Monsoon Special Food : बच्चों के लिए बनाएं सौफ्ट टाकोज, खाने का मजा हो जाएगा दोगुना

Monsoon Special Food : अगर आप बच्चों के लिए उनके मनपसंद टाकोज बनाना चाहती है तो आज हम आपको सौफ्ट टाकोज का आसान रेसिपी बताएंगे. सौफ्ट टाकोज आसान के साथ हेल्दी रेसिपी है, जिसे आपके बच्चे चाव से खाएंगे.

 हमें चाहिए

आटा 1/4 कप

मैदा 1 कप

कॉर्नफ्लोर 3 छोटी चम्मच

नमक 1 छोटी चम्मच

बेकिंग पाउडर चुटकी भर

चिली फ्लेक्स 1 छोटी चम्मच

ऑरेगैनो 1 छोटी चम्मच और आटा गूँथने के लिए दूध

फूलगोभी 1

तेल 2 छोटी चम्मच

पिसी काली मिर्च 1 छोटी चम्मच

मक्के का आटा 2 छोटी चम्मच

नमक 1 छोटी चम्मच

बटर 2 छोटी चम्मच

नींबू का रस 3 छोटी चम्मच और हरा धनिया.

बनाने का तरीका

बाउल में आटा, मैदा, कॉर्नफ्लोर, नमक, बेकिंग पाउडर, चिली फ्लेक्स, ओरेगैनो डालकर थोड़ा-थोड़ा दूध डालकर परांठे जैसा आटा गूंथकर बीस मिनट के लिए ढक कर अलग रखें. जैसे ही बीस मिनट हो जाये, आटे की बराबर लोई बना लें और बेलकर तवे पर ही दोनों तरफ से अच्छे से सेक लें.

फूलगोभी के छोटे-छोटे फूल अलग-अलग करके गरम पानी में थोड़ा सा नमक डालकर गोभी डालकर साफ करें. माइक्रोवेव प्रूफ बाउल में फूलगोभी और थोड़ा सा पानी डालकर हाई पॉवर में 2 मिनट के लिए गोभी को ब्लांच करें.

फूलगोभी को बाउल में निकालकर तेल, पिसी काली मिर्च, मक्के का आटा और नमक डालकर अच्छे से मिला लें, फूलगोभी को बेकिंग ट्रे में फैला कर 180℃ पर ब्राउन होने तक बेक करें.

टाकोज में स्प्रेड करने के लिए क्रीम-

बंधा हुआ दही 1 कप, पनीर क्रम्बल किया हुआ 1/2 कप,  बारीक कटी हुई पत्तागोभी 2 छोटी चम्मच, हरी शिमला मिर्च बारीक कटी हुई 2 छोटी चम्मच, गाजर 1 किसा हुआ, लहसुन पाउडर 1/2 छोटी चम्मच, पेपरिका मिर्च 1 छोटी चम्मच, नमक 1/2 छोटी चम्मच और बारीक कटा हरा धनिया 2 छोटी चम्मच.

क्रीम की विधि-

दही और पनीर को अच्छे से मिलाकर फेंट कर एक क्रीम तैयार कर लें. ( चाहें तो मिक्सी जार में डालकर फेंट सकते है )  तैयार क्रीम में कटी पत्तागोभी, शिमला मिर्च, किसी गाजर, लहसुन पाउडर, पेपरिका मिर्च, हरा धनिया और नमक डालकर मिला लें.

सर्व करने की विधि-

तैयार टाकोज रोटी को प्लेट में रखकर बटर स्प्रेड कर इसके बाद रोटी के बीच में तैयार क्रीम लगा दें, बेक्ड की हुए गोभी के थोड़े-थोड़े टुकड़े डालकर ऊपर से नींबू का रस और हरा धनिया डालकर रोल कर लें और सर्व करें.

Love Story : प्रीत का गुलाबी रंग

Love Story : विहान और लता की शादी को कई साल हो गए थे मगर दोनों संतानसुख से विमुख थे. घरपरिवार और रिश्तेदारों से लता को ताने मिलने लगे. विहान और लता ने हर किस्म की इलाज करवाई. आईवीएफ प्रोसेस से भी गुजरे मगर कोई फायदा नहीं हुआ. जब हर दवा नाकामयाब होने लगी तो दोनों ने थकहार कर एक फैसला किया और फिर…

एक बच्चे की चाह में लता ने विहान को कितना गलत समझ लिया था. कैसे उस का विहान पर से भरोसा उठ गया था, वह भी बिना असलियत का आईना देखे. अब क्या करे वह, कहां जाए…

अगले दिन, अगली सुबह लता के लिए अभी भी अमावस की रात समान ही थी. विहान जो उस की जीने की वजह था उसी ने लता को जीतेजागते मौत के मुंह तक पहुंचा दिया. लता के जिस्म का पोरपोर दुख रहा था. वह चीखना चाहती थी, चिल्लाना चाहती थी, बेतहाशा रोना चाहती थी पर उस के तो जैसे आंसू ही सूख गए हों.

पूरी ताकत के साथ लता ने खुद को बेड से उठाया. शौवर के नीचे अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया. न जाने कितनी ही देर पानी की बौछारें उस पर गिरती रहीं पर एक प्रतिशत भी उस के भीतर उठने वाली अग्नि को बुझा ना सकीं.

बड़ी मुश्किल से वो सामान्य दिखने का प्रयास कर रही थी. जैसे ही विहान फैक्टरी के लिए निकला उस के थोड़ी ही देर बाद वह भी कार ले कर निकल गई. आज कार वह खुद ही ड्राइव कर रही थी.

लगभग घंटेभर बाद लता उसी घर के आगे खड़ी थी जहां कल उस की दुनिया वीरान होते लगी थी. वह डोरबैल बजाना चाह रही थी पर उस की हिम्मत नहीं पड़ रही थी. उस का दिल इतनी जोर से धड़क रहा था जैसे पसलियां तोड़ कर बाहर आ जाएगा. उस के पांव जैसे उस का साथ छोड़ चुके थे. फिर भी उस ने एक कदम आगे बढ़ाया तो ऐसा लगा जैसे उस का वह कदम मनों भारी हो गया हो. उस ने डोरबैल बजाने की पूरी कोशिश की पर उस का हाथ ही नहीं उठा.

कौन दरवाजा खोलेगा, कैसे सामना कर पाएगी वह उस औरत का उस बच्चे का.

‘‘नहीं… नहीं… मैं नहीं देख पाऊंगी, उफ यह कैसी दुविधा है.’’

अंत में लता जल्दी से उलटे पांव वापस अपनी कार में आ बैठी. उस की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं. कुछ देर बाद उस की रुलाई फूट ही पड़ी. उस ने अपना चेहरा स्टेयरिंग पर टिका दिया.

‘‘उफ, विहान, यह कौन से मोड़ पर खड़ी हूं मैं आज, तुम्हारी वजह से सिर्फ तुम्हारी वजह से, मेरी सांसें घुट रहीं हैं, यह क्या किया तुम ने? ऐसा क्यों किया?’’

कुछ संभली लता तो एक बार फिर उस ने घर के दरवाजे की ओर देखा और एक ठंडी सांस भर कर कार स्टार्ट कर दी.

घर वापस आने पर लता ने अपने कमरे में विहान की अलमारी को बुरी तरह खंगाल डाला. हरेक दराज का 1-1 कोना उस ने बारीकी से छाना. तभी अलमारी के सब से ऊपर वाले खाने के एक कोने में उसे एक वालेट नजर आया. उस ने वालेट को उठा कर अच्छी तरह से देखा तो उसे याद आया कि यह तो वही वालेट है जो विहान के लंदन से छुट्टियों में आने पर मौल में शौपिंग के दौरान लता ने विहान के लिए खरीदा था और पैकिंग करते हुए उस के एक प्यारे से लव नोट के साथ उस के बैग में रख दिया था.

लता ने धीरे से वालेट खोला. उस में उस का लिखा हुआ नोट आज भी रखा हुआ था. लता ने उसे दोबारा खोल कर पढ़ा. नोट में लिखा था, ‘‘सरप्राइज इसे कहते हैं और कभीकभी ऐसे भी दिए जाते हैं, तुम्हारी मैडम लता.’’

विहान तो अकसर मैडम कहता आया था प्यार से लता को और लता को भी उस के मुंह से यह सुनना अच्छा लगता था. पूर्व के वे हंसतेखिलखिलाते पल उस की यादों की पगडंडी से गुजरे तो उस हालत में भी लता के चेहरे पर फीकी सी मुसकान खेल गई.

लता ने फिर वालेट को और खोला तो उस के अंदर कुछ पाउंड्स, एक बिल जो किसी हौस्पिटल का था, 3-4 शौपिंग बिल्स और वालेट के सीक्रेट कंपार्टमैंट में से एक तसवीर मिली जिस ने लता के वजूद को हिला कर रख दिया.

एक तसवीर जिस में विहान एक लड़की के साथ है और लता को पहचानने में एक पल का वक्त नहीं लगा कि यह वही लड़की जो कल विहान के साथ थी. दोनों किसी चर्च के बाहर खड़े थे. वह लड़की आगे खड़ी थी और सफेद गाउन में थी. विहान एकदम उस के पीछे था और उस ने उस लड़की के कंधे पर हाथ रखा हुआ था. अचानक लता ने तसवीर पलटी तो पीछे दोनों के नाम लिखे थे, ‘‘विहान ऐंड तारा.’’

लड़की का नाम तारा था और इसी के साथ एक तारीख लिखी थी और लिखा था, ‘‘वैडिंग डे,’’ पर इस शब्द पर बुरी तरह से पैन चलाया हुआ दिख रहा था.

लता के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया बस आंखों से निरंतर आंसुओं की धारा बहती रही. कुछ देर वह तसवीर को देखती रही फिर उस ने आंसू पोंछे और तसवीर वालेट में वापस रख दी पर इस बार सीक्रेट कंपार्टमैंट में नहीं रखी और वालेट को अलमारी में यथास्थान रख दिया.

‘‘यह कैसी पहेली है? विहान और तारा, क्या दोनों ने लंदन में शादी? नहींनहीं, ये मैं क्या सोचने लग गई पर इस में गलत क्या है. वह तारा का ही बच्चा था और विहान को डैड पुकार रहा था तो ज़ाहिर है कि विहान ही उस का पिता है. उफ, इतना बड़ा धोखा, अगर विहान अपना अलग ही परिवार बसा चुका था तो मु?ा से इस शादी के क्या माने हैं? क्या इसलिए ही वह पिता बनने को इतना आतुर नहीं दिखता क्योंकि संतान सुख से तो केवल मैं वंचित हूं, वह तो पिता होने का सुख भोग ही रहा है.’’

विहान के भोलेभाले से चेहरे के नकाब के पीछे यह घिनौना रूप होगा, यह तो लता सोच भी नहीं सकती थी पर विहान ने ऐसा क्यों किया, बहुत सोचने के बाद भी लता इस सवाल का जवाब नहीं खोज पा रही थी.

तभी लता का मोबाइल बज उठा. उस ने अलमारी बंद की और मोबाइल उठाया. विहान की कॉल थी. उस का उस वक्त बिलकुल दिल नहीं चाह रहा था विहान से बात करने का. उस ने मोबाइल पलंग की साइड टेबल पर रख दिया.

थोड़ी देर बाद मोबाइल फिर बज उठा. इस बार लता ने कुछ पल मोबाइल की स्क्रीन पर अपनी और विहान की हंसती हुई तसवीर को देखा और कौल अटैंड कर ही ली.

‘‘लता, क्या हुआ, तुम कौल क्यों नहीं पिक कर रही थीं?’’

विहान की आवाज सुन कर लता का दिल जैसे एकदम से पिघल गया हो. उस ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि उस की और तारा की वह तसवीर उस की आंखों के आगे घूम गई. वह कुछ कहतेकहते खामोश हो गई.

‘‘लता, क्या हुआ? कुछ बोल नहीं रहीं. तबीयत तो ठीक है?’’ विहान का स्वर अब चिंतित हो उठा था.

‘‘कुछ नहीं विहान, मैं ठीक हूं, हां बोलो, कैसे कौल की?’’ लता ने जैसे समूची ताकत जुटा कर जवाब दिया हो.

‘‘दरअसल, मुझे औफिस से ही मुंबई के लिए निकलना होगा, बहुत जरूरी मीटिंग है, 3-4 दिन लग जाएंगे, सूटकेस पैक कर के यहीं भिजवा देना.’’

लता के होंठों पर व्यंग्यभरी मुसकान फैल गई पर ऊपरी तौर पर उस ने कुछ जाहिर नहीं किया. विहान की जरूरी मीटिंग अब वह समझ रही थी.

‘‘ठीक है विहान,’’ उस ने ठंडे से स्वर में कहा.

‘‘हैं, बस ठीक है, कहां तो इतना शोर मचा देती हो मेरे कहीं जाने पर कि वहां से यह लाना, वह लाना, न हो तो मैं भी साथ ही चलती हूं, तुम फाइलें देखना, मैं तुम्हें देखूंगी और आज यह सूखा सूखा सा ठीक है, क्या बात है भई…’’ विहान ने तो प्यारभरी शिकायतों की झड़ी सी लगा दी थी.

इस वक्त लता बिलकुल कमजोर पड़ कर रोना नहीं चाहती थी पर उस का दिल उस का साथ नहीं दे रहा था. उस ने बहुत मुश्किल से अपनेआप को कुछ संभाला और बोली, ‘‘ऐसी तो कोई बात नहीं, बस जरा सा सिर में दर्द था.’’

‘‘सिरदर्द, बुखार तो नहीं? मांजी और मम्मीपापा भी यहां नहीं, तबीयत ज्यादा खराब हो तो कहो, जाना कैंसल कर दूं?’’

‘‘अरे नहीं, बस सिरदर्द है और कुछ नहीं, मैं सूटकेस भिजवाती हूं, तुम बेफिक्र हो कर जाओ, मैं बिलकुल ठीक हूं.’’

‘‘चलो, ठीक है फिर,’’ इस के साथ ही उधर से कौल कट गई.

विहान मुंबई चला गया तो रात को खाली बैडरूम लता को चुभने लगा. इस वक्त विहान कहां होगा वह इस की कल्पना भी नहीं करना चाहती थी. उस ने पूरी रात आंखोंआंखों में ही काट दी.

सवेरे उठी तो उस दिन काफी हद तक लता खुद को मानसिक तौर पर तारा से मिलने के लिए तैयार कर चुकी थी. दोपहर होतेहोते लता एक बार फिर उसी घर के आगे खड़ी थी जहां इन दिनों तारा रह रही थी और इस वक्त शायद अंदर विहान भी हो.

लता सधे कदमों से उतरी और धीमे से चलते हुए घर के दरवाजे के सामने पहुंची और डोरबैल बजा दी.

दरवाजा खुलने में लगने वाले कुछ पल भी लता को सदियों समान लग रहे थे. उस ने दोबारा बैल बजानी चाही पर उसी वक्त दरवाजा खुला. सामने वही वृद्ध महिला खड़ी थीं.

‘‘यस, हू आर यू? कौन हो तुम?’’ महिला ने धीरे से पूछा.

‘‘क्या विहानजी यहीं रहते हैं?’’ लता ने कुछ सकुचाते हुए पूछा.

‘‘हाउ डू यू नो विहान? तुम विहान को कैसे जानती हो?’’ महिला अब कुछ परेशान सी नजर आने लगी थी.

लता का दिल तो चाहा अभी उन्हें बता दे कि वह कौन है पर वह शांत ही रही.

‘‘आंटीजी, कल विहानजी का यह पर्स हमारी कैब में छूट गया था,’’ लता ने विहान का वालेट वृद्ध महिला के सामने करते हुए कहा.

महिला कुछ भी न समझने वाली निगाहों से लता को देखती रही.

‘‘दरअसल, आंटी कल विहानजी जिस कैब में आए थे उसे मेरा भाई चलाता है, कल शायद गलती से विहानजी का यह पर्स कैब में ही रह गया. कल मेरे भाई की तबीयत अचानक कुछ खराब हुई तो यहां से सीधा घर ही आ गया और कैब से उतरते समय उस की नजर इस पर्स पर पड़ी तो उस ने इसे उठा कर खोल कर देखा.

अंदर विहानजी का फोटो देख कर वह समझ गया कि उन का पर्स गलती से गिर गया है, उस ने मुझे पता बताया और जिद कि मैं आज ही यह पर्स विहानजी तक पहुंचा दूं. फोटो के पीछे नाम लिखे हुए हैं, उसी से विहानजी का नाम पता चला. आप पर्स देख लीजिए. सब ठीक है न…’’ लता खुद न जान सकी कि वह इतना सब कैसे कह गई.

महिला ने लता के हाथ से वालेट लिया और खोल कर देखा. अंदर विहान और तारा की तसवीर देख कर उन्हें कुछ संतुष्टि सी हुई और उन्होंने लता से अंदर आने के लिए कहा.

लता कुछ झिझकती सी उन के पीछे अंदर चली गई. अंदर पहुंचने पर देखा कि एक बड़ा कमरा है जिस में सामने दीवार पर टीवी स्क्रीन लगी है और एक सोफासैट है और एक कोने में एक टेबलकुरसी रखी थी. एक तरफ परदा था जो उस के पीछे एक और कमरे के होने का एहसास करवा रहा था. इसी बड़े कमरे के एक तरफ झने से हलके हरे रंग के परदे के पीछे से छोटी सी रसोई बनी हुई दिख रही थी.

लता ने चारों तरफ अच्छे से निगाहें घुमा कर देखा पर उसे किसी कोने में विहान और तारा की कोई तसवीर न दिखाई दी.

तभी महिला ने उस की आगे रखी छोटी सी सैंटर टेबल पर पानी का गिलास रखते हुए कहा, ‘‘थैंक यू बेटा, तुमने यह ईमानदारी दिखाई, आजकल तो धोखे का ही टाइम है, किसी से कोई होप नहीं है,’’ यह कहते हुए महिला ने एक गहरी सांस ली फिर लता की ओर देखते हुए बोलीं, ‘‘मेरा नाम शरन है, सौरी, मैं भूल गई, तुम ने क्या नाम बताया बेटा अपना?’’

लता को याद आया कि अभी तक उस ने अपना नाम तो बताया ही नहीं. अत: उस ने जल्दी से कहा, ‘‘रश्मि.’’

लता ने बात आगे बढ़ाने की कोशिश की. उस ने शरन से पूछा, ‘‘आंटी, आप यहां की लगती नहीं, मेरा मतलब है कि आप लोग क्या कहीं भारत के बाहर से…?’’

‘‘लंदन से आए हैं हम लोग,’’ उन्होंने धीमे से जवाब दिया.

इस से पहले कि लता कुछ और पूछती उसे परदे के पीछे वाले कमरे से ग्रैंडमां पुकारते हुए किसी बच्चे की आवाज सुनाई दी. यह शायद उसी बच्चे की आवाज थी जो उस दिन विहान को डैड पुकार रहा था. लता के दिल की धड़कनें तेज हो गईं थीं.

शरन जल्दी अंदर जाना चाह रही थीं कि तभी उन्हें ध्यान आया कि लता उन के सामने बैठी है. वे उठीं और जल्दी से अंदर के कमरे में जाने की कोशिश में लड़खड़ा सी गईं तो लता ने झट से उन्हें सहारा दिया. वे मुसकरा कर रह गईं और उन्होंने लता को बैठने के लिए कहा. वे अंदर गईं और कुछ ही पलों में बाहर आ गईं. लता ने देखा तो उन के हाथ में कुछ नोट थे.

‘‘बेटा, आप का बहुतबहुत थैंक यू, यह बस मेरी तरफ से,’’ उन्होंने लता को वे नोट थमाने चाहे.

‘‘अरे आंटी, यह क्या कर रही है,’’ लता ने उन का हाथ थाम लिया.

तभी अंदर से दोबारा आवाज आई. अब की बार शरन को अंदर जाना ही पड़ा.

लता का दिल चाह रहा था कि अगले ही पल वह भी अंदर पहुंच जाए पर उस के पांव तो जैसे जमीन से जुड़ गए थे. कुछ मिनट बाद शरन बाहर आईं तो लता ने उन से जाने की इजाजत मांगी.

शरन ने एक बार फिर नोट वाला हाथ आगे बढ़ाया तो लता ने न में सिर हिला दिया और तेजी से कमरे के दरवाजे से बाहर चली गई.

घर वापस आई तो उस का सिर फटने को हो रहा था. तेज दर्द उसे बेचैन कर रहा था. सिरदर्द की गोली खा कर उस ने खुद को बैड पर पटक दिया. उसे पता ही नहीं चला कि कब उस की आंखें मुंदती चली गईं.

लता जिस वक्त उठी उस वक्त रात के 9 बज रहे थे. उस ने मोबाइल देखा तो विहान की 3 मिस्ड कौल्स आई थीं. वह उन्हें अनदेखा करती हुई बालकनी में आ खड़ी हुई. ठंडी हवाओं ने उस के चेहरे को सहलाया तो लता ने आंखें बंद कर लीं. कुछ देर वह वहीं खड़ी रही.

वापस अंदर कमरे में आई तो कपड़े बदल कर फिर लेट गई. यह पहेली वह सुल?ा नहीं पा रही थी पर आज उस घर तारा को न पा कर उसे दुख भी बहुत हुआ. उसे उस का शक यकीन में बदलता दिख रहा था. हो सकता था कि आज की तारीख में विहान और तारा एकसाथ ही हों.

यह विहान ने उसे जीवन के किस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है जो वह इस तरह अपने ही पति की जासूसी जैसा काम करने को मजबूर हो गई है. वह बिलकुल उस घर में दोबारा जाना नहीं चाहती थी पर विहान की इस सचाई से परदा कौन उठाएगा? कौन बताएगा उसे कि जिस जाल में वह खुद को फंसा पा रही है आखिर वह किस ने बुना है?

अगली सुबह गरम चाय का घूंट उस के गले से नीचे उतरा तो उसे लगा जैसे उसे उबकाई आ जाएगी. वह बाथरूम की ओर भागी. बाहर आई तो उसे अपनी तबीयत बिलकुल सही महसूस नहीं हो रही थी. जिस्म निढाल हुआ जा रहा था. उस ने न चाहते हुए भी वर्षा को कौल कर दी.

वर्षा ने उसे आराम करने की हिदायत देने के साथ जल्द ही उस के पास पहुंचने की बात की. दोपहर में कबीर के साथ वर्षा लता के पास आई तो लता ने झट से कबीर को गोद में खींच लिया.

‘‘अरे, क्या कर रही हो भाभी, लेटी रहो न और यह क्या हुआ तुम्हें. चेहरा कैसे पीला पड़ा हुआ है. बुखार है क्या?’’ वर्षा लता को देख कर घबरा सी गई.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है बस बहुत कमजोरी महसूस हो रही है, आराम करूंगी तो बिलकुल ठीक हो जाऊंगी.’’

