इमोशन भी है निटिंग

न्यूयार्क से बहू श्रुति ने फोन पर कहा, ‘‘मम्मीजी, आप लैपटौप पर मेल चैक कर लेना. अनन्या का फोटो भेजा है.’’

हेमाजी ने तुरंत पति से गुहार लगाई और बैठ गईं लैपटौप के सामने. अनन्या को उन की बनाई भेजी ऊन की फ्राक पहने देख हेमाजी अपनी ही कृति पर मुग्ध हो उठीं. ऊन से बुनी गई फ्राक बहुत सुंदर व प्यारी लगी. अनन्या पर तो खूब फब रही थी. बस, फिर क्या था, उन की जो भी परिचिता या सहेली आती, वे उन्हें अनन्या का फोटो दिखाना न भूलतीं.

हेमाजी अपने जमाने की बुनाई विश्ेषज्ञ थीं. उन की बुनाई के चर्चे हर जगह होते. बुनाई विशेषांकों में भी उन के डिजाइन छप चुके थे. उन की नजर तो बस, ऊनी वस्त्रों के डिजाइन एवं रंग संयोजन पर ही होती. भले ही वह व्यक्ति खुद को घूरते देख फूला न समाए. वे मन ही मन उस का डिजाइन याद कर, घर जा कर बुन कर ही रहतीं. एक कार्यक्रम में सभी की नजर कलाकारों की गायकी पर थी. हेमाजी ‘हाय’ कर बैठीं,  ‘हाय राम! यह तो एक और अदनान सामी है, इस की बीवी को इस के स्वैटर के लिए कितने सारे फंदे डालने पड़ते होंगे और कितनी बार गिरे फंदों को उठाना पड़ता होगा? इतने सारे फंदों के लिए लंबी सलाई कहां से ले कर आती होगी?’

हेमाजी को अपने कौशल को अतीत तक सीमित रखना उन के बस में नहीं था. अब बड़े तो हाथ के स्वैटर पहनने से रहे, नौनिहालों पर ही अपनी कारीगरी निछावर करती रहतीं. आम के आम गुठलियों के दाम. कम कीमत में ही सुंदर, सलीकेदार प्यारा सा उपहार तैयार हो जाता. ब्याज में तारीफ हो जाती सो अलग.

शिवानी के बेटे स्थिर का खरगोश वाला स्वैटर और टोपा कालोनी में खूब प्रसिद्धि पा चुका है. शिवानी बड़े नाज से कहती, ‘‘मेरी मम्मी की उंगलियों का कमाल है. स्थिर के लिए वे मनमोहक रंगों एवं खूबसूरत डिजाइन ईजाद करती ही रहती हैं.’’

विभा ने अपने बी.ई. कर रहे बेटे के स्वैटर में अद्भुत डिजाइन डाला, जिस में एक ही सलाई में 9 रंगबिरंगे धागे एकसाथ चल रहे थे. स्वैटर बनने पर तो वह बहुत वाहवाही हुई. लेकिन स्वैटर बनाते समय जो फजीहत हुई वह विभा ही जानती है. उल?ो ऊन को सुल?ाने में पति एवं बच्चों का बहुत सहयोग रहा.

रेणु बुनाई प्रतियोगिता में प्रथम आई तो उन की खूब प्रशंसा हुई. डिजाइन कठिन था, फिर भी समय सीमा में सफाई के साथ बुना गया था. सखियों एवं पड़ोसियों की ईर्ष्या बधाई देते समय साफ ?ालक रही थी.

बुनाई को हौबी बनाएं

पूर्वा जब स्कूल में पढ़ती थी, एक दिन आ कर बोली, ‘‘आंटी, मु?ो सलाई में फंदे डालना सिखा दो, मेरी मम्मी को तो कुछ नहीं आता.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारी मम्मी तो डाक्टर है और जरूरी नहीं कि हर काम किसी से बने.’’

पूर्वा तपाक से बोली, ‘‘नहीं आंटी, घर का काम हर लड़की को सीखना ही चाहिए. पता नहीं कब काम आ जाए.’’

आज पूर्वा एक बड़ी कंपनी की सी.ई.ओ. है फिर भी गृहस्थी के किसी भी हुनर से अनभिज्ञ नहीं एवं आत्मविश्वास से लबरेज है.

शीत ऋतु अपने अनेक रंग बिखेरे घरों में राज करती है. कहीं तिल्ली के व्यंजन, मूंग की दाल का या गाजर का हलवा, मेथी और उड़द के लड्डुओं की सौगात लाती है तो किसी को हर वक्त गरमगरम अदरकतुलसी वाली चाय की तलब बनी ही रहती है. लेकिन धूप सेंकती, गप लगाती, बतियाती उंगलियों के कौशल को सलाई से ऊन में उतारती महिलाएं कुछ इस तरह आकर्षित करती हैं कि देखने वालों का मन भी बुनाई करने का हो ही जाता है. पड़ोसियों की देखादेखी, किस ने कितनी बुनाई की, कितने वस्त्रों को आकार दिया, यह सब मन के किसी कोने में बना रहता है.

ऊन का भी अपना फैशन होता है. पतलामोटा, चमकीला, रंगबिरंगा आदि. हमारे देश में ही दक्षिण की शीत ऋतु एक स्वैटर या एक शाल में निकल जाती है, जबकि उत्तर भारत में ठंड में ऊनी वस्त्र अनिवार्य आवश्यकता में शामिल हो जाते हैं. स्थानीय परिवेश इस हुनर को प्रभावित करता है. ठंड अधिक हो तो यह कला खूब फलेगी, फूलेगी. कई आकारप्रकार के रंगों में ये वस्त्र अपनी विशिष्टता लिए बाजार में अपना आधिपत्य जमाते रहते हैं. बुनाई पसंद महिलाएं उन के साथ कदम से कदम मिला कर नए डिजाइनों का आविष्कार करती ही रहती हैं.

बुनाई कहीं आदत है, हौबी है तो नशा

भी है. लोग तो इन महिलाओं को निटिंग ऐडिक्ट कहने से भी बाज नहीं आते. ये हर पल कुछ नया बनाने का हौसला रखती हैं. छोटे, पुराने स्वैटर को खोल कर नया बनाना इन के बाएं हाथ का खेल है. पुलओवर, कार्डिगन, गाउन, स्वैटर, टौप, ब्लाउज, टीशर्ट, टोपे, मोजे, फ्राक, शाल, कुशनकवर, खिलौने आदि क्या नहीं बना देतीं.

बस, बनाने की मंशा हो, फिर दिमाग बुनाई के आसपास ही घूमता है. उठतेबैठते, रसोई में, बाजार में, सिनेमा में, टीवी के सामने बुनाई का फितूर ही रखता है. गृहकार्य जैसेतैसे निबटा कर ऊन और सलाइयां इन के हाथों की शोभा बढ़ाती रहती हैं. ये धुन की भी पक्की होती हैं. हाथ की थकान या दर्द से कराहते हुए भी उसी में रमी रहती हैं. कई लोग कहते हैं कि फलां की जबान कैंची की तरह चलती है. अजी, इन की बुनाई करती उंगलियों को तो देखो, कैंची और जबान दोनोें चकमा खा जाएंगी.

उंगलियों का कौशल

सर्दियों का मौसम आने के पूर्व बरसात में ही बुनाई का बैकग्राउंड बनने लगता है. इन के पास बुनाई विशेषांकों का नायाब कलैक्शन होता है. कल्पनाशक्ति इतनी प्रबल कि किसी भी रंग, डिजाइन का संयोजन सुंदर और मनमोहक बनाने में कसर नहीं छोड़तीं. भले उन्हें बड़ी मानसिक कशमकश से ही क्यों न गुजरना पड़े.

सच तो यह है कि हाथों से बने ऊनी वस्त्र अपनी अलग पहचान बनाते हैं, व्यक्तित्व को निखारते, संवारते हैं, खुद को विशिष्ट बनाने के साथ स्वावलंबी बनाने का यह जरिया भी है तो बचत करने के प्रयास भी है.

प्रत्येक गृहिणी का मन घरपरिवार को खुश देखने का होता है. बुनाई की मशीनों ने बुनाई को पेशा जरूर बना दिया है. बदलते फैशन ने हाथ से बुने वस्त्रों को बीते दिनों की बात कह दिया. लेकिन अभी भी उंगलियों का कौशल बरकरार है. ये गृहिणी की सू?ाबू?ा, कलात्मक अभिव्यक्ति का परिचय देती हैं. थोड़ा सा श्रम, थोड़ी सी लगन, थोड़ी सी बचत आप के लाड़ले को स्मार्ट बना देती है. आप की बेटी रंगबिरंगे परिधानों में किसी परी से कम नहीं लगती.

किटी पार्टी में आप की शाल, ब्लाउज, कार्डिगन महफिल की रौनक को दोगुना कर देते हैं. पुरुष वर्ग के लिए शालीन, सुरुचिपूर्ण रंग व्यक्तित्व को गरिमा प्रदान करते हैं. वहीं वरिष्ठों के लिए उन की सुविधा सर्वोपरि है. न रंगों का अधिक मोह न नायाब नमूने की चाह. बस, ठीक नाप के हों, तन को पूरी तरह सुरक्षा प्रदान कर सकें. अधिक की चाह भी नहीं और ये खुद रखरखाव के प्रति सजग होते हैं. शीत ऋतु रंगबिरंगे, विभिन्न आकार, प्रकार, डिजाइन, फैशन के अनुरूप किशोरकिशोरियों का तो गर्मजोशी से स्वागत करती नजर आती है.

खूबसूरत और मनभावन

इस हुनर की जानकार महिलाएं घर, पड़ोस, सिनेमाहाल, पार्क में, ट्रेन में, सफर में, पार्टी में कोई न कोई तिकड़म लगा कर बुनने के लिए समय चुरा ही लेती हैं. इसीलिए तो इन की एकाग्रता पर अंकुश लगाने के लिए संसर, विधानसभाओं, दफ्तरों में बंदिश लगी हुई है- ‘कृपया बुनाई न करें.’ बेचारी वहां कैसे समय काटती होंगी? 1-1 पल 1-1 युग सा बीतता होगा. इस कला के पीछे एक और मानसिकता काम करती है- कहीं गली, पासपड़ोस, कालोनी या शहर में 2 स्वैटर एक से न बन जाएं और किसी से मिलतेजुलते भी न बनें. पहनने में यों एकदम अलग दिखें कि देखने वाले दांतों तले उंगली दबा लें.

सब से अधिक भय तो अपने रंग, डिजाइन के कौमन होने का होता है. लेकिन राज की बात तो यह है कि डिजाइन जितना सुंदर, जितना खूबसूरत और मनभावन होगा, वह उतनी ही जल्दी कौमन हो जाता है. यदि आप नहीं बताएंगी तो कोई न कोई पारखी नजर येनकेन प्रकारेण डिजाइन उतारने मेें सफलता अर्जित कर ही लेगी. बहुत पैनी नजर होती है इन की. तब न आप का नाम होगा और न एहसान. आप के अभूतपूर्व नमूने का श्रेय कोई और ले जाएगा. बुनाई से जुड़ती हैं नारी की कोमल भावनाएं, परिवार के प्रति लगाव एवं समर्पण.

राइटर- सरोज राय

Lips Care Tips : लिप्स की टैनिंग से पाना चाहती हैं छुटकारा, तो अपनाएं ये आसान टिप्स

Lips Care Tips : चेहरा हमारे व्यक्तित्त्व का आईना होता है. यही कारण है कि हर महिला अपने चेहरे को खूबसूरत बनाने के लिए बहुत से जतन करती है. लेकिन यह भी सच है कि चेहरा तभी खूबसूरत दिखाई देता है जब त्वचा बेदाग व होंठ गुलाबी हों. फटे और टैन होंठ चेहरे की सुंदरता को फीका कर देते हैं.

इस में सब से ज्यादा चिंता की बात यह है कि महिलाएं अपने शरीर के अन्य पार्ट्स की टैनिंग को ले कर तो बहुत जागरूक होती हैं, लेकिन लिप्स की टैनिंग को ले कर बिलकुल भी अवेयर नहीं होती हैं. जानिए, होंठों की देखभाल करने के कुछ महत्वपूर्ण टिप्स :

1. कई बार होंठों पर घटिया किस्म का कौस्मैटिक यूज करने से भी होंठ टैन हो जाते हैं या फिर जरूरत से ज्यादा कौस्मैटिक के प्रयोग से भी होंठों का रंग गहरा पड़ सकता है.

2. धूम्रपान की वजह भी होंठ काले हो जाते हैं.

3. ज्यादा देर तक स्विमिंग करने से भी होंठों में कालापन आ सकता है.

4. ज्यादा कैफीन का सेवन होंठों के कालेपन का कारण बनता है.

टैनिंग दूर करने के टिप्स

लिप फेशियल : डर्मावर्ल्ड स्किन क्लिनिक के डर्मैटोलौजिस्ट ऐंड हेयर क्लीनिक्स डा. रोहित बत्रा का कहना है कि लोग आमतौर पर चेहरे पर ही फेशियल करते हैं. वो इस बात से अनजान होते हैं कि लिप फेशियल द्वारा लिप्स की टैनिंग से पूरी तरह मुक्ति पा सकते हैं. यही नहीं यह लिप्स को और भी ज्यादा आकर्षक बना देता है. मगर इसे किसी ऐक्सपर्ट से ही कराएं.

लिप ट्रीटमैंट व लिप मास्क : इन दिनों मार्केट में लिप की टैनिंग दूर करने के लिए लिप लाइटनिंग जैसे ट्रीटमैंट्स भी उपलब्ध हैं जो बहुत लोकप्रिय भी हो रहे हैं. इस के अलावा इन दिनों लिप मास्क भी लिप्स की सुंदरता बढ़ाने के लिए बहुत पौपुलर हो रहे हैं.

