शह और मात: भाग-4

अपने इनकार का खामियाजा पल्लवी को कई बार भुगतना पड़ा. संजीव बातबात में राई का पहाड़ बना कर उस पर हाथ उठाने लगा. उसे शक था कि पल्लवी उसे धोखा दे रही है. जब शरद ने उस के जिस्म पर पड़े निशानों को देखा तो वह अपने आपे से बाहर हो गया.

“आज मैं संजीव को‌ छोड़ूंगा नहीं. उसे ऐसा सबक सिखाऊंगा कि वह जिंदगी भर याद रखेगा,” शरद ने गुस्से मैं दांत पीसते हुए कहा और बाहर जाने लगा.

“नहीं शरद, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे,” पल्लवी ने उसे रोका.

“इतना कुछ होने के बाद भी उस आदमी की तरफदारी कर रही हो?” शरद ने आश्चर्य से पूछा.

“मैं किसी की तरफदारी नहीं कर रही हूं शरद. मैं बस इतना चाहती हूं कि तुम संजीव से दूर रहो. तुम नहीं जानते हो कि वह कितना घटिया आदमी है. कैसेकैसे लोगों के साथ उस का उठनाबैठना है,” पल्लवी ने उसे समझाया.

“मैं किसी से डरता नहीं हूं पल्लवी,” शरद जोश में आ गया था.

“लेकिन मैं तो डरती हूं. अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगी,” पल्लवी ने सिर झुका कर कहा तो शरद ने उसे सीने से लगा लिया, “ओह पल्लवी, मैं तुम्हें इस हाल में नहीं देख सकता. तुम संजीव को छोड़ क्यों नहीं देतीं ? मैं ने पहले भी कहा था पल्लवी, मैं हमेशा तुम्हारा खयाल रखूंगा, बस एक बार मेरा हाथ थाम लो.”

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“संजीव मेरी जान ले लेगा, मगर मुझे तलाक नहीं देगा. मैं ने देखा है कि वह किस हद तक‌ जा सकता है. शरद मैं चाह कर भी उसे नहीं छोड़ सकती हूं,” पल्लवी की आंखों से आंसू टपक पड़े.

“क्या तुम मुझ से प्यार करती हो?”

“हां शरद. मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं.”

“तो फिर मेरे साथ भाग चलो.”

“शरद, यह तुम क्या कह रहे हो? यह मजाक का वक्त नहीं है,” पल्लवी हैरान हो गई.

“मेरी आंखों में देखो पल्लवी, क्या तुम्हें लगता है कि मैं मजाक कर रहा हूं? मुझ पर भरोसा करो, बस एक बार हां कह दो. फिर हम दोनों यहां से बहुत दूर चले जाएंगे, जहां तुम पर उस संजीव का साया तक नहीं पड़ेगा,” शरद ने पल्लवी की आंखों में झांकते हुए कहा.

शरद की आंखों में अपने लिए प्यार की गहराई देख कर पल्लवी सिहर उठी. उस से कुछ कहते नहीं बना. उस ने शरद से सोचने के लिए कुछ वक्त मांगा और घर चली आई.

कुछ दिन बीत जाने के बाद भी पल्लवी ने शरद को जवाब नहीं दिया था. संजीव ने उसे जलील करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी. एक रात जब उस के कोप का भाजन बनने के बाद पल्लवी बिस्तर पर पड़ी कराह रही थी, उस वक्त उस के कानों में शरद की कही बातें गूंज रही थीं. सालों पहले उस ने अपने मातापिता की बात न मान कर जो गलती की थी, उस की कीमत वह आज तक चुका रही थी. संजीव पर भरोसा कर के उस ने अपनी जिंदगी की सब से बड़ी गलती की थी इसलिए आज वह शरद पर भरोसा करने से भी डर रही थी. हालांकि उस ने शरद की आंखों में अपने लिए जितना प्यार देखा था, उस का आधा भी उसे संजीव की आंखों में कभी नजर नहीं आया था. मगर अब वह कोई भी कदम उठाने से पहले पूरी तरह निश्चिंत हो जाना चाहती थी.

वह जानती थी कि इस तरह संजीव को धोखा दे कर शरद के साथ भागना गलत होगा. लेकिन अगर वह संजीव से अलग होने या तलाक लेने की कोशिश करेगी तो शरद के सामने उन की सारी असलियत आ जाएगी. शरद को पता चल जाएगा कि पल्लवी उसे किस तरह मूर्ख बना कर उस से पैसा ऐंठती रही और वह उस से नफरत करने लगेगा. नहीं, वह किसी भी कीमत पर शरद को खोना नहीं चाहती थी. आज तक उस ने गलत काम के लिए झूठ और धोखे का सहारा लिया, तो अब एक आखिरी बार अपने प्यार को पाने के लिए ही सही.

पल्लवी के दिल से डर खत्म हो गया था. वह शरद को पाने की खातिर किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थी. वह कई सालों से जिस पिंजरे में कैद थी, अब वह उसे तोड़ कर उड़ जाना चाहती थी.

पल्लवी ने धीरे से मोबाइल उठा कर शरद का नंबर डायल किया और उस के फोन उठाने पर बस इतना कहा, “मैं तैयार हूं.”

अगले दिन पल्लवी शरद की बताई जगह पर उस से मिलने गई. शरद ने उसे पूरी योजना बताई. पल्लवी ने अपनी सहमति दे दी और घर वापस आकर सामान्य व्यवहार करने लगी जिस से संजीव को उस के ऊपर जरा भी शक न हो.

3 दिन बाद शरद के कहे अनुसार पल्लवी ने अपने कपड़े, कुछ जरूरी कागजात और कुछ रुपए एक बैग में रख लिए. उस ने बैग को पलंग के नीचे छिपा कर रख दिया. उस रात भी संजीव रोज की तरह नशे में धुत्त हो कर घर आया. पल्लवी ने कुछ मीठे बोल बोल कर उसे थोड़ी और शराब पिला दी. थोड़ी ही देर बाद संजीव बेसुध हो गया. पल्लवी ने धीरे से अपना बैग निकाला और घर के बाहर चली आई. बाहर आ कर वह रेलवे स्टेशन के लिए टैक्सी में बैठ गई. कुछ दूर तक वह बारबार पीछे मुड़ कर देखती रही. उसे डर था कि कहीं संजीव उस का पीछा तो नहीं कर रहा है. रेलवे स्टेशन पहुंच कर उस की जान में जान आई.

उस ने अंदर जा कर देखा तो पाया कि शरद पहले से ही वहां उस का इंतजार कर रहा था. उस ने अगली ट्रेन की 2 टिकटें भी ले ली थीं.

“तुम ठीक हो न?” शरद ने पूछा.

“मैं ठीक हूं शरद. हम कहां जा रहे हैं?”

“बस कुछ ही मिनटों में जम्मू जाने वाली ट्रेन आती होगी. मैं ने उसी की 2 टिकटें ले ली हैं. कुछ दिन वहीं रहेंगे, बाद में कोई और इंतजाम कर लूंगा. तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं है न?”

“शरद हम दोनों साथ हैं, बस मुझे और कुछ नहीं चाहिए.”

तभी ट्रेन भी आ गई. पल्लवी और शरद ट्रेन में चढ़ कर एक खाली बर्थ पर बैठ गए.

“तुम सो जाओ पल्लवी. जब सुबह तुम्हारी आंखें खुलेंगी तो एक नया सवेरा तुम्हारा इंतजार कर रहा होगा,” शरद‌ ने मुसकराते हुए कहा.

पल्लवी ने उस के कंधे पर सिर टिका कर आंखें बंद कर लीं. वह कुछ ही देर में नींद के आगोश में समा गई.

सुबह जब पल्लवी की आंख खुली तो ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी हुई थी और शरद उस के पास नहीं था. उसे लगा कि वह शायद स्टेशन से कुछ लाने के लिए उठा होगा. लेकिन जब कुछ मिनटों के बाद भी शरद वापस नहीं आया तो पल्लवी घबरा गई. उस ने पूरे डिब्बे में देख लिया, लेकिन शरद वहां नहीं था.

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“शरद…शरद…” वह खिड़की से बाहर झांक कर उसे पुकारने लगी. उस ने पर्स से मोबाइल निकाल कर शरद का नंबर डायल किया तो उस का फोन बंद आ रहा था.

पल्लवी बुरी तरह से घबरा गई. वह घबरा कर इधरउधर देख ही रही थी कि उस की नजर सीट पर रखे अपने बैग के नीचे दबे एक कागज पर पड़ी.

पल्लवी ने कांपते हाथों से कागज उठाया और खोल कर पढ़ना शुरू किया. वह उसके नाम शरद का पत्र था. उस में लिखा था-

‘पल्लवी,

जब तक तुम्हारी आंखें खुलेंगी, मैं तुम से बहुत दूर जा चुका होऊंगा. हां, तुम्हारा डर बिलकुल सही है. मैं ने तुम्हें धोखा दिया है. तुम्हें सुंदर भविष्य के सपने दिखा कर बीच रास्ते में तुम्हारा साथ छोड़ दिया है. मगर यह धोखा उस धोखे के आगे कुछ भी नहीं है जो तुम ने मुझे दिया. अब तुम सोच रही होगी कि मुझे तुम्हारी असलियत के बारे में कैसे पता चला? पल्लवी, जिस दिन मैं ने तुम्हें ₹1 लाख दिए थे, उस दिन तुम्हारे जाने के बाद मुझे तुम्हारी बहुत फिक्र हो रही थी. मुझे डर था कि कहीं संजीव तुम से वे रुपए न छीन ले जो तुम्हारी मां की जान बचा सकते हैं. लेकिन तुम्हारे घर के बाहर आ कर मुझे कुछ और ही सचाई नजर आई. उस दिन मैं ने तुम्हारी और संजीव की सारी बातें सुन ली थीं. मुझे पता चल गया था कि किस तरह तुम दोनों पतिपत्नी मुझे पैसों के लिए बेवकूफ बना रहे हो. सिर्फ मुझे ही नहीं तुम ने न जाने कितने लोगों को अपने प्यार के जाल में फंसा कर लूटा होगा.

‘पल्लवी, मैं तुम से बहुत प्यार करता था. लेकिन तुम ने मेरे साथ क्या किया? तुम ने मेरे जज्बातों के साथ खिलवाड़ किया. मेरे प्यार का मजाक बनाकर रख दिया. मैं ने सोच लिया था कि मैं तुम्हें सबक जरूर सिखाऊंगा, इसलिए मैं ने तुम से अपने साथ भाग चलने के लिए कहा ताकि तुम्हें पता चले कि दिल टूटने पर कितना दर्द होता है. अब जिंदगी भर सोचना कि तुम ने कितने लोगों के साथ कितना गलत किया. और हां, घर वापस जाने के बारे में मत सोचना. मैं ने संजीव को चिट्ठी लिख कर उसे सब बता दिया है. अब तुम्हारे लिए उस घर में भी कोई जगह नहीं है.

‘मैं तुम से सच्चा प्यार करता था पल्लवी. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार था. लेकिन शुक्र है कि सही समय पर मेरी आंखें खुल गईं. तुम्हें लोगों को शतरंज के मुहरे बना कर उन के साथ खेल खेलने का बहुत शौक था न पल्लवी. आज मैं ने तुम्हें तुम्हारे ही खेल में अपने दांव से मात दे दी है. हो सके तो जो तुम ने मेरे साथ किया वह आइंदा किसी के साथ मत करना…

शरद’

पल्लवी की आंखों से आंसू टपकटपक कर चिट्ठी पर गिर रहे थे. झूठ और धोखे का सहारा ले कर वह आज कहीं की भी नहीं रही थी. वह भूल गई थी कि छल के सहारे शतरंज की चाल भले ही जीती जा सकती थी, किसी का प्यार नहीं.

उस के मुंह से हौले से वे शब्द निकले जो शरद चिट्ठी के आखिर में लिखना भूल गया था,’शह और मात’.

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इवांका ट्रंप भी हुई भारतीय बेटी ज्योति की मुरीद

ज्योति के सहनशक्ति की कायल हुई इवांका ट्रम्प, अब आप सोचेंगे की ऐसा क्या हुआ जो वो मुरीद हो गईं. तो ज्योति ने काम ही कुछ ऐसा किया. ज्योति ने गुरुग्राम से दरभंगा तकरीबन 1200 किमी की दूरी तय की वो भी साइकिल से और अपने पिता को पीछे बिठा कर.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बेटी इवांका ट्रम्प ने इस दिलेर बेटी ज्योति की तारीफ की और इवांका ने सोशल मीडिया पर ट्वीट भी किया और अपने ट्वीट में लिखा है कि 15 साल की ज्योति कुमारी ने अपने घायल पिता को साइकिल से सात दिनों में 12,000 किमी दूरी तय करके अपने गांव ले गई.

इवांका ट्रंप ने उस खबर को लेकर ट्वीट किया है जिसमें ज्योति के इस जज्बे की सराहना भारतीय साइकिलिंग फेडरेशन ने भी की है और इसीलिए ज्योति को दिल्ली बुलाया. ये बात शायद आपको चौंका रही होगी लेकिन ऐसा हुआ है.

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जी हां गुरुग्राम से दरभंगा साइकिल से आनेवाली इस बेटी के जज्बे को सलाम करते हुए ज्योति को साइक्लिंग फेडरेशन आफ इंडिया ने ट्रायल का आफर दिया है और ऐसा इसलिए क्योंकि इस लड़की ने जो किया है शायद इसे ही कहेंगे हम कुछ कर गुजर जाने की दृढ़ इच्छा शक्ति. लॉक डाउन खत्म होते ही ज्योती को दिल्ली आने का न्योता मिला है.

JyotiCycle 2

अगर ज्योति ट्रायल में सफल हो गई तो उनको एकेडमी में जगह मिलेगी वहां ज्योति की पढ़ाई का सारा खर्च उठाया जाएगा. ज्योति ने बीमार पिता को साइकिल पर बैठा कर 8 दिनों में की थी गुरुग्राम से दरभंगा की यात्रा जिसके आज सभी मुरीद हो गए हैं ज्योती के जज्बे को सलाम.

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ज्योति अभी 15 साल की हैं और 8 वीं में पड़ती हैं. ज्योति लॉकडाउन के दौरान गुरुग्राम से बीमार पिता को साइकिल पर बैठाकर कमतौल थाना क्षेत्र के टेकटार पंचायत के सिरहुल्ली गांव आयी थीं. ज्योति ने 8 दिनों में 12000 किलो मीटर का सफर तय किया था. ज्योति की इच्छा आगे पढ़ने की है वो पढ़ लिख कर कुछ बनना चाहती है जिसके लिए उनको काफी मदद मिलेगी इस फेडरेशन से और ज्योति भी साइकिल रेस के लिए दिल्ली जाने को तैयार है.

फेडरेशन के चेयरमैन ओंकार सिंह ने कहा कि ज्योति अगर ट्रायल में सफल रहती है तो उसे दिल्ली स्थित नेशनल साइक्लिंग एकेडमी में जगह दी जायेगी. उन्होंने इसके लिए ज्योति से फोन पर बात भी की है. ज्योति के पिता काफी बीमार थें लेकिन पैसे ना होने के कारण उनका इलाज नहीं हो पाया था और इसी कारण से ज्योति ने ये कदम उठाया.

