Sad Story In Hindi : दर्द से भरी है ये 5 कहानियां, कैसे झगड़े में खो गया बचपन

Sad Story In Hindi : कुछ कहानियां जीवन के दर्द को बयां करती है. कई बार अपनों से मिले हुए दर्द के कारण मन इतना दुखी हो जाता है कि हर रिश्ता झूठ और बेईमानी लगता है. ऐसे में अकेलेपन की भावना पैदा होती है. लेकिन कुछ कहानियां हमें जीवन में आगे बढ़ने की सिख देती हैं. इस आर्टिकल में पढ़ें गृहशोभा की Sad Story In Hindi.

1. प्याज के आंसू- पत्नी ने बर्बाद कर दिया पति का जीवन

आज घर का माहौल बहुत गमगीन था. भैया का सामान ट्रक से उतारा जा रहा था और हमारे पुराने घर में इस सामान के लिए  जैसेतैसे जगह बनाई जा रही थी. मेरे भतीजे और ममेरे, फुफेरे भाई सभी सजल नेत्रों के साथ सामान उतार रहे थे. वे किस तरह सहेज और संभाल कर सामान उतार रहे थे उसे देख कर मन भीग सा गया. काश, भाभी भी जीवन को इसी तरह सहेज कर चलतीं तो दरके मन के साथ भैया को आज यह दिन तो नहीं देखना पड़ता.

मन बरबस ही आज से 12 साल पहले  के माहौल में चला गया जब भैया मात्र 20 वर्ष की आयु में सरकारी नौकरी प्राप्त करने में सफल रहे थे. घर में मम्मीपापा ही क्या हम सब भाईबहन भी बेहद खुश थे. भैया दिल्ली में सेना मुख्यालय में निजी सहायक के पद पर चयनित हुए थे. 2 साल की कड़ी मेहनत के बाद उन के जीवन में खुशी का यह क्षण आया था.

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2. बिलखता मौन: क्यों पास होकर भी मां से दूर थी किरण

‘पता नहीं क्या हो गया है इस लड़की को? 2 दिनों से कमरे में बंद बैठी है. माना स्कूल की छुट्टियां हैं और उसे देर तक बिस्तर में रहना अच्छा लगता है, किंतु पूरे 48 घंटे बिस्तर में भला कौन रह सकता है? बाहर तो आए, फिर देखते हैं. 2 दिनों से सबकुछ भुला रखा है. कई बार बुला भेजा उसे, कोई उत्तर नहीं. कभी कह देती है, आज मेरी तबीयत ठीक नहीं. कभी आज भूख नहीं है. कभी थोड़ी देर में आती हूं. माना कि थोड़ी तुनकमिजाज है, किंतु अब तक तो मिजाज दुरुस्त हो जाना चाहिए था. हैरानी तो इस बात की है कि 2 दिनों से उसे भूख भी नहीं लगी. एक निवाला तक नहीं गया उस के अंदर. पिछले 10 वर्षों में आज तक इस लड़की ने ‘रैजिडैंशियल केअर होम’ के नियमों का उल्लंघन कभी नहीं किया. आज ऐसा क्या हो गया है?’’ केअर होम की वार्डन हैलन बड़बड़ाए जा रही थी. फिर सोचा, स्वयं ही उस के कमरे में जा कर देखती हूं कहीं किरण की तबीयत तो खराब नहीं. डाक्टर को बुलाना भी पड़ सकता है. हैलन पंजाब से आई ईसाई औरत थी और 10 सालों से वार्डन थी उस केअर होम की.

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3. सिसकता शैशव: मातापिता के झगड़े में पिसा अमान का बचपन

जिस उम्र में बच्चे मां की गोद में लोरियां सुनसुन कर मधुर नींद में सोते हैं, कहानीकिस्से सुनते हैं, सुबहशाम पिता के साथ आंखमिचौली खेलते हैं, दादादादी के स्नेह में बड़ी मस्ती से मचलते रहते हैं, उसी नन्हीं सी उम्र में अमान ने जब होश संभाला, तो हमेशा अपने मातापिता को लड़तेझगड़ते हुए ही देखा. वह सदा सहमासहमा रहता, इसलिए खाना खाना बंद कर देता. ऐसे में उसे मार पड़ती. मांबाप दोनों का गुस्सा उसी पर उतरता. जब दादी अमान को बचाने आतीं तो उन्हें भी झिड़क कर भगा दिया जाता. मां डपट कर कहतीं, ‘‘आप हमारे बीच में मत बोला कीजिए, इस से तो बच्चा और भी बिगड़ जाएगा. आप ही के लाड़ ने तो इस का यह हाल किया है.’’

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4. उत्तरजीवी: क्यों रह गई थी फूलवती की जिंदगी में कड़वाहट?

नारायणदास, यह देखो, तुम्हारा इकलौता पोता रोहित, तुम्हारे बेटे अजीत का बेटा, आज घोड़ी चढ़ रहा है.

मोगरा के फूल बिखरे पड़े हैं. मोगरा, जो मैं तुम्हारे लिए सफेद चादर पर बिछा देती थी, अपने जूड़े में छिपा लेती थी, मुट्ठी भरभर कर तुम्हारे ऊपर बिखेरती थी, जब तुम मेरे पास खुली छत पर चांदनी बटोरने चले आते थे.

शहनाई बज रही है. कभी मैं ने भी चाहा था कि मेरी बरात आए और शहनाई बजे. आज भी वही धुन बज रही है जो हमतुम गुनगुनाते थे, ‘तेरे सुर और मेरे गीत, दोनोें मिल कर बनेंगे प्रीत.’ मेरा रोमरोम झनक रहा है. मैं अंतर्मन से भीगी इस बच्चे को आशीष दे रही हूं. काश, तुम जिंदा होते, यह मंजर देखने के लिए.

रोहित की दुलहन का पिता कर्नल है. दादा राजदूत रह चुका है. बड़ेबड़े राजनेता आए हैं शादी में. मिलिटरी बैंड से बरात चढ़ रही है. एक से बढ़ कर एक गाड़ी, सब घोड़ी के पीछे रेंग रही हैं और उन में बैठी हैं राजरानियां, हीरेमोती चमकाती, साडि़यां सरसराती, खुशबू फैलाती.

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5. रीते मन की उलझन

शाम के 7 बज चुके थे. सर्दियों की शाम का अंधेरा गहराता जा रहा था. बस स्टैंड पर बसों की आवाजाही लगी हुई थी. आसपास के लोग भी अपनेअपने रूट की बस का इंतजार कर रहे थे. ठंडी हवा चल पड़ी थी. हलकीफुलकी ठंड शालू के रोमरोम में हलकी सिहरन पैदा कर रही थी. वह अपनेआप को साड़ी के पल्लू से कस कर ढके जा रही थी.

शालू को सर्दियां पसंद नहीं है. सर्दियों में शाम होते ही सन्नटा पसर जाता है. उस पसरे सन्नाटे ने ही उस के अकेलेपन को और ज्यादा पुख्ता कर दिया था. सोसाइटी में सौ फ्लैट थे. दूर तक आनेजाने वालों की हलचल देख दिन निकल जाता लेकिन शाम होतेहोते वह अपनेआप को एक कैद में ही पाती थी. उस कैदखाने में जिस में मखमली बिस्तर व सहूलियत के साजोसामान से सजा हर सामान होता था. वह अकेली कभी पलंग पर तो कभी सोफे पर बैठी मोबाइल पर उंगलियां चलती तो कभी बालकनी में खड़ी यू आकार में बने सोसाइटी के फ्लैटों की खिड़कियों की लाइटें देखती जो कहीं डिम होतीं तो कहीं बंद होतीं. चारों तरफ सिर्फ सन्नाटा होता था.

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जिंदगी की जंग: क्या सही था नीना का घर छोड़ने का फैसला?

‘‘अरे रामू घर की सफाई हुई या नहीं? जल्दी से चाय का पानी आंच पर चढ़ाओ.’’

सवेरे सवेरे अम्मां की आवाज से अचानक मेरी नींद खुली तो देखा वे नौकरों को अलगअलग निर्देश दे रही थीं. पूरे घर में हलचल मची थी. आज गरीबरथ से जया दीदी आने वाली हैं. जया दीदी हम बहनों से सब से बड़ी हैं. उन की शादी बहुत ही ऊंचे खानदान में हुई है. साथ में दोनों बच्चे व जीजाजी भी आ रहे हैं. अम्मां चाहती हैं कि इंतजाम में कोई कमी न हो.

तभी बाबूजी की आवाज आई, ‘‘अरे बैठक की चादर बदली कि नहीं? मेहमान आने ही वाले होंगे. सब कुछ साफसुथरा होना चाहिए. कभीकभी तो आ पाते हैं बेचारे. उन को छुट्टी ही कहां मिलती है.’’

तभी अम्मां की नजर मुझ पर पड़ी, ‘‘अरे नीना, तू तो ऐसे ही बैठी है और यह क्या, मुन्नू तो एकदम गंदा है. चल उठ, नहाधो कर नए कपड़े पहन और हां, मुन्नू को भी ढंग से तैयार कर देना वरना मेहमान कहेंगे कि हम ने तुम्हें ठीक से नहीं रखा.’’

अम्मां की बातें सुन कर मन कसैला हो गया. मैं भी शादी के बाद जब 1-2 बार आई थी, तब घर का माहौल ऐसा ही रहता था. पहली बार जब मैं शादी के बाद मायके आई थी, तब सब कैसे खुश हुए थे. क्या खिलाएं, कहां बैठाएं. लग रहा था जैसे मैं कभी आऊंगी ही नहीं.

लेकिन कितने दिन ऐसा आदर सत्कार मुझे मिला. ससुराल जाते ही सब को मेरी बीमारी के बारे में पता चल गया. कुछ दिनों तक तो उन लोगों ने मुझे बरदाश्त किया, फिर बहाने से यहां ला कर बैठा गए. दरअसल, मुझे सफेद दाग की बीमारी थी, जिसे छिपा कर मेरी शादी की गई थी.

फिर घर की प्यारी बेटी, जो पिता की आंखों का तारा व मां के लिए नाज थी, के साथ शुरू हुआ एक नया अध्याय. जो पिता मेरा खुले दिल से इलाज करवाते थे, उन्हें अब मेरी जरूरी दवाएं भी बोझ लगने लगीं. मां को शर्म आने लगी कि पासपड़ोस वाले कहेंगे कि बेटी मायके में आ कर ही बस गई. भाईबहन भी कटाक्ष करने से बाज नहीं आते थे.

अभी यह लड़ाई चल ही रही थी कि पति का बोया हुआ बीज आकार लेने लगा. खैर, जैसेतैसे मुन्नू का जन्म हुआ.

नाती के जन्म की जैसी खुशी होनी चाहिए, वैसी किसी में नहीं दिखी. बस एक कोरम पूरा किया गया.

धीरेधीरे मुन्नू 3 साल का हो गया. तब मैं ने भी ठान ली कि ऐसे बैठे रह कर ताने सुनने से अच्छा है कुछ काम किया जाए.

सिलाईकढ़ाई और पेंटिंग का शौक मुझे शुरू से ही था. शादी के पहले मैं ने सिलाई का कोर्स भी किया था. मैं अगलबगल की कुछ लड़कियों को सिलाई सिखाने लगी. उन को मेरा सिखाने का तरीका अच्छा लगा, तो वे और लड़कियां भी ले आईं. इस तरह मेरा सिलाई सैंटर चल निकला. ढेर सारी लड़कियां मुझ से सिलाई सीखने आने लगीं और इस से मेरी अच्छी कमाई होने लगी.

मुन्नू के 4 साल का होने पर मैं ने उसे पास के प्ले स्कूल में भरती करा दिया. अब मेरे पास समय भी काफी बचने लगा, जिस का सदुपयोग मैं अपने सिलाई सैंटर में किया करती थी. धीरेधीरे मेरा सैंटर एक मान्यता प्राप्त सैंटर हो गया. काम काफी बढ़ जाने के कारण मुझे 2 सहायक भी रखने पड़े. इस से मुझे अच्छी मदद मिलती थी.

अभी जिंदगी ने रफ्तार पकड़ी ही थी कि भैया की शादी हो गई. नई भाभी घर में आईं तो कुछ दिन तो सब कुछ ठीक रहा. मगर धीरेधीरे उन को मेरा वहां रहना नागवार गुजरने लगा.

मां अगर मुन्नू के लिए कुछ भी करतीं तो उन का पारा 7वें आसमान पर चढ़ जाता. शुरूशुरू में तो वे कुछ नहीं कहती थीं, लेकिन बाद में खुलेआम विरोध करने लगीं.

एक दिन तो हद ही हो गई. बाबूजी बाजार से मुन्नू के लिए खिलौने ले आए. उन्हें देखते ही भाभी एकदम फट पड़ीं. चिल्ला कर बोलीं, ‘‘बाबूजी, घर में अब यह सब फुजूलखर्ची बिलकुल भी नहीं चलेगी. इस महंगाई में घर चलाना ऐसे ही मुश्किल हो गया है, ऊपर से आप आए दिन मुन्नू पर फुजूलखर्ची करते रहते हैं.’’

हालांकि ऐसा नहीं था कि घर की माली हालत खराब थी. भैया कालेज में हिंदी के प्रोफैसर थे और बाबूजी को भी अच्छीखासी पैंशन मिलती थी. मुझे भाभी की बातें उतनी बुरी नहीं लगीं, जितना बुरा बाबूजी का चुप रहना लगा. बाबूजी का न बोलना मुझे भीतर तक भेद गया. मैं सोचने लगी क्या बाबूजी पुत्रप्रेम में इतने अंधे हो गए हैं कि बहू की बातों का विरोध तक नहीं कर सकते?

उन्हीं बाबूजी की तो मैं भी संतान थी. मेरा मन कचोट कर रह गया. क्या शादी के बाद लड़कियां इतनी पराई हो जाती हैं कि मांबाप पर भी उन का हक नहीं रहता? खैर जैसेतैसे मन को मना कर मैं फिर सामान्य हो गई. मुन्नू को स्कूल भेजना और मेरा सैंटर चलाना जारी रहा.

मेरा सिलाई सैंटर दिनबदिन मशहूर होता जा रहा था. अब आसपास के गांवों की लड़कियां और महिलाएं भी आने लगी थीं. मेरी कमाई अब अच्छी होने लगी थी, इसलिए मैं हर महीने कुछ रुपए मां के हाथ पर रख देती थी. शुरू में तो मां ने मना किया, परंतु मेरे यह कहने पर कि अगर मैं लड़का होती और कमाती रहती तो तुम पैसे लेतीं न, वे मान गई थीं. कुछ पैसे मैं भविष्य के लिए बैंक में भी जमा करा देती थी.

किसी तरह जिंदगी की गाड़ी चल रही थी. घर में भाभी की चिकचिक बदस्तूर जारी थी. मांपिताजी के पुत्रप्रेम से भाभी का दिमाग एकदम चढ़ गया था. अब तो वे अपनेआप को उस घर की मालकिन समझने लगी थीं. हालांकि मां का स्वास्थ्य बिलकुल ठीक था और वे घर का कामकाज भी करना चाहती थीं, लेकिन धीरेधीरे मां को उन्होंने एकदम बैठा दिया था.

उन्हें खाना बनाने का बहुत शौक था, खासकर बाबूजी को कुछ नया बना कर खिलाने का, जिसे वे बड़े चाव से खाते थे. लेकिन भाभी को यह सब फुजूलखर्ची लगती थी, इसलिए उन्होंने मां को धीरेधीरे रसोई से दूर कर दिया था.

मैं तो उन्हें फूटी आंख नहीं सुहाती थी. मुझे देखते ही वे बेवजह अपने बच्चों को मारनेपीटने लगती थीं. एक दिन मैं दोपहर को सिलाई सैंटर से खाना खाने घर पहुंची तो बाहर बहुत धूप थी. सोचा था घर पहुंच कर आराम से खाना खाऊंगी.

हाथमुंह धो कर खाना ले कर बैठी ही थी कि भाभी ने भुनभुनाना शुरू कर दिया कि कितना आराम है. बैठेबैठाए आराम से खाना जो मिल जाता है. मुफ्त के खाने की लोगों को आदत लग गई है. अरे जितना खर्च इस में लगता है, उतने में तो हम 2 नौकर रख लें.

सुन कर हाथ का कौर हाथ में ही रह गया. लगा, जैसे खाना नहीं जहर खा रही हूं. फिर खाना बिलकुल नहीं खाया गया. हालांकि जितना बन पाता था, मैं सुबह किचन का काम कर के ही सिलाई सैंटर जाती थी. लेकिन भाभी को तो मुझ से बैर था, इसलिए हमेशा मुझ से ऐसी ही बातें बोलती रहती थीं. लेकिन उस दिन उन की बात मेरे दिल को चीर गई और मैं ने सोच लिया कि बस अब बहुत हो गया. अब और बरदाश्त नहीं करूंगी.

उसी क्षण मैं ने फैसला कर लिया कि अब इस घर में नहीं रहूंगी. कुछ दिन बाद

छोटे से 2 कमरों का घर तलाश कर मैं ने अम्मांबाबूजी के घर को छोड़ दिया. हालांकि घर छोड़ते समय मां ने हलका विरोध किया था, लेकिन कब तक मन को मार कर मैं जबरदस्ती इस घर में रहती.

नए घर में आने के बाद मैं नए उत्साह से अपने काम में जुट गई. अपने घर की याद तो बहुत आती थी. मगर फिर सोचती कैसा घर, जब वहां मेरी कोई कीमत ही नहीं. खैर मैं ने अपनेआप को पूरी तरह से अपने काम में रमा लिया.

