन में बाहर निकलना खतरनाक है. आप को शाम ढलने पर बाहर ले जा सकते हैं,’’ हरीश ने कहा.

‘‘रात के अंधेरे में फिर रास्ता भटक गए तो?’’ हरीश ने घबरा कर पूछा.

‘‘तसल्ली रखो साहब, इलाके का चप्पाचप्पा मेरा पहचाना हुआ है.’’

 

शाम ढल गई. 2 ऊंट ढाणी से बाहर निकले. एक पर हरीश और मेमसाहब सवार थे, दूसरे पर रहमत अली. ऊंट भारतीय सीमा की दिशा में चल पड़े. शाम का धुंधलका अंधेरे में बदल चुका था. गरमी का अब कोई असर नहीं था. मौसम धीरेधीरे ठंडा होता जा रहा था. दोनों ऊंट अपने रास्ते पर चलते लगातार मंजिल की तरफ बढ़ रहे थे.

‘‘सफर कितना बाकी है?’’ जूलिया ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘सिर्फ 1 घंटा और लगेगा,’’ रहमत अली ने कहा.

आंखों पर अंधेरे में भी दिख जाने वाली दूरबीन चढ़ाए पाक रेंजर चौकी के आसपास और भारतीय सीमा की तरफ नजर गड़ाए हुए थे.

‘‘सर, 2 ऊंट भारतीय सीमा की तरफ बढ़ रहे हैं,’’ एक सिपाही ने दूरबीन पर निगाह गड़ाए हुए कहा.

‘‘कौन हो सकते हैं?’’

‘‘पता नहीं, सर, एक ऊंट पर 2 सवार बैठे हैं, दूसरे पर केवल 1 सवार है.’’

‘‘वार्निंग के लिए फायर करो.’’

एक हवाई फायर हुआ. रहमत अली समझ गया. अब उस का देखा जाना खतरे से खाली नहीं था. उस ने बगैर एक क्षण गंवाए अपना ऊंट मोड़ लिया.

‘‘साहब, मैं अब वापस जाता हूं. मैं देख लिया गया तो मुश्किल में पड़ जाऊंगा. अब आप खुद आगे जाओ, खुदा हाफिज.’’

रहमत अली ने ऊंट को एड़ लगाई, ऊंट दौड़ चला.

‘‘अब क्या करें?’’ जूलिया ने सहमी आवाज में पूछा.

‘‘हौसला रखो,’’ हरीश ने कहा और ऊंट की पहले रस्सी खींची और फिर ढीली करते हुए उसे टहोका दिया. ऊंट सरपट रेत पर दौड़ पड़ा.

‘‘सर, एक ऊंट वापस दौड़ गया, दूसरा भारतीय सीमा की तरफ दौड़ रहा है,’’ निगहबानी करने वाले सिपाही ने अपने अधिकारी से कहा.

‘‘वापस जाने वाला सवार और ऊंट तो काबू में नहीं आ सकते, कोई लोकल ही होगा. तुम आगे जा रहे ऊंट और उस पर सवार जोड़े को काबू करो.’’

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पहले एक हवाई फायर हुआ. फिर जमीनी फायरों का सिलसिला शुरू हुआ. उस के बाद कई रेंजर अपनेअपने ऊंटों पर सवार हो उस तरफ लपक पड़े.

चांद आसमान पर चढ़ रहा था. रेत का समंदर चांदनी में ऐसे चमक रहा था जैसे चांदी की चादर बिछी हो. 2 सवारों को रात की पिछली पहर से अपनी पीठ पर ढो रहे ऊंट को जैसे खतरे की गंभीरता का एहसास हो चुका था, वह तेजी से सरपट दौड़ रहा था.

‘‘साहब, कमाल की बात है?’’ एक पाक रेंजर ने अपने साथ दौड़ रहे ऊंट पर सवार अफसर से हैरत में कहा.

‘‘क्या?’’

‘‘भाग रहा ऊंट दोदो सवार उठाए हुए है, लेकिन फिर भी काबू में नहीं आ रहा. हम अकेले सवार हैं लेकिन हमारे ऊंट की स्पीड इतनी नहीं है.’’

‘‘अरे भाई, मौत का डर हर किसी को कुछ ज्यादा ताकत और जोश दिला देता है.’’

भारतीय सीमा में बीती रात को ढह गई तार की बाड़ को भारतीय फौजी ठीक कर रहे थे. उन्होंने हवाई फायरों और फिर जमीनी फायरों की लगातार आवाजें सुनीं. उन्होंने आंखों पर रात के अंधेरे में दिखने वाली दूरबीनें लगा कर देखा. एक ऊंट पर 2 सवार सामने से आ रहे थे.

फौजियों को ध्यान आया कि कल रात से ऊंट पर सवार एक टूरिस्ट जोड़ा लापता था. उन को सारा मामला समझ में आ गया. धीरेधीरे पाक रेंजर पीछा करते आ रहे थे.