लोग ज्योति की खूब तारीफ कर रहे हैं औऱ तो और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी उन्हें एक लाख रुपये देने का ऐलान किया है. आज दुनिया इस दिलेर बेटी की तारीफ करते थक नहीं रही है और इसने जो किया वो शायद ही कोई कर पाए. क्योंकि इस कठिन समय में ऐसा कदम उठाना कोई मामूली बात नहीं है.

सच में इस बेटी को सलाम है.

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Periods के चलते ट्रोल हुईं Divya Agarwal तो Bollywood एक्ट्रेसेस ने उठाई आवाज

सेलेब्रिटिज का ट्रोलिंग का शिकार होना इन दिनों आम बात बन गया है. एमटीवी के रिएलिटी शो ‘स्प्लिस्टविला 10’ फेम एक्ट्रेस दिव्या अग्रवाल (Divya Agarwal) इन दिनों ट्रोलिंग का शिकार हो रही हैं. लेकिन दिव्या ने भी इन ट्रोलर्स को तगड़ा जवाब देते हुए इन लोगों को घटिया बताया है.

पीरियड्स को लेकर ट्रोल हुईं थी दिव्या

divya

दरअसल, दिव्या अग्रवाल ने हाल ही में इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट शेयर किया था, जिसमें वह अपने पीरियड्स के बारे में बात करती नजर आई थीं. वहीं इस पोस्ट को फोटो के साथ शेयर करते हुए लिखा दिव्या अग्रवाल ने लिखा था कि, ‘जब मुझे पीरियड्स होते हैं तो मेरे बॉयफ्रेंड को यह नहीं समझ आता कि उसको क्या करना चाहिए.’ कुछ लोगों को दिव्या अग्रवाल का पीरियड्स पर इस तरह बात करना पसंद नहीं आया तो लोगों ने उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया और भद्दे कमेंट्स भी किए.

 

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Drop went wrong @varunsood12 #tiktokindia

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ट्रोलर्स को दिया करारा जवाब

 

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🔴 Put a period to shaming the period @post.for.change @unicefindia #RedDotChallenge #PostForChange

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दिव्या अग्रवाल ने ट्रोलर्स को करारा जबाव देते हुए लिखा, ‘पीरियड के दौरान मेरे मूड में तेजी से बदलाव होता है. मैं चाहती हूं कि लोगों को इस बारे में शिक्षा दी जाए. गुस्सा करने से कुछ नहीं होगा. अगर कुछ करना ही है तो पीरियड्स के दौरान किसी लड़की को परेशान मत करो. हर महीने हम लड़कियों को पीरियड्स का सामना करना पड़ता है.’

बौलीवुड एक्ट्रेसेस आईं दिव्या के साथ

पीरियड्स को लेकर दिव्या के इस पोस्ट के बाद बौलीवुड एक्ट्रेसेस ने भी उनका साथ देना शुरू कर दिया है. वहीं दिव्या अग्रवाल को सपोर्ट करने के लिए बौलीवुड एक्ट्रेसेस सोशल मीडिया पर ‘रेड डॉट’ नाम के चैलेंज शेयर कर रही हैं, जिसमें वह  एक्ट्रेसेस अपने हाथ पर रेड डॉट बनाए नजर आ रहे हैं. वहीं इस चैलेंज के जरिए बॉलीवुड हसीनाएं ‘पीरियड शेमिंग’ पर खुलकर बात कर रही हैं.  बॉलीवुड एक्ट्रेस डायना पेंटी (Diana Penty) और अदिति राव हैदरी (Aditi Rao Hydari) ने हाल ही में ‘रेड डॉट चैलेंज’ एक्सेप्ट करते हुए अपनी फोटोज शेयर की हैं.

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बता दें, भारत में आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो पीरियड्स को लेकर खुले में बात करना पसंद नहीं करते. लेकिन बौलीवुड इन पुरानी धारणाओं को लोगों में बदलना चाहता है.

कोरोना काल में लिपिस्टिक पर मार !

कोरोना काल में मांगलिक उत्सव जन्मदिन, पार्टियों, शादी-ब्याह, घूमना-फिरना बंद होने के चलते महिलाओं ने सजना संवरना बंद सा कर दिया है और अब इसे नियति सा ही मान लिया है और हर वक्त सजी-धजी रहने वाली महिलाओं ने इसके बिना जीना सीख लिया है. जिससे अब सौंदर्य इनके लिये गुज़रा दौर और गुजरी बात सी हो चली है. जिसकी मार इससे जुड़े व्यवसाय पर खासी देखने को मिल रही है.

कोरोना वैश्विक महामारी ने बड़े-बड़े उद्योग धंधे व्यापार तो सब बंद करा ही दिए हैं तो वही सौंदर्य प्रसाधन पर भी इसकी जबरजस्त मार पड़ी है. जिसके चलते रोजमर्रा और चेहरे की खूबसूरती बढ़ाने वाली लिपिस्टिक भी इस संकट काल के चलते बर्बाद और बंद सी होने के कगार पर है.

छतरपुर: इस विभीषिका के दौर में महिलाओं का सबसे खूबसूरत सौंदर्य प्रसाधन लिपस्टिक बिजनेस खासा भी प्रभावित हुआ है. यह व्यवसाय अधिकांशतः महिला-पुरुष दोनों ही संचालित करते हैं. तो वहीं ब्यूटीशियन अधिकांश जगह महिला प्रोपराईटर ही रहतीं हैं या संचालित करती हैं. इसके अलावा शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र में कामकाजी महिलाओं से लेकर छोटे छोटे व्यापार के रूप में महिलाओं के लिए आर्थिक स्रोत का मानक जरिया बना हुआ है मसलन कोरोना त्रासदी ने महिलाओं के स्वावलंबन पर चोट पहुंचाई है.

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महिलाओं/युवतियों की मानें तो महामारी के इस भीषण काल में जहां हर वक्त चेहरे और मास्क और हाथों में ग्लब्ज़ (दस्ताने) लगाने पड़ रहे हैं तो ऐसे में लिपिस्टिक/नैलपालिस लगाने का क्या औचित्य है, गर लगा भी ली तो वह दिखनी नहीं है और मास्क में छुप और छुट जाना है जिससे मास्क भी खराब हो सकता है.

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कॉस्मेटिक और जनरल स्टोर व्यवसाई अखिलेश (डालडे) मातेले की मानें तो सौंदर्य प्रसाधन सहित लिपिस्टिक व्यवसाय में आई भारी मंदी के चलते बड़े और छोटे व्यवसाई काफी परेशांन हैं. उनका रखा माल आउट डेटिड हो चला है जिसके चलते वह इसे ओने-पोने दामों में बेचने को मजबूर हैं. भीषण स्टॉक और बिक्री की कमी के चलते दुकानदारों ने इससे निपटने के लिये एक लुभावना तरीका निकाला है. ब्रांडेड लिपिस्टिक को एक पर एक फ्री कर दिया है या आधे दामों में बेच रहे हैं. ताकि कुछ तो रकम वसूल सकें. भले ही इन्हें इसमें अच्छा खाशा घटा है पर आउट डेटिड और खराब होने पर इन्हें कोई नहीं लेगा और फेकना पड़ेंगीं जिससे हमें 100%लॉस ही लगाना है इससे बेहतर है कुछ तो मिले. वहीं ग्राहक सरस्वती सोनी ने बताया महिलाएं भी इस स्कीम का भरपूर फायदा उठाते हुए कंपनी की 500 वाली लिपिस्टिक 250 में और 600-700 वाली 300-350 में खरीद रहीं हैं कि कोरोना जाने के बाद तो काम में आयेंगीं ही.

वहीं इस मामले में PSCE चयनित ब्यूटी गर्लस अनामिका जैन की मानें तो इस कोरोना कॉल में सौंदर्य प्रसाधन और लिपिस्टिक व्यवसाय में मंदी की वजह बताई हैं और अपने अलग-अलग तर्क समझाईस दी हैं, कि अभी सिर्फ कोरोना से लड़ना है, बाकी गर जान रही तो सौंदर्य तो फिर भी होता रहेगा.

ब्यूटीसियन्स (हनी ब्यूटीपार्लर संचालक) कविता दुबे ने भी इस कोरोना काल में सौंदर्य व्यवसाय में आई भीषण मंदी को भी स्वीकारा है और इसकी वजहें भी बताई हैं.

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मामला चाहे जो भी हो पर इतना यतों तय है कि कोरोना महामारी कॉल में महिलाओं का घरों से निकलना सजना, संवरना बंद है जिसकी वजह से इस व्यवसाय पर खासी मार पड़ रही है. जिसके चलते लोग इस भीषण मंदी से निकलने और माल बेचने के महिलाओं को लुभाने के लिए अलग अलग तरीके ईजाद कर रहे हैं जो कि कुछ हद तक कारगर सिद्ध होते दिख रहे हैं पर फिर भी घाटे पर माल बेचने पर नुकसान तो दुकानदार को ही है पर भले ही थोड़ा कम हो और न बेचने फेकने से तो बेहतर ही है.

मैंने हमेशा अपनी जिम्मेदारी को अधिक महत्व दिया है – फ्रीडा पिंटो

साल 2007 में मॉडलिंग से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री फ्रीडा पिंटो मुंबई की है. उसकी चर्चित फिल्म स्लम डॉग मेलियनेयर  है, जिसमें उसने एक साधारण लड़की लतिका की भूमिका निभाई और अभिनेता देव पटेल की प्रेमिका बनी थी. इस फिल्म ने कई नेशनल और इंटरनेशनल अवार्ड जीते और फ्रीडा सबकी नजरों में आ गयी. वह इंडियन क्लासिकल डांस और साल्सा में भी प्रशिक्षित है.  फ्रीडा का फ़िल्मी सफ़र बहुत सफल रहा, पर उसका निजी जीवन कई उतार-चढ़ाव के बीच गुजरा है. फिल्मों में आने से पहले उसका रिश्ता पब्लिसिस्ट रोहन अंताओ के साथ था, लेकिन 2009 में स्टार बनने के बाद फ्रीडा उससे सगाई तोड़ दी और स्लम डॉग मेलियनेयर के अभिनेता देव पटेल के साथ डेटिंग करनी शुरू की.

करीब 6 साल तक साथ रहने के बाद वे एक दूसरे से सौहार्दपूर्ण तरीके से अलग हो गए और अब उसका नाम फोटोग्राफ़र कोरी ट्रान के साथ जोड़ा जाता है. फ्रीडा ने अधिकतर ब्रिटिश और अमेरिकन फिल्में की है और एक सफल एक्ट्रेस की श्रेणी में आ चुकी है. हॉलीवुड फिल्मो के अलावा उसने कई बॉलीवुड फिल्में टीवी शोज और वेब सीरीज में भी काम किया है. फ्रीडा अपने आपको फेमिनिस्ट मानती है और हमेशा बच्चो और महिलाओं के स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्याओं के लिए काम करती है. उसका नाम दुनिया की बेस्ट ड्रेस्ड वुमन की श्रेणी में भी शामिल है.

अमेरिका बेस्ड भारतीय अभिनेत्री, फ्रीडा अभी अमेरिका में है, क्योंकि वह किसी फिल्म की अंतिम भाग शूट करने वहां गयी थी और लॉक डाउन की वजह से वहां फंस गयी है. वह वहां पर अकेली है और मुंबई में रह रहे अपने माता-पिता, दोस्तों और भारतीय व्यंजन को मिस कर रही है. फ्रीडा ने डिजनी चैनल  की  एनिमेशन शो मीरा, रॉयल डिटेक्टिव  में क्वीन शांति की आवाज दी है, जिसे करना उसके लिए आसान नहीं था. स्पष्टभाषी और चार्मिंग फ्रीडा से बात करना रोचक था पेश है कुछ अंश.

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सवाल-इस शो में काम करना कितना मुश्किल था? कितनी उत्साहित थी?

मुश्किल कुछ भी नहीं था. मुझे जब इस शो का ऑफ़र आया तो मैं बहुत खुश और उत्साहित थी, क्योंकि इसमें सभी स्टारकास्ट और चरित्र इंडियन है. मुझे इंडियन कल्चर और ट्रेडिशन को सेलिब्रेट करना बहुत पसंद है. (हंसती हुई ) ऐसी एनिमेशन वाली शो पहले ही भारत में कर लेनी चाहिए थी. देर सही पर अच्छी शुरुआत है.  मुझे इसमें अपनी आवाज देने का मौका मिला. ये हिंदी में भी है, जो अच्छी बात है. पहले मुझे इसकी रुपरेखा समझ में नहीं आ रही थी, पर पूरी फिल्म बन जाने के बाद बहुत अच्छा लग रहा है.

 

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Representation Matters! In 2008 when Slumdog Millionaire was released I knew how important that film would be in the way the South Asian narrative would be viewed for the better. I felt so lucky to be part of it. It would mean more opportunities and more acceptance. But that alone was not going to be enough. Because “normalizing” can only achieve scale when we start young. Being part of Mira, Royal Detective is one of my proudest achievements to date. I get to play Queen Shanti who appoints a kind, empathetic, intelligent and confident little girl named Mira to be the Royal detective to her kingdom. This show is groundbreaking on many levels- first of it’s kind ever in the animation world, an all South Asian voiceover cast and the best part NO APU accents. Thank you very much. I couldn’t help but tear up at the premiere watching the littlest of little kids of all races and ethnicities, to their teenage siblings and their parents completely enthralled while watching Mira Royal Detective. Thank you Disney Junior for putting your time, resources and sincere efforts in making this adorable little animation series that I predict is gonna be monumental in shaping culture. #MiraRoyalDetective @disneyjunior

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सवाल- डबिंग के लिए कितनी तैयारी करनी पड़ी

इसकी तैयारी में भी खूब मजा आया. चरित्र की कमिटमेंट बहुत अच्छी रही, जिसमें उसकी रॉयल्टी, ग्रेटनेस और परोपकारी की भावना ये सब सम्मिलित होने की वजह से चरित्र सबके मन को मोह लेती है. क्वीन शांति का मेरा किरदार बहुत ही अलग और मजेदार है, जिसे करने में भी अलग एहसास था. इसमें मेरे अंदर का बचपना भी जग गया, जो मेरे लिए काफी आकर्षक था.

सवाल-इस चरित्र से आप अपने आपको कैसे जोड़ पाती है?

मैंने जीवन में हमेशा अपनी जिम्मेदारी को अधिक महत्व दिया है और उन लोगों की सहायता की, जिन्हें मेरी जरुरत है. जो लोग कमजोर है, उनके अधिकार के लिए मैंने हमेशा लड़ी और उन्हें उनका हक़ दिलाने की कोशिश की. एक लीडर के रूप में मैंने हमेशा इसे किया और क्वीन शांति भी ऐसी ही कुछ करती है.

