सेंसर बोर्ड को ही बैन कर देना चाहिए-अश्विन कुमार

औस्कर नौमीनेटेड फिल्म ‘‘लिटिल टेररिस्ट’’ के अलावा नेशनल अवार्ड से नवाजी जा चुकी फिल्म ‘‘इंशा अल्लाह फुटबाल’’ और ‘‘इंशा अल्लाह कश्मीर’’ सहित कई गंभीर फिल्मों के निर्देशक अश्विन कुमार अब बतौर लेखक और निर्देशक कश्मीर की पृष्ठभूमि पर फिल्म ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’ लेकर आए हैं. अश्विन कुमार का मानना है कि उनकी ये फिल्म फौज के साथ-साथ कश्मीर की असलियत पर रोशनी डालती है, जिसे सेंसर बोर्ड से पास करवाने के  लिए उन्हें नौ माह तक दौड़ना पड़ा था.

हाल ही में एक एक्सक्लूसिव बातचीत करते हुए अश्विन कुमार ने कश्मीर के वास्तविक हालात, उसकी वजहों, कश्मीरी लोगों के गायब होने सहित कई मुद्दों पर खुलकर बात की.

पतला होने का मतलब फिट होना नहीं- यास्मीन कराचीवाला

आप कश्मीर को लेकर काफी फैशिनेटेड हैं?

हर पत्रकार मुझसे यही सवाल करता है. मैं क्या कह सकता हूं. वैसे मैने अब तक के अपने करियर में कुल आठ फिल्में बनाई हैं, जिसमें से तीन फिल्में ही कश्मीर की पृष्ठभूमि में रही हैं.

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फिल्म ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’ बनाने की जरुरत क्यों महसूस हुई?

पहले तो मैं कहना चाहूंगा कि कश्मीर में जो कुछ हो रहा है, उससे हमारे देश की कौम पूरी तरह से वाकिफ नही है. ये बहुत दुःख की बात है. सच कहूं तो ये दुःख की बात नहीं बल्कि नेशनल ट्रैजिडी है. कश्मीर के लोगों के बारे में हमारे अखबारों और समाचार चैनलों द्वारा जिस तरह से गलतफहमी फैलाई जाती है, उस गलतफहमी को हटाने का एकमात्र तरीका लोगों तक सच्चाई को पहुंचाना है. उस सच्चाई को हम नहीं पहुंचा पा रहे हैं. या यूं कहें कि उस सच्चाई को दबाने का काम हो रहा है. सच को जानबूझकर दबाया जा रहा है. उससे निकलने का कोई साधन नहीं है. जब फिल्ममेकर इस सच को अपनी फिल्म के माध्यम से उजागर करने का प्रयास करते हैं, तो आप जानते ही हैं कि हमें सेंसर बोर्ड किस तरह परेशान करता है. हमारी आवाज को कुचलने की कोशिश होती है. मुझे फिल्म ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’ को पास कराने के लिए पूरे नौ माह तक संघर्ष करना पड़ा. अब एफसीएटी के आदेश के बाद ‘यूए’ प्रमाणपत्र मिलना तय हुआ है. पर अभी तक प्रमाणपत्र मेरे हाथ में नहीं आया है.

अपनी बायोपिक में टाइगर को देखना चाहता हूं- जैकी श्रौफ

ये लोग हमें जितना मना करते हैं, उतना ही हमारे अंदर सवाल उठते हैं कि आखिर कश्मीर में ऐसा क्या है जिसे सरकारी तंत्र दबाने के लिए दबाव डाल रहा है. आशंका तब पैदा होती है जब कोई मना करता है. मेरा मानना है कि जब हम नक्सलवाद पर बात कर सकते हैं. असम, अरूणाचल प्रदेश और नागालैंड को लेकर चर्चा कर सकते हैं तो फिर कश्मीर के हालात को लेकर बात क्यों नहीं कर सकते. आखिर कश्मीर में ऐसा क्या मसला है, जिस पर बात नहीं करनी चाहिए? तो ये पता करने के लिए मैं बार बार कश्मीर जाता हूं.

देखिए, क्या है कि मैं कश्मीर से काफी जुड़ा हुआ हूं. मेरे ग्रैंड फादर कश्मीर से हैं. मेरी मां आधी कश्मीरी और मैं चौथाई कश्मीरी हू. मेरा बचपन कश्मीर में ही बीता. 1989 में जब वहां आतंक फैला तो हम जा नही पाए. पूरे बीस साल बाद 2009 में मैं कश्मीर गया. वहां जाकर मैंने डाक्यूमेंटरी बनायी. मेरा मकसद ये रहा कि कश्मीर का जो सच है, वह लोगों को क्यों नही बताया जा रहा है.

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देखिए हमें क्या दिखाया जा रहा है. हमें दिखाया जाता है कि कश्मीरी बालक फौजी की तरफ पत्थर फेंकता है. हमें दिखाया जाता है कि हाथ में बंदूक लेकर कश्मीरी बालक जेहाद के नाम पर आतंकवादी बन जाते हैं. या फिर ये दिखाया जाता है कि एक 20 साल का युवक गाड़ी चलाकर पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर बम विस्फोट करता है. लेकिन कोई ये नहीं पूछना चाहता कि इसकी वजहें क्या है? आखिर बीस साल के युवक के दिमाग में क्या चल रहा था? उसे इस स्थिति में किसने और कैसे पहुंचाया? आखिर उसने सुसाइडर बम बनने का फैसला क्यों लिया? पर हमारे देश में इस पर कोई बात नहीं होती.

सिर्फ बौडी बनाना ही काफी नहीं, दूसरों को सम्मान देना सीखें-विद्युत जामवाल

देखिए, हमारे देश में हम कश्मीर के मुद्दे पर फौरन जंग के लिए तैयार हो जाते हैं. जबकि हमारे देश के किसी भी सांसद के चुनावी घोषणा पत्र में कश्मीर को लेकर कोई पौलिसी नहीं होती.

मैंने जिस युवा वर्ग के लिए, जिन युवा को लेकर ये फिल्म बनायी है, उसी नजरिए से हम इस मुद्दे पर थोड़ा सा गौर कर सकते हैं. मैं चाहता हूं कि ये युवा जिनके हाथ में इतिहास व भूगोल होता है, गूगल होता है, वह सच जानकर उस पर प्रतिक्रिया दे. देखिए जब हम पढ़ते थे, तो हमें जो बता दिया जाता था, उसे सच मानकर आगे बढ़ जाते थे. पर आज की युवा पीढ़ी ऐसी नहीं है. वह हर बात की सच्चाई की जांच करती है. आज गूगल है, हर बात की पुनः जांच की जाती है. मै चाहता हूं कि हमारी युवा पीढ़ी इस गूगल का उपयोग सकारात्मक ढंग से करें. मैं चाहता हूं कि 15 से 25 साल का युवा गूगल के जरिए सच का पता कर सकें. इसलिए मैं अपनी फिल्म के माध्यम से सच बताने का प्रयास कर रहा हूं कि देखिए ये हो रहा है. मेरे हिसाब से हमारे यहां पौलीटिकल पार्टियां क्लीनिकल बन गयी हैं. हम और आप इन्हें पांच साल के लिए चुनते हैं फिर इन्हे निकाल भी देते हैं. हम और आप कौन हैं? हमारे इमोशंस यानी कि भाव हैं. तो मैं कहना चाहता हूं कि अगर आप लोगों के भाव से चुने जाते हैं, तो राजनीति को इंसान के भावों को सहेज कर ही चलना चाहिए, इंसान के भाव को समझकर ही फैसला लेना चाहिए. पिछले 75 साल से जो राजनीति चल रही है, वह ऊपर से नीचे वाली यानी कि ब्यूरोक्रेट्स वाली राजनीति है. ये एक फाइल को एक टेबल से दूसरे टेबल तक पहुंचाने वाली राजनीति है. इस राजनीति में इंसान इनवौल्ब नही होता. ये युवा वर्ग का दोष है. ये युवा वर्ग 2014 में नरेंद्र मोदी को लेकर आया. अब 2019 में पता नही किसको लेकर आएगा.

मैं चाहता हूं कि हमारी फिल्म ऐसे ही लोगों के साथ सभी जुड़े और इन युवा लोगों को पता चले कि उनके अपने ही देश में एक छोटी सी कौम के साथ क्या हो रहा है. हम जिनके लिए जंग के मैदान पर उतरने के लिए तैयार हो जाते हैं, उन लोगों से हमारे देश का युवा वर्ग जाकर मिले और बात कर सच जाने. ये युवा वर्ग गुलमर्ग, अमरनाथ, पहलगाम न जाएं बल्कि कश्मीर के गांवों में जाए. गांव की नुक्कड़ पर जाए. वहां छोटे-छोटे शहरों व कस्बों में जाकर लोगों से मिले बात करें. तो मेरा मकसद है कि कश्मीरियों के साथ देश के अन्य हिस्से के लोगों के बीच विचार विमर्श बातचीत हो.

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आपका आरोप है कि कश्मीर के जो हालात हैं, उसका सच हमारे देश के समाचार पत्र व टीवी चैनल नहीं दिखा रहे हैं. पर इसकी वजह क्या हैं?

