#lockdown: फैमिली के लिए बनाएं पालक कोफ्ता

पालक आयरन से भरपूर होता है. अगर आप अपनी फैमिली को हेल्दी और टेस्टी रेसिपी ट्राय करना चाहते हैं तो पालक कोफ्ता आपके लिए बेस्ट औप्शन है.

हमें चाहिए

– कोफ़्ता के लिए

– ब्रेड स्लाइस (02 नग)

– पनीर (1/2 कप कद्दूकस किया हुआ)

– मैदा (1/2 कप)

– मकई (1/4 कप उबला हुआ)

– बेकिंग पाउडर (चुटकी भर)

– हरी मिर्च (02 नग कटी हुई)

– धनिया पत्ती (01 बड़ा चम्मच कटी हुई)

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– काली मिर्च पाउडर (1/2 छोटा चम्मच)

– काजू (2 छोटे चम्मच)

– दही  (03 बड़े चम्मच)

– नमक (स्वादानुसार)

ग्रेवी के लिए-

– पालक (04 कप कटा हुआ)

– हरी मिर्च (01 नग कटी हुई)

– अदरक (02 छोटे चम्मच बारीक कटा हुआ)

– तेल (02 बड़े चम्मच)

– धनिया पाउडर (01 छोटा चम्मच)

– लाल मिर्च पाउडर (1/2 छोटा चम्मच)

– गरम मसाला पाउडर (1/4 छोटा चम्मच)

– नमक (स्वादानुसार)

ग्रेवी पेस्ट के लिए-

– प्याज (3/4 कप कटा हुआ)

– टमाटर (3/4 कप कटे हुए)

– लौंग (02 नग)

– छौंक के लिए-

– घी (01 बड़ा चम्मच)

– अदरक (01 टुकड़ा)

– प्याज (मीडियम साइज की, बारीक कटी हुई)

पालक कोफ्ता बनाने की विधि :

– इसके लिए ब्रेड के किनारों को हटा कर उन्हें दही में डुबा दें.

– 10 मिनट के बाद उसमें मैदा को छोड़कर कोफ्ता वाली सारी सामग्री डाल कर अच्छी तरह से मिला लें.

– सारी सामग्री एकसार हो जाने के बाद उसे 12 हिस्सों में बांट कर कोफ़्ते जैसा बना लें.

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– उसके बाद कोफ्तों को मैदे से अच्छी तरह से लपेट लें और कढ़ाई में तेल गर्म करके सुनहरा होने तक  तल  लें.

– अब ग्रेवी की तैयारी करेंगे, इसके लिए पालक हरी मिर्च और अदरक को कुकर में डाल कर थोड़ा सा पानी   मिलायें औेर एक सीटी लगा दें.

– इसे ठंडा करने के बाद मिक्सर में पीस कर पेस्ट बना लें.

– इसके बाद कड़ाही में तेल गर्म करके उसमें प्याज को भून लें.

– प्याज भुन जाने पर उसमें टमाटर का पेस्ट मिलाएं और उसे भी भून लें.

– धनिया, लाल मिर्च पाउडर और नमक मिलाकर उसे 2 मिनट तक पकायें.

– इसके बाद 1/2 कप पानी कड़ाही में डालें और धीमी आंच पर 6-7 मिनट तक पकायें.

–  इसके बाद कोफ्ता को ग्रेवी में डालें और उबाल आने तक पका लें.

– कोफ्ता तैयार होने के बाद छौंक के लिए निकाली गयी सामग्री को एक छोटे पैन में डालें और तेज आंच   में  2 मिनट तक पका लें.

– इसे पकाने के बाद कोफ्ता के उपर से डाल दें.

दूसरी मुसकान: भाग-2

वह बेसब्री से शनिवार का इंतजार करती, खुद को सजातीसंवारती. उसे वसंत के साथ अपनी हर मुलाकात पहली मुलाकात ही लगती. देर तक हाथों में हाथ डाले वे इन्हीं लंबी सड़कों पर घूमा करते. गुलमोहर गवाह हैं इन के प्यार के. वह वसंत के सीने पर सिर रखती तो वह उसे अपनी मजबूत बांहों में जकड़ लेता. वह धीरेधीरे पिघलने लगती. उसे लगता उस के बदन की ताप से गुलमोहर भी सुलग उठेंगे. चांदी के दिन थे वे…इतना कीमती और सुनहरा वक्त हमेशा कहां जिंदगी में रहता है.

उस का स्कूल खत्म होने वाला था और वापस अलवर जाने का वक्त आ गया था. मांबाबूजी तो वक्त से पहले ही इस दुनिया से उठ गए थे. इसलिए उस की सारी जिम्मेदारी हेमा दी और रमन जीजाजी के ऊपर आ पड़ी थी. वह लगातार रोए जा रही थी.

‘‘वसंत कुछ करो, मुझे वापस नहीं जाना.’’

‘‘रोओ मत, कुछ करते हैं. ऐसे तो मैं भी तुम्हें नहीं जाने दूंगा…पगली अभी तो वक्त है…कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा.’’

इंटर के पेपर हो चुके थे. रिजल्ट आने में अभी वक्त था. बिना मार्कशीट कहीं भी दाखिला नहीं होना था. पेपरों के बाद छुट्टियां पड़ रही थीं. वही वापस जाने की मुसीबत. कैसे खुद को जाने से रोके, वह सोच रही थी.

इसी बीच स्कूल की तरफ से 10वीं और 12वीं कक्षा के स्टूडैंट्स के लिए हौबी क्लासेज शुरू होने की खबर आई. स्कूल इस के लिए कुछ ऐक्सट्रा चार्ज कर रहा था. मगर उस की तो मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई कि वह अब कोई भी हौबी क्लास जौइन कर लेगी. अलवर वापस जाने से बच जाएगी.

हेमा दी फोन पर बहुत नाराज हुई थीं. कई बार उसे लौटने के लिए कहा था. मगर फिर उस की जिद के आगे चुप हो गई थीं. 2 महीने तफरी में बीत गए. हौबी क्लास में क्या सीखा कुछ पता नहीं. सोनेचांदी के दिन यों ही गुजरते हैं. रिजल्ट आया तो पास हो गई थी. वसंत ने रोजमैरी रैस्टोरैंट में सब को शानदार पार्टी दी.

‘‘मुझे कुछ और भी चाहिए,’’ उस ने वसंत की आंखों में आंखें डाल कर शोखी से कहा था.

‘‘हां, बोलो,’’ वसंत ने उस के चेहरे पर गिर आई लटों को अपनी उंगलियों से संवारते हुए पूछा. वसंत के स्पर्श से वह बेसुध होने लगी थी. बोली, ‘‘मुझे कहीं मत जाने देना.’’

‘‘वादा तुम्हें कहीं नहीं जाने दूंगा.’’

 

और सच में वह कहीं नहीं जा पाई थी. वसंत ने उस के रहने का बंदोबस्त एक होस्टल

में कर दिया था. उस होस्टल को एक क्रिश्चियन महिला विलियम चलाती थी. होस्टल के पास ही फैशन इंस्टिट्यूट था, जहां रोमा की सिस्टर कोर्स कर रही थी. यह आइडिया भी वसंत का ही था कि वह कोर्स कर ले. बीए की पढ़ाई तो वह प्राइवेट भी कर सकती है. उसे आइडिया पसंद आया. हेमा दी को रुकने की एक ठोस वजह बता पाएंगी.

होस्टल के कमरे में हेमा दी उस पर बरस रही थीं, ‘‘तेरा दिमाग खराब हो गया है… क्या रखा है इस शहर में जो तू यहां से जाना नहीं चाहती? तेरी जिद्द थी, इसलिए हम ने तुझे यहां होस्टल में रह कर पढ़ने की इजाजत दी. तेरे जीजाजी तो तब भी नहीं मानते थे और अब तो बिलकुल भी नहीं. फिर तेरे लिए एक रिश्ता भी देखा हुआ है. खातापीता परिवार है. लड़का तेरे जीजाजी का देखाभाला है. पढ़ाई पूरी होते ही हम तेरी शादी कर देंगे. वक्त से अपने घर चली जाओगी तो हमारी भी जिम्मेदारी और चिंता खत्म होगी.’’

हेमा दी बोले जा रही थीं. वह सिर झुकाए बस सुन रही थी. बचपन से वह ऐसे ही करती थी. कोई बहस नहीं, जवाब नहीं. चुप रह कर अपनी सारी बातें मनवाती आई थी. अब भी यही होना था और हुआ. हेमा दी को झुकना पड़ा. फिर रोमा और उस के परिवार ने उन्हें तसल्ली दी थी कि वे उस का ध्यान रखेंगे.

हेमा दी भारी मन से सौ हिदायतें दे कर लौट गईं. उन के जाते ही हफ्ते भर बाद जीजाजी आ गए. नाराज थे मगर प्रत्यक्ष में उस के रहने, खाने और पढ़ाई से संबंधित सारा इंतजाम बड़े ध्यान से चैक कर रहे थे. फिर उस के नाम का एक अकाउंट खुलवा कर लौट गए.

वक्त गुजरने लगा था. वह खुश थी. बीए प्राइवेट कर रही थी. फैशन डिजाइनर के कोर्स में उस का खूब मन लग रहा था. कपड़ों की रेशमी रंगबिरंगी दुनिया में वह अपने नाजुक मन की कल्पनाओं से खूब रंग भरती. यह काम उस के नेचर के मुताबिक ही था. वसंत उस के बनाए कपड़ों को गौर से देखता और फिर मुसकरा देता. उस के बिना कुछ कहे ही वह खुशी से भर जाती.

2 साल गुजर चुके थे और यकीनन वह 7वें आसमान पर थी. लेकिन अब उसे धीरेधीरे नीचे आना था. बीए का 1 साल रह गया था. फिर यहां रुकने का कोई बहाना नहीं था.

