Hindi Story- मेरे घर आई नन्ही परी: क्यों परेशान हो गई समीरा

समीरा परी को गोद में लिए शून्य में ताक रही थी. उस की आंखों से आंसुओं की ?ामा?ाम बरसात हो रही थी. उसे सम नहीं आ रहा था कि क्यों उसे परी के लिए वह ममता महसूस नहीं हो रही हैं जैसे एक आम मां को होती है. समीरा को तो यह खुद को भी बताने में शर्म आ रही थी कि उसे परी से कोई लगाव महसूस नहीं होता. तभी परी ने अचानक रोना शुरू कर दीया.

समीरा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसे रोना क्यों आ रहा है. उसे लग रहा था कि जैसे उसे किसी ने बांध दीया हो. उस की पूरी जिंदगी अस्तव्यस्त सी हो गई थी. वह अपनेआप को ही नहीं पहचान पा रही थी.

समीरा ने जैसा फिल्मों में देखा था, जैसा अपनी बहनोंभाभियों से सुना था वैसा कुछ भी महसूस नहीं कर पा रही थी. उस ने सुना था कि मां की थपकी से बच्चा सो जाता है. उस ने भी परी को थपथपाना शुरू कर दीया परंतु परी का रोना और तेज हो गया.

झंझाला कर समीरा ने परी को पलंग पर पटक दीया और खुद को आईने में निहारने लगी. आईने में खुद को देख कर उस की झंझलाहट और बढ़ गई. हर तरफ से झुलती हुई मांस की परतें, शरीर की कसावट न जाने कहां गुम हो गई थी. 55 किलोग्राम से एक झटके में वह 70 किलोग्राम की हो गई थी. कितना नाज था उसे अपनी त्वचा, बालों और फिगर पर. परी के जन्म के बाद सब एक याद बन कर रह गया.

तभी पीछे से समीरा की सास रुपाली आ गई और परी को गोद में उठाते हुए बोली, ‘‘अजीब मां हो तुम, बेटी गला फाड़फाड़ कर रो रही है और तुम्हें शीशे से फुरसत नहीं है.’’

‘‘सभी कामों के लिए तो नौकर हैं और ऊपरी काम मैं करती हूं.  कमसेकम परी का ध्यान तो रख सकती हो. कैसे लगाव होगा बेटी को तुम्हारे साथ अगर उस का सारा काम दादी या नानी ही करेगी?’’

समीरा गुस्से से परी को देख रही थी. 1 माह की परी दादी की गोद में मंदमंद मुसकरा रही थी.

बिना कोई जवाब दिए समीरा गुसलखाने में नहाने चली गई. शावर की ठंडी फुहारें सिर पर पड़ते ही उस का गुस्सा शांत हो गया और अब फिर से उस की आंखें गीली थीं परंतु इस बार कारण था परी.

समीरा सोच रही थी कि वह कितनी बुरी मां है. क्यों वह परी से कटीकटी रहती है. बालों में शैंपू लगा कर जैसे ही धोने लगी. बालों का गुच्छा हाथों में आ गया. समीरा फिर से चिंतित हो उठी कि इसी रफ्तार से बाल गिरते रहे तो जल्द ही वह टकली हो जाएगी. नहाने के बाद जैसे ही वह तौलिए से अपना शरीर पोंछने लगी तो पेट, स्तनों और जांघों पर स्ट्रैचमार्क फिर से उसे दिखाई दे गए. जल्दीजल्दी वह गाउन पहन कर गुसलखाने से बाहर आ गई.

समीरा का पूरा वार्डरोब बेकार हो गया था. कोई भी कपड़ा उसे फिट नहीं आता था.

तभी रुपाली परी को ले कर आ गई और प्यार से समीरा से बोली, ‘‘बेटा, परी को फीड करा दो.’’

समीरा के लिए यह एक समस्या थी. स्तनपान कैसे कराना है समीरा को ठीक से पता नहीं था. कभी परी के मुंह में दूध ही नही जा पाता था तो कभी परी इतना अधिक दूध पी लेती कि उसे उलटी हो जाती. समीरा सोच रही थी, दीदी बोलती थी कि बच्चे को स्तनपान कराने से मां

को बहुत संतुष्टि महसूस होती हैं पर समीरा को कितना दर्द महसूस होता है. ऊपर से समीरा के सब पसंदीदा खानपान पर स्तनपान के कारण रोक थी. 1 माह बाद भी परी को स्तनपान कराने का सही तरीका समीरा समझ नहीं पा रही थी. कभीकभी तो उसे लगता कि वह कैसे इस झंझट से बाहर भी निकल पाएगी. थोड़ी देर बाद परी सो गई. उसे बिस्तर पर लिटा कर समीरा भी आंखें बंद कर लेट गई पर नींद थी कि आंखों से कोसों दूर.

समीरा का विवाह 5 वर्ष पहले रोहिन से हुआ था. रोहिन से उस का परिचय एक मैट्रीमोनियल साइट पर हुआ था, दोनों ने लगभग 1 साल तक डेटिंग करी और फिर परिवार की सहमति से विवाह के बंधन में बंध गए. रोहिन का परिवार आधुनिक सोच का था. समीरा के सपने पंख लगा कर खुले असमान में उड़ रहे थे.

विवाह की पहली सालगिरह पर भी समीरा का परिवार ही समीरा को बच्चे के लिए छेड़ रहा था परंतु समीरा की सास रुपाली बोली, ‘‘अरे, अभी तो समीरा खुद ही बच्ची है. जब मरजी होगी कर लेंगे.’’

विवाह के समय समीरा 30 वर्ष की थी. विवाह के 3 वर्ष पूरे हो गए थे और तभी 1 माह समीरा ने अपने पीरियड्स मिस कर दिए. उसे लगा शायद वह मां बनने वाली है, इसलिए वह और रोहिन डाक्टर के पास गए. प्रैगनैंसी टैस्ट नैगेटिव आया तो डाक्टर्स ने और हारमोनल चैकअप कराए. रिपोर्ट्स निराशाजनक आई. रिपोर्ट्स के मुताबिक समीरा का फर्टिलिटी रेट तेजी से डिक्लाइन हो रहा है. उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था. उस का मासिकचक्र तो एकदम सामान्य था. फिर शुरू हुआ चैकअप और टैस्ट्स न कभी भी खत्म होने वाला सिलसिला. समीरा भी अब मां बनना चाहती थी इसलिए खुद को तनावमुक्त रखने के लिए उस ने अपनी नौकरी भी छोड़ दी. 1 साल की मेहनत के बाद परिणाम सकारात्मक रहा. समीरा मातृत्व की इस यात्रा को पूरी तरह से जीना चाहती थी. उस ने पूरे 9 माह भरपूर एहतियात बरती. बच्चे के लिए सारी तैयारी कर ली परंतु ना जाने आखिरी माह आतेआते उस का चिड़चिड़ापन बढ़ क्यों गया.

समीरा की दमकती त्वचा पर झइयां आ गईं. वजन भी बढ़ा जा रहा था. समीरा की मम्मी और सास ने उसे प्यार से सम?ाया, ‘‘बेटा, एक बार बच्चा हो जाएगा तो सब ठीक हो जाएगा.’’

परी भी अब 1 माह की हो गई थी परंतु समीरा के बाल जिस तेजी से झड़ रहे थे वजन भी उसी तेजी से बढ़ रहा था. उसे लगता जैसे परी के जन्म के बाद वह एक जेलखाने में कैद हो गई है. उसे रोहिन से जलन होने लगी थी क्योंकि रोहिन तो अभी भी जस का तस था और वह बूढ़ी सी लगने लगी थी.

जब परी को देखने उस की ननद दीया आई तो मजाक में बोली, ‘‘भाभी, अब तो आप भैया की आंटी भी लगने लगी हो.’’

हालांकि रुपाली ने दीया को डांटते हुए कहा, ‘‘अपने बढ़ते वजन की चिंता करो.’’

मगर समीरा के मन में यह बात घर कर गई.

आज समीरा परी को ले कर अपने घर जा रही थी. समीरा के साथसाथ रोहिन को भी लग रहा था कि जगह बदलने से समीरा का मूड भी बदल जाएगा.

घर पहुंचते ही सब से पहले छोटी बहन बोली, ‘‘दीदी, ये बाल कैसे हो गए हैं ?ाड़ू जैसे… कितने घने और चमकीले बाल थे आप के.’’

जो भी पासपड़ोस की आंटी आती कोई उस के काले धब्बों पर तो कोई उस के बढ़ते वजन का जिक्र जरूर करती, पर जातेजाते यह तस्सली दे जाती कि जल्द ही सब ठीक हो जाएगा.

समीरा सुबह से बिना नहाएधोए टैलीविजन के आगे पसरी थी. रोहिन का फोन आते ही उस से लड़ने लगी, ‘‘अब फुरसत मिली हैं तुम्हें, रात में मैं ने तुम्हें कितनी बार फोन किया. मन भर गया न तुम्हारा मु?ा से क्योंकि मैं अब अनाकर्षक हो गई हूं.’’

रोहिन दूसरी तरफ क्या कह रहा था, समीरा की मां को पता नहीं चल पाया परंतु रोहिन के फोन रखते ही समीरा की मां ने समीरा को आड़े हाथों लिया, ‘‘अगर ऐसे ही रहोगी तुम समीरा, तो जरूर रोहिन रास्ता भटक जाएगा. क्या हाल बना रखा है तुम ने… रोनेबिसूरने के अलावा करती क्या हो तुम? वहां पर तुम्हारी सास और यहां

पर मैं परी की देखभाल करती हूं और तुम क्या करती हो. मां बनने का फैसला तुम्हारा था. तुम्हें किसी ने मजबूर नहीं किया था… मां बनना आसान नही है.’’

एकाएक समीरा के सब्र का बांध टूट गया. बोली, ‘‘यह अकेला मेरा नहीं रोहिन का भी फैसला था पर उस की जिंदगी पर क्या फर्क

पड़ा. मेरी आजादी छिन गई है. मेरी अपनी पहचान मुझ से छूट गई है. परी की नींद सोती हूं और उस की नींद जागती हूं, बाहर की दुनिया से कट सी गई हूं.

‘‘मेरा अपना पति जो कभी मेरा दीवाना था मुझ से दूरी बना कर रखता है. एकाएक उम्र से 10 वर्ष बड़ी हो गई हूं. हरकोई मां के फर्ज के ऊपर नसीहत देता है पर यह मां भी एक इंसान है, हरकोई भूल जाता है,’’ दिल का गुबार निकाल कर समीरा फूटफूट कर रोने लगी.

समीरा की मां को समीरा का यह व्यवहार समझ नहीं आ रहा था. उसे लगता था कि समीरा कामचोर और आलसी मां है. रातदिन समीरा की मम्मी उसे यही बताती रहती कि मां बनने का दूसरा नाम त्याग और बलिदान है. समीरा को न ठीक से भूख लगती और न ही नींद आती थी. सारा दिन सब को काटने के लिए तैयार रहती.

जब रोहिन समीरा को लेने आया तो उसे देख कर दंग रह गया. समीरा का वजन

और भी बढ़ गया था. रोहिन को देखते ही वह उस के गले लग कर रोने लगी. रोहिन को समीरा के मूक रुदन में उस की छटपटाहट समझ आ रही थी.

अगले रोज उस ने दफ्तर से छुट्टी ले ली और समीरा को डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर ने चैकअप कर के रोहिन से कहा, ‘‘देखो, शारीरिक रूप से समीरा ठीक है परंतु उस के अंदर पोस्टपार्टम डिप्रैशन के लक्षण नजर आ रहे हैं.

‘‘आमतौर पर हर 5 में से 1 महिला बच्चे के जन्म के पश्चात ऐसे दौर से गुजरती है. इसके लिए उसे दवा की नहीं तुम्हारे साथ की जरूरत है. तुम्हें समीरा को वापस यह एहसास दिलाना होगा कि वह अब भी उतनी ही

आकर्षक है. उस के अंदर हीनभावना घर कर गई है. तुम लोगों ने आखिरी बार संबंध कब बनाया था?’’

रोहिन अचकचाते हुए बोला, ‘‘अभी तो परी 1 माह की हुई है और समीरा तो अभी शायद इस के लिए तैयार नहीं है.’’

डाक्टर बोली, ‘‘बिना पूछे ही तुम ने तय कर लिया… शायद यह भी समीरा के पोस्टपार्टम का कारण हो सकता है. समीरा को नौर्मल होने का एहसास कराना तुम्हारी ही जिम्मेदारी हैं. हम लोग यह भूल जाते हैं कि बच्चे के जन्म के साथसाथ मां का भी जन्म होता है. उसे भी दुलार और प्यार की आवश्यकता होती है क्योंकि उस की तो पूरी जिंदगी ही बदल जाती है और फिर डाक्टर ने रोहिन के साथसाथ समीरा को भी खुद पर ध्यान देने की सलाह दी.

