गर्भावस्था में हवाई जहाज से सफर करते समय जरूर रखें इन बातों का ख्याल

गर्भवती महिलाएं इस बात को लेकर हमेशा कशमकश में रहती हैं कि उन्हें ऐसी हालत में ट्रेवल करना चाहिए या नहीं. ऐसी प्रेगनेंट महिलाएं जिनकी प्रेगनेंसी में कोई समस्या न हो, वो हवाईजहाज में बिना परेशानी के यात्रा कर सकती हैं, बस उन्हें थोड़ी सी सावधानी बरतनी होगी. प्रेगनेंट महिलाओं को सुरक्षित एयर ट्रेवल करने के लिए कुछ यहां हम टिप्स दे रहे हैं.

– प्रेगनेंट महिलाओं को यात्रा के दौरान काफी मात्रा में पानी पीना चाहिए क्योंकि ऐसे में उन्हें अतिसार व डिहाइड्रेशन होने का डर रहता है. अपने पास एक पानी की बोतल रखें और लगातार पानी पीते रहें.

– सीटबेल्ट हवाईयात्रा में यूं तो सभी के लिए जरूरी होती है लेकिन प्रेगनेंट महिलाओं के लिए इसका खास महत्व है. अगर आप प्रेगनेंट हैं तो सीटबेल्ट आपको सुरक्षित और स्थिर रखने का काम करेगी. इसलिए इसे अपनी बैली की नीचे ही बांधें.

– कोशिश करें कि ऐसी सीट लें जिससे आपको वाशरूम जाने, या बाहर निकलने में दिक्कत न हो. आप इसके लिए फ्लाइट अटेंडेंट से बात कर सकती हैं.

– यात्रा करते हुए अपने कपड़ों पर प्रेगनेंट महिलाओं को खास ध्यान रखना चाहिए. ऐसे कपड़े पहनें जो आरामदायक हों. ज्यादा टाइट कपड़े पहन कर हवाईयात्रा न करें.

कुरकुरी फूलगोभी

सामग्री

– 1 कप मैदा

– 1/4 कप फूलगोभी

– 2 बड़े चम्मच चीज कसा हुआ

– 1 छोटा चम्मच मक्खन

– हरीमिर्च का पेस्ट

– नमक स्वादानुसार

बनाने की विधि

– मैदा, नमक, मक्खन, हरीमिर्च का पेस्ट, चीज और फूलगोभी एकसाथ मिला कर थोड़ा टाइट पेस्ट     बनाएं.

– फिर इसे पतला-पतला बेल कर स्ट्रिप्स काटें.

– और 180 डिग्री पर पहले से गरम ओवन में3-4 मिनट बेक करें.

– अब गर्मागर्म परोसें और आनंद लें.

चटपटा डोसा बनाने की रेसिपी

सामग्री :

अरहर दाल (1 कप)

चावल 02 कप (कच्चे)

हींग पाउडर (01 छोटा चम्मच)

लाल मिर्च पाउडर (1/2 छोटा चम्मच)

नमक (स्वादानुसार)

सादा डोसा बनाने की विधि :

– सबसे पहले दाल और चावल को अलग-अलग बर्तन में भि‍गो दें.

– लगभग 3 घंटे बाद दोनों को पानी से निकाल कर अलग-अलग पीस लें.

– पिसे हुए दाल और चावल को आपस में मिला लें.

– अब दाल-चावल के पेस्ट में लाल मिर्च पाउडर, हींग पाउडर और नमक मिला दें.

– अगर पेस्ट गाढ़ा हो, तो थोड़ा सा पानी मिलाकर सारी सामग्री को अच्छी तरह से फेंट लें.

– अब आपका डोसा बैटर तैयार है.

– अब डोसा तवा को गर्म करें.

– तवा गर्म होने पर एक एक बड़ा चम्मच घोल लेकर तवे के ऊपर अच्छी तरह से फैला दें.

– लीजिए, डोसा बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

– आपका करारा प्‍लेन डोसा तैयार है.

– इसे मनचाही चटनी और सांबर के साथ सर्व करें और खुद भी आनंद लें.

गुलगुले बनाने की रेसिपी

 सामग्री :

गेहूं का आटा (02 कप)

शक्कर/गुड़  (1/2 कप)

तिल (01 एक बड़ा चम्मच)

घी (01 बड़ा चम्मच)

तेल/घी (तलने के लिये)

गुलगुले बनाने की विधि :

– सबसे पहले आटे को छान लें.

– इसके बाद 1/2 कप पानी में गुड/शक्कर घोल कर डालें.

– साथ ही इसमें एक बड़ा चम्मच घी और ज़रूरत भर का पानी मिलायें.

– पकौड़े के घोल जैसा फेंट लें.

– आटे को 15 मिनट के लिए ढ़क कर रख दें.

– 15 मिनट के बाद आटे में तिल डालें और एक बार और उसे फेंट लें.

– इसके बाद कढ़ाई में तेज आंच पर तेल/घी गर्म करें.

– जब तेल गर्म हो जाए, आंच को मध्यम कर दें.

– अब हाथ में थोड़ा सा आटे का घोल लेकर तेल में डालें.

– कढ़ाई में जितने गुलगुले (पुए) आ सकें, उतने डालें और फिर इन्हें लाल होने पर प्लेट में निकाल लें.

–  अब आपकी गुलगुले बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

– आपके स्वाद से भरपूर मीठे पुए तैयार हैं.