सिलाई सैंटर में लड़कियों की भीड़ ज्यादा बढ़ गई तो सैंटर की एक शाखा और खोल ली. मुन्नू भी दिनोंदिन बड़ा हो रहा था और पढ़ाई में जुटा था. पढ़ने में वह काफी होशियार था. हमेशा अच्छे नंबरों से पास होता था.

दिन पंख लगा कर उड़ रहे थे. अम्मांबाबूजी का हालचाल फोन से पता चल जाता था. कभीकभार मुन्नू से मिलने के लिए वे आ भी जाते थे. अब मेरा काम बहुत बढ़ गया था.

मैं ने एक बुटीक भी खोल लिया था, जिसे हमारे सैंटर की लड़कियां और महिलाएं मिल कर चला रही थीं. मेरा बुटीक ऐसा चल निकला कि मुझे कपड़ों के निर्यात का भी और्डर मिलने लगा. मैं बहुत खुश थी कि मेरी वजह से कई महिलाओं को रोजगार मिला था.

अब मुन्नू भी एम.बी.ए. कर के मेरे आयातनिर्यात का काम देखने लगा था. उस के बारे में मुझे एक ही चिंता थी कि उस की शादी कर दूं.

एक दिन मेरे मायके की पड़ोसिन गीता आंटी मिलीं. कहने लगीं कि तुम को पता है, तुम्हारे मायके में क्या चल रहा है? मेरे इनकार करने पर उन्होंने बताया कि तुम्हारी भाभी तुम्हारे मांबाबूजी पर बहुत अत्याचार करती हैं. तुम्हारा भाई तो कुछ बोलता ही नहीं. अभी कल तुम्हारे बाबूजी मुझ से मिले थे. वे किसी वृद्धाश्रम का पता पूछ रहे थे. जब मैं ने पूछा कि वे वृद्धाश्रम क्यों जाना चाहते हैं, तो उन्होंने कहा कि मैं अब इस घर में एकदम नहीं रहना चाहता हूं. बहू का अत्याचार दिनबदिन बढ़ता ही जा रहा है.

सुन कर मैं रो पड़ी. ओह, मेरे अम्मांबाबूजी की यह हालत हो गई और मुझे पता भी नहीं चला. मेरा मन धिक्कार उठा.

यहां मेरी वजह से कई परिवार चल रहे थे और वहां मेरे अम्मांबाबूजी की यह हालत हो गई है. रात को ही मैं ने फैसला कर लिया, बहुत हुआ अब और नहीं. अम्मांबाबूजी को यहीं ले आऊंगी. अगले ही दिन गाड़ी ले कर मैं और मुन्नू उन को लाने के लिए घर गए. हमें देखते ही वे रोने लगे. हम ने उन्हें चुप कराया फिर साथ चलने को कहा.

अभी वे कुछ बोलते, उस से पहले ही वहां भाभी आ गईं और अपना वही अनर्गल प्रलाप करने लगीं. बाबूजी ने उन की तरफ देखा और शांति से बस इतना कहा, ‘‘हमें जाने दो बहू.’’

अम्मांबाबूजी गाड़ी में बैठ गए. मुझे लगा आज मैं हवा में उड़ रही हूं. आज मैं ने जिंदगी की जंग को जीत लिया था.

Love Story In Hindi : ‘प्यार को प्यार ही रहने दो…’ पढ़ें 5 बैस्ट प्रेम कहानियां

Love Story In Hindi : ”प्यार दीवाना होता है, मस्ताना होता है… हर खुशी से, हर गम से बेगाना होता है…” शायद ही कोई हो जिसे ये गाना पसंद न हो. जीवन में हर किसी को प्यार होता है. किसी का प्यार मुकम्मल होता है तो किसी का प्यार अधूरा रह जाता है. हरेक की अपनी कहानी होती है. अगर आपको भी प्रेम कहानियां पढ़ने का है शौक, तो हम आपके लिए इस आर्टिकल में बहुत ही खूबसूरत Love Story  लेकर आए हैं. जो कहानियां आपके दिल को छू लेगी.

1. अनमोल पल: शादीशुदा विदित और सुहानी के रिश्ते का क्या था अंजाम

‘‘मैं तुम्हें संपूर्ण रूप से पाना चाहता हूं. इस तरह कि मुझे लगे कि मैं ने तुम्हें पा लिया है. अब चाहे तुम इसे कुछ भी समझो. पुरुषों का प्रेम ऐसा ही होता है, जिसे वे प्यार करते हैं उस के मन के साथसाथ तन को भी पाना चाहते हैं. तुम इसे वासना समझती हो तो यह तुम्हारी सोच है. पाना तो स्त्री भी चाहती है, लेकिन कह नहीं पाती. पुरुष कह देता है. तुम इसे पुरुषों की बेशर्मी समझो तो यह तुम्हारी अपनी समझ है, लेकिन जिस्मानी प्रेम प्राकृतिक है. इसे नकारा नहीं जा सकता. यदि तुम मुझ से प्रेम करती हो और तुम ने अपना मन मुझे दिया है तो तन के समर्पण में हिचक कैसी?‘‘मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं नहीं चाहता कि हम एकांत में मिलें, जैसे कि मिलते आए हैं और एकदूसरे को चूमतेसहलाते हद से गुजर जाएं फिर बाद में एहसास हो कि हम ने यह ठीक नहीं किया. हमें मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए. अच्छा है कि इस बार हम मानसिक रूप से तैयार हो कर मिलें. वैसे भी कितनी बार हम एकांत के क्षणों में हद से गुजर जाने को बेचैन से रहे हैं, लेकिन मिलने के वे स्थान सार्वजनिक थे, व्यक्तिगत नहीं.

2. लौंग डिस्टैंस रिश्ते: क्यों अभय को बेईमान मानने को तैयार नहीं थी रीवा ?

‘‘हैलो,कैसी हो? तबीयत तो ठीक रहती है न? किसी बात की टैंशन मत लेना. यहां सब ठीक है,’’ फोन पर अभय की आवाज सुनते ही रीवा का चेहरा खिल उठा. अगर सुबहशाम दोनों वक्त अभय का फोन न आए तो उसे बेचैनी होने लगती है.

‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं, तुम कैसे हो? काम कैसा चल रहा है? सिंगापुर में तो इस समय दोपहर होगी. तुम ने लंच ले लिया? अच्छा इंडिया आने का कब प्लान है? करीब 10 महीने हो गए हैं तुम्हें यहां आए. देखो अब मुझे तुम्हारे बिना रहना अच्छा नहीं लगता है. मुझे यह लौंग डिस्टैंस मैरिज पसंद नहीं है,’’ एक ही सांस में रीवा सब कुछ कह गई.

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3. उजाले की ओर: क्या हुआ नीरजा और नील के प्यार का अंजाम?

 

राशी कनाट प्लेस में खरीदारी के दौरान एक आवाज सुन कर चौंक गई. उस ने पलट कर इधरउधर देखा, लेकिन कोई नजर नहीं आया. उसे लगा, शायद गलतफहमी हुई है. उस ने ज्योंही दुकानदार को पैसे दिए, दोबारा ‘राशी’ पुकारने की आवाज आई. इस बार वह घूमी तो देखा कि धानी रंग के सूट में लगभग दौड़ती हुई कोई लड़की उस की तरफ आ रही थी.

राशी ने दिमाग पर जोर डाला तो पहचान लिया उसे. चीखती हुई सी वह बोली, ‘‘नीरजा, तू यहां कैसे?’’

दरअसल, वह अपनी पुरानी सखी नीरजा को सामने देख हैरान थी. फिर तो दोनों सहेलियां यों गले मिलीं, मानो कब की बिछड़ी हों.

‘‘हमें बिछड़े पूरे 5 साल हो गए हैं, तू यहां कैसे?’’ नीरजा हैरानी से बोली.

‘‘बस एक सेमिनार अटैंड करने आई थी. कल वापस जाना है. तुझे यहां देख कर तो विश्वास ही नहीं हो रहा है. मैं ने तो सोचा भी न था कि हम दोनों इस तरह मिलेंगे,’’ राशी सुखद आश्चर्य से बोली, ‘‘अभी तो बहुत सी बातें करनी हैं. तुझे कोई जरूरी काम तो नहीं है? चल, किसी कौफीहाउस में चलते हैं.’’

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4. तुम देना साथ मेरा

इसबार शादी की सालगिरह पर कुछ खास करने की इच्छा है माहिरा की. बेटे अर्णव और आरव भी यही चाहते हैं. वैसे तो टीनएजर्स अपनी दुनिया में मगन रहते हैं, लेकिन इवेंट में जान डालने को दोनों तैयार हैं. 20वीं सालगिरह है. अकसर लोग 25वीं को खास तरह से मनाते हैं पर माहिरा की सोच वर्तमान में जीने की रही है कि जो खुशी के पल आज मिल रहे हैं उन्हें कल पर क्यों टाला जाए? पकौड़े खाने के लिए उस ने कभी बारिश की बूंदों का इंतजार नहीं किया. जब उस का जी किया या ईशान ने फरमाइश की उस ने  झट कड़ाही चढ़ा दी.

दरअसल, माहिरा और ईशान दोनों ही खाने के शौकीन हैं. अपने को ‘बिग फूडी’ की श्रेणी में रख दोनों ही खुश रहते हैं. शादी के बाद से खाने के शौक ने दोनों को एक मीठे बंधन में बांधा. ईशान को मीठा पसंद है तो माहिरा को तीखा भाता है. एकदूसरे की खुशी का ध्यान करते हुए हर भोजन में कुछ तीखा पकता तो कुछ मीठा भी बनाया जाता. दोनों तरह के व्यंजनों को पूरे स्वाद से खाया जाता, कोई नई रैसिपी पता चलती या किसी के घर कुछ नया पकवान खा कर आते तो माहिरा साथ ही उसे बनाने की विधि भी पूछ आती. इस वीकैंड यही ट्राई करूंगी, सोच वह भी खुश होती और न्यू फ्लैयर खाने को मिलेगा सोच ईशान भी कभी किसी मराठी दोस्त की पत्नी से पूरनपोली सीखी तो कभी तमिल दोस्त की पत्नी से अड़ा, कभी बिहार का लिट्टीचोखा ट्राई किया तो कभी राजस्थान की मावाकचौरी.

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5. प्यार को प्यार ही रहने दो…

सैंट्रल पार्क में फिर मेला चल रहा था. बड़ेबड़े झूले, खानेपीने की बेहिसाब वैरायटी लिए स्टालें, अनगिनत हस्तकला का सामान बेचती अस्थाई रूप से बनाई हुई छोटीछोटी टेंट की दुकानें, और इन दुकानों में बैठे हुए अलगअलग राज्यों व क्षेत्रों से आए हुए व्यापारी.

हर कोई अपनी दीवाली अच्छी बनाने की आशा में ग्राहकों की बाट जोह रहा था. हर साल दीवाली के आसपास यहां यही मेला लगा करता है. और हर साल की तरह इस साल भी निरंजना मेले में जाने के लिए उत्सुक थी.

शाम को जब रजत औफिस से वापस आया, तो निरंजना को तैयार खड़ा देख समझ गया कि आज मेले में जाने का कार्यक्रम बना बैठी है.

रजत मुसकरा कर कहने लगा, ‘‘तुम दिल्ली के आलीशान मौल भी घूमना चाहती हो और गलीमहल्ले के मेले भी. ठीक है, चलेंगे. पर मैं पहले थोड़ा सुस्ता लूं. एक कप चाय पिला दो, फिर चलते हैं मेले में.”

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Best Hindi Story- भोर: राजवी को कैसे हुआ अपनी गलती का एहसास

उस दिन सवेरे ही राजवी की मम्मी की किट्टी फ्रैंड नीतू उन के घर आईं. उन की कालोनी में उन की छवि मैरिज ब्यूरो की मालकिन की थी. किसी की बेटी तो किसी के बेटे की शादी करवाना उन का मनपसंद टाइमपास था. वे कुछ फोटोग्राफ्स दिखाने के बाद एक तसवीर पर उंगली रख कर बोलीं, ‘‘देखो मीरा बहन, इस एनआरआई लड़के को सुंदर लड़की की तलाश है. इस की अमेरिका की सिटिजनशिप है और यह अकेला है, इसलिए इस पर किसी जिम्मेदारी का बोझ नहीं है. इस की सैलरी भी अच्छी है. खुद का घर है, इसलिए दूसरी चिंता भी नहीं है. बस गोरी और सुंदर लड़की की तलाश है इसे.’’

फिर तिरछी नजरों से राजवी की ओर देखते हुए बोलीं, ‘‘उस की इच्छा तो यहां हमारी राजवी को देख कर ही पूरी हो जाएगी. हमारी राजवी जैसी सुंदर लड़की तो उसे कहीं भी ढूंढ़ने से नहीं मिलेगी.’’ यह सब सुन रही राजवी का चेहरा अभिमान से चमक उठा. उसे अपने सौंदर्य का एहसास और गुमान तो शुरू से ही था. वह जानती थी कि वह दूसरी लड़कियों से कुछ हट कर है.

चमकीले साफ चेहरे पर हिरनी जैसी आंखें और गुलाबी होंठ उस के चेहरे का खास आकर्षण थे. और जब वह हंसती थी तब उस के गालों में डिंपल्स पड़ जाते थे. और उस की फिगर व उस की आकर्षक देहरचना तो किसी भी हीरोइन को चैलेंज कर सकती थी. इस से अपने सौंदर्य को ले कर उस के मन में खुशी तो थी ही, साथ में जानेअनजाने में एक गुमान भी था. मीरा ने जब उस एनआरआई लड़के की तसवीर हाथ में ली तो उसे देखते ही उन की भौंहें तन गईं. तभी नीतू बोल पड़ीं, ‘‘बस यह लड़का यानी अक्षय थोड़ा सांवला है और चश्मा लगाता है.’’

‘लग गई न सोने की थाली में लोहे की कील,’ मीरा मन में ही भुनभुनाईं. उन्हें लगा कि मेरी राजवी शायद इसे पसंद नहीं करेगी. पर प्लस पौइंट इस लड़के में यह था कि यह नीतू के दूर के किसी रिश्तेदार का लड़का था, इसलिए एनआरआई लड़के के साथ जुड़ी हुई मुसीबतें व जोखिम इस केस में नहीं था. जानापहचाना लड़का था और नीतू एक जिम्मेदार के तौर पर बीच में थीं ही.

फिर कुछ सोच कर मीरा बोलीं, ‘‘ओह, बस इतनी सी बात है. आजकल ये सब देखता कौन है और चश्मा तो किसी को भी लग सकता है. और इंडियन है तो रंग तो सांवला होगा ही. बाकी जैसा तुम कहती हो लड़का स्मार्ट भी है, समझदार भी. फिर क्या चाहिए हमें… क्यों राजवी?’’

अपने ही खयालों में खोई, नेल पेंट कर रही राजवी ने कहा, ‘‘हूं… यह बात तो सही है.’’

तब नीतू ने कहा, ‘‘तुम भी एक बार फोटो देख लो तो कुछ बात बने.’’

‘‘बाद में देख लूंगी आंटी. अभी तो मुझे देर हो रही है,’’ पर तसवीर देखने की चाहत तो उसे भी हो गई थी.

मीरा ने नीतू को इशारे में ही समझा दिया कि आप बात आगे बढ़ाओ, बाकी बात मैं संभाल लूंगी. मीरा और राजवी के पापा दोनों की इच्छा यह थी कि राजवी जैसी आजाद खयाल और बिंदास लड़की को ऐसा पति मिले, जो उसे संभाल सके और समझ सके. साथ में उसे अपनी मनपसंद लाइफ भी जीने को मिले. उस की ये सभी इच्छाएं अक्षय के साथ पूरी हो सकती थीं.

नीतू ने जातेजाते कहा, ‘‘राजवी, तुम जल्दी बताना, क्योंकि मेरे पास ऐसी बहुत सी लड़कियों की लिस्ट है, जो परदेशी दूल्हे को झपट लेने की ख्वाहिश रखती हैं.’’

नीतू के जाने के बाद मीरा ने राजवी के हाथ में तसवीर थमा दी, ‘‘देख ले बेटा, लड़का ऐसा है कि तेरी तो जिंदगी ही बदल जाएगी. हमारी तो हां ही समझ ले, तू भी जरा अच्छे से सोच लेना.’’

पर राजवी तसवीर देखते ही सोच में डूब गई. तभी उस की सहेली कविता का फोन आया. राजवी ने अपने मन की उलझन उस से शेयर की, तो पूरे उत्साह से कविता कहने लगी, ‘‘अरे, इस में क्या है. शादी के बाद भी तो तू अपना एक ग्रुप बना सकती है और सब के साथ अपने पति को भी शामिल कर के तू और भी मजे से लाइफ ऐंजौय कर सकती है. फिर वह तो फौरेन कल्चर में पलाबढ़ा लड़का है. उस की थिंकिंग तो मौडर्न होगी ही. अब तू दूसरा कुछ सोचने के बजाय उस से शादी कर लेने के बारे में ही सोचना शुरू कर दे…’’

कविता की बात राजवी समझ गई तो उस ने हां कह दिया. इस के बाद सब कुछ जल्दीजल्दी होता गया. 2 महीने बाद नीतू का दूर का वह भतीजा लड़कियों की एक लिस्ट ले कर इंडिया पहुंच गया. उसे सुंदर लड़की तो चाहिए ही थी, पर साथ में वह भारतीय संस्कारों से रंगी भी होनी चाहिए थी. ऐसी जो उसे भारतीय भोजन बना कर प्यार से खिलाए. साथ ही वह मौडर्न सोच और लाइफस्टाइल वाली हो ताकि उस के साथ ऐडजस्ट हो सके. पर उस की लिस्ट की सभी मुलाकात के बाद एकएक कर के रिजैक्ट होती गईं. तब एक दिन सुबह राजवी के पास नीतू का फोन आया, ‘‘शाम को 7 बजे तक रेडी हो जाना. अक्षय के साथ मुलाकात करनी है. और हां, मीरा से कहना कि वे तुझे अच्छी सी साड़ी पहनाएं.’’