रोहिन को डाक्टर से बातचीत के बाद समीरा के बदले व्यवहार का कारण काफी हद तक सम?ा आ गया था.

रात में जब रोहिन ने समीरा से प्यार करने की पेशकश करी तो वह तुरंत तैयार हो गई. परी के जन्म के बाद समीरा को पहली बार ऐसा लगा वह मां ही नहीं एक पत्नी भी है. इस प्रेमक्रीड़ा के साथ समीरा का तनाव भी कहीं धुल सा गया. रोहिन को भी बहुत दिनों के बाद समीरा खुश दिखाई दे रही थी जो उसे भी खुशी दे रहा था.

उस रात के बाद से रोहिन और समीरा हर रात साथ बिताने लगे. परी के छोटेछोटे काम रात में उठ कर रोहिन भी कर देता. समीरा को इस बात से ही बहुत मदद हो जाती थी. रोहिन फिर सुबह भी समय से उठ कर जिम जाता और फिर औफिस.

समीरा को भी अब लगने लगा था कि उसे भी अब अपने खोल से बाहर निकलना चाहिए. रात में तो उस के साथ रोहिन भी जागता है मगर फिर भी वह बिना किसी शिकायत के अपने सारे काम भी करता है.

रोहिन शनिवार को परी की पूरी जिम्मेदारी उठाता. समीरा शनिवार को कहीं भी घूमनेफिरने को आजाद थी. रोहिन की सपोर्ट के कारण अब समीरा भी अपनी पुरानी दुनिया में आने लगी.

कुछ दिनों बाद समीरा ने खुद रसोई का काम संभालना शुरू किया. वह अब अपना खाना खुद बनाने लगी थी. 1 हफ्ते में ही वह पहले से अधिक स्फूर्तिवान हो गई. उस ने यह भी विवेचना कर ली थी कि परी के काम के कारण वह घर के बाकी कामों पर ध्यान नहीं दे पा रही है. इसलिए सब के मना करने के बावजूद उस ने परी के लिए 12 घंटे के लिए एक आया रख ली. अब समीरा के पास खुद के लिए भी समय था. उस ने ऐक्सरसाइज आरंभ कर दी. धीरेधीरे सब समस्याओं का निदान हो रहा था.

अब समीरा  की चिड़चिड़ाहट पहले से बहुत कम हो गई थी. रोहिन ने भी समीरा के हर फैसले में साथ दीया. समीरा ने 7 माह बाद फिर से नौकरी करने का फैसला लिया और 1 माह के भीतर ही उसे अपनी पसंद के अनुरूप नौकरी मिल गई.

घर से बाहर निकलते ही समीरा की शिकायतें, चिड़चिड़ाहट, बढ़ता वजन, बेजान त्वचा सब एक खिड़की से बाहर निकल गए और समीरा के आत्मविश्वास को पंख लग गए थे. समीरा को समझ आ गया था कि वह पत्नी है, बेटी है, बहू है, मां भी है मगर सब से पहले एक स्त्री है. मां बनना भी जिंदगी का एक और प्यारा मोड़ ही है मगर यह जिंदगी का आखिरी पड़ाव नहीं है.

मां बनने के बाद शरीरक, मानसिक और भावनात्मक रूप से परिवर्तन तो होते हैं मगर उन्हें सहज रूप से स्वीकार कर के या  तो हम इस सफर का आनंद ले सकते हैं या फिर रोतेबिसूरते रहें.

आज परी पूरे 9 माह की हो गई थी और दीवार पकड़पकड़ कर चलने की कोशिश कर रही थी. समीरा भी खुश हो कर मोबाइल में ये पल कैद करते हुए गुनगुना रही थी, ‘‘मेरे घर आई एक नन्ही परी…’’

शन्नो की हिम्मत : एक लड़की ने कैसे बदल दी अपने पिता की जिंदगी

लेखक- मंजर मुजफ्फरपुरी

शन्नो की मां अनवरी मजबूरी के चलते पति के सितम चुपचाप सह लेती थी, लेकिन एक दिन शन्नो का सब्र जवाब दे गया और उस ने बाकरपुर थाने जा कर बाप की शिकायत कर डाली. थाना इंचार्ज एसआई पूनम यादव ने सूझबूझ से काम लेते हुए फिरोज खान को हिरासत में ले लिया.

लेकिन जब पुलिस वाले फिरोज खान की कमर पर रस्सा बांधने लगे, तो शन्नो यह देख कर तड़प उठी. वह एसआई पूनम यादव से रोते हुए बोली, ‘‘मैडमजी, पापा को माफ कर दीजिए. आप इन्हें सिर्फ समझा दीजिए कि अब दोबारा कभी अम्मी को नहीं सताएंगे.

‘‘मैं यह नहीं जानती थी कि पापा इतनी बड़ी मुसीबत में फंस जाएंगे. प्लीज, पापा को छोड़ दीजिए,’’ कह कर वह उन से लिपट कर रोने लगी.

‘‘घबराओ नहीं बेटी, तुम्हारे पापा को कुछ नहीं होगा. हम इन्हें समझाबुझा कर जल्दी छोड़ देंगे,’’ एसआई पूनम यादव ने शन्नो को काफी समझाया, लेकिन वह रोतीबिलखती रही.

पापा के बगैर शन्नो थाने से बाहर नहीं आना चाहती थी. बड़ी मुश्किल से उसे घर पहुंचाया गया.

इस वाकिए के बाद शन्नो हंसना ही भूल गई. पापा को उस की वजह से जेल जाना पड़ा था. इस बात का उसे बहुत अफसोस था.

एसआई पूनम यादव ने फिरोज खान की माली हालत के मद्देनजर उस पर बहुत कम जुर्माना लगाया, जिस से वह एकाध महीने में ही जेल से छूट गया.

एसआई पूनम यादव ने फिरोज खान को जेल से बाहर आने के बाद समझाया, ‘‘देखो फिरोज, तुम ने बेटा पाने की चाहत में बेटियों की जो लाइन लगा रखी है, उस का बोझ तुम्हें अकेले ही उठाना पड़ेगा, इसलिए अब भी वक्त है कि तुम अपनी बेटियों को ही बेटा समझो. उन्हें प्यारदुलार दो.

‘‘अगर तुम्हारे घर बेटा पैदा नहीं हुआ, तो इस की जिम्मेदार तुम्हारी पत्नी नहीं है, बल्कि तुम खुद हो.

‘‘तुम्हारे घर में कोई तुम्हारा दुश्मन नहीं है, बल्कि तुम सब के दुश्मन हो और अपनी जिंदगी के साथ भी दुश्मनी कर रहे हो.

‘‘अब क्या तुम अपनी बेटी शन्नो से इस बात का बदला लोगे कि तुम्हारे द्वारा उस की मां पर ढाए जाने वाले जुल्म से घबरा कर वह थाने चली आई?’’

फिरोज खान सिर झुकाए चुपचाप एसआई पूनम यादव की बातें सुनता रहा.

‘‘खबरदार फिरोज, अब भूल से भी कोई ऐसीवैसी हरकत मत करना.’’

फिरोज खान ने एसआई पूनम यादव की बात को अनसुना कर दिया, क्योंकि उस के मन में शन्नो के लिए बदले की आग सुलग रही थी. घर में कदम रखते ही फिरोज ने शन्नो की पिटाई की.

बेटी को पिटता देख अनवरी बचाने आई, तो फिरोज ने उसे भी खूब मारापीटा, फिर दोनों मांबेटी को घर से निकाल दिया.

इस दुखद मंजर को अड़ोसपड़ोस के लोग चुपचाप देखते रहे. किसी के लफड़े में पड़ने की क्या जरूरत है, इस सोच के चलते महल्ले वाले अपनेअपने जमीर को मुरदा बनाए हुए थे. कोई भी यह नहीं सोचना चाहता था कि कल उन के साथ भी ऐसा हो सकता है.

अनवरी शन्नो को साथ ले कर अपने मायके समस्तीपुर चली आई और अपनी बेवा मां से लिपट कर खूब रोई.

सारा दुखड़ा सुनाने के बाद अनवरी बोली, ‘‘अम्मां, आज से शन्नो का जीनामरना आप को ही करना होगा.’’

सुबह होते ही अनवरी बस में सवार हो कर ससुराल लौट गई. इस बात को 10 साल बीत गए.

शन्नो के ननिहाल वाले गरीब थे, इस के बावजूद मामूमौसी वगैरह ने मिलजुल कर शन्नो की परवरिश की. उसे अच्छी से अच्छी तालीम दे कर कुछ इस तरह निखारा कि अपनेपराए, सभी उस पर नाज करने लगे.

आज शन्नो 18-19 बरस की हो चली थी. इस दौरान फिरोज खान ने उस की कोई खोजखबर नहीं ली, क्योंकि वह उस से बहुत चिढ़ता था. उसी की वजह से उसे जेल जाना पड़ा था. शन्नो की मां अनवरी अकसर मायके आ कर बेटी को देख लेती थी.

इस बार अनवरी मायके आई, तो उस ने मायके के तमाम रिश्तेदारों को इकट्ठा किया और अपनी लाचारी बयान करते हुए शन्नो के हाथ पीले करने की गुहार लगाई. इस पर मायके वालों ने भरपूर हमदर्दी जताई.

शन्नो के बड़े मामू साबिर ने तो मीटिंग के दौरान ही अपनी जिम्मेदारी का एहसास कराते हुए कहा, ‘‘देखिए, आप लोगों को ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं ने शन्नो के लिए एक अच्छा सा लड़का देख रखा है. वह शरीफ है, कम उम्र का है, पढ़ालिखा है और नौकरी भी बहुत अच्छी करता है.’’

लेकिन जब लड़के की असलियत पता की गई, तो मालूम हुआ कि वह किसी भी नजरिए से शन्नो के लायक नहीं था. वह 50 साल से ऊपर का था और 2 बीवियों को तलाक दे चुका था. नौकरी करने के नाम पर वह दिल्ली में रिकशा चलाता था.

साबिर द्वारा पेश किया गया ऐसा बेमेल रिश्ता किसी को पसंद नहीं आया. नतीजतन, उस रिश्ते को नकार दिया गया. इस पर साबिर ने नाराजगी जताई, तो उस की बड़ी बहन नरगिस बानो ने साबिर को तीखा जवाब दिया, ‘‘लड़का जब इतना ही अच्छा है, तो शन्नो को दरकिनार करो और उस से अपनी बेटी को ब्याह दो.’’

नरगिस बानो के इस फिकरे ने साबिर के होश ठिकाने लगा दिए. वह तिलमिला कर फौरन मीटिंग से उठ गया. शन्नो के लिए एक मुनासिब लड़के की तलाश जारी थी और जल्दी ही नरगिस बानो ने एक लायक लड़के को देख लिया, जो सब को पसंद आया.

शादी की तारीख एक महीने के अंदर तय की गई. चंद ननिहाली रिश्तेदारों ने माली मदद में पहल की. इस में नरगिस बानो खासतौर से आगे रहीं.

लड़का पेशे से वकील होने के अलावा एक सच्चा समाजसेवी भी था. उस के स्वभाव में करुणा कूटकूट कर भरी थी. उस ने लड़की वालों से किसी चीज की मांग नहीं की थी. शन्नो की बरात आने में 10 दिन बाकी रह गए थे. इसी बीच एक दिन शन्नो के होने वाले पति रिजवान ने नरगिस बानो को फोन कर शादी से इनकार करने का संकेत दिया.

वजह पूछने पर उस ने बताया कि लड़की अपने बाप को जेल की हवा खिलवा चुकी है. इस वजह से कोई भी शरीफ लड़का ऐसी लड़की को अपना हमसफर बनाना पसंद नहीं करेगा.

शन्नो के ननिहाल वालों की आंखों में मायूसी का अंधेरा पसर गया. वे आपस में मिलबैठ कर सोचविचार कर रहे थे कि बिगड़ी बात कैसे बनाई जाए, तभी नरगिस बानो के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. रिजवान का फोन था.

नरगिस बानो ने झट से फोन रिसीव किया और बोलीं, ‘‘तुम्हारे शुभचिंतकों ने हमारी शन्नो के खिलाफ और जो कुछ भी शिकायतें की हैं, तो वे भी हम से कह कर भड़ास निकाल लो.’’ ‘ऐसी बात नहीं है, बल्कि मैं ने तो आप लोगों से माफी मांगने के लिए फोन किया है. मुझे माफ कर दीजिए प्लीज.’

नरगिस बानो ने मोबाइल फोन का स्पीकर औन कर दिया, ताकि लड़के की बात उन के अलावा घर के दूसरे लोग भी सुन सकें.

‘आप के ही कुछ सगेसंबंधी मेरे कान भर कर मुझे गुमराह करने पर तुले थे. लेकिन भला हो एसआई पूनम मैडम का, जिन्होंने आप के रिश्तेदारों द्वारा रची गई झूठी कहानी का परदाफाश कर मेरी आंखें खोल दीं.’