– इन्हें सर्विंग प्‍लेट में निकालें और चाय के समय अपने पूरे परिवार के साथ आनंद लें.

देश के 15 करोड़ लोग हैं इस बीमारी से पीड़ित, आप भी करें चेक

देश के करीब 15 करोड़ लोगों को मानसिक स्वास्थ से संबंधित देख भाल की जरूरत होती है. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के आंकड़ों में ये बात सामने आई है. मानसिक स्वास्थ्य के लक्षणों और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की जागरूकता में कमी के कारण देश में उपचार के बीच अंतर पैदा हुआ है.

जानकारों के मुताबिक ज्यादातर लोगों की ये परेशानी केवल देखभाल से ठीक हो सकती है. आपको बता दें कि इस तरह की बीमारियों के लक्षण में तनाव, थकान, शरीर का दर्द है. इसके अलावा किसी के साथ बैठने या बस बात करते रहने का दिल करता है. इस तरह की बीमारियों का समय पर इलाज शुरू नहीं किया गाया तो बीमारी समय के साथ गंभीर होती जाती है.

इन परेशानियों के पीछे अवसाद के अलावा मानसिक स्वास्थ्य, गरीबी, घरेलू हिंसा और कम उम्र में विवाह जैसी समस्याएं जुड़ी हो सकती हैं. इसलिए जरूरी है कि इसको बड़े पैमाने पर देखा जाए. आपको बता दें कि सरकार की ओर से भी इस तरह की परेशानियों के लिए कुछ प्रभावशाली कदम नहीं देखा गया है. यही कारण है कि देश के केवल 27 प्रतिशत जिलों में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम है, जबकि कई जगहों पर इसकी पूरी टीम तक नहीं है. भारतीय लोग मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के प्रति इम्यून नहीं है, लेकिन इस बात में भरोसा नहीं करते कि उन्हें भी यह समस्या हो सकती है.

मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए ये करें

  • खड़े या साबूत अनाजों से तैयार आहार का उपभोग करें
  • अपने आहार में हरी साग सब्जियों, प्रटीन युक्त, स्वस्थ वसा और जटिल कार्बोहाइड्रेट वाले आहारों को शामिल करें
  • खूब पानी पिएं. ज्यादा पानी पीने से लिम्फैटिक सिस्टम से विषाक्त पदार्थ दूर होते हैं
  • यह ऊतकों को डिटौक्सीफाई और फिर से बनाने के लिए आवश्यक हैं

तकदीर में लिखा था ‘व्हाय चीट इंडिया’ मेरी पहली फिल्म होगी : श्रेया धनवंतरी

बहुमुखी प्रतिभा की धनी श्रेया धनवंतरी बीटेक की डिग्रीधरी इंजीनियर होने के साथ साथ कवि, लेखक, निर्देशक व अभिनेत्री हैं. उनका प्रारंभिक जीवन भारत से बाहर ही बीता. पर उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए वह दिल्ली यानी कि भारत आ गयी थीं. 2010 में जब वह बीटेक की पढ़ाई कर रही थीं, तभी उन्हें तेलगू भाषा की फिल्म ‘‘स्नेह गीतम’’ में अभिनय करने का अवसर मिला था. पर अब वह 18 जनवरी को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ को लेकर चर्चा में हैं, जिसमें उनके हीरो इमरान हाशमी हैं. मजेदार बात यह है कि श्रेया धनवंतरी अपने करियर की पहली फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’को ही बताती हैं.

2010 में आपने पहली बार तेलगू भाषा की फिल्म ‘‘स्नेह गीतम’’ की थी. अब पूरे आठ वर्ष बाद आपने फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ की है? इतना लंबा अंतराल क्यों?

सच यह है कि ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ मेरे अभिनय करियर की पहली फीचर फिल्म है. जब मैं बीटेक की पढ़ाई कर रही थी, उसी वक्त मुझे तेलगू फिल्म ‘‘स्नेह गीतम’’ में तो छोटा सा किरदार निभाने का अवसर मिला था. मुझे अचानक किसी फिल्म से जुड़ने का मौका मिला, तो मैंने कर लिया था. पर उस फिल्म को लेकर कहने जैसा मेरे लिए कुछ नहीं है. उसके बाद मैं भूल ही गयी थी. उस वक्त मैं दिल्ली में रहती थी. दिल्ली में फिल्मों में अभिनय करने के अवसर नहीं हैं. यदि वास्तव में आपको फिल्मों में अभिनय करना है, तो मुंबई आना ही पड़ेगा. तो मैंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई आने का निर्णय लिया. मुंबई में मेरी शुरुआत एड फिल्मों से हुई. मेरी कई एड फिल्में सुपर हिट हुईं. उसके बाद ‘यशराज फिल्मस’ ने मुझे वेबसीरीज ‘‘लेडीज रूम’’ करने का मौका दिया. उसके बाद मैंने दूसरी वेबसीरीज ‘‘द रीयुनियन’ और फिर ‘‘द फैमिली मैन’’ की. अब फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ में अभिनय किया है, जो कि 18 जनवरी को सिनेमा घरो में आएगी. मुंबई आने के बाद से मैंने लगातार फिल्मों के लिए औडीशन दिया. पर अब सफलता मिली है. इससे मैं बहुत खुश हूं.

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मेरा सवाल यह है कि तेलगू फिल्म ‘‘स्नेह गीतम’’ में अभिनय करने के बाद आपने अभिनय को करियर बनाने के लिए क्या प्रयास किए? यदि नहीं किए तो उसकी वजह?

देखिए, जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि उस वक्त मैं दिल्ली में रह रही थी, जहां फिल्मों से जुड़ने के मौके नहीं थे. मुझे भी ज्यादा जानकारी नहीं थी. तो मैं वहां पर फैशन शो और रैम्प शो कर रही थी. फिर एक दिन मैं मुंबई चली आयी. अब मेरा कद देख रहे हैं, तो मेरे कद के अनुसार मुझे दिल्ली में फैशन शो और रैम्प शो के औफर बहुत मिल रहे थे. मैं कई फैशन वीक का हिस्सा भी रही. मैंने कई पत्रिकाओं के लिए मौडलिंग की. मैं कई प्रोडक्ट के लिए होर्डिग्स का चेहरा बनी. पर मेरी इच्छा थी कि मैं फिल्मों में काम करूं, इसलिए मुंबई आ गयी.

क्या आपने मुंबई आने से पहले अभिनय की कुछ ट्रेनिंग ली?

अभिनय की मेरी ट्रेनिंग तो चार साल की उम्र में ही शुरू हो गयी थी. मेरी पढ़ाई ‘ब्रिटिश एजूकेशन सिस्टम’में हुई है. इनका मानना है कि बच्चे को औल राउंडर होना चाहिए, सिर्फ किताबी ज्ञान नही होना चाहिए. वहां बच्चे को सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए नहीं कहा जाता. तो मेरी बहन ने स्पोर्ट्स में फोकस किया. मैंने कला के क्षेत्र में. मैंने साइंस और मैथ्स के साथ साथ डांस, ड्रामा व संगीत पढ़ा. बाकायदा उसकी शिक्षा ली है. स्कूल में यह सारे मेरे विषय थे. मैं स्पष्ट कर दूं कि भारतीय स्कूलों में जिस तरह से एक्स्ट्रा सर्कुलर एक्टीविटीज होती हैं, वह नहीं था. बल्कि हमारे सिलेबस में डांस संगीत नाटक यह विषय थे. मैंने स्कूल के दिनों में नाटक करते हुए पेड़ पक्षियों से लेकर लड़कों तक के किरदार निभाए हैं. मैं हाथी भी बनी. शेर भी बनी. शेक्सपियर नाटक में मैंने ज्यूलिएट का किरदार निभाया. मैंने मैकबेथ भी किया है. कम से कम बीस नाटक के तो वीडियो होंगें.

अभिनय को करियर बनाने की बात आपके दिमाग में सबसे पहले कब आयी?

हां!! सच यह है कि तेलगू फिल्म ‘‘स्नेह गीतम’’ में अभिनय करते हुए मेरे दिमाग में अभिनय को करियर बनाने की बात आयी थी. इस फिल्म में अभिनय करने से पहले मैंने अभिनय के बारे में बिलकुल नही सोचा था. अचानक एक दिन मुझे तेलगू फिल्म करने का आफर मिला, तो मैंने बिना कुछ सोचे समझे हामी भर दी. जब सेट पर डायरेक्टर ने एक्शन बोला, तो मेरे लिए यह एक नयी अनुभूति थी. उससे पहले मैंने थिएटर किया था. पर कैमरे के सामने कभी अभिनय नहीं किया था. मैं आपको बता दूं कि जिस वक्त मैंने तेलगू फिल्म ‘‘स्नेह गीतम’’ में अभिनय किया, उस वक्त मैं इंजीनियरिंग के सेकेंड ईअर की पढ़ाई कर रही थी. इस फिल्म के लिए शूटिंग करना मेरे लिए सपना रहा. मेरे अंर्तमन ने कहा कि मुझे यही करना चाहिए. इंजीनियरींग की पढ़ाई में बेकार में फंस गयी. पहली बार मुझे तेलगू फिल्म की शूटिंग के वक्त अहसास हुआ कि जितनी खुशी मुझे यहां मिल रही है, उतनी इससे पहले कभी कहीं नही मिली.

मैं वही तो पूछ रहा हूं कि तेलगू फिल्म में अभिनय करते समय जब आपको लगा कि आपको अभिनय करना चाहिए, तो आपने फिल्मों में अभिनय क्यों नहीं किया? आठ साल बाद आपने ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ की है?

पहली बात मैं तेलगू फिल्म कभी देखती नही थी. तो मुझे तेलगू फिल्मों के बारे में जानकारी भी नहीं थी. इसके अलावा मैं दिल्ली में रह रही थी. मेरे पिता एवीएशन में थे. मां घरेलू महिला हैं. अपने पिता के ही कारण मैं सात देश घूम चुकी हूं. मेरे बचपन में मेरे पिता आबू धाबी, शारजाह, बहरीन में थे. तो मैं वहां जा चुकी थी. उन दिनों मेरी बहन ने टेबल टेनिस में मिडल इस्ट को रिप्रजेंट किया था. अभी तीन दिन पहले वह मास्टर की डिग्री की पढ़ाई करने के लिए सिंगापुर गयी है.

तेलगू फिल्म की शूटिंग करने के बाद अभिनय को करियर बनाने की बात मेरे दिमाग में आयी थी, मगर मैं पढ़ाई बीच में नहीं छोड़ सकती थी. मेरा स्वभाव रहा है कि जिस काम को शुरू करती हूं, उसे पूरा करती हूं, उसे अधूरा नहीं छोड़ती. मैंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की, वह भी मेरिट में.

अभिनय को करियर बनाने के आपके निर्णय पर आपके माता पिता की क्या प्रतिक्रिया हुई थी?

जब मैंने उनसे कहा कि मैं अभिनय के क्षेत्र में करियर बनाना चाहती हूं, तो मेरे पापा ने बहुत शोक व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि, ‘तुमने इतनी मेहनत से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है. अब सब कुछ छोड़कर ऐसी दुनिया में जाना चाहती हो, जिसके बारे में हमें कुछ पता ही नही है. फिल्मी दुनिया के बारे में तो बहुत अनाप शनाप लिखा जाता है. फिल्म इंडस्ट्री में बहुत उतार चढ़ाव होते है. हमेशा अनिश्चय का माहौल बना रहता है. पैसे भी अच्छे नहीं मिलते हैं.’ यानी कि उनके तमाम तरह के सवाल थे. उनके मन में कई तरह की शंकाएं थीं. पर जब उन्होंने मेरी पहली एड फिल्म देखी, तो उन्हें एहसास हुआ कि उनकी बेटी कुछ कर सकती है. क्योंकि एड फिल्म में मैं दूसरे मौडलों की तरह सिर्फ खड़ी नहीं थी, मैंने किरदार निभाया था.

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मुंबई आने के बाद जब आपने यशराज फिल्मसकी वेबसीरीज की. तो फिल्मों के औफर नहीं मिले?

यदि उस वक्त मुझे फिल्म करने का मौका मिल जाता, तो इतना समय क्यों लगता? पर आफर ही नहीं मिले. जबकि मैं लगातार औडीशन दे रही थी. मैंने औडीशन देते समय कभी यह नही सोचा कि यह एड फिल्म है या वेबसीरीज है या फीचर फिल्म है. मैं अपने काम को पूरी ईमानदारी के साथ कर रही थी. पर शायद उस वक्त तकदीर में फिल्म मिलना नही लिखा था. मेरी तकदीर में लिखा था कि ‘व्हाय चीट इंडिया’ मेरी पहली फिल्म होगी.

व्हाय चीट इंडियाका औफर जब मिला, तो इस फिल्म को करने के लिए किस बात ने इंस्पायर किया?

ईमानदारी की बात यह है कि जैसे ही मुझे इस फिल्म का औफर मिला, मैं खुशी से झूम उठी. मैं इस कल्पना से ही खुश हो गयी थी कि ‘व्हाय चीट इंडिया’के परदे पर आने के साथ परदे पर मेरा भी नाम आएगा. लोग श्रेया धनवंतरी को एक हीरोइन के तौर पर देखेंगे. इसके अलावा यह महज संयोग है कि यह फिल्म एजुकेशन सिस्टम के बारे में हैं और फिल्म का एक हिस्सा इंजीनियरिंग के बारे में है. मैं निजी जिंदगी में इंजीनियर हूं. तो मुझे लगा यह तो बहुत अनूठी बात हो गयी. मुझे लगा इससे परफेक्ट क्या मिलेगा.

फिल्म के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगी?

फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ में मैंने लखनउ में रहने वाली निम्न मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की नुपूर का किरदार निभाया है. नुपुर साधारण सी लड़की है. वह आर्ट्स कौलेज में पढ़ती है. इससे अधिक बताना मेरे लिए फिलहाल बताना संभव नही है. फिल्म में मेरी मुलाकातें इमरान हाशमी से होती है और एक रिश्ता बनता है, यह रिश्ता उसके चीटिंग के बिजनेस से परे है.

आप ब्रिटिश एजुकेशन सिस्टम से जो पढ़ाई कर रही थीं, उसमें और जो कुछ फिल्म में दिखाया गया उसमें कितना फर्क है?

ब्रिटिश एजुकेशन सिस्टम में भी कमियां है. पर भारतीय एजुकेशन सिस्टम में उससे कही अधिक कमी है. लेकिन हमारी फिल्म ‘व्हाय चीट इंडिया’उससे अलग बात कर रही है. फिल्म एजुकेशन सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार पर है. इस फिल्म में जितनी घटनाएं हैं, जो कुछ दिखाया गया है, सब कुछ सच है. हम सब ने कई बार अखबारों में पढ़ा है कि मेडिकल हो या इंजीनियरिंग की परीक्षा हो, नाम किसी का था और परीक्षा देने कोई दूसरा इंसान गया था. तो इस तरह के स्कैम/ घोटाले हमारे देश में बहुत हुए हैं और आए दिन होते रहते हैं. यहां फर्जी युनिवर्सिटी खुल जाती है, जो कि लाखों विद्याथियों को लूट कर गायब हो जाती हैं. फर्जी डिग्रियां बिकती हैं. इसकी मूल वजह यह है कि हमारी भारत सरकार एज्यूकेशन के लिए सबसे कम बजट देती है. एजुकेशन के लिए कम से कम 6 प्रतिशत बजट रखा जाना चाहिए, जबकि इस वर्ष 3.4 का ही बजट है. यह बजट हर वर्ष घटता जा रहा है.

शिक्षा, जिससे देश का हर नागरिक तैयार होता है, उसी का बजट कम किया जा रहा है. देखिए, मेरी तो पढ़ाई पूरी हो गयी. अब मेरा तो कुछ होना नही, पर वर्तमान समय के बच्चों के भविष्य के साथ तो खिलवाड़ नहीं होना चाहिए. मगर हमारी सरकार कल के भविष्य पर ध्यान ही नही देती. आज के जो बच्चे हैं, यही कल हमारे देश की रीढ़ की हड्डी बनेंगे, पर उसे समुचित विकास व शिक्षा मोहैया नहीं करायी, तो क्या होगा? देश कहां जाएगा? इस पर हमारी सरकार गंभीर नही है. इस विषय पर अब तक कोई फिल्म नही बनी है. तो मैं अपने आपको इस बात के लिए गर्वांवित महसूस कर रही हूं कि मैं एक ऐसे विषय वाली फिल्म का हिस्सा बनी हूं, जो कि हमारे देश के लिए बहुत जरूरी है.

जैसा कि आपने कहा कि फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ में शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और चीटिंग का मुद्दा उठाया गया है. तो चीटिंग व भ्रष्टाचार की वजह से देश में जो डाक्टर व इंजीनियर बन रहे हैं, उनसे देश को किस तरह के खतरे हैं?

डाक्टर हो या इंजीनियर यह दोनों ऐसे लोग होते हैं, जहां महज फर्जी डिग्री लेकर आप जिंदगी या अपने करियर को आगे नहीं बढ़ा सकते हैं. आपके अंदर स्किल/हूनर का होना बहुत जरुरी है. डाक्टर की जरा सी गलती से इंसान की जान जा सकती है. वहीं इंजीनियर के बलबूते पर ही बड़े बड़े पुल व इमारतें बनती है. इंजीनियर क्रिएट करते हैं. यदि आप फर्जी डिग्री लेकर इंजीनियर बन जाएंगे, तो आप कैसे मजबूत पुल बनाकर देश को दे सकते हैं? यानीकि यदि आपने नाम के लिए चिटिंग करके डिग्री ले लिया, तो भविष्य में आप कुछ कर नही पाएंगे. पर हमारा समाज और माता पिता बच्चों पर इतना दबाव डालते हैं कि बच्चा रट्टा मारकर या किसी भी तरह से परीक्षा में अच्छे नंबर लाना चाहता है, तो मेरी राय में शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जिसमें बच्चे के अंदर पढ़ने की रूचि पैदा हो.

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आपको भारतीय एजुकेशन सिस्टम में किस तरह के बदलाव की जरूरत महसूस होती है?

बहुत कुछ बदलने की जरूरत है. हमें पढ़ाया जाता है कि इस राजा ने इतनी लड़ाई जीती, इस राजा ने यह बनवाया. पानी का फार्मुला ‘एच  टू ओ’ है. पर इस तरह की तथ्यपरक जानकारी का फायदा क्या है? इस ज्ञान से फायदा क्या? यदि हमें कोई प्रैक्टिकल नौलेज नही है. तो हर बच्चे को व्यावहारिक ज्ञान दिया जाना बहुत जरुरी है. हर इंसान पैसा कमाना चाहता है. पर लोगों को फाइनेंस का प्रैक्टिकल नौलेज नही है. हमारे देश का एजुकेशन सिस्टम बच्चों को यह नहीं सिखाता कि घर का इलेक्ट्रिक फ्यूज उड़ जाए, तो आप कैसे ठीक कर सकते हैं? हमारा एजुकेशन सिस्टम यह नही सिखाता कि शेयर बाजार में किस तरह से इंवेस्ट करें कि फायदा हो. म्यूच्युअल फंड, एसआईपी इन सारी चीजों की जानकारी बिलकुल नहीं दी जाती.

शिक्षा जगत मे चीटिंग माफिया से कैसे निपटा जा सकता है?

जब तक हर इंसान खुद जागरूक होकर इसका विरोध नही करेगा, तब तक कुछ नहीं होगा. सरकार चाहे जितने कड़क कानून व नियम बना दे, उससे कुछ नहीं होगा. बच्चे तो नकल करने के लिए कोई न कोई रास्ता ढूंढ़ ही लेते हैं. इसकी एक वजह यह है कि तमाम बच्चे आलसी हैं. वह पढ़ना नहीं चाहते. बच्चे साल भर पढ़ाई करते नही हैं. अंतिम समय में उन्हें अपने नंबर बढ़वाने होते हैं, तो वह नकल करते हैं. जिनके पास अनाप शनाप पैसा होता है, वह चीटिंग माफिया की मदद लेते हैं. यदि सब कुछ प्रेक्टिकल हो जाए, सिर्फ साल में एक बार एग्जाम देकर पास होने वाला सिस्टम ना हो तो बदलाव लाया जा सकता है. यहां लोग यह मान कर चलते हैं कि परीक्षा में आपके नंबर बहुत अच्छे हैं तो आप बहुत बड़े ज्ञानी हैं. यही सोच गलत है. यह सिस्टम खत्म होना चाहिए. मैं बहुत से ऐसे बच्चों को जानती हूं जिनके पास ज्ञान बहुत होता है, पर परीक्षा में गलती कर जाते हैं या आलस्य के चलते लिखते नही हैं. यदि सालना परीक्षा वाला सिस्टम खत्म हो जाएं, तो चीटिंग खत्म हो जाएगी.

आपके शौक क्या हैं?

फुटबौल खेलना, संगीत सुनना, फिल्में देखना, लिखना व पढ़ना. मैंने एक उपन्यास ‘‘फेड टू व्हाइट’’लिखा है. जिसे अमेजन ने प्रकाशित किया है.

आपको उपन्यास लिखने की प्रेरणा कहां से मिली?

यूं तो कई घटनाओं ने मुझे इस उपन्यास को लिखने के लिए प्रेरित किया. मगर जब मेरी मामी की मौत हुई, तो यह मेरे लिए बहुत बियर्ड स्थिति थी, उससे उभरने के लिए मैंने उपन्यास लिखना शुरू किया था. इस उपन्यास में हर किरदार के अपने अलग अलग विचार, सोच के साथ उनकी यात्राएं हैं.

अब आप फिल्म स्क्रिप्ट भी लिखना चाहेंगी?

मैंने फिल्म स्क्रिप्ट लिख रखी है. एक दो निर्माताओं को पसंद भी आयी है. पर सभी का मानना है कि यह बहुत खर्चीले बजट वाली होगी. एक निर्माता ने सलाह दी कि मैं इसमें कुछ ऐसे बदलाव करूं, जिससे यह कम बजट में बन सके.

भविष्य में अभिनय, निर्देशन व लेखन में किसे प्राथमिकता देना चाहेंगी?

फिलहाल सारा ध्यान अभिनय पर है.

बिना स्मोक करे ही महिलाएं हो रही है लंग कैंसर की शिकार

डा. अरविंद कुमार ने थोरेसिक सर्जन के रूप में पूरे विश्व में अपनी एक विशेष पहचान बनाई है. डा. कुमार ने 10  हजार से अधिक थोरेसिक सर्जरियां की हैं. वे मिनिमली इनवेसिव (की-होल) और रोबोटिक सर्जरी में भी दक्ष हैं. भारत में सबसे पहले “विडियो असिस्टेड थोरोस्कोपिक सर्जरी (वीएटीएस)” का श्रेय भी उन्हीं को जाता है.

डा. कुमार ने नई दिल्ली स्थित औल इंडिया इंस्टीट्यूट औफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) से एम.बी.बी.एस और फिर एम.एस. (सर्जरी) की पढ़ाई की और फिर यहीं कईं वर्षों तक एक सर्जन और प्रोफेसर के रूप में काम किया. डा. कुमार को कईं विश्व प्रसिद्ध संस्थाओं से अंतर्राष्ट्रीय फैलोशिप प्राप्त है जिनमें लिवरपुल हौस्पिटल सिडनी, औस्ट्रेलिया, युनिवर्सिटी औफ फ्लोरिडा, यूएसए आदि सम्मिलित हैं. चिकित्सा के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान

को देखते हुए उन्हें 2014 में एमिनेंट मेडिकल पर्सन औफ द ईयर श्रेणी में, डा. बी.सी.राय पुरुस्कार सहित कई सम्मान मिले हैं.

वर्तमान में डा. कुमार, नई दिल्ली स्थित श्री गंगाराम हौस्पिटल में सेंटर फौर चेस्ट सर्जरी के चेयरमैन और इंस्टीट्यूट औफ रोबोटिक सर्जरी के निदेशक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. वे  लंग केयर फाउंडेशन के फाउंडर एंड मैनेजिंग ट्रस्टी भी हैं.

देखा जाए तो पिछले कुछ वर्षों में लंग कैंसर के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है. पहले इसे “स्मोकर्स डिसीज” कहा जाता था लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है. अब युवा, महिलाएं और धुम्रपान न करने वाले भी तेजी से इस की चपेट में आ रहे हैं. लंग केयर फाउंडेशन द्वारा हाल में किए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लंग कैंसर के शिकार 21 प्रतिशत लोग 50 से कम उम्र के हैं.  इन में से कुछ की उम्र तो 30 वर्ष से भी कम है.

पुरुषों के साथसाथ  महिलाएं भी अब इस की चपेट में अधिक आ रही हैं. जो अनुपात पहले 10 पुरुषों पर 1 महिला का था वो अब बढ़कर 4 हो गया है. आइये जानते हैं डा. अरविन्द कुमार से इस बीमारी से जुड़ी विस्तृत जानकारी;

लंग कैंसर क्या है और कैसे होता है?

फेफडों में असामान्‍य कोशिकाओं का अनियंत्रित विकास होने पर लंग कैंसर होता है.  यह कोशिकाएं फेफड़ों के किसी भी भाग में या वायुमार्ग (ट्रैकिया) में भी हो सकती हैं. लंग कैंसर की कोशिकाएं बहुत तेजी से विभाजित होती हैं और बड़ा ट्यूमर बना लेती हैं. इन के कारण फेफड़ों के कार्य में बाधा पहुंचती है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के अनुसार प्रति वर्ष विश्‍व भर में 76 लाख लोगों की मृत्‍यु फेफड़ों के कैंसर के कारण होती है जो विश्‍व में होने वाली मृत्यु का 13 प्रतिशत है.

लंग कैंसर मुख्य रूप से किस वजह से होता है?

लंग कैंसर के 10 में से 5 मामलों में सब से प्रमुख कारण तंबाकू का सेवन होता है. लेकिन अब स्थिति  बदल रही है. अब लंग कैंसर के मामले धुम्रपान न करने वालों में भी तेजी से बढ़ रहे हैं.

जो लोग धुम्रपान करने वालों के साथ रहते हैं, सेकंड हैंड स्मोकिंग के कारण उन में भी लंग कैंसर होने की आशंका 24 प्रतिशत तक बढ़ जाती है.

सीओपीडी से पीड़ित लोगों में लंग कैंसर का खतरा चार से छह गुना बढ़ जाता है. इस के अलावा वायु प्रदूषण और अनुवांशिक कारणों से भी लंग कैंसर होता है.

कोई कैसे समझे की उसे लंग कैंसर हो गया है?  इस के शुरूआती लक्षण क्या हैं?

लगातार अत्‍यधिक खांसी रहना ,बलगम में खून आना , सांस लेने और निगलने में समस्‍या आना, आवाज कर्कश हो जाना,  सांस लेते समय तेज आवाज आना, न्‍युमोनिया हो जाना जैसे लक्षण दिखें तो समझें कि लंग कैंसर हो सकता है.

लगातार खांसी रहना और खांसी में खून आना, लंग कैंसर के प्रमुख लक्षण है जो पुरुष व महिलाओं दोनों में होते है. बाकी लक्षण ऐसे है जो दूसरी बीमारियों में भी हो सकतें है.

फेफड़ों के कैंसर के नए और आधुनिक उपचार क्या है?

कैंसर का उपचार इस पर निर्भर करता है कि कैंसर का प्रकार क्‍या है और यह किस चरण पर है. लंग कैंसर के इलाज के कई तरीके हैं – सर्जरी, कीमोथेरेपी, टारगेटथेरेपी, रेडिएशनथेरेपी  एवं इम्यूनोथेरपी.

फेफड़ों के कैंसर की सर्जरी

फेफड़ों के कैंसर की सर्जरी तब संभव है जब उस का उपयुक्त स्टेज पर डायग्नोसिस हो जाए. पहले और दूसरे चरण में सर्जरी कारगर रहती है, क्यों कि तब तक बीमारी फेफड़ों तक ही सीमित रहती है. सर्जरी थर्ड ए स्टेज में भी की जा सकती है, लेकिन जब कैंसर फेफड़ों के अलावा छाती की झिल्ली से बाहर निकल जाता है या दूसरे अंगों तक फैल जाता है तब सर्जरी से इस का उपचार नहीं किया जा सकता. ऐसी स्थिति में कीमोथेरेपी, टारगेट थेरेपी और रेडिएशन थेरेपी की सहायता ली जाती है.

कीमोथेरेपी

कीमोथेरेपी में  साइटोटौक्सिक दवाइयों को नस में इंजेक्शन के द्वारा शरीर के अंदर पहुंचाया जाता है, जो कोशिकाओं के लिए घातक होती है. इस से अनियंत्रित रूप से बढ़ती हुई कोशिकाएं तो नष्‍ट होती हैं साथ ही यह कई स्‍वस्‍थ कोशिकाओ को  भी प्रभावित करती है.

टारगेट थेरैपी

कीमोथेरैपी के दुष्‍प्रभावों को देखते हुए टारगेट थेरैपी का विकास किया गया है. इस में सामान्‍य कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाए बिना कैंसरग्रस्‍त कोशिकाओं को नष्‍ट किया जाता है. इस के साइडइफेक्‍टस  भी कम होते हैं.

रैडिएशन थेरैपी

रेडिएशन थेरेपी में कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिये अत्‍यधिक शक्‍ति वाली उर्जा की किरणों का उपयोग किया जाता है. इस का उपयोग कई कारणों से किया जाता है. कईं बार इसे सर्जरी के बाद, बची हुई कैंसर कोशिकाओं को क्लीन अप करने के लिए किया जाता है तो कई बार इसे सर्जरी के पहले कीमोथेरेपी के साथ किया जाता है ताकि सर्जरी के द्वारा निकाले जाने वाले ट्युमर के आकार को छोटा किया जा सके.

इम्‍यूनोथेरैपी थेरैपी

बायोलौजिकल उपचार के अंतर्गत कैंसरग्रस्‍त कोशिकाओं को मारने के लिये इम्‍यून तंत्र को स्‍टीम्‍युलेट किया जाता है.  पिछले 2-3 वर्षों से ही इस का इस्तेमाल लंग कैंसर के उपचार के लिए किया जा रहा है. कई रोगियों में इसे मूल इलाज के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

फेफड़ों के कैंसर से अपना बचाव कैसे किया जा सकता है ?

  • धुम्रपान न करें, न ही तंबाकू का सेवन करें.
  • प्रदूषित हवा में सांस लेने से बचें.
  • विषैले पदार्थों के संपर्क से बचें. कोयला व् मार्बल की खदानों से दूर रहें.
  • अगर मातापिता या परिवार के किसी सदस्‍य को लंग कैंसर है तो विस्‍तृत जांच कराएं.
  • घर में वायु साफ करने वाले पौधे जैसे कि एरिका पौम, एलुवेरा, स्नैक प्लांट इत्यादि लगवाएं.
  • शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. नियमित रूप से योग और एक्‍सरसाइज करें.

ट्रैवलिंग बैग खरीदते वक्त रखें इन बातों का ध्यान

जहां लंबे ट्रिप के दौरान रकसैक या ट्रौली बैग सही रहते हैं वहीं छोटे ट्रिप्स के लिए बैगपैक. हर बार अलग ट्रिप के लिए बैग की शौपिंग करना पौसिबल नहीं होता. ऐसे में बेहतर होगा कि आप अपने पास बैग की एक-दो वैराइटी रखें जिन्हें आप ट्रैवलिंग के हिसाब से इस्तेमाल कर सकें.

ट्रैकिंग से लेकर इंटरनेशनल और रोड ट्रिप हर एक जगह के लिए अलग-अलग तरह के बैग की जरूरत पड़ती है, तो किस तरह के बैग की खरीददारी करें,  आइए जानते हैं इसके बारे में.

व्हील वाले बैगपैक

व्हील वाले बैगपैक की खास बात होती है कि जरूरत पड़ने पर इन्हें आप कंधे पर भी कैरी कर सकते हैं. एडवेंचर ट्रिप पर जा रहे हैं तो वहां इसे ले जाना सही रहेगा. तो अपने ट्रैवल एक्ससेसरीज में इस तरह का बैग जरूर शामिल करें.

बैग में जगह हो

सामान्यत: बैगपैक में सामने एक पाकेट होता है और बीच में काफी सारी जगह जिसमें आप अपनी जरूरत का सामान रख सकती हैं. कुछ लोगों के लिए इतनी जगह काफी होती है वहीं कुछ लोगों के लिए नहीं. अगर आप हर एक चीज़ की पैकिंग अलग-अलग करते हैं तो बेहतर होगा ऐसे बैग चुनें जिसमें सामान रखने के लिए कई सारे पौकेट्स हों.

वाटरप्रूफ बैग

ट्रैवलिंग के लिए बैग की शौपिंग करते वक्त इस बात का खासतौर से ध्यान रखें कि वो वाटरप्रूफ हो. मौसम कैसा भी हो आपका सामान सुरक्षित रहेगा. सेमी वाटरप्रूफ बैग भी ले सकती हैं. बैग का फैब्रिक बेशक मोटा हो लेकिन लाइटवेट होना चाहिए. जिसे आप आसानी से कहीं भी कैरी कर सकें.

मजबूत और स्टाइलिश

ट्रैवलिंग बैग खरीदते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि कि वो मजबूत हो. कई बार बैग की क्षमता से 2-4 चीज़ें भी ज्यादा रख लेने पर बैग जवाब दे देते हैं तो ऐसा नहीं होना चाहिए. इसके अलावा वो दिखने में भी थोड़ा-बहुत स्टाइलिश होना चाहिए. कपड़ें और फुटवेयर्स जितना भले ही न हो लेकिन उससे कम भी नहीं होना चाहिए.

बिना पिन डाले करें एटीएम से पेमेंट, जानिए पूरी जानकारी

एटीएम कार्डों की तकनीक में 1 जनवरी से एक बड़ा बदलाव हुआ है. अब सभी बैंक कौंटैक्टलेस एटीएम कार्ड जारी केरेंगे. इस कार्ड से पेमेंट करने के लिए उपभोक्ता को पिन डालने की जरूरत नहीं है. बस कार्ड को पेमेंट मशीन से टच करते ही पेमेंट हो जाएगा. इस कार्ड से बिना पिन डाले आप 2000 तक की पेमेंट कर सकती हैं. 2000 रुपये से ज्यादा की रकम के भुगतान के लिए आपको पिन डालने की जरूरत होगी.

हालांकि कई जानकार इसे सुरक्षा के लिहाज से कमजोर बता रहे हैं. जानकारों की माने तो इस तरह का लेन-देन असुरक्षित हो सकता है और साइबर फ्रौड को बढ़ावा दे सकता है. जानकारों का मानना है कि इसकी सुरक्षा को लेकर और अधिक स्पष्टता लाने और ग्राहकों को जागरूक करने की जरूरत है. ग्राहकों को भी इस कार्ड का इस्तेमाल सोच-समझकर करना चाहिए. इस  मामले में मौजूदा कानून पर्याप्त नहीं हैं.

आपको बता दें कि तमाम बैंक इस कार्ड की सिक्यूरिटी को बेहतर बता रहे हैं. पर सच तो ये है कि इसकी सुरक्षा को अभी और ज्यादा बेहतर बनाने की जरूरत है. कार्ड चोरी होने या गिरने की स्थिति में ग्राहक को साबित करने में परेशानी होगी कि कौंटेक्टलेस फीचर का इस्तेमाल कर उसने पेमेंट नहीं किया है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में होने वाले कुल वित्तीय लेन-देन में 60% दो हजार रुपए से कम का होता है. इसे आसान बनाने के लिए कौंटेक्टलेस कार्ड का आइडिया इस्तेमाल किया जा रहा है. आपको बता दें कि वीजा ने देश में पहली बार 2015 में कौंटेक्टलेस कार्ड जारी किए थे. तब से अब तक यह 2 करोड़ से ज्यादा ऐसे कार्ड जारी कर चुका है. विभिन्न बैंकों की बिना पिन/ओटीपी के ट्रांजैक्शन सीमा की बात की जाए तो एसबीआई, एक्सिस और यूनियन बैंक ने एक दिन में अधिकतम 5 कौंटेक्टलेस ट्रांजैक्शन की सीमा तय कर रखी है. ऐसे में कुछ बैंकों में प्रतिदिन 10000 रुपए तक का कौंटेक्टलेस पेमेंट किया जा सकता है.

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