केन्द्र सरकार ने इन दवाइयों पर लगा दिया है प्रतिबंध, देखें आप भी

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में कई दवाइयों पर प्रतिबंध लगा दिया है. इन प्रतिबंधित दवाइयों में पेट दर्द, दस्त, ब्लड प्रेशर जोड़ो का दर्द, सर्दी जुकाम, बुखार समेत 80 जेनरिक एफडीसी दवाइयों पर रोक लगाई है. सूत्रों की माने तो स्वास्थ्य मंत्रालय ने 80 नए जेनरिक एफडीसी पर रोक लगाई है. अब इनके मौन्यूफैक्चरिंग और बिक्री नहीं हो पाएगी. अपने इस कदम के पीछे केंद्र का कहना है कि ये दवाएं प्रयोग के लिए सुरक्षित नहीं हैं. आपको बता दें कि इन दवाइयों का कारोबार करीब 900 करोड़ रुपये का है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जिन 80 जेनरिक FDC दवाओं को प्रतिबंधित किया है उसमें पेट दर्द, उल्टी,बल्ड प्रेशर, जोड़ों के दर्द, बुखार, सर्दी जुकाम,बुखार की दवाइयां शामिल हैं. फिक्सड डोज कौम्बिनेशन वाली इन दवाओं में अधिकतर एंटीबायोटिक दवाइयां हैं. इससे पहले स्वास्थ्य मंत्रालय ने 300 से अधिक FDCs को प्रतिबंधित किया था.
पुरानी सूची की वजह से Alkem, Microlabs, Abbott सिप्ला , ग्लेनमार्क इंटास फार्मा फाइजर वाकहार्ड और Lupin जैसे कंपनियों के कई ब्रांड प्रतिबंधित हुए थे. गौरतलब है कि पुरानी सूची से 6000 से अधिक ब्रांड बंद हुए थे.

‘दबंग 3’ में साउथ का यह सुपरस्टार निभाएगा विलेन का रोल

बौलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान अब तक अपने दूसरे निर्माताओं की फिल्मों को पूरा करने में लगे थे, जिसके चलते ‘दबंग’ का तीसरा भाग शुरू होने में वक्त लग रहा था. लेकिन खबरों के अनुसार सलमान जल्द ही अपने बाकी काम को खत्म कर ‘दबंग 3’ की शूटिंग शुरू करेंगे. सलमान खान के भाई अरबाज ने कुछ दिन पहले ही कन्फर्म किया है कि ‘दबंग 3’ का पहला शेड्यूल इस साल अप्रैल महीने से शुरू होगा. ‘बिग बौस 12’ खत्म हो चुका है और ‘भारत’ के अंतिम शेड्यूल की शूटिंग बाकी है. उसके बाद सलमान खान ‘दबंग 3’ शुरू करेंगे. अरबाज के मुताबिक अभी लोकेशन देखने का काम चल रहा है और जल्द ही उसे फाइनल कर लिया जाएगा साथ ही बाकी की स्टार कास्ट भी.

dabang

वहीं खबरों की मानें तो सलमान की फिल्म ‘दबंग 3’ में कन्नड़ के स्टार सुदीप मुख्य खलनायक की भूमिका में होंगे. सलमान और सुदीप काफी समय से एक साथ काम करने की योजना बना रहे थे. वैसे इसका इशारा हाल ही में मिला था जब सलमान खान ने सुदीप की आने वाली फिल्म ‘पहलवान’ के ट्रेलर को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था.

sudeep-

जानकारी के मुताबिक ‘दबंग 3’ के डायरेक्टर प्रभुदेवा ने कुछ दिनों पहले सुदीप को उनके रोल के बारे में सुनाया था और उन्होंने सहमति दे दी है. खबर है कि सलमान और सुदीप मिल कर काफी धमाल करेंगे हालांकि सुदीप का किरदार पूरी तरह विलेन का नहीं बल्कि ग्रे शेड्स में होगा. पहले इस तरह की खबरें आ रही थी कि ‘दबंग 3’ में एक नहीं दो दो विलेन होंगे और दूसरे विलेन के लिए तेलुगु स्टार जगपति बाबू को कास्ट करने की योजना है जो इन दिनों अजय देवगन की फिल्म तानाजी की शूटिंग कर रहे हैं. लेकिन दबंग टीम से जुड़े लोगों ने इसे गलत बताया है.

sonakshi-dabangg

बता दें कि सलमान खान की पिछली दोनों दबंग फिल्मों में से एक को अभिनव कश्यप और दूसरे को उनके भाई अरबाज ने डायरेक्ट किया था लेकिन इस बार दबंग का निर्देशक बदल दिया गया है. साल 2009 में सलमान खान को फिल्म वांटेड में डायरेक्ट करने वाले प्रभुदेवा ‘दबंग 3’ को डायरेक्ट करेंगे.

‘दबंग 3’ में भी सलमान खान के साथ सोनाक्षी सिन्हा होंगी. फिल्म की शूटिंग अप्रैल में शुरू होकर करीब 100 दिन तक चलेगी. ऐसा माना जा रहा है कि सलमान खान ‘दबंग 3’ को इसी साल के अंत में रिलीज कर सकते हैं. इस साल सबसे पहले सलमान खान की भारत आएगी जो कोरिया की फिल्म ओड टू फादर का रीमेक है और उसके बाद ‘दबंग 3’.

