मौनसून के रंग सितारों के संग    

आज से कई साल पहले ‘टिप टिप बरसा पानी…….’ फिल्म ‘मोहरा’ का ये गाना हिट हुआ, जिसकी रीमेक एक बार फिर किया जा रहा है. दरअसल बारिश की बूंदों को लेकर बनी तक़रीबन सभी गाने प्रकृति की रोमांस को दर्शाते है, जिसे फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों में फिल्माने से कभी नहीं कतराएं, फिर चाहे वह देश में हो या विदेश में, उसकी सुन्दरता दर्शकों को हमेशा भाया और हो भी क्यों न? मानसून की बौछार से जनजीवन से लेकर पेड़ पौधे और जानवर सभी खिल जाते है, लेकिन जहां इस बारिश को कलाकार पर्दे पर भले ही रोमांटिक पहलू को जीवंत करने के लिए करते हो, पर असल जीवन में कुछ कलाकार को बारिश कतई पसंद नहीं, जबकि कुछ को पसंद भी है. क्या कहते है वे इस बारें में, आइये जाने उन्ही से.

मल्लिका शेरावत

मानसून को बहुत एन्जौय करती हूं. विदेश में भी बारिश होती है, पर वहां ठण्ड अधिक होने से अच्छा नहीं लगता. सूरज नहीं निकलता और डिप्रेसिंग होता है. हमारे देश में मानसून खुशियों के साथ नवजीवन को साथ लेकर आता है. माटी की सौधी-सौधी खुश्बू,गर्मी का कम होना,चारों तरफ हरियाली आदि सबकुछ देखना मुझे बहुत अच्छा लगता है. मुझे मानसून में समुद्री तट पर चलना बहुत पसंद है.

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तुषार कपूर

मानसून पहले मुझे अधिक पसंद नहीं था. बेटे के आने के बाद इसे मैं अधिक पसंद करने लगा हूं. इस मौसम में लक्ष्य के साथ मैं पार्क में जाता हूँ और वह 2 से 3 घंटे तक खेलता है. इसलिए अब मैं इसे पसंद करने लगा हूं.

सिमोन सिंह

मुझे मानसून बहुत अच्छा लगता है. इस मौसम में मिट्टी की भीनी-भीनी खुश्बू और पेड़ पौधों से टपकते बारिश की बूँदें इस मौसम में देखना बहुत अच्छा लगता है. बचपन से ही मैंने इसे एन्जॉय करती आई हूँ. ख़ासकर समुद्री तट इस मौसम में बहुत सुंदर लगता है.

विद्या बालन

मुझे इस मौसम में ठंडी हवा और बारिश को देखना बहुत अधिक पसंद है. मैंने बचपन से इसे पसंद किया है. सिर्फ आउटडोर शूटिंग और बाहर जाना इन दिनों मुश्किल होता है. गरम चाय और पकौड़े इस मौसम को और अधिक सुहावना बनाते है.

सोनाक्षी सिन्हा

मानसून मुझे पसंद नहीं. खास कर मुंबई में तो हर जगह पानी भर जाता है और इस मौसम में मुझे काम करना भी अच्छा नहीं लगता. उदासी वाले इस मौसम में कुछ भी करना मुझे पसंद नहीं. इस मौसम में मैं घर पर रहना पसंद करती हूँ.

आयुष्मान खुराना

मुझे बारिश और मानसून का मौसम बहुत पसंद है इसे मैं बहुत एन्जौय करता हूं. खास कर परिवार और दोस्तों के साथ रहने में मुझे बहुत अच्छा लगता है. पानी जीवन है और बारिश इसका एक माध्यम, जिसे मैं कभी मिस नहीं करना चाहता.

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कैटरीना कैफ

मुझे बारिश की बौछार से आने वाली माटी की खुश्बू बहुत पसंद है. इसे मैं मुंबई में रहकर एन्जौय करना चाहती हूं, लेकिन अगर ऐसा न हुआ, तो मैं इसे बहुत मिस करती हूं. बारिश की बूंदे मुझे बहुत अच्छी लगती है. बारिश की ये बूंदे प्यार और रोमांस का एहसास करवाते है.

कलाकार को इज्जत और मान लेना आना चाहिए –अनीता राज

80 के दशक में हिंदी सिनेमा जगत में कामयाबी की कदम छूने वाली एक्ट्रेस अनीता राज के पिता जगदीश राज थे, जिन्होंने अधिकतर फिल्मों में पुलिस औफिसर की भूमिका निभाई और गिनिस वर्ल्ड रिकौर्ड में शामिल हुए. अनीता ने अपने कैरियर की शुरुआत फिल्म ‘प्रेमगीत’ से की. फिल्म की सफलता ने उन्हें रातोंरात एक्ट्रेस बना दिया. अनीता ने काम के बीच में कई बार ब्रेक लिया और सही भूमिका मिलने पर काम की तरफ रुख किया, फिल्मों के अलावा उन्होंने कई धारावाहिकों में भी काम किया है. अभी अनीता राज कलर्स टीवी पर धारावाहिक ‘छोटी सरदारनी’ में गांव की महिला सरपंच की भूमिका निभा रही है, जो एक महत्वाकांक्षी महिला है. पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल- इस शो की कौन सी बात आपको खास लगी?

इस शो का चरित्र मुझे बहुत अच्छा लगा. ये बहुत ही आत्मविश्वास से परिपूर्ण महिला का किरदार जो आजकल की अधिकतर महिलाएं है. मुझे याद आता है कि कुछ दिनों पहले मैं पटियाला गयी थी और मैंने वहां टोल टैक्स पर एक महिला को काम करते हुए देखा, जिसे देखकर मुझे बहुत खुशी हुई. मैंने बहुत ट्रेवल किया है, पर किसी भी जगह पर ऐसा नहीं देखा है. मेरी भूमिका भी वैसी ही है, जो बहुत पावरफुल सरपंच की है, जो काम के साथ-साथ अपने परिवार को भी प्रोटेक्ट करती है. ये किरदार मेरे लिए चुनौतीपूर्ण है.

सवाल- आप अभी फिल्मों या धारावाहिकों में कम नजर आ रही है, इसकी वजह क्या मानती है?

मैंने एक साल पहले एक धारावाहिक में काम खत्म किया है, इसके बाद दो फिल्में की. इसके बाद ये कहानी आई, इस तरह काम चलता रहता है.

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सवाल- आपने एक लम्बी जर्नी इंडस्ट्री में तय किया है, पहले और आज में कितना परिवर्तन पाती है?

मैं इस इंडस्ट्री की बहुत शुक्रगुजार हूं, क्योंकि मुझे हर तरह के निर्माता, निर्देशक, यूनिट और कलाकार के साथ काम करने का मौका मिला. इसके अलावा मेरे पिता जगदीश राज जिन्होंने हर फिल्म में इंस्पेक्टर की भूमिका निभाई. उनका नाम गिनीज वर्ल्ड रिकौर्ड में शामिल है और मैं उनकी बेटी हूं. इसलिए मैं जब इंडस्ट्री में आई तो जरा सा भी संघर्ष नहीं करना पड़ा, क्योंकि सबको पता था कि मैं उनकी बेटी हूं. दौर में अन्तर बहुत आया है. अभी खाना वैनिटी वैन में खाते है, तब सेट पर खाते थे. ड्रेस बदलना होता था, तो ऐसी जगह की तलाश की जाती थी जहां लोगों का आना जाना नहीं था. तकनीक और काम करने के तरीके में भी बहुत बदलाव आया है. इससे आज काम करना बहुत आसान हो गया है. मेरे लिए अच्छा यह है कि मैंने वो दौर और इस दौर को भी देखा है. दोनों को मैं एन्जौय कर रही हूं.

