कोरोना के चक्रव्यूह में ऐसे फंसे फलों के राजा आम

भारत में आम को फलों का राजा कहा जाता है. हम आम के दुनिया में सबसे बड़े उत्पादक देश तो हैं ही, इस राजसी फल के सबसे बडे़ निर्यातक भी हम ही हैं. पिछले साल 25 मई तक भारत करीब 20 हजार टन आमों का निर्यात कर चुका था. इस बार अभी तक आमों का निर्यात 200 टन भी नहीं हुआ और संभव है कि इस साल आम का सीजन चला जाए और दूसरे देशों तक आम पहुंच ही न पाये. क्योंकि फलों के राजा आम कोरोना वायरस के चक्रव्यूह में फंस गये हैं. भारत सरकार के कृषि मंत्रालय का अनुमान है कि इस साल भारत में 2.128 करोड़ टन आमों का उत्पादन होगा, जो हालांकि पिछले साल से थोड़ा कम है. क्योंकि पिछले साल देशभर में 2.137 करोड़ टन आम का उत्पादन हुआ था. देश में करीब 23.09 लाख हेक्टेयर जमीन पर आम की लगभग 1,500 किस्में उगती हैं और सालाना लगभग 50,000 टन आमों का निर्यात होता है.

आजम-यू-समर जैसी आम की दुर्लभ किस्में हर साल हैदराबाद में निजाम के परिवार से इंग्लैंड में क्वीन एलिजाबेथ के लिए भेजी जाती हैं. लेकिन वीआईपी कैटेगिरी का आम सिर्फ आजम-यू-समर ही नहीं है. देश में करीब दो दर्जन ऐसी आम की किस्में हैं, जिनका मुकाबला आम उत्पादन करने वाला कोई दूसरा देश नहीं कर पाता. इनमें आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की एक वीआईपी किस्म मल्लिका, रत्नागिरी का हापुस, तमिलनाडु में नीलम और लखनऊ और उसके आसपास दशहरी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रटौल जैसी आम की किस्में यूरोप और अमरीका से लेकर जापान और दक्षिण कोरिया तक प्रसिद्ध हैं.

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भारत में आम फलों का राजा है. इसकी बादशाहत पर न किसी को शक है और न ही आश्चर्य. आम के लजीज स्वाद के बारे में तमाम विदेशियों ने भी बहुत कुछ कहा है, किसी ने इसे जन्नत का फल, तो किसी ने साक्षात जन्नत की कह दिया है. लेकिन आम के इस तरह बेताज बादशाह होने के बाद भी एक सच्चाई यह भी है कि दुनिया के ग्लोबल विलेज में तब्दील होने के बाद इस बादशाहत को कायम रखना आसान नहीं रहा. क्योंकि 20वीं शताब्दी के मध्यार्ध के बाद फलों की दुनिया में सबसे ज्यादा उन्नति सेब ने की थी. विशेषकर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप में सेब की किस्मों में जबरदस्त बेहतरी और उत्पादन में भारी इजाफा हुआ था. लेकिन हम इस सबसे अनभिज्ञ हिंदुस्तान में आम को ही फलों का राजा कहते रहे. मगर 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हिंदुस्तान के तमाम जुनूनी किसानों ने आम को वाकई फलों का राजा बना दिया. 2016 में आम 176 देशों में निर्यात होने लगा तो यह वास्तव में सबसे ज्यादा देशों को निर्यात होने वाला फल बन गया. आज यह करीब 180 देशों को निर्यात होता है.

वास्तव में आम अकेला वह फल है,जिसकी मुरीद पूरी दुनिया है. क्या उत्तरी गोलार्ध क्या दक्षिणी गोलार्ध. क्या विकसित देश, क्या विकासशील देश. लेकिन आम की जड़ें विशुद्ध भारतीय हैं. अंग्रेजी में आम का नाम मैंगो मलयालम से पड़ा है. मलयालम में आम को मंगा कहा जाता है. गौरतलब है कि वास्कोडिगामा सबसे पहले वर्ष 1498 में केरल के मालाबार तट पर ही पहुंचा था. यहीं पर उसका और उसके जरिये यूरोपीय दुनिया का आम से परिचय हुआ था. इसके बाद ही यूरोप के एक बड़े हिस्से तक आम पहुंचा और मलयाली मंगा, मैंगो बन गया. हालंाकि करीब एक दशक पहले आम की बाजारी ख्याति के लिए काफी खराब साल आये, जब यूरोपीय संघ ने अपने यहां भारतीय आमों पर प्रतिबंध लगा दिया.

ऐसा नहीं है कि दुनिया में आम सिर्फ भारत में ही होता है. लेकिन आम फल कि जो लज्जत है, जिस कारण आम फलों की दुनिया का सिरमौर बना है,उस गुणवत्ता वाला आम सिर्फ भारत में पाया जाता है. इसीलिये दुनिया के बाजार में ब्राजील या दक्षिण अफ्रीका के आम भारतीय आमों के सामने फीके साबित होते है. अमेरिका में जो छिले और कटे हुए आम बिकते हैं वो मैक्सिकन आम होते हैं. लेकिन जो जनरल स्टोर से बड़ी नजाकत से खरीदकर घर लाये जाते हैं, वे भारतीय आम होते हैं. हालांकि यह भी सही है कि कोई आम चाहे मैक्सिको का हो या हैती का उसकी जड़ें तो भारत में ही हैं. इन तमाम देशों तक आम भारत से ही पंहुचा है. लेकिन व्यावसायिक जरूरतों और फायदों के मद्देनजर इन देशों में आम की नस्ल के साथ इतनी छेड़छाड़ हुई है कि अब इनमें उस ओरिजनल आम का स्वाद ही नहीं बचा जो भारतीय आमों में है. इसलिए भारतीय आमों की पूरी दुनिया में कीमत है.

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भारत में पूरे विश्व की कुल पैदावार का तकरीबन 50 से 52 प्रतिशत आम पैदा होता है. लेकिन बीते सालों में कई मौकों पर अमेरिका से लेकर यूरोप और ऑस्ट्रेलिया तक ने भारतीय आमों पर अलग अलग समय पर अपने यहां प्रतिबंध भी लगाया है. तब इन देशों का कहना था कि भारतीय आमों पर कीटनाशकों का छिड़काव बहुत ज्यादा होता है. लेकिन पिछले कुछ साल भारत के आम उत्पादकों के लिए अच्छी खबर लाये थे क्योंकि अब फिर से सभी देशों में भारतीय आम की धाक जम गयी थी, खासकर साल 2017 के बाद. लेकिन इस साल कोरोना ने इस बाजार को एक झटके में खत्म कर दिया. याद रखें दुनिया में भारत को जिन जिन वजहों से जाना जाता है, उनमें- महात्मा गांधी, साधुओं और हाथियों के साथ-साथ आम भी शामिल है.
आम भारत का राष्ट्रीय फल है. हालांकि आम का उत्पादन पाकिस्तान, बंग्लादेश, नेपाल, अमरीका, फिलीपींस, सयुक्त अरब, अमीरात, दक्षिण अफ्रीका, जांबिया, माले, ब्राजील, पेरू, केन्या, जमैका, तंजानिया, मेडागास्कर, हैती, आइवरी कोस्ट, थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका, सहित और भी कई देशों में होता है. लेकिन इन सब देशों के आमों में वो बात नहीं है जो हमारे आम में होती है. जहां तक भारत में आम उगाने वाले प्रांतों का सवाल है तो सबसे ज्यादा आम की खेती उत्तर प्रदेश में होती है. लेकिन कुछ सालों पहले तक उत्पादन सबसे ज्यादा पूर्व आन्ध्र प्रदेश में होता था, जिसमें आज का तेलंगाना भी शामिल था. लेकिन इस समय फिर से उत्पादन की बादशाहत यूपी के पास लौट आयी है.
आम को अगर फलों के राजा होने का मान मिला है तो यूं ही नहीं मिला. आम एक ऐसा फल है जो शायद ही किसी को नापसंद हो. वेदों में आम को विलास का प्रतीक कहा गया है, तो इसका कारण इसका अद्भुत स्वाद है. आम पर हजारों कवितायें लिखी गयी हैं. हजारो कलाकारों ने अलग-अलग ढंग से आम को अपने कैनवास पर उतारा है. देश में आम को लेकर लाखों लोकगीत-लोक कहानियां मौजूद हैं. हिन्दुओं का शायद ही कोई धार्मिक संस्कार हो जिसमें आम की उपस्थिति न हो. शादी-ब्याह, हवन, यज्ञ, पूजा, कथा, त्योहार तथा सभी मंगलकार्यों में आम की लकड़ी, पत्ती, फूल, फल या कोई न कोई हिस्सा इस्तेमाल ही होता है.