 

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This one has hit me hard. A VOID that can NEVER be filled because there was simply no one like Irrfan Khan. His grace and dignity along with his monumental talent as an artist, actor – a portrayer of humanity in all it’s shapes and forms made me not only have deep admiration for him but I instinctively wanted to emulate that grace in my career as well. . . There is a picture from the SAG awards( Irrfan, Dev, me and Anil) that sits on my book shelf in Mumbai and everytime I look at it, I am taken down a memory lane of all things so beautiful and joyous about Slumdog Millionaire and the awards celebrations. And in all of it I have this one beautiful and powerful memory of Irrfan – Unfazed by the glitzy glamour, no matter which Hollywood icon walked past us. Quiet but not silent- his responses to every interviewer were so meaningful and never lacking humour. He was representing India with achingly high levels of grace and dignity. He stood grounded in reality on every world stage, every red carpet- Grateful and so collected! How lucky was I, a complete little mess of a newbie, to have him as a role model! . . For those who know of his talent, you know it cannot be replaced. For those who have not yet been introduced to his talent…Oh, do not deprive yourselves please! His repertoire has something for everyone. Warrior, Namesake, Piku, Maqbool, Life of Pi, The Lunchbox, Paan Singh Tomar and ofcourse Slumdog Millionaire. Start somewhere, anywhere! I promise you…Irrfan Khan will be FOREVER carved in your memories too!

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सवाल-ये एनीमेशन शो बाक़ी शो से कितना अलग है?

ऐनिमेशन वाले शो कई बनाये जाते है, पर इसमें भारतीय ट्रेडिशनल कपडे, फ़ूड, कल्चर, भाषा आदि सबका समावेश है, जो देखने वालों को अच्छा लगेगा. इस तरीके का शो मैंने पहले कभी नहीं देखा है.

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जीवन की नई शुरुआत: भाग-2

दिनभर का थकाहारा रघु मुन्नी को देखते ही उत्साह से भर उठता और मुन्नी भी रघु को देखते बौरा जाती. भूल जाती  दिनभर के काम को और अपनी मां की डांट को भी.  एकदूसरे को देखते ही दोनों सुकून से भर उठते थे.

18 साल की मुन्नी और 22 साल के रघु के बीच कब और कैसे प्यार पनप गया, उन्हें पता ही नहीं चला. इश्क परवान चढ़ा तो दोनों कहीं अकेले मिलने का रास्ता तलाशने लगे. दोनों बस्ती के बाहर कहीं गुपचुप मिलने लगे. मोहब्बत की कहानी गूंजने लगी, तो बात मुन्नी के मातापिता तक भी पहुंची और मुन्नी के प्रति उन का नजरिया सख्त होने लगा, क्योंकि मुन्नी के लिए तो उन्होंने किसी और को पसंद कर रखा था.

इसी बस्ती का रहने वाला मोहन से मुन्नी के मातापिता उस का ब्याह कर देना चाहते थे और वह मोहन भी तो मुन्नी पर गिद्ध जैसी नजर रखता था. वह तो किसी तरह उसे अपना बना लेना चाहता था और इसलिए वह वक्तबेवक्त मुन्नी के मांबाप की पैसों से मदद करता रहता था.

मोहन रघु से ज्यादा कमाता तो था ही, उस ने यहां अपना दो कमरे का घर भी बना लिया था. और सब से बड़ी बात कि वह भी नेपाल से ही था, तो और क्या चाहिए था मुन्नी के मांबाप को? मोहन बहुत सालों से यहां रह रहा था तो यहां उस की काफी लोगों से पहचान भी बन गई थी. काफी धाक थी इस बस्ती में उस की. इसलिए तो वह रघु को हमेशा दबाने की कोशिश करता था. मगर रघु कहां किसी से डरने वाला था.  अकसर दोनों आपस में भिड़ जाते थे. लेकिन उन की लड़ाई का कारण मुन्नी ही होती थी.

मोहन को जरा भी पसंद नहीं था कि मुन्नी उस रघु से बात भी करे. दोनों को साथ देख कर वह बुरी तरह जलकुढ़ जाता.

मुन्नी के कच्चे अंगूर से गोरे रंग, मैदे की तरह नरम, मुलायम शरीर, बड़ीबड़ी आंखें, पतले लाललाल होंठ और उस के सुनहरे बाल पर जब मोहन की नजर पड़ती, तो वह उसे खा जाने वाली नजरों से घूरता.

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मुन्नी भी उस के गलत इरादों से अच्छी तरह वाकिफ थी, तभी तो वह उसे जरा भी नहीं भाता था. उसे देखते ही वह दूर छिटक जाती. और वैसे भी कहां मुन्नी और कहां वह मोहन, कोई मेल था क्या दोनों का? कालाकलूटा नाटाभुट्टा वह मोहन मुन्नी से कम से कम 14-15 साल बड़ा था. उस की पत्नी प्रसव के समय सालभर पहले ही चल बसी थी. एक छोटा बेटा है, उस के ऊपर पांचेक साल की एक बेटी भी है, जो दादी के पास रहती है.  वही दोनों बच्चों की अब मां है.

वैसे भी पीनेखाने वाले मोहन की पत्नी मरी या उस ने खुद ही उसे मार दिया क्या पता? क्योंकि आएदिन तो वह अपनी पत्नी को मारतापीटता ही रहता था. राक्षस है एक नंबर का. अब जाने सचाई क्या है, मगर मुन्नी को वह फूटी आंख नहीं सुहाता था.

उसे देखते ही मुन्नी को घिन आने लगती थी. मगर उस के मांबाप जाने उस में क्या देख रहे थे, जो अपनी बेटी की शादी उस से करने को आतुर थे? शायद पैसा, जो उस ने अच्छाखासा कमा कर रखा हुआ था.

लेकिन मुन्नी का प्यार तो रघु था. उस के साथ ही वह अपने आगे के जीवन का सपना देख रही थी और उधर रघु भी जितनी जल्दी हो सके उसे अपनी दुलहन बनाने को व्याकुल था. अपनी मां से भी उस ने मुन्नी के बारे में बात कर ली थी.  मोबाइल से उस का फोटो भी भेजा था, जो उस की मां को बहुत पसंद आया था. कई बार फोन के जरीए मुन्नी से उन की बात भी हुई थी और अपने बेटे के लिए मुन्नी उन्हें एकदम सही लगी थी.

एक शाम… मुन्नी की कोमलकोमल उंगलियों को अपनी उंगलियों के बीच फंसाते हुए रघु बोला था, “मुन्नी, छोड़ दे न लोगों के घरों में काम करना. मुझे अच्छा नहीं लगता.”

“छोड़ दूंगी, ब्याह कर ले जा मुझे,” मुन्नी ने कहा था.

“हां, ब्याह कर ले जाऊंगा एक दिन. और देखना, रानी बना कर रखूंगा तुम्हें. मेरा बस चले न मुन्नी तो मैं आकाश की दहलीज पर बनी सात रंगों की इंद्रधनुषी अल्पना से सजी तेरे लिए महल खड़ा कर दूं,” कह कर मुसकराते हुए रघु ने मुन्नी के गालों को चूम लिया था.  लेकिन उन के बीच तो जातपांत और पैसों की दीवार आ खड़ी हुई थी. तभी तो मुन्नी के घर से बाहर निकलने पर पहरे गहराने लगे थे. जब वह घर से बाहर जाती तो किसी को साथ लगा दिया जाता था, ताकि वह रघु से मिल ना सके, उस से बात ना कर सके. लेकिन हवा और प्यार को भी कभी किसी ने रोक पाया है? किसी ना किसी वजह से दोनों मिल ही लेते.

इधर मुन्नी के मांबाप जितनी जल्दी हो सके, अपनी बेटी का ब्याह उस मोहन से कर देना चाहते थे. वह मोहन तो वैसे भी शादी के लिए उतावला हो रहा था. उसे तो लग रहा था शादी कल हो, जो आज ही हो जाए.

इधर रघु जल्द से जल्द बहुत ज्यादा पैसे कमा लेना चाहता था, ताकि मुन्नी के मांबाप से उस का हाथ मांग सके. और इस के लिए वह दिनरात मेहनत भी कर रहा था. दिन में वह  मिस्त्री का काम करता, तो रात में होटल में जा कर प्लेटें धोता था.