अन्य नुस्खे

अनार : अनार के रस के प्रयोग से भी टैनिंग दूर होती है. इसे हलदी के साथ मिला कर होंठों पर लगाएं. 15 मिनट बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें.

गुलाब की पंखुडि़यां : होंठों की टैनिंग को दूर करने के लिए गुलाब की पंखुडि़यां बहुत ही फायदेमंद होती हैं. इन्हें पीस कर थोड़ी सी ग्लिसरीन मिला कर घोल को रोज रात को होंठों पर लगा कर सो जाएं, सुबह धो लें.

नीबू : सुबह और शाम नीबू के रस को होठों पर रगड़ें. 10 मिनट बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. यह टैनिंग दूर करने का बहुत ही कारगर उपाय है.

केसर और दूध : केसर के इस्तेमाल से भी होंठों का कालापन दूर होता है. कच्चे दूध में केसर मिला कर उसे रात को होंठों पर लगा कर सो जाएं, सुबह ठंडे पानी से चेहरा धो लें.

चुकंदर : चुकंदर को काट कर टुकड़ों को होंठों पर घिसें या फिर इस का रस निकाल कर नीबू के रस में मिला कर भी लगा सकती हैं. नियमित लगाने से होंठ गुलाबी व चमकदार बनते हैं.

चीनी का स्क्रब : होंठों की टैनिंग हटाने के लिए चीनी में नारियल तेल की कुछ बूंदें डाल कर ब्रश की सहायता से बिलकुल हलके हाथों से लिप्स को स्क्रब करें. होठों का कालापन दूर हो जाएगा.

Health Tips : मुझे डायबिटीज है, क्या मैं फल खा सकता हूं?

Health Tips : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी उम्र 42 साल है. मैं एक शिक्षण संस्थान में क्लर्क हूं. पिछले 2-3 वर्षों से मुझे कब्ज की शिकायत है. क्या करूं?

जवाब

लगातार लंबे समय तक बैठे रहने से एब्डौमिनल कैविटी/उदर गुहा दब जाती है जिस से पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है और कब्ज का कारण बन जाती है. जो लोग रोज घंटों बैठे रहते हैं उन में आंतों की मूवमैंट भी नहीं होती है जिस से आंतें अपनी पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर पाती हैं. आंतों में पचे हुए भोजन की गति सामान्य न होना कब्ज का कारण बन जाता है. आप अपनी जौब तो बदल नहीं सकती लेकिन अपनी आदतों में बदलाव जरूर ला सकती हैं. जंक फूड्स के बजाय संतुलित, पोषक और हलके भोजन का सेवन करें. 7-8 घंटे की नींद लें. खाने और सोने का एक समय निर्धारित कर लें क्योंकि आप क्या खाते हैं और कितना सोते हैं उस के साथ यह भी महत्त्वपूर्ण है कि आप कब खाते और सोते हैं. सप्ताह में कम से कम 150 मिनट अपना मनपसंद वर्कआउट करें. अनावश्यक तनाव न पालें.

सवाल

मुझे फल खाना बहुत पसंद हैं लेकिन मुझे डायबिटीज है. ऐसे में क्या मुझे इन्हें खाना बंद कर देना चाहिए?

जवाब

यह एक सामान्य लेकिन पूरी तरह से गलत धारणा है. जिन्हें डायबिटीज है वे सामान्य लोगों की तरह सभी फल खा सकते हैं लेकिन उन्हें केवल मात्रा का ध्यान रखना है. आप रोज 150-200 ग्राम फल बिना किसी परेशानी के खा सकती हैं. जिन्हें डायबिटीज है उन्हें ऐसे फल खाना चाहिए जिन का ग्लाइसेमिक इंडैक्स कम हो जैसे सेब, संतरा, पपीता, नाशपाती, अमरूद, अनार. अंगूर, आम, चीकू, पाइनऐप्पल से परहेज करना चाहिए लेकिन अगर बहुत मन करे तो कभीकभार बिलकुल थोड़ी मात्रा में इन्हें ले सकते हैं. आप कभीकभी एक छोटा केला भी खा सकती हैं लेकिन बड़े आकार का केला न खाएं.

सवाल

मेरी उम्र 24 साल है और मैं 26 सप्ताह की गर्भवती हूं. मुझे पिछले 2 सप्ताह से पीलिया है और खुजली बहुत हो रही है. मैं इसे कैसे मैनेज करूं और इस का मेरी गर्भावस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

गर्भावस्था के दौरान फीमेल हारमोंस का स्राव बढ़ जाता है. लिवर में बौयल के प्रवाह में अवरोध आने के कारण पीलिया और खुजली होने का खतरा बढ़ जाता है. पहले आप जरूरी जांचे कराएं ताकि पीलिया होने के दूसरे कारणों जैसे वायरल हेपेटाइटिस की आशंका को समाप्त किया जा सके. तब लिवर स्पैशलिस्ट आप को कुछ दवाइयां शुरू करेगा. इस के साथ ही रक्त में बौयल ऐसिड को भी नियंत्रित करने की आवश्यकता होगी क्योंकि इस से गर्भावस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. गंभीर स्थिति में गर्भावस्था को समय पूर्व समाप्त करने की जरूरत पड़ सकती है.

डा. विशाल खुराना

डाइरैक्टर, गैस्ट्रोएंटरोलौजी, मैट्रो हौस्पिटल, फरीदाबाद. 

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Hosting House Party : हाउस पार्टी करना चाहते हैं प्लान, तो फौलो करें ये टिप्स

Hosting House Party : मौसम और समय कोई भी हो हम छोटी सी खुशी को भी दोस्तों और परिवारजनों के साथ पार्टी कर के शेयर करते हैं. होटल या रैस्टोरेंट जहां बड़े आयोजनों के लिए उपयुक्त रहते हैं, वहीं यदि आप के घर में थोड़ा सा भी स्पेस है तो आप घर पर भी किसी भी छोटीमोटी पार्टी को मैनेज कर सकते हैं.

घर पर पार्टी करने का सब से बड़ा लाभ यह होता है कि होटल की अपेक्षा घर में आप और आप के मेहमान फ्री हो कर ऐंजौय कर सकते हैं क्योंकि यहां पर किसी भी प्रकार की कोई बंदिश नहीं होती है साथ ही यह होटल की अपेक्षा काफी बजट फ्रैंडली भी रहता है.

घर पर पार्टी करने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है ताकि घर पर भी आप होटल जैसी पार्टी का आनंद उठा सकें :

थीम है सब से जरूरी

आजकल हौलीबुड, बौलीवुड, स्पोर्ट्स, 90 टीज, औस्कर रैड कार्पेट, सुपर हीरो, हैलोवीन जैसी पार्टी थीम प्रचलन में हैं। आप अपनी मनपसंद कोई भी थीम चुन सकते हैं. सभी मेहमानों को थीम के बारे में सूचित कर दें ताकि मेहमान थीम के अनुसार अपना आउटफिट और मेकअप डिसाइड कर सकें. जहां तक हो सके आप अपने घर की सजावट को भी थीम के साथ मैच करने का प्रयास करें.

डांस ऐंड फन

कोई भी पार्टी डांस और फन के बिना अधूरी होती है इसलिए पार्टी स्पेस के एक कौर्नर में डांस फ्लोर तैयार अवश्य रखें. कुछ कौमन डांस सौंग्स के साथसाथ मेहमानों के इंडीविजुअल डांस के सौंग्स की भी लिस्ट बना कर रखें ताकि आप सभी मेहमानों के सौंग्स आराम से चला सकें. आप स्वयं भी पार्टी को ऐंजौय कर सकें। गाने चलाने के लिए किसी प्रोफैशनल की मदद भी ली जा सकती है.

डांस फ्लोर को रंगबिरंगी लाइट्स से सजा कर डैकोरेटिव लुक दिया जा सकता है.

फ्लावर डैकोरेशन

कोई भी पार्टी डैकोरेशन के बिना अधूरी रहती है. घर की सजावट में सफेद, पिंक, लाइट यलो जैसे सौफ्ट न्यूट्रल रंगों के फूलों को शामिल करें ताकि ब्लैक, गोल्डन और सिल्वर जैसे पार्टी थीम के प्रत्येक रंग के साथ फूलों का बैलेंस बना रहे.

यदि आप का बजट हो तो आप आर्टिफिशियल फ्लावर्स की जगह रजनीगंधा, गुलाब, मोगरा और गेंदे के फूलों से भी सजावट कर सकते हैं. अधिक शाइन के लिए आप गोल्डन ग्लिटर से ढंके गिलास जार वास का भी प्रयोग कर सकतीं हैं.

कलर्स तय करें

थीम के अकौर्डिंग आप कलर निर्धारित करें. थीम कोई भी हो आप बहुत सारे रंगों का प्रयोग करने के बजाय एक मेन रंग के साथ 2 कंट्रास्ट कलर तय करें ताकि पार्टी बहुत अधिक भड़काऊ न हो कर सौम्यता बनी रहे.

प्रभावी हो डैकोरेशन

बहुत अधिक डैकोरेशन से जगह को भरने की जगह प्रभावी डैकोरेशन रखें मसलन यदि बर्थडे पार्टी है तो बड़ेबड़े 2-3 बर्थडे वाले बैलून लगा दें। ऐनिवर्सरी पार्टी में हार्टशेप के बैलून लगाए जा सकते हैं. इसी तरह रिटायरमैंट पार्टी में आप ग्रे और व्हाइट कलर के बैलून लगा सकती हैं.

अवसर के अनुकूल आप किसी एक दीवार पर एक बड़ा सा बैनर लगा कर उसे मुख्य दीवार बना सकते हैं. अलगअलग लेंथ और साइज की सजावट का उपयोग करें. तैरते हुए हीलियम गुब्बारे या लटके हुए पौमपौम का प्रयोग भी किया जा सकता है.

पर्याप्त हो स्पेस

मेहमानों की संख्या के अनुसार टेबल सजाएं। ध्यान रखें कि मेहमानों के पास बैठने के लिए पर्याप्त जगह हो. यदि आप छोटी सी पार्टी को भी ग्रैंड लुक देना चाहते हैं और आप के पास पर्याप्त स्पेस है तो बुफे के स्थान पर कुछ राउंड टेबल और चेयर्स को सेट करें ताकि मेहमानों को प्लेट ले कर हरसमय खड़ा न रहना पड़े.

घड़ी न भूलें

यदि आप ने पार्टी के लिए कुछ गेम्स प्लान किए हैं तो काउंटडाउन याद दिलाने के लिए दीवार पर 1 या 2 बड़ी घड़ियां लगाएं अथवा सैंड टाइमर सेट करें. आप चाहें तो डैकोरेटिव अलार्म क्लौक भी सेंटर में सेट कर सकते हैं.

पैट्स को दूर रखें

आजकल अधिकांश घरों में पेट्स होते हैं. पार्टी अरैंज करते समय कोशिश करें कि पैट्स पार्टी में डिस्टरबैंस न करें. आप इन्हें किसी कमरे में बंद करें या फिर एक दिन के लिए डौग होस्टल में भेज दें ताकि सभी मेहमान और आप निश्चिंत हो कर पार्टी को ऐंजौय कर सकें.

Social Issue : अमीरों की सुनो वह तुम्हारी सुनेगा

Social Issue :  देश की खस्ता हो रही इकौनौमी का एक और सुबूत है कि अब प्रीमियम प्रोडक्ट्स भी छोटे पैक्स में मिलने लगे हैं. एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) यानी ज्यादा बिकने वाली आम जरूरत की चीजों की खपत अब बढ़नी बंद हो गई है जबकि देश की जनसंख्या बढ़ रही है.

इन प्रोडक्ट्स को बनाने वालों ने पिछले 2 दशकों में प्रीमियम प्रोडक्ट्स बना कर गरीबों, अमीरों व सुपर अमीरों के बीच लाइनें लगानी शुरू की थीं और टूथपेस्ट जैसी चीज भी 300-400 रुपए की बिकने लगी थी. एअर कंडीशंड, अंगरेजी बोलने वाले स्टाफ वाले मौलों में खुले स्टोर चाहते ही यह थे कि वे महंगे प्रोडक्ट्स बेचें जिन पर उन का मार्जिन अच्छा हो जिस में से कुछ वे पौइंट्स के रूप में ग्राहकों को लौटा सकें.

बहुत अमीरों की तो संख्या में कमी नहीं हुई पर गरीबों और अमीरों के बीच की बिरादरी लड़खड़ाने लगी है. अच्छे पढ़ेलिखे, अपना लाइफ स्टाइल सुधारने के चक्कर वाले क्व20 की कौफी की जगह क्व150-300 कीकौफी पीने वाले अब पैसे की तंगी महसूस कर रहे हैं.

इन मिडल रिचों के खर्चे बढ़ गए हैं. गाड़ी मिड साइज की ही खरीदनी है, फ्लैट अच्छी सोसायटी में ही हो, सप्ताह में 4 बार खाना अच्छे रेस्तरां में ही हो, कपड़े, जूते ब्रैंडेड ही हों, बच्चों को महंगे प्राइवेट इंगलिश मीडियम स्कूल में ही भेजा जाए, फोन और लैपटौप महंगा ही हो. इन सब के पास ग्रौसरी के लिए पैसा कहां बचता है? अब प्रीमियम प्रोडक्ट्स खरीदने की आदत पड़ गई तो उन के छोटे पैक्स की मांग होने लगी है. छोटी फैमिली में बड़े पैक खत्म ही नहीं होते और बोतल का रंग फीका पड़ने लगता है.

अब सभी बड़ी कंपनियां महंगे रोजमर्रा के टूथपेस्ट, शैंपू, सोप, कंडीशनर, डिटर्जैंट, मसालों, क्रीमों, रैडीमेड फूड व छोटे पैक बनाने लगी हैं. इस से खपत बढ़ेगी, यह तो पता नहीं पर सर्कुलेशन बढ़ जाएगा, यह अंदाजा है.