आम के कच्चे फल से चटनी, खटाई, अचार, मुरब्बा आदि बनाये जाते हैं तो वहीं पके आमों से आम्र रस के साथ साथ आम का जूस व दर्जनों दूसरे उत्पाद बनाये जाते हैं. इन सबके साथ ही पके आम खाना सबसे सुखदायक तो है ही. आम पाचक, रेचक और बलप्रद होता है. पके आम के गूदे को तरह-तरह से सुरक्षित करके भी रखते हैं. भारतीय प्रायद्वीप में आम की कृषि हजारों वर्षों से हो रही है. ईसा पूर्व चैथी या पांचवीं सदी में यह पूर्वी एशिया पहुंचा. जबकि पूर्वी अफ्रीका दसवीं शताब्दी के बाद पहुंचा. आम की प्रजातियों का निर्धारण मूलतः उनकी अपनी एक विशिष्ट महक और स्वाद से तय होती है. प्रजातियों के हिसाब से हापुस या अलफांसो देश का सबसे सुंदर और स्वादिष्ट आम है. इसकी विदेशों में बहुत मांग है इस कारण भी यह बहुत महंगा होता है. मार्च में आ जाने वाला हापुस शुरू में 600 से 1000 रूपये दर्जन तक बिकता है. इसके अलावा देश की और कई मशहूर आम प्रजातियों में से नीलम, बादाम, तोतापरी, लंगड़ा, सिंदूरी, दशहरी, रत्नागिरी, केसरिया, लालपत्ता आदि हैं.

Glowing स्किन के लिए ट्राय करें करीना कपूर के ये ब्यूटी Secrets

सुपरस्टार करीना कपूर खान न केवल अपने शानदार अभिनय कौशल के लिए जानी जाती हैं बल्कि वह बॉलीवुड की सबसे खूबसूरत एक्ट्रेस भी हैं.बॉलीवुड सुपरस्टार करीना कपूर खान 21 सितम्बर को अपना 40 वां जन्मदिन मनाएंगी . मगर आज भी बेबो इंड्रस्‍टी में बाकी सारी एक्‍ट्रेसेस को अपनी खूबसूरती से मात देते हुए नजर आती हैं.आज भी कई लोग करीना की खूबसूरती के दीवाने हैं. हर कोई करीना के ब्‍यूटी सीक्रेट के बारे में जानना चाहता हैं.

करीना अपनी खूबसूरती के लिए काफी कुछ करती हैं. हर लड़की उनकी जैसी स्किन पाने के लिए बेकरार रहती है. अगर आप सोचती हैं कि करीना महंगे ब्यूटी प्रॉडक्ट का इस्तेमाल करके अपनी स्किन का ग्लो बरकरार रखती हैं, तो आप बिल्कुल गलत है. करीना खुद को फिट रखने के लिए अपनी डेली रूटीन का गंभीरता से पालन करती हैं.वह अपनी स्किन पर कम ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करती हैं, क्योंकि वह नैचुरल ब्यूटी पर विश्वास रखती हैं.उन्हें कई बार नो-मेकअप लुक में भी देखा जा चुका है.
अगर आप करीना की तरह अपने चेहरे पर नैचुरल ग्लो चाहती हैं, तो उनके ब्यूटी सीक्रेट्स जरूर ट्राई करें.
आज हम आपको बताने जा रहे हैं करीना कपूर का ब्यूटी रुटीन जिसे अपनाकर आप भी ग्लोइंग स्किन पा सकती हैं.आइए जानते हैं..

1-बेदाग़ त्वचा का राज़

दोस्तों आपकी बॉडी का हाइड्रेटेड रहना आपके और आपकी स्किन के लिए बहुत जरूरी है.अगर आपकी बॉडी हाइड्रेटेड रहेगी तो आपकी त्वचा पर ग्लो हमेशा रहेगा .
करीना ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था ,” मेरी सबसे पहली कोशिश रहती है कि मैं स्किन को केमिकल्स और टॉक्सिंस से दूर रखूं.हेल्दी स्किन के लिए दिन में तीन से चार बॉटल उबला हुआ पानी पीती हूं.”

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2- होममेड फेसपैक

करीना अपनी स्किन के लिए नेचुरल चीजों का इस्‍तेमाल करती हैं.वह अपने चेहरे को होममेड फेसपैक से साफ करती हैं.फेसपैक सिर्फ दही और बादाम के तेल को मिलाकर बनाया जाता है.दही को एक प्राकृतिक ब्लीचिंग एजेंट माना जाता है और बादाम मृत कोशिकाओं और मुंहासे पैदा करने वाले बैक्टीरिया को साफ़ करने के लिए सबसे अच्छा होता है.

3- शहद का करें रोजाना इस्तेमाल

करीना अपने चेहरे पर नेचुरल ग्लो लाने के लिए तथा चेहरे से रूखापन हटाने के लिए, चेहरे को धोने से पहले नियमित रूप से कुछ शहद से अपने चेहरे की मालिश करती है.शहद में विटामिन ए, बी, सी, आयरन, कैल्शियम और आयोडीन जैसे तमाम तरह के लाभकारी पोषक तत्व पाए जाते हैं.चूंकि यह एंटीऑक्सिडेंट से भरा है, इसलिए यह त्वचा को जवान रखने में मदद करता है.

4- करीना का मेकअप फंडा-रील 

करीना का कहना है कि वह फेशियल पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं करती हैं.इसके अलावा वो कोई भी केमिकल प्रॉडक्‍ट्स का ज्‍यादा यूज नहीं करती हैं. करीना ज्‍यादात्तर घरेलू चीजों से स्किन केयर पर ध्‍यान देती हैं. वह हमेशा कम से कम मेकअप ही करती हैं, और जब भी वह शूटिंग से वापस आती हैं, तुरंत चेहरे से मेकअप हटा देती हैं.करीना कभी भी मेकअप लगाकर नहीं सोती है.सोने के लिए बिस्‍तर पर जाने से पहले वह अपना चेहरा साफ करने के लिए बेबी ऑयल का इस्‍तेमाल करती हैं.

5- मॉश्‍चराइजर का रोजाना इस्तेमाल करें

क्या आप जानते हैं, बेबो ब्यूटी रूटीन में से एक स्‍टेप को रेगुलर फॉलो करती हैं और वह स्‍टेप मॉश्‍चराइजिंग है.करीना अपनी स्किन पर मॉश्‍चराइजर लगाना कभी नहीं भूलती है.उनका मानना है कि हमारी बॉडी की तरह, हमें अपनी त्‍वचा को भी अच्‍छे से हाइड्रेट करने की जरूरत होती है और ऐसा मॉश्‍चराइजर का इस्‍तेमाल करके किया जा सकता है.ड्राईनेस त्वचा को अंदर से नुकसान पहुंचा सकती है, इसलिए एक अच्छे मॉश्‍चराइजर का इस्‍तेमाल करना बहुत जरूरी होता है.

