Mother’s Day 2020: मम्मी की पूजा का गान नहीं उनकी मदद करें

मदर्स डे जब से भारतीय शहरी परिवारों में भी सेलिब्रेट होने लगा है तब से इस दिन के आते ही सोशल मीडिया से लेकर ट्रेडिशनल मीडिया तक में हर जगह माँ का गुणगान शुरू हो जाता है. क्या आम क्या खास. ज्यादातर लोग इस दिन अपनी माओं को बड़े पूजा भाव से याद करते हैं.सेलेब्रिटीज तो खास तौरपर अपनी माओं को धन्यवाद के सुर में, कृतार्थ होने के अंदाज में याद करते हैं. लेकिन सब नहीं तो यही ज्यादातर लोग बाकी दिनों में माँ को मशीन की तरह अपने लिए खटने देते हैं. तब उन्हें उनका जरा भी ख्याल नहीं आता.आदर का यह दैविक अंदाज बहुत खराब है.इसमें एक किस्म से तथाकथित हिन्दुस्तानी होशियारी छिपी है कि जिसकी अनदेखी करनी हो उसकी पूजा शुरू कर दो.

अगर वास्तव में हम अपनी मां को बहुत प्यार करते हैं और जाहिर है करते हैं, तो हम इस बात का संकल्प लें कि भले हम अपनी मां की पूजा न करें लेकिन उसे मशीन की तरह अपने लिए अकेले नहीं खटने देंगे.तमाम घरेलू कामकाज में उसकी मदद करेंगे. मां के कामों में हाथ बंटाने का संकल्प किसी भी मदर्स डे के लिए मां को हमारा बेस्ट गिफ्ट होगा. सवाल है ये सब कैसे होगा या हो सकता है आइये देखते हैं.

1. बच्चों की इस नवाबियत के हम भी हैं जिम्मेदार

तमाम बच्चे कोई काम करना तो दूर खुद उठाकर एक गिलास पानी तक नहीं पीते.उनको यह काम बहुत मुश्किल काम लगता है.आखिर क्यों ? क्योंकि हम उन्हें कभी ऐसा सिखाते नहीं.लड़कों को तो खास तौरपर.लड़के अपनी तरफ से घर का कोई कामकाज करने भी लगें और धोखे से उसमें कोई ऐसा काम शामिल हो जो अक्सर महिलायें करती हैं तो ज्यादातर घरों में छूटते ही कहा जाएगा, ‘क्या जनानियों वाले काम कर रहा है.दरअसल हमारे यहाँ लड़कों और लड़कियों कि परवरिश ही ऐसी की जाती है कि वह एक खास तरह की कंडीशनिंग में ढल जाते हैं. जबकि पैरेंटिंग कि समझ कहती है कि घर के काम को बच्चों के से करवाकर हम उनमें जिम्मेदारी का अहसास विकसित कर सकते हैं.

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2. वास्तविकता को साझा करें

बच्चों को घर की परिस्थितियों से अनभिज्ञ कौन रखता है ? खुद हम.यह सोचकर कि उनके मासूम कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ अभी से क्यों डालें ? लेकिन यह भी सच है कि इन्ही परिस्थतियों से जब हम तनावग्रस्त होते हैं तो अपना गुस्सा सबसे ज्यादा बच्चों पर ही उतारते हैं.तब उन्हें समझ ही नहीं आता कि माजरा क्या है ? बहरहाल कहने की बात यह है कि घर चलाने के बारे में उनसे तमाम वास्तविकताओं को साझा करके हम उन्हें ज्यादा जिम्मेदार और ज्यादा संवेदनशील बना सकते हैं. यही नहीं समय समय पर हमें उनके साथ घर की तमाम परिस्थितियों पर विचार विमर्श भी करना चाहिए.

3. जाके पैर पड़ेगी बिंवाई वही समझेगा पीर पराई

याद रखिये यदि आप चाहती हैं कि बच्चे आपके श्रम का महत्व समझें तो उन्हें भी श्रम करने दें.वे खुद श्रम करने के बाद ही किसी के श्रम का महत्व समझ पायेंगे. हमें इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए कि बच्चे अपने आसपास का माहौल देखकर सीखते हैं. इसलिए जरुरी है कि हम उन्हें ये माहौल खुद प्रदान करें. हाँ,एक बात और सिर्फ बच्चे से किसी घरेलू काम में हिस्सा लेने की उम्मीद करना नाइंसाफी होगी.बेहतर होगा कि आप भी बच्चे के साथ उस काम में शामिल हों. लेकिन इस बात की समझ भी जरुरी है कि बच्चों पर घर के कामों में शामिल होने के लिए बहुत दबाव कभी न डालें. अगर वे पूछें तो उन्हें यह भी बताएं आखिर क्यों उनसे यह सब करवाया जा रहा है. यह सब इसलिए भी जरुरी है क्योंकि रोजगार के हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों का वर्चस्व तो तोड़ रही हैं. लेकिन घर का मोर्चा ज्यादातर महिलाओं को आज भी अकेले ही संभालना पड़ता है.परिवार के लोगों से जो सहयोग उन्हें मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा है.

4. इसके लिए जरुरी है कि मानसिकता बदले

घर का काम सिर्फ महिलाओं का नहीं है-बच्चों को यह सीख बचपन से दें.क्योंकि आज के दौर में महिलाएं शिक्षा, पत्रकारिता, कानून, चिकित्सा या इंजीनियरिंग के क्षेत्र में तो उल्लेखनीय सेवाएं दे रही हैं. पुलिस और सेना में भी पुरुष सैनिकों से कंधा मिलाकर चल रही हैं.लेकिन ज्यादातर महिलाओं को पेशेवर जिम्मेदारियों के साथ ही घर की जिघ्म्मेदारी भी वैसे ही उठानी पड़ती है,जैसे उनकी माओं और दादियों को उठानी पड़ती थी.सवाल है फिर क्या बदला ? ऐसा बदलाव किस काम का जिसमें कोई एक पिसकर रह जाए.वास्तव में इससे उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है. तब लगता है कि महिलाए बिना मतलब ही दो नावों में सवार हैं. इस उलझन से बचने के लिए अपने बच्चों की सोच बदलें जिससे वो आपकी पूजा करने के भाव से निकलकर सहयोग करने की भावना में आयें.बदलते वक्त ने महिलाओं को आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक रूप से सशक्त किया है लेकिन जब तक यह मानसिकता बनी रहेगी सब बेकार है.

5. बच्चों के लिए नौकरी न छोंड़े 

कारोबारी संगठन एसोचैम द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक मां बनने के बाद 40 प्रतिशत महिलाएं अपने बच्चों को पालने के लिए नौकरी छोड़ देती हैं.यह फैसला तात्कालिक रूप से भले न असर डाले लेकिन दीर्घकालिक स्तर पर यह फैसला महिलाओं द्वारा अपने हाथ से अपने पैर पर मारी गयी कुल्हाड़ी साबित होता है.क्योंकि इसकी वजह से एक तो उनमें आगे चलकर पर्सनैल्टी टेंशन पैदा होता है,साथ ही वैयक्तिक आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ता है.बाद में ऐसी महिलाओं के लिए घरेलू मोर्चे पर परिवार को खुश रखने की जिम्मेदारी बन जाती है.कहा जाता है तुम्हे और क्या करना है.इससे सेहत पर असर पड़ता है. स्वास्थ विशेषज्ञों के अनुसार नौकरी बीच में छोड़ देने वाली महिलायें इस तनाव में कई किस्म की बीमारियों का शिकार हो जाती हैं.

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एसोचैम के ही एक और सर्वे के अनुसार 78 फीसदी ऐसी महिलाओं को कोई न कोई सेहत संबंधी समस्या पैदा हो जाती है.मसलन 42 फीसदी को पीठदर्द, मोटापा, अवसाद, मधुमेह, उच्च रक्तचाप की समस्या घेर लेती है.ऐसी 60 प्रतिशत महिलाओं को 35 से 45 साल की उम्र के बीच तक दिल की बीमारी का खतरा 10 फीसदी ज्यादा बढ़ जाता है. वास्तव में तनाव से भर जाने वाली ऐसी 80: महिलायें किसी किस्म का व्यायाम नहीं करतीं.लब्बोलुआब यह कि बच्चे आपको देवी मानकर पूजा न करें बल्कि इंसान समझकर मदद करें जिससे आपका जीवन खुशहाल रहे इसके लिए किसी और को नहीं बल्कि खुद आपको ही प्रयास करना होगा.

मेरी गरदन मेरी त्वचा से ज्यादा काली है, क्या यह ठीक हो सकती है?

सवाल-

मैं 20 वर्ष की हूं. मेरी गरदन मेरी त्वचा से ज्यादा काली है. क्या यह ठीक हो सकती है?

जवाब-

ऐसी समस्या ज्यादातर लोगों में देखने को मिलती है. इस के लिए आप कुछ घरेलू नुसखे अपना सकती हैं. नीबू और शहद को मिला कर आप इस पेस्ट को अपनी गरदन पर लगा लें. इस पेस्ट को 20 से 25 मिनट के लिए अपनी गरदन पर लगा रहने दें. ऐसा करने से गरदन के कालेपन से छुटकारा पा सकती हैं. 1 चम्मच दही में बेकिंग सोडा मिला कर पेस्ट तैयार कर लें. इस पेस्ट को अपनी गरदन के प्रभावित हिस्से पर लगा कर उस की मसाज करें. इस से आप की गरदन कुछ ही दिनों में साफ हो जाएगी. आप चाहें तो इस पेस्ट में थोड़ा सा नीबू का रस भी मिला सकती हैं. गरदन को साफ करने के लिए आप चारकोल या ब्लीच का भी उपयोग कर सकती हैं.

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आज कल गोरा और सुंदर दिखने की चाह पुरुषों या महिलाएं सभी को है. फेस पर सन टैन और चेहरे पर पड़े डार्क स्‍पॉट और पिगमेंटेशन की वजह से चेहरा काला दिखाई देने लगता है. इस चाहत में हम महंगे-महंगे स्‍किन केयर प्रोडक्‍ट आजमाते हैं. जो संवेदनशील स्किन के लिए हानिकारक होते हैं. इनके इस्‍तेमाल से कुछ दिन तो चेहरे पर असर दिखाई देता है मगर बाद में चेहरे की रंगत वैसी की वैसी ही हो जाती है. क्यों ना कुछ घरेलू उपाय करें जाएं और 10 मिनट में जादू जैसा असर पाए

1. चेहरे की रंगत मलाई से

दूध के ऊपर जमने वाली मलाई में कुदरती पोषण और मिनरल्‍स होते हैं. मलाई आपकी स्किन को निखारती है. कभी तो एक इन्फेंट की मलाई से मालिश करी जाती है. आपको सिर्फ जरूरत है  1 चम्‍मच मलाई की इसमें चुटकीभर हल्‍दी मिला कर चेहरे पर लगाएं. 10 मिनट के बाद चेहरे को हल्के हाथों से रगड़ते हुए साफ कर लें. ऐसा हफ्ते में दो बार करें.

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2. नींबू और टमाटर का उपयोग

नींबू के रस में बीज निकल हुए टमाटर का  गूदा मिलाएं और  इसे चेहरे पर लगा कर कुछ देर के लिए छोड़ दें. सूखने पर चेहरे को धो लें. यह पैक संवेदनशील स्‍किन पर बेहद कारगर है.

3. बेसन का पैक

ऑयली और मिश्रित स्किन क लिए बेसन से बना बहुत उपयोगी है. बेसन चेहरे के कालेपन को दूर करता है. इसके लिए बेसन, हल्‍दी और दही मिलाएं. इसमें एक चम्मच गुलाबजल भी मिला लें.10 मिनट के बाद चेहरे को हल्के हाथों से स्‍क्रब कर के ठंडे पानी से धो लें. इससे चेहरे के पोर्स अंदर से साफ होते हैं और चेहरा कुछ ही मिनट में गोरा दिखने लगता है.

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Mother’s Day 2020: मैं अपनी मां के त्याग को कभी नही भुला सकती- पूजा चोपड़ा

भारत में सदियों से ‘पितृसत्तात्मक सोच’के साथ साथ ‘वंश चलाने के लिए लड़की नहीं लड़का चाहिए’की सोच हावी रही है. इसी सोच के साथ लड़की के पैदा होते ही उसे मार दिया जाता रहा. अथवा लड़कियो की भ्रूण हत्याएं होती रही हंै. इसी चलन के चलते पूरे देष के अन्य राज्यों के मुकाबले पंजाब और हरियाणा में लड़कों के अनुपात में लड़कियों की संख्या बहुत कम रहती रही. यह अलग बात है कि कुछ वर्षों में इसमें सुधार आया है. अब कई नए कानून बनने व वक्त के साथ आए सामाजिक बदलाव के चलते लड़के व लड़कियों में काफी समानता की बातें होने लगी है.

मगर आज से पैंतिस वर्ष पहले 2009 की ‘मिस इंडिया’ विजेता और चर्चित फिल्म अभिनेत्री पूजा चोपड़ा का जब पंजाबी परिवार में जन्म हुआ था, तो उनके पिता ने लड़की होने के नाते उन्हे मार डालने की कोशिश की थी. पर पूजा चोपड़ा की मां नीरा चोपड़ा के विरोध के चलते पूजा चोपड़ा के पिता ने पूजा,  पूजा की बड़ी बहन शुब्रा और उनकी मम्मी नीरा को सदैव के लिए छोड़ दिया था. पूजा की मम्मी ने उसके बाद नौकरी कर अकेले ‘सिंगल पैरेंट्स’की हैसियत से उनकी परवरिश की. आज पूजा चोपड़ा एक जाना पहचाना नाम बना हुआ है. फिल्म अभिनेत्री होने के साथ साथ पूजा चोपड़ा दूसरी लड़कियों की भलाई के लिए भी कार्यरत हैं.

हाल ही में पूजा चोपड़ा से एक्सक्लूसिब मुलाकात हुई, तब उनसे उनकी जिंदगी व उनकी मां को लेकर हुई बातचीत इस प्रकार रही.

हमारे यहां लड़की के पैदा होते ही उसकी हत्या करने या भ्रूण हत्याएं होती रही हैं. कुछ हद तक आपके साथ भी ऐसा ही हुआ. आपका जन्म होते ही आपके पिता आपको व आपकी मम्मी को हमेशा के लिए छोड़ दिया था. आपको इस बात का पता कब चला कि आपके साथ ऐसा हुआ था?

-हम लोग पंजाबी परिवार से हैं. पंजाब और राजस्थान में हर कोई सिर्फ लड़के की मांग करता है. वह कहते है कि उन्हे मुंडा/लड़का चाहिए. मेरे पिता की भी ही इच्छा थी. जब मेरा जन्म हुआ, उस वक्त मुझसे बड़ी मेरी एक बहन शुब्रा चोपड़ा पहले से थी. जिसके चलते जब मैं पैदा हुई थी, तो मेरे डैडी, उनके मम्मी डैडी खुश नहीं हुए थे. सभी ने कहा कि  दूसरी कुड़ी हो गई. मुझे व मेरी मम्मी(नीरा चोपड़ा) को अस्पताल में देखने कोई नहीं आया था. हमारे यहां परंपरा है कि नवजात बच्चे को पुराने कपड़े पहनाए जाते हैं, मगर मेरे डैडी या ग्रैंडफादर वगैरह कोई भी मेेरे लिए कपड़े लेकर नहीं आया थ. मम्मी ने बताया कि उनके बगल वाले बेड पर एक लेफ्टिनेंट की पत्नी थी, उसने पुराने कपड़े मुझे पहनाए थे. जब मम्मी मुझे लेकर अस्पताल से घर पर गईं, तो माहौल अच्छा नहीं था. घर पहुंचने पर पापा ने कहा था कि, ‘यह लड़की नहीं चाहिए. इसको मार डालो. ’मम्मी ने कहा था, ‘नहीं यह तो मेरी बच्ची है. मैं इसको कैसे मार दूं. ’इस पर डैडी ने कहा था, ‘नहीं. . मुझे लड़का चाहिए. हम तीन बच्चे पैदा ही कर सकते. इसे मार दो, क्योंकि मुझे लड़की नहीं चाहिए. हम लड़के लिए फिर से कोशिश करेंगे. ’लेकिन मेरी मम्मी ने मना किया कि वह अपनी बेटी को नही मार सकती. फिर तीसरे दिन मतलब जब मैं 20 दिन की थी, मम्मी किचन में काम कर रही थी. मम्मी ने देखा कि डैड मुझे कुछ कर रहे थे. वास्तव में मेरी दीदी ने मम्मी को बताया. मम्मी ने किसी तरह मेरे डैड के हाथों से मुझे छुड़ाया.

 

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Can safely say, something’s in life just never change 😝 #majorthrowback #throwbackthursday

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फिर मम्मी ने उसी समय पुराने, उन दिनों अल्यूमिनियम का ट्रंक होता था, उसमें कपड़े डाले. मुझे गोद में लेकर दीदी का हाथ पकड़कर डैड से कहा कि ‘मैं घर से जा रही हूं. यदि नही गयी, तो आप मेरे बच्चों को मार देंगे. ’इस पर मेरे डैड ने रोका नहीं बल्कि कहा-‘इस घर से बाहर जा रही है, यह तो अच्छी बात है. मैं यही चाहता हूं. पर वापस मत आना. अगर वापस आएगी भी तो बड़ी बेटी शुब्रा को ही लेकर आना. ’मां ने कहा कि, ‘हमारी दो बेटिया हैं. मैं इन दोनो के बिना नहीं रह सकी. ’फिर मां वहां से चल दी. डैड ने भी रोका नहीं. कुछ दिन बाद मेेरे डैड ने दूसरी षादी कर ली. उसके बाद मम्मी ने ही हम दोनों को अकेले पढ़ाया, लिखाया व बड़ा किया. उन्होने हम दोनो को अच्छी परवरिश दी और हम आज इस मुकाम पर हैं.