‘‘साड़ी, पर क्यों? मुझ पर जींस ज्यादा सूट करती है,’’ कहते हुए राजवी बेचैन हो गई.

‘‘वह तुम्हारी समझ में नहीं आएगा. तुम साड़ी यही समझ कर पहनना कि उसी में तुम ज्यादा सुंदर और अटै्रक्टिव लगती हो.’’

नीतू आंटी की बात पर गर्व से हंस पड़ी राजवी, ‘‘हां, वह तो है.’’

और उस दिन शाम को वह जब आकर्षक लाल रंग की डिजाइनर साड़ी पहन कर होटल शालिग्राम की सीढि़यां चढ़ रही थी, उस की अदा देखने लायक थी. होटल के मीटिंग हौल में राजवी को दाखिल होता देख सोफे पर बैठा अक्षय उसे देखता ही रह गया. नीतू ने जानबूझ कर उसे राजवी का फोटो नहीं भेजा था, ताकि मिलने के बाद ही अक्षय उसे ठीक से जान ले, परख ले. नीतू को वहीं छोड़ कर दोनों होटल के कौफी शौप में चले गए.

‘‘प्लीज…’’ कह कर अक्षय ने उसे चेयर दी. राजवी उस की सोच से भी अधिक सुंदर थी. हलके से मेकअप में भी उस के चेहरे में गजब का निखार था. जैसा नाम वैसा ही रूप सोचता हुआ अक्षय मन ही मन में खुश था. फिर भी थोड़ी झिझक थी उस के मन में कि क्या उसे वह पसंद करेगी?

ऐसा भी न था कि अक्षय में कोई दमखम न था और अब तो कंपनी उसे प्रमोशन दे कर उस की आमदनी भी दोगुनी करने वाली थी. फिर भी वह सोच रहा था कि अगर राजवी उसे पसंद कर लेती है तो वह उस के साथ मैच होने के लिए अपना मेकओवर भी करवा लेगा. मन ही मन यह सब सोचते हुए अक्षय ने राजवी के सामने वाली चेयर ली. अक्षय के बोलने का स्मार्ट तरीका, उस के चेहरे पर स्वाभिमान की चमक और उस का धीरगंभीर स्वभाव राजवी को प्रभावित कर गया. उस की बातों में आत्मविश्वास भी झलकता था. कुल मिला कर राजवी को अक्षय का ऐटिट्यूड अपील कर गया.

उस मुलाकात के बाद दोनों ने एकदूसरे को दूसरे दिन जवाब देना तय किया. पर उसी दिन रात में राजवी ने अक्षय को फोन लगाया, ‘‘एक बात का डिस्कशन तो रह गया. क्या शादी के बाद मैं आगे पढ़ाई कर सकती हूं? और क्या मैं आगे जा कर जौब कर सकती हूं? अगर आप को कोई एतराज नहीं तो मेरी ओर से इस रिश्ते को हां है.’’

‘‘ओह. इस में पूछने वाली क्या बात है? मैं मौडर्न खयालात का हूं क्योंकि मौडर्न समाज में पलाबढ़ा हूं. नारी स्वतंत्रता मैं समझता हूं, इसलिए जैसी तुम्हारी मरजी होगी, वैसा तुम कर सकोगी.’’

अक्षय को भी राजवी पसंद आ गई थी, उसे इतनी सुंदर पत्नी मिलेगी, उस की कल्पना ही उस को रोमांचित कर देने के लिए काफी थी. फिर तो जल्दी ही दोनों की शादी हो गई. रिश्तेदारों की उपस्थिति में रजिस्टर्ड मैरिज कर के 4 ही दिनों के बाद अक्षय ने अमेरिका की फ्लाइट पकड़ ली और उस के 2 महीने बाद आंखों में अमेरिका के सपने संजोए और दिल में मनपसंद जिंदगी की कल्पना लिए राजवी ने ससुराल का दरवाजा खटखटाया. ये ऐसे सपने थे जिन्हें हर कुंआरी, महत्त्वाकांक्षी और उत्साही लड़की देखती है. राजवी खुश थी, लेकिन एक हकीकत उसे खटक रही थी. वह इतनी सुंदर और पति था सांवला. जोड़ी कैसे जमेगी उस के साथ उस की? पर रोमांचित कर देने वाली परदेशी धरती ने उसे ज्यादा सोचने का समय ही कहां दिया.

कई दिन दोनों खूब घूमे. शौपिंग, पार्टी जो भी राजवी का मन किया अक्षय ने उसे पूरा किया. फिर शुरू हुई दोनों की रूटीन लाइफ. वैसे भी सपनों की दुनिया में सब कुछ सुंदर सा, मनभावन ही होता है. जिंदगी की हकीकत तो वास्तविकता के धरातल पर आ कर ही पता चलती है. एक दिन अक्षय ने फरमाइश की, ‘‘आज मेरा इंडियन डिश खाने को मन कर रहा है.’’

‘‘इंडियन डिश? यू मीन दालचावल और रोटीसब्जी? इश… मुझे ये सब बनाना नहीं आता. मैं तो अपने घर में भी खाना कभी नहीं बनाती थी. मां बोलती थीं तब भी नहीं. और वैसे भी पूरा दिन रसोई में सिर फोड़ना मेरे बस की बात नहीं. मैं उन लड़कियों में नहीं, जो अपनी जिंदगी, अपनी खुशियां घरेलू कामकाज के जंजालों में फंस कर बरबाद कर देती हैं.’’

चौंक उठा अक्षय. फिर भी संभलते हुए बोला, ‘‘अब मजाक छोड़ो, देखो मैं ये सब्जियां ले कर आया हूं. तुम रसोई में जाओ. तुम्हारी हैल्प करने मैं आता हूं.’’

‘‘तुम्हें ये सब आता है तो प्लीज तुम ही बना लो न… दालसब्जी वगैरह मुझे तो भाती भी नहीं और बनाना भी मुझे आता नहीं. और हां, 2 दिनों के बाद तो मेरी स्टडी शुरू होने वाली है, क्या तुम भूल गए? फिर मुझे टाइम ही कहां मिलेगा इन सब झंझटों के लिए. अच्छा यही रहेगा कि तुम किसी इंडियन लेडी को कुक के तौर पर रख लो.’’

अक्षय का दिमाग सन्न रह गया. राजवी को हर रोज सुबह की चाय बनाने में भी नखरे करती थी और ठीक से कोई नाश्ता भी नहीं बना पाती थी. लेकिन आज तो उस ने हद ही कर दी थी. तो क्या यही है राजवी का असली रूप? लेकिन कुछ भी बोले बिना अक्षय औफिस के लिए निकल गया. पर यह सब तो जैसे शुरुआत ही थी. राजवी के उस नए रंग के साथ जब नया ढंग भी सामने आने लगा अक्षय के तो होश ही उड़ गए. एक दिन राजवी बिलकुल शौर्ट और पतले से कपड़े पहन कर कालेज के लिए निकलने लगी.

अक्षय ने उसे टोकते हुए कहा, ‘‘यह क्या पहना है राजवी? यह तुम्हें शोभा नहीं देता. तुम पढ़ने जा रही हो तो ढंग के कपड़े पहन कर जाओगी तो अच्छा रहेगा…’’

‘‘ये अमेरिका है मिस्टर अक्षय. और फिर तुम ने ही तो कहा था न कि तुम मौडर्न सोच रखते हो, तो फिर ऐसी पुरानी सोच क्यों?’’

‘‘हां कहा था मैं ने पर पराए देश में तुम्हारी सुरक्षा की भी चिंता है मुझे. मौडर्न होने की भी हद होती है, जिसे मैं समझता हूं और चाहता हूं कि तुम भी समझ लो.’’

‘‘मुझे न तो कुछ समझना है और न ही तुम्हारी सोच और चिंता मुझे वाजिब लगती है. और यह मेरी निजी लाइफ है. मैं अभी उतनी बूढ़ी भी नहीं हो गई कि सिर पर पल्लू रख कर व साड़ी लपेट कर रहूं. और बाई द वे तुम्हें भी तो सुंदर पत्नी चाहिए थी न? तो मैं जब सुंदर हूं तो दुनिया को क्यों न दिखाऊं?’’

राजवी के इस क्यों का कोई जवाब नहीं था अक्षय के पास. फिर जैसेजैसे दिन बीतते गए, दोनों के बीच छोटीमोटी बातों पर झगड़े बढ़ते गए. अक्षय को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे? भूल कहां हो रही है और इस स्थिति में क्या हो सकता है, क्योंकि अब पानी सिर के ऊपर शुरू हो चुका था. राजवी ने जो गु्रप बनाया था उस में अमेरिकन युवकों के साथ इंडियन लड़के भी थे. शर्म और मर्यादा की सीमाएं तोड़ कर राजवी उन के साथ कभी फिल्म देखने तो कभी क्लब चली जाती. ज्यादातर वह उन के साथ लंच या डिनर कर के ही घर आती. कई बार तो रात भर वह घर नहीं आती. अक्षय के पूछने पर वह किसी सहेली या प्रोजैक्ट का बहाना बना देती.

अक्षय बहुत दुखी होता, उसे समझाने की कोशिश करता पर राजवी उस के साथ बात करने से भी कतराती. अक्षय को ज्यादा परेशानी तो तब हुई जब राजवी अपने बौयफ्रैंड्स को ले कर घर आने लगी. अक्षय उन के साथ मिक्स होने या उन्हें कंपनी देने की कोशिश करता तो राजवी सब के बीच उस के सांवले रंग और चश्मे को मजाक का विषय बना देती और अपमानित करती रहती. एक दिन इस सब से तंग आ कर अक्षय ने नीतू आंटी को फोन लगाया. उस ने ये सब बातें बताना शुरू ही किया था कि राजवी उस से फोन छीन कर रोने जैसी आवाज में बोलने लगी, ‘‘आंटी, आप ने तो कहा था कि तुम वहां राज करोगी. जैसे चाहोगी रह सकोगी. पर आप का यह भतीजा तो मुझे अपने घर की कुक और नौकरानी बना कर रखना चाहता है. मेरी फ्रीडम उसे रास नहीं आती.’’

अक्षय आश्चर्यचकित रह गया. उस ने तब तय कर लिया कि अब से वह न तो किसी बात के लिए राजवी को रोकेगा, न ही टोकेगा. उस ने राजवी को बोल दिया कि तुम अपनी मरजी से जी सकती हो. अब मैं कुछ नहीं बोलूंगा. पर थोड़े दिनों के बाद अक्षय ने नोटिस किया कि राजवी उस के साथ शारीरिक संबंध भी नहीं बनाना चाहती. उसे अचानक चक्कर भी आ जाता था. चेहरे की चमक पर भी न जाने कौन सा ग्रहण लगने लगा था.

अब वह न तो अपने खाने का ध्यान रखती थी न ही ढंग से आराम करती थी. देर रात तक दोस्तों और अनजान लोगों के साथ भटकते रहने की आदत से उस की जिंदगी अव्यवस्थित बन चुकी थी. एक दिन रात को 3 बजे किसी अनजान आदमी ने राजवी के मोबाइल से अक्षय को फोन किया, ‘‘आप की वाइफ ने हैवी ड्रिंक ले लिया है और यह भी लगता है कि किसी ने उस के साथ रेप करने की कोशिश…’’

अक्षय सहम गया. फिर वह वहां पहुंचा तो देखा कि अस्तव्यस्त कपड़ों में बेसुध पड़ी राजवी बड़बड़ा रही थी, ‘‘प्लीज हैल्प मी…’

पास में खड़े कुछ लोगों में से कोई बोला, ‘‘इस होटल में पार्टी चल रही थी. शायद इस के दोस्तों ने ही… बाद में सब भाग गए. अगर आप चाहो तो पुलिस…’’

‘‘नहींनहीं…,’’ अक्षय अच्छी तरह जानता था कि पुलिस को बुलाने से क्या होगा. उस ने जल्दी से राजवी को उठा कर गाड़ी में लिटा दिया और घर की ओर रवाना हो गया. राजवी की ऐसी हालत देख कर उस कलेजा दहल गया था. आखिर वह पत्नी थी उस की. जैसी भी थी वह प्यार करता था उस को. घर पहुंचते ही उस ने अपने फ्रैंड व फैमिली डाक्टर को बुलाया और फर्स्ट ऐड करवाया. उस के चेहरे और शरीर पर जख्म के निशान पड़ चुके थे. दूसरे दिन बेहोशी टूटने के बाद होश में आते ही राजवी पिछली रात उस के साथ जो भी घटना घटी थी, उसे याद कर रोने लगी. अक्षय ने उसे रोने दिया. ‘जल्दी ही अच्छी हो जाओगी’ कह कर वह उसे तसल्ली देता रहा पर क्या हुआ था, उस के बारे में कुछ भी नहीं पूछा. खाना बनाने वाली माया बहन की हैल्प से उसे नहलाया, खिलाया फिर उसे अस्पताल ले जाने की सोची.

‘‘नहींनहीं, मुझे अस्पताल नहीं जाना. मैं ठीक हो जाऊंगी,’’ राजवी बोली.

अक्षय को लगा कि राजवी कुछ छिपा रही है. कहीं वह मां तो नहीं बनने वाली? पर ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि वह तो कहती रही है कि बच्चे के बारे में तो अभी 5 साल तक सोचना भी मत. पहले मैं कैरियर बनाऊंगी, लाइफ को ऐंजौय करूंगी, उस के बाद ही सोचूंगी. फिर कौन सी बात छिपा रही है यह मुझ से? क्या इस के साथ वाकई रेप हुआ होगा? दुखी हो गया अक्षय यह सोच कर. उसे जीवन का यह नया रंग भयानक लग रहा था. 2 दिन बाद अक्षय जब शाम को घर आया तो देखा कि राजवी फिर से बेहोश जैसी पड़ी थी. उसे तेज बुखार था. अक्षय परेशान हो गया. फिर बिना कुछ सोचे वह उसे अस्पताल ले गया. डाक्टर ने जांचपड़ताल करने के बाद उस के जरूरी टैस्ट करवाए और उन की रिपोर्ट्स निकलवाईं.

लेकिन रिपोर्ट्स हाथ में आते ही अक्षय के होश उड़ गए. राजवी की बच्चेदानी में सूजन थी और इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी. डाक्टर ने बताया कि उसे कोई संक्रामक रोग हो गया है.

चेहरा हाथों में छिपा कर अक्षय रो पड़ा. यह क्या हो गया है मेरी राजवी को? वह शुरू से ही कुछ बता देती या खुद ट्रीटमैंट करवा लेती तो बात इतनी बढ़ती नहीं. ये तू ने क्या किया राजवी? मेरे प्यार में तुझे कहां कमी नजर आई कि प्यार की खोज में तू भटक गई? काश तू मेरे दिल की आवाज सुन सकती. अक्षय को डाक्टर ने सांत्वना दी कि लुक मिस्टर अक्षय, अभी भी उतनी देर नहीं हुई है. हम उन का अच्छे से अच्छा ट्रीटमैंट शुरू कर देंगे. शी विल बी औल राइट सून… और वास्तव में डाक्टर के इलाज और अक्षय की केयर से राजवी की तबीयत ठीक होने लगी. लेकिन अक्षय का धैर्य और प्यार भरा बरताव राजवी को गिल्टी फील करा देता था.

अस्पताल से घर लाने के बाद अक्षय राजवी की हर छोटीमोटी जरूरत का ध्यान रखता था. उसे टाइम पर दवा, चायनाश्ता व खाना देना और उस को मन से खुश रखने के लिए तरहतरह की बातें करना, वह लगन से करता था. और राजवी की इन सब बातों ने आंखें खोल दी थीं. नासमझी में उस ने क्याक्या नहीं कहा था अक्षय को. दोस्तों के सामने उस का तिरस्कार किया था. उस के रंग को ले कर सब के बीच उस का मजाक उड़ाया था और कई बार गुस्से और नफरत के कड़वे बोल बोली थी वह. यह सब सोच कर शर्म सी आती थी उसे.

अपनी गोरी त्वचा और सौंदर्य के गुमान की वजह से उस ने अपना चरित्र भी जैसे गिरवी रख दिया था. अक्षय सांवला था तो क्या हुआ, उस के भीतर सब कुछ कितना उजला था. उस के इतने खराब ऐटिट्यूड के बाद भी अक्षय के बरताव से ऐसा लगता था जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. वह पूरे मन से उस की केयर कर रहा था. राजवी सोचती थी मेरी गलतियों, नादानियों और अभिमान को अनदेखा कर अक्षय मुझे प्यार करता रहा और मुझे समझाने की कोशिश करता रहा. लेकिन मैं अपनी आजादी का गलत इस्तेमाल करती रही. कुछ दिनों में राजवी के जख्म तो ठीक हो गए पर उन्होंने अपने गहरे दाग छोड़ दिए थे. जब भी वह आईना देखती थी सहम जाती थी.