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6-एक्सरसाइज और जिम

उनका कहना है, “स्वस्थ त्वचा के लिए बहुत जरूरी है कि आप हमेशा खुश और सकारात्मक रहें.” इसके लिए करीना रेग्युलर एक्सरसाइज, योग और जिमिंग करना नहीं भूलतीं.करीना नियमित व्यायाम करती हैं, दरअसल, एक्‍सरसाइज से बॉडी डिटॉक्‍स होती है, इसलिए आपकी त्वचा समय के साथ बेहतर हो जाती है.

7- खीरे का फेशियल

वह निखरी त्वचा पाने के लिए खीरे का फेशियल करवाती हैं.इसमें मौजूद विटामिन ए, सी और ई स्किन प्रॉब्लम को दूर करने के साथ उसे स्‍वस्‍थ और जवां बनाए रखने में मददगार होते हैं.

8-डाइट में लेती हैं ये चीजें

बेबो घर का बना, हेल्दी खाना खाती हैं.उनकी डाइट प्रोटीन और पोषक तत्वों से भरपूर होती है जो आपकी हेल्‍थ के साथ-साथ त्वचा के लिए भी बहुत अच्छा होती है. करीना ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था की आप अनहेल्‍दी और ऑयली फूड खाने के साथ बेदाग त्वचा की उम्मीद नहीं कर सकते है. ब्रेकफास्ट और स्नैक्स में वह मुट्ठी भर नट्स, एक गिलास दूध या फ्रेश फ्रूट जूस का सेवन जरूर करती हैं.

क्या है इमोशनल एब्यूज

‘‘तुम्हें क्या बिलकुल अक्ल नहीं है कि किसी के सामने क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं? यू आर सिंपली स्टूपिड रोहित,’’ नेहा जब अपनी सहेली के सामने अपने पति पर चिल्लाई तो बहुत आहत हुआ रोहित. यह कोई आज की बात नहीं थी. नेहा इसी तरह सब के सामने उस की बेइज्जती करती थी. कोई गलती न होने पर भी उस को गलत ठहराती थी. सब के सामने उस की बात काट देती. यहां तक कि बच्चों से जुड़े मुद्दों पर भी वह उस से रायमशवरा नहीं करती थी.

नेहा ने रोहित के बहुत कहने पर भी अपनी नौकरी नहीं छोड़ी. अपना ही नहीं उस का भी सारा पैसा वह अपनी मरजी से खर्च करती और रोहित को सिर्फ रोज के आनेजाने का किराया ही देती.

रोहित कमतर नहीं था पर फिर भी नेहा के अमानवीय व्यवहार, गालियों व असम्मानजनक शब्दों को उसे झेलना पड़ रहा था और यह भी सच था कि नेहा ने कभी उसे मन से नहीं अपनाया था.

1. भावनात्मक रूप से आहत किया जाना

रोहित इमोशनल एब्यूज का शिकार है. भावनात्मक रूप से जब कोई आहत होता है तो उसे समझ पाना ज्यादा कठिन होता है. ऐसी यातनाओं के लिए कानून की मदद भी नहीं ली जा सकती. यह शिकायत दर्ज कराना मुश्किल होता है कि आप की पत्नी आप के पैसे पर पूरा अधिकार रखती है और वह आप को जेबखर्च तक के लिए पैसे नहीं देती. उस ने आप को आप के परिवार वालों, मित्रों आदि से भी दूर कर दिया है या वह हमेशा आप पर अपनी बात थोपने की कोशिश करती है.

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2. प्यार न जताना

यह माना जाता है कि प्यार न जताना या साथी की हर बात से असहमत होना भी एक तरह का इमोशनल एब्यूज ही है. यह शारीरिक यातना से ज्यादा पीड़ादायक होता है. इसे केवल सहने वाला ही समझ सकता है. 32% पुरुष इस समस्या के शिकार हैं जिन्हें उन की पत्नियां बेइज्जत करती हैं, गालियां देती हैं व उन्हें नजरअंदाज भी करती हैं. यही नहीं अकसर वे चुप्पी को अपना हथियार बना लेती हैं, रिश्ते को कायम रखने के लिए किसी भी तरह के योगदान से मना कर देती हैं. फिर चाहे वह घर संभालना हो, पैसे का मामला हो या सैक्स संबंध हों.

बच्चों को भी पति को इमोशनल एब्यूज करने का माध्यम बनाया जाता है. बच्चों को ले कर चले जाने की धमकी पत्नियां अकसर देती हैं.

3. मजाक उड़ाना

‘‘मेरी पत्नी सब के सामने मुझे बेवकूफ कहती है. बारबार घर छोड़ कर जाने की धमकी देती है. मेरी पढ़ाई और मेरे मातापिता का मजाक उड़ाती है. मेरी नौकरी का मजाक उड़ाती है, क्योंकि वह अमीर घर से है. वह मुझे एब्यूज करती है और बारबार मुझ से कहती है कि मैं उस का एहसान मानूं कि उस ने मुझ जैसे आदमी से शादी की है,’’ यह कहना है 39 वर्षीय एक युवक का जो एक प्राइवेट कंपनी में ऐग्जीक्यूटिव के पद पर कार्यरत है.

किसी को बेकार कहना या उस के वजूद को नकारना कहीं न कहीं एक तरह से हीन भावना की ही अभिव्यक्ति होती है. ऐसी पत्नियां खुद को तो सुपीरियर साबित करने की कोशिश करती ही है, साथ ही साथी का अपमान कर उन का ईगो भी संतुष्ट होता है.

4. नियंत्रण करने की भावना

विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी को मानसिक रूप से आहत करने के पीछे एक ही वजह होती है दूसरे पर कंट्रोल करने की इच्छा. अकसर एब्यूज करने वाला व्यक्ति अपने साथी पर इसलिए नियंत्रण करता है, ताकि केवल वही उस के जीवन का केंद्र बना रहे. उस के दोस्तों व परिवारजनों के साथ बुरा व्यवहार करने के पीछे भी कारण यही है कि वह उन से मिल न सके और सब से दूर हो जाए.

एब्यूज करने वाली पत्नी साथी पर कंट्रोल करने के लिए उस की हर गतिविधि पर नजर रखती है. वह कहां जा रहा है? किस से बात कर रहा है या फिर क्या कर रहा है?

उस के मित्रों व परिवार के लोगों से भी उसे मिलने नहीं देगी और उस के हर काम में कोई न कोई गलती निकाल उस के अंदर लगातार गलत होने की गिल्ट भरती रहेगी. उस की सोशल लाइफ को भी बाधित कर देती है. एब्यूज करने वाली पत्नी साथी के टाइम, स्पेस, इमोशंस, फ्रैंडशिप और फाइनैंस सब पर कंट्रोल कर लेती है या कर लेना चाहती है. पूरी तरह से अपने ऊपर निर्भर करने की इच्छा उसे पति को हर तरह के सपोर्ट सिस्टम से काट लेने को प्रेरित करती है.

5. इमोशनल एब्यूज का शिकार

अधिकांश पुरुषों को यह समझाने में बहुत देर लग जाती है कि वे इमोशनल एब्यूज का शिकार हैं. वे जैसे भी जिंदगी काटते हैं उसी में संतुष्ट रहते हैं. महसूस होने पर या परिवार वालों को पता लगने पर भी उन में खिलाफ जाने या पत्नी को छोड़ देने की हिम्मत नहीं होती, क्योंकि वे चीजों के ठीक होने का इंतजार करते हैं.

6. लक्षण

अवसाद, लगातार सिरदर्द रहना, कमर में दर्द व पेट की समस्याएं उन्हें घेरे रहती हैं. जिस के कारण जीने व कुछ करने की इच्छा ही उन के अंदर से मिट जाती है. काबिल आदमी कई बार गुमनामी के अंधेरों में खो जाता है या अपने अस्तित्व को ही नकारने लगता है. बारबार उस का आत्मसम्मान आहत होने से वह अपने होने पर ही सवाल करने लगता है.

7. खुद से करें ये सवाल

पत्नी हमेशा आप की आलोचना करती है, अपमान करती है, आप की काबिलियत का मजाक उड़ाती है?

आप की भावनाओं को नजरअंदाज करती है?

आप को आप के मित्रों व परिवार के लोगों से संपर्क न रखने के लिए बाध्य करती है?

कई बार आप को लगता है कि उस का मूड अकसर बदलता रहता है.

क्या आप को लगता है कि आप का दूसरों से मिलनाजुलना और मजाक करना उसे नागवार गुजरता है?

8. आप मानसिक रूप से छले तो नहीं गए

देखा गया है कि हमारा समाज आसानी से इस बात को गले से नहीं उतार पाता कि एक मर्द एक औरत से दब गया या उस की ज्यादतियों का शिकार हो गया. दरअसल, हमारा भारतीय कानून महिलाओं के अधिकारों के लिए अधिक सशक्त है. यदि ऐसा पुरुष की तरफ से होता है तो समाज तुरंत उस पर प्रतिक्रिया करता है और यह बात चर्चा का विषय भी बन जाती है.

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9. इमोशनल एब्यूज है क्या

डाक्टर अंशु लहरी ने इमोशनल एब्यूज को ले कर कुछ बातें स्पष्ट की हैं:

बातों से या बिना कुछ कहे, अपने व्यवहार से साथी को दिया जाने वाला मानसिक तनाव या उसे तंग करने जैसी स्थिति पैदा करना भी इमोशनल एब्यूज है.

जब रिश्ते में यह स्थिति आ जाती है तो इस का अर्थ होता है कि युगल के बीच आपसी विश्वास नहीं रहा है, क्योंकि अगर एक साथी दूसरे साथी को भावनात्मक रूप से परेशान करता है तो उन के बीच सम्मान का सेतु टूट जाता है. यह इमोशनल एब्यूज नियंत्रण करने, अपने व्यवहार से उसे चिढ़ाने या अपनी तरह से उसे जीने के लिए बाध्य करने, अपेक्षा से अधिक उस से इच्छाएं रखने, अत्यधिक पजेसिव होने के रूप में हो सकता है.

इस से साथी के मन में अवसाद, अस्वीकृत व असहाय होने की भावना या एकाकीपन समा जाता है.

देखा गया है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं इस का अधिक शिकार होती हैं. घरेलू हिंसा व धमकियों के साथ ही अकसर इमोशनल एब्यूज किया जाता है.

युगल को किसी हैल्थ प्रोफैशनल से इस के बारे में सलाह लेनी चाहिए. तभी यह पता लगाया जा सकता है कि ऐसा होने की मुख्य वजह क्या है.

लॉक डाउन के बाद कैसे बनाये लाइफ फिट 

कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया में लगातार बढ़ रहा है. इसका सही इलाज और वैक्सीन अभी तक नहीं निकल पाया है. लॉक डाउन ने इसे कुछ हद तक काबू अवश्य किया है, पर आकडे और मरने वालों की संख्या में कमी नहीं आ पा रही है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन भी इस बीमारी के बारें में अधिक जानकारी नहीं दे पा रहा है. ऐसे में सभी को इस बीमारी के साथ ही रहना और काम करना होगा, क्योंकि अधिक लॉक डाउन से अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा रही है. लोग बीमारी से नहीं बल्कि भूख से मरने लगेंगे. ऐसे में लॉक डाउन के बाद सब शुरू करने के लिए सरकार और आम लोगों को कुछ ख़ास ध्यान इंफ्रास्ट्रक्चर पर देनी पड़ेगी, ताकि इस बीमारी से लोग कम संक्रमित हो और काम चलता रहे.

इस बारें में मुंबई की आशापुरा इंटीरियर्स के इंटीरियर डिज़ाइनर विजय पिथाडिया कहते है कि लॉक डाउन का असर आम जनजीवन पर बहुत अधिक पड़ रहा है, जिसका अंदाज लगाना संभव नहीं, ऐसे में आज हर व्यक्ति खुले घर और ऑफिस की मांग कर रहा है, जिसके लिए मुझे भी वैसी ही डिजाईन कम स्पेस में करने के बारें में सोचना पड़ रहा है. कोरोना वायरस बहुत जल्दी फैलता है, इसलिए व्यक्ति के काम करने और रहने की जगह पर हायजिन, साफ़ सफाई और सोशल डिस्टेंस को बनाये रखने पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है, ऐसे में कुछ आदतों का नियमित पालन करने से इस बीमारी से बचा जा सकता है. कुछ ख़ास बदलाव हमारे रहन सहन और ऑफिस कल्चर में होने की जरुरत होगी, ताकि लोग संक्रमित होने से बच सकें, जो निम्न है,

1. वर्क फ्रॉम होम इस समय काफी कारगर होगी, जो लोग घर से काम कर सकते है वे लॉकडाउन के बाद भी करेंगे और ये एक ट्रेंड भी बन चुका है, ऐसे में डिज़ाइनर्स को वैसे ही सेटअप बनाए की जरुरत होगी, ये सही भी है, क्योंकि इससे ऑफिस जैसे किसी भी प्रकार की सेटअप की जरुरत नहीं होगी.

2. ऑफिस में हवा, पानी और वेंटिलेशन की व्यवस्था होने से बीमारी कम होगी, जो इम्युनिटी को बढ़ाने में सहायक होगी.

3. जो लोग घर से काम कर रहे है उनके लिए वर्क प्लेस वाला कमरा अलग, कम्फ़र्टेबल, सही फर्नीचर और शांत वातावरण वाला होना चाहिए.

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4. कमरे के बाहर अगर बालकनी हो, तो उसमें थोड़ी बागवानी करन आवश्यक होगा, ताकि फ्रेश और सुकून वातावरण मिले, साथ ही थोड़े हर्ब प्लांट लगायें, जो कम स्पेस में अच्छी तरह से उग सकें.

5. स्पेस प्लानिंग अब अधिक करनी पड़ेगी, फ्लैट की बनावट भी उसी तरह से करनी पड़ेगी, ताकि हर ग्रुप एक दूसरे से अलग रहे.

6. मुंबई जैसे शहर में हर परिवार के लिए एक छोटा कमरा लेना अब जरुरी हो चुका है, क्योंकि यहाँ अधिकतर लोग झोपड़ पट्टी में रहते है, जहां टॉयलेट की व्यवस्था भी अच्छी नहीं होती, जिसकी वजह से कोरोना का संक्रमण तेजी से फैला है और सोशल डिस्टेंस को बनाये रखना भी मुश्किल हो रहा है,

7. इसके अलावा ऑफिस की प्लानिंग में हायजिन के साथ-साथ सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करना आवश्यक होगा, जिसमें 6 फीट कांसेप्ट यानी काम करने वाले व्यक्ति एक दूसरे से 6 फीट की दूरी पर बैठना जरुरी होगा, ऐसे में 500 स्क्वायर फीट के ऑफिस में 5 से 6 कर्मचारी का बैठना सही हो पायेगा,

8. सारे कोरोना वायरस से जुड़े सारे नियमों की सूचीं ऑफिस में लगाई जानी चाहिए, जिसे कर्मचारी ऑफिस पहुँचने के बाद पालन करें, मास्क, ग्लव्स, सेनिटाइजेशन जैसे सारे निर्देशों का सख्ती से पालन करना जरुरी होगा,

9. फेस टू फेस मीटिंग्स अभी कोई करना नहीं चाहेगा, ऐसे में रिमोट मीटिंग्स की व्यवस्था अभी अधिक होगी और उसकी व्यवस्था हर ऑफिस में होने की जरुरत होगी.

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कोरोना वायरस के लगातर बढ़ते केस की वजह से लोग चिंतित और डरे हुए है, लेकिन सावधानी बरतने से इस बीमारी से बचा जा सकता है. बी इंटीरियर्स की इंटीरियर डिज़ाइनर बद्रिशा शाह कहती है कि हमारे देश में परंपरा और संस्कृति को लोग पसंद करते है और उसी के अनुसार घरों और ऑफिस को सजाना चाहते है, जो कुछ बदलाव के साथ किया जाना संभव है, 5 टिप्स निम्न है, जिसे अपनाकर व्यक्ति इस संक्रमण से बच सकता है,

1. घरों में मल्टीप्ल फंक्शनल फर्नीचर का प्रयोग करन पड़ेगा, जिसके द्वारा बेडरूम को वर्क प्लेस में बदलना संभव हो सकेगा, इससे लोकल ट्रांसपोर्ट को अवॉयड किया जा सकेगा,

2. माल्स और शौपिंग काम्प्लेक्स में टेक्नोलॉजीका प्रयोग अधिक करना पड़ेगा, जिसमें बॉडी स्कैनर, थर्मल कैमरे को लगाना, सेनिटाइजेशन का इंस्टालेशन किया जाना आदि करना पड़ेगा, लिफ्ट में 4 यात्री होने के साथ-साथ वौइस् ऑपरेटेड सिस्टम की जरुरत पड़ेगी,

3. ट्रेवलिंग के दौरान सेफ्टी को पालन करने के लिए सेफ्टी सूट पहनना, बसेस और ट्रेन्स को फिर से डिजाईन करने की जरुरत है, जिसमें सोशल डिस्टेंस पर पूरा धयान रखते हुए सीमित संख्या में यात्री होने की आवश्यकता होगी.

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4. ये सही है कि मुंबई जैसे घनी आबादी वाले शहरों के लिए सोशल डिस्टेंस का पालन करना मुश्किल है, ऐसे में लोगों की मूवमेंट कम करने के लिए सोशल नेटवर्क और वर्चुअल कम्युनिकेशन सिस्टम को सरकार के सहयोग से विकसित करना पड़ेगा और सबको मुफ्त में मुहैया करवानी पड़ेगी, ताकि काम करना आसान हो, साथ ही इकॉनमी भी जल्दी-जल्दी पटरी पर आने में समर्थ हो.

5. इसके अलावा सेनेटाइजिंग और वेस्ट मैनेजजमेंट का निर्धारण सावधानी पूर्वक करना होगा, ताकि बीमारी कम हो, लोगों की रोगप्रतिरोधक क्षमता बनी रहे और पर्यावरण प्रदूषण से भी बचा जा सके, ये जिम्मेदारी हर नागरिक की होगी.

Summer special: स्नैक्स में परोसें नमकपारा

अगर आप स्नैक्स में अपनी फैमिली के लिए कुछ नया और टेस्टी ट्राय करना चाहती हैं तो नमकपारा के रेसिपी आपके लिए परफेक्ट औप्शन है.

हमें चाहिए- 

–  1 कप बारीक सूजी

–  1 छोटा चम्मच देसी घी

–  1 कप कुनकुना पानी

–  1 छोटा चम्मच अजवाइन

–  1 छोटा चम्मच गरममसाला

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–  1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च

–  1 छोटा चम्मच चाटमसाला

–  तलने के लिए पर्याप्त तेल

–  नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका-

एक बाउल में सूजी, नमक, चाटमसाला, लालमिर्च, गरममसाला, देसी घी, अजवाइन और जरूरतानुसार पानी मिला कर गूंध लें. 15 मिनट तक डो को अलग रख दें फिर इस की मोटी लेयर बेल कर मनचाहे आकार में काट लें. कड़ाही में तेल गरम कर मध्यम आंच पर नमकपारे तल कर परोसें यास्टोर कर के रखें.

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#coronavirus: पुरुषों को खतरा ज्यादा मगर ऐसों को मौत का नहीं

महिलाएं कमज़ोर होती हैं और पुरुष मज़बूत. ऐसा पूरी दुनिया में माना जाता है. लेकिन, कोविड -19 के मामले में यह धारणा उलट जाती है. नोवल कोरोना वायरस से पुरुषों और महिलाओं के संक्रमित होने का खतरा तो समानरूप से है  लेकिन पुरुषों पर इसके ज्यादा गंभीर प्रभाव पड़ने व उनकी मौत होने का ज्यादा खतरा है. वहीँ, कुछ पुरुष ऐसे भी होते हैं जिन्हें मौत का खतरा नहीं भी होता है.

कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के लिंगभेद का परीक्षण किया गया है. फ्रंटियर्स इन पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, चीन के बीजिंग तोंगरेन अस्पताल के जिन यांग समेत कई वैज्ञानिकों ने कोविड-19 बीमारी से मरने वाले लोगों की प्रवृत्ति का मूल्यांकन किया है.

वैज्ञानिकों ने कहा कि संक्रमित पुरुषों और महिलाओं की उम्र व संख्या समान थी, लेकिन पुरुषों को कोविड की अधिक गंभीर बीमारी हुई. वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि मरने वाले 70 प्रतिशत से अधिक मरीज पुरुष थे. इसका मतलब है कि पुरुषों में महिलाओं की तुलना में मृत्युदर लगभग 2.5 गुना ज्यादा हो सकती है. उन्होंने कहा कि पुरुष की भले ही उम्र कोई भी हो लेकिन पुरुष होने की वजह से उसे वायरस के कारण गंभीर बीमारी होने का खतरा ज्यादा है.

दूसरी तरफ, एक नए शोध से पता चला है कि खास प्रकार की उंगली रखने वाले पुरुष, कोरोना वायरस से कम मरते हैं. शोध के मुताबिक, जिन लोगों की अनामिका या रिंग फिंगर यानी अंगूठे से चौथी और सब से छोटी उंगली से पहले वाली उंगली सारी उंगलियों से बड़ी होती है, कोविड-19 से उन लोगों की कम मौत होती है.

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शोध के अनुसार, पुरुषों की अगर अनामिका उंगली बढ़ी होती है तो उसकी वजह यह होती है कि गर्भाशय में जब वे होते हैं तो टेस्टोस्टेरौन नाम का हार्मोन उन्हें अधिक मात्रा में मिलता है जिसकी वजह से उनकी अनामिका नामक उंगली अन्य उंगलियों की तुलना में बढ़ जाती है.

वैज्ञानिकों के अनुसार, यह हार्मोन एसीई-2 नामक एंजाइम अधिक  बनाता है जो शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है.

वैज्ञानिकों ने विश्व के 41 देशों के 2 लाख से अधिक लोगों का अध्ययन करने के बाद यह पाया है कि जिन देशों में पुरुषों की अनामिका उंगली छोटी होती है वहां उनकी मौत तीनगुना अधिक हुई है.

स्वानसी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जौन माइनिंग ने कहा कि इस से आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, हौलैंड और पूर्वी एशिया के लोगों को एक प्रकार की सुरक्षा मिल जाती है क्योंकि इन देशों के पुरुषों की अनामिका उंगली आमतौर पर बड़ी होती है.

उन्होंने बताया कि वैज्ञानिकों का यह कहना है कि जन्म से पहले गर्भ में जिस बच्चे को टेस्टोस्टेरौन अधिक मात्रा में मिलता है उसकी अनामिका उंगली बड़ी हो जाती है और उसमें एसीई-2 एंजाइम का स्राव अधिक होता है जो उसे वायरस के सामने अधिक मज़बूत बना देता है.