‘‘अच्छा, फिर मुझे क्यों बुलाया, जानती हूं तुम्हें मैं,जब भी तबीयत खराब होती है ऐसी ही बातें करती हो, डाक्टर के पास जाने के नाम से ही तुम्हारी तबीयत आधी ठीक हो जाती है पर आधी या पूरी, तबीयत जैसी भी हो रही हो, डाक्टर को तो दिखाना ही है, चलो उठो, भैया को फोन करती हूं अभी.’’

‘‘नहींनहीं, विहान को फोन मत करना, आज उन की बहुत जरूरी मीटिंग है, मैं चल रही हूं,’’ लता जल्दी से बोली. वह अभी भी विहान से बात करने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रही थी.

‘‘उफ, भैया की इतनी फिक्र, थोड़ा खुद पर भी ध्यान दे लो, चलो जल्दी कपड़े बदलो,’’ वर्षा ने पूरे अधिकार से कहा.

उस का ऐसा प्यार देख कर लता फिर रोने को हो आई. वर्षा, मांजी, सब कितना चाहते हैं उसे. इन लोगों से तो वह अलग होने के बारे में सोच भी नहीं सकती है.

लता को सम?ा नहीं आ रहा था कि क्या होगा जब सब को विहान की असलियत पता लगेगी. सब के सामने तो वह एक आदर्श बेटा, भाई और पति के रूप में दिखाई देता है. ये लोग तो उस के इस कर्म से बिलकुल अनजान हैं.

‘‘अरे, कहां खो गई, आ जाएंगे भैया भी बस 1-2 दिन की बात तो है,’’ वर्षा ने लता को शून्य में गुम होते देख कहा.

डाक्टर के पास से वापस आने पर लता जहां पहले से ज्यादा खामोश हो गई थी वहीं वर्षा के तो जैसे खुशी से पांव ही जमीन पर न थे.

‘‘भाभी, भाभी, भाभी, यह क्या किया तुम ने, न मुझे मांजी को फोन करने दिया, न भैया को, आखिर इस खबर का हम सभी को कितनी बेचैनी से इंतजार था.’’

लता बस खामोशी से वर्षा को देखे जा रही थी.

‘‘कबीर, अब जल्दी से कबीर का भाईबहन आएगा, वाह, कितना मज़ा आएगा कबीर को अब यहां. है न बोलो, बोलो?’’ वर्षा कबीर को गोद में उठा कर बहुत ज्यादा खुश थी.

लता अब तो जैसे बिलकुल ही सोचनेसमझने की हालत में नहीं थी. जिस घड़ी का उसे और विहान को न जाने कब से इंतजार था वह खुशी की खबर देने का वक्त आया भी तो तब जब लता विहान को खुद से अलग मानने लगी थी. आज अगर सब पहले सा होता तो वह और विहान खुशी से पागल हो गए होते.

तभी वर्षा ने विहान को फोन लगा दिया, ‘‘और भैया, कब वापस आ रहे हो… हांहां, भाभी की तबीयत बिलकुल ठीक है, मैं तो बस ऐसे ही मिलने चली आई थी, क्या आप को अभी 3-4 दिन और लग सकते हैं? ठीक है, लो भाभी से बात करो,’’ वर्षा ने मोबाइल लता के कान से सटा दिया.

मजबूरन लता को भी फीकी मुसकराहट के साथ मोबाइल पकड़ना पड़ा.

वर्षा कबीर के साथ खेलतेखेलते बाहर चली गई.

‘‘हां विहान, कैसे हो? हां तबीयत बिलकुल सही है मेरी, हां अब वर्षा रहेगी मेरे पास, जब तक तुम लौट नहीं आते, ओके बाय,’’ लता ने कौल काट दी और मोबाइल ले कर बाहर आ गई.

‘‘हां भाभी, हो गई बात? क्लीनिक से तो तुम ने बताने नहीं दिया तो यहां से फोन लगा दिया मैं ने. अब तो बता दिया, भैया तो खुशी से झूम गए होंगे, बताओ न?’’

‘‘अभी नहीं बताया,’’ लता उसे मोबाइल देती हुई बोली.

‘‘हैं… अच्छा, सामने ही बताओगी, यह भी सही है. अच्छा देखो, यह अमोल के दोस्त की शादी थी, वहां की तसवीरें,’’ कह वर्षा बीती रात के फंक्शन की तसवीरें दिखाने लगी. तभी कबीर रोने लगा तो वर्षा झट से उठ कर उस के पास चली गई.

मोबाइल की गैलरी खुली हुई थी. लता बेखयाली में तसवीरें स्क्रौल करे जा रही थी. अचानक उस का हाथ जैसे एक तसवीर पर जड़ हो कर रह गया. विहान और तारा की तसवीर. यह तो वही तसवीर है पर यह क्या यह तसवीर पूरी थी. तारा के हाथ में किसी और का हाथ था और वही उस का जीवनसाथी था शायद. तसवीर में वह बहुत प्यार से तारा को देख रहा था और जिस तरह विहान तारा के पीछे था उसी तरह एक और लड़का दूसरी तरफ खड़ा था जिस ने दोनों हाथों से एक खूबसूरत सजा हुआ बोर्ड उठा रखा था. बोर्ड पर लिखा था, ‘‘रिचर्ड वेड्स तारा.’’

वर्षा जैसे ही लता के पास आई, लता ने जल्दी से पूछा, ‘‘वर्षा, यह किस का फोटो है? यह विहान किन लोगों के साथ है?’’ लता बेसब्र हो उठी थी.

‘‘ये, ये लोग तो भैया के दोस्त हैं, यह कैविन, यह रिचर्ड और यह तारा. पता है भाभी तुम्हें रिचर्ड और तारा की लव मैरिज है,’’ वर्षा तसवीर देखती हुई बोली.

उस के बाद वह और भी न जाने कितनी बातें करती रह गई पर लता को जैसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.

तो फिर तारा यहां भारत में क्या कर रही है और रिचर्ड कहां है? अगर यह बच्चा रिचर्ड का है तो फिर वह विहान को डैड क्यों कह रहा था?’’

तभी कबीर पापा पापा कहते हुए उन दोनों के पास चला आया.

‘‘अपने पापा को याद कर रहा है,’’ वर्षा हंसती हुई बोली.

‘‘अरे, बस अभी पापा लेने आ जाएंगे हमारे कबीर को,’’ लता प्यार से बोली.

‘‘अरे नहीं,अमोल आज नहीं आएंगे, अब तो जब भैया आएंगे मैं तभी जाऊंगी, तुम्हारी तबीयत सही नहीं है.’’

‘‘वर्षा रानी, मैं बिलकुल ठीक हूं, क्यों जीजाजी के गुस्से का शिकार हमें बनवा रही हो,’’ लता ने वर्षा से चुहल करते हुए कहा, ‘‘वर्षा, यकीन करो, मेरी तबीयत अब बिलकुल ठीक है.’’

‘‘चली जाऊं, भैया आ रहे हैं क्या?’’ वर्षा उसे छेड़ते हुए बोली.

लता ने भी खुल कर हंसी में उस का साथ दिया.

‘‘अच्छा, वर्षा वह तसवीर सैंड करना जरा मुझे, वह विहान के फ्रैंड्स वाली, विहान ने तो अपना यह ग्रुप कभी मुझे दिखाया ही नहीं, लौटने पर खबर लेती हूं तुम्हारे भैया की,’’ लता ने थोड़े से बनावटी गुस्से से कहा.

अगले दिन सवेरे वर्षा चली गई तो लता एक बार फिर तारा के घर पहुंची.

शरन ने दरवाजा खोला तो लता ने सीधा मोबाइल उन के आगे किया.

शरन ने तारा और रिचर्ड की तस्वीर देखी तो बेहद हैरान हुई.

‘‘यह फोटो तुम्हारे पास कैसे आया? कौन हो तुम?’’ शरन का लहज अब गुस्से में बदल गया था.

‘‘अंदर आ जाइए आंटी, यहां दरवाजे पर खड़े हो कर बात करना सही नहीं है,’’ और लता ही शरन को पकड़ कर धीरेधीरे अंदर ले आई. लता ने उन्हें सोफे पर बैठा दिया.

‘‘अब बताइए आंटी, क्या यह तारा का पति है और अगर यह तारा का पति है तो तारा का बच्चा विहान को डैड क्यों कहता है?’’ लता अब बेझिझक हो कर शरन से सवाल कर रही थी.

‘‘तुम कौन होती हो ये सब जाननेपूछने वाली और सब से पहले यह बताओ कि यह फोटो तुम्हारे पास कैसे आया?’’ शरन अभी भी गुस्से में थी.

‘‘मैं विहान की पत्नी हूं, लता,’’ ये कहने के साथ ही लता भी उन के साथ सोफे पर बैठ गई.

शरन की जैसे समस्त हिम्मत जवाब दे गई हो.

‘‘आंटी, बताइए सच क्या है? अपनी खामोशी तोडि़ए और बताइए कि विहान की जिंदगी में ये सब क्या चल रहा है? वह अकेला नहीं है इस जीवन में, उस के साथ बहुतों की धड़कनें बंधी हैं, उन की मां हैं, उन की बहन और मैं उन की पत्नी. बताइए मुझे क्या रिश्ता है तारा और विहान का? क्या तारा आप की बेटी है? तारा का बच्चा विहान को डैड क्यों कहता है? मुझे सारे सवालों के जवाब चाहिए आंटी,’’ लता शरन को देखती हुई बोली.

‘‘हां, तारा मेरी बेटी है,’’ शरन ने गहरी सांस ली और लता को सब बताना शुरू किया.

‘‘विहान जब लंदन आया था तब वह एक अपार्टमैंट में केविन और रिचर्ड के साथ रहता था. रिचर्ड मेरी फ्रैंड का बेटा था और तारा को भी चाहता था. मैं और रिचर्ड के घरवाले तारा और रिचर्ड की शादी करवाने के बारे में भी हम सोचते थे.’’

लता को बताते हुए लंदन का वह अतीत जैसे शरन की आंखों के आगे उतर आया था…

‘‘रीटा, अब जल्द ही तारा और रिचर्ड की मैरिज हो जाए तो अच्छा है. तारा के फादर की डैथ के बाद मैं बहुत अकेली हो गई हूं इसलिए अपनी ये रिस्पौंसिबिलिटी जल्दी पूरा करना चाहती हूं.’’

‘‘रिचर्ड ने तो जबसे तारा को लीना की पार्टी में देखा है तभी से उसे पसंद करने लगा है, अब बस हमें तो मैरिज की डेट फिक्स करनी है.’’

रीटा की बात सुन कर शरन काफी खुश

हों गई.

शाम में रिचर्ड तारा को ले जाने के लिए घर आया. तारा और रिचर्ड का मूवी जाने का प्लान था. उस दिन तारा बहुत सुंदर लग रही थी. दोनों खुशीखुशी घर से गए.

रात को जब तारा वापस आई तो कुछ चुप सी थी. अगले 3-4 दिन रिचर्ड भी घर नहीं आया तो शरन ने तारा से पूछा, ‘‘तारा व्हाट हैपेंड… तुम्हें क्या हुआ है, कुछ दिनों से इतनी उदास क्यों लग रही हो? क्या रिचर्ड से कोई फाइट हुई है?’’

तारा जवाब में खामोश ही रही.

शरन ने दोबारा पूछा तो तारा कुछ अनमनी और रोंआसी सी हो उठी.

‘‘मौम, जिस दिन मैं रिचर्ड के साथ मूवी देखने गई थी उस दिन वह मुझे एक होटल में ले गया था. वहां पर वह मेरे बहुत पास आने की कोशिश कर रहा था. मैं ने मना किया तो बोला कि अगर यहां रहकर भी तुम्हारे थौट्स इतने बैकवर्ड हैं तो मु तुम में कोई इंट्रैस्ट नहीं है, चलो घर चलें.’’

तारा रिचर्ड की बात सुन कर बहुत हर्ट हुई पर फिर भी उसे सम?ाते हुए बोली, ‘‘फौरन में रहने का यह मतलब तो नहीं न कि हम अपनी लिमिट क्रौस कर दें?’’

‘‘तारा, हमारी मैरिज होने वाली है, क्यों दूर कर रही हो खुद को मु?ा से, देखो खुद को आज कितनी ब्यूटीफुल लग रही हो.’’

रिचर्ड तारा के बहुत करीब आ चुका था. उस ने अपने हाथों में उस का चेहरा थाम लिया. तारा पिघलने लगी.

नदी का बांध टूट गया. बहाव क्षणिक था पर इतना तेज कि कुछ ही पलों में अपने साथ बहुत कुछ बहा कर ले गया.

शरन बहुत दुखी हुई पर तारा का उदास चेहरा देख कर उन्होंने अपने चेहरे के भाव बदले और तारा को अपने सीने से लगा कर प्यार से उसे सम?ाने लगी, ‘‘जो हुआ सो हुआ, मैं आज ही रीटा से तुम दोनों की मैरिज की बात करती हूं, अब तुम दोनों की मैरिज में देर नहीं होनी चाहिए. चलो अब अच्छी सी स्माइल दे दो मम्मी को.’’

अगले महीने ही दोनों की शादी हो गई पर तारा को जल्द ही रिचर्ड की असलियत पता चल गई. वह एक ऐय्याश किस्म का लड़का था. रातों को नशे में लड़खड़ाता हुआ घर पहुंचता था और 1-2 बार तो तारा पर हाथ भी उठा चुका था. तारा उस के इस बिहेवियर से बहुत परेशान हो चुकी थी.

शरन ने रीटा से बात की तो उस ने दो टूक जवाब दे दिया, ‘‘लुक शरन, मुझे तुम से ऐसी होप नहीं थी, तुम्हारे हसबैंड होंगे पुराने विचारों वाले इंडियन पर तुम तो यहीं की हो, यहां ये सब चलता रहता है. एक तो तुम ने बच्चों की मैरिज की इतनी जल्दी मचा दी और अब चाहती हो कि मेरा बेटा हर टाइम तुम्हारी बेटी का सर्वेंट बना रहे. वह क्या कहते हैं तुम्हारे हसबैंड के देश में… हां… जोरू का गुलाम,’’ रीटा व्यंग्यबाण छोड़ती हुई बोली.

‘‘कुछ बातें हर जगह बुरी लगती हैं फिर चाहे वह देश हो या विदेश, अपने बेटे को उस की गलती पर समझने की जगह उस की साइड ले रही हो जबकि तुम ख़ुद भी एक औरत हो,’’ शरन को रीटा से ऐसी उम्मीद नहीं थी.

अगले महीने पता चला कि तारा प्रैगनैंट है. उन्हीं 2-4 दिनों में रिचर्ड ने बेशर्मी की सारी हदें पार कर दीं. वह घर पर ही किसी लड़की को ले आया और तारा के सामने ही उस लड़की से करीबियां बढ़ाने लगा. तारा ने उस रात उस से बहुत झगड़ा किया पर रिचर्ड उस की कोई बात सुनने को तैयार न था बल्कि वह तो तारा को ही घर से बाहर निकालने पर आमादा हो गया.

तारा ने उसे बताया कि वह मां बनने वाली है तो रिचर्ड ने उस से कहा कि यह बच्चा उस का नहीं है, अगर वह शादी से पहले उस के साथ सो सकती है तो किसी और के साथ भी संबंध रख सकती है, ऐसे में वह यह मानने को बिलकुल तैयार नहीं था कि यह बच्चा उस का है.’’

‘‘आज के टाइम में यह पता लगाना कि यह बच्चा तुम्हारा है या नहीं, कोई मुश्किल बात नहीं है पर अब मैं खुद नहीं चाहूंगी कि मेरे बच्चे के बाप तुम कहलाओ,’’ तारा ने एक तमाचा उस के चेहरे पर जड़ दिया और रातोंरात घर छोड़ दिया. जल्द ही दोनों का तलाक हो गया. तारा शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत कमजोर हो चुकी थी. डाक्टरों को कहना पड़ा कि उस का शरीर बच्चे को जन्म देने की ताकत नहीं रखता. पर तारा हर हाल में यह बच्चा चाहती थी पर अपनी कमजोरी के चलते मजबूर थी. उसे 7वें महीने में लेबर पेन उठ गया.

आधी रात का वक्त था. शरन अकेली तारा को संभाल नहीं पा रही थी और इन हालात में शरन कुछ सू?ा भी नहीं रहा था कि तभी रिचर्ड के अपार्टमैंट के 2 दोस्तों का खयाल आया. तारा की शादी में तो विहान उस का भी बहुत अच्छा दोस्त बन गया था.

शरन ने जल्दी से तारा के मोबाइल से विहान को कौल की. उस के बाद सबकुछ बहुत तेजी से हुआ. विहान केविन के साथ तुरंत तारा के घर पहुंचा और फिर हौस्पिटल ले जाने से ले कर और जौन के जन्म के बाद तारा के डिस्चार्ज होने तक वह साथ ही रहा.

शरन और तारा उस की एहसानमंद हो चुकी थी. इन सब के दौरान विहान और तारा की बहुत अच्छी दोस्ती हो गई थी. शरन ने महसूस किया कि तारा विहान को पसंद करने लगी है. एक दिन विहान घर आया तो प्यार से जौन के साथ खेलने लगा कि तभी तारा ने पीछे से विहान के कंधे पर हाथ रख दिया.

विहान ने मुड़ कर देखा तो तारा की आंखें कुछ अनकहा सा बयां कर रही थीं. तारा विहान की ओर मुसकराती हुई देख रही थी. दोनों खामोश थे पर विहान तारा की आंखों की भाषा समझ चुका था.

‘‘नहीं तारा, यह नहीं हो सकता, मैं किसी और से प्यार करता हूं,’’ कहने के साथ ही विहान वहां से चला गया.

कुछ पलों को तो तारा का चेहरा मुर?ा गया पर जल्द ही उसे विहान का स्पष्ट होना बहुत भाया. उसे गर्व हो आया विहान पर जो उस ने कभी किसी भी तरह तारा का फायदा नहीं उठाना चाहा. अपनी एकतरफा मुहब्बत के बदले विहान की दूरी से तो अच्छा था कि वह उस के जैसे साफ दिल वाले मानस की सच्ची दोस्त बनी रहे. कल ही विहान से मिल कर बात करूंगी और उसे सारी बात सम?ाऊंगी, इसी सोच के साथ रात गुजरते ही अगली सुबह जैसे ही तारा विहान से मिलने पहुंची तो केविन ने उसे बताया कि वह तो बीती रात ही इंडिया चला गया है.

तारा ने उसे काफी बार कौल की पर विहान से बात न हो सकी. कई दिनों बाद तारा ने विहान को मैसेज किया.

‘‘डियर विहान,

‘‘क्या मुP से इतनी बड़ी गलती हुई कि तुम मुेेेेझे बिना बताए इंडिया चले गए? विहान, उस दिन वह बस मेरे दिल के जज्बात थे जो मेरी आंखों से झलक गए थे पर मेरा भरोसा करो, तुम मेरे लिए बहुत रिस्पैक्टेबल इंसान हो और सिर्फ मेरे लिए ही नहीं सभी के साथ तुम्हारा व्यव्हार इतना अपनापन और प्यार लिए होता है कि कोई भी तुम्हारी जादू भरी पर्सनैलिटी से दूर नहीं हो पाएगा और उन में से मैं भी एक हूं पर अब तुम्हारा प्यार मुझे दोस्ती के रूप में मिल जाए तो अपनेआप को बहुत खुश समझूंगी. बिलीव मी, मैं दोस्ती के खूबसूरत रिश्ते में हमेशा अपनी लिमिट का ध्यान रखूंगी.’’

तारा नहीं जानती थी कि इस वक्त विहान यह मैसेज पढ़ रहा था तो वह लंदन वापस जाने के लिए एअरपोर्ट ही पहुंचा था.

तारा वहां शरन से कुछ छिपा न सकी और उस ने शरन से यह भी कहा कि शायद मेरी बातों से विहान हर्ट हुआ हो और अब वह मुझ से दोस्ती भी न रखे.

शरन ने उसे समझाया कि ऐसा नहीं होगा. विहान बहुत बड़े दिल का मालिक है. वह उसे दोस्त के रूप में जरूर मिलेगा और शरन की बात सच साबित हुई.

विहान और तारा अच्छे दोस्त बन चुके थे. विहान ने तो तारा को यह भी बताया कि वह नहीं जानता कि लता भी उस से बहुत प्यार करती है और जब एअरपोर्ट पर उस ने आई लव यू कहा तो विहान तो बस जवाब में उसे देखता ही रह गया. वह जिंदगी का इतना प्यारा सच ऐसे अपने सामने आने की उम्मीद नहीं रखता था. उस वक्त वह लता को अपने दिल की बात भी नहीं बता सका कि वह भी उसे उतना ही चाहता है.

मगर विहान ने वर्षा को जरूर यह बात बताई तो वर्षा ने उस से कहा कि अरे भैया, मैं तो शुरू से ही जानती थी कि आप दोनों एकदूजे से बहुत प्यार करते हैं बस इजहार करने में मेरी सहेली बाजी मार गई.

‘‘मांजी और अंकलआंटी मान जाएंगे?’’ विहान ने वर्षा से पूछा.

‘‘सब ठीक होगा भैया, आप बस दिल लगा कर वहां पढ़ाई कीजिए. पर कैसे दिल लगाएंगे वह तो अब यहां है,’’ वर्षा ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छा वर्षा,अब जब तक वापस नहीं आ जाता लता से जरा कम ही बात करूंगा. अब वापस लौटने पर ही लता के सामने ही बात करूंगा.’’

‘‘इस के लिए बिना हवाईजहाज के हवाहवाई बन कर मत आ जाइएगा.’’

विहान अकसर तारा और शरन को वर्षा की बातें बताता तो दोनों हंसतीहंसती दोहरी हो जातीं.

तारा अकसर विहान से कहती, ‘‘लता इज सच ए लकी गर्ल.’’

देखते ही देखते विहान के वापस जाने का दिन आ गया. विहान ने दोनों से वादा लिया कि कुछ ही दिनों में वर्षा की शादी है और वे शादी में शामिल होने के लिए इंडिया जरूर आएं.’’

तारा ने कहा कि वह जरूर आएगी वर्षा की शादी में भी और विहान की शादी में भी. जातेजाते तारा ने अपना और विहान का एक फोटो भी विहान को दिया पर शरन की तबीयत सही न होने की वजह से वे लोग शादी में शामिल न हो सके.

विहान और लता शादी के बाद बहुत खुश थे पर बीतते वक्त के साथ संतानसुख न पाने का दर्द लता और विहान को मायूस कर देता था.

एक दिन विहान हैरान रह गया जब तारा ने उसे अपने भारत आने के बारे में बताया. विहान ने महसूस किया कि तारा की आवाज में खुशी का कोई सुर न था. तारा ने उस से कहा कि हो सके तो विहान उस के लिए किसी किराए के घर का इंतजाम कर दे.

‘‘किराए का घर क्यों? किसी होटल में क्यों नहीं?’’ विहान कुछ न समझते हुए बोला.

‘‘मैं आने के बाद तुम्हें सब समझा दूंगी,’’ तारा का स्वर अभी भी उदासी लिए था.

एअरपोर्ट पर जौन ने जब उसे डैड कहा तो विहान ने घोर आश्चर्य के साथ तारा की ओर देखा.

