5 टिप्स: रात में सोएं चैन से

बिजी लाइफस्टाइल में अक्सर हमारी नींद पर फर्क पड़ता है और अगर नींद पूरी न हो तो हम अपने औफिस के काम में अपना मन नही लगा पाते. जिसका असर हमारी औफिस के काम पर पड़ता है. कईं लोग तो अच्छी और गहरी नींद के लिए स्लीपिंग पिल्स लेना शुरू कर देते हैं या रात भर करवटें बदलते रहते हैं. इसीलिए आज हम आपको डाक्टर्स की कुछ टिप्स के बारे में बताएंगे, जिसे आप अपनाकर अच्छी और गहरी नींद ले पाएंगे…

1. केला खाने की डालें आदत 

केला एक बहुत बड़ी स्लीपिंग पिल है. केले में पाई जाने वाली पोटैशियम की प्रचुर मात्रा मांसपेशियों की ऐंठन को आराम देने और गहरी नींद की ओर धकेलने में सहायक होती है. बस फिर सोच क्या रहे हैं, कोशिश तो करके देखिए.

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2. गरम दूध में पियें शहद डालकर 

मां गरम दूध में शहद डाल कर, बच्चे को सोने से पहले पीने के लिए कहती है ताकि अच्छी और गहरी नींद आ सके. आप के साथ भी ऐसा हुआ जरूर होगा. इस बात के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी होते हैं. दरअसल, दूध में ट्राइप्टोफेन तत्त्व होने के कारण ही ऐसा नहीं होता, बल्कि शहद मिले गरम दूध में प्रोटीन और थोड़ी सी वसा होने के कारण दूध आप का पेट भरा-भरा रहने का एहसास देता है. आप को तसल्ली रहती है और भूख से नींद नहीं उड़ती. इसलिए अच्छे एहसास के साथ और शांतचित्त हो कर शहद मिला गरम दूध पी कर सोएं तो नींद आ जाएगी.

3. जल्दी करें डिनर

बुजुर्ग हों, डाइटीशियन या फिर डौक्टर, सभी का कहना है कि रात का खाना जल्दी खाएं. देर रात में खाना खाने की आदत न डालें, क्योंकि सोने से पहले खाने पर हमारी पाचनतंत्र प्रणाली सक्रिय हो उठती है. जाहिर है, भोजन पचने में वक्त लगता है, जिससे आप की नींद बार-बार टूटती है. अगर आप लेटे हैं या सो रहे हैं तो डाइजेशन नही होता. इसलिए पेट की कोई न कोई शिकायत, जैसे गैस बनना, अपच हो जाना, अकसर देर रात खाने से हो जाती है.

4. समय के बनें पाबंद 

चिकित्सकों का मानना है कि हमारी बौडी में सिरकाडियन सिस्टम है, जिससे हमारी बौडी की भीतरी घड़ी हमें नियंत्रित करती है ताकि हमारी बौडी सुचारु रूप से चलती रहे. आपने अक्सर सुना होगा कि हमारे कई बुजुर्ग एक निश्चित समय पर ही खाते हैं. अगर उनके खाने का समय थोड़ा सा भी इधर-उधर हो जाए, तो उन्हें नींद नहीं आती. ये सब सिरकाडियन सिस्टम के कारण ही होता है. वक्त पर खाने से पलकें अपने आप  बोझिल होने लगती हैं, जबकि बेवक्त खाने से कई बीमारियां बौडी को घेर लेती हैं. आज के लाइफस्टाइल में दफ्तरों, कार्यालयों में भी लंच व डिनर का समय एकदम फिक्स रहता है. लंबी आयु, हेल्दी बौडी, शांति और टेंशन फ्री जीवन अच्छे खानपान और पाबंद समय से खाने पर ही संभव है.

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5. दूध और ओटमील लें

नींद का एक नुस्खा है कि भारी व तला हुआ खाना-खाने सोने से पहले न लें. हैवी खाना खाने से नींद के साथ-साथ आपके वेट और फिटनेस पर भी असर डालता है. अगर आप ओटमील और दूध लें तो बेहतर होगा. दूध में होने वाला प्रोटीन ओटमील के कार्ब्स को हजम करने में मदद करता है, जिससे सीरोटोनीन नामक हारमोन पैदा होता है और यह हारमोन नींद के लिए फायदेमंद होता है. इसलिए ओटमील के साथ दूध का सेवन एक तरह से स्लीपिंग पिल का काम करता है.

‘खुशी’ नहीं बल्कि ये हैं जाह्नवी कपूर की ‘फेवरेट सिस्टर’

बौलीवुड एक्ट्रेस जाह्नवी  कपूर अपनी पहली फिल्म धड़क से लोगों के दिलों में अपनी जगह बना चुकीं हैं, लेकिन उन्हें अपनी मां श्रीदेवी की कमी हमेशा महसूस होती है. श्रीदेवी के निधन के बाद से जाह्नवी अक्सर अपने सौतेले भाई अर्जुन कपूर और बहन अंशुला कपूर से बौंडिग बनाती हुई नजर आती हैं.  वहीं हाल ही में जाह्नवी ने खुलासा किया है कि उनकी फेवरेट बहन खुशी कपूर नहीं बल्कि अंशुला कपूर हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

अक्सर साथ घूमते आती हैं जाह्नवी

 

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M I N E ? #BirthdayWeek

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श्रीदेवी के निधन के बाद अर्जुन-अंशुला, जाह्नवी  और खुशी के बीच अच्छी बौन्डिंग देखने को मिल रही हैं. ये चारों भाई- बहन अब एक दूसरे के काफी करीब आ गए है. एक दूसरे से दूर भागने वाले ये चारों श्रीदेवी के निधन के बाद करीब आ गए. अक्सर चारों छुट्टियां मनाने से लेकर डिनर आउटिंग तक साथ दिखाई देते है.

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अंशुला ने शेयर की फोटो पर जाह्नवी ने किया कमेंट

 

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Another one in the #WhereThemEyesAt series ??‍♀️ #KapoorEyes ?

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वहीं अंशुला कपूर  ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक तस्वीर शेयर की थी. इस फोटो पर अर्जुन कपूर और जाह्नवी  कपूर ने कमेंट करते हुए अपने दिल की बात लिखी. वहीं जाह्नवी  कपूर ने अंशुला की तस्वीर पर लिखा- ‘Favourite’ तो वहीं अर्जुन कपूर ने अपनी छोटी बहन की तस्वीर को लाइक करते हुए लिखा- ‘Life’.

 

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Happy birthday Dad ❤️ love you? #FamJam

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बता दें, पिछले साल ‘धड़क’ से बौलीवुड में डेब्यू करने वाली जाह्नवी कपूर इन दिनों राजकुमार राव के साथ शूटिंग में बिजी है. इसी के साथ-साथ जाह्नवी कपूर अब रूहीअफ्जा, कारगिल गर्ल और तख्त जैसी फिल्मों में नजर आने वाली हैं. जाह्नवी की अपकमिंग फिल्म की लिस्ट में ‘दोस्ताना 2’ फिल्म भी शामिल है. जिसमें वह कार्तिक आर्यन के साथ नजर आएंगी.

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‘स्ट्रीट डांसर’ के गाने की प्रैक्टिस करती नजर आईं नोरा फतेही, वीडियो वायरल

‘दिलबर’ और ‘कमरिया’ जैसे पौपुलर सौंग्स पर डांस करने के बाद फिल्म ‘बाटला हाउस’ का पौपुलर सौंग ‘‘साकी ओ साकी.’’ पर डांस कर नोरा फतेही ने इस साल हर एक्ट्रेस को पछाड़ने का इरादा बना लिया है. हर डांस नंबर में उनका और डांस प्रतिभा अद्वितीय बनकर ही उभर रही है. मजेदार बात यह है कि फिल्म ‘‘बाटला हाउस’ में नोरा फतेही ने सिर्फ ‘साकी ओ साकी’’गाना ही नही किया है, बल्कि फिल्म में उन्होंने अहम किरदार भी निभाया है.

स्ट्रीट डांसर 3 में नजर आएंगी नजर

इसी तरह वह बहुत जल्द श्रृद्धा कपूर और वरूण धवन के साथ रेमो डिसूजा निर्देशित फिल्म ‘‘स्ट्रीट डांसर 3 डी’ में  अहम किरदार निभाने के साथ ही एक अहम किरदार में नजर आने वाली हैं. इसी के साथ फिल्म ‘‘स्ट्रीट डांसर 3 डी’ में भी नोरा फतेही का बहुत बोल्ड और आग लगाने वाला गाना है. इस गाने पर डांस करने से पहले अपनी तैयारी का नोरा फतेही ने जो सनसनी खेज वीडियो अपने इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया है,वह वीडियो अपने आप में आग उगलने वाला ही है. टीसीरीज निर्मित फिल्म‘‘स्ट्रीट डांसर 3 डी’’ 24 जनवरी 2020 को थिएटरों में प्रदर्शित की जाएगी.

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बता दें, हाल ही में हुए एक इंटरव्यू में नोरा फतेही ने अपने इंडिया के एक्सपीरियंस के बारे में बताते हुए कहा, इंडिया आने के बाद उन्हें कई परेशानियों और कठिनाइयों से गुजरना पड़ा था. मुझे याद है अपनी पहली एजेंसी, जो मुझे कनाडा से यहां मिली थी. वह अपने नेचर में काफी  के मामले में काफी गुस्से वाले थे और मुझे ऐसा महसूस भी होता था कि मुझ सही तरीके से गाइड नहीं कर रहे. ऐसे में मैंने उस एजेंसी को छोड़ना चाहा, लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि हम आपके पैसे वापस नहीं करेंगे. जिसके कारण मैंने अपने एड से कमाए 20 लाख रूपए खो दिये.”

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क्या करण जौहर से सबंंध सुधारने के लिए इशान खट्टर फैला रहे अफवाहें!

कुछ दिनों पहले करण जौहर और इशान खट्टर के बीच अनबन हो गयी थी. वास्तव में उस वक्त ईशान खट्टर, करण जौहर की नई फिल्म में अभिनय कर रहे थे. सूत्रों के अनुसार इसी फिल्म को लेकर बातचीत के दौरान ईशान खट्टर अपने गुस्सैल स्वभाव के चलते गुस्से में कुछ बोल दिया था. करण जौहर ने ईशान खट्टर के गुस्से के सामने चुप रहने की बजाय उन्हें अपनी कंपनी ‘‘धर्मा प्रोडक्शन’’ की फिल्म से बाहर कर देने का निर्णय लेते हुए ईशान खट्टर को उसी वक्त अपने औफिस से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. उसके बाद ईशान खट्टर ने फिल्मकार अली अब्बास जफर की फिल्म अनुबंधित कर ली.

जान्हवी-ईशान दोबारा साथ स्क्रीन पर नजर आने की है अफवाहें          

 

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Tune in ? 20 minutes to go! World TV Premiere of #Dhadak, 9pm on Zee Cinema!

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कुछ दिन बाद से बौलीवुड में चर्चाएं गर्म हो गयीं कि करण जौहर ने तेलगू फिल्म ‘डिअर कामरेड’ की हिंदी रीमेक में अभिनय करने के लिए ईशान खट्टर के साथ जान्हवी कपूर को भी अनुबंधित किया है.

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करण ने लगाया अफवाहों पर विराम

 

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I have voted!! #voteindia have you??

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मगर यह महज अफवाह है.खुद करण जौहर ने अपने ट्वीटर हैंडल पर जाकर लिखा है कि अब तक उन्होने इस फिल्म के लिए किसी भी कलाकार से संपर्क नहीं किया है. इस प्यारी व बेहतरीन फिल्म पर अभी काम शुरू ही किया है.

तेलगू फिल्म है डिअर कामरेड

वास्तव में 26 जुलाई को प्रदर्शित तेलगू फिल्म‘‘डिअर कामरेड’’ को लगभग एक माह पहले तेलगू फिल्म‘ ‘अर्जुन रेड्डी’’फेम दक्षिण भारतीय सुपर स्टार विजय देवेरकोंडा ने मुंबई आकर करण जौहर को अपनी नई फिल्म ‘‘डिअर कामरेड’’ दिखायी थी.

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फिल्म से इंस्पार हैं करण जौहर

 

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#LAdiaries styled by @nikitajaisinghani ? @len5bm in @gucci

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फिल्म देखकर करण जौहर काफी प्रभावित हुए और उसी वक्त उन्होने इस फिल्म का हिंदी रीमेक बनाने की घोषणा की थी. उसके बाद करण जौहर ने फिल्म के निर्माता से मुलाकात की और इस फिल्म को हिंदी में बनाने के अधिकार छह करोड़ रूपए एवज में हासिल किए. इसी के चलते फिल्म‘‘डिअर कामरेड’’ के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने से एक दिन पहले 25 जुलाई को ही करण जौहर ने फिल्म की सफलता के लिए शुभकामनाएं दी है.

बता दें, इससे पहले करण जौहर ने दक्षिण के मशहूर निर्देशक एसएस राजामौली की फिल्म‘‘बाहबुली’का वितरण किया था. अब सवाल है कि जब करण जौहर ने फिल्म‘‘डिअर कामरेड’’की  हिंदी रीमेक के लिए किसी भी कलाकार से संपर्क नहीं किया,तो फिर इस फिल्म में ईशान खट्टर व जान्हवी कपूर के होने की खबरें किसने और क्यों फैलाई? क्या ईशान खट्टर ने स्वयं करण जौहर के संग संबंध सुधारने के लिए इस तरह की अफवाह फैलायी थी..या..?

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पूल में योगा करती दिखीं पूजा बत्रा, पति नवाब ने खींची फोटो

1993 मे ‘फेमिना मिस इंडिया इंटरनेशनल’ का खिताब जीतने वाली बौलीवुड एक्ट्रेस पूजा बत्रा ने हाल ही मे बौलीवुड एक्टर नवाब शाह से शादी की है. नवाब शाह और पूजा बत्रा की शादी एक सीक्रेट मैरिज थी यानी दोनों ने अपनी शादी के बारे में किसी को नही बताया था. पूजा और नवाब ने अपनी सीक्रेट मैरिज दिल्ली में आर्य समाज रिती-रिवाजों के अनुसार की है.

करीबी दोस्तों के साथ की पार्टी

 

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You are a blast to work with @nayanikac1

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हनीमून से लौटने के बाद दोनो ने मुंबई एक पार्टी के रूप ने अपने करीबी दोस्तों को इस बारे मे जानकारी दी जिसमे पूजा बेहद सुंदर नजर आ रही थीं और नवाब शाह ने भी फिलहाल ही मीडिया को बताया कि उन्होने पूजा को एक अलग ही अंदाज मे शादी के लिए प्रपोज किया था.

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योगा करती हैं पूजा

शादी के बाद से नवाब शाह और पूजा बत्रा काफी चर्चा में हैं. पूजा की उम्र लगभग 42 साल है और इस उम्र मे भी वे अपनी फिटनेस का काफी ध्यान रखती है. पूजा हफ्ते मे एक बार योगा और बाकी दिन अलग-अलग एक्सरसाइज करती रहती है.

पति ने क्लिक की फोटोज

 

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My gear for today #chudda

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हाल ही मे पूजा बत्रा ने अपने औफिशियल इंस्टाग्राम अकाउंट पर फैंस के साथ अपनी कुछ फोटोज शेयर की है, जिसमें वे बहुत ही कमाल लग रही है. इन फोटोज मे पूजा स्विमिंग पूल मे बिकिनी पहने योगा करती दिखाई दे रही हैं. ऐसा कहा जा सकता है कि पूजा बत्रा की ये फोटोज क्लिक करने वाले और कोई नही बल्कि नवाब शाह ही है. नवाब ने पूजा की इन फोटोज पर लव रिएक्ट भी किया है.

 

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Be your own idol ~@sophiaamoruso

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बता दें, पूजा बत्रा ने हिंदी फिल्मों के साथ-साथ ‘तमिल’, ‘मल्यालम’, ‘तेलुगु’ और ‘पंजाबी’ फिल्मो मे भी काम किया है. हिंदी फिल्मो की बात करे तो पूजा ने ‘भाई’, ‘हसीना मान जाएगी’, ‘कहीं प्यार ना हो जाए’ जैसी कई फिल्मों मे काम किया है और वहीं नवाब शाह ने भी ‘लक्ष्य’, ‘भाग मिल्खा भाग’, ‘टाइगर जिंदा है’ जैसी कई सफल फिल्में की है.

जितना पैसा उतना तनाव

एक अमेरिकी अर्थशास्त्री डेनियल हेमरमैश का कहना है कि जो जितना अमीर हो जाता है वह उतना ही ज्यादा तनाव में रहता है, क्योंकि उस के पास पैसा होता है पर उसे खर्च करने का समय नहीं. उस के पास तो अपनी पत्नी और बच्चों के लिए भी समय नहीं होता. अमेरिका में पिछले 50 सालों में बहुत पैसा आया है और अमीर ज्यादा अमीर हुए हैं पर वे बहुत खुश हों, जरूरी नहीं. अब अमीर कपड़ों पर पैसा नहीं खर्च करते, वे हाई ऐंड महंगे जिमों, होटलों, रेस्तराओं में खर्च करते हैं. यह बात दूसरी है कि जितनी देर वहां रहते हैं उन के ईमेल और फोन उन्हें पूरी तरह इन सेवाओं का लाभ नहीं उठाने देते.

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उन की पत्नियां महंगे कपड़े खरीदती हैं, ज्वैलरी खरीदती हैं पर हर समय डरी रहती हैं कि पति के इर्दगिर्द मंडराती स्मार्ट, लालची लड़कियों से पति को कैसे बचा कर रखें. वे पति से उस के घंटों का हिसाब नहीं मांग सकतीं. वह कब, कहां और किस के साथ है पूछ नहीं सकतीं. आमतौर पर वे पतियों के विशाल दफ्तरों तक में नहीं जा पातीं और पतियों को मिलने वाले पैसे के लालच में लंबी छूट देती हैं पर इस से तनाव में घुलती रहती हैं. अमीर लोगों की एक चिंता यह भी होती है कि कहीं आय कम न हो जाए जैसे अभी इस बार बजट में अचानक अमीरों पर आयकर 7-8% बढ़ गया. ऐसे सरकारी फैसले पतियों को हर समय परेशान रखते हैं.

कम आय वालों की पत्नियों को कम में गुजारा तो करना पड़ता है पर भरोसा होता है कि पति दफ्तर में कहां है और घर आ कर कौन से सोफे पर कौन सा टीवी चैनल देख रहा है. कम आय वाले पुरुषों पर लड़कियां डोरे नहीं डालतीं. वे घर पर काम नहीं लाते, रसोई में मदद करते हैं और जब छुट्टी पर जाते हैं, तो पूरी तरह पत्नी के होते हैं.

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अमीर की पत्नी होना फक्र की बात जरूर है पर तनावग्रस्त पति का कोई क्या करे खासतौर पर तब जब सब से बड़ा तोहफा हीरों का हार नहीं, 24 घंटों के तनाव देता हो.

अपशब्द कहें मस्त रहें

फिल्म ‘जब वी मैट’ में दिखाया गया है कि जब नायिका का बौयफ्रैंड उसे धोखा देता है, तब वह तनाव में आ जाती है. एकदम चुपचाप रहने लगती है. तब फिल्म का नायक शाहिद कपूर उसे तनावमुक्त होने का एक रास्ता बताता है. वह यह कि वह उस इंसान को जिस ने उसे दर्द दिया, उसे फोन कर के जीभर के गालियां दे कर, कोस कर अपने मन की भड़ास निकाले. उस ने वैसा ही किया तो उस के मन की सारी भड़ास निकल गई.

अपनी फ्रैंड की बर्थडे पार्टी में गई सोनल की महंगी ड्रैस पर जब किसी से गलती से जूस गिर गया, तब गुस्से में सोनल के मुंह से उस इंसान के लिए अपशब्द निकल गए. लेकिन बाद में फिर उस ने उस बात के लिए माफी भी मांग ली.

हमारे साथ भी ऐसा ही होता है. किसी इंसान की गलत बात, व्यवहार से या फिर उस के कारण अपना नुकसान हो जाने पर हम भड़क जाते हैं और फिर हमारे मुंह से अपशब्द निकल ही जाते हैं, जैसे ‘बेवकूफ कहीं का, दिखता नहीं है क्या?’ ‘एक नंबर का घटिया इंसान है तू,’ ‘गधा कहीं का, बकवास मत कर’ जैसे अपशब्द बोल कर हम अपने मन की भड़ास निकाल लेते हैं, जो सही भी है, क्योंकि कुछ न बोल कर टैंशन में रहना, मन ही मन कुढ़ते रहने से अच्छा रिएक्ट कर देना है.

खुद को भी कोसें

भड़ास निकाल देने से मन का गुबार बाहर निकल जाता है. किसी के बुरे व्यवहार के कारण जलते-कुढ़ते रहने से हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है. कभी खुद की गलती पर भी हमें गुस्सा आ जाता है. तब भी खुद को कोस लेना अच्छा रहता है. गलती चाहे किसी की भी हो, उसे 2-4 अपशब्द कह दें, तो मन हलका हो जाता है. लेकिन अपने कहे शब्दों का मन में अपराधबोध न रखें, क्योंकि आप ने तो सिर्फ अपनी भड़ास निकाली है और अगर यह भड़ास दबी रह जाए, तो सिरदर्द, माइग्रेन, बीपी और न जाने किनकिन बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं.

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बचपन में हमारे माता-पिता और शिक्षकों ने गाली देने से रोकने की पूरी कोशिश की होगी हमें, फिर भी बड़े होने पर हम लगभग सभी इस भाषा का सहारा लेते हैं और वह भी दिन में कई बार. हमारे मातापिता और शिक्षकों ने भी शायद कभी न कभी किसी न किसी के लिए गुस्से में आ कर अपशब्दों का प्रयोग किया ही होगा, भले मन में या फिर पीठ पीछे, पर किया होगा और करते होंगे जरूर. हां, यह भी सही है कि इस तरह की अभद्र भाषा का इस्तेमाल करना शिष्टता नहीं है, क्योंकि इस में नफरत की बू आती है, लेकिन यह भी सही है कि जो लोग अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं, वे हमेशा किसी को बुरा महसूस करवाने के लिए नहीं करते हैं, बल्कि अपने गुस्से को शांत करने के लिए करते हैं.

घुटन जमा न करें

इस संदर्भ में अब तक हुए शोधों और अध्ययनों से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि मनमस्तिष्क में भरा रहने वाला यह गुबार अगर समय रहते बाहर नहीं आ पाता है तो लंबे समय तक चलने वाली इस हालत का दुष्प्रभाव हमारी सेहत पर पड़ने लगता है. ऐसे में अपने अंदर घुटन को जमा न कर के उसे बाहर निकाल देना चाहिए. खुद को खुश और तनावमुक्त रखने के लिए समयसमय पर भड़ास निकालते रहना चाहिए. घरबाहर के काम का बोझ, औफिस में बौस की झिड़की या दोस्तों से किसी बात पर तकरार हो जाए, तो दवा के रूप में मन की भड़ास को निकाल लेना ही सही है.

गुस्से में आ कर किसी के साथ मारपीट करने से अच्छा है उस इंसान को खूब कोस

लिया जाए, 2-4 गालियां दे दी जाएं, तो मन को सुकून आ जाता है. मन की भड़ास निकालना एक थेरैपी है और इस बात से विश्वभर के मनोवैज्ञानिक भी एकमत हैं. इस थेरैपी पर काम कर रहे इटली के जौन पारकिन कहते हैं कि हम हर समय खुद को तराशते, सुधारते नहीं रह

सकते हैं. मन की भड़ास निकालना कोई गलत बात नहीं है.

हालांकि बहुत से लोग बुरी भाषा के इस्तेमाल पर अभी भी आपत्ति जताते हैं,

लेकिन वैज्ञानिक कहते हैं कि जो लोग अपने मन की भड़ास निकालते हैं वे उन लोगों की तुलना में ज्यादा स्वस्थ हो सकते हैं, जो ऐसा नहीं करते हैं. लुइसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्र के प्रोफेसर और शोधकर्ता राबर्ट ओनील ने 2001 में एक अध्ययन किया, जिस में पता चला कि पुरुष और महिलाओं की भड़ास निकालने की अलगअलग प्रतिक्रिया है. हालांकि महिलाएं आज पहले की तुलना में ज्यादा अभद्र और चलताऊ भाषा का प्रयोग करने लगी हैं.

यह तो सकारात्मक गुण है

डा. एम्मा बायरन ने अपनी किताब में भड़ास निकालने पर लिखा है कि यह आप के लिए अच्छा है. ‘द अमेजिंग साइंस औफ बैड लैंग्वेज’ नए शोध से पता चला है कि भड़ास निकालना एक सकारात्मक गुण है, कार्यालय में विश्वास और टीम वर्क को बढ़ावा देने से ले कर हमारी सहनशीलता को बढ़ाने तक. भड़ास निकाल देना हमारी शारीरिक पीड़ा को कम करने, चिंता को कम करने, शारीरिक हिंसा को रोकने, यहां तक कि भावनात्मक दर्द को रोकने में भी मदद कर सकता है.

कीले यूनिवर्सिटी में 2009 हुए एक प्रयोग में उन के मुकाबले वे लोग ज्यादा देर तक बर्फ से ठंडे पानी में अपने हाथ डुबो कर रख सकते हैं जो अभद्र भाषा का ज्यादा प्रयोग करते हैं. हमारे समाज में ऐसी अभद्र भाषा का प्रयोग निंदनीय है, लेकिन पूरी दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है जहां लोग एक-दूसरे को गालियां नहीं देते हैं. लेकिन कहा जाता है कि जापानी लोग गालियां नहीं देते हैं, बल्कि वे अपना गुस्सा एक तुतले पर निकालते हैं.

एम्मा बायरन का कहना है कि वहां भी आम बोलचाल की भाषा में एक शब्द इस्तेमाल किया जाता है, ‘मैंको’ जोकि शरीर के एक ऐसे अंग के लिए बोला जाता है, जिस का नाम लेना सभ्य समाज के खिलाफ है. एम्मा बायरन का कहना है कि अपशब्द कह देने से तनमन दोनों की तकलीफ कम हो जाती है. जो हमारी बेइज्जती करता है, हमारा मजाक उड़ाता है, उसे हम हथियार से न सही कम से कम जबान से

अपशब्द कह कर अपने मन की भड़ास तो निकाल ही सकते हैं न? आपस में भाषा का खुलापन होना जरूरी है. इस से आपस में अच्छी बौडिंग रहती है.

अगर अभद्र भाषा नहीं बोल सकते हैं तो आप अपना गुस्सा पंचिंग बैग पर निकाल दें.

कई फिल्मों में भी हम ने देखा है कि हीरो को किसी पर बहुत गुस्सा आता है, तो वह अपना सारा गुस्सा पंचिंग बैग पर निकाल लेता है.

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जापान में बड़ी-बड़ी कंपनियों व कार्यालयों में ऐसे विशेष कक्ष की व्यवस्था का चलन है, जिस में एक पुतला होता है. जब भी किसी कर्मचारी को अपने किसी सहकर्मी कर्मचारी, अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति की वजह से गुस्सा आता है या तनाव होता है तो वह उस पुतले को जी भर कर गालियां देता है, उसे मारतापीटता है ताकि उस के मन की सारी भड़ास बाहर निकल जाए.

देश-विदेश की कई कंपनियां भी अब अपने कर्मचारियों के बैठने और स्वतंत्र रूप से खुल कर बात करने के लिए खास प्रबंध रखती हैं. उद्देश्य यही रहता है कि उन के मन की खटास, गुस्सा बातों के जरीए बाहर निकल जाए और वे तनावमुक्त अपना काम कर सकें.

तोड़-फोड़ से मिलती है शांति

सुन कर थोड़ा अजीब जरूर लगेगा पर गुस्से में थोड़ीबहुत तोड़फोड़ करना भी आप का गुस्सा कम कर सकता है, आप को मानसिक शांति दे सकता है.

साइकोलौजिकल बुलेटिन में भी इस ‘डैमज थेरैपी’ के बारे में बताया गया है. स्पेन के एक कबाड़खाने में तो लोगों को तोड़फोड़ करने की सेवा देनी शुरू भी की जा चुकी है. 2 घंटे के ढाई हजार रुपए. तनाव दूर करने के लिए आप अपना पुराना टीवी, मोबाइल फोन, घर के पुराने सामान आदि के साथ जम कर तोड़फोड़ करते हुए मानसिक शांति पा सकते हैं. तनाव भगाने की इस थेरैपी से मरीजों को कितना लाभ होता है. इस बारे में ‘स्टौप स्ट्रैस’ नामक एक संगठन का दावा है कि उपचार के 2 घंटे की अवधि में आधे घंटे में ही आराम आने लगता है, आप अपने किसी भी दुश्मन के पुतले पर लातघूंसे बरसा कर, गालियां दे कर अपनी भड़ास निकाल सकते हैं.

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि गुस्सा सब से अधिक ऐनर्जी वाला नैगेटिव इमोशन है और अगर इसे सही दिशा में मोड़ दिया जाए तो रचनात्मक ऐनर्जी बन सकती है. भड़ास में आप म्यूजिकल इंस्ट्रूमैंट बजा कर, पेंटिंग कर के या अन्य पसंदीदा काम कर के अपनी ऐनर्जी को सकारात्मक दिशा में मोड़ सकते हैं.

मनोवैज्ञानिकों की मानें तो गुमनाम रहना लोगों में एक तरह से सुरक्षा की भावना पैदा करता है. दिल्ली में काम करने वाली साइकोलौजिस्ट, काउंसलर और फैमिली थेरैपिस्ट गीतांजलि कुमार ने बताया कि जब आप इस तरह से कुछ लिख रहे होते हैं तो आप किसी ऐसे इंसान से कम्युनिकेट कर रहे होते हैं जो आप को जानता हो.

अपनी भड़ास निकाल देने से हम बुरी स्थिति पर नियंत्रण कर पाते हैं. 2-4 अपशब्द कह कर हम सामने वाले को जता सकते हैं कि हम कमजोर या डरपोक नहीं हैं. भड़ास निकाल देना हमारे आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को बढ़ावा देता है और सुधारात्मक काररवाई करने के लिए प्रेरित करता है. कहा जाता है कि जब गुस्सा आए तो 10 तक उलटी गिनती गिननी चाहिए. गुस्सा शांत हो जाता है, लेकिन जब गुस्सा हद से ज्यादा बढ़ जाए, तो भड़ास निकाल ही लेनी चाहिए.

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भड़ास हिंसा का सहारा लिए बिना बुरे लोगों से या स्थितियों से हमें वापस लाने में सक्षम बनाती है. किसी को शारीरिक नुकसान पहुंचाए बगैर हम उस पर अपनी भड़ास निकाल कर अपना गुस्सा जाहिर कर देते हैं. लेकिन ज्यादा भड़ास निकालना भी कभीकभी नुकसानदेह हो सकता है, लेकिन एक नुकीले खंजर की तुलना में कुछ तीखे शब्द बेहतर हैं. किसी पर भड़ास निकालना, मतलब चेतावनी भी है कि फिर न उलझना मुझ से वरना छोड़ूंगी नहीं.

अस्वच्छता देश के हित में

देश की स्वच्छता का ठेका लिए ठेकेदार अब इस ज्ञान से नहा चुके हैं कि अस्वच्छता देशहित में स्वच्छता से ज्यादा जरूरी है. देश की इकोनौमी और अपनी जेब नोटों से भरें और सड़कें गोबर से, तो इस में बुराई क्या है?

आजकल जिसे देखो वही राष्ट्रहित में देश को अस्वच्छ बनाने में दिलोजान से जुटा है. कइयों ने तो इस कार्यक्रम की नब्ज और फायदे पहचान कर अपने पुराने सारे काम बंद कर देश को अस्वच्छ करने का नया काम शुरू कर दिया है. प्रोग्राम ताजाताजा है, इसलिए इस काम मेें अभी कमाई की अपार संभावनाएं हैं. वैसे भी, राष्ट्र स्तर पर जब कोई नया काम शुरू होता है तो उस में रोजगार के अपार अवसर हों या नहीं, पर कमाई की अपार संभावनाएं जरूर प्रबल रहती हैं. तब कमाई के हुनरी दाएंबाएं चोखी कमाई कर ही लेते हैं और हर नए प्रोग्राम से अपने बैंक खातों को ठीकठाक भर लेते हैं.

अस्वच्छता से भी कमाई निकल आएगी. किसी दिमागदार ने क्या सपने में भी ऐसा सोचा था? नहीं न? कम से कम मैं ने तो ऐसा नहीं सोचा था कि अपने देश का कूड़ा भी इनकम के उम्दा सोर्स पैदा करने का हुनर रखता है.

वे कल कई दिनों बाद मिले. सुना था कि उन्होंने देश को अस्वच्छ करने का ठेका भर रखा है. इसलिए दिख नहीं रहे. ठेका भरें क्यों न, वे कुशल ठेकेदार हैं. हर किस्म के ठेके उन के आगेपीछे घूमते हैं. वैसे इस देश में बिना ठेके के कोई भी काम पूरा नहीं होता. काम चाहे बनाने का हो, चाहे गिराने का. हर जगह ठेके की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. इसीलिए तो हर किस्म की सरकार को ठेकेदार पर अपने से भी अधिक भरोसा होता है. इस देश में विकास और विनाश के मामले में उतनी भूमिका प्रकृति की नहीं, जितनी ठेके वालों की है. उन के बिना अपना देश टस से मस नहीं हो सकता. देश के सारे काम मरने से ले कर जीने तक के ठेके पर ही चल रहे हैं. दूसरी ओर मरने वाले, जीने वाले दिनरात अपने हाथ मल रहे हैं.

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बातों ही बातों में उन्होंने अपनी व्यस्तता व्यक्त करते हुए मेरी जेब से मेरा रूमाल निकाल अपना पसीना पोंछते कहा, ‘‘यार, जब से देश को अस्वच्छ करने का काम चला है, सिर खुजाने तक का वक्त नहीं निकाल पा रहा हूं. पता नहीं यह देश कब अस्वच्छ होगा? होगा भी या नहीं?’’ वाह, चेहरे पर क्या गंभीर आवरण. काश, ऐसा आचरण हमारा भी होता.

वे ठेकेदार वाले चेहरे का मूड छोड़, दार्शनिक वाले मूड में आए, तो मैं अपनी बगलें झांकने लगा. इस देश में कोई किसी मूड में हो या न हो, हर शख्स दार्शनिक वाले मूड में जरूर रहता है और अवसर न मिलने के बाद भी वह अपनी दार्शनिकता को झाड़ने का मौका निकाल ही लेता है. हम किसी और चीज में माहिर हों या नहीं, पर मौका निकालने में बड़े माहिर हैं. हमारी सब से बड़ी विशेषता भी यही है जो हमें दूसरों से अलग करती है.

‘‘जब तक हम रहेंगे, इस देश को स्वच्छ कोई नहीं कर सकता. मित्रो, अगर अफसरों के बदले भगवान के हाथ किन्हीं खाली हाथों में सौ झाड़ू पकड़ा दें और वे आगेआगे झाड़ू लगाते रहें तो दांत निपोरते उन के पीछेपीछे उन के ही खास बंदे कूड़ा डालते रहेंगे. अस्वच्छता का प्रोजैक्ट इस देश में कभी न खत्म होने वाला अनंतकालीन प्रोजैक्ट है. इसीलिए इस में कमाई की अपार संभावनाएं भी हैं,’’ मैं ने कहा तो उन्होंने अपने कंधे उचकाए, ‘‘नहीं, ऐसी तो बात नहीं, दोस्त. सरकार अस्वच्छता के प्रति पूरी तरह दृढ़संकल्प है. अब देखो न, सरकार ने पशुओं तक को तय कर दिया है कि वे सड़क पर एक तय वजन से अधिक गोबर नहीं कर सकेंगे. देखा, हमारी सरकार अस्वच्छता के प्रति कितनी वचनबद्ध है?’’

यह सुन कर न हंसा गया न रोया गया. वैसे किसी और जगह तो बंदा हंस सकता है, रो सकता है, पर जब अपनी ही चुनी सरकार के निर्णय पर बंदा हंसने लगे तो फजीहत सरकार की नहीं, डायरैक्टली-इनडायरैक्टली बंदे की ही होती है.

‘‘पर पशुओं के गोबर को तोल कर कौन पता लगाएगा कि उस ने तय मानकों के बराबर ही उस दिन का गोबर सड़क पर किया है?’’ मेरे लिए यह सवाल बहुत बड़ा था.

‘‘सरकारी मशीनरी काहे को है दोस्त? सारा दिन तो कुरसियों पर बैठ एकदूसरे को उल्लू ही बनाती रहती है. अब से सब तराजू ले कर हर पशु के पीछे…’’ इन दिनों वे इस सरकार के खास बंदे हैं, सो, सरकार की तरफ से फटाक से फाइनल फैसला दे डाला.

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‘‘अपने यहां आदमी भले ही आदमी न हो, पर मान लो, जो समझदार पशु ने लाख रोकने के बाद भी निर्धारित सीमा से अधिक गोबर सड़क पर कर दिया तो?’’

‘‘अगर ऐसा पाया गया तो पशु के मालिक को सजा दी जाएगी,’’ एक और कड़ा फैसला.

‘‘पशु के मालिक को सजा…यह कहां का न्याय है, सर? गोबर करे कोई, और भरे कोई?’’

‘‘देखो जनाब, देश को अस्वच्छ रखने के लिए किसी को तो सजा देनी ही पड़ेगी न? अब पशु किस का है? मालिक का ही न? ऐसे में देश को अस्वच्छ बनाने के लिए या तो वह अपने पशु को समझाए या…’’

‘‘पर किसी के समझाने से इस देश में समझता ही कौन है, चाचा?’’

‘‘नहीं समझता, तो सजा भुगते.’’

‘‘पर पशु की सजा उस के मालिक को क्यों?’’

‘‘देखिए, सजा तो किसी न किसी को होनी ही है. सजा का काम हर हाल में होना है. उसे यह थोड़े ही देखना है कि वह किसे हो रही है. किसी को भी, बस, सजा हो जाए, ताकि कानून बना रहे…’’

वे अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि मैं ने साफ देखा कि सामने से लोग एक बंदे को गधे पर बैठा कर ला रहे थे. सोचा, किसी और के रंग के, रंगेहाथों पकड़ा गया होगा बेचारा. बिन पहुंच वालों के साथ अकसर ऐसा ही होता रहता है अपने समाज में. कमजोर के हाथ बिना रंग ही रंग दिए जाते हैं, उसे कोई भरोसा दे. और रंगे हाथों वाले पुलिस थाने के बाहर लगे नल में अपने हाथ उन्हीं का साबुन ले धोते रहते हैं.

‘‘यह क्या हो गया? क्या किया इस ने?’’

तो पास वाला मुसकराता बोला, ‘‘अरे, कुछ नहीं साहब, होना क्या?? इस का पशु दैनिक निर्धारित गोबर से अधिक गोबर कर देश को अस्वच्छ कर रहा था. पकड़ा गया, सो…पशु तो पशु है, सर. पर अगर कुछ समझदार को सजा दो तो वह सुधर जरूर जाता है. यही कानून का विधान है.’’

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इलैक्ट्रौनिक डिवाइस बन रहे इन्फर्टिलिटी का कारण

शादी के 4 साल तक भी जब गुप्ता दंपती के घर किलकारियां नहीं गूंजी तो उन्होंने आईवीएफ एक्सपर्ट से सलाह लेने का निर्णय लिया. वहां चिकित्सकों द्वारा न सिर्फ प्रजनन क्षमता की जांच की गई, बल्कि उनके डेली लाइफस्टाइल को भी जाना गया. इस में सामने आया कि पुरुष पार्टनर काफी व्यस्त रहता है और नाइट शिफ्ट में काम करता है. फिर चिकित्सक द्वारा लंबी जांच के बाद पता चला कि करीब 1 साल तक नाइट शिफ्ट में काम करने के कारण उन में कई बदलाव हुए, जिस का नतीजा रहा कि उस के शुक्राणुओं की संख्या और क्वालिटी का स्तर गिर गया.

वहीं महिला पार्टनर एक विज्ञापन एजेंसी और डिजिटल मार्केटिंग कंपनी में काम करती है. जिस का ज्यादातर काम डिजिटल मीडिया से जुड़ा है. उन की जांच में पाया गया कि उस के मैलाटोनिन हारमोन का स्तर घट गया है. मैलाटोनिन नींद आने के लिए जिम्मेदार होता है. अन्य परिणामों में सामने आया कि लगातार तनाव और अनिद्रा होने के कारण शरीर की कार्यशैली प्रभावित हुई जिस से कंसीव करने में दिक्कत आई. कई शोधों से पता चला है कि दरअसल कृत्रिम रोशनी प्रजनन क्षमता को काफी हद तक प्रभावित करती है. शोधकर्त्ताओं के अनुसार हाई लैवल का कृत्रिम प्रकाश शाम के समय खासकर शिफ्ट बदलने के दौरान सब से ज्यादा नींद को प्रभावित करता है, जिस से शरीर का बौडी क्लौक प्रभावित होता है. ऐसी स्थिति में दिमाग मैलाटोनिन कम स्रावित करता है.

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आजकल कृत्रिम प्रकाश का बड़ा स्रोत इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स है. ये लाइट्स मस्तिष्क में सिगनल दे कर निर्माण होने वाले हारमोन मैलाटोनिन को अव्यवस्थित कर देती हैं. शरीर में मैलाटोनिन कम बनने के कारण बौडी क्लौक अव्यवस्थित हो जाती है और इस से खासकर महिलाओं की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है. सुप्राचियासमैटिक न्यूक्लियस (एससीएन) दिमाग का वह हिस्सा है जो बौडी क्लौक को नियंत्रित करता है. इस का पता ओसाका यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं समेत कई और शोधार्थी लगा चुके हैं. ‘जापान साइंस ऐंड टैक्नोलौजी एजेंसी’ भी साबित कर चुकी है कि आर्टिफिशियल लाइट के कारण महिलाओं में मासिकचक्र भी प्रभावित होता है.

मैलाटोनिन का महत्त्व

‘फर्टिलिटी ऐंड स्टेरिलिटी जर्नल’ में प्रकाशित शोध के अनुसार कृत्रिम प्रकाश रात में शरीर पर बुरा प्रभाव डालता है खासकर महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर. ऐसी रोशनी से महिला दूर रहे तो फर्टिलिटी और प्रैगनैंसी के दौरान भ्रूण में बेहतर विकास के साथसाथ सकारात्मक परिणाम भी सामने आते हैं. जब अंधेरा होता है तब हमारे शरीर में मैलाटोनिन हारमोन में पीनियल ग्लैंड से स्वत: रिलीज होता रहता है. इसीलिए यह नींद आने में भी मददगार होता है. अंडोत्सर्ग के दौरान मैलाटोनिन अंडों को सुरक्षा देता है और उन्हें क्षतिग्रस्त होने से बचाता है. इस के अलावा यह शरीर से फ्री रैडिकल्स को भी बाहर निकालता है. ऐसी महिलाएं जो कंसीव करना चाहती हैं वे कम से कम 8 घंटे की नींद जरूर लें और अंधेरे में ही सोएं ताकि मैलाटोनिन हारमोन का निर्माण हो सके और शरीर की बायोलौजिकल क्लौक डिस्टर्ब न हो.

आजकल मोबाइल सभी इस्तेमाल करते हैं. देर रात तक इस के इस्तेमाल से नींद प्रभावित होती है और फिर अनिद्रा की समस्या हो जाती है. इस कारण तनाव का स्तर बढ़ता है और इन्फर्टिलिटी की समस्या होती है. कृत्रिम रोशनी सब से ज्यादा मैलाटोनिन के निर्माण को प्रभावित करती है, जिस के कारण नींद में बाधा आने की दिक्कत आती है. जहां महिलाओं में मासिकधर्म नियमित न होना, प्रेग्नैंसी में बाधा आना, भ्रम की स्थिति बनना और बर्थ में दिक्कत होना जैसी समस्याएं सामने आती हैं, वहीं पुरुषों में कृत्रिम रोशनी के कारण शुक्राणुओं की क्वालिटी का स्तर गिरता है.

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गर्भवती महिलाएं भी होतीं प्रभावित

इसके अलावा इलैक्ट्रौनिक डिवाइस से निकलने वाली नीली रोशनी का प्रैगनैंट महिलाओं और उन के बच्चे पर भी बुरा असर पड़ता है. अंधेरे में कम से कम 8 घंटे की नींद भ्रूण के विकास के लिए बेहद जरूरी है. अगर भ्रूण को एक तय मात्रा में मां से मैलाटोनिन हारमोन नहीं मिलता है, तो बच्चे में कुछ रोगों जैसे एडीएचडी और औटिज्म की आशंका होती है. इसलिए यह बेहद जरूरी है कि 8 घंटे की नींद और हैल्दी डाइट ली जाए, साथ ही कृत्रिम रोशनी से दूर रहा जाए खासकर रात में ताकि फर्टिलिटी को बेहतर रखा जा सके.

जब शुक्राणु हो जाए कम

शुक्राणु (10-15 मि/एमएल): विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 15 मि/एमएल से ज्यादा शुक्राणुओं की मात्रा सामान्य है. अगर किसी दंपती में शुक्राणुओं की मात्रा 10 मि/एमएल से ज्यादा हो तो वे आईयूआई प्रक्रिया करवा करते हैं. आईयूआई प्रक्रिया में पति के वीर्य से पुष्ट शुक्राणु अलग कर एक पतली नली के माध्यम से पत्नी के गर्भ में छोड़ दिए जाते हैं. यह तकनीक प्राकृतिक गर्भधारण जैसी ही है.

शुक्राणु (1-5 मि/एमएल): यदि1-5 मि/एमएल से कम शुक्राणु वाले आईवीएफ की अत्याधुनिक पद्धति आईसीएसआई (इक्सी) करवा सकते हैं. आईसीएसआई पद्धति में पत्नी का अंडा शरीर से बाहर निकाला जाता है. पति के वीर्य से पुष्ट शुक्राणु अलग कर लैब में इक्सी मशीन के जरीए 1 अंडे को पकड़ उस में एक शुक्राणु को इंजैक्ट किया जाता है. 2-3 दिन के अंडे भ्रूण में परिवर्तित हो जाते हैं. भ्रूण वैज्ञानिक इन में से अच्छे भ्रूण का चयन कर पतली नली के माध्यम से पत्नी के गर्भ में छोड़ देते हैं.

शुक्राणु (5-10 मि/एमएल): 10 मि/एमएल से कम शुक्राणु वाले आईवीएफ पद्धति के लिए जा सकते हैं. आईवीएफ पद्धति में पत्नी का अंडा शरीर से बाहर निकाला जाता है, पति के वीर्य से पुष्ट शुक्राणु अलग करलैबमें अंडे व शुक्राणु का निषेचन किया जाता है. 2-3 दिन में अंडे भ्रूण में परिवर्तित हो जाते हैं. भ्रूण वैज्ञानिक इन में से अच्छे भ्रूण का चयन कर पतली नली के माध्यम से पत्नी के गर्भ मेंछोड़ देते हैं.

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शून्य शुक्राणु होने पुरुषों में टेस्टिक्युलर बायोप्सी (टीईएसई) की जाती है. इस में जहां स्पर्म बनते हैं, वहां से एक टुकड़ा ले कर लैब में टिशू की जांच कर उस में स्पर्म की उपस्थिति का पता लगाया जाता है. अगर उस टिशू में स्पर्म उपलब्ध होते हैं तो इक्सी प्रक्रिया के माध्यम से इन स्पर्म से महिला के अंडाणुओं को फर्टिलाइज्ड कर भ्रूण बनाया जा सकता है. इस तरह से अपने ही शुक्राणुओं से पिता बन सकते हैं. अगर टिशू में स्पर्म नहीं मिलते हैं, तो डोनर स्पर्म की सहायता से भी पिता बन सकते हैं.

डा. आरिफा आदिल

गाइनोकोलौजिस्ट, इंदिरा आईवीएफ हौस्पिटल, नई दिल्ली

घर पर बनाएं रेस्टोरेंट स्टाइल चाउमीन

मौनसून के शुरू होते ही कईं ऐसी चीजें हैं, जिसे खाने का मन बच्चों का ही नही बड़ों का भी करती है. अक्सर लोग बाहर का खाना ज्यादा पसंद करते हैं, लेकिन बरसात में बाहर का खाना आपको नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन चाइनीज नूडल्स बाहर का ही ज्यादात्तर लोगों को पसंद आता है. आज हम आपको घर पर मौनसून में रेस्टोरेंट स्टाइल चाउमीन यानी नूडल्स की रेसिपी के बारे में बताएंगे.

हमें चाहिए

200 ग्राम फ्रेश नूडल्स

5 कप पानी

1 टी स्पून नमक

2 टेबल स्पून तेल

1 टी स्पून अदरक लहसुन पेस्ट

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1 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर

1/4 कप प्याज, कटा हुआ

1/2 टी स्पून सोया सौस

1 टी स्पून नमक

1/4 कप सेलेरी , टुकड़ों में कटा हुआ

1 टी स्पून सिरका

1 टी स्पून चिली सौस

1 कप हरी और लाल शिमला मिर्च

1 मशरूम

1 कप गाजर, गुच्छा

1 हरी मिर्च, टुकड़ों में कटा हुआ

1 टेबल स्पून टोमैटो सौस

1 टेबल स्पून हरा प्याज

1 टी स्पून लहसुन, टुकड़ों में कटा हुआ

1/2 टी स्पून कालीमिर्च पाउडर

बनाने का तरीका

एक पैन में पानी लें, इसमें नमक और औलिव औयल डालें और उबाल आने दें. नूडल्स डालें और पकने दें, अगर वह फ्रेश हो तो हल्का पकाएं और सूखे हो तो थोड़ा और पका लें.

इसका पानी तुरंत निकाल लें और चलते पानी में ठंडा कर लें नूडल्स पूरी तरह ठंडे हो जाएंगे. नूडल्स में एक बड़ा चम्मच तेल डालें और अगर जरूरत पड़े तो नूडल्स को छलनी में ही छोड़ दें.

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एक छोटे बाउल में गार्निशिंग के लिए सिरके में हरी मिर्च को भिगोकर एक तरफ रख दें. अब एक बड़े पैन में तेल गर्म करें और इसमें लहसुन, अदरक-लहसुन का पेस्ट और प्याज डालकर तेज आंच पर भूनें.

इसमें अब सेलेरी, मशरूम, लाल और हरी मिर्च के साथ गाजर डाले और अच्छे से भूनें. इसके बाद नमक, कालीमिर्च पाउडर, टोमैटो सौस, चिली सौस, सोया सौस और सिरका सब्जियों में डालें. अच्छे से मिक्स करें.

इसमें नूडल्स डालें और अच्छे से मिलाएं जब तक यह पूरी तरह मिक्स न हो जाएं. लाल शिमला मिर्च और सिरके वाली हरी मिर्च को इस पर डालकर गार्निश करके अपनी फैमिली और बच्चों को खिलाएं.

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