अगर पैराग्लाइडिंग का है शौक तो भारत की इन जगहों पर जाएं

अगर आप एडवेंचर्स की शौकीन हैं और आपको हमेशा कुछ नया करने कुछ रोमांचक करने का मन करता है. तो आज हम आपको रोमांच और खतरों के सफर पर ले जाने आए हैं.

‘छू लूं मैं आसमान’ कुछ ऐसी ही फीलिंग जहन में आती है, जब आप ट्रिप के दौरान पैराग्लाइडिंग करती हैं. अगर आपको एडवेंचर का शौक है और खतरा मोल लेने में कोई झिझक नही है तो हमारी मानिये अपने जीवन में आपको एक बार पैराग्लाइडिंग जरुर ट्राई करना चाहिये हैं.

ऐसा नही की इसमें सुरक्षा का ख्याल नही रखा जाता इसमे सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है. तो चलिये हम आपको बताते हैं पैराग्लाइडिंग से जुड़ी खास बातें और खास जगह जो पैराग्लाइडिंग के लिये मशहूर हैं.

बीर बिलिंग, हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बीर बिलिंग सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में पैराग्लाइडिंग के लिए मशहूर है. यहां पर हर साल दुनियाभर से पर्यटक आते हैं. इसे भारत की पैराग्लाइडिंग राजधानी भी कहते हैं. पहाड़ों से घिरा बीर बिलिंग का दृश्य बहुत ही मनोहर दिखता है.

कैसे पहुंचे

बीर बिलिंग पहुंचने के लिए आप दिल्ली से बाई रोड पहुंच सकती हैं. नई दिल्ली से यहां के लिए डायरेक्ट बसें चलती हैं. आप इन बसों के माध्यम से भी यहां पहुंच सकती हैं. ये बसें आपको बैजनाथ छोड़ेंगी. वहां से आपको टैक्सी के जरिए बीर जाना होगा.

चार्ज : आप 1500 से 3000 में पैराग्लाइडिंग कर सकती हैं.

नंदी हिल, कर्नाटक

नंदी हिल कर्नाटक में चिकबलपुर शहर से मात्र 10 किलोमीटर दूर है. बैंगलोर से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह बहुत ही खूबसूरत पहाड़ है. यहां हर साल दुनियाभर से हजारों सैलानी पैराग्लाइडिंग के लिए आते हैं. कुछ दिन के लिए अगर शहरी लाइफस्टाइल से दूर प्रकृति की गोद में बिताना चाहती हैं, तो नंदी हिल आपके लिए परफेक्ट है.

कैसे पहुंचे

फ्लाइट, ट्रेन या बस से आप बैंगलोर पहुंच सकती हैं. वहां से फिर आप बसों/टैक्सी के माध्यम से नंदी हिल पहुंच सकती हैं.

चार्ज : 1000 से 2500 में पैराग्लाइडिंग कर सकती हैं.

पावना, महाराष्ट्र

महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 65 किलोमीटर दूर पावना में पैराग्लाइडिंग करने का मजा ही अलग है. पहाड़ों से अपने पंख लगाकर जब आप पावना लेक के ऊपर उड़ान भरते हैं, तो नजारा ही कुछ और होता है.

कैसे पहुंचे

आप देश के किसी भी शहर से पहले मुंबई या पुणे पहुंच जाइए. उसके बाद आसानी से आप पावना पहुंच सकती हैं. ट्रेन, बस या फिर प्राइवेट टैक्सी करके भी आप वहां पहुंच सकती हैं.

चार्ज : 2000 से 4000 में पैराग्लाइडिंग कर सकती हैं.

मसूरी, उत्तराखंड

मसूरी को पहाड़ों की रानी कहा जाता है. आपको बतां दें कि यहां के नजारे सिर्फ दिलचस्प ही नहीं बल्कि यहां रोमांच भी है. पैराग्लाइडिंग का मजा यहां लिया जा सकता है.

कैसे पहुंचे :

आप बस, ट्रेन और फ्लाइट से मसूरी पहुंच सकती हैं. फ्लाइट से जाने के लिए आपको देहरादून के जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर जाना होगा.

चार्ज : 1000 से 2000 में पैराग्लाइडिंग कर सकती हैं.

क्यों होते हैं बौस नाराज : इन आदतों को समय रहते सुधारना बहुत जरूरी है

कई बार आप वर्कप्लेस पर कुछ ऐसे काम करते हैं जो देखने में आप को भले ही गलत नहीं लगते, पर उन का आप की छवि पर बुरा असर पड़ता है जबकि जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए जरूरी है कि आप की छवि उस संस्थान, कंपनी या फर्म के बौस के सामने शानदार हो, जहां आप काम करते हैं. इसलिए इन आदतों को समय रहते सुधारना बहुत जरूरी है.

सामान की चोरी

अभिनव को उस की कंपनी ने कस्टमर सर्विस डैस्क इंचार्ज के पद से हटा दिया. दरअसल, अभिनव कस्टमर्स को गिफ्ट करने के लिए बनाए गए छोटेछोटे आइटम्स को डैस्क पर रखने और उन्हें दे कर कस्टमर्स को खुश करने के बजाय उन्हें अपने घर ले जाता था. उस की यह आदत ज्यादा दिन तक छिपी न रह सकी और इस कारण उसे जौब से हाथ धोना पड़ा.

अगर आप औफिस की चीजों को गलत या निजी काम के लिए इस्तेमाल करते हैं, तो इस से आप की छवि खराब होती है, आप की छवि एक चोर की सी बन जाती है.

औफिस की हर चीज का सदुपयोग करें. औफिस के सामान का इस्तेमाल बताए गए तरीके से ही करें.

काम को गंभीरता से न लेना

नीरज घड़ी देख कर औफिस में घुसता और घड़ी देख कर यानी औफिस टाइम पूरा होते ही सारे काम छोड़ कर घर भागता. कई बार बौस किसी अधूरे काम को देख कर उसे फोन लगाते तो वह टका सा जवाब दे देता कि मैं समय पर निकला हूं. इस पर बौस कुढ़ कर कहते कि काम तो पूरा कर के जाते. अंत में बौस ने उसे नौकरी से निकाल दिया.

बहुत सारे काम एक निश्चित समय में पूरे करने जरूरी होते हैं या फिर कई बार बौस औफिस के अंत में पूरे दिन के काम पर आप से डिस्कस करना चाहते हैं और आप नजर नहीं आते, तो उन का मूड खराब हो जाता है.

अगर आप समय के पाबंद बनना चाहते हैं तो आप को काम का भी पाबंद बनना होगा. औफिस का टाइम पूरा होते ही औफिस से निकलना चाहते हैं तो आप को चाहिए कि साथ के साथ जरूरी काम निबटाते रहें. इस के अलावा आप को बौस को भी बताना चाहिए कि आप औफिस से निकल रहे हैं.

बौस की बात न सुनना

विशालाक्षी को कंपनी बोर्ड की एक महत्त्वपूर्ण मीटिंग में बुलाया गया था, पर वह मीटिंग की चर्चा और बौस की बातों पर गौर करने के बजाय अपने मोबाइल पर ही लगी हुई थी. बौस की नजर विशालाक्षी पर पड़ी तो वे बुरी तरह नाराज हो गए बौस की बातों को इग्नोर करेंगे तो आप को ही नुकसान होगा. इस से उन्हें लगेगा कि आप काम में रुचि नहीं लेते.

बौस कोई भी बात बोलें आप को हर काम बीच में छोड़ कर उन की बात सुननी चाहिए. अगर आप बौस की बातों पर ध्यान देते हैं, तो बौस आप से खुश रहेंगे और इस का फायदा आप को अवश्य मिलेगा. हो सकता है कि बौस आप की तरक्की कर दें और आप का वेतन भी बढ़ा दें.

जूनियर इंजीनियर मोनिका को एक काम के साथ दूसरा काम करने की आदत थी. एक बार उस ने फोन पर बात करतेकरते बौस को ऐसा ईमेल कर दिया, जिस में यारदोस्तों वाली भाषा का इस्तेमाल किया गया था. बौस ने न सिर्फ मोनिका को सब के सामने दुत्कारा बल्कि 7 दिन के लिए सस्पैंड भी कर दिया.

लापरवाही से काम करने पर हमेशा नुकसान ही उठाना पड़ता है. एकसाथ 2 काम करने पर आप किसी भी काम को सही तरह से नहीं कर पाते और दोनों काम बिगड़ जाते हैं.

इसलिए हमेशा एक बार में एक ही काम को अच्छी तरह, मन लगा कर पूरा करें. ऐसे में समय भले ही जरा ज्यादा लगेगा, पर गलती की आशंका नहीं रहेगी.

ये भी हैं नाराजगी के कारण

हर वक्त प्रौब्लम बताते हैं : यदि आप हमेशा बौस को बताते रहेंगे कि कौन सा कलीग समस्या पैदा कर रहा है, संसाधनों की कमी है, चुनौतियां ज्यादा हैं तो बौस आप से परेशान हो जाएंगे. बौस पर अपनी निर्भरता कम करें. दूसरों से सीखें कि किस तरह से समस्याओं को सुलझाया जा सकता है.

बहाने बनाते हैं : अगर किसी महत्त्वपूर्ण डैडलाइन या क्रिटिकल प्रोजैक्ट से पहले आप बौस को बताते हैं कि आप बीमार हैं तो बौस काफी निराश होते हैं. अगर आप के मैडिकल इश्यूज पूरी टीम से भी ज्यादा हैं तो यह आप के लिए खतरनाक है. बीमारी का बहाना न बनाएं. क्रिटिकल प्रोजैक्ट को किसी भी तरह से पूरा करें.

डिस्टर्ब करते हैं : क्या आप अपने बौस का जरूरत से ज्यादा समय लेते हैं? डिस्कशन और सलाह के लिए आप बारबार बौस को परेशान करते हैं तो इस आदत को बदलें. रूटीन अपडेट्स के लिए लिखित कम्युनिकेशन करें. यह न भूलें कि बौस बिजी इंसान हैं. ऐसे में उन्हें बारबार टोकना बुरा लगता है.

विश्वास करने योग्य नहीं : अगर आप का डाटा गलत है, होमवर्क पूरा नहीं है या डैडलाइन मिस करते हैं, तो बौस आप के आउटपुट पर शक करने लगेंगे. ऐसे में वे आप को महत्त्वपूर्ण टास्क नहीं सौपेंगे. बौस का विश्वास जीतने के लिए अपने काम का स्टैंडर्ड बढ़ाने की कोशिश करें.

बौस अगर आप को जरूरी कागज दें, तो उन्हें संभाल कर रखें. ऐसा न हो कि जरूरत पड़ने पर आप कागज खोजते रहें. अगर ऐसा हुआ तो बौस का आप पर से हमेशा के लिए भरोसा उठ जाएगा. बौस की दी गई जिम्मेदारी को सर्वोच्च प्राथमिकता दें. उन की बात को हलके में लेना भूल होगी. आप जितना ज्यादा व्यवस्थित रहेंगे, उतनी अच्छी छवि बनेगी.

सोशल नैटवर्किंग में लगे रहते हैं : अगर आप औफिस में लगातार फोन, फेसबुक या व्हाट्सऐप का इस्तेमाल करते हैं तो बौस की नजर में आप की छवि खराब हो सकती है. बौस को ये सब आदतें समय और संसाधन खराब करने वाली लगती हैं. काम के दौरान टीम से जुड़े रहें. काम के बाद ही सोशल नैटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल करें.

इन बातों से खुश रहेंगे बौस

टाइम मैनेजमैंट का फन सीखें : औफिस में बौस की नजर में अपनी अच्छी छवि बनाए रखने के लिए आप को चाहिए कि हर काम समय पर पूरा करें. इस के लिए आप को टाइम को मैनेज करने के लिए ‘टू डू लिस्ट’ बनानी चाहिए. इस से आप न केवल आसानी से अपने कार्यों पर निगाह रख सकेंगे बल्कि तनाव से भी बचेंगे.

अंदाज पर्सनल नहीं प्रोफैशनल : वर्कप्लेस पर आप अपने प्रोफैशन के बारे में जितने ज्यादा अपडेट रहेंगे, काम में उतनी ही सफलता मिलेगी. अपडेट रहने का तात्पर्य है कि आप अपनी फील्ड में होने वाले बदलावों के प्रति कितने जागरूक हैं. आप को कलीग्स के साथ गौसिप करने से बचना चाहिए. अगर आप प्रोफैशनल व्यवहार करेंगे, तो आप की छवि काफी अच्छी बनेगी.

ईमानदार रहें : अगर आप नौकरी में तरक्की चाहते हैं तो आप को अपने बौस को अपने बारे में बताते समय ईमानदार रहना चाहिए. अगर बौस ने आप से किसी विषय पर सलाह मांगी है तो पूरी ईमानदारी के साथ उन्हें सही सलाह देनी चाहिए.

संवाद की शैली : बौस के साथ उसी शैली में बात करें जो बौस को प्रभावित कर सके. यह भी ध्यान रखें कि वह ईमेल ज्यादा पसंद करते हैं या आमनेसामने बैठ कर बात करना. इस से आप उन के साथ बेहतर तरीके से तालमेल बैठा पाएंगे.

सौम्य और मृदुभाषी बनें : वर्कप्लेस पर सौम्य और मृदुभाषी बनें. किसी की भी शिकायत न करें. किसी का मजाक बनाने से भी बचें. अगर आप आसपास के लोगों का सम्मान करेंगे तो आप की छवि में निखार आएगा. अपने विचार किसी पर थोपने से बचें. बौस को बारबार परेशान करने से बचें. बौस से मिलने से पहले समय लें. बौस का दिल जीतने के लिए कड़ी मेहनत के साथसाथ अच्छा व्यवहार भी जरूरी है.

पहनावे का ध्यान : औफिस गए तो नाइट क्लब वाले कपड़ों से दूर रहें. इस बात का ध्यान रखें कि बौस या कलीग्स आप की ड्रैस से असहज महसूस न करें. ड्रैस फौर्मल और साफसुथरी हो. खुद को व्यवस्थित रखें. औफिस काम करने की जगह है, वहां खुद को फैशन आइकन बनाने की कोशिश न करें. आप को पता होना चाहिए कि पहनावे के बारे में आप के औफिस की पौलिसी क्या है.

झूठी हां में हां मिलाते हैं : अगर आप बौस की हर बात में हां कहते हैं और बहुत कम काम पूरे करते हैं, तो इस से आप की छवि को नुकसान हो सकता है. आप को खुद की सीमाओं के बारे में भी पता होना चाहिए. ऐसा न हो कि जोशजोश में बौस से ढेर सारा काम ले लें और उसे पूरा  करने में ही पसीने निकल जाएं. कई बार बौस आप पर जरूरत से ज्यादा भरोसा कर लेते हैं और आप उन की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाते.

नशे की आजादी, युवाओं की बरबादी : क्या हम इनके दम पर आगे बढ़ेंगे

शराब पीना एक बीमारी है. शराब पीने के लिए लोग आप को उकसाएंगे चाहे वे आप के दोस्त ही क्यों न हों. केरल का रहने वाला जैकब ऐसा ही एक व्यक्ति है. उस ने 9 वर्ष की छोटी सी उम्र से ही शराब पीनी शुरू कर दी थी. उस के पिता भी शराबी थे. पिताजी के पीने के बाद जब गिलास में कुछ शराब बच जाती थी, तो उसे वह गटक लेता था. इसी वजह से वह भी शराबी बन गया.

जब वह स्कूल में पढ़ता था तब सस्ती शराब पीया करता था. उस ने अपना बचपन शराब के नशे में ही बिताया और कालेज की पढ़ाई भी छोड़ दी. शराब की बुरी लत के कारण उसे अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा. 2 बार उस ने अपने हाथ की नसें काट कर आत्महत्या करने की भी कोशिश की, लेकिन बच गया. शराबी होने के कारण उस के सगेसंबंधी, रिश्तेनाते सब छूट गए. उस ने समाज व परिवार में अपना सम्मान खो दिया. यह कहानी उस राज्य केरल की है जहां साक्षरता सब से ज्यादा है. सोचिए, अन्य राज्यों का क्या हाल होगा.

शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो हमें अच्छा इंसान बनाता है. यह बात उस लड़की पर सटीक बैठती है जो अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए गांव में ही शराब की बोतलों में पैट्रोल बेचती है. उसे यह परवा नहीं कि लोग क्या कहेंगे. उसे तो बस, अधिकारी बनने की चाह है. इसलिए वह ऐसा करने को मजबूर है. फिरोजाबाद की एक लड़की ठेले पर बैठ कर बड़ी तल्लीनता से किताब पढ़ती रहती है. उस के पास रखी शराब जैसी दिखने वाली भरी बोतल ने लोगों को अचंभे में डाल रखा है.

काफी पूछने पर उस ने बताया कि उसे पढ़ने के लिए इस का सहारा लेना पड़ता है. राहगीरों को बीच रास्ते में पैट्रोल खत्म होने पर कोसों दूर मोटरसाइकिल नहीं घसीटनी पड़ती. पढ़ाई के प्रति ऐसी लगन बहुत कम छात्रों में देखने को मिलती है.

नशाखोरी में मस्त युवा

हमें अपनी युवाशक्ति पर गर्व है, लेकिन सचाई तो कुछ और ही है. इस समय भारत दुनिया में नशाखोरी के मामले में दूसरे स्थान पर है. यहां 10 करोड़ 80 लाख युवा धूम्रपान की गिरफ्त में हैं. देश में प्रतिवर्ष धूम्रपान की वजह से 10 लाख लोगों की मौत हो रही है. यह आंकड़ा देश में होने वाली कुल मौतों का 10 प्रतिशत है.

देश में पिछले डेढ़ दशक में सिगरेट पीने वालों की तादाद काफी बढ़ी है. सिगरेट पीने के मामले में आज भारत पूरी दुनिया में दूसरे स्थान पर है. वह सिर्फ चीन से पीछे है, जिस रफ्तार से भारतीय युवाओं में सिगरेट पीने का चलन बढ़ रहा है, अगर यही गति बनी रही तो जल्द ही वह चीन को भी पीछे छोड़ देगा.

तबाह होती सभ्यताएं

नशा हमेशा ही विनाशकारी रहा है. नशे के चक्कर में सभ्यता और संस्कृतियां तबाह हो गईं. एक जमाने में चीन भी अफीमचियों का देश कहा जाने लगा था. उस से उबरने में उसे दशकों लगे. आज भी कई देश हैं जो अपने शत्रु देशों से निबटने के लिए वहां के नागरिकों में नशे की लत डालने की कोशिश करते रहते हैं. हमारी सरकार भी नशाखोरी में हमसाज रहती है. राज्यों के आबकारी विभाग एक तरफ नशे को बढ़ावा देने में लगे रहते हैं तो दूसरी तरफ मद्यनिषेध विभाग इसे रोकने में. यह कैसा अंतर्विरोध और विरोधाभास है?

नशा कोई भी हो, वह एक मीठा जहर है. नशे को ले कर हमारी सरकारें दोहरा मापदंड अपनाती हैं. एक तरफ तो नशीली वस्तुओं का जोरशोर से उत्पादन और बिक्री हो रही है, वहीं दूसरी तरफ उस का सेवन न करने के खर्चीले अभियान चलाए जा रहे हैं.

लाखोंकरोड़ों रुपए इन विज्ञापनों में फूंके जा रहे हैं. पंजाब राज्य आज नशाखोरी की वजह से ही चर्चा का विषय बना हुआ है. राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार, पिछले 10 साल में जहरीली शराब पीने से वहां 11,032 लोगों की मौत हो चुकी है, फिर भी सरकार आंखें बंद किए रहती है.

अभिव्यक्ति की आजादी पर हावी

फिल्मों में शराब पीते हीरो दिखाए जाते हैं. इस का बुरा असर युवाओं पर पड़ रहा है. वे भी फिल्मी स्टाइल में आप को शराब पीते दिख जाएंगे. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस बात पर जोर दिया है कि फिल्मों में नायकनायिकाओं द्वारा शराब पीते दिखाने से दर्शकों की मानसिकता पर इस का असर पड़ता है. लिहाजा, इसे प्रतिबंधित किया जाए.

नशे की वस्तुओं के पैकेटों पर दी जाने वाली स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी, गले और मुंह के कैंसर के खौफनाक चित्र और तमाम तरह के विज्ञापन किसी भी नशे को कम करने के लिए रत्तीभर भी भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं. ऐसी कोशिशें हास्यास्पद हो कर रह गई हैं.

सरकार की सुस्ती

पूरे पंजाब को नशे ने अपनी गिरफ्त में लिया है, वहां हर तरफ नशा पसरा हुआ है. मादक द्रव्यों ने युवाओं को जकड़ रखा है. अफीम, मौरफीन और हेरोइन जैसे नशीले पदार्थों ने वहां अपना जाल बिछाया हुआ है. पंजाब में सब से ज्यादा हेरोइन का इस्तेमाल होता है. पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान से आने वाली हेरोइन की खेप आसानी से यहां पहुंचती है.

नशे की भूख पर वहां तस्करों की पै नजर रहती है. वे पहले पंजाब में ही अपना बाजार तलाशते हैं. हेरोइन की तस्करी में लगे लोगों को पंजाब एक बड़ा बाजार मिल गया है. इस का नशा तो जल्दी लोगों को आदी बनाता है. शरीर के हर हिस्से पर इस का कुप्रभाव पड़ता है. पंजाब जैसे खुशहाल प्रदेश के लिए इस से बड़ा अभिशाप क्या होगा कि वहां के युवा हेरोइन जैसे खतरनाक नशे की चपेट में हैं.

अब प्रश्न यह है कि क्या सचमुच सरकार चाहती है कि लोग सिगरेटशराब का सेवन न करें? अगर हां, तो फिर वह इन चीजों के उत्पादन पर रोक क्यों नहीं लगा रही है? जनहित में जारी तमाम विज्ञापन आज ढोंग बन कर क्यों रह गए हैं? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अकसर अपने भाषणों में युवाओं के भविष्य का जिक्र करते हैं. क्या नशाखोरी से उन का भविष्य उज्ज्वल होगा?

जायरा से छेड़खानी को बताया पब्लिसिटी स्टंट, तो पत्रकार पर भड़कीं सोनम कपूर

‘दंगल’ स्टार जायरा वसीम के इंस्‍टाग्राम वीडियो पोस्‍ट करने के बाद अब सोशल मीडिया पर मामले में खूब चर्चा हो रही है. इसके चलते ज्यादा से ज्यादा लोग जायरा के समर्थन में खुलकर सामने आ रहे हैं.

तो वहीं दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर खुद को पूर्व पत्रकार बताने वाली जागृति शुक्‍ला ने इसे ‘पब्लिसिटी स्‍टंट’ बताया. इसको लेकर सोनम कपूर ने पत्रकार के खिलाफ आवाज बुलंद की है. सोनम जागृति द्वारा किए गए ट्वीट की घोर निंदा करती हैं.

सोनम जायरा के खिलाफ किए गए ट्वीट का जवाब देते हुए जागृति शुक्ला के लिए लिखती हैं कि यह बहुत ही घिनौना है. यह महिला के नाम पर धब्बा हैं, शर्मनाक. इसके बाद ट्विटर यूजर्स भी सोनम के इस जवाब पर सहमति जताते हुए नजर आते हैं.

इस दौरान कुछ ट्विटर यूजर्स सोनम की तारीफ करते नजर आए. तो कुछ लोगों ने सोनम को पत्रकार के खिलाफ इस बात के लिए आवाज उठाने को लेकर उन्हें शुक्रिया कहा.

शहला राशिद नाम की एक ट्वीटर यूजर कहती हैं, ‘शुक्रिया कि आपने इनके खिलाफ आवाज उठाई सोनम.’ बता दें, ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ एक्ट्रेस जायरा वसीम के साथ विमान में छेड़खानी की घटना हुई थी. इसके बाद जायरा ने सोशल मीडिया पर इस घटना को जगजाहिर किया था.

इसके बाद सोशल मीडिया प्लैटफौर्म पर इसे लेकर खूब बातें हुईं. कई ट्वीट्स में जायरा के रवैये पर भी सवाल उठाए गए. इसके बाद जब लोगों ने जागृति को ट्रोल करना शुरू किया तो वे नाराज हो गईं.

सोनम कपूर के अलावा स्‍वरा भास्‍कर जैसी अभिनेत्रियों ने भी जागृति के ट्वीट्स की निंदा की. हालांकि जागृति अपने स्‍टैंड पर कायम रहीं और लगातार इस पूरी घटना को मिल रही कवरेज पर ट्वीट करती रहीं.

सुरक्षा की गारंटी दें तो करूं नाम का खुलासा : रिचा चड्ढा

सोशल मीडिया पर महिला हिंसा के खिलाफ एक कैंपेन चला. पूरी दुनिया में चले इस कैंपेन का नाम था #MeToo. जिसने पूरी दुनिया की महिलाओं को साथ ला खड़ा कर दिया. इस कैंपेन का असर इतना हुआ कि हाल ही में प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन ने #MeToo को 2017 का अपना ‘पर्सन आफ द ईयर’ चुना. टाइम ने प्रतिष्ठित सामाजिक लोगों द्वारा अतीत में किये गये यौन प्रताड़ना, यौन हमला और बलात्कार आदि का खुलासा करने के लिए सामने आयी महिलाओं को ‘साइलेंस ब्रेकर्स’ का दर्जा दिया.

उल्लेखनीय है कि कई प्रतिष्ठित अभिनेत्रियों ने इस अभियान के जरिए हौलीवुड के बड़े निर्माता हार्वे वींसटाइन पर यौन शोषण के आरोप लगाये थे. उसके बाद ‘मी टू’ हैशटैग के साथ कई बौलीवुड अभिनेत्रियों सहित दुनिया भर की आम महिलाओं ने भी उनके साथ हुए यौन शोषण की घटना का खुलासा किया था.

जिसके बाद एक्ट्रेस रिचा चड्ढा ने भी कुछ समय पहले यौन उत्पीड़न पर एक ब्लौग पोस्ट कर बौलीवुड में होने वाले यौन शोषण के बारे में अपने विचार रखें. एक्ट्रेस रिचा चड्ढा का मानना है कि बौलीवुड में यौन शोषण पर को लेकर आवाज बुलन्द होने में वक्त लगेगा क्योंकि यहां पर इस विषय पर लोग खुलकर नहीं बोलते और अगर बौलीवुड में यौन उत्पीड़न की बात होगी तो यह इंडस्ट्री अपने कई हीरो को खो देगी.

इस पोस्ट के बाद कई लोगों ने उनपर सवाल खड़े करते हुए कहा कि आप क्यों नहीं उनका नाम लेतीं?

जिसके जवाब में रिचा ने एक और पोस्ट करते हुए कहा कि अगर आप मुझे जिंदगी भर पेंशन देंगे, मेरी और मेरे परिवार की सुरक्षा का ध्यान रखेंगे और वादा करेंगे कि मुझे फिल्मों और टीवी, जहां भी मैं काम करना चाहूं, वहां पर काम मिलता रहेगा तो अभी के अभी मैं उनका नाम लेने को तैयार हूं. सिर्फ मैं ही नहीं, बल्कि दूसरे भी ऐसा करेंगे. लेकिन कोई है जो ऐसा करेगा?

उन्होंने आगे कहा कि हौलीवुड में एक्टर्स को रायल्टी मिलती है. उनमें काम खोने का डर नहीं होता. लेकिन बौलीवुड में ऐसा नहीं है. फिल्म इंडस्ट्री में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे पीड़ितों को सुरक्षा मिले इसलिए चुप रहने के पीछे एक कारण ये भी है.

रिचा ने कहा- जब भी कोई इस बारे में बात करता है तो लोग कहते हैं कि नाम लो. अगर मीडिया को पता है कि यह सब कौन कर रहा है तो वो क्यों नहीं नाम लेते? इंडस्ट्री की व्यवस्था और ढ़ाचे को बदलना होगा. इस हालत में कोई भी जोखिम नहीं लेगा. उन्होंने कहा कि कभी-कभी मैं नकारात्मकता से दूर रहने के लिए न्यूज देखना बंद कर देती हूं.

उन्होंने आगे कहा- मैं वो बातें कहती हूं जो मेरे दिल के करीब होती हैं. मुझे लगता है कि मैं भावुक हूं. दुनिया में घट रही घटनाएं मुझ पर असर डालती हैं. उन्होंने आगे कहा कि वो लोग बहुत बहादुर हैं, जो यह खुलेआम कहते हैं कि बौलीवुड में यौन उत्पीड़न होता है, लेकिन कोई किसी का नाम लेकर यह नहीं कह सकता, क्योंकि इसके बाद काम मिलने की गारंटी नहीं होती.

वियतनामी चिकन रेसिपी

कई लोग सोचते हैं कि वियतनामी व्‍यंजन खाने में तीखे लगते हैं या फिर वे चाइनीज फूड की तरह होते हैं. अगर वियतनामी कुजीन की बात की जाए तो इसमें चिकन एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा रखता है. इसके अलावा ताजा फल और सब्‍जियां काफी ज्‍यादा यूज की जाती हैं. यहा पर चिकन, बीफ या पॉर्क आदि वाली डिश को फ्लेवर देने के लिये फिश सॉस का भी काफी प्रयोग किया जाता है. आज हम आपको वियतनाम की डिश बनाना सिखाएंगे, जो कि काफी टेस्‍टी हैं और आपको यह जरुर बनाना चाहिये. आप इन रेसिपीज को चावल के साथ सर्व कर सकती हैं.

