इन 8 टिप्स को फौलो कर आप भी बन सकती हैं सफल गृहिणी

एक साथ कई काम करने के चक्कर में आप अवसाद से न घिरे इसलिए इन बातों को जिंदगी में जरूर अपनाइए:

1. प्रतिक्रिया दें:

जो कुछ भी आप के चारों ओर घट रहा है, उस के प्रति अपनी प्रतिक्रिया अवश्य व्यक्त करें. सब कुछ चुपचाप रोबोट की तरह न स्वीकारें. परिवर्तन की प्रक्रिया से उत्पन्न अपनी भावनाओं को स्वीकार करें. याद रखें, आप की भावनाओं को आप से बेहतर और कोई नहीं जान सकता. क्षमता से अधिक काम न करें: घर हो या दफ्तर, अच्छा बनने के चक्कर में न पड़ें. याद रखें, यदि आप अपनी क्षमता से बढ़ कर काम करेंगी तो आप को कोई मैडल तो मिलेगा नहीं, बल्कि लोगों की अपेक्षाएं और बढ़ जाएंगी. दूसरे-गलतियों का खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा. आज का जमाना टीम वर्क का है. इस से दूसरे के बारे में जानने या समझने में तो मदद मिलती ही है, थकान व तनाव से भी राहत मिलती है. घर के काम में भी घर वालों की मदद लें.

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2. पौजिटिव सोच:

गलतियों के लिए आप जिम्मेदार हैं, इस भावना को दिल से निकाल दें. इसी तरह दफ्तर में कोई प्रोजैक्ट हाथ से निकल गया हो, तो ‘‘यह काम तो मैं कर ही नहीं सकती’’ या ‘‘मैं इस काम के लायक ही नहीं हूं’’ जैसे नकारात्मक विचार दिमाग में न आने दें.

3. बनिए निडर:

कई बार मातापिता से मिले व्यवहार की जड़ें इतनी गहरी हो जाती हैं कि वयस्क होने पर भी उन से छुटकारा पाना मुश्किल हो जाता है. कुछ महिलाएं असंतुष्ट रिश्तों को सारी उम्र इसलिए बनाए रखती है, क्योंकि वे डरती हैं कि इन रिश्तों को तोड़ने से समाज में बदनामी होगी. लेकिन सच तो यह है कि आज के इस मशीनी युग में लोगों को इतनी फुरसत ही कहां है, जो दूसरों के बारे में सोचें. सभी अपनी दुनिया में जी रही हैं. इसी तरह यदि दफ्तर में भी अपने बौस से तालमेल न बैठा पा रही हों, तो तबादला दूसरे विभाग में करा लें.

4. कुदरत से जुड़ें:

सुबह सूर्योदय से पहले उठें तथा घूमने जाएं. घूमने के लिए वे स्थान चुनें जहां हरियाली हो. नदी, तालाब, झरने, समुद्र, बागबगीचों में घूमने से मनमस्तिष्क को राहत महसूस होगी.

5. समाधान ढूंढ़ें:

कितनी भी परेशानी हो उसे सहजता से लें. हड़बड़ी से परेशानी और बढ़ जाती है. धैर्य रख कर प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करें. उन पहलुओं पर विचार करें, जिन से आप की समस्या का समाधान मिल सकता है.

6. दिनचर्या बदलें:

रोजरोज आप एक ही काम कर के थक गई हैं, औफिस में भी बोरियत महसूस कर रही हैं, तो कुछ दिन बाहर घूमने जाएं या परिवार समेत पिकनिक पर जाएं. स्पा लें, पार्लर जाएं. कभीकभी छोटा सा ‘गैटटुगैदर’ भी मन को राहत देता है.

7. अच्छी श्रोता बनें:

यदि आप दूसरों की बात से सहमत नहीं हैं, तो भी बिना निर्णय लिए दूसरों की बात सुनें. वह क्या कह रहा है, उसे समझने की कोशिश करें और उसे एहसास दिलाएं कि आप उस की बात ध्यान से सुन रही हैं.

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8. फिट रहें:

स्वास्थ्य संबंधी किसी भी समस्या को नजरअंदाज न करें. अपना रूटीन चेकअप करते रहने से आप कई समस्याओं से बची रहेंगी. अंत में सारे काम किए जा सकते हैं, लेकिन सारे काम एक बार में नहीं किए जा सकते. स्त्री परिवार की केंद्र भी है और परिधि भी. उसे मां, पत्नी और वर्किंग वूमन बनने की जरूरत है, सुपर वूमन बनने की नहीं.

लॉकडाउन के बाद Yeh Rishta में आएंगे नए ट्विस्ट, नायरा और कार्तिक की जिंदगी में होगी नई एंट्री

कोरोनावायरस लॉकडाउन के कारण सीरियल्स की शूटिंग बंद है तो वहीं फैंस शो के सितारों से दोबारा शूटिंग की मांग कर रहे हैं. हाल ही में टीवी प्रौड्यूसर्स ने सीएम उद्धव ठाकरे से शूटिंग शुरू करने की इजाजत मांगी थी, जिसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि शूटिंग जल्द शुरू होगी. इसी बीच फैंस के लिए शो में आने वाले ट्विस्ट के भी खुलासे हो रहे हैं. स्टार प्लस के पौपुलर शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में भी मेकर्स ने नए ट्विस्ट के साथ नई एंट्री की तैयारी कर ली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आने वाला नया ट्विस्ट….

कीर्ति की होगी वापसी

शिवांगी जोशी और मोहसिन खान स्टारर सुपरहिट सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में जल्द ही नई हसीना की एंट्री होगी. ये नई हसीना कीर्ति के रोल में नजर आएंगी.  बता दें, कीर्ति के रोल में नजर आने वाली मोहेना कुमारी सिंह ने बीते साल शादी से पहले शो को अलविदा कह दिया था, जिसके बाद मेकर्स नए चेहरे की तलाश कर रहे थे.

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बेटी से मिलेंगे नायरा-कार्तिक

 

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Chaashni..rehearsals

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मोहसिन खान (Mohsin Khan) और शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) स्टारर ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) टेलीविजन जगत के मशहूर शोज में से एक है. लॉकडाउन से पहले सीरियल में दिखाया गया था कि कार्तिक और नायरा को पता चल गया है कि उनकी बेटी कायरा जिंदा है. ऐसे में दोनों ने अपनी बेटी को पाने के लिए हरसंभव कोशिश करते हुए नजर आए थे. वहीं लॉकडाउन के बाद औडियंस देखेंगे कि नायरा और कार्तिक अपनी बेटी से मिल जाएंगे और इस तरह से गोयनका परिवार में एक बार फिर से खुशियां दस्तक दे देंगी.

आदित्य का सच आएगा सामने

 

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बेटी के मिलते ही नायरा-कार्तिक को पता चलेगा कि आदित्य ही वो शख्स है जिसके चलते वह अपनी बेटी से दूर हो गए थे. ऐसे में जब नायरा और कार्तिक कायरा को घर ले आएंगे तो आदित्य का खून खौल जाएगा. आदित्य एक बार फिर से नायरा और कार्तिक की जिंदगी में तबाही लाने के लिए नए-नए प्लान बनाना शुरु कर देगा.

बता दें, हाल ही में शिवांगी के बर्थडे के दिन उनके दादा जी का निधन हो गया था, जिसके बाद वह सदमें में हैं. वहीं मोहसिन की बात करें तो वह फैंस के लिए लगातार फोटोज और वीडियो पोस्ट कर रहे हैं. वहीं फैंस दोनों से सवाल कर रहे हैं कि वह दोबारा कब साथ नजर आएंगे.

