इन आसान तरीकों से आप घर बैठे कर सकती हैं कमाई

भारत में सबसे ज्यादा बाहर काम सिर्फ पुरुष करते हैं और यहां कि महिलाएं घर का काम लेकिन अब ऐसा नहीं है. काफी मात्रा में महिलाएं पुरुषों से आगे है जैसे शिक्षा, रोजगार लेकिन अब भी कुछ महिलाएं घर को चलाने में ही व्यस्त रहती हैं तथा इसे ही अपने जीवन का नैतिक कर्तव्य मानती हैं. और कुछ महिलाएं किसी कारण वश बाहर काम नहीं कर सकती तथा जो महिलाएं घर पर रह कर ही काम करना चाहती हैं ये लेख उन्हीं महिलाओं के लिए है.  

आज हम महिलाओं को 3 ऐसे कमाई के आसान तरीके बताने जा रहे हैं.  जिनकी मदद से आप घर बैठे अच्छी खासी कमाई कर सकती हैं.

ब्यूटी पार्लर

वैसे तो ब्यूटी पार्लर का काम चेहरे को ब्यूटीफुल लुक देना होता है, लेकिन चेहरे को खूबसूरत बनाने के पीछे जो प्रक्रिया होती है या ब्यूटी पार्लर में जो काम किये जाते है तथा ब्यूटी पार्लरों में जो सेवा दी जाती हैं. सबसे पहले आपको इन सेवाओं को लिए अच्छे से सिखना पड़ेगा. फिर जब आपको ब्यूटी पार्लर के काम आ जाएं तो आप फिर अपना खुद का ब्यूटी पार्लर खोल सकतीं हैं और घर बैठे अच्छी खासी कमाई कर सकतीं हैं.

कंप्यूटर शिक्षा

अगर आप कंप्यूटर को अच्छी तरह से जानती समझती और समझा सकती हैं तो आप अपने घर से छोटे बच्चों और महिलओं को कप्यूटर की शिक्षा प्रदान कर सकतीं हैं, और इसका ट्रेड तेजी से बढ रहा है. इसमें आपका शौक भी पूरा हो जायेगा. ये एक मात्र ऐसा काम है जिसमें आप बहुत कम समय खर्च करके अच्छा पैसा कमा सकती हैं. मान लीजिए आपके पास रोज 10/दस बच्चे या महिलाएं आती हैं और आप कम-से कम 500 रुपय लेती हैं तो भी आप दिन में 2 घंटे समय दे कर महीने का 5000 रुपये आसानी से कमा सकती हैं. इसमें आप कंप्यूटर कि सामान्य जानकारी और इन्टरनेट के बारे में जानकारी प्रदान कर सकती हैं.

ब्लौगिंग

अगर आप के पास कोई ऐसा आईडिया है जिससे आप लोगो को बहुत अच्छे से समझा सकती है, अर्थात किसी विषय पर अच्छी तरह से लिख सकती है तो आप ब्लौग्गिंग कर सकती हैं. इसके लिए आप को कोई एक ब्लौग प्लैटफौर्म का चुनाव करना होगा जैसे ब्लौगर. कौम, वर्डप्रेस आदि, उसके बाद आप ब्लौगिंग  करना शुरू कर सकती है, आप किन विषय पर ब्लौगिंग कर सकती है जैसे ब्यूटी टिप्स, खाना बनाना, इन्टरनेट, आदि या आपको जो कुछ आता है आप उस पर भी ब्लौगिंग करना शुरू कर सकतीं हैं.

इन सर्दियों में जाएं कैलिफोर्निया की सैर पर

अगर आप घूमने के इरादे से कैलिफोर्निया जा रही हैं तो अपनी यात्रा की शुरुआत यहां के सबसे बड़े शहर लौस एंजिल्स से कर सकतीं हैं. यह अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित आबादी और क्षेत्रफल के हिसाब से तीसरा सबसे बड़ा राज्य है.

समुद्र के किनारे विशाल तट पर स्थित सांता मोनिका, बिना भीड़-भाड़ वाला समुद्री तट, कौर्निवाल आदि का लुत्फ उठा सकतीं हैं. खूबसूरत पहाडि़यों, मनमोहक अल्पाइन बस्तियों और नेचरल ब्यूटी के मजे लेना चाहतीं हैं, तो कैलिफोर्निया से अच्छी जगह कोई नहीं हो सकती.

योसेमिट नेशनल पार्क

योसेमिट नेशनल पार्क नोर्दन कैलिफोर्निया में स्थित अमेरिका का बेहद खूबसूरत और लोकप्रिय नेशनल पार्क है. यहां के पहाड़, घाटी, नदियां, झरने और शानदार दृश्यों के लिए पर्यटक और आर्टिस्ट को दशकों से आकर्षित करते रहे हैं. यहां पर कई सारे वौटरफौल हैं, अपर योसेमिट वाटरफौल करीब 1430 फीट की ऊंचाई से गिरती है. साथ ही यह तमाम विंटर स्पोर्ट्स के लिए भी फेमस है.

यहां के स्मोअर्स और रिंक साइड फायर पिट (अग्निकुंड) आपको खास तौर पर अपनी ओर आकर्षित करेंगे. क्त्रौस कंट्री स्कीइंग या ग्लेशियर प्वाइंट पर शूइंग के लिए भी योसेमिट एक शानदार जगह है. इसके साथ ही यहां आप घोड़े से खींची जाने वाली बेपहिया गाड़ी की सवारी का आनंद भी उठा सकते हैं. खासतौर पर यह जगह एडवेंचर और नेचर लवर्स के बीच काफी लोकप्रिय है. यहां जाने के बाद शीर रौक्स जान न भूलें. यह सबसे लोकप्रिय जगहों में से एक है. इसके अलावा कैथेड्रल स्पाइर, सेंटिनेल डोम, सेंटिनेल रौक्स, हाफ डोम आदि देख सकते हैं. इगल पीक से घाटी के खूबसूरत दृश्यों का नजारा ले सकते हैं.

डिज्नीलैंड

यदि आप अपने बच्चों के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान देखना चाहते हैं, तो निश्चित रूप से डिज्नीलैंड की सैर करनी चाहिए. ऐनाहैम में स्थित डिज्नीलैंड फैमिली डेस्टिनेशन के रूप में लोकप्रिय रहा है. इस पार्क में आपको तकरीबन हर तरह के राइड्स, गेम्स, शो और एंटरटेनमेंट के पूरे साधन उपलब्ध हैं. यहां के एंटरटेनमेंट शो को बच्चों और बड़ों के लिए डिजाइन किया गया है. यह सिर्फ पार्क ही नहीं है, यहां पर आप बच्चों के साथ डाउनटाउन डिज्नी में शौपिंग कर सकते हैं या फिर डिज्नी एडवेंचर पार्क की सैर कर सकते हैं. यहां फैमिली और बच्चों के साथ आने पर आर बिल्कुल भी निराश नहीं होंगे.

तेहो झील

उत्तरी कैलिफोर्निया स्थित यह ताजे पानी की सबसे बड़ी झील है. यह कैलिफोर्निया और नवाडा के बोर्डर के बीच में स्थित है. यह ऊंचे पहाड़ पर स्थित बेहद खूबसूरत जगह है. गर्मियों में यह बोटिग के मुफिद जगह है, जबकि सर्दियों में यहां पर बड़ी संख्या में लोग स्कीइंग के लिए आते हैं. यहां कुल छह प्रमुख रिजौर्ट हैं, जिनमें अल्पाइन मीडोज, हैवेनली माउंटेन रिजौर्ट, किर्कवुड माउंटेन रिजौर्ट, नौर्थस्टार कैलिफोर्निया, सिएरा-एट-तेहो और स्क्वा घाटी शामिल हैं. अगर फैमिली के साथ रोमांचक यात्रा का लुत्फ उठाना है, तो यह बेहतरीन जगह हो सकती है.

सिकोइया ऐंड किंग्स कैनियन नेशनल पार्क

यह विशाल रेडवुड्स के लिए जाना जाता है. यह नेशनल पार्क ऊंचे ग्रेनाइट के पहाड़ों, माउंटेन लेक, नदियां और घने जंगलों वाला क्षेत्र है. कैलिफोर्निया में सिएरा राष्ट्रीय वन के दक्षिण में, सिकोइया और किंग्स कैनियन राष्ट्रीय उद्यान भी प्राचीन खेल के मैदान हैं. इसके अलावा, यहां बड़े-बड़े पेड़ों, घुमावदार घाटियों और व्हाइट वाटर नदियों के बीच आप ड्राइविंग करके रिलैक्स कर सकते हैं. इस पार्क की सबसे बड़ी खासियत है विशालकाय रेडवुड्स के पेड़, जिसकी लंबाई करीब 250-300 फीट तक होती है और व्यास करीब 40 फीट तक होता है. यह जानकर आपको हैरानी हो सकती है कि इन पेड़ों का जीवनकाल 3500 साल तक होता है. इस पूरे पार्क में बड़े-बड़े रेडवुड्स के पेड़ देखे जा सकते हैं.

सी-वर्ल्ड

यह थीम पार्क क्लासिक फैमिली डेस्टिनेशन है. यहां बच्चों के साथ ओरका व डौल्फिन शो के अलावा, करीब से मैरीन लाइफ को निहार सकते हैं. यहां का थ्रील राइड काफी लोकप्रिय है. यहां बच्चों के साथ मानटा, जर्नी औफ अटलांटिस, वाइल्ड आर्टिक राइड, स्काइटावर, एल्मो फ्लाइंग फिश जैसे राइड का हिस्सा बन सकते हैं. सेन डियागो स्थित यह सी-वर्ल्ड मिशन-बे वाटरफ्रंट पर स्थित है.

सांता कैटलिना आइलैंड

यह लौस एंजेलिस को विलमिंगटौन पोर्ट से करीब 26 माइल्स साउथवेस्ट में स्थित है. यह जगह वाटर स्पोर्ट्स के लिए बेहद लोकप्रिय है. यहां कैंपिंग, स्कूबा डाइविंग, स्विमिंग, डीप-सी फिशिंग, कायकिंग आदि का लुत्फ उठाया जा सकता है. इस आइलैंड का सबसे ऊंचा प्वाइंट माउंट ओरिजाबा है, जो करीब 2097 फीट ऊंचा है. कैसिनो प्वाइंट पर एवलोन अंडरवाटर ड्राइव पार्क है, जो अमेरिका का पहला नन-प्रौफिट अंडरवाटर पार्क है. फ्लाइंग फिश यहां का मुख्य अट्रैक्शन है.

बौलीवुड के ‘शहंशाह’ की ये खास बातें आप शायद ही जानती हों

प्यार से ‘बिग बी’ कहकर पुकारे जाने वाले अमिताभ बच्चन ने आज 11 अक्टूबर को अपनी जिन्दगी के 75 बरस पूरे कर लिए हैं. करोड़ों दिलों पर छाए रहने वाले बौलीवुड के ‘शहंशाह’, और ‘सुपरस्टार आफ द मिलेनियम’ के खिताबों से नवाजे गए अमिताभ बच्चन के बारे में इतना लिखा-पढ़ा जाता है कि अब शायद ही कोई ऐसी जानकारी होगी, जिसे उनके चाहने वाले न जानते हों. लेकिन फिर भी, आज उनके जन्मदिन के इस खास मौके पर एक बार फिर हम कोशिश करते हैं आपके चहेते सुपरस्टार बिग बी के बारे में आपको कुछ नया बताने की.

11 अक्टूबर सन् 1942 को प्रसिद्ध कवि हरिवंशराय बच्चन और उनकी पत्नी तेजी बच्चन के पहले पुत्र के रूप में अमिताभ बच्चन ने इस दुनिया में कदम रखा. बता दें कि पहले अमिताभ का नाम ‘इंकलाब’ रखा जाने वाला था. इसका कारण यह थी कि गर्भावस्था के दौरान भी उनकी माता ने सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेना बंद नहीं किया और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अमरनाथ झा ने उन्हें ‘इंकलाब’ नाम का सुझाव दिया, जो हरिवंशराय को भी पसंद आया, लेकिन जब कवि सुमित्रानंदन पंत ने उन्हें ‘अमिताभ’ नाम का सुझाव दिया तो हरिवंशराय को यह नाम ज्यादा पसंद आया और उन्होने पुत्र का नाम अमिताभ (इसका अर्थ है जिसकी आभा कभी न मिटे) रख दिया.

अमिताभ और उनकी पत्नी जया बच्चन की पहली मुलाकात पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट में हुई थी, और दूसरी बार वे ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘गुड्डी’ के सेट पर मिले. दरअसल, ऋषिकेश मुखर्जी ने ‘गुड्डी’ में नायक के तौर पर पहले अमिताभ को चुना था और उनके साथ कई सीन भी शूट कर लिए थे, लेकिन बाद में उन्हें यह कहकर फिल्म से हटा दिया गया, कि वह इस भूमिका में ‘सूट’ नहीं करते. जिसके बाद फिल्म में नायक का किरदार समित बांजा को सौंपा गया. हालांकि एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि ‘गुड्डी’ के बाद ऋषिकेश मुखर्जी ने अमिताभ बच्चन के साथ ‘मिली’, ‘चुपके चुपके’ और ‘अभिमान’ जैसी कई सुपरहिट फिल्में कीं.

फिल्म ‘जंजीर’ की शूटिंग के दौरान सभी कलाकारों ने फिल्म के हिट होने की स्थिति में विदेश घूमने का कार्यक्रम बनाया था. चूंकि यह अमिताभ और जया की एक साथ पहली विदेश यात्रा थी, इसलिए अमिताभ ने अपने पिता से अनुमति मांगी, और उन्होंने सवाल किया कि क्या जया भी उनके साथ जाएंगी. जब अमिताभ ने ‘हां’ कहा, तो उन्हें देश छोड़ने से पहले विवाह कर लेने का आदेश दिया गया, जिसे उन्होंने मान लिया और फिल्म ‘अभिमान’ के रिलीज होने से एक महीना पहले उन्होंने जया से शादी कर ली.

आपको बता दें कि ‘जंजीर’ अमिताभ की पहली हिट फिल्म थी, जिसने उन्हें ‘एंग्री यंगमैन’ की भूमिका में स्थापित करने के साथ पहली बार उनके किरदार को ‘विजय’ नाम दिया गया, जो बाद में 18 अन्य फिल्मों में भी अमिताभ के किरदार को दिया गया. इसके अलावा ‘अमित’ भी उनके लोकप्रिय नामों में से एक है, जो लगभग 10 फिल्मों में उनके किरदारों को दिया गया. अमिताभ बच्चन ने लगभग 12 फिल्मों में दोहरी भूमिका (डबल रोल) निभाई है, जबकि एक फिल्म निर्देशक एस. रामानाथन की ‘महान’ में उन्होंने तिहरी भूमिका (ट्रिपल रोल) निभाया है.

क्या आप जानती हैं कि 1980 के दशक में अमिताभ बच्चन के चेहरे को लेकर एक कामिक्स चरित्र ‘सुप्रीमो’ की रचना की गई थी, जिसकी सीरीज का नाम ही ‘द एडवेन्चर्स आफ अमिताभ बच्चन’ (किस्से अमिताभ बच्चन के) रखा गया था. जिसे लगभग दो साल तक प्रकाशित किया गया.

वर्ष 1984 में भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अमिताभ बच्चन इंदिरा के पुत्र और अपने मित्र राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में शामिल हुए और इलाहाबाद की लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर ‘भारतीय राजनीति के चाणक्य’ कहे जाने वाले दिग्गज नेता हेमवतीनंदन बहुगुणा को पराजित किया था.

अमिताभ बच्चन ने मुंबई में फिल्मों में किस्मत आजमाने से पहले कोलकाता में रेडियो एनाउंसर और एक शिपिंग कंपनी में एक्जीक्यूटिव के तौर पर भी काम किया था. मुंबई आते वक्त उनके पास तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी, जो अमिताभ के मित्र राजीव गांधी की मां भी थीं, का लिखा सिफारिशी खत था, जिसकी बदौलत उन्हें के.ए. अब्बास की फिल्म ‘सात हिन्दुस्तानी’ में काम मिला. इसी भूमिका के लिए उन्हें पहली बार राष्ट्रीय पुरस्कार भी हासिल हुआ.

अमिताभ बच्चन मुंबई में अपने शुरुआती दिनों में प्रसिद्ध हास्य कलाकार तथा निर्माता-निर्देशक महमूद के घर पर रहे थे, और बाद में उन्होंने महमूद की फिल्म ‘बौम्बे टु गोवा’ में काम भी किया.

मुकुल आनंद की फिल्म ‘खुदा गवाह’ की अफगानिस्तान में शूटिंग के दौरान तत्कालीन अफगानी राष्ट्रपति नजीबुल्लाह ने अमिताभ बच्चन की सुरक्षा के लिए देश के लगभग आधे सुरक्षा तंत्र को तैनात कर दिया था. बताया जाता है कि ‘खुदा गवाह’ अफगानिस्तान के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी हिट फिल्म है.

वर्ष 1999 में बीबीसी द्वारा कराए गए एक पोल में अमिताभ बच्चन ने मार्लोन ब्रान्डो तथा चार्ली चैपलिन जैसे दिग्गज अभिनेताओं को पछाड़कर ‘ग्रेटेस्ट स्टार आफ द मिलेनियम’ का खिताब जीता, हालांकि अमिताभ ने उस वक्त कहा था कि वह स्वयं मार्लोन ब्रान्डो को वोट देते.

वर्ष 2003 में अमिताभ बच्चन को फ्रांस के ड्यूविले शहर की मानद नागरिकता भी प्रदान की गई, जो किसी भी विदेशी के लिए बेहद दुर्लभ कही जाती है. उल्लेखनीय है कि अमिताभ बच्चन के अतिरिक्त यह सम्मान केवल ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय, पहली बार अंतरिक्ष में प्रवेश करने वाले रूसी अंतरिक्ष यात्री यूरी गागारिन तथा पोप जान पाल द्वितीय को ही दिया गया है.

अमिताभ बच्चन शुद्ध शाकाहारी हैं, और जानवरों के हितों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘पीपल फार द एथिकल ट्रीटमेंट आफ एनिमल्स’ (पेटा) द्वारा कराए गए पोल में उन्हें ‘हाटेस्ट वेजीटेरियन अलाइव’ का खिताब दिया गया था.

जो बोलूं मुंह पर बोलूं

ज्यादातर लोग उन्हें ही पसंद करते हैं जो जब भी बोलते हैं मुंह पर बोलते हैं. मुझे भी मुंह पर बोलने वाले लोग अच्छे लगते हैं. मुंह पर बोलने के लिए साहस चाहिए. पीठ पीछे बोलने वालों में कायरता की दुर्गंध आती है. वे अपनी बात घुमाफिरा कर कहते हैं और बात जब पकड़ में आ जाती है तब सकपकाते हुए कहते हैं, ‘‘मेरा कहने का मतलब यह नहीं था. मेरी बात को तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है.’

अपने देश के नेता इस के बेहतरीन उदाहरण हैं क्योंकि उन की बात जब भी पकड़ में आती है तो वे यही कहते हैं कि मेरी बात को तोड़मरोड़ कर पेश किया गया है. मेरे कहने का आशय यह नहीं था. वे असंतुलित हो कर अपना आपा खो बैठते हैं तथा अनापशनाप बातेंकरते रहते हैं जिन का कोई अर्थ नहीं होता. अर्थ का अनर्थ हो जाता है और वे ‘जो भी बोलूं मुंह पर बोलूं’ कथन के शिकार हो जाते हैं.

‘‘मैं किसी से नहीं डरता. मैं जो भी बोलता हूं मुंह पर बोलता हूं. खेल के नाम पर करोड़ों की बोगस खरीदारी हुई. लाखों की हेराफेरी हुई. लोगों के पेट का पानी हिला भी नहीं, न किसी ने डकार ही ली. सब एक ही थैली के चट्टेबट्टे हैं, वे किस मुंह से बोलेंगे, उन के मुंह में तो स्वार्थ के नोट ठुंसे पड़े हैं.’’

‘‘तुम्हें अपनी हिस्सेदारी नहीं मिली क्या? तुम भी तो समिति में थे,’’ मैं ने उन्हें छेड़ते हुए कहा. वे नाराज हो गए.

‘‘भैया, कीचड़ में पत्थर फेंकने से अपने ही कपड़े दागदार होते हैं. मैं जो भी कहता हूं मुंह पर कहता हूं. मैं ने पहले ही आयोजकों को आगाह किया था कि खेल का आयोजन मत कराओ. मगर मेरी सुनता कौन है. अब आग से हाथ जलने लगे तो कराहने लगे,’’ नेताजी गुस्से में बोलने लगे.

मैं उन के कहने का अर्थ समझ गया. जब जांच आयोग का फंदा कसा जाने लगता है तब मुंह पर बोलने वाले लोग पतली गली ढूंढ़ने लगते हैं. गंदगी से अटी सड़क पर चीखेंगे तो लोग उन पर लट्ठ ले कर टूट नहीं पड़ेंगे. उन का मानना है सड़क और गली में यही तो अंतर है. गली निवासियों को अपनी रोजीरोटी के जुगाड़ से फुरसत नहीं है तो अरबों रुपए के खेल आयोजन में किस मुंह से रुचि लेंगे? उन की निगाह में तो भ्रष्टाचार एक राष्ट्रीय खेल है. खेल खेलने की चीज है. इधर खेला उधर भूल गए.

मुंह पर बोलने वालों की सूची में मेरी अर्धांगिनी विजया का नाम भी जुड़ने लगा है. मेरी छुईमुई सी विज्जू अब सिर पर पल्ला नहीं डालती, पड़ोसियों पर अपनी प्रगति की शेखी बघारती है, ‘‘नहीं मिसेज शर्मा, मैं न, जो भी बोलती हूं मुंह पर बोलती हूं. मेरा मुंह पर बोलना उन्हें भी अच्छा लगता है. पहले मैं भी आम घरेलू औरतों की तरह उन की पीठ पीछे बोलती थी. मगर मुझे जब यह महसूस हुआ कि यह तो अपने परिवा का मामला है, आम लोगों के बीच उजागर करने से क्या फायदा है. अपनी ही हंसी उड़ेगी, इज्जत जाएगी. आपस में गलतफहमी भी बढ़ती है.

‘‘बहनजी, तब से हम ने प्रण कर लिया है कि जो भी शिकवाशिकायत रहेगी मुंह पर बोल कर समाप्त कर लेंगे. 2 मिनट जरूर बुरा लगेगा मगर घरपरिवार में तो शांति बनी रहेगी. गर्व होगा कि हमें भी मुंह पर बोलना आता है.’’

विवाह के कुछ वर्ष बाद तक पतिपत्नी एकदूसरे के मुंह पर बोलने से परहेज रखते हैं कि कोई बुरा न मान जाए. पति दफ्तर की बातें छिपाता है तो पत्नी गृहस्थी के हित में घर की बात पचा जाती है और घर की दीवार को हिलने से बचाती है. हकीकत जब सामने आती है तब अविश्वास की जड़ें अपनी पकड़ मजबूत करती हैं. अनबन व मतभेद के कड़वे फल फलने लगते हैं.

जो बोलूं, मुंह पर बोलूं का रंग विजया के ऊपर इस कदर चढ़ने लगा कि वह परिवार की मर्यादा को भूलने लगी. तब मुझे लगा कि मुंह पर बोलने वाले अति उत्साही प्रवृत्ति के होते हैं. अपने को दूसरे लोगों से सुपर समझते हैं. वे अपनी बात कहने में किसी का लिहाज नहीं करते. वे भूल जाते हैं कि वे कहां पर बोल रहे हैं? क्या बोल रहे हैं? कैसे बोल रहे हैं? उन के कहने के क्या दुष्परिणाम सामने आएंगे?

स्कूल से बेटे बंटी की परीक्षा का नतीजा आया. मार्कशीट देख कर विजया गुस्से से बम हो गई. हत्थे से बुरी तरह उखड़ गई थी. उस ने बंटी को गुस्से में आवाज दी तो वह थरथर कांपता अपनी मम्मी से पूछने लगा, ‘‘क्या हुआ, मम्मी?’’

‘‘तू मेरे साथ अभी स्कूल चल. वह टीचर अपने को क्या समझती है…उस के मुंह पर उस के सारे कामों का भंडाफोड़ न किया तो मैं भी विजया नहीं. मेरा जन्म विजय प्राप्ति के लिए ही हुआ है,’’ बेटे का हाथ पकड़ कर वह स्कूल की ओर बढ़ गई.

मैं ने उस से कहा, ‘‘विज्जू, मैं भी तुम्हारे साथ चलूं?’’

मेरी ज्वालामुखी विजया फूट पड़ी और बोली, ‘‘मैं जो भी बोलूं, मुंह पर बोलूं. सुन सकते हो तो सुनो, तुम से कुछ होताजाता तो है नहीं, तुम स्कूल जा कर टीचर की शिकायत इसलिए नहीं करते कि कहीं टीचर बुरा न मान जाए व बंटी को कम नंबर न दे दे. आप तो घर पर ही रह कर कलम घिसते रहो जी,’’ कहती वह घर की चौखट लांघ गई.

मैं ने महसूस किया कि तेज आंधी को तो एकबारगी रोका जा सकता है मगर मुंह पर बोलने वाली विजया को कतई रोका नहीं जा सकता.

विजया ने आ कर मुझे बताया कि टीचर के मुंह पर उस ने क्याक्या नहीं कहा, ‘‘आप अपने को समझती क्या हैं. शासन से पूरी पगार लेती हो और पढ़ाई के नाम पर जीरो.

‘‘बच्चों पर ट्यूशन पढ़ने के लिए दबाव डालती हो. जब बच्चों को हम घर पर पढ़ा रहे हैं तो स्कूल में मोटीतगड़ी फीस देने का क्या लाभ है? आप लोग स्कूल में मोबाइल पर घंटों गप्पें लड़ाती हो. स्वेटर के फंदे डालती फिरती हो. मैं आप के मुंह पर बोलती हूं कि मैं आप की लिखित शिकायत उच्च अधिकारी से करूंगी.’’

विजया की तरह मुंह पर बोलने वालों की व्यक्तिगत धारणा यही रहती है कि वे क्रांति का शंखनाद कर रहे हैं मगर वे नादान नहीं जानते कि वे वाकई में क्या कर रहे हैं. मुंह पर बोलने का अर्थ है मन की भड़ास निकालना. मुंह पर बोलने मात्र से क्रांति नहीं आती. मुंह पर बोलने वालों से लोग रास्ता काटने लगते हैं. पता नहीं मुंह पर बोलने के पत्थर कब उन के सिर फोड़ दें. मुंह पर बोलने वालों की जबान पर आलोचना अपने बोरियाबिस्तर के साथ विराजमान रहती है. वे कमजोर लोगों को अपनी जबान का शिकार बनाते हैं. मुंह पर बोलने वालों ने कभी भी किसी दबंग के सामने अपना मुंह नहीं खोला.

कई बार मेरे मन में विचार आए कि विजया से कहूं, ‘‘विज्जू बेगम, हरदम मुंह पर बोलना अच्छा नहीं होता. मुंह पर बोलने की टौफी को शिष्टता के रैपर में लपेट कर भी तो दिया जा सकता है. किसकिस के मुंह पर बोलती फिरोगी. तुम्हारी तरह हर कोई कबीर नहीं बन सकता. विवेक, संतुलन, धैर्य की जरूरत पड़ती है मुंह पर बोलने वालों को. कबीर ने ऐसे ही नहीं लिख दिया, ‘बुरा जो खोजन मैं चला बुरा न मिलयो कोय, जो दिल ढूंढ़ा आप ना मुझ सा बुरा न कोय.’

मगर मैं शांत ही रहा. विजया के मुंह पर बोलने का साहस तो मुझ में न था इसलिए सोचा, ‘जो भी बोलूं मुंह पर बोलूं’ विषय पर व्यंग्य लिख डालूं व पत्नी को समर्पित कर दूं कि अपनी आलोचना सहते समय कैसा लगता है

डौलरों में खेलती अमेरिकन कामवालियां

अमेरिका सहित सारे पश्चिमी देशों में डिग्निटी औफ लेबर यानी श्रम की प्रतिष्ठा है. यहां किसी भी काम को छोटा नहीं माना जाता है. ज्यादातर काम मशीनों द्वारा संपन्न होते हैं. फिर भी कुछ काम ऐसे हैं जिन का हाथों द्वारा श्रम किए बिना संपन्न होना संभव नहीं है. ऐसे काम करने वालों की यहां अच्छी मांग है लेकिन ये महंगे बहुत हैं.

भारत में हमें महरी, धोबी, माली, कुक आदि आसानी से मिल जाते हैं. अमेरिका में ज्यादातर परिवारों में पतिपत्नी दोनों ही नौकरी करते हैं. भारतीय परिवारों में भी यही स्थिति है. ऐसे लोगों को अपने घर की सफाई के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है. यहां हम कामवाली, जिसे मेड कहते हैं की चर्चा कर रहे हैं.

भारत की तरह रोज कामवाली को बुलाना यहां असंभव है. वर्षों पहले मैं पहली बार अमेरिका आई तो बड़ा अटपटा सा लगता था. बुढ़ापे में भी खाना खुद बनाना होता है. बरतन तो डिशवाशर में धुल कर सुखा दिए जाते हैं, पर मशीन में डालने के पहले उन्हें पानी से हाथों से साफ करना होता है. उसी तरह गंदे कपड़े वाश्ंिगमशीन में धुल जाते हैं और ड्रायर उन्हें पूरी तरह सुखा देता है. पर साधारण सूती कपड़ों का तो बुरा हाल हो जाता है ड्रायर में. यहां तक कि सिंथैटिक साडि़यों को इतनी बुरी तरह मरोड़ देता है कि उन्हें सीधा कर तह करना बड़ी बात है.

मैं यहां कैलिफोर्निया के सिलिकौन वैली, जो बे एरिया भी कहलाता है, आई थी. दुनिया की मशहूर सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियां यहीं स्थित हैं. यहां आने पर मैं ने देखा बड़ीबड़ी गाडि़यों पर बड़ेबड़े अक्षरों में मेड लिखा होता और उस में एक या

2-4 लड़की या औरत होती थीं. उन की कार पर उन के फोन नंबर और ईमेल लिखे होते थे. मैं ने एक का नंबर नोट कर लिया था. मैं ने बेटे से कहा, ‘‘मैं बूढ़ी हो चली हूं, डोमैस्टिक हैल्प तो लेनी ही होगी.’’

बेटे ने कहा, ‘‘मैं उसे बुला कर काम के लिए बोल देता हूं. मगर ध्यान रहे ज्यादा से ज्यादा सप्ताह में एक दिन बुला सकता हूं और यह भी काफी महंगा है. आप खुद देख लेना.’’

बेटे ने आगे बताया, ‘‘यहां कामवालियां शनिवार और रविवार को नहीं आती हैं. वर्किंग डे में मुझे खुद उन से निबटना होगा.’’

अमेरिका में खासकर भारतीय घरों में अकसर कामवालियां आती हैं. कोई सप्ताह में 1 दिन तो कोई 2 सप्ताह में 1 दिन बुलाता है.

वैसे, यहां धूल न के बराबर होती है, मकड़े के जाले भी बहुत कम पाए जाते हैं. ज्यादातर ऐसे काम मैक्सिको से आए लोग, जो ग्रीनकार्ड धारक हैं या अमेरिकन नागरिक बन चुके हैं, करते हैं. कुछ चीनी या वियतनामी भी यह काम करते हैं. इन से पहले से अपौइंटमैंट लेना होता है.

होती हैं पेशेवर

एक दिन मैं ने एक कामवाली को बुलाया. एक बड़ी गाड़ी में 3 महिलाएं आईं. तीनों मैक्सिकन थीं. उन में से एक जो 25-30 वर्ष के बीच में होगी अंगरेजी जानती थी. वही लीडर होगी. बाकी दोनों कम उम्र की लड़कियां थीं जो सिर्फ स्पैनिश ही समझती थीं. मुझे पूरा काम, जो अंगरेजी जानती थी, उसी को समझाना था. वही आपस में काम का बंटवारा करती थी.

मैं ने उस को पूरा काम बताया. किचन, बैडरूम, लिविंग, ड्राइंगरूम और बाथरूम की सफाई करनी है. साथ में, जितने फ्लोर्स और शीशे के दरवाजे व खिड़कियां हैं, उन की भी सफाई करनी होगी. उन की लीडर ने एक बार पूरा घर घूम कर देखा. घर डुप्लैक्स था, जो करीब 3,000 वर्ग फुट में था. फिर उस ने कहा कि यह काम हम तीनों मिल कर लगभग 3 घंटों में कर लेंगी. चूंकि मेरे यहां पहली बार आई थीं, सफाई का काम भी कुछ ज्यादा था. इस के लिए उन्होंने 250 डौलर्स मांगे. फिर कहा कि अगर प्रति सप्ताह बुलाएंगे तो उन्हें 100 डौलर्स देने होंगे और 2 सप्ताहों पर बुलाने पर 150 डौलर्स लगेंगे. ये कामवाली सफाई के काम आने वाले सभी सामान और उपकरण अपने साथ गाड़ी में ले कर चलती हैं- ब्रश, वैक्यूम क्लीनर और क्लीनिंग लिक्विड्स आदि.

मैं ने थोड़ा तोलमोल कर पहली बार के लिए 230 डौलर्स पर तैयार कर लिया और आगे से 2 सप्ताहों में एक बार आने पर 140 डौलर्स पर. मैं ने इन्हें रुपए में बदल कर देखा तो दंग रह गई.

इस के अतिरिक्त हमें सप्ताह में एक दिन माली को भी बुलाना होता है. यह काम भी ज्यादातर मैक्सिकन ही करते हैं. इस के लिए सप्ताह में 1 दिन, 2 आदमी आते हैं. ये भी बड़ी गाड़ी में सभी उपकरणों के साथ आते हैं और सिर्फ आधे घंटे में आगे के लौन और पीछे के बैकयार्ड की सफाई करते हैं. साथ में, बढ़ी हुई घास और पौधों की जरूरत पड़ने पर कटाईछंटाई करते हैं. इस के लिए ये 40 डौलर्स प्रति सप्ताह लेते हैं. अगर कोईर् बड़ा पेड़ काटना हो या कोई नया पौधा लगाना हो तो उस के लिए अतिरिक्त डौलर्स देने होते हैं.

दरअसल, मैं भारतीय मानसिकता की हूं. भारत में कामवाली से सुबहशाम दोनों वक्त झाड़ू, सफाई, बरतन, कपड़ों की धुलाई वगैरह कई काम कराए जाते हैं. इस के अलावा, भारत में कामवालियों को भुगतान बहुत कम ही किया जाता है. लेकिन अमेरिका में तो वे महीने में अच्छेखासे डौलर कमा लेती हैं. 

बाढ़ के दौरान बीमारियों से ऐसे करें मुकाबला

बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों, वहां के रहवासियों के साथ देश की संपदा को भी नुकसान पहुंचता  है. इतना ही नहीं, बाढ़ के चलते जलजनित और वैक्टर संबंधी बीमारियां पनपती भी हैं. इन में मलेरिया, डेंगू, बुखार, हैजा, हैपेटाइटिस ए और चिकनगुनिया जैसी बीमारियां शामिल हैं.

बाढ़जनित बीमारियां

संक्रामक रोगों का फैलाव और प्रकोप बाढ़ आने के कुछ ही दिनों, सप्ताहों या महीनों के भीतर नजर आने लगता है. बाढ़ के दौरान और इस के बाद सब से आम है जलस्रोतों का प्रदूषण. ऐसे पानी के संपर्क में आने या इसे पीने के कारण जलजनित बीमारियां फैलने लगती हैं. इन में मुख्य हैं- दस्त और लैप्टोस्पायरोसिस. इस के अलावा खड़े पानी में मच्छरों को प्रजनन करने और पनपने का मौका मिलता है. इस प्रकार से वैक्टरजनित रोग फैलते हैं, जैसे कि मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया.

बाढ़ के बाद जो रोग एक महामारी का रूप ले सकता है वह है लैप्टौस्पायरोसिस. चूहों की संख्या में वृद्धि से कीटाणुओं का विस्तार होता है. चूहों के मूत्र में बड़ी मात्रा में लैप्टोस्पाइरा होते हैं जो बाढ़ के पानी में मिल जाते हैं. इस के अलावा, घटते जल स्तर के साथ मच्छरों की वापसी भी हो जाती है.

स्थिति से कैसे निबटें

बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए प्रशासनिक और व्यक्तिगत दोनों स्तर पर काम किया जाना चाहिए. प्रशासनिक स्तर पर जरूरी है कि प्राथमिक स्वास्थ्य की देखभाल और सेवाएं दुरुस्त रहें. स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों को सही प्रकार से प्रशिक्षित किया जाए ताकि वे किसी भी खतरे की स्थिति में सक्रिय हो कर कारकों की पहचान व आकलन कर सकें और तत्काल उचित कार्यवाही कर सकें. स्वच्छता और हाथ धोने के सही तरीकों के बारे में जनता को जागरूक किया जाना चाहिए. प्रशासन को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि पीडि़तों को रोगों से सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ पेयजल, सफाई की सुविधाएं और जरूरत पड़ने पर शरण लेने के उपयुक्त ठिकाने मुहैया रहें.

बरतें सावधानी

कुछ सावधानियां हैं जिन का लोग खुद भी ध्यान रख सकते हैं, ताकि महामारी के प्रकोप से बचाव हो सके.

बाढ़ के पानी में चलना नहीं चाहिए क्योंकि उस में मलमूत्र और कचरा मिला होता है.

त्वचा पर कोई चोट या घाव हो तो उसे बाढ़ के पानी से बचा कर रखना चाहिए, वरना इन्फैक्शन हो सकता है. इस के अलावा ऐसे घावों को स्वच्छ जल से साफ  करें और पट्टी बांध कर रखें.

यदि आप को बाढ़ के पानी या कीचड़ के संपर्क में आना ही पड़े या इस में डूबी चीजों को छूना पड़े तो साबुन और पानी से अपने हाथ धोने जरूरी हैं. शौचालय जाने के बाद भी हाथ धोएं. गंदे हाथों से भोजन न छुएं.

जो भी खाद्य सामग्री या दवाइयां बाढ़ के पानी के संपर्क में आई हों, उन्हें फेंक दें, प्रयोग न करें. इन से आप को इन्फैक्शन हो सकता है.

यदि आप के पास डब्बाबंद भोजन है तो डब्बे को अच्छी तरह से साफ कर के जल्द से जल्द इस सामग्री का प्रयोग कर लें.

स्थानीय जल आपूर्ति में किसी भी संभावित प्रदूषण के बारे में पता कर लें. प्रयोग करने से पहले उस पानी को उबाल लें.

वैक्टरजनित बीमारियों से बचने के लिए त्वचा पर मच्छर भगाने वाली क्रीम लगाएं और सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें. सड़क पर कचरा न फेंकें, यह चूहों को आकर्षित कर सकता है.

दरअसल, प्राकृतिक शक्तियों को रोकना तो संभव नहीं है, लेकिन बाढ़ के रूप में आई प्राकृतिक आपदा के बाद रोगों को फैलने से रोकने के उपाय अवश्य किए जा सकते हैं. इस के लिए स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय एजेंसियों को संयुक्त प्रयास करने  की आवश्यकता है. नागरिकों को अपने स्तर पर भी जरूरी उपाय करने चाहिए ताकि वे अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के साथ दूसरे रोगों के होने वाले नुकसान को कम कर सकें.

– डा. राजीवा गुप्ता, जनरल फिजीशियन, लाइब्रैट प्लेटफौर्म

अकेले हैं तो क्या गम है

दो दिनों पहले आए एक फोन ने मुझे चौंका दिया. मेरे दूर के एक बुजुर्ग रिश्तेदार का फोन था. उन्होंने कहा, ‘‘एक सरप्राइज पार्टी है कल. होटल अंश में तुम सब चले आना शाम 7 बजे तक और खाना मेरे संग खाना.’’

शाम तक पता चला कि शहर में रहने वाले अन्य रिश्तेदारों के पास भी उन का फोन आया है. अचानक भूलेबिसरे से हमारे ये बुजुर्ग चाचाजी हमारी चर्चा में आ गए. वर्षों पहले चाचीजी का निधन हो चुका था. चाचाजी पैंशन पाते थे और एक सामाजिक संस्थान से जुडे़ थे. पहले तो कई महीने चाचीजी के गम में बीमार ही पड़े रहे थे. बाद में उन के ही एक मित्र ने उन्हें उस संस्थान से जुड़ने को प्रेरित किया. धीरेधीरे वे उस संस्थान के क्रियाकलाप में व्यस्त रहने लगे थे.

नियत समय से कुछ पहले ही मैं होटल पहुंच गई थी, चाचाजी अकेले ही बैठे होटल मैनेजर से कुछ बातें करते दिखे. पता चला उन्होंने खुद ही अपना 80वां जन्मदिन मनाने का फैसला किया और सभी जीवित दोस्तों व रिश्तेदारों को आमंत्रित किया है. यहां तक कि दूसरे शहरों में रहने वाले उन के बच्चे भी मेहमान की ही तरह पहुंचे थे. उन्हें भी भनक नहीं लगने दी थी चाचाजी ने.

मैनेजर ने बताया कि अंकलजी 2-3 महीने से तैयारी कर रहे हैं. कभी कोई सुझाव देते हैं, कभी कोई बदलाव करते हैं. सच, हम सब ने चाचाजी को बिसरा ही दिया था. पिछले साल मेरे बेटे की शादी में ही उन से मिलना हुआ था. मैं ने पूछा, ‘‘चाचाजी, आप के उस संस्थान में क्या और कैसी गतिविधियां चल रही हैं?’’ तो चाचाजी ने बताया, ‘‘मैं जिस सामाजिक संस्थान से जुड़ा हूं वह बेसहारा और गरीब बुजुर्गों के लिए कार्य करता है. उस से जुड़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि सच में मेरा गम बहुत कम है. दूसरों को देख मुझे महसूस हुआ कि मेरे पास जो मौजूद है वह खुश रहने के लिए काफी है.’’

नियत समय पर पार्टी शुरू हुई. केक पर बड़ा सा 80 लिखा था जिसे उन्होंने काटा. धीमे संगीत पर हम सब के साथ उन्होंने भी थोड़ा कदम मिलाया. उन्हें देख मैं सोच रही थी कि ‘कोई मेरे लिए करे’ की जगह इन्होंने खुद ही अपने लिए सारा आयोजन कर लिया था. दोस्तोंरिश्तेदारों के संग हंसतेबोलते चाचाजी जीवन का कितना बड़ा सबक हमें सिखा रहे थे कि खुद के लिए भी जीना चाहिए. मेहमानों में उन के संस्थान से आए बुजुर्ग भी थे.

जीवनसाथी का साथ

चाचाजी की बड़ी सी मित्रमंडली भी बड़ी कमाल की दिखी, कोई बचपन का मित्र था तो कोई सहकर्मी तो कोई मिल्कबूथ का सुबह का साथी. सभी बेहद खुशमिजाज और जीवन से भरपूर दिखे. जीवन के प्रति उन की सकारात्मकता देख बहुत ही अच्छा लगा. सभी मित्रों को बच्चों की तरह पोज दे, उन का सैल्फी लेते देखना सुखकर था.

बुढ़ापा और तिस पर अकेलापन अकसर लोगों के लिए दुखदायी बन जाता है. जब उम्र की फसल पकने लगती है और उसी समय किसी एक का चले जाना दूजे के लिए बेहद कष्टमय हो जाता है. यही वह समय होता है जब जीवनसाथी या संगिनी की सब से ज्यादा जरूरत है. परंतु मृत्यु पर किस का वश है. कभी न कभी एक को अकेले जीने को विवश होना ही होता है.

मेरी एक सहेली है ताप्ती, बेहद चुस्तदुरुस्त और फुरतीली. घरबाहर के सारे काम करती, पति को दैनिक कार्यों से बिलकुल मुक्त रखती. परंतु पति की असमय मृत्यु से उसे ऐसा सदमा पहुंचा कि उबर ही नहीं पाई. वह कहते हैं न, कि मरने वाले के संग कोई थोड़े चला जाता है पर ताप्ती ने सच में जीतेजी मानो दुनिया छोड़ दी. लोगों से खुद को काट लिया. जीवन के हर रंग से मुंह मोड़ लिया. आज सालों बीत गए हैं पर उस की दुनिया वहीं ठहरी हुई है. उदास, बेजार, बीमार… अफसोस होता है उस जिंदा लाश को देख जिस के बच्चे उस के जीतेजी अनाथ हो गए.

मुझे नेहा की याद आ रही है जो पति के दुनिया से जाने के बाद बदहवास सी हो गई थीं. घर उन्हें मानो काटने को दौड़ने लगा था. फिर एक दिन बेटे के साथ अपने गांव गईं, जहां पहले 2-4 सालों पर ही जाती थीं. इस बार उन्हें वहां की ठहरी हुई जिंदगी सुकूनदायी लगी और जिद कर के वहीं रुक गईं. बेटे ने भी सोचा कि स्थानपरिवर्तन से शायद मां को अच्छा महसूस हो. अधबना सा घर था और थोड़े खेत. पहले खेत को बटाई पर दिया करती थीं, इस बार उन्होंने मजदूर रख खुद ही धान लगवाया और अधबने घर को पूरा करवाने लगीं. गांव में रहने वाले उन के रिश्तेदार उन की मदद कर दिया करते थे. 2 महीने बीततेबीतते बेटा वापस आने की जिद करने लगा. पर नेहा कभी कहा कि खेतों में दवा का छिड़काव करवाना है तो कभी कहा कि कमरे की छत ढलवानी है. आजकल करते वे 7-8 महने वहां रह गईं.

इस बीच वे इतना व्यस्त रहीं कि पति के गुजरने के बाद की बदहवासी से वे उबर गईं. अब उन्हें एक मकसद मिल गया. हर साल धान लगवाने के मौसम में वे गांव चली जातीं और कुछ महीने वहां रहतीं. कुछ न कुछ निर्माण और रचनात्मक कार्य करवा कर सालभर खाने लायक चावल व अन्य फसल रख, कुछ बेच कर ही वापस लौटतीं. 60 वर्ष की आयु में उन्हें पहली बार आर्थिकरूप से आत्मनिर्भरता व आत्मबल का अनुभव हुआ.

उदासी दूर करें

मेरे ससुरजी बेहद चुस्तदुरुस्त और पेशे से इंजीनियर थे. सासससुर दोनों आराम से अपने शहर में बिना किसी के सहारे रहते थे. फिर जब सास चली गईं 70 की उम्र में, तो ससुरजी को अकेलापन खाने लगा. वे हमारे साथ रहने लगे पर उन की उदासी देखी न जाती थी. इस बीच, मेरी बेटी आई. वह अपने दादाजी के लिए एक स्मार्टफोन लेती आई, जो उस वक्त नयानया ही निकला था. टैक्निकल आदमी तो वे थे ही, नई तकनीक सीखने की ललक उन्हें व्यस्त रखने लगी. जब तक बेटी रही वह दादाजी को सिखाती रही, कभी जल्दी समझते नहीं तो कभी भूल जाते. पर फिर सीखते और फिर पूछते. फिर तो वे नौजवानों की ही तरह अपने मोबाइल पर व्यस्त रहने लगे.

हम सब की सहायता से उन्होंने न सिर्फ मोबाइल चलाना सीखा बल्कि वे लैपटौप भी चलाने लगे. 74 की उम्र में उन्होंने सोशल नैटवर्किंग, गूगल और डाउनलोडिंग सीख अपने जीवन को काफी रोमांचक व व्यस्त बना लिया था. उन के दोस्त इस उम्र में जहां भजन व पूजापाठ में दिन गुजारते, वे इंटरनैट पर दुनिया में क्या नया हो रहा है, देखतेपढ़ते. राधिका जब अपने घर एक झबरे पप्पी को ले कर आई थी तो सब से ज्यादा उस की सास ने ही विरोध किया था. परंतु धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के पक्के साथी बन गए. जब सब स्कूल और दफ्तर चले जाते तो राधिका की विधवा सास को टीवी देखने के अलावा कोई चारा नहीं बचता था. पर उस पशु के आने के बाद न चाहते हुए भी वे उस की देखभाल करने लगीं और वह एक सच्चे मित्र की तरह दिनभर उन के साथ डोलता रहता. उस पप्पी ने उन के अकेलेपन की शून्यता को अपनी मूक उपस्थिति से हर लिया था.

खुशी के बहाने ढूंढ़ें

मुग्धा अपने दादाजी के मरने के बाद अपनी दादीजी को अपने साथ बेंगलुरु लेती गई थी. वहां वह एक पब्लिकेशन हाउस में काम करती थी. वह देखती कि दादी अकसर एक डायरी को सीने से लगाए रहती थीं, कभी झुक कर कुछ लिखती हुई भी दिखतीं.

एक दिन उत्सुकतावश मुग्धा ने उस डायरी के पन्ने को पलटना शुरू किया. डायरी क्या, वह तो दस्तावेज था दादादादी की प्रेमभरी गृहस्थी का, जीवन का. उस में उन के विवाह के शुरुआती दिनों में लिखी प्रेम कविताएं थीं तो सासूमां द्वारा दिए दुख भी गीतों की शक्ल में अश्रु अंकित थे. मुग्धा के पापा के जन्म के समय की ममताभरी रचनाएं थीं… तो आखिर में उस के दादाजी की बीमारी की दौरान उन के मन में उठती भावनाएं और जाने के बाद के विछोह का दर्द भी शब्द बन वहां रचेबसे थे.

मेरे दफ्तर में शेषाद्री साहब थे. ठीक रिटायरमैंट के पहले उन की पत्नी लंबी बीमारी के बाद चल बसीं. दोनों बेटियों की शादी हो चुकी थी और दोनों ही विदेश में रहती थीं. रिटायरमैंट के बाद सुना कि उन्होंने अपनी सैक्रेटरी कुंआरी व अधेड़ मरियम से शादी कर ली. बेटियां ऐसे भी कम ही आती थीं, उस के बाद तो आना ही छोड़ दिया. लोगबाग कहते कि पहले से ही चक्कर था या सैके्रटरी ने पैसे के लालच में फांस लिया. जितनी मुंह उतनी बातें. परंतु दिल का एक कोना खुश होता उन्हें देख, जब वे रोज सुबह मरियम को कार से औफिस छोड़ जाते, शाम को लेने आते.

बाजार में दोनों साथ खरीदारी करते या टहलते दिख जाते तो लोगों को याद आ जाते विधुर महेश्वरजी, जो बेटी के घर के एक कोने में चुपचाप, सिर्फ मृत्यु के इंतजार में मानो दिन काट रहे हों, पड़े रहते हैं. कम से कम उन से तो बेहतर जीवन चुना शेषाद्रीजी ने. सच, चाचाजी की जन्मदिन पार्टी जीवन के प्रति हर हाल में सकारात्मक रवैया बनाए रखने की प्रेरणा दे गई. कुछ लोग मरने के लिए जीते हैं. वहीं, कुछ लोग मरते दम तक जीते रहते हैं.

सलमान को जुबैर का ओपेन चैलेंज, हिम्मत है तो बिना बौडीगार्ड के मिल

बिग बौस के घर में इस बार ऐसे सदस्य आए हैं जिनकी वजह से सलमान खान का होस्ट का किरदार आसान नहीं रहने वाला है. शनिवार रात के एपिसोड में सलमान खान ने घरवालों की जमकर क्लास ली. इस क्लास में सलमान ने सबसे बुरा हाल किया जुबैर खान का. जुबैर खान को नैशनल टीवी पर हुई अपनी यह बेइज्जती इतनी ज्यादा बुरी लगी कि उन्होंने नींद की गोलियां खा लीं, जिसके कारण उन्हें अस्पताल ले जाया गया. फिर जनता की वोट नहीं मिलने की वजह से वे घर से बाहर भी हो गए.

घर से बाहर आने के बाद जुबैर ने मुंबई के एंटाप हिल पुलिस स्टेशन में सलमान के खिलाफ लिखित शिकायत दर्ज कराई है, इसमें उन्होंने सलमान पर बिग बौस में वीकेंड वार के दौरान धमकी देने का आरोप लगाया है, इसी दौरान जुबैर ने मीडिया में सलमान को निशाना बनाते हुए कहा है कि सुपरस्टार ने बीईंग ह्यूमन के जरिये अपनी बैड बौय की इमेज को सुधारने की कोशिश की है.

जुबैर ने कहा, ‘मैं विवेक ओबेराय नहीं हूं, जो सलमान खान को छोड़ दूंगा, मैं उन्हें आगे लेकर जाऊंगा. सलमान को लोगों की बेइज्जती करने का बड़ा शौक है. वो मेरी रिपोर्ट निकालने की बात कर रहे हैं, हमारे पास उसकी सारी रिपोर्ट है. हम उसके बारे में सब जानते हैं. हम यह भी जानते हैं कि वह किस एक्ट्रेस के साथ घूमते हैं.” जुबैर ने सलमान खान को बिना बौडीगार्ड के मिलने की चुनौती भी दी है. जुबैर ने कहा है, “तुम जहां चाहो मुझे बुला लो, और बिना बौडीगार्ड के आना. अगर तुम चाहो तो बौडीगार्ड के साथ भी आ सकते हो.”

वह आगे कहते हैं, मैं सलमान को यही कहूंगा कि मैंने तेरी इज्जत रखी और कैमरे के सामने कुछ नहीं कहा. सलमान तूने पूरी दुनिया के सामने मेरी इज्जत उतारी है. मुझे नल्ला डान कहा, मैं कोई डान नहीं हूं, तू सुन ले.’ जुबैर यहीं नहीं रुके… उन्होंने कहा, ‘सलमान खान ने मुझे बार-बार कहा कि तेरी औकात क्या है. सलमान ने मेरे दिल से खेला है अब मैं उनके दिमाग से खेलूंगा. सलमान को जितनी ताकत लगानी है वह लगा लें. अब देखना कि यह पठान क्या करता है. सलमान तुझे ऊपरवाले ने इज्जत और ताकत इसलिए नहीं दी कि तू लोगों की दुनिया के सामने इज्जत उतारे.

जुबैर ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, मैंने अपनी शिकायत एक संस्था के साथ-साथ लोनावला के पुलिस स्टेशन में भी फैक्स कर दी है. मैं तुझे ओपन चैलेंज करता हूं, तुझे जो करना है कर ले. तू बस मुझे और मेरी बहनों को देख, हम क्या करते हैं. तुझसे सबसे पहले मेरी बहनें लड़ेंगी, बाद में मैं अपने घर के मर्दों को मैदान में उतारूंगा. कलर्स चैनल ने मेरी इमेज खराब की, उन्होंने लोगों को गलत बताया कि मैं हसीना पारकर का दमाद हूं. मैं एक फिल्म डायरेक्टर हूं. ‘मैं सलमान खान और कलर्स चैनल के खिलाफ आखरी तक लड़ूंगा.

जुबैर ने बिग बौस के स्क्रिप्टेड होने का भी दावा किया और कहा कि मुझे बिग बौस में बोलने के लिए डायलाग लिख कर दिए गए थे. बिग बौस में मेंटल टार्चर होता है. वहां जो भी गलत होता है उस पर यदि मैं जवाब देता हूं, तो कहा जाता है कि मैंने गाली दी है. गाली देने के पहले क्या हुआ यह तो दिखाया ही नहीं जाता है. ‘कलर्स’ लोगों की इज्जत उतारकर पैसे कमाने में लगा है.’

क्या था पूरा मामला आइये जानते हैं.

क्या कहा था सलमान खान ​ने?

शनिवार को सलमान कंटेस्टेंट जुबेर खान पर काफी गुस्सा हुए थे. जुबेर की बदतमीजी और गाली-गलौच को लेकर सलमान इतना भड़क गए कि उन्होंने ये तक कह दिया, “घर से बाहर निकलने के बाद अगर कुत्ता नहीं बनाया तो मेरा नाम सलमान खान नहीं.” इस दौरान सलमान ने जुबैर खान को उनकी सच्चाई जनता को बताने की भी धमकी दी. पूरे एपिसोड के दौरान सलमान अब आगे ऐसा न करने की बात कहते रहे. वहीं, बीच में जब जुबैर ने सलमान खान को भाईजान कहा तो उन्होंने खुद को भाई न कहने के लिए सख्ती से मना कर दिया.

जुबैर खान ​ने अर्शी को कहा था 2 रुपए की औरत

जुबैर ने शो में लड़ाई के दौरान अर्शी को भद्दी बातें कही थीं. उन्होंने अर्शी को 2 रुपए की औरत भी कहा था. ऐसी ही कई बातों की वजह से सलमान ने जुबैर खान को फटकार लगाई.

खुद को अंडरवर्ल्ड का रिश्तेदार बताते थे जुबैर खान

घर में जुबैर कई बार कंटेस्टेंट को धमकाते नजर आए थे. उन्होंने ‘बिग बौस’ में कहा था, “मेरे रिलेटिव्स अंडरवर्ल्ड से जुड़े हैं, ये सबको पता है. मेरी जिद थी कि मुझे मेरी लाइफ में कुछ करना है. मैं उन लोगों की तरह नहीं बनना चाहता.”

आपको बता दें कि जुबैर पिछले 15 सालों से इंडस्ट्री में एक्टिव हैं. उन्होंने अंडरवर्ल्ड पर बेस्ड ‘लकीर का फरीर’ (2013) फिल्म डायरेक्ट की है. साथ ही, वो कई ऐड्स में भी काम कर चुके हैं.

बिग बी के ये दमदार डायलौग्स हैं उनकी पहचान

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन आज अपना 75वां जन्मदिन मना रहे हैं. अपनी दमदार आवाज, अभिनय और लंबे कद से सबको अपना दीवाना बनाने वाले बिग बी का जन्मदिन सबके लिए खास है. देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में फैले बिग बी के फैन्स उनका 75 वां जन्मदिन सेलिब्रेट करते हैं. हर जगह अलग-अलग तरह के आयोजन किए जाते हैं. इसमें एक आयोजन ऐसा भी है, जहां 75 साल के अमिताभ के लिए 75 फुट का केक कटेगा. यह अपने आप में एक रिकार्ड होगा.

गौरतलब है कि ‘सात हिन्दुस्तानी’ फिल्म से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत करने वाले अमिताभ बच्चन ने जहां फिल्मों में इतिहास रच दिया, वहीं कौन बनेगा करोड़पति जैसे टीवी शो से टीवी शो की दुनिया को बदल कर रख दिया.

अमिताभ के संपूर्ण करियर में उनकी फिल्‍म ‘जंजीर’ को मील का पत्‍थर माना जाता है. इस फिल्म ने उन्‍हें रातोरात सुपरस्‍टार बना दिया. जंजीर के बाद ही उन्‍हें एंग्री यंग मैन का खिताब मिला.

उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें ऐसे मुकाम पर पहुंचाया है, जिसका इंसान महज सपना भर देख सकता है. अमिताभ शब्द का मतलब ही होता है कभी न बुझने वाली लौ और बिग बी ने इसे साबित भी कर दिखाया है.

आज उनके जन्मदिन पर पेश है बच्चन साहब के वो डायलौग्स जो मुहावरे बन गए और आज भी हमारी जुबान पर चढ़े हुए हैं.

जंजीर

जब तक बैठने के लिए ना कहा जाये, शराफत से खड़े रहो, ये पुलिस स्‍टेशन है तुम्‍हारे बाप का घर नहीं.

दीवार

जाओ पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ, जिसने मेरे बाप को चोर कहा था. जाओ, पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ जिसने मेरी मां को गाली देकर नौकरी से निकाल दिया था. पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ जिसने मेरे हाथ पर ये लिख दिया. उसके बाद… मेरे भाई तुम जहां कहोगे वहां साइन कर दूंगा.

मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता.

आज मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, बैंक बैलेंस है, क्‍या है तुम्‍हारे पास?

आज खुश तो बहुत होगे तुम.

शहंशाह

रिश्‍ते में तो हम तुम्‍हारे बाप लगते हैं, नाम है शहंशाह.

अग्निपथ

पूरा नाम, विजय दीनानाथ चौहान, बाप का नाम दीनानाथ चौहान, मां का नाम, सुहासिनी चौहान, गांव मांडवा, उम्र छत्‍तीस साल.

डौन

डौन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.

कुली

बचपन से है सर पर अल्‍लाह का नाम, और अल्‍लाह रखा है मेरे साथ, बाजू पर है सात सौ छियासी का बिल्‍ला, बीस नंबर बीड़ी पीता हूं, काम करता हूं कुली का और नाम है इकबाल.

कालिया

हम जहां खड़े हो जाते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है.

नमक हलाल

आई कैन टाक इंग्लिश, आई कैन वाक इंग्लिश, आई कैन लाफ इंग्लिश बिकाज इंग्लिश इज वेरी फनी लैंग्‍वेज.

कभी-कभी

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है..

मिस्‍टर नटवरलाल

अरे ये जीना भी कोई जीना है, लल्‍लू.

सत्‍ते पे सत्‍ता

चैन खुली की मैन खुली की चैन.

लावारिस

अगर अपनी मां का दूध पिया है, तो सामने आ.

चुपके चुपके

गोभी का फूल, फूल होकर भी फूल नहीं, सब्‍जी है. इसी तरह गेंदे का फूल, फूल होकर भी फूल नहीं है.

त्रिशूल

आज आपके पास सारी दौलत है पर आपसे ज्‍यादा गरीब मैंने आज तक किसी को नहीं देखा.

मर्द

मर्द को दर्द नहीं होता.

शराबी

जिंदगी का तंबू तीन बंबुओं पर खड़ा होता है. शक्ति हमारे देश में काम ढूंढना भी एक काम है.

नटरवर लाल

मूंछें हों तो नत्थूलाल जैसी, वरना ना हो.

आनंद

आनंद मरा नहीं, आनंद मरा नहीं करते हैं.

शोले

क्‍या करूं, मेरा तो दिल ही कुछ ऐसा है, मौसी.

घड़ी घड़ी ड्रामा करता है, नौटंकी साला.

अब क्या बताएं मौसी, लड़का तो हीरा है हीरा.

मोहब्‍बतें

परम्‍परा, प्रतिष्‍ठा और अनुशासन. ये इस गुरूकुल के तीन स्‍तम्‍भ है. ये वो आदर्श हैं जिनसे हम आपका आने वाला कल बनाते हैं.

बुड्ढा होगा तेरा बाप

अबे, बुड्ढा होगा तेरा बाप.

सरकार

मुझे जो सही लगता है मैं करता हूं, फिर चाहे वो भगवान के खिलाफ हो, कानून के खिलाफ हो या पूरे सिस्‍टम के खिलाफ.

कौन बनेगा करोड़पति

आर यू श्‍योर? लौक कर दिया जाय.

घर को दें नया लुक

उच्च शिक्षा हासिल करने या नौकरी लग जाने के बाद संतानों को दूसरे शहर या दूसरे देश में जाना पड़ता है. यह स्वाभाविक सचाईर् है. इस सच के साथ स्वाभाविक यह भी है कि मातापिता अकेलापन महसूस करने लगते हैं.

संतानों के बाहर जाने को दूसरी नजर से देखें तो यह आप को पूरी आजादी से रहने का अच्छा मौका देता है. आप कितने भी बुजुर्ग क्यों न हों, घर में कुछ ऐसी चीजें होती हैं जिन्हें अच्छे और आधुनिक फैशन के अनुरूप बदला जा सकता है.

ऐसे वक्त में आप घर को रीडैकोरेट करें. इस से आप को जहां जिंदगी में फिर से जोश और उत्साह के साथ जीने का नजरिया मिलेगा वहीं पुरानी यादों के साथ जीने के बजाय नए उजालों का स्वागत कर सकेंगे.

इस संदर्भ में टैंजरीन की डिजाइनिंग हेड सोनम गुप्ता का कहना है, ‘‘परदों को खूबसूरत पैटर्न में सजाएं. इस से आप का मूड बेहतर होगा और पूरे घर का लुक बदल जाएगा. ये किफायती मूल्य में औनलाइन बहुत आसानी से उपलब्ध होते हैं, इसलिए इन्हें बदलना आसान भी है.

‘‘हर मौसम के लिए खास/विंडो ड्रेपरी होती हैं. उदाहरण के लिए न्यूट्रल बैकड्रौप के लिए वाइट वेस पैटर्न आजमाएं या फिर हैप्पी समर येलो कलर या वाइब्रैंट औरेंज कलर द्वारा अपने लिविंगरूम को ऊर्जा से भरपूर बना लें.

‘‘बच्चों के घर से जाने के बाद जिंदगी में रोचकता और जीवंतता लाने के लिए पूरा बैडिंग डैकोर फ्लोरल ग्राफिक प्रिंट्स से सजाएं. विशिष्ट लुक के लिए एब्सट्रैक्ट प्रिंट या फिर सुगंधित वातावरण के एहसास के लिए फिलिंग फ्लावर पैटर्न्स का प्रयोग करें.

‘‘चमकदार रंगों वाले खूबसूरत बैड शीट्स के साथ मुंबई स्ट्रीट व्यू या फिर गोवा बीच हैंगआउट प्रिंट के डिजाइन वाले तकियों से अपने बिस्तर पर लिविंग पैटर्न तैयार करें. हर मौसम में फैब्रिक का रूप बदल दें.

‘‘बच्चों के जाने के बाद आप के पास बहुत सारा खाली समय होता है. इस वक्त को आनंद से गुजारें. ब्रैकफास्ट के दौरान कौफी पीते हुए खिड़की या बालकनी से झांकने और नजारे देखने का लुत्फ ही अलग होता है. इस के लिए बालकनी में 2 आराम कुरसियां डाल लें और गद्देदार कुशन बिछा कर सुकून से बैठें.

‘‘घर में पहले की तरह चहलपहल का माहौल रखने का प्रयास करें. मेहमानों के लिए घर सजा कर रखें. खास कर लिविंग स्पेस और डाइनिंग रूम को नया जीवंत लुक दें.’’

बच्चों के कमरे में बदलाव

बच्चों के जाने के बाद उन का खाली कमरा मातापिता को रहरह कर कचोटता है. बच्चों के खाली कमरे को यादों का धरोहर बनाने के बजाय बेहतर होगा कि उसे किसी और तरह से अपने उपयोग में लाएं. आज तक बच्चों के लिए जीते रहे, अब जिंदगी को थोड़ा सुकून और खूबसूरती से सिर्फ अपने लिए गुजारें.

ईशान्या मौल के सीईओ महेश एम बता रहे हैं कई विकल्प

रिलैक्सिंग रूम

बच्चों के कमरे का उपयोग रिलैक्स होने के लिए करें. कमरे में से सारे इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स हटा दें. जब वक्त मिले यहां बैठ कर बाहर का नजारा देखें या झपकी लें. जमीन पर मैट्रेस बिछा कर उस पर कुशन वगैरा रखें और आराम के पल गुजारें.

लाइब्रेरी

यदि आप को पढ़नेलिखने का शौक है तो इस कमरे को पर्सनल लाइबे्ररी बनाने से बेहतर क्या होगा. किताबों और पत्रिकाओं का बढि़या संकलन तैयार करें.

मैगजीन रैक्स, किताबों के लिए रैक्स वगैरा खरीद लें. कमरे में सोफा, टेबलकुरसी आदि डाल दें ताकि आराम से किताबें पढ़ी जा सकें.

म्यूजिक वर्ल्ड

यदि आप म्यूजिकलवर हैं तो बेहतर होगा कि इस कमरे को म्यूजिक के नाम कर दें. रोजाना यहां बैठ कर अभ्यास करें. जमीन पर कालीन बिछा कर सुकून के साथ म्यूजिक की दुनिया में खो जाएं.

वर्कप्लेस

यदि घर से काम करते हैं या फ्रीलांसर हैं तो यह कमरा आप के लिए महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है. आप शांति के साथ यहां बैठ कर काम निबटा सकेंगे. यहां कौर्नर डैस्क, वाल सैल्फ, छोटा स्टोरेज कैबिनेट और एक रिवौल्विंग चेयर व टेबल रख कर इस कमरे को बेहतरीन वर्कप्लेस के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं.

पर्सनल जिम

आप बच्चों के कमरे को छोटेमोटे पर्सनल जिम के रूप में भी तबदील कर सकते हैं. इस से आप का जिस्म भी मेंटेन रहेगा और चुस्तदुरुस्त भी बने रहेंगे. ट्रेडमिल और डंबल रख कर जिम की साजसज्जा पूरी करें. जब भी समय मिले, यहां आ कर ऐक्सरसाइज करें.

बच्चे अकसर मेहमान की तरह आएंगे. इस दौरान उन के सूटकेस, कपड़े रखने की जगह खाली रहे, ऐसी व्यवस्था करें. बच्चे अपने मित्रों व सहेलियों के साथ आ सकते हैं. सो 2 अलगअलग बैड भी हों. बाथरूम हमेशा साफ रखें और उस में सदा नया तौलिया व साबुन रखें ताकि बच्चों और मेहमानों के आने के समय इसे साफ करने की चिंता न करनी पड़े.

इस तरह आप अपने बच्चों के कमरे का बेहतर उपयोग भी कर सकेंगे और जब बच्चे छुट्टियों में घर आएंगे तो वे भी अपने कमरे के इस नए अवतार को देख कर खुश होंगे.

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