Serial Story: नादान दिल (भाग-1)

जबसे ईशा यहां आई थी उस ने जी भर कर चिनार के पेड़ देख लिए थे. उन की खुशबू को करीब से महसूस किया था. उसे बहुत भाते थे चिनार के पत्ते. जहां भी जाती 1 अपनी डायरी में रखने के लिए ले आती. बहुत ही दिलकश वादियां थीं. उस ने आंखों ही आंखों में कुदरत की मनमोहक ठंडक अपने अंदर समेटनी चाही.

‘‘ईशा…’’ अपना नाम सुन कर उस की तंद्रा भंग हुई और फिर छोटी सी पगडंडी से कूदतीफांदती होटल के सामने की सड़क पर आ गई.

‘‘बहुत देर हो गई है… अब चला जाए,’’ पास आती शर्मीला ने कहा, ‘‘सुबह पहलगाम के लिए जल्दी निकलना है. थोड़ा आराम कर लेंगे.’’

‘‘ईशा भाभी तो यहां आ कर एकदम बच्ची बन गई हैं, मैं ने अभी देखा पहाड़ी में दौड़ती फिर रही थीं,’’ विरेन भाई ने चुटकी ली.

ईशा झेंप गई. वह खुद में इतनी गुम थी कि पति परेश और उस के दोस्तों की मौजूदगी ही भूल गई थी. इन हसीन वादियों ने उस के पैरों में जैसे पंख लगा दिए थे. ईशा ने कश्मीर की खूबसूरती के बारे में बहुत पढ़ा और सुना था. अकसर फिल्मों में लव सौंग गाते हीरोहीरोइन के पीछे दिखती बर्फ से ढकी पहाडि़यों पर उस की नजरें ठहर जाती थीं और फिर रोमानी खयालात मचल उठते.

कभी सोचा नहीं था कि गुजरात से इतनी दूर यहां घूमने आएगी और इन वादियों में आजाद पंछी की तरह उड़ती फिरेगी. उस ने खुद को एक अरसे बाद इतना खुश पाया था. वे लोग देर तक बस घूम ही रहे थे. अब अंधेरा गहराने लगा तो वापस होटल चल पड़े. शाम से ही पहाड़ों पर हलकी बारिश होने लगी थी. ठंड कुछ और बढ़ गई थी. होटल के अपने नर्म बिस्तर पर करवटें बदलती ईशा की नींद आंखमिचौली खेल रही थी. बगल में सोया परेश गहरी नींद में डूबा था. रात काफी बीत चुकी थी. उस ने एक बार फिर घड़ी पर नजर डाली. वक्त जैसे कट ही नहीं रहा था. हैरत की बात थी कि दिन भर घूमने के बाद भी थकान का नामोनिशान न था.

खयालों का काफिला गुजरता जा रहा था कि एकाएक 2 नीली आंखें जैसे सामने आ गईं. झील सा नीला रंग लिए रशीद की आंखें… वह  2 दिनों से उन लोगों का ड्राइवर एवं गाडड बना था. जिस दिन वे लोग होटल पहुंचे थे, परेश ने घूमने के लिए रशीद की ही गाड़ी बुक कराई थी. किसी विदेशी मौडल सा दिखने वाला गोराचिट्टा रशीद स्वभाव से भी बड़ा मीठा था. उस के बारे में एक और बात उन लोगों को पसंद आई कि वह कहीं पास ही रहता था. वे जब भी बुलाते तुरंत हाजिर हो जाता.

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2 दिनों में ही रशीद ने उन्हें करीब हर घूमने लायक जगह दिखा दी थी. ईशा रशीद से उन जगहों के बारे में बहुत सी बातें पूछती और पूरी जानकारी अपनी डायरी में लिख लेती. ईशा को डायरी लिखने का शौक था. उस के हर अच्छेबुरे अनुभव की साक्षी थी उस की डायरी. बाकी लोग अपने काम से काम रखने वाले थे, मगर ईशा के बातूनीपन की वजह से रशीद और ईशा के बीच खूब बातें होतीं और लगभग एक ही उम्र के होने की वजह से बहुत सी बातों में दोनों की पसंद भी मिलती थी. अकसर ड्राइवर के ठीक पीछे वाली सीट पर बैठी ईशा जब कभी अचानक सामने देखती, शीशे में उस की और रशीद की नजरें टकरा जातीं. झेंप कर ईशा नजरें झुका लेती. रशीद भी थोड़ा शरमा जाता. उस के साथ हुई बातों से ईशा को पता चला कि वह पढ़ालिखा है और किसी बेहतर काम की तलाश में है. छोटी बहन की शादी की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी, जिस के लिए उसे पैसों की जरूरत थी. उस की सादगी भरी बातों से ईशा के दिल में उस के प्रति हमदर्दी पैदा हो गई थी, जिस में दोस्ती की महक भी शामिल थी.

अहमदाबाद के रहने वाले परेश और ईशा की शादी को कम ही अरसा हुआ था. मरजी के खिलाफ हुई इस शादी से ईशा खुश नहीं थी. पारंपरिक विचारों वाले परिवार में पलीबढ़ी ईशा अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहती थी. मगर जब मैनेजमैंट की पढ़ाई के बीच ही घर वालों ने एक खातेपीते व्यापारी परिवार के लड़के परेश से रिश्ता तय कर दिया तो ईशा के कुछ कर दिखाने के सपने अधूरे ही रह गए.

वह किसी बड़ी नौकरी में अपनी काबिलीयत साबित करना चाहती थी. बहुत झगड़ी थी घर वालों से पर पिता ने बीमार होने का जो जबरदस्त नाटक खेला था उस दबाव में आ कर ईशा ने हथियार डाल दिए थे. ऊपर से मां ने भी पिता का ही साथ दिया. ईशा को समझाया कि उसे कौन सी नौकरी करनी है. व्यापारी परिवार की बहुएं तो बस घर संभालती हैं.

शादी के बाद पति परेश के स्वभाव का विरोधाभास भी दोनों के बीच की दीवार बना. दोनों मन से जुड़ ही नहीं पाए थे. एक फासला हमेशा बरकरार रहता जिसे न कभी ईशा भर पाई न ही परेश. जिस मलाल को ले कर ईशा का मन आहत था, परेश ने कभी उस पर प्यार का मरहम तक लगाने की कोशिश नहीं की. घर का इकलौता बेटा परेश अपने पिता के साथ खानदानी कारोबार में व्यस्त रहता. सुबह का निकला देर रात ही घर लौटता था.

एक बंधेबंधाए ढर्रे पर जिंदगी बिताते परेश और ईशा नदी के 2 किनारों जैसे थे, जो साथ चलते तो हैं, मगर कभी एक नहीं हो पाते. ईशा पैसे की अहमियत समझती थी, मगर जिंदगी के लिए सिर्फ पैसा ही तो सब कुछ नहीं होता. परेश उस के लिए वक्त निकालने की कोई जरूरत तक नहीं समझता था. यह और बात थी कि दोनों हमबिस्तर होते, मगर वह मिलन सूखी रेत पर पानी की बूंदों जैसा होता, जो ऊपर ही ऊपर सूख जाता अंदर तक भिगोता ही नहीं था.

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चुलबुली और बातूनी ईशा शादी के बाद उत्साहहीन रहने लगी. आम पतियों की तरह परेश उस पर जबतब रोब नहीं गांठता था. दोनों के बीच कोई खटास या मनमुटाव भी नहीं था, मगर वह कशिश भी नहीं थी, जो 2 दिलों को एकदूजे के लिए धड़काती है.  विरेन और परेश की दोस्ती पुरानी थी. विरेन को दोस्त का हाल खूब पता था. विरेन ने एक दिन परेश को सुझाव दिया कि ईशा के साथ कुछ वक्त अकेले में बिताने के लिए दोनों को घर से कहीं दूर घूम आना चाहिए.

