इन 2 योजनाओं से अपना बिजनेस शुरू करें महिलाएं

देश की महिलाएं अब चौका बेलन से आगे निकल चुकी हैं. इंद्रा नूई, चंदा कोचर जैसी पौध पैदा करने वाले इस धरती पर अब उंची उड़ान भरने की ख्वाहिश के साथ औरते खुद को तैयार करती हैं. महिलाओं के लिए अब कोई काम मुश्किल नहीं रहा. नौकरी से लिए बड़ी-बड़ी कंपनियों का नेतृत्व कर रही हैं महिलाएं. महिलाओं को और ज्यादा सशक्त करने के लिए सरकार भी काफी प्रयासरत है. यही कारण है कि उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए सरकार कई तरह की योजनाएं लाती रहती है. इस खबर में हम आपको ऐसी दो योजनाओं के बारे में बताएंगे जिनकी मदद से महिलाएं अपने सपनों को साकार कर सकती हैं.

ट्रेड सब्सिडी स्कीम

ट्रेड रिलेटेड एंटरप्रेनरशिप असिस्टेंस एंड डेवलपमेंट (ट्रेडर) स्कीम मिनिस्ट्री औफ माइक्रो, स्मौल एंड मीडियम एंटरप्राइजेस की ओर से कम पढ़ी-लिखी, अशिक्षित, असंगठित और जरूरतमंद महिला उद्यमियों के लिए है.

इस लोन के तहत जरूरतमंदों को लोन मुहैया किया जाता है.

छोटे मोटे रोजगार के लिए महिलाओं को 30 फीसदी की आर्थिक सहायता मिलती है.

ये सुविधा उन महिलाओं के लिए है, जिन्हें बैंक से लोन की सुविधा नहीं मिल पा रही है.

इस योजना के तहत आर्थिक मदद पाने के लिए आपको किसी एनजीओ की मदद लेनी होगी. सीधे तौर पर स़िर्फ किसी महिला को यह सुविधा नहीं दी जाती यानी अगर आप किसी ग़ैरसरकारी संगठन से जुड़ी हैं, तो आपको इस योजना का फ़ायदा मिलेगा.

प्रधानमंत्री मुद्रा लोन योजना

देश के लोगों को व्यवसाय के लिए प्रेरित करने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की शुरुआत की गई थी. इसका मुख्य उद्देश्य था कि ज्यादा से ज्यादा लोग नौकरी की भीड़ से दूर हो कर कुछ खुद का काम शुरू करें. महिलाएं इस योजना का लाभ उठा कर अपना खुद का काम शुरू कर सकती हैं.

कैसे लें इस योजना का लाभ

  • इस योजना से पैसा उठा कर आप ब्यूटी पार्लर, टेलरिंग और ट्यूशन जैसे उद्यम की शुरुआत कर सकती हैं.
  • इसके अलावा कई महिलाएं मिल कर साथ में कुछ काम शुरू कर सकती हैं. इस योजना के तहत उन्हें लोन और फंड की सुविधाएं मिल सकेंगी.
  • इस योजना के तहत महिलाओं को 50 हजार से 10 लाख तक का लोन मुहैया किया जा सकता है.
  • इसका लाभ किसी भी सहकारी बैंक से लिया जा सकता है.
  • योजना के तहत लोन जारी होने पर आपको मुद्रा कार्ड मुहैया किया जाएगा. इसका उपयोग आप क्रेडिट कार्ड की तरह कर सकती हैं.
  • इस योजना को तीन हिस्सों में बांटा गया है, जिसके तहत आपको 50 हजार से लिए 10 लाख तक का लोन मिल सकेगा.

जानिए प्रेग्नेंसी में बढ़े वजन को कम करने के आसान तरीके

प्रेग्नेंसी के बाद शरीर में बहुत से बदलाव आते हैं. इसमें सबसे बड़ी चुनौती होती है वजन को कम करना. हम आपकी इस परेशानी की उपाय ले कर आए हैं. हम आपको कुछ बेहद आसान टिप्स बताएंगे जिनकी मदद से प्रेग्नेंसी के बाद बढ़ रहे वजन को कम करना आसान होगा.

अच्छी नींद और अच्छी खाना है जरूरी

तनाव कम लें, अच्छी नींद लें और संतुलित मात्रा में आहार लें. वजन कम करने के लिए ये चीजें बेहद आवश्यक है. बाहर का खाना बिलकुल बंद कर दें, घर का बना हल्का-फुल्का खाना खाएं और पर्याप्त नींद लें. छोटी-छोटी बातों के लिए स्ट्रेस न लें. योग इसमें आपकी मदद कर सकता है.

बच्चे को कराएं ब्रेस्ट फीड

कई  जानकारों का भी मानना है कि ब्रेस्ट फीड कराने वाली महिलाओं का वजन डिलीवरी के बाद जल्दी कम होता है. आपको बता दें कि ब्रेस्ट फीड कराने से शरीर  की 300 से 500 कैलोरी खर्च होता है. इस मसले पर हुए एक शोध की माने तो स्तनपान महिलाओं में प्रसव के बाद अतिरिक्त वजन कम करने में मददगार साबित होता है.

पानी पिएं

पानी पीने से वजन तेजी से कम होता है. प्रेग्नेंसी के बाद भी वजन को कम करने के लिए पानी काफी लाभकारी होता है. एक रिपोर्ट की माने तो रोजाना 10 से 12 गिलास पानी पीना वजन कम करने में काफी लाभकारी होता है.

टहलें जरूर

प्रेग्नेंसी के बाद वजन कम करने के लिए वौक बेहद कामगर है. अमेरिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट की माने तो वौक करने से प्रेग्नेंसी के बाद वजन घटाना आसान हो जाता है.

मिलावट वाले रंगों से रहें सावधान, करते हैं बड़ा नुकसान

कोई भी त्योहार मौज-मस्ती, खुशी-उल्लास, भागा-दौड़ी के बगैर अधूरा है. होली में लोग एक दूसरे पर रंग गुलाल डाल कर मनाते हैं. पर क्या आपको पता है कि होली में इस्तेमाल होने वाले रंग कई बार सेहत पर बुरा असर कर जाते हैं. बाजार में मिलने वाले रंग सिथेंटिक होते हैं. आर्टिफीशियल तरीके से बने ये रंग सेहत के लिए बेहद हानिकारक होते हैं. कई बार इनके परिणाम घातक हो जाते हैं.

कुछ डाक्टरों और जानकारों की माने तो बाजार में मिलने वाले अधिकतर रंग सस्ते होते हैं और इनको बनाने के लिए कुछ हानिकारक सामाग्रियों का इस्तेमाल होता है. इन रंगों को बनाने के लिए कुछ निर्माता डीजल, इंजन औयल, कौपर सल्फेट और सीसे का पाउडर आदि का इस्तेमाल करते हैं. इससे लोगों को चक्कर आता है, सिरदर्द और सांस की तकलीफ होने लगती है. जानकारों के अनुसार ये तत्व हमारी सेहत के लिए बेहद हानिकारक होते हैं. इन  रंगों में ऐसे रसायन मिले होते हैं जिनसे सेहत का काफी नुकसान होता है. एक विशेषज्ञ की माने तो काले रंग के गुलाल में लेड औक्साइड मिलाया जाता है जो गुर्दों को प्रभावित कर सकता है. हरे गुलाल के लिए मिलाए जाने वाले कौपर सल्फेट के कारण आंखों में एलर्जी, जलन, और अस्थायी तौर पर नेत्रहीनता की शिकायत हो सकती है.

जागरुकता के अभाव में अक्सर छोटे दुकानदार रंगों की गुणवत्ता की जानकारी के बिना इन रंगों को बेचते हैं. कई बार औद्योगिक इस्तेमाल के लिए बनाए गए रंगों को भी होली में इस्तेमाल किया जाता है जिनसे सेहत का काफी नुकसान होता है.

बाजार में हर्बल सामग्रियों से बनाए गए सूखे रंग उपलब्ध हैं. आपको बता दें कि तिहाड़ जेल की महिला कैदियों ने भी इस बार गुलाब के फूल जैसी हर्बल सामग्रियों की मदद से रंग गुलाल बनाए हैं.

तिहाड़ की महिला कैदियों के साथ पिछले पंद्रह सालों से कार्यरत्त दिव्य ज्योति जागृति संस्थान (डीजेजेएस) के प्रवक्ता विशाल नंद ने बताया कि इस रंग में अरारोट पावडर, खाने वाले रंग और प्राकृतिक सुगंध आदि का इस्तेमाल किया गया है और इनसे त्वचा को कोई नुकसान नहीं होता.

भीड़ में अकेली होती औरत

अवन्तिका को शुरू से ही नौकरी करने का शौक था. ग्रेजुएशन के बाद ही उसने एक औफिस में काम शुरू कर दिया था. उसकी सारी सहेलियां भी कहीं न कहीं लग चुकी थीं. अवन्तिका के माता-पिता खुले विचारों के थे. बेटी पर ज्यादा रोक-टोक उन्होंने कभी नहीं रखी. उनको पता था अवन्तिका एक जिम्मेदार लड़की है और कभी अपनी आजादी का गलत इस्तेमाल नहीं करेगी. अवन्तिका बहुत क्रियेटिव नेचर की थी. पेंटिग बनाना, डांस, गाना, मिमिक्री, बागवानी करना उसके शौक थे और इन खूबियों के चलते उसका एक बड़ा फ्रेंड्स-ग्रुप भी था. छुट्टी वाले दिन पूरा ग्रुप कहीं घूमने निकल जाता था, फिल्म देखता, पिकनिक मनाता या किसी एक सहेली के घर इकट्ठा होकर दुनिया-जहान की बातों में मशगूल रहता था. मगर शादी के चार साल के अन्दर ही अवन्तिका बेहद अकेली, उदास और चिड़चिड़ी हो गयी है. अब वह सुबह नौ बजे औफिस के लिए निकलती है, शाम को सात बजे घर पहुंचती है और लौट कर उसके आगे ढेरों काम मुंह बाये खड़े रहते हैं. तीन साल के बेटे अनुराग को देखना, पति के लिए चाय बनाना, फिर पूरे घर के लिए खाना बनाना, बूढ़े सास-ससुर को खिला कर पति को खिलाना, दौड़ते-भागते खुद का पेट भरना और इस बीच बच्चे को भी दुलारते रहना, बस यही जिन्दगी रह गयी थी उसकी. उसका हर दिन ऐसे ही गुजर रहा है. उसके पास समय ही नहीं होता है किसी से कोई बात करने का. अगर होता भी है तो सोचती है कि किससे क्या बोले, क्या बताए? इतने सालों में भी कोई उसको पूरी तरह जान नहीं पाया है,  पति भी नहीं.

अवन्तिका अपने छोटे से शहर से महानगर में ब्याह कर आयी थी. उसका नौकरी करना उसके ससुराल वालों को खूब भाया था, क्योंकि बड़े शहर में पति-पत्नी दोनों कमायें तभी घर-गृहस्थी ठीक से चल पाती है. इसलिए पहली बार में ही रिश्ते के लिए ‘हां’ हो गयी थी. वह जिस औफिस में काम करती थी, उसकी ब्रांच यहां भी थी, इसलिए उसका ट्रांस्फर भी आसानी से हो गया.

मगर शादी के बाद उस पर दोहरी जिम्मेदारी आन पड़ी थी. ससुराल में सिर्फ उसकी कमाई ही माने रखती थी, उसके गुणों के बारे में तो कभी किसी ने जानने की कोशिश भी नहीं की. यहां आकर उसकी सहेलियां भी छूट गयीं. सारे शौक जैसे किसी गहरी कब्र में दफन हो गये. घर-फिस के काम के बीच वह कब चकरघिन्नी बन कर रह गयी, पता ही नहीं चला. शादी से पहले हर वक्त हंसती-खिलखिलाती, चहकती रहने वाली अवन्तिका अब एक चलती-फिरती लाश बन कर रह गयी है.

घड़ी की सुईयों पर भागती जिन्दगी, अकेली और उदास. यह कहानी एक अवन्तिका की नहीं है, यह कहानी देश की उन तमाम महिलाओं की है, जो घर-औफिस की दोहरी जिम्मेदारी उठाते हुए भीड़ के बीच अकेली पड़ गयी हैं.  जिनका अपना कोई अस्तित्व नहीं रह गया है. जिनका अपना कोई शौक नहीं रह गया है. जिनका अपना कोई मित्र नहीं रह गया है, जिससे वे खुल कर मन की बातें कर सकें. सिर्फ पैसा कमाना ही जिनकी नियति बन चुकी है. मन की बातें किसी से साझा न कर पाने के कारण वे लगातार तनाव में रहती हैं. यही वजह है कि कामकाजी औरतों में स्ट्रेस, हार्ट एटैक, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, थायरौयड जैसी बीमारियां उन औरतों के मुकाबले ज्यादा दिख रही हैं, जो अनव्याही हैं, घर पर रहती हैं, जिनके पास अपने शौक पूरे करने के लिए पैसा भी है, समय भी और सहेलियां भी.

क्या औरतें दूसरों की कमाई पर जीना चाहती हैं?

ऐसा नहीं है कि औरतें आदमियों की कमाई पर जीना चाहती हैं या उनकी कमाई उड़ाने का उन्हें शौक होता है, ऐसा कतई नहीं है. आज ज्यादातर पढ़ी-लिखी महिलाएं अपनी शैक्षिक योग्ताओं को बर्बाद नहीं होने देना चाहती हैं. वे अच्छी से अच्छी नौकरी पाना चाहती हैं ताकि जहां एक ओर वे अपने ज्ञान और क्षमताओं का उपयोग समाज के हित में कर सकें, वहीं आर्थिक रूप से सक्षम होकर अपने पारिवारिक स्टेटस में भी बढ़ोत्तरी करें. आज कोई भी नौकरीपेशा औरत अपनी नौकरी छोड़ कर घर पर नहीं बैठना चाहती है. लेकिन नौकरी के साथ-साथ घर, बच्चों और परिवार की जिम्मेदारी जो सिर्फ उसी के कंधों पर डाली जाती है, उसने उसे बिल्कुल अकेला कर दिया है. उससे उसका वक्त छीन कर उसकी जिन्दगी में सूनापन भर दिया है. दोहरी जिम्मेदारी ढोते-ढोते वह कब बुढ़ापे की सीढ़ियां चढ़ जाती है, उसे पता ही नहीं चलता.

अवन्तिका का ही उदाहरण देखें तो औफिस से घर लौटने के बाद वह रिलैक्स होने की बजाये बच्चे की जरूरतें पूरी करने में लग जाती है, पति को समय पर चाय देनी है, सास-ससुर को खाना देना है, बर्तन मांजने हैं, सुबह के लिए कपड़े प्रेस करने हैं, ऐसे न जाने कितने काम वह रात के बारह बजे तक तेजी से निपटाती है. और उसके बाद थकान से भरी हुई जब वह रात 12 बजे बिस्तर पर गिरती है तो पति की शारीरिक जरूरत पूरी करना भी उसकी ही जिम्मेदारी है, जिसके लिए वह ‘न’ नहीं कर पाती है. वहीं उसका पति जो लगभग उसी के साथ-साथ ही घर लौटता है, वह अपने घर लौटकर रिलैक्स फील करता है क्योंकि बाथरूम से मुंह-हाथ धोकर जब वह बाहर निकलता है तो मेज पर उसे गरमा-गरम चाय का कप मिलता है और साथ में नाश्ता भी. इसके बाद वह आराम से ड्राइंगरूम में बैठ कर अपने माता-पिता के साथ गप्प मारता है, टीवी देखता है, दोस्तों के साथ फोन पर बातें करता है या अपने बच्चे के साथ खेलता है. यह सब करके वह अपनी थकान दूर कर रहा होता है. अगले दिन के लिए खुद को तरोताजा कर रहा होता है. उसे बना बनाया खाना मिलता है. सुबह की बेड-टी मिलती है. प्रेस किये हुए कपड़े मिलते हैं. करीने से पैक किया गया लंच बौक्स मिलता है. इनमें से किसी भी काम में उसकी कोई भागीदारी नहीं होती. जबकि अवन्तिका? वह घर आकर रिलैक्स होने की बजाये घर के कामों में खप कर अपनी थकान बढ़ा रही होती है. वह न तो कोई टीवी सीरियल एन्जौय कर सकती है, न अपनी मनपसंद किताबें पढ़ सकती है और न ही सहेलियों के साथ गप्प मारने की उसे फुर्सत होती है. कितने-कितने दिन बीत जाते हैं पति से भी उसकी कोई खास बातचीत नहीं होती. महीनों बीत जाते हैं अपनी मां को फोन करके उनका हालचाल नहीं ले पाती है. घर-औफिस की दोहरी भूमिका निभाते-निभाते वह लगातार तनाव में रहती है. यही तनाव और थकान आगे चल कर गम्भीर बीमारियों में बदल जाता है.

घरेलू औरत भी अकेली है

ऐसा नहीं है कि घर-औफिस की दोहरी भूमिका निभाने वाली महिलाएं ही अकेली हैं, घर में रहने वाली घरेलू महिलाएं भी आज अकेलेपन का दंश झेल रही हैं. पहले संयुक्त परिवार होते थे. घर में सास, ननद, जेठानी, देवरानी और ढेर सारे बच्चों के बीच हंसी-ठिठोली करते हुए औरतें खुश रहती थीं. घर का काम भी मिल-बांट कर हो जाता था. मगर अब ज्यादातर परिवार एकल हो रहे हैं. ज्यादा से ज्यादा लड़के के माता-पिता ही साथ रहते हैं. ऐसे में बूढ़ी सास से घर का काम करवाना ज्यादातर बहुओं को ठीक नहीं लगता. वे खुद ही सारा काम निपटा लेती हैं. मध्यमवर्गीय परिवार की बहुओं पर पारिवारिक-सामाजिक बंधन भी खूब होते हैं. ऐसे परिवारों में बहुओं का अकेले घर से बाहर निकलना, पड़ोसियों के साथ हिलना-मिलना अथवा सहेलियों के साथ सैर-सपाटा निषेध होता है. जिन घरों में सास-बहू के सम्बन्ध ठीक नहीं होते, वहां तो दोनों ही महिलाएं समस्याएं झेलती हैं. आपसी तनाव के चलते दोनों के बीच बातचीत भी ज्यादातर बंद रहती है। ऐसे घरों में तो सास भी अकेली है और बहू भी अकेली. कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो लड़की शादी से पहले पूरी आजादी से घूमती-फिरती थी, अपनी सहेलियों में बैठ कर मन की बातें किया करती थी, वह शादी के बाद चारदीवारी में घिर कर अकेली रह जाती है. पति और सास-ससुर की सेवा करना ही उसका एकमात्र काम रह जाता है. शादी के बाद लड़कों के दोस्त तो वैसे ही बने रहते हैं, आये-दिन घर में भी धमक पड़ते हैं, लेकिन लड़की की सहेलियां छूट जाती हैं. उसकी मां-बहनें सब कुछ छूट जाता है. सास के साथ तो हिन्दुस्तानी बहुओं की बातचीत सिर्फ ‘हां मांजी’ और ‘नहीं, मांजी’ तक ही सीमित रहता है, तो फिर कहां और किससे कहे घरेलू औरत भी अपने मन की बात?

अकेलेपन का दंश सहने को क्यों मजबूर है औरत?

स्त्री-शिक्षा में बढ़ोत्तरी होना और महिलाओं का अपने पैर पर खड़ा होना किसी भी देश और समाज की प्रगति का सूचक है. मगर इसके साथ-साथ परिवार और समाज में कुछ चीजों और नियमों में बदलाव आना भी बहुत जरूरी है, जो भारतीय समाज और परिवारों में कतई नहीं आया है.यही कारण है कि आज पढ़ी-लिखी महिला जहां दोहरी भूमिका में पिस रही है, वहीं वह दुनिया की इस भीड़ में वह बिल्कुल तन्हा हो गयी है.

पाश्चात्य देशों में जहां औरत-मर्द शिक्षा का स्तर एक है। दोनों ही शिक्षा प्राप्ति के बाद नौकरी करते हैं, वहीं शादी के बाद लड़का और लड़की दोनों ही अपने-अपने माता-पिता का घर छोड़कर अपना अलग घर बसाते हैं, जहां वे दोनों ही घर के समस्त कार्यों में बराबर की भूमिका अदा करते हैं। पाश्चात्य देशों में खाना बनाना, घर साफ करना, कपड़े धोना, प्रेस करना, शॉपिंग करना, बच्चों की देखभाल करना, वीकेंड पर माता-पिता के घर जाकर उनकी खैर-खबर लेना जैसे तमाम रोजमर्रा के काम सिर्फ औरत के जिम्मे नहीं होते, बल्कि पति-पत्नी दोनों ही यह सारे काम मिल-बांट कर करते हैं। मगर भारतीय परिवारों में कामकाजी औरत की कमाई तो सब इन्जॉय करते हैं, मगर उसके साथ घर के कामों में हाथ कोई भी नहीं बंटाता। पतियों को तो घर का काम करना जैसे उनकी इज्जत गंवाना हो जाता है। हाय! लोग क्या कहेंगे? सास-ससुर की मानसिकता भी यही होती है कि आॅफिस से आकर किचेन में काम करना बहू का काम है, उनके बेटे का नहीं। कपड़े धोेना, बर्तन मांजना, सब्जी-भाजी लाना, बच्चे संभालना सिर्फ औरत की जिम्मेदारी है। ज्यादातर घरों में तो बहू के आने के बाद सास भी घर के कामों से अपना हाथ खींच लेती है। वह सारा दिन आराम फरमाती है और जब बहू औफिस से थकी-मांदी घर आती है, तो उसके सामने फरमाइशों की लम्बी लिस्ट रख देती है, ऐसे में बहू के अन्दर खीज, तनाव और नफरत के भाव ही पैदा हो सकते हैं, खुशी के तो कतई नहीं.

पुरुष की परवरिश के तरीकों में आना चाहिए बदलाव

रानी के पति आकाश को चाय बनाने के अलावा किचेन का कोई काम नहीं आता था. शादी के डेढ साल में रानी ने उसको किसी तरह अंडा उबालना, मैगी बनाना और सैंडविच बनाना सिखाया है. मगर कभी रानी को बुखार आ जाए तो आज भी खाना होटल से ही आता है. आकाश कहता है कि उसकी मां ने कभी उसे किचेन में घुसने ही नहीं दिया. घर का कोई काम उसने कभी नहीं किया. सारा काम या तो मां करती थीं, या घर के नौकर. रानी से शादी के बाद वह बेंगलुरु शिफ्ट हुआ तो नये घर की एक-एक चीज रानी को अकेले ही सेट करनी पड़ी. एक महीने तक वह घर को सेट करने में जूझती रही। आकाश बस सुबह उठता, सैर के लिए जाता फिर लौट कर तैयार होकर औफिस रवाना हो जाता. शाम का सारा वक्त उसका टीवी देखने में गुजरता था. उसको इस बात का अहसास तक नहीं था कि रानी सारा दिन कैसे घर के कामों में जूझती रहती है. उसके दिमाग में तो बचपन से यही बिठाया गया था कि घर संभालना औरत का काम है, मर्द का नहीं. इसीलिए वह घर के किसी काम में हाथ नहीं डालता था. रानी कोई काम कह दे तो उसकी झुंझलाहट सातवें आसमान पर होती थी.

आज अगर भारतीय औरत अकेलेपन के दंश झेल रही है तो उसकी वजह है भारतीय परिवार में पुरुषों की परवरिश. आजकल ज्यादातर घरों में लड़के के मां-बाप नौकरीपेशा बहू तो लाना चाहते हैं, मगर अपने बेटे को यह नहीं सिखाते कि घर के काम की जिम्मेदारी तुम्हारी भी उतनी ही होगी, जितनी बहू की है.

लड़का अगर बचपन में किचेन के काम में इंटरेस्ट दिखाता है तो उसको यह कहकर झिड़क दिया जाता है, कि क्या लड़कियों वाले काम कर रहा है? ऐसे में वह बचपन से यही देखता-सीखता है कि घर का काम करना सिर्फ औरत का ही काम है. यही रवैया सारी जिन्दगी बना रहता है. आज जरूरत है लड़कों की परवरिश के तरीके बदलने का और यह काम भी औरत ही कर सकती है. अगर वह चाहती है कि उसकी आने वाली पीढ़ियां खुश रहें, उसकी बेटियां-बहुएं खुश रहें तो अपनी बेटियों को किचेन का काम सिखाने से पहले अपने बेटों को घर का सारा काम सिखाएं. उनको घर साफ रखना सिखाएं. झाड़ू-पोछा करना, बर्तन धोना, कपड़े धोना, सब्जी-भाजी लाना हर वह काम सिखाएं जो आप अब तक बेटियों को सिखाती आयी हैं. यह कहकर कि अमुक काम लड़की का है और अमुक काम लड़के का, घर के कामों को बांटें नहीं. वह हर काम जो लड़की करती है, लड़का भी कर सकता है और ऐसा करते वक्त उसके अन्दर हीनभावना नहीं पनपनी चाहिए। अगर आपका बेटा किचेन में कुछ नया पका कर आपको परोसता है तो आप उसकी खूब प्रशंसा करें क्योंकि आपकी यही प्रशंसा उसमें उत्साह पैदा करेगी और आपकी एक छोटी सी पहल आधी आबादी के लिए मुक्ति का द्वार खोलेगी. यही एकमात्र तरीका है जिससे औरत को अकेलेपन के दंश से मुक्ति मिल सकेगी.

वीडियो : जब रणवीर ने भाग्यश्री के बेटे को मारा जोरदार घूंसा

सुपरहिट फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ की अभिनेत्री भाग्यश्री के बेटे अभिमन्यु दसानी फिल्म ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ से अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत करने जा रहे हैं. ऐसे में अभिनेता फिल्म के प्रमोशन में बिजी हो गए हैं. वह इस सिलसिले में बौलीवुड के नए सुपस्टार रणवीर सिंह के पास पहुंचे. रणवीर एक बार फिर अपने हरफनमौला अंदाज में नजर आए, लेकिन अभिमन्यु को नहीं पता था कि रणवीर सिंह उन पर भारी पड़ जाएंगे.

जी हां, सोशल मीडिया पर अभिमन्यु दसानी और रणवीर सिंह का एक वीडियो वायरल हो रहा है. इस वीडियो में रणवीर अभिमन्यु को जोरदार घूंसा मार रहे हैं. वीडियो देखने के बाद रणवीर सिंह के फैंस इस बात से हैरान हैं. वैसे हैरान करने वाली बात ये भी है कि अभिमन्यु दसानी ने खुद इस वीडियो को अपने सोशल मीडिया साइड पर शेयर किया है.

 

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आपको बता दें, रणवीर सिंह और अभिमन्यु दसानी मिलकर फिल्म ‘मर्द को दर्द’ नहीं होता का प्रमोशन कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस वीडियो को अब तक हजारों लोग देख चुके हैं. इस वीडियो को पोस्ट करने के साथ अभिमन्यु दसानी ने कैप्शन में लिखा- ‘ @ranveersingh सिम्बा सूर्या से मिले! दर्द नहीं होता बाकी सब होता है…

बता दें कि रणवीर इनदिनों अपनी फिल्म 83 में काफी व्यस्त हैं. लेकिन बिजी शेड्यूल होने के बाद भी वो अपने चाहने वालों के लिए वक्त निकाल ही लेते हैं. बात अगर फिल्म ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ की करें इस फिल्म का निर्देशन और लेखन वसन बाला ने किया है तो वहीँ आरएसवीपी के रोनी स्क्रूवाला इसका निर्माण कर रहे हैं. 21 मार्च को रिलीज हो रही इस फिल्म में अभिमन्यु दसानी के अलावा राधिका मदान और गुलशन देवैया भी मुख्य किरदार में नजर आएंगे.

निवेश के लिए जरूरी हैं ये बातें

समझदारी से निवेश करना आसान काम नहीं है. इसके लिए धैर्य, निवेश में भरोसा और अपनी गलती मानने जैसी आदतें डालनी पड़ती हैं. वौरेन बफेट जैसी शख्सियत ने भी बर्कशायर स्टौक्स में की गई गलती को माना था. निवेश के दौरान कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए. इस खबर में हम आपको ऐसी ही चार बातों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें आप निवेश के बिल्डिंग ब्लौक्स भी कह सकती हैं.

सही लक्ष्य रखें

अपना पैसा किसी भी तरह के निवेश में डालने से पहले अपने लक्ष्य को परिभाषित कर लें. अपने लक्ष्य को तय करने के लिए कई तरीके हो सकते हैं. निवेश से पहले खुद से ये सवाल जरूर करें.

  • आपकी जोखिम क्षमता कितनी है?
  • आपको अपने पोर्टफोलियो पर कितना समय बिताना होगा?
  • आपके शौर्ट टर्म और लौन्ग टर्म योजनाएं क्या हैं?
  • आपके शौर्ट टर्म और लौन्ग टर्म योजनाएं क्या हैं?
  • क्या आपका निवेश उदेश्य अपनी पूंजी को जमा करना और लंबी अवधि में महंगाई को मात देने वाले रिटर्न रेट के साथ बढ़ने वाला होना चाहिए?

इन लक्ष्यों को निर्धारित करने से आप एसेट एलोकेशन तय कर सकती हैं. साथ ही इसके आप अपने पोर्टफोलियो की खरीद व बिक्री की रणनीति भी बना सकती हैं. लेकिन इस बात का भी ध्यान रखें कि आप अपना लक्ष्य समय के अनुसार बदल भी सकती हैं.

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घबराएं नहीं

आमतौर पर निवेशक छोटी अवधि में हो रहे नुकसान को देखकर घबरा जाते हैं. ऐसी स्थिति में अपने स्वाभव पर नियंत्रण रखना आना चाहिए. कई निवेशक बाहरी संकेत जैसे कि न्यूजपेपर, टीवी चैनल्स पर चलाई गईं खबरों और वर्ड औफ माउथ के आधार पर अपनी निवेश रणनीति बदल लेते हैं. बाजार में हलचल दो कारणों से होती है पहला डर और दूसरा लालच. आपको अपनी निवेश रणनीति पर भरोसा रखना चाहिए और शांत रहना चाहिए. इस चीज को स्वीकार करें कि बाजार की प्रव़ृत्ति अस्थिर होती है. ऐसे में इस अस्थिरता को लाभ उठाना सीखें.

अच्छा फाइनेंशियल एडवाइजर हायर करें

ऐसा न सोचिए कि आप सब कुछ कर सकते हैं, अपनी मेहनत की कमाई को अच्छे से मैनेज करने और निवेश पर बेहतर रिटर्न पाने के लिए वित्तीय सलाहाकार की मदद जरूर लें. ये अपनी फील्ड में ट्रेंड होते हैं. साथ इनके पास वर्षों का अनुभव होता है. ये अपने क्षेत्र में फुल टाइम काम करते हैं. यह बाजार पर नजर बनाएं रखे होते हैं. इन्हें किसी भी आम निवेशक की तुलना में निवेश और उसके मैनेजमेंट के बारे में ज्यादा पता होता है.

समझदारी से करें एसेट एलोकेशन

अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करें. बाजार में कई निवेश विकल्प मौजूद हैं. लेकिन हर विकल्प का अपना रिस्क फैक्टर है. अधिकांश लोग निवेश में कई गलतियां कर देते हैं. एसेट एलोकेशन एक ऐसी स्ट्रैटेजी है जिसके जरिए आप न सिर्फ सही एसेट क्लास का चुनाव करते हैं बल्कि यह आपके निवेश को भी उचित तरह से मैनेज करता है.

 

वंश बेल : महाराज जी की दूसरी शादी से क्यों हैरान रह गई सुनीता

पूर्व कथा

रामलीला मैदान में आयोजित कार्यक्रम के दौरान एक स्त्री महाराजजी के आगे ‘बेटा’ न होने का दुखड़ा रोती है तो वह उसे गुरुमंत्र और कुछ पुडि़या देते हैं. कार्यक्रम की समाप्ति पर महाराज विदेशी कार में अपने पूरे काफिले के साथ आश्रम चले जाते हैं. थोड़ी देर आराम करने के बाद अपने खास सेवकों के साथ कार्यक्रम की चर्चा करते हैं तभी एक सेवक कहता है कि गुरुजी इस वंशबेल को बढ़ाने के लिए कोई उत्तराधिकारी तो होना ही चाहिए. लोग कहते हैं कि यदि बेटा होने की कोई दवाई या मंत्र होता तो क्या महाराज का कोई बेटा नहीं होता. उन की बातें सुन कर महाराज दुखी हो जाते हैं. अत: सभी शिष्य मिल कर महाराज के दूसरे विवाह की योजना बनाते हैं. कुछ दिनों के बाद उन के शिष्य एक स्त्री के बारे में अफवाह फैला देते हैं कि एक गर्भवती स्त्री को उस के शराबी पति ने घर से निकाल दिया है और अब वह महाराज की शरण में है. एक दिन सभा के दौरान भक्तों की चुनौती पर महाराज उसे अपनाने को तैयार हो जाते हैं लेकिन जब यह बात महाराज की पहली पत्नी सावित्री को पता चलती है तो वह तिलमिला जाती है. महाराज अपनी दूसरी नवविवाहिता पत्नी सुनीता के साथ दूसरे आश्रम में रहने लगते हैं. सावित्री की नाराजगी दूर करने के लिए उस को ‘गुरु मां’ का दरजा दे देते हैं. कुछ महीनों के बाद सुनीता के गर्भवती होने की खबर पा कर महाराजजी उसे डाक्टर के पास ले जाते हैं और उस के गर्भस्थ शिशु का लिंगभेद जानने के लिए अल्ट्रासाउंड करने को कहते हैं तभी सुनीता, डाक्टर और महाराज के बीच हुई सारी बातें सुन लेती है. अब आगे…

अंतिम भाग

गतांक से आगे…

सुनीता से यह सब सहा नहीं गया और वह बेहद विचलित हो उठी.

महाराज का असली रूप देख कर उस का मन घृणा से भर उठा. वह चाहती तो थी कि उसी समय उस कमरे में जा कर उन दोनों को खूब खरीखरी सुना दे लेकिन महाराज का पद, पैसा, प्रतिष्ठा देख कर वह रुक गई. वह जान गई थी कि महाराज और उन के सेवक उसे क्षण भर में ही मसल कर रख देंगे. महाराज कोई न कोई आरोप लगा कर उसे लांछित और प्रताडि़त कर सकते हैं, क्योंकि अपनी छवि और प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं. हार कर वह पुन: बाहर बैठ गई.

तब तक महाराज बाहर आ चुके थे. सुनीता को देखते ही उन्होंने कुटिल मुसकान उस पर डाली.

सुनीता बडे़ सधे कदमों से उन तक पहुंची और बोली, ‘‘क्या कहा डाक्टर ने, सब ठीक तो है न?’’

‘‘हां, सब ठीक है,’’ वह थोड़ा चिंतित हो कर बोले, ‘‘यहां की मशीनें इतनी आधुनिक नहीं हैं… कहीं और चल कर दिखाएंगे.’’

‘‘आज तो मैं बहुत थक चुकी हूं. थोड़ा आराम करना चाहती हूं…आप कहें तो आश्रम चलें?’’ सुनीता ने स्वयं पर नियंत्रण रखते हुए बेहद विनम्रता से पूछा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ कहतेकहते महाराज बाहर आ गए. तब तक उन की विदेशी कार पोर्च में आ चुकी थी. सेवकों ने द्वार खोला और वह उस में मुसकराते हुए प्रवेश कर गए. सुनीता ज्यों ही उन के पास आ कर बैठी, कार चल पड़ी.

कार आश्रम में आ गई. सुनीता फौरन महाराजजी के लिए ठंडा पानी ले कर आई. वह जानती थी कि इस समय महाराजजी निजी कमरे में विश्राम करते हैं और उस के बाद भक्तों की भीड़ लग जाती है. फिर कुछ सोचते हुए वह महाराज के पास जा कर बैठ गई और उन के घुंघराले बालों में हाथ फेरते हुए बेहद मुलायम स्वर में बोली, ‘‘आज मैं आप को कहीं नहीं जाने दूंगी. आप के भोजन की व्यवस्था भी यहीं कर देती हूं. मेरा भी तो मन करता है कि अपने महाराजजी, अपने पति परमेश्वर को अपने सामने बैठा कर भोजन कराऊं.’’

इतना कह कर सुनीता उन से लिपट गई. इस से पहले कि महाराज कुछ कहते सुनीता ने जानबूझ कर अपनी साड़ी का पल्लू गिरा कर अपने दोनों वक्षों में महाराज के मुंह को छिपा लिया. सुनीता के गुदाज और गोरे बदन की भीनीभीनी खुशबू में महाराज धीरेधीरे डूबने लगे. उन्होंने सुनीता को कस कर अपने बाहुपाश में जकड़ लिया. सुनीता ने उन की कमजोर नस को दबा रखा था और जानबूझ कर अपने शरीर को उन के शरीर के साथ लपेट लिया. इस से पहले कि महाराज उस के तन से कपड़े अलग करते उस ने महाराज की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘अब तो मैं आप के बच्चे की मां बनने जा रही हूं. मैं ने आज तक आप से कभी कुछ नहीं मांगा…’’

‘‘तो तुम्हें क्या चाहिए रानी?’’ महाराज ने उस के कपोलों पर चुंबन अंकित कर के पूछा.

‘‘मैं भला क्या चाहूंगी… सभी सुखसुविधाएं तो आप की दी हुई हैं, पर थोडे़ से पैसे और अपने रहनसहन के लिए हर बार आप के सामने प्रार्थना करनी पड़ती है, जो मुझे अच्छा नहीं लगता. आप तो हमेशा बाहर ही रहते हैं और मैं…’’ सुनीता ने जानबूझ कर अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया.

‘‘तो ठीक है. मेरे कमरे के सेफ में कुछ रुपए रखे रहते हैं. मैं उस की चाबी तुम को दे देता हूं. बस, अब तो खुश हो न,’’ कह कर महाराज उस के आगोश में सिमट कर लेट गए.

शाम को जब महाराजजी आश्रम की गतिविधियों को देखने के लिए वहां से जाने लगे तो सुनीता ने खुद ही बात शुरू कर दी :

‘‘महाराज, अब तो आप पिता बनने वाले हैं. आज मैं इनाम लिए बिना नहीं मानूंगी.’’

‘‘इनाम?’’ महाराज चौंक कर उसे देखने लगे.

‘‘क्यों…क्या आप को बच्चे की खुशी नहीं है.’’

‘‘हां, खुशी तो है पर पता नहीं बेटा होगा या…’’ महाराज कुछ सोचते हुए बोले.

‘‘आप को क्या चाहिए…बेटा या बेटी?’’

‘‘बेटा…पहले तो बेटा ही होना चाहिए,’’ महाराज तपाक से बोले.

‘‘तो फिर बेटा ही होगा,’’ कह कर सुनीता हंसने लगी.

‘‘और अगर बेटी हुई तो?’’

‘‘फिर आप जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा. मैं आप की पत्नी हूं. मेरा सुख तो आप के साथ ही है. आप नहीं चाहेंगे तो बेटी पैदा नहीं होगी. मैं बस, आप को सुखी और खुश देखना चाहती हूं,’’ कह कर वह उन्हें प्यार से देखने लगी.

इधर महाराज को 6 दिन के लिए एक विशेष शिविर में भाग लेने मध्य प्रदेश जाना पड़ गया. सुनीता को तो ऐसे मौके की ही तलाश थी. इसी बीच सुनीता ने अपने रहने के स्थान पर अभूतपूर्व परिवर्तन कर दिया. इतालवी झूमर व लाइटें, बेहद खूबसूरत नक्काशीदार पलंग, शृंगार की मेज पर विदेशी इत्र एवं पाउडर, गद्देदार सोफे और इंच भर धंसता कालीन…यह सबकुछ इसलिए कि सुनीता चाहती थी कि महाराज जब वापस यहां आएं तो बस, यहीं के हो कर रह जाएं.

उस दिन शाम को जब महाराज शिविर से लौट कर थकेहारे आए तो सुनीता बेहद आकर्षक बनावशृंगार के साथ आभूषणों से लदी खूबसूरत कपड़ों में महाराज का स्वागत करने के लिए आगे बढ़ी. वह उसे देखते ही रह गए. उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि सुनीता इतनी खूबसूरत भी हो सकती है.

‘‘बहुत थक गए होंगे आप,’’ महाराज के एकदम पास आ कर सुनीता बोली, ‘‘पहले फ्रैश हो जाइए, तब तक मैं चाय ले कर आती हूं.’’

सुनीता जब तक चाय ले कर आई तब तक महाराज आसपास की वस्तुओं को बडे़ ध्यान से देखते रहे. उन की आंखों की भाषा को पढ़ते हुए वह बोली, ‘‘अब यह मत कहिएगा कि इतना सामान कहां से लिया और महंगा है. आप कमाते किस लिए हैं…उस भविष्य के लिए जो आप ने देखा ही नहीं या उस वर्तमान के लिए जो आप जी नहीं पा रहे हैं. बस, सुबह से शाम तक आश्रम और साधकों को लुभाने के लिए सफेद कुर्ताधोती या गेरुए वस्त्र. इस से बाहर भी कोई दुनिया है,’’ इतना कह कर सुनीता उन्हें प्यार से सहलाने लगी, ‘‘अच्छा, अब आप स्नान कर लीजिए. मैं अपने हाथ से आप के लिए खाना लगाती हूं. बहुत हो गया सेवकों के हाथ से खाना खाते हुए,’’ सुनीता ने अलमारी से एक सिल्क का कुरता निकाला और महाराज को पकड़ा दिया.

‘‘अरे, यह सब?’’ आश्चर्य और प्रसन्नता से उन्होंने पूछा.

‘‘क्यों, अच्छा नहीं है क्या? यहां पर आप कोई महंत या महात्मा तो हैं नहीं. मैं जैसा चाहूंगी वैसा आप को रखूंगी,’’ कह कर उस ने महाराज के गालों पर चुंबन अंकित कर दिया.

महाराज आज सुबह बहुत ही तरोताजा लग रहे थे. कमरे के साथ लगे लान में वह अखबार पढ़ रहे थे. तभी सुनीता चाय की ट्रे करीने से सजा कर उन के पास ले आई और महाराज की तरफ तिरछी नजर से देखते हुए बोली, ‘‘आज तो आप बहुत ही फ्रेश लग रहे हैं. कैसी लगी आप को मेरी पसंद और घर का बदला हुआ स्वरूप?’’

‘‘घर से ज्यादा तो तुम्हारे बदले हुए रूप ने मुझे प्रभावित किया है,’’ महाराज ने शरारत भरी नजरों से सुनीता को देखते हुए कहा, ‘‘आज मैं सचमुच तुम्हारी पसंद से बहुत खुश हूं. तुम मुझे पहले क्यों नहीं मिलीं.’’

‘‘महाराजजी, मेरा बस चले तो आश्रम की व्यवस्था और सुंदरता की कायापलट कर दूं. इतनी दूरदूर से लोग आप से मिलने आते हैं. उन्हें भी सुखसुविधाएं मिलनी चाहिए. आते ही ठंडा पानी, बैठने के लिए आरामदायक स्थान और भोजन आदि की व्यवस्था…आप का भी मान बढे़गा और लोग भी खुशीखुशी आएंगे.’’

‘‘पर इस के लिए इतना धन चाहिए कि…’’

‘‘आप को धन की क्या कमी है, महाराज,’’ सुनीता बीच में बात काटते हुए बोली, ‘‘लक्ष्मी तो आप पर विशेष रूप से मेहरबान है.’’

महाराज अपनी प्रशंसा सुन कर मुसकराने लगे…फिर बोले, ‘‘अच्छा, मैं अपनी समिति के सदस्यों और अंतरंग सेवकों से सलाह ले लूं.’’

‘‘अंतरंग सदस्यों से? महाराज, यह आश्रम आप का है. सलाह सब की लें पर निर्णय आप का ही होना चाहिए. यदि हर काम उन से सलाह ले कर करेंगे तो देखना एक दिन सब आप को लूट खाएंगे. आप तो बस, अपना निर्णय सुनाइए.’’

‘‘सुनीता, इस आश्रम के नियमों में तो मैं कोई परिवर्तन नहीं कर सकता हूं, हां, शहर के दूसरी तरफ मुझे एक भक्त ने 2 बीघा जमीन दान मेें दी है. तुम उस पर जैसा चाहो वैसा करो. उस के डिजाइन, रखरखाव में जैसा परिवर्तन चाहोगी वैसा कर सकती हो. तुम चाहोगी तो कुछ सेवक भी वहां नियुक्त कर दूंगा.’’

सुनीता को तो जैसे मनचाही खुशी मिल गई.

महाराज तैयार हो कर आश्रम जाने लगे तो सुनीता सहमे स्वर में बोली, ‘‘कल मैं आप के पीछे आप की आज्ञा के बिना पास के क्लीनिक में गई थी. बाकी तो सब ठीक है पर महाराज, बडे़ खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि गर्भस्थ शिशु लड़की ही है.’’

‘‘लड़की…ओफ,’’ महाराज ने ऐसे कहा जैसे कुछ जानते ही न हों.

‘‘मैं जानती थी कि आप को यह सुन कर दुख होगा क्योंकि आप बेटा चाहते हैं, इसलिए मैं ने डाक्टर को कह दिया कि हमें लड़की नहीं चाहिए. डाक्टर ने कहा है कि इस काम के लिए कुछ दिन और इंतजार करना पडे़गा और 5 हजार रुपए का खर्चा आएगा.’’

सुनीता अच्छी तरह जानती थी कि यदि खुद उस ने ऐसा नहीं कहा तो किसी दिन वह स्वयं उसे किसी न किसी बहाने किसी बडे़ क्लीनिक या अस्पताल में ले जाएंगे. तब वह दीनहीन बन कर अपना सर्वस्व समाप्त कर लेगी.

महाराज ने सोचा भी नहीं था कि इतनी आसानी से सुनीता गर्भपात के लिए तैयार हो जाएगी. उन्होंने एक भेदभरी नजर से उस को देखा फिर अंक में भर कर बोले, ‘‘तुम दुख न मनाओ…हां, अपना ध्यान रखना. मैं तुम जैसी पत्नी को पा कर धन्य हो गया हूं.’’

धीरेधीरे समय बीतता गया. महाराज से अति निकटता प्राप्त करने का सुनीता ने कोई भी अवसर नहीं गंवाया. नए आश्रम की बागडोर भी महाराज ने उसे दे दी, जैसा कि वह चाहती थी. इतना ही नहीं दिनप्रतिदिन उस के चेहरे पर निखार आता गया और वह नएनए गहनों में इठलाती, इतराती घूमती रहती.

एक दिन वही हुआ जो होना था. दोपहर को सुनीता अपने कमरे में बैठी फोन पर बात कर रही थी कि तभी महाराज तेजी से आए और सेफ की चाबियां मांगने लगे.

‘‘क्यों, ऐसा क्या हो गया आज. आप 2 मिनट विश्राम तो कीजिए,’’ कह कर वह तेजी से स्थिति को भांप गई और फोन को पास ही में रख कर खड़ी हो गई.

‘‘होना क्या था. मेरा एक 10 लाख का चेक बैंक से वापस आ गया है. समझ में नहीं आता कि ऐसा कैसे हो गया जबकि बैंक में बैलेंस भी था.’’

‘‘इतने बडे़ अमाउंट का चेक आप ने किसे दे दिया? आप ने तो कभी बताया ही नहीं.’’

‘‘यह सब बताने का समय मेरे पास नहीं है. पैसा आज न दिया तो मेरे हाथ से बहुत बड़ी जमीन निकल जाएगी.’’

‘‘पर सेफ में इतने रुपए कहां हैं,’’ सुनीता ने कहा.

‘‘क्यों?’’ महाराज की भौंहें तन गईं. 20 लाख से अधिक रकम होनी चाहिए वहां तो.

‘‘महाराजजी, आप को याद नहीं कि आप से पूछ कर ही तो यहां की साजसज्जा और अपने लिए रुपए लिए थे…और फिर नए आश्रम का काम भी तो…’’

‘‘सुनीता,’’ महाराज अपने क्रोध को नियंत्रित न कर पाए, ‘‘मैं कल उस आश्रम में भी गया था. वहां सब मिला कर 5 लाख से ऊपर खर्च नहीं हुए होंगे.’’

‘‘तो मैं ने कौन से अपने लिए रख लिए हैं. सबकुछ तो आप के सामने है. तब तो आप की जबान मेरी तारीफ करते नहीं थकती थी और अब…’’ सुनीता तुनक कर बोली.

‘‘अब समझ में आया कि इन सारे खर्चों की आड़ में तुम ने मेरा काफी पैसा ले लिया है,’’ कह कर महाराजजी तेजी से सेफ खोल कर देखने लगे. वहां केवल 50 हजार रुपए कैश रखे थे. वह माथा पकड़ कर वहीं बैठ गए फिर तेज स्वर में बोले, ‘‘सचसच बताओ, सुनीता, तुम ने ये सारे रुपए कहां रखे हैं. एक तो मेरा सारा बैंक का रुपया सावित्री ने न जाने कहांकहां खर्च कर दिया और ऊपर से तुम ने.’’

‘‘सावित्री…ये सावित्री कौन है?’’

‘‘सावित्री, मेरी पत्नी… तुम नहीं जानतीं क्या?’’

‘‘तो मैं कौन हूं? आप ने कभी बताया नहीं कि आप ने दूसरा विवाह भी किया है. मुझे भी धोखे में रखा है.’’

‘‘तो तुम उसी धोखे का बदला ले रही हो मुझ से? जितना मानसम्मान, धन, ऐश्वर्य मैं ने तुम को दिया है तुम्हें सात जन्मों में भी नसीब न होता.’’

‘‘आप की पत्नी होने से तो अच्छा था मेरे पिता कोई अंधा, बहरा, लूलालंगड़ा दूल्हा ढूंढ़ देते तो मैं खुद को ज्यादा तकदीर वाली समझती.’’

‘‘मैं ने इतनी मेहनत से जो पैसा जमा किया है अब समझ में आया, तुम ने क्या किया.’’

‘‘मेहनत से या लोगों को बेवकूफ बना कर. आप महात्मा हैं या ढोंगी. अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए कैसा घिनौना खेल खेल रहे हैं,’’ सुनीता का स्वर जरूरत से ज्यादा तेज हो गया, ‘‘लोगों को पुत्र होने के मंत्र और भस्म देते हैं. जरा स्वयं पर भी तो उसे आजमाइए तो पता चले. आप की जानकारी के लिए बता दूं कि स्त्री केवल एक उपजाऊ भूमि होती है. और बेटा या बेटी पैदा करने के लिए जिस बीज की जरूरत होती है वह पुरुष के पास होता है, स्त्री के पास नहीं… तुम दोष स्त्री को देते हो. मैं इन सारे तथ्यों को लोगों को बताऊंगी ताकि लोगों के विश्वास को धक्का न पहुंचे, जो अपना एकएक पैसा जोड़ कर बड़ी श्रद्धा से आप के चरणों में भेंट चढ़ाते हैं.

‘‘आप ने सारे तथ्यों को छिपा कर मुझ से विवाह किया. मुझे पहले ही मालूम होता कि आप विवाहित और 3 लड़कियों के पिता हैं तो मैं कभी भी विवाह न करती और आप ने मुझ से केवल इसीलिए विवाह किया कि मैं बेटा पैदा कर सकूं. आप के शिष्यों ने पता नहीं क्याक्या झूठ बोल कर मेरे गरीब मातापिता को भ्रम में रखा और जब तक मुझे सचाई का पता चलता, बहुत देर हो चुकी थी.

‘‘जिस औरत ने मुझे सहारा दिया और मुसीबत के क्षणों में मेरा साथ दिया, जिस के कहने पर यह सारा प्रेम प्रपंच रचा गया वह आप के पीछे खड़ी है. मैं तो एक साधारण औरत ही थी.’’

महाराज ने पीछे मुड़ कर देखा तो उन की पत्नी सावित्री खड़ी थी. महाराज एकदम अचंभित से हो गए.

सावित्री उन्हें तीखी नजरों से देखने लगी, ‘‘महाराज, जिस तरह आप ने लोगों से धन जमा किया है, हम ने भी उसी प्रकार आप से ले लिया है. आप जहां शिकायत करना चाहें करें पर इतना ध्यान जरूर रखें कि आप के कारनामे सुनने के लिए बाहर समाचारपत्र और टीवी चैनल वाले आप का इंतजार कर रहे हैं.’’

महाराज को ऐसा कोई रास्ता नहीं मिल रहा था कि वह बाहर जा सकें. खिड़की का परदा हटा कर देखा तो आश्रम के बाहर हजारों व्यक्तियों की भीड़ उमड़ पड़ी थी जो काफी गुस्से में थी.

सावित्री ने सुनीता के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘अब तुम मेरे संरक्षण में हो. तुम्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं है. जिस इनसान को भीड़ से बचने की चिंता है वह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता.’

वजन कम करना है तो इतने देर की नींद है जरूरी

नींद हमारे शरीर के साथ साथ हमारे दिमाग की भी जरूरत है. एक स्वस्थ व्यक्ति को दिनभर में कम से कम 7 से 8 घंटे की नींद लेने चाहिए. इससे कई तरह की गंभीर स्वास्थ परेशानियां जैसे, दिल की बीमारी, स्ट्रोक, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज के साथ वजन बढ़ने का खतरा दूर होता है. जो लोग बढ़ते वजन से परेशान हैं उनके लिए नींद का पूरा होना एक्सरसाइज और जरूरी डाइटिंग से भी कहीं ज्यादा जरूरी है.

जो लोग कम सोते हैं उनमें वजन का बढ़ना और तनाव जैसी परेशानियां देखी जाती हैं. जानकारों की माने तो नींद की कमी से शरीर के घ्रेलिन और लेप्टिन हार्मोंस पर असर पड़ता है. शरीर में घ्रेलिन हार्मोन के निकलने पर भूख का ज्यादा एहसास होता है. ये हार्मोन मेटाबौलिज्म को कमजोर करता है और शरीर में फैट जमा करता है.

वहीं, शरीर की फैट कोशिकाओं से लेप्टिन हार्मोन निकलता है. भूख को कम करने में इस हार्मोन का बड़ा योगदान होता है. अगर शरीर में ये हार्मोन कम बनने की सूरत में हमें अधिक भूख लगती है. यही कारण है कि आपका वजन बढ़ जाता है.

लेप्टिन हार्मोन शरीर की फैट कोशिकाओं से निकलता है. ये हार्मोन को भूख को कम करता है. शरीर में लेप्टिन हार्मोन के कम मात्रा में बनने से भूख ज्यादा लगती है, जिस कारण आप जरूरत से ज्यादा खा लेते हैं. ये आपका वजन बढ़ाने का काम करता है.

नींद की कमी के कारण वजन बढ़ने के साथ, दिमाग और सेहत पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है. इसलिए अगर आप अपने वजन को कंट्रोल में रखना चाहते हैं तो 7-8 घंटे की नींद जरूर लें.

बीच वेकेशन के लिए सबसे जरुरी चीज़ें ले जाना ना भूलें

अगर आप बीच वेकेशन पर जाना चाहती हैं तो आपको क्या-क्या बैग में रखना जरूरी हैं ये आपको बताते हैं. जिससे आप बीच वेकेशन को ज्यादा से ज्यादा इन्जौय कर सकें. तो आइए बताते हैं, आप बीच वेकेशन के लिए कैसे बैग पैक कर सकती हैं.

बीच पर टू पीस पहनें या फिर कुछ भी शौर्ट क्लोथ, अपने साथ इस तरह का स्विम कवर जरूर रखें.

swim

समुद्री किनारों पर बिताई हुई छुट्टियां टैनिंग दे जाती हैं.

travel

इसीलिए अपने साथ एक ब्रिम हैट के साथ-साथ सनस्क्रीन रखें, जो आपको सूरज की हानिकारक किरणों से बचा कर रखें.

maxi dress

स्विम कवर के साथ-साथ इस तरह का स्विमसूट भी बैग में पैक करें.बीच पर फ्लोरल मैक्सी ड्रेस बहुत शानदार लगती है और फोटोज़ भी बहुत अच्छी आती हैं.

flip flop

रेत पर घूमने के लिए अपने साथ इस तरह फ्लिप फ्लौप रखें.

भरोसा खुद पर करें ईश्वर पर नहीं

अमीर देशों में धार्मिक अंधविश्वास कम होते हैं और गरीब देशों में ज्यादा. इसी तरह अमीर लोग कम अंधविश्वासी होते हैं और गरीब लोग ज्यादा. 109 देशों के पूरे 20वीं सदी के आंकड़ों को जांच कर यह गुत्थी सुलझाने की कोशिश की गई कि अंधविश्वास पैसा आने के बाद कम होते हैं या पैसा आता ही तब जब अंधविश्वास कम हों.

यूनिवर्सिटी औफ ब्रिस्टल व यूनिवर्सिटी औफ टैनिसी के शोधकर्ताओं का मानना है कि अंधविश्वासों में कमी ही देश, राज्य, समाज या घर की आर्थिक प्रगति के लिए जिम्मेदार है. आर्थिक प्रगति से अंधविश्वासों में कमी हो जाएगी यह गलत धारणा है.

यह स्वाभाविक है कि जो लोग हरेक सुख के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने के आदी हो जाते हैं वे सबकुछ ईश्वर के पूजापाठ पर छोड़ देते हैं. जिन्हें खुद पर विश्वास होता है उन्हें ईश्वर से कोई अपेक्षा नहीं होती और वे मेहनत कर के उत्पादन करते हैं.

हमारे देश में उत्तर प्रदेश, बिहार गरीब हैं क्योंकि ये ही देश के तीर्थस्थलों के केंद्र हैं. गंगा के किनारे हर 100 मीटर पर एक घाट बना है. कुछ मील पर मंदिरों का शहर है. हर शहर बदबूदार है. हर शहर में गंद है. हर शहर में बेईमानी है. हर शहर में तीर्थयात्रियों की भरमार है. लोग अपने काम अधूरे छोड़ कर पुण्य कमाने और ईश्वर को खुश करने यहां आते हैं.

हां, हमारे यहां बहुत से अमीर भी अति धार्मिक हैं पर यह याद रखिए कि इन धार्मिक अमीरों में 99% सरकारी कृपा पर पनप रहे हैं. उन के उद्योगों और आशाराम के आश्रमों में फर्क नहीं है. वे उद्योगपति कम हैं, सरकार व जनता को बहका कर लूटे पैसे के संरक्षक ज्यादा. दुनियाभर में भारतीय ब्रैंड नाम कहीं नहीं बिकता.

खाड़ी के देशों में भरपूर तेल है पर उस पैसे का पिछले 100 सालों में क्या हुआ? वहां की अंधविश्वासी जनता ने उसे नष्ट कर डाला. हिटलर बेहद अंधविश्वासी था. उस ने यहूदियों के धर्म को समाप्त करने के लिए नया धर्म बना लिया था. नतीजा यह हुआ कि अपने खनीजों और लोगों की मेहनत को दूसरे विश्वयुद्ध में स्वाहा कर दिया. आज वहां चर्च बंद हो रहे हैं और पैसा बरस रहा है. अमेरिका में धर्म का बोलबाला बढ़ रहा है और वह नास्तिक चीन से पिछड़ने लगा है.

यह घरघर की कहानी है. सिर्फ अंधविश्वास और प्रगति अकेले फैक्टर नहीं होते, सुखसमृद्धि के. दूसरी बातें भी होती हैं. कहीं प्राकृतिक भंडार होते हैं, कहीं राजनीतिक अस्थिरता होती है, कहीं पैसे और पूंजी की मौलिक कमी होती है, तो कहीं पड़ोसी देश का आक्रमण होता है. वैसे ही आत्मविश्वासी भी कई बार सफल नहीं होते, क्योंकि बीमारी आ सकती है, प्रतियोगी दांवपेंच रच सकता है.

पर यह सोचना कि 4 घंटे पूजा करने, साल में 4 बार वैष्णो देवी या तिरुपति जाने से धनधान्य बरसने लगेगा, गलत है. पैसे वाले जो लूट का खाते हैं, वे तो जाएंगे पर लूटने के अवसर हरेक को थोड़े मिलते हैं?

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