सवाल-
मेरी उम्र 25 साल है. मैं परमानैंट आईब्रोज बनाना चाहती हूं. कृपया बताएं कि इस के लिए क्या करना होगा?
जवाब-
परमानैंट आईब्रोज बनाने के लिए मशीन द्वारा एक बार आईब्रोज को मनचाही शेप व कलर में बना दिया जाता है, जो पसीने या नहाने से खराब नहीं होती हैं. इस का असर 12 से 15 साल तक बना रहता है. इस प्रोसैस में किसी औपरेशन की जरूरत नहीं होती है.
जरमन कलर्स ऐंड नीडल्स के द्वारा परमानैंट मेकअप किया जाता है, जिस का कोई बुरा असर नहीं होता है. बस इस प्रोसैस के बाद हलकी सी रैडनैस नजर आती है, जो 15-20 मिनट में चली जाती है.
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हर लड़की चाहती है कि वह सुंदर दिखे. इसके लिए वह पार्लर जाती है. आमतौर पर देखा जाता है कि लड़कियां सुंदर दिखने के लिए अपनी आई ब्रो को लेकर बेहद क्रेजी रहती हैं. वह कम उम्र में ही थ्रेडिंग बनवाने लग जाती हैं.
चेहरे पर मेकअप के साथ-साथ सही आईब्रो का शेप आपके लुक को और भी खूबसूरत बना सकता है. इसलिए जरूरी है यह जानना कि आपके फेस पर किस तरह की आइब्रो अच्छी लगेगी. जानिए, आईब्रो के शेप और कलर से जुड़ी कुछ जरूरी बातें…
– किसी की दोनों आइब्रो पूरी तरह से एक बराबर नहीं होती है. इसलिए ध्यान रहे कि इन्हें एकसमान बनाना बहुत ज़रूरी है. छोटी-बड़ी आइब्रो आपकी सुंदरता बिगाड़ सकती हैं.
भारत में ही नहीं अमेरिका तक में सवाल उठ रहा है कि अब क्या घरों को साफ करने वाली पार्टटाइम मेड्स को कैसे आने दिया जाए? देशभर में रैजिडैंशियल सोसाइटियों ने पार्टटाइम मेड्स को कौंप्लैक्सों में आने से मना कर दिया. लौकडाउन के दौरान तो काम चल गया, क्योंकि सब लोग घर में थे और मेहमानों को आना नहीं था. जितना बन सका साफ कर लिया बाकी वैसे ही रह गया. हाथ भी ज्यादा थे.
अब क्या होगा? अमेरिका में भी क्लीनिंग स्टाफ कई घरों में काम करता है और उन सघन इलाकों में रहता है जहां कोविड केसेज ज्यादा हैं. उन के बिना घर साफ रह ही नहीं सकते. अब घर के सारे काम भी करना और काम पर भी जाना न भरेपूरे परिवार के लिए संभव है और न अकेले रहने वालों के लिए.
सवाल हैल्पों की नौकरी का इतना नहीं जितना इन हैल्पों की मालकिनों की नौकरियों का है. अगर बच्चों और घर दोनों को दफ्तर के साथ संभालना पड़ा तो आफत आ जाएगी.
अमेरिका में बच्चों को फुलटाइम आया के पास न रख डे केयर सैंटरों में ज्यादा रखा जाता है जैसे यहां क्रैचों में रखा जाता है पर वहां जो काम कर रही हैं, वे कैसे कोविडपू्रफ होंगी यह सवाल खड़ा हो रहा है.
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ऊंची पढ़ाई कर के औरतों ने जो नौकरियां पाई थीं वे इन पार्टटाइमफुलटाइम मेड्स के बलबूते पाई थीं. वे होती हैं तो काम पर जाना आसान रहता है नहीं तो साल 2 साल की छुट्टी लेनी होती है.
अब वे हैं पर उन्हें रखना खतरे से खाली नहीं, क्योंकि वे न जाने कहांकहां से हो कर आ रही हैं, किनकिन से मिल रही हैं.
कोविड अब तक अमीरों
का रोग ही ज्यादा पाया गया है. गरीबों में संक्रमण से लड़ने की क्षमता ज्यादा है पर यह डर फिर
भी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन अब कहने लगा है कि यह बच्चों को भी हो सकता है और बच्चों के माध्यम से वायरस मांबाप तक पहुंच सकता है.
वर्क प्लेस को बदलने में कोरोना एक गेम चेंजर बनेगा. अब लोग समूह में बैठनाउठना पसंद नहीं करेंगे पर जिन लोगों को जान पर खेल कर काम करने ही नहीं उन से अमीर व खास लोग कैसे बचेंगे यह सवाल रहेगा. पहली मार बच्चों वाली औरतों पर पड़ेगी और दूसरी उन के पतियों या साथियों पर जिन्हें बिना हैल्प के घर चलाने में मदद करनी होगी.
चलती ट्रेन में ठीक मेरे सामने एक जोड़ा अपने 2 बच्चे के साथ बैठा था. बड़ी बेटी करीब 8-10 साल की और छोटा बेटा करीब 5-6 साल का. भावों व पहनावे से वे लोग बहुत पढ़ेलिखे व संभ्रांत दिख रहे थे. कुछ ही देर में बेटी और बेटे के बीच मोबाइल के लिए छीनाझपटी होने लगी. बहन ने भाई को एक थप्पड़ रसीद किया तो भाई ने बहन के बाल खींच लिए. यह देख मुझे भी अपना बचपन याद आ गया.
रिजर्वेशन वाला डब्बा था. उन के अलावा कंपार्टमैंट में सभी बड़े बैठे थे. अंत: मेरा पूरा ध्यान उन दोनों की लड़ाई पर ही केंद्रित था.
उन की मां कुछ इंग्लिश शब्दों का इस्तेमाल करती हुई उन्हें लड़ने से रोक रही थी, ‘‘नो बेटा, ऐसा नहीं करते. यू आर अ गुड बौय न.’’