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Serial Story: नादान दिल (भाग-2)

ईशा जानती थी कि विरेन भाई उन के हितैषी हैं, मगर परेशानी यह थी कि परेश के मन की थाह ईशा अभी तक नहीं लगा पाई थी. परेश उस से कितना तटस्थ रहता पर ईशा कोई कदम नहीं उठाती उस दूरी को मिटाने के लिए. अपने घर वालों की मनमरजी का बदला एक तरह से वह अपनी शादी से ले रही थी. यह बात उस के मन में घर कर गई थी कि कहीं न कहीं परेश भी उतना ही दोषी है जितने ईशा के मांबाप. वह सब को दिखा देना चाहती थी कि वह इस जबरदस्ती थोपे गए रिश्ते से खुश नहीं है.

शादी के बाद कुछ कारोबारी जिम्मेदारियों के चलते दोनों कहीं नहीं जा पाए थे और ईशा ने भी कभी कहीं जाने की उत्सुकता नहीं दिखाई. इस तरह से उन का हनीमून कभी हुआ ही नहीं. अब जब अकेले घूम आने की चर्चा हुई तो ईशा को लग रहा था कि परेश और वह एकदूसरे के साथ से जल्दी ऊब जाएंगे. अत: उस ने विरेन और उस की पत्नी शर्मीला को साथ चलने को कहा. सब ने मिल कर जगह का चुनाव किया और कश्मीर आ गए.  रात के अंधेरे में हाउस बोटों की रोशनी जब पानी पर पड़ती तो किसी नगीने सी

झिलमिलाती झील और भी खूबसूरत लगती. ईशा पानी में बनतीमिटती रंगीन रोशनी को घंटों निहारती रही. कदमकदम पर अपना हुस्न बिछाए बैठी कुदरत ने उस के दिल के तार झनझना दिए. उस का मन किया कि परेश उस के करीब आए, उस से अपने दिल की बात करे. अपने अंह को कुचल कर वह खुद पहल नहीं करना चाहती थी. उन के पास बेशुमार मौके थे इन खूबसूरत नजारों में एकदूसरे के करीब आने के बशर्ते परेश भी यही महसूस करता. शर्मीला और ईशा दोस्त जरूर थीं, मगर दोस्ती उतनी गहरी भी नहीं थी कि ईशा उस से अपना दुखड़ा रोती. ऐसे में वह खुद को और भी तनहा महसूस करती.

बहुत देर तक यों ही अकेले बैठी ईशा का मन ऊब गया तो वह कमरे में आ गई. परेश वहां नहीं था. शायद जाम का दौर अभी और चलेगा. उस ने उकता कर एक किताब खोली, पर फिर झल्ला कर उसे भी बंद कर दिया.

‘चलो शर्मीला से गप्पें लड़ाई जाएं’ उस ने सोचा. शर्मीला और विरेन का कमरा बगल में ही था. कमरे के पास पहुंच कर उस ने दरवाजे पर दस्तक दी. कुछ देर इंतजार के बाद कोई जवाब न पा कर उलटे पैर लौट आई अपने कमरे में और बत्ती बुझा कर उस तनहाई के अंधेरे में बिस्तर पर निढाल हो गई. आंसुओं की गरम बूंदें तकिया भिगोने लगीं. नींद आज भी खफा थी.

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दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ कर सब घूमने निकल गए. रशीद हमेशा की तरह समय पर आ गया था. रास्ता पैदल चढ़ाई का था. पहाड़ी रास्तों को तेज कदमों से लांघतीफांदती ईशा जब ऊपर चोटी पर पहुंच कर किसी उत्साही बच्चे की तरह विजयी भाव से खिलखिलाने लगी तो रशीद ने उसे पानी की बोतल थमाई. ईशा ने ढलान की ओर देखा सब कछुए की चाल से आ रहे थे. घने जंगल से घिरी छोटी सी यह घाटी बहुत लुभावनी लग रही थी. ‘‘आप तो बहुत तेज चलती हैं मैडमजी,’’ रशीद हैरान था उसे देख कर कि शहर की यह कमसिन लड़की कैसे इन पहाड़ी रास्तों पर इतनी तेजी से चल रही है. ईशा ने अपनी दोनों बांहें हवा में लहरा दीं और फिर आंखें बंद कर के एक गहरी सांस ली. ताजा हवा में देवदार और चीड़ के पेड़ों की खुशबू बसी थी.

‘‘रशीद तुम कितनी खूबसूरत जगह रहते हो,’’ ईशा मुग्ध स्वर में बोली. रशीद ने उस पर एक मुसकराहट भरी नजर फेंकी. आज से पहले किसी टूरिस्ट ने उस से इतनी घुलमिल कर बातें नहीं की थीं. ईशा के सवाल कभी थमते नहीं थे और रशीद को भी उस से बातें करना अच्छा लगता था.

अब तक बाकी लोग भी ऊपर आ चुके थे. उस सीधी चढ़ाई से परेश, विरेन और शर्मीला बुरी तरह हांफने लगे थे. थका सा परेश एक बड़े पत्थर पर बैठ गया तो ईशा को न जाने क्यों हंसी आ गई. काम में उलझा परेश खुद को चुस्त रखने के लिए कुछ नहीं करता था. विरेन कैमरा संभाल सब के फोटो खींचने लगा. वे लोग अभी मौसम का लुत्फ ले ही रहे थे कि एकाएक आसमान में बादल घिर आए और देखते ही देखते चमकती धूप में भी झमाझम बारिश शुरू हो गई. जिसे जहां जगह दिखी वहीं दौड़ पड़ा बारिश से बचने के लिए. बारीश ने बहुत देर तक रुकने का नाम नहीं लिया तो उन लोगों ने घोड़े

किराए पर ले लिए होटल लौटने के लिए. पहली बार घोड़े पर बैठी ईशा बहुत घबरा रही थी. बारिश के कारण रास्ता बेहद फिसलन भरा हो गया था. बाकी घोड़े न जाने कब उस बारिश में आंखों से ओझल हो गए. रशीद ईशा के घोड़े की लगाम पकड़े साथ चल रहा था. ईशा का डर दूर करने के लिए वह घोड़े को धीमी रफ्तार से ले जा रहा था.

‘‘और धीरे चलो रशीद वरना मैं गिर जाऊंगी,’’ ईशा को डर था कि जरूर उस का घोड़ा इस पतली पगडंडी में फिसल पड़ेगा और वह गिर जाएगी.

‘‘आप फिक्र न करो मैडमजी. आप को कुछ नहीं होगा. धीरे चले तो बहुत देर हो जाएगी,’’ रशीद दिनरात इन रास्तों का अभ्यस्त था. उस ने घोड़े की लगाम खींच कर थोड़ा तेज किया ही था कि वही हुआ जिस का ईशा को डर था. घोड़ा जरा सा लड़खड़ा गया और ईशा संतुलन खो कर उस की पीठ से फिसल गई. एक चीख उस के मुंह से निकल पड़ी.

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रशीद ने लपक कर उसे थाम लिया और दोनों ही गीली जमीन पर गिर पड़े. ईशा के घने बालों ने रशीद का चेहरा ढांप लिया. दोनों इतने पास थे कि उन की सांसें आपस में टकराने लगीं. रशीद का स्पर्श उसे ऐसा लगा जैसे बिजली का तार छू गया हो. रशीद की बांहों ने उसे घेरा था. उस अजीब सी हालत में दोनों की आंखें मिलीं तो ईशा के तनबदन में जैसे आग लग गई. चिकन की कुरती भीग कर उस के बदन से चिपक गई थी. मारे शर्म के ईशा का चेहरा लाल हो उठा. उस की पलकें झुकी जा रही थीं. उस ने खुद को अलग करने की पूरी कोशिश की. दोनों को उस फिसलन भरी डगर पर संभलने में वक्त लग गया. पूरा रास्ता दोनों खामोश रहे. उस एक पल ने उन की सहज दोस्ती को जैसे चुनौती दे दी थी. बेखुदी में ईशा को कुछ याद नहीं रहा कि कब वह होटल पहुंची. गेट से अंदर आते ही उस ने देखा परेश, विरेन और शर्मीला होटल की लौबी में बेसब्री से उस का इंतजार कर रहे थे.

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Serial Story: नादान दिल (भाग-3)

परेश लपक कर उस के पास आया. ईशा के कपड़ों में मिट्टी लगी थी. उस ने बताया कि वह घोड़े से फिसल गई थी. परेश चिंतित हो उठा. शर्मीला और विरेन को भी फिक्र हो गई. ईशा ने जब तीनों को आश्वस्त किया कि वह एकदम ठीक है तब सब को तसल्ली हुई. ईशा शावर की गरम बौछार में बड़ी देर तक बालों से मिट्टी छुड़ती रही. जितना ही खुद को संयत करने की कोशिश करती उतनी ही और बेचैन हो जाती. आज की घटना रहरह कर विचलित कर रही थी. आंखें बंद करते ही रशीद का चेहरा सामने आ जाता. उन बांहों की गिरफ्त अभी तक उसे महसूस हो रही थी. ऐसा क्यों हो रहा था उस के साथ, वह समझ नहीं पा रही थी. पहले तो कभी उसे यह एहसास नहीं हुआ था. तब भी नहीं जब परेश रात के अंधेरे में बिस्तर पर उसे टटोलता. परेश ने उस के लिए सूप का और्डर दे दिया था और खाना भी कमरे में ही मंगवा लिया था.

‘‘ईशा घर से फोन आया था… मुझे कल वापस जाना होगा,’’ परेश ने खाना खाते हुए बताया.

‘‘अचानक क्यों? हम 2 दिन बाद जाने ही वाले हैं न?’’ ईशा ने पूछा.

‘‘तुम नहीं बस मैं जाऊंगा… कोई जरूरी काम आ गया है. मेरा जाना जरूरी है.

मगर तुम फिक्र मत करो. मैं ने सब ऐडवांस बुकिंग करवाई है. कल सुबह हम लोग श्रीनगर जा रहे हैं जहां से मैं एअरपोर्ट चला जाऊंगा.’’

‘‘तो फिर मैं वहां अकेली क्या करूंगी.

2 दिन बाद चलेंगे… क्या फर्क पड़ेगा?’’ ईशा को यह बात अटपटी लग रही थी कि दोनों साथ में छुट्टियां बिताने आए थे और अब इस तरह परेश अकेला वापस जा रहा है.

‘‘मैं अगर कल नहीं पहुंचा तो बहुत नुकसान हो जाएगा… यह डील हमारे बिजनैस के लिए बहुत जरूरी है… देखो, तुम समझने की कोशिश करो. वैसे भी तुम कुछ दिन और रुकना चाहती थी, घूमना चाहती थी और फिर तुम अकेली नहीं हो, विरेन और शर्मीला भाभी तुम्हारे साथ हैं. तब तक घूमोफिरो, यहां काफी कुछ है देखने के लिए,’’ परेश ने बात खत्म की.

परेश के स्वभाव की यही खासीयत थी कि वह दिल का बहुत उदार था. परेश को आराम से खाना खाते देख कर ईशा को उस के प्रति अपनी बेरुखी कहीं कचोटने लगी. बेशक वह चाहता तो ईशा को अपने साथ चलने के लिए मजबूर कर सकता था, लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. यह ईशा की ही जिद थी कि कुछ दिन और रुका जाए जिसे परेश ने मान भी लिया था. वजह क्या थी उस की समझ नहीं आ रहा था पर अब परेश का इस तरह बीच में ही उसे अकेला यहां छोड़ कर जाना भी अच्छा नहीं लग रहा था. एक शाल लपेट कर ईशा बालकनी में आ गई. ठंडी हवा ने बदन को सिहरा दिया. बाहर सड़क पर इक्कादुक्का लोग ही दिख रहे थे… होटल में रुके टूरिस्ट दिन भर की थकान के बाद आराम कर रहे थे. चारों तरफ नीरवता पसरी थी.

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ईशा का ध्यान गेट के पास टिमटिमाती रोशनी पर गया. यह उन की गाड़ी थी जो उन लोगों ने किराए पर ली थी. सुबह उन्हें जल्दी निकलना था तो रशीद ने गाड़ी वहीं खड़ी कर दी थी. उस अंधेरे में भी ईशा ने रशीद की आंखें पहचान लीं. वह ईशा को ही देख रहा था. उस ने हाथ से कुछ इशारा किया.

परेश टीवी पर खबरें देखने में व्यस्त था, ईशा कमरे से निकल कर बालकनी से गेट पर आई. बोली, ‘‘क्या बात है?’’ ईशा के लहजे में संकोच था. कितनी नादान थी वह… रशीद के एक इशारे पर दौड़ी चली आई. रशीद करीब आया और अपनी जींस की जेब से कुछ निकाल कर उस की ओर बढ़ा दिया. होटल के गेट से आती रोशनी में ईशा ने देखा. उस के कान का झुमका था. अनायास हाथ कान पर चला गया. एक झुमका गायब था. जब वह घोड़े से फिसली थी तब गिर गया होगा. मगर एक मामूली झुमके के लिए रशीद इतनी देर से क्यों उस का इंतजार कर रहा था. अब तक तो उसे चले जाना चाहिए था. ईशा ने रशीद की तरफ देखा जो न जाने कब से टकटकी लगाए उसे ही देख रहा था.

‘‘इसे तुम सुबह भी दे सकते थे, न चाहते हुए भी उस की आवाज में तलखी आ गई.’’

‘‘मुझे लगा आप इसे ढूंढ़ रही होंगी,’’ रशीद बोला और फिर पलट कर तेज कदमों से सड़क के उस पार चला गया. नींद फिर उस के साथ आंखमिचौली करने लगी थी. उस ने अपनी तरफ के साइड लैंप को जला कर डायरी निकाल ली और बड़ी देर तक कुछ लिखती रही. जब लिखना बंद किया तो खयालों ने आ घेरा…

उसे शादी के दिन से अब तक परेश के साथ बिताए लमहे याद आने लगे. परेश उस की खुशी का ध्यान रखता था, यह बात उस ने जान कर भी कभी नहीं मानी. उस के अहं ने एक पत्नी को कभी समर्पण नहीं करने दिया. परेश ने कभी उस पर अपनी इच्छा नहीं थोपी और ईशा इस बात से और भी परेशान हो जाती.

आखिर वह किस बात का बदला ले परेश से. अपने सपनों के बारे में उस ने परेश को तो कभी बताया ही नहीं था तो उसे कैसे मालूम होता कि ईशा क्यों खफा है जिंदगी से… आज उस के अंदर यह परिवर्तन अचानक कैसे आ गया… परेश के लिए उस के दिल में कोमल भावनाएं जाग गई थीं, जो अब तक निष्ठुर सो रही थीं. जो रिश्ता सूखे ठूंठ सा था, वहीं से एक कोपल फूट निकली थी आज. सुबह के न जाने किस पहर में ईशा को नींद आई और वह बेसुध सो रही थी. परेश उसे बारबार जगाने की कोशिश कर रहा था. हड़बड़ी में उठ कर ईशा जल्दी से तैयार हो कर सब के साथ गाड़ी में जा बैठी. गाड़ी तेज रफ्तार से भाग रही थी. दिलकश नजारे पीछे छूटते जा रहे थे. ईशा जितनी बार सामने की तरफ देखती, 2 नीली आंखें उसे ही देख रही होतीं. यह हर बार इत्तेफाक नहीं हो सकता था. सब खामोश थे, रेडियो पर एक रोमांटिक गाना बज रहा था, ‘प्यार कर लिया तो क्या…प्यार है खता नहीं…’ किशोर कुमार की नशीली आवाज में गाने के बोल और भी मुखर हो उठे. रशीद ने जानबूझ कर वौल्यूम बढ़ा दिया और एक बार फिर शीशे में दोनों की आंखें मिलीं, सब की नजरों से बेखबर.

ईशा का दिल जैसे चोर बन गया था. उसे खुद पर ही शर्म आने लगी. परेश को अभी निकलना था अहमदाबाद के लिए. अभी 2 दिन और ईशा को यहीं रहना था और इन 2 दिनों में वह इसी तरह रशीद की गाड़ी में घूमते रहेंगे. बारबार एक खयाल उस के दिल में चुभ रहा था कि कुछ गलत हो रहा है.

बीती शाम की बातें ईशा भूली नहीं थी और रात को जब वह रशीद से मिली थी तो उस की आंखों में अपने लिए जो कुछ भी महसूस किया था, उसे यकीन था इन 2 दिनों का साथ उस आग को और भड़का देगा. अचानक उसे परेश की जरूरत महसूस होने लगी. वह परेश की पत्नी है और किसी को भी हक नहीं है उस के बारे में इस तरह सोचने का.

उस ने अपना सिर झटक कर इन खयालों को भी झटक देना चाहा कि नहीं, इन सब बातों का उस के लिए कोई मतलब नहीं है. माना कि उस के और परेश के बीच प्यार नहीं है मगर किसी और के लिए भी वह अपने दिल को इस तरह नादान नहीं बनने देगी, हरगिज नहीं. उस ने खुद को ही यकीन दिलाया.

एअरपोर्ट पहुंच कर जब सब गाड़ी से उतरे तो ईशा ने परेश के साथ ही अपना बैग भी उतरवा लिया. ‘‘तुम क्यों अपना सामान निकाल रही हो?’’ परेश ने उसे चौंक कर देखा.

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‘‘मैं आप के साथ ही चल रही हूं. टिकट मिल जाएगा न?’’

उस के अचानक लिए इस फैसले से विरेन और शर्मीला भी चौंक गए कि कल तक तो वह बहुत उतावली हो रही थी यहां कुछ और दिन बिताने के लिए.

‘‘ईशा भाभी परेश भाई के बिना एक दिन भी नहीं रह सकती…आज पता चला इन के दिल का हाल…बहुत चाहने वाली पत्नी पाई है परेश भाई,’’ शर्मीला ने ईशा और परेश को छेड़ा. परेश भी एक सुखद आश्चर्य से भर उठा कि क्या सच में ईशा के दिल में उस के लिए प्यार छिपा था? धूप का चश्मा आंखों पर लगा ईशा ने आंखों के कोनों से देखा. रशीद अपनी नीली आंखों से निहारता हुआ गाड़ी के बाहर खड़ा उन का इंतजार कर रहा था.

फ्लाइट का वक्त हो चला था. दोनों गेट की ओर बढ़ने लगे तो शर्मीला और विरेन ने हाथ हिला कर उन्हें विदाई दी. ईशा ने मुड़ कर देखा, रशीद के चेहरे पर हैरानी और उदासी थी, मगर ईशा का दिल शांत था. फिर अचानक उसे कुछ याद आया. वह पलटी और रशीद के पास आई.

‘‘आप जा रही हैं, आप ने बताया नहीं?’’ आहत से स्वर में रशीद ने पूछा. अपना हैंडबैग खोल कर उस ने एक लिफाफा निकाल कर रशीद की तरफ बढ़ा दिया. रशीद ने उसे सवालिया नजरों से देखा. ‘‘तुम्हारी बहन की शादी में तो मैं आ नहीं पाऊंगी इसलिए मेरी तरफ से यह उस के लिए है.’’ रशीद ने इनकार किया तो ईशा ने बड़े अधिकार से उस का हाथ पकड़ कर लिफाफा हाथ में थमा दिया. आखिरी बार फिर 2 जोड़ी आंखें मिलीं और फिर एक प्यारी मुसकराहट के साथ ईशा ने विदा ली.

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Flesh Review: स्वरा भास्कर का शानदार अभिनय

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः इरोज मोशन पिक्चर्स और सिद्धार्थ आनंद

निर्देशकः दानिश असलम

कलाकारः स्वरा भास्कर,केविन दास,महिमा मकवाना,इशान अनुराधाा खन्ना,विद्या मालवड़े, अक्षय ओबेराय,बिजाॅय थांगजम, युधिष्ठिर व अन्य.

अवधिः लगभग छह घंटे, लगभग 45 मिनट के आठ एपिसोड

ओटीटी प्लेटफार्म: ईरोज नाउ

पूरे विश्व में देह व्यापार और मानव तस्करी का अरबों रूपए का व्यवसाय होता है. यह भारत ही नही पूरे विश्व का अति घिनौना कारोबार है,पर इस पर अंकुश नहीं लग पाया है. हाॅलीवुड व विदेशों में इस व्यवसाय को लेकर कई बेहतरीन फिल्में व वेब सीरीज बन चुकी हैं. मगर भारत में ‘मर्दानी’,‘लक्ष्मी’और ‘लव सोनिया’ जैसी फिल्में ही बनी हैं, इसमें से ‘लक्ष्मी’ और ‘लव यू सोनिया’ आम दर्शकों तक पहुॅची नहीं, इन्हे बाक्स आफिस पर सफलता नहीं मिली. जबकि ‘मर्दानी’ में रानी मुखर्जी जैसी स्टार थी. इसके अलावा यह बौलीवुड मसालों से भरपूर व्यावसायिक फिल्म थी.

अब निर्देशक दानिश असलम एक बेहतरीन वेब सीरीज ‘‘फ्लेश’’ लेकर आए हैं. जो कि बच्चों की तस्करी से लेकर मासूम व कम उम्र की लड़कियों के देह व्यापार के साथ ही ऐसे तस्करों के साथ पुलिस की मिली भगत सहित कई पहलुओं को रेखांकित करती है. स्वरा भास्कर और अक्षय ओबेराय अभिनीत यह वेब सीरीज बेहोश करने वाली बेचैनी के साथ हर इंसान को असहज,परेशान,डरावने,असुविधाजनक पर बेहद प्रासंगिक और रोमांच से भरपूर है.