असल में लोगों की जेबों में पैसा कम बच रहा है क्योंकि फालतू के खर्च ज्यादा हो रहे हैं. सब से बड़ा बेकार का खर्च डिजिटल मोड पर है. लोग बेबात में नया स्मार्ट मोबाइल, स्मार्ट वाच, लैपटौप, डेटा पैक, इयरबड खरीद रहे हैं. स्मार्ट बड़े टीवी पर महंगे ओटीटी प्लेटफौर्म सब्सक्राइव किए जा रहे हैं. बेमतलब के टूरिस्ट स्पौटों पर जाया जा रहा है.

यही नहीं, दकियानूसीपन फिर भी भरा है और इसलिए इंजीनियर, डाक्टर, एमबीए, लौयर्स बड़ा मोटा पैसा पैशनेबल धार्मिक आश्रमों पर खर्च कर रहे हैं. उन के लिए मैडिटेशन, योगा क्लासेज, हाई ऐंड टैंपल, और्गेनिक फूड, पिलग्रिम टूरिज्म जिस में एअर और हैलिकाप्टर राइड्स होते हैं, जम कर इस्तेमाल हो रहा है. जो पैसा सेहत के लिए सामान खरीदने के लिए खर्च होना चाहिए वह जिम मैंबरशिप में खर्च होता है.

धर्म के नाम पर मोटिवेशनल स्पीकर्स की बाढ़ आ गई है जो पर्सनैलिटी इंप्रूवमैंट के नाम पर भारी डोनेशन वसूल कर लेते हैं. गरीब लोग कुंभ जैसे मेलों में सस्ते टैंटों में साथसाथ बिस्तर लगा कर सोते हैं, अमीरों के लिए 5 स्टार सुविधाएं अलग टैंटों में दी जा रही हैं क्योंकि वे मोटी दक्षिणा देते हैं.

घरों में अमीरों और धर्म अमीरों ने अपने घरेलू मंदिर बना लिए हैं जहां रातदिन दीए जलते रहते हैं. ये इग्नोरैंट इररैशनल रिच यंग भी गिफ्ट में गणेश, शिव, लक्ष्मी के ऐब्स्ट्रैक्ट आर्ट वाले महंगे सिंबल बांटते फिरते हैं. पैसा तो लिमिटेड है. जरूरत पर खर्च करो या धर्म पर बरबाद करो.

धर्म पर ही नहीं, यही लोग अपने खाली समय में कुछ पढ़ने की जगह घंटों महंगी शराबों पर भी खर्च करते हैं. यह खर्च लाइफस्टाइल का हिस्सा बन गया है. रात देर तक पीते रहने वाले सुबह पूजापाठी बन जाते हैं और उस के बाद हैल्थ कौंशस हो कर ब्रैंडे़ड जूते और वाकिंग ड्रैस पहन कर निकलते हैं.

जो लोग दोगलेपन में जीते हैं उन से पैसा बचाने की उम्मीद नहीं की जा सकती. उन के क्रैडिट कार्ड हमेशा लिमिट क्रौस करते रहते हैं. पैसा हो तो घर का सामान खरीदेंगे न.

अच्छा लाइफस्टाइल जरूरी है पर कल के लिए बचाना ज्यादा जरूरी है. ये युवा रिच कल का जिम्मा तो धर्म और शेयर बाजार पर डाल देते हैं. अगर इन की गिनती फिर भी काफी दिख रही है तो इसलिए कि इस यंग रिच क्लास में काफी लोग ऐसे हैं जिन के पेरैंट्स ने कौड़ीकौड़ी जमा कर कोई मकान, जमीन खरीदी थी और अब उस का दाम बढ़ गया है. वे उसी पैसे पर फूल रहे हैं. मांबाप भी अंधविश्वासी थे पर महल्ले के मंदिर में कुछ अपने 2-4 रुपए चढ़ा कर काम निकाल लेते थे, आज के युवा स्टाइल में 20 मील दूर बने विशाल मंदिर में जाते हैं क्योंकि मांबाप की खरीदी या बनाई संपत्ति का दाम बढ़ गया है.

जो पैसे वाले दिख रहे हैं, उन में से दो-तिहाई इसी तरह के हैं. इन की हैसीयत की पोल अब खुल रही है.

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Paneer Tikka Recipe : पनीर की कई रेसिपी मौजूद हैं. लेकिन क्या आपने चटपटा अचारी पनीर टिक्का ट्राई किया है. यह हेल्दी और टेस्टी डिश का कौम्बिनेशन है. तो आइए आपको बताते हैं इसकी खास रेसिपी…

सामग्री

500 ग्राम पनीर क्यूब्स में कटा

3 बड़े चम्मच नीबू अचार मसाला

10-12 टोमैटो

1 शिमलामिर्च चौकोर टुकड़ों में कटी

1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती बारीक कटी

1 बड़ा चम्मच तेल

10-12 बैंबू स्कीवर्स

विधि

पनीर और शिमलामिर्च के टुकड़ों को नीबू अचार के मसाले में मैरीनेट कर के 30 मिनट तक रखें. फिर इन्हें स्कीवर्स में टमाटर के साथ लगाएं. ग्रिल पैन में तेल गरम कर के मध्यम आंच पर ग्रिल कर धनिया पत्ती से सजा कर परोसें.

व्यंजन सहयोग

शैफ रनवीर बरार

Married Life : मेरी बीवी गुजर चुकी है, क्या मैं अपनी साली से शादी कर सकता हूं ?

Married Life : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 30 साल का हूं. मेरी 2 बेटियां हैं और बीवी गुजर चुकी है. मैं अपनी साली से शादी करना चाहता हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

अगर आप की बीवी सामान्य तरीके से गुजरी है, तो आप की शादी में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए, बशर्ते साली राजी हो. ऐसे में आप अपनी ससुराल वालों से खुल कर बात कर सकते हैं. अगर साली तैयार न हो, तो आप इश्तिहार की मदद से किसी और लड़की से शादी कर सकते हैं.

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कहानी : रिश्ते

अमर की शादी में स्टेज पर जब वर और वधू को मालाएं पहनाई जा रही थीं, तभी दुलहन की बगल में खड़ी एक खूबसूरत लड़की ने मुसकराते हुए अपनी एक आंख दबा दी, तो अमर झेंप गया था. शर्मीला होने के चलते अमर दोबारा उस लड़की को देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाया, परंतु शादी के बाद जब विदाई का समय आया, तब वही लड़की चुहलबाजी करते हुए बोली, ‘‘मुझे अच्छी तरह से पहचान लीजिए जीजाजी. मैं हूं आप की साली रागिनी. दीदी को ले जाने के बाद मुझे भूल मत जाइएगा.’’

‘‘नहीं भूलूंगा रागिनी. भला साली को भी कोई भूल सकता है,’’ अमर ने धीरे से मुसकराते हुए कहा.

‘‘क्यों नहीं, जब घरवाली साथ में हो, तो साली को कौन याद करता है?’’ रागिनी ने हंसते हुए कहा.

‘‘मैं हूं न तुम्हें याद करने वाला. अब फिक्र क्यों करती हो?’’ कहते हुए अमर अपनी बीवी दिव्या के साथ घर से बाहर निकल आया.

कुछ दिनों के बाद रागिनी अपने पिता के साथ दिव्या से मिलने उस के घर आई और एक हफ्ते के लिए वहीं रह गई, जबकि उस के पिता बेटी से मिलने के बाद उसी रात अपने घर वापस आ गए.

रागिनी अमर के बरताव से काफी खुश थी. वह उस से घुलमिल कर बातें करना चाहती थी, पर संकोची होने के चलते अमर खुल कर उस से बातें नहीं कर पाता था. वह केवल मुसकरा कर ही रह जाता था, तब रागिनी झुंझला कर रह जाती थी.

एक दिन दिव्या के कहने पर अमर रागिनी को घुमाने ले गया. जब वह रागिनी को ऐतिहासिक जगहों की सैर करा रहा था, तब वह अमर के संग ऐसे चिपक कर चल रही थी, मानो उस की बीवी हो.

रागिनी के बदन के छू जाने से अमर अंदर ही अंदर सुलग उठता. उस की नजर रागिनी के गदराए जिस्म पर पड़ी.

अमर को अपनी तरफ घूरता देख रागिनी ने शरारत भरे अंदाज में पूछ ही लिया, ‘‘क्या देख रहे हो जीजाजी?’’

यह सुन कर थोड़ा झिझकते हुए अमर बोला, ‘‘तुम्हारे करंट मारने वाले जिस्म को देख रहा हूं रागिनी. तुम बहुत खूबसूरत हो.’’

‘‘सच? तो फिर हासिल क्यों नहीं कर लेते?’’ रागिनी मुसकराते हुए बोली.

‘‘क्या…? यह तुम कह रही हो?’’ अमर ने हैरानी से पूछा.

‘‘हां, इस में हर्ज ही क्या है? आखिर साली भी तो आधी घरवाली होती है. उसे भी तो शादी से पहले तजरबा होना चाहिए,’’ रागिनी बोली.

‘‘लेकिन, यह तो गलत बात होगी, रागिनी. तुम्हारी दीदी के साथ धोखा होगा. नहींनहीं, मुझे कुछ करने के लिए उकसाओ मत,’’ अमर बोला.

‘‘आप भी बहुत भोले हैं, जीजाजी. मैं आप को दीदी के सामने कुछ करने के लिए थोड़े ही उकसा रही हूं, बल्कि अकेले में…’’ कहते हुए रागिनी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

उस की बातें सुन कर अमर कुछ पलों के लिए सिहर उठा. फिर खुद पर काबू पाते हुए वह बोला, ‘‘तुम तो बड़ी नटखट हो साली साहिबा. किसी का ईमान डिगाना तो कोई तुम से सीखे, लेकिन मैं तुम्हारी दीदी के साथ धोखा नहीं कर सकता.’’

अमर की बातें सुन कर रागिनी फिर झुंझला उठी, पर उस ने अपनी झुंझलाहट का एहसास नहीं होने दिया, बल्कि मन ही मन कहने लगी, ‘देखती हूं कि कब तक तुम मेरे हुस्न के जलवे से बचते हो. मैं ने भी तुम को अपनी बांहों में नहीं लिया, तो मेरा नाम भी रागिनी नहीं.’

घूमफिर कर घर आने के बाद दिव्या ने रागिनी से पूछा, ‘‘घूम आई रागिनी? कैसा लगा जीजाजी का साथ?’’

‘‘यह भी कोई पूछने वाली बात है, दीदी. प्यारेप्यारे जीजाजी का साथ हो, फिर तो… वाह, बड़ा मजा आया. क्यों जीजाजी?’’ खुशी से चहकते हुए रागिनी ने ही सवाल कर दिया.

‘‘यह तो मुझ से बेहतर तुम ही बता सकती हो साली साहिबा,’’ बड़ी मुश्किल से अमर बोला.

‘‘मुझे तो सचमुच में बड़ा मजा आया जीजाजी,’’ कहते हुए रागिनी ने धीरे से एक आंख दबा दी, जिसे दिव्या नहीं देख पाई, पर अमर का दिल धड़क गया.

रात के समय अमर और दिव्या अपने कमरे में सो रहे थे, तभी उन्हें दूसरे कमरे से रागिनी की जोरदार चीख सुनाई दी. वे दोनों दौड़ेदौड़े उस के कमरे में पहुंचे.

रागिनी अपना पेट पकड़ कर जोरों से कराह रही थी. अपनी छोटी बहन का यह हाल देख दिव्या घबरा कर पूछने लगी, ‘‘क्या हुआ रागिनी? बता, मेरी बहन?’’

‘‘पेट में दर्द हो रहा है दीदी,’’ कराहते हुए रागिनी ने बताया.

‘‘पेट में तेज दर्द है? इतनी रात गए, मैं क्या करूं? आप ही कुछ कीजिए न,’’ घबराती हुई दिव्या ने अमर से कहा.

‘‘घबराओ मत. मेरे पास पेटदर्द की दवा है. तुम अलमारी में से जल्दी दवा ले कर आओ,’’ अमर ने दिव्या से कहा.

यह सुन कर दिव्या अपने कमरे में दौड़ीदौड़ी गई. तब अमर ने रागिनी से अपनापन दिखाते हुए पूछा, ‘‘पेट में जोर से दर्द हो रहा है?’’

‘‘हां, जीजाजी,’’ रागिनी बोली.

‘‘घबराओ मत. दवा खाते ही दर्द ठीक हो जाएगा. थोड़ा हौसला रखो,’’ हिम्मत बंधाते हुए अमर ने कहा.

थोड़ी ही देर में दिव्या दवा ले आई और अपने हाथों से रागिनी को खिला दी. फिर भी वह कराह रही थी.

चूंकि रात काफी हो गई थी, इसलिए अमर ने दिव्या से कहा कि तुम जा कर सो जाओ. मैं रागिनी की देखभाल करूंगा.

पहले तो वह अपनी बहन को छोड़ कर जाने के लिए तैयार नहीं हुई, लेकिन अमर के समझाने पर वह सोने के लिए चली गई.

काफी देर बाद रागिनी ने कराहना बंद कर दिया, मानो उसे आराम मिल गया हो. तब अमर ने सोचा कि उस से कह कर वह भी अपने कमरे में सोने के लिए चला जाए.

अभी वह रागिनी से जाने की इजाजत ले ही रहा था कि उस ने अमर के गले में अपनी दोनों बांहें डाल दीं और उसे अपने ऊपर खींच लिया.

फिर वह यह कहते हुए जोरों से उसे भींचते हुए बोली, ‘‘इतनी जल्दी भी क्या है, जीजाजी. सारी रात तो अपनी ही है. आखिर इसी के लिए तो मैं ने पेट में दर्द होने का बहाना किया था, ताकि सारी रात तुम मेरे करीब रहो.’’

‘‘क्या…? तुम ने मुझे पाने के लिए पेटदर्द का बहाना किया था? बड़े ही शर्म की बात है कि तुम ने हम लोगों के साथ छल किया. मुझे तुम से ऐसी उम्मीद नहीं थी,’’ गुस्से से बिफरते हुए अमर ने कहा और उस से अलग हो गया.

‘‘तो फिर मुझ से कैसी उम्मीद थी जीजाजी? आप भी बच्चों जैसी बातें कर रहे हैं, लेकिन मेरी बेचैनी नहीं समझ रहे हैं. मैं आप के लिए कितना तरस रही हूं, तड़प रही हूं, पर आप कुछ समझते ही नहीं.

‘‘साली पर भी तो कुछ जिम्मेदारी होती है आप की? क्या मैं प्यासी ही यहां से चली जाऊंगी?’’ थोड़ा झुंझलाते हुए रागिनी बोली.

‘‘तुम्हारे मुंह से ये बातें अच्छी नहीं लगतीं रागिनी. मैं तुम्हारा जीजा हूं तो क्या हुआ, उम्र में तो बड़ा हूं. कम से कम इस का तो लिहाज करो. क्यों मुझे मुसीबत में डालती हो?’’ कहते हुए अमर दरवाजे की तरफ देखने लगा कि कहीं दिव्या तो नहीं आ गई.

लेकिन, दिव्या दरवाजे की ओट में खड़ी हो कर दोनों की बातें ध्यान से सुन रही थी. उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस की छोटी बहन इस तरह की हरकतें कर सकती है.

दिव्या खड़ीखड़ी उन की बातें सुनने लगी. रागिनी उलाहना देते हुए कह रही थी, ‘‘मुझे खुश कर के आप तबाह नहीं, बल्कि खुश होंगे, जीजाजी. क्यों बेकार में इतना कीमती समय बरबाद कर रहे हैं?

‘‘मेरे प्यासे मन को क्यों नहीं बुझा देते? मैं आप का यह एहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगी. आइए, और मुझे अपनी बांहों में जकड़ लीजिए. देखिए, यहां दीदी भी नहीं हैं, केवल आप, मैं और यह अकेलापन है.’’

‘‘जानता हूं, फिर भी मैं तुम्हारी दीदी के साथ बेवफाई नहीं कर सकता, इसलिए होश में आओ रागिनी. तुम अपनेआप को संभालो, क्योंकि हर काम का एक समय होता है. इसलिए अपनी इज्जत संभाल कर रखो, जो तुम्हारे होने वाले पति की अमानत है.

‘‘मैं तुम्हारे पिताजी से कह कर जल्दी ही तुम्हारी शादी करवा दूंगा,’’ समझाते हुए अमर ने कहा.

‘‘शादी के बारे में जीजाजी बाद में सोचा जाएगा, पहले आप मुझे अपनी बांहों में तो ले लीजिए. देखते नहीं कि मेरा अंगअंग टूट रहा है,’’ कहते हुए रागिनी एक बार फिर अमर से लिपट गई.

अमर ने गुस्से में उस के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया और बोला, ‘‘कितने भरोसे से तुम्हारे पिताजी ने तुम्हें हमारे पास छोड़ा है और मैं उन का भरोसा तोड़ दूं? तुम्हारी दीदी भी मुझ पर कितना भरोसा करती है. मैं उस का भी भरोसा तोड़ दूं?

‘‘नहीं, मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकता. हां, तुम्हारे संग हंसीमजाक और छेड़छाड़ कर सकता हूं. लेकिन यह भी एक हद तक ही.

‘‘खैर, रात बहुत हो चुकी है, अब सो जाओ, पर अपने इस जीजाजी को माफ करना, क्योंकि मैं ने तुम पर हाथ उठाया है,’’ रुंधे गले से अमर ने कहा और वहां से जाने लगा.

तभी रागिनी अमर का हाथ पकड़ कर रोते हुए कहने लगी, ‘‘माफी आप को नहीं, मुझे मांगनी चाहिए, जीजाजी. क्योंकि मुझे गलतफहमी थी.

‘‘मैं ने अपनी सहेलियों से सुन रखा था कि जीजासाली के रिश्तों में सबकुछ जायज होता है. लेकिन आप के नेक इरादे देख कर अब मुझे एहसास हुआ है कि मैं ही गलत थी.

‘‘अपनी इन हरकतों के लिए मैं शर्मिंदा हूं कि मैं ने आप को बहकाने की कोशिश की. पता नहीं, कैसे मैं इतनी बेशर्म हो गई थी. क्या आप अपनी इस साली को माफ नहीं करेंगे जीजाजी?’’ कह कर रागिनी ने अपना सिर झुका लिया.

‘‘क्यों नहीं, माफ तो अपनों को ही किया जाता है और फिर तुम तो मेरी साली हो,’’ कहते हुए अमर ने प्यार से उस के गालों को थपथपा दिया.

अमर सोने के लिए रागिनी के कमरे से निकल कर अपने कमरे की ओर चल दिया. उस से पहले ही दिव्या कमरे में पहुंच कर पलंग पर ऐसे सो गई, जैसे कुछ जानती ही न हो. लेकिन उसे अपने पति पर गर्व जरूर हो रहा था कि वह बहकने वाला इनसान नहीं, बल्कि सही रास्ता दिखाने वाला इनसान है.

अगले दिन सुबह रागिनी काफी खुश नजर आ रही थी. उस ने चहकते हुए दिव्या से कहा, ‘‘दीदी, अब मैं घर जाना चाहती हूं, क्योंकि मेरी पढ़ाई का नुकसान हो रहा है. क्यों जीजाजी, मुझे पहुंचाएंगे न घर?’’

अमर ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हांहां, क्यों नहीं. जीजा अपनी साली की हर बात का खयाल नहीं रखेगा, तो और कौन रखेगा. मैं तुम्हें घर छोड़ कर आऊंगा.’’

उन दोनों की बातें सुन कर दिव्या सोचने लगी कि क्या यह वही कल वाली रागिनी है या कोई और?

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Short Story : गुड्डन – कामवाली गुड्डन की हरकतों से परेशान थी निशा

Short Story : “गुड्डन आज तुम फिर देर से आई हो, आठ बज गए हैं. तुम्हारे लिए सवेरेसवेरे सजनासंवरना ज्यादा जरूरी है. अपने काम की फिक्र बिलकुल नहीं है. तुम ने तो हद कर दी है. इतनी सुबहसुबह कोई लिपस्टिक लगाता है क्या? मैं तो तुम्हारी हरकतों से आजिज आ चुकी हूं.’’

गुड्डन लगभग 18-19 साल की लड़की है. वह उन की सोसाइटी के पीछे वाली खोली में रहती है.

जब वह 11-12 साल की थी तब वह मुड़ीतुड़ी फ्रौक पहन कर और उलझेबिखरे बालों के साथ मुंह
अंधेरे काम करने आ खड़ी होती थी. पर जैसे ही उस ने जवानी की दहलीज पर पैर रखा, उसे दूसरी
लड़कियों की तरह खुद को सजनेसंवरने का शौक हो गया था.

अब वह साफसुथरे कपड़े पहनती, सलीके से तरहतरह के स्टाइलिश हेयरस्टाइल रखती, नाखूनों में नेलपौलिश तो होंठ लिपस्टिक से रंगे होते.

बालों में रंगबिरंगी सस्ती वाली बैकक्लिप लगा कर आती.
अब वह पहले वाली सीधीसादी टाइप की नहीं वरन तेजतर्रार छम्मकछल्लो बन गई थी.

खोली के कई लड़कों के साथ उस के चक्कर चलने की बातें, उस खोली में रहने वाली दूसरी कामवालियां चटपटी खबरों की तरह एकदूसरे से कहतीसुनती रहती थीं.

निशा की बड़बड़ करने की आदत से वह अच्छी तरह परिचित थी. सुबहसुबह डांट सुन कर उस ने
मुंह फुला लिया था. लेकिन उन के घर से मिलने वाले बढ़िया कौस्मेटिक की लालच में वह चुपचाप उन की
बकबक को नजरअंदाज कर चुपचाप सुन लिया करती थी. दूसरे अंकलजी भी तो जब तब ₹100- 200 की
नोट चुपके से उसे पकड़ा कर कहते कि गुड्डन काम मत छोड़ना, नहीं तो तेरी आंटी परेशान हो जाएंगी.

वह अपनी नाराजगी दिखाने के लिए जोरजोर से बरतन पटक रही थी. निशा समझ गई थीं कि आज गुड्डन उन की बात का बुरा मान गई है. वह उस के पास आईं और प्यार से उस के कंधे पर हाथ रख कर बोलीं,”क्यों रोजरोज देर से आती हो? अंकलजी को औफिस जाने में देर होने लगती है न…”

“आओ, नाश्ता कर लो.”

“आंटीजी, मुझे आज पहले ही देर हो गई है. अभी यही सारी बातें 502 वाली दीदी से सुननी पड़ेगी.‘’

निशा उस की मनुहार करतीं, उस से पहले ही गुड्डन जोर से गेट बंद कर के जा चुकी थी.

उन्हें गुड्डन का यह व्यवहार जरा भी अच्छा नहीं लगा,“जरा सी छोकरी और दिमाग तो देखो… यहांवहां लड़कों के संग मुंह मारती रहती है जैसे मैं कुछ जानती ही नहीं.’’

“निशा बस भी करो. तुम्हें अपने काम से मतलब है कि उस की इन बातों से…’’

पति की नाराजगी से बचने के लिए वे चुपचाप अपना काम करने लगी थीं पर उन के चेहरे पर नाराजगी के
भाव साफ थे.

निशा 46 वर्षीय स्मार्ट शिक्षित घरेलू महिला थीं. उन के पति रवि बैंक में मैनेजर थे. उन के पास घरेलू
कामों के लिये 3 कामवालियां थीं. उन्हीं में एक गुड्डन भी थी.

पत्रिका पढ़ने के बाद उन का सब से पसंदीदा काम था अपनी कामवाली से दूसरे घरों की महिलाओं की रिपोर्ट लेना. उस के बाद फिर थोड़ा नमकमसाला लगा कर फोन घुमा कर उन्हीं बातों की चटपटी गौसिप
करना.

गुड्डन उन की सब से चहेती और मुंहलगी कामवाली थी. वह सुबह बरतन धो कर चली जाती फिर दोपहर तक सब का काम निबटा कर आती तो बैठ कर आराम से सब के घरों में क्या चल रहा है, बताती और कभी
खाना खाती तो कभी चाय बना कर खुद पीती और उन्हें भी पिलाया करती, फिर अपने घर चली जाया करती.

निशा का यह मनपसंद टाइमपास था. दूसरों के घरों के अंदर की खबरें सुनने में उन्हें बहुत मजा आता था. गुड्डन भी तेज थी, सुनीसुनाई बातों में कुछ अपनी तरफ से जोड़ कर इस कदर चटपटी खबर में तबदील कर देती मानो सच उस ने अपनी आंखों से देखा हो. लेकिन इधर कुछ दिनों से उस का रवैआ बदल गया था.

मोबाइल फोन की आवाज से उन का ध्यान टूटा. उधर महिमा थी,”हैलो आंटी, आज गुड्डन आप के यहां
आई है क्या? बहुत नालायक है. कभी फोन बंद आता है तो कभी बिजी आता है. मैं तो इस की हरकतों से आजिज आ गई हूं. वाचमैन से मैं ने कह दिया है कि देख कर के मेरे लिए कोई ढंग की अच्छी सी कामवाली भेजो. गुड्डन आई कि नहीं?”

“तुम ने मुझे बोलने का मौका ही कहां दिया,” निशा हंस कर बोली थीं.

“आंटी आप ने इस के करम सुने. कई लड़कों के साथ इस का चक्कर चल रहा है…’’

यह उन का मन पसंद टौपिक था, वे भला कैसे चुप रहतीं,”अरे वह जो सोसाइटी के बाहर राजेंद्र प्रैस का
ठेला लगाता है न दिनभर उसी के घर में घुसी रहती है यह तो… मेरे घर से काम कर के गई और यहां तो तुम्हारे
घर पर ही जाने को बोल कर गई थी. आज तो उस ने चाय भी नहीं पी और ऐसे बरतन पटकपटक कर अपना
गुस्सा दिखा रही थी कि कुछ पूछो मत…”

“आज सुबह आप सैर पर नहीं आई थीं. तबियत तो ठीक है न?”

“हां, आज उठने में देर हो गई…”

“ओके बाय आंटी, दरवाजे पर देखती हूं शायद गुड्डन आ गई है.‘’

गुड्डन का काम करने का अंदाज सोसाइटी की महिलाओं का पसंद था. एक तो वह चोरी नहीं करती थी, दूसरा घर में झाङूपोंछा अच्छी तरह करती. वह कई सालों से इन उच्च और मध्यवर्ग परिवारों की महिलाओं के घरों में काम करती आ रही थी. इसलिए वह इन लोगों के स्वभाव और कार्यकलापों से खूब अच्छी तरह परिचित हो चुकी थी. वह इन लोगों की आपसी बातों पर अपना कान लगाए रहती थी और सब सुनने के बाद मौका मिलते ही इन लोगों को अच्छी तरह से सुना भी दिया करती थी.