यों ही एक दिन कंपनी गार्डन में घूमते हुए उस ने वसंत से पूछा, ‘‘मुझ से शादी करोगे न? मैं तो अब किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती.’’

वसंत खामोश रहा.

‘‘कुछ बोलो. मुझे डर लगने लगा है.’’

‘‘हांहां, सब हो जाएगा,’’ वसंत ने लापरवाही से कहा.

‘‘हेमा दी पागल नहीं हैं…और जिंदगी भर क्या मैं पढ़ती रहूंगी? शादी की बात कर रही हूं… तुम्हें इस बार उन से बात करनी पड़ेगी.’’

वसंत फिर खामोश रहा.

‘‘हेमा दी अगले महीने आ रही हैं. वे चाहती हैं कि मैं उन के साथ लौट चलूं…पेपरों के वक्त ही यहां लौटूं, तुम इस बार उन से शादी की बात करोगे न?’’ उस ने मनुहार की.

‘‘हांहां, देखा जाएगा… पहले तुम अपनी पढ़ाई तो पूरी करो,’’ वसंत टालने के मूड़ में था. वह खीज गई. देर तक दोनों के बीच खामोशी रही. फिर वसंत ने उसे अपनी तरफ खींच लिया. फिर वही गहरी आंखें और तपता हुआ स्पर्श, जो उस की बरबादी के लिए काफी था.

‘‘कल हेमा दी ने आना है और तुम्हें अभी काम पड़ना था…या दी का सामना ही नहीं करना चाहते?’’ और वह जोरजोर से रोने लगी.

वसंत उसे चुप कराने लगा और आखिर उस ने अपनी दलीलों से उसे मना ही लिया कि अगली बार बात करेगा. वह दी का सामना करने के लिए फिर अकेली खड़ी थी.

इस बार पहली दफा उस ने दी के सामने काफी कुछ झूठ कहा. काफी नाराजगी और चिंता के साथ हेमा दी फिर लौट गईं. उन के जाने के बाद वह फूटफूट कर रो पड़ी. कुछ था जो दिल में उलझ रहा था.

विलियम ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा था, ‘‘तुम ने अपनी सिस्टर को वसंत के बारे में क्यों नहीं बताया?’’ उस के और वसंत के बारे में विलियम सब जानती थी. मगर इस विषय पर वह पहली बार बात कर रही थी.

‘‘बात तो वसंत को करनी चाहिए थी,’’ और वह फिर सिसक पड़ी.

‘‘वह तुम्हारी सिस्टर के सामने क्यों नहीं आया? देखो यह तुम्हारी लाइफ का सवाल है… तुम्हें अब उस से सब कुछ साफसाफ पूछना चाहिए,’’ विलियम ने इस से ज्यादा कुछ नहीं कहा था, मगर कई सवाल वह उस के आसपास छोड़ गई थी.

दूसरे ही दिन वसंत लौट आया, जबकि वह 1 हफ्ते की कह कर गया था. वह

वसंत को देख कर खुश हुई, मगर साथ ही पहली बार उसे कुछ चुभ भी गया कि इतनी ही जल्दी लौट आना था तो 1 दिन बाद चला जाता. दी से बात तो हो जाती. मगर वसंत ने फिर उसे अपने जादू में बांध लिया था.

धीरेधीरे फाइनल परीक्षा का टाइम आ गया. मगर परीक्षा से ज्यादा उस की चिंता यह थी कि वसंत शादी को ले कर चुप्पी साधे हुआ है. वह जानती थी कि उस के यहां से जाते ही उस की शादी कर दी जाएगी. उस का मन करता वसंत खुद उस से शादी की बात करे और उसे सब साफसाफ और सचसच बताए जैसे वह अपने बारे में बताती है.

मगर ऐसा नहीं था. एक दिन उस ने इन्हीं गुलमोहरों के पेड़ों के नीचे वसंत से कहा था, ‘‘एक दिन चली जाऊंगी यहां से… तुम्हें शायद याद भी न आऊं…’’

‘‘क्या जाने की रट लगाए रहती हो… कहा तो है कि कुछ करेंगे.’’

‘‘तुम कुछ नहीं करोगे और इस बार मैं भी नहीं करूंगी,’’ वह संजीदा हो गई.

‘‘शादी के बिना प्यार मुकम्मल नहीं होता क्या? बड़े झमेले हैं मेरी जान…करोगी तो कहोगी पहले ही अच्छे थे,’’ वसंत ने उस के गले में बांहें डाल कर उसे बहलाने की कोशिश की.

‘‘तुम्हें बड़ा पता है शादी के झमेलों के बारे में…कितनी कर चुके हो?’’

‘‘हां, 4-5 तो कर ही ली हैं,’’ वसंत ने आंख दबा कर कहा.

‘‘वसंत प्लीज आज मुझ से साफसाफ बात करो,’’ कहते ही उस की आंखों से आंसू बहने लगे.

वसंत उस के आंसुओं को पोंछते हुए ठहरी सी आवाज में बोला, ‘‘मेरे पास कुछ नहीं है…न घर, न पैसा, काम अभी जमा नहीं है…शादी कर भी लूं तो मेरे साथ रहोगी कैसे?’’

‘‘रह लूंगी. बस तुम शादी के लिए तैयार हो जाओ. मेरे मांबाबूजी की जो संपत्ति है वह मेरी और हेमा दी दोनों की है. शादी के बाद मेरे हिस्से की संपत्ति मुझे मिलेगी…हम उसे बेच घर भी ले लेंगे और तुम अपना बिजनैस भी आगे बढ़ा लेना…’’

वसंत खामोशी से सब कुछ सुनता जा रहा था. अंतत: उस ने शादी के लिए हां कर दी.

यादोें में सफर करतेकरते वह कब औफिस पहुंच गई, उसे पता ही नहीं चला. रोज ऐसा ही होता है. न चाहते हुए भी अतीत के रास्तों में भटकती रहती. औफिस में कदम रखते ही हड़बड़ाता हुआ कबीर उस के पास आया, ‘‘मैडम, आज सुबह से बहुतोें की क्लास लग चुकी है…अब आप की बारी है.’’

उस ने पर्स मेज पर रखा और मेजर आनंद के कैबिन की तरफ बढ़ गई.

‘‘मे आई कम इन सर?’’

‘‘यस, प्लीज.’’

‘‘सर आप ने बुलाया?’’

‘‘बैठो, दीवान एसोसिएशन की पेमैंट का चैक अभी तक नहीं पहुंचा और स्टौक में दालों का स्टौक लगभग खत्म है.’’

‘‘सौरी सर, आज सब हो जाएगा,’’ उस ने धीरे से कहा.

‘‘खैर, कोई बात नहीं. अब देख लेना. और कुछ सोचा जो हम ने कहा था?’’ कह मेजर थोड़ा आंखों ही आंखों में मुसकरा दिए.

उस से जवाब देते न बना.

‘‘मैं बता दूंगी सर,’’ कह कर वह अपने कैबिन में आ कर काम निबटाने लगी. स्टोर का सामान शौर्टलिस्ट करने लगी तो देखा दालों के अलावा भी काफी सामान खत्म था.

काम निबटातेनिबटाते लंच टाइम हो गया. आज वह लंच नहीं लाई थी. अत: स्टोर के ही एक हिस्से में बने कैफे में चली गई. कौफी के साथ ब्रैडरोल खाते हुए खयाल मेजर आनंद की तरफ चला गया.. वही मालिक थे स्टोर के. स्टोर के साथ ही एक इंस्टिट्यूट था, जिस में कई तरह के कोर्स कराए जाते थे. जो लोग फीस नहीं दे सकते थे उन्हें मुफ्त ट्रेनिंग दी जाती थी और जो फीस दे सकते थे उन्हें बताया जाता था कि उन के पैसों का सदुपयोग कहां किया जाता है. इंस्टिट्यूट सरकार से मान्यताप्राप्त था. अत: काफी चलता था. इस के अलावा मेजर ट्रेड फेयर के द्वारा स्थानीय किसानों और विभिन्न प्रकार के कारीगरों व कलाकारों को भी बढ़ावा देते थे. इस के अलावा वे कई तरह के सामाजिक कार्यों में भी लगे हुए थे. लोग उन की बहुत इज्जत करते थे. सुनने में आया था कि उन की बीवी और बच्चे एक ऐक्सीडैंट में मारे गए थे. तब मेजर ने काफी कम उम्र में ही आर्मी से रिटायरमैंट ले लिया था और अपनी पुश्तैनी प्रौपर्टी जो करोड़ों की थी, को बेच कर उस पैसे को भलाई के कामों में लगा दिया था.

वह जब यहां नौकरी करने आई थी तो उसे लगा था ज्यादा दिन नहीं टिक पाएगी.

आर्मी के लोग बहुत कायदाकानून पसंद होते हैं. मेजर थे भी ऐसे ही. काम में लापरवाही उन्हें पसंद नहीं थी. मगर धीरेधीरे उस के लिए काफी कुछ आसान होता गया था.

बड़ी बात यह थी कि उसे यह महसूस हुआ था कि वह यहां सिर्फ नौकरी नहीं कर रही, बल्कि किसी अच्छे नेक मकसद में हिस्सेदार भी है. उसे मेजर आनंद की बात याद आई. वे उसे शहर से कुछ दूर होने वाले ट्रेडफेयर में ले जाना चाहते थे, जहां से 2 दिन से पहले नहीं लौटा जा सकता था. ऐसा नहीं कि वह पहले फेयर में मेजर और उन की टीम के साथ न गई हो, पर यों

2-3 दिन रुकने के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी.

ऐसे सवालों के जवाब उस के पास हमेशा न में ही होते थे. मगर जाने क्यों अब सीधा सा जवाब नहीं दे पा रही थी. इतने सालों बाद उसे भी शायद ब्रेक चाहिए था. कौफी खत्म कर के वह सीधा मेजर आनंद के कैबिन में पहुंची और फिर पूछा, ‘‘कब चलेंगे सर?’’

