जहरीले स्मौग से बचने के लिए जानिए ये उपाय

आज देश की राजधानी दिल्ली स्मौग के कहर से जूझ रही है. भयंकर धुंध की वजह से सांस लेने में तकलीफ और सड़कों पर कम होती दृश्यता लोगों की परेशानी का सबब बनी हुई है. लोगों का घर से निकलना मुहाल हो गया है. हवा में घुला ये जहरीला धुआं हमारी सेहत को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने दिल्ली की वर्तमान हालत को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया है. उसने सरकार को एक पत्र लिखकर सभी तरह के आउटडोर एक्टिविटीज तथा स्कूलों में स्पोर्ट्स एक्टिविटीज को तत्काल रोकने का सुझाव दिया है. साथ ही साथ सभी दिल्लीवासियों को घर से बाहर न निकलने की सलाह भी दी है. ऐसे में यह जानना-समझना बहुत जरूरी है कि ये स्मौग क्या है और इसके कारण और दुष्प्रभाव क्या हैं? आखिर यह किस तरह से लोगों को बीमार बना सकता है? तो आइये जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब-

क्या है स्मौग?

स्मौग एक तरह का वायु प्रदूषण ही है. यह स्मोक और फौग से मिलकर बना है जिसका मतलब है स्मोकी फौग, यानी कि धुआं युक्त कोहरा. इस तरह के वायु प्रदूषण में हवा में नाइट्रोजन आक्साइड्स, सल्फर आक्साइड्स, ओजोन, स्मोक और पार्टिकुलेट्स घुला होता है, जो हमारी सेहत के लिए बेहद ही हानिकारक है.

क्या है स्माग का कारण?

सर्दी के मौसम में हवाएं थोड़ी सुस्त होती हैं. ऐसे में डस्ट पार्टिकल्स और प्रदूषण वातावरण में स्थिर हो जाता है जिससे स्मौग जैसी समस्याएं सामने आती हैं. दिल्ली की सीमाओं (पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा) से लगने वाले क्षेत्रों में बहुतायत मात्रा में कृषि की जाती है. यहां के लोग फसल कटने के बाद उसके अवशेषों को जला देते हैं. इससे निकलने वाला धुआं स्मौग की समस्या उत्पन्न करता है. हमारे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले वाहनों से निकलने वाला धुआं, फैक्ट्रियों और कोयले, पराली आदि के जलने से निकलने वाला धुआं इस तरह के वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण होता है. इस बार सुप्रीम कोर्ट से बैन होने के बाद भी लोगों ने राजधानी के बहुत से इलाकों में भारी मात्रा में पटाखे आदि फोड़े. जिससे धीरे धीरे प्रदूषण की समस्या गहराती गई और आज दिल्ली जिस स्मौग के बनने की समस्या से जूझ रही है उसमें इनका भी भारी मात्रा में योगदान रहा है.

स्मौग के दुष्प्रभाव

स्मौग की वजह से सांस लेने में तकलीफ तो होती ही है साथ ही साथ इसकी वजह से अस्थमा, एम्फीसिमा, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और अन्य श्वांस संबंधी समस्याएं अपनी गिरफ्त में ले लेती हैं. आइये जाने कि इसका हमारे सेहत पर किस हद तक बुरा असर पड़ रहा है.

खांसी और गले तथा सीने में जलन

जब आप हवा में घुले जहर यानी कि स्मौग के संपर्क में आती हैं तो हवाओं में भारी मात्रा में नाइट्रोजन आक्साइड्स, सल्फर आक्साइड्स, ओजोन और स्मोक मौजूद होने की वजह से आपके श्वसन तंत्र पर बुरा असर पड़ता है. इससे सीने में जलन होती है और खांसी की भी समस्या पैदा होने लगती है. इसकी वजह से फेफड़ों में संक्रमण भी हो सकता है.

अस्थमा में हानिकारक

अगर आप अस्थमा की मरीज हैं तो आपको स्मौग से बचकर रहने की आवश्यकता है क्योंकि स्मौग में मौजूद ओजोन आपके लिए ज्यादा घातक साबित हो सकता है. इसके कारण आपको सांस लेने मे तकलीफ होने के साथ ही अस्थमा का अटैक आ सकता है. इसलिए अस्थमा के रोगी को इससे बचकर रहने की आवश्यकता है.

आइये जाने इससे बचाव का तरीका

स्मौग के दिनों में कम से कम एक्टिव रहने की कोशिश करें. ऐसे मौसम में आप जितना एक्टिव रहेंगे आपको श्वसन संबंधी रोग होने का खतरा उतना बढ़ जाएगा. स्मौग के दुष्प्रभाव से बचने के लिए घर से ज्यादा देर तक के लिए बाहर रहने से बचें. बेहद आवश्यकता पड़ने पर ही घर से बाहर जाएं. बाहर जाने से पहले अपने फेस को पूरी तरह से कवर कर लें या फिर मास्क का इस्तेमाल करें. शहर मे फैले एजेन का स्तर जाने साथ ही बाहर जाने का प्रोग्राम तभी बनाएं जब ओजोन का स्तर कम हो. वायु प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में सहयोग करें. ऊर्जा संरक्षण, कार पूलिंग और पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसे अभियानों में सहयोग दें.

..तो क्या राजस्थान में रिलीज नहीं होगी ‘पद्मावती’

फिल्‍म “पद्मावती” अपनी शूटिंग के पहले दिन से ही विवादों से घिरी हुई है. निर्देशक संजय लीला भंसाली ने तो अपनी इस फिल्म की रिलीज डेट तय कर दी है पर रिलीज की तारिख नजदीक आने के बाद भी “पद्मावती” की मुसीबतें अभी तक टली नहीं है. कई समुदाय के लोग इस फिल्म को लेकर लगातार अपना विरोध जता रहे हैं. खबरे तो यहां तक आ रही हैं कि राजस्थान के फिल्म डिस्‍ट्रीब्‍यूटों ने “पद्मावती” से जुड़े विवाद के सुलझने तक राज्‍य में फिल्म रिलीज करने से ही मना कर दिया है.

एक रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान के एक फिल्म वितरक संजय चतर ने कहा कि फिल्म निर्माता और विरोध करने वालों को पहले विवाद खत्म करना चाहिए. उन्होंने कहा कि इतिहास के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. राजस्थान में 300 स्क्रीन हैं. फिल्म निर्देशक द्वारा रानी पद्मावती के संबंध में इतिहास के साथ की गई कथित छेड़छाड़ के विरोध में करणी सेना, बजरंगदल और अन्य संगठन फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं.

भाजपा विधायक और जयपुर के पूर्व राजघराने की सदस्य दीया कुमारी ने भी फिल्म में ​इतिहास के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ को लेकर अपना विरोध जताया है. सोशल मीडिया पर अपना विरोध दर्शाते हुए दीया ने ट्वीट किया कि रानी पद्मावती राजस्थान की बहादुरी और सम्मान का प्रतीक है और उनकी एवं महिलाओं के बलिदान को कमतर करने की किसी भी कोशिश को सफल नहीं होने दिया जाएगा.

इससे पहले केंद्रीय मंत्री उमा भारती और गिरिराज सिंह भी इसका विरोध कर चुके हैं. इसके साथ ही तेलंगाना के विधायक टी. राजा सिंह के साथ ही उज्जैन से भाजपा सांसद चिंतामणि मालवीय भी “पद्मावती” के परदे पर उतरने से पहले इसके विरोध में उतर आये हैं. राजा सिंह का कहना है कि फिल्म में अगर राजपूत रानी की छवि को गलत तरीके से पेश किया गया है तो वह उसकी रिलीज को रोकने का पूरा प्रयास करेंगे.

भंसाली के निर्देशन में बनी इस फिल्‍म में दीपिका पादुकोण पद्मावती बनी नजर आएंगी जबकि शाहिद कपूर उनके पति महारावल रतन सिंह के किरदार में नजर आएंगे. रणवीर सिंह इस फिल्‍म में अलाउद्दीन खिलजी का किरदार निभाते दिखेंगे. इस फिल्‍म को 1 दिसंबर को रिलीज किया जाना है, पर “पद्मावती” को लेकर चल रहे विवाद को देखकर लगता है कि इस फिल्म रिलीज कर पाना भंसाली के लिए काफी मुश्किल होगा. अब देखना ये है कि यह फिल्म कहां रिलीज होती है और कहां इसके रिलीज होने पर पाबंदी लगाई जाती है.

स्मौग के लिए मैं भी जिम्मेदार : वरुण धवन

बीते दो तीन दिनों से दिल्‍ली में दिन की शुरुआत ‘स्मौग’ यानी ‘स्‍मोक+फौग’ के साथ हो रही है. ‘स्मौग’ का कहर इतना है कि सूरज तक दिखाई नहीं दे रहा. हवा में घुले इस प्रदूषण ने सुबह-सुबह लोगों का दफ्तर पहुंचना मुश्किल कर दिया और हर कोई दिल्‍ली में फैले प्रदूषण के इस जहर के बारे में बात करने लगा. दिल्ली के इस नजारे को देखकर दिल से बस एक ही आवाज आती है कि यहां ‘फौग’ नहीं बल्कि ‘स्मौग’ चल रहा है. दिल्‍ली में फैले ‘स्मौग’ को लेकर कुछ सेलीब्रिटीज ने भी अपने तरीके से लोगों को प्रदूषण के इस खतरे के प्रति सचेत करने की कोशिश की है. एक्‍टर वरुण धवन और बौक्‍सर विजेंद्र सिंह ने अपनी-अपनी एक सेल्‍फी पोस्‍ट की है, जिसमें वह मास्‍क पहने नजर आ रहे हैं.

वरुण ने अपने इस फोटो के साथ ही लोगों को प्रदूषण से जुड़ा एक संदेश भी दिया है. उन्होंने अपने इस पोस्‍ट में लिखा, ‘मैं अपनी यह सेल्‍फी सोशल मीडिया पर इसलिए साझा कर रहा हूं, ताकि आप सब को दिखा सकूं कि असल में ‘स्मौग’ कैसा नजर आता है. वैसे मुझे किसी को भी यह बात समझाने की जरुरत नहीं है क्‍योंकि इस देश के हजारो नागरिकों की तरह प्रदूषण के इस स्‍तर के लिए मैं भी बराबर का जिम्‍मेदार हूं. लेकिन अब एक-दूसरे पर आरोप लगाने या सरकार को इसके लिए जिम्‍मेदार ठहराने के बजाए, चलो इसे बदलें. यह समय है हरियाली की तरफ बढ़ने का….’ वहीं विजेंद्र सिंह ने भी अपनी एक सेल्‍फी पोस्‍ट करते हुए दिल्‍ली में बढ़ते प्रदूषण की हालत बयां की है.

‘स्मौग‘ के दौरान हवा की गुणवता बताने वाला सूचकांक दिल्ली के लगभग सभी इलाकों में गंभीर स्तर पर बना रहा. इसके मुताबिक 500 अंक वाला सूचकांक दिल्ली के हर इलाके में 450 के अंक को पार कर गया.

मौसम विभाग के मुताबिक तापमान में गिरावट और हवा के थमने की वजह से धुंध छंटने की संभावना बिल्कुल कम हो गयी है. मौसम विभाग का ‘स्माग’ को लेकर कहना है कि ऐसा मौसम अगले तीन दिनों तक रह सकता है और यह समस्या और अधिक गहराने की आशंका है.

दूसरी शादी करने वाली हैं करिश्मा कपूर..!

शादी के बाद बौलीवुड से दूरी बना चुकी कपूर खानदान की बेटी करिश्मा कपूर एक बार फिर सुर्खियां बटोरती नजर आ रही हैं और इस बार वजह है उनकी शादी. जी हां, करिश्मा तीन साल से दिल्ली के एक बिजनेसमैन संदीप तोषनीवाल को डेट कर रही हैं और बहुत जल्द उनके साथ शादी रचाने वाली हैं.

खबरों की मानें तो करिश्मा के ब्वायफ्रेंड संदीप तोषनीवाल और उनकी पत्नी अश्रिता ने साल 2010 में एक दूसरे से अलग होने की अर्जी डाली थी. अब सात सालों बाद मुंबई के बांद्रा फैमिली कोर्ट ने इस तलाक पर मुहर लगा दी है.

बता दें कि संदीप और अश्रिता का तलाक आपसी सहमती से हुआ है. तलाक के बाद बच्चों की कस्टडी अश्रिता को मिल गई है. अश्रिता से तोषनीवाल की दो बेटियां हैं जिन्हें कि 3-3 करोड़ रुपए दिए जाएंगे. वहीं अश्रिता को फ्लैट के साथ ही 2 करोड़ रुपए मिलेंगे.

संदीप ने अश्रिता पर आरोप लगाया था कि उनका दिमागी संतुलन ठीक नहीं है और बदले में अश्रिता ने संदीप पर व्यभिचार का आरोप लगाया था. इसकी वजह से दोनों के तलाक ने भद्दा मोड़ ले लिया था.

करिश्मा भी पिछले साल पति संजय कपूर से अलग हो चुकी हैं. संजय ने इसी साल प्रिया सचदेव के साथ शादी कर ली जोकि विक्रम चटवाल की पूर्व पत्नी हैं.

सूत्रों की मानें तो संदीप और करिश्मा ने करीब तीन साल पहले ही संदीप को डेट करना शुरू किया था. उससे पहले करिश्मा ने दिल्ली के एक बिजनेसमैन संजय कपूर से शादी की थी. लेकिन यह शादी ज्यादा समय तक नहीं चल सकी और दोनों एक-दूसरे से अलग हो गए. करिश्मा और संजय के दोनों बच्चे करिश्मा के साथ ही रहते हैं.

बता दें कि करिश्मा और संदीप ने पब्लिक में कभी भी अपने रिश्ते को स्वीकार नहीं किया है. इसके बावजूद दोनों का लगभग हर मौके पर साथ दिखना कुछ और ही कहानी बयां करता है.

छोटी आदतों को अपनाकर करें बड़ी सेविंग

कम पैसों में गुजारा करने के लिए सोच-समझकर योजना बनानी पड़ती है. जब आप अपनी कमाई घर लाती हैं, तो पहले से तय कर लीजिए कि किस चीज के लिए आप कितना पैसा खर्च करेंगी और उसके हिसाब से पैसे को अलग-अलग हिस्सों में बाट दीजिए, ताकि आपकी आज की और भविष्य की जरुरतें पूरी हो सके. जब आप तय हिसाब से पैसे खर्च करती हैं तो आप देख पाती हैं कि पैसा किन चीजों में खर्च हो रहा है और कितना पैसा गैर-जरूरी चीजों में जा रहा है. इससे आपको यह पता करने में मदद मिलेगी कि आप कहां बचत कर सकती हैं.

खरीदारी करें समझदारी से

● वो सब्जियां और सामान खरीदिए जो सस्ती हों.

● पैकेट या डिब्बाबंद खाना खरीदने के बजाय, जरूरत की सारी चीजें खरीदकर घर पर खाना बनाइए.

● मौसमी चीजों को या काम आनेवाली उन चीजों को ज्यादा मात्रा में खरीदिए जिन पर छूट मिल रही हो.

● सामान थोक में खरीदिए, मगर जल्दी खराब होनेवाली चीजों को ज्यादा दिन तक मत रखिए.

● कपड़ों पर खर्चा कम करने के लिए उन दुकानों से कपड़े खरीदिए जहां इस्तेमाल किए (सेकंड हैंड) कपड़े बेचे जाते हैं.

● ऐसी जगहों से सामान खरीदिए जहां वे सस्ते मिलते हैं, मगर ध्यान रखिए कि जितनी बचत होगी उससे ज्यादा खर्चा आने-जाने में न हो जाए.

● बार-बार खरीदारी करने से दूर रहिए.

खरीदने से पहले सोचिए

खुद से ये सवाल पूछने की आदत डालिए, ‘क्या मुझे सचमुच इसकी जरुरत है? क्या पुराना सामान वाकई खराब हो गया है या मैं बस नयी चीज चाहती हूं?.’ अगर आप किसी चीज को बहुत कम इस्तेमाल करेंगी तो क्या उसे किराए पर लेना काफी होगा या फिर अगर आपको लगता है कि आपको उसकी अक्सर जरूरत पड़ेगी तो क्या पुराने (सेकंड हैंड) सामान से आपका काम चल सकता है.

ऊपर दिए सुझावों में से कुछ शायद आपको ज्यादा खास न लगे, लेकिन अगर आप सारे तरीके आजमाएंगी तो आप देखेंगी कि उनसे बहुत फर्क पड़ेगा. दरअसल बात यह है कि अगर आप छोटी-छोटी चीजों में बचत करने की आदत डालें, तो आप बड़े-बड़े खर्चों में भी बचत करने की सोचेंगी.

नए-नए तरीके ढूंढ़िए

● बगीचे में खुद सब्जियां उगाइए.

● उपकरणों का इस्तेमाल करते वक्‍त निर्माता के निर्देशनों का पालन कीजिए, ताकि वे ज्यादा लंबे समय तक चलते रहें.

● घर आने के बाद अपने कपड़े तुरंत बदलने की आदत डालिए, इससे आपके कपड़े लंबे समय तक नए बने रहेंगे.

ऋतिक रोशन पर क्यों दी जा रही है कानूनी मिसाल

ऋतिक रोशन और सुजैन खान एक दूसरे से काफी वक्त पहले अलग हो चुके हैं. लेकिन आज भी दोनों एक दूसरे के अच्छे दोस्त हैं. कभी फ्रेंड्स की पार्टी तो कभी फैमिली फंक्शन में ऋतिक-सुजैन आए दिन साथ दिखाई देते हैं. हाल ही में सुजैन का बर्थडे सेलीब्रेशन किया गया जहां उन्होंने अपने एक्स हसबेंड ऋतिक रोशन को भी इंवाइट किया था. इस दौरान दोनों पार्टी में काफी मस्ती करते नजर आए. तलाक के बाद भी ऋतिक-सुजैन का ये रिलेशनशिप कई लोगों के लिए एक मिसाल है.

हाल ही में पंजाब के पठानकोट की एक फैमिली कोर्ट ने दूसरे कपल को सलाह देते हुए कहा कि उन्हें अपना रिलेशन ऋतिक रोशन और सुजैन खान जैसा रखना चाहिए. बौलीवुड स्टार कपल का उदाहरण देते हुए कोर्ट ने कहा, ऋतिक और सुजैन के अलावा हाल ही में मारी गई गौरी लंकेश के संबंध अपने एक्स-हसबेंड के साथ अच्छे रहे.

पठानकोट फैमिली कोर्ट के डिस्ट्रिक्ट जज रमेश कुमार ने कहा, ‘दुनिया उदाहरणों से भरी हुई है. वहीं यहां ऐसे कपल्स भी हैं जो तलाक के बाद भी आपस में अच्छे संबंध रखते हैं. वह अलग होने के बाद भी दोस्त बन कर रहते हैं. बौलावुड के सुपरस्टार ऋतिक रोशन और उनकी एक्स वाइफ सुजैन खान ऐसे लोगों के लिए उदाहरण हैं.’

कोर्ट ने कहा, ‘हाल ही में मौत के घाट उतारी गईं जर्नलिस्ट गौरी की शादीशुदा जिंदगी भी सक्सेसफुल नहीं रही. तलाक के बाद भी उन्होंने शांति से जीना सीखा और इसके चलते दोनों पति और पत्नी एक दूसरे के अच्छे दोस्त बनकर रहे.’ कोर्ट ने यह बात एक तलाक के केस के दौरान कही. बता दें, पठानकोट के 70 साल के लेफ्टिनेंट कर्नल कबोत्रा ने अपनी 60 साल की पत्नी के खिलाफ तलाक का केस डाला हुआ था.

आखिर क्यों जितेन्द्र ने मुमताज के साथ फिल्म करने से किया मना

बौलीवुड में 70-80 के दशक में जंपिंग जैक के नाम से प्रसिद्ध एक्टर जितेंद्र अपनी जबरदस्त एक्टिंग की वजह से जाने जाते रहे हैं. वैसे तो जितेंद्र का असल नाम रवि कपूर था. लेकिन बौलीवुड में आने के बाद उन्होंने अपना नाम जितेंद्र रख लिया था.

जितेंद्र को बौलीवुड में लाने का श्रेय डायरेक्टर वी शांताराम को जाता है. वी शांताराम ने 1964 में फिल्म ‘गीत गाया पत्थरों ने’ बनाया था. इस फिल्म में बतौर लीड एक्टर उन्होंने जितेंद्र को साइन किया था. जितेंद्र जब इस फिल्म का औडिशन देने जा रहे थे तो बौलीवुड सुपरस्टार राजेश खन्ना ने उनकी काफी मदद की थी.

राजेश खन्ना की वजह से जितेंद्र फिल्म के लिए चुन लिए गए, फिल्म हिट रही. लेकिन 1967 में रिलीज हुई फर्ज फिल्म से जितेंद्र रातोंरात स्टार बन गए. इसके बाद जितेंद्र के पास कई और फिल्मों के औफर आए. इसके वी शांताराम ने 1967 में रिलीज हुई फिल्म ‘बूंद जो बन गए मोती’ के लिए जितेंद्र को साइन किया.

इस फिल्म में जितेंद्र के साथ वी शांताराम ने अपनी बेटी राज श्री को लीड एक्ट्रेस के रूप में लेने का फैसला किया. राजश्री के अलावा इस फिल्म में मुमताज भी सहायक एक्ट्रेस के रूप में काम कर रही थी. लेकिन अचानक फिर कुछ ऐसा हुआ कि राज श्री इस फिल्म को नहीं कर पाईं. वी शांताराम ने उस समय मुमताज को लीड एक्ट्रेस के तौर पर काम करने के लिए कहा.

जब इस बात की जानकारी जितेंद्र को हुई तो उन्होंने फिल्म में काम करने से साफ इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि भला कोई साइड एक्ट्रेस लीड रोल में कैसे काम कर सकती है. वी शांताराम को बहुत समझाने के बाज जितेंद्र इस फिल्म को करने के लिए तैयार हुए. फिल्म हिट हुई और मुमताज की एक्टिंग की लोगों ने तारीफ भी की. हालांकि इसके बाद लगभग पन्द्रह फिल्मों में इन दोनों की जोड़ी साथ नजर आई.

अगर हौट एयर बलून की सवारी करनी है तो यहां जरूर आएं

अगर आपको दुनिया को उपर से देखने का मौका मिले तो आप क्या करेंगी? आप ही क्या कोई भी इस रोमांच का लुत्फ लेना चाहेगा चाहे जो हो जाए. तो आज हम आपको लेके जाने वाले हैं विशाखापट्टनम जहां 14 से 16 नवम्बर तक हौट एयर बलून शो का आयोजन किया जा रहा है. हमारी मानिये तो आप वहां जरूर जाएं.

17 देश होंगे शामिल

आंध्र प्रदेश पर्यटन विभाग 14 नवंबर से हौट एयर बैलून फेस्टिवल आयोजित करने वाला है. यह फेस्‍ट‍िवल 16 नवंबर तक चलेगा. इस फेमस फेस्‍ट‍िवल में स्विट्जरलैंड, जापान, मलेशिया, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और ताइवान जैसे 17 देश शामि‍ल हैं. यहां एक्सपर्ट्स भी आसमान में करतब दिखाएंगें.

रोमांच से भरपूर अरकू

जी हां, लोगों को हौट एयर बैलून की सवारी करने में मजा आता है. आसमान में हवा में उड़ते हुए नीचे धरती की खूबसूरती देखना बेहद रोमांचक लगता है. ऐसे में अगर आप इसका मजा लेने के लिए कोई खास जगह की तलाश कर रही हैं तो फिर अरकू घाटी चले जाएं. यह आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम में स्‍थ‍ित है.

बोर्रा गुफाएं हैं फेमस

अरकू घाटी ऐतिहासिक व प्राकृति‍क दोनों ही रूपों में ही प्रसिद्ध है. यह आंधप्रदेश का एक छोटा मगर बेहद ही खूबसूरत हिल स्टेशन है. यहां पर ऐतिहासिक रूप से प्राचीन संग्रहालय, टाइडा और बोर्रा गुफाएं पर्यटकों को आकर्ष‍ित करती हैं. विलियम किंग नाम के शख्स ने बोर्रा गुफा की खोज सन् 1807 में की थी.

विश्‍वस्‍तपर पर है पहचान

इसके अलावा यहां सांगडा झरने, पदमपुरम बौटनिकल गार्डन और छोटी-छोटी झीलें पयर्टकों को बहुत पसंद आती हैं. अरकू को पौधा रोपण के जरिए पर्यावरण को एक खास दिशा देने के लिए भी जाना जाता है. यहां पर आदिवासियों द्वारा उत्‍पादित की जाने वाली अरकू एमराल्ड कौफी विश्‍व स्‍तर पर अपनी पहचान बना चुकी है.

ऐसे जाएं इस फेस्‍ट‍िवल में

विशाखापट्टनम जिले में अरकू घाटी के इस फेस्‍ट‍िवल में शामिल होने के लिए बड़ी संख्‍या में पयर्टक आते हैं. यहां जाने के लिए हैदराबाद और विशाखापत्तनम से बसों की सुवि‍धा है. इसके अलावा यहां जाने के लिए रेल सुविधा भी ली जा सकती है. हालांकि यहां फि‍लहाल हवाई अड्डा नहीं है.

लड़कियों का यौन शोषण कब तक

यौन हिंसा की घटनाएं आजकल कुछ ज्यादा ही घट रही हैं. दुराचार, शायद अनियंत्रित कामवासना को संतुष्ट करने का एक जुगाड़ है.असल में बलात्कार या डेटरेप से पहले बलात्कारी के दिमाग में नशे की तरह से फैला हुआ संक्रमण होता है. लेकिन उस संक्रमण का शिकार बलात्कारी नहीं, पीडि़ता होती है. सहना पीडि़ता को ही पड़ता है. पीडि़ता को ही दोषी माना जाता है. समाज व खानदान के नाम पर उसे धब्बा भी कहा जाता है. इतना ही नहीं, उसे खानदान के नाम पर प्रताडि़त भी किया जाता है.  शादी का झांसा दे कर किसी लड़की के साथ शारीरिक रिश्ते बनाना और बाद में शादी से मना करना, आजकल आम बात है.  क्या यह बलात्कार के दायरे में आता है, वह भी तब, जब लड़के का लड़की से शुरू से ही शादी करने का कोई इरादा न हो? हम इसे शादी की आड़ में यौन शोषण कह सक सकते हैं. अधिकतर लड़के शादी का झांसा दे कर लड़कियों से शारीरिक रिश्ते बनाते हैं और तब तक कार्यक्रम चलता रहता है जब तक लड़की गर्भवती नहीं हो जाती. फिर आसान सा रास्ता सुझाया जाता है गर्भपात का. कुछ मामलों में गर्भपात कराना मुश्किल हो जाता है और आखिरकार  मामला परिवार व पड़ोसियों की नजर में आ ही आता है.

सहमति का संशय

अधिकतर मामलों में ऐसे दोषियों के खिलाफ मामले बहुत कम दर्ज होते हैं. कारण, समाज का डर होता है. अगर मामला दर्ज हो भी, तो होता कुछ नहीं. लगभग रोज ही ऐसी कई घटनाएं घट रही हैं. कई बार सवाल उठाए गए हैं कि किसी लड़की से शादी का झूठा वादा कर के शारीरिक रिश्ते बनाना सहमति है या नहीं? यदि वह बलात्कार नहीं है तो धोखेबाजी है या नहीं?

ऐसे ही एक केस में कलकत्ता उच्च न्यायालय का मानना था, ’’अगर कोई बालिग लड़की शादी के वादे के आधार पर शारीरिक रिश्ते बनाने को राजी होती है और तब तक इस गतिविधि में लिप्त रहती है जब तक कि वह गर्भवती नहीं हो जाती, तो यह उस की ओर से स्वच्छंद संभोग के दायरे में आएगा. ऐसे में, तथ्यों को गलत इरादे से प्रेक्षित नहीं किया जा सकता. इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा-90 के तहत अदालत द्वारा कुछ नहीं किया जा सकता. जब तक यह आश्वासन न मिले कि रिश्ते बनाने के दौरान आरोपी का इरादा आरंभ से ही शादी करने का नहीं था.‘‘

वहीं दूसरी ओर, बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बी बी वग्यानी ने एक सुनवाई के दौरान कहा, ’’शादी करने का झूठा वादा महज धोखाधड़ी है. भारतीय दंड संहिता की धारा-415 में धोखाधड़ी के अपराध को परिभाषित किया गया है. बिना किसी संदेह के अपराधी का अपराध दंडनीय है, क्योंकि पीडि़ता को जानबूझ कर शादी करने के वादे के झांसे में रख कर, शारीरिक रिश्ते बनाने के लिए उकसाया गया था. आरोपी ने लड़की से शादी करने का वादा किया और इसी प्रभाव में लड़की ने उस के साथ शारीरिक रिश्ते भी बना लिए. लड़की भी उस से शादी करने को उत्सुक थी, लेकिन लड़के ने जो वादा किया, वह झूठा था. यह विवाह करने के वादे को ले कर वादाखिलाफी का मामला प्रतीत होता है, न कि विवाह के झूठे वादे का मामला.‘‘

असल में यह भावनाओं और नाजुक पलों में जनून से जुडे़ मामले होते हैं. जब भी लड़कालड़की मिलते हैं, एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं. लड़की भी उस लड़के को काफी छूट देती है, जिस से वह बेहद प्यार करती है. लड़के के बुलाने पर चोरीछिपे लड़की सुनसान जगह पर चुपचाप मिलती भी है और संबंध भी बनाती है. जब दो जवान लोग हों, तो आमतौर पर यह होता ही है कि वे सभी अहम बातें भुला कर जनून में आ कर प्यार कर बैठें, खास कर तब जब वे कमजोर क्षणों में अपनी भावनाओं पर काबू नहीं कर पाते. ऐसे में, दोनों के बीच शारीरिक रिश्ते कायम हो ही जाते हैं. लड़की स्वेच्छा से लड़के के साथ रिश्ते कायम करती है, वह उस से बेहद प्यार करती, इसलिए नहीं कि उस लड़के ने उस से शादी करने का वादा किया था, बल्कि इसलिए कि लड़की ऐसा चाहती भी थी.

गलतफहमी या धोखा

सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में लड़की की उम्र, उस की शिक्षा और उस के सामाजिक स्तर व लड़के के मामले में भी इन्हीं सब पर गौर किया जाना जरूरी है. वैसे तो लड़की स्वयं इस कृत्य में बराबर की भागीदार है पर वह समझ नहीं पा रही हो कि किन हालात के चलते वह ऐसे कृत्य में फंस गई और ऐसे में, लड़की के हामी भरने की कोई अहमियत नहीं है. उस से गलतफहमी में हामी भरवाना धोखा है. इसे लड़की की मंजूरी नहीं माना जा सकता.

दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति वी के जैन ने 1 फरवरी, 2010 को आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए और ऐसे आपराधिक कृत्य की निंदा करते हुए कहा, ’’अदालत ऐसे मौकापरस्त लोगों को लड़की की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने का लाइसैंस नहीं दे सकती. लड़कियों का शोषण करने वाले ऐसे लोगों को बेखौफ बच निकलना कानून का मकसद कभी नहीं हो सकता, जो इस घिनौने कृत्य के बाद ताउम्र जेल की सजा का हकदार है.‘‘

बंबई हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बी यू वाहाने ने (1991) के एक मामले में सामाजिक अनुभव के आधार पर स्पष्ट किया कि वयस्क लड़की से चालबाजी से उस की सहमति ले ली जाए वह भी तब जब वह बेसहारा और सैक्स को ले कर असंतुष्ट हो, उसे पैसे की जरूरत हो, बहानों से उसे प्रभावित किया जाए या हामी भरने के हालात बनाए जाएं आदि में कानूनी राय और फैसले सीधेसीधे बंटे हुए हैं, सहमति और तथ्यों के उलझाव में उलझे हुए हैं, क्योंकि कानून पूरी तरह पारदर्शी नहीं है और फैसले हर मामले के तथ्यों व हालात के आधार पर होते हैं.

हालांकि न्यायिक राय को ले कर आमराय यही है कि ऐसे मामलों में सब से कठिन काम यह साबित करना होता है कि लड़की का शारीरिक शोषण हुआ है. औरत के खिलाफ अपराध संबंधी किंतुपरंतु को ले कर जब तक कानून में संशोधन नहीं होता, न्याय से जुड़े ऐसे कानूनी पेंच यों ही कायम रहेंगे. उदाहरण के लिए बाराबंकी में 9वीं क्लास की नाबालिक लड़की से उस के ही सहपाठी द्वारा एकांत पा कर बलात्कार किया गया. लेकिन पुलिस ने सिर्फ छेड़छाड़ का मामला दर्ज किया. मुरादाबाद और झांसी में भी कुछ ऐसा ही हुआ. सिर्फ फर्क इतना है कि संबंध सहमति से बने थे पर बाद में एक लड़की एमएमएस का शिकार हुई तो दूसरी गैंगरेप का और उस ने खुद को आग लगा ली. कानपुर और लखनऊ में भी बलात्कार की शिकार 2 नाबालिक लड़कियां मौत की नींद सो गईं.

सिर्फ सवाल जवाब नहीं

एक शोध के अनुसार दुनियाभर में हर 3 में से 1 महिला को शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार होना पड़ता है. यही नहीं, दुनियाभर में 30 प्रतिशत महिलाएं नजदीकी साथी द्वारा हिंसा या दुर्व्यवहार की शिकार होती हैं. एक और रिपोर्ट के मुताबिक, अपने साथी द्वारा शारीरिक या यौन दुर्व्यवहार की शिकार होने वाली 42 प्रतिशत महिलाएं इस से चोटिल होती हैं. हजारों ऐसे मुकदमे, आंकड़े, तर्ककुतर्क, जालजंजाल और सुलगते सवाल समाज के सामने आज भी मुंह बाए खड़े हैं.

अन्याय, शोषण और हिंसा की शिकार स्त्रियों के लिए घरपरिवार की दहलीज से अदालत के दरवाजे तक बहुत लंबीचौड़ी खाई है, जिसे पार कर पाना दुसाध्य काम है. अदालत के बाहर अंधेरे में खड़ी आधी दुनिया के साथ न्याय का फैसला कब तक सुरक्षित रहेगा या रखा जाएगा? कब, कौन, कहां, कैसे सुनेगा इन के दर्द की दलील और न्याय की अपील, ये सवाल समाज से जवाब मांग रहे हैं.

युवा तोड़ें धार्मिक जकड़न

किशोरावस्था तक जो त्योहार मन को खूब भाते हैं वे युवावस्था आतेआते क्यों मन को कचोटने लगते हैं, इस बात का हमारे तीजत्योहार प्रधान देश में इस सवाल से गहरा संबंध है कि त्योहार कैसे मनाएं. 15-16 वर्ष की उम्र तक के किशोरों के तर्कों को हवा में उड़ा दिया जाता है लेकिन युवाओं के तर्कों का सहज जवाब आज तक कोई धर्म या उस का जानकार नहीं दे पाया.

यह दीगर बात है कि उन्हें गोलमोल वैज्ञानिक किस्म के जवाब दे कर संतुष्ट करने और धर्म से सहमत करने की कोशिशें की जाती हैं जिन के अपनेअलग माने होते हैं.  त्योहारों का संबंध समाज से ज्यादा है या धर्म से, इस सवाल के जवाब में भोपाल के एक प्राईवेट इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ रहे द्वितीय वर्ष के छात्र शाश्वत मिश्रा कहते हैं कि सिखाया तो यही गया है कि त्योहार किसी न किसी धार्मिक कारण के चलते मनाए जाते हैं जिन में आजादी कम बंदिशें ज्यादा होती हैं. बकौल शाश्वत, ‘‘भोपाल में पढ़ने आने के पहले तक घर में उसे नवरात्रि के दिनों में व्रत रखने को बाध्य किया जाता था लेकिन होस्टल में आ कर यह नियम टूट गया. इस से कोई खास फर्क नहीं पड़ा. उलटे, एक दबाव से मुक्ति मिली.’’  साफ यह हुआ कि भारतीय समाज बहुत ही वर्जनाओं में जीता है. त्योहारों के दिनों में तो खासतौर से व्यक्तिगत स्वतंत्रता के कोई माने नहीं रह जाते.

शाश्वत के ही एक सहपाठी अनिमेष की राय उस से उलट है कि धर्म के दिशानिर्देशों को मानने में हर्ज क्या है. अनिमेष की नजर में इस बात को मुद्दा बनाया ही नहीं जाना चाहिए कि धर्म क्या कहता है. हमें त्योहारों के दूसरे पहलुओं को देखना चाहिए, मसलन सब से बड़ा त्योहार दीवाली एक सामाजिक उल्लास का प्रतीक है. इस दिन और रात हम एक विशिष्ट मानसिकता में रहते हैं. साफसफाई पर जोर दिया जाता है. घरों में नएनए सामान खरीदे जाते हैं. नए कपड़े पहने जाते हैं. पकवान बनते हैं. आतिशबाजी चलाई जाती है. ऐसे में धर्म का रोना ले कर बैठ जाना फुजूल का पूर्वाग्रह नहीं, तो क्या है.

विरोधाभासी जकड़न

5वीं क्लास में रटाया जाने वाला दीवाली का निबंध बांच रहा अनिमेष और उस निबंध को धार्मिक जकड़न बता रहा शाश्वत दरअसल 2 अलगअलग विचारधाराओं का प्रतिनिधत्व करते नजर आते हैं. पहली समझौतावादी है जबकि दूसरी तर्क आधारित है. हैरत की बात यह है कि इन दोनों ने ही बीती 5 सितंबर को गणेश विसर्जन के दौरान होस्टल में साथ बैठ कर शराब पी थी और दोनों को ही इस में किसी गणेश या धर्म का खौफ नहीं लगा था. इन की नजर में यह झूमनेनाचने गाने का इवैंट था ठीक वैसे ही जैसा हर साल एक जनवरी को होता है.

फिर एक वर्ग क्यों तर्क को पूर्वाग्रह करार देते धर्म और उस की बंदिशों पर बहस या चर्चा करने से बचना चाहता है. इस सवाल का मनोवैज्ञानिक जवाब तो यही नजर और समझ आता है कि धार्मिक सिद्धांतों और निर्देशों का पालन करना बचपन से ही थोप दिया जाता है. ऐसे में इन की सफाई समझने के बाद भी अधिकांश युवा धर्म के खोखलेपन को इसलिए स्वीकार लेते हैं और जिंदगीभर ढोते भी रहते हैं कि कौन फालतू के विवादों में फंसे, सदियों और पीढि़यों से जो होता आ रहा है उसे करते रहने में हमारा क्या बिगड़ता है.

बिगड़ता यह है

हर युवा का अपना एक दार्शनिक दृष्टिकोण भी होता है जो अपनी जिज्ञासाओं का समाधान चाहता है, लेकिन वह खोखली बातों से बहलने को तैयार नहीं होता, मसलन बहुत साधारण और प्रचलित यह धारणा कि दीवाली पर विधिविधान से पूजापाठ करने से लक्ष्मी आती है.  लक्ष्मी यानी पैसा अगर एक खास दिन पूजापाठ करने से आता होता तो मेहनत की जरूरत क्या, इस बात को अब अधिकांश युवा सोचने लगे हैं.

बीकौम की छात्रा अदिति की मानें तो अगर ऐसा है तो मैं रोज लक्ष्मीपूजा करने को तैयार हूं, लेकिन लक्ष्मी या कोई दूसरा देवीदेवता इस बात की गारंटी तो ले.

बीकौम करने के साथसाथ बैंक की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही अदिति का मानना है कि जो हासिल होगा वह लगन और मेहनत से होगा. मेहनत तो हम खूब करते हैं और उस से ही कैरियर बनता है पर हमारी लगन को धर्म का नाम प्रेरणा या उपलब्धि करार दे दिया जाता है.  यानी कुछ अच्छा हुआ तो व्रत, उपवास और पूजापाठ की वजह से हुआ और मनमाफिक नहीं हुआ तो किस्मत खराब थी या मेहनत में कोई कमी थी. जिस की जिम्मेदारी लेने से कोई तैयार नहीं. युवा पीढ़ी कभी भाग्यवादी नहीं रही, इसलिए वह त्योहारों की धार्मिक जकड़न से मुक्ति चाहती है जो उसे आसानी से नहीं मिल रही. ऐसे में वह या तो अनिमेष की तरह समझौता कर लेती है यानी धार्मिक जकड़न के आगे हथियार डालती है या फिर शाश्वत की तरह अपने सवाल व तेवर कायम रखती है.  मिलता यह है

सवालों और तर्कों का गहरा संबंध युवाओं के आत्मविश्वास से है. जो युवा जवाब न मिलने पर धार्मिक जकड़नों को नकारने लगे हैं उन में एक अलग तरह का आत्मविश्वास होता है क्योंकि वे दिमागीतौर पर किसी रूढि़ या चमत्कार के गुलाम नहीं रहते.

कम मात्रा में ही सही ये वे युवा हैं तो संतुष्ट रहते हैं, किसी संदेह में नहीं जीते. लेकिन जिन युवाओं ने असमंजस पाल रखा है वे कैरियर में सफल भले ही हो जाएं पर संतुष्ट नहीं रह पाते. इसलिए उन में आत्मविश्वास बेहद कम होता है.

हर दौर में युवा यह सवाल पितृपक्ष के दिनों में जरूर करते हैं कि जब ब्राह्मण के जरिए खायापिया पूर्वजों तक पहुंच जाता है तो वे मोबाइल फोन क्यों नहीं ले लेते जिस से पूर्वजों से बातचीत ही हो जाए. सोशल मीडिया पर यह सवाल या दलील इस साल भी खूब वायरल हुई थी. लेकिन इस पर बहस नहीं हुई. यह बेहद निराशाजनक बात है. वजह, युवा फेसबुक और व्हाट्सऐप पर धर्म व जाति के आधार पर तो खूब एकदूसरे पर कीचड़ उछालते हैं लेकिन एक मामूली सवाल का जवाब नहीं दे पाते.  यह युवावर्ग कहीं जवाब मांगने की जिद पर अड़ न जाए, इसलिए हर साल धार्मिक जकड़न शिथिल कर दी जाती है, जिस का मकसद या साजिश युवाओं को धर्म के मकड़जाल में उलझाए रखना होता है.

एक नई जकड़न

मिसाल झांकियों की लें तो अब युवा शराब पी कर विसर्जन समारोह में नाचगा सकते हैं. इस से अब धर्म भ्रष्ट नहीं होता. जींसटौप पहने युवतियों को भी नाचनेगाने की छूट मिल गई है और अब वे धार्मिकतौर पर अछूत नहीं रही हैं. गणेश और दुर्गा के साथ सैल्फी खींचते युवा अगर यह समझते हैं कि वे धार्मिक जकड़न से अपनी कोशिशों के चलते इस तरह मुक्त हो रहे हैं तो यह उन की गलतफहमी ही है.

दरअसल, उन्हें एक नई जकड़न में कसा जा रहा है जिस में धर्म की रस्सी थोड़ी मुलायम है. बंद कोठरी से निकाल कर किसी कैदी को हवा और रोशनी देने वाली खिड़की वाली कोठी में रख दिया जाए तो उसे थोड़ी राहत तो मिलेगी पर रिहाई नहीं. कुंडी ज्यों की त्यों ही बंद रहती है.

युवाओं को इस जकड़न को त्योहारों के मद्देनजर समझना होगा कि मिल रही रियायतें रिहाई नहीं हैं, एक नए किस्म की जकड़न हैं. जिन की तुलना उस आलीशान मौल से की जा सकती है जिस में चमकदमक है और डिस्काउंट भी लेकिन घाटा उठाने को दुकानदार तैयार नहीं. यह लुभाने का नया तरीका है जिस से प्रोडक्ट इस तरह बेचा जाए कि खरीदार को लगे कि उस का फायदा हुआ है.  त्योहार अगर सामाजिक भाईचारे व उल्लास के प्रतीक होते तो उन में पूजापाठ व्रत, उपवास और दर्जनों बंदिशों की जरूरत नहीं पड़ती. अगर त्योहार आज भी कुछ छूट के साथ ही सही, धर्म के मुताबिक मनाया जा रहा है तो यह एक साजिश है जिस में युवाओं की मरजी की कोई अहमियत नहीं रह जाती.

युवा कब तक इस धार्मिक जकड़न से नजात पाएंगे इस सवाल का जवाब कभी नहीं मिला. हां, व्यक्तिगत स्तर पर हिम्मत करते वे खुद को मुक्त कर पाए तो जरूर दूसरे भी उन के पीछे चलेंगे और त्योहारों का सही लुत्फ उठा पाएंगे. किसी शाश्वत और अनिमेष का गणेश विसर्जन पर शराब पीना कोई चुनौती, बुद्धिमानी या बगावत की बात नहीं थी क्योंकि वे दूसरे तरह से अपनी सेहत को नुकसान पहुंचा रहे हैं और इस से धर्म को एतराज नहीं, तो यह जकड़न का नया संस्करण नहीं तो और क्या है?

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