#lockdown: कोरोनावायरस से बढ़ रही है लोगों में मानसिक समस्या

कोरोना वायरस के फैलने के कारण दुनिया के कई देशों के साथ भारत में भी लॉकडाउन घोषित कर दिया गया और अब भारत में लॉगडाउन की अवधि बढ़ाकर 3 मई तक कर दी गई है. इससे लोग घरों में रहने को मजबूर हो गए हैं. लगातार घरों में बंद-बंद रहने के कारण लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर खराब असर पड़ने लगा है. कोरोना वायरस संक्रमन लोगों के लिए जानलेवा तो साबित हो ही रहा है, इससे लोगों में मानसिक समस्याएँ भी बढ़ रही है. विभिन्न राज्यों में इसकी वजह से कम से कम एक दर्जन लोगों ने आत्महत्या कर ली है. केरल में तो 7 लोग लॉकडाउन के कारण शराब नहीं मिलने की वजह से अवसादग्रस्त होकर जान दे चुके हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना की वजह से सिर्फ भारत में लाखों संख्या में लोग मानसिक समस्याओं के शिकार हो रहे हैं. कई लोगों में तो पागलपन जैसे लक्षण भी उभर रहे हैं. लॉकडाउन में शराब न मिलने के कारण लोग पेंट, सैनिटाइजर और वार्निश जैसी चीजों का सेवन कर रहे हैं और जिसके चलते दो लोगों की मौत भी हो चुकी है.

कोरोना के फैलने का जितना डर लोगों को बाहर जाने पर लग रहा है उतना ही मानसिक डर लोगों को अब घर में रहते हुए सताने लगा है. लॉकडाउन  की वजह से घर में कैद,  वे चिंता और अवसाद के शिकार तो हो ही रहे हैं, इससे बचने के लिए वे नशीली चीजों का सेवन भी ज्यादा करने लगे हैं. इससे मेंटल हेल्थ पर भी ज्यादा खराब असर पड़ने लगा है. यह स्थिति सिर्फ भारत या अमेरिका में ही नहीं, बल्कि इस समस्या से दुनिया भर के लोग जूझ रहे हैं.

दूसरी ओर लॉकडाउन के बाद लोगों को आर्थिक मंदी ने भी तनाव बढ़ा दिया है. अब लोगों में अपनी रोजी-रोटी की जुगाड़ के साथ-साथ कोरोना के डर से भी लड़ना है.

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लॉकडाउन में अजब-गज़ब बीमारी

लॉकडाउन में लोगों को अजब-गज़ब बीमारी हो रही है. किसी को नींद नहीं आ रही है, तो किसी की नींद संक्रमन के खौफ से टूट जा रही है. डॉक्टरों के पास भी आने वाले 30% मामले ऐसे ही हैं. पटना एम्स और आईजी आईएमस के टेलामेडिसिन में भी ऐसे मामले अधिक हैं. हर दिन ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ रही है, जो लॉकडाउन के कारण नकारात्मक विचारों से घिर रहे हैं. डॉक्टरों का कहना है कि यह स्थिति ठीक नहीं है. इससे बचाव के लिए सकारात्मक होना होगा. घर में रचनात्मक कार्यों के साथ बच्चों और बुजुर्गों को खौफ से बाहर लाने का प्रयास करना होगा.

लॉकडाउन के बाद लोगों की दिनचर्या बिगड़ी तो उनकी सोच नकारात्मक होने लगी. लोगों में अब हर समय सिर्फ संक्रमन की बात हो रही है. ऐसे में लोगों के दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. बच्चे सबसे अधिक डरे हुए हैं, वृद्ध भी इससे परे नहीं हैं. डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों के लिए डर की स्थिति काफी धातक है. भविष्य में यह फोबिया का रूप ले सकता है. इससे बचाव को लेकर घर के अभिभावकों को ध्यान देना होगा. घर में हर समय कोरोना की चर्चा से भी बच्चों के दिमाग पर असर पड़ रहा है. बच्चों को ऐसी दहशत से बाहर निकालना होगा, क्योंकि पहली बार ऐसा हो रहा है, जब लंबे समय तक लोगों को घरों में कैद रहना पड़ रहा है.

डॉक्टरों के पास सुबह से शाम तक ऐसी कॉल

पटना एम्स और आईजीआईएमएस के डॉक्टरों के साथ पीएमसीएच व आईएमएस द्वारा जारी किए नंबरों पर रोग से जुड़े कॉल 60 प्रतिशत हैं, जबकि 30 प्रतिशत से अधिक कॉल मानसिक रोग से जुड़े हैं. यह बीमारी सिर्फ दिनचर्या प्रभावित होने और नकारात्मक सोच के कारण हुई है.

मानसिक तनाव के कारण परेशान हैं लोग

क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट मीनाक्षी भट का कहना हा कि अधिकतर लोग मानसिक तनाव के कारण परेशान है. सामान्य दिनचर्या बदल गई और वह खुद घर में एडजेस्ट नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे हालात में वह तनाव की स्थिति का सामना कर रहे हैं.

देश में मनोचिकित्सकों की सबसे बड़ी एसोसिएशन indian Psychiatric Society ने कुछ चौंकने वाले आंकड़े जारी किए हैं. इसके सर्वे के मुताबिक, कोरोना वायरस के आने के बाद देश में मानसिक रोगों से पीड़ित मरीजों की संख्या 15 से 20 फीसदी तक बढ़ गई है. सर्वे बताता है कि मरीजों की ये संख्या एक हफ्ते के अंदर ही बढ़ी है. लोगों में लॉकडाउन की वजह से बिजनेस, नौकरी, कमाई और बचत को खोने का डर भी इसका कारण माना जा रहा है. चिंता की बात यह है कि कोरोना के बाद अगर मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ती है तो इसके लिए देश में जागरुता और सुविधाएं, दोनों की ही कमी है.

इंडियन काउंसिल मेडिकल रिसर्च के अनुसार, भारत में हर पाँच में से एक व्यक्ति मानसिक रोग का शिकार हैं. लेकिन दूसरा पहलू ये हैं कि दुनिया के स्वास्थय कार्यकर्ताओं में केवल 1% मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े हैं. भारत में मानसिक स्वास्थयकर्मी बहुत कम है. भारत में इसका आंकड़ा और भी कम है. National Mental Health प्रोग्राम का बजट पिछले वर्ष ही 50 करोड़ से घटाकर 40 करोड़ कर दिया गया था. और भारत अपने स्वास्थ्य बजट का 0.06% ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च कर रहा है.

किंम्स कॉलेज लंदन ने फरवरी में क्वारंटीन के अवसर से जुड़े 24 पेपर्स का रिसर्च किया था और इसे मेडिकल जनरल लेनसीप में प्रकाशित किया था. इस रिव्यू के अनुसार, क्वारंटीन में रहने वाले आधे से ज्यादा लोगों में उदासी, तनाव और डिप्रेशन के लक्षण देखे गए. एक्सपर्ट ने बताया कि एक जगह सीमित रहने और सामाजिक संपर्क कम होने की वजह से यह समस्या बढ़ती जाती है.

कोरोना से भयभीत लोग

पुणे में अपना बिजनेस चलाने वाली श्रद्धा केजरीवाल को एक सप्ताह से बुरे-बुरे सपने आ रहे हैं. वह कहती हैं कि कारोबार ठप्प होने और अनिश्चित भविष्य की चिंता ने मेरी नींद उड़ा दी है. वह फिलहाल एक मनोचिकित्सक की सेवाएँ ले रही हैं. पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकोटा में तो सैंकड़ों लोग मानसिक अवसाद की चपेट में हैं. किसी को लगातार हाथ धोने की वजह से कोरोना फोबिया हो गया है तो किसी को छींक आते ही कोरोना का डर सताने लगता है. ऐसे कई मरीज मनोचिकित्सक के पास पहुँच रहे हैं. सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहों ने स्थिति को और गंभीर कर दिया है.

एकदम दुरुस्त मानसिक स्वास्थ्य वाले अचानक बीमार

विशेषज्ञों का कहना है कि उनके पास सलाह के लिए आने वालों या फोन करने वालों में कई लोग ऐसे हैं जिनका स्वास्थय पहले एकदम दुरुस्त था. मनोचिकित्सक रंजन घोष बताते हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमन की वजह से लोगों को भीड़ से डर लगने लगा है. ट्रोमा थैरेपिस्ट रुचिका चंद्रशेखर कहती हैं कि कोरोना वायरस के चलते जारी लॉकडाउन की वजह से अवसाद और चिंता के लक्षण तेजी से बढ़ रहे हैं. इससे जीवन पर खतरा भी बढ़ेगा.

ऑनलाइन काऊसडलक्षण पोर्टल चलाने वाली आकृति तरफदार कहती हैं कि लॉकडाउन की वजह से लाखों लोग घर से काम कर रहे हैं. इसका मतलब जीवन को नए सिरे से व्यवस्थित करना है. इसका दिमाग पर भारी असर पड़ता है. सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहों भी दिमाग पर प्रतिकूल असर डालती है. रुचिका कहती हैं कि लंबे समय से घरों में बंद रहने की वजह से पहले से इस बीमारी के चपेट में रहने वाले लोगों की समस्या और गंभीर हो रही है. बीते 10 दिन में मेरे पास पहुँचने वाले मरीजों की तादाद दोगुनी से ज्यादा हो गई है.

कोरोना वायरस ने दुनियाँ भर में डर और चिंता का माहौल बना दिया है. इसके कारण देश में मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ रही है. अध्ययन के मुताबिक, कोरोना मरीज, क्वारंटाइन या आइसोलेशन में रह रहे व्यक्ति, यहाँ तक कि इलाज कर रहे व्यक्ति की मानसिक सेहत पर भी इससे असर पड़ रहा है. इसके कारण देश में अवसाद, एंग्जायटी, डिप्रेशन व मानसिक रोगियों की संख्या 20% बढ़ गई है.

विश्व स्वास्थय संगठन (WHO )ने इस दौरान लोगों को अपने मानसिक स्वास्थ्य का खास ख्याल रखने को कहा है. इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी के एक सर्वे में यह कहा गया है कि कोरोना वायरस का मामला सामने आने के बाद देश में मानसिक रोगों से पीड़ित मरीजों की संख्या में 15 से 20 फीसदी तक वृद्धि हुई है. लॉकडाउन के कारण लोगों में जरूरी चीजों की दिक्कतें हो रही है. उनके बिजनेस, नौकरी और आमदनी के स्रोतों पर खतरा मंडरा रहा है. इससे लोगों में चिंता का होना स्वाभाविक है.

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चिंता की बात यह है जो लोग पहले से किसी मानसिक बीमारी के शिकार है, उनकी हालत लॉकडाउन में ज्यादा खराब हो सकती है. सबसे बड़ी दिक्कत तो यह है कि इस दौरान वे डॉक्टरों से मिल कर सलाह भी नहीं ले सकते हैं. ऐसी हालत में आप इन पाँच तरीकों को अपनाकर राहत पा सकते हैं.

सही खान-पान

चिंता, घबराहट और अवसाद की स्थिति में लोगों की भूख कम हो जाती है या भूख होने के बावजूद खाने की इच्छा नहीं होती. सही पोषण न मिलने से समस्याएँ और भी बढ़ती है. इसलिए हर हाल में खाना न छोड़े. हेल्दी डायट लेने की कोशिश करें.

एक्सरसाइज और योगा

तनाव. चिंता और अवसाद से बचने के लिए एक्सरसाइज और योगा करने से फायदा तो होगा कि मन भी शांत राहेंगा. पोजेटिव विचार आएंगे. इसलिए लॉकडाउन के दौरान नियमित तौर पर योगा और एक्सरसाइज करते रहें.

अपनों के बीच रहें

लोगों से सोशल डिस्टेन्सिंग रखें, पर अपने परिवार के लोगों के बीच समय बिताएँ, बातें करें. बच्चों को समय दें, उनके साथ साथ खेलें. पुराने फ़ोटोज़ देखकर हँसे और याद करें वह वक़्त.  दोस्त-रिशतेदारों से फोन पर बातें करें, उनसे जुड़े रहें.  खाली बैठे रहने से चिंता और अवसाद और घेरने लगती है. सकारात्मक सोच बनाए रखें. परिवार के लोगों के बीच बैठने बातें करने से चिंता और घबराहट नहीं होती.

संगीत सुने

तनाव ज्यादा घेरने लगें, तो संगीत सुनें, इससे काफी राहत मिलती है. इसलिए थोड़ा समय संगीत को जरूर दें. क्योंकि इससे मन को शांति तो मिलेगी ही, आत्मविश्वास भी बढ़ेगा.

किताबें पढ़ें

सोशल मीडिया पर इधर-उधर की चीजें न देखें, इससे तनाव और बढ़ता है. उसकी जगह अपनी मनपसंद किताबें पढ़ें, ताकि आपको सकारात्मक ऊर्जा का एहसास हो सके.

नींद पूरी लें

नींद पूरी नहीं हो पाने से कई तरह की समस्याएँ बढ़ने लगती है. चिंता-घबराहट, नकारात्मक विचार पनपने लगते हैं. इसलिए नींद पूरी लें.

सकारात्म्क सोच रखें

कोरोना वायरस की जानकारी जरूरी है, लेकिन इससे जुड़ी सारी खबरे सही ही हो जरूरी नहीं. इसलिए कोरोना से संबन्धित ज्यादा जानकारी पढ़ने-सुनने से बचें.

नशीली पदार्थों का सेवन न करें

कुछ लोग चिंता और परेशानी में नशीली पदार्थों की सेवन करने लगते हैं. इससे कुछ समय तो राहत मिलती है, लेकिन बाद में ज्यादा तनाव महसूस होने लगता है. इससे आपकी इम्यूनिटी पर भी बुरा असर पड़ता है. अगर आप ज्यादा दिक्कत महसूस करने लगें हैं, तो फोन से डॉक्टर से संपर्क कर सलाह ले लें. अगर डॉक्टर एंगजाइटी और तनाव कम करने के लिए कोई दवा लेने की सलाह देत हैं, तो उसे लें, पर बिना डॉक्टर के परमर्श के कोई दवा लेना आपके लिए हानिकारक भी हो सकता है.

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19 दिन 19 टिप्स: ड्राय बालों के लिए घर में ऐसे बनाएं कंडीशनर

बाजार में आज कई तरह के कंडीशनर मौजूद हैं, जिन्हें आप अपने बालों को धोने से पहले इस्तेमाल करने के लिए छोड़ सकते हैं. इन में लीव-इन-कंडीशनर और रात भर डीप कंडीशनिंग ट्रीटमेंट भी उपलब्ध हैं. ये कंडीशनर बहुत अच्छा काम करते है पर अकसर  जेब पर भारी पड़ जाते है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आप घर पर ही अपने बालों के लिए कंडीशनर बना सकते हैं. न केवल इन्हे बनाना सुपर आसान हैं बल्कि ये आप के घर में उपलब्ध चीज़ों से ही सस्ते में बन जाएंगे. साथ ही साथ इन में किसी रसायन का इस्तेमाल न होने से बालों के लिए भी सुरक्षित रहेंगे. हेयर एक्सपर्ट व हेयर ट्रांसप्लांट सर्जन डौ. अरविन्द पोसवाल बताते हैं कि कैसे घर पर बने कंडीशनर आप के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं :

  1. दही, हनी और नारियल के तेल का पेस्ट करें तैयार

ये सभी तत्व ड्राई बालों के लिए बहुत लाभकारी होते हैं क्योंकि वे नमी को बहाल करते हुए आप के बालों को हाइड्रेट करने में मदद करते हैं. यह फ्रिजी हेयर से बहुत अच्छी तरह से निपटते है और आपके बालों को मुलायम और चमकदार बनाए रखते है. दही और हनी का मिश्रण आप के बालों को एक दम अच्छे से कंडीशन और मौइस्चराइज करेगा और दूसरी ओर नारियल का तेल आप के बालों को डीप कंडीशनिंग के साथ पर्याप्त पोषण  पहुंचाएगा.