इन दिनों राजेंद्र के साथ उस की दोस्ती के चर्चे सब की जबान पर चढ़े हुए थे. वह जिस के घर में भी काम करने जाती, वहां व्यंगात्मक लहजे में कुछ न कुछ सुन ही लेती,”तुम्हें यहांवहां घूमने से फुरसत मिल गई तो काम कर लो अब…”

राजेंद्र जिस की उम्र लगभग 40 साल थी, उस की बीबी उस को छोड़ कर किसी दूसरे के साथ चली गई थी.
वह और उस का बूढा बाप दोनों ही खोली में अकेले ही रहते थे. कुछ दिनों पहले उस ने अपनी खेती की जमीन बेची थी. उस के एवज में उसे लाखों रुपए मिले थे. वह गेट के बाहर ठेले पर प्रैस किया करता था. उस से भी उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी. वह राजेंद्र के पिता को कभी चाय दे जाती तो कभी खाना खिला देती.
इस तरह से कालीचरण पर उस ने अपना फंदा फेंक दिया था. अब कालीचरण उसे बिटियाबिटिया कह कर उस पर लाड़ दिखाता और उस को अपने साथ बाजार ले जाता और कभी चाट खिलाता तो कभी मिठाई.

तेज दिमाग गुड्डन ने राजेंद्र को अपने प्यार के जाल में फंसा कर उस से दोस्ती कर ली. वह उस के घर में उस के लिए रोटी बना देती फिर दोनों मिल कर साथ में खाना खाते. दोनों साथ में कभी घूमने जाते तो कभी मूवी देखने, तो कभी मौल घूमते. राजेंद्र छेड़ता तो वह खिलखिलाती. उन दोनों की दोस्ती पर यदि कोई कुछ उलटासीधा बोलता तो वह पलट कर उस से लड़ने पर उतारू हो जाती,”तुम्हें क्या परेशानी है? राजेंद्र हमारा दोस्त है, खसम है. हम तो खुल्लमखुल्ला कह रहे हैं. जो करना है कर लो. जो
समझना है समझ लो मेरी बला से…”

उस के दोनों मतलब सिद्ध हो रहे थे. मालकिन की तरह उस के घर में मनचाहा खाना बनाती, खुद भी खाती
और राजेंद्र को भी खिलाती. दोनों की जिंदगी में रंग भर गए थे. राजेंद्र भी रोज उस के लिए मिठाई वगैरह
कुछ न कुछ ले कर आता. वह उसे अपने साथ बाजार भी ले कर जाता. कभी सलवारसूट तो कभी लिपिस्टिक, तो कभी चूड़ियां या इसी तरह अन्य सजनेसंवरने का सामान दिलवाता रहता.

इसलिए स्वाभाविक था कि वह उसे खुश रखता है तो उस का भी तो फर्ज बनता था कि वह भी उसे खुश रखे. बस इस तरह दोनों के बीच
अनाम सा रिश्ता बन गया था.

उस की लालची अम्मां को खानेपीने को मिल रहा था. वह भी खुश थी.
उस के दोनों हाथों में लड्डू थे. जब जिस से मौका लगता उस से पैसा ऐंठती. बापबेटा दोनों उस की मुट्ठी में
थे…

इसी रिश्ते की खबर सोसाइटी की तथाकथित उच्चवर्गीय महिलाओं को मिल गई थी, क्योंकि खोली की दूसरी कामवालियां आपस में बैठ कर ऐसी बातें चटखारे लेले कर के अपने मन की भड़ास निकाला करती थीं और इसीलिए सोसाइटी की महिलाओं के पास भी गुड्डन के कारनामों की खबर नमकमिर्च के साथ पहुंचती रहती
थी.

घरेलू महिलाओं की चर्चा जानेअनजाने इन घरेलू कामवालियों पर आ कर टिक जाती थीं क्योंकि उन्हें इन के साथ रोज ही दोचार होना पड़ता था.

गुड्डन सोसाइटी में कई घरों में झाड़ूपोंछा करती थी और वर्मा अंकल के यहां तो खाना भी बनाती थी. चूंकि वह बिलकुल अकेले रहते हैं इसलिए उन के घर की तो सर्वेसर्वा वही है.

दोपहर में खाली होते ही महिमा निशा के घर आ गई थी,”क्या हो रहा है आंटी?”

“कुछ खास नहीं. आओ बैठो…”

ऐसा लग रहा था कि मानो कोई राज बताने जा रही है,”कुछ सुना है
आप ने? इस गुड्डन के तो बड़े चर्चे हैं.चारों तरफ इस की बदनामी हो रही है. अपने बगल में ही दरवाजे के
अंदर वर्मा अंकल के साथ जाने क्या गुल खिला रही है. रीना बता रही थी कि कोई रंजीत औटो चलाता है,
उस के साथ भी यह प्यार का नाटक कर के पैसा ऐंठ रही थी. अब तो वह राजेंद्र के साथ खुलेआम मटरगश्ती
करती फिर रही है.”

“अच्छा… आज उसे आने दो, ऐसी झाड़ लगाऊंगी कि वह भी याद रखेगी.”

फिर उन्हें उस का सुबह का बरतन
पटकना याद आ गया तो बोलीं,”छोड़ो महिमा, हमें उस के काम से मतलब है. छोटी सी थी तब से मेरे घर पर काम कर रही है. एक भी चम्मच इधर से उधर नहीं हुई. घर को चमका कर जाया करती है.

“हम लोगों को क्या करना है. जो जैसा करेगा वह भरेगा… उस की अम्मां ने तो इसी तरह से अपनी जिंदगी ही बिता दी.‘’

महिमा ने अपनी दाल गलती हुई न देख कर बोली,”आंटी, अब चलूंगी, आरव स्कूल से आता होगा.”

निशि के पेट में खलबली मची थी,’गुड्डन को आने दो आज उस की क्लास ले कर रहूंगी… 40- 45 साल के राजेंद्र जैसे मालदार पर अपना
हाथ मारा है. कहीं मेरे सीधेसादे रवि पर भी अपना जादू न चला दे. ऐसी छोरियां पैसे के लिए कुछ भी कर सकती हैं…’

अगली दोपहर जब वह आई तो निशा तापाक से बोल पङीं,”आज बड़ा सजधज कर आई है… यह सूट बड़ा सुंदर है. तुझे किस ने दिया है?
यह तो बहुत मंहगा दिख रहा है.”

“इतना मंहगा सूट भला कौन देगा? सोसाइटी में नाम के बड़े आदमी रहते हैं लेकिन दिल से छोटे हैं सब.
कोई कुछ दे नहीं सकता. मैं ने खुद खरीदा है.”

“साफसाफ क्यों नहीं कहतीं कि तेरे आशिक राजेंद्र ने दी है तुम्हें.”

“नहीं आंटीजी, रंजीत दिल्ली से मेरे लिए ले कर आया है. मुझ से कहता
रहता है कि तुझे रानी बना कर रखूंगा…’’ वह शर्मा उठी थी.

वे तो बंदूक में जैसे गोली भरी बैठी हुई थीं,”काहे री गुड्डन, अभी तक तो राजेंद्र के साथ तेरा लफड़ा चल रहा
था अब यह रंजीत कहां से आ मरा? उस दिन तेरी अम्मां आई थी. वह कह रही थी कि तू ज्यादा समय राजेंद्र की खोली में गुजारती है. वह तुझे इतना ही पसंद है तो उसी के साथ ब्याह रचा ले. तेरी अम्मां यहांवहां लड़का ढूंढ़ती फिर रही है.”

वह चुपचाप अपना काम करती रही तो निशा का मन नहीं माना. वह फिर से घुड़क कर बोलीं,”क्यों छोरी, तेरी इतनी बदनामी हो रही है तुझे बुरा नहीं लगता?”

“आंटीजी, राजेंद्र जैसे बूढ़े से ब्याह करे मेरी जूती. मैं कोई उपमा आंटी जैसी थोड़ी ही हूं, जो पैसा देख कर
ऐसा भारीभरकम काला दामाद ले आई हैं… ऐसी फूल सी नाजुक पूजा दीदी, बेचारी 4 फीट की दुबलीपतली लड़की के बगल में 6 फीट का लंबाचौड़ा आदमी…”

“चुप कर…” निशा चीख कर बोलीं,”तेरा मुंह बहुत चलता है… आकाशजी की बहुत बड़ी फैक्टरी है. वे रईस लोग हैं…’’

गुड्डन के मुंह से कड़वा सच सुन कर उन की बोलती बंद हो गई थी इसलिए उन्होंने इस समय वहां से चुपचाप हट जाना ही ठीक समझा था.

जनवरी की पहली तारीख थी. वह खूब चहकती हुई आई थी,”आंटी, हैप्पी न्यू ईयर…”

“तुम्हें भी नया साल मुबारक हो. कल कहां गायब थीं? किसी के साथ डेट पर गई थीं क्या…?’’

“आंटी, आप भी मजाक करती हैं… वह बी ब्लौक की रानी आंटी जो आप की किट्टी की भी मैंबर हैं…’’

“क्या हुआ उन को?’’

“उन का लड़का शिशिर है न… उन की शादी के लिए लड़की वाले आए थे, इसलिए आंटी ने मुझे काम करने के
लिए दिनभर के लिए बुलाया था…’’

“बेचारी रानी अपने बेटे की शादी के लिए बहुत दिनों से परेशान थीं… चलो अच्छा हुआ… शिशिर की शादी
तय हो गई.’’

“मेरी पूरी बात तो सुनिए… लड़की वाले उन की मांग सुनते रहे. सब का मुंह उतरा हुआ था…धीरेधीरे वे
लोग आपस में रायमशविरा करते रहे थे.

“आंटी, मैं भी बहुत घाघ हूं. चाय देने गई फिर बरतन धीरेधीरे उठाती रही और उन लोगों की आपसी बात ध्यान से सुन रही थी. वे कह रहे थे कि गाड़ी, 20 तोला सोना, शादी का दोनों तरफ का खर्चा लड़की वाले करें. शादी फाइवस्टार होटल में होगी…’’

“रानी आंटी तो पूरी मंगता हैं… देखो जरा, अपने लड़के को बिटिया वाले को जैसे बेच रही हैं.

“हम गरीब लोगन को सब भलाबुरा कहते हैं, लेकिन बड़े आदमी भी दिल के बड़े नहीं होते. आप लोग में
भी कम नहीं. एक लड़की की शादी करने में मायबाप चौराहे पर खड़े हो कर बिक जाएं, तब बिटिया का
ब्याह कर पाएं…

“रानी आंटी कैसी धरमकरम की बातें किया करती हैं. खुद को बड़ी धरमात्मा बनती हैं. अपने यहां भागवतकथा करवाने में लाखों रुपया खर्च कर डालीं थीं. का अब बिटिया वाले से वही खर्चा की वसूली करेंगी?

“सरकार तो दहेज को अपराध कहती है…आप लोगन में दहेज मांगने की कोई मनाही नाहीं है का?‘’

“गुड्डन मुंह बंद कर के काम किया कर, तुम इतना बोलती हो कि सिर में दर्द हो जाता है. शिशिर बड़ा
अफसर है, उस की तनख्वाह बहुत ज्यादा है…उन की बिटिया यहां पर राज रजती.”

लगभग 1 साल पहले उन के बेटे की शादी में भी गाड़ी और दहेज में बहुत सारा सामान आया था. इसलिए गुड्डन की बातें सुन कर उन्हें लगा कि वह इशारोंइशारों में उन पर भी बोली मार रही है.

निशा ने उस की ओर आंखें तरेर कर देखा और फोन पर अपनी आदत के अनुसार रानी के घर की चटपटी
खबर को इधर से उधर कर के अपने मनपसंद काम में जुट गईं.

लगभग 6 महीने पहले उन की सासूमां का इंतकाल उन के देवर के घर में हो गया था. निशा चालाक थी,
उन्होंने सासूमां के जेवर दबा कर रख लिए थे और अब वे उसे किसी के साथ बांटना नहीं चाह रही थीं…

पूरा का पूरा वे अकेले ही हजम करना चाह रही थीं. उन के देवर सतीश और ननद संध्या उन पर बंटवारा
करने का दबाव बनाए हुए थे. लेकिन उन्होंने साफसाफ कह दिया था कि उन के पास कोई जेवर नहीं है, क्योंकि उन की नियत खराब थी.
पर पति रवि बंटवारा करने के लिए उन पर दबाव डाल रहे थे. उसी सिलसिले में वे लोग कई बार आ चुके थे और हर बार गरमगरम बहस के बाद कोई न कोई बहाना बना कर वे उन्हें अपने घर से जाने पर मजबूर कर देती थीं.

“भाभी, आप मेरे हिस्से का जेवर मुझे दे दीजिए, मुझे ईशा की शादी करनी है. सोना इस समय इतना
मंहगा है… आप को तो मेरी हैसियत के बारे में अच्छी तरह से पता है…’’

संध्या भी हिम्मत कर के बोली,”भैया, आप ने अम्मां का सारा जेवर दाब लिया… यह गलत बात है कि
नहीं? घरमकान में तो हिस्सा नहीं मांग रहे हैं. जेवर का तो बंटवारा कर ही दो.”

गुड्डन काम करती सारी बातें ध्यानपूर्वक सुन रही थी तभी जैसे ही निशा को याद आया कि गुड्डन
सारी बातें सुन रही होगी तो उन्होंने तेजी से आ कर उस से बरतन हाथ से छुड़वा कर कहा कि इस समय जाओ, शाम को आना.

पर होशियार गुड्डन को तो मसाला मिल गया था कि निशा आंटी कितनी शातिर हैं. उन्होंने सब का हिस्सा
दबा कर रख लिया है.

सतीश और संध्या अकसर आते, आपस में बातचीत, कहासुनी और बहसबाजी होती पर अंतिम निर्णय कुछ भी नहीं हो पाता क्योंकि निशा की नियत खराब थी, वह किसी को कुछ देना ही नहीं चाहती थीं. वे गुड्डन के सामने रोरो कर नाटक करतीं कि ये लोग उन्हें परेशान कर रहे हैं…

एक दिन गुड्डन उन से बोली,”आंटी, अम्मां कथा सुन कर आईं तो बता रही थीं कि हमारे धरम में बताया
गया है कि भाईबहन का हिस्सा हजम करना बहुत बड़ा पाप होता है.”

निशा को तत्काल कोई जवाब नहीं सूझा था. वे खिसिया कर बोलीं,”चल बड़ी धरमकरम वाली बनी
है.”

