#lockdown: Kumkum Bhagya एक्ट्रेस Shikha Singh ने दिखाया अपना बेबी बंप, Photos Viral

सीरियल  ‘कुमकुम भाग्य’ (Kumkum Bhagya) फैंस के बीच काफी पौपुलर है. वहीं उनके किरदार घर-घर में फेमस है. इसी के बीच शो के फैंस के लिए खुशखबरी है. दरअसल ‘कुमकुम भाग्य’ (Kumkum Bhagya) में विलेन के किरदार में नजर आ चुकीं एक्ट्रेस शिखा सिंह (Shikha Singh) जल्द ही मां बनने वाली हैं, जिसके बीच अपने बेबी बंप को फ्लौंट करते हुए नजर आ रही हैं, जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं शिखा सिंह की लेटेस्ट फोटोज….

पति के साथ वक्त बिता रहीं हैं शिखा

 

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Boom Boom Ciao 💥

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लॉकडाउन के बीच एक्ट्रेस शिखा सिंह (Shikha Singh) अपने पायलट पति के साथ वक्त बिता रही हैं, जिसकी फोटोज उनके पति करण शाह (Karan Shah) सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं.  फोटोज शेयर करते हुए करण शाह ने कैप्शन में लिखा, ‘हम दोनों काफी खुश है लेकिन हमारा डॉग खुश नहीं है क्योंकि उसका सुकून जो छिन जाएगा. परिवार में जल्द मेहमान जो आने वाला हैं.

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पहले बच्चे को लेकर एक्साइटिड हैं कपल

खबरों की मानें तो एक्ट्रेस की डिलिवरी की तारीख जून में दी गई है, जिसके कारण बच्चे को लेकर शिखा (Shikha Singh) और उनके पति (Karan Shah) कई सारे प्लान बना रहे हैं. शिखा सिंह (Shikha Singh) बच्चे के लिए अप्रैल के अंत तक ब्रेक लेने वाली है. प्रोडक्शन हाउस ने भी इसको लेकर अपनी हामी भर दी है.

फोटोज हो रही हैं वायरल

 

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No filter needed with you around 💓

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हाल ही में शिखा सिंह (Shikha Singh) ने बताया, ‘लॉकडाउन के कारण मेरे पति घर पर है और मैं खुद भी मार्च से ब्रेक पर हूं.’ वही कपल की फोटोज भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं.

 

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Us: Yayyy Goku: Nooooo, peace gonna be ruined mannn! What did u do 🥴

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बता दें, शिखा सिंह ‘कुमकुम भाग्य’ में विलेन के रोल में हमेशा सुर्खियों में रहती हैं. वहीं इससे पहले वह कई टीवी सीरियल्स लेफ्ट राइट लेफ्ट, ना आना इस देश लाडो और लाल इश्क जैसे सीरियल्स में नजर आ चुकी हैं.

हेल्दी स्किन के लिए जानें वॉलनट ऑयल के 8 फायदे

स्किन को बेहतर बनाने के लिए अखरोट के इस्‍तेमाल की सलाह दी जाती है. क्योंकि इसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है, जो स्किन को पोषण प्रदान करता और उसकी नमी बरकरार रखने में भी मदद करता है. अखरोट में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट स्किन से डेड स्किन हटाकर निखार लाने में मदद करते हैं. इसके अलावा अखरोट का तेल भी स्किन को बहुत फायदा पहुंचाता है इसके क्या फायदे है ये बता रहें हैं.

डर्मेटोलॉजिस्ट और एस्थेटिक फिजिशियन डॉक्टर अजय राणा”

1. वॉलनट (अखरोट) के तेल में नुट्रिएंट्स होते है जो स्किन के अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं. वॉलनट ऑयल, स्किन के विकास को उत्तेजित करता है, सूजन संबंधी स्किन डिसऑर्डर्स से लड़ता है और घाव भरने को बढ़ावा देता है.

2. वॉलनट ऑयल के नियमित उपयोग से रिंकल्स और स्किन की अन्य समस्याओं का इलाज किया जा सकता है. यह समय के साथ स्किन की थिन लाइन्स और रिंकल्स को गायब करने में मदद करता है और एक्ने से लड़ने में भी मदद करता है.

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3. वॉलनट ऑयल डार्क सर्कल्स को कम करने और अन्यथा तनावग्रस्त और थकी हुई स्किन को ठीक करने की क्षमता रखता है.

4. वॉलनट ऑयल दाद (रिंगवर्म) या कैंडिडिआसिस जैसे फंगल इन्फेक्शन से लड़ता है. वॉलनट ऑयल के साथ टी ट्री ऑयल की कुछ बूंदों से इन्फेक्टेड स्किन में नियमित मालिश स्किन के लिए बहुत मददगार होती है.

5. ज्यादातर स्किन की समस्याएं अन्हेल्थी एनवायरनमेंट में होने से उत्पन्न होती हैं. आज हमारी स्किन हेक्टिक रूटीन के कारण प्रदूषण और हानिकारक ऑक्सीडेंट के संपर्क में आती है. यदि इन स्किन समस्याओं का समय पर इलाज नहीं किया जाता है, तो वे अक्सर सोरायसिस जैसे गंभीर मुद्दों को जन्म देते हैं. ऐसे में सोरायसिस के इलाज के लिए वॉलनट ऑयल का उपयोग किया जा सकता है.

6. सप्ताह में एक बार वॉलनट ऑयल का उपयोग करके फेस पैक लगाए , यह स्किन को नरम और अधिक चमकदार बनाता है.

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7. वॉलनट ऑयल पेट की चर्बी को काटने में मदद करता है.

8. वॉलनट ऑयल को ओमेगा -3 का एक एक्सीलेंट प्लांट सोर्स माना जाता है. यह कई हेल्थ बेनेफिट्स से भी जुड़ा हुआ है जिसमें हृदय रोग, कुछ प्रकार के कैंसर और अन्य इंफ्लेमेटरी डिसऑर्डर्स जैसे एक्जिमा से सुरक्षा शामिल है.

19 दिन 19 टिप्स: ओट्स से पाएं ग्लोइंग स्किन, जानें कैसे

आजकल के बिजी लाइफस्टाइल में हेल्थ के लिए लोग ओट्स खाना ज्यादा पसंद करते हैं. ओट्स हेल्दी एक हेल्दी ब्रेकफास्ट है. साथ ही इसे बनाने में टाइम भी कम लगता है, लेकिन क्या आपको पता है ओट्स स्किन के लिए भी फायदेमंद है. ओट्स में एक्सफोलिएटिंग, मौश्चराइजिंग और क्लींजिंग के तत्व मौजूद होते हैं जो स्किन को यंग और ब्यूटी फुल बनाने में मदद करते हैं. आज हम आपको ओट्स के फेस पैक के बारे में बताएंगे, जिसे आप घर पर मौनसून में ट्राय कर सकते हैं.

1. एलोवेरा स्क्रब और ओट्स करें ट्राय

लंबे समय से एलोवेरा का इस्तेमाल मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए किया जाता है. एलोवेरा के इस्तेमाल से फेस पर हुए मुहांसे, संक्रमण और टैनिंग जैसी प्रौब्लम्स से छुटकारा पाया जाता है क्योंकि इसमें इन्फ्लेमेटरी एलिमेंट होता है. ओटमील पाउडर को ऐलोवेरा जेल में मिलाकर फेस पर तीन से पांच मिनट तक मसाज करें. जब फेस पर पेस्ट सूख जाए, तो साफ पानी से अपने फेस को आराम से धो लें.

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2. ओट्स और गुलाब जल का पेस्ट करें इस्तेमाल

ओट्स और गुलाब जल का फेसपैक बनाने के लिए दो चम्मच ओट्स में एक चम्मच शहद और एक चम्मच गुलाब जल मिला कर अच्छे से मिक्स कर लें. अब इस पेस्ट को दस मिनट के लिए फेस पर लगाकर रखें. इस पैक को लगाने से आपकी स्किन शाइनी नजर आने लगेगी.

3. दूध, नींबू और ओटमील से लाएं फेस पर ग्लो

दूध, नींबू और ओटमील के फेसपैक से आपका फेस ग्लो करने लगेगा. इस फेसपैक को बनाने के लिए दो चम्मच उबले ओट्स, चार चम्मच नींबू का रस और दो चम्मच दूध मिला लें. इसके बाद इस पैक को चेहरे पर लगा लें. 20 से 25 मिनट बाद गुनगुने पानी से अपना चेहरा धो लें.

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4. ओटमील पैक और योगर्ट है बेस्ट कौम्बिनेशन

ओटमील पैक और योगर्ट के फेसपैक से फेस पर ग्लो के साथ-साथ स्किन हेल्दी भी होगी. ओटमील पैक और योगर्ट दो से तीन चम्मच ओटमील को पानी में अच्छे से पका लें और इसके बाद उसे ठंडा कर लें. फिर इसे अपने फेस पर लगा लें. 15 से 20 मिनट तक इसे फेस में लगा रहने के बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. योगर्ट की जगह आप दही का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. दो चम्मच ओट्स में अच्छे से दही मिला लें. इसे अपने फेस पर लगाएं और 20 मिनट के बाद चेहरे को ठंडे पानी से धो लें.

#coronavirus: Pets से नहीं फैलता कोरोना

अमेरिका के न्यूयार्कसिटीकेब्रूनोक्स जूमें जब कोरोनावायरस से ग्रसित टाइगर कीबात सामने आई, तो सभी लोग जो घरों में पेट्स रखते है, उन्हें अपने पेट्स को घर में रखने से डरने लगे. मुंबईकी एक पॉश एरियामें एक पेट डॉग को किसी व्यक्ति ने इसी डर से गाड़ी में लादकरएक सोसाइटी के आगे छोड़ दिया. ये डॉग खाना खाने के लिए किसी के भी घर में घुसने लगा. परेशान होकर सोसाइटी वालोंने इसे वही पर रहने और खाने की व्यवस्था की. ये सही है कि डॉग, कैट्स और बर्ड्स को लोग शौकिया पालते है. ये जानवर मनुष्य से शारीरिक और भावनात्मक रूप से जुड़े होने के साथ-साथ आश्रित भीहोते है, ऐसे में जब इन्हें कोई अलग करता है,तो ये मानसिक रूप से बहुतटूट जाते है, जिसका अंदाज लगाना भी आमइंसानके लिए मुश्किल होताहै.

इस बारें में पेटा इंडिया की सीईओ वेटेरनरीडॉक्टरमनीलाल वलियातेकहते है कि वर्ल्ड एनिमल हेल्थऑर्गनाइजेशन का कहना है कि आजतक कोई ऐसा सबूत नहीं मिला है, जिसके आधार पर ये कहा गया हो कि जानवर से कोविड 19 इंसान में फैला हो. हांगकांग में जो दो डॉग्स के सैंपल कोरोना टेस्ट केलिए जांचे गए और पॉजिटिव निकला , उसमें किसी भी प्रकार के क्लिनिकल सिम्पटॉम्स कोरोना वायरस के नहीं था. इसका अर्थ ये निकला कि ये वायरस इन्सान से ही डॉग्स में आये थे और वायरस मल्टीप्लाई भी नहीं कर रहे थे. बेल्जियम में जो कैट का मामला था, उसमें भी इन्फेक्शन उसके मालिक से ही आया था. टाइगरके केस में भी जू कीपर जो उसकी देखभाल करते थे वह कोरोना पॉजिटिव टेस्ट पाया गया था.

इस तरह से ये साफ़है कि जितने भी केस हुए सब मनुष्यों से ही जानवरों में संक्रमणआया है.जानवरों के अंदर ये वायरस विकसित होकर अपने आप ही ख़त्म भीहो जाता है.इसलिएडॉग्स, छोटे और बड़े कैट्स से किसी को भी कोई खतरा नहीं है. जब तक वह जानवर कोरोना वायरस के मरीज से दूर है, वह सुरक्षित है. जानवरों को हीमनुष्यों से अधिक सुरक्षित रखने की जरुरत है. घर के पालतू जानवरों को कोविड 19 के मरीज से दूर रखने की आवश्यकता है. कोरेंटाइन में रहने वाले व्यक्ति के पास भी इन जानवरों को जाने नहीं देना चाहिए. अगर कोई अकेला रहता हो और कोरोना वायरस से पीड़ित हो, तो ऐसे व्यक्ति को अपने पेट्स को किसी रिश्तेदार या दोस्तों के पास रहने दे देना चाहिए, ताकि वे सुरक्षित रहे.

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डॉ मनीलालकहते है कि आज सोशल डिस्टेंसिंग जरुरी हो चुका है, ऐसे में अगर कोई जानवरों को आसपास घूमाने ले जाता है, घर आने के बाद उनके पंजे, नाक और मुंह को गीले टिस्यू पेपर से साफ़ कर देनाचाहिए,ताकिकिसी प्रकार के वायरस से उन्हें बचाया जा सकें.इसके अलावा सरकार को भी पहले की चिड़ियाघर कांसेप्ट से हटकर नेशनल पार्क में रखने की जरुरत है, ताकिवे अपनी देखभाल खुद ही कर सकें और खुश रहे.साथ ही चिड़ियाघर में काम करने वाले व्यक्ति की भी कोरोना वायरस के जांच के बाद ही काम करने की अनुमति मिलनी चाहिए. हमारे आसपास रहने वाले किसी भी जानवर को कोरोना से कोई लेना देना नहीं है, क्योंकि संक्रमण मनुष्यों सेही उनमें पाया गया है.

इसके आगे डॉ. मनीलाल बताते है किवेटमार्केट मेंभीकई तरह के वायरस पनपते है,क्योंकि वहां साफ़ सफाई कम होती है. इसके अलावा इंटेंसिवफार्मिंग सिस्टम में सुधार की जरुरत है, जहाँएक छोटे जगहों पर बहुत सारे जानवरों को पाला जाता है, जिसमें ये जानवर अपने लीद और पेशाब पर खड़े रहने को मजबूर होतेहै, जिससे कई बीमारियाँ फैलती है और उसे रोकने के लिए कई प्रकार की एंटीबायोटिक का प्रयोग होता है, जो मनुष्यों के लिए घातक होता है, ऐसेमेंभविष्य में हमारे फ़ूड हैबिट्स को भीबदलने की जरुरत है ताकि इस तरह के वायरस को दुबारा पनपने से बचा जा सकें. अगले पेंडेमिक से बचने के लिए इन सभीविषयों पर विचार करने की जरुरत है.