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हमें अच्छी परवरिश देने के लिए मेरी मम्मी ने नौकरी करनी शुरू कर दी थी. मेरी मम्मी आज भी पुणे के ‘मेन लाइन चाइना’में काम कर रही हैं. दीदी की शादी हो गई है.  दीदी खुश है. डैड से मैं कभी मिली नहीं. मैंने डैड की फोटो जरूर देखी है, पर मैं कभी भी उनसे मिली नहीं.  मैंने उनसे कभी भी फोन पर भी बात नहीं की. मेरे डैड या उनके परिवार के किसी भी सदस्य ने हम लोगों से कभी संपर्क नहीं किया.

2009 में जब मैं ‘मिस इंडिया’ चुनी गयी और टीवी पर मेरी मां के इंटरव्यू आए, तब मेरे डैड के परिवार से मेरी बुआ ने मेरी मम्मी को फोन करके पूछा था कि, ‘यह चोपड़ा की दूसरी बेटी है. ’. बुआ ने टीवी में मुझे देखकर नही पहचाना था, क्योंकि वह मुझसे कभी मिली ही नहीं थी. पर मेरे जन्म से पहले उन्होने मम्मी के संग कई वर्ष बिताए थे. मम्मी के इंटरव्यू तो हर जगह हुए थे, ताकि सबको पता चले मेरी कहानी क्या है. मम्मी से कई न्यूज चैनल ने इंटरव्यू लिया था. उन्होंने मम्मी को पहचाना. मेरी बुआ ने मम्मी से पूछा कि, ‘यह चोपड़ा की छोटी वाली लड़की है. ’इस पर मां ने कहा कि, ‘जी वही बेटी है, जो तुमको नहीं चाहिए थी. ’मिस इंडिया’से मिली शोहरत से मम्मी बहुत खुश थीं. मैं आज भी कोशिश करती हूं कि उनको खुश कर सकूं. क्योंकि मुझे लगता है जो सैक्रिफाइस उन्होंने हमारे लिए किया है, वह कम लोग ही करते हैं.  मेरे लिए मम्मी और दीदी ने बहुत त्याग किया है. उसको मैं कभी वापस नहीं कर पाऊंगी. मैं कभी भी उनके द्वारा किए गए सैक्रिफाइस को भुला नहीं सकती.

किस उम्र में आपको पहली बार अहसास हुआ कि आपकी मम्मी व आपके साथ आपके पिता ने ऐसा किया था. और उस वक्त आपकी अपनी क्या प्रतिक्रिया थी?

-पिता के कृत्य के बारे में मम्मी ने मुझसे कभी नहीं कहा. मेरी बहन ने मुझे बताया था. मेरी मम्मी ने कभी भी मुझे इन सारी बातों के बारे में नहीं बताया था. उन्होने मुझे कभी अहसास भी नहीं होने दिया था कि मेरे जन्म की वजह से मम्मी ने इतनी मुश्किलें सहन की है. उन्होने मुझे इसका अहसास आज तक नहीं कराया. लेकिन जब मैं नौंवीं कक्षा में थी, तब मैंने महसूस किया कि मेरी बहन मेरे से बहुत ज्यादा कड़क है. मेरी बहन चाहती है कि मैं पढ़ाई में फर्स्ट आउं. वह चाहती है कि एलोकेशन,  ड्रामा, गायन में भी पहले पायदान पर रहॅूं. जब मैं पढ़ने की बजाय मस्ती करती थी, तो दीदी कहती थी, ‘मुझे पता है कि मुझे क्या करना है. पर तुझे नहीं पता तेरी वजह से मम्मी ने इतना सब कुछ सहा है. तेरी वजह से यह सब हुआ है. ’यूं तो वह भी छोटी थी. मुझसे सिर्फ 8 साल ही बड़ी है.  पर उस समय वह कॉलेज में थी. तो उसको ऐसा लगता था कि मैं ऐसा कुछ काम करूं, जिसकी वजह से मेरी मम्मी को गर्व महसूस हो. दीदी के जेहन में यह बात थी. मम्मी नौकरी पर चली जाती थी, पर दीदी मेरे साथ रहती थी. नौवीं क्लास में जब दीदी ने मुझे टुकड़ों टुकड़ों में थोड़ा-थोड़ा बताया, तो मुझे अपने डैड पर बहुत गुस्सा आया. जब मैं कॉलेज में पढ़ने के लिए पहुंची, तब पूरी कहानी सही ढंग से पता चली कि मेरे जन्म के बीस दिन बाद ही मेरे डैड ने हम सभी को लावारिस कर दिया था.

लेकिन मेरी दीदी ने मुझे हर चीज के लिए बहुत आगे बढ़ाया. मैं पढ़ाने में तेज थी. अपनी दीदी की वजह से ड्रामा और एलोकेशन में बहुत अच्छी थी. ‘मिस इंडिया’बनने में  मेरी दीदी और मेरी मम्मी दोनों ने मेरा सहयोग दिया था. पर मेरी दीदी मुझे बहुत ज्यादा आगे धकेलती रहती थी. वह बार बार यही कहती थी कि ‘तुम्हें कुछ करना है. . . तुम्हें कुछ करना है. . ’मेरी दीदी आज भी कहती हंै कि मुझे अभी और आगे जाना है. मेरी मम्मी और मेरी दीदी, मेरी जिंदगी में बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं और हमेशा रहेंगे.

आपकी मम्मी ने आपको कुछ नहीं बताया. लेकिन आपकी दीदी ने बताया होगा कि आपकी मम्मी को किस ढंग के ताने सुनने पड़ते थे? या किस तरह की तकलीफ से गुजरना पड़ा?

-जब हमारे डैड ने हमें छोड़ा, उस वक्त दीदी आठ साल की थी. समझदार नहीं थी. इसलिए दीदी को भी इतना ज्यादा याद नहीं है. पर जो दीदी को याद था, वह सब मैने आपको अभी बताया. डैड का घर छोड़कर मेरी मम्मी हम लोगों को लेकर नाना  नानी के घर गयी थीं. तेा जब हम नानी के घर गए थे, उस वक्त नानी के घर पर जो बातें होती थी, उन्हें मैं तो एक माह की भी नहीं थी, इसलिए समझ नहीं सकती थी. लेकिन दीदी तो सुनती थी. जब कोई बच्चा 8 – 9 साल का हो, तो उसको कुछ बातें समझ में आती हैं. दीदी ने मुझे बताया कि वह  अक्सर मम्मी और मामा के बीच हाने वाली बातें सुना करती थी. नानी के साथ होने वाली बातें भी सुनती थीं.  लेकिन मेरी मम्मी ने कभी भी मुझसे या दीदी से इस बारे में कुछ नही कहा.

आप ऐसे पिता के लिए क्या कहना चाहेंगी?

-ऐसे पिता या पुरूष के बारे में कुछ न कहना ही बहुत होगा. यह सच है कि मम्मी ने मुझे और दीदी को आज इस मुकाम तक पहुंचाया है, जहां मैंने अपना खुद का मुकाम हासिल किया है. मम्मी ने अकेले काम कर कर हम दोनों को इस मुकाम तक पहुंचाया है. उन्होने मुझे और दीदी को इतनी अच्छी पढ़ाई शिक्षा दी है. इतनी अच्छी परवरिश दी है. उन्होंने हमे लोगों से नफरत नहीं, प्यार करना सिखाया.  मुझे लगता है कि यही मेरे पिता के लिए एक जवाब है. मैं यह नहीं कहूंगी यह उनके लिए तमाचा है. पर यह अपने आप में उनके लिए एक जवाब है. मेरी मम्मी ने भी कुछ ना कहकर भी बहुत कुछ कह दिया है.

आपके जीवन में घटी इस घटना को 35 वर्ष बीत चुके हैं. अब समय व समाज बदला है. इस बदले हुए समय में आप क्या-क्या महसूस कर रही हैं?