एक दिन गुड्डन सुबहसुबह बड़ी घबराई हुई सी आई थी,”आंटीजी, आंटीजी…”

“क्या हुआ, क्यों चिल्ला रही हो?”

“आप को किसी ने खबर नहीं दी? गेट पर पुलिस की गाड़ी खड़ी है. कई सारे पुलिस वाले श्याम अंकल को
अपने साथ ले कर जा रहे थे. उन्हें कुछ पूछताछ करनी है. गार्ड लोग आपस में बात कर रहे थे कि श्याम
अंकल ने ₹10 करोड़ का घोटाला किया है. उसी की जांच चल रही थी. घर में छापा पड़ा है. बहुत सारे
अफसर उन के घर में घुस कर छानबीन कर रहे हैं.

“आंटीजी ₹10 करोड़ में बहुत सारा रुपया होता होगा न?’’

निशा नीर से हमेशा से चिढ़ती थी, उस की तरफ देख कर बोली,”हां…हां… बहुत सारा होता है…”

वे बड़बड़ाने के अंदाज में बोलीं,”बड़ी अकड़ कर रहती थीं मिसेज श्याम. आज स्विट्जरलैंड तो कल
पैरिस… यह हार तो श्यामजी ने मेरे बर्थडे पर गिफ्ट किया था…अब आज क्या इज्जत रह गई…?”

“आंटीजी आप लोग हम लोगन को बेकार में भलाबुरा कह के बदनाम करती रहती हैं… कम से कम
हम लोग भाईबहन का हिस्सा तो नहीं मार कर रख लेते… हम लोग बैंक की रकम तो नाहीं मार लेते. हम
लोग खोली में चाहे कितना लड़झगड़ लें लेकिन यदि कोई पर मुसीबत आ जाए तो तुरंत सब उस के दरवाजे
पर मदद करने के लिए इकट्ठा होय जात हैं…

“आज श्याम अंकल का मुंह उतरा हुआ था. उन के आसपास दूरदूर तक कोई नहीं खड़ा हुआ था… नीरा
दीदी फूटफूट कर रो रही थीं… उन का फोन भी उन से ले लिया… सब लोग बताय रहे थे. हम तो सुबह से
गार्ड के पास ही खड़े होय कर सब तमाशा देख रहे थे… बेचारी नीरा दीदी…”

गुड्डन को आंसू बहाते देख निशा उस की भावुकता देखसमझ नहीं पा रही थीं कि क्या करें और इस से क्या
कहें… वे उस के लिए गिलास में पानी ले कर आईं,“लो पानी पी लो और चुप हो जाओ. उन के वकील उन्हें छुड़ा कर बाहर लाने के लिए कोशिश कर रहे होंगे और वह जल्दी ही छूट कर आ जाएंगे.”

लेकिन मन ही मन में निशा सोच रही थीं कि गुड्डन भला इस केस की पेचीदगी को क्या समझेगी?
पर आज गुड्डन की भावुकता को देख कर पता नहीं क्यों नीरा की बेबसी
के बारे में सोच कर वह भी उदास हो उठी थीं.

एक स्त्री की बेचारगी के बारे में सोच कर उन की आंखें भी भीग उठीं.

गुड्डन के हाथ काम कर रहे थे लेकिन वह निरंतर बड़बड़ा रही थी,”सब देखने के बड़े आदमी बनते हैं… कोई
किसी के दुख में नाहीं खड़ा होता… बड़े आदमी खालीपीली दिखावा करना जानत हैं…”

गुड्डन लगातार रोए जा रही थी और उस के निश्छल आंसुओं के कारण उन का भी दिल भर आया था और वे भी उदास हो उठी थीं.

Kahaniyan : कंगन – जब सालों बाद बेटे के सामने खुला वसुधा का राज

Kahaniyan : ‘‘अरे,यह कमरे का क्या हाल बना रखा है रुचिता?’’ कमरे के फर्श पर फैले सामान को देख कर वसुधा ने पूछा.

‘‘मां, राघव ने जो हीरे का कंगन दिया था शादी की वर्षगांठ पर नहीं मिल रहा. सारा सामान निकाल कर देख लिया, पता नहीं कहां है. मैं बहुत परेशान हो रही हूं कहीं खो तो नहीं गया. यहीं अलमारी में रखा रहता था… बाकी सब चीजें हैं बस वही नहीं है. राघव को बहुत बुरा लगेगा और नुकसान हो जाएगा सो अलग,’’ रुचिता ने परेशानी भरे स्वर में कहा.

‘‘जाएगा कहां घर में ही होगा तुम ज्यादा परेशान न हो, कहीं रख कर भूल गई होगी, मिल जाएगा,’’ वसुधा ने रुचिता की परेशानी कम करने को बात टाल दी. लेकिन वह भी सोच में पड़ गई कि रुचिता के कमरे में कभी कोई बाहर वाला नहीं जाता, कोरोना की वजह से आजकल सफाईवाली भी नहीं आ रही और रुचिता इतनी लापरवाह भी नहीं कि इतनी कीमती चीज कहीं भी रख दे. फिर कंगन जा कहां सकता है.

यों तो वसुधा और रुचिता दोनों सासबहू थीं, लेकिन आपस में बंधन बिलकुल मांबेटी जैसा था. वसुधा के एक ही बेटा था, राघव, जो आईआईटी से बीटैक कर के अब एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सीईओ था. जब राघव 5 साल का था तभी उस के मातापिता का तलाक हो गया था, क्योंकि उस के पिता के अपने ही कार्यालय की एक महिला से संबंध थे. वसुधा ने तब से अकेले ही राघव की परवरिश की थी. उस ने राघव को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी. उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाया. राघव पढ़ाई में होशियार था सो उस का चयन आईआईटी में हो गया. वहीं कैंपस प्लेसमैंट भी हो गया और अब 15 साल बाद वह सीईओ बन गया था. इसी बीच वसुधा ने उस के लिए रुचिता को पसंद कर 2 साल पहले दोनों की शादी करवा दी थी. उस ने सोचा अब एक बेटी की कमी पूरी हो जाएगी. रुचिता भी वसुधा को मां की तरह मानती थी. दोनों को देख कर लोग अकसर उन्हें मांबेटी समझते थे.

शाम को जब राघव अपने दफ्तर से लौटा तो रुचिता ने उस से पूछा कि कहीं उस ने वह कंगन कहीं रख तो नहीं दिया. लेकिन राघव ने भी कहा कि उसे कंगन के बारे में कुछ नहीं पता. अब तो रुचिता की सब्र का बांध टूट गया और वह फूटफूट कर रोने लगी.

उसे इस तरह रोता हुआ देख कर राघव ने उसे गले लगा कर कहा, ‘‘अरे क्यों परेशान हो रही हो मिल जाएगा और नहीं मिला तो कोई बात नहीं तुम पर ऐसे कई कंगन कुरबान. चलो रोना बंद करो और अपने हाथ की बढि़या चाय पिलाओ.’’

रुचिता मुंह धो कर चाय बना तो लाई, लेकिन उस का मन ठीक नहीं था. राघव ने उसे बताया कि उस के औफिस के कुछ साथी अगले दिन रात के खाने पर आने वाले हैं. उस ने कहा, ‘‘तुम मां के साथ मिल कर सारी तैयारी कर लेना. रोज तुम्हारे हाथ के बने टिफिन की तारीफ करते हैं सो मैं ने उन्हें घर पर बुला लिया. तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं होगी?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ रुचिता ने कहा? ‘‘तुम्हारे लिए क्या मैं इतना भी नहीं कर सकती.’’

रुचिता को वैसे भी खाना बनाने का बहुत शौक था और राघव को खाने का. वह रोज नईनई रैसिपी बना कर राघव को खिलाती, वह भी उस के खाने की खूब तारीफ करता.

अगले दिन रुचिता ने सारा घर साफ किया और बढि़या सजावट कर के रसोई में जुट गई. वह जानती थी क्योंकि राघव के दफ्तर के साथ आ रहे थे सो यह उस के मानसम्मान का प्रश्न था. उस ने शाम तक बढि़या स्नैक्स, सूप, मेन कोर्स के लिए दाल मखनी, कड़ाही पनीर, स्टफ्ड टमाटर और दही भिंडी और मीठे में फ्रूट क्रीम बनाई और फिर वह खुद तैयार होने चली गई, आखिर उसे भी तो सीईओ की पत्नी जैसा लगना था.

अभी वह कपड़ों की अलमारी खोल कर सोच ही रही थी कि क्या पहने तभी वसुधा ने आ कर कहा, ‘‘सूट या साड़ी मत पहन लेना कोई राघव की पसंद की ड्रैस निकाल कर पहन लो उसे अच्छा लगेगा.’’

रुचिता खुश हो गई और फिर जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. थोड़ी ही देर में राघव के साथ उस की मित्र कनिका और उस के 4 दोस्त आ गए. रुचिता ने सभी का स्वागत किया और सब को बैठा कर सूप और स्नैक्स लेने रसोई में चली गई. इसी बीच वसुधा एक बार सब से मिल कर अपने कमरे में चली गई.

राघव मां को बुलाने गया तो वसुधा ने कहा, ‘‘तुम बच्चे मौज करो मैं यहीं आराम करूंगी. मेरा खाना यहीं भिजवा देना.’’

घर की साजसज्जा देख कर और रुचिता के हाथ का खाना खा कर सब उस की खूब तारीफ कर रहे थे.

राघव भी खुशी से फूला नहीं समा रहा था कि तभी रुचिता की निगाह कनिका के कंगन पर गई अब उस के पैरों तले की जैसे जमीन खिसक गई. वह पहचान गई कि यह वही कंगन है जिसे वह ढूंढ़ रही थी. लेकिन यह कनिका के पास कैसे? तभी उस के दिमाग ने कहा राघव के अलावा कौन दे सकता है पर फिर उस के दिल ने कहा नहीं राघव मु झे धोखा नहीं दे सकता. एक बार फिर उस के दिमाग ने कहा तुम बेवकूफ हो, सुबूत तुम्हारे सामने है और तुम नकारा रही हो. फिर भी रुचिता ने सोचा कि बिना पूरी छानबीन के वह राघव से इस बारे में कोई बात नहीं करेगी. उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था, उस का मन कर रहा था कि इसी समय घर छोड़ कर चली जाए, लेकिन उस ने खुद को संभाला और कनिका के साथ बैठ कर उस से बातें करने लगी. उस ने उस से कई बातें पूछीं जिन से उसे पता चला कि वह एक गरीब घर की महत्त्वाकांक्षी लड़की है. अब वह कनिका को कुछकुछ सम झ रही थी.

इसी बीच मौका पा कर वह सारी बातें अपनी सास को बता आई. वसुधा एक बार फिर अंदर से आ कर सब के साथ बैठ गईं और कनिका को देखती रहीं. वे मान रही थीं कि पूरी गलती उन के बेटे की है, लेकिन उन का अनुभव कह रहा था कि लड़की भी कुछ ठीक नहीं है. उन्होंने सोचा जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरे को क्या दोष देना. वे ये सब सोच ही रही थीं कि सब लोग जाने लगे.

रुचिता राघव से सब को दरवाजे तक छोड़ने के लिए कह कर वसुधा को एक कोने में ले गई और उन से बोली, ‘‘मांजी अभी आप राघव से कुछ मत कहना. मैं इस लड़की के बारे में कुछ और भी पता करना चाहती हूं तब तक हम घर में हमेशा की तरह शांत रहेंगे.’’

वसुधा ने रुचिता के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटा तुम जैसा चाहो वैसा करो मैं पूरी तरह तुम्हारे साथ हूं. मेरे बेटे की गलती है और मैं ने इस बात को स्वीकार कर लिया है,’’ कह कर वसुधा सोने अपने कमरे में चली गईं.

मगर उन की आंखों में नींद कहां. उन्हें लगा जैसे एक बार फिर इतिहास अपनेआप को दोहरा रहा है, जो राघव के पिता ने उन के साथ किया वही राघव रुचिता के साथ कर रहा है… आखिर यह अपने बाप की ही औलाद निकला. उन का मन लगातार राघव के प्रति गुस्से से भर रहा था. दूसरी तरफ डर भी लग रहा था कि रुचिता क्या करेगी, इतनी अच्छी लड़की राघव को और इस घर को कभी नहीं मिलेगी. इसी ऊहापोह में उस की आंख लग गई.

सुबह राघव नाश्ता करते हुए रुचिता से कह रहा था, ‘‘कल तो तुम ने मेरी इज्जत में चार चांद लगा दिए. सब मेरी बीवी को देख कर जलफुक गए. मैं बहुत खुश हूं कि मां ने मेरी शादी तुम से करवाई.’’

ये सब सुन कर वसुधा का पारा 7तें आसमान पर था. उन्होंने एक नजर रुचिता की तरफ देखा तो उस ने उसे चुप रहने का इशारा किया. वसुधा चुप बैठी नाश्ता करती रहीं और फिर सिरदर्द का बहाना बना कर अपने कमरे में चली गईं. थोड़ी देर में राघव भी दफ्तर चला गया. अब रुचिता जा कर अपनी सास के पास बैठ गई और उन की गोद में सिर रख कर खूब रोई. रात से सुबह तक का वक्त उस ने कैसे काटा यह वही जानती थी. बारबार उस की इच्छा हो रही थी कि राघव का कौलर पकड़ कर उस से पूछे कि उस ने उस के साथ ऐसा क्यों किया. लेकिन कुछ न कह कर चुप रहने का फैसला उस का अपना था. वसुधा भी रोती हुईं बहू को कोई दिलासा न दे सकीं. बस उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरती रहीं और बोलीं कि बेटा मैं तेरे साथ हूं.

जब रो कर रुचिता का मन हलका हो गया तब वसुधा ने उस से पूछा, ‘‘अब तुम क्या करने की सोच रही हो? तुम ने राघव से कुछ कहा क्यों नहीं?’’

