Short Best Story : उलझन

Short Best Story : ‘‘मम्मी, आप को फोटो कैसी लगी?’’ कनिका ने पूछा, ‘‘अभिषेक कैसा लगा, अच्छा लगा न, बताओ न मम्मी… अभिषेक अच्छा है न…’’

कनिका लगातार फोन पर पूछे जा रही थी पर प्रेरणा के मुंह में मानो दही जम गया हो. एक भी शब्द मुंह से नहीं निकल रहा था.

‘‘आप तो कुछ बोल ही नहीं रही हो मम्मी, फोन पापा को दो,’’ कनिका ने तुरंत कहा.

प्रेरणा की चुप्पी कनिका को इस वक्त बिलकुल भी नहीं भा रही थी. उसे तो बस अपनी बात का जवाब तुरंत चाहिए था.

‘‘पापा, अभिषेक कैसा लगा?’’ कनिका ने कहा, ‘‘मैं ने उस के पापा व मम्मी की फोटो ईमेल की थी…आप ने देखी, पापा…’’ कनिका की खुशी उस की बातों से साफ झलक रही थी.

‘‘हां, बेटे, अभिषेक अच्छा लगा है अब तुम वापस इंडिया आ जाओ, बाकी बातें तब करेंगे,’’ अनिकेत ने कनिका से कहा.

कनिका एम. टैक करने अमेरिका गई थी. वहीं पर उस की मुलाकात अभिषेक से हुई थी. दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला. 2 साल के बाद दोनों इंडिया वापस आ रहे थे. आने से पहले कनिका सब को अभिषेक के बारे में बताना चाह रही थी.

सच में नया जमाना है. लड़का हो या लड़की, अपना जीवनसाथी खुद चुनना शर्म की बात नहीं रही. सचमुच नई पीढ़ी है.

कनिका जिद किए जा रही थी, ‘‘पापा, बताइए न प्लीज, अभिषेक कैसा लगा…मम्मी तो कुछ बोल ही नहीं रही हैं, आप ही बता दो न…’’

‘‘कनिका, जिद नहीं करते बेटा, यहां आ कर ही बात होगी,’’ अनिकेत ने कहा.

पापा की आवाज तेज होती देख कनिका ने चुप रहना ही ठीक समझा.

‘‘तुम्हें अभिषेक कैसा लगा? लड़का देखने में तो ठीक लग रहा है. परिवार भी ठीकठाक है. इस बारे में तुम्हारी क्या राय है?’’ अनिकेत ने फोन रखते हुए प्रेरणा से पूछा.

‘‘मुझे नहीं पता,’’ कह कर प्रेरणा रसोई में चली गई.

‘‘अरे, पता नहीं का क्या मतलब? परसों कनिका और अभिषेक इंडिया आ रहे हैं. हमें कुछ सोचना तो पड़ेगा न,’’ अनिकेत बोले जा रहे थे.

पर अनिकेत को क्या पता था कि जिस अभिषेक के परिवार के बारे में वे प्रेरणा से पूछ रहे हैं उस के बारे में वह कल रात से ही सोचे जा रही थी.

कल इंटरनैट पर प्रेरणा ने कनिका द्वारा भेजी गई अभिषेक और उस के परिवार की फोटो देखी तो एकदम हैरान हो गई. खासकर यह जान कर कि अभिषेक, कपिल का बेटा है. वह मन ही मन खीझ पड़ी कि कनिका को भी पूरी दुनिया में यही लड़का मिला था. उफ, अब मैं क्या करूं?

अभिषेक के साथ कपिल को देख कर प्रेरणा परेशान हो उठी थी.

‘‘अरे, प्रेरणा, देखो दूध उबल कर गिर रहा है, जाने किधर खोई हुई हो…’’ अनिकेत यह कहते हुए रसोई में आ गए और पत्नी को इस तरह खयालों में डूबा हुआ देख कर उन को भी चिंता हो रही थी.

‘‘प्रेरणा, तुम शायद कनिका की बात से परेशान हो. डोंट वरी, सब ठीक हो जाएगा,’’ कनिका के इस समाचार से अनिकेत भी परेशान थे पर आज के जमाने को देख कर शायद वे कुछ हद तक पहले से ही तैयार थे, फिर पिता होने के नाते कुछ हद तक परेशान होना भी वाजिब था.

अनिकेत को क्या पता कि प्रेरणा परेशान ही नहीं हैरान भी है. आज प्रेरणा अपनी बेटी से नाराज नहीं बल्कि एक मां को अपनी बेटी से ईर्ष्या हो रही थी. पर क्यों? इस का जवाब प्रेरणा के ही पास था.

किचन से निकल कर प्रेरणा कमरे में पलंग पर जा आंखें बंद कर लेटी तो कपिल की यादें किसी छायाचित्र की तरह एक के बाद एक कर उभरने लगीं. प्रेरणा उस दौर में पहुंच गई जब उस के जीवन में बस कपिल का प्यार ही प्यार था.

कपिल और प्रेरणा दोनों पड़ोसी थे. घर की दीवारों की ही तरह उन के दिल भी मिले हुए थे.

छत पर घंटों खड़े रहना. दूर से एकदूसरे का दीदार करना. जबान से कुछ कहने की जरूरत ही नहीं होती थी. आंखें ही हाले दिल बयां करती थीं.

निश्चित समय पर आना और अनिश्चित समय पर जाना. न कुछ कहना न कुछ सुनना. अजब प्रेम कहानी थी प्रेरणा और कपिल की. बरसाती बूंदें भी दोनों की पलकें नहीं झपका पाती थीं. एक दिन भी एकदूसरे को देखे बिना वे नहीं रह सकते थे.

यद्यपि कपिल ने कई बार प्रेरणा से बात करने की कोशिश की पर संकोच ने हर बार प्रेरणा को आगे बढ़ने से रोक दिया. कभी रास्ते में आतेजाते अगर कपिल पे्ररणा के करीब आता भी तो प्रेरणा का दिल तेजी से धड़कने लगता और तुरंत वह वहां से चली जाती. जोरजबरदस्ती कपिल को भी पसंद नहीं थी.

प्रेरणा की अल्हड़ जवानी के हसीन खयालों में कपिल ही कपिल समाया था. सारीसारी रात वह कपिल के बारे में सोचती और उस की बांहों में झूलने की तमन्ना अकसर उस के दिल में रहती थी पर कपिल के करीब जाने का साहस प्रेरणा में न था. स्वभाव से संकोची प्रेरणा बस सपनों में ही कपिल को छू पाती थी.

वह होली की सुबह थी. चारोें तरफ गुलाल ही गुलाल बिखर रहा था. लाल, पीला, नीला, हरा…रंग अपनेआप में चमक रहे थे. सभी अपनेअपने दोस्तों को रंग में नहलाने में जुटे हुए थे. इस कालोनी की सब से अच्छी बात यह थी कि सारे त्योहार सब लोग मिलजुल कर मनाते थे. होली के त्योहार की तो बात ही अलग है. जिस ने ज्यादा नानुकर की वह टोली का शिकार बन जाता और रंगों से भरे ड्रम में डुबो दिया जाता.

प्रेरणा अपनी टोली के साथ होली खेलने में मशगूल थी तभी प्रेरणा की मां ने उसे आवाज दे कर कहा था :

‘प्रेरणा, ऊपर छत पर कपड़े सूख रहे हैं, जा और उतार कर नीचे ले आ, नहीं तो कोई भी पड़ोस का बच्चा रंग फेंक कर कपड़े खराब कर देगा.’

प्रेरणा फौरन छत की ओर भागी. जैसे ही उस ने मां की साड़ी को तार से उतारना शुरू किया कि किसी ने पीछे से आ कर उस के चेहरे को लाल गुलाल से रंग दिया.

प्रेरणा ने घबरा कर पीछे मुड़ कर देखा तो कपिल को रंग से भरे हाथों के साथ पाया. एक क्षण को प्रेरणा घबरा गई. कपिल का पहला स्पर्श…वह भी इस तरह.

‘‘यह क्या किया तुम ने? मेरा सारा चेहरा…’’ पे्ररणा कुछ और बोलती इस से पहले कपिल ने गुनगुनाना शुरू कर दिया…

‘‘होली क्या है, रंगों का त्योहार…बुरा न मानो…’’

कपिल की आंखों को देख कर लग रहा था कि आज वह प्रेरणा को नहीं छोड़ेगा.

‘‘क्या हो गया है तुम्हें? भांगवांग खा कर आए हो…’’ घबराई हुई प्रेरणा बोली.

‘‘नहीं, प्रेरणा, ऐसा कुछ नहीं है. मैं तो बस…’’ प्रेरणा का इस तरह का रिऐक्शन देख कर एक बार तो कपिल घबरा गया था.

पर आज कपिल पर होली का रंग खूब चढ़ा हुआ था. तार पर सूखती साड़ी का एक कोना पकड़ेपकड़े कब वह प्रेरणा के पीछे आ गया इस का एहसास प्रेरणा को अपने होंठों पर पड़ती कपिल की गरम सांसों से हुआ.

इतने नजदीक आए कपिल से दूर जाना आज प्रेरणा को भी गवारा नहीं था. साड़ी लपेटतेलपेटते कपिल और प्रेरणा एकदूसरे के अंदर समाए जा रहे थे.

कपिल के हाथ प्रेरणा के कंधे से उतर कर उस की कमर तक आ रहे थे…इस का एहसास उस को हो रहा था. लेकिन उन्हें रोकने की चेष्टा वह नहीं कर रही थी.

कपिल के बदन पर लगे होली के रंग धीरेधीरे प्रेरणा के बदन पर चढ़ते जा रहे थे. साड़ी में लिपटेलिपटे दोनों के बदन का रंग अब एक हो चला था.

शारीरिक संबंध चाहे पहली बार हो या बारबार, प्रेमीप्रेमिका के लिए रसपूर्ण ही होता है. जब तक प्रेरणा कपिल से बचती थी तभी तक बचती भी रही थी पर अब तो दोनों ही एक होने का मौका ढूंढ़ते थे और मौका उन्हें मिल भी जाता था. सच ही है जहां चाह होती है वहां राह भी मिल जाती है.

पर इस प्रेमकथा का अंत इस तरह होगा, यह दोनों ने नहीं सोचा था.

कपिल और प्रेरणा की लाख दुहाई देने पर भी कपिल की रूढि़वादी दादी उन के विवाह के लिए न मानीं और दोनों प्रेमी जुदा हो गए. घर वालों के खिलाफ जाना दोनों के बस की बात नहीं थी. 2 घर की छतों से शुरू हुई सालों पुरानी इस प्रेम कहानी का अंत भी दोनों छतों के किनारों पर हो गया था.

शायद यहीं आ कर नई पीढ़ी आगे निकल गई है. आज किसी कनिका और किसी अभिषेक को किसी से डरने की जरूरत नहीं है. अपना फैसला वे खुद करते हैं. मांबाप को सूचित कर दिया यही काफी है. यह तो कनिका और अभिषेक के भले संस्कारों का असर है जो इंडिया आ कर शादी कर रहे हैं. यों अगर वे अमेरिका में ही कोर्टमैरिज कर लेते तो भला कोई क्या कर लेता.

प्रेरणा की शादी अनिकेत से तय हो गई थी. न कोई शिकवा न गिला यों हुआ उन की प्रेमकथा का एक मूक अंत.

विदाई के समय प्रेरणा की नजरें घर की छत पर जा टिकीं, जहां कपिल को खडे़ देख कर उस के दिल में एक हूक सी उठी थी लेकिन चाहते हुए भी प्रेरणा की नजरें कुछ क्षण से ज्यादा कपिल पर टिकी न रह सकीं.

हर जख्म समय के साथ भर जाए यह जरूरी नहीं.

प्रेरणा को याद है. जब शादी के कुछ समय बाद कपिल से उस की मुलाकात मायके में हुई थी, वह कैसा बुझाबुझा सा लग रहा था.

‘कैसे हो कपिल?’ प्रेरणा ने कपिल के करीब आ कर पूछा.

न जाने कपिल को क्या हुआ कि वह प्रेरणा के सीने से चिपक कर रोने लगा. ‘काश, प्रेरणा हम समय पर बोल पाते. क्यों मैं ने हिम्मत नहीं दिखाई? पे्ररणा, इतनी कायरता भी अच्छी नहीं. तुम से बिछड़ कर जाना कि मैं ने क्या खो दिया.’

‘ओह कपिल…’ प्रेरणा भी रोने लगी.

चाहीअनचाही इच्छाओं के साथ प्रेरणा और कपिल का रिश्ता एक बार फिर से जुड़ गया. प्रेरणा के मायके के चक्कर ज्यादा ही लगने लगे थे.

अब प्रेरणा की दिलचस्पी फिर से कपिल में बढ़ती जा रही थी और अनिकेत में कम होती जा रही थी. पर अकसर टूर पर रहने वाले अनिकेत को प्रेरणा के बारबार मायके जाने का कारण अपनी व्यस्तता और उस को समय न देना ही लगता.

प्रेरणा और कपिल का यह रिश्ता उन्हें कहां ले जाएगा यह दोनों ही नहीं सोचना चाहते थे. बस, एक लहर के साथ वे बहते चले जा रहे थे.

शादी के पहले तो सब के अफेयर होते हैं, जो नाजायज तो नहीं पर जायज भी नहीं होते हैं. पर शादी के बाद के रिश्ते नाजायज ही कहलाएंगे. यह बात प्रेरणा को अच्छी तरह समझ में आ गई थी. कनिका के जन्म के बाद से ही प्रेरणा ने कपिल से संबंध खत्म करने का निर्णय ले लिया था. कनिका के जन्म के बाद पहली बार प्रेरणा अपने मायके आई थी. कमरे में प्रेरणा अपने और कनिका के कपड़े अलमारी में लगा रही थी कि अचानक कपिल ने पीछे से आ कर प्रेरणा को अपनी बांहों में भर लिया.

‘ओह, प्रेरणा कितने दिनों बाद तुम आई हो. उफ, ऐसा लगता है मानो बरसों बाद तुम्हें छू रहा हूं. प्रेरणा, तुम कितनी खूबसूरत लग रही हो. तुम्हारा यह भरा हुआ बदन…सच में मां बनने के बाद तुम्हारी खूबसूरती और भी निखर गई है.’ और हर शब्दों के साथ कपिल की बांहों का कसाव बढ़ता जा रहा था.

इस वक्त घर में कोई नहीं है यह बात कपिल को पता थी, इस वजह से वह बिना डरे बोले जा रहा था.

प्रेरणा के इकरार का इंतजार किए बिना ही कपिल उस की साड़ी उतारने लगा. कंधे से पल्ला गिरते ही लाल रंग के ब्लाउज में प्रेरणा का बदन बहुत उत्तेजित लगने लगा जिसे देख कर कपिल मदहोश हुआ जा रहा था.

इस से पहले कि कपिल के हाथ प्रेरणा के ब्लाउज के हुक खोलते, एक झन्नाटेदार चांटा कपिल के गाल पर पड़ा. ‘यह क्या कर रहे हो कपिल, तुम्हें शर्म नहीं आती कि मेरी बेटी यहां पर लेटी है. अब मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता है.’ न जाने प्रेरणा में इतना परिवर्तन कैसे आ गया था, जो अपने ही प्यार का अपमान इस तरह से कर रही थी.

कपिल एक क्षण के लिए चौंक गया फिर बिना कुछ बोले, बिना कुछ पूछे वह तुरंत कमरे से बाहर निकल गया. शायद इतनी बेइज्जती के बाद उस ने वहां रुकना उचित न समझा. कपिल के जाते ही प्रेरणा फूटफूट कर रोने लगी. कपिल से रिश्ता खत्म करने का शायद उसे यही एक रास्ता दिखा था. कपिल से रिश्ता तोड़ना प्रेरणा के लिए आसान नहीं था पर आज प्रेरणा एक औरत बन कर नहीं बल्कि एक मां बन कर सोच रही थी. कल को उस के नाजायज संबंधों का खमियाजा उस की बेटी को न भोगना पड़े.

बच्चों को आदर्श की बातें बड़े तभी सिखा पाते हैं जब वे खुद उन के लिए एक आदर्श हों. जिन भावनाओं को प्रेरणा शादी के बाद भी नहीं छोड़ पाई, उन्हीं भावनाओं को अपनी औलाद के लिए त्यागना कितना आसान हो गया था.

उस के बाद प्रेरणा और कपिल की कोई मुलाकात नहीं हुई.

पर आज भी कपिल प्रेरणा के खयालों में रहता है और अनिकेत के साथ अंतरंग क्षणों में प्रेरणा को कपिल की यादों का एहसास होता है. वक्तबेवक्त कपिल की यादें प्रेरणा की आंखों को नम कर देती थीं.

कुछ रिश्ते यादों की धुंध में ही अच्छे लगते हैं. यह बात प्रेरणा अच्छी तरह जानती थी पर आज वही रिश्ते यादों की धुंध से निकल कर प्रेरणा को विचलित कर रहे थे.

जिस इनसान से प्रेरणा कभी प्रेम करती थी अब उसी का बेटा उस की बेटी के जीवन में आ गया था.

कैसे प्रेरणा कपिल का सामना कर पाएगी? कपिल के लिए जो भावनाएं आज भी उस के दिल में जीवित हैं उन भावनाओं को हटा कर एक नया रिश्ता कायम करना क्या उस के लिए संभव हो सकेगा? कैसे वह इन नए संबंधों को संभाल पाएगी? बरसों बाद अपने पहले प्यार की मिलनबेला का स्वागत करे या…

कैसे वह अपनी ही जाई बेटी की खुशियों का गला घोट डाले? कैसे अपने और कपिल के रिश्ते को सब के सामने खोले? क्या कनिका यह सहन कर पाएगी?