डॉ. मनीलाल का आगेकहना है कि लॉक डाउन में मनुष्यों के साथ-साथ पेट्सभी घर में बंद है, ऐसे में उनकी देखभाल करने में कई समस्याएं आ रही है, मसलन उन्हेंघूमाने ले जाना,मलमूत्र त्यागने के लिए सही जगह का न मिलना आदि. कुछ टिप्स निम्न है, जिससेपेट्सभी खुश और तंदुरुस्त रह सकें,

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  • पेट्स के साथ कुछ खेल खेले, ताकिवे शारीरिकऔर मानसिक रूप से तंदुरुस्त रहे,
  • सॉफ्ट टॉयज या लेज़र रेज उनके लिए काफी अच्छा रहता है, जिनके पीछे वे भागना पसंद करते है,
  • फिजिकल एक्टिविटी कम होने पर उनके खान पानकी मात्रा में थोड़ी कमी करें,
  • खाना देने की फ्रीक्वेंसीभीकम करें, अधिक खाने से वे बीमार न हो, इसका ध्यान रखें.

#coronavirus: डिज़ाइनर मास्क से बढ़ाये खूबसूरती 

कोविड 19 के चलते पूरे विश्व में मास्क पहनना जरुरी हो गया है, जब तक इसके इलाज के लिए सही दवाई और वैक्सीन की खोज नहीं हो जाती, तब तक सोशल डिस्टेंस, मास्क और सेनिटाइजेशन ही इससे बचने का एक मात्र उपाय रह गया है, ऐसे में डिज़ाइनर्स नए- नए खूबसूरत डिज़ाइनर मास्क बनाकर मार्केट में उतारने की कोशिश कर रहे है. ये सही भी है जब आपको मास्क पहनना आवश्यक है तो इसे अलग-अलग अंदाज में आप कही और कभी भी पहन सकते है. इस बारें में पिनाकल ब्रांड की ओनर और डिज़ाइनर श्रुति संचेती कहती है कि कोरोना वायरस की वजह मास्क पहनना आज विश्व में सभी देशों में अनिवार्य हो चुका है.

ये सही भी है, क्योंकि इस बीमारी को रोकने में मास्क ही सबसे अधिक कारगर सिद्ध हुई है. ऐसे में जब पहली बार चीन में कोरोना के मरीज़ मिलने लगे थे और इसका फैलाव दूसरे देशों में भी होने लगा था, तब मैंने इसके बारीब में सोचा था. पहले एन 95 मास्क को अधिक महत्व दिया जाने लगा था, लेकिन बाद में वैज्ञानिकों ने पाया कि एक आम मास्क, दुपट्टा, या रुमाल भी इस बीमारी के इन्फेक्शन को फैलने से रोक सकता है. फिर मैंने ऑर्गेनिक कॉटन वाशेबल फेब्रिक से मास्क बनाये, इसकी तकनीक हमें आती है, क्योंकि मैं एक डिज़ाइनर हूँ. इसके अलावा इंडिया में अभी गर्मी का मौसम है, ऐसे में सिंथेटिक फैब्रिक से लोगों को गर्मी लगेगी. इसलिए मैंने इको फ्रेंडली कॉटन को लेकर मास्क बनाने शुरू किये.

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इसके आगे श्रुति कहती है कि असल में साउथ ईस्ट एशिया में नार्मल लाइफ में भी लोग मॉल या एअरपोर्ट जाते वक़्त मास्क लगाते है और अब कोरोना वायरस की वजह से ये हमारे जीवन में एक एक्सेसरीज की तरह होने वाली है. लॉक डाउन खुलने के बाद भी मास्क पहनना अनिवार्य होगा. जब तक इस बीमारी की वैक्सीन और दवाई नहीं तैयार हो जाती, मास्क पहनकर व्यक्ति इस इन्फेक्शन से बच सकता है. इस कड़ी में पहले मैने 5 हज़ार मास्क बनाकर दिल्ली पुलिस को दिया है. साथ ही यहाँ काम करने वाले तक़रीबन 75 कारीगरों को भी मैं पूरी पारिश्रमिक दे रही हूँ.

इसमें सेफ एरिया के कारीगर जो 7 से 8 की संख्या में है, वे ही मास्क बना रहे है. अभी उनके पास कोई काम नहीं है और आगे भी डिजाईनरों का काम शुरू होने में समय लगेगा. मैंने इन सभी कारीगरों को साफ सफाई की पूरी ध्यान रखते हुए मास्क बनाने का काम सौपा है. वे ग्लव्स और मास्क पहनकर काम करते है. सेनिटेशन की पूरी जांच मैं बीच-बीच फेस टाइम के द्वारा करती हूँ, क्योंकि ये सभी कारीगर अपने घरों में बैठकर काम कर रहे है, ऐसे बने मास्क को सेनिटाइज कर अस्पतालों में सीधा पहुँचाया जाता है. इसके अलावा कोविड 19 सपोर्ट फंड का निर्माण किया है, जिसमें 7 इको फ्रेंडली हाई फैशन मास्क की पैकेज 2 हजार रुपये में मिलता है.

इसमें 7 अलग-अलग डिजाईन के मास्क है, जिन्हें रोज व्यक्ति अपने पोशाक के हिसाब से मिक्स न मैच कर पहन सकता है या 7 फॅमिली मेम्बर को शेयर कर सकता है. इससे मिले पैसे को जरुरत मंदों को दिया जायेगा. इससे डिजाईनर्स की क्रिएटिविटी भी बनी रहेगी और कुछ गरीबो को इससे सहायता भी मिल सकेगी. पैसा देने के बाद इन मास्क्स को घर पर डिलीवरी करा दी जाती है. ये मास्क बहुत दिनों तक प्रयोग में लाये जा सकते है. गर्मी में पसीना अधिक आता है ,ऐसे में इन्हें रोज धोकर आसानी से पहना जा सकता है. इसमें सिंथेटिक फेब्रिक नहीं होने की वजह से इन्हें पहनना भी आरामदायक होता है. आज पर्सनल हायजिन और सोशल डिस्टेंसिंग ये दो चीजे ही महत्वपूर्ण है, जिसे लॉकडाउन खुलने के बाद भी करने की जरुरत पड़ेगी.

आगे वेडिंग सीजन में कुछ नए डिजाईनों के मास्क से श्रुति परिचय करवाने वाली है, क्योंकि ये एक बड़ी एक्सेसरी आज हो चुकी है. मास्क की जरुरत सबको पड़ने वाली है, पर इसमें घबराने की कोई बात नहीं है. श्रुति आगे कहती है कि अगर आप पार्टी में जाने वाली हो तो ग्लिटरिंग मास्क पहने ,शादी में जाना हो तो कढ़ाई वाले मास्क पहने, ऐसे कुछ नए कांसेप्ट देखने को मिलेंगे. अभी इस बीमारी से अच्छी तरह निकल जाना ही सबकी प्रायोरिटी है.

