इच्छा मृत्यु: क्यों भाई के लिए लाचार था डेनियल

‘‘मि. सिंह, क्या आप कुछ घंटे के लिए अपनी कार मुझे दे सकते हैं?’’ डेनियल डिपो ने संकोच भरे स्वर में कहा.

लहना सिंह ने हिसाबकिताब के रजिस्टर से अपना सिर उठाया और पढ़ने का चश्मा उतार कर सामने देखा. उस का स्थायी ग्राहक डेनियल डिपो, जो एक नीग्रो था, सामने खड़ा था.

उस के चेहरे पर याचना और संकोच के मिलजुले भाव थे. उस ने एक सस्ता ओवर कोट और हैट पहना हुआ था.

‘‘ओह, मि. डिपो, हाउ आर यू? क्या परेशानी है?’’ लहना सिंह ने आत्मीयता से पूछा.

‘‘आज ट्यूब बंद है. रेललाइन की मरम्मत चल रही है. मुझे परिवार सहित न्यूयार्क के बड़े अस्पताल अपने छोटे भाई को देखने जाना है. यहां का बस अड्डा दूर है. कैब (टैक्सी) का भाड़ा काफी महंगा पड़ता है. अगर आप की कार खाली हो तो…’’ डेनियल के स्वर में संकोच स्पष्ट झलक रहा था.

‘‘हांहां, क्यों नहीं, हमें आज कहीं नहीं जाना है. आप शौक से ले जाइए,’’ कहते हुए लहना सिंह ने कार की चाबी डेनियल को थमा दी.

‘‘थैंक्यू, थैंक्यू, मि. सिंह,’’ आभार व्यक्त करता डेनियल चाबी ले कर ग्रोसरी स्टोर के एक तरफ खड़ी कार की ओर बढ़ चला.

लहना सिंह को न्यूयार्क के एक उपनगर में किराने की बड़ी दुकान, जिसे ग्रोसरी स्टोर कहा जाता था, चलाते हुए 20 वर्ष से भी ज्यादा समय हो चुका था. उस ने शुरुआत छोटी सी दुकान के तौर पर की थी पर धीरेधीरे वह दुकान बड़े ग्रोसरी स्टोर में बदल गई थी.

भारत की तरह अमेरिका के महानगरों, शहरों और कसबों के आसपास निम्नवर्गीय और मध्यमवर्गीय बस्तियां भी बसी हुई थीं. इन बस्तियों में रहने वाले परिवारों की जरूरतें भी आम भारतीय परिवारों जैसी ही थीं.

इन बस्तियों और परिवारों में रहने वालों की मानसिकता को समझने के बाद लहना सिंह को अपना व्यापार चलाने में थोड़ा समय ही लगा था.

आरंभ में उस की यह धारणा थी कि अमेरिका जैसे विकसित देश में महंगा और बढि़या खानेपीने का सामान ही बिक सकता था. मगर इस उपनगर में बसने के बाद उस की यह सोच बदल गई थी.

सस्ते और मोटे अनाज, सस्ते खाद्य तेल, साबुन, शैंपू, झाड़ू और अन्य सस्ते सामान की मांग यहां भी भारत के समान ही थी.

जिस तरह भारत का आम आदमी बड़े और महंगे डिपार्टमेंटल स्टोरों में कदम रखने से कतराता था लगभग वही स्थिति यहां के आम निम्नवर्गीय लोगों की भी थी.

भारत के बड़े डिपार्टमेंटल स्टोरों में जैसे आम आदमी को उधार सामान मिलना संभव नहीं था, वैसे ही हालात आम अमेरिकी के लिए अमेरिका में भी थे. अमेरिका का निम्न बस्ती में बसने वाला परिवार चाहे श्वेत हो या अश्वेत, उधार सामान देने वाले दुकानदार को ही प्राथमिकता देता है.

लहना सिंह ने इस मानसिकता को समझ लिया और उस ने धीरेधीरे निम्न व मध्यम वर्ग के लोगों में संपर्क बनाने शुरू किए. शुरुआत में थोड़े समय की थोड़ी रकम की उधार, फिर थोड़ी बड़ी उधार दे अपनी दुकान अच्छी जमा ली थी.

उस के ग्राहकों में अब श्वेत अमेरिकियों की तुलना में अश्वेत अमेरिकी, जिन्हें आम भाषा में ‘निगर’ कहा जाता है, थोड़े ज्यादा थे. दरअसल, इस उपनगर के करीब नीग्रो की बस्तियां ज्यादा थीं.

शुरुआत में लहना सिंह को इस उपनगर में दुकान खोलने में डर लगा था. कारण, उस के दिमाग में यह धारणा बनी कि नीग्रो उत्पाती और लुटेरे होते हैं. उन का काम ही बस लूटपाट करना है मगर बाद में यह धारणा अपनेआप बदल गई.

उस के साथी दुकानदारों, जिन में ज्यादातर उसी के समान सिख थे, ने उस को बताया था कि बदअमनी, लूटपाट, जबरन धन वसूली की घटनाएं अमेरिकी इन निम्नवर्ग वाले लोगों की बस्तियों की तुलना में अमेरिकी शहरों या महानगरों में ज्यादा थीं और भारत के अनेक प्रदेशों, जैसे बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश के कसबों में और भी ज्यादा थीं.

इन निगर कहे जाने वाले काले अमेरिकियों से मैत्रीसंबंध बनाने में लहना सिंह और अन्य एशियाई दुकानदारों व व्यापारियों को कोई ज्यादा समय नहीं लगा और दूसरी कोई दिक्कत भी पेश न आई.

जिस तरह किसी खूंखार पशु या जानवर को उस के अनुकूल व्यवहार और आहार दे कर वश में किया जा सकता है उसी तरह इन उत्पाती समझे जाने वाले काले हब्शियों को समयसमय पर सामान और डालर उधार दे कर और कभीकभार उन के साथ खानापीना खा कर लहना सिंह ने दोस्ताना संबंध बना लिए थे.

वह बेखौफ उन की बस्तियों में जा कर घूमफिर आता था, सामान दे आता था और उगाही कर आता था.

शाम को डेनियल उस की कार वापस करने आया. वह चाबी थमाते बारबार आभार व्यक्त करता थैंक्यू

मि. सिंह, थैंक्यू मि. सिंह बोल रहा था.

‘‘कोई बात नहीं मि. डेनियल, बहुत मामूली बात है.’’

‘‘मि. सिंह, मैं ने कार की टंकी में गैस भरवा दी है.’’

‘‘उस की क्या जरूरत थी. मामूली खर्च की बात है.’’

‘‘ओ.के. मि. सिंह, अब मैं चलूंगा.’’

‘‘एक कप कौफी तो पीजिए, भाई कैसा है आप का?’’

डेनियल की आंखें नम हो गईं. वह आर्द्र स्वर में बोला, ‘‘मि. सिंह, हम से उस की तकलीफ नहीं सही जाती है. वह बारबार जहर का इंजेक्शन लगाने को कहता है. डाक्टर बिना सरकारी आदेश के ऐसा करने में असमर्थता जताता है.’’

लहना सिंह ने आत्मीयता के साथ डेनियल का हाथ पकड़ कर उसे सोफे पर बैठाते हुए कौफी का कप पकड़ा दिया. डेनियल इस स्नेह स्पर्श से और भी नम हो उठा. वह चुपचाप कौफी पीने लगा.

डेनियल का छोटा भाई किसी जानलेवा लाइलाज बीमारी से ग्रस्त सरकारी अस्पताल में भरती था. इलाज के सभी प्रयास निष्फल रहे थे. अब उस की इच्छा मृत्यु यानी दया मृत्यु की याचिका अमेरिका के राष्ट्रपति के पास विचाराधीन थी.

कौफी समाप्त कर डेनियल उठा और धन्यवाद कह कर जाने लगा. लहना सिंह ने उस को ढाढ़स बंधाते हुए कहा, ‘‘मि. डेनियल, मैं कल आप के यहां आऊंगा.’’

अगले दिन लहना सिंह अपने लड़के को स्टोर संभालने को कह कर निगर बस्ती की तरफ चल पड़ा. आम भारतीय कसबों की तरह छोटी, संकरी, कच्चीपक्की गलियों से बनी यह बस्ती एक तरह की स्लम ही थी.

निगर बस्ती में मकानों की छतें ऊंचीनीची थीं. गलियों में कपड़े सूखने के लिए तारों पर लटके थे. कई जगह गलियों में पानी जमा था. ढाबेनुमा दुकान के बाहर खड़ेखड़े लोग खापी रहे थे. मांस खाने के बाद हड्डियां यहांवहां बिखरी पड़ी थीं.

एक पबनुमा दुकान के बाहर बीयर का मग थामे नौजवान लड़के- लड़कियां बीयर पी रहे थे. उन में हंसीमजाक हो रहा था. कोई वायलिन बजा रहा था, कोई माउथआरगन से धुनें निकाल रहा था.

अमेरिका की इन निम्न बस्तियों में छेड़छाड़ की घटनाएं कम सुनने में आतीं. कारण, लड़केलड़कियों का खुला मेलजोल होना, डेटिंग पर जाना आम बात थी.

भारत और अमेरिका के निम्न- मध्यवर्गीय लोगों में एक बात एक जैसी थी कि आदमी आदमी के करीब था. भारत में भी जैसेजैसे व्यक्ति पैसे वाला होता है वैसेवैसे वह आम आदमी से दूर होता जाता है.

स्वयं में सिमटने की प्रवृत्ति पाश्चात्य और अमेरिकी देशों में अमीरी बढ़ने के कई दशक पहले बढ़ चुकी थी. वही प्रवृत्ति अब भारत के नवधनाढ्य वर्ग में बढ़ रही है.

लहना सिंह का परिवार भारत में आम और निम्नवर्गीय लोगों के लिए दुकानदारी करता था अब अमेरिका में भी वह इन्हीं तबकों का दुकानदार था.

अमेरिका आने पर लहना सिंह कई महीने न्यूयार्क में कैब यानी टैक्सी चलाता रहा. सप्ताहांत में छुट्टी बिताने पबों, बारों, डिस्कोथैकों में जाता था, जहां उच्च वर्ग के लोग आते थे. उन के चेहरों पर बनावटी मुसकराहट, बनावटी हंसी, झलकती थी. बदन से बदन सटा कर नाचने वाले कितने एकदूसरे के समीप थे यह सभी जानते थे.

उन की तुलना में ये गरीब तबके के लोग खुल कर हंसते और एकदूसरे के समीप थे. दुखसुख में साथ देते थे.

डेनियल उस का इंतजार कर रहा था. उस के यहां लहना सिंह आमतौर पर आताजाता था. किराने का सामान साइकिल की टोकरी या कैरियर पर रख कर थमा जाता था. नियत तारीख पर भुगतान ले जाता था. ऐसा उस बस्ती के अनेक घरों के साथ था.

डेनियल की पत्नी ने लहना सिंह का अभिवादन किया. फिर सभी कौफी पीने लगे. घर का माहौल थोड़ी उदासी भरा था. संवेदना के स्वर हर जगह समान रूप से अपने सुरों का प्रभाव छोड़ते ही हैं.

इधरउधर की सामान्य बातों के बाद लहना सिंह ने डेनियल से उस के छोटे भाई के बाबत पूछा.

‘‘राष्ट्रपति के पास विचाराधीन पड़ी मर्सी किलिंग पेटिशन का फैसला दोचार दिन में होने की संभावना है,’’ डेनियल ने गम भरे स्वर में कहा.

‘‘क्या इस के बिना कोई और रास्ता नहीं है?’’

‘‘निरंतर तकलीफ झेलते, तिलतिल कर मरने के बजाय अगर उसे एकबारगी मुक्ति दिला दी जाए तो क्या अच्छा नहीं है?’’

डेनियल के चेहरे से पीड़ा साफ झलक रही थी.

लहना सिंह भी अवसाद से भर उठा. कहां तो हर कोई मृत्यु से बचने की कोशिश करता था. कहां अब मृत्यु की इच्छा करते मार दिए जाने की दरख्वास्त लगा कर मौत का इंतजार कर रहा था.

‘‘आप अस्पताल कब जाओगे?’’

‘‘रोज ही जाता हूं. आज बड़े लड़के को भेजा है.’’

‘‘भाई का खानापीना?’’

‘‘क्या खा सकता है वह? ट्यूब नली द्वारा उसे तरल भोजन दिया जाता है. सब सरकारी खाना होता है. हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते, न कोई दवा दे सकते हैं, न कोई खुराक.’’

‘‘कल मैं भी चलूंगा.’’

अगले दिन लहना सिंह और डेनियल भूमिगत रेल, जिसे भारत में मेट्रो और अमेरिका व इंगलैंड में ट्यूब कहा जाता है, के द्वारा सरकारी अस्पताल पहुंचे.

एक बड़े बेड पर आक्सीजन मास्क नाक और आधे चेहरे पर चढ़ाए डेनियल का छोटा भाई लेटा था. उस की आंखें अधखुली थीं. उस के चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव साफ दिखाई पड़ रहे थे.

भाई ने भाई को देखा. दोनों ही लाचार थे. बड़ा छोटे को बचाना चाहते हुए भी बचा नहीं पा रहा था. छोटा उसे ज्यादा समय परेशानी नहीं देना चाहता था. संवेदना अपनेआप को खामोश रास्ते से व्यक्त कर रही थी.

अवसाद से भरा लहना सिंह डेनियल का कंधा थपथपा लौट आया था.

2 दिन बाद, राष्ट्रपति द्वारा दयामृत्यु की याचिका स्वीकार कर ली गई थी. आज जहर के इंजेक्शन द्वारा मृत्युदान दिया जाना था.

सगेसंबंधी, मित्र, पड़ोसी, लहना सिंह और अनेक समाचारपत्रों के संवाददाता डैथ चेंबर के शीशे से अंदर झांक रहे थे.

जहर का इंजेक्शन देने को नियुक्त डाक्टर का चेहरा भी अवसाद भरा था. उसे जल्लाद की भूमिका निभानी थी. डाक्टर का काम किसी की जान बचाना होता है, जान लेना नहीं. मगर कर्तव्य कर्तव्य था.

डाक्टर ने एकबारगी बाहर की तरफ देखा फिर सिरिंज बांह में पिरो कर उस में भरा द्रव्य शरीर में दाखिल कर दिया. मरने की इच्छा करने वाली आंखें धीरेधीरे बंद होती गईं. सर्वत्र खामोशी छा गई थी.

ताबूत को कब्र में उतार उस पर मिट्टी समतल कर एक पत्थर लगा दिया गया था. फूलों के गुलदस्ते कब्र पर चढ़ा सभी भारी मन से कब्रिस्तान से बाहर आ रहे थे.

Packing Light : बाइक ट्रिप के सफर को आसान और मजेदार बनाने के बेहतरीन टिप्स

Packing Light : ट्रैवलिंग के दौरान पैकिंग करना एक आर्ट है. लेकिन अकसर लोग इस में मात खा जाते हैं और ट्रैवलिंग के उत्साह में ओवरपैकिंग कर लेते हैं जिस से उन का सफर उन के लिए रोमांचक बनने की बजाए मजीद परेशानी का सबब बन जाता है. बस, ट्रेन या हवाईजहाज के सफर में तो ओवरपैकिंग फिर भी मैनेज हो जाती है. लेकिन अगर आप बाइक पर सफर कर रहे हैं तो आप के जी का जंजाल बन सकती है. बाइक पर सफर करते वक्त लाइट पैकिंग करना बेहद जरूरी होता है.

आइए, जानते हैं कैसे आप बाइक ट्रिप के लिए सही और हलका सामान पैक कर सकते हैं और किन जरूरी चीजों को साथ रखना चाहिए.

लाइट पैकिंग क्यों जरूरी है

बाइक पर सफर करते वक्त ओवरपैकिंग से कई समस्याएं हो सकती हैं, जैसे- सामान का वजन बढ़ने से बाइक को बैलेंस करना मुश्किल हो सकता है, आप के सामान को व्यवस्थित रखना मुश्किल हो जाता है, ज्यादा सामान सफर के मजे को कम कर सकता है. ऐसे में लाइट पैकिंग न केवल सफर को आरामदायक बनाती है बल्कि आप को फ्रीडम और फ्लैक्सिबिलिटी भी देती है जिस से आप सफर का मजा आराम से ले सकें और बेमतलब की चीजों की बजाए जरूरी चीजों के लिए आप के पास ज्यादा स्पेस बच जाए.

लाइट पैकिंग के टिप्स :

स्मार्ट बैग चुनें

बाइक ट्रैवल के लिए वाटरप्रूफ और हलके बैग्स का चुनाव करें. सैंडल बैग्स, टैंक बैग्स या बैकपैक का इस्तेमाल करें, जो बैलेंस बनाए रखने में मदद करते हैं. वैसे, यह वन टाइम का इनवैस्टमेंट होता है, अगर ध्यान से रखें जाएं तो ये बैग सालोसाल चलते हैं.

तो आप अच्छे बैग का चुनाव करें ताकि आप के फ्यूचर ऐडवेंचर ट्रिप में भी आप को अपने बैग को ले कर सोचना न पड़े. मार्केट में इजी एक्सेस चार्जिग पौइंट, लैपटौप कैरियर के साथ वाटरप्रूफ बैग आसानी से उपलब्ध हैं। हां, थोड़ा आप के बजट ऊपर हो सकता है. लेकिन आप का बैग आप के सफर की क्वालिटी भी तय करता है, अगर आप के बैग में सामान को व्यवस्थित रखने के लिए स्पेस है ताकि सामान खराब न हो और ट्रैवलिंग में अव्यवस्थित न हो, साथ ही आसानी से आप सामान को ऐक्सेस कर सकें.

कपड़े सोचसमझ कर पैक करें

केवल वही कपड़े लें जो जरूरी हैं. हर दिन के लिए अलग कपड़े पैक करने की बजाय मिक्स ऐंड मैच का विकल्प चुनें. कपड़ों का मैटिरियल चुनें जैसे स्पेंडैक्स और नायलोन जो साफ करने में आसान हो, जिसे सुखाना आसान हो या जो बिना धोए आप के 4-5 दिन के सफर में काम आ सकें.

मार्केट में रैपिड ड्राई कपड़े हर ब्रैंड में मौजूद हैं जो आसानी से सूख जाते हैं और उस में पसीने की दुर्गंध भी नहीं होती. तो ऐसे ही कपड़े चुनें जो मल्टीपर्पज हों, कंफरटेबल हों, साथ ही लाइटवेट हों.

जरूरी सामान को प्राथमिकता दें

गैर जरूरी चीजों को छोड़ें. पहले से एक लिस्ट बनाएं और उसी के अनुसार पैकिंग करें. अगर आप ने पहले भी बाइक ट्रैवल किया है तो उस दौरान किन चीजों की आप को जरूरत पड़ी उस की लिस्ट हमेशा नोट्स में सुरक्षित रखें, ताकि आप का वह लिस्ट हैंडी हो और जरूरत के वक्त आप को ज्यादा सोचना न पड़े.

अगर पहली बार बाइक से सफर पर निकलें तो उस के लिए आप को जरूरी चीजों की लिस्ट आसानी से इंटरनैट पर मिल जाएगी.

छोटे आकार की चीजें चुनें

टौयलेट्रीज और स्किनकेयर के मिनी पैक लें. जरूरत पड़ने पर डिस्पोजेबल आइटम्स का इस्तेमाल करें. मार्केट में कोलेप्सिबल पानी की बोतलें, कैंपिंग चेयर, स्लीपिंग बैग जैसी चीजें मौजूद हैं जो कम जगह में रखी जा सकती हैं.

सामान को और्गेनाइज करें

सामान को अलगअलग कंपार्टमेंट में रखें ताकि जरूरत पड़ने पर आसानी से मिल सके. कंप्रेशन बैग्स का इस्तेमाल करें ताकि सामान कम जगह में समा सके. अगर ठंडी जगह पर जा रहे हैं तो आप को जरूरत से ज्यादा कपड़े पैक करने से बचना चाहिए, लेयरिंग में कपड़े पहनें और एक अच्छी जैकेट जो आप के पर्सनैलिटी को भी सूट करे और ट्रैवलिंग में आप के काम आएं.

ट्रैवल एसेंशियल्स की लिस्ट

सुरक्षा और हैल्थ से जुड़ी चीजें जैसे हैलमेट, विंडचीटर जैकेट, अच्छी क्वालिटी के ग्लव्स, फर्स्ट ऐड किट (पेन किलर्स, बैंडेज, ऐंटीसैप्टिक क्रीम और जरूरी दवाइयां), सनस्क्रीन और लिपबाम जरूर रखें. पी सेफ जैसी सैनेटरी चीजें, सैनिटाइजर, वेटवाइप्स भी अपने पास रख सकते हैं जिस से आप बिना पानी के भी हाथों को साफ रख सकें.

बाइक मेंटेनेंस किट जैसे टूल किट और स्पेयर पार्ट्स (फ्यूज, ब्रेक शूज, बल्ब), पंचर रिपेयर किट, अतिरिक्त फ्यूल की व्यवस्था (जैसे पोर्टेबल जेरिकेन) जैसी जरूरी चीजों की लिस्ट बनाएं और उन्हें पैक करना न भूलें.

ट्रैवल गैजेट्स जैसे की GPS या मैप, मोबाइल चार्जर और पावर बैंक, टौर्च और अतिरिक्त बैटरी जैसी चीजें भी जरूर पैक करें.

पैकिंग में हलका और पौष्टिक स्नैक्स (ड्राई फ्रूट्स, एनर्जी बार्स), पानी की बोतल (रिफिलेबल), थरमस अगर सफर ठंडे इलाकों में हों, जैसी चीजें जरूर रखें.

पहचानपत्र, ड्राइविंग लाइसेंस और वाहन के डौक्यूमैंट्स जैसे आरसी, पौल्यूशन सर्टिफिकेट और इंश्योरैंस आप के पास जरूर रहने चाहिए. नक्दी और डिजिटल पेमेंट विकल्प आप के पास होना चाहिए.

कई जगहों पर नेटवर्क की दिक्कत रहती है तो ऐसे में नक्दी आप के काम आएगी. एक छोटा तौलिया और मल्टीपरपज चाकू भी आप के एसेंशियल लिस्ट में होना चाहिए.

सफर के दौरान ध्यान रखने वाली बातें

सफर से पहले अपनी बाइक की पूरी जांच करवाएं. सामान को इस तरह से बांधें कि बाइक का बैलेंस न बिगड़े. आप सफर पर निकलने से पहले सामान के साथ एक छोटा राउंड जरूर करें जिस से अगर सामान ठीक से नहीं बंधा हो या कोई भी परेशानी हो तो उस को समय से हल किया जा सके.

सफर के दौरान हर 2 घंटे में ब्रेक लें और खुद को रिफ्रेश करें. मौसम के अनुसार तैयारी करें और अपने रूट के साथ मौसम की जानकारी पहले से ले लें.

लाइट पैकिंग के फायदे

लाइट पैकिंग के बहुत से फायदे हैं जो आप के एक बार लाइट ट्रैवलिंग के बाद ही समझ आएंगे. अकसर लोग दूसरों को देख कर दिन के लिए 2-3 आउटफिट पैक कर लेते हैं, अब गरम मौसम में लाइट हलके कपड़े तो ठीक हैं लेकिन सर्दी के मौसम में ट्रैवल पर हर दिन के अलग कपड़े रखने मुसीबत बन जाता है.

लाइट पैकिंग से सफर में तनाव कम हो जाता है साथ ही बाइक को बेहतर बैलेंस और कंट्रोल मिलता है. लाइट पैकिंग का फायदा यह भी है कि इस से आप को पैकिंगअनपैकिंग में खराब होने वाले समय की भी बचत हो जाती है. साथ ही सामान की सैफ्टी का भी झंझट नहीं रहता जिस से आप को ट्रिप में ऐक्स्ट्रा फ्रीडम मिलती है.

कुल मिला कर बाइक ट्रैवल के लिए लाइट पैकिंग एक आर्ट है. जरूरी सामान को प्राथमिकता दे कर और अनावश्यक चीजों को छोड़ कर आप अपने सफर को न केवल आरामदायक, बल्कि यादगार भी बना सकते हैं.

तो अगली बार जब आप बाइक ट्रिप की प्लानिंग करें, तो इन टिप्स को जरूर अपनाएं और अपने सफर का भरपूर आनंद लें.

Alzheimer : हर छोटी-छोटी बात लगे हैं भूलने, कहीं अल्जाइमर के शिकार तो नहीं?

Alzheimer :  45 वर्षीय दीपक को पिछले कुछ सालों से भूलने की बीमारी है. उन्होंने इस का पहले तो जनरल फिजिशियन से इलाज करवाया, लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ. उन्हें किसी भी बात को याद रखना मुश्किल हो रहा था, ऐसे में उन के किसी दोस्त ने उन्हें न्यूरोलौजिकल सलाह लेने की सलाह दी. दीपक डाक्टर के पास गए, तो पता चला उन्हें अल्जाइमर की बीमारी है, जो सालों पहले उन के बाइक ऐक्सीडैंट के दौरान सिर पर चोट लगने की वजह से हुआ है.

 

पहले तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ, लेकिन दवा के प्रयोग से उन की यह बीमारी काफी कम हुई है, जो समय के साथसाथ बढ़ रही थी. दीपक को अल्जाइमर सिर पर चोट लगने की वजह से सालों बाद हुई है, लेकिन एक उम्र के बाद वयस्कों में अल्जाइमर की बीमारी देखने को मिल रही है, जिस का आंकड़ा धीरेधीरे बढ़ता ही जा रहा है.

क्या कहती है रिसर्च

अल्जाइमर एसोसिएशन के अनुसार, वर्ष 2020 से दुनिया में 50 मिलियन से ज्यादा लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं. यह संख्या हर 20 साल में लगभग दोगुनी हो जा रही है. साल 2030 में यह 82 मिलियन और वर्ष 2050 में 152 मिलियन तक पहुंच जाएगी. ज्यादातर वृद्धि विकासशील देशों में होगी. डिमेंशिया से पीड़ित 60% लोग पहले से ही निम्न और मध्य आय वाले देशों में रहते हैं, लेकिन साल 2050 तक यह बढ़ कर 71% हो जाएगा. ये आंकड़े वर्तमान में उपलब्ध सर्वोत्तम साक्ष्यों पर आधारित और अनुमानित हैं.

इस बारे में मुंबई की कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हौस्पिटल की स्पैशलिस्ट कौग्निटिव और बिहेवियरल न्यूरोलौजिस्ट डा. अणु अग्रवाल कहती हैं कि अल्जाइमर की बीमारी धीरेधीरे बढ़ने वाला न्यूरोलौजिकल डिसऔर्डर है. दुनियाभर में यह डिमेंशिया का सब से आम कारण है.

लक्षण

डिमेंशिया के 60% से ज्यादा केसेज की वजह है :

यादाश्त खत्म हो जाना.

संज्ञानात्मक क्षमता कम होना.बरताव में बदलाव वगैरह.

इस के अलावा इस में व्यक्ति की काम करने की क्षमता धीरेधीरे नष्ट होती जाती है. इसका प्रभाव उन की जीवन की गुणवत्ता पर भी पड़ता है, जिस का भावनात्मक और लौजिस्टिकल बोझ परिवारों को भुगतना पड़ता है.

वजह जानें

असल में इस बीमारी में दिमाग (Brain) में असामान्य प्रोटीन पैदा होता है, जिस से धीरेधीरे दिमाग की कोशिकाओं की मृत्यु और सिकुड़न होने लगती है.

अल्जाइमर के पीछे के कारणों, जीवनशैली पर संभावित प्रभावों, उम्र बढ़ने के साथसाथ होने वाले प्रभाव आदि के बारे में सभी को जानना जरूरी होता है, क्योंकि न्यूक्लिअर परिवारों में अल्जाइमर का बढ़ना, बुजुर्गों को प्रभावित कर रहा है, क्योंकि आज के यूथ काम के साथ ऐसे रोगी को संभालने में असमर्थ हो रहे हैं. कई लोग तो ऐसे बीमार व्यक्ति को ओल्ड होम में रख देते हैं, जिस से अकेलापन अधिक होता है और शायद अल्जाइमर रोगी के अधिक होने का कारण भी यही बन रहा है.

एक अध्ययन में पाया गया कि 60 से 79 साल के लोगों में अकेलेपन की वजह से अल्जाइमर रोग का खतरा 3 गुना ज्यादा बढ़ा है.

अल्जाइमर और डिमेंशिया में अंतर

अल्जाइमर और डिमेंशिया में मुख्य अंतर यह है कि अल्जाइमर एक बीमारी है, जबकि डिमेंशिया लक्षणों का एक समूह है. अल्जाइमर मस्तिष्क में होने वाली एक बीमारी है. यह मस्तिष्क के उन हिस्सों को प्रभावित करती है, जो स्मृति, विचार और भाषा को नियंत्रित करते हैं, जबकि डिमेंशिया लक्षणों का एक समूह है, जिस में स्मरण करने की शक्ति का कम हो जाना, भाषा और समझदारी में कमी और किसी काम के बारे में सोचने में कमी होती है.

रिस्क फैक्टर

इस के आगे डाक्टर कहते हैं कि अल्जाइमर की मूल वजह अभी भी पूरी तरह से समझ पाना संभव नहीं हो पाया है. अध्ययनों से पता चला है कि आनुवंशिक, जीवनशैली और पर्यावरणीय कारण हैं, जो इस बीमारी के बढ़ने के जिम्मेदार हैं. रिस्क फैक्टर्स में उम्र बढ़ना, आनुवंशिकी और सिर में चोट लगना आदि शामिल हैं. साथ ही आहार, व्यायाम और सामाजिक जुड़ाव जैसे जीवनशैली से जुड़े विकल्प भी शामिल होते हैं.

लाइफस्टाइल है जिम्मेदार

वैज्ञानिक इस बीमारी की एक महत्त्वपूर्ण वजह के रूप में जीवनशैली पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. नियमित व्यायाम, संतुलित आहार और मानसिक खुशहाली के साथसाथ स्वस्थ जीवनशैली अल्जाइमर की जोखिम को कम करती है.

अध्ययनों से पता चलता है कि शारीरिक रूप से सक्रिय व्यक्तियों में अल्जाइमर विकसित होने की संभावना काफी कम होती है. चलना, तैरना और यहां तक कि घर के कामों जैसी गतिविधियां दिमाग में रक्त के प्रवाह को उत्तेजित करती हैं, जिस से संज्ञानात्मक क्षमता में गिरावट में देरी हो सकती है.

इस के अलावा मस्तिष्क के स्वास्थ्य को बनाए रखने में सही पोषण भी का होना महत्त्वपूर्ण है. फलों, सब्जियों, अनाज और अनसैच्युरेटेड फैट से भरपूर आहार अल्जाइमर के रिस्क को कम कर सकते हैं, जबकि लाल मांस, मिठाई और प्रोसेस्ड फूड से बचना चाहिए ताकि मोटापा और मधुमेह जैसे जोखिम कारकों से बचा जा सकें.

केवल अधिक उम्र का होना अल्जाइमर का कारण नहीं है. उम्र के साथसाथ होने वाले शारीरिक नुकसान, इस न्यूरोडीजैनेरेटिव विकार को बढ़ाता है. ऐसा देखा गया है कि विकसित देशों में आबादी औसतन लंबे समय तक जीवित रहती है, जबकि यहां डिमेंशिया सब से आम है.

भारत और चीन जैसे तेजी से शहरीकरण वाले देशों में भी इस बीमारी की दरें पहले से अधिक बढ़ रही हैं. इन देशों में भी लंबी जीवनअवधि और जीवनशैली में बदलाव अधिक लोगों को रिस्क में डालते हैं.