‘‘प्लीज, प्लीज विहान, अभी जौन को कुछ मत कहना, वह वही कह रहा है जो मैं ने उसे बताया है,’’ विहान असमंजस में था.

विहान एक साधारण सा घर किराए पर लिया. वह वहीं सब को ले गया. जौन और शरन को घर छोड़ कर विहान ने तारा से कहा कि वह उस के साथ बाहर चले. तारा बिना किसी सवाल के उसी पल उस के साथ बाहर आ गई.

‘‘तारा, यह सब क्या है? तुम ने जौन को मुझे उस के पिता के रूप में दर्शाया हुआ है… तुम ने ऐसा क्यों किया है… जानती हो इस का रिजल्ट कितना खराब होगा, मेरी फैमिली तबाह हो सकती है…’’ विहान कुछ गुस्से से तारा को यह सब कह रहा था.

‘‘जौन को अपना लो विहान, प्लीज जौन को अपना लो, वह बहुत प्यारा और मासूम है, उसे एक फैमिली की जरूरत है, उसे प्यार की जरूरत है,’’ तारा फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘तारा, क्या हुआ है तुम्हें, क्या बात है, बताओ मुझे?’’ विहान बहुत हैरानपरेशान सा हो रहा था.

‘‘मैं मर रही हूं विहान, मुझे कैंसर है, डाक्टरों ने कहा है कि अब ज्यादा से ज्यादा 3 महीने हैं मेरे पास,’’ तारा बिलकुल खोखले स्वर में बोली.

‘‘तारा, क्या कह रही हो? तुम्हें कैंसर… ये सब कब… कैसे?’’ विहान को अपने कानों पर यकीन नहीं आ रहा था.

‘‘कुछ दिनों से मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. हौस्पिटल चैकअप करवाने गई पर बहुत ज्यादा कमजोरी की वजह से मुझे चक्कर आ गया, मैं बेहोश हो गई. होश आया तो मैं हौस्पिटल में ही थी. डाक्टर ने वहीं मेरे कुछ टैस्ट करवाए. अगले कुछ दिनों में रिपोर्ट्स आईं तो पता चला कि मैं कैंसर की गिरफ्त में हूं और अब मेरे पास समय बहुत कम है.’’

‘‘यह सुन कर जौन का चेहरा मेरी आंखों के आगे घूम गया. मुझे अपनी नहीं उस की दुनिया वीरान होती नजर आ रही थी. मौम इस हालत में नहीं कि वह अब जौन की परवरिश कर सके. जौन जिस की लाइफ अभी शुरू हुई है वह कैसे जिंदगी जीएगा. उस ने बाप के प्यार को तो कभी महसूस ही नहीं किया था और अब मां का प्यार भी उस से दूर होने वाला था.

‘‘मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था. मैं तो जैसे अपनी सोचनेसमझने की ताकत खो चुकी थी. दिनरात जैसे हवा बन कर उड़ रहे थे और हाथ से वक्त रेत की तरह फिसल रहा था.

‘‘एक दिन जब तुम्हारा फोन आया तो मैं ने तुम्हारी आवाज में बहुत उदासी महसूस की. ख़ुद से ज्यादा तुम लता के लिए दुखी थे.

‘‘तब मुझे लगा कि अगर आप लोग जौन को अपना लो तो मेरे बच्चे को फैमिली और आप की फैमिली को एक बच्चा मिल जाएगा. विहान, बोलो न विहान, मेरे बच्चे को अपना लो, मुझे पता है मैं स्वार्थी हो रही हूं, पर मैं एक मां हूं, इस वक्त जौन से ज्यादा और उस के आगे कुछ नहीं सोच पा रही हूं. प्लीज विहान, मेरी हालत को समझ,’’ तारा रो रो कर बेहाल हुए जा रही थी.

विहान यह सब सुन कर खुद को बहुत अजीब स्थिति में पा रहा था. तारा के लिए वह बहुत दुखी हुआ पर जो वह चाह रही थी वह किसी भी हालात में किसी के लिए भी आसान परिस्थिति नहीं होने वाली थी. तभी जौन अपने नन्हेनन्हे कदमों से चलता हुआ विहान के पास आया और उस की टांगों को पकड़ लिया.

विहान ने उसे धीरे से अपनी गोद में उठा लिया. जौन का मासूम चेहरा उस का दिल पिघला रहा था कि तभी जौन के मुंह से निकला, ‘‘डैड.’’

विहान का मन जैसे भीग गया. उस ने जौन को गले से लगा लिया. यह देख कर तारा को ऐसा लगा जैसे तपती धूप में उसे किसी पेड़ की छाया मिल गई हो.

शरन खिड़की के एक कोने से खड़ी यह सब देख रही थी. आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे.

‘‘लता, विहान को कभी गलत मत सम?ाना, वह तुम से बहुत प्यार करता है, मैं समझती हूं कि इस वक्त विहान की लाइफ में जो कुछ हो रहा है वह एक बीवी होने के नाते तुम्हारे लिए बहुत तकलीफ देने वाला है पर बेटा इसमें विहान की कोई गलती नहीं है,’’ शरन रो रही थी और लता तो जैसे खुद को अपराधी महसूस कर रही थी.

कितना कुछ गलत सोच लिया था उस ने बिना असलियत का आईना देखे. उस का विहान पर से विश्वास कैसे डगमगाया यह सोच कर लता को खुद पर क्रोध आ रहा था. ऐसा लग रहा था उसे कि वह तो माफी मांगने ले काबिल नहीं रही.

तभी विहान का वहां प्रवेश हुआ, ‘‘लता, तुम यहां?’’ विहान हैरानी से भर उठा.

लता तेजी से उस के सीने से लग गई. कुछ देर तक दोनों के बीच सिर्फ निश्चल प्रेम के आंसुओं की धारा का प्रवाह होता रहा फिर लता ने ही कहा, ‘‘आंटी ने मुझे सब बता दिया है. आज कितने ऊपर उठ गए हो मेरी नजरों में मैं बयां नहीं कर सकती हूं. कल तक प्यार करती थी और अब एक महान इंसान को पूजने का दिल चाह रहा है.’’

‘‘लता, मैं तुम्हें कैसे सब बताऊं, बस बात करने का सही मौका तलाश रहा था और सोच रहा था कि न जाने तुम इसे किस तरीके से स्वीकार करोगी.’’

‘‘जो तुम ने किया और आगे भविष्य में जिस तरह से तुम एक मासूम को एक परिवार का प्यार देना चाहते हो तो तुम्हारी इस सोच से अलग मैं सोच सकती हूं क्या? क्या मुझ पर विश्वास नहीं था? एक बार कह कर तो देखते,’’ लता ने रोते हुए ये सब कहा.

‘‘बच्चा गोद लेने पर कभी तुम ने कोई प्रतिक्रिया नहीं…’’

लता ने उस के होंठों पर अपनी उंगली रख दी.

तभी शरन ने पूछा, ‘‘बेटा तारा कहां है?’’

‘‘हौस्पिटल में ही है आंटी, मैं आप को लेने ही आया था.’’

लता ने घबरा कर विहान की ओर सवालिया निगाहों से देखा.

‘‘तारा को मैं अपने डाक्टर दोस्त के भी दिखा रहा था पर वहां से भी उम्मीद नहीं जगी, तारा अभी उसी के हौस्पिटल में है. 3-4 दिन पहले ही उस ने पूरी तरह से तारा की हालत को देख कर जवाब दे दिया था इसलिए मैं तारा के साथ था.’’

यह सब सुन कर शरन के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. लता ने शरन को गले से लगा लिया.

उस दिन सूर्यास्त के वक्त तारा की जिंदगी का दीया भी सदा के लिए बु?ा गया. जौन को लता ने संभाल लिया था.

अगले वर्ष होली पर वर्षा जब सपरिवार अपने मायके आई तो कबीर आते  ही जौन और आयुषी के साथ खेलने में मस्त हो गया.

विहान और लता की बिटिया आयुषी अभी 3 माह की थी. वर्षा ने तो आयुषी को गोद में ले कर खूब प्यार किया.

तभी वैदेहीजी की आवाज सुनाई दी और सभी उस दिशा में देखने लगे.

‘‘जौन, कबीर इधर आओ,तुम लोगों की पिचकारियां भर गई हैं.’’

बच्चे भागते हुए चले गए. वर्षा भी आयुषी को गोद में ले कर वहीं चली गई. वहां सभी थे. वैदेहीजी, विवेक और अरुणाजी और उन के साथ बैठी थी शरन. बच्चों को देख कर सभी उनके साथ खेलने लगे.

तभी विहान ने लता के गालों को गुलाल से रंग दिया. लता ने हंसते हुए वहां से भागने की कोशिश की तो विहान ने उसे अपने करीब खींच लिया.

‘‘थैंक यू लता, जौन को इतने प्यार से अपनाने के लिए, तुम ने आंटी को भी वापस नहीं जाने दिया. थैंक यू सो मच मेरी मैडमजी हर कदम पर मेरा साथ देने के लिए, मेरी हर उलझन को सुलझाने के लिए, तुम्हारे बिना मेरा यह जीवन बिलकुल अधूरा है,’’ विहान भावुक हो उठा था.

लता की भी आंखें भर आई थीं. उस ने भी विहान के सीने में अपना चेहरा छिपा लिया. उस के गालों पर प्रीत का गुलाबी रंग और अधिक गहरा हो उठा था.

Short Funny Story : श्रीमतीजी का टीवी प्रेम

Short Funny Story : इनदिनों टीवी चैनलों पर अपराधों के प्रति जनता को जागरूक करने वाले धारावाहिकों की बाढ़ सी आई हुई है. लोग भले ही इन धारावाहिकों से कोई सीख लें न लें पर हमारी श्रीमतीजी तो इन कार्यक्रमों की इतनी भक्त हैं कि पूछिए मत.

हमारे औफिस से घर लौटने के दौरान वे टीवी के आगे ही पसरी मिलेंगी. टीवी के आगे बैठने का उन का अंदाज देख हमें बादशाहों का जमाना याद हो आता है.

उस दिन काम के बोझ से हमारा सिर दर्द से फटा जा रहा था. घर में घुसने पर श्रीमतीजी को चाय बनाने को कहा तो तपाक से बोलीं, ‘‘चायवाय तो बाद में पीते रहना, जरा टीवी

देखो और जानो कि आजकल वारदातों को अंजाम देने के लिए अपराधी क्याक्या तरकीबें अपना रहे हैं. भला हो इन चैनल वालों का जिन्होंने हमें घर बैठे ही अपराधों से सचेत करने का बीड़ा उठा रखा है.’’

श्रीमतीजी की अंधश्रद्धा के आगे हम से कुछ कहते न बना. चुपचाप रसोई में जा कर हम ने खुद चाय बनाई.

रात को श्रीमती की चीखें सुन हम हड़बड़ा कर उठ बैठे. देखा तो वे ख्वाब में चिल्ला रही थीं, ‘‘पकड़ो… पकड़ो…’’

हम ने उन्हें झकझोर कर उठाया तो उलटा हम पर ही बरस पड़ीं, ‘‘अच्छाभला सपना देख रही थी. चोर चोरी कर चुपके से निकल रहा था कि मैं ने उसे देख लिया. उसे दबोचने ही वाली थी कि आप ने मुझे उठा दिया. हुंह…’’

अब श्रीमतीजी की इस हालत पर हम रोएं या ठहाके लगाएं.

कल ही की बात है. औफिस के बाद थोड़ा बाहर का काम निबटाते हुए हम थोड़ा

देरी से घर पहुंचे. गृहस्वामिनी ने हमारी आंखों में सीधे झांकते हुए पूछा, ‘‘कहां लगा दी इतनी देर? सचसच बताओ… कहीं बाहर किसी दूसरी से तो नैन नहीं लड़ा रहे? आजकल सीरियलों में दिखाते हैं कि पति ने बाहर भी दूसरी औरत रखी हुई है और घर में ब्याह कर लाई गई बेचारी पत्नी को भनक भी नहीं होती.’’

थोड़ी देर हमारा चेहरा देख कर फिर गंभीरता से बोलीं, ‘‘अगर तुम्हारा भी कोई ऐसा ही प्लान हुआ तो खैर नहीं. आजकल की औरत वह नहीं कि पतिदेव कह कर आगेपीछे मंडराती हुई उस की हर गलती को नजरअंदाज कर दे. मैं शिक्षित हूं और कानून तुम से बेहतर समझती हूं. किसी मुगालते में न रहना.’’

श्रीमतीजी के इस कानूनी ज्ञान के आगे हमारी भला कहां चलने वाली थी. सो चुप्पी साधने में ही भलाई समझी.

अब तो श्रीमतीजी इतनी ज्यादा जागरूक हो गई हैं कि हमारे पास मोबाइल होने के बावजूद गाहेबगाहे औफिस में फोन कर हमारा जायजा लेती रहती हैं.

हम आभारी हैं इंडिया को होशियार करने वाले इन कार्यक्रमों के निर्माताओं का, जिन से और कोई सावधान हो चाहे न हो पर हमारी श्रीमतीजी इतनी होशियार हो गई हैं कि अब

उन्हें लगता है कि समाज की हर शादीशुदा औरत अपने पति का जुल्म सह रही है. पता चला कि उन्होंने नारीमुक्ति संस्था खोलने का मन भी बना लिया था. पर बड़ी मुश्किल से मेरे सालेसाली के समझाने पर अपने उस इरादे को बदला.

श्रीमतीजी के गुप्तचरी कौशल की भी बात निराली है. हर सोमवार घर पर श्रीमतीजी की सखीसहेलियों का जमावड़ा लगता है. सब अपनेअपने पति, सासससुर, ननद वगैरह की रिपोर्ट पेश करती हैं और हमारी श्रीमती अपने टीवीप्रदत्त ज्ञान का सदुपयोग करते हुए उन सब को घर में अपना राज करने का कानून सिखाती हैं. धन्य है टीवी और महाधन्य हैं इस के कार्यक्रम, जिन्होंने आज की नारी को इतना जागरूक कर दिया है कि अपराधों की रोकथाम हो न हो पर पति बेचारे की पुंगी जरूर बज गई है.

Hindi Satire : नाक की लड़ाई

Hindi Satire : इन दिनों मेरा घर पानीपत का मैदान बना हुआ है. जिस ओर देखो उसी ओर एकदूसरे को चुनौती दी जा रही है. मैं ने पत्नी लक्ष्मी से पूछा, ‘‘मेरी लच्छो, इस छोटे से फ्लैट को घर समझो. यहां आराम से रहने में तुम्हें क्या परेशानी है?’’

‘‘मैं तो शांतिपूर्वक रहना चाहती हूं, मगर मांजी ही सुकून से रहना नहीं चाहतीं. जब देखो तब अपनी नाक चढ़ाए घूमती रहती हैं. आर्डर पे आर्डर देती रहती हैं, यह मत करो, वह मत करो, अपनी नाक का कुछ तो खयाल रखो,’’ लक्ष्मी ने अपनी तोता नाक पर टिका चश्मा ठीक करते हुए कहा.

मैं समझ गया कि सासबहू में नाक को ले कर तकरार हो रही है. दोनों जिद्दी स्वभाव की हैं. दोनों में से कोई भी एक अपनी नाक छोटी करना नहीं चाहतीं. मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि यदि नाक छोटी हो गई तो क्या फर्क पड़ जाएगा. मगर नहीं, लक्ष्मी बता रही थी कि विवाह पर उस की माताश्री ने उसे समझाते हुए कहा था, ‘बेटी, हमारा परिवार नाक वालों का है. हमारी नाक समाज में प्रतिष्ठित है. ससुराल में अपनी नाक की प्रतिष्ठा बचाए रखना. मर जाना मगर नाक पर आंच मत आने देना.’

बस, तब से अब तक लक्ष्मी चौबीसों घंटे अपनी उंगली नाक पर रखे रहती है. यहां तक कि वह अपनी नाक पर मक्खी तक बैठने नहीं देती. लक्ष्मी का नासिका मोह मुझे भी लुभा गया. जिस नारी को अपनी नाक से एक बार प्रेम हो जाए उस का पति उसे नाक में कम से कम एक बार लौंग पहना कर हमेशा के लिए उस के नखरों से बच जाता है. मैं ने देखा है, जिस संभ्रांत महिला को जब अपनी सुराहीदार गरदन से स्नेह हो जाता है उस समय उस के पति का दिवाला निकलने में देर नहीं लगती. गले के लिए नेकलेस, हार खरीदने के लिए कईकई तोले स्वर्ण भेंट चढ़ जाता है. नारी मूड की तरह ग्रीवा आभूषणों की डिजाइनें बदलती रहती हैं और हर 1-2 वर्ष में पति की नाक में पत्नी अपनी फरमाइशों की नकेल डालती रहती है.

नाक की लड़ाई घरघर में युगों से चली आ रही है और आगे भी निरंतर चलती रहेगी. कोई भी अपनी नाक को कटते हुए नहीं देख सकता. जिस की नाक एक बार कट जाती है वह दोबारा नहीं जुड़ पाती. संभ्रांत समाज में जिस की नाक कट जाती है उसे ‘नक्टा’ की उपाधि से सुशोभित किया जाता है. जिस से वह बेशर्म की तरह कटे नाक का दर्द, पीड़ा, टीस, सूर्पणखा की तरह ढोता रहता है, आत्मग्लानि के बोझ तले अपनी कटी नाक हथेली में लिए रात की नींद व दिन का चैन खोता रहता है. हर कोई चाहता है कि भैया, चाहो तो मेरी गरदन काट लो, मगर मेहरबानी कर के नाक मत काटिए. नाक में ही मेरे प्राण बसते हैं. बिना नाक के जीना, कोई जीना है, लल्लू.

लोगों ने नाक को प्रतिष्ठा का प्रश्न क्यों   बनाया है, कान को क्यों नहीं बनाया, शोध का विषय है. मैं भी नाक के महत्त्व पर चिंतन कर रहा हूं. क्या सचमुच किसी की नाक देख लेने मात्र से ही उस के चरित्र का

पता लगाया जा सकता है? कहा जाता है कि जिन की नाक समकोणी होती है वे उदार, बुद्धिमान, महत्त्वाकांक्षी स्वभाव के होते हैं. मैं ने लक्ष्मी की नाक देखी, वह न्यूनकोण नसिका वाली थी.

मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘लच्छो, तुम्हारे स्वभाव का इस में कोई दोष नहीं है. दोष तो तुम्हारी नाक का है, जो तुम्हारे निराशा, द्वेष, भावुकता से भरे स्वभाव को दर्शाती है.’’

‘‘मेरी नाक ही ऐसी है तो इस में मेरा क्या दोष है. नाक का क्या है, नाक तो नाक है, श्वास लेने का माध्यम,’’ कहते हुए लच्छो ने रूमाल से अपनी नाक ढक ली.

इतिहास गवाह है, इसी नाक को समर्पित नथिनों के लिए कितने ही राजेरजवाड़े समर्पित हो गए, मर गए मिट गए. तभी तो विवाह के समय सास अपने होने वाले दामाद की नाक खींचती है. यह रिवाज क्यों बनाया गया है, विचारणीय है. सच, नाक खिंचाई की रस्म बड़ी ही लुभावनी होती है. सास ने इधर दूल्हे के भाल पर तिलक लगाया, उधर दूल्हा अलर्ट हो जाता है, सावधान हो जाता है कि कहीं उस की नाक न खींच ली जाए. नाक खिंचवाना शर्म की बात होती है. सारे रिश्तेदार, सालेसालियां इस रोमांचक रिवाज का आनंद लेते हैं.

नाक की लड़ाई का प्रभाव राजनीति में जबरदस्त रूप से देखा जा सकता है. वे राष्ट्र की प्रगति के लिए नहीं लड़ते बल्कि दोनों पक्षों के बीच नाक की लड़ाई का ही वर्चस्व होता है.

‘‘चुनाव में उन की नाक न कटवा दी तो मैं सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लूंगा,’’  टाइप की हुई भीष्म प्रतिज्ञा लेने की घोषणा होती रहती है.

यही नाक है जिस ने न जाने कितनों के सिर फुड़वा दिए, टांगें तुड़वा दीं. तब लगता है चुनाव समर में नाक ही अपनी अहम भूमिका निभाती है. नाक की लड़ाई राष्ट्रीय स्तर पर होती है. कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक घरघर में लड़ी जाती है. अब इसे समाजवादी लड़ाई भी कहा जा सकता है. जहां नाक है वहां लड़ाई है. चाहे दफ्तर हो या घर पड़ोसियों में इसी नाक की लड़ाई को ले कर सट्टे खेले जाते हैं कि देखें कि किस की नाक बचती है.

2 की लड़ाई में बेचारी तीसरी नाक ही शहीद होती है.

तब लगता है, जहां प्रतिष्ठा है वहीं नाक की लड़ाई लड़ी जाती है. सब से रोमांचक लड़ाई सासबहू के बीच लड़ी जाती है, जो ड्रा नहीं होती. दोनों ही अपनी नाक के लिए दांवपेच के पासे फें कती हैं. पत्नी, पति के कंधे पर कान भरने की बंदूक रख कर चलती है. सास के खिलाफ बरगलाती है. फिल्मी संवाद उगलती है, ‘‘आखिर कब तक अपनी नाक की लाज बचाओगी? बुढ़ापा तो आ ही गया है, सासूमां 2-4 साल में मजबूरी की बैसाखियां ले कर हमारी चौखट पर ही आओगी, अपनी नाक रगड़ने.’’

तब टेप से सास अपनी नाक का नाप लेते हुए

कहती हैं, ‘‘बहू, गलतफहमी में मत रहना. मैं भी लंबी नाक वाली हूं. अपनी शादी में दहेज के साथ लंबी, तीखी नाक साथ ले कर आई हूं. तुम्हारी चौखट पर नाक रगड़ने जाए मेरी जूती. बहू, अब तुम भी नाक चिंतन करना शुरू कर दो. तुम भी सास बन रही हो. जितना तुम नाक का मुद्दा उछालोगी उतना ही घाटे में रहोगी. नाक तो राजा रावण की बहन की भी नहीं रही थी. जिधर देखो उधर जेबकतरों की तरह नाक काटने वाले उस्तरा हाथ में लिए घूम रहे हैं. ध्यान बंटा व नाक कटी. अब तुम ही कहो, बहू, नाक की लड़ाई में भला कौन सुखी रहा है. अपनी नाक वही बचा पाता है, जो दूसरे की नाक का सम्मान करता है. तुम्हारी यही सोच तुम्हें अपनी महफिलों, पड़ोस, क्लब, परिवार में नाक वाली बनाए रखेगी, बहू.’’

लक्ष्मी को सासूमां का नाक प्रवचन व्यावहारिक लगा. प्रसन्न मुद्रा में लच्छो ने कहा, ‘‘मांजी, सच में आप लंबी नाक वाली हैं. आप का तो हक बनता है कि परिवार को नाक की लड़ाई से बचाएं,’’ कहते हुए लक्ष्मी ने वार्डरोब में से लेडीज रूमाल निकाल कर कहा, ‘‘सासूमां, लीजिए रूमाल और पोंछ डालिए अपनी नाक का गुस्सा.’’