सामग्री

  • 1 पूरा चिकन, कटा हुआ
  • 2 पिसी अलसुन
  • 2 चम्‍मच कनोला ऑइल
  • 1 चम्‍मच शक्‍कर
  • 1 चम्‍मच फिश सॉस
  • 1कप लो सॉल्‍ट सोया सॉस
  • 2 कच्‍चे केले, स्‍लाइस किये हुए
  • 2 तिरछे कटे हुए लेमनग्रास के डंठल
  • 4 आधा कटा हुआ ताजा अनानास

विधि

  1. सोया सॉस को लेमनग्रास, फिश सॉस, शक्‍कर, लहसुन और तेल के साथ मिक्‍स करें.
  2. फिर इसमें चिकन भी मिक्‍स करें और फ्रिज में इसको ढंक कर कम से कम 3 घंटे के लिये रख दें.
  3. उसके बाद चिकन वाले कटोरे को निकाल कर उसमें केले और अनानास मिलाएं.
  4. अब इसे कवर कर दें और 30 मिनट के लिये 350 ड्रिगी फैरनहाइट पर पकाएं.
  5. उसके बाद मीट को किसी कल्‍छुल से चला कर दुबारा 30 मिनट के लिये पकाएं.
  6. आप इसे छ: लोगों को परोस सकते हैं और यह चाइनीज़ नूडल्‍स और राइस के साथ खाने में बहुत ही अच्‍छा लगता है.

हेयर ऐक्सटैंशन से आप भी पा सकती हैं मनचाहा लुक

नैचुरल बालों के साथ दूसरे बालों को जोड़ने की कला को हेयर ऐक्सटैंशन कहते हैं. यह कला सालों पुरानी है, जिस का प्रयोग बालों की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए किया जाता रहा है. इस प्रक्रिया में न तो दर्द होता है और न ही इस का कोई साइड इफैक्ट है.

क्यों किया जाता हेयर ऐक्सटैंशन

लंबाई बढ़ाने के लिए: बालों की लैंथ बढ़ाने के लिए पतलीपतली ऐक्सटैंशन को नैप यानी गरदन के पीछे के भाग पर लगवाएं. ऐसा करने से बाल नीचे से लंबे दिखने लगेंगे.

वौल्यूम बढ़ाने के लिए: बालों में अगर वौल्यूम परफैक्ट हो तो वे सिर्फ सुंदर ही नहीं, बल्कि हैल्दी भी नजर आते हैं. बालों से मैचिंग क्लिपऔन को कई जगह क्लिप कर के इन का वौल्यूम बढ़ाया जा सकता है.

कलर ऐड करने के लिए: ग्लैमरस लुक की चाहत है, लेकिन कलर करवाने से डर रही हैं, तो हेयर ऐक्सटैंशन एक परफैक्ट समाधान है. बालों के बीच में अपनी पसंदीदा या फिर ड्रैस से मैचिंग अथवा ट्रैंड के मुताबिक किसी भी हौट कलर को ऐड कर के खुद को ग्लैमरस लुक दे सकती हैं.

हेयर ऐक्सटैंशन के प्रकार

सिंथैटिक हेयर ऐक्सटैंशन: सिंथैटिक हेयर्स से बने ऐक्सटैंशन ज्यादातर क्लिपऔन फौर्म में मिलते हैं. ये कई कलर्स जैसे रैड, ब्लू, यलो, बू्रनेट, ब्राउन, पिंक, पर्पल आदि में मिलते हैं. आप अपनी पसंद के अनुसार इन का इस्तेमाल कर सकती हैं. जिन्हें बालों को कलर करना पसंद है, लेकिन कैमिकल के डर से कलर नहीं करवातीं, उन के लिए सिंथैटिक हेयर ऐक्सटैंशन परफैक्ट होते हैं.

ये ऐक्सटैंशन अस्थाई होते हैं, जिन्हें जब चाहें बालों के बीच में क्लिप की मदद से लगा सकती हैं और जब चाहें तब निकाल सकती हैं. इन ऐक्सटैंशन को आप साफ रखने के लिए वाश तो कर ही सकती हैं लेकिन सुखाने के लिए ब्लो ड्रायर या स्टाइलिंग के लिए कर्ल या स्ट्रेट नहीं कर सकतीं. नैचुरल हवा में सुखा कर इन ऐक्सटैंशन का इस्तेमाल कर सकती हैं.

ह्यूमन हेयर ऐक्सटैंशन: इन ऐक्सटैंशन के जरीए बालों में स्थाई हेयर ऐक्सटैंशन किए जा सकते हैं. इस प्रक्रिया में ऐक्सपर्ट द्वारा बालों को बालों से अटैच किया जाता है. ये बालों में ग्लू, सियू (सिल कर), टेप या फिर प्लास्टिक बीड्स के जरीए लगाए जाते हैं और कई महीनों तक टिके रहते हैं.

ह्यूमन हेयर ऐक्सटैंशन को जब चाहें तब वाश/कलर/ब्लो ड्रायर/कर्ल आदि कर सकती हैं. इसीलिए ये सिंथैटिक हेयर्स की तुलना में महंगे होते हैं. इन की देखभाल के लिए इन बालों की औयलिंग या फिर किसी अच्छे हेयर सैलून से हेयर स्पा भी करवा सकती हैं.

-भारती तनेजा,

डायरैक्टर औफ एल्प्स ब्यूटी  क्लीनिक ऐंड ऐकैडमी

जिंदगी सैक्स वर्कर्स की : इनकी असलियत रोंगटे खड़े कर देगी

सांवली रंगत और औसत कदकाठी वाली नीलू (बदला हुआ नाम) का जन्म महाराष्ट्र के पुसद शहर में हुआ था. 8 भाईबहनों में एक नीलू का परिवार काफी गरीबी में गुजरबसर करता था. 13 साल की छोटी सी उम्र में उस की शादी कर दी गई. उस का पति शराबी निकला. रोज मारपीट करता.

नीलू ने 2-3 सालों तक सबकुछ सहा. इस बीच वह गर्भवती हो गई. मगर इस नाजुक स्थिति में भी किसी ने उस की सहायता नहीं की. उलटा, पति द्वारा मारपीट किया जाना जारी रहा. आजिज आ कर वह घर से भाग गई. इस दौरान उस की मुलाकात एक महिला से हुई जो उसे घरेलू काम दिलाने के बहाने नांदेड़ ले गई.

नीलू काम की चाह में नांदेड़ चली गई. बाद में उसे पता चला कि उस महिला ने उसे बेच दिया है. रोज उस के पास ग्राहक भेजे जाते. इस तरह, परिस्थितिवश, वह एक सैक्सवर्कर बना दी गई.

एक साल बाद वहां के दलाल ने उसे राजस्थान के बीकानेर शहर में ला कर बेच दिया. करीब 6 महीने तक बीकानेर में रहने के बाद वह वापस भाग कर पुसद आ गई.

फिलहाल नीलू पुसद में भाड़े के घर में अपने पार्टनर के साथ रह रही है. उस की उम्र अब 24 साल है और बेटा 8 साल का हो चुका है. वह अपने बच्चे को पढ़ा रही है, साथ ही सैक्सवर्कर का काम भी कर रही है. वह अब इस बात की परवा नहीं करती कि समाज क्या कहेगा.

कुछ ऐसी ही कहानी सविता की भी है. सविता की शादी कम उम्र में हो गई थी. जल्दी ही उस की 2 बेटियां भी पैदा हुईं मगर वैवाहिक जीवन ज्यादा चल नहीं सका. सविता का तलाक हो गया. वह अपनी दोनों बेटियों के साथ अलग रहने लगी. इस बीच, उस की छोटी बेटी ने गलती से चूहे मारने की दवा पी ली.

सविता तुरंत उसे अस्पताल ले कर गई. डाक्टरों ने कहा कि बच्ची को आईसीयू में रखना होगा और कुल खर्च 16 हजार रुपए से जयादा आएगा.

यह बात करीब 14-15 वर्षों पहले की है. सविता के पास उस वक्त बिलकुल भी रुपए नहीं थे. वह बहुत परेशान हो गई कि इतने पैसे कहां से आएंगे. तब उस की एक सहेली उसे रुपए देने को तैयार हो गई. वह सहेली एक सैक्सवर्कर थी. उस ने शर्त रखी थी कि सविता को भी इस पेशे में आना होगा. सविता के पास कोई और चारा नहीं था. सहेली से रुपए ले कर उस ने बेटी का इलाज कराया. बाद में स्वयं एक सैक्सवर्कर बन गई. सहेली उस के पास ग्राहक भेजने लगी.

इन दोनों की तरह भारत में कितनी ही ऐसी महिलाएं हैं जो इस पेशे से जुड़ी हैं. आंकड़ों की मानें तो अकेले भारत में 1.2 करोड़ से ज्यादा सैक्सवर्कर हैं. सैक्सवर्कर या वेश्या, यानी वह स्त्री जो अपने शरीर का सौदा करती है. सामान्यतया हम वेश्याओं को बहुत ही नीची नजरों से देखते हैं. इस पेशे को समाज के लिए कलंक और इस से जुड़ी महिलाओं को तुच्छ समझते हैं.

इतिहास पुराना है

देखा जाए तो भारत में वेश्यावृत्ति का इतिहास बहुत पुराना है. बहुत पहले भारत के कुछ हिस्सों में यह पेशा दरबारी नर्तकी कहलाता था. ये ऐसी महिलाएं होती थीं जो शिक्षित होने के साथसाथ नृत्य, संगीत, राजनीति, साहित्य जैसी विभिन्न विधाओं में भी पारंगत होती थीं. ये पुरुषों को रिझाने और उन का मन बहलाने का काम करती थीं. इस में सैक्स इन्वौल्व हो भी सकता था और नहीं भी. ये महिलाएं राजनीति, सेना, प्रशासन से जुड़े अहम फैसलों को भी प्रभावित करती थीं.

मुगलजान भी एक दरबार में थी जो गायिका और लेखिका भी थी. वह मिर्जा गालिब जैसे मशहूर कवि की कविताओं को संगीत देती थी. बेगम सामरा भी एक दरबारी नर्तकी थी, जिस ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर शासन भी किया. इसी तरह मारन सरकार, जो एक नर्तकी थी, 1802 में राजा रणजीत सिंह की रानी बनी. उसे लोगों ने बहुत इज्जत दी.

मुगल शासनकाल में भी ऐसी महिलाएं थीं. तब इन का नाम तवायफ होता था. तवायफें आमतौर पर नृत्य कर के पुरुषों का मनोरंजन करतीं. शारीरिक जुड़ाव जरूरी नहीं था. मुगल बादशाहों, जमींदारों, अमीरों और दरबारियों ने इन्हें संरक्षण दिया था. राजा जहांगीर के हरम में 6 हजार से ज्यादा तवायफें थीं जिन्हें धन, सत्ता और शक्ति सब हासिल थे.

इस से पहले मंदिरों में देवदासी प्रथा थी. यह अभी भी चल रही है. दिल्ली में एक जानामाना रैडलाइट एरिया जीबी रोड है. सैक्सवर्कर महिलाओं के कारण यह इलाका सदैव ग्राहकों व दलालों से भरा होता है. मध्यवर्ग व उच्चवर्ग के अधेड़ और कमउम्र लड़के भी बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं. दिल्ली के खास उच्चवर्ग के सदस्यों को यहां के मशहूर कोठा नंबर 64 के आसपास चक्कर लगाते हुए अकसर देखा जा सकता है.

मुंबई का कामाठीपुरा, कोलकाता का सोनागाछी, ग्वालियर का रेशमपुरा, पुणे का पैठ आदि भी बदनाम इलाके हैं. इन में ज्यादातर लड़कियां नेपाल और बंगलादेश से ट्रैफिकिंग द्वारा लाई जाती हैं. महज 10-12 साल की आयु में इन्हें मुंबई, कोलकाता आदि के वेश्यालयों में बेच दिया जाता है. ये बुरी तरह इस चंगुल में फंस जाती हैं. इन का निकलना कठिन हो जाता है.

भारत में वेश्यावृत्ति के कई रूप हैं जिन में प्रमुख हैं :

  • स्ट्रीट प्रौस्टिट्यूट
  • बार डांसर्स
  • कौल गर्ल्स
  • रिलीजियस प्रौस्टिट्यूट
  • एस्कौर्ट गर्ल्स
  • रोड साइड ब्रोथेल
  • चाइल्ड प्रौस्टिट्यूट

हमारे देश का कानून वेश्यावृत्ति पर शिकंजा कसता है. इस से जुड़े और इसे चलाने व संरक्षण देने वालों को सजा दिए जान का प्रावधान है. होटल, लौज के या दूसरे कमरों को खुलेआम वेश्यालय के रूप में प्रयोग करने वालों को कानूनी गिरफ्त में लिया जा सकता है.

ऐसी महिलाओं का जीवन आसान नहीं होता. अपने पेशे की वजह से इन्हें कई तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है, जिन में सब से प्रमुख एचआईवी यानी एड्स है. सविता बताती है कि अकसर ग्राहक सुरक्षा का उपाय नहीं करते, जिस से इस तरह की बीमारियों के होने का खौफ बना रहता है.

इस के अलावा सर्वाइकल कैंसर, साइकोलौजिकल डिस्और्डर्स आदि होने के खतरे बने रहते हैं.

नाइंसाफी

सैक्सवर्कर्स एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही अकसर तथाकथित सभ्य घरानों के लोग अपनी भौंहें चढ़ा लेते हैं. इस काम से जुड़ी महिलाओं को लोग नीची नजरों से देखते हैं. वे इन का साया भी अपने घर क्या, महल्ले तक से दूर रखना चाहते हैं. पर अफसोस कि इन्हीं सभ्य घराने के पुरुष यदि इन महिलाओं के दर पर जाते हैं तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होती.

स्वस्ति संस्था की रीजनल औफिसर गिरिजा ठाकुर कहती हैं, ‘‘पुरुष वही काम करे तो उस के चरित्र पर कलंक नहीं लगता मगर स्त्री करे तो उसे कुलटा करार दिया जाता है. धर्म भी उन की इस स्थिति का जिम्मेदार है. धर्मगुरु नहीं चाहते कि वे वापस समाज में स्थान पाएं. धर्म ने लोगों को गुलाम बनाया हुआ है ताकि लोग धर्मगुरुओं से डरें. स्त्री यदि मजबूरीवश इस काम को अपना व्यवसाय बनाती है तो इतनी हायतोबा क्यों?’’

सामाजिक कार्यकर्ता अनुजा कपूर कहती हैं, ‘‘वेश्याएं भी इंसान हैं, इन्हें भी जीने का हक है. मगर समाज इन पर ‘गंदी औरत’ का तमगा लगा देता है और इन्हें जलालतभरी नजरों से देखता है. कोई वेश्या अस्पताल जाती है तो इस के इलाज की सही व्यवस्था नहीं हो पाती. इन के साथ अन्याय होता है. कोई इन के पैसे छीनता है तो ये महिलाएं कहीं जा कर गुहार नहीं लगा सकतीं. सरकार द्वारा इन के पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की जाती. इस वजह से इन्हें इसी व्यवसाय को करते रहना पड़ता है. यदि सनी लियोनी को समाज पलकों पर बिठा सकता है तो दूसरी महिलाओं ने क्या दोष किया है? सब को मौका मिलना चाहिए अपनी जिंदगी संवारने का. समाज को इन्हें सहजरूप से स्वीकार करना चाहिए.’’

वेश्यावृत्ति दुनिया के सब से पुराने पेशों में से एक है. बंगलादेश समेत ऐसी बहुत से देश हैं जहां इसे एक काम का दरजा दिया गया और इसे कानूनी माना गया है.

बंगलादेश की राजधानी ढाका में टैंजिल नामक इलाके में कांडापारे नामक बाजार है. यह वहां का सब से पुराना और बड़ा वेश्यालय है. पिछले 200 सालों से यहां इस तरह का काम होता रहा है. 2014 में इसे नष्ट कर दिया गया था, मगर स्थानीय एनजीओ की सहायता से इसे फिर से शुरू किया गया है.

हाल ही में एक फोटो जर्नलिस्ट वहां घूम कर आई और वहां की जिंदगी का आंखोंदेखा हाल बयान किया. अमूमन 12-14 वर्षों की उम्र की अवस्था में लड़कियां इस पेशे में आती हैं. उस वक्त वे बंधुआ होती हैं. उन्हें किसी तरह का अधिकार नहीं होता. उन बंधुआ लड़कियों की एक मालकिन होती है. वे अपनी मालकिन की गुलाम होती हैं. कम से कम 5 सालों तक उन्हें बाहर जाने की अनुमति नहीं होती, न ही उन्हें अपने काम का कोई पारिश्रमिक ही मिलता है.

जब वे अपना कर्ज चुका लेती हैं तो स्वतंत्ररूप से अपना काम कर पाती हैं. उन्हें हक मिल जाता है कि वे अपने रुपए अपने पास रख सकें या फिर किसी ग्राहक से न कह सकें.

ऐसा ही कुछ हाल भारत में भी है. शुरुआत के कई साल यहां भी सैक्सवर्कर का अपनी कमाई पर हक नहीं होता. वह एक गुलाम होती है.

मलाल क्यों

नीलू बताती है, ‘‘शुरुआत में एक ग्राहक से उसे 100 रुपए मिलते थे. इस में से 50 रुपए ही उस के होते. बाकी के 50 रुपए दलाल को देने पड़ते थे. अब उसे इस बात का डर नहीं लगता कि लोग क्या कहेंगे. जब वह मजबूर थी तो किसी ने उस का साथ नहीं दिया. सब ने अपना स्वार्थ देखा. अब भला

वह किसी की परवा क्यों करे? जिसे जो सोचना है, सोचे, वह अपना काम कर रही है, ताकि अपना व बच्चे का पेट पाल सके और बच्चे को शिक्षा दिला सके.’’

यह कहानी सिर्फ नीलू की नहीं, बल्कि ऐसी कितनी ही सैक्सवर्कर्स की है जो परिस्थितिवश आजीविका के लिए इस क्षेत्र में आई हैं. मगर इस बात का अब उन्हें मलाल नहीं. हां, वे जमाने के नजरिए और अपने साथ हो रही ज्यादतियों से परेशान जरूर रहती हैं.

सवाल यह भी उठता है कि इन महिलाओं को खुलेआम किसी को अपना पेशा बताने का हक क्यों नहीं? जिस तरह वकील और डाक्टर अपने नाम के साथ पेशा लिख सकते हैं, उसी तरह ये महिलाएं अपना पेशा बिना डरे, उजागर क्यों नहीं कर सकतीं?

पुलिस की ज्यादती

सैक्सवर्कर सविता कहती है, ‘‘हम मोबाइल के जरिए ग्राहकों से संपर्क करते हैं. कम उम्र में मैं 2-3 हजार रुपए तक कमा लेती थी. इन्हीं पैसों से मैं ने अपनी दोनों बेटियों की शादी अच्छे घरों में कर दी. मगर अब मेरा धंधा बहुत मंदा पड़ गया है. उम्र बढ़ने के साथसाथ काम घटता गया. उस पर ज्यादतियों का सामना भी करना पड़ता है. पुलिस अकसर हमारे अड्डों पर रेड डालती है. अक्तूबर 2016 में हमारे लौज पर पुलिस ने रेड डाली. मैं पकड़ी गई और करीब 22 दिनों तक पुलिस कस्टडी में रही. अब मुझे इस काम में डर लगने लगा है. ग्राहकों की संख्या भी घटने लगी है.’’

दरअसल, उम्र बढ़ने के साथ इन महिलाओं का शरीर गिरने लगता है और चेहरे पर भी पहली जैसी रौनक नहीं रह जाती. ऐसे में इन की कमाई कम हो जाती है. इन्हें कई बार साथ रहने के लिए

पार्टनर मिल जाता है मगर शादी नहीं होती. ऐसे में उम्र बढ़ने के बाद ये किसी पुरुष पर आश्रित रहना नहीं चाहतीं. इसलिए समय रहते ही वे अपना घर और बच्चों से जुड़े दायित्त्व पूरे कर लेना चाहती हैं.

जिंदगी बहुत छोटी है और यह अपने वश में भी नहीं. तो फिर जमाने की परवा क्यों की जाए. सभी को हक है कि वे अपने तरीके से जिएं. वक्त और परिस्थितियों ने जिन्हें जिस मुकाम पर खड़ा किया है, वहीं से उन्हें अपनी जिंदगी के रास्ते ढूंढ़ने होते हैं.

कोई भी पेशा गंदा नहीं होता और यदि होता है तो स्त्रीपुरुष दोनों के लिए उस के मापदंड एक होने चाहिए.

सुरक्षित भविष्य के लिए मार्गदर्शन जरूरी

कुछ संस्थाएं हैं जो जिस्मफरोशी करने वाली महिलाओं की सहायता करती हैं. स्वस्ति एक ऐसी ही संस्था है जो फैक्टरी वर्कर्स, सैक्सवर्कर्स और शहरी कमजोर तबके के लोगों के स्वास्थ्य व बेहतर जिंदगी के लिए काम करती है.

इस संस्था से जुड़े रोहन देशपांडे कहते हैं, ‘‘हम अपने प्रोग्राम के तहत सैक्सवर्कर्स को वित्तीय ज्ञान और सुरक्षा देते हैं. हम उन्हें पैसों को खर्च करने और उन्हें भविष्य को सुरक्षित रखने से जुड़ी वित्तीय योजनाओं की जानकारी देते हैं ताकि वे अपने पैसों का समुचित प्रयोग कर सकें. उन्हें अपने आईडैंटिटी कार्ड्स जैसे पैन कार्ड, आधार कार्ड आदि बनवाने में भी सहायता करते हैं.

‘‘यदि कोई सैक्सवर्कर उम्रदराज हो गई है या वह अब यह काम नहीं करना चाहती तो हम उसे वैकल्पिक आय के स्रोतों की जानकारी देते हैं. जरूरी हुआ तो ट्रेनिंग भी दी जाती है. हमारे पास सैल्फहैल्थ गु्रप हैं जिन के जरिए उन्हें आसानी से लोन मिल जाता है और सैक्सवर्कर्स छोटेछोटे बिजनैस की शुरुआत भी कर सकती हैं.’’

कार्तिक व्रत का अंधविश्वास और पापमुक्ति का नुसखा

वैसे तो हिंदुओं के बहुत से देवता हैं पर इन में ब्रह्मा, विष्णु और महेश प्रमुख हैं. इन्हीं के नाम से धर्म के धंधेबाज अपनी दुकानदारी चलाते हैं. ब्रह्मा की स्थिति घर के उस दाऊ जैसी है जिस के पैर तो सब पड़ते हैं पर महत्त्व कोई नहीं देता है. इस के पुत्रों की लिस्ट बहुत लंबी है. विष्णु प्रमुख देव है. इसी को भगवान, ईश्वर, परमात्मा, परमेश्वर, ब्रह्मा आदि नामों से पुकारा जाता है. इसी ने भारत में राम, कृष्ण व अन्य अवतार ले कर अनेक लीलाएं की हैं.

कार्तिक माह में इसी की पूजा की जाती है. कार्तिक व्रत स्त्रीपुरुष दोनों कर सकते हैं. पर व्यवहार में हम केवल हिंदू नारियों को ही कार्तिक स्नान व व्रत करते देखते हैं. कार्तिक माह का व्रत करने वालों को धन, संपत्ति, सौभाग्य, संतान सुख के साथ अंत में सब पापों से मुक्त हो कर बैकुंठ में राज करने की गारंटी दी गई है.

कार्तिक माह की कथा बहुत लंबी है. इस में कई अध्याय हैं. प्रत्येक अध्याय में काल्पनिक कथाएं जोड़ कर व्रत का महत्त्व अंधविश्वासियों के दिमाग में ठूंसठूंस कर भरा गया है. अंधविश्वास को पुष्ट करने के लिए शाप और वरदान का सहारा लिया गया है. पापपुण्य को ले कर पुनर्जन्म के काल्पनिक किस्से गढ़े गए हैं ताकि पंडेपुजारियों को मुफ्त का माल और चढ़ावा मिलता रहे. चढ़ावे से ही तो पिछले जन्मों के पाप धुलेंगे और अगला जन्म खुशहाल होगा.

कार्तिक व्रत की महिमा ब्रह्मा ने अपने पुत्र नारद को सुनाई है. नारद ने सूतजी को और सूतजी से अन्य ऋषिमुनियों ने सुनी है. बाद में इस कथा को धर्म के धंधेबाज पंडेपुजारियों ने लिखी है. जिस में गपें और बेसिरपैर के किस्से भरे हुए हैं. यहां कथा का संक्षिप्त रूप प्रस्तुत है.

कथा के अनुसार, एक दिन सत्यभाभा  ने कृष्ण (विष्णु) से पूछा, ‘‘हे प्रभु, मैं ने पिछले जन्म में कौन से पुण्य कार्य किए हैं जिन से मैं आप की अर्द्धांगिनी बनी.’’ इस पर कृष्ण ने कहा, ‘‘पूर्व जन्म में तुम देवशर्मा नामक ब्राह्मण की पुत्री और चंद्र शर्मा की पत्नी थीं. तुम्हारा नाम गुणवती था. पिता और पति की अकाल मृत्यु होने से तुम अनाथ हो गईं. विधवा होने पर घर की समस्त संपत्ति ब्राह्मणों को दान दे कर तुम एकादशी और कार्तिक का व्रत करने लगीं. कार्तिक व्रत मुझे बहुत प्रिय है. यही कारण है कि इस जन्म में तुम मेरी अर्द्धांगिनी बनी हो.’’

दान का महिमामंडन

पुनर्जन्म को ले कर पंडितजी का दिमाग कमाल का है. कृष्ण स्वयं विष्णु (भगवान) के अवतार हैं. जब भगवान कहेगा तो मानना ही पड़ेगा. इसीलिए कुंआरी कन्याएं इस जन्म में और विवाहिताएं अगले जन्म में कृष्ण जैसा वर पाने की लालसा से कार्तिक व्रत का टोटका करती हैं. पर यह टोटका तब सफल होता है जब गुणवती की तरह पंडेपुजारियों को दान दिया जावे.

कार्तिक व्रत अश्विनी माह की पूर्णिमा से शुरू किया जाता है. प्रात:काल स्नान कर व्रत रखने का संकल्प किया जाता है. कथा के अनुसार, संध्या के समय ब्रह्मा की सोने/चांदी अथवा मिट्टी की मूर्ति बना कर उस का पूजन किया जाए. पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराया जाए तथा आभूषण, अन्न, वस्त्र, गाय आदि दानदक्षिणा दे कर उन को ससम्मान विदा किया जाए. चूंकि ब्राह्मण के दाहिने पैर में सब तीर्थ, मुंह में वेद व अंगों में देवताओं का निवास होता है इसलिए व्रती पूरे कार्तिक माह ब्राह्मणों को भोजन कराएं और बाद में स्वयं करें.

यह है कथा का केंद्रीय भाव. कार्तिक व्रत के बहाने एक माह तक ब्राह्मणों को भोजन और दानदक्षिणा मिलने का इंतजाम हो गया. लेकिन जब ब्राह्मणों के अंगों में ही सब तीर्थ व देवता निवास करते हैं तो वे लोग मूर्ख हैं जो देवताओं की पूजा करते हैं. उन्हें तो केवल ब्राह्मणों की ही पूजा करते रहना चाहिए.

जब किसी गप को बारबार और विविध प्रकार से कहा जाए तो अंधविश्वासी उसे सही मान लेते हैं. कार्तिक व्रत करने से अगले जन्म में बैकुंठ प्राप्ति के लिए कथा में कई बेसिरपैर के किस्से गढ़े गए हैं. यहां कुछ किस्सों का संक्षेप में उल्लेख करना ही संभव है.

कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में करतीपुर नामक नगरी में धर्मदत्त नामक ब्राह्मण रहता था. वह विष्णु की भक्ति के साथ कार्तिक व्रत करता था. एक बार उसे कलहा नामक एक कुरूप राक्षसी मिली. धर्मदत्त को उस पर दया आ गई. इसलिए उस ने कलहा पर तुलसीदल का पानी छिड़क दिया और अपना आधा पुण्य उसे दे दिया. तुलसीदल के छींटे और आधा पुण्य देने से वह सुंदर स्त्री बन गई और उसे पूर्व जन्मों की याद आ गई. पूर्वजन्म में उस ने बहुत पाप किए थे, इसलिए वह सूअरी, बिल्ली, प्रेतनी बनने के बाद राक्षसी बनी. तब उस ने (सुंदर स्त्री ने) पूर्वजन्मों के पाप नष्ट होने की विधि धर्मदत्त से पूछी. धर्मदत्त ने उस से एकादशी और कार्तिक व्रत करने को कहा. उस ने वैसा ही किया. अगले जन्म में धर्मदत्त राजा दशरथ बने और कलहा उन की पत्नी बनी. भक्ति के वशीभूत विष्णु ने राम के रूप में दशरथ के घर में जन्म लिया.

पंडितों का गोरखधंधा तो भगवान भी नहीं समझ सकता है. कहीं वृंदा के शाप से विष्णु ने रामावतार लिया और कहीं नारद के शाप से. यहां कार्तिक व्रत के कारण धर्मदत्त अगले जन्म में दशरथ बनते हैं और विष्णु राम के रूप में उन के पुत्र. सही क्या है, इसे पंडित और व्रती जानें. तुलसीदल छिड़कने और आधा पुण्य देने से सुंदर स्त्री बनना कोरा चमत्कार है. अगर पंडित पुण्य ट्रांसफर होने की विधि भी लिख देते तो आज के भक्तों को अवश्य लाभ होता. आजकल के शंकराचार्य, महंत, कथावाचक व पंडेपुजारी भी ‘पुण्यात्मा’ माने जाते हैं. परंतु किसी ने भी अपने पुण्य का अंश किसी पापी को ट्रांसफर नहीं किया. अगर कर दे, तो कथा की असलियत का पता चल जाए.

एक कथा कहती है कि पुराने समय में उज्जैन में चमड़े का व्यापार करने वाला धनेश्वर नामक एक व्यभिचारी ब्राह्मण रहता था. वह चोर, शराबी व वेश्यागामी था. उस ने कभी भी शुभकर्म नहीं किए. वह पापकर्म करता हुआ सदैव इधरउधर आवारा घूमता रहता था. घूमतेघूमते एक दिन वह कार्तिक माह में नर्मदा नदी के तट पर बसी महिष्मती नगरी में पहुंचा. वहां कार्तिक व्रत करने वाले यात्री भी ठहरे हुए थे. वे स्नान करने के बाद नित्य विष्णु भगवान की कथाएं कहते व कीर्तन करते थे. धनेश्वर भी कुछ दिनों के लिए वहीं ठहर गया और उन के बीच में रह कर उस ने भी कीर्तन व कथाएं सुनीं.

जब वह  मरा तो यम के दूत उसे पाश में जकड़ कर यमपुर ले गए. चूंकि उस ने जीवनभर पाप कमाया था, इसलिए यमपुर के मुख्य न्यायाधीश चित्रगुप्त उसे घोर नरक में डालने का आदेश देते हैं. इतने में वहां नारद आ जाते हैं. वे चित्रगुप्त से कहते हैं कि यह नरक में डालने योग्य नहीं है क्योंकि इस ने कुछ दिन कार्तिकव्रतियों की संगत की है तथा विष्णु भगवान की कथा सुनी है. फिर क्या था, यमराज ने उसे यक्षलोक का राजा बना दिया जो बाद में यक्षपति कहलाया.

पापमुक्ति का नुसखा

क्या जोरदार कथा है? कुछ दिन कार्तिकव्रतियों की संगत करने और विष्णु भगवान का कीर्तन सुनने से जब जीवनभर के पाप हवा हो जाते हैं तब बुरे कर्मों से क्या डर? पापों को नष्ट करने का इस से सस्ता नुसखा क्या हो सकता है.

तभी तो हिंदू कुकर्म करने से संकोच नहीं करते हैं. यहां कई प्रश्न भी उठते हैं. क्या यमदूतों को पता नहीं था कि धनेश्वर ने विष्णु भगवान का कीर्तन सुना है और कार्तिकव्रतियों की संगत की है? यदि था, तो वे उसे यमपुर क्यों ले गए? क्या यमपुर के न्यायाधीश चित्रगुप्त आंख मूंद कर न्याय करते हैं? यदि नहीं, तो उन्होंने नारद के कहने से अपना पूर्व का फैसला क्यों बदला?

कार्तिक व्रत में तुलसी (पौधा विशेष) और शालिगराम की भी पूजा कीजाती है. इन दोनों का संबंध जलंधर नामक दैत्य से है. कथा के अनुसार, इन तीनों (तुलसी, शालिगराम व जलंधर) की उत्पत्ति अविश्वसनीय, अवैज्ञानिक व अप्राकृतिक है.

कथा कहती है कि एक बार इंद्र और देवताओं के गुरु बृहस्पति कैलास पर्वत पर भगवान शंकर से मिलने जाते हैं. भगवान शंकर इन दोनों भक्तों की परीक्षा लेने के लिए जटाधारी दिगंबर का रूप धारण कर एक स्थान पर बैठ जाते हैं. इंद्र और बृहस्पति की दिगंबर से भेंट होती है. इंद्र ने दिगंबर का नाम व परिचय जानना चाहा और पूछा कि शंकर भगवान कहां हैं. दिगंबर ने कुछ जवाब नहीं दिया. इंद्र ने उस से बारबार यह प्रश्न किया पर दिगंबर चुपचाप बैठा रहा.

इस पर क्रोधित हो कर इंद्र उस पर वज्र का प्रहार करने के लिए तत्पर हो जाते हैं. इंद्र ने ज्यों ही वज्र  मारने के लिए अपना हाथ उठाया त्यों ही दिगंबर ने उस का हाथ पकड़ लिया और नेत्रों में से ज्वाला (तेज) निकलने लगी. देवगुरु बृहस्पति ने शंकर भगवान को पहचान लिया और इंद्र को क्षमा कर देने की प्रार्थना की. इस पर शंकर भगवान ने कहा कि मैं अपने तेज का क्या करूं? बृहस्पति के कहने पर शंकरजी अपना तेज क्षीर सागर में डाल देते हैं.

अविश्वासी कथाएं

यहां प्रश्न उठते हैं कि भगवान शंकर तो अंतर्यामी हैं. क्या उन्हें पता नहीं था कि इंद्र और बृहस्पति उन के भक्त हैं? इंद्र देवताओं के राजा हैं. देवता भी अंतर्यामी और करामाती होते हैं. फिर वे यह क्यों नहीं जान सके कि दिगंबर के रूप में शंकर भगवान ही हैं? आंखों से निकला तेज (ज्वाला) कोई वस्तु तो नहीं होती जिस को पकड़ कर कहीं भी डाला जा सकता है? उस तेज का क्या करना है, यह शंकर भगवान क्यों नहीं जान सके. कुल मिला कर कथा कोरी गप है. समझ में नहीं आता कि इन ऊलजलूल गपों पर लोग वर्षों से कैसे विश्वास करते आ रहे हैं?

शंकर भगवान ने जैसे ही अपना तेज क्षीर सागर में डाला, वैसे ही सागर में से निकल कर एक बालक भयंकर आवाज में रुदन करने लगता है. कथा के अनुसार, उस के रुदन से पृथ्वी कांप उठी और समस्त देवता भयभीत हो गए. डर के कारण सब देवता ब्रह्मा के पास जा कर उन से रक्षा करने की प्रार्थना करते हैं. ब्रह्मा सागर तट पर प्रकट हो कर सागर से पूछते हैं कि यह बालक कौन है. उत्तर में सागर उस बालक को ब्रह्माजी को सौंपते हुए कहता है कि मैं कुछ नहीं जानता हूं. आप ही इस का संस्कार कीजिए.

सागर का इतना कहना था कि बालक ने ब्रह्माजी का गला इतनी जोर से दबाया कि उन की आंखों में से जल निकलने लगा. इस पर ब्रह्मा ने सागर से कहा कि मेरे नेत्रों से जल निकलने के कारण इस का नाम जलंधर होगा. यह विष्णु भगवान को जीतने वाला दैत्यों का प्रतापी राजा बनेगा. इस की पत्नी बड़ी पतिव्रता होगी, जिस के बल से, शंकर को छोड़ कर, इसे कोई नहीं मार सकता है. समय बीतने पर जलंधर की शादी कालनेमी दैत्य की पुत्री वृंदा से हो जाती है.

हमारे वैज्ञानिक ने चांद पर पहुंच कर पानी की खोज तो कर ली, परंतु क्षीर सागर की खोज अभी तक नहीं कर सके. अगर कर लें तो बच्चों को दूध का डब्बाबंद पाउडर विदेशों से नहीं मंगाना पड़ेगा. क्षीर सागर में शिवजी का तेज डालना, उस में से बालक निकलना, उस के रुदन से पृथ्वी का कांपना कोरे चमत्कार हैं. हमारे देवता भी कितने पिलपिले हैं जो बालक के रुदन से ही भयभीत हो जाते हैं.

कथा आगे कहती है कि एक बार समुद्र मंथन के अमृत को ले कर जलंधर के नेतृत्व में दैत्यों और देवों में युद्घ होता है, जो देवासुर संग्राम के नाम से प्रसिद्घ है. युद्घ में देवता हार जाते हैं. वे अपनी रक्षा के लिए विष्णु भगवान से गुहार करते हैं. देवताओं की गुहार पर विष्णु जब जलंधर से लड़ने जाते हैं तब लक्ष्मी कहती है कि मैं और जलंधर समुद्र से पैदा हुए हैं, इसलिए हम दोनों भाईबहन हैं. आप जलंधर को मारेंगे तो मैं सदैव दुखी रहूंगी. विष्णु जानते थे कि ब्रह्मा के वरदान से मैं जलंधर को नहीं मार सकता हूं, इसलिए वे लक्ष्मी से कहते हैं कि मैं लड़ने तो जा रहा हूं पर उसे मारूंगा नहीं.

गरुड़ पर सवार हो कर विष्णु भगवान दैत्यराज जलंधर से लड़ने पहुंचते हैं. कई दिनों तक भयंकर युद्घ होता है. युद्घ में दोनों ने नाना प्रकार के दांवपेंच खेले. पर अंत में जलंधर से विष्णु हार जाते हैं. शर्त के अनुसार, विष्णु परिवार सहित जलंधर की नगरी में ही उस के मेहमान बन कर रहते हैं.

विष्णु को हरा कर जलंधर निर्भय

हो कर राज्य करने लगा. उस के वैभव को देख कर देवताओं को जलन हुई. देवताओं में देव ऋषि नारद सब से चालाक है. उस का काम केवल लड़ाना है. वह देवताओं का पक्षपाती और दैत्यों का शत्रु है. एक बार वह घूमताघूमता जलंधर के पास जाता है और उस से कहता है कि आप के पास सब वैभव हैं परंतु पार्वती जैसा स्त्रीरत्न नहीं है. अगर पार्वती जैसा रत्न मिल जाए तो आप के वैभव में चारचांद लग जाएं.

अतार्किक प्रसंग

नारद का यह कथन सुन कर जलंधर कैलास पर्वत पर पार्वती को लेने पहुंच जाता है. वहां उस का शंकर के गणों से युद्घ होता है. शंकर के गण हार जाते हैं. फिर शंकर स्वयं उस से युद्घ करते हैं. पर जलंधर अपनी माया से अप्सराओं को पैदा कर देता है. अप्सराओं को देख कर शिवजी उन पर मोहित हो जाते हैं और कुछ समय के लिए युद्घ बंद कर देते हैं. इस बीच, शिव का रूप धारण कर जलंधर पार्वती के पास पहुंच कर बलात्कार करने का प्रयास करता है. पार्वती उस का कपट पहचान कर अंतर्ध्यान हो जाती है. तब जलंधर निराश हो कर वापस लौट आता है.

इधर, शिवजी फिर जलंधर से युद्घ करने जाते हैं. दोनों ओर से भयानक युद्घ होता है. परंतु जलंधर नहीं मारा जाता है. पार्वती जानती थी कि जब तक जलंधर की पत्नी वृंदा का सतीत्व नष्ट नहीं होता तब तक शिवजी उसे नहीं मार सकते. इसलिए, वह विष्णु से वृंदा का सतीत्व भंग करने को कहती है. विष्णु भगवान जलंधर का रूप धारण कर उस का सतीत्व नष्ट कर देते हैं. वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही शिवजी सुदर्शन से जलंधर के सिर को धड़ से अलग कर देते हैं.

वृंदा को जब ज्ञात होता है कि विष्णु के कपट से उस का पतिव्रतधर्म नष्ट किया है तब वह धिक्कारते हुए विष्णु को पत्थर होने का शाप दे कर स्वयं अग्नि में प्रवेश कर जाती है. कथा के अनुसार, वृंदा के शाप के वशीभूत हो कर विष्णु शालिगराम (पत्थर) बन जाते हैं और वृंदा की चिता की भस्म तुलसी (पौधा विशेष) बन जाती है. पंडेपुजारी अपने भगवान (विष्णु) को बलात्कारी होने के कलंक से बचाने के लिए ही शालिगराम और तुलसी के विवाह का ढोंग प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी को रचते हैं.

कथा के अनुसार, क्या हम देवताओं का आचरण नैतिक व अनुकरणीय कह सकते हैं? चूंकि जलंधर शिवजी के तेज से पैदा हुआ है, इसलिए दोनों का संबंध पितापुत्र का हुआ. इस दृष्टि से शिवजी ने अपने पुत्र की ही हत्या की है. जलंधर की पत्नी वृंदा भी रिश्ते में पार्वती की पुत्रवधू हुई. फिर पुत्रवधू के साथ बलात्कार करना कौन सी नैतिकता हुई? पार्वती और जलंधर का रिश्ता भी मांबेटे का हुआ. नारद, जो स्वयं देवता कहलाता है, मां को ही पत्नी बनाने के लिए पुत्र को उकसाता है. अगर वह पार्वती जैसा ‘रत्न’ लाने को जलंधर से न कहता तो वह पार्वती के पास क्यों जाता? फिर पितापुत्र का युद्घ क्यों होता और क्यों जलंधर मारा जाता? सब से अधिक तरस तो विष्णु पर आता है. वह हिंदुओं का ईश्वर है. क्या वह जलंधर की पत्नी का सतीत्व नष्ट करे बिना उसे नहीं मार सकता था? जलंधर दुष्ट था, तो ब्रह्मा ने उसे वरदान क्यों दिया? हिंदुओं के साधुसंत व मठाधीश बलात्कार करते सुने जाते हैं. ऐसे में अन्य लोग यदि बलात्कार करें तो उन्हें अपराधी कहना कहां तक उचित है? वे तो अपने भगवान का ही अनुकरण कर रहे हैं.

कथा में नदियों और वृक्षों की उत्पत्ति पढ़ कर हंसी आती है. प्राचीनकाल में एक समय ब्रह्माजी सह्य पर्वत पर यज्ञ कर रहे थे. उस में सब देवगण उपस्थित हुए. स्वयं विष्णु भगवान और शिवजी ने यज्ञ की समस्त सामग्री एकत्रित की. महर्षि भृगु व अन्य ऋषि यज्ञ संपन्न कराने आए. यज्ञ की तैयारी होने के बाद देवों ने ब्रह्मा की पत्नी स्वरा को बुलावा भेजा. स्वरा देर तक नहीं आई. तब देवताओं ने ब्रह्मा की दूसरी पत्नी गायत्री को ही उन के दायीं ओर बैठा दिया. इतने में स्वरा भी वहां आ जाती है.

गायत्री को ब्रह्मा के पास बैठी देख कर ईर्ष्या से स्वरा जल उठी. वह गायत्री को अदृश्य बहने वाली नदी और सभी देवताओं को अन्य नदियां होने का शाप दे देती है. इस पर गायत्री स्वरा से कहती है कि ब्रह्मा, जैसे तुम्हारे पति हैं वैसे ही मेरे भी पति हैं, इसलिए तुम भी नदी होगी.

कथा कहती है कि स्वरा और गायत्री दोनों सरस्वती नदी के नाम से बहने लगीं. स्वरा के शाप से विष्णु के अंश से कृष्णा नदी, शिव के अंश से वेणी व ब्रह्मा के अंश से काकू नदी उत्पन्न हो गईं. फिर अन्य देवताओं के अंश अलगअलग नदियों के रूप में बहने लगे.

आम अंधविश्वासी यदि शांति, कल्याण या वर्षा के लिए यज्ञ करे तो बात समझ में आती है. ब्रह्मा तो देवताओं की कैबिनेट में प्रथम स्थान रखते हैं. वही इस विश्व के स्वामिता और भाग्यविधाता हैं. फिर वे यज्ञ किसलिए कर रहे थे? विष्णु और शिव क्रमश: इस जगत के पालक और रक्षक हैं. वे भी यज्ञ के लिए बेगार क्यों कर रहे थे? ऐसा कौन सा कार्य है जिसे ये तीनों देवता नहीं कर सकते हैं?

कथा के अनुसार, स्वरा के शाप ने तो भूगोल ही बदल डाला. भूगोल कहता है कि पहाड़ों या झरनों से नदियां निकली हैं और जिन्हें लोगों ने प्रत्यक्ष देखा भी है. देवता तो अमर हैं. यदि देवताओं के अंशों से नदियां निकली हैं तो वे गरमी में सूख क्यों जाती हैं? क्या गरमी में देवताओं का अस्तित्व समाप्त हो जाता है?

कथा के अनुसार, वृक्षों की उत्पत्ति भी हास्यास्पद और ऊलजलूल है. कथा कहती है कि एक समय भगवान शंकर और पार्वती एकांत में रतिक्रीड़ा में मग्न थे. उसी समय ब्राह्मण का रूप धारण कर वहां अग्नि देव आ जाते हैं, जिस से रतिक्रीड़ा का मजा किरकिरा हो जाता है. इस पर नाराज हो कर पार्वती शाप देते हुए कहती है, ‘‘हे देवताओ, विषय सुख को तो कीटपतंगे भी जानते हैं. आप लोगों ने देवता हो कर उस में विघ्न डाला है. इसलिए आप सब देवता वृक्ष हो जाओ.’’

पार्वती के शाप से शंकर वट क्ष, विष्णु भगवान पीपल वृक्ष बन गए व अन्य देवों से विभिन्न वृक्षों की उत्पत्ति हुई.

मूर्खता की हद

यहां शाप ने बड़ा बखेड़ा खड़ा कर दिया. रतिक्रीड़ा में विघ्न तो केवल अग्निदेव ने डाला था, फिर अन्य देवताओं को शाप क्यों दिया? भगवान शंकर तो पार्वती के साथ ही रतिक्रीड़ा में मग्न थे. वे वट वृक्ष क्यों बने.

इस के पूर्व ब्रह्मा की पत्नी स्वरा सब देवताओं को नदी होने का शाप दे चुकी है. सही क्या है, यह कथा लेखक और कथावाचक पंडेपुजारी या व्रती जानें. इतना अवश्य है कि कथा सुनने वाली व्रती स्त्रियां अवश्य बेवकूफ बन रही हैं.

व्रत का पुण्य तभी मिलेगा जब उस का विधिविधान से उद्यापन किया जाए. उद्यापन के लिए व्रती कार्तिक पूर्णमा को अर्द्घरात्रि के पश्चात स्नान कर किसी जलाशय में 11, 21 या इस से अधिक दीपदान करे. फिर सोने का शालिगराम और चांदी की तुलसी बनवा कर दोनों का विवाह किसी पंडित से संपन्न कराए. तुलसी का पाणिग्रहण संस्कार होने के बाद 31 ब्राह्मणों को सपत्नीक भोजन कराया जाए. भोजन कराने के बाद पंडित को गो, शय्या, आभूषण, वस्त्र, अन्न दान के साथ दक्षिणा दे कर विदा किया जाए. तत्पश्चात, प्रसाद वितरण के बाद स्वयं भोजन करे.

यह है विधिविधान और व्रत का रहस्य. कार्तिक व्रतियों को स्वर्ग मिले या न मिले, पर पंडितों का भला अवश्य हो गया. यहां यह कथन कितना सटीक बैठता है कि जब तक मूर्ख हैं तब तक चतुर लोगों की नित्य दीवाली है.

सौभाग्य, संतान, धन व स्वर्ग के झूठे झांसे में आ कर शिक्षित औरतें तक लुट रही हैं. अगर ये कथाएं सही होतीं तो हिंदुओं में एक भी गरीब और संतानहीन होता. स्त्रियां अपने अखंड सौभाग्य के लिए ही अधिक व्रत करती हैं, परंतु आप को समाज में विधुर कम और विधवाएं अधिक मिलेंगी. स्त्रियां सोचें कि क्या इन व्रतों का यही पुण्य लाभ है?

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