-बहुत सारी चीजें बदल गई हैं. बहुत ज्यादा चीजें बदल गई हैं. उन दिनों जब लड़कियां शादी करती थीं, तो वह स्वतंत्र नहीं थी. कामकाजी नहीं थी. उस समय वह पूरी तरह से अपने पति पर निर्भर थीं. आज ऐसा नही है. आज सब कुछ बदल गया है.  आज अगर आपको तलाक लेना है,  तो ले सकते हो, कोई आपके उपर छींटाकशी नही करेगा. आज सब कुछ बराबरी में होता है. मेरी मम्मी ने मेरे डैडी से कुछ नही लिया. स्त्री धन भी नहीं लिया था. कोई हर्जाना, कुछ भी नहीं लिया था. सिर्फ एल्यूमीनियम के ट्ंक में दो जोड़ी कपडे़, मुझे व दीदी को लेकर ही घर सेे निकली थीं. मुझे लगता है कि आज की औरतें बहुत स्वतंत्र हैं. उनको नीचा नहीं दिखाया जाता. ‘तलाकशुदा’के टैग को पहले बहुत बुरा माना जाता था, अब ऐसा नहीं है. लड़कियों को आज बराबरी का हक देते हैं. अगर आज से 30-35 वर्ष पहले लड़कियों को मार दिया जाता था, तो मैं यह नहीं कहूंगी कि आज यह एकदम बंद हो गया है. अभी भी ऐसा हो रहा है, पर उस तादात में नही. . अब रेशियो बहुत ज्यादा कम हो गया है. मेरी राय में यह बदलाव बहुत अच्छा है. मुझे लगता है कि आने वाले समय में इसमें काफी बदलाव आएगा. समाज ज्यादा अच्छा होगा, बेहतर होगा. लड़कियों को समानता मिलेगी. लड़की हो या लड़का बच्चे हैं और दोनो आगे जाकर माता पिता का नाम रोशन करेंगे, यह सोच विकसित होगी.

लड़की और लड़के को समान नजर से देखा जाए, इसके लिए आप क्या करना चाहेगी?

-मुझसे जितना संभव है, वह मैं आज तक करती आ रही हूं. आगे भी करती रहूंगी. ‘मिस इंडिया’जीतने के बाद मै ‘मिस वल्र्ड’के सेमी फाइनल तक पहुंची थी, पर पैर फ्रैक्चर हो जाने के चलते मैं ‘मिस वल्र्ड’बनने से वंचित रह गयी थी. पर उस वक्त मुझे दस हजार अमरीकन डालर मिले थे, जिसे मैने ‘नन्ही कली’सस्था को दान कर दिए थे. मैं भी ‘नन्ही कली’से जुड़ी हुई हॅूं. मैं ‘नन्ही कली’के कुछ बच्चों को पढ़ाती हूं, जिनके छमाही और वार्षिक रिजल्ट मेरे ईमेल पर आते रहते हैं. मैं ‘नन्ही कली’की अपनी लड़कियों की पढ़ाई और उनकी एक्स्ट्रा एक्टिविटी के बारे में लगातर जानकारी लेते रहती हॅूं. जहां भी औरतों को कुछ करना होता है, चाहे पढ़ाई करनी हो, हेल्थ हाइजीन हो, जितना भी मुझसे संभव हो पाता है, मैं थोड़ा भी सहयोग दे सकती हूं मैं हमेशा ऐसे चैरिटेबल इंस्टिट्यूट के साथ काम करती हूं.

आपकी जिंदगी पर भी छोटी सी फिल्म बनी है. क्या आपने इस फिल्म को देखा है?

-मैं ऐसा नहीं कहूंगी कि यह मेरी जिंदगी पर है. क्योंकि असली स्ट्रगल/संघर्ष तो मेरी मां का था. मैं तो सबसे छोटी थी, मुझे तो मेरी मम्मी और दीदी ने बचाया है. दुनिया वालों की बातें, कड़वाहट वगैरह सब कुछ मेरी मम्मी ने सहा है. मुझे लगता है कि यह सब आज से 30 -35 वर्ष पहले बहुत मुश्किल रहा होगा. लेकिन जब मेरी मम्मी हमारे सामने आती थी, तो उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट रहती थी. हमने कभी भी मम्मी को रोते हुए नहीं देखा. हमारे सामने तो वह कभी नहीं रोई. दीदी ने भी मुझे बहुत प्रोटेक्ट किया. तो यह मेरी जिंदगी का संघर्ष नहीं है.

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कनाडियन फिल्म मेकर निशा पाहुजा ने डाक्यूमेंटरीनुमा नब्बे मिनट की फिल्म‘‘वर्ल्ड बिफोर हर’’2012 में बनायी थी. निशा पाहुजा 2009 में ‘मिस इंडिया’से मेरी यात्रा को देखने के साथ ही मेरी जिंदगी को भी समझ रही थीं. मेरी जिंदगी की कहानी पहली बार मेरे ‘मिस इंडिया’जीतने पर ही सामने आयी थी. निशा की इस फिल्म को अनुराग कश्यप ने प्रजेंट किया था. इस फिल्म के लिए निशा ने मेरी मम्मी से इंटरव्यू किया था. इस फिल्म को देखते वक्त मेरी आंखों में भी आंसू आ गए थे.  मुझे लगता है मेरी मम्मी इस फिल्म की हीरो हैं.

आपने अपनी मम्मी के संघर्ष के चलते या अपनी दीदी की सलाह पर ‘मिस इंडिया’’के लिए तैयारी की थी?

-दोनों की ही नहीं थीं. दरअसल मेरा ही मन था. मेरे दिल ने कहा कि मुझे‘मिस इंडिया’के लिए कोशिश करनी चाहिए. मम्मी तो आज भी यही कहती है कि, ‘आपको जो करना है,  वह करो. जिसमें आपकी खुशी हो,  वह करो. ’जब मेरी मौसी कहती हैं कि अब पूजा की भी शादी करा दो, तो मेरी मम्मी कहती हैं, ‘नहीं, अगर बेटी को जिंदगी में कुछ करना है, तो वह करे. मैं जबर्दस्ती उसकी षादी नहीं करूंगी. पूजा खुश है, तो उसी में मेरी खुशी है. ’मेरी दीदी को शादी करनी थी. हम पंजाबी हैं, मगर दीदी को कैथलिक लड़के से शादी करनी थी. मम्मी ने उससे कहा कि यदि वह इस शादी से खुश रह सकती है, तो कर ले. और आज वह सच में बहुत खुश है.

जब मैं छोटी थी. जब मैं स्कूल में पढ़ती थी, तब मैं अपनी मम्मी से कहती थी कि मुझे आईएएस ऑफिसर बनना है. जब मैं कॉलेज में गई, तो मैंने मम्मी से कहा कि मुझे मॉडलिंग करना है. मम्मी ने कहा ठीक है. जब ‘मिस इंडिया’में जाने की बात कही, तो भी उन्होने कहा ठीक है. मैंने मम्मी से कहा कि ‘मिस इंडिया’प्रतियोगिता में मुझे भाग लेना है, तो मम्मी ने कहा ठीक है. यह तो अच्छी बात है. मतलब मैं और दीदी चाहे जो करना चाहे, जिंदगी में मेरी मम्मी ने मना नहीं किया. आज अगर मैं मम्मी से कह दूं कि मुझे फिल्म इंडस्ट्री छोड़कर बिजनेस करना है, तब भी मेरी मम्मी कहेंगी कि ठीक है. वह बहुत सहयोगी है. उन्होने हमें इतना इंटेलीजेंट व  इतना स्ट्रांग बनाया है कि मुझे पता है कि उन्हे मुझ पर यकीन है कि हम गलत राह पर नही जाएंगे. हम हमेशा अच्छा काम करेंगें. हम ऐसा कोई काम नहीं करेंगे, जिससे उनकी इज्जत या लाज पर आंच आए.  वह हमेशा कहती है कि वह हमेशा मुझे सहयोग देंगी, फिर मै चाहे जो काम करना चाहे. इससे ज्यादा सहयोग एक लड़की अपनी मां से क्या मांग सकती है.

Mother’s Day 2020: मां जल्दी आना

Hyundai #WhyWeLoveTheVenue: इंफोटेनमेंट

हुंडई वेन्यू के डैशबोर्ड पर जो चीज सबसे पहले आपका ध्यान खींचेगी, वो है इसका 20.32 सेमी वाला, हाई-रेजोल्यूशन, कैपेसिटिव टचस्क्रीन. इस स्क्रीन की मदद से आप वेन्यू के सभी इंफोटेनमेंट फीचर्स का इस्तेमाल कर सकते हैं.

हमने पहले ही ब्लूलिंक कनेक्टेड कार इंटरफेस के बारे में बात की है, जिसे आपके फोन और इस टचस्क्रीन, दोनों से एक्सेस किया जा सकता है. इसके अलावा, वेन्यू एप्पल कारप्ले, एंड्रॉयड ऑटो, और सेटलाइट नेविगेशन सिस्टम जैसे फीचर्स के साथ लैस आता है.

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जब आप अपने फोन को कार में प्लग करेंगे तो यह तुरंत आपके फोन की स्क्रीन मिररिंग ऐप (mirroring app)को दिखाएगा,जिस से आप डिसट्रेक्शन फ्री ड्राइविंग का अनुभव ले सकेंगे. यदि आपके फोन में सिगनल आना कम हो जाता है, तो वेन्यू सेटलाइट नेविगेशन सिस्टम की मदद लेता है, जो मई मेप इंडिया (MapMyIndia)द्वारा संचालित है.

