सुपर स्पैशलिटी हौस्पिटल : सुविधा या लूट

देश में इन दिनों मध्यम व उच्च श्रेणी के निजी नर्सिंग होम व निजी अस्पतालों से ले कर बहुआयामी विशेषता रखने वाले मल्टी स्पैशलिटी हौस्पिटल्स की बाढ़ सी आई हुई है.

दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र व गुजरात जैसे आर्थिक रूप से संपन्न राज्यों से ले कर ओडिशा, बिहार व बंगाल जैसे कम संपन्न राज्यों तक में भी ऐसे बहुसुविधा उपलब्ध करवाने वाले अस्पतालों को संचालित होते देखा जा सकता है.

हजारों करोड़ रुपए की लागत से शुरू किए जाने वाले इन अस्पतालों को संचालित करने वाला व्यक्ति या इस से संबंधित ग्रुप कोई साधारण व्यक्ति या ग्रुप नहीं होता. निश्चित रूप से ऐसे अस्पताल न केवल धनाध्य लोगों द्वारा खोले जाते हैं बल्कि इन के रसूख भी काफी ऊपर तक होते हैं.

इतना ही नहीं, बड़े से बड़े राजनेताओं व अफसरशाही से जुड़े लोगों का इलाज करतेकरते साधारण अथवा मध्यम या उच्चमध्यम श्रेणी के मरीजों की परवा करना या न करना ऐसे अस्पतालों के लिए कोई माने नहीं रखता.

नामीगिरामी बड़े अस्पतालों में फोर्टिस, मैक्स, अपोलो, कोलंबिया एशिया रेफरल हौस्पिटल, नोवा स्पैशलिटी हौस्पिटल, ग्लोबल हैल्थ सिटी, बीजीएस ग्लोबल हौस्पिटल, सर गंगाराम हौस्पिटल आदि शामिल हैं. यहां एक ही छत के नीचे किसी भी मरीज के हर किस्म की बीमारी की जांचपड़ताल, उस से संबंधित हर किस्म के मैडिकल टैस्ट व हर प्रकार के औपरेशन की सुविधा उपलब्ध रहती है.

पांचसितारा होटल्स जैसी सुविधाएं प्रदान करने वाले अस्पतालों का खर्च उठा पाना साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं है. ऐसे अस्पतालों में छोटा औपरेशन अथवा मध्यम श्रेणी की बीमारी का इलाज भी लाखों रुपए में हो पाता है. इस में शक नहीं कि देश में लाखों संपन्न मरीज ऐसे हैं जो इन या इन जैसे दूसरे बड़े अस्पतालों से अपना इलाज करवा कर स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं. परंतु यदि हमें यह पता चले कि इतने विशाल भवन, वृहद आकार व प्रकार वाले इन्हीं पांचसितारा सरीखे अस्पतालों में मरीजों के साथ खुलेआम लूट नहीं, बल्कि डकैती की जा रही है तो यह उन अस्पतालों के लिए किसी कलंक से कम नहीं है.

आज यदि ऐसे कई बड़े अस्पतालों की वैबसाइट खोल कर देखें या इन अस्पतालों के भुक्तभोगी मरीजों द्वारा साझा किए गए उन के अनुभवों पर नजर डालें तो ऐसे अस्पतालों की वास्तविकता तथा इन विशाल गगनचुंबी इमारतों के पीछे का भयानक सच पढ़ने को मिल जाएगा.

बेशक, कुछ रिव्यू लिखने वालों ने इन अस्पतालों की सक्रियता व उन के स्टाफ के बरताव की तारीफ भी लिखी है. परंतु प्रश्न यह है कि लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद यदि एक भी मरीज या उस के तीमारदार अस्पताल के प्रति कोई नकारात्मक विचार ले कर जाते हैं तो आखिर ऐसा क्यों?

इलाज के नाम पर लूट

पिछले दिनों मनीश गोयल नामक नवयुवक ने दिल्ली के शालीमार बाग स्थित एक हौस्पिटल के अपने अनुभव को सोशल मीडिया पर एक वीडियो द्वारा साझा किया. उस ने बताया कि उस के मरीज को एक बाईपास सर्जरी के बाद 19 जून को डिस्चार्ज किया जाना था. अस्पताल से उस औपरेशन का पैकेज बाईपास सर्जरी की फीस के साथ 2 लाख 2 हजार रुपए में तय हुआ था. मरीज अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पा रहा था तथा उस के परिजन अस्पताल के इलाज से संतुष्ट नहीं थे और मरीज को अन्यत्र स्थानांतरित करना चाह रहे थे. यह जान कर अस्पताल ने 5 लाख 61 हजार रुपए का बिल मरीज के तीमारदारों को दे दिया. किसी कारणवश 19 जून के बाद मरीज ने अपना इलाज इसी अस्पताल में एक सप्ताह और कराया. अब एक सप्ताह के बाद हौस्पिटल ने मरीज को नया बिल 11 लाख 37 हजार रुपए का पेश कर दिया.

मनीश गोयल के अनुसार, नेफरो के डाक्टर की डेली विजिट के नाम पर बिल में पैसे मांगे गए जबकि डाक्टर 3 दिनों में केवल एक बार आते हैं. परंतु अस्पताल ने उन के विजिट के पैसे 1 दिन में 2 बार विजिट की दर से लगाए हैं. इसी प्रकार 1 और डाक्टर, जिन्होंने मरीज की बाईपास सर्जरी की थी, 4 दिनों से छुट्टी पर थे फिर भी उन के नाम पर प्रतिदिन विजिट के पैसे बिल में मांगे जा रहे थे. इतना ही नहीं, इन सब के अतिरिक्त अस्पताल ने एक सप्ताह में 5 लाख 25 हजार रुपए मूल्य की दवाइयों का बिल भी अलग से लगा दिया. इन सब के बावजूद, मरीज का कहना है कि उसे अपेक्षित स्वास्थ्य लाभ भी नहीं मिल सका.

उपरोक्त घटना इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पर्याप्त है कि इस प्रकार के अस्पताल मरीजों के इलाज के लिए तो कम, मरीजों को लूटने व उन्हें कंगाल करने की नीयत से ज्यादा खोले गए हैं. कुछ मरीजों ने इसी अस्पताल के बारे में अपना तजूरबा साझा करते हुए यहां तक लिखा है कि यहां कैंसर के मरीज को गलत दवाइयां दी गईं तथा उन का गलत इलाज किया गया. एक मरीज ने लिखा कि अस्पताल वालों का वास्तविक मकसद पैसा कमाना है. कुछ मरीजों ने इन अस्पतालों में भारी भीड़ और उस भीड़ के चलते होने वाली असुविधाओं का भी उल्लेख किया है.

दीपेश अरोड़ा नामक एक भुक्तभोगी ने अपने रिव्यू में एक अन्य सुपर स्पैशलिटी हौस्पिटल के बारे में लिखा कि उस के परिवार का एक प्रिय सदस्य अस्पताल में गलत इलाज किए जाने की वजह से मर गया. अस्पताल में सफेद यूनिफौर्म में कातिलों की टीम मौजूद है. जबकि राजेश सिंह जैसे किसी व्यक्ति के अनुभव के अनुसार, उसी अस्पताल के एक डाक्टर की देखभाल तथा उन की निगरानी करने का तरीका काबिलेतारीफ है.