वैज्ञानिकों के अनुसार बड़ी रिंग फिंगर वाले पुरुषों पर कोरोना का असर काफी हलका भी होता है और वे बहुत जल्द ठीक भी हो जाते हैं.

बहरहाल, वैज्ञानिक तौर पर यह साबित हुआ है कि महिलाएं जिस्म के हर मामले में पुरुषों से कमज़ोर नहीं हैं, नोवल कोरोना वायरस के मामले में खासतौर से. वहीं, पुरुष की अपनी अहमियत है. उंगलियों में अनामिका उंगली सबसे बड़ी पुरुषों में ही होती है, भले ही कुछ ही में.

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प्यार को प्यार ही रहने दो : भाग-1

सैंट्रल पार्क में फिर मेला चल रहा था. बड़ेबड़े झूले, खानेपीने की बेहिसाब वैरायटी लिए स्टालें, अनगिनत हस्तकला का सामान बेचती अस्थाई रूप से बनाई हुई छोटीछोटी टेंट की दुकानें, और इन दुकानों में बैठे हुए अलगअलग राज्यों व क्षेत्रों से आए हुए व्यापारी.

हर कोई अपनी दीवाली अच्छी बनाने की आशा में ग्राहकों की बाट जोह रहा था. हर साल दीवाली के आसपास यहां यही मेला लगा करता है. और हर साल की तरह इस साल भी निरंजना मेले में जाने के लिए उत्सुक थी.

शाम को जब रजत औफिस से वापस आया, तो निरंजना को तैयार खड़ा देख समझ गया कि आज मेले में जाने का कार्यक्रम बना बैठी है.

रजत मुसकरा कर कहने लगा, ‘‘तुम दिल्ली के आलीशान मौल भी घूमना चाहती हो और गलीमहल्ले के मेले भी. ठीक है, चलेंगे. पर मैं पहले थोड़ा सुस्ता लूं. एक कप चाय पिला दो, फिर चलते हैं मेले में.‘‘

शादी के पांच वर्षों के साथ में निरंजना उसे इतना समझ चुकी थी कि वह कब किस चीज की इच्छा रख सकता है, सो पहले ही चाय तैयार कर चुकी थी. शायद इसे ही मन से मन के तार जुड़ना कहते हैं.

आधा घंटे बाद दोनों मेले के ग्राउंड में खड़े थे. हर ओर शोर, हर ओर उल्लास, और उत्साहित भीड़.

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मेले में पहुंच कर निरंजना एक अल्हड़ किशोरी सा बरताव करने लगती. कभी किसी झूले में बैठने की जिद करती, तो कभी कालाखट्टा बर्फ का गोला खाने की, तो कभी कुम्हार द्वारा बनाया हुआ सुंदर फूलदान खरीदने की. किंतु मौत के कुएं का खेल देखना वह कभी नहीं भूलती. कुछ और हो ना हो, परंतु मौत का कुआं में सब से आगे खड़े हो कर कुएं में दौड़ रही मोटरसाइकिल व कार को देख कर पुलकित होना अनिवार्य था.

रजत को चाहे यह कितना भी बचकाना लगे, किंतु वह निरंजना के हर्षोल्लास पर कभी ठंडे पानी की फुहार नहीं फेरता था. वह सच्चे मन से यह मानता था कि यदि गृहस्थी को सुखी रखना है, तो उसे चलाने वाली गृहिणी का पूरा ध्यान रखना होगा. यदि घर की स्त्री खुश रहेगी, तभी घर और परिवार के सभी सदस्य खुश रह सकेंगे.

आज भी कुछ झूलों में झूलने के बाद और जीभ को रंगबिरंगे स्वादों से रंगने के बाद दोनों मौत का कुआं की टिकट ले कर सब से आगे वाली रिंग में खड़े हो गए.

खेल शुरू हुआ. घुप अंधेरे भरे गहरे गड्ढे में जगमगाती रोशनी लिए मोटरसाइकिल व कार एकदूसरे से उलट दिशाओं में दौड़ने लगीं.

दर्शकों की भीड़ में कई बच्चे व किशोर खेल देख कर उत्तेजित हो रहे थे. उतनी ही उत्साहित निरंजना भी थी.

मौत के कुएं के इस खेल में लोगों को क्या आकर्षित करता है – खतरों से खेलने का जज्बा, या यह भावना कि हम स्वयं खतरे को देख तो रहे हैं, किंतु उस की पकड़ से बहुत दूर हैं, या फिर जीत का एहसास.

जो भी था, निरंजना हर साल दीवाली के इस मेले में मौत के कुएं का खेल अवश्य देखती थी. उसे देखने के बाद वह काफी देर तक प्रसन्नचित्त रहती. आज भी खेल खत्म होने पर रजत ने कुछ खाने के लिए उस से आग्रह किया.

‘‘हां, चलो, गोलगप्पे के स्टाल पर चलते हैं.‘‘

‘‘अरे, मैं तो कुलफी खाने के मूड में हूं.‘‘

‘‘पहले गोलगप्पे खाएंगे, फिर जीभ पर फूटते पटाखों को शांत करने के लिए कुलफी. कैसा रहेगा?‘‘ खुशी से दोनों ने मेले का आनंद उठाया और देर रात अपने घर लौट आए.

‘‘काफी थक गया हूं आज,‘‘ सोते समय रजत ने कहा.

‘‘गुड नाइट,‘‘ संक्षिप्त उत्तर दे कर निरंजना ने कमरे की बत्ती बुझा दी. किंतु आज नींद उस की अपनी आंखों से कुछ दूर टहल रही थी. शायद अब भी दीवाली के उस मेले से लौटी नहीं थी. थकान और विचारों को एकसाथ मथती निरंजना समय से पीछे अपनी किशोरावस्था की गलियों में दौड़ने लगी.

निरंजना हर लिहाज से आकर्षक थी – खूबसूरत नैननक्श, चंदनी चितवन और प्रखर बुद्धि. उस को देख कर कोई भी अपना दिल हार सकता था, किंतु वह ठहरी बेहद अंतर्मुखी व्यक्तित्व की स्वामिनी. हर कक्षा में फर्स्ट आती, खेलकूद में भी मेडल जीतती. किंतु दोस्त बनाने में पीछे रह जाती.

सहमी, सकुचाई सी रहने वाली निरंजना की अपने जीवन से कई आशाएं थीं, जिन में से एक थी प्रगति पथ पर आगे बढ़ने की.

जब निरंजना कालेज पहुंची, तो वहां कुछ ऐसा हुआ जो उस के साथ अब तक कभी नहीं हुआ था.

क्लास में एक लड़का था, जिस की तरफ निरंजना अनचाहे ही आकर्षित होने लगी, खिंचने लगी. उस ने कई बार उस की आंखों को भी इसी ओर देखते पकड़ा था. किंतु कुछ कहने की हिम्मत न इस तरफ थी, न उस तरफ.

क्लास काफी बड़ी थी, इसलिए निरंजना उस का नाम तक नहीं जानती थी. किंतु यह उम्र ही ऐसी होती है, जिस में विपरीत सैक्स के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक है. उस को देख कर निरंजना के अंदर एक अजीब सी भावना हिलोरे लेती. कभी शरीर में सुरसुरी दौड़ जाती, तो कभी स्वयं ही नजरें झुक कर अपने दिल का हाल छुपाने लगतीं.

अर्जुन के लक्ष्य की तरह निरंजना के मन को भी एक ध्येय मिल गया था. आमनासामना तो नजरों का होता, लेकिन सिहरन पूरे बदन में होती. सारी रात बिस्तर पर वह करवटें बदलती रहती थी. यह सिलसिला कई महीनों तक चला. क्या करती, हिम्मत ही नहीं थी जो बात आगे बढ़ा पाती.