पूरी तरह से ठीक होने के बाद राजवी ने अक्षय के पास बैठ कर अपने बरताव के लिए माफी मांगी. अक्षय गंभीर स्वर में बोला, ‘‘देखो राजवी, मैं जानता हूं कि तुम मेरे साथ खुश नहीं हो. मैं यह भी जानता हूं कि मैं शक्लसूरत में तुम्हारे लायक नहीं हूं. काश मैं अपने शरीर का रंग बदलवा सकता पर वह मुमकिन नहीं है. तब एक ही रास्ता नजर आता है मुझे कि तुम मेरे साथ जबरदस्ती रहने के बजाय अपना मनपसंद रास्ता खोज लो.’’ इस बात पर राजवी चौंकी मगर अक्षय बोला, ‘‘मेरा एक कुलीग है. मेरे जैसी ही पोस्ट पर है और मेरी जितनी ही सैलरी मिलती है उसे. प्लस पौइंट यह है कि वह हैंडसम दिखता है. तुम्हारे जैसा गोरा और तुम्हारे जैसा ही फ्री माइंडेड है. अगर तुम हां कहो तो मैं बात कर सकता हूं उस से. और हां, वह भी इंडिया का ही है. खुश रखेगा तुम्हें…’’

‘‘अक्षय, यह क्या बोल रहे हो तुम?’’ राजवी चीख उठी. अक्षय ऐसी बात करेगा यह उस की सोच से परे था.

‘‘मैं ठीक ही तो कह रहा हूं. इस झूठमूठ की शादी में बंधे रहने से अच्छा होगा कि हम अलग हो जाएं. मेरी ओर से आज से ही तुम आजाद हो…’’

अक्षय के होंठों पर अपनी कांपती उंगलियां रखती राजवी कांपती आवाज में बोली, ‘‘इस बात को अब यहीं पर स्टौप कर दो अक्षय. मैं ने कहा न कि मैं ने जो कुछ भी किया वह मेरी भूल थी. मेरा घमंड और मेरी नासमझी थी. अपने सौंदर्य पर गुमान था मुझे और उस गुमान के लिए तुम जो चाहे सजा दे सकते हो. पर प्लीज मुझे अपने से अलग मत करना. मैं नहीं जी पाऊंगी तुम्हारे बिना. तुम्हारे प्यार के बिना मैं अधूरी हूं. जिंदगी का और रिश्तों का सच्चा सुख बाहरी चकाचौंध में नहीं होता वह तो आंतरिक सौंदर्य में ही छिपा होता है, यह सच मुझे अच्छी तरह महसूस हो चुका है.’’

इस के आगे न बोल पाई राजवी. उस की आंखों में आंसू भर गए. उस ने हाथ जोड़ लिए और बोली, ‘‘मेरी गलती माफ नहीं करोगे अक्षय?’’ राजवी के मुरझाए गालों पर बह रहे आंसुओं को पोंछता अक्षय बोला, ‘‘ठीक है, तो फिर इस में भी जैसी तुम्हारी मरजी.’’  और यह कह कर वह मुसकराया तो राजवी हंस पड़ी. फिर अक्षय ने अपनी बांहें फैलाईं तो राजवी उन में समा गई.

Short Story: एक रिश्ता एहसास का

‘सुधा बारात आने वाली है देखो निधि तैयार हुई की नहीं ……’,हर्ष ने सुधा को आवाज़ लगाते हुए कहा.
सुधा का दिल ये सोच कर बहुत ही ज़ोरों से धडकने लगा की अब मेरी निधि मुझसे दूर हो जाएगी.
सुधा निधि को लेने उसके कमरे की तरफ बढ़ी .निधि को दुल्हन के रूप में देख कर वो एक पल को वहीँ दरवाज़े की ओट में खड़ी हो गयी.

सुधा अपने अतीत की यादों में खो गयी . उसकी यादों का कारवां बरसों पहले जा पहुंचा था. नंदिनी और सुधा बहुत की पक्की दोस्त थी और हो भी क्यूँ न बचपन की दोस्ती जो थी.

जिस शाम सुधा की इंगेजमेंट थी उसी शाम जब नंदिनी सुधा के घर अपने पति हर्ष के साथ आ रही थी तभी उनकी गाडी का बहुत ही भयानक एक्सीडेंट हो गया जिसमे नंदिनी चल बसी.और पीछे छोड़ गयी अपनी हंसती खेलती दुनिया.नंदिनी के दो बच्चे थे विशाल और निधि.दोनों बहुत ही छोटे थे.नंदिनी की मौत के बाद परिवार वालों ने हर्ष से दूसरी शादी का दवाब डाला.
जब सुधा को इस बात का पता चला तो उसने बिना आनाकानी किए हर्ष से शादी के लिए हामी भर दी थी, क्योंकि नंदिनी की असमय मौत के बाद उसे सबसे अधिक चिंता उनके दोनों बच्चों- निधि और विशाल के भविष्य की थी.
नई-नई दुल्हन बनकर आई थी सुधा . अचानक ही उसकी ज़िंदगी में सब कुछ बदल गया था. जिस शख़्स को अब तक अपनी दोस्त के के पति के रूप में देखती आई थी, वो अब उसी की पत्नी बन चुकी थी. चूंकि बच्चे बहुत ही छोटे थे और पहले से ही सुधा से घुले-मिले थे, तो उन्होंने भी उसे अपनी मां के रूप में आसानी से स्वीकार कर पाएंगे.

दूसरी तरफ़ हर्ष का भी वो बहुत सम्मान करती थी. समय बीतता रहा, बच्चों के साथ सुधा ख़ुद भी बच्ची ही बन जाती और खेल-खेल में उन्हें कई बातें सिखाने में कामयाब हो जाती. लेकिन इतना कुछ करने पर भी बात-बात पर उसे ‘सौतेली मां’ का तमगा पहना दिया जाता. अगर बच्चे को चोट लग जाए, तो पड़ोसी कहते, “बेचारे बिन मां के बच्चे हैं, सौतेली मां कहां इतना ख़्याल रखती होगी…” इस तरह के ताने सुनने की आदी हो चुकी थी सुधा, लेकिन सबसे ज़्यादा तकलीफ़ तब होती, जब अपना ही कोई इस दर्द को और बढ़ा देता. चाहे बच्चों का जन्मदिन हो या कोई अचीवमेंट, हर बार घर के क़रीबी रिश्तेदार यह कहने से पीछे नहीं हटते थे कि आज इनकी अपनी मां ज़िंदा होती, तो कितनी ख़ुश होती.
अचानक सुधा ने अपने अतीत से बहार आकर महसूस किया की निधि ने आकर पीछे से उसकी आँखों को अपने हाथ से ढक लिया .
सुधा ने बिना उसके कहे पहचान लिया की वो निधि है.उसने कहा तैयार हो गयी मेरी राजकुमारी!

“माँ , तुम्हें कैसे पता चला कि ये मैं हूं?” निधि ने हैरान होकर पूछा.
“बेटा , तुम्हारी ख़ुशबू मैं अच्छी तरह से पहचानती हूं. तुम्हारा एहसास, तुम्हारा स्पर्श सब कुछ मुझसे बेहतर कौन समझ सकता है? आख़िर मां हूँ मै तुम्हारी .” सुधा ने निधि का हाथ थामकर कहा.
“क्या हुआ माँ तुम कुछ परेशान लग रही हो ,कोई बात है क्या?किसी ने कुछ कहा.” निधि ने सुधा के गले लगकर पूछा.
सुधा ने आँखों में आंसू भरकर कहा,”निधि मै सही हूँ न ?क्या मेरी परवरिश में तुम्हे कोई कमी तो नहीं लगी.अगर मेरे प्यार में कोई कमी रह गयी हो तो मुझे माफ़ कर देना…”
मां… तुमसे ही मैं ममता की गहराई जान पाई हूं. तुम ऐसा मत सोचो ” निधि ने माँ को गले लगाते हुए कहा.

सुधा ने निधि के सर पर हाँथ फेरते हुए कहा,”चलो अब नीचे चले ,बारात आ गयी है और उनको इंतज़ार करवाना ठीक नहीं.” वो हँसते हुए बोली
पर निधि के मन तो तूफ़ान उमड़ रहा था.सुधा के आंसुओं ने उसे अन्दर तक झकझोर कर रख दिया था.वो जान चुकी थी की उसकी माँ के मन में क्या उधेड़बुन चल रही है.
पर उसने अपने आप को शांत किया और सुधा के साथ नीचे आ गयी.
शादी की सारी रश्में पूरी हो चुकी थी .अब विदाई का समय आ चुका था.
निधि अपने परिवार वालों के गले लग कर बहुत रोई .फिर जब वो अपनी माँ के गले लगी तभी पीछे से किसी ने कहा,”आज अगर निधि की सगी माँ जिंदा होती तो वो बहुत खुश होती.”
बस फिर क्या था.निधि तो जैसे इसी मौके के इंतज़ार में थी.
उसने कहा
”ये क्या सगी माँ –सगी माँ लगा रखा है.हमने जबसे होश संभाला, इन्ही को ही देखा, इन्ही को ही पाया. हर क़दम पर साये की तरह इन्होने ने ही ज़िंदगी की धूप से हमें बचाया. अपनी नींदें कुर्बान करके हमें रातभर थपकी देकर सुलाया. फिर भी हर ख़ुशी के मौ़के पर यहां आंसू बहाए जाते हैं कि आज हमारी सगी मां होती, तो ऐसा होता, वैसा होता…
आज इतने बरसों बाद जब मैं पीछे पलटकर देखती हूं, तो एक ही लफ़्ज़ बार-बार मेरे कानों में गूंजता है… सौतेली मां! ताउम्र इस एक शब्द से जंग लड़ती आ रहीं है मेरी माँ … अब तो जैसे ये इनकी पहचान ही बन गया हो. हर बार अग्निपरीक्षा, हर बात पर अपनी ममता साबित करना… जैसे कोई अपराधी हो ये . हर बार तरसती निगाह से सबकी ओर देखती हैं की कहीं से कोई प्रशंसाभरे शब्द कह दे . लेकिन ऐसा होता ही नहीं .
पूरे समाज ने इन्हें कटघरे में खड़ा करके रख दिया है…..पर क्यूँ दें ये सफ़ाई? क्यों करे ख़ुद को साबित…? मां स़िर्फ मां होती है, उसकी ममता सगी या सौतेली नहीं होती… लेकिन कौन समझता है इन भावनाओं को. दो कौड़ी की भी क़ीमत नहीं है इनकी भावनाओं की…

क्या आप सभी जानते है की वो तो अक्सर ख़ुद से इस तरह के सवाल करती रहती है, जिनका जवाब किसी के पास नहीं होता.
इसके बाद निधि रोते हुए सुधा के गले लग गयी और बोली,”माँ मुझे माफ़ कर दो .माँ तुमने जो किया, वो मेरे लिए गर्व की बात है .तुम तो मेरी प्रेरणा हो माँ .शायद मैंने तुम्हारा साथ देने में बहुत देर कर दी .i love you माँ .”
आज सुधा को अपने आप से कोई शिकायत नहीं थी.उसके चेहरे पर एक अजीब सा संतोष था जिसे बयां नहीं किया जा सकता……

Divorce के बाद समझदारी से लें काम ताकि न हो पछतावा

जब निशा और रमेश ने शादी के 15 साल बाद एकदूसरे से अलग होने का फैसला किया तब निशा को मालूम नहीं था कि उस के हक क्या हैं, किसकिस चीज पर उसे हक मांगना चाहिए और किस चीज पर नहीं. इसलिए उस ने घर की संपत्ति में से अपना हिस्सा नहीं मांगा, जिस पर दोनों का अधिकार था. चूंकि रमेश ने बच्चे निशा के पास ही रहने दिए तो घर की संपत्ति पर उस का ध्यान ही नहीं गया जबकि निशा भी कामकाजी थी और मुंबई के उपनगर मीरा रोड में दोनों जिस फ्लैट में रहते थे, उसे दोनों के कमाए गए साझे पैसे से खरीदा गया था.

दरअसल, तलाक के समय निशा इतनी टूट गई थी कि भविष्य की किसी सोचसमझ या आ सकने वाली परेशानी पर अपना ध्यान ही नहीं लगा सकी. वास्तव में तलाक इमोशनल लैवल पर ऐसी ही चोट पहुंचाता है. लेकिन इस के आर्थिक परिणाम और भी खतरनाक होते हैं.

तलाक के कुछ महीनों बाद ही निशा को एहसास हो गया कि वह बड़ी गलती कर बैठी है. कुछ ही दिनों की अकेली जिंदगी के बुरे अनुभवों से वह जान गई कि सारी संपत्ति रमेश को दे कर उस ने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली है. तब उस ने रमेश से अपना हिस्सा मांगा और याद दिलाया कि मकान उन दोनों ने मिल कर खरीदा था.

प्रौपर्टी पर कानूनन हक

कानून के मुताबिक, वैवाहिक जीवन के दौरान खरीदी गई कोई भी प्रौपर्टी पतिपत्नी दोनों की होती है. उस पर दोनों का ही मालिकाना हक होता है. याद रहे यह नियम तब भी लागू होता है, जब संपत्ति खरीदने में पत्नी की कोई भूमिका न हो. हां, मगर विरासत में मिली या कोई दूसरी प्रौपर्टी इस कानून के दायरे में नहीं आती. लेकिन जिन चीजों में पत्नी का हक बनता है उन में अगर सुबूत न भी हों तो भी उन में पत्नी को हक मिलता है.

निशा के मामले में प्रौपर्टी यानी मकान रमेश के नाम था. लेकिन घर के लिए गए लोन में वह सहआवेदक और सहऋ णी थी. साथ ही उस ने अपने अकाउंट से घर के लिए कई ईएमआई भी अदा की थीं. तलाक के बाद अभी तक उस ने होम लोन ईएमआई का ईसीएस मैंडेट भी खत्म नहीं किया था. इस वजह से पति से अलग होने के बाद भी 2 महीने तक होम लोन की 2 ईएमआई उस के खाते से निकल गईं. इसे देख निशा ने अपने बैंक को आगे की ईएमआई रोकने के लिए कहा. इस पर बैंक ने इस के लिए लंबाचौड़ा प्रोसैस बता दिया, जिसे पूरा किए बिना इसे रोक पाना मुमकिन नहीं.

मुआवजे की मांग

तलाक के कुछ ही महीनों बाद सामने आ गई यह अकेली परेशानी नहीं थी. कई और परेशानियों ने उसे अचानक आ घेरा. दरअसल, निशा ने तलाक के वक्त पति से बच्चों की परवरिश के लिए किसी किस्म के मुआवजे की कोई मांग नहीं की थी. उस समय उसे लग रहा था कि वह जो कमाती है, उसी में कैसे भी कर के पूरा कर लेगी. उसे आर्थिक दिक्कत महसूस होने लगी.

निशा को बहुत जल्द समझ में आ गया कि उस ने अपना हक न मांग कर बड़ी गलती कर दी है.

अगर साथ रहना संभव न रह गया हो और तलाक लेना जरूरी बन गया हो तो किनकिन बातों का ध्यान रखना चाहिए, आइए जानते हैं:

अपना हिस्सा जरूर लें:

कानून के मुताबिक अगर शादी के दौरान कोई प्रौपर्टी  खरीदी गई है, तो उस में पतिपत्नी दोनों की बराबर की हिस्सेदारी होती है. भले किसी एक ने ही अपनी कमाई से उसे खरीदा हो. यह हिस्सा तब भी मांगें जब आप आर्थिक रूप से मजबूत हों, क्योंकि तलाक के बाद किसी की भी जिंदगी में बड़ा आर्थिक बदलाव आ सकता है. जब लग रहा हो कि अब तलाक हो ही जाएगा तो उस समय कुछ और आर्थिक सजगता अमल में लाना जरूरी है जैसे साझे बैंक अकाउंट्स और क्रैडिट कार्ड्स जितनी जल्दी हो बंद कर दें.

इस मामले में विकास मिश्र का अनुभव आप को बहुत कुछ बता सकता है. विकास का जब शादी के 3 साल बाद सुनीता से तलाक हो गया तो उस के कुछ दिनों बाद उसे कूरियर से मिला पत्नी के एड औन क्रैडिंट कार्ड का भारीभरकम बिल बहुत नागवार गुजरा. वह गुस्से में भड़क उठा.

उस ने एक पल को तो सोचा कि क्रैडिट कार्ड बिल फाड़ कर फेंक दे. पैसा वह किसी भी कीमत पर नहीं चुकाना चाहता था. लेकिन उस के फाइनैंस ऐडवाइजर ने बताया कि पेमैंट डिफाल्ट से उस के क्रैडिट स्कोर पर भारी असर पड़ेगा. इसलिए विकास ने वह बिल चुका कर अपने बैंक को फोन कर के उस क्रैडिट कार्ड को ब्लौक करने को कहा.

बकाया लोन चुकाएं:

जब राजेश और सुमन तलाक ले रहे थे, तो कार सुमन ने अपने पास रखी, जिस के लिए दोनों ने मिल कर लोन लिया था. कार की 11 ईएमआई बची हुई थीं. तलाक के बाद जब राजेश ने किस्तें देना बंद कर दीं तो लोन चुकाने के लिए बैंक की ओर से उन से संपर्क किया गया.

राजेश ने पैसा सुमन से वसूलने के लिए कहा. सुमन ने कर्ज की बाकी रकम चुका भी दी. फिर भी बैंक ने राजेश को डिफाल्टर घोषित कर दिया. ऐसा क्यों किया गया. इस पर क्रैडिट इन्फौरमेशन ब्यूरो (सिबिल) में सीनियर अधिकारी कहते हैं कि अगर किसी कपल ने ज्वौइंट लोन लिया है, तो उसे चुकाने की जिम्मेदारी दोनों की है. तलाक के बाद भी वे इस फाइनैंशियल लायबिलिटी से मुक्त नहीं हो सकते.

क्रैडिट स्कोर पर रखें नजर:

अलग होने वाले कपल को अपने क्रैडिट स्कोर के बारे में खास सावधानी बरतनी चाहिए. अगर कोई ज्वौइंट लोन बकाया है, तो उस की पेमैंट को ले कर कभी भी विवाद हो सकता है. इस का असर दोनों के ही क्रैडिट स्कोर पर पड़ सकता है. यह तब भी हो सकता है जब बैंक अपना कर्ज वसूल ले.

राजेश और सुमन के मामले में राजेश ने सुमन के लिए ही कार का लोन लिया था और अंतत: चुकाया भी उसी ने. लेकिन इस के बाद भी राजेश डिफाल्टर हो गया, क्योंकि बुनियादी तौर पर किस्त वही भरता था. उसी की अकाउंट से जाती थी. मगर तलाक के बारे में उस ने बैंक को अपनी तरफ से सूचित नहीं किया और न ही ऐसे समय में पूरा किया जाने वाला प्रोसैस पूरा किया, इसलिए बैंक ने अपना कर्ज वापस पाने के बाद भी राजेश को डिफाल्टर घोषित कर दिया.

दरअसल, डिवौर्स सैटलमैंट में किसी एक को लोन चुकाने के लिए भी अगर कहा जाता है, तो भी बैंक के साथ औरिजनल ऐग्रीमैंट नहीं बदलेगा. जिस में दोनों पार्टनर की लोन चुकाने की जवाबदेही है.

परिसंपत्तियों का बंटवारा:

अगर तलाक आपसी सहमति से होता है तो संपत्तियों के बंटवारे जैसी तमाम परेशानियों से बचा जा सकता है. हालांकि यह तभी हो पाता है, जब अलग होने वाले पार्टनर सही डिमांड करें. अलग होते वक्त दोनों को एसैट्स और लायबिलिटी की लिस्ट बना लेनी चाहिए. उन की मार्केट वैल्यू का ठीकठीक पता लगा लेना चाहिए.

कपल आपसी सहमति से इन सभी चीजों का बंटवारा कर सकते हैं और बकाया लोन के लिए जवाबदेही भी आपस में बांट सकते हैं. हालांकि यह काम करना इतना आसान नहीं है, जितना लगता है. फिर भी कोशिश की जाए तो दोनों को ही फायदा है. दोनों मिल कर तय कर सकते हैं कि पत्नी को घर मिले और दूसरे एसैट्स पति को.

ऐसा इसलिए क्योंकि पत्नी घर मिलने से खुद को आर्थिक तौर पर सुरक्षित महसूस करेगी. यह अलग बात है कि इस के बाद भी उसे फिक्स्ड इनकम की जरूरत होगी जो घर से नहीं मिल सकती. इसलिए पत्नी को ऐसे एसैंट्स की मांग करनी चाहिए. जिन से उसे नियमित इनकम हो सके.

वैसे समझदारी तो इसी में है कि रिश्ता बिगड़ने की तरफ बढ़े उस से पहले ही चौकन्ना हो घर को टूटने से बचा लें. अगर यह कतई मुमकिन न हो तो इन तमाम बातों का ध्यान जरूर रखें. ताकि तलाक के बाद बिलकुल बरबाद होने से बचा जा सके.

Sexy Figure से करें इंप्रैस, जानें कौस्मेटिक सर्जरी से जुड़ी खास बातें

शरत कटारिया द्वारा निर्देशित फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ में आयुष्मान खुराना का भूमि पेडनेकर से विवाह तो हो जाता है, पर पति के लिए पत्नी की शारीरिक खूबसूरती माने रखती है. मोटी व कम सुंदर होने के कारण उस से प्यार नहीं कर पाता.

कोई कितनी भी फेयर क्यों न हो पर अगर फिगर अच्छी नहीं है तो वह अपना जादू नहीं बिखेर पाएगी. अमेरिका की यूनिवर्सिटी औफ  बेब्रास्का लिंकन की ओर से 24 महिलाओं को ले कर एक अध्ययन किया गया, जिस में यह पाया गया कि महिलाओं ने दूसरी महिलाओं को निहारने के दौरान उस के चेहरे के बदले उस की हिप्स और ब्रैस्ट को ज्यादा देर तक देखा और आंका कि वे कितनी अटै्रक्टिव हैं.

कमर के नीचे, पेट के पास, हिप्स के आसपास फैट जमा होने पर मोटापा नजर आने लगे तो फिर खराब लगता है. कुछ लड़कियों में हिप्स के आसपास फैट जेनेटिक कारणों से होता है तो कुछ में मोटापा गलत रहनसहन की वजह से होता है. शादी के बाद भी पति अपनी पत्नी की बेडौल फिगर को ले कर कमैंट कर देते हैं.

अगर हिप बड़े व बेडौल शेप में हैं और वहां काफी फैट जमा है, तो उस की वजह से युवती का कौन्फिडैंस कम होता है. अब कौस्मैटिक सर्जरी से अपनी फिगर को सैक्सी व अट्रैक्टिव बना कर अपने ठुमकों से पार्टनर को फस्ट नाइट पर इंप्रैस करा जा सकता है.

कौस्मैटिक प्लास्टिक सर्जरी एक ऐसी मैडिकल तकनीक है जो सरल और सुरक्षित ट्रीटमैंट है. जलने के निशान को हटाना हो, नोज की सर्जरी करनी हो, फेस लिफ्ट कराना हो, हिप्स सैक्सी बनानी हों. इस से सबकुछ संभव है. सिर्फ चेहरे की ही नहीं बल्कि शरीर के हर भाग की सुंदरता को बढ़ाया जा सकता है.

अपोलो हौस्पिटल के कौस्मैटिक विभाग के एक सीनियर कंसल्टैंट कहते हैं कि आज हर लड़की प्रियंका चोपड़ा व दीपिका पादुकोण जैसी फिगर पानी चाहती है. लड़के मलिका शेरावत व शर्लिन चोपड़ा जैसी हौट फिगर वाली पार्टनर की चाह रखते हैं.

पिछले कुछ सालों में बोटोक्स लगवाने से ले कर चेहरे की महीन लकीरें हटवाने, लाइपोसक्शन करवाने, ब्रैस्ट इंप्लांट करवाने, फुल बौडी लेजर ट्रीटमैंट लेने, होंठों या नाक को सही आकार दिलवाने, हेयर ट्रांसप्लांट करवाने वाली लड़कियों की संख्या कई गुना बढ़ गई है.

चेहरा कितना भी सुंदर क्यों न हो, लेकिन हिप फ्लैट हैं तो लड़कों के मुंह से एक ही बात निकलती है कि लड़की सुंदर है पर हौट नहीं.

कौस्मैटिक सर्जरी से मिले परफैक्ट फिगर

कौस्मैटिक सर्जरी आधुनिक तकनीक है. हिप के पास के फैट को लाइपोसक्शन के द्वारा हटाया जाता है. इस से दाग के निशान, ढीली त्वचा व जमे फैट को निकाल कर एक परफैक्ट शेप दी जाती है. यही नहीं अगर हिप फ्लैट हैं जिस की वजह से आप चाह कर भी सैक्सी नहीं दिख पाती हैं तो इन्हें भी इंप्लांट के जरीए उभारा जाता है.

हिप सर्जरी कैसे की जाती है

दिल्ली के साकेत सिटी हौस्पिटल के प्लास्टिक सर्जरी कंसल्टैंट डा. रोहित नैयर बताते हैं कि आज हिप सर्जरी में लाइपोसक्शन और हिप इंप्लांट 2 प्रमुख पद्धतियां हैं, जिन से हिप को सही आकार दिया जाता है.

लाइपोसक्शन तकनीक फैट कोशिकाओं को स्थाई रूप से हटा देता है और शरीर को एक आकार प्रदान करता है. लाइपोसक्शन से कूल्हों, नितंबों, जांघों के चारों तरफ के फैट को भी निकाला जाता है. इस ट्रीटमैंट में सक्शन मशीन को कैनुला के साथ जोड़ा जाता है. जिस स्थान से फैट निकालना हो, वहां छोटेछोटे छिद्र बनाए जाते हैं. इन्हीं छिद्र की सहायता से त्वचा और मांसपेशियों के बीच मौजूद अतिरिक्त चरबी को बाहर निकाला जाता है.

चरबी की मात्रा के आधार पर कैनुला का आकार बढ़ाया जा सकता है. इस में सब से पहले एक कट लगा कर कैनुला को शरीर में प्रवेश कराया जाता है और हवा खींचने वाले यंत्र से इसे जोड़ दिया जाता है.

लाइपोसक्शन के परिणाम 4 से 6 महीने बाद दिखाई देते हैं, जब सूजन खत्म हो जाती है. तब तक मरीज को कसे हुए या प्रैशर गारमैंट्स पहनने पड़ते हैं. हिप की सर्जरी में लाइपोसक्शन में 1 से 2 लिटर वसा को ही निकाला जाता है. लाइपोसक्शन से कोई साइड इफैक्ट नहीं होता.

लाइपोसक्शन कराने के बाद कैलोरी की अपनी खुराक कम करना और व्यायाम आदि द्वारा कैलोरी की खपत को बढ़ाना होता है. यदि जीवनशैली को नहीं बदला जाए तो अच्छे परिणाम हासिल नहीं हो सकते.

इंप्लांट से सपाट हिप्स में एक उभार लाया जाता है. इस के लिए शरीर के दूसरे हिस्से से वसा एकत्रित कर या रैडीमेड इंप्लांट्स इस्तेमाल कर के हिप का आकार बढ़ाया जाता है. इस तरह की सर्जरी दक्षिण अमेरिका जैसे देशों में बहुत लोकप्रिय है. शरीर की वसा को इस्तेमाल करने के लिए उसे इंजैक्शन में भरा जाता है, फिर प्रत्येक भाग में

1/2 लिटर वसा इंजैक्शन से डाली जाती है. वसा डालते समय यह समस्या होती है कि कभीकभी इस में ढेर सारी वसा अवशोसित हो सकती है.

इसलिए इस समस्या को न्यूनतम करने के लिए हिप को आकार देने के लिए सिलिकौन इंलांट्स भी इस्तेमाल कर रहे हैं. एक छोटा सा चीरा लगा कर उसे हिप की मांसपेशियों के नीचे या ऊपर डाला जाता है.

खर्च: आमतौर पर यह सारी सर्जरी ₹50 हजार से ₹75 हजार के बीच हो जाती है.

कितना समय लगता है: सर्जरी में आमतौर पर 2 से 3 घंटे लगते हैं. कभीकभी ज्यादा समय भी लग जाता है. यह इस पर निर्भर करता है कि शरीर में कितना फैट जमा है. सभी तरह की सर्जरी चाहे वह पांत, आंख या किसी भी जगह की हो हलका दर्द तो होता ही है ठीक उसी तरह से प्लास्टिक सर्जरी में भी हलका दर्द होता है. नसों को बेहोश कर के सर्जरी की जाती है, पर इस में घबराने वाली कोई बात नहीं है. यह पूरी तरह से सुरक्षित है.

कौन करा सकता है सर्जरी: कोई भी स्वस्थ व्यक्ति जो 18 साल से ज्यादा उम्र का हो, यह ट्रीटमैंट ले सकता है. कम उम्र में ट्रीटमैंट लेने से सही रिजल्ट नहीं मिलता क्योंकि उस समय शरीर का विकास हो रहा होता है. ये देखने में एकदम नैचुरल हिप्स की तरह ही दिखाई देते हैं. देखने पर पता नहीं चलता कि प्लास्टिक सर्जरी करवाई गई है. करवाने वाली पहले से ज्यादा सैक्सी व हौट नजर आती है.

ठीक होने में कितना समय: हिप सर्जरी के बाद कुछ निशान बन जाते हैं जो समय के साथ ठीक हो जाते हैं. पहले कुछ महीने दाग हलके लाल और सूजन वाले दिखाई देते हैं, लेकिन कुछ महीने बाद भर जाते हैं. यह 1 महीने में ठीक होने वाली सर्जरी नहीं है, इसलिए अगर आप के हिप्स हैवी हैं और आप उन की कौस्मैटिक सर्जरी करवाने की सोच रही हैं तो जल्द ही प्लान करें ताकि आप की सर्जरी अच्छी तरह से हो सके और शादी के बाद आप अपनी अदाओं से पति को घायल कर सकें.

किस तरह की समस्या हो सकती है: वैसे तो प्लास्टिक सर्जरी बहुत विश्वसनीय है और आधुनिक तकनीक से किसी प्रकार की खास समस्या उत्पन्न नहीं होती, फिर भी कुछ समस्याएं देखने को मिल सकती हैं जैसे खून निकलना, संक्रमण, संवेदनशीलता, घाव जल्दी नहीं भरना, ऐलर्जी, तरल पदार्थ जमा होना, नसों में सही तरह से रक्त का संचार न होना. लाल चकत्ते पड़ना, स्किन छिल जाना. इस में घबराने वाली कोई बात नहीं होती. ये परेशानियां दी गई दवाइयों से ठीक हो जाती हैं.

अनुभवी सर्जन से ही करवाएं: हिप सर्जरी के दौरान की गई छोटी सी लापरवाही से लेने के देने पड़ सकते हैं. जब आप को अपनी सर्जरी करानी हो तो इलाज से पहले पूरी जानकारी लें, पहले से इस का लाभ उठा चुके मरीजों से बात करें, उन के अनुभव जानें. इलाज की लागत और समय के बारे में भी पूछताछ करें. यह भी जान लें कि यह तकनीक आप पर कितनी सफल होगी और ट्रीटमैंट करवाने से पहले और बाद में किन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. इस तरह की जानकारी के बाद आप अपना इलाज करवाते हुए कम घबराएंगी और परिणाम भी अच्छा आएगा.

महिलाएं ही नहीं पुरुष भी करा सकते हैं सर्जरी: ऐसा बिलकुल नहीं है कि इस तरह की सर्जरी केवल महिलाएं ही करा सकती हैं, बल्कि पुरुष भी अपने शरीर को कौस्मैटिक सर्जरी के जरीए सुडौल बना सकते हैं. महिलाओं की तरह उन के शरीर के निचले हिस्से पर फैट तो जमा नहीं होता, लेकिन ऊपरी हिस्से पर स्तनों के पास उभार आ जाता है जो देखने में खराब लगता है. अत: कौस्मैटिक सर्जरी से अपनी बौडी को परफैक्ट शेप दें.

पार्टनर को करें सैटिस्फाई: आप के मन में यह विचार अवश्य आ रहा होगा कि कहीं सर्जरी करवाने से आप की सैक्स लाइफ  पर तो किसी तरह का असर नहीं पड़ेगा और इस बात को जानने के बाद आप का पार्टनर कहीं गलत व्यवहार तो नहीं करेगा तो डरिए मत और इस तरह की बातें अपने दिमाग से निकाल दें क्योंकि हिप सर्जरी से आप अपने बेडौल शरीर को परफैक्ट बना कर अपने पार्टनर को खुश कर सकती हैं.

बौलीवुड में शर्लिन चोपड़ा खुद को हौट व सैक्सी दिखाने के लिए 2 बार हिप्स की सर्जरी करवा चुकी हैं. बट इंप्लांट में शिल्पा शेट्टी का भी नाम आता है. इन की सैक्सी फिगर का राज बट इंप्लांट ही है.

Family Story – केलिकुंचिका: दुर्गा की कौनसी गलती बनी जीवनभर की सजा

दीनानाथजी बालकनी में बैठे चाय पी रहे थे. वे 5वीं मंजिल के अपने अपार्टमैंट में रोज शाम को इसी समय चाय पीते और नीचे बच्चों को खेलते देखा करते थे. उन की पत्नी भी अकसर उन के साथ बैठ कर चाय पिया करती थीं. पर अभी वे किचन में महरी से कुछ काम करा रही थीं. तभी बगल में स्टूल पर रखा उन का मोबाइल फोन बजा. उन्होंने देखा कि उन की बड़ी बेटी अमोलिका का फोन था. दीनानाथ बोले, ‘‘हां बेटा, बोलो, क्या हाल है?’’

अमोलिका बोली, ‘‘ठीक हूं पापा. आप कैसे हैं? मम्मी से बात करनी है.’’ ‘‘मैं ठीक हूं बेटा. एक मिनट होल्ड करना, मम्मी को बुलाता हूं,’’ कह कर उन्होंने पत्नी को बुलाया.

उन की पत्नी बोलीं, ‘‘अमोल बेटा, कैसी तबीयत है तेरी? अभी तो डिलीवरी में एक महीना बाकी है न?’’ ‘‘वह तो है, पर डाक्टर ने कहा है कि कुछ कौंप्लिकेशन है, बैडरैस्ट करना है. तुम तो जानती हो जतिन ने लवमैरिज की है मुझ से अपने मातापिता की मरजी के खिलाफ. ससुराल से किसी प्रकार की सहायता नहीं मिलने वाली है. तुम 2-3 महीने के लिए यहां आ जातीं, तो बड़ा सहारा मिलता.’’

‘‘मैं समझ सकती हूं बेटा, पर तेरे पापा दिल के मरीज हैं. एक हार्टअटैक झेल चुके हैं. ऐसे में उन्हें अकेला छोड़ना ठीक नहीं होगा.’’ ‘‘तो तुम दुर्गा को भेज सकती हो न? उस के फाइनल एग्जाम्स भी हो चुके हैं.’’

‘‘ठीक है. मैं उस से पूछ कर तुम्हें फोन करती हूं. अभी वह घर पर नहीं है.’’

दुर्गा अमोलिका की छोटी बहन थी. वह संस्कृत में एमए कर रही थी. अमोलिका की शादी एक माइनिंग इंजीनियर जतिन से हुई थी. उस की पोस्ंिटग झारखंड और ओडिशा के बौर्डर पर मेघाताबुरू में एक लोहे की खदान में थी. वह खदान जंगल और पहाड़ों के बीच में थी, हालांकि वहां सारी सुविधाएं थीं. बड़ा सा बंगला, नौकरचाकर, जीप आदि. कंपनी का एक अस्पताल भी था जहां सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध थीं. फिर भी अमोलिका को बैडरैस्ट के चलते कोई अपना, जो चौबीसों घंटे उस के साथ रहे, चाहिए था. अमोलिका के मातापिता ने छोटी बेटी दुर्गा से इस बारे में बात की. दुर्गा बोली कि ऐसे में दीदी का अकेले रहना ठीक नहीं है. वह अमोलिका के यहां जाने को तैयार हो गई. उस के जीजा जतिन खुद आ कर उसे मेघाताबुरू ले गए.

