ओडिशा के भुवनेश्वर में भुवनेश्वर सिटी फेस्टिवल का भव्य आयोजन

ओडिशा के भुवनेश्वर में भुवनेश्वर डेवलपमेंट अथारिटी और ओडिशा टूरिज्म ने साथ मिलकर भुवनेश्वर सिटी फेस्टिवल ‘फेस्ट’ का आयोजन दिसम्बर 1 से 16 तक किया है. इसमें ओडिशा हौकी मेंस वर्ल्ड कप 2018 ने भी साथ दिया है

इस फेस्टिवल में ओडिशा की एथनिक स्ट्रीट फूड, परिधान, मनोरंजन, कला और वहां की गाथाओं सजीव वर्णन का आयोजन किया गया है, ताकि बाहर से आने वाले लोग ओडिशा की संस्कृति और कला से परिचित हो सकें. इसका उद्घाटन हाउसिंग, अर्बन डेवलपमेंट और वाटर रिसोर्स मंत्री निरंजन पुजारी और गेस्ट औफ औनर ओडिशा के टूरिज्म, कल्चर के मंत्री अशोक चन्द्र पांडा के साथ कई गणमान्य व्यक्तियों ने किया.

इस अवसर पर निरंजन पुजारी का कहना है कि इस तरह के फेस्टिवल के आयोजन से हम उस प्रान्त के कला और संस्कृति को जान पाते हैं. ओडिशा टेम्पल सिटी होने के साथ-साथ कई प्रकार के आर्ट से भरपूर है. यहां के लोगों की कला को लोग कम जानते हैं. आर्ट और कल्चर को इस तरह की फेस्टिवल से बढ़ावा मिलता है जहां एक जगह पर किसी को सब तरह का अनुभव हो जाता है. इसे अधिक से अधिक आगे लाने की जरुरत है.

इस फेस्टिवल में बौलीवुड के कई कलाकारों ने भाग लिया है, जिसमें विशाल शेखर, शंकर एहसान लोय, फरहान अख्तर, शान, सोना महापात्रा, ऋतुराज मोहंती आदि प्रमुख हैं. इसके अलावा विजिटर्स को स्टैंडअप कौमेडियन बिस्वा कल्याण रथ की कौमेडी और श्रेया घोषाल के रोमांटिक संगीत सुनने का भी अवसर मिलेगा.

राशनकार्ड की महिमा : राजगोपालजी ने क्या बनाया जीने का मकसद

‘‘साहब, सिलेंडर खाली हो गया है,’’ रसोईघर से रामकिशन के शब्द किसी फोन की घंटी की तरह मुझे चौंका गए.

हम ने एजेंसी को फोन खड़खड़ाया, ‘‘गैस सिलेंडर बुक करवाना है.’’

‘‘नंबर?’’ किसी मैडम की आवाज थी.

‘‘9242,’’ मैं ने भी ऐसे बोला जैसे फोन में नंबर पहले से ही फीड हो.

‘‘राजगोपालजी?’’

‘‘जी हां, देवीजी.’’

‘‘आप को अपना राशनकार्ड दिखाना होगा,’’ मधुर आवाज में मैडम बोलीं.

‘‘क…क्या?’’ हम हकलाए, ‘‘राशनकार्ड?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘किस खुशी में?’’

‘‘बस, हमारी खुशी है. इसी खुशी में.’’

हम घबरा गए. यह तो नहले पे दहला मार रही है, ‘‘लेकिन वह तो मैं ने कभी बनवाया ही नहीं?’’

अब की बारी उन की थी, ‘‘क्या कहा?’’

‘‘हां. कभी बनवाया ही नहीं तो लाने का सवाल ही नहीं उठता.’’

‘‘कमाल है,’’ मैडमजी बोलीं, ‘‘अच्छा, ऐसा कीजिए, अपनी सिलेंडर बुक ले कर हमारी एजेंसी के दफ्तर में आ जाइए. पता जानते हैं न कि एजेंसी कहां है? बहुचरजी के पास.’’

‘‘जी हां, उस जगह को आबाद कर चुका हूं.’’

हम जब सिलेंडर बुक ले कर वहां पहुंचे तो मैडमजी ने हमेें घूरा और बोलीं, ‘‘आप ही राजगोपालजी हैं.’’

हम ने हां में गरदन हिलाई तो एक मोटा रजिस्टर हमारे सामने कर दिया गया.

‘‘इस में आप अपनी सिलेंडर बुक का नंबर लिखिए फिर यह भी लिखिए कि अगली बार राशनकार्ड दिखाऊंगा और यहां हस्ताक्षर कर दीजिए. इस बार हम आप का सिलेंडर बुक कर देते हैं लेकिन अगली बार राशनकार्ड दिखाना पड़ेगा.’’

‘‘लेकिन क्यों? यह सिलेंडर बुक देखिए. 1988 से मैं आप से सिलेंडर लेता आ रहा हूं तो अब की यह राशनकार्ड की आफत कैसे आ गई?’’

‘‘सर, ऊपर से आदेश आया है कि बिना राशनकार्ड देखे किसी को सिलेंडर न दिया जाए.’’

‘‘लेकिन मेरी समझ से तो राशन- कार्ड केवल गरीबों की मदद के लिए होता है ताकि उन्हें सरकारी रियायत से सस्ते खाद्य पदार्थ जैसे चावल, गेहूं, तेल, चीनी आदि मिल जाएं. मैं इस श्रेणी में नहीं आता. यहां बड़ौदा में कभी राशनकार्ड का उल्लेख नहीं हुआ. पासपोर्ट है, बिजली, टेलीफोन, हाउस टैक्स के बिल हैं, पैनकार्ड व ड्राइविंग लाइसेंस हैं. इन सब से ही हमारा काम चल जाता है.’’

‘‘अरे साहब, कई लोगों ने कईकई जाली कनेक्शन ले रखे हैं इसलिए सरकार को यह कदम उठाना पड़ा. कोई गैरकानूनी ढंग से तिपहिए में गैस लगा रहा है तो कोई मोटर में. कोई कईकई सिलेंडरों की ब्लैक कर रहा है.’’

‘‘अच्छा? तो हम बेचारे सीधेसादे पुरुष लोग पकड़ गए? कमाल है.’’

वे हंस पड़ीं.

‘‘यह तो बताइए कि यह कम्बख्त कार्ड बनता कहां है?’’

‘‘कुबेर भवन में.’’

‘‘ठीक,’’ कह कर हम ने स्कूटर दौड़ाया. बहू कुबेर भवन में ही 8वीं मंजिल पर काम करती है, यह सोच कर मन में तसल्ली मिली.

वैसे हमें अजनबियों से पूछताछ करने में कोई झिझक नहीं होती. अधिक से अधिक ‘न’ या ‘नहीं मालूम’ यही तो कोई कहेगा. झांपड़ तो नहीं मारेगा. और इसी बहाने कई बार नए मित्र भी बन जाते हैं.

जानकारी के बाद हम राशन कार्ड आफिस पहुंच गए. क्लर्क से आवेदनपत्र (फार्म) मांगा, मिल गया. फिर पूछा, ‘‘भैया, क्याक्या भरना है और क्याक्या प्रमाणपत्र इस के साथ देने हैं?’’

‘‘बिजली का बिल, पुराना राशन- कार्ड और उस में क्याक्या बदलना है, पता या प्राणियों की संख्या,’’ भैया एक सांस में बोल गया.

हम घबरा गए, ‘‘लेकिन मैं ने तो कभी राशनकार्ड बनवाया ही नहीं.’’

‘‘क्यों, कहां से आए हो?’’

‘‘बरेली, यू.पी. से.’’

‘‘तो वहां का राशनकार्ड लाओ,’’ भैया ने फरमाया.

‘‘अरे, वहां भी कभी बनवाया नहीं और वह तो बहुत पुरानी बात हो गई. बड़ौदा में 22 साल से रह रहा हूं. तो अब मैं बड़ौदा का ही रहने वाला हो गया.’’

उस ने हमें ऐसे घूरा जैसे हम कोई अजायबघर के जीव हों. फिर बोला, ‘‘तो फिर साहब से मिलो,’’ और दाईं तरफ इशारा किया.

हमारी भृकुटि तन गईं, ‘‘वहां तो कोई है ही नहीं?’’

‘‘साहब हर सोमवार को आते हैं और 11 से 2 बजे तक, तभी मिलो. आज गुरुवार है,’’ और हमें दरवाजा नापने का इशारा किया.

सोमवार को सवा 11 बजे पहुंचे तो देखा छोटे से दरवाजे के सामने करीब 60 लोग लाइन लगाए खड़े हैं. हम भी उन के पीछे खड़े हो गए. कुछ देर गिनती करते रहे और पाया कि एक प्राणी हर 4 मिनट में अंदर जाता है यानी हमारा नंबर 4 घंटे बाद आएगा. दिल टूट गया, कुछ तिकड़म लगाना पड़ेगा.

वहां से बाहर आए और मित्र सागरभाई को अपनी दुखभरी कहानी सुनाई. वे फोन पर बोले, ‘‘काटजू साहब, चिंता की कोई बात नहीं, सब पैसे बनाने के धंधे हैं. आप अपने कागज मुझे दे दीजिए. मैं अपने एक एजेंट मित्र से काम करवा दूंगा. 3 साल पहले मैं ने अपना भी राशनकार्ड ऐसे ही बनवाया था.’’

हम बड़े खुश हुए कि चलो, बला टली. मन ही मन कहा कि सागरभाई, दोस्त हो तो आप जैसा. जा कर उन्हें सब कागजों की एकएक प्रतिलिपि दे दी.

एक बात और, ‘एक हथियार काम न करे तो दूसरा तो काम करे,’ यह सोच कर अपने एक और मित्र गोबिंदभाई से भी संपर्क किया. उन्होंने तो अपने एक पुराने मामलतदार मित्र से मुलाकात भी करवा दी.

पटेल साहब बोले, ‘‘आप को कब तक राशनकार्र्ड चाहिए?’’

‘‘यही 8-10 दिन में.’’

वे बेफिक्री से बोले, ‘‘ठीक है, अपने सब कागजात दे दीजिएगा.’’

वापस लौटते समय गोबिंदभाई ने समझाया कि पटेल साहब को कुछ दक्षिणा भी देनी पड़ेगी और दक्षिणा समय पर निर्भर रहेगी, कम समय माने अधिक दक्षिणा. हम समझ गए, सिर हिला दिया.

2 दिन बाद हम ने फोन किया, ‘‘सागरभाई, मामला तय हो गया?’’

फोन पर रोनी आवाज सुनाई दी, ‘‘नहीं साहब, उस ने कहा है कि अब यह काम बहुत मुश्किल हो गया है. वह नहीं बनवा सकता. राशन विभाग के भाईलोग बहुत सख्त हो गए हैं, उस को घास भी नहीं डालते.’’

मन ही मन हम ने सागरभाई और उन के एजेंट को गाली देते हुए फोन रख दिया. यह दांव तो खाली गया.

अब हम पहुंचे पटेल साहब के यहां. उन की बहू घंटी सुनने पर बाहर निकली.

‘‘साहब हैं?’’ हम ने पूछा.

‘‘नहीं.’’

‘‘अरे, कहां गए?’’

‘‘भारगाम.’’

‘‘कब आएंगे?’’

‘‘5 दिन बाद.’’

हम ने फिर माथा पकड़ लिया. लगता है यह सोमवार भी गया. दर्देदिल लिए हुए गोबिंदभाई को मामला-ए-राशन कार्ड की रिपोर्ट दी. उन्होंने दिलासा दिया, ‘‘कोई बात नहीं काटजू साहब, 5 दिन बाद पटेल साहब आप का काम जरूर करवा देंगे.’’ हम ने घर की राह ली.

मंगलवार को फिर पटेल साहब के दर्शन हेतु निकल पड़े. अब की किस्मत से साहब घर पर ही थे.

‘‘साहब, मेरे राशनकार्ड का काम?’’

पटेल साहब ने दुखभरी मुद्रा बनाई, ‘‘काटजू साहब, 2-3 महीने लग जाएंगे. डिपार्टमेंट में कुछ अंदरूनी जांच चल रही है. मेरी समझ से आप खुद ही कार्ड के लिए जाएं तो ठीक होगा.’’

हम ने मन ही मन अपनेआप को कोसा और पटेल साहब को भी. बड़ा तीसमार खां बना फिरता था. कहता था, ‘कितने दिनों में कार्ड चाहिए?’ मेरे 2 सोमवारों का खून कर दिया. सोचा भीम और अर्जुन तो फेल हो गए, अब शेर की मांद में खुद ही जाना पड़ेगा और कोई चारा बचा ही नहीं था. चलो, इस को भी आजमा लिया जाए.

खैर, सोमवार को पौने 11 बजे राशनकार्ड के दफ्तर पहुंचे तो देखा लंबी लाइन लगी हुई है, जबकि दरवाजा बंद है, हम भी लाइन में लग गए. बुढ़ापे में समय की कोई तकलीफ नहीं और करना भी क्या है? हां, स्टैमिना अवश्य चाहिए, कहीं खड़ेखड़े दिल धड़कना न बंद कर दे.

गिनती की तो सामने 55 जवान व बूढ़े खड़े थे. अगर हरेक पर 3-3 मिनट लगता है तो ढाई या 3 घंटे लगेंगे. खैर, देखते हैं क्या होता है?

झोले से यह सोच कर किताब निकाली कि चलो, 2-3 अध्याय ही पढ़ लिए जाएं. वैसे भी हमारी आदत है कि जहां किसी काम के लिए बैठना या खड़े रहना पड़ेगा वहां हम कोई किताब जरूर ले जाते हैं, टाइम पास के लिए. अभी 3 पन्ने पढ़े ही थे कि दफ्तर खुला. आधे घंटे में 5 प्राणी अंदर घुसे. हम गम में डूब गए, अब क्या होगा? सामने वाले पुरुष ज्ञानी व दयालु निकले. पूछा तो उन्होंने सवाल किया, ‘‘आप को क्या करवाना है?’’

‘‘नया राशनकार्ड बनवाना है.’’

‘‘सौगंधपत्र बनवा लिया है?’’

‘‘यह क्या बला है.’’

वे हंसे (हमारे दुख पर), ‘‘अरे, ऐफिडेविट. इस के बिना कुछ नहीं होगा. आप इसे बनवा लीजिए.’’

‘‘बगल वाली इमारत में इस का दफ्तर है. वहां आवेदनपत्र भी मिल जाएगा और स्टैंपपेपर भी.’’

हम उस ओर भागे. रास्ते में एक और सज्जन से पूछा, ‘‘सौगंधपत्र यहां कहां पर बनता है?’’

वे भी ज्ञानी व मार्गदर्शक निकले. बोले, ‘‘यहीं बनता था, किंतु गांधी- जयंती के बाद से अब नर्मदा भवन में बनता है.’’

वडोदरा शहर की खासीयत है कि सभी सरकारी आफिस, दोचार किलोमीटर के भीतर ही मिल जाते हैं. उन्हें धन्यवाद दे कर हम नर्मदा भवन भागे.

नर्मदा भवन में 3 देवियों ने हमारी बहुत सहायता की. एक सज्जन ने फार्म तो दे दिया किंतु कुबेर भवन जाने की सलाह दी. हम अब तक काफी अनुभव प्राप्त कर चुके थे. कुछ शंका हुई और पास खड़े चौकीदार की तरफ देखा. वह भी अनुभवप्राप्त प्राणी था उस ने अपने पास बुलाया फिर अंदर इशारा किया, ‘‘उस महिला से मिलो.’’

उस युवती ने फार्म भरवाया फिर बिजली बिल, पासपोर्ट की कापी इत्यादि नत्थी की और अंदर दाईं तरफ की मेज पर जाने को कहा.

वहां एक मुहर लगाई गई, रजिस्टर में कुछ लिखा गया और 11 नंबर का सिक्का दिया और कहा, ‘‘उस 11 नंबर के काउंटर पर जाइए, वहां आप का सब काम हो जाएगा.’’

11 नंबर काउंटर की कुमारी मुसकराई तो बड़ी भोली लगी. वह थी तो दुबलीपतली पर बहुत खूबसूरत थी. बोली, ‘‘कहिए?’’

‘‘पहले अपना नाम बताइए.’’

वह खिले चेहरे से बोली, ‘‘निकी.’’

‘‘आगे?’’

‘‘पाटिल.’’

‘‘कुछ खातीपीती नहीं हो क्या? देखो, हाथ की हड्डी भी उभरी हुई दिख रही है और उम्र तो 17 की होगी.’’

मुसकरा कर बोली, ‘‘अंकल, खाती बहुत हूं किंतु वजन नहीं बढ़ता, और 22 वर्ष की हूं.’’

‘‘पढ़ाई कितनी की, बी.कौम या 12वीं?’’

‘‘नहीं, कंप्यूटर साइंस में डिप्लोमा किया है.’’

‘‘और शादी?’’

उस ने सिर हिला दिया.

हम ने सोचा कि इसे अपने बेटे के लिए गांठ लें तो बहुत भाग्यवान समझेंगे.

अपने काम के बीच में बोल पड़ी, ‘‘क्या सोच रहे हैं, अंकल?’’

लगता है, हमारे मन के विचारों को उस ने पढ़ लिया था. सो बोला, ‘‘सोच रहा था कि तुम्हारी व मेरे बेटे की जोड़ी कैसी रहेगी? वह भी अविवाहित है. वैसे तुम मेरा काम पूरा करो नहीं तो बातों ही बातों में पूरा दिन बीत जाएगा.’’

उस ने कनखियों से हमें घूरा, आंखों से आश्चर्य जाहिर किया. सोचा होगा कि कैसे अंकल से पाला पड़ा है, काम के साथ रिश्ता भी ले आए. फिर कहा, ‘‘20 रुपए दीजिए, अंकल. यहां हस्ताक्षर कीजिए और सीधे खड़े रहिए. मुझे आप की फोटो खींचनी है, सौगंधपत्र पर जाएगी.’’

फोटो खींचने के बाद निकी ने भरा फार्म हमें थमाते हुए उप मामलतदार की तख्ती की तरफ इशारा किया कि वहां यह दे दीजिए. वे रजिस्टर में इसे दर्ज व हस्ताक्षर कर आप को दे देंगी.

उस को धन्यवाद दे हम आगे बढ़े.

कुछ ही देर में नर्मदा भवन का सारा काम समाप्त हुआ. सौगंधपत्र हमारे हाथ में था.

घड़ी में देखा तो साढ़े 12 बज चुके थे. सोचा, शायद आज ही काम बन जाए और हम कुबेर भवन जा पहुंचे.

देखा, भीड़ तो कम थी. करीब 20 प्राणी. हम भी उन्हीं में लग गए, 21वें. सामने एक जवान था. परिचय किया, ‘‘आप का नाम?’’

‘‘हितेनभाई.’’

हम ने कहा, ‘‘यार, जरा आगे जा कर पता लगा लो कि भीड़ कितनी रफ्तार से चल रही है और नए राशनकार्ड के लिए कुछ और झमेला यानी कुछ और कागजात तो नहीं चाहिए. मैं कतार में तुम्हारी जगह सुरक्षित रखता हूं.’’

हितेन मान गया और आगे दरियाफ्त कर के बदहवास हालत में वापस लौटा. बोला, ‘‘नया राशनकार्ड यहां नहीं भुतड़ी कचहरी में बनता है. यहां केवल पुराने कार्डों के नाम या बदले पते ठीक किए जाते हैं.’’

‘‘अच्छा, यह भूत की कचहरी है कहां?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम.’’

हमारा यह वार्त्तालाप एक और सज्जन सुन रहे थे. बीच में आ गए, ‘‘मैं जानता हूं और मुझे भी वहीं जाना है. जुबली बाग यहां से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर है.’’

हितेनभाई के पास मोटरसाइकिल थी, हमारे पास स्कूटर तो हम ने उस सज्जन से कहा, ‘‘चलिए, आप को ले चलते हैं. रास्ता बता दीजिएगा.’’

भुतड़ी कचहरी में केवल 4 लोग कतार में थे. हमारा नंबर आने पर अधिकारी बदतमीजी से बोला, ‘‘यह क्या है? आवेदनपत्र कहां है, ऐफिडेविट व मतदाता पहचानपत्र कहां है?’’

‘‘यह रहा आवेदनपत्र और यह ऐफिडेविट है. मतदाता पहचानपत्र खो गया.’’

‘‘उस के बिना कुछ नहीं होगा. वह लाओ. कहां से आए हो?’’

‘‘वैसे तो बरेली, यू.पी. का रहने वाला हूं लेकिन वडोदरा में 22 साल से रह रहा हूं. अभी तक राशनकार्ड की कभी कोई जरूरत नहीं पड़ी. इसलिए बनवाया नहीं था.’’

‘‘तो अब कौन सी जरूरत आन पड़ी है?’’

‘‘गैस सिलेंडर वाला राशनकार्ड दिखाने को कह रहा है.’’

उस ने हमारे सारे कागज वापस करते हुए कहा, ‘‘जाओ, मेरा समय बरबाद न करो. बाहर दाईं तरफ दरवाजे पर एक आदमी बैठा है. वह आप को सब समझा देगा कि क्याक्या लाना है.’’

हम निराश हो बाहर निकले. देखा हितेन भी मुंह लटकाए खड़ा था. उस को भी अधिकारी ने झिड़क दिया था. बाहर के आदमी से पूछा तो वह ज्ञानी निकला. हमारे कागजात देखे और सुझाव दिया.

‘‘यहां कुछ नहीं होगा. आप कुबेर भवन के नीचे कमरा नं. 23 में जाइए. वहीं सब काम होगा.’’

‘‘लेकिन वहां से तो हम आए हैं. और यहां उस अंदर के बाबू ने यह सब और मांग लिया. कहां से लाएंगे?’’

‘‘आप उन की परवा न कीजिए. जैसा मैं कहता हूं वैसा कीजिए.’’

वहां से हट कर हम उबल पड़े. ‘‘सच, हम भारतवासियों को एकदूसरे को तड़पाने व तड़पते देख खूब आनंद आता है. कभी कहते हैं यह लाओ, कभी कहते हैं वह लाओ.’’

हमारे समाज में पुरुषों को रोना वर्जित है, स्त्री होते तो दहाड़ मारमार कर रो लेते. गम में डूबे हुए जब कुबेर भवन पहुंचे तो देखा कमरा नंबर 23 बंद हो चुका था.

8वीं मंजिल पर बहू से जा कर मिले तो उस ने कहा, ‘‘पापा, अपने कागज मुझे दीजिए. मैं अपनी एक मित्र से पूछताछ करवाऊंगी. वह नीचे की पहली मंजिल पर काम करती है और ऐसे मामलों को निबटाती भी है.’’

हम बोले, ‘‘ठीक है, बेटी. कोशिश करो. 400-500 तक खर्च करने को मैं तैयार हूं.’’

2 दिन बाद बहू का फोन आया, ‘‘मैं अपनी दोस्त के साथ राशन अधिकारी से मिली थी. बड़ा बदतमीज आदमी है. पहले तो एकदम मना कर दिया. फिर जब मैं ने कहा कि मैं भी राज्य सरकार में काम करती हूं तब माना. उस का रेट 500 रुपए है. आप अगले सोमवार को आइएगा.’’

हम ने बहू को धन्यवाद दिया. विक्रम और बेताल की कहानी में विक्रम की तरह सोमवार को हम फिर दफ्तर पहुंचे. बहू को फोन मिलाया तो वह नीचे उतर कर आई और लाइन में हमें खड़े देख संतुष्ट हुई. बोली, ‘‘मेरी दोस्त की किसी करीबी रिश्तेदार की 2 दिन पहले मौत हो गई है. वह कई दिन नहीं आ पाएगी. अच्छा किया आप लाइन में लग गए.’’

कतार में करीब 25 लोग लगे थे. 40 मिनट में अपना नंबर आ गया. साहब के पास कागज का पुलिंदा रख चुपचाप खड़े हो गए. सब पन्नों पर उन्होंने एक निगाह डाली फिर कुछ कहे बिना हस्ताक्षर कर हमें बाहर की तरफ इशारा कर दिया.

बाहर गए. पावती पाने वालों की कतार लगी थी, यानी कागज व रुपए जमा कर रसीद लेना. इस कतार मेें हम घंटे भर तक धीरेधीरे सरकते रहे फिर आफिस के अंदर दाखिल हुए. 20 रुपए दिए, रसीद मिली और आदेश मिला कि 5 नवंबर को शाम 4 से 6 बजे के बीच कार्ड लेने आ जाना.

रसीद को पर्स में संभाल कर रखा (खरा सोना जो हो गया था) ऊपर भागे बहू को धन्यवाद देने. देखें, अब 5 नवंबर को क्याक्या गुल खिलते हैं.

5 नवंबर को राशनकार्ड मिल गया, आप को आश्चर्य हुआ न? हमें भी हो रहा है, आज तक.

दायरे तोड़ती स्त्री देह

सदियों से दुनिया ने औरत को सात परदों में छिपा कर और चारदीवारी में घेर कर रखा है. उस पर हर पल नजर रखी गई कि कहीं वह समाज के ठेकेदारों द्वारा स्त्री के लिए विशेषरूप से रची गई मर्यादाओं का उल्लंघन तो नहीं कर रही. उस की हर सीमा का निर्धारण पुरुष ने किया. उस के तन और मन को कब किस चीज की जरूरत है, उस को कब और कितना दिया जाना चाहिए, हर बात को पुरुष ने अपनी सुविधानुसार तय किया. मगर हर बात की एक सीमा होती है. आखिर यह दबावछिपाव भी कहीं तो जा कर रुकना था.

शिक्षा ने औरत को मजबूती दी. लोकतंत्र ने उसे जमीन दी खड़े होने की. सोचने विचारने और अपने अधिकारों को जानने का अवसर दिया. बीते कई दशकों में स्त्री ने कभी बागी हो कर, कभी घरेलू परिस्थितियों से तंग आ कर, कभी घर की लचर परिस्थितियों में आर्थिक संबल बनने के लिए चारदीवारी से बाहर कदम निकाला. बीती 2 सदियों में आर्थिक मजबूती के साथ स्त्री वैचारिक स्तर पर भी काफी मजबूत हुई है. उस को मात्र जिस्म नहीं, बल्कि एक इंसान के रूप में पहचान मिली है.

बेड़ियों से आजाद नारी देह

आज की औरत अपनी इच्छाओं का इजहार करने से झिझकती नहीं है. वह कुछ ऊंचनीच होने पर नतीजा भुगतने को भी तैयार है. अपनी पर्सनैलिटी और समझ से वह उन दरवाजों को भी अपने लिए खोल रही है, जो अभी तक औरतों के लिए बंद थे. सब से बड़ी क्रांति तो देह के स्तर पर आई है. स्त्री देह जिस पर मर्द सदियों से अपना हक मानता आता है, उस देह को उस ने उस की नजरों की बेडि़यों से स्वतंत्र कर लिया है.

धार्मिक व सामाजिक मर्यादाएं जो उस के जिस्म को जकड़े हुए थीं, उन को काट कर उस ने दूर फेंक दिया है. अब वह अपनी शारीरिक जरूरत के लिए खुल कर बात करती है. पहले जहां एक औरत अपनी इच्छाओं का इजहार करने में संकोच करती थी, वहीं अब बैडरूम में बिस्तर पर लाश की मानिंद पड़े रहने के बजाए वह अपनी इच्छाओं के उछाल से मर्द को हक्काबक्का कर देती है.

उस का बैडरूम हर रोज नई उत्तेजना से भरा होता है. शादी से पहले सहमित से सैक्स संबंध बनाने में भी उसे कोई झिझक नहीं है.

इस नई उन्मुक्त स्त्री की हलचल कई दशक पहले से सुनाई देनी शुरू हो गई थी. विवाह की असमान स्थितियों में कैद, नैतिक दुविधाओं से ग्रस्त और अपराधबोध के तनाव से उबर कर अब एक नई स्त्री का पदार्पण हो चुका है, जो अपना भविष्य खुद लिखती, खुद बांचती है, जो अपने मनपसंद कपड़े पहन कर देर रात पार्टियां अटैंड करती है. बड़ेबड़े सपने देखती है और उन्हें पूरा करने का माद्दा रखती है.

मेरी जिंदगी मेरी शर्तें

एक सर्वे के मुताबिक वर्ष 2003 में जहां पोर्न देखने की आदत को सिर्फ 9 फीसदी महिलाओं ने कबूल किया था, वहीं यह संख्या अब 40 फीसदी पर पहुंच गई है. अब औरत अपनी चाहत का, प्यार का गला नहीं दबाती, बल्कि बेझिझक अपने प्रेमी से शारीरिक संबंध स्थापित करती है, फिर चाहे वह शादी के पहले ही क्यों न हो. अब यह उस की इच्छा पर है कि वह किस पुरुष से शादी करना चाहती है. उस की इच्छा पर है कि वह कब मां बनना चाहती है. अगर वह शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहती तो उस के बिना भी वह अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करने और मां बनने के लिए स्वतंत्र है.

आज की नारी अपने साथ हुए अन्याय पर भी बोलने लगी है. छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न, हिंसा, बलात्कार पर वह खुद को गुनाहगार नहीं समझती, बल्कि जिस ने उस के साथ ये गुनाह किए हैं उस को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की हिम्मत रखती है. ‘मीटू’ कैंपेन इस का ताजा उदाहरण है. इंटरनैट सेवाओं ने औरत को काफी सपोेर्ट दिया है और सोशल मीडिया ने उसे अपनी भावनाएं व्यक्त करने का प्लेटफौर्म दिया है.

स्त्री और पुरुष दोनों ही कमोबेश एकदूसरे के प्रति एक ही तरह की वासना से प्रेरित होते हैं. अपनी शारीरिक खूबसूरती का एहसास आज की स्त्री को बखूबी है और वह उसे और ज्यादा सजानेतराशने की कोशिश प्रतिपल करती रहती है. अपनी इस खूबी का प्रयोग उसे कब, कहां और कितना करना है, यह भी वह बखूबी जानती है.

वर्कप्लेस पर बौस को खुश कर के नौकरी में तरक्की पाने के लिए उस का शरीर उस का खास हथियार बन गया है. मीडिया इंडस्ट्री, फिल्म इंडस्ट्री, टीवी या मौडलिंग के क्षेत्र में स्त्री का जिस्म उस के टेलैंट से ज्यादा माने रखता है और उस की सफलता के रास्ते तैयार करता है. तरक्की के लिए सैक्स को आधार बनाने में अब उसे कोई आपत्ति नहीं है. इस यौन आजादी ने स्त्री को पुरुष के समकक्ष और कहींकहीं उस से भी आगे खड़ा कर दिया है.

यह सच अब समाज को स्वीकार कर लेना चाहिए कि सैक्स की जरूरत और अहमियत जितनी पुरुष के लिए है, उतनी ही स्त्री के लिए भी है. अगर पुरुष अपनी पत्नी के अलावा दूसरी स्त्रियों से संबंध रख सकता है, उन से भावनात्मक और यौन संबंध बना सकता है, विवाहेत्तर संबंध रख सकता है और उन के साथ खुशी महसूस कर सकता है, तो फिर एक स्त्री ऐसा क्यों नहीं कर सकती? स्त्री क्यों जीवनपर्यंत एक ही पुरुष से जबरन बंधी रहे? क्यों वह अपनी अनिच्छा के बावजूद उस की शारीरिक जरूरतें पूरी करती रहे? अगर उस का पति उस की भावनात्मक और शारीरिक जरूरतों को पूरा करने में अक्षम है तो दूसरे पुरुष से वह नाता क्यों नहीं जोड़ सकती?

यह चिंता करने की बात है कि तनुश्री दत्ता के बाद जो भी मामले ‘मीटू’ के सामने आए हैं किसी में भी सताने वाले पुरुष ने यह नहीं कहा कि औरत ने अपने को समर्पित किया था. वे यही कहते हैं कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं.

सुरक्षित आर्थिक भविष्य

आर्थिक आजादी ने स्त्री को पुरुष की गुलामी से मुक्त किया है. उस में चुस्ती और खूबसूरती को बढ़ाया है. आज उन के खूबसूरत शरीर और हसीन चेहरे वर्कप्लेस को भी ताजगी दे रहे हैं. पुरुष सहयोगियों के मुकाबले स्त्रियां अपने वर्कप्लेस पर ज्यादा खुश नजर आती हैं. आज सचाई यह है कि स्त्रियों के लिए सुरक्षित आर्थिक भविष्य के साथ संतोषजनक रिश्ते का बेहतर माहौल जैसा आज है, वह पहले कभी नहीं था.

स्त्री की आजादी को उच्चतम न्यायालय ने भी खूब सपोर्ट किया है. चाहे लिवइन रिलेशनशिप की बात हो या विवाहेत्तर संबंधों की, अदालत ने स्त्री के पक्ष में ही अपने तमाम फैसले सुनाए हैं. इस से औरतों में जोश और उत्साह का माहौल है. बंदिशों को तोड़ कर ताजी हवा में सांस ले रही औरत अपनी सुरक्षा के प्रति आज खूब जाग्रत है. ‘मीटू’ कैंपेन इस का ताजा उदाहरण है.

10-20 साल पहले जो औरतें अपने साथ हुई अश्लीलता पर अनेक सामाजिक बंधनों में बंधी होने और आर्थिक रूप से ज्यादा सक्षम न होने की मजबूरी के चलते चुप्पी साध कर बैठी थीं, आज सोशल मीडिया पर अपना दर्द चीखचीख कर बता रही हैं, बकायदा एफआईआर भी दर्ज करा रही हैं और आरोपियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने को तैयार हैं.

पुरुषों ने समझ रखा है कि औरतों के साथ चाहे जो कर लो, वे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बचाए रखने के लिए मुंह नहीं खोलेंगी. कुछ को सैक्स के बदले पद या पैसा दे कर उन्हें लगने लगा था कि हर स्त्री देह बिकाऊ है. हर औरत गाय है जब मरजी दूह ले और फिर लात मार कर चला जाए.

ये ‘मीटू’ कैंपेन का नतीजा है कि देश के विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर को न सिर्फ अपना पद गंवाना पड़ा, बल्कि दुनिया भर में उन के नाम की छीछालेदर हुई. उन की ओछी आपराधिक हरकतों से राजनीतिक जगत और मीडिया जगत दोनों शर्मसार हैं.

जागरूक है आधी आबादी

आज औरत अगर अपनी आजादी के प्रति जागरूक है तो अपने प्रति होने वाले अपराध के प्रति भी. इस से पुरुषों में भय पैदा हुआ है. वर्कप्लेस पर, घर में, पार्टी में, सार्वजनिक स्थलों पर पहले जहां औरतों के साथ छेड़छाड़ और अश्लील हरकतें करना पुरुष अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते थे और उन के खिलाफ कोई काररवाई नहीं होती थी, अब वह समय खत्म हो गया है. अब वह अपने गलत कृत्य पर ऐक्सपोज कर दिया जाएगा, उस के खिलाफ बकायदा मुकदमा दर्ज होगा, उसे सजा होगी और वह सब इसलिए होगा क्योंकि औरत जागरूक हो चुकी है.

‘मीटू’ कैंपेन का असर दूरगामी होगा. मगर इस के कुछ साइडइफैक्ट भी होंगे. जैसे औरतों को कार्यालयों में काम मिलना कुछ हद तक प्रभावित हो सकता है. उन के सहकर्मी उन से हंसीमजाक करते वक्त थोड़ा रिजर्व रहेंगे. मगर इस से डर कर या घबरा कर कदम पीछे खींचने की हरगिज जरूरत नहीं है. यह इफैक्ट कुछ समय का ही होगा.

जब शारीरिक संबंधों में औरत की रजामंदी को शामिल किया जाने लगेगा, तब यह अपराध के दायरे से निकल कर आंनद की पराकाष्ठा छू लेगा. जिस दिन औरत की ‘हां’ का मतलब ‘हां’ और ‘न’ का मतलब ‘न’ होना पुरुष की समझ में आ जाएगा, उस दिन पुरुषस्त्री संबंध इस धरती पर नई परिभाषा रचेंगे और खूबसूरत रूप में सामने आएंगे.

देह की स्वतंत्रता का मतलब है कि जो सहमति से प्यार चाहे उसे ही उपलब्ध है. स्त्री खिलौना नहीं है कि खेलो और छोड़ कर चल दो.

क्या यह अमेरिकी दादागिरी है

अमेरिका में बसने की चाहत इतनी ज्यादा होती है कि बहुत से विदेशी घुसपैठिए, टूरिस्ट, स्टूडैंट आदि वीजा पर एक बार घुस जाने के बाद शादी या शादी के बिना बच्चे पैदा कर लेते हैं. अब तक अमेरिकी कानून में जो बच्चा अमेरिकी जमीन पर पैदा हुआ वह अमेरिकी नागरिक है और लाखों अमेरिकी नागरिक इसी रास्ते आए हैं.

बाद में वे अपने गैर अमेरिकियों को गार्जियन, डिपैंडैंट मान कर अमेरिका में रहने या नागरिकता पाने का मौका भी हथिया लेते हैं. दुनिया का यही अकेला देश है जो अब तक विदेशियों का खुलेआम स्वागत करता रहा है. भारत महागरीब होते हुए भी घुसपैठियों का राग अलापता है, जबकि यहां आने वाले चाहे तिब्बती हों, बर्मी, श्रीलंकाई या बंगलादेशी बहुत छोटा काम कर पाते हैं. अमेरिका में इस तरह नागरिक बने लोग ऊंची जगहों पर पहुंचे हैं और खुशहाल हैं.

अब अमेरिका एकएक कर के दरवाजे बंद कर रहा है और यह कानून कि जो अमेरिका में पैदा हुआ वह अमेरिकी ही है बदलने की सोच रहा. हमारी भगवाई सोच की तरह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस कानून को नए सिरे से बनाने का प्रस्ताव रख दिया है.

एक तरह से यह ठीक है. या तो दुनिया के सारे देश यह मानें कि उन की जमीन पर पैदा हुआ बच्चा उन के देश की नागरिकता पाने का अधिकार रखता है या कोई न माने. अमेरिकियों ने ही ऐसा समाज बना लिया जहां हरेक को लगभग बराबर माना जाता है और हरेक को अवसर मिलते हैं.

यही वह देश है जिस ने गुलामों की खातिर अपने ही लोगों से गृहयुद्ध किया है. यही वह देश है जहां आज भी आधी जनता डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ केवल इसलिए है कि वह भेदभाव को मुख्य नीति मानता है.

अमेरिका इस उदारता की कीमत चुकाए यह गलत होगा. जो अमेरिकी नहीं है उस का बच्चा तब तक अमेरिकी नहीं हो सकता जब तक उसे विधिवत नागरिकता न मिले. इस कानून से लाखों भावी भारतीय मातापिता प्रभावित होंगे पर दोगलापन इस तरह का है कि इन्हीं भारतीयों में 90 फीसदी भारत में बाहर वाले के पैदा हुए बच्चों को नागरिकता न देने के लिए झगड़ा कर रहे लोगों को भरपूर चंदा देते हैं.

अमेरिका का यह फैसला सही है. जब तक पूरा विश्व इस बात को न माने अमेरिका को अपनी सीमाओं और जमीन पर रोकटोक लगानी चाहिए. तभी दूसरे देश सुधरेंगे. नागरिकता का दरजा अब मानवीय अधिकार है, सरकारों की मरजी पर न चले.

वजन कम करेंगे ये व्यायाम

योंतो महिलाएं हर तरह का वर्कआउट कर सकती हैं और करती भी हैं जैसे ऐरोबिक्स, बौडी बिल्डिंग, स्ट्रैंथ टे्रेनिंग, किकबौक्सिंग, जुंबा, टबाटा वर्कआउट आदि. लेकिन ये सभी वर्कआउट उम्र, बौडी टाइप, हैल्थ इशू, बौडी की नीड को ध्यान में रख कर ही और ऐक्सपर्ट की देखरेख में किए जाने चाहिए.

यहां हम कुछ ऐसे वर्कआउट्स के बारे में बता रहे हैं जो महिलाओं के लिए बेहद फायदेमंद हैं:

कार्डिओ वर्कआउट: कार्डिओ फायदेमंद है. यह वेट लौस करने में काफी मददगार है. इस से तनाव कम होता है. वर्कआउट से फेफड़ों तक औक्सीजन पहुंचने में मदद मिलती है, रक्तसंचार सही होता है, दिल मजबूत और ब्लड भी प्यूरिफाई होता है. कार्डियो वर्कआउट वजन को कम कर के बौडी में जमा अतिरिक्त फैट को कम करता है और बीमारियों से बचाता है. अलगअलग तरह के कार्डिओ वर्कआउट से आप खुद को फिट रख सकती हैं.

ऐरोबिक्स: ऐरोबिक्स आप कभी भी कहीं भी एक छोटी सी जगह पर कर सकते हैं. इस में अपनी पसंद के म्यूजिक पर कुछ स्टैप्स किए जाते हैं. ग्रेपवाइन लेग कर्ल जंपिंग जैक्स जैसे मूव्स से पूरे शरीर का वजन घटता है. पसीने के जरीए बौडी से टौक्सिन निकलना ही फैट और बीमारियों को दूर करता है. सिर्फ पसीना निकलना ही जरूरी नहीं, कड़ी मेहनत भी जरूरी है. ऐरोबिक्स वर्कआउट में आप के हार्ट रेट को लो से हाई ले जा कर एक स्तर पर मैंटैन किया जाता है, जो वेट लौस में मदद करता है.

स्ट्रैंथ वर्कआउट: महिलाओं के लिए स्ट्रेंथ वर्कआउट बहुत जरूरी भी है और ट्रैंड में भी. इस से महिलाओं में औस्टियोपोरेसिस की समस्या बहुत कम होती है. बोन डैंसिटी भी बढ़ती है. इस में बाइसैप कर्ल, ट्राइसैप ऐक्सटैंशन, हैमर कर्ल, शोल्डर प्रैस, पुशअप्स, ट्राइसैप डिप्स इत्यादि महिलाओं के लिए फायदेमंद हैं.

डांस फिटनैस: फिटनैस डांस महिलाओं के लिए बहुत ही अच्छा है और आजकल तो यह ट्रैंड बनता जा रहा है. इस में आप भांगड़ा, बेली डांस इत्यादि पर अलगअलग तरीके से थिरक कर 30-50 मिनट तक वर्कआउट कर सकती हैं. मस्ती के साथसाथ वजन भी घट जाता है.

किकबौक्सिंग: किकबौक्सिंग एक तरह का कार्डिओ वर्कआउट है. इस में बहुत सारी मसल्स एकसाथ इस्तेमाल होती हैं. महिलाओं में ज्यादातर अपनी आर्म्स और लैग्स को टोन करना ही मुख्य होता है. किकबौक्सिंग वैसे तो पूरे शरीर के लिए अच्छी है लेकिन यह उस पार्ट को जल्दी टोन करती है जिस से आप अपनी मनचाही कट स्लीव्स या वनपीस ड्रैस पहन सकती हैं. इस में शरीर के ऊपरी भाग के मूवमैंट्स जैब्स, क्रौस, हुक व अपरकट्स हैं तो शरीर के निचले भाग के मूवमैंट्स में नी स्ट्राइक, फ्रंट किक, राउंडहाउस किक, साइड किक, बैक किक इत्यादि शामिल हैं.

हाई इंटैंसिटी वर्कआउट: कुछ महिलाएं अपने लिए समय नहीं निकाल पातीं जिस की वजह से वे जिम या पार्क में जा कर वर्कआउट नहीं कर पातीं. उन के लिए हाई इंटैंसिटी वर्कआउट बढि़या विकल्प है. यह बाकी वर्कआउट्स से थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन इस से कम समय में ज्यादा वजन कम किया जा सकता है. यह मैटाबौलिज्म को तेजी से बढ़ाता है. इस वर्कआउट में कुछ हाई इंटैंसिटी ऐक्सरसाइज का चुनाव कर के उन्हें क्रम में लगा कर सैट्स में किया जाता है जैसे, जंप, स्विंग, ऐअर पुशअप्स, रौक क्लाइम्बिंग स्टार जंप, जंप हाईनीज को मिला कर 1 सैट करने के बाद इन सभी के 3 सैट या 5 सैट किए जाते हैं. हर ऐक्सरसाइज को मिनटों में या सैकंड्स के हिसाब से किया जाता है. वेट लौस और बौडी टोनिंग के लिहाज से कम समय में ज्यादा से ज्यादा वजन कम करने के लिए यह अच्छा वर्कआउट है.

स्टैपर वर्कआउट: यह भी एक अच्छा विकल्प है. एक बौक्स या सीढ़ी का इस्तेमाल कर इस वर्कआउट को कर सकती हैं. स्टैमिना बढ़ाने में यह काफी मददगार है.

ऐब्स वर्कआउट: इस में आप लैग रेज, स्क्वाट्स, क्रंचेज इत्यादि कर सकती हैं. इस से पेट, कमर व टांगों की चरबी घटेगी. महिलाओं में ज्यादातर पेट, कमर और लैग्स की चरबी ज्यादा होती है.

महिलाओं के लिए प्लैंक, सूमो स्क्वाट्स, बैक लैग किकिंग, वुड चौपर, रशियन क्रंच, प्लैंक, लैग फ्लटर इत्यादि व्यायाम बढि़या विकल्प हैं.

नाश्ते से शांत होती है ब्रेन की भूख

अमृतसर से अमेरिका तक का सफर कुछ कर गुजरने का जनून लिए तय करने वाले शैफ विकास खन्ना आज सैलिब्रिटी शैफ के रूप में दुनियाभर में जाने जाते हैं. खानपान पर कई किताबें लिखने के अलावा कई टीवी शोज में भी वे अपनी प्रतिभा का जादू दिखा चुके हैं. इतनी शोहरत और कामयाबी के बाद भी अपनी विनम्रता से वे मिलने वालों को अपना कायल बना लेते हैं. क्विकर ओट्स इवेंट पर उन से हैल्दी ब्रेकफास्ट और उन के जीवन से जुड़ी घटनाओं पर चर्चा हुई. पेश हैं, उसी चर्चा के कुछ खास अंश:

फिटनैस के लिए ब्रेकफास्ट कितना अहम है?

फिटनैस के 2 पहलू हैं- पहला फूड और दूसरा डिसिप्लिन, पहले घर के बड़ेबुजुर्ग कभी सूर्य डूबने के बाद खाना नहीं खाते थे. लेकिन अब सब बदल गया है. लोगों की दिनचर्या बदली है, खाने का अंदाज बदला है. आज खाने का कोई समय नहीं है. पहले हर घर में यह नियम होता था कि घर से सुबह कोई बिना नाश्ता किए नहीं निकलता था. घर पर बनने वाला ब्रेकफास्ट भी देशी होता था. दलिया, पोहा, रागी, मल्टीग्रेन, स्प्राउट का नाश्ता हर घर में बनता था. लेकिन अब नाश्ते के माने ही बदल गए हैं. आज जरूरत ऐसे फूड को अपने ब्रेकफास्ट में शामिल करने की है जो इंस्टैंट कुकिंग के साथसाथ हैल्दी भी हो. ओट्स और कौर्नफ्लैक्स इस के लिए अच्छे औप्शन हैं जिन्हें कई तरह से बना सकते हैं. आज ओट्स टिक्की से ले कर ओट्स ठंडाई, पोहा, खीर सभी बना सकते हैं. मतलब आप 30 दिन रोज बदलबदल कर हैल्दी ब्रेकफास्ट का स्वाद ले सकते हैं.

क्यों जरूरी है ब्रेकफास्ट?

इस का भूख से तो संबंध है ही साइंटिफिक कारण भी है. जब हम बिना नाश्ता किए काम पर जाते हैं तो पूरा समय हमारे दिमाग में एक ही बात रहती है कि पेट में कुछ नहीं हैं. यही सोचसोच कर काम में मन नहीं लगा पाते, क्योंकि रिसर्च बताती है कि नाश्ता करने से पेट से ज्यादा ब्रेन की भूख शांत होती है या कह सकते हैं पेट नहीं हमारा ब्रेन फूड खाता है. मेरे दादाजी बिना किसी बीमारी के 93 साल तक जिंदा रहे. इस का राज उन का ब्रेकफास्ट था जिसे उन्होंने कभी मिस नहीं किया.

लोग आजकल मोटे अनाज का उपयोग जम कर कर रहे हैं, यह कितना फायदेमंद है?

पहले ज्वार, बाजरा, ओट्स हर मोटे अनाज को गरीबों का खाना माना जाता था. इस में फाइबर और प्रोटीन भरा होता है. मेहनत करने वाले किसानों और मजदूरों को इस से ताकत मिलती है. मोटा होने के कारण यह स्वाद में अच्छा नहीं होता और फिर पीसने में भी ज्यादा मेहनत लगती, इसलिए बड़े आदमी गेहूं, चावल को अपनी डाइट में शामिल करते थे. लेकिन अब ट्रैंड बदल गया है. मीडिया की वजह से लोगों में जागरूकता आई है. लोग जानने लगे हैं कि जिस अनाज को वे गरीबों का खाना मानते थे वह कितना पौष्टिक और रोगों से बचाने वाला है.

पापा के साथ कैसी बौंडिंग थी?

पापा पापा तो थे ही, साथ में एक बड़े भाई भी थे. मैं जो भी करता उन से पूछ कर ही करता था. वे मुझे शैफ नहीं आर्टिस्ट मानते थे. वे हर समय मेरे पीछे खड़े रहते थे. इस का एहसास मुझे तब हुआ जब वे हम लोगों को छोड़ कर चले गए. मैं पापा से हर तरह की बातचीत कर लिया करता था. जब मैं ने शैफ बनने की बात पापा को बताई तब वे बहुत खुश हुए.

शुरुआत कैसे हुई?

मैं जब 14 साल का था तब किटी पार्टी से काम शुरू किया था. पहली पार्टी के वे क्षण मुझे आज भी याद हैं. जब आंटियों ने मेरे खाने की खूब तारीफ की थी और मैं ने इसी उत्साह में उन से पैसे नहीं लिए. इस पर मेरे पापा ने गुस्से में पूछा था कि यह कौन सा बिजनैस है, जिस में तू पैसे नहीं लेता? मैं ने शुरुआती संघर्ष में सप्लाई करने से ले कर स्वैटर बनाने और बरतन धोने तक का काम किया.

अमेरिका में कैसे पहचान बनाई?

एक वक्त था जब यूएस में इंडियन ऐक्सैंट का मजाक उड़ाया जाता था. मैं एक होटल में काम करता था.उस का मालिक मुझे हर तरह से नीचा दिखाता था. वह कहता था कि मैं किसी काम का नहीं हूं. वह मुझे हमेशा डराता था और मेरे बोलने के लहजे का मजाक उड़ाता था. तब मैं वहां से भाग निकला और जान गया कि मेरा संघर्ष इतना आसान नहीं है.

-विकास खन्ना, सैलिब्रिटी शैफ ऐंड राइटर

इन देशों में नहीं होती है रात

हम सभी कभी न कभी यह जरूर सोचते हैं कि अगर सूरज न अस्त हो तो कितना अच्छा होगा. मगर सूरज के आगे किसकी चलती है. वह अपनी मर्जी से निकलता है और अपनी मर्जी से अस्त भी होता है. लेकिन दुनिया में कुछ ऐसी जगहें जरूर हैं जहां सूरज अस्त नहीं होता और वहां रात नहीं होती. जानिए ऐसी ही जगहों के बारे में.

स्‍वीडन

स्‍वीडन में तो करीब 100 दिनों तक सूर्य अस्त नहीं होता. यहां मई से अगस्‍त तक सूरज नहीं डूबता. और जब ढलता है तो आधी रात को. फिर सुबह 4:30 बजे तक निकल भी आता है.

नार्वे

यह देश आर्क्टिक सर्कल के अंदर आता है. इसे मध्य रात्रि का देश भी कहा जाता है. मई से जुलाई के बीच करीब 76 दिनों तक यहां सूरज अस्त नहीं होता. बेशक इस अनुभव को वहां जाकर ही महसूस किया जा सकता है.

आइसलैंड

ग्रेट ब्रिटेन के बाद यह यूरोप का सबसे बड़ा आईलैंड है. यहां आप रात में भी सूरज की रोशनी का आनंद ले सकते हैं. यहां 10 मई से जुलाई के अंत तक सूरज नहीं डूबता है.

अलास्का

यहां मई से जुलाई के बीच में सूरज नहीं डूबता है. अलास्का अपने खूबसूरत ग्लेशियर के लिए जाना जाता है. अब कल्पना कर लें कि मई से लेकर जुलाई तक बर्फ को रात में चमकते देखना कितना रोमांच भरा हो सकता है.

कनाडा

दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश जो साल में लंबे अर्से तक बर्फ से ढका रहता है. हालांकि यहां के उत्तरी-पश्च‍िमी हिस्से में गर्मी के दिनों में 50 दिनों तक सूरज लगातार चमकता भी है.

फिनलैंड

हजारों झीलों और आइलैंड्स से सजा हुआ यह देश काफी सुंदर और आकर्षक है. गर्मी के मौसम में यहां करीब 73 दिनों तक सूरज अपनी रोशनी बिखेरता रहता है. घूमने के लिहाज से यह देश काफी अच्छा है.

ब्राइडल किट्स : अब मेकअप हुआ आसान

चाहे आप की वैडिंग का मौका हो या फिर आप को किसी पार्टी में जाना हो या फिर आप के बैस्ट फ्रैंड की मैरिज हो, आप खुद को हट कर लुक देने की इच्छा जरूर रखती होंगी. ऐसे में नायका द्वारा बताई गई किट आप के लिए गेम चेंजर का काम करेगी.

नायका द रौयल अफेयर कौंबो

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अगर आप इस फैस्टिव सीजन में ब्राइडल लुक पाना चाहती हैं तो आप के लिए नायका द रौयल अफेयर कौंबो किट बड़े काम का साबित होगा. इस किट को मेकअप ऐक्सपर्ट द्वारा डिजाइन किया गया है ताकि आप एक किट से ही अपने लिप्स, नेल्स और आंखों को संवार सकें.

इस कौंबो पाउच में चार लिपस्टिक शैड्स न्यूड, पिंक, रैड और पीच हैं, जो आप के लिप्स को अलग ही टच देने का काम करेंगे. साथ ही आइब्रो पेंसिल, लिक्विड लाइनर और काजल का कौंबिनेशन आप की आंखों को हट कर व हौट लुक देने का काम करेगा.

आप भी चाहेंगी कि जब भी कोई आप के हाथ देखे तो देखता ही रह जाए. इस के लिए इस किट में चार नेल शैड्स भी हैं जो आप के हाथों की खूबसूरती को और बढ़ाने का काम करेंगे.

ग्लोबल ब्यूटी सीक्रेट्स ब्राइडल किट

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शादी के दिन कौन सी दुल्हन नहीं चाहेगी कि उस की ऊपरी सुंदरता दिखने के साथसाथ उस की स्किन अंदर से भी महके, उस के बाल अलग ही अट्रैक्शन दें. इस के लिए नायका रिकमैंड करता है कि आप ग्लोबल ब्यूटी सीक्रेट ब्राइडल किट ले सकती हैं.

इस किट में चौकलेट और वोल्नट सोप, इंडियन रोज ऐंड केवड़ा बौडी मिस्ट व टरकिश रैसोल क्ले हेयर मास्क है, जिस में कौफी की मौजूदगी स्किन को पोषण देने के साथसाथ ग्लो लाने का काम करेगी. तो फिर अपनी ब्राइडल किट में इसे डालना न भूलें.

लौरियल पेरिस दीपिका पिक

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एकदम से खुद को रैडी करना कोई ईजी टास्क नहीं. लेकिन नायका बताता है कि लौरियल पेरिस दीपिका पिक के साथ आप भी दीपिका पादुकोण की तरह खुद को मिनटों में तैयार कर हट कर लुक दे सकती हैं. क्योंकि लोरियल पेरिस का शिमरी ब्लू पाउच, जिस में हाइली पिगमैंटेटिड आईशैडो पेंट, आईलाइनर व मैट लिपस्टिक है, जो पूरे दिन स्टे रहने के साथ आप के लुक को बिगाड़ेगी नहीं. तो फिर इंतजार किस चीज का. आप आपनी कैट आइज व मैट पाउट से छाएं हर जगह.

लेक्मे गोल्ड ऐशैंशियल कौंबो

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क्या आप नहीं चाहेंगी कि मेकअप किट में सारी चीजें हों, ताकि आप खुद को जैसा मर्जी लुक झट से दे पाएं. इस के लिए नायका बताता है लेक्मे गोल्ड ऐशैंशियल कौंबो के बारे में, जिस में मेकअप प्रोडक्ट्स से ले कर आईशैडो प्लेट तक है. इस आईशैडो प्लेट को फैशन डिजाइनर सब्ससाची मुखर्जी द्वारा डिजाइन किया गया है. इस से आप स्मोकी से ले कर नौर्मल टच दे पाएंगी. सोचिए, क्या इस से बेहतर कुछ हो सकता है.

मैबलिन न्यूयार्क ब्राइडल किट – लाइट

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अगर आप मेकअप के साथ खेलना शुरू करना चाहती हैं तो ये आप के लिए अच्छा औप्शन है. इस के लिए नायका बताता है कि आप मैबलिन न्यूयार्क ब्राइडल किट – लाइट का चयन करें. क्योंकि इसे ग्लोबल ऐंबैसेडर्स ने लाइट स्किन टोन को ध्यान में रख कर डिजाइन किया है.

एक गोल्ड लुक टोंड पाउच, जिस में डार्क ब्लैक जैल लाइनर आप को विंग्ड लुक देने का काम करेगा. साथ ही लिपस्टिक और आईशैडो आप को परफैक्ट लुक देंगे.

इस किट में आप को मिलेगा…

नायका डौल्ड अप लुक इन ए बैग

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अगर आप पिंक लुक चाहती हैं तो पिक करें नायका डोल्ड अप लुक इन अ बैग. इस में लिपस्टिक की सिंगल कोटिंग आप को सौफ्ट मैट पिंकी लुक देने का काम करेगी. साथ ही ब्लैक आईलाइनर व नेलपेंट का कौंबिनेशन क्यूट बार्बी लुक देने के लिए काफी है.

सौंदर्य से संबंधित अधिक जानकारी पाने के लिए यहां क्लिक करें और नायका ब्यूटीबुक पर जाएं.

कोकोनट दाल करी विद घी तड़का

सामग्री

– 1 कप धुली मसूर दाल

– 1/2 कप बारीक कटा प्याज

– 1 बड़ा चम्मच अदरक व लहसुन पेस्ट

– 1 बड़ा चम्मच किचन किंग पाउडर

– 1/4 छोटा चम्मच करी पाउडर

– 1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

– 1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

– 1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 1 इंच टुकड़ा दालचीनी

– 1 नग तेजपत्ता

– 1 कप कोकोनट मिल्क

– 4 कप पानी

– 2 बड़े चम्मच घी

– नमक स्वादानुसार

सामग्री तड़के की

– 3 बड़े चम्मच मिल्कफूड घी

– 3 बड़े चम्मच टोमैटो प्यूरी

– 1 छोटा चम्मच कश्मीरी मिर्च पाउडर

– 2 साबूत लालमिर्च

– 1 छोटा चम्मच जीरा

– चुटकी भर हींग पाउडर

– सजाने के लिए थोड़ी सी धनियापत्ती कटी.

विधि

– दाल को साफ कर 1 घंटा पानी में भिगोए रख कर फिर पानी निथार कर अलग रखें.

– एक प्रैशर कुकर में मिल्कफूड घी गरम कर के प्याज, अदरक व लहसुन भूनें. सभी सूखे मसाले, नमक और दाल डाल कर 3 मिनट धीमी आंच पर भूनें. इस में 4 कप पानी और 1 कप कोकोनट मिल्क डाल कर कुकर बंद करें.

– 1 सीटी आने के बाद आंच धीमी करें. 5 मिनट और पकाएं. जब कुकर की भाप निकल जाए तब ढक्कन खोलें, दाल गल जानी चाहिए. यदि पानी कम हो तो गरम कर के और मिला दें.

– तड़के के लिए मिल्कफूड घी गरम करें. उस में जीरा चटकाएं. साबूत लालमिर्च, हींग पाउडर और कश्मीरी मिर्च डालें. जब तड़का भुन जाए तब आधा तड़का एक बाउल में निकालें.

– बचे तड़के में टोमैटो प्यूरी डाल कर भूनें और दाल में मिला दें. दाल को सर्विंग बाउल में पलटें. ऊपर से हींग व जीरे वाला तड़का डालें और सर्व करें.

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