भारतीय फौजियों ने फौरन अपना मोरचा संभाल लिया. ऊंट पर सवार जोड़े ने जैसे ही सीमा को पार कर भारतीय सीमा में प्रवेश किया, उन्होंने पहले हवाई फायर किया, फिर सर्चलाइट का प्रकाश फेंका.

पाक रेंजर वापस लौट गए. हरीश और जूलिया देर रात को सेना  की मदद से सुरक्षित अपने रिसोर्ट में पहुंच गए. अपने कमरे में पहुंच उन्होंने राहत की सांस ली. पर तब तक रेत के इस समंदर में सैर करतेकरते जूलिया हरीश को अपना दिल दे चुकी थी. हरीश को भी जूलिया भा गई थी. जब दोनों जयपुर लौटे, हरीश ने अपने घर में दिल की बात कह दी. हरीश के मातापिता सब समझ गए. जूलिया मार्टिन का भी पूरा परिवार भारत आया. दोनों की शादी बहुत धूमधाम से हुई.

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Serial Story: रेत का समंदर (भाग-2)

दृश्य रोमांटिक था. जूलिया ऊंट वाले की आंखों की चमक से उस की शरारत को समझ गई और मुसकराई. हरीश भी मुसकराया. दोनों एक ही ऊंट पर सवार हो गए. ऊंट वाला ऊंट की रस्सी थामे आगेआगे चला. ऊंट हिचकोले खाता, दोनों के शरीर आपस में टकराते, पहले थोड़ा संकोच हुआ फिर दोनों को मजा आने लगा.

ऊंट वाला तजरबेकार था. जोड़ों का इस तरह मौजमस्ती करना और अठखेलियां करना उस का देखाजाना था.

‘‘साहब, ऊंट इस इलाके को पहचानता है. मैं एक जगह बैठ जाता हूं, यह आप को घुमाता रहेगा. इस को बिठाना हो तो इस के कंधे को पांव से हलका टहोका देना. यह बैठ जाएगा. खड़ा करना हो तब भी ऐसा ही करना.’’

ऊंट वाला रस्सी जूलिया को थमा कर एक तरफ चला गया. ऊंट गोलाकार घूमता हुआ एक दायरे से दूसरे दायरे में चलता रहा. दूरदूर तक रेत किसी समंदर के पानी की तरह फैला हुआ था. टिब्बों के पीछे जोड़े एकदूसरे में खोए हुए थे.

हिचकोले लगने से जूलिया और हरीश के शरीर आपस में टकराते, पीछे हटते फिर टकराते. जूलिया एकाएक उचकी और पलट कर सीधी हो हरीश की तरफ मुंह कर के बैठ गई. अब दोनों आमनेसामने थे. सीने से सीना टकरा रहा था. थोड़ी देर ऐसा चला, फिर जूलिया ने बांहें फैला हरीश को अपनी बांहों में भर लिया. हरीश ने ऊंट को पांव का टहोका दिया, वह बैठ गया.

दोनों नीचे उतर रेत के नरम बिस्तर पर जा लेटे. दोनों के हाथ एकदूसरे की तरफ बढ़े, आंखें एकदूसरे में कुछ ढूंढ़ रही थीं दोनों दीनदुनिया से बेखबर धीरेधीरे एकदूसरे में समाते गए.

आसमान में सीधा दिखता चांद धीरेधीरे पश्चिम दिशा की तरफ उतरने लगा. रात गहरी और ठंडी होती गई. देह की उत्तेजना थम चुकी थी. दोनों एकदूसरे की बांहों में समाए मीठी नींद के आगोश में थे. ऊंट भी सो गया था.

शांत शीतल रात के आखिरी पहर में हवा अचानक तेज हो गई. मीठी नींद का आनंद लेते जोड़े अचकचा कर उठ बैठे. सब अपनेअपने कपड़े संभालते ऊंटों पर सवार होने लगे. अनुभवी ऊंट वाले मौसम का रुख समझ गए. रेगिस्तानी आंधी आ रही थी. कइयों ने अपनेअपने ऊंट बिठा दिए और सवारियों को उन के पीछे आंधी थम जाने तक ओट में बैठे रहने को कहा.

जूलिया और हरीश के ऊंट वाले का कहीं पता नहीं था. आंधी अभी बहुत तेज नहीं हुई थी.

‘‘हम ऊंट पर सवार हो कर चलते हैं. गोल चक्कर काट लेते हैं. ऊंट वाला शायद इधरउधर ही हो,’’ जूलिया ने कहा.

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ऊंट धीरेधीरे दायरे में चलने लगा. तभी आंधी एकदम तेज हो गई. घबरा कर ऊंट सरपट दौड़ पड़ा. हरीश ने टहोके पर टहोके दिए. लेकिन थमने के बजाय वह तो तेजी से दौड़ने लगा. हरीश के पीछे बैठी जूलिया ने उस को पीछे से बांहों में कस कर जकड़ लिया.

