नूडल्स फ्रिटर्स

सामग्री

1/4 कप गाजर कद्दूकस की हुई

– 1 कप मारियो नूडल्स उबले

– 2 आलू उबले

– 4 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर

– 1 छोटा चम्मच नीबू का रस

– 4 बड़े चम्मच धनियापत्ती कटी

– चुटकी भर औरेंज फूड कलर

– 4 बड़े चम्मच तेल शैलो फ्राई के लिए

– लाल व हरीमिर्च स्वादानुसार

– 1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

– 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

– 2 बड़े चम्मच मैदा

– नमक स्वादानुसार.

विधि

– 1 चम्मच मैदा और 1 चम्मच कौर्नफ्लोर का पेस्ट बना कर उस में कलर व हलका सा नमक मिलाएं.

– आलू, बचा कौर्नफ्लोर, मैदा, नमक, धनिया पाउडर, नीबू का रस, धनिया, मिर्च, जीरा पाउडर, नूडल्स व गाजर को अच्छी तरह मिला लें.

– फिर इस की छोटीछोटी बौल्स बना कर हथेली से दबा दें.

– पेस्ट में डिप कर के रखें. फ्राइंगपैन में तेल गरम कर फ्रिटर्स को पैन में सुनहरा होने तक फ्राई कर दही या चटनी के साथ गरमगरम सर्व करें.

‘लेडीज स्पेशल’ में महिला सशक्तिकरण का अनोखा सफर

मुंबई में 26 साल पहले यानी 5 मई 1992 को जब चर्चगेट और बोरीवली स्टेशनों के बीच विश्व की पहली ‘महिला विशेष’ ट्रेन सेवा शुरू हुई थी तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि आने वाले समय में लेडीज स्पेशल की यह मिसाल महिलाओं को बैक सीट से फ्रंट सीट तक ले जायेगी. तब से अब तक महिलाएं रोज इस भीड़भाड़ भरी ट्रेनों के लेडीज स्पेशल में मर्दों की दुनिया में अपनी पहचान दर्ज कर रही हैं.

महिलाएं सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक, इन तीन मोर्चों पर ही पाबंदियों की शिकार होती हैं. या यों कहें कि इन्हीं तीन मोर्चों पर वे रोजमर्रा की जिन्दगी में जद्दोजहद करती हैं. ऐसे में सोनी टीवी का नया शो लेडीज स्पेशल भी ऐसी ही तीन महिलाओं की कहानी बयां करता है. लेडीज, स्पेशल ट्रेन में साथ साथ सफर करती हैं और अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए संघर्ष भी. उम्मीद, दोस्ती, आकांक्षाओं और नारीत्व के अलग-अलग पहलुओं को रोचक अंदाज में पेश करता यह धारावाहिक आज के सासबहू नुमा सीरियल्स की परिपाटी को तोड़ रहा है. सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयों को आधार बनाकर धारावाहिक कम ही बनते हैं, जो बनते भी हैं वे शुरुआती एपिसोड्स के बाद फिर उसी ड्रामे के ढ़र्रे पर आ जाते हैं लेकिन लेडीज स्पेशल के साथ ऐसा नहीं लगता.

लेडीज स्पेशल विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठ भूमि से संबंधित तीन अलग-अलग व्यक्तित्वों की यात्रा को सामने लाती है, जो एक-दूसरे से लेडीज स्पेशल लोकल ट्रेन पर मिलती हैं. दिलचस्प बात यह है कि इसकी कहानियां और पात्र शहरी भारत के मध्यम वर्ग के जीवन की वास्तविकता दर्शाते हैं. इस धारावाहिक को निर्माता विपुल डी शाह के आप्टिस्टिक्स एंटरटेनमेंट के बैनर तले बनाया गया है. इस में गुजराती, मराठी और उत्तर भारतीय संस्कृति के किरदारों को अहमियत दी गयी हो.

मेघना निकाड़े, एक कामकाजी महिला, मेहनती पत्नी और एक मां हैं जो महिलाओं की जिन्दगी में आने वाले रोजमर्रा के संघर्ष का प्रतिनिधित्व करती हैं. अपने परिवार की आय सीमित होने पर भी अपने बच्चों के लिए बहुत कुछ करना चाहती हैं.

जबकि गुजरात के एक छोटे से शहर से आने वाली बिंदु देसाई अपनी बिखर चुकी शादी को समेटने की जद्दोजहद में डूबी हैं. आशावादी बिंदु, अपने पति के साथ दोस्ती और विश्वास के आधार पर उनके प्यार के साथ फिर से एकजुट होने के वादे के साथ एक रिश्ता बनाती हैं.

तीसरा किरदार प्रार्थना कश्यप का है. यह अपने परिवार को पालने का जिम्मा संभालती हैं. इनके पास अपने परिवार को पीछे छोड़कर अपनी जिन्दगी आगे बढाने का रास्ता है लेकिन वह परिवार के लिए अपनी खुशियां ताक पर रख देती हैं.

ऐसी घटनाएं आपको हर दूसरे घर में देखने को मिल जायेंगी. कोई महिला स्टार्ट अप करना चाहती है तो कोई परिवार को सुरक्षित रखना चाहती है. ऐसा रियलिस्टिक अप्रोच कम सीरियल्स में ही दिखता है. बात किरदारों की करें तो इसमें गिरिजा ओक मेघना निकाडे का किरदार तो बिज्जल जोशी बिंदु देसाई का और छवि पांडे प्रार्थना कश्यप का किरदार निभा रही हैं.

बिज्जल जोशी के मुताबिक़, “बिंदु एक असली चरित्र है. उसकी सकारात्मकता बेहद संक्रामक है और इस चरित्र से मैंने व्यक्तिगत रूप से बहुत कुछ सीखा है. लेडीज स्पेशल को बहुत खूबसूरती से लिया गया है और मुझे विश्वास है कि दर्शक इन कहानियों से जुड़ पाएंगे.”

वहीं गिरिजा ओक कहती हैं, “मेरा किरदार मुंबई जैसे शहर में रहने वाली आपकी हर महिला की आकांक्षैओं को दर्शाता है. वह एक पत्नी, एक मां, बेटी, बहू है… मेघना अपने परिवार के लिए बेहतर जीवन बनाने और अपने बच्चों के लिए एक उज्ज्वल भविष्य के लिये अपनी आय को बढ़ाना चाहती हैं.”
कहानी का तीसरा अहम् किरदार निभा रही छवि पांडे के मुताबिक़, “प्रार्थना की कहानी एक महिला की आंतरिक शक्ति की कहानी है. वह चुनौती का सामना करती है. जब आप लेडीज स्पेशल देखेंगे, तो मुझे यकीन है कि शो में इन तीन महिलाओं के अपने जीवन और रिश्तों से हर महिला जुड़ाव महसूस करेगी.’ बता दें कि लेडीज स्पेशल 27 नवंबर से, सोमवार-शुक्रवार रात 9.30 बजे सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन पर प्रसारित होगा.

स्वाभिमान को स्वाहा करते किशोर ब्राह्मण

नई पीढ़ी किसी भी जाति की हो, अगर किशोरवय से ही स्वाभिमानी, मेहनती और ईमानदारी के माने समझ जाए तो खुद की, जाति की और देश की तरक्की में महती भूमिका निभा सकती है. इस के लिए जरूरी है कि उसे ये चीजें परिवार और समाज के ही बड़े बूढ़े सिखलाएं. इस तरह की सीख को ही आम बोलचाल की भाषा में संस्कार कहा जाता है.

भोपाल का संस्कृत विद्यालय इस का अपवाद साबित हो रहा है. इस से ज्यादा चिंता की बात यह है कि यहां संस्कृत सीख रहे किशोर ब्राह्मण दानदक्षिणा लेने के आदी बनाए जा रहे हैं. इन्हें पूर्वजों की तरह पूजापाठ, हवन, यज्ञ और मंत्रोच्चार के जरिए पैसा लेना खुलेआम सिखा कर इन के भविष्य से खिलवाड़ ही किया जा रहा है. यह विद्यालय पुरोहितों की खान है जहां बाकायदा कर्मकांड का प्रशिक्षण छात्रों को दिया जाता है.

कम उम्र के ये छात्र कतई स्वाभिमान और परिश्रम का मतलब नहीं समझते. पढ़ाई के दौरान ही तीजत्योहार प्रधान देश में ये साल भर में 12-15 हजार रुपए बैठेबिठाए महज ब्राह्मण होने की वजह से कमा लेते हैं. दूसरे किशोरों की तरह इन्हें भविष्य में कमाने, खाने और कैरियर बनाने की चिंता नहीं है, उलटे जल्द ही बडे़ होने का इंतजार है ताकि स्कूल से बाहर निकल कर समाज में फैले अंधविश्वासों को रोजगार का जरिया बड़े पैमाने पर बना सकें.