मैं ने संतोष की सांस ली. मेरा घर नाक की लड़ाई होने से एक बार फिर बच गया. मगर ऐसा रहेगा कब तक?

Interesting Hindi Stories : किसका हिसाब सही था, औटो वाले या पुलिस का?

Interesting Hindi Stories : ‘आज फिर 10 बज गए,’ मेज साफ करतेकरते मेरी नजर घड़ी पर पड़ी. इतने में दरवाजे की घंटी बजी.

‘कौन आया होगा, इस समय. अब तो फ्रिज में सब्जी भी नहीं है. बची हुई सब्जी मैं ने जबरदस्ती खा कर खत्म की थी,’ कई बातें एकसाथ दिमाग में घूम गईं.

थकान से शरीर पहले ही टूट रहा था. जल्दी सोने की कोशिश करतेकरते भी 10 बज गए थे. धड़कते दिल से दरवाजा खोला, सामने दोनों हाथों में बड़ेबड़े बैग लिए चेतना खड़ी थी. आगे बढ़ कर उसे गले लगा लिया, सारी थकान जैसे गायब हो गई और पता नहीं कहां से इतना जोश आ गया कि पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

‘‘अकेली आई है क्या?’’ सामान अंदर रखते हुए उस से पूछा.

‘‘नहीं, मां भी हैं, औटो वाले को पैसे दे रही हैं.’’

मैं ने झांक कर देखा, वीना नीचे औटो वाले के पास खड़ी थी. वह मेरी बचपन की सहेली थी. चेतना उस की प्यारी सी बेटी है, जो उन दिनों अपनी मेहनत व लगन से मैडिकल की तृतीय वर्ष की छात्रा थी. मुझे वह बहुत प्यारी लगती है, एक तो वह थी ही बहुत अच्छी – रूप, गुण, स्वभाव सभी में अव्वल, दूसरे, मुझे लड़कियां कुछ ज्यादा ही अच्छी लगती हैं क्योंकि मेरी अपनी कोई बेटी नहीं. अपने और मां के संबंध जब याद करती हूं तो मन में कुछ कसक सी होती है. काश, मेरी भी कोई बेटी होती तो हम दोनों अपनी बातें एकदूसरे से कह सकतीं. इतना नजदीकी और प्यारभरा रिश्ता कोई हो ही नहीं सकता.

‘‘मां ने देर लगा दी, मैं देखती हूं,’’ कहती हुई चेतना दरवाजे की ओर बढ़ी.

‘‘रुक जा, मैं भी आई,’’ कहती हुई मैं चेतना के साथ सीढि़यां उतरने लगी.

नीचे उतरते ही औटो वाले की तेज आवाज सुनाई देने लगी.

मैं ने कदम जल्दीजल्दी बढ़ाए और औटो के पास जा कर कहा, ‘‘क्या बात है वीना, मैं खुले रुपए दूं?’’

‘‘अरे यार, देख, चलते समय इस ने कहा, दोगुने रुपए लूंगा, रात का समय है. मैं मान गई. अब 60 रुपए मीटर में आए हैं. मैं इसे 120 रुपए दे रही हूं. 10 रुपए अलग से ज्यादा दे दिए हैं, फिर भी मानता ही नहीं.’’

‘‘क्यों भई, क्या बात है?’’ मैं ने जरा गुस्से में कहा.

‘‘मेमसाहब, दोगुने पैसे दो, तभी लूंगा. 60 रुपए में 50 प्रतिशत मिलाइए, 90 रुपए हुए, अब इस का दोगुना, यानी कुल 180 रुपए हुए, लेकिन ये 120 रुपए दे रही हैं.’’

‘‘भैया, दोगुने की बात हुई थी, इतने क्यों दूं?’’

‘‘दोगुना ही तो मांग रहा हूं.’’

‘‘यह कैसा दोगुना है?’’

‘‘इतना ही बनता है,’’ औटो वाले की आवाज तेज होती जा रही थी. सो, कुछ लोग एकत्र हो गए. कुछ औटो वाले की बात ठीक बताते तो कुछ वीना की.

‘‘इतना लेना है तो लो, नहीं तो रहने दो,’’ मैं ने गुस्से से कहा.

‘‘इतना कैसे ले लूं, यह भी कोई हिसाब हुआ?’’

मैं ने मन ही मन हिसाब लगाया कि कहीं मैं गलत तो नहीं क्योंकि मेरा गणित जरा ऐसा ही है. फिर हिम्मत कर के कहा, ‘‘और क्या हिसाब हुआ?’’

‘‘कितनी बार समझा दिया, मैं 180 रुपए से एक पैसा भी कम नहीं लूंगा.’’

‘‘लेना है तो 130 रुपए लो, वरना पुलिस के हवाले कर दूंगी,’’ मैं ने तनिक ऊंचे स्वर में कहा.

‘‘हांहां, बुला लो पुलिस को, कौन डरता है? कुछ ज्यादा नहीं मांग रहा, जो हिसाब बनता है वही मांग रहा हूं,’’ औटो वाला जोरजोर से बोला.

इतने में पुलिस की मोटरसाइकिल वहां आ कर रुकी.

‘‘क्या हो रहा है?’’ सिपाही कड़क आवाज में बोला.

‘‘कुछ नहीं साहब, ये पैसे नहीं दे रहीं,’’ औटो वाला पहली बार धीमे स्वर में बोला.

‘‘कितने पैसे चाहिए?’’

‘‘दोगुने.’’

‘‘आप ने कितने रुपए दिए हैं?’’ इस बार हवलदार ने पूछा.

‘‘130 रुपए,’’ वीना ने कहा.

‘‘कहां हैं रुपए?’’ हवलदार कड़का तो औटो वाले ने मुट्ठी खोल दी.

सिपाही ने एक 50 रुपए का नोट उठाया और उसे एक भद्दी सी गाली दी, ‘‘साला, शरीफों को तंग करता है, भाग यहां से, नहीं तो अभी चालान करता हूं,’’ फिर हमारी तरफ देख कर बोला, ‘‘आप लोग जाइए, इसे मैं हिसाब समझाता हूं.’’

हम चंद कदम भी नहीं चल पाई थीं कि औटो के स्टार्ट होने की आवाज आई.

मैं हतप्रभ सोच रही थी कि किस का हिसाब सही था, वीना का, औटो वाले का या पुलिस वाले का?

Social Story : दुविधा – उसके पापा के बीमारी की क्या वजह थी?

Social Story : ‘‘पा  पा, मैं अभी शादी नहीं करना चाहती,’’ मेरा मन तिक्त था.

‘‘हर काम की उम्र होती है. समय से शादी कर लेना ही बेहतर होता है,’’ पापा ने सम?ाया.

‘जब से होश संभाला आप लोगों ने हमेशा समय की दुहाई दी. समय से यह करो समय से वह करो पर क्या वैसा हुआ जैसा आप लोगों ने चाहा?’’

‘‘प्रयास तो करता ही है आदमी.’’

‘‘मान लिया जाए कि मैं ने शादी कर ली. फिर क्या होगा?’’ मैं ने सवाल किया.

‘‘समय से बच्चे होंगे. उन्हें ढंग से पालपोष सकोगी,’’ मम्मी बोलीं.

‘‘नहीं हुए तब?’’

‘‘तुम बहुत कुतर्क करने लगी हो,’’ मम्मी नाराज हो गईं.

‘‘2 साल ही तो हुए हैं नौकरी करते हुए. अभी उम्र ही क्या है मेरी यही कोई 25 साल. कुछ साल और रुक जाने में हरज ही क्या है?’’

‘‘हरज है. हम अपनी जिम्मेदारी पूरी करना चाहते हैं,’’ मम्मी ने कहा.

‘‘आप की जिम्मेदारी के लिए मैं अपने कैरियर का गला घोट दूं?’’ मेरा स्वर तलख था.

‘‘कैरियर तो शादी के बाद भी चलता रहेगा,’’ पापा बोले.

‘‘तब सबकुछ इतना आसान नहीं होगा. मुझे पति, सासससुर की बंदिशों का सामना करते हुए काम करने जाना होगा. फिर क्या पता नौकरी को लेकर उन का कैसा रवैया हो?’’

‘‘छोड़ देना नौकरी. घरपरिवार संभालना,’’ मम्मी बोलीं.

‘‘मम्मी, आप अच्छी तरह जानती हैं कि मैं अपनी जिंदगी किचन में नहीं खपाना चाहती. मेरा मन खाना पकाने में बिलकुल नहीं लगता,’’ मेरा मुंह बन गया.

‘‘लड़की हो खाना तो बनाना ही होगा,’’ मम्मी ने खाना पर जोर दिया.

औफिस का समय हो रहा था. मैं अब और बहस में नहीं पड़ना चाहती थी. सो औफिस के लिए निकल पड़ी. औफिस में मेरा मन बेचैन रहा. मम्मीपापा की शादी की जिद ने मेरी सारी खुशियां छीन ली थीं. जब से होश संभाला पढ़ती ही रही. अब जब नौकरी कर के आर्थिक आजादी पाई तो मम्मीपापा ने शादी के बंधन में बांधने का मन बना लिया यानी एक स्त्री कभी आजाद नहीं रह सकती. उसे किसी न किसी पुरुष के बंधन में रहना ही होगा. जबकि मैं उस बंधन को तोड़ना चाहती थी. पुरुष का साथ चाहिए मगर बंध कर नहीं. फिलहाल अभी कुछ साल तो बिलकुल नहीं. बाद में मन का मिला तो शादी कर लूंगी.

‘‘क्या सोच रही हो?’’ आकाश ने मेरी तंद्रा तोड़ी. अकसर टिफिन के वक्त हम दोनों एकसाथ बैठ कर बातें करते.

‘‘मम्मी मेरी शादी के लिए पीछे पड़ी हैं, ‘‘मैं ने आकाश से कहा.

‘‘तो कर लो शादी,’’ निर्विकार भाव से आकाश बोला.

‘‘मैं कुछ साल और टालना चाहती हूं. अभी घरगृहस्थी के चक्कर में नहीं पडना चाहती,’’ मेरी त्योरियां भिंच गईं.

आकाश ने कोई जवाब नहीं दिया. शायद यह सोच कर कि यह मेरा निजी मामला है.

शाम औफिस से लौटी तो मेरा मन अशांत था. रहरह कर मम्मीपापा के शब्द कानों में गूंजते रहे. मांबाप बेटाबेटी में क्यों फर्क करते हैं. बेटे के लिए पूरा फलक वहीं बेटी के लिए आसमान एक छोटा सा टुकड़ा और वह भी बादलों से घिरा.

रोज शाम को किसी न किसी रिश्तेदारों से मां मेरी शादी का जिक्र करतीं, ‘‘कोई ढंग का लडका हो तो बताओ. इस साल शादी कर देनी है,’’ मां चिंतित होती.

‘‘इतनी भी क्या जल्दी है? ढंग का लड़का मिले तभी रिश्ता करना. घबरा कर गिरने की जरूरत नहीं है,’’ मौसी सम?ातीं.

पता नहीं क्यों मम्मी मेरी शादी के लिए इतनी उतावली थीं. अभी मैं 24 साल की थी. 30 के ऊपर के लड़के मिल रहे थे. 2-3 साल और रुक जाती तो क्या जाता?

एक दिन मैं ने मम्मी से साफसाफ कह दिया, ‘‘शादी अपने हिसाब से करूंगी.’’

‘‘तब तो हो चुकी शादी,’’ मम्मी ने कहा.

‘‘क्या कमी है जो लड़कों के सामने झुकूं. मैं उसी से शादी करूंगी जो मु?ो जंचेगा.’’

‘‘जंचने का पैमाना क्या है?’’ मम्मी की त्योरियां चढ़ गईं.

‘‘वह मुझ पर छोड़ दो.’’

मेरे कथन से मम्मी परेशान हो जातीं. उन्हें लगता शादी के मामले में मांबाप से बेहतर संतानें नहीं सोच सकतीं. किताबें पढ़ लेने से जमाने का तजरबा नहीं आ जाता. लिहाजा, यह फैसला मांबाप पर ही छोड़ देना चाहिए. मैं वर्तमान नौकरी से खुश नहीं थी सो दिल्ली में मुझे बेहतर औफर मिला तो वहीं जाने का मन बना लिया.

‘‘अकेले दिल्ली में कैसे रहोगी?’’ मां की चिंता स्वाभाविक थी.

‘‘मैं पीजी में रहूंगी.’’

‘‘यहां क्या दिक्कत है.? कौन सा तुम्हें जिंदगीभर नौकरी करनी है?’’ मां ने ऐतराज जताया.

‘‘इस छोटे से शहर में मुझे ग्रोथ नहीं मिल रही. वहां आगे बढ़ने का मौका है.’’

‘‘शादी के बाद जहां चाहे वहां रहती. अभी से भागदौड़ करने का क्या मतलब?’’

‘‘फिर शादी?’’

मैं चिढ़ गई, ‘‘मुझे किसी के बैशाखी की जरूरत नहीं. मैं अपने बलबूते पर आगे बढ़ सकती हूं,’’ मम्मी के लाख मना करने के बावजूद मैं ने दिल्ली का रुख कर लिया. किंचित पापा का भी मन हिचकिचा रहा था मगर मेरे दृढ़ संकल्प के आगे उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया.

दिल्ली आ कर मुझे बेहद सुकून महसूस हुआ. यहां न मांबाप की बंदिश न ही किसी की टोकाटाकी. अपनी जिंदगी चाहे जैसे जीओ. पीजी औफिस से थोड़ी दूरी पर था.

एक शाम मैं ने आकाश को फोन लगाया, ‘‘वहां क्या पडे़ हो? यहीं आ जाओ. मैं तुम्हारा भी बंदोबस्त करा दूंगी.’’

आकाश ने मेरे औफर को स्वीकार कर लिया. वैसे भी एक छोटे से शहर की छोटी सी कंपनी में ग्रोथ नामुमकिन था. मैं जिस कंपनी में थी वह काफी बड़ी थी. लोग ठीकठाक सैलरी पा रहे थे. नई दिल्ली की बात ही अलग थी. यहां की आधुनिकता और फैशन नें मु?ो गहरे तक प्रभावित किया. हर किसी की कोई न कोई गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड था. कुछ लोग तो रिलेशनशिप में भी थे. गर्लफ्रैंड का कौनसैप्ट तो हमारे छोटे से शहर में भी आ गया था. मगर दिल्ली से अलग. इस विशाल शहर मैं न कोई देखने वाला न ही खुसुरफुसुर करने वाला. आजाद जिंदगी थी. मैट्रो हो या कोई बागबगीचा, रैस्टोरैंट हो या शहर  की लंबीचौड़ी सुनसान सड़कें हर तरफ कोई न कोई युवा बेखौफ अपनी गर्लफ्रैंड की कमर में हाथ डाले मुसकराते हुए चला जा रहा था. पहलेपहल आई तो मेरे नए सहकर्मियों ने पूछा कि क्या मेरा कोई बौयफ्रैंड है? मैं ने मुसकरा कर न किया तो उन्हें अचरज हुआ. उस समय मुझे आकाश की याद आई.

आकाश को मेरी कंपनी का औफर लैटर मिल गया. उस के आने से मुझे काफी राहत मिली. हम दोनों ने एक कमरा लिया और साथ रहने लगे. अकसर औफिस से घूमने निकल जाते फिर रात 10 के आसपास लौटते. करना ही क्या था. कपड़े बदले और सो गए. हम दोनों की चारपाई अलगअलग थी.

एक रात मैं अपने बिस्तर पर गहरी नींद में थी. तभी किसी के करीब होने का एहसास हुआ. मैं उनींदी आंखों से उठी तभी आकाश ने मुझे बल दे कर बिस्तर पर लिटा दिया.

‘‘आकाश, प्लीज मुझे छोडो,’’ खुद मैं ने छुड़ाने की असफल कोशिश की. मगर आकाश कब मानने वाला था. उस रात पहली बार मुझे अपराधबोध हुआ क्येंकि जो हुआ वह औचित्य की सीमा से बाहर का था. सुबह मैं ने आकाश को खूब खरीखोटी सुनाई.

‘‘लिव इन रिलेशन में यह सब आम बात है. तुम बिना वजह तूल दे रही हो?’’ आकाश ने मुझे समझना चाहा.

‘‘तुम ने ठीक नहीं किया,’’ मैं रोंआसी हो गई.

‘‘बड़े शहर में आ कर भी तुम ने छोटापन नहीं छोड़ा. जिसे तुम संजीदगी से ले रही हो वह समय की जरूरत है. चाहे तो अपनी महिला सहकर्मियों से पूछ सकती हो? शायद ही कोई अछूता हो?’’ आकाश ने खुद को सही साबित करने की भरसक कोशिश की.

‘‘मैं अपने पति को क्या मुंह दिखाऊंगी?’’

‘‘यह तो तुम्हें मेरे साथ रहने से पहले सोचना चाहिए था. मैं फिर कह रहा हूं 2 चीजें एकसाथ नहीं चल सकतीं. या तो रूढिवादी बने रहो या फिर आजादखयाल बन कर जिंदगी का लुत्फ उठाओ.’’

‘‘हम दोस्त हैं,’’ मैं ने कहा.

‘‘बंद कमरें में 2 जवान महिलापुरुष दोस्त नहीं हो सकते,’’ आकाश ने कहा.

‘‘इस हिसाब से भाईबहन भी नहीं रह सकते?’’ मैं ने तर्क दिया.

‘‘उन में खून का रिश्ता है. हमारेतुम्हारे बीच कौन सा रिश्ता है?’’

आकाश के तर्क में दम था. गलती मेरी थी. आकाश ने सही कहा. मुझे एक रास्ता चुनना होगा या तो रूढिवाद या फिर आजादखयाल. दोहरे मानदंड से काम नहीं चलेगा. दिल्ली आने का मेरा यही मकसद था. मैं पिटीपिटाई परिपाटी पर नहीं चलना चाहती थी.

‘‘फिर भी तुम मुझसे अलग रहना चाहती हो तो रह सकती हो,’’ कह कर आकाश ने यों पल्ला ?ाड़ लिया जैसे कुछ हुआ ही न हो.

एक कुंआरी लड़की के साथ जबरदस्ती की,

इस का उसे जरा भी क्षोभ नहीं था, जबकि मैं उसे मन ही मन चाहने लगी थी. मगर इस हद तक नहीं कि जो उस ने रात मेरे साथ किया.

‘‘आकाश, मैं तुम से प्रेम करने लगी हूं,’’ मैं भावुक थी.

‘‘क्या जरूरी है कि मैं भी करूं?’’ आकाश निर्विकार भाव  से बोला.

‘‘ऐसा मत कहो. मैं टूट जाऊंगी,’’ मैं अतिभावुक थी.

‘‘तुम्हारी आजादखयाली का क्या होगा? मेरे हिसाब से तुम अब भी पुरातन सोच से उबर नहीं पाई हो. बेहतर होगा वापस अपने शहर चली जाओ और शादी कर के घर बसा लो,’’ आकाश ने बिना लागलपेट के कहा, ‘‘अभी हम एकदूसरे को ठीक से जानते तक नहीं. शादी कैसे कर लें?’’

‘‘जानने के लिए बचा ही क्या है?’’

‘‘फिर वही रात का रोना ले कर बैठ गई. तुम सम?ाती क्यों नहीं कि जो हुआ वह आम है. कौन सा तुम्हारा अंगभंग हो गया. 2 युवा एकसाथ रहेगे तो ऐसा होना स्वाभाविक है.’’

‘‘तुम्हारे लिए हो सकता है, मगर मेरे लिए नहीं.’’

‘‘ऐसा था तो क्यों मुझे अपने पास बुलाया?’’ आकाश नाराज स्वर में बोला.

‘‘दोस्ती के कारण. तुम ने उस की मर्यादा तोड़ी.’’

‘‘मर्यादा मैं ने नहीं तुम ने तोड़ी. क्यों अपने साथ रहने दिया? मैं तुम्हारा क्या लगता हूं?’’

मेरे पास इस का कोई जवाब नहीं था. क्षणांश हम दोनों के बीच सन्नाटा छाया रहा.

आकाश बैड से उठा और अपने कपडे़ समेटने लगा.

‘‘मैं जा रहा हूं,’’ आकाश बैग में अपने कपड़े रखते हुए कहा.

‘‘कहां?’’ मैं ने सवाल किया.

‘‘तुम से अलग रहने.’’

‘‘तुम ऐसा नहीं करोगे,’’ कह मैं उस का रास्ता रोक खड़ी हो गई.

‘‘बच्चों जैसी हरकत मत करो,’’ आकाश

ने मुझे एक तरफ झटकते हुए बाहर का रुख कर लिया.

आकाश चला गया और मैं घुटनों में सिर छिपा कर फूटफूट कर रोने लगी. आज औफिस से छुट्टी ले ली. पूरा दिन आत्मविश्लेषण किया तो पाया कि आकाश ने ऐसा कुछ नहीं किया जिसे अमार्यादित कहा जाए. 2 युवा एक कमरे में होते हैं तो ऐसा होना स्वाभाविक है. मैं बिना वजह इसे तूल दे रही हूं. आज का जमाना बदल चुका है. बेशक मैं भी तो बदलाव की तरफ उन्मुख हूं. हां, अभी थोड़ी कसर थी जो आकाश ने पूरी कर दी. अब मैं ने आजादी का पूरा अर्थ सम?ा लिया था लिहाजा, आकाश बेकुसूर लगा मु?ो शाम होतेहोते सबकुछ साफ हो चुका था. अब मैं बिना वजह के अपराधबोध से मुक्ति पा ली थी. मन शांत हुआ तो आकाश को फोन लगाया.

‘‘वापस चले आओ. तुम ने कोई गुनाह नहीं किया है.’’

‘‘तुम मुझे ले कर कुछ ज्यादा ही संजीदा हो?’’

‘‘हूं तो गलत क्या है क्योंकि मैं तुम से मन ही मन प्रेम करने लगी हूं,’’ मैं खुश थी.

‘‘जरूरी नहीं कि वैसी ही फीलिंग मेरे दिल में भी हो. किसी का अच्छा लगना और प्रेम करने में फर्क होता है. तुम मुझे अच्छी लगती हो इस का मतलब यह नहीं कि मैं तुम से प्रेम करता हूं या फिर विवाह की सोच रहा हूं.’’

मैं समर्पण की स्थिति में थी. लिहाजा, उस ने जो कहा मैं मानती गई. पता नहीं क्यों आकाश के जाने के बाद मैं खालीपन महसूस कर रही थी, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. उन्मुक्त जीवन जीने वाले किसी से बंधे नहीं रहते. ऐसा न होता तो मैं इस शहर में आती ही नहीं. मगर न जाने आकाश ने मु?ा पर क्या कर रखा था कि उस के बगैर सूनासूना सा लगने लगा.

‘‘तुम पिछली रात की घटना को भूलने के लिए तैयार हो न?’’ आकाश ने मु?ा से कबूलवा ही लिया.

जैसे ही आकाश कमरे में घुसा मैं उसे बांहों में कस कर बोली, ‘‘तुम मु?ा से शादी करो या न करो, मगर वादा करो कि यों छोड़ कर नहीं जाओगे.’’