भारत से बाहर जा रही हैं घूमने तो इन डौक्यूमेंट्स को जरूर रखें

बिना किसी झंझट के अपनी पहली विदेश यात्रा को सफल बनाना चाहती हैं तो कपड़ों, जूलरी और एक्सेसरीज के साथ-साथ जरूरी डौक्यूमेंटस कैरी करना न भूलें. बाहरी देशों के नियम-कानून बहुत सख्त होते हैं किसी भी चीज़ में की गई लापरवाही आपके पूरे ट्रिप को खराब कर सकती है. तो बेहतर होगा कि अपने हैंडबैग में जरूरी डौक्यूमेंटस के साथ उनकी एक फोटोकौपी भी रखें. आइए जानते हैं इनके बारे में.

वीजा– वीजा होता तो छोटा सा ठप्पा ही है लेकिन बिना इसके दूसरे देश में रूकना, घूमना-फिरना पौसिबल नहीं होता. बहुत सारे देशों में वीजा औन अरौइवल की सुविधा होती है. ऐसे में आपको पहले से वीजा कैरी करने की जरूरत नहीं पड़ती. तो जिस भी जगह घूमने जाने की प्लानिंग कर रहे हैं सबसे पहले वहां वीजा के नियम-कानूनों के बारे में पता कर लें. वीजा एप्लीकेशन पूरा होने में वक्त लगता है तो बेहतर होगा कि इसे अपने ट्रैवल डेट के काफी दिनों पहले अप्लाई कर दें. जिसे लास्ट मिनट में किसी तरह की भागदौड़ न हो.

पासपोर्ट– विदेश यात्रा के लिए सबसे जरूरी डौक्यूमेंटस है पासपोर्ट, जिसकी आपको ज्यादातर जगहों पर जरूरत पड़ती है. तो अगर आप देश से बाहर घूमने-फिरने की प्लानिंग कर रहे हैं तो सबसे पहले पासपोर्ट के लिए अप्लाई करें. और अगर पहले से है तो इसकी एक्सपायरी डेट चेक कर लें. पासपोर्ट के अलावा इसकी एक फोटोकौपी भी अपने साथ रखें. पौसिबल हो तो पासपोर्ट की सौफ्ट कौपी भी अपने साथ कैरी करें. इससे अगर आपका पासपोर्ट कहीं गुम हो जाता है तो सौफ्ट कौपी की मदद से इसे जल्द और आसानी से रिप्लेस किया जाता है.

करेंसी- बाहरी देश में क्रेडिट/डेबिट कार्ड के मुकाबले वहां की लोकल करेंसी इस्तेमाल करना ज्यादा बेहतर होता है तो अगर आपने फ्लाइट टिकट और होटल की बुकिंग करा ली है तो कुछ पैसों को जिस भी जगह जा रहे हैं वहीं की करेंसी में एक्सचेंज करा लें. जितना हो सके क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करें.

ट्रैवल इंश्योरेंस – ट्रैवल इंश्योरेंस में मेडिकल इमरजेंसी से लेकर ट्रिप कैंसिलेशन, सामान गुम हो जाना और भी ऐसी कई जरूरी चीजें कवर होती है. ये बेशक पासपोर्ट और वीजा जितना जरूरी नहीं लेकिन अगर आप अक्सर ट्रैवल करते हैं तो इसे ले लेना ही बेहतर होगा. क्योंकि किसी भी तरह की अनहोनी होने पर बाहरी देशों में मेडिकल सुविधाएं बहुत महंगी होती हैं जिन्हें अफोर्ड करना हर किसी के बस की बात नहीं.

एयर टिकट – फ्लाइट की बुकिंग ट्रिप की सबसे जरूरी चीजों में से एक है. अगर आप किसी बहुत ही मशहूर टूरिस्ट डेस्टिनेशन पर जा रहे हैं वो भी घूमने वाले सीजन में तो उस दौरान टिकट की कीमतों में बाकी सीजन के मुकाबले बेशक अंतर देखने को मिलेगा. जो आपका ट्रिप बजट बिगाड़ सकता है. इससे बचने के लिए आप टिकट की बुकिंग पहले करा लें. इसके साथ ही अपने टिकट की कौपी भी अपने साथ रखें जिससे अगर एक कहीं गुम हो जाए तो किसी तरह की कोई दिक्कत न हो.

फिल्म रिव्यू : बौम्बैरिया

रेटिंग : एक स्टार

गवाह की सुरक्षा के अहम मुद्दे पर अति कमजोर पटकथा व घटिया दृष्यों के संयोजन के चलते ‘बौम्बैरिया’ एक घटिया फिल्म बनकर उभरती है. बिखरी हुई कहानी, कहानी का कोई ठोस प्लौट न होना व कमजोर पटकथा के चलते ढेर सारे किरदार और कई प्रतिभाशाली कलाकार भी फिल्म ‘‘बौम्बैरिया को बेहतर फिल्म नहीं बना पाए.

फिल्म की शुरूआत होती है टीवी पर आ रहे समाचारनुमा चर्चा से होती है. चर्चा पुलिस अफसर डिमैलो के गवाह को सुरक्षा मुहैया कराने और अदालत में महत्वपूर्ण गवाह के पहुंचने की हो रही है.फिर सड़क पर मेघना (राधिका आप्टे) एक रिक्शे से जाते हुए नजर आती हैं. सड़के के एक चौराहे पर एक स्कूटर की उनके रिक्शे से टक्कर होती है और झगड़ा शुरू हो जाता है. इसी झगड़े के दौरान एक अपराधी मेघना का मोबाइल फोन लेकर भाग जाता है. और फिर एक साथ कई किरदार आते हैं. पता चलता है कि मेघना मशहूर फिल्म अभिनेता करण (रवि किशन) की पीआर हैं. उधर जेल में वीआईपी सुविधा भोग रहा एक नेता (आदिल हुसैन )अपने मोबाइल फोन के माध्यम से कई लोगों के संपर्क में बना हुआ है. वह नहीं चाहता कि महत्वपूर्ण गवाह अदालत पहुंचे. पुलिस विभाग में उसके कुछ लोग हैं, जिन्होने कुछ लोगों के फोन टेप करने रिक्शे किए है और इन सभी मोबाइल फोन के बीच आपस में होने वाली बात नेता जी को अपने मोबाइल पर साफ सुनाई देती रहती है. पुलिस कमिश्नर रमेश वाड़िया (अजिंक्य देव) को ही नहीं पता कि फेन टेप करने की इजाजत किसने दे दी. नेता ने अपनी तरफ से गुजराल (अमित सियाल) को सीआईडी आफिसर बनाकर मेघना व अन्य लेगों के खिलाफ लगा रखा है. अचानक पता चलता है कि फिल्म अभिनेता  करण की पत्नी मंत्री ईरा (शिल्पा शुक्ला) हैं और वह पुनः चुनाव लड़ने जा रही हैं, तो वहीं एक प्लास्टिक में लिपटा हुआ पार्सल की तलाश नेता व गुजराल सहित कईयों को है, यह पार्सल स्कूटर वाले भ्रमित कूरियर प्रेम (सिद्धांत कपूर) के पास है.तो वहीं एक रेडियो स्टेशन पर दो विजेता अभिनेता करण कपूर से मिलने के लिए बैठे है, पर अभिनेता करण कपूर झील में नाव की सैर कर रहे हैं. तो एक पात्र अभिषेक (अक्षय ओबेराय) का है, वह मेघना के साथ क्यों रहना चाहता है, समझ से परे हैं. कहानी इतनी बेतरीब तरीके से चलती है कि पूरी फिल्म खत्म होने के बाद भी फिल्म की कहानी समझ से परे ही रह जाती है. यह सभी पात्र मुंबई की चमत्कारिक सड़क पर चमत्कारिक ढंग से मिलते रहते हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है,तो नेता के किरदार में आदिल हुसैन को छोड़कर बाकी सभी कलाकार खुद को देहराते हुए नजर आए हैं.

पिया सुकन्या निर्देशित फिल्म ‘बौम्बैरिया’ में संवाद है कि : ‘मुंबई शहर संपत्ति के बढ़ते दामों और बेवकूफों की सबसे  बड़ी तादात वाला शहर है.’’शायद इसी सोच के साथ उन्होने एक अति बोर करने वाली फिल्म का निर्माण कर डाला. पिया सुकन्या की सोच यह है कि मुंबई शहर के लोगां के दिलां में अराजकता बसती है. पिया सुकन्या ने दर्शकों को एक थकाउ व डरावने खेल यानी कि ‘पजल’ को हल करने के लिए छोड़कर अपने फिल्मकार कर्म की इतिश्री समझ ली है.

एक घंटा अड़तालिस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘बौम्बेरिया’ का निर्माण माइकल ई वार्ड ने किया है. फिल्म की निर्देशक पिया सुकन्या, पटकथा लेखक पिया सुकन्या, माइकल ईवार्ड और आरती बागड़ी, संगीतकार अमजद नदीम व अरको प्रावो मुखर्जी,कैमरामैन कार्तिक गणेश तथा इसे अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं- राधिका आप्टे, आदिल हुसैन, सिद्धांत कपूर, अक्षय ओबेराय, अजिंक्य देव, शिल्पा शुक्ला,रवि किशन व अन्य.

फिल्म रिव्यू : 72 आवर्स

बौलीवुड में बायोपिक फिल्में काफी बन रही हैं. ‘‘72 आवर्स मर्टियार हूं नेवर डाइड’भी 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय तीन सौ चीनी सैनिकों के साथ लगातर 72 घंटे तक युद्ध करते हुए शहादत पाने वाले राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की बायोपिक फिल्म है. फिल्म का मर्म समझने के लिए फिल्म में सूत्रधार का संवाद ‘‘तुम्हारे आने वाले कल के लिए उन्होंने अपना आज कुर्बान कर दिया’’ काफी है. गणतंत्र दिवस से पहले इस फिल्म का सिनेमाघरो में पहुंचना एक अच्छा प्रयास है. मगर कमजोर पटकथा के चलते फिल्म अपना प्रभाव छोड़ने में असफल रहती है.

फिल्म की कहानी गढ़वाल में एक गरीब और अभावग्रस्त परिवार में पले बढ़े जसवंत सिंह रावत (अविनाश ध्यानी) हैं. बड़ी मुश्किल से उसके पिता गुमान रावत (वीरेंद्र सक्सेना) उसे साइकल खरीदने के लिए पैसे देते हैं, मगर कुछ गलत लोग उससे यह पैसा छीन लेते हैं. उसके बाद वह अपनी घरेलू जिम्मेदारीयों का निर्वाह करने और अपने बूढ़े लीना रावत (अलका अमीन) व  पिता गुमान रावत (वीरेंद्र सक्सेना) के कंधों का भार कम करने के लिए फौज में फर्ती हो जाते हैं. फौज की कड़ी ट्रेनिंग और सक्षम फौजी बनने के बाद वह अपने घर खुशहाली लाता है. पर छुट्टी खत्म होते ही पता चलता है कि चीन ने हमारे देश पर हमला कर दिया है. अपनी जांबाजी के साथ राइफलमैन जसंवत सिंह गढ़वाल राइफल की चौथे बटालियन के फौजियों के साथ असम के लिए निकल पड़ता है. असम से उनकी पलटन को तवांग और अरूणाचल प्रदेश के नाभा में भेजा जाता है, जहां उनकी पलटन को रक्षा कैंप तैयार करना है. तब जसवंत सिंह रावत अपने कर्नल को आश्वस्त करते हुए कहते हैं- ‘‘हम लोग लौटें ना लौटें, ए बक्से लौटें न लौटें, लेकिन हमारी कहानियां लौटती रहेंगी…’’उगश्त के दौरान जसवंत की मुलाकात वहां के गांव की लड़की नूरा (येशी देमा) से होती है. नूरा, जसवंत से प्रेम करने लगती हैं और उससे वादा करती है कि जसवंत के सीने पर लगने वाली गोली को वह खुद झेल लेगी. जल्द ही ऐतिहासिक जंग शुरू हो जाती है. जहां पलटन को सैनिकों की गिनी चुनी तादाद ठंड से बचाव के लिए गरम कपड़ों का अभाव और सीमित गोला बारूद जैसी चुनौतीयों का सामना करना पड़ता है. कर्नल (शिशिर शर्मा) मदद न मिलने पर फैसला लेने की जिम्मेदारी हवलदार सीएम सिंह(मुकेश तिवारी) को सोंपता है. पलटन के कई जवानों के शहीद और घायल होने के बाद हवलदार अपनी पोस्ट को छोड़कर जाने का निर्णय लेते हैं. मगर राइफलमैन जसवंत सिंह रावत को यह मंजूर नहीं.

वह अपनी पोस्ट पर डटे रहने का फैसला करते हैं. इस फैसले पर टिके रहने के लिए उन्हें अपनी जान की बाजी लगानी पड़ती है. इस जंग में अकेले रह जाने पर उसका साथ देने नूरा आती है, मगर वह भी शहीद हो जाती है. इसके बावजूद जसवंत सिंह रावत हार नहीं मानते और लगातार 72 घंटो तक पोस्ट पर डटे रहकर 300 से भी ज्यादा चीनी सैनिकों का खात्मा करते हैं.

एक अच्छे मकसद के साथ बनायी गयी अविनाश ध्यानी की यह फिल्म कमजोर पटकथा के चलते लड़ खड़ा गयी है. इंटरवल से पहले फिल्म की कहानी सधी हुई लगती है, मगर इंटरवल के बाद फिल्म गड़बड़ा गयी. लेखक, निर्देशक व अभिनेता की एक साथ कई जिम्मेदारी निभाते हुए बतौर लेखक अविनाश ध्यानी मात खा गए. इंटरवल के बाद कई दृश्यों में दोहराव नजर आता है. फिल्मकार गढ़वाल राइफल के जवानों की वीरता व जांबाजी की भावना को उकेरने में सफल रहे हैं. मगर क्लायमेक्स से पहले नूरा व जसवंत की प्रेम कहानी के दृश्य अस्वाभाविक व अविश्वसनीय नजर आते हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो राइफलमैन जसवंत सिंह रावत के किरदार में अविनाश ध्यानी ने पूरा न्याय किया है. नूरा के किरदार में येशा देमा आकर्षित करती हैं. अन्य कलाकार भी अपने अपने किरदारों में फिट बैठे हैं.

फिल्म‘‘72 आवर्स-मर्टियार हूं नेवर डाइड’’ का निर्माण जे एस रावत, तरूण सिंह रावत, प्रशील रावत, लेखक व निर्देशक अविनाश ध्यानी, संगीतकार असलम केई, कैमरामैन हरीश नेगी और कलाकार हैं- अविनाश ध्यानी, वीरेंद्र सक्सेना, अलका अमीन, मुकेश तिवारी, शिशिर शर्मा, गिरीश सहदेव, प्रशील रावत, संजय बोस व अन्य.

फिल्म रिव्यू : व्हाय चीट इंडिया

भारतीय शिक्षा प्रणाली को लेकर अब तक कई फिल्में बन चुकी हैं, जिनमें बच्चों को किस तरह की शिक्षा दी जानी चाहिए, इस पर बातें की जा चुकी हैं. फिर चाहे ‘थ्री इडीयट्स’हो या ‘तारे जमीन पर हो’ या ‘निल बटे सन्नाटा’. मगर शिक्षा तंत्र को चीटिंग माफिया किस तरह से खोखला कर रहा है, इस मुद्दे पर अभिनेता से निर्माता बने इमरान हाशमी फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ लेकर आए हैं. कहानी के स्तर पर फिल्म में कुछ भी नया नही है. फिल्म में जो कुछ दिखाया गया है, उससे हर आम इंसान परिचित है. माना कि फिल्म हमारे देश की शिक्षा प्रणाली में व्याप्त कुप्रथा, घोटाले, भ्रष्टाचार आदि को उजागर करती है, इमरान हाशमी ने इस अहम मुद्दे पर एक असरहीन फिल्म बनाई है. यह व्यंगात्मक फिल्म पूरे सिस्टम व शिक्षा प्रणाली के दांत खट्टे कर सकती थी. यह फिल्म शिक्षा संस्थानों को चलाने वालो के परखच्चे उड़ा सकती थी, मगर फिल्म ऐसा करने में पूरी तरह से असफल रही है.

why cheat india

फिल्म की कहानी झांसी निवासी राकेश सिंह उर्फ रौकी (इमरान हाशमी) के इर्द गिर्द घूमती है. रौकी का अपना एक शालीन व सभ्य परिवार है. मगर रौकी अपने पिता व परिवार के सपनों के बोझ तले दबकर झांसी से जौनपुर आकर कोचिंग क्लास खोलकर शिक्षा तंत्र में चीटिंग के ऐसे व्यवसाय पर चल पड़ता है, जिसे वह सिर्फ अपने लिए ही नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी सही मानता है. रौकी पूरे उत्तर प्रदेश का बहुत बड़ा चीटिंग माफिया बन चुका है. उसने शिक्षा तंत्र में अपनी अंदर तक गहरी पैठ बना ली है और अब शिक्षा तंत्र की खामियों का भरपूर फायदा उठा रहा है. उसके संबंध विधायकों से लेकर मंत्रियों तक हैं. अपने चीटिंग के व्यवसाय में वह गरीब और मेधावी छात्रों का उपयोग करता है. इन छात्रों को एक धनराशि देकर खुद को अपराधमुक्त मान लेता है. फिर यह गरीब मेधावी छात्र अपनी बुद्धि व अपनी पढ़ाई के आधार पर नकारा व अमीर छात्रों के बदले परीक्षा देते हैं. रौकी इन्ही नकारा व अमीर बच्चों के माता पिता से एक मोटी रकम वसूलता रहता है.

एक दिन उसे पता चलता है कि उसके शहर का एक लड़का सत्येंद्र दुबे उर्फ सत्तू (स्निग्धादीप चटर्जी) कोटा से पढ़ाई करके इंजीनियिंरंग प्रवेश परीक्षा में काफी बेहतरीन नंबर लाता है. अब पूरे शहर में उसका जलवा हो जाता है. रौकी तुरंत सत्तू से मिलता है और उसे सुनहरे सपने दिखाते हुए एक लड़के के लिए इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा देने के लिए उसे पचास हजार रूपए देने की बात करता है. परिवार की आर्थिक हालत देखते हुए सत्तू उसकी बातों में फंस जाता है. धीरे धीर सत्तू की बहन नुपुर (श्रेया धनवंतरी) भी राकेश सिंह से प्रभावित हो जाती है और उसे अपने भावी पति के रूप में देखने लगती है. उधर रौकी धीरे धीरे सत्तू में ड्रग्स व लड़की सहित हर बुरी आदत का शिकार बना देता है. एक दिन कुछ अमीर लोगों की शिकायत पर पुलिस अफसर कुरैशी उसे पकड़ते हैं, मगर विधायक जी उसे छुड़ा लेते हैं. इसी बीच ड्रग्स लेने के चक्कर में सत्तू को कौलेज से निकाल दिया जाता है, तब रौकी उसे फर्जी डिग्री देकर भारत से बाहर कतार में नौकरी करने के लिए भेजकर सत्तू व उसके परिवार से संबंध खत्म कर लेता है. कतार में सत्तू की डिग्री फर्जी है यह राज खुल जाता है. सत्तू किसी तरह अपने घर वापस आकर घर के अंदर ही आत्महत्या कर लेता है. इसी बीच पुलिस अफसर कुरैशी की मुलाकात नुपुर से होती है. दोनों राकेश सिंह को सबक सिखाने की ठान लेते हैं. इधर राकेश सिंह ने अपने चीटिंग के व्यवसाय का जाल मुंबई में फैला लिया है. अब वह एमबीए का पर्चा लीक कर करोड़ो कमा रहा है. नुपर नौकरी करने के लिए मुंबई पहुंचती है और राकेश के संपर्क में आती है, दोनों के बीच प्रेम संबंध शुरू होते हैं. पर एक दिन नुपुर की ही मदद से कुरैशी, राकेश सिंह उर्फ रौकी को सबूत के साथ गिरफ्तार करता है. अदालत में रौकी खुद को रौबिनहुड साबित करने का प्रयास करते हुए शिक्षा तंत्र की बुराइयों पर भाषणबाजी करता है. रौकी को सजा हो जाती है. जेल में विधायक जी मिलते हैं. अंत में पता चलता है कि रौकी ने अपने पिता के नाम पर बहुत बड़ा इंजीनियरिंग कौलेज खोल दिया है. अब उसके पिता खुश हैं. तथा रौकी का धंधा उसी गति से चल रहा है.

why cheat india

कमजोर पटकथा व विषय के घटिया सिनेमाई कारण के चलते पूरी फिल्म मूल मुद्दे को सही परिप्रेक्ष्य में पेश नहीं कर पाती है. निर्देशक सौमिक सेन ने फिल्म के हीरो इमरान हाशमी की एंट्री एक सिनेमाघर में गुंडों से मारपीट के साथ दिखायी है, जो कि बहुत ही घटिया है और यह काम उसके व्यवसाय से भी परे है. जबकि बिना मारपीट के भी इस दृश्य में एक धूर्त ,कमीने, चालाक व विधायकों से संबंध रखने वाले इंसान रौकी का परिचय दिया जा सकता था. पर सिनेमा की सही समझ न रखने वाले सौमिक सेन से इस तरह की उम्मीद करना ही गलत है. बतौर लेखक सौमिक सेन पुलिस औफिसर कुरैशी के किरदार को भी ठीक से चित्रित नहीं कर पाए. कितनी अजीब सी बात है कि फिल्म हर इंसान को चालाक होने यानी कि गलत काम करने की प्रेरणा देती है. फिल्म के अंत में जिस तरह रौकी अपने पिता के नाम पर कौलेज खोलकर अपना काम करता हुआ दिखाया गया है, उससे यही बात उभरती है कि बुरे काम का बुरा नतीजा नहीं होता. फिल्म में लालच व लालची होने का महिमा मंडन किया गया है. फिल्मकार इस बात के लिए अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि उन्होंने आम फिल्मों की तरह अपनी फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ में गलत इंसान का मानवीयकरण करते हुए उसे प्रायश्चित करते नहीं दिखाया.

फिल्मकार चीटिंग करने वालों के पकड़े जाने पर उनकी मानसिकता को गहराई से पकड़ने में बुरी तरह से नाकाम रहे हैं.

कथानक के स्तर पर काफी विरोधाभास है. रौकी के पिता का किरदार भी आत्मविरोधाभासी बनकर उभरता है, पूरी फिल्म में वह अपने बेटे के खिलाफ हैं, पर अंत में उनके नाम पर कौलेज के खुलते ही वह रौकी के सबसे बड़े प्रशंसक बन जाते हैं. कम से कम भारत जैसे देश में पुराने समय के लोगों की सोच इस तरह नही बदलती है. कुल मिलाकर पटकथा के स्तर पर इतनी कमियां हैं कि उन्हें गिनाने में कई पन्ने भर जाएंगे. फिल्मकार ने शिक्षा जगत की खामियों व चीटिंग माफिया जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे को बहुत ही गलत ढंग से पेशकर इस मुद्दे की अहमियत को ही खत्म कर दिया.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो सत्तू के किरदार में स्निग्धदीप चटर्जी ने काफी अच्छा अभिनय किया है और उससे काफी उम्मीदें जगती हैं.. इमरान हाशमी बहुत प्रभावित नहीं करते, इसके लिए कुछ हद तक लेखक व निर्देशक भी जिम्मेदार हैं. वेब सीरीज ‘‘लेडीज रूम’’से अपनी प्रतिभा को साबित कर चुकीं अभिनेत्री श्रेया धनवंतरी को इस फिल्म में सिर्फ मुस्कुराने के अलावा कुछ करने का अवसर ही नहीं दिया गया, यह भी लेखक व निर्देशक की कमजोरियों के चलते ही हुआ. फिल्म खत्म होने के बाद सवाल उठता है कि फिल्मों में करियर शुरू करने के लिए श्रेया धनवंतरी ने ‘व्हाय चीट इंडिया’को क्या सोचकर चुना. छोटे किरदारों में कुछ कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया है.

दो घंटे एक मिनट की अवधि वाली फिल्म  ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ का निर्माण इमरान हाशमी, भूषण कुमार, किशन कुमार, तनुज गर्ग, अतुल कस्बेकर और प्रवीण हाशमी ने किया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक सौमिक सेन, संगीतकार रोचक कोहली, गुरू रंधावा, अग्नि सौमिक सेन, कुणाल रंगून, कैमरामैन वाय अल्फांसो रौय तथा फिल्म को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं- इमरान हाशमी, श्रेया धनवंतरी, स्निग्धदीप चटर्जी.

रेटिंग : डेढ़ स्टार

फिल्म रिव्यू : वो जो था एक मसीहा-मौलाना आजाद

इन दिनों बौलीवुड में बायोपिक फिल्मों का दौर चल रहा है. ऐसे ही दौर में लेखक, निर्माता, अभिनेता व सहनिर्देशक डा. राजेंद्र संजय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व देश के प्रथम शिक्षामंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की बायोपिक फिल्म लेकर आए हैं. फिल्म में उनके बचपन से मृत्यु तक की कथा का समावेश है, मगर मनोरंजन विहीन इस फिल्म में मौलाना आजाद का व्यक्तित्व उभरकर नही आ पाता. उनके जीवन की कई घटनाओं को बहुत ही सतही अंदाज में चित्रित किया गया है.

फिल्म पूर्ण रूपेण डाक्यूड्रामा नुमा है. मौलाना आजाद का पूरा नाम अबुल कलाम मुहियुद्दीन अहमद था. फिल्म की कहानी एक शिक्षक द्वारा कुछ छात्रों के साथ मौलाना आजाद की कब्र पर पहुंचने से शुरू होती है, पर चंद मिनटों में ही वह शिक्षक (लिनेश फणसे) स्वयं मौलाना आजाद (लिनेश फणसे) के रूप में अपनी कहानी बयां करने लगते हैं. फिर पूरी फिल्म में मौलाना आजाद स्वयं अपने बचपन से मौत तक की कहानी उन्ही छात्रों को सुनाते हैं.

Woh Jo Tha Ek Messiah Maulana Azad

मौलाना आजाद का बचपन बड़े भाई यासीन, तीन बड़ी बहनों जैनब, फातिमा और हनीफा के साथ कलकत्ता (कोलकाता) में गुजरा. महज 12 साल की उम्र में उन्होंने हस्तलिखित पत्रिका ‘नैरंग ए आलम’ निकाली, जिसे अदबी दुनिया ने खूब सराहा. हिंदुस्तान से अंग्रेजों को भगाने के लिए वे मशहूर क्रांतिकारी अरबिंदो घोष के संगठन के सक्रिय सदस्य बनकर, उनके प्रिय पात्र बन गए. जब तक उनके पिता जिंदा रहे, तब तक वह अंग्रेजी नही सीख पाए, मगर पिता के देहांत के बाद उन्होंने अंग्रेजी भी सीखी. उन्होंने एक के बाद एक दो पत्रिकाओं ‘अल हिलाल’और ‘अल बलाह’का प्रकाशन किया, जिनकी लोकप्रियता से डरकर अंग्रेजी हुकूमत ने दोनों पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद करा उन्हें कलकत्ता से तड़ीपार कर रांची में नजरबंद कर दिया. चार साल बाद 1920 में नजरबंदी से रिहा होकर वह दिल्ली में पहली बार महात्मा गांधी (डा. राजेंद्र संजय) से मिले और उनके सबसे करीबी सहयोगी बन गए.

उनकी प्रतिभा और ओज से प्रभावित जवाहरलाल नेहरू (शरद शाह) उन्हें अपना बड़ा भाई मानते थे. पैंतीस साल की उम्र में आजाद कांग्रेस के सबसे कम उम्र वाले अध्यक्ष चुने गए. गांधीजी की लंबी जेल यात्रा के दौरान आजाद ने दो दलों में बंट चुकी कांग्रेस को फिर से एक करके अंग्रेजों के तोडू नीति को नाकाम कर दिया. उन्होंने सायमन कमीशन का विरोध किया. 1944 व 1945 के दौरान जब वह कई दूसरे नेताओ के साथ जेल में बंद थे, तभी उनकी पत्नी जुमेला का निधन हुआ. देश को आजादी मिलने के बाद केंद्रीय शिक्षामंत्री के रूप में उन्होंने विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में क्रांति पैदा करके उसे पश्चिमी देशों की पंक्ति में ला बैठाया. वह आजीवन हिंदू मुस्लिम एकता के लिए संघर्ष करते रहे.

Woh Jo Tha Ek Messiah Maulana Azad

फिल्म कम बजट में बनी है, इसका आभास तो फिल्म देखते हुए हो जाता है, मगर लेखक, निर्माता व निर्देशक ने अपने शोध के नाम पर चिरपरिचित बातों को तोड़ने का भी काम किया है. मसलन, उनका दावा है कि गांधीजी के चेहरे पर कभी भी मूंछें नहीं रही. हम ऐतिहासिक तथ्यों को लेकर कोई बात नही करना चाहते. मगर फिल्म में कई ऐसी गलतियां व कमियां है, जिससे आभास होता है कि फिल्मकार को सिनेमा की भी समझ नहीं है. जब शिक्षक छात्रों को लेकर मौलाना आजाद की कब्र पर पहुंचता है, तब उसके साथ जो छात्र हैं, वही छात्र उस वक्त भी मौजूद रहते हैं, जब मौलाना आजाद स्वयं अपनी कहानी सुना रहे होते हैं. यानी कि काल बदलता है, पर छात्र नहीं बदलते. बड़ा अजीब सा लगता है.

पटकथा लेखक की कमियों के चलते भी फिल्म में कोई भी चरित्र उभर नहीं पाता. चरित्रों के अनुरूप कलाकारों का चयन भी सही नही है. गांधी जी का किरदार स्वयं डा. राजेंद्र संजय ने ही निभाया है जो कि कहीं से गांधी जी नहीं लगते. लगभग यही हालत हर किरदार के साथ है.

बजट की कमियो के चलते तमाम अहम दृश्यों में क्रोमा का उपयोग किया गया है, जिससे फिल्म की गुणवत्ता कमतर हो गयी. एक ऐतिहासिक फिल्म में जिस तरह से घटनाक्रमो का रोमांच होता है, वह भी इसमें नही है. मनोरंजन का भी घोर अभाव है.

दो घंटे एक मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘वो जो था एक मसीहाः मौलाना आजाद’’ का निर्माण डा. राजेंद्र संजय ने ‘‘राजेंद्र फिल्मस’’ के बैनर तले किया है. फिल्म को प्रस्तुत किया है श्रीमती भारती व्यास ने. फिल्म के निर्देशक डा. राजेंद्र संजय व संजय सिंह नेगी, लेखक व गीतकार डा. राजेंद्र संजय, कैमरामैन अजय तांबत, संगीतकार दर्शन कहार तथा कलाकार हैं- लिनेश फणसे, सिराली, सुधीर जोगलेकर, भानु प्रताप, साईदीप देलेकर,काव्या, दर्शना, वीरेंद्र मिश्रा, डा. राजेंद्र संजय, आरती गुप्ते, माही सिंह, चांद अंसारी, शरद शाह, अरविंद वेकारिया, के टी मेंघाणी, प्रेम सिंह, चेतन ठक्कर, सुनील बलवंत, पवनमिश्रा, साहिल त्यागी व अन्य.

रेटिंगः डेढ़ स्टार

त्वचा के जल जाने पर करें ये उपाय, होगा तुरंत फायदा

अक्सर हमारे शरीर का कोई ना कोई हिस्सा जल जाता है. ये जलन धूप, बिजली, गर्म पानी, भाप या किसी रसायन से हो सकती है. कई बार किचन में काम करते वक्त आपका कोई हिस्सा गर्म बर्तन या भाप से जल जाता है. कभी नंगा तार के संपर्क में आने से तो कभी धूप से भी त्वचा जल जाती है. ये सब बेहद तकलीफदेह होते हैं. इस खबर में हम आपको उन उपायों के बारे में बताएंगे जिससे आप किसी भी तरह से जल जाने पर आपको कौन से उपाय करने चाहिए.

जब आप भाप से जल जाएं

अक्सर आप भाप से जल जाती हैं, ऐसे में उस हिस्से पर जलन का निशान बन जाता है. ये निशान देखने में भद्दे लगते हैं. भाप से जलने की सूरत में ये उपाय बेहद प्रभावित होते हैं.

  • भाप से जलने पर जले हिस्से को कम से कम 10 मिनट तक रखें.
  • जले हिस्से पर घड़ी, कड़ा जैसी चीजें ना पहने.
  • जले हुए हिस्से को किसी स्वच्छ कपड़े से ढंक लें

बिजली से जल जाने पर

  • बिजली से जलने पर व्यक्ति को सबसे पहले बिजली वाली जगह से दूर करें और जले भाग को ठंडे पानी से धोएं.
  • जले हुए हिस्से को बर्न शीट से ढंक लें.

किसी रसायन से जलने पर

  • अगर किसी भी रसायन से आपकी आंखें प्रभावित हुई हैं तो सबसे पहले आंख को नीचे कर के पानी से धोएं.
  • आंख को स्वच्छ पट्टी से ढंक लें.
  • रक्षात्मक दस्ताना पहन के शरीर पर लगा रसायन झाड़ लें.

धूप से जल जाने पर

  • धूप से जलने पर किसी छांव वाली जगह पर बैठ जाएं और शरीर को समान्य तापमान पर लाने की कोशिश करें.
  • लगातार ठंडा पानी पिएं. इससे शरीर हाइड्रेट रहेगा.
  • छाला हो जाने पर उसे फोड़े नहीं. अगर छाला फूट जाता है तो उसे साबुन से धो लें.

जब पाना हो नेचुरल लुक

सही मेकअप करना एक कला है. ऐसी कौन सी स्त्री होगी जो मेकअप में महारत नहीं चाहती? जैसे सही तरह के मेकअप से चेहरा आकर्षक बनाया जा सकता है, वैसे ही गलत मेकअप से अच्छाखासा चेहरा बरबाद लग सकता है.

मेकअप की कला में निपुणता हासिल करना आसान नहीं होता. समय के साथ मेकअप करने के तौरतरीकों में काफी बदलाव आया है और लेटैस्ट मेकअप ट्रैंड में नाम आता है एअरब्रश मेकअप का. आजकल एअरब्रश मेकअप का तरीका काफी हिट है. आइए, जानते हैं एअरब्रश मेकअप के बारे में.

क्या है एअरब्रश मेकअप

अब तक सौंदर्य विशेषज्ञों की अंगुलियां ही मेकअप का जादू बिखेरा करती थीं. उन का साथ दिया करते थे स्पंज और कई प्रकार के ब्रश. लेकिन अब एअरब्रश मेकअप एक यूनीक तरीका है जिस में मेकअप चेहरे की त्वचा पर स्प्रे किया जाता है. इस का प्रयोग ज्यादातर दुलहनों, मौडल्स या फिर अभिनेत्रियों पर किया जाता है. परंपरागत मेकअप के विपरीत एअरब्रश मेकअप में नैचुरल लुक बनाए रखना आसान होता है. यह स्किन में घुल जाता है और एकसार त्वचा का आभास देता है.

कैसे किया जाता है

एअरब्रश मेकअप करने के लिए आप को सही तरह के टूल्स चाहिए और साथ में चाहिए काफी प्रैक्टिस भी.

एअरब्रश मेकअप के टूल्स या किट औनलाइन भी मिल जाती हैं. ये वारंटी पीरियड के साथ आती हैं. टूल्स में एक छोटा कंप्रैसर, एक एअरब्रश गन, साफ करने के लिए ब्रश, हौज पाइप और फाउंडेशन कलर व हाईलाइटर की बोतलें आती हैं.

आप को एअरब्रश करना भले न आता हो, पर मेकअप की बेसिक अंडरस्टैंडिंग जरूरी है. फिर उस के आगे किट के साथ आई इंट्रक्शन मैनुअल पढ़ कर या औनलाइन वीडियो देख कर सीखा जा सकता है. हाथ साधने के लिए अभ्यास की जरूरत पड़ेगी.

मेकअप के तौरतरीके

एअरब्रश मेकअप खुले हाथ से किया जाता है. इसलिए एअरब्रश गन की चेहरे से कितनी दूरी रखनी है, कितना प्रैशर लगाना है, ये सब प्रैक्टिस और कैसा मेकअप चाहिए इस बात पर निर्भर करता है. मेकअप का कौन सा इफैक्ट देना है, पूरे चेहरे पर देना है या कोई हिस्सा हाईलाइट करना है, न्यूड लुक चाहिए या कंटूरिंग, हैवी मेकअप करना है या लाइट, इन सभी बातों पर ध्यान देना आवश्यक है. मेकअप के दौरान, लुक के अनुसार एअर प्रैशर को संतुलित किया जाना जरूरी है.

एअरब्रश मेकअप आप स्वयं भी सीख सकती हैं. जरूरत है तो बस अभ्यास करते रहने की. एअरब्रश मेकअप से चेहरे पर चमकदार लुक आता है. लेकिन साथ ही यह भी याद रहे कि जिन के चेहरे पर रेशे हैं, वे पहले उन्हें साफ करवा लें ताकि एअरब्रश मेकअप के बाद चेहरे के बाल फोटो में चमके नहीं.

सेम मटर कबाब

सामग्री

– हरी सेम (100 ग्राम)

–  हरी मटर के दाने (100 ग्राम)

– अदरक लहसुन पेस्ट (1 छोटा चम्मच)

– बारीक कटी धनियापत्ती (1 चम्मच)

–  चावल का आटा (2 बड़े चम्मच)

–  ब्रेड क्रंब्स (1/4 कप)

– चाट मसाला (1 छोटा चम्मच)

– 2 हरी मिर्चें (कटी हुई)

– चना दाल (1/4 कप पानी में भीगी

–  गरम मसाला (1/2 चम्मच)

– नमक (स्वादानुसार)

– कबाब शैलो फ्राई करने के लिए थोड़ा सा रिफाइंड औयल.

बनाने की विधि

– हरी सेम का रेशा निकाल कर बारीक काट लें.

– एक नौनस्टिक पैन में तेल गरम कर के अदरक-लहसुन का तड़का लगा कर सेम और मटर छौंक दें.

– थोड़ा सा नमक और पानी डाल कर धीमी आंच पर गलने तक पकाएं.

– चना दाल को भी थोड़ा पानी डाल कर गलाएं.

– दाल खिलीखिली बननी चाहिए.

– सेम, मटर और चना दाल को हैंड ब्लैंडर से दरदरा पीस लें.

– बाकी उपरोक्त लिखी चीजें मिलाएं और छोटे-छोटे कबाब बना कर नौनस्टिक पैन में थोड़े से तेल में   उलट-पलट कर सेकें.

– चटनी या सौस के साथ सर्व करें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें