परफेक्ट लुक के लिये स्टेप बाई स्टेप मेकअप

कविता बहुत मेहनत से अपना मेकअप करती थी इसके बाद भी वह खुद कभी अपने मेकअप से खुष नही रहती थी. उसको लगता था कि मेकअप करने के बाद उसकी खूबसूरती छिप जाती है. कविता ने अपनी ब्यूटी एक्सपर्ट को यह परेषानी बतायी. तब उसे पता चला कि मेकअप एक कला है. खूबसूरती से किया गया मेकअप आपको ग्लैमरस और दिलकष बनाता है. जिससे एक परफेक्ट लुक मिलता है. जिसे देखकर हर कोई यही कहता है क्या हसीन लग रही हो. मेकअप को अगर सिलसिलेवार समझदारी से किया जाये तो यह सवाल कोई नहीं करेगा कि आपने किस ब्यूटी पार्लर से मेकअप कराया है ?

लखनऊ की प्रोफेशनल मेकअप आर्टिस्ट और नेल आर्ट एक्सपर्ट कोमल महेन्द्रू स्टाइल्ज सैलून की डायरेक्टर है. कोमल पिछले 9 साल से मेकअप आर्ट के क्षेत्र में काम कर रही है. लखनऊ में उनके 2 मेकअप सैलून है. कोमल कहती है खुद का मेकअप करने और किसी आर्टिस्ट के द्वारा मेकअप करने में हमेषा अंतर होता है. यह जरूर है कि कभी अचानक मेकअप की जरूरत पड जाये या आपके पास सैलून तक जाने का समय ना हो तो आप खुद का मेकअप भी कर सकती है. जानकारी के साथ मेकअप करेगी तो उसे देखकर कोई यह नहीं समझ पायेगा कि यह मेकअप आपने किया या सैलून में कराया है. परफेक्ट, हसीन और ग्लैमरस बनाने के लिये जरूरी है कि ‘स्टेप बाई स्टेप’ मेकअप किया जाये. इस तरह के मेकअप के लिये पेष है कुछ टिप्स:

1. क्लीजिंग मिल्क से चेहरे को ठीक तरह से साफ करे. मेकअप ज्यादा देर टिकाने के लिये फेस की आइसिंग करे. स्किन पर आइस लगने से पसीना नही निकलता जिससे मेकअप ज्यादा देर तक टिका रहता है. आजकल वाटर प्रूफ मेकअप भी होता है. जो पसीना की परेषानी से मुक्ति दिलाता है.

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2. मेकअप के समय डार्क सरकल और झांइया बहुत परेषानी खडी करती है. डार्क सरकल और झांइयों को छिपाने के लिये कंसीलर का प्रयोग करे. कंसीलर लगाने से स्किन एक जैसी दिखाई देती है. स्किन में जो दाग धब्बे दिख रहे थे वह इसके बाद नहीं दिखते.

3. चेहरे के रंग को एक सा दिखाने के लिये फाउडेंषन का प्रयोग करे. यह स्किन के रंग से मेल खाता हुआ होना चाहिये. फाउडेंषन में थोडा सा माष्चराइजर मिला ले. माष्चराइजर मिलाने के बाद फाउडेंषन अच्छी तरह से काम करता है. इससे फेस एक जैसे लुक में दिखने लगता है.

4. इसके बाद चेहरे पर लूज पाउडर या काम्पेक्ट पाउडर लगाये. फेस और गरदन के आसपास की स्किन अगल तरह की न दिखे इसके लिये काम्पेक्ट या लूज पाउडर का प्रयोग चेहरे के अलावा गरदन और कानों के आसपास भी करे. ऐसा ना करने से कई बार फोटो में फेस का कलर साफ दिखता है और गरदन की स्किन अलग रंग की दिखने लगती है.

5.  गालों पर ब्लषर का प्रयोग करे. ब्लषर गोलाई में घुमाते हुये लगाये. ब्लषर लगाने से गालों में उभार दिखेगा. जो फेस को ग्लो लुक देता है. ब्लषर माथे, नाक और ठुड्डी पर भी लगाये. ब्लषर को गोलाकार लगाये. हल्के रंग का ब्लषर प्रयोग करे.

6. चेहरे के बाद आई मेकअप सबसे खास होता है. आई मेकअप की षुरूआत आईब्रो पेंसिल से करे. इसके लिये आईब्रो पेंसिल से आईब्रो की षेप को सही करे. कपडो से मैच करते हुये आईषैडों का प्रयोग करे. अगर आपको रात की पार्टी के लिये मेकअप करना है तो षिमरिंग आईषैडों भी लगा सकती है.

7. इसके बाद आई लाइनर का प्रयोग करे. काले और भूरे रंग का आईलाइनर ज्यादा अच्छा लगता है. दिन में आइलाइनर की पतली लाइन और रात के लिये मोटी लाइन बनाये. आई लैषेज को घना दिखाने के लिये मस्कारा लगाये.

8. अगर होठों पर लिपस्टिक रूकती न हो तो लिपस्टिक लगाने के पहले होठों पर हल्का सा पाउडर लगाये. इसके बाद लिपलाइनर से आउटलाइन बनाये. आउटलाइन के अंदर लिपस्टिक भरे. अगर आप अपने होठो को पतला दिखाना चाहते हो तो आउटलाइन होठों के भीतर की तरफ बनाये. अगर आप होठो को भरा भरा दिखना चाहती है तो आउटलाइन बाहर की तरफ लगाये. लिपस्टिक लगाने के लिये लिपब्रष का प्रयोग करना ज्यादा सही रहता है.

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9. लिपस्टिक के कलर का चयन बहुत सावधानी से करना चाहिये. लिपस्टिक का चयन पोषाक के रंग हिसाब से करे. मैट शेड्स का प्रयोग सभी ड्रेस पर अच्छा लगता है. अगर आप होठो को चमकदार दिखाना हो तो ग्लोसी लिपस्टिक या लिप ग्लास का प्रयोग कर सकती है. इस तरह से स्टेप बाई स्टेप मेकअप करके आप सुदंर दिख सकती है.

makeup

जानें किस बीमारी से गुजर रहीं हैं बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनम कपूर

सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट के जरिए अक्सर ट्रोल होने वाली बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनम कपूर ने हाल ही में
वीडियो के जरिए इंस्टाग्राम पर स्टोरीटाइम विद सोनम’ की पहली कड़ी में उन्होंने अपने दर्द को दुनिया के सामने शेयर किया है. वीडियो शेयर करते हुए उन्होंने बताया कि वो पीसीओस जैसी बीमारी से ग्रस्त हैं .सोनम कपूर ने अपना अनुभव शेयर करते हुए महिलाओं को इस बीमारी से बचने के टिप्स दिए हैं.

एक बहुत ही गंभीर स्थिति है

उन्होंने वीडियो को पोस्ट कर लिखा: “हाय गाइज, कुछ निजी बताने जा रही हूं. मैं पीसीओस जैसी बीमारी से कई वक्त से गुजर रही हूं. पीसीओएस या पीसीओडी एक सामान्य बीमारी है, जिसे कई महिलाएं पीड़ित होती हैं. यह भी एक बहुत ही गंभीर स्थिति है, क्योंकि सभी के मामले, लक्षण और संघर्ष अलग हैं.

 

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Hi guys, going to share something personal here. I’ve been struggling with PCOS (Polycystic Ovary Syndrome) for quite some time now. PCOS, or PCOD, is a very common condition that a lot of women live with. It’s also an extremely confusing condition since everyone’s cases, symptoms and struggles are different. I’ve finally figured out what helps me after years of trying several diets, workouts and routines, and I want to share my tips for managing PCOS with you! Having said that, PCOS manifests in different ways, and I urge you to visit a doctor before you self-medicate or self-prescribe. Do you have any other PCOS hacks and tips? Let me know what helps you in the comments! #PCOS#PCOD#StoryTimeWithSonam #LivingWithPCOS

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पीसीओएस अलग-अलग तरीकों से होता है

मैंने फाइनली ये जान लिया है कि डाइट, वर्कआउट और अच्छे दिनचर्या से मुझे मदद मिलती है. मैं आपके साथ पीसीओएस को मैनेज के लिए अपने सुझाव शेयर करना चाहती हूं कि पीसीओएस अलग-अलग तरीकों से होता है और मैं आपसे खुद के डॉक्टर बनने या खुद ही कुछ उपाय करने से पहले किसी डॉक्टर से मिलने का आग्रह करती हूं.”

