Medela Flex Breast Pump: मैनुअल से बेहतर है इलेक्ट्रिक ब्रेस्ट पंप

मेरा  नाम स्वाति है, मैं 6 महीनों पहले ही मां बनी हूं, जिसके बाद मेरी जिंदगी में बहुत बदलाव आ चुका है. मुझे अपने और परिवार के लिए समय नही मिल पाता था, जिसके कारण मैने मार्केट से मैनुअल ब्रेस्ट पंप खरीदा, लेकिन ब्रेस्ट पंप लेने के बाद भी मेरे पास बिल्कुल समय नही मिलता था. साथ ही मुझे इस प्रौडक्ट को लेकर कोई संतुष्टि नही मिली. क्योंकि मेनुअल ब्रेस्ट पंप से दूध को निकालने में भी मुझे समय के साथ हाथों में दर्द भी रहने लगा.

इसके बाद जब परेशान होकर मैने मेरी दोस्त सानिया को अपनी इस प्रौबल्म के बारे में बताया तो उसने मुझे इलेक्ट्रिक ब्रेस्ट पंप का इस्तेमाल करने की बात कही. क्योंकि वह भी इस प्रौबल्म का सामना कर चुकी थी और इलेक्ट्रिक पंप से उसकी लाइफ भी बेहद आसान हो गई थी, जिसके कारण उसने मुझे भी इलेक्ट्रिक ब्रेस्ट पंप का इस्तेमाल करने की सलाह दी.

साथ ही सानिया ने मुझे समझाते हुए कहा कि भले ही हम किसी चीज पर पैसे खर्च करके अपनी लाइफ को आसान बनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन अगर वही चीज हमारे काम को आसान करने की बजाय बढ़ा दे तो वह चीज खरीदना बेकार हो जाती है, जिसके बाद मुझे यह बात समझ आई कि सानिया सही कह रही है.

इसी के साथ उसने मुझे मेडेला के इलेक्ट्रिक ब्रेस्ट पंप का इस्तेमाल करने की सलाह देते हुए कहा कि यह Medela Flex Breast Pump के जरिए वह कम समय में ही काफी दूध निकाल कर स्टोर कर सकती है, जिससे उसे बार-बार बच्चे को खुद फीडिंग नहीं करवानी पड़ेगी. साथ ही वह आराम से औफिस का काम और अपने बच्चे का ख्याल रख पाएगी और इस पूरी प्रोसेस में 10 से 15 मिनिट का समय लगेगा. इसी के साथ उसने मुझे यह भी बताया कि Medela Flex Breast Pump स्विटजरलैंड में बनाए जाते है, जो कि हाइजीन के मामले में बेहद सुरक्षित भी है और इसके साथ मिलने वाली गारंटी आपको प्रौडक्ट को लेकर सिक्योरिटी भी देती है.

सानिया से मेडेला के इलेक्ट्रिक ब्रेस्ट पंप के बारे में जानने के बाद मैनें इस प्रौडक्ट को खरीदा और इस प्रौडक्ट को खरीदने व इस्तेमाल करने के बाद मुझे एक संतुष्टि भी मिली.

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शुरु हुई ‘बाहुबली’ एक्टर राणा दग्गुबाती की शादी की तैयारी, मास्क पहनकर दुल्हन बनेगी मंगेतर

साउथ की फिल्मों से लेकर बौलीवुड में धूम मचा चुके एक्टर राणा दग्गुबाती उनकी मंगेतर मिहीका बजाज संग जल्द शादी के बंधन में बंधने वाले हैं. ‘बाहुबली’ के भल्लादेव उर्फ राणा दग्गुबाती (Rana Daggubati) हाल ही में रोका सेरेमनी में एक्टर अपनी मंगेतर मिहीका बजाज दोनों पारंपरिक लुक में नजर आए थे. वहीं अब उनकी शादी की तैयारियों भी शुरू हो चुकी हैं, जिसकी फोटोज भी सोशलमीडिया पर वायरल हो रही है. आइए आपको दिखाते हैं ‘बाहुबली’ स्टार की कोरोनावायरस के बीच वेडिंग सेलिब्रेशन की फोटोज…

कोरोनावायरस के बीच होगी शादी

खबरों की मानें तो राणा दग्गुबाती (Rana Daggubati) मिहीका बजाज के साथ अगस्त में शादी करने वाले है. दोनों की शादी ऐसे वक्त में होने वाली है जब देश में कोविड-19 का कहर है. ऐसे में दूल्हा-दुल्हन पूरी सावधानी से शादी की तैयारी में जुटे हैं. हाल ही में मिहीका बजाज ने अपनी फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह दुल्हन बनने के साथ मास्क पहने हुए नजर आ रही हैं.

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शादी की तैयारियां हुई शुरू

हाल ही में मिहीका बजाज ने अपने लुक की एक प्यारी सी फोटो शेयर की है. इस फोटो में मिहीका बजाज लहंगा चुन्नी पहने नजर आ रही हैं. इसके साथ ही उन्होंने कैप्शन दिया है, ‘उत्सव जारी है… थैंक्यू मेरा दिन बेहद खास बनाने के लिए…’.

रोका सेरेमनी की फोटोज हुई वायरल

बाहुबली एक्टर (Rana Daggubati) की रोका सेरेमनी की फोटोज सोशल मीडिया पर हंगामा मचा चुकी हैं. रोका सेरेमनी में ‘बाहुबली’ स्टार और उनकी मंगेतर मिहीका बजाज पारंपरिक तरीके से तैयार हुए थे और दोनों की खूबसूरत फोटोज में फैंस उन्हें बधाई देते नजर आए थे.

 

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बता दें, अपनी फिल्म हाथी मेरे साथी को लेकर राणा दग्गुबाती (Rana Daggubati) बीते दिनों सुर्खियों में रहे हैं. देश में लॉकडाउन के बीच ये फिल्म रिलीज नही हो पाई, जिसके कारण उनके फैंस को काफी दुख हुआ था.

फादर्स डे पर Sonam Kapoor ने दिया हेटर्स को करारा जवाब, सुशांत के सुसाइड पर हुई थीं ट्रोल

बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) के सुसाइड के बद से फिल्म इंडस्ट्री के स्टार किड्स ट्रोलर्स के निशाने पर हैं. सुशांत के सुसाइड के पीछे की वजह ढूंढने के लिए जहां पुलिस कईं लोगों से पूछताछ कर रही है तो वहीं कुछ लोग फिल्म इंडस्ट्री में फैले नेपोटिज्म और ‘प्रोफेशनल राइवलरी’ को उनके सुसाइड के लिए जिम्मेदार मान रहे हैं, जिसके चलते वह स्टार्स को ट्रोल करने में लगे हुए हैं.

वहीं ट्रोलर्स से परेशान होकर सोनाक्षी सिन्हा और आयुष शर्मा जैसे सितारों ने अपने ट्विटर अकाउंट को डिलीट कर दिया था. वहीं कुछ स्टार्स ट्रोलर्स पर अपनी नाराजगी जता रहे हैं. हाल ही में एक्ट्रेस सोनम कपूर (Sonam Kapoor) ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट का कमेंट सेक्शन को हटा दिया था और अब फादर्स डे के मौके पर ट्विटर पर वह ट्रोलर्स के कमेंट्स के खिलाफ नाराजगी जताती नजर आ रही हैं.

फादर्स डे के मौके पर फूटा सोनम का गुस्सा

ट्रोलर्स से परेशान सोनम कपूर (Sonam Kapoor) ने फादर्स डे के मौके पर ट्विटर पर हेटर्स को करारा जवाब देते हुए कहा है, ‘आज फादर्स डे के मौके पर मैं ये बात कहना चाहती हूं कि हां, मैं अपने पापा की बेटी हूं. हां मैं यहां उनकी वजह से हूं… हां मैं खास हूं… ये कोई अपमान की बात नहीं है. मेरे पिता ने मुझे ये सबकुछ देने के लिए बहुत मेहनत की है. ये मेरा कर्म है कि मैं कहां पैदा हुई, किसके घर पैदा हुई और मैं बहुत गर्वित हूं. उनकी बेटी होकर.’ इतना ही नहीं, सोनम कपूर ने बैक टू बैक कई सारे ट्वीट्स कर हेटर्स को करारा जवाब दिया है. इसी के साथ सोनम ने कुछ स्क्रीन शौट्स भी शेयर किए है.

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सोनाक्षी भी दे चुकी हैं जवाब

बीते दिनों सोनम कपूर से पहले सोनाक्षी सिन्हा (Sonakshi Sinha) ने भी ट्रोलर्स को ट्विटर पर करारा जवाब दिया था. लेकिन इसके बावजूद उनके खिलाफ लोगों का गुस्सा देखने को मिला था, जिसके बाद सोनाक्षी ने ट्विटर एकाउंट डिएक्टिवेट कर दिया था.

बता दें, हाल ही में सलमान खान (Salman Khan) में अपने फैंस से गुजारिश की थी कि वह सुशांत के फैंस और फैमिली का साथ दें ना कि उनके लिए लड़े, जिसके बाद फैंस उनके इस कदम की तारीफें कर रहे हैं.

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#coronavirus: अनलॉक के दौरान क्या करें या न करें

अब जब सब तरफ लाकडाउन बंदिशें खत्म हो चुकी हैं. तो  ऐसे में ज़रूरी है कि बीमारी के फैलने की संभावना को कम करने के लिए हम सब पूरी सावधानी बरतें. हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि जानलेवा कोरोनावायरस अभी देश से गया नहीं है और वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया जारी है. भारत में अब तक 3.50 लाख कोरोना पाज़िटिव और 10 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी है.  हम जानते हैं कि अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के प्रयास में शहर और राज्य खोले जा चुके हैं.ऐसे में कोरोनावायरस इन्फेक्शन फैलने का खतरा भी बढ़ गया है.

डॉक्टर का कहना है कि हमें अपने दोस्त को गले लगाए, पार्टी किए, स्टेडियम गए और हवाई यात्रा किए भले ही कई दिन बीत गए हों, लेकिन हमें याद रखना है कि कई तरह के प्रतिबंध हटाए जाने के बाद, आज भी हम कोरोनावायरस के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते हैं.

इस अनलॉक के समय हमें कुछ बातों का खास ध्यान रखना चाहिए जो कि इस प्रकार है

1. फेस मास्क पहनना न भूलें

शॉपिंग मॉल और गैर-ज़रूरी सामान की दुकानें खुलने लगी हैं, ऐसे में ज़्यादा सावधानी बरतने की ज़रूरत है. उपभोक्ताओं और कर्मचारियों दोनों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन जारी रखना चाहिए और अनिवार्य रूप से फेस मास्क का उपयोग करना चाहिए. आप कहां रहते हैं, क्या कर रहे हैं, इसके आधार पर कई और नियम भी हो सकते हैं. साथ ही आपको हैण्ड सैनिटाइज़र और दस्तानों का उपयोग भी करना चाहिए. याद रखें कि शॉपिंग और सामाजिक जीवन का अनुभव अभी कुछ समय के लिए पहले की तरह नहीं होने वाला है.

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2. पार्टी करने से बचें और बार में न जाएं

कोरोनावायरस के इन्फेक्शन से बचने के लिए ज़रूरी है कि आप बेवजह लोगों के संपर्क में न आएं. घर पर पार्टी करने या बार में जाने से आप ज़्यादा भीड़ के संपर्क में आते हैं, इससे इन्फेक्शन फैलने का खतरा बढ़ सकता है. हो सकता है कि पार्टी में ऐसे लोग हों जिनमें इन्फेक्शन के लक्षण न हों, जो आपको इन्फेक्शन दे सकते हैं. इसलिए यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है कि आप कितनी सूझ बूझ से अपने स्वास्थ्य की देखभाल करते हैं.

3. बार-बार हाथ धोएं        

हाइजीन को बिल्कुल न भूलें, याद रखें कि लॉकडाउन में छूट का यह मतलब बिल्कुल नहीं कि कोरोनावायरस फैलना रूक गया है. स्कूल और बिज़नेस को खोलने के आर्थिक कारण हो सकते हैं, लेकिन वायरस फैलता रहेगा. हालांकि हो सकता है कि इसके फैलने की दर कम हो जाए. बार-बार अच्छी तरह हाथ धोने से आप इस इन्फेक्शन से बच सकते हैं. जब भी आप किसी के संपर्क में आएं या किसी सतह को छूएं तो इसक बाद अपने हाथों को साबुन और पानी से अच्छी तरह धो लें.

4. छुट्टी की योजना न बनाएं

हममें से ज़्यादातर लोग तीन-चार महीने से घर में रहने के बाद छुट्टी पर जाना चाहते हैं. हो सकता है कि होटल और हवाई यात्रा का किराया बहुत कम हो जाए. लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं कि आप यह सोचकर छुट्टी पर जाने की योजना बना लें कि आपकी इम्युनिटी मजबूत है और आपको कुछ नहीं होगा. हो सकता है कि हवाई यात्रा अब पहले की तरह रोचक न हो. आपको उड़ान के दौरान मास्क पहनना होगा, आप सीमित मात्रा में खाने-पीने का आनंद ले कसेंगे, एयरपोर्ट टर्मिनल्स पर ज़्यादातर बिज़नेस बंद रहेंगे.

5. कोई भी फैसला सोच-समझ कर लें

भविष्य में क्या होने वाला है, हम इसके बारे में कुछ नहीं कह सकते. हो सकता है कि कोरोनावायरस के मामले अचानक बढ़ जाएं जैसा सिंगापुर और होंग-कोंग में हुआ, वायरस के ज़्यादा खतरनाक स्ट्रेन भी आ सकते हैं. इसलिए कोई भी फैसला सोच-समझ कर लें, लेकिन निराश न हों.

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6. स्ट्रीट फूड खाने से पहले सावधानी बरतें, हाइजीन पर खास ध्यान दें

जैसे ही आप घर से बाहर जाते हैं, गोलगप्पे, मोमो, टिक्की, राम लड्डू और चाट आपको लुभाने लगते हैं लेकिन स्ट्रीट फूड की किसी भी स्टॉल पर जाने से पहले सुनिश्चित कर लें कि वहां हाइजीन का पूरा ध्यान रखा जा रहा है. चाट परोसने वाले व्यक्ति ने दस्ताने पहनें हैं और वह नियमित रूप से अपने हाथों को सैनिटाइज़ कर रहा है. पेपर प्लेट और कटलरी साफ है, इन पर धूल-मिट्टी नहीं है.

डॉ. पी वेंकटा कृष्णन, इंटरनल मेडिसिन, पारस हॉस्पिटल

क्या भारत तीन मोर्चों पर जंग लड़ सकता है?,‘मोदी डाक्ट्रिन’ की यह अग्निपरीक्षा है

 साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने अविश्वसनीय जीत हासिल करके अपने सहयोगियों के साथ केंद्र में सरकार बनाया था, उस सरकार का शपथ ग्रहण समारोह भारत की विदेशनीति के लिहाज से एक नया अध्याय था. यह पहला ऐसा मौका था, जब भारत के किसी प्रधानमंत्री ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में भारतीय उपमहाद्वीप के सभी देशों के प्रमुखों को आमंत्रित किया था और सभी इस समारोह में आये थे. विदेशनीति के जानकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस मास्टर स्ट्रोक से दंग रह गये थे. क्योंकि सरकार बनने के पहले तक सबको यही लगता था कि अगर भाजपा सरकार बनाती है और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो भारत की विदेशनीति कैसी होगी? लेकिन मोदी सरकार ने इस सवाल का ऐसा जवाब दिया जिसका किसी के पास पहले से कोई अंदाजा ही नहीं था.

साल 2014 में चुनाव के पहले संभावित भाजपा सरकार की जिस विदेशनीति को लेकर सबसे ज्यादा सवाल उठ रहे थे, बाद में पांच सालों तक सबसे ज्यादा सरकार को उसी मोर्चे में सफल होते देखा गया. लगा जैसे सरकार ने आने के पहले कई सालों तक खास तौरपर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेशनीति का कुछ खास ही होमवर्क किया है. जिस कारण वह सत्ता में आते ही तमाम बड़े देशों की यात्राएं कीं और सबने गर्मजोशी के साथ भारत को रिश्तों की एक नयी मंजिल के रूप में लिया. लेकिन लगता है जो आशंकाएं 2014 में तमाम जानकारों को थीं, वे आशंकाएं अब 2020 में फिर से पैदा हो गई हैं या यूं कहें वही आशंकाएं अब हकीकत का रूप लेती दिख रही हैं. निश्चित रूप से भारत की विदेशनीति के लिए अचानक एक बड़ी कठिन परीक्षा आ गई है. आजादी के बाद से यह पहला ऐसा मौका है, जब न केवल भारत अपने तीन पड़ोसियों के साथ सरहदी तनाव में उलझा हुआ है बल्कि दो और पड़ोसियों के साथ भी रिश्ते अगर खराब नहीं हैं तो गर्मजोशी वाले भी नहीं है.

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कहते हैं सन 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारत की सेना को यह आशंका हो गई थी कि कहीं भारत को एक साथ दो मोर्चे पर युद्ध न लड़ना पड़े, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. शीतयुद्ध के कारण तनाव का भूमंडलीय शिवरीकरण हो गया और इस तरह न तो दांत पीसता अमरीका और न ही मौके की तलाश में चीन को भारत से टकराने का कोई मौका मिला. सोवियत संघ की धमक और कूटनीतिक मोर्चों में उसकी चुस्ती फुर्ती के कारण भारत ने 1971 में ऐतिहासिक जीत के साथ इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया. लेकिन आज 2020 में पहली बार यह स्थिति पैदा हो गई है कि क्या भारत एक साथ तीन मोर्चों पर जंग लड़ सकता है. जी, हां! लद्दाख में स्थित गलवान घाटी में जिस तरह से भारत और चीन के सैनिक आमने सामने आये और खूनी संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक मारे गये, उसके बाद से दोनो ही देश चरम तनाव के मुहाने पर खड़े हैं.

पाकिस्तान के साथ हमारा तनाव मौजूदा भारत की शुरुआत से ही यानी 1947 के विभाजन के साथ ही रहा है. पिछले साल जम्मू कश्मीर से जिस तरह भारत ने अनुच्छेद 370 को खत्म किया, उसके बाद से लगातार पाकिस्तान भारत के साथ कटु से कटु मुद्रा इख्तियार किये हुए है. लेकिन सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि पहली बार भारत और नेपाल के बीच भी न केवल इस हद तक सीमा विवाद उभरकर सामने आये हैं कि भारत के तीन इलाकों नेपाल की सरकार ने अपने राजनीतिक नक्शे में शामिल कर लिया है बल्कि लगभग कूटनीतिक ललकार के अंदाज में उस विवादित नक्शे को अपनी संसद में पारित भी करा लिया है, जो इस बात का संकेत है कि पूरा नेपाल सरकार के साथ खड़ा है. यही नहीं इस समय जबकि भारत और चीन के रिश्ते 1962 के बाद सबसे ज्यादा विस्फोटक हैं, कई सैन्य विशेषज्ञों को तो इस बात की भी आशंका है कि दोनो परमाणु शक्ति सम्पन्न देश जंग में भी उतर सकते हैं. ठीक उसी समय नेपाल भी भारत के साथ चीन और पाकिस्तान के अंदाज में ही व्यवहार कर रहा है.

यह पहला ऐसा मौका है कि भारत और नेपाल की सीमा में जबरदस्त तनाव व्याप्त है. इसी तनाव के बीच नेपाल ने भारत की सीमा में पहली बार हथियारबंद सैन्य जवानों को तैनात किया है. नेपाल ने काला पानी के पास चांगरू में अपनी सीमा चैकी को उन्नत भी बनाया है. सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि नेपाली सेना के प्रमुख पूर्णचंद्र थापा इस चैकी के निरीक्षण के लिए आये, जो एक किस्म से भारत के लिए संदेश था कि अब पाकिस्तान और चीन की तरह नेपाल की सरहद में भी जंग वाले हालात रहा करेंगे. सवाल है क्या जरूरत पड़ने पर भारत अपने तीन-तीन पड़ोसियों से एक साथ जंग लड़ सकता है? जब जार्ज फर्नांडिस रक्षा मंत्री थे तो उन्होंने सेना को युद्ध के समय दो मोर्चों पर तैयारी के लिए कहा करते थे.

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अगर वास्तव में कभी यह खौफनाक आशंका सच हो गई और भारत को चीन, पाकिस्तान और नेपाल के साथ एक ही समय पर युद्ध लड़ना पड़े तो निश्चित रूप से यह बहुत ही खराब स्थिति होगी. क्योंकि तब भारत को लगभग 4000 किलोमीटर की लंबी जमीनी सरहद पर हर जगह नजर रखनी पड़ेगी और हर जगह मोर्चाबंदी करनी पड़ेगी. यही नहीं आकाश और समुद्र में भी दोहरे मोर्चे का सामना करना पड़ेगा. यह कहने की जरूरत नहीं है कि पाकिस्तान और चीन हमेशा एक ही पलड़े में, एक ही पाले में रहा करते हैं. वैसे भी दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. इसलिए पाकिस्तान और चीन भारत के संबंध में हमेशा दोस्त होते हैं. पाकिस्तान हमेशा कूटनीतिक स्तर पर चीन का इस्तेमाल करता रहा है, लेकिन यह भी हकीकत है कि अब तक भारत और पाकिस्तान के बीच जितने भी युद्ध हुए हैं, भारत की प्रभावशाली विदेशनीति और सतर्क कूटनीति के चलते कभी भी पाकिस्तान को चीन का सक्रिय साथ नहीं मिल सका.

लेकिन यह पहला ऐसा मौका है जब चीन और भारत के साथ युद्ध छिड़ता है तो पाकिस्तान बिना किसी बात के भी भारत के साथ मोर्चा खोल सकता है बशर्ते उसे चीन इसके लिए मना न करे और भला चीन क्यों मना करेगा? हालांकि अगर वाकई इस तरह की स्थिति आयी और पाकिस्तान ने बेवकूफी की तो पाकिस्तान को इसका खामियाजा बहुत ज्यादा भुगतना पड़ सकता है. दरअसल भारत एक साथ अगर तीन पड़ोसियों के साथ वाॅर फ्रंट पर आ खड़ा हुआ है और दो पड़ोसी, बांग्लादेश तथा श्रीलंका के साथ हमारे रिश्ते अगर मनमुटाव वाले नहीं हैं तो उनमें गर्मजोशी भी नहीं है. इस स्थिति के लिए सेना जिम्मेदार नहीं है और न ही यह कहा जा सकता है कि भारत की सैन्यशक्ति में किसी तरह की कमी है. वास्तव में इस स्थिति के लिए भारत की विदेशनीति और उसे सहयोग करने वाली कूटनीति पूरी तरह से जिम्मेदार हैं. इसलिए यह स्थिति मोदी की विदेशनीति या ‘मोदी डाॅक्ट्रिन’ की अग्निपरीक्षा है.

लेखक के दिमाग को पढ़ने के लिए एक अच्छा निर्देशक जरुरी – जूही चतुर्वेदी

फिल्म विकी डोनर से सफलता की सीढ़ी चढ़ने वाली लेखिका जूही चतुर्वेदी से आज कोई अपरिचित नहीं. उन्होंने बहुत कम समय में अपनी एक अलग पहचान बनायी है. उन्होंने हमेशा कोशिश की है कि कहानी आम लोगों से जुड़कर कही जाय, जिससे लोग अपने आपको उससे जोड़ सकें और वे इसमें कामयाब भी रही. उनके हिसाब से कहानी को सही तरीके से पर्दे पर लाना भी बहुत मुश्किल होता है, पर निर्देशक सुजीत सरकार बड़ी सफलता पूर्वक इसे अंजाम देते है. उनकी इस सफलता में उनके माता पिता और परिवार का भी काफी सहयोग रहा.  गृहशोभा जूही की मां हमेशा लखनऊ में पढ़ती है. जूही की कई यादें इस पत्रिका से जुड़ी है. जूही ने फिल्म गुलाबो सिताबो’ लिखी है, जो मजेदार फिल्म है. आइये जानते है क्या कहती है, जूही अपनी जर्नी के बारें में,

सवाल-‘गुलाबो सिताबो’ की कहानी का कांसेप्ट आपने कैसे सोचा?

जिंदगी हमें बहुत सारी किस्से कहानियां और लोगों से मिलवाती है, ऐसे में कुछ लोग आपकी जिंदगी में एक छाप छोड़ जाते है, जिसे आप भुला नहीं सकते. कोई अकेला व्यक्ति कोई कहानी नहीं कह सकता. ये समाज के मिले जुले लोगों के साथ ही निकलता है, जिसकी परछाई हमें मिलती है और उसे लेखक, लेखनी के द्वारा एक आकार देता है, जिसे निर्देशक दर्शकों तक पहुंचाता है. असल में ऐसे लोग जब आपके आसपास होते है तो कहानी अनायास ही जन्म ले लेती है.अपने अनुभव के साथ, खुद की कल्पना को जोड़कर कहानी लिखती हूं. गुलाबो सिताबो भी ऐसी ही कहानी है.

सवाल-ये फिल्म बड़े पर्दे पर आने वाली थी, पर अब डिजिटल पर आ रही है, इसका मलाल है क्या?

बड़े पर्दे पर रिलीज होती तो अच्छा होता, जिसमें आप पॉपकॉर्न के साथ किसी अंजान व्यक्ति के साथ बैठकर ठहाके लगाकर हँसते हुए फिल्म देख पाते, लेकिन घर पर बैठकर देखने में भी कोई समस्या नहीं. निर्माता, निर्देशक ने फिल्म को दर्शकों के लिए बनायीं और जब ये पूरी हो चुकी है तो दिखाने में कोई हर्ज़ नहीं. कैसे भी ये दर्शकों तक पहुँच जाए बस वही अच्छी बात है.

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सवाल-लेखन की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली?

बचपन में मेरे घर का माहौल ही ऐसा था, जहाँ घर में बुजुर्गों की बातचीत, बहस आदि को मैंने देखा है. मेरे घर में ऐसे किस्से, कहानियां, टिका टिप्पणी चलती रहती थी. बड़े-बड़े लेखकों की लिखाई पर आलोचनाएं चलती रहती थी. कहानियों को सोते-जागते सुनना, वैसी बातचीत करना, आदि सबकुछ ने मेरे अंदर एक प्रेरणा को जन्म दिया. इसके अलावा बड़े बुजुर्गों ने अच्छा लेखक बनने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन लखनऊ रहते-रहते ये काम नहीं हो पाया, क्योंकि मौका नहीं मिला. मुझे उस समय ड्राइंग का बहुत शौक था. उसमे सारी कलाकारी और भाव को निकाला करती थी. इसके बाद आर्ट कॉलेज गयी, वहां भी पेंटिंग की. तब तक ये समझ में आ गया था कि क्रिएटिविटी ही मेरी दुनिया है. इसे मैं लिखकर या पेंटिंग कर किसी भी रूप में कर सकती हूं. इसके बाद दिल्ली गयी पर वहां अधिक मौका नहीं मिला. जब मैं मुंबई आई और एडवरटाइजिंग कंपनी में काम करने लगी तो वहां लिखने का मौका मिला. बाँध खुलने के बाद ही पानी की गहराई का पता लगता है, वैसा मेरे साथ भी हुआ है. इससे पहले मुझे भी पता नहीं था कि मैं लिख सकती हूं. लिखने के बाद अब लगता है कि यही मेरी मंजिल है और रुकना आसान नहीं.

सवाल-परिवार का सहयोग कितना रहा?

ये सही है कि लेखक की भावनाओं को लोग कम समझ पाते है, लेकिन अब मेरे परिवार वालों ने समझ लिया है कि मैं कुछ अच्छा सोच सकती हूं, क्योंकि उन्हें मेरी इस कला को देख लिया है. इसमें कई बार नोंक-झोंक भी हो जाती है. लेखक आप बाहर के लिए है. घरवालों के लिए नहीं. जिम्मेदारियां वैसी ही चलती रहती है. उनकी उम्मीद मुझसे उतनी ही रहती है. वही दुनिया है. लिखना और पढना अलग है, जो मैं करती हूं. मैं घर या बाहर कही भी राइटर बनकर नहीं घूमती. मैं दो साल में एक फिल्म लिखती हूं.

सवाल-आपकी जोड़ी निर्देशक सुजीत सरकार के साथ अच्छी रही, क्या लेखक के दिमाग को पढने के लिए एक अच्छे निर्देशक का होना जरुरी है?

ये बिल्कुल सही बात है. कुछ भी लिखने के लिए एक अच्छे मार्ग दर्शक की जरुरत होती है. लेखक जब कुछ भी अपने भावनाओं के ताने-बाने से लिखता है और पब्लिशर के पास जाता है, तो वहां भी एक अच्छे पब्लिशर की जरुरत होती है जो आप पर और आपके लेखन पर विश्वास रखे. उसको उसी तरह से पब्लिश करवाकर उस लेखक को सपोर्ट करें. इसमें सिनेमा तो एक बहुत बड़ा प्लेटफॉर्म है, जहाँ केवल लेखन ही नहीं, उसे पर्दे पर कैसे ढालना है, उसकी परख होने की भी जरुरत होती है, क्योंकि इसमें एक बड़ा फाइनेंस जुड़ा होता है. निर्देशक कि सोच का लेखक के लेखन के साथ सही तालमेल का होना बहुत जरुरी है. उसका परिणाम पर्दे पर दिखता है. कहानी के उद्देश्य तक पहुँचने के लिए केवल निर्देशक ही नहीं एक्टर, कैमरामैन, म्यूजिशियन, कॉस्टयूम डिज़ाइनर आदि सभी का एक दूसरे से तालमेल होना जरुरी है. इसके लिए एक गहरा रिश्ता कहानी से सबको बनाने की जरुरत पड़ती है. नहीं तो कहानी कुछ है और आप कह कुछ और रहे है. फिल्म सफल नहीं हो पाती.

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सवाल-फिल्म की कहानी में लेखक को महत्व दिया जाना कितना अवशयक है, जो अधिकतर नहीं दिया जाता

किसी भी सोच को एक लेखक ही जन्म देता है. फिर चाहे वह उपन्यास हो या छोटी कहानी. उसे बहुत गहराई में जाकर उस बारें में सोचना पड़ता है, जो आसान नहीं होता. इसमें सोचना ये भी पड़ता है कि लेखक की इच्छा क्या है? क्या वह अपने आप को पाठक के सामने लाना चाहता है या अपनी बात या सोच को उनतक पहुँचाना चाहता है. अगर आपके अंदर एक आवाज है, जिसे आप निकलने के लिए आतुर है तो उसे कोई भी रोक नहीं सकता. वह कैसे भी निकलकर पहुँच ही जाएगी.

सवाल-लॉक डाउन में आप क्या कर रही है?

लॉक डाउन में मैं आम घरेलू महिला की तरह घर की पूरी देखभाल कर रही हूं. मेरे पिता और मेरी बेटी मेरे साथ रहते है. घर की सारी जिम्मेदारियां निभानी पड़ रही है. हर दिन क्या खाना बनेगा, इस पर विचार करती रहती हूं. समय मिलता है तो कुछ लिखने की कोशिश करती हूं.

सवाल-लॉक डाउन के बाद फिल्मों की कहानियों में किस तरह के बदलाव की उम्मीद कर रही है?

ये पेंड़ेमिक का समय भी गुजर जायेगा. इसका असर सबके अंदर गहरा हुआ होगा. हर परिवार और सदस्य में डर आया है. समझ लोगों में आई है. अभी लेखक को उसी समझ और सेंसेटिवनेस के साथ कहानियां लिखने की जरुरत है, इसमें जो दिशा निर्देश फिल्मों की शूटिंग के लिए है, उसे पालन सबको करने की जरुरत है. इस समय को जाया न करते हुए, आतंरिक सोच को निखार कर कर आगे लाने की जरुरत है.

सवाल-गृहशोभा के ज़रिये क्या मेसेज देना चाहती है?

गृहशोभा के साथ मेरी बहुत पुरानी यादें है. महिलाये घर में हो या बाहर, समाज का अहम् हिस्सा है. कभी भी अपने आप को खुद की नज़रों में कम न समझे. अच्छाइयों को देखिये और जो कमियां है ,उन्हें पूरा कर लीजिये.

मेरे पति खाने-पीने के साथ शराब के शौकीन हो गए हैं?

सवाल-

मेरे पति हाल ही में अधिकारी पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. मेरे 2 बच्चे हैं जो शादीशुदा जिंदगी बिता रहे हैं और दूसरे शहर में रहते हैं. पति नौकरी से रिटायर्ड हुए तो सोचा अब बाकी की जिंदगी चैन से बिताएंगे. मगर पति के बदले व्यवहार से हैरान हूं.

दरअसल, पति महीने में 2-4 दिन दूसरे शहर जाते हैं और वहां कौलगर्ल्स के साथ समय बिताते हैं. ये सब मुझे उन के मोबाइल से पता चला है. दूसरी बड़ी परेशानी घर पर आएदिन होने वाली पार्टियां हैं, जिन में खानेपीने के साथ शराब का दौर भी खूब चलता है और पार्टी में साथ देने ननदें भी आ जाती हैं, जो आसपास ही रहती हैं. कभीकभी लगता है कि ये सारी जानकारी अपने बच्चों को दे दूं, पर फिर यह सोच कर नहीं देती कि अपने पिता के इस घिनौने चेहरे को देखने के बाद पिता और बच्चों के आपसी रिश्ते खराब हो जाएंगे. मैं ने पति को कई बार समझाने की कोशिश की पर जवाब यही मिलता है कि सारी उम्र तुम सभी के लिए बिता दी अब बस अपने लिए जीऊंगा. मुझे कोई रास्ता नहीं दिख रहा है कि किस तरह पति को सही रास्ते पर लाऊं. कृपया बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

बढ़ती उम्र के साथ न तो चाहतें कम होती हैं और न ही शारीरिक जरूरतें. यह अच्छा है कि आप के बच्चे अपने पैरों पर खड़े हैं और अच्छी जिंदगी बिता रहे हैं. तब तो आप के पास भी समय होगा कि आप भी खुल कर पुरानी यादों को ताजा करें और पति के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं. बेहतर होगा कि आप भी खुद को बुजुर्ग न समझ कर जमाने के साथ चलिए. सजिएसंवरिए, पति के साथ फिल्म देखने, मौल घूमने, शौपिंग आदि करने से आप को भी पति का सामीप्य पसंद आने लगेगा. पति में थोड़ा परिवर्तन आए तो उन्हें प्यार से समझाबुझा सकती हैं. आप अपनी ननदों से भी कह सकती हैं कि उन का घर पर तभी स्वागत किया जाएगा जब शराब आदि बुरी चीजों से वे दूर रहें. बेहतर होगा कि आप भी उन की पार्टी में शामिल रहें, मगर इस शर्त पर कि वहां शराब का दौर नहीं चलेगा. इस सब के बावजूद पति और ननदें सही रास्ते पर आती न दिखें तो आप सख्ती से पेश आ सकती हैं. बात बिगड़ती दिखे तो बच्चों से सारी बात शेयर कर सकती हैं. वैसे, इस उम्र में विवाहित पुरुष अथवा स्त्री दोनों को ही एकदूसरे की जरूरत अधिक होती है, क्योंकि यह उम्र आने तक बच्चे भी सैटल हो कर अपनेअपने परिवार व कैरियर बनाने में व्यस्त हो जाते हैं. पति के साथ अधिक से अधिक रहेंगी तो उन्हें भी आप का साथ भाएगा और संभव है कि वे सही रास्ते पर आ जाएं.

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 बच्चों में क्यों बढ़ रहा चिड़चिड़ापन

पेरैंटिंग को ले कर पहले ही मातापिता काफी परेशान रहते थे और अब तो कोरोना के डर से बच्चे और पेरैंट्स चाहें तो सही फायदा उठा सकते हैं और यह जानने की कोशिश कर सकते हैं कि बच्चा आखिर सोचता क्या है या फिर उस के व्यवहार में आने वाले बदलावों का कारण क्या है. कई रिपोर्ट्स में यह बात सामने आई है कि आजकल के बच्चों में गुस्सा और चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है.

बच्चों के साथ कुछ तो गलत है. कहीं न कहीं बच्चों के जीवन में कुछ बहुत जरूरी चीजें मिसिंग हैं और उन में सब से महत्त्वपूर्ण है घर वालों से घटता जुड़ाव और सोशल मीडिया से बढ़ता लगाव.

पहले जब संयुक्त परिवार हुआ करते थे तो लोग मन लगाने, जानकारी पाने और प्यार जताने के लिए किसी गैजेट पर निर्भर नहीं रहते थे. आमनेसामने बातें होती थीं. तरहतरह के रिश्ते होते थे और उन में प्यार छलकता था. मगर आज अकेले कमरे में मोबाइल या लैपटौप ले कर बैठा बच्चा लौटलौट कर मोबाइल में हर घंटे यह देखता रहता है कि क्या किसी ने उस के पोस्ट्स लाइक किए? उस की तसवीरों को सराहा? उसे याद किया?

आज बच्चों को अपना अलग कमरा मिलता है जहां वे अपनी मरजी से बिना किसी दखल जीना चाहते हैं. वे मन में उठ रहे सवालों या भावों को पेरैंट्स के बजाय दोस्तों या सोशल मीडिया से शेयर करते हैं.

यदि पेरैंट्स इस बात की चिंता करते हैं कि बच्चे मोबाइल या लैपटौप का ओवरयूज तो नहीं कर रहे तो वे उन से नाराज हो जाते हैं.

केवल अकेलापन या सोशल मीडिया का दखल ही बच्चों की पेरैंट्स से नाराजगी या दूरी की वजह नहीं. ऐसे बहुत से कारण हैं जिन की वजह से ऐसा हो रहा है:

लाइफस्टाइल: फैशन, लाइफस्टाइल, कैरियर, ऐजुकेशन सभी क्षेत्रों में आज के युवाओं की रफ्तार बहुत तेज है. सच यह भी है कि उन्हें इस रफ्तार पर नियंत्रण रखना नहीं आता. सड़कों पर युवाओं की फर्राटा भरती बाइकें और हादसों की भयावह तसवीरें यही सच बयां करती हैं. ‘करना है तो बस करना है, भले ही कोई भी कीमत चुकानी पड़े’ की तर्ज पर जिंदगी जीने वाले युवाओं में विचारों के झंझावात इतने तेज होते हैं कि वे कभी किसी एक चीज पर फोकस नहीं कर पाते. उन के अंदर एक संघर्ष चल रहा होता है, दूसरों से आगे निकलने की होड़ रहती है. ऐसे में पेरैंट्स का किसी बात के लिए मना करना या समझाना उन्हें रास नहीं आता. पेरैंट्स की बातें उन्हें उपदेश लगती हैं.

1. उम्मीदों का बोझ:

अकसर मातापिता अपने सपनों का बोझ अपने बच्चों पर डाल देते हैं. वे जिंदगी में खुद जो बनना चाहते थे न बन पाने पर अपने बच्चों को वह बनाने का प्रयास करने लगते हैं, जबकि हर इंसान की अपनी क्षमता और रुचि होती है. ऐसे में जब पेरैंट्स बच्चों पर किसी खास पढ़ाई या कैरियर के लिए दबाव डालते हैं तो बच्चे कन्फ्यूज हो जाते हैं. वे भावनात्मक और मानसिक रूप से टूट जाते हैं और यही बिखराव उन्हें भ्रमित कर देता है. पेरैंट्स यह नहीं समझते कि उन के बच्चे की क्षमता कितनी है. यदि बच्चे में गायक बनने की क्षमता और इच्छा है तो वे उसे डाक्टर बनाने की कोशिश करते हैं. बच्चों को पेरैंट्स का यह रवैया बिलकुल नहीं भाता और फिर वे उन से कटने लगते हैं.

2. वक्त की कमी:

आजकल ज्यादातर घरों में मांबाप दोनों कामकाजी होते हैं. बच्चे भी 1 या 2 से ज्यादा नहीं होते. पूरा दिन अकेला बच्चा लैपटौप के सहारे गुजारता है. ऐसे में उस की ख्वाहिश होती है कि उस के पेरैंट्स उस के साथ समय बिताएं. मगर पेरैंट्स के पास उस के लिए समय नहीं होता.

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3. दोस्तों का साथ:

इस अवस्था में बच्चे सब से ज्यादा अपने दोस्तों के क्लोज होते हैं. उन के फैसले भी अपने दोस्तों से प्रभावित रहते हैं. दोस्तों के साथ ही उन का सब से ज्यादा समय बीतता है, उन से ही सारे सीक्रैट्स शेयर होते हैं और भावनात्मक जुड़ाव भी उन्हीं से रहता है. ऐसे में यदि पेरैंट्स अपने बच्चों को दोस्तों से दूरी बढ़ाने को कहते हैं तो बच्चे इस बात पर पेरैंट्स से नाराज रहते हैं. पेरैंट्स कितना भी रोकें वे दोस्तों का साथ नहीं छोड़ते उलटा पेरैंट्स का साथ छोड़ने को तैयार रहते हैं.

4. गर्ल/बौयफ्रैंड का मामला:

इस उम्र में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण चरम पर होता है. वैसे भी आजकल के किशोर और युवा बच्चों के लिए गर्ल या बौयफ्रैंड का होना स्टेटस इशू बन चुका है. जाहिर है कि युवा बच्चे अपने रिश्तों के प्रति काफी संजीदा होते हैं और जब मातापिता उन्हें अपनी गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड से मिलने या बात करने से रोकते हैं तो उस वक्त उन्हें पेरैंट्स दुश्मन नजर आने लगते हैं.

5. दिल टूटने पर पेरैंट्स का रवैया:

इस उम्र में दिल भी अकसर टूटते हैं और उस दौरान वे मानसिक रूप से काफी परेशान रहते हैं. ऐसे में पेरैंट्स की टोकाटाकी उन्हें बिलकुल सहन नहीं होती और वे डिप्रैशन में चले जाते हैं. पेरैंट्स से नाराज रहने लगते हैं. उधर पेरैंट्स को लगता है कि जब वे उन के भले के लिए कह रहे हैं तो बच्चे ऐसा क्यों कर रहे हैं? इस तरह पेरैंट्स और बच्चों के बीच दूरी बढ़ती जाती है.

6. थ्रिल:

युवा बच्चे जीवन में थ्रिल तलाशते हैं. दोस्तों का साथ उन्हें ऐसा करने के लिए और ज्यादा उकसाता है. ऐसे बच्चे सब से आगे रहना चाहते हैं. इस वजह से वे अकसर अलकोहल, रैश ड्राइविंग, कानून तोड़ने वाले काम, पेरैंट्स की अवमानना, अच्छे से अच्छे गैजेट्स पाने की कोशिश आदि में लग जाते हैं. युवा मन अपना अलग वजूद तलाश रहा होता है. उसे सब पर अपना कंट्रोल चाहिए होता है, पर पेरैंट्स ऐसा करने नहीं देते. तब युवा बच्चों को पेरैंट्स से ही हजारों शिकायतें रहने लगती हैं.

7. जो करूं मेरी मरजी:

युवाओं में एक बात जो सब से आम देखने में आती है वह है खुद की चलाने की आदत. आज लाइफस्टाइल काफी बदल गया है. जो पेरैंट्स करते हैं वह उन के लिहाज से सही होता है और जो बच्चे करते हैं वह उन की जैनरेशन पर सही बैठता है. ऐसे में दोनों के बीच विरोध स्वाभाविक है.

8. ग्लैमर और फैशन:

मौजूदा दौर में फैशन को ले कर मातापिता और युवाओं में तनाव होता है. वैसे भी पेरैंट्स लड़कियों को फैशन के मामले में छूट देने के पक्ष में नहीं होते. धीरेधीरे उन के बीच संवाद की कमी भी होने लगती है. बच्चों को लगता है कि पेरैंट्स उन्हें पिछले युग में ले जाना चाहते हैं.

9. प्रतियोगिता:

आज के समय में जीवन के हर क्षेत्र में प्रतियोगिता है. बचपन से बच्चों को प्रतियोगिता की आग में झोंक दिया जाता है. पेरैंट्स द्वारा अपेक्षा की जाती है कि बच्चे हमेशा हर चीज में अव्वल आएं. उन का यही दबाव बच्चों के जीवन की सब से बड़ी ट्रैजिडी बन जाता है.

ऐसे बैठाएं बेहतर तालमेल

अगर आप जान लें कि आप के बच्चे के दिमाग में क्या चल रहा है तो इस स्थिति से निबटना आप के लिए आसान होगा. बच्चे के साथ बेहतर तालमेल बैठाने के लिए पेरैंट्स को इन बातों का खयाल रखना चाहिए:

1. सिखाएं अच्छी आदतें:

घर में एकदूसरे के साथ कैसे पेश आना है, जिंदगी में किन आदर्शों को अहमियत देनी है, अच्छाई से जुड़ कर कैसे रहना है और बुराई से कैसे दूरी बढ़ानी है जैसी बातों का ज्ञान ही संस्कार हैं. इस की बुनियाद एक परिवार ही रखता है. पेरैंट्स ही बच्चों में इस के बीज बोते हैं.

2. थोड़ी आजादी भी दें:

घर में आजादी का माहौल पैदा करें. बच्चे को जबरदस्ती किसी बात के लिए नहीं मनाया जा सकता. मगर जब आप सहीगलत का भेद समझा कर फैसला उस पर छोड़ देंगे तो वह सही रास्ता ही चुनेगा. उस पर किसी तरह का दबाव डालने से बचें. बच्चा जितना ज्यादा अपनेआप को दबाकुचला महसूस करेगा उस का बरताव उतना ही उग्र होगा.

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3. खुद मिसाल बनें:

बच्चे के लिए खुद मिसाल बनें. बच्चे से आप जो भी कुछ सीखने या न सीखने की उम्मीद करते हैं पहले उसे खुद अपनाएं. ध्यान रखें बच्चे मातापिता के नक्शेकदम पर चलते हैं. आप उन्हें सफलता के लिए मेहनत करते देखना चाहते हैं तो पहले खुद अपने काम के प्रति समर्पित रहें. बच्चों से सचाई की चाह रखते हैं तो कभी खुद झूठ न बोलें.

4. सजा भी दें और इनाम भी:

जहां बच्चों को बुरे कामों के लिए डांटना जरूरी है वहीं वे कुछ अच्छा करते हैं तो उन की तारीफ करना भी न भूलें. आप उन्हें सजा भी दें और इनाम भी. अगर आप ऐसा करेंगे तो बच्चे को निश्चित ही इस का फायदा मिलेगा. वह बुरा करने से घबराएगा और अच्छा कर इनाम पाने को उत्साहित रहेगा. यहां सजा देने का मतलब शारीरिक तकलीफ देना नहीं है, बल्कि यह उसे मिलने वाली छूट में कटौती कर के भी दी जा सकती है जैसे टीवी देखने के समय को घटा या घर के कामों में लगा कर.

5. अनुशासन को ले कर संतुलित नजरिया:

जब आप अनुशासन को ले कर संतुलित नजरिया कायम कर लेते हैं तो आप के बच्चे को पता चल जाता है कि कुछ नियम हैं, जिन का उसे पालन करना है पर जरूरत पड़ने पर कभीकभी इन्हें थोड़ाबहुत बदला भी जा सकता है. इस के विपरीत यदि आप हिटलर की तरह हर समय में उस के ऊपर कठोर अनुशासन की तलवार लटाकाए रहेंगे तो संभव है उस के अंदर विद्रोह की भावना जल उठे.

6. घरेलू कामकाज भी कराएं:

बच्चे में शुरू से ही अपने काम खुद करने की आदत डालें. मसलन, अपना कमरा, बिस्तर, कपड़े आदि सही करने से ले कर दूसरी छोटीमोटी जिम्मेदारियों का भार उस पर डालें. हो सकता है कि इस की शुरुआत करने में मुश्किल हो, मगर समय के साथ आप राहत महसूस करेंगे और बाद में उन्हें जीवन में अव्यवस्थित देख कर गुस्सा करने की संभावना खत्म हो जाएगी.

7. अच्छी संगत:

शुरू से ध्यान रखें और प्रयास करें कि आप के बच्चे की संगत अच्छी हो. अगर आप का बच्चा किसी खास दोस्त के साथ बंद कमरे में घंटों समय गुजारता है तो समझ जाएं कि यह खतरे की घंटी है. इस की अनदेखी न करें. इस बंद दरवाजे के खेल को तुरंत रोकें. इस से पहले कि बच्चा गलत रास्ते पर चल निकले आप थोड़ी सख्ती और दृढ़ता से काम लें.

8. कभी सब के सामने न डांटें:

दूसरों के सामने बच्चे को डांटना उचित नहीं. याद रखें जब आप अकेले में समझाते, वजह बताते हुए बच्चे को किसी काम से रोकेंगे तो इस का असर पौजिटिव होगा. इस के विपरीत सब के सामने डांटफटकार करने से बच्चा जिद्दी और विद्रोही बनने लगता है. किसी भी समस्या से निबटने की सही जगह है आप का घर.

9. उस की पसंद को भी मान दें:

आप का बच्चा जवान हो रहा है और चीजों को पसंद और नापसंद करने का उस का अपना नजरिया है, इस सचाई को समझने का प्रयास करें. अपनी इच्छाओं और पसंद को उस पर थोपने की कोशिश न करें. किसी बात को ले कर बच्चे पर तब तक दबाव न डालें जब तक कि आप के पास इस के लिए कोई वाजिब वजह न हो.

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यह सच है कि किशोर/युवा हो रहे बच्चे मातापिता से अपनी जिंदगी से जुड़ी हर बात साझा करने से बचते हैं. मगर इस का मतलब यह नहीं कि आप प्रयास ही न करें. प्रयास करने का मतलब यह नहीं कि आप जबरदस्ती करें और उन से हर समय पूछताछ करते रहें. जरूरत है बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताने, उन से दोस्ताना रिश्ता बनाने, उन के साथ फिल्म देखना, बाहर खाने के लिए जाना, खुले में उन के साथ कोई मजेदार खेल खेलना वगैरह. इस से बच्चा खुद को आप से कनैक्टेड महसूस करेगा और खुद ही आप से अपनी हर बात शेयर करने लगेगा.

बच्चों के लिए बनाएं क्विक ब्लैक फॉरेस्ट पेस्ट्री

लेखिका- रश्मि देवर्षि

अगर आप अपने बच्चों के लिए घर पर पेस्ट्री बनाना चाहते हैं और ज्यादा समय लगने के कारण घबरा रही हैं तो आज हम आपको क्विक ब्लैक फॉरेस्ट पेस्ट्री की आसान रेसिपी बताएंगे. क्विक ब्लैक फॉरेस्ट पेस्ट्री आपके बच्चों के लिए टेस्टी डिश है, जिसे आप हाइजीन और हेल्थ का ख्याल रखते हुए बना सकती हैं.

हमें चाहिए

ताज़ी ब्राउन ब्रेड के 4 स्लाइस जिसके किनारें कट कर लें

व्हिपड क्रीम 2 कप

कोको पाउडर 3 छोटी चम्मच

चुटकी भर कॉफी

वनीला एसेंस 2 बूंद

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किसी हुई डार्क चॉकलेट 1/4 कप

कोको कोला 1/4 कप

लाल जैली टॉफी 1 सजाने के लिये.

बनाने का तरीका

सबसे पहले बाउल में व्हिपड क्रीम, कोको पाउडर, कॉफी, वनिला एसेंस डाल कर अच्छे से मिला कर आइसिंग तैयार करें. प्लेट में ब्रेड की एक स्लाइस रखकर कोको कोला  की एक-एक चम्मच ब्रेड स्लाइस में फैला दें, तैयार की हुई आइसिंग क्रीम के मिश्रण को ब्रेड पर फैलायें, वापस ब्रेड की स्लाइस रखकर कोको कोला एक-एक चम्मच फिर फैला कर वापस आइसिंग लगाकर एक और ब्रेड स्लाइस लगा दें. तैयार पेस्ट्री को चारों तरफ से आइसिंग से कवर कर किसी हुई डार्क चॉकलेट लगा दें. व्हिपड क्रीम को पाइपिंग बैग में भर कर स्टार नोजल से सजा कर ऊपर से जैली टॉफी के टुकड़े सजा दें. बीच में से काट कर सर्व करें.

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स्किन हाइजीन से न करें समझौता

हाइजीन का नाम आते ही हमारे दिमाग में खुद को क्लीन रखने की बात आती है, क्योंकि अगर हम खुद को क्लीन रखेंगे तभी हम खुद को बीमारियों से बचा सकते हैं. लेकिन साफ सफाई का मतलब सिर्फ  ऊपरी साफ सफाई से ही नहीं है बल्कि हेयर रिमूव करने से भी जुड़ा हुआ है, क्योंकि यह स्किन का अहम हिस्सा जो है.

लेकिन अब लोग कोरोना के डर के चलते इस से समझौता करने को मजबूर हो गए हैं. घर में रह कर निश्चिंत हो गए हैं यह सोच कर कि अभी घर में ही तो रहना है, हमें देखने वाला कौन है और जब सैलून खुलेंगे तब खुद को एक बार में ही संवार लेंगे. लेकिन आप की यह सोच बिलकुल गलत है, क्योंकि अभी काफी समय तक सैलून का रुख करना खतरे से खालीनहीं होगा. इसलिए आप को अब घर पर हीहेयर रिमूव कर के स्किन हाइजीन का ध्यान रखने कीजरूरत है.

1. कैसे करें घर पर हेयर रिमूव

भले ही आप यह सोचें कि सैलून जैसी बात घर पर कहां मिल सकतीहै, क्योंकि सैलून में जा कर हमें खुद की बौडी को क्लीन करवाने के साथसाथ हमें रिलैक्स करने का भीमौका मिलता है जो कि घर में संभव नहीं. लेकिन आप कीयह सोच गलत है, क्योंकि घर पर भले हीआप को थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी पड़ सकती है लेकिन आप घर पर जब हेयर रिमूव करने का विकल्प चुनतीहैं तो आप अपनी स्किन पर बैस्ट क्वालिटीका प्रोडक्ट यूज कर सकतीहैं, जिस से आप समयसमय पर स्किन हाइजीन का भीध्यान रख पाएंगीसाथ हीस्किन पर किसीभी प्रकार कीकोई ऐलर्जी होने का डर भीनहीं रहेगा. जबकि पार्लर में ऐसा नहीं होता. आप से पैसे भीपूरे लिए जाते हैं और इस बात कीभीकोई गारंटीनहींहोतीकि प्रोडक्ट ब्रैंडेड है या नहीं.

तो फिर देर किस बात कीहम आप को बता रहे हैं कुछ आसान से विकल्प, जिन्हें चुन कर आप पा सकतीहैं अनचाहे बालों से छुटकारा.

2. हेयर रिमूवल क्रीम हैं बैस्ट

अगर आप यह सोच कर हेयर रिमूवल क्रीम्स अप्लाई करने से डरती हैं कि अगर क्रीम अप्लाई कीतो अंडररूट्स बाल नहीं निकलेंगे तो आप शायद गलत हैं, क्योंकि अब मार्केट में ऐसीहेयर रिमूवल क्रीम्स आ गई हैं जो जड़ से बालों को निकालने में सक्षम होती हैं. और लंबे समय तक बाल भीनहीं आते हैं. ये क्रीम्स विटामिन इ, एर्लोवेरा और शीबटर जैसे गुणों से युक्त होने के कारण स्किन को ढेरों फायदे पहुंचाती है.

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3. रेडी तो यूज वैक्स स्ट्रिप

आप ने पार्लर में वैक्स अप्लाई करने के बाद स्ट्रिप्स से हेयर निकालते हुए तो देखा होगा. लेकिन क्या आप ने सोचा है कि अब रेडीटू वैक्स स्ट्रिप्स से आप आसानीसे घर बैठे अनचाहे बालों को हटा सकती हैं. बस इस के लिए आप को वैक्स स्ट्रिप को अपने बालों की डायरेक्शन में अप्लाई करने की जरूरत होगी फिर उसे विपरीत दिशा में खींच कर आसानीसे अपने बालों को निकाल सकतीहैं. यकीन मानिए ये आप को बिलकुल पार्लर जैसीफिनिशिंग देने का काम करेंगी और महीने भर तक आप को हेयर रिमूव करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

शावर हेयर रिमूवल क्रीम

अभी तक आप शायद यहीसोच कर अपनीहेयर वैक्सिंग को घर पर टाल रही होंगी कि कौन इतनी देर बैठ कर वैक्स करे. लेकिन आप की इस परेशानी का सोल्युशन है शावर हेयर रिमूवल क्रीम. जो मार्केट में आप को आसानी से मिल भी जाती है और आप की स्किन को सफ्ट, स्मूद व क्लीन बनाने का काम भी करती है. बस आप को करना क्या है, जब भीआप नहाने जाएं तो 2 मिनट पहले जिन एरिया के बाल आप निकालना चाहतीं हैं वहां पर क्रीम अप्लाई कर 2 मिनट बाद आप शावर लें. आप पाएंगीमिनटों में क्लीयर स्किन, वो भी जस्ट सिंपल अप्लाई से. इस से आप अपने प्राइवेट पार्ट्स कीखास केयर कर पाएंगी.

नो स्ट्रिप वैक्स

चाहे आप की हेयर ग्रोथ कितनीभीकम क्यों न हो फिर भी1-2 महीने में तो हेयर आ ही जाते हैं. खास कर फोरहैड, अपर लिप्स, बिकिनी एरिया, अंडर आर्म्स पर और आप इन्हें पार्लर में जा कर हीक्लीन करवाती होंगी. लेकिन अब नो स्ट्रिप वैक्स से आप जब मर्जी बालों को रिमूव कर के क्लीन लुक पा सकती हैं. आप इस से बहुत हीआराम से अपनी आई ब्रो के हेयर को निकाल कर उन्हें भी परफैक्ट शेप दे सकती हैं. इस की खास बात यह है कि इस में आप को किसी स्ट्रिप की जरूरत नहीं है बल्कि वैक्स को छोटे छोटे एरिया पर अप्लाई कर के हलके हाथों से निकालें. इस से जड़ से बाल निकल भीजाते हैं और स्किन के जलने का भी कोई डर नहीं रहता है.

बींस वैक्स

इस का रिजल्ट भी यह बैस्ट और कैरी करने में भी काफी आसान होती है. असल में बींस वैक्स छोटे छोटे दानों की फौर्म में होती हैं. जब भी अप्लाई करना हो तो हीटर में इस के दानों को डाल कर गरम कर लें और जहां अप्लाई करना चाहते हैं वहां स्पैटुला की मदद से लगा लें. और अगर आप के पास हीटर नहीं भी है तो आप इसे किसी कटोरी में भीगरम कर सकती हैं. ये लगाने में काफी आसान होती हैं और रिजल्ट भी इस का इतना अच्छा आता है कि आप का हमेशा इसे हीअप्लाई करने को दिल करेगा. और आप पार्लर में जाना ही भूल जाएंगी. तो जब हैं हेयर रिमूव करने के ढेरों विकल्प तो फिर स्किन हाइजीन से समझौता कैसा.

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क्यों जरूरी है स्किन हाइजीन

शरीर पर अनचाहे बाल किसे पसंद होते हैं ये न सिर्फ हमारीखूबसूरतीको कम करने का काम करते हैं, बल्कि हम इस के कारण अपनी पसंद के स्टाइलिश व सैक्सीकपड़े भीनहीं पहन पाते हैं. सिर्फ ये हमारे लुक को ही खराब नहीं करते बल्कि इस के कारण हमें कई हैल्थ इश्यूज भी फेस करने पड़ सकते हैं. यह भी देखा गया है कि पुरुषों कीतुलना में महिलाएं स्किन हाइजीन का खास ध्यान रखतीहैं जो जरुरीभीहै.

असल में जब हम हेयर ग्रोथ को बढ़ने देते हैं तो इससे इन्फेक्शन के चांसेज कहीं अधिक बढ़ जाते हैं. क्योंकि चाहे प्राइवेट पार्ट की बात हो या फिर अंडर आर्म्स की अकसर कवर रहने के कारण इन में पसीना जमा हो जाता है जो फंगल इन्फेक्शन का कारण बनता है. और अगर हम लंबे समय तक इन्हें क्लीन नहीं करते तो खुजली, दाद जैसीसमस्याएं हो सकतीहैं जो कई बार गंभीर रूप भी ले लेती हैं. इसलिए आप अपनीस्किन हाइजीन का खास ध्यान रखकर अपनीब्यूटीको ऐवरग्रीन बनाए रखें.

इन बातों को न करें नजरअंदाज

–  कोई भीप्रोडक्ट खरीदते समय उस कीऐक्सपायरीजरूर चेक करें.

–  लोकल प्रोडक्ट खरीदने से बचें.

–  जल्दीजल्दीकिसीभीप्रोडक्ट को अप्लाई करने से बचें. 15-20 दिन बाद हीस्किन पर दोबारा अप्लाई करें.

–  क्रीम या वैक्स कीटेस्टिंग के लिए पहले उसे छोटे एरिया पर अप्लाई कर के देखें. अगर किसीतरह का कोई रिएक्शन नहीं है तभीउसे सब जगह अप्लाई करें.

–  अगर दाने, खुजली, किसीभीतरह कीकोई ऐलर्जी हो तो हेयर रिमूवल प्रोडक्ट्स को इस्तेमाल करने से बचना चाहिए.

–  वैक्सिंग के बाद स्किन पर मौइस्चराइजर अप्लाई जरूर करें.

–  वैक्सिग के बाद कम से कम 4-5 घंटे धूप में न निकलें. अगर निकलना भीपड़े तो खुद को कवर कर जाएं.

–  वैक्स को हमेशा बालों कीडायरेक्शन में लगा कर उन्हें उलटीडायरेक्शन में खींचना चाहिए.

–  अगर क्रीम या वैक्स से स्किन हलकीरैड हो गई है तो उस पर बर्फ अप्लाई करें.

इस तरह आप घर बैठे मिनटों में सौफ्ट व क्लीन स्किन पा सकतीहैं. वह भी बजट में आसान तरीकों व टिप्स के साथ.

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