‘‘लेकिन, कौन पूनम मैडम?’’ नरगिस बानो ने चौंक कर पूछा.

‘जी, वे एक पुलिस वाली होने के अलावा समाजसेवी भी हैं. उन से मेरी अच्छी जानपहचान है. मैं ने उन से शन्नो और उस के अब्बू फिरोज खान साहब से संबंधित थानापुलिस वाली बात जब बताई, तो उन्हें वह सारा माजरा याद आ गया. तब उन की पोस्टिंग बाकरपुर थाने में थी. उन्होंने मुझे सबकुछ बता दिया है, जिस से सारी बात साफ हो गई और मेरा दिल साफ हो गया.’

शन्नो के ननिहाल वाले गौर से रिजवान की बातें सुन रहे थे. रिजवान ने आगे कहा, ‘बड़े अफसोस की बात है कि अपने लोग भी कितने दुश्मन होते हैं. ऐसे लोग अगर किसी मजबूर का भला नहीं कर सकते, तो कम से कम बुराई करने से परहेज करें.’

और फिर देखते ही देखते शन्नो की शादी रिजवान के साथ करा दी गई. शादी में एसआई पूनम यादव भी दूल्हे की तरफ से शरीक हुई थीं.

विदाई के दौरान शन्नो की रोती हुई आंखें किसी को तलाश रही थीं. एसआई पूनम यादव उस की बेचैनी को समझ रही थीं. वे थोड़ी देर के लिए भीड़ से निकल गईं और जब लौटीं, तो उन के साथ शन्नो के अब्बू फिरोज खान थे. उस के हाथ में एक छोटी सी थैली थी.

अपने अब्बू को देखते ही शन्नो उन से लिपट गई और रोने लगी. फिरोज खान ने थैली शन्नो की तरफ बढ़ा दी. इसी बीच एसआई पूनम यादव शन्नो से मुखातिब हुईं, ‘‘तुम्हारे पापा ने कड़ी मेहनत और अरमान से तुम्हारे लिए ये गहने बनवाए हैं, इस की गवाह मैं हूं. मैं चाहे जहां भी रहूं, लेकिन ये कोई भी काम मुझ से मशवरा ले कर ही करते हैं.

‘‘तुम्हारे पापा अब बेटी को मुसीबत समझने की नासमझी से तोबा कर चुके हैं. तुम्हारी सारी बहनें अच्छे स्कूल में पढ़ाई कर रही हैं और खूब नाम रोशन कर रही हैं.’’

‘‘मैडमजी ठीक बोल रही हैं बेटी,’’ यह शन्नो की मां अनवरी बानो थीं.

एसआई पूनम यादव बोलीं, ‘‘बस यह समझो कि शन्नो बेटी के अच्छे दिन आ गए हैं. मुबारक हो.’’

शन्नो बोली, ‘‘आप की बड़ी मेहरबानी मैडमजी. आप ने मेरे घर वालों को बिखरने से बचा लिया,’’ इतना कह कर वह एसआई पूनम यादव से लिपट कर इस तरह रो पड़ी, जैसे वह बरसों पहले बाकरपुर थाने में उन से लिपट कर रोई थी.

Husband Wife Story- दिल जंगली: पत्नी के अफेयर होने की बात पर सोम का क्या था फैसला

रात के 10 बज रहे थे. 10वीं फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट से सोम कभी इस खिड़की से नीचे देखता तो कभी उस खिड़की से. उस की पत्नी सान्वी डिनर कर के नीचे टहलने गई थी. अभी तक नहीं आई थी. उन का 10 साल का बेटा धु्रव कार्टून देख रहा था. सोम अभी तक लैपटौप पर ही था, पर अब बोर होने लगा तो घर की चाबी ले कर नीचे उतर गया.

सोसाइटी में अभी भी अच्छीखासी रौनक थी. काफी लोग सैर कर रहे थे. सोम को सान्वी कहीं दिखाई नहीं दी. वह घूमताघूमता सोसाइटी के शौपिंग कौंप्लैक्स में भी चक्कर लगा आया. अचानक उसे दूर जहां रोशनी कम थी, सान्वी किसी पुरुष के साथ ठहाके लगाती दिखी तो उस का दिमाग चकरा गया. मन हुआ जा कर जोर का चांटा सान्वी के मुंह पर मारे पर आसपास के माहौल पर नजर डालते हुए सोम ने अपने गुस्से पर कंट्रोल कर उन दोनों के पीछे चलते हुए आवाज दी, ‘‘सान्वी.’’

सान्वी चौंक कर पलटी. चेहरे पर कई भाव आएगए. साथ चलते पुरुष से तो सोम खूब परिचित था ही. सो उसे मुसकरा कर बोलना ही पड़ा, ‘‘अरे प्रशांत, कैसे हो?’’

प्रशांत ने फौरन हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया, ‘‘मैं ठीक हूं, तुम सुनाओ, क्या हाल है?’’

सोम ने पूरी तरह से अपने दिलोदिमाग पर काबू रखते हुए आम बातें जारी रखीं. सान्वी चुप सी हो गई थी. सोम मौसम, सोसाइटी की आम बातें करने लगा. प्रशांत भी रोजमर्रा के ऐसे विषयों पर बातें करता हुआ कुछ दूर साथ चला. फिर ‘घर पर सब इंतजार कर रहे होंगे’ कह कर चला गया.

प्रशांत के जाने के बाद सोम ने सान्वी को घूरते हुए कहा, ‘‘ये सब क्या चल रहा है?’’

सान्वी ने जब कड़े तेवर से कहा कि जो तुम्हें सम झना है, सम झ लो तो सोम को हैरत हुई. सान्वी पैर पटकते हुए तेजी से घर की तरफ बढ़ गई. आ कर दोनों ने एक नजर धु्रव पर डाली. सान्वी ने धु्रव को ले जा कर उस के रूम में सोने के लिए लिटा दिया. अगले दिन उस का स्कूल भी था.

सान्वी के बैडरूम में पहुंचते ही सोम गुर्राया, ‘‘सान्वी, ये सब क्या चल रहा है? इतनी रात प्रशांत के साथ क्यों घूम रही थी?’’

‘‘ऐसे ही… वह दोस्त है मेरा… नीचे मिल गया तो साथ घूमने लगे.’’

‘‘यह नहीं सोचा कि कोई देखेगा तो क्या सोचेगा?’’

‘‘नहीं सोचा… ऐसा क्या तूफान खड़ा हो गया?’’

सुबह सोम को औफिस जाना था. वह बिजनैसमैन था. आजकल उस का काम घाटे में चल रहा था… उस का दिमाग गुस्से में घूम रहा था पर इस समय वह सान्वी के अजीब से तेवर देख कर चुपचाप गुस्से में करवट बदल कर लेट गया.

सान्वी ने रोज की तरह कपड़े बदले, फ्रैश हुई, नाइट क्रीम लगाई और मन ही मन मुसकराते हुए प्रशांत को याद करते उस की बातों में खोईखोई बैड पर लेट गई. बराबर में नाराज लेटे सोम पर उस का जरा भी ध्यान नहीं था. उस से बिलकुल लापरवाह थोड़ी देर पहले की प्रशांत की बातों को याद कर मुसकराए जा रही थी.

प्रशांत और सान्वी का परिवार 2 साल पहले ही इस सोसाइटी में करीबकरीब साथ ही शिफ्ट हुआ था. प्रशांत से उस की दोस्ती जिम में आतेजाते हुई थी जो बढ़ कर अब प्रगाढ़ संबंधों में बदल चुकी थी. प्रशांत की पत्नी नेहा और उन के 2 युवा बच्चों आर्यन और शुभा से वह बहुत बार मिल चुकी थी. आपस में घर भी आनाजाना हो चुका था. सब से नजरें बचाते हुए प्रशांत और सान्वी अपने रिश्ते में फूंकफूंक कर कदम आगे बढ़ा रहे थे. दोनों का दिल किसी जंगली की तरह न किसी रिश्ते का नियम मानता था, न समाज का कोई कानून. दोनों को एकदूसरे को देखना, बातें करना, साथ हंसना, कुछ समय साथ बिताना बहुत खुशी दे जाता था. दोनों ने अब किसी की भी परवाह करनी छोड़ दी थी.

धु्रव छोटा था. उस की पूरी जिम्मेदारी सान्वी ही उठाती थी. सोम लापरवाह इंसान था. सोम से उस का विवाह उस की दौलत देख कर सान्वी के पेरैंट्स ने तय किया था पर शादी के बाद सोम की पर्सनैलिटी सान्वी को कुछ ज्यादा जंची नहीं. जहां सान्वी बहुत सुंदर, स्मार्ट, फिटनैस के प्रति सजग, जिंदादिली स्त्री थी, वहीं सोम ढीलाढाला सा नौकरों पर बिजनैस छोड़ दोस्तों के साथ शराब पीने में खुशी पाने वाला गैरजिम्मेदार, मूडी, गुस्सैल इंसान था.

सोम के मातापिता भी इसी बिल्डिंग में दूसरे फ्लैट में रहते थे. सान्वी उन के प्रति भी हर फर्ज पूरा करती आई थी. सासससुर को जब भी कोई जरूरत होती, इंटरकौम से सान्वी को बुला लेते. सान्वी फौरन जाती. सोम घरगृहस्थी की हर जिम्मेदारी सान्वी पर डाल निश्चिंत रहता. दोस्तों के साथ पी कर आता. अंतरंग पलों में सान्वी के साथ जिस तरह पेश आता सान्वी कलप कर रह जाती. कहां उस ने कभी रोमांस में डूबे दिनरातके सपने देखे थे और कहां अब पति के मूडी स्वभाव से तालमेल मिलाने की कोशिश ही करती रह जाती.

प्रशांत से मिलते ही दिल खिल सा गया था. प्रशांत उस की हर बात पर ध्यान देता, उस की हर जरूरत का ध्यान रखता  था. सोम कभीकभी मुंबई से बाहर जाता. धु्रव स्कूल में होता तब प्रशांत औफिस से छुट्टी कर धु्रव के आने तक का समय सान्वी के साथ ही बिताता. किसी भी नियम को न मानने वाले दोनों के दिल सभी सीमाएं पार कर गए थे. दोनों एकदूसरे की बांहों में तृप्त हो घंटों पड़े रहते.

सान्वी के तनमन को किस सुख की कमी थी, वह सुख जब प्रशांत से मिला तो उस की सम झ में आया कि अगर प्रशांत न मिला होता तो यह कमी रह जाती. मशीनी से सैक्स के अलावा भी बहुत कुछ है जीवन में… अब सान्वी को पता चला सैक्स सिर्फ शरीर की जरूरत के समय पास आना ही नहीं है, तनमन के अंदर उतर जाने वाला मीठा सा कोमल एहसास भी है.

प्रशांत न मिलता तो न जाने जीवन के कितने खूबसूरत पल अनछुए से रह जाते. उसे कोई अपराधबोध नहीं है. उस ने हमेशा सोम को मौका मिलने पर किसी के साथ भी फ्लर्ट करते देखा है. उस के टोकने पर हमेशा यही जवाब दे कर उसे चुप करवा दिया कि कितनी छोटी सोच है तुम्हारी… 2 बार वह रिश्ते की एक कजिन के साथ सोम को खुलेआम रंगरलियां मनाते पकड़ चुकी है, पर सोम नहीं सुधरा. पराई औरतों के साथ मनमानी हरकतें करना उस के हिसाब से मर्दानगी है. उसे खुशी मिलती है. आज प्रशांत के साथ उसे देख कर ज्यादा कुछ शायद इसलिए ही कह न सका… प्रशांत को याद करतेकरते सान्वी को नींद आ गई.

प्रशांत घर पहुंचा तो नेहा, आर्यन, शुभा सब लेट चुके थे. आर्यन, शुभा दोनों कालेज के लिए जल्दी निकलते थे. उन के लिए नेहा को भी टाइम से सोना पड़ता था.

प्रशांत चेंज कर के बैडरूम में आया तो नेहा ने पूछा, ‘‘इतना लेट?’’

‘‘हां, टहलना अच्छा लग रहा था.’’

‘‘किस के साथ थे?’’

‘‘सान्वी मिल गई थी, फिर सोम भी आ गया था.’’