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ऐसे करें इस्तेमाल

एक कटोरे में दही, हनी और नारियल के तेल को मिला कर कंडीशनर तैयार कर लें. फिर अपने बालों को शैम्पू और गर्म पानी से धोएं. अपने बालों में से पानी को निचोड़ें और इस कंडीशनर को बालों में लगाएं.  15 मिनट बाद  इसे ठंडे या गुनगुने पानी से धो लें.

  1. अंडा है बेस्ट कंडिशनर

अंडे में बहुत सारे प्रोटीन, मिनरल्स और बी-कौम्प्लेक्स विटामिन के साथ पावर-पैक होते हैं जो बालों के लिए आवश्यक  हैं. ये पोषक तत्व विशेष रूप से बायोटिन और अन्य बी-कौम्प्लेक्स विटामिन आप के बालों की जड़ों को मजबूत कर के बालों के झड़ने से रोकने में मदद करते हैं.  बालों को घना करने और ड्राइनेस खत्म करने में भी मदद करेगा.

ऐसे करें इस्तेमाल

अंडों को अच्छे से फेंट लें और बालों को धोने के बाद फेंटें हुए अण्डों को अपने बालों पे लगाएं . कम से कम 20 मिनट तक इसे अपने बालों पर  लगा रहने दे और फिर इसे पानी से धो लें .

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  1. एलोवेरा और नींबू का करें इस्तेमाल

एलोवेरा में बालों को मजबूत, लम्बे, घने और ख़ूबसूरत बनाने के बहुत सारे गुण होते हैं. एलोवेरा बालों को मजबूत करता है और उनमें शाइन भी प्रदान करता है. साथ ही साथ यह डैंड्रफ को भी दूर करता है और बालों के ऊपर एक सुरक्षात्मक परत बनाता है जो बालों को धूल, मिटटी और प्रदूषण से भी बचाता है. एलोवेरा का नींबू के साथ मिश्रण हर तरह के इन्फेक्शन्स  दूर कर बालों को हेल्दी बनाता है.

ऐसे करें इस्तेमाल

एक कटोरे में एलोवेरा और नींबू मिला कर रख दें. अपने बालों को शैम्पू से अच्छी तरह धोएं और फिर इस कंडीशनर का इस्तेमाल करें. फिर 5 मिनट के बाद इसे ठंडा या गुनगुने पानी से धो लें.

  1. नारियल के तेल और प्याज के रस का बनाएं पेस्ट

नारियल का तेल स्कैल्प में अच्छी तरह से समा जाता है जिससे स्कैल्प तो हेल्दी होता ही है साथ ही बालों को भरपूर पोषण भी मिलता है. इससे बाल मजबूत बनाते है. साथ ही नारियल का तेल बालों को मुलायम बनाने के साथ चमक भी प्रदान करता है और डैंड्रफ व ड्राइनेस जैसी प्रौब्लमस के खिलाफ लड़ता है. यह बालों के टूटने और दो मुहें होने से रोकता है.

ऐसे करें इस्तेमाल

एक मिक्सर में नारियल के तेल और प्याज के रस को मिलाएं और मिश्रण सा बना लें. आप इस में निम्बू के रस को भी शामिल कर सकते हैं. इस मिश्रण को अपने स्कैल्प में लगाकर इसे 20 से 25 मिनट तक लगा छोड़ दें. बाद में अच्छी तरह से धो लें.

  1. दूध, बादाम का तेल और गुलाब जल

गुलाब जल बालों के रोमों को मौइस्चराइज करता है. यह बालों की जड़ों को पोषण और मजबूती देता है जो साथ ही बालों के स्वस्थ विकास को बढ़ावा देता है. बादाम का तेल बालों के झड़ने को रोकता है और इस के साथ गुलाब जल प्राकृतिक तरीके से स्वस्थ बालों की संख्या बढ़ा कर बालों की गुणवत्ता में सुधार करता है. इन तीनों नेचुरल प्रौडक्ट्स का पेस्ट आपके बालों के लिए बहुत बेहतर साबित हो सकता है.

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ऐसे करें इस्तेमाल

दूध, बादाम का तेल और गुलाब जल को एक कटोरे में मिलाएं और बालों को धोने के बाद उस पर लगाएं . इसे कम से कम 20 मिनट के लिए बालों पर लगा छोड़ दें . बाद में इसे हलके गर्म पानी से धो लें .

प्रोफेशनल टिप्स का भी करें इस्तेमाल

इन नेचुरल कंडीशनर्स के इस्तेमाल के बाद आप अपने बालों पर कम-से-कम हीट जनरेटिंग उत्पादों का इस्तेमाल करें. इन कंडीशनर्स का नियमित इस्तेमाल आप के बालों को स्वस्थ, घना, लंबा और चमकदार खूबसूरत बनाएगा.

तसवीर: भाग-2

पूर्व कथा

केशवन का प्रस्ताव सुन कर मालविका चौंक उठी थी. उस ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि इस उम्र में कोई उस के सामने शादी का प्रस्ताव रखेगा. उस के सामने पूरा अतीत नाच उठा, जब दहेज की वजह से बरात दरवाजे से लौट गई थी. फिर मालविका के लिए कोई वरघर न मिला तो वह अपनी मां के साथ बारीबारी से तीनों भाइयों के पास रह कर नाव की तरह डूबउतरा रही थी.

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मालविका के बड़े भाई सुधीर की बेटी उषा की शादी हो गई और वह अमेरिका के न्यूजर्सी शहर में जा बसी. जब वह गर्भवती हुई तो उसे मालविका की याद आई, तो वह अपने पापा से बोली, ‘पापा, आप किसी तरह बूआजी को यहां भेज दो तो मेरी मुश्किल हल हो जाएगी. वे घर भी संभाल लेंगी और बच्चे को भी देख लेंगी. यहां के बारे में तो पता है न आप को? बेबी सिटर और नौकरानियां 1-1 घंटे के हिसाब से चार्ज करती हैं. इस से हमारा तो दीवाला ही निकल जाएगा.’

‘हांहां तुम्हारे लिए मालविका कभी मना नहीं करेगी. पर कुछ दिनों से वह गठिया के दर्द से परेशान है. अगर तुम लोग उस के लिए मैडिकल इंश्योरैंस करा लो तो अच्छा रहेगा. सुना है कि उस देश में बीमार पड़ने पर अस्पताल और डाक्टरों के इलाज में बड़ा भारी खर्च होता है.’

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‘हांहां क्यों नहीं. ये कौन सी बड़ी बात है. बूआ का बीमा करा लिया जाएगा. बस आप उन्हें जल्द से जल्द रवाना कर दें.’

मालविका अमेरिका के लिए रवाना हो गई. उस की भतीजी उसे एअरपोर्ट पर लेने आई थी.

‘बेटी, तेरे देश में तो बड़ी ठंड है,’ मालविका ने ठिठुरते हुए कहा, ‘मेरी तो कंपकंपी छूट रही है.’

उषा हंस पड़ी, ‘अरे बूआजी, अपना घर वातानुकूलित है. बाहर निकलो तो कार में हीटर लगा हुआ है. शौपिंग मौल में भी टैंप्रेचर गरम रखा जाता है. फिर सर्दी से क्यों घबराना? हां, एक बात का खयाल रखना बाहर कदम रखो तो बर्फ में पांव फिसलने का डर रहता है, इसलिए जरा संभल कर रहना.’

फिर उस ने मालविका के गले लग कर कहा, ‘बूआजी तुम आ गईं तो मेरी सब चिंता दूर हो गई. अब तुम मुझे वे सभी चीजें बना कर खिलाना जिन्हें खाने के लिए मेरा मन ललचाता है.’

घर पहुंच कर उषा ने कहा, ‘बूआ, आप का बिस्तर बेबी के रूम में लगा दिया है. जब बेबी पैदा होगा तो शायद रात में एकाध बार बच्चे को दूध की बोतल देने के लिए उठना पड़ेगा और हां, सुबह रस्टी को जरा बाहर ले जाना होगा, क्योंकि आप को

तो पता है मेरी नींद आसानी से नहीं खुलती.’

‘ये रस्टी कौन है?’

‘अरे रस्टी हमारा छोटा सा कुत्ता है. कल ही दिलीप उसे खरीद कर लाए हैं. हम ने सोचा है कि बच्चे को उस का साथ अच्छा लगेगा.’

‘पर बेटी, इतने नन्हे बच्चे के साथ कुत्ता पालना अक्लमंदी है क्या? जानवर का क्या ठिकाना, कभी बच्चे को नुकसान पहुंचा दे तो?’

‘अरे नहीं बूआ, ऐसा कुछ नहीं होगा. आप नाहक डर रही हैं. वैसे दिलीप जब घर में होंगे तो वे ही कुत्ते का सब काम देखेंगे.’

कुछ समय बाद उषा ने एक बालक को जन्म दिया. मालविका ने घर का काम संभाल लिया और बच्चे की जिम्मेदारी भी ले ली. वह दिन भर बहुत सारे काम करती और रात को निढाल हो कर बिस्तर पर पड़ जाती. काम वह इंडिया में भी करती थी पर वहां और लोग भी थे उस का हाथ बंटाने के लिए. यहां वह अकेली पड़ गई थी.

एक दिन सुबह वह बच्चे का दूध बना रही थी कि रस्टी दरवाजे के पास आ कर कूंकूं करने लगा. ‘ओह तुझे भी अभी ही जाना है मुए,’ वह झुंझलाई.

जब रस्टी ने कूंकूं करना बंद न किया तो मालविका ने बच्चे को पालने में डाला और एक शौल लपेट कर रस्टी की चेन थामे घर से निकली.

पिछली रात बर्फ गिरी थी. सीढि़यों पर बर्फ जम गई थी और सीढि़यां कांच की तरह चिकनी हो गई थीं. मालविका ने हड़बड़ी में ध्यान न दिया और जैसे ही उस का पांव सीढ़ी पर पड़ा वह फिसल कर गिर पड़ी.

उस ने उठने की कोशिश की तो उस के पैर में भयानक दर्द हुआ. उस के मुंह से चीख निकल गई. उसे लगा उस भीषण ठंड में धरती पर पड़ेपड़े उस का शरीर अकड़ जाएगा और उस का दम निकल जाएगा.

काफी देर बाद उषा ने द्वार खोला तो उसे पड़ा देख कर उस के मुंह से भी चीख निकल गई, ‘ये क्या हुआ बूआ? तुम कैसे गिर पड़ीं? मैं ने तुम्हें आगाह किया था न कि बर्फ पर बहुत होशियारी से कदम रखना वरना पैर फिसलने का डर रहता है.’

‘अब मैं जान कर तो नहीं गिरी,’ उस ने कराह कर कहा, ‘जल्दीबाजी में पांव फिसल गया.’ उषा व उस का पति दिलीप उसे अस्पताल ले गए.

डाक्टर ने मालविका की जांच कर के बताया कि इन का टखना टूट गया है. औपरेशन करना होगा और हड्डी बैठानी होगी और इस में 10 हजार डौलर का खर्चा आएगा.

10 हजार सुन कर मालविका की सांस रुकने लगी, ‘उषा, तू ने मेरा मैडिकल बीमा करा लिया था न?’

‘मैं ने दिलीप से कह तो दिया था. क्यों जी, आप ने बूआजी का बीमा करा लिया था न?’

‘ओहो, ये बात तो मेरे ध्यान से बिलकुल उतर गई.’

उषा अपने हाथ मलने लगी, ‘ये आप ने बड़ी गलती की. अब इतने सारे पैसे कहां से आएंगे?’

वे इधरउधर फोन घुमाते रहे. आखिर उन्हें एक डाक्टर मिल गया जो मालविका का औपरेशन 3 हजार डौलर में करने को तैयार हो गया.

प्लास्टर उतरने वाले दिन उषा अपनी बूआ को अस्पताल ले गई. प्लास्टर उतरने के बाद जब मालविका ने पहला कदम उठाया तो देखा कि उस का टूटा हुआ पैर सीधा नहीं पड़ रहा था. उस के पैर डगमगाए और वह कुरसी में गिर पड़ी.

‘हाय ये क्या हो गया?’ उस के मुंह से निकला.

डाक्टर ने पैर की जांच की और बोले, ‘लगता है पैर सैट करने में जरा गलती हो गई. अब जब आप चलेंगी तो आप का एक पैर थोड़ा टेढ़ा पड़ेगा. आप को छड़ी का सहारा लेना होगा और कोई चारा नहीं है.’

मालविका की आंखों से झरझर आंसू बह निकले. हाय वह अपाहिज हो गई. अब वह बैसाखियों के सहारे चलेगी. बुढ़ापे में उसे दूसरों के आसरे जीना होगा.

तभी एक नर्स उस के पास आई, ‘मैडम, आप ओपीडी में चलिए. हमारे अस्पताल में न्यूयार्क से एक विजिटिंग डाक्टर आए हैं, जो आप के पैर की जांच करना चाहते हैं?’

‘कौन डाक्टर?’ मालविका ने अपना आंसुओं से भीगा चेहरा ऊपर उठाया.

‘डाक्टर केशवन.’

‘केशवन? यह कैसा नाम है?’

‘वे आप के ही देश के ही हैं. चलिए, मैं आप को व्हीलचेयर में ले चलती हूं.’

मालविका का हृदय जोरों से धड़क उठा. क्या ये वही थे? नहीं, उस ने अपना सिर हिलाया. इस नाम के और भी तो डाक्टर हो सकते हैं. पर डाक्टर को देखते ही उस का संशय दूर हो गया. वही हैं, वही हैं उस के हृदय में एक धुन सी बजने लगी. हालांकि मालविका उन्हें पूरे 20 साल बाद देख रही थी पर उन्हें पहचानने में उसे एक पल की देरी भी नहीं हुई. केशवन का बदन दोहरा हो गया था और सिर के बाल उड़ गए थे. पर चेहरामोहरा वही था.

ये छवि तो उस के हृदय में अंकित थी, उस ने भावुक हो कर सोचा. इन की तसवीर तो उस ने सहेज कर अपने बक्से में रखी हुई थी. वह हर रोज अकेले में तसवीर को निकालती, उसे निहारती और उस पर 2-4 आंसू बहाती. ये तसवीर उन दोनों की मंगनी के अवसर पर ली गई थी. एक प्रति मालविका ने सब की नजर बचा कर चुरा कर अपने पास रख ली थी.

उस ने सुना था कि केशवन अमेरिका जा कर वहीं के हो गए थे. उस ने एक उड़ती हुई खबर यह भी सुनी थी कि केशवन ने एक गोरी मेम से शादी कर ली थी और इस बात से उस के मातापिता बहुत दुखी थे. डाक्टर केशवन कैबिन में आए. मालविका ने उन पर एक भेदी नजर डाली. क्या उन्होंने उसे पहचान लिया था? शायद नहीं. उन्होंने उस का पैर जांचा.

‘आप का औपरेशन सही तरीके से नहीं किया गया है, इसीलिए आप की चाल टेढ़ी हो गई है. दोबारा हड्डी तोड़ कर फिर से जोड़नी पड़ेगी.’

‘ओह इस में तो भारी खर्च आएगा,’ मालविका चिंतित हो उठी.

‘डाक्टर, हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं,’ उषा बोल उठी,

‘हम सोच रहे हैं कि इन्हें वापस इंडिया भेज दें. वहां पर इन का इलाज हो जाएगा.’

‘पैसे की आप चिंता न करें,’ केशवन ने कहा, ‘मैं इन का इलाज अपनी क्लीनिक में करा दूंगा,

एक भारतीय होने के नाते हमें परदेश में एकदूसरे की मदद तो करनी ही चाहिए.’

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‘ओह डाक्टर साहब आप ने हमें उबार लिया,’ उषा बोली.

‘मैं कल न्यूयार्क वापस जा रहा हूं. आप कहें तो इन्हें साथ ले जाऊंगा. औपरेशन के बाद इन्हें थोड़ा आराम की जरूरत है फिर ये इंडिया जा सकती हैं.’

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#lockdown: फैमिली के लिए बनाएं बेसन की बर्फी

लॉकडाउन के दौरान अगर आपका भी मीठा खाने का मन है तो आज हम आपको बेसन से बनी हुई बर्फी की रेसिपी बताएंगे. बेसन की बर्फी आसानी से बनने वाली रेसिपी है, जिसे आप अपनी फैमिली और बच्चों के लिए बना सकती हैं.

हमें चाहिए

– बेसन (250 ग्राम)

– शक्कर (250 ग्राम)

– देशी घी (200 ग्राम)

– दूध (02 बड़े चम्मच)

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– काजू (02 बड़े चम्मच बारीक कतरे हुए)

– बादाम (02 बड़े चम्मच बारीक कतरे हुए)

– पिस्ता ( 01 बड़ा चम्मच लम्बे कटे हुए)

– छोटी इलाइची (05 नग छीलकर पीसी हुई)

बनाने की विधि

– सबसे पहले एक बर्तन में बेसन लेकर उसमें दूध और दो बड़े चम्मच घी डालें और सभी चीजों को अच्छी    तरह से मिला लें.

– अब कढ़ाई में देशी घी डालकर गरम करें.

– घी गर्म होने पर उसमें बेसन डालें और लगातार चलाते हुए अच्छी तरह से भून लें.

– बेसन को एक प्लेट में निकाल कर रख दें.

– उसके बाद बर्तन में शक्कर और 1/2 कप पानी डालें और चलाते हुए पकाएं.

– जब शीरे में दो तार की चाशनी बनने लगे, तो उसमें बेसन डाल दें और चलाते हुए पकाएं.

– साथ ही इसमें इलाइची पाउडर, बादाम और काजू भी डाल दें.

– जब बेसन का मिश्रण जमने वाली स्थिति में पहुंच जाए उसे गैस से उतार लें.

– अब बेसन की चक्की जमाने की बारी है, इसके लिए एक समतल थाली में थोड़ा घी डालकर उसकी सतह    चिकनी कर लें.

– इसके बाद बेसन का मिश्रण थाली में कलछी की सहायता से बराबर फैला दें.

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– बर्फी के ऊपर कतरे हुए पिस्ता डाल दें और चम्मच की सहायता से बर्फी की सतह को बराबर कर दें और   2 घंटे के लिए रख दें.

– 2 घंटे बाद बेसन बर्फी एक तेज चाकू से मनचाहे शेप में काट लें और परोसें.

#WhyWeLoveTheVenue: वैन्यू को पसंद करने की खास वजह है ब्लूलिंक

हुंडई हमेशा अपने ग्राहकों का खास ख्याल रखती है और इसलिए समय-समय पर सेफ्टी के नए फीचर्स से लैस कारें मार्केट में लॉंच करती है. जरा इंटरनेट की शक्ति का अंदाजा लगाइए और सोचिए अगर इसका इस्तेमाल आपकी कार में हो तो…यकीकन यह और ज्यादा पॉवरफुल होगा.

आपको जानकार खुशी होगी कि Hyundai Venue में खास तकनीक BlueLink का प्रयोग किया है. जिसकी मदद से आपकी कार कार हर वक्त इंटरनेट से कनेक्ट रहेगी. जिससे आप पहेल ज्यादा सुक्षित महसूस करेंगे. दरअसल, BlueLink इमरजेंसी के समय ऑटोमैटिक रूप से कॉल सेंटर और सर्विस सेंटर पर तुरंत सूचना पहुंचती है और आपकी लोकेशन भी इमरजेंसी नंबर पर शेयर करती है.

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इस ऐप के जरिए आप कार के अंदर वॉयस कमांड का उपयोग कर ब्लूलाइन को एक्सेस कर सकते हैं वहीं कार से दूर होने पर भी आप अपने फोन पर वेन्यू को रिमोटली भी चेक कर सकते हैं. BlueLink मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए ऑटोमैटिक रूप से अधिकारियों को सचेत करती है और समय की बचत करती है. यही नहींसहायता के लिए आप सड़क के किनारे भी इसका उपयोग कर सकते हैं.

BlueLink आपके कार को और ज्यादा सुरक्षित बनाता है. कार को अलर्ट पर सेट करने बाद आप इसे आसानी से कंट्रोल कर सकते हैं. जैसे मान लीजिए आपकी कार आपके निर्धारित लोकेशन के बदले कहीं और ट्रेवल कर रही है या उसकी स्पीड ज्यादा है. इसके साथ ही आप कार चोरी होने से भी रोक सकते हैं.  

भई, गर्मी के दिनों में धूप में खड़ी कार में बैठकर कहीं जाना भला किसे अच्छा लगती है, लेकिन BlueLink है तो पॉसिबल है. क्योंकि इसके जरिए आप पहले इंजन को स्टार्ट कर सकते हैं और फिर एयर कंडीशनिंग सिस्टम को, ताकि धूप में भी जब आप कार ड्राइव करें तो वह ठंडी हो.

फिलहाल, यह तो ब्लूलिंक सिस्टम के बारे सिर्फ छोटी सी टिप है, तो अब तो आप समझ ही गए होंगे कि #WhyWeLoveTheVenue

ऋषि कपूर की याद में आलिया भट्ट ने लिखा दिल को छू लेने वाला ये इमोशनल मैसेज

बौलीवुड के रोमेंटिक एक्टर ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) के निधन से पूरा बौलीवुड सदमें में हैं. वहीं बेटे रणबीर कपूर की रूमर्ड गर्लफ्रेंड और एक्ट्रेस आलिया भट्ट (Alia Bhatt) भी काफी दुखी हैं. बीते दिन ऋषि कपूर को अंतिम विदाई देने के दौरान भी आलिया बेहद इमोशनल नजर आईं. ऋषि कपूर को पिता की तरह मानने वाली आलिया ने अब उनके लिए सोशलमीडिया पर एक इमोशनल पोस्ट शेयर किया है, जिसमें वह अपने दिल की बात कह रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं उनका ऋषि कपूर के लिए इमोशनल पोस्ट….

ऋषि कपूर की पुरानी फोटोज की शेयर

 

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love you ❤️

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ऋषि कपूर के निधन से जहां सभी दुखी हैं तो वहीं अब उनके बेटे रणबीर कपूर की खास दोस्त आलिया भट्ट ने भी उनकी मृत्यु पर दुख जताया है. आलिया ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए ऋषि कपूर की कुछ पुरानी Photos साझा की हैं. आलिया ने ऋषि कपूर और नीतू सिंह की एक बहुत पुरानी तस्वीर साझा की है. साथ ही एक इमोशनल नोट भी लिखा है. जिसके जरिए उन्होंने बताया है कि वो ऋषि कपूर के कितना करीब थीं.

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❤️❤️❤️

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आलिया ने लिखा ये पोस्ट

 

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beautiful boys 🤍

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आलिया ने अपनी पोस्ट में लिखा, ‘मैं क्या कह सकती हूं इस खूबसूरत आदमी के बारे में, जो मेरी जिंदगी में इतना ज्यादा प्यार और अच्छाई लेकर आए. आज हर कोई ऋषि कपूर के लीजेंड होने की बात करता है और मैंने पिछले दो सालों में एक दोस्त, चाइनीज फूड लवर, सिनेमा लवर, एक फाइटर, एक लीडर, एक सुंदर स्टोरीटेलर, एक अति उत्साही ट्विटर यूजर और एक पिता के रूप में जाना है.’ आगे आलिया लिखती हैं, ‘इन पिछले दो वर्षों में मुझे जो प्यार मिला है, मैं इसे हमेशा संजोकर रखूंगी. मैं ब्रह्मांड का शुक्रिया अदा करती हूं कि मुझे आपको जानने का मौका मिला. आज शायद हम में से अधिकतर लोग कह सकते हैं कि वह परिवार की तरह हैं क्योंकि उन्होंने ऐसा ही महसूस करवाया. लव यू ऋषि अंकल. हम आपको हमेशा याद रखेंगे.’