‘‘नो मौम यू कांट से दैट. आई एम ए बैड बौय, यू नो,’’ बेटे ने बड़े स्टाइल से आंखें भटकाते हुए कहा.
‘‘बहुत शैतान है, कौन्वैंट में पढ़ता है न,’’ मां ने फिर उस की तारीफ की. बेटी मोबाइल में बिजी हो गई थी.
‘‘यार मौम मोबाइल दिला दो वरना मैं इस की ऐसी की तैसी कर दूंगा.’’
‘‘ऐसे नहीं कहते बेटा, गंदी बात,’’ मौम ने जबरन मुसकराते हुए कहा.
‘‘प्लीज मौम डौंट टीच मी लाइक ए टीचर.’’
अब तक चुप्पी साधे बैठे पापा ने उसे समझाना चाहा, ‘‘मम्मा से ऐसे बात करते हैं•’’
‘‘यार पापा आप तो बीच में बोल कर मेरा दिमाग खराब न करो,’’ कह बेटे ने खाई हुई चौकलेट का रैपर डब्बे में फेंक दिया.
‘‘यह तुम्हारी परवरिश का असर है,’’ बच्चे द्वारा की गई बदतमीजी के लिए पापा ने मां को जिम्मेदार ठहराया.
‘‘झूठ क्यों बोलते हो. तुम्हीं ने इसे इतनी छूट दे रखी है, लड़का है कह कर.’’
अब तक वह बच्चा जो कर रहा था और ऐसा क्यों कर रहा था, इस का जवाब वहां बैठे सभी लोगों को मिल चुका था.
दरअसल, हम छोटे बच्चों के सामने बिना सोचेसमझे किसी भी मुद्दे पर कुछ भी बोलते चले जाते हैं, बगैर यह सोचे कि वह खेलखेल में ही हमारी बातों को सीख रहा है. हम तो बड़े हैं. दूसरों के सामने आते ही अपने चेहरे पर फौरन दूसरा मुखौटा लगा देते हैं, पर वे बच्चे हैं, उन के अंदरबाहर एक ही बात होती है. वे उतनी आसानी से अपने अंदर परिवर्तन नहीं ला पाते. लिहाजा उन बातों को भी बोल जाते हैं, जो हमारी शर्मिंदगी का कारण बनती हैं.
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आज के इस व्यस्ततम दौर में अकसर बच्चों में बिहेवियर संबंधी यही समस्याएं देखने को मिलती हैं. जैसे मनमानी, क्रोध, जिद, शैतानी, अधिकतर पेरैंट्स की यह परेशानी है कि कैसे वे अपने बच्चों के बिहेवियर को नौर्मल करें ताकि सब के सामने उन्हें शर्मिंदा न होना पड़े. बच्चे का गलत बरताव देख कर हमारे मुंह से ज्यादातर यही निकलता है कि अभी उस का मूड सही नहीं है. परंतु साइकोलौजिस्ट और साइकोथेरैपिस्ट का कहना है कि यह मात्र उस का मूड नहीं, बल्कि अपने मनोवेग पर उस का नियंत्रण न रख पाना है.
इस बारे में बाल मनोविज्ञान के जानकार डा. स्वतंत्र जैन आरंभ से ही बच्चों को स्वविवेक की शिक्षा दिए जाने के पक्ष में हैं ताकि बच्चा अच्छेबुरे में फर्क करने योग्य बन सके. अपने विचारों को बच्चों पर थोपना भी एक तरह से बाल कू्ररता है और यह उन्हें उद्वेलित करती है.
क्या करें
क्या न करें
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बीते दिनों एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) के सुसाइड के बाद बौलीवुड में मानो नेपोटिज्म को लेकर जंग छिड़ गई है. जहां कंगना सुशांत के सपोर्ट में आकर बौलीवुड स्टार किड्स के खिलाफ जंग छेड़ रही हैं तो वहीं आलिया भट्ट की मम्मी सोनी राजदान (Soni Razdan) अपनी बेटी के सपोर्ट में खड़ी होती नजर आई हैं. वहीं अब एक्टर सैफ अली खान ने भी नेपोटिज्म को लेकर अपने एक्सपीरियंस को शेयर किया है, जो सोशलमीडिया पर काफी वायरल हो रहा है. वहीं कुछ लोगों को सैफ अली खान (Saif Ali Khan) को उनके इस बयान पर ट्रोल करना शुरू कर दिया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…
नेपोटिज्म के शिकार हो चुके हैं सैफ
Dear Saif,
You were flop for so many years, despite that you keep getting opportunities unless you did Dil Chahta Hai , All your films were sheer crap you keep getting work because you belong to the fraternity.#SaifAliKhan pic.twitter.com/nAmdiPhNWW
— नादान परिंदा (@ThatSaneGuy_) July 2, 2020
एक इंटरव्यू के दौरान एक्टर सैफ अली खान ने नेपोटिज्म को लेकर बताया कि शुरूआती दिनों में वो भी नेपोटिज्म के शिकार हो चुके हैं. ‘भारत में हर जगह असमानता है, जिसके बारे में बात होनी चाहिए. नेपोटिज्म, फेवरेटिज्म और कैम्प अलग बात है. मैं भी नेपोटिज्म का शिकार हो चुका हूं लेकिन कोई उस बारे में बात नहीं करता है. मुझे खुशी है कि बाहर से इतने लोग इंडस्ट्री में आ रहे हैं और अपनी जगह बना रहे हैं.’
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Karan johar after seeing the news of Saif Ali Khan being victim of nepotism 🥴#Saifalikhan pic.twitter.com/kuvhK7Gnuq
— Parikshit singh Pratihar (@Im_pratihar07) July 2, 2020
नेपोटिज्म पर बयान को लेकर ट्रोलिंग का शिकार हो रहे सैफ
#SaifAliKhan, return the National Award you got because of your mommy and then let’s talk about nepotism. pic.twitter.com/LggkGHOtkl
— Curious Cat (@Curiouscatweets) July 2, 2020
सैफ अली खान के नेपोटिज्म पर दिए इस बयान के बाद ट्रोलर्स उनका मजाक उड़ा रहे हैं. लोग मानने के लिए तैयार नहीं है कि एक्टर सैफ अली खान ने भी नेपोटिज्म का सामना किया है. इसी को लेकर एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा है, ‘शर्मीला टैगौर और मंसूर अली खान पटौदी का बेटा सैफ अली खान कह रहा है कि उसने नेपोटिज्म का सामना किया है. अब तो मौत आ जाए, गम नहीं…’
ट्रोलर्स ने उठाया सवाल
Not only Saif Ali Khan but also Taimur has been a victim of Nepotism 😅#SaifAliKhan #TaimurAliKhan pic.twitter.com/UdRTo9Jrp4
— Bhushan Joshi (@mejoshibhushan) July 2, 2020
दूसरे यूजर ने ट्वीट कर सैफ अली खान को मिले नेशनल अवॉर्ड पर सवाल उठाया है, ‘सैफ अली खान को फिल्म हम तुम के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला था, इसी साल शाहरुख खान की स्वदेस रिलीज हुई थी. फिर भी सैफ नेपोटिज्म की बात कर रहे हैं.’
Saif Ali Khan is talking about nepotism and saying that he’s been a victim of it
Meanwhile: pic.twitter.com/EomVanjWAb
— Ritesh Guru (@engineer_guruji) July 2, 2020
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बता दें, बीते दिनों कई सेलेब्स नेपोटिज्म को लेकर सामने आए हैं और अपनी कहानी बताई है, जिसके बाद बौलीवुड में नेपोटिज्म को लेकर लोगों का गुस्सा बढ़ रहा है. हाल ही में सोनू निगम से लेकर मोनाली ठाकुर ने अपनी जर्नी को शेयर करते हुए नेपोटिज्म की बात शेयर की थी.
साल 2020 बौलीवुड सितारों के लिए अच्छा साल साबित नहीं हुआ है. बीते दिनों जहां एक्टर ऋषि कपूर (Rishi Kapoor), इरफान खान (Irrfan Khan) और म्यूजिक कंपोजर वाजिद खान (Wajid Khan) ने दुनिया को अलविदा कहा तो एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) के सुसाइड के बाद बौलीवुड सदमें में आ गया. वहीं अब बौलीवुड की एक और पौपुलर सेलेब्स में से एक कोरियोग्राफर सरोज खान (Saroj Khan) ने भी 71 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया है. आइए आपको बताते हैं कोरियोग्राफर सरोज खान के निधन की वजह…
सांस में दिक्कत होने के चलते हुई थीं एडमिट
पिछले हफ्ते सरोज खान को मुंबई के गुरु नानक अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. सांस की दिक्कत के चलते सरोज खान को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जिसके बाद उनका कोरोना वायरस टेस्ट भी करवाया गया था, जो कि निगेटिव निकला था, लेकिन आज सुबह यानी 3 जुलाई की सुबह उन्हें कार्डियक अरेस्ट आया, जिसके बाद उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा, जिसकी जानकारी उनकी बेटी ने दी.
An era ended with her😔💔
Thank u for giving her a tribute last year..
She will be missed forever 💔😔 pic.twitter.com/ifceP8TlH2— Muskan Sharma🤟😎 (@Muskan10sharma) July 3, 2020
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माधुरी दीक्षित ने ऐसे दी श्रद्धांजलि
I’m devastated by the loss of my friend and guru, Saroj Khan. Will always be grateful for her work in helping me reach my full potential in dance. The world has lost an amazingly talented person. I will miss you💔 My sincere condolences to the family. #RIPSarojji
— Madhuri Dixit Nene (@MadhuriDixit) July 3, 2020
सरोज खान और माधुरी दोस्ती और रिश्ता गुरु शिष्या का है, जिसे हर कोई जानता हैं. वहीं सरोज खान के निधन के बाद माधुरी दीक्षित ने अपना दर्द बयां करते हुए लिखा कि मैं अपने दोस्त और गुरु, सरोज खान के निधन से सदमें में हूं. डांस में जी जान लगाने के लिए मेरी मदद करने के लिए मैं हमेशा उनके काम के लिए आभारी रहूंगी. दुनिया ने एक अद्भुत प्रतिभाशाली व्यक्ति को खो दिया है. मुझे तुम्हारी याद आएगी. परिवार के प्रति मेरी सच्ची संवेदना.
सेलेब्स दे रहे श्रद्धांजलि
Woke up to the sad news that legendary choreographer #SarojKhan ji is no more. She made dance look easy almost like anybody can dance, a huge loss for the industry. May her soul rest in peace 🙏🏻
— Akshay Kumar (@akshaykumar) July 3, 2020
कोरियोग्राफर सरोज खान ने बॉलीवुड की कईं हस्तियों के साथ काम किया है, जिसके चलते सभी उन्हें सोशलमीडिया पर श्रद्धांजलि दे रहे हैं. एक्टर अक्षय कुमार ने अपना दुख जताते हुए ट्वीट किया है कि, ‘बुरी खबर के साथ उठा…शानदार कोरियोग्राफर सरोज खान नहीं रहीं. उन्होंने डांस को इतना आसान बना दिया था कि जैसे कोई भी डांस कर सकता है. इंडस्ट्री को बड़ा नुकसान हुआ है. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे.’
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बता दें, बॉलीवुड सेलेब्स सरोज खान को प्यार से ‘मास्टरजी’ कहा करते थे और हमेशा प्यार से उनकी डांट भी सुन लिया करते थे. अपने पूरे करियर में सरोज खान ने लगभग 2000 गानों को डायरेक्ट किया, जिसमें उनके साथ माधुरी दीक्षित और श्रीदेवी जैसे सितारों ने लम्बे समय तक काम किया. वहीं आखिरी फिल्म की बात की जाए तो सरोज खान ने करण जौहर की फिल्म ‘कलंक’ में माधुरी दीक्षित के साथ काम करती नजर आईं थीं.
कोरोना के चलते भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक देश में डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा दे रहे हैं. वर्ष 2021 तक देश में डिजिटल लेनदेन चारगुना बढ़ने की उम्मीद है. देश में अधिकतर लोग डिजिटल लेनदेन के लिए यूपीआई यानी यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस का काफी इस्तेमाल करते हैं. इस के जरिए हर महीने करोड़ों का लेनदेन होता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि यूपीआई आखिर कितना सुरक्षित है. यही नहीं डिजिटल लेनदेन ग्राहकों के लिए लाभदायक होने के साथसाथ ठगी का माध्यम भी बन रहा है.
देश में तकनीकी उन्नति के साथ ही ऑनलाइन धोखाधड़ी ने भी तेजी से पांव पसारने शुरू कर दिए हैं. साइबर ठग लोगों को खूब चूना लगा रहे हैं. हैकर्स आम लोगों को ठगने के लिए रोज नएनए तरीके ईजाद कर रहे हैं. आएदिन साइबर क्राइम की घटनाएं अखबारों की सुर्खियों में रहती हैं. इसलिए हम आप को सुरक्षित लेनदेन के लिए कुछ जरूरी बात बताने जा रहे हैं, जिन के माध्यम से आप धोखाधड़ी का शिकार होने से बच सकते हैं :
1. यूपीआई पिन का इस्तेमाल, सुरक्षित एप्लिकेशन पर ही करें
नुकसानदायक ऐप्लीकेशन आप के फोन के माध्यम से आप की निजी जानकारी का पता लगा सकते हैं. इस में भुगतान से जुड़ी जानकारी भी शामिल है. आप को ऐसी ऐप्लीकेशन से बचना चाहिए. अपने यूपीआई पिन का इस्तेमाल सजगता से करें, क्योंकि इस से आप जालसाजों के चंगुल में फंस सकते हैं. सावधानी के लिए भीम यूपीआई जैसी सुरक्षित ऐप्लिकेशन पर ही यूपीआई पिन का इस्तेमाल करें. अगर किसी वेबसाइट या फौर्म में यूपीआई पिन डालने के लिए लिंक दिया गया हो, तो उस से बचें.
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2. यूपीआई पिन सिर्फ मनीट्रांसफर के लिए करें इस्तेमाल
लेनदेन करते समय एक बात का विशेष ध्यान रखें कि आप से यूपीआई पिन डालने के लिए सिर्फ तब ही कहा जाएगा, जब आप को पैसे भेजने हों. यदि आप को कहीं से पैसे मिल रहे हैं और उस के लिए आप से यूपीआई पिन मांगा जा रहा है, तो समझ लें कि यह फ्रॉड हो सकता है. आप को जालसाज अपने जाल में फंसाने की कोशिश कर रहा है.
3. कस्टमर केयर से संपर्क
यदि आप को लेनदेन करने में कोई दिक्कत आ रही है और आप ग्राहक सेवा से संपर्क करना चाहते हैं, तो केवल पेमेंट ऐप्लीकेशन का ही इस्तेमाल करें. इंटरनैट पर दिए गए ऐसे किसी भी फोन नंबर पर कौल न करें, जिस की पुष्टि नहीं हुई हो.
4. यूपीआई पिन : किसी को न बताएं
यूपीआई पिन भी एटीएम पिन की तरह ही होता है. इसलिए इसे किसी के साथ साझा न करें. ऐसा करने पर जालसाज इस का गलत इस्तेमाल कर आप को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
5. क्या है यूपीआई पिन
यूपीआई यानी यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस एक अंतर बैंक फंड ट्रांसफर की सुविधा है, जिस के जरिए स्मार्टफोन पर फोन नंबर और वर्चुअल आईडी की मदद से पेमेंट की जा सकती है. यह इंटरनेट बैंक फंड ट्रांसफर के मकैनिज्म पर आधारित है.
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6. कैसे काम करता है यूपीआई पिन
एनपीसीआई द्वारा इस सिस्टम को कंट्रोल किया जाता है. यूजर्स यूपीआई से चंद मिनटों में ही घर बैठे पेमेंट के साथ मनी ट्रांसफर कर सकते हैं.
मौनसून आते ही बौलीवुड स्टार्स के नए-नए फैशन आ गए हैं. आजकल बौलीवुड एक्ट्रेसेस के बीच मौनसून में नियोन कलर ट्रैंड में हैं. आए दिन कोई न कोई बौलीवुड सेलेब नियोन कलर के कौम्बिनेशन में नजर आ रहें हैं. हाल ही में एक्ट्रेस मलाइका अपने वेकेशन के दौरान नियोन कलर को कैरी करती हूं नजर आईं थीं. ऐसे ही और भी कईं स्टार्स हैं जो नियोन को मौनसून में ट्राय कर चुके हैं, जिसे आप भी मौनसून के दौरान ट्राय कर सकते हैं.
1. कृति का डैनिम विद नियोन है कमाल
हाल ही में बौलीवुड एक्ट्रेस कृति सेनन अपने दोस्तों के साथ वेकेशन मनाती हुई नियोन कलर के कौम्बिनेशन में नजर रहीं थी, जिसमें वह खूबसूरत लग रही थीं. कृति ने जैनिम शौर्ट्स के साथ नियोन टौप कैरी किया था, जो उनके लुक को सिंपल लेकिन मौनसून के लिए परफेक्ट बना रहा था.
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2. दीपिका का नियोन गाउन भी है पार्टी परफेक्ट
अगर आप भी किसी पार्टी या फंक्शन में कुछ नया ट्राय करना चहती हैं तो दीपिका ये नियोन कलर में नेट गाउन ट्राय कर सकती हैं. ये आपको पार्टी में सबसे अलग और खूबसूरत दिखाएगा.
3. सोनाक्षी का क्रौप टौप लुक भी करें ट्राय
अगर आप भी कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं तो एक्ट्रेस सोनाक्षी का ये लुक आपके लिए परफेक्ट है. फुल नियोन आउटफिट आपके लुक पर चार चांद लगाएगा. साथ ही ये लुक कम्फरटेबल के साथ-साथ सेक्सी भी है.
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4. कियारा का भी ये नियोन लुक करें ट्राई
आजकल एक्ट्रेस कियारा आडवानी अपनी फिल्म के प्रमोशन को लेकर कोई कसर नही छोड़ रही हैं. फिल्म रीलिज होने के बाद भी कियारा नए-नए फैशन में नजर आती हैं, जिनमें ये लुक भी है. हाल ही में कियारा नियोन टौप के साथ स्किन कलर की पैंट के कौम्बिनेशन में नजर आईं, जिसमें वह कमाल लग रहीं थीं. आप चाहें तो कियारा की तरह नियोन कलर को पैंट के साथ मौच कर सकती हैं ये आपके लुक को परफेक्ट बनाएगा और साथ ही लोगों की बीच आप अट्रेक्टिव भी लगेंगी.
पिछले कुछ दिनों में कई समाजशास्त्रियों ने फिल्मों के लिए अंगतरंगता दर्शाने की शूटिंग को लेकर आयी समस्या के बारे में लिखा है. साथ ही यह भी अनुमान लगाया गया है कि इस समस्या को तकनीक के जरिये किसी हद तक दूर कर दिया जायेगा. लेकिन अभी शायद समाजशास्त्रियों का ध्यान खिलाड़ियों की ओर नहीं गया. कोविड-19 के बाद जिन्हें अनगिनत किस्म के निर्देशों का पालन करना पड़ रहा है, जिसमें सबसे ज्यादा निर्देश दो खिलाड़ियों के आपस में एक दूसरे को स्पर्श करने को लेकर हैं.
यही कारण है कि जहां टेनिस और रैकेट आधारित दूसरे खेलों में खिलाड़ियों ने पिछले दिनों लाॅकडाउन के दौरान भी किसी हद तक मैदानी प्रैक्टिस की, वहीं पहलवान, बाॅक्सर, कबड्डी के खिलाड़ी, फुटबाॅलर और क्रिकेट जैसे खेल के खिलाड़ियों को लाॅकडाउन के दौरान टेªनिंग जारी रखने में बहुत दिक्कतें आयी हैं. कारण यह कि इन तमाम खेलों में खिलाड़ी एक दूसरे को छुए बिना रह ही नहीं सकते. जिन देशों के खिलाड़ियों ने सख्ती से इन निर्देशों का पालन नहीं किया, वहां बड़ी संख्या में खिलाड़ी कोरोना पाॅजीटिव हो गये हैं. जैसे पाकिस्तान में 7 इंटरनेशनल और करीब 24 नेशनल स्तर के क्रिकेटर कोरोना पाॅजीटिव पाये गये हैं. अगर इनमें पूर्व खिलाड़ियों को जोड़ लें तो यह संख्या 100 के ऊपर जाती है.
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हमारे यहां फिलहाल संक्रमित खिलाड़ियों की संख्या तो बहुत नहीं है, लेकिन एक बात जो सिर्फ हमारे यहां ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में देखी जा रही है वह यह है कि कोविड-19 के बाद मैदान में किये जाने वाले अभ्यासों से ज्यादातर खिलाड़ी वंचित हैं, वे फुटबाॅल से लेकर क्रिकेट तक का इन दिनों स्क्रीन में आभासी अभ्यास कर रहे हैं जैसे- राहुल पटेल को लें. 16 साल के राहुल को उम्मीद थी कि इस साल वह मुंबई की तीन चार ट्राॅफियों में से किसी एक ट्राॅफी के लिए अपने स्कूल से जरूर खेलेगा. लेकिन लाॅकडाउन के चलते सारी योजनाएं धरी की धरी रह गई.
लाॅकडाउन और इसके बाद बढ़ते संक्रमण के कारण राहुल दोस्तों के साथ मुंबई के आझाद मैदान जाकर पै्रक्टिस भी नहीं कर पा रहा. वह इन दिनों दिनरात सिर्फ अपने लैपटाॅप के स्क्रीन में ही बाॅलिंग से लेकर बैटिंग तक का कृत्रिम अभ्यास कर रहे हैं. यह सिर्फ राहुल का किस्सा नहीं है तमाम उभरते हुए, उभरे हुए और स्थापित खिलाड़ियों का भी यही हाल है. हालांकि अनलाॅक 2.0 के बाद अब ज्यादातर जगहों में पार्क खोल दिये गये हैं, लेकिन स्टेडियमों के दरवाजों में अभी भी या तो ताले पड़े हैं या वहां कोई आ ही नहीं रहा. ऐसे खिलाड़ी जो अभ्यास कर रहे हैं, वह वास्तविक नहीं, एक वर्चुअल अभ्यास है. हालांकि अब आभासी खेल पहले जैसे नहीं रहे. कुछ साल पहले तक खेलने वाले को ही तय करना होता था कि वह हारे या जीते. प्रतिद्वंदी टीम को जिताये या खुद की टीम को. लेकिन अब ये वर्चुअल खेल इतने सरल रैखिक नहीं रहे.
अब माउस के जरिये स्क्रीन में धमाल मचाने वाले क्रिकेट और फुटबाॅल के तमाम ऐसे कंप्यूटर गेम्स हैं जिनमें यह नहीं तय किया जा सकता कि खेलने वाला हारे या जीते. जी हां, आप सही समझ रहे हैं, ये आर्टिफिशियल गेम भी अब धीरे धीरे वास्तविक खेलों की तरह अनप्रिडेक्टेबल होने की तरफ बढ़ रहे हैं यानी भले आप अपनी अंगुलियों के इशारे से स्क्रीन में फुटबाॅल के खिलाड़ियों को नचाते हों, लेकिन तमाम ऐसे गेम्स आ चुके हैं, जिनमें आप पहले से यह तय नहीं कर सकते कि कौन जीतेगा? कुल मिलाकर बात यह है कि अब ये कंप्यूटर गेम्स निरानिर आर्टिफिशियल नहीं रहे बल्कि इनमें आर्टिफिशियल रियलिटी कहीं ज्यादा मुखर हो गई हैं. पर सवाल है क्या जल्द ही वो दिन आने वाले हैं जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी या आईआर वास्तविकता पर विजय पा लेगी? यानी खिलाड़ी आभासी अभ्यासों के चलते वास्तविक अभ्यासों को टाटा टाटा, बाय बाय कर देंगे?
दूसरे शब्दों में कहें तो क्या एक दिन ऐसा भी आने वाला है जब हमें हाड़मांस के खिलाड़ियों को मैदान में गेंद और बाॅल के लिए जूझते देखने जैसा रोमांच विद्युत तरंगों के जरिये स्क्रीन पर बनने वाले आभासी खिलाड़ियों को भी देखकर होगा? अगर और सरल शब्दों में कहें तो क्या एक दिन वास्तविक खेलों को आभासी खेल बेदखल कर देंगे? अगर बहुत गहराई से देखें तो कहना होगा कि कई मायनों में ऐसा होगा नहीं बल्कि पहले ही हो चुका है.
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यदि आप आईरेसिंग जैसी प्रणालियों को नियमित देखते हों तो आपको एहसास होगा कि हाल के सालों में कैसे साल दर साल रफ्तार की एक नाजुक भौतकी ने अपना मजबूत अस्तित्व ग्रहण कर लिया है, जिसके चलते हम जानते बूझते हुए भी बार बार इस भ्रम के शिकार होने के लिए बाध्य हैं कि रेसिंग की रफ्तार नियंत्रित मशीनों की रफ्तार है या किसी भी तरह का जोखिम लेकर रफ्तार के असंभव का रोमांच पैदा करने वाले किसी इंसान की यानी जीते, जागाते, हाड़मांस वाले रेसर का कमाल है? हालांकि अभी पूरी तरह से संतुष्ट करने वाली कोई कृत्रिम तकनीक सौ फीसदी सच का भ्रम करने वाला जादू नहीं पैदा कर सकीं, कम से कम उन लोगों के लिए तो नहीं ही, जो इसके जानकार हैं.
लेकिन जिस तेजी से तकनीक की जीवंतता और इंसान का मशीनीपन बढ़ता जा रहा है,उसको देखते हुए तो यही लग रहा है कि आने वाले दिनों में पार्कों, मैदानों, स्टेडियमों और अपने कोटयार्ड तक में खेले जाने वाले वास्तविक खेलों को स्क्रीन में खेले जाने वाले कृत्रिम खेल जीवंतता और एहसास के स्तर पर पीछे छोड़ देंगे. लगता है बहुत जल्द वे दिन आने वाले हैं, जब कोई डिजिटल फुटबाॅल मैच देखते हुए लोगों के कलेजे धड़केंगे और हार जीत पर जबरदस्त भावनाएं आहत होंगी. क्योंकि तब ये हार जीत माउस से मैच नियंत्रित करने वाले के हाथ में नहीं होगा. तब यह अंजाने नतीजे के रूप में टपकेगा.
यूं तो कंप्यूटर आर्टिफिशियल गेम्स पहले से ही इस तरह की सनसनी लगातार पैदा कर रहे थे. लेकिन कोरोना के विश्वव्यापी संक्रमण ने लोगों को जब से घरों में कैद किया है या कैद मुक्त होने के बाद भी घरों तक सीमित कर दिया है, तब से आर्टिफिशियल गेम्स के प्रति लोगों का विशेषकर नयी पीढ़ी का रूझान कुछ ज्यादा ही हो गया है. …और हम सब जानते हैं कि जिस गतिविधि पर ज्यादा से ज्यादा लोग फोकस कर रहे होते हैं, वह गतिविधि जल्द से जल्द अपने प्रयोगों और सफलताओं की नयी ऊंचाईयों को छूती है. जब से लोग घरों में कैद हैं, वास्तविक गतिविधियां अवरूद्ध हैं, तब से बहुत तेजी से आभासी गतिविधियां नयी ऊंचाईयां छू रही हैं. यह स्वभाविक ही है. ऐसे में ये सवाल भी लगता है, अब वक्त गुजर जाने के बाद पूछे जा रहे हैं कि क्या एक दिन खेलों की वास्तविक गतिविधियों को वर्चुअल गतिविधियां बेदखल कर देंगी?
लगता है वो दिन दूर नहीं जब वास्तविक खेलों की जगह वर्चुअल खेल ले लेंगे. वर्चुअल रियलिटी ने वैसे भी जिंदगी के ज्यादातर क्षेत्रों में जबरदस्त असर डाला है. इससे लगता है कि अगर वास्तविक खेल पूरी तरह से समाप्त नहीं होंगे, तो भी ये कृत्रिम खेलों के लिए अपने हिस्से की बड़ी जगह छोडेंगे. दुनिया के ज्यादातर तकनीकी के विशेषज्ञ खासकर गेमिंग तकनीक के जानकार दावे के साथ कहते हैं कि अंततः आभासी वास्तविकता गेमिंग और तकनीकी के दूसरे क्षेत्रों में छा जायेगी. साल 2016 में पहली बार हेड फोन के जरिये वर्चुअल गेम्स ने एहसास और रोमांच की बिल्कुल वास्तविक सी लगने वाली ऊंचाईयां छुई थीं. सच बात तो यह है कि तभी से वर्चुअल रियलिटी को वह भव्यता और सम्मान मिला था, आज वह जिसके लिए जानी जा रही है.
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कुल मिलाकर जिस तरह से आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी ने नकली और असली के बीच दूरी मिटायी है, जिस तरह से नकली गतिविधियां बेहद जीवंत गतिविधियों में बदली हैं, उससे यही लगता है कि आने वाले दिनों में शायद वर्चुअल गेम्स और ज्यादा मजबूत होंगे तथा मैदानी और जिस्मानी खिलाड़ियों के इंट्रैक्शन घटेंगे.
कोरोना संकट में घरेलू झगड़े काफी बढ़ गए. पूजापाठ के हिमायती मंदिरों को खोल कर औरतों को भगवान की शरण में जा कर मुसीबत से बचने का उपदेश देने लगे. कोरोना संकट में भगवान के दरवाजे सब से पहले बंद होने से लोगों का भरोसा खत्म हो रहा था. ऐसे में चढ़ावा कारोबार बंद न हो जाए, इस के लिए धर्मस्थल खोलने की मांग हर धर्म में बढ़ने लगी.
जनता को यह पता चल चुका है कि धर्मस्थलों में जा कर कोरोना से बचाव नहीं हो सकता इस कारण अभी भी इन जगहों में लोगों की भीड़ नहीं दिख रही है. अब दान और चढ़ावा दोनों के लिए औनलाइन सुविधा भी पाखंडियों ने शुरू कर दी है. इस के बाद भी औरतों का भरोसा बढ़ नहीं रहा है. जिन मंदिरों में दर्शन करने वालों से ले कर पुजारी तक भय के साए में जी रहे हों वे भला दूसरों की दिक्कतों को कैसे दूर कर सकते हैं.
कोरोना संकट के दौरान तमाम मौलिक अधिकार खत्म से हो गए थे. लौकडाउन में पूजा करने के अधिकार को ले कर मंदिर और चर्च जैसे पूजास्थलों को खोलने की मांग अमेरिका से ले कर भारत तक एकसाथ उठने लगी, जबकि कोरोना संकट के दौर में केवल मंदिरों के खुलने पर रोक थी अपने घरों में पूजापाठ करने पर कोई रोक नहीं थी.
पूजास्थल खोलने की मांग के पीछे की वजह केवल इतनी थी कि मंदिरों के पुजारियों को चंदा नहीं मिल रहा था. मंदिरों के दानपात्रों में चढ़ावा नहीं जा रहा था. मंदिरों में दानचढ़ावा देने वालों में सब से बड़ी संख्या महिलाओं की ही रहती है. ऐसे में मंदिरों के लिए यह जरूरी हो गया था कि महिलाओं को मंदिरों तक लाने और पूजापाठ करने के लिए मंदिरों को खोला जाए.
3 माह के लौकडाउन में मंदिरों के पुजारियों और ब्राह्मणों के कुछ संगठनों ने इस बात के लिए लिखित मांग की कि पुजारियों के सामने रोजीरोटी का संकट पैदा हो गया है. ऐसे में मंदिरों के दरवाजे खोल दिए जाएं.
कोरोना संकट के समय मंदिरों और बाकी पूजास्थलों में तालाबंदी हो गई. मंदिरों का काम तो जनता के मिलने वाले दान और चढ़ावे पर टिका था. ऐसे में दान और चढ़ावा न मिलने से मंदिरों के सामने कमाई का संकट खड़ा होने लगा. मंदिरों के पास जो सोनाचांदी और चढ़ावा पहले से रखा था उसे वे इस संकट के दौर में भी नहीं निकालना चाहते थे. दूसरी तरफ जनता के मन में यह बात घर करने लगी थी कि जो मंदिर और भगवान ही कोरोना से डर कर अपने दरवाजे बंद कर चुके हैं वे भला जनता का कोरोना से बचाव कैसे कर सकते हैं.
ताकि धार्मिक भावनाएं बनी रहें
लौकडाउन के दौरान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता में धार्मिक भावना बनी रहे इस का पूरा प्रयास किया. ‘जनता कर्फ्यू’ के दिन 22 मार्च की शाम लोगों से ‘ताली और थाली’ बजाने का आग्रह किया. इस के बाद 24 मार्च के पूरा लौकडाउन करने के बाद ‘शंख,’ ‘ताली,’ ‘थाली’ और ‘दीए जला कर’ घरों में रहते हुए भगवान की पूजापाठ का संदेश दिया.
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धीरेधीरे कोरोना का संकट बढ़ता गया. किसी भी तरह का प्रयास काम नहीं आया. प्रधानमंत्री ने जनता में धार्मिक भावनाओं को जगाए रखने का प्रयास जारी रखा. उन्होंने जनता को यह भी भरोसा दिलाया कि नवरात्रि और रमजान का कोरोना पर प्रभाव पड़ेगा. कोरोना हारेगा. 3 माह के बड़े लौकडाउन के बाद भी कोरोना रुका नहीं तो मंदिरों के दरवाजे खोल दिए गए ताकि मंदिरों में दान और चढ़ावा आ सके.
मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाया जा सके, इस के लिए न केवल मंदिरों और पूजास्थलों को खोल दिया गया, बल्कि दर्शन करने वाले कोरोना से सुरक्षित रहें, इस के लिए वहां कुछ बदलाव भी किए गए, जिन में सब से बड़ा बदलाव यह हुआ कि मंदिरों में प्रसाद नहीं दिया जाएगा. दर्शन करने वाले मूर्तियों को नहीं छुएंगे.
मंदिरों के पुजारी मंदिर खोलने और पूजापाठ की मांग जरूर कर रहे थे पर कोरोना के डर का प्रभाव उन पर भी छाया हुआ है. मंदिर खोलने के सरकारी आदेश के बाद हर मंदिर ने कोरोना से सुरक्षित रहने के बदलाव किए. इस में दर्शन करने वालों को दूर से ही दर्शन करने के लिए कहा गया. मंदिरों को केवल आरती के समय ही खोला जा रहा. एकदूसरे से दूरी बना कर चलने और मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया.