नेहा चुप रही. पति की सान्वी से बढ़ती नजदीकियों की उसे पूरी खबर थी पर क्या करे, कैसे कहे, युवा बच्चे हैं… बहुत सोचसम झ कर बात करनी पड़ती है. प्रशांत को गुस्से में चिल्लाने की आदत है. शुभा सम झ रही थी कि सान्वी को क्या पता प्रशांत के बारे में… वह बाहर कुछ और है, घर में कुछ और जैसेकि आम आदमी होते हैं. 20 साल के वैवाहिक जीवन में नेहा प्रशांत की रगरग से वाकिफ हो चुकी थी. दूसरी औरतों को प्रभावित करने में उस का कोई मुकाबला नहीं था. नेहा की खुद की छोटी बहन से प्रशांत की अंतरंगता थी. वह कुछ नहीं कर पाई थी. जब उस की बहन की शादी कहीं और हो गई तब जा कर नेहा की जान में जान आई थी. पता नहीं कितनी औरतों के साथ वह फ्लर्ट कर चुका था. गरीब घर की नेहा अपने बच्चों को सुरक्षित भविष्य देने के चक्कर में प्रशांत के साथ निभाती आई थी, पर सान्वी का यह किस्सा आज तक का सब से ज्यादा ओपन केस हो रहा था. अब नेहा परेशान थी. सोसाइटी को यह पता था कि दोनों का जबरदस्त अफेयर है. दोनों डंके की चोट पर मिलते, मूवी देखते, बाहर जाते. प्रशांत तो लेटते ही खर्राटे भरने लगा था पर नेहा बेचैन सी उठ कर बैठ गई कि कैसे रोके प्रशांत की दिल्लगियां? कब सुधरेगा यह? बच्चे भी बड़े हो गए… वह जानती है बच्चों तक यह किस्सा पहुंच चुका है, बच्चे नाराज से रहते हैं, चुप रहने लगे हैं. आजकल नेहा का कहीं मन नहीं लग रहा है. क्या करे. इस बार जैसा तो कभी नहीं हुआ था. अब तो प्रशांत और सान्वी डंके की चोट पर बताते हैं कि हम साथ है.

नेहा रातभर सो नहीं पाई. सुबह यह फैसला किया कि बच्चों के जाने के बाद प्रशांत

से बात करेगी. बच्चे चले गए. प्रशांत थोड़ा लेट निकलता था. उस का औफिस पास ही था. नेहा ने बिना किसी भूमिका के कहा, ‘‘प्रशांत, बच्चों को भी तुम्हारा और सान्वी का किस्सा पता है… दोनों का मूड बहुत खराब रहता है… सारी सोसाइटी को पता है. मेरी फ्रैंड्स ने तुम दोनों को कहांकहां नहीं देखा. शर्म आती है अब प्रशांत… अब उम्र भी हो रही है. ये सब अच्छा नहीं लगता. मैं ने पहले भी तुम्हारी काफी हरकतें बरदाश्त की हैं… अब बरदाश्त नहीं हो रहा है. तुम उस के ऊपर पैसे भी बहुत खर्च कर रहे हो. यह भी ठीक नहीं है.’’

‘‘पैसे मेरे हैं, मैं उन्हें कहीं भी खर्च करूं और रही उम्र की बात, तो तुम्हें लगता होगा कि तुम्हारी उम्र हो गई, मैं सान्वी के साथ भरपूर ऐंजौय कर रहा हूं. दरअसल, उस का साथ मु झे यंग रखता है. यहां तो घर में तुम्हारे उम्र, बच्चे, खर्चों के ही बोरिंग पुराण चलते हैं और रही सोसाइटी की बात तो मैं किसी की परवाह नहीं करता, ठीक है? और कुछ?’’

नेहा का चेहरा अपमान और गुस्से से लाल हो गया, ‘‘पर मैं अब यह बरदाश्त नहीं करूंगी.’’

प्रशांत कुटिलता से हंसा, ‘‘अच्छा, क्या कर लोगी? मायके चली जाओगी? तलाक ले लोगी? हुंह,’’ कह कर वह तौलिया उठा कर नहाने चला गया.

नेहा की आंखों से क्षोभ के आंसू बह निकले. सही कह रहा है प्रशांत, क्या कर लूंगी, कुछ भी तो नहीं. मायका है नहीं. नेहा रोती हुई किचन में काम करती रही. मन में आया, सोम से बात कर के देखूं. सोम का नंबर नेहा के पास नहीं था. अब नेहा ने सान्वी से बात करना बिलकुल छोड़ दिया था. सोसाइटी में उस से आमनासामना होता भी तो वह पूरी तरह से सान्वी को इग्नोर करती. सान्वी भी बागी तेवरों के साथ चुनौती देती हुई मुसकराहट लिए पास से निकल जाती तो नेहा का रोमरोम सुलग उठता.

अपनी किसी सहेली से नेहा को पता चला कि सान्वी 2 दिन के लिए अपने मायके गई है. अत: सही मौका जान कर वह शाम को सोम से मिलने उस के घर चली गई. सोम ने सकुचाते हुए उस का स्वागत किया.

नेहा ने बिना किसी भूमिका के बात शुरू की, ‘‘आप को भी पता ही होगा कि सान्वी और प्रशांत के बीच क्या चल रहा है… आप उसे रोकते क्यों नहीं?’’

‘‘हां, सब पता है. आप प्रशांत को क्यों नहीं रोक रही हैं?’’

‘‘बहुत कोशिश की पर सब बेकार गया.’’

‘‘मेरी कोशिश भी बेकार गई,’’ कह कर सोम ने जिस तरह से कंधे उचका दिए, उसे देख नेहा को गुस्सा आया कि यह कैसा आदमी है… कितने आराम से कह रहा है कि कोशिश बेकार गई.

‘‘तो आप इसे ऐसे ही चलने देने वाले हैं?’’

‘‘हां, क्या कर सकता हूं?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि मैं स्ट्रौंग पोजीशन में हूं नहीं, अतीत की मेरी हरकतों के कारण आज वह मु झ पर हावी हो रही है.

‘‘मेरा बिजनैस घाटे में है. मैं सान्वी को रोक नहीं पा रहा हूं, सारा दिन बैठ कर उस की चौकीदारी तो कर नहीं सकता.

‘‘बच्चे, घर और मेरे पेरैंट्स की पूरी जिम्मेदारी वह उठाती है… पर ठीक है. कुछ तो करना पड़ेगा… वह लौट आए. फिर कोशिश करता हूं.’’

नेहा दुखी मन से घर आ गई. सोम बहुत कुछ सोचता रहा. सान्वी कैसे किसी से खुलेआम प्रेम संबंध रख सकती है. बहुत हो गया… हद हो गई बेशर्मी की. आ जाए तो उसे ठीक करता हूं, दिमाग ठिकाने लगाता हूं.

उस दिन फोन पर भी उस ने सान्वी से सख्त स्वर में बात की पर सान्वी पर जरा भी

फर्क नहीं पड़ा. सोम की बातों का उस पर फर्क पड़ना बंद हो चुका था. जब से दिल की सुनने लगी थी, दिमाग भी दिल के ही पक्ष में दलीलें देता रहता था. सो जंगली सा दिल बेखौफ आगे बढ़ता जा रहा था और खुश भी बहुत था.

सान्वी आ गई. अगले दिन जब धु्रव को स्कूल भेज सुस्ताने बैठी तो सोम उस के पास आ कर तनातना सा बैठ गया. सान्वी ने महसूस किया कि वह काफी गंभीर है.

‘‘सान्वी, जो भी चल रहा है उसे बंद करो वरना…’’

सान्वी पलभर में कमर कस कर मैदान में खड़ी हो गई, ‘‘वरना क्या?’’

‘‘बहुत बुरा होगा.’’

‘‘क्या बुरा होगा?’’

‘‘जो तुम कर रही हो मैं उसे बरदाश्त नहीं करूंगा.’’

‘‘क्यों? क्या तुम मु झ से कमजोर हो? मैं तुम्हारी ये सब हरकतें बरदाश्त करती रही हूं तो तुम क्यों नहीं कर सकते?’’

‘‘सान्वी,’’ सोम दहाड़ा, ‘‘तुम मेरी पत्नी हो… तुम मेरी बराबरी करोगी?’’

‘‘मैं वही कर रही हूं जो मु झे अच्छा लगता है. कुछ पल अपने लिए जी रही हूं तो क्या गलत है? जिस खुशी का तुम ने ध्यान नहीं रखा, वह अब मिल गई… खुश हूं, क्या गलत है? ये सब तो तुम बहुत सालों से करते आए हो.’’

‘‘सान्वी, सुधर जाओ, नहीं तो मु झे गुस्सा आ गया तो मैं कोर्ट में भी जा सकता हूं… तुम्हारे और प्रशांत के खिलाफ शिकायत कर सकता हूं.’’

‘‘हां, ठीक है, चलो कोर्ट… सारी उम्र मन मार कर जीती रहूं तो ठीक है?’’

‘‘सान्वी, बहुत हुआ. प्रशांत से रिश्ता खत्म करो, नहीं तो कानूनी काररवाई के लिए तैयार रहो… मैं प्रशांत को भी नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘अच्छा? कौन सी कानूनी काररवाई करोगे? नया कानून नहीं जानते? यह न अपराध है, न पुरुषों की बपौती. औरत को भी सैक्सुअल चौइस का हक है.’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो?’’

‘‘हां, शादीशुदा होते हुए भी सालों से पराई औरतों के साथ नैनमटक्का कर रहे हो, हमारे रिश्ते को एडलट्री की आग में तुम भी  झोंकते

रहे हो.’’

‘‘पर कोर्ट ने अवैध संबंधों में जाने के लिए नहीं कहा है, न उकसाया है.’’

‘‘पर यह तो साफ हो गया है कि न तुम मेरे मालिक हो, न मैं तुम्हारी गुलाम हूं. मु झे कानून की धमकी देने से कुछ नहीं होगा. तुम्हारी खुद की फितरत क्या रही है… अब बैठ कर सोचो कि मैं ने कितना सहा है. मु झे प्रशांत के साथ अच्छा लगता है. बस, मु झे इतना ही पता है और मु झे भी खुश रहने का उतना ही हक है जितना तुम्हें. और किसी भी जिम्मेदारी से मैं मुंह नहीं मोड़ रही हूं,’’ कह कर घड़ी पर नजर डालते हुए सान्वी ने आगे कहा, ‘‘ध्रुव के स्कूल से वापस आने से पहले मु झे घर के कई काम निबटाने होते हैं, उस के प्रोजैक्ट के लिए सामान लेने भी मु झे ही जाना है,’’ कह कर सान्वी उठ कर नहाने चली गई.

बाथरूम से उस के गुनगुनाने की आवाजें बाहर आ रही थीं. सोम सिर पकड़ कर बैठा था. कुछ सम झ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे.

‘‘अगले दिन जब धु्रव को स्कूल भेज सुस्ताने बैठी तो सोम उस के पास आ कर तनातना सा बैठ गया. सान्वी ने महसूस किया कि वह काफी गंभीर है…’’

Women Empowerment Movies: बौलीवुड की 5 नारीप्रधान फिल्मों की खास बातें, आज भी क्यों हैं मशहूर

Women Empowerment Movies: आज की वूमन किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानतीं। यही वजह है कि वे हर क्षेत्र में दिखाई पड़ती हैं और सफलतापूर्वक काम भी करती हैं.

लड़कियां आज राजनीति, सैन्य, आर्थिक, सेवा, प्रौद्योगिकी जैसे हर क्षेत्रों में पूरी तरह से भाग लेती हैं. खेलों में भी वे बेहतरीन योगदान देती रही हैं.

यों महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए सरकार ने कई कानून बनाए हैं, जिस में स्त्री शिक्षा को अनिवार्य किया गया है, लड़की की मरजी के बिना शादी पर प्रतिबंध लगाया गया है, तलाक को कानूनी दर्जा दिया गया है. साथ ही आज की नारी अपनी मरजी के मुताबिक किसी भी हुनर के लिए ट्रेनिंग ले सकती हैं.

स्त्री के मजबूत होने की खास वजह उन का शिक्षित और आत्मनिर्भर बनना है, जिस से वे किसी भी परिस्थिति से डट कर मुकाबला कर सकती हैं, किसी भी परिस्थिति में वे पीछे नहीं हटतीं.

सरोजिनी नायडू, इंदिरा गांधी, प्रतिभा पाटिल, द्रौपदी मुर्मू आदि ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने अपनी मौजूदगी से सब को प्रभावित किया है और किसी भी परिस्थिति में वे पीछे नहीं हटीं.

रियल से हट कर मनोरंजन की दुनिया में भी ऐसी कई फिल्में बनीं, जिस में महिलाओं ने हर परिस्थिति का सामना करते हुए आगे बढ़ीं और दर्शकों का प्यार भी इन फिल्मों को मिला, कुछ निम्न हैं :

बैंडिट क्वीन (1984) : फूलन देवी की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ थी, जिस में सीमा बिश्वास ने बेहतरीन रोल अदा किया था और रातोरात उन्हें प्रसिद्धी मिली थी.

एक डकैत किस तरह से लोगों का मसीहा बन गई और कैसे पुरुषसत्ता को पीछे छोड़ते हुए एक महिला ने अपनी जगह बनाई, यह बताती है फिल्म ‘बैंडिट क्वीन.’