बता दें, ऋषि कपूर की अंतिम विदाई के दौरान आलिया भट्ट नीतू सिंह और रणबीर कपूर के साथ पूरे समय थीं.

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Dr Pk Jain: यहां मिलेगा सेक्सुअल लाइफ से जुड़ी हर प्रॉब्लम का सोल्यूशन

आलोक के सासससुर व मातापिता परेशान हो गए. आलोक की बीवी उसके घर आने को तैयार नहीं थी. उसे बहुत समझाया, मगर वह मानी नहीं. इसकी पूरी पड़ताल की गई. तब सचाई का पता चला कि आलोक को शीघ्रपतन की समस्या है, जिसकी वजह से वो अपनी बीवी को सतुंष्ट नहीं कर पा रहा है, इस कारण उस की बीवी उस के पास रहना नहीं चाहती थी.

आलोक के शब्दों में-

शादी से पहले अधिक हस्तमैथुन करने की वजह से मुझे शादी के बाद सेक्स पावर और उत्तेजना में कमी और शीघ्रपतन की शिकायत हो गई थी. समय से पहले सही इलाज न मिलने के कारण मेरी पत्नी मुझे छोड़कर चली गई. मैंने कई लोगों से संपर्क किया और कई जगह इलाज कराया, लेकिन कोई भी मेरा सही तरीके से इलाज नहीं कर पाया.

 ऐसे मिले डॉक्टर पी के जैन…

मेरे एक दोस्त को मेरी इस समस्या के बारे में पता चला तो उसने मुझे डॉक्टर पीके जैन के बारे में बताया. जो 40 सालों से इन्हीं समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. मेरे दोस्त ने मुझे डॉक्टर पी के जैन के कई सफल केसेस के बारे में बताया, जिसके बाद में बिना देर किए डॉक्टर पी के जैन से मिलने पहुंचा. जहां मैं डॉक्टर पी के जैन और उनकी टीम डॉक्टर पीयूष जैन, डॉक्टर संचय जैन से मिला.

ऐसे ही अन्य वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें…

डॉक्टर पी के जैन ने किया पूरा इलाज…

डॉक्टर पी के जैन ने मुझे बताया कि मेरी प्रॉब्मल कोई बड़ी बात नहीं है. पहले भी उनके पास ऐसे कई पेशेंट आ चुके हैं. डॉक्टर पी के जैन ने मेरा पूरा डायगनोसिस किया और मेरी बीमारी को अच्छे से समझने के बाद मुझे उसके हिसाब से दवा दी. अपनी कामयाब आयुर्वेदिक दवाओं के जरिए उन्होंने मेरा सफल इलाज किया. डॉक्टर पी के जैन की वजह से ही आज मैं और मेरी पत्नी अपना वैवाहिक जीवन खुशी खुशी बिता रहे हैं.

मैं तो यही कहूंगा कि आपकी सेक्स लाइफ में भी अगर कोई समस्या है तो बिना यहां वहां भटकने के बजाय सीधे डॉक्टर पी के जैन से मिले और अपना इलाज करवाएं.

लखनऊ के डॉक्टर पी. के. जैन, जो पिछले 40 सालों से इन सभी समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. तो आप भी पाइए अपनी सभी  सेक्स समस्या का बेहतर इलाज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति एवं मान्यता प्राप्त डॉ. पी. के. जैन द्वाराृ.

ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करें….

दुनिया भर के मजदूरों का सबसे बड़ा त्योहार Workers Day

1. शिकागो से शुरुआत हुआ 

मई दिवस जिसे अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के नाम से भी जाना जाता है, कामगार लोगों के संघर्ष की याद में हर वर्ष दुनियाभर में एक मई को यह दिवस मनाया जाता है. यह तारीख आज भी श्रमिकों के लिए प्रेरणा के स्रोत के रूप में काम करती है तथा इसके साथ जुड़ी घटना की स्मृति उनमें विद्युत-जैसा उत्साह उत्पन्न करती है. इस दिन की शुरुयात अमेरिका का शिकागो शहर से काम के लिए आठ घंटे का  आन्दोलन से हुई और आज यह दिवस विश्व के कोने कोने में मनाया जाता है. मजदूरो के हित कों याद करने और पूंजीपतियों के बढ़ते प्रभाव कों समय-समय पर रोकने के उद्देश्य से हर साल  प्रथम मई का विशिष्ट महत्व होता है.

2. मई दिवस का इतिहास और काम के घण्टे 

 मई दिवस की कहानी काफी लम्बी है, सदियों से चली आरही यह कहानी आज भी चल रही है और मजदूरो के हित के लिए सदियों तक चलती रहेगी. मई दिवस का जन्म काम के घण्टे कम करने के आन्दोलन से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है. पुराने जमाने में श्रमिक को पंद्रह-बीस घंटे तक काम करना पड़ता था और उसमें भी यदि मालिक उस श्रमिक के कार्य से संतुष्ट नहीं होता तो उसका वेतन काट लिया जाता था. कार्य की अवधि को आठ घंटे तक सीमित करने के लिए भी मजदूरों को कठोर संघर्ष करना पड़ा है.  काम के घण्टे कम करने के इस आन्दोलन का मज़दूरों के लिए बहुत अधिक राजनीतिक महत्त्व है. जब अमेरिका में फैक्ट्री-व्यवस्था शुरू हुई, लगभग तभी यह संघर्ष उभरा.शुरुयाती हड़तालों में अमेरिका में अधिक तनख्वाहों की माँग की गई थी, लेकिन जब भी मज़दूरों ने अपनी माँगों को सूत्रबद्ध किया, काम के घण्टे कम करने का प्रश्न और संगठित होने के अधिकार का प्रश्न केन्द्र में रहा. समय के साथ ही मजदूर संगठनो कों यह महसूस होने लगा की उनका शोषण बढ़ता गया और उनके साथ को अमानवीय रूप से लम्बे समय तक काम लिया जाता है. इसके फलस्वरूप मज़दूरों ने काम के घण्टों में आवश्यक कमी की माँग भी मजबूत कर दिया.

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3. सूर्योदय से सूर्यास्त –

उन्नीसवीं सदी शुरुआत में मजदूरो की मांग और तेज कर दिया गयी, उस समय काम के घंटे सूर्योदय से सूर्यास्त तक (चौदह, सोलह और यहाँ तक कि अठारह घण्टे ) होता था, जिसका विरोध में अमेरिका के कई इलाकों में मज़दूरों ने संगठित  होकर इसका विरोध किया. उन्नीसवीं सदी के दूसरे और तीसरे दशक काम के घण्टे कम करने के लिए हड़तालों से भरे हुए थे. कई औद्योगिक केन्द्रों में तो एक दिन में काम के घण्टे दस करने की निश्चित माँगें भी रखी गयीं. क्वमैकेनिक्स यूनियन ऑफ फि़लाडेल्फियां को , जो दुनिया की पहली ट्रेड यूनियन मानी जाती है, 1827 में फि़लाडेल्फिया में काम के घण्टे दस करने के लिए निर्माण-उद्योग के मज़दूरों की एक हड़ताल करवाने का श्रेय जाता है. इस हड़ताल के कारण काम के घंटे कम करनी की बात प्रभावशाली बनती गयी, फलस्वरूप  वांन ब्यूरेन की संघीय सरकार को सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए काम के घण्टे दस करने की घोषणा करनी पड़ी.