वह ठहरी अंतर्मुखी और वो जनाब बहिर्मुखी प्रतिभा के धनी. उन के ढेरों दोस्त, हर किसी से बातचीत. जिस महफिल में जाएं, रंग जमा दे.

हालांकि देखने में वह कुछ खास नहीं था, किंतु उस का व्यक्तित्व एक चुंबक की तरह था, और निरंजना संभवतः उस के आगे एक लोहे की गोली, जो उस की तरफ खिंची चली जाती थी.

होस्टल के पास वाले मैदान में जब दशहरे पर मेला लगा था, तब उन की पूरी क्लास ने वहां चलने का कार्यक्रम बनाया.

वहां जाते हुए निरंजना एक योजना के तहत उस जनाब के आसपास भटकती रही. तभी उस के मुंह से सुना था कि उस का पसंदीदा खेल है मौत का कुआं. बस, फिर क्या था, उस मौत के कुएं में भागती हुई गाड़ियों के साथसाथ निरंजना का दिल भी गोते लगाने लगा.

आगे पढ़ें- कालेज का आखरी साल आ गया….

बेबी बंप फ्लॉन्ट करती दिखीं ‘Kumkum Bhagya’ एक्ट्रेस Shikha Singh, Photos Viral

टीवी सीरियल ‘कुमकुम भाग्य’ (Kumkum Bhagya) में नेगेटिव रोल में फैंस का दिल जीतने वाली एक्ट्रेस शिखा सिंह (Shikha Singh) ने हाल ही में अपनी प्रैग्नेंसी की खबर से फैंस को चौंका दिया था, जिसके बाद वह फैंस के लिए नई-नई फोटोज शेयर करती रहती हैं. वहीं शिखा सिंह के ये फोटोज तेजी से सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं शिखा सिंह की लेटेस्ट फोटोज…

‘कुमकुम भाग्य’ (Kumkum Bhagya) एक्ट्रेस शिखा सिंह (Shikha Singh) इन दिनों अपना प्रेग्नेंसी पीरियड एन्जॉय कर रही हैं. शिखा सिंह (Shikha Singh) लगातार इंस्टाग्राम अकाउंट पर प्रेग्नेंसी की लेटेस्ट फोटोज में पति करण शाह के साथ रोमांटिक अंदाज में पोज देती हुई नजर आ रही हैं.

बेबी बंप फ्लौंट करती दिखीं शिखा

शेयर की गई फोटोज में खूबसूरत अदाकारा शिखा सिंह (Shikha Singh) ने अपना बेबी बंप भी फ्लॉन्ट करती नजर आ रही हैं तो वहीं रेड शॉर्ट्स और ब्लैक स्पोर्स ब्रा पहनी दिखाई दे रही हैं. उनका ये अंदाज उनके चाहने वालों को बहुत पसंद आ रहा है.

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पैट एनिमल भी जता रहा है प्यार

शिखा सिंह (Shikha Singh) ने अपनी इन खूबसूरत फोटोज के साथ कैप्शन में लिखा, ‘Kisses galore… सिर्फ मम्मी-पापा को ही सारी मस्ती क्यों करनी चाहिए? मैं भी बड़ा भाई होने वाला हूं.‘, जिसमें उनका डौग भी फोटोज में नजर आ रहा है. शिखा सिंह (Shikha Singh) जून में बच्चे को जन्म देने वाली है. बच्चे को लेकर उनके पति और पूरा परिवार काफी खुश है.

बता दें, शिखा सिंह (Shikha Singh) और करण शाह की शादी चार साल पहले धूमधाम से हुई थी. वहीं शिखा सिंह के पायलेट है, जिसके कारण वह सुर्खियों में रहती हैं. हाल ही में दोनों ने अपनी शादी की सालगिरह भी मनाई थी, जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी.

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लौकडाउन के बीच Yeh Rishta… के ‘कार्तिक’ ने मनाई मम्मी-पापा की वेडिंग एनिवर्सरी, देखें फोटोज

कोरोनावायरस के चलते मुंबई के हालात बिगड़ते जा रहे हैं. वहीं इसके कारण लॉकडाउन भी बढ़ता जा रहा है. इसी बीच सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है के कार्तिक यानी मोहसिन खान (Mohsin Khan) ने अपने मम्मी-पापा की वेडिंग एनिवर्सरी मनाते हुए नजर आए, जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं मोहसिन खान (Mohsin Khan) की लेटेस्ट वायरल फोटोज…

मोहसिन के खास दोस्त ने भिजवाया है ये केक

मोहसिन खान (Mohsin Khan) के पड़ोसी हिमांशु गडानी ने उनके मम्मी पापा की वेडिंग एनिवर्सरी के लिए केक भिजवाया, जो कि सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में मोहसिन (Mohsin Khan) के कोरियोग्राफर है.

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फैंस ने ऐसे दी बधाई

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दोस्त के घर से आए दोनों ही केक को देखकर मोहसिन खान (Mohsin Khan) की खुशी का कोई भी ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी फोटोज शेयर की, जिसे देखकर मोहसिन खान (Mohsin Khan) के फैंस उन्हें शुभकामनाएं दी है.

माता-पिता ने काटा एनिवर्सरी का केक

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मोहसिन खान (Mohsin Khan) के माता-पिता ने केक काटकर अपनी शादी की सालगिरह का जश्न मनाया. वहीं मोहसिन खान (Mohsin Khan) के माता-पिता मेहजबीन खान और अब्दुल वहीद खान ने जश्न के बाद ढेर सारी फोटोज क्लिक करवाई है, जिसमें वह एक-दूसरे को एनिवर्सरी का केक खिलाते नजर आए.

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Mohsin Khan को आई ‘ये रिश्ता…’ की याद

 

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This cutie is phenomenal…Onscreen n Offscreen!!! #daaadu n #kittuuu Lovveeee yaaaa Swaaatiiii

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मोहसिन खान (Mohsin Khan) ने हाल ही में अपने सीरियल को काफी मिस कर रहे है, जिसके चलते वह सोशल मीडिया पर फोटोज शेयर कर रहे हैं. वहीं इन फोटोज से साफ पता चल रहा है कि मोहसिन अपने सीरियल के सेट को काफी मिस कर रहे हैं.


बता दें, मोहसिन खान (Mohsin Khan) ने अपने ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ को-स्टार रह चुकीं मोहेना कुमारी संग के साथ फोटोज शेयर की थी, जो फैंस को काफ पसंद आई थीं.

प्यार को प्यार ही रहने दो : भाग-3

दोनों ने अपनेअपने धर्मों को निभाते हुए किसी के भी धर्म में दखलअंदाजी न करने की कसम भी उठा ली थी. सोच लिया था कि रजिस्टर्ड विवाह ही करेंगे. जब मातापिता से बात करेंगे तो धर्म की बात ना आए, इस बात का खयाल रखते हुए दोनों ने काफी प्लानिंग कर ली थी. लेकिन होता वही है, जो समय को मंजूर होता है.

जब निरंजना ने अपने मातापिता से नसीम के बारे में बात की, तो आसमान में छेद हो गया. मां ने रोरो कर घर में गंगाजल का छिड़काव शुरू कर दिया और स्वयं को कोसने लगी कि क्यों लड़की को पढ़ने आगे भेजा, वह भी दूसरे शहर, अपनी नजरों से दूर.

मां का विलाप बढ़ता ही जा रहा था. जोरजोर से वे कहने लगीं, ” ‘पिता रक्षति कौमारे, भर्ता रक्षति यौवने, पुत्रो रक्षति वार्धक्ये न स्त्री स्वातंत्र्य मरहति.‘ मतलब जानते हो ना इस का?