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इस लॉक डाउन में श्रुति की दिनचर्या के बारें में पूछे जाने पर वह बताती है कि मैं हमेशा विश्व में सभी देशों में घुमती रहती थी. पहली बार पति के साथ नागपुर में हूँ और स्लो लाइफ का अनुभव कर रही हूँ. जिसमें घर का खाना बनाना, ऑनलाइन कोर्स करना, वर्क आउट करना आदि कर रही हूँ. पोस्ट लॉक डाउन के बाद काम करने की पूरी सूची बना रखी हूँ. मैं स्टूडेंट को वेब पर कैरियर के बारे में सेमीनार भी ऑनलाइन डे रही हूँ, जिससे बच्चों को फैशन के बारें में जानकारी मिल सकें. पोस्ट कैरियर के बारें में उन्हें सलाह भी देती हूँ. ये समय डिज़ाइनर्स के लिए बहुत अच्छा नहीं है,क्योंकि ये लक्जरी आइटम है, जिसके बारें में अभी लोग कम सोच सकेंगे. इसलिए डिज़ाइनर्स को भी समय के हिसाब से अपने आपको तैयार करने की जरुरत है.

#lockdown: तीर्थ यात्रियों की वापसी, फिर छात्रों और मजदूरों के साथ भेदभाव क्यों?

गरीब मजदूर और छात्र अपने-अपने घर जाने के लिए तड़प रहे हैं. क्योंकि उनके जाने के लिए कोई वाहन व्यवस्था नहीं है. लेकिन वहीं सारे नियम और कानून को ताख पर रखकर तीर्थ यात्रियों को यात्राएं कराई जा रही है. जबकि गरीब मजदूरों और छात्रों के घर जाने पर राजनीति हो रही है.

लॉकडाउन में जहां घर के ज़रूरियात सामान लाने पर पुलिस लोगों पर बेतहासा डंडे बरसा कर उसका पिछवाड़ा लाल कर दे रही है. वहीं आंध्र प्रदेश के राज्य सभा सांसद जी बीएल नरसिम्हाराव की पहल पर केंद्र सरकार के आदेश पर धार्मिक नगरी काशी से सोमवार को नौ सौ भारतीय तीर्थ यात्रियों को उनके गंतव्य पर भेजा गया.

लेकिन न तो इन तीर्थ यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग की गई और न ही सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन किया गया. हालात ऐसे थे कि एक बस में 45 सीटों पर 45 यात्री थे. 12 बसें भोर में चार बजे रवाना की गई जबकि आठ बसें देर शाम को. इसके अलावा दो क्रूजर से 12 की संख्या में तीर्थ यात्री रवाना किए गए.

तीर्थ यात्रियों की रवानगी जिलाधिकारी के देख-रेख में की गई. बसें उन्हें आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, कर्नाटक और केरल ले कर गई. रास्ते में कुछ और यात्रियों को भरा गया. ये सभी दक्षिण भारतीय यात्री सोनापुरा और आसपास के क्षेत्रों में स्थित मठों और गेस्ट हाउस मे ठहरे हुए थे.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने राष्ट्र को अपने चारों संबोधन में ज़ोर देते रहे हैं कि सोशल डिस्टेन्सिंग ही कोरोना महामारी से बचाव का एकमात्र विकल्प है. लॉक डाउन का मकसद लोगों को भीड़ से बचाना है, क्योंकि एक जगह कई लोगों के जमा होने से कोरोना फैलने की आशंका बढ़ जाती है. लेकिन इसके बावजूद शुक्रवार को लॉकडाउन और सोशल डिस्टेन्सिंग के नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी के बेटे निखिल गौड़ा की बड़ी धूमधाम से और भव्य तरीके से शादी हुई. इस वीआईपी शादी में मेहमानों की भीड़ ने न तो सोशल डिस्टेन्सिंग पर ध्यान दिया और न ही मास्क पहनना जरूरी समझा. इस शादी समारोह के आयोजन में जिस तरह से कोरोना वायरस से बचाव के लिए लागू लॉकडाउन का उल्लंघन हुआ उससे राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन पर कई सवाल खड़े हो गए हैं. क्योंकि इस विवाह समारोह की बाजाप्ता अनुमति ली गई थी और विवाह स्थल तक मेहमानों को लाने-ले जाने के लिए प्रशासन की ओर से पास भी निर्गत किया गया था.

वैसे, कुमार स्वामी सफाई दे रहे हैं कि शादी समोरोह बड़े ही सादगी से किया गया और इसमें चुने हुए मेहमान ही बुलाये गए, लेकिन शादी समारोह की जो फोटो सामने आई है, उनमें दूल्हा-दुलहन के इर्द-गिर्द काफी भीड़ साफ नजर आ रही है. लॉकडाउन के दौरान देशभर में इस प्रकर के समारोह करना तो दूर, लोगों को समूह में सड़कों पर आने की भी इजाजत नहीं है. इसके बावजूद कुमारस्वामी जैसे नेता शुभ मुहूर्त के फेर में शादी टालने की बजाय भीड़ वाला आयोजन करने से नहीं चुके.

हाल ही में टुमकुर जिले के तुरुवेकेर से बीजीपी विधायक एम जयराम ने भी इसी तरह लॉकडाउन के नियमों की धज्जियां उड़ाई थीं. उन्होंने सार्वजनिक तौर पर ग्रामीणों के साथ अपना जन्मदिन मनाया था. इस मौके पर केक और बिरियानी लोगों के बीच बँटवाई गई थी. यहाँ भी अधिकतर लोग बिना मास्क के थे.

गोरखपुर में एक व्यापारी के बेटे के जन्मदिन की पार्टी में करीब 60 लोगों के जुटने पर अगर पुलिस लॉकडाउन के उलंघन का मामला दर्ज कर सकती है, तो इन लोगों के आयोजनों को लेकर इसी तरह की कार्यवाई से परहेज क्यों ? क्या लॉकडाउन के नियम क्या सिर्फ आम इन्सानों और गरीब मजदूरों के लिए है ? नेताओं के लिए नहीं ? क्या नेता होने का मतलब यह है कि वे नियमों के बंधन से मुक्त हैं ?  

दरअसल, देश में जिस तरह कोरोना के लिए माहौल बनाया गया, मानो मात्र किसी जाति वर्ग विशेष को ही हाशिये पर रखा गया हो. आए दिन अमीर लोग अपने परिवार और पहचान वालों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जा-आ रहे हैं. लेकिन गरीब मजदूर कहीं पुलिस से पीट रही है, तो कहीं भूखे पेट पैदल ही चलने को मजबूर हैं.

अब जब दो हफ्तों के लिए लॉकडाउन और बढ़ा दी गई है तो ऐसे में मजदूरों की बेचैनी और बढ़ गई है. क्योंकि न तो उनके पास रोजगार है न खाने के लिए पैसे, तो जाएँ तो जाएँ कहाँ ?

गैरकृषि महीनों में शहरों में कमाई करने जाने वाले प्रवासी मजदूरों की चिंता यह भी है कि फसलों की कटाई का समय है, ऐसे में घर नहीं पहुंचे तो तैयार फसल बर्बाद हो जाएगी और वह कर्ज में डूब जाएंगे. लेकिन इनके पास लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार करने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं है.

चार बच्चों की माँ 36 वर्षीय आशा देवी बात करते हुए रो पड़ी. उसने बताया कि उसके दो बच्चे वहाँ यूपी में अकेले रहते हैं.

बड़ा 14 साल का बेटा मजदूरी करता है और अपने छोटे भाई का ध्यान भी रखता है. पिछले महीने वह गाजियाबाद के ईंट-भट्टे पर काम करने के लिए अपने पति और 13 अन्य लोगों के साथ पहुंची थी. ठेकेदार ने उन्हें राशन देने का वादा किया था, लेकिन अचानक भाग गया. अब उनके पास खाने को कुछ नहीं है. मजबूरन पैदल ही सब अपने गाँव लौटने को निकल पड़े. लेकिन पुलिस ने उन्हें जाने नहीं दिया.

34 वर्षीय मोनु वेटर का काम करता है. उसकी पत्नी, माँ और दो छोटे बच्चे गाँव में रहते हैं, उसने बताया कि होली के दौरान उसने परिवार को कुछ पैसे भेजे थे, जो अब पूरी तरह से खत्म हो चुके हैं. लॉकडाउन के कारण काम छिन गया तो कमाई भी बंद हो गई. अब न अपने घर जा सकते हैं और न यहाँ रह सकते हैं. क्या करे समझ नहीं आता.

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करीब तीन दर्जन मजदूर तो जम्मू में फंसे हुए हैं. मजदूरों तक किसी तरह की मदद नहीं पहुँचने पर वे इतने विचलित हैं कि अपने छोटे-छोटे बच्चे के साथ आत्महत्या करने पर मजबूर हो गए थे.

यह दो-चार नहीं, अनगिनत मजदूरों की अंतहीन दास्तान है, जो काम-धंधे की तलाश में हरियाणा, राजस्थान, बिहार, बंगाल आदि राज्यों से देश के अन्य शहरों में पहुंचे थे, लेकिन लॉकडाउन में फंसे हुए हैं. कोई जरिया नहीं है जिससे वह अपने घर जा सकें.

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमन को देखते हुए सरकार ने लॉकडाउन को 14 अप्रेल से बढ़ाकर 3 मई तक कर दिया. लेकिन क्या लॉकडाउन ही किया जाना एक मात्र विकल्प था ? वह भी अचानक से ? क्या पूर्ण लॉकडाउन का एलान करने से पहले सरकार ने उन छात्रों के बारे में भी नहीं सोचा जो अपने परिवार से दूर बाहर रह कर पढ़ाई कर रहे हैं ? की वह अपने घर कैसे जाएंगे ? 

राजस्थान के कोटा में कई छात्र हैं, जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, और वहाँ फंस चुके हैं.  इन छात्रों का कहना है कि इनके पास खाने की भी ठीक से सुविधा नहीं है. कहते हैं, ‘हम पूरी तरह से फंस चुके हैं कोटा में. सोचा था निकलने का कोई जरिया मिलेगा. लेकिन सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिला. एक छात्र का कहना है कि वह झारखंड से कोटा नीट की तैयारी करने आया था. एक महीने पहले ही हमारी टेस्ट सीरीज बंद हुई थी. उसके बाद लॉकडाउन लगने से हम घर नहीं जा पाए. इंतजार था कि जैसे ही लॉकडाउन खत्म होगा अपने घर चले जाएंगे. लेकिन दोबारा से लॉकडाउन लग गया तो अब क्या करे.

उत्तर प्रदेश के कानपुर से कोटा पढ़ने आई तान्या बताती है कि ‘लॉकडाउन बढ़ चुका है और हमारे घरवाले हमारी चिंता में बहुत परेशान हैं. अब हम लोग भी घर जाना चाहते हैं. यहाँ खाना भी बाहर से आता है, तो रिस्क बढ़ गया है. हम सब घर जान चाहते है , लेकिन यहाँ कोई व्यवस्था नहीं है. कहती हैं पढ़ाई में भी अब मन नहीं लग रहा है, हम एकदम डिप्रेशन में हैं.‘

हैदराबाद विश्वविधालय की प्रियंका की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. वह अकेलापन मसहूस करने लगी है. कहती है, ‘ज़िंदगी बस हॉस्टल के रूम से लेकर मैस की बेंच तक सिमट कर रह गई है. मैं अपने फ्लोर पर अकेली स्टूडेंट हूँ. आसपास कोई एक शब्द बात करने वाला नहीं है. इस समय मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती मानसिक स्वास्थय को बरकरार रखने की है. कभी-कभी मन में डर भी लगता है कि अपने घर-परिवार से दूर अगर कुछ हो गया तो कौन संभालेगा. हालांकि, मैस कर्मचारी और सुरक्षा गार्ड भी हमारे लिए ड्यूटी निभा रहे हैं तो उनसे साहस मिलता है.

मनोचिकित्सक डॉ. सुमित गुप्ता कहते हैं कि कोई भी यदि इस तरह के सिचुएशन में फंस जाएगा तो वह तनाव में रहेगा. स्ट्रेस में रहने से इंसान के भूख और नींद में बदलाव आ जाते हैं. उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाति है जिससे संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है. कोटा में फंसे अधिकतर छात्र बिहार और यूपी के हैं. और बताते हैं कि कई छात्र दिवाली के बाद अपने घर नहीं गए. पिछले महीने ही उनके कोर्स कंप्लीट हुए और घर जाने का मन बना ही रहे थे कि लॉकडाउन हो गया और वे जा नहीं पाए, लेकिन दोबारा लॉकडाउन से वह डिप्रेशन में आ गए हैं.

कोटा में फंसे छात्र अपनी बात सरकार तक पहुँचाने के लिए सोशल मीडिया का भी सहारा ले रहे हैं. हैशटैग से करीब 70 हजार ट्वीट किए गए. छात्रों ने पीएमओ, प्रधानमंत्री, राजस्थान के मुख्यमंत्री समेत अन्य राज्यों के भी कई नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को ट्वीट किए. लेकिन अभी तक इनकी सहायता के लिए कोई आगे नहीं आया.

फेसबुक पर भी वे अपने समस्याओं के समाधान के लिए पोस्ट करे रहे हैं, लेकिन यहाँ से भी कोई समाधान अभी तक नहीं मिला है. स्टूडेंट्स का आरोप है कि इनके चलाए हैशटैग ‘सेंडअस बैकहोम’ को अब नेता अन्य राज्यों की घटनाओं के लिए उपयोग कर रहे हैं.

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सोशल मीडिया पर छात्रों की मदद के लिए हैशटैग चलाने वाले आशीष रंजन एक ट्विटर हैंडल के लिए काम करते हैं, बताते हैं कि छात्र बेहद परेशान हैं और हमारे पास हजारों की संख्या में रोज छात्र मैसेज कर रहे हैं. रंजन कहते हैं कि छात्र अपनी परेशानी बताते हुए रोने लगते हैं, वे इस कदर परेशान हो चुके हैं और शासन प्रशासन की ओर से पास रद्द किए जाने के बाद वह घर जाने को लेकर चिंचित हैं.

छात्र अपनी समस्या जब कोचिंग संस्थाओं से बताते हैं तो वे भी सरकारी नियमों का हवाला देते हुए मदद करने से खुद को असमर्थ बताते हैं.

छात्र वीडियो के माध्यम से अपना दर्द परिवार तक पहुंचा पा रहे हैं. कहते हैं बातों से ज्यादा हमारे आँसू बहते हैं.

लेकिन क्या लॉकडाउन किया जाना ही एक मात्र विकल्प था ? और अगर लॉकडाउन किया ही जाना था तो उसके पहले लोगों को जानकारी नहीं दी जानी चाहिए थी? पूर्ण लॉकडाउन की घोषण से पहले लोगों को वक़्त न देकर प्रधानमंत्री जी ने सिर्फ अपनी मर्ज़ी चलाई, जिसका खमजाया भुगतना पड़ है देश की जनता को. 