दुर्गा के वहां पहुंचने के 2 हफ्ते बाद ही अमोलिका को पेट दर्द हुआ. उसे अस्पताल ले जाया गया. डाक्टर ने उसे भरती होने की सलाह दी और कहा कि किसी भी समय डिलीवरी हो सकती है. अमोलिका ने भरती होने के तीसरे दिन एक बेटे को जन्म दिया. पर बेटे को जौंडिस हो गया था, डाक्टर ने बच्चे को एक सप्ताह तक अस्पताल में रखने की सलाह दी. जतिन और दुर्गा प्रतिदिन विजिटिंग आवर्स में अस्पताल आते और खानेपीने का सामान दे जाते थे. एक दिन जतिन ने जीप को कुछ जरूरी सामान, दवा आदि लेने के लिए शहर भेज दिया था. दुर्गा मोटरसाइकिल पर ही उस के साथ अस्पताल आई थी. उस दिन मौसम खराब था. अस्पताल से लौटते समय बारिश होने लगी. दोनों बुरी तरह भीग गए थे. दुर्गा मोटरसाइकिल से उतर कर गेट का ताला खोल रही थी. उस के गीले कपड़े उस के बदन से चिपके हुए थे जिस के चलते उस के अंगों की रेखाएं स्पष्ट झलक रही थीं. जतिन के मन में तरंगें उठने लगी थीं.

ताला खुलने पर दोनों अंदर गए. बिजली गुल थी. दुर्गा सीधे बाथरूम में गीले कपड़े बदलने चली गई. इस बात से अनजान जतिन तौलिया लेने के लिए बाथरूम में गया. वह रैक पर से तौलिया उठाना चाहता था. दुर्गा साड़ी खोल कर पेटीकोट व ब्लाउज में थी. उस ने नहाने की सोच कर हैंडशावर हाथ में ले रखा था. उस ने दरवाजा थोड़ा खुला छोड़ दिया था ताकि कुछ रोशनी अंदर आ सके. अचानक किसी की उपस्थिति महसूस होने पर उस ने पूछा, ‘‘अरे आप, जीजू, अभी क्यों आए? निकलिए, मैं बंद कर लेती हूं.’’ इतना कह कर उस ने खेलखेल में हैंडशावर से जतिन को गीला कर दिया. जतिन बोलता रहा, ‘‘यह क्या कर रही हो? मुझे पता नहीं था कि तुम अंदर हो़’’

‘‘मुझे भी पता नहीं, अंधेरे में पानी किधर जा रहा है,’’ और वह हंसने लगी. ‘‘रुको, मैं बताता हूं पानी किधर छोड़ा है तुम ने. यह रहा मैं और यह रही तुम,’’ इतना बोल कर जतिन ने उसे बांहों में भर लिया. दुर्गा को भी लगा कि उस का गीला बदन तप रहा है.

‘‘क्या कर रहे हैं आप? छोडि़ए मुझे.’’ ‘‘अभी कहां कुछ किया है मैं ने?’’

दुर्गा को अपने भुजबंधन में लिए हुए ही एक चुंबन उस के होंठों पर जड़ दिया जतिन ने. इस के बाद तपिश खत्म होने पर ही अलग हुए वे दोनों. दुर्गा बोली, ‘‘जो भी हुआ, वह हरगिज नहीं होना चाहिए था. क्षणिक आवेश में आ कर हम दोनों ने अपनी सीमाएं तोड़ डालीं. जरा सोचिए, दीदी को जब कभी यह बात मालूम होगी तो उस पर क्या गुजरेगी.’’

जतिन बोला, ‘‘अब जाने दो, जो हुआ सो हुआ. उसे बदला तो नहीं जा सकता. ठीक तो मैं भी नहीं समझता हूं, पर बेहतर होगा अमोलिका को इस बारे में कुछ भी पता न चले.’’

इस घटना के एक सप्ताह बाद अमोलिका भी अस्पताल से घर आई. उस का बेटा बंटी ठीक हो गया था. घर में सभी खुश थे. दुर्गा भी मौसी बन कर प्रसन्न थी. वह अपनी दीदी और भतीजे की देखभाल अच्छी तरह कर रही थी. जतिन ने शानदार पार्टी दी थी. अमोलिका के मातापिता भी आए थे. एक सप्ताह रह कर वे लौट गए. लगभग 2 महीने तक सबकुछ सामान्य रहा. दुर्गा की तबीयत ठीक नहीं रह रही थी. अमोलिका ने जतिन से कहा, ‘‘इसे थोड़ा डाक्टर को दिखा लाओ.’’

दुर्गा को अपने अंदर कुछ बदलाव महसूस होने लगा था. पीरियड मिस होने से वह अंदर से डरी हुई थी. जतिन दुर्गा को ले कर अस्पताल गया. वहां लेडी डाक्टर ने चैक कर कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है, सबकुछ नौर्मल है. दुर्गा मां बनने वाली है. जतिन और दुर्गा एकदूसरे को आश्चर्य से देख रहे थे. पर डाक्टर के सामने बनावटी मुसकराहट दिखाते रहे ताकि डाक्टर को सबकुछ नौर्मल लगे.

छोटे से माइनिंग वाले शहर में सभी अफसर एकदूसरे को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे. थोड़ी ही देर में डाक्टर ने अमोलिका को फोन कर कहा, ‘‘मुबारक हो, शाम को मैं आ रही हूं, मिठाई खिलाना.’’ ‘‘श्योर, दरअसल हम लोगों ने जिस दिन पार्टी दी थी आप छुट्टी ले कर बाहर गई थीं.’’

‘‘वह तो ठीक है, मैं तुम्हारी मौसी बनने की खुशी में मिठाई मांग रही हूं. ठीक है, शाम को डबल मिठाई खा लूंगी.’’ डाक्टर से बात करने के बाद अमोलिका के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं. उस के मन में संदेह हुआ क्योंकि दुर्गा और जतिन के अलावा घर में तीसरा और कोई नहीं था, कहीं यह बच्चा जतिन का न हो. उसे अपनी बहन पर क्रोध आ रहा था. साथ ही, उसे नफरत भी हो रही थी.

अभी तक दुर्गा और जतिन दोनों अस्पताल से घर भी नहीं लौटे थे. दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि आने वाले भीषण तूफान से कैसे निबटा जाए. कुछ पलों का आनंद इतनी बड़ी मुसीबत बन जाएगा, उन्होंने इस की कल्पना भी नहीं की थी. दोनों सोच रहे थे कि आज नहीं तो कल अमोलिका को यह बात तो पता चलेगी ही, तब उस के सामने कैसे मुंह दिखाएंगे.

घर पहुंच कर दुर्गा बंटी के लिए दूध बना कर ले गई. उस ने दूध की बोतल अमोलिका को दी. वह बहुत गंभीर थी. दुर्गा वापस जाने को मुड़ी ही थी कि अमोलिका ने उसे हाथ पकड़ कर रोक लिया. पहले तो वह सोच रही थी कि सारा गुस्सा अभी के अभी उतार दे, पर उस ने बात बदलते हुए पूछा, ‘‘अब तो तुम्हारा एमए भी पूरा हो गया है. अगले महीने तुम्हारा कौन्वोकेशन भी है.’’ दुर्गा बोली, ‘‘हां.’’

‘‘आगे के लिए क्या सोचा है? और तुम ने संस्कृत ही क्यों चुनी? इनफैक्ट संस्कृत की तो यहां कोई कद्र नहीं है.’’ ‘‘आजकल जरमनी में लोग संस्कृत में रुचि ले रहे हैं. बीए करने के बाद मैं एक साल स्कूल में पार्टटाइम संस्कृत टीचर थी. मैं ने जरमनी की एक यूनिवर्सिटी में संस्कृत ट्यूटर के लिए आवेदन दिया था. मैं ने जरमन भाषा का भी एक शौर्टटर्म कोर्स किया है. मुझे उम्मीद है कि जरमनी से जल्दी ही बुलावा आएगा.’’

‘‘कब तक जाने की संभावना है?’’ ‘‘कुछ पक्का नहीं कह सकती हूं, पर 6 महीने या सालभर लग सकता है. उन्होंने कहा है कि अभी तुरंत वैकेंसी नहीं है, होने पर सूचित करेंगे.’’

‘‘तब तक तुम्हारा ये बच्चा…’’ अमोलिका के मुंह से अचानक यह सुनना दुर्गा के लिए अनपेक्षित था. इस अप्रत्याशित प्रश्न के लिए वह तैयार नहीं थी. उसे चुप देख कर अमोलिका ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आई दीदी के यहां आ कर यह सब गुल खिलाने में. वैसे तो मैं समझ सकती हूं तेरे पेट में किस का अंश है, फिर भी मैं तेरे मुंह से सुनना चाहती हूं.’’

दुर्गा सिर नीचे किए रो रही थी, कुछ बोल नहीं पा रही थी. अमोलिका ने ही फिर कड़क कर कहा, ‘‘यह किस का काम है? बंटी के सिर पर हाथ रख कर कसम खा तू, किस का काम है यह?’’ दुर्गा फिर चुप रही. तब अमोलिका ने ही कहा, ‘‘जतिन का ही दुष्कर्म है न यह? सच बता तुझे बंटी की कसम.’’

‘‘तुम्हारी खामोशी को मैं तुम्हारी स्वीकृति समझ रही हूं. बाकी मैं जतिन से समझ लूंगी.’’ दुर्गा वहां से चली गई. अमोलिका ने अपनी मां को फोन कर कहा, ‘‘मां, मैं कुछ दिनों के लिए वहां आ कर तुम लोगों के साथ रहना चाहती हूं.’’

मां ने कहा, ‘‘बेटा, यह तेरा घर है. जब चाहे आओ और जितने दिन चाहो आराम से रहो.’’ उस रात अमोलिका और जतिन में काफी कहासुनी हुई. उस ने जतिन से कहा, ‘‘तुम्हारे दुष्कर्म के बाद मुझे तुम से घिन हो रही है. मुझे नहीं लगता, मैं यहां और रह पाऊंगी.’’

जतिन के माफी मांगने और मना करने के बावजूद दूसरे दिन अमोलिका दुर्गा के साथ पीहर आ गई. उस ने मेघाताबुरू की कहानी मां को बताई. उस की मां भी बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने दुर्गा से कहा, ‘‘अरे, तू अपनी सगी बहन के घर में आग लगा बैठी.’’ दुर्गा के पास कोई जवाब न था. वह चुप रही. मां ने कहा, ‘‘मैं तेरी जैसी कुलटा को अपने घर में नहीं रख सकती. तू निकल जा मेरे घर से. हम लोग तुम्हारा मुंह नहीं देखना चाहते.’’

उस रात दुर्गा को नींद नहीं आ रही थी. वह रात में एक बैग ले कर दरवाजा खोल कर घर से निकलना ही चाहती थी कि अमोलिका जग उठी. उस ने कहा, ‘‘कहां जा रही हो?’’ दुर्गा बोली, ‘‘कुछ सोचा नहीं है, या तो आत्महत्या करूंगी या फिर सब से दूर कहीं चली जाऊंगी.’’

‘‘एक पाप तो तूने पहले ही किया, दूसरा पाप आत्महत्या करने का होगा.’’ ‘‘तो मैं क्या करूं?’’

‘‘तू एबौर्शन करा ले, उस के बाद आगे की जिंदगी का रास्ता साफ हो जाएगा.’’

‘‘एबौर्शन कराना भी तो एक पाप ही होगा.’’ ‘‘तू अभी चुपचाप घर में बैठ. कुछ दिनों में हम सब लोग मिलजुल कर बात कर कोई समाधान ढूंढ़ लेंगे.’’

दुर्गा ने महसूस किया कि उस के मातापिता दोनों ने ही उस से बोलचाल बंद कर दी है. वह तो अमोलिका की गुनाहगार थी, फिर भी दीदी कभीकभी उस से बात कर लेती थीं. उस को अंदर से ग्लानि थी कि उस की एक छोटी सी भूल की सजा दीदी और बंटी को भी मिल रही है. 2 दिनों बाद ही दुर्गा अचानक घर छोड़ कर कहीं चली गई. उस ने अपना कोई अतापता किसी को नहीं बताया. दुर्गा अपने साथ पढ़ी एक सहेली माधुरी के यहां कोलकाता आ गई. दोनों ने 12वीं तक साथ पढ़ाई की थी. उस ने उसे अपनी कहानी बताई और कहा, ‘‘प्लीज, मेरा पता किसी को मत बताना. मुझे कुछ दिनों के लिए पनाह दे, फिर मैं कहीं दूरदराज चली जाऊंगी.’’

माधुरी अविवाहित थी और नौकरी करती थी. वह बोली, ‘‘तू कहीं नहीं जाएगी. तू जब तक चाहे यहां रह सकती है. तू तो जानती ही है कि इस दुनिया में मेरा अपना निकटसंबंधी कोई नहीं है. तू यहीं रह, तू मां बनेगी और मैं मौसी.’’

वहीं दुर्गा ने एक बालक को जन्म दिया. उस ने वहीं रह कर इग्नू से 2 साल का मास्टर इन वैदिक स्टडीज का कोर्स किया. इसी बीच, उस ने झारखंड में धनबाद के निकट काको मठ और महाराष्ट्र में नासिक के निकट वेद पाठशालाओं में वहां के संतों व गुरुजनों से भी वेद पर विशेष चर्चा कर वेद के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाया.

माधुरी ने उस से कहा, ‘‘तुम वेदों को इतना महत्त्व क्यों दे रही हो? मैं ने तो सुना है कि वेद स्त्रियों के लिए नहीं हैं.’’ दुर्गा बोली, ‘‘तू उस की छोड़, क्लासिकल भाषाओं के अच्छे जानकारों की जरूरत हमेशा रहेगी. हर युग में उन्हें नए ढंग से पढ़ा और समझा जाता है.’’ जब तक दुर्गा माधुरी के साथ रही, उस ने दुर्गा की आर्थिक सहायता भी की. कुछ पैसे दुर्गा ट्यूशन पढ़ा कर भी कमा लेती थी. इस बीच, दुर्गा का बेटा शलभ 2 साल का हो चुका था. तभी जरमनी से संस्कृत टीचर के लिए उस का बुलावा आ गया.

कोलकाता के जरमन कौन्सुलेट से दुर्गा और बेटे शलभ को वीजा भी मिल गया. वह जरमनी के हीडेलबर्ग यूनिवर्सिटी गई.

जरमनी पहुंच कर दुर्गा को बिलकुल अलग माहौल मिला. जरमनी के लगभग एक दर्जन से ज्यादा शीर्ष विश्वविद्यालयों हीडेलबर्ग, एलएम यूनिवर्सिटी म्यूनिक, वुर्जबर्ग यूनिवर्सिटी, टुएबिनजेन यूनिवर्सिटी आदि में संस्कृत की पढ़ाई होती है. उसे देख कर खुशी हुई कि जरमनी के अतिरिक्त अन्य यूरोपियन देश और अमेरिका के विद्यार्थी भी संस्कृत पढ़ते हैं. वे जानना चाहते हैं कि भारत के प्राचीन इतिहास व विचार किस तरह इन ग्रंथों में छिपे हैं. भारत में संस्कृत की डिगरी तो नौकरी के लिए बटोरी जाती है लेकिन जरमनी में लोग अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए संस्कृत पढ़ने आते हैं. इन विद्यार्थियों में हर उम्र के बच्चे, किशोर, युवा और प्रौढ़ होते हैं. दुर्गा ने देखा कि इन में कुछ नौकरीपेशा यहां तक कि डाक्टर भी हैं. दुर्गा को पता चला कि अमेरिका और ब्रिटेन में जरमन टीचर संस्कृत पढ़ाते हैं. हम अपनी प्राचीन संस्कृति और भाषा की समृद्ध विरासत को सहेजने में सफल नहीं रहे हैं. यहां का माहौल देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि जरमन लोग ही शायद भविष्य में संस्कृत के संरक्षक हों. वे दूसरी लेटिन व रोमन भाषाओं को भी संरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं.

दुर्गा का बेटा शलभ भी अब बड़ा हो रहा था. वह जरमन के अतिरिक्त हिंदी, इंगलिश और संस्कृत भी सीख रहा था. दुर्गा ने कुछ प्राचीन पुस्तकों, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, कालिदास का अभिज्ञान शाकुंतलम, गीता और वेद के जरमन अनुवाद भी देखे और कुछ पढ़े भी. जरमन विद्वानों का कहना है कि भारत के वेदों में बहुतकुछ छिपा है जिन से वे काफी सीख सकते हैं. सामान्य बातें और सामान्य ज्ञान से ले कर विज्ञान के बारे में भी वेद से सीखा जा सकता है.

