अगर बैंक ना करे आपका काम तो यहां करें शिकायत

पैसा सुरक्षित रखने और लगातार बढ़ाने का सबसे अच्छा जरिया होता है बैंक. जिनका भी बैंक में खाता है उन्हें अक्सर उसके कामकाज को लेकर शिकायत रहती है. कभी ट्रांजेक्शन का अटकना, कभी किसी स्कीम संबंधी शिकायतें, तो कभी एटीएम कार्ड से जुड़ी बात. हालांकि बैंकों के पास इसके निपटारे की कई व्यवस्थाएं पहले से हैं, पर कई बार बैंक के जवाब से भी ग्राहक संतुष्ट नहीं होते. इस खबर में हम आपको इस बात की जानकारी देंगे कि अगर आपके साथ भी ऐसी कोई समस्या रही है जिसे आप बैंक लेकर गए हों और बैंक के जवाब से आप संतुष्ट न हों ऐसे में आपको क्या करना चाहिए.

क्या करना चाहिए

अगर आपका बैंक आपके शिकायत का निपटारा नहीं कर पा रहा है, आप  बैंक की प्रक्रिया से असंतुष्ट हैं तो आप बैंकिंग ओम्बड्समैन (बीओ) के पास जा सकती हैं. पर इसके लिए जरूरी है कि आप पहले बैंक में अपनी शिकायत दर्ज कराएं. अगर बैंक 30 दिनों के अंदर आपकी शिकायत पर जवाब नहीं देता है या आप बैंक के जवाब से संतुष्ट नहीं हैं तो आप ओम्बड्समैन के पास जा सकती हैं. इसके अलावा आपको इस बात का भी ध्यान रखना है कि बैंक से जवाब मिलने के एक साल के अंदर ही आपको यहां शिकायत करनी है.

 इसमें गौर करने वाली बात है कि आपको उसी ओम्बड्समैन के पास शिकायत दर्ज करना होगा जिसके अधिकार क्षेत्र में आपका ब्रांच या बैंक औफिस आता है. इसके अलावा कार्ड या केंद्रीय औपरेशनों से जुड़ी शिकायतों के लिए बिलिंग एड्रेस से बैंकिंग ओम्बड्समैन का अधिकार क्षेत्र तय होगा.

ऐसे करें शिकायत

ओम्बड्समैन में शिकायत दर्ज करने के लिए आपको www.bankingombudsman.rbi.org.in पर उपलब्ध फौर्म को डाउनलोड कर उसे पूरा भरना होगा. इसमें आपके नाम, पता, शिकायत से जुड़ी जानकारियां भरनी होगी. इसके अलावा शिकायत फौर्म के साथ अपने पक्ष में दस्तावेज जमा करना होगा. आप चाहें तो नीचे दिए लिंक की मदद से औनलाइन शिकायत दर्ज कर सकती हैं.

https://secweb.rbi.org.in/BO/precompltindex. htm

अगर आप हैं वाइल्ड लाइफ प्रेमी तो इन जगहों पर जरूर जाएं

अगर छुट्टियों में जीव जंतुओं के दुर्लभ नजारों का दीदार करना हो तो देश के नेशनल पार्क यानी राष्ट्रीय उद्यान भी कम रोमांचक नहीं हैं. यहां के विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों की अपनी एक अलग विषेशता है. जो प्रकृति प्रेमी वाइल्डलाइफ का रोमांच लेना चाहते हैं उनके लिए यह अच्छा समय है क्योंकि देश के कई नेशनल पार्क मानसून के दौरान बंद हो जाते हैं.

जिम कार्बेट नेशनल पार्क, उत्तराखंड

बाघ, हाथी, तेंदुआ जैसे वन्य जीवों को करीब से देखने की चाहत रखने वाले प्रकृति प्रेमियों के लिए जिम कार्बेट एक अच्छी जगह हो सकती है. यह भारत के सबसे पुराने राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है. दिल्ली से इसकी दूरी भी ज्यादा नहीं है. उत्तराखंड में नैनीताल के पास हिमालय की पहाड़ियों पर स्थित इस पार्क की दिल्ली से दूरी करीब 260 किमी. है. यह रामनगर रेलवे स्टेशन से करीब 15 किमी. की दूरी पर है. करीब 520 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला यह पार्क दुर्लभ वन्य जीवों और वनस्पतियों के लिए मशहूर है. वर्ष 1936 में इसे हैली नेशनल पार्क के रूप में स्थापित किया गया था. 1957 में इसका नाम बदल कर जिम कार्बेट नेशनल पार्क कर दिया गया. यहीं पर सबसे पहले 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत हुई थी. यहां बाघ का दीदार करने के साथ साथ हाथी, पैंथर, जंगली बिल्ली, फिशिंग कैट्स, पैंगोलिन, भेड़िए आदि पशुओं को देखा जा सकता है. कार्बेट में लगभग 650 पक्षियों की प्रजातियां भी पाई जाती हैं. यहां वाइल्डलाइफ सफारी के लिए अलग अलग जोन बनाए गए हैं.

काजीरंगा नेशनल पार्क, असम

शहर की भीड़भाड़ से दूर प्रकृति के बीच कुछ दिन की सैर आपको तरोताजा कर देती है. इस लिहाज से असम में स्थित विश्व विरासत काजीरंगा नेशनल पार्क अनुकूल जगह साबित हो सकता है. यह एक सींग वाले गैंडे के लिए लोकप्रिय है. अगर यहां की सैर करनी हो तो 30 अप्रैल से पहले का प्लान बना लें, क्योंकि 30 अप्रैल के बाद बारिश के कारण यह पार्क छह महीने के लिए बंद हो जाता है. करीब 430 वर्ग किलोमीटर में फैला यह पार्क ‘बिग फाइव’ के प्राकृतिक आवास के रूप में भी लोकप्रिय है. बिग फाइव यानी गैंडा, हाथी, बाघ, स्वाम्प हिरण और जंगली भैंस इसके अलावा, काजीरंगा में विभिन्न प्रजातियों के पक्षी भी पाएं जाते हैं. यहां हाथी पर बैठकर पार्क की सैर और जंगली जानवरों को करीब से देखने का रोमांच ही कुछ और है. यह गुवाहाटी से करीब 217 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां का निकटतम एयरपोर्ट जोरहाट है जबकि निकटतम रेलवे स्टेशन दीमापुर है.

बांधवगढ़ नेशनल पार्क, मध्य प्रदेश

हरियाली से भरपूर बांधवगढ़ नेशनल पार्क विभिन्न वन्य जीवों का प्राकृतिक आवास है. मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में स्थित इस पार्क को 1968 में नेशनल पार्क घोषित किया गया था. यह बाघों के लिए प्रसिद्ध है. प्रसिद्ध सफेद चीते की खोज यहीं हुई थी. समुद्र तल से करीब 800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह पार्क करीब 450 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है. यहां सड़कों के बीचों बीच बाघों को आसानी से देखा जा सकता है. इस पार्क को तीन जोन में विभाजित किया गया है-ताला, मग्डी और बमेरा. ताला जोन बाघों को देखने के लिए उपयुक्त है. मग्डी जोन में हाथियों को देख सकते हैं. यहां घूमने पर आप बाघ, एशियाई सियार, धारीदार लकड़बग्घा, बंगाली लोमड़ी, राटेल, भालू, जंगली बिल्ली, भूरा नेवला और तेंदुआ सहित कई तरह के जानवर देख सकते हैं. बांधवगढ़ पार्क घूमने के लिए फरवरी से जून का महीना आदर्श माना जाता है.

