कैंसर से बचने के लिए खाएं कच्चा लहसुन

आज के खान पान के कारण लोगों में कई तरह के रोग पैदा होने लगे हैं. फसलों में रसायन का अत्यधिक इस्तेमाल इन परेशानियों की जड़ है. ऐसे में बहुत ज्यादा दवाइयों पर निर्भर होना हमारे लिए काफी घातक हो सकता है. इसलिए जरूरी है कि हम प्राकृतिक उपायों की ओर मुड़ें. इस खबर में हम आपको लहसुन की कैंसर से लड़ने की  खूबी के बारे में बताएंगे.

जानकारों का मानना है कि जो लोग लहसुन का सेवन करते हैं उनमें ना खाने वाले लोगों की अपेक्षा किसी भी तरह के रोग होने की संभावना 44 फीसदी कम हो जाती है.

कम होता है कैंसर का खतरा

सप्ताह में केवल दो बार कच्चा लहसुन खा लेने से फेफड़ों का कैंसर नहीं होता. इसमें कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो कैंसर के संभावना को काफी कम करते हैं.

जो लोग स्‍मोकिंग करते हैं अगर वो लहसुन खाएं तो वो 80 प्रतिशत तक इस बीमारी से बच सकते हैं। इसके अलावा जिनकी फैमिली हिस्ट्री में कैंसर है उन्हें भी लहसुन खान की सलाह दी जाती है.

कब और कैसे खाएं लहसुन?

जानकरों का मानना है कि रोज सुबह में खाली पेट या रात के खाने के बाद कच्चा लहसुन खाने से कैंसर का खतरा काफी कम हो जाता है. इसे खाने के बाद कुछ देर तक पानी का सेवन ना करें. इसके कड़वे स्वाद के चलते इसे कच्चा चबाना काफी मुश्किल होता है पर खुद को स्वस्थ रखने के लिए आपको इसे ना चाहते हुए भी खाना होगा.

गाय का दूध हो सकता है आपके लिए खतरनाक, होती हैं ये बीमारियां

दूध को ले कर आम लोगों के मन में एक धारणा है कि गाय का दूध पीना काफी फायदेमंद होता है. गाय का दूध हड्डियों के लिए काफी फायदेमंद होती है. इससे शरीर में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि गाय का दूध पीने से आपको कितना नुकसान होता है. कई लोगों को दूध पीने से पेट की समस्‍या हो जाती है, तो कई लोगों के चेहरे पर मुंहासे निकलने शुरु हो जाते हैं. क्योंकि इसमें अधिक मात्रा में कैलोरी पाई जाती है इसलिए इससे मोटापा बढ़ने का खतरा काफी ज्यादा होता है.

धारणा है कि हड्डियां होती है मजबूत

लोगों में ये विश्वास है कि ज्यादा दूध पीने से लोगों की हड्डियां मजबूत होती हैं, पर ऐसा बिल्कुल नहीं है. हड्डियों को मजबूत बनाने के लिये दूध की जरुरत नहीं है. जानकारों की माने तो ज्यादा दूध पीने से कुल्हों के टूटने का रिस्क ज्यादा होता है.

दूध है कैल्शियम का प्रमुख स्रोत

केवल दूध ही कैल्शियम का प्रमुख स्रोत नहीं है. कैल्शियम फल, मेवे, हरी पत्‍तेदार सब्‍जियां, बींस और अनाजों से भी प्राप्‍त हो सकता है.

होती हैं पेट की बीमारियां

कई लोगों को दूध पीने से पेट की समस्‍या होती है। ऐसा इसलिये होता है क्‍योंकि उन्‍हें लैक्‍टोज इंटौलरेंस होता है। ऐसे में अगर आप दूध पीना बंद कर देंगे तो आपका पेट हमेशा अच्‍छा रहेगा।

तेजी से बढ़ता है वजन

दूध में कैलोरी प्रचूर मात्रा में होती है. अगर आप नियमित रूप से दूध पीते हैं तो आप का वजन बढ़ सकता है। ऐसे में जरूरी है कि आप लो फैट वाला मिल्‍क पिएं, जिसमें केवल 2% कैलोरी होती है.

होते हैं त्वचा पर दाग धब्बे

ज्यादा दूध पीने वालों को त्वचा पर दाग, धब्बों की शिकायतें आती है. इससे अक्सर लोगों में एक्‍जिमा और अन्‍य तव्चा संबंधी बीमारियां होती हैं. इन परेशानियों से दूर रहना है तो अपनी डाइट से दूध को हटा दें.

चेक बाउंस होने पर कौन सा बैंक वसूलता है कितना पैसा ?

अगर आप बैंकों के कार्य के बारे में थोड़ी भी समझ रखती हैं तो चेक बाउंस शब्द को पहले जरूर सुना होगा. आम तौर पर चेक बाउंस होने की दो वजहें होती हैं. एक तो खाताधारक के खाते में चेक पर लिखी राशि से कम पैसा होना और दूसरा है चेक पर किए गए हस्ताक्षर अकाउंट होल्डर के ओरिजिनल हस्ताक्षर से मैच न करना. इसके अलावा भी कुछ कारण हैं जिनके कारण चेक बाउंस होता है. जैसे अकाउंट नंबर मिसमैच होने पर भी चेक डिसऔनर्ड हो जाता है. चेक पर लिखी तारीख, डैमेज्ड चेक, या चेक के एक्सपायर हो जाने पर भी चेक बाउंस होता है.