मंदिर खोलने के पीछे की सब से बड़ी वजह यह थी कि अगर एक बार जनता के मन में यह बात बैठ गई कि मंदिर और भगवान हमारी रक्षा नहीं कर पाएंगे तो वह दोबारा आसानी से मंदिर नहीं जाएगी.
असल में धर्म भी नशे की ही तरह होता है. एक बार आदत छूट जाए तो दोबारा उस आदत का आना मुश्किल हो जाता है. जिस तरह से शराब बेचने वाले, पानगुटका बेचने वाले सरकार पर दबाव बना रहे थे उसी तरह से मंदिरों से जुड़े लोगों ने भी दबाव बनाना शुरू कर दिया. कोरोना लौकडाउन के दौरान केवल मंदिर बंद थे घरों से पूजापाठ करने पर रोक नहीं थीं. अगर बात दान और चढ़ावे की नहीं होती तो मंदिरों को खोलने की बात क्यों की जा रही थी. बात पूजा की नहीं दान और चढ़ावे की थी. मंदिरों से होने वाली कमाई की थी, जिस की वजह से मंदिरों का खोलना जरूरी हो गया था.
हटे नहीं दानपात्र
मंदिरों को आरती के समय खोले जाने की वजह यही है कि आरती के समय सब से अधिक चढ़ावा चढ़ाया जाता है. मंदिरों ने बहुत सारे बदलाव किए पर दानपात्र नहीं बदले. उन्हें बंद नहीं किया. आरती के समय मंदिर इसलिए खोले जा रहे ताकि आरती में भक्त पैसे चढ़ा सकें .
मगर किसी भी मंदिर में भक्तों की पहले जैसी भीड़ देखने को नहीं मिल रही है. अगर भगवान बचाव कर रहे होते तो मंदिरों के दरवाजे बंद नहीं होते. कम से कम मंदिरों में पुजारी
मास्क पहन कर या मुंह को ढक कर भक्तों से नहीं मिलते.
मंदिरों के बाहर पूजा की सामग्री बेचने वाली दुकानों में से ज्यादातर बंद हैं. मंदिरों को खोल कर यही प्रयास किया जा रहा है कि पूजा की सामग्री बेचने वालों का भी काम शुरू हो सके. असल में देखा जाए तो मंदिर, प्रसाद, चढ़ावा और मंदिरों के सामने खुली इन से संबंधित दुकानों का आपस में गहरा रिश्ता है. इन की रोजीरोटी मंदिरों में आने वाली जनता से ही चलती है.
कई छोटेबड़े मंदिरों के प्रबंधतंत्र ने इस पर भी अपना कब्जा कर लिया, जिस से मंदिर की अधिकृत दुकानों से ही यह सामग्री बेची जाने लगी. कई मंदिरों ने अपने ही परिसर में दुकानें बनवा दीं और इन से होने वाली आय पर टिक गए. जनता को मंदिरों तक आने के लिए दरवाजे इसलिए खोले गए ताकि मंदिरों और इन से जुड़े लोगों का कारोबार चलाया जा सके.
पूजापाठ से नहीं दूर हो रही दिक्कतें
कोरोना संकट के दौर में सब से अधिक प्रभाव महिलाओं पर ही पड़ रहा है. कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए खानेपीने की चीजों को सुरक्षित रखना, उन्हें धोना और साफ करना जैसे काम औरतों को करने पड़े. ‘वर्क फ्रौम होम’ में औरतों का घर से निकलना बंद हो गया पर उन्हें घर में रह कर काम करना पड़ा. ऐसे में सब से बड़ी परेशानी घर से निकल पाने और शौपिंग करने की सामने आने लगी. घर से बाहर निकलने पर उन्हें मनचाहा माहौल मिल जाता था जो घर में रहने से बंद हो गया.
घर में रहने, दोस्तों से दूरियां बढ़ने से औरतों में मानसिक तनाव बढ़ने लगा. घरों में लड़ाईझगड़े होने लगे. घरेलू झगड़ों के आंकड़े बताते हैं कि लौकडाउन में सब से अधिक पतिपत्नी के बीच विवाद हुए हैं. इन विवादों का सब से अधिक असर भी औरतों पर ही पड़ा है, जिस के कारण परिवार में तनाव बढ़ गया है. महिलाओं पर इस तनाव का सब से अधिक प्रभाव पड़ा है.
कोरोना संकट में मंदिरों में जाने के बाद भी महिलाओं को इन परेशानियों से छुटकारा नहीं मिलने वाला है. ऐसे में मंदिरों को खोलने और महिलाओं के वहां जाने से कोई लाभ नहीं होने वाला है.
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आंकड़े बताते हैं कि भारत में घरेलू हिंसा के मामले लौकडाउन के बाद से बढ़ गए. महिलाओं के खिलाफ अपराध में घरेलू हिंसा, छेड़छाड़ से जुड़ी शिकायतों में तेजी देखने को मिली. पत्नियों ने कहा कि पति हैं भड़ास निकालते हैं. पहले भी पतिपत्नी विवाद होता था पर लौकडाउन के कारण इन के घर रहने से ये झगड़े बढ़ गए. अब मारपीट के मामले होने लगे. ऐसे मामलों में शिकायत करने के लिए महिलाएं बाहर नहीं जा सकती थीं. लौकडाउन में व्यस्त पुलिस खुद ऐसी शिकायतें सुनने के पक्ष में नहीं थी.
मंदिरों में जाने से भी वहां पर भी इन परेशानियों का कोई अंत नहीं है. इन झगड़ों से बचने के लिए जरूरी है कि आपस में सुलहसमझौते से रहें. विवाद होने की दशा में मंदिर भी काम नहीं आएंगे.