मेजर मुसकरा दिए फिर कहा, ‘‘इस पूरे महीने में जब तुम्हें सुविधा लगे.’’

वह वापस आ कर काम करने लगी. शाम को घर लौटी. रूटीन कामों से फारिग हो कर वार्डरोब खोल कर देखने लगी. इतने सालों में पसंदनापसंद कहीं खो गई थी. कभी फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया था, सोच कर हंसी आती…पर कुछ अच्छा नया खरीदती भी कैसे…जब मन ही खुश नहीं रहता तो तन की खुशी कहां से आती. वह बैड पर लेट गई. मन फिर अतीत में भटकने लगा…

आगे पढ़ें-  कितनी मुश्किल के साथ वसंत से उस की शादी हुई थी. जमीनआसमान…

#coronavirus: इस Lockdown में नए अंदाज में जियें जिंदगी

लॉक डाउन का एक बार फिर से बढ़ जाने से वर्क फ्रॉम होम करने वाले लोग, बच्चे, यूथ और बुजुर्गों के लिए घर पर रहने की परेशानी एक बार फिर बढ़ गयी है. महीनो घर पर रहने के बाद उनकी आदतों में बदलाव न आ जाय, इसे देखने की जरुरत है. नियमित दिनचर्या, सही खान-पान और व्यायाम ही उन्हें अच्छा महसूस करवा सकती है. खासकर मुंबई जैसे शहर में जहाँ लोग दिनभर काम में व्यस्त रहते है. आज कोविड- 19 ने उसकी रफ़्तार को रोक दिया है, लगातार लॉक डाउन ने मुंबई की सूरत को बदल कर रख दिया. आज सड़के और गलियां सब सुनसान पड़ी है, केवल आवश्यक सेवा में लगे लोग और पुलिस ही दिखाई पड़ती है, ऐसे में खुद को और परिवार वालों को स्वस्थ रखना एक चुनौती सबके लिए है. इस बारें में सोच फ़ूड एल एल पी की फाउंडर पूर्वी पुगालिया कहती है कि घर पर रहकर ऑफिस का काम करना और अपनी प्रोडक्टिविटी को बनाये रखना आसान नहीं. इसके साथ पूरे परिवार को भी किसी न किसी रूप में एक्टिव रखना एक चुनौती है.  कुछ सुझाव निम्न है,

  • जब आप वर्क फ्रॉम होम करते है, तो आपके रूटीन को बनाये रखना जरुरी होता है, समय से सोना और जागना पड़ता है. दिनचर्या को पहले की तरह ही बनाये रखना पड़ता है. इसके लिए काम की साप्ताहिक सूची पहले से बनाकर रखना जरुरी है, इसमें लर्निंग, क्रिएटिव प्ले, रिलैक्स करने का समय, फिटनेस, एक्टिविटी आदि को शामिल करना आवश्यक है, अभी घरेलू हेल्प नहीं है, ऐसे में उसे भी कब कैसे करना हे, अपनी सूची में शामिल करें.

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बच्चे अभी स्कूल और कॉलेज नहीं जा रहे है, ऐसे में उनकी पढाई को उस लेवल तक करवाते रहना जरुरी है, पर इसके साथ-साथ उनकी फिटनेस और क्रिएटिविटी को भी बनाये रखना है, ताकि वे बोरियत या अकेलेपन का शिकार न बने, कुछ ऑनलाइन कोर्सेज बच्चों के लिए शुरू करवा दें, जिसे वे उसे एन्जॉय कर सके, टीवी का समय निर्धारण पहले जैसे ही करें, इंडोर गेम को अधिक से अधिक करने के लिए प्रेरित करें, यूथ लड़के और लड़कियां इस दौरान खाना पकाने की विधि, रूम डेकोरेशन, पेंटिंग आदि को सीख सकते है, जो बाद में उन्हें काम आ सकता है.

इस लॉक डाउन में परिवार में हैप्पी मोमेंट्स को क्रिएट करें, जिसमें साथ मिलकर भोजन करना, फिल्में देखना, पुरानी बातों को याद करना, आदि हो, क्योंकि व्यस्त दिनचर्या में परिवार के मूल्य, रिश्तों की अहमियत, धीरे-धीरे ख़त्म होते जा रहे थे, ऐसे में ये समय उसे फिर से तरोताजा बनाने का है.

  • व्यस्त समय जब आप भूखे रहते है, ऐसे में जो भी सामने मिलता है, उसे खा लेते है, अब आपके पास समय है और आप एक हेल्दी और बैलेंस्ड फ़ूड परिवार के लिए बना सकते है, जो आपके मेंटल और इमोशनल हेल्थ के बैलेंस को बनाये रखती है, इसमें फल, दही, मिल्क, नट्स आदि से कई प्रकार के स्मूदी, सलाद और फ्रूट डेजर्ट बनाया जा सकता है, इस तरीके के व्यंजन डाइजेस्ट करने में भी आसान होता है, ये सब काम परिवार के लोग साथ मिलकर करे,ताकि इसका जायका और भी बढ़ जाय.

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  • अगर सीनियर सिटिजन घर में है और वे इस तालाबंदी की वजह से घर से निकलकर वाक् नहीं कर पा रहे है, उनकी फिजिकल एक्टिविटी में कमी आई है, तो उन्हें योगा, प्राणायाम और हल्की फुल्की व्यायाम और घर पर थोडा टहलने की जरुरत है,इससे उनकी इम्म्युनिटी बढेगी और उनकी लंग कैपासिटी भी अच्छी रहेगी, ऑक्सीजन का संचार सही ढंग से होगा और उनकी मूड स्विंग कम होगी.

9 टिप्स : क्या आप गरमियों के लिए तैयार हैं

तापमान धीरे धीरे बढ़ने लगा है और देखते ही देखते गर्मी आ जाएगी. इसलिए ज़रूरी है कि हम इस मौसम के लिए तेयार रहें, हममें से ज़्यादातर लोगों के लिए गर्मी कई समस्याएं लेकर आती है, धूप और पसीने के साथ कई स्वास्थ्य समस्याएं आने लगती हैं. गर्मियों में खाने पीने की आदतों से लेकर स्किन की देखभाल और यात्रा आदि सभी की योजना सोच-समझ कर बनानी चाहिए, इस मौसम के अनुसार जीवनशैली में ज़रूरी बदलाव लाने चाहिए. यहां हम कुछ सुझाव लेकर आए हैं, जिनके द्वारा आप अपने आप को आने वाली गर्मियों के लिए तैयार कर सकते हैं.

1. हल्का खाएं

गर्मियों में मसालेदार भोजन का सेवन न करें, इस मौसम में ऐसा खाना पचाना मुश्किल होता है. हल्का आहार लें, पेट में कुछ जगह खाली छोडें- बहुत ज़्यादा पेट भर न खाएं. खाने के लिए एक दिनचर्या बनाएं और एक या दो बार भारी खाने के बजाए कम मात्रा में बार-बार खाएं. सुनिश्चित करें कि आपका आहार हल्का लेकिन पोषण से भरपूर हो.

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2. मौसमी फल और सब्ज़ियां खाएं

मौसमी फल और सब्ज़ियां आपको मौसमी बीमारियों से लड़ने की ताकत देती हैं. इनमें उचित पोषक पदार्थ होते हैं जो बीमारियों से लड़ने में मदद करते हें.

अगर आपके पास पूरा फल खाने का समय नहीं है तो इसको जूस पीएं. आप फल या सब्ज़ियों को ब्लेंडर में चलाएं, ये पोषण का अच्छा स्रोत हैं. हालांकि आप चाहे कितने भी व्यस्त हों जूस के टेट्रा पेक न चुनें, इनमें बहुत ज़्यादा चीनी और प्रीज़रवेटिव होते हैं जो सेहत के लिए अच्छे नहीं हैं.

3. बहुत सारा पानी पीएं

शराब या कोल्ड ड्रिंक के सेवन से बचें. इसके बजाए सादा पानी पीएं या चाहें तो पानी में थोड़ा चीनी और नमक मिला लें. इससे न केवल आपके शरीर में हाइड्रेशन बना रहेगा, बल्कि इलेक्ट्रोलाईट संतुलन भी बना रहेगा.

4. स्क्रब करें

गर्मियों में अपनी हाइजीन का ध्यान रखना ज़रूरी है, एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है. स्क्रबिंग करने से शरीर से कीटाणु निकल जाते हैं और आप तरोताज़ा महसूस करते हैं. रोज़ाना नहाएं. गर्मियों में तापमान का सबसे ज़्यादा असर स्किन पर पड़ता है, खासतौर पर अगर आपकी स्किन संवेदनशील हो. इसलिए अपनी स्किन की अच्छी देखभाल करें, नियमित रूप से एक्सफौलिएट करें और इसके बाद क्लीनिंग और टोनिंग करें. इसलिए पेट्रोलियम जैली या नारियल तेल से अपनी स्किन की देखभाल करें. पूल से बाहर आने के बाद ज़रूर नहाएं.

5. एसपीएफ अपनाएं

आपकी स्किन का प्रकार चाहे कोई भी हो, एसपीएफ अपनाएं. एसपीएफ आपकी स्किन को हानिकर यूवी किरणों से बचाता है. बाहर जाने से पहले एसपीएफ से युक्त क्रीम या लोशन लगाएं, फिर चाहे आप काम के लिए जा रहे हैं, लंच के लिए या तैराकी के लिए.

6. हल्के कौटन के कपड़े पहनें

कौटन के कपड़े गर्मियों के लिए बेहतरीन हैं. इन कपड़ों में आपकी स्किन सांस ले सकती है और ये पसीने को आसानी से सोख लेते हैं.

7. व्यायाम करें

गर्मियों में नियमित व्यायाम करना ना भूलें. वास्तव में व्यायाम करने से आपकी स्किन से टौक्सिन्स पसीने के रूप में बाहर निकलते हैं. व्यायाम के लिए सुबह का समय चुनें, इस समय तापमान कम होता है.