लॉकडाउन के चलते ‘Naagin 4’ से कटा Rashami Desai का पत्ता! पढ़ें पूरी खबर

कोरोनावायरस लॉकडाउन में धीरे-धीरे जहां छूट मिल रही है. वहीं कईं लोगों की नौकरी जाने का खतरा भी मंडरा रहा है. आम आदमी ही नहीं बड़े-बड़े सितारों पर भी इसकी मार पड़ रही है. हाल ही में खबर है एकता कपूर के सुचरनैचुरल शो नागिन 4 से एक्ट्रेस रश्मि देसाई (Rashami Desai) का पत्ता कटने वाला है. आइ आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

मेकर्स ने लिया ये फैसला

‘नागिन 4’ में शलाका के रोल में नजर आने वाली रश्मि देसाई (Rashami Desai) के सीरियल से निकाले जाने पर उनके फैंस को काफी दुख होने वाली है. रिपोर्ट्स की मानें तो कुछ समय पहले ही चैनल ने ‘नागिन 4’ के स्टारर्स के साथ मीटिंग की थी. इस मीटिंग में यह फैसला लिया गया है कि लॉकडाउन के बाद होने वाली शूटिंग में अब रश्मि देसाई (Rashami Desai)नहीं नजर आएंगी. शो के मेकर्स अब ‘नागिन 4’ के बजट को कम करना चाहते हैं. कोरोना वायरस लॉकडाउन की वजह से हो रहे नुकसान को झेलने के लिए ‘नागिन 4’ के मेकर्स ने यह बड़ा कदम उठाया है.

 

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सीरियल बंद होने का खतरा मंडरा रह है स्टार्स पर

रश्मि देसाई (Rashami Desai) ‘नागिन 4’ में काम करने के लिए मोटी रकम लेती हैं. मेकर्स लॉकडाउन के बाद रश्मि देसाई पर इतना खर्चा करने के लिए तैयार नहीं हैं. ऐसे में रश्मि देसाई को ‘नागिन 4’ से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि ‘नागिन 4’ के लीड एक्टर निया शर्मा और विजेंद्र कुमेरिया को भी निकाला जा सकता है और अगर ऐसा हुआ तो दूसरे सीरियल्स की तरह इस सीरियल के भी बंद होने के आसार है. लेकिन अब तक इन दोनों सितारों पर मेकर्स ने कोई फैसला नहीं लिया है लेकिन हो सकता है कि जल्द ही इन दोनों को भी शो से बाहर कर दिया जाए.

 

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बता दें, हाल ही में एकता कपूर और दूसरे सीरियल्स की निर्माताओं ने शूटिंग शूरू करने के लिए सीएम उद्धव ठाकरे से मीटिंग की थी, जिसकी जानकारी एकता कपूर ने सोशल मीडिया के जरिए दी है. मीटिंग की फोटोज शेयर करते हुए एकता कपूर ने लिखा कि, ‘हमने सीएम को बताया कि नए एपिसोड्स की कमी के चलते दर्शक पुराने शोज देख रहे हैं. हम सभी लोगों ने सीएम से अपील की है कि जल्द ही इस समस्या का समाधान किया जाए. अगर सरकार शूटिंग शुरु करने की इजाजत दे देती है तो हम सेट पर हर तरह की सावधानी बरतेंगे. इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए हम जल्द ही एक टीम का गठन करेंगे.’

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लॉकडाउन में इसे बनाना आसान नहीं था – श्रेया धन्वन्तरी

हिंदी फिल्म व्हाई चीट इंडिया में डेब्यू करने वाली अभिनेत्री श्रेया धन्वन्तरी दिल्ली की है. हिंदी के अलावा उसने तेलगू फिल्मों में भी अभिनय किया है.साल 2008 में मिस इंडिया रनर अप बनने के बाद उसने पहले मॉडलिंग शुरू की और बाद में फिल्मों और शोर्ट फिल्मों में काम करने लगी.

इनदिनों लॉक डाउन की वजह से श्रेया मुंबई में घर पर है और खुद लिखी कहानी ए वायरल वेडिंग की छोटी वेब सीरीज बनायीं, जो 8 एपिसोड में ख़त्म हो जाती है. इसकी एक एपिसोड की अवधि 8 मिनट से कम है, जिसे श्रेया ने लॉक डाउन के बाद बनायीं और रिलीज की है. ये पहली ऐसी वेब सीरीज है, जो लॉक डाउन के बाद बनायीं गयी है. अपनी इस कामयाबी से वह बेहद खुश है और आगे भी ऐसी कई कहानियां कहने की इच्छा रखती है. इस लॉक डाउन में कैसे उन्होंने काम को अंजाम दिया आइये जानते है उन्ही से.

सवाल-इस किस तरह की वेब सीरीज है?

यह एक अलग तरीके से लॉक डाउन के दौरान बनायीं गयी वेब सीरीज है. इसमें काम करने वाले कलाकार कभी किसी से मिले नहीं है. सबने घर पर रहकर शूट किया है. एडिटिंग से लेकर म्यूजिक सब कुछ मोबाइल पर हुआ है. सभी लोग अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग शहरों में रहते हुए काम किया है.

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सवाल-इसका ख्याल आपको कैसे आया?

मैं निर्माता निर्देशक राज एंड डीके के साथ एक दिन बात कर रही थी. उन्होंने ही घर पर बैठकर कुछ करने की सलाह दी. मुझे अच्छा लगा और मैंने इस पर सोचना शुरू किया, कहानी लिखी और पूरी वेब सीरीज बनायीं. ये पहली ऐसी वेब सीरीज है, जिसे लॉक डाउन के समय बनाया गया है.

सवाल-ये वेब सीरीज क्या कहना चाहती है?

ये एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के बारें में है, जिसकी शादी लॉक डाउन की वजह से प्रधान मंत्री ने कैंसिल करवा दी. ये एक जर्नी है, जिसमें शादी होगी या नहीं, कैसे होगी, आदि कई बातों पर प्रकाश डालती है. जब मैंने इस सीरीज को बनाकार एडिटिंग करवाने लगी, तो पता चला कि कई अलग-अलग तरीके से ऑनलाइन शादियाँ रियल में भी हो रही है, जो मुझे अच्छा लगा. जब मैंने लिखा तो पता नहीं चला था कि ऑनलाइन शादियाँ भी हो सकती है.  मुझे अच्छा लगा कि मेरा आईडिया असल जिंदगी में भी संभव हो सकता है.

सवाल-इसे बनाने में क्या-क्या कठिनाई आई ? क्या किसी प्रकार की वित्तीय समस्या हुई ?

मेरा पूरा कास्ट पूरी तरह से हेल्पफुल था. सबको इसे शूट करने की बारीकियां बतायीं गयी, जिसमें उनके लुक, एंगल, ड्रेस आदि सभी को समझाया गया. इससे शूटिंग करने में कोई समस्या नहीं आई. सबने आपने-अपने घरों में शूट किया. मैं अकेली घर में हूं, पर बाकी लोग अपने परिवार या दोस्तों के साथ रहते है. सभी को एक दूसरे का हेल्प मिला और मैं इधर वाट्स एप पर देखकर सुधार करती जाती थी. सभी को इन्टरनेट पर निर्भर रहना पड़ा. कई बार बिजली चली जाती थी, रुकना पड़ता था, लेकिन इस शो के जरिये मैं नए-नए लोगों से मिली हूं.