दरअसल, भारत में बड़े अस्पतालों की बढ़ती संख्या का समाचार इन दिनों न केवल समूचे दक्षिण एशियाई देशों में, बल्कि अफ्रीका तथा यूरोपीय देशों में भी फैल चुका है. स्वयं इन अस्पतालों के प्रचारतंत्र इन की अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि करने में सक्रिय रहते हैं. पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, बंगलादेश तथा अरब देशों के तमाम संपन्न मरीज भारत की ओर खिंचे चले आते हैं और ये अस्पताल इन्हीं बेबस मरीजों की मजबूरी का नाजायज फायदा उठा कर उन से मनचाहे पैसे वसूलते रहते हैं. धीरेधीरे उन की यही आदत प्रवृत्ति में शामिल हो जाती है और इस का शिकार लगभग प्रत्येक दूसरे मरीज को होना पड़ता है. ऐसे अस्पतालों पर तथा इन के द्वारा की जा रही लूट व डकैती पर सख्त नजर रखने की जरूरत है.

क्या आपने देखी भारती की बारात, चलिये यहां देखें

मशहूर कौमेडियन भारती सिंह की शादी को लेकर इन दिनों काफी चर्चा है. शादी की प्री-वेडिंग शूट से लेकर चूड़ी सेरिमनी की कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर इन दिनों काफी नज़र आ रही हैं. इसके आलावा इस दौरान ‘भारती की बारात’ नामक वेब सीरीज़ को लेकर भी काफी चर्चा हो रही है.

बता दें कि भारती हर्ष लिम्बाचिया संग शादी के बंधन में बंधने जा रही हैं. एक वेबसाइट ने भारती की वेब सीरीज तैयार की है, जिसका नाम है ‘भारती की बारात’. इसमें भारती की इस वेडिंग से जुड़ी कई मजेदार बातें होंगी. विडियो में भारती और हर्ष दोनों एक-दूसरे के बारे में बातें करते नज़र आ रहे और इनकी बातें इतनी मजेदार हैं कि आप सुनते ही हंस पड़ेंगे.

विडियो में भारती कह रहीं, ‘मुझे तो पहले पता ही नहीं था कि ये प्यार-व्यार क्या होता है. मैं बचपन से ही लड़कों के बीच में रही हूं. बचपन से ही शूटिंग, तीरंदाजी जैसे स्पोर्ट्स में रहती थी. पंजाब के लिए नैशनल में खेली हूं, गोल्ड मेडल लाई हूं, तो प्यार-व्यार के बारे में सोचा ही नहीं था. फिर कौमेडी सर्कस आया और फिर आए हर्ष लिंबाचिया. वह थे चश्मा लगाए, छोटा सा लैपटौप, जैसे सुनामी पीड़ित का एक बच्चा बच गया हो कि ये कुछ करेगा अब.

हर्ष स्क्रिप्ट लिखा करते और भारती बताती हैं कि वह काफी डबल मिनिंग लिखा करते थे. हर्ष बताते हैं कि जो स्क्रिप्ट वह तैयार कर रहे थे बाद में पता चला कि वह भारती के लिए ही थी.

भारती बताती हैं, ‘हर्ष जिसकी स्क्रिप्ट लिखते वह बंदा आउट और इसने मेरे लिए भी लिखी और मैं आउट. बाद में वाइल्ड कार्ड एंट्री मिली और फिर 10-10 नंबर मिले.’ इस विडियो का सबसे मजेदार वह हिस्सा है जब हर्ष को भारती अपना चूड़ीदार पायजामा पहनने के लिए देती हैं.

इसके बाद विडियो में टीवी और फिल्म जगत के की सिलेब्रिटीज़ भारती और हर्ष के इस रिश्ते पर बोलते नज़र आ रहे हैं और उनकी बातें भी आपको उतनी ही फनी लगेंगी. वैसे, यह तो पहला एपिसोड है, अभी आगे काफी कुछ देखना बाकी है.

कच्छ की क्राफ्ट को आम जनजीवन तक पहुंचाती संस्था ‘श्रूजन’

कला और संस्कृति सालों से हमारे गांवों में प्रचलित है, लेकिन शहरीकरण के वजह से ये कला प्राय: लुप्त होते जा रहे है, क्योंकि गांव में उन्हें पूरी मजदूरी न मिलने और नए जमाने से सम्बन्ध न रख पाने की वजह से वे अपनी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते, ऐसे में वे और उनके बच्चे इस पारंपरिक कला को छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. जहां उन्हें न तो ढंग के काम मिलते हैं और न ही यहां टिक पाते हैं, ऐसी ही समस्याओं को झेलते हुए, वे अंत में आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं.

ये इलाका है गुजरात का कच्छ रीजन, जहां पहले तो नमक की खेती होती थी, लेकिन प्रकृति की मार के चलते ये व्यवसाय अब करीब बंद होकर मरुस्थल में परिवर्तित हो चुका है. ऐसे में घर की महिलाओं ने जिम्मेदारी सम्भाली और खाली समय में कपड़ों की सिलाई और कढ़ाई कर घर चलाने लगीं. अपनी जगह पर रहकर ऐसे ही हालात से निकलने और अच्छी जिंदगी मुहैय्या करवाने में इन महिलाओं का साथ दे रही हैं, चंदाबेन श्राफ की संस्था ‘श्रूजन’ जो उन्हें उनका हक दिलवाने में मददगार साबित हो रही है.

पिछले 40 साल से जुड़ी इस संस्था की फैशन डिजाइनर सुधा पटेल कहती हैं कि मैं उन्हें नयी-नयी डिजाइन से कारीगरों को परिचय करवाती हूं जिसमें ड्रेस की सिलाई, कढ़ाई और मार्केट की मांग को उन्हें बताती जाती हूं. हमारे कारीगर सारे गांव के हैं और पढ़े लिखे न होने के बावजूद कढ़ाई में माहिर हैं.

120 गांव की 4 हजार महिलाएं इस काम से जुड़ी हैं, जो 10 अलग-अलग समुदाय से सम्बंधित हैं, यहां काम करती हैं. अहीर, सोडा, राजपूत, मोतवा आदि सभी समुदाय की महिलाएं जो कच्छ और बनासकांठा में थरा क्षेत्र से हैं इस काम से जुड़ी हैं. हर गांव की कला अलग और खास है. थरा में रहने वाली महिलाएं ‘सूफ वर्क’ में काफी पारंगत हैं. यहां के पुरुष पशुपालन और चरवाहे का काम करते हैं.

इसके आगे सुधा बताती हैं कि साल 1969 से चंदा बेन श्राफ ने इस काम को शुरू किया था, क्योंकि कच्छ क्षेत्र में 4 साल में 3 साल सूखा रहता था. उस समय राहत का काम वहां की एनजीओ चलाती थी. वही चंदा बेन ने देखा कि जो महिलाएं वहां राहत सामग्री लेने आती थी, उनके कपड़ों पर सुंदर कढ़ाई बने हुए हैं और ये महिलाएं बाहर मजदूरी करने के बजाय अपने हाथ की हुनर को आगे लाती हैं, तो एक अच्छी जिंदगी जी सकती है और ये कला भी जीवित रह सकती है. फिर उन्होंने साल 1968 में उन महिलाओं से बात की और करीब 5 हजार रुपये से 30 साड़ियों के साथ ये काम शुरू किया था.