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14 या 15 साल से पीड़ित हूं

उन्होंने अपनी वीडियो में बताया- मैं कई सालों से इससे पीड़ित हूं, जब मैं 14 या 15 की थी और इसकी वजह से मेरे अस्तित्व का प्रतिबंध रहा है. मैं अपनी मदद के लिए कई डॉक्टरों और आहार विशेषज्ञों के पास गई और अभी, मैं एक अच्छी जगह पर हूं. मुझे लगा कि मैं अपनी सीख आप लोगों के साथ शेयर करूं.

एक्सरसाइज करें और चीनी का सेवन ना करें

इसके अलावा पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) या पीसीओडी ने निपटने के लिए उन्होंने कुछ टिप्स भी दिए. उन्होंने एक्सरसाइज, योगा इसके साथ ही उन्होंने चीनी का बेहद घातक बताया है, उन्होंने बताया कि कैसे चीनी का सेवन छोड़ने के बाद कैसे उन्होंने अपने अंदर बदलाव पाया है.

आखिर क्या है PCOS / PCOD

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) और पॉली सिस्टिक ओवरी डिसऑर्डर (PCOD) एक ऐसी मेडिकल कंडिशन है, जो आमतौर पर रिप्रोडक्टिव उम्र की महिलाओं में हॉर्मोनल असंतुलन के कारण पाई जाती है. इसमें महिला के शरीर में मेल हॉरमोन का लेवल बढ़ जाता है और ओवरीज़ पर एक से ज़्यादा सिस्ट हो जाते हैं. पीसीओएस का इलाज संभव है, लेकिन यदि काफी समय तक इसका इलाज न किया जाए तो गंभीर रूप ले सकती है.

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मां-बाप पर डिपेंड होना मतलब उनका हुक्म मानना

कोरोना ने सबकी जिंदगी को बदल कर रख दिया है. किसी को फाइनेंसियली , किसी को सोशलली , किसी को पोलिटिकली किसी किसी तरह से प्रभावित किया है. बात अगर युवाओं की करें तो कोरोना ने उन्हें घर बैठा दिया है. लाखों युवाओं की नौकरियां गई हैं, जिसके चलते वे घर पर बैठने पर मजबूर हो गए हैं. यहां पर जब हम घर की बात कर रहे हैं तो इसका मतलब मां बाप का घर है

क्योंकि जो युवा पहले अपनी आजाद और मौजमस्ती वाली जिंदगी जीने के लिए मां बाप से दूर किराए के कमरे में रहते थे, या फिर पी जी में रहते थे या फिर दोस्तों के साथ फ्लैट शेयर करके रहते थे अब उन्हें मजबूरन नौकरी  पौकेट मनी कम हो जाने के चलते अपने पेरेंट्स के घर में शिफ्ट होना पड़ रहा है. और  मां बाप के घर में शिफ्ट होने का मतलब अब उन्हें अपनी तरह की जिंदगी जीने पर पाबंदियां लगने लगी हैं. जाहिर सी बात है कि जब आप अपने पेरेंट्स के घर में रहते हो तो उनके ही तौर तरीके , उनके ही नियम कानून, उनके ही रहने के सरीको को फोलो करना पड़ता है. क्योंकि अब आप ये नहीं कह सकते कि मेरा कमरा है, मेरी आजादी है, मेरे पैसे हैं , मैं चाहे जैसे खर्च करुँ , मेरा रूम है मैं  इसे जैसे मर्जी यूज़ करुं , मेरा फ्लैट है मैं जब चाहे तब आऊं , ये करने की आजादी आपकी खत्म हो जाती है. क्योंकि अगर आपको  मां बाप के पास रहना है तो सुबह उठने से लेकर रात का टाईमटेबल आपको सेट करना होगा, खाने पीने की आदते बदलनी पड़ेगी.

घर में कब तक म्यूजिक चलाना है ये देखना होगा, कौन सी चीज कही रखनी है सब देखना होगाकुल मिलाकर कहना यह है कि जब से कोरोना ने युवाओं का रोजगार छीना है तब से वे पेरेंट्स पर आश्रित हो गए हैं और मां बाप पर  आश्रित होने का मतलब उनका हर हुक्म मानना. आइए जानते हैं कि किसकिस तरह से युवाओं के लाइफस्टाइल पर प्रभाव पड़ा है और कौन कौन सी बातों पर उन्हें मां बाप का हुक्म मानना उनकी मजबूरी बन गया है

1. छिन जाएगी घूमनेफिरने की आजादी 

पहले आप जब अकेले या फिर फ्रैंड्स के साथ रूम शेयर करके रहते थे तब आप अपनी मर्जी से बेवक्त पर घूमते फिरते थे, जब मर्जी सैर सपाटे पर निकल जाते थे. अपने   फ्रैंड्स  के घर जमकर पार्टीज करते थे मूवी के नाईट शोज बुक करके खूब मजा लेते थे . क्योंकि रोकने टोकने वाला कोई जो नहीं थालेकिन अब जब आप अपने पेरेंट्स के घर गए हैं तो आपको अपनी इन आजादी पर पाबंदी लगानी पड़ेगी. क्योंकि हर समय कैमरे की तरह उनकी नजर आप पर जो है. इसलिए अब आपके पास कभी कभार ही मस्ती करने का लाइसेंस होगा

2. अब घर में डिसिप्लिन में रहना होगा 

चाहे पढ़ाई के सिलसिले में या फिर जौब के कारण आपको अपने पेरेंट्स से दूर रहना पड़ा हो. लेकिन इस कारण जब आपने खुद को अपने तरीके से जीना सीखा ही  दिया है तो उसमें अब किसी की भी दखलअंदाज़ी अच्छी नहीं लगती, फिर चाहे उसमें पेरेंट्स ही क्यों होलेकिन ये बात सिर्फ जब तक आप अकेले रह रहे थे तब तक ही अमल होती थी, लेकिन अब जब आपको पेरेंट्स के घर पर आकर रहना पड़ रहा है तो आपको अपने हिसाब से नहीं बल्कि अपने घर के हर डिसिप्लिन को मानना होगा. आपको अब सुबह जल्दी उठने से लेकर रात को जल्दी सोने तक, खानेपीने की अपनी आदतों को, अपने रूम की सफाई , चीजों को सही से अरेंज करने , वर्किंग हैबिट्स से लेकर म्यूजिक सुनने तक की सभी आदतों को बदलना होगा।  क्योंकि यहां आपका नहीं बल्कि आपके पैरेंटस का हुक्म जो मायने रखता है .  

3. गर्लफ्रैंड से मिलना होगा मुश्किल 

जाहिर सी बात है कि यंग हो तो गर्लफ्रैंड भी होगी ही. जिसके साथ आप  खूब मस्ती करते होंगे. क्योंकि अभी तक आप अपना रूम लेकर या शेयरिंग में जो रह रहे थेजब मन करा दिल बहलाने का तो झट से गर्लफ्रैंड को अपने घर या दोस्त के रूम पर बुला लिया.  उसकी एक फर्महिश पर उसे शौपिंग पर ले गएरात में घंटों तक उससे चैटिंग वीडियो कॉल का सिलसिला चलता रहा. क्योंकि नजर रखने वाला कोई जो नहीं था. लेकिन अब आपकी इस मस्ती पर कोरोना ने ब्रेक लगा दिया है. क्योंकि अब आप उसे घर बुला नहीं सकते और अगर मिलने जाना भी है तो दस बहाने लगाने पड़ेंगे।  उसमें भी अगर झूठ पकड़ा गया तो बात बिगड़ सकती है. साथ ही अगर आपका घर छोटा है तो फॅमिली में किसी किसी के साथ तो रूम शेयर करना ही पड़ेगा, जिससे अब गर्लफ्रेंड के साथ लंबी बात भी नहीं हो पाएगी. ऐसे में अगर आपको अपने पेरेंट्स के साथ रहना है तो उनके आदेश  को मानना ही पड़ेगा

4. लौंग ड्राइव पर जाना होगा टफ 

अभी तक आप अपने पेरेंट्स की गाड़ी में खुद का पैट्रोल डलवाकर खूब ऐश करते थे. और आपके पेरेंट्स ने भी आपको अकेले रहने के कारण वाहन की सुविधा दे रखी थी ताकि आपको किसी भी तरह की कोई दिक्कत हो. लेकिन अब जब आपको कोरोना से कारण अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है , जिस कारण आप मजबूर हैं अपने पेरेंट्स के साथ रहने को तो अब आप पहले जैसे आए रोज लौंग ड्राइव पर नहीं जा पाएंगेक्योंकि बार बार जाने पर आपको अपने पेरेंट्स का सामना करना ही पड़ेगा और हो सकता है कि उनके ये ताने भी सुनने पड़े कि इतना ऐश में रहना छोड़ दो. क्योंकि अब सिर्फ हमारी कमाई से ही सारी चीजें चलती हैंकौन रोज रोज तुम्हारे  लौंग ड्राइव पर जाने के लिए गाड़ी में पैट्रोल डलवाएगा. ऐसे में अब पहले की तरह रोज रोज आपके लिए  लौंग ड्राइव पर जाना आसान नहीं होगा

5. फोन पर लगातार बात करने की आदत को बदलना पड़ेगा 

आज हम सबकी हैबिट ऐसी हो गई है कि चाहे हमें फोन पर कुछ काम भी हो, लेकिन फिर भी चौबीसों घंटे हमारे हाथ में फोन रहता ही है. यहां तक कि मिड नाईट में भी हम फोन से दूरी बना कर रख नहीं पाते हैं. और जब मन करता है तब फ़ोन उठाकर कभी दूसरों का स्टेटस चेक करते रहते हैं , तो कभी फेसबुक पर नई नई पोस्ट्स डालते रहते हैं. यहां तक कि जब मन करा तब दोस्तों को भी फ़ोन मिलाने से नहीं चूकते. लेकिन ऐसा आप जब तक अकेले रह रहे थे तब तक तो चल सकता था. लेकिन अब जब आप अपने पेरेंट्स के घर आकर रहने लगे हैं तो आपको  चौबीसों घंटे फोन पर चिपके रहने की अपनी आदत को छोड़ना होगा. क्योंकि उन्हें आपकी ये आदत बर्दाशत नहीं होगी. और अगर आपने बहस की तो हो सकता है कि बात भी बिगड़ जाए. इसलिए आपको अपनी आदतों को बदलना होगा.  

6.  आपकी फ्रीडम पर लगेगा ब्रेक 

लेट नाईट तक टीवी देखना, रात को देरी से सोना और सुबह देर तक उठना, घर के बने खाने की बजाए फास्ट फूड पर डिपेंड होना, घर के कामों में दिलचस्पी नहीं लेना, दोस्तों के साथ जब मर्जी घूमने निकल जाना, पैसों की कद्र नहीं करना, आपके बोलने के तरीके से लेकर आपके रहने के स्टाइल तक आपको अपनी हैबिट्स को बदलना होगा. क्योंकि आपके पेरेंट्स आपके अनुसार खुद को नहीं ढालेंगे बल्कि आपको उनके अनुसार खुद को बदलना होगा. यानि आपका ये बदलाव आपकी आजादी पर ब्रेक लगाने का काम करेगा

7. शौपिंग पर करना होगा कंट्रोल 

अभी तक तो आपको  शौपिंग पर पानी की तरह पैसे बहाने की आदत थी. शौपिंग पर गए नहीं कि एक साथ कई कई जोड़ी कपड़े खरीद लिए. जिन्हें एक बार पहनने के बाद आप दूसरी बार पहनना पसंद नहीं करते. मॉल से नीचे कपड़े खरीदना आप अपनी शान के खिलाफ समझते हो. लेकिन अब घर पर आप पर हर समय  नजर रखने के लिए आपके पेरेंट्स हैं. इसलिए अब आपकी मनमानी नहीं चल पाएगी. अब आप पहले की तरह जब मर्जी चाहे फिर चाहे मार्केट में जाकर शौपिंग करने की बात हो या फिर ऑनलाइन शौपिंग की नहीं कर पाएंगे. क्योंकि अगर आपने कंट्रोल से बाहर शौपिंग की तो हर बार आपको उपदेश सुनने को जरूर मिलेगा.  

8. पेरेंट्स के साथ रहने के फायदे भी 

आप चाहे पढ़ाई के कारण  या फिर जौब के काऱण अगर आप पेरेंट्स से दूर रहने लग गए हैं , तो यकीनन आपने अपने तरीके से अपनी जिंदगी को जीना सीख ही लिया होगा. जैसा अकसर  यंग जनरेशन करती हैजैसे जब मर्जी सोना, जब मर्जी उठना, जहां मर्जी जाना, बाहर के खाने पर ही निर्भर रहना , पूरी रात टीवी देखना वगैरा वगैरा और जब ऐसे में कोई भी आपके लाइफस्टाइल में दखल देगा, तो आपको अपनी आजादी पर ब्रेक लगता ही दिखाई देगाभले ही वो दखल आपके पेरेंट्स ही क्यों लगा रहे हो. लेकिन ये जरूरी नहीं कि  उनकी हर  बात गलत ही हो . क्योंकि बहुत बार उनके टोकने में आपकी भलाई ही छुपी होती है. जैसे अगर वे आपको रात को जल्दी सोने और हैल्थी ईटिंग हेब्बिट्स को अपनाने की बात कहते हैं तो इससे आपकी हैल्थ पर पॉज़िटिव असर पड़ता है. और अगर आपको अपने खर्चों को कंट्रोल करने के लिए टोकते हैं तो इसमें भी आपका ही हित है, ताकि आप पैसों की अहमियत समझते हुए अपने भविषय को मजबूत बना सकें. और जब आप पेरेंट्स के साथ रहते हैं तो आप हर मुश्किल से लड़ सकते हैं. क्योंकि वो किसी भी परिस्तिथि में आपको कमजोर नहीं पड़ने देंगे. इसलिए आपको खुद में भी थोड़ा बदलाव लाना होगा

वैक्सीन आने तक कोरोना से बचाव ही है इलाज 

कोरोना वायरस के प्रति जिज्ञासाओं और उत्सुकुताओं की जगह अब सवालों और आशंकाओं ने ले ली है कि अब क्या होगा , क्या हमें बाकी जिन्दगी भी ऐसी ही गुजारनी पड़ेगी जिसमें मौत का डर हर वक्त सर पर मंडराता रहता है क्या लाक डाउन के पहले बाले दिन अभी कभी नहीं लौटेंगे . ऐसे ढेरों सवाल सभी के दिलोदिमाग पर एक आतंक की तरह छाए हुए हैं जिनका सटीक जबाब कोई नहीं दे पा रहा और जो दे पा रहे हैं वे यह आस भर बंधाते हैं कि बस कोरोना का वेक्सीन आ जाने दो फिर सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा . 

लेकिन अमेरिका के 80 वर्षीय तजुर्बेकार डाक्टर एंथोनी स्टीफन फौसी की मानें तो सब कुछ पहले जैसे हो जाने का मतलब होगा कि कोरोना महामारी कुछ थी ही नहीं .  इस वरिष्ठ डाक्टर और नॅशनल इंस्टीटयूट ऑफ़ एलर्जी एंड इन्फेक्शन डिसीज के डायरेक्टर के कथनों को और विस्तार से समझें तो कोरोना से 2021 तक तो मुक्ति नहीं मिलने बाली .  इसका वेक्सीन आएगा यह तय है लेकिन कब आएगा इस सवाल का सटीक जबाब भी किसी के पास नहीं यानी हमें अभी और कम से कम एक साल इसी हाल में रहना पड़ेगा .

और जब ऐसे ही रहना मज़बूरी और जरुरी है तो बहुत सी दुश्वारियों से खुद को बचाए रखने जरुरी है कि हम खुद को कोरोना से बचाए रखें जो बहुत ज्यादा मुश्किल काम भी नहीं है . हालाँकि यह कम हैरानी की बात नहीं जिसे लेकर सरकार आम और ख़ास लोगों के निशाने पर है कि लाक डाउन उस वक्त लगाया गया जब मौतें कम हो रहीं थीं और जानकारियों के नाम पर दहशत ज्यादा परोसी गई और अब जब संक्रमितों की संख्या और कोरोना से मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है तब लाक डाउन धीरे धीरे हटाया जा रहा है . लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है कि जियो या मरो हमें क्या . 

ऐसे में डाक्टर फौसी की सलाह और भी प्रासंगिक हो जाती है जो अमेरिका के 6 राष्ट्रपतियों के साथ काम कर चुके हैं एक वायरस विशेषज्ञ होने के नाते उन्होंने फरबरी में ही अमेरिका में लाक डाउन की सिफारिश की थी लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उनकी सलाह पर ध्यान नहीं दिया था उलटे वे फौसी पर बरस पड़े थे और उन्हें व्हाइट हाउस के टास्क फ़ोर्स से बर्खास्त करने पर ही उतारू हो आये थे . डोनाल्ड ट्रंप और फौसी के बीच कोरोना से बचाव को लेकर मतभेद अभी भी सामने आते रहते हैं जिसे लेकर अमेरिका का बुद्धिजीवी वर्ग मानता है कि अगर फौसी की बातों पर अमल किया जाता तो हालात इतने भयावह नहीं होते . अब ट्रंप के सनकीपन और अड़ियल रवैये की सजा पूरा अमेरिका भुगत रहा है . 

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हम तो बचें

 हमारे देश में कोई डाक्टर फौसी नहीं है जो सरकार और उसके मुखिया से उसकी गलतियों से भिड जाए हाँ अर्जुन मेघवाल जैसे होनहार मंत्री जरूर हैं जो पापड़ों से कोरोना के  इलाज का दावा करते हैं और फिर खुद संक्रमित होकर अस्पताल जा पहुँचते हैं . कोरोना को लेकर देश भर में पनपती नीम हकीमी और धरम करम टोने टोटके जैसी अवैज्ञानिक हरकतें किसी सबूत की मोहताज नहीं जो लोगों को भाग्यवादी बनाते उन्हें लापरवाह भी बना रहीं हैं . ऐसी ही मूर्खताओं के चलते अब देश भर में रोजाना मिलने बाले संक्रमितों की संख्या एक लाख के लगभग हो चली है और कोरोना से मरने बालों की तादाद भी लगातार बढ़ रही है . 

कहर के इस दौर में सरकार के बाद यह मीडिया की महती जिम्मेदारी है कि वह लोगों को होशियार करता रहे लेकिन जासूसी करने पर उतारू हो आए  मीडिया को अभिनेता सुशांत की संदिग्ध मौत का रहस्य सुलझाने से फुर्सत नहीं .  कौन सी रिया और दीपिका कहाँ से ड्रग्स लेती हैं यह उसके लिए ज्यादा अहम् है . ऐसे में जाहिर है लोगों को खुद ही जागरूक होना पड़ेगा क्योंकि जागरूकता फ़ैलाने बालों ने भी सरकार की तर्ज पर हाथ खड़े कर दिए हैं कि तुम जानो तुम्हारा काम जाने . 

कोरोना का वेक्सीन जब आएगा तब आएगा लेकिन तब तक हमें इस जानलेवा वायरस से बचकर रहना पड़ेगा और इसके लिए जरुरी है कि अब हालातों और वक्त के हिसाब से चलें जिसकी पहली शर्त है लापरवाही बिलकुल नहीं हम वैसे ही जियें जैसे कि कोरोना चाहता है . देश में कहीं भी नजर डाल लीजिये बिना मास्क के सार्वजानिक स्थलों पर स्वछन्द विचरते शूरवीर मिल ही जाएंगे इन्हें किसी कानून या जुर्माने तो दूर की बात है खुद की जिन्दगी की परवाह नहीं और न ही अपने परिजनों की फिक्र है . लाक डाउन में होटलें क्या खुलीं भाई लोग भुक्कड़ो की तरह रेहड़ी बाले समोसे , डोसे और छोले भटूरों पर टूट पड़े . 

भक्तों का हाल तो और भी बुरा है कोई नशेडी एक दफा बिना ड्रग्स के रह ले लेकिन ये बिना पत्थर की मूर्ति के दर्शन किये जल बिन मछली की तरह तड़पते रहते हैं और यह भी बेहतर जानते हैं कि कोई भगवान इन्हें कोरोना से बचा नहीं सकता इसके बाद भी ये धक्का मुक्की करते धर्म स्थलों पर जाकर कोरोना से बचाओ प्रभु की गुहार लगा रहे हैं तो इनसे बड़ा मूर्ख भला कौन हो सकता है . सरकार भी इनकी मूर्खता को शह देते धडाधड धर्म स्थल खोलने और धार्मिक आयोजनों को छूट देने की गलती कर रही है . ऊपर बाले का आशीर्वाद तो मिलने से रहा चढ़ावा देने के बाद संक्रमण मिलने की जरूर पूरी आशंका है जिससे आप ही खुद को बचा सकते हैं . 

मास्क न पहनने की तरह ही एक बड़ा एब है सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करना .  दो गज तो कहने की बात है लोग दो फ़ुट की दूरी से भी परहेज नहीं कर रहे ऐसे में कब किसके गले से कोरोना आकर आपके गले  पड़ जाए कहा नहीं जा सकता फिर यह लापरवाही और रिस्क क्यों जरा गंभीरता से सोचिए कि इससे आप खुद को कितनी बडी मुसीबत में डाल रहे हैं .

इसमें कोई शक नहीं कि लाक डाउन के दौरान लम्बी कैद हर किसी ने भुगती है पर अब वेवजह घर से निकलने की तुक क्या जबकि अब खतरा पहले से हजार गुना ज्यादा है . अनावश्यक बाहर निकलकर भीड़ का हिस्सा बनना कतई बुद्धिमानी की बात नहीं इससे बचना जरुरी है . खरीददारी इक्कठे कर लें या फिर ऑन लाइन शोपिंग प्राथमिकता में रखें .  बात बात में सिर्फ इसलिए घर से निकलना कि एक नजर बाहर का नजारा देख लें आ कोरोना मुझे संक्रमित कर जैसी बात है . अप्रेल के महीने में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट खूब वायरल हुई थी कि कोरोना बड़ा स्वाभिमानी वायरस है यह बिन बुलाये किसी के घर नहीं जाता इसे अब समझें और घर में ही रहें . 

इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना ने हाथ धोना और सेनेटाईज करना सिखा दिया है पर धीरे धीरे यह आदत भी छूटने लगी हो तो सावधान हो जाइए कोरोना के फैलने का बड़ा जरिया हाथ ही है खासतौर से उस वक्त जब इन्हें बिना धोये चेहरे पर ले जाया जाता है इसलिए हाथ धोने में आलस न करें . 

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अभी और बिगड़ेंगे हालात – 

हाल यही रहे तो हालात और बिगड़ना तय दिख रहा है अनलाक ने इन्हें और बिगाड़ दिया है . बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान हो गया है .  ऐसा कहने की कोई वजह नहीं कि वहां कोरोना विकराल रूप नहीं दिखाएगा यह सरकार की एक और भूल है जिसका अंजाम बिहार के लोगों को भुगतने तैयार रहना चाहिए क्योंकि चुनाव प्रचार और मतदान में किसी भी सूरत में कोरोना गाइड लाइन का पालन नहीं हो पायेगा . 

देश भर की हालत तो यह है कि अस्पतालों में बिस्तरों का टोटा पड़ने लगा है उनमें आक्सीजन भी ख़त्म हो चली है , शमशान घाटों में शव जलाने लकड़ियाँ नहीं हैं , मामूली बीमारियों के इलाज के लिए भी डाक्टर्स नहीं मिल रहे और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है .  हर तीसरे चौथे दिन सरहद पर तनाव हो जाता है भूखे रहने और मरने बालों की गिनती करने बाला कोई नहीं .  ऐसे में हर किसी का चिंतित और तनावग्रस्त होना भी स्वभाविक है जिससे इन टिप्स को अपनाकर बचा जा सकता है लेकिन तभी जब आप पहले कोरोना से खुद को बचाए रखें . 

– पैसा कम से कम खर्च करें यानी फिजूलखर्ची बिलकुल न करें सिर्फ जरुरत के आइटम पर ही खर्च करें . 

– अपने मानसिक स्वास्थ का भी ध्यान रखें इसके लिए एक नियमित दिनचर्या का पालन करें . 