मैं पूरी तरह से नहीं जानता कि ऐसा क्यों हो रहा है. पर ये पुरानी परिपाटी चली आ रही है. हमारी सरकार ने कश्मीर को लेकर सभी समाचार पत्रों व टीवी चैनलों को अघोषित एडवायजरी जारी कर दी है. इस तरह की एडवायजरी देश के किसी अन्य राज्य को लेकर सरकार ने जारी नहीं की है. आप कश्मीर के किसी भी पत्रकार या किसी भी चैनल के स्ट्रिंगर से बात करेंगे तो वह यही कहेगा कि उनकी हर स्टोरी को उनका संपादक स्वीकार नहीं करता. सरकार की तरफ से कहा गया है कि कई चीजें नही छपेंगी. मसलन- फौज के खिलाफ कोई स्टोरी अखबार में छप नहीं सकती. टीवी चैनल पर प्रसारित नहीं हो सकती. फौज के खिलाफ अगर कोई सच्चाई है, फिर वह मानवाधिकार का मसला हो, या उनकी ज्यादती हो या आसफा के अंतर्गत कोई कार्यवाही हो, इन चीजों को हाईलाइट नही कर सकते, क्योंकि ये बातें हमारी फौज का मनोबल कम करती हैं. इसका मतलब तो यही हुआ कि एक तरफ से आप फौज को गोली मारने का आदेश देते हैं तो बाद में उसमें आप सुधार नहीं कर सकते.

जो लोग वहां पर मर रहे हैं, उससे उनके परिवार को नुकसान हो रहा है. इसी के साथ फौज का भी नुकसान हो रहा है. क्योंकि आपने इन्हे एक बंदूक देते हुए आदेश दे रखा है कि वह किसी को भी मार सकते हैं. इस निर्णय को आप वापस नहीं ले सकते. जबकि ये काम फौज का नहीं है. फौज का काम है जंग लड़ना. सीमाओं की सुरक्षा करना जो दुश्मन है, उससे लड़ना न कि अपने ही देशवासियों को मौत के घाट उतरना. पर सरकार के निर्णय ने अपने ही कौम को अपना दुश्मन बना दिया है. आपने अपनी ही कौम को अपना दुश्मन बनाकर फौज को इन्हे मारने का आदेश दे देते हुए कह दिया है कि आपके उपर कोई कार्यवाही नही होगी. तो इस माहौल में आप क्या चाहते हैं? क्या कश्मीरी आपको अपनाएगा. आप चाहते हैं कि ऐसे हालात में कश्मीरी आपको अपना बोलेगा. क्या वह आपके साथ जुड़ना चाहेगा? ये कभी नहीं होगा.

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कश्मीर में ये जो हालात बन गए हैं, उसके लिए ब्यूरोक्रेट्स और पोलीटीशियन में से कौन दोषी है?

-सौ प्रतिशत दोनों बराबर के दोषी हैं. मैं साफ तौर पर कहना चाहूंगा कि जो गलतफहमी फैलाई जा रही है, उसके लिए सेंसरशिप दोषी है. क्योंकि पोलीटीशियन को हम वोट करके चुनते हैं, जबकि ब्यूरोक्रेट्स देश की सेवा करते हैं पर ब्यूरोक्रेट्स ने देश के लोगों को सच्चाई नहीं बताई. ब्यूरोक्रेट्स, सरकार समाचारपत्रों व टीवी चैनलों के माध्यम से आधा सच बयां करती है. ये आधा सच होता है आतंकवाद की घटनाओं को प्रचारित करने की. पुलवामा वाली प्रोवोटिब खबर को प्रचारित करना. लेकिन कौम के बारे में कुछ नहीं बताते. आपने लोगों को ये नही बताया कि जिस युवा ने कार से सीआरपीएफ पर हमला किया, उसकी मां पर क्या बीत रही है. दादी कैसे जीती है? एक कश्मीरी परिवार कैसे जीता है, बच्चे स्कूल कैसे जाते हैं? बच्चों की परीक्षाएं कैसे होती हैं?  बिजली कट होने पर कश्मीरी बच्चों की परीक्षाएं मिस होती हैं. उनका पूरा कैरियर चैपट होता है,तो कश्मीर में पूरी वार इकोनौमी चल रही है. रोजगार नही है. आपने ट्यूरिजम को पूरी तरह से दबा रखा है. इन सब चीजों को आप पूरे देश के लोगों को नही बताते. मैंने अब तक मानवाधिकार के बारे में कोई बात ही नहीं की है. मैं तो रोजमर्रा के जीवन की बात कर रहा हूं. अगर इन सब बातों पर आप जानकारी नही देंगे तो अंततः हम सब जो कुछ पढ़ेंगे उसी पर अपनी प्रतिक्रिया देंगे. पर सरकार ने हम सभी को ‘शकी’ बना दिया है. हिंदुस्तान की कौम को ‘शकी’ बना दिया है. पत्रकार भी सिर्फ ‘पेड न्यूज’ ही छाप रहे हैं, जो कि बहुत गलत है. माफ करना मैं हिंदी के अखबार या पत्रिकाएं तो पढ़ता नहीं. इसलिए उन पर ज्यादा कुछ नही कह सकता. मगर अंग्रेजी में ‘‘द हिंदू’’ और ‘‘इंडियन एक्सप्रेस‘’ अखबार और ‘‘कारवां ’’ सहित कुछ पत्रिकाएं ही रह गयी हैं, जो कुछ सही बता रहे हैं. मीडिया पर पूरा सच न बताने का जबरदस्त दबाव है.

आपके अनुसार पोलीटीशियन और ब्यूरोक्रेट्स जो ढर्रा चला रहे हैं, इससे इन्हे क्या फायदा है?

ये सब ‘वार इकोनौमी’ का हिस्सा है. इससे अधिक मैं आपको क्या बताऊं. मैं बहुत ज्यादा बोलूंगा तो एक नया विवाद पैदा हो जाएगा, इसलिए अब मैं सिर्फ अपनी फिल्म ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’ को लेकर ही बात करुंगा. ये ‘‘वार इकोनौमी’’ चल रही है. आपको मुझसे ज्यादा पता है कि ‘‘वार इकोनौमी’’ कैसे चलती है पर आप मुझसे बुलवाना चाहते हैं लेकिन मैं नहीं बोलूंगा.

फिल्म ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’ क्या है?

हमारी फिल्म में ब्रिटेन पली-बढ़ी कश्मीर लड़की की कहानी है जो कश्मीर आकर अपने पिता की तलाश कर रही है. मैंने जानबूझकर ब्रिटेन में रही लड़की को चुना है. क्योंकि अगर मैं किसी कश्मीरी लड़की को चुनता, जो कि दिल्ली या मुंबई या बंगलोर में रह रही है, तो वह समस्या हो जाती. क्योंकि फिर उसे पता होता कि कश्मीर में क्या हो रहा है. मैं अपनी फिल्म की नायिका उसे बनाना चाहता था, जो कश्मीरी हो, मगर एकदम ‘क्लीन स्लेट’हो, उसके दिमाग में कश्मीर को लेकर कोई इमेज न हो. हमारी नायिका को नहीं पता कि उसके पिता के साथ क्या हुआ. जबकि कश्मीर में रह रहे लोगों को पता होता है कि आए दिन लोग उठाए जाते हैं, लोग गायब हो जाते हैं. ऐसे लोग ‘‘न लापता’’ हैं और ‘‘न ही गुमशुदा’’ हैं. लापता या गुमशुदा में काफी फर्क है. कश्मीर से अगर कोई युवक मुंबई में एक्टर बनने चला गया, तो एफआईआर में उसे लापता कह देते हैं. पर हमारी फिल्म ऐसे इंसान की तलाश की कहानी है, जो कि गायब है. यानी कि फौज आयी और उसे उठाकर ले गयी. उसके बाद उसका कोई अता पता नही, जबकि उसके परिवार के लोग बार-बार उसके बारे में पता करने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं.तो  हमारी फिल्म में इस कठिन मुद्दे को उकेरा गया है. हमारी फिल्म इस बारे में बात करती है कि अपने गायब पिता को लेकर एक बेटी के जेहन में क्या क्या होता है. इसके अलावा 16 साल की उम्र की लड़की एक सोलह साल के युवक के प्रेम में पड़ती है. तो इसमे एक प्रेम कहानी भी है. ये कहानी मेरे बचपन की भी है. मैं कश्मीर में ही पला बढ़ा हूं, तो जो मेरी कश्मीर की याददाश्त है, उसका भी इसमें चित्रण है. मैंने इसमें ज्यादा से ज्यादा मासूमियत दिखाते हुए कश्मीर की असलियत को उकेरा है. मेरा मानना है कि हम जितनी मासूमियत दिखाते हैं, उतनी ही असलियत उभरकर आती है.

सेंसर बोर्ड को मेरी चुनौती थी कि अगर में एक फिल्म बनाऊंगा कि एक बच्ची अपने पिता की तलाश कर रही है, तो आप बताएं इसमें आपत्तिजनक क्या है? सेंसर बोर्ड को नौ माह लग गए अपने दिमाग को खरोंच-खरोंच कर इस फिल्म पर आपत्ति बताने में. पर उन्हें कुछ नहीं मिला. जबकि उन्होंने इधर-उधर से बहुत कुछ काटने की कोशिश की.

‘‘सेंसर बोर्ड’’ को फिल्म के किन सीन्स पर आपत्ति थी?

सच ये है कि उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी. पर वह बार-बार यही कह रहे थे कि आप फौज का मनोबल गिराने की कोशिश कर रहे हैं. तो मैंने उनसे यही कहा कि पूरी दुनिया में सबसे बड़ी हमारी सेना है, जो अपनी सुरक्षा करने में सक्षम है. हमारी सेना को अपनी सुरक्षा के लिए ‘सेंसर बोर्ड’ की जरूरत नहीं है. हमारी सेना के पास गन और बारूद वगैरह सब कुछ है. आप उनकी हिफाजत करने के लिए मत निकलिए. ये सेंसर बोर्ड का काम भी नही है. सेंसर बोर्ड का काम ये देखना है कि ये फिल्म बच्चों के देखने योग्य है या नहीं? पर अफसोस कि बात ये है कि सेंसर बोर्ड को अपने काम की परवाह ही नहीं है. हालात ये हैं कि जिस चौकीदार (आज की तारीख में चौकीदार बोलना भी समस्या पैदा कर सकता है) के हाथ में आपने लाठी दे दी है, तो उसे लाठी चलानी है. चौकीदार लाठी चला रहा है, पर ये लाठी किसे लगेगी, पता नहीं. तो सेंसर बोर्ड भी अपनी तरफ से बार बार लाठी चलाने की कोशिश करता रहा कि उनके हाथ कुछ आ जाए, पर उन्हें कुछ नही मिला. हकीकत में मेरी फिल्म ने सेंसर बोर्ड को कन्फ्यूज कर दिया. सेंसर बोर्ड के लोगों की दिमागी हालत सही नही है. बहुत धीमी गति से चलते हुए फिल्म को पास करने में इन्होने 9 महीने लगा दिए. नहीं तो शायद एक दो हफ्ते में ये हमारी फिल्म को निकाल देते. आप खुद देख लीजिए, मैं पिछले 15 साल से फिल्में बना रहा हूं. 2005 में मेरी फिल्म ‘‘लिटिल टेररिस्ट’’ औस्कर के लिए नोमीनेटेड थी. उसके बाद 2011 में मेरी फिल्म ‘‘इंसाअल्लाह फुटबाल’ और 2012 में फिल्म ‘इंसाअल्लाह कश्मीर’ को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. जब मुझे दो बार राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा जा चुका है, तो उन्हें समझ में आ जाना चाहिए कि इस इंसान की कुछ तो अपनी अहमियत है. ये सिर्फ प्रोपोगंडा के लिए फिल्म नहीं बनाएगा. मगर सेंसर बोर्ड कोशिश करता रहा कि कुछ आपत्तिजनक निकाले. जबकि उन्हें तो हमें बेनीफिट औफ डाउट देना चाहिए था, वह भी नही दिया. सेंसर बोर्ड हमें पहले अपराधी मानता है, फिर हमें दौड़भाग करके साबित करना पड़ता हैं कि हम भोले हैं. इन्होंने कानून को भी धता बता रखा है.

आपको लगता है कि सेंसर बोर्ड की गाइड लाइन गलत हैं?

देखिए, सेंसर बोर्ड में जो लोग बैठे हैं, वह भी हमारी कौम से आए हुए लोग हैं. पर सरकार ने ऐसे लोगों को चुना है, जिनकी आंखें घोड़े की तरह सिर्फ सीधी दिशा में देखती है. सरकार ने ऐसे लोगों को चुना है, जो हर छोटी-छोटी बात पर भड़क जाएं. इसे ‘सेंसर बोर्ड’ नहीं, बल्कि ‘भड़कू बोर्ड’ कहा जाना चाहिए. ये सेंटीमेंटल लोग नही है, बल्कि सेंटीमेंट के रक्षक हैं. ये गौ रक्षक की तरह काम करते हैं. सेंसर बोर्ड ने मान लिया है कि इनका काम देश की रक्षा करना, फौज की रक्षा करना, औरतों के हक की रक्षा करना और फिल्म देखकर अपने तरीके से जो इंटरप्रिटेट करेंगें, उसकी रक्षा करना है.

मैं सोचता हूं कि मोहम्मद गजनवी के जमाने में भी, जब वह भारत आया, उसने मंदिरों में जो नक्काशी देखी, उसे इस्लाम के खिलाफ मानकर तोड़ने का आदेश दे दिया. तो उसमें और इनमें फर्क क्या रह गया? मेरी एक नाक या कान या एक हाथ काटकर मूर्ति बिगड़ जाएगी. मेरी राय में सेंसर बोर्ड को ही बैन कर देना चाहिए. आज के समाज में इनका कोई काम नही है. सेल्फ सेंसरशिप फिल्मकारों में होनी चाहिए, जिस तरह मीडिया में है. फिल्मकार अपनी एक कमेटी बनाएं, जो हर फिल्म की जांच करें. किसी भी फिल्म को प्रमाणित करने का काम सरकार के हाथ में होना ही नही चाहिए.

अगर सरकार ने फिल्म को प्रमाणित करने का काम अपने हाथ में ले रखा है, तो भी कैंची चलाने का हक नहीं होना चाहिए. आज की तारीख में विदेश में एक अपराधी 40-50 लोगों की हत्या करता है और उसका वीडियो वह सोशल मीडिया पर वायरल प्रसारित करता है, लोग उस वीडियो को शेयर करते हैं, रीट्वीट करते हैं. ऐसे में सेंसर बोर्ड की भूमिका कहां रह गयी? इसके बावजूद आप बच्चों की फिल्म को नौ-नौ माह लटका कर रखते हैं. आखिर सेंसर बोर्ड के लोग किस दुनिया में रहते हैं, क्या उनके अपने बच्चे यूट्यूब नहीं चलाते. मजेदार बात ये है कि सेंसर बोर्ड के सदस्य प्रतिशत में बात करते हैं कि अगर आपने इस सीन को 10 प्रतिशत कम कर दिया, तो फौज की बदनामी नहीं होगी. मगर 10 प्रतिशत बढ़ा दिया, तो सिनेमाघर में बैठा दर्शक भड़क जाएगा. यानी कि उनके दिमाग में भूसा भरा हुआ है. आपको लगता है कि दर्शक मूर्ख है? क्या दर्शकों के निजी जीवन में समस्याएं नहीं हैं? ये मानना गलत है कि फिल्म देखकर दर्शक पागल हो जाएगा. मैं तो सवाल कर रहा हूं कि किस फिल्म की वजह से संप्रदायी दंगे हुए? मैं चुनौती देता हूं, पर सेंसर बोर्ड बता नहीं सकता.

तो आप मानते हैं कि फिल्म का दर्शक पर कोई असर नहीं पड़ता?

ऐसा नही है. देखिए,फिल्म आपके भाव और इमोशन पर काम करती है. उसका आपके भाव पर बहुत असर होता है और होना भी चाहिए. अगर अच्छी फिल्म है, तो वह फिल्म दर्शकों को हिला कर रख देगी. दर्शक कई सालों तक उस फिल्म को याद रखेगा. ऐसी फिल्में क्लासिक बन जाती हैं. आज भी फिल्म ‘पांथेर पंचाली’ की बात होती है. आज भी लोग मेरी फिल्म ‘लिटिल टेररिस्ट’ की बातें करते हैं. स्कूलों में ये फिल्म दिखायी जा रही है. तो फिल्म का प्रभाव होता है, इसमें कोई दो राय नहीं है. मुझे इस बात को जानने का इंतजार है कि मैं अपनी इस फिल्म ‘नो फादर्स इन कश्मीर’ के माध्यम से कश्मीर को लेकर नयी रोशनी लोगों तक पहुंचा पाया हूं या नहीं. क्योंकि ‘नो फादर्स इन कश्मीर’ एक व्यावसायिक फिल्म नहीं है. इसकी थिएटरों में उपस्थिति काफी सीमित होगी. फिर मैं इसे नेटफिलिक्स या अमेजन जैसे डिजिटल प्लेटफार्म या सेटेलाइट टीवी चैनल पर लाना चाहूंगा. इसीलिए तो मैंने सेंसर बोर्ड से इतनी लड़ाई लड़ी. अन्यथा सेंसर बोर्ड तो कुछ सीन कट करके ‘ए’ सर्टीफिकेट देने को तैयार था. पर ‘ए’ सर्टीफिकेट मिलने के बाद हम इसे टीवी या डिजिटल प्लेटफार्म या सेटेलाइट चैनल पर नही ला सकते थे, तो हमने ‘यू ए सर्टीफिकेट’ के लिए लड़ाई लड़ी. इसके लिए हमें ट्ब्यिूनल तक जाना पड़ा. मुझे अपनी फिल्म को हर जगह चलाना है. इस फिल्म का प्रभाव तभी होगा, जब ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देखेंगे.

फिल्म ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर में कश्मीर के सच को पेश करने के लिए आपने किस तरह की रिसर्च की?

-मैंने रिसर्च करने के चक्कर में दस साल लगा दिए. दो डौक्यूमेंट्री बना डालीं. पूरे 300 घंटे की शूटिंग की. मैं दावा करता हूं कि मुझसे अधिक कभी किसी फिल्मकार ने इतनी रिसर्च नहीं की होगी.

जब आप डौक्यूमेंट्री बनाने या रिसर्च के लिए कश्मीर के लोगों से मिल रहे थे, तो कश्मीरियों से किस तरह की प्रतिक्रिया मिल रही थी?

बहुत अच्छा रिस्पांस मिला. मुझे ये प्यार तब मिला, जबकि वह भारतीयों को अपना नहीं मानते. वह भारतीयों को भी विदेशी मानते हैं. इसके बावजूद मैं तमाम कश्मीरियों के घर में जाकर रहा. उन्होंने मुझे चाय पिलायी, खाना खिलाया. अपने तमाम रिश्तेदारों से मिलवाया. कई लोगों ने मुझसे बात की. लंबे-लंबे इंटरव्यू दिए. यूं तो मैं पूरा भारत घूम चुका हूं, पर जिस गर्मजोशी के साथ कश्मीर में मेरा स्वागत हुआ, उसका मैं कायल हो गया हूं. वह लोग बहुत विनम्र और मेहमान नवाजी में माहिर हैं.

आप कश्मीर के किसी घर के अंदर घुस नहीं सकते हैं. पर मैं उनके घरों के अंदर गया. लोगों ने मुझे निकलने नही दिया. उनके चाचा-मामा सब आ गए. कब पूरा दिन बीत गया, हमें पता नही चला. वास्तव में उन लोगों ने अब तक सिर्फ फौज को देखा है. तो वह हमारे बारे में भी ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते हैं. कश्मीरीयों के जेहन में एक हिंदुस्तानी महज फौजी है, बंदूक वाला फौजी है, जो कभी भी किसी को भी उठा लेता है. तो जब आप या मैं उनके गांव में जाते हैं, तो उनके लिए हम अजनबी होते है. ये हालात महज इसलिए हैं क्योंकि हमने यहां से वहां लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध सा लगा रखा है.

मैंने कश्मीर में घूमते हुए पुलिस सुरक्षा नही ली, मुझे कोई तकलीफ नही हुई. मैं अपनी टैक्सी में गया, जिसे एक कश्मीरी ड्रायवर चला रहा था. मेरे साथ एक लड़का था, जो मुझे पता बता रहा था. मैंने उससे कहा कि मुझे कश्मीर का हर गांव, हर कस्बा घूमना है. कश्मीर की हर असलियत को समझना है. जो भी समस्याएं हैं, उस पर लोगों से बात करनी हैं. मैं चप्पे चप्पे घूमा, तमाम इंटरव्यू किए.

फौज और कश्मीर को लेकर एक फिल्म आइडेंटीटी कार्ड आयी थी. अभी हाल में गुमशुदा पिता की तलाश को लेकर फिल्म ‘‘हामिद’’ आयी है. इनसे आपकी फिल्म कितनी अलग है?

मैं अपनी व्यस्तताओं के चलते दोनों फिल्में नहीं देख पाया. इसलिए मुझे नही पता कि हमारी फिल्म कितनी अलग है? क्या फर्क है? अब फिल्म देखकर आप अंतर बता दीजिएगा. लेकिन मैंने ईमानदारी से किए गए रिसर्च पर एक ईमानदार फिल्म बनायी है. हां! एक फर्क ये हो सकता हैं कि मैंने मेरी फिल्म टीनएजर फिल्म है. मैं अपनी फिल्म के साथ टीनएजर और युवा पीढ़ी को जोड़ना चाहता हूं. मेरी पिछली फिल्म ‘इंशा अल्लाह फुटबाल’ में 18 साल का फुटबालर नायक था. अब ‘नो फादर्स इन कश्मीर’में 16 साल की लड़की नायिका है. कुछ बच्चे भी हैं. अब उसी उम्र के लोग ही ज्यादा वोट डालने जा रहे हैं, जिस उम्र के लोगों की, मैंने इस फिल्म में बात की है. मेरी फिल्म युवा पीढ़ी के लिए ही बनी है.

जब देना हो गर्लफ्रेंड को सरप्राइज, फौलो करें ये 5 टिप्स

एक रिश्ते में अपने साथी से प्यार करना काफी नहीं होता है जब तक आप अपने साथी को इसका एहसास नहीं कराते हैं. रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए प्यार, भरोसा, और सरप्राइज देना बहुत जरूरी होता है. अगर आप अपनी गर्लफ्रेंड को हमेशा सरप्राइज देते हैं तो इससे आपके रिश्ते में नयापन और गहराई बनी रहती है. आप अपनी गर्लफ्रेंड को कभी भी सरप्राइज दे सकते हैं और सरप्राइज का मतलब बस किसी उपहार से ही नहीं है. बहुत से चीजों से आप उन्हें सरप्राइज दे सकते हैं. तो आइए आपको अपनी गर्लफ्रेंड को किन तरीकों से सरप्राइज देना चाहिए बताते हैं.

  1. लव लेटर दें:

ई-मेल और मैसेज करने के बजाय हाथ से लिखे लेटर अधिक रोमांटिक होते हैं. लव लेटर हमेशा से रोमांटिक और विचारशील होते हैं. अगर आप अपने दिल की बात बताने में घबराते हैं या संकोच करते हैं तो उसे लेटर के जरिए बताएं. आपकी गर्लफ्रेंड को यह बात बहुत आकर्षित करेगी. अक्सर ऐसा होता है कि हम कुछ बात कह नहीं पाते. इसलिए उन बातों को लिखकर बताना ज्यादा आसान होता है और गर्लफ्रेंड को स्पेशल भी महसूस होता है.

एक अच्छे बौयफ्रेंड में होती हैं ये 5 खूबियां

  1. बाहर घुमाने लें जाएं:

हमेशा कोशिश करें कि आप अपनी गर्लफ्रेंड के लिए कुछ ऐसा करें जिससे उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाएं. उदाहरण के लिए, आप अपनी गर्लफ्रेंड को शौपिंग के लिए ले जा सकते हैं. अगर उसे शौपिंग करना कुछ खास पसंद ना हो तो आप उसे किसी नाटक या कौन्सर्ट में ले जा सकते हैं जो उसे पसंद हो. आप उसे लौन्ग ड्राइव पर भी ले सकते हैं, इससे आपको एक-दूसरे के लिए समय भी मिल जाता है और अपनी बात एक-दूसरे से शेयर भी कर पाएंगें.

रिलेशनशिप सुधारने में ये 5 टिप्स करेंगे आपकी मदद

  1. एक फोटो या मेमोरी एलबम बनाएं:

एक ऐसी एलबम बनाएं जिसमें आप दोनों के खास पल मौजूद हो, जिसे देखकर आपकी गर्लफेंड इमोशनल हो जाए. सबसे आसान तरीका यह है कि आप उसे एक साधारण फोटो एलबम दें जिसमें आप दोनों के साथ बिताए हुए पल कैद हों. इसके अलावा आप मेमोरी एल्बम में फोटो के साथ-साथ आपके विचारों और भावनाओं के बारे में भी लिख सकते हैं.

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  1. कुछ अच्छा बनाकर खिलाएं:

अपनी गर्लफ्रेंड के लिए कुछ अच्छा सा बनाकर खिलाना बहुत रोमांटिक होता है, खासकर तब जब आपको बहुत अच्छी कुकिंग आती हो. ऐसा जरूरी नहीं है कि कुछ ऐसा बनाकर खिलाएं जिसमें बहुत मेहनत लगे. अगर प्यार से आप अपनी गर्लफ्रेंड को कुछ सिंपल सा भी बनाकर खिलाएंगें तो वह उसके लिए काफी खास होगा क्योंकि आपने प्यार से उसके लिए ऐसा किया है. अगर आपको उसके पसंदीदा खाने के बारे में पता है तो आप वह भी बना सकते हैं.

  1. उन्हें कौम्प्लीमेंट दें:

किसी भी इंसान को अपनी तारीफ सुनना बहुत पसंद होता है और लड़कियों को तो अपनी तारीफ सुनने में बहुत आनंद आता है. इसलिए अगर आप अपनी गर्लफ्रेंड की तारीफ करेंगे तो उसे अच्छा लगेगा और आपके रिश्ते तो और गहरा करने में आपकी मदद करेगा.

प्रेग्नेंसी में नहीं आती है नींद? आजमाएं तुरंत असर करने वाली ये 6 आसान टिप्स

प्रेग्नेंसी का वक्त महिलाओं के लिए बेहद खास होता है. इस दौरान महिलाओं को अधिक देखभाल की जरूरत होती है. इसके अलावा उन्हें अच्छी डाइट की जरूरत होती है ताकि जच्चा और बच्चा दोनों की सेहत पर किसी तरह का बुरा असर ना पड़े. इन्ही सारी जरूरी चीजों में अच्छी और पूरी नींद भी शामिल है.

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं के शरीर में ऐसे कई बदलाव होते हैं जो उनकी सेहत पर असर डालते हैं. इस दौरान महिलाओं के हार्मोन्स में भी बहुत से बदलाव होते हैं जो उनकी दिनचर्या पर बुरा असर डालते हैं. इन बदलावों का नतीजा है कि कई बार गर्भवती महिलाओं को घबराहट महसूस होती है. ऐसे में उन्हें नींद नहीं आती, जिसका सीधा असर उनके बच्चे पर भी होता है.

ऐसे में हम आपको कुछ टिप्स बताने वाले हैं, जिसे फौलो कर के प्रेग्नेंट महिलाएं सुकून की नींद ले सकेंगी.

  • सोने से पहले हल्का म्यूजिक सुने. इससे मन शांत रहता है और अच्छी नींद आती है.
  • प्रेग्नेंसी के तीसरे महीने से कमर के बल ज्यादा देर तक ना सोएं. थोड़ी थोड़ी देर में करवट बदलते रहें. कोशिश करें कि अधिक समय बाईं करवट सोएं. इस तरह से सोने से ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहता है.
  • दिन भर हल्का ही सही, पर कुछ ना कुछ खाते रहें. खाली पेट रहने से जी मिचलता है.
  • सोने से पहले गुनगुने पानी से नहाएं. ऐसा करने से शरीर की थकान दूर होती है और आपको अच्छी नींद आएगी.
  • रात में हल्के खाने का सेवन करें. एसिडिटी और अपच की समस्या से बचने के लिए मसालेदार और तली हुई चीजों का सेवन ना करें.
  • हेल्दी रहने के लिए हल्के एक्सरसाइजेज करते रहें. इससे आपके पैर दर्द और ऐंठन कम होगी.

अगर आप भी हैं सिंगल मदर तो काम आ सकते हैं ये बेबी केयर टिप्स

बिना विवाह के मां बनने, मां बनने से पहले पति से अलगाव होने या बच्चे के पैदा होने के समय मां की मृत्यु के कारण बच्चे को अकेले पालने की आवश्यकता हो जाती है. मानसिक, आर्थिक समस्याओं के साथ छोटे बच्चे को अकेले पालना कठिन काम है.

पेश हैं, सिंगल पेरैंटिंग के लिए कुछ सुझाव:

गोद में उठाना: आप का नवजात बहुत नाजुक होता है, लेकिन उसे छूने या गोद में उठाने से घबराएं नहीं. उस की गरदन की पेशियां कमजोर होती हैं, इसलिए उसे गोद में उठाते समय उस की गरदन को सहारा दें. अपने कंधे पर उस का सिर टिकाएं और दूसरे हाथ से गोद में पकड़ें.

दूध पिलाना: बच्चे को दूध पिलाने से जहां एक ओर उस का विकास होता है, वहीं दूसरी ओर आप के और बच्चे के बीच का रिश्ता मजबूत होता चला जाता है. अपने दोस्तों से बात करें, जिन्हें नर्सिंग का अच्छा अनुभव हो. अगर आप सिंगल फादर हैं तो पीडिएट्रिशियन से सलाह ले सकते हैं और लैक्टेशन के विकल्पों के बारे में जान सकते हैं.

बच्चे की मालिश: मालिश करने से बच्चे को आराम मिलता है, उसे अच्छी नींद आती है, वह शांत रहता है. रोजाना अपने हाथ से बच्चे की मालिश करने से आप का बच्चे के साथ रिश्ता भी मजबूत होता है. उसे बिस्तर पर कभी अकेला न छोड़ें ताकि वह गिरे नहीं.

नहलाना: बच्चे को नहलाना नई मां के लिए बहुत मुश्किल काम है. उसे नहलाने का तरीका सीखें. नहलाना शुरू करने से पहले सभी जरूरी चीजें तैयार कर लें ताकि बच्चे को अकेला छोड़ यहां वहां न भागना पड़े. बच्चे के शरीर के नाजुक अंगों को हलके हाथों से साफ करें.

कपड़े सही तरीके से पहनाएं: 6 महीने की उम्र तक बच्चे का शरीर अपने तापमान को नियंत्रित नहीं कर सकता, इसलिए कपड़े पहनाते समय सावधानी बरतें. बच्चे को उतने ही कपड़े पहनाने चाहिए जितनी जरूरत हो. ज्यादा कपड़े पहनाने से उसे ज्यादा पसीना आएगा और उस का शरीर ठंडा पड़ सकता है.

बच्चे के स्वास्थ्य के लिए सुझाव…

बच्चे के स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. इस के लिए इन बातों पर गौर करें:

1 जन्म के पहले 3 से 5 दिनों के अंदर पीडिएट्रिशियन से मिलें. इस के बाद जब वह 2 सप्ताह का हो जाए तो उसे एक बार फिर से डाक्टर के पास ले जाएं.

2 जन्म के पहले सप्ताह में बच्चे का वजन 5 से 10 फीसदी कम हो जाता है, पर 2 सप्ताह की उम्र तक वजन फिर से बढ़ कर उतना ही हो जाता है.

3 ध्यान रखें कि बच्चा बहुत लंबे समय तक एक ही स्थिति में न लेटा रहे. उस की स्थिति बदलते रहें अन्यथा उस की पीठ और सिर चपटी शेप ले सकते हैं.

4 बच्चे को धुंए के संपर्क में न आने दें.

जब तक बच्चे का इम्यून सिस्टम मजबूत नहीं हो जाता (कम से कम 2-3 महीने की उम्र तक), उसे भीड़भाड़ भरे स्थानों में न ले कर जाएं. डे केयर, मौल, स्पोर्ट्स इवैंट आदि में न ले कर जाएं. बच्चे को ऐसे दूसरे बच्चे के संपर्क में न आने दें जो किसी संक्रमण से ग्रस्त हों.

बीमारी के लक्षणों को पहचानें. अगर बच्चे का तापमान 100.4 से अधिक है, तो तुरंत उसे डाक्टर के पास ले जाएं. कम से 2-3 महीने तक इस बात का खास खयाल रखें. इस के अलावा भूख में कमी, उलटी, चिड़चिड़ापन, सुस्ती जैसे लक्षण दिखाई दें तो भी पीडिएट्रिशियन से बात करें.

बच्चे को दिए जाने वाले सभी टीकों/वैक्सीन का रिकौर्ड रखें.

खुद की देखभाल के लिए सुझाव….

1 अगर आप गुस्से में या उदास हैं, तो अच्छा होगा अपने थेरैपिस्ट से बात करें. उसे अपनी हताशा, अवसाद या चिंता के बारे में खुल कर बताएं. अपनी दिनचर्या में शारीरिक व्यायाम शामिल करें, संतुलित आहार और पर्याप्त नींद लें. अकेले या दोस्तों के साथ मिल कर कुछ ऐक्टिविटीज करें.

2 सप्ताह में कम से कम कुछ देर के लिए अपने लिए समय निकालें. इस समय आप बच्चे को उस के केयर टेकर के पास छोड़ सकती हैं.

3 अपने मन को शांत रखें: कई बार ऐसा महसूस होता है कि जीवनसाथी से अलग होना आप का अपना फैसला नहीं था या आप को अतीत में लिए गए इस फैसले पर अफसोस होता है, जिसे अब बदला नहीं जा सकता. इन सब चीजों को भूल कर दिमाग को शांत रखें. अपने बच्चे के साथ समय बिताएं.

उन दोस्तों से मिलेंजुलें जो आप का मनोबल बढ़ाते हों. सकारात्मक सोच वाले दोस्त आप को मजबूती से स्थिति का सामना करने और जीवन को अच्छी तरह से जीने में मदद कर सकते हैं.

अपने लिए समय निकालें: जब आप का बच्चा सो रहा हो, स्कूल गया हो तब अपने लिए कुछ समय निकालें. इस समय आप अपने दोस्त के साथ बात कर सकती हैं या अपनी मनपसंद किताब पढ़ सकती हैं. अपने परिवारजन या दोस्त के पास बच्चे को कुछ देर के लिए छोड़ कर भी आप अपने लिए समय निकाल सकती हैं. इस से आप खुश रहेंगी. आप में ऐनर्जी बनी रहेगी. साथ ही अपने बच्चे को भी खुश रख सकेंगी.

जो आप के बस में नहीं, उसे भूल जाएं: आप का बच्चों को पालने का तरीका दूसरों से अलग हो सकता है. सभी स्थितियां हर समय एकजैसी नहीं रहतीं. हर चीज का बोझ अपने ऊपर न लें. हर कोई अपनी समस्याओं का सामना अपने तरीके से करता है. 2 लोगों का जीवन कभी एक जैसा नहीं हो सकता.

फिटनैस पर ध्यान दें: फिर से बच्चा बन जाएं. गाएं, डांस करें, रस्सी कूदें. इस तरह की चीजों से जहां एक ओर आप की फिटनैस बनी रहेगी, वहीं आप खुश भी महसूस करेंगी.

आराम करें: नींद पूरी न लेने से कई समस्याएं हो सकती हैं. सोने का समय तय करें और इस समय बिना किसी तनाव के अपने बच्चे के साथ सोने चली जाएं.

सकारात्मक रहें: अगर आप मुश्किल दौर से गुजर रही हैं, तो बच्चे के साथ ईमानदार रहें, उसे बताती रहें कि सब ठीक हो जाएगा. रोज की समस्याओं को हल करने के साथ चेहरे पर मुसकान बनाए रखें. अपने बच्चों के साथ नया सफल परिवार बनाने की भरपूर कोशिश करें.

मजबूत बनी रहें: जीवनसाथी से अलग होने के बाद आप अकसर भावनात्मक दबाव महसूस करती हैं. यह असामान्य नहीं है. अपने परिवार या दोस्त से मदद मांगने से न हिचकिचाएं. ऐसे समय में खुद पर ज्यादा बोझ महसूस करना स्वाभाविक है और विचारों में स्थिरता आने में समय लगता है.

अपने जीवन को व्यवस्थित बनाएं: हालांकि अब आप के जीवन में एक व्यक्ति कम है, लेकिन आप को अभी भी काम करना है, बल्कि सभी काम अकेले करने हैं. इस में घर, बच्चों के साथ अपनी देखभाल भी शामिल है. अगर आप के बच्चे थोड़े बड़े हो चुके हैं तो वे

घर के कामों में हाथ बंटा सकते हैं. इस से न केवल आप पर बोझ थोड़ा कम होगा, बल्कि

उन में भी जिम्मेदारी की भावना आएगी. इस तरह से आप बच्चों में सहानुभूति की भावना भी पैदा कर सकेंगी.

-डा. रीनू जैन (सीनियर कंसलटैंट, ओब्स्टेट्रिक्स ऐंड गायनोकोलौजी, जेपी हौस्पिटल, नोएडा)   

लजीज चटनी और सूप बनाने के टिप्स

अगर आप चटनी बना रहे हैं तो कौन सी चटनी में क्या डालना है, जिससे चटनी का स्वाद दोगुना हो जाये. आइये जानते हैं..

  1. अगर आप धनिये की चटनी बना रही हैं तो, उसमें दही या नीबू का रस और मूंगफली के दाने या काजू का पेस्ट जरूर डालें इससे चटनी ज्यादा अच्छी बनेगी.

2. अगर आप पुदीने की चटनी बना रही हैं तो, उसमें आमचूर पाउडर या कच्ची कैरी के टुकड़े और गुड़ जरूर डालें. इससे पुदीने की चटनी का स्वाद लाजवाब आयेगा.

3. अगर आप टमाटर की चटनी बना रही हैं तो, उसमे लहसुन की कलियां जरूर डालें इससे स्वाद बेहतरीन आयेगा.

4. अगर आप प्याज की चटनी बना रही हैं तो, थोड़ा हरा प्याज की पत्तियां भी डालें तो स्वाद अच्छा आयेगा.

5. फ्रेश नारियल की चटनी बना रही हैं तो, उसमें भुनी चने की दाल और मूंगफली और करी पत्ता डालें और लहसुन भी डालें स्वाद अलग ही आयेगा.

6. अगर आप चटनी सूखी बना रही हैं तो, सूखा नारियल कददु कसा किया हुआ और मूंगफली के दाने, जीरा पाउडर लहसुन और नमक लालमिर्ची, खड़ा धनिया अवश्य डालें. इससे बहुत ही बढ़िया स्वाद आता है.

7. दही की चटनी बना रही हैं तो, पिसा हुआ मूंगफली का चूरा डालें काली मिर्च नमक चाट मसाला डालकर मूंगफली की चटनी बना सकती हैं.

सूप बनाने जा रही हैं तो कुछ टिप्स अपनाकर उसे आप गाढ़ा बना सकती हैं:

सूप का स्वाद बढ़ाने के लिए उसमें काली मिर्च, काला नमक, हींग और ऊपर से फ्रेश क्रीम और टोस्ट के टुकडे डाल सकते हैं:

1. कार्नफ्लोर पानी मिलाकर डाल सकते हैं.

2. चावल का माड़ निकालकर डाल सकते हैं. इससे भी गाढ़ापन आता है.

3. आलू को उबालकर बिल्कुल बारीक पीसकर डाल सकते हैं.

4. मैदा को इतना भूनें की वह रंग न बदले. भूनते समय जरा सा सूप में डाल सकते हैं.

5. आटा भूनकर और पानी मिलाकर डाल सकते हैं.

6. सूप बनने के बाद क्रीम मिला सकते हैं इससे भी गाढ़ापन आयेगा.

7. अरारोट पानी में घोल कर मिला सकते हैं इससे भी सूप में गाढ़ापन आयेगा.

8. पत्तागोभी का बिल्कुल बारीक पेस्ट बनाकर डाल सकते हैं.

9. खसखस का पेस्ट भी सूप में मिला सकते हैं इससे गाढ़ापन आता है.

सिनेमा में न्यूडिटी पर रितिका ने क्या कहा?

बाल कलाकार के रूप में अपने कैरियर को शुरू करने वाली रितिका श्रोत्री महाराष्ट्र के पुणे की हैं. बचपन से ही उन्हें अभिनय की इच्छा थी और इसमें साथ दिया उनके माता-पिता ने. 6 साल की उम्र से उन्होंने मराठी नाटकों में काम करना शुरू कर दिया था. इसके अलावा उन्होंने मराठी धारावाहिक और फिल्मों में काम किया है. अभिनय के साथ-साथ वो अपनी पढ़ाई भी कर रही हैं. उन्हें हर नया काम प्रेरित करता है और हर नयी भूमिका में वह अपना सौ प्रतिशत वचनबद्धता रखती हैं. यही वजह है कि उन्हें कई बड़े कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला हैस, इनमें मृणाल कुलकर्णी और माधुरी दीक्षित भी हैं. रितिका अपनी नई फिल्म ‘हृदयी वसंत फुलताना’ क साथ बड़े पर्दे पर आने वाली हैं. जिसके प्रमोशन को लेकर वो काफी उत्सुक हैं. फिल्म में वो गांव की एक एक मौडर्न लड़की की भूमिका में नजर आएंगी. हमने उनसे बात चीत की. पेश है हमारी बातचीत का कुछ अंश.

प्र. इस फिल्म में आपकी भूमिका क्या है?

इस फिल्म में मेरा नाम मीनाक्षी है, जो एक गांव की लड़की है. वह गांव की तरह बैकवार्ड विचारों की नहीं है. शहर की लड़की की तरह मौडर्न विचार रखती है. असल में आज के यूथ सोशल मीडिया पर अधिक जागरूक है, कई बार वे इसका गलत इस्तेमाल कर लेते है, जिसका प्रभाव उनपर पड़ता है. ये एक मनोरंजक फिल्म है. इस फिल्म के जरिये आज की युवाओं को संदेश देने की कोशिश की गयी है.

प्र. ये भूमिका आपके पिछले किरदार से कितना अलग है?

अब तक मैंने सिर्फ ग्लैमरस भूमिका निभाई थी, जिसमें इंग्लिश में बात करना, वैसे पोशाक पहनना था. इसमें मैंने टिपिकल गांव की लड़की की भूमिका नहीं निभाई, इसलिए ये चरित्र मेरे लिए चटपटा और चुनौतीपूर्ण रही है. असल में आज के यूथ किसी संदेश को सुनना नहीं चाहता. ऐसे में इसे मजेदार ढंग से दिखाने की कोशिश की गयी है, ताकि दर्शक इसे देखने आएं.

प्र. आपको अभिनय क्षेत्र में आने की प्रेरणा कहां से मिली?

मुझे बचपन से अभिनय का शौक था. मैंने 6 साल की उम्र से मराठी नाटकों में काम करना शुरू कर दिया था. इसके बाद मराठी धारावाहिक में काम करने का मौका मिला. उससे मेरी पहचान बनी और फिल्मों में काम मिलने लगा.

प्र. पहली फिल्म का मिलना कैसे संभव हुआ?

मेरी पहली मराठी फिल्म ‘स्लैम बुक’ थी, जिसमें मैंने मुख्य भूमिका निभाई थी. उस समय मैं मराठी धारावाहिक में काम कर रही थी. जिसमें मेरे अभिनय को फिल्म के निर्देशक ऋतुराज ढालगरे ने देखा और उन्हें मेरा काम बहुत पसंद आया. कई बार औडिशन हुए और अंत में मैं चुनी गयी और फिल्म सफल रही. इसके बाद मुझे फिल्म ‘बकेट लिस्ट’ भी मिली जिसमें मैंने माधुरी दीक्षित की बेटी की भूमिका निभाई थी. मुझे हर तरह की भूमिका निभाना पसंद है.

प्र. काम के साथ-साथ पढ़ाई को कैसे पूरा करती हैं?

मुझे अभिनय के अलावा स्क्रिप्ट राइटिंग और निर्देशक बनना पसंद है और उसी तरह से मैंने विषय भी लिए है. मैं एग्जाम से पहले पढ़ती हूं. अभी मैं कौलेज में पढ़ रही हूं. मैं पुणे में रहती हूं और शूटिंग के समय मुंबई आती हूं.

प्र. अब तक का सबसे बेस्ट कोम्प्लिमेट्स क्या मिला?

मैंने पुणे में एक नाटक ‘द लाइट कैचर’ में 9 अलग-अलग भूमिका निभाई है जिसे सभी ने पसंद किया है. ये नाटक कई फेस्टिवल में अवार्ड भी जीत चुकी है. इसमें मेरे काम को सभी ने सराहा है. इस नाटक का राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मंचन हो रहा है.

प्र. क्या कभी कास्टिंग काउच का सामना करना पड़ा?

नहीं, मुझे हमेशा काम का अच्छा माहौल मिला है. छोटी-छोटी कुछ घटनाओं के अलावा मुझे कुछ समस्या नहीं आई. मैं भी क्या सही या क्या गलत है, उसकी परख करना जानती हूं.

प्र. समय मिलने पर क्या करना पसंद करती हैं?

समय मिलने पर लिखती हूं.मैं एक डांसर भी हूं. मैंने भरतनाट्यम, लैटिन और सालसा सिखा है.

प्र. आपके यहां तक पहुंचने में माता-पिता का कितना सहयोग रहा है?

उन्होंने हमेशा ही सहयोग दिया है. जब मैं 6 साल की थी ,तबसे अभिनय कर रही हूं. उन्होंने हमेशा मेरे काम की सराहना की है और प्रोत्साहन दिया है. मुझे मुंबई छोड़ने हमेशा मेरे पिता आते थे और मेरी मां मेरे साथ शूटिंग तक रहती है. बड़ा भाई निहार भी मेरे काम से बहुत खुश है.

प्र. कितना संघर्ष रहा है?

मुझे धारावाहिक में काम आसानी से मिल गया था. इससे मुझे मराठी अच्छी फिल्में मिली और एक पहचान बनी. मैं सिर्फ मराठी ही नहीं,  अलग-अलग भाषा की फिल्मों, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय लेवल पर करना चाहती हूं. इसमें संघर्ष कई प्रकार के है, पर मैं इसे एन्जौय करती हूं.

प्र. फिल्म में अन्तरंग दृश्यों को करने में कितनी सहज हैं?

मुझे न्यूडिटी बिल्कुल पसंद नहीं. कभी ‘वल्गर’ दिखना नहीं चाहती. मुझे अच्छी और मनोरंजक फिल्म करने की इच्छा है, लेकिन अगर स्क्रिप्ट की डिमांड है, तो रोमांटिक दृश्य करने में कोई असहजता नहीं.

प्र. आप कितनी फैशनेबल और फूडी हैं?

फैशन मेरे लिए आरामदायक कपड़ों से है. मुझे अधिक कपड़े खरीदने का शौक नहीं. मेरी एक स्टाइलिस्ट है, उसके अनुसार कपड़े पहनती हूं.

मैं बहुत फूडी हूं. नौनवेज बहुत पसंद है. मेरे पिता और भाई दोनों ही बहुत अच्छा नौनवेज बनाते हैं.

एक अच्छे बौयफ्रेंड में होती हैं ये 5 खूबियां

आज के समय में एक भरोसेमंद पार्टनर का साथ होने का मतलब है कि आप बहुत भाग्यशाली हैं क्योंकि बहुत मुश्किल से ऐसे साथी मिलता है जिस पर आप भरोसा कर सकते हैं. अगर आपको भरोसेमंद बौयफ्रेंड मिला है तो कोशिश करें कि आप उसके भरोसे को बनाकर रखें. ताकि वह हमेशा आपके साथ रहे. एक सच्चे साथी या बौयफ्रेंड का मतलब है कि वह आपका ख्याल रखे, छोटी-छोटी बातों पर आपके साथ खड़ा रहे और आपसे प्यार करें. अगर आपका साथी ऐसा है तो आपकी पूरी जिंदगी बहुत खुशनुमा रहेगी. आइए जानते हैं कि किसी स्पेशल पार्टनर के होने से कैसे आपकी जिंदगी संवर जाती है.

  1. जो आपका ख्याल रखें:

अगर आपका बौयफ्रेंड अच्छा और भरोसेमंद हो तो वह आपके बारे में जरूर सोचेगा और आपका ख्याल भी रखेगा. जब आप प्यार में होते हैं तो आपका साथी आपको स्पेशल फील कराता है. वह आपकी भावनाओं और जज्बातों का ख्याल रखता है. आपके माता-पिता के अलावा आपका पार्टनर ही आपको यह एहसास कराता है कि आप सबसे अलग हैं. पार्टनर के साथ होने से आपको लगता है कि आपके पास कोई है जिसके होते आपको किसी बात के लिए चिंता करने कि जरूरत नहीं होती है.

जानिए कम हाइट के लड़कों में होती हैं कौन-कौन सी 10 खूबियां

  1. वह आपको हमेशा कुछ खास महसूस कराता है:

एक अच्छा साथी आपको हमेशा खुश रखने या अच्छा महसूस कराने की कोशिश करता है. हर छोटे-बड़ें मौकों पर आपको सरप्राइज देकर आपको खुश करता है. चाहें आप दूर हो या पास हमेशा कोशिश करता है कि आपके लिए कुछ ऐसा करे जिससे आपको कुछ खास महसूस हो और आपके चेहरे पर मुस्कुराहत आ जाए.

रिलेशनशिप सुधारने में ये 5 टिप्स करेंगे आपकी मदद

  1. आपके हर दुख में आपके साथ रहे:

एक सच्चा साथी हमेशा कोशिश करता है कि वह आपके हर तनाव, दुख और चिंताओं को दूर कर सके और आपको बहुत सारी खुशियां दे सकें. आपको दुख में भी खुश रखने की कोशिश करता है जिससे आप अपने दुख को भूल जाएं चाहे वह आपको कोई जोक सुनाए या आपको गले लगा ले. जब भी आपको कोई परेशानी हो तो हमेशा आपका सहारा बनकर आपके साथ खड़ा रहता है. उसके साथ आप हर दर्द या चिंता भूल जाते हैं.

रिलेशनशिप: गंदी बात नहीं औरत का और्गेज्म

  1. आपको हमेशा कुछ विशेष पल देगा:

एक अच्छा साथी आपको हमेशा कुछ ऐसे पल देने कि कोशिश करता है जो आपके लिए यादगार हो. हमेशा आपको अच्छी-अच्छी जगहों पर ले जाकर आपको कुछ खास महसूस कराता है.

  1. साथ में भविष्य के बारे में सोचेगा:

एक अच्छा और भरोसेमंद साथी हमेशा आपके साथ आने वाले भविष्य के बारे में योजनाएं बनाएगा. हर उस चीज से लड़ेगा जो उसे आपसे अलग करने कि कोशिश करती है. आपके साथ-साथ आपके माता-पिता के बारे में भी सोचेगा.

पोलेंता उपमा विद मशरूम

सामग्री पोलेंता उपमा की

8-10 हरे प्याज कटे हुए

1 बड़ा चम्मच तेल

1 छोटा चम्मच अदरक बारीक कटी हुई

1 छोटा चम्मच हरी मिर्च बारीक कटी हुई

1/2 छोटा चम्मच जीरा

1/2 छोटा चम्मच राई

5-6 करीपत्ते

1 कप पोलेंता

1/2 छोटा चम्मच हलदी

1 कप वैजिटेबल स्टॉक

11/2 कप कोकोनट मिल्क

नमक व कालीमिर्च स्वादानुसार

थोड़ी सी हरीपीली शिमलामिर्च गार्निश के लिए

सामग्री मशरूम मिश्रण की

1 बड़ा चम्मच तेल

5-6 हरे प्याज कटे

4-5 करीपत्ते

1 छोटा चम्मच अदरक बारीक कटी हुई

1 कप मशरूम स्लाइस किए हुए

1 छोटा चम्मच धनियापत्ती बारीक कटी हुई

2 बड़े चम्मच मक्खन

नमक स्वादानुसार

विधि

एक पैन में तेल गरम कर के पोलेंता उपमा की सारी सामग्री डाल कर धीमी आंच पर पकाएं. दूसरे पैन में तेल गरम कर के मशरूम मिश्रण तैयार करें. अब एक प्लेट में पहले पोलेंता उपमा निकालें और फिर ऊपर से मशरूम मिश्रण डाल कर शिमलामिर्च से सजा कर सर्व करें.

-व्यंजन सहयोग: शैफ रनवीर बरा

ब्रेस्ट कैंसर से बचने के लिए अखरोट खाएं

सेहते के लिए खरोट काफी फायदेमंद होता है. इसमें कई स्वास्थवर्धक गुण होते हैं. पर क्या आपको पता है कि महिलाओं में तेजी से पाए जा रहे ब्रेस्ट कैंसर में भी अखरोट काफी लाभकारी होता है. हाल ही में सामने आई एक स्टडी में ये बात स्पष्ट हुई कि अखरोट का सेवन कर के ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को कम किया जा सकता है.

क्या कहती है स्टडी

न्यूट्रिशन रिसर्च जर्नल में प्रकाशित इस स्टडी में दावा किया गया है कि दो हफ्तों तक रोजाना 56 ग्राम अखरोट का सेवन करने से ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित महिलाओं की जींस में बदलाव आते हैं. शोध में शामिल एक जानकार की माने तो अखरोट का सेवन करने से ब्रेस्ट कैंसर की ग्रोथ को रोका जाना संभव है.

शोधार्थियों के अनुसार अखरोट के सेवन से पैथोलॉजिकल रूप से पुष्टि की गई स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं की जीन में बदलाव होता है, जिससे ब्रेस्ट कैंसर की ग्रोथ और इसके खतरे को कम किया जा सकता है.

कैसे पहुंचे इस नतीजे पर

स्टडी के दौरान ऐसी महिलाओं को शामिल किया गया जिनकी ब्रेस्ट में गांठ है. इन महिलाओं की पहली बायोप्सी के 2 हफ्ते बाद अगली सर्जरी तक रोजाना लगभग 56 ग्राम अखरोट खाने के लिए कहा गया. इसके 2 हफ्ते बाद महिलाओं की दोबारा जांच की गई तो स्थिति में बेहतरी देखी गई.

इसके बाद पैथोलौजी स्टडी में ये बात सामने आई कि ब्रेस्ट में होने वाली गांठ कैंसर की ही थी. बायोप्सी के 2 सप्ताह बाद ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित महिलाओं की दोबारा जांच की गई. इस पूरी जांच के आधार पर जानकारों ने माना कि अखरोट खाने से महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर होने की संभावना कम हो सकती है. हालांकि जानकारों ने ये भी माना कि इस क्षेत्र में अभी बड़े पैमाने पर स्टडी की जरूरत है, जिससे पता लगे कि अखरोट खाने से क्या वाकई ब्रेस्ट कैंसर का खतरा कम होता है या इसे दोबारा होने से रोक देता है.

पतला होने का मतलब फिट होना नहीं- यास्मीन कराचीवाला

48साल की उम्र में कालेज गोइंग स्टूडैंट जैसी फिट और आकर्षक फिगर वाली फिटनैस ऐक्सपर्ट और सैलिब्रिटी पर्सनल ट्रेनर यासमीन कराचीवाला ने 26 साल पहले मुंबई में काम शुरू किया था. बौडी इमेज नाम से यासमीन ने फिटनैस सैंटर की नींव रखी. हाल ही में दिल्ली में इस की एक और ब्रांच लौंच की गई. पेश हैं, इस मौके पर उन से की गई बातचीत के कुछ अंश:

आप की नजर में फिटनैस क्या है?

फिटनैस वह है जो आप को एनर्जेटिक फील कराए. जब आप सुबह उठें तो बिलकुल फ्रैश हो कर उठें. आप अपना पूरा दिन आसानी से कंप्लीट कर सकें. दोपहर को भी नींद या आलस न आए. हमेशा एनर्जेटिक फील हो. रात को ऐसे सोएं जैसे घोडे़ बेच कर सो रहे हों तो समझिए आप फिट हैं.

अपनी बायोपिक में टाइगर को देखना चाहता हूं- जैकी श्रौफ

महिलाओं को अपनी फिटनेस के लिए कौन सी बेसिक बातों का खयाल रखना चाहिए?

आप अपने लिए ऐसी ऐक्सरसाइज चुनें जो आप की बौडी के लिए उपयुक्त हो और जो आप को अच्छी लगती हो. जरूरी नहीं कि जो और कर रही हो वही आप के लिए भी अच्छी होगी. पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की बोन डैंसिटी कम होती है. महिलाएं बच्चों को जन्म देती हैं और इस दौरान उन की बौडी को अंदर से स्ट्रैस सहना पड़ता है. इसलिए बहुत जरूरी है कि वे स्ट्रैंथ ट्रेनिंग करें. अपनी बोंस मजबूत करें. पुरुषों की हड्डियां महिलाओं की हड्डियों के मुकाबले बहुत मजबूत होती हैं. उन का स्केलेटन स्ट्रक्चर ही ऐसा होता है, जबकि महिलाओं का स्केलेटन स्ट्रक्चर काफी अलग होता है. उन के लिए वेट ट्रेनिंग जरूरी होती है.

फिट रहने के लिए जिम ही जाना जरूरी नहीं. महिलाएं घर में भी कई तरह से एक्सरसाइज कर सकती हैं. जैसे वाल पर पुशअप कर सकती हैं, कुरसी पर बैठेबैठे पैरों की मसल्स स्ट्रौंग करने की छोटीमोटी एक्सरसाइज भी कर सकती हैं.

महिलाओं को अपने खानपान पर भी ध्यान देना बहुत जरूरी है. उन का वजन पुरुषों के मुकाबले बहुत तेजी से बढ़ता है. वजन अधिक हो तो दूसरी बहुत सी बीमारियां जैसे डायबिटीज, हाइपरटैंशन आदि का खतरा रहता है. उन का शरीर 9 महीने की प्रैगनैंसी भी सहता है. किसी दूसरी जिंदगी को अपने अंदर रख कर पोषण देना, बड़ा करना आसान नहीं है. इसलिए जरूरी है कि वे अपने पोषण और खानपान पर भी पूरापूरा ध्यान दें.

 

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#WeekendMotivation: 5 quick and easy exercises to get you charged up on a Sunday! This is a full body workout that can be done anywhere, anytime. 1. Lunge to Single Leg Deadlift – 3 sets x 15 reps each. 2. Inchworm Pushup – 3 sets x 15 reps each. 3. 3 Alternate Spider-Man + 1 Rotation- 3 sets x 12 – 15 reps each. 4. Russian Twist – 3 sets x 20 reps each 5. Curtsy Lunge with Knee Hop – 3 sets x 15 reps each side. My goal each day is to reach out and be able to motivate you lead a fitter life, why don’t you tag a friend you would like to motivate and share this workout with them. I tag @katrinakaif @aliaabhatt Have fun and #befitbecauseyoudeserveit #yasminfitnessmantra #FunctionalFriday #reebokfashionablyfit #ReebokIndia #YasminKarachiwalasBodyImage #CelebrityTrainer #YasminKarachiwala #FitnessGoals #WorkoutAnywhere #WorkoutAnytime #WorkoutEverday #WorkoutEverytime

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सिर्फ बौडी बनाना ही काफी नहीं, दूसरों को सम्मान देना सीखें-विद्युत जामवाल

क्या परिवार की सपोर्ट मिलता है?

25 साल पहले मेरी अरेंज्ड मैरिज हुई भी. मेरे 20 और 18 साल के 2 बेटे हैं. पति का बिजनैस है. कैंसर की वजह से 3 साल पहले फादर की डैथ हो गई थी. मदर हाउसवाइफ हैं और इस उम्र में भी रोज एक्सरसाइज करती हैं. मेरे सास ससुर काफी सपोर्टिव हैं.

जैंडर और एज के हिसाब से क्या फिटनैस रूटीन में कुछ परिवर्तन किए जाते हैं?

फिटनैस रूटीन तय करने के लिए हम जैंडर या ऐज नहीं देखते. स्त्री हो या पुरुष हर उम्र में फिट रहना महत्त्वपूर्ण है. मगर बीमारी, इंजरी, लाइफस्टाइल, सर्जरी आदि के आधार पर फिटनैस रूटीन तैयार करना चाहिए. इस के अलावा आप का मकसद क्या है, आप वेटलौस के लिए आए हैं या स्ट्रौंग होने के अथवा फिट रहने के मकसद से इस आधार पर भी ट्रेनिंग निर्भर करती है.

 

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#FunctionalFriday: Here are 5 quick exercises to get you ready for the weekend! This is a full body workout that can be done anywhere, anytime. 1. Deep Squat with alternate knee side tap – 3 sets x 15 reps each. 2. Pike to Dive to Squat Jump – 3 sets x 10 reps. 3. Reverse Plank to Hover – 3 sets x 10 reps. 4. Supine Walking – 3 sets x 15 reps. 5. 2 Jumping Jacks + Alternate Kick – 3 sets x 15 reps. ✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨ . My goal each day is to reach out and be able to motivate you lead a fitter life, you could help me by tagging a friend you would like to motivate by sharing this workout with. I’m tagging @sophiechoudry and @realpz ✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨ . Have fun and #befitbecauseyoudeserveit #yasminfitnessmantra #reebokfashionablyfit #ReebokIndia #YasminKarachiwalasBodyImage #CelebrityTrainer #FitnessGoals

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आप ने करीना, दीपिका, आलिया समेत कई सैलिब्रिटीज को ट्रेनिंग दी है. उन में से किस के ट्रांसफौर्मेशन पर आप को प्राउड फील होता है?

कैटरीना, करीना, आलिया, दीपिका ने ट्रेनिंग के बाद खुद को बहुत अलग रूप में तैयार किया है. कैटरीना को ही लीजिए. शुरुआत में वे बहुत अलग दिखती थीं पर ‘शीला की जवानी…’ गाने में उन की बौडी बहुत अच्छी दिखी. ‘धूम-3’ में उन की फिटनैस देखते ही बनती है. आलिया भट्ट ने भी ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ फिल्म के बाद खुद को काफी फिट बनाया. ‘कौकटेल’ मूवी में हम दीपिका पादुकोण का ट्रांसफौर्मेशन साफ देख सकते हैं.

आप का डेली रूटीन क्या है?

मेरी डेली रूटीन बहुत ही व्यस्त है. मुझे लगता है जैसे दिन में 24 घंटे और होने चाहिए. दिन की समाप्ति पर लगता है जैसे मुझे बहुत से काम करने बाकी रह गए हैं.

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भारत के लोग कितने फिटनेस फ्रीक है?

मैं इस इंडस्ट्री में 26 साल से हूं. 26 साल पहले और आज लोगों की सोच में बहुत फर्क आया है. उन्हें इस बात का एहसास हो गया है कि पतला होने का अर्थ फिट होना नहीं होता. आज हर कोई इंस्ट्रक्टर नहीं बन सकता. पहले जिम में कई साल काम कर कोई भी शख्स इंस्ट्रक्टर बन जाता था. मगर अब बहुत जरूरी है कि हर इंस्ट्रक्टर सर्टिफाइड हो.

30-40 की उम्र आतेआते महिलाओं को क्या समस्याएं ज्यादा होने लगती हैं?

इस उम्र तक आतेआते महिलाएं बच्चों को जन्म दे चुकी होती हैं. प्रैगनैंसी के दौरान शरीर को काफी स्ट्रैस सहना पड़ता है. ऐसे में जरूरी है कि आप सही ऐक्सरसाइज चुन कर शरीर को अंदर से मजबूत बनाएं. इस उम्र में ऐस्ट्रोजन लैवल भी काफी नीचे चला जाता है. शरीर कमजोर हो जाता है, हड्डियां आसानी से टूट सकती हैं. महिलाएं अपने खानपान पर ध्यान नहीं देतीं. बच्चे के जन्म के बाद वेटलौस के लिए या तो डाइटिंग करने लगती हैं या फिर शरीर को वैसा ही छोड़ देती हैं. ये दोनों ही स्थितियां गलत हैं. ज्यादा शुगर भी सेहत के लिए बुरी है. एक ही मील में चावल और रोटी एक साथ न खाएं.

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