जरमनी आने पर भी दुर्गा हमेशा अपनी सहेली माधुरी के संपर्क में रही थी. उस ने माधुरी को कुछ पैसे भी लौटा दिए थे जिस के चलते माधुरी थोड़ा नाराज भी हुई थी. माधुरी से ही दुर्गा को मालूम हुआ कि उस की दीदी अमोलिका और पापा दीनानाथ अब नहीं रहे. अमोलिका का बेटा बंटी कुछ साल नानी के साथ रहा था, बाद में वह अपने पापा जतिन के पास चला गया. उस की नानी भी उसी के साथ रहती थी. बंटी 16 साल का हो चुका था और कालेज में पढ़ रहा था. इधर, दुर्गा का बेटा शलभ 15 साल का हो गया था. वह भी अगले साल कालेज में चला जाएगा. दुर्गा के निमंत्रण पर माधुरी जरमनी आई थी. वह करीब एक महीने यहां रही. दुर्गा ने उसे बर्लिन, बोन, म्युनिक, फ्रैंकफर्ट, कौंलोन आदि जगहें घुमाईं. माधुरी इंडिया लौट गई.

दुर्गा से यूनिवर्सिटी की ओर से वेद पढ़ाने को कहा गया. उस से वेद के कुछ अध्यायों व श्लोकों का समुचित विश्लेषण करने को कहा गया. दुर्गा ने वेदों का अध्ययन किया था, इसलिए उसे पढ़ाने में कोई परेशानी नहीं हुई. उस के पढ़ाने के तरीके की विद्यार्थियों और शिक्षकों ने खूब प्रशंसा की. दुर्गा अब यूनिवर्सिटी में प्रतिष्ठित हो चुकी थी, बल्कि उसे अन्य पश्चिमी देशों में भी कभीकभी पढ़ाने जाना होता था.

5 वर्षों बाद शलभ फिजिक्स से ग्रेजुएशन कर चुका था. उसे न्यूक्लिअर फिजिक्स में आगे की पढ़ाई करनी थी. पीजी में ऐडमिशन से पहले उस ने मां से इंडिया जाने की पेशकश की तो दुर्गा ने उस की बात मान ली. दुर्गा ने उस के जन्म की सचाई अब उसे बता दी थी. सच जान कर उसे अपनी मां पर गर्व हुआ. अकेले ही काफी दुख झेल कर, अपने साहस के बलबूते पर मां खुद को और मुझे सम्मानजनक स्थिति में लाई थी. शलभ को अपनी मां पर गर्व हो रहा था. हालांकि वह किसी संबंधी के यहां नहीं जाना चाहता था लेकिन दुर्गा ने उसे अपने पिता जतिन और नानी से मिलने को कहा. माधुरी ने दुर्गा को जतिन का ठिकाना बता दिया था. जतिन आजकल नागपुर के पास वैस्टर्न कोलफील्ड में कार्यरत था.

इंडिया आ कर शलभ ने पहले देश के विभिन्न ऐतिहासिक व प्राचीन नगरों का भ्रमण किया. बाद में वह पिता से मिलने नागपुर गया. उस दिन रविवार था, जतिन और नानी दोनों घर पर ही थे. डोरबैल बजाने पर जतिन ने दरवाजा खोला. शलभ ने उस के पैर छुए. जतिन बोला, ‘‘मैं ने तुम को पहचाना नहीं.’’ शलभ बोला, ‘‘मैं एक जरमन नागरिक हूं. भारत घूमने आया हूं. मैं अंदर आ सकता हूं. मेरी मां ने मुझे आप से मिलने के लिए कहा है.’’

शलभ का चेहरा एकदम अपनी मां से मिलता था. तब तक उस की नानी भी आई तो उस ने नानी के भी पैर छू कर प्रणाम किया. जतिन और नानी दोनों शलभ को बड़े गौर से देख रहे थे. शलभ ने देखा कि शोकेस पर उस की मौसी और मां दोनों की फोटो पर माला पड़ी हुई है. शलभ ने दोनों तसवीरों की ओर संकेत करते हुए पूछा, ‘‘ये महिलाएं कौन हैं?’’

जतिन ने बताया, ‘‘एक मेरी पत्नी अमोलिका, दूसरी उन की छोटी बहन दुर्गा है, अब दोनों इस दुनिया में नहीं हैं.’’

‘‘एस तुत मिर लाइट,’’ शलभ बोला. ‘‘मैं समझा नहीं,’’ जतिन ने कहा.

‘‘आई एम सौरी, यही पहले मैं ने जरमन भाषा में कहा था,’’ शलभ बोला. ‘‘अरे वाह, कितनी भाषाएं जानते हो,’’ जतिन ने हैरानी जताई.

‘‘सब मेरी मां की देन है,’’ शलभ ने कहा. फिर दुर्गा की फोटो को दिखाते हुए शलभ बोला, ‘‘तो ये आप की केलिकुंचिका हैं.’’

‘‘व्हाट?’’ ‘‘केलिकुंचिका यानी साली, सिस्टर इन लौ.’’

‘‘यह कौन सी भाषा है…जरमन?’’ ‘‘जी नहीं, संस्कृत.’’

‘‘तो तुम संस्कृत भी जानते हो?’’ ‘‘जी, आप की केलिकुंचिका संस्कृत की विदुषी हैं, उन्हीं ने मुझे संस्कृत भी सिखाई है.’’

‘‘वह तो बहुत पहले मर चुकी है.’’ ‘‘आप के लिए मृत होंगी.’’

‘‘व्हाट? हम लोगों ने उसे ढूढ़ने की बहुत कोशिश की थी, पर वह नहीं मिली. आखिर में हम ने उसे मृत मान लिया.’’ ‘‘अच्छा, तो अब चलता हूं, कल दिल्ली से मेरी फ्लाइट है.’’

शलभ ने उठ कर दोनों के पैर छुए और बाहर निकल गया. ‘‘अरे, जरा रुको तो सही, हमारी बात तो सुनते जाओ, शलभ…’’

वे दोनों उसे पुकारते रहे, पर उस ने एक बार भी मुड़ कर उन की तरफ नहीं देखा.

मैं पति के साथ फिजिकल रिलेशनशिप से खुश नही हूं, क्या करूं ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरे विवाह को 1 वर्ष हो चुका है. लेकिन मुझे अपने पति से सहवास के दौरान वह सुख नहीं मिल रहा जो मैं चाहती हूं. मैं किसी और के बारे में सोचना भी नहीं चाहती, क्योंकि मेरे पति मुझे बहुत प्यार करते हैं. दिक्कत यह है कि मेरे पति का यौनांग बहुत छोटा है और मैं यह बात उन से कह नहीं पा रही. कोई ऐसी दवा बताएं जिस से उन के लिंग की लंबाई बढ़ सके?

जवाब

यौनांग की लंबाई को बढ़ाने के लिए न तो कोई दवा है और न ही इस की आवश्यकता है, क्योंकि लिंग के आकार का सहवास के आनंद से कोई लेनादेना नहीं है. इसलिए सब से पहले अपने दिमाग से यह पूर्वाग्रह निकाल दें. सहवास में प्रवृत्त होने से पहले रतिक्रीड़ा यानी आलिंगन, चुंबन आदि करें. कामोत्तेजित होने के बाद संबंध बनाएंगे तो कोई कारण नहीं कि आप को आनंद प्राप्त न हो.

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किसी भी युवती के लिए पहले सैक्स के दौरान उस की वर्जिनिटी सब से ज्यादा माने रखती है. युवती की योनि के ऊपरी हिस्से में पतली झिल्ली होती है जो उस के वर्जिन होने का प्रमाण देती है, लेकिन किसी भी युवती की योनि और उस के ऊपरी सिरे में स्थित हाइमन झिल्ली को देख कर यह पता लगाना कि वह वर्जिन है कि नहीं न तो संभव है न ही ठीक. सैक्स के दौरान अकसर पार्टनर द्वारा युवती की योनि से रक्तस्राव की उम्मीद की जाती है लेकिन ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि पहली बार सैक्स के दौरान युवती के वर्जिन होने के बावजूद उस की योनि से रक्तस्राव नहीं होता, फिर भी साथी  द्वारा यह मान लिया जाता है कि युवती पहले भी सैक्स कर चुकी है, जबकि पहली बार सैक्स के दौरान युवती की योनि से स्राव होने या न होने को उस के वर्जिन होने का सुबूत नहीं माना जा सकता, क्योंकि पहली बार में बहुत सी युवतियों को इसलिए रक्तस्राव नहीं होता, क्योंकि खेलकूद, साइकिल चलाना आदि की वजह से उन की योनि में स्थित झिल्ली कब फट जाती है उन्हें स्वयं नहीं पता चलता. इस का कारण हाइमन झिल्ली का बहुत पतला व लचीला होना है. कभीकभी युवती में जन्म के समय से ही यह झिल्ली मौजूद नहीं होती. ऐसे में पहले सैक्स के दौरान योनि से रक्तस्राव न होने के आधार पर युवती के चरित्र पर संदेह करना गलत होता है.

पहली बार सैक्स के दौरान युवक अपने साथी से उस के कुंआरी होने का सुबूत भी मांगते हैं, जबकि वह खुद के कुंआरे होने का सुबूत देना उचित नहीं समझते. इस वजह से पहला सैक्स जिसे हम वर्जिनिटी का नाम देते हैं, आगे चल कर सैक्स संबंधों में बाधा बन जाता है. युवती की वर्जिनिटी पर शक की वजह से कई तरह की गलतफहमियां जन्म लेती हैं. इस का प्रमुख कारण कुंआरेपन को ले कर लोगों से सुनीसुनाई बातें हैं.

किसी भी युवक या युवती के लिए पहली बार किए जाने वाले सैक्स का जो रोमांच होता है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह एक ऐसी स्टेज है जहां युवकयुवती एकदूसरे के सामने अपने सारे कपड़े उतारने और सैक्स को ले कर होने वाली झिझक को दूर करने की शुरुआत करते हैं. यहीं से युवकयुवती के कुंआरेपन की समाप्ति होती है और यही वह स्टेज है जहां दोनों अपनी वर्जिनिटी खोते हैं.

युवती को अपने कुंआरेपन का सुबूत देने के लिए कई तरह की परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है जोकि सरासर गलत है. अगर युवती पुरुष से कुंआरे होने का सुबूत नहीं मांगती तो उसे भी चाहिए कि अपने साथी पर विश्वास करते हुए उस के कुंआरेपन पर सवाल खड़ा न करे. अकसर युवती के कुंआरेपन को ले कर घरेलू ंिहंसा व तलाक जैसी नौबत भी आ जाती है. अपने चरित्र का प्रमाण देने के लिए युवती को तमाम तरह के सुबूत पेश करने के लिए कहा जाता है.

सैक्स के दौरान वर्जिनिटी को ले कर आने वाले खून की कुछ बूंदों के प्रति पुरुषवर्ग इतना गंभीर होता है कि वह वर्षों से चले आ रहे इस दकियानूसी खयाल से बाहर आने की सोच भी नहीं सकता, जबकि अपने कुंआरेपन को गृहस्थी के बीच का मुद्दा बनाना गलत है. इसलिए युवकयुवतियों को चाहिए कि वे पहले सैक्स को यादगार बनाएं न कि वर्जिनिटी के चक्कर में पड़ कर संबंधों में दरार पैदा करें.

प्यार और भरोसे से करें शुरुआत

नीरज की अरेंज्ड मैरिज थी, अत: वह अपनी होने वाली पत्नी से कभी मिला नहीं था. ऐसे में नीरज के दोस्त शादी की पहली रात को ले कर नीरज को तमाम तरह की सलाह देने में लगे हुए थे. उस के एक दोस्त ने कहा कि वह अपनी पत्नी के साथ पहली रात के सैक्स यानी सुहागरात में पत्नी के वर्जिन होने का पता लगाने के लिए योनि से रक्तस्राव होने पर जरूर ध्यान दे. अगर रक्तस्राव हुआ तो समझ ले कि पत्नी ने किसी के साथ सैक्स नहीं किया है, अगर नहीं हुआ तो वह पहले सैक्स कर चुकी है.

लेकिन नीरज ने दोस्त की इस बात पर ध्यान न दिया, क्योंकि वह जानता था कि पहले सैक्स में रक्तस्राव होना जरूरी नहीं. इस से यह पता चलता है कि वर्जिन होने के लिए सुबूत देने की जरूरत नहीं होती बल्कि पहली बार किए जाने वाले सैक्स की शुरुआत प्यार और भरोसे के साथ की जाए तो यह न केवल ज्यादा मजा देने वाला होता है, बल्कि इस से रिश्ता और भी गहरा व विश्वसनीय बन जाता है.

बातचीत है जरूरी

सैक्स व मनोरोग विशेषज्ञ डा. मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन का कहना है कि कौमार्य खोने के पहले एकदूसरे के बारे में अच्छी तरह से जान लें, क्योंकि सैक्स आनंद के लिए किया जाता है न कि भूख मिटाने के लिए. इसलिए सैक्स को मजेदार बनाने की कोशिश करें, आपस में कामुक बातचीत की शुरुआत हो और धीरेधीरे यह बातचीत शर्म से ऊपर उठ कर सैक्स संबंध के रूप में आगे बढे़. इस तरह सैक्स का मजा दोगुना हो जाता है और पतिपत्नी के बीच शर्म का परदा भी उठ जाता है.

पहले सैक्स को ज्यादा मजेदार व यादगार बनाने के लिए वर्जिनिटी जैसे दकियानूसी खयाल से ऊपर उठ कर शारीरिक व मानसिक संतुष्टि को ज्यादा महत्त्व देना चाहिए. इस के अलावा किसी तरह की अजीबोगरीब उम्मीदें नहीं पालनी चाहिए जिन से जीवन साथी को किसी तरह की ठेस पहुंचे.

कैसी प्रेमिका की चाहत

एक सर्वे के अनुसार 51% युवा प्रेमियों को प्रेमिका की ब्यूटी, 36% को ब्रेन और 15% को प्रेमिका की ब्यूटी विद ब्रेन दोनों का कौंबिनेशन प्रभावित करता है. प्रेमी प्रेमिका की तरह अपनी पसंद और नापसंद के आधार पर प्रेमिका को चुनते हैं.

आइए जानें वे क्या पसंद करते हैं अपनी प्रेमिका में :

–       युवा प्रेमी को साफसफाई का खयाल रखने वाली प्रेमिका अधिक पसंद आती है.

–       युवा प्रेमी को प्रेमिका की बौडी लैंग्वेज, बाल, आंखें, मुसकराहट भी अपनी ओर आकर्षित करती है.

–       युवा प्रेमी बहुत होनहार प्रेमिका की चाहत नहीं रखते बल्कि उन्हें हर सामान्य कार्य में रुचि रखने वाली प्रेमिका ज्यादा पसंद आती है.

–       51% युवाओं का मानना है कि उन्हें प्रेमिका की खूबसूरती के अलावा उस का केयरिंग नेचर बहुत प्रभावित करता है.

–       आत्मविश्वासी प्रेमिका युवा प्रेमी को ज्यादा पसंद आती है.

–       अकसर युवक ऐसी प्रेमिका को पसंद करते हैं जो अपना अधिकांश समय उन्हें ही दे.

–       बातबात पर इमोशनल होने वाली पे्रमिका से वे दूरी बनाने में ही भलाई समझते हैं.

–       युवा प्रेमी अकसर ऐसी प्रेमिका चाहते हैं, जो सैक्सी और कौपरेट करती हो.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Love Story- उजाले की ओर: क्या हुआ नीरजा और नील के प्यार का अंजाम?

राशी कनाट प्लेस में खरीदारी के दौरान एक आवाज सुन कर चौंक गई. उस ने पलट कर इधरउधर देखा, लेकिन कोई नजर नहीं आया. उसे लगा, शायद गलतफहमी हुई है. उस ने ज्योंही दुकानदार को पैसे दिए, दोबारा ‘राशी’ पुकारने की आवाज आई. इस बार वह घूमी तो देखा कि धानी रंग के सूट में लगभग दौड़ती हुई कोई लड़की उस की तरफ आ रही थी.

राशी ने दिमाग पर जोर डाला तो पहचान लिया उसे. चीखती हुई सी वह बोली, ‘‘नीरजा, तू यहां कैसे?’’

दरअसल, वह अपनी पुरानी सखी नीरजा को सामने देख हैरान थी. फिर तो दोनों सहेलियां यों गले मिलीं, मानो कब की बिछड़ी हों.

‘‘हमें बिछड़े पूरे 5 साल हो गए हैं, तू यहां कैसे?’’ नीरजा हैरानी से बोली.

‘‘बस एक सेमिनार अटैंड करने आई थी. कल वापस जाना है. तुझे यहां देख कर तो विश्वास ही नहीं हो रहा है. मैं ने तो सोचा भी न था कि हम दोनों इस तरह मिलेंगे,’’ राशी सुखद आश्चर्य से बोली, ‘‘अभी तो बहुत सी बातें करनी हैं. तुझे कोई जरूरी काम तो नहीं है? चल, किसी कौफीहाउस में चलते हैं.’’

‘‘नहीं राशी, तू मेरे घर चल. वहां आराम से गप्पें मारेंगे. अरसे बाद तो मिले हैं,’’ नीरजा ने कहा.

राशी नीरजा से गप्पें मारने का मोह छोड़ नहीं पाई. उस ने अपनी बूआ को फोन कर दिया कि वह शाम तक घर पहुंचेगी. तब तक नीरजा ने एक टैक्सी रोक ली. बातोंबातों में कब नीरजा का घर आ गया पता ही नहीं चला.

‘‘अरे वाह नीरजा, तू ने दिल्ली में फ्लैट ले लिया.’’

‘‘किराए का है यार,’’ नीरजा बोली.

तीसरी मंजिल पर नीरजा का छोटा सा फ्लैट देख कर राशी काफी प्रभावित हुई. फ्लैट को सलीके से सजाया गया था. बैठक गुजराती शैली में सजा था.

नीरजा शुरू से ही रिजर्व रहने वाली लड़की थी, पर राशी बिंदास व मस्तमौला थी. स्कूल से कालेज तक के सफर के दौरान दोनों सहेलियों की दोस्ती परवान चढ़ी थी. राशी का लखनऊ में ही मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया था और नीरजा दिल्ली चली गई थी. शुरूशुरू में तो दोनों सहेलियां फोन व पत्रों के माध्यम से एकदूसरे के संपर्क में रहीं. फिर धीरेधीरे दोनों ही अपनी दुनिया में ऐसी उलझीं कि सालों बाद आज मुलाकात हुई.

राशी ने उत्साह से घर आतेआते अपने कैरियर व शादी तय होने की जानकारी नीरजा को दे दी थी, परंतु नीरजा ऐसे सवालों के जवाबों से बच रही थी.

राशी ने सोफे पर बैठने के बाद उत्साह से पूछा, ‘‘नीरजा, शादी के बारे में तू ने अब तक कुछ सोचा या नहीं?’’

‘‘अभी कुछ नहीं सोचा,’’ नीरजा बोली, ‘‘तू बैठ, मैं कौफी ले कर आती हूं.’’

राशी उस के घर का अवलोकन करने लगी. बैठक ढंग से सजाया गया था. एक शैल्फ में किताबें ही किताबें थीं. नीरजा ने आते वक्त बताया था कि वह किसी पब्लिकेशन हाउस में काम कर रही थी. राशी बैठक में लगे सभी चित्रों को ध्यान से देखती रही. उस की नीरजा से जुड़ी बहुत सी पुरानी यादें धीरेधीरे ताजा हो रही थीं. उस ने सोचा भी नहीं था कि उस की नीरजा से अचानक मुलाकात हो जाएगी.

राशी बैठक से उस के दूसरे कमरे की तरफ चल पड़ी. छोटा सा बैडरूम था, जो सलीके से सजा हुआ था. राशी को वह सुकून भरा लगा. थकी हुई राशी आरामदायक बैड पर आराम से सैंडल उतार कर बैठ गई.

‘‘नीरजा यार, कुछ खाने को भी ले कर आना,’’ वह वहीं से चिल्लाई.

नीरजा हंस पड़ी. वह सैंडविच बना ही रही थी. किचन से ही वह बोली, ‘‘राशी, तू अभी कितने दिन है दिल्ली में?’’

‘‘मुझे तो आज रात ही 10 बजे की ट्रेन से लौटना है.’’

‘‘कुछ दिन और नहीं रुक सकती है क्या?’’

‘‘नीरजा… मां ने बहुत मुश्किल से सेमिनार अटैंड करने की इजाजत दी है. कल लड़के वाले आ रहे हैं मुझे देखने,’’ राशी चहकते हुए बोली.

‘‘राशी, तू अरेंज मैरिज करेगी, विश्वास नहीं होता,’’ नीरजा हंस पड़ी.

‘‘इंदर अच्छा लड़का है, हैंडसम भी है. फोटो देखेगी उस की?’’ राशी ने कहा उस से. फिर अचानक उस ने उत्सुकतावश नीरजा की एक डायरी उठा ली और बोली उस से, ‘‘ओह, तो मैडम को अभी भी डायरी लिखने का समय मिल जाता है.’’

तभी कुछ तसवीरें डायरी से नीचे गिरीं. राशी ने वे तसवीरें उठा लीं और ध्यानपूर्वक उन्हें देखने लगी. तसवीरों में नीरजा किसी पुरुष के साथ थी. वे अंतरंग तसवीरें साफ बयां कर रही थीं कि नीरजा का रिश्ता उस शख्स से बेहद गहरा था. राशी बारबार उन तसवीरों को देख रही थी. उस के चेहरे पर कई रंग आ जा रहे थे. उसे कमरे की दीवारें घूमती सी नजर आईं.

तभी नीरजा आ गई. उस ने जल्दी से ट्रे रख कर राशी के हाथ से वे तसवीरें लगभग छीन लीं.

राशी ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘नीरजा, बात क्या है?’’

नीरजा उस से आंखें चुरा कर विषय बदलने की कोशिश करने लगी, परंतु नाकामयाब रही. राशी ने कड़े शब्दों में पूछा तो नीरजा की आंखें भर आईं. फिर जो कुछ उस ने बताया, उसे सुन कर राशी के पांव तले जमीन खिसक गई.

नीरजा ने बताया कि 4 साल पहले जब वह दिल्ली आई, तो उस की मुलाकात नील से हुई. दोनों स्ट्रगल कर रहे थे. कालसैंटर की एक नौकरी के इंटरव्यू में दोनों की मुलाकात हुई थी. धीरेधीरे उन की मुलाकात दोस्ती में बदल गई. नीरजा को नौकरी की सख्त जरूरत थी, क्योंकि दिल्ली में रहने का खर्च उठाने में उस के मातापिता असमर्थ थे. नीरजा ने इस नौकरी का प्रस्ताव यह सोच कर स्वीकार कर लिया कि बाद में किसी अच्छे औफर के बाद यह नौकरी छोड़ देगी. औफिस की वैन उसे लेने आती थी, लेकिन उस के मकानमालिक को यह पसंद नहीं था कि वह रात में बाहर जाए.

इधर नील को भी एक मामूली सी नौकरी मिल गई थी. वह अपने रहने के लिए एक सुविधाजनक जगह ढूंढ़ रहा था. एक दिन कनाट प्लेस में घूमते हुए अचानक नील ने एक साझा फ्लैट किराए पर लेने का प्रस्ताव नीरजा के आगे रखा. नीरजा उस के इस प्रस्ताव पर सकपका गई.

नील ने उस के चेहरे के भावों को भांप कर कहा, ‘‘नीरजा, तुम रात के 8 बजे जाती हो और सुबह 8 बजे आती हो. मैं सुबह साढ़े 8 बजे निकला करूंगा तथा शाम को साढ़े 7 बजे आया करूंगा. सुबह का नाश्ता मेरी जिम्मेदारी व रात का खाना तुम बनाना. इस तरह हम साथ रह कर भी अलगअलग रहेंगे.’’

नीरजा सोच में पड़ गई थी. संस्कारी नीरजा का मन उसे इस ऐडजस्टमैंट से रोक रहा था, परंतु नील का निश्छल व्यवहार उसे मना पाने में सफल हो गया. दोनों पूरी ईमानदारी से एकदूसरे का साथ देने लगे. 1 घंटे का जो समय मिलता, उस में दोनों दिन भर क्या हुआ एकदूसरे को बताते. दोनों की दोस्ती एकदूसरे के सुखदुख में काम आने लगी थी. नीरजा ने उस 2 कमरे के फ्लैट को घर बना दिया था. उस ने नील की पसंद के परदे लगवाए, तो नील ने भी रसोई जमाने में उस की पूरी सहायता की थी.

इतवार की छुट्टी का रास्ता भी नील ने ईमानदारी से निकाला. दिन भर दोनों घूमते. शाम को नीरजा घर आ जाती तो नील अपने दोस्त के यहां चला जाता. इंसानी रिश्ते बड़े अजीब होते हैं. वे कब एकदूसरे की जरूरत बन जाते हैं, यह उन्हें स्वयं भी पता नहीं चलता. नीरजा और नील शायद यह समझ ही नहीं पाए कि जिसे वे दोस्ती समझ रहे हैं वह दोस्ती अब प्यार में बदल चुकी है.

नीरजा अचानक रुकी. उस ने अपनी सांसें संयत कर राशी को बताया कि उस दिन बरसात हो रही थी. जोरों का तूफान था. टैक्सी या कोई भी सवारी मिलना लगभग असंभव था. वे दोनों यह सोच कर बाहर नहीं निकले कि बरसात थमने पर नील अपने दोस्त के यहां चला जाएगा. पर बरसात थमने का नाम ही नहीं ले रही थी.

नील शायद उस तूफानी रात में निकल भी जाता, पर नीरजा ने उसे रोक लिया. वह तूफानी रात नीरजा की जिंदगी में तूफान ला देगी, इस का अंदेशा नीरजा को नहीं था. तेज सर्द हवाएं उन के बदन को सिहरा जातीं. नीरजा व नील दोनों अंधेरे में चुपचाप बैठे थे. बिजली गुल थी. नीरजा को डर लग रहा था. नील ने मजबूती से उस का हाथ थाम लिया.

तभी जोर की बिजली कड़की और नीरजा नील के करीब आ गई. दोनों अपनी बढ़ी हुई धड़कनों के सामने कुछ और न सुन सके. दिल में उठे तूफान की आवाज के सामने बाहर के तूफान की आवाज दब गई थी. नीरजा के अंतर्मन में दबा नील के प्रति प्रेम समर्पण में परिवर्तित हो गया. नील ने नीरजा को अपनी बांहों में भर लिया. नीरजा प्रतिकार नहीं कर पाई. दोनों अपनी सीमारेखा का उल्लंघन यों कर गए, मानो उफनती नदी आसानी से बांध तोड़ कर आगे निकल गई हो.

तूफान सुबह तक थम गया था, लेकिन इस तूफान ने नीरजा की जिंदगी बदल दी थी. नीरजा ने अपने इस प्रेम को स्वीकार कर लिया था. नीरजा का प्रेम अमरबेल सा चढ़ता गया. उस के बाद किसी भी रविवार को नील अपने दोस्त के यहां नहीं गया. नीरजा को नील के प्रेम का बंधन सुरक्षा का एहसास कराता था.

एक दिन नीरजा ने नील को प्यार करते हुए कहा, ‘‘हमें अब शीघ्र ही विवाह कर लेना चाहिए.’’

नील ने प्यार से नीरजा का हाथ थामते हुए कहा, ‘‘नीरजा, मेरे प्यार पर भरोसा रखो. मैं अभी शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हूं. ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हारी जिम्मेदारी उठाने से डरता हूं. लेकिन इस वक्त मुझे तुम्हारा साथ और सहयोग दोनों ही अपेक्षित हैं.’’

उन दोनों के सीधेसुलझे प्यार के तार उस वक्त उलझने लगे, जब नीरजा की बड़ी बहन रमा दीदी व जीजाजी अचानक दिल्ली आ पहुंचे. नीरजा बेहद घबरा गई थी. उस ने नील से जुड़ी हर चीज को छिपाने की काफी कोशिश की, लेकिन रमा दीदी ने भांप लिया था. उन्होंने नील को बुलाया. नील इस परिस्थिति के लिए तैयार नहीं था. रमा ने नील पर विवाह के लिए दबाव बनाया, जो नील को मंजूर नहीं था.

रमा दीदी को भी उन के रिश्ते का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था. उन्होंने अपने देवर विपुल के साथ नीरजा की शादी का मन बना लिया था. नील इसे बरदाश्त न कर पाया. बिना कुछ कहेसुने उस ने दिल्ली छोड़ दी. नीरजा के नाम एक लंबा खत छोड़ कर नील मुंबई चला गया.

नीरजा अंदर से टूट गई थी. उस ने रमा दीदी को सब सचसच बता दिया. उस दिन से नीरजा के रिश्ते अपने घर वालों से भी टूट गए. नीरजा फिर कभी कालसैंटर नहीं गई. वह इस का दोष नील को नहीं देना चाहती थी. उस ने नील के साथ बिताए लमहों को एक गुनाह की तरह नहीं, एक मीठी याद बना कर अपने दिल में बसा लिया.

कुछ दिनों बाद उसे एक पब्लिकेशन में नौकरी मिल गई. वह दिन भर किताबों में डूबी रहती, ताकि नील उसे याद न आए. उम्मीद का एक दीया उस ने अपने मन के आंगन में जलाए रखा कि कभी न कभी उस का नील लौट कर जरूर आएगा. उस का अवचेतन मन शायद आज भी नील का इंतजार कर रहा था. इसी कारण उस ने घर भी नहीं बदला. हर चीज वैसी ही थी, जैसी नील छोड़ कर गया था.

नीरजा का अतीत एक खुली किताब की तरह राशी के सामने आ चुका था. वह हतप्रभ बैठी थी. रात 10 बजे राशी की ट्रेन थी. नीरजा के अतीत पर कोई टिप्पणी किए बगैर राशी ने उस से विदा ली. सफर के दौरान राशी की आंखों में नींद नहीं थी. वह नीरजा की उलझी जिंदगी के बारे में सोचती रही.

अगले दिन शाम को इंदर अपनी मां व बहन के साथ आया. राशी ने ज्योंही बैठक में प्रवेश किया, सब से पहले लड़के की मां को शिष्टता के साथ नमस्ते किया. फिर वह लड़के की तरफ पलटी और अपना हाथ बढ़ा कर परिचय दिया, ‘‘हेलो, आई एम डा. राशी.’’

इंदर ने भी खड़े हो कर हाथ मिलाया, ‘‘हैलो, आई एम इंद्रनील.’’

कुछ औपचारिक बातों के बाद राशी ने इंदर की मां से कहा, ‘‘आंटी, आप बुरा न मानें तो मैं इंद्रनील से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं,’’ इंद्रनील की मां अचकचा कर बोलीं.

वे दोनों ऊपर टैरेस पर चले गए. कुछ चुप्पी के बाद राशी बोली, ‘‘मुंबई से पहले तुम कहां थे?’’

अचानक इस प्रश्न से इंद्रनील चौंक उठा, ‘‘दिल्ली.’’

‘‘इंद्रनील, मैं तुम्हें नील बुला सकती हूं? नीरजा भी तो इसी नाम से बुलाती थी तुम्हें,’’ राशी ने कुछ तल्ख आवाज में कहा.

इंद्रनील के चेहरे के भाव अचानक बदल गए. वह चौंक गया था, मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो.

राशी आगे बोली, ‘‘तुम ने नीरजा के साथ ऐसा क्यों किया? अच्छा हुआ कि तुम से शादी होने से पहले मेरी मुलाकात नीरजा से हो गई. तुम्हारी फोटो नीरजा के साथ न देखती तो पता ही न चलता कि तुम ही नीरजा के नील हो.’’

नील के पास कोई जवाब न था. वह हैरानी से राशी को देखे जा रहा था, जिस ने उस के जख्मों को कुरेद कर फिर हरा कर दिया था, ‘‘लेकिन तुम नीरजा को कैसे…’’ आधी बात नील के हलक में ही फंसी रह गई.

‘‘क्योंकि नीरजा मेरे बचपन की सहेली है,’’ राशी ने कहा.

नील मानो आकाश से नीचे गिरा हो, ‘‘लेकिन वह तो सिर्फ एक दोस्त की तरह…’’ उस की बात बीच में काट कर राशी बोली, ‘‘अगर तुम एक दोस्त के साथ ऐसा कर सकते हो, तो मैं तो तुम्हारी कुछ भी नहीं. नील, तुम्हें नीरजा का जरा भी खयाल नहीं आया. कहीं तुम्हारी यह मानसिकता तो नहीं कि नीरजा ने शादी से पहले तुम से संबंध बनाए. अगर तुम्हारी यह सोच है, तो तुम ने मुझ से शादी का प्रस्ताव मान कर मुझे धोखा देने की कैसे सोची. जो अनैतिक संबंध तुम्हारे लिए सही है, वह नीरजा के लिए गलत कैसे हो सकता है. तुम नीरजा को भुला कर किसी और से शादी के लिए कैसे राजी हुए? नीरजा आज तक तुम्हारा इंतजार कर रही है.’’

कुछ चुप्पी के बाद नील बोला, ‘‘मैं ने कई बार सोचा कि नीरजा के पास लौट जाऊं, लेकिन मेरे कदम आगे न बढ़ सके. उस के पास वापस जाने के सारे दरवाजे मैं ने खुद ही बंद कर दिए थे.’’

‘‘नीरजा आज भी तुम्हारा शिद्दत से इंतजार कर रही है. जानते हो नील, जब मुझे तुम्हारे और नीरजा के संबंध का पता चला, तो मुझे बहुत गुस्सा आया था. फिर सोचा कि मैं तो तुम्हारी जिंदगी में बहुत बाद में आई हूं, पर नीरजा और तुम्हारा रिश्ता कच्चे धागों की डोर से बहुत पहले ही बुन चुका था. अभी देर नहीं हुई है नील, नीरजा के पास वापस चले जाओ. मैं जानती हूं कि तुम्हारा दिल भी यही चाहता है. जिस रिश्ते को सालों पहले तुम तोड़ आए थे, उसे जोड़ने की पहल तो तुम्हें ही करनी होगी,’’ राशी ने नील को समझाते हुए कहा.

नील कुछ कहता इस से पहले ही राशी ने अपने मोबाइल से नीरजा का नंबर मिलाया. ‘‘हैलो राशी,’’ नीरजा बोली, तो जवाब में नील की भीगी सी आवाज आई, ‘‘कैसी हो नीरजा?’’

नील की आवाज सुन कर नीरजा चौंक गई.

‘‘नीरजा, क्या तुम मुझे कभी माफ कर पाओगी?’’ नील ने गुजारिश की तो नीरजा की रुलाई फूट पड़ी. उस की सिसकियों में नील के प्रति प्यार, उलाहना, गिलेशिकवे, दुख, अवसाद सब कुछ था.

‘‘बस, अब और नहीं नीरजा, मुझे माफ कर दो. मैं कल ही तुम्हें लेने आ रहा हूं. रोने से मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा. मैं चाहता हूं तुम्हारा सारा गम आंसू बन कर बह जाए, क्योंकि उन का सामना शायद मैं नहीं कर पाऊंगा.’’

फोन पर बात खत्म हुई तो नील की आंखें नम थीं. वह राशी के दोनों हाथ पकड़ कर कृतज्ञता से बोला, ‘‘थैंक्यू राशी, मुझे इस बात का एहसास कराने के लिए कि मैं क्या चाहता हूं, वरना नीरजा के बगैर मैं कैसे अपना जीवन निर्वाह करता.’’

नील व नीरजा की जिंदगियों ने अंधेरी गलियों को पार कर उजाले की ओर कदम रख दिया था.

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