8. अपने बालों की देखभाल करें

गर्मियों में बाल रूखे और बेजान हो जाते हैं. लगातार धूप, गर्मी और क्लोरीन के संपर्क में आने से बाल डल होने लगते हैं. इस मौसम में हेयर स्टाइलिंग-आयरन और ब्लोअर का इस्तेमाल न करें- बालों को प्राकृतिक रूप से सुखाएं. बाहर जाते समय अपने बालों को ढक लें.

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9. एलर्जी के लिए सावधानी बरतें

गर्मियों में हवा में पराग और अन्य एलर्जी पैदा करने वाले कण होते हैं. अगर आपको किसी चीज़ से एलर्जी है तो गर्मियों में सावधानी बरतें. अपने डौक्टर से संपर्क करें और उचित निर्देशों का पालन करें.

डॉ. मंजीता नाथ दास, कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल गुरुग्राम

दूसरी मुसकान: भाग-5

मेजर आनंद ने वापस कैंप में फोन किया. मगर वहां से भी नाउम्मीदी ही हाथ लगी. कार्यकर्ता अहमद ने बताया कि यहां जोर की बारिश और आंधीतूफान है…पहाड़ी नाला सड़क पर बहने लगा है, इसलिए कोई उन की मदद को नहीं आ सकता.

‘‘अब क्या होगा?’’ उस ने घबरा कर मेजर की तरफ देखा.

‘‘सिवा इंतजार के कोई रास्ता नहीं. आप तो काफी भीग गई हैं…पीछे बैग में कुछ ड्रैसेज रखी हैं, उन में से ही कुछ पहन लो. यों भीगे कपड़ों में रात भर रहीं तो बीमारी पड़ जाओगी,’’ कह मेजर गाड़ी से बाहर निकल गए.

उस ने देखा बैग में ट्रेड फेयर में बिकने वाले कपड़े रखे थे. कपड़े पारंपरिक थे. छींट का लहंगाचोली थी. उसे संकोच हुआ, मगर भीगे कपड़ों से छुटकारा पाने का यही तरीका था. उस ने गाड़ी की लाइट औफ की और कपड़े बदल लिए. बालों को भी खोल कर कपड़े से पोंछ लिया. अब काफी सुकून महसूस कर रही थी.

मेजर गाड़ी में आ कर बैठ गए. उन्होंने एक गहरी नजर से उसे देखा और फिर हलके से मुसकरा दिए. जाने क्या था उन नजरों में कि वह अपनेआप में सिमट गई. मेजर ने सीट ऐडजस्ट कर दी. वह पीछे की सीट में खुद को समेट कर लेट गई. रात यों ही गुजरने लगी. बारिश रुकरुक कर हो रही थी.

सुबह के 6 बजने वाले होंगे कि मैकैनिक बाइक में अपने साथी कारीगर के साथ वहां पहुंच गया. उसे रात में कब नींद लगी और मेजर कब से मदद के लिए फोन मिला रहे थे, उसे पता ही नहीं चला. मेजर ने उसे धीरे से हिलाया तो वह अचकचा कर उठ बैठी.

‘‘आओ, तुम्हें छोड़ दूं,’’ मेजर ने पहली बार उस के लिए आप की जगह तुम का प्रयोग किया था.

वह अपना लहंगा संभालती हुई गाड़ी से बाहर आ गई. मौसम में गजब की ठंडक थी. उस ने चुन्नी कस के बदन से लपेट ली.

‘‘सर, कच्चे रास्ते से जाइएगा, पक्का रास्ता तो जाम है,’’ मैकैनिक ने कहा. उन्होंने बिना कुछ बोले बाइक स्टार्ट की. वह चुपचाप उन के पीछे बैठ गई. रास्ता काफी उबड़खाबड़ था. वह गिरने ही वाली थी कि उस ने मेजर को पकड़ लिया.

सुबह का धुलाधुला मौसम, ठंडी हवा, आसपास का हराभरा नजारा, जाने क्या था कि उस पर रोमानियत छाने लगी. पहली बार उस को लगा कि यह रास्ता कभी खत्म न हो.

रास्ता एक अजीब सी खुमारी में खामोशी से कट गया. घर पास आतेआते वह संभल कर बैठ गई. मेजर ने घर के सामने बाइक रोकी. वह लहंगे को संभालते हुए उतर गई.

‘‘आइए, चाय पी कर जाइएगा,’’ वह शर्मिंदगी से बमुश्किल बोल पाई.

मेजर मुसकराए और फिर बाइक मोड़ कर बिना कुछ कहे चले गए. वह भाग कर घर में घुसी. डोरबैल बजाई, सामने विलियम खड़ी थी. उसे ऐसी ड्रैस में देख कर सुखद आश्चर्य में भर गई.

चाय पीतेपीते उस ने विलियम को सारा हाल कह सुनाया. वह हंस पड़ी. सर्दी से उसे बुखार चढ़ गया था. उस के जेहन से मेजर आनंद उतर ही नहीं रहे थे. उसे लगा एक खुली हवा का झोंका उस के अंदर की घुटन को बाहर निकाल रहा है और वह सालों बाद सांस ले रही है.

उधर मेजर आनंद बुखार में तप रहे थे. सारी रात गीले कपड़ों की वजह से अंदर जबरदस्त सर्दी बैठ गई थी. उस ने न आने के लिए अपनी साथी जमुना को फोन किया, तो उसे मेजर साहब की बीमारी के बारे में पता चला.

जमुना ने चुटकी ली, ‘‘दोनों एकसाथ बीमार…और सारी रात…क्या बात है.’’

वह भी हंस पड़ी थी. उसे सुकून की नींद आई थी.

सुकून भरी नींद की मिठास सालों बाद उस के हिस्से में आई थी. खुद को काफी हलका महसूस कर रही थी. अजीब सी खुमारी छाई हुई थी. उसे लगा मेजर साहब की तबीयत के बारे में उसे पूछना चाहिए. उन की यह हालत उस की वजह से ही तो हुई थी…न उसे छोड़ने आते न वह उन पर शक करती और न वे भीगते. अत: उस ने नंबर मिला दिया.

‘‘हैलो,’’ उधर से मेजर की उन्नींदी सी आवाज आई.

‘‘हैलो सर,’’ मैं शुमी.

‘‘हां, कहो शुमी क्या बात है?’’

‘‘जी आप कैसे हैं?’’

‘‘ठीक हूं,’’ छोटे से जवाब के साथ खामोशी छाई रही. उसे भी कुछ नहीं सूझा.

‘‘शुभी ठीक है? शायद पहली बार वह तुम्हारे बिना रही होगी.’’

वह हैरान थी कि मेजर साहब को उस की बेटी का नाम पता है. अरे, वे उस की बच्ची के बारे में पूछ रहे थे, जिस की सुध उस के अपने पिता ने भी कभी नहीं ली थी.

वह अंदर तक सुकून से भर गई. थोड़ी देर बाद उस ने हेमा दी को फोन किया और सालों बाद देर तक सुकून के साथ बातें कीं.

2 दिन तक वह छुट्टी पर रही थी. काम फिर शुरू हो गया था. अब वह पहले से ज्यादा उत्साह के साथ मेजर का दिया काम करने लगी थी. उन के हर काम का महत्त्व उसे समझ आने लगा था. धीरेधीरे वह काफी कुछ सीख गई और आश्चर्यचकित थी कि अगर हम अपनी सोच का दायरा फैलाएं और कुछ करने की ठान लें, तो दुनिया का अलग ही रंग नजर आता है.

वह मेजर साहब की दिल से इज्जत करने लगी थी. वे अपने दुखों से ऊपर उठ कर किस तरह दूसरों को सुख पहुंचाने की कोशिश करते थे… खुद को अकेला नहीं छोड़ा था उन्होंने… कितने लोग जुड़े हुए थे उन के साथ और एक वह थी. सालों तक खुद को ही बंद कर के बैठी हुई थी.

मेजर उसे जिस ट्रेड फेयर में जाने को कह रहे थे वह अब तक का सब से बड़ा ट्रेड फेयर था और मेजर के लिए महत्त्वपूर्ण भी था. उन्होेंने अपनी टीम के साथ मिल कर उस के लिए बहुत मेहनत की थी. लेकिन वह शहर से काफी दूर था, जहां से उसी दिन वापस नहीं आया जा सकता था. शुभी को कहां रखे? वह विलियम से कैसे कहे कि वह मेजर आनंद के साथ अकेली जा रही है और वह उस की बच्ची को रखे.

दूसरे दिन सुबह उठी तो खुद आश्चर्य से भर गई. हेमा दी सामने थीं. वह दीदी से लिपट गई.

‘‘अचानक कैसे दी? कोई फोन नहीं, खबर नहीं.’’

‘‘तुम से मिलने का बड़ा मन था,’’ हेमा दी ने प्यार से निहारा जैसे पहली बार देख रही हों. वे उसे ऐसे छू रही थीं जैसे मां अपने बच्चे को छूती है… वे उस की मां ही तो थीं. उस के हर दुखसुख में वे और रमन जीजाजी साथ खड़े रहे थे. वह देर तक दी से बातें करती रही.

‘‘कुछ बताना भूल तो नहीं रही?’’ दी ने प्यार से पूछा.

‘‘क्या?’’ वह हंस पड़ी.

‘‘मेजर आनंद…’’ दी ने कहा.

वह खामोशी से दी को देखने लगी. दी ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘जिंदगी ने तुझे एक मौका और दिया है. हाथ से जाने मत देना.’’

वह हैरान थी कि दी इतना कुछ कैसे जानती हैं?

हेमा दी ने मेजर आनंद को फोन कर के लंच पर बुला लिया और फिर दोनों ने मिल कर खूब चाव से अच्छेअच्छे व्यंजन बनाए.