यह मैप बेहद विस्तृत और सटीक हैं, यहां तक कि यह ग्रामीण एरिया को भी विस्तार से दिखाता है, जिस से हमें घर का रास्ता खोजने में मुश्किल नहीं होगी. इंफोटेनमेंट सिस्टम एक मुख्य कारण है जिस वजह से हम वेन्यू से प्यार करते है.

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भारत के ठंडे रेगिस्तान के नाम से जाना जाता है लद्दाख, ट्रिप करें प्लान

गर्मियां आ चुकी हैं, ऐसे में ज्यादातर लोग हिल स्टेशनों की ओर रूख कर रहे हैं. गर्मियों के मौसम में वीकेंड पर सबसे ज्यादा भीड़ हिल स्टेशनों पर होती है. ऐसे में हिल स्टेशनों पर काफी लोगों को भीड़भाड़ के बीच सुकून नहीं मिल पाता. अगर आप भी गर्मियों में राहत के कुछ वक्त तलाशने के लिए जाना चाहती हैं, तो हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी जगह के बारे में जो सबसे पौपुलर लोकेशन्स में से एक है लेकिन वहां उत्तराखंड और हिमाचल के हिल स्टेशनों की तुलना में भीड़ कुछ कम देखने को मिलती है. आज हम आपको सैर करवाएंगे लद्दाख की. लद्दाख को भारत का कोल्ड डेजर्ट यानी ठंडा रेगिस्तान भी कहा जाता है और यहां जाना किसी भी टूरिस्ट के लिए कभी न भूलने वाला एक्सपीरियंस होता है.

लद्दाख का सबसे बड़ा और खूबसूरत शहर लेह

समुद्र तल से 3 हजार 500 मीटर की ऊंचाई पर उत्तर में कुनलुन पर्वत और दक्षिण में हिमालय के बीच स्थित है छोटा-सा शहर लेह जो लद्दाख का सबसे बड़ा शहर है और यहीं पर सबसे ज्यादा पर्यटक आते हैं. मई के अंतिम हफ्ते से सितंबर तक लद्दाख जा सकती हैं. यहां सड़क या हवाई मार्ग से ही पहुंचा जा सकता है. सड़क से जाना चाहें, तो एक रास्ता मनाली और दूसरा श्रीनगर होते हुए जाता है.

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दोनों ही रास्तों पर दुनिया के कुछ सबसे ऊंचे दर्रे यानी पास पड़ते हैं. मई से पहले और सितंबर के बाद यहां भारी बर्फ जम जाने की वजह से ये दर्रे बंद हो जाते हैं. लेह लद्दाख का हेडक्वार्टर है. लद्दाख देखने के लिए कम से कम 6 दिन का समय जरूर रखें. अगर इस इलाके को अच्छी तरह देखना चाहें, तो 1 से 2 हफ्ते का समय पर्याप्त है.

ऐसे करेंगे प्लानिंग तो आएगा दुगुना मजा

  • पहले दिन (मनाली वाले रास्ते पर) लेह से शे, थिक्से और हेमिस मोनेस्ट्री के अलावा स्तोक पैलेस और सिंधु नदी के तट पर जा सकती हैं.
  • दूसरे दिन (श्रीनगर वाले रास्ते पर) लेह से आल्ची और लिकिर मोनेस्ट्री के अलावा मैग्नेटिक हिल जा सकती हैं.
  • तीसरे दिन दुनिया की सबसे ऊंची सड़क देख सकती हैं, (नुब्रा घाटी वाले रास्ते पर) खारदुंगला जाते हुए.
  • इसके अलावा समय और हो, तो 2 दिन नुब्रा घाटी और 2 दिन पैन्गौन्ग लेक के लिए रखें.

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घूमने से पहले याद रखें ये बातें

यह ठंडा रेगिस्तान है, इसलिए यहां का मौसम हमेशा बदलता रहता है. सर्दियों में यहां का तापमान 0 डिग्री से -28 डिग्री के बीच होता है जबकि गर्मियों में 3 डिग्री से 30 डिग्री के बीच, इसलिए अगर आप मेडिकली फिट हैं, तो ही आप यहां आए.

VIDEO : समर स्पेशल कलर्स एंड पैटर्न्स विद द डिजिटल फैशन

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ऑफलाइन से ऑनलाइन तक का सफर कितना आसान कितना मुश्किल!

लॉक डाउन में मानव जन-जीवन में बड़ी बदलाव आया है. शहर के बाजार से गाँव के हार्ट तक सब बंद है. लॉक डाउन में दुनिया के अधिकतर काम घर से ही हो रहे है, इस तरह दुनिया भर में ऑनलाइन का सफर जोरो पर है. यह सफर उनके लिए आसान है, जो पहले से इंटरनेट से परिचित है और उसके उपयोग से परिचित है . उसके लिए यह  युग खास बनकर उभरा है, लेकिन जिन्होंने आज तक इंटरनेट का बस नाम सुना है कोई उपयोग नहीं  किया है, उनके लिए यह योग एक संघर्ष का युग है, तो आइये जानते है किसके लिए ऑनलाइन खास है तो किसके लिए मुश्किल भरा.

1. कई क्षेत्र जहां ऑनलाइन कामकाज संभव नहीं है

आज भी कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां ऑनलाइन कामकाज संभव नहीं है . इंजीनियरिंग, निर्माण क्षेत्र, चिकित्सा, पर्यटन आदि कई सेक्टरों के कामकाज मोटे तौर पर ऑनलाइन नहीं हो सकता है. आधारभूत सुविधा प्रदान करने वाले कार्य जैसे- सड़क निर्माण, सामुदायिक भवन निमार्ण , पंचायतो में तालाब और अन्य जल स्रोतों का निर्माण या मरम्मत कार्य ऑनलाइन संभव नहीं है. हालांकि इधर वर्चुअल टूरिज्म को साकार करने की कोशिशें भारत में भी हो रही हैं, जिसका मकसद फौरी तौर पर दुनिया भर के पर्यटकों को घर बैठे भारत दर्शन कराना है .

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2. कई क्षेत्र जहां ऑनलाइन कामकाज में कोई खास दिक्कत नहीं है

ऐसे क्षेत्र में ऑनलाइन कामकाज संभव है,  आईटी सेक्टर तो काफी समय से ऐसे इंतज़ामों को आज़मा रहा है, पर कई तरह के वित्तीय, पेटेंट, कानूनी सलाह, लेखन-पत्रकारिता आदि नई शैली के कामकाज में भी साबित हुआ है कि इनके लिए दफ्तर जाने की ज्यादा ज़रूरत नहीं है . इनसे जुड़े ज्यादातर कामकाज घर बैठे ही निपटाए जा सकते हैं . तेज़ ब्रॉडबैंड और वेबकैम जैसी आधुनिक तकनीकें भी मददगार साबित हो रही हैं .

3. इस क्षेत्र में आएगा क्रांतिकारी बदलाव

कई ऐसे भी क्षेत्र जिनके लिए यह ऑनलाइन का युग एक क्रांतिकारी बदलाव वाला युग बनकर आएगा,आईटी सेक्टर का कार्य ऑनलाइन होने से कई प्रोफेसनल को घर से काम करने की और अधिक आजादी मिलेगी,लेखन कार्य में स्वतंत्र लेखकों के लिए भी यह समय नया अवसर लेकर आया है. पत्रकारों के लिए भी हर प्रेस कॉन्फ्रेंस में सशरीर उपस्थित होना ज़रूरी अब नहीं है. अब ऐसा सरकारी पत्रकार वार्ताओं में भी दिख रहा है, जो ऑनलाइन यानी ईकॉन्फ्रेंस के रूप में आयोजित कराई जा रही हैं. यही नहीं, इस लॉकडाउन के बावजूद सभी ने देखा है कि अखबारों का छपना नहीं रुका है. बैंकिंग कामकाज जारी हैं, शेयर बाजारों में भी हलचल हो रही है. शिक्षा क्षेत्र में भी बदलाव आना तय है. देशव्यापी बंदी के कारण देश के अधिकतर शैक्षिक संस्थान अपनी क्लास ऑनलाइन चला रही है. स्कूल  से कॉलेज तक ऑनलाइन का जो प्रभाव अभी पड़ा है. यह लॉक डाउन के बाद भी काफी स्तर तक अपना छाप छोड़ेगा .

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नानी का प्रेत: भाग-2

अकसर बैडरूम और खिड़की के आसपास डस्टिंग करते हुए एक शलवार कमीज पहने लाल बालों वाली एक डैनिश महिला दिखती. हर बार जब वह दिखती, तो सुषमा सोचती अगर इस वक्त कौसर दिखे तो वह उस से यह पूछने में नहीं चूकेगी कि आखिर यह महिला है कौन.