आंधी का वेग बढ़ता गया. सुहानी चांदनी रात रेतीली अंधियारी रात में बदल गई. तेज अंधड़ का यह भयावना रूप जूलिया को बेसब्र बना रहा था.

वह ऊंची आवाज में लगातार बोले जा रही थी, ‘‘ऊंट को बिठाने की कोशिश करो.’’

हरीश ने रस्सी  कस कर खींची, टहोका दिया. ऊंट धीरेधीरे थमने लगा. सामने एक जंगली झाड़ दिखा. ऊंट वहीं रुक गया. फिर से टहोका देने पर वहीं बैठ गया. दोनों उतर गए. आंधी शांत हो रही थी.

रात बीत चुकी थी. मौसम साफ था. दोनों उठे और ऊंट पर सवार हो गए. ऊंट खड़ा हो चलने लगा. दोनों ने बेचैन नजरों से इधरउधर देखा. हर तरफ जैसे रेत का समंदर फैला था. कहींकहीं रेतीला सपाट मैदान था तो कहीं ऊंचेनीचे रेत के टिब्बे. कहीं भी कोई आबादी, जानवर, आदमी या पेड़पौधे कुछ भी नहीं. सब तरफ रेत ही रेत.

‘‘हम रिसोर्ट से किस दिशा में हैं?’’ जूलिया ने भरसक अपनी घबराहट को काबू में रखते हुए कहा.

जूलिया के इस सवाल का जवाब हरीश क्या देता. उस ने ऊंट की रस्सी को एक बार खींचा और ढीला छोड़ दिया. ऊंट हिचकोले देता धीरेधीरे चल पड़ा. हालात समझ से बाहर थे.

परिस्थिति जो कराए, यही भावना दोनों के भीतर भर रही थी. ऊंट जाने कहां किस लक्ष्य की ओर चल रहा था. दोनों चुपचाप बैठे चारों तरफ देख रहे थे. प्यास से गला सूख रहा था, भूख भी लग आई थी. रात के रोमांस, उमंग और उत्तेजना का अब कहीं कोई वजूद नहीं था, मानो नींद में कोई सुंदर सपना देख लिया हो.

‘‘सुना है इस इलाके के साथ पाकिस्तान का इलाका लगा हुआ है,’’ काफी देर बाद खामोशी तोड़ते हुए जूलिया ने कहा.

‘‘हां, साथ का इलाका पाकिस्तान का है लेकिन सीमा पर कांटेदार बाड़ है.’’

‘‘रेत के तूफान में बाड़ उजड़ भी तो सकती है,’’ जूलिया की आवाज में डर छिपा था.

‘‘आप का मतलब है हम कहीं भटक कर पाकिस्तान की सीमा में तो प्रवेश नहीं कर गए?’’ हरीश चौंका.

‘‘मेरा अंदाजा तो यही है. ऊंट को चलतेचलते 3-4 घंटे हो चुके हैं. अगर हम रिसोर्ट के करीब होते या भारतीय सीमा में होते तो अब तक कहीं न कहीं तो पहुंच गए होते,’’ जूलिया ने बहुत इत्मीनान से परिस्थिति को समझने की कोशिश की.

‘‘थोड़ा आगे चलो, फिर ऊंट की दिशा मोड़ते हैं. पाकिस्तान भारत के पश्चिम में है. सूरज हमारे पूर्व से अब सीधा आसमान में हमारे सिर के ऊपर है. इस हिसाब से हम जैसलमेर के उस टूरिस्ट रिसोर्ट से पश्चिम में हैं. पाकिस्तान में न भी हों, तब भी पश्चिम दिशा में काफी दूर चले आए हैं,’’ अब जैसे हरीश की चेतना भी जगी.

ऊंट आगे बढ़ता रहा.

‘‘प्यास से मेरा गला सूख रहा है,’’ हरीश ने बर्दाश्त न कर पाने की दशा में कह ही दिया.

‘‘अपनी उंगली से अंगूठी उतार कर चूस लो,’’ जूलिया को व्यावहारिक समझ अधिक थी.

हरीश ने ऐसा ही किया. जूलिया भी अपनी उंगली मुंह में डाल कर चूसने लगी. थूक और लार गले की खुश्की को दूर करने लगे. तभी कुछ देख कर हरीश चौंका और जोर से बोला, ‘‘सामने कोई गांव है.’’

कुछ नजदीक पहुंचने पर मिट्टी की कच्ची दीवारों और बांस व पेड़ की डालियों से बने झोपड़े दिखने लगे. वह गांव पाकिस्तानी था या भारतीय, अभी यह समझ में नहीं आ रहा था. सीमा के दोनों तरफ के गांव, खासकर रेगिस्तानी इलाके के गांव एकसमान ही हैं. आखिर भारत और पाकिस्तान कभी एक देश ही तो थे.

‘‘यह गांव भारतीय है या पाकिस्तानी?’’ जूलिया ने पूछा.