वैसे भी नई पीढ़ी जातिपांति को नहीं मानती. उस के लिए तो प्यार में सब चलता है. नई पीढ़ी तो इन बंधनों के सख्त खिलाफ है. जातपांति के मिटने में ही सब का भला है. आज की पीढ़ी यही समझ रही है, तब किस आधार पर अभिषेक और कनिका का रिश्ता ठुकराया जाए?

अपने ही खयालों के भंवर में प्रेरणा फंसती जा रही थी. सच में दुनिया गोल है. कोई सिरा अगर छूट जाए तो आगेपीछे मिल ही जाता है. पर ऐसे सिरे से क्या फायदा जो सुलझाने के बजाय और उलझा दे.

अभिषेक के मातापिता को देख कर कनिका का दिल शायद न धड़के पर कपिल का सामना करने के केवल खयाल से ही प्रेरणा का दिल आज पहले की तरह तेजी से धड़क रहा था. धड़कते दिल को संभालने के लिए अनायास ही उस के मुंह  से निकल गया.

‘रखा था खयालों में अपने

जिसे संभाल कर,

ताउम्र उस को निहारा, सब से छिपा कर,

पर आज,

वक्त के थपेड़ों से सब बिखरता नजर आता है,

छिप कर आज कहां जाऊं,

वही चेहरा हर तरफ नजर आता है.’?

‘तो क्या जिस तरह यादों के तीर मेरे सीने के आरपार होते रहे उसी तरह के तीरों का शिकार अपनी बेटी को भी होने दूं?’ खुद से पूछे गए इस एक सवाल ने प्रेरणा को ठीक फैसला ले सकने की प्रेरणा दे दी. ‘कनिका को वैसा कुछ न सहना पड़े जो मैं ने सहा, चाहे इस के लिए अब मुझे कुछ भी सहना पड़े’ यह सोच कर प्रेरणा के मन की सारी उलझन गायब हो गई.

Love Story In Hindi : राहुल और रूबी की फालतू लव स्टोरी

Love Story In Hindi : शटल में राहुल ने रूबी को अपने इतने नजदीक खड़ा किया कि जैसे उसे अपने अंदर ही छिपा लेगा. सभी सहयात्रियों की मौजूदगी में ही पूछ लिया, ‘‘किसी का धक्का तो नहीं लग रहा रूबी?’’

रूबी तो जैसे अपने इस मौडर्न मजनू पर फिदा थी. बोली, ‘‘न बाबू.’’

राहुल के दोनों कंधों पर 1-1 बैग टंगा था, एक उस का अपना, एक उस की रूबी का. रूबी के बाएं कंधे पर सिर्फ एक स्लिंग बैग टंगा था जिस में उस का फोन और बाकी हलकीफुलकी चीजें थीं. राहुल उस का यह छोटा सा बैग लेना भूल ही गया होगा वरना उस ने ही यह बैग भी टांगा होता.

दोनों ने एकदूसरे का हाथ पकड़ लिया, दूसरे हाथ से सीट का एक ही हैंडल एक ही जगह से पकड़ा, किसी भी तरह की दूरी दोनों को स्वीकार नहीं थी. दोनों इधरउधर हिलतेडुलते रहे पर एकदूसरे का हाथ नहीं छोड़ा. सहयात्रिओं का घूरना दोनों ने अवौइड कर दिया. 6 फुट का राहुल, घुंघराले बाल, साफ रंग, अच्छे नैननक्श, उम्र करीब 25 साल, व्हाइट टीशर्ट और जींस में रूबी को अपने से लिपटाए खड़ा था. 5 फुट की गोरी, छोटेछोटे बाल, कमर से ऊपर तक का एक व्हाइट स्लीवलैस टौप और एक पिंक स्कर्ट पहने राहुल की ही उम्र की रूबी अपने प्रेमी को गरदन ऊपर कर के निहारे जा रही थी.

‘‘राहुल, तुझ से कितनी अच्छी खुशबू आ रही है, कौन सा परफ्यूम लगाया है?’’

‘‘जो तूने दिया था, मैं तो वही लगाता हूं अब. हमेशा वही लगाऊंगा, रूबी.’’

‘‘ओह, राहुल, तू कितना अच्छा है.’’

राहुल ऐसे मुसकराया जैसे वह कोई हीरो हो. बालों को एक झटका दिया और फिर बोला,  ‘‘रूबी, तुझे पता नहीं, तू ही मेरी सबकुछ है.’’

आगेपीछे खड़े लोग दोनों को ऐसे देखसुन रहे थे जैसे कह रहे हों, बस करो भाई, ऐसे प्यार हम ने बहुत देखे हैं.

विमान में घुसते हुए राहुल ने रूबी का हाथ कस कर पकड़ा हुआ था, बीचबीच में चूम भी लेता, रूबी गुडि़या सी उस के साथ लिपटीचिपकी चलती रही. एअरहोस्टेस किसी मशीन की तरह सब का वैलकम करती रही, सभी यात्री अपनीअपनी सीट की तरफ बढ़ते रहे. राहुल ने ओवरहैड स्टोरेज में सामान रखा. रूबी की विंडो सीट थी, राहुल बीच में बैठा. साथ में एक बुजुर्ग सज्जन बैठे थे.

टेक औफ की तैयारी थी पर विमान ने उड़ान नहीं भरी तो रूबी ने नखरे से कहा, ‘‘राहुल, फ्लाइट कब उड़ेगी? उल?ान हो रही है.’’

राहुल को लगा जैसे वह एक सुपरमैन है, वह कहेगा तो फ्लाइट तुरंत उड़ जाएगी. उस ने पास ही खड़ी एक एअरहोस्टेस से पूछा, ‘‘टेक औफ में कितनी देर है? मेरी दोस्त को परेशानी हो रही है.’’

एअरहोस्टेस भी ऐसेऐसे दीवानों को रोज देखती होगी, धैर्य से जवाब देना उन्हें सिखाया

ही जाता है. उस ने विनम्रता से कहा, ‘‘बस सर, अभी थोड़ी ही देर में विमान उड़ान भरेगा. आप चिंता न करें.’’

5 मिनट ही बीते थे कि रूबी ने जैसे फिर गुहार लगाई जैसे वह किसी बहुत बड़ी मुसीबत में हो, ‘‘राहुल, बड़ी उल?ान सी हो रही है. फ्लाइट लेट है?’’

राहुल ने रूबी का हाथ पकड़ लिया, ‘‘देख रूबी, तू एक बार भी और परेशान हुई तो मैं उठ कर इन लोगों पर चिल्ला दूंगा. मैं तुझे परेशान नहीं देख सकता.’’

बुजुर्ग ने कनखियों से दोनों को देखा. उन का मन हुआ, दोनों को 1-1 तमाचा रसीद कर कहें कि थोड़ा पेशंस रखो बच्चो.

अभी तो तुम्हारी पूरी लाइफ पड़ी है पर उन्हें क्या पता था कि इस सफर में उन्हें ही कितनी पेशंस रखनी पड़ेगी.

तभी रूबी ने कहा, ‘राहुल, प्यास लगी है.’’

राहुल ने पास से निकलती हुई एअरहोस्टेस को पानी देने के लिए कहा तो जवाब मिला, ‘‘अभी जल्दी ही हमारी सर्विस शुरू होगी तो आप के लिए पानी लाती हूं.’’

राहुल तो अब स्वघोषित हीरो है ही, बोला, ‘‘मेरी दोस्त को पानी अभी चाहिए, मैं आप की सर्विस शुरू होने का इंतजार नहीं कर सकता.’’

‘‘आप कृपया सहयोग करें. सौरी,’’ बोल कर वह आगे बढ़ गई.

अब तो राहुल अपनी कमर पर बांधी बैल्ट खोल कर खड़ा हो गया, बुजुर्ग से कहा, ‘‘ऐक्सक्यूज मी अंकल, ऊपर से वाटर बोतल निकालनी है.’’

बुजुर्ग के पास अपनी भी बैल्ट खोल कर खड़े होने के सिवा कोई चारा न था.

एअरहोस्टेस भागी आई, ‘‘अभी सामान नहीं निकाल सकते.’’

राहुल ने गुस्से से कहा, ‘‘आप ने पानी ला कर नहीं दिया तो अपनी दोस्त को प्यासा

रहने दूं?’’

राहुल ने बोतल निकाली, अपनी सीट पर बैठा, बुजुर्ग भी बैठ गए. विमान ने उड़ान भरी तो रूबी खुश हुई, तो राहुल भी खुश हुआ. यह फ्लाइट दिल्ली से मुंबई जा रही थी. रूबी की आवाज से ज्यादा राहुल की आवाज तेज थी. एक सीट आगे, एक सीट पीछे के लोग आराम से उन की बातें सुन सकते थे और फिर बुजुर्ग सज्जन को तो  उन दोनों की बातें बहुत साफसाफ सुनाई पड़नी ही थीं. बुजुर्ग अपना सफर शांति से बिताने के मूड में थे पर सीट पर बैठने के 10 मिनट बाद ही उन्हें अंदाजा हो गया था कि ये नमूने कुछ न कुछ करते ही रहेंगे.

थोड़ी देर बाद रूबी ने राहुल से कहा, ‘‘राहुल, मुझे टौयलेट जाना है.’’

‘‘हां, जा न, क्या परेशानी है. ऐक्सक्यूज मी अंकल, मेरी दोस्त को टौयलेट जाना है.’’

अंकल ने अपनी सीट बैल्ट खोली और साइड में खड़े हो गए. वापस आ कर जैसे ही रूबी बैठी, फूड सर्विस शुरू हुई, बुजुर्ग व्यक्ति ने अपने लिए एक कौफी और्डर की. राहुल ने अपने और रूबी के लिए मैगी.

रूबी ने कुछ सैकंड्स बाद ही कहा, ‘‘राहुल, मैगी की जगह सैंडविच ही खा लें?’’

‘‘हां, हां, क्यों नहीं, अभी और्डर चेंज करता हूं. साथ में कुछ लेगी?’’

‘‘हां, जूस.’’

एअरहोस्टेस को बुलाया गया, उस ने कोई प्रतिक्रिया न देते हुए चुपचाप और्डर नोट कर लिया. बुजुर्ग व्यक्ति की कौफी आ गई. जैसे ही उन्होंने पहली सिप ली, रूबी कोने में ठुनकी, ‘‘राहुल, कौफी पीनी है, जूस नहीं, कौफी की कितनी अच्छी खुशबू आ रही है.’’

फालतू आशिक फौरन बोला, ‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ एअरहोस्टेस को फौरन रूबी के दरबार में बुला कर जूस कैंसिल कर के कौफी लाने के लिए कहा गया.

रूबी ने राहुल के कंधे पर सिर टिका कर कहा, ‘‘थैंक यू बाबू, तुम मेरे लिए कितना करते हो.’’

बुजुर्ग व्यक्ति ने मन ही मन कहा कि हां, बाबू ही यह कौफी बना कर ला रहा है

तुम्हारे लिए.

अचानक रूबी को याद आया, ‘‘राहुल, ऊपर से मेरे बैग में से चिप्स का पैकेट निकालना, तुम्हारे लिए ले कर चली थी.’’

‘‘उफ मेरी रूबी, माई डार्लिंग, कितना ध्यान रखती हो,’’ कहते हुए राहुल उठ गया, ‘‘अभी चिप्स निकालता हूं. ऐक्सक्यूज मी अंकल.’’

अंकल के पास कोई और औप्शन था भी नहीं. अपनी कौफी का कप ध्यान से संभालते हुए सीट बैल्ट खोल कर साइड में खड़े हो गए. आगेपीछे के लोगों ने अंकल को सहानुभूति से देखा, आंखों ही आंखों में इशारा किया कि क्या करें इन का.

रूबी की आवाज आई, ‘‘राहुल, ध्यान से तेरे सिर में कुछ लग न जाए.’’

चिप्स का पैकेट निकालने के बाद राहुल बैठ गया. अंकल भी बैठ गए. कौफी और सैंडविच भी आ गए. उठनेबैठने के चक्कर में अब तक ठंडी हो चुकी कौफी के सिप ले रहे अंकल ने कनखियों से देखा, राहुल और रूबी एकदूसरे को अपने हाथों से खिला रहे हैं, खुसुरफुसुर कर बातों पर हंसी रोक रहे हैं.

अचानक रूबी को याद आया, ‘‘अरे राहुल, मैं तो पूछना भूल गई

तेरी मम्मी का एअरपोर्ट पर फोन आया था? क्या कह रही थीं? मुझे अपना नाम सुनाई दिया था. अब तो उन्हें हमारे बारे में सबकुछ पता है न?’’

‘‘हां, वह सब तो मैं ने उन्हें तभी बता दिया था जब तू औफिस में नईनई आई थी. अभी मम्मी कह रही थीं कि शादी कब करोगे? मैं ने उन्हें बोल दिया, मुंबई में अभी तो हम लिव इन में रहेंगे, थोड़ा और सैट हो जाएं तो शादी करेंगे. फिर मम्मी घर, खानदान की बातें करने लगीं तो मैं ने उन्हें बोल दिया कि रूबी घर में आप की तरह नहीं रहेगी. उसे जो अच्छा लगेगा, वही करेगी. आप तो ताऊजी, दादाजी के सामने सिर पर पल्ला ले कर रसोई में घुसी रहीं, मेरी रूबी यह सब नहीं करेगी.

‘‘मम्मी बस फिर चुप ही हो गईं. तू चिंता न कर रूबी मैं तुझे रानी बना कर रखूंगा. अभी एक फ्लैट किराए पर लेने के लिए देख रहा हूं. तु?ो भी 3 लड़कियों के साथ रूम शेयर करना पड़ता है. बस यह फ्लैट मिल जाए, 1 साल लिव इन में रहेंगे, फिर आगे की सोचेंगे.

‘‘पेरैंट्स के बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है. हमारी लाइफ है, हम देख लेंगे. तू भी उन के उपदेशों पर ध्यान मत देना. बिंदास जीना. मैं तो मम्मी को सब कह देता हूं ताकि वे पापा को भी बता दें, मु?ा से उम्मीद न करें कि मैं उन की कोई बात सुनूंगा.’’

रानी ने तो यह बात सुन कर अपने राजा का गाल ही चूम लिया जिसे देख कर भी अंकल ने इग्नोर किया. रूबी ने जैसे राहुल को एक मैडल भी दे दिया, ‘‘राहुल, तेरे विचार कितने अच्छे हैं.’’

राहुल की तेज आवाज में कहे ये डायलौग सुन कर आगे बैठी महिला के दिल में आया कि जरा पीछे बैठी रानी को देख लिया जाए, कैसी है यह रानी जिस पर राजा इतना फिदा है.

उस ने यों ही इधरउधर नजर डालते हुए पीछे भी देख लिया, राजारानी एकदूसरे से सिर सटाए बैठे थे. इतने में

2 एअरहोस्टेस एक बड़ा सा ब्लैक बैग लिए क्लीनिंग के लिए आईं.

रूबी ने अपना कप उठाने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया, राहुल की आवाज ने सब का ध्यान खींचा, ‘‘तू रहने दे, रूबी, मैं देता हूं.’’

डेढ़ घंटा बीत चुका था, आधे घंटे का समय बाकी था. अंकल का मन हुआ, एक झपकी ले लें पर राहुल और रूबी उन के सहयात्री थे, यह कहां संभव था. वे एक फैमिली फंक्शन से थक कर लौट रहे थे, उन पर थकान हावी थी, उन्होंने अपनी आंखें बंद कीं. शायद उन की आंख लगे 5 मिनट ही हुए थे कि राहुल की आवाज आई, ‘‘ऐक्सक्यूज मी अंकल, मेरी दोस्त को टौयलेट जाना है.’’

बेहद बेजार बुजुर्ग ने नागवारी से राहुल को देखा, पर समझते थे. इस लड़के को कुछ कह नहीं सकते थे, ये दोनों उन युवाओं में से थे जो किसी की भी तकलीफ नहीं समझते. वे चुपचाप बैल्ट खोल कर साइड हो गए.

रूबी के पीछेपीछे राहुल भी उठ गया, ‘‘रुक, मैं भी तेरे साथ आ जाता हूं.’’

दोनों चले गए तो बुजुर्ग बैठ तो गए पर जानते थे, फिर उठना ही है. दोनों वापस आए, रूबी की आवाज आई, ‘‘चल राहुल, कुछ देखते हैं.’’

‘‘हां, बोल, क्या देखेगी?’’

‘‘रौकी और रानी की लव स्टोरी देखें? मैं ने अब तक नहीं देखी है, सोचा था, तेरे साथ ही शुरू करूंगी. मैं तेरे फ्लैट पर जब आई थी, तब तेरा फ्लैटमेट अनुज आ गया था. मुझे लव स्टोरी तेरे साथ ही देखना अच्छा लगता है. इसलिए अब देख लें?’’

‘‘हांहां, चल, देखते हैं. वैसे अनुज है अच्छा, मेरी उस की काफी अच्छी बौडिंग हो गई है, तू जब आती है, वह बाहर चला जाता है, उस की गर्लफ्रैंड आती है तो मैं सामने वाले कैफे में जा कर बैठ जाता हूं. मुंबई में ऐसे फ्लैटमेट मिल जाएं तो सही रहता है. चल, मूवी लगा लें.’’

‘‘हां, देखते हैं,’’ दोनों ने 1-1 इयरबड लगाया, मूवी शरू हुई, फोन उन्होंने स्टैंड पर रख लिया था. बुजुर्ग ने सोचा, अब थोड़ी देर वे आराम कर सकते हैं पर दोनों ने मूवी देखते हुए भी इतनी बातें कीं, इतनी खुसुरफुसुर की कि वे बारबार टाइम देखने लगे कि अब इन से पीछा छूटने में कितनी देर है पर जैसे ही बुजुर्ग व्यक्ति को ?ापकी आई, राहुल की आवाज उन के कानों से टकराई, ‘‘ऐक्सक्यूज मी, अंकल, मेरी दोस्त को टौयलेट जाना है.’’