एक दिन कौसर बाहर निकल कर आ भी गई. वह लाल बालों वाली मैडम इस समय भी डस्टिंग में लगी थी. सुषमा ने दुनियाभर की बातें कर डालीं, तब तक डेजी भी आ गई थी. अचानक कौसर बोल उठी, ‘‘वैसे हसबैंड के बजाय आप ने कपड़े कैसे फैलाने शुरू कर दिए?’’

पहले तो सुषमा थोड़ी सहमी, फिर बोली, ‘‘हमारे यहां हर काम बांट कर करते हैं. इस में क्या खराबी है?’’

उस का इतना कहना  था कि डेजी ने फौरन अपना सुर्रा छोड़ दिया, ‘‘हांहां, आप ने हसबैंड का हाथ बंटाया, इस में क्या खराबी हो सकती है?’’ और दोनों औरतें खिलखिला कर हंसने लगीं.

सुषमा को उन का हंसना अच्छा नहीं लगा. उस की नजर एक बार फिर उस लाल बालों वाली महिला पर पड़ी और वह पूछ बैठी, ‘‘आप के कमरे में कौन सफाई कर रही हैं?’’

खिसियाने की अब इन दोनों की बारी थी. किस मुंह से कहतीं, जब ब्याह कर कौसर कोपनहेगन आई थी तो घर में मियां और देवर के अलावा, इन लाल बालों वाली को भी पाया था. डेजी तो चुप रही. अपनी खनकती आवाज में कौसर ने ही जवाब दिया, ‘‘ये तो मेरी आपा हैं.’’

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एक और सबक जो नानी ने सुषमा को सिखाया, वह था कि सुंदर तो तुम हो लेकिन असली सुंदरी वह है जो अंगअंग से सुंदर हो, हर तौर से सुंदर. जो बात बोले, ऐसे जोर दे कर बोले कि सुनने वाले को उस का परम दरजा महसूस हो. नाक उठा कर बोले, जब बोले, ‘मैं लेडी श्रीराम कालेज का माल हूं,’ तो यह लगे कि सामने मिसेज प्रसाद नहीं वरन शंभु नाम के बंदर के साथ खुद लेडी श्रीराम खड़ी हैं.

‘ज्यादा खुश न दिखा करो. थोड़ा चिड़चिड़ाना सीखो,’ नानी ने उस के दिमाग में यह बात भी डालनी शुरू कर दी. वह पूछेगा, ‘अब क्या हुआ जानी.’

तुम उस को जवाब घूर कर देना. ऐसे घूरना कि वह वहीं का वहीं गड़ा रहे. थोड़ा रुक कर ही कहना, ‘दिनभर खुद तो मटरगश्ती करते हो और मैं घर में पड़ेपड़े सड़ती रहती हूं.’

उस ने ऐसा ही किया. शंभु ने इस पर बड़े प्यार से, जानीजानू कह कर उस से कहा, ‘‘तुम यहां की कम्यून द्वारा चलाई गई डैनिश भाषा की क्लासेस में क्यों नहीं जातीं? कुछ यहां की भाषा भी सीख लोगी और नए लोगों से मिलोगी तो मन बहला रहेगा.’’

इस पर सुषमा ने जो जवाब दिया उस पर गौरव महसूस किया नानी ने, ‘‘क्यों, मुफ्त वाली क्लासें क्यों जौइन करूं मैं? क्या मैं किसी गएगुजरे खानदान से आई हूं कि अनपढ़गंवार इमिग्रेंट लोगों के साथ बैठ कर क्लास में जाऊं? याद रखो, मैं लेडी श्रीराम की पढ़ी हूं.’’

शंभु की इतनी हैसियत नहीं थी कि सुषमा को प्राइवेट क्लास के लिए भेज पाता, सो अपना सा मुंह ले कर औफिस चला गया.

सुषमा ने यह पाठ ठीक से सीख लिया था और अकसर ऐसे ही तुनक कर बोलती थी. शंभु पर भी लगता है इस का असर हुआ. बेहतर, ज्यादा कमाई वाला काम ढूंढ़ने में लग गया. अमेरिका में भी काम की खोज शुरू कर दी. इधर बिना कुछ कहे, सुषमा ने कम्यून की क्लासें लेनी शुरू कर दीं. नए दोस्त बने. जिम भी जाने लगी. जीवन में काफी सुधार आ गया. मगर शंभु के साथ तुनकमिजाजी बरकरार रही.

एक बार तो शंभु के साथ अपने नए डैनिश मित्रों के यहां गई. उन के यहां के कुत्ते को बड़े प्यार से पुचकारने लगी, उस को दुलारने लगी. फिर एक नजर शंभु पर डाली. उसे कुत्तों से डर लगता था. दूर, सीधा सा खड़ा था. डैनिश मित्रों ने कहा कि हम कुत्ते को बाहर कर देते हैं तो जोर से सुषमा बोली, ‘‘अरे, क्या बात कर रहे हैं? यह हमारा घर है या कुत्ते का? कुत्ता क्यों बाहर जाएगा? नहीं, इसे बाहर न करिए,’’ फिर शंभु पर नजर फेंक कर जोर से हंसने लगी, ‘‘वह देखिए, कैसे पथरा गया है शंभु?’’

अब शंभु पिटापिटा सा दिखने लगा था. रोज औफिस जाता, ज्यादा काम करने लगा था, देर से वापस आता, चुप सा, डरा सा रहता. सुषमा को बातबात पर उस का मजाक उड़ाने का चसका लग गया. नानी को वह पलपल की खबर देती. नानी को सुकून मिलता कि उस की सुषमा तैयार हो गई.

नानी ने उसे एक और सीख दी कि ‘‘बेटा, जो भी हो, है तो तेरा पति. तू ने पति को अंगूठे के नीचे रखना सीख लिया. अच्छा है. मगर ऐसा न होने देना, मेरी बेबी, कि वह तुझ से नफरत करने लगे. औरत के जीवन में भावों के थान भरे हैं. प्रेम तो सिर्फ एक कतरन है. इस के लत्ते उड़ जाएं, कुछ ज्यादा नुकसान नहीं होता. मगर इस कतरन में एक डोरा है जो काम का है, वह है वासना वाला डोरा. वह गोश्त के उस रेशे की तरह होता है जो महीन होने के बावजूद, दांत से काटो, नहीं कटता. बस, वह वासना वाला डोरा संभाल के रखना.’’

यह बात सुषमा ने ठीक से नहीं सुनी क्योंकि इस बात पर वह जोर से हंस दी.

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शंभु पर तो सुषमा ने नानी का फार्मूला आजमाया नहीं पर कहीं और चल गया. शंभु के औफिस जाने के बाद वह देर तक कटोरे में परसे कौर्नफ्लैक्स को देखती और मंदमंद मुसकराती रहती. अब वह बहुत बेचैनी से इंतजार करती कि कब जिम जाने का टाइम हो, कपड़े बदले. जिम के लिए निकलते समय लगता मानो वह उड़ रही हो.

हुआ यह कि एक दिन जिम में बड़ी देर से वह साइकिल चला रही थी. किताब जो अब हरदम साथ रखती है, उसे पढ़ रही थी. तभी जिम सहायक 35-40 साल के एक अंधे आदमी को सहारा देते हुए उस ट्रेडमिल पर ले आया जो सुषमा की साइकिल के बगल में थी. उसे थोड़ी हैरानी हुई, सोचा कि एक अंधा आदमी ट्रेडमिल पर चढ़ेगा? थोड़ी देर उस की गति ही देखती रही. अभी 5 मिनट भी नहीं बीते होंगे उसे शुरू हुए, अचानक वह बोला, ‘‘इतनी अच्छी महक, लगता है आज मेरा लकी डे है. मिस वर्ल्ड के निकट रहने को मिल रहा है.’’

आगे पढ़ें- सुषमा ने सिर हिला दिया. फिर…

नानी का प्रेत: भाग-1

सुषमा की शादी हुई थी और वह पहुंच गई थी मानव लोक के डैनमार्क देश की खूबसूरत कोपनहेगन नगरी में. शुरू में इस गजब के शहर में पहुंच कर वह अपना अहोभाग्य ही मानती रही. चारों तरफ लंबे, सुनहरे बालों वाली जलपरियों समान लड़कियां, लंबेतड़ंगे गबरू जवान, हंसों से लदे तालाबों वाले हरेहरे उपवन, मजबूत खड़े मकान, चौड़ी मगर खाली सड़कें. धूप हो, पानी बरसे या बर्फ गिरे, यहां के लोगों को अपनी साइकिलें ऐसी प्यारी हैं जैसे पुराने जमाने के राजपूतों को अपनेअपने चेतक थे. पता चला कि इतनी आराम की जिंदगी बिताते हैं ये डैनिश लोग कि यहां के हर 10वें आदमी को शराब की लत लगी हुई है और हर दूसरा जोड़ा बिना मनमुटाव के शादी तोड़ देता है. मालूम चला कि यहां शादियां इस वजह से टूटती हैं कि यहां की औरतें अपने जीवनकाल में अन्य आदमी भी आजमाना चाहती हैं.