न्यूक्लियर परिवारों और सामाजिक अलगाव का प्रभाव

डा. अणु आगे कहती हैं कि जौइंट परिवारों से न्यूक्लियर परिवार यह बदलाव अल्जाइमर से पीड़ित बुजुर्गों को प्रभावित कर रहा है. पारंपरिक परिवारों में वयस्क लोग रोज की जिंदगी में सामाजिक ऐक्टिविटीज और समुदायों में अधिक शामिल होते रहे हैं, जिस से उन के दिमाग को सक्रिय रखने में मदद मिलती थी, लेकिन सिंगल परिवारों में वे खुद को अधिक अलगथलग महसूस करते हैं, जिस से उन की याददाश्त कम हो सकती है और संज्ञानात्मक में गिरावट हो सकती है.

यह बदलाव, खासकर शहरों में तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि यहां सामाजिक जुड़ाव के अवसरों की कमी है.

अकेले रह कर भी न हो अकेलापन

डाक्टर अनु कहती हैं कि वयस्कों में अकेलापन, चिंता और मानसिक गतिविधियों में कमी को बढ़ा सकता है, जिस से उन में अल्जाइमर की रिस्क बढ़ सकती है. आज वीडियो कौल जैसी तकनीकी सुविधा है, जो अकेलेपन को कम करने में मदद कर सकती है, लेकिन यह हमेशा पर्याप्त नहीं होती. सामुदायिक कार्यक्रम जैसे अपने हौबीज, स्थानीय क्लब, क्लासेज आदि हर जगह उपलब्ध होते हैं, जो शारीरिक और मानसिक रूप से सक्रिय रखने के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं.

रोकथाम और मैनेजमेंट

हालांकि वर्तमान में अल्जाइमर का कोई इलाज नहीं है, लेकिन जीवनशैली में कुछ बदलाव इस की शुरुआत को रोकने या देरी करने में मदद कर सकते हैं.

नियमित शारीरिक गतिविधियां, दिमाग को ऐक्टिव रखने वाले व्यायाम और पोषक तत्त्वों से भरपूर आहार फायदेमंद होते हैं. इस के अलावा नियमित स्वास्थ्य जांच और उच्च रक्तचाप, मधुमेह जैसी स्थितियों का जल्द से जल्द निदान भी जरूरी है. शारीरिक के साथसाथ सब से मानसिक जुड़ाव भी बहुत जरूरी है, मसलन किताबें या मैग्जीन पढ़ना, कोई वाद्य बजाना, पहेलियां सुलझाना और सामाजिक संपर्क बनाए रखना आदि जैसी गतिविधियां मानसिक लचीलापन बनाए रखने में मदद करती हैं.

रिसर्च मानती है कि सुनने और देखने की अक्षमता डिमेंशिया से जुड़ी हुई है. इस से बचने के लिए कान की मशीन और करैक्टिव लेंस जैसी आधुनिक उपकरणों की सहायता से इन समस्याओं को मैनेज करना असान हो जाता है. जिन लोगों का निदान किया गया है, उन के लिए जल्द से जल्द 24 घंटे विशेषज्ञों की सुविधा दी जाती हो. ऐसे अस्पताल मे इलाज और सहायक देखभाल, समझ और परिवार की भागीदारी के साथ मिल कर जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है. अल्जाइमर से निबटना एक बढ़ती हुई चुनौती है, लेकिन इसे ठोस प्रयासों और वयस्कों की देखभाल के तरीके में बदलाव के जरीए दूर किया जा सकता है. जैसेजैसे जागरूकता और शोध बढ़ते जा रहे हैं, वैसेवैसे इस बीमारी की बेहतर उपचार और रोकथाम या इलाज से हमारी उम्मीद भी बढ़ती जा रही है.

यही वजह है कि अमेरिका में रहने वाले वरिष्ठ नागरिक 60 की उम्र पार करने के बाद भी किसी न किसी काम में व्यस्त रहते हैं, वहां वरिष्ठ नागरिक की कोई समय सीमा नहीं होती. इस की वजह वहां की लाइफस्टाइल है, जहां हर व्यक्ति काम करना पसंद करता है, हर व्यक्ति आत्मनिर्भर होता है जबकि
हमारे देश में लोग 60 की उम्र पार करने के बाद पूजापाठ, धर्मकर्म में लीन हो जाते हैं या परिवार वाले उन की इच्छा को जाने बिना ही ऐसे काम करने की सलाह देते रहते हैं, जिस से व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक दोनों का स्तर धीरेधीरे कम होता जाता है.

अगर आप को अल्जाइमर से बचना है, तो अपने शारीरिक और मानसिक प्रोसेस को ऐक्टिव रखें और खुद भी नए जैनरेशन के साथ ताल से ताल मिला कर रहना सीखें.

सेलिब्रिटी-इंस्पायर्ड Wedding Look के लिए 6 ज्वैलरी आइडियाज जो आपको बनाएंगे परफैक्ट ब्राइड

Wedding Look: हम सब की नजरें सैलिब्रिटीज के कपड़ों से ले कर उन की पूरी स्टाइल पर टिकी रहती हैं. जब आप अपनी वैडिंग लुक के बारे में सोचती हैं, खासकर ज्वैलरी और कपड़े पसंद कर रही होती हैं तो यही सैलिब्रिटीज आप की प्रेरणा बन जाते हैं. उन के स्टाइलिस्ट के ट्रैंड्स को फौलो करते हुए आप खुद भी स्टाइलिस्ट बन सकती हैं.

बस, आप अपने स्टाइल के अनुसार उन के लुक्स को अपनाएं, लेकिन उन की हूबहू नकल करने की जरूरत नहीं, बल्कि उन चीजों को अपने ब्राइडल लुक के साथ मिक्स करें जो आप को सब से बढ़िया लगें.

सैलिब्रिटीज से इंस्पायर्ड वैडिंग ज्वैलरी हो ऐसी

गार्गी बाय पी एन गाडगिल एंड सन्स के को-फाउंडर,आदित्य मोदक का कहना है कि सैलिब्रिटीज से प्रेरणा ले कर आप एक खूबसूरत और अलग वैडिंग लुक तैयार कर सकती हैं. सब से जरूरी है कि आप उन चीजों को इस तरह पहनें जिस में आप सब से अच्छा महसूस करें और आप की खूबसूरती में एक पर्सनल टच हो. कुल मिला कर सैलिब्रिटीज से प्रेरित वैडिंग ज्वैलरी ऐसी हो जिस में दुलहन पूरे विश्वास के साथ अपनी चमक बिखेर सकें, चाहे वे अपना राजसी रूप दिखाना चाहें या फिर सादगीभरा अंदाज.

आप उन चीजों के साथ कैसे स्टाइल कर सकती हैं, उस के बारे में यहां वैडिंग लुक से जुड़े कुछ सैलिब्रिटीज आइडियाज हैं जिन्हें आप फौलो कर सकती हैं :

अनन्या पांडे जैसी सिल्वर शाइन

इस बार शादियों के मौसम में सिल्वर ज्वैलरी की चमक दोबारा देखने को मिल रही है. अनन्या पांडे के खूबसूरत और कंटेंपररी स्टाइल से प्रेरित आप खूबसूरत स्टेटमैंट सिल्वर पीसेज चुन कर एक बोल्ड अंदाज दिखा सकती हैं. एक स्टेटमैंट नेकपीस के साथ खूबसूरत ब्रैसलेट से आप आकर्षक नजर आएंगी और आप का लुक बैलेंस दिखेगा. दुलहनें बारीक कारीगरी वाली सिल्वर चोकर या कौलर नैकलेस के साथ मैच करता हुआ खूबसूरत ब्रेसलेट चुन सकती हैं.

अपना मेकअप और बालों की सजावट कम से कम व फ्रैश रखें, बस ज्वैलरी को अपनी चमक बिखेरने का मौका दें. लो बन या सौफ्ट चिनोन जैसे बालों के हलकेफुलके स्टाइल से आप अपनी ज्वैलरी को ज्यादा अच्छी तरह दिखा सकती हैं. साथ ही इस से दुलहन का अलग लुक भी तैयार होगा.

आलिया भट्ट जैसी मोतियों सी सौम्यता

मोतियों को सदाबहार सुंदरता और नजाकत का प्रतीक माना जाता रहा है. इन मोतियों में दुलहन के लुक को सही माने में खूबसूरत बनाने का एक अलग ही गुण होता है. शादियों के त्योहार के लिए मोतियों को अपनी ज्वैलरी में शामिल कर आप अपने लुक को और भी आकर्षक व सौम्य बना सकती हैं. साथ ही अपने पूरे पहनावे में एक रोमांटिक अंदाज ला सकती हैं. सादगीभरे लेकिन खूबसूरत लुक के लिए आप मोतियों वाले नैकलेस या चेन का चुनाव कर सकती हैं या फिर मोतियों की डैंगल बालियों के साथ चेहरे पर एक मूवमैंट व चमक ला सकती हैं. सौम्य मोतियों के साथ आलिया भट्ट लुक से प्रेरित आप अपने ब्राइडल लुक की चमक को और भी बढ़ा सकती हैं. इस से आप की प्राकृतिक दमक और भी बढ़ जाएगी.

दुलहन के पारंपरिक लिबास साड़ी या लहंगे के साथ आप लड़ी वाली मोतियों की माला चुन सकती हैं. इस पर्ल लुक को और भी जानदार बनाने के लिए अपने बालों को लूज रखें और सौफ्ट वेव्स जैसी रोमांटिक हेयरस्टाइल करें. दुलहन के रूप में आप किसी परी से कम नजर नहीं आएंगी.

दीपिका पादुकोण जैसा चंकी गोल्ड स्टाइल

बौलीवुड में इन दिनों मोटे गोल्ड ज्वैलरी की मानों बहार सी आई हुई और कुछ ऐसा ही आलम ब्राइडल फैशन का भी है. चंकी गोल्ड ईयररिंग्स अलग तरह के ब्रैसलेट और लेयर्स वाली गोल्ड चेन उन दुलहनों के लिए एक परफैक्ट पसंद है जोकि अपनी एक अलग छाप छोड़ना चाहती हैं और अपना एक बेबाक अंदाज दिखाना चाहती हैं.

दीपिका पादुकोण जैसी बौलीवुड सुंदरी ने इस ड्रैमेटिक स्टाइल को बखूबी दिखाया है. इस से सोने के मोटे आभूषणों की ताकत नजर आती है जोकि आप के लुक पर हावी हुए बिना उन्हें चमकने का मौका देते हैं. शादी की सजावट में इन खूबसूरत गोल्ड पीसेज को शामिल करने से दुलहन का लिबास एक अमिट छाप छोड़ सकता है.

बोल्ड गोल्ड हूप ईयररिंग्स या फिर परतदार चेन के साथ ओवरसाइज, तराशे गए ब्रैसलेट को पेयर करने से एक राजसी, लक्जरियस लुक आएगा.

भारीभरकम गोल्ड ज्वैलरी की खूबसूरती में चार चांद लगाने के लिए आप स्मोकी आई या बोल्ड लिप्स वाला ड्रैमेटिक मेकअप कर सकती हैं. अपने लुक को फैशनेबल और दमदार बनाए रखें. पीछे की ओर किया गया स्लीक सा हेयरस्टाइल जैसे साफसुथरा सा लो बन या फिर चोटी आप के ज्वैलरी की चमक को बरकरार रखेगा और आप का पूरा लुक तराशा हुआ और मौर्डन नजर आएगा.

यह स्टाइल कौकटेल पार्टियों या फिर प्री वैडिंग मौकों के लिए है जहां दुलहन पूरे विश्चास के साथ अपनी चमक बिखेरना चाहती है.

कियारा आडवाणी जैसा स्टोंस और क्रिस्टल्स शाइन लुक

यदि आप भी अपनी जेबों को खाली किए बिना एक खूबसूरत सा ब्राइडल लुक चाहती हैं तो ऐसे में गहनों के कई सारे सस्ते औप्शन हैं जोकि डायमंड और कौस्टली स्टोंस की तरह ही नजर आते हैं. थोड़े ही खर्च में यस आप की खूबसूरती पर वैसा ही असर दिखाते हैं. महंगे गहनों पर खर्च किए गए बिना खूबसूरत, दमकते लुक की चाहत रखने वाली दुलहनों के लिए कियारा आडवाणी ग्लैमर से भरा अंदाज प्रेरणा हो सकता है.

अपने पूरे लुक को बैलेंस तथा लुभावना बनाए रखने के लिए आप स्टोंस वाले इस मखमली नैकलेस के साथ नाजुक सी ईयररिंग और उस से मैचिंग ब्रैसलेस चुन सकती हैं.

छोटेछोटे सुंदर स्टोंस के साथ तैयार की गई लेयर्ड ज्वैलरी भव्यता का एहसास कराती है, वह भी मौर्डन. लेकिन दुलहन की सदाबहार खूबसूरती को बरकरार रखते हुए इस चमक को और बढ़ाने के लिए मेकअप को हलका और नैचुरल रखें और बालों को हलके वेव्स के साथ ही स्टाइल करें.

यह उन दुलहनों के लिए एक सही लुक है जोकि हलकीफुलकी और दमकती हुई सुंदरता चाहती हैं. दिन की शादियों के लिए कौकटेल कार्यक्रमों या फिर उन रस्मों के लिए यह बिलकुल सही है, जिन में आप के करीबी लोग ही शामिल हों.

करीना कपूर का क्लासिक चोकर

चोकर्स हमेशा ही सदाबहार ज्वैलरी रही है. अपने खूबसूरत और विविधता से भरपूर आकर्षण के लिए यह ब्राइडल फैशन में अपनी जगह बनाए हुए है. अकसर विरासत के रूप में देखे जाने वाले ये चोकर्स एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलते रहे हैं. अपना स्टाइलिश आकर्षण बरकरार रखते हुए इस में भावनात्मक एहसास भी जुड़ा हुआ है. करीना कपूर का यह जानदार चोकर इस बात का एक बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे इस पीस में क्लासिक सुंदरता के साथ कंटेंपररी का भी जादू समाया है.

एक चोकर को शादी के किसी आलीशान कार्यक्रम या फिर किसी निजी कार्यक्रम में भी पहना जा सकता है. जिन दुलहनों को विविधता के साथ परंपरा का स्वाद भाता है उन के लिए यह बिलकुल सही विकल्प है.

यदि आप भी एक बेबाक, अनोखा ब्राइडल स्टाइल चाहती हैं तो बारीक डिजाइन वाला हैवी चोकर चुनें. इस चोकर को केंद्र में बनाए रखने के लिए बाकी ज्वैलरी कम से कम रखें. ज्यादा सादगीभरे लुक के लिए हलकेफुलके मेकअप और बालों की रिलैक्स स्टाइल के साथ मोती या हीरे का एक सौम्य सा चोकर पहनें. इस से एक आकर्षक, खूबसूरत अंदाज नजर आएगा.

ज्वैल टोन ऐक्सेसरीज से ऐसे करें स्टाइलिंग

दुलहन वाले लुक के साथ ज्वैल टोन ऐक्सेसरीज शामिल करना अपने लुक में थोड़े रंग और अपनी छवि शामिल करने का एक अलग अंदाज होता है. इस में नयापन, रोचकता और खूबसूरती नजर आती है. ज्वैल टोंस जैसे गहरे हरे रंग का एमरल्ड, चमकदार नीलम, लाल रूबी या नीलम बैंगनी दुलहन की ऐक्सेसरीज में एक गहराई और जीवंतता ले आते हैं. इस से खूबसूरती की चमक और भी बढ़ जाती है. लुक की लय को बनाए रखने के लिए ये बोल्ड ईयररिंग्स आप की ज्वैलरी का सब से बड़ा आकर्षण हो सकती है या आप इसे ब्रैसलेट या अंगूठी जैसी दूसरी ज्वैलरी के साथ मिक्स ऐंड मैच कर सकती हैं. ज्वैल टोन ऐक्सेसरीज की मदद से आप ढेरों तरह की स्टाइलिंग कर सकती हैं.

एक बोल्ड, अलग प्रभाव के लिए आप कौंट्रास्ट रंग के दुलहन के लिबास के साथ इसे पेयर कर सकती हैं या रंगों की सौम्य छटा के लिए काले, सफेद या आइवरी जैसे ज्यादा न्यूट्रल या मोनोटोन आउटफिट के साथ. रंगों का आकर्षण बढ़ाने के लिए अपना मेकअप हलका ही रखें.

Best Family Drama- विदाई: पत्नी और सास को सबक सिखाने का क्या था नरेश का फैसला

विदाई की रस्म पूरी हो रही थी. नीता का रोरो कर बुरा हाल था. आंसुओं की झड़ी के बीच वह बारबार नजरें उठा कर बेटी को देखती तो उस का कलेजा मुंह को आ जाता.

सारी औपचारिकताएं खत्म हो चुकी थीं. टीना धीरेधीरे गाड़ी की ओर बढ़ रही थी. बड़ी बूआ भीगी पलकों के साथ ढेर सारी नसीहतें दे रही थीं, ‘‘टीना, अब तेरे लिए ससुराल ही तेरा अपना घर है. वहां सब का खयाल रखना. सासससुर की सेवा करना…’’ कहतेकहते उन की रुलाई फूट पड़ी.

नीता बड़ी मुश्किल से इतना भर कह पाई, ‘‘अपना खयाल रखना टीना,’’ आगे मां की जबान साथ न दे पाई और वह बड़ी जीजी के कंधे का सहारा ले कर जोरजोर से रोने लगीं.

टीना और नरेश गाड़ी में बैठ गए. दुलहन के लिबास में लिपटी टीना की हालत पर नरेश भावुक हो उठा. उस ने धीरे से टीना का हाथ पकड़ कर उसे ढांढस बंधाने का प्रयास किया. पति का स्पर्श पा कर टीना को कुछ राहत मिली, वरना उसे लग रहा था कि उस के सारे परिचित पीछे छूट गए हैं.

1 घंटे में टीना अपनी ससुराल की दहलीज पर खड़ी थी. नरेश का परिवार उस के लिए अपरिचित न था. दूर की रिश्तेदारी के कारण अकसर उन की मुलाकातें हो जाया करती थीं. ऐसे ही एक विवाह समारोह में नरेश की मां सुधा ने टीना को देखा था. उस का चुलबुलापन उन्हें बहुत अच्छा लगा. बिना समय गंवाए उन्होंने बात चलाई और 6 महीने के अंदर टीना उन की बहू बन कर उन के घर आ गई.

2 दिन तक विवाह की रम्में पूरी होती रहीं. तीसरे दिन नरेश व टीना हनीमून के लिए शिमला आ गए. दोनों बहुत खुश थे. नरेश के प्यार में खो कर टीना, मम्मी से बिछुड़ने का गम भूल  सी गई.

हनीमून के 2 दिन बहुत ही सुखद बीते. तीसरे दिन टीना को सर्दीबुखार ने घेर लिया. नरेश चिंतित था, ‘‘टीना, तुम आराम करो, लगता है यहां के मौसम में आए बदलाव के चलते तुम्हें सर्दी लग गई है.’’

‘‘मेरा बदन बहुत दुख रहा है नरेश.’’

‘‘तुम चिंता न करो, मैं डाक्टर को ले कर आता हूं.’’

‘‘डाक्टर की जरूरत नहीं है. एंटी कोल्ड दवाई से ही बुखार ठीक हो जाएगा, क्योंकि जब मुझे सर्दीबुखार होता था तो मम्मी मुझे यही दिया करती थीं.’’

‘‘मम्मी की बहुत याद आ रही है,’’ टीना को बांहों में भर कर नरेश बोला तो उस ने सिर हिला दिया.

‘‘तो इस में कीमती आंसू बहाने की क्या जरूरत है. अभी मम्मी से बात कर लो,’’ टीना की ओर मोबाइल बढ़ाते हुए नरेश बोला.

‘‘मुझे मम्मी से ढेर सारी बातें करनी हैं, अभी घर पर बहुत सारे मेहमान होंगे.’’

‘‘पगली, बाकी बातें बाद में कर लेना, अभी तो अपना हालचाल बता दो उन्हें.’’

‘‘प्लीज, उन्हें मेरी तबीयत के बारे में कुछ न बताना, वरना वे मुझे देखने यहीं आ जाएंगी. मैं मम्मी को जानती हूं,’’ टीना चहक कर बोली.

मम्मी के बारे में बात कर वह अपना दुखदर्द भूल गई. नरेश ने महसूस किया कि टीना सब से ज्यादा खुश मम्मी की बातों से होती है. अब टीना का दिल बहलाने के लिए वह बहुत देर तक मम्मी के बारे में बात करता रहा.

हनीमून के दौरान पूरे 7 दिनों में टीना ने एक बार भी अपनी ससुराल के बारे में कुछ नहीं पूछा. वह बस, अपनी मम्मी की और सहेलियों की बातें करती रही. हनीमून से वापस लौटते हुए टीना बोली, ‘‘नरेश, मुझे लखनऊ कितने दिन रुकना होगा.’’

‘‘तुम यह सब क्यों पूछ रही हो? अभी हमारी शादी को 8-10 दिन ही हुए हैं. जिस में हम घर पर 3 दिन ही रहे हैं. कम से कम 2 हफ्ते तो रुक ही जाना.’’

‘‘2 हफ्ते तक घर में बहू बन कर रहना मेरे बस की बात नहीं है.’’

‘‘मेरी मम्मी तुम्हें बहू नहीं बेटी की तरह रखेंगी. तुम खुद देख लेना. बहुत अच्छी मां हैं वह.’’

‘‘तुम्हारी बहन को देख कर मुझे अंदाजा लग गया है कि वह बेटी को किस तरह रखती हैं,’’ मुंह बना कर टीना बोली.

‘‘हम यहां से चल कर 2 दिन लखनऊ रुकेंगे. उस के बाद दिल्ली चलेंगे तुम्हारे मम्मीपापा के पास. वहां से जब तुम चाहोगी तब ही वापस आएंगे,’’ न चाहते हुए भी मजबूरी में टीना ने नरेश की यह बात मान ली.

लखनऊ में नरेश के परिवार वालों ने टीना की खूब खातिरदारी की. नरेश को लगा वह टीना को कुछ दिन और यहां रोक लेगा पर दूसरे दिन ही टीना ने अपने मन की बात कह डाली.

‘‘नरेश, हम कल दिल्ली चल रहे हैं न. मैं ने मम्मी को फोन से बता दिया है,’’ टीना बोली तो नरेश चुप हो गया. उस ने यह बात अभी तक अपने मम्मीपापा से नहीं कही थी. वह तुरंत पानी पीने के बहाने वहां से हट कर किचन में आ गया और धीरे से मम्मी से बोला, ‘‘मम्मी, टीना कल अपने मायके जाना चाहती है. आप की इजाजत हो तो…’’

‘‘ठीक ही तो कह रही है बहू. इतने दिन हो गए हैं उसे ससुराल आए हुए. इकलौती बेटी है वह अपने मां बाप की. घर की याद आनी तो स्वाभाविक है बेटा,’’ बेटे की दुविधा दूर करते हुए सुधा बोलीं.

कमरे में नरेश पहुंचा तो टीना बोली, ‘‘आप मेरी बात अधूरी छोड़ कर कहां चले गए थे?’’

‘‘पानी पीने चला गया था. तुम पैकिंग में व्यस्त थीं सो मैं खुद ही चला गया किचन तक.’’

‘‘कल का प्रोग्राम पक्का है न?’’

‘‘बिलकुल पक्का,’’ नरेश चहक कर बोला तो टीना ने राहत की सांस ली.

मायके पहुंच कर टीना मम्मी से लिपट कर खूब रोई. नीता, टीना को बड़ी देर तक सहलाती रही.

‘‘कितनी दुबली हो गई हैं मम्मी आप,’’ टीना बोली.

नरेश, मांबेटी को छोड़ कर अपने ससुर के पास आ गया.

‘‘पापा, बेटी के बिना घर खालीखाली लग रहा होगा आप को.’’

‘‘बेटी का असली घर तो उस की ससुराल ही होता है बेटा, यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए. टीना अपनी मां के लाड़प्यार के कारण थोड़ी लापरवाह है. उस की नादानियों को नजरअंदाज कर दिया करना.’’

‘‘आप चिंता न करें पापाजी, धीरेधीरे टीना मेरे परिवार के साथ घुलमिल जाएगी.’’

एक ही दिन में नरेश समझ गया कि इस घर में टीना के पापा की उपस्थिति केवल नाम लेने भर की है. घर में सारे फैसले नीता के कहे अनुसार ही होते हैं.

एक हफ्ता बीत गया. टीना का मन लखनऊ जाने का न था, वह तो नरेश के साथ सीधे मुंबई जाना चाहती थी पर नरेश से कहने का वह साहस न जुटा सकी.

बेटी को विदा करते हुए नीता ने ढेरों हिदायतें दे डालीं. नरेश साथ खड़ा सबकुछ सुन रहा था पर बोला कुछ नहीं. उसे ताज्जुब हो रहा था कि उस की सास ने एक बार भी टीना को अपने सासससुर की सेवा से संबंधित नसीहत न दी. चलते वक्त वह नरेश से बोलीं, ‘‘बेटा, टीना का खयाल रखना, मैं ने जिंदगी की अमानत तुम्हें सौंप दी है.’’

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शादी के 3 हफ्तों में ही नरेश को सबकुछ समझ में आने लगा था कि मम्मी के लाड़प्यार के कारण टीना की परवरिश एक आम लड़की की तरह नहीं हुई थी. घूमनाफिरना, मौजमस्ती करना और गप्पबाजी उस के खास शौक थे. घर के किसी काम में उस की रुचि न थी. सामान्य शिष्टाचार में उस का विश्वास न था.

छुट्टियां खत्म हुईं तो नरेश के साथ टीना भी मुंबई आ गई.

नरेश, टीना से जितना सामंजस्य बिठाता, टीना अपनी हद आगे सरका देती.

टीना की गुडमार्निंग मम्मी को फोन से होती, और फिर तो बातों में टीना यह भी भूल जाती कि उस के पति को दफ्तर जाना है, महीने का टेलीफोन का बिल हजारों में आया तो नरेश बोला, ‘‘टीना, मेरी आमदनी इतनी नहीं है कि मैं 5 हजार रुपए महीना टेलीफोन के बिल पर खर्च कर सकूं. हमें अपनी जरूरतें सीमित करनी होंगी.’’

‘‘नरेश, आप के पास रुपए की कमी है तो मैं मम्मी से मांग लेती हूं. मेरे एक फोन पर वह तुरंत रुपए आप के खाते में ट्रांसफर करवा देंगी.’’

‘‘शादी के बाद बेटी को मां पर नहीं पति पर आश्रित रहना चाहिए.’’

‘‘मैं अपनी मम्मीपापा की इकलौती संतान हूं,’’ टीना बोली, ‘‘उन का सबकुछ मेरा ही तो है. पता नहीं किस जमाने की बात कर रहे हो तुम.’’

‘‘छोटीछोटी चीजों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना ठीक नहीं होता.’’

‘‘मम्मी, दूसरी नहीं मेरी अपनी हैं.’’

‘‘यही बातें तुम्हें मेरे लिए भी सोचनी चाहिए. मेरे मांबाप का मुझ पर कुछ हक है और हमारा उन के प्रति कुछ फर्ज भी है,’’ पहली बार अपने परिवार की पैरवी की नरेश ने.

दूसरे दिन नरेश के आफिस जाते ही टीना ने सारी बातें अपनी मम्मी को बताईं तो वह बोलीं, ‘‘ठीक किया तू ने टीना. तुम्हारी ससुराल में जरा सी भी दिलचस्पी नरेश को उन की ओर मोड़ देगी. तुम्हें अपना भला देखना है कि ससुराल का.’’

शादी के बाद पहली होली पर नरेश ने टीना से घर चलने का आग्रह किया तो वह तुनक गई.

‘‘होली का त्योहार मुझे अच्छा नहीं लगता. रंगों से मुझे एलर्जी होती है.’’

‘‘बड़ों की भावनाओं का सम्मान करना जरूरी होता है टीना, मेरी खातिर तुम लखनऊ चलो न, वहां सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’ नरेश दुविधा में था कि क्या करे, क्योंकि टीना ससुराल जाने के लिए तैयार न थी. तभी नरेश के दिमाग में एक आइडिया आया और वह बोला, ‘‘टीना, चलो दिल्ली चलते हैं.’’ दिल्ली का नाम सुनते ही टीना तैयार हो गई.

होली से 2 दिन पहले वे दिल्ली पहुंच गए. नीता बेटीदामाद को देख कर फू ली न समाई. बेटी को होली पर मायके देख कर टीना के पापा पहली बार बोले, ‘‘टीना, इस समय तुम्हें मायके के बजाय अपनी ससुराल में होना चाहिए था. यह तुम्हारी ससुराल की पहली होली है.’’

‘‘क्या फर्क पड़ता है? टीना यहां रहे या ससुराल में.’’

‘‘फर्क हमें नहीं हमारे समधीजी को पड़ेगा, जिन का बेटा होली के दिन अपनी ससुराल में पत्नी के साथ…’’

‘‘बसबस, रहने दो. तुम्हें कुछ पता है रिश्तेनातों के बारे में. मैं न होती तो…’’

‘‘आप दोनों हमें ले कर आपस में क्यों उलझ रहे हैं. टीना यहां रह लेगी और चूंकि मेरा यहां रुकना ठीक नहीं है इसलिए मैं लखनऊ चला जाता हूं.’’

टीना के सामने अब कोई रास्ता न था. मजबूर हो कर उसे भी नरेश के साथ लखनऊ आना पड़ा. होली पर गुलाल के रंग टीना के सुंदर चेहरे पर बहुत फब रहे थे पर खुशी का असली रंग उस के चेहरे से नदारद था.

सुधा से बहू की उदासी और उकताहट छिपी न थी. वह सबकुछ देख कर भी चुप थी. इस अवसर पर उसे कोई नसीहत देना उस के दुख को क्रोध में बदलना था. बस, एक बार सुधा ने कहा, ‘‘टीना, कितना अच्छा लगता है जब तुम और नरेश यहां होते हो.’’

सुधा की बात सुन कर टीना चुप रही. रात को नरेश ने पूछा, ‘‘टीना, तुम्हारा मन कुछ दिन ससुराल में रहने को हो तो मैं अपनी छुट्टी आगे बढ़ा लेता हूं.’’

सुधा के शब्दों की खीज वह नरेश पर उतारते हुए बोली, ‘‘3 दिन में आप का मन नहीं भरा अपने लोगों के साथ रह कर.’’

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‘‘अपनापन तो मन में होता है, टीना. मुझे तो तुम से जुड़े सभी लोग अपने लगते हैं.’’

‘‘मुझे तुम्हारी फिलोसफी नहीं सुननी, और यहां रुकना मेरे बस की बात नहीं.’’

टीना का दो टूक जवाब सुन कर भी नरेश हंस दिया और बोला, ‘‘सौरी डार्लिंग, हम कल सुबह ही यहां से चल पड़ेंगे.’’

मुंबई वापस लौट कर टीना ने राहत की सांस ली और ससुराल में घटी सब बातोें की जानकारी अपनी मम्मी को दे दी.

अकसर टीना और नरेश शाम को घर से बाहर ही खाना खाते क्योंकि टीना को खाना पकाना नहीं आता था और वह सीखने का प्रयास भी नहीं करती. कभी वह जिद कर के टीना से कुछ बनाने को कहता तो गैस के चूल्हे जलने के साथ टीना का मोबाइल कान से लग जाता.

हां, मम्मी, बताओ कढ़ी बनाने के लिए सब से पहले क्या करना है? इस तरह मम्मी से पूरी रेसिपी सुन कर जितना फोन का बिल बढ़ता उस से कम पैसे में होटल से लजीज खाना मंगाया जा सकता था. सो नरेश ने फरमाइश करनी ही छोड़ दी.

इधर नरेश ने महसूस किया कि टीना उस से उलझने का कोई न कोई बहाना ढूंढ़ती रहती है. कल की ही बात है, टीना को शोरूम में एक घड़ी बहुत पसंद आई. उस ने नरेश से घड़ी लेने का आग्रह किया, ‘‘नरेश देखो, कितनी सुंदर घड़ी है.’’

‘‘टीना, तुम्हारे पास पहले ही कई घडि़या हैं. उन में से कुछ तो तुम ने आज तक पहनी भी नहीं हैं और घड़ी ले कर क्या करोगी?’’

‘‘वे घडि़यां मुझे पसंद नहीं. मुझे तो यही चाहिए,’’ टीना जिद करते हुए  बोली.

इतनी देर में नरेश काउंटर से हट कर अलग खड़ा हो गया. टीना नरेश की ओर बढ़ी तो वह दुकान से बाहर आ गया. गुस्से से भरी टीना, नरेश के साथ घर तो आ गई पर घर में घुसते ही वह फट पड़ी, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, दुकान में मेरी बेइज्जती करने की.’’

‘‘मेरा ऐसा कोई इरादा न था. मैं तो बस, दुकान में उपहास का पात्र नहीं बनना चाहता था.’’

‘‘आज तक मेरी मम्मी ने कभी मेरी किसी इच्छा से इनकार नहीं किया. मैं जैसे चाहूं रहूं, खाऊंपीऊं, खरीदारी करूं या घूमू फिरूं.’’

‘‘मैं तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहता था. टीना, प्लीज, मुझे माफ कर दो. मेरी जेब में उस वक्त उतने रुपए नहीं थे.’’

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‘‘के्रडिट कार्ड तो था. पहली बार मैं ने तुम्हारे सामने अपनी इच्छा रखी और तुम ने मेरी बेइज्जती की.’’

‘‘मुझे माफ कर दो प्लीज.’’

‘‘तुम्हारा मेरे प्रति यही नजरिया रहा तो देख लेना मैं यहीं इसी घर में आत्महत्या कर लूंगी.’’

‘‘आत्महत्या तुम्हें नहीं मुझे करनी चाहिए जिस ने अपनी इतनी प्यारी पत्नी का दिल दुखाया. चलो, मैं अभी तुम्हारे लिए घड़ी ले आता हूं.’’

‘‘अब मुझे घड़ी नहीं चाहिए, जिस चीज के लिए एक बार ना हो जाए उसे मैं कभी हाथ नहीं लगाती,’’ कहते हुए टीना मुंह फुला कर सो गई. उस ने खाना भी नहीं खाया तो नरेश को भी भूखा सोना पड़ा.

अगले दिन नरेश के आफिस जाते ही टीना ने मम्मी को कल की पूरी घटना सुना दी. सुन कर नीता को बड़ा गुस्सा आया और वह बोलीं, ‘‘यह तो नरेश ने अच्छा नहीं किया टीना, उस की हिम्मत तो देखो कि अपनी पत्नी की छोटी सी इच्छा पूरी न कर सका.’’

‘‘मुझे इस बात का बड़ा दुख हुआ मम्मी.’’

‘‘ऐसे मौकों पर तुम कमजोर न पड़ना. आखिर वह इतनी तनख्वाह का करता क्या है? कहीं सारे रुपए घर तो नहीं भेज देता?’’

‘‘मैं ने कभी पूछा नहीं मम्मी.’’

‘‘नरेश की हर हरकत पर नजर रखना. तुम अभी कमजोर पड़ गईं तो फिर कभी पति पर राज नहीं कर सकोगी.’’

मम्मी के कहे अनुसार टीना ने नरेश की गतिविधियों पर नजर रखनी शुरू कर दी पर ऐसा कुछ हाथ न लगा जिसे ले कर नरेश पर हावी हुआ जा सके.

टीना ने महसूस किया कि नरेश कुछ दिनों से खोयाखोया सा रहता है. पत्नी की इच्छा के खिलाफ उस ने कभी मांबाप से मिलने की इच्छा जाहिर नहीं की. उसे यकीन था उस का प्यार और धैर्य एक दिन टीना को बदल देगा. लेकिन एक साल गुजर गया पर टीना के व्यवहार में कोई फर्क न था. अपनी सास से वह नरेश के अनुरोध पर 10-15 दिनों में एकआध मिनट के लिए बात कर लेती. हां, अपनी मम्मी से सुबहशाम नियम से बात करना वह कभी न भूलती.

एक दिन नरेश ने टीना को बताया कि उस के आफिस का माहौल कुछ ठीक नहीं चल रहा है. यही हाल रहा तो एक दिन वापस घर जाना पडे़गा. यह सुन कर टीना अंदर ही अंदर कांप गई कि कैसे रहेगी वह सासससुर, ननददेवर के बीच. सुबह- शाम खाना बनाना और घर की देखभाल करना उस के बूते की बात न थी. अब भी वह कई बार 9 बजे सो कर उठती. नरेश कभी विरोध न करता. चुपचाप चाय पी कर आफिस चला जाता है. नरेश की कही बात टीना ने तुरंत अपनी मम्मी को बताई. ‘‘यह तो बड़ी बुरी खबर है टीना.’’

‘‘मम्मी, मैं तो नरेश के साथ दिल्ली आ जाऊंगी.’’

‘‘नरेश न माना तो…’’

‘‘इस के लिए आप कोई उपाय करो न मम्मी.’’

‘‘अच्छा, सोच कर बताती हूं,’’ कह कर नीता ने फोन रख दिया.

शाम को नरेश के आने से पहले  नीता ने टीना को फोन किया, ‘‘टीना, तुम्हारी बातों ने मुझे बड़ा विचलित किया है. ससुराल में कैसे रहोगी जीवन भर. मैं एक तांत्रिक को जानती हूं. उस के पास हर समस्या का उपाय है. वह हमारी समस्या चुटकियों में हल कर देंगे.’’

‘‘यह ठीक है मम्मी, कल सुबह बात करूंगी,’’ कह कर टीना आश्वस्त हो गई.

अगले दिन दोपहर को टीना के पास उस की मां का फोन आया,  ‘‘बेटी, घबराने की बात नहीं है. बाबा ने यकीन दिलाया है कि सब ठीक हो जाएगा. उन्होंने नरेश को पहनने के लिए एक अंगूठी दी है. मैं ने कूरियर से उसे तुम्हारे पास भेज दिया है. तुम उसे नरेश को जरूर पहना देना.’’

2 दिन में अंगूठी टीना के पास पहुंच गई. अगूंठी सोने की थी. टीना ने वह बड़े प्यार से नरेश की उंगली में पहना दी. नरेश ने प्रश्नवाचक दृष्टि से टीना को देखा.

‘‘मम्मी ने भेजी है तुम्हारे लिए.’’

‘‘मेरे पास तो अंगूठियां हैं.’’

‘‘यह स्पेशल है. बडे़ सिद्ध बाबा ने दी है. इस से तुम्हारे दफ्तर के सारे कष्ट दूर हो जाएंगे.’’

‘‘अच्छा,’’ कह कर नरेश ने बड़ी श्रद्धा से अंगूठी को आंखों से छुआ लिया. टीना आश्वस्त हो गई.

नरेश के साथ हुई पूरी बात टीना ने मम्मी को बताई. नीता बहुत खुश थी कि बाबा की अंगूठी वास्तव में चमत्कारी थी. वह बोली, ‘‘बेटी, तांत्रिक बाबा ने एक छोटा सा अनुष्ठान करवाने के लिए कहा है. तुम्हें 15 दिन के लिए मायके आना होगा. मैं ने सारा प्रबंध कर लिया है. तुम इस बारे में नरेश से बात करना. इस से उस का काम फिर से चल पड़ेगा.’’

शाम को टीना ने नरेश को मम्मी से हुई पूरी बात बता दी और उस से मायके जाने की अनुमति ले ली. नरेश स्वयं उसे दिल्ली छोड़ कर मुंबई आ गया.

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नीता का हर पत्ता सही पड़ रहा था. मांबेटी नियम से बाबा के पास जातीं और घंटों अनुष्ठान में लगी रहतीं. इन 12-13 दिनों में बाबा ने अनुष्ठान के नाम पर हजारों रुपए ठग लिए. आखिर वह दिन आ पहुंचा जिस का मांबेटी को इंतजार था.

तांत्रिक बोला, ‘‘बेटी को अनुष्ठान का पूरा लाभ चाहिए तो अंतिम आहुति उसी व्यक्ति से डलवानी होगी जिस के लिए यह अनुष्ठान किया जा रहा है. आप अपने दामाद को तुरंत बुला लीजिए. ध्यान रहे, इस अनुष्ठान की खबर किसी को नहीं होनी चाहिए.’’

नीता और टीना ने एकदूसरे को देखा और घर की ओर चल पड़ीं. टीना ने खामोशी तोड़ी, ‘‘मम्मी, अब क्या होगा?’’

‘‘होना क्या है, अनुष्ठान के कारण नरेश का मन पहले ही काफी बदल गया है. तुम ने देखा है, वह तुम्हारी किसी बात का विरोध नहीं करता. मुझे यकीन है, वह तुम्हारी यह बात तुरंत मान लेगा. तुम फोन करो तो सही.’’

बाबा का ध्यान कर के टीना ने नरेश को फोन मिलाया.

‘‘कैसी हो टीना, कब आ रही हो?’’

‘‘जब तुम लेने आ जाओ.’’

‘‘तब ठीक है, आज ही चल देता हूं तुम से मिलने.’’

‘‘आज नहीं 2 दिन बाद.’’

‘‘कोई खास बात है क्या?’’

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‘‘यही समझ लो. मैं जिस काम के लिए मायके आई थी वह 2 दिन बाद खत्म हो जाएगा और उस में तुम्हारा आना जरूरी है. आओेगे न?’’

‘‘जैसी तुम्हारी आज्ञा, हम तो हुजूर के गुलाम हैं.’’

‘‘पर एक शर्त है कि यह बात तुम्हारे और मेरे सिवा किसी को मालूम नहीं चलनी चाहिए वरना अनुष्ठान का प्रभाव खत्म हो जाएगा.’’

‘‘मेरे तुम्हारे अलावा मम्मीजी भी तो यह बात जानती हैं.’’

‘‘मम्मी हम दोनोें से अलग थोड़े ही हैं. सच पूछो तो हमारी भलाई उन के अलावा कोई सोच ही नहीं सकता.’’

‘‘इस अनुष्ठान से तुम्हें यकीन है कि हम सुखी हो जाएंगे?’’

‘‘100 प्रतिशत. मम्मी ने हमारी खुशी के लिए क्या कुछ नहीं किया? दिनरात एक कर के ऐसे सिद्ध बाबा से अनुष्ठान करवाया है. तुम आ रहे हो न.’’

‘‘टीना, मैं ठीक समय पर घर पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘अरे, बाबा घर नहीं, तुम्हारे लिए मम्मी होटल में कमरा बुक करा देंगी.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘बहुत भोले हो तुम. घर पर पापा भी तो हैं. उन्हें तुम्हारे आने से सबकुछ पता चला जाएगा जबकि यह बात सब से छिपा कर रखनी है.’’

‘‘ओह, आई एम सौरी,’’ कह कर नरेश ने फोन रख दिया.

टीना ने जैसे समझाया था उसी तरह अंतिम आहुति देने के लिए नरेश दिल्ली पहुंच गया. टीना उस के स्वागत में एअरपोर्ट पर खड़ी थी. वह नरेश को ले कर सीधा होटल आ गई और नरेश से लिपट कर बोली, ‘‘ये 15 दिन मुझे कितने लंबे महसूस हुए जानते हो?’’

‘‘तुम्हें ही क्यों मुझे भी तो ऐसा ही एहसास हुआ पर मजबूरी थी. तुम्हारी खुशी जो इसी में थी.’’

‘‘मेरी नहीं हमारी. आज के बाद हमारी सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी.’’

‘‘चलो, कहां चलना है?’’

‘‘बाबा के शिविर में.’’

‘‘यह बाबा का शिविर कहां पर है?’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ चल रही हूं. तुम्हें खुद ब खुद पता चल जाएगा.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर नरेश चलने को तैयार हुआ. दरवाजे पर आ कर वह टीना से बोला, ‘‘डार्लिंग, मैं अपना पर्स तो अंदर ही भूल गया. तुम नीचे चलो मैं उसे लेकर आता हूं.’’

टीना होटल के मुख्य गेट पर आ गई. पापा की गाड़ी उस के पास थी. नरेश आ कर गाड़ी में बैठ गया. उधर नीता बाबा की विदाई की तैयारी में व्यस्त थी. अंतिम आहुति के साथ उसे बाबा को वस्त्र, धन और फलफूल देने थे. नीता ने कपड़े तो पहले ही खरीद लिए थे. ताजे फल खरीदने के लिए वह फल की दुकान पर खड़ी थी. टीना ने गाड़ी एक किनारे पार्क की और मम्मी की ओर बढ़ गई. फल खरीद कर टीना व नीता ज्यों ही दुकान से बाहर निकले सामने पापा के साथ नरेश के मम्मीपापा को देख कर वे दंग रह गईं.

नीता को काटो तो खून नहीं. वह अचकचा कर बोली, ‘‘आप यहां?’’

‘‘हम लोगों का यहां आना आप को अच्छा नहीं लगा?’’

‘‘नहींनहीं ऐसी बात नहीं है. असल में एक जरूरी काम से हमें जाना है. आप घर चलिए.’’

‘‘टीना, मेरी मम्मी को जरूरी काम नहीं बताओगी?’’

टीना चुप रही तो नरेश ही बोला, ‘‘मैं बताता हूं पूरी बात. मम्मीजी, बेटी के मोह में अंधी हो कर क्या कर रही हैं यह इन को खुद नहीं पता.’’

‘‘नरेश…’’ टीना चीखी.

‘‘मर गया तुम्हारा नरेश. तुम लोगों की पोल यहीं खोल दूं या तुम्हारे घर जा कर सबकुछ बताऊं?’’

‘‘यह क्या कह रहे हो नरेश तुम. क्या हुआ बेटा?’’ टीना के पापा ने पूछा.

‘‘यह आप अपनी पत्नी और बेटी से पूछिए भाई साहब, जो रातदिन मेरे घर को बरबाद करने की साजिश रचते रहे,’’ सुधा बोली.

‘‘बहनजी, मेरी इज्जत का कुछ तो लिहाज कीजिए. घर चल कर बात करते हैं,’’ टीना के पापा हाथ जोड़ कर बोले.

सुधा एक नेक इनसान की बात न टाल सकी. घर आ कर उन्होंने पूछा, ‘‘माजरा क्या है नीता?’’

‘‘ये क्या बताएंगी मैं आप को बताती हूं,’’ सुधा बोली.

‘‘शादी के दिन से ही आप की बेटी ससुराल में नहीं रहना चाहती थी. वह अपनी हर इच्छा नरेश पर लादती रहती और उस के मना करने पर आत्महत्या की धमकी देती. बेचारा नरेश क्या करता, चुपचाप सबकुछ सहन करता. यह हर बात अपनी मम्मी को बताती और आप की पत्नी अपनी बेटी टीना को उल्टी शिक्षा देतीं. ताकि बेटी को ससुराल में रह कर कुछ न करना पड़े.’’

‘‘यह सच नहीं है,’’ नीता बोली.

‘‘तो आप ही बात दीजिए सच क्या है?’’ नरेश तीखे स्वर में बोला.

‘‘मेरे बेटे को वश में करने के लिए ये मांबेटी किसी बाबा से अनुष्ठान करवा रही हैं. विश्वास न हो तो खुद चल कर देख लीजिए. हम स्वयं उस बाबा से मिल कर आ रहे हैं, सुधा बोली.’’

‘‘क्या यह सच है?’’ पापा ने पूछा.

‘‘यह क्या जवाब देंगी. इस ने तो एक पल को भी अपनी ससुराल को अपना घर नहीं समझा. इस में इस का भी क्या दोष? इसे अपनी मां से शिक्षा ही ऐसी मिली थी. अब अपनी बेटी को आप अपने ही पास रखिए. इस से न इसे तकलीफ होगी न इस की मम्मी को. मेरे बेटे को भी इन की ज्यादतियों से मुक्ति मिल जाएगी. इस एक साल में हमारे बेटे ने क्या कुछ न सहा… क्या सुख मिला इसे शादी का. ससुराल के नाम से ही चिढ़ है टीना को, बेचारा छिपा कर सब बातें अपनी मां को बताता रहा. मेरे समझाने पर उस ने टीना की, हर नाजायज बात स्वीकार कर ली. मुझे उम्मीद थी कि टीना को एक दिन अपनी गलती का एहसास जरूर होगा पर वह दिन देखना शायद हम लोगों की किस्मत में नहीं था.हम जा रहे हैं. आप अपनी बेटी को अपने पास रखिए. अगर हम इस की हरकतों से तंग आ कर इसे वापस मायके भेजते तो किसी को हमारी बात का यकीन न होता. सब हमें ही दोषी ठहराते. आज सबकुछ आप अपनी आंखों से देख सकते हैं,’’ नरेश के पापा बोले.ॉ

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सुधा, पति व बेटे के साथ जाने लगी तो टीना के पापा ने उन के पैर पकड़ लिए.

‘‘भाई साहब, इस में आप का कोई दोष नहीं है. नीता ने आप को घर का मुखिया समझा ही कब? पहले ये खुद मनमानी करती रहीं अब वही सब बेटी के साथ दोहरा रही हैं.’’

‘‘मेरी बेटी की गलती को माफ कर दीजिए,’’ टीना के पापा बोले.

नरेश उन से हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘पापाजी, ससुराल में टीना को रहना है. इस में आप और हम क्या कर सकते हैं. मम्मी की शह पर टीना ने कभी आप को पिता होने का ओहदा न दिया. जो लड़की पिता को कुछ न समझे वह ससुर को क्या समझेगी? अभी हम जा रहे हैं. बाकी निर्णय तो टीना को लेना है.’’

नरेश अपने मम्मीपापा के साथ वापस लखनऊ चला आया.

ससुराल वालों से जलील हो कर टीना बड़ी आहत थी. नीता की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? नरेश अपने मम्मीपापा के साथ मिल कर ऐसा खेल खेलेगा इस की टीना व नीता को रत्ती भर भी उम्मीद न थी.

अपने घर में अपने ही कर्मों से नीता बुरी तरह लज्जित हो गई. पति के सामने उस की हरकतों का कच्चा चिट्ठा दामाद ने खोल दिया. उन के जाते ही प्रकाश बोले, ‘‘तुम मांबेटी की हरकतों ने आज मेरी इज्जत सरेआम उछाल दी. जो कोई भी सुनेगा, थूकेगा तुम दोनों पर. कितनी ओछी हरकत की है तुम दोनों ने.’’

आज पहली बार प्रकाश की बातों का नीता ने पलट कर जवाब नहीं दिया. दामाद को अपनी ओर करने के चक्कर में वह खुद एकदम अकेली पड़ गई.

नीता को गुमसुम देख कर टीना बोली, ‘‘मम्मी, जो होना था सो हो गया. शायद मेरे भाग्य में यही लिखा था. अब मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘तुम्हारे ससुराल के रास्ते मैं ने ही अपने हाथों बंद किए हैं बेटी, उन्हें खोलना मेरा ही फर्ज है,’’ कह कर नीता ने अपनी ननद को फोन मिलाया और सारी बातें ज्यों की त्यों उन्हें बात दीं.

रमा ने भाभी की कही बातें सुनीं तो उन के पैरों तले जमीन खिसक गई. उस ने ही टीना का रिश्ता अपनी ससुराल के दूर के रिश्ते में तय करवाया था.

‘‘भाभी, तुम चिंता मत करो. मैं सुधा व नरेश से बात करूंगी,’’ रमा बोली.

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‘‘रमा, मुझे माफ कर दो. यह बात लोग सुनेंगे तो कहेंगे कि दामाद ने मेरी नासमझी को मेरे ही घर में सुबूत सहित सब को दिखा दिया. मेरे लिए तो चुल्लू भर पानी में डूब मरने के अलावा कोई रास्ता नहीं है.’’

‘‘भाभी, हिम्मत रखो. जिंदगी के रास्ते एकदम सीधे नहीं, टेढे़मेढ़े होते हैं. एक रुकावट आने से मंजिल नहीं छूटती, रास्ते का फेर बढ़ जाता है. टीना को तुम ने लापरवाह बनाया है तो सुधारना भी तुम्हें ही होगा.’’

‘‘मैं सबकुछ करने को तैयार हूं. बस, टीना को इस बदनामी से बचा लो.’’

‘‘एक अच्छी पत्नी का अच्छी बहू होना जरूरी है. पति के दिल में उतरने का सब से सरल रास्ता उस के मातापिता की सेवा से बनता है. तुम उसे इस बार नरेश के पास नहीं सुधा के पास लखनऊ ले कर चलो. मैं भी वहीं पहुंच रही हूं.’’

नीता के पहुंचने से पहले रमा सुधा के पास पहुंच चुकी थी.

‘‘सुधा, टीना मक्कार नहीं भटकी हुई है. उसे रास्ता दिखाना तुम्हारा फर्ज बनता है. नीता के लाड़प्यार ने आज उसे इस स्थिति पर ला दिया है. यह दो जिंदगियों का सवाल है.’’

रमा के समझाने का सुधा पर अच्छा प्रभाव पड़ा. वह रमा का आग्रह न टाल सकी.

‘‘बहनजी, मैं वादा करती हूं कि आप के परिवार के बीच कभी कोई अड़चन नहीं डालूंगी,’’ नीता सिर झुका कर बोली, ‘‘यहां तक कि टीना से बात तक नहीं करूंगी. इसे जो कहना होगा अपने पापा से कहेगी, मुझ से नहीं. मैं टीना को आप की छत्रछाया में छोड़ कर जा रही हूं. हो सके तो इसे भी कुछ अच्छे संस्कार सिखा दीजिएगा.’’

‘‘यह टीना के जीवन का प्रश्न है और उसे पति व उस के परिवार के साथ खुद को एडजस्ट करना है. हम उस पर कोई बोझ नहीं डालना चाहते,’’ सुधा बोली.

‘‘मम्मीजी, मुझे आप की हर शर्त मंजूर है. प्लीज, मुझे यहीं रहने दीजिए,’’ टीना बोली.

‘‘यह घर तुम्हारा ही था बेटी पर तुम ने इसे कभी अपना नहीं समझा. केवल पति तक सीमित हो कर रह गई थीं तुम्हारी भावनाएं. और भावनाएं शर्तों पर नहीं जगाई जा सकतीं.’’

‘‘भूल मुझ से हुई तो प्रायश्चित्त भी मैं ही करूंगी. 6 महीने आप के साथ रह कर अपने को एक अच्छी बहू साबित कर के दिखा दूंगी, मुझे एक मौका दीजिए.’’

सुधा ने नीता और टीना को माफ कर दिया. भारी मन से नीता ने टीना से विदा ली. चलते समय वह बेटी को नसीहत दे रही थी, ‘‘टीना, अपने व्यवहार से सब को खुश रखना. सासससुर की सेवा करना,’’ आगे वह कुछ न कह सकी. सही माने में सच्ची विदाई तो टीना की आज ही हुई थी, मां के आशीर्वाद के साथ.

Social Story In Hindi : रूढ़ियों के साए में: दिव्या ने क्या बनाया था प्लान

दीपों की टेढ़ीमेढ़ी कतारों के कुछ दीप अपनी यात्रा समाप्त कर अंधकार के सागर में विलीन हो चुके थे, तो कुछ उजाले और अंधेरे के बीच की दूरी में टिमटिमा रहे थे. गली का शोर अब कभीकभार के पटाखों के शोर में बदल चुका था.

दिव्या ने छत की मुंडेर से नीचे आंगन में झांका जहां मां को घेर पड़ोस की औरतें इकट्ठी थीं. वह जानबूझ कर वहां से हट आई थी. महिलाओं का उसे देखते ही फुसफुसाना, सहानुभूति से देखना, होंठों की मंद स्मिति, दिव्या अपने अंतर में कहां तक झेलती? ‘कहीं बात चली क्या…’, ‘क्या बिटिया को बूढ़ी करने का इरादा है…’ वाक्य तो अब बासी भात से लगने लगे हैं, जिन में न कोई स्वाद रहता है न नयापन. हां, जबान पर रखने की कड़वाहट अवश्य बरकरार है.

काफी देर हो गई तो दिव्या नीचे उतरने लगी. सीढि़यों पर ही रंभा मिल गई. बड़ेबड़े फूल की साड़ी, कटी बांहों का ब्लाउज और जूड़े से झूलती वेणी…बहुत ही प्यारी लग रही थी, रंभा.

‘‘कैसी लग रही हूं, दीदी…मैं?’’ रंभा ने उस के गले में बांहें डालते हुए पूछा तो दिव्या मुसकरा उठी.

‘‘यही कह सकती हूं कि चांद में तो दाग है पर मेरी रंभा में कोई दाग नहीं है,’’ दिव्या ने प्यार से कहा तो रंभा खिलखिला कर हंस दी.

‘‘चलो न दीदी, रोशनी देखने.’’

‘‘पगली, वहां दीप बुझने भी लगे, तू अब जा रही है.’’

‘‘क्या करती दीदी, महल्ले की डाकिया रमा चाची जो आ गई थीं. तुम तो जानती हो, अपने शब्दबाणों से वे मां को कितना छलनी करती हैं. वहां मेरा रहना जरूरी था न.’’

दिव्या की आंखें छलछला आईं. रंभा को जाने का संकेत करती वह अपने कमरे में चली आई. बत्ती बुझाने के पूर्व उस की दृष्टि सामने शीशे पर चली गई, जहां उस का प्रतिबिंब किसी शांत सागर की याद दिला रहा था. लंबे छरहरे शरीर पर सौम्यता की पहनी गई सादी सी साड़ी, लंबे बालों का ढीलाढाला जूड़ा, तारे सी नन्ही बिंदी… ‘क्या उस का रूप किसी पुरुष को रिझाने में समर्थ नहीं है? पर…’

बिस्तर पर लेटते ही दिव्या के मन के सारे तार झनझना उठे. 30 वर्षों तक उम्र की डगर पर घिसटघिसट कर बिताने वाली दिव्या का हृदय हाहाकार कर उठा. दीवाली का पर्व सतरंगे इंद्रधनुष में पिरोने वाली दिव्या के लिए अब न किसी पर्व का महत्त्व था, न उमंग थी. रूढि़वादी परिवार में जन्म लेने का प्रतिदान वह आज तक झेल रही है. रूप, यौवन और विद्या इन तीनों गुणों से संपन्न दिव्या अब तक कुंआरी थी. कारण था जन्मकुंडली का मिलान.

तकिए का कोना भीगा महसूस कर दिव्या का हाथ अनायास ही उस स्थान को टटोलने लगा जहां उस के बिंदु आपस में मिल कर अतीत और वर्तमान की झांकी प्रस्तुत कर रहे थे. अभी एक सप्ताह पूर्व की ही तो बात है, बैठक से गुजरते हुए हिले परदे से उस ने अंदर देख लिया था. पंडितजी की आवाज ने उसे अंदर झांकने पर मजबूर किया, आज किस का भाग्य विचारा जा रहा है? पंडितजी हाथ में पत्रा खोले उंगलियों पर कुछ जोड़ रहे थे. कमरे तक आते हुए दिव्या ने हिसाब लगाया, 7 वर्ष से उस के भाग्य की गणना की जा रही है.

खिड़की से आती धूप की मोटी तह उस के बिस्तर पर साधिकार पसरी हुई थी. दिव्या ने क्षुब्ध हो कर खिड़की बंद कर दी.

‘‘दीदी…’’ बाहर से रंभा ने आते ही उस के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘बाहर क्या हो रहा है…’’ संभलते हुए दिव्या ने पूछा था.

‘‘वही गुणों के मिलान पर तुम्हारा दूल्हा तोला जा रहा है.’’

रंभा ने व्यंग्य से उत्तर दिया, ‘‘दीदी, मेरी समझ में नहीं आता…तुम आखिर मौन क्यों हो? तुम कुछ बोलती क्यों नहीं?’’

‘‘क्या बोलूं, रंभा?’’

‘‘यही कि यह ढकोसले बंद करो. 7 वर्षों से तुम्हारी भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है और तुम शांत हो. आखिर ये गुण मिल कर क्या कर लेंगे? कितने अच्छेअच्छे रिश्ते अम्मांबाबूजी ने छोड़ दिए इस कुंडली के चक्कर में. और वह इंजीनियर जिस के घर वालों ने बिना दहेज के सिर्फ तुम्हें मांगा था…’’

‘‘चुप कर, रंभा. अम्मां सुनेंगी तो क्या कहेंगी.’’

‘‘सच बोलने से मैं नहीं डरती. समय आने दो. फिर पता चलेगा कि इन की रूढि़वादिता ने इन्हें क्या दिया.’’

रंभा के जलते वाक्य ने दिव्या को चौंका दिया. जिद्दी एवं दबंग लड़की जाने कब क्या कर बैठे. यों तो उस का नाम रंभा था पर रूप में दिव्या ही रंभा सी प्रतीत होती थी. मां से किसी ने एक बार कहा भी था, ‘बहन, आप ने नाम रखने में गलती कर दी. रंभा सी तो आप की बड़ी बेटी है. इसे तो कोई भाग्य वाला मांग कर ले जाएगा,’

तब मां चुपके से उस के कान के पीछे काला टीका लगा जातीं. कान के पीछे लगा काला दाग कब मस्तक तक फैल आया, स्वयं दिव्या भी नहीं जान पाई.

बी.एड. करते ही एक इंटर कालेज में दिव्या की नौकरी लग गई तो शुरू हुआ सिलसिला ब्याह का. तब पंडितजी ने कुंडली देख कर बताया कि वह मंगली है, उस का ब्याह किसी मंगली युवक से ही हो सकता है अन्यथा दोनों में से कोई एक शीघ्र कालकवलित हो जाएगा.

पहले तो उस ने इसे बड़े हलकेफुलके ढंग से लिया. जब भी कोई नया रिश्ता आता, उस के गाल सुर्ख हो जाते, दिल मीठी लय पर धड़कने लगता. पर जब कई रिश्ते कुंडली के चक्कर में लौटने लगे तो वह चौंक पड़ी. कई रिश्ते तो बिना दानदहेज के भी आए पर अम्मांबाबूजी ने बिना कुंडली का मिलान किए शादी करने से मना कर दिया.

धीरेधीरे समय सरकता गया और घर में शादी का प्रसंग शाम की चाय सा साधारण बैठक की तरह हो गया. एकदो जगह कुंडली मिली भी तो कहीं लड़का विधुर था, कहीं परिवार अच्छा नहीं था. आज घर में पंडितजी की उपस्थिति बता रही थी कि घर में फिर कोई तामझाम होने वाला है.

वही हुआ, रात्रि के भोजन पर अम्मांबाबूजी की वही पुरानी बात छिड़ गई.

‘‘मैं कहती हूं, 21 गुण कोई माने नहीं रखते, 26 से कम गुण पर मैं शादी नहीं होने दूंगी.’’

‘‘पर दिव्या की मां, इतनी देर हो चुकी है. दिव्या की उम्र बीती जा रही है. कल को रिश्ते मिलने भी बंद हो जाएंगे. फिर पंडितजी का कहना है कि यह विवाह हो सकता है.’’

‘‘कहने दो उन्हें, एक तो लड़का विधुर, दूसरे, 21 गुण मिलते हैं,’’ तभी वे रुक गईं.

रंभा ने पानी का गिलास जोर से पटका था, ‘‘सिर्फ विधुर है. उस से पूछो, बच्चे कितने हैं? ब्याह दीदी का उसी से करना…गुण मिलना जरूरी है लेकिन…’’

रंभा का एकएक शब्द उमंगों के तरकश से छोड़ा हुआ बाण था जो सीधे दिव्या ने अपने अंदर उतरता महसूस किया.

‘‘क्या बकती है, रंभा, मैं क्या तुम लोगों की दुश्मन हूं? हम तुम्हारे ही भले की सोचते हैं कि कल को कोई परेशानी न हो, इसी से इतनी मिलान कराते हैं,’’ मां की झल्लाहट स्वर में स्पष्ट झलक रही थी.

‘‘और यदि कुंडली मिलने के बाद भी जोड़ा सुखी न रहा या कोई मर गया तो क्या तुम्हारे पंडितजी फिर से उसे जिंदा कर देंगे?’’ रंभा ने चिढ़ कर कहा.

‘‘अरे, कीड़े पड़ें तेरी जबान में. शुभ बोल, शुभ. तेरे बाबूजी से मेरे सिर्फ 19 गुण मिले थे, आज तक हम दोनों विचारों में पूरबपश्चिम की तरह हैं.’’

अम्मांबाबूजी से बहस व्यर्थ जान रंभा उठ गई. दिव्या तो जाने कब की उठ कर अपने कमरे में चली गई थी. दोचार दिन तक घर में विवाह का प्रसंग सुनाई देता रहा. फिर बंद हो गया. फिर किसी

नए रिश्ते की बाट जोहना शुरू हो गया. दिव्या का खामोश मन कभीकभी विद्रोह करने को उकसाता पर संकोची संस्कार उसे रोक देते. स्वयं को उस ने मांबाप एवं परिस्थितियों के अधीन कर दिया था.

रंभा के विचार सर्वथा भिन्न थे. उस ने बी.ए. किया था और बैंक की प्रतियोगी परीक्षा में बैठ रही थी. अम्मांबाबूजी के अंधविश्वासी विचारों पर उसे कुढ़न होती. दीदी का तिलतिल जलता यौवन उसे उस गुलाब की याद दिलाता जिस की एकएक पंखड़ी को धीरेधीरे समय की आंधी अपने हाथों तोड़ रही हो.

आज दीवाली की ढलती रात अपने अंतर में कुछ रहस्य छिपाए हुए थी. तभी तो बुझते दीपों के साथ लगी उस की आंख सुबह के हलके शोर से टूट गई. धूप काफी निकल आई थी. रंभा उत्तेजित स्वरों में उसे जगा रही थी, ‘‘दीदी…दीदी, उठो न…देखो तो भला नीचे क्या हो रहा है…’’

‘‘क्या हो रहा है नीचे? कोई आया है क्या?’’

‘‘हां, दीदी, अनिल और उस के घर वाले.’’

‘‘अनिल वही तो नहीं जो तुम्हारा मित्र है और जो मुंसिफ की परीक्षा में बैठा था,’’ दिव्या उठ बैठी.

‘‘हां, दीदी, वही. अनिल की नियुक्ति शाहजहांपुर में ही हो गई है. दीदी, हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं. सोचा था शादी की बात घर में चलाएंगे पर कल रात अचानक अनिल के घर वालों ने अनिल के लिए लड़की देखने की बात की तब अनिल ने उन्हें मेरे बारे में बताया.’’

‘‘फिर…’’ दिव्या घबरा उठी.

‘‘फिर क्या? उन लोगों ने तो मुझे देखा था, वह अनिल पर इस कारण नाराज हुए कि उस ने उन्हें इस विषय में पहले ही क्यों नहीं बता दिया, वे और कहीं बात ही न चलाते. वे तो रात में ही बात करने आ रहे थे पर ज्यादा देर हो जाने से नहीं आए. आज अभी आए हैं.’’

‘‘और मांबाबूजी, वे क्या कह रहे हैं?’’ दिव्या समझ रही थी कि रंभा का रिश्ता भी यों आसानी से तय होने वाला नहीं है.

‘‘पता नहीं, उन्हें बिठा कर मैं पहले तुम्हें ही उठाने आ गई. दीदी, तुम उठो न, पता नहीं अम्मां उन से क्या कह दें?’’

दिव्या नीचे पहुंची तो उस की नजर सुदर्शन से युवक अनिल पर पड़ी. रंभा की पसंद की प्रशंसा उस ने मन ही मन की. अनिल की बगल में उस की मां और बहन बैठी थीं. सामने एक वृद्ध थे, संभवत: अनिल के पिताजी. उस ने सुना, मां कह रही थीं, ‘‘यह कैसे हो सकता है बहनजी, आप वैश्य हम बंगाली ब्राह्मण. रिश्ता तो हो ही नहीं सकता. कुंडली तो बाद की चीज है.’’

‘‘पर बहनजी, लड़कालड़की एकदूसरे को पसंद करते हैं. हमें भी रंभा पसंद है. अच्छी लड़की है, फिर समस्या क्या है?’’ यह वृद्ध सज्जन का स्वर था.

‘‘समस्या यही है कि हम दूसरी जाति में लड़की नहीं दे सकते,’’ मां के सपाट स्वर पर मेहमानों का चेहरा सफेद हो गया. अपमान एवं विषाद की रेखाएं उन के अस्तित्व को कुरेदने लगीं. अनिल की नजर उठी तो दिव्या की शांत सागर सी आंखों में उलझ गई. घने खुले बाल, सादी सी धोती और शरीर पर स्वाभिमान की तनी हुई कमान. वह कुछ बोलता इस के पूर्व ही दिव्या की अपरिचित ध्वनि गूंजी, ‘‘यह शादी अवश्य होगी, मां. अनिल रंभा के लिए सर्वथा उपयुक्त वर है. ऐसे घर में जा कर रंभा सुखी रहेगी. चाहे कोई कुछ भी कर ले मैं जाति एवं कुंडली के चक्कर में रंभा का जीवन नष्ट नहीं होने दूंगी.’’

‘‘दिव्या, यह तू…तू बोल रही है?’’ पिता का स्वर आश्चर्य से भरा था.

‘‘बाबूजी, जो कुछ होता रहा, मैं शांत हो देखती रही क्योंकि आप मेरे मातापिता हैं, जो करते अच्छा करते. परंतु 7 वर्षों में मैं ने देख लिया कि अंधविश्वास का अंधेरा इस घर को पूरी तरह समेटे ले रहा है.

‘‘रंभा मेरी छोटी बहन है. उसे मुझ से भी कुछ अपेक्षाएं हैं जैसे मुझे आप से थीं. मैं उस की अपेक्षा को टूटने नहीं दूंगी. यह शादी होगी और जरूर होगी,’’ फिर वह अनिल की मां की तरफ मुड़ कर बोली, ‘‘आप विवाह की तिथि निकलवा लें. रंभा आप की हुई.’’

अब आगे किसी को कुछ बोलने का साहस नहीं हुआ पर रंभा सोच रही थी, ‘दीदी नारी का वास्तविक प्रतिबिंब है जो स्वयं पर हुए अन्याय को तो झेल लेती है पर जब चोट उस के वात्सल्य पर या अपनों पर होती है तो वह इसे सहन नहीं कर पाती. इसी कारण तो ढेरों विवाद और तूफान को अंतर में समेटे सागर सी शांत दिव्या आज ज्वारभाटा बन कर उमड़ आई है.’

क्या मैरिड लाइफ में सिरदर्द किसी गंभीर बीमारी का संकेत तो नहीं है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 26 साल की विवाहित युवती हूं. विवाह 6 महीने पहले हुआ है. मैं तभी से एक विचित्र परेशानी से गुजर रही हूं. जबजब हम सैक्स करते हैं, उस के तुरंत बाद मुझे सिर में जोर का दर्द होने लगता है. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है? कहीं यह किसी गंभीर भीतरी रोग का लक्षण तो नहीं है? इस से बचने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? कोई घरेलू नुसखा हो तो बताएं?

जवाब-

आप जरा भी परेशान न हों. यह समस्या कई युवकयुवतियों में देखी जाती है. इस का संबंध शरीर की जटिल रसायनिकी से होता है. यों समझें कि यह एक तरह का कैमिकल लोचा है. जिस समय सैक्स के समय कामोन्माद यानी और्गेज्म प्राप्त होता है, उस समय शरीर की रसायनिकी में आए परिवर्तनों के चलते सिर की रक्तवाहिकाएं कुछ देर के लिए फैल जाती हैं. धमनियों में आए इस अस्थाई फैलाव से उन के साथसाथ चल रही तंत्रिकाओं पर जोर पड़ता है, जिस कारण सिर में दर्द होने लगता है. आप आगे इस दर्द से परेशान न हों, इस के लिए आप एक छोटा सा घरेलू नुसखा अपना सकती हैं. सहवास से 40-45 मिनट पहले आप पैरासिटामोल की साधारण दर्दनिवारक गोली लें. साइड इफैक्ट्स के नजरिए से पैरासिटामोल बहुत सुरक्षित दवा है. इसे लेने से कोई नुकसान नहीं होता. जिन्हें पैरासिटामोल सूट नहीं करती, उन्हें अपने फैमिली डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए. यदि डाक्टर कहे तो नियम से प्रोप्रानोलोल सरीखी बीटा ब्लौकर दवा लेते रहने से और्गैज्म के समय सिर की धमनियों में फैलाव नहीं आता और सिरदर्द से बचाव होता है.

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कोरोना काल में सेक्स सबसे बडी परेशानी का सबब बन गया है. बिना तैयारी के सेक्स से गर्भ ठहरने लगाहै. उम्रदराज लोगों के सामने ऐसी परेशानियां खडी हो गई है. स्कूल बंद होने से बच्चों के घर पर रहने से पति पत्नी को अपने लिये समय निकालना मुश्किल होने लगा. बाहर आना जाना बंद हो गया. कभी पति के पास समय है तो कभी पत्नी का मूड नहीं. कभी पत्नी का मूड बना तो पति को औनलाइन वर्क से समय नहीं. ऐसे में आपसी तनाव, झगडे और जल्दी सेक्स की आदत आम होने लगी है. जिस वजह से आपसी झगडे बढने लगे है. ऐसे में जरूरी है कि आपस में समय तय करके सेक्स करे. जिससे आपसी झगडे कम होगे तालमेल बढेगा.

रीना की शादी को 5 साल हो गये थे. उसका पति सुरेश देर रात में काम से लौटता था. शादी के शुरूआती दिनों में तो सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. कुछ समय से दोनो के बीच परेशानी आ गयी थी. परेशानी कीवजह यह थी कि घर के काम से थक कर रीना जल्दी सो जाती थी. आफिस से देर से लौटने के बाद भी सुरश को नींद नही आती थी. ऐसे समय पर वह नेहा के साथ प्यार और हमबिस्तर होने की कोशिश करता थ.पति का यह काम रीना को बहुत खराब लगता था. वह कहती कि उसको नींद आ रही है. सोने के बाद उसे सेक्स करने का मन नही करता  वह पति से कहती कि सोने के पहले इस काम को करने में क्या परेशानी आती है. इस बात को लेकर रीना और सुरेश की अक्सर झिकझिक होती थी. इस कारण कई बार तो चाहतेहुये भी दोनो महीनों तक सेक्स संबंध ही नही बना पाते थे सुरेश कहता कि मेरा तो मन रात में ही सेक्स करने का होता है.

Winter Special Food : बच्चों के लिए बनाएं बिना तली कचौरी

अगर आप बच्चों को स्नैक्स में कुछ हेल्दी और टेस्टी खिलाना चाहते हैं तो ये रेसिपी ट्राय करें. बिना तली कचौरी की ये रेसिपी टेस्टी की साथ-साथ आसानी से बनने वाली रेसिपी है. आप इसे कभी भी अपने बच्चों के लिए आसानी से बना सकते हैं.

कचौरी के हमें चाहिए

1 कप मैदा

1/2 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर

1/2 छोटा चम्मच अजवायन

2 बड़े चम्मच तेल.

भरने के लिए हमें चाहिए

1 बड़ा चम्मच उड़द धुली

1 हरीमिर्च

1/2 छोटा चम्मच अदरक पेस्ट

1/4 छोटा चम्मच सौंफ

1/2 छोटा चम्मच जीरा

1 छोटा चम्मच साबूत धनिया

1/2 छोटा चम्मच अमचूर

1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च

1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

1 छोटा चम्मच तेल

नमक स्वादानुसार.

भरने के लिए मसाला बनाने का तरीका

उड़द दाल को धो कर आधा गलने तक कुकर में पका लें. एक पैन में तेल गरम कर जीरा, सौंफ व साबूत धनिया चटकने तक भूनें. फिर अदरक पेस्ट और कटी हरीमिर्च मिला दें. अब बाकी के सारे मसाले मिला दें. दाल को निथार कर इस तड़के में दाल को पूरा सूखने तक अच्छी तरह भून लें.

 कचौरी बनाने का तरीका

मैदे में बेकिंग पाउडर, अजवायन और 1 चम्मच तेल डाल कर पानी की सहायता से मध्यम कड़ा गूंध लें. फिर गोलगोल पेड़े बना कर उन में थोड़ीथोड़ी भरावन भर कर कचौरियां तैयार कर लें. अप्पा बनाने वाले बरतन को आंच पर रखें. उस के खांचों को तेल से चिकना कर लें. अब इन में तैयार कचौरियां रख दें. मध्यम आंच पर सेंकें. पलटपलट कर चारों ओर से सुनहरा होने तक सेंक लें. बीचबीच में ब्रश की सहायता से कचौरियों पर थोड़ाथोड़ा तेल लगाती रहें. आलू की सब्जी के साथ गरमगरम परोसें.

विंटर को ग्‍लैमरस बनाएं Amazon Fashion की वार्डरोब रिफ्रैश सेल से

नरम और मुलायम ठंड ने दस्‍तक दे दी है. सर्दी के इस रोमांटिक मौसम में हौट कौफी, गरमागरम सूप के साथ फैशनेबल वुलन ड्रैसेज सभी की फेवरेट हो जाती हैं. यही वजह है कि अमेजन फैशन की ओर से 15वीं  वार्डरोब रिफ्रैश सेल शुरू होने जा रही है, जो 6 दिसंबर से 11 दिसंबर तक तक चलेगी.

औफर कर देगा दिल को खुश

इस शौपिंग बोनांजा के फायदों को जानना आप के लिए बेहद जरूरी है. इस शौपिंग  इवेंट में हर कस्‍टमर को ढेरों डील्‍स मिलेंगे. यह इवेंट विंटर वार्डरोब कलैक्शन को न केवल फैशनेबल, बल्कि आरामदायक बनाने का बेहतरीन अवसर दे रही है. इस शौपिंग इवेंट में कई तरह के नए कलैक्‍शन भी होंगे.

सर्दियों की जरूरतों को ध्‍यान में रह कर ही यह इवेंट आई है, इसलिए अपनी पसंद के अनुसार बैस्‍ट को चुनने के लिए तैयार हो जाएं.

अमेज़न फैशन में, हम अपने ग्राहकों को नवीनतम ट्रेंड्स के साथ स्टाइलिश बने रहने के लिए सशक्त बनाने में विश्वास रखते हैं। हम ब्रांड्स की विस्तृत श्रृंखला, ट्रेंडिंग स्टाइल्स, नए लॉन्च, दुर्लभ डिज़ाइन्स, और यह सब बेहतरीन मूल्य और सुविधा के साथ प्रदान करते हैं। ‘वार्डरोब रिफ्रेश सेल’ हमारा रणनीतिक अर्ध-वार्षिक इवेंट है, जो हमारे ग्राहकों की बदलती पसंद को पूरा करता है। टॉप ब्रांड्स से ‘वियर इट विद’ सुझाव जैसी विशेषताओं और ‘आसान रिटर्न’, ‘तेजी से डिलीवरी’, ‘कोई सुविधा शुल्क नहीं’ जैसी मौजूदा सुविधाओं के साथ ग्राहक A.in पर एक आसान शॉपिंग अनुभव का आनंद ले सकते हैं। इस सीजन में, हम प्रीमियम विंटर वियर, फेस्टिव फेवरेट्स, और एक्सक्लूसिव वेडिंग कलेक्शंस लेकर आ रहे हैं, जिससे ग्राहक पूरे दिसंबर स्टाइलिश महसूस करें।” सिद्धार्थ भगत – डायरेक्टर, अमेज़न फैशन एंड ब्यूटी, इंडिया

आइए, जानें कि आप के लिए इस रिफ्रैश इवेंट में कितने तरह के औप्‍शन्‍स हैं :

शानदार कोट और वुलन जैकेट्स

कोट और जैकेट जैसे विंटर गारमैंट्स के बिना सर्दी का मौसम अधूरा है. पुरुष हो या महिला कोट और जैकेट सभी के फेवरेट होते हैं. इस इवेंट में ‘Columbia’, ‘New Balance’ और ‘Boss’ जैसे ब्रांड्स के नए लौंच भी उपलब्‍ध रहेंगे. इतना ही नहीं, ‘Tommy Hilfiger’ के प्रीमियम क्‍वालिटी की जैकेट्स पर भी 40% तक की छूट है.

विंटर में लें लेयरिंग फैशन का आनंद

स्‍वेटर और निटवियर हमेशा एवरग्रीन रहे हैं, लेकिन जनवरी की बर्फीली ठंड से निबटने में थर्मल वेयर की लेयरिंग बेहद जरूरी है, जो पूरे शरीर को कड़कड़ाती ठंड से बचाती है. ‘Wacoal’ के इनरवियर  के अलावा ‘Assembly’ के प्रोडक्‍ट्स पर भी फ्लैट 10% और ‘नो कौस्‍ट ईएमआई’ की छूट मिल रही है.

फैशन स्‍टेटमैंट बन चुकी हैं ये विंटर ऐक्‍सेसरीज

इस मौसम में स्‍टाइलिश दिखना चाहते हैं, तो इसमें विंटर की ये जरूरी ऐक्‍सेसरीज आपकी मदद करेंगे.  इस रिफ्रैश इवेंट में ‘Seiko’ और ‘Assembly’ जैसे ब्रांड्स की ऐक्‍सेसरीज एक बार जरूर ट्राई करें, आप का दिल खुश हो जाएगा. इतना ही नहीं इनके साथ सर्दियों की छुट्टियों में आप की यात्रा आरामदायक और स्‍टाइलिश हो जाएगी. ‘Delsey Paris’ के लाजवाब लगेज सेट्स पर फ्लैट 10% और ‘नो कौस्‍ट ईएमआई’ तक की छूट का फायदा उठाएं.

पैरों को ठंड से सुरक्षित रखेगा फुटवियर और देगा स्‍टाइलिश लुक

इस मौसम को देखते हुए फुटवेयर पर खास छूट मिल रही है. ‘New Balance’ के नए लौंच आपको बेहद पसंद आएंगे. प्रीमियम सेक्‍शन में Police’  के बैग्‍स आपकी उम्‍मीदों पर खतरा उतरेगा. ‘Tommy Hilfiger’ के प्रीमियम स्नीकर पर 10% की छूट और नो-कोस्ट EMI की सुविधा भी मिलेगी.

यह इवेंट आप के विंटर वार्डरोब कलैक्शन को फैशनेबल और आरामदायक बनाने का बेहतरीन मौका दे रही है. कस्‍टमर 50% से 80% की छूट का लाभ उठा कर भारी बचत कर सकते है. इतना ही नहीं, कस्‍टमर इस इवेंट में फैशन और ब्‍यूटी के प्रीमियम प्रोडक्‍ट्स पर कम से कम 40% तक की सेविंग्‍स कर सकेंगे.  इस में कोई शक नहीं कि इस बेहतरीन डिस्‍काउंट्स वाली Amazon Fashion की वार्डरोब रिफ्रैश सेल में जाने से खुद को रोक पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.

 

Family Story In Hindi- नैपकिंस का चक्कर : मधुश ने क्यों किया सास का शुक्रिया

शनिवार का दिन था. विकास के औफिस की छुट्टी थी. उस ने नहाधो कर अपना नाश्ता बनाया. फिर मधुश का इंतजार करने लगा. मधुश के साथ की कल्पना से ही वह उत्साहित था. मधुश 2 साल से उस की प्रेमिका थी. वह भी मेरठ में ही जौब करती थी. वह अपने मम्मीपापा और भाईबहन के साथ रहती थी. विकास थापरनगर में किराए के घर में अकेला रहता था.

दोनों किसी कौमन फ्रैंड की पार्टी में मिले थे. दोस्ती हुई जो फिर प्यार में बदल गई थी. विकास की मम्मी राधा सहारनपुर में रहती थीं. वे टीचर थीं. विकास के पिता नहीं थे. न कोई और भाईबहन. विकास हमेशा वीकैंड में मम्मी के पास चला जाता था पर इस बार उस की मम्मी ही कल रविवार को आने वाली थीं. दशहरे पर उन के स्कूल की छुट्टियां थीं.

मधुश अकसर अपने मम्मीपापा से  झूठ बोल कर कि ‘दिल्ली में मीटिंग है,’ विकास के पास रात में भी कभीकभी रूक जाती थी. डोरबैल बजी, मधुश थी. सुंदर, स्मार्ट, चहकती हुई मधुश ने घर में आते ही विकास के गले में बांहें डाल दीं. विकास ने भी उसे आलिंगनबद्ध कर लिया. दोनों ने पूरा दिन साथ में बिताया. रात तक मधुश का घर जाने का मन नहीं हुआ. विकास ने भी कहा, ‘‘आज रात में भी रुक जाओ, कल तो मां भी आ रही हैं.’’

‘‘मां के आने पर मैं बहुत खुश होती हूं, बहुत अच्छी हैं वे.’’

‘‘रुक जाओ आज, फिर कुछ दिन ऐसे नहीं मिल पाएंगे.’’

‘‘सोचती हूं कुछ, क्या बहाना करूं घर पर?’’

‘‘कह दो किसी सहेली के घर स्लीपओवर है.’’

‘‘हां, ठीक है,’’ मधुश ने अपनी सहेली निभा को फोन किया, ‘‘निभा, मेरे घर से कोई फोन आए तो कहना मैं तुम्हारे साथ ही हूं. जरा देख लेना.’’

निभा हंसी, ‘‘सम झ गई, वीकैंड मनाया जा रहा है.’’

‘‘हां.’’

‘‘अच्छा, डौंट वरी.’’

विकास ने मधुश को फिर बांहों में भर लिया. दोनों ने मिल कर डिनर बनाया. विकास ने कहा, ‘‘गरमी लग रही है, नहा कर आता हूं, फिर डिनर करते हैं.’’

विकास नहाने गया तो लाइट चली गई. मधुश ने कहा, ‘‘विकास, बहुत गरमी है, जब तक तुम नहा रहे हो, छत पर टहल आऊं?’’

‘‘हां, संभल कर रहना, पड़ोस की छत पर कोई हो तो लौट आना, पड़ोसिन आंटी कुछ दकियानूसी लेडी लगती हैं, मां से कुछ कह न दें.’’

‘‘हां, ठीक है,’’ मधुश छत पर चली गई. वह पहले भी ऐसे ही आती रहती थी, इसलिए उसे घर के आसपास का सब पता था. पड़ोस की छत पर कोई नहीं था. वह यों ही टहलती रही. खुलीखुली जगह, ठंडीठंडी हवा बेहद भली लग रही थी. अचानक उसे छत पर एक कोने में कुछ दिखा. वह  झुक कर देखने लगी. फिर बुरी तरह चौंकी, यूज्ड सैनेटरी नैपकिन था, ऐसे ही पड़ा हुआ. उसे बहुत गुस्सा आया. यह किस का है? दिमाग पता नहीं क्याक्या सोच गया. क्या कोई और लड़की भी आती है विकास के पास? शक ने जब एक बार मधुश के दिल में जगह बना ली तो गुस्सा बढ़ता ही चला गया. वह पैर पटकते हुए सीढि़यों से नीचे आई. विकास नहा कर आ चुका था. अपने गीले बालों के छींटे उस पर डालता हुआ शरारत से उसे बांहों में भरने के लिए आगे बढ़ा तो मधुश ने उस के हाथ  झटक दिए, चिल्लाई, ‘‘जरा, ऊपर आना.’’ विकास मधुश का गुस्सा देख चौंक गया, बोला, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘आना,’’ कह कर मधुश वापस छत पर चली गई, कोने में ले जा कर नैपकिन की तरफ इशारा करते हुए बोली, ‘‘यह किस का है?’’

‘‘यह क्या है? ओह, मु झे क्या पता.’’

‘‘फिर किसे पता होगा? तुम्हारी छत है, तुम्हारा घर है.’’

‘‘क्या फालतू बात कर रही हो, मु झे क्या पता.’’

‘‘विकास, क्या तुम्हारे किसी और लड़की से भी संबंध हैं?’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो, मधुश, शक कर रही हो मु झ पर? मु झे तुम से यह उम्मीद नहीं थी.’’

‘‘मु झे भी तुम से यह उम्मीद नहीं थी, मैं जा रही हूं,’’ विकास मधुश को रोकता रह गया पर वह गुस्से में बड़बड़ाती निकल गई. विकास सिर पकड़ कर बैठ गया, वह देर रात तक मधुश को फोन करता रहा पर मधुश ने गुस्से में फोन ही नहीं उठाया.

मधुश और विकास एकदूसरे को प्यार तो बहुत करते थे, मधुश को भी विकास से नाराज हो कर अच्छा तो नहीं लग रहा था, पर मन में बैठा शक सामान्य भी नहीं होने दे रहा था. संडे को फिर सुबह ही विकास ने मधुश को फोन किया. उस ने नहीं उठाया तो विकास ने मैसेज किया, ‘मां आने वाली हैं, उन से मिलने तो आओगी न?’ मधुश को पढ़ कर हंसी आ गई. उस ने मैसेज ही किया, ‘हां, जब वे आ जाएं, मु झे बता देना.’

राधा उसे सचमुच अच्छी लगती थीं. अपनी अच्छी दोस्त कह कर विकास ने उसे पिछली बार मिलवाया था. संडे शाम को मधुश राधा से मिलने गई. राधा बहुत स्नेहपूर्वक उस से मिलीं, मधुश उन्हें अच्छी लगती थी. वे उदारमन की आधुनिक विचारों वाली महिला थीं. विकास मधुश से बात करने की कोशिश करता रहा. थोड़ीबहुत नाराजगी दिखाते हुए मधुश फिर सामान्य होती गई. हलकेफुलके माहौल में तीनों ने काफी समय साथ बिताया, फिर मधुश चली गई.

डिनर के बाद राधा ने कहा, ‘‘विकास, मैं थोड़ा छत पर टहल कर आती हूं.’’

‘‘ठीक है, मां.’’

राधा जब भी आती थीं, छत पर जरूर टहलती थीं. उन्हें दूसरी छत पर टहलती पड़ोसिन उमा दिखीं, औपचारिक अभिवादन हुए. उमा के जाने के बाद राधा को छत पर एक कोने में कुछ दिखाई दिया तो वे  झुक कर देखने लगीं, चौंकी, यूज्ड सैनेटरी नैपकिन. विकास की छत पर? ओह, इस का मतलब विकास और मधुश एकदूसरे के काफी करीब आ चुके  हैं. दोनों के बीच शायद अब बहुतकुछ चलता है, ठीक है. लड़की अच्छी है. अब उन का विवाह हो ही जाना चाहिए. वे काफीकुछ सोचतीविचारती नीचे आ गईं. विकास टीवी देख रहा था. उस के पास बैठती हुई बोलीं, ‘‘विकास, कुछ जरूरी बात करनी है.’’

‘‘हां, मां, बोलो.’’

‘‘अब तुम और मधुश विवाह कर लो.’’

वह चौंका, ‘‘अरे मां, यह अचानक कैसे सू झा?’’

‘‘हां, दोनों एकदूसरे को पसंद करते हो तो देर क्यों करनी.’’

‘‘पर मैं तो कभी उस के घरवालों से मिला भी नहीं.’’

‘‘वह सब तुम मु झ पर छोड़ दो. अभी मेरी छुट्टियां भी हैं, गंभीरतापूर्वक इस बात पर विचार करते हैं. तुम पहले मधुश से डिस्कस कर लो.’’

‘‘ठीक है, मां,’’ कह कर मुसकराता हुआ विकास मां से लिपट गया. वे मुसकरा दीं, ‘‘फिर मेरी चिंता भी कम हो जाएगी, अकेले रहते हो यहां.’’

‘‘आप भी तो वहां अकेली रहती हैं.’’ दोनों हंस दिए. विकास खुश था, मां पर खूब प्यार आ रहा था. फौरन अपने रूम में जा कर मधुश से बात की. वह भी चौंकी पर इस हैरानी में भी बहुत खुशी थी. बोली, ‘‘इतनी जल्दी, यह तो नहीं सोचा था, पर मम्मीपापा…’’

‘‘मां बात कर लेंगी.’’

मधुश भी पिछली नाराजगी एक तरफ रख विचारविमर्श करती रही. अगले ही दिन उस ने अपने मम्मीपापा को विकास के  बारे में सबकुछ बता दिया. और फिर विकास और राधा उन से मिलने गए. राधा के स्नेहमयी, गरिमापूर्ण व्यक्तित्व, आधुनिक विचारों से सब प्रभावित हुए. अच्छे खुशनुमा माहौल में सब तय हो गया. दोनों पक्ष विवाह की तैयारियों में जुट गए.

मधुश दुलहन बन विकास के घर चली आई. आई तो पहले भी कई बार थी पर अब के आने और तब के आने में जमीनआसमान का अंतर था. मां दोनों को ढेरों आशीष दे सहारनपुर चली गईं. कभी विकास और मधुश उन के पास चले जाते थे, कभी वे आ जाती थीं. एक दिन मां मेरठ आई हुई थीं, रात को उन के सिर में हलका दर्द था. वे छत पर खुली हवा में बैठ गईं. मधुश उन के पास ही तेल ले कर आई. बोली, ‘‘लाओ मां, तेल लगा कर थोड़ा सिर दबा देती हूं.’’

दोनों सासबहू के संबंध बहुत स्नेहपूर्ण थे. खुशनुमा, हलकी रोशनी में ताजगीभरी ठंडक में मधुश धीरेधीरे राधा का सिर दबाने लगी. उन्हें बड़ा आराम मिला. अचानक पायल के घुंघरुओं की आवाज ने उन दोनों का ध्यान खींचा, आंखों तक घूंघट लिए पड़ोस की छत पर एक नारी आकृति धीरेधीरे सावधानीपूर्वक चलते हुए इधरउधर देखती आई और विकास की छत पर एक कोने में कुछ फेंक कर मुड़ने लगी तो मधुश ने सख्त आवाज में कहा, ‘‘ऐ, रुको.’’ आकृति ठहर गई.

मधुश और राधा दोनों अपनी छत की मुंडेर तक गईं, कांपतीडरती सी एक नवविवाहिता खड़ी थी. मधुश ने फेंकी हुई चीज देखी, सैनेटेरी नैपकिन. ओह. पूछा, ‘‘यह क्या बदतमीजी है? तुम फेंकती हो यह हमारी छत पर?’’

लड़की ने ‘हां’ में सिर हिलाया. मधुश गुर्राई, ‘‘क्यों? यह क्या तरीका है? ऐसे फेंकते हैं?’’ लड़की रोंआसी हो गई, कहने लगी, ‘‘अभी कुछ महीने पहले ही मेरा विवाह हुआ है यहां, मैं गांव से आई हूं. सासुमां से बहुत डर लगता है, उन से पूछने की हिम्मत नहीं हुई कि कैसे फेंकूं, आप से माफी मांगती हूं.’’ मधुश का सारा गुस्सा उस की डरी हुई आवाज पर खत्म हो गया. उसे उस पर तरस आया, बोली, ‘‘डरो मत, आगे से यहां मत फेंकना, किसी पेपर में लपेट कर अपने घर के डस्टबिन में डालना, ऐसे इधरउधर नहीं फेंकते.’’

‘‘जी, अच्छा,’’ कह कर वह तो चली गई, पर मधुश और राधा एकदूसरे को देख कर हंसती चली गईं.

मधुश ने हंसते हुए कहा, ‘‘मां, पता है मैं ने इसे छत पर देख कर विकास से  झगड़ा किया था. उस पर शक किया था. जिस दिन आप विवाह से पहले आई थीं, तब.’’ राधा और जोर से हंस पड़ीं. वे भी बताने लगीं, ‘‘और पता है तुम्हें, मैं ने भी उसी रात देखा था और तुम्हारे बारे में बहुतकुछ सोच लिया था. तभी फौरन तुम दोनों का विवाह करवाया था.’’

‘‘हां? हाहा, मां.’’

दोनों सासबहू चेयर्स पर बैठ गई थीं और उन की हंसी नहीं रुक रही थी. राधा का सिरदर्द तो हंसतेहंसते गायब हो चुका था और मधुश मन ही मन अपनी सासुमां को थैंक्यू कहते हुए प्यार और सम्मानभरी आंखों से निहार रही थी.

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