लेकिन अचानक से कोरोना ने ऐसी तबाही मचाई कि रघु का कामधंधा सब छूट गया. कुछ दिन तो रखे धरे पैसे से चलता रहा. इस बीच वह काम भी तलाशता रहा, लेकिन सब बेकार. अब तो दानेदाने को मोहताज होने लगा वह.  कर्जा भी कितना लेता भला. भाड़ा न भरने के कारण मकान मालिक ने भी कोठरी से निकल जाने का हुक्म सुना दिया.

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इधर, उस मोहन का मुन्नी के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ने लग गया, जिसे मुन्नी चाह कर भी रोक नहीं पा रही थी. आ कर ऐसे पसर जाता खटिया पर, जैसे इस घर का जमाई बन ही गया हो. चिढ़ उठती मुन्नी, पर कुछ कर नहीं सकती थी. लेकिन मन तो करता उस का मुंह नोच ले उस मोहन के बच्चे का या दोचार गुंडे से इतना पिटवा दे कि महीनाभर बिछावन पर से उठ ही न पाए.

दर्द एक हो तो कहा जाए. यहां तो दर्द ही दर्द था दोनों के जीवन में. जिस दुकान से रघु राशन लेता था, उस दुकानदार ने भी उधार में राशन देने से मना कर दिया.

उधर गांव से खबर आई कि रघु की चिंता में उस की मां की तबीयत बिगड़ने लगी है, जाने बच भी पाए या नहीं. मकान मालिक ने कोरोना के डर से जबरदस्ती कमरा खाली करवा दिया. अब क्या करे यहां रह कर और रहे भी तो कहां? इसलिए साथी मजदूरों के साथ रघु ने भी अपने घर जाने का फैसला कर लिया.

रघु के गांव जाने की बात सुन कर मुन्नी सहम उठी और उस से लिपट कर बिलख पड़ी यह कह कर कि ‘मुझे छोड़ कर मत जाओ रघु, मैं घुटघुट कर मर जाऊंगी. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती. मुझे मंझदार में छोड़ कर मत जाओ.’

मुन्नी की आंखों से बहते अविरल आंसुओं को देख, रघु की भी आंखें भीग गईं, क्योंकि वह जानता था, मुन्नी और उस का साथ हमेशा के लिए छूट रहा है. उस के जाते ही मुन्नी के मांबाप मोहन से उस का ब्याह कर देंगे. लेकिन फिर भी कुछ क्षण उस के बालों में उंगलियां घुमाते हुए आहिस्ता से रघु ने कहा था, वह जल्द ही लौट आएगा.

मुन्नी जानती थी कि रघु झूठ बोल रहा है, वह अब वापस नहीं आएगा. लेकिन यह भी सच था कि वह रघु की है और उस की ही हो कर रहेगी, नहीं तो जहर खा कर अपनी जान खत्म कर लेगी. लेकिन उस अधेड़ उम्र के दुष्ट मोहन से कभी ब्याह नहीं करेगी.

आगे पढ़ें- मुन्नी के मांबाप ने जब उस दिन मोहन से उस की शादी…

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जीवन की नई शुरुआत: भाग-3

मुन्नी के मांबाप ने जब उस दिन मोहन से उस की शादी का फरमान सुना दिया था, तब मुन्नी ने दोटूक भाषा में अपना फैसला दे दिया था कि वह किसी मोहनफोहन से ब्याह नहीं करेगी, वह तो रघु से ही ब्याह करेगी, नहीं तो मर जाएगी.

उस के मरने की बात पर मांबाप पलभर को सकपकाए थे, लेकिन फिर आक्रामक हो उठे थे. ‘उस रघु से ब्याह करेगी, जिस का ना तो कमानेखाने का ठिकाना है और ना ही रहने का. क्या खिलाएगा और कहां रखेगा वह तुम्हें ?’

मां ने भी दहाड़ा था कि ‘कल को कोई ऊंचनीच हो गई तो हमें मुंह छिपाने के लिए जगह भी नहीं मिलेगी. और बाकी चार बेटियों का कैसे बेड़ा पार लगेगा ?

‘लड़की की लाज मिट्टी का सकोरा होत है, समझ बेटियां तू’ मगर मुन्नी को कुछ समझनाबुझाना नहीं था.
दांत भींच लिए थे उस ने यह कह कर, “अगर तुम लोगों ने जबरदस्ती की तो मैं अपनी जान दे दूंगी सच कहती हूं,” और अपनी कोठरी में सिटकिनी लगा कर फूटफूट कर रो पड़ी थी.

मुन्नी की मां का तो मन कर रहा था बेटी का टेंटुवा ही दबा दे, ताकि सारा किस्सा ही खत्म हो जाए. ‘हां, क्यों नहीं चाहेगी, आखिर बेटियों से प्यार ही कब था इसे. हम बेटियां तो बोझ हैं इन के लिए’ अंदर से ही बुदबुदाई थी मुन्नी. ‘देखो इस कुलच्छिनी को, कैसे हमारी इज्जत की मिट्टी पलीद कर देना चाहती है. यह सब चाबी तो उस रघु की घुमाई हुई है, वरना इस की इतनी हिम्मत कहां थी. अरे नासपीटी, भले हैं तेरे बाप… कोई और होता तो दुरमुट से कूट के रख देता. मेरे भाग्य फूटे थे जो मैं ने तुझे पैदा होते ही नमक न चटा दिया’

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खूब आग उगली थी उस रात मुन्नी की मां. उगले भी क्यों न, आखिर उसे अपने हाथ से तोते जो उड़ते नजर आने लगे थे. एक तो कमाऊ बेटी, ऊपर से पैसे वाला दामाद, जो हाथ से सरकता दिखाई देने लगा था. सोचा था, बाकी बेटियों का ब्याह भी मोहन के भरोसे कर लेगी, मगर यहां तो… ऊंचा बोलबोल कर आवाज फट चुकी थी मुन्नी की मां की, मगर फिर भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ा था. उस की जिद तो अभी भी यही थी कि वह रघु की है और उस की ही रहेगी.

रात में सब के सो जाने के बाद रघु को फोन लगा कर कितना रोई थी वह. उस के जाने के बाद उस के साथ क्याक्या हुआ, सब बताया और यह भी कि अगर वह उस की नहीं हो सकी, तो किसी की भी नहीं हो सकेगी. फिर कई बार रघु ने फोन लगाया, पर बंद ही आ रहा था.

कहते हैं, सारी मुसीबत एक बार आ धमकती है इनसान की जिंदगी में और यह बात आज रघु को सही प्रतीत पड़ रही थी.

कोरोना महामारी के कारण एक तो कामकाज और शहर छूटा, फिर पता चला कि वहां मां बीमार है और अब यह सब… कहीं मुन्नी ने कुछ कर लिया तो… सोच कर ही रघु का खून सूखा जा रहा था. लेकिन क्या करे वह भी? यहां से भाग भी तो नहीं सकता है? इसलिए उस ने भी अपनी जान खत्म करने की सोच ली थी. ना जिएगा, ना इतनी मुसीबत झेलनी पड़ेगी.

आज उसे मुन्नी का वह उदास चेहरा और थकी आंखें याद आ रही थीं. मन कर रहा था, करीब होती तो उस के अधरों पर अपने होंठ रख सारी उदासी सोख लेता.

मुसकरा भी पड़ा था वह दिन याद कर के, जब पहली बार मुन्नी को आलिंगन में भर कर उस के अधरों को चूम लिया था और लजा कर वह रघु के सीने में सिमट गई थी. जीवन में पुरुष के साथ उस का यह पहला भरपूर आलिंगन था. मुन्नी की रीढ़ में हलकी सी झुरझुरी दौड़ गई थी. दोनों को एकदूसरे की छूती हुई परस्पर आकर्षण की हिलोरें का एहसास था, तभी तो दोनों एकदूसरे के करीब आते चले गए थे बिना जमाने की परवाह किए. लतावितान के भीतर यह अनुभूति गहराई थी, जब रघु ने उस के होठों पर तप्त दबाव बढ़ाया था. योवन वेग के अनेक स्पंदन अचानक देह में चमक उठे थे. इस आलिंगन और चुंबन की अवधि दिनप्रतिदिन बढ़ती ही चली गई थी. लेकिन जमाने ने और कुछ इस कोरोना ने उन्हें जुदा करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी.

रघु की कहानी सुन कर जिलाधिकारी मनोज को उस पर दया आ गई कि एक गरीब इनसान को प्यार करने का भी हक नहीं होता? बुझीबुझी सी उम्मीदों पर कोरोना का खौफ सब की आंखों में साफ दिखाई दे रहा था. ख्वाहिशों व उम्मीदों को समेटे लोग खुश हो कर दूसरे शहरों में कमानेखाने गए थे? लेकिन एक वायरस ने इन का सबकुछ छीन लिया. इन गरीब मजदूरों ने जिस शहर को सजायासंवारा, उसी ने इन्हें गैर बना दिया. अब तो बस दर्द ही याद है’ अपने मन में ही सोच मनोज को उन मजदूरों  पर दया आ गई कि आखिर गरीब लोग ही हमेशा क्यों मारे जाते हैं? वे ही क्यों दरदर भटकने को मजबूर हो जाते हैं? सब से ज्यादा तो उन्हें रघु पर दया आ रहा था कि उस का प्यार भी छिन गया. लेकिन उन्होंने भी सोच लिया कि जहां तक हो सकेगा, वह इन मजदूरों की सहायता जरूर करेंगे.

इधर मोहन से शादी के जोर पड़ने पर मुन्नी धीरेधीरे टूटने लगी थी. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, कैसे इस शादी को रोके? मन तो कर रहा था कि धतूरे का बीज खा कर अपनी जान खत्म कर ले. लेकिन ऐसा भी वह नहीं कर सकती थी. क्योंकि मरना तो कायरता है. किसी चीज को हासिल करने के लिए लड़ना पड़ता है और वह लड़ेगी अपने मांबाप से भी और इस जमाने से भी. सोच लिया उस ने और अपने मन में ही एक फैसला ले लिया. रात में सोने से पहले उस ने तकिए में मुंह छिपा कर रघु का नाम लिया. उस का चुंबन याद आया और वह पुरानी सिहरन शरीर में झनझना गई.

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अपने प्लान के अनुसार, सुबह मुंहअंधेरे ही वह घर से निकल गई और पैदल चल रहे मजदूरों के संग हो ली. जानती थी पैदल चल कर रघु से मिलना इतना आसान नहीं होगा. पर अपने प्यार के लिए वह कुछ भी करेगी. हजारों क्या, लाखों किलोमीटर चलना पड़े तो चल कर अपने प्यार को पा कर रहेगी. यह भी जानती थी कि उसे घर में ना पा कर गुस्से से सब बौखला जाएंगे. जहां तक होगा, उसे ढूंढ़ने की कोशिश की जाएगी. लेकिन कोई फायदा नहीं, क्योंकि तब तक वह काफी दूर निकल चुकी होगी. रघु के गांवघर का पता तो उसे मालूम ही था, फिर डर किस बात का था.

5 दिन बाद थकेहारे कदमों से, मगर विजयी मुसकान के साथ वह अपने रघु के सामने खड़ी थी. रघु को तो अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था.  उसे तो लग रहा था, जैसे वह कोई सपना देख रहा हो. मगर यह सच था, मुन्नी उस के सामने खड़ी थी. दोनों बालिग थे, इसलिए उन की शादी में रुकावट की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. क्वारंटीन अवधि पूरी होते ही जिलाधिकारी मनोज ने अपनी देखरेख में दोनों की शादी ही नहीं करवाई, बल्कि एक भाई की तरह मुन्नी को विदा भी किया. रघु को उन्होंने रोजगार दिलाने में भी मदद की, ताकि वह आत्मनिर्भर बन सके और अपनी जिंदगी अपने अनुसार जिए.

इस कोरोना काल में रघु ने बहुत मुसीबतें झेलीं, पर कहते हैं न, अंत भला तो सब भला.  रघु और मुन्नी के जीवन की नई शुरुआत हो चुकी थी.

Summer special: इस वीकेंड मीठे में बनाएं मावा मोदक

चावल के आटे से हटकर मोदक में नया स्वाद चाहिए तो आप मावा मोदक बना सकती हैं. जानिए मावा मोदक बनाने की विधि.

हमें चाहिए

400 ग्राम मावा (खोया)

1/4 कप चीनी

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1/4 चम्मच हरी इलायची पाउडर

एक चुटकी केसर

बनाने का तरीका

एक नान-स्टिक पैन को गैस पर रखें और उसमें मावा व चीनी डालकर धीमी आंच पर लगातार चलाएं. जैसे ही मावा और चीनी पिघल कर अच्छे से मिक्स हो जाएं तो इसमें केसर मिलाएं और मिश्रण को गाढ़ा होने तक चलाते रहें.

मिश्रण गाढ़ा होने लगे तो उसमें इलायची पाउडर मिलाकर कुछ देर और चलाएं. गैस बंद करने के बाद मावा के इस मिश्रण को ठंडा होने दें.

फिर इस मिश्रण को नीबे के आकार में बराबर हिस्सों में बांट लें और मोदक का आकार दें.

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डे टू डे मेकअप से दिखे ग्लैमरस

नेहा बहुत खूबसूरत थी. वह मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती थी. नेहा की सबसे बडी परेशानी यह थी कि वह जब आफिस जाने के लिये जल्दी जल्दी तैयार होती थी तो कुछ न कुछ कमी जरूर रह जाती थी. इससे उसका मेकअप बहुत फीका लगने लगता था. नेहा ने अपनी परेशानी अपनी मेकअप एक्सपर्ट जिया आहूजा को बतायी.

जिया आहूजा ने नेहा को बताया कि एक ही दिन मेकअप करने से स्किन में पूरा ग्लों नही आता है. मेकअप करने से पहले रूटिन केयर कर जरूरत होती है. इसके लिये आपको हर रोज के हिसाब से मेकअप करना चाहिये.

जिया आहूजा का कहना है कि रोज रोज की देखभाल से ही मेकअप को आकर्षक बनाया जा सकता है. इससे आपको आफिस जाने में कभी देर नही होगा और आप बहुत आकर्षक लगेगी. सुदंर और ग्लैमरस दिखने के लिये केवल एक दिन के मेकअप से ही काम नही चलता है. इसके लिये जरूरी है कि आप डे टू डे मेकअप की ओर ध्यान दे. डेली केयर से स्किन साफ होती है. जिससे स्किन में एक ग्लो सा आ जाता है.

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डे टू डे मेकअप कामकाजी महिलाओं के लिये बहुत काम का होता है. इससे उनको रोज रोज के मेकअप के लिये परेशान नही होना पडता है.
कामकाजी महिलाओं के लिये सनडे सबसे खास होता है. इस दिन आप सबसे पहले आप अपने हेयर में हिना लगायें जिससे बालों की कंडीशनिंग करे.

नाखूनों में नेल पाॅलिश और चेहरें में फेसपैक लगाये. मनडे को नहाने का वक्त कुछ ज्यादा समय निकाले हाथ पैरों को स्क्रब करे. इसके बाद क्रीम लगा ले. मंगलवार को सोने से पहले चेहरा क्लीन करें. स्किन के हिसाब से फेसपैक लगायें. 15 से 20 मिनट बाद धेकर टोनर या माश्चराइजर लगाये. इससे त्वचा में एक ग्लो आयेगा. बुद्ववार की सुबह नहाने से एक घंटे पहले गुनगुने तेल से मसाज करे. बालों को अच्छे ढंग से शैम्पू से धेकर कंडीशनिंग करें इससे बाल खिचें व चमकदार रहेगे.

गुरूवार को नहाने से 15 मिनट पहले पूरी बाॅडी पर घर में बना हुआ उबटन लगायें. उबटन बनाने के लिये बेसन, दही, हल्दी और दूध को मिलाकर पेस्ट बना ले. शुक्रवार को नाखूनांे को शेप दे. नहाते समय हाथ और पैरों की तेल या क्रीम से 10 मिनट मसाज करे. इसके बाद स्क्रबिंग करे. मसाज करते समय गरदन, पेट और कमर का खास ख्याल रखें.

शनिवार को बहुत सारी कामकाजी महिलाओं के ऑफिस में छुटटी होती है. इसलिये घर पर या फिर पार्लर जाकर आइब्रो और अपरलिप की थ्रेडिंग कराये.

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माह में एक बार एक निश्चित शनिवार को बालों की कटिंग कराये. शनिवार को नेल पलिश रिमूव कर दे. इसके बाद हाथ और पैर को साफ करके क्रीम लगा दे. इससे नाखूनों को ताजी आक्सीजन मिलेगी और वह ज्यादा हेल्दी रह सकेगे. माह में एक बार पार्लर में जाकर मेनीक्योर और पेडिक्योर कराने से हाथ और पांव साफ सुथरे रहेगे. जिससे पूरे सप्ताह इस ओर से तनाव मुक्त रहेगी. रूटीन केयर और मेकअप से आप पूरे सप्ताह ग्लैमरस नजर आयेगी. रोज रोज आफिस के लिये तैयार होने में आपको समय नही लगेगा.

बढ़ती उम्र और अबौर्शन का खतरा

कई अध्ययनों में यह साफ हो गया है कि जैसेजैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती जाती है क्रोमोसोम में खराबी आने से असामान्य अंडों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. परिणामस्वरूप गर्भवती होने की संभावना कम हो जाती है, साथ ही अबौर्शन होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

कुछ महिलाओं के अंडों की गुणवत्ता 20 या 30 साल में ही खराब हो जाती है तो कुछ की 43 साल की उम्र तक भी बरकरार रहती है. एक औसत महिला की अंडों की गुणवत्ता उम्र बढ़ने के साथ कम हो जाती है.

1. 40 की उम्र में अबौर्शन कितना सुरक्षित

40 तक आतेआते परिवार पूरी तरह सैटल हो जाता है और बच्चे भी बड़े हो जाते हैं. तब गर्भवती होने की खबर एक शौक के समान हो सकती है. ऐसे में अबौर्शन का निर्णय लेना जरूरी लेकिन कठिन हो जाता है. यह सही निर्णय होता है, पर आसान नहीं. 30 से 35 की उम्र में अबौर्शन कराने की तुलना में 40 पार के लोगों के लिए यह अधिक रिस्की होता है.

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2. बढ़ते अबौर्शन के मामले

स्वास्थ्य विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि मातृत्व में देरी न करें, क्योंकि 30 की उम्र पार करने के बाद फर्टिलिटी कम हो जाती है. बहुत सारी महिलाएं यह मानने लगी हैं कि गर्भनिरोधक उपायों की अनदेखी करना सुरक्षित है, इसलिए उन की संख्या बढ़ती जा रही है जो 40 के बाद अबौर्शन कराती है. आईवीएफ के बढ़ते चलन ने भी इस धारणा को मजबूत किया है कि उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं की प्रजनन क्षमता तेजी से कम होती है. 30 के बाद प्रजनन क्षमता कम हो जाती है, लेकिन इतनी कम भी नहीं हो जाती कि आप गर्भनिरोधक उपायों को नजरअंदाज कर दें.

3. बढ़ती उम्र और प्रजनन क्षमता

सच यह है कि महिलाओं की प्रजनन क्षमता तब तक समाप्त नहीं होती जब तक कि वे मेनोपौज की स्थिति तक नहीं पहुंच जातीं. जब लगातार 12 महीनों तक पीरियड्स न आएं तो समझ जाएं मेनोपौज हो गया है. 30 की उम्र पार करते ही गर्भधारण की दर धीरेधीरे कम होने लगती है.

35 से 40 वर्ष की आयु में यह और कम होने लगती है. 40 की उम्र पार करते ही इस गिरावट में तेजी आ जाती है. हालांकि 80% महिलाएं 40 से 43 साल की उम्र में भी गर्भवती हो सकती हैं. उम्र बढ़ने के साथ प्रजनन क्षमता कम होने का सब से प्रमुख कारण गहरे, कम गुणवत्ता वाले अंडे जिन का आकार अनियमित होता है.

4. कितनी सुरक्षित है आईवीएफ तकनीक

आईवीएफ की सफलता दर 30 की उम्र पार करने के बाद कम होने लगती है. 38 वर्ष के बाद इस में तेजी से गिरावट आती है. गर्भाशय की उम्र का इतना प्रभाव नहीं पड़ता है. इसलिए अगर आईवीएफ के द्वारा किसी युवा महिला के अंडों को पति के शुक्राणुओं से निषेचित कर के गर्भाशय में स्थापित किया जाए तो अबौर्शन की आशंका कम हो जाती है. सफल गर्भधारण में महिला के अंडे की उम्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

अगर आईवीएफ तकनीक में ऐसी महिला के अंडों का उपयोग किया जाए, जिस की उम्र 44 वर्ष से अधिक हो तो इस के सफल होने की संभावना केवल 1% होती है. लेकिन अगर एग डोनर की आयु 30 वर्ष से कम हो और अंडा प्राप्त करने वाली की 40 से अधिक तो सफल गर्भधारण की संभावना कई गुना बढ़ जाती है.

5. सुरक्षित अबौर्शन

90% अबौर्शन गर्भावस्था के 13 सप्ताह तक पहुंचने के पहले किए जाते हैं. अबौर्शन जितनी जल्दी से जल्दी कराया जाए उतना ही अच्छा होता है. कोई भी निर्णय लेने से पहले आप को सभी विकल्पों पर ध्यान देना चाहिए. मैडिकल इमरजैंसी में ही अबौर्शन 24 सप्ताह के बाद किया जाता है.

आप कितने सप्ताह की गर्भवती हैं इस का पता लगाने के लिए आप को गणना आखिरी पीरियड के पहले दिन से करनी चाहिए. अगर आप को गर्भावस्था के स्पष्ट चरण के बारे में मालूम न हो तब आप को अल्ट्रासाउंड स्कैन कराना चाहिए.

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6. गर्भधारण से बचने के लिए क्या करें

गर्भधारण से बचने के सब से प्रचलित तरीकों में गर्भनिरोधक गोलियां, आईयूडीएस, कंडोम, क्रीम आदि प्रमुख हैं. विश्वभर में सब से अधिक महिलाएं गर्भधारण करने से बचने के लिए गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हैं. जो महिला स्वस्थ है, धूम्रपान नहीं करती उस का रक्तदाब सामान्य है और उसे हृदय से संबंधित किसी प्रकार की समस्या नहीं है तो वह 50 वर्ष की आयु तक भी गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन कर सकती है.

इस के अलावा ऐस्ट्रोजन बेस्ड बर्थ कंट्रोल विकल्प जिस में नुवा रिंग सम्मिलित है, यह वैजाइन में इंसर्ट की जाती है. यह डायफ्रौम की तरह 3 सप्ताह लगाई जाती है. 1 सप्ताह नहीं लगाई जाती है. आईयूडी मिरेगा, कौपर आईयूडी का उपयोग भी गर्भनिरोधक उपायों के रूप में लगातार बढ़ रहा है.

    -डा. नुपुर गुप्ता

कंसलटैंट ओब्स्टट्रिशियन, गुरुग्राम

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