सुषमा सुंदर तो थी ही, जब उस की शादी उस लड़के से तय हुई जो दूसरे देश में इंजीनियर था तो सब ने खुशी जाहिर की थी. पर कोपनहेगन आ कर उसे कुछ ही दिनों में पता चल गया कि वह ऐसे देश में है जहां की बोली उस के लिए गिटपिट है.

पढ़ीलिखी होने के बावजूद वह न काम कर सकती है न बाहर जा कर लोगों से बातें. पति शंभु और उस के परिवार वालों पर सुषमा को बड़ा गुस्सा आया. सुषमा के लिए कई अच्छे रिश्ते आए थे और दोएक अमेरिका के भी थे. उसे लगने लगा कि उन लोगों ने लड़की ले कर ठग लिया था और जो हुआ था वह घाटे का सौदा था.

सुषमा ने नानी को फोन किया. वे थीं तो पुराने जमाने की पर थीं बहुत ही चतुर. उन्होंने सुषमा के पिता को जीवनभर मां की जीहुजूरी के लिए मजबूर किया. उन्हें कम पढे़लिखे होने के बावजूद जिंदगी का पूरा अनुभव था. सुषमा के नाना उन के इशारों पर नाचते थे और पिता ही नहीं सुषमा के दादादादी भी उन के हाथों नाचते रहे. ऊपर से मौसियां भी, जिन्होंने मां को औरत के सब हथियार सिखाए. नानी ने तय कर लिया कि सुषमा को जरूरत है अपनी जिंदगी को पूरी तरह अपने वश में करने की. सो, उन्होंने सोचा कि अपनी बिटिया को खुद्दारी का पाठ सिखाने का वक्त आ गया है.

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‘‘वह मर्द है तो क्या हुआ. तेरे पास औरत वाले हथियार हैं. उन का इस्तेमाल कर,’’ नानी ने कहा.

मर्द को नामर्द कैसे बनाते हैं, यह नानी ने सुषमा को सिखाने की ठान ली.

पहली बात जो सिखाई वह यह कि चाहे कुछ हो जाए, अपने पति की तारीफ कभी न कर. यह पाठ उसे घुट्टी में घोल कर ऐसा पिलाया कि जब कोई इन दोनों से मिलने आता तो बात करतेकरते न जाने कैसे बात को घुमा देती और शुरू हो जाती नानी की लाड़ली अपने पापा की तारीफ के पुल बांधने.

‘‘गाड़ी तो मेरे पापा की तरह कोई चला ही नहीं सकता. कैसी नक्शेबाजी से चलाते हैं.’’

और जब शुरू हो जाती तो वह बोलती चली जाती. मेहमान शालीनता से सुनते रहते और जमाईजी का सिर धीरेधीरे झुकता जाता. सूरजमुखी को पानी यदि मिलना कम हो जाए तो उस का फूल झुकता जाता है, फिर वह फूल ऐसी तेज प्यास से तड़पता है कि अचानक लुढ़क जाता है. ठीक वैसे ही दामादजी भी अपने ससुर की तारीफ सुनतेसुनते एकाएक लुढ़क जाते. सिर को वहीं मेहमान के सामने सुषमा की गोद में टिका कर कहते, ‘‘पापा के लिए इतना कुछ और मुझ में तुम्हें तारीफ लायक एक चीज नहीं दिखती?’’

फिर, ‘‘ग्रो अप शंभु,’’ कह कर नानी की चतुर चेली संभाल कर उस का सिर गोद से हटा देती.

एक सबक और दिया नानी ने, उसे याद दिलाया कि तुम औरत हो, यही तुम्हारा सब से बड़ा हथियार है. कह दो कि इतना काम बिना नौकरचाकर के अकेले कैसे होगा.

एक दिन इतने कपड़े इकट्ठे हो गए कि औफिस जाने से पहले शंभु दूसरे कमरे से चिल्लाया, ‘‘सुषमा, मेरी गुलाबी वाली कमीज नहीं मिल रही है…और अगर अंडरवियर मिल जाता तो…’’

उस दिन सुषमा को नानी का सिखाया हुआ बोलने में थोड़ी दिक्कत हुई. वह मात्र इतना बोल पाई कि वे सब चीजें लौंड्री में होंगी. अभी थोड़ी तबीयत खराब है, जब ठीक हो जाएगी तो वह लौंड्री कर लेगी.

शंभु चुपचाप औफिस चला गया. वापस आया तो पूरी लौंड्री की. फिर अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर पिछवाड़े में अरगनी पर कपड़े फैला दिए. फिर तो रोज औफिस से लौट कर कपड़े धोना, बाहर फैलाना और सूखने पर उन्हें वापस लाना और तह कर के ड्रैसर में सही जगह रखना उस का काम बन गया. बस, कपड़ों की इस्त्री नहीं करता था, यह बात नानी ने सुषमा के जेहन में डालने की बड़ी कोशिश की, मगर वह ऐसी गाय थी कि वह शंभु से इस्त्री करने को न कह सकी.

खिड़की से अकसर सुषमा नीचे देखती थी कि शंभु जब अरगनी से कपड़े उठाता था, तो पड़ोस की और औरतें भी आ कर कपड़े फैलाने या उठाने में लग जातीं, साथ में उस से बतियाती भी थीं. जल्द ही कांप्लैक्स की कई औरतों के साथ शंभु की खासी दोस्ती हो गई.

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जुलाई के महीने में एक दिन बड़ी बढि़या धूप खिली थी. शायद कौंप्लैक्स की डैनिश औरतों को इसी दिन का इंतजार था. तितलियों की तरह अपनेअपने फ्लैटों से बाहर पिछवाड़े में निकल आईं और लगीं उतारने ऊपर के अपने सब कपड़े. बदन पर क्रीम मलने के बाद पूरे 2 या 3 घंटे लेटी रहीं, धूप सेंकती रहीं.

शंभु को बड़ा मजा आया खिड़की से यह नजारा देख कर. इस बात पर सुषमा उत्तेजित हो रही थी. गुस्से में नीचे उतरी और सारे कपड़े उठा कर ले आई. उस दिन के बाद से कपड़ों का काम उस ने फिर अपने जिम्मे ले लिया. किसी हाल में वह शंभु को इन औरतों के पास फटकने नहीं देना चाहती थी. समय के साथ ये औरतें भी सुषमा की सहेलियां बन गईं.

नीचे के फ्लैट में 2 पाकिस्तानी भाइयों के परिवार रहते थे. सुषमा की दोनों भाइयों की बीवियों से दोस्ती भी हो गई. कौसर और डेजी नाम थे उन के. अरगनी कौसर के बैडरूम के एकदम सामने थी.

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नानी का प्रेत: भाग-3

सुषमा ने किताब से मुंह उठा कर उस आदमी से डैनिश में पूछा,

‘‘क्या आप ने मुझ से कुछ कहा?’’

‘‘वाह, क्या आवाज है? और वह ऐक्सैंट. क्या आप भारत की रहने वाली हैं?’’

सुषमा ने सिर हिला दिया. फिर यह सोच कर कि भला सिर का हिलाना इसे क्या दिखाई देगा, बोली, ‘‘हां, मैं भारत से हूं,’’ कह कर साइकिल का पैडल तेज चलाने लगी.

‘‘आह,’’ बड़ी लंबी आह ली थी उस ने, ‘‘भारत तो मेरा सब से प्रिय देश है. मेरे लिए भारत साल में एक बार जाना जरूरी है. हर साल जाता हूं.’’

‘‘हैं…’’ विश्वास नहीं हुआ सुषमा को. यह हर साल वहां करता क्या है? एक अंधे आदमी के लिए भारत जाना या चीन जाना तो एक ही बात हुई न. दिखता तो कुछ है नहीं इन लोगों को. तो भला क्यों कोई पैसा बरबाद करे इन दूरदराज देशों में जा कर.

सुषमा इस अचंभे में ही थी. उस ने कई सवाल दाग दिए. इतने सवाल सुन कर वह हंस दिया, बोला, ‘‘अगर आप बुरा न मानें तो कहीं बैठ कर बातें करें. आप को अपने सवालों के जवाब मिल जाएंगे, मुझे यह कहने को मिल जाएगा कि आज मैं ने एक भारतीय राजकुमारी के साथ बैठ कर कौफी पी.’’

उस निगोड़े के बस 3 शब्दों से सुषमा की बाछें खिल गईं. एक अनजान आदमी के साथ वह कौफी पीने को तैयार भी हो गई. सुषमा बोली, ‘‘ठहरिए, मैं जरा क्विक शावर ले लूं. आई ऐम स्ंिटकिंग.’’