खाते में पर्याप्त फंड ना होने की सूरत में बैंक खाताधारक से पेनाल्टी वसूलता है. अगल अलग बैंकों में ये चार्जेस अगल होते हैं. इस खबर में हम आपको कुछ प्रमुख बैंकों द्वारा लिए जाने वाले पेनाल्टी फिगर के बारे में बताएंगें.

एचडीएफसी बैंक 

penalty of banks on cheque bounce

एचडीएफसी में अकाउंट में पर्याप्त राशि न होने की सूरत में चेक बाउंस होने पर बैंक 500 रुपये की पेनाल्टी लगाता है. फंड ट्रांसफर के चलते चेक रिटर्न होने पर यह चार्ज 300 रुपये होता है. तकनीकी कारणों से रिटर्न होने पर 50 रुपये जुर्माना लगता है.

भारतीय स्टेट बैंक

penalty of banks on cheque bounce

स्टेट बैंक अलग अलग धन राशि पर अलग अलग पेनाल्टी वसूलता है. 1 लाख तक के चेक पर स्टेट बैंक जीएसटी के साथ 150 रूपये की पेनाल्टी वसूलता है. वहीं 1 लाख से ऊपर के चेक पर यह शुल्क जीएसटी सहित 250 रुपये हो जाता है.

आईसीआईसीआई बैंक 

penalty of banks on cheque bounce

आईसीआईसीआई में चेक बाउंस की सूरत में लगने वाली पेनाल्टी की रकम अलग अलग है. फाइनेंसियल कारणों से चेक रिटर्न होने पर 100 रुपये का चार्ज लगता है. कस्टमर की ओर से जारी किए गए चेक वित्तीय कारणों से वापस होने पर प्रति चेक 750 रुपये की कटौती की जाती है. वहीं वित्तीय कारणों से ट्रांसफर किए गए चेक के वापसी पर 350 रुपये देना पड़ता है.

बैंक औफ बड़ौदा 

penalty of banks on cheque bounce

एक लाख तक के बाउंस चेक पर बैंक औफ बड़ौदा खाताधारक पर 250 रूपये का जुर्माना वसूलती है. वहीं बाउंस्ड चेक 1 लाख से 1 करोड़ रुपये तक की है तो जुर्माने की राशि 750 रुपये हो जाती है.

खतरे से खाली नहीं भ्रामक मैसेज भेजना

आजकल सोशल मीडिया सब से तेज गति से दौड़ने वाला प्रसारण प्लेटफौर्म बन चुका है. जितनी तेजी से फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्विटर, लिंकडिन जैसी सोशल साइट्स पर मैसेज वायरल होते हैं, उतनी तेजी तो इलेक्ट्रौनिक मीडिया भी नहीं दिखा पाता. आज बच्चों से ले कर बुजुर्गों तक के हाथ में स्मार्ट फोन है. महिलाएं तो सारा कामधाम भूल कर मोबाइल पर ही सारा दिन चैट में बिजी रहती हैं. एक मैसेज टन्न से उन के फोन पर गिरा नहीं कि मिनटों में पूरे ग्रुप में फौरवर्ड हो गया.

जोक्स, विचार, तसवीरें, धार्मिक संदेश, स्वास्थ्य संदेश, रैसिपीज और न जाने क्याक्या सोशल साइट्स पर शेयर हो रहा है. खाली वक्त तो अब किसी के पास बचा ही नहीं है. वर्तमान में 200 मिलियन यूजर्स व्हाट्सऐप पर सक्रिय हैं. व्हाट्सऐप सभी की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है.

सभी अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों से संपर्क में रहने के लिए इस का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन यही व्हाट्सऐप इन दिनों फर्जी खबरें, वीडियो फैलाने का जरीया भी बन गया है. यही यूजर व्हाट्सऐप की गुमनाम दुनिया में अफवाहों का शिकार भी हो रहे हैं. अफवाह कहां से आई, किस ने भेजी, यह किसी को नहीं पता, लेकिन भेड़चाल में हम इसे आगे फौरवर्ड कर देते हैं.

बेशक हमारा मकसद अपने जानने वालों को किसी अमुक घटना के प्रति सावधान करना होता है, लेकिन अनजाने में हम किसी निर्दोष के प्रति अपराध में शामिल हो जाते हैं, जबकि इन अफवाहों को फैलाने वाले बच जाते हैं, उन का भांडा फोड़ना मुश्किल हो जाता है.

अब खैर नहीं

इसलिए सावधान. उच्चतम न्यायालय बिना सोचेसमझे मैसेज फौरवर्ड करने वालों पर अब काफी सख्त है. हाल ही में दक्षिण भारत के भाजपा नेता एस वी शेखर, जो पूर्व में एक पत्रकार और बहुत अच्छे अदाकार भी रह चुके हैं, को देश की सब से बड़ी अदालत से लताड़ पड़ी और उन की अग्रिम जमानत याचिका तक ठुकरा दी गई, क्योंकि उन्होंने बिना सोचेसमझे महिलाओं को अपमानित करने वाला एक मैसेज अपने फेसबुक अकाउंट पर शेयर और फौरवर्ड किया.

एस वी शेखर दक्षिण भारत में भाजपा के बड़े नेता माने जाते हैं. अप्रैल महीने में उन्होंने महिला मीडियाकर्मियों से जुड़ी एक अपमानजनक बात अपने फेसबुक अकाउंट पर शेयर की थी, जो उन्हें किसी और ने भेजी थी. शेखर उस खबर को लिखने वाले नहीं थे, बावजूद इस के उन के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ और उन की गिरफ्तारी तक की नौबत आ गई.