इस साल चैत्र के नवरात्र पर कोई 2 दर्जन छात्र इस शक्तिपीठ में बैठे मंत्रोच्चार करते रहे जिस के एवज में उन्हें यजमान की हैसियत के मुताबिक 1 से 5 हजार रुपए तक दक्षिणा में मिले. इन 9 दिनों में धार्मिक माहौल शबाब पर होता है. माना जाता है कि देवी की आराधना करने से सारे स्वार्थ सिद्ध होते हैं. लोग खुद व्यस्त जीवन शैली के चलते पूजापाठ विधिविधान से नहीं कर पाते इसलिए यह काम वे पुरोहितों को ठेके पर सौंप देते हैं. तयशुदा दक्षिणा ले कर ब्राह्मण यजमान के लिए मंत्रजाप करता है तो जल्दी और कई गुना ज्यादा फल मिलता है, क्योंकि भगवान भी जातिगत भेदभाव करते हुए ब्राह्मण की फरियाद पहले सुनता है.

पेशेवर पंडितों का टोटा पड़ने लगा तो सरकारी सहयोग से चलने वाले संस्कृत विद्यालय के ब्राह्मण छात्र इस कमी को पूरा करते नजर आए. यानी राज्य सरकार की भागीदारी भी अंधविश्वास फैलाने में है जिस पर किसी तरह की कानूनी या दूसरी काररवाई कोई नहीं कर सकता.

इस प्रतिनिधि ने नवरात्र के दिनों में कात्यायनी शक्तिपीठ में कुछ छात्रों से, जो देवी की मूर्ति के सामने बैठे माला फेर रहे थे, चर्चा की तो उन की हालत देख तरस आया कि कैसे इन्हें मोहरा बना कर असल यजमान यानी ब्राह्मण समुदाय अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहा है.

विदिशा से पढ़ने आए किशोर गिरिराज तिवारी ने बताया, ‘‘एक गृहस्थ यजमान के यहां जा कर दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहा हूं. जब पूर्णाहुति होगी तब वे 2,500 रुपए देंगे. इस से मैं कुछ दिन घर हो आऊंगा व घर वालों की मदद भी करूंगा.’’

‘‘यजमान को कैसे पता चला कि तुम पाठ कर सकते हो?’’ यह पूछने पर जवाब में गिरिराज ने कार्यालय की तरफ इशारा कर दिया. यानी संस्कृत विद्यालय प्रबंधन ने यजमान उपलब्ध कराया था. संभव है इस बाबत उस ने कमीशन भी लिया हो.

इस बारे में विद्यालय के महंत पुष्करानंद से जानकारी मांगी गई तो उन्होंने बताया, ‘‘जो भी भक्त श्रद्धापूर्वक पाठ आदि करवाना चाहते हैं उन से विद्यार्थियों को संकल्प दिलवा दिया जाता है. विद्यार्थी यजमान की इच्छा के मुताबिक घर जा कर पाठ करते हैं.’’

गरीब ब्राह्मण परिवारों के इन बच्चों को दरअसल एक साजिश के तहत संस्कृत विद्यालय में ढो कर लाया जा रहा है जिस से ब्राह्मणवाद और पुरोहितवाद खत्म न हो जाएं. इन बच्चों ने भी अपना भविष्य तय कर लिया है कि मांग कर ही खानाकमाना है. इस के सिवा और बाहर कुछ नहीं है और जो है वह मिथ्या है.

भगवा मदरसे के इन छात्रों को शुरू में केवल तेरहवीं में लोगों के यहां भेजा जाता था जहां से कुछ सामान, कपड़े व नगद दक्षिणा इन्हें मिलती थी. बाद में धार्मिक कार्यक्रमों में जाने से इन की आमदनी बढ़ी तो छात्रों की दिलचस्पी भी परवान चढ़ने लगी जो इन के भविष्य के लिहाज से बेहद खतरनाक साबित होने वाली है.

ये छात्र शूद्र का घर छोड़ कहीं भी जाने को तैयार रहते हैं. कहां जाना है, किस के लिए पाठ करना है यह फैसला प्रबंधन करता है यानी जातिपांति और भेदभाव भी सिखाता है.

अंधविश्वास फैलाने में ये छात्र काफी कारगर साबित हो रहे हैं. 2 से 5 हजार रुपए में कोई भी प्रधानमंत्री, अंबानी या अमिताभ बच्चन बन जाने का स्वार्थ या इच्छा इन के जरिए पूरी करने का मुगालता पाल सकता है. एक संकल्प से अगर हालत बदलती होती या पैसा बरसता होता तो सोचने की बात है, ये खुद क्यों मांग कर दक्षिणा के पैसों पर जीवन गुजार रहे होते. इन का उद्धार तो देवी को पहले करना चाहिए था क्योंकि ये ब्राह्मण हैं इसलिए वरीयता क्रम में ऊपर हैं.

एक छात्र की मानें तो चुनाव के दिनों में काफी पैसा मिल जाता है. पार्षद बनने के लिए ज्यादा लोग पाठ करवाते हैं और मुंहमांगा पैसा देते हैं. इस छात्र की खतरनाक इच्छा बड़ा हो कर मशहूर तांत्रिक बनने की है जिस से और ज्यादा पैसा कमाया जा सके. इन बच्चों के दिमाग में धर्म का जहर, कट्टरवाद, अंधविश्वास और तंत्रमंत्र जैसी बेहूदा चीजें भरने वाले जिम्मेदार लोग दूसरा गुनाह इन्हें परजीवी और इन में मांगने की आदत डालने का कर रहे हैं. संस्कृत के श्लोक धाराप्रवाह पढ़ने से खासा पैसा मिल रहा है तो बड़े हो कर ये मेहनत तो करने से रहे. महत्त्वाकांक्षा इन्हें ठग ही बनाएगी. इन से बचपना महज पुरोहिती फैलाने की शर्त पर छीना जा रहा है. दुकानदारों की कमी से ग्राहकी तितरबितर न हो इसलिए भी इन्हें कर्मकांडों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है और ग्राहक भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं.

खुले तौर पर भगवा सरकार और ब्राह्मण समुदाय हैरी पौटर की तर्ज पर अंधविश्वास का स्कूल खोल कर नहीं चला सकते थे इसलिए इन्होंने संस्कृत भाषा की आड़ ली. नतीजा सामने है. ब्राह्मण बच्चे शक्तिपीठ में बैठे मंत्र जाप कर रहे हैं. इन में स्वाभिमान नहीं है, मेहनत का जज्बा नहीं है, ईमानदारी नहीं है. है तो केवल पोथीपत्रियों के जरिए पैसे कमाने की हसरत जिस के नुकसानों से ये कतई वाकिफ नहीं और जो वाकिफ हैं उन्होंने इन की गरीबी का फायदा उठाते, परंपरागत व्यवसाय का हवाला देते इन का ब्रेनवाश कर दिया है जो समाज का, देश का और खुद इन बच्चों का अहित कर रहा है.

वास्तुशास्त्र : जातिवाद की दलदल

घर बनाना शुरू करने से पहले वास्तुशास्त्र के अनुसार जमीन में कुछ कीलें गाड़ने का विधान है, जिन के साथ सूत बांधा जाता था. ये कीलें किस जाति के लिए किस वृक्ष की होनी चाहिए इस बारे में ‘समरांगण सूत्रधार वास्तुशास्त्र’ में महाराजा भोजदेव ने लिखा  है कि जिन वृक्षों के नाम पुल्लिंग में हों, उन की लकड़ी की कीलें बनाई जानी चाहिए, न कि उन वृक्षों की जिन के नाम स्त्रीलिंग में हों :

‘पुन्नामानो द्रुमा: शस्ता:

स्त्रीनामानो विगर्हिता:.’

(समरांगणसूत्र. 21/3)

किस जाति के लिए कौन सी कील : समरांगण सूत्रधार में आगे कहा गया है कि ब्राह्मण के लिए पीपल और खैर की लकड़ी की कीलें वृद्धिकारक हैं और क्षत्रिय के लिए लाल चंदन एवं बांस की कीलें शुभ हैं. साल तथा शिरीष (सिरस) के पेड़ों की बनी कीलें वैश्यों के लिए शुभ हैं. इसी प्रकार तिनिश, धव और अर्जुन वृक्षों की कीलें शूद्र के लिए शुभ कही गई हैं :

‘अश्वत्थ: खदिरश्चैतौ

विप्राणां वृद्धिकारकौ,

रक्तचंदनवेणूत्थ-

कीलौ क्षत्रस्य पूजितौ.