वह हलका सा हंसा और कहने लगा, ‘‘पता नहीं, आप समझ पाएं या नहीं, लेकिन जैसे अकसर लोग कहते हैं, नैचुरल ब्यूटी इस द रीयल ब्यूटी, उसी तरह हम ब्लाइंड लोग कहते हैं, नैचुरल स्मैल इस द रीयल स्मैल. इसे आप धोइए नहीं, प्लीज.’’

इस वार्त्तालाप को सुन कर सुषमा सिहर उठी.

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वे दोनों उस दिन मिले. खूब बातें कीं. वह स्कूल में टीचर था. सुषमा को हैरानी हुई कि इस देश में आंखों से गए आदमी के लिए भी काम है, मगर सुषमा जैसी पढ़ीलिखी, अच्छीखासी, भले नाकनक्श वाली के लिए कुछ उपलब्ध नहीं.

उस ने सुषमा को बताया कि हर गरमी व जाड़ों की छुट्टियों में वह दुनिया के किसी न किसी कोने में जाता है. वहां की आवाजें, ‘‘उफ वह बछड़ों का मिमियाना, वह हाथियों की चिंघाड़, वह चिडि़यों की चींचीं, मोरों की चीख, वे आवाजें जब मेरे कानों पर पड़ती हैं, तो निकाल लेता हूं मैं अपनी बांसुरी, और मिला देता हूं उस उन्माद में अपने भी राग. मुझे तो तुम्हारे देश की टिड्डों की चरमराहट, गायों की रंभाहट, कबूतरों की गुटरगूं और आदमियों की अजीब फुसफुसाहट, गीत और वार्त्तालाप सुनते ही जैसे कुछ हो जाता है.’’

सुषमा किसी और ही दुनिया में खो चुकी थी जबकि वह अपनी बात जारी रखे था.

‘‘ओह, एअरपोर्ट पर उतरते ही जब फिनौल में सींची हवा मेरी नाक में घुसती है तो मुझे लगता है पूरा हिंदुस्तान मुझे आलिंगन में भर रहा है. फिर बाहर निकल कर प्लास्टिक और कागज जल कर मेरा भरपूर स्वागत करते हैं, मैं खुश हो जाता हूं. रास्ते चलते पेशाब और पसीने की बू के बीच, अचानक चमेली की सुगंध उड़ के आती है और मैं समझ जाता हूं कि एक भारतीय हसीना नजदीक से गुजरी है. कहीं प्याज भुन रहा है, घर की महिला खाना तैयार करने में लगी है, मांस जलने की बू आती है तो मैं गंगाजी का किनारा ढूंढ़ने लगता हूं. अगरबत्ती की महक आते ही तो मैं हाथ जोड़ कर जिसे भारत में भगवान कहा जाता है, नमस्कार कर लेता हूं. साफस्वच्छ जगह ढूंढ़ कर बैठ जाता हूं. नई कविता लिखने लगता हूं. तुम्हारे देश में कितना जादू है, सुषमा.’’

एक शादीशुदा औरत और अंधे आदमी के बीच बातचीत खुशनुमा माहौल में होती रही. बाद में सुषमा ने नानी को बात बताई तो उन्होंने माथा ऐसे पीटा कि सुषमा को फोन पर ही पता चल गया.

महीना बीत गया, दोनों यों ही मिलते रहते हैं. वह सुषमा को दुनियाभर की बातें बताता रहता है. हांहां, उस ने दुनिया जो खूब देख रखी है. और सुषमा चुपचाप उस की वीरान, पोली आंखों में डूबने की कोशिश करती रहती है.

नानी से यह अधर्मी बात नहीं देखी जाती. कितनी शान से नानी ने अपनी बिरादरी का होनहार लड़का ढूंढ़ कर इसे घर से विदा किया था. अब तो शंभु की शक्ल से ही इसे नफरत हो गई है. वैसे ही देर से लौट कर आता है बेचारा, अगर वह सोती हुई न मिले तो मुंह से सुर्रे छोड़ती है, ‘क्या, तुम फिर वापस आ गए?’ बेचारे शंभु का बुरा हाल हो रहा था.

नानी को अब अफसोस हो रहा था. हालांकि सुषमा का सारा घाघपना उन का ही सिखाया हुआ है.

इधर कुछ दिनों से शंभु, जो बहुत ही भोला है, को सुषमा पर शक होने लगा है. मच्छर से भी छोटी एक आवाजभर थी, उसे भी इस लड़की ने अपनी उंगलियों के बीच मसल कर रख दिया. फिलहाल, शंभु ने समझना चाहाभर ही था कि मामला खुदबखुद सामने आ गया. दरअसल, सुषमा के होश ऐसे गुम हुए हैं कि वह खुलेआम उस अंधे के साथ घूमती है, घर भी ले आती है.

एक दिन शंभु औफिस से दोपहर को ही वापस आ गया. घर में पराए मर्द को देख कर बौखला गया. जब वह आदमी चला गया तो शंभु फूटफूट कर रोने लगा, बोला, ‘‘मैं तुम्हारे पापामम्मी को फोन करने जा रहा हूं.’’

सुषमा ने बड़ी क्रूरता से कहा, ‘‘मेरे सामने बिलखने से मन नहीं भरा, अब दुनिया के सामने गिड़गिड़ाने का जी कर रहा है. फोन करना है तो करो, मुझे क्यों बता रहे हो?’’

पता नहीं उस दिन शंभु ने फोन क्यों नहीं किया? करता, तो शायद बात थोड़ी सुधर जाती.

एक दिन हाथ में हाथ डाल कर जा रहे थे ये लैलामजनूं. सामने से कौसर और डेजी आंख चुरा कर निकल गईं, फिर भी उस बेशर्म लड़की ने जोर से उन दोनों को ‘हाय’ कर दिया. पीछे से शायद डेजी से रहा नहीं गया. चिल्ला कर हिंदी में पूछ बैठीं, ‘‘मुझे तो यह समझ नहीं आता कि आप के हसबैंड यह सब बरदाश्त कैसे कर लेते हैं?’’

यह सुनना भी काफी नहीं था सुषमा के लिए, छूटते ही कह दिया, ‘‘मेरे हसबैंड यह सब वैसे ही बरदाश्त कर लेते हैं जैसे आप की कौसर दीदी उन लाल बालों वाली मैडम को बरदाश्त कर लेती हैं.’’

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एक दिन शंभु बड़ा खुश, धड़ल्ले से घर में घुसा. सुषमा सिगरेट फूंक रही थी. फिर भी, वैसे ही हंसतेहंसते उस भले लड़के ने उसे खींच कर उठाया और कहा, ‘‘चलो, सुषमा. हमारी सारी मुश्किलें खत्म हो गईं. यह देखो, टिकट. हम आज ही अमेरिका जा रहे हैं. मुझे वहां बड़ी अच्छी नौकरी मिल गई है. देखना, अब सब ठीक हो जाएगा.’’

सुषमा की आंखों में घृणाभरी थी. धक्का दे कर चिल्लाई, ‘‘तुम मुझ से दूर ही रहो तो अच्छा होगा. मुझे नहीं जाना अमेरिका. मैं तो यहीं रहूंगी. तुम्हें जाना है तो जाओ.’’

फिर पास की दराज खींच कर कागज निकाला और बोली, ‘‘लेकिन जाने से पहले इस पर अपने साइन कर के जाना.’’

वह कागज तलाकनामे का था. उस में लिखा था कि शंभु प्रसाद और सुषमा प्रसाद खुशीखुशी अपनी शादी रद्द करना चाहते हैं.

कागज देख कर शंभु की आंखें भर आईं. मुंह से सिर्फ ‘नहीं’ ही निकल पाया. नजरें उठा कर जब सुषमा को देखा तो शक्ल देख कर कांप गया. एकदम खूंखार लग रही थी. हाथ में पैन पकड़े हुई थी. आंखें फाड़फाड़ कर सिगनल भेज रही थी कि फौरन साइन करो.

शंभु ने अपने हस्ताक्षर उस कागज पर कर दिए और कागज ले कर व पर्स उठा कर वह बाहर निकल गई. शंभु बिस्तर पर लेट कर देर तक रोता रहा.

शाम को जब वह वापस आई तब शंभु एक छोटे से बक्से में अपनी एक गुलाबी और एक पीली कमीज, 4-5 अंडरवियर, एक स्वेटर और जींस रख घर से निकल रहा था. सुषमा ने एक नजर उस पर डाली पर एक शब्द तक नहीं कहा.

हवाई जहाज में वह रास्तेभर सामने की ट्रे पर सिर टिकाए रोए जा रहा था. पास में बैठा यात्री तक शर्मिंदा हो रहा था.

सुषमा ने नानी को फोन कर पूरी बात बता दी. और यह भी कि नानी अब उस के फोन का इंतजार न करें क्योंकि जिस के साथ वह रहने जा रही है, वह आंखों वाला न हो कर भी बहुत कुछ जान लेता है. उसे वह भरपूर तरह से जीना चाहती है, बिना नानी के प्रेत के साथ.

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