इसके अलावा बहुत समय और मेहनत लगी है. शूटिंग केवल 10 दिन में ख़त्म हो गया . पोस्ट प्रोडक्शन में 20 दिन लगे, क्योंकि कई लोग ओड़िसा और कर्नाटक में अभी रह रहे है. वित्तीय रूप से भी अधिक समस्या नहीं आई, क्योंकि इस तरीके की ये पहली सीरीज है, जिसे आज तक किसी ने किया नहीं, इसलिए इरोज की रिद्धिमा लुल्ला ने अपनी रूचि दिखाई और ये सीरीज बन गयी.

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सवाल-क्या आगे भी आपको लगता है कि ऐसे ही काम इंडस्ट्री में हो सकेगा?

आगे बताना अभी संभव नहीं, क्योंकि जब लॉक डाउन की बात शुरू हुई थी, तो किसी को भी लगा नहीं था कि ये लॉक डाउन इतने दिनों तक चलेगा. ये सही है कि थिएटर खुलने में समय लगेगा. ओटीटी में भी समय और नए कंटेंट की जरुरत होगी, क्योंकि जो बना था, उसे लोग रिलीज कर रहे है. ये कैसे होगा अभी समझना मुश्किल है.

सवाल-आगे क्या मेसेज देना चाहती है?

मैं सबसे यही कहना चाहती हूं कि लोग अपने घरों में रहकर इस बीमारी को फैलने से रोके. जो दिशा निर्देश सरकार और हेल्थ वर्कर्स ने जारी किये है, उसे माने. इस बीमारी से अपने आप को और परिवार को बचाएं. तभी इस लॉक डाउन से सबको मुक्ति मिलेगी. साथ ही हेल्थ वर्कर्स के काम की सराहना करें, जो इस मुश्किल घड़ी में काम कर रहे है.

 ‘झांसी की रानी’ सीरियल से बदली इस एक्ट्रेस की जिंदगी, अब करना चाहती हैं रियल लाइफ फिल्मों में काम

सीरियल ‘बालवीर’ में मेहर की भूमिका निभाकर चर्चित हुई अभिनेत्री अनुष्का सेन झारखण्ड की है. बचपन से ही उसे अभिनय का शौक था,जिसमें साथ दिया उसकी माँ राजरूपा सेन और पिता अनिर्बान सेन ने. वह सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती है. उसके फोलोवर्स करोड़ो में है. इसके अलावा उसने कई विज्ञापनों और फिल्मों में भी काम किया है. वर्ष 2018 में 20 टॉप यंग एचीवर्स का अवार्ड भी मिल चुका है. अनुष्का को डांस बहुत पसंद है और शामक डावर के डांस क्लास में नृत्य भी सीख चुकी है. स्वभाव से नम्र और चुलबुली अनुष्का इन दिनों लॉक डाउन में कई वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर कर रही है. रविन्द्रनाथ टैगोर के जन्म तिथि पर उसने एक ट्रिब्यूट वीडियो शेयर किया, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया. उसकी जर्नी के बारें में बात हुई, पेश है कुछ अंश.

सवाल-लॉक डाउन में कैसे समय बिता रही है?

मैं इस समय उन फिल्मों को देख रही हूं, जिसे व्यस्तता के करण देख नहीं पा रही थी. खासकर सत्यजित रे और आस्कर विनिंग फिल्में देख रही हूं. साथ ही पढाई भी कर रही हूं, क्योंकि 12वीं की मेरी एक पेपर बाकी है, जिसे अब जुलाई में शिड्युल कर दिया गया है, उसकी तैयारी कर रही हूं, इसके अलावा मैं यू ट्यूब के लिए कंटेंट बनाती हूं, जिसमें वीडियो सौंग खास होता है.

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सवाल-लॉक डाउन के बाद जिंदगी कठिन होने वाली है, आप इस बारें में क्या सोचती है, क्या होने वाला है?

इस समय कई बड़ी फिल्में थिएटर में न आकर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आ रही है. ये पिछले कुछ दिनों से ही शुरू हो चुका है, लोग व्यस्तता की वजह से ऑनलाइन फिल्में देखना पसंद कर रहे है. मैं भी बिंज वाच अधिक करती हूं. इसमें एक साथ बैठकर सारी सीरीज या फिल्म देखी जा सकती है. लॉकडाउन के बाद थोड़े दिन लोग थिएटर में जाकर फिल्म देखना पसंद भी नहीं करेंगे, ऐसे में ये ऑनलाइन फिल्में ही अधिक चलेगी. पहले थिएटर के बाद फिल्में ऑनलाइन आती थी. अब ऑनलाइन पहले और बाद में थिएटर में जाया करेगी. इसके अलावा लोगों के बीच में हायजिन बढ़ जाएगी. जिसमें क्रू मेम्बर से लेकर एक्टर एक्ट्रेस सभी इस नियम के तहत काम करना पसंद करेंगे. इससे किसी भी प्रकार की बीमारी आप तक नहीं पहुँच सकती. शूटिंग में भी मास्क और सेनिटाइजर का प्रयोग अधिक किया जायेगा. मेरे हिसाब से इस लॉक डाउन के बाद बहुत सारी पॉजिटिवनेस दिखाई पड़ेगी.

सवाल-लॉक डाउन की वजह से आपने क्या-क्या मिस किया है?

साल 2019 मेरे लिए बहुत अच्छा था, क्योंकि तब मुझे झाँसी की रानी शो मिली थी. उस जर्नी को मैंने बहुत एन्जॉय किया, कई अवार्ड्स भी मिले. कुछ फिल्में भी थी, जो कांस फिल्म फेस्टिवल में रिलीज होने वाली थी. मैं इस समय वहां होती और मेरे लिए एक बहुत बड़ी ओपर्चुनिटी थी, उसे मैंने मिस किया. मुझे सालों से कांस फिल्म फेस्टिवल में जाने की जाने की इच्छा है. वहां काफी जाने-माने लोग आते है,जिससे मुझे बहुत कुछ सीखने का मौका मिलता. इसके अलावा मैंने एक फिल्म भी की थी, जिसका पोस्ट प्रोडक्शन बाकी रह गया है, जो अभी चल रहा है. 12 वीं की बोर्ड परीक्षा की वजह से एक महीने मैंने कई सारे मीटिंग्स भी कैंसल किये थे.

सवाल-क्या आगे पढाई करने की इच्छा है ?

मुझे मॉस मीडिया में पढाई करनी है. मैं पर्दे पर ही नहीं पर्दे के पीछे की चीजों को भी सीखना चाहती हूं.

सवाल-आपके यहां तक पहुंचने में माता-पिता कितना सहयोग करते है?

मैंने 9 साल की उम्र से अभिनय शुरू किया था. माता-पिता का प्यार और हौसला मुझे हमेशा मिला है.   रानी लक्ष्मीबाई की शूटिंग के दौरान पिता ने ही मुझे कई बार घुड़सवारी,तलवारबाज़ी आदि में हौसला मिला, क्योंकि ये सब मेरे लिए करना आसान नहीं था. इस समय भी जब मैं इस लॉक डाउन से चिंतित होती हूं तो वे मुझे कुछ अच्छा करने या सीखने की सलाह देते है.

सवाल-अभी क्वारेंटाइन, मास्क, लॉक डाउन, माइग्रेंट वर्कर आदि कुछ शब्द हमारे डिक्शनरी में शामिल हो चुके है, क्या इसे लेकर कुछ नयी कहानी कहने की इच्छा रखती है?

ऐसे कुछ विदेशी फिल्म है, जो इस पर आधारित है, लेकिन अब ये हमारे जीवन में भी शामिल हो चुका है. ऐसी कहानी की हिस्सा अगर मैं बन सकूँ, तो ख़ुशी होगी, क्योंकि इन सब चीजों को मैंने करीब से जिया है. रियल कहानी मुझे प्रेरित करती है. इस अवस्था को केवल देश में ही नहीं, विदेश में भी लोगों ने फेस किया है. इसे बनाने वाले निर्देशकों में अनुराग कश्यप, सुजीत सरकार आदि कोई भी हो सकता है.

सवाल-किस कहानी ने आपकी जिंदगी बदल दी?

शो ‘झांसी की रानी’ ने मेरी जिंदगी बदल दी. वह एक लिजेंड्री चरित्र थी. एक फ्रीडम फाइटर की किरदार निभाना बहुत मुश्किल था. इस चरित्र के साथ बहुत बड़ी ट्रेनिंग और तैयारियां थी. उस जर्नी से बहुत कुछ सीखने को मिला.

सवाल-बांग्ला में कुछ करने की इच्छा है?

मुझे करने की बहुत इच्छा है, अच्छी स्क्रिप्ट की तलाश है. बहुत सारे फैन्स मुझे इस बारें में पूछते भी है कि मैं बांग्ला फिल्म या शो कब करुँगी. मैंने इंडो बॉलीवुड और हॉलीवुड कर लिया है. अब बांग्ला की बारी है.

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सवाल-कोरोना पॉजिटिव की वजह से देश में कई समस्याएं आ रही है, क्या मेसेज देना चाहती है?

डॉक्टर्स, नर्सेज, पुलिस कर्मी और सफाई कर्मी अभी दिन –रात काम कर रहे है. जबकि हम सब घर पर है. मैं उन सबको सैल्यूट करना चाहती हूं. वे लोग सुरक्षित रहे इसके लिए उन्हें सरकार की तरफ से हर सुविधा देने की जरुरत है. उनकी बाते आम लोगों को सुनने की भी आवश्यकता है. उनका सम्मान करे मारपीट न करें. मैं चाहती हूं कि जल्दी से पेंड़ेमिक ख़त्म हो जाय और हम सब फिर से काम पर लग जाएं.

बदलती जीवनशैली में हर उम्र की महिलाओं को चाहिए पुरुष दोस्त

..तो क्या भारतीय पुरुष बदल गए हैं? या वक्त ने उन्हें बदलने पर मजबूर कर दिया है. आज जीवनषैली काफी कुछ बदल गई है जिसमें आपोजिट सेक्स के दोस्त जिंदगी का जरूरी हिस्सा बन गए हैं. फिर चाहे बात पुरुषों की हो या महिलाओं की. पर चूंकि पुरुष हमेषा से महिलाओं से दोस्ती की फिराक में रहते रहे हैं इसलिए उनके संबंध में यह कोई चैंकाने वाली बात नहीं है. लेकिन महिलाओं के नजरिये से देखें तो यह वाकई क्रांतिकारी दौर है. जब हर उम्र की महिलाओं को पुरुष दोस्तों की जरूरत महसूस हो रही है और सहज बात यह है कि उसके सगे संबंधी पुरुष चाहे वह पिता हो, भाई हो या पति सब इस जरूरत को जानते हैं और इसे महसूस करते हैं.

दरअसल आज की इस तेज रफ्तार जीवनषैली में समस्याओं का वैसा वर्गीकरण नहीं रहा है जैसा वर्गीकरण आधी सदी पहले तक हुआ करता था. मगर जमाना बदल गया है. कामकाज के तौरतरीके और ढंग बदल गए हैं, भूमिकाएं बदल गई हैं इसलिए अब समस्याओं का बंटवारा या कहें वर्गीकरण महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग तरह का नहीं रह गया है बल्कि जो समस्याएं आज के कॅरिअर लाइफ में पुरुषों की हैं, वही समस्याएं महिलाओं की भी हैं. ऐसा होना आष्चर्य की बात भी नहीं हैै. जब महिलाएं हर जगह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हों तो भला समस्याएं कैसे अलग-अलग किस्म की हो सकती हैं. तनाव और खुशियां दोनों ही मामलों में पुरुष और महिलाएं करीब आ गए हैं. नई कामकाज की शैली में देर रात तक पुरुष और महिलाएं विषेषकर आईटी और इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में साथ-साथ काम करते हैं. ..तो दोनों के बीच इंटीमेसी विकसित होना भी आम बात है.

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स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक होते हैं. मगर पहले चूंकि पुरुषों और महिलाओं के काम अलग-अलग थे इसलिए पूरक होने की उनकी परिस्थितियां भी अलग-अलग थीं. आज जो काम वर्षाें से सिर्फ पुरुष करते रहे हैं, महिलाएं भी उन कामों में हाथ आजमा रही हैं तो फिर महिलाओं को इन कामों में मास्टरी हासिल करने के लिए दिषा-निर्देष किससे मिलेगा? पुरुषों से ही न? ठीक यही बात पुरुषों पर भी लागू होती है. वेलनेस और सौंदर्य प्रसाधन क्षेत्र में पहले इस तरह पुरुष कभी नहीं थे जैसे आज हैं. तो फिर भला इन क्षेत्रों में वह महिलाओं से ज्यादा कैसे जान सकते हैं? ऐसे में कामकाज के लिहाज से उनकी स्वाभाविक दोस्त कौन होंगी? महिलाएं ही न! चूंकि दोनों ने एक दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है, प्रवेष किया है इसलिए दोनों ही एक दूसरे के भावनात्मक और सहयोगात्मक स्तर पर भी नजदीक आ गए हैं. यह जरूरत भी है और चाहत भी. इसलिए पुरुषों और महिलाओं की दोस्ती आज शक के घेरों से बाहर निकलकर सहज स्वाभाविक पूरक होने के दायरे में आ गई है.

सिग्मंड फ्रायड ने 19वीं सदी में ही कहा था ‘आॅपोजिट सेक्स’ न सिर्फ एक दूसरे को आकर्षित करते हैं बल्कि प्रेरित भी करते हैं; क्योंकि दोनों कुदरती रूप से एक दूसरे के पूरक होते हैं. हालांकि इंसानों में यह भाव हमेषा से रहा है; लेकिन सामाजिक झिझक और मान्यताओं के दायरे में फंसे होने के कारण पहले स्त्री या पुरुष एक दूसरे की नजदीकी हासिल करने की स्वाभाविक इच्छा का खुलासा नहीं करते थे. मगर कामकाज के आधुनिक तौर-तरीकों ने जब एक दूसरे के बीच जेंडर भेद बेमतलब कर दिया तो इस मानसिक चाहत के खुलासे में भी न तो पुरुषों को ही, न ही महिलाओं को किसी तरह की दिक्कत नहीं रही.

पढ़ाई चाहे गांव में हो या शहरों में, अब आमतौर पर सहषिक्षा के रूप में ही हो रही है. पढ़ाई के बाद फिर साथ-साथ कामकाज और साथ-साथ कामकाज के बाद लगभग इसी तरह की जीवनषैली यानी ऐसे समाज में जीवन गुजारना, जहां स्त्री और पुरुष के बीच मध्यकालीन भेद नहीं होता. ऐसे में पुरुष स्त्री एक दूसरे के दोस्त सहज रूप से बनते हैं. मगर यह बात तो दोनों पर ही लागू होती है फिर पुरुषों के बजाय महिलाओं के मामले में ही यह क्यों चिन्हित हो रहा है या देखने में आ रहा है कि आज हर उम्र की महिलाओं को पुरुष दोस्तों की जरूरत है? इसके पीछे वजह यह है कि महिलाओं के संदर्भ में यह नई बात है. यह पहला ऐसा मौका है जब महिलाएं खुलकर अपनी इस जरूरत को रेखांकित करने लगी हैं. जबकि इसके पहले तक वह घर-परिवार, समाज और जमाने की नाखुषी से अपनी इस चाहत और जरूरत को रेखांकित करने में झिझकती रही हैं. लेकिन इंटरनेट, भूमंडलीकरण और तेजी से आर्थिक और कामकाजी दुनिया मंे परिवर्तन के चलते जो आध्ुनिकता आयी है उसने यह वातावरण बनाया है कि महिलाएं अपनी बात खुलकर कह सकें, अपनी जरूरत को सहजता से सबके सामने रख सकें.