4. आठ घण्टे काम, आठ घण्टे मनोरंजन, आठ घण्टे आराम

समय के साथ  पूरे विश्व-भर में काम के घण्टे दस करने का संघर्ष शुरू हो गया. कई बाधायो  के बाद मजदूरो कों विश्व के कई इलाकों में सफलता मिली, अपने आन्दोलन के दम पर उन्होंने विश्व के कई इलाकों में  काम के घंटे दस करवा ली, जिससे मजदूरो को काफी राहत मिली. फिर भी मजदूरो का आन्दोलन यही नही रुका काम के दस घंटे की बात उद्योगों में मान ली गई, तो मज़दूरों ने काम के घण्टे आठ करने की माँग उठानी शुरू कर दी. पचास के दशक के दौरान लेबर यूनियनों को संगठित करने की गतिविधियों ने इस नयी माँग को काफी बल दिया. बीच-बीच में बहुत बाधाये आई, लेकिन मजदूरो का सघर्ष चलता रहा. यह आन्दोलन मात्र अमेरिका तक ही सीमित नहीं था. यह आन्दोलन हर उस जगह प्रचलित हो चला था जहाँ उभरती हुई पूँजीवादी व्यवस्था के तहत मज़दूरों का शोषण हो रहा था. अमेरिका से पृथ्वी के दूसरे छोर पर स्थित आस्ट्रेलिया में निर्माण उद्योग के मज़दूरों ने यह नारा दिया – आठ घण्टे काम, आठ घण्टे मनोरंजन, आठ घण्टे आराम और उनकी यह माँग 1856 में मान भी ली गई. उस समय मजदूर आन्दोलन को एक और सफलता मिली. 14 जुलाई,1889 कों विश्वभर के समाजवादी कार्ल माक्र्स की विचारधारा को व्यावहारिक स्वरूप देने की दृष्टि से फ्रांस की राजधानी पेरिस में एकत्रित हुए एवं  अंतराष्ट्रीय समाजवादी संगठन (सेकंड इंटरनेशनल) की स्थापना की और  मजदूरों के लिए कार्य की अधिकतम अवधि को आठ घंटे तक सीमित करने के  माँग के साथ संपूर्ण विश्व में प्रथम मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाये जाने का प्रस्ताव पेश किया.

5. भारत में मई दिवस :-

जब पुरे विश्व में मई दिवस के लिए सघर्ष चल रहा था तों मजदूरों के इस विश्वव्यापी आंदोलन से भारत भी अछूता नहीं रह सका. हमारे देश में मई दिवस का प्रथम आयोजन 1923 में हुआ था. मद्रास के समुद्र तट पर आयोजित इस प्रथम मई दिवस के समारोह के अध्यक्ष मजदूर नेता श्री सिंगारवेलु चेट्टियार  थे. प्रथम मई दिवस सम्मलेन में हजारो मजदूरो ने भाग लिया और हर साल प्रथम मई कों मई दिवस के रूप में मनाये जाने की शपथ ली.सिंगारवेलु चेट्टियार देश के आरम्भ के कम्युनिस्टों में से एक तथा प्रभावशाली टेऊड यूनियन और मजदूर तहरीक के नेता थे. सिंगारवेलू ने इस दिन मजदूर किसान पार्टी की स्थापना की घोषणा की तथा उसके घोषणा पत्र पर प्रकाश डाला. कई कांग्रेसी नेताओं ने भी मीटिंगों में भाग लिया.  इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर और संगठित रूप में इसका आयोजन मई दिवस का आयोजन 1928 में हुआ. इस आयोजन से लेकर अब तक हमारे यहाँ मई दिवस का आयोजन प्रतिवर्ष बहुत उत्साह के साथ होता रहा है.  भारत में मई दिवसयह ध्यान देने की बात है कि भारत में मजदूरों की होने वाली पहली हड़तालों में अप्रैल-मई 1862 की हड़ताल थी जब 1200 मजदूरों ने हावड़ा रेलवे स्टेशन पर कई दिनों के लिए काम बन्द कर दिया था. इस घटना की खासियत यह है कि मजदूरों की मांग काम के घंटों का घटाकर 8 घंटे प्रतिदिन करने की थी क्योंकि लोकोमोटिव विभाग में काम करने वाले मजदूर 8 घंटे ही काम करते थे. अत: इन मजदूरों ने भी यही मांग उठाई, काम बन्द कर दिया था. इस घटना की खासियत यह है कि मजदूरों की मांग काम के घंटों का घटाकर 8 घंटे प्रतिदिन करने की थी क्योंकि लोकोमोटिव विभाग में काम करने वाले मजदूर  8 घंटे ही काम करते थे. अत: इन मजदूरों ने भी यही मांग उठाई. समय  के साथ उनके मांगो को लेकर आन्दोलन और हड़ताल का सिलसिला चलता रहा , फिर पुरे भारत वर्ष में काम के आठ घंटे का नियम लागू कर दिया गया.

6. पहले लागू करवाना होगा पुरे विश्व में मजदूरो के लिए आठ घंटे के काम का नियम 

मई दिवस विश्व भर के तमाम मजदूरो कों समर्पित है,फिर  भी कई जगहों पर मजदूर इस दिन भी जी तोड़ मेहतन कर दो जून की रोटी जुटाते है. आज भी विश्व के अनेक देशों में मजदूरो के लिए  आठ घंटे की कार्यावधि भी लागू नहीं हो पाई है. सही माईने में अगर मजदूरो कों समर्पित मई दिवस माना है, तों पहले पुरे विश्व में मजदूरो के लिए आठ घंटे के काम का नियम लागू करवाना होगा और समय-समय पर मजदूरो के विकास के लिए बनाने वाली योजनायो के हर मजदूर तक पहुचना होगा. अगर हम सभी ऐसा कर पाते है, तभी सही माईने में मजदूर दिवस मनाया जा सकता है.

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7. कईयों के लिए मई दिवस मतलब सामान्य दिन

वे मजदूर  जिसके कंधों पर सही मायनों में विश्व की उन्नति का दारोमदार निर्भर करता है. मई दिवस के शुरुयाती काल से आज तक कर्म को ही पूजा समझने वाले मेहनती मजदूर वर्ग आज भी  श्रम कल्याण सुविधाओं के लिए तरस रहा है. आज भी विश्व के कोने-कोने में 1 मई कों मई दिवस मानी जाती है.  इस अवसर पर हमारे देश  में भी इस दिन काफी हल्लाचल रहती है. देशभर में बड़ी-बड़ी सभाएँ होती हैं, बड़े-बड़े सेमिनार आयोजित किए जाते हैं. जिनमें मजदूरों के हितों की बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनती हैं और ढ़ेर सारे लुभावने वायदे किए जाते हैं. जिन्हें सुनकर एक बार तो यही लगता है कि मजदूरों के लिए अब कोई समस्या ही बाकी नहीं रहेगी. इस दिन पूरा देश मजदूरो के हित की बाते करता है, किन्तु अगले ही दिन सब कुछ पहले जैसा हो जाता है. शोषण,गुलामी और जिल्लत भारी जिंदगी फिर से हर मजदूर भाई के सामने होता है. कई जगहों पर मजदूरो से मई दिवस के दिन भी काम लिया जाता है,  दो जून  के रोटी के लिए मजदूरो का  एक बड़ा वर्ग इस दिन भी काम करने से माना नही कर पाता है. उनके पास यही मजबूरी होती है कि यदि वे एक दिन भी काम नहीं करेंगे तो उनके घरों में चूल्हा कैसे जलेगी.

8. मजदूरों का विकास क्यों नही होता

आजाद भारत में मजदूरो के विकास के लिए सरकारी तौर पर कई कानून बनाई गए और समय-समय पर मजदूरो के विकास के लिए विभिन्न नीति-निर्देश और  योजना बनाई जाती है. फिर भी मजदूरो का विकास क्यों नही होता ? क्यों कि अधिकांश मजदूर या तो अपने अधिकारों के प्रति अनभिज्ञ होते हैं या फिर वे अपने अधिकारों के लिए इस वजह से आवाज नहीं उठा पाते कि कहीं इससे नाराज होकर उनका मालिक उन्हें काम से ही निकाल दे और उनके परिवार के समक्ष भूखे मरने की नौबत आ जाए. मजदूरो की समस्या समाज का हर तबका वाकिफ होता है, लेकिन गिने चुने मामलों में ही मजदूरो कों समाज और सरकार से सही माईने में सहायता मिलाती है. मजदूरो के विकास के लिए हमारे देश में हर वर्ष श्रम के वाजिब मूल्य, उनकी सुविधाओं आदि के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करने की परम्परा सी बन चुकी है. समय-समय पर मजदूरों के लिए नए सिरे से मापदंड निर्धारित किए जाते हैं, लेकिन इनको क्रियान्वित करने की फुर्सत ही किसे है?

