गरमी में फैशन न हो डाउन…

चिलचिलाती धूप, ये गरम हवाएं और ये गरमीअक्सर ही महिलाओं को मेकअप न करने और फैशन न करने पर मजबूर कर देती हैं. लड़कियां हमेशा सुन्दर और अलग दिखना चाहती हैं. गरमी में खुद को कैसे सुन्दर दिखाएं इस बात की सबसे ज्यादा टेंशन होती है उनको. लेकिन अब हम आपको बताएंगे कुछ टिप्स की इस भीषण गरमी में भी न हो आपका फैशन डाउन…..

पोनी टेल करें ट्राय

गरमी के मौसम में जितना हो बालों में जूड़ा बना कर रखें ऐसा नहीं है की आप सादा जूड़ा ही बनाए कई नए तरीके आ गए हैं स्टाइलिश जूड़ा बनाने के. आप चाहें तो हाई पोनी टेल भी कर सकती हैं. हाई पफ जूड़ा या हाई नार्मल जूड़ा भी आपके बालों के फैशन में चार चांद लगा देगा.

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लाइट मेकअप है ट्रेंडी

 

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Thrilled to be on board as the face of @boat.nirvana ?? I am a #boAthead! Lots of exciting stuff coming up #BoatxKiaraAdvani

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गरमी में जितना हो सके लाइट मेकअप करें ज्यादा डार्क मेकअप गरमियों में नहीं करना चाहिए. यदि संभव हो तो  लाइनर और लिप्सटिक का प्रयोग करें.वाटरप्रूफ मेकअप करें. लाइनर जितना पतला होगा उतना ही सुन्दर दिखेगा. नेल पेंट हल्के रंग के ही इस्तेमाल करें.

लाइट कलर गरमी के लिए रहेगा परफेक्ट

 

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कोशिश करें की कपड़े जितना हो सके हल्के रंग के पहने और हल्के भी हों. जीन्स अगर गरमी में कम पहने तो ज्यादा अच्छा रहेगा. जितना हो सके कौटन फैब्रिक और चिकन की कुर्तियां पहनें, बहुत चलन है इसका. आजकल फ्रौक की तरह दिखने वाली कुरती भी खूब चलन में हैं जो बिल्कुल अलग लुक देती हैं साथ जंप सूट का भी फैशन आजकल खूब चला है. आजकल प्रिंटेड कपड़ो का खूब चलन हैं, ज्यादातर युवतियां हल्के प्रिंटेड वाले कपड़े पहनती हैं. गरमी में शार्ट्स का खूब चलन है.. ये जितने आरामदायक होते हैं उतने ही ट्रेंडी भी होते हैं. जितना नेचुरल फेबरिक होगा उतना ही आपको आराम रहेगा… शार्ट स्कर्ट भी वियर कर सकते हैं जो क्लासी लुक देने के साथ ही आरामदायक भी होते हैं. भड़कीले रंग के कपड़ों को अवौयड करें.

ज्वैलरी का रखें खास ख्याल

अगर ज्वैलरी की बात करें तो जितना हो सके ज्वेलरी कम कैरी करें. इयरिंग्स छोटे पहनें, हांथों में एक नार्मल रिंग और घड़ी पहनें जो आपको ग्लैमरस लुक देगा. आजकल मार्केट में गरमी के हिसाब से बहुत से नए एक्सेसरीज आ जाते हैं जो ग्लैमरस दिखने में मददगार होते हैं.

हैट्स का है फैशन

 

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☀️?

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कई तरह के हैट मार्केट में आ जाते हैं जो फैशनेबल होने के साथ-साथ आपको इस चिलचिलाती धूप से भी बचाते हैं. अपनी ड्रेस से मैच करता हुआ हैट आप लगा सकती हैं.

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स्कार्फ ट्राय करना न भूलें

 

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?gelato date with the youngest sister ?‍??

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कई बार नए और सुंदर दिखने वाले स्कार्फ भी मार्केट में मिलते हैं जो फैशनेबल और ग्लैमरस लुक देते हैं. इसको आप गले में अलग-अलग तरीके से कैरी कर सकती हैं.

सनग्लासेस रहेगा परफेक्ट औप्शन

 

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कई तरह के चश्में मार्केट में उपल्बध होते हैं जिनकों वियर करने पर ग्लैमरेस के साथ-साथ आपकी आंखों की सुरक्षा भी होती है.इसमें आपर क्लासी दिख सकती हैं.

फुटवियर का रखें ध्यान

 

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? @urvashijoneja @varnikaaroraofficial

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ड्रेस से मैच करते हुए नए-नए तरीके के फुटवियर भी आपके लुक और सेक्सी बना देते हैं. हर मौसम में हर साल ट्रेंड के हिसाब से नए फुटवियर मार्केट में उपलब्ध होते हैं.

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हैंड बैग भी करें ट्राय

 

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Sweater weather is here! #AlmostDecember ❄️ picture credits @voompla

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नए-नए हैंड बैग भी आजकल खूब चलन में हैं जिसको लेने पर आपका लुक ग्लैमरस हो जाता है और लोगों को देखने में भी अच्छा लगता है. साथ ही क्लासी लुक भी देता है.

5 टिप्स: इन तरीकों से बनाए रखे लौन्ग-डिस्टेन्स रिलेशनशिप में करीबियां

अक्सर ऐसा होता है की आप अपने पार्टनर के साथ रहना चाहते हैं पर पढ़ाई, जॉब या किसी और मजबूरी के कारण आप ऐसा नहीं कर पाते. ये दूरी आपके रिश्ते में दूरी ना बना पाए इस बात पर आपको ध्यान देना चाहिए. वो लोग जो लौन्ग-डिस्टेन्स रिलेशनशिप में हैं वो भी अपने रिश्ते का आनंद उठा सकते हैं. रात-रात भर चैट करना या बहुत दिन के बाद मिलना भी रोमांटिक हो सकता है. अगर आपके साथ भी यहीं स्थिति है और आप परेशान हैं कि रिश्ते को कैसे बना के रखें कि दूरियां ना आएं तो ये 5 टिप्स आपकी मदद कर सकते हैं.

  1. रोजाना करे बात….

अगर आप अपने रिश्ते को टूटने नहीं देना चाहते हैं तो आप हमेशा एक-दूसरे से संपर्क में रहें. आप अपने साथी से हर रोज बात करें चाहे मैसेज के जरिये, वीडियो कॉल के जरिये या फिर फोन के जरिए. जितना हो सके एक-दूसरे से बात करते रहें. बात करने का ये मतलब भी नहीं है कि आप हर मिनट उन्हें फोन करके परेशान करें इससे आपका और उनका दोनों के काम में बाधा पड़ेगी इसलिए जब भी आप दोनों फ्री हों तो एक दूसरे से बात करके खुश रहें.

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2. समय-समय पर मिलते रहें…

लौन्ग-डिस्टेन्स रिलेशनशिप में ऐसा होता है कि बहुत समय तक आपका मिलना नहीं हो पाता है. समय-समय पर मिलने कि योजना बनाते रहें और ध्यान रहे कि जब भी मिले तो कुछ नया करें या फिर कुछ अच्छा सरप्राइज दें जिससे आपका पार्टनर खुश हो जाएं. किसी अच्छी जगह पर जाएं और खूबसूरत पल साथ में बिताए जो आपके दूर होने पर भी याद आए.

3. हर बात शेयर करें…

दिनभर में आपने क्या किया, वो शेयर करें और अपने साथी से भी पूछें. इससे आप अपने साथी के साथ होने का एहसास कर पाएंगे. छोटी-छोटी बातें शेयर करना भी बहुत अच्छा है इससे आप अपने पार्टनर को ये एहसास दिलाते हैं कि आप उनके लिए कितने जरूरी हैं. अगर आपके पास समय नहीं है फोन पर बात करने का तो ईमेल या मैसेज क जरिये अपनी बातों को शेयर करें.

4. मुश्किल समय में साथ दें…

अगर आपको पता है कि आपका पार्टनर परेशान है तो आप ऐसा कुछ करें कि उससे उनकी परेशानी कम हो जाए और वो थोड़ा रिलैक्स हो जाए. ऐसे समय में आपका उनको समझना बहुत जरूरी है. अगर आप पार्टनर कि परेशानी में साथ नहीं देंगे तो धीरे-धीरे वो अपनी परेशानी शेयर करना भी बंद कर देंगे. उन्हें लगेगा कि वो अकेले हैं इसलिए उन्हें ऐसा महसूस कराएं कि आप उनके साथ हैं.

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5. भरोसा बनाए रखें…

एक रिश्ते में भरोसे का होना बहुत जरूरी है. अगर आपके रिश्ते में भरोसा न हो तो वो रिश्ता किसी काम का नहीं होता है. अगर आपसे कभी कोई गलती हो भी जाए तो भी आप हिम्मत करके अपने पार्टनर को सब सच बता दें. थोड़ी देर के लिए उन्हें बुरा जरूर लगेगा पर भरोसा नहीं टूटेगा. हर समय आप अपने पार्टनर के बारे में पता नहीं करते रहें, कि वह कहां है, किसके साथ है, कॉल क्यों नहीं कर रहा या कुछ और भी. ऐसा करने से आप अपने पार्टनर के नजदीक जाने के बजाय और दूर हो जाएंगे.