गिरफ्तारी से बचने के लिए एस वी शेखर मद्रास हाई कोर्ट गए, जहां उन्हें कड़ी फटकार पड़ी और उन की अग्रिम जमानत याचिका ठुकरा दी गई. फिर वे उच्चतम न्यायालय की शरण में आए. यहां भी अदालत ने उन की इस हरकत पर डांट लगाते हुए उन की याचिका रद्द कर दी.

सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और एम एम शांतनागौड़ार की पीठ ने एस वी शेखर के वकील बालाजी श्रीनिवासन से कहा, ‘‘वे बहुत बड़े अभिनेता हैं. आप नहीं जानते होंगे पर हम जानते हैं. मगर कानून के तहत किसी से खास बरताव नहीं किया जा सकता. आप निचली अदालत जाएं और नियमित जमानत की मांग करें.’’

पीठ ने उन की अग्रिम जमानत के आग्रह को ठुकराते हुए कहा कि कानून बहुत स्पष्ट है कि जांच पूरी होने के बाद आरोपपत्र दायर हो जाने पर आरोपी को नियमित जमानत लेनी होती है.

इस से पहले मद्रास हाईकोर्ट ने एस वी शेखर द्वारा अभद्र मैसेज को फौरवर्ड करने पर कहा था कि किसी आए संदेश को किसी अन्य को फौरवर्ड करने का मतलब है कि आप उसे स्वीकार करते हैं और उस संदेश का समर्थन करते हैं. क्या कहा जाता है महत्त्वपूर्ण है, लेकिन यह किस ने कहा है, समाज में बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि लोग सामाजिक स्टेटस के व्यक्तियों का सम्मान करते हैं.

जब किसी व्यक्ति की तरह एक सैलिब्रिटी इस तरह के संदेश फौरवर्ड करता है, तो आम जनता इस बात पर विश्वास करेगी कि इस तरह की चीजें चल रही हैं. यह समाज के लिए गलत संदेश देता है. शेखर के मैसेज में भाषा और इस्तेमाल किए गए शब्द अप्रत्यक्ष नहीं हैं, बल्कि प्रत्यक्ष क्षमता वाली अश्लील भाषा है, जो इस क्षमता और उम्र के व्यक्ति से अपेक्षित नहीं है.

कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि अपने अनुयायियों के लिए एक आदर्श मौडल होने के बजाय उन्होंने एक गलत मिसाल पेश की है. रोजाना हम सोशल मीडिया पर सामाजिक भावनाओं में इस तरह की गतिविधियों को करने के लिए युवा लड़कों को गिरफ्तार होते देखते हैं. कानून हर किसी के लिए समान है और लोगों को हमारी न्यायपालिका में विश्वास नहीं खोना चाहिए. गलतियां और अपराध समान नहीं हैं. केवल बच्चे ही गलतियां कर सकते हैं, जिन्हें क्षमा किया जा सकता है. अगर ऐसा बुजुर्गों द्वारा किया जाता है तो यह अपराध हो जाता है.

फेक मैसेज गंभीर चुनौती

सोशल मीडिया के जरीए वायरल होने वाली फेक न्यूज/मैसेज सरकार के लिए अब गंभीर चुनौती बन रही है, वहीं आम जनता इस के बुरे परिणाम भुगत रही है. पिछले दिनों व्हाट्सऐप पर फैली अफवाह की वजह से कई लोगों की जान चली गई.

महाराष्ट्र में भीड़ ने 5 लोगों को बच्चा चोर होने के शक में पीटपीट कर मार डाला. हालांकि यह पहला मामला नहीं है. इस से पहले भी सोशल साइट्स पर फैली अफवाहों ने लोगों की जानें ली हैं. ऐसे में यह बहुत जरूरी हो जाता है कि सही और गलत खबरों के बीच के अंतर को समझें और लोगों के झांसे में बिलकुल न आएं.

देश में व्हाट्सऐप के 20 करोड़ ऐक्टिव यूजर्स हैं. इस के जरीए एकदूसरे को भेजे जाने वाले कई मैसेज, फोटो और वीडियो फेक होते हैं, लेकिन बिना सोचेसमझे उन्हें आगे शेयर करने से ये देखते ही देखते वायरल हो जाते हैं. अकसर मैसेज को फौरवर्ड या शेयर करते समय लोग इस बात का बिलकुल ध्यान नहीं रखते कि उस का लोगों पर क्या असर होगा.

खतरनाक नतीजे

बिना सोचेसमझे व्हाट्सऐप पर मैसेज फौरवर्ड करने का कितना खतरनाक नतीजा हो सकता है, इस की एक और बानगी देखिए, 4 साल पुराने एक मैसेज को कई लोगों ने फौरवर्ड कर डाला और जब असलियत सामने आई तो सभी भौचक्के रह गए.

बैंगलुरु के बाणशंकरी इलाके में रहने वाले बिजनैसमैन प्रशांत को व्हाट्सऐप पर एक मैसेज आया, जिस में कहा गया था कि कैंपगौड़ा इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंसेज हौस्पिटल में एक बच्चा सिर में लगी चोट के बाद भरती है और उस की पहचान नहीं हो सकी है. उस के मातापिता का जल्दी पता लगाने के लिए इस मैसेज और फोटो को फौरवर्ड करने के लिए कहा गया था.

यह मैसेज प्रशांत को भी किसी ने फौरवर्ड किया था. इस में जिस बच्चे का फोटो था, उस की शक्ल उन के भानजे से मिलतीजुलती थी. उन्होंने फौरन अपनी बहन को फोन किया. बेटे के अस्पताल में भरती होने की बात सुन कर वह बेहद परेशान हो गईं. उन के परिवार में हड़कंप मच गया. उन की बहन अपने पति के साथ अपने बेटे के स्कूल पहुंची, जहां उन्होंने पाया कि उन का बेटा तो एकदम ठीक है. हालांकि स्कूल के प्रिंसिपल इस बात पर काफी नाराज हुए कि पढ़ेलिखे हो कर भी वे व्हाट्सऐप फौरवर्ड पर भरोसा कैसे कर लेते हैं?

उधर, प्रशांत उस व्यक्ति को ढूंढ़ने लग गए, जिस ने सब से पहले यह मैसेज भेजा था. जब उन्होंने उस व्यक्ति का पता लगा लिया तो सच जान कर उन के होश उड़ गए. उस शख्स ने बताया कि उस ने नया फोन लिया था और अपने बैकअप को रीस्टोर कर रहा था. यह देखने के लिए कि उस का व्हाट्सऐप काम कर रहा है या नहीं. उस ने 4 साल पुराना मैसेज फौरवर्ड कर दिया. उस मैसेज में भेजा गया फोटो प्रशांत के भानजे से मिलताजुलता था.

हो जाएं सावधान

अगर आप भी व्हाट्सऐप का हर मैसेज बिना सोचेसमझे फौरवर्ड कर देती हैं, तो अब सावधान हो जाएं क्योंकि इस मामले में अब देश की अदालतें सख्त रुख इख्तियार करने लगी हैं. पुलिस भी अब किसी भी प्रकार की शिकायत आने पर तुरंत मामला दर्ज कर आरोपी के खिलाफ काररवाई करने लगी है.

हाल ही में बहराइच के बड़ीहाट निवासी एक व्यक्ति को व्हाट्सऐप पर आपत्तिजनक कार्टून भेजने वाले लखनऊ निवासी चंद्रशेखर पर केस दर्ज हुआ. बड़ीहाट निवासी शफाक अली ने कोतवाली में तहरीर दे कर बताया कि उन के मोबाइल पर एक व्यक्ति ने आपत्तिजनक कार्टून भेजा. जांच में पता चला कि वह नंबर लखनऊ के अलीगंज निवासी चंद्रशेखर त्रिपाठी प्रयोग कर रहे हैं. शफाक अली की तहरीर पर पुलिस ने चंद्रशेखर त्रिपाठी पर धार्मिक उन्माद फैलाने और आपत्तिजनक प्रदर्शन करने का केस दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया.

नैट के नुस्खों से बचें

सोशल मीडिया पर फैलने वाली फर्जी खबरों के असर में आ कर लोग अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने से भी नहीं चूक रहे हैं. खासतौर पर इन दिनों सोशल मीडिया पर अलगअलग बीमारी से बचाने के नुसखे भी तेजी से फौरवर्ड हो रहे हैं. कई बार तो कैंसर, टीबी जैसी जानलेवा बीमारियों का भी आयुर्वेदिक या यूनानी उपचार व्हाट्सऐप गु्रप में सर्कुलेट होने लगता है और इन्हें ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने में महिलाओं की भागीदारी सब से ज्यादा होती है.

वहीं कुछ धार्मिक मैसेज भी आते हैं, जिन के साथ लिखा होता है कि इन्हें कम से कम 100 लोगों तक जरूर पहुंचाएं. इस से आप के दुखदर्द दूर हो जाएंगे. कोमल हृदया महिलाएं इस के पीछे की साजिश को समझ नहीं पाती हैं और गु्रप्स में इन मैसेज को फौरवर्ड कर देती हैं. अब तो व्हाट्सऐप ने 5 से ज्यादा लोगों को एक बार में मैसेज फौरवर्ड करने पर बैन लगा दिया है, मगर जब ऐसे मैसेज गु्रप में फौरवर्ड होते हैं तो सैकड़ों लोगों तक पहुंचते हैं.

अफवाह ही अफवाह

नोटबंदी के वक्त तो अफवाहों की बाढ़ ही आ गई थी. कहीं नोट में चिप होने की अफवाह, तो कहीं बोरों में नोट मिलने की अफवाह. उन्हीं दिनों एक मैसेज बहुत सर्कुलेट हुआ था कि नमक महंगा होने वाला है. लोगों ने बिना सत्यता जाने अपने फोन पर आए इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजना शुरू कर दिया. देखते ही देखते यह बात देश के कोनेकोने तक फैल गई और लोग नमक खरीदने के लिए बाजार की ओर भागने लगे. दुकानदारों, व्यापारियों ने इस का जम कर फायदा उठाया और जो नमक क्व20 प्रति किलोग्राम बिकता है, वह 600 और 700 रुपए किलोग्राम तक बिका. इस के पीछे कालाबाजारियों की खुराफात थी. कुछ साल पहले दुनिया के खत्म हो जाने की अफवाह भी खूब चली. न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में इस अफवाह का आतंक रहा. कई बार अफवाहों की वजह से सांप्रदायिक तनाव फैलता है और दंगों की स्थिति पैदा हो जाती है.

असामाजिक तत्त्व अफवाहों के जरीए देश का माहौल खराब करना चाहते हैं और उन की इस साजिश का हिस्सा हम सब बन जाते हैं, उन का भेजा फेक मैसेज अपने जानने वालों तक पहुंचा कर. फेसबुक पर तो अश्लील संदेशों की भरमार है. सरदारों, मुल्लाओं, महिलाओं पर जोक्स, अश्लील कमैंट, अश्लील फोटोग्राफ्स से लोगों के फेसबुक अकाउंट भरे पड़े हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में जो सख्ती बरती है उस के मद्देनजर अब यदि किसी व्यक्ति को फेसबुक अकाउंट या व्हाट्सऐप पर ऐसा कोई मैसेज मिलता है जिस से उस की धार्मिक भावना या आस्था को ठेस पहुंचती है, तो वह भेजने वाले के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज करा सकता है. इसलिए कोई भी मैसेज बिना सोचेसमझे किसी को फौरवर्ड न करें, भले ही वह जोक ही क्यों न हो. व्हाट्सऐप का मजा कड़वा न हो जाए और कहीं पुलिस आप का दरवाजा न खटखटाने लगे. याद रखिए एक बार पुलिस केस बन गया तो जान मुश्किल से ही छूटती है.

स्पाइसी ट्रीट : मशरूम गलौटी

सामग्री

– 1/2 कप मशरूम

– 6 छोटे चम्मच तेल

– थोड़ा सा प्याज बारीक कटा

– 2 हरीमिर्चें बारीक कटी

– थोड़ा सा वसंत चाट मसाला

– थोड़ा सा वसंत गरममसाला पाउडर

– थोड़ा सा जीरा पाउडर

– 1/4 कप पनीर टुकड़ों में कटा

– 1-2 आलू उबले व कटे हुए

– 1/2 छोटा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

– 1 छोटा चम्मच बेसन

– 50 ग्राम पनीर

– नमक स्वादानुसार.

विधि

– मशरूम उबाल लें. फिर एक पैन में तेल गरम कर प्याज डाल कर चलाएं.

– फिर इस में हरीमिर्च व अदरकलहसुन का पेस्ट डाल कर तब तक भूनें जब तक सभी चीजें अच्छी तरह भुन न जाएं.

– फिर इस में मशरूम के साथ चाट मसाला, गरममसाला, जीरा पाउडर व कद्दूकस किया पनीर डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें और आंच से उतार कर उस में आलू डालें और पेस्ट तैयार कर उसे प्लेट में निकालें. उस में थोड़ा सा बेसन मिलाएं.

– फिर हाथ पर थोड़ा सा औयल लगा कर इस मिक्स्चर से कबाब बना कर उसे गरम तेल में फ्राई करें और पुदीने की चटनी के साथ सर्व करें.

 

संतों का जातिकरण : अनुयायियों का भावनात्मक शोषण करते संत

राजनीति के असर में अब संतों का जातीकरण होने लगा है. इधर कुछ वर्षों से ब्राह्मणों की तर्ज पर पिछड़ी जातियां अपनीअपनी जातियों के संतों को खोजखोज कर सामने ला रही हैं ताकि ब्राह्मणों की बराबरी की जा सके या उन्हें बताया जा सके कि संत सिर्फ उन की बपौती नहीं, हमारी जातियों में भी संतमहात्मा हैं.

इस अभियान को सब से ज्यादा हवा आबादी के लिहाज से वोटबैंक के रूप में जानी जाने वाली दलित जाति ने दी. संत रविदास इस की मिसाल हैं. इन के नाम पर पार्कों, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, यहां तक कि भव्य मंदिर व घाटों का निर्माण तक, आम जनता की गाढ़ी कमाई से जमा पैसों से कराया गया ताकि प्रतिस्पर्धा के युग में इन का नाम दब न जाए.

अब इन की देखादेखी धोबी समाज भी अपनी जाति के ‘संत गाडगे’ की जयंती मनाने लगा है. भविष्य में अहीर, कुर्मी, पासी, लोहार, नाई आदि जातियां भी अपनेअपने संतों को खोज लें तो कोई आश्चर्य नहीं.

शायद ही किसी को मालूम होगा कि संत गाडगे भी कोई संत रहे. जब चेतना जगी, आवागमन सुगम हुआ तो महाराष्ट्र से इन्हें खोजा गया. फिर दूसरे प्रांतों ने अपने यहां उन्हें ला कर जयंती मनानी शुरू कर दी. शोभायात्रा निकलने लगी और वे तमाम तामझाम होने लगे जो पाखंड के रूप में सदियों से हिंदू समाज करता आ रहा है. धोबी समाज सार्वजनिक छुट्टी की भी मांग कर सकता है, क्योंकि जब तक छुट्टी न हो, महापुरुष व संतों का कद ऊंचा नहीं होता.

संतों को जाति से जोड़ने का क्या औचित्य है जबकि हम उन्हें जातिपांति भाषा, प्रांत से ऊपर मानते हैं? उन संतों का क्या होगा, जो सभी जातियों में लोकप्रिय हैं? क्या भविष्य में सभी संतों का जातीकरण हो जाएगा?

हाल ही में संत रविदास के अनुयायियों ने सिख पंथ से अलग हो कर नए धर्म की मांग की, जिसे सिखों ने ठुकरा दिया. देश व राज्य की तरह कोई नहीं चाहेगा कि उन का पंथ विभाजित हो. पंथ विभाजन का मतलब बंदरबांट. अभी तो सब मिलजुल कर खापी रहे हैं. जातिगत संतों के चलते सब से ज्यादा नुकसान ब्राह्मणों को हुआ है. उन के देवीदेवताओं का मानमनौव्वल कम हुआ है. व्यापार घटने से जो नुकसान व्यापारी को सहना पड़ता है वही हाल ब्राह्मणों का हुआ, जो उन के लिए खतरे का संकेत है.

अपनीअपनी जातियों के संतों की जयंती मनाने वाले क्या बताएंगे कि उन संतों से उन्हें क्या फायदा हुआ? संत रविदास को लें, जिस समुदाय से ये आते हैं, उन का कितना भला हुआ? आज भी दलितों को देशी शराब पी कर मारपीट करते आसानी से देखा जा सकता है. सरकारी सेवा में अच्छा वेतन पा कर भी सफाईकर्मी सामाजिक बुराइयों में जकड़े हुए हैं. सिर्फ जयंती मना कर, भीड़ जुटा कर, शोर मचा कर, नगाड़े, ढोल पीट कर, संतों की महिमा को मंडित नहीं किया जा सकता. यह तो ब्राह्मण सदियो से करते आ रहे हैं, अब वही पाखंड दूसरी जातियां भी कर रही हैं.

जातिप्रथा का सब से बुरा प्रभाव गैर सवर्ण जातियों पर पड़ा है. आज जहां जातिप्रथा तोड़ने की बात हो रही है वहीं गैर सवर्ण जातियां अपनीअपनी जातियों के संतमहात्मा, राजा- महाराजाओं की खोज में लगी हैं और वे सिद्ध करना चाहती हैं कि वे दबीकुचली निकृष्ट जाति नहीं, बल्कि दूसरों की ही तरह श्रेष्ठ हैं. कालीन नगरी भदोही को भी भर जाति के लोग ‘भरदोही’ नाम देते हैं, जो उन्हीं की जाति के एक राजा भरदोही के नाम पर है. कुछ नाई खुद को ब्राह्मण कह कर अपने नाम के साथ शर्मा लगाते हैं. ऐसी मिसालें और भी हैं, जो सिद्ध करती हैं कि जातिप्रथा तोड़ने में गैर सवर्ण जातियों की कोई रुचि नहीं है बल्कि वे उन संतमहात्माओं की खोज में लगी हैं जो सवर्ण जातियों को नीचा दिखा सकें.

सदियों से संतों ने हमें कुछ नहीं दिया, सिवा खोखले प्रवचनों के. जो आदमी पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियों से मुख मोड़े वह दूसरों को क्या रास्ता दिखाएगा? प्रथा और परंपरा परिवेश से जुड़ी रहती हैं. जरूरी नहीं कि आज भी पुरानी प्रथापरंपरा प्रासंगिक हो. समय के अनुसार उन्हें बदलना जरूरी होता है. पर कुछ रूढि़वादी उस बदलाव का विरोध करते हैं. उस के खिलाफ समाजसुधारक सामने आते हैं. साधुसंत तो चाहते हैं कि लोग बुराइयों में जकड़े रहें ताकि मुक्ति के नाम पर उन का भयदोहन किया जा सके. जो संत, शराब, गांजा, भांग का सेवन कर के कुंभ के मेले में हुड़दंग मचाते हैं वे हमारे समाज का क्या मार्गदर्शन करेंगे?

हत्या कराते हैं तब भी संत कहलाते हैं. एक प्रख्यात संत तो अपने व्यापारी शिष्यों को सूद पर रुपया दे कर पैसा कमाते हैं. धंधा करना बुरा नहीं, पर दूसरों को उपदेश क्यों देते हैं? खुद संत माया से चिपके रहेंगे, दूसरों को ठग बताएंगे और बिना एडवांस धन के प्रवचन करने नहीं जाते. आशीर्वाद भी दक्षिणा देख कर देंगे. पिछड़ी जाति की उमा भारती के साथ शायद ऐसा हो कि मरणोपरांत वे अपनी जाति की संत हो जाएं पर जरा सा सत्ता क्या छूटी वे विक्षिप्त हो गईं. पदयात्रा करने लगीं. क्या ईश्वर ने उन की नहीं सुनी? गेरुआ वस्त्र पहन लेने से कोई संत नहीं हो जाता.

आज उमा भारती निर्वासित जीवन व्यतीत कर रही हैं. यही हाल गोविंदाचार्य का है. ऊंची जाति के होने के बावजूद सत्ता से छिटकाए गए तो काशी में अज्ञातवास करने लगे. वहां उन्होंने घोर तपस्या की. वर्षों तक लापता रहे, किसी को पता ही न चला. अब वे कुछ वर्षों से अवतरित हुए, तो निश्चय ही महान संत बन कर. सोशल इंजीनियरिंग की बात कर रहे हैं, जबकि उपेक्षित जातियां, संतों, महात्माओं की खोज में लगी हैं.

ये संतमहंत आम जनता का कितना भला कर रहे हैं, यह सर्वविदित है. जबानी खर्च में क्या जाता है? संत यही करते हैं. हम उन की जयंती मना कर सीना फुलाते हैं और वे जीतेजी हमारा भावनात्मक शोषण करते हैं. सदियों से उन्होंने वही किया, आज भी वही कर रहे हैं. न तब कुछ बदला न आज. हां, बदलाव आया तो समाजसुधारकों व कानूनों से, न कि संतों के प्रचारप्रसार से. संतों ने बनाया बजाय सामाजिक बुराइयां दूर करने के संत का लबादा ओढ़ कर स्वयं को पूजनीय बनाया. जयंती इसी परंपरा का निर्वहन है.

गैर सवर्ण समाज जागरूक होने की जगह, संतमहात्माओं का जातीकरण कर रहा है. ऐसे में यही कहा जा सकता है कि वे उन्हीं बुराइयों को अपना रहे हैं जो हमेशा से ब्राह्मण करते आ रहे हैं और जिन के चलते उन्हें जानवरों से भी बदतर जिंदगी जीने को मजबूर किया गया था. अब सवाल इस बात का है कि जातीवाद के दलदल से निकलने के लिए जातिवाद से मोहभंग की आवश्यकता ही यदि नहीं समझ पाए, तो फिर आधुनिक शिक्षा भी किस काम की.

चाट टाकोस

सामग्री

– 6 टाको शैल्स

– 2 मीडियम आकार के आलू उबले हुए

– 1 छोटा प्याज बारीक कटा

– 1/2 कप मक्के के दाने उबले हुए

– 1 छोटा टमाटर बारीक कटा

– थोड़ी सी हरीमिर्च बारीक कटी

– 3/4 कप फेंटा हुआ दही

– 1 छोटा चम्मच जीरा भुना हुआ

– थोड़ा सा वसंत चाट मसाला व काला नमक

– 1/2 छोटा चम्मच स्मोक्ड लालमिर्च पाउडर

– गार्निशिंग के लिए थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

सामग्री

इमली चटनी बनाने की

– 2 बड़े चम्मच इमली का गूदा

– 1/2 कप चीनी

– 1/2 छोटा चम्मच जीरा भुना हुआ

– 1/2 छोटा चम्मच स्मोक्ड लालमिर्च पाउडर

सामग्री हरी चटनी बनाने की

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– थोड़ी सी पुदीनापत्ती कटी

– 3 कलियां लहसुन कटा

– थोड़ा सा अदरक कटा

– थोड़े से भुने हुए चने

– 3 हरीमिर्चें कटी

– 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

– 1 छोटा चम्मच वसंत चाट मसाला

– 1/2 छोटा चम्मच शुगर

– चुटकी भर हींग

– 1/2 कप पानी

– 1 बड़ा चम्मच नीबू का रस

– नमक स्वादानुसार.

विधि

दोनों चटनियों की सामग्री को अलगअलग मिला कर चटनी तैयार करें.

फिर एक बड़े बाउल में आलू, प्याज, टमाटर, हरीमिर्च, मक्के के दाने, नमक, जीरा पाउडर, लालमिर्च पाउडर व 1 बड़ा चम्मच तैयार हरी चटनी डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें.

फिर इस फिलिंग को हरेक टाको शैल में भर कर ऊपर से 1 चम्मच दही व थोड़ी सी हरी व लाल चटनी डालें.

इस पर चाट मसाला, काला नमक, जीरा पाउडर व लालमिर्च पाउडर बुरक कर सर्व करें.

मच्छरों से बचने के चार प्राकृतिक उपाय

मच्छर के काटने से चिकनगुनिया,  मलेरिया,  डेंगू, और जीका वायरस जैसी जानलेवा बीमारियां होने का खतरा बना रहता हैं. मच्छर न सिर्फ रात को आपकी नींद खराब करते हैं बल्कि दिन में भी आपकी सेहत के दुश्मन बने रहते हैं. इनसे बचने के लिए आज हम आपको चार प्राकृतिक उपाय बताने जा रहे है, जिसे आजमा कर आप मच्छर को भगा सकती हैं.

–  अगर आप तुलसी के पौधे को कमरे की खिड़की के पास रख देगीं तो वहां से मच्छर भाग जाएंगे. तुलसी न सिर्फ मच्छरों को भगाती है बल्कि उन्हें अंदर आने से भी रोकती है. इसके अलावा मच्छर को भगाने के लिए आप नींबू और गेंदे का पौधा भी लगा सकती हैं.

–  जिस तरह सेहत के लिए नीम के अपार फायदे हैं उसी तरह इससे मच्छरों को भी भगाया जा सकता है. इसके लिए नीम और नारियल के तेल को बराबर मात्रा में लेकर मिश्रण तैयार कर लें और इसे शरीर पर रगड़ें. इसका असर आठ घंटे तक रहता है.

–  बराबर मात्रा में नींबू के तेल और नीलगिरी के तेल लेकर मिश्रण तैयार कर लें, अब इसे शरीर पर लगाएं. इसकी महक से मच्छर आपके आस-पास नहीं भटकेंगे.

– लहसुन की बदबू से मच्छर इसके पास नहीं आते. इसे पीस कर, पानी में उबाल कर कमरे में छिड़क दें. असर साफ दिखेगा. अगर आपको इसकी बदबू से परेशानी न हो तो यह स्प्रे अपने शरीर पर भी छिड़क सकते हैं.

अदरक से होने वाले इन फायदों के बारे में जानती हैं आप?

कई ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं जिनमें आप ज्यादा दवाइयों पर निर्भर नहीं रह सकती. ऐसे में आपको प्राकृतिक नुस्खों की ओर मुड़ना पड़ता है. इन तमाम प्राकृतिक उपचार वाले तत्वों में प्रमुख है अदरक. अदरक के कई लाभकारी गुण होते हैं. सेहत संबंधी कई परेशानियों के उपचार में अदरक काफी फायदेमंद होता है. इस खबर में हम आपको अदरक की खूबियों के बारे में बताएंगे.

मासिक धर्म में मिलता है आराम

माहिलाओं को मासिक धर्म के दौरान होने वाली परेशानियों में अदरक काफी फायदेमंद होता है. इस दौरान हो होने वाले दर्द, सूजन में अदरक काफी लाभकारी होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें एंटीइंफ्लेमेटरी गुण होते हैं.

खाने को बनाए स्वादिष्ट

अदरक रोज बनने वाले खानों का एक महत्वपूर्ण तत्व है. इससे खाने में स्वाद तो आता ही है साथ ही एक प्यारी खुशबू भी आती है. जानकारों का मानना है कि खाली पेट अदरक खाने से कई तरह के फायदे होते हैं.

दवाइयों की जगह आजमाएं प्राकृतिक नुस्खें

किसी भी तरह की परेशानियों में सीधे दावाइयों का प्रयोग ना करें. दवाइयों के इस्तेमाल से पहले प्राकृतिक नुस्खें आजमाएं. क्योंकि ज्यादा दवाइयों का सेवन शरीर के लिए हानिकारक होता है. छोटी मोटी परेशानियां जैसे, सर्दी खांसी, बदहजमी, कब्ज जैसी परेशानियों में अदरक काफी लाभकारी होता है.

सूखी खांसी में है काफी फायदेमंद

अदरक सूखी खांसी से निपटने में काफी कारगर है। इसमें एंटीऑक्‍सीडेंट भी होता है, जो गले और सांस लेने वाली नली में जमा टौक्‍सिन को साफ करता है और कफ को बाहर निकालता है। यही नहीं अदरक में ऐसे गुण भी पाए जाते हैं, अस्‍थमा और ब्रोंकाइटिस को दूर करने में लाभदायक होते हैं। यदि अदरक में नमक मिला दिया जाए तो इसकी ताकत दोगुनी बढ़ जाती है.

छोटे बैडरूम को यों दें आकर्षक लुक

अगर आप का बैडरूम छोटा है तो निराश न हों. हालांकि इसे बेहतर और बड़ा लुक देना किसी चुनौती से कम नहीं है, फिर भी आप कुछ प्लानिंग और बदलाव ला कर इसे आकर्षक और बड़ा दिखने लायक बना सकती हैं. बेहतर स्टोरेज और बहुउपयोगी फर्नीचर के इस्तेमाल से आप का काम आसान हो जाएगा. पेश हैं कुछ टिप्स:

अनावश्यक फर्नीचर हटाएं: अगर किसी फर्नीचर की बैडरूम में कोई उपयोगिता न हो तो उसे अवश्य हटाएं. आप का रूम बड़ा दिखने लगेगा.

सामान को व्यवस्थित रखें: ज्यादा सामान रखने से कमरा भराभरा और अव्यवस्थित दिखता है. साथ ही आप की नजरें एक चीज से दूसरी पर घूमती रहती हैं. ऐसे में बेहतर है कुछ ऐसा लुभावना सामान व्यवस्थित कर रखें जिस पर निगाहें खुद ही आकर्षित हों.

खिड़की का बेहतर इस्तेमाल: आप अपने बैड को खिड़की से सटा कर रख सकती हैं. इस से आप का कमरा बड़ा दिखेगा और कुछ अतिरिक्त खाली जगह मिलेगी. बैड कमरे के बीच में रखने से उस के आसपास की कुछ जगह बेकार हो जाती है. इस के अलावा सुबह आप को पर्याप्त रोशनी भी मिलेगी. आप खिड़की में ब्लाइंड्स, लेस या वौयल के परदे लगा कर जब चाहें रोशनी कम या बंद कर सकती हैं.

कस्टम मेड फर्नीचर: स्टैंडर्ड फर्नीचर की जगह आप अपने कमरे के साइज के अनुकूल बैड और अन्य फर्नीचर बनवाएं.

मास्टर बैड के नीचे एक पुलओवर बैड बनाया जा सकता है. इसे दराज की तरह खींचने पर आप के पास एक ऐक्सट्रा बैड हो जाएगा जिस पर जरूरत पड़ने पर बच्चे या आप के मेहमान सो सकते हैं. इस के अलावा वाल माउंटेड बैडसाइड टेबल बनवा कर आप 1-1 इंच कारपेट एरिया का लाभ उठा सकती हैं या फिर बच्चों के लिए बंक बैड बनवा सकती हैं.

अतिरिक्त मिरर का जादू: छोटे कमरे की दीवार पर मिरर का इस्तेमाल करने से देखने वाले को कमरा दोगुना बड़ा दिखता है.

रंगों का चुनाव: पेंट के सही ढंग के चुनाव से भी कमरे की रौनक बढ़ जाती है. सफेद रंग से कमरा ज्यादा प्रकाशमान और खुलाखुला दिखता है, पर रूम को सुंदर लुक देने के लिए आप दीवारों पर गुलाबी या हलका नारंगी रंग करा सकती हैं. ये रंग ईंट की दीवार और फर्नीचर के साथ अच्छा मैच करते हैं.

स्टोरेज स्पेस का अधिकतम उपयोग: फर्श से भीतरी छत (सीलिंग) तक के वार्डरोब्स बनवाएं, जिन में आप घर का बहुत सा सामान ढंग से रख सकती हैं. ऐसा कर आप 1-1 इंच उपलब्ध जगह का सही उपयोग कर सकती हैं.

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