मार्केटिंग के अभाव में उन्होंने मुंबई में इसकी पदर्शनी लगायी. अहीर कम्युनिटी के साथ जुड़ने और लाभ होने से दूसरी कम्युनिटी भी साथ में जुड़ने लगी. रबाड़ी, मोतवा, जत आदि सभी समुदाय की महिलाएं उनसे जुडती गयी, लेकिन काम में बारीकी और खूबसूरती के लिए चन्दा बेन घंटो बैठ कर उन्हें समझाना, कपड़ो के बारें में जानकारी देना आदि करती थीं, ताकि बाजार में ये कपड़े बिक सकें. ऐसे ही ये संस्था आगे बढ़ती गयी और चंदा बेन की मृत्यु के बाद अब उनकी बेटी अमी श्राफ इसकी पूरी देखभाल कर रही हैं.

अमी ने बचपन से अपने मां के काम में हाथ बटाया है. उन्हें ये कारीगरी हमेशा से अच्छी लगती थी. इसलिए इसमें आना उनके लिए खुशी है. खाने की टेबल हो या कहीं भी वह कारीगरों के काम के बारे में चर्चा करना पसंद करती थीं. वह कहती हैं कि मेरे जन्म से पहले ये संस्था शुरू हो चुकी थी.

पहले महिलाएं हाथ से स्केच बनाती थीं, जिसे बाद में ‘कोरल’ पर ‘ड्रा’ किया जाने लगा, जिससे अच्छी और साफ चित्र मिले. इसमें कपड़े, रंग और धागों का मिलान हमेशा संस्था करती है. सारी सामग्रियां भी संस्था की ओर से ही उन्हें दिया जाता है, ये महिलाएं खेती और पशुपालन के काम के साथ-साथ, कढ़ाई का काम, अपने खाली समय में करती हैं. एक महीने में ये 5 से 6 हजार तक रुपये कमा लेती है.

इन कपड़ों में पहले कुर्ता, चोली, साड़ियां, बैग्स आदि बनते थे, समय के साथ-साथ इसमें परिवर्तन किया गया जैसे कि डिजाइन और कट्स शहरी परिवेश को ध्यान में रखकर बनाया गया. इनमें प्रयोग किया जाने वाला फैब्रिक सिल्क, लिलेन, खादी, कौटन, मरीना वूल आदि है. जिस पर कढ़ाई आधुनिक होती है. इस काम में मुतवा और जत समुदाय की मुस्लिम महिलाएं अधिक आगे आ रही हैं.

ये महिलाएं घर पर रहकर अच्छा कमा लेती हैं, इनके साथ घर में रहने वाली बड़ी लडकियां भी काम करती हैं. जिससे उनकी आमदनी अच्छी हो जाती है. 16 प्रकार की अलग-अलग स्टिचेस को 10 समुदाय कढ़ाई के रूप में 4 हजार महिलाएं करती हैं. यहां की महिलाएं पढ़ी लिखी नहीं होती, वे केवल सूत गिनकर कढ़ाई करना और पैसे गिनना जानती हैं. इसमें युवा लड़कियां आगे आगे आ रही हैं. ये काम मेहनत वाला होता है. आरी वर्क की कुछ साड़ियां बनाने में एक महीना लगता है. जबकि ‘सूफ वर्क’ की एक साड़ी बनाने में एक साल लगता है. ऐसे बारीक काम को करने वाली महिलाओं को 35 हजार रुपये एक साड़ी के बनाने पर मिलते हैं.

इस काम में महिलाओं को आकर्षित करना मुश्किल नहीं है, क्योंकि संस्था में 300 से 400 लोगों की टीम है, जो गांव-गांव में जाकर कारीगरों से मिलकर उन्हें काम समझाती है. इनकी बनाई साड़ी, चोली कांचली, दुपट्टा, बटुआ, वाल हैंगिंग्स आदि काफी लोकप्रिय है जो त्योहारों और गिफ्टिंग में अधिक प्रयोग की जाती है.

अमी श्राफ आगे इसमें वेडिंग कलेक्शन लाना चाहती है, साथ ही युवा को अधिक से अधिक सिखाना चाहती हैं, ताकि इस कला को सालों साल जीवित रखा जा सके और वे समझ सकें कि ये भी आय का एक साधन है इसके लिए वे प्रशिक्षण केंद्र बनाने की कोशिश कर रही हैं, ताकि कच्छ की कुल 22 क्राफ्ट को एक छत के नीचे सिखाया जाए. इसके अलावा उन्होंने एक म्यूजियम भी इस कला को लेकर बनाया  है, जिससे सालों साल लोग इस कला से परिचित रहें.

पारंपरिक के साथ आधुनिक स्टाइल को ध्यान में बने ये कपड़े सबके लिए पहनने योग्य होता है. ये महंगे नहीं होते, इसलिए कोई भी इसे खरीद सकता है. इसे नया रूप देने के लिए क्या करती हैं? पूछे जाने पर डिजाइनर सुधा बताती हैं कि हमारी एक लाइब्रेरी है, जिसमें हमने शुरू से लेकर अबतक की कढ़ाई के नमूने सुरक्षित रखे हैं. उन नमूनों को लेकर उसमें नयापन लाते हैं.

कढ़ाई की इस काम में सिर्फ लड़कियां ही होती हैं. ये लोग अब कमाई के लिए ही कढ़ाई करते हैं. खासकर मुतवा समुदाय की मुस्लिम महिलाएं जो घर से निकलकर कुछ काम नहीं कर सकती थी, उनके लिए आय का अच्छा जरिया है, क्योंकि जब हम उनको काम देने या समझाने जाते हैं, तो पुरुष नहीं, केवल महिला ही उन तक जा सकती है.

मुस्लिम और हिन्दू दोनों की डिजाइन में खास अंतर होता है. मुतवा समुदाय की मुस्लिम महिलाएं आधिकतर ज्यामितीय आकृति बनाती है, जबकि अहीर समुदाय की हिन्दू महिलाएं फूल, तोता, मोर, कछुवा पेड़ पौधे आदि बनाती है.

इन महिलाओं को अपने काम की प्रसंशा पसंद है, वे पैसे के लिए लड़ती नहीं, उनके घर की प्रमुख महिला ही हर काम की पैसे तय करती है और उन्हें वह मूल्य देना पड़ता है. इसमें प्रयोग किया जाने वाला धागा और जरी अच्छी क्वालिटी का होता है. यूथ को उनके समुदाय की हेड गर्ल ही काम सिखाती है. 10 दिन में ये लड़कियां काम सीख जाती है. 12-13 साल की लड़कियां खुद काम कर, कमाती है. हर उत्पाद पर उसे बनाने वाली महिला का नाम होता है, ताकि उनका नाम बाजार में फैले. ऐसे कपड़ो की रख-रखाव आसान है, इन कपड़ो को हाथ से धोना पड़ता है, ताकि इनकी चमक और खूबसूरती हमेशा बनी रहे.

ड्रैस के अनुरूप हो मेकअप

बात चाहे शादी की हो, पार्टी की हो या फिर अन्य किसी फंक्शन की, एक से बढ़ कर एक खूबसूरत ड्रैसेज पहनी सजीसंवरी महिलाओं की खूबसूरती देखते ही बनती है. मगर भीड़ में सब से अलग कैसे दिखें इस की जानकारी कम ही महिलाओं को होती है.

फेब मीटिंग के दौरान क्राइलौन की मेकअप ऐक्सपर्ट मेघना मुखर्जी ने बताया कि किसी भी पार्टी में जाने के लिए सब से पहले अपनी ड्रैस का चुनाव करें. फिर मेकअप का चयन करें. बहुत सी महिलाएं साड़ी, सूट, लहंगा, गाउन आदि पर एक ही तरह का मेकअप करती हैं, जिस से उन की खूबसूरती निखर कर नहीं आती, बल्कि और दब जाती है. हर ड्रैस में उन का लुक एकजैसा ही लगता है. अगर आप अपने लुक से कुछ डिफरैंट दिखना चाहती हैं, तो अपनाएं ड्रैस के हिसाब से मेकअप के ये खास अंदाज.

वैस्टर्न ड्रैस के साथ मेकअप

चेहरे को साफ करें. अगर डार्क सर्कल हैं तो औरेंज कलर डी-30 कंसीलर लगाएं और अच्छी तरह से मर्ज करें. कंसीलर को ब्रश से ही लगाएं. फिर पूरे चेहरे पर प्राइमर लगाएं. फिर बेस डीएफडी-4-5 को मिक्स कर के इस में डी 68 मेकअप ब्लैंड की 1 बूंद डाल कर बेस को सौफ्ट करें. फिर इसे लिक्विड बना कर डैबडैब कर के ब्रश से लगाएं. बेस के बाद डर्मापाउडर डी-3, डी-5 को मिक्स कर के इसे भी ब्रश से लगाएं. अब अगर जरूरत हो तो कंटूरिंग कलर डीजे-2 से नोज, चीक्स, फोरहैड की कंटूरिंग करें. टीवी ब्राउन आईशैडो से भी कंटूरिंग कर सकती हैं.

आई मेकअप

आई मेकअप के लिए आईशैडो प्राइमर की 1 बूंद ले कर उंगलियों से लगाएं ताकि ब्लैंडिंग अच्छी तरह हो जाए. आईब्रोज हमेशा हाईरैस्ट पौइंट पर ब्रश नं. 980 से कलर लगाते हुए अंदर की तरफ आएं. फिर हाईलाइटर क्रीम थ्रीफोर्थ लगाएं. अब आईबौल्स से ले कर नीचे की तरफ चौकलेट ब्राउन कलर लगाएं. फिर ब्लैक पैंसिल से कौर्नर पर शैडो लगाएं और अच्छी तरह से ब्लैंड करें.

आईज के नीचे वाटर लाइन एरिया में काजल पैंसिल से थ्रीफोर्थ काजल लगाएं. अब ब्रश से डार्क ब्राउन व चौकलेट कलर काजल एरिया के बाहर लगाएं. फिर केक लाइनर में सेल सीलर मिला कर लगाएं. बाहर की तरफ मोटा और अंदर की तरफ पतला लाइनर लगाएं. अंत में आईलैशेज को सुंदर, घना बनाने के लिए मसकारा लगाएं. वीवा का हाईलाइटर लगाएं. ब्लशर पीच कलर का तो लिपस्टिक लाइट पिंक कलर की लगाएं.

हेयरस्टाइल

वैस्टर्न के साथ स्ट्रैट हेयर या टौप नौट जूड़ा बनाएं, इस के अलावा ड्रैस के अनुसार ही हेयरस्टाइल का चयन करें. गाउन, बैकलैस ड्रैस, ट्यूनिक या टौप प्लाजो के साथ आप थ्रीडी मैजिक हेयरकट को प्रैफर कर सकती हैं. इस में ऊपर के बाल छोटे, नीचे के लंबे और बीच के सामान्य लैंथ में कटे होते हैं. यह स्टाइल आप को स्मार्ट लुक देते हैं और ट्रैडिशनल व मौडर्न दोनों ड्रैसों पर बैस्ट लगता है.

साड़ी के साथ मेकअप

सब से पहले चेहरे को साफ कर के मौइश्चराइजर लगाएं. फिर अल्ट्रा अंडर बेस लगाएं. इस बेस को आप किसी भी मौसम में लगा सकती हैं. अब इस बेस में ओबी 1 व 3 बेस अच्छी तरह से मिक्स कर के लगाएं. फिर उसे अच्छी तरह मर्ज करें. अब चेहरे की कंटूरिंग के लिए ओडीएस कंटूरिंग कलर ले कर नोज, चीक्स, फोरहैड व चिन पर कंटूरिंग करें. अब टीएल 11 ब्रश से पूरे चेहरे पर ट्रांसलूसैंट पाउडर लगाएं.

आईज मेकअप भी हो खास

आंखों के मेकअप के लिए सब से पहले शैडो प्राइमर लगाएं. फिर शिमरिंग विजन पैलेट से गोल्ड ब्रौंज कलर साइड में लगा कर आईबौल्स के सैंटर में पिंक कलर का शैडो लगा कर उसे अच्छी तरह मर्ज करें. आंखों के कौर्नर्स में लगाने के लिए मैटेलिक पैलेट से ब्लू कलर ले कर लगाएं. आंखों के नीचे के एरिया में ब्लू कौपर शैडो थ्रीफोर्थ लगाएं.

हाई लाइटिंग के लिए लिविंग कलर सिल्क गोल्ड का इस्तेमाल करें. फिर उसे मर्ज कर लें. जहां क्रीमी शैडो लगाया है वहां पाउडर शैडो लगाएं. आईज के नीचे भी पाउडर शैडो लगाएं. आईब्रोज को ब्रश में ब्राउन शैडो ले कर शार्प करें. फिर इस पर आर्टिफिशियल आईलैशेज या टीवी जेड का लैशेज ले कर लगाएं. इस के सूखने के बाद इस पर केक लाइनर में सील सीलर मिक्स कर के लगाएं. फिर ग्लिटर लगा कर कौपर मसकारा लगाएं.

लिप्स को बनाएं आकर्षक

गीली कौटन से पहले लिप्स को अच्छी तरह साफ कर लें. फिर लिपस्टिक में 2 बूंद सेल सीलर मिला कर लिप्स पर लगाएं. अब इस के ऊपर ग्लौस लिपस्टिक लगाएं. इस से लिपस्टिक लंबे समय तक टिकी रहती है.

चीक्स मेकअप

चीक्स की खूबसूरती बढ़ाने के लिए ग्लैमर ग्लो पैलेट्स से ब्लशर ले कर चीक्स बोंस पर नीचे से ऊपर तक लगाएं. इस से चीक्स शाइन करने लगेंगे, जिस से फेस को डिफरैंट लुक मिलेगा.

हेयरस्टाइल भी हो परफैक्ट

परफैक्ट ड्रैस व मेकअप के साथसाथ अगर हेयरस्टाइल भी परफैक्ट हो तो कहने ही क्या. हेयरस्टाइल आप के लुक को और बेहतरीन बना देगा. इस के लिए आप पहले बालों में अच्छी तरह से कंघी करें. फिर उन्हें 2 भागों में बांट लें. फिर फ्रंट से इयर टू इयर पार्टिंग करें. पीछे के बालों की पोनी बना लें. आगे से बौक्स एरिया की पार्टिंग कर उन बालों की पीछे से खजूरी चोटी बनाएं. अब इस खजूरी चोटी का पफ बनाएं. पोनी के बालों को लपेट कर जूड़ा बनाएं. फिर आर्टिफिशियल हेयर ऐक्सैसरीज लगाएं. उस पर नैट लगाएं. हेयर ऐक्सैसरीज ड्रैस के अनुसार ही डिसाइड करें. अगर जरूरी हो तभी लगाएं.

हलकी सर्दी में बनाएं फूलगोभी करी

हलकी ठंड के मौसम में एक बार जरूर ट्राई करें फूलगोभी करी. बहपत ही लाजवाब और जायकेदार है ये फूलगोभी करी.

सामग्री

250 ग्राम फूलगोभी

2 टमाटर

1 छोटा चम्मच सौंफ

1/2 छोटा चम्मच जीरा

2-3 कालीमिर्चें

1/4 छोटा चम्मच सोंठ पाउडर

1 छोटा चम्मच तिल

1 छोटा चम्मच सूखा नारियल

1 साबूत लालमिर्च

1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1 हरी इलायची

1 लौंग

1 बड़ा चम्मच क्रीम

1 बड़ा चम्मच घी

थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

नमक स्वादानुसार

विधि

कड़ाही गरम कर जीरा, सौंफ, लौंग, कालीमिर्च, तिल, इलायची, सूखा नारियल व साबूत लालमिर्च भून लें. इस में हलदी, नमक, सोंठ पाउडर व धनिया पाउडर मिला कर पीस लें. कड़ाही में घी गरम कर मसाला भूनें.

टमाटर की प्यूरी कर डालें व भूनें. अब इस में गोभी के टुकड़े कर डालें और धीमी आंच पर ढक कर पकाएं. फिर क्रीम डालें. धनियापत्ती से सजा कर परोसें.

-व्यंजन सहयोग : अनुपमा गुप्ता

क्यों कहें निटिंग कला को बाय बाय

एक समय था जब कढ़ाई बुनाई करना महिलाओं के व्यक्तित्व का एक जरूरी हिस्सा हुआ करता था. महिलाएं अपना चूल्हाचौका समेटने के बाद दोपहर में कुनकुनी धूप का सेवन करते हुए स्वैटर बुनने बैठ जाती थीं. गपशप तो होती ही थी, साथ ही एकदूसरे से डिजाइनों का भी आदानप्रदान हो जाता था. तब घर के हर सदस्य के लिए स्वैटर बुनना हर महिला का प्रिय शगल होता था.

मगर आज की युवा पीढ़ी ने तो निटिंग जैसी कला को गुडबाय ही कह दिया है. कौन पहनता है हाथ से बुने स्वैटर’, ‘यह ओल्ड फैशन ऐक्टिविटी है’ जैसे जुमलों ने महिलाओं को हाथ से बनाने की कला को दूर कर दिया है. पर इन सब जुमलों के बावजूद मैं ने निटिंग के प्रति अपना दीवानापन नहीं छोड़ा. उस दुनिया से छिपा कर बुनती रही, जो इस कला को ओल्ड फैशन मानती है.

आश्चर्य तो तब हुआ जब मैं ने जरमनी की यात्रा के दौरान अपनी हवाईयात्रा में एक जरमन महिला को मोव कलर के दस्ताने बुनते देखा. फिर वहां मैट्रो में कुछ महिलाओं को निटिंग करते देखा. वहां एक स्टोर में जाने का मौका मिला तो पाया कि लोग किस कदर हाथ से बुने स्वैटर पहनने के इच्छुक हैं. वे स्टोर में रखी किताबों में से स्वैटर की डिजाइनें ढूंढ़ कर वहां बैठी महिलाओं को और्डर दे रहे थे. मुझे यह जान कर अच्छा लगा कि इस भौतिकवादी देश में भी लोग हैंडमेड चीजों के प्रति आकर्षित हैं.

विदेशों में है निटिंग का क्रेज

हाल ही में मैं ने अमेरिका की यात्रा की तो निटिंग संबंधी स्टोर देखना मेरे पर्यटन में शामिल था. बोस्टन शहर की ब्रौड वे गली में ‘गैदर हेयर’ नामक एक स्टोर है. जैसा नाम वैसा ही पाया मैं ने. अंदर का नजारा कलापूर्ण तो था ही गैदर हेयर जैसा भी था. एक बड़ी गोल टेबल के पास घेरे में 8 महिलाएं सलाइयां ले कर जुटी थीं. सब सीखने के मकसद से आई थीं. सोफिया ने बताया कि वह अपने भाई के लिए टोपी बुन रही है. लारा अपने बेटे के लिए जुर्राबें बुन रही थी. उन महिलाओं में एक मांबेटी का भी जोड़ा था. उन से संवाद करने पर पता चला कि वे महीने के दूसरे मंगलवार और चौथे बृहस्पतिवार को यहां इकट्ठा होती हैं. यहां वे एकदूसरे से डिजाइन सीखतीसिखाती हैं और अपनी कला को निखारती हैं.

उसी हाल के दूसरे कोने में 2 पुरुष और 1 महिला बैठे थे, जो अपने तैयार स्वैटरों पर बटन लगाने की तैयारी कर रहे थे. एक कोने में चायकौफी और स्नैक्स का सामान रखा था, जो उन महिलाओं के लिए ही था. स्टोर ढेर सारे कच्चे सामान के साथ सुंदर तरीके से सजा था.

मैं हैरान थी यह सब देख कर. मुझे अपने देश में बिताए वे दिन याद आ रहे थे जब मैं ने अपनी दादी, नानी, बूआ, मौसी को घर में कुनकुनी धूपी सेंकते हुए यह सब करते देखा था. पर अब मेरे देश से सब नजारे करीबकरीब गायब हैं.

युवतियों और महिलाओं के हाथों में मोबाइल हैं और कानों में स्पीकर. नैट यूजर लड़कियां यह भी नहीं जानतीं कि नैट सर्च कर के भी हैंडमेड चीजों का खजाना ढूंढ़ा जा सकता है और उन्हें बनाने की कला भी सीखी जा सकती है.

निटिंग जैसी कलाएं न तो आप को बोर होने देती हैं और न ही आप को अकेलेपन का एहसास कराती हैं. इतना ही नहीं आप के दिमाग के संतुलन को बनाए रखने में भी ये कलाएं बहुत कारगर सिद्ध होती हैं.

विदेशों में हाइपरटैंशन के मरीजों की परची पर डाक्टर द्वारा इलाज की सूची में दवा के साथ निटिंग भी लिखा जाता है यानी डाक्टर द्वारा सलाह दी जाती है कि यदि आप निटिंग करेंगे तो आप का बीपी संतुलित रहेगा.

दिमाग रहे तरोताजा

अमेरिका जैसे देश में जहां लोग भौतिक सुखसुविधाओं से पूरी तरह संपन्न हैं, फिर भी निटिंग कला को खूबसूरती से बचाए हुए हैं. बोस्टन स्थित विश्व की नंबर वन यूनिवर्सिटी में भी एक कक्ष ऐसा है जहां ऊन, सलाइयां, क्रोशिया, धागा, सूई, बटन आदि सब रखे हैं. जब विद्यार्थी पढ़ाई करतेकरते थक जाएं तो इस कक्ष में आ कर अपनी मनपसंद क्रिएटिविटी कर सकते हैं और अपने दिमाग को फिर से तरोताजा कर सकते हैं.

एक बार मेरी बेटी जो बोस्टन में एमआईटी में पढ़ाई कर रही है, ने बेहद उत्साहित हो कर बताया, ‘‘मां, मैं एक सेमिनार में समय से कुछ पहले पहुंच गई, तो वहां देखा कि लैक्चर देने वाली प्रोफैसर निटिंग कर रही है.’’

मगर हमारे देश में अब निटिंग कला लुप्तप्राय: हो रही है. बड़ा स्वैटर या जर्सी नहीं तो कुछ छोटा ही बुनिए जैसे टोपी, जुराबें आदि. एक बार मेरी मां थोड़ी बीमार हो गईं, तब मैं ने उन के सामने ऊन, सलाइयां ला कर रख दीं. मां ने न जाने कितनी जोड़ी जुर्राबें बुन दीं. फिर तो जो भी उन की कुशलमंगल पूछने आता उसे जुर्राबों का एक जोड़ा उपहार में मिल जाता. मां के चेहरे की संतुष्टि और उपहार पाने वाले की खुशी देखते ही बनती थी.

सच, निटिंग करने का सुख अलग ही है. एक बार निटिंग कर के तो देखिए इस सर्दी में.

हर चीज पर आज राजनीति हो रही है : ऋचा चड्ढा

फिल्म ‘ओये लकी, लकी ओय’ से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री ऋचा चड्ढा ने बहुत कम समय में अपनी एक अलग पहचान बनायी है. पंजाब के अमृतसर में जन्मी और दिल्ली में पली बड़ी हुई ऋचा के कैरियर की टर्निंग प्वाइंट फिल्म गैंग्स औफ वासेपुर है, जिसमें उन्होंने एक अधेड़ उम्र की महिला की भूमिका निभाई थी. इस फिल्म से उन्हें बहुत तारीफें मिली और उनकी जर्नी चल पड़ी.

ऋचा को बचपन से ही अभिनय की इच्छा थी और उन्होंने इसकी शुरुआत मौडलिंग से की. जिसे उन्होंने मुंबई आने के बाद शुरू कर दिया था. बाद में वह अभिनय की ट्रेनिंग लेने के लिए थिएटर की ओर मुड़ी और कई नाटकों में अभिनय किया. स्पष्टभाषी और साहसी ऋचा इन दिनों अपनी फिल्म ‘फुकरे रिटर्न्स’ में फिर से एक बार भोली पंजाबन की भूमिका एक अलग अंदाज में निभा रही हैं. सहज अंदाज में वह सामने आईं और बातचीत की, पेश है अंश.

दोबारा इस फिल्म की कड़ी में जुड़कर आप कितनी उत्साहित हैं?

साधारणत: फुकरे और मसान की सारी टीम बीच-बीच में मिलते रहते हैं. ऐसे में हमारी एक अच्छी बौन्डिंग हो गयी है. ऐसे में हम एक दूसरे के साथ बहुत सहज हैं. हमारी केमिस्ट्री भी पर्दे पर पूरी तरह से नजर आती है. इससे पहले मेरी कई फिल्में मसान और गैंग्स औफ वासेपुर थोड़ी औफ बीट फिल्म थी, लेकिन फुकरे मेरे लिए पहली बड़ी कमर्शियल फिल्म थी. इसकी एक अलग दर्शक होती है. इस बार की फिल्म भी मजेदार है. ये एक अनोखी फिल्म है. इसे तिहार जेल में शूट किया गया है. वहां मुझे केवल अंदर जाने की परमिशन थी. बहुत अच्छा लगा था कि कैसे जेल में महिलाएं रहती हैं. कैसे उनसे मिलने उनके परिजन आते हैं. वहां के पुलिसवाले को फिल्मों का बहुत शौक होता है. वे मुझसे बातचीत करना पसंद करते थे.

किसी भी चरित्र से बाहर निकलना कितना मुश्किल होता है?

ये सही है कि किसी चरित्र से निकलना आसान नहीं होता. कई बार आप जो चरित्र करते हैं उससे आपके दैनिक जीवन से कोई सरोकार नहीं होता, लेकिन इससे आप समझ जाते हैं कि अगर आप ऐसी होतीं, तो क्या होता. मैं भोली पंजाबन की भूमिका से कोसों दूर हूं. मैं इतनी मुंहफट नहीं हूं कि किसी को कुछ भी कह दूं.

आजकल क्रिएटिविटी पर बहुत अधिक राजनीति हो रही है, इससे ये कितना सफर करती है और आपकी राय क्या है?

आज हर चीज पर राजनीति हो रही है. गानों, फिल्मों, गीतों के नाम पर, पेड़ पक्षी आदि सभी पर किसी न किसी रूप में राजनीति किया जा रहा है. राजनीति ने किसी चीज को छोड़ा नहीं है. आजकल लोग बातचीत करने की कोई गुंजाईश नहीं रखते. हर कोई अपनी बात कहकर उसे ही सही प्रूव करने की कोशिश में लगा हुआ है, लेकिन इसे सुलझाने का एक तरीका भी है और इससे हमारे देश की नेताओं को समझना होगा, जिन्हें वोट देकर जनता अपना प्रतिनिधि बनाती है. आप मालिक नहीं, ‘पब्लिक सर्वेंट’ हैं और किसी भी समस्या को सुलझाना ही आपका काम है.

मैं दिल्ली में पली बड़ी हुयी हूं, लेकिन मैंने दिल्ली में कभी ऐसी हवा नहीं देखी जो आज है, इतना प्रदूषण है कि लोगों को सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है. इसे सुलझाया क्यों नहीं जा रहा है? आजकल न्यूज भी उन चीजों को कवर करती है जिसका दैनिक जीवन से कोई सरोकार नहीं, जैसे किसने किसको चांटा मारा, किसने किसको क्या कहा आदि ये सारी न्यूज लोगों को सही मुद्दे से बहकाने के काम आती है. सब जानते हैं कि असलियत क्या है. माहौल ऐसा बनाया जा रहा है कि कोई कुछ बोले, तो उसे डराया और धमकाया जाता है. कुछ को तो जान से भी मार दिया जाता है. ये सोचने वाली बात है. सभी इसमें दोषी हैं और इससे देश का ही नुकसान ही होगा. मुझे अजीब लगता है जब कोई कहता है कि किसी को 4 बच्चे होने चाहिए या मोर सेक्स नहीं करता उसके आंसू पीने से मोरनी प्रेग्नेंट हो जाती है आदि कितने ही तथ्यहीन बातें सुनने को मिलती हैं.

कमर्शियल फिल्मों में आने के लिए आपको कितनी ग्रूमिंग करनी पड़ी?

बहुत करनी पड़ी, क्योंकि मैं एक साधारण लड़की थी और थिएटर बैकग्राउंड से आई थी. मैंने अब अपने आपको काफी सुधारा है, पर मैं अपने आप को रीयलिस्टिक लगना चाहती हूं.

आप अपनी प्रोडक्शन में क्या करना चाहती हैं?

मैंने एक फिल्म की है आगे भी एक कौमेडी फिल्म करने की इच्छा है, कुछ स्क्रिप्ट पढ़ रही हूं, मैं मेसेज के साथ-साथ ह्यूमर को शामिल कर फिल्में बनाना चाहती हूं.

अबतक की आपकी जर्नी कैसी रही?

मैं फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ को सबकुछ मानती हूं जो मुझे यहां तक ले आयी. ओये लकी लकी ओय के बाद मैंने कुछ दिनों के लिए फिल्मों में काम करना छोड़ दिया था और थिएटर करने चली गयी थी, लेकिन कभी वित्तीय रूप से उसपर ध्यान नहीं दिया था कि पैसे के लिए फिल्मों में सफल होना जरूरी है. मैंने उस समय कई विज्ञापनों में भी काम किया. ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ के बाद मैंने पूरी तरह से फिल्मों को अपनाया है.

क्या कुछ सोशल वर्क करती हैं?

मैंने बहुत सारे सामाजिक कार्य किये हैं. ‘सेक्स ट्राफिकिंग’ की एक इशू पर मैंने काम किया था. उस बारे में मैंने कैम्पेन भी किया था. गर्ल चाइल्ड को बचाने की दिशा में काम किया है, साथ ही पर्यावरण प्रदूषण पर भी काम कर रही हूं.

सर्दियों में ये घरेलू नुसखें दिलाएंगे आपको रूखी त्वचा से छुटकारा

सर्दियों के मौसम में त्वचा को नम रखना बहुत जरूरी होता है क्योंकि सर्द हवाएं त्वचा की नमी को चुराकर उसे रूखा और बेजान बना देती है. रूखेपन की वजह से त्वचा के फटने की समस्या सामने आती है जिससे काफी तकलीफ होती है. हम इस रूखेपन से बचने के लिए हम तरह-तरह के उपाय आजमाते रहते हैं.

इससे बचने के लिए तमाम तरह के केमिकलयुक्त मौइश्चराइजर्स, बाजारू क्रीम्स और कास्मेटिक्स का इस्तेमाल करते हैं, पर नतीजा इनमें मौजूद केमिकल्स त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसे में जरूरी है कि हम त्वचा के लिए कुछ घरेलू नुस्खे अपनाएं क्योंकि ये घरेलू नुस्खे प्राकृतिक रूप से त्वचा की सेहत सही रखते हैं.

घरेलू नुस्खों से बने ब्यूटी प्रोडक्ट्स का कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता साथ ही साथ ये त्वचा को लंबे समय तक मौश्चराइज रखते हैं.

तो चलिए आज हम आपको सर्दियों के मौसम में त्वचा को नम बनाए रखने के लिए कुछ ऐसे घरेलू नुस्खों के बारे में बताते हैं जिन्हें बनाना बेहद आसान है.

दूध, चीनी और बादाम का पेस्ट

एक कटोरी में थोड़ा दूध लें. इसमें एक चम्मच चीनी एक चम्मच बादाम का पाउडर डालकर गाढ़ा पेस्ट बना लें. अब इस पेस्ट को त्वचा पर हल्के हाथों से लगाकर बीस मिनट तक रहने दें. उसके बाद हल्के गुनगुने पानी से त्वचा धो लें. कुछ दिनों तक ऐसा करने से त्वचा का रूखापन बिल्कुल ठीक हो जाएगा और त्वचा मुलायम और चमकदार बन जाएगी.

खीरे का रस और ग्लिसरीन

दो चम्मच खीरे के रस में आधा चम्मच ग्लिसरीन और आधा चम्मच गुलाबजल डालकर अच्छी तरह मिला लीजिये. अब इसे अपनी त्वचा पर या चाहे तो पूरे शरीर पर लगाकर 10-15 मिनट तक के लिए छोड़ दीजिये. बाद में गुनगुने पानी से नहा लीजिये. ऐसा करने से पूरे शरीर में नमी आती है और त्वचा का रूखापन ठीक हो जाता है.

दही, दूध की मलाई, केला और शहद का पेस्ट

आधे कप दही में एक चम्मच दूध की मलाई डालें. अब इसमें एक चम्मच मैश किया हुआ केला और एक चम्मच शहद के अच्छी तरह मिलाकर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को अपने चेहरे पर लगाएं. 15 मिनट के बाद अपने चेहरे को पानी से धोकर साफ कर लें. हफ्ते में दो बार ऐसा करने से त्वचा के रूखेपन के साथ त्वचा से कालापन भी खत्म होता है.

महिलाओं के नाम पर लें संपत्ति, होगा फायदा

महिलाओं के नाम पर संपत्ति लेने में सबसे बड़ा फायदा रजिस्ट्री में मिलने वाली छूट के तौर पर देखा जा सकता है. देश के तमाम राज्यों में महिलाओं के नाम पर संपत्ति की रजिस्ट्री कराने पर स्टांम्प ड्यूटी में 2 फीसदी की छूट मिलती है. अगर संपत्ति का मालिकाना हक पूरी तरह से किसी महिला के नाम पर नहीं है और उसे प्रौपर्टी में जौइंट ओनर बनाया गया हो तो इस स्थिति में भी रजिस्ट्री में एक फीसदी की छूट का लाभ उठाया जा सकता है.

घर खरीदने में महिलाओं की सलाह बेहद काम की होती है. इसकी एक वजह यह है कि घर में सबसे ज्यादा वक्त महिलाओं का ही बीतता है. लेकिन कहते हैं कि वक्त कभी भी एक जैसा नहीं रहता है. मौजूदा समय की ही बात करें तो पिछले कुछ वर्षों में जहां घर खरीदने में महिलाओं की सलाह की अहमियत में इजाफा हुआ है तो वहीं अब महिलाओं के नाम पर संपत्ति खरीदने वालों की संख्या में भी अच्छा-खास इजाफा देखने को मिलता है. वैसे ऐसा हो भी क्यों नहीं, आखिर महिलाओं के नाम पर संपत्ति खरीदने के कई तरह के लाभ भी तो मिल जाते हैं.

संपत्ति मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि महिलाओं के नाम पर संपत्ति खरीदकर टैक्स प्लानिंग को जहां आसान बनाया जा सकता है तो वहीं कई तरह की छूट का लाभ भी हासिल किया जा सकता है. ऐसे में अगर आप भी किसी संपत्ति में निवेश करने का मन बना रहे हैं तो इसे अपने घर की महिला के नाम पर खरीद सकते हैं. या फिर उन्हें संपत्ति के मालिकाना हक में अधिकार देकर भी कई तरह से लाभ उठा सकते हैं। जानते हैं, यह किस तरह संभव है.

बढ़ाएं लोन की रकम

अगर आप होम लोन लेकर संपत्ति खरीदने पर विचार कर रहे हैं तो ऐसे में अपनी पत्नी को इस एप्लीकेशन में को-एप्लीकेंट बना सकते हैं. बशर्ते आपकी पत्नी कोई नौकरी या फिर अपना व्यापार कर रही हो. ऐसा होने से आपकी आय में उनकी आय भी शामिल हो जाएगी. साथ ही आय में इजाफा होने से आपको मिलने वाली होम लोन की रकम में भी इजाफा हो जाएगा.

बैंकिंग मामलों के जानकारों का कहना है कि होम लोन के लिए ऐसी एप्लीकेशन, जो महिलाओं की तरफ से आई हों या फिर जिनमें महिलाओं को को-एप्लीकेंट बनाया गया हो, उनके लिए बैंकों की कोशिश होती है कि लोन जल्दी और आसानी से पास किया जाए. ऐसी एप्लीकेशन को बैंक जल्दी से खारिज नहीं करते.

रजिस्ट्री में छूट

संपत्ति मामलों के विशेषज्ञ कहते हैं कि महिलाओं के नाम पर संपत्ति लेने में सबसे बड़ा फायदा रजिस्ट्री में मिलने वाली छूट के तौर पर देखा जा सकता है. देश के तमाम राज्यों में महिलाओं के नाम पर संपत्ति की रजिस्ट्री कराने पर स्टांम्प ड्यूटी में 2 फीसदी की छूट मिलती है. अगर संपत्ति का मालिकाना हक पूरी तरह से किसी महिला के नाम पर नहीं है और उसे प्रौपर्टी में जौइंट ओनर बनाया गया हो तो इस स्थिति में भी रजिस्ट्री में एक फीसदी की छूट का लाभ उठाया जा सकता है.

किसी प्रौपर्टी में जब आप लाखों रुपयों का निवेश कर रहे हों तो वहां एक या फिर दो फीसदी की बचत भी आपके लिए फायदे और समझदारी की बात ही कही जा सकती है. इस बचत का इस्तेमाल प्रौपर्टी की फर्निशिंग पर या फिर दूसरे कामों पर खर्च की जा सकती है.

प्रौपर्टी टैक्स में बचत

अगर आप दिल्ली जैसे शहर में कोई प्रौपर्टी लेने की योजना बना रहे हैं तो इस शहर में महिला के नाम पर प्रौपर्टी खरीदना समझदारी भरा कदम होगा. आप वाकिफ होंगे कि एरिया की देख-रेख के लिए हर साल एमसीडी को प्रौपर्टी टैक्स चुकाना होता है. इस टैक्स में भी महिलाओं के लिए छूट के प्रावधान किए गए हैं. बशर्ते संपत्ति का स्वामित्व किसी महिला के नाम पर हो.

महिला खरीदारों बढ़ती संख्या

विशेषज्ञ कहते हैं कि जब से स्टांप ड्यूटी में महिलाओं के लिए छूट के प्रावधान किए गए हैं, उसके बाद से महिलाओं के नाम पर होने वाली संपत्तियों की रजिस्ट्री की संख्या में भारी इजाफा देखने को मिलता है. सामाजिक लिहाज से तो इस कदम से उन्हें गर्व होता ही है, साथ ही आर्थिक स्वावलंबन की दृष्टि से इसे महत्वपूर्ण माना जा सकता है.

इसमें कोई दो राय नहीं कि ईंट, सरिये और सीमेंट की मदद से खड़ी की गई चारदीवारी, जिसे मकान की संज्ञा दी जाती है, उसे घर के रूप में परिवर्तित करने का काम तो महिलाएं ही करती हैं.

आखिर जब घर की जिम्मेदारी उन पर होती है तो उस संपत्ति के मालिकाना अधिकार में उनका हिस्सा क्यों नहीं हो सकता? जबकि ऐसा करना न सिर्फ कई लिहाज से लाभदायक है साथ ही उनकी प्रतिष्ठा को बढ़ाने वाला कदम भी कहा जा सकता है.

अपने लव लाईफ की वजह से अक्सर सुर्खियों में रहा यह अभिनेता

साउथ के सुपरस्टार कमल हासन 63 साल के हो चुके हैं. 7 नवंबर, 1954 को परमकुडी, चेन्नई में जन्में कमल हासन इन दिनों हिंदू आतंकवाद पर दिए विवादित बयान के चलते सुर्खियों में हैं. कमल ने करियर की शुरुआत 1959 में महज 6 साल की उम्र में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट की थी. हालांकि उन्हें सक्सेस फिल्म ‘अपूर्व रागंगल’ से मिली, जिसमें उन्होंने खुद से उम्र में बड़ी महिला के साथ प्यार करने वाले अक्खड़ युवा का रोल प्ले किया था. उन्होंने पहली शादी वाणी गणपति और दूसरी सारिका से की.

कमल ने 1978 में वाणी गणपति से शादी की. यह शादी 10 साल चली और फिर 1988 में इनका तलाक हो गया. इसके बाद कमल एक्ट्रेस सारिका के साथ डेटिंग करने लगे. कमल और सारिका ने 1988 में शादी कर ली. उनकी दो बेटियां श्रुति हासन और अक्षरा हासन हैं. 2004 में सारिका से भी उनका तलाक हो गया.

कमल हासन की जिंदगी में सारिका से पहले और बाद आई ये महिलाएं

फिल्मी करियर में जबर्दस्त सफलता हासिल करने वाले कमल हासन पर्सनल लाइफ की वजह से विवादों में रहे हैं. उनकी जिंदगी में सारिका से पहले और बाद में ये महिलाएं आईं.

सारिका से पहले

  • श्रीविद्या : 70 के दशक में एक्ट्रेस श्रीविद्या के साथ अफेयर के उनके काफी किस्से चले, हालांकि, दोनों ने कुछ फिल्में भी साथ कीं, लेकिन उनका अफेयर लंबे समय तक टिक न सका.
  • वानी गनपति : 1978 में 24 साल की उम्र में कमल हासन ने डांसर वाणी गनपति से शादी की, यह रिश्ता 10 साल तक चला और फिर उनके बीच यह रिश्ता टूटा एक्ट्रेस सारिका की वजह से.

सारिका के बाद

  • सिमरन : एक वक्त आया, जब कमल और सारिका के रिश्तों में खटास आ गई, साल 2004 में उन्होंने तलाक ले लिया. अब इनके बीच आई थीं सिमरन बग्गा, जो कमल से करीब 22 साल छोटी हैं. हालांकि बाद में सिमरन ने अपने बचपन के फ्रेंड से शादी कर ली और ये रिश्ता खत्म हो गया.
  • गौतमी तड़िमल्ला : करीब 13 साल तक कमल हासन के साथ लिव इन रिलेशन में रहीं उनकी गर्लफ्रेंड और एक्ट्रेस गौतमी ने 2016 में उनसे अलग होने की घोषणा कर दी. दरअसल, साऊथ फिल्मों की स्टार गौतमी ने एक बयान में कहा कि उन्होंने और एक्टर कमल हासन ने 13 साल के रिलेशन को खत्म करते हुए अलग होने का फैसला किया है.
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