रियल में फूलन देवी के साथ बचपन में क्या हुआ था, उस के साथ जवानी में क्या हुआ और किस तरह से वह एक डकैत बन गई, यह सब कुछ इस फिल्म में बताया गया है, जिसे दर्शकों ने भी बहुत पसंद किया था.

मिर्च मसाला (1987) : 80 और 90 का ऐसा दौर था, जब समानांतर फिल्मों को दर्शक अधिक पसंद
करते थे, तब इस तरह की काफी फिल्में बनीं और कई बड़ी हीरोइनों ने काम किया। इसी कड़ी में अगर आप को पैरलल सिनेमा का शौक है, तो केतन मेहता द्वारा बनाई गई फिल्म ‘मिर्च मसाला’ जरूर देखिए.

यह फिल्म बेहद यूनिक है जिस में स्मिता पाटिल, ओमपुरी, नसीरुद्दीन शाह, रत्ना पाठक शाह, दीप्ति
नवल, सुप्रीया पाठक जैसे कलाकार मौजूद हैं. इस फिल्म को बैस्ट हिंदी फीचर फिल्म का नैशनल अवार्ड भी मिला था. इस में दिखाया गया है कि किस तरह छोटे तबके की महिलाएं अपने उत्पीड़न के खिलाफ लड़ती हैं.

अस्तित्व (2000) : फिल्म ‘अस्तित्व’ तब्बू की कुछ बेहतरीन फिल्मों में से एक फिल्म है. भारत के
पितृसत्तात्मक समाज को दिखाने वाली यह फिल्म ऐक्सट्रा मैरिटल अफेयर, पति का ऐब्यूज और एक महिला की अपनी पहचान को खोजने की कहानी है.

आखिर में वह महिला अपने पति और बेटे को छोड़ कर चली जाती है और उस की होने वाली बहू उस का साथ देती है, जो खुद अपने बौयफ्रैंड को छोड़ देती है.

यह फिल्म अपने समय से काफी आगे थी और इस की खासियत इस की दमदार ऐक्टिंग और पावरफुल कहानी है.

लज्जा (2001) : भारतीय समाज में महिलाओं के साथ क्याक्या होता है यह इस फिल्म में
दिखाया गया है. माधुरी दीक्षित, रेखा, मनीषा कोइराला, महिमा चौधरी सभी ने अपनेअपने रोल बहुत अच्छी तरह से निभाए हैं. यह फिल्म बहुत ही खास है.

‘लज्जा’ 4 महिलाओं मैथिली, जानकी, रामदुलारी और वैदेही की कहानी है। मनीषा कोइराला इस फिल्म की प्रमुख पात्र है. वैदेही (मनीषा कोइराला) और रघु (जैकी श्रौफ) पतिपत्नी हैं। रघु वैदेही के साथ अभद्र व्यवहार कर के उसे घर से बाहर निकाल देता है। वैदेही अपने मातापिता के पास लौट जाती है, लेकिन एक कार दुर्घटना में घायल होने के बाद रघु को पता चलता है कि वह कभी बाप नहीं बन सकता और इस के बाद वह पछतावे का ढोंग कर के वैदेही को वापस बुला लेता है.

वैदेही गर्भवती है और रघु सिर्फ अपना बच्चा ले कर उसे मार देना चाहता है, लेकिन वैदेही को यह सब पता चलता है और वह वहां से भाग जाती है. भागते हुए वैदेही, जानकी से मिलती है, जो एक अविवाहित मां है लेकिन उस का प्रेमी शादी से मना कर देता है और वह अकेली हो जाती है.

थिएटर में ऐक्टिंग करते वक्त दर्शक जानकी पर हमला कर देते हैं जिस से उस का गर्भपात हो जाता है. बाद में वैदेही रामदुलारी से मिलती है, जो अपने बच्चों को बचाने के लिए अपना बलिदान दे देती है. ये तीनों स्त्रियां कैसे अपने साथ हुए अत्याचार का बदला लेती हैं उस की कहानी है, जो बहुत ही मोटीवैटिव
है, जिसे देखा जा सकता है.

मैरिकोम (2014) : इंडियन बौक्सर मैरीकोम की जिंदगी पर बनी यह फिल्म प्रियंका चोपड़ा के
कैरियर की सब से बेहतरीन फिल्मों में से एक है.

एक एथलीट के लिए शादी कितनी मुश्किल बात है और शादी के बाद कमबैक करना कितना मुश्किल होता है, यह इस फिल्म में दिखाया गया है. मैरीकोम ने अपने परिवार और बच्चों के साथ अपने कैरियर को कैसे आगे बढ़ाया और कैसे सारी परेशानियों को झेला, यह इस फिल्म की कहानी है, जिस में मैरीकोम ने हर कठिन परिस्थिति से गुजर कर अपनी मुकाम हासिल की और अपना नाम पूरे विश्व मविन फैलाया.
इस प्रकार फिल्म इंडस्ट्री ने आज से कई साल पहले जो फिल्में नारीशक्ति पर बनाई थीं, इन सभी फिल्मों की कहानी आज के परिवेश में भी लागू होती है, क्योंकि उस समय इन फिल्मों की कहानी अपने समय से काफी आगे थीं. यही वजह है कि आज भी दर्शक इन फिल्मों को देखना पसंद कर रहे हैं.

मैं अपनी साली से फ्लर्ट करता था लेकिन उसका बौयफ्रैंड है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी पत्नी की छोटी बहन बहुत खूबसूरत और पढ़ने में भी काफी तेज है. अभी वह 12 वीं में है. साइंस की स्टूडेंट है, वह डाक्टर बनना चाहती है. मेरी साली बहुत ही टैलेंटेड है. हालांकि मैं उसके साथ अक्सर फ्लर्ट कर लेता हूं, पहले वह बस हंस कर रह जाती थी लेकिन अब तो वह बोलने भी लगी है.

मेरी साली बहुत अच्छे से किसी भी बात का रिस्पौन्ड करने लगी है. मुझे लगता है कि वो मुझे लाइक करती है, इसलिए उसे मुझसे बात करना अच्छा लगता है. लेकिन उस दिन मेरा दिल टूट गया जब उसने मुझे फोन किया और कहा जीजा जी, दीदी तो मेरे घर आई है, तो क्या मैं अपने बौयफ्रैंड के साथ आपके घर एक दिन ठहरने के लिए आ जाऊं? मैं ये सुनकर हैरान रह गया और कुछ देर तक मेरी बोलती बंद हो गई. मैंने उसे ये कहकर टाल दिया है कि अभी मैं इस शहर से बाहर हूं. लेकिन समझ नहीं आ रहा कि उसे क्या जवाब दूं. कृपया मेरी मदद करें.

Front view anxious man on couch

जवाब

देखिए आपकी बातों से लगता है कि आप अपनी साली से फ्लर्ट इसलिए कर रहे थे ताकि आप अपनी साली को अट्रैक्ट कर सकें. लेकिन आपकी साली पहले से ही रिलेशनशिप में है, तो ये बात जानकर आप दुखी महसूस कर रहे हैं.

आपको इस सिचुएशन को मैच्योरिटी से हैंडल करना पड़ेगा. आप अपनी साली को उसके बौयफ्रैंड के साथ अपने घर आने से मना मत करें, लेकिन उन्हें बुलाने से पहले आपको अपनी साली को अच्छे से समझाना पड़ेगा. आप रिश्ते और उम्र दोनों में अपनी साली से बड़े हैं, तो इसका लिहाज आपको रखना पड़ेगा.

आप अपनी साली से कहें कि तुम मेरे घर अपने बौयफ्रैंड के साथ आ सकती हो, लेकिन लंच, स्नैक्स या डिनर के लिए.. न कि घर पर उसके साथ ठहरने के लिए.. ऐसा इसलिए हम आपको सलाह दे रहे हैं क्योंकि आजकल लड़केलड़की की दोस्ती आम है, लेकिन दोनों के बीच कुछ ऐसा न हो, जिससे आगे आपको और उन दोनों को किसी भी परेशानी का सामना करना पड़े.

आप अपनी साली के अच्छे दोस्त बनकर उसे सलाह दे सकते हैं कि किसी भी लड़के पर आंख बंदकर भरोसा करना सही नहीं है. ये उम्र मस्ती और पढ़ाई दोनों की है, तो अपने करियर पर भी फोकस करें और दोस्तों के साथ एंजाय भी करें. साली को ये भी सलाह दें कि सीरियस रिलेशनशिप में जाने की जल्दबाजी न करें.

Makeup Product का इस्तेमाल करें लेकिन जरा संभलकर 

चाहे चेहरे की रौनक को फाउंडेशन से बढ़ाने की बात हो या फिर लिप्स को ग्लोस व लिपस्टिक से शाइनी व कलर देने की या फिर चिकबोन्स को हाइलाइटर से उभारने की या फिर आंखों को आईशैडो से ग्लैमरस लुक देने की,  लड़कियां व महिलाएं हर कोई किसी भी तरह का मेकअप करने में पीछे नहीं रहती. मेकअप के साथ आए दिन नए नए एक्सपेरिमेंट्स करना उन्हें पसंद होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दौरान हम अनजाने में कुछ मेकअप मिस्टेक्स भी कर देते हैं. जो हमारी स्किन के लिए नुकसानदायक साबित होती हैं. तो आइए जानते हैं उन मिस्टेक्स के बारे में-

1. मेकअप को रिमूव नहीं करना 

जितनी एक्साइटमेंट हमें मेकअप को अप्लाई करने की होती है, उतनी  एक्साइटमेंट हमें मेकअप को रिमूव करने की नहीं होती. हम यही सोचते हैं कि हमने तो ब्रैंडेड प्रोडक्ट चेहरे पर अप्लाई किया है. इसलिए चाहे हम मेकअप रिमूव नहीं भी करें तो भी चलेगा. जबकि आपकी ये सोच गलत है. क्योंकि मेकअप को लंबे समय तक स्किन पर लगाए रखना या फिर मेकअप को बिना हटाए सो जाने से मेकअप में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स. धूलमिट्टी के कारण स्किन पर जमी गंदगी व बैक्टीरिया पोर्स को क्लोग करने के साथ स्किन एलर्जी का कारण बनते हैं. इसलिए कभी भी मेकअप को लगाकर न सोएं.

2. मॉइस्चराइजर के बिना मेकअप 

हमें मेकअप करना तो पसंद होता है, लेकिन हमें कई बार मेकअप सम्बंधित बहुत सी चीजों की जानकारी नहीं होती है. जिसमें से एक है कि बिना मॉइस्चराइजर अप्लाई किए मेकअप अप्लाई करने की भूल. हम यही सोचते हैं कि जो काम मेकअप को करना है वो तो हो ही जाएगा, फिर मॉइस्चराइजर लगाने की क्या जरूरत. लेकिन आप शायद ये भूल जाते हैं कि जब हम बिना मॉइस्चराइजर के स्किन पर मेकअप अप्लाई करते हैं तो उससे स्किन पर डॉयनेस रहने के कारण मेकअप क्रैकी लुक देने लगता है और मेकअप भी लंबे समय तक स्टे नहीं कर पाता है. स्किन हैल्दी भी नहीं रहती. इसलिए जरूरी है कि मेकअप को अप्लाई करने से पहले स्किन को मॉइस्चराइज जरूर करें.

3. कंसीलर का गलत इस्तेमाल 

कंसीलर जिसे हम कलर करेक्टर भी कहते हैं. ये डार्क सर्कल्स, ऐज स्पोट्स. बड़े पोर्स व स्किन पर दागधब्बों को छिपाने का काम करता है. जिससे स्किन टोन में भी काफी फर्क नजर आता है. लेकिन जब आप कंसीलर को सही तरीके से नहीं लगाते. यानि जरूरत से ज्यादा कंसीलर का इस्तेमाल करते हैं तो स्किन अपना नेचुरल लुक खोने के साथसाथ पैचीपैची सी नजर आने लगती है. इसलिए जब भी लगाएं तो इसे ड्रोपड्रोप करके ही लगाएं. साथ ही लेयर्स पर लेयर्स लगाने की कोशिश न करें. वरना आपका चेहरा भद्दा नजर आने लगेगा.

4. मस्कारा की कई लेयर्स 

मस्कारा आंखों की खूबसूरती को बढ़ाने का काम करता है. क्योंकि ये आपकी पलकों को शेप देने के साथ उन्हें घना दिखाने का काम जो करता है. और कई बार हम इसकी खूबसूरती को बढ़ाने के चक्कर में इसकी एक बार में ही कईकई लेयर्स अप्लाई कर देते हैं. जिससे पलके काफी मोटी लगने के साथ वो ड्राई होने के बाद अलगअलग होकर आंखें खुबसूरत लगने के बजाय काफी अजीब सा लुक देने लगती हैं. इसलिए एक दो बार इसे ब्रश से पतलापतला ही लैशेज पर अप्लाई करें. इससे लुक बिगड़ने का डर नहीं रहता और आंखें भी ग्लैमरस लगती हैं.

5. मेकअप ब्रश को क्लीन नहीं करना 

हम मेकअप प्रोडक्ट्स को मेकअप ब्रश व ब्यूटी ब्लेंडर  से ही लगाना पसंद करते हैं, खासकर क्रीमी मेकअप प्रोडक्ट्स व फाउंडेशन को. लेकिन हम इन ब्रश व ब्यूटी ब्लेंडर को इस्तेमाल करने के बाद उन्हें क्लीन करना जरूरी नहीं समझते. जिससे चेहरे पर  स्किन प्रोब्लम्स जैसे एक्ने. ब्रेकआउट जैसी प्रोब्लम्स हो जाती हैं.  शायद आप इस बात से अनजान हैं कि मोइस्ट व गंदे ब्रश आदि में बैक्टीरिया तेजी से पनपते हैं, जो आपकी स्किन के लिए बिलकुल भी ठीक नहीं हैं. इसलिए जब भी इस्तेमाल करें तो इन्हें क्लीन करके सही जगह पर ही रखें.

 

Online Hindi Story : लौट आओ अपने वतन : विदेशी चकाचौंध में फंसी उर्वशी

लेखक- केशव राम वाड़दे

लंदन एयरपोर्ट पर ज्यों ही वे तीनों आधी रात उतरे, उर्वशी को छोड़ उस के मम्मीपापा का चेहरा एकाएक उतर गया. आंखें नम हो आईं.

एयरपोर्ट पर हर तरफ जगमगाहट थी. चकाचौंध इतनी थी कि रात होने का आभास ही नहीं हो रहा था.

इस चकाचौंध में भी उर्वशी के मम्मीपापा के चेहरों की उदासी साफ झलक रही थी. उर्वशी का रिश्ता तय करने के लिए वे लंदन उसे लड़के वालों को दिखाने लाए थे, लेकिन उन का मन इतना उदास था कि मानो उसे विदा करने आए हों.

सड़क  के दोनों ओर बड़ीबड़ी स्ट्रीट लाइटें, हर चौराहे पर रैड सिगनल, मुस्तैदी से ड्यूटी निभा रही टै्रफिक

पुलिस, साफसुथरी, चौड़ी सड़कों पर दौड़तीभागती लंबीलंबी चमचमाती कारें, बाइक, साइकिलें और विक्टोरिया (तांगे), पैदल यात्रियों के लिए ईंटों से बने फुटपाथ, अनगिनत दुकानें, मौल वहां की शोभा बढ़ा रहे थे.

उस समय लंदन की ठिठुरन वाली ठंड में भी हाफ जींस, टीशर्ट डाले, हर उम्र के कई जोड़े स्टालों पर कोल्डडिं्रक, आइसक्रीम का मजा उठाते दिखे. कहीं कोई तनाव नहीं. सुकूनभरी जीवनशैली चलती दिख रही थी.

विशाल बहुमंजिला इमारतें और उन पर टंगे बड़ेबड़े ग्लोसाइन. रास्ते में कई छोटेछोटे पार्क और उन की शोभा बढ़ाते फुहारे. हर तरफ एक सिस्टम. उर्वशी तो जैसे दूसरी दुनिया में भ्रमण कर रही थी. उस के चेहरे का उत्साह देखते ही बनता था. मन ही मन अनेक सपने संजोए उस ने. अपने वतन से कोसों दूर लंदन में अपने लिए वर देखने आना उर्वशी का उद्देश्य था. वह भारत में अपनी शादी के लिए किसी से भी बात करने में अपनी तौहीन समझती थी. और तो और अपनी मातृभाषा में बात करना भी उसे पसंद नहीं था. गिनती के लड़केलड़कियों से ही उस की मित्रता थी.

उसे लगता कि हर भारतीय गंदगी, आलस्य और बेचारगी में जीता है. भारतीय कामचोर होते हैं. यहां के बड़ेबड़े घोटाले, किसानों की लाचारी और नेताओं के बड़ेबड़े लच्छेदार भाषण? सारा दोष पब्लिक का ही तो है. यहां की सड़कें तो गायभैंसों के लिए बनी हैं ताकि वे सड़क के बीचोंबीच जुगाली कर सकें, धूलधुएं से भरा वातावरण, चूहोंमच्छरों से अस्तव्यस्त जनजीवन. ऊपर से दौड़तेभागते कुत्तों का झुंड. पान की पीकों से रंगी दीवारें, सड़कें,  बेतरतीबी से बने मकान, सोच कर ही उबकाई आने लगती थी उसे.

जमाने से चला आ रहा ‘ओल्ड फैशंड’ धोतीकुरता, सलवारजंपर, ऊपर से दुपट्टा. एडि़यों से ऊपर उठी सिमटीसिकुड़ी साडि़यां और किलो के भाव से लदे सोनेचांदी के जेवर, भला यह भी कोई पहनावा है? न चेहरे पर कोई क्रीम, न बौडीलोशन लेकिन खुद को फैशनेबल मानने वाली ये औरतें? कहीं कोई मैचिंग नहीं. अगर कपड़े ठीकठाक हों तो भी पैरों में फटी खुली जूतियां, जैसे मुंह चिढ़ा रही हों.

जेन ड्राइव कर रहा था. उर्वशी का ध्यान उस की तरफ नहीं था. उस का नाम जेन नहीं था. लेकिन जयदीप से बदल कर उस ने अपना अंगरेजों वाला नाम रख लिया था. पूरे परिवार में मात्र उर्वशी ही थी, जिस ने अपनी सभ्यता, संस्कृति बिलकुल पीछे छोड़ रखी थी. पूरी तरह पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण कर खुद को अंगरेजों जैसा ही बना डाला था उस ने.

शौर्ट स्कर्ट, पैंसिल हील वाले सैंडल, जींस, ब्रेसलेट यही सब उर्वशी को पसंद था. कंधों तक का स्टाइलिश हेयरकट, इंगलिश फिल्मों और पौप म्यूजिक की शौकीन, कांटेछुरी से खाना, एकदम बोल्ड.

भारत में तो उर्वशी को एक भी लड़का पसंद नहीं आया था. यों कहें कि वह किसी भी लड़के को देखनेमिलने में इच्छुक ही नहीं थी. उस की तो इच्छा ही थी कि उस की शादी इंडिया से बाहर ही हो चाहे वह अमेरिका हो, आस्ट्रेलिया या फिर ब्रिटेन ही क्यों न हो, पर वह भारत में शादी नहीं करेगी. चाहे उसे जिंदगी यों ही क्यों न गुजारनी पड़े.

हरियाणा में रहने वाली उर्वशी की बूआ, जो अब मुंबई में थीं और अपनी पंजाबी बोलना नहीं भूल पाईर् थीं, को उर्वशी की मम्मी सरला ने फोन किया. एक समय था जब बूआजी को उर्वशी की मम्मी से बात करना पसंद नहीं था, लेकिन आज उर्वशी के लिए रिश्ता बताने के लिए उन्होंने फोन किया, ‘‘भाभीजी, तुसी

उर्वशी दे ब्याह दी चिंता न करो. चाहो ते इक फोटो भिजवा देवो, मुंडे दी माताजी नू. इक मुंडा हैगा लंडन विच… काफी साल होए, मां हरियाणा दी रहण वाली सी. मां चाहंदी है कि लड़के दा ब्याह हिंदुस्तानी कुड़ी नाल होवे. इस वास्ते मैं फून कीत्ता…’’ बस, इधर बूआ से फोन पर बात हुई और उधर उर्वशी का परिवार लंदन पहुंचा.

जेन को देखते ही उर्वशी को लगा कि जैसे उस के सपनों का राजकुमार मिल गया हो. उस ने उर्वशी का बैग  पिछली सीट पर डाला और तुरंत डिग्गी खोल दी. तब उर्वशी ने देखा कि उस के मम्मीपापा ने अपनेअपने बैग उठा कर डिग्गी में खुद ही रखे थे. थोड़ा बुरा तो लगा था तब उसे. जेन के कहने पर वह आगे की सीट पर बैठी थी.

जयदीप से जेन तक की कहानी लंबी तो नहीं थी. जेन का परिवार हरियाणा का था. 18 वर्ष से वे लंदन में रचबस गए. होश संभालते ही जयदीप ने सब से पहला और बड़ा काम यही किया कि अपना नाम बदल कर जेन रख लिया. साथ ही अपना तौरतरीका व रहनसहन भी बदल डाला. उसे देख कोई कह ही नहीं सकता था कि वह हिंदुस्तानी है.

उर्वशी को एक नजर में वह भा तो गया, पर अभी ढेर सारी जांचपड़ताल जो करनी थी उसे.

घर कालोनी में था और काफी अच्छा भी था. बड़ा सा मेन गेट और गेट के दोनों तरफ एक कतार में नारियल के कई ऊंचेलंबे वृक्ष मकान की शोभा बढ़ा रहे थे. हर कमरा बड़ी तरतीब से सजा हुआ मिला. पर वहां रहने वाले मात्र 2 प्राणी थे. एक उस की मम्मी और दूसरा खुद वह.

चंद मिनटों में उन के सामने जेन की मम्मी ने हिंदुस्तानी भोजन परोसा, उन की मम्मी आनेजाने वाले हर हिंदुस्तानी को खुद खाना बना कर ऐसे ही खिलाती थीं, फिर देर तक हिंदुस्तान में रह रहे खासमखास लोगों के विषय में पूछती रहीं, बतियाती रहीं. वे बड़ी सलीकेदार थीं, व्यावहारिक थीं. उन के मन में कई बातों की पीड़ा थी, दर्द था जो जबान से फूट पड़ा था.

‘‘अब तो जीनामरना, सबकुछ यहीं होगा. अपने वतन की खूब याद सताती है. फिर इस के डैडी ने तो हम से नाता ही तोड़ रखा है. एक अंगरेजन के साथ रह रहे हैं. वह तो अच्छा है जो यह नौकरी कर रहा है. वरना बड़ी खराब जगह है यह और लोग बड़े गंदे हैं. बस, चमकदमक के अलावा और कुछ भी नहीं है यहां. मन तो नहीं लगता, देखो, लड़का क्या चाहता है?’’

फिर थोड़ा ठहर कर, एक लंबी सांस खींची. जब वे बोलीं तो भीतर की कड़वाहट चेहरे पर साफ झलक रही थी, ‘‘अगर अंगरेजन के चंगुल से इस के डैडी मुक्त हो जाएं तो यकीन मानें, यह देश छोड़ अपने वतन लौट आऊंगी. काश, ऐसा हो जाए.’’

जेन और उर्वशी के बीच बातचीत अधिकतर अंगरेजी में ही होती थी. जेन की फर्राटेदार अंगरेजी कभीकभी उर्वशी समझ नहीं पाती. फिर भी वह संभाल लेती. ऐसा नहीं कि जेन हिंदी नहीं जानता था, पर टूटीफूटी. हिंदी बोलतेबोलते न जाने कब अंगरेजी में घुस जाता…

‘‘चलो, तुम्हें घुमा लाऊं,’’ बात दूसरे दिन की शाम की थी. खुशीखुशी उर्वशी ने मम्मीपापा को भी साथ चलने के लिए कहा. सुनते ही जेन आगबबूला हो गया और बोला, ‘‘हमारे बीच इन बुड्ढों का क्या काम? सारा मजा किरकिरा हो जाएगा. यह तुम्हारा इंडिया नहीं, जहां कहीं भी पूरा परिवार एकसाथ निकल पड़े. यहां का कल्चर, सोसाइटी, कुछ अलग है, तभी तो यह लंदन है.’’

वह अभी और कुछ कहता, तभी सरलाजी उर्वशी को देख कर अपनी आंख हौले से भींचते हुए इशारा कर बोलीं, ‘‘तुम दोनों हो आओ, जयदीप ठीक ही कह रहा है?’’

‘‘मेरा नाम जेन है. जयदीप नहीं. इस घटिया नाम से मुझे फिर न बुलाएं. सो प्लीज, जेन कहा करें,’’ उस ने एतराज जताते हुए कहा.

‘‘ओह, सौरी जेन, आगे से याद रखूंगी,’’ सरलाजी ने सुधार कर उस हिप्पी जेन से क्षमा मांगी. उधर पापाजी  का चेहरा तमतमा उठा. उर्वशी अपनी मम्मी का इशारा समझ जेन के साथ हो ली. तब जेन का व्यवहार उसे जरा भी नहीं भाया था. ऐसा रूखापन?

काफी देर इधरउधर भटकने के बाद वे दोनों डिस्कोथिक गए. आधी रात गए डिस्कोथिक में कईकई जोड़े थिरकते दिखे. कुछ पल वह भी उर्वशी के साथ डांस फ्लोर पर रहा. फिर वह एक अंगरेज युवती के साथ देर तक डांस करता रहा.

उर्वशी जेन को देर तक निहारती रही. उसे समझने का प्रयास करती रही पर विफल रही. अभी वह उस के विषय में सोच ही रही थी कि किसी ने उस के कंधे पर हाथ रखा. वह चौंक पड़ी. सामने एक युवक खड़ा था. वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘डांस प्लीज?’’

‘‘वाय नौट,’’ वह उठ खड़ी हुई.

अभी उस ने डांस शुरू किया ही था कि उसे महसूस हुआ कि वह बदतमीजी पर उतर आया है. यही नहीं उस की बदतमीजी लगातार बढ़ती ही जा रही थी. उस ने खुद को  छुड़ाने की कोशिश की, पर अपने को छुड़ा नहीं पाई और जेन से चिल्लाचिल्ला कर मदद मांगने लगी पर जेन ने यह सब देख कर भी अनदेखा कर दिया. जैसेतैसे वह खुद मुक्त हुई और साथ ही उस ने एक जोरदार थप्पड़ उस व्यक्ति के चेहरे पर रसीद कर दिया. अंगरेज थप्पड़ खा कर तिलमिला उठा था.

जोरदार थप्पड़ की झनझनाहट से उस का सिर घूम गया था. वह कुछ भी कर जाता, अगर जेन ने मिन्नतें न की होतीं. काफी देर बाद वह शांत हुआ और जेन को धक्का देते हुए वहां से हट गया. जेन ने इस बात की नाराजगी उर्वशी पर निकाली, ‘‘जानती हो, वह एक गुंडा है. फिर, वह कौन सा निगल रहा था तुम्हें?’’

‘‘तो क्या तुम किसी के साथ हो रहे अन्याय को बस देखते ही रहोगे. विरोध नहीं करोगे उस का? कैसी परवरिश है तुम्हारी?’’ उर्वशी गुस्से में बोली.

‘‘छोड़ो भी, तुम लोगों को जीना आता ही कहां है? हर पल किसी न किसी से उलझते ही रहो बस,’’ जेन बोला.

उर्वशी ने जेन से उलझना उचित नहीं समझा और चुपचाप घर लौट आई. फिर तो रास्तेभर दोनों ने एकदूसरे से बिल्कुल भी बात नहीं की. मम्मीपापा को सोता देख वह भी सोने चली गई.

‘‘कैसा रहा जेन के साथ कल का दिन तुम्हारा?’’ सरलाजी ने उर्वशी से पूछा. उस ने मुंह बिचका दिया. सरलाजी के होंठों पर एक मुसकान तैर गई. एक  शाम को उर्वशी और उस के मम्मीपापा को जेन समुद्र किनारे ले गया.

समुद्रतट पर अंगरेजों का साम्राज्य था. नंगेधड़ंगे, कुछ तो हदें पार कर रहे थे. सरलाजी उर्वशी के साथ थीं इसलिए, बात घुमा कर बोलीं, ‘‘चलो, यहां से… बहुत घूम लिए. फिर मेरी तो सांस भी फूलने लगी है.’’ फिर वे लौटते हुए देर तक न जाने क्याक्या बड़बड़ाती रही थीं. वैसे उर्वशी को समुद्रतट का नजारा जरा भी न भाया था. यहां के लोग सभ्य, सलीके वाले होते हैं, भ्रम टूटने लगा था अब तो.

जेन ने डायनिंग टेबल पर पूछा, ‘‘कैसा लगा हमारा लंदन?’’ उस ने शराब के 2 पैग बना, मम्मीपापाजी को पेश किए. पापाजी के इनकार करने पर उस ने कहा, ‘‘आप इंडिया के लोग शराब नहीं पीते? फिर जीते कैसे हैं?’’ यही वजह है कि भारत हमेशा पीछे रहा है. अब यहां के लोगों को ही देख लें. हर कोई एंजौय करता है. जेन का इतना कहना ही उस के लिए मुसीबत ले आया. अपने को बहुत

देर से दबा कर बैठी उर्वशी अपना आपा खो बैठी जैसे सहस्र बिच्छुओं ने उसे एकसाथ काट खाया हो. ऊंची आवाज में वह कहती रही और जेन स्तब्ध खड़ा बस, सुनता ही रहा.

‘‘मैं ने यहां की तहजीब और तमीज अच्छी तरह महसूस कर ली है. बड़ीबड़ी इमारतों और झूठी चकाचौंध के अलावा और कुछ नहीं पाया. यहां बुजुर्गों का तो जरा भी लिहाज नहीं. नग्नता के अलावा और कुछ भी नहीं. जबरन एंजौय का ढोंग. फिर तुम्हारी मम्मी के होते, तुम्हारे पापा ने कितना घृणित काम किया? यही है यहां का कल्चर. औैर बात इतने में खत्म नहीं होती. तुम बुजदिल हो. तुम में इंसानियत नाम की चीज नहीं है. मेरा भारत महान है, महान ही रहेगा. वहां दिखावा नहीं है. सच्चे, सीधेसादे लोग बसते हैं, हमारे वतन में.’’

वह तैश में थी, थोड़ा ठहर कर, पल भर रुक कर बोली, ‘‘जयदीप, तुम भी अंगरेज नहीं हो. नाम बदल लेने से किसी के संस्कार, संस्कृति नहीं बदलती, समझे मिस्टर जेन. तुम भी हिंदुस्तानी हो. इस देश ने तुम में अहम भर दिया है. इस देश में तुम पूरी जिंदगी क्यों न बिता लो, तब भी तुम्हारी यहां कोई अहमियत नहीं है. मेरी यह बात याद रखना.’’

हक्काबक्का जेन स्तब्ध खड़ा सुन रहा था. जेन की माताजी भी सिर झुकाए, शर्म से गढ़ी खड़ी थीं. मम्मीपापा के साथ उर्वशी ने डायनिंग टेबल छोड़ दी. उर्वशी ने महसूस किया कि उस के मम्मीपापा की आंखों से अविरल आंसुओं की धारा बह रही थी. वे खुश थे यह जान कर कि उन की बेटी अब इस लायक हो गई है कि

वह अच्छेबुरे की पहचान कर सके और वे लोग उसे नासमझ समझते रहे थे.

बेहद दृढ़ स्वर में उर्वशी बोली, ‘‘हम कल लौट रहे हैं अपने वतन, तुम्हारा लंदन तुम्हें ही मुबारक. एक बात और कि तुम हमें छोड़ने नहीं आओगे.’’

उर्वशी का तमतमाया चेहरा देखने की ताकत जेन में थी ही नहीं, उस ने चुपचाप वहां से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी.

Winter Special Recipe : स्नैक्स में बनाएं हैल्दी पालक उत्तपम चाट, नोट करें ये रेसिपी

Writer- Pratibha Agnihotri

सर्दियों में आहार विशेषज्ञों के अनुसार इन दिनों हमारी पाचन क्षमता भी अच्छी हो जाती है  साथ ही इन दिनों कुछ चटपटा और मसालेदार खाने का भी मन करने लगता है. आज हम आपको एक हैल्दी चाट बनाना बता रहे हैं जिसे आप घर पर उपलब्ध सामग्री से बड़ी आसानी से बना तो सकते ही हैं साथ ही ये बहुत हैल्दी भी है क्योंकि इसे हमने बिना डीप फ्राई किये बनाया है तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

-पालक उत्तपम चाट

कितने लोगों के लिए           4

बनने में लगने वाला समय      20 मिनट

मील टाइप                           वेज

सामग्री(उत्तपम के लिए)

पालक प्यूरी                    1 कप

सूजी                               2 कप

खट्टा दही                        1 कप

नमक                              1 टीस्पून

जीरा                              1/4 टीस्पून

हरी मिर्च अदरक पेस्ट      1 टीस्पून

तेल                              1 टेबलस्पून

सामग्री(चाट के लिए)

उबले और मैश किये आलू      2

बारीक कटा प्याज                 1

बारीक कटी हरी मिर्च               2

बारीक कटा हरा धनिया            1 टीस्पून

हरी चटनी                             1 टीस्पून

इमली की मीठी चटनी           1 टीस्पून

मसाला बून्दी                       1 टेबलस्पून

फीकी सेव                           1 टेबलस्पून

अनार के दाने                      1 टेबलस्पून

चाट मसाला                       1/2 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर               1/4 टीस्पून

विधि

उत्तपम बनाने के लिए दही में पालक प्यूरी, अदरक, हरी मिर्च पेस्ट, जीरा और नमक डालकर अच्छी तरह चलाएं और ढककर आधे घण्टे के लिए रख दें. आधे घण्टे के बाद  फिर से अच्छी तरह चलाएं. तैयार मिश्रण में से 1 बड़ा चम्मच मिश्रण चिकनाई लगे तवे पर मोटा मोटा फैलाएं और धीमी आंच पर दोनों तरफ चिकनाई लगाकर हल्का भूरा होने तक सेंक कर तवे से उतार लें.

मैश किये आलू में चाट मसाला, लाल मिर्च, नमक और हरी धनिया अच्छी तरह मिलाएं और इसे चार भागों में विभाजित कर लें. एक प्लेट में उत्तपम को रखकर पिज्जा कटर या चाकू से चार भाग में बांट लें. उत्तपम के इन पीसेज पर आलू, हरी चटनी, लाल चटनी डालकर ऊपर से कटा प्याज, फीकी सेव, और अनार के दाने डालकर सर्व करें.

 

Travel Tips : अपनी यात्रा को बनाना है यादगार, तो रखें इन बातों का ख्याल

शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा हो जिसे घूमना पसंद ना हो. यूं तो ग्रुप में घूमना सबसे अच्छा होता है लेकिन अकेले घूमने का मजा ही कुछ और है. लेकिन यात्रा करते समय सावधानी बरतने की आवश्यकता पड़ती है. यात्रा के दौरान आपकी एक गलती भी आपको बड़ी परेशानी में डाल सकती है. जानें कि यात्रा के दौरान आप को किन-किन सावधानियों और प्लानिंग की जरूरत होती है, जिससे आपकी हर यात्रा आपके लिए सुखद और यादगार यात्रा बन जाए.

गाड़ी का रखें ध्यान

आप अकेले किसी भी निजी गाड़ी में यात्रा करने से बचें, क्योंकि रास्ते में यदि गाड़ी खराब हो गई, तो ऐसे में आपको परेशानी हो सकती है. अगर आप अपने ही वाहन से कहीं लंबे टूर में जाना चाहती है, तो आप दिन में सफर करें. जिससे आप रात होने तक अपनी मंजिल तक पहुंच जाएं.

कम से कम सामान लेकर चलें

अगर आप अकेली यात्रा कर रही हैं, तो अपने साथ कम से कम सामान लेकर चलें. एक भारी सूटकेस की बजाए दो हल्के बैग आपको ज्यादा आराम देते है. आपने साथ उतना ही सामान रखें जिसे आप खुद उठा सकें.

सेफ्टी चेन

अपने सामान को सुरक्षित रखने के लिए पहले से ही अपने सूटकेस, बैग आदि के ताले ठीक करा लें. रेल में यात्रा करते समय अपने पास सेफ्टी चेन रखना ना भूलें और इस चेन के द्वारा अपने सामान को अच्छे से लॉक करके सुरक्षित कर दें.

टॉर्च

यात्रा करते समय ये ध्यान रखें कि अपने साथ टॉर्च जरूर हो.

पास में ज्यादा पैसे ना रखें

अपने साथ अधिक नगद राशि या कीमती सामान लेकर ना चलें. इसके अलावा अपने पास डेबिट कार्ड या क्रेडिट कार्ड रखें.

ज्यादा रात तक बाहर ना घूमें

ज्यादा देर रात तक बाहर ना घूमें, ऐसा इसलिए क्योंकि आपको नई जगह के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है, इस कारण नए स्थान पर आप सावधान रहें.

बच्चों का रखें खास ख्याल

यदि आप अपने बच्चों के साथ यात्रा कर रही हैं तो जरुरी दवाएं, खाने-पीने का कुछ सामान, फर्स्ट ऐड की सामग्री अपने साथ जरूर रखें. यात्रा के वक्त अपने बच्चों को इधर-उधर ना छोड़े और बस या ट्रेन से उन्हें उतरने ना दें.

Emotional Story- विरासत: नंद शर्मा को क्या अपनी मिट्टी की कीमत समझ आई?

‘‘दादाजी, आप का पाकिस्तान से फोन है,’’ आश्चर्य भरे स्वर में आकर्षण ने अपने दादा नंद शर्मा से कहा.

‘‘पाकिस्तान से, पर अब तो हमारा वहां कोई नहीं है. फिर अचानक…फोन,’’ नंद शर्मा ने तुरंत फोन पकड़ा.

दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘अस्सलामअलैकुम, मैं पाकिस्तान, जडांवाला से जहीर अहमद बोल रहा हूं. मैं ने आप का साक्षात्कार यहां के अखबार में पढ़ा था. मुझे यह जान कर बहुत खुशी हुई कि मेरे शहर जड़ांवाला के रहने वाले एक नागरिक ने हिंदुस्तान में खूब तरक्की पाई है. मैं ने यह भी पढ़ा है कि आप के मन में अपनी जन्मभूमि को देखने की बड़ी तमन्ना है. मैं आप के लिए कुछ उपहार भेज रहा हूं जो चंद दिनों में आप को मिल जाएगा, शेष बातें मैं ने पत्र में लिख दी हैं जो मेरे उपहार के साथ आप को मिल जाएगा.’’

फोन पर जहीर की बातें सुन कर नंद शर्मा भावुक हो उठे. फिर बोले, ‘‘भाई, आज बरसों बाद मैं ने अपने जन्मस्थान से किसी की आवाज सुनी है. आज आप से बात कर के 55 साल पहले का बीता समय आंखों के आगे घूम रहा है. मैं क्या कहूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है. बस, आप की समृद्धि और उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं.’’

इतना कहतेकहते नंद शर्मा की आंखें डबडबा गईं. वह आगे कुछ न कह सके और फोन रख दिया.

14 साल का आकर्षण अपने दादाजी के पास ही खड़ा था. उस ने दादाजी को इतना भावुक होते कभी नहीं देखा था.

आकर्षण कुछ देर वहां बैठा और उन के सामान्य होने का इंतजार करता रहा. फिर बोला, ‘‘दादाजी, आप को अपने पुराने घर की याद आ रही है?’’

‘‘हां बेटा, बंटवारे के समय मैं 17 साल का था. आज भी मुझे वह दिन याद है जब जड़ांवाला में कत्लेआम शुरू हुआ और दंगाइयों ने चुनचुन कर हिंदुओं को गाजरमूली की तरह काटा था. हमारे पड़ोसी मुसलमान परिवार ने हमें शरण दी और फिर मौका पा कर एकएक कर के मेरे परिवार के लोगों को सेना के पास पहुंचा दिया था. मेरे परिवार में केवल मैं ही पाकिस्तान में बचा था. मैं भी मौका देख कर निकलने की ताक में था कि किसी ने दंगाइयों को खबर कर दी कि नंद शर्मा को उस के पड़ोसियों ने पनाह दे रखी है.

‘‘खबर पा कर दंगाई पागलों की तरह उस घर की ओर झपटे. इस से पहले कि वे मेरी ओर पहुंच पाते मुझे छत के रास्ते से उन्होंने भगा दिया.

‘‘मैं एक छत से दूसरी छत को फांदता हुआ जैसे ही सड़क पर पहुंचा कि तभी सेना का ट्रक आ गया और सेना को देख कर दंगाई भाग खड़े हुए. फिर उसी ट्रक से सेना ने मुझे अमृतसर के लिए रवाना कर दिया.

‘‘उस वक्त तक मैं यही समझता था कि यह अशांति कुछ समय की है… धीरधीरे सब ठीक हो जाएगा, मैं फिर अपने परिवार के साथ वापस जड़ांवाला जा पाऊंगा पर यह मेरा भ्रम था. पिछले 55 सालों में कभी ऐसा मौका नहीं आया. मेरा शहर, मेरी जन्मभूमि, मेरी विरासत हमेशा के लिए मुझ से छीन ली गई.’’

इतना कह कर नंद शर्मा खामोश हो गए. आकर्षण का मन अभी और भी बहुत कुछ जानने को इच्छुक था पर उस समय दादा को परेशान करना उचित नहीं समझा.

नंद शर्मा हरियाणा के अंबाला शहर में एक प्रतिष्ठित पत्रकार थे. उन की गिनती वहां के वरिष्ठ पत्रकारों में होती थी. कुछ समय पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री ने एक पत्रकार सम्मेलन में उन्हें सम्मानित किया था. उस सम्मेलन में पाकिस्तान से भी पत्रकारों का प्रतिनिधिमंडल आया हुआ था. उस समारोह में नंद शर्मा ने इस बात का जिक्र किया था कि वह विभाजन के बाद जड़ांवाला से भारत कैसे आए थे और साथ ही वहां से जुड़ी यादों को भी ताजा किया.

समारोह समाप्त होने के बाद एक पाकिस्तानी पत्रकार ने उन का साक्षात्कार लिया और पाकिस्तान आ कर अपने अखबार में उसे छाप भी दिया. वह साक्षात्कार जड़ांवाला के वकील जहीर अहमद ने पढ़ा तो उन्हें यह जान कर बहुत दुख हुआ कि कोई व्यक्ति इस कदर अपनी जन्मभूमि को देखने के लिए तड़प रहा है.

जहीर एक नेकदिल इनसान था. उस ने नंद शर्मा के लिए फौरन कुछ करने का फैसला लिया और समाचारपत्र में प्रकाशित नंबर पर उन से संपर्क किया.

नंद शर्मा एक भरेपूरे परिवार के मुखिया थे. उन के 4 बेटे और 1 बेटी थी. सभी विवाहित और बालबच्चों वाले थे. आज के इस भौतिकवादी युग में भी सभी मिलजुल कर एक ही छत के नीचे रहते थे.

आकर्षण ने जब सब को पाकिस्तान से आए फोन के  बारे में बताया तो सब विस्मित रह गए. फिर नंद शर्मा के बड़े बेटे मोहन शर्मा ने पिता के पास जा कर कहा, ‘‘बाबूजी, यदि आप कहें तो हम सब जड़ांवाला जा सकते हैं और अब तो बस सेवा भी शुरू हो चुकी है. इसी बहाने हम भी अपने पुरखों की जमीन को देख आएंगे.’’

‘‘मन तो मेरा भी करता है कि एक बार जड़ांवाला देख आऊं पर देखो कब जाना होता है,’’ इतना कह कर नंद शर्मा खामोश हो गए.

एक दिन नंद शर्मा के नाम एक पार्सल आया. वह पार्सल देखते ही आकर्षण जोर से चिल्लाया, ‘‘दादाजी, आप के लिए पाकिस्तान से पार्सल आया है,’’ और इसी के साथ परिवार के सारे सदस्य उसे देखने के लिए जमा हो गए.

नंद शर्मा आंगन में कुरसी डाल कर बैठ गए. आकर्षण ने उस पैकेट को खोला. उस में 100 से भी अधिक तसवीरें थीं. हर तसवीर के पीछे उर्दू में उस का पूरा विवरण लिखा हुआ था.

नंद शर्मा के चेहरे पर उमड़ते खुशी के भावों को आसानी से पढ़ा जा सकता था. उन्होंने ही नहीं, उन का पूरा परिवार उन तसवीरों को देख कर भावविभोर हो उठा.

एक तसवीर उठाते हुए नंद शर्मा ने कहा, ‘‘यह देखो, हमारा घर, हमारी पुश्तैनी हवेली और यहां अब बैंक आफ पाकिस्तान बन गया है.’’

नंद शर्मा के पोतेपोतियां बहुत हैरान हो उन तसवीरों को देख रहे थे. उन के छोटे पोते मानू और शानू बोले, ‘‘दादाजी, क्या इन में आप का स्कूल भी है?’’

‘‘हां बेटा, अभी दिखाता हूं,’’ कह कर उन्होंने तसवीरों को उलटापलटा तो उन्हें स्कूल की तसवीर नजर आई. अपने स्कूल की तसवीर देख कर उन का चेहरा खिल उठा और वह खुशी से चिल्ला उठे, ‘‘यह देखो बच्चों, मेरा स्कूल और यह रही मेरी कक्षा. यहां मैं टाट पर बैठ कर बच्चों के साथ पढ़ता था.’’

धीरेधीरे जड़ांवाला के बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, खेल के मैदान, सिनेमाघर, वहां की गलियां, पड़ोसियों के घर, गोलगप्पे, चाट वालों की दुकान और वहां की छोटी से छोटी जानकारी भी तसवीरों के माध्यम से सामने आने लगी. अंत में एक छोटी सी कपड़े की थैली को खोला गया. उस में कुछ मिट्टी थी और साथ में एक छोटा सा पत्र था. पत्र जहीर अहमद का था जिस में उस ने लिखा था :

‘नमस्ते, आज यह तसवीरें आप के पास पहुंचाते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है. आप भी सोचते होंगे कि मुझे क्या जरूरत पड़ी थी यह सब करने की. भाईजान, मेरे वालिद बंटवारे से पहले पंजाब के बटाला शहर में रहते थे. अपने जीतेजी वह कभी अपने शहर वापस न आ सके. उन के मन में यह आरजू ही रह गई कि वह अपनी जन्मभूमि को एक बार देख सकें. इसलिए जब मैं ने आप के बारे में पढ़ा तो फैसला किया कि आप की खुशी के लिए जो बन पड़ेगा, जरूर करूंगा.

‘भाईजान, इस पोटली में आप के पुश्तैनी मकान की मिट्टी है जो मेरे खयाल से आप के लिए बहुत कीमती होगी. इस के साथ ही मैं अपने परिवार की ओर से भी आप को पाकिस्तान आने की दावत देता हूं. आप जब चाहें यहां तशरीफ ला सकते हैं. आप अपने बच्चों, पोतेपोतियों के साथ यहां आएं. हम आप की खातिरदारी में कोई कमी नहीं रखेंगे.

‘आप का, जहीर अहमद.’

पत्र पढ़तेपढ़ते नंद शर्मा भावुक हो उठे. उन्होंने फौरन घर की पुश्तैनी मिट्टी को अपने माथे से लगाया और अपने पोते आकर्षण को बुला कर उस मिट्टी से सब के माथे पर तिलक करने को कहा.

‘‘दादाजी, पाकिस्तानी तो बहुत अच्छे हैं,’’ आकर्षण बोला, ‘‘फिर क्यों हम उस देश को नफरत की दृष्टि से देखते हैं. आज जहीर अहमद के कारण ही घरबैठे आप को अपनी विरासत के दर्शन हुए हैं.’’

‘‘ठीक कहते हो बेटा,’’ नंद शर्मा बोले, ‘‘घृणा और नफरत की दीवार तो चंद नेताओं और संकीर्ण विचारधारा वाले तथाकथित लोगों ने बनाई है. आम हिंदुस्तानी और पाकिस्तानी के दिलों में कोई मैल नहीं है. आज अगर मैं तुम्हारे सामने जिंदा हूं तो अपने उस मुसलिम पड़ोसी परिवार के कारण जिन्होंने समय रहते मुझे व मेरे परिवार को वहां से बाहर निकाला.’’

नंद शर्मा अगले कुछ दिनों तक घर आनेजाने वालों को जड़ांवाला की तसवीरें दिखाते रहे. एक दिन शाम को जब वह पत्रकार सम्मेलन से वापस आए तो ‘हैप्पी बर्थ डे टू दादाजी’ की ध्वनि से वातावरण गूंज उठा. उस दिन उन के जन्मदिन पर बच्चों ने उन्हें पार्टी देने का मन बनाया था.

नंद शर्मा को उन के पोतेपोतियों ने घेर लिया और फिर उन्हें उस कमरे की ओर ले गए जहां केक रखा था. वहां जा कर उन्होंने केक काटा और फिर सब ने खूब मस्ती की. फोटोग्राफर को बुलवा कर तसवीरें भी खिंचवाई गईं. बाद में उन में से एक तसवीर जो पूरे परिवार के साथ थी, वह जड़ांवाला भेज दी गई.

वक्त गुजरता रहा. धीरधीरे पत्राचार और फोन के माध्यम से दोनों परिवारों की नजदीकियां बढ़ने लगीं. देखते ही देखते 1 साल बीत गया. एक दिन जहीर अहमद का फोन आया, ‘‘भाईजान, ठीक 1 माह बाद मेरे बड़े बेटे की शादी है. आप सपरिवार आमंत्रित हैं. और हां, कोई बहाना बनाने की जरूरत नहीं है. मैं ने सारा इंतजाम कर दिया है. आप के पुरखों की विरासत आप का इंतजार कर रही है.’’

नंद शर्मा तो मानो इसी पल का इंतजार कर रहे थे. उन्होंने तुरंत कहा, ‘‘ऐसा कभी हो सकता है कि मेरे भतीजे की शादी हो और मैं न आऊं. आप इंतजार कीजिए, मैं सपरिवार आ रहा हूं.’’

रात के खाने पर जब सारा परिवार जमा हुआ तो नंद शर्मा ने रहस्योद्घाटन किया, ‘‘ध्यान से सुनो, हम सब लोग अगले माह जड़ांवाला जहीर के बेटे की शादी में जा रहे हैं. अपनीअपनी तैयारियां कर लो.’’

‘‘हुर्रे,’’ सब बच्चे खुशी से नाच उठे.

‘‘सच है, अपनी जमीन, अपनी मिट्टी और अपनी विरासत, इन की खुशबू ही कुछ और है,’’ कह कर नंद शर्मा आंखें बंद कर मानो किसी अलौकिक सुख में खो गए.

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