समाजषास्त्रियों को यह सवाल परेषान कर सकता है कि महिलाएं तो हमेषा से पुरुषों के साथ ही रही हैं. पति, पिता, पुत्र और भाई के रूप में हमेषा महिलाओं के साथ पुरुषों की मौजूदगी रही है. फिर उन्हें अपनी मन की बात शेयर करने के लिए या तनाव से राहत पाने के लिए अथवा कामकाज सम्बंधी सहूलियतें व जानकारियां पाने के लिए पुरुष दोस्तों की इतनी जरूरत क्यों पड़ रही है? दरअसल पति, पिता, पुत्र और भाई जैसे रिष्ते महिलाओं के पास सदियों से मौजूद रहे हैं और सदियों की परम्परा ने इनके कुछ मूल्यबोध भी निष्चित कर दिये हैं. इसलिए रातोंरात उन मूल्यों या बोधों को उलटा नहीं जा सकता. कहने का मतलब यह है कि पुरुष होने के बावजूद भाई, पिता, पति और पुत्र अपने सम्बंधों की भूमिका में ज्यादा प्रभावी होते हंै. इसलिए कोई भी महिला इन तमाम पुरुषों से सब कुछ शेयर नहीं कर सकती या अपनी चाहत या जिंदगी, महत्वाकांक्षाओं और दुस्साहसों को साझा नहीं कर सकती जैसा कि वह किसी पुरुष दोस्तों से कर सकती है.

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इसलिए इन तमाम पुरुषों के बावजूद महिलाओं को आज की तनावभरी जीवनषैली में सफलता से आगे बढ़ने के लिए घर के पुरुषों से इतर पुरूष दोस्तों की षिद्दत से जरूरत महसूस होती है. 10 या 12 घंटे तक लगातार पुरूषों के साथ काम करने वाली महिलाएं उनके साथ वैसा ही बर्ताव नहीं कर सकतीं जैसा बर्ताव वह अपनी निजी सम्बधों वाले जीवन में करती हैं. 8 से 12 घंटे तक लगातार काम करने वाली कोई महिला सिर्फ सहकर्मी होती है और उतनी ही बराबर जितना कोई भी दूसरा पुरुष सहकर्मी यानी वह पूरी तरह से सहकर्मी के साथ स्त्री के रूप में भी होती है और पुरूष के रूप में भी. यही ईमानदारी दोनों को आकर्षित भी करती है और प्रेरित भी करती है. जिससे काम, बोझ की बजाय रोमांच का हिस्सा बन जाता है. इसलिए तमाम सगे संबंधी पुरुषों के बावजूद महिलाओं को आज की जिंदगी में सहजता से संतुष्ट जीवन जीने के लिए हर मोड़ पर, हर कदम पर पुरुषों के साथ और उनसे दोस्ती की दरकार होती है.

यह देखा गया है कि जहां पुरुष-पुरूष काम करते हैं या सिर्फ महिला-महिला काम करती हैं, वहां न तो काम का उत्साहवर्धक माहौल होता है और न ही काम की मात्रा और गुणवत्ता ही बेहतर होती है. इसके विपरीत जहां पुरूष और महिलाएं साथ-साथ काम करते हों, वहां का माहौल काम के लिए ज्यादा सहज, अनुकूल और उत्पादक होता है. इसलिए तमाम कारपोरेट संगठन न सिर्फ पुरुषों और महिलाओं को साथ-साथ काम में रखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं बल्कि उनमें दोस्ती पैदा हो, गाढ़ी हो इसके लिए भी माहौल का सृजन करते हैं. यही कारण है कि आज चाहे वह स्कूल की किषोरी हो, काॅलेज की युवती हो, दफ्तर की आकर्षक सहकर्मी हो या कोई भी हो. हर महिला को अपनी दुनिया में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए पुरुषों का साथ चाहिए. यह बुरा कतई नहीं है बल्कि बेहतर समाज का बुनियादी रुख ही दर्षाता है. अगर पुरुष और महिला एक दूसरे के दोस्त होंगे, एक दूसरे के ज्यादा नजदकी होंगे तो वह एक दूसरे को ज्यादा बेहतर समझेंगे और ज्यादा बेहतर समझेंगे तो दुनिया ज्यादा रंगीन होगी.

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लॉकडाउन में किशोरों में बढ़ रही है घातक निष्क्रियता 

लॉकडाउन के इस चौथे चरण में काफी कुछ खुला हुआ है. दुकानें खुली हैं. बाजार खुले हैं. नियम के दायरे में आने जाने की भी छूट है. लेकिन स्कूल-काॅलेज अब भी बंद हैं. जिम अब भी बंद हैं. पार्कों में घूमने-फिरने और कसरत की तमाम गतिविधियां अब भी बंद हैं. खेल के मैदानों में खेल-कूद के आयोजन अब भी बंद हैं और सबसे बड़ी बात यह कि आपस में मिल जुलकर मटरगश्ती करने की अभी भी कतई छूट नहीं है. इस सबका नतीजा यह है कि देशभर में किशोर बेहद आलसी और निष्क्रिय हो गये हैं. इस बात की तस्दीक पिछले दिनों आया गैलप का सर्वे कर चुका है. इस सर्वे के निष्कर्षों और मौजूदा परिदृश्य को देखकर देश के फिटनेस विशेषज्ञों को चिंता है कि कहीं कोरोना का खौफ स्थायी रूप से हमारे किशोरों को निष्क्रियता की लत न लगा दे.

यह आशंका इसलिए भी पैदा हो रही है क्योंकि कोरोना के संकट के पहले भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भारतीय किशोरों के निरंतर निष्क्रिय होते जाने पर चिंता व्यक्त कर चुका है. यही नहीं डब्ल्यूएचओ भारत सहित इस तरह की समस्या से पीड़ित तमाम दूसरे देशों के युवाओं में फिजिकल एक्टिविटी को प्रोत्साहित करने के लिए एक नई ग्लोबल योजना ‘मोर एक्टिव पीपल फॉर अ हेल्दियर वल्र्ड’ (स्वस्थ संसार के लिए अधिक सक्रिय लोग) भी लांच कर चुका है, जिसका उद्देश्य साल 2030 तक विभिन्न आयु वर्गों में व्याप्त मौजूदा फिजिकल निष्क्रियता को 15 प्रतिशत तक कम करना है. शायद इस योजना को लांच करते समय डब्ल्यूएचओ ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसे जल्द ही आने वाले दिनों में लोगों को फिजिकल सक्रियता की बजाय घर में कैद रहने की सलाह देनी पड़ेगी.

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वैसे घर में कैद होने का निष्क्रिय होना नहीं है. लेकिन आमतौर पर हम भारतीय इतने आलसी और अनुशासनहीन हैं कि अगर हमें कहीं जाना न हो, हमारा एक नियमित रूटीन न हो तो हम ज्यादातर समय निष्क्रिय रहते हुए इंज्वाॅय करना चाहते हैं. शायद हमारी इन्हीं आदतों के चलते पिछले साल डब्ल्यूएचओ को हमारे लिए ‘मोर एक्टिव पीपल फॉर अ हेल्दियर वल्र्ड’ जैसी योजना लानी पड़ी थी, लेकिन पूरी दुनिया में फैले कोरोना संक्रमण और उसकी काट के लिए लगाये गये लॉकडाउन ने इस योजना को बेमतलब कर दिया है. इस लॉकडाउन संकट के पहले भी डब्ल्यूएचओ ने एक ताजा अध्ययन से यह चिंताजनक निष्कर्ष निकाले थे कि 2016 में ग्लोबली 81 प्रतिशत किशोर बहुत कम या फिर कहें कि जितना सक्रिय होना चाहिए, उससे कम शारीरिक रूप से सक्रिय थे.

डब्ल्यूएचओ ने कोरोना संक्रमण के पहले भी यह निष्कर्ष निकाला था कि भारत और हमारे जैसे ही दूसरे विकासशील देशों में औसतन 77.6 प्रतिशत लड़के असक्रिय हैं, जबकि इस संदर्भ में लड़कियों का प्रतिशत 84.7 है. यह सर्वे 146 देशों में 11 से 17 वर्ष के 16 लाख किशोर छात्रों पर किया गया था. हिंदुस्तान में डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पहले से ही हर चार में से तीन किशोर पर्याप्त सक्रिय नहीं थे. कहने का मतलब यह कि वे रोजाना कम से कम एक घंटे शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं थे. चूंकि पहले इस निष्क्रियता का सबसे बड़ा बहाना यही था कि हम सब बहुत व्यस्त हैं, इसके लिए हमारे पास वक्त नहीं हैं. मगर इस समय यह बहाना नहीं बनाया जा सकता. क्योंकि कम से कम कुछ और हो न हो इस समय हम सबके पास वक्त खूब है.

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लेकिन अपनी आलसी आदतों के कारण हमने लॉकडाउन को मानसिक के साथ साथ शारीरिक संकट में भी बदल दिया है. भारत में 73.9 प्रतिशत किशोर बहुत कम शारीरिक रूप से सक्रिय हैं, यह इस लॉकडाउन के पहले का डब्लूएचओ का निष्कर्ष था. अब शारीरिक रूप से निष्क्रिय रहने वाले किशोरों और युवाओं का प्रतिशत और ज्यादा बढ़ गया है. शारीरिक रूपसे पर्याप्त सक्रिय न होने के चलते सिर्फ हमारे चेहरे में ही कई परतें नहीं बनतीं बल्कि इसके चलते पैदा होने वाला मोटापा किसी को भी हृदय रोग, डायबिटीज, डिप्रेशन सहित तमाम शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के चक्रव्यूह में फंसा देता है. वैसे इस मामले में भारत की ही स्थिति खराब नहीं हैं, बांग्लादेश के किशोर हमारे किशोरों से भी कम सक्रिय हैं. दूसरे शब्दों में बांग्लादेशी किशोर भारतीयों से भी ज्यादा निष्क्रिय होते हैं.

लॉकडाउन के पहले भी हमारे ज्यादातर किशोर और युवा अपने स्मार्टफोन से चिपके रहते थे. लॉकडाउन के बाद यह स्थिति और गंभीर हो गई है. अब जबकि ज्यादातर समय घर में ही रहना होता है, तो भी हमारे किशोर और युवा लोग चैट और सैट में ही व्यस्त रहते हैं. पहले तो इसके लिए उलाहना भी था कि किशोर और युवा पार्कों में जाकर शारीरिक खेलकूद से बचते हैं, इन दिनों तो खैर इसकी मनाही ही है. अगर डब्ल्यूएचओ की मानें तो हमारे किशोरों को अधिक से अधिक एक्सरसाइज की जरूरत है. फिलहाल आउटडोर प्ले की पाबंदियों के कारण घरों में रहते हुए भी हम इन गतिविधियों को बढ़ा सकते हैं.

इस संबंध में आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) ने भी गंभीरता से किशोरों और युवाओं में बढ़ते मोटापे के कारणों का पता लगाने की कोशिश की है और इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि इसके लिए स्लीप एपनिया भी जिम्मेदार है जो कि एक किस्म का अव्यवस्थित नींद संबंधी परेशानी है. इसके चलते सही से नींद नहीं आती. एम्स दिल्ली में इस संबंध में छात्रों का मोटापे, डायबिटीज, ह्रदय रोग के खतरे जैसे कोलेस्ट्रॉल व ब्लड प्रेशर के लिए स्क्रीन किया और पाया कि मोटापा दर प्राइवेट स्कूलों में कहीं अधिक है. जहां बच्चे ज्यादा सम्पन्न परिवारों से आते हैं. डाटा के विश्लेषण से मालूम होता है कि ये बच्चे स्क्रीन (स्मार्टफोन, टेबलेट, गेमिंग कंसोल, लैपटॉप व टीवी) पर अधिक समय गुजारते हैं. साथ ही फिजिकल एक्टिविटी में कम शामिल होते हैं. इसके अलावा ये जंक फूड का भी अधिक सेवन करते हैं.

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फिजिकल असक्रियता यूं तो कोरोना संकट के चलते पूरी दुनिया की एक बड़ी समस्या है. लेकिन भारत में लोगों ने इसे कुछ और ही बड़ी समस्या इसलिए बना दिया है, क्योंकि हमने तमाम निर्देशों और सूचनाओं के बाद भी लॉकडाउन को एक पिकनिक जैसा ही ले रहे हैं. इन दिनों जबकि लॉकडाउन की अवधि में करीब 2 महीने बीत रहे है, एक अनुमान के मुताबिक गैर लॉकडाउन दिनों के मुकाबले मध्यवर्गीय घरों में डेढ़ से दो गुना ज्यादा खाना खाया गया है. भले बाहर से फास्ट फूड इस बीच घर न आये हों, लेकिन सोशल मीडिया में लोगों द्वारा शेयर किये गये व्यंजनों को देखें तो पता चलता है कि लॉकडाउन में घरों में जबरदस्त पकवान बने हैं. वास्तव में इस समस्या का बड़ा कारण हम भारतीयों की यही अनुशासनहीनता है.

आर्थिक विनाश की ओर भारत

केंद्र सरकार की दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों के चलते देश की अर्थव्यवस्था सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. हाल यह है कि अप्रैल महीने में तेजी से आगे बढ़ रही दुनिया की 10 अर्थव्यवस्थाओं में भारत सबसे पीछे है.

कोरोना और लौकडाउन की वजह से हुई आर्थिक तबाही को ही नहीं, बल्कि इसके पहले के तीनचार वर्षों के नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में हुई आर्थिक बदहाली को भी दुरुस्त करना होगा.

उधर, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा है कि इस साल सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी ग्रोथ नैगेटिव रहेगी. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने प्रैस कौन्फ्रैंस में कहा कि दुनियाभर में हालात चिंताजनक बने हुए हैं और लौकडाउन के कारण मांग में कटौती हुई है. दास ने कहा, ‘कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था को नुक़सान हुआ है.’

वहीं, भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का मानना है कि देश आर्थिक महाविनाश की कगार पर खड़ा है और अर्थव्यवस्था को सुधारना अकेले प्रधानमंत्री कार्यालय के बूते की बात नहीं है. इसलिए, पीएमओ व पूरी सरकार को पूर्व वित्त मंत्रियों समेत कई अर्थशास्त्रियों की मदद लेनी चाहिए और इसमें यह नहीं देखना चाहिए कि वह ऐक्सपर्ट किस राजनीतिक दल का है. उन्होंने इस पर चिंता जताई और कहा कि स्थिति बदतर हो सकती है.

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‘द वायर’ पोर्टल के साथ लंबी बातचीत में रघुराज राजन ने यह भी कहा कि सिर्फ नोवल कोरोना वायरस और लौकडाउन की वजह से हुई आर्थिक तबाही को ही नहीं, बल्कि इसके पहले के तीनचार वर्षों के दौरान हुई आर्थिक बदहाली को भी दुरुस्त करना होगा.

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने ज़ोर देकर कहा कि कोरोना वायरस से लड़ना जितना ज़रूरी है, उतना ही जरूरी अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना भी है.

रघुराम राजन ने कहा कि एअरलाइंस, पर्यटन, निर्माण और औटोमोटिव जैसे सैक्टर्स वाकई संकट में हैं. सरकार अमेरिका की तरह बड़े राहत पैकेज का एलान नहीं कर सकती, पर इन लोगों के लिए वह क़र्ज़ का इंतजाम कर सकती है.

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का एलान किया. उसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने काफी विस्तार से 5 चरणों में उस पैकेज के बारे में बताया. लेकिन पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस पैकेज का बड़ा हिस्सा पहले की रियायतों का है, जिसे इसमें जोड़ दिया गया है.

पैकेज का जो बचा हिस्सा है, वह बड़े पैमाने पर क़र्ज़ की गारंटी है. इसके अलावा कई बड़े और दूरगामी आर्थिक सुधारों को भी पैकेज में डाल दिया गया है. ये वैसे सुधार हैं, जिनका असर कई वर्षों बाद दिखेगा. पर ज़रूरत तो लोगों की स्थिति सुधारने की आज है.

वहीं, बदहाल अर्थव्यवस्था पर लौकडाउन का चाबुक पड़ने से उत्पादन, निर्यात और स्टौक मार्केट एकदम नीचे हो गए हैं. हाल इतना बुरा है कि पूरी दुनिया में सिर्फ तुर्की और मेक्सिको ही अप्रैल महीने में भारत से पीछे थे. लाइवमिंट ने एक अध्ययन में यह पाया है.

लाइवमिंट का ‘इमर्जिंग मार्केट्स ट्रैकर’ 7 संकेतकों को आधार बना कर अध्ययन करता है और पता लगाता है कि कौन देश किस स्थिति में है.

अप्रैल में एकत्रित किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत के निर्यात में 60 प्रतिशत की कमी आई. यह आगे बढ़ रही 10 अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज गिरावट है. ज्यादातर देशों में 5 से 25 फीसदी की कमी देखी गई. सिर्फ 2 देशों चीन और थाईलैंड का निर्यात इस दौरान बढ़ा है.

भारत का उत्पादन अप्रैल में 27.4 प्रतिशत गिरा. यह 10 इमर्जिंग मार्केट में सबसे बड़ी गिरावट है. एकमात्र चीन ऐसा देश है, जहाँ इस दौरान भी उत्पादन बढ़ा है.

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भारत ने जनवरी-मार्च के दौरान सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का आंकड़ा जारी नहीं किया है. इन्वैस्टमैंट बैंकिंग कंपनी गोल्डमैन सैक्स ने 17 मई को कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 45 फीसदी सिकुड़ जाएगी.

कुलमिला कर गरीबभारत की आर्थिक हालत बहुत ज्यादा दयनीय हो गई है. वक्त आ गया है कि केंद्र सरकार देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अपना ईगो त्याग कर विपक्षी दलों व योग्य अर्थशास्त्रियों की सलाह के साथ प्रभावी कदम बढ़ाए, वरना…

लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम में आने वाली दिक्कतों को ऐसे करें दूर

कोरोना ने इस वक्त सभी की जिंदगी को रोक सा दिया है और सबसे बड़ी समस्या तो ये है कि जो लोग डेली ऑफिस जाकर काम करते थे अब उनको वर्क फ्रॉम होम यानी की घर से ही काम करना पड़ रहा है. हालांकि इस बीच कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें ऐसी सिचुएशन में भी ऑफिस जाकर काम करना पड़ रहा है या बाहर निकलना पड़ रहा है जिन्हें हम कोरोना वारियर्स कह सकते हैं और कह नहीं बल्कि कहते हैं.क्योंकि वो अपनी जान जोखिम में डालकर देश के लिए काम कर रहे हैं.यहां सबसे बड़ी जिम्मेदारी डॉक्टर्स की है उसके बाद पुलिस, सफाईकर्मी, मीडिया कर्मी ये सभी अपनी-अपनी जिम्मेदारियां जान को खतरे में डालकर निभा रहे हैं.

अब बात करते हैं उन लोगों की जो अपने घर से बैठकर काम कर रहे हैं तो जाहिर है उन्हें भी दिक्कतें हो रही हैं क्योंकि जो कंफर्ट जोन उन्हें ऑफिस की चेयर पर बैठकर काम करने में मिलता है वो उन्हें घर में नहीं मिलता है और ना वैसा महौल मिलता है जो उन्हें ऑफिस में काम करने पर मिलता है, जिसके कारण उन्हें काफी दिक्कतें आती हैं.कहीं बेड पर बैठे-बैठे उनके कमर में दर्द होता है तो कभी गर्दन दर्द होने लगती है तो पेट में गैस की शिकायत होना होना भी लाजिम है.तो अब आप कैसे उस चीज से बच सकते हैं?

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तो आप इतना कर सकते हैं कि आपने जैसे ही काम शुरु किया तो आप पहले तो कुछ खा लें उसके बाद ही काम शुरु करें,इससे आपके पेट में ना गैस बनेगी और आपको पेट से संबंधित कोई भी परेशानी नहीं होगी.

जब भी आप काम करते हैं तो कोशिश करें की घर के किसी टेबल पर अपना सिस्टम रखें जो आपसे थोड़ी ऊंचाई पर हो और अगर आपके पास टेबल की सुविधा नहीं है तो कोशिश करें कोई और ऐसी जगह जो आपके घर में ऊंचाई पर हो वहां सिस्टम सेट करें यानी की आपका लैपटॉप ताकि आप काम सही से कर सकें.

अगर आप बिस्तर पर बैठकर काम कर रहे हैं तो भी आप लगातार ना बैठे और बीच-बीच में उठते रहें क्योंकि लगातार बैठने से भी आपको दिक्कत हो सकती है आपकी कमर में दर्द,पीठ में दर्द,गर्दन में दर्द ये सारी शिकायतें हो सकती हैं तो इसलिए आप बीच-बीच में उठकर छोटा सा ब्रेक जरूर लें और कुछ – न- कुछ खाते भी रहें.और जितना हो सके उतना इम्युनिटी सिस्टम बढ़ाने वाली चीजें खाएं लेकिन सावधानी के साथ.क्योंकि कोरोना किस सामाने के साथ आपके घर में प्रवेश कर जाए ये कह नहीं सकते हैं.इसलिए सावधानी जरूरी है.

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लोगों को लगता है कि घर पर काम करना बहुत आसान होता है लेकिन ऐसा नहीं होता है सबसे ज्यादा दिक्कतें आती हैं घर से काम करने में औऱ क्यों आती हैं ये आपको अबतक समझ आ चुका होगा इसलिए ये सारे उपाये अपनाएं औऱ खुद को सुरक्षित भी रखें.

शह और मात: भाग-2

पल्लवी बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गई. वहां रुक कर करती भी क्या, संजीव को शराब पीने के बाद होश ही कहां रहता था. वैसे भी अब तो उस की इच्छा पूरी हो गई थी. उस के हाथ में रुपए पहुंच गए थे. इसलिए वह कम से कम 2-4 दिन तो शांति से जी सकती थी.

कुछ देर बाद रसोई में खाना पकाते समय पल्लवी अपनी नियति के बारे में सोच रही थी. उसे वह दिन याद आ रहा था जब उस के परिवार वालों को उस के और पड़ोस में रहने वाले संजीव के रिश्ते के बारे में पता चला था. घर में कुहराम मच गया था. एक तो संजीव उस समय बेरोजगार था, ऊपर से पल्लवी के मातापिता और भाई की नजरों में उस की छवि कुछ खास अच्छी नहीं थी. उस समय पल्लवी की हालत चक्की के 2 पाटों के बीच पिसते गेहूं की तरह हो गई थी. एक तरफ पापा ने साफ कह दिया था कि वह अपनी बेटी का हाथ संजीव के हाथों में कभी नहीं देंगे. दूसरी तरफ संजीव उस पर शादी करने का दबाव बना रहा था.

पल्लवी समझासमझा कर‌ थक गई थी, मगर पापा और संजीव में से कोई भी झुकने के लिए तैयार नहीं हुआ. दोनों ने पल्लवी को जल्दी ही कोई निर्णय लेने के लिए कहा था.

इसलिए पल्लवी ने निर्णय ले लिया. उस ने अपने मातापिता और परिवार की मरजी के खिलाफ जा कर संजीव का हाथ थाम लिया. उसे संजीव पर इतना भरोसा था कि वह बिना कुछ सोचेसमझे अपना घर छोड़ कर उस के साथ चली आई. उस के मातापिता ने उसी समय उस से रिश्ता तोड़ लिया था. मां ने जातेजाते उस से कहा था कि एक दिन वह अपने इस फैसले पर जरूर पछताएगी.

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घर छोड़ने के बाद दोनों दिल्ली आ गए जहां उन्होंने शादी कर ली. संजीव को नौकरी भी मिल गई थी. शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा. पल्लवी अपने प्यार को पा कर बहुत खुश थी. लेकिन जैसेजैसे उस के सिर से नई शादी का खुमार उतरना शुरू हुआ, उसे संजीव का असली चेहरा नजर आने लगा. संजीव को शराब की लत थी. वह अकसर शराब के नशे में उस पर हाथ भी उठाने लगा था. सिर्फ यही नहीं, वह पैसे कमाने के लिए उलटेसीधे काम करने से भी बाज नहीं आता था. उस ने बहुत लोगों को चूना लगाया था. इन्हीं आदतों के चलते उस की नौकरी भी चली गई थी.

एक बार काम से निकाले जाने के बाद संजीव ने नौकरी ढूंढ़ने की जहमत नहीं उठाई.

तब घर चलाने के लिए पल्लवी ने एक औफिस में नौकरी कर ली. उसे सारी तनख्वाह ला कर संजीव के हाथों पर रखनी पड़ती. लेकिन उस से भी संजीव का पेट नहीं भरता. वह आएदिन उस से रुपए मांगता और जब पल्लवी उस की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाती तो वह उसे रूई की तरह धुन देता. अगले दिन वह उस से माफी मांग लेता और‌ पल्लवी उसे माफ भी कर देती. वह किसी भी कीमत पर संजीव से अलग नहीं होना चाहती थी. वापस लौट कर मांपिता के घर भी तो नहीं जा सकती थी.

जिंदगी इसी तरह ऊबड़खाबड़ रास्तों पर चल रही थी. समय के साथ संजीव की फरमाइशें बढ़ती जा रही थीं. जब उस के लिए पल्लवी की तनख्वाह कम पड़ने लगी तो उस ने एक रास्ता निकाला. वह चाहता था कि पल्लवी किसी आदमी को अपने प्रेमजाल में फंसा कर उस से ठगी करे. पल्लवी ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया. उसे हैरानी हो रही थी कि कोई पति अपनी पत्नी से ऐसा करने के लिए भी कह सकता है. लेकिन उसे कुछ ही दिनों में अपना फैसला बदलना पड़ा.

एक दिन जब संजीव लहूलुहान हालत में घर आया, तब उसे पता चला कि उस ने शराब और जुए के लिए कुछ गलत लोगों से बहुत मोटा कर्ज ले रखा है और वे लोग अपना पैसा वापस लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. जब उन लोगों से बचने और‌ उन का कर्ज चुकाने का और कोई रास्ता नजर नहीं आया, तो पल्लवी ने मजबूरन वही किया जो संजीव ने उसे करने के लिए कहा था.

पल्लवी का एक सहकर्मी दिनेश उसे पसंद करता था और यह बात उस से छिपी नहीं थी. पल्लवी ने पहले उस से दोस्ती की और फिर उसे अपनी दुखभरी दास्तान सुना कर धीरेधीरे उस के साथ नजदीकियां बढ़ाने लगी.

थोड़े ही दिनों में दिनेश उस की खातिर कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार हो गया. यहां से झूठीसच्ची कहानियां सुना कर पैसे ऐंठने का सिलसिला शुरू हो गया. दिनेश उस के झूठों को सच मान कर उस पर विश्वास करता गया. इस तरह कुछ महीनों में संजीव का सारा कर्ज उतर गया. लेकिन पल्लवी के लिए दिनेश को संभालना मुश्किल होता जा रहा था. वह उस से शादी करना चाहता था और कई बार उस के घर तक पहुंच गया था. अगर उसे सचाई पता चल जाती तो उन के लिए बड़ी मुसीबत हो जाती. पल्लवी उस के लाखों रुपए कहां से लौटाती.

अपनी पोल खुलने से बचाने के लिए संजीव और पल्लवी ने रातोरात शहर बदल लिया. शहर बदलने के बाद भी संजीव में कोई बदलाव नहीं आया. पल्लवी ने यहां भी नौकरी कर ली थी. वह संजीव से भी नौकरी ढूंढ़ने के लिए कहती‌ थी. लेकिन संजीव के दिमाग में तो कोई और ही खिचड़ी पक रही थी. कुछ ही दिनों में वह फिर से कर्ज में डूब गया था और उस ने पल्लवी पर दोबारा वही खेल खेलने का‌ दबाव बनाना शुरू कर दिया था. पल्लवी ने फिर से उस की बात मान ली.

बस इसी तरह शहर बदलबदल कर लोगों के साथ ठगी करना उन का पेशा बन गया था. लेकिन इस पेशे के भी कुछ नियम थे जो संजीव ने बनाए थे. उसे हर वक्त यह शक होता कि कहीं पल्लवी अपने शिकार के ज्यादा नजदीक तो नहीं जा रही है. और इस बात की झुंझलाहट वह उस पर हाथ उठा कर निकालता. कभीकभी पल्लवी को लगता था कि वह एक अंधे कुएं में गिरती जा रही है. वह जब भी संजीव से ऐसा करने के लिए मना करती, वह उस से वादा करता कि बस यह आखिरी बार है. इस के बाद वह खुद को पूरी तरह से बदल लेगा और वे दोनों एक नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे.

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पल्लवी न चाहते हुए भी उस पर भरोसा कर बैठती थी. उसे लगता था कि संजीव पर भरोसा करने के अलावा उस के पास विकल्प भी क्या था? अपने सारे रिश्तेनाते तो वह खुद ही पैरों तले रौंद आई थी.

कुछ महीने पहले इंदौर आने के बाद भी संजीव ने उस से वादा किया था कि वह अब सुधर जाएगा. लेकिन हुआ क्या, अब वह पैसों के लिए शरद जैसे शरीफ और अच्छे आदमी को बेवकूफ बना रही थी. इस बार भी संजीव ने वादा किया था कि यह उन की आखिरी ठगी है, क्योंकि नई जिंदगी शुरू करने के लिए रुपयों की जरूरत तो पड़ेगी ही.

उसे अकसर यह महसूस होता था कि वे पुरुष मूर्ख नहीं हैं जिन्हें उस ने ठगा है, असल में वह खुद मूर्ख है जो बारबार संजीव की बात मान लेती है.

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