‘‘रेगिस्तानी इलाके में जहांतहां ऐसे कुछेक झोंपड़े बने होते हैं, इन को ढाणी कहा जाता है, गांव नहीं. ढाणी भारतीय इलाके में हो या पाकिस्तानी इलाके में, एक समान ही दिखते हैं. यहां के लोगों का पहनावा, खानपान और बोली सब एक जैसी होती है.’’

‘‘अगर यह ढाणी पाकिस्तान में हुई तो?’’

‘‘देखा जाएगा. प्यास से गला खुश्क है, भूख से अंतडि़यां सूख रही हैं. ऊंट भी प्यासा है, अब वहीं चलते हैं.’’

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ऊंट ढाणी के करीब पहुंचा. आसमान पर चढ़ता सूरज आग बरसा रहा था. दोपहर अभी चढ़ी नहीं थी लेकिन गरमी से धरती और आसमान सब तप रहा था.

ढाणी में मुश्किल से 10-12 झोपडि़यां थीं. सब के दरवाजे बंद थे. एक बड़े एहाते में एक बड़ा पोखर था जिस में जमा पानी का रंग लगभग हरा था. उस के किनारों पर काई जमा थी.

ऊंट पानी देखते ही मचला. हरीश ने टहोका दिया. ऊंट बैठ गया. दोनों के उतरते ही ऊंट पानी के पोखर की तरफ लपका और सड़ापसड़ाप की आवाज के साथ पानी गटकने लगा.

प्यास से गला तो जूलिया और हरीश का भी सूख रहा था, लेकिन दोनों ऊंट की तरह पोखर का पुराना, काई वाला पानी कैसे पीते?

दोनों ने चारों तरफ नजर दौड़ाई. पोखर के चारों तरफ झोंपडि़यों के दरवाजे बंद थे. किस का दरवाजा खटखटाएं. तभी सामने की झोंपड़ी का दरवाजा खुला. एक वृद्धा ने, जिस ने झालरचुनटदार घाघरा व चोली पहन रखी थी और सिर पर दुपट्टा डाल रखा था, दरवाजे से बाहर झांका.

एक वृद्धा को यों देख हरीश उस के घर के दरवाजे के सामने गया और बोला, ‘‘अम्माजी, पांय लागूं.’’

‘‘जीते रहो, बेटा. यहां कैसे आए?’’

‘‘आंधी में ऊंट रास्ता भटक कर इधर चला आया.’’

‘‘कहां से आए हो?’’

‘‘जैसलमेर से.’’

‘‘हाय रब्बा, यह तो मुन्ना बाओ का इलाका है, पाकिस्तान है. यहां रेंजरों ने तुम्हें देख लिया तो गोली मार देंगे. जल्दी से अंदर चले आओ.’’

जूलिया मार्टिन का अंदाजा सही था. रेत के तूफान में ऊंट रास्ता भटक कर पाकिस्तान में प्रवेश कर गया था. अब सामने हर पल खतरा दिख रहा था.

‘‘ऊंट को दरवाजे के खंभे के साथ बांध दो और जल्दी से अंदर आ जाओ,’’ अनजान वृद्धा ने चाव और अपनेपन से  कहा.

दोनों ऐसा ही कर जल्दी से झोंपड़े के अंदर चले गए. मिट्टी या गारे की दीवारों से बने उस झोंपड़े में गरमी के मौसम में भी ठंडक थी. मटके का पानी बर्फ के समान शीतल था. गड़वा के बाद गड़वा, लगातार कई गड़वे पानी दोनों ने पिया. फिर अम्माजी ने उन को गुड़ का मीठा ठंडा शरबत पीने को दिया. दोनों फर्श पर पड़े फूस के ढेर पर जा लेटे. अम्माजी बाहर जा कर ऊंट को पुआल और चारा डाल आईं.

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Serial Story: रेत का समंदर (भाग-1)

हवामहल से बाहर आ कर जूलिया मार्टिन ने इधरउधर देखा, थोड़ी दूर पर आटोरिकशा स्टैंड था, जहां पर काले रंग पर पीली पट्टी वाले कई आटोरिकशा कतार में खड़े थे. सधे कदमों से चलती वह वहां तक पहुंची.

सलवारकमीज पहने और कंधे पर खादी का झोला लटकाए एक अंगरेज मेमसाहब को अपने आटो के समीप आते देख जींस और टीशर्ट पहने दरम्यानी कदकाठी और चुस्त शरीर वाला चालक अपने आटो से बाहर आ गया.

‘‘फोर्ट औफ आमेर,’’ जूलिया ने केवल इतना कहा.

हामी में सिर हिलाते चालक ने पिछली सीट पर बैठने का इशारा किया. सवारी के बैठते ही वह आटो ले कर चल पड़ा.

जूलिया मार्टिन इंगलैंड से भारत घूमने के लिए आई थी. कई शहरों और दर्शनीय स्थलों से घूमघाम कर अब वह जयपुर और राजस्थान के दूसरे दर्शनीय स्थलों को देखने आई थी.