‘‘हमारे ग्रंथी मूर्ख नहीं थे, जो मनु कह गए कि स्त्री को स्वतंत्र नहीं छोड़ा जाना चाहिए. बाल्यावस्था में पिता, युवावस्था में पति और उस के बाद पुत्र के अधीन रखना चाहिए. हम से बहुत बड़ी गलती हो गई, जो इस की बातों में आ कर दूसरे शहर इसे पढ़ने जाने की अनुमति दे दी.

‘‘देखो, अब क्या गुल खिला कर आई है. अपना मुंह तो काला कर ही आई है, हमारी भी नाक कटवा दी. कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.‘‘

पिता तो जैसे सदमे में आ कर कुरसी से हिलना ही भूल गए थे. शाम तक वह उन्हें मनाती रही. तरहतरह की दलीलें देती रही. लेकिन जब एकबारगी खड़े हो कर पिता ने यह कह दिया कि शायद इसे हम दोनों की झूलती लाशें देख कर ही सुकून मिलेगा, तो उस के आगे निरंजना विवश हो गई. अब कहनेसुनने को कुछ शेष नहीं बचा था.

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जिस समाज ने सती की छवि रखने वाली अपनी देवी सीता को नहीं बख्शा, वह निरंजना जैसी साधारण स्त्री को कैसे माफ कर देगा? जब उस के मातापिता ही उस के निर्णय को नहीं अपनाएंगे तो और किसी से वह क्या उम्मीद रखे? आखिर अपने मातापिता की अर्थियों के ऊपर वह अपना आशियाना तो बना नहीं सकती थी.

आश्चर्य तो इस बात का हुआ कि नसीम की ओर से भी कोई संदेश नहीं आया. संभवतः उसे भी ऐसे ही किसी दृश्य का सामना करना पड़ा होगा.

आज निरंजना उसे माफ कर चुकी है. शादी कर के आगे बढ़ चुकी है. पूरी ईमानदारी से रजत के साथ अपने रिश्ते को निभा रही है. किंतु आज भी जब कभी हवा में नमी होती है, और आकाश में पीली रोशनी छाती है तो ना जाने क्यों उस का दिल पुरानी करवट बैठने को मचलने लगता है.

टूटे हुए दिल ने कई बार खुद से प्रश्न किया कि यदि यह सच है तब वह क्या था? फिर इसी दिल ने उसे समझाया कि वह भी सच था, यह भी सच है. मातापिता की बात मानने और स्वीकारने के बदले सांत्वना पुरस्कार के रूप में उसे रजत का प्यार मिला है.

एकबारगी रजत से शादी के लिए हामी भर कर वह नसीम के प्यार को अपनी खोटी किस्मत मान कर आगे बढ़ चुकी थी. लेकिन फिर उलटपलट कर आती यादों ने उसे चैन कब लेने दिया. वह तो भला हो मार्क जुकरबर्ग का, जो बिछुड़े हुए दिलों को मिलाने का नेक काम करता है.

आज निरंजना फिर अपने लैपटौप के सामने बैठ गई. आज फिर फेसबुक पर जा कर नसीम को ढूंढेगी. शायद उस से मिल कर एक बार अपनी सफाई दे कर निरंजना के दिल को चैन मिलेगा.

उधर औफिस में मीटिंग के बाद रजत को अपने सचिव के पद के लिए आए बायोडाटा में से छंटनी करनी थी. एचआर डिपार्टमैंट ने उसे काफी सारे रिज्यूम भेज दिए थे, साथ ही, एक नोट भी छोड़ा था, ‘सर, आप जिन प्रत्याशियों को चयनित करेंगे, उन्हें हम आप से साक्षात्कार के लिए बुलवा लेंगे. फिर आप जिस का चुनाव करेंगे, वही आप के सचिव के पद के लिए रख दिया जाएगा.‘

बायोडाटा पढ़ते समय रजत की नजर एक रिज्यूम पर अटक गई – नाम की जगह पर श्वेता सिंह लिखा था और स्थान की जगह आगरा पढ़ने पर रजत का दिल एक ही राग अलापने लगा, ‘कहीं यह वही तो नहीं…?’

‘श्वेता सिंह और वह भी आगरा से…’ उत्सुकतावश उस ने आगे का बायोडाटा पढ़ना शुरू किया. कालेज का नाम पढ़ने के बाद उसे विश्वास हो गया कि यह वही श्वेता है, जिसे वह अपना दिल हार चुका था.

औफिस की सीट पर बैठेबैठे रजत का मन अपने मातापिता के घर आगरा की गलियों में विचरने लगा.

रजत जब अपने मातापिता के साथ गांव से आगरा आया था, तब वह सातवीं कक्षा में पढ़ता था. नया स्कूल, नया परिवेश, नए सहपाठी. ऐसे में क्लास में पढ़ रही एक लड़की की ओर अनायास ही आकर्षित होने लगा. किशोरावस्था ही ऐसी होती है, जिस में हार्मोंस के कारण मन उद्विग्न रहता है, भावनाएं मचलती रहती हैं, और जी चाहता है कि सबकुछ हमारी इच्छानुसार होता रहे.

रजत उस लड़की के प्यार में खुद को सातवें आसमान पर अनुभव करने लगा. भले ही यह एकतरफा प्यार था, किंतु रजत को विश्वास हो गया था कि यही वह लड़की है, जिस के साथ वह अपना पूरा जीवन व्यतीत करना चाहता है.

स्कूल में श्वेता को देखने पर रजत की आंखों की पुतलियां फैल जाती थीं. एक बार उस के एक दोस्त ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या यही है तेरे सपनों की रानी, रजत?‘‘

रजत ने उस का जवाब देते हुए कहा था, ‘‘यह मेरी ड्रीम गर्ल नहीं हो सकती, क्योंकि मैं इतने अच्छे ख्वाब भी नहीं देख सकता. यह तो परफैक्ट है. और कहां मैं. ना मेरा जीवन में कोई उद्देश्य है और ना ही मैं इस की तरह परिश्रमी हूं,‘‘ बात को खत्म कर रजत वहां से चला गया था. वह नहीं चाहता था कि स्कूल में श्वेता के लिए कोई भी कुछ गलत बात करे. जिस से वह प्यार करता था, उसे बदनाम करने की कैसे सोच सकता था.

लेकिन सच तो यह था कि रजत को श्वेता के सिवा और कोई नजर ही नहीं आता था.

उसे आज भी याद है वह पहला दिन, जब उस ने श्वेता को देखा था, दो चोटियां, उन में रिबन, साफसुथरी टनाटन स्कूली यूनिफार्म, सलीकेदार और आकर्षक व्यक्तित्व.

रजत भले ही श्वेता पर दिलोजान से मरने लगा था, किंतु यह कहने की हिम्मत कभी नहीं कर पाया.

खैर, अल्हड़ बचपन से अल्हड़ जवानी तक रजत श्वेता को ही निहारता रहा. अब वह गजब के सौंदर्य की मालकिन हो गई थी. जब दोनों ने एक ही कालेज में दाखिला ले लिया, तब रजत की हिम्मत थोड़ी बढ़ी.

दोनों की दोस्ती तो स्कूल के दिनों से ही हो चुकी थी. किंतु अपने दिल की बात जबान तक लाने की हिम्मत रजत में नहीं थी. कहीं ऐसा ना हो, इस चक्कर में श्वेता उस से दोस्ती भी तोड़ बैठे.

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लेकिन श्वेता उसे अपना एक अच्छा दोस्त समझती थी. कालेज में आने के बाद श्वेता ने ही उस से अपने दिल की बात कही, ‘‘रजत, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं. और चाहती हूं कि यह बात सिर्फ हम दोनों के बीच रहे.‘‘

रजत का दिल बल्लियों उछलने लगा. शायद यही वह मौका था, जिस का उसे हमेशा से इंतजार था.

आगे पढ़ें- रजत के दिल का हाल उस के चेहरे पर…

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