मेजर आए तो वह उन के सामने बैठने से भी शरमा रही थी. हेमा दी मेजर आनंद से प्रभावित हुई थीं. दी ने काफी देर उन से बातें कीं. वे शुभी से भी घुलमिल गए थे. मेजर आनंद का शुभी से लगाव उसे अंदर तक भिगो गया. शुभी उन्हें अपनी बनाई ड्राइंग दिखा रही थी.

हेमा दी 3 दिन उस के पास रुकी और उन्होंने अपनी रजामंदी से उसे मेजर आनंद के साथ ट्रेड फेयर में भेज दिया. काफी शानदार मेला था. मेजर आनंद और उन की टीम की मेहनत नजर आ रही थी. उसे वहां काफी कुछ देखनेसमझने को मिला. रहने की व्यवस्था मेले के पास ही गैस्ट हाउस में की गई थी.

‘‘अपनी जिंदगी मेरे साथ बिताना पसंद करोगी?’’ चाय पीते हुए मेजर साहब ने उस से पूछा.

वह काफी देर खामोश रही. शुभी के बारे में काफी कुछ कहना चाहती थी, मगर कहां से शुरू करे समझ नहीं पा रही थी.

‘‘शुभी को मैं अपनी बेटी मान चुका हूं… बाकी मैं बोलने में नहीं करने में यकीन रखता हूं.’’

बिना कुछ कहे, बिना पूछे तसल्ली हो गई थी. ट्रेड फेयर से लौटते ही उस ने अपना फैसला दी को सुना दिया. सुन कर वे बहुत खुश हुईं और विलियम की आंखों में भी उस ने वह तसल्ली महसूस करी थी, जो वसंत के वक्त नहीं थी. उम्र के तजरबे और फर्क को वह अब महसूस कर पाई थी.

हेमा दी के जाते ही रमन जीजा आ गए. मेजर आनंद से मिले. सब बातें उन्होंने खोल कर सामने रखीं. दोनों तरफ से तसल्ली होने पर शादी तय हो गई.

हेमा दी ने काफी सामान पहले ही खरीद रखा था. बाकी तैयारी उस के और विलियम के साथ मिल कर कर ली. विलियम ने सारी तैयारी में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया.

शादी साधारण तरीके से कोर्ट में संपन्न हुई. मेजर आनंद ने कुछ खासखास लोगों को ही शादी में शामिल किया. हेमा दी ने भी कुछ करीबी लोगों को ही बुलाया था. वह एक बार फिर शादी के बंधन में बंध गई.

हेमा दी ने उसे अपने हाथों से बड़े प्यार से सजाया और फूलों से महकते कमरे में पहुंचा दिया.

मेजर आनंद कमरे में आए तो उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. उन्होंने धीरे से उस का हाथ अपने हाथ में ले कर हौले से दबाया और फिर झुक कर उस के माथे को चूम लिया. न जाने कितने सितारे उस के अंदर चमकने लगे, सैकड़ों फूल उस के दामन में खिल उठे.

‘‘जिंदगी भर मेरी दोस्त बन कर रहना, क्योंकि दोस्त से प्यार ज्यादा होता है. वैसे डर तो नहीं लग रहा?’’ मेजर आनंद ने उस के कान में शरारत से कहा, तो वह शर्म से उन की बांहों में पिघलने लगी. उसे महसूस हुआ चारों तरफ जुगनू चमकने लगे हैं और वह उन्हें मुट्ठी में भर रही है.

दूसरी मुसकान: भाग-4

उस ने खुद को उस वक्त बहुत छोटा महसूस किया था. बिखर गई थी वह…प्यार में छला हुआ आदमी कहीं का नहीं रहता…उस के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

हेमा दी और रमन जीजा देर तक उसे समझाते रहे थे कि वसंत किसी भी मामले में खरा नहीं उतरा और अब भी बच्चे की आड़ में वह सिर्फ अपना मतलब ही निकाल रहा है.

मगर वह सोच रही थी कि अब पैसे वसंत के हाथों में नहीं देगी…जो करेगी खुद करेगी…खर्चा कैसे चलेगा…वसंत के पास कुछ था नहीं. बैंक में  8-9 महीने का खर्चा ही बचा था. फिर कैसे होगा सब…एक बार वह बस जिंदगी की गाड़ी को पटरी पर लाना चाहती थी और उस के लिए उसे पैसे की सख्त जरूरत थी.

हेमा दी और रमन जीजा जानते थे कि उस की उम्र और अक्ल इतनी नहीं है कि वसंत की चालाकियों से बच सके. बड़ी मुश्किल से ही नतीजा निकला था. रमन जीजा ने मकान की कीमत लगवा कर उसे उस के हिस्से का पैसा दे दिया था और कुछ पैसा शुभी के नाम फिक्स कर दिया था, जिस का जिक्र उन्होंने वसंत के आगे करने से मना किया था. वे दोनों आखिर तक उसे वसंत की चालों से बचाना चाह रहे थे.

मगर वसंत की चालाकियों के आगे तीनों मुंह ही ताकते रह गए थे. चंद महीने के अंदर ही वसंत ने उस का सारा पैसा साफ कर दिया और फिर वही रवैया शुरू हो गया. अब वसंत पहले से ज्यादा घर से बाहर रहता और महीने 2 महीने में ही घर आता. जिस बच्ची के भविष्य की चिंता दिखा कर उस ने सारा पैसा समेट लिया था अब उस की तरफ देखता भी नहीं था.

वह घर और बच्ची की जिम्मेदारी के साथ फिर अकेली खड़ी थी. दोनों के रिश्ते कड़वाहट से भरने लगे थे. कुछ था, जो उसे साफसाफ न सही, मगर नजर आ रहा था. उस का सामाजिक जीवन पूरी तरह खत्म हो चुका था. शुभी के स्कूल दाखिले के वक्त उसे खासी परेशानी उठानी पड़ी. धीरेधीरे उस का धीरज जवाब दे गया. वह पहली बार रमन जीजा के सामने बिखर गई, ‘‘मुझे मुक्ति दिला दीजिए…शायद तभी मुझे सांस आएगी.’’

रमन जीजा ने पुलिस में रिपोर्ट लिखवा दी. पहली बार बिना उस की सलाह के उन्होंने अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर के वसंत की खोजखबर निकलवाने की कोशिश करी. जब सच सामने आया तो वह कई दिनों तक अस्पताल के बिस्तर पर रही.

वसंत पहले से शादीशुदा था. वह अपनी पहली पत्नी और बच्चों के प्रति भी कोई जिम्मेदारी नहीं उठाता था. उन की देखभाल वसंत के मातापिता ही करते थे, क्योंकि वसंत एक आवारा किस्म का इनसान था.

इतना सब होने के बाद अब उस का रिश्ता वसंत के साथ बेनाम और बेअसर हो चुका था. हेमा दी उसे और शुभी को अस्पताल से ही अपने घर ले गईं, घर में उन्होंने ताला लगा दिया था. वह तो जैसे पत्थर ही हो गई थी. हेमा दी और रमन जीजा उस का गम समझते थे. वक्त हर जख्म का मरहम होता है. मगर एक अच्छाखासा वक्त लगा था उसे अपनी सोचसमझ वापस लाने में. आखिरकार वह वसंत से अलग हो गई. उस वसंत से जो खून बन कर उस की रगों में दौड़ता था. कागज के एक टुकड़े पर साइन करते वक्त उसे ऐसा लगा था कि क्यों नहीं उस के प्राण शरीर को छोड़ देते…उस दिन वह बिलखबिलख कर रोई थी.

पूरा साल उस ने हेमा दी के पास गुजारा था. उस की हालत ऐसी नहीं थी कि वह वापस आती खाली मकान में. आने के नाम से ही उस को घबराहट होने लगती. पहले उसे वसंत का इंतजार रहता था और आने की उम्मीद अब किस का इंतजार करेगी? फिर पासपड़ोस के उन लोगों का कैसे सामना करेगी, जो हमदर्दी जताने के बहाने जख्म कुरेद जाते हैं.

हेमा दी चाहती थीं की वह उस मकान को बेच कर यहीं आ कर रहे और दोबारा अपनी जिंदगी शुरू करे. रमन जीजा तो उस के लिए रिश्ते खोजने की कोशिश में थे. बस उन्हें उस की हां का इंतजार था. वसंत की तमाम यादों से जुड़े मकान को बेचना उस की मजबूरी हो गई थी, मगर वह वापस अलवर भी आना नहीं चाहती थी. रिश्तेनातेदारों से भरा शहर, हेमा दी का सुखीसंपन्न परिवार और ससुराल उसे उस का खाली होने का ज्यादा एहसास करवाते. वह भाग जाना चाहती थी वहां से.

विलियम की टच में वह हमेशा थी. उस ने जिद कर उन के पड़ोस में ही एक छोटा मकान खरीद लिया और चली आई उसी में. एक बार फिर सब को नाराज कर के.

जिंदगी फिर शुरू हो चुकी थी, मगर इतना आसान नहीं था. वसंत था कि उस के दिलोदिमाग से निकलता नहीं था. हेमा दी कितनी बार उसे ले जाने आ चुकी थीं. उन्हें उस की खाली जिंदगी खौफ देती थी, खुद उसे भी. मगर उस के अंदर से यकीन जैसे खत्म हो चुका था.

फिर अचानक जिंदगी में नया मोड़ आया और उस मोड़ ने मेजर आनंद से मिलवा दिया. जब से उन से मिली थी, जिंदगी में हलचल होने लगी थी… ठहरे पानी पर जमी काई उखड़ने लगी थी. वह कहीं कुछ महसूस करने लगी थी… वे जज्बात जो दर्द की तह में सो चुके थे, अब फिर जागने लगे थे…बिना इजाजत कोई दिल के दरवाजे पर दस्तक देने लगा था.

मेजर आनंद की आदतें उसे रमन जीजा की याद दिलाती थीं. हेमा दी कितनी खुश थीं उन के साथ. शुरूशुरू में उसे कितनी परेशानी हुई थी काम करने में…इतना सारा काम, स्टोर की देखभाल, सैकड़ों आइटम्स देखना कि कुछ खत्म न हो, ऊपर से इंस्टिट्यूट का काम, ट्रेड फेयर की व्यवस्था और न जाने कहांकहां से काम निकल आता था…उस के लिए काफी मुश्किल था सब कुछ, मगर मेजर साहब की वजह से धीरेधीरे सब आसान होने लगा था. वह धीरेधीरे मेजर आनंद की तरफ खिंचती चली जा रही थी.

उसे जौब करते अभी कुछ ही महीने हुए थे. चंपारन में एक बड़ा ट्रेड फेयर लगाया जा रहा था. मेजर साहब ने स्थानीय और बाहर के काफी हस्तशिल्पियों की उस में शिरकत करवाई थी. स्थानीय किसान जो ऐक्सपर्ट्स के अंडर रह कर जड़ीबूटियों की खेती कर रहे थे वे उन के इस प्रयास से काफी खुश और उत्साहित नजर आ रहे थे.

औफिस के स्टाफ से कुछ लोग और उन के सामाजिक कार्यकर्ता वहीं मेले में ही रहे थे. मगर उसे शुभी के स्कूल की वजह से डेली अपडाउन करना पड़ रहा था.

1 हफ्ते से मेला काफी अच्छा चल रहा था. सभी में उत्साह था, मगर उस दिन अचानक तेज आंधीतूफान से बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई. सब कुछ समेटवाते हुए वह काफी लेट हो गई थी.

वह शुभी को ले कर परेशान हो गई थी. भले ही विलियम उस के पास थी, मगर शुभी को रात में उस ने कभी अकेला नहीं छोड़ा था. मेजर आनंद ने खुद उसे गाड़ी से छोड़ने को कहा. देर रात सवारी मिलना, वह भी इस मौसम में मुश्किल था. वह तैयार हो गई. मगर बीच रास्ते में ही गाड़ी खराब हो गई.

वह घबरा गई. तरहतरह के गंदे खयाल उस के दिमाग में आने लगे. मेजर आनंद ने बोनट खोल कर देखा, मगर कुछ समझ न आने की वजह से वे फोन उठा कर किसी को फोन करने लगे. जाने उसे क्या हुआ, उस ने मेजर के हाथ से फोन छीन लिया. मेजर आश्चर्य से उस की तरफ देखने लगे.

‘‘आप किसी को भी फोन नहीं करेंगे,’’ उस ने सख्ती से कहा.

‘‘मगर क्यों? मैकैनिक को फोन कर रहा हूं. गाड़ी ठीक नहीं हुई तो जाएंगे कैसे?’’

‘‘हुआ क्या?’’ मेजर हैरान थे.

‘‘पहले मैं फोन करूंगी,’’ कह वह तुरंत विलियम को फोन करने लगी.

मेजर दोनों हाथ जेब में डाल कर किनारे खड़े हो कर उसे ध्यान से देखने लगे.

उस ने पहली बार उन नजरों की ताब को महसूस किया था. वह गाड़ी में जा बैठी. मेजर पेड़ के सहारे खड़े रहे. उन्होंने उसे कुछ कहने या समझाने की कोशिश नहीं की. उसे मेजर के रवैए पर गुस्सा आ रहा था. वह मन ही मन एक अनजाने भय से घिरी बैठी थी. करीब 1 घंटे से ऊपर बीत चुका था और मेजर यों ही बाहर एक पेड़ के सहारे खड़े थे. सुनसान रास्ता, रात का वक्त उस पर बारिश फिर होने लगी थी. मेजर भीगने लगे थे. वह कुछ देर तक देखती रही. आखिर उसे लगा वह बेवजह के वहम में गिरफ्तार है. अत: गाड़ी से बाहर आई, तो ठंड और बारिश से सिहर उठी.

‘‘अंदर चलिए,’’ उस ने कहा.

‘‘क्यों?’’ मेजर ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘आप भी भीग रहे हैं और मैं भी… अब चलिए भी,’’ उस ने खीजते हुए कहा.

‘‘अब डर नहीं लग रहा मुझ से?’’ और फिर मेजर गाड़ी में आ कर बैठ गए. उन्होंने नंबर मिलाया तो दूसरी तरफ से जो कहा गया उसे सुन मेजर के मुंह से निकला, ‘‘ओह नो.’’

‘‘क्या हुआ?’’ उस ने पूछा.

‘‘भूस्खलन से रास्ते बंद हो गए हैं. कोई मैकैनिक इस वक्त नहीं आ सकता. अब सारी रात गाड़ी में ही बितानी होगी.’’

‘‘क्या?’’ उस के हाथपैर ठंडे होने लगे. गाड़ी से बाहर निकलने से मेजर के साथसाथ वह भी भीग गई थी. यों सारी रात भीगे बदन गाड़ी में बैठना कैसे हो पाएगा? इस सोच से ही वह कांपने लगी थी.

आगे पढ़ें- मेजर आनंद ने वापस कैंप में फोन किया. मगर…

दूसरी मुसकान: भाग-3

पूर्व कथा:

पढ़ाई के दौरान शुमी की मुलाकात वसंत से हुई और फिर दोनों में प्यार हो गया. शुमी वसंत से शादी करना चाहती थी, मगर वह टालमटोल कर रहा था. आखिरकार वसंत के घर वालों की रजामंदी के बगैर दोनों ने शादी कर ली. शुमी एक बच्ची की मां बन चुकी थी. अब वसंत ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया. जब शुमी को पता चला कि वसंत पहले से शादीशुदा है, तो वह उस से अलग हो गई.

अब आगे पढ़ें:

 

कितनी मुश्किल के साथ वसंत से उस की शादी हुई थी. जमीनआसमान एक करना शायद इसी को कहते हैं, जो उस ने किया था… बड़ी साधारण सी शादी हुई थी. शादी में वसंत की तरफ से 2-3 लोग ही शामिल हुए थे. सब को बड़ा अटपटा सा लग रहा था. हेमा दी और रमन जीजा के चेहरे बड़े बुझेबुझे से थे. मगर वह खुश थी कि जिसे चाहा वह मिल गया. रमन जीजाजी ने उसी शहर में उस के नाम पर एक मकान खरीद दिया था और फिर हेमा दी ने घरगृहस्थी का सारा सामान खरीद कर घर सजा दिया था. इस के अलावा काफी पैसा भी उस के अकाउंट में डाल दिया था. मगर वसंत नाराज था. उस ने दी और जीजाजी को तो कुछ नहीं कहा, मगर उस के आगे अपनी सारी भड़ास निकाल दी.

वसंत के कहे मुताबिक उस की दी और जीजा को उस पर यकीन नहीं था. तभी सारा पैसा मकान और सामान पर लगा दिया. वह शादी के दूसरे दिन वसंत के ये तेवर देख कर दंग थी. हेमा दी ने अपनी तरफ से उन का हनीमून प्लान किया. ऊटी के एक होटल में उन की बुकिंग करवा दी. मगर वसंत गुस्से में नहीं गया.

‘‘अब हम अपना हनीमून भी तुम्हारी बहन की मरजी से मनाएंगे?’’

‘‘तुम कहीं और ले चलो,’’ उस ने मनुहार की थी.

‘‘देखेंगे,’’ कह वसंत टालता रहा और फिर हनीमून बस एक सपना ही बन कर रह गया. करीब 1 महीने बाद काम का वास्ता दे कर वसंत ने उस से क्व2 लाख निकलवाए. उस ने गौर किया था कि वसंत को शादी का कोई क्रेज नहीं था, न ही उस की तरफ कोई खास ध्यान. वसंत को अपनी नईनवेली दुलहन का कतई ध्यान नहीं था. वह उदास रहने लगी थी.

वसंत मुंह से कोई लड़ाईझगड़ा नहीं करता था, लेकिन उस का ठंडा रवैया उसे अंदर ही अंदर खाने लगा था.

वसंत कितनेकितने दिन घर से बाहर रहता. जिस दिन लौटने की कह कर जाता उस दिन कभी न आता. वह किसी अनजाने डर से घिरी रातरात भर जागती रहती. उसे कुछ पता नहीं रहता कि वसंत कहां है और क्या कर रहा है. उस ने कितनी बार उस से कहा कि घर में एक फोन लगवा लो, मगर वह एक कान से सुनता और दूसरे से निकाल देता.

हेमा दी ने उसे एक मोबाइल खरीद कर दे दिया और कहा था कि कम से कम टच में तो रहोगी. कभी रातबिरात कोई परेशानी भी हो सकती है… अकेली किस का दरवाजा खटखटाएगी. हेमा दी से तो उस की बात रोज ही हो जाती, मगर वसंत से बात कभीकभार ही होती या तो उस का फोन बंद होता या वह फोन काट देता. रात को तो उस का फोन अकसर स्विच औफ होता. वह हैरान थी.

घर में राशन है या नहीं वसंत को इस से कोई मतलब नहीं था. वह जब भी घर के खर्च या जरूरत के सामान की बात करती वह खामोशी इख्तियार कर लेता. उस की यह बेजारी उसे अंदर तक तोड़ जाती. थकहार कर वह बैंक जा कर पैसा निकाल कर बेमन से घर के सारे इंतजाम करती. वसंत को ले कर उस ने जो सपने देखे थे, वे सपने ही रह गए. उस के प्यार से बेजार एक बेल की तरह वह सूखती जा रही थी.

अब उसे एहसास होने लगा था कि रमन जीजाजी ने सारा पैसा नक्द न दे कर उसे मकान और सामान खरीद कर क्यों दिया था. शादी को साल भर से ऊपर हो गया था. वसंत पिछले 20 दिन से घर से बाहर था. बेदिली से काम निबटा कर वह बालकनी में आ कर खड़ी हो गई.

‘‘कैसी हो’’ आवाज की दिशा में उस ने मुड़ कर देखा, तो निर्मला खड़ी मुसकरा रही थी.

‘‘मैं ठीक हूं, आप सुनाइए?’’ उस ने बेदिली से मुसकरा कर कहा.

‘‘बस ठीक हूं और तुम सुनाओ वसंत भैया आ गए क्या?’’

‘‘नहीं, अभी कुछ वक्त और लगेगा,’’ उस ने खीज कर जवाब दिया. अब वह चिढ़ने लगी थी, ऐसे सवालों से.

‘‘अरे, पर कल ही तो इन्होंने उन्हें ईजी स्टोर में देखा. आवाज भी लगाई, मगर वे शायद जल्दी में थे,’’ निर्मला अजीब तरह से मुसकराते हुए बता रही थी.

वह हैरान थी कि वसंत इसी शहर में है और उसे पता भी नहीं. उस ने गुस्से में तमतमा कर वसंत को फोन लगाया. फोन पर ही उस का झगड़ा हो गया. वह देर तक रोती रही. उस ने हेमा दी को फोन पर वसंत की सारी हरकतें बता दीं, जिन पर वह अब तक परदा डालती आ रही थी. वसंत दूसरे ही दिन घर आ गया और जिंदगी यों ही लड़खड़ाते हुए गुजरने लगी.

बेजारी के उस आलम में एक दिन उसे एहसास हुआ कि वह मां बनने  वाली है. वह खुशी से पागल हो गई. मगर यह सुन कर वसंत गुस्से से बोला, ‘‘दिमाग खराब है… तुम्हें संभालना ही मुश्किल है ऊपर से बच्चा… बिलकुल नहीं.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो?’’ वह अविश्वास से चीख उठी. फिर वही झगड़ा, रोनाधोना. जिस खबर से घर में उल्लास का माहौल होना चाहिए था उस बात से जबरदस्त क्लेश हो रहा था. वसंत किसी भी तरह इस बच्चे को नहीं चाहता था और वह इस अजन्मे बच्चे को मारना नहीं चाहती थी. एक अजीब सा तनाव पूरे घर में पसर गया.

फिर अचानक वसंत ने अपना विरोध खत्म कर दिया और उस की देखभाल करने लगा. उसे आश्चर्य हुआ कि मरुस्थल में अचानक फूल कैसे खिल उठे. वह उस का नकारात्मक रवैया देखने की अभ्यस्थ हो चुकी थी. मगर अच्छे परिवर्तन हमेशा सुखद लगते हैं. कुल मिला कर गर्भावस्था के 9 महीने कठिन होने के बावजूद अच्छे गुजरे. बच्चे के जन्म से पहले ही उस ने घर को बच्चे की जरूरत के सामान से सजा दिया. वसंत की मुहब्बत बूंदबूंद कर फिर उस के अंतर में उतरने लगी थी. वह खुश थी और इंतजार में थी उस नन्हे मेहमान के, जिस के आने से उस की झोली खुशियों से भर गई थी. उस का वसंत उसे वापस मिल गया था.

वह एक प्यारी सी बच्ची की मां बन गई थी. वसंत ने अच्छे अस्पताल में उस की डिलिवरी करवाई थी. बच्ची को गोद में लेते ही वह रो पड़ी थी. मां बनना भी कितना सुखद अनुभव है, जिसे बिना मां बने समझा नहीं जा सकता.

हेमा दी और रमन जीजाजी दोनों ही आए थे. ढेर सारे तोहफों से उन्होंने घर भर दिया था. वसंत ने नामकरण का फंक्शन बहुत अच्छी तरह किया था. उस के अच्छे इंतजाम की सब ने तारीफ की थी. बच्ची का नाम रखा गया शुभी.

उस दिन फिर वसंत को बिजनैस की वजह से बाहर जाना था. बच्ची को गोद में ले कर वह प्यार से निहार रहा था. उस ने उस के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘क्या देख रहे हो?’’

‘‘शुमी हमारी बच्ची शहर के सब से बड़े स्कूल में पढ़ेगी और इस की परवरिश राजकुमारियों की तरह होगी…तुम देखना मैं अपनी बच्ची के लिए क्याक्या करता हूं. अब मुझ से बाहर भी नहीं रहा जाता. मैं अपना काम अब इसी शहर में करूंगा ताकि तुम दोनों के साथ रह सकूं.’’

वह खिल उठी थी कि कहां समेटेगी इतनी खुशियां. इधर कुछ दिनों से वसंत परेशान रहने लगा था. वह पूछती तो हंस कर टाल जाता. मगर एक दिन वह फूटफूट कर रो पड़ा. उस का दिल बैठने लगा. वह वसंत का सिर गोद में रख कर खुद भी रो पड़ी.

‘‘कुछ बताओ भी?’’ उस ने पूछा.

‘‘मेरे पार्टनर ने धोखे से सब कुछ अपने नाम करवा लिया… गलती मेरी ही थी, जो वक्त रहते अपने बिजनैस को ले कर सीरियस नहीं हुआ… सब कुछ खत्म हो गया,’’ और वसंत फिर फूटफूट कर रो पड़ा.

उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई, ‘‘तुम ने पुलिस में रिपोर्ट नहीं की?’’

सब कुछ कर दिया है… मैं उसे इतनी आसानी से छोड़ूंगा नहीं, मगर इन सब कामों में तो बहुत वक्त और पैसा लगेगा, तब तक क्या होगा? मेरे पास तो नया बिजनैस शुरू करने के लिए पैसा भी नहीं है.’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा,’’ उस ने कह तो दिया था, मगर कैसे, यह उसे भी अभी पता नहीं था.

वसंत की भागदौड़ और परेशानी वह देख रही थी. वह भी उस के साथ परेशान रहने लगी थी. शादी के इतने अरसे बाद तो एक सुखद बदलाव आया था…वह भी ज्यादा दिन नहीं रहा था. वसंत नया बिजनैस शुरू करना चाहता था. इस के लिए उसे पैसों की दरकार थी. जितने पैसे उस के अकाउंट में थे उन से काम नहीं चल रहा था. वह तंग रहने लगी थी. वसंत को समझाती कि सभी लोग तो लाखों रुपयों से बिजनैस शुरू नहीं करते? फिर तुम कोई नौकरी क्यों नहीं करते? अगर और पैसा चाहिए तो अपने पिता से बात करो.’’

सुनते ही वसंत भड़क गया, ‘‘तुम से शादी न की होती तो सब कुछ था मेरे पास. अब किस मुंह से उन के आगे हाथ फैलाऊं… यह पैसा मुझे अपने लिए तो नहीं चाहिए न….काम होगा तभी तो बच्ची को अच्छे स्कूल में पढ़ाएंगे.’’

‘‘तो मैं भी कहां से लाऊं पैसा? मेरे कौन से मांबाप बैठे हैं,’’ वह भी खीज उठी.

‘‘मांबाप का मकान तो है न…तुम्हारा हिस्सा है उस में…अपनी बहन से कहो तुम्हें तुम्हारा हिस्सा दे दे,’’ वसंत ने कह ही दिया.

यह सुन वह सकते की हालत में थी. एक शब्द नहीं फूटा उस के मुंह से…उस के सोचनेसमझने की शक्ति जैसे खत्म हो गई थी. वह फिर से वहीं लौट आई थी जहां पहले थी. घर का माहौल फिर से बोझल रहने लगा था. फर्क इतना था कि वसंत अब घर से गायब नहीं होता था और अपनी बच्ची को प्यार से रख रहा था.

‘‘देखो शुमी समझने की कोशिश करो. मैं तुम से पैसा कभी नहीं मांगता, अगर मेरे अपने से इंतजाम हो जाता और तब भी नहीं कहता अगर उस मकान में तुम्हारे मातापिता रह रहे होते. मगर वह तो खाली पड़ा है. तुम और हेमा दी ही तो उस की वारिस हो. अब तुम्हें जरूरत है, तो उसे बेच कर अपना हिस्सा ले लो. मैं काम तुम्हारे नाम पर शुरू करूंगा. 1-1 पैसा तुम अपने हाथों से खर्च करना. फिक्र मत करो. तुम्हें तुम्हारा पैसा बढ़ा कर ही वापस करूंगा. अब मैं पैसे की वैल्यू समझ चुका हूं और अपनी बच्ची के लिए अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करना चाहता हूं. बस, इस बार मेरा यकीन कर लो.’’

थकहार कर उसे हेमा दी से बात करनी पड़ी. सुनते ही वे फट पड़ीं, ‘‘खबरदार मायका है वह हमारा… मांबाबूजी की अमानत है वह… हमारे बचपन की अनगिनत यादें हैं वहां. वह पैसा मांगता रहता है और तुम निकाल कर देती रहती हो. पिछले दोढाई साल में उस ने तुम्हें कुछ दिया है सिवा परेशानियों के? वह तो बच्चा भी नहीं चाहता था… अब इसी बच्ची की आड़ में मकान हजम करना चाहता है…कब समझोगी तुम? खाली हाथ हो कर सड़क पर आ जाओगी तब आंखें खुलेंगी तुम्हारी…तुम्हें बेटी मानते हैं इसलिए कोई हिसाब नहीं करते न करेंगे…उस मकान में तुम्हारा हिस्सा हमेशा रहेगा, लेकिन किसी बाहर वाले को उसे छूने भी नहीं दूंगी,’’ कहतेकहते हेमा दी रो पड़ी थीं.

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19 दिन 19 टिप्स: शादी के सालभर में इतना बदल गया ईशा अंबानी का फैशन

अमार बिजनेसमैन की बात करें तो अंबानी परिवार का नाम सबसे पहला आता है. वहीं फैशन की बात करें फैशन की तो बौलीवुड को टक्कर देती हैं अंबानी परिवार की बेटी ईशा अंबानी. 12 दिसंबर 2018 में शादी के बंधन में बंधने वाली ईशा अंबानी की सालगिरह को कुछ ही दिनों में एक साल पूरा हो जाएगा, लेकिन इस एक साल में ईशा के फैशन में इतना बदलाव आ चुका है की आप भी इसे ट्राय कर सकती हैं. ये आपके लुक को फैशनेबल के साथ-साथ एलिगेंट बनाने में मदद करेगा.

1. ईशा का साड़ी लुक करें ट्राय

आजकल रेशम की साड़ियों से लेकर दुपट्टे काफी पौपुलर है. हर कोई नए-नए फैशन की रेशम की साड़ियां ट्राय कर रहा है. अगर आप भी कुछ नया ट्राय करने के शौकीन हैं तो ईशा की ये sea ग्रीन कलर की रेशम साड़ी ट्राय कर सकते हैं. ये आपके लुक के लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा.

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2. फ्लावर प्रिंट है पौपुलर

अगर आप फैशन ट्रैंड में रहना चाहते हैं शादी के बाद भी तो फ्लावर प्रिंट पैटर्न वाला लहंगा और टौप जरूर ट्राय करें आप चाहें तो इसका दुपट्टा सिंपल रखकर साड़ी की तरह इसे ट्राय कर सकती हैं. ये आपके लुक के लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा.

3. कढ़ाई वाले पैटर्न वाला लहंगा करें ट्राय

अगर आप शादी के बाद किसी शादी पार्टी की ड्रेस के औप्शन ढूंढ रही हैं तो ईशा अंबानी का फ्लावर प्रिंट वाली कढ़ाई वाला लहंगा ट्राय करना न भूलें ये आपके लुके के लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा. आप इसके साथ सिंपल लुक रखते हुए चोकर वाला नेकलस ट्राय कर सकती हैं ये आपके लुक को कम्पलीट करेगा.

4. नेट वाली साड़ी करें ट्राय

 

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अगर आप वेडिंग सीजन में नेट वाली साड़ी ट्राय करना चाहती हैं तो ईशा अंबानी की ये साड़ी आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. ये आपके लुक को कम्पलीट करने में मदद करेगा. इसके साथ आप पर्पल कलर को मैच करते हुए ज्वैलरी भी ट्राय कर सकते हैं. ये आपके लुक को एकदम परफेक्ट दिखाने में मदद करेगा.

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Dr Ak Jain: क्या करें जब पुरुषों में घटने लगे बच्चा पैदा करने की ताकत?

इनफर्टिलिटी एक बहुत गंभीर समस्‍या है. जिसके कारण बहुत से कपल्‍स की गोद सूनी ही रह जाती है. मौजूदा लाइफस्टाइल की वजह से इनफर्टिलिटी की समस्‍या आम बात हो गई है. इनफर्टिलिटी का मुख्य लक्षण प्रेग्नेंट न हो पाना है. अगर आप भी इस समस्या से जूझ रहे हैं तो संपर्क करिए लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन से जो पिछले 40 सालों से इसका इलाज कर रहे हैं.

आइए अब जानते हैं इनफर्टिलिटी के बारे में…

नौजवानों में तेजी से बढ़ते तनाव और डिप्रैशन के साथसाथ प्रदूषण और गलत लाइफस्टाइल के चलते एनीमिया की समस्या भी मर्दों में नामर्दी की वजह बनती है. इनफर्टिलिटी से जुड़े सब से बुरे हालात तब पैदा होते हैं जब मर्द के वीर्य में शुक्राणु नहीं बन पाते हैं. इस को एजूस्पर्मिया कहा जाता है. तकरीबन एक फीसदी मर्द आबादी भारत में इसी समस्या से पीडि़त है.

हमारे शरीर को रोज थोड़ी मात्रा में कसरत की जरूरत होती है, भले ही वह किसी भी रूप में क्यों न हो. इस से हमारे शारीरिक विकास को बढ़ावा मिलता है.

हालांकि कसरत के कई अच्छे पहलू भी हैं. मगर इस के कुछ बुरे पहलुओं पर भी ध्यान देने की जरूरत है जिन की तरफ कम ही लोगों का ध्यान जाता है. मसलन, औरतों का ज्यादा कसरत करना बांझपन की वजह भी बन सकता है. वैसे, कसरत करने के कुछ फायदे इस तरह से हैं:

  1. दिल बने मजबूत : हमारे दिल की हालत सीधेतौर पर इस बात से जुड़ी होती है कि हम शारीरिक रूप से कितना काम करते हैं. जो लोग रोजाना शारीरिक रूप से ज्यादा ऐक्टिव नहीं रहते हैं, दिल से जुड़ी सब से ज्यादा बीमारियां भी उन्हीं लोगों को होती हैं खासतौर से उन लोगों के मुकाबले जो रोजाना कसरत करते हैं.

2. अच्छी नींद आना : यह साबित हो चुका है कि जो लोग रोजाना कसरत करते हैं, उन्हें रात को नींद भी अच्छी आती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कसरत करने की वजह से हमारे शरीर की सरकेडियन रिदम मजबूत होती है जो दिन में आप को ऐक्टिव बनाए रखने में मदद करती है और जिस की वजह से रात में आप को अच्छी नींद आती है.

3. शारीरिक ताकत में बढ़ोतरी : हम में से कई लोगों के मन में कसरत को ले कर कई तरह की गलतफहमियां होती हैं, जैसे कसरत हमारे शरीर की सारी ताकत को सोख लेती है और फिर आप पूरे दिन कुछ नहीं कर पाते हैं. मगर असल में होता इस का बिलकुल उलटा है. इस की वजह से आप दिनभर ऐक्टिव रहते हैं, क्योंकि कसरत करने के दौरान हमारे शरीर से कुछ खास तरह के हार्मोंस रिलीज होते हैं, जो हमें दिनभर ऐक्टिव बनाए रखने में मदद करते हैं.

4. आत्मविश्वास को मिले बढ़ावा : नियमित रूप से कसरत कर के अपने शरीर को उस परफैक्ट शेप में ला सकते हैं जो आप हमेशा से चाहते हैं. इस से आप के आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी होती है.

रोजाना कसरत करने के कई सारे फायदे हैं इसलिए फिजिकल ऐक्टिविटी को नजरअंदाज करने का तो मतलब ही नहीं बनता, लेकिन बहुत ज्यादा कसरत करने का हमारे शरीर पर बुरा असर भी पड़ सकता है खासतौर से आप की फर्टिलिटी कम होती है, फिर चाहे वह कोई औरत हो या मर्द.

ऐसा कहा जाता है कि बहुत ज्यादा अच्छाई भी बुरी साबित हो सकती है. अकसर औरतों में एक खास तरह के हालात पैदा हो जाते हैं जिन्हें एमेनोरिया कहते हैं. ऐसी हालत तब पैदा होती है, जब एक सामान्य औरत को लगातार 3 महीने से ज्यादा वक्त तक सही तरीके से माहवारी नहीं हो पाती है.

कई औरतों में ऐसी हालत इस वजह से पैदा होती है क्योंकि वे शरीर को नियमित रूप से ताकत देने के लिए जरूरी कैलोरी देने वाली चीजों का सेवन किए बिना ही जिम में नियमित रूप से किसी खास तरह की कसरत के 3 से 4 सैशन करती हैं.

शरीर में कैलोरी की कमी का सीधा असर न केवल फर्टिलिटी पर पड़ता है, बल्कि औरतों की सेक्स इच्छा पर भी बुरा असर पड़ता है. साथ ही मोटापा भी इस में एक अहम रोल निभाता है क्योंकि ज्यादातर मोटी औरतें वजन घटाने के लिए कई बार काफी मुश्किल कसरतें भी करती हैं. इस वजह से भी उन की फर्टिलिटी पर बुरा असर पड़ता है.

इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे जोड़े शारीरिक और मानसिक तनाव की हालत में पहुंच जाते हैं. अकसर देखा गया है कि ऐसे मामलों में या तो शुक्राणु की मात्रा कम होती है या स्पर्म की ऐक्टिविटी बहुत कम रहती है. लिहाजा ऐसे शुक्राणु औरत के अंडाणु को गर्भाधान करने में नाकाम रहते हैं.

वैसे अब इनफर्टिलिटी से नजात पाने के लिए कई उपयोगी इलाज मुहैया हैं. ओलिगोस्पर्मिया में स्पर्म की तादाद बहुत कम पाई जाती है और एजूस्पर्मिया में तो वीर्य के नमूने में स्पर्म होता ही नहीं है. एजूस्पर्मिया में मर्द के स्खलित वीर्य से स्पर्म नहीं निकलता है जिसे जीरो स्पर्म काउंट कहा जाता है. इस का पता वीर्य की जांच के बाद ही लग पाता है.

कुछ मामलों में जांच के दौरान तो स्पर्म नजर आता है लेकिन कुछ रुकावट होने के चलते वीर्य के जरीए यह स्खलित नहीं हो पाता है. स्पर्म न पनपने की एक और वजह है वैरिकोसिल. इस का इलाज सर्जरी से ही मुमकिन है.

कुछ समय पहले तक पिता बनने के लिए या तो दाता के स्पर्म का इस्तेमाल करना पड़ता था या किसी बच्चे को गोद लेना पड़ता था, लेकिन अब चिकित्सा विज्ञान में स्टेम सैल्स टैक्नोलौजी की तरक्की ने लैबोरेटरी में स्पर्म बनाना मुमकिन कर दिया है.

लैबोरेटरी में  मरीज के स्टेम सैल्स का इस्तेमाल करते हुए स्पर्म को बनाया जाता है, फिर इसे विट्रो फर्टिलाइजेशन तरीके से औरत पार्टनर के अंडाशय में डाल कर अंडाणु में फर्टिलाइज किया जाता है. इस तरीके से वह औरत पेट से हो सकती है.

लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन, पिछले 40 सालों से इन सभी समस्याओं का इलाज कर रहे हैं. तो आप भी पाइए अपनी सभी  सेक्स समस्या का बेहतर इलाज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति एवं मान्यता प्राप्त डॉ. जैन द्वारा. 

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