आटोरिकशा को आमेर के किले के बाहर इंतजार करने को कह कर वह किला देखने अंदर चली गई. 2 घंटे बाद बाहर आई तो उस ने देखा आटो चालक पिछली सीट पर अधलेटा सो रहा था. एक बार उस ने सोचा कि उस को झिंझोड़ कर उठा दे. फिर यह सोच कर कि नींद से जगाना ठीक नहीं, वह चालक वाली सीट पर बैठ कर इंतजार करने लगी. और उसे पता भी नहीं चला कि कब वह ऊंघतेऊंघते सो गई.

किले से बाहर आते पर्यटकों ने इस अजीब नजारे को हैरत से देखा. यात्री तो चालक सीट पर बैठा हैंडल पर सिर रखे सो रहा था जबकि चालक पिछली सीट पर अधलेटा सो रहा था.

पहले कौन जागा पता नहीं. घंटेभर बाद दोनों की नींद टूटी. गरम दोपहरी, हलकी-हलकी हवा देती शाम में बदल गई थी.

‘‘मेमसाहब,’’ थोड़ा सकुचाते हुए आटो चालक यानी हरीश बोला.

‘‘डोंट माइंड, आई वाज आल्सो टायर्ड.’’

टूटीफूटी अंगरेजी बोलने और काम  लायक समझने वाला हरीश मुसकराया. जूलिया मार्टिन भी मुसकराई. वह हंसते हुए पिछली सीट पर आ बैठी. आटो स्टार्ट कर हरीश ने सिर घुमा कर उस की तरफ सवालिया लहजे में देखा.

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‘‘बैक टू जयपुर.’’

आटोरिकशा के जयपुर पहुंचतेपहुंचते शाम का अंधेरा छा गया था. उस के बताए लौज के बाहर आटो रोक हरीश ने उस की तरफ देखा.

‘‘कितना चार्ज हुआ?’’

हरीश हिसाब लगाने लगा. आनेजाने का किराया उतना नहीं था जितना समय का चार्ज था. लेकिन वह खुद भी तो झपकी लगतेलगते सो गया था.

‘‘मेमसाहब, जो ठीक समझें, दे दें.’’

इस सादगी भरे जवाब में जूलिया मुसकराई. अभी तक उस का वास्ता ज्यादा पैसा ऐंठने वाले आटो चालकों और दुकानदारों से पड़ा था. उस ने 500-500 रुपए के 2 नोट निकाले और उस की तरफ बढ़ाए. सकुचाते हुए हरीश ने एक नोट थाम लिया और कहा, ‘‘इतना काफी है.’’

हरीश के व्यवहार ने जूलिया मार्टिन को बहुत ही प्रभावित किया.

‘‘कल सुबह यहां आ जाना, 10 बजे,’’ कहती हुई जूलिया मार्टिन लौज के अंदर चली गई. हरीश भी आटो आगे बढ़ा ले चला. अब उस का दिल और अधिक दिहाड़ी बनाने का नहीं था. वह सीधे अपने घर पहुंचा.

उस की मां ने उस को जल्दी आया देख कर पूछा, ‘‘आज जल्दी आ गया?’’

‘‘आज एक अंगरेज मेमसाहब मिल गई थी. उस से सारे दिन की दिहाड़ी बन गई,’’ फिर उस ने सारा वाकेआ बताया. मां के साथ उस के वृद्ध पिता और छोटी बहन भी खिलखिला कर हंस पड़ी.

अगले दिन हरीश 10 बजे लौज के बाहर आटोरिकशा ले कर जा पहुंचा. जूलिया जैसे उसी का इंतजार कर रही थी. वह लपकती सी बाहर चली आई.

‘‘आज कहां?’’ हरीश ने पूछा.

‘‘सारा जयपुर.’’

‘‘ठीक है. तेल का खर्चा आप का, मेरी दिहाड़ी 500 रुपए.’’

‘‘ऐसा हिसाब हमारे यहां नहीं होता.’’

‘‘तब कैसा होता है?’’

‘‘वहां तो काफी महंगा पड़ता है. चालक और गाड़ी का किराया अलग, तेल व मरम्मत खर्च अलग.’’

‘‘मैडम, मैं तो सोचता हूं कि भारत के बनिए ही पैसा ऐंठने में चालाक हैं, अब आप के हिसाब से तो आप अंगरेज ज्यादा चालाक हैं.’’

‘‘बातें बढि़या करते हो. आटो चलाओ, सारा दिन तुम्हारी बातें सुनूंगी,’’ जूलिया मार्टिन ने हंसते हुए कहा.

हरीश भी हंसा. आटो पूरे दिन जयपुर के छोटेबड़े बाजार, हर टूरिस्ट स्पौट पर घूमता रहा. सुबह हरीश ने टंकी फुल भरवा ली थी. शाम को जूलिया ने दोबारा टंकी फुल भरवा दी और भुगतान कर दिया.