‘‘मैं ने कब मना किया,’’ आकाश मुसकराया.

2 साल गुजर गए. मम्मीपापा कहते रहे, मगर मैं हर बार शादी टालती रही. एक रोज अचानक पापा बिना बताए मेरे फ्लैट पर आ गए. आकाश उस समय मेरे साथ चाय पी रहा था. सकपका गई.

‘‘यह कौन?’’ पापा ने त्योरियां चढ़ा कर पूछा.

‘‘आकाश, मेरे साथ बनारस में था.’’

‘‘यहीं रहता है?’’ मुझ से न कहते न बना.

‘‘पापा, हम लिव इन रिलेशन में हैं.’’

‘‘लिव तो सम?ा में आता है पर रिलेशन? कैसा संबध है तुम दोनों में?’’

‘‘दोस्ती का.’’

‘‘लडकी से क्यों नहीं दोस्ती की?’’

‘‘पापा, यहां लोग इस पर गौर नहीं करते कि कौन किस के साथ रहता है. कोई किसी के साथ रह सकता है.’’

‘‘लेकिन हम तो करते हैं.

बिना शादी किए रहना व्यभिचार कहलाता है?’’

‘‘शादी की इतनी जल्दी भी क्या है?’’

‘बेशर्मी को तुम ने दोस्ती का नाम दे रखा है. उस पर कह रही हो कि शादी की जल्दी क्या है,’’ पापा उखड़े, ‘‘बनारस जा कर क्या मुंह दिखाऊंगा लोगों को?’’

मेरी जिद और तेवर देख कर पापा उलटे पांव बनारस लौट गए. जातेजाते इतना कहते गए,’’ देखना, एक दिन पछताओगी.’’

2 दिन बाद मम्मी ने मुझे खूब खरीखोटी सुनाई. मैं ने फोन काट दिया. लिव इन रिलेशन की स्वच्छंदता मुझे भाने लगी थी. न कोई जिम्मेदारी न ही रिश्तों का मोह. कभी भी कोई  भी किसी को छोड़ कर जा सकता है. मैं ने भी आकाश को ले कर कोई भ्रम नहीं पाला. दोनों की इच्छा पर निर्भर करेगा कि कब शादी करें.

आहिस्ताआहिस्ता 5 साल गुजर गए. मैं 32 की हो गई. मम्मीपापा ने मेरी खबर लेनी छोड़ दी. मैं अपनी जिंदगी में खुश थी. कभीकभी लगता अगर आकाश ने मेरा साथ छोड़ दिया तब किस का दामन थामेगी.

1 हफ्ते की कह कर आकाश ने पूरे 15 दिन लगा दिए बनारस में. 15 दिन बाद आया तो बेहद खुश था. कहने लगा, ‘‘मैं ने शादी कर ली.’’

जानकर मुझे बड़ा आघात लगा.

‘‘मैं बोर हो चुका था इस जिंदगी से. पापा ने लड़की दिखाई तो न नहीं कर सका,’’ आकाश ने बेहद सहज भाव से कहा.

मुझ पर इस का क्या असर होगा, इस से वह बेखबर था जो स्वाभाविक था. वह मेरी चिंता क्यों करेगा? मैं उस की लगती भी क्या थी. महज एक दोस्त. आकाश ने मुझे ऐसी जगह ला कर छोड़ा कि मैं पीछे लौट भी न सकूं.

आज मैं सचमुच काफी दुखी थी. सब से ज्यादा दुखर आकाश का साथ छूटने का था. लिव इन रिलेशन में कोई बंधन होता तो नहीं. इस की लिए उस पर मेरा कोई अधिकार नहीं बनता. आकाश ने वही किया जो उसे उचित लगा. मगर मैं किस ओर जा रही हूं, यह सवाल मैं ने अपनेआप से पूछा. उन्मुक्त जीवन गुजारने के चक्कर में कहीं भटक तो नहीं गई? क्या मुझे फिर किसी और पार्टनर की तलाश करनी चाहिए? रात काफी देर तक मैं यही सोचती रही. एक पल बनारस लौटने का खयाल आया. पर किस मुंह से वापस जाऊं?  वहां क्या मिलेगा मुझे? वैसे भी मैं उन के लिए बेगानी हो चुकी हूं. मेरा आत्ममंथन जारी रहा. आजादी के चक्कर में मैं ने क्या खोया और क्या पाया?

बेशक विवाह एक बंधन है और मैं इसी बंधन से भागती रही. विवाह फिर बच्चे. क्या बच्चे पालना आसान है? मैं ने मम्मीपापा को गृहस्थ जीवन की चक्की में हमेशा पिसते देखा. दोनों हर वक्त हम बच्चों

के लिए परेशान रहते. अकसर मम्मीपापा में वैचारिक मतभेद के चलते तूतू, मैंमैं हो जाती.

इस के बावजूद उन्होंने न एकदूसरे का साथ

छोड़ा न ही हमारी परवरिश में कोई कसर छोड़ी. चट्टान की तरह खडे़ रहे. हम भाईबहनों के

लिए. हम पढ़लिख कर अपने पैरों पर खडे़ हो जाएं यही उन की ख्वाहिश थी. कितनी हसरत

थी पापा को मेरी शादी को ले कर. कहते थे कि तुम्हारे हाथ पीले कर दूं  उस के बाद निश्चिंत जिंदगी गुजारूंगा.’’ सोचतेसोचते मेरी आंखें भर आई.

लिव इन रिलेशन यानी स्त्रीपुरुष स्वच्छंदता का नया नारा. क्या इसे आकाश ने निभाया? जाहिर है वह सजग रहा. तभी तो विवाह कर के घर बसा लिया और मैं यह सोच कर बंधी थी कि यह रिश्ता बगैर विवाह के

मेशा चलता रहेगा. न चला तो एकदूसरे से अलग हो जाएंगे.

आकाश तो चला गया मगर मैं क्यों उस

के चले जाने से व्यथित हूं? वजह साफ है. मैं

उसे मन ही मन चाहने लगी थी परंतु वह नहीं चाहता था. यह तो उस ने पहले ही बता दिया था. अब क्या करूं? क्या नए रिश्ते की तलाश

में जुट जाऊं? नए रिश्ते की तलाश का मतलब खुद को वेश्या साबित करना. हां, यह सच है लिव इन रिलेशन वेश्यापन नहीं है तो क्या है एक महिला के लिए? कुछ साल किसी के साथ हमबिस्तर रही तो कुछ साल किसी दूसरे के साथ. फिर एक दिन बूढ़ी हो गई तो मक्खी भी भिनभिनाने नहीं आएगी दरवाजे पर. पुरुषों का क्या वे तो कभी भी किसी के साथ शादी कर के घर बसा लेंगे और मैं आजादी के नाम पर रोज नए संबंध की तलाश करती रहूंगी. क्या यही मेरी नियति होगी?’’

मैं एकाएक फट पड़ी नहीं,’’ मैं ऐसा

नहीं होने दूंगी. फिर क्या रास्ता बचा है मेरे पास? खुदकुशी?

आज मुझे मम्मीपापा की बेहद याद आ रही थी. उस रोज पापा के साथ जिस

बेरुखी से पेश आई जाहिर है वह नश्तर की तरह चुभा होगा. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उन की लाडली बेटी एक गैर लड़के के लिए उन्हें पहचानने से इनकार कर देगी.

तभी मोबाइल की घंटी बजी. देखा मम्मी का था. मैं ने लपक कर उठाया. हताश क्षणों में यह किसी मरहम से कम नहीं था.

‘‘पापा की तबीयत ठीक नहीं हैं. वे तुम्हें देखना चाहते हैं?’’

यह मेरे लिए बरदाश्त से बाहर था. फफक कर रो पड़ी, ‘‘क्या हुआ पापा को? मैं आ रही हूं,’’ मैं ने तत्काल फ्लाइट बुक कराई और बनारस पहुंच गई. पापा अस्पताल में थे. काफी कमजोर हो गए थे. कितने हैंडसम थे मेरे पापा और आज कैसे हो गए? यकीनन उन्हें मेरी चिंता खा गई. मैं अपराधबोध से घिर गई.

उन्हें देख कर मेरी रुलाई फूट पड़ी, ‘‘पापा, मुझे माफ कर दीजिए. मैं आप के दिए संस्कारों से भटक गई थी.’’

‘‘एक वादा करो,’’ अस्फुट शब्दों में बोले.

‘‘क्या?’’

‘‘शादी कर लो.’’

‘‘जो मुझे संपत्ति नहीं पार्टनर समझे.’’

‘‘ऐसा ही है समीर. चाहो तो मिल सकती हो,’’ पापा बोले.

‘‘मुझे आप पर भरोसा है. बस आप ठीक हो जाएं,’’ पापा की आंखों में आई खुशी की चमक ने मेरी सारी दुविधा खत्म कर दी.

Story In Hindi : मेरी परी – आखिर उस लिफाफे का क्या राज था

Story In Hindi : अपनी नवजात बिटिया को अस्पताल के प्राइवेट रूम में जन्म के बाद पहली बार देख कालिंदी का गला भर्रा आया और आंखें समंदर हो उठीं.

‘‘इतनी गोरी… बिलकुल परी सी. नाक तीखी… होंठ एकदम सुर्ख, शेपली और पतले, आंखें सीपीनुमा और बड़ीबड़ी… यह तो जादू ही हो गया. कौन कहेगा यह मेरी बेटी है?’’

 

तभी कालिंदी की नजर बिटिया के हाथों पर गई. नन्हेनन्हे हाथ… उंगलियां पतलीपतली जैसे तराशी गई हों. फिर उस ने उस के पैरों की ओर देखा. वे भी बेहद सुंदर. नन्हींनन्हीं पतली उंगलियां.

कालिंदी मंत्र मुग्ध सी भाव विभोर अपनी बिटिया को निहार ही रही थी कि उस के पति सोमेश उस के रूम में आ गए.

नन्ही बिटिया पर नजर पड़ते ही खुश हो उठे. उन्होंने बिटिया को नजर भर कर देखा. उन के होंठों पर एक मीठी सी मुसकराहट फैल गई.

सोमेश खुशी से चिल्लाए, ‘‘यह मेरी बेटी है? इतनी प्यारी… इतनी सुंदर…’’ कह उस के नन्हे हाथ को सहलाया और फिर उसे गोद में ले कर टुकुरटुकुर देखने लगे.

कालिंदी सोमेश को स्निग्ध नजरों से देखती रही. तभी कुछ देर बाद कालिंदी का जिगरी मित्र अविनिश वहां आ कर बिटिया के पालने में झांकने लगा. बिटिया को देख वह चिल्लाया, ‘‘वाऊ कालिंदी, तूने तो कमाल कर दिया. तेरी बेटी इतनी सुंदर…’’ फिर बिटिया को गोद में ले उस के चेहरे को अपने चेहरे से सटाते हुए शैतानी भरे स्वरों में चिल्लाया, ‘‘सोमेश यार… यह तेरी बेटी तो कहीं से नहीं लगती. न ही तेरी कालिंदी की…यह तो पूरी

की पूरी मेरी बिटिया लगती है. देख जरा, यह तो मेरी बिटिया है. बिलकुल मेरा रंग… मेरी जैसी गुड लुकिंग. अपने अविनिश मामा की बिट्टो है यह तो.’’

अविनिश भोलेपन में कहता जा रहा था लेकिन उस की बातें सोमेश के कानों में पिघले शीशे की मानिंद पड़ीं.

अविनिश के अल्फाज सुन कालिंदी चिंहुक उठी, ‘‘यह क्या कह रहा है यह अविनिश? जो मुंह में आए बोल देता है,’’ लेकिन जो नुकसान होना था वह हो चुका था.

सोमेश ने एक बार अविनिश के चेहरे की ओर देखा, फिर बिटिया के फेस की ओर देखा.  उस एक क्षण में सोमेश की दुनिया उलटउलट हो गई.

अविनिश की भोलेपन में कही हुई बात का अर्थ जैसेजैसे उन के मन में गहरा उतर रहा था, उन के चेहरा का नूर फीका होने लगा, आंखों की चमक बुझ गई.

उस दिन के बाद से सोमेश जब भी नन्ही बिटिया जिसे रूप पुकारने लगे थे को देखते, अविनिश की कही गई बात उन के कानों में गूंजने लगती और वे अथाह पीड़ा से तड़प उठते. वे सोचतेसोचते न थकते कि उन जैसे डार्क रंग और सपाट फीचर्स वालों के यहां रूप जैसी खूबसूरत बेटी कैसे पैदा हो गई?

जबजब रूप को देखते, उन के मन में मंथन चलता, क्या वाकई में रूप अविनिश की बेटी है? क्या अविनिश और कालिंदी के बीच अवैध संबंध हैं?

दोनों अविनिश और कालिंदी साथसाथ पलेबढ़े थे. सो दोनों में दांत काटी दोस्ती थी.

कालिंदी के विवाह के मात्र 3 साल बाद अविनिश की पोस्टिंग कालिंदी के शहर में हो गई थी और कालिंदी ने ही उसे अपने घर के पास एक किराए का मकान दिला दिया था.

भोली कालिंदी ने सपने में भी यह नहीं सोचा था कि आज के तथाकथित मौडर्न युग में भी औरत और मर्द की खालिस रूहानी दोस्ती को दुनिया बरदाश्त नहीं कर पाती.

सोमेश और कालिंदी दोनों ही सपाट नैननक्श के गहरे सांवले वर्ण के युवकयुवती थे.  वे जयपुर में रहते थे. सो विवाह के बाद कालिंदी सोमेश के घर जयपुर आ गई.

3 वर्षों तक दोनों का विवाहित जीवन ठीकठाक चला. दोनों ही एकदूसरे के प्रति पूरी तरह से समर्पित थे. जिंदगी एक नियत ढर्रे पर चल रही थी.

कालिंदी की शादी के 3 वर्ष बाद अविनिश का तबादला जयपुर हो गया.

संयोगवश कालिंदी के घर के ठीक सामने वाले घर पर उस वक्त ‘टू लैट’ का बोर्ड लगा था. सो कालिंदी ने उस के बारे में अविनिश को बताया और उस मकान के मालिक के सोमेश के पुराने परिचित होने की वजह से अविनिश को कुंआरे होने के बावजूद वह मकान बहुत आसानी से मिल गया.

अविनिश के कालिंदी के पड़ोस में आने के बाद उन सब का समय साथसाथ बहुत अच्छा बीतता. कालिंदी जब भी कुछ स्पैशल बनाती, अविनिश को बुला भेजती. अविनिश और

सोमेश में भी ठीकठाक दोस्ती हो गई थी. सोमेश स्वयं भी खासा खुले विचारों के उच्च शिक्षित युवक थे. उन्होंने कभी कालिंदी और अविनिश की दोस्ती को किसी भी तरह के गलत ऐंगल से नहीं देखा. लेकिन कहते हैं न, इंसान गलतियों का पुतला है.

बिटिया रूप के जन्म के फौरन बाद उस की अपरिमित रूपराशि को देख किए गए अविनिश के कमैंट की वजह से शक का सांप सोमेश के सीने पर कुंडली मार कर बैठ गया.

अविनिश एक गौर वर्ण का तीखे नैननक्श का सुदर्शन युवक था. जबजब सोमेश रूप को देखते, अनजाने ही अविनिश का चेहरा उन की आंखों के सामने आ जाता और उस का और कालिंदी के बीच अवैध संबंध के शक का खंजर उन के हृदय को लहूलुहान कर देता.

इस कारण सोमेश धीरेधीरे कालिंदी से विमुख हो शक के अभेद्य मकड़जाल में जकड़ते जा रहे थे.

उधर कालिंदी सोमेश की मनोस्थिति समझ नहीं पा रही थी. उसे स्पष्टता से यह समझ नहीं आ रहा था कि अविनिश के भोलेपन से किए गए कमैंट को सोमश सच मान लेगा.

वह और सोमेश बैंक में प्रोबेशनरीऔफिसर थे. बैंक से उसे 6 माह की मैटरनिटी लीव मिली थी.

पिछले कुछ बरसों से बैंक की नौकरी की आपाधापी और भागमभाग में वह जिंदगी को पूरी तसल्ली से जीना जैसे भूल गई थी. मातृत्व अवकाश के 6 माह ने जिंदगी को फिर से जैसे बेफिक्री और तसल्ली के ट्रैक पर चला दिया था. नन्ही बिटिया को कलेजे से लगा उसे अवर्चनीय खुशी की अनुभूति होती. वह उस का भोला, मासूम चेहरा देख फिर से अपना बिंदास, मुक्त बचपन जीने लगी थी. वह जब किलकारी मारती, उसे लगता वह उन क्षणों को अपनी मुट्ठी में भर ले.

बिटिया जैसेजैसे बड़ी हो रही थी, उस का मुसकराता चेहरा उस में खुशी की हिलोरें पैदा कर देता. वह अपने इन आनंदी पलों को पति सोमेश से साझा करना चाहती थी लेकिन सोमेश के पास तसल्ली से उस के नजदीक बैठने का समय न होता.

उस ने सोचा था, संतान के जन्म के बाद मातृत्व अवकाश के दौरान वो दोनों 6 बरसों के विवाहित जीवन और पिछले कुछ बरसों की मुश्किल नौकरी की कठिन चुनौतियों के तनाव से नजात पाएंगे. अपने रिश्ते को एक नया पौजिटिव मोड़ देंगे लेकिन उस की आशा के विपरीत बेटी के जन्म के बाद सोमेश में उस का सोचा हुआ बदलाव किसी ऐंगल से नहीं आया.

बेटी के जन्म वाले दिन पर अविनिश का बिटिया के रंगरूप पर किए गए उस के कमैंट ने उस के अंत:कारण में शक का बीज बो दिया जो समय के साथ वट वृक्ष बनता जा रहा था. इस के चलते वे पहले से ज्यादा मूडी और चिढ़चिढे़ हो गए थे.

सुबह 9 बजे के घर से निकलेनिकले जब रात के 8 बजे घर लौटते, उन्हें न कालिंदी दिखती न बेटी. कालिंदी कितनी ही बार उन्हें नन्ही रूप की दिनभर की बातें सुनाना चाहती लेकिन सोमेश उस में कोई रुचि न लेते. वह उन्हें अपना दिनभर का रूटीन सुनाना चाहती. अपने पड़ोसियों, परिचितों और रिश्तेदारों के बिटिया की अपूर्व खूबसूरती पर कमैंट्स शेयर करना चाहती लेकिन वे उन में कोई रुचि न लेते. बस बड़ा सा मुंह बनाए और मुंह में दही जमाए जल्दीजल्दी खाना गले से नीचे उतारते और सीधे बैडरूम में घुस जाते.

कुछ दिनों से सोमेश का यह रूखापन और उदासीनता कालिंदी को खाए जा रही थी. बेटी होने से पहले हर छुट्टी के दिन उन में संबंध बन जाते थे लेकिन इस बार रूप के आने के बाद

पूरे 5 माह होने आए थे, उन्होंने उसे छूआ तक नहीं था. वह सम?ा नहीं पा रही थी, ऐसा क्यों हो रहा है.

सोमेश का कालिंदी के प्रति ठंडापन उस के कलेजे को मथनी की तरह मथ रहा था. वह सोचने में असमर्थ थी, सोमेश के इस रवैए के पीछे क्या था? न तो सोमेश उस में रुचि लेते न ही नन्ही रूप में. बस काम की बात उस से करते.

उस दिन शनिवार था. बैंक की छुट्टी थी. कालिंदी का मातृत्व अवकाश खत्म होने वाला था. उसे मंडे से बैंक की ड्यूटी जौइन करनी थी.

रात की कालिमा गहराती जा रही थी. डिनर के बाद सोमेश अपने बैडरूम में अपनी

स्टडीटेबल पर बैठे हुए लैपटौप पर खटपट कर हे थे.

तभी कालिंदी उन से बोली, ‘‘सोमेश… आजकल तुम मुझ से बिलकुल बात नहीं करते. बहुत बोर करते हो यार. कुछ तो बात किया करो. पता नहीं कहां मगन रहते हो,’’ फिर अपने हाथपैरों पर कोल्ड क्रीम लगातेलगाते वह बुदबुदाई, ‘‘सोमेश… अपनी बिटिया बेहद खूबसूरत है न. बिलकुल अपनी नानी पर गई है? तुम ने तो मां को देखा नहीं. वे वास्तव में ब्यूटी थीं.’’

कालिंदी की बात सुन कर सोमेश तुरंत उठ बैठे, ‘‘क्या, सच कह रही हो? रूप तुम्हारी मां पर

गई है? तुम्हारे पास मां का कोई फोटो है?’’

‘‘हां… होगा. कल दिखाऊंगी तुम्हें.’’

‘‘नहीं… मुझे अभी दिखाओ.’’

‘‘उफ सोमेश… कल सुबह ही दिखा दूंगी. अभी सो जाते हैं.’’

‘‘मैं ने कहा न, मुझे तुम्हारी मां का फोटो अभी देखना है.’’

‘‘उफ, तुम भी न बहुत जिद करते हो,’’ कालिंदी ने तनिक इरिटेट होते हुए अलमारी के ऊपर रखे एक लकड़ी के डब्बे से मां के फोटो की अलबम निकाल कर उसे दिखाई. फिर उस से बोली, ‘‘तुम्हें तो पता है, मैं घर की तीसरी संतान हूं और मैं मां को किसी हालत में नहीं चाहिए थीं क्योंकि जैंडर टैस्ट में मैं बेटी निकली थी. सो उन्होंने अपना गर्भ गिराने के लिए किसी मिडवाइफ से ली गई कोई जड़ीबूटी खाई लेकिन मु?ो तो इस दुनिया में आना था. सो मां का अबौर्शन नहीं हुआ लेकिन जड़ीबूटी के असर से मेरा रंग इतना काला हो गया.’’

कालिंदी की मां का फोटो देख सोमेश को लगा मानो उन के ऊपर से मनों बो?ा उतर गया हो. उन्हें वास्तव में नहीं पता था, कालिंदी की मां इतनी खूबसूरत होंगी नहीं तो रूप के आने के बाद से अविनिश के एक कमैंट को ले कर वे शक की आग में अंगारा हो रहे थे. उन का दिन का चैन और रातों की नींद हवा हो गई थी. उन्हें लगता, कालिंदी उन के साथ बेवफाई कर बैठी.

कालिंदी के अपनी खूबसूरत मां के फोटो दिखाने के बाद से अविनिश और उस को ले कर सोमेश के मन में उगे संदेह के कांटे की चुभन बहुत हद तक कम हुई थी.

उस दिन देर रात रूप के जन्म के बाद पहली बार कालिंदी और सोमेश अंतरंग हुए. प्रणय रस के मेह में आकंठ तर कालिंदी के सारे शिकवेशिकायत बह गए.

कुछ दिनों तक सोमेश सामान्य और खुश रहे. कालिंदी के साथ पहले की तरह उन की नजदीकियां बढ़ीं. वे रूप से भी प्यार जताने लगे लेकिन पिछले संडे कुछ ऐसा हुआ कि शक का जहर पूरी शिद्दत से उन की नसों में एक बार फिर घुल गया.

पिछले रविवार सोमेश किसी काम से घर के बाहर गए थे और जब लौटे तो उन्होंने देखा कि अविनिश रूप को अपनी छाती से लगाए उसे बेहद दुलार से चूम रहा था और बुदबुदा रहा था, ‘‘मेरी बिट्टो… मेरी बिट्टो.’’

न जाने क्या हुआ, एक झटके से अचानक सबकुछ टूट गया और सोमेश की तर्क क्षमता को धता बताते हुए संदेह के नाग ने उन्हें  फिर से डस लिया.

संदेह और भरोसे की दुविधा में जकड़े हुए पूरे दिन वे अनमने से अपनेआप में खोएखोए रहे. इस सब से अनजान कालिंदी का व्यवहार उन के साथ सामान्य ही था.

वक्त के साथ सोमेश का अनमनापन बढ़ता ही जा रहा था. कालिंदी को बहुधा उस का ठंडापन चुभता लेकिन सोच नहीं पा रही थी वह उसे कैसे हैंडल करे?

उस दिन उस ने रोजाना से जल्दी काम निबटा लिया और रूप को फीडिंग करा कर सुला दिया. फिर शावर ले कर एक बेहद खूबसूरत नाइटी पहन कर अपने बैड पर लेट गई. सोमेश अपनी स्टडीटेबल पर कुछ काम कर रहे थे.

सोमेश के आने तक कालिंदी करवटें बदल रही थी. मन में हसरतों का ज्वार उमड़ रहा था. वह  बड़ी बेसब्री से सोमेश का इंतजार कर रही थी.

सोमेश आए और रूखी आवाज में, ‘‘रूप को सुला दिया?’’ पूछ कर दूसरी ओर करवट ले कर लेट गए.

कालिंदी ने सोमेश के कंधे पर हाथ रखते हुए उन का चेहरा अपनी ओर करने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने खासी बेरुखी से उस के

हाथ झटक कर उस से कहा, ‘‘नींद आ रही है. सोने दो.’’

सोमेश के इस कालिंदी से मुंह फेर लेने से उस का दिल टूट गया. कुछ सोच कर उस ने

बेहद मृदु स्वरों में उस से पूछा, ‘‘सोमेश, मुझसे नाराज हो? कुछ दिनों से मैं देख रही हूं तुम मुझसे उखड़ेउखड़े रहने लगे हो. क्या बात है जान, मुझे बताओ तो सही. बैंक में कुछ टैंशन चल रही है?’’ कहते हुए उस ने जबरन उसे अपनी बांहों में कस कर बांध उस के माथे पर अपने होंठ रख दिए.

सोमेश शायद उस की नजदीकी की तपिश से कुछ पिघले और इस बार उन की बांहों का घेरा भी उस के इर्दगिर्द कस गया.

महीनों से तृषित जीवनसंगिनी को पति की अंतरंग करीबी मिली लेकिन उसे न जाने क्यों पूर्णता का अनुभव न हुआ. उसे लगा, सोमेश ने यांत्रिक खानापूर्ति की. उस के लहजे में वह गरमाहट नहीं थी जिस की उसे अपेक्षा थी, वह उष्णता नहीं थी जिस की उसे चाहत थी.

कुछ ही देर में सोमेश खर्राटे लेने लगा. लेकिन आज नींद शायद कालिंदी की आंखों का रास्ता भूल बैठी थी. उसे पति का यह रूखापन समझ नहीं आ रहा था. वह सोच रही थी, कुछ तो है जो उन दोनों के बीच दीवार बन कर आ गया है.

उस ने लाख सोचने की कोशिश की, इस की क्या वजह हो सकती है लेकिन वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई और आखिरकार थकहार कर क्लांत मन वह नींद के आगोश में समा गई.

जिंदगी निश्चित ढर्रे पर चल रही थी. बैंक, घरगृहस्थी और नन्ही रूप की जिम्मेदारियों से बंधे कालिंदी के दिन बीतने लगे.

उधर सोमेश एक अजब सी कशमकश से घिरे हुए थे. जबजब रूप का खिलाखिला मासूम चेहरा देखते, उन के मन में उस के लिए प्यार उमड़ता लेकिन अगले ही पल उस पर अपना प्यारदुलार बरसाते अविनिश की छवि उन की आंखों के सामने आ धमकती और वे उस से विमुख हो जाते.

संदेह का कीड़ा उन्हें खाए जा रहा था जिस से वे अनवरत घोर संताप से ग्रस्त रहते. शक की आंच से अबोध रूप के प्रति उन के प्यार का सोता सूखता जा रहा था. वे बस दुनिया क्या कहेगी, इस डर के मारे रूप को बाहर वालों के सामने गोद में लेते, उस से दुलार करते. कालिंदी के सामने भी भरसक यह दिखावा करते लेकिन मन ही मन उसे अविनिश की संतान समझ उस से दूरदूर रहते.

उस दिन सोमेश बाजार में कुछ दोस्तों के साथ थे और उन्होंने अपनेअपने बच्चों के लिए कुछ खिलौने खरीदे. मित्रों का लिहाज कर उन्होंने भी रूप के लिए कुछ खिलौने खरीदे.

घर पहुंच उन्होंने रूप को खिलौने देने के लिए पुकारा और उन के पुकारते ही अविनिश ने खुले दरवाजे से घर में कुछ खिलौनों के पैकेट्स थामे प्रवेश किया.

अविनिश का उन के घर गाहेबगाहे आनाजाना निरंतर जारी था. भावुक स्वभाव के अविनिश को छोटे बच्चे बेहद पसंद थे. बचपन की प्रिय सखी की बेटी में उस के प्राण बसते. सो  वह आए दिन रूप के लिए महंगे खिलौने, कपड़े, कैंडी और चौकलेट ले आता.उस दिन भी अविनिश रूप के लिए एक रिमोट से चलने वाला हैलिकौप्टर लाया

था जिसे देख कर रूप दौड़ कर पिता के पुकारने के बावजूद अविनिश की गोद में चमकती आंखों के साथ चल गई और अविनिश ने उसे हंसते हुए बांहों में भींच उस पर चुंबनों की बौछार कर दी. पलट कर रूप भी उसे चूमने लगी.

सोमेश ठगे से अपने हाथ में थमा खिलौना देखते रह गए. रूप के उस के बजाय अवनीश  की गोद में चढ़ना उन्हें विचलित कर गया और वे अपना सा मुंह ले कर खिन्न मन और बु?ो हुए चेहरे के साथ खिलौने का पैकेट सोफे पर पटक अविनिश, रूप और कालिंदी को कमरे में हंसता हुआ छोड़ भीतर चले गए.

उस दिन वे अपने शक को ले कर बेहद असहज हो गए. रूप को अपनी बांहों में बांध उसे कस कर चूमते हुए अविनिश की छवि मानो उन के जेहन में फ्रीज हो गई.

उन की वह शाम घोर मानसिक उथलपुथल में बीती. उस पूरी रात नींद उन से रूठी रही और वे करवटें बदलते रहे.

सोमेश के इर्दगिर्द शक का मकड़जाल शिद्दत से कस गया था, इतना कि उन्हें अपना जी घुटता हुआ सा प्रतीत हुआ.

‘‘क्या रूप वाकई में अविनिश की संतान है. क्या कालिंदी उस की पीठ पीछे अविनिश के साथ रंगरलियां मनाती है? क्या वह उन्हें धोखा दे रही है?’’

सोमेश का लौजीकल मन कहता, नहीं, कालिंदी सीधीसच्ची है लेकिन दूसरी ओर अविनिश का रूप को शिद्दत से प्यार करना उन के दिल को संशय से भर देता.

रात का 1 बजने को आया. सोमेश के पार्श्व में कालिंदी गहरी नींद में सो रही थी. उसे सोमेश की विकल मनोस्थिति का कुछकुछ अंदाजा था लेकिन वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि सोमेश ने उस की और अविनिश की दोस्ती को शक के कठघरे में खड़ा किया हुआ है.

वह पूरी रात सोमेश ने घोर मानसिक यंत्रणा में काटी. उस रात बिस्तर पर लंबी सांस लेते, करवटें बदलते उन्होंने निर्णय लिया कि अपने मैंटल टौर्चर से नजात पाने के लिए वे रूप का डीएनए टैस्ट कराएंगे. केवल इसी से उन्हें अपनी मानसिक पीड़ा से मुक्ति मिलेगी.

अगले ही दिन सोमेश औफिस के रास्ते में पड़ते रूप के प्ले स्कूल से उसे लैब ले गए और वहां उन्होंने उस का टैस्ट कराया.

रिपोर्ट 1 सप्ताह बाद मिलनी थी. वह  1 हफ्ता सोमेश जैसे अंगारों पर सोए. उन्हें भय सता रहा था, अगर रिपोर्ट उन के पक्ष में नहीं हुई तो क्या होगा?

जैसेजैसे सोमेश लैब की ओर कदम बढ़ा रहे थे, उन की नसों में खून के बहाव की रफ्तार बढ़ती जा रही थी. उन्हें लग रहा था मानो वह टेस्ट रिपोर्ट नहीं, अपनी जिंदगी के इम्तिहान की रिपोर्ट लेने जा रहे हैं, जिस के ऊपर उन की पूरी जिंदगी का दारोमदार है.

लैब में रिसैप्शन के काउंटर पर सोमेश ने अपना विकलता से कांपता हाथ रिपोर्ट लेने को आगे बढ़ाया. काउंटर पर बैठी महिला ने उन्हें लिफाफे में बंद रिपोर्ट थमाई.

लिफाफा खोल कर उस में से रिपोर्ट निकालते वक्त सामेश को लगा कि विकट बेचैनी से धुकधुक करता उन का कलेजा बाहर आ जाएगा.

सोमेश झपट कर रिपोर्ट को पढ़ा. रिपोर्ट उन के पक्ष में पौजिटिव थी. रिपोर्ट पढ़ते ही उन्हें एहसास होने लगा जैसे उन्हें पंख लग गए और वे  हवा में उड़ने लगे. उन का मन किया वे सारी दुनिया को चिल्लाचिल्ला कर बताएं कि मेरी परी मेरी और फिर मन ही मन खिलखिला पड़े.

Social Story : बेडि़यां – क्या आजाद जिंदगी जीना उसके लिए आसान था?

Social Story : ‘‘मम्मा, 1 कप ब्लैक कौफी.,’’ अपने कमरे से ही 23 साल की श्लोका चिल्लाई.

‘‘मुझे भी कौफी पर दूध वाली चाहिए.’’ उधर से अपने कमरे से 20 साल का अंश बोला.

‘‘अब मुझे भी और 1 कप चाय पिला ही दो फिर नहाने जाऊंगा,’’ अखबार मोड़ कर एक तरफ रखते हुए समीर बोले और मोबाइल उठा कर चलाने लगे.

मैं हांफती हुई समीर को चाय दे कर बेटे अंश के कमरे में कौफी ले कर पहुंची तो पता नहीं वह फोन पर किस से बातें कर रहा था कि उसे बड़ी हंसी आ रही थी. इशारे से उस ने मुझे कौफी टेबल पर रखने को कहा. जब मैं श्लोका के कमरे में उस के लिए ब्लैक कौफी ले कर पहुंची तो वह लैपटौप पर आंखें गड़ाए कुछ देख रही थी.

‘‘यह क्या देख रही हो?’’ टेबल पर कौफी का मग रखते हुए मैं ने पूछा तो श्लोका यह कह कर कौफी का मग उठा कर चुसकी भरने लगी कि आप नहीं सम?ोंगी.

‘‘क्यों नहीं समझोगी, बताओ तो जरा?’’

‘‘मम्मा, यह सोलो ट्रिप है, जहां हम अकेले कहीं भी घूमने जा सकते हैं,’’ लैपटौप पर आंखें गड़ाए, उंगलियों को कीबोर्ड पर थिरकाते हुए श्लोका बोली.

‘‘पता है मुझे ‘सोलो ट्रिप’ का मतलब. लेकिन क्या तुम अकेले घूमने जाने का प्रोग्राम बना रही हो?’’ मैं ने बिस्तर पर फैले कंबल को समेटते हुए पूछा.

‘‘हां, इस बार मैं अकेले घूमने जाना चाहती हूं. मेरे कितने सारे दोस्त सोलो ट्रिप पर जा चुके हैं. उन्होंने ही कहा कि मुझे भी सोलो ट्रिप पर जाना चाहिए, बहुत मजा आएगा तो मैं ने भी जाने का मन बना लिया. वाह कितना मजा आएगा न.’’

पहाड़ों पर घूमना श्लोका को बहुत पसंद है इसलिए उस ने सिक्किम जाने का प्रोग्राम बनाया था. लेकिन मुझे चिंता इस बात की हो रही थी कि लड़की जात अकेले घूमने जाएगी, कुछ होहवा गया तो क्या करेंगे हम? लेकिन इस बारे में समीर से बोलने का कोई फायदा नहीं क्योंकि वे तो बच्चों का ही साथ देंगे. उलटा मुझे ही नसीहत देंगे कि पुरानी सोच से बाहर निकलो तूलिका. दुनिया कहां की कहां पहुंच गई है और तुम आज  भी ‘ढाक के तीन पात’ बनी घूम रही हो.

‘‘अरे, क्या करने लग गई वहां. औफिस जाना है मुझे, देखो जरा मेरे कपड़े प्रैस हैं या नहीं,’’ समीर ने आवाज लगाई तो मेरी मुंह की बात मुंह में ही रह गई.

मैं श्लोका से कहना चाहती थी कि उस के साथ कोई दोस्त होता तो अच्छा रहता क्योंकि ‘एक से भले दो.’ समीर भी न अजीब इंसान है. छोटीछोटी बातों को भी ऐसे चिल्ला कर बोलेगा जैसे बहुत बड़ा तूफान आ गया हो.

‘‘कुछ चाहिए तुम्हें? मैं ने पूछा तो घूर कर समीर ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा. फिर बोले, ‘‘हां, डांस करने बुला रहा हूं. अरे भई, मेरे कपड़े प्रैस हुए या नहीं यही पूछ रहा हूं.’’

‘‘वे तो सुबह ही हो गए थे.’’

‘किस तरह से बात करता है यह इंसान कि डांस करने बुला रहा हूं. सुबह से शाम तक इन लोगों की चाकरी करना, डांस नहीं तो और क्या है,’ मन ही मन भुनभुनाते हुए मैं जूठे कप उठ कर किचन में चली गई. खुद तो जब देखो मोबाइल पर लगे रहते हैं और मु?ा पर और्डर झड़ते रहते हैं कि चाय लाओ, कपड़े प्रैस क्यों नहीं हुए. जैसे मैं उन की नौकर हूं. पता नहीं क्या देखते रहते हैं मोबाइल में कि हंसी रुकती ही नहीं है. बैठेबैठे बेमतलब का मोबाइल चला सकते हैं लेकिन अपने कपड़े प्रैस नहीं कर सकते. वह भी मेरी ही ड्यूटी है. इन लाट साहब को तो धोबी के प्रैस किए हुए कपड़े भी नहीं पसंद. इन्हें तो रोज के रोज प्रैस किए कपड़े चाहिए, एकदम गरमगरम कपड़े पर जरा भी सिलवट दिख जाए तो यह कह कर कपड़े घुमा कर फेंक देते हैं कि मुझ से एक भी काम ढंग से नहीं होता. तो खुद ही कर लो न ढंग का काम. मुझसे क्यों कहते हो. लेकिन यह भी नहीं कह सकती मैं. नहीं तो कहेंगे कि अब क्या घरबाहर मैं ही करूं? फिर तुम क्या करोगी.

खैर, एक चूल्हे पर दाल और दूसरे पर सब्जी छौंक कर मैं जल्दीजल्दी आटा गूंधने लगी. नाश्ता बनने में अगर जरा भी देर हो जाती है तो समीर का गुस्सा 7वें आसमान पर पहुंच जाता है कि नाश्ता बनाने में इतनी देर क्यों लगा दी? कोई भी काम जल्दी नहीं होता तुम से. याद नहीं कि कभी मैं ने सुबह की चाय गरम पी हो. फिर भी मुझे कोई शिकायत नहीं है. लेकिन इस के बावजूद जब सब मुझ में ही दोष निकालने लगते हैं तब बहुत दुख होता है.

बच्चों को भी खाना तो चटकदार चाहिए पर करना कुछ नहीं है. एक अकेली जान मैं 3-3 लोगों की फरमाइशें पूरी करतेकरते थक जाती हूं. लेकिन किसी को यह नहीं सूझता कि किचन में मेरी थोड़ी मदद कर दे. समीर का हर बात पर यह कहना कि यह ऐसा क्यों नहीं हुआ? यह वैसा क्यों हुआ? सुन कर मन चीख उठता है. कभी तो मन करता है सबकुछ छोड़छाड़ कहीं भाग जाऊं. लेकिन फिर सोचती हूं यह घरपरिवार मेरा ही तो है और समीर भी तो बाहर जा कर मेहनत करते हैं.

‘‘मम्मा…मेरा मैरून कलर की टीशर्ट नहीं मिल रही. प्रैस कर के कहां रख दी आप ने,’’ श्लोका कमरे से ही चिल्लाई.

‘‘अरे, तुम्हारी अलमारी में ही तो रखी थी. जरा ध्यान से देखो न. मिली? अच्छा आती हूं,’’ मैं बोली तो श्लोका बोली कि मिल गई.

‘‘अच्छा ठीक है,’’ कह कर मैं रोटियां सेंकने लगी. नजर घुमा कर देखा तो समीर अभी भी मोबाइल से चिपके हुए थे. लेकिन मेरी इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि कह सकूं कि अब कितना मोबाइल देखोगे. औफिस नहीं जाना है क्या? समीर से क्या, बच्चों से भी कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ती मेरी. तुरंत कहेंगे कि आप अपने काम से काम क्यों नहीं रखतीं? बेकार में बड़बड़ करती रहतीं. तब मेरा ही मुंह उतर जाता है, इसलिए अपनी इज्जत अपने हाथ.

‘‘बाजार से कुछ सामान लाना है घर के लिए. क्रैडिट कार्ड देते जाना,’’ समीर की प्लेट में रोटी डालते हुए मैं बोली.

‘‘कोई जरूरत नहीं क्योंकि तुम्हारा कोई ठिकाना नहीं कि फिर किसी दुकान पर क्रैडिट कार्ड छोड़ आओ. वह तो दुकानदार हमारी पहचान वाला था तो कार्ड लौटा गया वरना तो तुम्हारी मूर्खता के कारण मैं लुट गया होता,’’ ?ाल्लाते हुए समीर बोले तो मैं चुप हो गई. हां, उस दिन क्रैडिट कार्ड मैं दुकान पर ही भूल आई थी. दुकानदार अच्छा इंसान है, इसलिए बेचारा खुद ही कार्ड लौटाने घर आ गया था. लेकिन उसी बात के लिए दुकानदार के सामने ही समीर ने मुझे कितना सुनाया था कि मुझ में जरा भी अवेयरनैस नहीं है. बहुत ही लापरवाह औरत हूं मैं. समीर इतना बोलने लगे कि दुकानदार को ही बुरा लग गया और उसे कहना पड़ा कि गलती तो किसी से भी हो सकती है, जाने दीजिए न.

कै्रडिट कार्ड मैं इसलिए भूल गई थी क्योंकि समीर का फोन आ गया था  कि वे अपनी फाइल घर पर ही भूल आए हैं तो जल्दी ड्राइवर के हाथों भिजवा दो और उसी जल्दी के चक्कर में मैं दुकानदार से कार्ड लेना भूल गई  थी. लेकिन उसी बात के लिए बारबार ताने मारना क्या सही है? क्या समीर से गलती नहीं होती है? लेकिन लोगों को अपनी गलती दिखाई ही कहां देती है. उन्हें तो दूसरों की गलती कुरेदने में मजा आता है.

‘‘ये पैसे रखो. हो जाएगा न इतने में? नहीं होगा तो मैनेज कर लेना. वैसे भी खर्चे कम नहीं हैं घर में,’’ समीर ने अनमना सा होते हुए पैसे टेबल पर रख दिए और उठ कर औफिस जाने के लिए तैयार होने लगे. समीर के तेवर से लग रहा था कि पैसे मैंने घरखर्च के लिए नहीं बल्कि अपने शौक के लिए मांगे हैं.

मगर वहीं जब श्लोका शौपिंग के लिए पैसे मांगने आई तो कितने प्यार से समीर ने उसे क्रैडिट कार्ड पकड़ाते हुए कहा, ‘‘यह कार्ड रखो, जितनी चाहे शौपिंग कर लेना.’’

श्लोका को पापा से पैसे मांगते देख अंश भी बच्चे की तरह ठुनकने लगा कि उसे भी पैसे चाहिए.

‘‘अब तुम्हें किसलिए पैसे चाहिए? तुम्हें भी सोलो ट्रिप पर जाना है क्या?’’ बच्चों से बात करते हुए कैसे समीर की हंसी फूट रही थी. मगर न जाने क्यों मु?ा से ही बात करते उन के कंठ में कड़वाहट भर जाती है.

‘‘बोलो, तुम्हें क्या चाहिए,’’ समीर ने अंश से पूछा तो वह कहने लगा कि उसे भी अपने दोस्तों के साथ गोवा घूमने जाना है.

‘‘हां, तो जाओ न, रोका किस ने है,’’ कह समीर औफिस जाने के लिए तैयार होने लगे और मैं उन का लंच पैक करने लगी.

‘‘लंच रहने दो क्योंकि आज एक कलाइंट के साथ मीटिंग है तो उस के साथ ही लंच करना पड़ेगा.’’

समीर की बात पर मु?ो इतनी जोर का गुस्सा आया कि इतनी गरमी में मैं सुबह से किचन में मर रही हूं, लेकिन जरा यह नहीं हुआ कि बता दें आज लंच नहीं ले जाना है. श्लोका भी यह बोलकर कालेज जाने लगी कि आज उस की ऐक्स्ट्रा क्लास है तो जल्दी जाना है.

‘‘अरे, पर नाश्ता तो करती जाओ’’ पीछे से मैं बोली. मगर वह यह बोल कर स्कूटी से फुर्र हो गई कि कालेज की कैंटीन में खा लेगी. अंश भी ‘कैंटीन में खा लूंगा’ बोल कर कालेज के लिए निकल गया.

सब के जाने के बाद रोज की तरह मैं सोफा चादर ठीक करने लगी क्योंकि कुछ ही देर में मंजु, (बाई) आ जाएगी. वह 11 साढ़े 11 बजे तक आ जाती है काम करने. श्लोका के कमरे में गई तो पूरे पलंग पर कपड़े फैले हुए. एक टीशर्ट ढूंढ़ने के चक्कर में इस लड़की ने अलमारी के सारे कपड़े पलंग पर रख दिए. मगर यह नहीं हुआ कि कपड़े वापस अलमारी में रख दे. क्यों रखेगी. मां नाम की नौकरानी जो है घर में.