रणथंभौर, राजस्थान

वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक माहौल में देखकर रोमांचित होना है, तो रणथंभौर नेशनल पार्क जाइऐ. वर्ष 1981 में इसे नेशनल पार्क का दर्जा मिला था. यह अरावली और विंध्य की पहाड़ियों में फैला है. बाघ के अलावा, यहां चीते, सांभर, चीतल, जंगली सूअर, चिंकारा, हिरन, सियार, तेंदुए, जंगली बिल्ली, लोमड़ी आदि देखे जा सकते हैं. यहां पक्षियों की करीब 264 प्रजातियां पाई जाती हैं.

केयबुल लामजाओ नेशनल पार्क, मणिपुर

यह दुनिया का एकमात्र फ्लोटिंग यानी पानी पर तैरता हुआ नेशनल पार्क है. यह करीब 40 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला है. यहां आप संगाई हिरण देख सकते हैं. संगाई के अलावा यहां हौग हिरण भी मिलते हैं, जो पूरे मणिपुर में कहीं और नहीं पाए जाते.

फिल्म रिव्यू : द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर

रेटिंग : डेढ़ स्टार

हम बार बार इस बात को दोहराते आए हैं कि सरकारें बदलने के साथ ही भारतीय सिनेमा भी बदलता रहता है. (दो दिन पहले की फिल्म ‘उरी : सर्जिकल स्ट्राइक’ की समीक्षा पढ़ लें.) और इन दिनों पूरा बौलीवुड मोदीमय नजर आ रहा है. एक दिन पहले ही एक तस्वीर सामने आयी है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, फिल्मकार करण जोहर के पूरे कैंप के साथ बैठे नजर आ रहे हैं. फिल्मकार भी इंसान हैं, मगर उसका दायित्व अपने कर्तव्य का सही ढंग से निर्वाह करना होता है. इस कसौटी पर फिल्म ‘‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ के निर्देशक विजय रत्नाकर गुटे खरे नहीं उतरते. उन्होंने इस फिल्म को एक बालक की तरह बनाया है. इस फिल्म से उनकी अयोग्यता ही उभरकर आती है. ‘‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ एक घटिया प्रचार फिल्म के अलावा कुछ नहीं है. इस फिल्म के लेखक व निर्देशक अपने कर्तव्य के निर्वाह में पूर्णरूपेण विफल रहे हैं.

2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे डा. मनमोहन सिंह के करीबी व कुछ वर्षों तक उनके मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की किताब ‘‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ पर आधारित फिल्म ‘‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ में भी तमाम कमियां हैं. फिल्म में डा. मनमोहन सिंह का किरदार निभाने वाले अभिनेता अनुपम खेर फिल्म के प्रदर्शन से पहले दावा कर रहे थे कि यह फिल्म पीएमओ के अंदर की कार्यशैली से लोगों को परिचित कराएगी. पर अफसोस ऐसा कुछ नहीं है. पूरी फिल्म देखकर इस बात का अहसास होता है कि पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह अपने पहले कार्यकाल में संजय बारू और दूसरे कार्यकाल में सोनिया गांधी के के हाथ की कठपुतली बने हुए थे. पूरी फिल्म में उन्हे बिना रीढ़ की हड्डी वाला इंसान ही चित्रित किया गया है.

‘‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ में तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को शुरुआत में ‘सिंह इज किंग’ कहा गया. पर धीरे धीरे उन्हे अति कमजोर, बिना रीढ़ की हड्डी वाला इंसान, एक परिवार को बचाने में जुटे महाभारत के भीष्म पितामह तक बना दिया गया, जिसने गांधी परिवार की भलाई के लिए देश के सवालों के जवाब देने की बजाय चुप्पी साधे रखी. फिल्म में डा. मनमोहन सिंह की इमेज को धूमिल करने वाली बातें ही ज्यादा हैं.

फिल्म की कहानी पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार व करीबी रहे संजय बारू (अक्षय खन्ना) के नजरिए से है. कहानी 2004 के लोकसभा चुनावों में यूपीए की जीत के साथ शुरू होती है. कुछ दलों द्वारा उनके इटली की होने का मुद्दा उठाए जाने के कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (सुजेन बर्नेट) स्वयं प्रधानमंत्री/पीएम बनने का लोभ त्यागकर डा. मनमोहन सिंह (अनुपम खेर) को पीएम पद के लिए चुनती हैं. उसके बाद कहानी में प्रियंका गांधी (अहाना कुमार), राहुल गांधी (अर्जुन माथुर),अजय सिंह (अब्दुल कादिर अमीन), अहमद पटेल (विपिन शर्मा), लालू प्रसाद यादव (विमल वर्मा), लाल कृष्ण अडवाणी (अवतारसैनी), शिवराज पाटिल (अनिल रस्तोगी), पी वी नरसिम्हा राव (अजित सतभाई), पी वी नरसिम्हा राव के बड़े बेटे पी वी रंगा राव (चित्रगुप्त सिन्हा), नटवर सिंह सहित कई किरदार आते हैं.

संजय बारू, जो पीएम के मीडिया सलाहकार हैं, लगातार पीएम की इमेज को मजबूत बनाते जाते हैं. वैसे भी संजय बारू ने मीडिया सलाहकार का पद स्वीकार करते समय ही शर्त रख दी थी कि वह हाई कमान सोनिया गांधी को नहीं, बल्कि सिर्फ पीएम को ही रिपोर्ट करेंगें. इसी के चलते पीएमओ में संजय बारू की ही चलती है, इससे अहमद पटेल सहित कुछ लोग उनके खिलाफ हैं. यानी कि उनके विरोधियों की कमी नहीं है. पर संजय बारू पीएम में काफी बदलाव लाते हैं. वह उनके भाषण लिखते हैं.

उसके बाद पीएम का मीडिया के सामने आत्म विश्वास से लबरेज होकर आना, अमेरिकी राष्ट्रति बुश के साथ न्यूक्लियर डील पर बातचीत, इस सौदे पर लेफ्ट का सरकार से अलग होना, समाजवादी पार्टी का समर्थन देना, पीएम को कटघरे में खड़े किए जाना,पीएम के फैसलों पर हाई कमान का लगातार प्रभाव, पीएम और हाई कमान का टकराव, विरोधियों का सामना जैसे कई दृश्यों के बाद कहानी उस मोड़ तक पहुंचती है, जहां न्यूक्लियर मुद्दे पर पीएम डा. मनमोहन सिंह स्वयं इस्तीफा देने पर आमादा हो जाते हैं. पर राजनीतिक परिस्थितियों के चलते सोनिया उनको इस्तीफा देने से रोक लेती हैं. उसके बाद हालात ऐसे बदलते हैं कि संजय बारू अपना त्यागपत्र देकर सिंगापुर चले जाते हैं, मगर डा. मनमोहन सिंह से उनके संपर्क में बने रहते हैं.

उसके बाद की कहानी बड़ी तेजी से घटित होती है, जिसमें डा. मन मोहन सिंह पूरी तरह से हाई कमान सोनिया व गांधी परिवार के सामने समर्पण भाव में ही नजर आते हैं. अहमद पटेल भी उन पर हावी रहते हैं. फिर आगे की कहानी में उनकी जीत के अन्य पांच साल दिखाए गए हैं, जो एक तरह से यूपीए सरकार के पतन की कहानी के साथ कोयला, 2 जी जैसे घोटाले दिखाए गए हैं. फिल्म में इस बात का चित्रण है कि प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह स्वयं इमानदार रहे, मगर उन्होंने हर तरह के घोटालों को परिवार विशेष के लिए अनदेखा किया. फिल्म उन्हे परिवार को बचाने वाले भीष्म की संज्ञा देती है. पर फिल्म की समाप्ति में2014 के चुनाव के वक्त की राहुल गांधी व वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाएं दिखायी गयी हैं.

फिल्म के लेखक व निर्देशक दोनों ने बहुत घटिया काम किया है. फिल्म सिनेमाई कला व शिल्प का घोर अभाव है. पटकथा अति कमजोर है. इसे फीचर फिल्म की बजाय ‘डाक्यू ड्रामा’ कहा जाना चाहिए. क्योंकि फिल्म में बीच बीच में कई दृश्य टीवी चैनलों के फुटेज हैं. एडीटिंग के स्तर भी तमाम कमियां है. फिल्म में पूरा जोर गांधी परिवार की सत्ता की लालसा, सोनिया गांधी की अपने बेटे राहुल को प्रधानमंत्री बनाने की बेसब्री, डा मनमोहन सिंह के कमजोर व्यक्तित्व व संजय बारू के ही इर्द गिर्द है.

डा. मनमोहन सिंह को लेकर अब तक मीडिया में जिस तरह की खबरें आती रही हैं, वही सब कुछ फिल्म का हिस्सा है, जबकि संजय बारू उनके करीबी रहे हैं, तो उम्मीद थी कि डा मनमोहन सिंह की जिंदगी के बारे में कुछ रोचक बातें सामने आएंगी, पर अफसोस ऐसा कुछ नहीं है. फिल्म में इस बात को भी ठीक से नहीं चित्रित किया गया कि अहमद पटेल किस तरह से खुरपैच किया करते थे. कोयला घोटाला, 2 जी घोटाला आदि को बहुत सतही स्तर पर ही उठाया गया है. फिल्म में सभी घोटालों पर कपिल सिब्बल की सफाई देने वाली प्रेस कांफ्रेंस भी मजाक के अलावा कुछ नजर नहीं आती.

कमजोर पटकथा व कमजोर चरित्र चित्रण के चलते एक भी चरित्र उभर नहीं पाया. कई चरित्र तो महज कैरीकेचर बनकर रह गए हैं. फिल्म के अंत में बेवजह ठूंसे गए राहुल गांधी व नरेंद्र मोदी की चुनाव प्रचार की सभाओं के टीवी फुटेज की मौजूदगी लेखकों,निर्देशक व फिल्म निर्माताओं की नीयत पर सवाल उठाते हैं. पूरी फिल्म एक ही कमरे में फिल्मायी गयी नजर आती है.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो संजय बारू के किरदार में अक्षय खन्ना ने काफी शानदार अभिनय किया है. मगर पटकथा व चरित्र चित्रण की कमजोरी के चलते अनुपम खेर अपने अभिनय में खरे नहीं उतरते, बल्कि कई जगह उनका डा. मनमोहन सिंह का किरदार महज कैरीकेचर बनकर रह गया है. किसी भी किरदार में कोई भी कलाकार खरा नहीं उतरता. फिल्म का पार्श्वसंगीत भी सही नहीं है.

एक घंटे 50 मिनट की अवधि की फिल्म ‘‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ का निर्माण सुनील बोहरा व धवल गाड़ा ने किया है. संजय बारू के उपन्यास पर आधारित फिल्म के निर्देशक विजय रत्नाकर गुटे, लेखक विजय रत्नाकर गुटे, मयंक तिवारी, कर्ल दुने व आदित्य सिन्हा, संगीतकार सुदीप रौय व साधु तिवारी, कैमरामैन सचिन कृष्णन तथा कलाकार हैं – अनुपम खेर, अक्षय खन्ना,सुजेन बर्नेट, अहाना कुमार, अर्जुन माथुर, अब्दुल कादिर अमीन, अवतार सैनी, विमल वर्मा, अनिल रस्तोगी, दिव्या सेठ, विपिनशर्मा, अजीत सतभाई, चित्रगुप्त सिन्हा व अन्य.

फिल्मी अंधभक्तों की बढ़ती फौज, एक और फैन ने की सुसाइड

अभी एक वीडियो ट्विटर पर तैर रहा है. जिसमें कथित तौर पर तमिल सुपरस्टार अजीत के फैन्स रजनीकांत की फिल्म पेट्टा के पोस्टर्स जला रहे हैं. चूंकि रजनी और अजीत की फिल्म पेट्टा और विश्वासम एक ही दिन (पोंगल) रिलीज हुई हैं, इसलिये दोनों फिल्म स्टार्स के फैन्स आपस में भिड़े हुए हैं.

दक्षिण भारत में फिल्मी सितारों और नेताओं को लेकर फैन्स किस तक अंधभक्ति के शिकार हैं, इसके नमूने जबतब दिख जाते हैं. कोई कोई फैन क्लब वाला उनके मंदिर बनवा देता है तो कोई उन्हें शिवलिंग की तरह दूध से नहला देता है. रजनीकांत, कमल हसन से लेकर पवन कल्याण, चिरंजीवी तक ऐसे कई कलाकार हैं जिनके बाकायदा फैन्स क्लब कहते हैं और कई स्टार्स की तरफ से इन्हें फंडिंग भी मिलती हैं. लिहाजा ये क्लब वाले इस तरह के अंधभक्तों की फौज खड़ी कर देते हैं जो खुद को एक खास एक्टर या नेता का फैन्स बताकर लड़ने-मरने पर उतारू हो जाते हैं. कमल हसन ने रजनीकांत को कुछ कह दिया तो उनके फैन्स पहुंच जाते हैं कमल के घर तोड़फोड़ करने. कुछ साल पहले जब एक दक्षिण भारतीय एक्टर चंद्रशेखर ने राजनीति में उतरे अपने प्रतिद्वंद्वी एक्टर के खिलाफ कुछ बोल दिया तो उस एक्टर के फैन्स ने चंद्रशेखर पर भरी सभा में पत्थरों की बारिश कर दी. बेचारे चोटिल हो गए लेकिन फैन्स पर कौन सा केस दर्ज होता.

एक्टर नहीं मिला तो खुद को जला दिया

हालिया मामला तो और भी विचलित करने वाला है. कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार यश से मिलने की जिद में एक लड़के ने आत्मदाह कर लिया. हुआ यों कि यश को बर्थडे विश करने के लिए जब उनका एक फैन रवि शंकर अपने दोस्तों के साथ उनके घर पहुंचा. तब उसे वहां एंट्री करने से मना कर दिया गया. नाराजगी में रवि ने एक्टर के घर के सामने खुद को आग लगा ली. उसे यश के जन्मदिन पर उनसे मिलने की धुन थी. चूंकि कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री के इस एक्टर ने केजीएफ फिल्म के बाद से शाहरुख खान की फिल्म जीरो को बीट कर अपनी फैन फौलोइंग बढ़ा ली है, लिहाजा उनके घर के बाहर फैन्स की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. अब सबसे मिलना तो किसी भी एक्टर के लिए संभव नहीं है.

बहरहाल, किसी तरह उसे घायल अवस्था में अस्पताल ले गए लेकिन अगले दिन उसने दम तोड़ दिया. 26 साल के इस लड़के ने अपनी जान सिर्फ इस फिजूल से शौक के लिए दे दी. ताजुब इस बात का है कि इस बात से उसके मातापिता भी वाकिफ थे. उनके मुताबिक, रवि हर साल यश से मिलने जाता था. पिछले साल वह हमें भी उनके घर ले गया था. इस साल, हमने उसे जाने से मना किया था, लेकिन वह चला गया. पता नहीं रवि को पेट्रोल कहां से मिला.

हालांकि इस घटना के बाद यश, रवि से मिलने के लिए अस्पताल पहुंचे. लेकिन उन्होंने इस बात पर काफी गुस्सा भी जताया. उन्होंने कहा, मैं इस तरह के प्रशंसकों को नहीं चाहता हूं. यह फैंटेसी या प्यार नहीं है. इससे मुझे खुशी नहीं मिलती है. मैं इस तरह से किसी और को देखने नहीं आऊंगा. यह उन प्रशंसकों को गलत संदेश देगा जो सोचते हैं कि अगर वह ऐसा काम करेंगे तो मैं उनसे मिलने आउंगा.

दोषी कौन, भक्त या देवता ?

अब इसमें दोष भक्त का है देवता बन चुके एक्टर्स का, लेकिन फैन्स का इस तरह से फैनेटिक बनना चिंता का विषय है. पढ़ाई के प्रेशर से लेकर लड़की के दिल तोड़ने तक सुसाइड की कोशिशें वैसे ही युवाओं की जान ले रही हैं, उस पर फिल्मी सितारों की ये दीवानगी भी कम गंभीर मसला नहीं है.

कुछ कहेंगे कि इसमें एक्टर्स का क्या दोष. लेकिन कहीं न कहीं इस फैनबाजी को एक्टर ही बढ़ावा देते हैं. अपनी फिल्मों में मसीहा की इमेज बनाने से लेकर फैन्स क्लब को रजिस्टर्ड कराना हो या उनके उत्सवों में शिरकत करना, आदि बातें फैन्स को गुटों में बांध देती हैं. कुछ कुछ राजनीतिक कार्यकर्ताओं की तरह. जो अपने नेता की तर्ज पर अभिनेताओं का झंडा (पोस्टर) लेकर चलते हैं. इनकी फिल्मों के रिलीज के समय पूरा का पूरा थियेटर इन फैन्स क्लब की मुठ्ठी में होता है. चलती फिल्म को बीच में ही रोककर ढोल-नगाड़ों का जश्न जैसा पागलपन भी यहीं दीखता है. टिकटों की कालाबाजारी भी होती है और असुरक्षा का माहौल अलग बनता है. अभी नार्थ इंडिया यानी हिन्दी बेल्ट में यह संक्रमण ज्यादा नहीं फैला है लेकिन कुछ कुछ लक्षण जरूर दिखने लगे हैं. मसलन सलमान खान और अक्षय कुमार के पोस्टर्स पर रिलीज एक समय मालाबाजी होने लगी हैं. जान देने या लेने जैसी बात सोशल मीडिया एकाउंट पर दिख जाती है. जहां फैन्स आपस में भिड़ जाते हैं और एक्टर्स को गरियाने लगते हैं.

लार्जर दैन लाइफ किरदार और सियासत

दरअसल रीजनल सिनेमा ने कभी भी देसी मुद्दों को नहीं छोड़ा. वहां के हीरो अभी भी लुंगी डांस करते हैं और रंगस्थलम, काला, पेट्टा, शिवाजी, नायकन, मारी, सरकार जैसी जैसी फिल्में वहीं के गाँव, किसान और क्षेत्रीय राजनीति की बात करती हैं. लिहाजा ऐसी फिल्मों के नायक जननायक- थलाइवा बन जाते हैं. एम जी रामाचंद्रन, जानकी रामाचंद्रन, सी एन अन्नादुराई, एनटी रामाराव, एम के करुणानिधि, जयललिता, चंद्रशेखर, चिरंजीवी, बालकृष्ण, हरिकृष्ण, पवन कल्याण, राम्या, जय प्रदा, विजय कांत आदि नाम फिल्मी पृष्ठभूमि से थे. एनटीआर ने बतौर अभिनेता अपनी नायक छवि का इस्तेमाल तेलुगू गर्व के मुद्दे पर आधारित अपनी तेलुगू देशम पार्टी को स्थापित करने में बखूबी किया. बाद में सीएम बने. आंध्रप्रदेश के सीएम रहे वाय एस राजशेखर रेड्‌डी की बायोपिक, बालकृष्ण की कथानायुडू, नेता-अभिनेता चिरंजीवी का सई रा नरसिम्हा रेड्डी से फ्रीडम फाइटर उय्यलावाडा नरसिम्हा रेड्‌डी की लाइफ को पर्दे पर उतारना, तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता की बायोपिक ‘आयरन लेडी’ का बनाना उसी फैनबाजी के कंधे पर सवार होकर यहां तक पहुंचे हैं.

फिल्में कोरी कल्पनाओं पर आधारित होती हैं. लेकिन इनमें काम करने वाले अभिनेता सामाजिक सरोकार की आड़ में रियलिस्टिक सिनेमा को दरकिनार कर लार्जर दैन लाइफ किरदार रचते हैं, जो राजा भी होता है और रंक भी. बिलकुल देवता सरीखा बनकर जनता की आवाज़ उठाता है और अवाम उस किरदार को असल का समझने लगते है. कई बार अभिनेता इस पागलपन का फायदा उठाकर सियासत में उतर जाते हैं और सिनेमाघर के टिकटों को बैलेट बौक्स तक खींच ले आते हैं. लेकिन इस सब फैन्बाजी में उनका क्या जो भावावेश में आकर खुद को जीतेजी मार रहे हैं.

दरअसल के डीएनए में ही व्यक्ति पूजा और गुलामी के बीज हैं. हम किसी को थोड़ा सा पसंद कर लें उसे अवतार मान बैठते हैं. जाहिर है इसका फायदा सदियों से भारत में सत्ता में बैठे लोग उठा रहे हैं और शायद आगे भी उठाते रहेंगे.

बच्चों के रिस्पैक्ट का भी ख्याल रखें

कहा जाता है कि बच्चे कच्ची मिट्टी के समान होते हैं. उन्हें क्या रूप देना है यह आप के ऊपर निर्भर करता है. बड़ा हो कर बच्चा अच्छे  व्यक्तित्व का स्वामी बने , उन्नति करे और आप का नाम रोशन करे इस की चाह तो हर मांबाप को होती है. मगर ऐसा मुमकिन तभी होगा जब आप शुरू से बच्चे की अच्छी परवरिश पर ध्यान दें. अच्छी परवरिश के लिए दूसरी बातों के साथसाथ एक बात काफी अहम है जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और वह है बच्चों को रिस्पैक्ट देना.

  1. बच्चे को कभी उस के छोटे भाई/बहन के आगे न डांटें

यदि आप के बच्चे ने कोई काम आप के मनमुताबिक नहीं किया, उस ने कोई शरारत कर दी , नंबर अच्छे नहीं आए या किसी और कंपटीशन में पिछड़ गया या फिर उस के झूठ बोलने पर आप को गुस्सा आया हो, बात कितनी भी बड़ी हो पर बच्चे को कभी उस के छोटे भाई बहनों के आगे अपमानित न करें. क्योंकि छोटा भाई/बहन जो बड़े को आप से डांटमार खाता हुआ देख रहा है, समय आने पर खुद भी बड़े की कद्र करना छोड़ देगा। छोटे भाई/बहन की नजर में बड़े का सम्मान घट जाएगा. वह बड़े भाई/बहन का मजाक उड़ाएगा और बड़े के मन में कुंठा बैठती जाएगी. इसलिए यदि बड़े बच्चे को कुछ समझाना है तो छोटे के आगे नहीं बल्कि अकेले में कहें.

2. दूसरों के आगे आपा न खोएं

मान लीजिए बच्चे ने आप की कोई जरूरी चीज खो दी या कोई बड़ी गलती कर दी जिस के बारे में आप को किसी और से पता चलता है. खबर मिलते ही एकदम से बच्चे पर चीखनेचिल्लाने लगे यह उचित नहीं. 10 लोगों के बीच बच्चे को कभी भी अपमानित न करें. बच्चे को आराम से अपने पास बुलाए और प्रयास करें कि कमरे में अकेले में बैठ कर उस से बात करें. एकदम से आपा खोने के बजाय बच्चे से उस के द्वारा की गई गलती के बारे में बताएं और उस का जवाब सुने. हो सकता है कि परिस्थितिवश ऐसा हुआ हो. उसे अपने बचाव का मौका दे. उस का पक्ष सुनने के बाद फैसला लें कि बच्चे की गलती है या नहीं. बच्चे की गलती है तो भी उसे मारपीट करने के बजाय तार्किक तरीके से समझाएं. उसे अपनी गलती का एहसास कराएं और वादा करवायें कि वह आगे से ऐसा नहीं करेगा. प्यार से समझाई गई बात का असर बहुत गहरा पड़ता है पर मारपीट कर समझाई गई बात बच्चे में क्षोभ और विद्रोह के भाव पैदा करते हैं या फिर वह डिप्रेस्ड रहने लगता है.

3. बच्चे की कमियां न गिनाएं

हर बात पीछे बच्चे को नाकारा ,आलसी ,बेवकूफ ,जाहिल जैसे शब्दों से न नवाजे. बच्चे को आप जितना ही ज्यादा झिडकेंगे या उस की कमियां गिनाते रहेंगे उस के उतना ही ज्यादा गलत रास्ते पर जाने की संभावना बढ़ती जाएगी. कई घरों में मांबाप हर समय बच्चे को कोसते रहते हैं. बाहर वालों,पड़ोसियों और रिश्तेदारों के आगे भी उस की कमियों का बखान करते रहते हैं इससे बच्चे के अंदर नकारात्मक सोच विकसित होती है. इस के विपरीत यदि मांबाप बच्चे की छोटीबड़ी उपलब्धियों का जश्न मनाए, दूसरों के आगे बच्चे की तारीफ करें, उसके अंदर की खूबियों को बढ़ाचढ़ा कर दिखाएं तो बच्चे के अंदर सकारात्मकता बढ़ती है. उस के अंदर और अच्छे काम कर अधिक तारीफ पाने की लालसा जगती है. उस के मन में  क्षोभ , ग्लानि या प्रतिस्पर्धा के बजाय उत्साह, लगन और स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना प्रबल होती है.

4. बच्चे की इच्छा को मान दें

हर बच्चा दूसरे से अलग होता है. हर बच्चे में अलगअलग खूबियां होती हैं , अलग-अलग हुनर होते हैं. बच्चे में जो हुनर है, उसे जो करना पसंद है, उसे भविष्य में जो बनने की इच्छा है ,उस का मान रखें. बच्चे की इच्छा और पसंद को तरजीह दें. उसे वही बनने दे जो वह बनना चाहता है. कई घरों में बच्चों की इच्छा यह कह कर दबा दी जाती है कि वह छोटा है. उसे भलेबुरे का ज्ञान नहीं. पर ऐसी प्रवृत्ति सही नहीं. बच्चे की जिंदगी पर अपनी मिल्कियत न दिखाए. उसे पूरे सम्मान के साथ अपनी जिंदगी और जिंदगी से जुड़े फैसलों को जीने दे. ताकि उम्र बढ़ने के बाद उस के अंदर घुटन ,छटपटाहट ,फ़्रस्ट्रेशन और गुस्से की ज्वाला नहीं बल्कि संतुष्टि ,खुशी ,अपनत्व और प्रेम की धारा बहे. वह आप को भी प्रेम दे और दूसरों को भी.

5. बच्चों का नाम न बिगाड़े

अक्सर अभिभावक या रिश्तेदार बच्चों के नाम को बिगाड़ कर पुकारते हैं जैसे चंद्र को चंदर , देव को देवू , मीनल  को मिनुआ आदि. उन के किसी बाहरी कमी के आधार पर भी उन के नाम पुकारने लगते हैं जैसे, बच्चा काला है तो कलुआ, मोटा है तो मोटू ,छोटा है तो बच्चू वगैरह. कभी ऐ बहरा ,नालायक ,शैतान का नाना ,भुक्खड़ ,लिकलिकिया ,ट्यूबलाइट तो कभी कुछ और इस तरह के बदसूरत उपनामो से यदि आप बच्चे को नवाजेंगे तो फिर सोचिए बाकी लोग क्या करेंगे. इसलिए बेहतर होगा कि भूल कर भी कभी अपने बच्चे को ऐसे नामो से न पुकारे उलटा यदि कोई परिचित या रिश्तेदार ऐसा करता है तो तुरंत उसे मना कर दे. बिगड़े नाम के साथ बच्चे का व्यक्तित्व भी बिगड़ सकता है. हमेशा बच्चे को उसी नाम से पुकारे जैसा आप उसे देखना चाहते हैं जैसे हर्ष ,आशा, निहाल ,प्रथम जैसे अच्छे अर्थ वाले नाम बच्चे के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं.

6. बच्चे को आप कहकर पुकारे

अक्सर हम देखते हैं कि कुछ संभ्रांत परिवार के लोग अपने बच्चे को शुरू से ही आप कह कर पुकारते हैं जैसे आप ने क्या  खाया, आप कहां गए, क्या सीखा आप ने ,बगैरह. इस से बच्चे के अंदर शिष्ट और सभ्य व्यवहार की नींव पड़ती है. आप बच्चे को तू तड़ाक कह कर बात करेंगे तो कल को वह दूसरों से और हो सकता है कि आप से भी इसी लहजे में बात करने लगे. इस से खुद आप को दूसरों के आगे लज्जित होना पड़ सकता है.

स्किन को यों करें डिटौक्स

त्वचा से आप का भीतरी स्वास्थ्य झलकता है. त्वचा शरीर के तापमान और नमी को संतुलित बनाए रखती है. इसे जवां और चमकदार बनाए रखना चाहती हैं तो जरूरी है कि त्वचा में मौजूद विषैले पदार्थों को बाहर निकाला जाए.

उम्र बढ़ने तथा बाहरी कारकों का असर हमारी त्वचा  पर पड़ता है. इन कारकों की वजह से त्वचा में विषैले पदार्थ जमा हो जाते हैं.

त्वचा में टौक्सिंस जमा होने का सब से बड़ा कारण प्रदूषण है. प्रदूषण के कारण त्वचा धूल, धुंए, जहरीली गैसों के संपर्क में आती है. ये सभी प्रदूषक त्वचा में समा जाते हैं और फ्री रैडिकल्स के कारण त्वचा में ऐजिंग के लक्षण दिखने लगते हैं.

चीनी, सोडियम, ट्रांसफैट से युक्त आहार के सेवन से त्वचा पर बुरा असर पड़ता है और त्वचा में टौक्सिंस जमा हो जाते हैं.

उम्र बढ़ने के साथ प्राकृतिक रूप से त्वचा में कोलाजन कम होने लगता है. इस से त्वचा में नमी का स्तर गिरने लगता है और त्वचा पतली एवं संवेदनशील हो जाती है.

उम्र बढ़ने के साथ त्वचा में सिबैशियस ग्लैंड्स यानी तेल कम होने लगती हैं, जिस से त्वचा संवेदनशील हो जाती है.

कैसे करें त्वचा को डीटौक्सीफाई

त्वचा को कितनी बार डीटौक्सीफाई करना है यह हर व्यक्ति और उस की त्वचा के प्रकार पर निर्भर करता है. अगर आप अपनी त्वचा को स्वस्थ बनाए रखना चाहती हैं तो आप को हर महीने त्वचा को डीटौक्स करना चाहिए. साल में कम से कम 4 बार त्वचा को जरूर डीटौक्स करें.

पानी: अगर आप नियमित रूप से पर्याप्त पानी पीएं तो रूखी और बेजान त्वचा भी धीरेधीरे मुलायम हो जाएगी. रोजाना 10-12 गिलास पानी पीने से आप के खून में मौजूद टौक्सिंस बाहर निकल जाते हैं और त्वचा साफ हो जाती है. दिन की शुरुआत 1 गिलास पानी से करें. इस पानी में 1 चम्मच नीबू का रस और 1/2 चम्मच शहद मिला लें.

डीटौक्स वाटर: डीटौक्स वाटर शरीर को साफ करता है और स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है. डीटौक्स वाटर प्यास तो बुझाता ही है, साथ ही त्वचा को भी सेहतमंद बनाए रखता है. डीटौक्स वाटर के उदाहरण हैं पुदीना, खीरा, नीबू पानी, सादा लैमन डीटौक्स वाटर, ऐप्पल साइडर विनेगर डीटौक्स वाटर या किवी डीटौक्स वाटर आदि.

पसीना: यह त्वचा और शरीर को डीटौक्सीफाई करने का सब से अच्छा तरीका है. रोजाना 1 घंटा व्यायाम करें. व्यायाम करने से दिल की धड़कन बढ़ जाती है और त्वचा से पसीना आने लगता है. पसीने के साथ त्वचा से अशुद्धियां निकल जाती हैं. आप हीट स्पा या योगा भी कर सकती हैं, क्योंकि इस से भी दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं.

जब चुनें कौस्मैटिक: पैराबिन या असुरक्षित रसायनों, पैट्रोरसायनों, सिंथैटिक खुशबू, ऐक्रिलिक पौलीमर से युक्त कौस्मैटिक या रसायनों से युक्त सनस्क्रीन का इस्तेमाल न करें. घर में बना फेशियल औयल इस्तेमाल करें. सुबह की शुरुआत मौइश्चराइजर और सनस्क्रीन युक्त सीरम के साथ करें. रात के समय नाईट क्रीम या मास्क इस्तेमाल करें. सप्ताह में 2 बार फेशियल औयल का इस्तेमाल त्वचा के लिए फायदेमंद रहता है. अगर आप की त्वचा डल, ड्राई और संवेदनशील है तो हाइड्रेटिंग/कूलिंग शीट मास्क इस्तेमाल करें.

चीनी का सेवन बंद कर दें: चीनी का सेवन बंद कर देने से जहां एक ओर वजन कम होता है, वहीं दूसरी और त्वचा में भी सुधार आता है. चीनी के कारण ग्लाइसेशन होता है, जिस से त्वचा का इलास्टिन और कोलाजन कम होने लगता है. कम कार्बोहाइड्रेट से युक्त आहार का सेवन करने से आप को चीनी खाने का मन नहीं करेगा.

एल्केलाईन से युक्त आहार लें: इस तरह का आहार शरीर की सफाई करता है. नीबू, बादाम, नाशपाती और सेब अच्छे आहार हैं जो हड्डियों को मजबूत तथा बालों एवं त्वचा को सेहतमंद बनाते हैं.

हरी सब्जियों का सेवन करें: हरी सब्जियां और फल त्वचा को डीटौक्सीफाई करते हैं. सूखे सीवीड, पत्तागोभी और चुकंदर बहुत अच्छे खासा पदार्थ हैं जो त्वचा को खूबसूरत बनाते हैं.

प्रोबायोटिक्स: प्रोबायोटिक्स त्वचा को डीटौक्स करते हैं. इन के सेवन से शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ती है, पेट ठीक से साफ होता है और त्वचा टौक्सिंस से रहित और स्वस्थ बनी रहती है.

-डा. साक्षी श्रीवास्तव

कंसल्टैंट डर्मैटोलौजिस्ट, जे.पी. हौस्पिटल

स्माइल लाइंस समाधान है न

मुसकराने से आप अच्छा महसूस करती हैं. मुसकराने से तनाव दूर हो जाता है, शरीर में नई ऊर्जा दौड़ने लगती है और आप का मूड भी ठीक हो जाता है. आप की मुसकान दूसरों को भी खूबसूरत एहसास देती है. लेकिन मुसकराने की वजह से धीरेधीरे चेहरे पर स्माइल लाइंस भी बनने लगती हैं.

स्माइल लाइंस एक तरह की झुर्रियां हैं, जो शुरुआत में आप के चेहरे के दोनों तरफ बनती हैं. कभीकभी ये आंखों के आसपास भी बन जाती हैं. जब आप मुसकराती हैं, तब ये लाइनें साफ दिखाई देती हैं. उम्र बढ़ने के साथ इन झुर्रियों को रोकना असंभव हो जाता है.

शुरुआत

शुरुआत में चेहरे पर ये लाइनें तभी दिखाई देती हैं, जब आप हंसती या मुसकराती हैं. हालांकि जिन लोगों के गाल मुलायम और गोलमटोल होते हैं, उन में ये लाइनें स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई देती हैं. उम्र बढ़ने के साथ ये लाइनें गहरी होती हैं. लेकिन थोड़ी सी कोशिश से आप इन लाइनों को गहरा होने से रोक सकती हैं.

कैसे रोकें

– अच्छी जीवनशैली द्वारा आप इन लाइनों को रोक सकती हैं. अपनी त्वचा को धूप से बचाने के लिए रोजाना सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें.

– त्वचा में नमी बनाए रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं. बहुत ज्यादा कैफीन या शराब का सेवन न करें.

– दिन में चेहरे को 1-2 बार धोएं और इस के बाद त्वचा के अनुसार मौइश्चराइजर लगाएं.

– शाकाहारी आहार त्वचा की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है.

उपचार के विकल्प: स्माइल लाइंस की बात करें तो इन के इलाज के कई विकल्प उपलब्ध हैं. लेकिन किसी भी तरह की सर्जरी या कौस्मैटिक प्रक्रिया को चुनने से पहले अपने डर्मैटोलौजिस्ट या प्लास्टिक सर्जन से मिलें, जो झुर्रियों के इलाज का विशेषज्ञ हो.

इंजैक्टेबल फिलर्स: इंजैक्टेबल फिलर्स उन के लिए बेहतरीन विकल्प है जो सर्जरी के बिना स्माइल लाइंस से छुटकारा पाना चाहती हैं. इन का असर तुरंत दिखाई देता है और अगर आप को इस के परिणाम पसंद न आएं तो इन्हें रिवर्स भी किया जा सकता है. लेकिन बारबार इंजैक्शन लगवाने से टिशूज में निशान बन जाते हैं.

सर्जरी: अगर आप स्थाई और ज्यादा बेहतर परिणाम चाहती हैं तो आप के पास सर्जरी का विकल्प भी है. फेसलिफ्ट स्माइल लाइंस का स्थाई समाधान है. इस से चेहरे और आंखों के आसपास की झुर्रियां दूर हो जाती हैं. आप का प्लास्टिक सर्जन फेसलिफ्ट के साथ आईलिड सर्जरी की सलाह भी दे सकता है. फेसलिफ्ट में संक्रमण की संभावना बहुत अधिक होती है. इस के अलावा कुछ अन्य साइड इफैक्ट्स भी हो सकते हैं जैसे निशान पड़ना, दर्द और तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचना.

लेजर उपचार: लेजर एक रीसरफेसिंग तकनीक है जिस में त्वचा की कोशिकाओं की ऊपरी परत को निकाल दिया जाता है. इस से त्वचा पर मौजूद दागधब्बे और लाइनें हलकी पड़ जाती हैं, क्योंकि नई त्वचा की निचली परत बाहर आ जाती है. इस के साइड इफैक्ट्स हैं दर्द और सूजन. लेकिन ये साइड इफैक्ट्स कुछ ही दिनों तक रहते हैं. इस उपचार के बाद निशान पड़ने या संक्रमण की संभावना भी होती है.

कोलोजन इंडक्शन: कोलोजन इंडक्शन थेरैपी से त्वचा में प्राकृतिक प्रोटीन बनने लगता है. उम्र बढ़ने के साथ त्वचा में कोलोजन कम होने लगता है. इसलिए त्वचा की इलास्टिसिटी कम हो जाती है. नीडलिंग के द्वारा कोलोजन से झुर्रियों और स्माइल लाइंस को भर दिया जाता है. इस प्रक्रिया के लिए आप का डाक्टर छोटी नीडल के साथ रोलर जैसे ऐक्लिप्स माइक्रोपैन भी इस्तेमाल कर सकता है. नीडलिंग के परिणाम धीरेधीरे दिखाई देते हैं. जैसेजैसे आप की त्वचा ठीक होती है, त्वचा पर लालिमा दिख सकती है.

ओटीसी क्रीम: ओटीसी क्रीम झुर्रियों के लिए एक किफायती विकल्प है. लेकिन इस का असर दिखने में कुछ महीने तक लग सकते हैं और इस के परिणाम स्थाई नहीं होते. इसके साइड इफैक्ट्स हैं त्वचा पर लालिमा, रैश और जलन.

होम लाइट ट्रीटमैंट: ओटीसी क्रीम के अलावा बाजार में कुछ किट्स भी उपलब्ध हैं जिन का इस्तेमाल घर में ही किया जा सकता है.

उम्र बढ़ने के साथ स्माइल लाइंस बनना सामान्य है. जैसेजैसे आप की उम्र बढ़ती है ये लाइनें और झुर्रियां बढ़ती जाती हैं, गहरी होती जाती हैं. अपने डाक्टर से बात करें और अपने लिए सब से अच्छा विकल्प चुनें.

-डा. साक्षी श्रीवास्तव

कंसलटैंट, डर्मैटोलौजिस्ट, जे.पी. हौस्पिटल

सर्दी से हैं परेशान तो खाने की इन चीजों से बना लें दूरी

सर्दियों के मौसम में जुकाम और खांसी होना बेहद ही आम बात है. लेकिन कई बार यह समस्या गंभीर हो जाती है. ऐसे में जब भी हम बीमार पड़ते हैं तो हमें अपने खान-पान पर अधिक ध्यान देने की जरुरत होती है. बहुत से लोग खान-पान का ख्याल नहीं रखते हैं ऐसे में वे जल्दी ठीक नहीं हो पाते और लंबे समय तक बीमारी का शिकार बनें रहते हैं. आइए जानते हैं कि सर्दियों में खांसी-जुकाम से बचने के लिए आपको किन खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए.

कैफीन

कौफी भले ही गर्माहट देती है लेकिन जुकाम की समस्या में कौफी का सेवन नहीं करना चाहिए. इससे आपको सांस लेने में तकलीफ हो सकती है क्योंकि कौफी कफ को सुखा देती है. इसलिए कौफी का सेवन जुकाम की परेशानी में नहीं करना चाहिए.

डेयरी उत्पाद

जुकाम में डेयरी पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए. डेयरी पदार्थ जैसे दूध, दही बलगम की परेशानी को और अधिक बढ़ा देते हैं इसलिए इनका सेवन ना करना ही बेहतर होता है.

फ्राइड स्नैक्स ना खाएं

तले-भूने खाद्य पदार्थों में फैट अधिक होता है जो की सूजन की समस्या को बढ़ा देता है और इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देता है इसलिए इनका सेवन जुकाम की समस्या में नहीं करना चाहिए.

फास्ट फूड

फास्ट फूड में पोषक तत्व जैसा कुछ नहीं होता है ऐसे में ये इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाने का काम नहीं करते हैं साथ ही पाचन को भी कमजोर बना देते हैं. सर्दी-जुकाम की समस्या से परेशान है तो फास्ट फूड का सेवन नहीं करना चाहिए.

जूस

जुकाम की समस्या में जूस से भी परहेज करना चाहिए. जूस में शुगर अधिक मात्रा में होता है जो की श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या को कम कर देता है जिससे हमारे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. साथ ही जूस में मौजूद एसिड से गला भी खराब हो सकता है इसलिए इसका सेवन कम करना या ना करना ही बेहतर होता है.

समलैंगिक होना अपराध या अनैतिक नहीं : श्रीधर रंगायन

समलैंगिकता पर फिल्में बनाने के लिए चर्चित निर्माता निर्देशक और पटकथा लेखक श्रीधर रंगायन दिल्ली के हैं. उन्हें बचपन से ही कुछ अलग काम करने की इच्छा थी. इसमें साथ दिया उनके परिवार वालों ने. उनके इस तरह की समलैंगिकता वाली फिल्मों की वजह से आज हर कोई जिनकी सेक्सुअलिटी बाकी लोगों से अलग है, सामने आकर कहने से कतराते नहीं. उन्होंने बंद रहकर घुट घुटकर जीनेवालों को यथार्थवादी बनाया है.

फिल्मों के अलावा उन्होंने कई टीवी शो, वेब सीरीज आदि किये हैं. उनकी फिल्म ‘द पिंक मिरर’ और ‘योर्स इमोशनली’ को दर्शकों ने काफी पसंद किया. इसके अलावा उन्होंने एल जी बी टी समुदाय को आगे लाने के लिए काफी काम किये हैं और वे ‘कशिश मुंबई क्वीर फिल्म फेस्टिवल’ के फाउंडर भी हैं. उनका मानना है कि सेक्सुअली अलग अनुभव करने वाले लोगों की एक अलग दुनिया है. जिसे समाज और परिवार को स्वीकारने की जरुरत है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने फिल्म ‘इवनिंग शैडोज’ बनायीं. जिसे उन्होंने बड़े पर्दे पर रिलीज किया और उम्मीद करते हैं कि सभी इस फिल्म को देखें और उनके मनोभाव को समझने की कोशिश करें. उनसे इस बारें में बात हुई पेश है कुछ अंश.

आपने इस फिल्म को बनाने के बारें में कब सोचा?

पिछले 20 सालों से गे राइट्स को लेकर संघर्ष चल रहा है. उन्हें समाज में खुलकर जीने का मौका नहीं मिलता. पहले ट्रांस जेंडर को भी गलत नजरिये से देखा जाता था, अब वह थोड़ा ठीक हुआ है, लेकिन ‘गे राईट’ को अभी भी सही तरह से स्वीकारोक्ति नहीं मिली. ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाये गए इसके कानून 377 को पहले कोर्ट ने सही बताया, लेकिन कुछ धर्म गुरुओं के विरोध पर गलत ठहराया गया, उनके हिसाब से समलैंगिक वाले व्यक्ति एक साथ नहीं रह सकते, ये कानूनी अपराध है. फिर अब इसे पिछले साल से अनैतिक या अपराधिक नहीं माना जा रहा है. मेरे हिसाब से ये कभी भी गलत नहीं था और मेरा संघर्ष इस विषय पर तब तक जारी रहेगा, जब तक इसे समाज और परिवार से सही न्याय न मिले. इस सोच के साथ मैंने इस फिल्म को बनाया है और खुश हूं कि पिछले 6 साल से लोग इस बारें में कहने के लिए बाहर निकल रहे हैं और उनके परिवार भी इसे स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन अभी बहुत काम बाकी है.

इस फिल्म के जरिये आप कहना क्या चाहते हैं?

इसमें मैंने कोशिश की है कि छोटे शहरों में जब किसी मां को पता चलता है कि उसका बेटा या बेटी समलैंगिक है तो वह अपने पति या परिवार को कैसे बताती है और उसके लिए चुनौतियां क्या होती हैं. इस कहानी से कोई भी समलैंगिक व्यक्ति अपने आप को जोड़ सकता है, क्योंकि ये कहानी रियल है. मेरी कोशिश ये है कि इसे सब लोग देखें और उस परिवार के मनोभाव को समझने की कोशिश करें.

आखिर ऐसे लोग छुपकर क्यों रहना पसंद करते हैं, आपकी राय इस बारें में क्या है और आपको खुद कब पता चला कि आप समलैंगिक है?

हमारे भारतीय समाज में इसे स्वीकारना आसान नहीं होता, क्योंकि माता-पिता अपने बच्चे से प्यार करते हैं, ऐसे में अगर बेटा या बेटी समलैंगिक है, तो वे इसे बाहर कहने से डर जाते हैं और छुपाकर रखते हैं. कई बार तो वे ऐसे बेटी या बेटो की शादी तक जबरदस्ती कर देते हैं. छोटे शहरों में ये अधिक है. मुझे याद आता है जब मैं किशोरावस्था में था तो मुझे सेक्सुअली समलैंगिक होने का एहसास हुआ और जब मैं 23 साल का हुआ तो मैंने सबसे पहले अपनी मां को बताया था. पहले तो उसे भी मेरी बात समझने में देर लगी, पर अब सब ठीक हो चुका है. मैं पिछले 15 साल से समलैंगिक और ट्रांसजेंडर पर छोटी-छोटी डौक्युमेंट्री बना रहा हूं और पहली बार ‘इवनिंग शैडोज’ एक बड़ी फीचर फिल्म बनायीं है, आगे भी और फिल्में बनाने की इच्छा है.

ऐसी फिल्मों को बनाने में किस तरह की मुश्किलें आती हैं?

इस तरह की फिल्मों को बनाना डिजिटल में मुश्किल नहीं, क्योंकि कम बजट में बन जाता है, लेकिन बड़े कलाकार इस विषय पर काम करना नहीं चाहते, डिस्ट्रीब्यूटर इसे लेने से कतराते हैं, क्योंकि बड़े स्टार नहीं है. इसके अलावा सेंसर बोर्ड इसे सर्टिफाई नहीं करना चाहती, लेकिन मैं इस बार खुश नसीब हूं कि सेंसर बोर्ड ने ‘इवनिंग शैडोज’ को ‘यू ए’ का सर्टिफिकेट दिया है.

आप अपनी कामयाबी का श्रेय किसे देते हैं?

मेरी मां यदुनारायन को जाता है, जो हमेशा मेरे साथ गाइड की तरह रही हैं, दूसरे मेरे पार्टनर और निर्माता सागर गुप्ता हैं, जो पर्सनली और प्रोफेशनली मेरे साथ जुड़े हुए हैं. 24 साल से हमदोनो साथ हैं. हम दोनों ने मिलकर इस फिल्म को सकारात्मक एंगल देने की कोशिश की है.

फ्लाइट से सफर के दौरान इन चीजों को करें नजरअंदाज

फ्लाइट से सफर के दौरान कई सारी चीजें होती हैं जिनका ध्यान रखना होता है खासतौर से तब, जब आपका सफर बहुत लंबा हो. फ्लाइट में बसों और ट्रेन के मुकाबले हिलना-डुलना आसान नहीं होता. कितना ही लंबा सफर क्यों न हो सिर्फ वाशरूम के दौरान ही उठने का औप्शन होता है आपके पास.

ऐसे में जितना हो सके खुद को कम्फर्टेबल रखने की कोशिश करें और इनमें सबसे जरूरी है ट्रैवलिंग के दौरान पहने जाने वाले आउटफिट्स से लेकर फुटवेयर्स. तो आइए जानते हैं लंबे सफर के दौरान कैसे रहें कम्फर्टेबल.

बहुत टाइट कपड़े

फिर चाहे वो टी-शर्ट हो या पैंट. बेशक फिटिंग वाले आउटफिट्स में आपका ओवरऔल लुक बहुत ही अच्छा लगता है लेकिन इन्हें बहुत देर तक पहन पाना बहुत ही मुश्किल होता है. अनकम्फर्टेबल होने के साथ बौडी पर रैशेज और देर तक बैठे रहने की वजह से ब्लड सर्कुलेशन की दिक्कत भी हो सकती है. लूज़ पैंटस, लौन्ग स्कर्ट्स जैसे औप्शन्स ट्राय करें. जो स्टाइलिश और कम्फर्टेबल दोनों ही मामलों में बेस्ट होते हैं.

परफ्यूम

फ्लाइट में सबकी सीटें आसपास होती हैं ऐसे में किसको किस चीज़ से एलर्जी है इसका आप अंदाजा नहीं लगा सकती. तो बेहतर होगा अपना स्ट्रौन्ग परफ्यूम लगाने की जगह नेचुरल खुशबू वाले डिओ या परफ्यूम का इस्तेमाल इस दौरान कर लें.

हील्स

हील्स फैशनेबल फुटवेयर होते हैं न कि कम्फर्टेबल तो लंबे सफर में इन्हें पहनने का आइडिया ड्राप कर देना ही बेहतर रहेगा. अगर कहीं दौड़कर फ्लाइट पकड़ने की सिचुएशन हो या फिर चेकिंग के दौरान लंबी लाइन में लगना हो,  हील्स में ये दोनों ही टास्क बहुत मुश्किल है. इतना ही नहीं लंबे सफर के दौरान भले ही आप फ्लाइट में बैठी रहें लेकिन फिर भी इन्हें पहनना अवायड करें क्योंकि इससे पैरों में दर्द और बदबू आने की भी समस्या हो सकती है.

स्वेटर

हैवी स्वेटर्स की जगह आप जैकेट कैरी कर सकती हैं. हैवी जैकेट्स पहनकर बहुत देर तक शायद आप न बैठ पाएं लेकिन जैकेट को आप अपने कम्फर्ट के हिसाब से निकाल भी सकती हैं और दिखने में भी ये स्वेटर्स के मुकाबले ज्यादा स्टाइलिश लगते हैं.

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