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कहानीः

कहानी के केंद्र में दो महिलाएं है.एक है सोलह वर्ष की जोया गुप्ता (महिमा मकवाना) और दूसरी हैं ए सी पी राधा नौटियाल(स्वरा भास्कर).कहानी शुरू होती है अमरीका से मंुबई एक विवाह समारोह में शामिल होने के लिए आए अमीर एन आर आई शेखर गुप्ता (युधिष्ठर)का अपनी पत्नी रीवा गुप्ता(विद्या मालवडे)व अपनी बेटी जोया गुप्ता संग आगमन से. जहां जोया की सोशल मीडिया के माध्यम से एक युवक डीजे(इशान अनुराधा खन्ना)से दोस्ती हो जाती है.विवाह समारोह में पहुॅचने के बाद पता चलता है कि रीवा गुप्ता ने शेखर को तलाक देने का मन बना लिया है.रीवा व शेखर का दोस्त सिड भी उनसे मिलने आता है.उधर जोया से मिलने डी जे आता है और वह उसे अपने साथ कार में ले जाता है.पर अंततः वह उसे देह व्यापार के रैकेट के पास पहुॅचा देता है.जो कि अन्य लड़कियों के साथ एक ट्क में जोया गुप्ता को भी भरकर कलकत्ता के लिए रवाना कर देता है.जोया गुप्ता तो उपहार पैकेज है.शेखर गुप्ता व रीवा अपनी बेटी जोया के गुम होने की रपट पुलिस में लिखाते हैं.पर उन्हे अहसास होता है कि पुलिस कुछ खास नही कर पा रही है.इसी बीच मानव तस्करी विरोधी यूनिट की एसीपी राधा(स्वरा भास्कर) को एक देह व्यापार गैंग का भ्ंाडाफोड़ करने के लिए पुरस्कृत करने की बजाय ताज नामक इंसान की उंची पहुॅच के चलते पुलिस की नौकरी से सस्पेंड कर दिया जाता है.इस बीच हालात ऐसे बनते है कि ए सी पी राधा नौटियाल अपने तरीके से जोया मामले की जांच करना शुरू करती है.जैसे जैसे राधा नौटियाल की जांच आगे बढ़ती है,वैसे वैसे अनैतिकता, क्रूरता,हिंसा और भ्रष्टाचार के कई चैंकाने और स्तब्ध करने वाले जाल सामने आते हैं.इतना ही नही कई गहरे दफन रहस्यों का खुलासा भी होता है.बीच में राधा नौटियाल को पुनः पुलिस की नौकरी भी मिल जाती है.

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लेखन:

देह व्यापार जैसे घृणास्पद व मानवीय पहलुओं के साथ बेहतरीन रोमांचक कहानी व पटकथा लेखन के लिए इसकी लेखक पूजा लाधा सुरती बधाई की पात्र हैं.उन्होने देह व्यापार से जुड़े हर पहलू,मानव तस्करी के रैकेट,नौकरषाही व पुलिस की साॅंठगाॅंठ आदि का बहुत बारीकी से चित्रण किया है.यह एक क्लासिंक वेब सीरीज बन सकती थी,मगर पांचवे व सातवें एपीसोड में सत्यभामा का ट्ैक बेवजह रखा गया है.इसका कहानी में कोई योगदान नही है.बल्कि सत्यभामा वाला कहानी का ट्ैक दर्शकों को दिग्भ्रमित करता है.इसके अलावा डीजे के किरदार की भी खास अहमियत कहानी में नही है.गृह मंत्रालय से जुड़े ब्रम्हांनद बारोट की कथा भी बेवजह जोड़ी गयी है.विभाग जोया गुप्ता व एसीपी नौटियाल की कहानी के समानांतर राधा नौटियाल की अतीत यानी कि बचपन की कहानी भी सतत चलती रहती है.पर यह पटकथा लेखन व निर्देशन की खूबी के चलते दर्शक आठवें एपीसोड से पहले दोनों कहानियों के जुड़ाव का अहसास नहीं कर पाता.

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निर्देशनः

दानिश असलम ने अपने निर्देशकीय कौशल का शानदार परिचय दिया है.उन्होेने मुंबई व कलकत्ता शहर को भी जीवतंता प्रदान की है.पैंतालिस पैंतालिस मिनट के लंबे लंबे आठ एपीसोड देखना एक दर्शक के लिए सहज नही हो सकता,मगर निर्देशक की खूबी के चलते हर एपीसोड न सिर्फ दर्शकों को बांधकर रखता है,बल्कि अगला एपीसोड देखने के लिए रूचि भी पैदा करता है.

कुछ तकनीकी गलतियें के बावजूद पूरी वेब सीरीज बहुत ही यथार्थ के साथ बनायी गयी है.परिणामतः इसमें सेक्स,अप्राकृतिक मैथुन,हिंसा,गोली बारी,गंदी गंदी गालियों की भरमार भी है. पर यह बेहतरीन रचनात्मक गुणवत्ता और तकनीकी से बनी सीरीज है.

इसके एडीटर प्रतीक हरुगोली भी बधाई के पात्र हैं.

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अभिनयः

स्वरा भास्कर एक बेहतरीन अदाकारा हैं.इसमें कोई दो राय नहीं है.मगर एक पुलिस अफसर के सख्त किरदार के साथ जिस तरह से उन्होने मानवीय भावनाआंे को भी अपने अभिनय से उकेरा है,और जिस तरह से उन्होने एसीपी राधा नौटियाल के किरदार को जीवंतता प्रदान की है,वह उन्हें उत्कृष्ट अदाकारा के रूप में उभारती है.अक्षय ओबेराय ने भी कमाल का अभिनय किया है.डीजे के किरदार में इशान खन्ना का किरदार छोटा व अप्रभावशाली है.जोया गुप्ता के किरदार में महिमा मकवाना,रीवा के किरदार मे विद्या मालवडे और शेखर के किरदार में  युधिष्ठिर की भी तारीफ करनी पड़ेगी.

Web Series Review: जानें कैसी है बॉबी देओल की फिल्म ‘क्लास आफ 83’

रेटिंगः तीन स्टार
निर्माताः रेड चिल्ली इंटरटेनमेंट
निर्देशकः अतुल सभरवाल
कलाकारः बॉबी देओल, अनूप सोनी,  हितेश भोजराज, भूपेंद्र जदावत,  समीर परांजपे.
अवधिःएक घंटा 38 मिनट
ओटीटी प्लेटफार्मः नेटफ्लिक्स

अपराधियों और गैंगस्टरों पर राजनीतिज्ञों का वरदहस्त होना कोई नई बात नही है. अस्सी के दशक में मुंबई में भी बहुत कुछ ऐसा ही हो रहा था. उसी काल की सत्यघटनाओं के आधार पर हुसैन जैदी ने एक किताब ‘‘द क्लास आफ 83’’लिखी थी अस्सी के दषक मे गैंगस्टरों व अपराधियों की पत्रकार के रूप में रिपोर्टिंग करते आए हुसेन जैदी ने कई किताबें लिखी हैं. उनकी दूसरी किताबों पर भी बौलीवुड में फिल्में बन चुकी हैं. अब हुसैन जैदी लिखित. ‘‘द क्लास आफ 83’’ पर ‘‘रेडचिल्ली इंटरटेनमेंट’’एक अपराध कथा वाली फिल्म‘‘क्लास आफ 83’’लेकर आया है. अतुल सभरवाल निर्देशित यह फिल्म 21 अगस्त से ‘‘नेटफ्लिक्स’’पर प्रसारित हो रही है. इस कहानी के केंद्र में एक ईमानदार व काबिल पुलिस अफसर विजय सिंह हैं, जिन्हे अपराध व राजनीतिक गंठजोड़ के चलते अस्सी के दशक में सजा के तौर पर पुलिस अकादमी में डीन बनाकर भेज दिया गया था.

कहानीः

कहानी शुरू होती है अस्सी के दशक में पुलिस अकादमी से, जहां पर पुलिस अफसर विजय सिंह (बॉबी देओल) को नौकरशाही ने सजा के तौर पर पुलिस अकादमी का डीन बनाकर भेजा है. विजय सिंह की गिनती मंुबई पुलिस के सर्वाधिक इमानदार  व काबिल अफसर के रूप में हुआ करती थी. हर अपराधी, खासकर कालसेकर उससे थर थर कांपता था. पुलिस अकादमी के छात्र भी उसके नाम से ही भय खाते हैं.
वास्तव में विजय सिंह को उसके खबरी सूचना देते हैं कि बहुत बड़ा गैंगस्टर कालसेकर नासिक में मौजूद है. उस वक्त विजय सिंह की पत्नी सुधा अस्पताल में थी और उसका आपरेशन होना था. मगर विजय सिंह अपनी पत्नी व बेटे रोहण को जरुरी काम बताकर नासिक जाते हैं. नासिक जाते समय विजय सिंह फोन करके मुख्यमंत्री मनोहर (अनूप सोनी) को बता देते हैं कि वह कालसेकर को खत्म करने के लिए नासिक जा रहे हैं. पर कालसेकर को विजय सिंह के पहुंचनेे से पहले ही खबर मिल जाने से वह भागने में कामयाब हो गया था. उसके कुछ गुर्गों के साथ छह पुलिस कर्मी मारे जाते हैं. मामला गरमा जाता है और विजय सिंह को सजा के तौर पर पुलिस अकादमी का डीन बनाकर भेज दिया जाता है. विजय सिंह को अहसास होता है कि कालसेकर को खबर देने वाला कोई और नही बल्कि मख्यमंत्री मनोहर पाटकर ही हैं, क्योंकि इस बात की जानकारी उनके अलावा किसी को नहीं थी.

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इसलिए विजय सिंह पुलिस अकादमी के तीन बदमाश कैडेट प्रमोद षुक्ला(भूपेंद्र जदावत), विष्णु वर्दे(  हितेष भोजराज ), असलम(समीर परांजपे ) को इस ढंग से तैयार करता है कि उनकेे पास अपराधियों और गैंगस्टर के साथ मुठभेड़ों की बिना किसी प्रतिबंध के स्वतंत्रता होगी. पर उसी दौरान मंुबई में कालसेकर को चुनौती देने वाला गैंगस्टर नाइक गैंग पनप रहा था. अब दोनों गैंग के लोग एक दूसरे के गैंग के गुर्गो का सफाया पुलिस को सूचना देकर करवाने लगे. तो वही मिल की जमीने बिकने लगी. इससे मुख्यमंत्री मनोहर पाटकर की चिंता बढ़ गयी. तब मनोहर पाटकर ने विजय सिंह से मदद मांगते हुए उनका तबादला पुलिस अकादमी से मुंबई पुलिस में कर दिया. उसके बाद कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.

लेखन व निर्देशनः

एक बेहतरीन पटकथा पर बनी इस फिल्म में खूंखार अपराधियों के खत्मे के लिए पुलिस की बर्बरता को सही ठहराने की कोशिश की गयी है.  तो वहीं फिल्मकार ने काॅटन मिलों की जमीन पर अपराधियों की सांठगांठ से आॅंखे गड़ाए बैठे राजनीतिज्ञो व मुंबई शहर जिस तरह के मंथन के दौर से गुजर रहा था, उसका सजीव चित्रण किया है. इतना ही नही इसमें स्वर्ण,  नकली मुद्रा,  ड्रग्स,  हथियार और संपत्ति की तस्करी के माध्यम से अवैध धन की जो अंतहीन धारा बह रही थी, उस पर भी रोशनी डाला गया है. फिल्मकार ने फिल्म में अस्सी के दषक को न्याय संगत तरीके से उकेरा गया है. जिन्होने कभी अस्सी के दशक के मंुबई को अपनी आंखों से देखा है, उनके सामने इस फिल्म को देखते हुए अस्सी के दशक की मंुबई हूबहू जीवंत होकर खड़ी हो जाती है. इस सबसे बड़ी चुनौती पर निर्देशक अतुल सभरवाल खरे उतरे हैं. निर्देशक ने अपने कौशल का बेहतरीन परिचय दिया है. फिल्म काफी कसी हुई है.  अच्छाई व सच्चे इंसानों की रक्षा करते हए बुराई के खात्मे पर एक बेहतरीन रोचक व मनोरंजक फिल्म है.
फिल्म के कुछ संवाद बहुत अच्छे बन पडे़ हंै. मसलन-जिंदगी किसी भी विजय सिंह से बेरहम हो सकती है’ अथवा ‘जहां बारूद काम न करे, वहां दीमक की तरह काम करना चाहिए. ’

अभिनयः

इस फिल्म में पहली बार बॉबी देओल अनूठे रूप में नजर आ रहे हैं. उन्होने काफी सधा हुआ और उत्कृष्ट अभिनय किया है. विजय सिंह के किरदार में बाॅबी देओल के अभिनय को देखकर दर्शक भी सोच में पड़ जाता है कि उनकी अभिनय प्रतिभा का अब तक फिल्मकारों ने सही उपयोग क्यांे नही किया. मुख्यमंत्री मनोहर पाटकर के किरदार में अनूप सोनी ने भी कमाल का अभिनय किया है. विष्वजीत प्रधान, भूपेंद्र जदावत, हितेष भोजराज, जॉय सेन गुप्ता, निनाद महाजनी, पृथ्विक प्रताप,  समीर परांजपे ने भी अच्छा अभिनय किया है.

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‘पापा’ की खातिर फिर ‘राधा-कृष्ण’ बनेंगे ‘कार्तिक-नायरा’, वायरल हुई Photos

टीवी के पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में नायरा और कार्तिक की जोड़ी फैंस को काफी पसंद करते हैं. इसीलिए सोशलमीडिया पर फैंस दोनों को साथ देखने के लिए वीडियो और फौटोज शेयर करते रहते हैं. शो में इन दिनों नायरा और कार्तिक का इमोशनल ड्रामा देखने को मिल रहा है, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. लेकिन जल्द ही शो में जन्माष्टमी मनाई जाएगी, जिसमें दोनों एक बार फिर राधाकृष्ण बनते  हुए नजर आएंगे.आइए आपको बताते हैं क्या  है पूरा मामला.

पिता की हालत के लिए नायरा को जिम्मेदार मान रहा है कार्तिक

कार्तिक के पिता, मनीष एक दुर्घटना का शिकार हो गये हैं. कार्तिक को लगता है कि नायरा, मनीष की दुर्घटना के लिए जिम्मेदार है. इसलिए वह उससे नाराज है. हालांकि कार्तिक और नायरा दोनों ही मनीष की देखभाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. इसी बीच  जन्माष्टमी के मौके पर सीरियल में एक नया मोड़ आनेवाला है.

 

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मनीष करेगा ये मांग

आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि जन्माष्टमी को मनीष याद करेगा, जिसमें कार्तिक और नायरा ने कृष्ण और राधा के अवतार में नजर आए थे. वहीं इस बात को याद करते हुए फिर एक बार मनीष, कार्तिक और नायरा को उस रूप में देखने की मांग करेगा. वहीं दादी भी कार्तिक और नायरा से मनीष की डिमांड को पूरी करने की रिक्‍वेस्‍ट करेगी. क्‍योंकि इससे शायद मनीष पुरानी बातों को याद कर पाए.

बता दें, बीते दिनों मनीष की दुर्घटना में याद्दाश्त जा चुकी है और वह बच्चों जैसा व्यवहार कर रहा है. वहीं कार्तिक इन सबका जिम्मेदार नायरा को मान रहा है, जिसके कारण उनके रिश्ते में दरार आ गई है. इस बीच, रक्षाबंधन पर कार्तिक, नक्ष के सामने नायरा को खरी-खोटी सुनाता है जिसे स्वाभाविक रूप से नक्ष सहन नहीं कर पाता.

दिलीप कुमार के छोटे भाई का कोरोना से हुआ निधन, पढ़ें खबर

पूरे देश में जहां कोरोनावायरस का कहर बढ़ता जा रहा है. वहीं मुंबई में सेलेब्स की दुनिया में भी नए- नए मामले देखने को मिल रहे हैं. हाल ही में बौलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन कोरोना से जंग जीतकर घर लौट चुके हैं. लेकिन अब खबर है कि वेटरेन एक्टर दिलीप कुमार की फैमिली में भी कोरोना ने दस्तक दे दी है. दरअसल दिलीप कुमार के भाई असलम खान का कोरोना के कारण निधन हो गया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

कोरोना से हुआ निधन

दिलीप कुमार के भाई असलम खान कोरोना वायरस के अलावा हाई ब्लडप्रेशर और डायबिटीज की भी बीमारी से पीड़ित थे, जिसके बाद उन्होंने शुक्रवार की सुबह यानी 21 अगस्त को अंतिम सांस ली. हालांकि बीमारियों के चलते दिलीप कुमार के भाई बीते कुछ समय से अपना इलाज करवा रहे थे. वहीं उनकी कोरोना वायरस रिपोर्ट पॉजिटिव निकली थी, जिसके चलते हालत खराब होने पर दिलीप कुमार के भाई को अस्पाल में भर्ती करवाया गया था.

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दूसरे भाई भी हुए कोरोना से पीड़ित

दिलीप कुमार के दूसरे भाई अहसान खान भी कोरोना वायरस से जंग लड़ रहे हैं. अहसान खान की कोरोना रिपोर्ट भी पॉजिटिव पाई गई थी, जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए लीलावती हॉस्पिटल में एडमित करवाया जा गया है. बताया जा रहा है कि अहसान खान को तबियत बिगड़ने के बाद वेंटीलेटर पर रखा गया है. वहीं कुछ समय पहले ही लीलावती के डॉक्टर जलील पारकर ने बताया था कि, ज्यादा उम्र होने की वजह से दिलीप कुमार के दोनों भाईयों की हालत बिगड़ी है.

बता दें, कोरोनावायरस का कहर अमिताभ बच्चन, रेखा, बोनी कपूर, अनुपम खेर और किरण किमार जैसे सितारों पर भी पड़ चुका है. वहीं कई सितारे इस गंभीर बिमारी की चपेट में भी आ चुके हैं. हालांकि सभी ठीक हो चुके हैं.

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मेहर और सरब की जिंदगी में आया एक नया तूफान, जिसका नाम है विक्रम दीवान

कलर्स के सीरियल ‘छोटी सरदारनी’ में मेहर और सरब की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए. लेकिन काफी समय बाद इनकी जिंदगी में नया पड़ाव शुरू हुआ है, जहां परम और नन्हे से करन के साथ मिलकर दोनों अपनी खुशहाल जिंदगी को जी रहे हैं. काफी दिनों के बाद गिल परिवार में इतनी सारी खुश़ियां आई हैं. पर नहीं, फिर से लग गई है इनको किसी की नज़र. क्योंकि इनकी जिंदगी में आया है एक नया तूफान, जिसका नाम है विक्रम दीवान. आइए आपको बताते हैं क्या होगी शो में आगे…

मेहर के दिल में सरब के लिए बढ़ता प्यार

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अब तक आपने देखा कि मेहर की डिलीवरी के बाद से सरब उसका और करन का पूरी तरह से ख्याल रख रहा है. वहीं कोशिश कर रहा है कि परम के प्रति उसके प्यार में भी कोई कमी ना रहे. हालांकि हरलीन, परम के दिल में मेहर और उसके बच्चे के लिए नफरत पैदा कर रही है. लेकिन मेहर और सरब, परम की हर खुशी का ध्यान रख रहे हैं.

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मेहर की जिंदगी में हो चुकी है विक्रम दीवान की एंट्री

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परम और करन के साथ मेहर और सरब की खुशहाल जिंदगी में एक नए तूफान विक्रम दीवान की एंट्री हो चुकी है. विक्रम एक ईमानदार CBI अफ़सर है, जो कि एक घोटाले के सिलसिले में सरब से लगातार पूछताछ कर रहा है और इसी के चलते उससे कई बार मिलने भी आया है. पर अभी तक उसकी मुलाकात मेहर से होते-होते नही हो पाई है. लेकिन आज रात यानी 21 अगस्त को दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने आने वाले हैं.

 

किस ओर मुड़ेगी मेहर की जिंदगी जब विक्रम दीवान से होगा उसका सामना? कौनसा राज़ खुलेगा, कौन सा भूचाल लाएगी  विक्रम दीवान और मेहर की मुलाक़ात?

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इसी के साथ महासप्ताह यानी 24 से 29 अगस्त के बीच आप देखेंगे कि मेहर और सरब के कमरे में आग लग जाएगी, जिसमें करन फंस जाएगा. क्या विक्रम और सरब, करन को बचाने में कामयाब हो पाएंगे? जानने के लिए देखिए ‘छोटी सरदारनी’, आज रात, सोमवार से शनिवार, रात 7.30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

कैसे बचाएं गृहस्थी को

लेखिका– सपना मांगलिक

कोई रिश्ता परफैक्ट नहीं होता. दोस्तों की बात अलग है, क्योंकि वे एकसाथ, एक घर में, एक कमरे में, एक माहौल में पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वाह नहीं करते. मगर पतिपत्नी ऐसा करते हैं और यह मानवीय स्वभाव है कि हम एकजैसी एकरस चीजों और लोगों से जल्दी ऊब जाते हैं. पर परिवार पतिपत्नी की परिपूर्णता के कारण ही बनता है. बच्चों का विकास परिवार में ही संभव है. पतिपत्नी को चाहिए कि दोनों एकदूसरे को समझें, एकदूसरे को परिपूर्ण बनाएं भले ही वे शारीरिक व मानसिक नजरिए से कभी एकदूसरे के समान नहीं हो सकते. स्त्रीपुरुष एकदूसरे को समझ सकते हैं और वे एकदूसरे के पूरक हो सकते हैं, परंतु कभी एकदूसरे जैसे नहीं हो सकते और यह उस अंतर के कारण है, जो उन के प्राकृतिक वजूद में है.

वे दोनों स्वतंत्र व स्वाधीन इनसान हैं और अब वे बड़े हो गए हैं और अब वे पति या पत्नी के रूप में अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं. परिवार बनाने के बाद लड़के और लड़की को शारीरिक व मानसिक शांति मिलती है जिस की छाया में वे आत्मिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए अधिक प्रयास कर सकते हैं. इस के लिए परिवार का सफल होना आवश्यक है. जब इनसान संयुक्त रूप से जीवन बिताना आरंभ कर देता है, तो वह अधिक जिम्मेदारी का आभास करता है. वह अपने जीवन को अर्थ व लक्ष्यपूर्ण समझता है. अनैतिक कार्यों से दूर रहने के लिए परिवार आवश्यक है. समाज की सुरक्षा के लिए परिवार आवश्यक है.

पारिवारिक विघटन के कारण

पति और पत्नी की दिनचर्या सालोंसाल एकजैसी रहती है. अत: अहम, झूठा दिखावा, नएपन की तलाश, आर्थिक संपन्नता की ललक जबजब रिश्तों में आने लगती है तो दिलों में दूरियां और ऊब आना स्वाभाविक है. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ज्यादातर परिवारों में जो झगड़े होते हैं, पतिपत्नी के बीच जो तनाव रहता है, बातबात पर दोनों जब एकदूसरे से लड़ते हैं उस का कारण एकदूसरे की शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक आवश्यकताओं का पूरा न होना है. दूसरे शब्दों में कहें तो भावनात्मक कमी इन समस्याओं के मूल में है. इस से डरने और परेशान होने की कतई जरूरत नहीं है. जीवन की इस सचाई का सामना करते हुए जीवनशैली, विचार समयसमय पर परिवर्तित कर घर के माहौल को नया एवं हलकाफुलका खुशनुमा बनाया जा सकता है.

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कैसे खिलाएं रखें अपने वैवाहिक जीवन का पुष्प

बिना किसी शर्त के प्यार करना: कहते हैं प्यार में कोई शर्त नहीं होती. इस का मतलब है, जो जैसा है, उसे उसी रूप में प्यार करें. लेकिन यही बात समय बीतने के साथ उसी रिश्ते में दरार का कारण बनती है. प्यार, देखभाल, विश्वास और सम्मान रिश्ते की जरूरत है. कुछ रिश्तों में समय भी देना पड़ता है. किसी के बारे में कोई राय बनाने से पहले खुद को भी तोल लें. कई बार आप अपनी जरूरत के हिसाब से भी रिश्ते बनाती हैं. नाजुक रिश्ते तभी मजबूत बनते हैं जब आप दिल से उन्हें अपनाएंगी और उन्हें खुद को अपनाने देंगी. खुल कर विचारों का आदानप्रदान न करना: किसी भी रिश्ते में विचारों का आदानप्रदान व दूसरे के विचारों को सम्मान देना बेहद जरूरी होता है. जिन रिश्तों में संवाद की कमी होती है, उन में अकसर मतभेद मनभेद में बदल जाते हैं. परिणामस्वरूप रिश्ता धीरेधीरे टूटने के कगार पर पहुंच जाता है.

दूसरे को सम्मान न देना: कुछ महिलाओं और पुरुषों की यह सोच होती है कि यदि कोई हम से प्यार करता है या हमारा जीवनसाथी है तो उसे हमारी हर बात माननी ही होगी. ऐसे लोग सारे निर्णय स्वयं लेना चाहते हैं. वे अपने साथी की बात या विचार को सम्मान नहीं देते हैं. इस स्थिति को भले ही कुछ समय के लिए नजरअंदाज कर दिया जाए, पर ऐसे रिश्ते ताउम्र नहीं टिक पाते. कुछ समय बाद बिखर जाते हैं.

दूसरे पर यकीन करें: मां के घर में भी आप ने अपने बहनभाई, दादादादी और दूसरे रिश्तेदारों के साथ तालमेल बनाया ही होगा. बहनों की भी आपस में लड़ाई होती है और मनमुटाव भी. ऐसा ही मनमुटाव अगर सास या ननद से हो जाए, तो आप दिल पर क्यों ले लेती हैं? आप अपने किसी भी रिश्ते की तुलना एकदूसरे से न करें. सभी रिश्तों पर यकीन करें. आप का यकीन आप को धोखा नहीं देगा. रिश्तों की मजबूती के लिए वक्त चाहिए. आप अगर अपनेआप को नहीं खोलेंगी, तो रिश्ते कभी आप के दिल को नहीं छू पाएंगे.

व्यवहार से जुड़ी परेशानी: कोई भी इनसान ऐसे व्यक्ति के साथ वक्त बिताना पसंद नहीं करता, जो जरूरत से ज्यादा गुस्से वाला हो या अत्यधिक शांत रहने वाला. ऐसे रिश्ते में विचारों, खुशियों व दुखों का आदानप्रदान नहीं हो पाता. परिणामस्वरूप साथी कुंठित महसूस करने लगता है. यह कुंठा कुछ समय बाद असहनीय हो जाती है और रिश्ता टूटने का कारण बन जाती है. खुशनुमा रिश्ते के लिए अपने साथी के साथ अपनी भावनाएं, अपने अनुभव, अपनी सोच जरूर साझा करें.

एकतरफा प्यार करना: जब एक रिश्ते में सोचविचार, आकांक्षा, मूल्यों तथा रहनसहन में कोई तालमेल नहीं होता तो देरसबेर परेशानी आनी तय है. आप को कुछ समय बाद पता चल जाएगा कि आप इस रिश्ते को जितना प्यार दे रही हैं, क्या आप को उतना मिल रहा है? अपनी बात स्पष्ट रूप से रखना भी सीखें. अपनी किसी सहेली या घर वालों की राय लेने से पहले यह भी देख लें कि कहीं आप रिश्ते बनाने या तोड़ने में जल्दबाजी तो नहीं कर रहीं?

रिश्ते में उदासीनता आना: अकसर शादी के कुछ सालों बाद हर रिश्ते में उदासीनता आने लगती है. पैसा, घर और गाड़ी पाने की दौड़ में आप रिश्तों की गरमाहट को भूलने लगती हैं. रिश्तों में एक किस्म की प्रतिद्वंद्विता घर करने लगती है. यह वक्त है रिश्तों की ओवरहौलिंग का. उम्र के इस दौर में आप को भी अपनों का साथ चाहिए. देर नहीं हुई है. आप एक मैसेज कीजिए, फोन घुमाइए और इन सब को इकट्ठा कीजिए. पहले की तरह मनपसंद खाना और गप्पबाजी के साथ अपनेआप को तरोताजा कीजिए. ये वे लोग हैं, जो आप के साथ चलते आए हैं और हमेशा चलेंगे.

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इनसानियत को बाकी रखने के लिए भी परिवार आवश्यक है. अगर संसार का कोई भी इनसान पारिवारिक जीवन का निर्वाह न करे और उस के पास कोई संतान भी न हो तो कुछ वर्षों के बाद पूरी जमीन से इनसान यानी मानव समाज ही समाप्त हो जाएगा. ज्यादातर इनसान यह चाहते हैं कि उन का वंश चले, उन की संतानें हों. अलबत्ता इस बारे में महिलाएं पुरुषों से अधिक इस बात को पसंद करती हैं कि उन का कोई बच्चा हो और उन के अंदर मां बनने की जो भावना है वही उस का मूल कारण है. मातापिता और बच्चों के बीच जो प्रेमपूर्ण संबंध होते हैं वे इनसान के मन को शांति प्रदान करते हैं और यह शांति इनसान को तभी प्राप्त होती है जब वह पारिवारिक जीवन का निर्वाह करता है.

 

थोड़े दिनों से मेरी त्वचा बहुत सांवली हो गई है?

सवाल-

मैं 25 साल की हूं. अभी थोड़े दिनों से मेरी त्वचा बहुत सांवली हो गई है. मैं ने बहुत से फेयरनैस क्रीम का इस्तेमाल किया, पर कुछ फर्क नहीं पड़ता. मुझे लगता है कि मैं ने फेयरनैस क्रीम लगाने के बाद मेरी त्वचा और सांवली लगने लगी है. कृपया उपाय बताएं?

जवाब-

हो सकता है कि आप ने जिस फेयरनैस क्रीम का इस्तेमाल किया है, वह आप को सूट न कर रही हो. इसी कारण ऐसा हो रहा हो. आप उस क्रीम का इस्तेमाल छोड़ दें और सुबहशाम फेस पर एलोवेरा युक्त क्रीम का इस्तेमाल करें. इस के साथ ही एक बार अपने ब्लड टेस्ट करवाएं और डाक्टर से कंसल्ट करें. कई बार शरीर में किसी कमी के कारण भी चेहरे का रंग डल पड़ने लग जाता है. घर पर रोजाना इस पैक का इस्तेमाल करें. आप रात को केसर की 4 तुर्रियों को 2 चम्मच दूध में भिगो दें और सुबह उस में कैलेमाइन पाउडर और चुटकीभर हलदी डाल कर अपने चेहरे पर मास्क की तरह लगाएं और सूखने पर पानी से धो दें.

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आज कल गोरा और सुंदर दिखने की चाह पुरुषों या महिलाएं सभी को है. फेस पर सन टैन और चेहरे पर पड़े डार्क स्‍पॉट और पिगमेंटेशन की वजह से चेहरा काला दिखाई देने लगता है. इस चाहत में हम महंगे-महंगे स्‍किन केयर प्रोडक्‍ट आजमाते हैं. जो संवेदनशील स्किन के लिए हानिकारक होते हैं. इनके इस्‍तेमाल से कुछ दिन तो चेहरे पर असर दिखाई देता है मगर बाद में चेहरे की रंगत वैसी की वैसी ही हो जाती है. क्यों ना कुछ घरेलू उपाय करें जाएं और 10 मिनट में जादू जैसा असर पाए.

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