यदि मोदी जी 24 मार्च को सम्पूर्ण लॉकडाउन करने के लिए चार घंटों के बजाय 20 मार्च के देश को दिये गए संदेश में बता देते जैसे और देशों में हुआ तो यह समस्या खड़ी ही नहीं होती. लेकिन उन्होंने यह सोचा ही नहीं और अचानक से लॉकडाउन की घोषण कर दी. कम से कम लॉकडाउन के पहले लोगों को संभलने का वक़्त दिया होता तो वे अपनी जरूरतों के हिसाब से अपनी व्यवस्था कर लेते. जिसे जहां जाना होता चले जाते. लेकिन मोदी जी ने ऐसा कुछ सोचा ही नहीं और अपनी घोषण सुना दी, जो जहां हैं वहीं रहें. ‘सरकार फंसे तीर्थ यात्रियों को लाने की व्यवस्था कर सकते थे, तो फिर लॉकडाउन में फंसे छात्र और गरीब मजदूरों का क्या कसूर था ? विदेशों में फंसे भारतियों को स्पेशल विमान से यहाँ बुलाया जा सकता था, तो फिर छात्र और मजदूरों को क्यों नहीं ? क्या ये देश के नागरिक नहीं है ? 

लाखों गरीब मजदूर अपने गाँव तक जाने वाले वाहन की उम्मीद में पैदल ही चलते जा रहे हैं. भूख-प्यास से ब्याकुल ये मजदूर किसी तरह बस अपने गाँव पहुंचाना चाहते हैं. क्योंकि अब उनके लिए शहरों में कुछ बचा नहीं. लेकिन अगर सरकार इन प्रवासी मजदूरों के लिए शहर में ही खाने और रहने की व्यवस्था कर देती, तो ये उम्मीद होती कि कई मजदूर घर जाने के लिए इतने परेशान न होते और न ही स्थिति इतनी खराब होती.

कोटा में पढ़ने वाले छात्र लाखों रुपये फीस देकर कोचिंग करते हैं. कई हजार रुपये किराए के रूप में अपने हॉस्टल और पीजी को देते हैं. अधिकतर कोचिंग करने वाले छात्र सशक्त्त मध्यमवर्ग या उच्च्वर्गीय परिवारों से होते हैं. ये सब छात्र 18 से कम उम्र के के हैं जो कोचिंग के लिए अपने घर और परिवार से दूर रहते हैं. इनकी अपनी समस्याएँ हैं, डर है, कोरोना के संक्रमन का खतरा है. मानसिक तनाव होने की शंका है. इसलिए सरकार ने कुछ छात्रों की आवाज सुन ली और उन्हें उनके घर भेज दिया गया. लेकिन अभी भी कुछ छात्र हैं जो लॉकडाउन में फंसे हैं और घर नहीं जा पा रहे हैं.

लेकिन वो गरीब जो रो रहे हैं, पैदल ही अपनी पत्नी, छोटे-छोटे बच्चों और बुजुर्ग परिवार वालों के साथ हजारों किलोमीटर पैदल चलकर घर पहुंचना चाहते हैं, उनके साथ यह अन्याय क्यों ? उन सबों को भी बसों की व्यवस्था कर उनके घर क्यों नहीं पहुंचवाया जा सकता है ? इन गरीबों के ऊपर डांडा चलाकर, मुर्गा बनाकर उन्हें कहीं भी परेशान होने छोड़ दिया जाना केंद्र और अन्य राज्य सरकारों के ऊपर बड़े सवाल खड़े करता है.

जंक फूड को कहें ना

एक अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रतिदिन अच्छा पौष्टिक भोजन अच्छा जीवन जीने के लिए जरूरी होता है लेकिन आज के आधुनिक युग में लगभग सभी लोग जंक फूड खा रहे हैं. इस के पीछे कारण यह भी है कि यह बाजार में हर जगह आसानी से उपलब्ध है, स्वादिष्ट तो होता ही है साथ ही दाम में कम होता है.

बच्चे से ले कर बड़े तक हर व्यक्ति जंक फूड खाने लगा है. विवाहपार्टी हो, बर्थडे पार्टी या गेट टूगेदर हो, जंक फूड बड़े शौक से खाया जाता है – जैसे कोल्ड ड्रिंक, नूडल, बर्गर, पिज्जा, चिप्स, नमकीन, मंचूरियन, समोसा, पकौड़े, केक, आइसक्रीम, चौकलेट आदि जंक फूड पार्टी का जरूरी हिस्सा बन चुके हैं.

पहले लोग जंक फूड को कभीकभी ही बाहर जाने पर खाया करते थे पर अब धीरेधीरे लोग इसे अपने घर का खाना बनाते जा रहे है जिस के कारण लोगों को कई प्रकार के स्वास्थ्य से जुड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

क्या है जंक फूड

जंक फूड में बहुत ज्यादा कैलोरी होती है और विटामिन, प्रौटीन और मिनरल की मात्रा बहुत अधिक होती है. विटामिन और मिनरल जरूरत के अनुसार ही शरीर के लिए सही हैं. कुल मिला कर जंक फूड व्यक्ति के शरीर के लिए लाभदायक कम और हानिकारक ज्यादा है.

एक बात तो साफ है, ज्यादा और लगातार जंक फूड खाने से शरीर को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.

वजन बढ़ना : जंक फूड बनाने में तेल, घी, बटर का अत्याधिक उपयोग होता है, जो मोटापे का कारण बनता है और मोटापा शरीर को कई अन्य बीमारियां देता है.

हाइपरटेंशन : जंक फूड में ज्यादा नमक का इस्तेमाल होता है जबकि घर में बने भोजन में हम जरूरत के अनुसार नमक की मात्रा का उपयोग करते हैं. ज्यादा नमक का सेवन हाइपरटेंशन काकारण बन सकता है.

टाइफाइड : घर में बना खाना साफसुथरा, साफ हाथों से बना होता है. होटल, फास्ट फूड सैंटर पर मिलने वाले जंक फूड बनाने में ज्यादा साफसफाई का ध्यान नहीं रखा जाता. अस्वच्छ तरीके से बनाए फूड से टाइफाइड, डायरिया होने का खतरा रहता है.

हृदय से जुड़े रोग : घर पर भोजन बनाने में हम कम तेल का इस्तेमाल करते हैं जबकि जंक फूड को ज्यादा तेल और घीयुक्त बनाया जाता है. ऐसा भोजन शरीर में कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ाता है, जिस से कई प्रकार के हृदय रोग होने का खतरा रहता है.

कुपोषण : लंबे समय तक बिना पौष्टिक तत्त्वों का जंक फूड खाते रहने से व्यक्ति की भूख कम हो जाती है, जिस से कुपोषण की समस्या का सामना करना पड़ सकता है. बच्चों का शारीरिक विकास सही प्रकार से नहीं हो पाता.

अंत : जंक फूड खाने के इतने भी शौकीन मत बनाइए कि अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर बैठे. महीने में एक बार स्वाद के लिए जंक फूड खा सकते है पर इस की आदत बना स्वयं के शरीर को स्वयं बरबाद करना है. इसलिए घर का स्वच्छ, स्वस्थ भोजन खाएं और स्वस्थ रहें.