दिनभर उन के बीच हलकाफुलका हंसीमजाक होता रहा. दोनों ने साथसाथ कभी ढाबे में, कभी होटल में खायापिया. उस के इसरार पर हरीश उस के साथ टूरिस्ट स्पौट भी देखने गया. हरीश उस शाम भी जल्दी घर लौट आया. अगले दिन जयपुर के बाहरी इलाकों वाले टूरिस्ट स्पौट्स देखने का कार्यक्रम बना. 3-4 दिनों तक यही सिलसिला चला.

‘‘हरीश, वह मेमसाहब तेरे पीछे पड़ गई है क्या?’’ मां ने पूछा.

‘‘पता नहीं, एक सवारी है. जहां वह कहती है, उसे घुमा देता हूं.’’

‘‘शहर में और भी तो आटोरिकशा वाले हैं?’’

हरीश खामोश रहा.

अगले दिन जूलिया मार्टिन ने उस को अपने लौज के कमरे में बुलाया.

‘‘आप के परिवार में कौनकौन हैं?’’

‘‘मेरे मातापिता हैं. छोटी बहन है. बात क्या है?’’

‘‘मैं समाज विज्ञान के एक टौपिक पर शोध कर रही हूं, जिस का ताल्लुक भारतीय समाज से है. इसी सिलसिले में भारत घूमने आई हूं. तथ्य इकट्ठे करने के लिए आप के परिवार से मिलना चाहती हूं.’’

हरीश को बात समझ में आ गई. वह जूलिया को अपने घर ले गया. एक अंगरेज युवती को पंजाबी सलवारकमीज पहने और चुन्नी डाले देख हरीश की

मां बड़ी हैरान हुईं. उन को यह जान कर हैरानी हुई कि वह एक रिसर्च स्कौलर थी.

भारतीय परिवार कैसे होते हैं? रहते कैसे हैं? हालांकि उन की जीवनशैली पर सैकड़ों शोध पहले हो चुके थे लेकिन अब जूलिया भी इस विषय पर रिसर्च कर रही थी.

जूलिया का हरीश के घर आनाजाना शुरू हो गया. हरीश के साथ उस का जयपुर की गलियों, महल्लों में घूमनाफिरना भी होने लगा.

‘‘आप मेरे साथ राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में घूमने चलोगे?’’ एक शाम जूलिया ने पूछा.

‘‘जरूर चलूंगा,’’ हरीश कह तो आया, लेकिन घर में मां ने पूछा, ‘‘तेरी दिहाड़ी का क्या होगा?’’

पहले तो हरीश अचकचाया, फिर जवाब दिया, ‘‘मेमसाहब देंगी.’’

‘‘घुमानेफिराने के लिए गाइड होते हैं?’’

‘‘वह मुझे गाइड ही बनाना चाहती है.’’

‘‘भैया, गाइड बनतेबनते कुछ और न बन जाना,’’ छोटी बहन शरारती लहजे  में बोली.

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टूरिस्ट बस ने जूलिया और उस के गाइड हरीश को जैसलमेर के रेगिस्तानी इलाके में एक टूरिस्ट रिसौर्ट के पास उतार दिया. वहां का प्रति यात्री किराया हरीश को हैरानपरेशान कर देने वाला था, लेकिन मेमसाहब के लिए यह सामान्य बात थी.

मौजमस्ती के कार्यक्रमों में ऊंटों पर रेगिस्तान के सुदूरवर्ती इलाकों का भ्रमण और खानापीना, यही वहां का मुख्य आकर्षण था.

गोरी मेमों को ऊंटों पर बिठा कर चांद की रोशनी में रेत के विशाल मैदान दिखाना, जो किसी समंदर के समान दिखते थे, अलगअलग दिशाओं में सैर करवाना, उन्हें राजस्थानी लोकगीत व नृत्य सुनाना, दिखाना वहां के ऊंट वाले और स्थानीय निवासी बड़े उत्साह से करते. पर्यटक भी शांत व ठंडी हवा में टिब्बों की आड़ में मौजमस्ती करने का अवसर पा कर विशेष उत्साहित होते थे.

‘‘आप इस इलाके में कभी आए हो?’’

‘‘नहीं, मैं ने सारा राजस्थान नहीं देखा,’’ हरीश ने कहा.

‘‘मेमसाहब, आप और साहब अलगअलग ऊंट ले कर क्या करेंगे? एक ही ऊंट काफी है,’’ किराए पर ऊंट देने वाले ने कहा.

‘‘एक ऊंट पर दोनों कैसे बैठेंगे?’’

‘‘वह देखिए, सामने कई जोड़े एक ही ऊंट पर बैठे चले जा रहे हैं,’’ रेत के विस्तार में हौलेहौले जा रहे ऊंटों पर सवार जोड़ों की तरफ इशारा करते हुए ऊंट वाले ने कहा.