इस पर रुचिता बोली, ‘‘मेरी मां हमेशा कहती हैं कि एक औरत घर बिगाड़ भी सकती है और बना भी सकती है, मैं उन की बात को आजमा कर देखना चाहती हूं. मैं कोई भी फैसला सोचसम झ कर ठंडे दिमाग से करना चाहती हूं. इसीलिए मैं ने एक जासूस से बात की है. मैं पहले राघव और कनिका के बीच के संबंधों की गंभीरता जानना चाहती हूं और ये भी कि यह कनिका कैसी लड़की है, जो एक शादीशुदा आदमी से चक्कर चला रही है. अगर राघव को वापस लाने का कोई भी रास्ता है तो मैं उस पर चलना चाहती हूं, क्योंकि मैं ने आज तक सिर्फ उसी से प्यार किया है.’’

उस की बातें सुन कर वसुधा का दिल उस के लिए असीम स्नेह और सम्मान से भर गया और उस ने फिर रुचिता को गले लगा कर कहा, ‘‘बेवकूफ है मेरा बेटा जो हीरे जैसी पत्नी को छोड़ कर किसी और लड़की के पीछे भाग रहा है. एक बात हमेशा याद रखना मैं ने तुम्हें बहू नहीं बेटी माना है और मैं हमेशा ठीक उसी तरह तुम्हारा साथ दूंगी जैसे मुसीबत में अपनी बेटी का देती.’’

2-3 दिन यों ही निकल गए. वसुधा रुचिता के साथ एक मजबूत स्तंभ की तरह खड़ी रहीं ठीक वैसे ही जैसे उस की अपनी मां उस के साथ रहतीं. चौथे दिन राघव के औफिस जाने के बाद वह जासूस रुचिता से मिलने आया और उसे कुछ चित्रों के साथ कनिका के बारे में सारी जानकारी दे गया. उस ने ध्यान से वे सारे कागज देखे और एक प्लान बना कर वसुधा को उस में शामिल कर लिया.

रुचिता जानती थी कि राघव की कंपनी में सब की तनख्वाह के खाते ऐक्सिस बैंक में हैं सो उस ने एक नए नंबर से ऐक्सिस बैंक कर्मचारी बन कर कनिका को फोन लगाया और उस से कहा कि लकी ड्रा में उस का एक लंच कूपन निकला है. 2 महिलाओं के लिए और अगर वह आना चाहती है तो बैंक ताज होटल में उस के लिए जगह आरक्षित करेगा.

ताज का नाम सुन कर कनिका फंस गई और उस ने हां कह दिया. रुचिता ने अगले

दिन के लिए दो टेबल बुक करवाईं और सब से पहले ताज पहुंच गई. कनिका भी शर्त के अनुसार अपनी एक सहेली को ले कर पहुंची. इधर वसुधाजी राघव को लंच ताज में करने के लिए यह कह कर ले गईं कि रुचिता बाहर गई है सहेलियों के साथ और वे बोर हो रही है.

राघव को उन की बात अजीब तो लगी थी, लेकिन मां ने कहा है, यह सोच कर उस ने ज्यादा दिमाग नहीं लगाया. जैसे ही रुचिता ने देखा कि सब आ गए हैं उस ने वसुधा को फोन मिलाया और खुद जा कर कनिका के बराबर बैठ गई. उस ने वसुधा को पहले ही सम झा दिया था कि फोन का स्पीकर चला कर सारी बातें राघव को सुनवा दें.

यों अचानक रुचिता को देख कनिका बुरी तरह चौंक गई, वह कुछ बोलने को ही थी कि चित्र उस के सामने रख दिए. उन्हें देख कर तो कनिका जड़ हो गई. अब उस ने कुछ बोलते नहीं बन रहा था. बड़ी मुश्किल से बस इतना बोली कि ये आप के पास कैसे? रुचिता ने जवाब में कहा कि तुम ने मेरे पति को मु झ से छीनने की कोशिश की है, कुछ तो मु झे भी करना ही था सो मैं ने तुम्हारा पूरा कच्चा चिट्ठा निकलवा लिया, यही नहीं तुम्हारे घर का पता भी. सोच रही हूं ये सभी तसवीरें तुम्हारे मातापिता को भेज दूं. आखिर उन्हें भी तो पता चले शहर में उन की लड़की कितनी मेहनत कर रही है. कितनी मेहनत से राघव को फंसा कर उन के पैसे से अपने महंगेमहंगे शौक पूरे कर रही है.

अब तो कनिका की हालत खराब हो गई. उस ने लड़खड़ाती जबान से कहा, ‘‘नहीं, ऐसा मत कीजिएगा मेरे मांबाप शर्र्म से मर जाएंगे. मैं यह नौकरी छोड़ दूंगी और आप लोगों को कभी अपनी शक्ल नहीं दिखाऊंगी. मैं आप के पति से बिलकुल प्यार नहीं करती. वह तो मेरे महंगे शौक पूरे कर रहा था इसलिए…’’

इस से ज्यादा राघव सुन नहीं सका और उठ कर उन की मेज पर आ कर खड़ा हो गया. उस की निगाह उन तसवीरों पर पड़ी तो उस की आंखों में गुस्सा और पश्चात्ताप दोनों साथ दिखाई दिए. उस ने देखा रेस्तरां लोगों से भरा हुआ है तो उस ने कनिका को सिर्फ वहां से चले जाने का इशारा किया- लेकिन रुचिता ने हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया और उस से कहा कि मेरी एक और चीज तुम्हारे पास है, अब रुचिता की निगाह उस के हाथ के कंगन पर थी. कनिका ने जल्दी से वो कंगन उसे वापस किया और वहां से निकल गई.

राघव ने कुछ कहना चाहा ही था कि रुचिता ने उस से कहा, ‘‘आशा करती हूं तुम्हें सम झ आ गया होगा कि कोई जब विश्वासघात करता है तब कैसा लगता है. चलो बाकी बातें घर जा कर करेंगे, सब देख रहे हैं.’’

घर पहुंचे तो वसुधा बेटे पर टूट पड़ीं. बोलीं, ‘‘तूने मु झे बहू को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. मु झे तु झ पर कितना नाज था, लेकिन तू भी अपने बाप जैसा निकला. बचपन से ले कर आज तक तू अपने बाप से नाराज है, लेकिन तु झ में और उन में क्या फर्क है? उन्होंने भी अपनी पत्नी और बच्चे के साथ धोखा किया और तूने भी अपनी पत्नी के साथ धोखा किया. आखिर तू है तो उन्हीं की औलाद.’’

सुन कर राघव फूटफूट कर रोने लगा और अपने घुटनों पर बैठ कर वसुधा से बोला, ‘‘ऐसा न कहो मां मैं तुम्हारा बेटा हूं उन का नहीं. मु झ से बहुत बड़ा गुनाह हो गया मां मु झे माफ कर दो… मु झे माफ कर दो.’’

‘‘माफी मांगनी है तो बहू से मांग… तू उस का गुनहगार है. अगर उस ने तु झे माफ कर दिया तो मैं भी कर दूंगी और अगर वह घर छोड़ कर गई तो मैं भी अपनी बेटी के पास चली जाऊंगी,’’ वसुधा ने कठोर स्वर में कहा.

राघव रुचिता की ओर बढ़ा और उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘रुचिता, वैसे तो मैं माफी मांगने लायक नहीं हूं पर फिर भी क्या तुम मु झे माफ कर पाओगी? मैं वादा करता हूं भविष्य में कभी तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगा. क्या तुम एक बार इसे मेरी पहली और आखिरी गलती सम झ कर माफ नहीं कर सकतीं?’’

रुचिता ने कुछ रुक कर कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करती हूं और यह भी सच है कि इस शादी को एक और मौका देना चाहती हूं, लेकिन ये सब भूल कर एक नई शुरुआत करने के लिए और तुम्हें माफ करने के लिए मु झे कुछ वक्त चाहिए. आशा करती हूं तुम समझोगे.’’

‘‘हां रुचि तुम्हें जितना वक्त चाहिए ले लो, लेकिन मु झे छोड़ कर मत जाना. मु झे तुम्हारी जरूरत है. मैं इंतजार करूंगा उस दिन का जब तुम मु झे माफ कर दोगी,’’ राघव ने राहत की सांस लेते हुए कहा.

रुचिता ने अपनी सास की तरफ देख कर कहा, ‘‘मां सास होने के बावजूद आप ने अपने बेटे का नहीं मेरा साथ दिया… मैं किन शब्दों में आप का धन्यवाद दूं.’’

वसुधा उस के माथे को चूमते हुए बोलीं, ‘‘तुम बहुत सम झदार हो बेटा. अपनी सू झबू झ से तुम ने यह घर टूटने से बचा लिया… मैं ने वही किया जो मैं अपनी बेटी के लिए करती. हम अकसर कहते हैं बहू कभी बेटी नहीं बन सकती, जबकि सच यह है कि अधिकतर सासें ही कभी मां नहीं बन पातीं, अगर सासें मां बन जाएं तो बहुएं अपनेआप बेटियां बन जाएंगी.

Dilchasp Kahani : अपना घर

Dilchasp Kahani : औफिस की घड़ी ने जैसे ही शाम के 5 बजाए जिया जल्दी से अपना बैग उठा तेज कदमों से मैट्रो स्टेशन की तरफ चल पड़ी. आज उस का मन एकदम बादलों की तरह उड़ रहा था. उड़े भी क्यों न, आज उसे अपनी पहली तनख्वाह जो मिली थी. वह घर में सब के लिए कुछ न कुछ लेना चाहती थी. रोज शाम होतेहोते उस का मन और तन दोनों थक जाते थे पर आज उस का उत्साह देखते ही बनता था. आइए अब जिया से मिल लेते हैं…

जिया 23 वर्षीय आज के जमाने की नवयुवती है. सांवलासलोना रंग, आम की फांक जैसी आंखें, छोटी सी नाक, बड़ेबड़े होंठ. सुंदरता में उस का कहीं कोईर् नंबर नहीं लगता था पर फिर भी उस का चेहरा पुरकशिश था. घर में सब की लाडली, जीवन से अब तक जो चाहा वह मिल गया. बहुत बड़े सपने नहीं देखती थी. थोड़े में ही खुश थी.

वह तेज कदमों से दुकानों की तरफ बढ़ी. अपने 2 साल के भतीजे के लिए उस ने एक रिमोट से चलने वाली कार खरीदी. पापा के लिए उन की पसंद का परफ्यूम, मम्मी व भाभी के लिए सूट और साड़ी और भैया के लिए जब उस ने टाई खरीदी तो उस ने देखा कि बस उस के पास अब कुछ ही पैसे बचे हैं. अपने लिए वह कुछ न खरीद पाई. अभी पूरा महीना पड़ा था. बस उस के पास कुछ हजार ही बचे थे. उसे उन में ही अपना खर्चा चलाना था. मांपापा से वह कुछ नहीं लेना चाहती थी.

जैसे ही वह शोरूम से निकली, बाजू वाली दुकान में उसे आसमानी और फिरोजी रंग के बहुत खूबसूरत परदे दिखाई दिए. बचपन से उस का अपने घर में इस तरह के परदे लगाने का मन था. दुकानदार से जब दाम पूछा तो उसे पसीना आ गया. दुकानदार ने मुसकराते हुए कहा कि ये चंदेरी सिल्क के परदे हैं, इसलिए दाम थोड़ा ज्यादा है पर ये आप के कमरे को एकदम बदल देंगे.

कुछ देर तक खड़ी वह सोचती रही. फिर उस ने वे परदे खरीद लिए. जब वह दुकान से निकली तो बहुत खुश थी. बचपन से वह ऐसे परदे अपने घर में लगाना चाहती थी, पर मां के सामने जब भी बोला उस की इच्छा घर की जरूरतों के सामने छोटी पड़ गई. आज उसे ऐसा लगा जैसे वह वाकई में स्वतंत्र हो गई है.

जब वह घर पहुंची तो रात हो चुकी थी. सब रात के खाने के लिए उस का इंतजार कर रहे थे. भतीजे को चूम कर उस ने सब के उपहार टेबल पर रख दिए. सब उत्सुकता के साथ उपहार देखने लगे. अचानक मां बोली, ‘‘तुम, अपने लिए क्या लाई हो?’’

जिया ने मुसकराते हुए परदों का पैकेट उन की तरफ बढ़ा दिया. परदे देख कर मां बोलीं, ‘‘यह क्या है…? इन्हें तुम पहनोगी?’’

जिया मुसकुराते हुए बोली, ‘‘मेरी प्यारी मां इन्हें हम घर में लगाएंगे.’’

मां ने परदे वापस पैकेट में रखे और फिर बोलीं, ‘‘इन्हें अपने घर लगाना.’’

जिया असमंजस से मां को देखती रही. उस की समझ में नहीं आया कि इस का क्या मतलब है. उस की भूख खत्म हो गई थी.

भाभी ने मुसकरा कर उस के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘मैं आज तक नहीं समझ पाई, मेरा घर कौन सा है? जिया तुम अपना घर खुद बनाना,’’ और फिर भाभी ने बहुत प्यार से उस के मुंह में एक निवाला डाल दिया.

आज पूरा घर पकवानों की महक से महक रहा था. मां ने अपनी सारी पाककला को निचोड़ दिया था. कचौरियां, रसगुल्ले, गाजर का हलवा, ढोकले, पनीर के पकौड़े, हरी चटनी, समोसे और करारी चाट. भाभी लाल साड़ी में इधर से उधर चहक रही थीं. पापा और भैया पूरे घर का घूमघूम कर मुआयना कर रहे थे. कहीं कुछ कमी न रह जाए. आज जिया को कुछ लोग देखने आ रहे थे. एक तरह से जिया की पसंद थी, जिस पर आज उस के घर वालों को मुहर लगानी थी. अभिषेक उस के औफिस में ही काम करता था. दोनों में अच्छी दोस्ती थी जिसे अब वे एक रिश्ते का नाम देना चाहते थे.

ठीक 5 बजे एक कार उन के घर के सामने आ कर रुकी और उस में से 4 लोग उतरे. सब ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. जिया ने परदे की ओट से देखा. अभिषेक जींस और लाइट ब्लू शर्ट में बेहद खूबसूरत लग रहा था.

उस की मां लीला आज के जमाने की आधुनिक महिला लग रही थीं. छोटी बहन मासूमा भी बेहद खूबसूरत थी. पिता अजय बेहद सीधेसादे व्यक्ति लग रहे थे.

जिया, अभिषेक की मां और बहन के सामने कहीं भी नहीं ठहरती थी पर उस का भोलापन, सुलझे हुए विचार और सादगी ने अभिषेक को आकर्षित कर लिया था. जिया के किरदार में कहीं भी कोई बनावटीपन नहीं था. जहां अभिषेक को अपनी मां में प्लास्टिक के फूलों की गंद आती थी, वहीं जिया से उसे असली फूलों की महक आती थी.

अपने पिता को उस ने हमेशा एडजस्टमैंट करते हुए देखा था. वह खुद ऐसा नहीं करना चाहता था, इसलिए हर हाल में अपनी मां का लाड़ला, हर बात मानने वाला अभिषेक किसी भी कीमत पर अपनी जीवनसाथी के चुनाव की बागडोर मां को नहीं देना चाहता था.

जिया ने कमरे में प्रवेश किया. जहां अभिषेक प्यारभरी नजरों से उस की तरफ देख रहा था, वहीं लीला और मासूमा उस की तरफ अचरज से देख रही थीं. उन्हें जिया में कोई खूबी नजर नहीं आ रही थी. अजय को जिया एक सुलझे विचारों वाली लड़की नजर आई जो उन के परिवार को संभाल कर रख सकेगी. लीला ने अभिषेक की तरफ देखा पर उस के चेहरे पर खुशी देख कर चुप हो गईं.

जिया को लीला ने अपने हाथों से हीरे का सैट पहना दिया पर उन के चेहरे पर कहीं कोईर् खुशी नहीं थी. जिया को यह बात समझ आ गई थी कि वह बस अभिषेक की पसंद है. अपने घर में जगह बनाने के लिए उसे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी.

2 माह बाद उस के विवाह की तारीख तय हो गई. दुलहन के लिबास में जिया बेहद खूबसूरत लग रही थी. अभिषेक और उस की जोड़ी पर लोगों की नजरें ही नहीं ठहर रही थीं. लीला भी आज बहुत खुश लग रही थीं. कन्यादान करते हुए जिया के मां और पापा के आंखों में आंसू थे. वह उन के घर की रौनक थी. बिदाई पर अजय ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘बहू नहीं बेटी ले कर जा रहे हैं.’’

जिया ने कुछ दिनों में यह तो समझ लिया था कि इस घर में बागडोर लीला के हाथों में है. यह घर लीला का घर है और वह घर उस के मांपापा का घर था पर उस का घर कहां है? इस सवाल का जवाब उसे नहीं मिल पा रहा था.

अभी कल की ही बात थी, जिया ने ड्राइंगरूम में थोड़ा सा बदलाव करने की कोशिश करी, तो लीला ने मुसकरा कर कहा, ‘‘जिया, तुम अभिषेक की बीवी हो, इस घर की बहू हो, पर इस घर को मैं ने बनाया है, इसलिए अपने फैसले और अपने अधिकार अपने कमरे तक सीमित रखो.’’

जिया चुपचाप खड़ी सुनती रही. अभिषेक से जब भी उस ने इस बारे में बात करनी चाही, उस ने हमेशा यही जवाब दिया कि जिया उन्हें थोड़ा समय दो. उन्होंने सब कुछ हमारी खुशी के लिए ही करा है.

जिया अपने मनोभावों को चाह कर भी न समझा पाती थी. खुश रहना उस की आदत थी और हारना उस की फितरत में नहीं था.

देखते ही देखते 1 साल बीत गया. आज जिया की शादी की पहली वर्षगांठ थी. उस ने अभिषेक के लिए घर पर पार्टी करने का प्लान बनाया. उस ने अपने सभी दोस्तों को निमंत्रण भेज दिया. तभी दोपहर में जिया ने देखा, लीला की किट्टी पार्टी का गु्रप आ धमका.

जिया ने लीला से कहा, ‘‘मां, आज मैं ने अपने कुछ दोस्तों को आमंत्रित किया है.’’

लीला ने जवाब में कहा, ‘‘जिया तुम्हें पहले मुझ से पूछ लेना चाहिए था…’’ मैं तो अब कुछ नहीं कर सकती हूं. तुम अपने दोस्तों को कहीं और बुला लो.’’

जिया उठ खड़ी हुई. अपने अधिकारों की सीमा रेखा समझती रही. मन ही मन उस ने एक निर्णय ले लिया.

जिया ने शाम की पार्टी के लिए घर के बदले होटल का पता अपने सभी दोस्तों को व्हाट्सऐप कर दिया. अभिषेक को भी वहीं बुला लिया. अभिषेक ने जिया को पीली व लाल कांजीवरम साड़ी और बेहद खूबसूरत झुमके उपहार में दिए, जिया जैसी सुलझे विचारों वाली जीवनसाथी पा कर अभिषेक बेहद खुश था.

जिया को अपनी जिंदगी से कोई शिकायत नहीं थी पर फिर भी कभीकभी वह चंदेरी के परदे उसे मुंह चिढ़ाते थे. अभिषेक उसे हर तरह से खुश रखता था पर वह कभी जिया की अपनी घर की इच्छा को नहीं समझ पाया था.

जिया को अपने घर को अपना कहने का या महसूस करने का अधिकार नहीं था. वह उस की जिंदगी का वह खाली कोना था जिसे कोई भी नहीं समझ पाया था. न उस के अपने मातापिता, न अभिषेक और न ही उस के सासससुर. जिया ने धीरेधीरे इस घर में सभी के दिल में जगह बना ली थी. लीला भी अब उस से खिंचीखिंची नहीं रहती थीं. मासूमा की मासूम शरारतों का वह हिस्सा बन गई थी.

आज चारों तरफ खुशी का माहौल था. दीवाली का त्योहार वैसे भी अपने साथ खुशी, हर्षोल्लास और अनगिनत रंग ले कर आता है. पूरे घर में पेंट चल रहा था, जब अभिषेक परदे बदलने लगा तो अचानक जिया बोली कि रुको और फिर भाग कर चंदेरी के परदे ले आई.

इस से पहले कि अभिषेक कुछ बोलता, लीला बोल उठीं, ‘‘जिया ऐसे परदे मेरे घर पर नहीं लगेंगे.’’

जिया प्रश्नसूचक नजरों से अभिषेक को देख रही थी. उसे लगा वह कुछ बोलेगा कि मां यह जिया का भी घर है पर अभिषेक कुछ न बोला. जिया का खराब मूड देख कर बोला, ‘‘इतना क्यों परेशान हो. परदे ही तो हैं.’’

पहली बार जिया की आंखों में आंसू आए. अभिषेक आंसुओं को देख कर और चिढ़ गया.

आजकल जिया का ज्यादातर समय औफिस में बीतता था. अभिषेक ने महसूस किया कि वह अपने फोन पर ही लगी रहती है और उसे देखते ही घबरा कर मोबाइल रख देती है. अभिषेक जिया को सच में प्यार करता था, वह जिया से पूछना चाहता था पर उसे डर था कहीं सच में जिया के जीवन में उस की जगह किसी और ने तो नहीं ले ली है.

एक शाम को अभिषेक ने जिया से कहा, ‘‘जिया, चलो तुम शुक्रवार की छुट्टी ले लो, कहीं आसपास घूमनेफिरने चलते हैं.’’

जिया ने अनमने से कहा, ‘‘नहीं अभिषेक बहुत काम है औफिस में.’’ चाह कर भी अभिषेक जिया के व्यवहार में जो बदलाव आया है उसे समझ नहीं पा रहा था. वह रात को भी घंटों लैपटौप पर बैठ कर न जाने क्या करती रहती. अभिषेक जैसे ही उसे आवाज देता, वह घबरा कर लैपटौप बंद कर देती. अभिषेक जितना उस के करीब जाने की कोशिश करता वह उतना ही उस से दूर जा रही थी.

न जाने वह क्या था जिस के पीछे जिया पागल हो रही थी. जिया के भाई ने भी उस दिन अभिषेक को फोन पर कहा, ‘‘आजकल जिया घर पर फोन ही नहीं करती. सब ठीक है न?’’

अभिषेक ने कहा, ‘‘नहीं आजकल औफिस में बहुत काम है.’’

देखते ही देखते 2 साल बीत गए. अब अभिषेक और जिया दोनों के मातापिता की इच्छा थी कि वे अपने परिवार को आगे बढ़ाएं.

आज फिर से उन की शादी की सालगिरह का जश्न था पर आज लीला ने खुद दावत रखी थी. जिया ने एक बहुत ही खूबसूरत प्याजी रंग की स्कर्ट और कुरती पहनी हुई थी. अभिषेक की नजरें उस से हट ही नहीं रही थी. सब लोग उन्हें छेड़ रहे थे कि वे खुशखबरी कब दे रहे हैं.

रात को एकांत में जब अभिषेक ने जिया से कहा कि जिया मेरा भी मन है, तो जिया ने अनमने ढंग से कहा कि वह तैयार नहीं है.

रात में भी अभिषेक को ऐसा लगा जैसे उस के पास बस जिया का शरीर है. अभिषेक रातभर सो नहीं पाया.

आज वह हर हाल में जिया से बात करना चाहता था, पर जब वह सुबह उठा, जिया औफिस के लिए निकल चुकी थी. अभिषेक को कुछ समझ नहीं आ रहा था. ऐसा लगता था, जिया उस के साथ हो कर भी उस के साथ नहीं है, वह हर हफ्ते उस के साथ कोई न कोई प्लान बनाता पर जिया को तो रविवार में भी कोई न कोई औफिस का काम हो जाता था. उन दोनों के बीच एक मौन था, जिसे वह चाह कर भी नहीं तोड़ पा रहा था. अभिषेक को अपनी वह पुरानी जिया चाहिए थी पर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.

देखते ही देखते फिर दीवाली आ गई. पूरा शहर रोशनी से जगमगा रहा था. आज अभिषेक को बहुत दिनों बाद जिया का चेहरा रोशनी से खिला दिखा.

जिया ने अभिषेक से कहा, ‘‘अभिषेक, आज मुझे तुम से कुछ कहना है और कुछ दिखाना भी है.’’

अभिषेक उस की तरफ प्यार से देखते हुए बोला, ‘‘जिया, कुछ भी बोलना बस यह मत बोलना तुम्हें मुझ से प्यार नहीं है.’’

जिया खिलखिला कर हंस पड़ी और फिर बोली, ‘‘तुम पागल हो क्या, तुम ने ऐसा सोचा भी कैसे?’’

अभिषेक मुसकरा दिया. बोला, ‘‘लेकिन तुम मुझे पिछले 1 साल से नैगलैक्ट कर रही हो, हम एकसाथ कहीं भी नहीं गए.’’

जिया बोली, ‘‘पता नहीं तुम्हें समझ आएगा या नहीं पर मैं पिछले 1 साल से अपनी पहचान और अपने वजूद, अपनी जड़ें ढूंढ़ रही थी?’’

अभिषेक को कुछ समझ नहीं आ रहा था. जिया ने गुलाबी और नारंगी चंदेरी सिल्क की साड़ी पहनी हुई थी. साथ में कुंदन का मेल खाता सैट, हीरे के कड़े और ढेर सारी चूडि़यां. आज उस के चेहरे पर ऐसी आभा थी कि सब लोग उस के आगे फीके लग रहे थे. रंगोली बनाने के बाद जिया ने अभिषेक को उस के साथ चलने को कहा, तो अभिषेक कार की चाबी उठा चल पड़ा.

जिया हंस कर बोली, ‘‘आज मैं तुम्हें अपने साथ अपनी कार में ले कर चलना चाहती हूं.’’

अभिषेक चल पड़ा. थोड़ी ही देर में कार हवा से बातें करने लगी और कुछ देर बाद कार नई बस्ती की तरफ चलने लगी. कार ड्राइव करते हुए जिया बोली, ‘‘अभिषेक, आज मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं. तुम ने हमेशा हर तरह से मेरा खयाल रखा पर बचपन से मेरा एक सपना था जो मेरी आंखों में पलता रहा. मांपापा ने कहा कि तुम्हारा घर वह होगा, जहां तुम जा कर एक घर बनाओगी. तुम मिले, तो लगा मेरा सपना पूरा हो गया, पर अभिषेक कुछ दिनों बाद समझ आ गया कि कुछ सपने होते हैं जो साझा नहीं होते. शादी का मतलब यह नहीं कि तुम्हारे सपनों का बोझ तुम्हारा जीवनसाथी भी उठाए. मुझे तुम से या किसी से भी कोई शिकायत नहीं है. पर अभिषेक आज मेरा एक सपना पूरा हुआ है,’’ यह कह उस ने एक नई बनी सोसाइटी के सामने कार रोक दी. अभिषेक चुपचाप उस के पीछे चल पड़ा. एक नए फ्लैट के दरवाजे पर उस के नाम की नेमप्लेट लगी थी.

अभिषेक हैरानी से देख रहा था. छोटा पर बेहद खूबसूरती से सजा हुआ प्लैट. तभी हवा का झोंका आया तो चंदेरी के फीरोजी परदे जिया के अपने घर में लहराने लगे, जहां पर उस का अधिकार घर पर ही नहीं वरन उस की आबोहवा पर भी था.

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