बच्चे और जंक फूड

बच्चों को जंक फूड से अलग करना आज नामुमकिन सा हो गया है इसलिए चाहें तो मातापिता समझदारी से बच्चों को जंक फूड खाने को दे सकते हैं लेकिन इस की एक सीमा निर्धारित कर दें. बच्चों के साथ मिल कर एक दिन तय कर लें कि वह हफ्ते में एक दिन जंक फूड खा सकते हैं ताकि बच्चे भी छिप कर चोरी छिपे बाहर से जंक फूड नहीं खाएं.

यह डील करते समय क्वांटिटी का निर्णय भी मातापिता करें. मतलब कि बच्चा पूरा का पूरा चिप्स का पैकेट नहीं खाए बल्कि उसे कुछ पोर्शन ही दें. जंक फूड डे का मतलब यह भी नहीं कि सुबह से शाम तक बच्चा अपनी मरजी का ही खाए. नहीं, साथ में हैल्दी फूड भी खाने को दें.

इस तरीके से बच्चे को उस की मनपसंद चीज भी खाने को मिल जाएगी, साथ उस की सेहत को नुकसान भी नहीं पहुंचाएगा और उस के विकास में पौष्टिकता की किसी भी तरह की कमी नहीं रह पाएगी.

#coronavirus: कोरोना के कोहराम से भी नहीं टूट रही अंधविश्वास की आस्था

कहा जाता है कि भय हमें झकझोर देता है,मौत हमारी आँखें खोल देती है. लेकिन लगता है हिंदुस्तानी इस मुहावरे को भी गलत कर देंगे.क्योंकि ‘कोविड-19 के दौर में जीवन’ शीर्षक से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिंकडिन पर एक लेख लिखा है जिसमें उन्होंने अन्य बातों के अतिरिक्त इस तथ्य पर बल दिया है कि ‘हमला करने से पहले कोविड-19 नस्ल, धर्म, रंग, जाति, समुदाय,भाषा या सीमा नहीं देखता है’.

इसलिए, उन्होंने कहा, “हमारी प्रतिक्रिया और व्यवहार एकता व भाईचारे को प्राथमिकता दे,इसमें हम सब साथ साथ हैं.” इसी भाईचारे व आपसी सहयोग के कारण केरल अब कोरोना वायरस से लड़ने के लिए राष्ट्रव्यापी मॉडल बन चुका है. केरल ने देश में सबसे पहला कोविड-19 रोगी रिपोर्ट किया था,लेकिन इस लेख के लिखे जाने तक इस दक्षिणी राज्य में संक्रमण के सिर्फ 400 मामले हैं और अब तक केवल तीन मौतें हुई हैं; जैसा कि केन्द्रीय स्वास्थ मंत्रालय के डाटा से मालूम होता है.केरल की इस सफलता का सबसे बड़ा कारण यह रहा है कि हिन्दू, मुस्लिम व ईसाई बिना किसी भेदभाव के, एकजुट प्रयास में, एक-दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं.

लेकिन देश के कुछ बड़े राज्यों में इस आपसी भाईचारा व एकजुटता का काफी हद तक अभाव देखने को मिल रहा है.शायद इसलिए इनमें कोविड-19 से संक्रमण व मौतों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है. केन्द्रीय स्वास्थ मंत्रालय के डाटा के मुताबिक़ 22 अप्रैल सुबह 11.10 तक कोविड-19 से जो कुल 645 मौतें हुईं उनमें सबसे ज्यादा (251) महाराष्ट्र में हुई हैं और इसके बाद गुजरात (90), मध्य प्रदेश (76),  दिल्ली (47) ,राजस्थान 25 और तेलंगाना (23) हैं. देश में कुल कोविड-19 संक्रमितों की संख्या भी 20,111 से अधिक हो गई है.कोविड-19 को नियंत्रित करने के लिए प्रधानमंत्री ‘एकता व भाईचारे’ को प्राथमिकता देने के अतिरिक्त सोशल डिस्टेंसिंग (दैहिक दूरी) बनाये रखने और लॉकडाउन का सख्ती से पालन करने पर भी ज़ोर दे रहे हैं.लेकिन तर्क पर आस्था इतनी भारी पड़ रही है कि सब गुड़ गोबर होता जा रहा है.ध्यान देने की बात यह है कि तर्क पर आस्था सिर्फ भारत में ही भारी नहीं पड़ रही है बल्कि लगभग सभी देशों (और सभी समुदायों व सभी वर्गों) में यह ‘बीमारी’ मौजूद है.

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कर्नाटक में कुछ दिन पहले पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के पोते की शादी हुई, जिसमें सैंकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया.इनमें से किसी के चेहरे पर न तो मास्क था और न ही किसी ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया. सोशल डिस्टेंसिंग व लॉकडाउन के कारण बहुत से लोगों ने अपने विवाह आयोजन,जो पहले से ही तय थे,स्थगित कर दिए हैं या दो चार लोगों की मौजूदगी में सादगी से विवाह कर लिया है या किसी एप्प के ज़रिये फोन पर ही निकाह सम्पन्न कर लिया है.लेकिन देवगौड़ा ने अपने पारिवारिक ज्योतिषी के द्वारा बताये गये ‘शुभ मुहूर्त’ को किसी भी सूरत में निकलने नहीं दिया ; क्योंकि यह आस्था की बात है.भले ही महामारी के दौर में भीड़ का जमा होना कोरोना वायरस फैलने की बड़ी वजह बन जाये जैसा कि दिल्ली में तब्लिगी जमात के सम्मेलन के चलते हुआ.

अमेरिका में गेनपीस डॉट कॉम की तरफ से बड़े बड़े होर्डिंग जगह जगह पर लगाए गये हैं जिन पर कोरोना वायरस व अन्य संक्रमणों से बचने के संदर्भ में पैगम्बर मुहम्मद की हदीस (कथन) को इस क्रम में लिखा गया है –

1.बार बार हाथ धोते रहो; 2. जहां हो वहीं रुके रहो; और 3. संक्रमित क्षेत्र में मत जाओ.

संभवत: इसी को मद्देनज़र रखते हुए अरब देशों में मस्जिदों को बंद कर दिया गया है और आज़ान में कुछ शब्द जोड़कर यह हिदायत दी जाती है कि सामूहिक नमाज़ की जगह अपने घर में ही व्यक्तिगत नमाज़ अदा करें.इसी कारण से सऊदी अरब ने इस वर्ष के हज को रद्द कर दिया है.लेकिन पाकिस्तान का हाल कुछ अलग ही है.यहां मुल्लाओं का कहना है कि संकट के समय अल्लाह को अधिक से अधिक याद करना चाहिए,इसलिए मस्जिदों में ‘सामूहिक नमाज़ जारी रहेंगी’. मुल्लाओं की इस आस्था भरी ज़िद के आगे पाकिस्तान की सरकार भी झुक गई है और उसने रमज़ान माह में सामूहिक नमाज़ की अनुमति दे दी है.

हैरत की बात यह है कि ‘संकट के समय ईश्वर को अधिक याद करने’ व एकत्र होने की आस्था भरी बेतुकी दलील केवल मुल्लाओं तक सीमित नहीं है, पुजारी, पादरी, ग्रंथी आदि की सोचने की सीमा भी इतनी ही है.इसलिए राम नवमी पर सोशल डिस्टेंसिंग व लॉकडाउन को अंगूठा दिखाते हुए पश्चिम बंगाल व अन्य राज्यों में मंदिरों के बाहर लोगों लम्बी कतारें देखी गईं.पश्चिम बंगाल के बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि मंदिरों के बाहर लोग हाथ से पानी पीते हैं, प्रसाद खाते हैं लेकिन उन्हें कुछ नहीं होता क्योंकि उन पर ईश्वर की कृपा होती है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समीति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष राजिन्द्र सिंह मेहता ने बीबीसी से कहा कि ‘स्वर्ण मंदिर में मर्यादा न कभी बंद हुई, न कभी होगी’.

कोविड-19 से अपनी मृत्यु से पहले ग्रंथी बलदेव सिंह ने सिख उत्सव होला मोहल्ला में हिस्सा लिया था, जिससे 20 गांवों के लगभग 40,000 लोगों को क्वारंटाइन करना पड़ा और बलदेव सिंह के 19 रिश्तेदार कोरोना पॉजिटिव पाए गये.इंग्लैंड में इस्कॉन के हज़ारों सदस्य एक शव यात्रा में शामिल हुए जिसमें से 21 को संक्रमण हुआ.इनमें से अब तक पांच की मृत्यु हो चुकी है.श्रीलंका में बौद्ध भिक्षु सप्ताह भर की सामूहिक पूजा कोविड-19 से ‘मुक्ति’ पाने के लिए कर रहे हैं. केरल में चालाकुडी चर्च में सामूहिक धार्मिक आयोजन किया गया,जिसके लिए पादरी व 50 अन्यों को गिरफ्तार किया गया है.

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सिर्फ धार्मिक मामलों में ही तर्क पर आस्था हावी नहीं है बल्कि इस प्रकार के संदेशों पर विश्वास करना कि 5 जी नेटवर्क से वायरस फैलाता है, हैंड ड्रायर से वायरस मर जायेगा, विटामिन सी या गौ मूत्र से कोविड-19 रोगी ठीक हो जायेगा … भी इसी मानसिकता के कारण है .संसाधनों के अभाव में भी व्यक्ति गैर-विज्ञान बातों में आस्था रखने लगता है, लेकिन धार्मिक अंधविश्वास इसका मूल कारण है. अखिल भारतीय कैथोलिक यूनियन के पूर्व अध्यक्ष जॉन दयाल कहते हैं,“हर धर्म में हर प्रकार के लोग होते हैं, तार्किक सोच से लेकर दकियानूसी विचार रखने वालों तक, लेकिन धर्म के मूल में विश्वास रखना उस समय तक दुरुस्त है जब तक वह रूढ़िवादी न हो.”

Lockdown में हुई Kkusum फेम Rucha Gujarathi की गोदभराई, Photos Viral

लॉकडाउन के बीच जहां कुछ सेलेब्स शादी कर रहे हैं तो वहीं किसी के घर नई खुशी ने दस्तक दी है. इसी बीच सीरियल ‘कुसुम’ (Kkusum) फेम रुचा गुजराती (Rucha Gujarathi) अपना गोदभराई सेलिब्रेशन एन्जौय करती हुई नजर आईं, जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं सीरियल ‘कुसुम’ फेम रुचा गुजराती की गोदभराई की वायरल फोटोज…

रुचा के चेहरे पर ग्लो आया नजर

बीते महीने ही ‘कुसुम’ फेम एक्ट्रेस रुचा गुजराती (Rucha Gujarathi)ने अपनी प्रेग्नेंसी की घोषणा करते हुए फैंस को चौंका दिया था. वहीं अब गोदभराई की फोटोज में रुचा की फोटोज को देखकर उनके फैंस उन्हें बधाइयां दे रहे हैं. इसी बीच टीवी एक्ट्रेस की नई फोटोज में उनके चेहरे  पर प्रैग्नेंसी का ग्लो तो देखते ही बन रहा है.  गोदभराई की रस्म को पूरा करने के लिए रुचा (Rucha Gujarathi)ने गुलाबी रंग का सूट पहना, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रहीं थीं. वहीं उनका बेबी बंप भी साफ नजर आ रहा था.

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फैमिली के साथ फोटो खिचवातीं नजर आईं रुचा

रुचा गुजराती (Rucha Gujarathi)ने अपने पति विशाल जायसवाल के साथ भी कई क्यूट फोटोज क्लिक करवाई. रुचा गुजराती की गोदभराई की रस्म में पति ने तो उन पर खूब प्यार लुटाते दिखें. दरअसल, रुचा इस समय अपने मायके में हैं और गोदभराई की रस्म उनके घर पर ही की गई हैं, इसी बीच रुचा गुजराती (Rucha Gujarathi)ने अपने माता-पिता और पति का शुक्रिया अदा किया है और उनके साथ फोटोज भी क्लिक करवाई.

 

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बता दें, सीरियल ‘कुसुम’ में रुचा गुजराती (Rucha Gujarathi)ने नौशीन असी सरदार की बेटी का किरदार अदा किया था. इस सीरियल के जरिए रुचा गुजराती (Rucha Gujarathi)ने खूब सुर्खियां बटोरी थी, जिसके बाद वह कईं सीरियल्स में नजर आईं.

नुकसानदायक है दूध के साथ इन 5 चीजों का सेवन

कैल्शियम, आयोडीन, पौटेशियम, फास्फोरस और विटामिन डी से भरपूर दूध हमारे शरीर के लिए फायदेमंद होता है. इस के फायदों के बारे में हम सभी जानते हैं, लेकिन किसी भी चीज के सेवन के समय हमें कई चीजों का ध्यान रखना चाहिए. कई बार हम गलत चीजों का सेवन कर लेते हैं, जिन का हमारे शरीर और स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है. कुछ ऐसा ही दूध के साथ भी है. ऐसी कई चीजें हैं, जिन का सेवन दूध पीने से पहले गलती से भी नहीं करें. तो आइए, जानते हैं इन चीजों के बारे में विस्तार से-

1. खट्टी चीजों का सेवन न करें

दूध पीने से पहले या बाद में सिट्रिक एसिड युक्त खट्टे फलों का सेवन बिलकुल भी न करें. ऐसा करने से आप को स्वास्थ्य सम्बंधी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, जिस में पेट दर्द, स्किन प्रॉब्लम मुख्य हैं.

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2. मछली न खाएं

मछली खाने से पहले या बाद में इस बात का खास ध्यान रखें दूध का सेवन न किया जाए. ऐसा करने से पेट की पाचन क्रिया खराब होती है और कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. दूध पीने और मछली खाने के बीच कम से कम 2 घंटे का अंतर जरूर रखें.

3. दाल के सेवन से बचें

ऐसी कई तरह की दालें हैं, जिन का सेवन दूध के साथ एकदम नहीं करना चाहिए.  ऐसा करने से  पेट और स्वास्थ्य से जुड़ी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. खासतौर पर उड़द की दाल के साथ दूध नहीं पीना चाहिए.

4. दही का सेवन बिलकुल न करें

कई लोगों को लगता है कि दूध से बने दही को अगर दूध के साथ सेवन करेंगे तो कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. दही और दूध का एकसाथ सेवन कभी भी नहीं करना चाहिए.

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5. तिल और नमक भी है हानिकारक

कई तरह के खाद्य पदार्थों में तिल और नमक का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इन का सेवन दूध के साथ एकदम नहीं करना चाहिए. इस का शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है.

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