9.  निर्धारित न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल पाता 

सरकारी अथवा गैर-सरकारी किसी भी क्षेत्र में काम करने पर मजदूरों को मिलने वाली न्यूनतम मजदूरी तय करने की घोषणाएँ  तों जोर-शोर से करती है, लेकिन इसके पीछे कुछ और होता  हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार  तकऱीबन 36 करोड़ श्रमिकों में से 34 करोड़ से अधिक को सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल पा रही.

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अलविदा: रोमांटिक फिल्मों के सुपरस्टार थे Rishi Kapoor

करीब 50 सालों से हिंदी सिनेमा जगत पर राज कर रहे 67 वर्ष के अभिनेता ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) ने हिंदी सिनेमा जगत को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. दो सालों से बोन मैरो कैंसर से जूझने के बाद उन्होंने आज सवेरे मुंबई के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली. उन्होंने इंडस्ट्री में 25 साल तक सिर्फ चोकलेटी हीरो की भूमिका निभाई थी. तब से लेकर आज तक, हर तरह की भूमिका निभाने के बावजूद उन्हें हमेशा हर किरदार नया लगा. उन्होंने उम्र को एक नंबर और अपने आपको हमेशा जवान समझा है. उन्हें रोमांटिक फिल्में आज भी पसंद थी.

उन्होंने एक इंटरव्यू में Rishi Kapoor ने कहा था कि वे स्पस्टभाषी है और हमेशा से ही खरी-खरी बातें करना पसंद करते है, जिसकी वजह से कई बार उन्हें इसका बहुत खामियाजा भुगतना पढ़ा. सोशल मीडिया पर भी उनकी बातें कई लोगों को पसंद नहीं आती थी. किसी को ठेस पहुँचने पर कई बार वे उसे निकाल भी लेते थे, पर उन्हें ये माध्यम पसंद था, क्योंकि इसमें रिएक्शन जल्दी मिलता था. ये डिजिटल इंडिया का रूप है और भविष्य भी, जिसमें हर चीज घर बैठे मिलता है. ऋषिकपूर ‘बॉबी’ फिल्म में ढाई रूपये में हीरो बने थे ,जबकि रणवीर कपूर 250 रूपये में फिल्म ‘सवरियाँ’ में हीरो बने, ये अंतर पिता और बेटे में है. जेनरेशन के बाद हर चीज बदलती है.

https://www.youtube.com/watch?v=17LL_iqlHE8

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फ़िल्मी माहौल में पैदा हुए ऋषि कपूर ने जन्म से ही कला को अपने आस-पास देखा है. उन्हें गर्व रहा है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के 105 साल पूरे होने में उनके परिवार का 97 साल का योगदान रहा है. उन्होंने आजतक करीब 150 फिल्मों में काम किया है और हर तरह के किरदार निभाए है, लेकिन आज भी जब वे कुछ नया पढ़ते थे, तो उसे करने की इच्छा पैदा होती थी. उनके हिसाब से अभिनय की प्रतिभा व्यक्ति में जन्म से होती है.कोई अच्छा अभिनेता हो सकता है ,पर ख़राब अभिनेता कभी नहीं होता. व्यक्ति या तो एक्टर होता है या एक्टर नहीं होता है. इन दोनों के बीच कोई नहीं होता.

उन्होंने हमेशा उस फिल्म को करने की कोशिश की, जिसमें मनोरंजन हो इसके साथ उसमें कुछ संदेष चला जाय. इस दौर को ऋषि कपूर अच्छा मानते रहे, जिसमें पुराने कलाकार को नए एक्टर्स के साथ काम करने का मौका मिला. इसका श्रेय उन्होंने अमिताभ बच्चन को दिया, जिन्होंने इस दौर की शुरुआत की, जिसका फल सभी को मिला. पुराने कलाकार आज गुमनाम के अँधेरे में नहीं,बल्कि नए दौर में नए कलाकारों के साथ अपनी भूमिका निभाते है. आज पुराने कलाकारों की फिल्में हिट होती है और नयी जेनरेशन उनके लिए कहानी लिखती और निर्देशन करती है. ऋषि कपूर को पिता की भूमिका निभाना कभी पसंद नहीं था. हबीब फैजल की फिल्म ‘दो दुनी चार’ उन्हें बहुत अच्छी लगी थी, जिसमें ऋषि कपूर लीड रोल में थे और उन्होंने नीतू सिंह के साथ इसमें अभिनय किया था और ये फिल्म सफल भी रही . इससे पहले नीतू सिंह और ऋषि कपूर ने 16 फिल्में साथ की थी. दोनों की जोड़ी को दर्शक पर्दे पर तब देखना बहुत पसंद करते थे. अभिनय को ऋषि कपूर अपने जीवन का जूनून मानते थे, जिसकी सीमा उनके जीवन में कभी नहीं थी.

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Rishi Kapoor के आखिरी दर्शन नहीं कर पाईं बेटी riddhima, इमोशनल पोस्ट में लिखा- वापस आ जाओ पापा

बॉलीवुड के दिग्गज एक्टर ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) की फैमिली वैसे तो मुंबई में ही हैं. लेकिन उनकी बेटी रिद्धिमा कपूर लॉकडाउन के कारण (riddhima kapoor sahani) दिल्ली में हैं. ऐसे में रिद्धिमा ने गृह मंत्रालय से मुंबई जाने की अनुमति मांगी थी, जो उनको सड़क के रास्ते की मिली ना कि चार्टेड प्लेन की. पिता ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) के अंतिम दर्शन में न पहुंच पाने का दुख रिद्धिमा कपूर ने अपने सोशल मीडिया पर इमोशनल पोस्ट को शेयर करते हुए बताया. आइए आपको दिखाते हैं रिद्धिमा कपूर का इमोशनल पोस्ट….

रिद्धिमा ने लिखा-वापस आ जाओ ना पापा…

पिता के अंतिम दर्शन में न पहुंच पाने के दौरान रिद्धिमा ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक पोस्ट किया और अपने दिल का दुख लोगों के साथ शेयर किया. रिद्धिमा कपूर ने अपने पोस्ट में लिखा, ‘पापा मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं और करती रहूंगी. आपकी आत्मा को शांति मिले पापा…. मैं आपको हमेशा मिस करूंगी. मैं आपके साथ फेसटाइम कॉल्स भी मिस करूंगी.. काश मैं वहां पर होती और आपको गुडबाय कह पाती… जब तक हम दोबारा नहीं मिलते आई लव यू पापा….’

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स्टोरी पर शेयर करके लिखी ये बात


इमोशनल पोस्ट के साथ रिद्धिमा ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर पिता के साथ फोटोज शेयर करते हुए लिखा कि वापस आ जाओ ना पापा. लव यू पापा के साथ रिद्धिमा ने अपने पिता ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) को अंतिम विदाई दी. दरअसल, पिता ऋषि के अंमित दर्शन के लिए रिद्धिमा कपूर को मुंबई जाने के लिए लॉकडाउन के चलते फ्लाइट से जाने की बजाय सड़क के रास्ते जाने की इजाजत दी गई थी. ऐसे में उन्हें सड़क के माध्यम से दिल्ली से मुंबई के बीच का करीब 1400 किलोमीटर का फासला तय करने पड़ता, लेकिन वह नहीं जा पाईं.

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Last rites of the legendary actor #rishikapoor #ranbirkapoor #ridhimakapoor #kareenakapoor #kapoorfamily

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बता दे, ऋषि कपूर सभी के बहुत चहेते उनके न रहने से पूरे बॉलीवुड में शोक की लहर दौड़ गयी है. ऋषि कपूर के दोस्त और बॉलीवुड स्टार्स ने सोशल मीडिया के जरिए अपना दुःख फैंस के साथ शेयर किया है.

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