प्यार को प्यार ही रहने दो : भाग-4

‘‘अरे, यह क्या हो रहा है तुम्हें? पसीना पोंछ लो, आराम से बैठो, फिर बताती हूं.‘‘

रजत के दिल का हाल उस के चेहरे पर झलकने लगा. अपने दिल को बमुश्किल थामे वह श्वेता के मन की बात सुनने बैठ गया. पर फिर जो श्वेता ने बताया, उसे सुन कर रजत का दिल छन्न से बिखर कर रह गया था.

‘‘मेरा एक बौयफ्रैंड है, जो जयपुर में रहता है. हम दोनों औरकुट के जरीए मिले और हमें प्यार हो गया. मुझे नहीं पता कैसे. हम आज तक एकदूसरे से मिले भी नहीं हैं. पर मेरा दिल जानता है कि मैं उस के बिना नहीं जी सकती…‘‘ आगे न जाने क्याक्या कहती गई श्वेता, लेकिन रजत के कानों ने सुनना बंद कर दिया था.

रजत का चेहरा मलिन हो उठा, मानो चेहरे पर दोपहरी की साएंसाएं में लिपटा सूनापन और वीराना छा गया हो. वह भीतर ही भीतर सुलगने लगा. मगर शायद प्यार आप को बेहतरीन अभिनय करना भी सिखा देता है.

श्वेता की बात पर पूरा ध्यान देते हुए, चेहरे पर मुसकान लिए कोई नहीं बता सकता था कि अंदर ही अंदर रजत कितना टूट रहा था. लेकिन प्यार में पड़े किसी मूर्ख की तरह ऊपर से यही बोलता रहा, ‘‘तुम्हें मुझ से जो मदद चाहिए, मैं करूंगा. आखिर तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है. हम दोस्त जो हैं.‘‘

लेकिन रजत का दिल घायल हो चुका था. कालेज पूरा होतेहोते रजत ने श्वेता से काफी दूरी बना ली. करता भी क्या, उस का दिल हर बार उसे देख मचल उठता. हर बार मचलते दिल को संभालना कोई हंसीखेल नहीं. कालेज के बाद दोनों भिन्न शहरों में आगे की शिक्षा प्राप्त करने चले गए.

अलगअलग शहरों में दोनों की डिजिटल दोस्ती कायम रही. श्वेता के जयपुर वाले अफेयर को बचपन की भटकन की संज्ञा दे, रजत ने एक बार फिर प्रयास करने का निर्णय किया. परंतु इस बार वह खुद को ‘फ्रैंडजोन‘ होने से बचाना चाहता था, सो इस बार उस ने सोशल मीडिया के अपने अकाउंट पर श्वेता के साथ फ्लर्टिंग से शुरुआत की.

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ऐसा देख उस के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब दूसरी ओर बैठी श्वेता ने उस की बातों का बुरा नहीं माना, बल्कि कभीकभी उसे यों लगता जैसे श्वेता भी ऐसा ही चाहती है. वह भी हंसीमजाक से उस की फ्लर्टिंग का जवाब देती.

रजत अब अपने और श्वेता के रिश्ते को अगले कदम तक पहुंचाना चाहता था, किंतु श्वेता अकसर उसे ‘दोस्त‘ या ‘बडी‘ कह कर पुकारा करती. फिर भी श्वेता के दिल में क्या है, इस को ले कर रजत अकसर उलझन में रहता, क्योंकि उस ने क्या खाया, कब खाया, कितना सोया, पढ़ाई कर ली या नहीं आदि प्रश्नों से श्वेता उसे बमबार्ड करती रहती. इस का निष्कर्ष उस का मन यही लगाता कि श्वेता भी उस की ओर आकर्षित है. शायद यह प्यार एकतरफा नहीं.

रजत इस रिश्ते को आगे बढ़ाने के ख्वाब सजा ही रहा था कि एक दिन श्वेता ने उसे बताया कि उस की शादी होने वाली है. उस ने बताया कि उस के परिवार वालों ने उस के लिए एक लड़का देखा है और अगले साए में उस की शादी कर दी जाएगी.

एक बार फिर रजत का दिल टूटा था, वह भी उसी लड़की के हाथों. इस बार रजत खुद को संभालने में स्वयं को विफल पाने लगा. उस ने ठान लिया था कि अब वह श्वेता से कोई सरोकार नहीं रखेगा.

अगर श्वेता उस की हो गई होती, तो उस की राह में वह असंभव को भी संभव बना देता. उस को दुनिया की हर खुशी देता, चाहे इस के लिए उसे पूरे संसार से लोहा लेना पड़े. प्यार ने उसे एक लड़के से एक पुरुष में तबदील कर दिया था.

एक पुरुष के लिए उस का पहला प्यार अविस्मरणीय, अतुलनीय होता है. एक प्रेमी अपनी महबूबा को वह स्थान देता है, जो उस ने आज तक किसी को नहीं दिया, शायद अपने परिवार और अपने दोस्तों से भी ऊपर. उस के लिए प्यार स्वार्थरहित व शर्तरहित होता है.

उसे आज भी याद है, स्कूल में उस के दोस्तों ने उसे समझाया था, ‘‘अरे यार, किसी पर इतना भी फिदा ना हो जा कि उस के परे दुनिया ही ना रहे. संसार में कुछ भी स्थायी नहीं. चेंज इज द ओनली कौंस्टेंट. जब तक वह तुम्हारे पास है उसे प्यार करो, लेकिन जब वह बिछुड़ जाए तो उसे जाने दो.‘‘

हमारे समाज की एक विडंबना यह भी है कि मर्द को दर्द नहीं होता. बेचारा अंदर से कितना भी टूट रहा हो, ऊपर से उसे अपनी मैचोमैन इमेज बना कर रखनी ही पड़ती है. स्वयं को मजबूत और भावनाहीन दिखाना मर्द होने की निशानी बन जाता है.

इसी चक्रव्यूह में फंस कर रजत भी ऊपर से शांत बना रहा. यह तो उस का दिल ही जानता है कि आज भी उस के एटीएम का पिन नंबर श्वेता के जन्म की तारीख है, क्योंकि आज भी वह श्वेता से ही प्यार करता है. जहां भी जाता है लगता है श्वेता उस के साथ है. जबकि एक बार ठान लेने के बाद उस ने कभी श्वेता को ढूंढ़ने की कोशिश नहीं की. वह तो बस अपनी यादों में उस के साए के साथ ही खुश रहा.

शादी भी उस ने परिवार की रजामंदी से कर ली और निरंजना को भी पूरी ईमानदारी से चाहने लगा. श्वेता के प्यार का साया, जो उस के दिल में आज भी लहराता है, वो कभी भी निरंजना के प्रति किसी दुराव का कारण नहीं बना. इस के पीछे का कारण शायद यह है कि कुछ घटनाएं हमारे जीवन को प्रमुख हिस्सों में बांट देती हैं. फिर उन से बाहर निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है.

उस की शादी को पांच साल बीत चुके हैं और श्वेता से दूर हुए लगभग सात साल. लेकिन फिर भी उसे ऐसा लगता है, जैसे कल ही की बात हो. श्वेता की झलक, उस की हंसी, उस का आंखें सिकोड़ना, उस के अपने मन में श्वेता के प्रति पुलकित होती भावनाएं… सबकुछ कल की ही बात लगती है.

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तभी तो आज श्वेता का नाम अपनी नजरों के सामने आने पर उस के मन की आर्द्र पुकार कहने लगी कि यही है, जिस का बायोडाटा उस को चयनित करना है.

अगले कुछ दिनों तक रजत एचआर डिपार्टमैंट के पीछे लगा रहा कि क्यों नहीं वो चयनित प्रत्याशियों का साक्षात्कार करवा रहे. उस की जिद थी कि सारे काम छोड़ कर पहले उस के सचिव पद की नियुक्ति की जाए.

आगे पढें- आजकल घर में भी रजत पहले से अधिक….

घर से कैसे काम करें, जब घर पर हैं आपके बच्चे

-डा. एकता सोनी

लेखक इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल में चीफ क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट हैं.

देश में कोरोना वायरस तेजी से फैलता जा रहा है, ऐसे में ज्यादातर लोगों को औफिस के बजाय घर से ही काम करना पड़ रहा है.

यों घर से काम करना मुश्किल हो सकता है, खासतौर पर तब जब आप को घर से काम करने की आदत न हो. ज्यादातर नियोक्ता इस बात को समझ रहे हैं कि यह मुश्किल समय है और ऐसे में अभिभावकों को, जिन के छोटे बच्चे हैं, उन लोगों को काम करने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

ऐसे में जरूरी है कि आप सकारात्मक सोच रखें और बच्चों के साथ डील करते हुए अपने काम को अच्छी तरह कर सकें.

यहां हम कुछ सुझाव ले कर आए हैं, जिन्हें अपना कर आप घर से काम को आसान बना सकते हैं :

1. एक दिनचर्या बनाएं

आप को अचानक घर में रह कर बच्चों की देखभाल करते हुए घर से काम करना पड़ रहा है, ऐसे में दिनभर आप समझ नहीं पाते कि कब और कौन सा काम करें. इसलिए जरूरी है कि आप एक दिनचर्या बनाएं.