अंकल ने उसे बहुत निराश, कुछ गुस्से में घूरती हुई नजरों से देखा.

रूबी राहुल से कह रही थी, ‘‘अभी फ्लाइट लैंड होने ही वाली है, राहुल. मैं बस अभी अपना मेकअप ठीक कर के आई.’’

बुजुर्ग फिर एक तरफ उठ कर खड़े हो चुके थे. इतने में अनाउंसमैंट हुई कि अब यात्री अपनी सीट पर ही बैठे रहें. बुजुर्ग फिर बैठ गए. राहुल को गुस्सा आना शुरू हो गया, ‘‘फालतू फ्लाइट है. लैंड होने से इतनी देर पहले ही टौयलेट बंद कर दिया, रूबी. मैं सामान संभालता हूं, तू फ्रैश हो कर आ जाना.’’

बुजुर्ग ने मन ही मन कहा कि बेटा, फ्लाइट फालतू नहीं है, तुम दोनों की लव स्टोरी एकदम फालतू है.’’

उन्होंने आगेपीछे बैठे लोगों पर नजर डाली, उन्हें लगा, सब उन की इस बात से सहमत हैं.

कहानी : फ्रिजिड – सुहागरात के दिन सलमा के साथ क्या हुआ?

कहानी :  मन में हजारों सपने संजोए अनवर अपने सुहागरात के कमरे में दाखिल हुआ. सलमा फूलों से सजे पलंग पर सिकुड़ी बैठी थी, बिलकुल उसी तरह जिस तरह की उस ने कल्पना की थी.

अनवर रुक गया. उस की सम?ा में नहीं आया कि वह क्या करे? स्वयं उस के दिल की धड़कनें भी बढ़ गई थीं और माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईर् थीं.

‘मैं भी कितना डरपोक हूं. स्वयं घबरा रहा हूं, जबकि घबराना तो सलमा को चाहिए,’ सोच कर वह दृढ़ निश्चय से आ कर पलंग पर बैठ गया.

अनवर के पैरों की आहट सुन कर सलमा ने सिर उठाया. फिर कुछ सिमट कर बैठ गई.

‘‘आदाब अर्ज है,’’ चंचल स्वर में अनवर ने सलमा को छेड़ा.

‘‘आदाब,’’ सलमा के स्वर में घबराहट थी. उस के माथे पर उभर आई पसीने की बूंदों को वह साफ देख रहा था.

अनवर जोर से हंस पड़ा और बोला, ‘‘देखो, मु?ा से इतना घबराने की कोई बात नहीं है. मैं कोई शेर तो हूं नहीं जो तुम्हें खा जाऊंगा. आराम से बैठो… पहले तो बड़े जोरशोर से वीडियो चैट करती रही अब ऐसे देख रही हो मानो पहली बार देखा हो.

अनवर की बात सुन कर सलमा कुछ झिझकी, फिर संभल कर बैठ गई.

कुछ देर कमरे में मौन छाया रहा. फिर अनवर बोला, ‘‘बुरा न मानो तो एक बात कहूं?’’

‘‘कहिए न.’’

‘‘देखो, रात के 3 तो बज ही गए हैं. घर वालों और विवाह के ?ामेलों की वजह से हमारी सुहागरात 2 घंटों की रह गई है. क्या हम बातों में ही यह समय भी गुजार दें?’’

‘‘जी?’’ सलमा का स्वर निर्भाव था.

‘‘बातें करने के लिए तो सारा जीवन पड़ा है. अब तो जीवनभर का साथ है, फिर क्यों न इन हसीन क्षणों में खो जाएं,’’ कहते हुए उस ने धीरे से सलमा का हाथ पकड़ लिया.

सलमा अपना हाथ छुड़ाने का प्रयत्न करने लगी. वह सलमा की ?ि?ाक को अनुभव कर रहा था. अभी वे एकदूसरे के लिए अजनबी हैं, इसलिए बीच में यह ?ि?ाक तो रहेगी ही.

सलमा के कोमल हाथों का स्पर्श पाते ही अनवर के शरीर में बिजलियां सी दौड़ने लगीं और वह उत्तेजित हो उठा. उस ने आगे बढ़ कर सलमा को बांहों में ले लिया तो सलमा बौखला उठी, ‘‘यह क्या कर रहे हैं आप?’’ उस की बांहों में कसमसाती वह बोली, ‘‘छोडि़ए.’’

 

अनवर ने सलमा के विरोध की ओर कोई ध्यान नहीं दिया. पहलेपहल तो

थोड़ा सा विरोध हर नवविवाहिता करती है. उस की पत्नी हुई तो क्या हुआ? अभी तो उस के लिए वह अजनबी है और यह उन के मिलन की पहली रात है.

‘‘छोडि़ए,’’ अचानक सलमा और जोर से चीख उठी और उस की बांहों से निकलने के लिए तड़फड़ाने लगी. अनवर ने जैसे ही सलमा के शरीर के गिर्द अपनी गिरफ्त मजबूत की, सलमा के होंठों से भयंकर चीख निकली और वह उस की बांहों में झेल गई.

अनवर बुरी तरह घबरा उठा. सलमा बेहोश हो गई थी.

सलमा की चीख सुन कर वाले भी जो सो चुके थे या सोने का प्रयत्न कर रहे थे, जाग गए.

‘‘अनवर… अनवर, दरवाजा खोलो,’’ सब दरवाजा पीटने लगे.

अनवर ने बेहोश सलमा को पलंग पर लिटाया और बंद दरवाजा खोल दिया.

‘‘क्या हुआ? क्या हुआ?’’ कहते सब भीतर घुस आए. स्वयं उस की सम?ा में नहीं आ रहा था कि वह उन्हें कैसे बताए कि क्या हुआ. शर्म से उस का बुरा हाल था.

‘‘सलमा… सलमा…’’ घर की 1-2 औरतें उसे जगाने का प्रयत्न करने लगीं.

‘‘अरे यह तो बेहोश है,’’ किसी ने कहा तो अनवरका मन धक से रह गया. घर वालों में से कोई डाक्टर को बुलाने के लिए भागा तो वह लोगों की नजरों से बचने के लिए कमरे से बाहर आ गया. उस की सम?ा में नहीं आ रहा था कि उस ने ऐसा क्या किया है जिस से सलमा बेहोश हो गई है. देर तक वह इसी के बारे में सोचता रहा.

अनवर ने तो सलमा को केवल छुआ ही था. उसे पता था कि बहुत सी लड़कियां प्रथम मिलन के भय से बेहोश हो जाती हैं, परंतु यहां तो ऐसी कोई बात नहीं थी और फिर जो लड़कियां कम उम्र या अनपढ़ होती हैं, उन के साथ ऐसी घटना घटने की संभावना रहती है. सलमा तो अच्छी पढ़ीलिखी है, इन बातों के बारे में अच्छी तरह से जानती है. उसे इन से डरने की क्या जरूरत है? डाक्टर आया और सलमा को इंजैक्शन दे गया, ‘‘शायद किसी बात से डर गई है. मैं ने इंजैक्शन दे दिया है. सवेरे तक आराम से सोती रहेगी. सवेरे जब जागेगी तो रात की सारी बातें भूल जाएगी. उस की आंख खुलने से पहले उसे न जगाया जाए,’’ और विजिट की मोटी फीस ले कर डाक्टर चला गया. आजकल ऐसे डाक्टर मिलते भी कहां हैं जो हाउस विजिट करें.

अनवर दूसरे कमरे में आ कर लेट गया था. मगर उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. उसे उस घटना पर झुंझलाहट हो रही थी. कभी सलमा पर क्रोध आता तो कभी अपना ही दोष अनुभव होता.

सवेरे जागने पर कई दोस्तों और गली के लोगों ने घेर लिया. वे अनवर से तरहतरह के प्रश्न कर रहे थे. उन्हें रात की घटना मालूम हो गई थी.

‘‘क्यों भई, रात वाला मामला क्या था?’’

‘‘अजी और क्या हो सकता है? अनवर साहब ने अपनी सारी मर्दानगी का सुबूत देने की कोशिश की होगी…’’

‘‘अरे भई, यह तो सोचा होता कि कहां वह नाजुक सी गुडि़या और कहा तुम फौलादी इनसान.’’

दोस्तों की बातें सुन कर अनवर झेंप उठा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इन बातों के क्या जवाब दे. बस, लज्जित सा चुपचाप बैठा रहा.

सलमा दोपहर तक उठी. वह आपा के पास जा बैठी. उस के चेहरे से तो ऐसा लग रहा था जैसे रात कुछ हुआ ही न हो.

स्नान और नाश्ता कर के अनवर घूमने चला गया. रात खाना खाने के बाद बहुत सोचने के बाद उस ने एक निर्णय ले लिया. उस ने आपा को बुला कर उन से कहा, ‘‘आपा, मेरे खयाल से सलमा के मस्तिष्क से रात वाली बात का प्रभाव दूर नहीं हुआ होगा, इसलिए आज उसे तुम अपने पास ही सुला लो.’’

‘‘ठीक है,’’ आपा बोलीं, ‘‘परंतु तुम्हारी विवशता पर कुछ तरस भी आता है,’’ आपा ने उसे छेड़ा तो वह आपा की शरारत पर झेंप उठा.

दूसरे दिन अनवर उठा तो ऐसा लग ही नहीं रहा था कि पहले दिन कुछ हुआ था. नाश्ता सलमा ने ही तैयार किया था और सारे घर वालों को उसी ने अपने हाथों से नाश्ता दिया था. उस का स्वभाव और घर के काम में निपुणता देख कर सभी खुश थे.

अनवर के लिए भी सलमा ने ही नाश्ता लगाया था. एकांत का लाभ उठा कर नाश्ता करते हुए उस ने सलमा को कई बार छेड़ा. उस के छेड़ने पर सलमा के कपोल अंगारों की तरह दहकने लगे थे. वह सिर ?ाका कर कह उठी, ‘‘जाइए… आप बड़े वह हैं.’’

दिनभर में ही सलमा घर वालों के लिए अजनबी न रह कर घर की वर्षों पुरानी सदस्य बन गई थी. वह हर किसी से इस तरह हंसबोल रही थी जैसे वे एकदूसरे को बरसों से जानते हों.

रात आपा ने मुसकरा कर कहा, ‘‘सुनो,

मैं ने उसे सम?ा दिया है, परंतु ज्यादा तंग नहीं करना, समझे?’’

‘‘जी,’’ अनवर ने शरारत भरे स्वर में कहा. जब वह कमरे में आया तो सलमा उस की राह देख रही थी. उस के व्यवहार में पहले सी झिझक नहीं थी. 2 दिन में कई बार आमनासामना हुआ था. कुछ बातें भी हुई थीं, इसलिए उन के बीच की झिझक और अजनबीपन दूर हो चुका था.

पलंग पर बैठ कर वे देर तक एकदूसरे के बारे में बातें करते रहे. मगर अनवर ने जैसे ही सलमा को छुआ उस के चेहरे पर भय के भाव उभर आए. वह विरोध करती हुई उस की बांहों से निकलने का प्रयत्न करने लगी और फिर जब वह उस की गिरफ्त से मुक्त नहीं हो सकी तो अचानक चीख मार कर उस की बांहों में बेहोश हो गई.

अनवर के माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं. उस ने तो कल्पना भी नहीं की थी कि आज फिर यह घटना घटित होती.

कुछ समय पहले सलमा के व्यवहार से ऐसा लग रहा था जैसे उस के मन का भय दूर हो चुका है. मगर इस घटना ने उसे फिर से परेशान कर दिया. ?ाल्ला कर सलमा को घर वालों पर छोड़ कर बाहर चला आया.

अनवर बुरी तरह तनावग्रस्त था. उस की सम?ा में नहीं आ रहा था कि दिन में उस के साथ इतने प्रेम से पेश आने वाली सलमा रात को उस के स्पर्श से इतनी भयभीत क्यों हो उठती है?

अगले दिन सलमा फिर सामान्य दिखाई पड़ रही थी. उस दिन भी आपस में हंसीमजाक व छेड़छाड़ चलती रही जैसे वह रात की बात भूल गई है. मगर इस रात फिर वही घटना घटी तो अनवर बुरी तरह झल्ला उठा.

इन घटनाओं के कारण अनवर को लोगों की नजरों में जितना लज्जित होना पड़ रहा था, उस के बारे में सोच कर उसे सलमा से घृणा सी होने लगी. हजारों शंकाएं उस के मन में कुलबुलाने लगीं. उसे सलमा का यह व्यवहार ढोंग लगने लगा. वह जितना इस बारे में सोचता उसे इस में सलमा की कोई चाल नजर आती और उस के मन में सलमा के लिए घृणा बढ़ती जाती.

सलमा के बेहोश हो जाने की बात सुन कर उस के अब्बा भी आ गए थे. उन्हें देख कर अनवर इतना उत्तेजिम हुआ कि उस के मन में आया उन से कह दे कि अपनी बेटी को ले जाइए, मु?ो इस पत्थर की मूरत की कोई आवश्यकता नहीं है.

‘‘मामला क्या है बेटे?’’ जब उन्होंने अनवर से पूछा तो उसे और अधिक क्रोध आ गया, ‘‘आप की बेटी मेरे साथ दिनभर तो ऐसा नाटक करती है जैसे वह मु?ो बहुत चाहती है. हंसहंस कर बड़ी प्यारभरी बातें करती है, परंतु जैसे ही मैं उसे छूता हूं, वह चीख कर बेहोश हो जाती है.’’

अनवर की बात सुन कर सलमा के अब्बा गंभीर हो गए. फिर बोले, ‘‘लगता है कि उस के मस्तिष्क से अभी तक उस घटना का प्रभाव दूर नहीं हुआ.’’

‘‘किस घटना का?’’ अनवर आश्चर्य से उन का मुंह ताकने लगा.

‘‘मैं तुम्हें इस के बारे में बताना भूल गया, बेटे.’’

जब सलमा छोटी थी तो एक विकृत दिमाग वाले व्यक्ति ने उस का रेप करने का प्रयत्न किया था. तब वह बहुत छोटी थी. उस व्यक्ति ने इस के शरीर को बुरी तरह नोच डाला था. तब से इस के मन में पुरुषों के प्रति भय बैठ गया है. कई दिनों तक तो यह मुझे देख कर भी चीखने लगती थी. किसी भी पुरुष को अपने समीप नहीं आने देती थी. फिर धीरेधीरे इस के मन का वह भय दूर हो गया और यह सामान्य हो गई. मगर यदि कोई पुरुष इसे छू भी लेता तो इस के चेहरे के भाव बदल जाते.

‘‘यह शायद उसी घटना का प्रभाव है कि तुम्हारे छूते ही यह बेहोश हो जाती है. यह सोचती है कि कहीं तुम भी इस के साथ वैसा ही दानवी व्यवहार न करो.’’

‘‘उफ,’’ सलमा की कहानी सुन कर अनवर ने अपना सिर पकड़ लिया. उस ने मन में सलमा के बारे में कितनी गलत बातें सोच ली थीं.

‘‘बेटे,’’ सलमा के अब्बा बोले, ‘‘सलमा के मस्तिष्क से सब से पहले वह भय निकालना पड़ेगा और उस भय को सिर्फ तुम ही निकाल सकते हो. यदि वह भय उस के मस्तिष्क से नहीं निकला तो शायद सलमा जीवनभर इसी तरह असामान्य रहेगी.’’

‘‘आप चिंता न कीजिए,’’ अनवर कुछ सोचता हुआ बोला, ‘‘अब सब ठीक हो जाएगा.’’

फिर अनवर बहुत देर तक सलमा के बारे में सोचता रहा. सलमा के साथ बचपन में जो दुर्घटना घटी थी, उस के कारण उस के छूते ही सलमा का भयभीत हो जाना स्वाभाविक था. उस घटना का सलमा के कोमल मस्तिष्क पर ऐसा कुप्रभाव पड़ा था कि जो भी पुरुष उसे छूने का प्रयत्न करता, उसे वह वही दानव नजर आता, जिस की दानवता का शिकार होतेहोते वह बची थी. उस के मस्तिष्क में यह घटना ताजा हो जाती और वह भयभीत हो जाती थी.

यह स्पष्ट तौर से एक मनोग्रंथि थी. अनवर सोचने लगा कि किस तरह सब से पहले सलमा के मस्तिष्क से यह भय दूर किया जाए. उस के लिए बहुत संयम से काम लेने की जरूरत थी और वह उस के लिए तैयार था.

उस रात अनवर सलमा के साथ पलंग पर बैठा उस से बातें कर रहा था. उन में हंसीमजाक चलता रहा. मगर इस बीच उस ने भूल कर भी सलमा को छूने का प्रयत्न नहीं किया.

उस घटना के बाद सलमा को पुरुषों के समीप रहने का बहुत कम अवसर मिला था,

इसलिए वह पुरुषों की समीपता से भयभीत हो जाती थी. सब से पहले तो अनवर सलमा के मन से यह भय निकालना चाहता था. वह यह बात उसे सम?ाना चाहता था कि पुरुष के समीप आने से कोई भय नहीं होता है. देर तक वे साथ बैठे हंसीमजाक और बातें करते रहे थे. फिर सलमा सो गई.

अनवर के लिए यह कड़ी परीक्षा की घड़ी थी. उस के समीप ही उस की सुंदर, जवान पत्नी सोई हुई है और वह उसे छू भी नहीं सकता.

उस रात पुरुषों के समीप रहने से सलमा को जो घबराहट होती थी, वह घबराहट और भय दूर हो गया था.

अगले दिन भी रात सोने से पहले वे काफी देर तक बातें करते रहे. उस दिन बातें करतेकरते अनवर ने एक कदम आगे बढ़ाया. बातें करतेकरते वह सलमा का हाथ पकड़ लेता था. इस से सलमा घबरा उठती और अपना हाथ छुड़ाने का प्रयत्न करती तो वह हाथ छोड़ देता. बारबार ऐसा करने से सलमा के मस्तिष्क में यह बात बैठ गई कि इस से कुछ नहीं होता है. किसी ने हाथ पकड़ लिया तो उस में भयभीत होने की कोई बात नहीं है.

अंत में अनवर बहुत देर तक सलमा का हाथ अपने हाथ में लिए बातें करता रहा. सलमा पूरी तरह सामान्य लग रही थी. इस का मतलब था कि वह अपने इरादे में सफल हो रहा है. एक और भय सलमा के मन से निकल चुका था.

सलमा के भीतर यौन इच्छाओं की जो आग थी, वह उस घटना से ठंडी हो चुकी थी. अब उस ठंडी आग को धीरेधीरे जगाने की जरूरत थी.

अगले दिन अनवर एक कदम और आगे बढ़ गया. अपनी बाजू में लेटी सलमा को बातें करतेकरते वह बांहों में ले लेता था. उस की इस हरकत पर सलमा बौखला जाती और उस की बांहों से निकलने के लिए कसमसाती तो वह हंसते हुए उसे छोड़ देता.

सलमा के चेहरे पर कृत्रिम क्रोध के भाव उभरते और वह लज्जाभरे स्वर में कहती, ‘‘जाइए, आप बड़े वह हैं,’’ तो वह प्यार से उस के गालों पर चुटकी ले लेता. इस प्रकार सलमा के मन से एक और भय निकल गया.

अनवर फिर सलमा को बांहों में ले लेता तो भी वह कोई विरोध नहीं करती. चुपचाप लेटे हुए उस की बातों पर हंसती रहती.

घर वालों को पता भी नहीं चल सका कि मामला क्या है. अनवर ने सम?ादारी से काम लिया तो मामला सुल?ा गया. यदि वह उत्तेजना से काम लेता तो नादानी में सलमा जैसी सुंदर, प्रेम करने वाली जीवनसंगिनी से हाथ धो बैठता.

सलमा के मस्तिष्क पर बचपन में घटी उस घटना का जो मनोवैज्ञानिक प्रभाव था, उस के दूर होने के साथ ही सलमा उस की कल्पना के अनुरूप जीवनसंगिनी बन जाने वाली थी.

अनवर के लिए यह एक परीक्षा थी और वह धैर्य के साथ उस परीक्षा के दौर से गुजर रहा था. अब सलमा का उस के प्रति सारा भय दूर हो गया था. वह उस की किसी भी हरकत से भयभीत नहीं होती.

1-2 बार अनवर ने सलमा को धीरे से चूम लिया तो उस का सारा चेहरा उत्तेजना से लाल हो उठा. उस के स्पर्श और चुंबन के आनंद से सलमा भी पुलकित हो उठी और उस आनंद को दोबारा पाने के लिए उस से लिपट गई.

वह रात अनवर के जीवन की अविस्मरणीय रात थी. यही उस की सुहागरात थी.

सलमा के भीतर जो आग ठंडी हो गई थी, वह उसे फिर से भड़काने में सफल हो गया था.

उस रात जहां अनवर जीवन के मधुर सुख से परिचित हुआ, वहीं उस ने सलमा को भी उस सुख से परिचित करा दिया. सलमा को अनुभव हो गया कि इस सुख का मानवीय जीवन में कितना महत्त्व है और वह उस के प्यार में दीवानी हो गई.

सलमा के भीतर की जो आग ठंडी हो गई थी, उस सुख को पा कर फिर से भड़क उठी. अब वह भी रैपिस्ट के चंगुल में नहीं थी, एक प्यारे, सुरक्षा देने वाले पति की बांहों में थी जहां सुख ही सुख है.

Kahani : पाखंड – आखिर क्या जान गई थी बहू?

Kahani : ‘‘दीदीजी, हमारी बात मानो तो आप भी पहाड़ी वाली माता के पास हो आओ. फिर देखना, आप के सिर का दर्द कैसे गायब हो जाता है,’’ झाड़ू लगाती रामकली ने कहा.

कल रात को लाइट न होने के कारण मैं रात भर सो नहीं पाई थी, इसलिए सिर में हलका सा दर्द हो रहा था, पर इसे कैसे समझाऊं कि दर्द होने पर दवा खानी चाहिए न कि किसी माता के पास जाना चाहिए.

‘‘रामकली, पहले मेरे लिए चाय बना लाओ,’’ मैं कुछ देर शांति चाहती थी. यहां आए हमें 3 महीने हो चुके थे. ऐसा नहीं था कि मैं यहां पहली बार आई थी. कभी मेरे ससुरजी इस गांव के सरपंच हुआ करते थे. पर यह बात काफी पुरानी हो चुकी है. अब तो इस गांव ने काफी उन्नति कर ली है.

30 साल पहले मेरी डोली इसी गांव में आई थी, पर जल्द ही मेरे पति की नौकरी शहर में लग गई और धीरेधीरे बच्चों की पढ़ाईलिखाई के कारण यहां आना कम हो गया. मेरे सासससुर की मृत्यु के बाद तो यहां आना एकदम बंद हो गया. अब जब हमारे बच्चे अपनेअपने काम में रम गए और पति रिटायर हो गए, तो फिर से एक बार यहां आनाजाना शुरू हो गया.

‘‘मेमसाहब, चाय,’’ रामकली ने मुझे चाय ला कर दी. अब तक सिरदर्द कुछ कम हो गया था. सोचा, थोड़ी देर आराम कर लूं, पर जैसे ही आंखें बंद कीं, गली में बज रहे ढोल की आवाजें सुनाई देने लगीं.

‘‘दीदीजी, आज पहाड़ी माता की चौकी लगनी है न… उस के लिए ही पूरे गांव में जुलूस निकल रहा है. आप भी चल कर दर्शन कर लो.’’

‘‘यह पहाड़ी वाली माता कौन है?’’ मैं ने पूछा, पर रामकली मेरी बात को अनसुना कर के जय माता दी कहती हुई चली गई.

थोड़ी देर बाद ढोल का शोर दूर जाता सुनाई दिया. तभी रामकली आ कर बोली, ‘‘लो दीदी, मातारानी का प्रसाद,’’ और फिर अपने काम में लग गई.

कुछ दिनों बाद रामकली ने मुझ से छुट्टी मांगी. मैं ने छुट्टी मांगने का कारण पूछा तो बोली, ‘‘दीदी, माता की चौकी पर जाना है.’’ मैं ने ज्यादा नानुकर किए बिना छुट्टी

दे दी.

मेरे पति अपना अधिकतर समय मेरे ससुरजी के खेतों पर ही बिताते. सेवानिवृत्त होने के बाद यही उन का शौक था. मैं घर पर कभी किताबें पढ़ कर तो कभी टीवी देख कर समय बिताती थी. पासपड़ोस में कम ही जाती थी. अगले दिन जब रामकली वापस आई तो बस सारा वक्त माता का ही गुणगान करती रही. शुरूशुरू में मुझे ये बातें बोर करती थीं, पर फिर धीरेधीरे मुझे इन में मजा आने लगा. मैं ने भी इस बार चौकी में जाने का मन बना लिया. सोचा, थोड़ा टाइम पास हो जाएगा.

मैं ने रामकली से कहा तो वह खुशी से झूम उठी और बोली, ‘‘दीदी, यह तो बहुत अच्छा है. आप देखना, आप की हर मुराद वहां पूरी हो जाएगी.’’

कुछ दिनों बाद मैं भी रामकली के साथ मंदिर चली गई. इस मंदिर में मैं पहले भी अपनी सास के साथ कई बार आई थी, पर अब तो यह मंदिर पहचान में नहीं आ रहा था. एक छोटे से कमरे में बना मंदिर विशाल रूप ले चुका था. जहां पहले सिर्फ एक फूल की दुकान होती थी वहीं अब दर्जनों प्रसाद की दुकानें खुल चुकी थीं और इतनी भीड़ कि पूछो मत.

रामकली मुझे सीधा आगे ले गई. मंच पर एक बड़ा सिंहासन लगा हुआ था. रामकली मंच के पास खड़े एक आदमी के पास जा कर कुछ कहने लगी, फिर वह आदमी मेरी ओर देख कर मुसकराते हुए नमस्ते करने लगा. मैं ने भी नमस्ते का जवाब दे दिया.

रामकली फिर मेरे पास आ कर बोली, ‘‘दीदी, वह मेरा पड़ोसी राजेश है. जब से माताजी की सेवा में आया है, इस के वारेन्यारे हो गए हैं. पहले इस की बीवी भी मेरी तरह ही घरों में काम करती थी, पर अब देखो माता की सेवा में आते ही इन के भाग खुल गए. आज इन के पास सब कुछ है.’’

थोड़ी देर बाद वहां एक 30-35 वर्ष की महिला आई, जिस ने गेरुआ वस्त्र पहन रखे थे. माथे पर बड़ा सा तिलक लगा रखा था और गले में रुद्राक्ष की माला पहनी हुई थी.

उस के मंच पर आते ही सब खड़े हो गए और जोरजोर से माताजी की जय हो, बोलने लगे. सब ने बारीबारी से मंच के पास जा कर उन के पैर छुए. पर मैं मंच के पास नहीं गई, न ही मैं ने उन के पैर छुए. 20-25 मिनट बाद ही माताजी उठ कर वापस अपने पंडाल में चली गईं.

माताजी के जाते ही लाउडस्पीकर पर जोरजोर से आवाजें आने लगीं, ‘‘माताजी का आराम का वक्त हो गया है. भक्तों से प्रार्थना है कि लाइन से आ कर माता के सिंहासन के दर्शन कर के पुण्य कमाएं.’’

अजीब नजारा था. लोग उस खाली सिंहासन के पाए को छू कर ही खुश थे.

‘‘दीदी चलो, राजेश ने माताजी के विशेष दर्शन का प्रबंध किया है,’’ रामकली के कहने पर मैं उस के साथ हो गई.

‘‘आओआओ, अंदर आ जाओ,’’ राजेश हमें कमरे के बाहर ही मिल गया. कमरे के अंदर से अगरबत्ती की खुशबू आ रही थी. हलकी रोशनी में माताजी आंखें बंद कर के बैठी थीं. हम उन के सामने जा कर चुपचाप बैठ गए.

थोड़ी देर बाद माताजी की आंखें खुलीं, ‘‘देवी, आप के माथे की रेखाएं बता रही हैं कि आप के मन में हमें ले कर बहुत सी उलझनें हैं…देवी, मन से सभी शंकाएं निकाल दो. बस, भक्ति की शक्ति पर विश्वास रखो.’’

उन की बातें सुन कर मैं मुसकरा दी.

कुछ देर रुक कर वह फिर बोलीं, ‘‘तुम एक सुखी परिवार से हो…तुम्हारे कर्मों का फल है कि तुम्हारे परिवार में सब कुछ ठीक चल रहा है पर देखो देवी, मैं साफसाफ देख सकती हूं कि तुम्हारे परिवार पर संकट आने वाला है. यह संकट तुम्हारे पति के पिछले जन्म के कर्मों का फल है,’’ और माताजी ने एक नजर मुझ पर डाली.

‘‘संकट…माताजी कैसा संकट?’’ मुझ से पहले ही रामकली बोल पड़ी.

‘‘कोई घोर संकट का साया है…और वह साया तुम्हारे बेटे पर है,’’ फिर एक बार माताजी ने मुझ पर गहरी नजर डाली, ‘‘पर इस संकट का समाधान है.’’

‘‘समाधान…कैसा समाधान?’’ इस बार मैं ने पूछा.

‘‘आप के बेटे की शादी को 3 साल हो गए, पर आप आज तक पोते पोतियों के लिए तरस रही हैं,’’ माताजी के मुंह से ये बातें सुन कर मैं सोच में पड़ गई.

माताजी ने आगे बोलना शुरू किया, ‘‘देवीजी, आप का बेटा किसी दुर्घटना का शिकार होने वाला है, पर आप घबराएं नहीं. हम बस एक पूजा कर के सब संकट टाल देंगे और आप के बेटे को बचा लेंगे…यही नहीं, हमारी पूजा से आप जल्दी दादी भी बन जाएंगी.’’

मेरी समझ काम करना बंद कर चुकी थी. मुझे परेशान देख कर रामकली बोली, ‘‘माताजी, आप जैसा कहेंगी, दीदीजी वैसा ही करेंगी…ठीक कहा न दीदी?’’ रामकली ने मुझ से पूछा पर मैं कुछ न कह पाई. बेटे की दुर्घटना वाली बात ने मुझे अंदर तक हिला दिया.

मेरी चुप्पी को मेरी हां मान कर रामकली ने माताजी से पूजा की विधि पूछी तो माताजी बोलीं, ‘‘पूजा हम कर लेंगे…बाकी बात तुम्हें राजेश समझा देगा…देवी, चिंता मत करना हम हैं न.’’

घर आ कर मैं ने सारी बात अपने पति को बताई. मैं अपने बेटे को ले कर काफी परेशान हो गई थी. मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था. सारी बातें सुन कर मेरे पति बोले, ‘‘शिखा, तुम पढ़ीलिखी हो कर कैसी बातें करती हो? ये सब इन की चालें होती हैं. भोलीभाली औरतों को कभी पति की तो कभी बेटे की जान का खतरा बता कर और मर्दों को पैसों का लालच दे कर ठगते हैं. तुम बेकार में परेशान हो रही हो.’’

‘‘पर अगर उन की बात में कुछ सचाई हुई तो…देखिए पूजा करवाने में हमारा कुछ नहीं जाएगा और मन का डर भी निकल जाएगा…आप समझ रहे हैं न?’’

‘‘हां, समझ रहा हूं…जब तुम जैसी पढ़ीलिखी औरत इन के झांसे में आ गई तो गांव के अनपढ़ लोगों को यह कैसे पागल बनाते होंगे…देखो शिखा, रामकली जैसे लोग इन माताओं और बाबाओं के लिए एजैंट की तरह काम करते हैं. तुम्हारी समझ में क्यों नहीं आ रहा,’’ मेरे पति गुस्से से बोले, फिर मेरे पास आ कर बोले, ‘‘तुम इस माता को नहीं जानती. कुछ महीने पहले यह अपने पति के साथ इस गांव में आई थी. पति महंत बन गया और यह माता बन गई. मंदिर के आसपास की जमीन पर भी गैरकानूनी कब्जा कर रखा है. हम लोगों को तो इन के खिलाफ कुछ करना चाहिए और हम ही इन के जाल में फंस गए…शिखा, सब भूल जाओ और अपने दिमाग से डर को निकाल दो.’’

पति के सामने तो मैं चुप हो गई पर सारी रात सो नहीं पाई.

अगले दिन रामकली ने आ कर बताया कि पूजा के लिए 5 हजार रुपए लगेंगे. मैं ने पति के डर से उसे कुछ दिन टाल दिया. पर मन अब किसी काम में नहीं लग रहा था. 3 दिन बीत गए. इन तीनों दिनों में मैं कम से कम 7 बार अपने बेटे को फोन कर चुकी थी, पर मेरा डर कम नहीं हो रहा था.

1 हफ्ता बीत चुका था. दिल में आया कि अपने पति से एक बार फिर बात कर के देखती हूं, पर हिम्मत नहीं कर पाई. फिर एक दिन रामकली ने आ कर बताया कि माताजी ने कहा है कि कल पूर्णिमा है. पूजा कल नहीं हुई तो संकट टालना मुश्किल हो जाएगा. मेरे पास कोई जवाब नहीं था.

रामकली के जाने के बाद मन में गलत विचार आने लगे. मैं ने बिना अपने पति को बताए पैसे देने का फैसला कर लिया. मैं ने सोचा कि कल पूजा हो जानी चाहिए. इस के लिए मुझे अभी पैसे रामकली को दे देने चाहिए, यह सोच कर मैं रामकली के घर पहुंच गई. वहां पता चला कि वह मंदिर गई है.

मेरे पति के आने में अभी वक्त था, इसलिए मैं तेजतेज कदमों से मंदिर की ओर चल दी. मंदिर में आज रौनक नहीं थी, इसलिए मैं सीधी माताजी के कमरे की ओर चल दी. माता के कमरे के बाहर मेरे कदम रुक गए. अंदर से रामकली की आवाजें आ रही थीं, ‘‘मैं ने तो बहुत कोशिश की माताजी पर वह शहर की है. इतनी आसानी से नहीं मानेगी.’’

‘‘अरे रामकली, तुम नईनई इस काम में आई हो, जरा सीखो कुछ राजेश से…इस का फंसाया मुरगा बिना कटे यहां से आज तक नहीं गया,’’ यह आवाज माताजी की थी.

‘‘यकीन मानिए माताजी, मैं ने बहुत कोशिश की पर उस का आदमी नहीं माना. साफ मना कर दिया उसे.’’

अब तक मुझे समझ आ गया था कि यहां मेरे बारे में ही बातें चल रही हैं.

‘‘देख रामकली, तेरा कमीशन तो हम काम पूरा होने पर ही देंगे, तू उस से 5 हजार रुपए ले आ और अपने 500 रुपए ले जा…अगर उस का आदमी नहीं मान रहा तो तू कोई और मुरगा पकड़,’’ राजेश बोला, ‘‘हां, वह दूध वाले की बेटी की शादी नहीं हो रही…अगली चौकी पर उस की घरवाली को ले कर आ…वह जरूर फंस जाएगी.’’

बाहर खडे़खड़े सब सुनने के बाद मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था. मैं वहां से चली आई, पर अंदर ही अंदर मैं खुद को कोस रही थी कि मैं कैसे इन के झांसे में आ गई. मेरी आंखें भर चुकी थीं और खुल भी चुकी थीं कितने सही थे मेरे पति, जो इन लोगों को पहचान गए थे.

शाम को जब मेरे पति घर आए तो मैं ने उन को एक लिफाफा दिया.

‘‘यह क्या है?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘आप ने ठीक कहा था इन पाखंडियों के चक्कर में नहीं आना चाहिए. ये जाल बिछा कर इस तरह फंसाते हैं कि शिकार को पता भी नहीं चल पाता और उस की जेब खाली हो जाती है,’’ मैं ने कहा.

Stories : वह बदनाम लड़की – आकाश की जिंदगी में कैसे आया भूचाल

Stories : आकाश जैसे एक खूब पढ़ेलिखे व काबिल इनसान की एक कालगर्ल से यारी…? यकीन मानिए, वह अपनी पत्नी प्रिया को पूरा प्यार देने वाला अच्छा इनसान है और हवस मिटाने के लिए यहांवहां झांकना भी उसे हरगिज गवारा नहीं है. इस के बावजूद वह टीना को दिलोजान से चाहता है, उस की इज्जत करता है.

आप के दिमाग में चल रही कशमकश मिटाने के लिए हम आप को कुछ पीछे के समय में ले चलते हैं. कुछ साल हो गए हैं आकाश को बैंगलुरु आए हुए. एक छोटे कसबे से निकल कर इस महानगरी की एक निजी कंपनी में जब क्लर्की का काम मिला तो पत्नी प्रिया को भी वह अपने साथ यहां ले आया था और उस के नन्हेमुन्ने प्रियांशु ने भी यहीं पर जन्म लिया था.

औफिस से अपने किराए के घर और घर से औफिस, यही आकाश की दिनचर्या बन चुकी थी. ऐसे ही एक दिन वह बस में सवार हो कर औफिस जा रहा था कि कंडक्टर की बहस ने उस का ध्यान खीच लिया. एक बेहद हसीन लड़की शायद पैसे घर पर ही भूल आई थी और कंडक्टर बड़े शांत भाव से पैसों का तकाजा कर रहा था. उस लड़की के चेहरे के भाव उस की परेशानी बयां करने के लिए काफी थे.

न जाने आकाश के मन में क्या आया कि उस ने लड़की के टिकट के पैसे अदा कर दिए. वह उसे ‘थैंक्स’ कह कर पीछे की सीट पर बैठ गई. आकाश ने भी पैसों को ज्यादा तवज्जुह नहीं दी और अपना स्टौप आते ही नीचे उतर गया.

आकाश कुछ कदम ही चला था कि हांफते हुए वह लड़की एकदम उस के आगे आ कर खड़ी हो गई और बोली, ‘‘सर… आप के पैसे मैं कल लौटा दूंगी. हुआ यह कि मैं आज जल्दी में अपने पर्स में पैसे डालना ही भूल गई.’’

आकाश ने उस का चेहरा देखा तो अपलक निहारता ही रह गया. फिर जैसे उसे अपनी हालत का बोध हुआ. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैडम, वह इनसान ही क्या, जो इनसान के काम न आए. आप पैसों की टैंशन न लें.’’

‘‘नहीं सर, आप ने आज मुझे शर्मिंदा होने से बचा लिया. प्लीज, मुझे अपना घर या औफिस का पता बता दें. मैं किसी का अहसान नहीं रख सकती.’’

‘‘तो फिर कल मैं बिना टिकट बस में चढ़ूंगा. आप मेरा टिकट ले कर अहसान चुका देना,’’ आकाश के इस अंदाज ने उस लड़की के होंठों पर हंसी बिखेर दी.

साथसाथ चलते हुए आकाश को पता चला कि उस का नाम टीना है और वह प्राइवेट नौकरी करती है. काम के बारे में पूछने पर वह हंस कर टाल गई. साथ ही, यह भी पता चला कि वह इस महानगरी के पौश इलाके छायापुरम में रहती है. बाकी उस की बातें, उस का लहजा उस के ज्यादा पढ़ेलिखे होने का सुबूत दे ही रहा था.

आकाश ने उसे वापसी के खर्च के लिए 100 रुपए देने चाहे, लेकिन उस ने कहा कि उस की सहेली इस जगह काम करती है. वह उस से पैसा ले लेगी.

आकाश के औफिस का पता ले कर पैसे आजकल में लौटाने की बात

कह कर वह चली गई. न जाने उस छोटी सी मुलाकात में क्या जादू था कि आकाश दिनभर टीना के बारे में ही सोचता रहा.

अगले दिन आकाश ने टीना का इंतजार किया, पर वह नहीं आई. कुछ दिन बीत गए. आकाश के दिमाग से अब वह पूरा वाकिआ निकल ही गया था.

आज काम की भारी टैंशन थी. आकाश अपने केबिन में फाइलों में सिर खपाए बैठा था कि किसी ने पुकारा, ‘‘हैलो, सर.’’

काम की चिंता में गुस्से से सिर उठाया तो सामने टीना को देख आकाश का सारा गुस्सा काफूर हो गया.

‘‘सौरी सर, मैं आप के पैसे तुरंत नहीं लौटा पाई. दरअसल, मेरा इस तरफ आना ही नहीं हुआ,’’ वह एक ही सांस में कह गई.

आकाश ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए चपरासी को कौफी लाने को बोल दिया. इस बीच उन दोनों में हलकीफुलकी बातों का दौर शुरू हो गया.

आकाश को अच्छा लगा, जब टीना ने उस के बारे में, उस के परिवार और उस के शौक का भी जायजा लिया. लेकिन तब तो और भी अच्छा लगा, जब आकाश के शादीशुदा होने की बात सुन कर भी उस के चेहरे पर किसी तरह के नैगेटिव भाव नहीं उभरे.

आकाश अंदाजा लगाने लगा कि टीना उस के बारे में क्या सोच बना रही होगी, पर वह नहीं चाहता था कि उस से बातों का यह सिलसिला यहीं टूट जाए.

आकाश की इस हालत को टीना ने भी महसूस किया और कौफी की घूंट भर कर कहा, ‘‘आकाशजी, आज तक न जाने मैं कितने मर्दों से मिली हूं लेकिन आप से जितनी प्रभावित हुई हूं, उतनी कभी किसी से नहीं हुई.’’

आकाश खुद पर ही इतरा गया. आखिर में उस के जज्बात शब्दों में उमड़ ही आए, ‘‘क्या हम अच्छे दोस्त बन सकते हैं?’’

टीना ने मूक सहमति तो दी, लेकिन यह भी साफ कर दिया कि आकाश के शादीशुदा होने के चलते उस की पत्नी प्रिया को वह दोस्ती हरगिज गवारा नहीं होगी. पर आकाश का बावला मन तो किसी भी तरह उस के साथ के लिए छटपटा रहा था. आकाश ने बचकाने अंदाज में बोल दिया, ‘‘हमारी दोस्ती के बारे में प्रिया को कभी पता नहीं चलेगा. मैं दोस्ती तो निभाऊंगा, पर पति धर्म मेरे लिए बढ़ कर होगा.’’

टीना ने सहमति जताई और आकाश को अपना मोबाइल नंबर दे कर चली गई. आकाश फिर से अपने काम में जुट गया. फाइलों का जो ढेर उसे सिरदर्दी दे रहा था, अब वह पलक झपकते ही निबट गया.

मोबाइल फोन पर मैसेज और बातों का सिलसिला शुरू हो गया. शाम को टीना ने आकाश को अपने घर बुला लिया. घर क्या आलीशान बंगला था, जिस के आसपास सन्नाटा पसरा हुआ था. टीना के दरवाजा खोलते ही शराब का तेज भभका आकाश की नाक से टकराया. टीना ने उसे भीतर बुला कर दरवाजा बंद कर दिया.

आकाश कुछ सोचनेसमझने की कोशिश करता, इस से पहले ही टीना ने उसे बैठने का संकेत किया और खुद उस के सामने सोफे पर पसर गई और बोली, ‘‘तुम मेरा यह अंदाज देख कर हैरान हो रहे होगे न. दरअसल, आज मैं तुम से अपनी जिंदगी के कुछ गहरे राज बांटना चाहती हूं.’’

चंद पल चुप रहने के बाद टीना बोली, ‘‘हम अपनी जिंदगी में एक नकाब ओढ़े रहते हैं. यह ऊपर का जो चेहरा है न, यह सब को दिखता है, पर जो चेहरा अंदर है उसे कोई दूसरा नहीं देख पाता. तुम भी सोच रहे होगे कि मैं कैसी बहकीबहकी बातें कर रही हूं. पर आकाश, मैं ने तुम्हारे अंदर एक सच्चा इनसान, एक सच्चा दोस्त देखा है

जो जिस्म नहीं, दिल देखता है. और इस दोस्त से मैं भी कुछ छिपा

कर नहीं रखना चाहती… तुम मेरी नौकरी पूछते थे न? तो सुनो, मैं एक कालगर्ल हूं,’’ इतना कह कर वह ठिठक गई.

आकाश को झटका सा लगा. उस के होंठ कुछ कहने को थरथराए, इस

से पहले ही टीना बोली, ‘‘मेरी कोई मजबूरी नहीं थी, न ही किसी ने मुझे जबरन इस धंधे में धकेला. मेरे बीटैक होने के बावजूद कोई भी नौकरी, कोई भी तनख्वाह मेरी ऐशोआराम की जरूरतें, मेरे शाही ख्वाब पूरे नहीं कर सकती थी, इसलिए मैं ने अपने रूप, अपनी जवानी के मुताबिक देह का धंधा चुना. तुम यह जो आलीशान फ्लैट देख रहे हो, यह मैं नौकरी कर के कभी नहीं बना सकती थी.

‘‘आकाश, मैं ने बहुत पैसा कमाया, बहुत संबंध बनाए, लेकिन रिश्ता नहीं कमा सकी. मैं कोई ऐसा शख्स चाहती थी जिसे मैं खुल कर अपनी भावनाएं साझा कर सकूं. लेकिन हर किसी की नजरें मेरे जिस्म से हो कर गुजरती थीं. यही वजह है कि तुम्हारे अंदर की सचाई देख कर मैं खुद तुम्हारी दोस्ती को उतावली थी. पर मुझे यह मंजूर नहीं

हो रहा था कि मैं अपने दोस्त को अंधेरे में रखूं,’’ कह कर उस ने आकाश को सवालिया नजरों से देखा.

‘‘टीना, मैं तुम्हारे काम के बारे में सुन कर चौंका तो जरूर हूं, लेकिन मुझे झटका नहीं लगा. तुम ने जिस बेबाकी से मुझे अपने बारे में बताया, उसे जान कर मेरी दोस्ती और गहरी हुई है.

‘‘मेरी जानकारी में ऐसी कई और

भी लड़कियां और औरतें हैं, जिन्होंने शराफत का चोला ओढ़ रखा है, लेकिन उन के नाजायज रिश्तों ने आपसी रिश्तों को ही बदनाम कर दिया है. भले ही यह पेशा अपनाना तुम्हारी मजबूरी न हो, लेकिन दिलोदिमाग और जिस्मानी मेहनत तो इस में भी है. हर किसी को अपनी जरूरत के मुताबिक काम चुनने का हक है. कानून और समाज भले ही इसे नाजायज माने, लेकिन मैं इस में कुछ भी गलत नहीं मानता.’’

‘‘दोस्त, मैं तुम्हारी सोच की कायल हूं. अच्छा यह बताओ, क्या पीना चाहोगे…’’

‘‘फिलहाल तो मैं कुछ नहीं लूंगा. अच्छा, तुम्हारे परिवार में और कौनकौन हैं?’’

‘‘मेरी मम्मी बचपन में ही चल बसी थीं और पापा की मौत 2 साल पहले हुई. वे इलाहाबाद में रहते थे लेकिन अपनी आजादी के चलते मैं ने बैंगलुरु आना ही मुनासिब समझा. अच्छा, यह बताओ कि तुम्हारा चेहरा क्यों लटका हुआ है.’’

‘‘कोई खास बात नहीं है,’’ कह कर आकाश ने टालने की कोशिश की, पर टीना के जोर देने पर उसे बताना पड़ा, ‘‘मेरा नया बौस मुझे बेवजह परेशान कर रहा है.’’

‘‘चिंता न करो. सब ठीक हो जाएगा. अब तो मेरे हाथ की बनी कौफी ही तुम्हारा मूड ठीक करेगी,’’ टीना ने कहा.

कौफी वाकई उम्दा बनी थी. तरावट महसूस करते हुए आकाश ने उस से विदा लेनी चाही. न जाने आकाश के दिल में क्या भाव उभरे कि उस ने टीना से लिपट कर उस का चेहरा चूमना चाहा, तो वह छिटक कर पीछे हट गई और बोली, ‘‘दोस्त, दूसरों और तुम्हारे बीच में बस यही तो फासला है. क्या इसे भी मिटाना चाहोगे…’’

गर्मजोशी से इनकार में सिर हिलाते हुए आकाश ने उस से विदा ली.

अगले 2 दिनों में बौस के तेवर बिलकुल बदले देखे तो आकाश को यकीन न हुआ. साथ में काम करने वालों में से एक ने कहा, ‘‘यार, क्या जादू चलाया है तू ने? कल तक तो यह तुझे काट खाने को दौड़ता था और अब तो तेरा मुरीद हो कर रह गया है. अब तो तेरी प्रमोशन पक्की.’’

अगले ही महीने आकाश का प्रमोशन कर दिया गया. जब उस ने यह खुशखबरी टीना को सुनाई, तो उस ने मुबारकबाद दी.

आकाश ने पूछा, ‘‘यह सब कैसे हुआ टीना?’’

‘‘बौस शायद तुम्हारे काम से खुश हो गया होगा.’’

‘‘टीना, प्लीज सच क्या है?’’

‘‘सच तो यह है कि मुझ से अपने दोस्त का लटका चेहरा देखा नहीं

गया और…’’

‘‘और क्या?’’

‘‘और यह कि सख्त दिखने वाले बुढ़ऊ ही महफिल में हुस्न के तलबे चाटते हैं. वैसे, तुम चिंता न करो. उसे मेरी और तुम्हारी दोस्ती की कोई खबर नहीं है.’’

‘‘टीना, मेरे लिए तुम ने…’’

‘‘बस, अब भावुक मत होना. और कोई परेशानी हो तो साफ बताना.’’

उस दिन से आकाश के मन में टीना के लिए और ज्यादा इज्जत बढ़ गई. वह उस के लिए सच्चे दोस्त से बढ़ कर साबित हुई.

कुछ दिन बाद जब आकाश ने अपने लिए एक छोटा सा घर खरीदने के लिए बैंक के कर्ज के बावजूद 2 लाख रुपए कम पड़े तो टीना ने उसे इस मुसीबत से भी उबार दिया.

हालांकि आकाश ने उसे वचन दिया कि भविष्य में वह यह रकम उसे जरूर वापस लौटाएगा.

अब आकाश के दिल में टीना के लिए प्यार की भावना उछाल मारने लगी थी. लेकिन उस ने कभी इन जज्बातों को खुद पर हावी न होने दिया. वह औफिस से छुट्टी के बाद आज शाम को फिर टीना के घर पर था.

‘‘टीना, मैं तुम्हारा सब से अच्छा दोस्त हूं तो फिर मुझ से ऐसी दूरी क्यों?’’

‘‘आकाश, अकसर हम मतलबी बन कर दूसरे रिश्तों खासकर अपनों को भूल जाते हैं. फिर क्या तुम नहीं मानते कि दोस्ती दिलों में होनी चाहिए, जिस्म की तो भूख होती है?’’

‘‘मैं कुछ नहीं समझना चाहता. मेरे लिए तुम ही सबकुछ हो…’’ भावनाओं के जोश में आकाश ने लपक कर उसे अपनी बांहों के घेरे में कस लिया. उस के लरजते लबों ने जैसे ही टीना के तपते गालों को छुआ, उस की आंखें मुंद गईं. सांसों के ज्वारभाटे के साथ ही उस की बांहें भी आकाश पर कसती चली गईं.

‘टिंगटांग…’ तभी दरवाजे की घंटी बजते ही टीना आकाश से अलग हुई. उसे जबरन एक तरफ धकेल कर टीना ने दरवाजा खोला. कोरियर वाला उसे एक लिफाफा थमा कर चला गया. आकाश ने लिफाफे की बाबत पूछा तो उस ने लिफाफा अलमारी में रख कर बात टाल दी.

जब आकाश ने दोबारा उसे अपनी बांहों में लिया तो उस ने आहिस्ता से खुद को उस की पकड़ से छुड़ा लिया और बोली, ‘‘नहीं आकाश, यह सब करना ठीक नहीं है.’’

आकाश नाराजगी जताते हुए वहां से चला गया.

अगले दिन जब सुबह टीना ने मोबाइल फोन पर बात की तो आकाश ने काम का बहाना बना कर फोन काट दिया. वह चाहता था कि टीना को अपनी गलती का अहसास हो.

रात को 10 बजे मोबाइल फोन बज उठा. टीना का नंबर देख कर आकाश कांप गया. नजर दौड़ाई. प्रिया और प्रियांशु सो रहे थे. उस ने फोन काट दिया. मोबाइल फोन फिर बजने पर आकाश ने रिसीव किया तो उधर से टीना का बड़ा धीमा स्वर सुनाई दिया. ‘‘हैलो आकाश, कैसे हो? नाराज हो न?’’

आकाश नहीं चाहता था कि प्रिया उठ जाए और उसे टीना की भनक तक लगे, इसलिए फौरन कहा, ‘‘नहीं, नाराज नहीं. कहो, कैसे याद किया?’’

‘‘दोस्त, तुम्हारी बड़ी याद आ रही है. मैं तुम्हें अभी अपने पास देखना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं देखता हूं.’’

तभी प्रिया ने करवट बदली तो आकाश ने फोन काट कर मोबाइल स्विच औफ कर दिया. अब जाने का तो सवाल ही नहीं उठता था. प्रिया को क्या जवाब देगा भला… और टीना को इस समय फोन करने की क्या सूझी? कल तक इंतजार नहीं कर सकती थी?

इसी उधेड़बुन में आकाश की आंख लग गई.

सुबह उठते ही प्रिया ने रोज की तरह अखबार की सुर्खियों को टटोलते हुए कहा, ‘‘छायापुरम में अकेली रहने वाली कालगर्ल की मौत.’’

आकाश फौरन बिस्तर से उठ कर बैठ गया. खबर में उस की उत्सुकता देख प्रिया ने पूरी खबर पढ़ी, ‘‘छायापुरम में तनहा जिंदगी बसर करने वाली टीना की कल देर रात ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई. वह देह धंधे से जुड़ी बताई जाती थी. डाक्टर के मुताबिक टीना काफी समय से दिमागी कैंसर से पीडि़त थी. कल रात हालत बिगड़ने पर पड़ोसियों ने उसे अस्पताल पहुंचाया, लेकिन रास्ते में ही उस ने दम तोड़ दिया.’’

खबर पढ़ने के बाद प्रिया ने कह दिया, ‘‘ऐसी औरतों का तो यही हश्र होता है,’’ और उस ने आकाश की तरफ देखा.

आकाश की आंखों में पानी देख कर उस ने वजह पूछी. आकाश ने सफाई दी, ‘‘कुछ नहीं, आंखों में कचरा चला गया है. मैं अभी आंखें धो कर आता हूं.’’

संदीप कुमार

Periods के दौरान कर रही हैं ट्रैवल, तो अपनाएं ये खास टिप्स  

Periods : आखिर पीरियड्स से ट्रिप के दौरान किस प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं और इन से कैसे निबटा जा सकता है:

क्रैंप्स: आम दिनचर्या में जब पीरियड क्रैंप्स होते है उस वक्तगर्ल्स बिस्तर से उठने तक का नहीं सोचतीं. उन के लिए इस दर्द को बरदाश्त कर पाना ही एक मुश्किल काम होता है. ऐसे में अगर ट्रिप के दौरान पीरियड क्रैंप्स होते हैं तो इस से आप के प्लान पर असर पड़ता है और कुछ घंटे या कहें पूरे दिन के लिए आप के ट्रिप में रुकावट आ सकती है.

तनाव: सोलो ट्रिप मन की शांति, आजादी को महसूस करने, खुद की खोज करने, ऐंजौय करने और ऐडवैंचर के इरादे से किया जाता है. ऐसे में पीरियड्स आप को खुद की खोज में नहीं खुद में उल?ा देने का काम करते हैं.

दाग: आमतौर पर जब पीरियड्स होते हैं तो लड़कियों के पास यह विकल्प होता है कि वे समयसमय पर अपने ब्लड फ्लो को चैक कर सकती हैं लेकिन ट्रैवल करते वक्त, ट्रैकिंग, बोटिंग, अन्य तरहतरह के ऐडवैंचर करते वक्त उन के पास वाशरूम का विकल्प नहीं होता. इस सिचुएशन में लड़कियां कंफर्टेबल महसूस नहीं करतीं और उन का ध्यान तमाम चीजों से हट कर अपने पीरियड्स पर ही अटक जाता है.

इन समस्याओं की वजह से आमतौर पर गर्ल्स के मन में एक ही खयाल आता है कि पीरियड्स के दौरान ‘से नो टु सोलोट्रिप’ लेकिन सच यह है कि पीरियड्स कोई रुकावट नहीं हैं. थोड़ी सी समझदारी और तैयारी से आप अपना ट्रिप उतना ही ऐंजौय कर सकती हैं जितना आप ने बिना पीरियड्स के करने की सोची थी.

इस के लिए आप ट्रिप की डेट्स सुनिश्चित करने से पहले पीरियड साइकल का अनुमान लगाएं. इस से आप को यह अंदाजा हो जाएगा कि ट्रिप के बीच पीरियड्स आने वाले हैं या नहीं अगर ट्रिप के बीच अगर पीरियड्स की डेट हो तो पीरियड्स पैक को अपनी पैकिंग में शामिल करना न भूलें.

कैसा हो पीरियड पैक

पीरियड पैक में इन चीजों को पैक करना न भूलें:

सैनिटरी पैड्स, टैंपान, मैंस्ट्रुअल कप: जरूरत के अनुसार इन का उपयोग किया जा सकता है. अगर लंबा सफर हो तो मैंस्ट्रुअल कप एक अच्छा विकल्प है.

पीरियड पैंटी: पीरियड पैंटी सामान्य पैंटी की तरह ही होती है. इस से लीकेज की समस्या से बचा जा सकता है और आप इस में कंफर्टेबल भी महसूस करेंगी. ट्रैकिंग, रिवर राफ्टिंग या किसी अन्य ऐडवैंचर के लिए यह एक अच्छा विकल्प है.

पेन रिलीफ मैडिसिन: पीरियड क्रैंप्स से आराम पाने के लिए पेन रिलीफ मैडिसिन साथ रखें.

डिस्पोजेबल बैग: सफर में हमें अपने और अपनी आसपास की स्वच्छता का भी ध्यान रखना चाहिए. सैनिटरी पैड को पेपर में लपेट कर या प्लास्टिक बैग में रैप कर ही डिस्पोज करें. इसलिए अपने साथ डिस्पोजेबल बैग रख लें.

हीट वाटर बैग या पोर्टेबल हीटिंग बैल्ट: पीरियड्स के दौरान हीट वाटर बैग या हीटिंग बैल्ट लगा कर सो जाने से कमर दर्द में आराम मिलता है.

ऐक्स्ट्रा अंडरगारमैंट्स, टिशू पेपर और वाइप्स: अपने साथ हमेशा ऐक्स्ट्रा अंडरगारमैंट्स रखें, टिशू पेपर और वाइप्स सफर में काफी उपयोगी साबित होते हैं.

डार्क कलर की आरामदायक बौटम्स: पीरियड्स के दौरान लीकेज की समस्या भी हो सकती है जिस से कपड़ों पर दागधब्बे लगने की संभावना रहती है. इसीलिए ब्लैक या किसी भी डार्क कलर बौटम्स साथ रखें. इन में दाग नहीं दिखते.

पेन किलर औयल/बाम: पीरियड्स के दौरान नसों में दर्द  की वजह से शरीर कमजोरी महसूस करता है और अगर आप ट्रिप पर निकली हैं तो थकावट भी होती है. ऐसे में पेन किलर औयल या बाम आप को राहत देगा.

इन तमाम चीजों के अलावा साथ डार्क चौकलेट, खट्टीमीठी टौफी, पुदीने के टैबलेट्स, गरम पानी हमेशा रखें.

Story In Hindi : पैंसठ पार का सफर – क्या कम हुआ सुरभि का डर

Story In Hindi : टेलीविजन का यह विज्ञापन उन्हें कहीं  बहुत गहरे सहला देता है, ‘झूठ बोलते हैं वे लोग जो कहते हैं कि उन्हें डर नहीं लगता. डर सब को लगता है, प्यास सब को लगती है.’ अगर वे इस विज्ञापन को लिखतीं तो इस में कुछ वाक्य और जोड़तीं, प्यास ही नहीं, भूख भी सब को लगती है… हर उम्र में…इनसान की देह की गंध भी सब को छूती है और चाहत की चाहत भी सब में होती है.

उम्र 65 की हो गई है. मौत का डर हर वक्त सताता है. यह जानते हुए भी कि मौत तो एक दिन सबको आती है. फिर उस से डर क्यों? नहीं, गीता की आत्मा वाली बात में उन की आस्था नहीं है कि आत्मा को न आग जला सकती है, न मौत मार सकती है, न पानी गला सकता है…सब झूठ लगता है उन्हें. शरीर में स्वतंत्र आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं लगता और शरीर को यह सब व्यापते हैं तो आत्मा को भी जरूर व्यापते होंगे. धर्मशास्त्र आदमी को हमेशा बरगलाया क्यों करते हैं? सच को सच क्यों नहीं मानते, कहते? वे अपनेआप से बतियाने लगती हैं, दार्शनिकों की तरह…

चौथी मंजिल के इस फ्लैट में सारे सुखसाधन मौजूद हैं. एक कमरे में एअरकंडीशनर, दूसरे में कूलर. काफी बड़ी लौबी. लौबी से जुडे़ दोनों कमरे, किचन, बाथरूम. बरामदे में जाने का सिर्फ एक रास्ता, बरामदे में 3 दूसरे फ्लैटों के अलावा चौथा लिफ्ट का दरवाजा है.

इस विशाल इमारत के चारों तरफ ऊंची चारदीवारी, पक्का फर्श, गेट पर सुरक्षा गार्ड. गार्ड रूम में फोन. गार्ड आगंतुक से पूछताछ करते हैं, दस्तखत कराते हैं. फोन से फ्लैट वाले से पूछा जाता है कि फलां साहब मिलने आना चाहते हैं, आने दें?

इस फ्लैट मेंऐसा क्या है जो पति उन्हें न दे कर गए हों? मौत से पहले उन्होंने उस के लिए सब जुटा दिया और एक दिन हंसीहंसी में कहा था उन्होंने, ‘आराम से रहोगी हमारे बिना भी.’

तब वह कु्रद्ध हो गई थीं, ‘ठीक है कि मुझे धर्मकर्म के ढोंग में विश्वास नहीं है पर मैं मरना सुहागिन ही चाहूंगी…मेरी अर्थी को आप का कंधा मिले, हर भारतीय नारी की तरह यह मेरी भी दिली आकांक्षा है.’ पर आकांक्षाएं और चाहतें पूरी कहां होती हैं?

उन के 2 बेटे हैं. एक ने आई.आई.टी. में उच्च शिक्षा पाई तो दूसरे ने आई.आई.एम. में. लड़की ने रुड़की से इलेक्ट्रोनिक इंजीनियरिंग में शिक्षा पाई. तीनों में से कोई भी अपने देश में रुकने को तैयार नहीं हुआ. सब को आज की चकाचौंध ने चौंधिया रखा था. सब कैरियर बनाने विदेश चले गए और उन की चाहत धरी की धरी रह गई. पति से बोली भी थीं, ‘लड़की को शादी के बाद ही जाने दो बाहर…कोई गलत कदम उठ गया तो बदनामी होगी,’ पर लड़की का साफ कहना था, ‘वहीं कोई पसंद आ गया तो कर लूंगी शादी. अपने जैसा ही चाहिए मुझे, सुंदर, स्मार्ट, पढ़ालिखा, वैज्ञानिक दृष्टि वाला.’

लड़कों ने भी उन की नहीं सुनी. पहले कैरियर बाद में शादी, यह कह कर विदेश गए और बाद में शादी कर ली पर बाप से पूछना तक मुनासिब नहीं समझा.

इस फ्लैट में अकेले वे दोनों ही रह गए. उस रात अचानक पति के सीने में दर्द उठा. वह घबराईं, डाक्टर को फोन किया. अस्पताल से एंबुलेंस आए उस से पहले ही उन्होंने अंतिम सांस ले ली. बच्चों को फोन किया तो दोनों ने फ्लाइट्स न मिलने की बात कही और बताया कि आने  में एक सप्ताह लगेगा, सबकुछ खुद ही निबटवा लें किसी तरह. उन्होंने पूछा भी था कि कैसे और किस से कराएं दाहसंस्कार? पर कोई उत्तर नहीं मिला उन्हें.

बच्चे आए. बाकी के कर्मकांड जल्दी से निबटाए और फिर एक दिन बोले, ‘पापा लापरवाह आदमी थे. इस उम्र में तेल, घी छोड़ देना चाहिए था, पर वह तो हर वक्त यहां दीवान पर लेटेलेटे या तो किताबें, अखबार पढ़ते या फिर टीवी पर खबरें सुनते रहते. उन्होंने तो कहीं आनाजाना भी छोड़ दिया था. ऐसे लाइफ स्टाइल का यही हश्र होना था. वह तो सब्जीभाजी तक नौकरानी से मंगाते. इस्तेमाल की चीजें दुकानों से फोन कर के मंगवा लेते. कहीं इस तरह जीवन जिया जाता है?’

कहते तो ठीक थे बच्चे पर उन के अपने तर्क होते थे. वह कहते, ‘यह महानगर है, सुरभि. यहां बेमतलब कोई न किसी से मिलता है न मिलना पसंद करता है. किसे फुर्सत है जो ठलुओं से बतियाए?’

‘ठलुए’ शब्द उन्हें बहुत खलता. आखिर उन के अपने दफ्तर के भी तो लोग हैं. उन में  भी 2-3 रिटायर व्यक्ति हैं. उन्हीं के पास जा बैठें. अगर ये ठलुए हैं तो वे कौन सा पहाड़ खोद रहे होंगे?

कहा तो बोले, ‘सब ने कोई न कोई पार्ट टाइम जौब पकड़ लिया है. किसी को फुर्सत नहीं है.’

‘तो आप भी ऐसा कुछ करने लगिए,’ सुरभि ने कहा था.

‘नहीं करना. अपने पास अब सब है. पेंशन तुम्हें भी मिलती है, मुझे भी. बच्चे सब बड़े हो गए. विदेश जा बसे. उन्हें हमारे पैसे की जरूरत नहीं है. अपने पास कोई कमी नहीं है, फिर क्यों इस उम्र में अपने से काफी कम उम्र के लोगों की झिड़कियां सुनें?’

जबरन ही कभीकभी शाम को खाने के बाद सुरभि पति को अपने साथ लिवा जातीं. सड़क पार एक बड़ा पार्क था, उस में चहलकदमी करते. वहां बच्चों का हुल्लड़ उन्हें पसंद न आता. खासकर वे जिस तरह धौलधप्प करते, गेंद खेलते, भागदौड़ में गिरतेपड़ते. कभीकभी उन की गेंद उन तक आ जाती या उन्हें लग जाती तो झुंझला उठते, ‘यह पार्क ही रह गया है तुम लोगों को हुल्लड़ मचाने के लिए?’

वह पति की कोहनी दबा देतीं, ‘तो कहां जाएं बेचारे खेलने? सड़क पर वाहनों की रेलपेल, घरों में जगह नहीं, स्कूल दूर हैं. कहां खेलें फिर?’

‘भाड़ में,’ वह चीख से पड़ते. यह उन का तकिया कलाम था. जब भी, जिस पर भी वह गुस्सा होते, उन के मुंह से यही शब्द निकलता.

आखिर उन की बात सच निकली… बच्चे हम से बहुत दूर, विदेश के भाड़ में चले गए और स्वयं भी वह चिता के भाड़ में और जीतेजी वह भी इस फ्लैट में अकेली भाड़ में ही पड़ी हुई हैं.

शाम को जब बर्तन मांजने वाली बर्तन साफ कर जाती तो वह अकसर सामने के पार्क में चली जातीं…इस भाड़ से कुछ देर को तो बाहर निकलें.

घूमती टहलती जब थक जातीं तो सीमेंट की बेंच पर बैठ जातीं. एक दिन बैठीं तो एक और वृद्धा उन के निकट आ बैठी. इस उम्र की औरतों का एकसूत्री कार्यक्रम होता है, बेटेबहुओं की आलोचना करना और बेटियों के गुणगान, अपने दुखदर्द और बेचारगी का रोना और बीमारियों का बढ़ाचढ़ा कर बखान करना. यह भी कि बहू इस उम्र में उन्हें कैसा खाना देती है, उन से क्याक्या काम कराती है, इस का पूरा लेखाजोखा.

बहुत जल्दी ऊब जाती हैं वह इन बुढि़यों की एकरस बातों से. सुरभि उठने को ही थीं कि वह वृद्धा बोली, ‘आजकल मैं सुबह टेलीविजन पर योग और प्राणायाम देखती हूं. पहले सुबह यहां घूमने आती थी, पर जब से चैनल पर यह कार्यक्रम आने लगा, आ ही नहीं पाती. आप को भी जरूर देखना चाहिए. सारे रोगों की दवा बताते हैं. अब आसन तो इस उमर में हो नहीं पाते मुझ से, पर हाथपांव को चलाना, घुटनों को मोड़ना, प्राणायाम तो कर ही लेती हूं.’

‘फायदा हुआ कुछ इन सब से आप को?’ न चाहते हुए भी सुरभि पूछ बैठीं.

‘पहले हाथ ऊपर उठाने में बहुत तकलीफ होती थी. घुटने भी काम नहीं करते थे. यहां पार्क में ज्यादा चलफिर लेती तो टीस होने लगती थी पर अब ऐसा नहीं होता. टीस कम हो गई है, हाथ भी ऊपर उठने लगे हैं, जांघों का मांस भी कुछ कम हो गया है.’

‘सब प्रचार है बहनजी. दुकानदारी कहिए,’ वह मुसकराती हैं, ‘कुछ बातें ठीक हैं उन की, सुबह उठने की आदत, टहलना, घूमनाफिरना, स्वच्छसाफ हवा में अपने फेफड़ों में सांस खींचना…कुछ आसनों से जोड़ चलाए जाएंगे तो जाम होने से बचेंगे ही. पर हर रोग की दवा योग है, यह सही नहीं हो सकता.’

पास वाली बिल्डिंग के तीसरे माले पर एक बूढ़े दंपती रहते थे. उन्होंने 15-16 साल का एक नौकर रख रखा था. बच्चे विदेश से पैसा भेजते थे. नौकर ने एक दिन देख लिया कि पैसा कहां रखते हैं. अपने एक सहयोगी की सहायता से नौकर ने रात को दोनों का गला रेत दिया और मालमता बटोर कर भाग गए. पुलिस दिखावटी काररवाई करती रही. एक साल हो गया, न कोई पकड़ा गया, न कुछ पता चला.

सुरभि और उन के पति ने तब से नियम बना रखा था कि पैसा और जेवर कभी नौकरों के सामने न रखो, जरूरत भर का ही बैंक से वह पैसा लाते थे. खर्च होने पर फिर बैंक चले जाते थे. किसी को बड़ी रकम देनी होती तो हमेशा यह कह कर दूसरे दिन बुलाते थे कि बैंक से ला कर देंगे, घर में पैसा नहीं रहता.

मौत सचमुच बहुत डराती है उन्हें. पति के जाने के बाद जैसे सबकुछ खत्म हो गया. क्या आदमी जीवन में इतना महत्त्व रखता है? कई बार सोचती हैं वह और हमेशा इसी नतीजे पर पहुंचती हैं. हां, बहुत महत्त्वपूर्ण, खासकर इस उम्र में, इन परिस्थितियों में, ऐसे अकेलेपन में…कोई तो हो जिस से बात करें, लड़ेंझगड़ें, बहस करें, देश और दुनिया के हालात पर अफसोस करें.

इसी इमारत में एक अकेले सज्जन भाटिया साहब अपने फ्लैट में रहते हैं, बैंक के रिटायर अफसर. बेटाबहू आई.टी. इंजीनियर. बंगलौर में नौकरी. बूढ़े का स्वभाव जरा खरा था. देर रात तक बेटेबहू का बाहर क्लबों में रहना, सुबह देर से उठना, फिर सबकुछ जल्दीजल्दी निबटा, दफ्तर भागना…कुछ दिन तो भाटिया साहब ने बरदाश्त किया, फिर एक दिन बोले, ‘मैं अपने शहर जा कर रहूंगा. यहां अकेले नहीं रह सकता. कोई बच्चा भी नहीं है तुम लोगों का कि उस से बतियाता रहूं.’

‘बच्चे के लिए वक्त कहां है पापा हमारे पास? जब वक्त होगा, देखा जाएगा,’ लड़के ने लापरवाही से कहा था.

भाटिया साहब इसी बिल्ंिडग के अपने  फ्लैट में आ गए.

भाटिया साहब के फ्लैट का दरवाजा एकांत गैलरी में पड़ता था. किसी को पता नहीं चला. दूध वाला 3 दिन तक दूध की थैलियां रखता रहा. अखबार वाला भी रोज दूध की थैलियों के नीचे अखबार रखता रहा. चौथे दिन पड़ोसी से बोला, ‘भाटिया साहब क्या बाहर गए हैं? हम लोगों से कह कर भी नहीं गए. दूध और अखबार 3 दिन से यहीं पड़ा है.’

पड़ोसी ने आसपास के लोगों को जमा किया. दरवाजा खटखटाया. कोई जवाब नहीं. पुलिस बुलाई गई. दरवाजा तोड़ा गया. भाटिया साहब बिस्तर पर मृत पड़े थे और लाश से बदबू आ रही थी. पता नहीं किस दिन, किस वक्त प्राण निकल गए. अगर भाटिया साहब की पत्नी जीवित होतीं तो यों असहाय अवस्था में न मरते.

ऐसी मौतें सुरभि को भी बहुत डराती हैं. कलेजा धड़कने लगता है जब वह टीवी पर समाचारों में, अखबारों या पत्रिकाओं में अथवा अपने शहर या आसपास की इमारतों में किसी वृद्ध को ऐसे मरते या मारे जाते देखती हैं. उस रात उन्हें ठीक से नींद नहीं आती. लगता रहता है, वह भी ऐसे ही किसी दिन या तो मार दी जाएंगी या मर जाएंगी और उन की लाश भी ऐसे ही बिस्तर पर पड़ी सड़ती रहेगी. पुलिस ही दरवाजा तोड़ेगी, पोस्टमार्टम कराएगी, फिर अड़ोसीपड़ोसी ही दाहसंस्कार करेंगे. बेटेबहू या बेटीदामाद तो विदेश से आएंगे नहीं. इसी डर से उन्होंने अपने तीनों पड़ोसियों को बच्चों के पते और टेलीफोन नंबर तथा मोबाइल नंबर दे रखे हैं…घटनादुर्घटना का इस उम्र में क्या ठिकाना, कब हो जाए?

अखबार के महीन अक्षर पढ़ने में अब इस चश्मे से उन्हें दिक्कत होने लगी है. शायद चश्मा उतर गया है. बदलवाना पड़ेगा. पहले तो सोचा कि बाजार में चश्मे वाले स्वयं कंप्यूटर से आंख टेस्ट कर देते हैं, उन्हीं से करवा लें और अगर उतर गया तो लैंस बदलवा लें. पर फिर सोचा, नहीं, आंख है तो सबकुछ है. अगर अंधी हो गईं तो कैसे जिएंगी?

पिछली बार जिस डाक्टर से आंख टेस्ट कराई थी उसी से आंख चैक कराना ठीक रहेगा. खाने के बाद वह अपनी कार से उस डाक्टर के महल्ले में गईं. काफी भीड़ थी. यही तो मुसीबत है अच्छे डाक्टरों के यहां जाने में. लंबी लाइन लगती है, घंटों इंतजार करो. फिर आंख में दवा डाल कर एकांत में बैठा देते हैं. फिर बहुत लंबे समय तक धुंधला दिखाई देता है, चलने और गाड़ी चलाने में भी कठिनाई होती है.

वह लंबी बैंच थी जिस के कोने में थोड़ी जगह थी और वह किसी तरह ठुंसठुंसा कर बैठ सकती थीं. खड़ी कहां तक रहेंगी? शरीर का वजन बढ़ रहा है.

बैठीं तो उन का ध्यान गया, बगल में कोई वृद्ध सज्जन बैठे थे. उन की आंखों में शायद दवा डाली जा चुकी थी, इसलिए आंखें बंद थीं और चेहरे को सिर की कैप से ढक लिया.

Female Friendship : महिला रिश्तेदार बन सकती हैं मजबूत सहारा

Female Friendship : आज के दौर में जहां परिवार छोटे होते जा रहे हैं, वहीं अकेलापन और तनाव बढ़ता जा रहा है. रिश्तेदारों से अपनापन बनाए रखना केवल सामाजिक कर्तव्य नहीं, एक भावनात्मक निवेश है. खासकर महिला रिश्तेदारों से अच्छा संबंध बच्चों के लिए सुरक्षा कवच का काम भी कर सकता है.

जीवन का भरोसा नहीं, लेकिन रिश्तों की मजबूती आप के बच्चों को अकेलेपन और असुरक्षा से जरूर बचा सकती है.

रिश्तों का दायरा सीमित न रखें

अकसर महिलाएं ससुराल और मायके के बीच बंटी रहती हैं और अपने रिश्तों को केवल औपचारिकता तक सीमित कर लेती हैं. लेकिन अगर हम अपने रिश्तेदारों से दिल से जुड़ें, त्योहारों में मिलें, आम दिनों में बात करें, बच्चों को उन के पास भेजें तो रिश्ते गहराते हैं. ताई, चाची, मामी, मौसी ये सिर्फ रिश्ते नहीं, एक नेटवर्क हैं. ये रिश्तेदार हमारे बच्चों के लिए ‘मां जैसी’ दूसरी छाया बन सकती हैं.

अगर हम उन के साथ आज प्रेम, सम्मान और समझदारी का रिश्ता बनाएंगे, तो कल वे बिना झिझक हमारे बच्चों की मदद करेंगी.

व्यवहार से दिल जीतें, अधिकार जता कर नहीं

रिश्तों में अधिकार से ज्यादा अपनापन और समझ जरूरी होता है. ताई या मामी अगर किसी बात पर सलाह दें, तो उसे तुरंत टालने के बजाय सुनें. जब हम दूसरों की इज्जत करते हैं, तो वही इज्जत हमारे बच्चों को भी मिलती है.

बच्चों को भी इन रिश्तों से जोड़ें

बच्चों को सिर्फ मम्मीपापा तक सीमित न रखें. उन्हें मौसी के घर भेजिए, मामी के हाथ का खाना खिलाइए, चाची की कहानियां सुनाइए ताकि भावनात्मक जुड़ाव बनें.

मतभेद हों तो भी संवाद बनाए रखें

हर रिश्ते में खटास आ सकती है, लेकिन संवाद का दरवाजा कभी बंद न करें. कभीकभी एक फोन कौल, किसी त्योहार पर बुलाना या “कैसी हो…” पूछ लेना बहुत गहराई से रिश्ता बचा सकता है.

बच्चों के भविष्य के लिए जरूरी है

मकान, जेवर और पैसे छोड़ना एक तरह की विरासत है, लेकिन रिश्ते सहेज कर जाना उस से भी कहीं बड़ी अमानत है. आप के जाने के बाद वही रिश्ते आप के बच्चों की परछाई बन सकते हैं.

बच्चों के लिए पारिवारिक जाल की जरूरत

अगर आप अपने बच्चों को अकेलेपन से बचाना चाहती हैं, तो जरूरी है कि वे सिर्फ मम्मीपापा तक सीमित न रहें. उन्हें अपने बाकी रिश्तेदारों से जोड़िए ताकि उन्हें लगें कि वे एक बड़े और मजबूत परिवार का हिस्सा हैं, जो हर हाल में उन के साथ हैं.

बुआ और फूफा से जुड़े रिश्ते को भी बनाएं बच्चों के लिए सहारा अकसर बुआ को घर से दूर मान लिया जाता है, लेकिन अगर उन से प्यार और अपनापन बना रहे तो वे बच्चों के लिए दूसरी मां जैसी भूमिका निभा सकती हैं. त्योहारों, पारिवारिक मेलों और बातचीत के जरीए बुआ से रिश्ता गहरा किया जा सकता है. उन के अनुभव और भावनाएं बच्चों को आत्मिक सुरक्षा दे सकती हैं.

ननद और भाभी का रिश्ता सिर्फ तकरार का नहीं, बच्चों की खुशहाली का माध्यम भी अगर ननदभाभी एकदूसरे को प्रतियोगी की नजरों से देखना छोड़ कर बहन जैसा अपनापन दें, तो न केवल सासससुर खुश रहते हैं, बल्कि बच्चों को भी एक बड़ा और मजबूत पारिवारिक माहौल मिलता है.

परदादी और नानी : बच्चों की जड़ों को मजबूती देने वाली कहानियों का खजाना बच्चों को सिर्फ मोबाइल और टीवी से नहीं, बल्कि परिवार की पुरानी पीढ़ियों की कहानियों से जोड़िए. नानी और परदादी से उन का रिश्ता बनाइए ताकि वे अपने संस्कार, संस्कृति और मूल्यों को जान सकें.

काकी, मामी, मौसी : बच्चों के लिए छोटीछोटी माएं हैं.जब बच्चों की मां किसी वजह से अनुपस्थित होती है (काम, बीमारी, या भविष्य की कोई अनहोनी), तब ये रिश्तेदार ही उन के लिए प्यार, देखभाल और मार्गदर्शन बन कर खड़ी हो सकती हैं. जरूरत है आज से ही उन रिश्तों में मिठास घोलने की.

बच्चों को रिश्तों की गरमाहट देना भी एक तरह की परवरिश है

हम बच्चों को अच्छा खाना, अच्छे कपड़े, महंगे स्कूल देते हैं लेकिन अगर हम उन्हें अपनापन, रिश्तों की गहराई और संयुक्त परिवार की भावनाएं नहीं देंगे तो वे भीतर से अकेले हो जाएंगे. रिश्तों से मिला प्रेम बच्चों को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाता है.

एक मां की सब से बड़ी चिंता अपने बच्चों का भविष्य होती है. यदि आप चाहती हैं कि आप के बाद भी आप के बच्चों को प्यार, मार्गदर्शन और सहारा मिलें, तो आज से ही रिश्तों को सहेजिए.

ताई, चाची, मामी, मौसी जैसी औरतें आप की दुनिया को मजबूत बना सकती हैं, अगर आप उन्हें दिल से अपनाएं.

Extra Marital Affair : मैरिड होने के बावजूद कुछ दिनों से किसी दूसरे के प्रेम में पड़ गई हूं…

Extra Marital Affair : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल

मैं 28 साल की महिला हूं. मैं और मेरे पति एक दूसरे का बहुत खयाल रखते हैं, मगर इधर कुछ दिनों से मैं किसी दूसरे के प्रेम में पड़ गई हूं. हमारे बीच कई बार संबंध भी बन चुके हैं. मुझे इस में बेहद आनंद आता है. मैं अब पति के साथसाथ प्रेमी को भी नहीं खोना चाहती हूं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

आप के बारे में यही कहा जा सकता है कि दूसरे के बगीचे का फूल तभी अच्छा लगता है जब हम अपने बगीचे के फूल पर ध्यान नहीं देते. आप के लिए बेहतर यही होगा कि आप अपने ही बगीचे के फूल तक ही सीमित रहें. फिर सच्चाई यह भी है कि यदि पति बेहतर प्रेमी साबित नहीं हो पाता तो प्रेमी भी पति के रहते दूसरा पति नहीं बन सकता. एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर आग में खेलने जैसा है जो कभी भी आप के दांपत्य को झुलस सकती है. ऐसे में बेहतर यही होगा कि आग से न खेल कर इस संबंध को जितनी जल्दी हो सके खत्म कर लें. अपने साथी के प्रति वफादार रहें. अगर आप अपनी खुशियां अपने पति के साथ बांटेंगी तो इस से विवाह संबंध और मजबूत होगा.

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आखिर क्यों अपनी पार्टनर को धोखा देते हैं आदमी, जानें ये 4 वजह

एक रिलेशनशिप में एक-दूसरे के प्रति ईमानदार होना जरुरी होता है, तभी एक रिश्ता सही रहता है. एक-दूसरे की भावनाओं को समझना रिश्ते को मजबूत बनाता है. लेकिन आज के समय में बहुत से पुरूष अपने रिश्ते के प्रति वफादार नहीं रहते हैं और अपने पार्टनर को धोखा देते हैं. जो पुरूष अपनी साथी को धोखा देने के बारे में सोचते हैं उन्हें इस बात का बिल्कुल आभास नहीं होता है कि वे कुछ गलत कर रहें हैं. पुरूषों की अपेक्षा महिलाएं अपने साथी को कम धोखा देती हैं.

  1. साथी के प्रति वफादार नहीं होते हैं…

कुछ ऐसे पुरूष होते हैं जो अपने साथी के लिए वफादार होते हैं, लेकिन कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें किसी की भावनाओं की कद्र नहीं होती. इस तरह के पुरूष सिर्फ अपनी महिला साथी का इस्तेमाल करते हैं. वे उन्हें स्पेशल महसूस कराते हैं. लेकिन वास्तव में वह अपनी साथी के लिए बिल्कुल भी ईमानदार नहीं होते हैं.

  1. असुरक्षित महसूस करते हैं…

हर व्यक्ति धोखा दे ऐसा जरुरी नहीं होता है. लेकिन कुछ ऐसे पुरुष होते हैं जो अपने रिश्ते को लेकर थोड़े असुरक्षित होते हैं. जिसके कारण ना चाहते हुए भी वह अपने पार्टनर के साथ गलत कर बैठते हैं. उन्हें इस बात का डर होता है कि कहीं वे अपने साथी को खो तो नहीं देंगे. इस डर की वजह से वे अपने रिश्ते के प्रति ईमानदार नहीं रह पाते हैं और अपने पार्टनर को धोखा दे बैठते हैं.

  1. रिश्ते की कद्र नहीं…

हमेशा लोगों को जितना मिलता है उससे अधिक पाने कि इच्छा होती है. और इनके पास जो होता है वह उसकी कद्र नहीं करते हैं. ऐसा पुरूषों के साथ भी होता है कि उन्हें जैसी पार्टनर मिली होती है वह उन्हें कम ही लगता है. उनके दिमाग में हमेशा यह बात होती है कि जो मिला है उन्हें उससे और बेहतर मिल सकता है. ऐसे पुरूषों में अपने पार्टनर को धोखा देने की प्रवृत्ति अधिक होती है क्योंकि इन्हें जितना मिलता है उसमें उन्हें संतुष्टि नहीं मिलती है.

  1. भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं…

पुरूष भावनात्मक और मानसिक रूप से कमजोर होते हैं इसलिए उन्हें उन्हें बेवकूफ बनाना आसान होता है. मानसिक रूप से कमजोर होने के कारण उनमें सेल्फ कंट्रोल की कमी होती है इस वजह से उनके लिए अपने पार्टनर को धोखा देना ज्यादा मुश्किल नहीं होता है. ऐसे लोग बहुत जल्दी लोगों से प्रभावित हो जाते हैं और कभी-कभी दूसरे की बातें सुनकर अपने पार्टनर की भावनाओं को नजरअंदाज कर देते हैं.

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Hindi Love Stories : होटल ऐवरेस्ट – विजय से क्यों दूर चली गई काम्या?

Hindi Love Stories : चित्रा के साथ शादी के 9 सालों का हिसाब कुछ इस तरह है: शुरू के 4 साल तो यह समझने में लग गए कि अब हमारा रिश्ता लिव इन रिलेशन वाले बौयफ्रैंडगर्लफ्रैंड का नहीं है. 1 साल में यह अनुभव हुआ कि शादी का लड्डू हजम नहीं हुआ और बाकी के 4 साल शादी से बाहर निकलने की कोशिशों में लग गए. कुल मिला कर कहा जाए तो मेरे और चित्रा के रिश्ते में लड़ाईझगड़ा जैसा कुछ नहीं था. बस आगे बढ़ने की एक लालसा थी और उसी लालसा ने हमें फिर से अलगअलग जिंदगी की डोर थामे 2 राही बना कर छोड़ दिया. हमारे तलाक के बाद समझौता यह हुआ कि मुझे अदालत से अनुमति मिल गई कि मैं अपने बेटे शिवम को 3 महीने में 1 बार सप्ताह भर के लिए अपने साथ ले जा सकता हूं. तय प्रोग्राम के मुताबिक चित्रा लंदन में अपनी कौन्फ्रैंस में जाने से पहले शिवम को मेरे घर छोड़ गई.

‘‘मम्मी ने कहा है मुझे आप की देखभाल करनी है,’’ नन्हा शिवम बोला. उस की लंबाई से दोगुनी लंबाई का एक बैग भी उस के साथ में था.

‘‘हम दोनों एकदूसरे का ध्यान रखेंगे,’’ मैं ने शरारती अंदाज में उस की ओर आंख मारते हुए कहा. ऐसा नहीं था कि वह पहले मेरे साथ कहीं अकेला नहीं गया था पर उस समय चित्रा और मैं साथसाथ थे. पर आज मुझ में ज्यादा जिम्मेदारी वाली भावना प्रबल हो रही थी. सिंगल पेरैंटिंग के कई फायदे हैं, लेकिन एकल जिम्मेदारी निभाना आसान नहीं होता.

मैं ने गोवा में होटल की औनलाइन बुकिंग अपनी सेक्रेटरी से कह कर पहले ही करवा दी थी. होटल में चैकइन करते ही काउंटर पर खड़ी रिसैप्शनिस्ट ने सुइट की चाबियां पकड़ाते हुए दुखी स्वर में कहा, ‘‘सर, अभी आप पूल में नहीं जा पाएंगे. वहां अभी मौडल्स का स्विम सूट में शूट चल रहा है.’’ मन ही मन खुश होते हुए मैं ने नाटकीय असंतोष जताया और पूछा, ‘‘यह शूट कब तक चलेगा?’’

‘‘सर, पूरे वीक चलेगा, लेकिन मौर्निंग में बस 2 घंटे स्विमिंग पूल में जाने की मनाही है.’’

तभी एक मौडल, जिस ने गाउन पहन रखा था मेरी ओर काउंटर पर आई. वह मौडल, जिसे फ्लाइट में मैगजीन के कवर पर देखा हो, साक्षात सामने आ गई तो मुझे आश्चर्य और आनंद की मिलीजुली अनुभूति हुई. कंधे तक लटके बरगंडी रंग के बाल और हलके श्याम वर्ण पर दमकती हुई त्वचा के मिश्रण से वह बहुत सुंदर लग रही थी. उस ने शिवम के सिर पर हाथ फेरा और उसे प्यार से हैलो कहा. शिवम को उस की शोखी बिलकुल भी प्रभावित नहीं कर सकी. ‘काश मैं भी बच्चा होता’ मैं ने मन ही मन सोचा.

‘‘डैडी, मुझे पूल में जाना है,’’ शिवम बोला.

‘‘पूल का पानी बहुत अच्छा है. देखते ही मन करता है कपड़े उतारो और सीधे छलांग लगा दो,’’ मौडल बोली. फिर उस ने काउंटर से अपने रूम की चाबी ली और चल दी. लिफ्ट के पास जा कर उस ने मुझे देख कर एक नौटी स्माइल दी.

थोड़ी देर पूल में व्यतीत करने और डिनर के बाद मैं शिवम के साथ अपने सुइट में आ गया. अगली सुबह शिवम बहुत जल्दी उठ गया. हम जब पूल में तैर रहे थे तो वह तैरते हुए पूरे शरीर की फिरकी ले कर अजीब सी कलाबाजी दिखा रहा था. मेरी आंखों के सामने कितना रहा है फिर भी मैं नहीं जानता कि वह क्याक्या कर सकता है. मुझे अपने बेटे के अजीब तरह के वाटर स्ट्रोक्स पर नाज हो रहा था. नाश्ते में मैं ने मूसली कौंफ्लैक्स व ब्लैक कौफी ली और उस ने चौकलेट सैंडविच लिया. 10 बजतेबजते सभी मौडल्स पूल एरिया के आसपास मंडराने लगीं. मैं ने वीवीआईपी पास ले कर शूट देखने की परमिशन ले ली. फिर जब तक मौडल्स पूल में नहीं उतरीं, तब तक मैं ने तैराकी के अलगअलग स्ट्रोक्स लगा कर उन्हें इंप्रैस करने की खूब कोशिश की. अपने एब्स और बाई सैप्स का भी बेशर्मी के साथ प्रदर्शन किया.

पूल में सारी अदाएं दिखाने के बाद भी आकर्षण का केंद्र शिवम ही रहा. कभी वह पैडल स्विमिंग करता, कभी जोर से पानी को स्प्लैश करता, तो कभी अपनी ईजाद की गई फिरकी दिखाता. नतीजा यह हुआ कि 4-5 खूबसूरत मौडल्स उसे तब तक हमेशा घेरे रहतीं जब तक वह पूल में रहता. वह तो असीमित ऊर्जा और शैतानी का भंडार था और उस की कार्टून कैरेक्टर्स की रहस्यमयी जानकारी ने तो मौडल्स को रोमांचित कर हैरत में डाल दिया. अगले 2 दिनों में मैं छुट्टी के आलस्य में रम गया और शिवम एक छोटे चुबंक की तरह मौडल्स और अन्य लोगों को आकर्षित करता रहा. मुझे भी अब कोई ऐक्शन दिखाना पड़ेगा, इसी सोच के साथ मैं ने मौडल्स से थोड़ीबहुत बातचीत करना शुरू कर दिया. मुझे पता चला कि वह सांवलीसलोनी मौडल, जो पहली बार रिसैप्शनिस्ट के काउंटर पर मिली थी, शिवम की फ्रैंड बन चुकी है और उस का नाम काम्या है. थोड़ी हिम्मत जुटा मैं ने उसे शाम को कौफी के लिए औफर दिया.

‘‘जरूर,’’ उस ने हंसते हुए कहा और अपने बालों में उंगलियां फेरने लगी.

‘‘मुझे भी यहां एक अच्छी कंपनी की जरूरत है,’’ मैं ने कहा.

हम ने शाम को 8 बजे मैन बार में मिलना तय किया. शादी से आजाद होने के बाद मैं  पहली बार किसी कम उम्र की लड़की से दोस्ती कर रहा था, इसलिए मन में रोमांच और हिचक दोनों ही भावों का मिलाजुला असर था. ‘‘बेटा, एक रात तुम्हें अकेले ही सोना है,’’ मैं ने शिवम को समझाते हुए कहा, ‘‘मैं ने होटल से बेबी सिटर की व्यवस्था भी कर दी. वह तुम्हें पूरी कौमिक्स पढ़ कर सुनाएगी,’’ उस के बारे में मैं ने बताया.

होटल की बेबी सिटर एक 16 साल की लड़की निकली और वह इस जौब से बहुत रोमांचित जान पड़ी, क्योंकि उसे रात में कार्टून्स देखने और कौमिक्स पढ़ने के क्व5 हजार जो मिल रहे थे. इसलिए जितना मैं काम्या से मिलने के लिए लालायित था उस से ज्यादा बेबी सिटर को शिवम के साथ धमाल मचाने की खुशी थी. मैं ने जाते वक्त शिवम की ओर देखा तो उस ने दुखी हो कर कहा, ‘‘बाय डैडी, जल्दी आना.’’ उस मासूम को अकेला छोड़ने में मुझे दुख हो रहा था. अपनी जिम्मेदारी दिखाते हुए मैं ने बेबी सिटर को एक बार फिर से निर्देश दिए और सुइट से बाहर आ गया.

रैस्टोरैंट तक पहुंचतेपहुंचते मुझे साढ़े 8 बज गए. काम्या रैस्टोरैंट में बाहर की ओर निकले लाउंज में एक कुरसी पर बैठी आसमान में निकले चांद को देख रही थी. समुद्र की ओर से आने वाली हवा से उस के बाल धीरेधीरे उड़ रहे थे. शायद अनचाहे ही वह गिलास में बची पैप्सी को लगातार हिला रही थी. वह एक शानदार पोज दे रही थी और मेरा मन किया कि जाते ही मैं उसे बांहों में भर लूं. मैं आहिस्ता से उस के पास गया और बोला, ‘‘सौरी, आई एम लेट.’’

मेरी आवाज सुन वह चौंक गई और बोली, ‘‘नोनो ईट्स फाइन. मैं तो बस नजारों का मजा ले रही थी. देखो वह समुद्र में क्या फिशिंग बोट है,’’ उस ने उंगली से इशारा करते हुए कहा. बोट हो या हवाईजहाज मेरी बला से, फिर भी मैं ने अनुमान लगाने का नाटक किया. तभी वेटर हमारा और्डर लेने आ गया.

‘‘तुम एक और पैप्सी लोगी?’’ मैं उस के गिलास की ओर देखते हुए बोला.

‘‘वर्जिन मोजितो,’’ उस ने कहा.

मैं ने वेटर को 2 जूस और वर्जिन मोजितो लाने के को कहा.

‘‘शिवम कहां है, सो गया?’’ मेरी ओर देखते हुए काम्या ने पूछा.

‘‘सौरी, उसी वजह से मैं लेट हो गया. उसे अकेले रहना पसंद नहीं है. वैसे वह बिलकुल अकेला भी नहीं है. एक बेबी सिटर है उस के पास. मैं ने पूरी कोशिश की कि वह मुझे कहीं से भी एक गैरजिम्मेदार पिता नहीं समझे.’’

‘‘क्या वह उस के लिए कौमिक्स पढ़ रही है? कहीं वह उसे परेशान तो नहीं कर रही होगी? आप कहें तो हम एक बार जा कर देख सकते हैं.’’

‘‘नहीं,’’ मैं ने जल्दी से मना किया, ‘‘मेरा मतलब है अब तक वह सो गया होगा? तुम परेशान मत हो.’’ फिर मैं ने बात पलटी, ‘‘और तुम्हारा शूट कैसा रहा है?’’

‘‘लगता है अब उन्हें मनचाही फोटोज मिल गई हैं. आज का दिन बड़ा बोरिंग था, मैं ने पूरी किताब पढ़ ली,’’ काम्या के हाथ में शेक्सपियर का हेमलेट था. एक मौडल के हाथ में कोर लिट्रेचर की किताब देख कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ.

‘‘मैं औनर्स फाइनल इयर की स्टूडैंट भी हूं,’’ उस ने मुसकराते हुए कहा. तभी वेटर हमारी ड्रिंक्स ले आया. वह आगे बोली, ‘‘मैं केवल छुट्टियों में मौडलिंग करती हूं.’’

मैं कुछ कहने के लिए शब्द ढूंढ़ने लगा. फिर बोला, ‘‘मुझे लगा कि तुम एक फुल टाइम मौडल होगी.’’

‘‘मैं खाली समय कुछ न कुछ करती रहती हूं,’’ उस ने एक घूंट जूस गले से नीचे उतारा और कहा, ‘‘कुछ समय मैं ने थिएटर भी किया फिर जरमनी में नर्सरी के बच्चों को पढ़ाया.’’

‘‘तभी तुम्हारी पर्सनैलिटी इतनी लाजवाब है,’’ मैं ने उस की खुशामद करने के अदांज में कहा. उस ने हंसते हुए अपना गिलास खत्म किया और पूछने लगी, ‘‘और आप क्या करते हो, आई मीन वर्क?’’

‘‘मैं बैंकर हूं. बैंकिंग सैक्टर को मुनाफा कमाने के तरीके बताता हूं.’’

‘‘इंटरैस्टिंग,’’ वह थोड़ा मेरी ओर झुकी और बोली, ‘‘मुझे इकोनौमिक्स में बहुत इंटरैस्ट था.’’

मुझे तो अभी उस की बायोलौजी लुभा रही थी. शाम को वह और भी दिलकश लग रही थी. उस के होंठ मेरे होंठों से केवल एक हाथ की दूरी पर थे और उस के परफ्यूम की हलकीहलकी खुशबू मुझे मदहोश कर रही थी.

अचानक उस ने बोला, ‘‘क्या आप को भूख लगी है?’’

मैं ने सी फूड और्डर किया और डिनर के बाद ठंडी रेत पर चलने का प्रस्ताव रखा. हम दोनों ने अपनेअपने सैंडल्स और स्लीपर्स हाथ में ले लिए और मुलायम रेत पर चलने लगे. उस ने एक हाथ से मेरे कंधे का सहारा ले लिया. रेत हलकी गरम थी और समुद्र का ठंडा पानी बीच में हमारे पैरों से टकराता और चला जाता. हम दोनों ऐसे ही चुपचाप चलते रहे और बहुत दूर तक निकल आए. होटल की चमकती रोशनी बहुत मद्धम पड़ गई. सामने एक बड़ी सी चट्टान मानो इशारा कर रही थी कि बस इस से आगे मत जाओ. मैं चाहता था कि ऐसे ही चलता चलूं, रात भर. मैं ने काम्या के चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसे चूम लिया. उस ने मेरा हाथ पकड़ा और चट्टान के और पास ले गई. हम ने एकदूसरे को फिर चूमा और काम्या मेरी कमर धीरे से सहलाने लगी. थोड़ी देर बाद वह अचानक रुकी और बोली, ‘‘मुझे शिवम की चिंता हो रही है.’’ मैं उस पर झुका हुआ था, वह मेरे सिर को पीछे धकेलने लगी. मैं ने उस के हाथ को अपने हाथ में लिया और चूमा. वह जवाब में हंसने लगी.

‘‘सौरी’’ काम्या बोली, ‘‘मुझे चूमते वक्त आप का चेहरा बिलकुल शिवम जैसा बन गया था. कुछकुछ वैसा जब वह ध्यान से पानी में फिरकी लेता है.’’

प्यार करते वक्त अपने बेटे के बारे में सोचने से मेरी कामुकता हवा हो गई. मैं दोनों चीजों को एकसाथ नहीं मिला सकता.

‘‘विजय, क्या आप परेशान हैं?’’ वह मेरे कंधे पर अपना सिर रखते हुए बोली, ‘‘मुझे लगा कि हम यहां मजे कर रहे हैं और मासूम शिवम कमरे में अकेला होगा, इसलिए मुझे थोड़ी चिंता हो गई.’’

‘‘हां, पर उस के लिए बेबी सिटर है.’’

‘‘पर आप ने कहा था न कि उसे अकेला रहना पसंद नहीं,’’ काम्या होंठों को काटते हुए बोली, ‘‘क्या हम एक बार उसे देख आएं?’’

‘‘बेबी सिटर उस की देखभाल कर रही होगी और कोई परेशानी हुई तो वह मुझे रिंग कर देगी. मेरा मोबाइल नंबर है उस के पास,’’ कहते हुए मैं ने जेब में हाथ डाला तो पाया कि मोबाइल मेरी जेब में नहीं था. या तो रेत में कहीं गिर गया था या मैं उसे सुइट में भूल आया था.

‘‘चलो, चल कर देखते हैं,’’ काम्या बोली. वक्त मेरा साथ नहीं दे रहा था. एक तरफ एक खूबसूरत मौडल बांहें पसारे रेत पर लेटी थी और दूसरी ओर मेरा बेटा होटल के सुइट में आराम कर रहा था. उस पर परेशानी यह कि मौडल को मेरे बेटे की चिंता ज्यादा थी. अब तो चलना ही पड़ेगा.

‘‘चलो चलते हैं,’’ कहते हुए मैं उठा. हम दोनों जब होटल पहुंचे तो मैं ने उसे लाउंज में इंतजार करने को कहा और बेटे को देखने कमरे में चला गया. शिवम मस्ती से सो रहा था और बेबी सिटर टैलीविजन को म्यूट कर के कोई मूवी देख रही थी.

‘‘सब ठीकठाक है? मेरा मोबाइल यहां रह गया था, इसलिए मैं आया,’’ मैं ने दरवाजे को खोलते हुए कहा.

बेबी सिटर ने स्टडी टेबल पर रखा मोबाइल मुझे पकड़ाया तो मैं जल्दी से लिफ्ट की ओर लपका. लाउंज में बैठी काम्या फिर आसमान में देख रही थी. वह बहुत सुंदर लग रही थी पर थोड़ी थकी हुई जान पड़ी. उस ने कहा कि वह थकी है और सोने जाना चाहती थी. यह सुन कर मेरा मुंह लटक गया, ‘‘मुझे आज रात का अफसोस है,’’ मैं ने दुखी स्वर में कहा, ‘‘मैं तो बस चाहता था कि…’’ मैं कहने के लिए शब्द ढूंढ़ने लगा.

‘‘मुझ से प्यार करना?’’ वह मेरी आंखों में देखते हुए बोली.

‘‘नहीं, वह…’’ मैं हकलाने लगा.

‘‘शेक्सपियर का हेमलेट डिस्कस करना?’’ वह हंसते हुए बोली. ठंडी हवाओं की मस्ती अब शोर लग रही थी. ‘‘मुश्किल होता है जब बेटा साथ हो तो प्यार करना और आप एक अच्छे पिता हो,’’ वह बोली.

‘‘नहींनहीं मैं नहीं हूं,’’ मैं ने उखड़ते हुए स्वर में कहा.

‘‘आज जो हुआ उस के लिए आप परेशान न हों. आप जिस तरह से शिवम के साथ पूल में खेल रहे थे और उस के साथ जो हंसीमजाक करते हो वह हर पिता अपने बच्चे से नहीं कर पाता. आप वैसे पिता नहीं हो कि बेटे के लिए महंगे गिफ्ट ले लिए और बात खत्म. आप दोनों में एक स्पैशल बौंडिंग है,’’ काम्या बोली.

‘‘मैं आज रात तुम्हारे साथ बिताना चाहता था.’’

‘‘मुझे भी आप की कंपनी अच्छी लग रही थी पर मैं पितापुत्र के बीच नहीं आना चाहती.’’

‘‘पर तुम…’’ मैं ने कुछ कहने की कोशिश की पर काम्या ने मेरे होंठों पर उंगली रख दी और बोली, ‘‘कल मैं जा रही हूं, पर लंच तक यहीं हूं.’’

‘‘मैं और शिवम तुम से कल मिलने आएंगे,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप लकी हैं कि शिवम जैसा बेटा आप को मिला,’’ काम्या बोली.

जवाब में मैं ने केवल अपना सिर हिलाया और फिर अपने सुइट में लौट आया.

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