कीलौ शालशिरीषोत्थौ

वैश्यानां कीर्तितौ शुभौ

शूद्रजातेस्तु तिनिश-

धवार्जुनसमुद्भवा:.’

(समरांगण सूत्र. 21/4-6)

किस जाति की कितनी लंबी कील : ब्राह्मण जाति की कील 32 अंगुल लंबी हो, क्षत्रिय जाति की 28, वैश्य की 24 और शूद्र जाति की 20 अंगुल. तभी हित होता है :

‘द्वात्रिंशदंगुला: कीला

विप्राणां स्यु: शुभावहा:,

क्षत्रियाणां पुनश्चाष्टा-

विंशत्यंगुलसम्मिता:.

चतुर्विंशत्यंगुलाश्च

वैश्यानां शुभदायिन:,

विंशत्याद्यंगुलै: कीला:

शूद्रजातेस्तु ते हिता:.

किस जाति की कील के कितने कोने : ब्राह्मण की कील चौकोर हो, क्षत्रिय की अठकोन अथवा षट्कोण हो तथा शूद्र की कील 6 अस्रों (किनारों) वाली हो :

ब्राह्मणक्षत्रियविशां वेदाष्टाश्रषडश्रय:

षडश्रयस्तु शूद्रस्य.

(समरांगण सूत्र. 21/12-13)

सूत्र और जाति : वास्तुशास्त्र कहता है कि घर बनाने के लिए जो फीता (सूत्र) हो वह भी हर जाति के लिए निश्चित सामग्री से बना होना चाहिए :

दार्भमौंजौर्णकार्पासं विप्रादीनां यथाक्रमम्.

(समरांगण सूत्र. 21/13)

(अर्थात, ब्राह्मण का सूत्र कुश का, क्षत्रिय का मूंज का, वैश्य का ऊन का और शूद्र का कपास का बना हुआ हो.)

लंबाई, चौड़ाई व जाति : ब्राह्मणों के घरों की लंबाई चौड़ाई से 10 अंश अधिक हो, क्षत्रिय के घर की लंबाई चौड़ाई से 8 अंश अधिक, वैश्य की 6 अंश और शूद्र की 4 अंश अधिक हो :

‘दशांशयुक्तो विस्तारा-

दायामो विप्रवेश्मनाम्,

अष्टषट्चतुरंशाढ्य

क्षत्रादित्रयवेश्मनाम्.’

जाति के अनुसार घर की सीमा : वास्तुशास्त्र कहता है कि शूद्रों के लिए साढ़े 3 तल वाला भवन कल्याणकारी होता है. इस से बढ़ कर यदि शूद्र का भवन होगा तो उस के कुल का नाश हो जाएगा:

‘सार्धत्रिभूमि शूद्राणां

वेश्म कुर्याद् विभूतये,

अतोऽधिकतरं यत् स्यात्

तत्करोति कुलक्षयम्.’

(समरांगण सूत्र. 35/21)

साढ़े 5 तल वाला भवन वैश्य की वृद्धि करता है. यदि वह इस से ज्यादा बड़ा बनाएगा तो उस के धन तथा बंधुओं का विनाश होगा :

‘वैश्यस्य वर्धयेद् गेहमर्धपंचमभूमिकम्,

अतिप्रमाणे तत्रास्य धनबन्धुपरिक्षय:.’

(समरांगण सूत्र. 35/22)

साढ़े 6 तल वाला क्षत्रिय का श्रेष्ठ घर संपत्ति, बल और समृद्धि करने वाला होता है. इस से ज्यादा बड़ा मकान संपत्ति व बल का नाश करता है. साढ़े 7 खंड वाला श्रेष्ठ मकान ब्राह्मण का होता है, इस से अधिक ऊंचा भयावह माना गया है :

‘परं विप्रस्य भवनमर्धसप्तमभूमिकम्,

अत्युच्चं तु भयावहम्.’

(समरांगण सूत्र. 35/24)

ऊंचाई बनाम जाति : शूद्र का घर 20 हाथ से ज्यादा ऊंचा नहीं होना चाहिए. वैश्य का घर 40 हाथ ऊंचा हो, क्षत्रिय का 60 हाथ और ब्राह्मण का 80 हाथ. इसी तरह ढाई खंड से कम ब्राह्मण का घर न हो, क्षत्रिय का 2 खंड से कम न हो, वैश्य का डेढ़ खंड से कम न हो और शूद्र का मकान एक खंड का हो:

‘साधारणेन हस्तेन

परं शूद्रस्य विंशति:. 29

चत्वारिंशद् विश: षष्टि:

क्षत्रियस्य प्रशस्यते,

अशीतिर्द्विजमुख्यस्य. 30

एकभौमादधो नैव

गृहं शूद्रस्य विद्यते. 32

वैश्यस्य भवनं कार्यम्

अधो नाध्यर्धभूमिकात्,

द्विभूमिकादध: कार्यं

क्षत्रियस्य न मंदिरम्. 33

सार्धद्विभौमाद् विप्रस्य. 34.’

(समरांगण सूत्र. अ. 35)

मिट्टी का रंग व जाति : घर बनाने के लिए किस जाति को किस रंग वाली भूमि चुननी चाहिए, कौन सा रंग किस जाति के लिए हितकारी है, इस बारे में कहा गया है:

‘सिता रक्ता च पीता च कृष्णा

चैव क्रमान्मही,

विप्रादीनां हि वर्णानां हिता.’

(समरांगण सूत्र. 10/48)

(सफेद रंग की भूमि ब्राह्मण के लिए, लाल क्षत्रिय के लिए, पीली वैश्य और काली शूद्र के लिए हितकारी है.)

परंतु वास्तुप्रदीप में ‘हरिद् वैश्या प्रकीर्तिता’ कहा है, जिस का अर्थ है कि हरे रंग वाली मिट्टी वैश्य जाति के लिए शुभ होती है.

फूल व जाति : जहां घर बनाना हो, वहां की जमीन किस जाति के लिए उपयुक्त है, यह जानने के लिए उस जमीन में एक गड्ढा खोद कर उस में ब्राह्मण की सफेद फूलों की, क्षत्रिय की लाल फूलों की, वैश्य की पीले फूलों की और शूद्र की काले फूलों की माला रखें. जिस रंग की माला न मुरझाए, उसी जाति का वहां घर बनना चाहिए :

खाते सितादिमाल्यानि

यस्यां निश्युषितानि च

यद्वर्णानि न शुष्यन्ति

सा तद्वर्णेष्टदा मही.

(समरांगण सूत्र. 10/49)

जाति और तिलों के अंकुर : शिल्पशास्त्र में कहा गया है कि यह जानने के लिए कि भूमि किस जाति के व्यक्ति के लिए घर बनाने के लिए उपयुक्त है, वहां तिलों की बुआई करनी चाहिए. यदि वहां 3 रातों के बाद तिल अंकुरित हो जाएं तो उस भूमि को ब्रह्मजाति (ब्राह्मण के लिए उपयोगी) की भूमि कहना चाहिए. यदि 5 रातों के बाद तिल अंकुरित हों तो उसे क्षत्रिय भूमि कहना चाहिए. यदि 7 रातों के बाद अंकुरित हों तो उसे वैश्य के लिए उपयोगी समझें तथा यदि 9 रातों के बाद तिल अंकुरित हों तो शूद्रा भूमि जानें:

तिलानां वपने तत्र

ज्ञातव्या भूमिजातय:,

त्रिरात्रेणांकुरो यत्र

ब्रह्मजाति: प्रकीर्तिता.

क्षत्रिया पंचमी रात्रै-

र्वैश्या स्यात् सप्तभिस्तथा,

नवरात्रैश्च शूद्राया

अंकुरो जायते ध्रुवम्.

(शिल्पशास्त्रम्, 1/8-9)

इस विषय को बृहत्संहिता में अन्य प्रकार से प्रस्तुत किया गया है :

मधुरा दर्भसंयुक्ता

घृतगंधा च या मही,

उत्तरप्रवणा ज्ञेया

ब्राह्मणानां च सा शुभा. 44

रक्तगंधा कषाया च

शारवीरेण संयुता,

रक्ता प्राक्प्रवणा ज्ञेया

क्षत्रियाणां च सा मही. 45

दक्षिणप्रवणा भूमि र्याऽम्ला

दूर्वाभिरन्विता,

अन्नगंधा च वैश्यानां

पीतवर्णा प्रशस्यते. 46

पश्चिमप्रवणा कृष्णा विकुण्ठा

काशसंयुता,

मद्यगंधा मही धन्या

शूद्राणां कटुका तथा. 47.

(वास्तुरत्नाकर पृ. 9 से उद्धृत)

अर्थात वह भूमि ब्राह्मण के लिए शुभ है, जिस के उत्तर में ढलान हो, जो मधुर हो, जिस से घी की महक आए, जिस पर कुशा नामक घास उगी हो तथा जिस का रंग सफेद हो.

वह भूमि क्षत्रिय के लिए शुभ है, जिस के पूर्व में ढलान हो, जिस का स्वाद कसैला हो, जिस से खून की बू आए, जिस पर शरपत (सरकंडा) उगा हो तथा जिस का रंग लाल हो.

वह भूमि वैश्य के लिए शुभ है, जिस के दक्षिण में ढलान हो, जिस का स्वाद तीखा (खट्टा) हो, जिस से अन्न की महक आती हो, जिस पर दूब उगी हो तथा जिस का रंग पीला हो.

वह भूमि शूद्र के लिए शुभ है, जिस के पश्चिम में ढलान हो, स्वाद कटु (कड़वा) हो, जिस से मद्य (शराब) की गंध आती हो, जिस पर काश नामक घास उगी हो तथा जिस का रंग काला हो.

परंतु शिल्प- शास्त्र में कहा गया है :

क्षारगंधा भवेत् वैश्या,

शूद्रा च पुरीषगंधजा

(शिल्पशास्त्रम्, 1/6)

अर्थात् क्षार (खट्टे पदार्थ) की गंध वाली भूमि वैश्य के लिए शुभ होती है और पुरीष (टट्टी, मल) की गंध वाली भूमि शूद्र के लिए शुभ होती है.

राजवल्लभवास्तुशास्त्रम् में कहा गया है कि तिल के तेल जैसी गंध वाली व खट्टे स्वाद वाली भूमि पर बना घर वैश्य के लिए शुभ है तथा काले रंग की उस भूमि पर घर बनाना शूद्र के लिए शुभ है जिस से मछली की सी गंध आती हो व जिस का काली मिर्च जैसा स्वाद हो :

स्वादेऽम्ला तिलतैलगंधिमुदिता

पीता च वैश्या मही,

कृष्णा मत्स्यगंधिनी च

कटुका शूद्रेति भूलक्षणम्.

(राजवल्लभमंडनम्. 1/13)

मूर्ति स्थापना व दिनों की जातियां : यदि देव मूर्ति की मंदिर में स्थापना करनी हो तो इस के लिए पहले यह जान लेना चाहिए कि किस जाति के लोगों के लिए कौनकौन सा दिन इस उद्देश्य के लिए शुभ है :

विप्राणां शुभदौ वारौ

स्थापने गुरुशुक्रयो:,

वारौ दिवाकरेन्दोश्च क्षत्रियाणां

सुखावहौ. 15

वैश्यानां बुधवार:

स्यात्सुरसंस्थापने शुभ:,

मंदवारस्तु शूद्राणां

प्रतिष्ठायां शुभावह:. 16.

(बृहद् वास्तुमाला, पृ. 174)

(अर्थात ब्राह्मणों के लिए गुरुवार, शुक्रवार क्षत्रियों के लिए रविवार, सोमवार, वैश्यों के लिए बुधवार और शूद्रों के लिए शनिवार मूर्ति प्रतिष्ठा के लिए शुभ होता है.)

जातियां नक्षत्रों की : वास्तुशास्त्र ने तारों (नक्षत्रों) की भी जातियां बना डाली हैं. उस के अनुसार ब्राह्मणों के लिए तीनों उत्तरा नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, क्षत्रियों के लिए श्रवण, हस्त, मूल, वैश्यों के लिए स्वाति, अनुराधा, रेवती और शूद्रों के लिए अश्विनी नक्षत्र देवमूर्ति की स्थापना के लिए शुभ होते हैं.

‘उत्तरात्रिकपुष्याश्च

ब्राह्मणानां शुभावहा:,

श्रवणा हस्तमूले च

क्षत्रिये शुभदा: स्मृता:. 19

वैश्यानां स्वातिमैत्रे

च पौष्ये चैव शुभावहा:,

शूद्राणामश्विनी श्रेष्ठा

तैतिलस्थापने शुभे.’ 20.

(बृहद् वास्तुमाला, पृ. 175)

घरों का माप बनाम जाति : राजा की सेवा में अलगअलग जातियों के लोग होते हैं. उन में कुछ खास होते हैं और कुछ सामान्य. परंतु जाति दोनों तरह के राजपुरुषों की होती है.

यदि खास राजपुरुष ब्राह्मण जाति का हो तो उस के पास 4 घर होंगे, जिन में से पहले घर की लंबाईचौड़ाई (गृहमान) 35×32 हाथ हो, यदि वह क्षत्रिय जाति का हो तो उस के पहले घर का गृहमान 31×28 हाथ, वैश्य जाति का हो तो उस के पहले घर का गृहमान 28×24 हाथ तथा यदि वह शूद्र जाति का हो तो उस के पहले घर का गृहमान 25×20 हाथ हो. 16 हाथ से कम चौड़ाई हीन जातियों (अछूतों आदि) के घरों की हो :

‘चातुर्वर्ण्यव्यासो

द्वात्रिंशत् स्याच्चतुश्चतुर्हीना:,

आषोडशादिति परं

न्यूनतरम्अतीवहीनानाम्.

सदशांशं विप्राणां

क्षत्रस्याष्टांशसंयुतं दैर्घ्यम्,

षड्भागयुतं वैश्यस्य भवति शूद्रस्य

पादयुतम्.’

(वास्तुसारसंग्रह, 24/11-12)

यदि ये राजपुरुष सामान्य हों तो उन की जाति के अनुसार उन के घरों की माप और संख्या बदल जाएगी. ब्राह्मण के पास 4 घर होंगे तथा पहले घर का गृहमान होगा 39×32 हाथ, क्षत्रिय के पास 3 घर होंगे तथा पहले घर का गृहमान होगा 36×30 हाथ, वैश्य के पास 3 घर होंगे तथा पहले का गृहमान होगा 32×28 हाथ, शूद्र के पास 2 घर होंगे तथा पहले का गृहमान होगा 28×26 हाथ.

जाति बनाम शैया : वास्तुशास्त्र ने शैया के माप तक के मामले को जाति से जोड़ा है. कहा है कि ब्राह्मण की शैया 76 अंगुल हो, क्षत्रिय की 74, वैश्य की 72 तथा शूद्र की 70 अंगुल होनी चाहिए :

‘तदनु युगलहीनं ब्राह्मणादे: प्रशस्तम्.’

(राजवल्लभमंडनम्, 8/1)

वेदिका जाति के अनुसार : वास्तुशास्त्र का आदेश है कि ब्राह्मण के घर में वेदिका (चबूतरा) 7 हाथ की हो, क्षत्रिय के घर में 6 हाथ की, वैश्य के घर में 5 हाथ की तथा शूद्र के घर में 3, 2 या 1 अथवा 4, 3 या 2 हाथ की वेदिका ही होनी चाहिए.

विप्रे सप्रकरा च भूपसदने

षट् पंच वैश्ये तथा,

कुर्याद् हस्तचतुष्टयं च वृषले

त्रिद्व्येकतो हीनके.

(राजवल्लभमंडलनम्, 8/17)

खिड़की में जाति : मानसार नामक वास्तुशास्त्रीय ग्रंथ कहता है कि ब्राह्मणों और क्षत्रियों (राजाओं) के वातायन (खिड़की) में मध्य का स्तंभ नहीं होना चाहिए. उस के स्थान पर पट्टिका होनी चाहिए. परंतु वैश्यों तथा शूद्रों के वातायनों में मध्य का स्तंभ बनाना चाहिए. इस के मध्य में पट्टिका नहीं होनी चाहिए. हां, इस के स्थान पर मंच बनाया जा सकता है :

‘द्विजानां भूपतीनां च

मध्यस्तम्भं विसर्जयेत्

मध्यमं पट्टिकायुक्तं

कुर्याच्छिल्पविचक्षण:,

वैश्यानां शूद्रजातीनां

मध्ये स्तंभं प्रयोजयेत्.

न कुर्यात् पट्टिकामध्ये

चैकं मंचं शुभावहम्.’

(मानसार, 33/288-90)

द्वार और जाति : किस जाति के आदमी को घर का द्वार किस दिशा में बनाना चाहिए, इस बारे में वास्तुरत्नाकर में कहा गया है कि ध्वज आय वाले ब्राह्मण के घर का द्वार पश्चिम दिशा में शुभ होता है, सिंह आय वाले क्षत्रिय के मकान का द्वार उत्तर दिशा में, हाथी आय वाले शूद्र के मकान का द्वार दक्षिण दिशा में और बैल आय वाले वैश्य के घर का द्वार पूर्व दिशा में उत्तम होता है:

ध्वजे परास्यं विप्राणां

राज्ञां सिंहेप्युदङ्मुखम्,

गजे शूद्रस्य याम्यास्यं

विश: पूर्वमुखं वृषे. 7.

(वास्तुरत्नाकर, पृ. 80)

ब्राह्मण के लिए ध्वज आय; क्षत्रिय के लिए ध्वज, हाथी, बैल और मृग आय; वैश्य के लिए ध्वज, सिंह और हाथी आय तथा शूद्र के लिए ध्वज और मृग आदि आय शुभदायक हैं :

‘अग्रजानां ध्वजाय: स्याद्

ध्वजकुंजरगोमृगा:,

क्षत्रस्य ध्वजसिंहेभा

वैश्यस्य शुभदा स्मृता:. 27

ध्वजो मृगादि: शूद्राणाम्. 26.’

(वास्तुरत्नाकर, पृ. 46)

इस के विपरीत, एक दूसरे वास्तुशास्त्रीय ग्रंथ में कहा गया है कि ब्राह्मण की आय ध्वज है, क्षत्रिय की सिंह, वैश्य की बैल और शूद्र की हाथी :

‘ब्राह्मणाय ध्वजं दद्यात्

सिंहं दद्यात्तु क्षत्रिये,

वैश्यस्य तु वृषं दद्याद्

गजं शूद्रगृहेऽर्पयेत्.’

(वास्तुरत्नाकर, पृ. 46)

दोनों में से कौन सा श्लोक सही है और क्यों? इस का उत्तर कहीं भी नहीं दिया गया है.

राशियों की जातियां व द्वार : कर्क, वृश्चिक और मीन राशि वालों अर्थात ब्राह्मणों के लिए ध्वज आय है; मेष, सिंह और धनु राशि वालों अर्थात क्षत्रिय के लिए बैल आय है; तुला, मिथुन और कुंभ राशि वालों अर्थात वैश्य के लिए सिंह आय है और वृष, कन्या व मृग राशि वालों अर्थात शूद्र के लिए हाथी आय है व शुभदायक है :

‘कर्कवृश्चिकमीनानां

ध्वजाय: शुभदो मत:,

वृषभाय: शुभ: प्रोक्तो

मेषसिंहधनुर्भृताम्. 29

तुलामिथुनकुम्भानां

गजायो वांछितप्रद:,

वृषकन्यामृगाणां च

सिंहाय: शुभदो भवेत्. 30.’

(वास्तुरत्नाकर, पृ. 47)

गृहवास्तुप्रदीप नामक एक दूसरे वास्तुशास्त्रीय ग्रंथ के अनुसार वृष, कन्या और मकर राशि वाले वैश्य हैं तथा मिथुन, कुंभ एवं तुला राशि वाले शूद्र हैं :

‘वृषश्च कन्या मकरोऽथ वैश्या:,

शूद्रा: नृयुक्कुंभतुला: भवन्ति.’

(गृहवास्तुप्रदीप:, श्लोक 44)

गृहवास्तुप्रदीप के अनुसार ब्राह्मण राशि के घर का द्वार पूर्व दिशा में हो, क्षत्रिय राशि का उत्तर में, वैश्य राशि का दक्षिण में तथा शूद्र राशि का पश्चिम दिशा में होना चाहिए :

‘स्यात्प्राङ्मुखं, ब्राह्मणराशिसद्म

चोदङ्मुखं क्षत्रियराशिकानाम्,

वैश्यस्य तद् दक्षिणदिङ्मुखं हि

शूद्राभिधानामथ पश्चिमास्याम्.’

(गृहवास्तुप्रदीप:, श्लोक 45)

पर मत्स्य पुराण के अनुसार ब्राह्मण राशि वालों के घर का द्वार उत्तर में और क्षत्रिय राशि वालों का पूर्व में होना चाहिए.

इन भिन्न मतों का क्या मनमर्जी के सिवा कोई दूसरा आधार है? ये परस्पर विरोधी बातें हैं. एक ब्राह्मण के घर का द्वार पश्चिम में शुभ बताता है, दूसरा पूर्व में शुभ बताता है तथा तीसरा उत्तर में, यदि कोई चौथा होता तो वह दक्षिण में बताता. इस वास्तुशास्त्रीय ‘ज्ञान’ (अज्ञान?) में क्या छिपा है? यदि ब्राह्मण 4 में से 3 दिशाओं में द्वार बना सकता है तो इस में क्या कोई ‘रहस्य’ है?

तरंगें : जब वास्तु के जानकारों से पूछा जाता है कि इस तरह जाति के आधार पर हर चीज को अलगअलग बनाने का क्या कारण है तो वे छद्म विज्ञान बघारने लगते हैं. वे तथाकथित तरंगों की बात करते हैं जो कथित तौर पर हर घर (वास्तु) से निकलती हैं. जाति के अनुसार हर चीज को बांटने के पीछे इन तरंगों और घर में रहने वालों के शरीर की तरंगों में कथित तौर पर समन्वय स्थापित करने का महान उद्देश्य बताया जाता है.

जब से विज्ञान ने तरंगों, ऊर्जा आदि का संकल्प दिया है तब से एक वर्ग इन शब्दों के पैबंद लगा कर हर अंधविश्वास, कपोलकल्पना, मनगढ़ंत बात, निर्मूल कथन और बेसिरपैर की बात को ‘विज्ञान’ बना कर पेश करने लगा है, यद्यपि न किसी धर्मग्रंथ में और न किसी वास्तुशास्त्रीय ग्रंथ में ही इस का कहीं कोई उल्लेख है.

यह वर्ग चोटी (शिखर) को विद्युत चुंबकीय क्वाइल बताता है और पूर्णिमा के दिन रखे जाने वाले सत्यनारायण के व्रत के बारे में दावा करता है कि यह सूर्य और चंद्र की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का मुकाबला करने के लिए है तथा दीवाली के दिन जलाए जाने वाले दीपक उस शाम को धरती से निकलने वाली विषैली गैसों को जलाने के लिए हैं.

आज हिंदू समाज का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसा है जो चोटी को तिलांजलि दे चुका है. इस से वह कथित विद्युत चुंबकीय क्वाइल भी विदा हो चुकी है. क्या इस से किसी हिंदू की सेहत पर कोई फर्क पड़ा है?

जो सत्यनारायण का व्रत नहीं रखते, उन्हें वह कथित गुरुत्वाकर्षण कहां ले जाता है? दुनिया में अरबों लोग ऐसे हैं जो सत्यनारायण का व्रत रखना तो दूर उस का नाम तक नहीं जानते. क्या गुरुत्वाकर्षण उन्हें निगल गया है?

रही बात दीवाली की रात को निकलने वाली गैसों की. क्या वे गैसें भारत में ही निकलती हैं और विदेशों में उसी जगह निकलती हैं जहांजहां हिंदू रहते हैं? क्या वे हमारे ही इन लालबुझक्कड़ों को दिखाई देती हैं, दुनिया के वैज्ञानिकों को नहीं?

वास्तु (घर) और जाति की कथित तरंगों के बारे में किस परीक्षण या यंत्र से पता चलता है? क्या पहचान है ब्राह्मणजातीय तरंगों की और शूद्रजातीय तरंगों की?

क्या वे कथित तरंगें केवल भारत की धरती, भारत के मकानों से ही निकलती हैं? जब मुसलिम आक्रमणों के समय मध्ययुग में हिंदू पिट रहे थे, लुट रहे थे, उन के गांव के गांव जलाए जा रहे थे, लाखों की संख्या में जब वे गुलाम व कैदी बनाए जा रहे थे, तब इन तथाकथित तरंगों ने उन के व उन के घरों के लिए क्या किया था? क्या ये तथाकथित अतिमानवीय तरंगें कथित समन्वय स्थापित कर के किसी एक हिंदू घर या हिंदू व्यक्ति को भी बचा सकीं? जो गुलाम बनाए गए लाखों हिंदू हिंदूकुश पर्वत पर सर्दी के कारण 1399 की एक रात को तड़पतड़प कर मर गए थे, उन की जातियों की तरंगें, उन के वास्तुओं की तरंगें कहां थीं? तब वास्तुशास्त्रीय वचन कहां थे? कथित समन्वय कहां था?

मध्यकाल में विदेशी मुसलमानों के हमलों के समय इन जातियों की तरंगों के वास्तु की तरंगों के साथ कथित समन्वय ने क्या एक भी हमले को विफल किया? क्या एक भी हिंदू के घर की खुशी की रक्षा की?

जब हिंदुओं के घर में कथित तरंगों का समन्वय था, तब वे गुलाम हो रहे थे और विदेशी बाजारों (गजनी) में पशुओं की तरह बिक रहे थे, परंतु जो विधर्मी (मुसलमान) इस सारे पाखंड से मुक्त थे, वे शासन कर रहे थे, साम्राज्य स्थापित कर रहे थे. उन के घरों की तरंगों ने उन्हें सबकुछ कैसे उपलब्ध करा दिया, जबकि उन्होंने न किसी वास्तुशास्त्र को कभी देखा था और न कभी उस का अनुपालन किया था?

हिंदू वास्तुशास्त्र का पालन कर के भी पिट गए, लुट गए और गुलाम हो गए जबकि उसी कथित शास्त्र की जरा भी परवा न करने वाले विदेशी हमलावर मुसलमान तरक्की कर शासक बने और साम्राज्य स्थापित करने में सफल हुए. ये ऐतिहासिक तथ्य क्या वास्तुशास्त्र के वचनों की व्यर्थता, निरर्थकता और अनर्थकता का प्रमाण उपस्थित नहीं करते?

वास्तुशास्त्र शूद्र और ब्राह्मण की शैया की माप बताता है. हमारा पूछना है कि यदि शूद्र की शैया ब्राह्मण से छोटी नहीं होगी तो क्या कथित तरंगों का पेट खराब हो जाएगा? क्या कथित तरंगें मनुस्मृति पढ़ कर अपना काम करती हैं? क्या किरणें, तरंगें आदि हिंदू वास्तुशास्त्र का अध्ययन कर के प्रतिक्रिया करती हैं?

हिंदू समाज को जाति के आधार पर जिस हद तक वास्तुशास्त्र ने आपस में बांटा है, उस हद तक तो मनुस्मृति भी नहीं गई थी. जो लोग हिंदू समाज की जातिवाद के लिए निंदा करते हैं, जो लोग शूद्रों की दुर्गति के लिए मनु को जिम्मेदार ठहराते हैं, उन्हें इस वास्तुशास्त्र रूपी छिपे दुश्मन की ओर भी समुचित ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह जातिवाद को फिर से जीवित करने का गुप्त परंतु घातक एजेंडा है और यह मनुस्मृति का भी बाप है.

मध्यकाल में वास्तुशास्त्र ने जीवन के हर पहलू में जातिवाद का घुन लगा दिया था और देश सदियों तक गुलाम होने व नारकीय यातनाएं झेलने का पात्र बन गया. ऐसा अंदरबाहर से बिखरा समाज उन विदेशियों का सामना क्या कर सकता था, जिन में मानवीय एकता व समानता की भावना इसलाम ने कूटकूट कर भर रखी थी?

सदियों बाद जब देश आजाद हुआ तो लाखों हिंदू पाकिस्तान से भारत आए और लाखों मुसलमान भारत से पाकिस्तान गए. यहां आए हिंदू मुसलमानों द्वारा छोड़े गए उन मकानों में रहने को विवश हुए जो न तो वास्तुशास्त्रीय नियमों के अनुसार बने थे और न जातिवादी तरंगों के अनुसार. क्या वे हिंदू नष्ट हो गए या अपने पैरों पर खड़े होने में असफल हुए? क्या कथित तरंगों ने उन्हें करंट मारा या इन लोगों ने विपत्ति का अपने उद्यम से सामना कर वास्तुशास्त्र को मुंह चिढ़ाया? बताने की जरूरत नहीं.

इसी तरह पाकिस्तान गए मुसलमानों ने हिंदुओं के जिन घरों में निवास किया, उन की कथित तरंगों ने उन विधर्मी और जातिहीन लोगों को क्या करंट मार कर नष्ट कर दिया या उन लोगों ने अपने पुरुषार्थ से जीवन को सफल बनाया?

पाकिस्तान से लुट कर हिंदू भारत पहुंचे थे, उन्हें जो भी घर मिला, उन्होंने उस में सुख की सांस ली. प्रश्न उठता है, जब इन हिंदुओं के घर पाकिस्तान में वास्तुशास्त्र के अनुसार थे, घरों की तरंगों और उन में रहने वाली जातियों की तरंगों का आपस में पूर्ण समन्वय था तो वे आखिर टूटे क्यों और कैसे? वे उन समन्वय स्थापित हुए घरों से निकलने को क्यों विवश हो गए? वास्तु की तथाकथित दिव्य शक्ति उन घरों व उन के निवासियों को उजड़ने व बरबाद होने से बचा क्यों न सकी?

उदाहरण श्रीराम के घर का : जिस घर में राम रहते थे वह वास्तु के नियमों के अनुसार ही बना होगा, महाराजा दशरथ ने उसे वैसा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी होगी और वहां की तरंगों का क्षत्रिय तरंगों से घनिष्ठ समन्वय भी रहा होगा.

फिर भी उस घर में सौतें लड़ीं, राम को वनवास मिला, साथ ही लक्ष्मण व सीता भी वनवासी हुए, पिता दशरथ वियोग में मर गए, भाई भरत अलग से परेशान हुआ. वन में सीता का अपहरण हुआ. जब रावण से लड़ाई कर के और सीता को वापस ले कर अयोध्या के उसी घर में राम लौटे तो पत्नी को घर से निकालना पड़ा और बच्चे भी जंगल में वाल्मीकि के आश्रम में जन्मे व पले.

इस घर पर वास्तुशास्त्र की मार पड़ी या कर्मों की?

कर्मों की तो पड़ नहीं सकती थी क्योंकि वे ‘भगवान’ थे, जो कर्मों के चक्र से मुक्त कहे जाते हैं. यदि कर्मों की ही मार पड़ी तो वे फिर ‘भगवान’ नहीं थे.

महाभारत और पांडव : क्या महाभारत के नायक पांडवों का घर वास्तु के अनुसार नहीं था? वे महाराज धृतराष्ट्र के ही घर में रहते थे, उन्हीं के भतीजे थे. अत: साफ है कि जिस घर में वे रहते थे वह वास्तुशास्त्र के अनुसार ही बना होगा. फिर भी वे कभी जुए में हारते हैं, कभी वनवास भोगते हैं और कभी अपने ही बंधुओं का खून बहाते हैं. वास्तु के नियमों के पालन के बावजूद यह त्रासदी क्यों?

जिस घर में दूसरे ‘भगवान’ कृष्ण के मातापिता रहते थे, क्या वह भी वास्तु की दृष्टि से मनहूस था कि पहले तो उन्हें कैद कर लिया गया, उन का पुत्र ‘भगवान’ कैद में ही जन्मा, वे उस का पालनपोषण भी न कर पाए और उसे दूसरे के यहां पालने के लिए छोड़ना पड़ा तथा बाद में उन के सामने उन के यादव वंश का विनाश हो गया और उन्हें स्वयं शिकारी द्वारा पैर में तीर मारे जाने के बाद इस दुनिया को छोड़ने को विवश होना पड़ा.

यहां भी कर्मों का बहाना नहीं चल सकता, क्योंकि ‘भगवान’ को तो कर्मों के चक्र से परे माना जाता है.

ये उदाहरण इसी बात को रेखांकित करते हैं कि वास्तु की तथाकथित दिव्य शक्ति का न कोई अस्तित्व है और न यह भौतिक जगत की घटनाओं को किसी भी तरह प्रभावित कर सकती है.

दूसरे, वास्तुशास्त्र हिंदू समाज को कमजोर करने वाली सामाजिक बुराई जातिपांति को प्रोत्साहन देता है तथा जाति के नाम पर भेदभाव करता है जो भारत के संविधान का घोर उल्लंघन और अपराध है.

भारत के संविधान की धारा 15 जाति के आधार पर भेदभाव को खत्म करती है, परंतु हमारे वास्तुशास्त्रीय ग्रन्थ इस संवैधानिक आदेश को मुंह चिढ़ाते हैं.

इस देश में 2 सत्ताएं नहीं चल सकतीं. देश का संविधान सर्वोपरि है. उस के विपरीत जाने वाली हर विधि, हर प्रथा, हर रिवाज, हर धार्मिक रस्म, हर व्यक्तिगत सनक, हर सामाजिक बुराई खत्म करने योग्य है और धारा 13 ऐसी ही घोषणा करती है.

हिंदू समाज को जातिवादी वास्तु के वहमों की नहीं बल्कि वास्तविक जगत को पहचानने, इस की चुनौतियों को स्वस्थ कौमों की तरह स्वीकारने और असली हिंदुत्व को व्यावहारिक रूप देने की जरूरत है, तभी यह विशाल समाज विश्व का एक अनुकरणीय व प्रतिष्ठित समाज बन सकता है.

शादी से पहले जरूर जांच लें लड़कों की ये 3 आदतें

अक्सर देखा गया है कि महिलाओं को शादी के बाद यह शिकायत होती हैं कि उन्होंने गलत पार्टनर का चुनाव कर लिया. क्योंकि लड़कियों को शादी के बाद ही लड़कों की सभी आदतों के बारे में पता चल पाता है, लेकिन शादी के बाद आप इस रिश्ते से इतनी आसानी से नहीं मुकर सकते हैं.

ऐसे में जरूरी होता है कि शादी करने के निर्णय से पहले ही यह जान लिया जाए कि लड़कों में क्या आदतें हैं और आप उनके साथ अच्छे से रह पाएंगी या नहीं. इसलिए आज हम आपको लड़कों की कुछ आदतों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें शादी से पहले जरूर जांच लेना चाहिए और फिर ही शादी एक निर्णय पर पहुंचना चाहिए.

मनमानी करना

यदि आपका पार्टनर हर कार्य में मनमानी करता है और अपनी ही बात को सदैव आगे रखता है. तब अच्छा है की आप पहले ही संभल जाएं. विवाह के बाद जब आप अपने कदम आगे बढ़ाती हैं तब आपका पार्टनर ही आपके कदमों को खींच लेता है. यदि यह आदत आपके होने पार्टनर में हैं तब अच्छा है की आप ऐसे व्यक्ति से विवाह न ही करें.

शक रखने वाला

कई पुरुष अपने साथ काम करने वाली महिलाओं के नेचर को भी शक की निगाह से देखते हैं. ऐसे में कई बार आपका होने वाला पार्टनर भी यदि ऐसी ही आदत रखता है तब यह आपके आने वाले जीवन के लिए बहुत घातक साबित हो सकती है. इस आदत के चलते ही कई बार महिलाओं को तलाक का दर्द भी सहना पड़ता है. यदि ऐसी आदत आपके होने वाले पार्टनर में है तब अच्छा है की विवाह से पहले ही आप उसको मना कर दें.

समय का अभाव

यदि आपका होने वाला पार्टनर आपको समय नहीं देता बल्कि किसी न किसी काम में लगा रहता है तब आपका रिश्ता आगे बढ़ने में परेशानी आ सकती है. कई बार इसी बजह से रिश्तों में बहुत ज्यादा दूरियां बढ़ जाती हैं. अतः इस बात को देख लें की आपका पार्टनर आपको समय देने वाला है अथवा नहीं. यदि उसके पास आपके लिए समय नहीं है तब आप इस रिश्ते को मना कर सकती हैं.

इस प्रकार से रिलेशनशिप टिप्स में बताई गई इन आदतों को आप यदि विवाह पूर्व ही अपने होने वाले साथी में देख कर चुनाव करेंगी तब आपका आने वाला जीवन काफी सुखमय होगा.

प्रपोजल टालने के लिए इन 4 बहानों का सहारा लेती है लड़कियां

हर कोई चाहता है कि कोई लड़का या लड़की उसे चाहने वाला हो और उसे प्रपोज करें. हालांकि लड़कियां प्रपोज करने में पीछे रहती हैं, लेकिन लड़के किसी भी खूबसूरत लड़की को प्रपोज करने में आगे रहते हैं. और यह लड़कियों के लिए समस्या का कारण बनती हैं क्योंकि इस सिचुएशन को संभाल पाना कोई आसान काम नहीं होता हैं.

ऐसे में लड़कियां इस बात को वहीं खतम करने और प्रपोजल को टालने के लिए कुछ बहानों का सहारा लेती हैं. आज हम आपको लड़कियों के उन्हीं बहानों के बारे में बताने जा रहे हैं.

तुम मेरे भाई जैसे हो

लड़की अगर लड़के को पसंद नहीं करती तो वह बहाना बनाती है कि मै तो तुम्हें भाई समझती हूं. मैंने तुम्हें कभी इस नजर से नहीं देखा. यह सुनकर लड़की आगे कुछ कहने की हिम्मत नहीं रखता और लड़की का काम भी बन जाता है.

मैं पहले से ही कमिटेड हूं

लड़के से पीछा छुड़ाने के लिए लड़की को जब कोई आसान रास्ता नहीं मिलता तो वह बहाना लगाती है कि मैं पहले से ही कमिडेट हूं. इस तरह लड़के की उसमें दिलचस्पी खत्म हो जाती है.

मैं इस तरह की लड़की नहीं  

अगर लड़कियों को किसी लड़के की यह बात पसंद नहीं आती तो आसानी से यह कहकर पीछा छुड़ा लेती है कि मैं वैसी लड़की नहीं हूं. यह बात लड़के को परेशानी में डाल देती है.

करियर है जरूरी

लड़कियों का यह भी मानना होता है कि अगर वह प्यार के चक्कर में पड़ गई तो वह पढ़ाई की तरफ ध्यान नहीं दे पाएंगी. ऐसे में वह अपने करियर की बात कहकर लड़के से दूरी बना लेती है.

अचार खाती हैं तो हो जाइए सावधान, हो सकती हैं ये परेशानियां

शहर हो या गांव, अमीर हो या गरीब, सबके खाने का स्वाद बढ़ाने की जिम्मेदारी अचार पर होती है. अचार के बिना जैसे खाना ही अधूरा है. खाने का अहम तत्व है अचार. एक ओर जहां अचार खाने का स्वाद बढ़ाता है वहीं दूसरी ओर इससे कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं. चूंकि इसमें अत्यधिक मात्रे में तेल नमक और मसाले होते हैं, ये स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है.

जानकारों का मानना है कि  जो लोग बहुत ज्यादा अचार खाते हैं उन्हें दिल की बीमारी, सुगर, अल्सर, आंतों की बीमारी होने की संभावना ज्यादा होती है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि अचार के अत्यधिक प्रयोग से किस तरह की शारीरिक परेशानियां हो सकती हैं.

effect of achar on health

होता है हाई ब्लड प्रेशर का खतरा

जिन लोगों को ब्लड प्रेशर की परेशानी है उन्हें अचार से परहेज करना चाहिए. अचार में भारी मात्रा में नमक होता है जिससे ब्लड प्रेशर के और बढ़ने का खतरा होता है.

होती है दिल की बीमारी

अचार ज्लदी खराब ना हो इस लिए प्रिजरवेटिव के तौर पर उसमें तेल डाला जाता है. दिल के लिए इतना तेल अच्छा नहीं होता है. इससे दिल की बीमारी के होने का खतरा बना रहता है.

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हो सकती है आंतों में सूजन

ज्यादा मात्रा में अचार लेने से आंतों में सूजन होने का खतरा भी बना रहता है. ऐसा इस लिए क्योकि इससे शरीर में वाटर रिटेंसन होती है.

अल्सर का है खतरा

अचार बनाने में ज्यादा मसाले का प्रयोग किया जाता है. ये मासले सभी को सूट नहीं करते. इससे आंत में अल्सर होने की संभावना तेज होती है.

हो सकता है गैस्ट्रिक कैंसर

जानकारों का मानना है कि ज्यादा अचार के सेवन से गैस्ट्रिक कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.

नवजात बच्चों के लिए खतरनाक है गाय का दूध

गाय का दूध हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं है. लोग अक्सर इसके सेवन की हिदायत देते हैं. किसी से भी आप इसकी खूबियों के बारे में पूछिए तो आपको एक लंबा चौड़ा कथा सुनने को मिल जाए. पर क्या आपको पता है कि ये दूध नवजात बच्चों के लिए नुकसानदायक होता है? जनकारों की माने तो गाय का दूध एक वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए नुकसानदायक हो सकता है. नवजात को दूध देने से उनके श्वासन और पाचन तंत्र में रोग होने की संभावना बढ़ जाती है. इसके अलावा भी गाय की दूध से कई परेशानियां हो सकती हैं.

नहीं पचता प्रोटीन

नवजात बच्चों के लिए जरूरी है कि उन्हें हल्का और आसानी से पच जाने वाले पदार्थ ही दिए जाएं. गाय की दूध में पाए जाने वाला प्रोटीन बच्चों को बच्चे पचा नहीं पाते हैं. जिसके कारण उन्हें परेशानी होती है.

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नहीं है लोगों में जागरूकता

एक शोध में पता चला है कि केवल 40 प्रतिशत बच्चों को ही ठीक समय पर सप्लिमेंट्स मिल पाते हैं. जबकि 6 महिने से 23 महिने के बीच पर्याप्त आहार पाने वाले बच्चों की संख्या केवल 40 फीसदी है. हमारे देश में गाय की दूध के प्रति जागरूकता के अभाव का ही नतीजा है कि बच्चों को ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

होता है एनीमिया का खतरा

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जानकारों का मानना है कि प्रारंभिक अवधि में बच्चों को गाय का दूध पिलाने से उनमें एनीमिया का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा उनमें एलर्जी और अन्य रोगों के होने की संभावना भी तेज हो जाती है.

फिर होगी कैश की किल्लत, बंद हो सकते हैं देश के आधे ATM

करीब दो साल हो गए नोटबंदी हुए. अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का असर क्या हुआ इसको बताने की जरूरत नहीं है. आलम ये है कि आज तक लोग उस त्रासदी से उबर ना सकें. नोटबंदी का जख्म अभी भरा नहीं कि एक दूसरी आफत के आने के संकेत मिल रहे हैं. कंफडरेशन औफ एटीएम इंडस्ट्री (CATMi) के मुताबिक आने वाले समय में देश के आधे से ज्यादा एटीएम बंद हो सकते हैं. अभी देश में कुल 2.38 लाख एटीएम मौजूद हैं. अंदाजा लगाया जा रहा है कि मार्च 2019 तक देश के कुल 1.13  लाख एटीएम बंद हो सकते हैं. जानकारों का मानना है कि ऐसा होने पर देश में एक बार फिर से नोटबंदी वाली स्थिति पैदा हो सकती है, इसके अलावा लाखों की संख्या में लोग बेरोजगार हो सकते हैं. क्योंकि एक एटीएम से करीब दो से तीन लोगों को रोजगार मिलता है.

half of atm may close

एटीएम इंडस्ट्री के एक अधिकारी ने कहा कि एटीएम बंद होने से प्रधानमंत्री जनधन योजना के लाभार्थियों को नुकसान हो सकता है. क्योंकि इस योजना के अंतर्गत खोले गए खातों के खाताधारकों की सब्सिडी, मनरेगा का पैसा, विधवा पेंशन और अन्य सरकारी मदद बैंक में आती है. अगर एटीएम बंद हुए तो उनके लिए कैश की भारी किल्लत हो सकती है. जानकारों का ये भी मानना है कि इसका सबसे ज्यादा असर गैर शहरी इलाकों में होगा. इन क्षेत्रों में पहले से एटीएम की कमी है, ऐसे में बचे एटीएमों के बंद होने की स्थिति में गांव, कस्बे के लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

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क्यों बंद होंगे एटीएम

आने वाली इस त्रासदी का कारण है नियमों में होने वाले नए बदलाव. इसके अलावा एटीएम के हार्डवेयर और सौफ्टवेयर को नए नोटों के हिसाब से बनाया जा रहा है. अनुमान है कि इन सारे बदलावों में करीब तीन हजार करोड़ रूपये खर्च होंगे.

बिना वीजा करें यहां की सैर

आप भारतीय पासपोर्ट पर करीब 60 देशों की सैर बिना वीजा या ई वीजा अथवा वीजा औन अराइवल से कर सकते हैं. बिना वीजा के जिन देशों में आप जा सकते हैं उन में से कुछ एशिया, कुछ अफ्रीका तो कुछ दक्षिणी अमेरिका में हैं.

वैसे तो आप दक्षिण कोरिया की सैर बिना वीजा के नहीं कर सकते हैं, पर दक्षिणी कोरिया का एक द्वीप जेजु ऐसा है जहां आप भारतीय पासपोर्ट पर बिना वीजा के जा सकते हैं. जेजु दक्षिण कोरिया का हवाई द्वीप भी कहा जाता है. ध्यान रहे कि आप बिना वीजा के दक्षिण कोरिया के मेनलैंड में किसी भी हवाईअड्डे से हो कर न यहां आ सकते हैं और न यहां से दक्षिण कोरिया में कहीं और जा सकते हैं. मतलब किसी अन्य देश से होते हुए बिना कोरिया में रुके यहां आ सकते हैं या यहां से बाहर जा सकते हैं.

आप मलयेशिया, सिंगापुर या अन्य किसी देश से होते हुए यहां आ सकते हैं. हां, जहां से हो कर आप आ रहे हैं वहां के ट्रांजिट वीजा की जानकारी अवश्य रखें. दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरु से जेजु के लिए आप उड़ान भर सकते हैं.

जेजु दक्षिण कोरिया के दक्षिण में स्थित एक खूबसूरत द्वीप है. यहां का माहौल अन्य पर्यटन स्थलों से अलग और काफी शांत है. स्वयं दक्षिण कोरिया वासी अपनी थकान और भागदौड़ के जीवन से ऊब कर यहां छुट्टियां बिताने आते हैं.

दर्शनीय स्थल

प्राकृतिक सौंदर्य: जेजु प्राकृतिक रूप से भी काफी आकर्षक है. यहां के स्वच्छ वातावरण और खुली हवा में सांस लेना ही आनंदप्रय है.

हलासन: जेजु द्वीप का निर्माण हजारों वर्ष पूर्व ज्वालामुखी फटने से हुआ था. द्वीप के मध्य में हलासन ज्वालामुखी है जो अब निष्क्रिय है. दक्षिण कोरिया की सर्वोच्च चोटी पर माउंट हला नैशनल पार्क की सैर कर इस का आनंद ले सकते हैं. यहां एक गहरा गड्ढा बन गया था जो अब एक सुंदर झील है. यहां चारों ओर नाना प्रकार की वनस्पति और अन्य जीव हैं.

ह्योपले बीच: जेजु द्वीप के उत्तर में स्थित यह बीच यहां का मशहूर बीच है. यहां के बीच पर बालू श्वेत होती है. आप यहां के स्वच्छ जल में तैरने का भरपूर लुत्फ ले सकते हैं.

लावा की सुरंग: ज्वालामुखी में भयंकर विस्फोट के बाद लावा इस सुरंग से ही बाहर निकला करता था. यह एक गुफा सी है. यह 13 किलोमीटर लंबी सुरंग है, पर 1 किलोमीटर लंबी सुरंग ही सैलानियों के लिए खुली है. आप यहां जा कर सैल्फी लेना न भूलें.

रोड की सैर: यहां जीपीएस की मदद से कार से आसानी से आईलैंड पर घूमा जा सकता है. कोशिश करें कि साथ में कोई अन्य गाड़ी या गाडि़यों का काफिला आप के आसपास हो. पैदल चलने के लिए भी टै्रक्स बने हैं. इन रास्तों पर एक जगह ग्रैंडमदर्स रौक स्टैच्यू है. दंतकथा है कि एक बार एक मछुआरा समुद्र में गया तो लौट कर न आया और उस की पत्नी उस के इंतजार में खड़ीखड़ी पत्थर की मूर्ति बन गई. कोरियन लोग अपने बच्चों से कहते हैं कि अकेले देर तक बाहर नहीं जाओ वरना दादी मां मूर्ति बन जाएगी.

सुनहरे टांगेराइन के बाग: कीनू या टांगेराइन फल के बाग में वृक्षों की कतारें मीलों दूर तक फैली मिलेंगी. इन वृक्षों पर पीलेपीले अनगिनत फल आप के कैमरे को फोटो खींचने के लिए मजबूर कर देंगे.

टैडीबियर म्यूजियम: बच्चों के बीच लोकप्रिय टैडीबियर खिलौने का सुंदर म्यूजियम है, जो आप का मन मोह लेगा.

लव लैंड की सैक्स मूर्तियां: जेजु द्वीप पर लव लैंड है जहां करीब 140 मूर्तियां बनी हैं जो सैक्स के थीम पर भिन्नभिन्न सैक्स की मुद्राओं में हैं.

जेजु जाने का सही समय: नवंबर से फरवरी तक का समय जेजु जाने के लिए बेहतर है.

ठहरने की जगह: जेजु में आप को अच्छे होटल या बजट होटल दोनों मिल जाएंगे. आप चाहें तो कम खर्च में हौस्टल में भी ठहर सकते हैं. हां अगर आप को शौपिंग का शौक है तो यहां आप को निराशा हाथ लगेगी.

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