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अगर आप के बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं, तो हो सकता हे कि वे औनलाइन क्लासेज में व्यस्त हों. इसलिए उन के लिए घर पर ही पढ़ाई की उचित व्यवस्था करें. इस से वे दिन में कुछ समय व्यस्त भी रहेंगे और पढ़ाई में पीछे भी नहीं छूट पाएंगे. उन्हें बताएं कि उन्हें रोज क्या पढ़ना है और क्या करना है.

2. योजना सोचसमझ कर बनाएं

इस बात की संभावना है कि आप को ऐसे काम सौंपे जाएं, जिस में बहुत ज्यादा एकाग्रता की जरूरत है, जैसे ई मेल का जवाब देना या क्लाइंट अथवा वैंडर के साथ फौलोअप करना.

सब से मुश्किल काम की योजना उस समय बनाएं जब आप के बच्चे व्यस्त हों. जैसे जब वे औनलाईन क्लास में हों या अपना काम कर रहे हों. इस समय के लिए अपनी प्राथमिकताएं तय करें. अगर आप का बच्चा बहुत छोटा है तो जिस समय वह सो रहा हो उस समय जरूरी काम करें.

3. बच्चों के साथ एक ब्रैक लें

अगर आप को लगता है कि घर से काम करना बहुत मुश्किल हो रहा है, तो सोचें कि आप के बच्चे कैसा महसूस करते हैं. एक ब्रैक ले कर बच्चे के साथ थोड़ा समय बिताएं. यह आप के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा साबित होगा. साथ ही इस से बच्चे बोर भी नहीं होंगे. आप के साथ कुछ समय बिताने के बाद वे कुछ समय तक अपनेआप में व्यस्त रहेंगे.

4. बच्चों को नई चीजें सीखने का मौका दें

मौजूदा स्थिति निश्चित रूप से भय का माहौल पैदा कर रही है. लेकिन आप आसानी से इस मुश्किल समय को बिता सकते हैं. आप अपना काम करते हुए अपने बच्चों को कुछ रचनात्मक चीजें करने के लिए प्रोत्साहित करें. बच्चे खाली बैठ कर बोर हों, इस के बजाय उन्हें कुछ नया करने के लिए कहें. जैसे आप बच्चों को औनलाईन कोडिंग क्लास में शामिल होने या लर्न टू रीड प्रोग्राम डाउनलोड करने के लिए कह सकते हैं. बच्चे जितना ज्यादा व्यस्त रहेंगे, उतना ही आप अपने काम को बेहतर तरीके से कर पाएंगे.

अगर आप अपना काम रात तक पूरा नहीं कर पाए हैं तो रात में इसे पूरा करें. हो सकता है कि रात को 8 से 9 के बीच आप काम न करना चाहें, लेकिन अगर आप दिन में अपना काम पूरा नहीं कर पाए हैं तो आप को रात को इसे पूरा कर लेना चाहिए. इस से आप अगले दिन के लिए बेहतर योजना बना सकते हैं. रात में काम पूरा करने से अगले दिन का तनाव कुछ कम हो जाएगा.

5. वर्कस्पेस तय करें

घर में अपने लिए कोई निर्धारित वर्कस्पेस बनाएं जहां आप आराम से काम कर सकें. इस के लिए आप कोई डैस्क या अस्थायी कार्ड टेबल चुन सकते हैं.

जब भी आप यहां बैठे होंगे तो आप के बच्चों को लगेगा कि आप काम में व्यस्त हैं और वे आप को बेवजह परेशान नहीं करेंगे.

हालांकि आप किचन का काम करते हुए बच्चे को स्कूल वर्क में मदद कर सकते हैं. अगर एक ही परिवार में 2 लोग घर से काम कर कर रहें तो आपस में जिम्मेदारियां बांट लें.

6. रचनात्मक बनें

बच्चों को पजल्स या क्राफ्ट वर्क में व्यस्त रखने की कोशिश करें. आप उन्हें लैगोज, बोर्डगेम, कार, डौल आदि उपलब्ध करा सकते हैं.

इस समय कई लेखक, संगीतज्ञ और अध्यापक निशुल्क औनलाईन कंटैंट उपलब्ध करा रहे हैं. आप बच्चों को इन रचनात्मक चीजों के साथ व्यस्त कर सकते हैं.

उन चीजों की सूची बना लें कि जब आप के बच्चे बोर होंगे तो उन्हें क्या करने के लिए कहेंगे.

किसी एक ही बात पर अटक न जाएं.
गलती किसी से भी हो सकती है. ऐसे में अपना धैर्य न खोएं, इस से बच्चे तर्क में पड़ कर नियमों को तोड़ेंगे. इस समय चीजें थोड़ी मुश्किल जरूर हैं. बच्चे ऐसी स्थिति से कभी नहीं गुजरे हैं. इसलिए हर बात पर बहुत ज्यादा सख्ती न बरतें.

7. अपने साथी से बात करें

अपने साथी से बच्चों के बारे में बातचीत करें. अपनी उम्मीदों और जरूरतों के बारे में बात करें.
उदाहरण के लिए अगर आप को मुश्किल काम करना है, आप के पास समय बहुत कम है, तो अपने साथी से कहें कि कुछ देर के लिए बच्चों को कमरे से बाहर किसी दूसरे कमरे में ले जाएं.

किसी दिन आप के पास काम कम हो तो बच्चों के साथ कुछ समय बिताएं. इस से आपके पार्टनर को भी ब्रैक मिलेगा.

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8. बच्चों को समय दें

बच्चों के लिए समय निकालें. आप सुबह के समय 20-30 मिनट निकाल सकते हैं. इस के बाद आप 1-2 घंटे आराम से काम कर सकेंगे.

काम शुरू करने से पहले उन के साथ कुछ कहानियां पढ़ें या कोई लेगो स्ट्रक्चर बनाएं. उन पर पूरा ध्यान दें. आप पाएंगे कि उन के साथ थोड़ा सा समय बिताने के बाद वे खुशी से खेलेंगे और आप अपने काम को आराम से कर सकेंगे.

#coronavirus: अमेरिका की चौधराहट में कंपन

भारतीय कहावत कि, हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे, को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चरितार्थ करते जैसे दिख रहे हैं. ‘अमेरिका फर्स्ट’ नारे के साथ ह्वाइट हाउस में घुसे ट्रंप अब ‘ओनली अमेरिका’ का नारा लगाते प्रतीत हो रहे हैं.

इन नारों के साथ डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका अपने साथी देशों के साथ भी युद्ध सा लड़ रहा है और हर तरह की वार्त्ता में सिर्फ़ अपनी श्रेष्ठता की कोशिश में है. ऐसे में साथी देशों का अपने अगले कदम पर पुनर्विचार करना स्वाभाविक है.

इसी बीच, यूरोपीय संघ के विदेशी मामलों के प्रभारी ने कहा है कि दुनिया पर अमेरिका के एकछत्र राज का अंत निकट आ गया है.

बता दें कि यूरोपीय संघ (यूरोपियन यूनियन) मुख्यतया यूरोप में स्थित 27 देशों का एक राजनीतिक एवं आर्थिक मंच है. इन देशों में आपस में प्रशासकीय साझेदारी होती है जो संघ के कई या सभी राष्ट्रों पर लागू होती है. यूरोपिय संघ सदस्य राष्ट्रों को एकल बाजार के रूप में मान्यता देता है एवं इसका कानून सभी सदस्य राष्ट्रों पर लागू होता है जो सदस्य राष्ट्र के नागरिकों की 4 तरह की स्वतंत्रताएं सुनिश्चित करता है – लोगो, सामान, सेवाएं और पूंजी का स्वतंत्र आदानप्रदान.

इंग्लिश डेली लास एंजिल्स टाइम्स में बर्लिन डेटलाइन से प्रकाशित रिपोर्ट में यूरोपीय संघ के विदेशी मामलों के प्रमुख जोसेप बोरेल ने वीडियो-लिंक के जरिए ऐंबैसेडर्स की एक कौन्फ्रैस को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया पर अमेरिका के राज का समय समाप्त हो रहा है. उन्होंने आगे कहा कि अब चीन के संबंध में उचित व ठोस नीति अपनानी चाहिए. उनका कहना है कि कोरोना, शक्ति के नए काल का आरंभ है जिसमें एशिया विशेषकर चीन, अमेरिका से आगे बढ़ जाएगा.

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गौरतलब है कि जनवरी 2017 में अमेरिका के नए राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से ही अमेरिका में एकपक्षवाद की नीति को बढ़ावा मिला. उन्होंने ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ का नारा लगा कर और अमेरिका के हितों व लक्ष्यों को प्राथमिकता देने के साथ ही यह दावा किया कि वाशिंगटन की ओर से ज़ोरज़बरदस्ती की नीति के साथ सिर्फ़ अपने ही हितों के बारे में सोचने से अमेरिका की ताक़त बढ़ेगी और दुनिया के एकमात्र नेता के रूप में उसकी हैसियत और मज़बूत होगी. हालांकि, उनका यह दावा अब तक सिद्ध नहीं हो सका है. बल्कि, इस बारे में यूरोपीय संघ के विदेशी मामलों के प्रभारी जोज़ेप बोरेल ने कहा कि अमेरिका की चौधराहट अब कांपने लगी है.

बोरेल ने कहा कि विश्लेषक काफ़ी पहले से अमेरिका के नेतृत्व वाली विश्वव्यवस्था की समाप्ति और एशिया की सदी शुरू होने की बात कर रहे थे और अब कोरोना वायरस के फैलाव ने अमेरिका की ताक़त की समाप्ति की रफ़्तार बढ़ा दी है.

सचाई यह है कि कोरोना का फैलाव, जिसकी वजह से दुनिया में काफ़ी अहम व गहरे बदलाव आए हैं, इस प्रक्रिया को गति प्रदान कर रहा है और इस वक़्त अमेरिका को अभूतपूर्व आर्थिक, सामाजिक व चिकित्सा संकटों से जूझना पड़ रहा है. इसी बात को नज़र में रख कर यूरोपीय संघ के विदेशी मामलों के प्रभारी ने कोरोना वायरस के फैलाव को पश्चिम से पूरब की ओर ताक़त के झुकाव की राह में एक अहम मोड़ बताया है और कहा है कि यूरोपीय संघ पर यह तय करने के लिए दबाव बढ़ रहा है कि वह किस तरफ़ रहना चाहता है.

एक अहम बात, जिसकी ओर जोज़ेप बोरेल ने यूरोपीय संघ के विदेशी मामलों के प्रभारी की हैसियत से इशारा किया है, वह वही विषय है जिसके बारे में अंतर्राष्ट्रीय मैदान में अमेरिका के विरोधी व समर्थक बात कर चुके हैं और जो इस समय विश्वमंच पर चर्चा का मुद्दा बन गया है. और वह विषय अमेरिका के पतन का है जिसके आंतरिक व बाहरी कई कारण हैं.

यह सच है कि विदेश नीति के मंच पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बहुत ही व्यवस्थित ढंग से बहुपक्षवाद के सभी आदर्शों व साधनों को तबाह कर दिया है और एकपक्षवाद को बढ़ावा दिया है. वे सिर्फ़ अमेरिका के हितों को ही अहमियत देने पर बल दे रहे हैं जिससे अमेरिका की हैसियत और उसका वैश्विक प्रभाव बजाय बढ़ने के घट गया है. उन्होंने अहम अंतर्राष्ट्रीय समझौतों व संधियों से निकल कर बहुपक्षवाद को रौंदने की कोशिश की है.

ट्रंप की सरकार शुरू में पेरिस के जलवायु समझौते से और फिर ईरान से हुए वैश्विक परमाणु समझौते से निकल गई. ट्रंप की सरकार ने हथियारों पर नियंत्रण के समझौतों से निकलने को भी अपनी कार्यसूची में शामिल कर लिया और साथ ही वह मध्यम दूरी के परमाणु हथियारों के समझौते और इसी तरह ओपन स्काई संधि से निकल चुकी है. वहीं, वह नए स्टार्ट समझौते की समयसीमा न बढ़ाने की कोशिश में है.

इतना ही नहीं, ट्रंप ने अमेरिका को यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार परिषद से भी निकाल लिया है. ट्रंप अमेरिका व यूरोप और अमेरिका व चीन के बीच आर्थिक युद्ध का भी कारण बने हैं. उन्होंने नाटो में अमेरिका के रोल पर भी सवाल उठाए हैं. ट्रंप के इस रवैये से अमेरिका व यूरोप के बीच मतभेद काफ़ी गहरे हो गए हैं. फ़्रांस के विदेश मंत्री लोद्रियान के शब्दों में, “ट्रंप, ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ के नारे के साथ ह्वाइट हाउस पहुंचे थे लेकिन अब उन्होंने अपने पैर ज़्यादा ही पसार लिए हैं और ‘ओनली अमेरिका’ का नारा लगा रहे हैं. इसका मतलब यह है कि अमेरिका, सभी के साथ सत्ता की जंग लड़ रहा है और हर तरह की बातचीत में सिर्फ़ अपनी श्रेष्ठता की कोशिश में है.”

इन हालात में राजनीतिक व सामरिक मोरचे पर रूस और व्यापारिक व आर्थिक मोरचे पर चीन ने ट्रंप के राष्ट्रपतिकाल में विश्वमंच पर अमेरिका के रुख़ की कड़ी आलोचनाएं की हैं. रूस व चीन दोनों अमेरिका के मुख्य प्रतिस्पर्धी हैं. एकपक्षवाद पर जोर देते ट्रंप के अमेरिका, जो अब भी अपनेआप को श्रेष्ठशक्ति और दुनिया का अकेला सुपर पावर समझता है और इसी भ्रम के चलते वैश्विक मामलों में दूसरों के लिए दायित्वों का निर्धारण करता है, के ख़िलाफ़ रूस की आलोचना का सबसे अहम विषय एकपक्षवाद ही है. चीन का भी मानना है कि ट्रंप का एकपक्षवाद आज दुनिया में व्यापारिक युद्ध, आर्थिक प्रगति में कमी और विभिन्न देशों में आर्थिक अराजकता का कारण बना है.

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लब्बोलुआब यह है कि अमेरिका को दुनिया के देश आज सुपरपावर की तरह ट्रीट नहीं कर रहे, वहीं, उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को खब्ती व सनकी की संज्ञाएं दी जा रही हैं. इस सबके जिम्मेदार ट्रंप ही हैं जिन्होंने मनमानी-दर-मनमानी कर अपने मुल्क को तकरीबन दयनीय हालत में पहुंचा दिया है, यानी, हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे वाली स्थिति है.

आत्मनिर्भरता की निर्भरता

देश के केंद्रीय बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), ने केंद्र सरकार और देशवासियों को दुविधा में नहीं रखा है. उसने साफ कह दिया है कि सकल घरेलू उत्पाद (ग्रौस डोमैस्टिक प्रोडक्ट यानी जीडीपी) चालू वर्ष में नैगेटिव में रहेगा. यह देश की सरकार के लिए बेहद चिंता की बात है यदि वह करे तो.

आरबीआई ने तो ऐसा अब कहा है, कई देशी व विदेशी आर्थिक विश्लेषक एजेंसियां इस विषय पर काफी पहले से भारत सरकार को चेताती रही हैं. विपक्षी नेता, कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष व सांसद राहुल गांधी भी धंसती जा रही देश की अर्थव्यवस्था पर सरकार को सलाह देते रहे हैं.

लेकिन, किसी की न सुनने व मन की सुनाने/करने वाले बड़बोले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मनमानी करते रहे. आर्थिक मामलों में भी अपने मन की करते रहे. एक उदाहरण, बिना सलाह के नोटबंदी थोपी गई. जिसका नतीजा नकारात्मक रहा. ताजा उदाहरण, बिना योजना बनाए देश पर लौकडाउन थोप दिया. इसका भी नतीजा नकारात्मक दिख रहा है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तो 26 मई को साफ कह दिया कि नरेंद्र मोदी की लौकडाउन रणनीति फेल हो गई है.

गौरतलब है कि साल 2013 के आखिर में नरेंद्र मोदी भारत से भ्रष्टाचार मिटाने और अच्छे दिन लाने के वादों के साथ एक शक्तिशाली नेता बनकर उभरे जिसकी देश को जरूरत थी. सचाई तो यह थी कि पिछली सरकार के कार्यकाल में जो बैलून फट चुका था उसे दोबारा फुलाने का कोई उपाय नहीं था. भारत की जिस फलतीफूलती अर्थव्यवस्था की पूरी दुनिया में चर्चा हो रही थी वह सिर्फ ऊपर के 20 फीसदी लोगों के लिए थी. बाकी लोगों को पिछले एक दशक के विकास से कुछ नहीं मिला था. दरअसल, पूरे 2000 के दशक के दौरान रोजगार में विकास की दर 1980 और 1990 के दशक से भी कम थी. जिस अर्थव्यवस्था में सिर्फ अमीरों का भला होता हो, वह ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकती.

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नई सरकार बनी, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने. सत्ता में आते ही धर्म को प्राथमिकता में रखती मोदी सरकार आर्थिक फ्रंट पर ढुलमुल व दोषपूर्ण रवैया अख्तियार किए रही. सो, मोदीनौमिक्स का नाकाम होना तय था क्योंकि इस दौरान सबकुछ मोटेतौर पर पिछली यूपीए सरकार के आर्थिक रास्ते पर ही चलता रहा. नोटबंदी और जीएसटी ने देश के मध्यवर्ग के लिए जिंदगी और भी मुश्किल कर दी. मोदी सरकार का ध्यान गरीबों को आर्थिक सहायता देकर वोट जीतने पर रहा तो इससे सिर्फ इतना फायदा हुआ कि जो लोग अर्थव्यवस्था के हाशिए पर चले गए थे उनकी हालत जरा सी ठीक हुई. लेकिन गरीब लोगों की खपत का स्तर इतना कम रहा कि सरकार के खर्च के बावजूद अर्थव्यवस्था में मांग को नहीं बढ़ाया जा सका.

सरकार के कान अब खड़े हुए हैं. वह जानती है कि देश की अर्थव्यवस्था बेहद नाजुक मोड़ पर पहुंच चुकी है. इस आर्थिक संकट से निकलने का दीर्घकालिक समाधान है देश की संपदा का पुनर्वितरण, उत्पादन की प्राथमिकता में बदलाव और 20 फीसदी से ऊपर की आबादी में खपत की बढ़ोतरी.

मध्यवर्ग के लिए यह बुरी खबर है. पिछले एक दशक से यह वर्ग कभीकभार नजर आई उम्मीदों के बीच मुसीबतों को झेल रहा है. अब सरकार कह रही है कि इससे ज्यादा की उम्मीद मत करो. आत्मनिर्भर बनो और खुद से कम सुविधा में जी रहे लोगों की मदद करो.

सवाल है, आत्मनिर्भर कैसे बनें ? सरकार ने अपने तरीके से इसका इलाज बता दिया है – कर्ज लेकर – उसकी शतप्रतिशत यानी सौफीसदी गारंटी सरकार लेगी. यानी, आत्मनिर्भरता की निर्भरता कर्ज पर टिकी है.

सरकार की तरफ से आज कारोबारियों और उपभोक्ताओं को कर्ज लेकर खुद को बचाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. लेकिन, जब कर्ज चुकाने का कोई उपाय न दिख रहा हो, तो कर्ज लेगा कौन? ऐसा सिर्फ वे ही कर सकते हैं जो बेहद आतुर हैं या वे जो कर्ज चुकाने की कोई मंशा ही नहीं रखते. बहरहाल, सरकार की गारंटी की शह पर बैंक ऐसे लोगों को भी कर्ज देगा जिन्हें उधार देने में उसे खतरा होगा. और उनकी गलती का नतीजा भुगतेंगे मध्यवर्ग के वे लोग जो टैक्स अदा करते हैं.

बैंकों को कर्ज न चुकाए जाने का बोझ आखिरकार देश के मध्यवर्ग के कंधों पर भी आएगा, जिन्हें न तो सरकार से सब्सिडी मिलेगी और न ही टैक्स में छूट. इसलिए मध्यवर्ग अच्छे दिन की नहीं, बल्कि और बुरे दिन की ही उम्मीद रखे. दरअसल, बैंकों को कर्ज न चुकाए जाने की स्थिति में उसकी भरपाई के लिए सरकार टैक्स की दरों में बढ़ोतरी कर सकती है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दिल्ली में बताया कि बैंकों को थ्री-सी नाम से चर्चित जांच एजेंसियों सीबीआई, सीवीसी और सीएजी के डर के बिना अच्छे कर्जदारों को स्वचालित रूप से कर्ज देने के लिए कहा गया है. उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों व प्रबंध निदेशकों के साथ बैठक में स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि बैंकों को ऋण देने से डरना नहीं चाहिए, क्योंकि सरकार की ओर से 100 प्रतिशत गारंटी दी जा रही है.

दरअसल, यह कहा जाता रहा है कि बैंकिंग क्षेत्र में थ्री-सी यानी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) द्वारा अनुचित उत्पीड़न की आशंका के कारण निर्णय प्रभावित हो रहे हैं.

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सीतारमण ने कहा, ”कल, मैंने दोहराया कि अगर कोई निर्णय गलत हो जाता है और कोई नुकसान होता है, तो सरकार ने 100 प्रतिशत गारंटी दी है. यह व्यक्तिगत अधिकारी और बैंक के खिलाफ नहीं जाने वाला है. सो, बिना किसी डर के उन्हें इस स्वचालित मार्ग को इस अर्थ में अपनाना चाहिए कि सभी पात्र लोगों को अतिरिक्त ऋण और अतिरिक्त कार्यशील पूंजी उपलब्ध हो.”

तो, आत्मनिर्भरता के पीछे सरकार की निर्भरता छिपी है. सरकार आत्मनिर्भरता पर निर्भर दिख रही है. उसकी मंशा है कि लोग आत्मनिर्भर बन जाएं चाहे कर्ज लेकर ही सही. कर्जदार कर्ज न चुका पाएंगे, तो सरकार टैक्स बढ़ा कर टैक्सदाता मध्यवर्ग से वसूल लेगी ही.

प्यार को प्यार ही रहने दो : भाग-2

कालेज का आखरी साल आ गया.  ‘‘अगर अभी नहीं बोली तो कब बोलेगी?‘‘ निरंजना की अंतरात्मा उसे धिक्कारती. उस के प्रति उत्तर में सब से पहले निरंजना ने अपनी सीट बदली, और उस के ठीक पीछे वाली सीट पर बैठने लगी.

उस दिन शुक्रवार था. दोपहर की क्लास के बाद वह अपने सहपाठी से बोला, ‘‘नमाज पढ़ कर आता हूं.‘‘

इतना कह कर वह चला गया. निरंजना ने जो सुना, उस के बाद डर के मारे उस की घिग्घी बंध गई. दिमाग में हजारों विचारों के घोड़े दौड़ने लगे. कभी मां कहतीं, ‘जल्दी से जल्दी इस की शादी कर दो,‘ तो कभी पिता धर्म का वास्ता दे कर कहते, ‘कोई और नहीं मिला था तुझे?‘

लेकिन, इस बीच अपने अंतर्मुखी चोले को उतार निरंजना खुद कहती, ‘मैं नहीं मानती धर्म और जाति को. यह तो इनसानों की बनाई हुई बेड़ियां हैं. मैं केवल अपने दिल की बात सुनूंगी. मैं पीछे नहीं हटूंगी.‘

सपनों में इतना कहना है तो जब असल जिंदगी में बात बाहर आएगी, तब क्या होगा.

खैर, निरंजना केवल सपनों से डरना नहीं चाहती थी. धर्म की इस मोटी मजबूत दीवार के बावजूद उस ने नसीम से मित्रता कर ली.

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नसीम के अनेक दोस्तों में अब निरंजना का भी नाम जुड़ चुका था. अब निरंजना का उद्देश्य था कि नसीम के मन में अपने लिए प्यार की लौ जलाना.

जो भावना वह नसीम के लिए रखती थी, उसी का सिला यदि दूसरी तरफ से नहीं मिला तो मिलन पूरा कैसे होगा?

आजकल निरंजना इसी उधेड़बुन में रहने लगी थी. नसीम के मन में प्यार जब हिलोरे लेगा तब लेगा, लेकिन निरंजना का मन उसे देख कर ही बागबाग हो उठता. उस के दिल ने भविष्य को ले कर न जाने कितने सुनहरे सपने सजा लिए, जिन में वह थी और उस का नसीम था.

पहले प्यार को दिल कभी नहीं भूलता. संभवतः उसे याद करते रहने में भी कोई बुराई नहीं है. सच्चा प्यार ना कभी कम होता है और ना मरता है. वह तो बस समय की गर्त में नीचे, कहीं नीचे, दिल की सतहों में दफन हो कर रह जाता है. लेकिन वह बंधन, जो पहले प्यार का दिल से होता है, उस गिरह को खोल पाना शायद मुमकिन नहीं.

पहले प्यार की याद आती है, लेकिन एक प्रसन्नता भरी लहर की तरह, न कि मायूसी भरी तरंग बन कर. पहले प्यार की याद में यदि मिलन की आशा नहीं, तो छूट जाने की निराशा भी नहीं. वह अपनेआप में पर्याप्त है दिल में खुशियां भर देने के लिए. तभी तो आज निरंजना के दिल में मीठी यादें एक बार फिर अंगड़ाई ले रही थीं. उन्हीं यादों को सीने से लगाए निरंजना नींद की आगोश में समा गई.

‘‘आज मीटिंग है दफ्तर में, इसलिए थोड़ा जल्दी निकलूंगा,‘‘ कहते हुए रजत अखबार की सुर्खियों में खो गया.

‘‘ठीक है, जल्दी नाश्ता तैयार कर देती हूं,‘‘ निरंजना किचन की ओर बढ़ गई. दोनों की गृहस्थी में वह सब था, जो एक आदर्श युगल जोड़े में होना चाहिए – एकदूसरे के प्रति प्यार, सम्मान व विश्वास.

रजत और निरंजना की शादी को पांच साल बीत चुके हैं और इन पांच सालों में दोनों ने एकदूसरे को अच्छी तरह समझ लिया है और एकदूसरे की खूबियों व कमियों के साथ स्वीकार लिया है. तभी तो दोनों इतने खुश रहते हैं. दोनों की ही माताएं अब अपनी गोद में एक नन्हे को खिलाने की चाह प्रकट करती रहती हैं, लेकिन यह इन दोनों की समझदारी है कि यह अपनी जिंदगी के निर्णय अपने हिसाब से करते हैं.

शादी के समय ही इन्होंने यह सोच लिया था कि परिवार आगे तभी बढ़ाएंगे जब हम चाहेंगे, ना कि जब सामाजिक दबाव पड़ने लगेगा.

आज निरंजना ने नाश्ते में ब्रेड पकोड़े बनाए. नसीम को ब्रेड पकोड़े बहुत पसंद थे. जब कभी उस का दिल नसीम को याद करता है, वह उस की पसंद का खाना बना कर रजत को खिलाती है. और उस की आंखें रजत के रूप में नसीम को बैठा पाती हैं.

निरंजना का मन इस भावना को किसी बेवफाई के रूप में नहीं देखता. वह तो पूरी तरह रजत की है. बस, दिल का एक टुकड़ा है, जो अभी भी नसीम के नाम पर धड़कता है. उस ने कई बार स्वयं से यह प्रश्न भी किया कि ऐसा क्यों?

पहला प्यार शायद इसलिए भी नहीं भूलता, क्योंकि यही वह इनसान है जिस ने आप के दिल के कोरे कागज पर पहला हर्फ लिखा. उस के बाद तो इस दिल के कागज पर जो भी कुछ लिखा गया, उस ने कहानी को आगे ही बढ़ाया, शुरुआत नहीं की. दिल का जो टुकड़ा पहले प्यार में पड़ा वह मासूम था, अनजाना था, अनभिज्ञ था. भविष्य में यह दिल जिस के भी पास जाए, उस पर एक छाप लग चुकी होती है.

पहला प्यार, पहला स्पर्श, पहला चुंबन… वह तारों को गिनना, वो सपनों में मुसकराना, वह प्रीतम की याद आने पर आंखों का स्वतः आर्द्र हो उठना… दिल पर पहली दस्तक की बात ही कुछ और है. उस के बाद तो जो हुआ, वह एक अनुभवी दिल पर गुजरने वाले तजरबे की तरह है.

रजत के औफिस चले जाने के बाद निरंजना ने घर का कामकाज निबटाया, फिर नहाधो कर हाथों में क्रीम लगाते हुए जब वह ड्रेसिंग टेबल के आईने में खुद को निहार रही थी, तो अचानक उस की उंगलियां शादी की अंगूठियों में घूमने लगीं.

कुछ याद करते हुए वह फौरन अपनी अलमारी की ओर लपकी. अपने लौकर में से उस ने एक चांदी का छल्ला निकाला, जिस पर हरा पत्थर बखूबी खिल रहा था. अनायास ही वह यह धुन गुनगुनाने लगी, ‘‘मैं ता कोल तेरे रहना… ‘‘

यही वह अंगूठी थी, जो नसीम ने निरंजना को अपने प्यार का इजहार करते हुए दी थी. उस दिन निरंजना के पैर जमीन पर नहीं पड़े थे. शायद उड़ ही रही थी वह.

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इस बार जब वह होस्टल की छुट्टियों में घर जाएगी, तो अपने मम्मीपापा से नसीम के बारे में बात करेगी. यही वादा नसीम ने भी उसे दिया था. दोनों साथसाथ समय गुजारते और भविष्य के सपने संजोते. कभी यह सोचते कि किस शहर में अपना घर बनाएंगे, तो कभी यह सोचते कि बच्चों के नाम क्या होंगे.

आगे पढ़ें- दोनों ने अपनेअपने धर्मों को निभाते हुए…

Menstrual Hygiene Day: टैम्पोन और मैंस्ट्रुअल कप

टैम्पोन और मासिक धर्म कप को “स्त्री स्वच्छता उत्पाद” में ही गिना जाता है. पीरियड्स के दौरान वैजाइना से निकलने वाले रक्त और टिश्यू को सोखने या इकट्ठा करने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता है .

टैम्पोन और मैन्सट्रुअल कप क्या हैं?

टैम्पोन और मैन्सट्रुअल कप आपको सामान्य जीवन का अनुभव कराते हैं. टैम्पोन कॉटन से बने छोटे प्लग होते हैं, जो आपकी वैजाइना के अंदर फिट होते हैं और पीरियड में आने वाले खून को सोखते हैं. कुछ टैम्पोन ऐप्लिकेटर के साथ आते हैं जो इसे वैजाइना में डालने में मदद करते हैं. टैम्पोन के अंत में एक स्ट्रिंग जुड़ी होती है, जिससे आप उन्हें आसानी से खींच सकते हैं.

मैंस्ट्रुअल कप छोटे घंटी या कटोरे के आकार के होते हैं और वे रबड़, सिलिकॉन या नरम प्लास्टिक से बने होते हैं. वजाइना के अंदर कप को पहना जाता हैं और यह पीरियड में निकले रक्त को एकत्र कर लेता है . ज्यादातर कप दोबारा उपयोग में लाए जा सकते हैं. ज़रुरत के हिसाब से आपको इसकी आवश्यकता होती है. आवश्यकता के बाद इसे धो लें और फिर से उपयोग करें. अन्य कप डिस्पोजेबल होते हैं और आप इन्हें एक बार या एक पीरियड चक्र के बाद फेंक सकते हैं.

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टैम्पोन का उपयोग कैसे करें ?

टैम्पोन कईं तरह से उपलब्ध हैं, जैसे – लाइट, रेगुलर और सुपर . कुछ टैम्पोन एप्लीकेटर्स के साथ आते हैं – कार्डबोर्ड या प्लास्टिक से बनी छोटी स्टिक्स, जो वजाइना में टैम्पोन डालने में मदद करती हैं और कुछ टैम्पोन के पास एप्लीकेटर नहीं होता, इसलिए आप उन्हें अपनी उंगली से डालते हैं.

इसके बाद अपने हाथ धोएं और एक आरामदायक स्थिति में पहुंचें. आप स्क्वाट कर सकते हैं, एक पैर ऊपर रख सकते हैं या अपने घुटनों की मदद से शौचालय में बैठ सकते हैं. ऐप्लिकेटर या अपनी उंगली का उपयोग करके टैम्पोन को अपनी वजाइना में धकेलें, यह भी देखना चाहिए कि आप किस तरह के टैम्पोन का इस्तेमाल करते हैं. यदि आप आराम कर रही हैं तो वैजाइना में टैम्पोन डालना ज्यादा आसान होता है. सुचारू, राउंड एप्लिकेटर के साथ टैम्पोन का उपयोग आसान होता है. आप टैम्पोन या ऐप्लिकेटर की नोक पर थोड़ी चिकनाई भी लगा सकती हैं.

यदि आपको कोई परेशानी हो रही है, तो किसी ऐसे व्यक्ति से पूछें जिस पर आप भरोसा करते हैं (जैसे आपकी माँ, बहन, या कोई अन्य व्यक्ति जिन्होंने पहले कभी टैम्पोन का इस्तेमाल किया है) ताकि वह आपको यह दिखा सकें कि टैम्पोन को वैजाइना में कैसे डाला जाए. रैपर और ऐप्लिकेटर को कूड़ेदान में फेंक दें, उन्हें फ्लश न करें. हर 4 से 8 घंटे में अपना टैम्पोन बदलना सबसे अच्छा है. टैम्पोन लगाने के 8 घंटे बाद ही इसे बदलें .

आप रात भर टैम्पोन पहन सकते हैं, लेकिन इसे सोने से ठीक पहले लगाएं और सुबह उठते ही इसे बदल दें. टैम्पोन में एक छोर होता है जो आपकी वजाइना से बाहर लटका होता है. आप टैम्पोन को धीरे से स्ट्रिंग खींचकर बाहर निकालते हैं . टैम्पोन को बाहर निकालना आसान होता है, जब यह ज्यादा पीरियड फ्लो की वजह से उसे गीला कर देता है . यदि टैम्पोन वजाइना में लंबे समय से है तो यह टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम नामक बीमारी का कारण बन सकता है .

यदि आप टैम्पोन का उपयोग कर रही हैं और आपको उल्टी, तेज बुखार, दस्त, मांसपेशियों में दर्द, गले में खराश, चक्कर आना, बेहोशी या कमजोरी और दाने हो रहे हैं, तो टैम्पोन को बाहर निकालें और अपने गायनाकॉलजिस्ट से संपर्क करें . टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम को रोकने के लिए, आप सबसे कम अवशोषक टैम्पोन का उपयोग कर सकती हैं और अपने टैम्पोन को हर 4 से 8 घंटे या आवश्यकतानुसार बदल सकती हैं . टैम्पोन डालने से आमतौर पर चोट नहीं लगती, लेकिन शुरुआत में प्रैक्टिस करनी पड़ सकती है . जब तक आपको यह पता न चले कि आपके लिए कौन सा टैम्पोन ठीक है, तब तक अलग-अलग प्रकार के टैम्पोन आजमाएं . लेकिन पीरियड खत्म होने पर टैम्पोन न पहनें . यदि टैम्पोन डालना पीड़ादायक हो रहा है, तो इस बारे में डॉक्टर या नर्स से बात करें .

मैन्सट्रुअल कप का उपयोग कैसे करें ?

कईं तरह के कप होते हैं और वह सभी निर्देशों और चित्रों के साथ आते हैं . अपने हाथ धोएं और एक आरामदायक सहज स्थिति में आ जाएं . आप स्क्वाट कर सकते हैं, एक पैर ऊपर रख सकते हैं या अपने घुटनों का सहारा लेकर शौचालय पर बैठ सकते हैं . कप को निचोड़ें या मोड़ें ताकि यह सिकुड़ जाए और इसे अपनी उंगलियों से अपने वजाइना के अंदर करें . अपने कप के साथ आए निर्देशों का उपयोग करके इसे निचोड़ने का सबसे अच्छा तरीका समझें . यदि आप आराम कर रही हैं तो आपकी वैजाइना में कप डालना ज्यादा आसान है .

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कुछ कपों को आपकी वजाइना में, आपके गर्भाशय ग्रीवा के पास ऊंचा करके रखा जाना चाहिए, बाकि आपकी वजाइना के निचले हिस्से में बैठते हैं . यदि आपका कप असहजता पैदा कर रहा है या गलत जगह है, तो इसे बाहर निकालें और फिर से डालने की कोशिश करें . आप मैन्सट्रुअल कप को एक बार में 8 से 12 घंटे तक पहन सकती हैं . कुछ मैन्सट्रुअल कप में थोड़ा सा स्टेम होता है जिसे आप बाहर निकालने के लिए खींचते हैं . रिम के चारों ओर एक उंगली हुक करके, इसे निचोड़कर और इसे बाहर निकालकर हटा दिया जाता है . ज्यादातर कप पुन: प्रयोग किए जा सकते हैं .

इसे टॉयलेट, सिंक या शॉवर की नाली में खाली कर दें और इसे फिर से उपयोग करने से पहले धो लें . यदि आप किसी ऐसी जगह पर हैं जहाँ आप कप नहीं धो सकती हैं, तो बस इसे खाली कर दें और वापस डाल दें . हमेशा अपने कप के पैकेट के साथ आए सफाई और स्टोरेज के निर्देशों का पालन करें . अन्य कप डिस्पोजेबल हैं, आप उन्हें एक उपयोग या एक पीरियड के बाद फेंक दें . इन कपों को रैपर या टॉयलेट पेपर में लपेटें और फेंक दें, टॉयलेट में न बहाएं . कप को डालना सुरक्षित है, लेकिन शुरुआत में थोड़ी प्रैक्टिस की ज़रुरत होती है . अगर कप डालने में पीड़ा का अनुभव कर रहे हैं, तो डॉक्टर या नर्स से परामर्श करें .

यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है कि आप अपनी जीवन शैली के बारे में सोचें कि आपकी ज़रुरतों के लिए सबसे बेहतर क्या होगा .

श्रीजना बगारिया, सह-संस्थापक, पी सेफ से बातचीत पर आधारित..

आर्थिक तंगी के तनाव ने ली एक और टीवी सेलेब की जान, सुसाइड से पहले दर्द किया बयां

कोरोनावायरस लॉकडाउन के बीच बढ़ती आर्थिक तंगी लोगों में मानसिक तनाव पैदा कर रही है, जिसके कारण आम आदमी हो या एक्टिंग की दुनिया में अपना नाम हासिल करने वाले एक्टर भी शामिल हैं. हाल ही में लॉकडाउन में काम न मिलने के कारण मानसिक तनाव से जूझ रहीं टीवी अभिनेत्री प्रेक्षा मेहता ने अपनी जान ले ली है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला….

पंखे से लटककर की आत्महत्या

खबरों की मानें तो, प्रेक्षा लॉकडाउन शुरू होने से पहले ही मुंबई से अपने घर इंदौर लौट गईं थीं, लेकिन मुंबई से जाने से पहले तक उनके पास कोई काम नहीं था. घर पर रहते हुए भी उन्हें बेरोजगारी की समस्या सता रही थी और आखिर में प्रेक्षा ने अपने कमरे में पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली. वहीं आत्महत्या करने से पहले प्रेक्षा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक छोटा सा संदेश छोड़ा था जिसमें लिखा है, ‘सबसे बुरा होता है सपनों का मर जाना’.

 

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Meri Taraf Aata Har Gham Phisal Jaaye Aankhon Mein Tum Ko Bharun Bin Bole Baatein Tumse Karun 🥰

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क्राइम शो में आ चुकी हैं नजर

 

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Hello Guyzz Happy Holi Everyone 🎉 Enjoy My Episode of Crime Patrol Tonight 10:30pm only on SonyTv 😎 Me as Shelly

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25 साल की उम्र में प्रेक्षा टीवी के एपिसोडिक शोज जैसे क्राइम पेट्रोल, मेरी दुर्गा और लाल इश्क में काम कर चुकी थीं. वहीं टीवी ही नहीं बल्कि, प्रेक्षा बौलीवुड एक्टर अक्षय कुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ में भी देखा गया था. इंदौर के बजरंग नगर में प्रेक्षा अपनी फैमिली के साथ रहती थीं. प्रेक्षा के सुसाइड केस के इंचार्ज का कहना है कि प्रेक्षा ने एक सुसाइड नोट तो छोड़ा है लेकिन आत्महत्या का कारण नहीं दिया. फिलहाल छानबीन जारी है.

बता दें, एक्ट्रेस प्रेक्षा से पहले हाल ही में टीवी के एक एक्टर मनमीत ग्रेवाल ने लॉकडाउन से हुए तनाव के कारण घर में ही आत्महत्या कर ली थी. वहीं कोरोनावायरस के खौफ के चलते उनकी वाइफ की मदद के लिए किसी ने भी उनका मदद के लिए हाथ नहीं बढ़ाया.

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जरा सी आजादी: भाग-3

पैनी नजर रखी शुभा ने क्योंकि रसोई में चाकू भी थे. तेज धार चाकू उस ने उठा कर छिपा दिए थे जिस पर नेहा ने आवाज दी. ‘‘दीदी, आप का चाकू आलू तक तो काटता नहीं है, आप इस से काम कैसे करती हैं?’’

‘‘आज बाजार चलेंगे, नेहा. कुछ सामान लाना है. चाकू भी लाने वाले हैं.’’

आधे घंटे के बाद नेहा ने नाश्ता मेज पर सजा कर रख दिया. आलूटमाटर की सब्जी और पूरी. खातेखाते नेहा ने कहा, ‘‘दीदी, आप का घर कितना खुलाखुला है. ऐसा लगता है सांस आती भी है और जाती भी है. मेरे घर में सामान ही इतना है कि…’’

‘‘पुराना सामान निकाल देते हैं. थोड़ा सा बदलाव करते हैं. तुम्हारा घर भी खुलाखुला हो जाएगा. आज बाजार चलते हैं न. चलो, अभी चलें. दोपहर का लंच बाहर ही करेंगे.’’

‘‘कुछ रुपए दिए हैं ब्रजेश ने. अपने लिए जो चाहूं खरीदने को कहा है.’’

‘‘कोई बात नहीं, मेरे पास भी कुछ रुपए हैं. जरूरत पड़ी तो बैंक से निकाल लेंगे. तुम जो चाहो, ले लेना.’’

‘‘अरे नहीं बाबा, मुझे क्या ताजमहल खरीदना है जो इतने रुपए चाहिए. न सोना चाहिए न महंगी साड़ी. कुछ भी भारीभरकम नहीं चाहिए. कुछ हलकाफुलका चाहिए जिस का मेरी छाती पर कोई बोझ न हो.’’

अभियान शुरू किया नेहा की रसोई से. दुनियाजहान के पुराने बरतन, जिन्हें कभी अपना घर बनाने पर निकाल देंगे, पुराना फ्रिज, पुराना टीवी, रेडियो, पुरानी प्रैस, पुराना लोहा, पुरानीपुरानी किताबें, पुराना फर्नीचर, पुराने परदे, पुराने कपड़े, पुरानी तसवीरें, पुरानी साडि़यां, और भी बहुतकुछ था जिसे बदलने की आवश्यकता थी.

‘‘कल जब अपना घर होगा तब ले लेना नया सब.’’

‘‘अपना घर होगा जब रिटायरमैंट होगा और उस में अभी 4 साल पड़े हैं. तब तक तो मन भी मर जाएगा. कल का इंतजार कब तक, दीदी?’’

‘‘कल का इंतजार तुम अपने हाथों समाप्त कर लो, नेहा.’’

‘‘ब्रजेश औफिस के काम से बाहर जाने वाले हैं इस सोमवार, कह रहे हैं मुझे साथ लेते जाएंगे.’’

‘‘तुम वहां क्या करोगी?’’

‘‘क्या करूंगी, होटल में सड़ूंगी और क्या.’’

‘‘तो मत जाओ. मैं कागजकलम देती हूं, सामान की लिस्ट बनाओ जिसे बदलना चाहती हो. वे बाहर रहेंगे तो हम आराम से सफाई अभियान पूरा कर लेंगे.’’

‘‘घर में तांडव हो जाएगा. मेरी इतनी औकात कहां.’’

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‘‘तुम घर की मालकिन हो न. अपनी इच्छा का मान भी करना सीखो. घर के बरतन बदलने में भी तुम ब्रजेशजी का मुंह देखती हो. उन्हें उन के औफिस तक ही रहने दो न.’’

‘‘नहीं रहते न औफिस तक. रसोई के चम्मच तक में उन की मरजी होती है. घर में ऐसा कुहराम मचेगा कि मुझे सांस तक लेना मुश्किल हो जाएगा,’’ खीज पड़ी थी नेहा, ‘‘कल मेरी सास की मरजी थी, अब पति की है. कल बहू की होगी, मेरी मरजी शायद अगले जन्म में होगी.’’

‘‘अगला जन्म किस ने देखा है, पगली. कल क्या होगा कौन जानता है. आज देखो. ब्रजेश को मैं और विजय समझा लेंगे. आज भी शायद विजय ने समझाया होगा.’’

‘‘तो क्या इसीलिए आज बारबार मुझ से कह रहे थे कि मेरा जो जी चाहे मैं करूं, वे मना नहीं करेंगे. कुछ अजीबअजीब सी बातें कर तो रहे थे.’’

‘‘तुम्हारी मरजी की बात अजीबअजीब सी लगी तुम्हें?’’

‘‘जो कभी नहीं हुआ वह एक दिन होने लगे तो अजीब ही लगेगा न.’’

नेहा की बातों में शुभा दिलचस्पी ले रही थी.

‘‘मेरी मरजी, मेरी इच्छा, मेरी सोच, अजीब तो है ही. मेरा घर कहीं नहीं है, दीदी. शादी से पहले अपना घर सजाने का प्रयास करती थी तो मां कहती थीं, अभी पढ़ोलिखो. सजा लेना अपना घर जब अपने घर जाओगी. शादी कर के आई तो ब्रजेश ने ढेर सारी जिम्मेदारियां दिखा दीं. एक बेटी की इच्छा थी, वह भी पूरी नहीं होने दी ब्रजेश ने. पिता की बेटियों को निभातेनिभाते अपनी बेटी के लिए कुछ बचा ही नहीं. अब इस उम्र में कुछ बचा ही नहीं है जिसे कहूं, यह मेरा शौक है. मेरा घर तो सब का घर ही सजाने में कहीं खो गया. बच गया है कबाड़खाना, जिसे हर 3 साल के बाद ब्रजेश ढो कर एक शहर से दूसरे शहर ले जाते हैं.’’

मन भर आया शुभा का.

‘‘मन भर गया है, दीदी. अब कुछ भी अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘चलो, पहले इस कागज पर लिखो तो सही, क्या बदलना चाहती हो. ब्रजेश ने मुझे कहा है न कि मैं तुम्हारी सहायता करूं. वे कुछ कहेंगे तो मुझे बताना. इल्जाम मुझ पर लगा देना, कहना कि मैं ने कहा था बदलने को.’’

सोमवार को ब्रजेश 3 दिन के लिए बाहर गए और सचमुच नेहा को साथ नहीं ले गए. शुभा ने वास्तव में नेहा का घर बदल दिया.

पुराने सारे बरतन निकाल दिए और थोड़े से पैसे और डाल कर रसोई चमचमा गई. 10 हजार रुपए का लोहाकबाड़ बिक गया जिस में नया गैस चूल्हा, माइक्रोवेव आ गया. रद्दी सामान और पुराना फर्नीचर निकाला जिस में छोटा सा कालीन नए परदे और 2 नई चादरें आ गईं.

3 दिन से दोनों रोज बाजार आजा रही थीं और इस बीच शुभा बड़ी गहराई से नेहा में धीरेधीरे जागता उत्साह देख रही थी. उस ने चुनचुन कर अपने घर का सामान खरीदा, कटोरियां, प्लेटें, गिलास, चम्मच, दालों के डब्बे, मसालों की डब्बियां, रंगीन परदे, लुभावना कालीन, सुंदर चादरें, चार चूल्हों वाली गैस, सुंदर फूलों की झालरें, छोटा सा माइक्रोवेव, सुंदर तोरण और बंदनवार.

हर रात या तो शुभा उस के घर सोती थी या उसे अपने घर पर सुलाती थी. घर सज गया नेहा का. बुझीबुझी सी रहने वाली नेहा अब कहीं नहीं थी. मुसकराती, अपना घर सजा कर बारबार खुश होती नेहा थी जिस की दबी हुई छोटीछोटी खुशियां पता नहीं कहांकहां से सिर उठा रही थीं. बहुत छोटीछोटी सी थीं नेहा की खुशियां. बाहर बालकनी में चिडि़यों का घर और उन के खानेपीने के लिए मिट्टी के बरतन, बालकनी में बैठ कर चाय पीने के लिए 4 प्लास्टिक की कुरसियां और मेज.

‘‘दीदी, वे नाराज तो नहीं होंगे न?’’

‘‘उन के लिए भी कुछ ले लो न. कोई शर्ट या टीशर्ट या पाजामाकुरता. कुछ बहू के लिए भी तो लो. बेटी की इच्छा पूरी तो हो चुकी है तुम्हारी. वह तुम्हारी बच्ची है न. उसे भी अच्छा लगेगा जब तुम उस के लिए कुछ लोगी. तुम्हें शौक पूरे करने को कुछ नहीं मिला क्योंकि जिम्मेदारियां थीं. तुम बहू का शौक तो पूरा कर दो. अब क्या जिम्मेदारी है? जो तुम्हें नहीं मिला कम से कम वह अपनी बहू को तो दे दो.’’

‘‘उसे पसंद आएगा, जो मैं लाऊंगी?’’

‘‘क्यों नहीं आएगा. मेरे पास कुछ रुपए हैं. मुझ से ले लो.’’

‘‘अपने हाथ से इतने रुपए मैं ने कभी खर्च ही नहीं किए. अजीब सा लग रहा है. पता नहीं, क्याक्या सुनना पड़ेगा जब ब्रजेश आएंगे. दीदी, आप पास ही रहना जब वे आएंगे.’’

‘‘कितने पैसे खर्च किए हैं तुम ने? कबाड़खाने से ही तो सारे पैसे निकल आए हैं. जो रुपए ब्रजेश दे कर गए थे उस से ब्रजेश के लिए और बच्चों के लिए कुछ ले लो. टीशर्ट और शर्ट खरीद लो, बहू के लिए कुरती ले लो, आजकल लड़कियां जींस के साथ वही तो पहनती हैं.’’

बुधवार की शाम ब्रजेश आने वाले थे. बड़े उत्साह से घर सजाया नेहा ने. चाय के साथ पकौड़ों का सामान तैयार रखा. रात के लिए मटरपनीर और दालमखनी भी रसोई में ढकी रखी थी. शुभा के लिए भी एक प्रयोग था जिस का न जाने क्या नतीजा हो. पराई आग में जलना उस का स्वभाव है. आज पराया सुख उसे सुख देगा या नहीं, इस पर भी वह कहीं न कहीं आश्वस्त नहीं थी. पुरानी आदतें इतनी जल्दी साथ नहीं छोड़तीं, पत्नी को दी गई आजादी कौन जाने ब्रजेश सह पाते हैं या नहीं?

द्वारघंटी बजी और शुभा ने ही दरवाजा खोला. ब्रजेश के साथ शायद बेटा और बहू भी थे. बड़े प्यारे बच्चे थे दोनों. उसे देख दोनों मुसकराए और झट से पैर छूने लगे.

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‘‘आप शुभा आंटी हैं न. पापा ने बताया सब. मम्मी खुश हैं न?’’ बहुत धीरे से बुदबुदाया वह लड़का.

एक ही प्रश्न में ढेर सारे प्रश्न और आंखों में भी बेबसी और डर. कुछ खो देने का डर. मंदमंद मुसकरा पड़ी शुभा. ब्रजेश आंखें फाड़फाड़ कर अपना सुंदर सजा घर देख रहे थे. आभार था जुड़े हाथों में, भीग उठी पलकों में, शायद आत्मग्लानि की पीड़ा थी. ऐसा क्या ताजमहल या कारूं का खजाना मांगा था नेहा ने. छोटीछोटी सी खुशियां ही तो और कुछ अपनी इच्छा से कर पाने की आजादी.

‘‘नेहा, देखो तुम्हारी बेटी आई है,’’ शुभा ने आवाज दी.

पलभर में सारा परिवार एकसाथ हो गया. नेहा भागभाग कर उन के लिए संजोए उपहार ला रही थी. बेटे का सामान, बहू का सामान, ब्रजेश का सामान.

‘‘मम्मी, आप ने घर कितना सुंदर सजाया है. परदे और कालीन दोनों के रंग बहुत प्यारे हैं. अरे, बाहर चिडि़या का घर देखो, पापा. पापा, चाय बाहर बालकनी में पिएंगे. बड़ी अच्छी हवा चल रही है बाहर. पूरा घर कितना खुलाखुला लग रहा है.’’

नेहा की बहू जल्दी से कुरती पहन भी आई, ‘‘मम्मी, देखो कैसी है?’’

‘‘बहुत सुंदर है बच्चे. तुम्हें पसंद आई न?’’

धन्यवाद देने हेतु बहू ने कस कर नेहा के गाल चूम लिए. ब्रजेश मंत्रमुग्ध से खड़े थे. अति स्नेह से उस के सिर पर हाथ रख पूछा, ‘‘अपने लिए क्या लिया तुम ने, नेहा?’’

‘‘अपने लिए?’’ कुछ याद करना चाहा. क्या याद आता, उस ने तो बस घर सजाया था, अपने लिए अलग कुछ लेती तो याद आता न. बस, गरदन हिला कर बता दिया कि अपने लिए कुछ नहीं लिया.

‘‘देखो, मैं लाया हूं.’’

बैग से एक सूती साड़ी निकाली ब्रजेश ने. तांत की क्रीम साड़ी और उस का खूब चौड़ा लाल सुनहरा बौर्डर.

शुभा को याद आया ब्रजेश को सूती साड़ी पहनना पसंद नहीं जबकि नेहा की पहली पसंद है कलफ लगी सूती साड़ी. खुशी से रोने लगी नेहा. ब्रजेश जानबूझ कर 3 दिन के लिए आगरा बेटे के पास चले गए थे. पलपल की खबर विजय और शुभा से ले रहे थे. शुभा की तरफ देख आभार व्यक्त करने को फिर हाथ जोड़ दिए. अफसोस हो रहा था उन्हें. क्यों नहीं समझ पाए वे, खुशी भारी साड़ी या भारी गहने में नहीं, खुशी तो है खुल कर सांस लेने में. छोटीछोटी खुशियां जो वे नेहा को नहीं दे पाए.

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