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Bigg Boss 14 को झेलना पड़ेगा सुशांत के फैंस का गुस्सा, Boycott की हो रही है मांग

कलर्स टीवी के पौपुलर रियलिटी शो बिग बौस का फैंस को हर साल इंतजार रहता है. लेकिन इस साल कुछ अलग ही किस्सा छाया हुआ है. दरअसल, बिग बॉस 14 का प्रोमो हाल ही में सोशलमीडिया पर शेयर किया गया है, जिसे देखकर कुछ फैंस शो को देखने के लिए बेकरार हो रहे हैं तो वहीं कुछ सलमान खान को ट्रोल करने पर लगे हुए हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला….

सितम्बर में औन एयर होगा शो

सलमान खान का पौपुलर रियलिटी शो बिग बॉस का 14वां सीजन 27 सितम्बर से कलर्स पर ऑन एयर होने जा रहा है, जिसकी शूटिंग शो शुरू होने से दो दिन पहले  की जाएगी. वहीं होस्ट सलमान खान पनवेल स्थित अपने फार्म हाउस से ही इस बार शो को शूटिंग करेंगे. साथ ही कहा जा रहा है कि सलमान खान ने शो के सारे प्रोमो इसी फार्म हाउस में रहकर शूट किए हैं.


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सुशांत के सुसाइड पर सलमान भी हैं निशाने पर

एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) के सुसाइड के बाद से बौलीवुड की कई बड़ी हस्तियां और स्टार किड्स ट्रोलर्स के निशाने पर हैं, जिनमें सलमान खान का नाम भी शामिल है. सुशांत की असमय मौत की एक बड़ी वजह नेपोटिज्म बताई जा रही है.

जिसके चलते सलमान खान (Salman Khan) को भी फैंस ने आड़े हाथों लिया था, जिसके बाद अब प्रोमो रिलीज होने के बाद सुशांत के फैंस शो को बौयकौट करने की मांग कर रहे हैं. साथ ट्विटर पर सलमान खान को ट्रोल भी कर रहे हैं.

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बता दें, सुर्खियों में रहने वाले शो बिग बौस के 14वें सीजन में इस बार खबर है कि विशाल सलाथिया, चाहत खन्ना, शुभांगी अत्रे, अध्ययन सुमन, तेजस्वी प्रकाश जैसे कई पौपुलर सेलेब्स नजर आएंगे. हालांकि अभी औफिशियल तौर पर किसी का नाम पक्का नहीं किया गया है.

बॉलीवुड के लिए एक और बुरी खबर, 61 की उम्र में संजय दत्त को हुआ लंग कैंसर

अभी 8 अगस्त को अचानक सांस लेने की तकलीफ के चलते संजय दत्त को मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती किया गया था. जहां उनका कोरोनावायरस का टेस्ट भी किया गया और उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई. पर जब डॉक्टरों ने उनके स्वास्थ्य की गंभीर जांच की, तो पता चला कि उन्हें फेफड़े का कैंसर है .इस बात को मशहूर फिल्म समीक्षक कोमल नाहटा ने ट्वीट करके बताया है. जबकि लीलावती अस्पताल से संजय दत्त को कल यानी कि 11 अगस्त सुबह घर जाने की छुट्टी मिल गई थी.

लेकिन शाम होते-होते खुद संजय दत्त ने ट्वीट करके कहा कि वह अपना इलाज कराने के लिए कुछ दिनों के लिए भारत से बाहर जा रहे हैं. इस वजह से वह कुछ समय के लिए अभिनय से दूरी भी बना रहे हैं. अपने ट्वीट में संजय दत्त ने अपने प्रशंसकों से कहा कि वह निराश  और परेशान ना हो. क्योंकि वह जल्द ही स्वस्थ होकर फिर से अभिनय के मैदान में सक्रिय हो जाएंगे.

लेकिन अपने दूध में में संजय दत्त ने अपनी बीमारी को लेकर कुछ भी नहीं लिखा .उसके बाद  कोमल नाहटा ने क्यूट करके करके पूरे संसार को बताया कि संजय दत्त फेफड़े के कैंसर से पीड़ित हैं और यह भी बहुत ही एडवांस स्टेज पर है, जिसका इलाज आसानी से संभव है.

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वैसे संजय दत्त पिछले 5 महीने से अपने परिवार से दूर हैं .उनकी पत्नी मान्यता दत्त और दोनों बच्चे लॉकडाउन शुरू होने के पहले से ही दुबई में है. अब जब संजय दत्त अमेरिका जाएंगे ,तो मान्यता दत्त दुबई से सीधे अमेरिका जाएंगी या मुंबई के पास आएगी इस संबंध में अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ है.

अभी कल ही खबर आई थी कि यशराज फिल्म्स  ने इस सप्ताह से शुरू होने वाली फिल्म” शमशेरा ” की  7 दिन की बकाया शूटिंग स्थगित  कर दी गई है और यह निर्णय इस आधार पर लिया गया है कि डॉक्टरों ने संजय दत्त को कुछ दिनों तक आराम करने की सलाह दी है.अब” शमशेरा” की शूटिंग कब शुरू होगी ?इसको लेकर संशय बन गया है. ज्ञातव्य है कि रणबीर कपूर की यह महत्वाकांक्षी फिल्म है, जिसमें वह दोहरी भूमिका निभा रहे हैं. और इस फिल्म की सिर्फ 7 दिन की शूटिंग बाकी है, जिसमें से तीन की शूटिंग संजय दत्त को करनी है.

बॉलीवुड मैं इससे पहले भी मनीषा कोइराला, सोनाली बेंद्रे सहित कई कलाकार कई कलाकार और “बर्फी” जैसी फिल्म के निर्देशक अनुराग बसु कैंसर पीड़ित होने पर अपना इलाज कर स्वस्थ हो चुके हैं. अनुराग बसु को दिमाग से कैंसर की गंभीर बीमारी थी, जिसका इलाज पूरे 3 साल तक चला था. और वह पिछले 10 वर्षों से एकदम स्वस्थ है, काम भी कर रहे हैं. कैंसर का इलाज कराने के बाद ही उन्होंने फिल्म “बर्फी” का निर्देशन किया था. और उन्हें तो अब कैंसर सर्वाइवर के लिए कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. मगर इसी वर्ष ऋषि कपूर और इरफान खान की कैंसर की बीमारी की ही वजह से मौत भी हो चुकी है. लेकिन लोगों का मानना है कि अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में कैंसर का सफल इलाज संभव है सोनाली बेंद्रे ने अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में ही कैंसर का इलाज करवाया था. इसी वजह से संजय दत्त भी अमेरिका जा रहे हैं. पर संजय दत्त ने अभी तक खुलासा नहीं किया है कि वह भारत के बाहर कहां अपना इलाज कराने जा रहे हैं.

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सारे अवसर बंद हो गए

इस गुस्से की ट्रेनिंग कौन देता  है? अपने घर के बाहर मोटरसाइकिल पर स्टंट करने को मना करने पर 3 लड़कों ने एक 25 साला युवक को मारापीटा ही नहीं 28 बार चाकू मार कर दिनदहाड़े खुलेआम उस की हत्या कर दी. सभ्य समाज का दावा करने वाले पूजापाठी लोगों में से कोई राहगीर आगे नहीं आया कि इस अत्याचार को रोक ले. पुलिस ने इन तीनों को पकड़ लिया है पर ये शायद 18 साल से कम के हैं, हलकी सी सजा के बाद मुक्त हो जाएंगे.

दिल्ली के पास ही एक बोर्डिंग स्कूल में 14 साल की किशोरी ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसे उस के साथी परेशान करते थे. स्कूल वालों ने उस का जल्दबाजी में दहन भी कर दिया ताकि ज्यादा पूछताछ न हो.

हम जो शिक्षा आज अपने किशोरों और युवाओं को दे रहे हैं उस में पूजापाठ तो बहुत है पर तर्क व सत्य की जगह नहीं है. एक सभ्य व उन्नत समाज के लिए यह आवश्यक है.

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भेड़चाल या नियमों को तोड़ने की प्रवृत्ति हर समाज में होती है पर जहां कहीं और रोमांच नहीं मिलता, वहां कुछ नया करने के लिए नहीं मिलता वहां घर या आसपास के नियम तोड़े जाते हैं.

आज हमारा समाज ऐसे माहौल में है जहां युवाओं और किशोरों के सामने घना अंधेरा है. लड़कियों का केवल शादी में भविष्य दिख रहा है तो लड़कों को केवल उद्दंडता व गुंडई वाली राजनीति में. कुछ करने के सारे अवसर बंद हो गए हैं.

आधुनिक तकनीकों के कारण आज भूखा तो कोई नहीं रहता पर यह जवान होते लोगों के लिए काफी नहीं है. उन्हें कुछ करने की इच्छा होती है पर न बैकपैक बांध कर पहाड़ पर चढ़ने की सुविधा है न नदियां, समुद्र पार करने की. जो पढ़ाई कराई जा रही है वह इतनी छिछली है कि अधिकांश किशोर व नवयुवक पढ़ भी नहीं सकते और किताबों का रोमांच भी उन से दूर है.

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रहासहा मोबाइल है, जिस में टिकटौक जैसे ऐप पर वे नाचगा कर अपने करतब दूसरों को दिखा पाते हैं. पर यह नाकाफी है. लाइक्स से जिंदगी नहीं बनती. आसपास के लोगों की आबादी की कमी थोड़े से डिवाइस के नाटकों से पूरी नहीं हो सकती.

हत्या कर कानून हाथ में लेना, डिप्रैस होना, आत्महत्या करना एक बड़ी समस्या का अंग है. अफसोस है कि कर्जधारों को इस की चिंता नहीं है.

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