– पढ़ें , इससे मन हल्का व खुश रहता है अब बाजार में अच्छी पत्रिकाएं आ गई हैं जिन्हें आप हाकर के जरिये घर बैठे मंगा सकते हैं या फिर ऑन लाइन भी सबक्रिब्शन ले सकते हैं . पढ़ने की अहमियत और फायदों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीती 20 सितम्बर को एक मुक़दमे की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने यह टिप्पणी की थी कि जिन लोगों को टीवी शो से परेशानी है वे उपन्यास पढ़ें . यह और बात है कि उपन्यासों का दौर खत्म सा हो चला है लेकिन पत्रिकाओं का तो है . 

– टीवी और मोबाइल में वक्त जाया करने से अब कुछ हासिल नहीं होता वहां शुद्ध बकबास और लफ्फाजी चल रही होती है सुशांत – रिया चक्रवर्ती के मामले में हर किसी के मुंह से निकला था कि क्या बेहूदापन परोसा जा रहा है . 

– बच्चों और बुजुर्गों के साथ वक्त गुजारें इससे वे भी उन दिक्कतों और तनावों से बचे रहेंगे जिनसे आप परेशान हैं . 

– मनपसंद गाने और संगीत का लुत्फ़ उठायें इनसे भी मन को सुकून मिलता है . 

– कसरत जरुर करें और डाईट कंट्रोल में रखें .इम्युनिटी बढ़ाने  के नाम पर अनाप शनाप काढ़े न पिएं इनसे लीवर और किडनी को खतरा हो सकता है .पौष्टिक और स्वच्छ भोजन लें . 

– कुछ नया सीखें यह बेहद उपयोगी है . मुंबई में एक नामी कम्पनी की साफ्टवेयर इंजीनियर परिधि अप्रेल से भोपाल में अपने घर पर हैं और वर्क फ्राम होम के तहत काम कर रहीं हैं वह बताती हैं , मैंने 4 महीने में मम्मी से खाना बनाना सीखा तो एक अलग सुखद अनुभूति हुई .   

– दोस्तों और रिश्तेदारों से फोन पर बात करें .

– कोरोना पर कम से कम चर्चा करें … और

– आसपास कोई कोरोना पीड़ित निकला हो तो उससे शूद्रों और अछूतों जैसा बर्ताब न करें .इससे ज्यादा अमानवीय कुछ और हो ही नहीं सकता .  

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ये और ऐसी कई बातें लम्बे वक्त तक प्रासंगिक रहेंगी क्योंकि आने बाले वक्त का अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा इसलिए जब कोरोना के साथ ही जीना है तो उससे बचकर रहें और दूसरे तनाव भी न पालें .  मुमकिन है डाक्टर फौसी के मुताबिक अभी एक साल और इसी हाल में गुजारना पड़े तो देर किस बात की वेक्सीन आने तक हो जाइए तैयार हँसते मुस्कुराते जीने के लिए .       

क्रीम इस्तेमाल करने से चेहरा काला हो रहा है?

सवाल-

क्रीम इस्तेमाल करने से चेहरा काला हो रहा है. क्या करूं?

जवाब-

सब से पहले तो कैमिकलयुक्त क्रीम को चेहरे पर जरूरत से ज्यादा लगाना बंद कर दें. इस के बाद घर पर बने फेसपैक और स्क्रब की मदद से चेहरे की रोज सफाई करें. आप की खोई हुई रंगत वापस आ जाएगी.

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क्याआप अपने चेहरे के रूखेपन व डल स्किन से परेशान हैं. महंगीमहंगी क्रीम्स भी ट्राई कर के देखीं की लेकिन रिजल्ट कुछ नहीं मिला. यहां तक कि क्रीम्स में कैमिकल्स होने के कारण ऐजर्ली की समस्या होने के साथसाथ आप की स्किन पहले से और ज्यादा खराब हो गई है. ऐसे में आप के मन में यह बात तो जरूर आई होगी कि अब तो मैं ने अपनी लाइफस्टाइल और खानपान में भी काफी बदलाव किए हैं फिर ऐसा क्यों?

असल में जिन बड़ेबड़े दावों को देख कर आप ने क्रीम खरीदी होती है असल में उस में नैचुरल इंग्रीडिऐंट्स न के बराबर होते हैं जिस से क्रीम स्किन पर कोई खास असर नहीं दिखा पाती है. ऐसे में एक बार राइस क्रीम स्किन पर जरूर आजमाएं, यकीन मानें आप इसे एक बार यूज करने के बाद फिर इसे अपनी ब्यूटी किट से आउट नहीं करेंगी.

क्या है राइस क्रीम

यह एक ऐसी क्रीम है जिसे दुनिया भर में नैचुरल ग्लो पाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. चावल और दूध का प्रयोग कर के इसे घर पर बड़ी आसानी से बना कर चेहरे पर जो भी दाग धब्बे, कालापन, अनइवन स्किन टोन होती है, से बड़ी आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है और इस का कोई साइडइफैक्ट भी नहीं होता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- राइस क्रीम बढ़ाएगी चेहरे की चमक

चुभन: क्यों संतुष्ट नहीं थी मीना?

Serial Story: चुभन (भाग-1)

‘‘कभी तो संतुष्ट होना सीखो, मीना, कभी तो यह स्वीकार करो कि हम लाखों करोड़ों से अच्छा जीवन जी रहे हैं. मैं मानता हूं कि हम अमीर नहीं हैं, लेकिन इतने गरीब भी नहीं हैं कि तुम्हें हर पल रोना पड़े,’’ सदा की तरह मैं ने अपना आक्रोश निकाल तो दिया, लेकिन जानता हूं कि मेरा भाषण मीना के गले में आज भी कांटा बन कर चुभ गया होगा. मैं क्या करूं मीना का, समझ नहीं पाता हूं. आखिर कैसे उस के दिमाग में यह सत्य बैठाऊं कि जीवन बस हंसीखुशी का नाम है.

पिछले 3 सालों से मीना मेरी पत्नी है. उस की नसनस से वाकिफ हूं मैं. जो मिल गया उस की खुशी तो उस ने आज तक नहीं जताई, जो नहीं मिल पाया उस का अफसोस उसे सदा बना रहता है.

मैं तो हर पल खुश रहना चाहता हूं. जीवन है ही कितना, सांस आए तो जीवन, न आए तो मिट्टी का ढेर. लेकिन मुझे तो खुश होने का समय ही नहीं मिलता और मीना, पता नहीं कैसे रोनेधोने के लिए भी समय निकाल लेती है.

‘‘बचपन से ऐसी ही है मीना,’’ उस की मां ने कहा, ‘‘पता नहीं क्यों हर पल नाराज सी रहती है. जबतब भड़क उठना उस के स्वभाव में ही है. हर इंसान का अपनाअपना स्वभाव होता है, क्या करें?’’

‘‘हां, और आप ने उसे कभी सुधारने की कोशिश भी नहीं की,’’ अजय ने उलाहना दिया, ‘‘बच्चे को सुधारना मातापिता का कर्तव्य है, लेकिन आप ने उस की गलत आदतों को बढ़ावा ही दिया.’’

‘‘नहीं अजय, ऐसा भी नहीं है,’’ सास बोलीं, ‘‘संतुष्ट ही रह जाती तो शादी के बाद पढ़ती कभी नहीं. शादी के समय मात्र बी.ए. पास थी. अब एम.ए., बी.एड. है और आगे भी पढ़ना चाहती है. संतुष्ट नहीं है तभी तो…’’

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‘‘उस की इसी जिद में मैं पिस रहा हूं. अपनी पढ़ाईलिखाई में उसे मेरा कोई भी काम याद नहीं रहता. मुझे अपना हर काम स्वयं करना पड़ता है, कपड़ों से ले कर नाश्ते तक. घर जाओ तो एक कप चाय की उम्मीद पत्नी से मुझे नहीं होती.’’

मैं तो मीना के पास होने पर खुश होता हूं और वह रोती है कि शादी की अगर जिम्मेदारी न होती तो और भी ज्यादा अंक आ सकते थे. अरे, शादी की ऐसी कौन सी जिम्मेदारी है उस पर. मीना का बड़ा भाई मेरा दोस्त भी है. कभीकभार उस से शिकायत भी करता हूं.

‘‘कुछ लोग संसार में बस रोने के लिए ही आते हैं. उन्हें चैन से खुद तो जीना आता नहीं, दूसरों को भी चैन से जीने नहीं देना चाहते. तुम मीना को कुछ दिनों के लिए अपने घर ले जाओ. वह एम.एड. करना चाहती है. वहीं पढ़ाओ उसे. मेरी जिम्मेदारी उस पर भारी पड़ रही है,’’ एक दिन मैं ने उस के भाई से कह ही दिया.

‘‘क्या कह रहे हो, अजय?’’ विनय ने हैरानी जाहिर की तो मैं हाथ से छूट गए ऊन के गोले की तरह खुलता ही चला गया.

‘‘मेरी तो समझ में नहीं आता कि आखिर मीना चाहती क्या है. पढ़ना चाहती थी तो पढ़ती रहती, शादी क्यों की थी? 3 साल हो गए हैं हमारी शादी को पर परिवार बढ़ाना ही नहीं चाहती, क्या बुढ़ापे में संतान के बारे में सोचेगी? विनय, मेरी जगह तुम होते तो क्या यह सब सह पाते?

‘‘अच्छी खासी तनख्वाह है मेरी, मगर हर समय यही रोना ले कर बैठी रहती है कि उसे भी काम करना है, इसलिए और पढ़ना चाहती है. एम.ए., बी.एड. कर के कौन सा तीर मार लिया जो अब एम.एड. करने की ठानी है. दरअसल, उस का चाहा क्यों नहीं हुआ. यह शिकायत उस की आदत है और यह हमेशा रहेगी. बीत जाएगा उस का भी और मेरा भी जीवन इसी तरह चीखतेचिल्लाते.’’

विनय चुप था. क्या कहता? जाहिर से थे उस के भी हावभाव.

‘‘मैं जानता हूं, वापस ले जाना इस समस्या का हल नहीं है, कुछ दिनों के लिए ही ले जाओ. आजकल उस का रोनाधोना जोरों पर है. उसे समझा पाना मेरे बस से बाहर होता जा रहा है.’’

विनय सकपका गया. यह सब सुनने के बाद बोला, ‘‘ठीक है, कल इतवार है, मैं सुबह आ जाऊंगा. शाम तक तुम दोनों के पास रहूंगा. तुम चिंता मत करो. भाई हूं, उसे मैं समझाऊंगा.’’

अगली सुबह अभी हम नाश्ता कर ही रहे थे कि विनय ने दरवाजा खटखटा दिया. मीना बड़े भाई को देख कर भी उखड़ी ही रही.

‘‘यहां स्टेशन पर किसी काम से आया था. सोचा, आज का दिन तुम दोनों के साथ बिताऊंगा, लेकिन तुम्हारा तो चेहरा लटका हुआ है. नाश्ता नहीं किया है मैं ने, तुम खिला दोगी न?’’

कोई प्रतिक्रिया नहीं की मीना ने. एक मेहमान के लिए ही सही, स्वाभाविक मुसकान भी चेहरे पर नहीं आई. मेरे भैयाभाभी आए थे तो भी यही तमाशा किया था मीना ने.

‘‘मीना, मैं तुम से ही बात कर रहा हूं. यह क्या तरीका है घर आने वाले का स्वागत करने का?’’

विनय के व्यवहार पर तनिक चौंकी मीना कि सदा नाजनखरे उठाने वाला भाई क्या इस तरह भी बोल सकता है.

‘‘रहने दीजिए न आप, बात ही क्यों कर रहे हैं मुझ से,’’ तुनक कर दरवाजे से हट गई मीना और विनय अवाक सा कभी मेरा मुंह देखे तो कभी जाती हुई बहन का.

विनय के चेहरे पर अपमान के भाव ज्यादा थे. अपना ही सोना खोटा हो तो किसे दोष देता विनय. मेरे वे शिकायती शब्द असत्य नहीं हैं यह स्पष्ट था. मेरी परेशानी भी कम न होगी वह समझ रहा था.

‘‘मां बीमार हैं, मीना. चलो, मैं तुम्हें लेने आया हूं.’’

‘‘मुझे कहीं नहीं जाना,’’ यह कह कर वह जाने लगी तो विनय ने बांह पकड़ रोकना चाहा.

तब मीना बड़े भाई का हाथ झटक कर बोली, ‘‘मुझे तो एम.एड. में दाखिला चाहिए.’’

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‘‘एम.एड. में दाखिला लेने के लिए क्या बदतमीजी करना जरूरी है?’’ विनय बोला, ‘‘तुम्हें तो छोटेबड़े का भी लिहाज नहीं है. जब पढ़लिख कर बदतमीजी ही सीखनी है तो तुम बी.ए. पास ही अच्छी थीं.’’

विनय के शब्द कड़वे हो गए, जो मुझे भी अच्छे नहीं लगे. मीना मेरी पत्नी है. कोई उस पर नाराज हो, मैं यह भी तो नहीं चाहता.

‘‘मीना, तुम अपने होशोहवास में तो हो? तुम बच्ची नहीं हो, जो इस तरह जिद करो. अपने घर के प्रति भी तुम्हारी कोई जिम्मेदारी बनती है.’’

‘‘मैं ने अपनी कौन सी जिम्मेदारी नहीं निभाई? मन मार कर वहीं तो रह रही हूं जहां आप ने ब्याह दिया है.’’

काटो तो खून नहीं रहा मुझ में और साथ ही विनय में भी. वह मुझ से नजरें चुरा रहा था.

आगे पढ़ें- मुझे आप के साथ कहीं नहीं जाना….

Serial Story: चुभन (भाग-2)

पिछला भाग पढ़ने के लिए- चुभन: भाग-1

‘‘मुझे आप के साथ कहीं नहीं जाना. कह दीजिएगा मां से कि अब यहीं जीनामरना है, बस…’’

‘‘कैसी पागलों जैसी बातें कर रही हो. अजय जैसा अच्छा इंसान तुम्हारा पति है. जैसा चाहती हो वैसा ही करता है, और क्या चाहिए तुम्हें?’’

मैं कमरे से बाहर चला गया. आगे कुछ भी सुनने की शक्ति मुझ में नहीं थी. कुछ भी सुनना नहीं चाहा मैं ने. क्या सोच कर विनय को बुलाया था पर उस के आ जाने से तो सारा विश्वास ही डगमगा सा गया. तंद्रा टूटी तो पता चला काफी समय बीत चुका है. शायद दोपहर होने को आ गई थी. विनय वापस जाने को तैयार था. बोला, ‘‘मीना को साथ ले जा रहा हूं. तुम अपना खयाल रखना.’’

मीना बिना मुझ से कोई बात किए ही चली गई. नाश्ता उसी तरह मेज पर रखा रहा. मीना ने मेरी भूख के बारे में भी नहीं सोचा. भूखा रहना तो मेरी तब से मजबूरी है जब से उस के साथ बंधा हूं. कभीकभी तरस भी आता है मीना पर.

मीना चली गई तो ऐसा लगा जैसे चैन आ गया है मुझे. अपनी सोच पर अफसोस भी हो रहा है कि मैं मीना को बहुत चाहता हूं. फिर उस का जाना प्रिय क्यों लग रहा है? ऐसा क्यों लग रहा है कि शरीर के किसी हिस्से में समाया मवाद बह गया और पीड़ा से मुक्ति मिल गई? जिस के साथ पूरी उम्र गुजारने की सोची उसी का चला जाना वेदना क्यों नहीं दे रहा मुझे?

एक शाम मैं ने विनय को समझाना चाहा, ‘‘मेरी वजह से तुम क्यों अपने परिवार से दूर रह रहे हो, विनय? चारु भाभी को बुरा लगेगा.’’

‘‘तुम्हारी भाभी ने ही तो कहा है कि मैं तुम्हारे साथ रहूं और फिर तुम मेरा परिवार नहीं हो क्या? हैरान हूं मैं अजय, मीना का व्यवहार देख कर. वह सच में बहुत जिद्दी है. मैं भी पहली बार महसूस कर रहा हूं… तुम बहुत सहनशील हो अजय, जो उसे सहते रहे. तुम्हारी जगह यदि मैं होता तो शायद इतना लंबा इंतजार न करता.

‘‘अजय, सच तो यह है कि अपनी बहन का बचपना देख कर मुझे अपनी पत्नी और भी अच्छी लगने लगी है. दोनों में जब अंतर करता हूं तो पाता हूं कि चारु समझदार और सुघड़ पत्नी है. मीना जैसी को तो मैं भी सह नहीं पाता.

‘‘अकसर ऐसा होता है अजय, मनुष्य उस वस्तु से कभी संतुष्ट नहीं होता, जो उस के पास होती है. दूसरे की झोली में पड़ा फल सदा ज्यादा मीठा लगता है. चारु की तुलना मैं सदा मीना से करता रहा हूं, मां ने भी अपनी बहू का अपमान करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी. चारु मीना जितना पढ़लिख नहीं पाई, क्योंकि शादी के बाद हम उसे क्यों पढ़ातेलिखाते? बी.ए. पास है, बस, ठीक है. मीना को तुम ने मौका दिया तो हम ने झट उसे चारु से बेहतर मान भी लिया पर यह कभी नहीं सोचा कि मीना की इच्छा का मान रखने के लिए तुम कबकब, कैसेकैसे स्वयं को मारते रहे.’’

‘‘चारु भाभी की अवहेलना मैं ने भी अकसर महसूस की है. मीना के जाने से मेरा भी भला हो रहा है और चारु भाभी का भी. मैं भी चैन की सांस ले रहा हूं और चारु भाभी भी.

‘‘कैसी है मीना, तुम ने बताया नहीं? क्या घर वापस नहीं आना चाहती? क्या मेरी जरा सी भी याद नहीं आती उसे?’’

‘‘पता नहीं, मुझ से तो बात भी नहीं करती. च रु से भी कटीकटी सी रहती है.’’

‘‘किसी के साथ खुश भी है वह? तुम बुरा मत मानना, विनय. कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के जीवन में कोई और है या था… कहीं उस की शादी जबरदस्ती तो नहीं की गई?’’ मैं ने सहसा पूछा तो विनय के माथे पर कुछ बल पड़ गए.

‘‘मैं ने मां से भी इस बारे में पूछा था. तुम मेरे मित्र भी हो, अजय, तुम्हारे साथ जरा सी भी नाइंसाफी मैं नहीं सह सकता, क्योंकि पिछले 6-7 सालों से मैं तुम्हें जानता हूं कि तुम्हारा चरित्र सफेद कागज के समान है. कोई तुम्हारी भावना का अनादर क्यों करे? मेरी बहन भी क्यों? जहां तक मां का विचार है तो वे यही कहती हैं कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.’’

‘‘तो आज मैं आ जाऊं उसे वापस ले आने के लिए? आखिर कोई कुछ तो इस समस्या का समाधान होना ही चाहिए. मीना मेरी पत्नी है, कुछ तो मुझे भी करना होगा न.’’

विनय की आंखें भर आईं. उस ने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया. संभवतयाउसे भी यही एक रास्ता सूझ रहा होगा कि मैं ही कुछ करूं.

अगली सुबह मैं अपनी ससुराल पहुंच गया. पूरे 15 दिन बाद मैं मीना से मिलने वाला था. सड़क की मरम्मत का काम चल रहा था. पूरे रास्ते पर कंकर बिछे थे, इसलिए स्कूटर घर से बहुत दूर खड़ा करना पड़ा. पैदल ही घर तक आया, इसीलिए मेरे आने का किसी को भी पता नहीं चला.

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मैं घर के आंगन में खड़ा था. मां और भाभी दोनों रसोई में व्यस्त थीं. उन्होंने मुझे देखा नहीं. चुपचाप सीढि़यां चढ़ कर मैं ऊपर मीना के कमरे के पास पहुंचा और पति के अधिकार के साथ दरवाजा धकेला मैं ने.

‘‘चारु, तुम जाओ. मैं ने कहा न मुझे भूख नहीं है… जानती हूं तुम्हारी चापलूसी को, सभी को मेरे खिलाफ भड़काती हो… अनपढ़, गंवार कहीं की… तुम जलती हो मुझ से.’’

मीना की यह भाषा सुन कर मैं हक्काबक्का रह गया. आहट पर ही इतनी बकवास कर रही है तो आमनेसामने झगड़ा करने में उसे कितनी देर लगती होगी. कैसी औरत मेरे पल्ले पड़ गई है जिस का एक भी आचरण मेरे गले से नीचे नहीं उतरता.

‘‘चारु भाभी क्यों जलेगी तुम से? ऐसा क्या है तुम्हारे पास, जरा बताओ तो मुझे? तुम तो मानसिक रूप से कंगाल हो.’’

काटो तो खून नहीं रहा मीना में. मेरा स्वर और मेरी उपस्थिति की तो उस ने कल्पना भी न की होगी. अफसोस हुआ मुझे खुद पर और सहसा अपना आक्रोश न रोक पाने पर.

‘‘चारु भाभी के अच्छे व्यवहार जैसा कुछ है तुम्हारे पास? तुम तो न अपने मांबाप की सगी हो न भाईभाभी की. न ससुराल में तुम्हें कोई पसंद करता है न मायके में. यहां तक कि पति भी तुम से खुश नहीं है. ऐसा कौन है तुम्हारा, जो तुम से प्यार कर के खुद को धन्य मानता है?’’

सन्न रह गई मीना. शायद यह आईना उसे मैं ही दिखा सकता था. आंखें फाड़फाड़ कर वह मुझे देखने लगी.

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Serial Story: चुभन (भाग-3)

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‘‘तुम तो बस, यही चाहती हो कि हर कोने में तुम्हारा ही अधिकार हो. मायके का यह कमरा हो या ससुराल का घर, हर इंसान बस तुम्हारे ही चाहने पर कुछ चाहे या न चाहे. मीना, यह भी जान ले कि इनसान का हर कर्म, हर व्यवहार एक दिन पलट कर वापस आता है. इतना जहर न बांटो कि हर दिशा से बस जहर ही पलट कर तुम्हारे पास वापस आए.’’

रो पड़ा था मैं यह सोच कर कि कैसे इस पत्थर को समझाऊं. सामने खिड़की के पार मजदूरों के बच्चे खेल रहे थे. हाथ पकड़ कर मैं मीना को खिड़की के पास ले आया और बोला, ‘‘वह देखो, सामने उन बच्चों को. सोच सकती हो वे कैसी गरमी सह रहे हैं? तुम कूलर की ठंडी हवा में चैन से बैठी हो न. जरा सोचो अगर उन्हीं मजदूरों के घर तुम्हारा जन्म होता तो आज यही जलते कंकड़ तुम्हारा बिस्तर होते. तब कहां होते सब नाजनखरे? यह सब चोंचले तभी तक हैं जब तक सब सहते हैं.

‘‘तुम विनय की पत्नी का इतना अपमान करती हो, आज अगर वह तुम्हें कान से पकड़ कर बाहर निकाल दे तब कहां जाएगी तुम्हारी यह जिद, तुम्हारा लड़नाझगड़ना? क्यों मेरे साथसाथ इन सब का भी जीना हराम कर रखा है तुम ने?’’

अपना अनिश्चित भविष्य देख कर मैं घबरा गया था. शायद इसीलिए जैसे गया था वैसे ही लौट आया. किसी को मेरे वहां जाने का पता भी न चला. विनय बारबार फोन कर के ‘क्या हुआ, कैसे हुआ’ पूछता रहा. क्या कहता मैं उस से? कैसे कहता कि मेरी पत्नी उस की पत्नी का अपमान किस सीमा तक करती है.

शाम ढल आई. इतवार की पूरी छुट्टी जैसे रोते शुरू हुई थी वैसे ही बीत गई. रात के 8 बज गए. द्वार पर दस्तक हुई. देखा तो हाथ में बैग पकड़े मीना खड़ी थी. क्या सोच कर उस का स्वागत करूं कि घर की लक्ष्मी लौट आई है या मेरी जान को घुन की तरह चाटने वाली मुसीबत वापस आ गई है?

‘‘तुम?’’ मेरे मुंह से निकला.

बिना कुछ कहे मीना भीतर चली गई. शायद विनय छोड़ कर बाहर से ही लौट गया हो. दरवाजा बंद कर मैं भी भीतर चला आया. दिल ने खुद से प्रश्न किया, कैसे कोई बात शुरू करूं मैं मीना से? कोई भी द्वार तो खुला नजर नहीं आ रहा था मुझे. हाथ का बैग एक तरफ पटक वह बाथरूम में चली गई. वापस आई तब लगा उस की आंखें लाल हैं.

‘‘चाय लोगी या सीधे खाना ही खाओगी? वैसे खाना भी तैयार है. खिचड़ी खाना तुम्हें पसंद तो नहीं है पर मेरे लिए यही बनाना आसान था, इसलिए 15 दिन से लगभग यही खा रहा हूं.’’

आंखें उठा कर मीना ने मुझे देखा तो उस की आंखें टपकने लगीं. चौंकना पड़ा मुझे, क्योंकि यह रोना वह रोना नहीं था जिस पर मुझे गुस्सा आता था. पहली बार मुझे लगा मीना के रोने पर प्यार आ रहा है.

‘‘अरे, क्या हुआ, मीना? खिचड़ी नहीं खाना चाहतीं तो कोई बात नहीं, अभी बाजार से कुछ खाने के लिए ले आता हूं.’’

‘‘आप मुझे लेने क्यों नहीं आए इतने दिन? आज आए भी तो बिना मुझे साथ लिए चले आए?’’

‘‘तुम वापस आना चाहती थीं क्या?’’

हैरान रह गया मैं. बांहों में समा कर नन्ही बालिका सी रोती मीना का चेहरा ऊपर उठाया. लगा, इस बार कुछ बदलाबदला सा है. मुझे तो सदा यही आभास होता रहता था कि मीना को कभी प्यार हुआ ही नहीं मुझ से.

‘‘तुम एक फोन कर देतीं तो मैं चला आता. मुझे तो यही समझ में आया कि तुम आना ही नहीं चाहती हो.’’

सहसा कह तो गया, मगर तभी ऐसा भी लगा कि मैं भी कहीं भूल कर रहा हूं. मेरे मन में सदा यही धारणा रही, जो भी मिल जाए उसी को सिरआंखों पर लेना चाहिए. प्रकृति सब को एकसाथ सब कुछ नहीं देती, लेकिन थोड़ाथोड़ा तो सब को ही देती है. वही थोड़ा सा यदि बांहों में चला आया है तो उसे प्रश्नोत्तर में गंवा देना कहां की समझदारी है. क्या पूछता मैं मीना से? कस कर बांहों में बांध लिया. ऐसा लगा, वास्तव में सब कुछ बदल गया है. मीना का हावभाव, मीना की जिद. कहीं से तो शुरुआत होगी न, कौन जाने यहीं से शुरुआत हो.

तभी फोन की घंटी बजी और किसी तरह मीना को पुचकार कर उसे खुद से अलग किया. दूसरी तरफ विनय का घबराया सा स्वर था. वह कह रहा था कि मीना बिना किसी से कुछ कहे ही कहीं चली गई है. परेशान थे सब, शायद उन्हें यह उम्मीद नहीं थी कि वह मेरे पास लौट आएगी. मेरा उत्तर पा कर हैरान रह गया विनय.

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वह मुझे लताड़ने लगा कि पिछले 4-5 घंटे से मीना तुम्हारे पास थी तो कम से कम एक फोन कर के तो मुझे बता देते. उस के 4-5 घंटे घर से बाहर रहने की बात सुन कर मैं भौचक्का रह गया, क्योंकि मीना मेरे पास तो अभीअभी आई है.

एक नया ही सत्य सामने आया. कहां थी मीना इतनी देर से?

उस के मायके से यहां आने में तो 10-15 मिनट ही लगते हैं. मीना से पूछा तो वह एक नजर देख कर खामोश हो गई.

‘‘तुम दोपहर से कहां थीं मीना? तुम्हारे घर वाले कितने परेशान हैं.’’

‘‘पता नहीं कहां थी मैं.’’

‘‘यह तो कोई उत्तर न हुआ. अपनी किसी सहेली के पास चली गई थीं क्या?’’

‘‘मुझ से कौन प्यार करता है, जो मैं किसी के पास जाती? लावारिस हूं न मैं, हर कोई तो नफरत करता है मुझ से… मेरा तो पति भी पसंद नहीं करता मुझे.’’

फिर से वही तेवर, वही रोनापीटना, मगर इस बार विषय बदल गया सा लगा. मन के किसी कोने से आवाज उठी कि पति पसंद नहीं करता उस का कारण भी तुम जानती हो. जब इतना सब पता चल गया है तुम्हें तो क्या यह पता नहीं चलता कि पति की पसंद कैसे बना जाए.

प्रत्यक्ष में धीरे से मीना का हाथ पकड़ा और पूछा, ‘‘मीना, कहां थीं तुम दोपहर से?’’

मेरे गले से लग पुन: रोने लगी मीना. किसी तरह शांत हुई. उस के बाद, जो उस ने बताया उसे सुन कर तो मैं दंग ही रह गया.

मीना ने बताया, ‘‘घर की चौखट लांघते समय समझ नहीं पाई कि कहां जाऊंगी. आप ने सुबह ठीक ही कहा था, मेरी जिद तब तक ही है जब तक कोई मानने वाला है. मेरे अपने ही हैं, जो मेरी हर खुशी पूरी करना चाहते हैं. 4 घंटे स्टेशन पर बैठी आतीजाती गाडि़यां देखती रही… कहां जाती मैं?’’

विस्मित रह गया मैं मीना का चेहरा देख कर. सत्य है, जीवन से बड़ा कोई अध्यापक नहीं और इस संसार से बड़ी कोई पाठशाला कहीं हो ही नहीं सकती. सीखने की चाह हो तो इंसान यहां सब सीख लेता है. निभाना भी और प्यार करना भी. यह जो सख्ती विनय के परिवार ने अब दिखाई है यही अगर बचपन में दिखाई जाती तो मीना इतनी जिद्दी कभी नहीं होती. हम ही हैं जो कभीकभी अपना नाजायज लाड़प्यार दिखा कर बच्चों को जिद्दी बना देते हैं.

‘‘एक बार तो जी में आया कि गाड़ी के नीचे कूद कर अपनी जान दे दूं. समझ नहीं पा रही थी कि मैं कहां जाऊं,’’ मीना ने कहा और मैं अनिष्ट की सोच कर कांप गया. पसीने से भीग गया मैं. ऐसी कल्पना कितनी डरावनी लगती है.

मैं ने कस कर छाती में से लगा लिया मीना को. मीना जोश में आ कर कोई गलत कदम उठा लेती तो मेरी हालत क्या होती. मैं ऐसा कैसे कर पाया मीना के साथ. 15 दिन तक हालचाल भी पूछने नहीं गया और आज सुबह जब गया भी तो यह भी कह आया कि मीना का पति भी मीना से प्यार नहीं करता. रो पड़ा मैं अपनी नादानी पर. एक नपातुला व्यवहार तो मैं भी नहीं कर पाया न.

‘‘अजय, आप पसंद नहीं करते न मुझे?’’

‘‘मुझे माफ कर दो, मीना, मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था.’’

‘‘आप ने अच्छा किया जो ऐसा कहा. आप ऐसा नहीं कहते तो मुझे कुछ चुभता नहीं. कुछ चुभा तभी तो आप के पास लौट पाई.

‘‘मैं जानती थी, आप मुझे माफ कर देंगे. मैं यह भी जानती हूं कि आप मुझ से बहुत प्यार करते हैं. आप ने अच्छा किया जो ऐसा किया. मुझे जगाना जरूरी था.’’

मैं मीना के शब्दों पर हक्काबक्का था. स्वर तो फूटा ही नहीं मेरे होंठों से. बस, मीना के मस्तक पर देर तक चुंबन दे कर पूरी कथा को पूर्णविराम दे दिया. जो नहीं हुआ उस का डर उतार फेंका मैं ने. जो हो गया उसी का उपकार मान मैं ने ठंडी सांस ली.

‘‘मैं एक अच्छी पत्नी और एक अच्छी मां बनने की कोशिश करूंगी,’’ रोतेरोते कहने लगी मीना और भी न जाने क्याक्या कहा.

अंत भला तो सब भला. लेकिन एक चुभन मुझे भी कचोट रही थी कि कहीं मेरा व्यवहार अनुचित तो नहीं था?

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Hyundai Creta बनाएगी यात्रा को आसान

न्यू हुंडई क्रेटा को आगे और पीछे दोनों सीटों के यात्रियों के लिए आरामदायक बनाया गया है. इसमें पीछे के सीट पर बैठे यात्रियों के लिए built-in privacy shades के साथ एक सेंटर आर्मरेस्ट दिया गया है, जिससे पीछे बैठे यात्री बिना किसी तरह की परेशानी के अपने डेस्टिनेशन पर आराम के साथ पहुंच पाएंगे.

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