अंश का भी कमरा अस्तव्यस्त था. समीर ने भी हमेशा की तरह गीला तौलिया बिस्तर पर रख छोड़ा था. सारा घर व्यवस्थित कर मैं नहाने जा ही रही थी कि मंजु आ गई. ‘‘अरे, तू आज इतनी जल्दी कैसे आ गई? अच्छा कोई नहीं, तू काम कर ले, फिर मैं नहाने जाऊंगी,’’ कह कर मैं मैगजीन उठा कर पलटने लगी. मन हुआ चाय पीने का तो किचन में जा कर चाय रख दी. सुबह काम की इतनी मारामारी होती है कि ठीक से चाय भी नहीं पी पाती मैं.

‘‘मंजु, चाय पीएगी?’’ मैं ने पूछा तो उस ने हां कहा. बना हुआ खाना या तो मैं फेंक देती या खुद खा कर खत्म करती. लेकिन मैं कोई जानवर थोड़े ही हूं जो 3-3 जनों का खाना अकेले खा सकती हूं. इसलिए मैं ने सारा खाना मंजु को दे दिया.

‘‘क्या हुआ दीदी, आज किसी ने खाना नहीं खाया क्या?’’ चाय की चुसकी लेते हुए मंजू बोली. उसके तो आज मजे ही हो गए कि घर जा कर खाना नहीं बनाना पड़ेगा.

‘‘हां, वह मुझे नहीं पता था कि आज सब का बाहर खाने का प्रोगाम है. अब खाना बरबाद हो. उस से अच्छा तू लेती जा.’’

घर में झाड़ू लगाते हुए मंजु बताने लगी कि 66 नंबर वाली अर्चना मैडम शिमला घूमने गई हैं  इसलिए वह काम करने जल्दी आ गई.

‘‘अर्चना घूमने गई? पर यों अचानक?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अरे दीदी, अचानक कहां हर साल छुट्टियों में जाती तो रहती हैं घूमने. भूल गईं. आप पिछले साल भी वे अपने पति के साथ मसूरी घूमने गई थीं और उस के पिछले साल सिंगापुर.’’

‘‘अच्छाअच्छा, सम?ा गई. अब तुम काम खत्म करो जल्दी से. नहाई भी नहीं हूं. बाजार भी जाना है मु?ो,’’ मैं बोली तो वह जल्दीजल्दी हाथ चलाने लगी.

अर्चना के घूमने की बात सुन कर मुझे जलन हुई कि जब देखो कहीं न कहीं घूमती ही रहती है और एक मैं. याद नहीं पिछली बार कब घूमने गई थी. अर्चना अपने पति के साथ साल में 1-2 बार देशविदेश घूम ही आती है. हफ्ते में एक बार मूवी देखना, होटलों में खाना.

एक लंबी सांस भरते हुए मैं फिर मैगजीन में खो गई. लेकिन मेरा ध्यान बारबार अर्चना पर ही जा टिकता कि कितनी अच्छी जिंदगी हैं उस की. मजे से घूमतीफिरती है, खुश रहती है और एक मैं घर में पड़ेपड़े सड़ रही हूं. कितनी बार कहा समीर से कहीं घूमने चलते हैं. लेकिन हर बार काम बहुत है, बाद में देखते हैं कह कर मु?ो चुप करा देते हैं और अगर कभी मैं जिद करने लगती हूं तो चिढ़ते हुए कहते हैं कि क्या घूमनाघूमना करती रहती हो. घर में रहो न चुपचाप जैसे मैं कोई जानवर हूं. मेरी कोई फीलिंग्स ही नहीं हैं.

अर्चना मेरे घर से 3 घर छोड़ कर रहती है. उस का पति बैंक में बड़ी पोस्ट पर कार्यरत है.

2 बेटियां हैं उस की. बड़ी बेटी बैंगलुरु में मैडिकल की पढ़ाई कर रही है और छोटी बेटी इंजीनियरिंग के फर्स्ट ईयर में है. वैसे मैं अर्चना से किसी भी बात में कम नहीं हूं. समीर अच्छी जौब में हैं. साल में 2-3 बार उन का औफिशियल टूर होता ही है. मेरी बेटी श्लोका, ग्रेजुएशन के बाद यूपीएसी की तैयारी कर रही है और अंश कालेज के सैकंड ईयर में है. वह पायलेट बनना चाहता है. सपने तो बड़ेबड़े पाल रखे हैं मेरे बच्चों ने पर पढ़ना नहीं है. जब देखो, दोनों मोबाइल, लैपटौप में लगे रहते हैं और पढ़ने को बोलो तो मु?ा पर ही चिल्लाना शुरू कर देते हैं कि मैं बकबक करती रहती हूं.

अभी परसों ही मैं ने अंश से बस इतना ही कहा था कि कितना मोबाइल देखते हो. आंखें खराब हो जाएंगी बेटा. उसी बात पर उस ने चिल्लाना शुरू कर दिया कि मैं हमेशा उसे समझती रहती हूं. उस का साथ देते हुए श्लोका भी कहने लगी कि मेरे बारबार कहते रहने से ही उन का पढ़ने का मन होता यानी वे नहीं पढ़ रहे हैं उस में भी मैं ही दोषी हूं.

‘‘अरे, पर मैं ने तो सिर्फ यही कहा कि ज्यादा मोबाइल देखने से आंखों पर असर पड़ता है,’’ लेकिन बच्चों को डांटने के बदले समीर मु?ा पर ही चढ़ बैठे कि मैं बिना बात बच्चों के पीछे पड़ी रहती हूं.

‘‘मैं बच्चों के पीछे पड़ी रहती हूं?’’ गुस्सा आ गया मुझे भी कि कैसे बाप हैं ये. बच्चों को प्यार करने का यह मतलब तो नहीं कि उन की गलतियों पर कुछ बोलें भी न, ‘‘तुम्हें दिखाई नहीं देता कि पढ़ाई छोड़ कर दोनों लैपटौप पर सीरीज देखते रहते हैं और फिर भी मुझे ही दोष दे रहे हो कि मैं बच्चों के पीछे पड़ी रहती हूं? तो ठीक है आज के बाद मैं इन्हें कुछ भी नहीं बोलूंगी. ये पढ़ें न पढ़ें, मुझे कोई मतलब नहीं.’’

मेरी बात पर समीर बोले, ‘‘हां, मत बोलो, कोई जरूरत नहीं है बोलने की क्योंकि ये खुद ही समझदार हैं.’’

बड़े समझदार हैं. समझदार होते तो पढ़ते न कि समय बर्बाद करते. लेकिन जब बाप ही बच्चों को शह दे रहा हैं तो बच्चे तो ढीठ बनेंगे ही न. बच्चों के बिगड़ने में कहीं न कहीं मांबाप भी जिम्मेदार होते हैं क्योंकि हम भारतीय मांबाप अपने बच्चों के प्रति या तो बहुत सख्त हो जाते हैं या बहुत ही लिब्रल और ये दोनों चीजें सही नहीं हैं. बच्चे चाहे कितने भी पैसे खर्च कर दें एक बार भी नहीं पूछेंगे.लेकिन मु?ा से एकएक पैसे का हिसाब चाहिए समीर को जैसे मैं उस के पैसे ले कर कहीं भाग जाऊंगी. अपनी पसंद का कुछ ले भी आऊं तो तुरंत कहेंगे कि बकवास है. क्या जरूरत थी यह सब लाने की. बेकार में पैसे खर्च करती हो. लेकिन खुद दुनियाभर का उलटापुलटा बेहिसाब सामान उठा लाएंगे तो कुछ नहीं.

समीर के हिसाब से मुझे चीजें खरीदने का सलीका नहीं है और उन्हें बड़ा है. मन तो किया बोल दे लेकिन कहेगा कि तुम्हें क्या. मैं कमाता हूं, जो चाहे करूं मर्द जो चाहे करे क्योंकि वह कमाता है. लेकिन औरत अपने मन का कुछ भी नहीं कर सकती क्योंकि वह नहीं कमाती है. लेकिन औरतें मर्दों से कम करती हैं क्या बल्कि वे तो मर्दों से ज्यादा काम करती हैं. फिर भी औरतों की कोई इज्जत नहीं है. न तो वे पति से पूछे बगैर कहीं जा सकती है न अपने मन का कर सकती हैं.

समीर के घर वाले जब पहली दफा मुझे देखने आए थे तब मैं हया की सुर्खी में लिपटी, हाथों में चाय की ट्रे लिए, नजरें नीची किए उन के अटपटे सवालों के जवाब दे रही थी कि मैं खाना बनाना जानती हूं या नहीं? मेरे क्याक्या शौक हैं? कहां तक पढ़ाई की है मैं ने? लेकिन मुझे पता चला था कि समीर और उस के घर वालों को कमाऊं लड़की नहीं बल्कि घरेलू लड़की चाहिए जो घरपरिवार को अच्छे से संभाल सके, उन का वंश बढ़ सके. उन का कहना था कि उन के पूरे खानदान में किसी औरत ने आज तक नौकरी नहीं की है और इसीलिए मेरी लगीलगाई नौकरी छुड़वा दी गई थी. मांबाबूजी कहने लगे कि नौकरी तो मैं शादी के बाद भी कर सकती हूं. मगर इतना अच्छा रिश्ता अगर हाथ से निकल गय, तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी. अब कौन बेटी चाहेगी कि उस के मांबाप उस के सामने हाथ जोड़ें? इसलिए मैं ने अपनी नौकरी छोड़ दी.

मगर मन तो किया था कह दे कि जब इन्हें नौकरी वाली लड़की चाहिए ही नहीं, फिर पढ़ाई के बारे में क्यों पूछ रहे हैं? परंतु लड़कियों में इतनी हिम्मत ही कहां होती है कि वे कुछ बोल सकें और अगर हिम्मत होती भी है तो अपने मांबाप की इज्जत की खातिर चुप लगा जाती हैं. बिना उफ किए अपने मांबाप की इज्जत की खातिर लड़की अपनी तमाम खुशियों के साथ सम?ाता ही नहीं करती बल्कि उस खूंटे से भी बंध जाती है, जहां उसे बांध दिया जाता है. हमारे समाज में पढ़ीलिखी लड़की तो सब को चाहिए लेकिन लड़के से ज्यादा नहीं क्योंकि उन का मानना है कि ज्यादा पढ़ीलिखी और नौकरीपेशा लड़की सिरचिढ़ी बन जाती है.

हां, सिर्फ सुंदरता अकेली ऐसी चीज है, जहां लड़की को लड़के से ज्यादा से ज्यादा दिखने की छूट है. लड़की फूल की तरह होनी चाहिए और उस का रंग दूध सा गोरा होना चाहिए.

मैं अपनी ही सोच में डूबी थी कि मंजु बोल पड़ी, ‘‘दीदी, मुझे 3-4 दिन की छुट्टी चाहिए.’’

‘‘छुट्टी… पर क्यों? कहीं जा रही है क्या?’’

‘‘हां दीदी, वह मेरी भतीजी की सगाई है न तो वहीं जा रही हूं, फिर सारा परिवार 2 दिन के लिए कहीं घूमने जाएगा. सारा प्रोग्राम बन चुका है.’’

‘‘यह तो अच्छी बात है,’’ मुसकराते हुए मैं बोली तो मंजु कहने लगी कि उस की मां को मरे तो सालों बीत गए लेकिन आज भी उस का मायका वैसा ही बना हुआ है क्योंकि उस की भाभी बहुत अच्छी है. उसे अपनी बेटी से कम नहीं सम?ाती है.

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है कि तू जो तेरी भाभी तुझे मां जैसा प्यार देती है.’’

मेरी बात पर वह हंस पड़ी. लेकिन मुझे रोना आ गया कि काश, मेरा भी मायका होता तो मैं भी जाती न वहां.  मांबाबूजी के मरते ही दोनों भाइयों ने संपत्ति का बंटवारा कर अपनी अलगअलग दुनिया बसा ली. कभी तीजत्योहार में भी मैं उन्हें याद नहीं आती क्योंकि संपत्ति में मैं ने अपना हिस्सा जो मांग लिया था.

‘‘दीदी… वह मुझे एडवांस पैसे दे देतीं तो…’’ दबे मुंह मंजू बोली, तो मैं ने उस के काम के 3 हजार रुपए और एक नई साड़ी देते हुए कहा कि यह साड़ी उस की भतीजी के लिए है.

‘‘यह तो बहुत ही सुंदर साड़ी है. मेरी सोनाली पर खूब फबेगी,’’ साड़ी पर हाथ फेरते हुए मंजु चहकते हुए बोली, ‘‘थैंक यू दीदी.’’

‘‘अरे, थैंक यू मत बोल. जा अच्छे से ऐंजौय कर और काम की टैंशन मत लेना, मैं कर लूंगी.’’

मेरी बात पर उस ने फिर थैंक यू बोल, जीभ निकाल कर कान पकड़ लिए तो मुझे हंसी आ गई. मंजु अपनी भतीजी की सगाई से ज्यादा घूमने जाने को ले कर उतावली थी. कितनी बार बोल चुकी थी कि घरपरिवार के चक्कर में कहीं भी घूमने नहीं जा सकती है. लेकिन इस बार वह खूब घूमेगी. चाहे गरीब हो, अमीर हो, घूमनाफिरना तो सब को अच्छा लगता है न. लेकिन समीर तो अजीब ही इंसान हैं. जब भी घूमने की बात करो चिढ़ उठते हैं. कहते हैं कि मुझ पर घूमने का भूत सवार हो जाता है.

रात के खाने की तैयारी कर ही रही थी कि समीर कहने लगे कि आज उन्हें रोटीसब्जी या दालचावल जैसा कुछ नहीं खाना है.

‘‘तो क्या खाओगे बोलो, वही बना दूंगी,’’ हाथ रोकते हुए मैं बोली, ‘‘एक काम करती हूं, पावभाजी बना देती हूं नहीं तो बिरियानी और पनीर की सब्जी. बताओ क्या बनाऊं?’’

मैं भी थक चुकी थी अब. एक तो इतनी गरमी में खाना बनाओ और फिर इन की चिरौरी भी मुझसे नहीं होगी भई. जब भी खाना बनाओ, मुंह बिचकाते हुए बोलेंगे छि:.. यह क्या बनाया मम्मा. मुझे नहीं खाना यह कद्दू, भिंडी. मन तो चिढ़ उठता है कि जाने कहां के लाट साहब हैं ये कि रोज इन्हें वैराइटी ही चाहिए खाने में. खुद बनाओ न जा कर फिर पता चले कि खाना बनाने में कितनी मेहनत लगती है. लेकिन क्या फायदा बोलने का? फिर मैं ही बुरी बन जाऊंगी.

‘‘एक काम करती हूं, कड़ीचावल बना देती हूं, पकौड़े वाली कड़ी, बोलो, बना दूं?’’ मैं ने कहा तो श्लोका मुंह बनाते हुए बोली, ‘‘कुछ भी बनाओ, सारे खाने का टेस्ट एक सा ही होता है, गंदा सा.’’

अंश ने भी वैसे ही रिएक्ट किया. मन तो किया 2 थप्पड़ लगा कर कहूं कि बेशर्मो अच्छा खाना भी कहां अच्छा लगता है तुम लोगों को. तुम्हें तो बस मैगी, पास्ता चिप्स, नूडल्स ही चाहिए होता है.

‘‘यह पावभाजी और पनीरफनीर रहने दो. आज कुछ स्पेशल बनाओ न,’’ समीर बोले तो अंश भी कहने लगा कि रोजरोज मम्मी के हाथों का बना खाना खाखा कर वह बोर हो चुका है तो आज उसे बाहर खाने जाना है. श्लोका भी अंश की भाषा बोलते हुए बोली कि आज उसे इटैलियन खाने का मन है. समीर ने भी कुछ तड़कताफड़कता खाने की फरमाइश की. डिसाइड हुआ कि सब बाहर डिनर करने जाएंगे.

‘चलो, अच्छा ही है, खाना बनाने से मुक्ति मिली,’ मैं ने सोचा और तैयार होने लगी. होटल में भीड़ के कारण, हमें बाहर वेट करने को कहा गया. कुरसी पर बैठते ही तीनों अपनेअपने फोन में व्यस्त हो गए तो मैं भी अपना फोन खोल कर फेसबुक देखने लगी. अर्चना ने अपने कई फोटो फेसबुक पर अपलोड किए थे. पति के साथ अलगअलग ड्रैस में, अलगअलग पोज में. उस की काफी तसवीरें थीं. तभी बैरा, ‘‘टेबल रैडी है,’’ कह कर चला गया.

तीनों ने अपनीअपनी पसंद का न जाने क्याक्या आलतूफालतू मंगवाया. मगर मैं ने अपने लिए सिर्फ वैजीटेबल बिरयानी और रायता और्डर किया. इन्हें खाना तो खूब चटपटा चाहिए. लेकिन वाक या ऐक्सरसाइज से इन का दूरदूर तक कोई नातारिश्ता नहीं है. कहते हैं नींद ही नहीं खुलती तो वाक पर कैसे जाएं. लेकिन नींद तो तब खुलेगी न, जब समय से सोएंगे. रात के 2-2 बजे तक मोबाइल चलाते रहते हैं. अभी भी तीनों फोन पर इतने ज्यादा व्यस्त हैं कि अगर इन के सामने कोई मरा हुआ चूहाबिल्ली भी ला कर रख दें तो खा लेंगे. पता नहीं क्या देखते रहते हैं मोबाइल में.

आज लोग रियल में नहीं बल्कि वर्चुअल, आभासी दुनिया में जीने लगे हैं. हम जीवन में इतने नकली होते जा रहे हैं कि असल व वास्तविक जीवन से हमारा कोई वास्ता ही नहीं रह गया है. हम आभासी दुनिया में ऐसे गुम हैं कि हमें नकली भी असली नजर आने लगा है. आज के समय में फेसबुक हमारा नया समाज व व्हाट्सऐप ऐसा कुनबा बन गया है जिस में हम दिनभर बेमतलब की बातें करते हैं. गरमी की वजह से या पौल्यूशन के कारण पता नहीं पर मेरा सिरदर्द से फटा जा रहा था.

समीर से कुछ कहती, उस से पहले ही उन्होंने मुझे अपनी आगोश में भर लिया और लाइट औफ कर दी. आज मेरा मन जरा भी नहीं था. लेकिन बोलने का कोई फायदा नहीं था क्योंकि औरत का मन हो न हो, इस बात से पति को कोई फर्क नहीं पड़ता, बस उस का मन होना चाहिए.

‘‘समीर… एक बात कहूं?’’ मैं ने कहा.

‘‘हूं… कहो,’’ मोबाइल चेक करते हुए समीर बोले. सोने से पहले और जागते ही समीर सब से पहले अपना मोबाइल चैक करते हैं फिर कोई और काम होता है.

‘‘श्लोका और अंश दोनों घूमने जा रहे हैं तो हम भी कहीं घूमने चलते हैं न.’’

‘‘हां, दार्जिलिंग चलते हैं. मेरा बहुत मन है वहां घूमने का,’’ मैं ने कहा तो समीर ने यह कह कर करवट बदल ली कि अभी नहीं, बाद में देखते हैं.

समीर की बात पर मुझे बहुत गुस्सा आया. बोली, ‘‘बच्चों के लिए तो तुरंत हां कर देते हैं लेकिन मेरे लिए बाद में. कब से कह रही हूं कहीं घुमाने ले कर चलो, लेकिन हर बार तुम यही कहते हो कि बाद में चलेंगे. बोलो न कब आएगा तुम्हारा वह ‘बाद में’?’’ मैं ने समीर को हिलाते हुए कहा.

वे दनदनाते हुए उठ बैठे और गरजते हुए बोले, ‘‘पागल हो क्या. अभी इतनी रात में तुम्हें घूमने जाने की बात करनी है? सो जाओ चुपचाप समझ,’’ बोल कर समीर ने करवट बदल ली.

अभी जो पति अपनी पत्नी को चांदसितारे का तमगा दे रहा था, अचानक से वह उसे बुरी लगने लगी क्योंकि मैं ने ‘जरा अपने मन’ की कह दी इसलिए? सुबह औफिस जाते समय समीर बोले, ‘‘सुनो, परसो मुझे सिंगापुर के लिए निकलना है तो तुम मेरे कपड़े और जरूरी सामान वगैरह अटैची में रख देना.’’

मैं ने कोई जवाब न दे कर अंदर से कुंडा लगा लिया और रोज की तरह काम में जुट गई. दार्जिलिंग न सही पर क्या समीर मुझे अपने साथ सिंगापुर भी नहीं ले जा सकता था. ‘उस के सारे दोस्त अपनी बीवियों को देशदुनिया घुमाने ले जाते हैं लेकिन एक मैं ही जो कहीं नहीं जाती,’ सोचते हुए मुजे रोना आ गया.

समीर और बच्चों को ट्रिप पर गए आज 4 दिन हो चुके थे. लेकिन इन 4 दिनों में उन्होंने एक बार भी मुझे फोन नहीं किया. मैं ने ही 2-3 बार फोन किया, तो हम ठीक हैं, डिस्टर्ब मत करो न,’’ कह कर फोन रख दिया.

बेकार में किसी के घर जा कर या फोन कर के मैं उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी. इसलिए घर में पड़े पैंडिंग काम, जिन्हें समय की कमी के कारण कर नहीं पाती थी उन्हें करने लगी. समीर की टेबल पर फाइलों का अंबार लगा था तो उन्हें समेट कर मैं ने बड़े वाले दराज में रख दिया ताकि निकालने में आसानी हो. बच्चों की अलमारी में भी कपड़े करीने से लगा दिए और पढ़ने की टेबल भी झाड़पोंछ दी. लेकिन फिर भी समय था कि कट ही नहीं रहा था. इसलिए टीवी देख कर, मैगजीन पढ़ कर समय बिताने लगी. कई बार मन हुआ मिताली से बात करूं, पर फिर लगा वह बिजी होगी. क्यों बेकार में फोन कर उसे परेशान करूं. इसलिए फिर मैं मैगजीन उठा कर पलटने लगी. लेकिन अब पढ़ने और टीवी देखने से भी मन उकताने लगा था. लग रहा था किसी अपने से बात करूं. पता नहीं क्यों पर आज मिताली की बहुत याद आ रही थी.

मिताली मेरी बचपन की दोस्त. हम दोनों ने साथ में ही स्कूल, कालेज तक की पढ़ाई की थी. उस के बाद हम ने साथ में ही टीचर ट्रेनिंग का कोर्स किया और दोनों टीचर बन गए. लेकिन उस का सपना बैंक में जाने का था, इसलिए वह बैंक की तैयारी में जुट गई और 2 साल के अंदर ही उस का चयन बैंक में हो गया. ट्रेनिंग के बाद उस की पोस्टिंग गुजरात के कच्छ जिले में हो गई और मैं यहीं लखनऊ में ही रह गई. मेरी शादी पर वह नहीं आ पाई थी क्योंकि उस समय बैंक कलोजिंग डे था. लेकिन बाद में वह मुझ से मिलने आई थी. लेकिन यह जान कर उसे बड़ा दुख हुआ कि मैं ने टीचर की नौकरी छोड़ दी. लेकिन क्या बताती उसे कि शादी ही इस शर्त पर हुई थी कि मुझे अपनी नौकरी छोड़नी पड़ेगी.