सवाल- क्या अभी भी इंडस्ट्री में वही इज्ज़त और मान कलाकारों को मिलता है,जैसा पहले मिला करता था, क्योंकि आज कलाकारों की संख्या हर दिन बढ़ रही है, हर दिन नए-नए कलाकारों से दर्शको को परिचित होना पड़ रहा है?

इज्जत और मान लेना किसी भी कलाकार को आना चाहिए. अगर आपने किसी की इज्जत नहीं की, तो आप किसी सम्मान के हकदार नहीं. कहानियों में बहुत परिवर्तन आया है. पहले पुरुष प्रधान फिल्में अधिक थी, जबकि अब कहानी रिलेट करने वाली होने से सफल होती है. ये बदलाव अच्छे के लिए हुआ है.

सवाल- आपने शादी की बच्चे की मां बनी इस दौरान आपने कई बार ब्रेक लिया और वापस काम से जुड़ी, क्या इसका प्रभाव आपके करियर पर पड़ा?

कभी भी नहीं, क्योंकि मुझे जो भी स्क्रिप्ट अच्छी लगी मैंने किया. हर काम के लिए आपकी स्वीकारोत्मक अप्रोच होने की जरुरत होती है. इस उम्र में आप हीरोइन की भूमिका नहीं कर सकते, ऐसे में आपको अपनी उम्र को समझना पड़ता है और अगर आपने उसे ग्रेसफुली स्वीकार कर लिया है, तो आप खुश रहते है और उसकी झलक आपके चहरे पर होती है.

सवाल- आपकी फिटनेस का राज क्या है?

मैं फिटनेस फ्रीक हूं और अपने डाइट पर बहुत ध्यान देती हूं. खाना भले ही न खाऊं, पर जिम अवश्य जाती हूं. असल में 90 प्रतिशत आपकी भोजन का होता है और 10 प्रतिशत केवल वर्कआउट होता है. वेट वर्कआउट मैं करती हूं. मेरा बेटा शिवम हिंगोरानी वेलनेस से जुड़ा हुआ है और प्लांट बेस्ड प्रोटीन शेक प्रोड्यूस करता है. इसलिए हम दोनों स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देते है.

सवाल- आपके बेटे ने कभी आपके क्षेत्र में आने की कोशिश नहीं की?

उसने कई फिल्मों में अस्सिस्टेंट डाइरेक्टर का काम किया है और आगे भी कर रहा है, लेकिन उसकी रूचि वेलनेस पर अधिक है.

सवाल- क्या अभिनय से इतर आप कुछ करने की इच्छा रखती है?

मेरे भाई की बेटी ड्रेस डिजाइनर है और उसके परिधान भी मैं पहनती हूं, लेकिन मैं अभिनय के अलावा कुछ सोचा नहीं है.

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सवाल- आज की महिला सशक्त होने के बावजूद भी प्रताड़ित होती है, इसकी वजह क्या मानती है?

आज की महिला जागरूक और सशक्त भी है. इसके अलावा उनके लिए बनाये गए कानून भी बहुत सख्त है, लेकिन कुछ महिलाएं इसका गलत प्रयोग भी करती है. मेरी उनसे गुजारिश है कि कोई भी समस्या अगर रियल है तो उसमें उस कानून का प्रयोग अवश्य करें, किसी को कष्ट देने के लिए उसका प्रयोग न करें.

सवाल- कोई ऐसा क्षेत्र जिसमें आप कुछ सामाजिक कार्य करना चाहे?

मैं सामाजिक कार्य समय समय पर करती रहती हूं. मुझे याद आता है कि मैं नागपुर के एक गाँव में गयी थी, जहां मैंने एक 50 साल के उम्र की महिला जो 80 साल की लग रही थी उसने महाराष्ट्रियन कास्टा साड़ी में बिना चप्पल के पहले 5 किलोमीटर और बाद में 10 किलोमीटर की मैराथन दौड़ पूरी की,क्योंकि उसके पास पति के इलाज के लिए पैसे नहीं थे. मैंने उसे सम्मानित किया था, उसे कुछ पैसे भी मिले, ऐसे जो लोग गुमनाम है, उनके लिए काम करने की जरुरत है.

सवाल- आप अपनी दौर की अभिनेत्रियों के साथ आजकल कितना मेलजोल रखती है?

मेरी बातचीत पद्मिनी कोल्हापूरे और पूनम ढिल्लों के साथ होती रहती है. मिलना कम होता है.

सवाल- कोई ऐसी फिल्म जिसे आप करना चाहती है?

कौमेडी फिल्म करने में मजा आता है, वो अगर फिर करने को मिले तो बहुत अच्छा रहेगा.

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औफिस में काम करने वाली लड़कियों को ऐसे करें इंप्रैस

समाज बदल रहा है. धीरेधीरे लड़का-लड़की के बीच का अंतर खत्म हो रहा है. कार्यस्थलों से ले कर समाज में हर जगह लड़कालड़की एकसाथ काम कर रहे हैं. परेशानी की बात यह है कि इतने बदलावों के बावजूद अभी तक पुरुषों की भाषा और सोच में बदलाव नहीं आया है. ऐसे में लड़कियों को कई बार असहजता का अनुभव होता है, जो विवाद का कारण भी बन जाता है. लड़कियों की सुरक्षा के लिए बने कानून इस तरह की कई घटनाओं को अपराध मानते हैं. लड़कालड़की के बीच दूरी कम हो और ऐसे विवाद न हों, इस के लिए लड़कों को अपनी सोच व बातचीत का सलीका बदलने की जरूरत है. उन्हें लड़की को एक दोस्त और सहयोगी की नजर से देखना होगा, तभी आपस में अच्छा व स्वस्थ रिश्ता पनपेगा. इस सेघरपरिवार और समाज का भला होगा. लड़कियों के साथ अच्छा व्यवहार करना उन को बराबरी का दर्जा देने की बड़ी पहल है.

नेहा रवि के औफिस में काम करती है. दोनों एक ही रास्ते से अपने घर को जाते हैं. पहले दोनों अलगअलग साधनों से घर से औफिस जाते थे लेकिन अब रवि ने कार खरीद ली है. सो, दोनों एकसाथ कार से ही औफिस आनेजाने लगे हैं. एकसाथ आनेजाने के बाद दोनों पैट्रोल का खर्च आपस में बराबरबराबर बांटते हैं. ऐसे में उन के बीच कभी इस बात का एहसास ही नहीं रहा कि कौन लड़का है और कौन लड़की. रवि और नेहा ने अपनी सोच बदली तो उन के बीच संबंध भी प्रगाढ़ होते गए. केवल रवि और नेहा ही ऐसे नहीं हैं. प्रकाश और कविता भी एकसाथ काम करते थे, जब कभी लंच में या सुबह की चाय का समय आता तो दोनों अपना खर्च खुद उठाते थे. इस का सब से अच्छा रास्ता यह था कि एक दिन का बिल प्रकाश देता तो दूसरे दिन का बिल कविता देती थी.

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समान हों काम के अवसर रवि और कविता ने अकसर देखा कि उन के साथ काम करने वाले साथियों का आपस में काम करतेकरते तनाव हो जाता था. इस का कारण था कि अकसर लड़कियां सोचती थीं कि उन को काम कम करना पड़े. वे अपने लड़की होने का फायदा उठाना चाहती थीं. लड़के उन के इस व्यवहार का लाभ उठाना चाहते थे. ऐसे में आपस का रिश्ता बजाय समझदारी के, स्वार्थ का हो जाता था, जिस की वजह से तमाम शिकायतें होने लगती थीं.

शिवानी और शैलेश के बीच कुछ ऐसा ही हुआ था. शैलेश अकसर शिवानी का काम खुद ही कर लेता था. यह बात शिवानी सभी से कहती भी थी. कई महीने तक यह सब चलता रहा. एक दिन शिवानी ने शैलेश के खिलाफ सब से शिकायत करनी शुरू कर दी. शिवानी की शिकायत थी कि कल रात पार्टी में शैलेश ने उस के साथ गलत व्यवहार करने की कोशिश की. एक बार बात बिगड़ी तो शिवानी और शैलेश दोनों की ही तरफ से आरोपप्रत्यारोप का दौर चला. काम और व्यवहार से शुरू हुई बातचीत निजी संबंधों तक आ गई. दोनों की बातों से यह साफ हो गया कि शिवानी और शैलेश के बीच का रिश्ता केवल आपसी प्रलोभन पर था. शिवानी शैलेश से अपने काम कराती थी. शैलेश को लगता था कि इस के एवज में वह शिवानी से कुछ और हासिल कर सकता है. जब शिवानी ने शैलेश की मनमानी नहीं चलने दी तो दोनों के ही रिश्ते तनावपूर्ण हो गए. शिवानी और शैलेश के व्यवहार से यह बात साफ हो गई कि लड़कालड़की के बीच जहां रिश्तों में स्वार्थ आया वहां मामला बिगड़ते देर नहीं लगती है. ऐसे में दोस्ती में भी जिम्मेदारी बराबरबराबर ही बांटें.

आकर्षण के मोहपाश से बचें किशोरावस्था और उस के बाद की उम्र में लड़कालड़की का आपस में आकर्षण होना कोई बड़ी बात नहीं है. यह आकर्षण स्वार्थ और लोभ में बदल भी जाता है. आमतौर पर पुरुष लड़कियों की मदद कर के उन से लोभ कर बैठता है. ज्यादातर मामलों में यह दैहिक आकर्षण भर होता है. कई बार लड़कियां खुद भी ऐसे मौके देती हैं, जिस से कि वे अपनी बात को मनवा सकें.

कई बार यह शिकायत होती है कि कोई लड़का फलां लड़की का काफी समय से मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न कर रहा है. किसी भी लड़की का लंबे समय तक उत्पीड़न संभव नहीं होता है. यह तभी होता है जब दोनों तरफ से रजामंदी हो. जब नाराजगी होती है तो ऐसे आरोप लगाए जाते हैं. महिला कानूनों को देखें तो यह साफ हो जाता है कि बलात्कार की तमाम घटनाएं भी इस तरह की होती हैं, जिन में लंबे समय तक एकदूसरे के रिश्ते चलते हैं, फिर टूट जाते हैं. आज के दौर में इस तरह के संबंधों के टूटने का प्रभाव लड़की पर तो पड़ता ही है, विवाद होने की दशा में लड़के की मानप्रतिष्ठा, कैरियर और घरसमाज भी टूट जाता है. विवेक के साथ भी कुछ ऐसे ही हुआ. उस की साथी प्रिया ने एकसाथ रहते हुए लंबा वक्त गुजार दिया. इस के बाद एक दिन दोनों के बीच जब विवाद हुआ तो प्रिया ने विवेक पर शारीरिक उत्पीड़न का आरोप लगा दिया. नतीजतन, विवेक को जेल जाना पड़ा. विवेक की नौकरी तो गई ही, उस का मानसम्मान और प्रतिष्ठा भी दावं पर लग गई.

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कार्यस्थल की बात हो या वहां से बाहर की, लड़की के साथ समान व्यवहार रखें. आकर्षण के मोहपाश में फंस कर लड़के कई बार लड़कियों को छृने का प्रयास करते हैं. यह एक शारीरिक आकर्षण होता है और यही हर विवाद की जड़ भी होता है. कई बार तो लड़कियां पहले इस का लाभ उठाती हैं, लेकिन बाद में इस को ही मुद्दा बना लेती हैं. महिला कानून महिलाओं को ऐसे अवसर देते हैं जिन से वे अपने साथ रहने वाले को ही आरोपी बना सकती हैं. सभ्य व्यवहार जरूरी

लड़कों के साथसाथ लड़कियों को भी अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा. उन को खुद से लाभ उठाने की प्रवृत्ति छोड़नी होगी. लिवइन रिलेशनशिप में रहते समय लड़कालड़की की समान सहमति होती है. इस के बाद जब कभी इन में विवाद होता है तो दोनों अलगअलग हो जाते हैं. आरोप लड़के पर लगते हैं. कानूनी रूप से लड़कियों को ज्यादा अधिकार मिलते हैं. सामान्यतौर पर लड़कियों को ऐसे अवसरों का लाभ उठाने से बचना चाहिए. उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि बिना उस की सहमति के कोई लड़का लाभ नहीं उठा सकता है. जब दोनों की आपसी सहमति थी तो फिर केवल लड़के को दोष देना उचित नहीं है. लड़कियों या महिलाओं द्वारा जब कानून का गलत इस्तेमाल किया जाता है तो संबंधित कानून पर ही सवाल खड़े होने लगते हैं.

दहेज कानून और महिला हिंसा कानून में यह दुरुपयोग देखने को भी मिलता है. अब कोर्ट से ले कर समाज तक यह मानने लगा है कि ये कानून दुरुपयोग का जरिया बन रहे हैं. ऐसे में जब कोई महिला सही शिकायत भी करती है तो उसे लोग संदेह की नजर से देखते हैं. सही शिकायत को भी गलत माना जाता है. कानून पर लोगों का भरोसा बना रहे, इस के लिए जरूरी है कि कानून का दुरुपयोग न हो. कानून और पुलिस हमेशा परेशान करने वाला काम ही करते हैं. ऐसे में जरूरी है कि खुद समझदारी दिखाएं और ऐसे हालात पैदा ही न होने दें. सो, आपस में सभ्य व्यवहार रखना पड़ेगा.

लाभ उठाने की भूल न करें लड़की यदि खुद से पहल कर लाभ उठाने वाला काम करती दिखे तो उस से दूर रहना चाहिए. अगर लड़की का काम करना है तो उस से उसी तरह का व्यवहार करें जैसे आप अपने पुरुषसाथी से करते हैं. ऐसा करने से हालात नहीं बिगड़ेंगे. कभी ऐसी शिकायत होगी भी, तो सफाई देना आसान होगा. गलत काम कर सफाई देना मुश्किल होता है.

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ऐसे में सही रास्ते पर चलें जिस से परेशानी से बच सकें. अब लड़कियां केवल औफिस में ही काम नहीं करतीं, वे फील्ड जौब भी खूब कर रही हैं. ऐसे में उन के साथ काम करने का समय ज्यादा मिलता है. इस समय को अवसर समझ कर इस का लाभ उठाने की भूल न करें. लाभ उठाने की छोटी सी भूल ही आप के गले की फांस बनती है. युवावस्था में ही नहीं, ऐसे हालात कभी भी बन सकते हैं. ऐसे में जरूरी है कि अब पुरुषवर्ग अपनी सोच और भाषा दोनों पर नियंत्रण रखे. कई बार आपस में बात करते समय लोग यह भूल जाते हैं कि कौन सी बात लड़कियों के सामने नहीं करनी चाहिए, जिस से लड़कियों को बुरा महसूस होता है. महिला और पुरुष का साथसाथ काम करना आज समय की जरूरत है. आपस में दूरी बना कर काम नहीं हो सकता. हर क्षेत्र में ऐसे हालात बन गए हैं. ऐसे में जरूरी है कि पुरुषवर्ग उन के साथ अपना व्यवहार बदले, अपनी बातचीत के सलीके से उन्हें इंप्रैस करे.

 

गंदी नजरों से बचना इतना दर्दनाक क्यों

मैट्रो स्टेशन में हों या भीड़भरी सड़कों पर, बस में हों या बाइक अथवा रिकशे पर आप ने अकसर देखा होगा कि लड़कियां अकसर दुपट्टे या स्टोल से अपने पूरे चेहरे और बालों को ढक कर रखती हैं. सिर्फ उन की आंखें दिखती हैं. कभी-कभी तो उन पर भी गौगल्स चढ़े होते हैं. इन लड़कियों की उम्र होती है 15 से 35 साल के बीच.

अब आप के मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि आखिर ये लड़कियां डाकू की तरह अपना चेहरा क्यों छिपाए रखती हैं? आखिर प्रदूषण, धूलमिट्टी से तो पुरुषों और अधिक उम्र की महिलाओं को भी परेशानी होती है. फिर ये लड़कियां किस से बचने के लिए ऐसा करती हैं?

दरअसल, ये लड़कियां बचती हैं गंदी नजरों से. पुरुष जाति यों तो महिलाओं के प्रति बहुत सहयोगी होती है पर कई दफा भीड़ में इन लड़कियों का सामना ऐसी नजरों से भी हो जाता है जो कपड़ों के साथसाथ शरीर का भी पूरा ऐक्सरे लेने लगती हैं. उन नजरों से वासना की लपटें साफ नजर आती हैं. मौका मिलते ही ऐसी नजरों वाले लोग लड़कियों को दबोच कर उन के अरमानों, सपनों के परों को क्षतविक्षत कर फेंक डालते हैं.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में हर एक घंटे में 4 रेप यानी हर 14 मिनट में 1 रेप होता है. ऐसे में लड़कियों को खुद ही अपनी हिफाजत करने का प्रयास करना होगा. उन निगाहों से पीछा छुड़ाना होगा जो उन के स्वतंत्र वजूद को नकारती हैं. उन के हौसलों को जड़ से मिटा डालती हैं. यही वजह है कि  अब लड़कियां जूडोकराटे सीख रही हैं. छुईमुई बनने के बजाय दंगल में लड़कों को चित करना पसंद कर रही हैं. पायलट बन कर सपनों को उड़ान देना सीख रही हैं, नेता बन कर पूरे समाज को अपने पीछे चलाने का जज्बा बटोर रही हैं.

मगर सच यह भी है कि उदाहरण बनने वाली ऐसी महिलाएं अब भी ज्यादा नहीं हैं. अभी भी ऐसी महिलाओं की भरमार है, जिन के साथ भेदभाव और क्रूरता का नंगा खेल खेला जाता है. उन के मनोबल को गिराया जाता है और यह काम सिर्फ पुरुष ही नहीं करते, अकसर महिलाएं भी महिलाओं के साथ ऐसा करती हैं. सुरक्षा के नाम पर उन की जिंदगी से खेलती है.

ऐसी ही एक दिल दहलाने वाली प्रथा है. मर्दों की गंदी नजरों से बचाने के लिए ब्रैस्ट आयरनिंग.

ब्रैस्ट आयरनिंग

ब्रैस्ट आयरनिंग यानी सीने को गरम प्रैस से दबा देना. इस पंरपरा के तहत लड़कियों के सीने को किसी गरम चीज से दबा दिया जाता है ताकि उन के उभारों को रोका जा सके और उन्हें मर्दों की गंदी नजरों से बचाया जा सके.

अफ्रीका महाद्वीप के कैमरून, नाइजीरिया और साउथ अफ्रीका के कुछ समुदायों में माना जाता है कि महिलाओं की ब्रैस्ट को जलाने से उस की वृद्धि नहीं होती. तब पुरुषों का ध्यान लड़कियों पर नहीं जाएगा. इस से रेप जैसी घटनाएं कम होंगी. किशोरियों के पेरैंट्स ही उन के साथ यह घिनौनी हरकत करते हैं. ब्रैस्ट आयरनिंग के

58% मामलों में लड़की की मां ही इसे अंजाम देती है. पत्थर, हथौड़े या चिमटे को आग में तपा कर बच्चियों की ब्रैस्ट पर लगाया जाता है ताकि उन की ब्रैस्ट के सैल्स हमेशा के लिए नष्ट हो जाएं.

यह दर्दभरी प्रक्रिया सिर्फ इसलिए ताकि लड़कियों को जवान दिखने से रोका जा सके. ज्यादा से ज्यादा दिनों तक वे बच्ची ही लगें और उन पुरुषों से बची रहें जो उन्हें अगवा करते हैं, उन का यौनशोषण करते हैं या उन पर भद्दे कमैंट करते हैं. यानी इसे बचाव का तरीका माना जाता है. बचाव यौन शोषण से, बचाव रेप से, बचाव मर्दों की लड़कियों में इंटरैस्ट से.

कैमरून की अधिकतर लड़कियां 9-10 साल की उम्र में ब्रैस्ट आयरनिंग की प्रक्रिया से गुजर चुकी होती हैं. ब्रैस्ट आयरनिंग की यह बीभत्स प्रक्रिया लड़कियों के साथ 2-3 महीनों तक लगातार की जाती है.

अफ्रीका के गिनियन गल्फ में स्थित कैमरून की आबादी करीब 1.5 करोड़ है और यहां करीब 250 जनजातियां रहती हैं. टोगो, बेनिन और इक्काटोरिअल गुनिया से सटे इस देश को ‘मिनिएचर अफ्रीका’ भी कहा जाता है. इस अजीबोगरीब प्रथा के कारण पिछले कुछ समय से कैमरून काफी चर्चा में है.

मूल रूप से पश्चिमी अफ्रीफा में शुरू हुई यह परंपरा अब ब्रिटेन समेत कुछ अन्य यूरोपीय देशों तक पहुंच गई है. एक अनुमान के मुताबिक ब्रिटेन में भी करीब 1 हजार लड़कियों को इस प्रक्रिया से गुजरता पड़ा है.

इस प्रथा का लड़कियों की सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ता है, सिर्फ शारीरिक ही नहीं, मानसिक भी. ब्रैस्ट आयरनिंग की वजह से उन्हें इन्फैक्शन, खुजली, ब्रैस्ट कैंसर जैसी बीमारियां हो जाती हैं. आगे चल कर स्तनपान कराने में भी काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है.

गौरतलब है कि अन्य अफ्रीकी देशों की तुलना में कैमरून की साक्षरता दर सब से अधिक है. सैक्सुअल आकर्षण और दिखावे से बचाने के लिए की जाने वाली इस बीभत्स प्रथा के बावजूद यहां लड़कियों के कम उम्र में गर्भवती होने के मामले सामने आते रहते हैं.

जाहिर है, ब्रैस्ट आयरनिंग से इस धारणा को जोर मिलता है कि लड़कियों के शरीर का आकर्षण ही पुरुषों को बेबस करता है कि वे इस तरह की हरकतें करें, यौन हमलों या रेप जैसी घटनाओं में पुरुषों की कोई गलती नहीं होती.

यह प्रथा जैंडर वायलैंस के तहत आती है. एक ऐसा वायलैंस जिसे सुरक्षा के नाम पर घर वाले ही अंजाम देते हैं और अपनी ही बच्ची की जिंदगी तबाह कर डालते हैं.

दुनियाभर में लड़कियों को ऐसी दर्दनाक प्रथाओं से गुजरना पड़ता है ताकि उन की इज्जत बची रहे. जैसे इज्जत कोईर् चीज है जिसे ऐसी ऊलजलूल प्रथाओं द्वारा चोरी हो जाने से बचाया जा सकता है.

कुप्रथाओं का काला इतिहास

महिलाओं पर अत्याचार की कहानी बहुत पुरानी है और तरीके भी बहुत सारे हैं. तरहतरह से प्रथाओं और परंपराओं के नाम पर उन के साथ ज्यादतियां की जाती हैं, उन्हें सताया जाता है और पीड़ा पहुंचाई जाती है. उन के तन के साथसाथ उन के मन को भी कुचला जाता है. हम बता रहे हैं कुछ ऐसी प्रथाओं के बारे में जिन का मकसद कभी महिलाओं की पवित्रता की जांच करना होता है तो कभी उन की सुरक्षा, कभी उन की खूबसूरती बढ़ाना तो कभी बदसूरत बनाना. यानी वजह कुछ भी हो मगर मूल रूप में मकसद होता है उन्हें प्रताडि़त करना और पुरुषों के अधीन रखना:

–  औरतों को खतना जैसी कुप्रथा का भी शिकार होना पड़ता है. इस में औरतों का क्लाइटोरिस काट दिया जता है ताकि उन का सैक्स करने का मन न करे. भारत में इस प्रथा का चलन बोहरा मुसलिम समुदाय में है. भारत में बोहरा आबादी आमतौर पर गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में है. 10 लाख से अधिक आबादी वाला यह समाज काफी समृद्ध है और दाऊदी बोहरा समुदाय भारत के सब से ज्यादा शिक्षित समुदायों में से एक है. पढ़ेलिखे होने के बावजूद वे इस तरह की बेसिरपैर की बातों में यकीन करते हैं.

लड़कियों का खतना किशोरावस्था से पहले यानी 6-7 साल की उम्र में ही करा दिया जाता है. इस के कई तरीके हैं जैसे ब्लेड या चाकू का इस्तेमाल कर क्लाइटोरिस के बाहरी हिस्से में कट लगाना या बाहरी हिस्से की त्वचा निकाल देना. खतना से पहले ऐनेस्थीसिया भी नहीं दिया जाता. बच्चियां पूरे होशोहवास में रहती हैं और दर्द से चीखती रहती हैं.

खतना के बाद हलदी, गरम पानी और छोटेमोटे मरहम लगा कर दर्द कम करने की कोशिश की जाती है. माना जाता है कि क्लाइटोरिस हटा देने से लड़की की यौनेच्छा कम हो जाएगी और वह शादी से पहले यौन संबंध नहीं बनाएगी.

खतना से औरतों को शारीरिक तकलीफ तो उठानी ही पड़ती है, इस के अलावा तरहतरह की मानसिक परेशानियां भी होती हैं. उन की सैक्स लाइफ पर भी असर पड़ता है और वे भविष्य में सैक्स ऐंजौय नहीं कर पातीं.

–  थाईलैंड की केरन जनजाति में लंबी गरदन महिलाओं की खूबसूरती की निशानी मानी जाती है. उन की गरदन लंबी करने के लिए उन्हें एक दर्दभरी प्रक्रिया से गुजारा जाता है.

5 साल की उम्र से उन के गले में रिंग पहना दी जाती है. इस से गरदन भले ही लंबी हो जाती हो, लेकिन जिस दर्द और तकलीफ से गुजरना होता है उसे पीडि़ताएं ही समझ सकती हैं. वे अपनी गरदन पूरी तरह घुमा भी नहीं पातीं और यह रिंग उन्हें उम्रभर पहननी पड़ती है.

–  रोमानिया, इटली, संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा अन्य कई देशों में रोमन जिप्सी समुदाय के लोग रहते है. इस समुदाय में किसी लड़की से शादी की इच्छा हो तो लड़के को उस का अपहरण करना होता है. लड़का यदि 3-4 दिनों तक लड़की को उस के मातापिता से छिपा कर रखने में सफल हो जाता है तो वह लड़की उस की संपत्ति मानी जाती हैऔर फिर उन दोनों की शादी कर दी जाती है.

–  भारत में लंबे समय तक बहुविवाह प्रथा कायम रही. इस के तहत पुरुष को यह आजादी थी कि वह जब चाहे जितनी चाहे महिलाओं को अपनी स्त्री बना सकता था. इस के कारण औरतें अपने पति के लिए भोग की वस्तु बन कर रह गई थीं.

इसी तरह केरल और हिमाचल में बहुपतित्व की परंपरा कायम है, जिस में एक स्त्री को 1 से अधिक पतियों की पत्नी बनना स्वीकार करना पड़ता है. इस व्यवस्था के तहत पहले ही निश्चित कर लिया जाता है कि स्त्री कितने दिन तक किस पति के साथ रहेगी.

दक्षिण भारत की आदिवासी जनजाति टोडा, उत्तरी भारत के जौनसर भवर में, त्रावणकोर और मालाबार के नायरों में, हिमाचल के किन्नोर और पंजाब के मालवा क्षेत्र में भी यह प्रथा देखने को मिल जाती है. जहां पहले बहुपतित्व जैसी परंपरा स्त्री को भावनात्मक और मानसिक रूप से तोड़ देती थी, वहीं अब बहुपतित्व की यह प्रथा उसे शारीरिक रूप से भी झकझोर देती है.

–  केन्या, घाना और युगांडा जैसे देशों में एक विधवा औरत को यह साबित करना होता है कि उस के पति की मौत उस की वजह से नहीं हुई है. ऐसे में उस विधवा औरत को क्लिनजर के साथ सोना पड़ता है. कहींकहीं विधवा को अपने मृत पति के शरीर के साथ ही 3 दिनों तक सोना पड़ता है. परंपरा के नाम पर उसे पति के भाइयों के साथ सैक्स करने पर भी मजबूर किया जाता है.

–  सुमात्रा की मैनताइवान जनजाति में औरतों के दांतों को ब्लेड से नुकीला बनाया जाता है. यहां ऐसी मान्यता है कि नुकीले दांतों वाली औरत ज्यादा खूबसूरत लगती है.

इसी तरह अफ्रीका की मुर्सी और सुरमा जनजाति की महिलाएं जब प्यूबर्टी की उम्र में आ जाती हैं तो उन के नीचे के सामने के 2 दांतों को तोड़ कर निचले होंठ में छेद कर के उसे खींच कर एक प्लेट लगाई जाती है. दर्द सहने के लिए कोई दवा भी नहीं दी जाती. हर साल इस लिप प्लेट का आकार बढ़ाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि जितनी बड़ी प्लेट और जितने बड़े होंठ होंगे वह महिला उतनी ही खूबसूरत होगी.

–  सोमालिया और इजिप्ट के कुछ पिछड़े समुदायों में बहुत ही अजीब कारण से क्लिटोरल को विकृत कर दिया जाता है. किशोरियों की वर्जिनिटी की रक्षा के लिए बिना दवा दिए वैजाइना को सील कर दिया जाता है. यह आज भी लागू हो रही है हालांकि कम हो चुकी है.

–  इसलामिक गणराज्य मौरिटानिया के कुछ हिस्सों में माना जाता है कि अधिक वजन वाली पत्नी खुशी और समृद्धि लाती है. ऐसे में यहां शादी से पहले युवतियों को जबरदस्ती रोज लगभग 16,000 कैलोरी की डाइट दी जाती है ताकि उन का वजन बढ़ जाए.

–  अरुणाचल प्रदेश की जीरो वैली की अपातानी ट्राइब की महिलाओं की नाक के छेद में वुडन प्लग्स इन्सर्ट कर दिए जाते थे. ऐसा उन्हें बदसूरत दिखाने के लिए किया जाता था ताकि कोई ट्राइब महिला को किडनैप न करें. हालांकि अब इस पर काफी हक तक रोक लग गई है.

क्या पुरुष दूध के धुले होते हैं

भारतीय इतिहास में चाणक्य और उस के अर्थशास्त्र का काफी नाम है. जरा स्त्रियों के प्रति उस के विचारों पर गौर करें-

स्त्रियां एक के साथ बात करती हुईं दूसरे की ओर देख रही होती हैं और चिंतन किसी और का हो रहा होता है. इन्हें किसी एक से प्यार नहीं होता.

कहने का मतलब यह है कि स्त्री जैसा पतित और व्यभिचारी और कोई नहीं होता. मगर क्या चाणक्य से यह नहीं पूछा जाना चाहिए था कि क्या पुरुष दूध के धुले होते हैं?

कामवासना तो मानव प्रवृति का एक स्वाभाविक हिस्सा है और मर्यादा का उल्लंघन करने की प्रवृत्ति स्त्री और पुरुष दोनों में समान रूप से मिलती है. परंतु धर्मशास्त्रों में सदा से व्यभिचार के लिए स्त्री चरित्र को ही दोष दिया गया है. पुरुष अपने दुष्कर्मों को आसानी से छिपा सकता है. समाज में उस की स्थिति मजबूत होती है, इसलिए वह दोषमुक्त हो जाता है, जबकि स्त्री को हमेशा शोषण सहना पड़ा है.

जरूरी है कि हम सदियों पुरानी अपनी मानसिकता में बदलाव लाएं. जरा आंखें खोल कर देखें कि शारीरिक रूप से भिन्न होने के बावजूद स्त्री और पुरुष प्रकृति की 2 एकसमान रचनाएं हैं. दोनों के मिल कर और एक स्तर पर आगे बढ़ने से ही समाज की प्रगति संभव है. स्त्री हो या पुरुष दोनों को समान अवसर और समान दर्जा दिया जाना वक्त की मांग है.

जानें क्यों महिलाओं के लिए खतरनाक हो सकता है फाइब्रौयड

20से 50 % महिलाओं को फाइब्रौयड की प्रौब्लम होती है, लेकिन केवल 3% मामलों में ही यह बांझपन का कारण बनता है. जो महिलाएं इस के कारण बांझपन से जूझ रही होती हैं, वे भी इस के निकलने के बाद सफलतापूर्वक गर्भधारण कर सकती हैं. बहुत ही कम मामलों में स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि गर्भाशय निकालना पड़ता है. वैसे जिन महिलाओं को बांझपन की प्रौब्लम होती है उन में फाइब्रौयड्स अधिक बनते हैं. जानिए फाइब्रौयड के कारण बांझपन की प्रौब्लम क्यों होती है और उससे कैसे निबटा जाए:

क्या होता है फाइब्रौयड

यह एक कैंसर रहित ट्यूमर होता है, जो गर्भाशय की मांसपेशीय परत में विकसित होता है. जब गर्भाशय में केवल एक ही फाइब्रौयड हो तो उसे यूटराइन फाइब्रोमा कहते हैं. फाइब्रौयड का आकार मटर के दाने से ले कर तरबूज बराबर हो सकता है.

इंट्राम्युरल फाइब्रोयड्स

ये गर्भाशय की दीवार में स्थित होते हैं. यह फाइब्रौयड्स का सब से सामान्य प्रकार है.

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सबसेरोसल फाइब्रौयड्स

ये गर्भाशय की दीवार के बाहर स्थित होते हैं. इन का आकार बहुत बड़ा हो सकता है.

सबम्युकोसल फाइब्रौयड्स

ये गर्भाशय की दीवार की भीतरी परत के नीचे स्थित होते हैं.

सरवाइकल फाइब्रौयड्स

ये गर्भाशय की गरदन (सर्विक्स) में स्थित होते हैं.

फाइब्रौयड और बांझपन की प्रौब्लम

फाइब्रौयड का आकार और स्थिति निर्धारित करती है कि वह बांझपन का कारण बनेगा या नहीं. इस तरह से फाइब्रौयड्स सफल गर्भधारण और प्रसव में बाधा बनते हैं. कई मामलों में फाइब्रौयड्स निषेचित अंडे को गर्भाशय की भीतरी दीवार से जुड़ने नहीं देता. जब फाइब्रौयड गर्भाशय की बाहरी दीवार पर होता है तो गर्भाशय का आकार बदल जाता है और गर्भधारण करना कठिन हो जाता है.

गर्भाशय की एनाटौमी बदल जाना

जब फाइब्रौयड बहुत बड़े-बड़े होते हैं तो वे गर्भाशय की पूरी ऐनाटौमी को विकृत कर देते हैं, जिस से उस का आकार असामान्य रूप से बड़ा हो जाता है, इस से गर्भधारण करने में परेशानी आ सकती है.

निषेचन न हो पाना

गर्भाशय में फाइब्रौयड होने के कारण यूटरिन कैनाल काफी लंबी हो जाती है तो शुक्राणु समय से अंडे तक नहीं पहुंच पाते हैं, क्योंकि दूरी बढ़ जाती है और निषेचन नहीं हो पाता है.

शारीरिक संबंध बनाने में परेशानी होना

गर्भाशय में फाइब्रौयड होने के कारण शारीरिक संबंध बनाने में बहुत दर्द होता है. दरअसल इस दौरान शरीर में रिदमिक कौन्ट्रैक्शन होता है जो स्पर्म को अंडे के पास पहुंचाता है, लेकिन फाइब्रौयड के कारण यह डिस्टर्ब हो जाता है.

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इंप्लांटेशन में प्रौब्लम आना

फाइब्रौयड के कारण भ्रूणगुहा से जुड़ नहीं पाता. अगर जुड़ भी जाए तो ठीक प्रकार से विकसित नहीं हो पाता.

कैसे निबटें

फाइब्रौयड के कारण गर्भधारण करने में प्रौब्लम होना, बारबार गर्भपात होना, बच्चे के जन्म के समय अत्यधिक दर्द होना जैसी प्रौब्लमएं हो जाती हैं. लेकिन अत्याधुनिक तकनीकों ने फाइब्रौयड के कारण होने वाली बांझपन की प्रौब्लम के लिए कारगर उपचार उपलब्ध कराए हैं.

क्या है इसकी दवा

फाइब्रौयड के उपचार के लिए सब से पहले दवा दी जाती है. कई महिलाओं में दवा के सेवन से ही यह पूरी तरह ठीक हो जाता है.

सर्जरी:

जब दवा काम न करें तब मरीज को सर्जरी कराने की सलाह दी जाती है.

क्या है मायोमेक्टोमी

गर्भाशय की दीवार से फाइब्रौयड को सर्जरी के द्वारा निकाल दिया जाता है. एंडोमिट्रिअल ऐब्लेशन: इस में गर्भाशय की सब से अंदरूनी परत को निकाल दिया जाता है. इस प्रक्रिया का उपयोग तब किया जाता है जब फाइब्रौयड गर्भाशय की आंतरिक सतह पर होता है. लैप्रोस्कोपी तकनीक ने इन सर्जरियों को आसान व दर्दरहित बना दिया है. इस में समय भी काफी कम लगता है.

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ओपन सर्जरी है औप्शन

ओपन सर्जरी का औप्शन गर्भाशय के असामान्य रूप से बड़े होने और ट्यूमरों की संख्या को देखते हुए चुना जाता है. जब दोबारा सर्जरी करने की आवश्यकता पड़ती है तब भी ओपन सर्जरी को लैप्रोस्कोपी पर प्राथमिकता दी जाती है.

हीलिंग प्रोसैस

आमतौर पर लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के 3 से 6 महीने बाद गर्भधारण करने की सलाह दी जाती है, लेकिन ओपन सर्जरी में 6 महीने आराम करने की सलाह दी जाती है ताकि घाव भर जाएं. हीलिंग प्रोसैस के बाद सामान्य रूप से गर्भधारण करने की संभावना देखी जाती है. सर्जरी के 1 साल के अंदर गर्भधारण करना जरूरी है, क्योंकि कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि 1 वर्ष के भीतर ही गर्भधारण करने का अवसर रहता है. सर्जरी द्वारा फाइब्रौयड निकालने के बाद जो महिलाएं सामान्य रूप से मां नहीं बन पा रही हैं, वे आईवीएफ का विकल्प चुन सकती हैं.

-डा. अरविंद वैद

आईवीएफ ऐक्सपर्ट, इंदिरा आईवीएफ अस्पताल, नई दिल्ली

5 टिप्स: फेसकट के हिसाब से बनाएं आईब्रोज

बिजी लाइफस्टाइल में अक्सर हम अपने फेस और स्किन का ख्याल नही रख पाते, जिससे हमारे फेस का ग्लो कम हो जाता है. फेस का सबसे जरूरी हिस्सा आईब्रोज का होता है, जो हमारी ब्यूटीफुल आंखों को नया लुक देता है, लेकिन अक्सर हम आईब्रोज को लेकर कईं असावधानियां बरतते हैं, जो हमारे फेस को बिगाड़ देती हैं. आईब्रोज फेस के अनुसार होनी चाहिए. ऐसी कईं बाते हैं जो हमें आईब्रो बनवाते समय ध्यान देनी चाहिए. इसके लिए आज हम आपको फेस के अनुसार कैसी आईब्रोज रखें इसकी कुछ खास टिप्स बताएंगे…

1. लंबे फेसकट के लिए ये टिप्स है जरूरी

लंबे फेस वाली महिलाओं को आईब्रोज की लंबाई कम नहीं करवानी चाहिए. साथ ही उन का उभार आईबोन के करीब ही रखवाना चाहिए. ऐसा करने से फेस की लंबाई कम दिखती है. ऐसे फेस पर सीधी, बादाम के आकार की और अंडाकार शेप अच्छी लगती है.

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2. गोल फेस कट वाले लोग दें खास ध्यान

गोल फेस पर आईब्रोज का उभार आईबोन से थोड़ा ऊपर होना चाहिए. ऐसा करने से चेहरा भराभरा नहीं लगता है. फेस की ऐसी बनावट पर धनुषाकार आईब्रोज अधिक फबती हैं.

3. एग शेप फेस वाले लोग हैं बेस्ट

फेस की यह बनावट हर लिहाज से बैस्ट मानी जाती है यानी ऐसे फेस पर हर तरह की आईब्रोज शेप, हेयर कट और मेकअप जंचता है. जहां तक बात आईब्रोज शेप की है, तो इस बनावट पर अंडाकार शेप आईब्रोज फेस को आकर्षक बनाती हैं.

4. चौकोर फेस करें ये टिप ट्राय

फेस की ऐसी बनावट वाली महिलाओं को आईब्रोज की राउंड या धनुषाकार शेप करवानी चाहिए. ये शेप उन्हें सौफ्ट लुक देती है.

5. छोटे फेस वालों के लिए काम की है ये टिप्स

ऐसे फेस की बनावट वाली महिलाओं को दोनों आईब्रोज के बीच में सामान्य से ज्यादा दूरी करवानी चाहिए. इस के अलावा अगर नाक लंबी है, तो आईब्रोज को आईबोन से अधिक ऊपर नहीं बनवाना चाहिए अन्यथा बड़ी आंखें भी छोटी दिखती हैं. यदि आंखें बड़ी हैं, तो आईब्रोज पतली बनवाएं और अगर आंखें छोटी हैं, तो आईब्रोज मोटी व लंबी बनवाएं.

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भारत में सेक्स टैबू को तोड़ने के लिए ‘खानदानी शफाखाना’ पूरी तरह तैयार

हमारी जिंदगी से जुड़ी इस फिल्म एक छोटे से शहर से आयी पंजाबी लड़की बेबी बेदी की कहानी बयां करती है, जिसे अपने चाचा से एक सेक्स क्लीनिक विरासत में मिलती है. उसके पूरे सफर के दौरान, यह फिल्म दर्शकों को इस बात का एहसास कराती है कि इस देश के ज़्यादातर हिस्सों में सेक्स अभी भी एक टैबू बना हुआ है और हमारे समाज में सेक्स के से जुड़ी ग़लत सोच को तोड़ने के लिए एक मुहीम छेड़ती है.

इस फिल्म के निर्माताओं ने सेक्स से जुड़े टैबू और इससे जुड़ी समस्याएं हमारे समाज में लगभग सभी के आम सुख-शांति पर कैसे असर डालती हैं इस बात  का विश्लेषण करने और उसे पेश करने के लिए एक मजाकिया तरीका अपनाया है. इतना ही नहीं, इस फिल्म हमें यह बात की झलक मिलती है कि कैसे एक पुरुष प्रधान समाज सेक्स से जुड़ी समस्याओं की वकालत करने वाली और खुलेआम उनका इलाज करने वाली लड़की के प्रति प्रतिक्रिया करता है.

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इस फिल्म के बारे में बात करते हुए, सोनाक्षी ने कहा, “मैंने इस फिल्म में काम करने का फ़ैसला किया उसकी ख़ास वजह इसका सब्जेक्ट है और कैसे यह आज के ज़माने से जुड़ा हुआ है. मुझे खुशी है कि शिल्पी ने हमारे देश में सेक्स टैबू के बारे में एक फिल्म बनाने का फैसला किया. .. यह एक बहुत ही हिम्मत की बात है. मैं लोगों को बेबी बेदी की टैगलाइन को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहूंगी , जो है, शर्माओ मत, बात तो करो!”

निर्देशक शिल्पी दासगुप्ता कहते हैं, “यह बेहद आश्चर्य की बात है कि हिंदुस्तानी लोग इस दुनिया की हर चीज़ के बारे में बहुत लंबी-चौड़ी बहस करते हैं. आप समझ सकते हैं….. इस मुद्दे को छोड़कर. खैर, यह अब वक़्त आ गया है जब हम सेक्स के बारे में बात करें. मेरा मानना है कि हम इस बारे में जितना जल्दी ज़्यादा खुलेंगे, उतनी ही जल्दी हम एक स्वस्थ समाज में बदलें जायेंगे. ”

फिल्म में वरुण शर्मा और बादशाह भी हैं, जो रुपहले पर्दे पर अपनी शुरुआत कर रहे हैं. गुलशन कुमार और टी-सीरीज पेश करते हैं, खानदानी शफाखाना, सनडायल प्रोडक्शन की एक फिल्म. भूषण कुमार, महावीर जैन, मृगदीप सिंह लांबा, दिव्या खोसला कुमार द्वारा निर्मित, शिल्पी दासगुप्ता द्वारा निर्देशित यह फिल्म 2 अगस्त 2019 को रिलीज होने के लिए तैयार है.

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42 की उम्र में इस एक्ट्रेस ने की दूसरी शादी, 8 साल पहले हुआ था तलाक

बौलीवुड एक्टर अनिल कपूर की हिरोइन रह चुकीं पूजा बत्रा कईं सालों से फिल्मों से दूर चल रही हैं, लेकिन बीते दिनों एक्टर नवाब शाह से उनके डेटिंग के चर्चाओं से वे एक बार फिर सुर्खियों में आ गईं हैं. वहीं हाल ही में पूजा के इंस्टाग्राम अकाउंट पर उनकी फोटोज से साफ पता चल रहा है कि उन्होंने चोरी छिपे शादी कर ली है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

नवाब शाह ने शेयर की वीडियो

 

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A story you can make a movie on ❤️?????

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एक्टर नवाब शाह ने एक वीडियो अपने इंस्टाग्राम पर शेयर किया है जिसमें उनका और एक्ट्रेस पूजा बत्रा का हाथ दिखाई दे रहा है और एक्ट्रेस के हाथ में लाल चूड़ा इस बात का इशारा कर रहा है कि दोनों ने शादी कर ली है. इसके साथ ही वीडियो पर नवाब शाह ने कैप्शन दिया है, ‘एक कहानी जिस पर फिल्म बनाई जा सकती है.’ इसके साथ ही नवाब शाह ने हार्ट का इमोजी भी शेयर किया है.

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इंस्टास्टोरी में पूजा ने की वीडियो शेयर

 

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Sea Sun Sand and a scorpion ❤️??

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इतना ही नहीं पूजा बत्रा के इंस्टास्टोरी में शेयर की गई एक वीडियो में वो मस्ती करती हुई चल रही हैं. इस वीडियो में पूजा ने यही चूड़ा पहना हुआ है. मुंबई मिरर को कपल से जुड़े एक करीबी सूत्र ने बताया, ‘अभी तक उनकी शादी रजिस्टर नहीं हुई है लेकिन ये जल्दी ही हो जाएगी. उनका परिवार और करीबी दोस्त इनके लिए खुश है. वो लोग हाल ही में श्रीनगर में नवाब की बहन की शादी के लिए आए हुए थे.’

बता दें, एक्ट्रेस पूजा बत्रा बौलीवुज की कईं हिट फिल्मों का हिस्सा रह चुका हैं, वहीं एक्टर नवाब शाह की बात करें तो वह कईं फिल्मों नवाब शाह विलेन के रोल्स में नजर आ चुकीं हैं.

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कामकाजी महिलाओं का बढ़ता रुतबा

देश में नौकरी करने वाली महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है. आजादी के 7 दशक बाद पहली बार नौकरियों में शहरी महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों से ज्यादा हो गई है. सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में कुल 52.1% महिलाएं जबकि 45.7 प्रतिशत पुरुष कामकाजी हैं। वैसे ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं नौकरियों में अभी भी पुरुषों से पीछे हैं.

कहीं न कहीं महिलाओं की बढ़ती प्रोफेशनल और टेक्नीकल शिक्षा और लोगों की सोच में परिवर्तन ने बदलाव की यह बयार चलाई है. आज पुरुष भी स्त्रियों को सहयोग देने लगे हैं. लोगों की मानसिकता स्त्री सपोर्टिव बनती जा रही है.

औरतें आज न सिर्फ जरुरत के लिए बल्कि अपने मन की ख़ुशी के लिए भी कामकाजी होना पसंद करती हैं. औफिस के बहाने वे घर के तनावों से बाहर निकल पाती हैं. अपनी पहचान बना पाती हैं.

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घर से ज्यादा औफिस में खुश रहती हैं महिलाएं

पेन स्टेट यूनिवर्सिटी द्वारा हाल में हुई एक स्टडी की रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं को अपने घर के मुकाबले औफिस में कम तनाव होता है. स्टडी के दौरान शोधकर्ताओं ने एक हफ्ते लगातार 122 लोगों में कोर्टीसोल हार्मोन (तनाव पैदा करने वाला हार्मोन) के स्तर की जांच की. इस के साथ ही दिन में अलगअलग समय उन के मूड के बारे में पूछा. नतीजों में सामने आया कि महिलाओं को अपने घर के मुकाबले औफिस में कम तनाव होता है. इस स्टडी में अलग-अलग बैकग्राउंड से आए लोगों को शामिल किया गया. शोधकर्ताओं के मुताबिक़ महिलाएं ऑफिस में ज्यादा खुश रहती हैं जब कि पुरुष अपने घर में ज्यादा खुश रहते हैं.

इस का एक कारण यह भी है कि जब महिलाओं को उन की जौब से संतुष्टि नहीं होती है, तो वे अपनी जौब बदल लेती हैं और जहां उन्हें अच्छा महसूस होता है वहीं जौब करती हैं. लेकिन पुरुष ऐसा नहीं करते हैं. अपनी जौब से संतुष्ट न होने के बाद भी वे उसी कंपनी में काम करते रहते हैं जिस कारण वे औफिस में खुश नहीं रह पाते हैं. इस के अलावा पुरुषों में अधिक अधिकार पाने की जंग भी चलती रहती है. उन का ईगो भी बहुत जल्दी हर्ट होता है.

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घर को महकाएं कुछ ऐसे

रिमझिम फुहारें माहौल को खुशनुमा बना देती हैं. भीषण गरमी के बाद बारिश सब को राहत देती है, लेकिन इसे आप तभी ऐंजौय कर सकती हैं, जब आप का घर फ्रैश और सुगंधित हो. इस बारे में इलिसियम एबोडेस की फाउंडर और इंटीरियर डिजाइनर हेमिल पारिख बताते हैं कि असल में लगातार बारिश की वजह से हवा में नमी की मात्रा बढ़ जाती है. घर के अंदर भी यह नमी प्रवेश कर जाती है. गरमी और नमी की अधिकता से घर की दीवारों पर सीलन आ जाती है, फफूंदी आदि लग जाती है, जिस से बासी गंध चारों तरफ फैल जाती है. स्वच्छ हवा की कमी होने लगती है. इसलिए जरूरी है कि आप अपने घर और आसपास के क्षेत्र को साफसुथरा रखें, ताकि आप को स्वच्छ और अच्छा वातावरण मिले. पेश हैं, कुछ जरूरी टिप्स:

1. कपूर को अधिकतर लोग किसी खास अवसर पर ही जलाते हैं. बारिश में इसे जलाने से फंगल इन्फैक्शन और बासी गंध से बचा जा सकता है. इसे जलाने के बाद कमरे के दरवाजे और खिड़कियां बंद कर 15 मिनट बाद खोल दें. रूम में ताजगी आ जाएगी.

2. अगर आप के कमरे में फर्नीचर है तो उसे गीला होने से बचाएं. गीले फर्नीचर से कई बार दुर्गंध आती है.

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3. पायदान को गीला न होने दें. हर 2-3 दिन बाद उसे पंखे के नीचे रख कर सुखाएं.

4. कुछ लोग बारिश के मौसम में कीड़ेमकोड़ों के डर से दरवाजे और खिड़कियां बंद रखते हैं. इस से कमरे के अंदर बासी गंध अधिक होती है. अत: थोड़ी देर के लिए ही सही पर खिड़कीदरवाजे खुला रखें ताकि बाहर की ताजा हवा अंदर आ सके. इस से क्रौस वैंटिलेशन होने के साथसाथ कमरे की दुर्गंध भी जाएगी.

5. समुद्री नमक किसी भी गंध को सोखने के लिए अच्छा विकल्प है. यह कमरे की नमी को कम करने के अलावा दुर्गंध को भी सोख लेता है. नमक को पतले कपड़े में रख चारों तरफ से सिल कर कमरे में रखें. हर 3-3 दिन बाद नमक को बदल दें.

6. बासी गंध को दूर करने के लिए विनेगर बहुत अच्छा काम करता है. चौड़े मुंह वाले बरतन में 1 कप विनेगर डाल कर कमरे के किसी कोने में रख दें. थोड़ी ही देर में आप को ताजगी का एहसास होने लगेगा.

7. आजकल बाजार में रूम फ्रैशनर आसानी से मिलते हैं. अपनी पसंद के अनुसार ले कर कमरे में स्प्रे कर सकती हैं. इस में लैवेंडर, जास्मिन, गुलाब आदि फ्रैशनैस महसूस कराते हैं.

8. नीम के पत्ते फफूंद को दूर करने में कारगर होते हैं. इस के पत्तों को सुखा कर कपड़ों के बीच और अलमारी के कोनों में रख सकती हैं.

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9. किचन में मस्टी स्मैल को कम करने के लिए बेक करने का आइडिया बहुत अच्छा है. बेकिंग से इस की खुशबू पूरी किचन में फैल जाएगी.

10. इस मौसम में तरहतरह के फूल खिलते हैं और इन फूलों की खुशबू को कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता. ये फूल केवल सुगंध ही नहीं देते, बल्कि फ्रैशनैस भी कायम रखते हैं. गुलाब चंपा, चमेली, जास्मिन आदि सभी फूल अपनी खुशबू से घर को महकाते हैं, इसलिए इन्हें गुलदस्ते में अवश्य सजाएं.

11. सुगंधित मोमबत्तियां और तेल जलाने से भी घर का वातावरण ताजगीयुक्त हो जाएगा.

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