कुछ साल बाद मिताली की भी शादी तय हो गई. सुना था उस का होने वाला पति भी बैंक में जौब करता है. मैं भी गई थी उस की शादी में. लड़का बड़ा ही हैंडसम था. लेकिन उस का परिवार जरा अजीब लगा मुझे. खैर, जो भी हो, मेरी सहेली को उस का मनपसंद जीवनसाथी मिल गया, इसी बात से खुश थी मैं.

मगर शादी के 3 साल बाद ही मिताली का अपने पति से तलाक हो गया, यह बात सुन कर बड़ा दुख हुआ मु?ो. मिताली ने ही बताया था मु?ो कि उस के ससुराल वाले और उस का पति बहुत ही लालची इंसान हैं. वे नहीं चाहते थे कि मिताली अपनी कमाई का एक भी पैसा अपने मांबाप पर खर्च करे और यह बात मिताली को कतई मंजूर नहीं थी. होती भी क्यों? अरे, जिस मांबाप ने अपनी उम्रभर की कमाई अपनी दोनों बेटियों की पढ़ाईलिखाई पर और उन की अच्छी परवरिश पर लगा दी, उन्हीं मांबाप को वह कैसे दरदर की ठोकरें खाने को छोड़ देती. मिताली का कोई भाई नहीं था, 2 बहनें ही थीं वे. बारीबारी से दोनों बहनें अपने मांपापा का खयाल रखती थीं. लेकिन यह बात मिताली के पति को बिलकुल अच्छी नहीं लगता था और इसी बात पर दोनों के बीच लड़ाई होने लगी थी और उस का नतीजा तलाक के रूप में ही निकला.

मिताली का पति तो उस के खर्चे पर भी रोकटोक लगाता था. एकएक पैसे का हिसाब मांगता कि उस ने कहां कितने पैसे खर्च किए. लगता था जैसे उस ने मिताली को देख कर नहीं बल्कि उस की जौब को देख कर शादी की थी. सही किया मिताली ने उस से तलाक ले कर वरना वह इंसान जिंदगीभर मिताली को परेशान करता.

फिर मिताली के लिए कितने ही रिश्ते आए. मैं ने भी समझाया था कि शादी कर ले.

लेकिन उस ने तो फिर शादी न करने का प्रण कर रखा था. उस का कहना था कि क्या भरोसा वह लड़का और उस का परिवार भी पैसे का लालची हो? वह किसी की गुलामी करने के लिए पैदा नहीं हुई हैं. अपनी मरजी से, अपने तरीके से जीएगी वह. तब मुझे मिताली की बातें गलत लगी थीं लेकिन आज लगता है वह अपनी जगह एकदम सही थी. मैं भी तो समीर की गुलामी ही कर रही हूं. कहां अपनी मरजी से कुछ कर पाती हूं.

कहते हैं ‘दिल से दिल की राह होती है’ मैं मिताली के बारे में ही सोच रही थी और उस का फोन आ गया.

‘‘इतने दिनों बाद तुझे अपनी सहेली की याद आई?’’ मैं ने शिकायत भरे लहजे में कहा.

‘‘अच्छाजी, तुझे तो मेरी बड़ी याद आई,’’ उस ने भी पलटवार किया, ‘‘मैडम, अपनी घरगृहस्थी में इतनी बिजी हैं कि अपनी दोस्त को भी भूल गईं. नहीं याद आती न मैं तुझे, सचसच बताना?’’

‘‘नहीं. ऐसी बात नहीं. तुझे तो मैं रोज याद करती हूं पर फोन इसलिए नहीं करती कि कहीं तू डिस्टर्ब न हो जाए,’’ मैं ने कहा.

‘‘अब कहा सो कहा, दोबारा यह बात मत कहना नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा समझ?’’ मिताली का प्यारभरा गुस्सा फूटा तो मैं हंस पड़ी.

‘‘वैसे तू है कहां अभी?’’ मैं ने पूछा तो उस ने बताया कि अभी वह अहमदाबाद में है लेकिन अगले महीने उस का तबादला होने वाला है, लेकिन कहां होगा नहीं पता उसे.

‘‘अच्छा ही है, इसी बहाने नईनई जगहों पर घूमाना भी हो जाता है तुम्हारा, है न?’’

मेरी बात पर वह हंसी और बोली कि मैं भी तो समीर के साथ देशविदेश घूम ही रही होगी. उस की बातों पर मेरी आंखें भर आईं कि क्या बताऊं कि हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और होते हैं. शादी के समय मैं ने भी तो यही सोचा था कि समीर मुझे देशदुनिया की सैर कराएगा. लेकिन सोचा हुआ कहां कभी सच होता है.

हनीमून के नाम पर भी ऋ षिकेश ले कर गए थे वह भी अपने पूरे परिवार के साथ. जहां हनीमून तो जरा भी नहीं लगा था मुझे. न चाहते हुए भी मैं ने मिताली के सामने सारी बातें खोल कर रख दी, ‘‘एक मैं ही हूं जो घर में सज रही हूं. सब मजे कर रहे है. किसी को मेरी परवाह नहीं. बता न क्या मेरा घूमनेफिरने का मन नहीं होता? क्या मैं इंसान नहीं हूं?’’

‘‘किस ने कहा तू इंसान नहीं है और रोका किस ने तुझे घूमने से? जा घूम आ जहां मरजी हो.’’

लगा मिताली भी मेरा मजाक बना रही है. तभी तो ऐसे बोल रही है. मैं ने कहा, ‘‘रोका नहीं है लेकिन मैं किस के साथ घूमने जाऊं? अकेली तो नहीं जा सकती न.’’

‘‘क्यों नहीं जा सकती अकेले घूमने?’’ उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी बेटी, बेटा और समीर भी जाते रहते हैं, फिर तुम्हें अकेले घूमने जाने में क्या तकलीफ है?’’

‘‘हां, लेकिन…

‘‘लेकिनवेकिन छोड़ और तू जा रही है सोलो ट्रिप पर समझ? तू चिंता मत कर मैं सारा इंतजाम कर दूंगी. प्लेन का टिकट भी तुम्हारे मोबाइल पर आ जाएगा.’’

मिताली तो सुन कर एकदम जोश में ही आ गई पर डर लगने लगा कि यह पागल औरत कहीं सच में प्लेन का टिकट न भिजवा दे.

‘‘अरे, पागल है क्या? मैं अकेले कैसे… नहींनहीं, मुझे तो सोच कर ही डर लगता है. रहने दे, मैं घर में ही ठीक हूं,’’ मैं ने कहा.

‘‘इसलिए… इसलिए तू आज अकेली है घर में और सब मजे कर रहे हैं क्योंकि तुम्हारी सोच कि मैं एक औरत हूं, अकेले कैसे जा सकती हूं… किसी को दोष मत दे समझ क्योंकि हम खुद अपनी हालत के लिए जिम्मेदार होते हैं. कल को तुम्हारे बच्चे अगर कहेंगे कि तुम खानापीना और हंसना भी छोड़ दो तो छोड़ दोगी? जब हम औरतें खुद ही बेडि़यों में जकड़े रहना पसंद करती हैं तो लोगों को क्या पड़ी है हमें आजाद करने की.’’

‘‘तुम्हारी बात सही है मिताली पर मैं कभी अकेले बाहर नहीं गई न.’’

‘‘नहीं गई, तो एक बार जा कर तो देख, तुम्हारा सारा डर खत्म न हो गया तो कहना और सब से बड़ी बात अपने पति, बच्चों को दिखाओ कि तुम उन के भरोसे नहीं हो. जब तुम्हारे बच्चे और पति को तुम्हारी परवाह नहीं है, फिर तुम क्यों उन के लिए मरी जाती हो? वे अपनी मरजी से जी सकते हैं, घूमफिर सकते हैं तो तुम क्यों नहीं?’’

‘‘समीर का फोन आ रहा है, मैं तुम से बाद में बात करती हूं,’’ कह कर मैं ने फोन रख दिया.

समीर कहने लगे कि वे कल नहीं, परसों आएंगे.

‘‘ठीक है,’’ कह मैं ने फोन रख दिया और सोचने लगी कि मिताली ने भले ही कह दिया कि मैं अकेले घूमने जा सकती हूं लेकिन यह इतना आसान है क्या? घरबच्चों को छोड़ कर मुझ से कहां जाया जाएगा भला.

ट्रिप से आने के बाद न तो समीर ने और न ही बच्चों ने मुझसे पूछा कि मैं अकेले

कैसे रही? या यह कि अगली बार हम सब साथ में घूमने चलेंगे. उलटे समीर मुझ पर चिल्लाने लगे कि मैं ने उन की फाइलें इधरउधर क्यों कर दीं.

‘‘पर मैं ने तो उन्हें अच्छे से दराज में रख दिया था ताकि तुम्हारा कोई जरूरी कागज उधरउधर न हो जाए,’’ मैं ने सफाई देनी चाही.

मगर समीर ने मुझे ही चुप करा दिया. बोले, ‘‘चुप रहो, एक नंबर की मूर्ख हो तुम.’’

समीर की बात पर मेरी आंखें भर आईं.

‘‘अब रोने का नाटक मत करो. कहा था न तुम से जो फाइलें जहां हैं वहीं रहने दिया करो. बेवकूफ कहीं की, ‘‘बोल कर समीर कमरे में चले गए और न जाने किस से हंसहंस कर बातें करने लगे. बच्चे भी अपने दोस्तों को ट्रिप के बारे में बता रहे थे कि वे कहांकहां घूमे, क्याक्या देखा और उन्हें कितना मजा आया. लेकिन मेरे लिए न तो किसी के पास टाइम था और न ही प्यार के 2 मीठे बोल ही.

‘लगा मिताली सही कह रही थी कि हम औरतें अपने परिवार, पति, बच्चों के लिए मरती रहती हैं पर उन की नजरों में हमारी जरा भी कद्र नहीं होती. लेकिन गलती हमारी भी है क्योंकि हम खुद इन सब में जकड़े रहना पसंद करती हैं. परिवार, पति, बच्चों को ही अपनी दुनिया सम?ा लेती हैं. लेकिन जब इन्हें ही मेरी परवाह नहीं है, मेरी फीलिंग्स से कोई लेनादेना नहीं है, फिर मैं क्यों परवाह करूं इन की? क्यों सोचूं कि ये क्या सोचेंगे, कैसे रहेंगे, कैसे खाएंगे?’

मैं ने मन ही मन दृढ़ निश्चय कर लिया कि जाऊंगी घूमने और वह भी अकेली. नहीं चाहिए मुझे किसी का साथ. मैं ने तुरंत मिताली को फोन लगा कर अपना फैसला सुना दिया.

‘‘यह हुई न बात,’’ खुश होते हुए मिताली ने मु?ो सोलो ट्रिप के क्याक्या फायदे हैं और वहां मु?ो अपना खयाल कैसे रखना है, जरूरत पड़ने पर कहां फोन करना है, सब अच्छे से सम?ा दिया, ‘‘और सुन, तू जरा भी डरना मत कि तू पहली बार अकेली घूमने जा रही है, सम?ा?’’

‘‘बिलकुल नहीं डरूंगी और तू तो है ही मेरे साथ,’’ कह कर मैं ने फोन रख दिया. मिताली ने मेरे जाने का सारा इंतजाम कर दिया और फोन पर प्लेन का टिकट भी आ गया.

‘‘छि:, यह क्या बनाया, आलू परांठा,’’ श्लोका ने मुंह बनाया, ‘‘मुझे पोहा खाना है.’’

‘‘तो खुद बना लो जा कर और वैसे भी कल से जो मरजी हो बना कर खाना क्योंकि मैं सोलो ट्रिप पर जा रही हूं.’’

मेरी बात सुन कर रोटी का टुकड़ा समीर के गले में ही अटक गया और श्लोका को तो जैसे शौक ही लग गया.

‘‘सो सोलो ट्रिप…’’ समीर हंसे, ‘‘सोलो ट्रिप का मतलब भी पता है तुम्हें? अकेले घूमने जाना. एक क्रैडिट कार्ड तो संभलता नहीं तुम से, चली हो सोलो ट्रिप. मजाक करना बंद करो और अलमारी से मेरे नीले रंग की शर्ट निकाल दो. आज मीटिंग में वही पहन कर जाऊंगा.’’

‘‘मैं मजाक नहीं कर रही हूं समीर, आज

4 बजे की मेरी फ्लाइट है. मैं ने तुम्हारे सारे कपड़े प्रैस कर अलमारी में रख दिए हैं और मंजु से कह दिया है सुबह का नाश्ता बन दिया करेगी आ कर,’’ जूठे बरतन सिंक में रखते हुए मैं बोली तो श्लोका मेरे गले लग कर कहने लगी कि मैं न जाऊं क्योंकि घर के काम, खाना, कपड़े उस से नहीं हो पाएगा.

‘‘क्यों नहीं हो पाएगा? बच्ची थोड़े ही हो तुम? अकेले घूमने जा सकती हो, अपने सारे फैसले खुद ले सकती हो तो काम भी कर ही लोगी और फिर अंश भी है, काम में तुम्हारी मदद कर दिया करेगा,’’ अंश की तरफ देख कर मैं बोली, तो उस के मुंह में कोई जवाब नहीं था. उसे भी शौक लग गया था मेरे जाने के नाम से.

समीर को तो अब भी भरोसा नहीं हो रहा था कि मैं अकेले घूमने जा रही हूं.

लेकिन जब मैं ने उन्हें प्लेन का टिकट दिखाया तो हकलाते हुए कहने लगे, ‘‘अरे, मैं ने तो कहा ही था काम से फ्री होते ही घूमने चलेंगे. चलेंगे न, तुम अभी रहने दो.’’

मगर मैं समीर की बात पर ध्यान न दे कर अंश को समझने लगी कि बस 15 दिन की ही तो बात है, फिर मैं आ ही जाऊंगी. मैं ने श्लोका को सम?ा दिया कि रात का भी खाना बना कर मैं ने फ्रिज में रख दिया है सिर्फ खाते समय गरम कर लेना. मेरी 4 बजे की फ्लाइट थी इसलिए मैं घर से 3 बजे निकल गई. निकलते समय मेरे पैर लड़खड़ाए लेकिन फिर लगा अगर आज मैं कमजोर पड़ गई तो फिर कभी इन बेडि़यों को नहीं तोड़ पाऊंगी.

हिंदवेयर बीएलडीसी चिमनी  

हिंदवेयर इमेल्डा बीएलडीसी चिमनी आपकी रसोई को साफ-सुथरा और आरामदायक बनाए रखकर आप के खाना पकाने के अनुभव को बेहतरीन बना देती है. ऊर्जा-कुशल बीएलडीसी तकनीक द्वारा संचालित इसकी 2000 m³/hr की शक्तिशाली सक्शन पावर, धुएं, गंध और खाना पकाने के समय निकलने वाली भाप आदि को बहुत जल्दी सोख लेती, जिससे खाना पकाने का सुखद वातावरण सुनिश्चित होता है.

इसमें 8+1 स्पीड सेटिंग्स और टर्बो बूस्ट फ़ंक्शन हैं, जिससे आप अपनी खाना पकाने की आवश्यकताओं के अनुसार सक्शन की तीव्रता को आसानी से समायोजित कर सकते हैं जिससे खाना पकाने के विभिन्न कार्यों के लिए अनुकूल वेंटिलेशन सुनिश्चित होता है। आप तीन अलग-अलग आकारों में से चुन सकते हैं: छोटा (60 सेमी , कीमत – ₹48,990, ), मध्यम (75 सेमी, कीमत -₹51,990 ) और बड़ा (90 सेमी, कीमत – ₹54,990 ).

Husband Wife Comedy : गंदी…गंदी…गंदी बात

Husband Wife Comedy : लंच के बाद बालकनी में आरामकुरसी पर पसरे हम कुनकुनी धूप सेंक रहे थे. तभी श्रीमतीजी चांदी की ट्रे में स्पैशल ड्राईफू्रट्स ले आईं. पिछले साल मेरे औसत दर्जे के अपार्टमैंट के ठीक सामने ‘द मेवा शौप’ खुली थी. मैं ने आज तक उस एअरकंडीशंड मेवा शौप में प्रवेश करने का साहस नहीं किया है. वैसे कैश से महंगे मेवे की खरीदारी संभव नहीं है और कार्ड से खरीदारी की आदत से अब तक हम दूर ही रहे हैं. रात्रि वेला में ‘द मेवा शौप’ का ग्लो साइन बोर्ड मुझे चिढ़ाता रहा है. चमचमाती ट्रे में करीने से सजे काजू, किशमिश, पिस्ता, बादाम, चिलगोजे, छुहारे देख कर हम ने अपनी आंखें मूंद लीं.

‘‘दिल्ली में बटलू की रिंग सेरेमनी थी… शादी का निमंत्रण कार्ड आया है,’’ श्रीमतीजी ने हमें वस्तुस्थिति से अवगत कराया.

बटलू मेरे साले साहब के शहजादे थे. मुझे हलकीफुलकी जानकारी थी. विदेश में बिजनैस मैनेजमैंट की पढ़ाई की थी. भारतीय मूल की विदेशी कन्या से शादी करने जा रहे थे. श्रीमतीजी भारीभरकम, बेहद महंगा, डब्बानुमा निमंत्रण कार्ड ले कर आई थीं. मैरिज दिल्ली में होनी थी. श्रीमतीजी ने कार्ड के पन्नों को परत दर परत पलट कर दिखाया. शादी की अलगअलग रस्मों के लिए दिल्ली के कई पांचसितारा होटलों की बुकिंग थी. डब्बानुमा निमंत्रण कार्ड में पर्याप्त मात्रा में मेवा भरा गया था. महंगी विदेशी टौफियां भी थीं. श्रीमतीजी ने लैपटौप पर मुझे रिंग सेरेमनी के फोटो दिखाए. वे फेसबुक में पोस्ट किए गए थे. अपने रिटायरमैंट पीरियड में हम ने मासिक व्यय में कई कटौतियां की हैं ताकि इस उम्र की हैल्थ समस्याओं से निबटने के लिए पर्याप्त सेविंग कर सकें. काजू, किशमिश, पिस्ता, चिलगोजे सहित और अन्य कई लग्जरी से हम दूर ही रहे हैं.

काजू, किशमिश, पिस्ता, चिलगोजे चबाते हुए रिंग सेरेमनी में शहजादे ने ब्राइड को किस किया था. उस फोटो को देख कर हम श्रीमतीजी से छेड़खानी के मूड में आ गए.

‘गंदी बात… गंदी… गंदी… गंदी बात…’’ श्रीमतीजी ने फिल्मी अंदाज में मुसकराते हुए हमें टोका.

‘किस’ में क्या गंदी बात है… हम ने ‘किस’ को पूरी लाइफ मिस किया है…’’ हम ने श्रीमतीजी से शिकायती लहजे में कहा.

‘‘मुंह में बैक्टीरिया भरा होता है… किसिंग पार्टनर्स में लगभग 10 मिलियन से 1 बिलियन बैक्टीरिया का ऐक्सचेंज होता है… मोनोन्यूक्लियोसिस किसिंग रोग और हर्पीज वायरस का संचार होता है…’’ श्रीमतीजी ने माइक्रोबायोलौजी की पढ़ाई की थी… किसिंग के बिलकुल खिलाफ थीं. ‘‘किसिंग में 34 फेशियल मसल्स गतिशील होते हैं… अच्छा वर्कआउट है… चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़तीं… कई फैक्ट्स किसिंग की फेवर में हैं. यह गंदी बात नहीं है. कामसूत्र में 30 प्रकार के किस का वर्णन है. रोमांटिक फ्रैंच किस में 5 कैलोरीज तक बर्न होती हैं. होंठ बेहद सैंसिटिव होते हैं. ऐक्स्ट्रा सैलिवा दांतों की सड़न रोकता है…’’ हम ने श्रीमतीजी को किसिंग फैक्ट्स बताने की कोशिश की.

‘‘गंदी बात… गंदी… गंदी… गंदी बात,’’ श्रीमतीजी ने किसिंग के पौजिटिव फेक्ट्स को कंसीडर ही नहीं किया.

लाइफ में 2 वीक का समय सिर्फ किसिंग के नाम है… विदेशी बालाएं मैरिज से पहले 80 से भी अधिक बौयफ्रैंड्स को ‘किस’ कर चुकी होती हैं,’’ हम ने कई और किसिंग फैक्ट्स गिनाए.

‘‘गंदी बात… गंदी…गंदी…गंदी बात…’’ श्रीमतीजी ने कानों में उंगलियां डाल लीं.

श्रीमतीजी बैडरूम में बिस्तर पर महंगी नई साडि़यां फैला कर उन में मैचिंग फौल लगाने में व्यस्त थीं.

‘‘जोरदार तैयारी चल रही है… पांचसितारा होटलों की पार्टी है… भई शहजादे की मैरिज है,’’ हम ने मुसकरा कर श्रीमतीजी की ओर देखा. वे शहजादे संबोधन से थोड़ी बिदक गई थीं.

‘‘हम दोनों के एअर टिकट आए हैं,’’ श्रीमतीजी ने जानकारी दी. साथ ही जरूरी तैयारी की हिदायत भी मिली. हमारी गैरमौजूदगी में साले साहब अपनी मैडम के साथ सस्नेह निमंत्रण देने आए थे. हम पैंशनर की सालाना मीटिंग में गए थे. मोबाइल भूल आए थे. अत: फोन पर बात भी नहीं हो पाई.

‘‘साले साहब काफी इज्जत दे रहे हैं. लगता है हमें भी सूट पहनना पड़ेगा. अटपटा तो लगेगा, पर क्या करें शहजादे की मैरिज है,’’ वैसे सेवानिवृत्ति के बाद से हम ने कुरतापाजामा यानी परंपरागत पत्रकार वाली ड्रैस को अपना लिया था.

‘‘बटलू बुलाने से क्या परहेज है… हमारी मैरिज के बाद पैदा हुआ है. शहजादे का संबोधन बिलकुल नहीं सुहाता. आप बड़ेबुजुर्ग हैं,’’ श्रीमतीजी हम पर बरस पड़ीं.

श्रीमतीजी की नाराजगी बिलकुल जायज थी. हमारा संबोधन बिलकुल गलत था. इस संबोधन में हमारी मध्यवर्गीय मैंटेलिटी, हमारी अपनी सीमा छिपी थी. साले साहब की संपन्नता के प्रति शायद ईर्ष्या की भावना भी थी. शायद शानशौकत के प्रदर्शन के प्रति आक्रोश भी था. ‘‘शहजादे का संबोधन छोड़ दूंगा, लेकिन हमारी एक शर्त है. पौजिटिव फैक्ट्स को कंसीडर करते हुए ‘किस’ से बैन हटाना होगा. बैक्टीरिया के ऐक्सचेंज का खतरा उठाना होगा,’’ हम ने श्रीमतजी से सौरी कहा और फिर उन से मिन्नत की.

‘‘गंदी बात… गंदी…गंदी…गंदी बात,’’ श्रीमतीजी ने पहले के मुकाबले धीमी आवाज में कहा और फिर हामी भर दी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें